Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 484
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ४६९ सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमंडलमणिमयमौलिमाल अंति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 १४. पे नाम ऋषभनाथ स्तोत्र, पृ. २३आ- २५अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी:, श्लोक-४४. १५. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. २५-२६आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमबद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्येते, श्लोक-४४. १६. पे नाम. नाभेवचरित्र स्तोत्र, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणमुसभमुभयं अति देहि मवं नेहि परमपर्य, गाथा २५. १७. पे नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. २७-२८अ संपूर्ण. शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि अपडिहय धम्मचक्केण; अंति: गय जिणवल्लहपयं बेसु गाथा - ३३. १८. पे नाम, नेमिनाथ चरित्र. पू. २८अ २८आ, संपूर्ण, नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि मवनाहि सरिस विलसि देहपहा; अंति: जिणवल्लह पत्त कुणसु सिवं, गाथा- १५. १९. पे नाम पार्श्वजिन चरित्र, पृ. २८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि; अंति: सिवसुक्ख पत्त जय, गाथा - १५. २०. पे. नाम दुरिअरयसमीर स्तोत्र, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) २१. पे. नाम आराधना सूत्र, पृ. ३३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोमप्पह० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा ५४ अपूर्ण से है.) २२. पे. नाम. चउसरण प्रकरण, पृ. ३३-३४आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: वंझ कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा - ६३. २३. पे नाम. नवतत्त्वविचारमय स्तोत्र, पृ. ३४आ- ३५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-नवतत्त्वविचारगर्भित, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: सामिय सोहगभार जगउज्जोय; अंति: जयसायर० वयणि रस जगतारणो, गाथा - २५. For Private and Personal Use Only २४. पे नाम शाश्वतजिनभवन स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिउसहवद्धमाणं; अति तु भवियाण सिद्धिसुह, गाथा २४. २५. पे नाम. समवसरणविचार विज्ञप्ति, पृ. ३५-३६आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु.. पद्य वि. १६वी, आदि: जायव कुलसिंगार; अंतिः सोमसुंदर ० आणतीय ते लहई ए. कडी-३३. ९४६०८. (+) श्रीपालराजा कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ११-१६X३८-४३). श्रीपालराजा कथा, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी आदि अरिहाई नवपयाई अंति (-), (पू. वि. मदनमंजरी पाणिग्रहण प्रसंग तक है.) ९४६०९ (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-३ (११ से १२,१५) = १४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित, जैये. (२५.५x१०.५, ८४३४-३८). יי

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