Book Title: Kalyan Kalika Part 1 Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 6
________________ स्मरणांजलि पू, प, कल्याणविजयजी गणि. जैन शासनमां प्राचीन प्रोना संशोधक, आगम-व्याकरण न्याय आदि ग्रंथोना प्रकांड विद्वान, इतिहासना समर्थज्ञाता, विधिविधान ग्रंथोना विशिष्ट ज्ञाता, ज्योतिष शास्त्रना समर्थ विद्वान तथा प्राचीन शिल्पविज्ञानना उडा अभ्यासी हता. आ बधाय विषयोमां ते अजोड अने समर्थ हता. जैन जगत सिवाय समस्त भारतमां इतिहासवेत्ता तरीके तेमनी विशिष्ट ख्याति हती अने तेमना अभिप्राय इतिहासना विषयमां गणनापात्र गणातो. प्राचीन इतिहास संबंधमां आपणा जैन शासनमां त्रण व्यकितओनी गणना हती १. पू. आ. इन्द्रसूरिजी म. २. पू. प. कल्याणविजयजी गणि. ३. पू. मुनिश्री दर्शनविजयजी त्रिपुटी. आ त्रणेमां विशिष्ट स्थान पू. पं. कल्याणविजयजी गणिनु हतु. तेमणे जैन इतिहासना संशोधन साथे केटलीक एवी विशिष्ट वातो संशोधन द्वारा रजु करी हती के जेने लइ भारतभरना विद्वानो तेमना अभिप्रायने बहुमुल्य गणता. तेनी साक्षिरुपे तेमना लखेला वीरनिर्वाण संवत अने महाबीर कालगणना पुस्तक छे. एमणे अमना जीवनकाळ दरमियान लगभग त्रीस प्रथा लख्या छे. आ तीसे ग्रथा तेमना स्वयं सर्जन अने चितनमूलक छे. तेमना जन्म वि. सं. १९४४ मां राजस्थानना लास गाममां, १९ वर्षनी उमरे वि सं. १९६३ वै सु. ६ ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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