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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नरवर्म चरित्र-सम्यक्त्वशुद्धि, उपा. विनयप्रभ, सं., पद्य, वि. १४१२, आदिः (-); अंति: विनयप्रभ० जोरचयां बभूवुः,
श्लोक-५०२, (पू.वि. श्लोक-९० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मुनिपति चरित्र, पृ. १८अ-३३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:मुणिपतिच०.
आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५३४ तक है.) ९१०६५ (#) अर्हद्धर्मनिर्णयोपनिषद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७२-६६(२ से ४५,४७ से ६५,६७ से ६८,७०)=६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अर्हधर्मानिर्णय., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०x१२, १३४४४-५३).
अर्हद्धर्मनिर्णयोपनिषद, सं., गद्य, आदि: एवं श्रीमत्सकलभुवनैकनाथ; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१ अपूर्ण से अध्याय-८
__ अपूर्ण तक व अध्याय-१० अपूर्ण से नहीं है.) ९१०६७. (+#) प्राकृत छंदकोश, अपूर्ण, वि. १६६४, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, पठ. मु. हर्षसुंदर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९x१२, १०४२५).
प्राकृत छंदकोश, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गाहाणं छंद भणीयाणं, गाथा-८०, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ९१०७६. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६७-३८(१ से १९,२३ से २९,३४ से ३९,४१,५० से ५२,५८,६०)=२९,
प्र.वि. खंडित पत्रांकवाले भाग को अनुमानित पत्रांक दिया गया है. लाल अक्षरवाले श्लोकों की संख्या-४५० है., संशोधित. कुल ग्रं. २१५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०x११, १०४४२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य,
वि. १६९३, आदि: (-); अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (पू.वि. गाथा-१५३ अपूर्ण से १७८ तक, १९६ अपूर्ण से २०५ अपूर्ण तक, २३८ अपूर्ण से २६६ अपूर्ण तक, ३१५ अपूर्ण से ३२३ अपूर्ण
तक, ३३५ अपूर्ण से ६२८ तक, ६३५ अपूर्ण से ६६० अपूर्ण तक व ६८४ अपूर्ण से है.) ९१०८४ (+#) विधिशतक, स्थापना पंचाशिका व वीरजिन विज्ञप्तिका, अपूर्ण, वि. १६४२, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम,
पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ३, प्रले. ग. मानसिंघ वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'श्रीपार्श्वचंद्रसूरिसद्गुरु हस्ताक्षरात्' ऐसा लिखा है, किन्तु उनके शिष्यादि द्वारा की हुई प्रतिलिपि होने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३९.५४१०.५, १८-२२४४८-५६). १. पे. नाम. विधिशतक, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:विधिशतक.
आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: पास० भणियंतं पमाणंमे, गाथा-१००, (पू.वि. 'बहवेभव णवइ
वाणमंतर' पाठ से है.) २.पे. नाम. स्थापना पंचाशिका, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्थापनापंचाशिका.
आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५७४, आदि: जयइ जियाजियवग्गो; अंति: विहिया ठवणा पंचासिया एसा, गाथा-५५. ३.पे. नाम. वीरजिन विज्ञप्तिका, प. १०अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:वीरजिनविज्ञप्तिका. महावीरजिन विज्ञप्तिका, आ. पार्श्वचंद्रसरि, अप., पद्य, आदि: वीरजिण तिजयरंजण भवभंजण; अंति: (१)तुब्भे तं च
सव्वं पमाणं, (२)पार्श्वचंद्र प्रमोदात्, गाथा-३९. ९१०८५. (+#) योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ टीका-प्रकाश १-४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३३-११(१०९ से ११२,१४८ से
१५४)=२२२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१०.५, १३४५४-६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९१०९० (+) चैत्यवंदनसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०.५४११.५, २०४६६-७८).
चैत्यवंदनसूत्र संग्रह-लघटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्र; अंति: (-).
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