Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर गांथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२२) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol1.1.221 घहमभाशया बुदाणावादापामा बदरिसीमिवमा वादमखगराalau २ नामाझियाण्ड आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानामांदिर । मनाav नया श्रीमाटी For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२२) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी अपतं तव के प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४३० वि.सं. २०७३ ० ई. २०१७ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २२ Aacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūcī - Ratna 22 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२२ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.22 * संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. गजेन्द्र पढियार पं. अरुण कुमार झा पं. भाविन पंड्या पं. अश्विन भट्ट पं. रामप्रकाश झा पं. नवीनभाई वी. जैन डॉ. उत्तमसिंह पं. राहुल त्रिवेदी * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २२ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथाना विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची* वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - २२ - आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 22 d Blessings & Inspirations Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2017 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 22 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.22 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.22 Preserved in Sri Dēvarddhigani Kşamāśramana Hastaprat Bhāndāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir ००:Publisher O Vir Samvat 2543, Vikram Samvat 2073, A.D. 2017 O Edition : First 0 प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद Sheth Shri Samvegbhai Lalbhai Parivar, Ahmedabad OAvailable at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, WhatsApp : 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail : gyanmandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-03-1 (Vol.22) OPrinter : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में आयोजित शांतिग्राम टाउनशिप में आदिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. 2073, चैत्र कृष्णपक्ष, नवमी, गुरुवार दि. 20-04-2017 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ 卐 मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सव्यवस्थित-समद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री गजेन्द्र पढियार, श्री नवीनभाई जैन, श्री अरुण कुमार झा, डॉ. उत्तमसिंह, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री अश्विन भट्ट आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २२वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठश्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २२वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. समसार करि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रकाशकीय* जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के ध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने तों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं वों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. __ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २२वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठश्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २२वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Nokomoprolomolorroworronomoooooo कत्थ अम्हारिसा पाणी, दुसमा दोसदूसिआ । हा अणाहा कहं हुंता, न हुँतो जइ जिणागमो ।। (संबोधसित्तरी) 888 Movie स्व. नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - ७-९-१८९६ स्वर्गारोहण - १३-१२-१९७५ स्व. सुलोचनाबेन नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - १३-२-१९०२ स्वर्गारोहण - २४-४-१९७९ GurjaRPRICORIANDRIORAICORNER For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २२वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें जिनप्रभसूरि रचित अजितशांति स्तव की टीका, साधुरत्नसूरि रचित अभिधानचिंतामणि नाममाला की अवचूरी, आसड रचित उपदेशकंदली, हर्षकीर्ति रचित कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, भद्रबाहु रचित पूजा प्रकरण आदि अनेक कृतियाँ संशोधन-संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है... जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, चना पद्धति विकसित की गई है. इसे कति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२२ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. __प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ji ................... iii अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय........................................... प्राक्कथन............................................................................................. अनुक्रमणिका ......................................................................................................................iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत............................................. .......................................................................... V-VI हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण...................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची.......................... ............................................ ......................१-४७५ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या..... .....४७६-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. ...४७६-५३२ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. ..५३३-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २२ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - ८९३२१ से ९४६५० * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में २७२० प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३३७० कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४१७८ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६३८६ बार आई हैं. ___IV For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेपवसंकेत* ... कृति नाम के अंत में. विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (-)........... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - दर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+).......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#). प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं.. ($).......... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, तुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............ आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. प. विद्वान) उपा.......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ............. ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं....... मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत.......... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को............ कोष्टक (कृति स्वरूप) ग.............गणि (विद्वान स्वरूप) गडी.......... गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य........... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा. .......... गाथा (कृति परिमाण) गु............. गुजराती (कृति भाषा) गुटका........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला प्र........... यं............. गृही........... गहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला | प्रे.. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) म............. मराठी (कृति भाषा) ग्रं.............ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) महा.......... महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) ..जैन कृति (कृति परिशिष्ट) मा............ मागधी प्राकृत (कृति भाषा) जै.क.........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) मा.गु......... मारुगुर्जर (कृति भाषा) जैदे...........जैन देवनागरी (प्रत लिपि) मुनि (विद्वान स्वरूप) ते............. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) .... मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) ........... ... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. | मूपू......... जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) विद्वान) यंत्र (कृति स्वरूप) दि........... जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) रा............. राजा (विद्वान स्वरूप) देना....... देवनागरी (प्रत लिपि) रा............. राजस्थानी (कृति भाषा) पं............. पंजाबी (कृति भाषा) राज्यकाल... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. पं............ पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) राज्ये......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का पठ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेत प्रत लिखी या लिखवाई | लेखन हुआ हो. गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. प. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्य........... पद्यबद्ध (कृति प्रकार) वा............ वाचक (विद्वान स्वरूप) पा. ........... पाठक (विद्वान स्वरूप) वि.............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) रचना वर्ष) पृ. वि......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व | विक्र.......... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. प. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) |वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर वी सदी. के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति पृ............. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकति स्तर रचना वर्ष) पर) वै............ वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) पे. नाम...... प्रतगत पेटाकृति नाम व्या.प........ व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) पे. वि........ प्रतगत पेटाकृति विशेष श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र.ले.पु. कृति रचना वर्ष) पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) प्र. वि......... प्रत विशेष. श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, | श्रु............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) श्वे.............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की-(प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) | संस्कृत (कृति भाषा) ('सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.) सम........... समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित (प्र. ले. पु. विद्वान) प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्र. सं......... प्रति संशोधक स्था.......... जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा) | हिं........... हिंदी (कृति भाषा) VI For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी * सुकृत के सहभागी * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया www.kobatirth.org २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर अहमदाबाद अहमदाबाद १६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.) १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई अमेरिका अहमदाबाद २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट | मुंबई मुंबई अमेरिका मुंबई मुंबई मुंबई अहमदाबाद सुरत अहमदाबाद मुंबई २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व.. बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई मांडाणी (राज.) २७. श्री जैन पंच महाजन २८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवानगर (राज.) बिसलपुर (राज.) अहमदाबाद ३१. श्री सेटेलाईट वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ३२. श्री वेपेरी वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई ३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ अहम. महेसाणा ३४. श्रीमद यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ ३६. शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ ३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, सायन * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * ९. श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, देवकीनंदन VII बेंग्लोर बेंग्लोर For Private and Personal Use Only महुडी मुंबई मुंबई अहमदाबाद पाली-राज. मुंबई अहमदाबाद मुंबई मुंबई अहमदाबाद Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत के सहभागी *) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २२ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज (राज.) २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई । एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज _ जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिराहा-जापपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई | २२. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद * सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. ००० VIII For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९३२१ (4) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११४४२). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहामणो जी; अंति: समइ जी मृगापुत्र संवद्ध, गाथा-१९. ८९३२२. स्तति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५४११, १७४४६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. २.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भुनाथनिभानने; अंति: प्रसृतमोहतमोहननक्षमः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ४. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: ते संति कल्याणदाता, गाथा-४. ५. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: तु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. ७. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: सर्व विघ्न दरे हरई, गाथा-४. ८९३२३. (+) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३९). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंखिडा सेजि सदा; अंति: भणइं पद्मराय उवझाय, गाथा-११. ८९३२४. (+#) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २२४५८-६०). १.पे. नाम, महाव्रत ५नी पंचपंच भावना, पृ. १अ, संपूर्ण. २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला व्रतनी भावना ५ ईर्य; अंति: भावना २५ जाणिवी. २. पे. नाम. ६ भांगा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ भांगा-क्रियानिर्जरा, मा.गु., गद्य, आदि: एक जीवनइ क्रिया लागइ; अंतिः अभव्य जीव जाणिवा. ३. पे. नाम. योनि विचार-पन्नवणा मध्ये चउवीसदंडक आश्री, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-योनि विचार चोवीसदंडक आधारित, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउवीसदंडक आश्री निरत; अंति: वैमानिक कन्हइ लाभइ. ४. पे. नाम. १२ योनि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: सीत जोणी१ उसणा जोणी२; अंति: १२ अधम्मठा जोणी. ५.पे. नाम. षड्द्रव्य विचार सह अर्थ, पृ.१आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परणामी १ जीव २; अंति: आयासो सव्व गय तेउ, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाधा का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीव द्रव्य ते जीव; अति: काल छह अढीद्वीप माहि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९३२५. (+) नेमिजिन स्तवन, नेमराजिमती बारमासो व चंद्राननजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. नेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५x१०.५, १७४४९). " "" १. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण ग. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रेम थकी ए प्रणामं अंतिः लब्धिविजे० मननी आस रे, गाथा- ६. २. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सास तणी परि सांभरइ; अंति: कल्याणसागर प्रभु सार.. ३. पे. नाम. ऋषभाननजिन भास, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ऋषभाननजिन भाष, मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: महिर करउ मुझ उपर अति हड्डे चढे ते आवि रे, गाथा ५. ४. पे. नाम. नेमिनाथराजिमती बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. राजिमती गीत, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः सखीरी बोलइ राजल नारी, अंतिः शांतिहरख गुण गाया हो लाल, गाथा - १५. ८९३२६. (#) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन, इरियावही सज्झाय व प्रहेलिका सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५४१०.५, १६४३७). १. पे. नाम. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि जिन वचन सदा अणुसरी, अंतिः कुशल कहे मन उल्लास, गाथा-८. २. पे. नाम. मिध्यादुक्कड स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल कुशलदायक अरिहंत अंति मेरुविजय०नामे निसदिस, गाथा १६. ३. पे नाम प्रहेलिका सवैया-विलोमार्थगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केसवदास, मा.गु., पद्य, आदि सीधो उलटो वांचीये एक अति केसवदास० केलवनी बलमा, गाथा २. ८९३२७. (*) लब्धि के २२१ बोल कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. हरजी ऋषि पठ मु. करमसी (लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११, ९X२०-६०). २२२ बोल- लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त.) " ८९३२८. शंखेश्वर पार्श्वजिन व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जै., ( २६४१०.५, १३४३८). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि सारकर सारकर स्वामी, अंति: नेक नयणे निहालो, गाथा- ७. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि जुगमिंदर कहज्यो दधसु अति आवो पंडित जिनविजय गायो, गाथा-८. ८९३२९. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १२X४४). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि बेटो जनम्यां दिन १०; अति केचित् सिद्धा. ८९३३०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, पठ. मया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १२३४). औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, क. मान, मा.गु, पद्य, आदि सुगुण बुढापो आवीयो; अति जितसागर कहे कवि मान, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८९३३१. (*) सिद्धचक्र स्तवन व ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १३X४७). For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सम सहु मंत्र; अंति: जिनलाभ० जश लीजै रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. बत्तीस असिज्झाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: वाणी श्रीजिनराजनी रे; अंति: तीणसु मुज परणाम, गाथा-१३. ८९३३२. नेमराजिमती नवरसो, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३१-३५). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४०. ८९३३३. (+) तमाकू गीत, वैराग्य सज्झाय व आदिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. तमाकू गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-तमाकू, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: समकित लखमी पामी मेरो; अंति: वताई इह सबही कुं सुखदाई, गाथा-१५. २.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: आतम अति अभिमानी हो; अंति: अब श्रीसार वखानी हो, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनमुं; अंति: वंदाइ साधाजीनु आरती, गाथा-११. ८९३३४. (E) स्तवन व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. राघवजी; पठ. मु. सौभाग्यविजय (गुरु पं. लालविजय गणि); गुपि. पं. लालविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, २४४५५). १. पे. नाम, भवानीमाता छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. भवानी स्तोत्र, भवानीदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीभवानी भवानी भवानी; अंति: जे जे अंबिका जाप जोई, गाथा-२३. २. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वज्रधरजिनवर वंदो दुरित; अंति: तेज दिवाजे दीपना, गाथा-५. ३. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुण दिन; अंति: परमाणंद पद पास्युं, गाथा-७. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति सांचउ; अंति: भवि भवि सेव रे, गाथा-९. ८९३३५. (+) चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७६, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मानसंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३८). चित्रसंभूतिमुनि सज्झाय, मु. गोविंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रणमुं सरसति सामणी; अंति: गोविंद०वीनती अवधार ए, ढाल-४. ८९३३६. युगप्रधान वंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४४२). युगप्रधान वंदना, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: सकल सुखदातार श्रीजिनवीरजी; अंति: कहि सेवक कल्याण, गाथा-३१. ८९३३७. नेमिजिन स्तवन व शाश्वताजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १०४३२). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रे यादव दो; अंति: राय शिर लाकडीयां रहो, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, शाश्वताजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: ऋषभानन चंद्रानन जाणो; अंति: देव देवी शुभवीर वधाइ, गाथा-४. ८९३३८. (+) ९६ तीर्थंकर स्तवन व अध्यात्म गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४३०). १. पे. नाम. ९६ तीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, उपा. सुमतिशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रणि चउवीसी बिहुत्तरि; अंति: पयंपइ सयल संघ जइकारो, गाथा-१५. २.पे. नाम, अध्यात्म गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम सभाव तुं; अंति: सूलिइं तं नवइं धाइ, गाथा-२. ८९३३९ (#) अजितजिन चंद्राउला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४५३). अजितजिन स्तवन-चंद्राउलामंडण, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वंश इखागह मंडणउ रे जित; अंति: नही नर जिनवर तोलइ, गाथा-१३. ८९३४०. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:अ०चै०., दे., (२४.५४११, १०४३०). अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैतर वदि आठम दिने; अंति: सासने प्रगटे परमाणंद, गाथा-१४. ८९३४१. (#) आध्यात्मिक सज्झाय, गाथा संग्रह व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१०.५, १२४२७). १.पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: तू मेरा पीवु साजना; अंति: तो पावे रंग कोडि, गाथा-१०. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: जावंजइ जीरांणमि भावर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम, गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गौतम आव्या वाद करेवा; अंति: संघ पढि गुणि तस अविहड रंग, गाथा-७. ८९३४२. बुध रास, संपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. राजविजय; पठ. मु. मांणकमेरु (गुरु मु. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणजी श्रीगोडिजी प्रसादै., जैदे., (२३.५४१०, ११४३५-३७). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं देवी अंबाई; अंति: ए तेह सव टले कलेस तो, गाथा-६२. ८९३४३ (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४३०). सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजे; अंति: कोइ न तोले हो, गाथा-१४. ८९३४४. जिनचंद्रसूरि गहंलीद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १२४३३). १. पे. नाम, जिनचंद्रसूरि गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जीतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद मुझ अती थयो; अंति: लहेरे जीतरंग उलास, गाथा-६. २. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जीतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी गुरु वांदवा; अंति: गावतां थाये परमानंद रे, गाथा-६. ८९३४५. १३ काठिया सज्झाय व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १३४४६). १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वट पारे वाट मै; अंति: कहियै तेरह तीन, गाथा-१८. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: पखिह रातै कदको वैर; अंति: बोल बोल तन बास्यो रे. ८९३४६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१०.५, १३४४७). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८९३४७. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रजाई; पठ. सा. गउरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०४३४). पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर सुद्ध नमीजइ ए; अंति: सहित सूधु संयम मांगइ, गाथा-८. ८९३४८ (+) प्रतिलेखना कुलं व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कवि जिणणी रे दुखहरणी; अंति: गुरु कुधर्मने पडिहरु, गाथा-३. २. पे. नाम. प्रतिलेखना कुलं सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्तदिट्ठी१; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तत्वदृष्टि सम्यक्त्वकर्म; अंति: ब्रुवते इतिकूलं. ८९३४९. पच्चक्खाण भांगा, सचित्ताचित्तादि गाथा व जिनपूजाविधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२५.५४११, १६४३७-४४). १.पे. नाम, पच्चक्खाण भांगा, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)इम ४९ भांगा जाणवा, (२)भांगा पच्चक्खाणना थाइ, (पू.वि. 'अनुमोदं नही' पाठांश से है.) २. पे. नाम. सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पणदिणमीसो लुट्टो; अंति: जलं ति पहरुवरिं, गाथा-५. ३. पे. नाम. पृथ्वीकायादिजीवप्रमाणदर्शक गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अद्दामलगप्पमाणे; अंति: जंबूद्दीवे न मायंति, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिंहकेसरा मोदक निर्माणविधि गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चऊसट्ठि कुसुमरसो; अंति: बीआ हुंति सिंहकेसरया, गाथा-१. ५. पे. नाम, युगप्रधान प्रभावदर्शक गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. युगप्रधान प्रभावदर्शक श्लोक, सं., पद्य, आदिः येषां च वस्त्रे न; अंति: प्रवदंति विज्ञाः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. जिनमंदिरजिनप्रतिमानिर्माण फल, पृ. २आ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: त्रिणसलया जिणभवणं; अंति: गच्छंति अमरभवणाई, गाथा-२. ७. पे. नाम. देवपूजा विधि, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनपूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्नान पूर्वाभिमुखि; अंति: (-), (पू.वि. धूपपूजाविधि अपूर्ण तक है.) ८९३५० ज्योतिष मंडल विचार व विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १६४६५-७२). १.पे. नाम. मंडल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. भूस्खलन उल्कापत्तनादि ज्योतिष फल विचार, सं., पद्य, आदि: कृत्तिका च विशाखा च; अंति: चात्र पूर्व माहेंद्रमंडले. २.पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,सं., प+ग., आदि: ०आउ मणस्सइ बारसकप्पे; अंति: स्थापितो भुवि. ८९३५२. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:गौतम कुल., जैदे., (२५.५४११, ७X५०-५५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: लुब्धा नरा द्रव्यार्जनपरा; अंति: भव्याः सुखं लभंते, (ले.स्थल. नागोर, वि. संबद्ध कथाओं का संकेत दिया है.) ८९३५३. (+) वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ.४, प्रले. मु. तत्त्वविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १५४३६-४२). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: विहितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२८. ८९३५५ (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७५८, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, पठ. पं. मानसिंघ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४४१-४५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: __ संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ८९३५६. सात व्यसन सज्झाय व संथारा विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.७, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४४७-५०). १. पे. नाम. सात कुविसन त्यागरूप सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणु मेरे जीयरे रे सीख; अंति: श्रीजिनसागरसूरि इम भणे, गाथा-९. २. पे. नाम. संथारानी विधि-संक्षेपमात्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वयउच्चरमि खमिसु जीवेसु; अंति: चरम उसास वोसरो. ३. पे. नाम. पक्वान्न कालमान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. पकवान कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: हेमंते तीसदिणा गिम्ह; अंति: इय पमाणं सुए भणियं, गाथा-१. ४. पे. नाम, धोवण पाणि विचार गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रासकजल विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: निगोया हंति बहुजीवा, गाथा-५. ५. पे. नाम, औपदेशिक दोहरा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन पंखी समझ चुग; अंति: उलटि परत घण जीय, गाथा-५. ६. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चक्कागंभज्जमाणास्स; अंति: अणंत जीवं वियाणाहि, गाथा-२. ७. पे. नाम, आध्यात्मिक जकडी, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक जकडी-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी नारी वीनव; अंति: करनै दैव दोस न दीजीइ, गाथा-४. ८९३५७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३४, पौष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रीया, प्रले. सा. विना (गुरु सा. मीरगाजी महासती); गुपि. सा. मीरगाजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १८४४६-४८). औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सदगुर आगम सीखथी दे; अंति: पुज जैमलजी कहइ इम, गाथा-३७. ८९३५८. (#) दशार्णभद्र ऋद्धि वर्णन और सौधर्मइंद्र द्वारा गर्वखंडन कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३८). दशार्णभद्र ऋद्धि वर्णन और सौधर्मइंद्र द्वारा गर्व खंडन कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा सभा पूरी बइठो छइ एणि; अंति: देवरावी वांदइ. ८९३५९ (4) देवसीप्रतिक्रमण विधि, पार्श्वजिन चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५,१३४३६-४३). For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १.पे. नाम. देवसीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम ईरीयावहीयं; अंति: दादाजीरो स्तवन कैहणो. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: जैनचंद्रैः०तावन्मुदे, श्लोक-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. चउक्कसाय सूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चोकसाय पढमले लोरण; अंति: सो जण पास पयथो वसीय, गाथा-२. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंतिः सदा ध्यायामि मानसे, श्लोक-३. ८९३६० जिनबिंबप्रवेश विधि व महरापरीक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X५०). १. पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं भव्यमुहूर्त्त; अंति: वासक्षेपादि क्रियते. २. पे. नाम. महुरापरीक्षा, पृ. १आ, संपूर्ण. महरा परीक्षा, मा.गु., गद्य, आदि: साजइ थालीइ द्ध महुरु; अंति: तो पित्तादिक रोग जाइ. ८९३६१. साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. बीच के पाठ अपर्ण व अंतिम पत्र पर पत्रांक न होने से पत्र-२ अनुपलब्ध एवं अंतिम पत्र को पत्रांक-३ माना गया है., जैदे., (२५४१०.५, ११४४१). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: करेमि भंते सामाइअंसव्वं; अंति: तस्स मिच्छामि दूकडं, (पू.वि. १८वें पापस्थाक से चउक्कसाय गाथा-१ तक नहीं है.) ८९३६२. (#) औपदेशिक दोहा व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालधरीनगर, प्रले. पं. राजेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२६-३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-व्यसनवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी मन धरी; अंति: तणे कहि माणिक मनोहार, गाथा-२३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: ते लहे कोडि कल्याण, गाथा-१७. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जलमाहे बलवो भलो भलो; अंति: सुख पावेगो तात, गाथा-८. ८९३६३. गजसुकुमालमुनि सज्झाय व ४२ गोचरी दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारका ते नगरी अति; अंति: भावसु वांदु वारंवार, गाथा-१३. २. पे. नाम. ४२ गोचरी दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आहाकम १ उदेसियं २; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'निमत्ते-३ अंघे-४' पाठ तक लिखा है.) ८९३६४. जंबूस्वामी सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. किसन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जंबू०., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीउ; अंति: लेस्यू संयम भार, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: वडिवी पंछी पचदण; अंति: जउ दिधा वकि महेण, गाथा-४. ८९३६५ (+) आदिजिन स्तवन, जंबूस्वामि व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३६). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेवा संचर्या रे; अंति: एहना रे जगमा धन अवतार, गाथा-१६. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. पद्मविजय पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगो हो; अंति: साहिबा काइ सफल फली अरदास, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि नरभव दोहिलो; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८९३६६ (२) १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मियागाम, प्रले. ग. फतेसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०४३०-३५). १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी भाई काठीया; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. ८९३६७. मरुदेवीमाता व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०,१०४२५-२७). १.पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी माता कहै; अंति: पंचमी पोल पोचावो जी, गाथा-११. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: हुं भरतेसर वीनवु हो भाई; अंति: रामविजय० वारंवार हो भाई, गाथा-९. ८९३६८. परदेशी आगमन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०, ९४३१). परदेशी आगमन सज्झाय, मु. शुकलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: श्रीजिन हेली जाणने; अंति: सुद नवमी गुरवारो रे, गाथा-१०. ८९३६९ (+) दानशीलतपभावना प्रभाती व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, ८४३१). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: सेवता वंछीत फल थाय, गाथा-६. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसांतिनाथ महाराज सुणो; अंति: हीरविजे० तुमारी सेवा, गाथा-७. ८९३७० (+) शांतिजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४४२-४५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७९३, भाद्रपद शुक्ल, १४. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवरराय हुं; अंति: राज हुकमी ताहरो, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय सुपसाय जिनेस; अंति: लालरतन० सफली फली जी, गाथा-११. ८९३७१ (+) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२-४६). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पेख पसू रथ वालीयो; अंति: (-), गाथा-१३. ८९३७२. (#) साधुगुण व १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४७). १.पे. नाम. साधुगुण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पांच सुमति तीन गुपति; अंति: जिनहर्ष जिहाज कि, गाथा-१४. २. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रभवो कहै जंबू प्रत, अंतिः धीरविमल० इम उपदिसे, गाथा- ९. ८९३७३. (४) २४ जिन स्तवनद्वय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५x११, १९४५३-६९). १. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदिनाथ प्रभु अंतरजाम, अंति: सुनत शुभ मंगलकारी, गाथा-३५. २. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नमु श्रीआदि अजितनाथ; अति ऋष० जंजाल में नही जात, गाथा-१३. ८९३७४ संग्रहछत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे (२४.५४१०.५, १८४४९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संग्रहछत्तीसी ढाईद्वीपमान वर्णन, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीआदीस्वरजिण प्रणम अति: (-) (पू.वि. गाथा ३६ अपूर्ण तक है.) ८९३७५ (४) सीमंधरजिन स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १३४४२). १. पे नाम, २४ जिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्री आदीश्वर अजितनाथ; अंति: अजितदेव० पामइ कोडि कल्याण, गाथा-५२. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन पद, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि रिषभ अजित संभवजिणंद, अति: अजितदेवसूरि विनवइ० भगवंत, गाथा २. - ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि पूरव दिसि इसान कूण अंतिः द्यो पूरउ जगत जगीस, गाथा - ३. ८९३७६. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x१०.५, ११x२८-३१). , पर्युषण पर्व सज्झाय, मु.] मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पजुषण आवीया रे अति मतिहंस नमे करजोडी रे, गाथा- ११. ८९३७७. चोघडीया चक्र व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५४१०.५, १x६०). १. पे. नाम. चोघडीया चक्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि उद्वेगवेला चलवेला; अंतिः कलहवेला लाभवेला. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि त्रिगटि प्रभु सोहि रे अति उदय प्रभु जयो रे, गाथा- १४. ८९३७८ (#) २४ जिन अंतर विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, ११X४०). २४ जिन अंतर विचार, पं. नयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीगुरुपद पंकज प्रणमीनइ; अंति: नयसागर० लह तेह जी, गाथा - १६. ८९३७९ आगमिक प्रश्नोत्तर संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x१०, २०६४). ९ आगमिक प्रश्नोत्तर, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तथा पहिलो अच्छेरो; अंति: ते विचारी लिखज्यो. ८९३८० (#) नार सीखामण, संपूर्ण वि. १८७० वैशाख कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. मोढेरा, अन्य. मु. वृद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १०x३२). " औपदेशिक सज्झाय-नारी, मु. जयराम, मा.गु., पद्य, आदि श्रीब्रजनाथ कहे सूण अति: जयराम० चीत धरीये, गाथा - ११. ८९३८१. गणधरपट्टावली सज्झाय-ढाल १, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X१०.५, १६x४२-४८). गणधरपट्टावली सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१०, आदि ब्रह्माणी वाणी दिओ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९३८२ (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. मोता (गुरु सा. चंदुजी); गुपि. सा. चंदुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः लीलोतरव., अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १४४३७-४०). औपदेशिक सज्झाय, म. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५६, आदि: नीलो तरवर पांनडो हो; अंति: आसकरणजी इम भणइ, गाथा-२०. ८९३८३. पार्श्वनाथ लघस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, दे., (२५४१०.५, ९४३५). पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, मु. करमचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पास जिणेसर सामी; अंति: कर्मचंद सुजस कहावे, गाथा-११. ८९३८४. (+) सीमंधरजिन स्तवन, जिनराजसूरि व नेमिराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १४४४५). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनजी सुणउजी; अंति: सोम० भवि देज्यो सेव, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराजसूरिसरु रे; अंति: गुण गावइ वार वार रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: काउ हमारउ मानीयइ; अंति: गई श्रीसोम पणमइ तास, गाथा-७. ८९३८५ (#) कल्पसूत्र की मांडणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४६). कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ बीजी वाचनायनइ; अंति: आहार करतउ फिरइ छइ. ८९३८६. पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी प्रणम् तोरा; अंति: उदय० वाध्यो छै प्रेम, गाथा-५, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवा मे रहस्यु; अंति: जै जै श्रीमहावीर, गाथा-६. ८९३८७. (+#) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०.५, ३१x१८). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. ८९३८८. सरावग का मनोरथ ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, २६४३१). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: किं बारै हुं आरंभ; अंति: समणोवासग ध्यावइ. ८९३८९. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, ले.स्थल. विकानेर, प्रले.सा. खसाली (गुरु सा. वीनाजी); गुपि. सा. वीनाजी (गुरु सा. मीर्गाजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १६४३८). मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादे जीया माता कहे; अंति: ने भवजल पार उतारो रे, गाथा-१६. ८९३९० नेमिजिन चोमासं स्तवन, मार्गणा बोल व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५४१०.५, ११४३५). १.पे. नाम. नेमिजिन चोमासं स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-चातुर्मासवर्णनगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारा सम म जावो रे; अंति: नेमजीसु मीलवानो मन साचो, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. नवल, पुहि., पद्य, आदि: की वीसवासा रे की वीसवासा; अंति: लवल० घट में सासा रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मानु प्यारा मनु प्यारा; अंति: वीनती आवागमन नीवारा, गाथा-३. ४. पे. नाम. मार्गणा बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८९३९१ (+#) अझाहरापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. असावल्ली, प्रले. मु. श्रीपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत मे पठनार्थ हेतु "साध्वी पउतनीस यथानाम सपरिवार" उल्लिखित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४५). पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६५४, आदि: सोरठ देसि मझारि दीवबंदिर; अंति: पास जिण जयजय करो, गाथा-१६. ८९३९२ (+#) पट्टावली छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४२). पट्टावली छंद-तपागच्छ, मा.गु., पद्य, आदि: कालिगसूरि सुजाण त्रिणि; अंति: तुं तुरक नवे खंडे राजीआ, गाथा-५, (वि. हासिये में ऐतिहासिक विवरण दिया गया है.) ८९३९३. (+-) ५ महाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हंडीः रातरी., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५४१०.५, १२४२२-३०). ५ महाव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रात पड्या भोजन कर; अंति: साचस्यु उतरधिजक, गाथा-१६. ८९३९४. १५ तिथि ७ वार चरित्र, प्रास्ताविक श्लोक व गौतमस्वामी गहुंली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ७-१०४३५-४८). १.पे. नाम. १५ तिथि ७ वार चरित्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लब्धि लहे शुखसर्म रे, (पू.वि. ढाल-१५ की गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चलंति तारा चलंति; अंति: वाक्यौ न चलंति धर्म, श्लोक-१. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही उद्यानमां; अंति: चाहती अमृत शर्म, गाथा-६. ८९३९५, ५ पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४४०). ५पांडव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तनागपुरवर भलो तिह; अंति: छे जय जयकार रे, गाथा-१७. ८९३९६. स्वप्नविचार चंद्रगुप्त स्वाध्याय व जन्मकुंडली विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४४२). १.पे. नाम. स्वप्नविचार चंद्रगुप्त स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवू; अंति: धन धन ए गुरुतणा साहु, गाथा-२५. २. पे. नाम. जन्मकुंडली विचार, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अश्विनी दिन ६ मा ५; अंति: ३ वर्ष० सुख मृत्यु. ८९३९७. (+) स्थूलिभद्रमनि सज्झाय व से–जयमंडन रिषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. पं. माणिक्यरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४५). १. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, पा. राजरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सखी प्रीतम मोरा चाल; अंति: पाठक गुण गावइ हो लाल, गाथा-९. २. पे. नाम. सेव॒जयमंडन रिषभदेव स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणंद की सेव करु; अंति: वझायकुं दिउ मन कामना, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९३९८. रावण चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राव., जैदे., (२४४१०.५, १८४३०-४०). रावण चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अति वरो छै मानवि; अंति: बोल मंदोदरी बोल, ढाल-४. ८९३९९ (#) सीमंधरस्वामि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. ३, लिख. इंद्रणी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४३५-४०). सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु आणंद पूर तु, गाथा-५०. ८९४०० (+#) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-४५). शीयलव्रत सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु पाय नमी कहूं; अंति: अमरमुनि० गुण गाया रे, गाथा-१४. ८९४०१. पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. लीछमा; पठ. सा. फतु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०.५, १६४२३-३२). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जीनहर्ष कहंदा है, गाथा-२७. ८९४०२. पुंडरीककंडरीक चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१०.५, १४४३१). पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडरीक रीद्ध तज; अंति: खेवो पार रे लाला, ढाल-२, गाथा-३५. ८९४०३. साधुपाक्षिक अतिचार, नेमराजिमती बारमासो व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०.५, १८४४६). १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमिअ दंसणंमिअ चरणमि; अंति: नायवो सो वीरीयाइ. २.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजल एण परि विनवु; अंति: बेगो आवे यादवराय, गाथा-१२. ३. पे. नाम. नेमराजल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पहिं., पद्य, आदि: सरस दरस रस मोही मो मत नयन; अंति: पटलै० पोहरा किसकीद ए, गाथा-१२. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अखयराज, पुहि., पद्य, आदिः रहे कि वालिम आइ रहै; अंति: अखैराज कहै० जात अकेली, गाथा-२. ८९४०४. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. फलोधी नगर, प्रले. मु. तिलकविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १४४३७). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुकडाल मंत्रीसर सूओ; अंति: ते नर हुंता मोटा रे, गाथा-२०. ८९४०५ (+) अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका खंडित है., ___ संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४७१). __ अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा मिश्र; अंति: अभासकविसे २१. ८९४०६. अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: इमंता., जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कान्ह, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन रति वरसातनी; अंति: कान्ह०पंडित विचार रे, गाथा-११. ८९४०७. (+-) सामायिक पोषहपडिकमणादि विधि व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, पठ. भानीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४४३). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही तसुतरी कही; अंति: काउसग कीजै पछै बैसीजे. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोकारो आगारा छच्च; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३. पे. नाम. १०१ क्षेत्र विवरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ५६ क्षेत्र अंतरद्वीप; अंति: एवं ३० क्षेत्र हुवा. ४. पे. नाम. क्षेत्रादि आरामान विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १० देवकुरु उतरकुरुमे; अंति: (अपठनीय). ८९४०८. पार्श्वनाथजी की घग्घर नीसांणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १०x४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गहंदा है, गाथा-२७. ८९४०९. शीतलजिन स्तवन व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, ११४३२). १.पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-६. २. पे. नाम, बाहुबल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभीया भरथ; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. ८९४१० (+#) वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, १३४४२). महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: __संथण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ८९४११. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. ग. उत्तमहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १४४४१-४९). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगलतणी कल्पवेली; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३६. ८९४१२. आध्यात्मिक व औपदेशिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. १४, प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२४.५४१०, १४४३५). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वारू रे नान्ही बहू ऐ मन; अंति: आनंदघन पद लीधु, गाथा-३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाहलीयाने मिलिवानो कोडि; अंति: महारे आनंदघन शिरमोड, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैवंती एसी कैसी घरवसी जिन; अंति: सी बंदी अरज कहेसी री, गाथा-३. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोकुं कोउ केसी हूंतक; अंति: आनंदघन० इह जन रावरो थको, गाथा-३. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. _कबीर, पहिं., पद्य, आदि: संतो दोइ जगदीस कहातै; अंति: कबीर० विरला बझै कोइ, गाथा-५. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: जगावै अलख कहावे सोई, गाथा-४. ७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीसानी आप मनावो रे; अंति: राजे आपहि सुमता सेज, गाथा-५. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूछीए आली खबर नहीं; अंति: ल्याई आनंदघन तान, गाथा-४. ९. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भादंकी राति कातसी; अंति: आए आनंदघन मान, गाथा-५. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. म. समति, मा.गु., पद्य, आदि: आतम ओलं भातो; अंति: सुमति अक्षय पद पावे, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिण मन जीता तिण सब; अंति: कायम मुगत परगना लीता, गाथा-८. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मांगुं गुनहीना; अंति: रटन करुं गुणधामा, गाथा-४. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: परमार्थ सो पावै, गाथा-४. १४. पे. नाम. असज्झाय विचारगर्भित स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. असज्झाय विचारगर्भित सज्झाय, मु. सुखलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखलाभ० रंग सदा मुदा, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ८९४१३. (4) सामायिक दोषण सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५०). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउं प्रणमउ जिण चउवीस; अंति: विरिज्यातमं निरमाकमेणं, गाथा-२१. ८९४१४. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. चंपा (गुरु सा. वरजुजी); गुपि. सा. वरजुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १६x४३). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरी वसै रीषब; अंति: जु सिव संपत पायो रे, ढाल-३, गाथा-३५. ८९४१५. वीसस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४२८-३३). २० स्थानकतप सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन पासजिणंद; अंति: रतन भणि जपो निसदीस, गाथा-९. ८९४१६. द्वादशमासे गरु वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३५). विजयधर्मसूरि बारमासा, मु. जैनेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी मात; अंति: गुरु चीरंजीवो रे, गाथा-१४. ८९४१७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १५४४६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीपारसनाथ प्रणमीजइ; अंति: नेत०आस्या पूगी एम रे, गाथा-११. ८९४१८. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ८x२६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सोभागी साहब; अंति: जेतसी मारे तुहिज देव, गाथा-५. ८९४१९. जंबूस्वामी सज्झाय व नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. जंबूकुमर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि नगरी वशे; अंति: सिद्धविजय सुपसाया रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नेमजी केरी वात रे; अंति: चरण तुम्हारा पाय रे, गाथा-५. ८९४२०. सुमतिजिन स्तवन व प्रहेलिका हरियाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जयतपूर, प्रले. पं. अमृतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२८). १.पे. नाम. समतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ सुमतिजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि कर तासुं तो प्रीत अंति बिरूद साचो बहे रे, गाथा-४. २. पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली - सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यो पंडितराय०; अंति: रिसिभ० गीतामा है गाइयो, गाथा-७. ८९४२१. (#) शंखेश्वरपार्श्व स्तवन, सत्याचार सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पाठ का अंश खंडित है, जीवे. (२४.५x१०.५, १५४५३). मूल १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि आज सखी संखेसरो मे नवणे; अति: जये कहे० चरणे रहीई, יי गाथा-५. २. पे. नाम. सत्याचार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सत्याचार, पुहिं., पद्य, आदि: काकर कनक समी मति धरड़, अंतिः न रोस न रौस० निसवीस, गाथा- ६. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि रणवयरी द्वार पाहुणो अंति: गांठि गंठीली होइ, गाथा-४, ८९४२२. (*) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५.५x१०.५, ९४३५). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत शांमणिए मुज; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल ४, गाथा-३२. ८९४२३. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. महिमाविजय (गुरु मु. मोहनविजय); गुपि. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x१०.५, १९३०). जिनप्रतिमास्थापना सझाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि जिन जिन प्रतिमा वंदन, अंति: जस० किजै तास वखाण रे, गाथा - १५. ८९४२४. मन गुणमाला, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल वीसलपुर, प्र. वि. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है, जैवे., (२४x११, १८x४२). मन गुणमाला, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: नमो अरिहंत सिधादिक; अंति: रूपचंद० जीवनै समझाय, गाथा ३१. ८९४२५. स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०, ११X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९४२६. पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X३२). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण प्रले. मु. वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि धूलिभद्र मुनीसर आए हम अति: कहे वाचा अविचल पाली, गाथा-८. पार्श्वजिन पद, पुहिं., सं., पद्य, आदि: ताहरो प्रतो चमद्रां; अंति: कल्यांण प्रणतोरगंद्र, गाथा-३. ८९४२७. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५X१०.५, ११४३२). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी जागि जग; अंति: पास नाम मनह जपंते, ढाल -५, गाथा-५५. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडी, पू. ३आ, संपूर्ण ८९४२८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२४.५४१०.५, १७५५९). " ! १५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि देवकीनंद शिरोमणि; अति उत्तम कारज कीधो, गाथा- ११. (वि. गाथांक नहीं लिखा है. ) गाथा - २७. ८९४२९. अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., ( २४.५X११, १०X३३). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायनी विमल ब्रह्मा; अंति: इम कहै सकल संपति करण, Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तवन, म. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा; अंति: नय० आनंद अति घणो, ढाल-२, गाथा-२०. ८९४३० (-) शांतिजिन स्तवन व ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११, १६४३६). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: नगरहैथणापुर दीपता रे; अंति: रायचंद० मास कीनो तान, गाथा-१५. २. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गाया हो पाटणपुरसर, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा ३ से लिखा है.) ८९४३१ (4) विजयप्रभसूरि भास व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ९x४९). १. पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयप्रभसूरि भास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरुना प्रणमी; अंति: इम रामविजय गुण गाया, गाथा-७. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिद्धारथना रे नंदन; अंति: (-), गाथा-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८९४३२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०, १४४४२). औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: सुणो नरनारी वाता मत; अंति: नथमल कीयो आडो आसी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८९४३३. (+#) बुध रास, संपूर्ण, वि. १८११, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. गुढला, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३२). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: ते घरि टले क्लेश तो, गाथा-६२. ८९४३४. चंद्रावती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३३). चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: विवेकहर्ष भजो जगदीस, गाथा-२१. ८९४३५. औपदेशिक कवित्त, प्रास्ताविक श्लोक व सप्तव्यसन कंडलियादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १८४४५). १. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: म्यान वधे नर पंडत संगत; अंति: गंग० तो साधू बीचे रहे रे, गाथा-४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: जो जस जाणंति गुणा न विद्य; अंति: ग्रहंति गुंजा मता तजंति, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सूर्यतापमान क्षेत्र विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सूर्य तापमान क्षेत्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सेंतालीस हजार जोजन सुर्य; अंति: जोजन दक्षिणदिसि तपे छे. ४. पे. नाम. ७व्यसन कुंडलिया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७ व्यसन कवित्त, मु. भीव, पुहि., पद्य, आदि: जूवा सुरा ताजिके; अंति: भीम कहे० सजन मन सेवो साती, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह-विविध विषयक , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काज विचारी जे करे रहे तीय; अंति: छांहलु रखे देखावे छेह, दोहा-२. ८९४३६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.८, प्र.वि. कुल ग्रं.७०, जैदे., (२४.५४११, २२४६२). १.पे. नाम, मरुदेवी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मरुदेवीमाता सज्झाय, पं. लालचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवि माडी मनि धरि; अंति: करजोडी रे तेहना वंदु पाइ, गाथा-११. २.पे. नाम, ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. लालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभदत्त ब्राह्मण कुलिजी; अंति: संपति तोरि नामि रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. थूलिभद्र भास, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सदगुरु समरु सारदा सामिणि; अंति: आउखि तोहि पार न पाय रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पं. लालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कामिणि कामिणि कोश्या; अंति: लालचंद वंदि पाय, गाथा-७. ५. पे. नाम. भद्रबाहस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. लालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शीत परीसह दोहिलो सहि; अंति: लालचचंद० सारु आतम काज रे, गाथा-११. ६.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. लालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सदगुरु सरसति० श्रीमंधर; अंति: वीनति जंपि मुनि लालचंद रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. संबंधपृच्छा हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: परउपगारी पातलो चारु; अंति: लालचंद० कहिउ एह विचार, गाथा-९. ८. पे. नाम, औपदेशिक भास, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सांजी चतुर सुजाण; अंति: काला ते मनि कल केलि, गाथा-२. ८९४३७. चंद्रप्रभजिन स्तवन व विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:चंद., जैदे., (२४.५४११, १२४३८). १. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभ जिनराज; अंति: नय कह० प्रभु उपगार मुजरो, गाथा-८. २. पे. नाम, विक्रमसेनराजा चौपाई, पृ. १आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८९४३८. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, ३०x१३). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.ग., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: संज्ञी अनाहारि आहारि. ८९४३९. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, ११४२६-३१). १. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंद दयाल के; अंति: पहुंचै मनरली हो, गाथा-१०. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारी संभवसामी सूख; अंति: रत्नसागर गुण गाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करी रे; अंति: रत्नसागर० आपो निजपद वास, गाथा-९. ४. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अयमत्तो मुनि वंदिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८९४४०. (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. पुण्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०४३१). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: एक द्वारकानगरी राजे; अंति: रे के नायमुनि लेसे, गाथा-८. ८९४४१ पार्श्वजिन व गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदा हो साहिब; अंति: राजरत्न० काम सुखाकर, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज सफल दीन माहरो मिभ; अंति: देवविजय० सदा जयकार रे, गाथा-७. ८९४४२. (+) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, १४४३४). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु आगम साख्यथी; अंति: नरभव हास्यो रे जाय, गाथा-२८. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. जिनेंद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगरुचरणे पाय नमो; अंति: जिणंद० रुडा तेसु कीयो, गाथा-११. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रीतम लोग मित्र सुत; अंति: तात चउरासी गति फिरना, गाथा-१३. ८९४४३. नेमराजिमती सलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १९४४०). नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु सारद नै गुणपत; अंति: जेरो सीलोको कहे नरनारी, गाथा-१५. ८९४४४. (4) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २०४४१). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: थूलभद्र थिर जसकरमी; अंति: रामजी० थूलभद्र उछाह, गाथा-२०. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, पुहिं.,मा.ग., पद्य, आदि: मन मालि आंम जोय; अंति: (-). ८९४४५. पार्श्वजिन बारमासो, नेमिजिन स्तवन व प्रास्ताविक गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १२x२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन बारमासा, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं.,ले.स्थल. अंकलेश्वर, प्रले. पं. दयाविजय; पठ. मु. विवेकविजय; अन्य. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (१३१४) एकोदरसमुत्पन्ना. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुझ पासजी संभरइ, गाथा-१३, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण,प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (१३१४) एकोदरसमुत्पन्ना. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: ना करीए रे नेहडो ना; अंति: अमृतरश रंगे वरीइं जी, गाथा-८. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: हरे कुंमरहि ललचाहिं; अंति: देखन कारण जिव तरसे, गाथा-९. ८९४४६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. विनाट, प्रले. सा. विना (गुरु सा. मीरगाजी महासती); गुपि.सा. मीरगाजी महासती, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४११, २४४२०-२३). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १९वी, आदि: हो जगगुर जगतरा हु प्रणमु; अंति: पामीयो समकित जीत परकास, गाथा-१०. २. पे. नाम, युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जुगमिंदरजीसु मन लागो; अंति: तूम जगत्यारण जिनराज, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वारथसीध थकी चव आय; अंति: सुख मौ दीजै कृपानाथ, गाथा-७. ४. पे. नाम, मल्लीनाथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जयंत वीमांण थकी; अंति: जौधाणे मझारी रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदि: जुगमींदरजीन दुजा इंद्र; अंति: अडतीसै बुसी चोमासै, गाथा-७. ८९४४७. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३२). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-१७. ८९४४८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १४४४३). पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, म. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंति: सेवकने सुखीयो करो, गाथा-१२. ८९४४९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, १६४३५). औपदेशिक सज्झाय-नारी, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: मांस दिखाडी सीहनइ; अंति: मत लांघउ वीरवचननी रेख, गाथा-२९. ८९४५०. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १३४३५). आदिजिन स्तवन, क. कानो, मा.गु., पद्य, आदि: चवरजी कुलम नवराया; अंति: कानो० सामी भादसाजी, गाथा-११. ८९४५१. नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०, २७४१७). नेमराजिमती स्तवन, मु. खुशालरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पोपटडा संदेसो केहेजे; अंति: ने आपो सुख श्रीकारजो, गाथा-९. ८९४५२. १४ राजलोक विवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४२१). १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ८९४५३. (+#) अजितजिन व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१४४३४-४०). १. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित श्रीशांतिनु दीठउ; अंति: पार्श्वचंद्र हरखई थुणीय, गाथा-९. २. पे. नाम, आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरउ; अंति: वीनती सफल करेज्यो, गाथा-११. ८९४५४. (+) राजुलइकवीसी, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राश, प्रले. पं. पुण्यसुंदर गणि (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राजुल इकवीसी., संशोधित., दे., (२४४११.५, ८४३०). राजिमतीसतीइकवीसा, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक समरीए; अंति: पीपाड गाव मझार, गाथा-२१. ८९४५५. (+#) मौनएकादशीपर्व स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १८१३, पौष कृष्ण, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३७-४०). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लह्यो मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-४४. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१२. ८९४५६. विविध प्रश्नोत्तर आगमिक, संपूर्ण, वि. १९१६, रसधराग्रहशशी, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. भरथपुर, प्रले. मु. रणधीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११, १९४५६). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पांचमें गुणठाणे; अंति: एसो अलावा जाणवा. ८९४५७. नेमराजिमती बारमासा व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३८). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८१०, माघ शुक्ल, ७, बुधवार, ले.स्थल. कोसीथलनगर. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमा सामि मेली; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: करके अनेक भांति चाकर; अंति: सलाम सात कीजीये, गाथा-१. ८९४५८. दृढप्रहारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी;दृढपडी., जैदे., (२४.५४११, २०४५५). दृढप्रहारी सज्झाय-कषायत्याग, मा.गु., पद्य, आदिः कषाय घणानै हुवै अमेल; अंति: धन धन खिमता ताहारी, ढाल-३, गाथा-२४. ८९४५९ (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १९x१३-१५). आदिजिन स्तवन, म. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तारि मुज तारि मुज ता; अंति: कष्ट दख दरि मेट्या, गाथा-७. ८९४६० (#) सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सूक्तमाला पत्र., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १६४२९-३३). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि वृंदजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ तक लिखा है.) ८९४६१ (4) शीतलजिन, पार्श्वजिन स्तवन व सुलसाश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १२-१५४३०-३६). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजयानंद स्वभावे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे हुं तो पुजीस; अंति: रामविजय० पोहती जगीस, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुलसाश्राविका सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची; अंति: बुध कल्याणविमल गुण गाय रे, गाथा-१०. ८९४६२.(-) औपदेशिक सवैयाद्वय व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने सभी कृतियों का गाथानुक्रम एक साथ दिया है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४११, २९४२२-२५). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: बहू दीन्न आस्यामांहि; अंति: पाणी मांहि लीहा जिसी, गाथा-७, (वि. मूल गाथानुक्रम १-७ है.) २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: करम भरम जग तिमर हरन; अंति: द्रिग लीला की ललक मै, सवैया-३, (वि. मूल गाथानुक्रम ८-१० है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गंग कवि, पुहि., पद्य, आदि: प्यारी अलबेली चालि; अंति: कहु रावहे केरो राहे, सवैया-२, (वि. मूल गाथानुक्रम ११-१२ है.) ८९४६३. (+) ६२ मार्गणाद्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, २८४९-२५). For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि दिसि गइ इंदिय काए: अंति: अचरम १ चरम अनंतगुणा२ (पू.वि. कोह कसाइ' से 'सुषम संपराय' तक नहीं है.) , ८९४६४ (+) जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ६ प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५X११, ३X५०). १. पे. नाम जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, पू. १अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि: प्रचंड बलनिः काम; अंति: श्रीनेमिनाथोत्र चिरं चकार, श्लोक - ४. २. पे. नाम. ६ लेश्या दृष्टांतनाम सहित, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ लेश्या नाम दृष्टांत सहित, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णलेश्या १ नीललेश्या २; अंति: धन हरे तेहने मारो ६. ३. पे. नाम. सात भय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय २; अंति: भय ६ अपकीर्त्तिभय ७. ४. पे. नाम. ग्रैवेयकना नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भद्दे १ सुभद्दे२ सुज; अंतिः सुप्रबद्ध८ यशोधर९. ५. पे. नाम ५ विजय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: विजय१ विजयंत २ जयंत ३; अंति: सर्वार्थसिद्ध ५. ६. पे. नाम. २४ दंडक नाम गतिआगति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि नारकी १ असुरकुमार, अंति: प्रकार १० जाणिवा ८९४६५ (४) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१०.५, ११४३५). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंतिः लब्धि० नित नित नवकार, गाथा - ९. ८९४६६. अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे (२४४११, १५-१७४४५-५०) , अजितशांति स्तवन- मेरुनंदनीय उपा. मेरुनंदन, मा.गु, पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंतिः 3 मेरुनंदण उवज्झाय ए. गाथा-३२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९४६७. (*) पार्श्वजिन स्तवन व रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५X१०.५, १८४५४). १. पे नाम पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदीस उनह्या; अंतिः प्रतपो जगि जाण रे, गाथा- ८. २. पे. नाम रखनेमिराजिमती सज्झाय पू. १अ १आ, संपूर्ण, 1 मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पेखी पसु रथ वालीयो; अंति: जिन शासन सिणगार रे, गाथा-१३. ८९४६८ (-) नवकारमंत्र छंद व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. " १३४३३). १. पे. नाम. नवकारमंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पडो मीतर नोकार सदा; अंति: प्रीणी उर पछ का भण २१ For Private and Personal Use Only יי ,जैदे. (२४.५x१०.५, २. पे. नाम बोल संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण, + मा.गु., गद्य, आदि: ओ नणदीया का जाण उतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल- ११ तक लिखा है.) ८९४६९ (#) नेमिजिन वारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पु. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १३X३५-३८). नेमिजिन वारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि सखी री सांभलि हे तू अति लाभोदय० विलासी हो लाल, गाथा - १५. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९४७० (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, २१४४१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-५१. ८९४७१ (+) देवलोकादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४६). १.पे. नाम. देवलोक विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पेला दजा देवलोकनी; अंति: तिण कारणे आवे नही. २.पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध विमान मोतीमान बोल, पृ. १आ, संपूर्ण.. २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.ग., गद्य, आदि: विचलो एक मोती ते चोसठ; अंति: सोनामे गांठ्यो छे. ३. पे. नाम. तारानी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. तारासंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: सातसेपांच कोडाकोड तारा; अंति: १३३९५ ० ००००००० तारा. ८९४७२. द्रौपदीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगढ, प्रले. श्राव. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साध., दे., (२५४१०.५, १७४३१-४५). द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी वखाणीइ जी भरत; अंति: साधजीन तुं बडो बराइयो जी, गाथा-२१. ८९४७३. (4) सिचियायमाता छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. दीपसुंदर (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३८). १.पे. नाम. सिचियायमाता छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सच्चियायदेवी छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मन आस्या आज फली; अंति: सीधसुर० सचीयाय तख पसन सही, गाथा-२१.। २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वजेत विधुलं सूलं; अंति: सारी चषू रोग महीयुनं, गाथा-१. ८९४७४. थूलभद्रमुनि गीत व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल, जोधपुर, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५). १. पे. नाम. थूलभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. महिमाकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो धन धन थूलभद्र; अंति: सुलाल पामइ भवनउ पार, गाथा-१६. २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवीबंदर, पृ. १आ, संपूर्ण. माकुमार, मा.गु., पद्य, वि. १७००, आदि: सतम जिणेसर वंदीयइ मन; अंति: महिमाकुमार हो जिनवर, गाथा-९. ८९४७५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मन, मु. दुर्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: मुखसुंजी मीठा बोलजो; अंति: दुलहो० सदा सुख थाय, गाथा-५. २. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण.. दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक सवेरे ह विनमु; अंति: आसो० सुभ करणी कर लेह, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-देसडालो, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. सीतम, पुहि., पद्य, आदि: मैया सब जूग दीठो रे; अंति: भागी मारा मननी प्यास, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाराणी, आ. कीर्तिसरि, पुहिं., पद्य, आदि: काया राणी के तहत सया; अंति: कीरतसूर० पडे सहसइ, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९४७६. (#) भांगनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १२४३५). औपदेशिक-भांगवारक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: भोला भोगीयडा रखे थाओ; अंति: लहेस्ये परम कल्याण, गाथा-२०. ८९४७७. (2) नियंट्ठासंजया बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१०.५, ४६४२०). भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८९४७८. पुंडरीककंडरीक सज्झाय व महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, २०४५७). १. पे. नाम, कुंडरीकपुंडरीकनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडरीक रीद्ध तज; अंति: मुगति मेहलमै जाय, ढाल-२, गाथा-३९. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: मुझने वीरजी वाल्हो; अंति: मुगतिपुरीमै मालो, गाथा-४. ८९४७९ (+) जिनलोक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ११४३४). जिनलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुधरमा देवलोकमां रे; अंति: तेनां पातक दूर पलाय रे, गाथा-१०. ८९४८० (4) आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ७X४४). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसइ कांबलि भीजइ पाण; अंति: मूरख कवि देपाल वखाणइ, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वरसइ कांबली ते इंद्र; अंति: हीयाली कवि देपाल वखाण कही. ८९४८१ (4) पार्श्वनाथ विनती, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४५२). पार्श्वजिन विनती स्तवन, आ. विद्याप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी स; अंति: इम तुम्ह दीउड़ आणंद, गाथा-३२. ८९४८२ (+) जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३५). जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: जय संसार सागर सकल; अंति: नमस्ते नमस्ते, गाथा-३२. ८९४८३. (+#) कर्मछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै., (२४४१०.५, १९४६७). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करम थकी कोऊ छूट नही; अंति: धरमतणै परमाण जी, गाथा-३६. ८९४८४. नेमिजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. चोथा, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, १४४३७-४०). नेमिजिन सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: समदवीजे सेवा देवी; अंति: कीयो पुज जेमलजी रे, गाथा-१९. ८९४८६. महावीरजिन २७ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, २८४८५). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.ग., गद्य, आदि: भगवंत श्रीमहावीरने; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २२ भव अपूर्ण तक लिखा है.) ८९४८७. (#) नवतत्त्व भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हंडी:नोवना., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, १९-२१४५०-५३). ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: जीवना ५६३ फेद ते कहइ; अंति: दर्सण२ चारित्र३ तप४. ८९४८८. महावीरजिनेसर तपसंख्या कर्मनिर्जरा स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल, पाली, प्रले. अमरदत्त; पठ. तेजमाल कवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तुति., दे., (२७.५४११, १०x४६). For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति सामणि द्यो मति; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-१०. ८९४८९ (+#) ४ मंगल, औपदेशिक सज्झाय व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १४४४३). १.पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: मंगलीक पहिलो कहुं एह; अंति: जिनवर तोलइ जिनवर जो, गाथा-९. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: भुवनकीरति० सदा तूं, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण.. म. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुज मन मान्यो रे नेमजिणंद; अंति: साहिबा वीनतडी अवधार रे, गाथा-६. ८९४९०. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नो रसो., जैदे., (२७४१०.५, १६x४२). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७०. ८९४९२ (+) गजसुकमालमुनि, विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय व दीपावलीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४३२-३५). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकमाल देवकीनंदन; अंति: गढजोध्याणे हंस करी गाइ, गाथा-२२. २. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सील तणी महिमा सांभल; अंति: चोथमल० पालजो सुखजीव चाइ, गाथा-२३. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पुर्बदिस पावापुरी धन धान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक ८९४९३. (#) भववतीनी टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, ३९x१८). भगवतीसूत्र-टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वेनइ अध्यन तेह भणी; अंति: (-). ८९४९४. नमस्कार महामंत्र छंद, प्रहेलिका हरियाली व सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. शीवपुरी, प्रले. पं. फुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१०.५, ९४३०-३५). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९४७, आश्विन शुक्ल, २. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरे विविध परि; अंति: सिद्धि वंछित लहे, गाथा-१३. २. पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: न कमोदपुरार परमेशगरा; अंति: नृप हंति सदा, गाथा-१. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: कमलभुतनया मुखपंकजे; अंति: हरतु नो दरितं भुवि भारती, श्लोक-२. ८९४९५ (+) नेमराजिमती रास व ढंढणऋषि व अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, २७४८५). १. पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: हुं बलिहारी यादवा, गाथा-६५. २. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर वंदीए; अंति: गावता रे पामइ भवपार, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: इक दिन अरणक जाम; अंति: कीरतिसरि० परि कहे ए, गाथा-२४. ८९४९६. (#) औपदेशिक दहा व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, १५४४५-४७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___ पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पृ. २अ, संपूर्ण. __पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. शीलमहिमा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ शीयलव्रत सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु पाय नमी कहूं; अंति: अमरमुनि० गुण गाया रे, गाथा-१४. ४.पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा *, पुहिं., पद्य, आदि: मन गयो तो खांचले डीड; अंति: बाणसु क्यंकर लघ तिर, दोहा-१. ८९४९७. (-) पार्श्वजिन पद, रतनगुरु व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४११, १९-२३४३८-५२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. रतनगुरु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: उपे जिम तंबोल, गाथा-४१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. सा. फतु आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६. ८९४९८ (4) विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, ११४४०). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवइ विजइ जयो रे; अंति: (-), (पू.वि. ऋषभाननजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ८९४९९ (+-) प्रश्नबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६४११, १४४२८). प्रश्नबोल संग्रह, पुहि., गद्य, आदि: पल बोल समगत ले नीरमल; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९५०० (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. आकरा, प्रले. मु. दयालदास (गुरु मु. ज्वालानाथ ऋषि); गुपि. मु. ज्वालानाथ ऋषि (गुरु मु. कर्मचंद ऋषि); मु. कर्मचंद ऋषि (गुरु मु. विंदरावनजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चउसरण., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ६४५९-६१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सा० सपापयोग विरति ते; अंति: मुक्तना सुखनु कार, (वि. १८३३, आषाढ़ कृष्ण, ९, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३१५) जलात रक्षे तैलात रक्षे) ८९५०१. हरियाली, देववंदन व रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः देववंदन., जैदे., (२६४११.५, ११४३२). १. पे. नाम. वज्रस्वामी हरीयाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिद्धपुर. वज्रस्वामी गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे में कौतक दीठ; अंति: शुभवीर वचन लहे रे. २.पे. नाम. दीपालिका देववंदन विधि, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि वीरजिनवर वीरजिनवर, अंति: ज्ञानविमल०सकलगुण खाण. ३. पे. नाम रोहिणीतप स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि जवकारी जीनवर वासुपूज्य अंति देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ८९५०२. (४) दशवैकालिकसूत्र व कर्मविपाकफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५X११.५, १२-१९x४१-४८). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन- ३, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र -सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. कर्मपच्चीसी, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाण तीर्थंकर गुणधर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ८९५०३. कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., ( २६.५X११.५, २१X५४). कर्मग्रंथ-२ कर्मबंध उदय- उदीरणा- सत्तायंत्र, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८९५०४. (*) स्तवन, सज्झाय व छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-२ (१ से २-३ कुल पे ६ प्र. वि. टिप्पण 'युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२७४११.५ १७४४१) १. पे. नाम. सेत्रुंजयगिरि स्तवन, पृ. ३अ -३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तवन- बृहत् शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: प्रेम० मुझ देजो सेव गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-१३ से है.) २. पे. नाम संखेश्वर छंद, पू. ३-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि सरस वचन सुखकारं सारं अंति नयप्रमोद० मनवंछीत सकल, गाथा - १३. ३. पे नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ४अ, संपूर्ण. क. मदन, मा.गु., पद्य, आदि जब शुणी तव कोडी लाख; अति करि पडि मुथ तव कोडी लहइ, गाथा- १. ४. पे. नाम. स्थूलीभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि लटकाली रे कोस्या; अति जिनविजय कहे उलासे रे, गाथा - १३. ५. पे नाम. फलवर्द्धिपार्श्वनाथ छंद, पू. ४आ-५अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीइ अरिगंजण; अंति: धणी सो सेवकने सानिध करे, गाथा - १८. ६. पे. नाम आदिनाथजी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो अति: रामविजे गुण गायो, गाथा-५. ८९५०५. औपदेशिक पद, ७ कुव्यसन, व ४ गोला सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २. कुल पे. ३ ले स्थल, रूपनगर, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सातकुवी., जैवे. (२६.५x११, १७४३३). १. पे. नाम. सात कुबीसनकी सझाइ, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि मनुष जमारो पायने करणी; अंति: रीख लालचंदजी इम गाइ, ढाल ४, गाथा - १६. २. पे. नाम. ४ गोला सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: साधुतणी बाणी सुणी यो जोर; अति: मटीयो गोलो देख, गाथा १६. ३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि एक आण राज की पचास आण; अति लाव चकलो० आण बेर की. ८९५०६. (+) ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जै (२६.५x१२, १४४३४). . "" For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तीरिजग जोनी में नरक; अंति: उदइ करण कइ हेतु, गाथा-२५. ८९५०७. (+-) अनंतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडीः चउदस का., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४११, १५४३०-३५). अनंतजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलो जिण स्वामना; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ की गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९५०८. (4) शांतिजिन छंद, प्रतिक्रमणफल सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४४५). १.पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसागर० ते नर पावै, गाथा-२०. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणफल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: करो पडिकमणो भावसुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रघुदास, रा., पद्य, आदि: तेज रे मन गाव गीवान; अंति: रागुदास चलो जा लाज०, गाथा-३, (वि. किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ८९५०९ (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४११, ४७४३७). १.पे. नाम. २८ वार फलावतां, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ८४०००० पुगे १; अंति: पल्योपम सागरोपम. २. पे. नाम. देवलोकमें देवों की उत्पत्ति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. देवोत्पत्ति विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सालि कल अलसी ए त्रिण; अंति: विशे देवता उपजे नही. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व विचार-१४ गुणठाणा विशे, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वव्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खउपसम१ वेदकर उपसम३; अंति: (-). ८९५१० (-) नेमराजिमती ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्रावि. रतु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११,१५४३९). नेमराजिमती ढाल, रा., पद्य, आदि: अंतरजामी सांभलो बावी; अंति: पहता हो सासण जगदीस, गाथा-४८. ८९५११(-) उत्तराध्ययन की दृष्टांतकथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११, ३६x६-१६). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: दिगिंछा० अदीण अत्र; अंति: (-), (पू.वि. उदाहरण ७ अपूर्ण तक ८९५१२ (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. पं. कीर्तिसागर गणि (गुरु उपा. लब्धिसागर); गुपि. उपा. लब्धिसागर (गुरु वा. धर्मसागर गणि, अंचलगच्छ); वा. धर्मसागर गणि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजा रलीयांमणो; अंति: निनसरि० उल्हासइं, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दउद्रापुरि दीपइ जोता; अंति: सेवा समरथ तुंह देवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऊजलगिरि अम्हे जाइ; अंति: नसूरि सेवक धरु ए, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति त्रेवीशमो; अंति: भणइ नंन मंगल करु ए, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साचउरे वर पवरउ जगत्र; अंति: सुखदायक ते सवे, गाथा-६. ८९५१३. (+#) जिनपूजा विवेक विधान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२-१३४३८-४०). जिनपूजा विवेक विधान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जिनपुजनं विवेक सत्यं; अंति: (-), (पू.वि. "षट्जीवनिकाय वच्छलो नित्यं" पाठ तक है.) ८९५१४. (+) मिथ्यात्व कुलक, ६ मासी तप चितवन व आठकर्म भेद, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १९४७४). १. पे. नाम. मिथ्यात्व कुलक, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मिथ्यात्वपरिहार कुलक, मु. अमरभुवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तिहां अविहड रंग, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. षट्मासीक तप विधि, पृ. १२अ, संपूर्ण. छमासीतपचिंतवन विधि, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: रे जीव भगवंत; अंति: बिआसणु करी सकइ सकु. ३. पे. नाम. आठकर्म भेद विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण. ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानवरणी सागरोपम कोडाकोड; अंति: वीर्यगुणनें रोके. ८९५१५ (#) नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११-१३४४२). नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण निधी पांमि रे, गाथा-१३. ८९५१६. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१०.५, ११४३३). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मनुष जमारो पायने करणी; अंति: मनलाई ऋष लालचंद इम गाइ, ढाल-४, गाथा-१६. ८९५१७. (-) महावीरजिन स्तवन, राजिमती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११, २०४४२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-सुरतमंडण, मु. राजविजय, रा., पद्य, आदि: सुरतमदर महावीरजणेसर; अंति: राजवजीरा० छ ए तमार साचाउ, गाथा-८. २. पे. नाम. राजिमतीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... __मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवरजीसु बीनती; अंति: रामजी० पालो सनबंध के, गाथा-१४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, रा., पद्य, आदि: लख चोउराहासीइ जोणम; अंति: बीचार मन मोइला रे, गाथा-११. ८९५१८. कलावतीसती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १६x४६). कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे नयरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५ तक है.) ८९५१९ (+-) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४११, १४४३८-४८). १.पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकमाल देवकीनंदन; अंति: गढजोध्याणे हंस करी गाइ, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २.पे. नाम, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सील तणी महिमा सांभल; अंति: चोथमल० तरुण पणे माई, गाथा-२३. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पूरव दिसे हुंइ; अंति: जुगतसुं जोडी मे टकसाली, गाथा-१९. ४. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: चाखो रे नर समता रस; अंति: घणी राखज्यो समता जी, गाथा-१४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: साचो धरम पायो नही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९५२० (#) अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १२४३९). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ८९५२१. लघसंग्रहणी का गणितपद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४११, १०४३८). लघुसंग्रहणी-गणितपद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण लाखने सो गुणा करतां; अंति: अगीयारसे ने चालीस थाय. ८९५२२. (-2) अइमत्तामुनि आदि सज्झाय संग्रह व नेमिराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १८४४०). १. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: जाया जोग भली परे; अंति: ग्रस्तीरो कहणरो आचार, गाथा-५. २. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: राजगरी नगरीरो भास जट; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साचा सबद सुणायो मारा; अंति: रायचंद० नीयाल किया, गाथा-१२. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम वंदन राजुल चली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ८९५२३. (+) सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सालपुरा, प्रले. मु. वीकाजी ऋषि; पठ. मु. उदा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १६x४५). सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदि: सुखकरि संतीसर नमुं; अंति: नामइ दुर्मति दूरि पुलाइ, गाथा-८३. ८९५२५ (-) मल्लिजिन स्तवन व द्रौपदीसती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः मली., अशुद्ध पाठ., ., (२६.५४११, १७७३८). १. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८५३, आदि: जीवडा जप लीज्यो रे; अंति: चंद्रभाण० तन मन मे, गाथा-१६. २. पे. नाम. द्रौपदीसती रास-ढाल ४, पृ. १आ, संपूर्ण.. द्रौपदीसती रास, मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १९५१, आदि: (-); अंति: देव० सुणतां हीतकारी, प्रतिपूर्ण. ८९५२६. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ अधिकमास, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, ९४३०). साधुवंदना, आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमो तोरा पा; अंति: साधुगुण गावत खुस्याल, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९५२७. युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११, १५४३२). __ युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नीसदीन लुल लुल सीस; अंति: जीणंदबाणी दुध साकरडी, गाथा-१५. ८९५२८. आवश्यकसूत्र-साधु समाचारी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: आव., जैदे., (२६.५४११, १९४४०). साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आवसही इच्छाकारण; अंति: (-), (पू.वि. "मरुड माटी हीगलु" पाठ तक है.) ८९५२९. इलाचीपत्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४४०-४५). इलाचीकुमार चौढालीया, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनीलो; अंति: तुम्है नामै सुख अनंत, ढाल-४. ८९५३० (#) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४११, १७४५६). आदिजिनविनती स्तवन, ग. विद्यासागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहिगुरु भत्तिहि प्रणमी; अंति: विद्यासागर गणि सुख करो, गाथा-२४. ८९५३१. नारकादि अवधिमान विचार, क्षपकश्रेणि गाथा व नमुकारमंत्र भांगा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२६.५४११, ४२४२५). १.पे. नाम. नारक, भवनपति, ज्योतिषादि जघन्योत्कृष्ट अवधिमान विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रपाकार नारक अवधि से है., वि. सचित्र कोष्ठकयुक्त.) २. पे. नाम. क्षपकश्रेणि गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. क्षपक श्रेणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अणमिच्छामीससम्मं; अंति: खवेइ सवेये परो खवगो, गाथा-२, (वि. भांगा-कोष्ठक सहित.) ३. पे. नाम. नमुकारमंत्र भांगा, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८९५३३. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः गजसु., जैदे., (२६.५४१०.५, १८-२०४३२-४०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: सोरठ देस दुवारमुकामती; अंति: चढ्या गोडा जण सब लाधा, गाथा-२२. ८९५३४. (+) विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४५२). विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, मु. विनयचंद, म.,मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: पासोबा नमीन् मीत्तर; अंति: विनयचंद० झालइवो आनंद, गाथा-१५. ८९५३५. ४ मंगल शरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११, १२४३३). ४ मंगल शरण, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: पो उठीने समरीजै हौ; अंति: हो सुणजो बालगोपाल, गाथा-११. ८९५३६. (+) महावीरजिन स्तवन, आगमप्रशस्तिटीका प्रशस्ति श्लोक व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, २२४५२-५४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविय लोय सिरिसोहमसाम; अंति: श्रीपासचंदि मंगलकरण, गाथा-२१. २. पे. नाम. आगमटीका प्रशस्ति श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: एतां वृत्तिं लघु; अंति: अपीदमेववचनं प्रमाणम्, (वि. अलग-अलग आगमों के दृष्टांतरूप संकलित प्रशस्तिश्लोक.) ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लव सन्मुख जोवइ जेय; अंति: पासचंद० इम उच्चरइ ए, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९५३७. पुण्यफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. पं. धनविजय (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४२८). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पोचि सरवि आसो रे, गाथा-१६. ८९५३८. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५४११, १५-१७४२७-३६). स्थलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; म. दीपविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: ___ मनना रे सवि फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ८९५३९ (+) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ.१, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६४११, १३४३०). साधारणजिन स्तवन-मकसूदाबादमंडन, पं. शांति, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: जिणंद पद दरशण दुरगति; अंति: शांति० त्रई अजवाली, गाथा-८. ८९५४० (-) औपदेशिक पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४११, १७X४६). १. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सेवक, रा., पद्य, आदि: श्रीमंदर पहला नमु; अंति: सेवक० भवभव थारी सेवा, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुबोधविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: अरज सुणिजो हो जिणजी; अंति: मेडते समुदवीज जगदीस, गाथा-९. ३.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास चिंतामणि जेम; अंति: सेवक सदा पूरवै मनरली, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-बुढ़ापा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: आया रे बूढापा वरी; अंति: भूधर० पीछताव प्रानी, गाथा-५. ८९५४१ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. मु. खेमकरण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सज्झाय., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२-१६x४२-४५). __ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काया हो कामण जीवजी; अंति: भणे रूपचंद हो भविक, गाथा-१९. ८९५४२. (+) गुणठाणाद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४१०-४७). १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: केवलदर्शन एवं ७ बोल होई. ८९५४३. रथनेमिराजिमती सज्झाय व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२७X११, १२४३२). १.पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक नयविमल गुण गाय, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१७ से है.) २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: सुखकारक हो श्रीसंभव; अंति: साधन भावइ संग्रही, गाथा-११. ८९५४४. (-) औपदेशिक पदद्वय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, २२४१८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: काया मांजत कौन गुना; अंति: जिनमल दिलदा नही धोया, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: अरे चतर नर मनकुं; अंति: भावना लिजै सनमाना, गाथा-७. ३.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कबीर, पुहि., पद्य, आदि: लपट की झपटमै दोड भाग; अंति: धोलै हाथ दुरावभैहताह, पद-१. ८९५४५ (+) डोहला विचार, संपूर्ण, वि. १७२१, भाद्रपद, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४५०-५२). गर्भवती स्त्री दोहला उत्पन्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जि वारइ माताइ गर्भ; अंति: प्रकारि डोहला जाणिवा. ८९५४६. (+#) २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५). २४ जिन स्तवन-मातापिता लंछन नाम गामादिगर्भित, गच्छा. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ नेमिजिन विवरण तक है.) ८९५४७. पंचम आराफल सज्झाय व चंद्रमाधनुपृष्ठसाधन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, १६x४५-४८). १.पे. नाम, पंचम आराफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमआराफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: घणा साधु जिण कह्या; अंति: पाखंड वधसी आरा पांच, ढाल-२, गाथा-१४. २. पे. नाम, चंद्रमाधनुपृष्ठसाधन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंक ६१ को ६२ से गुणा का योग ३७८२ तक लिखा है.) ८९५४८. गणधरादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६४११, १२४२५). १. पे. नाम, गणधर नाम जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.गु., को., आदि: १. इंद्र २. अग्नि; अंति: १० मेतार्य ११ प्रभास. २. पे. नाम. ४२ चोमासा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिनचातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: १ अस्तिगाम नगरी; अंति: नगरी ४२ सर्व चोमासा. ३. पे. नाम. महावीरनो तपनो मेल, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन तपप्रमाण विचार, रा., गद्य, आदि: ७२ पाखमण १२ मासखमण; अंति: २२९ छठ कीधो १२ अट्ठम. ४. पे. नाम. गंगादि नदी परिवार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: १४००० गंगानी परीवार; अंति: १४००० रतवइनी परिवार. ५. पे. नाम. २४ जिन निर्वाणस्थल विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन निर्वाणस्थल वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीरिषभदेव; अंति: (-). ८९५४९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ.पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६x२८-३०). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देसक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लिधरे, गाथा-९. ८९५५०. (+) सुमतिकुमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८०२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अहिपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४३). सुमतिकुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन छाडी दे या रीति; अंति: लालविनोद०सुमत पटराणी, गाथा-१२. ८९५५१ (#) औपदेशिक सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३४). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पांडुर पान थके परिपा; अंति: पुन्ये पोहचे जगीसोजी, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७८६, भाद्रपद कृष्ण, ८, बुधवार. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्धे मन आणि आसता; अंति: म्हारी चिंता चुर, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ३. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि पर्व पजुसण आया रे; अंति: चीते लखमीला कीजीजी, गाथा-४. ८९५५२. २४ जिनवर्ण गणधर आयुमान मोक्षस्थानगर्भित स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५४१०.५, १६x४६). २४ जिन स्तोत्र-वर्ण, गणधर, आयुमान, मोक्षस्थानादि विवरण गर्भित, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु, पद्य, आदि: आदिकरण आदीसरु रे संप; अंति: भणता सुयल सीधा काजए, गाथा-२९. ८९५५३. युगमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६११, १५X३५). १. पे नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी जुगमंदर; अंति: जेमल० सामी आप रो, गाथा-८. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १३-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि आद निगोदा काल अनंतो; अंतिः हरखकीरत० तु तो काइ नु लो, गाथा-५. ८९५५४. औपदेशिक सज्झायद्वय व रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अंत में ज्योतिष मुहूर्त सम्बन्धि उल्लेख है. दे. (२६.५x१०.५, ४६४१९). , १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पृ. १अ संपूर्ण मु. राजसमुद्र, मा.गु, पद्य, आदि उण मीत परदेशी विना; अंति कहे परदेशी किण हाथि, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. . रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतम तणो मुज ऊपर अति रंग० साचो दीन दयाल, गाथा-७. ३. पे. नाम रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण " मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि देखी मन देवर का अंति ऋद्धिहर्ष कहै एम गाथा - २०. ८९५५६. (+) मिथिलानगरी वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६४१०.५, १७४३३). मिथिलानगरीऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: मिथुलानगर ज्यां नगर, अंति: (-), (पू. वि. आगमपाठ सन्दर्भ अपूर्ण तक है.) ८९५५७. (+) पार्श्वजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., ( २६.५X१०.५, १०X३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि वरसं वरसं वरसं वरसं, अंति सुंदरसीख्वभरम् श्लोक ७. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, मु. गोविंद, सं., पद्य, वि. १६९०, आदि समस्तसंघ मोदनं सुबुद्ध: अति तिर्नाभेवदेवस्यदें, श्लोक ६. ८९५५८) आदिजिन स्तवन व सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्रले. श्रावि. जसुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०, १६५०). १. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. ३३ पं. अमरहंस गणि, मा.गु., पद्य वि. १७९८ आदि म्हेतो मरुधर देसथी आयो हो; अंति हो साहिब यात्रा लही, गाथा- ९. २. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ', मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: इण सर्वार्थसिद्ध कै; अंति: चवने मुगत सीधावैजी, गाथा - १६. ८९५५९ (१) चतुर्विंशतितिर्थंकर स्थानक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पु. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे " For Private and Personal Use Only (२५.५X११, २०५४). २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहिं., गद्य, आदि आदिनाथ च्यवन विमाण; अति: सिद्धायका " पापानगरी. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९५६०.(+) उपदेशमाला-गाथानक्रमणिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.३,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५,१५४४१). __ उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जगचूडाम सवस्सर; अंति: सव्वं सव्वं भवतुमे, (वि. सारिणीयुक्त) ८९५६१. (+) २४ जिन नाम, माता-पिता, च्यवन, नगर, राशि, वर्ण, गणधरादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४३३-७८). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८९५६२. २४ जिन नाम, माता-पिता, गणधर, च्यवनादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १५४५१). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८९५६३. चित्रसंभूति चौढालियो, संपूर्ण, वि. १७६२, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. कृष्णदास (गुरु मु. गोविंदजी, लुंकागच्छ); गुपि. मु. गोविंदजी (गुरु मु. त्रीकमजी, लुंकागच्छ); पठ. सा. केसरिबाई (गुरु सा. संतोखदे आर्या); गुपि. सा. संतोखदे आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३८). चित्रसंभूति चौढालियो, मु. जयसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: प्रणमु सरसति सामणी; अंति: विनती अवधारये, ढाल-४, गाथा-४८. ८९५६४. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकपुरी, प्रले. य. दिलखुस्याल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४४२). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. विनयचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: आज माता जोगिणिनइ चाल; अंति: विनयचंद कवि कीधी रे, गाथा-११. ८९५६५ (+) जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४६-४८). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो पहुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महाविदेह क्षेत्रमान वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८९५६६. सात वार सज्झाय, शनिश्चर छंद व प्रास्ताविक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १७X४२). १. पे. नाम. सातवार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ७वार सज्झाय, म. धर्मदास, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीब्राह्मी प्रणमी; अंति: धरमदास० राधणपुर मझार, गाथा-१०. २. पे. नाम, शनिश्चर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: वली एम वखाणीए, गाथा-१६. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जो दिन हुवै पाघरा; अंति: होवै तो मारै ताली, गाथा-३. ८९५६७. पडिलेहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, १२४४४). आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० इरियावही; अंति: पछै काजो काढीजै. ८९५६८. शत्रंजयतीर्थ स्तवन व विजयक्षमासूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, १५४५३). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: सेवीयै अरिहंतनाथ हे, गाथा-१३. २. पे. नाम. क्षमाविजयसूरि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि सज्झाय, म. कल्याणहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सहिया मोरी सगुरु वध; अंति: कल्याणहंस ये आसीस, गाथा-१३. ८९५६९. सतसट्टि समकितभेद स्तवन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३०). १. पे. नाम. सम्यक्त्व के साड़सठ बोल स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ३५ सम्यक्त्वव्रत ६७ बोल स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि देव जपो श्री अरिहंतजी रे; अति सौभाग्यविजय० मंगल करो, गाथा - १०. २. पे नाम. सुभाषित लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: हत्वा नृपं पतिमवेक्षभुजंग; अंति: गोपगृहिणी कथमद्यतक्रं, श्लोक-१. ८९५७० सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) -१, कुल पे ६, जैदे., (२५४११, १७४५५). १. पे नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. . " मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: साधुने कोइ न तोले हो, डाल-३, गाथा-११, (पू. वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जलजलती मिलती घणी रे अति नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा- १०. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नित प्रत गुण गाय के, गाथा-५. ४. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आज भले दिन उगो हो; अंति: सीसनो राम सफल अरदास, गाथा-५. ५. पे नाम आदिजिन स्तवन, पू. ४आ, संपूर्ण, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु अनड पहाडां अंतिः श्रीविजय० सुख लह्यौ, गाथा-८. ६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जिन पास बडे धमचक्कु अति विमल पसाई० बजाऊला, गाथा ६. ८९५७१. वज्रस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८१५, कार्तिक कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. अमृतविजय; पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १७x४४). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: वयर गुण गाया रे, ढाल - १५, गाथा - ८९. ८९५७२. (+) चौवीस जिन नाम, गणधर, च्यवन, माता-पिता, नगर आदि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४११, २०२४-४२). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८९५७३. (*) पच्चक्खाणसूत्र आगारादि विविध विचार व कोष्ठक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, कुल पे. ६ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५x११, १३५६१). १. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगए सूरे नमुक्कार अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सूत्र-"सत्तगठाणेसु अद्वेभायं पाठ अपूर्ण तक लिखा है, वि. आगार सहित ) २. पे नाम. १२ मास शुभाशुभफल कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह *, मा.गु., को., आदि: तीज तेरसीए सुखइ आवइ; अंति: अतिसंतोष हुइ मृत्यु उपजइ. ३. पे नाम. ९ वासुदेव शरीरमानादि विवरण, पृ. २अ संपूर्ण, For Private and Personal Use Only " मा.गु., गद्य, आदि: त्रिपुष्टवासुदेव धनु; अंति: काले नरके ३ गते. ४. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती विवरण, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र- ३ पर भी यही विषय है. १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु. गद्य, आदि (-); अंति: (-). " ५. पे. नाम. मुहूर्त श्वासोश्वासमान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सास उसास सैंतीससे अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "धनइ अणगारइ' पाठ तक लिखा है.) " Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६.पे. नाम. सनत्कुमारमाहेंद्रादि देहमान कोष्ठक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. चक्रवर्ती-वासुदेव-रुद्र आयु देहमान व जिन अंतरकाल कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८९५७४. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, अन्य. मु. कुशलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. सिद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एह जिम पामो भव बेहार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. वा. भावचंद, मा.ग., पद्य, आदि: मरुदेवी नंदन वंदीइं; अंति: भावचंद० संशय तुंग मइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: विश्वार्थ सार्ध; अंति: सेवनयुषां जडतां हिनस्तु, श्लोक-४. ४. पे. नाम. सात मुद्रा नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. ७ मुद्रा नाम, प्रा., गद्य, आदि: पंचपरमेष्टि मुद्रा १; अंति: कायव्वा गंधदाणंमि. ५. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भाणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनगारो साहिब मेरो; अंति: साहिब दूरितहरण सुखदाया रे, गाथा-५. ८९५७६. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९२, भाद्रपद शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, उप.पं. श्रीविजय (गुरु पं. राजविजय); गुपि. पं. राजविजय (गुरु पं. रूपविजय); पं. रूपविजय; पठ. श्रावि. सुजाणदे, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (९६) यादृशं दृष्टं, जैदे., (२५४११,१०४३१-३४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर चरण युगि; अंति: जिनलबधिसूरि संपद सदा, गाथा-२८. ८९५७७. गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११, १३४४५-५१). १.पे. नाम. जगजीवदासजीआचार्य गीत, पृ.१अ, संपूर्ण. जगजीवनदासआचार्य गीत, मु. राघव, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: सरसति प्रणमे हो सुरनर; अंति: मोजसुंजी सकल सिंह सुखदाय, गाथा-९. २.पे. नाम. हर्षचंदआचार्य गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हर्षचंद्र आचार्य गीत, पहिं., पद्य, आदि: सरसत करूं जी पसाव एक विनत; अंति: राजश्रीजीरो दिनप्रतै, गाथा-७. ३. पे. नाम. हर्षचंद्र गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. हर्षचंद्र आचार्य गीत, सा. खेमा आर्या, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति सांमण वीनवं; अंति: आरज्या खेमा गायो जी, गाथा-९. ४. पे. नाम. जगजीवनदासआचार्य गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जगजीवणदासआचार्य गीत, मु. राघव, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: सुप्रसन्न तुंही सारद; अंति: राघवदास सिंघ कल्याण जी, गाथा-१५. ५.पे. नाम. जगजीवणदास गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. उग्रचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. __ जगजीवणदास आचार्य गीत, मु. ठाकुरसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सदगुरु पाया हो नमुं; अंति: ठाकुर पूगी मनरलीजी, गाथा-७. ६. पे. नाम. जगजीवदासआचार्य गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. उग्रचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. जगजीवणदासआचार्य गीत, मु. राघव, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: जीहो बुद्ध विमल विसत; अंति: छराय राघव अधिक रंगसु, गाथा-९. ७. पे. नाम, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पांच परमिट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१लिखी है.) ८९५७८. गुरुगुण गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सज्झा., जैदे., (२५.५४११, १६x४०). गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: या गरु जीव गरुया गणा विचै; अंति: मत कोई करजो रीसो जी, गाथा-२५. ८९५७९ (+) चेलणासती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:चेल., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १६४३०). १.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांइ; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ८९५८०. नवकारमंत्र जाप का अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११,११४३३). नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: त्रिकाल नमस्कार छै. ८९५८१ स्थूलिभद्र गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १३४४०). स्थूलिभद्रमुनि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: इक दिन सारथिपति भणइ रे; अंति: कलेसो रे तसु गुण गाइये, गाथा-१७. ८९५८२. साधु १०८ आचार बोल व भगवतीसूत्र विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६१-७०). १.पे. नाम. साधु १०८ आचार बोल, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. __ साधु आचार १०८ बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: साद थयन आधाकर्मादक; अंति: निसीथ ३१ कह्यो छे. २.पे. नाम. भगवतीसूत्र बोल संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवतीसूत्रनो वचार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक कुछ अंश लिखा है.) ८९५८३. (+) गोचरी ४७ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४२१-५४). गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (१)ए सोल दोख श्रावक थिक, (२)आधाकर्म दोष एहना; अंति: (१)सहस्साघाई विसलवुच्च, (२)५ईर्या ६जीवरक्षणिक, (वि. संबंधित भांगा सहित.) ८९५८४. वस्तुपालतेजपाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. राजसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०, १६x४७-५७). वस्तुपालतेजपाल रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जिण चउवीसइ चलण नमेवी; अंति: गुणइं ते सउख लहंते, गाथा-८५. ८९५८५. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, म. कशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुंदर रूप सोहामण; अंति: कुशलहर्ष समीहित सौख्यदा, गाथा-४. २.पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जिन अजित अनंत गुणे भ; अंति: कुशलहर्ष मति आसनी, गाथा-४. ३. पे. नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. कशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अवतरिउ अचिराऊ अरिजसि; अंति: कशलहर्ष समीहित दायिका, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. ८९५८६. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४३६, जैदे., (२५४१०.५, १५४५७). For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नरक चौडालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि आदिजिणंद जुहारीय मन, अंति: गुणसागर० समरण पाईये, ढाल-४, गाथा ३१. ८९५८७. खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : खाम., जैदे., (२६×१०.५, १५X३५). खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम नमुं अरिहंतने अंति: गुणसागर सुखकार करो, गाथा-१५. ८९५८८. (१) १४ गुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, पठ. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी श्रीजिन सवे सझाय, संशोधित, जैये. (२६४११, १२४४७). १४ गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन सवेनइ करु प्रणाम; अंतिः सेवकनइ देयो परमत्थ, गाथा-१५. ८९५९०. (*) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले स्थल, रूपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गजसु०, संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १८x४२). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझार दुवारक; अंतिः समर्या ले सुखा जी, गाथा- ३८. ८९५९१. (*) कुंथुनाथपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६४११, १३x४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंथुपार्श्वजिन स्तवन, मु. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि मूलनायक रे विपुल अंतिः संघ उन्नति कारयो, गाथा १७. ८९५९२. षड्द्रव्य विचार व आठ कर्मनी स्थिति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X१०.५, १७X६०). १. पे. नाम पद्रव्य विचार, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि धर्मास्तिकाय १ अधर्म, अंतिः प्रदेस अनंतगुणा. २. पे. नाम. आठ कर्मनी स्थिति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि न्यानावरणी जघनि अंतर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "शरीरना बंधन ५ संघातन ५" तक लिखा है.) ८९५९३. (+) पडमा भीखुरी व जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : पडमाभिखु., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १९x४६). १. पे. नाम. पडमा भीखुरी, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु.. गद्य, आदि: पैहली पडमा भिक्खु एक; अति त्रजंच समधी परस्यो. २. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव दया पालीयै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ लिखा है.) ८९५९४. (*) सिद्धचक्र पूजा मंत्र, देवबंदनविधि व विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६११, १७०४६-५०) १. पे. नाम. नवपद स्तवन सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति सिद्धचक्कं नमामि गाथा-२९, (पू.वि. गाथा - २५ अपूर्ण से है . ) नवपद स्तवन- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंतिः प्रत नमु २. पे. नाम. देवबंदन विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदणा ३ करी; अति: कही पछै तवन कैहणो. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र पूजा मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि ॐ नमो भगवते, अंतिः वशं कुरु कुरु स्वाहा. ४. पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहि., गद्य, आदि: वसह १ गय २ हरिण; अंति: रयणमाला २०, (वि. टबार्थ आंशिक रूप में है.) ५.पे. नाम, कोडिसिलादि विचार संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: कर१ सिर२ गल३ उर४; अंति: माहिंदे अट्ठ बोधव्वा. ८९५९५ (+) २० स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. धन्ना, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७४३२). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: सुपात्र दान दीजइ. ८९५९६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०x४२). __भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८९५९७. (+) २१ स्थान प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६९४, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. हरिराम (गुरु पं. मेघविजय गणि, खरतर गच्छ); गुपि.पं. मेघविजय गणि (गुरु उपा. समयसुंदर गणि, खरतर गच्छ); उपा. समयसुंदर गणि (खरतर गच्छ); पठ. आ. हिरण्याचार्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी: २१ स्थानकं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४४०). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी २; अंति: अवसेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ८९५९८. (+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. केसनवती, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४३). अष्टापदतीर्थ स्तवन, म. दानविनय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: चउवीसे जिणवर नमी पणमी; अंति: दानविनय मननीरली, गाथा-३१. ८९५९९ महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१०.५, १३४५८). महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: कीधो चउपने फलवधिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ८९६०१ (+) पर्यंताराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विक्रमनगर, पठ.पं. सागा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आराधना., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०-४४). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. ८९६०२ (+) सिद्धदंडिका स्तव व महादंडक स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १८४५५). १.पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नृपतयस्त्रिखंडात्तरतर्भुज; अंति: संख्येया दंडिका ज्ञेयाः. २.पे. नाम, अनुलोम सिद्धदंडिका, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका यंत्र, मा.गु.,सं., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम, महादंडक स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमी भमीओ जिण; अंति: सामिणूत्तरपयं देसु, गाथा-२०. महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: असंख्येयकोटाकोटी; अंति: बादर पर्याप्ताअग्निजीवा. ८९६०३. (+) कायस्थिति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९६०४. (+) गच्छाचार प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४०). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं तिय; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३९. ८९६०५. (+) नवत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४५. ८९६०६. नमिऊण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, ९x४२). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: जुवईहिं संधुउ जयउ पासजिणो, गाथा-२१. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: नत्त्वा प्रणत देव; अंति: जयतु पार्श्व जिनः. ८९६०७. (+) उपदेशरहस्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. मीरगाजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३९-४३). उपदेश रहस्य, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे छइ जिनधर्म जाणि; अंति: पासचंदसूरि इम बोलइ, गाथा-३९. ८९६०८. चतुर्विंशतिजिनवर स्तवन का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. आसा (गुरु सा. दानलक्ष्मी); गुपि. सा. दानलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८-५१). आवश्यकसूत्र-लोगस्ससूत्र का बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लोगस उज्जोयगरे० लोक; अंति: तीर्थंकर वांद्या स्तव्या. ८९६०९ (+) चारप्रत्येकबुद्ध रास-खंड १, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५७-६०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९६१०. पर्युषणपर्व स्तुति व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५९, आषाढ़ शुक्ल, १०, मंगलवार, ले.स्थल. टीकर, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदे जिनपूजा रचीन; अंति: पूरो देव सदाईजी, गाथा-४. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. ८९६११. मनुष्यसंख्या स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११,१५४३५-४२). मनष्यसंख्या स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जिणवत्त चरित्तेणं; अंति: बहुहातो पसिय चरणेण, गाथा-११. मनुष्यसंख्या स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनोक्तचारित्रेण; अंति: सहस्त्राः ५४ सू ७. ८९६१२. पार्श्वजिन स्तवनद्वय व दानशीलतपभावना प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १५४५१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रत्नविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदनी जाउ बलीहारी; अंति: इम यौत दिए आसीस रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: जीए सेवकने सीवराज रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ; अंति: समयसुंदर० फल त्यांह, गाथा-६. ८९६१३. साधारणजिन, महावीरजिन स्तवन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५,१३४४३). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंतजी चरणे लागस्यु; अंति: भविअण एतलुं बुझो नही, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहनी आरे मुहनइ; अंति: विवेकहर्ष० भडवाइं कंपई, गाथा-७. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भगवंतं महावीरं प्रपित्स; अंति: व्यंतारान्० इवापरः, श्लोक-३. ८९६१४. नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१०.५, ८x२७). नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे सांम मेली; अंति: कविअणनवनिधी पामी रे, गाथा-१३. ८९६१५. भयहर स्तोत्र, सर्वजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १६x६३). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२४. २. पे. नाम. सर्वजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनपते द्रुतमिंद्रिय; अंति: निहतमोहतमोरिपुवीर ते, श्लोक-९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीसर्वसिद्धार्थ; अंति: तमखर्वगारिवर्गजयी, श्लोक-९. ८९६१६. (+) समकित सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, ११४३५-३८). १. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, ९, शनिवार, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. किसनचंद ऋषि; पठ. श्रावि. फूलादे, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: सुध समकितरी सुणो नर; अंति: कियो पुन्य आडो आसी, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. दहा संग्रह-विविध विषयक*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रागी ओगण ना गिणै एहि; अंति: (-), गाथा-७. ८९६१७. नवकार महामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १०४३०). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रवचन जग जयकार; अंति: मुनि विमल मनि धरी जगीस, गाथा-१३. ८९६१८. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१०.५, ११४३३-३८). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: श्रेय कल्याण संपजै. ८९६१९ (#) ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). कक्काबत्रीसी, पुहिं., पद्य, आदि: क का कीजइ काम धरम; अंति: लिख्या अंक जे निरमया, गाथा-३३. ८९६२०. चौवीसजिन १२० कल्याणक व २० स्थानकतप गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४३०-३९). १. पे. नाम. चौवीसजिन एकसौ वीस कल्याणक, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकवदि५ श्रीसंभव; अंति: च्यवन लहिण लाहीइ. २. पे. नाम. २० स्थानकतप गणj, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत पूजा त्रिकाल; अंति: पवयणस्स २००० गणवू. ८९६२१. बारमासो, पार्श्वजिन स्तवन व सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. नेमराजमती बारमासीयो, प. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती बारमासा, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: नयन नगीनो नेमजी सुणा; अंति: पोहती साधवी ऋषभदासै गाई, गाथा-१५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी वाणारसी नित नवी; अंति: करी ऋषभ लीलविलासरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरतन० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ८९६२२. गुरुविज्ञप्ति व गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४३). १. पे. नाम, गुरुविज्ञप्ति भास, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुविज्ञप्ति भास-तपागच्छ, सादा सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: गोयमसम प्रतिरूप तेज; अंति: सादा सेवक आज्ञाकारी, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर गुरुजीना गुण; अंति: उत्तम० नित वंदे रे, गाथा-९. ८९६२३. (+) नेमराजिमती बारमासो, नेमराजिमती व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. नरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४४३). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. शिवचंद, रा., पद्य, आदि: ज्यो तुमे चाल्या शिव; अंति: ओ भव पार ऊतार रे, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनारै पास नमिय; अंति: देव दरसण दीजै रे, गाथा-३. ८९६२५. (+) भगवतीसूत्र शतक-२, उद्देशा-५ तुंगियानगरी अधिकार सूत्र-१३० व १३१, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४२५-३१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ८९६२६. रहनेमी व पंचमआरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४३८). १. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पोहता छे मुगतिमा सोध रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से २.पे. नाम, पंचमआरा सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: भाख्या वयण रसाल, गाथा-२१. ८९६२७. पिंडविशुद्धिगत विचार, संपूर्ण, वि. १६५५, कार्तिक शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३४). ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आहाकम्मुद्देसिय०; अंति: दोष यति जिमतां ऊपजइ. ८९६२८. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, २९x१८). सिद्धचक्रतप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एक सरोज उद्धरीओ आगम; अंति: वासित हरष परम पद पावना, गाथा-७. ८९६२९ मालारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४४८). उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: माला जे पहिरि तेहना; अंति: देन माल देहरि मुंकइ. ८९६३० (+) नेमिनाथ फाग, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४२८). For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org नेमिजिन रास, पं. कमलकीर्ति गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय सारदा सामिणी गाउं; अंति: कमल सुखकारो रे, गाथा - १६. ८९६३१. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार व देव आयुष्य विवरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे. (२४.५x१०, 1 १४४५०). १. पे. नाम. आठ कर्म एक सौ अठावन प्रकृति विचार, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण, ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि आठ कर्म ते केहना; अंति: विष उद्यम करवी. २. पे. नाम. देव आयुष्य विवरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म देवलोक १ सागर २; अंति: अवुत दे० सागर २२ को ०. ८९६३२. (-) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जै... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५X१०.५, १८x२८-३८). मृगापुत्र सज्झाव, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीवनवर सुहामणो अंति: तुझ सम अवर न कोय, गाथा २५. ८९६३३. (*) नवपद, देवलोक व चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६X११, १२X४०). १. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि गुरु नमतां गुण उपजे अंति पर तारवा मोहन सहज सुभाव, गाथा- ९. २. पे. नाम देवलोक सज्झाय, पू. ११-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि सहुधर्मालोक देवलोक, अंति: जस० जे जेकार वरताय रे, गाथा- ११. ३. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जैदे., (२५.५X११, १५X४५). १. पे. नाम. पांडव संयमव्रत सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति कुंवर कहै करजोडि रे, गाथा- १३. ८९६३४. सूर्यमंडल परिधिमानादि विवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५. ५X११, १९x४२). जैनयंत्र संग्रह", मा.गु., को. आदि: (-); अति: (-). ८९६३५. (*) पांडव संयमव्रत सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: जुवटोपांड०, संशोधित., ४३ मु. कुशलमुनि पुर्हि, पद्य, आदि: पांडव पांच महाबलवंता, अति कुशल सदा सुखकारी, गाथा-१०. २. पे नाम औपदेशिक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक दुहा- गुरुगुण, मु. कुशलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि मांगी मुगत मिले नहीं; अंतिः सर्म नहीं जिनराव, गाथा-५. ८९६३६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, पठ श्रावि हरकोरबाई शेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६५११, १४४४२). १२४३६). १. पे नाम. पृथ्वी सचित अचित सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु, पद्य, आदि मन समरु सहगुरुनुं नाम जिम; अंति: सुगडांगवृत्तीची लहे, गाथा-५. २. पे नाम. जिनपूजाविधि छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय - शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि एक अनोपम रे सीखामण; अति उदयरत्न इम उचरे, गाथा- १०. ८९६३७. (+) जिनप्रतिमा स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. ग. अनंतहंस वाचक पठ श्रावि. लाडमदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ६X३४). जिनप्रतिमा स्तोत्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिउण सव्वजिणे सिद्ध; अतिः भवविरहं कुणउ भव्वाणं, गाथा ७. जिनप्रतिमा स्तोत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अतीत अनागत वर्तमान अंतिः मोक्षरा अनंता सुख दियउ. ८९६३८. पृथ्वी सचितअचित सज्झाय व जिनपूजाविधि छंद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, वे. (२५x११, Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिनाथनी पूजा; अंति: विमल कहे मन उलास, गाथा-१३. ८९६३९. (-) शांतिजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:महावीर., अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १०४४०). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: संती जीणेसर सत करो; अंति: श्रीसंतीकरो श्रीसंतीकरो, गाथा-१३. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. खेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर त्रिभुवनधणी; अंति: खेत्रसिंह० किसनगढ आसा फली, गाथा-१४. ८९६४०. वीश छप्पय,शीयलव्रत सज्झाय व सर्वार्थसिधविमान सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२५.५४११,१५४४०-४३). १.पे. नाम. वीश छप्पय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सरपदड ध्रोल, प्रले. अंदरजी घेलाभाई पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य. १८ पापस्थानक छप्पय, अरूणपुरे, पुहि., पद्य, वि. १९५२, आदि: प्रथम नमुं गुरुपाय; अंति: अरूण० भव साहेर तरो, गाथा-२०. २. पे. नाम, शीयलव्रत सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. जादव, रा., पद्य, आदि: प्रभुजी रे पाये शीश नमावू; अंति: जादव० भवसागरने तरीया, गाथा-७. ३. पे. नाम. तष्णात्याग सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. तृष्णा त्याग सवैया, नथुराम, पुहिं., पद्य, आदि: तनकी त्रशना तीनपाशेर; अंति: नथुराम० धन धुड समान, पद-१. ४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. चत्रभुज, प्र.ले.पु. सामान्य. १३ वाना की तोलडी, इंद, मा.गु., पद्य, आदि: चुलो अने ढाकणी इधण; अंति: इंद० मागे तोलडी, पद-१. ५. पे. नाम. सरवार्थसिध विमान सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, अन्य. सा. नंदुबाई सामी, प्र.ले.पु. सामान्य. वेदनीयकर्म निवारणपूजा ढाल, मु. वीरविजय, गु.,मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो मुनि संयमराग; अंति: वीरविजय जगदीश रे, गाथा-८. ८९६४१. ऐतिहासिक प्रमुख घटनाक्रम संवतवार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, ४२४१७-२३). प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संवत् १०७ राजा; अंति: (-), (पू.वि. संवत् १७४२ की घटना तक है.) ८९६४२. वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रत के दूसरे पार्श्वभाग पर भक्तामर स्तोत्र को मात्र प्रारंभ करके अपूर्ण छोड दिया है., जैदे., (२५.५४११, ९४३०). वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐनमो भगवओ अरहओ वासु; अंति: सामेविज्या पसिज्यओ. ८९६४३. (+) अतीतवर्तमानअनागत चोवीशी व दश क्षेत्रना १५० कल्याणक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१४(१ से १४)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३६). १.पे. नाम. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षे पारंगताय नमः, (पू.वि. संभवजिन के कल्याणक अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व गणनं, पृ. १५आ-१७आ, संपूर्ण. __ मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे; अंति: श्रीआरण्यनाथाय नमः. ८९६४४ (4) महावीरजिन स्तुति व २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: चोइसी., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १४४३६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामीजी बुद्धि; अंति: टालि सामी दुख घणा, गाथा-११. २. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. दयाल, मा.ग., पद्य, आदि: मंगल कर जिणराय मणै; अंति: संघमें मंगल पर ए, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९६४५. वरकाणापारसनाथ तवन, इक्षुकार सज्झाय व अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, ३०४२२). १. पे. नाम, वरकाणापारसनाथ तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय पणमे; अंति: मति विलास सुखीया करो, गाथा-१०. २.पे. नाम. इक्षुकार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इक्षुकार कमलावती सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पुर इखुकारइ नृपइखुकार ए; अंति: ब्रह्म० फल लीजिए, गाथा-८. ३. पे. नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आठम दिनि बोल्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८९६४६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, ९४३३). ___ औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावलो उडे; अंति: भीमविजय० पामसो मोक्ष, गाथा-१३. ८९६४७. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७१३, माघ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जयराज ऋषि (गुरु उपा. हीरानंदचंद्र); गुपि. उपा. हीरानंदचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४७). ___ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणवर रिसह; अंति: कीरति गति सुख सार, गाथा-२५. ८९६४८. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पार्श्वजिन व चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०.५, १२४५६). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आग्रही बत निनीषति युक्तिं; अंति: जइ पच्चंता करंति डमराई, श्लोक-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाडीपुरमंडन, उपा. नयरंग वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: आससेण भूपति कुलतिलउ; अंति: नयरग० पासजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: समरिय सामिण सारदा; अंति: विमलविनय०मन आसो ज्यो, गाथा-७... ८९६४९. आराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १५४५६). ___ आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ नमस्कार अरिहंत; अंति: सव्वथ सिद्धि विमाण, गाथा-९५. ८९६५०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४३३). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम रे सीखामण; अंति: उदयरतन इम उचरे, गाथा-१०. ८९६५१ (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, १३४४५-५०). पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी परगडउ; अंति: पास पूजई तेहनी धन्यासिरि, गाथा-३५. ८९६५२ (+) तमाक सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १.पे. नाम. तमाकु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवू; अंति: ते लहे कोडि कल्याण, गाथा-१८. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवनं पार्श्वस्य. मु. भक्तिविशाल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनवर हो जिनवर पुरसा; अंति: मुनीवर कहे पूरीजे मननी आस, गाथा-९. ८९६५३. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, ११४१२-२७). मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्वदृष्टि; अंति: त्रसकाय पगथी दूर करु. ८९६५४. (#) २४ जिन राशि नक्षत्र योनि गण विवरण कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, २५४२६). २४ जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्रसहित.) ८९६५५ (4) बाहुजिन व सुबाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३५४१२-१५). १.पे. नाम. बाहजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब बाहु जिणेसर; अंति: जस कहे सुख अनंत हो, ___ गाथा-५. २. पे. नाम. सुबाहुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सुबाहु सुहंकर; अंति: सेवक सुजस वखाणे रे, गाथा-५. ८९६५६. (#) श्रावक अतिचार वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ३,५)=२,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२९x१०.५, ३१४११). श्रावक १२४ अतिचार वर्णन, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ व बीच के पाठांश नहीं है तथा "द्रढ रहे तिम करको आज्ञायै" पाठ तक लिखा है.) ८९६५७. (#) शत्रंजयतीर्थ व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८.५४१०.५, २६४१८-२१). १.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जगपति वंदो विमलगिरी; अंति: गौतमने संपति करो, गाथा-१०. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामने वीनतुंग; अंति: उदय० पुजता पुरे सघली आस, गाथा-७. ८९६५८. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१०, ११४४४-४९). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु पासनाह पहौ समैं; अंति: प्रसाद परमारथ लह्यो, गाथा-२३. ८९६५९. २४ जिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १७१९, चैत्र शुक्ल, ९, जीर्ण, पृ. ३, जैदे., (२८x११, ११४३८). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: मानषोतरपर्वत विशतारि; अंति: बरस छठोकाल२१०००. ८९६६० पंच समवाय विचार व ६ द्रव्य पर्याय यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२७.५४१०.५, १२४६२-७१). १.पे. नाम. ५ समवाय विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रावण शुक्ल, ११, ले.स्थल. चाणोदनगर, पे.वि. हुंडी:पंचसमवाय चर्चा. अंत में 'बाबा श्रीमाहाराजकृतरिय' ऐसा लिखा है. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काल शब्दे उत्सर्पिणी; अंति: सर्व समवायपणे मानणा. २. पे. नाम. ६ द्रव्यपर्याय यंत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ८९६६१ (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x१०.५, ४०x२०-२३). महावीरजिन स्तवन, मु. अभयराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर गुण गायसु; अंति: अभयराजसंसार पारि उत्तारि, गाथा-३२. ८९६६२. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. तुलीछा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४११, २०४५५). भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिविहं तिविहेणं न; अंति: (-). ८९६६३ (+) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९९८, श्रावण शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. श्राव. मोहन गिरधर भोजक; अन्य. श्राव. चुनीलाल निहालचंद; श्रावि. केसर बाई (माता श्राव. चुनीलाल निहालचंद); श्राव. नगीनभाई करमचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रुषभदास कृत रुषभदेव विनती. पाटण-वागोलपाडा में आदिजिन स्थापना के दिन केशरबाई चनीलाल नहालचंद के स्मरणार्थे व मोहन गिरधर भोजक आत्मार्थे यह प्रत लिखी गई है तथा इस प्रत को पंचासरा के पास नगीनभाई कर्मचंद संघवी के होल में केशरबाई ज्ञानमंदिर में सं. २००१ कार्तिक सुद ७ मंगलवार को भेंट दी गई है., संशोधित., दे., (२७.५४१०.५, ९x४७). आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: आदीजिनवर वंदू पाय ना; अंति: बोले पाप आलोउ आपणा, ढाल-५, गाथा-४८. ८९६६४. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा सह कथा, मेघकुमार सज्झाय व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१०.५, १२४३२-४५). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा सह कथा, पृ. १आ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८८६, श्रावण कृष्ण, ३, शुक्रवार, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. वर्सनजी रतनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:आठ कथा. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमणं१ पडियरणा२; अंति: पडिक्कमणं अट्ठहा होइ, गाथा-१, संपूर्ण. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रं प्रतिक्रमणं; अंति: साभली राजाइ नीवाज्यो, (अपूर्ण, पू.वि. 'कुटंब नेइ मील्यो' से 'ते माहारे पणी धणि" तक नहीं है., वि. कथान्तर्गत मूल का आंशिक अर्थ दिया है.) २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: पाम्या पामा अणुत्र वैमान, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मु. सुमतिविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आद जिणंद मआ करो अरज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८९६६५ () पद्मप्रभुजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४१०.५, १४४२७-३२). १.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चेल. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने वलता थका जे; अंति: पामसी भव तइणो पार, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महम्मद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा काइ भमो; अंति: ये लेखो साहब रे हाथ, गाथा-९. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जीण राजक; अंति: मोगत सीधावसी मोरा स्वाम, गाथा-६. ८९६६६. सूर्याभविमान विस्तार व नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: सूर्याभ को वि., दे., (२७४१०.५, १३४४६).. १.पे. नाम. सूर्याभविमान विस्तार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९२०, प्रले. मगना, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: साडा बारा लाख जोजन को; अंति: एक हाथीना मन्नाडा छे. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारमंत्रजीरो जाप; अंति: पाप परमाद निवारो, गाथा-१०. ८९६६७.(+) ९५ बोल-जीवोत्पत्ति विचार व ८ कर्मबंध भेदविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१०.५, १४४३१). १. पे. नाम. ९५ बोल-जीवोत्पत्ति विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ९५ बोल-जीवोत्पत्ती विचार, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, प. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ८९६६८. (#) पार्श्वजिन लघस्तवन व औषधवैद्यक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ७X४०-४५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, पं. वीरमेरु पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १५८७, आदि: सकल पास जिणंद वखाणी; अंति: बुद्धि सुद्धाकरो, गाथा-५. २. पे. नाम, औषधवैद्यक संग्रह-मसाविषये, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८९६७०. आदिजिन स्तवन धुलेवा-शांमलामंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x१०, ३३४१७-२०). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.ग., पद्य, आदि: धन्य तु धन्य तु धणीय; अंति: दास रुखभजी हित गायो. गाथा-५. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन-शांमला, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तमदास, मा.गु., पद्य, आदि: सार कर सामला वार; अंति: उत्तम० जाउं बलीहारी, गाथा-५. ८९६७१. झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कीसनगढ, प्रले. सा. छगनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जांजर., दे., (२७.५४१०, १४४३८-४८). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरण सीस नमाया; अंति: सहु मरदो रे, ढाल-४, गाथा-४४. ८९६७२. कुमतिउपर सज्झाय व जिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, ८ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५,११४३०-३६). १. पे. नाम. कुमतिउपर सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणे; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. २. पे. नाम. जिनप्रतिमामंडन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक उद्धारज कीधो; अंति: वाचक जसनी वाणी रे, गाथा-१०. ८९६७३ (+) क्रोधमानमायालोभ परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४४२-४५). क्रोधमानमायालोभ परिहार सज्झाय, मु. विनयविवेक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मान की गाथा-२ से लोभ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८९६७४.(-) सीझण द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: सीझ., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १८४४५). बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उर्ध्वलोकमांहि एक; अंति: उत्कृष्टो छ मासनो. ८९६७५ (4) शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि. मु. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सील रास., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १९x४०). For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४९ शीयलव्रत सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., पद्य, वि. १८००, आदि: परबचन माता संबरु तोय; अंति: सुणो जनम जनम का पातक हरो, गाथा-३२. ८९६७६. (+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४९.५, ९x४१). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है.) ८९६७७. गुरुगुणवर्णन जोड, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१०.५, ७४४१). गुरुगुण जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८८५, आदि: सतगुरु हैं सौदागर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ८९६७८. साधु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१०.५, १०४३९). द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजीने ते तुंबडूं; अंति: जासे मुगति मझार रे, गाथा-११. ८९६७९. औपदेशिक सज्झाय व जिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १९x४६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावलो; अंति: भीम कहे तव पावेसी मोख, गाथा-२४. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिन प्रतिमा जिन सार; अंति: संसार मे अमरापद साधो, गाथा-८. ८९६८० (4) अनाथीमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. कुशलभुवन गणि शिष्य; पठ. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनाथीनी चुपई., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४२). अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सिद्ध सवे करु प्रणाम; अंति: गति ते विचरइ सही, गाथा-६१. ८९६८१. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र कथा व केवलीज्ञानवैभवादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:समासछइ., जैदे., (२७४११, २१४५५). १.पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन-१६, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कथा, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. केवलीज्ञानवैभव विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: केवलिअथना अनंता; अंति: केवलीनु ज्ञान छइ. ३. पे. नाम. देवमनुष्यतिर्यंचादि वैक्रियमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: देवतानी वेक्र १०००००; अंति: विषइ एका अवतारी हुसी. ४. पे. नाम. आउति चोवीसी नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ श्रेणिकनो; अंति: स्वातिबुद्धनु जीव. ८९६८२. औपदेशिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १८४५७). १. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परउपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रंगइ जेरंगइ कहे, गाथा-९. २.पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८१२, आषाढ़ शुक्ल, ६, ले.स्थल. गगडांण. औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कहै; अंति: मुगति जिसु हेला वरो, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शीलगुण, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: रूपवंत नइ पाले सील; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९६८३. पापबुद्धि धर्मबुद्धिनी कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अंत में अभिचंद्रराजा की कथा का मात्र प्रारंभिक अंश लिखकर अपूर्ण छोड दिया है., जैदे., (२६.५४१०.५, १६x४८). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपुरनगरे जितारि; अंति: केवल० मोक्ष पहुता. ८९६८४. जिनचंद्रसूरि गच्छाधिपति पत्र व गुरुगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). १.पे. नाम. जिनचंदसूरि गच्छाधिपति पत्रगीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. जिनचंद्रसूरि गच्छाधिपति गीत, ग. राजहर्षगणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंथी सुणि संदेसडो तू; अंति: म्हारो कागल देज्यो, गाथा-८. २. पे. नाम. जिनचंदसूरि गच्छाधिपति गुरुगीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गच्छाधिपति गुरुगीत, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोसीयडा रे सुणि मोरी; अंति: इम श्रीसुमतिविजय कहै, गाथा-६. ८९६८५. भगवतीसूत्र अट्ठसत्तक नवउद्देश बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, २०४५२). भगवतीसूत्र-सर्वबंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: थित आंतरो अल्पावहुत्त; अंति: अबंधगा विसेसाइया. ८९६८६. (#) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८७०, वैशाख शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. समदरडी, प्रले. पं. हितसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०, ३२४१८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीजीनमुगतीसूर ७५. ८९६८७. अमरकुमार सरसंदरी चौपाई, श्रीमती चौढालियो व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, २५४६५-६८). १.पे. नाम. श्रीमती चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, आदि: ईणही ज दक्षिण भरत; अंति: रमसी ए सफलफलै सह आस, ढाल-४. २. पे. नाम. अमरकुमार सुरसुंदरी चौपाई- ढाल १०वी, पृ. १आ, संपूर्ण. सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: पांडे पांडे हे सखी; अंति: जीभ हमारी गल रहइ, गाथा-७. ८९६८८. (#) महावीरस्वामी गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१०.५, ११४३४-३८). महावीरजिन गहंली, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे श्रीगुरुचरण नम; अंति: वंदि दयासागर सुखकार रे, गाथा-८. ८९६८९ (+#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १९४४३). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रतन चिंतामणि नर भव; अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य व परिमाण नहीं लिया है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: पासचंद० उजवालै रे, गाथा-१६, (वि. पत्र खंडित होने से आदिवाक्य नहीं लिया है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, वि. १८५३, आदि: इम सतगरू जीवन समजावा धर्म; अंति: सुणजो तनव आणीजि, गाथा-८. ८९६९०. चक्रेश्वरीदेवी गरबो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. भाईचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११, २२४१०-१३). For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली चकेसरी मात; अंति: छे बहु सोभा सारि जो, गाथा-९. ८९६९१ मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७.५४११, ७४३०). मगापत्र सज्झाय, म. कवियण, मा.ग., पद्य, आदि: पुरसग्रीव सोहामणो; अंति: गोखे रतन जडाव हो, गाथा-१८ ८९६९२. (+#) युगमंधरजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४३२-४०). १.पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: नीसदीन लुलु सीस नमाउ; अंति: सइजीण दबाणी भली पकरी, गाथा-१५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-कुंडलपुर, मु. जतीदास, पुहि., पद्य, आदि: कुंडलपुर सुवावणो; अंति: जतीदास कवावो वनी, गाथा-१०. ८९६९४ (+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१०.५, १४४५०). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० तक है) ८९६९५. (+) आदिजिन चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रीषभ., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३८). आदिजिन चौढालिया, ग. साधकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रूप मनोहर जुगतानंदण; अंति: जप तप कीना बे बीसुर नामना, ढाल-४, गाथा-२४. ८९६९६ (+) नेमिजिन गीत, सीमंधरजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०, १३४३५). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर करयो मया धरयो; अंति: हे मति मूको रे वीसार, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. संयमहर्ष, पहिं., पद्य, आदि: नीकी करी हो ललना नेम; अंति: आ संग रस रंग भरी हो, गाथा-३. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा माणिक सामी; अंति: तुम साहिबा हम दास, गाथा-७. ८९६९७ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. पारकी; पठ. श्रावि. पाराजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढालउ., संशोधित., जैदे., (२६x१०.५, १३४४२). औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख मन भाव नही चुत्रा; अंति: सात सहल्या रे साथ रे, गाथा-२५. ८९६९८. (4) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. भेड, प्रले. मु. हरकिसन (गुरु मु. दयारत्न वाचक, ओसवालगच्छ); गुपि. मु. दयारत्न वाचक (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४३७-४०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-५, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ८९६९९ (4) गणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ४८x२५). गुणरत्नाकर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: कोसलदेस अयोध्या सोहइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ८९७०० (+#) मेघकमार सज्झाय व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. उदयसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में ग. अदयसंदेरि पठनार्थ लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४२-५०). For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: पूनु० तरसि संसार हे, गाथा-१९. २.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रथ वाली नेमि काहे आवइ तुझ; अंति: प्रीति पुराणी रे, गाथा-५. ८९७०१ (+) साधारणजिन स्तव व पद्मावती स्तोत्र-अंतिम श्लोकत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०, १०४३४). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७१६, फाल्गुन शुक्ल, १, ले.स्थल. धिलनानगर, प्रले. मु. खेमाविजय. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाप्रभोयं विधिना; अंति: ययानंदमय प्रदेयाः. २.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र-अंतिम श्लोकत्रय, पृ.१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. कीर्तिराज. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रसीद परमेश्वरी, (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६ से २८ तक है.) ८९७०२ (4) पूनमगच्छ पट्टावली व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४५३). १.पे. नाम. पूनिमगच्छ पट्टावली, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पूनमगच्छ पट्टावली, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तिहां अविहड चंग, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए तु नारी रे बारीछि; अंति: विजयभद्र० तस आवी वरइ, गाथा-१२. ८९७०३. (#) साधुसमाचारी बोल, संपूर्ण, वि. १८४८, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राणावस, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १४४४८). साधुसामाचारी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई साधु सामग्री; अंति: वरज्यौ छै सही. ८९७०४. (+) नंदीकरण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५६). नंदीकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमा० मुहपत्ति पडिलेह; अंति: नंदिसूत्र भणति. ८९७०५ (+) सज्झाय व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३३). १.पे. नाम, नवकार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: मंत्र माहा नवकार मीठ; अंति: कुसल कहे सुविचारी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजै हे; अंति: समयसुंदर प्रभु रीत. ३. पे. नाम. कुमतिनिवारण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कुमतिनिवार सज्झाय, मु. कुसल, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धखेत भगवंत अनंत; अंति: रीत मुगति पहुता घणा, गाथा-७. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति: जिनचंद्र० सहियां ए, गाथा-७. ५.पे. नाम. गयसुखमाल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. कशल, पुहिं., पद्य, आदि: द्वारापुरी नगरी कै; अंति: वांदे नित पाया हो, गाथा-७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडल मुकुटं धार्मिक; अंति: रम्यारम्यं सहरम्यं, श्लोक-४. ८९७०६. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१०.५, ३६४२०). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हो मारो आदि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९७०७. (+) चेलणासती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: चैल., संशोधित., दे., (२६४१०.५, १५४२९). १.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समयसुंदर० भवजल पार, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो ज्ञान भमरा काई; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ८९७०८. ८४ गच्छनाम, संपूर्ण, वि. १८२०, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११, २४४२०). ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: बृहत्खरतरगच्छ १; अंति: वाडा गछ ८४ नाडोला गछ. ८९७०९. (+#) गौतमस्वामी स्तवन व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). १.पे. नाम, गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: सर्णाष्टाग्रसहस्रपत्रकमले; अंति: श्रेयांसि भयांसि नः, श्लोक-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. शिवसंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं भवदं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८९७१०. (+) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५२, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वाघावास, प्रले. पं. रत्नसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३६). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरण जुग; अंति: जिणचंददुःख जायै दूरि, ढाल-११, गाथा-९७. ८९७११. मुनिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, ४०x१९-२१). मुनिगुण सज्झाय, मु. कुशल, पुहि., पद्य, आदि: मुनिवर बाबन प्राण के; अंति: पीछे अवर पीलाय, गाथा-४२. ८९७१२. सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीः सनत्कुमार चो., कुल ग्रं. १५८, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४६). सनत्कुमारचक्रवर्ती चौपाई, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: थे वेणविसप्पपुरिसासण; अंति: चौपई संघ सदा सुखकार, ढाल-७, गाथा-९६. ८९७१३. (+) अल्पबहत्व ९८ द्वारादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१२(१ से १२)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. हुडी: विचारपत्र., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १७४४२-४६). १. पे. नाम. अल्पबहत्व ९८ द्वार, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीपन्नवणा उपांगमां, (२)सर्व थोडा गर्भज; अंति: सर्वजीव वसेष अधिका. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा अल्पबहुत्व विचार, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारमु गुणठाणाई; अंति: थकी अनंतगुणै अधिका. ३. पे. नाम. मुहपत्तीपडिलेहणना ५० बोल, पृ. १४आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमोहनीय१; अंति: कायनी पडिलेहणा जाणवा. ४. पे. नाम. तंदलमत्स्य विचार, पृ. १४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: तंदुली मत्स्यश्च; अंति: जीवाभिगम वृत्तौ. For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैदे.. ८९७१५. समनपचीसी, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पू. १, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पची., (२६×१०.५, १८x४०). अमणपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु. पच, वि. १८५५, आदि: सुरतर सीअमणी सारसा; अंति: समनपचीसी करी सार रे, गाथा २५. ८९०१६. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५४११, १२४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदरि जीव क्षमागुण, अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ८९७१७. (+०) २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५x१०.५, ११४५२). " २४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को, आदि: चवणविमान नयरि जिण; अंति १४हजार साधु जती हुवा. ८९७१८. (+#) जिनलाभसूरि भास व वधावो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२५.५४१०.५. १४४४०). "" १. पे. नाम. जिनलाभसूरि भास, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. नैणसी पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: पुज्य पधार्या पुरि; अंति: अधिकै मन आणंदै है, गाथा-१३. २. पे. नाम जिनलाभसूरि भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि आज बधाऊडी आवीयो अति जिनलाभ० एतोसदी दे आशीस, गाथा- १३. ८९७१९. (*) पद्मावती आराधना, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी रीस, संशोधित, जैदे (२५x१० १२x२६). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हवइ राणी पदमावती; अंति कहइ पापधी छुटइ ततकाल, ढाल -३, गाथा-३६. ८९७२०. (+) जिनदत्तसूरि छंद व खरतरगच्छराज द्वावेत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२४.५x१०, १३x४२). १. पे. नाम. जिनदत्तसूरि छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, फा., मा.गु, पद्य, आदि केही गल्ला कधीयां अति: रुपचंद० जिन साईयां, (वि. प्रतिलेखक ने दोहा संख्या नहीं लिखी है.) יי २. पे. नाम. खरतरगच्छराज द्वावेत, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. खरतरगच्छराज मजलस, पुहिं., पद्य, आदि: अहो आवो बे यार बैठो; अंति: गीरचंद दुआ वैत कहणा.. ८९७२१. (*) शत्रुंजयचैत्य प्रवाडि व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, पत्तन, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४१०.५, १४४३८-३९). १. पे. नाम. शत्रुंजयचैत्य प्रवाडि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., पद्य, आदि वागवाणि सुपसाउ करे; अंति होइसी निम्मल देह, गाथा ३४. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पच, आदि: नाभि नरिंद मल्हारा अति देव अवरनका इछ्यए, गाथा-२१. ८९७२२. शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५.५४१०.५, १२४३४-४२). " शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -२ की गाथा-१४ तक लिखा है.) , י ८९७२३. (-) रायचंदगुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. जसरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडीवाला भाग अर्धखंडित होने से प्रतनाम अस्पष्ट है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५. ५X११, १६x४४-४६). रायचंदगुरुगुण भास, मु. कुशलचंद, मा.गु., पद्य वि. १८६१ आदि श्रीमीदरजीण आद दे; अंति गुण जोडीया कुसलचंद ए. गाथा ३२. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९७२४. शील रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४६०). शील रास, मा.गु., पद्य, आदि: सील सुध चुतर सूजाण; अंति: (-), (वि. गाथा-१२ के बाद अनुसंधान पाठ छोड़कर पुनः गाथा-६ से लिखा गया है.) ८९७२५ (+) आदिजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४०). आदिजिन सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: भरत कहै करजोडि भलो; अंति: एम कब ले बात आगे घणी, गाथा-१४. ८९७२६. () साधुमर्यादापट्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). साधमर्यादापट्टक, आ. देवसरि, मा.गु., गद्य, वि. १६७७, आदि: ॐ तत्त्वभट्टारक श्रीहीर; अंति: लिखइ घणं जाणवू. ८९७२७. (-) शत्रुजयचैत्र प्रवाडि व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१०.५, ११-१३४४०). १. पे. नाम. सेजानी चेत्र प्रवाडि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण... शत्रंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., पद्य, आदि: वागवाणि पसाउ करे सामिणि; अंति: फल होसइ निर्मल देह, गाथा-३६. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूवरदीव महावदेह; अंति: भणइ श्रीसंतिसूरि, गाथा-८. ८९७२८. गुर्वावली सज्झाय, कल्याणकंद स्तुति व शत्रुजयतीर्थ नाममाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, ११४३५). १.पे. नाम, गुर्वावली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वीरजिणंदह पय प्रणमेव; अंति: विशालसंदरगुरु केरु सीस, गाथा-९. २. पे. नाम, जिनपंचक स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणं; अंति: अम्ह सयापसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ नाममाला स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव पय प्रणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८९७२९. संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १३४३८-४०). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सतताई तो पगामसज्झाय; अंति: सामाईक पारवो ३नोकार. ८९७३० (+#) आणंदविमलसूरि गुरुगुण गीत व १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२४४०). १. पे. नाम. आणंदविमलसूरि गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आणंदविमलसूरिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनपति जिनवीरनइ नमी; अंति: आणंद०अहरो सिवसुख करो, गाथा-११. २.पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: निश्चइ पामउ निरवाण, गाथा-८. ८९७३१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, १२४३९). महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नहृदय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर मारा पावापुर महावीर; अंति: देख रत्नहृदय म राखी रे, गाथा-८. ८९७३२. (+) पद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, २५४४२). For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org १. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि लख चोरासी तुं भम्यो, अंतिः करणी करो रे भाई, गाथा १५. २. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पू. १अ, संपूर्ण, पुहि., पद्य, आदि एक ही माइ तिण मुझ; अति अठारा नाता भाखु, गाथा-८. ५. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि देख्या दुनियां बीचि अंति: ए अजर अमर पद पाइए रे, गाथा - ६. ३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर बखाणी राणी चेलणा; अंतिः समय० भवतणो पार रे, गाथा- ६. ४. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि चरखा भया पुराना रे; अंति होगा भूदर चेत सवेरा, गाथा-५. ७. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण कैलास श्राव. महमद जैन, मा.गु., पद्य, आदि: तोसें कौन सरभर करइ; अंति: राखिले श्रणि देवाधिदेवा, गाथा-५. ६. पे नाम औपदेशिक पद. पू. १अ, संपूर्ण. . मु. ८९७३३. चवदे नियमरो विवरो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, १६x४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि बंदु श्रीजिणराव मन; अंति नरनार ते संसार तिरे जी गाथा १९. ८. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा - ३१. ९. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि बाहुबल चारित लीयो, अति विमलकीरति गुण गाय, गाथा १२. • - १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त छोडे अथवा २४; अंति: (१) संभारीये संक्षेपीयै, (२) गोयम भणियं न संदेहो, १. पे नाम, कवित्त संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण. क. पिंगल, पुहिं., पद्य, आदि पींगल कहे धरहरत काहा; अंतिः नर वानर कैरा गरमे, पद-२. ८९७३४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित. जैवे. (२६४१०५ १२४५२)औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारण, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन आणी जिनवाणी; अंति: ऋद्धिविजय जय जयकार, गाथा- १७. .जैदे., ८९७३५ अष्टकर्मप्रकृति विचार व १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, (२५X१०.५, १९६२). १. पे. नाम. ८ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मनी मूल प्रकृति ८; अंतिः बांध हेतुवि पाड्या. २. पे नाम. १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार, पृ. २अ ४आ, संपूर्ण १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., आदि: प्रथम १४ गुणस्थानक; अंति: नववर्ष न्यून ताई For Private and Personal Use Only रहइ. ८९७३६ (+) २४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४-१ (३) =३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११, ३०x२२). २४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को. आदि श्रीऋषभदेवजी १; अति: सिद्धाइका पावापुरी, संपूर्ण, ८९७३७ (+) कवित्त संग्रह, शीलव्रत सज्झाय व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित, दे., (२५.५४१०.५, १२४३२) " Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. शियलविजय, मा.गु., पद्य, आदि रे जीव विषय निवारीये अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १ अपूर्ण मात्र ही लिखा है.) ३. पे. नाम चोविसतीर्थंकर स्तवन. पू. १ आ. संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि पहिला ऋषभ जिणेसरदेव; अंति: देजो सुख संपती, गाथा-७. ८९७३८. वृद्धनवकार पद, शांतिजिन स्तवन, सज्झाय व बारमासो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १(१ ) =१, कुल पे. ४, जैवे., (२४.५X१०.५, १४X३४). १. पे. नाम. वृद्धनवकार पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. वि. १७६३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, ले. स्थल, मानपुर, " प्र. मु. धनराज ऋषि, पठ.सा. सांझाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: तणी सेवा कीजइ नित, गाथा-२६, (पू.बि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. २अ-२आ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन-मीमचनगरमंडण, आ. विनयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु वीनतडी; अंति: भ विनयसुरिव गाथा ७. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ; अंति: ए छे मुगतिदातार, गाथा ६. ४. पे नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन वारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु, पद्य, वि. १६८९, आदि: सखी री सांभलि हे तू अति: (-). (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ८९७३ () २४ जिन लेखो, ५७ कर्मबंध हेतु, धन्ना अणगार व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ६-४ (२ से ५) = २, कुल पे ४, प्र. वि. हुंडी मन, अशुद्ध पाठ, दे., (२५४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. २४ जिन लेख, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ५७ मा.गु., गद्य, आदि: पैला वंदु श्रीरिषभदेवजी; अंति: ३ पाट मोक्ष पहोता. २. पे. नाम. ५७ हेतुबंध विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ गुणस्थानक ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, आदि: मुल हेतु च्यार उत्तर; अति: (-). (पू.वि. "आहारारो मिसर, बीजे" पाठ तक है.) ३. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणी एहवा साधुनु सरण, गाथा- १५, (पू.वि. गाथा - १२ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. ,जेठमल, मा.गु., पद्य, आदि: वांदु गजसुखमाल माहामुणी; अंति: उतम फल पावइ नर तेह, गाथा-१७. ८९७४०. कार्त्तिकश्रेष्टि दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : कार्तिकश्रेष्ठि दृष्टांत., जैदे., (२५X१०.५, १५X३८). कार्तिकश्रेष्ठ कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हत्थिणाउरनामा नगर; अंति: ऐरावण हस्ती थयउ. ८९७४१. (+) २४ जिन निर्वाणकल्याणभूमि स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९०४, चैत्र कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल. अहीपुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. २४ जिन निर्वाणकल्याणभूमि स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदेसर अष्टापद उपर; अंति: वसंत रीतमे वखाणी हो, गाथा - ९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-भव्योपदेश, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८८६, आदि: तेज तुरंग पर चढे; अंति: जेयपुर सहिरमें गाई, गाथा-९. ८९७४२. ऋषिवत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६४१०.५, १६x४५). For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद, अंति: जिनहर्ष नमु कर जोडि, गाथा-३०. ८९७४३. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५X१०.५, ११x४१-४३). आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि सयल जिणंद; अंति: प्रेम० पामो भवपार ए, गाथा - २१. ८९७४४. औपदेशिक सज्झाय व पंचमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १७५७, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.ग. अजबसागर; पठ. श्रावि. रायकुमरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१०, ११x२६-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय निंदात्याग, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि म करि हो जीव परताति; अति: एह हित सीख माने, गाथा- ९. २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धवधु केरो सिणगार; अंति: पुर आस्या सवि मन तणी, गाथा-४. ८९७४५. जिनराजसूरिगुरुगुण गीत, औपदेशिक व भरतवाहुवली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैदे (२६४१०, १३४४२-४५). १. पे. नाम जिनराजसूरि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. जिनराजसूरिगुरुगुण गीत- खरतरगच्छाधिपति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पंधीडा संदेशो पूवजी अंति अमर० धन धीर सुजाण रे, गाथा-७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय- हितोपदेश, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नगर रतनपुर जाणीई अति सोमविमलसूरि इम भणे ए. गाथा ८. ३. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. · मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि बाहुबल चारत लियो जी; अति विमलकीरति सुखदाय, गाथा १२. ८९७४६ (क) बुध रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१०, १०-११४३७-४१). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पणमवि देवी अंबाई पंच, अंतिः सवि टले कलेस तो गाथा- ६०. ८९७४७ (+) विवप्रवेश विधि व पादुका प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. २. ले.स्थल. समदडी, प्रले. पं. रत्नधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६X१०, १४X४१-४३). १. पे नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: माघादौ पंचमासे शशि; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पादुका विधि, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण. , " स्तूप पादुका प्रतिष्ठाविधि, प्रा. सं., प+ग. वि. १८वी, आदि प्रथम गुरु सदवस्त्र अति पादुकानी प्रतिष्टा करवी. ८९७४८. (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१०.५, १३x२६). , "" गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि गजसुखमाल देवकिनंदन, अंति जोधाणे होस करी गाइ, गाथा-२२. ८९७४९. पांडव रास-ढाल १४ व ४३, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X१०, १८X६१-६५). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९७५० (+) संभवजिन विज्ञप्ति छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४१०, ८४३८). "" 1 संभवजिन विज्ञप्ति छंद, मु, हंस, मा.गु., पद्य, आदिः सुणो संभव स्वामि; अंतिः नथी हंसनुं चीत थाव सुधीर, गाथा ११. ८९७५१. मार्गणा द्वारयंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २६.५X१०.५, २७X१५). जीवे. (२५.५x१०.५, १५४४२). १. पे. नाम, वर्णमाला, पू. १अ संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. आदि (-); अंति: (-). ८९७५२ (क) वर्णमाला, सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १ कुल पे ६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, " For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'ख' की मात्रा तक है.) २. पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. ४ वार पढ़ने का उल्लेख किया गया है. सं., पद्य, आदि: नयविभूषण पारगतागम; अंति: विजयप्रभ सद्गुरो, श्लोक-१. ३.पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. ४ वार पढ़ने का उल्लेख किया गया है. सं., पद्य, आदि: सकलदानवमानवमानसांबुज; अंति: जिनवचो विजयप्रभसूरये, श्लोक-१. ४. पे. नाम. कल्याणपंक्ति स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. ४ वार पढ़ने का उल्लेख किया गया है. सं., पद्य, आदि: कल्याणपंक्तिः प्रसरत; अंति: विजयप्रभाणां, श्लोक-१. ५. पे. नाम. विजयदेवसूरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो राय देस रलीयाम; अंति: कमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. ६. पे. नाम, विजयप्रभसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: विजयप्रभसूरेर्दद्याद्दीपा; अंति: विधायीलब्धिमहोगौतमस्वामि, श्लोक-१. ८९७५३. (+) श्लोक, सवैया, दोहा व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०-४५). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्र प्रसंसा संभली; अंति: विलसइ विसवावीस, गाथा-१०. २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, रा., पद्य, आदि: रमणि आठे अतिभली आवती; अंति: ए नमो सदा जंबूसामि, गाथा-१०. ३. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: गात्रे धनं यो यति; अंति: बहु कम्मान बुछंति, श्लोक-२. ४. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. सोलश्रृंगारादि गाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सोल शणगारादि सवैयादि संग्रह, क. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: ललाट जिन जानि वदन; अंति: चंद० गुण जाणत नारी, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गूढा गोरी कंतज आभरण; अंति: वयण वयण वयण सजन आव, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-कर्पटहेटक, प. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीकरपटहेटक प्रभु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.)। ८९७५४. (+#) खिमऋषि बलिभद्र यशोभद्रादि रास व श्रीदेवी कमलस्वरूप वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. विवेकरत्न; अन्य. श्रावि. जीवादे बाई; श्रावि. जिमणादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४५५). १.पे. नाम, खिमऋषि बलिभद्र यशोभद्रादि रास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. खेमऋषि बलभद्र यशोभद्रादि रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८९, आदि: भारति भगवति मनि धरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-२१ तक लिखा है.) २. पे. नाम. श्रीदेवी कमल विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मूलगू १ कमलश्रीदेवी; अंति: (-). ८९७५५ (+) शाश्वतजिन व मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४३५-४०). १.पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनलब्धिसरि, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति शुभमति सासती; अंति: जिनलबधिसूरि मुनिवर कही, ढाल-४, गाथा-४६. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर चरण युग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) ८९७५६. (+) पार्श्वनाथ स्तवन व जिनराजसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३-४३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडण, ग. ज्ञानप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: त्रिभुवननायक कुलतिलक; अंति: संघ संपति सुंदरो, ढाल-३, गाथा-३७. २. पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिणी प्रणमिस्यु; अंति: भणइ जी वंछित धु जयवंत, गाथा-९. ८९७५७. पार्श्वजिन स्तवन व जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४६०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: एम गावे धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. २. पे. नाम, जीवकाया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंगविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तणो मुझ उपरे; अंति: रंगविजै० ए दीनदयाल, गाथा-७. ८९७५८. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल, रूपनगर, प्रले. श्रावि. मानकी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १४४३७). औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.गु., पद्य, आदि: बेठी साध साधवी क पास; अंति: शंका नही छे काय के, गाथा-२२. ८९७५९. महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४८-३९). महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरथी ६० वरसे; अंति: तेरापंथीसु नीन्हव. ८९७६१ (4) रात्रीभोजनत्याग व रेवतीश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१०.५, १७४५२-५७). १.पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वासउ वसइजी; अंति: रात्रिभोजन निवार रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. रेवतिश्राविका सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण रेवती; अंति: उचरे आणंदहरष अपार रे, गाथा-११. ८९७६२. (+#) २३ बोल विचार, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. हेमता; पठ.सा. जीवाजी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १७४३५-४०). २३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहलै बोलै भणावाको; अंति: मोखना साधननो टोट पडे. ८९७६३. (+) गीत, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४४०). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जागि जागि जागि भाई ज; अंति: कहइ ज्यु पामइ भवपार, गाथा-४. २. पे. नाम. लोभ निवारण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: रामा रामा धन धन भमतउ; अंति: समयसुंदर० करि करि एकमनं, गाथा-३. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हइ रे; अंति: साचा एक हइ धरम सखाई, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीव तु विमासि नही; अंति: समयसुंदर० तिणका हूं चेरा, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चेला चेला पदं पदं; अंति: अविचल एक मुगति संपदं, गाथा-२. ८९७६४. () सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय व हीरविजयसूरि कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७-४०). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. सा. खिंदा, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. राज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर तणी वाणी सुणी; अंति: ए मुनिवरनु आज, गाथा-१९. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनयणी चली; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. ८९७६५ () साधारणजिन व शनिश्चरदेव स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. लेखनसंवत् वाला भाग खंडित है. अंत में 'संवत् १७९' उतना स्पष्ट हो रहा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२२). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १७९०, प्रले.सा. वखताजी,प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. वर्ष का अंतिम अंक अनुपलब्ध है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ध्यावो पीठ मरोधणी, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शनिश्चरदेव स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: आवो मोर मीलो ए सहेली; अंतिः कील्याण० इम बोलिया, गाथा-५. ८९७६६. (+) जिनप्रतिमास्थापना रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३५-४०). जिनप्रतिमास्थापना रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सार वचन जिन भाखीयो; अंति: मनवंछित फल सिधकै, गाथा-४३. ८९७६७. (#) नवपद, सिद्धचक्रपद व उपाध्यायपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, २२४१३-१७). १. पे. नाम, नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जीवराज, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनंदनी वाणी चित; अंति: जीवराज० सुख काज रे, गाथा-५. २.पे. नाम. सिद्धचक्रपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंति: सुरतरु बीज वरोरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. उपाध्यायपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: हुयनै हुयनै हुयनै; अंति: चेतन कुसलता पाया, गाथा-५. ८९७६८.(#) औपदेशिक व मनगणतीसी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(२ से ५)=२, कुल पे. २, प्रले. सा. जगीसा; पठ. सा. रूपाजी वैरागण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४२७-३०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- तमाक त्याग, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. मनगुणतीसी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर० पणासै दूरि, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ८९७६९ (+#) चित्रसंभूति चौढालियो, संपूर्ण, वि. १७६३, चैत्र शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. पुरा आर्या (गुरु सा. सदाजी आर्या); गुपि.सा. सदाजी आर्या (गुरु सा. सोहागदे आर्या); सा. सोहागदे आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चीतसंभूत च., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १०४३५). For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चित्रसंभूति चौढालियो, मु. जयसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: प्रणम् सरसति सामणी; अंति: केरी विनती अवधार ए, ढाल-४, गाथा-४८. ८९७७० (+) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३५, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १०४३४-३७). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, म. अमत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिद्धने करी; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ८९७७१ (#) नेमराजिमती गीत व स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नेह घरे आउ रे निज; अंति: कहइ० लहीइ रे खेम, गाथा-११. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: लाल पियारा थूलिभद्र; अंति: तोरी बलिहार वालेसर, गाथा-११. ८९७७२. (+#) जिनहंससूरि नवरंग फाग, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४५). जिनहंससूरि नवरंग फाग, म. आगममाणिक्य, मा.ग., पद्य, आदि: देव अवर जगि नही समउ सीस; अंति: मांगए मांगए विभवि सेव, गाथा-२७. ८९७७३. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २०४३५). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८९७७४. (#) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ७४३४). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वाचक जस इम बोलइरे, ढाल-१२, गाथा-६८, (पू.वि. ढाल-८ की गाथा-४१ अपूर्ण से है.) ८९७७५ (+) शांतिजिन स्तवन व ६ आरा बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: सुरराजसमाजनतांह्रियुगं; अंति: भवभविनां भवभीतहरम्, श्लोक-९. २.पे. नाम.६ आरा बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उत्सर्पिणी अवसर्पिणी: अंति: तदा विमलगिर जाणवो. ८९७७६. (+#) दससंज्ञादि विचारगाथा व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४४२-५४). १. पे. नाम. दशसंज्ञा गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. संज्ञा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: रुक्खाण जलाहारो; अंति: रुक्खेसु वल्लीओ, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचोपचार पूजन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: गंधश्माल्य२ अधिवास३; अंति: प्रदीप५ एवं पंचोपचारपूजा. ३. पे. नाम. लेश्याविचार श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्रः सदाक्रोधी; अंति: (१)शुक्ललेश्याधिको नर, (२)पन्नत्तं वीयराएहिं, श्लोक-८. ४. पे. नाम. १८भार वनस्पति गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: अडसट्ठ कोडी सट्ठ लाख; अंति: (१)ध्रमसी०भारह अढार सहस, (२)ऋतु मै हिंसा छती, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ५. पे. नाम. इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पंचासी; अंति: चवंति इदस्स जम्मंमि, गाथा-२. ६. पे. नाम. तत्त्वसंबंधी श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सत्तविराहणपावं अणंत; अंति: च पावं मुणेयव्वम्, गाथा-२. ७. पे. नाम, पैतालीस आगम नामानि, पृ. १आ, संपूर्ण.. ४५ आगमनाम कवित्त, म. माल मनि, मा.ग., पद्य, आदि: आगम जिणवर आगम गणधार आगम; अंति: पैताल गुरमुख सद्दहियै माल, गाथा-१३. ८. पे. नाम. दस दान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. दान के १० प्रकार विचार, मा.ग., गद्य, आदि: अनुकंपादान १ संग्रह; अंति: काहीदान९ कयति दान१०. ९. पे. नाम. ९ पुण्य नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अण्णपुण्णे१ पाणपुण्णे२; अंति: नमोक्कारपुण्णे९. ८९७७७. (+#) १३ काठिया व ८ मद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४३). १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... म. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगौतम गणधार; अंति: श्रीहेमविमलसूरि कही, गाथा-१५. २. पे. नाम. ८ मद सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऋषभ नमुं श्रीजिनराज; अंति: पंच विषय नवि धरइ, गाथा-१७. ८९७७८. (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.६, १२४३५). आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि सयल जिणंद; अंति: तणी ए मुझ देज्यो सेव, गाथा-२१. ८९७७९ (+) भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४२). भरतबाहुबली सज्झाय, ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: राज तणा अतिलोभीया; अंति: समयसुंदर० प्रणमु पायो जी, गाथा-२१. ८९७८० (+#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन व कृष्णभक्ति पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १९४४८). १. पे. नाम. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीसबी०. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीमंदरस्वामि बिदे; अंति: चरण नमु वारवारो, गाथा-२५. २.पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मीराबाई, पुहि., पद्य, आदि: सिरदारी चाले तेरे; अंति: मीरा भुरहर चण चीतलाइ, पद-६. ८९७८१. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२-४०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरो ध्यान, गाथा-१६. ८९७८२. (+#) पद, गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१०, १५४४२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे याही ज चाहीइ; अंति: कृपा करो कछु ओर न चाहु, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरवरीइ झीलण जास्या जी; अंति: विमल० बोधबीज दास्या जी, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं., पद्य, आदि जिनराज जुहारण जास्या; अंतिः अविचल सुख ए सरास्या जी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) " ४. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दानचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे प्रभु तुही वखत; अंति: प्रणमत मुनि दानचंद्र, पद-१. ५. पे नाम पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सं., पद्य, आदि: सकल गुणनिधाना गौडिका; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक लिखा है.) ८९७८३. (*) जंबूद्वीप हेमवंत पर्वत वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१०, १३x४७). जंबूद्वीप हेमवंत पर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: एकलाख जोयणनो जंबूद्वीप; अंति: स्वामनी छह श्रीदेवी. ८९७८४. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही गयी है, जैवे. (२६x१०, ३६१५-२० ). " महावीर जिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अति: तेहने नमे मुनिमाल, गाथा - ३१. ८९७८५. शिवकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, जैदे. (२६५१०.५, १३x४७). " शिवकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि पदमरधराय वीतशोकपुरि राजीउ, अंति: रे हुं तस पाए दास, गाया- १६. ८९७८७ (+) नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१०.५, १२४३६-४०). " नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अति जे पाले अविहड नेह रे, गाथा-१३. ८९७८९. (+) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले. स्थल. फलवर्द्धिपुर, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५४९.५, १९४४६). १. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रागे भरी; अंति: जिनहरख रहा सनेह हंजा, गाथा-९. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मोरा आदिजिन; अंति: रतन० नमे बे कर जोड, गाथा- ८. ३. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिन बारमा; अंति: जीत नमें नितमेव रे, गाथा-५. ४. पे. नाम रहनेमिराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि छेरो नाजी० देवरीया: अंति राख्यो ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण मइ प्रीउ संभर; अंति: प्रीति तिहा जोरीनई, गाथा-४. ८९७९० (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. वडलु, प्रले. श्राव. गुमानचंद, अन्य. मु. हिमता; मु. . मोजीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १०X३८-४१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव रांणी पदमावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल -३, गाथा-३८. ८९७९१ (f) शांतिजिन स्तवन- बीसस्थानक विधिगर्भित, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १२X४०). शांतिजिन स्तवन- वीसस्थानक विधिगभिंत, मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि नमिव सिरिसंतिजिणं संतिगुण; अतिः सदा निज मनि आणिय गाथा १७. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९७९२. ऐतिहासिक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, १४४४३). ऐतिहासिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नेत्रकजलि रात्रिचंद्रमंडल; अंति: (-), (पू.वि. "दयावर्णन" तक है.) ८९७९३. (#) मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मेतारज., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६४३०-३५). मेतारजमुनि सज्झाय, मु. उदयहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: सुरनो भव मरो करी चवी; अंति: होवे मंगल च्यारो रे, ढाल-५, गाथा-४०. ८९७९४. (+) १६ कोष्ठकयंत्र विधि व यंत्रफलवर्णन श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प.१, कुल पे. २, प्र.वि. हांसिया में कोष्ठक है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४५). १. पे. नाम. १६ कोष्ठकयंत्र विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वांछा कृतार्द्धं कृतरूप; अंति: मतं यंत्रकाणां विधानम, श्लोक-२. २.पे. नाम, यंत्रफलवर्णन श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विविधयंत्रांकफलवर्णन श्लोक, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१७ तक लिखा है.) ८९७९५. (+-) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीकड., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: जीवडला रे थार नेणा रे; अंति: भव काइ तुरे हारीयो, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: भुखा घरनी जाइ भुडी; अंति: वासो कागडि एसु कागै, गाथा-९. ८९७९६. बार भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३५). १२ भावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इम पडवजि गिरूआ सरण; अंति: तरतम जोग घणू दुर्लभ, गाथा-२४. ८९७९७. (#) नेमिजिन स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. मानकी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमजी., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१०.५, १६४३५-४०). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुरनगर सुहामणु; अंति: मनरूप प्रणमु पाय, गाथा-१४. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दानमल, रा., पद्य, आदि: जादुपतरी सुरत सवाइ स; अंति: ही दानमलजी ढाल जोडी, गाथा-१३. ८९७९८ (+#) ज्योतिष नक्षत्र-तारा संख्या गणना, वासुपूज्यजिन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. सुमतिकमल (गुरु आ. लक्ष्मीरत्नसूरि); गुपि. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सुमतिकमल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: संघचतुवेह सेवकनइ सोहा करु, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-कामक्रीडाछंदयुक्त, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: योगान्मोक्षं छद्यालक्षं; अंति: शं नो देवी देयादंबासा, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्योतिष नक्षत्र-तारा संख्या गणना, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ८९७९९ जंबूद्वीप बाह्यमंडलगत १८४ मंडलवर्ती सूर्यचंद्रगति क्षेत्रमानादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. शिवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १५४६०). For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीप बाह्यमंडलगत १८४ मंडलवर्ती सूर्यचंद्रगति क्षेत्रमानादि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उदयत्थंतरबाहं ___ सहसा तेसट्ठ; अंति: माहै दोनो ही नदी जाइ पडै. ८९८०० (#) स्थूलिभद्र गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६). स्थूलिभद्रमुनि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: इक दिन सारथिपति भणइ रे; अंति: पमाइरे जिम भवसायर पारो, गाथा-१७. ८९८०१. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६०, वैशाख शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. धमडकानगर, प्र.वि. श्रीमहावीरप्रसादात्., जैदे., (२५४११, २१४६१). सीमंधरजिन स्तवन, म. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चउवीसि जिन नम; अंति: भविक जन मंगल करो, ढाल-७, गाथा-११५. ८९८०२. मौनएकादशीपर्व व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहु दिहावडी, गाथा-१३. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हमीर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे मारे नमीये दशमो; अंति: सीस हमीर सुमतासु रमे जी, गाथा-७. ८९८०३. खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८७१, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. कीकानर, प्र.वि. हुंडी:खंदकजीरो चउढालीयो., जैदे., (२५४१०, ११४३३). खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: आद सिंध नवकार गुण; अंति: करी ए रतन नरभो पाइ ए, ढाल-४. ८९८०४. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ९४३२). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, म. साधविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-५. ८९८०५. श्रेणीतप यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१०, ९४३५). श्रेणीतप यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (१)सेढीतवो० २,३,४, (२)दसमानि श्रेणि ते ४; अंति: ९ सो ४४ सर्व दिन. ८९८०७. (+) नेमराजिमती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०, १५४३७). नेमराजिमती रास, म. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुण्यरत्न नेमि जिणंद, गाथा-६८. ८९८०८. (+) १५ तिथि, महावीरजिन सज्झाय व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४६, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालावड, प्रले. आबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पनरतिथीनु. श्री कालावडवारा, पानु छे., संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १८४४६). १. पे. नाम. १५ तिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. करमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: प्रथम जिनेसर जगगुरु; अंति: कर्मचंद चतुर नर चेतो, गाथा-१८. २. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: विनवे आवागमन निवारो, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब रुदन केसे करूं; अंति: पापि कंठ छेदन ऊतरं, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रस्ताविक दोहा, पृ.१आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: कासा कसिकु ना लेत हे; अंति: पला न पकडे कोय, दोहा-४. ८९८०९ सिद्ध १५ भेद स्वाध्याय गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४५). १.पे. नाम. इंद्रावतारे देवदेवी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ६७ इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पंचासी; अंति: चवंति इदस्स जम्मंमि, गाथा-२. २. पे. नाम, सिद्ध १५ भेद स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सहसा रंतिअदेवा नारय नेहेण; अंति: मण तुट्ठि आवासं, गाथा-७. ३. पे. नाम. रजोद्धरण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. रजोहरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: घणं मूले थिरं मज्झे; अंति: यो राया मंति पासिअं, गाथा-१. ४. पे. नाम. पर्याप्ति गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. पर्याप्तिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उलालिय वेउव्विय छन्न; अंति: पण छ दुद्ग समए, कडी-३. ५. पे. नाम. साधुपगरण गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुप्रकरण गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: जोअ० कोडी पुण संखगाओ; अंति: उवही पुण थेरकप्पंमि, गाथा-३. ६. पे. नाम. अज्जाउवही गाथाद्वयं, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: उग्गहणंतकपट्टो २; अंति: अज्जाणं पन्नवीसंतु, गाथा-२. ७. पे. नाम, आदिजिन आयुमान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: एका कोडि तिसट्ठि; अंति: चउक्कडी रिसह आउंमि, गाथा-२, (वि. अन्त में संख्या १९०५५५५ ऐसा लिखा है.) ८९८१०. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७७८, श्रावण कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. ८९८११. नेमिजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१०.५, १३४५३). १. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: मत छोडो म्हांने; अंति: सिधाए पहेली राजल नारी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: चालो जी खेलीयो होरी धुम; अंति: मुगतिपुरि को राज, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिदेवी नमी मनरंग; अंति: कवी मान कहे करजोडि, गाथा-११. ४. पे. नाम. ज्योतिषगणितश्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषगणित श्लोक, सं., पद्य, आदि: इष्टं त्रिगुण्यं ३; अंति: गर्गस्य वचनं यथा, श्लोक-२. ८९८१२. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांकभाग खंडित होने सं पत्रक्रम अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३३). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुण प्रतिइं कुण प्रत; अंति: कल भवि आपणा पाप गालो, गाथा-९. ८९८१३. (2) आदिजिनादि विनती संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५५). १.पे. नाम. आदिनाथ वीनती, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन विनती, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रमणी रंगि वरी नवी, गाथा-५, (पू.वि. पत्र खंडित होने से आदिवाक्य अनुपलब्ध है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ वीनती, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन विनती, ग. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सयल संतिजिणेसर निरखी; अंति: सहजि० मई सही मागिउ, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिनाथ वीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन विनती, म. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिसमुद्रविजय नरराय राय; अंति: रंगि० नाय किंकरि धरी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम, पार्श्वजिन वीनती, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन विनती, मा.गु., पद्य, आदि: जगन्नाथ जीराउलउ; अंति: पसाय धु पाय सेव, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन विनती, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सिरि वीरनाह वीराधिवीर; अंति: (-), (पू.वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य अनुपलब्ध है.) ८९८१४. (+) पिंडविशुद्धि प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ११४३८-४३). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण तक व गाथा-७७ अपूर्ण से गाथा-९२ अपूर्ण तक हैं.) ८९८१५. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३२-३५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिसंतिनिशांती; अंतिः सर्वमंगलमांगल्यं, श्लोक-१९. ८९८१६. अष्टादश संबंधोपरि कुबेरदत्त दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४९-५४). कुबेरदत्तकुबेरदत्ता दृष्टांत-१८ संबंधगर्भित, सं., गद्य, आदि: इह संसारे चतुरशीति; अंति: सद्गतिभाजो जाता. ८९८१७. अनुपूर्वीना भागानुरूप यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, १२४१५-३७). कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह*, मा.गु., को., आदि: संखा अनुपुर्वि भागा; अंति: ४३९३६००००. ८९८१८. (+#) विजयसिंहसूरि सज्झाय व औपदेशिक सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. गुणा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १. पे. नाम, विजयसिंहसूरि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वचनसुधारस वरसती; अंति: उदयशशि रवि गिरिराया, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक सुभाषित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुगजा दनीयां अजब; अंति: सुगजा योग अग्यान, गाथा-८. ८९८१९. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १३ लिखा किन्तु पत्र १ ही है., जैदे., (२५४१०, १२४३०). १.पे.नाम. पृथ्वी सचित्ताचित्त स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु सह गुरुनो; अंति: सुगडांगवृत्तिथी लहइ, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, श्रावण शुक्ल, १३. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे; अंति: म कर रे नंद्या पारकी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, म. विरमविजय, पुहि., पद्य, आदि: अजब जोत मेरे जिनकि; अंति: जलमनकी देखो रे माइ, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरे दिलमे तेरो नाम; अंति: देख्या देव सकल मैं, गाथा-३. ८९८२०. जीवरासि खामण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १६x४७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर छुटे ___ तत्काल, ढाल-३, गाथा-३६. ८९८२१. देवपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, ११४४१). राजप्रश्नीयसूत्र-हिस्सा सूर्याभदेवकृत जिनप्रतिमा पूजन अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: अप्पुण्णमेअंसूरिआभा. ८९८२२. भरतबाहबली सज्झाय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्त में बीसा यंत्र है., दे., (२३.५४१०.५, २२४१२-१५). For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभीया भरथ; अंति: समयसुंदर गुण गाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. स्वास उदरसनु औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. स्वास उदरस औषध, पुहिं., पद्य, आदि: जव लंकि मुंसल पगि; अंति: भारंगज सड कचू रोज, गाथा-२. ८९८२३. सुमतिजिन स्तवन, महावीरजिन गहुंली व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १०४३२). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. मु. कान, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: सुमतिनाथ जिण सुमति; अंति: तव्या सुमति भगवानजी, गाथा-१९. २. पे. नाम, महावीरजिन गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विरजिणंद समोसर्यां; अंति: जायक तोल सामा नरभव, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति की अन्तिम दो गाथाएँ पत्रांक-२अ पर लिखी गई हैं. पुहिं., पद्य, आदि: प्राचरका चोर पथर; अंति: लजीइ आवो ते कस्या, गाथा-१०. ८९८२४. (+) जिनचंद्रसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४१). १.पे. नाम. गुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरी गीत, मु. कनकविलास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरीसरू प्; अंति: हे मुझ अधिक आणंद कि, गाथा-९. २.पे. नाम. गुरु गीत, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसरि गीत, म. कनकविलास, मा.गु., पद्य, आदि: आया जिणचंदसर हे सखि; अंति: आपे आसीस एहवी हितधरी, गाथा-९. ८९८२५. (+) रसवती स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४२७-३१). महावीरजिन स्तवन, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणधामकरणं घनकेवल; अंति: ते श्रीमानतुंगप्रभो, __ श्लोक-१९, ग्रं. ३३. महावीरजिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, आदि: कल्याणयुग्मं महायमकं; अंति: मस्त्वर्हद्ध्यानात्, ग्रं. २८८. ८९८२६. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८९+१(१४२)=२९०, प्र.वि. हुंडी: जीवाभेगं., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. कुल ग्रं. १४०००, प्र.ले.श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, जैदे., (२६४१२.५, ७४३९-४६). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० नमो उसभादि; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२, ग्रं. ४७००. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंति: (१)वाचवू सांभलीवं, (२)श्लोकानं सर्व संख्या, ग्रं. ९३००. ८९८२७. शत्रुजयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०६, ले.स्थल. डीशा, प्रले. मु. श्रीविजय (गुरु मु. अमृतविजय); गुपि. मु. अमृतविजय (गुरु पं. विनयविजय); पं. विनयविजय (गुरु पं. प्रीतविजयजी); मु. प्रीतविजय (परंपरा गच्छाधिपति विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); पठ. ग. उदयचंद्र (गुरु ग. भक्तिचंद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. २४०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२५.५४११.५, ६४४१). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: रसांभोनिधि ग्रंथ एषः, सर्ग-१४, ग्रं. १००००. शत्रंजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीयुगादीशं, (२)श्रीऋषभदेवने काजे; अंति: चतुर्थदर्श सर्ग संपूर्णम्. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९८२८. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४१, मध्यम, पृ. ९६२-१०(१,१३२,२८३,५६५ से ५६६,५८२ से ५८५,६३३)+७(१३०,५३३,६०७ से ६१०,६३०)=९५९, प्र.वि. हुंडी:विवाहपन्न., संशोधित. कुल ग्रं. १५७७५, दे., (२५४१२, ८४३८-४१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: देउ अविग्धं लिहंतस्स, शतक-४१, सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रते नमस्कार करुं, ग्रं. १५७७५, (पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ८९८२९. दृष्टांतरत्नावली, संपूर्ण, वि. १८२९, पौष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १६६, ले.स्थल. चाणोद नगर, प्रले. मु. सोभसागर (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु पंन्या. लाभसागर); मु. लाभसागर (गुरु ग. धनसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, । प्र.वि. शांतिजिन प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (९९३) जिहां दूसायर चंद रवि, जैदे., (२५.५४१२, १५४४३). प्रस्तावशतक-टीका, म. केसरविमल , सं., गद्य, आदि: श्रीमानादिजिनो भूयात; अंति: केसरविमलेन विबुधेन. ८९८३१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०९-२६(७७ से १०२)=१८३, ले.स्थल. नीमच, अन्य. मु. रामरतन; श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उत्तरा. अन्त में वि.सं.१९१३ के दिन पारख मोतीचंदजी की दुकान पर स्वामी रामरतनजी को यह प्रत बोहराने का उल्लेख मिलता है., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, दे., (२५.५४१०, १४४५१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-१७, गाथा-२१ अपूर्ण से अध्ययन-२०, गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानजिनं नत्वा, (२)उत्तराध्ययननो अर्थ; अंति: (१)तुज प्रतै कहुं छु, (२)छत्रीस० वाल्हा हुई. ८९८३२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, माघ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१०+१(७४)=३११, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी (पिता छगनजी त्रवाडी); अन्य. श्राव. कुशलचंद हंसराज शाह; सा. भाणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: उत्तरा.ट., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ११०००, जैदे., (२४४१०.५, ४-१६x२६-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)उत्तराध्ययननो ए अर्थ, (२)बाह्य अभ्यंतर संजोग; अंति: (१)हं तुझ प्रते कह्यो, (२)तुज प्रते कहुं छं. ८९८३३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३४+३(७२ से ७३,१४३)=२३७, ले.स्थल. मांडवी बिंदर, प्रले. हरदेव छगनजी त्रेवाडीया; पठ. श्रावि. मूलीबाई; अन्य. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रु.अ.सूयग.ट०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ९५००, जैदे., (२४.५४११.५, ४४२६-३१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम प्रतई कहूं छउं, प्रतिपूर्ण. ८९८३४.(+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७३+१(११७)=१७४, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी (पिता छगनजी त्रवाडी); अन्य. श्रावि. मेघबाई,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नंदीसू.ट., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ४-१२४२८-३८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदिः (१)नंदी कहतां आणंदनो, (२)ज० विषय कषायना जीपक; अंति: (१)किस्युं अ० आचारांग, (२)ना०नाम जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९८३५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४९-२(१,१७८)+१(१४५)=२४८, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १४०००, जैदे., (२४४११, १५-१७४४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-१, गाथा-३ अपूर्ण से है व बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: (१)वृत्तेरस्या विनिश्चितम्, (२)तदनतिक्रमेण यथायोगम्, ग्रं. १२०००. ८९८३६. (#) कल्पसूत्र की कल्पद्रमकलिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९२०, मध्यम, पृ. ४६१, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. वृद्धिसागर (गुरु मु. मतिमंदिर, खरतरगच्छ); लिख. पं. मतिसागर; अन्य. वा. हेमशील (अचलगच्छ); मु. मतिमंदिर (गुरु वा. अभयसोम, खरतरगच्छ); मु. मलूकचंद (गुरु मु. आणंदजस, खरतरगच्छ खेमधाडशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमक०वृत्तिः. बाइंड की हुई प्रत है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९४२८-३०). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्य; अंति: परिपूर्ति भावं. ८९८३७. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०९, प्र.वि. हुंडी: जीवा.ट., संशोधित. कुल ग्रं. १८०००, जैदे., (२५.५४११, ५४२७). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहंताणं णमो, (२)इह खल जिणमयं० जीवाज; अंति: सव्व जीवा ___ पन्नत्ता, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: (१)प्रणम्य ज्ञानविज्ञान, (२)अरिहंतनें नमस्कार; अंति: (१)अभिगम संपूर्ण थयो, (२)एतलई जीवाभिगमसूत्रइ. ८९८३८. (+) अनुयोगद्वारसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९४, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २९१-४(१४८ से १४९,१५४ से १५५)+४(१२३,१३२,१५२ से १५३)=२९१, लिख. मु. उदाजी स्वामी; अन्य. मु. मोतीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अन्त में मूल प्रतिलेखन के परवर्तीकाल में-'रिख मोतीरामनी नेश्राय लखितं उदाजी, ऐसा उल्लेख है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ११४३८-४३). अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य जिनं, (२)श्रीअनुयोगद्वारसूत्र; अंति: (१)गोःपादानविधिकुशलैः, (२)पणि समाप्त थयु, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ८९८३९. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. जंबूद्वी.वृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१०, १५४४६). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंति: (-), (पू.वि. 'कथनेर्नेहश्रोता' पाठ तक है.) ८९८४०. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०५, प्र.वि. नंदीसूत्र.ट., संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, जैदे., (२६.५४११.५, ५-१५४३०-३३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसरमणुसाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००, (वि. परिशिष्ठ-२ जोगनंदी नहीं है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी शब्दनो स्यो अर्थ; अंति: नानाम जाणवा. ८९८४१. बृहत्कल्पसूत्र की सुखावबोधा टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५३३-३(१६,२३३,४८७)+८(३९९,४०२ से ४०६,४०८ से ४०९)=५३८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. बृहत्कल्पवृत्तिः., जैदे., (२९x११.५, १५४६९). बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसरि ; आ. क्षेमकीर्तिरि, सं., गद्य, आदि: (१)प्रकटीकृतनिःश्रेयसपद, (२)नतमघवमौलिमंडलमणिमुकु; अंति: (-), (पू.वि. 'आज्ञादेयश्चदोषाः' पाठ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९८४२. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ.७८, ले.स्थल. सुरतिबंदिर, प्रले. मु. रूपविजय (गुरु पं. दयालविजय गणि); गुपि.पं. दयालविजय गणि (गुरु मु. पद्मविजय); मु. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: क.बाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (३२५) जीहां लगें मेरु थिर रहे, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (५२२) तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत्, (१२५३) ये लिखयंति नरा धन्या, जैदे., (२६४११.५, १६-१९४४८-५०). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणो होइ नवनवई, गाथा-९१. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: (१)प्रणिपत्य पार्श्वदेव, (२)सिद्ध कहता किणही खोट; अंति: न लोहोत्तमतां दधाति. ८९८४३. (#) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, पूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २९-१(३)=२८, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. गुलाबबाई; पठ. श्रावि. हवीरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत् १०३३ लिखा है परन्तु वस्तुतः १९३३ होना चाहिए., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, १४४४३). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-२९आ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दक्कडं, (पृ.वि. 'गुरु लघु' के बाद तथा 'रुग्गबोहिलाभं' से पूर्व का पाठ अनुपलब्ध है., वि. प्रत्याख्यान, १४ नियम गाथा तथा संथारापोरसि संलग्न हैं.) २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह-औषध, पृ. २९आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: अत्सिसीतक पुष्पाणिर्ट; अंति: नेत्रनवं कारोती, श्लोक-३. ८९८४४. शत्रुजय माहात्म्य सह टबार्थ, बीजक व शत्रुजयतीर्थ उद्धार निर्णय, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ५४१, कुल पे. ३, ले.स्थल. सिरोहीनगर, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); गुपि.ग. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शेव्रुजा.मा., जैदे., (२६.५४११, ८४३८). १.पे. नाम. शत्रुजय माहात्म्य सह टबार्थ, पृ. १आ-५४०अ, संपूर्ण. शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: रसांभोनिधि ग्रंथ एषः, सर्ग-१४. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंति: लगें ए ग्रंथ चिरनंदो. २. पे. नाम. शत्रुजयमाहात्म्य बीजक, प. ५४०अ-५४१अ, संपूर्ण. ___शत्रुजय माहात्म्य-बीजक, सं., गद्य, आदि: जिनानां नमस्कार प्रभावना; अंति: राज्ञो यात्रोद्धार. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ उद्धार निर्णय, पृ. ५४१आ, संपूर्ण. १६ उद्धार-शत्रुजयतीर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भरतचक्रवर्ति करावीयो; अंति: मोटा संख्या जाणवी. ८९८४५ (+) पुष्पमाला प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६३८, माघ कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ.१३०, अन्य. सा. कमलश्रीजी म. सा.; सा. कनकश्री (गुरु आ. तुलसी, तेरापंथी); पं. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुष्पमाला बालाविबोधः., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४६-५३). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धं कम्ममविग्गह; अंति: सया सुहत्थिहिं, द्वार-२०, गाथा-५०५. पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीरं धीरं, (२)जिम रत्नाकर समुद्रमा; अंति: जने सुख वांछते भणीउ. ८९८४६. धन्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५०, मध्यम, पृ. २७२+२(८७,१७७)=२७४, प्र.वि. हुंडी: धनाचरित्र., कुल ग्रं.१००००, दे., (२६.५४११,१३४३९). धन्य चरित्र, म. ज्ञानसागर शिष्य, सं., गद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगध्य; अंति: (१)नधर्मे दृढभक्तिरस्तु, (२)ते श्रीदानकल्पद्रुमः. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ७३ ८९८४७, (०*) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८५-२६८ (१ से २६८) = ११७, प्र. वि. हुंडी: ज्ञात. ट., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. १३९७५ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, जैदे., (२६.५x११, ६४३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि (-) अति: (१) धम्मकहासुय० समत्तो, (२) धम्मक हाउ सम्ताउ, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., अध्ययन १४ की अन्तिम गाथा अपूर्ण से है. ) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. रत्नजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति : तकैर्सुधीभिः शोध्यं ग्रं. १३५८१, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. 1 ८९८४८. (*) शत्रुंजय माहात्म्य सह टवार्थ व शत्रुंजय माहात्म्य श्रवणपूजा विधि, संपूर्ण वि. १७७४ माघ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३५३, कुल पे. २, ले. स्थल. वीरमग्राम, पठ. पं. हेमराज; प्रले. ग. हरिरुचि (गुरु ग. कनकरुचि); गुपि. ग. कनकरुचि (गुरु ग. रविरुचि); ग. रविरुचि (गुरु पंन्या. सुमतिरुचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., प्र.ले. श्लो. (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., ( २६११.५, ९३९-५३). १. पे. नाम. शत्रुंजय माहात्म्य सह टबार्थ, पृ. १आ- ३५३, संपूर्ण. शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय अंतिः सिद्धो दयाद्रि स्थितः सर्ग- १४, ग्रं. १००३४. शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंति: (१) रससागरचंद्रे ० यदत्र, (२) लिखितं तु शास्त्रं ग्रं. १२०००. २. पे. नाम. शत्रुंजय माहात्म्य श्रवणपूजा विधि, पृ. ३५३अ, संपूर्ण. शत्रुंजय माहात्म्य-श्रवणपूजन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ए शत्रुंजय माहात्म्य, (२) प्रथम पुस्तकनी पूजा; अंतिः पामे एहमां ना संदेह. ८९८४९. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १०२, ले. स्थल. अवरंगावादनगर, पठ. श्रावि. नान्हीबाई; प्रले. पं. साधुविजय पं. (गुरु पं. सत्यविजय गणि); गुपि. पं. सत्यविजय गणि (अज्ञा. उपा. कमलविजय); उपा. कमलविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५X११.५, ३३५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (१) नमिऊण जिणवरिंदे इंद, (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः (१) वयण विणिग्गया वाणी, (२) जयंमि थिर थावरा होउ, गाथा-५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नमिउण कहता नमस्करीनइ, (२) नमस्कार करींने जिण; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते. ८९८५०. सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६४, प्र. वि. हुंडी सुगडांग द्वितीय., त्रिपाठ., जैदे., (२७X११, ७X३६-४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-४ के अन्तिम भाग आंशिक अपूर्ण तक लिखा है. वि. प्रतिलेखक ने अपूर्ण पाठ में ही अंतमंगलसूचक "" चिह्न देकर पूर्ण कर दिया है.) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८९८५१. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. २६० + १ (५६) = २६१, ले. स्थल. पोहकर्णनगर, प्रले. पं. जीवणविजय गणि (गुरु मु. ऋद्धिविजय): गुपि मु. ऋद्धिविजय (गुरुग. प्रमोदविजय); अन्य. मु. छजमलजी राज्यकाल रा. सवाई जेसिंघजी महाराजा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. कुल ग्रं. १५५००, प्र. ले. श्लो. (६७८) भग्नपृष्टिः कटिग्रीवा, जैदे., (२७.५X१२.५, ७X४४-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं समए: अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ अध्ययन- १९ . ५५०० (वि. १८३१ आश्विन कृष्ण, ७, बुधवार) , ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: अथ वर्गइ धर्मकथा हूई, [प्र.१०००० (वि. १८३१, मार्गशीर्ष कृष्ण ७, शुक्रवार) For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९८५२ (+) भक्तामर स्तोत्र सह लघुटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१३, ९४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-लघुटीका, सं., गद्य, आदि: (१)पूजाज्ञानवचोपाया, (२)सम्यग् जिनपादयुगं; अंति: समंतात्पार्श्वमायाति. ८९८५३. (+) नवतत्त्व, जीवविचार प्रकरण व दंडक विचार षट्त्रिंशिका सूत्र, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३०-३६). १.पे. नाम, नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-५२. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण.. __आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. दंडक विचार षट्त्रिंशिका सूत्र, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चोवीसजिणे; अंति: गयसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४१. ८९८५४. उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६१५, माघ शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २१६-९(१४७ से १५५)=२०७, प्र.वि. हुंडी:उत्त. बा., प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११, १५४५४-५८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: संवुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-२४, गाथा-४ से अध्ययन-२६, गाथा-१४ तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: संसारतणा संबंधथी; अंति: (-). ८९८५५. (+) श्राद्धविधि प्रकरण सह स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, मूल व टीका का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८९, श्रावण शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८८-६(३१३*,३६१ से ३६५)=३८२, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. माणिक्यसागर (गुरु मु. विनयसागर); गुपि.मु. विनयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ८४३५-३७). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: सुहं लहुं लहंति धुवं, प्रकाश-६, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., प्रकाश-६ की टीका के श्लोक 'स्वामि वञ्चक लुब्धाना' अपूर्ण से कुलशील वर्णन अपूर्ण तक है.) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचक; अंति: तु जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश-६, ग्रं. ६७६१, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका का टबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध भगवान; अंति: देणहारी पुन्यवंतोनइ, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.. ८९८५६. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कल्पकिरणावली टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४१, ले.स्थल. बरडया, प्रले. मु. शिवरत्न (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ६४३६-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं.१२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार हुओ; अंति: कहे इम हुं कहुं. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रमम्य प्रणताशेषं वीरं; अंति: आतंमि कुमारा समो सरणे. ८९८५७ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व सुबोधिकाटीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, ७४३०-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार हओ; अंति: अध्येन समाप्तं. For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ कल्पसूत्र-सुबोधिकाटीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: (-). ८९८५८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र व उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्य गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०-७(२० से २२,४० से ४३)=११३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ९४३०-३४). १. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र, पृ. १आ-१२०अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, संपूर्ण. २. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्य गाथा, पृ. १२०अ-१२०आ, संपूर्ण, वि. १७१७, फाल्गुन कृष्ण, ५, सोमवार. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जे किर भवसिद्धीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८९८६० (+#) उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४१, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९०, प्रले. मु. विनीतविजय (गुरु मु. प्रीतिविजय); गुपि. मु. प्रीतिविजय (गुरु मु. दर्शनविजय); मु. दर्शनविजय (गुरु उपा. मुनिविजय); उपा. मुनिविजय; पठ. श्रावि. सहजबाई; अन्य. पं. मीठाचंद देवसी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २-१७४२६-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: जिणवयणविणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: नमस्कार करीनइ जिनवरे; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते. ८९८६१. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५३-८(९२,३४० से ३४६)=४४५, प्र.वि. हुंडी:जंबूसू.व., त्रिपाठ-द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३८-४५). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६, (पू.वि. "आवाहवीवाहजण" पाठांश से "सीहतिवाव" पाठांश तक व बीच के पाठांश नहीं है.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंति: शिष्यं प्रति ब्रवीति, ग्रं. १४२५२, (वि. टीकाकार प्रशस्ति अनुपलब्ध है.)। ८९८६२. (+) श्राद्धविधि प्रकरण सह स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, मूल व टीका का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४००+२(२८७,३५४)=४०२,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६x४६-४८). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: लहुं ते लहंति धुवं, प्रकाश-६. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचक; अंति: तु जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश-६, ग्रं. ६७६१. श्राद्धविधि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनने नमस्कार; अंति: तिको लभंते पामे. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमदी टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचार्य; अंति: देणहार पुण्यवंताने होज्यो. ८९८६३ (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९३, प्र.वि. हुंडी:रायप्रसेणी.ट., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ४४३०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्सेसु पस्सवणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेहने नमस्कार होउ, ग्रं. ५५००. ८९८६५ (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, पूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१९०-२(६३१*,१७४४)=२१८८, ले.स्थल. जालना, प्रले. वृंदावन; लिख. श्राव. कुंवर गुलाबचंदजी (पिता श्राव. कुंवर कुसालचंदजी शेठ); गुपि. श्राव. कुंवर कुसालचंदजी शेठ (पिता श्राव. आनंदरूपजी शेठ); श्राव. आनंदरूपजी शेठ (पिता श्राव. प्रेमराजजी शेठ); श्राव. प्रेमराजजी शेठ (पिता श्राव. श्यामदासजी दुर्गदास); श्राव. श्यामदासजी दुर्गदास, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:भग.सूत्र.ट., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५४१०, ११४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: उद्दिसिझंति, शतक-४१, सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२, (पू.वि. सूत्र-'अणुगामिएनो' से 'णाणुगामिए' तक नहीं है.) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं कहता; अंति: (-). भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी लिपिनइ; अंति: युग्मशतक एके दिवसे उदेशक०. ८९८६६. द्यानतरायकृत पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९३-१७४(१ से १७४)=१९, कुल पे. ३५, जैदे., (३०x१४, ११४४०). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १७५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: हरी सिध अमूरत लीन, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गोत्रकर्मनाम सिद्ध आरती, पृ. १७५अ, संपूर्ण. सिद्ध आरती-गोत्रकर्मनिवारण, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ज्यौ कुम्हार छोटै; अंति: सिधशुद्ध वंदो सदा, गाथा-६. ३. पे. नाम. अंतरायकर्मनाश आरती, पृ. १७५अ-१७५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भूप दिलावै दर्व कौं; अंति: द्यानत० पाउं भव अंत, गाथा-७. ४. पे. नाम. सिद्धगुण आरती, पृ. १७५आ-१७६अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आठ कर्म को नास आठौ; अंति: द्यानत सेवै ते वडे, गाथा-९. ५. पे. नाम, अध्यात्म पंचासिका, पृ. १७६अ-१७८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आठ करके वधमे वधे जीव; अंति: द्यानत० सब संसार असार, गाथा-५०. ६. पे. नाम. अक्षर बावनी, पृ. १७८अ-१७९आ, संपूर्ण... अक्षरबावनी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार सब अछर कौ सब मंत्र; अंति: जगतै आप निकारौजी, गाथा-१४. ७. पे. नाम, नेमिजिन बहत्तरी, प. १७९आ-१८१आ, संपूर्ण. नेमिजिन बहोत्तरी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदो नेमजिणंदचंद; अंति: चिता व्यापे नाहि हौ, गाथा-७२. ८. पे. नाम. वज्रदंत चौपई, पृ. १८१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: वै छो वज्रदंत भूपाल; अंति: द्यानत० सुपद दातार, गाथा-१२. ९. पे. नाम, आत्मगीता, पृ. १८१आ-१८२अ, संपूर्ण. आत्म गीता, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: आतम महि बूब पार आतम; अंति: विकार टार आप देख, गाथा-८. १०. पे. नाम. देवगुरु शास्त्र आरती, पृ. १८२अ-१८२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: देव शास्त्र गुर रतन; अंति: सरधावान अरज अमर सूख भोगवै, गाथा-९. ११. पे. नाम. ८ छंद गण दोहे, पृ. १८२आ-१८३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वरधमान सनमन महावीर; अंति: भेद कहांलौ कहि सकै, गाथा-११. १२. पे. नाम, आराधना पाठ, पृ. १८३अ-१८३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मै देव नित अरिहंत; अंति: भगत चरन की दीजीयै, गाथा-८. १३. पे. नाम. पल्ल पच्चीसी, पृ. १८३आ-१८५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कलप अनंतानंतलौ रूलै जीव; अंति: द्यानत० संत सुधार, गाथा-२५. १४. पे. नाम. ६ गुण वृद्धिहानि दोहे, पृ. १८५आ-१८८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: संख असंख अनंत गुन; अंति: सव कथनि मै सिरदार, गाथा-२०. १५. पे. नाम, आदिजिन रेखता, पृ. १८८अ-१८९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम आदिनाथ स्वामी; अंति: द्यानत को याद कीजै, गाथा-३६. १६. पे. नाम. शिक्षा पंचासिका, पृ. १८९आ-१९१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ शिक्षापंचासिका, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: राग विरोध विमोह वस; अंति: सब जन को सुख देय, गाथा-५०. १७. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. १९१आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रभु सुपास; अंति: द्यानतकुं सुखकार, गाथा-४. १८. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १९१आ-१९२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: नगर मे होरी हो रही; अंति: तुम कछु सिछा दौ, गाथा-३. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १९२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: खेलौगी चेतन होरी आए; अंति: सुखी भइ वहु भाय, गाथा-४. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १९२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: पिय विन कैसे खेलो हो; अंति: समति कहि करजोरी, गाथा-३. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १९२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भली भइ यह होरी आइ आए; अंति: पायौ सौ वरनौ न जाय, गाथा-५. २२. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १९२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: होरी आई आजि रंग भरी; अंति: प्रभू दया करी हो, गाथा-४. २३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९२अ-१९२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन तेरा मैन भावै; अंति: देखे ही वनि आवै, गाथा-४. २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रे मेरे घट ग्यान घना; अंति: द्यानति०मोहि भायो री, गाथा-४. २५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १९२आ, संपूर्ण... जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हो स्वामी जगति जलधि; अंति: भाखै तू ही तारन हारौ, गाथा-४. २६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: पायौ जाव सुख आतम लखि; अंति: द्यानत० सुधारस चखि कै, गाथा-४. २७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १९२आ-१९३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी भगति विना धृग; अंति: जैसे मंदिर की नीवना, गाथा-३. २८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कर्मनि कौपे ले; अंति: द्यानत अंतर झेले, गाथा-२. २९. पे. नाम. जिनपूजा गुण गीत, पृ. १९३अ, संपूर्ण. मु. इंद्रजीत, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर पूजी लो मेरे मीतजि; अंति: गावै पावै दिढ परतात, गाथा-२. ३०. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १९३अ, संपूर्ण. मु. शीतल, पुहिं., पद्य, आदि: मन मेरे दोष भाव; अंति: सीतल भाव सीतलधार, गाथा-४. ३१. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १९३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कामसर सव मेरे देखे; अंति: द्यानत मंगल ठाम, गाथा-२. ३२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १९३अ-१९३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: अब मे जाना आतमराम; अंति: नाख्यौ विष दुख ठाम, गाथा-४. ३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे मोह नही तेरे; अंति: करत है हम हू सेवक ही, गाथा-४. ३४. पे. नाम. औपदेशिक पद-जिनभक्ति, पृ. १९३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कर मन वीतरागको ध्यान कर; अंति: पह रहियै सुखदान, गाथा-५. ३५. पे. नाम. २४ जिनभक्ति पद, पृ. १९३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन भक्ति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: शुद्धसरुपकौ वंदना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) . . For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७८ " www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९८६७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ३०१, ले.स्थल. उदयपुर, राज्यकाल रा. भीमसिंहजी राणा; प्रले. मु. धीरचंद ( गुरु मु. वखतराम); गुपि. मु. वखतराम (गुरु आ. महेंद्रसागरसूरि), आ. महेंद्रसागरसूरि प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंत मे प्रतिलेखक ने द्वितीय भाद्रपद वद १० को प्रारंभ किया व आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को पूरा किया ऐसा उल्लेख मिलता है. जीर्ण एवं पत्र खंडीत होने से प्रतिलेखन पुष्पिका आधी नष्ट हुई है.. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६७८) भग्नपृष्टिः कटिग्रीवा, (१३१७) तैलाद्रक्षे जला (१३१८) जा लगि मेर अडिग है, जैवे. (२८४१३, १५४४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स; अंति भवसिद्धीय समंतए, अध्ययन- ३६, ग्रं. १७०००. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि संयोगाद्धि वद्धप्रका; अति: सुमत भणवा योग्य. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह *, सं., पद्य, आदि: एकस्य आचार्यस्य; अंति: (-). ८९८६८. (+) भगवतीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६२१, प्र. वि. हुंडी भगवती, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. प्र.ले. श्री. (६४५) वादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (१३१६) पुस्तकेषु च या विद्या, जैदे.. (२८x१२.५, ११X३१-३६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अतिः संतिकारी तं नम॑सामि शतक- ४१, सूत्र - ८६९, ग्रं. १५७५२. भगवतीसूत्र- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी लिपिनइ; अंति: (-). ८९८६९ दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९९, प्रले. सा. हेमश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जै... (२६.५X११.५, ४X३०-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे अंति कहणाववि आलना संधे, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका २) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गति; अंति: जोनथी जाति सक्या तो. ८९८७० (+) हरिवंशपुराण, संपूर्ण वि. १८२५ फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०७, प्र. वि. हुंडी हरिवंस. पु. , संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १५X३७-३९). हरिवंशपुराण, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., पद्म, आदि सिद्धं संपूर्णभव्यार्थ अति लोकं भव्यसज्जनवत्सलाः, सर्ग-३९. ८९८७१. (+*) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५०८, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६X११.५, ५X३०). " ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेणं कालेणं० चंपाए अंतिः नायाधम्मकहाओ समत्ताओ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: तेहिज संपूर्ण. : ८९८७२. (+) प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९० प्रले. श्राव. खेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पणवणा., संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ११x२७-४५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र - २१७६, ग्रं. ७७८७. ८९८७३. (+#) प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७९, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४२-४७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० ववगय अंतिः विमुहा सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र-२१७६ ७७८७. ८९८७५ (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३x४५). For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: अज्झवणं सम्मतं व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः परिपूर्ति भावं, नं. ४१०९. ७९ ८९८७६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथासंग्रह व निर्युक्ति, संपूर्ण, वि. १७९४, बेदअंकमुनीमही, आषाढ़ कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २८९, कुलपे ३, प्रले. मु. जैचंद ऋषि (गुरु मु. पृथ्वीराज ऋषि, विजय गच्छ); गुपि. मु. पृथ्वीराज ऋषि (गुरु मु. लखाजी ऋषि, विजय गच्छ); गुभा. मु. लखाजी ऋषि (गुरु मु खेतसी ऋषि, विजय गच्छ); गुपि. मु. खेतसी ऋषि (गुरु भट्टा. कल्याणसागरसूरि, विजय गच्छ); भट्टा. कल्याणसागरसूरि (विजय गच्छ); अन्य. मु. माणेक ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी उत्तराध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२६११.५, ५-१८४३६-४०) १. पे. नाम. उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ + कथासंग्रह, पृ. १आ-२८८आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि संजोगा विप्यमुक्कस्स अंतिः सम्मएति बेमि, अध्ययन- ३६. ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: अध्ययन ३६ मो संपूर्णम् २. पे. नाम. उत्तराध्ययन सूत्र की माहात्म्य गर्भित गाथा, पृ. २८८आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जे किर भवसिद्धिया परित्त; अंतिः पुव्वरिसी एव भासंति, गाथा ४. For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - ३६ अध्ययन नाम, पृ. २८८आ - २८९अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु. रा. गद्य, आदि विनय १ परिसह अंति एवं ३६ नाम जाणवा, अंक-३६. " ८९८७७. (७) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी उत्तराध्ययन पत्र, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५. ४X३१). " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स, अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३४, गाथा - ६० तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा, अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३४, गाथा - ६० तक है.) ८९८७८. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१ कार्तिक शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१४, ले. स्थल. भुज नगर, प्रसं श्राव. खीमजी छगनजी त्रेवाडीया; लिख. श्राव. कुशलचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : राय पसेणी. टबो., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४X११, ४x२६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००. राजप्रश्रीयसूत्र -टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा, अंति: तेहने नमस्कार होउ, ग्रं. ५५००. ८९८७९ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १४०००, जैवे. (२४४१०.५, ७४३३-४०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधमांस्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेण कालेनं० चंपाए: अंति: अवमठ्ठे पन्नत्ते, अध्ययन-१९, " ग्रं. ५५००, (वि. १७१६, भाद्रपद कृष्ण, ११, गुरुवार, प्र.ले. श्लो. (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे ) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ, ग. रत्नजय, मा.गु, गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीर अति माप्त दस वर्गे कह्यो, ग्रं. ८५००, (वि. १७१६, भाद्रपद कृष्ण, ११, शुक्रवार) ८९८८०. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२६, गृही. सा. भाणबाई आर्या; दत्त. सा. कुंवर आर्या ( (गुरु सा. भाणबाई आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडीः राजपसो., पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५.५११, ५X३४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. ७००७. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेहने नमस्कार होउ, ग्रं. ४७८७. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९८८१ (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८७, प्र.वि. हुंडीः राजसु., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३३-३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुप्पस्सवणाए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २२००, (वि. १६८९) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाओ अरिहंत; अंति: विसोधनीयं च धीधनैरिति, (वि. १६९०, माघ शुक्ल, ६) ८९८८२. (+) संघयणिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, चंद्रवेदसिद्धिभू, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ९७+१(२१)=९८, प्रले. पं. क्षमाप्रभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४४२०-२७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिण तत्थं, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार करी; अंति: ए संघयण जयवंती वरतो, (प्रले. पं. क्षमाप्रभ, प्र.ले.पु. सामान्य) ८९८८३. (#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, प्र.वि. हंडीःशांति चरि., कुल ग्रं. ५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३५-४३). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भतामह; अंति: अजितप्रभ०भववर्णनानाम, प्रस्ताव-६, श्लोक-४८९०, ग्रं. ५०००. ८९८८४. (+) निरयावलिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९५+१(५७)=९६, कुल पे. ५, प्रले. मु. रावतमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः निरा०, निराव०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४११.५, ५४३७-४०). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३७आ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते०तेण उसर्पिणीनउ; अंति: पूर्व एठती परि भा० कहवा. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३७आ-४१आ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजउ भ०हे भगवंत स०; अंति: ज्ञान उठवी योट गो समप्तः. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४१आ-७९अ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: देवासेसिब्भि हिति एवं खवउ, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य०; अंति: इमइ जे० ख० निश्वदे जंबू. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ७९आ-८५अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य सं०; अंति: जंबू नि० पूर्व पाठ कहवो. ५. पे. नाम, वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८५अ-९५आ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज०जदपी भं०हे भगवंत; अंति: बा० बारइं उ० उद्देशगो. ८९८८५ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले.स्थल. बालुचर, प्रले. मु. गुलाबचंद (आणंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १०४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसिइत्ति बेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६. ८९८८६. नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२८-३०(१ से २४,५९ से ६४)=९८, प्र.वि. हुंडी: नं.सू., जैदे., (२५.५४११, ४-१८x२८-४२). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-२८ अपूर्ण से है, बीच के आंशिक पाठ अनुपलब्ध व मतिज्ञान विवरण अपूर्ण से अणुज्ञानंदी गत चंद्रावैद्यक सूर्यप्रज्ञप्ति प्रसंगपाठ पूर्ण तक लिखा है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. नंदीसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८९८८७. (+) विपासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ४४२८). विपाकसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: विसेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन-२०) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथविपाकश्रुतमिति कः; अंति: जिम आचारगसुत्र मइ. ८९८८८.(+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. १४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०,५-१२४३७-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: ए गुरुयुक्त जाणवू. ८९८९४. (+) अष्टप्रकारी पूजा, संवत्सरी प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-३(१,९ से १०)=१५, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ५-९x१२-२८). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. २०वी, फाल्गुन शुक्ल, प्रले. मु. प्रवीणसागर; पठ. रुघाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६६, (पू.वि. चंदनपूजा से है.) २.पे. नाम. संवत्सरी प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मुंहपत्ती वंदणयं; अंति: एकसोसाठ नो काउसग करवो. ३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरवंदिय पायपंकज; अंति: करो ते अंबा देवीए, गाथा-४. ४. पे. नाम, ऋषभदेव स्तुति, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीज थई, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम. संस्तारक विधि, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: चउगई हरणा सरणं लहइ धन्नो, गाथा-१६. ८९८९५ (+) द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७०, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., संशोधित., जैदे., (२८.५४१३, ११४३८-४२). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणिज्ज, अधिकार-३, गाथा-५८. द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, पुहिं., गद्य, आदि: एकजीव द्रव्य अनर्हवी; अंति: भाव प्रकास्यो छेइ. ८९८९६. (+) कल्पसूत्र- व्याख्यान १-८ सह कल्पद्रमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२९x१२, ११४३४). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानस्य, (२)नमः नमस्कारोस्तु; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९८९७. (+) अनुयोगद्वार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ५४३६-३८). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: तछणं साउवणि हिया साठ; अंति: तछ एगेहि मिणेहि मिण. अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपनिधीये स्थापीय इ; अंति: लइ समासा हु उभ तर्या. ८९८९८. पद्मपुराणभाषा, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३६८, ले.स्थल. जालणापुर, प्रले. ग. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पद्मपुरा., दे., (२५.५४११.५, ११४३४). पद्मपुराण-पद्यानुवाद, श्राव. खुशालचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: पंचकल्याण नायक श्रीमनि; अंति: जैसिघ० को आनंद अपार. ८९८९९ (+#) चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ९४, प्रले. मु. संघविमल (गुरु पंन्या. राज्यविमल); गुपि. पंन्या. राज्यविमल (गुरु पंन्या. लक्ष्मीविमल); पंन्या. लक्ष्मीविमल (गुरु मु. धर्मविमल); मु. धर्मविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १७X४२). चंद्रराजा रास, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९, (वि. ढाल १०८) ८९९०० (#) करमछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४,प्र.वि. हंडी:पुना.छती., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १७X४०-४४). पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: समयसुदर० तणे परमाणजी, गाथा-३६. ८९९०१ (+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०२, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २६५, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्रले. मु. उत्तमचंदजी शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ठाणांगसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ११७२४, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामी जंबूने; अंति: माटि अनंत शब्द कह्यो. ८९९०२ (+) विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७४, ले.स्थल. अलनपुर पत्तननगर, प्रले. मु. न्यायवर्द्धन (गुरु पं. क्षेमवर्द्धन); गुपि.पं. क्षेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३८-४६). विक्रमराजा रास, म. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: अमल कमल सम नयन यूग; अंति: भांण लहे ऋद्धि विसालाजी, ढाल-१७४, गाथा-५७९७, ग्रं. ७४३८. ८९९०३. (+) स्तुति, स्तोत्र व स्तवनादि स्वाध्याय पुस्तिका, संपूर्ण, वि. १४९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४४, कुल पे. ११६, प्रले. आ. जिनभद्रसूरि (खरतरगच्छ); लिख. श्रावि. रजाई पद्मसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १९४६५-७४). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, पौष कृष्ण, शुक्रवार, पे.वि. हुंडी:दशवैकालिकसूत्र __ आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १०आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पाक्षिकसूत्र हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ३. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:साधुप्रतिक्रमणसूत्र. For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८३ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: करेमि भंते सामाइयं सावज्ज; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. ४. पे. नाम. खामणासुत्तं, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ५. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में ५ प्रकार के ज्ञान का उल्लेख किया गया है. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६. पे. नाम. उपदेशमाला प्रकरण, पृ. १७अ-२५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उपदेशमालासूत्र. उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: जयंमि थिर थावरा होउ, गाथा-५४२. ७. पे. नाम. वृहत्संग्रहणी सूत्र, पृ. २५अ-३२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वृहत्संग्रहणिसूत्र.. बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: निट्ठवियअट्ठकम्मं; अंति: हिं तहेव सुयदेवयाए य, गाथा-५२३. ८. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. ३२अ-३४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मविपाकसूत्र. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंकं वीरं; अंति: कम्मविवागं च सो अयरा, गाथा-१६८. ९. पे. नाम. षड्शीतिसूत्र, पृ. ३४आ-३५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:षडशीतिसूत्र. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८६. १०. पे. नाम. सार्धशतकसूत्र, पृ. ३५आ-३७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सार्द्धशतकसूत्रं. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सयलंतरारि वीरं वंदिय; अंति: बोहिंतु सोहिंतु, गाथा-१५०. ११. पे. नाम. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मस्तवसूत्र. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे तिहु; अंति: सणसुद्धिं समाहिं च, गाथा-५७. १२. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास, पृ. ३८आ-४०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीक्षेत्रसमाससूत्रं. बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: माणा णलोगोचउदस रझुओ, अध्याय-५, गाथा-१०९. १३. पे. नाम. दर्शनसत्तरी सूत्र-प्रथम प्रकरण, पृ. ४०अ-४१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दर्शनसप्ततिका. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४. पे. नाम. सुमिणसित्तरी, पृ. ४१आ-४२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्वप्नसप्ततिका. स्वप्नसप्ततिका, प्रा., पद्य, आदि: एवं विसिट्ठकाला भावम; अंति: सद्दहमाणस्स सम्मत्तं, श्लोक-७१. १५. पे. नाम. श्रावकवक्तव्यता, पृ. ४२आ-४४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:षट्स्थानकसूत्र. षट्स्थानक प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: कयवयकम्मयभावो सीलत्त; अंति: नं भणइ सयं भाणइ परेण, सर्ग-६. १६. पे. नाम, पंचलिंगी प्रकरण, पृ. ४४आ-४६अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पंचलिंगीसूत्र. आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: उवसम संवेगो वि य निव; अंति: (१)अव्वहिचारी ससज्झेणं, (२)जिणेसरेहिंकयं, अध्याय-४, गाथा-१०२. १७. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण, पृ. ४६अ-४७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पिंडविशुद्धिसूत्र. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा-१०३. १८. पे. नाम. द्वादशकूलक सूत्र, पृ. ४७आ-५२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:द्वादशकूलकसूत्रं. द्वादश कुलक, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कुलप्पसूयाण गुणालयाण; अंति: हुंति पुज्जा बुहजणाण, अध्याय-१२, श्लोक-२३३. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९. पे. नाम. पौषधविधि प्रकरण, पृ. ५२अ-५४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पोषधविधि प्र०वृ०. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जस्सुद्धट्ठियमुल्लसि; अंति: गुणंतु विहिरया, ग्रं. १५०. २०. पे. नाम. प्रतिक्रमण समाचारी, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रतिक्रमणसमाचारी. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मं नमिउं देविंद; अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स, गाथा-४०. २१. पे. नाम. चैत्यवंदनविधि कूलक, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चैत्यवंदनविधिसूत्र. चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तिन्नि निसीही तिन्नि; अंति: सक्कत्थयपमुह दंडेसु, गाथा-३४. २२. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीचरित्र. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणमुसभमुभयं; अंति: देहि मयं नेहि परमपयं, गाथा-२५. २३. पे. नाम. शांतिचरित्र स्तोत्र, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:श्रीचरित्र. शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसरि, प्रा., पद्य, आदि: अप्पडिहयधम्मचक्केण; अंति: गय जिणवल्लह पयं देस, गाथा-३३. २४. पे. नाम. नेमिजिन चरित्र, पृ. ५७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीचरित्र. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयनाहि सरिस विलसि देहपहा; अंति: जिणवल्लह पत्त कुणसु सिवं, गाथा-१५. २५. पे. नाम. पार्श्वनाथ चरित, पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीचरित्र. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि; अंति: सिवसुक्ख पत्त जय, गाथा-१५. २६. पे. नाम, महावीरदेव चरित, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीचरित्र. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. २७. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नंदीश्वरस्तोत्र. प्रा., पद्य, आदि: वंदिय नंदियलोअं; अंति: बत्तीसं सोलसय वंदे, गाथा-२५. २८. पे. नाम. सर्वजिनकल्याणक स्तोत्र, पृ.५८-५९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणिक स्तोत्र. पंचकल्याणक स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्म नमिऊण जिणे; अंति: लहं पयं देसु पणयाणं, गाथा-२६. २९. पे. नाम. कल्याणक स्तोत्र, पृ. ५९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणकस्तोत्र सर्वजिनकल्याणक स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: परुरंदरपुरस्परद्धिवर्द्धि; अंति: जिनवल्लभ ते लघु, श्लोक-८. ३०.पे. नाम. सर्वजिनेंद्रकल्याणक स्तोत्र, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीकल्याणिकस्तोत्र. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पणयसुरविसर सिरमउडम; अंति: सिद्धिसुहसंचए, गाथा-७. ३१. पे. नाम, सप्तस्मरण, पृ. ५९आ-६२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सप्तस्मरणा. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनखनिग्गयप; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७. ३२.पे. नाम. गणहरसंघवणसयं, पृ. ६२अ-६३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गणधरसूत्रं. ६३आ (द्वितीय) तक है. गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा-१५०. ३३. पे. नाम. संदेहदोलावली प्रकरण, पृ. ६३आ-६६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संदेहदोलावली. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिबिंबिय पणय जयं; अंति: जिणवल्लहसूरि सीसेणं, गाथा-१५०. ३४. पे. नाम, व्यवहार कूलक, पृ. ६६अ-६७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:व्यवस्थाकूलकं. व्यवहार कलक, आ. जिनचंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी, आदि: पणमिय वीरं पणयंगिवग्गसग्ग; अंति: जलंजलिं देह सिवमेइ, श्लोक-६९. For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३५. पे. नाम, संघस्वरूप कूलक, पृ. ६७अ-६७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीसंघस्वरूपकुलक. संघस्वरूप कुलक, प्रा., पद्य, आदि: केई उम्मग्गठियं; अंति: दूसमकालेवि सो संघो, गाथा-१५. ३६. पे. नाम. साधर्मिकवात्सल्य कूलक, पृ. ६७आ-६८अ, संपूर्ण. साधर्मिकवात्सल्य कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: कयपुन्ना जे महासत्ता, गाथा-२६. ३७. पे. नाम. देववंदन कूलक, पृ. ६८अ-६८आ, संपूर्ण. चैत्यवंदन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊणमणंतगुणं चउवयणं; अंति: हणपहे नीसेससुक्खावहे, गाथा-२८. ३८.पे. नाम. सर्वतीर्थमहर्षि कूलक, प. ६८आ, संपूर्ण. सर्वतीर्थमहर्षि कलक, जिनेश्वरसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयम्मि उसभो; अंति: खंदगसीसाण सुमुणीणं, श्लोक-२६. ३९. पे. नाम. क्षांति कूलक, पृ. ६८आ-६९अ, संपूर्ण. क्षांति कुलक, अप., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध सूरी; अंति: ख गओ राणउ गयसुकुमालु, श्लोक-३१. ४०. पे. नाम. प्रतिलेखना कुलक, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण. पडिलेहणा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: भयवं दसन्नभद्दो सदसणो; अंति: ता कहे पडिलेहणं कुज्जा, गाथा-३६. ४१. पे. नाम. प्रवृज्या कुलक, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ४२. पे. नाम. वंदनक भाष्य, पृ. ७०आ, संपूर्ण. गुरुवंदन भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: मुहणंतय २५ देहा २५; अंति: उत्तमह्रय वंदणयं, गाथा-२७. ४३. पे. नाम. वृहद्वंदनक भाष्य, पृ. ७०आ-७१अ, संपूर्ण. बृहद् वंदनक भाष्य, मु. अभयदेवसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: इच्छा य अणुन्नवणा; अंति: पावइ अचिरेण निव्वाणं, गाथा-३३. ४४. पे. नाम. एकविंशति स्थान प्रकरण, पृ. ७१अ-७२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:एकविंशतिस्थानकं. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ४५. पे. नाम. प्रवचन संदोह, पृ. ७२अ-७६आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:प्रवचनसंदोह प्र०. प्रा., प+ग., आदि: नमिऊण वद्धमाण ववगयमा; अंति: पवयणोछलृपयं पवयण संदोहो, पद-६, गाथा-२५०, (वि.६ पद) ४६. पे. नाम. पंचसूत्र, पृ.७६आ-७९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:श्रीपंचसूत्र. आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो वीयरागाणं सव्व; अंति: पवज्जाफलसुत्तं, सूत्र-५. ४७.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ७९अ-८०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवविचार प्रकरणं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ४८. पे. नाम. जीवदया प्रकरण, पृ. ८०अ-८१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवदया प्रकरणं. प्रा., पद्य, आदि: संसय तिमिर पयंग; अंति: हत्तोमाअवरह्न पडिक्खेह, गाथा-११५. ४९. पे. नाम. नाणाचित्त प्रकरण, पृ. ८१आ-८२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नाणाचित्तक प्रकरणं. नानाचित्त प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं जयजीवबंधव; अंति: सीलारामं विणासिज्जा, गाथा-८१. ५०. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. ८२आ-८३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गौतमपृच्छा. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: सिद्धिपुरिंपावए अइरा, प्रश्न-४८, गाथा-५३. ५१. पे. नाम. पंद्रह कर्मादान विवरण, पृ. ८३आ-८४अ, संपूर्ण. १५ कर्मादान विवरण, प्रा., पद्य, आदि: पुट्ठो केणावि गुरु कम्मा; अंति: न सुत्तमग्गंमि तं पडइ, गाथा-२०. ५२. पे. नाम. बत्रीस अनंतकाय गाथा, पृ. ८४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८६ www.kobatirth.org कैलास ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि सव्वाइ कंदजाई सूरण; अतिः तव्विवरीयं च पत्तेयं, गाथा-६. ५३. पे. नाम, कथाकोष प्रकरण, पृ. ८४अ- ८४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी कथानककोश. कथाकोश प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११०८, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: सो जिणेसरावरियनामेण, गाथा ३०. ५४. पे. नाम. श्रावकधर्म प्रकरण, पृ. ८४आ-८७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : श्रावकधर्म प्रकरणं. 3 आवकधर्मकृत्य, आ. जिनेश्वरसूरि सं., पद्य वि. १३१३, आदि भेजुर्यस्याङ्घ्रियुग अति नन्द्यात् सङ्घमानसम्, श्लोक-२४५. ५५. पे. नाम. योगशास्त्र- प्रकाश १ से ४, पृ. ८७आ- ९३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : योगशास्त्र चतुःप्रकाशी. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागावि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५६. पे. नाम. धर्मलक्षण, पृ. ९३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : धर्मलक्षण ०. सं., पद्य, आदि: धर्मार्थं क्लिश्यते; अंति: गच्छंति परमांगति, (वि. श्लोक संख्या का उल्लेख नहीं है.) ५७. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पू. ९३-९४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी प्रश्नोत्तररत्नमाला. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदिः कः खलुनालक्रियते; अंतिः कंठगता किं न भूषयति श्लोक-२८. ५८. पे. नाम. श्रावकविधि, पृ. ९४ - ९४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी श्रावकविधि. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जै.क. धनपाल, प्रा., पद्य, आदि: जत्थ पुरे जिणभवणं; अंति: जिणधम्मुवएससलिलेण, गाथा-२२. ५९. पे नाम. मिथ्यात्वमंथन प्रकरण, पृ. ९४आ- ९५अ, संपूर्ण. मिथ्यात्वमथन प्रकरण- दानविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि धम्मोवग्गह दाणं दिज, अंति: लोयणाण धम्मो मणे ठाइ, गाथा - २५. ६०. पे. नाम. नवकार कुलक, पृ. ९५अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: घणघायकम्ममुक्का; अंति: संसारो तस्स किं कुणइ, गाथा- २३. ६१. पे. नाम. ज्येष्ठ पंचनमोक्कार फल प्रकरण, पृ. ९५अ- ९७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : ज्येष्ठनमस्कारफल प्र०. नमस्कार फल स्तोत्र-वृद्ध, आ. जिनचंदसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वद्धमाणं अंतिः कलिमलं नमुक्कार फल, गाथा - ११८. आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण नमिर तियसिंद; अंति: किं निकुणंति सुणेह, गाथा-३५. ६६. पे. नाम. विवेकमंजरी प्रकरण, पृ. ११४अ ११६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: श्रीविवेकमंजरी प्र०. 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. ९७अ - ९७आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी दानशीलतपभावना कुलं. आ. जयघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निऊण महिय मोहं वीर; अंति: जयघोस० शिवं सपावेइ, गाथा-३०. ६३. पे. नाम. पंचाशक प्रकरण, पू. ९७आ-१११अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी पंचाशक प्र०, पंचाशक प्रकरणं यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण वद्धमाणं सावग, अंति महह जड़ मुक्खसुहमणहं, पंचाशक - १९, गाथा- ९४०, ग्रं. १९८७. ६४. पे. नाम षष्ठिशतक प्रकरण, पू. १११अ ११३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: श्रीषष्टिशतं. आव, नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि अरिहं देवो सुगुरू: अंति: नेमिचंद० जंतु सिवं, गाथा- १६१. ६५. पे. नाम, संयममंजरी, पृ. ११३ आ-११४अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : श्रीसंयममंजरी प्र०. विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा. पद्य वि. १२४८ आदि सिद्धिपुरसत्यवाहं अति जलहिदिणेस वरिसम्मि, " प्रा. पद्य, आदि: चउसरणगमण १ दुक्कडगरि अति लंघेउं लहइ कल्लाणं, गाथा-२८. " गाथा - १४४. ६७. पे. नाम. आतुर प्रत्याख्यान, पृ. ११६-११६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: आतुरप्रत्याख्यानं. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि अरहंता मंगलं मज्झ; अंतिः सव्वं तिविहेण वोसिरे, गाथा २०. ६८. पे. नाम चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. ११६आ- ११७अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: चउसरणं. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ६९. पे. नाम. इगुणतीसी भावना, पृ. ११७अ-११७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:इगुणतीसी भावना. २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९. ७०. पे. नाम. बारह भावना स्वरुप कुलक, पृ. ११७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:द्वादशभावनास्वरुप कुलं. १२ भावनास्वरूप कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जीवियं ज्जुवणंडुवं संपया; अंति: होइ अणुबंधो य सुहस्सय, गाथा-१५. ७१. पे. नाम. जीवसंबोध कुलक, पृ. ११७आ-११८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवसंबोध कुलं. प्रा., पद्य, आदि: जारेयतिरियमरामरगई; अंति: फुडंअप्पहियंतोसमाया, गाथा-२५. ७२. पे. नाम. मिथ्यादुष्कृत कुलक, पृ. ११८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मथ्यादुःकृतदान कुलं. प्रा., पद्य, आदि: जो को वि य पाणिगणो द; अंति: म्मद्दिट्ठस्स जीवस्स, गाथा-१६. ७३. पे. नाम. उत्सूत्रपदोद्धाटन कुलक, पृ. ११८अ-११८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उत्सूत्रपदोद्घाटन कुलं. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: लिंगी जत्थ गिहिव्व; अंति: जिण०कुणंति ताणि न ते, श्लोक-३०. ७४. पे. नाम. मिथ्यात्वमंथन कुलक, पृ. ११८आ-११९अ, संपूर्ण. मिथ्यात्वमथन प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: न गुले मणिए गुलियं; अंति: बहकालं ते भमीहिंति, गाथा-२६. ७५. पे. नाम. सम्यक्त्वसप्तषष्ठी भेद प्रकरण, पृ. ११९अ-१२०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीसम्यक्त्वसप्तति. सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयासं; अंति: सणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७०. ७६. पे. नाम. जिनपतिसूरि पंचाशिका, पृ. १२०अ-१२१अ, संपूर्ण. जिनपतिसूरिपंचाशिका, प्रा., पद्य, आदि: रागिमिहुणं व रत्तं; अंति: तं होसु मह सुहओ, गाथा-५५. ७७. पे. नाम. जिनेश्वरसूरि सप्ततिका, पृ. १२१अ-१२२अ, संपूर्ण. जिनेश्वरसूरिसप्ततिका, प्रा., पद्य, आदि: वंदामहे पहुजिणेसरसूरिपाए; अंति: वहूपाणिग्गहेणुसुतं, गाथा-७४. ७८. पे. नाम. उपदेशचतुःसप्ततिका, पृ. १२२अ-१२३आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रबोधसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पयवेकप्पदुमकंवणावलं; अंति: णउसिद्धिबहू० सिउ, गाथा-७४. ७९. पे. नाम. जिनचंदसूरि सप्ततिका, पृ. १२३आ-१२४आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरिचतःसप्ततिका, आ. जिनकशलसूरि, अप., पद्य, वि. १३७८, आदि: सिरिजिणचंदमुणीसर पाए नमिउ; अंति: ओ संघस्स दिसउ सिरिं, गाथा-७४. ८०. पे. नाम, जिनकुशलसूरि बहुत्तरी, पृ. १२४आ-१२५आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि बहोत्तरी, प्रा., पद्य, आदि: सुबतरुणोसमगुरुणो; अंति: सिरियंघिरयंतु संघस्स, गाथा-७४. ८१. पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थकर स्तवन, पृ. १२५आ-१२७आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमभवसंभमुभंतजंतुस; अंति: यच्छउ वीरो सेसाउ तित्थयरा, स्तोत्र-२४. ८२. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १२७आ-१२९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: मरुदेविनाभितणयं वसहंकं; अंति: धणणोलहु होउं सुह धणओ, स्तुति-२४, गाथा-९६. ८३. पे. नाम. सर्वजिन कल्याणक स्तुति, पृ. १२९अ-१२९आ, संपूर्ण. जिनकल्याणक स्तुतिः, अप., पद्य, आदि: आसाढकिन्हचउथी अवयारु; अंति: संघस्स कल्लाण खेमंकरा, गाथा-२८. ८४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १२९आ-१३०अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनपतिसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीनाभेय जिनेश त्वं; अंति: कलकंठीरवा सिता, श्लोक-२९. ८५. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १३०अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ८६. पे. नाम. शांतिघोषणा स्तुति, पृ. १३०अ-१३०आ, संपूर्ण. रोगशांति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: रोगशोकादिभिर्दोषैरजिताय; अंति: पातु चक्रचापेषु धारिणी, श्लोक-१८. ८७. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. १३०आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अहँतस्त्रिजगद्; अंति: प्रथमं भवति मंगलम्, श्लोक-७. ८८. पे. नाम. शांतिघोषणा स्तुति, पृ. १३०आ-१३१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ www.kobatirth.org शांत्युद्घोषणा, प्रा., पद्य, आदि भरणिहिसव्वद्ध अंतिः सिद्धा सिद्धावियादेवी गाथा - १७. ८९. पे. नाम. पंचपरमेष्टिगुण वर्णन, पृ. १३१अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्टि गुण वर्णन, प्रा., पद्य, आदि: अरहंतामहाअट्ठप्पाडिह; अंति: पंचेमे परमेष्टिणो, गाथा-३. ९०. पे नाम, शांति स्तव, पू. १३१अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ९१. पे नाम. सत्तरिसयजिन स्तवन, पू. १३१अ १३१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ९२. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- कलिकुंड, पृ. १३१ आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव - कलिकुंडमंडन, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि नमामि श्रीपार्श्व अति: शमयतु समग्रं भवभयं श्लोक- ८. ९३. पे. नाम. सरस्वती भगवती स्तवन. पू. १३१ आ. १३२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि सरभसलसद्भक्तिप्रद्धी; अंतिः पुमान् सुकृति कृती, श्लोक-२५. ९४. पे नाम. नाभेय स्तोत्र. पू. १३२अ १३३अ संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ९५. पे नाम आदिनाथ स्तवन, पृ. १३३२-१३४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयशैले; अंति: प्रसद्याक्षेमदामद्यासो, श्लोक-३२. ९६. पे. नाम यात्रास्तव, पू. १३४अ १३४आ, संपूर्ण. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि तीर्थयात्रा प्रचलित संघ, अंतिः कल्याणिकाद्युत्सवान्, गाथा-३२. ९७. पे. नाम. स्तंभणक स्थित पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १३४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - स्थंभन, प्रा., पद्य, आदि सुरनरकिन्नर अंतिः इच्छिय फलसिद्धि कामेणं, गाथा-२२. ९८. पे नाम महावीरजिन स्तव, पृ. १३४आ-१३५अ, संपूर्ण. 1 महावीर जिन स्तव- बृहत् आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य, आदि जइज्जा समणे भगवं अति: एअं पढह कय अभयसूरीहि, गाथा-२२. ९९. पे. नाम. समसंस्कृत वीर स्तव, पृ. १३५अ १३५आ, संपूर्ण. "" महावीरजिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. १००. पे नाम श्रुत स्तोत्र, पृ. १३५ आ-१३६अ, संपूर्ण. श्रुतस्तव, आ. जिनदत्तसूरि, अप, पद्य, वि. १२वी, आदि निम्महिय मोहमाएण कणय अंतिः तप्पय पणयाण होई फुडं, गाथा - २७. १०१. पे. नाम जिनलब्धिसूरि चहुत्तरी पू. १३६-१३७अ संपूर्ण. जिनलब्धिसूरिचहत्तरी, आ. तरुणप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १४०४ आदि सिरि मुणिवह जिणचंदं भविकव; अति: विहि संघे मंगलं देउ, गाथा-७४. "" " १०२. पे. नाम जिनलब्धिसूरि स्तूप नमस्कार, पृ. १३७अ संपूर्ण. जिनलब्धिसूरिस्तूप नमस्कार, प्रा., पद्य, आदि जा सूरि राउ नवलक्ख, अंति: निच्चं पसीवंतु मे, गाथा ४. १०३. पे नाम. जिनलब्धिसूरि स्तूप स्तवन, पू. १३७अ १३७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि श्रीजिण लद्विगुरूणं, अंति: विहि सयल संघस्य, गाथा-८. १०४. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय आवक, पू. १३७आ-१४०, संपूर्ण For Private and Personal Use Only श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि णमो अरिहंताणं णमो अति भूयान्नः सुखदायिनी, Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १०५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १४०अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. १०६. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १४०अ-१४०आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. १०७. पे. नाम, स्तंभन पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १४०आ-१४१अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. १०८. पे. नाम, धूमावली, पृ. १४१अ-१४१आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: असुरिंदसुरिंदाणं किन; अंति: सव्वे वि कुणन्तु भवविरह, श्लोक-१४. १०९. पे. नाम. मंगल दीपक, पृ. १४१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: ॐसरणे जिणसुरऊ परिमल; अंति: कीरई तेणो सो मंगलपईवो, गाथा-१३. ११०. पे. नाम. कुसुमांजलि, पृ. १४१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उप्फुल्लफुल्लरसलुद्धभमंत; अंति: सुहंकुणओवोकुसमोणवुट्ठी, गाथा-१. १११. पे. नाम. ज्ञानमांगलिक वृत्तानि, पृ. १४१आ-१४२अ, संपूर्ण. आरात्रिक वृत्तानि, आ. जिनदत्तसूरि, अप., पद्य, वि. १२वी, आदि: लोणेण पिच्छिय सुनाण; अंति: हेउ तस्स जलंपि दिति, गाथा-१२. ११२. पे. नाम. ऋषभदेव स्तव, पृ. १४२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, ग. अभयतिलक, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रवीभवत्रिदशनाथकिरीट; अंति: स्वदर्शनमहो अभयं सदा मे, श्लोक-८.. ११३. पे. नाम. नेमिजिन स्तव, पृ. १४२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विमलरैवतकाचलशेखरः सरभ; अंति: मन्यस्वमामभयतातिलकस्ववंठं, श्लोक-८. ११४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४२अ-१४२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभण, आ. अभयदेवसूरि ,सं., पद्य, आदि: आचार्यशक्राभयदेवसूरि; अंति: कात्थिदयोमभयंप्रयत्थ, श्लोक-८. ११५. पे. नाम, शीलोपदेशमाला प्रकरण, पृ. १४२आ-१४४अ, संपूर्ण. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारिं नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११५. ११६. पे. नाम, चंद्रप्रभस्वामी स्तवन, पृ. १४४अ-१४४आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चरियं भणिमो चंदप्पहस्स; अंति: नयरी रज्जं सुसज्जं मम, गाथा-४०. ८९९०४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६४३८-४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (१)प्रणम्यश्री महावीरं, (२)तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१५ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९९०५. (+) कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४८, माघ शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २११, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. ज्ञानविजय शिष्य (गुरु पं. ज्ञानविजय); गुपि. पं. ज्ञानविजय (गुरु ग. रविजय, तपागच्छ); ग. रविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ) ग. देवविजय (गुरु ग. अमीविजय, तपागच्छ); ग. अमीविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय, तपागच्छ); ग. माणिक्यविजय (गुरु ग. हितविजय, तपागच्छ); ग. हितविजय (गुरु ग. शुभविजय, तपागच्छ); ग. शुभविजय (गुरु ग. विमलविजय, तपागच्छ); ग. विमलविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें द्विपाठ-संशोधित., प्र.ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (१३५) जिहां द्रुसायर चंद रवि, (१३६) मंगलं लेखकानां च, (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (१११९) मूषकानलचौरेभ्य, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X३८). , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसे त्ति बेमि, व्याख्यान ९ नं. १२१६. कल्पसूत्र-सुवोधिका टीका, उपा, विनयविजय, सं. गद्य वि. १६९६ आदि प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अति " वृत्तीसूत्रसमन्वितम् . ६५८०. ८९९०६. जंबुस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७४, आषाढ़ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५४, ले. स्थल. शिवपुरी, माधोपुर, प्रले. पंडित. शिवलाल; पठ. मु. शिवचंद (गुरु मु. कृष्णचंद्र पंडित, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); लिख. मु. कृष्णचंद्र पंडित (परंपरा भट्टा. सुरेंद्रकीर्त्ति, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); गुपि. भट्टा. सुरेंद्रकीर्त्ति (परंपरा भट्टा. क्षेमेंद्रकीर्त्ति, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); भट्टा. महेंद्रकीर्त्ति (परंपरा मु. ललितकीर्ति, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); आ. कुंदकुंदाचार्य (मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); राज्यकालरा दोलतराव सिंधीया, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी जं. स्वा. प्रतिलेखन वर्ष हेतु सं. १८७४ कार्तिक वदि १० का भी उल्लेख मिलता है. कुल ग्रं. २३३०, जैदे. (२६४१९, ७३२). " " जंबूस्वामी चरित्र, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि श्रीवर्द्धमानतीर्थेश, अंति भानां संति निश्चितम् सर्ग ११, ग्रं. ३०००. ८९९०७. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, कार्तिक कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०७ + १ (३२)=१०८, अन्य. ग. फतेंद्रसागर; मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगौडीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित कुल ग्रं. ९५३५ प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६.५४११.५, ६x४७-५०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउस तेण भगवय; अति अज्झयण तिबेमि अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र-वार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७३, आदि पांचमो गणधर सुधर्मा अति प्रतिई कहिता हुआ, ग्रं. ४४७४. ८९९०८. (+#) जंबुप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, चैत्र कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५०, ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १४३२३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ८X५७-६२). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अति उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ७३६९. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुआ अरिहंतनइ; अंति: मस्त करु छु. ८९९०९. (+) सारस्वत व्याकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६२, चैत्र शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. मु. अमरसागर (गुरु मु. अजबसागर); गुपि. मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर); मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर); मु. महिमासागर (गुरु ग. अजितसागर); ग. अजितसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : सार. चंद्रकीर्त्ति श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथ प्रसादात् श्रीपद्मावतीजी सहाय, संशोधित. प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, जैदे., (२५.५X११, १७x४८-६५). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: प्रक्रियां चतुरोचिताम्. सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अतिः वभूव सुमनोहरम्, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. " ८९९११. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान- व्याख्यान १-८, संपूर्ण वि. १९४२, भाद्रपद कृष्ण, १४, सोमबार श्रेष्ठ, पृ. १४१, . स्थल विक्रमपुर, प्रले. पं. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, ७-१३x२६-४२). 3 कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अति (-) प्र. १२९६ प्रतिपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनई नमस्कार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य तीर्थनेतारः अति: (-), प्रतिपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९९१२. (-) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९६८ - ४१४ (१ से ४१४) = ५५४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. दुर्वाच्य., जैदे., (२५.५X१२, ७X३३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. चिपके हुए पत्र, पत्रांक अस्तव्यस्त, अनुमानित पत्राक लिए गए हैं) भगवतीसूत्र - टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. चिपके हुए पत्र, पत्रांक अस्तव्यस्त, अनुमानित पत्र लिए है) ८९९१३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६४, प्र. वि. हुंडी : उत्तराध्यय ०., कुल ग्रं. ११०००, जैदे., (२६.५X१३, १८३२ ). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स: अंति: संबुडे ति बेमि, अध्ययन ३६, ग्रं. २०००. "" उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि भिक्षो विनयं प्रादुष्करि; अंतिः भव्यजीवास्तेषां समांसान्, ८९९१४. पुण्याश्रवकथाकोश सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१०, जैवे. (२५x१३.५, १२-१५X३४). पुण्यासवकथाकोश, रामचंद्र मुमुक्षु, सं., गद्य, आदि: पुष्पोपजीवितनुजे वरबोधहीन; अति: मुक्तिलाभं लभते, अध्याय-६, ग्रं. ४५००. पुण्यास्रवकथाकोश-भाषाटीका, क. दौलतराम पंडित, ब्र., प+ग., वि. १७७०, आदि: श्रीवीरजिनमानम्य; अंति: दिन ग्रंथ समापति लही. ८९९९५. सिंहासन बत्तीसी अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९५-२ (१ से २) ९३, जै. (२४४१३ १३-१६x२६-३०). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: (-); अंति: ऋद्धि पामै बहु परे, कथा-३२, (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण से है, प्रतिलेखकने अंतमें गाथांक नहीं लिखा है.) ८९९१६. (*) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९८, नागनांवइभ्यष्टि, आषाढ़ कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५०, ले.स्थल. जावालपुर, प्रले. मु. क्षमाविजय (गुरु पं. प्रेमविजय, पूनिमगच्छ); गुपि. पं. प्रेमविजय (गुरु ग. गजेंद्र, पूनिमगच्छ); ग. गजेंद्र (परंपरा भट्टा. हर्षचंद्रसूरि पूनिमगच्छ); भट्टा. हर्षचंद्रसूरि (पूनिमगच्छ); अन्य. मु. रत्नवर्द्धन (गुरु मु. विवेकवर्द्धन), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सूयगडांगसूत्र. श्रीशांतिजिनप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०७५, जैदे., .जैदे. (२६११. ६x४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउलेज्ज; अति विहरति तिबेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झे० छ जीवनिकायनु; अंति: तुम्ह प्रति कहउ छउ (वि. टवार्थ के रूप में बालावबोध लिखी गई है.) " ८९९१७ (+) निशीथसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्रले. हरिकृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६११.५, ५-८४४८-५०). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थकम्मं; अंति: पसिस्सोवभोज्जं च, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१५. निशीथसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवीतराग प्रत; अंतिः लिखी छे सर्व पहिली. ८९९१८. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ-संशोधित, जै, " ९१ (२६.५X१०.५, ११X३२). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अति उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार ७ . ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका*, सं., गद्य, आदि: कहि० कीहां सरुछइ; अंति: नाम कथनं चरम मंगलं. ८९९१९. प्रवचनसारोद्धार वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५५, पीष शुक्ल, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६८, प्रले. ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१०.५, १३-१५४५४-५८). For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं. गद्य वि. १२४२, आदि: सन्नद्धैरपि यत्तमोभिः " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंति: समृद्धिमासादयतु, ग्रं. १८००० (वि. मूल के मात्र प्रतीक पाठ हैं.) ८९९२०. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८९, अन्य. श्राव. वेलजी तेजपाल संघवी; सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: विपाक.ट., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, जैदे., ( २६.५X१०.५, ४X३०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि तेणं कालेणं तेणं अंतिः सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध - २, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २० ) विपाकसूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: अथ विपाक शब्दार्थ; अति जिम आचारंगनी पर. ८९९२१. (+) रघुवंश की टीका, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १७५, ले. स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x११, १५X३४-३७). रघुवंश - अर्थलापनिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञं जिनं नत्वा; अंति: वृद्धमंत्रिभि:, (वि. मूल के मात्र प्रतीक पाठ हैं.) " ८९९२२ (*) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी कल्पद्रुमकलिकाटीका, संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, १४४४०-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान -५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानस्य अंति (-), (पू.वि. व्याख्यान-५ अपूर्ण तक है.) ८९९२३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८०९ - २ (५८,६७ ) = ८०७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. कुल ग्रं. ७२००१, जैदे., (२५.५x१२.५, ७X३८-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरहंताणं० सव्व अंति उद्दिसिज्झति शतक-४१, सूत्र- ८६९, ग्रं. १५७५२, (अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) " भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी लिपिनइ; अंति: युग्मशतक एके दिवसे उदेशक०, ग्रं. ५५६५०, संपूर्ण. ८९९२४. (+#) महानिशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९१, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३१, ले. स्थल. फलवर्द्धिकानगर, प्रले. मु. लाभचंद्र (गुरु मु. कोजाराम); गुपि मु. कोजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१२, १२x४४). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ नमो तित्थस्स ॐ अंति व महानिसीहम्मि पाएण, अध्ययन-६, ग्रं. ४५४४, (वि. चूलिका २ ) ८९९२५. (*) कल्पसूत्र का व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३७, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २०७, ले. स्थल, मकसूदाबाद, प्रले. मु. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पासचंदगच्छ); पठ. मु. सुमतिचंद्र ऋषि (वडतपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले. श्लो. (१३२९) सुख संपत धनजन सजन, वे. (२४.५x१२.५, १३४३८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. अबीरचंद्र ऋषि, पुहिं., गद्य, वि. १९३७, आदि: (१) प्रणम्य परमं ज्योति, (२) अभो भव्यजीवो असरण; अंति: भवतात्मे दिने दिने, व्याख्यान- १५. ८९९२६. (+#) चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १८३२, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले. स्थल. प्रांणपुर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर; पं. राजसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदिजिन प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १५४४६). "" चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तिम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९, (वि. ढाल - १०८.) For Private and Personal Use Only ८१९२७. चंद्रराजा रास, संपूर्ण वि. १९०२, कार्तिक कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४७, ले. स्थल. जालणा लसकर, प्रले. पं. जयचंद्र लिख धर्ममूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ चैत्यालय मध्ये.. दे. (२५x१२, १४x२७-३५). Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तिमः अति मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९, (वि. ढाल - १०८.) ८९९२८. (*) चंद्रराजा रास व चंद्रराजा १० भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९३९, चैत्र कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१, कुल पे. २, ले. स्थल. योधनगर, प्रले. फतेचंद पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चंदकी चोपई., संशोधित., दे., (२६x१२.५, १८४४४-५०), १. पे. नाम. चंद्रराजा रास, पृ. १आ-७१अ संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधपति प्रथम अति मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, (वि. डाल- १०८) २. पे. नाम. चंद्रराजा १० पूर्वभव वर्णन, पू. ७१अ, संपूर्ण. चंद्रराजा १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि चंदराजा ते १ रूपमतिन अंति दराजा आगलि कह्या छे. ८९९२९ (+) समाचारी शतक व समाचारी शतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९५९, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १८०, कुल पे. २, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. केसरीचंद (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी समाचारी श., संशोधित. दे. (२४४१२.५, १६x४३). , १. पे. नाम. समाचारी शतक, पृ. १आ-१७८अ संपूर्ण सामाचारी शतक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६७२, आदि श्रीवीरं च गुरुं नत्वा, अंतिः चिरमनुपमं सर्वकल्याणकारि, प्रकाश-५. ९३ २. पे. नाम. समाचारी शतक का बीजक, पृ. १७८अ - १७९अ, संपूर्ण. सामाचारी शतक-बीजक, मा.गु., गद्य, वि. १६८६, आदि: सामायिक पछइ इरियावही; अंति: पूजा प्रशस्तिविधि. ८९९३०. (+) कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४३, प्रले. ग. न्यायसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिंतामणीजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (४६९ ) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (९९३) जिहां द्रुसावर चंद रवि, जैदे., (२८x१३, ६-१४४४१-४३). 1 कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः कासवगुत्ते पणिवयामि व्याख्यान- ९. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर, अंति: (-). कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे सहित एहवा; अंति: प्रणाम करुं छु. ८९९३१. कल्पसूत्र का व्याख्यान + कथा, संपूर्ण, वि. १९७६, कार्तिक शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २२६, ले. स्थल. अमदावा, प्र.वि. प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र. दे., (२७.५४१२.५, १२४३०-३३). " कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय अंतिः जिम सुखी थाओ. ८९९३२. (*) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान कथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४४ -१९४५, श्रेष्ठ, पृ. ६८-१ (३)=६७, कुल पे. १०, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. छत्रचंद्र (गुरु मु. अबीरचंद्र ऋषि, पासचंदगच्छ); गुपि. मु. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पासचंदगच्छ); मु. इंद्रचंद्र (गुरु आ. लब्धिचंदसूरि, पासचंदगच्छ); आ. लब्धिचंदसूरि (पासचंदगच्छ); पठ. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१३२३) कर कटि ग्रीवा नेन पद, (२८x१२.५, ११-१३X२९-३६). १. पे. नाम. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन पारणोत्तर देवकृत अहोदान महादान प्रसंग तक है.) २. पे. नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. ४अ १८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९४४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, सोमवार. उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि (-); अति ततः सर्वेष्टार्थसिद्धिः, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. दीपमालिका व्याख्यान, पृ. १८आ- ३१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी दीप. व्या. दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: उत्तमा भविष्यंति. For Private and Personal Use Only 良い Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. वंकचूल कथा, पृ. ३१आ-३७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बंकचू.क. आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: चौरस्यापि शीलकणिका; अंति: तमिति श्रेयः स्यात्, श्लोक-१०९. ५. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. ३८अ-४३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ज्ञानपं.व्या. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. ४३आ-४७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मौनए.व्या. सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: सोद्यमा समाभवति. ७. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. ४७आ-५३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पोशदश. आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: धिकार सत्यं ब्रूवेमि. ८. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पृ. ५४अ-६१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मेरुत्रयोद०. मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः. ९. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ६२आ-६४आ, संपूर्ण, वि. १९४४, फाल्गुन शुक्ल, १५, पे.वि. हुंडी:फाल्गुणचं०, फा०च०व्या०. उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्. १०. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, पृ. ६५अ-६८आ, संपूर्ण, वि. १९४५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, सोमवार, पे.वि. हुंडी:चैत्रशुक्ल, चैत्रशुक्ल१५. मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: च सदा श्रेयो भवतु. ८९९३३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २७३, ले.स्थल. हेमटसर, प्रले. पं. पद्मशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ६-१५४३२-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (१)भवसिद्धीय समंतए, (२)पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संयोग बि प्रकारै; अंति: तेणइ ए. भा. कह्यौ. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनई एक चेलो; अंति: देइ पग साजा कर्या. ८९९३४. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९७२, माघ कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९७, ले.स्थल, विक्रमपूर, प्रले. श्राव. किसनदास मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., दे., (२४४१२, १४४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: अज्ञानतिमिरांधानां; अंति: जिनकीर्तिसूरिविजयराज्ये. ८९९३५ (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, पौष शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ९५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सिधकरण पुरोहित, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रायपसेणी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१२, ८४४५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्सवणा णमो वए, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले तेणे; अंति: तन्मे मिथ्यादकृतं, ग्रं. ५५००. ८९९३६ (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १३५, ले.स्थल. कुचेरानगर, प्रले. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, ७४३८-४०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, __ अध्याय-७, (वि. १९१३, कार्तिक शुक्ल, ५, सोमवार) योगचिंतामणि-टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पाकाधिकार १; अंति: सातमो मिश्रकाध्याय, (वि. १९१३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शनिवार) ८९९३७. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९८२, वैशाख शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. हंसराज मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबुद्वीप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १४९८९, दे., (२५.५४११.५, ९-११४२०-५१). For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: स्वामी प्रतइ कहै छई, ग्रं. १०८४३. ८९९३८. (+) धन्यकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४३, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५५, ले.स्थल. बगेरा, प्रले. चंदुलाल (पिता चनसूख); गुपि. चनसूख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८६५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३२७) मुकति महल के मिलन कौ, (१३२८) धर्म कृत्ये संसार सूख, दे., (२७४११.५, ८४३३-३६). धन्यकुमार चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: शतसंख्यकाः, गाथा-१२३. ८९९३९ (+#) नलचंपूकी प्रकाश टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५३-२९(१ से १२,२०२ से २०६,२०८ से २१४,२२०,२२२,२२४ से २२५,२४४)=२२४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६-४६). नलचंपू-प्रकाशटीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उच्छवास-१ अपूर्ण से उच्छवास-६ अपूर्ण तक है.) ८९९४० (+) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध-२ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२९, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२२, अन्य. मु. कस्तूरचंद (गुरु मु. खूबचंद); मु. खूबचंद; मु. रतनचंद (गुरु मु. ज्वाहारलाल); मु. ज्वाहारलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:आचा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११, ६४३३-४०). आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध-२, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिक्खु वा भिक्खु; अंति: जे चरण ठिउ साधु, अध्ययन-१६. आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: से० ते भिक्षु चारित्रियउ; अंति: यतः नाणेण जाणइ भावे. ८९९४१ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ८४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२५०. ८९९४२ (+) महीपालराजा कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. ११०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३६७२, जैदे., (२६४११.५,८४३९-४२). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वीरदेवगणी० पसाएण, गाथा-१८०९,ग्रं. १८३६. महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करि रिषभनाथ; अंति: गुरु कै प्रसाद करी, ग्रं. १८३६. ८९९४४. (+) जन्मपत्री पद्धतौ दशाधिकार, संपूर्ण, वि. १७५४, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७५, प्रले. पं. लाभसागर (गुरु ग. परमसागर); गुपि. ग. परमसागर (गुरु ग. धनसागर); ग. धनसागर (गुरु ग. पुण्यसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जन्मपत्री पद्धति पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४४६). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीऋद्धिवृद; अंति: कदापि सुख माप्नुयात्. ८९९४७ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८४३, आश्विन शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. चारित्रोदय; पठ. शिवलाल; गुपि. गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ); मु. हितरंग (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नाममाला., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३१८) जा लगि मेर अडिग है, (१३२४) जलात् रक्षेत् तैलाद्रक्षेद, (१३२५) शुभ महुरत कीनी, जैदे., (२६४११, १४४३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९९५१. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १७४०, भाद्रपद कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल, जोर्भा, प्रले. पंन्या. प्रेमसागर (गुरु ग. मानसागर); गुपि. ग. मानसागर (गुरु ग. धनसागर); ग. धनसागर (गुरु ग. पुण्यसागर); ग. पुण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हेमिनाममाला., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १७२५, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७-१८४४०-४८). __ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ८९९५२. अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ५६, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. मु. भानसागर (गुरु पंन्या. जीवणसागर); गुपि. पंन्या. जीवणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीराणपुरजी प्रसादात्., जैदे., (२६४११.५, १५-१७४४८-५२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नमस्कारनाम नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ८९९५५. (+#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले.स्थल. पाचला, प्रले. उपा. रत्नविमल गणि; पठ.पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:योगचिंतामणि., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११, ६-८४२६-३८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजोगचिंतामणिग्रंथे; अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: अथ प्रथम स्त्रीने; अंति: मिश्राधिकारपूर्ण थयो. ८९९५६. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जन्मपत्रीपद्धत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३४-३८). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीऋद्धिवृद्; अंति: (-), (पू.वि. गुरु मध्ये पाचकफल अपूर्ण तक है.) ८९९५७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अधिरोहिणी टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५३५+१(२६४)=५३६, प्रले. श्राव. सुमतिदास शांतिदास दोशी; उप. मु. भावविजय (गुरु उपा. विमलविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययनसूत्रलघुवृत्ति., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १६२५५, जैदे., (२६.५४११, १३४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ नमः सिद्धि; अंति: दिशतु मंगलैकगृहम्, अध्ययन-३६, ग्रं. १४२५५. ८९९५८. (+) कर्मग्रंथ-१ से ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२६, संवत्सरमष्टादशषड्विंशति, फाल्गुन, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७९, कुल पे. ६, प्रले. मु. भूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (९५८) यादृशं पुस्तिकां दृष्ट्वा, जैदे., (२३४१०, ३-४४३४). १. पे. नाम, कर्मविपाकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६४. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वदेवमानम्य; अंति: खरतरगच्छ० पाटवी थया. २. पे. नाम, कर्मस्तवसूत्र सह टबार्थ, पृ. १५आ-२४आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तह कहतां तिम थुणिमो; अंति: ४ मां प्रकृतिस्वरूपं. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org पे. नाम बंधस्वामित्व तृतीय कर्मग्रंथ सह टवार्थ पू. २४आ-३१आ, संपूर्ण, 1 बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४बी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अंति देविंदसूरि० सोड, गाथा २५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, पंन्या. धर्मविजय, मा.गु., गद्य, आदि: हवें बंधस्वामित्व; अंति : (१) पछे एहनो विचार समझवो, (२)धर्म्मविजय० कृतवानमुं. ४. पे. नाम. खंडशीतिकाख्य चतुर्थ कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३१ आ-४९अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहि गाथा -८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हिवे चोथा कर्मग्रथने अंतिः श्रीतपागच्छनायकड़. ५. पे. नाम. शतकसूत्र सह टबार्थ, पृ. ४९आ-६४आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं धुक्बंधोदय; अंति देविंदसूरि० आयसरणा, गाथा १००. - शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीने जिन प्रते; अंति: संभारवानइ अर्थइ. .पे. नाम. सप्ततिकासूत्र सह टवार्थ, पू. ६५अ-७९अ, संपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईड, गाथा-९१. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद जेह; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. ८९९५९. (+) महानिशीथसूत्र अध्ययन ४-५ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९४३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६२. प्र.वि. हुंडी:महानि०ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५X१०.५, ४x२६-२८). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण महानिशीथसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. , ८९९६०. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३९२+१ (३४२) = ३९३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी भगवती सूत्रटबार्धपत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११. "" ७४४४-५०), ९७ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरहंताणं० सव्व अंति: (-), (पू.वि. शतक १२, उद्देश-५ प्रारंभ तक है.) भगवतीसूत्र टवार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८५, आदि: श्रीयः श्रीसेवितां अंति: (-). ८९९६१. (+) चंद्रराजा रास, संपूर्ण वि. १८०६, कार्तिक कृष्ण, १३ अधिकतिथि, मध्यम, पू. ८९ प्रले. पं. हितसागर; गुभा. ग. राजसागर (गुरु पं. लाभसागर); गुपि. पं. लाभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४x११.५, १६- २०x४४-५२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तीम, अंति मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९. ८९९६२. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०३-४(१,१४,१०१०, ११०)+२१ (५२,७० से ७९,१७० से १७९) = २२०, पू.वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी योगचिंता०, जोग० चि०, जो०चि, जैदे., (२६.५x१२.५, ११४३०). For Private and Personal Use Only योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अति (-), (पू.वि. सोपारीपाक, श्लोक-२ अपूर्ण से मधुपक्वाहरीतकी, श्लोक-३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) योगचिंतामणि- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). *, ८९९६३.(+) बार व्रत विवरण, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२९, ले. स्थल, विंझोवा, प्रले. मु. तीर्थसागर (गुरु पं. जसरूपसागर); गुपि पं. जसरूपसागर (गुरु पं. जीवणसागर) पं. जीवणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंतामणजी प्रसादात् संशोधित. दे. (२६४१२, १२-१४४२८-३२) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: सदा सिद्ध भगवान के; अंति: परमकल्याणमा लावै वरै. ८९९६४. (+) सम्यक्त्व कौमुदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१०, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२६, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४२९५, दे., (२५.५४१२, १५४३६-४०). सम्यक्त्वकौमुदी चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: वीर जिणेसर चरण युग; अंति: आलमचंद०० सिद्धि जी, खंड-६, ग्रं. ५५००. ८९९६५ (+) सम्यक्त्वकौमदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५६, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४२६२, जैदे., (२७४१२, १०४३०-४४). सम्यक्त्वकौमदी चौपाई, म. आलमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: वीर जिणेसर चरण युग; अंति: आलमचंद०० सिद्धि जी, खंड-६. ८९९६६. (+) ढालसागर, संपूर्ण, वि. १९२६, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १५०, प्र.वि. हुंडी:ढालसागर., संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १२-१४४३६-५०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसूरि० रंग बधामणउं, खंड-९,ग्रं. ५७५०. ८९९६८. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११७७, ले.स्थल. आसोपनगर, प्रले. ग. प्रधानहंस (गुरु ग. युक्तिहंस); गुपि. ग. युक्तिहंस (गुरु पंन्या. कनकहंस); पंन्या. कनकहंस (गुरु पंन्या. सौभाग्यहंस); राज्ये गच्छाधिपति जिनेंद्रसूरि (तपागच्छ); पठ. मु. मनरूपहंस (गुरु ग. प्रधानहंस), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:श्रीभगवती. श्रीऋषभदेवप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (३७३) मंगलं लेखकानां च, (११७८) यादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा , (१३१९) अक्खरमत्ताहीणं, जैदे., (२५.५४१२.५, ७२३२-५२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: देउ अविग्धं लिहंतस्स, शतक-४१, सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदि: श्रीसेवितांहिस्सकल; अंति: पद्मसुंदर कृतोद्यमाः, ग्रं. ५२०००. ८९९६९ (+) ढालसागर, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८८, ले.स्थल. मांडवीबिंदर, प्रले. सोमचंद कचराणी ठाकर; दत्त. श्राव. खेतशीभाई; गृही. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढालसा०., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४३२-३६). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदि जिनेसरु; अंति: गुणसुरि० रंगव वधामणो, खंड-९, ग्रं. ५७५०. ८९९७० (+#) श्रीपाल रास व नवकार गुणवर्णन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६५, कुल पे. २,प्र.वि. पत्र १२+१४+३९ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२,१६-१७४३०-३४). १.पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. १अ-६३अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५. २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. ६३अ-६५अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारी जाउं हं अरिहंत; अंति: ज्ञान०छे सिद्धि सरूप, ढाल-५, गाथा-४१. ८९९७१ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १२१, ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६-१५४३२-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: आठमो अध्ययन जांणवो. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८९९७३ (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १७८१, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १५९-३६(१ से ११,८५ से ९२,१०७ से १११,११३ से ११७,११९ से १२०,१२२,१२४ से १२७)=१२३, ले.स्थल. महावडनगर, प्रले. मु. लालविजय (गुरु ग. हस्तिविजय); गुपि.ग. हस्तिविजय (गुरु ग. अमरविजय); ग. अमरविजय (गुरु पंन्या. सुमतिविजय); पंन्या. सुमतिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रपत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१३२०) याद्रिसं लखीतं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, ३-५४३०-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, ग्रं. १२००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., व्याख्यान-१, सूत्र-५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सोमविमलेन० सर्वधीधनै, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., व्याख्यान-१ सूत्र-५ अपूर्ण से है व बीचबीच के पाठांश नहीं है.) ८९९७४. (+) कर्मग्रंथ १-४ का यंत्र, संपूर्ण, वि. १९१३, रामेंदुग्रहभू, पौष शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, कुल पे. ४, ले.स्थल. फलवर्द्धिनगर, प्रले. कौशलदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१३२२) फलवर्द्धिनगरे लिख्यो, दे., (२५४११.५, १०-१५४२३-३३). १. पे. नाम. कर्मविपाक यंत्र, पृ. १अ-२६आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-यंत्र, म. समतिवर्द्धन, रा., यं., आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: अंतराय कर्म बांधे. २. पे. नाम, कर्मस्तव यंत्र, पृ. २७अ-३५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: बंध प्रकृतिओ छ; अंति: १३ अथवा १२ विच्छेद. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व यंत्र, पृ. ३६अ-४१अ, संपूर्ण. ___ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, प्रा., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. षडशीति यंत्र, पृ. ४२अ-५५आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, म. समतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: जीवरा भेद१४ ६२मार्गण; अंति: छे शास्त्रने अनुसारै. ८९९७५. (+) विनयचट रास, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, प्रले. पं. धनसागर (गुरु पंन्या. उमेदसागर); गुपि. पंन्या. उमेदसागर (गुरु ग. विशेषसागर); ग. विशेषसागर (गुरु ग. लालसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विनयचटरास. श्रीआदिजिनप्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७६८) जादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३२-३८). विनयचट रास, म. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: पार्श्वनाथ जिनवर; अंति: ऋषभनां फलस्ये जी, उल्लास-४, गाथा-१५३०. ८९९७६. (+#) महाबलमलयसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष शुक्ल, १२, रविवार, मध्यम, पृ. १००, ले.स्थल. वावि नगरे, प्रले. पं. कल्याणविजय (गुरु ग. रुपविजय, इडरीयावडिपोसालगच्छ); गुपि.ग. रुपविजय (गुरु ग. जिनविजय, इडरीयावडिपोसालगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:मलयसुंदरीरास. श्रीअनंतनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (७०४) जिंहा लगी मेरु अडिग हे, जैदे., (२५.५४१२, १४४३४-४०). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: काति० खंडनी ढाल रे, खंड-४, गाथा-१०५२. ८९९७७. (+) समयसार की आत्मख्याति टीका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८७, ले.स्थल. सूरत (सुरतबंदिर, प्रले. मु. भवानी ऋषि (गुरु मु. रामरायजी ऋषि); गुपि. मु. रामरायजी ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि); मु. सुजाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३३५) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५४११,१३४३८). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 1 समयसार नाटक- पद्यानुवाद का टवार्थ, उपा. रामविजय, पुहिं. गद्य वि. १७९८ आदि जिन वचन समुद्रकी अंति पातसाहसी मुजरी कीनी. ८९९७८. (+) श्रीपाल रास-खंड-३ ढाल-८ से खंड-४ सह बालावबोध व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले. स्थल. नाडोलनगर, प्रले. पं. अनोपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५X११.५, ३-११X३०-३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति : लहसे ज्ञान विशाला जी (प्रतिपूर्ण, पू. वि. गाथा १० से है.) श्रीपाल रास-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति चातुर्या प्राप्ति, प्रतिपूर्ण ८९९८० (+) कर्मग्रंथ १६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ९७, कुल पे. ६, प्रले. ग. चंद्रविजयगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, ३-४X३०-३७). १. पे. नाम कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ -१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं गाधा ६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७वी, आदि: शारदां वरदां स्मृत्व; अंति: यक श्रीदेवेंद्रसूरी. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. १८अ २६अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि तिम अमे स्तनुं हुं महावीर; अंति: करो ते महावीर प्रतई. ३. पे. नाम बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २७-३४आ, संपूर्ण, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं बंद; अति " देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मबंधना प्रकारथी; अंति: कर्मस्तव सांभलीनइ. ४. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३५-५८अ संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाधा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि वांदीनइ तीर्थंकर, अंतिः श्रीतपागच्छनावकै. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. ५८आ८०आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः देविंदसूरि० आयसरणड्डा, गाथा- १००, शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि प्रणमीनई जिन प्रति अंति तानई संभारवान अर्थइ. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ८०आ- ९७अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहतर० होइ नउईउ, गाथा- ९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७००, आदि: सिद्धि निश्चल पद छइ; अंति: एकइ ऊणी नेऊ गाथा होइ. ८९९८१. (*) नंदीसूत्र सह शब्दार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५८+१ (६) = १५९, प्र. वि. हुंडी नंदी ०८०., पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., दे., (२५X१०.५, ५-१४X३०-४६). For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि जवइ जगजीवजोणीवियाणओ; अतिः समणुन्नाई नामाई, सूत्र- ५७, गाथा- ७००. नंदीसूत्र- कथा + शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (१) अथ नंदीसूत्रनो शब्दार्थ, (२) विषयकषायना जीवक धर्मास्ति; अति अनुज्ञान नाम जाणवा. ८९९८३ (*) जंबुअध्ययन सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८३२, पौष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पू. ५१, ले. स्थल. अंजार, प्रले. मु. गलाल ऋषि (गुरु मु. पीतांबर ऋषि); गुपि. मु. पीतांबर ऋषि (गुरु मु. हीरजी ऋषि); मु. हीरजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह ऋषि); मु. तेजसिंह ऋषि (गुरु मु. केशवजी, गुजराती लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी जंबुच०प०८०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२, ६४३८-४२). " ८९९८४. सीतावेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३, जैदे., ( २६१२, ११×३२). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तणई कालनें विषे; अंति: प्राणीमोक्षे जायें. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९९८६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६१५, आषाढ़ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले. स्थल. स्तंभतीर्थ, प्र.वि. हुंडी:सूगडांगसूत्र., संशोधित., जैदे., (२७११.५, १३x४४-५०). सीतासती वेलि, मा.गु., पद्य, आदि अथ मिथुलानगरी भली हरिवंशी, अंति: जाणे कीउं ही ए मरी जाय तो. ८९९८५ (+) उपमितिभवप्रपंचाकथोद्धार, संपूर्ण, वि. १७८४ आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७०, प्र. वि. हुंडी : उपमितिभवप्रपंचा, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४११, १५४४४-५२). उपमितिभवप्रपंचकोद्धार, ग. हंसरत्न गणि, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: स्वस्तिश्रीर्गुणरागिणीव; अति: लिलिखे लेशमात्रतः, अधिकार-७. י. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिठट्टेज्ज; अति विहरति तिबेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००. १०१ , ८९९८७. सूत्रकृतांगसूत्र श्रुतस्कंध १ सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८२-१ (७२) = ८१, प्र. वि. हुंडी सुगडा०, कुल ग्रं. ६०००, जैवे. (२६.५४११.५, ३-५४३२-३६). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झेज्झ; अंति: भयं तारोत्ति बेमि अध्ययन- १६. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि छकायनुं स्वरूप जाणी; अति कहीयइ तेहना भाषा वचन. ८९९८८. (+) अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै... (२६X११.५, १४-१६x४२-४८). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अति जिनहर्ष० लाभ सवाई हो, ढाल - ४३, गाथा- ७५८, ग्रं. १०१४. ८९९८९ (+) चंदनमलयागिरी चौपाई, संपूर्ण वि. १८५८, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले. स्थल, भाणपुर, प्रले. .मु. रूपसागर (गुरु मु. तीर्थसागर); गुपि. मु. तीर्थसागर (गुरु मु. प्रसिद्धसागर); मु. प्रसिद्धसागर (गुरु पं. महिमासागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चंदनमलय०, संशोधित, जैदे. (२६.५४११.५, १२-१४X३०-४२). , चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. अजितचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: शांतिनाथश्री सोलमो; अंति: अजित कहई शिवराणी रे, खंड-४, गाथा- ११६५. ८९९९० (+#) सूयगडांगसूत्र- श्रुतस्कंध १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, आश्विन शुक्ल, ४, सोमवार, जीर्ण, पृ. ६३, ले.स्थल. राइपुरबिंदर, प्रले. पं. राजसुंदर गणि (गुरु पं. राजलाभ गणि); गुपि. पं. राजलाभ गणि; पठ. मु. नयणरंग (गुरु मु. क्षमाधीर); गुपि मु. क्षमाधीर (गुरु पं. राजसुंदर गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी सूगडांगटवार्य., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, ५X३८-४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउलेज्ज; अंति (-), प्रतिपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९९९१. अष्टान्हिका महोत्सव व नवकारप्रभाव कथा, संपूर्ण वि. १८८५, फाल्गुन कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. २१, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: अष्टानिका, अष्टा.महोछ, अष्टा. महोछव, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. प्र. ले. लो. (१३३६) कटि कुबरी कर बेगडी, जैदे., (२७१२, १४४०). १. पे नाम. अष्टान्हिका महोत्सव कथा, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान कथा, मा.गु., गद्य, आदि अज्ञानतिमिरांधानं अति: मष्टामहो व शुध सर्वहो. २. पे. नाम. नवकारप्रभाव कथा, पृ. ६आ-२१अ, संपूर्ण. (#) नमस्कार महामंत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं णमो अंतिः इहलोक परलोक साता पामस्यई. ) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७६, अन्य. आ. जिनहर्षसूरि (गुरु आ . जिनसुंदरसूरि, खरतरगच्छ); गुपि.आ. जिनसुंदरसूरि (गुरु आ . जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसागरसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनवर्धनसूरि (गुरु आ जिनराजसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. हुंडी संग्रह ०टी०. मूलपत्रांक- ४०९ से ४९४ है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२७४११.५, १७-२०४६८-७२) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७यू, आदि निडुविवअनुकम्म अति हि तहेव सुयदेवयाए य, गाथा-३५३. ८९९९३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि जयति नखरुचिरकांति०; अति सर्वेऽपि जिनवचनम्, 1 ग्रं. ५०००. ८९९९४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०२, प्र. वि. हुंडी : दस०ट०., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५x१२, ३-५x२६-३०). " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन- १०. दशवैकालिकसूत्र - बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि ध० धर्म म० मंगलिक उ० अति तीर्थंकरनूं परूप्यूं. ८९९९६ (+*) सूगडांगसूत्र, संपूर्ण श. १६९९, मध्यम, पृ. ५५, प्र. वि. हुंडी सूग० सूत्र, संशोधित कुल ग्रं. २२०० मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५x११.५, १३x४९-५३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउज्ञ; अंति विहरति नि बेमि, अध्याय- २३, ग्रं. २१००. ८९९९७ (*) न्यायसंग्रह सह बृहद्वृत्ति, संपूर्ण वि. १७१४ आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७५, कुल पे. २, ले. स्थल, राजनगर, प्र.वि. हुंडी:न्यायमंजूषा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३१५४, जैदे., ( २५X११, १५X४०-४६). १. पे. नाम. न्यायसंग्रह, पृ. १आ - ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. संबद्ध, ग. हेमहंस, से, गद्य, आदि ॐरूपाय नमः श्रीमद् अति: यानुरोधाद्वा सिद्धिः सूत्र- ८३, प्र. ६८. 3 २. पे. नाम. न्यायसंग्रह सह स्वोपज्ञ न्यायार्थमंजूषा बृहद्वृत्ति, पृ. ३आ-७५अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. न्यायसंग्रह, संबद्ध, ग. हेमहंस, सं., गद्य, आदि ॐ रूपाय नमः श्रीमद्, अंति यानुरोधाद्वा सिद्धि, सूत्र- ८४ नं. ६८. न्यायसंग्रह-स्वोपज्ञ न्यायार्थमंजूषा बृहद्वृत्ति, ग. हेमहंस, सं., गद्य वि. १५१५, आदि: त्रैलोक्याह्लादहेतु: अंति: जयताद् ग्रंथः सुधीवल्लभः, वक्षस्कार-४, ग्रं. ३०८५. ८९९९८. (+) आवश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६१०, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ६८, ले. स्थल. वटापिका, प्रले. आ. हेमरत्नसूरि; लिख. आ. श्रीकलश (गुरु आ. सोमकलशसूरि, जीराउलिवडगच्छ); गुपि. आ. सोमकलशसूरि (जीराउलिवडगच्छ); अन्य. आ. पद्मसुंदरसूरि मु. गुणप्रभ (गुरु आ. सोमकलशसूरि, जीराउलिवडगच्छ); पं. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. प्र. ले. श्लो. (६३६) यादृशं पुस्तके दृष्टा, जैदे., (२५x११.५, १५x५२). " श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय; अंति: तियागारेणं बोसिरामि For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .svar हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १०३ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंति: चउथइ पच्चखांण. ८९९९९ कविशिक्षा सह काव्यकल्पलतावत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदे., (२६.५४११, १७-२०४५०-७०). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: गुरुतापि रथोपमानैः, प्रतान-४. कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: विमृश्य वाङ्यं; अंति: सप्तपंचाशदत्तराः, ग्रं.३३५७. ९०००८. (+) जैनेंद्रव्याकरण की महावृत्ति, संपूर्ण, वि. १८९८, मध्यम, पृ. ५०१, प्रले. नेतराम (ब्राह्मण) (ब्राह्मण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३३.५४१८,११-१३४३८). जैनेंद्र व्याकरण-अभयनंदीवृत्ति, मु. अभयनंदी, सं., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: नान्येषां तथा चैवोदाहृतम्. ९००११. महापद्मपुराण की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३००, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडीः पद्म पु.भा. मूल का एकमात्र मांगलिक श्लोक ही है., दे., (३०.५४१८.७, ९-१४४१७-४९). पद्मपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, आदि: महावीर वंदौ सुबुद्धि; अंति: (-), (पू.वि. पर्व-३८ के प्रारंभिक अंश तक है.) ९००१४. (+) तत्त्वज्ञानतरंगिणी सह भावार्थ व विवेचन, संपूर्ण, वि. १९८४, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ७५, प्रले. हरगोविंद चौबे (ब्राह्मण) (ब्राह्मण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:त.त., संशोधित., दे., (३२.५४१७.५, ९-१२४४१-४९). तत्त्वज्ञानतरंगिणी, आ. ज्ञानभूषण, सं., पद्य, वि. २०वी, आदि: प्रणम्य शुद्धचिद्रप; अंति: स्तदेयं निर्मिताकृति, अध्याय-१८. तत्त्वज्ञानतरंगिणी-भावार्थ, हिं., गद्य, आदि: इस श्लोक में शुद्धचिद्रप; अंति: उसका चिंतवन करता है. तत्त्वज्ञानतरंगिणी-विवेचन, हिं., गद्य, आदि: निराकुलतारूपअनुपमआनं; अंति: का निर्माण किया गया. ९००२०पंचपरमेष्ठि पूजा, संपूर्ण, वि. १९२४, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. कालपी-मनीगंज, प्रले. लाला मातादीन; पठ. श्राव. तनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचपर., कुल ग्रं. ५२५, दे., (३७.७४१८.१, ११-१४४४३-५०). पंचपरमेष्ठि पूजा, जै.क. टेकचंद, हिं., पद्य, आदि: मनरंजन भंजनकरम पंचपर; अंति: पाचौ चरण पूजौ मंगल, पूजा-५. ९००२३. हरिवंशपुराण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (३५.२४१७, १३४४१-४९). हरिवंशपुराण, म. ब्रह्मजिनदास, सं., पद्य, आदि: सिद्धं संपूर्णभव्यार्थ; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-८, श्लोक-७४ तक है.) ९००२४. (#) भैरवपद्मावतीकल्प सह टीका, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६-१(१)=३५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३६४१६.९, १४-१६x४२-५२). भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: भैरव पद्मावती कल्पे, अध्याय-१०, श्लोक-४००. भैरवपद्मावती कल्प-टीका, मु. बंधुषेण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: व्या मंत्रकल्पः जयतु. ९००२९ (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, पौष शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ७७९+१(१९८)=७८०, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. मु. भूपविजय (गुरु उपा. ऋद्धिविजय, तपगच्छ); गुपि. उपा. ऋद्धिविजय (गुरु पंन्या. प्रमोदविजय, तपगच्छ); पंन्या. प्रमोदविजय (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय, तपगच्छ); पंन्या. मुक्तिविजय (गुरु पंन्या. भीमविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (७२३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (३२.५४११.५, ६४४८-५४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो बंभीए लिवीए; अंति: देव अविग्धं लिहंतस्स. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदि: श्रेयः श्रीसेवितांह; अंति: वा० मया मत्यणुसारतः. ९००७३. (+) सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका-विभक्ति से कृत्प्रक्रिया, संपूर्ण, वि. १८९९, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १७७, ले.स्थल. राहेण, प्रसं. जानकीदास मुरारीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सा.टी.च., संशोधित., जैदे., (३५४१७, १६x४४). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनभतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (-); अंति: पत्कजे चरणकमले यस्य स, ग्रं. ७५००, प्रतिपूर्ण. ९००८३. पुण्याश्रवकथाकोश सह भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १८२५, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २८८, ले.स्थल, गनेसगंज, प्रले. भागीरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुण्याश्रव०., जैदे., (३६४१८.५, १२४४०-४४). पुण्यास्रवकथाकोश, रामचंद्र मुमुक्ष, सं., गद्य, आदि: पुष्पोपजीवितनुजे वरबोधहीन; अंति: भक्त्या जिनपतेः, अध्याय-६, (वि. मात्र श्लोक दिया गया है.) पुण्यास्रवकथाकोश-भाषाटीका, क. दौलतराम पंडित, ब्र., प+ग., वि. १७७०, आदि: श्रीवीरजिनमानम्य; अंति: दिन ग्रंथ समापति लही. ९००८५ (+) प्रद्युम्न चरित्र सह भाषावचनिका, पूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २६६, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ले.स्थल. दिल्ली, प्र.वि. अंत में प्रत प्राप्ति संकेत का उल्लेख किया गया है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१८) मंगलं लेखकानां च, दे., (३१.५४२१.५, १६४३५). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३१, आदि: श्रीमंतं सन्मतिं; अंति: श्रीसर्वज्ञ प्रसादतः, सर्ग-१६, ग्रं. ४८५०, (संपूर्ण, वि. मात्र मंगलाचरण व प्रशस्ति है.) प्रद्युम्न चरित्र-भाषावचनिका, श्राव. ज्वालानाथ खंडेलवाल पंडित; श्राव. वखतावरसिंह पंडित, पुहिं., गद्य, वि. १९१६, आदिः (१)प्रणम्य भारती देवी, (२)प्रथम श्रीसन्मति जो; अंति: (१)प्रथ्वी पर जयवंत प्रवर्ती, (२)धर्मानुराग कर पहुंचे, संपूर्ण. ९००८६. (#) रत्नकरंडश्रावकाचार व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रावण कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ३८९, कुल पे. २, प्रले. रामदयाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (८६७) जला रक्षे तला रक्षे, (१३२६) भग्नि दृष्टि कटि ग्रीवा, दे., (२८.५४२०, १५४३०-३५). १.पे. नाम. रत्नकरंडश्रावकाचार सह भाषावचनिका, पृ. १आ-३८९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रत्नकरंड०. रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दृष्टिलक्ष्मीः , परिच्छेद-७, श्लोक-१५०. रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, ब्र., प+ग., वि. १९२८, आदिः (१)इहां इस ग्रंथ की आदि, (२)श्रीवर्द्धमानतीर्थंक; अंति: (१)स्वरूपक उज्जल करौ, (२)शास्त्रजुरत्नकरंड. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३८९आ, संपूर्ण.. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने; अंति: दरसतौ मोकू अव चहीये, गाथा-४. ९००८९ विद्यानुशासन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, दे., (२८x२०.५, १५-१७४२९-३४). आर्षविद्यानुशासन, सं., गद्य, आदि: मंत्रस्येहयमाहुराद्यवयव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अकारादि वर्णफल अपूर्ण तक लिखा है.) ९००९०.१४ गुणस्थानक जीवसमासादि जीवाल्पबहत्व संदृष्टि रचना यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदे., (२९४२०, ६४३२-३६). १४ गुणस्थानक जीवसमासादि जीवाल्पबहुत्व संदृष्टि रचना यंत्र संग्रह, पुहि., यं., आदि: रचना जिनकी करिए है; अंति: ऐसी संदृष्टि जाननी. ९००९१. आत्मानुशासन सह भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १९०७, आश्विन कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९३, ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. हुंडी:आत्मानु०., दे., (२७.५४१९.५, १६४४०-४४). आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: लक्ष्मी निवास निलयं; अंति: कृतिरात्मानुशासनं, श्लोक-२७१. आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहि., गद्य, आदि: (१)श्रीजिनशासन गुरु नमौ, (२)मैं जु हौं शास्त्र; अंति: कमल तुल्य भासे For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १०५ ९००९२. आर्षविद्यानुशासन, पार्थाष्टक व पद्मावती मंत्रानुष्ठानादि विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:विद्यानुष्ठान. वस्तुतः पत्रांक का यथाक्रम उल्लेख न होने से पत्र गिनकर दिया गया है. पाठानुसंधान रहित. कुछेक पत्र आधे-अधूरे लिखे हुए है., कुल ग्रं.०, दे., (२९४२१, ११-१७४२०-३१). १.पे. नाम, आर्षविद्यानुशासन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. वस्तुतः बीच के पत्र है तथा पाठानुसंधान रहित है.) २.पे. नाम. पार्थाष्टक सह वृत्ति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित, म. इंद्रनंदि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्नागेंद्ररुद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथमानम्य धरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. यंत्र सहित.) ३. पे. नाम. पार्श्वपद्मावती मंत्रोद्धार संग्रह, पृ. ५अ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः पाठानुसंधान क्रमश नहीं है तथा छोड़-छोड़कर लिखा हुआ है. पद्मावती कल्प, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अस्तव्यस्त पत्र व पाठानुसंधान रहित. भैरवपद्मावती कल्प ___ मल्लिषेण रचित होने की संभावना प्रतीत होती है.) ९००९८. ५ ज्ञानादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-४(१ से ४)=२४, प्र.वि. कुल ग्रं. १०००, जैदे., (२६४१९, १५४२४). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: उपराठा सतर असंयम जाणिवा, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ५ ज्ञाननाम से है.) ९०१०३. आदिपुराण-पर्व ४२ श्लोक-९९ से पर्व-४७ की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९१७, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११९, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि; अन्य. आ. रत्नभूषणसूरि (गुरु आ. सुमतिकीर्तिसूरि, सरस्वतीगच्छ); महीपाल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदिपु० भाग-२ में से यह दूसरा भाग होना चाहिये., प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (१३४८) जब लग मेरु अडिग्ग है, दे., (२५४१९.५, १८४३१-३३). महापुराण-भाषाटीका, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंतिः सांति कै अर्थि होहु, प्रतिपूर्ण. ९०१०४. पद्मपुराण की भाषावचनिका टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, आषाढ़ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७६, प्रले. बजरंगलाल जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पद्म भा., दे., (३६४२४, १७४४०-४६). पद्मपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, आदि: महावीर वंदौ सुबुद्धि; अंति: करौ वढो धर्म जिनराय. ९०१०७. (+#) हस्तसंजीवन सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:हस्तसंजीनप०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३८x२२, १०-१२४२४-२८). हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीशंखेश्वरं पार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अधिकार-३, श्लोक-३२ अपूर्ण तक लिखा है.) हस्तसंजीवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: अंगविद्याया मुखत्वं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९०१०८ (+) पार्श्वदासविलास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४, प्र.वि. हुंडी:पार०वि०. पत्र-१अ पर अनुक्रमणिका दी है., संशोधित., दे., (३५.५४२१, १५-१७४४०-५०). पार्श्वदास विलास, श्राव. पार्श्वदास, पुहिं., पद्य, वि. १९२०, आदि: वृषभ आदि सन्मति चरम; अंति: पार्श्वविलास असेस. ९०११८. (+#) श्रीपाल रास सह टबार्थ व बालावबोध, पूर्ण, वि. १८९७, भाद्रपद शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ८८-१(१)+१(३४)-८८, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपालरा०., त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ७८२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१८, १५-१७४२८-३४). For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: मणिमय झाकझमालाजी, खंड-४, गाथा-१८७०, संपूर्ण. श्रीपाल रास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिगुणसुंदरी चौसठकला; अंति: छांडी मुक्ति पामे, (संपूर्ण, वि. प्रसंगोचित बालावबोध है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: चंग कहेता मनोहर रण; अंति: शास्त्रनो रस पीवो, (संपूर्ण, वि. प्रसंगोचित टबार्थ है.) ९०१२१ वर्षप्रबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, अन्य. आशाभाई चतुरभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (३१४१७, १०-१५४४२-४८). वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७३२, आदिः श्रीतीर्थनाथवृषभं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'मेघानां फलमीदृशं' तक का पाठ है.) ९०१२२ (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९३७, फाल्गुन शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.८६-५१(१ से ४,६ से १०,१३ से १४,१६ से २३,२५ से २८,३० से ३२,३४ से ४१,४४ से ४८,५० से ५१,५३,५५ से ५७,६०,६३,६५ से ६६,७२ से ७३)=३५, ले.स्थल. कालाउना, प्रले.मु. इंद्रचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:श्रीपालराश. अंत में ३२ आगमों के नाम लिखे है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ७८२०, दे., (२९.५४१८.५, ६-१६४३५-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: मणिमय झाकझमालाजी, खंड-४, गाथा-१८३३, (पू.वि. खंड-१, ढाल-२, गाथा-१३ अपूर्ण से है व बीच बीच के पाठांश नहीं श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शास्त्रनो रस पीवो, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है व प्रसंगोचित टबार्थ दिया है.) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: तेहने नमसकार छई, (प.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है व प्रसंगोचित बालावबोध दिया है.) ९०१३६. ज्ञानार्णव सह वचनिका टीका, संपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. २३८, प्रले. श्राव. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ज्ञानार्णव., जैदे., (२९४२०, १८४३८). ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेषप्रभव; अंति: ज्ञानं व्यवस्थितम्, सर्ग-४२, श्लोक-२०७७. ज्ञानार्णव- पद्यानुवाद, श्राव. जयचंद्रजी दिगंबर, पुहि., पद्य, वि. १८१७, आदि: करम घातिया नाश करि क; अंति: जयचंद शिवमग लेह, प्रकरण-३९. ९०१३७. (+) चरचाशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४०-१९४१, श्रेष्ठ, पृ. १०३-२(८४,१०१)=१०१, प्रले. उछैवलाल; लिख. पंडित. पन्नालाल सोनी (ओसवाल) (ओसवाल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः चरचा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९४२०, ३-६४२६-२८). चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जै सर्वज्ञ अलोक लोक; अंति: जीवभाव हम सरदहा, दोहा-१०४, (वि. १९४०, श्रावण शुक्ल, ७, शुक्रवार, पू.वि. दोहा-८६ प्रारंभिक अपूर्ण पाठ व दोहा-१०३ अपूर्ण पाठ है.) चर्चाशतक-बालावबोध, श्राव. हरजीमल, पुहि., गद्य, आदि: जै कहिये जैवंते; अंति: के जानने वास्ते है, (वि. १९४१, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, वि. कृति टबार्थ शैली में लिखी है.) ९०१४३. (+#) पद्मपुराण की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३७४१७, १५४५८). पद्मपुराण-पद्यानुवाद, श्राव. खुशालचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: पंचकल्याण नाईक; अंति: प्रांत सुपूरण ठानि, दोहा-६००. ९०१८४ (+) पार्श्वनाथपुराण भाषा, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, प्र.वि. हुंडी:पार्श्व.पू., संशोधित., जैदे., (३३४१५.८, १३४४०). For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १०७ पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: मोह महातम दलन दिन,; अंति: ग्रंथ समापित कीय, अध्याय-९. ९०१८७. (4) दशलक्षण विधान पूजा, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. टोंक, प्रले. मगनीराम ब्यास (पिता बालकिसन व्यास),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दस.पू., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३७४१४.५, १३४३६). दशलक्षण विधान, जै.क. टेकचंद, पहिं.,सं., प+ग., आदि: नेमीनाथो देतो साथो; अंति: (१)मोकं भवसागरते तारो, (२)मगन सवविध कर चित भाय, पूजा-१०. ९०१९० (#) वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१६.५, १८४४३). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१३१. ९०१९१. रत्नकरंडकश्रावकाचार सह भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६१६-२९(१ से २७,५४३ से ५४४)=५८७, दे., (२५४१८, ७-१२४३१-३२). रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दृष्टिलक्ष्मीः , परिच्छेद-७, श्लोक-१५०, (पू.वि. गाथा-१० की भाषावचनिका अपूर्ण से है.) रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, ब्र., प+ग., वि. १९२८, आदिः (-); अंति: शास्त्रजुरत्नकरंड. ९०२१७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, वैशाख कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७६, प्रले. श्राव. सारंगधर (गुरु श्राव. मनोहर); गुपि. श्राव. मनोहर; पठ. श्रावि. हरषा शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२९.५४१७.५, ८४४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: नायाधम्मकहाओ समत्तो, अध्ययन-१९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार श्रीमहावीरने; अंति: धर्मकथा संपूर्ण थइ. ९०२२४ (+#) राम चरित्र, संपूर्ण, वि. १५२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, रविवार, जीर्ण, पृ. ५३१, प्रले. मु. ब्रह्मगंगदास (गुरु मु. जयनंदी); गुपि. मु. जयनंदी (गुरु आ. अमरकिर्ति); आ. अमरकिर्ति; पठ. मु. विजयकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. ज्ञानभूषण, मूलसंघ); गुपि. आ. ज्ञानभूषण (गुरु आ. भुवनकीर्ति, मूलसंघ); आ. भुवनकीर्ति (गुरु आ. सकलकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); आ. सकलकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. पद्मनंदि, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. पद्मनंदि (सरस्वतीगच्छ); अन्य. श्राव. कुंभा शाह; श्रावि. देहल; श्राव. आंबा शाह (पिता श्राव. कुंभा शाह); श्रावि. कीकी आंबा शाह; श्राव. घडसी शाह (पिता श्राव. आंबा शाह); श्रावि. चंपू घडसी शाह (पति श्राव. घडसी शाह); राज्यकालरा. उदयसिंह रावल, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:रामा.नूतन., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३३.५४१४.५, १३४३९-४५). राम चरित्र, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., पद्य, आदि: सिद्धं संपूर्ण भव्या; अंति: भव्य सज्जन वत्सलाः, सर्ग-८३. ९०२७१ (+) हरिवंशपुराण की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९४-५०(११ से ६०)=४४, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हरीवंसपु., संशोधित., दे., (३३४१६, १०-१३४३३-३६). हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: (१)महावीर वंदौ जिनदेव, (२)महावीरमहं वंदे सक्र; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच तथा अन्त के पाठांश नहीं हैं.) ९०२८३. दानकथा भाषा, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. ईदोर, प्रले. श्राव. चिमनलाल खंडेलवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दानकथा., दे., (३३४१७, १३४३३-३४). दानकथा भाषा, मु. भारामल, पुहि., पद्य, आदि: देव नमो अरिहंत सदा अरु; अंति: भारामल० महासुख होई, गाथा-४७५. ९०३३८ (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, आवश्यकनियुक्ति व स्तोत्रप्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९१-२३(२७ से ३७,४३ से ४४,५४ से ६२,१२४)=१६८, कुल पे. ७२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१३.५, १७४५५-६३). १.पे. नाम, पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अति करि सकद न सकूं इत्यादि. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण. जयतिहु अण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयण वरकप्प; अंतिः सिरिअभयदेउ विन्नवइ अदिउ, गाथा- ३०. ३. पे. नाम. सप्त स्मरण, पृ. ६ आ९आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्वभयं अंतिः नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण- ७. ४. पे नाम. गृहप्रतिमा स्नात्रपूजा, पृ. ९आ. १०आ, संपूर्ण प्रा.,सं., प+ग., आदि: स्नपनपीठं प्रक्षाल्य चंदन; अंति: मंत्रध्वनिसुरखरत्ने. ५. पे. नाम. प्रश्नोत्तर रत्नमालिका, पृ. १०आ, संपूर्ण प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि कः खलुनालक्रियते युक्ताः अति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२८. ६. पे. नाम. धर्मलक्षण प्रकरण, पृ. १० आ-११अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है... धर्मलक्षण, सं., पद्य, आदि धर्मार्थं क्लिश्यते, अंति: गच्छंति परमांगति, (वि श्लोक संख्या नहीं लिखा है.) ७. पे. नाम साधर्मिक वात्सल्य कुलक, पू. ११-१९आ, संपूर्ण. साधर्मिक वात्सल्य कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिकण जिणं पासं; अंति: कयपुन्ना जे महासत्ता, गाथा - २६. ८. पे नाम प्रव्रज्या विधान पू. ११आ-१२अ संपूर्ण प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसावर भवजल, अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाधा - ३४. ९. पे. नाम. पुण्य कुलक, पू. १२अ संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि संपन्न इंदियत्तं अंतिः ते सासयं सुक्खं गाथा १०. १०. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. १२अ २०आ, संपूर्ण. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो, अंतिः पंचसया चेव चालीसा, गाथा-५४१. ११. पे. नाम. योगशास्त्र, पृ. २१अ - २६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. श्लोक- ९६ अपूर्ण तक है.) १३वी आदि नमो दुर्वाररागादिवैर अति (-), (पू.वि. प्रकाश-४ के , १२. पे. नाम. श्रमण सूत्र, पृ. ३८अ -३८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति : (१) वंदामि जिणे चउवीसं, (२) नित्थारपारगा होह, (पू.वि. पडिक्कमामि पंचहिं महत्वएहि पाठ से है. वि. चार खामणा सहित ) १३. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ३८-४२आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.. १४. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण, पृ. ४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि देविंदविदवंदिय पवार, अंति: (-), (पू.वि. गाधा २२ अपूर्ण तक है.) १५. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह टीका, पृ. ४५-५३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा-१०३, (पू.वि. गाथा-९ से है.) पिंडविशुद्धि प्रकरण- दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य वि. १२९५, आदि (-); अति तु इति गाधार्थः. For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १०९ १६. पे. नाम. बृहत्क्षेत्रसमास, पृ. ५३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १७. पे. नाम. संग्रहणी प्रकरण, पृ. ६३अ-७०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: (-); अंति: हिं तहेव सुयदेवयाए य, गाथा-५२२, (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.) १८. पे. नाम, आदिनाथ चरित्र, पृ. ७०आ-७१अ, संपूर्ण. ___ नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणमुसभमुभयं; अंति: देहि मयं नेहि परमपयं, गाथा-२५. १९. पे. नाम, शांतिनाथ चरित्र, पृ. ७१अ-७१आ, संपूर्ण. शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अपडिहय धम्मचक्केण; अंति: गय जिणवल्लहपयं देसु, गाथा-३३. २०. पे. नाम. नेमिनाथ चरित्र, पृ. ७१आ, संपूर्ण. नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयनाहि सरिस विलसि देहपहा; अंति: जिणवल्लह पत्त कुणसु सिवं, गाथा-१५. २१. पे. नाम. पार्श्वनाथ चरित्र, पृ. ७१आ-७२अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि; अंति: सिवसुक्ख पत्त जय, गाथा-१५. २२. पे. नाम. महावीर चरित्र, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: रियरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. २३. पे. नाम, चंद्रप्रभस्वामि चरित्र, पृ. ७२आ-७३आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चरियं भणिमो चंदप्पहस्स; अंति: नयरी रज्जं सुसज्जं मम, गाथा-४०. २४. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वंदिय नंदियलोअं; अंति: बत्तीसं सोलसय वंदे, गाथा-२५. २५. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तोत्र, पृ. ७४अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्म नमिऊण जिणे; अंति: लहं पयं देसु पणयाणं, गाथा-२६. २६. पे. नाम, कर्म स्तव, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण.. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे तिह; अंति: दंसणसुद्धिं समाहिं च, गाथा-५७. २७. पे. नाम. कर्म विपाक, पृ. ७५अ-७८अ, संपूर्ण. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंक वीरं; अंति: कम्मविवागंतु सो अयरा, गाथा-१६८. २८.पे. नाम. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ का भाष्य, पृ. ७८अ, संपूर्ण. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-भाष्य प्रथम, प्रा., पद्य, आदि: सत्तर सुत्तरमेगुत्तरं च; अंति: नियट्टि सुहमोवसंतेसु, गाथा-२२. २९. पे. नाम, बंधस्सामित्त पगरण, पृ. ७८अ-७९अ, संपूर्ण.. बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं० वोच; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-५२. ३०. पे. नाम. सयग पगरण, पृ.७९अ-८१अ, संपूर्ण. शतक प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरहते भगवंते अणुत्त; अंति: सो नाही बंधमोक्खटुं, गाथा-१११. ३१. पे. नाम, सप्ततिका सूत्र, पृ. ८१अ-८२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहत्तर० एगूणा होइ उईए, गाथा-९३. ३२. पे. नाम. आगमवस्तुविचारसार प्रकरण, पृ. ८२आ-८४अ, संपूर्ण. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८६. ३३. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण, पृ. ८४अ-८६आ, संपूर्ण. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सयलंतरारि वीरं वंदिय; अंति: विवोहितु सो हिंतु, गाथा-१५४. ३४. पे. नाम. गणधरसार्धशतक, पृ. ८६आ-८९अ, संपूर्ण. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा-१५०. ३५. पे. नाम, संदेहदोलावली प्रकरण, पृ. ८९अ-९१आ, संपूर्ण. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिबिंबिय पणय जयं; अंति: जिणवल्लहसूरिसीसेण, गाथा-१५०. ३६. पे. नाम. ज्ञान स्तोत्र, पृ. ९१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावीसवियप्पं मइना; अंति: ते नरा निव्वुइमुवंति, गाथा-६. ३७. पे. नाम. सीमंधरसामि स्तवन, पृ. ९२अ-९२आ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुर असुर नरवंदि; अंति: भवमे बोधबीजह दायिको, गाथा-२१. ३८. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ९२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, अप., पद्य, आदि: सलूणउसुसोहामणउ श्रीजिणिंद; अंति: विजयवंता तुम्ह पाय सेवउ, गाथा-१७. ३९. पे. नाम. शांतिनाथ विज्ञप्तिका, पृ. ९२आ-९३अ, संपूर्ण. शांतिजिन विज्ञप्तिका, अप., पद्य, आदि: अति आणंद नमेवि संतिकरण; अंति: भूवि भवि मंदइ संतिजिण, गाथा-२५. ४०. पे. नाम, सर्वजिन स्तोत्र, पृ. ९३अ-९३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुख संमुखं नयणले देव दीठउ; अंति: आ भवं देहि मे वोधिबीजं, गाथा-१३. ४१. पे. नाम. शेजय प्रवाडी, पृ. ९३आ-९४अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, ग. सोमप्रभ गणि, अप., पद्य, आदि: सामिय रिसह पसाउ करि जिम; अंति: जात्रफलो ते निश्चइ पावंति, गाथा-२९. ४२. पे. नाम, जीरापल्लि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंदकल्याणवल्ली; अंति: जीराउलउ रंगि गायिउ, गाथा-११. ४३. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तवन, प. ९४अ-९४आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, आदि: भत्ति सरोवरु ऊलटिउ जागिय; अंति: मेरुनंदणि० मणि सुह फलकार, गाथा-२५. ४४. पे. नाम. नेमिनाथ वीनती, पृ. ९४आ-९५अ, संपूर्ण. नेमिजिन वीनती, मा.गु., पद्य, आदि: हरखु माइ नही हियडय किमइ; अंति: देव देजे निज पाय वासु, गाथा-११. ४५. पे. नाम. शेत्रंज चैत्यपरिपाटी, पृ. ९५अ-९५आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि सरसति हंसला गामिणि; अंति: जात्रा निमलफल लहंते, गाथा-२५. ४६. पे. नाम. वीतराग स्तवन, पृ. ९५आ, संपूर्ण. वीतराग विनती, मा.गु., पद्य, आदि: वीतराग तुम्ह पाय; अंति: भवि भवांतरि देजि बुद्धि, गाथा-१२. ४७. पे. नाम. आदिनाथ वीनती, पृ. ९५आ-९६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.ग., पद्य, आदि: नाभि निरंद मल्हार मरदेवि; अंति: देव अवर न काई वंच्छीयए, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४८. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. ९६अ-९६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: बालत्तणमि सामिय; अंति: पुणोवि जिणसासणे बोही, गाथा-१९. ४९. पे. नाम, चतुर्विंशतिजिन जन्मभूमि स्तोत्र, पृ. ९६आ-९७अ, संपूर्ण. २४ जिन जन्मभूमि स्तोत्र, ग. राजशेखर, प्रा., पद्य, आदि: चउवीस उसभाई तित्थयरे वंदि; अंति: रायसेहर० संघस्स कल्लाणं, गाथा-२५. ५०. पे. नाम. पार्श्वनाथ विज्ञप्तिका, पृ. ९७अ-९७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-स्थंभन, प्रा., पद्य, आदि: सुरनर किंनरपणयां कमठासुर; अंति: इच्छिय फलसिद्धि कामेणं, गाथा-२२. ५१.पे. नाम. जीराउला पार्श्वनाथ वीनती, पृ. ९७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन वीनती-जीराउला, मा.गु., पद्य, आदि: सुहावणा सामलधार देव मइ आज; अंति: माथइ बहूउत्त जिम आण साची, गाथा-८. ५२. पे. नाम. शत्रुजयमंडन आदिनाथ विज्ञप्तिका, पृ. ९७आ-९८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.ग., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव; अंति: देव सासण विजयतिलउ निरंजणो, गाथा-२१. ५३. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ९८अ-९८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण चलणजुअलं पास; अंति: कुण सुता सिद्धिं, गाथा-१५. ५४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ९८आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: निम्मल गुण रयणावलि रोहणा; अंति: गुणमणि सायर नियपय सायरसेव, गाथा-७. ५५. पे. नाम. नंदीसर चउपई, पृ. ९८आ-९९अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरवरदीप मझारी सासता; अंति: देव अनवि सासय नमओ सवेवि, गाथा-११. ५६. पे. नाम. आदिनाथ वीनती, पृ. ९९अ-९९आ, संपूर्ण. आदिजिन वीनती-शजयमंडन, आ. जिनराजसूरि, अप., पद्य, आदि: महातित्थ सेत्तुंजए तुंग; अंति: करसु सहलं बिनंति सेयंमहो, गाथा-२५. ५७. पे. नाम. धर्मरहस वीनती, पृ. ९९आ, संपूर्ण. धर्मरहस्य वीनती, ग. नेमितिलक, अप., पद्य, आदि: वद्धमाण पयकमल नमेमि पभणह; अंति: नेमितिलक० धर्मरह जे भणइ, गाथा-१६. ५८. पे. नाम, भवभावना प्रकरण, पृ. १००अ-१०९अ, संपूर्ण. भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण नमिरसुरवर मणि; अंति: वलीइ कीरउ अलंकारो, गाथा-५३२. ५९. पे. नाम, धर्मोपदेशमाला प्रकरण, पृ. १०९अ-१११अ, संपूर्ण. धर्मोपदेशमाला, आ. जयसिंहसूरि, प्रा., पद्य, वि. ९१५, आदि: सिज्झउ मज्झवि सुयदेव; अंति: अपरलो असुहावहं धम्मं, गाथा-१०४. ६०. पे. नाम. दानोपदेशमाला प्रकरण, पृ. १११अ-११३अ, संपूर्ण. दानोपदेशमाला, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सयल समीहिअ करणं रिसहजिणं; अंति: दिवायरेण० नंदउ जाव ससिसूर, गाथा-१०७. ६१. पे. नाम. शीलोपदेशमाला प्रकरण, पृ. ११३अ-११५अ, संपूर्ण. शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारि नेमि; अंति: जयवल्लहा० बोहि फलं, गाथा-११६. ६२. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. ११५अ-१२३आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८० अपूर्ण तक है.) ६३. पे. नाम, उपदेश रत्नकोश, पृ. १२५अ, पूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पउमजिणेसरसूरि उवएसमालमिलं, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६४. पे. नाम. लघु संग्रहणी, पृ. १२५अ-१३०आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७७. ६५. पे. नाम, चउगति चउपई, पृ. १३०आ-१३२आ, संपूर्ण. चतुर्गति चौपाई, जै.क. वस्तिग, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सेतुज वंदिअ तीरथराउ; अंति: वस्तिगु लागइ संघह पाई, गाथा-९५. ६६.पे. नाम. षष्ठिशत, पृ. १३२आ-१३५आ, संपूर्ण. षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: नेमिचंद० जंतु सिवं, गाथा-१६१. ६७. पे. नाम, चारित्रमनोरथमाला, पृ. १३५आ-१३६आ, संपूर्ण. आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: केसिं च स उन्नाणं; अंति: भावं पावंति परमपयं, गाथा-३०. ६८. पे. नाम. प्रज्ञापनाघपदगतो वनस्पति विचार, पृ. १३६आ-१३७आ, संपूर्ण. वनस्पतिसप्ततिका, आ. मनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइए जिणिंदे पत्ते; अंति: सिरिमं मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७६. ६९. पे. नाम, कर्मविपाक सूत्र, पृ. १३७आ-१३९अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. ७०. पे. नाम. धर्म लक्षण, पृ. १३९अ-१३९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. धर्मलक्षण, सं., पद्य, आदि: धर्मार्थं क्लिश्यते; अंति: नियमतादंडसंतिदंडीनिगघतम्, (वि. श्लोक संख्या नहीं लिखा है.) ७१. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १४०अ-१४१अ, संपूर्ण.. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ७२. पे. नाम, आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व भाष्य, पृ. १४१अ-१९१आ, संपूर्ण, पे.वि. कायोत्सर्ग ध्यान को विशेष स्पस्टीकरण के लिए जिनभद्रगणि कृत ध्यानशतक पत्रांक १७३असे १७५अ तक लिखा है. आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-निर्यक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: असुद्धोवातोतम्हाविहपमाणं. ९०३४४. योगचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४७, ले.स्थल. सीकरनगर, प्रले. भूरमल ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुडी: यो.चिं., दे., (३३४१५,१२-१३४३६-३९). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (१)यत्र वित्रासमायांति, (२)सिद्धौषधानि पथ्यानि; अंति: (१)गंधमाघ्राय गच्छति, (२)हर्ष० नामष्टोध्यायः, अध्याय-८. ९०३४५. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १२३, प्र.वि. हंडी:यो चि०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३३४१५, ७-९४३८-४२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वैत्राससमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम, अध्याय-७, (वि. १९०३, पौष शुक्ल, ८, शुक्रवार, प्रले. गोविंददास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ) योगचिंतामणि-टबार्थ, पं. नरसिंह मनि, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: सातमो मिश्रकाध्याय, (वि. १९०६, आश्विन शुक्ल, ११, ले.स्थल. वलभीनगर, पठ. गोविंदराम (गौडब्राह्मण) (गौडब्राह्मण), प्र.ले.प. सामान्य) For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ११३ ९०३६६. (+) वृषभनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०५, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १७९, ले.स्थल. सवाईजयपुरनगर, प्रले. मु. नेणसागर; पठ.पं. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आदिपु.ल., संशोधित., जैदे., (३१४१५, १२४३९). ऋषभजिन चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं त्रिजगन्नाथ; अंतिः स्युः लोकपंडिताबुधैः, सर्ग-२०, ग्रं. ४६२५. ९०३६७. (#) औपपातिकसूत्र सह वत्ति, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३२, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी: औपपातिकम., त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८.५४१५.५, १५४३५). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००, संपूर्ण. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)अथौपपातिकमिति कः; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) ९०३८७. (+) रामविनोद व नाडीपरीक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी: रा.वि., संशोधित., जैदे., (३१४१५, १४४५३). १.पे. नाम. रामविनोद, पृ. १आ-५६आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: जा लगि मेरु दिणंद, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ४३६७. २. पे. नाम. नाडीपरीक्षा, पृ. ५६आ-५७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रामविनोद-हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुभमिति सरसति समरियै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण तक लिखा है.) ९०४३३. (+) सारस्वतव्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-३(१ से ३)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चं.कृ. पत्रानुक्रम कहीं-कहीं न लिखे जाने से पत्र अव्यवस्थित है., संशोधित., जैदे., (३४४१६, ९४२३-३०). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'शतृशानौति" सूत्र से ___ "पौनःपुण्ये णम् पदं' पाठ तक है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-). ९०४५३. (+) रघुवंश-सर्ग ३-४ सह विशेषार्थबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: रघुवंश. प्रतिलेखकने पत्रांक नं.१ के बाद भूल से नं.१९ से लिखा हैं, अस्तव्यस्त पत्र, जो सुधारकर पेन से लिखा गया हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३४४१६, ३-५४३१-५०). रघवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. सर्ग-४ के श्लोक-२ तक है.) रघवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९०५०४. (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १७८५, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९३, प्रले. ईसर अजमेरी पं.; लिख. आ. कनककीर्ति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूत्रां.टी०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५४१४, ११४३४). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: गाहनांतरसंख्या० साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवत्ति की भाषाटीका, म. कनककीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: अहं उमास्वामिमुनीश्वरः; ___ अंति: सिद्धांत थे समझि लीज्यो... ९०५५२. (+) पद्मानंद महाकाव्य, संपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १५६, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्र.वि. हुंडी:पद्मानंद पु., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३१x१६, १५४४७). पद्मानंद महाकाव्य, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्ह नौमि; अंति: गुणस्थानात् त्रयोदशात्, सर्ग-१९, श्लोक-६३९१, (वि. सर्ग-१९ की प्रशस्ति नहीं है व अंत मे परिशिष्ट संलग्न है.) ९०५५७. (+) पंडरीकाचल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. हुंडी: पुंडरीकाचल., संशोधित., दे., (३१.५४१६, ५४२६). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, ग. कनकरुचि, सं., पद्य, आदि: श्रीपुंडरीकाचल हस्ति; अंति: स्यात्सदा शर्मदाता, श्लोक-२१. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११४ ५x२३-२७). www.kobatirth.org ९०६२०. अध्यात्मविदुद्वात्रिंशिका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. प्र. वि. हुंडी: अध्यात्मविंदु.., जैदे. (३१.५४१५.५ " , अध्यात्मविदुद्वात्रिंशिका, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदि ब्रूमः किमध्यात्ममहत; अति चिरात् शुद्धबुद्धस्वरूपः, द्वात्रिंशिका ४, श्लोक-१३२. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . जै.., ९०७७०. क्षेत्रपाल पूजा, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी : क्षेत्र. पूजा., (३३.५X१४.५, १२X४०-४२). क्षेत्रपाल पूजा, सं., प+ग, आदि श्रीरां विश्वहितं; अति तत् समं रक्षितं मम, ९०७९४. प्रश्नोत्तरोपासकाचार भाषा, संपूर्ण, वि. १९०५ वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ९१ ले. स्थल, मकसूदावाद, प्रलेय. जोति जती अन्य. मु. अखयराज (बृहत् अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: प्रश्नो श्राव दे. (३५.५५१४. १३४३९-४७). " आवकाचार प्रश्नोत्तर, आव. बुलाकीदास, पुहिं., पद्य, आदि सिद्धं संपूर्ण भव्या; अति जगत मै भव्यन की आधार, अधिकार- २४, गाथा - २२५९. ९०७९६. (+) मिध्यात्वखंडन नाटक, संपूर्ण, वि. १८२९, मध्यम, पृ. ७३+१ (६७) = ७४, प्र. वि. हुंडी: मिथ्यातखं संशोधित, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (३४४१४, १०x४१). " मिध्यात्वखंडन नाटक, मु. वखतराम, पुहिं, पद्य, वि. १८२१, आदि प्रथम सुमिरि अरिहंत अति वखतराम० जतनसौं राखि गाथा - १४२९. , ! י ९०८०५ (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र व विपाकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८२, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (३४.५४१३.५, १७५२-७०). १. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, पृ. १आ-६८अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: प्रश्नव्याक०वृ०. प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: जंबू तेणं कालेणं तेण अंतिः भविस्सत्ती तिबेमि, अध्याय- १०, " गाथा - १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १२वी आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: समाप्तानीति ब्रवीमीति, अध्याय- १०, ग्रं. ४६३०. २. पे. नाम. विपाकसूत्र श्रुतस्कंध २, अध्ययन १ सह टीका, पृ. ६८ अ-८२अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : विपा०वृ०. विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि तेणं कालेणं तेणं अंति: (-), प्रतिपूर्ण विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ९०८१२. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, प्रले. लक्ष्मीधर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : विपा. सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. १३१६, जैदे., (३४.५X१३.५, २१x६५-८५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध २, ग्रं. १३१६, (वि. अध्ययन २० ) For Private and Personal Use Only ९०८१४. (+#) चउसरणादि पयन्ना संग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१ (१) = १७, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्र अव्यवस्थित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (३३.५१३, १७५७-६०). १. पे. नाम. चउसरण पयन्ना, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा ६३, (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आउरपच्चक्खाण पयन्ना, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. प+ग, वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ अंतिः खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा- ७१. ३. पे. नाम. महापच्चक्खाण पयन्ना, पृ. ५अ-१२अ, संपूर्ण. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा. पद्य, आदि: एस करेमि पणामं तित्थ: अंति: ज अहवा वि सिज्झेज्जा, गाथा- १४२. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ४. पे नाम, भत्तपरिन्ना पयन्ना, पृ. १२अ १३आ, संपूर्ण भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण महाइसयं महाणु; अति सुक्खं लहइ मुक्खं गाथा- १७२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. तंदुलवेयालिय पयन्ना, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. तंवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदि निज्जरिय जरामरणं अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. ९०८१५. (+) ऋषभपंचाशिका, इरियावही विचार व कथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५ - २ (५, ९)=१३, कुल पे. १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३५X१३.५, २२-२५x७२-७८). १. पे. नाम ऋषभपंचापिका की अवचूरि. पू. १३- ३आ, संपूर्ण. ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जगजंतुकल्पपादप श्रीआदिनाथ; अंति: प्रदीपित कर्मेधने.. २. पे. नाम. इरियावही विचार, पू. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अदार लक्ष बाणू सहस्र मालव; अंति: (-). ४. पे. नाम. शय्यादाने पद्माकर कथा, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पद्माकर कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भवांते मोक्षो भविस्यति. ५. पे. नाम. आसनदाने करिराज कथा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. करेराज कथा, सं., गद्य, आदि मंगलपुरे राजा पृथ्वी अति: मुक्ति वास्यति, .पे. नाम कनकरथराजा कथा सुपात्रदानविषये, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. प्रा., सं., गद्य, आदि : आहारविरहिआणं सिझासण; अंति: भवांते मोक्षप्राप्तिः. ७. पे. नाम. धन्यपुण्यकर्मकर कथानक पानाहारे, पृ. ७अ संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: कांत्यानगर्यां अंति: प्रपद्य स्वगृहं गतौ. ८. पे. नाम. भेषजदाने रेवती कथा, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, रेवतीसती कथा- भेषजदाने, प्रा. सं., गद्य, आदि भेसज्जं पुण विंतो अंतिः श्रीवीरो निरामयो जातः ११५ इरियावही मिथ्यादुष्कृत विचार, मा.गु., गद्य, आदि सूक्ष्म पूर्विकाय‍ आउकाय २ अंति: घ्यावइ सु जीव मुक्ति पामइ. ३. पे. नाम. जयसिंह सिद्धराज कथा, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ९. पे नाम, वस्त्रदाने ध्वजभुजंग कथा, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. ध्वजभुजंग कथा- वखदाने, सं., गद्य, आदि उज्जयनी प्रत्यासन्न अति सौधर्म्म० कतिपयभवे मोक्षः , १०. पे. नाम. पात्रदाने धनपाल कथा, पृ. ८आ, संपूर्ण. धनपति कथा-सुपात्रदाने, सं., गद्य, आदि: अचलपुरे नगरे सुरतेजोनामा अति प्रपन्नं तृतीयभवे मोक्षः. ११. पे. नाम. तप कुलक, पृ. ८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अविरइ पमाय जोगा अणग भवकोड; अंति: अणोवमं दिंति समपक्खं, गाथा - ११. १२. पे. नाम. धर्मोपदेश कुलक, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा. पद्य, आदि एक चित्र एत्थ वयं निद्दि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) १३. पे नाम वीरांगदकुमार कथा पू. १०अ १५आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: क्षाराच्छेरमृतं धनाद्वितर, अंतिः मोहि निम्र्म्मायत यात मे वा श्लोक-५४५ ९०८२३. (+) चतुर्विंशतिजिन पूजा, अपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४७-६ (१ से ६) = ४१ ले स्थल सांखूणनगर, पठ. श्राव. देवकरण बिरधीचंद पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदिनाथ चैत्यालय, संशोधित, जैदे. (३३५१६, १४४४८-५२), For Private and Personal Use Only २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा- प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, मु. रामचंद्र, पुडिं, प+ग, आदि (-); अंति कीर्ति जग विस्तरै, (पू.वि. अजितजिन पंचकल्याणकपूजा गाथा ४ अपूर्ण से है.) ९०८३१. (#) खेचरमंजरी सह ग्रहगति सारणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९ - ३ (६ से ८) = ६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (३१.५x१४, १३x२९). " खेचरमंजरी, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमतीर्थपति पुनर अंतिः ना विरचि खेचरमजरीयं श्लोक ९, संपूर्ण, Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११६ www.kobatirth.org खेचरमंजरी - ग्रहगतिकरणी की सारणी, संबद्ध, रा. पं. वि. १६६५, आदि (-); अति: (-), अपूर्ण, ९०८३३. (*) त्रिलोकसार सह टीका की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. २५१ पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : त्रिलोकसार, त्रि०सा०ब०, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (३३४१७, १४-१८४४२-५४). त्रिलोकसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: बलगोविंदसिहामणिकिरण; अति तं बहुसुदाइरिया, अधिकार-६, गाथा-१०१०, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिलोकसार- टीका की भाषावचनिका, ब्र., प+ग, आदि: त्रिभुवनसार अपार गुणज्ञाय; अति: (-), अपूर्ण. ९०९४९. वृत्तरत्नाकर व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९११, माघ, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ३०, कुल पे. २, ले. स्थल. सावर, प्रले. ब्रह्म गोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (३२४१४.५, १४-१५X४६-५५). " १. पे. नाम. वृत्तरत्नाकर सह सुगमा वृत्ति, पृ. १आ-३०आ, संपूर्ण. वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि: सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा; अंतिः विशोधनीयमनुकंपकैर्विबुधैः, अध्याय-६, प्र. १८९. ', वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६९४, आदि पार्श्वनाथ जिनं नत्वा गणि; अति कुर्भाविपत्र च २. पे नाम. प्रास्ताविक लोक संग्रह, पू. ३०आ, संपूर्ण, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि कामिनी काय कांता रे कुच अंति द्वाद्यैईदि गवोमताः, गाथा-३ ९०९६५ (+) शुकनशास्त्र की भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी: सुकन. अंत में कुछ अस्पष्ट लिखा है., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित. वे. (३१.५x१५, १०-१२४३४-३८). शकुन प्रदीप-पद्यानुवाद, श्राव. गोरधनदास नंदलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७६२, आदि: स्वस्ति श्रीजिनराज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १०५ तक लिखा है.) " ९०९७४. मनरामकृत कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. हुंडी : म. कृ., दे., (३९.५X१४.५, १०x४४-५०). कवित्त संग्रह, आव, मनरामजी, पुहिं., पद्य, आदि: करमादिक अरनिको हरै; अंति: मनरांम० पथ घ्याविहि गाथा- ९७. ११०१३ (+) ग्रहभावप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. हुंडी भु. दी., संशोधित. जैवे. (३०.५१५, १३४४०-४२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३पू आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अति श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१७४. ९१०१९. (*) सिद्धांतचंद्रिका पूर्वार्द्ध सह सुबोधिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५८, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (३१x१४, " " "" १३४३९-४२). सरस्वतीसूत्र प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति (-), प्रतिपूर्ण सिद्धांतचंद्रिका सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य वि. १७९९, आदिः पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण. ९१०२४. (+#) योगशास्त्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३ - ११(१ से ११ ) = १२, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध हैं अतः अनुमानित पत्रांक लिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जैये., (३०.५x१३.५, ११-१४४४३-४८). " योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रकाश- ७, श्लोक-३ अपूर्ण से प्रकाश १२ श्लोक-२५ तक है.) योगशास्त्र-विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ९१०३९. (*) चंद्रसूर्य व जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. नवाशहेर, प्रले. वल्लभ जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी चंद्रसूर्यमं वि., संशोधित. वे. (३१x१३.५, ३-१३x४६). १. पे. नाम. चंद्रसूर्यमंडल विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. चंद्रसूर्यमंडल विचार प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि इह दीवे दुन्नि रवी अंतिः करणेन निपुणं सिध्यति, , गाथा - २४. २. पे. नाम. जंबूद्वीप विचार, पृ. १आ - ६आ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्र विचार, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीप १०८ योजन अति अहिवद्दि अमासगपमाणंति For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ११७ ९१०४१ (+) अजितजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १४६४, चैत्र, मध्यम, पृ. ६०-२७(११ से ३७)=३३, प्र.वि. प्रतिलिपि प्रतीत होती है., संशोधित., जैदे., (३२४१२.५, १५४५०-६०). अजितनाथ चरित्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: जयंत्यजितनाथस्य जितशोणि; अंति: पद्मखंडेन हृद्यम्, सर्ग-६, श्लोक-७०२, (पू.वि. सर्ग-२, श्लोक-५७ अपूर्ण से सर्ग-३, श्लोक-३० अपूर्ण तक नहीं है.) ९१०४४. (+#) नारचंद्र ज्योतिष-प्रथम प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १६४१, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, जीर्ण, पृ. ५, ले.स्थल. शुकपुर, प्रले. मु. धनचंद्र; गुपि. उपा. पद्मचंद्र (गुरु पं.साधुरत्न, तपागच्छ),प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४१३.५, १६-२१४६०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९१०४५ (+) श्रावक नित्यपूजा विधि आचार, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बालूचरपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (३०x१२.५, १२४३७-४२). नित्यजिनराज पूजनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम प्रभाते पूजा; अंति: लगे चैत्यवंदन कहीजै. ९१०५७. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व लघुटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४४-६८(१ से ६८)=७६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२९.५४११.५, १५४३६-५०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच के पाठ हैं.) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: (-). ९१०५९ (+#) प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३१x१२, १३४४४-५३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: (-), (पू.वि. पद-३३ अपूर्ण तक है.) ९१०६० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह लेशार्थटीका व टीका का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६०-११०(१ से ५७,७२,८०,१०७ से १५५,१५७,१५९)=५०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१४११,१२४५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१४ गाथा-१२ से अध्ययन-३६ गाथा-११ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९१०६१ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०x१२.५, १९४६४-७०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से २१ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९१०६२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०-१(१५*)=३९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०.५४११.५, १५४५०-६०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-७अपूर्ण तक है.) ९१०६४ (+#) सम्यक्त्वविषये नरवर्मराज कथा व मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३३-३(१ से ३)=३०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१२, १४-१५४४८). १.पे. नाम. सम्यक्त्वविषये नरवर्मराज कथा, पृ. ४अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. जयनंदन (गुरु वा. विवेकसिंह, खरतरगच्छ); गुपि. वा. विवेकसिंह (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, पे.वि. हुंडी:नरवर्मकथा. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नरवर्म चरित्र-सम्यक्त्वशुद्धि, उपा. विनयप्रभ, सं., पद्य, वि. १४१२, आदिः (-); अंति: विनयप्रभ० जोरचयां बभूवुः, श्लोक-५०२, (पू.वि. श्लोक-९० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मुनिपति चरित्र, पृ. १८अ-३३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:मुणिपतिच०. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५३४ तक है.) ९१०६५ (#) अर्हद्धर्मनिर्णयोपनिषद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७२-६६(२ से ४५,४७ से ६५,६७ से ६८,७०)=६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अर्हधर्मानिर्णय., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०x१२, १३४४४-५३). अर्हद्धर्मनिर्णयोपनिषद, सं., गद्य, आदि: एवं श्रीमत्सकलभुवनैकनाथ; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१ अपूर्ण से अध्याय-८ __ अपूर्ण तक व अध्याय-१० अपूर्ण से नहीं है.) ९१०६७. (+#) प्राकृत छंदकोश, अपूर्ण, वि. १६६४, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, पठ. मु. हर्षसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९x१२, १०४२५). प्राकृत छंदकोश, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गाहाणं छंद भणीयाणं, गाथा-८०, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ९१०७६. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६७-३८(१ से १९,२३ से २९,३४ से ३९,४१,५० से ५२,५८,६०)=२९, प्र.वि. खंडित पत्रांकवाले भाग को अनुमानित पत्रांक दिया गया है. लाल अक्षरवाले श्लोकों की संख्या-४५० है., संशोधित. कुल ग्रं. २१५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०x११, १०४४२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (पू.वि. गाथा-१५३ अपूर्ण से १७८ तक, १९६ अपूर्ण से २०५ अपूर्ण तक, २३८ अपूर्ण से २६६ अपूर्ण तक, ३१५ अपूर्ण से ३२३ अपूर्ण तक, ३३५ अपूर्ण से ६२८ तक, ६३५ अपूर्ण से ६६० अपूर्ण तक व ६८४ अपूर्ण से है.) ९१०८४ (+#) विधिशतक, स्थापना पंचाशिका व वीरजिन विज्ञप्तिका, अपूर्ण, वि. १६४२, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ३, प्रले. ग. मानसिंघ वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'श्रीपार्श्वचंद्रसूरिसद्गुरु हस्ताक्षरात्' ऐसा लिखा है, किन्तु उनके शिष्यादि द्वारा की हुई प्रतिलिपि होने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३९.५४१०.५, १८-२२४४८-५६). १. पे. नाम. विधिशतक, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:विधिशतक. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: पास० भणियंतं पमाणंमे, गाथा-१००, (पू.वि. 'बहवेभव णवइ वाणमंतर' पाठ से है.) २.पे. नाम. स्थापना पंचाशिका, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्थापनापंचाशिका. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५७४, आदि: जयइ जियाजियवग्गो; अंति: विहिया ठवणा पंचासिया एसा, गाथा-५५. ३.पे. नाम. वीरजिन विज्ञप्तिका, प. १०अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:वीरजिनविज्ञप्तिका. महावीरजिन विज्ञप्तिका, आ. पार्श्वचंद्रसरि, अप., पद्य, आदि: वीरजिण तिजयरंजण भवभंजण; अंति: (१)तुब्भे तं च सव्वं पमाणं, (२)पार्श्वचंद्र प्रमोदात्, गाथा-३९. ९१०८५. (+#) योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ टीका-प्रकाश १-४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३३-११(१०९ से ११२,१४८ से १५४)=२२२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१०.५, १३४५४-६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९१०९० (+) चैत्यवंदनसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०.५४११.५, २०४६६-७८). चैत्यवंदनसूत्र संग्रह-लघटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्र; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९१०९२ (+) प्रश्नव्याकरण की टीका व विपाकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९४-२६(१ से २१,३४,५३,७८,८१,८४)=६८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०x११, १७४६८-७२). १.पे. नाम. प्रश्नव्याकरण की टीका, पृ. २२अ-८२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:प्रश्नव्या०वृत्ति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (१)समाप्तानीति ब्रवीमीति, (२)संशोधिता चेयम्, अध्याय-१०, ग्रं. ४६००, (पू.वि. आश्रवद्वार सूत्र-१की टीका अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. मूल का प्रतिक पाठ दिया है.) २. पे. नाम. विपाकसूत्र सह टीका, पृ. ८२आ-९४आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:विपाक०वृत्ति. विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ के प्रथम अध्ययन अपूर्ण तक है. बीच के पाठांश नहीं हैं.) विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंति: (-). ९१०९३ (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्रले. ग. चंद्रविजय (गुरु आ. विजयतिलकसूरि); गुपि. आ. विजयतिलकसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:क्षेत्रसमासयं., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३०.५४११, ४-१४४१०-७०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६३, (वि. यंत्र युक्त.) ९१०९८. चौबीस तीर्थंकर पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(८,१०)=९, जैदे., (३२.५४१४.५, १३४४१). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहि., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., संभवजिनपूजा अपूर्ण पाठ से अभिनंदनजिन पूजा अपूर्ण तक है.) ९१०९९ (+#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १५८५, कार्तिक शुक्ल, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८७+१(१५)=८८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. वंतजी; राज्यकाल गंगाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबूद्दीवपन्नती, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, (५३८) तैलं रक्षेत् जलं रक्षेत्, जैदे., (३४.५४१३, १५४४०-६०). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. ९११०० (+) प्रज्ञापनासूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३४.५४१२.५, १७-१८४४२-६२). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: जयति नमदमरमुकुटप्रति; अंति: (-), (पू.वि. नपुंसक लक्षण का पाठांश "आज्ञापनी एवं आहुइतिपु" पाठ तक है., वि. मूल के मात्र प्रतीकपाठ हैं.) ९११०१ (+) प्रज्ञापनासूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९५४, ज्येष्ठ कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १९४-११६(१ से ११६)=७८, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १४०००, दे., (३४.५४१३, १७४६५-८०). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि ,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: जिनवचन सद्बोधम्, पद-३६, ग्रं. १६०००, (पू.वि. उद्देशक-२ लेश्या पद पाठांश "तेजोलेश्याका असंख्येयगुणाः" से है., वि. मूल के मात्र प्रतीकपाठ हैं.) ९११०२.(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३-२(१,५२)=६१, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाताधर्मसूत्र., संशोधित., जैदे., (३४.५४१३, १५४३८-६०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ "तेणं सम० अज्जसुह०" पाठांश से अध्ययन-८ "से कहाए लठट्ठासमाझे" पाठांश तक एवं अध्ययन-८ पाठांश "उदगपरिफोडिया" से अध्ययन-११ "एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीर" पाठांश तक है.) ९११०३. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०+१४(१ से १४)=३४, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्याकरणसूत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (३४.५४१३.५, २०-२४४५२-८०). For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरहताणं० जंबू; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. ९११०४. (+#) आचारांगसूत्र सह नियुक्ति व शीलांकी टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २१७-३१(१ से ३,५,१५,१७,२९,३२ से ३३,३८,४१,४९,५१,६४,६८ से ६९,७८,९६ से ९८,१४०,१५०,१५२,१७२,१७९,१८५,१८८,२०४,२०७,२१० से २११)=१८६, प्र.वि. हंडी:आचा.वृत्ति. अंत के पत्र खंडित व जीर्ण होने से पत्रांक अनुमानतः दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३२४१३, १५४५२-६०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., आद्यन्त व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) आचारांगसूत्र-निर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. आचारांगसूत्र-टीका #, आ.शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ९११०५. (+) प्रज्ञापनासूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६-९२(१ से ९२)=२४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३४.५४१३.५, १७४४५-८०). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-११अपूर्ण से लेश्यापद के दूसरे पद अपूर्ण तक है., वि. मूल के मात्र प्रतिक पाठ हैं.) ९१११०. औपपातिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १५८८, फाल्गुन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २१-५(१ से ५)=१६, प्र.वि. हुंडी:उववाईसुत्तं, कुल ग्रं. ११६७, जैदे., (३४.५४१३, १५४६३-७०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुही सुहं पत्ता, ग्रं. १६००, (पू.वि. सूत्र-१९ "से किं तं वइजोगपडिसंलीणया" पाठांश से है.) ९११११. (+) निरयावलिकादि सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:निरया.सूत्र, संशोधित. कुल ग्रं. ११०९, जैदे., (३४.५४१३, १३४४५-५५). १.पे. नाम. कल्पिकासत्र, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. ११आ-१७आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १७आ-२३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणाए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २५आ-२८आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: वग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२. ९१११२. (+) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, प्र.वि. हंडी:समवायंगसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १६६४, जैदे., (३४.५४१३, १५४५०-६०). समवायांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि. अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. ९१११७. (+#) कल्याणगणमाला पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:परमेष्टि०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (३१x१४, १०४३८-४०). पंचपरमेष्टि अष्टप्रकारी पूजा, आ. शुभचंद्र, सं., प+ग., आदि: श्रीमत्परमगंभीर प्रभुविभव; अंति: भूयात् श्रीशांतिधारा. ९११२१. आराधना समच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (३१४२४, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ आराधना समुच्चय, मु. रविचंद्र मुनींद्र, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनबोधनचरित्ररूपा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४९ अपूर्ण तक है.) ९११२५. आश्चर्ययोगमाला सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९९४, आश्विन शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. हुंडी:आश्चर्ययोगमाला लघुवृत्ति., दे., (२९.५४१३, १५४५५-६१). योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मर्थिता सूत्रतो जयति, श्लोक-१४०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण से लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१ पर नहीं लिखा है.) योगरत्नावली-टीका, म. गुणाकर भिक्ष, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: श्वेतांबरभिक्षणा जयति, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९११२७. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-सप्तम पर्व, संपूर्ण, वि. १६९४, वैशाख शुक्ल, मध्यम, पृ. ८१, प्रले. मु. रामराय योगी (गुरु मु. मूल राजर्षि); गुपि. मु. मूल राजर्षि (गुरु मु. हंसराज); मु. हंसराज (गुरु मु. रामदास); मु. रामदास (गुरु मु. नानक गण); मु. नानक गण (गुरु मु. भल्ल राजर्षि); मु. भल्ल राजर्षि (गुरु मु. कल्याण); मु. कल्याण, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२९.५४१२, १६४४५-५२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), ___ ग्रं. ३५०००, प्रतिपूर्ण. ९११४० (+#) विविध विषयक सुभाषित श्लोकगाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., फंदग्रस्त व पत्रांक भाग नष्ट होने से पत्रानक्रम अस्तव्यस्त है. प्राप्त पत्रांक एव पत्रांक रहित दोनों को एक साथ गिनती करके पत्रसंख्या दी गयी है. हाशियों में टिप्पण व उपयोगी संदर्भपाठ है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (३२४१४, १५४४०-४८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक, बीच व अन्त के पाठ नहीं हैं., वि. संकलित सुभाषित है.) ९११४२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका-वाचना २, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३, प्र.वि. हुंडी:तृतीयवाच., संशोधित., दे., (३२.५४१६, ११४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९११४४. (+#) योगसार सह छाया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:योगसार., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (३१.५४१६.५, ५४२४). योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंति: जोगिचंद० इक्कमणेण, गाथा-१०७. योगसार-छाया, सं., पद्य, आदि: निर्मलध्याने स्थित्व; अंतिः कृता दोहाः एकमनसा, श्लोक-१०७. ९११४५ (+) अष्टोत्तरी स्नात्र विधि व महावीर स्तुति की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. मु. स्वरूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अष्टोत्तरी., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (३१४१६, १८-२१४३८-५०). १.पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथसंश्राद्ध; अंति: शांति निमित्ति. २. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशिका की अवचूरि- महावीर स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भव्यलोकमवेति संबंधः, प्रतिपूर्ण. ९११४६. परिग्रहाष्टकम् सह व्याख्या , संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (३१४१६.५, १५४५१). ज्ञानसार-हिस्सा परिग्रहाष्टक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: न परावर्त्तते; अंति: ना तु जगदेवापरिग्रहः, श्लोक-८. ज्ञानसार-हिस्सा परिग्रहाष्टक-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: निर्लेपदृढीकरणार्थं; अंति: स्वरूपरमणंयुक्तं. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२ ९११४७. (+) सम्यक्त्वजिन स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ६, प्र. वि. हंडी सम्यक्त्वजिनस्तवनं संशोधित, दे., (३०.५X१५, ४x२४-२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि जह सम्मत्तसरूवं अति होइ समत्त संपत्ती, गाथा २५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: यथा सम्यक्त्वस्वरूपं; अंति: सम्यक्त्व संपत्तीः. ९११४८. (+) समयसार सह तात्पर्य व आत्मख्याति टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८८-७(६५ से ७१) =८१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (३२४१५.५, १९३४३८). "" "" समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि वंदितु सव्वसिद्धे, अंति: (-), (पू. वि. गावा- १५५ से १७६ व २२६ से नहीं है.) समयसार - तात्पर्यवृत्ति, आ. जयसेन, सं., गद्य, आदि वीतरागं जिनं नत्त्वा; अंति: (-). समयसार - आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग, आदि नमः समयसाराय स्वानुभूत्वा अति: (-). ९११४९. (*) वर्द्धमानस्वामि द्वात्रिंशिका सह छाया, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. शिवदत्त पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (३१.५X१७, ८x२८). , महावीरजिन स्तुति, क. धनपाल, प्रा., पद्य, आदि निम्मलन हे वि अगाहे अंति: गोअरे संहगिराणं, गाथा-३०. वीरस्तुति छाया, सं., पद्य, आदि निर्मलनखे अपि अनखे जिनाना अति गोचरं संस्तुतिगराम्, श्लोक-३०. ९११५३. महापुराण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १०५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२९x१३.५, " " " १३X३५-४०). महापुराण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम ही पुराण की करता; अंति (-) (पू.वि. संधि १५ के पाठांश "भगवंत की सरीर बहौत मनोहर है तो हुवी कुंणे दिष्टांत" तक है.) ९११५६. (+*) सारस्वतव्याकरण-प्रथमवृत्ति सह सुवोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८४७ कार्तिक कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९४-६(१,६८ से ७२)=८८, प्रले. तुलसीराम (गुरु ज्ञानानंद); गुपि. ज्ञानानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : प्र.चं.की., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२९४१५.५, १३४३३) "" सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभिक व बीच के पाठांश नहीं है.) सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६२३, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९११५७. (+) युगादिजिन स्तोत्र व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-६ (७ से १२) = १३, कुल पे. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (३०.५x१६.५, १०-११x२२-२३). २, " १. पे नाम. युगादिजिन स्तोत्र, पृ. १अ ६आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम गौतमगणधर रास. पू. १३अ १९अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नित नित मंगल उदय करे, गाथा-४८. ९११५८. (*) चडवीसठाणा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, अन्य. श्राव. जयतराम (पिता श्राव. परशुरामजी ); गुपि श्राव. परशुरामजी (पिता श्राव. सुखलालजी); श्राव. सुखलालजी (पिता श्राव. कल्याणदास); श्राव. कल्याणदास लिख. श्राव. हरिराम (पिता श्राव. जीवनराम); गुपि श्राव. जीवनराम राज्यकाल कल्याणसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. बलात्कार गणे व सरस्वती गच्छे वह प्रत लिखी गई है, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०X१६.५, ४-६X३०). , चतुर्विंशतिस्थानक, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. पद्म, आदि सिद्धं सुद्धं पणमिय; अति: चउदस कुलकोडि हवदिकम्मे, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only चतुर्विंशतिस्थानक - अवचूरि, सं., गद्य, आदि असेथीति सिद्धस्त अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लोक-३१९ तक की अवचूरि लिखी है.) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गद्य, आदि: तण का अंति: (-), प्रतिपू तिपर्ण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १२३ ९११६१ (+) निमित्तसंहिता, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४१, प्रले. वा. मणिविजय (गुरु मु. सुरेंद्रविजय); गुपि. मु. सुरेंद्रविजय (गुरु मु. लालविजय, तपागच्छ); मु. लालविजय (गुरु ग. चतुरविजय, तपागच्छ); ग. चतुरविजय (गुरु ग. कस्तुरविजय, तपागच्छ); ग. कस्तुरविजय (गुरु ग. मोहनविजय, तपागच्छ); ग. मोहनविजय (गुरु ग. भावविजय); ग. भावविजय (गुरु पंन्या. गंगविजय); पंन्या. गंगविजय (गुरु पंन्या. विवेकविजय); पंन्या. विवेकविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पंन्या. माणिक्यविजय (गुरु पंन्या. वृद्धिविजय); पंन्या. वृद्धिविजय (गुरु पंन्या. कृष्णविजय); . पंन्या. कृष्णविजय (गुरु आ. विजयदेवसूरि, तपागच्छ); आ. विजयदेवसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, (१०९७) जलं रक्षं थलं रक्षं, ., (२९.५४१६, १५-२१४४२-६०). । भद्रबाहसंहिता, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: मगधेषु पुरं ख्यातं; अंति: नामा पुन्यश्च साधवः, अध्याय-२६. ९११६४ (+) हरिवंश रास, पूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १९२-१(१८६)+१(५८)=१९२, ले.स्थल. वंसवाला, प्रले. मु. अमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९४१६.५, १५४३१). हरिवंश रास, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, मा.गु., पद्य, वि. १५७५, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंति: तेहने पुण्य अपार, संपूर्ण. ९११७०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा- वाचना १-८, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११३, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२८x१६, ७४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तिण काल चोथो आरा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमते च सुधर्मणे सर्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९११७५. (+#) हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. पं. लालचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१६, १९-२२४५२-५६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४, गाथा-९०५, (वि. ढाल-४८.) ९११९४. पच्चक्खाणसूत्र व सामायिक सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२७४१६, ९-११४२३-२७). १. पे. नाम. पचक्खाणसूत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १९६०, भाद्रपद शुक्ल, ८, रविवार, ले.स्थल, भणायं, प्रले. देवीदयाल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी;पच्चक्खाण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सामयिक पाड़ने के सूत्र तक है.) २. पे. नाम. सामायिक सूत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. सामायिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: करेमि भंते सामाइअं; अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडम्, (वि. करेमिभंते व सामायिय वयजुत्तो सूत्र है.) ९१२०४. (#) सम्मेदशिखर विधान पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(१ से २)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ __ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१६, १५४३१). सम्मेतशिखर विधान पूजा, जै.क. जवाहरलाल दास, सं.,हिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. सुमतिजिन पूजा अपूर्ण से अंतिम जयमाला ढाल की गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ९१२१३. रघुवंश की विशेषार्थबोधिका टीका-सर्ग१ से ३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, दे., (२५४१५, १६x४३). रघवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदि: ध्यात्वा तां ब्रह्म; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९१२२२. (#) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ९०-२७(२९ से ३४,४२ से ४५,५६ से ७१,७४)=६३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१७.५, १७४३७-३९). For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति, अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्याय-५, श्लोक-९६ अपूर्ण तक है तथा बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ९१२२८. लंघनपथ्य निर्णय, संपूर्ण, वि. १९२३ मध्यम, पृ. ३३, प्रले. देवादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: लं०प०. वे.. (२५.५X१७, ८X२४-२८). लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसर्वशं नमस्कृ; अंतिः यावत्प्राप्नोति नो बलम्, लोक-३०४. ९१२६३. (+) व्यावपटल सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९९०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. रत्नचंद्र ( उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी व्यापहल., पदच्छेद सूचक लकीरें, दे. (२४४१७, १८४२८-३२ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीअर्हतं जिनं, अंतिः दुजे नक्षत्र काल सब छीजे श्लोक - २९४. ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पडिवे १ छट्ठ ६ अग्यारस ११ ; अंति: आवे तो चवरी काल जाणीजे. ९१२७०. रत्नकरंड आवकाचार सह भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २७. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी रत्नक०, दे. (२४.५X१७, ११x२६-२९). रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० तक है.) रत्नकरंड श्रावकाचार-ढूंढारीभाषाटीका का रूपांतर, श्राव. मन्नूलाल जैन वकील, हिं., गद्य, ई. २०वी, आदि इहां ईस ग्रंथ की आदि; अंति: (-). ९१२७९. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९२, ले. स्थल. तांतोठीनगर, प्र. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैये. (२३.५x१६, १३x२८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा १८२५. (वि. डाल-४१.) ९१२८७ (+#) श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ६० - १ (१) = ५९, प्रले. करुणाशंकर आणंदजी चतुर्वेदी, पठ. श्राव. नथु त्रिक्रम भावसार; अन्य. श्राव. अमथा हकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी; श्रीपालरास., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले. नो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२७.५४१५, १२४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहेशे ज्ञान विशालाजी, खंड-४, गाथा- १८२५, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) ९१२९८. विचाररत्नसार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैदे. (२८.५४१५, १६४४५). "" " विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) श्रीवीतरागनी वाणी भववेल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण प्रश्न ३६ अपूर्ण तक लिखा है.) ९१२९९. १७ भेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९३०, वैशाख कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. स्तंभनपुर, प्रले. शिवलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सत्तरभेदी पूजा. दे. (२८.५४१५, १२४३६). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सकल० सफल चुणिउ रे, ढाल - १७. ९१३०२. जीवविचार व दंडक प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२- ४(१ से ४)=८, कुल पे. २, जै, (२७५X१४.५, ५४४९) १. पे नाम. जीवविचार सह टवार्थ, पू. ५अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि (-) अंति रुदाइ सूअ समुदाउ, गाथा-५१. (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण से है.) जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंतिः श्रुतसमुद्रद्द थकी. २. पे. नाम. दंडक सह टबार्थ, पृ. ७अ १२अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीस जिणे तस्सुतः अति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार करीनड़ च०; अंतिः न अ० आत्माने हितकारी. For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १२५ ९१३०३. (-#) विविध बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे, ९, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४१५, १५-१६x४०-४५). १.पे. नाम. ३५ बोल, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बोले च्यार गति; अंति: एकवीसगुण श्रावकना. २. पे. नाम. २० बोल असमाधिना, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २० बोल असमाधि, मा.गु., गद्य, आदि: उतावलो चालें तो; अंति: न करे तो असमाध्यो, कडी-२०. ३. पे. नाम. २१ सबला दोष, पृ. ३अ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदि: हसत करम करे तो सबल दोष; अंति: तो सबलो दोष लागे. ४. पे. नाम. २७ साधु गुण, पृ. ३अ, संपूर्ण. २७ साधुगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमाहाव्रत पाले; अंति: मरण आया समो इयासे. ५. पे. नाम.५२ अनाचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, आदि: उद्देसीक भोगवे तो; अंति: सोभाविभुषा करै. ६. पे. नाम. ३० मोह स्थानक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ३० बोल-महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: जलमाहें पंचद्रि जीवन; अंति: निरंतर जुठ समाचरे. ७. पे. नाम. द्विदल विचार, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: केटलाक प्राणी विदल; अंति: जणाय छे एहवू कहे छे. ८. पे. नाम, छींकनो विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ९.पे. नाम. घंटाकर्ण, पृ. ५आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो माहाविर; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ९१३११. परमात्म प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८, प्रले. पंडित. शिवलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:परमात्माप्रकाशटीपणसहित., दे., (२६.५४१५.५, ५४२८). परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, वि. ६वी, आदि: जे जाया झाणग्गियए; अंति: केवलो कोवि बोहो, गाथा-३४५. ९१३१२. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-४(३,२७,४३ से ४४)=६४, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे., (२७४१५,१३४३०-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण भणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ की ढाल-२ की गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-१९, दोहा-१ गाथा-३ अपूर्ण, खंड-२ ढाल-१९ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-२० अपूर्ण , खंड-३ ढाल-२५ गाथा-२० अपूर्ण से गाथा-३१ व दोहा-१ गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है व ढाल-४१ की गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९१३१३. (#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह सुगमार्थ टीप्पण, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४०, ले.स्थल. भेंसरोडगढ, प्रले. मु. केवलसौभाग्य; राज्यकाल मु. कुसलसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२७४१४.५, २१४५२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्धं; अंतिः प्राप्स्यत्यचिर०परमार्थम, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सुगमार्थ टिप्पण, पुहिं., गद्य, आदि: (१)मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: यो सिद्धांत थे सम किलेणा, अध्याय-१०. ९१३१४. (+) सुसढ चरित्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६८, भाद्रपद शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४३-३(१,५,१०)=४०, कुल पे. ४, ले.स्थल. श्री पत्तन, लिख. वगेराम लालजी वोरा; पठ. मु. कमलसागर (गुरु आ. जैनेंद्रसागरसूरि, अचलगच्छ); गुपि. आ. जैनेंद्रसागरसूरि (अचलगच्छ); प्रले. रवजी भीमजी दवे, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. चंदाजी प्रसादे., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , दे., (२६४१३, ६४२८-४०). For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सुसढ चरित्र सह टबार्थ, पृ. २अ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयणा चेय धम्मकमा, गाथा-५१६, ग्रं. ८००, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ४० अपूर्ण, गाथा-५३ अपूर्ण से १०३ अपूर्ण व गाथा-११५ अपूर्ण से ५१६ तक है.) सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उद्धरी रचना कीधी. २. पे. नाम. नेमिनाथ पारj, पृ. ४०आ, संपूर्ण.. नेमिजिन पारणु, मा.गु., पद्य, आदि: हालो वालो हेते हुलरावे; अंति: बनी मंगल निषकामी रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ४०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पहिं., पद्य, आदि: काना काहे बचन के ए राह; अंति: परबीन जाना नहि केहदो, गाथा-२. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, प. ४०आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तवमें यह कृति नेमराजिमती पद है, प्रतिलेखकने अंतमें सीमंधरजीन स्तवन लिखा हैं. नेमराजिमती पद, मा.ग., पद्य, आदि: बल छ प्रेम आगमां; अंति: माझं घेन शमावो रे, गाथा-३. ९१३२०. जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १८+२(१७ से १८)=२०, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्रले. पं. प्रेमविजय (गुरु मु. जसविजय); पठ. श्राव. ललु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्ठावीधीरीपरतपठणना. श्रीआदेसरजी प्रसादात्., दे., (२७४१४, ११४३०-३३). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: पूर्वोक्त शुभ दिवसे; अंति: विसर्जन मंत्र. ९१३२१. सूतकनी सज्झाय व गौतम प्रश्नोत्तर बार आरानुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२५४१४, १३४३५-४२). १. पे. नाम. सूतक सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पठ. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सु०.सि०. ___ आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि: सरस्वतीदेवी समरुं; अंति: सुख लहेस्ये निरधार, गाथा-३३. २.पे. नाम. गौतम प्रश्नोत्तर बार आरानुं स्तवन, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:छ०.आ०.स्त०. १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरस्वती भगवती भारती; अंति: कहे गच्छ मंगल करु, ढाल-१२, गाथा-७५. ९१३२३. (+) नारकीवर्णन, कुगुरुपचीसी व सम्यक्त्व उच्चरवानो आलाप, अपूर्ण, वि. १९४५, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २४-१९(४ से २२)=५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाडीव, प्रले. श्राव. डुंगर अमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७X१५,११४२८). १. पे. नाम. नारकी वर्णन, पृ. १अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नारकीदखवर्णन दहा, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पांचआश्रव मत करो; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-४९ अपूर्ण तक २. पे. नाम. कुगुरुपचीसी, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणे तेजपाल सुखदाय, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. सम्यक्त्व उच्चरवानो आलाप, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वव्रत उच्चरवानो आलावो, मा.गु., गद्य, आदि: कोइ कहे छे के अमने; अंति: नमे ते कपटाई नथी. ९१३२४. (+#) लघुजातक सह विवर्ण टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ७)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१४.५, १६x४५). लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-३, गाथा-३ अपूर्ण से अध्याय-५ तक लिखा है.) लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १२७ ९१३३३. नवतत्त्व प्रकरण व सिद्धजीव संख्या सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, ले. स्थल. पुना, प्रले. ऋ. वीरचंद (गुरु ऋ. मोहनलाल); पठ. श्राव. मुलचंद हरिचंद मेता; श्राव. हरिचंद नाथाजी मेता; श्राव. दीपचंद सौभागचंद मेता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नवत०. वे. (२७.५४१४.५, ९४३१-३४). "" १. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-२७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ७२. नवतत्त्व प्रकरण बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व १ अजीव अंति अनागतकाल समय अधिको जाणवो. २. पे. नाम. सिद्धजीव संख्या सह टबार्थ, पृ. २७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिद्धजीव संख्या, प्रा., पद्य, आदि: जइया होई सि पुच्छा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) सिद्धजीव संख्या-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जिवारे कोइये पुछ; अति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९१३३४. अष्टमी सज्झाय व स्तवनचोवीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३० आश्विन कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ५, ले. स्थल. चंडेसर, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि) पठ. मु. पुनमचंद (गुरु मु. दोलतरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: स्तवन पत्र. वे. (२७४१४.५, १७-१९x४१-४७). १. पे. नाम. स्तवनचोवीसी, पृ. १अ ६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी स्तवनपत्र. : स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि : उलगडी रे आदिनाथनी यो; अंति : रामविजय जयश्री लही, 1 स्तवन- २४. २. पे नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी स्तवनपत्र. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जस० जीवन आधारो रे, स्तवन- २४, गाथा - १२१. ३. पे नाम. स्तवनचीवीसी, पू. १०आ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: स्तवनपत्र. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि मरुदेवीनो नंद वंदो अंति: उदेरत्न० सारो रे, स्तवन- २४. ४. पे नाम. स्तवनचीवीसी, पृ. १२आ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी शोभनस्तुति. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि भव्य भोजविबोधनैकतरण; अति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक- ९६. " ५. पे नाम. अष्टमी स्वाध्याय पू. १६आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि आठम कहे आठ मवनो; अंतिः पुन्यनी रेह रे, गाथा- ९. ९१३४५. (+) पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९११, पौष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. लींबडी, प्रले. मु. दोलतवर्द्धन (गुरु पं. क्षमावर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१५.५, १३-१५x२४-२९). " पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (१)ॐ नमो भगवति, (२) १११ उत्तम सांभल अहो अंति: सही शकुन श्रीकार छै. ९१३७९. प्राकृतलक्षण, संपूर्ण वि. १९१८ श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, दे. (२५.५४१५.५, १३४२४-२७). प्राकृतलक्षण, क, चंड कवि, सं., गद्य, आदि प्रणम्य शिरसा वीरं अंति षभाषाश्च प्रकीर्तिताः, विधान-४. ९१३८१. सार्द्धद्वबद्वीपस्थ जिनपूजा, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १६४, प्र. वि. हुंडी सा० पू०. प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे. (२४.५x१५, १२x२०). सार्द्धद्वयद्वीप पूजा, सं., प+ग, आदि: ऋषभादिवर्द्धमानांतान्; अंति: धरनी संदिशत्वर्चकानां. ९१३८२. (+) सिंदूरप्रकरण सह टवार्थ वालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ११९, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५४१६, २-६x२३-२५). 1 सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि सं., पद्म, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अति वक्तुं स जानाति जनाग्रतः, द्वार- २२, श्लोक १०० (वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, बुधवार, ले. स्थल सांतोठीनगर, प्रले. ग. महिमासागर गुपि. मु. कुसबखतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य ) For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " सिंदूरकर-टबार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कहिता; अति आगे जांगे उपदेश द्यइ. (वि. १८८८, आषाढ़ कृष्ण, ९, प्रले. मु. गजेंद्रसागर, प्र. ले. पु. सामान्य ) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: थया जंबुदत्त नागश्री. ९१३८५. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ - अध्याय १-४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५१७, १३-१५x२८-३०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी, आदि यत्र वित्रासमायांति; अंति (-), प्रतिपूर्ण, "" , पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. योगचिंतामणि टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि सुठी वाटी नांनी कीजे अंति (-), प्रतिपूर्ण. निषेध ९१३८६. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२२.५X१५, १७X३०-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अति (-) (पू.वि. पर्युषण में कटुवचन' समाचारी सूत्र अपूर्ण तक है.) ९१३८७. (*) पंचपरमेष्ठिमंडल पूजा, संपूर्ण वि. १८७४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पू. ४०, प्रले. श्राव रामलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४१६, १३x२८). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, मा.गु., प+ग., वि. १८६२, आदि: मंगलमय मंगल करन; अंति: जजो लायजु अर्ध अनूप. ९१४०१. आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रावण शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. फतेगढनगर, प्र. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५४१५.५, ८४२८-३१). ', पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्वताराधना-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रीगोतमस्वामी, अंतिः लहई सासता सुख. ९१४०५. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदे., (२४X१५.५, ११-१३X२८-३५). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक, अंति: धरम करण मन उलसै जी, ढाल - ३१, गाथा-५५५. ९१४१५. योगसार सह वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. हुंडी जोगसार, वे. (२३४१६, १२-१३४२७-३१)योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि णिम्मलझाण परडिआ अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ११ तक लिखा है.) योगसार- वचनिका पुर्हि, गद्य, आदि (१) निर्मल जो ध्यान, (२) सुमरि सुरस घर आपके अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९१४१६. नेमिजिन चोवीस चोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे. (२४४१७.५, १५x२७). . मगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्म, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर अति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ९१४३५. (२) कल्पसूत्र सह व्याखायन, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १५४, प्रा. मु. ऋषभदासजी (गुरु मु. रामचंदजी); गुपि. मु. रामचंदजी (गुरु मु. सरवसुखजी); मु. सरवसुखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्प. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१५.५, १४x२४). " ', कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे, अंति: उवदंसिइत्ति बेमि, व्याख्यान ९ नं. १२१६. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि आभिणिबोहियनाणं सूचनाणं; अंति: धर्म्मलाभेन नंदा, ९१४३६. (*) शीलवती महाचरित्र, संपूर्ण, वि. १८४३, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५९, ले. स्थल. मांडवी बिंदर, प्रले. मु. मनजी ऋषि गुपि. मु. प्रेमजी ऋषि मु. भीमजी ऋषि (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि, लुकागच्छ): मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु, आसकरण ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: शीलवती रास. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५X१५.५, २०-२२४३३-४०). शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: ॐकार अक्षर अधिक; अंति: नेमविजय० पद पायो हैं, खंड ६, गाथा २०६१ (वि. डाल ८४.) For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९१४४४. (+) नंदिसूत्र की भाषाटीका सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र., द्विपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१५.५, १९-२६४४२-५५). नंदीसूत्र-टीका की-दीपिका भाषाटीका, हिं., गद्य, आदि: देवोंसे नमस्कार करने योग; अंति: (-), (पू.वि. "यह कहना अति साहस है" पाठांश तक है.) नंदीसूत्र-टीका की-दीपिका भाषाटीका का टिप्पण, हिं., गद्य, आदि: १निरंतरभावी रमुक्तिसुख; अंति: (-). ९१४५४. (+-) धर्मोपदेशामृतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४२-५(१,२२ से २५)=१३७, कुल पे. २६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२२४१६, ६४३२). १.पे. नाम. धर्मोपदेश सह टबार्थ, पृ. २अ-४०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. धर्मोपदेशामृत, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: पद्म० धर्मोपदेशामृतं, श्लोक-१९९, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से १०५ अपूर्ण तक व श्लोक-१२६ अपूर्ण से है.) धर्मोपदेशामृत-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: यह धर्मोपदेश अमृत. २. पे. नाम. दानपंचाशत सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४९अ, संपूर्ण. दानपंचाशत, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: जीयाज्जिनो जगति नाभिनरेंद; अंति: पद्मनंदि० ललितबर्णं चकार, श्लोक-५४. दानपंचाशत-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: जयवंत होउ जिनदेव; अंति: करउ समूह जे विषे ताहि भयो. ३. पे. नाम, अनित्यपंचाशत सह टबार्थ, पृ. ४९अ-५९अ, संपूर्ण. अनित्यपंचाशत्, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: जयति जिनो धृतिधनुषामिषु; अंति: शदुन्नतधियाममृतैकवृष्टिः, श्लोक-५५. अनित्यपंचाशत्-पद्यानुवाद का टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: सर्वोत्कर्षकरि प्रवर्ते; अंति: अमृतका एक वर्षा है. ४. पे. नाम. एकत्वसप्तति सह टबार्थ, पृ. ५९अ-६६आ, संपूर्ण. एकत्वसप्तति, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: चिदानंदैकसद्भावं परमात्मा; अंति: नव केवल लब्धिरूपम्, श्लोक-८०. एकत्वसप्तति-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: ज्ञान आनंद है एक; अंति: दानादि लखि इन रुप है. ५. पे. नाम. यतिभावनाष्टक सह टबार्थ, प.६६आ-६८आ, संपूर्ण. साधुभावनाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: आदाय व्रतमात्मतत्वममलं; अंति: तस्यात्र पुण्यात्मनः, श्लोक-९. साधुभावनाष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: यहि करि जनको आव्याकौ; अंति: कै या पुण्यात्मा कै. ६.पे. नाम, उपासकसंस्कार सह टबार्थ, प. ६९आ-७३आ, संपूर्ण. उपासकसंस्कार विचार, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: आद्यो जिनो नृपः; अंति: तेषां धर्मोतिनिर्मलः, श्लोक-६२. उपासकसंस्कार विचार-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: आदिजिन ऋषभदेव राजा; अंति: धर्म बहु निर्मल है. ७. पे. नाम. देशव्रतोद्योतन सह टबार्थ, प. ७४अ-७८आ, संपूर्ण. देशव्रतोद्योतन विचार, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: बाह्याभ्यंतरसंगवर्जन; अंति: देशव्रतोद्योतनं, श्लोक-२७. देशव्रतोद्योतन विचार-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: बाह्यआभ्यंतर परिग्रह; अंति: पद्म० व्रतको प्रकाशन. ८. पे. नाम. सिद्ध स्तुति सह टबार्थ, पृ. ७८आ-८६अ, संपूर्ण. सिद्ध स्तुति, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: सूक्ष्मत्वादणुदर्शिनोवधि; अंति: तथापि कृतवानंभोजनंदीमुनिः, श्लोक-३०. सिद्ध स्तुति-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: सुक्ष्म है तातै परम; अंति: कियो पद्मनंदि मुनि. ९. पे. नाम. पद्मनंदि आलोचना सह टबार्थ, पृ. ८६अ-९२आ, संपूर्ण. आलोचना, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: यद्यानंदनिधिं भवंत; अंति: समतिमानानंदसद्म ध्रुवं, श्लोक-३३. आलोचना-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: जो आनंद की निधि तुम; अंति: को मंदिर है निश्चयसौ. १०. पे. नाम. सद्बोधचंद्रोदय सह टबार्थ, पृ. ९२आ-९९अ, संपूर्ण. सद्बोध चंद्रोदय, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: यज्जानन्नपि बुद्धिमानपि; अंति: विजयते सद्बोधचंद्रोदयः, श्लोक-५०. सद्बोध चंद्रोदय-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: जा चैतन्य तत्त्व को; अंति: को प्रकाश है यो. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम, निश्चयपंचाशत सह टबार्थ, पृ. ९९अ-१०५अ, संपूर्ण. निश्चयपंचाशत, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: दुर्लक्ष्य जयति परं; अंति: पद्मनंदि० तन्ममास्ते, श्लोक-६२. निश्चयपंचाशत-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: दःख करि लखिये है; अंति: मन विषै सो मे रहे तो. १२. पे. नाम. ब्रह्मचर्यरक्षावृत्ति सह टबार्थ, पृ. १०५अ-१०९आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यरक्षावृत्ति, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: भ्रूतक्षेपण जयंति ये रिपु; अंति: पद्मनंद० सदा सेव्यतां, श्लोक-२२. ब्रह्मचर्यरक्षावृत्ति-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: भौह टेढी करते ही जीत; अंति: अंजन गुटिका सदा सेवनी. १३. पे. नाम, ऋषभदेव स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १०९आ-११५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, मु. पद्मनंदी, प्रा., पद्य, आदि: जय उसहणाहिणंदण तिहुयणणिलय; अंति: हरणे तुह पाया मह पसीयंतु, गाथा-६०. आदिजिन स्तोत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: तुम जयवंत होउ हे ऋषभ; अंति: चरण मोकहं प्रसन्न होउ. १४. पे. नाम, जिनदर्शन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ११५आ-११९अ, संपूर्ण. जिनवरदर्शन स्तव, मु. पद्मनंदी, प्रा., पद्य, आदि: दिढे तुमम्मि जिणवर सहली; अंति: तं णंदइ सुइरं धरावीढे, गाथा-३५. जिनवरदर्शन स्तव-टबार्थ, पहिं., गद्य, आदि: देखे संतै तमहि हे जिनवर; अंति: चिरकाल पृथ्वी विषै छ. १५. पे. नाम. श्रुतदेवता स्तति सह टबार्थ, पृ. ११९अ-१२३अ, संपूर्ण. जिनगुणकीर्तन स्तव, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: जयत्यशेषामरमौलिलालितं; अंति: पद्म० भक्तिग्रहः, श्लोक-३१. जिनगुणकीर्तन स्तव-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: सर्वोत्कर्ष करि प्रवर्ते; अंति: अति भक्ति को आग्रह. १६. पे. नाम, स्वयंभू स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १२३अ-१२६अ, संपूर्ण. स्वयंभू स्तोत्र, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: स्वयंभुवा येन समुद्धृतं; अंति: मोक्षं मुनिपद्मनंदिने, श्लोक-२४. स्वंयभू स्तोत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: आपहाते प्रति बुध है; अंति: मुनि पद्मनंदि ता कहं. १७. पे. नाम. प्रभाताष्टक सह टबार्थ, पृ. १२६अ-१२७आ, संपूर्ण. प्रभात अष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: निःशेषावरणद्वयक्षितिनिशा; अंति: धर्मः सुखं वर्धते, श्लोक-८. प्रभात अष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: समस्त ज्ञानावरण; अंति: धर्म अरु सुख बढे. १८. पे. नाम. शांतिनाथाष्टक सह टबार्थ, पृ. १२७आ-१२९अ, संपूर्ण. शांतिजिन अष्टक, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्याधिपतित्वसूचनपरं; अंति: जिनपतिः श्रीशांतिनाथः सदा, श्लोक-९. शांतिजिन अष्टक-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: तीन लोको की ईश्वरता; अंति: श्रीशांतिनाथ सदाकाल. १९. पे. नाम, पूजा दशक सह टबार्थ, पृ. १२९अ-१३१अ, संपूर्ण. जिनपूजादशक, सं., पद्य, आदि: जातिर्जरामरणमित्यनलत्रय; अंति: फलकृते न तु भूपकृत्यै, श्लोक-१०. जिनपूजादशक-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: जन्म जरा मरणये अग्नि; अंति: के कार्य के अर्थ. २०. पे. नाम. करुणाष्टक सह टबार्थ, पृ. १३१अ-१३१आ, संपूर्ण. करुणाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरो जिनेश्वर परम; अंति: करुणामत्र जनेशरणमापन्ने, श्लोक-८. करुणाष्टक-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: हे तीनीलोक के गुरु; अंति: शरण को प्राप्त है. २१. पे. नाम. क्रियाकांड चूलिका सह टबार्थ, पृ. १३१आ-१३४आ, संपूर्ण. क्रियाकांड चूलिका, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शन बोध वृत; अंति: भक्तिरभसस्थितमानसेन, श्लोक-१८. क्रियाकांड चूलिका-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शन ज्ञान; अंति: अधिक स्थित चित्तकरि. २२. पे. नाम. एकत्वभावना दसक सह टबार्थ, पृ. १३४आ-१३५अ, संपूर्ण. एकत्वभावना दशक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: स्वानुभूत्यैव यद्गम्यं; अंति: चिंता मृत्योरपि कुतो भयम्, श्लोक-११. एकत्वभावना दशक-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: आत्माही के अनुभव करि; अंति: हुते कहांते भय. २३. पे. नाम, परमार्थ विंशतिका सह टबार्थ, पृ. १३५आ-१३९अ, संपूर्ण. परमार्थविंशतिका, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: रागद्वेषरतिश्रिता विकृतयो; अंति: जडमतिर्मोनाश्रितस्तिष्ठति, श्लोक-२१. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org परमार्थविंशतिका-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: मोह द्वेष रागाश्रित अति: जडबुद्धि मौन रहे हे. २४. पे. नाम. शरीराष्टक सह टवार्थ, पृ. १३९अ १४०आ, संपूर्ण. शरीराष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि दुर्गंधाशुचिधातुभित्ति, अति तदा काशा स्थिरत्वे नृणां श्लोक ८. शरीराष्टक -बार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: दुर्गंध जे अपचि अंतिः स्थिरता विषे मनुष्यनिकी. २५. पे. नाम, स्नानाष्टक सह टबार्थ, पृ. १४० आ-१४२अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नानाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि सन्माल्वादि यदिय सन्निधिः अतिः स्नानाष्टकाख्यामृतं श्लोक ८. स्नानाष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि उत्तम पुष्पमालाविक अंति: अष्टक नाम अमृ को. २६. पे. नाम. ब्रह्मचर्याष्टक सह टबार्थ, पृ. १४२अ -१४२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ब्रह्मचर्याष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: भवविवर्द्धनमेव यतो भवेदधि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण तक है.) ब्रह्मचर्याष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: संसार की वृद्धि; अंति: (-). ९१४६३. पद्मपुराण का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८२४, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. २३५ + १ (१९९)=२३६, ले.स्थल. मांडलगढ, प्रले. मु. लछीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पद्मपुराण पत्र, जैदे., (२८x१६, १५-२०X३७-४१). पद्मपुराण-पद्यानुवाद, मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि : आदिनाथ वंदु जिनराय; अंति: रामचंद० समकिति सुधि. ९१४७०. (+) भुवनदीपक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. टीकम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भुवनदी. टी., संशोधित. दे. (२७.५५१५, १७३०-३४). "" भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३पू आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. भुवनदीपक बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि सरस्वतीकुं नमस्कार, अति: संशय कोई नहीं. ९१५०८. निशि भोजन त्याग कथा संपूर्ण, वि. १९२६ कार्तिक कृष्ण २, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल. सवाई जयपुर, 3 प्रले. श्राव. चिमनलाल खंडेलवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांकवाला भाग खंडित हैं. दे. (२२.५१६, १२-१३X२२-२७). रात्रिभोजनत्याग कथा, मु. भारामल्ल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम नमो जिनदेव दूजैगुर; अंति: त्रीया पापनास तिनि होई, गाथा - २२२. ९१५२१, (४) जन्मपत्रीपद्धति, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४३+१ (१९) ४४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५X१६.५, १२x१८-२२). १३१ जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर सं., गद्य, आदि नीचोनितास्पष्टतरा अंति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. 3 अध्याय ३, श्लोक-४२ तक लिखा है.) ९१५३४. (+) महावीर चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, माघ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३२, प्रले. मु. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी : वीरचरित्र पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२२४१५, ५-८३०-३२). " " दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्क जयत्त्रये, श्लोक-४३७ . १५००. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मु. दीपसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अष्टमहाप्रतिहार्यनी; अंति: कल्प माह पीडा हर ९१५३६. (*) घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्रविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-२ (१, ७) = ६, पृ. वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२२४१५.५, ११५२१). 3 घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. देवायनमः पाठ से भुमिशयनं परागमनवर्जे तक है, प्रारंभ बीच व अंत के पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only ९१५४२. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९३, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र पत्र. चिपके हुए पत्र को अलग करने के कारण स्याही उखड़ गई है, इसलिए प्रतिलेखनपुष्पिका अपूर्ण एवं अस्पष्ट है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३, १५X४२-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अतिः कासवगत्ते पणिवयामि व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. " Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे अवसर्पिणी; अंतिः प्रणमुं वांदु. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचतुर्विंशतिजिनान् अंति (अपठनीय), (वि. चिपके हुए पत्र को अलग करने के कारण अंतिमवाक्य की स्याही उखड़ गई है.) ९१५४५. (*) भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ११९, मध्यम, पृ. ७२ ले स्थल, पाली नगर, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १२X३४-३८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय वालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य वि. १७५८ आदि ऐंद्रश्रेणिनुतं अति जनानामिति श्रेयः, 3 ग्रं. ३५०. (+) | साधुश्रावक आचारोपदेश चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४५-१ (१) =४४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२८x१३, ८x२४-२८). साधुआवक आचारोपदेश चौपाई, मु. विनय, मा.गु., पद्य वि. १८८०-१८८५, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. प्रथम 1 पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अनुमानित ढाल -२ से है व ढाल -८ की गाथा - ६० तक लिखा है.) ९१५४८. (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण वि. १९११ माघ शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले. स्थल. गूढा, प्रले. ग. प्रेमविजय (गुरु पं. रंगविजयजी); गुपि. पं. रंगविजयजी (गुरु पं. जीतविजयजी); पं. जीतविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमपृच्छा. केसरियाजी प्रासादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५X१३, ८-१७X३४-४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं, अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गावा- ६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा कहतां नमिनइ; अंति: ते मोटा अर्थ पिण. गौतमपृच्छा- बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागनी वाणी, अंति: सूरेण हरषपूरण भावता. ९१५४९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५५, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६.५X१४, १०x३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदंसेड़ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. ९१५५० दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५८, दे. (२७५१३, ५४३६-३८). 1 दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किई अति अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्ममंगलीक उत्कृष्टु; अंति: कर्मबंधन पामइ यति. ९१५५२. श्रीपाल रास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६१-२१ (१ से २५ से ७,१६,१८ से २२,२४ से २७,२९ से ३१,३७ से ३८, ४२ ) = ४०, प्र. वि. हुंडी : श्री. रा. जैदे. (२८४१४, ७-१४४४१-४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८ आदि (-); अति लहेशे ज्ञान विशालाजी, खंड-४, गाथा - १८१४, (पू. वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., खंड-१, ढाल - २, गाथा - १४ अपूर्ण तक, डाल-५, गाथा- १ अपूर्ण से डाल-७, गाथा- १ अपूर्ण तक, खड-२, डाल-६, गाथा- १७ अपूर्ण से डाल-७ अपूर्ण तक, ढाल-७, गाथा-२१ अपूर्ण से ढाल-८, गाथा-८ अपूर्ण तक, खंड-३, ढाल ५ गाथा - २८ अपूर्ण से ढाल-७, गाथा-११ अपूर्ण तक, ढाल-८, गाथा- ३ अपूर्ण से खंड-४, ढाल - १ गाथा-५ अपूर्ण तक, ढाल-३, गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-११ तक एवं डाल -५, गाधा-१२ अपूर्ण से डाल-६, गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल ४१) श्रीपाल रास-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति उत्कंठा संपूर्ण थई. (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र चतुर्थ खंड का टवार्थ है.) ९१५५८, (+) पुन्यपाप स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १० प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२८x१३.५, ११४३०). For Private and Personal Use Only " नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु, पद्य वि. १८७२, आदि सरस्वतीने प्रणम् अति भणे विवेक लहे आनंद ए. ढाल - ११, गाथा - ११३. 3 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १३३ ९१५५९ (+) कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-६(१,३ से ४,७ से ९)=६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५४१४, १४४३९-५०). कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., व्याख्यान-१, ढाल-१, गाथा-३ अपूर्ण से व्याख्यान-१, ढाल-२, गाथा-९ अपूर्ण तक, व्याख्यान-४, ढाल-५, गाथा-५ अपूर्ण से व्याख्यान-६, ढाल-६, गाथा-९ अपूर्ण तक एवं व्याख्यान-७, ढाल-१०, गाथा-१७ अपूर्ण से व्याख्यान-९, ढाल-१३, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९१५६०. नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदे., (२७.५४१४, ४-५४२६-३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आव ते एहवा श्रीजीनव, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ९१५६२. (+#) कालकाचार्य कथा व गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८.५४१३.५, १४-१५४२८-५०). १.पे. नाम. कालकाचार्य कथा, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण, वि. १९१९, आषाढ़ कृष्ण, ११, ले.स्थल. कामटी सदरबाजार, पठ.पं. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: चक्रे बालावबोधिकाम्. २. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते सुचिरं क्रमेण, श्लोक-९. ९१५६३. (+) २४ दंडक २९ द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(८ से ९)=८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१४,१३४३२-४५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: (-), (पू.वि. २५वाँ संपदा द्वार २३ संपदा नाम विचार __अपूर्ण तक है.) ९१५६८. कलिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-४(१ से ४)=११,प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२८x१३, १५४४५-५०). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: (-); अंति: कालिकसूरि० बालबोधिका, (पू.वि. "शीलेगुणविभूषितः सर्वथा अदूष्यितः" पाठ से है.) ९१५७० (+) बारव्रतपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १३, प्रले. श्राव. कर्पूरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८.५४१४, १२-१५४३०). १२ व्रत पूजाविधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो पूजा में; अंतिः प्रभुजी के ऊपर बांधै. ९१५७२. श्रावक के १२ व्रत १२४ अतिचार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-२(१,४)=१६, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, दे., (२८.५४१४, १७४३५). १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्रत-३ वर्णन अपूर्ण से पाँच पांडव की दृष्टांत कथा अपूर्ण तक व चंडालपुत्र दृष्टांत कथा अपूर्ण से अतिचार-५ वर्णन अपूर्ण तक है.) ९१५७७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४६, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. किशनलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x१३, २-४४३५-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: चिरवर्णविन्रपुष्पां. ९१५८० (+) जिनप्रतिमा मान विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८, प्रले.ग. नित्यविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३.५, ८४४०-४२). जिनप्रतिमा मान विचार, सं., पद्य, आदि: अरूपं रूपमाकारं विश्वरूपो; अंति: चतुर्दिक्षप्रकल्पयेत्, श्लोक-१५१. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनप्रतिमा मान विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि देवप्रतिमा २ भेदे अति छठे भागे पाटली लांबी (पू.वि. कहीं-कहीं बार्थ लिखा है.) "" ९१५८१. (*) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १८, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७१३, ९-११x२३-२९). १. पे. नाम साधु आचार सज्झाय, पू. १अ ५अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि: पेहला नमुं अरिहंत ज्यां; अंति: तौ डूबा वले वसेषजी, गाथा-४५. २. पे. नाम. पंचम आराफल सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पंचम आराफल सज्झाव, मा.गु., पद्य, आदि: घणा असाधु जिण कह्या भोलां; अंति: पाखंड वधसी आरे पाचमे रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ३. पे. नाम सिखामणरी सज्झाय, पृ. ५आ-७अ संपूर्ण गोशाला सज्झाय-कुगुरु, मा.गु., पद्य, आदि: घणा लोका रे मनमे मानिया र; अंति: आग्या लोप हो सिष्कर रे, गाथा - १४. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ ९आ, संपूर्ण. " औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, रा., पद्य, आदि दुखीय देखी तावडे तिणने; अंतिः सेव्या वधसी करम हो, गाथा-२६. ५. पे. नाम. जीव अनुकंपा सज्झाय, पृ. ९आ-१८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अनुकंपा, मा.गु., पद्य, आदि: वांसै मरणो जीवणौ ते धरम; अंति: धरम ध्यान मांहे रहे बेठा, (वि. गाथांक परिमाण क्रमशः नहीं लिखा है.) ९१५८२. नवतत्त्वद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. जालंधर, प्रले. नंदलाल द्विवेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२७४१३, ११-१३४३८-४०). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुल१ दृष्टांतर कुणद्वार३; अति: तलावरूप मोक्ष जाणवो. ९१५८३. (*) चउद गुणस्थान विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२७X१२.५, १४-१६X३३-४३). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि हिवे इगवीस द्वार अंति (-), (पू.वि. द्वितीय गुणठाणा असंख्यातगुण विवरण तक है.) 3 יי ९१५८५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२२, पौष शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. पं. हमीरविजय (तपगच्छ); पठ. श्राव. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८१३.५, ९४२१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ९१५९९. इंद्रध्वज पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, दे., ( २४४१५, १२x२६). इंद्रध्वज पूजा, मु. विश्वभूषण, मा.गु. सं. प+ग, आदि शीतलैप्रासुकैनीरैः अति चिह्नांकित विश्वदृष्टि. ९१६०८. श्रीपाल चरित्र की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. १८८४ श्रावण शुक्ल, ९, बुधवार, जीर्ण, पृ. ५५-२(१,४)=५३, जैदे., (२३.५X१४, १०x२४-२६). श्रीपाल चरित्र-वचनिका, पंडित. जयचंद्रजी छाबडा, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति : (१) परमार्थधाम, ( २ ) श्रीपालजी की नाई, (पू.वि. प्रारंभिक व बीच के कुछ पाठ नहीं है.) ९१६२२. (*) चौमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. हुंडी: चौमासेंरो बखाण, संशोधित, दे., (२५x१४, १५x२४). चातुर्मासिक व्याख्यान रा. गद्य, आदि श्रीपार्थं सुखमागारं अंति ९१६२८. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४६-३ (३१, ४३ से ४४) +२ (३०, ४६ ) = ४५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X१३, १६x२२). • दुक्कडम् होज्यो. " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अति: (-), (पू.वि. साधु सामाचारी, "चत्तारि पंच जो अणाइ गंतुं पडिनियत्ताए” पाठ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १३५ ९१६३० (+#) सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८६९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१५, १५४४०). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमस्कारसमो मंत्रः; अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र की किनारी खंडित होने के कारण अंतिम वाक्य अस्पष्ट है.) ९१६५३. (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०३, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमक०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४१५, १२४२९). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्य; अंति: परिपूर्ति भावं, ग्रं. ४१०९. ९१६५४. (+) दानादि कुलक सह टीका-दान से तप कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८९-१२(२९ से ३७,८१,८५,८७)=७७, प्र.वि. प्रारंभिक पत्र पर कुलकगत कथाओं की सूचि दी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१४.५, १८-२४४३०-४०). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठांश नहीं है व तप कुलक तक लिखा है.) दानशीलतपभावना कुलक-वृत्ति, मु. लाभकुशल, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० टीकागत कयवन्नाशेठ व अभयकुमार कथा से है.) ९१६६० मेघकुमारनी कथा, अपूर्ण, वि. १८१८, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३५-१५(१ से १५)=२०, प्रले. मु. रामविजय (गुरु पं. दोलतविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१४.५, १५-१८४२४-२७). मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महाविदेहै मुक्त जासै, (पू.वि. ९ प्रतिवासुदेव के नाम से है.) ९१६७० (+) कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, ज्येष्ठ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १३४, दे., (२३४१४.५, ५४२७-३१). कायस्थिति प्रकरण, आ. कलमंडनसरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देस, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंति: संपदा प्रति दिओ. ९१६९६. (+) श्राद्धदिनकृत्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८६६, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ७५, ले.स्थल. कृष्णदुर्ग, प्रले. पं. कस्तूरचंद; लिख. श्राव. रायभाणजी (पिता श्राव. सूरतरामजी मेहता); गुपि. श्राव. सूरतरामजी मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२२४१६.५, ५-१७४२८-३५). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाण; अंति: मिच्छामिह दक्कडंति, गाथा-३४१, ग्रं. ३९०. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-अवचरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा श्राद्धाना; अंति: अयाएमाणेण. ९१७०४. श्रेणिकचरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदे., (२१४१६.५, २४४३४-४०). श्रेणिकराजा चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराज महासुखदायक; अंति: सुने सव पातक भाजत, सवैया-७९. ९१७०७. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१६, १२-१३४३१-३२). पाशाकेवली, सं., प+ग., आदि: संसारपाश सिद्धार्थं नत्वा; अंति: शशवृद्धौ कणक्षयः. ९१७१४. (+) स्यादिशब्दसमुच्चयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:श.सि., संशोधित., जैदे., (२२.५४१६,१३-१४४१९-२३). १.पे. नाम. देवप्रभृतियुष्मदस्मदोन्मयः शब्दनिष्पादनम् सारस्वतस्य, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. सारस्वत व्याकरण-शब्दधातुरूपसाधनिका, संबद्ध, माधव, सं., गद्य, वि. १६७०, आदि: गोपीशं गोपिकागीतं सादरं; अंति: ह्येकादश्या नवे पुरे. २.पे. नाम. स्यादिशब्दसमुच्चय-प्रथम उल्लास, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण. स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. संख्याशब्द साधनिका, पृ. ११अ-१५अ, संपूर्ण. एकादिशतांतसंख्याशब्द साधनिका, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य नीलवर्णं; अंति: संख्याशब्द साध्यंते. ४. पे. नाम. समाससूत्र, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: विभक्तिलृप्यते यत्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ तक लिखा है.) ९१७१६. अवंतिकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अयवंती., जैदे., (२०.५४१५.५, ९-१०४२५-२६). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७... ९१७१७. (+) वंदणपयन्न, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. पूजा प्रकरण., संशोधित., जैदे., (२०४१५.५, १४४२३). पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवद्धमाणतित्थाहिन; अंति: मुणिभद्रबाहुणा, गाथा-५५. ९१७२६. (+) उपदेशकंदली सह पर्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. हंडी:उप.कंद., संशोधित., जैदे., (३१.५४१५.५, ८४३६). उपदेशकंदली, श्राव. आसड, प्रा., पद्य, आदि: तिहयणमंगलतिलयं कय; अंति: जिणोवयसाणुसारेण, विश्राम-१३. उपदेशकंदली-छाया, सं., गद्य, आदि: त्रिभुवनमंगलतिलकं; अंति: आसेन० वचनानुसारेण. ९१७३७. (+) विक्रमलीलावती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. पत्रानुक्रम व पाठ अस्तव्यस्त होने से पत्र गिनकर काल्पनिक दिया गया है. संभव है किसी प्रत की पूर्ति के लिये ये पत्र लिखे गये हों., संशोधित., दे., (३०x१४.५, ११४२८). विक्रमराजा रास, म. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., खंड-३ अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक है., वि. अव्यवस्थित व असंबद्ध पाठ है.) ९१७४० (+#) कवित्तबावनी, संपूर्ण, वि. १९२९, चैत्र कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. कोडाय, प्रले. मु. कस्तूरचंद (गुरु मु. खूबचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जिनहर्षबाव., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२९.५४१५, १६४३०). अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: ॐ अक्षर सार सयल संसार; अंति: कीध सुगुरू पाए नमी, गाथा-५३. ९१७४४. (+#) सीताचरित्र, संपूर्ण, वि. १७५६, माघ शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९१, प्रले. श्राव. दीपचंद छीतरमल शाह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४१४, १०४२९). सीतासती चरित्र, म. बाल कवि, पुहिं., पद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणमं परम पुनीत; अंति: अधिक सैसठि परगति जोइ, दोहा-२५५०. ९१७५४. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-७(१,३२ से ३७)=४९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९.५४१३.५, ७-१५४३०-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-१, गाथा-४ अपूर्ण से खंड-३, ढाल-४, गाथा-३, अपूर्ण तक एवं खंड-३, ढाल-७, गाथा-१४ अपूर्ण से खंड-४, ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९१७६५. सिंदरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)-५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२९x१३.५, १५४३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण तक ९१७७०. स्वरोदयज्ञान, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. प्रेमचंद जेठाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ६००, दे., (२५.५४१४, १९४४०). स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव; अंति: नंदचंद चितधार, गाथा-४५३. For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १३७ ९१७७१. जातक पद्धति, संपूर्ण, वि. १९३९, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. १८, ले. स्थल, जालोर, प्रले. मु. भेरचंद (गुरु मु. दयालचंद भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जातिक. दे. (२६१२.५, ५x२९-३२). मु. जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंतिः एषा जातकदीपिका, श्लोक-१०९. ९१७७४. (+) निशीथसूत्र सह भाष्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: नशीथभा०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५X१३, १८४५०-५५). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सूत्र परिसाडिमपरिसाडी० "पाठ तक है., वि. सूत्र कहीं-कहीं उपलब्ध है.) निशीथसूत्र भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: णवबंभचेरमइओ अट्ठारस अंति: (-), (पू. वि. गाथा- सोच्चापत्तिमपत्ति य० अपूर्ण तक है.) ९१७७५. (*) आगमसार, अपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ कृष्ण, ८. गुरुवार, मध्यम, पृ. ९४ ६१ (१ से ३, ६, ८ से १६, १८ से २३,२५,२७ से ३१,३३ से ३४,३६ से ४०, ४२ से ४९, ५२ से ५३,५७ से ६१,६९ से ७१,७५ से ७८,८० से ८४,८८,९१)=३३, ले. स्थल. अजमेर, प्रले. मु. जसवंतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१३, १५X३३-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי आगमसार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति ३६ दंडायुधनाम जाणवा, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.. वि. विविध विषयों का बोल- विचारात्मक संकलन है.) ९१७७६. (*) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-२ (१ से २) =१४, पृ. वि. बीच के पत्र हैं.. " प्र. वि. हुंडी : भगव०ट०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२७१३.५, ३-५४२७-३५). " भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१, उद्देश-१ "धम्मनायगे धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी" पाठ से शतक-१ उद्देश-२ "रायगीहणागरो समोसरणं परिसाणीगता" पाठ तक हैं.) भगवतीसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). *, ९१७७७. समाधिमरणादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ५, जैदे., (२७१४, १३X३८). १. पे नाम. समाधिमरण विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. साधु कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि कोटिकगणवहरी शाखा, अंति पछे लोगस्स केहवी. २. पे. नाम. सम्यक्त्वादि विधि, पृ. २अ ४अ संपूर्ण श्रावक-श्राविका सम्यक्त्वग्रहण विधि, प्रा., सं., गद्य, आदि: श्रावक श्राविका महोत्सवेन; अंति: इयसमत्तं मएगहियं. ३. पे. नाम. सम्यक्त्वालापक, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण. पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं समीव; अंति: नवकारपूर्वक वार ३ उचरावबुं ४. पे. नाम. द्वादशव्रतालापक, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. १२ व्रत आलापक, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भते तुम्हाणं समीव; अति भगवन अमुक तप उच्चराववो. ५. पे नाम प्रतिमाविधि, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. "" ११ प्रतिमा तपोच्चार विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: इहापि चैत्यवंदनादिकं अति: ९ उदित १० वज्रएसमणभूएअ. ९१७७८. स्तवन, गीत व सज्झावादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. १२, वे. (२५x१३, १२-१४४३२-३६)१. पे नाम वीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य, आदि जइज्जा समणे भगवं; अंति: पढह कयं अभयसूरीहि, " For Private and Personal Use Only गाथा- २३. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा विनतडी; अंति: जिनहर्ष० अविचल सुख लाल रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: भक्ति करुं हितकारी, गाथा-५. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: आय रहो दिल बाग में; अंति: करमसिंह० सिवभाग मै, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन देशना, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी दीये छे देसना; अंति: सीस भणे कल्याण, गाथा-७. ६.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीधो रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनजीरा वावा; अंति: प्रेमसदा जिनचंद, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- निद्रा त्याग, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, म. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निंदडली वइरण होइ रही; अंति: हो मुनि कनकनिधान, गाथा-८. ९. पे. नाम. आरानी सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: भाख्या वयण रसालो रे, गाथा-२१. १०. पे. नाम. घडियाली गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सुणउ चित लाइ कइ; अंति: ध्रम कहै एहिज आधार, गाथा-३. ११. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. शांतिजिन गीत, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सांति दांति कांति; अंति: ध्यायो पायो भवपार रे, गाथा-३. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- जन्मोत्सव, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-जन्मोत्सव, आ. जिनहर्षसरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज महोच्छव अति भलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९१७७९. सिंदूरप्रकरण की टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरटीका., दे., (२७४१४, २२४४९-५८). सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: नाम्नी व्यरचिता कृता. ९१७८३. (+) अध्यात्मकल्पद्रम शांतरसवर्णन, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४८, प्रले. तलजाराम बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१४, १५४३७). अध्यात्मकल्पद्रुम-हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो सदाकाल; अंति: चाखे तो परमपद पामे, ग्रं. १८५०. ९१७८६. पंचपरमेष्ठी मंत्रावली, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३६, प्र.वि. हुंडी:पंचपरमेष्टि., दे., (२९.५४१५, १३४२१-३२). परमेष्ठि मंत्रावली, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: मोक्ष हेत विद्या छे. ९१७९५. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९२८, गजाक्षिनिधिचन्द्रमिते, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९+२(२ से ३)=३१, प्रले. मु. पूर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., दे., (२८.५४१४.५, ७४३१). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं; अंति: यावत्स्फूर्ति च वाच्यम, परिच्छेद-८, संपूर्ण. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: रागद्वेष० अहं रत्नप्रभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., परिच्छेद-२, श्लोक-२३ तक टिप्पण लिखा ९१८०२. (+) कालज्ञाने भाषा प्रबंध व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२१(१ से २१)-७, कुल पे. २, जैदे., (२७४१४.५, १३-१५४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कालज्ञाने भाषा प्रबंध, पृ. २२अ २८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कालज्ञान-भाषा. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य वि. १७४१, आदि (-); अति लिख्यो अर्थ लवलेश, समुद्देश-५, गाथा - १७८ (पू. वि. समुद्देश-१, गाथा २७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २८आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: लूंग टा१ जाईफल टा२; अंति: गरमी वाउजाई सहीसेती. ९१८२७ (+) श्रीपाल चरित्र खंड १ से २ संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ़ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल, नागपुर, 1 प्रले. पं. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२९x१७, १६x४१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेलि कवि तणी अंति: (-), प्रतिपूर्ण ९१८३३. (+) स्वामिकार्तिक उपेक्षा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०० माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ९३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७.५X१६.५, ५x२७). १. पे. नाम. स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा सह टबार्थ, पृ. १आ - ९३आ, संपूर्ण. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, आ. कार्तिकेयस्वामी, प्रा. पद्म, आदि तिहुयणतिलयं देवं वंदित्ता अति तियं संधुवे णिच्वं, गाथा ४८६, संपूर्ण. कार्तिकेयानुप्रेक्षा-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: त्रिभुवनतिलकं देव अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २६ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९३आ, संपूर्ण. औपदेशिक लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: गौमासे गोगणाक्रांते गोरसे, अंति: गां चरंती निवारय, श्लोक-२. ९१८३९. (+) श्रीपाल चरित, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२९x१५, " १२X४६). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या, जीवराज, सं., गद्य वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं च अंति: (-), ', १३९ (पू. वि. प्रथम प्रस्ताव अपूर्ण तक है.) ९१८६४ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९१३ श्रावण शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पू. ६९, प्रले. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२९.५४१३.५, १२x२६) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६. ९१८७३. लंघनपथ्य निर्णय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९- १ ( २ ) = ८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२८.५४१४, , , ९४२६). लंघनपश्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि (-) अंति (-) (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक है.) ९१८७५ (+) सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण वि. १८९२, चैत्र शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पू. ६, प्रले. ग. रत्नविजय (तपागच्छ); पठ. श्राव. हेमचंद अनोपचंद, श्राव. अनोपचंद भाईचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सत्तरभेवीपूजा, जैवे. (२८.५४१४ १४X३२). For Private and Personal Use Only १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सकल० सकल चुणीओ रे, ढाल-१७. ९१८७९ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : श्रीपालचौपाई, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७X१३.५, १२X३०-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४, ढाल - १३, गाथा- १३ अपूर्ण तक है.) ९१८८० (+) पाक्षिक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९१२, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १२ प्र. वि. संशोधित. दे., (२९x१३.५, १२X३८). " Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि: खमासमण पूर्वक तीन नवकार, अंतिः पासं निश्चयसो कहेवो. (वि. कहीं-कहीं सूत्र भी दिये है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९१८८१. (*) नवतत्व, संपूर्ण, वि. १९७८ आश्विन कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले. स्थल बीकानेर, प्रले. श्राव. रामदास जोधपुरिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवतत्त्व, संशोधित., दे., (२९x१३.५, १६x४७). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., गद्य, वि. १८१२, आदिः श्रीवर्द्धमानायन्मः; अंति को ग्रंथ समाप्त ठांम. ९१८८२. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १९६४, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले. स्थल. शिरपुर वाधारी, प्रले. मु. माणेक मुनि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. वे. (२९x११.५, १४४४३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हंतजिनं नत्वा; अंति: लग्गं च भासिज्जा, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: दिनभोगो दिनकरहिस. ९१८८६. (*) विविध विषयक प्रासंगिक लोकगाथादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५४, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने से गिनकर पत्रसंख्या दी गयी है. अनुसंधानरहित अस्तव्यस्त पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२८.५४१३.५, १२४३४). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि न हि भाग्यं विना लक्ष्मी अंति: (-), (वि. विविध विषयक सुभाषित संग्रह.) ९१८९१. शत्रुंजय माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-१५ (१ से १५ ) = १८, जैदे., (२९x१४, ६X३८-४२). शत्रुंजय माहात्म्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक-१६३ अपूर्ण से ४१२ अपूर्ण तक है., वि. शत्रुंजयतीर्थ महिमायुक्त शुकराज, श्रीदत्त, जितारिराजा आदि की दृष्टांतकथाएं हैं.) ९१८९६ (१) जिनसंहिता संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२०-१ (१०१ ) - ११९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हंडी जि.सं., पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२८.५४१२.५, १०४४०). "" " जिनसंहिता, भट्टा. एकसंधि भट्टारक ऋषि, सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवानर्हत्मंगल; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-३५ श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) ९१८९९, (२) चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६०, वैशाख शुक्ल ९ शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५०, ले. स्थल. चाणसमा, प्रले. ग. विवेकविजय (गुरुग. हेमविजय): गुपि. ग. हेमविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि) आ. विजयधर्मसूरि (गुरु पंन्या. रामविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १८-२४४५०-६०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धरा धवति प्रथम अति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा - २६७९, (वि. ढाल १०८) ९१९०९ (*) परमहंस प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५x११, " १०X३४-३८). परमहंस प्रबंध, आ. जयशेखरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी आदि पहिलउं परमेसरु नमिय; अति (-). (पू.वि. गाथा-४०९ अपूर्ण तक है.) ९१९१०. कडुआमतीगच्छ पट्टावली, संपूर्ण वि. १९९३ भाद्रपद शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल, मेथाणा, प्रागघ्रा, प्रले. रामचंद मुलजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी कडुवा.म.ग.प. वे., (२८.५४१२.५, १४४७०) कडुआमतीगच्छ पट्टावली संग्रह, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., गद्य, वि. १६८५, आदि: मंडोलाई ग्रामे नागर; अति प्रसादात् साकल्याणेन. 1 ९१९२३. आचारदिनकर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९-१(१) = २८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८.५X१२.५, १३×३६-३९). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. विवाह संस्कार अपूर्ण से नवग्रह पूजा , अपूर्ण तक है. वि. उदय १४ अपूर्ण से उदय १५ अपूर्ण तक है.) ९१९२५. (*) नव्यक्षेत्रसमास सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १५९६ आश्विन कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित., जैदे., (२८.५x११.५, ९-१५X३७-६५). For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १४१ बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: सोहेयव्वो सुअहरेहिं, गाथा-३८९. बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचरि, आ. गणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्र; अंति: स्वपरार्थमेताम्. ९१९२७. (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२९-९९(१ से ९९)=३०, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तरमाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२८.५४११,१८४५५-५८). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९, (पू.वि. मूल श्लोक-१९ व टीकागत कपिराज कथा अपूर्ण तक नहीं है. टीका प्रशस्ति श्लोक-२० तक है.) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदिः (-); अंति: नारी वा शृंगारयति, ग्रं. ७३२६, (पू.वि. टीकागत कपिराज कथा अपूर्ण तक नहीं है. टीका प्रशस्ति श्लोक २० तक है., वि. प्रारंभ के व अन्तिम पत्र नहीं है.) ९१९२९. सुखबोधार्थमालापपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. अमृतविजय; अन्य. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२८x११.५, १२४४२-४५). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार-१९, सूत्र-२२८. ९१९३२. जैन द्रष्टांत कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२७.५४१२, १४४३०-४१). जैन कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अर्थार्थवर्गे हित चिंतन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संजतिराजा द्रष्टांत तक लिखा है.) ९१९३३. (+) जैन कथा चरित्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९६, वैशाख कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. ४, ले.स्थल. मेथाणा, प्रले. लालजी छगनलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत्-१२९१ वैशाख वदि-११ सोमवार के दिन लिखि ताडपत्र कापी उपरसे प्रतिलिपि., संशोधित., दे., (२८.५४१२, १३४५७-५९). १.पे. नाम. सिद्धसेनदीवाकर चरित्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. सिद्धसेनदिवाकर चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: सिरिसिद्धसेन पालित्त; अंति: वादी सिद्धसेन दिवाकरः, गाथा-९१. २. पे. नाम. पालित्ताचार्य कथानक, पृ. ४अ-१२आ, संपूर्ण. पादलिप्तसूरि कथानक, प्रा., प+ग., आदि: अत्थि इह भरहवासे नाम; अंति: जसमिणमो कित्तिकुच्चेणम्. ३. पे. नाम. मल्लवादि कथानक, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: अस्सावहबोह तित्थोवसो; अंति: विउवट्टवोजोयएजेण. ४. पे. नाम, बप्पभट्ट कथानक, पृ. १४अ-२८आ, संपूर्ण. बप्पभट्टि कथानक, प्रा., गद्य, वि. १२९१, आदि: ललियालाव मणोहर समत्थ; अंति: असममाहप्प कित्तीण. ९१९३४. (+) बृहत्पोषालिक पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १९९६, चैत्र शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. मेथाणा, प्रले. रामचन्द्र मूलजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति गोलनगर निवासी ओसवाल ज्ञातीय श्रावक सा. चमनाजी नरसिंहजी ने अपने पिता सा. नरसिंहजी गुलाबजी के पुण्यार्थ लिखवाकर श्रीकल्याणविजय जैन शास्त्रसंग्रह को अर्पण की., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३-१४४६६). तपागच्छीय पट्टावली बृहत्पोषालिक, उपा. नयसुंदर, प्रा., पद्य, आदि: सत्थिसिरिसिद्धिसयणं; अंति: गुरूपरिवाडिं पयासंता, गाथा-२१. तपागच्छीय पट्टावली बृहत्पोषालिके-टीका, सं., गद्य, आदि: इहादौ गुरुपरिपाटी कथ; अंति: चक्राते इति भद्रम्. ९१९३५ (+#) मंडल प्रकरण सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९२५, पौष कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. अणिहल्लपुरपत्तन, प्रले. शिवराम पानाचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचोटीपाटक मध्ये. श्रीआदिश्वर प्रासादात्., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२७.५४१२, १६४५६). मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., पद्य, वि. १६५२, आदि: पणमिअ वीरजिणिंदं; अंति: ओ सरणत्थं सपरगाहाहिं, गाथा-९९. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मंडल प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, म. विनयकुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: येनेयं भवति सुपवित्रा. ९१९३७. ताराचंदसंघवी रास, संपूर्ण, वि. १९९०, पौष कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. बडौदा, प्रले. सीताराम गेरमल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (३०x१३, १५४४३). तीर्थमाला स्तवन, ग. ज्ञानसागर पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: स्वस्तिश्री सुख संपद; अंति: तीरथमाला जेणे भणी, ढाल-१०. ९१९४० (4) जीवाजीवाभिगम, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९३-१८८(१ से १८८)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०.५४११.५, १३४४७-५२). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९१९४१ (+) जैन श्लोकसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०.५४१४.५, ११४३१-४५). जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रालयबिंबपुस्तकविधौ; अंति: प्रज्ञाकालत्रयात्मका. जैन श्लोकसंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यद् द्रव्यं एतेषु स्थानके; अंति: नव निश्चइ निर्मल हुइ. ९१९४३. (+#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, प्र.वि. हुंडी:सामुद्रिक०., त्रिपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२८x१३, १३-१४४३८). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: नागरेण रमयंति चित्रणी, अध्याय-३६, श्लोक-१९१, (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से है.) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चित्रिणीने वल्लभ होय, (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण के बालावबोध से है.) ९१९४५ (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३३, माघ शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६१, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. दोलतचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालच०., संशोधित. कुल ग्रं. ३८३, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३१०) पढण गुणण कुं पुस्तका, (१३३०) या पोथी हित से लिखी, दे., (२८x१४, ८x२३-२५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, ग्रं. २८००, (वि. ढाल ४१) ९१९४८.(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७९-१६(१ से १६)=१६३, क्रीत. छोट् व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सू०वृत्ति. अंत में "समत् १९३० मिति जेष्ठ वद ० ने पोथी ज्ञाताजी" का ३५ रूपिया में खरीदने का उल्लेख है., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७७१३.५, १५४५१-५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: वग्गेहिं सम्मत्तो, अध्ययन-१९, (पू.वि. अध्ययन-१ पाठ 'णाणामणिकडगवुडियथंभिय' से है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: दशम्यां च सिद्धेयम्, अध्ययन-१९. ९१९४९. बारव्रत टीप व वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८९, कुल पे. २, प्रले. सा. अमरु (गुरु सा. जवाजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४-१८४३३-३८). १.पे. नाम. बारव्रत टीप, पृ. १आ-८९अ, संपूर्ण, वि. १८८८, भाद्रपद कृष्ण, ९, बुधवार, ले.स्थल. पालिनगर. १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: सदा सिद्ध भगवंतने; अंति: वीर्य तपातिचार कहीयै. २.पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. ८९अ-८९आ, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख कृष्ण, १, बुधवार. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ९१९५०. जैनतत्त्वसार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७०-३(१ से ३)=६७, दे., (२६.५४१४, ५४३५). जैनतत्त्वसार, ग. सरचंद्र गणि वाचक, सं., पद्य, वि. १६७९, आदि: (-); अंति: गणेर्हत्प्रसादश्रियै, अधिकार-२१, (पू.वि. अधिकार-३, श्लोक-१२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १४३ ९१९५६. (+#) शांतिस्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९८४, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हंडी:शांतिस्ना०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३, १४४३७). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा; अंति: (१)गाजते बाजते धारा देवी, (२)महोत्सव करीइ. ९१९६१ (+) गौतमपच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. भागसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३.५, ७४३१-४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, संपूर्ण. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४३ के टबार्थ तक लिखा है.) ९१९६३. (4) वीसस्थानक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-३(२९ से ३१)=२९, प्र.वि. हुंडी:वीसस्थानक०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४१४, ८x१९). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. उन्नीसवीं श्रुतपद पूजा अपूर्ण तक है., वि. अंतिम पत्र में पुष्पिका मात्र है.) ९१९६४. क्षेत्रसमास का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६.५४१३.५, १४४३५). बृहत्क्षेत्रसमास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उवगाह विस्तार देहनइ; अंति: घनगणित जाणिवउ. ९१९६५ (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ-खंड ३, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-७(२,७ से ८,१३,२२ से २३,२५)=२२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, ७-१४४३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-३, ढाल-६ से खंड-४, ढाल-१२, गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९१९६६. भावप्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६४१३.५, ३४३२). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ तक है.) भाव प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: आनंदइ करि भरिय कहता; अंति: (-). ९१९६८. (4) नववाडी सीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७७१३, १२४३०). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: जाउं तेहने भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ९१९७१ (+) प्रतिष्ठासामग्री व विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१३, ३७-३९४९-१८). अंजनशलाकाप्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधि सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: लग्न लेतां सामग्री ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. मालीकर्म तक है.) ९१९७३. वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४१३.५, १६४३७). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ जयंकरो, ढाल-२०. ९१९७७. चैत्रीपूनमनो देववंदन, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भृगुपुर, प्रले. पं. दयालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, २०४३६). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम चोमुख मांडीयें; अंति: (१)दान अधिक उच्छरंगरे, (२)छे जोडू पांचम् संपूर्ण, देववंदनजोडा-५. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९१९८६ (+) गौतमकुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रावण शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. बडाग्राम, प्रले. पं. अर्जुनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमकुलकवृत्ति, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३.५४१३.५, १२४२७-३०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: निषेव्याथ सुखं लभंते, कथा-६९. ९१९९१ (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३, माघ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ९२, ले.स्थल. वटप्रद, प्रले. मु. कपूरचंद (गुरु मु. चिमनराम ऋषि); पठ. पंन्या. देवविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१३.५, ५-१७४३३-३७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: विषय कषायादिक; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. ९१९९२. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जीवा०सू०वृ०., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१३, १८४३८-४७). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: (-), (पू.वि. 'समुत्थियाए रायहाणिए अणेसिं जाव विहरइ' पाठ तक है.) जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत पदनखतेजःप्रतिहत; अंति: (-). ९१९९३ (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०१, इंदुखगावसुश्चंद्र, श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२३+३(१ से ३)=२२६, ले.स्थल. नारायणगढ, प्रले. पं. सूर्यसौभाग्य (गुरु पं. वल्लभसौभाग्य); गुपि.पं. वल्लभसौभाग्य (गुरु पं. गुलालसौभाग्य, तपागच्छ); पं. गुलालसौभाग्य (गुरु पं. देवेंद्रसौभाग्य, तपागच्छ); पं. देवेंद्रसौभाग्य (गुरु पं. सुमतिसौभाग्य, तपागच्छ); पं. सुमतिसौभाग्य (गुरु पं. सिंधसौभाग्य, तपागच्छ); पं. सिंधसौभाग्य; पं. सूरसौभाग्य (गुरु ग. सूरसौभाग्य, तपागच्छ); पं. सूरसौभाग्य (गुरु पं. विशालसौभाग्य, तपागच्छ); पं. विशालसौभाग्य; अन्य. मु. हर्षसौभाग्य (तपगछ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:योगचिं. अनुक्रमणिका सहित., संशोधित., जैदे., (२६४१४.५, १३-१५४२३-२९). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७. योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: टंककर्षटे४ पिचुटं८; अंति: सः सप्तमः संपूर्णः. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वडरीजटा सहेत कुठ पबोडी; अंति: भणी योमकैइक कह्या. ९१९९४. पंचप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२३, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १०१, प्रले. पं. मणिविजय (गुरु पं. मोतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १७-१९४३९-४२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० १पद; अंति: कार्येषु ___ सिद्धिम्, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बारगुणे सहित; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संथारा पोरसी तक का टबार्थ लिखा है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: हवे पंचपरमेष्टी महामंत्र; अंति: प्रवर्ते इतीतत्त्वं, संपूर्ण. ९१९९६ (+#) समयसार की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ३१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, १४-१६४३२-३६). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मोक्ष द्वार अपूर्ण, सवैया-३०१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १४५ ९१९९७. (#) वीरभाणउदयभाण रास, संपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. कच्छ देश विढनगर, पठ. मु. चेनराजजी (गुरु मु. रविलाभजी, विधिपक्षगच्छ); गुपि. मु. रविलाभजी (परंपरा मु. सुंदरलाभजी, विधिपक्षगच्छ); मु. सुंदरलाभजी (परंपरा मु. राजी, विधिपक्षगच्छ); मु. राजी (गुरु मु. मलूखराजी, विधिपक्षगच्छ); मु. मलूखराजी (परंपरा आ. विवेकसागरसूरि भट्टारक, विधिपक्षगच्छ); राज्ये आ. विवेकसागरसूरि भट्टारक (विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५४१४, १३-१४४३६-३८). वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: सदगुरुजी सानिध करो; अंति: घणी दिनदिन हरख अपार, ढाल-६५. ९२००३. (+) सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, ४४१५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. अंतिमवाक्य आंशिक अपूर्ण तक है.) ९२००४. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:अतीचार, जैदे., (२६४१६, ९x१८). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: करीने मिच्छामि दुक्कडं. ९२००७. (#) बारव्रत पूजा व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२(११,२३)=२६, कुल पे. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, ११४३२-३५). १.पे. नाम. बारह व्रत पूजा, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: जग जस पडह वजायो रे, ढाल-१३, गाथा-१२४. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १०अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरु; अंति: थकी लहीये अविचल ठाण, गाथा-३. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ.१०अ-१०आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दिता, गाथा-४. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंति: प्रभु आवागमण निवार, गाथा-१. ५. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १२अ-१९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१, (पू.वि. संभवजिन स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. दीवाली तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मारे दिवाळी रे थइ; अंति: कवियण० भवनो फेरो टाल, गाथा-५. ७. पे. नाम. पच्चक्खाण सूत्र-पांणहारसूत्र तक, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशू; अंति: मुगत नीधान लाल रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. एकादशीनी सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण.. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी नणदल मौन; अंति: उदयरतन० लीला लेसी, गाथा-७. १०. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद जिनजात्र करणकुं; अंति: सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ११. पे. नाम. पांचमनी थुइ, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल थयो अवतार तो, गाथा-४. १२. पे. नाम. अष्टमीनी थुई, पृ. २२आ, संपूर्ण. ___अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: सासन सूरि उवझाय, गाथा-४. १३. पे. नाम, जिनपूजा में फलपूजा की गाथा, पृ. २२आ, संपूर्ण. फलपूजा दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: फल पूजा करता थका सफल; अंति: मांगु प्रभु आगले० मुज तार, गाथा-१. १४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २२आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-मान परिहार, मा.ग., पद्य, आदि: मान मत कर रे मानवी माने; अंति: सरिखा राजवी वेलरीये वीटाय, गाथा-१. १५. पे. नाम, आठम तवन, पृ. २४अ-२५आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. १६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २५आ-२८अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. १७. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ९२००८.(#) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१३.५, १०४२९-३३). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)पंचिंदिय संवरणो तह, (२)नमो अरिहंताणं० इच्छामि; अंति: जैन जयति शासनम्. ९२००९ तपावली, संपूर्ण, वि. १९५१, पौष कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पंडित. लिखमीचंद प्रोहित; पठ. सा. रंभाश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१३.५, १२४४२-४७). तपावली, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमढ्ढ१ एकासणां२; अंति: (१)उत्तर दिशि करिवौ, (२)उत्तर ७ ईशान ८ पाता. ९२०१०. गौतमस्वामी अष्टक, गौतम रास व प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१३.५, १०४३०). १.पे. नाम, गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: गौतम तुरी संपति कोड, गाथा-९. २.पे. नाम, गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-७आ, संपूर्ण. आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-६६. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडम्, (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. श्रुतदेवता स्तुति, नमोस्तु, चउक्कसाय व सामाइयवयजुत्तो सूत्र लिखे हैं.) ९२०११. कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा- वाचना-६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पा०वार्ता., जैदे., (२५४१३.५, ११-१३४३६-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अरिष्टनेमि नामकरण वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. नेमराजिमती कथा अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १४७ ९२०१३.(+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-१(१)=३०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१४, १७-१९४३६-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)उवदंसेइ त्ति बेमि, (२)अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., चातुर्मास कहाँ और कब से प्रारंभ करना चाहिये इसका वर्णन अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उपदेस देईने हित, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: रीते बीजा साधु ते न कल्पे, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९२०१५. देवकीपुत्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१२.५, ११४३२-३४). देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिणंद समोसर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५७ अपूर्ण तक है.) ९२०१६ (+) मौनएकादशी कथानक, संपूर्ण, वि. १८८८, हायनेसायकंसिद्धिश्चैवसुंधरा, ?, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३२-३९). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: ___हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८. ९२०२४. रथनेमिराजिमती, झांझरियामुनि सज्झाय व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. सा. विजयश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३.५, ८-९४२७-३३). १.पे. नाम. रथनेमि राजिमती सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमि अंबर विण; अंति: नित्य वंदन करे जो, गाथा-४०. २. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: (-), गाथा-४३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- चिंतामणि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. ९२०२६. स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ८, जैदे., (२४.५४१३.५, १६४३८). १.पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल-३, गाथा-२५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., पद्य, आदि: जयानंदलक्ष्मीलसद्वल्लीकंद; अंति: पारी नतांते लभंते, श्लोक-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, सं., पद्य, आदि: सकलभविकचेत कल्पना; अंति: नो भाति किं किंमयी, श्लोक-३. ४. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय शैलराज; अंति: ते नाथ जन्मोत्सवे, श्लोक-३. ५. पे. नाम. प्रभाती स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीत प्रते नाम जपत; अंति: ज्ञानमां कांइ बुझे, गाथा-७. ६. पे. नाम. प्रभाती स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. ५जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेसरा परम; अंति: भगवंतना स्तवन भणतां, गाथा-७. ७. पे. नाम. भीडभंडनजीनो स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: श्रीभीडभंजन प्रभु; अंति: धरी नाथजी हाथ सायो, गाथा-५. ८. पे. नाम, बंभणवाडिजिन निसाणी, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४८ www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीर जिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसती सेवग सती; अंति: हुइ हर्षमाणिक मुनि, गाथा-३७. ९२०४० (+) जिनबिंबप्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्रले. श्राव. दामोदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२७.५५१३, १०५४२-४४). जिनविवप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीरं अंतिः कार्यादिति आसनमुद्रा. ९२०४२. भक्तामर स्तोत्र की टीका का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : भक्तामराटि., जैवे. (२७.५४१३.५, १०x३१-४०). " " भक्तामर स्तोत्र- टीका का पद्यानुवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: प्रथमपद अरिहंतवरकुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ७६१ अपूर्ण तक है.) ९२०४४. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ - खंड ४, अपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५६-७ (२८ से ३०, ३६ से ३९)=४९, प्रले. नारायण वेदांत लिख. मु. प्रेमविजय पठ मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५१३. ५५३२-३५), " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७३८ आदि (-); अति विलसे ज्ञानविसालाजी, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. डाल-७ की गाथा २० अपूर्ण से ढाल ८ के दोहा १ अपूर्ण तक, डाल-८ की गाथा-२७ से ढाल-१० की गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रीजो खंड पूरो थयो; अंति: उत्कंठा संपूर्ण थई, , प्रतिअपूर्ण. ९२०४९. (+) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. १८, प्रले. मु. भेरचंद (गुरु मु. दलीचंद); गुपि. मु. दलीचंद (गुरु आ. दयालचंद); आ. दयालचंद, पठ. दीनेश्वर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत मे "दवे ब्राह्मण हुकमचंद लखमीचंद री पोथी उपर लीखी छै" व ज्योतिष संबंधी श्लोक दिया है., संशोधित., दे., (२५.५X१३, १३X३३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: गणी भाख नथी ले कोप, श्लोक-२९४. ९२०५६ (+४) मृषावादविरमणाधिकारे मानतुंगमानवती चरित्र, संपूर्ण वि. १८६९ कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३८, ले. स्थल, जालोर, प्रले. मु. राजविजय पठ. मु. माणकमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२८x१३, १५३४-३७). मानतुंगमानवती रास मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि ऋषभजिणंद पदांबुजे अंति: मोहनविजय० मंगलमालो है, डाल-४७, गाथा-१०१५. ९२०६० (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५२, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. पालि, प्रले. मु. राम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१२.५, १३x४२-४६). " पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: नित्थारगपारगाहोह. २४ मांडला, प्रा. गद्य, आदि आधाडे आसन्न उच्चार; अति दूरे पासवणे अहियासे. ६. पे नाम पोरिसि विधि, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. ९२०७१ साधु प्रतिक्रमणसूत्र विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ८, दे., (२७.५X१३, १३४३९-४२). १. पे नाम साधु प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ ४आ, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह से.मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि करेमि भंते सामाइयं; अतिः वंदामि जिणे चडवीस, , २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १ से २, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्किहूं, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे नाम. संधारापोरसीसूत्र, पू. ५आ-६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि निसीहि निसीहि निसीहि अंति मिच्छामिदुक्कडं तस्स, गाथा १७. ४. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: प्रथमना बोल २५ केहवा. ५. पे नाम. २४ मांडला बोल, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १४९ गु.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: छ घडी चड्या पछी; अंति: त्यां सुधीना लेवा. ७. पे. नाम. गोचरी आलोयण विधि, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.. ___प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोचरी लइ आवी निसिहि; अंति: पारीने लोगस्स कह. ८. पे. नाम. साधुनित्यक्रिया विधि, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.. __प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जागे त्यारे राइपडिक्कमणा; अंति: कायगुप्ति धरे १३. ९२०७२. () स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९१५, फाल्गुन शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. श्राव. गलालजी; पठ. सा. उत्तमश्रीजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में "श्रीपारसनाथ प्रसाद जाण" लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १५४३१-३६). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभजिनेसर प्रीतम; अंति: गाता अखय संपद अतिघणी, स्तवन-२४. ९२०७६. (+) चंद चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ.८०-२५(१ से १२,२५,३७,३९ से ४१,४३ से ४४,५४,५७ से ५९,६२,६५)=५५, प्रले. मु. जिनकुशल (गुरु मु. भक्तिकुशल); गुपि. मु. भक्तिकुशल (गुरु मु. उमेदकुशल); मु. उमेदकुशल (गुरु पं. सिंहकुशल गणि); पं. सिंहकुशल गणि; पठ. मु. शीलकुशल (गुरु मु. नरोत्तमकुशल); गुपि. मु. नरोत्तमकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १७४३५-३९). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१३, गाथा-१ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. ढाल-१०८) ९२०७७. (+) योगोद्वहनविधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४२, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२.५, ७-१३४३८-५०). १. पे. नाम. योगोद्वहनविधि संग्रह, पृ. १आ-३५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:योगविधिः. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअक्खंधो; अंति: वासक्षेप शिष्यादिकने करै. २. पे. नाम. असज्झाय विधि, पृ. ३५आ-३७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एहना विभेद एक आत्मा; अंति: असज्झाई माहि जाणवी. ३. पे. नाम. अतिथि संविभागवत आलापक, पृ. ३७आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: संविभागवत आलापक. ४. पे. नाम. सम्यक्त्व दंडक, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व आलावो, प्रा., गद्य, आदि: नउकार३ अहं भंते; अंति: कंतारेणं वोसिरामि. ५. पे. नाम. तप उच्चार दंडक, पृ. ३८अ, संपूर्ण.. तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: इच्छामि० पसाउ करी अमुक तप; अंति: अन्नत्थ अणाभोगेणं. ६. पे. नाम. शील व्रतोच्चार आलापक, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रावण शुक्ल, १०, शनिवार, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. सुखदत्त बोडा; लिख. मु. हर्षविजय (गुरु मु. जयविजय); गुपि. मु. जयविजय (गुरु पं. श्रीविजय); पं. श्रीविजय (गुरु मु. जीतविजय); मु. जीतविजय (गुरु पं. कुशलविजय), प्र.ले.पु. मध्यम. शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अहं भंते तुम्हाणं; अंति: वार ३ उच्चरावीइं. ७. पे. नाम. कालग्रहण विधि, पृ. ३८आ-४०अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वाघाई अहुरत्ती दक्षिण; अंति: ललिउं जावसुट्टइच्छं. ८. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ४, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण.. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: असंखयं जीविय मा पमाय; अंति: व सरीरभेउ त्ति बेमि, गाथा-१३. ९. पे. नाम. अन्नायउंछ कुलक सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४२अ, संपूर्ण. अन्नायउंछ कुलक, प्रा., पद्य, आदि: अंतायुउच्छगहणेकयचित; अंति: छंति सुग्गइ त्तिबेमि, गाथा-२५. अन्नायउंछ कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अणजाणी ते घरे भिख्या; अंति: सडीगतिइ इम हुं कहूं. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२०७८. (+) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. हितविजय; लिख.पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे 'श्रीसोभाग्यविजय महाराजनी प्रत उपरेथी उतराइ श्री राजनगर मध्ये' ऐसा पाठ मिलता है., संशोधित., दे., (२७.५४१३, ३-१०४५२). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदिः आवश्यकश्रुतखंधेषु उद्देसस; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडं. ९२०८२. (+) धर्मोपदेश व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-१(१)=३९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रक्रम का उल्लेख न होने से पत्रांक गिनकर दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७.५४१३, १२४३७). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ९२०८३. (+) सिंघासणि बत्रीसी चौपई, अपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. ५७-१६(१ से ४,२८ से ३०,३५ से ३८,४०,४७,४९ से ५१)=४१, ले.स्थल. विद्युतपुर, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय, तपगच्छ); गुपि. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मोहनविजय गणि, तपगच्छ); पं. मोहनविजय गणि (गुरु ग. कमलविजय); ग. कमलविजय (गुरु ग. केसरविजय, तपगच्छ); ग. केसरविजय (गुरु ग. दानविजय, तपगच्छ); ग. दानविजय (गुरु उपा. लक्ष्मीविजय गणि, तपगच्छ); उपा. लक्ष्मीविजय गणि (गुरु ग. लावण्यविजय महोपाध्याय, तपगच्छ); ग. लावण्यविजय महोपाध्याय (गुरु ग. मेरुविजय, तपगच्छ); ग. मेरुविजय (गुरु ग. आणंदविजय, तपगच्छ); ग. आणंदविजय (गुरु आ. हीरविजयसरि, तपगच्छ); आ. हीरविजयसरि (तपगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:सिंघासण. श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १६x४०). सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: लहि नर कोडि कल्याण, गाथा-१५४२, ग्रं. १६००, (पू.वि. पुतली कथा-१, गाथा-९ अपूर्ण से है, कथा-१४, गाथा-७८ अपूर्ण से कथा-१६, गाथा-७५ अपूर्ण तक नहीं है व कथा-२०, गाथा-१ अपूर्ण से कथा-२२, गाथा ९८ अपूर्ण तक नहीं है एवं बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९२०९३. (#) आदिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १२, प्र.वि. हुंडी:उपदेस., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १२४३३-३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुम तजो पराई नार हाथ; अंति: देह जगत जस लीजे जगत, गाथा-७. २. पे. नाम. निंदक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: धोबी धोवे कपडा रे; अंति: निंदक रे को कुण, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: में हाजर नोकर तेरा प्रभु; अंति: प्रभु चरणे चित मेरा, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-सागर शेठ, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सागरशेठ धन रो लोभ; अंति: काई छोडो थे नरनार, गाथा-८. ५. पे. नाम. रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीरामचंद्रजी आया; अंति: राज भबीक्षसण पाया रे, गाथा-१६. ६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सतगुरु भाखे इमरत वाण; अंति: चोतमल० होली चोमासो, गाथा-६. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे; अंति: ते नर पामें साता जी, गाथा-१०. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्षमाधर्म, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खिमीया धर्म पहिलो; अंति: छोडीया सुख थावेजी, गाथा-९. ९. पे. नाम. औपदेशिक १० बोल सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १५१ १० बोल सज्झाय-औपदेशिक, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: देवत हवे दस बोलसुं; अंति: मुनी आसकरण अणगार, गाथा-१३. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: चेत चतुर नर कहे थनै; अंति: सांच बीना सुधरे नाही, गाथा-८. ११. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: इण तो काया मे प्रभु; अंति: जुठो सर्व संसारो, गाथा-६. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी माहें भमता; अंति: सीवरमणी ने वरसे रे, गाथा-१०. ९२०९४. (+) सिंदूरप्रकराख्य काव्य, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रावण कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. मदहिपूर, प्रले. मु. ऋषभचंद्र (गुरु मु. कीर्तिचंद्र); गुपि.मु. कीर्तिचंद्र; पठ. श्राव. काशीनाथ; राज्ये आ. रामचंद्रजितसूरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदरप्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२७.५४१३, १०४३१-३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१०१. ९२०९५. (+) अनुभागप्रदेशबंध विवरण व औपदेशिक व्याख्यानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३.५, १३४३३). १. पे. नाम. अनभागबंध प्रदेशबंध विवरण, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अथ अनुभागबंध अने प्रदेश; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नवतत्त्व की संदर्भगाथा-२३ तक लिखा है.) २.पे. नाम. धर्मोपदेश व्याख्यान संग्रह, पृ. ७आ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-१४ भी समाहित है. औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: विरला जाणंति गुणा विरला; अंति: (-), (वि. विविध विषययुक्त. कहीं-कही अर्थ व टीका भी समाहित है.) ३. पे. नाम. ९ निदान वर्णन सह टीका, पृ. १३आ, संपूर्ण. ९नियाणा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: निव १सट्टि २ इत्थि; अंति: हुज्जा नव नियाणा, गाथा-१. ९नियाणा गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: कश्चित्साध्वादिर्निदानं; अंति: सर्वविरति नाप्नोति. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह सह भाषाटीका, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. किसी व्याख्यान का भाग है. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जर आवइ जुव्वण गलइ नित उगि; अंति: इद नट्टास सेवकनइ सामि, गाथा-६. औपदेशिक गाथा संग्रह-भाषाटीका, मा.गु., गद्य, आदि: जरा आवि ने जोवन गयुं नित; अंति: नवनवा नाटिक समान संसार छे. ५. पे. नाम. पद्मिन्यादि नारिलक्षण श्लोकसंग्रह, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण. पद्मिन्यादि नारीलक्षण श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पद्मनी हस्तनी चैव चित्रणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५२ तक लिखा है.) ९२१०१. प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पडिक०., जैदे., (२७७१३.५, १२४३०-३५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: जैनं जयति सासण, संपूर्ण. ९२१०२. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६०, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. प्रतापसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., त्रिपाठ., जैदे., (२७४१३,१५४४५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: समत्तं निच्चलं तस्स, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण्य; अंति: निश्चज जाणिवउ. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२१०४. प्रतिष्ठाविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-५ (१ से ५) = ६, दे., (२८X१३, १३X२९). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति विसर्जन मंत्र, (पू.वि. मंगलकलश यात्रा विधि अपूर्ण से है.) ९२१०६. (+) २१ प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५X१३, १४-१५X३०-३८). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रणम् प्रथम जिणंदन अति (-) (पू.वि. पूजा २० तक है.) ९२१०७ (-) औपदेशिक गाथा व जैन धार्मिक दोहा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी: सीलोक... " अवाच्य अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१३, १६३०-३४). १. पे नाम औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १२-३आ, संपूर्ण, औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., सं., पद्य, आदि: भलो होव सो भली विचार; अंति: (-), गाथा-७०. २. पे नाम. जैन धार्मिक दोहासंग्रह, पू. ४-५आ, संपूर्ण दोहा संग्रह - जैन धार्मिक, पुहिं. मा.गु., पद्य, आदि नवा लोक जान कह्या घणा भाव; अंति: (-), दोहा ६०. ९२१०८. (+) वीरभाणउदयभाण रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४१ - २३ (१ से २३ ) = १८, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४१३, १७४४१-४५). वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि (-); अति (-). (पू.वि. ढाल ३४ की गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-६२ की गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ९२१०९. प्रतिमादि स्थापना श्रीवीरजिन व सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैवे. (२७.५x१३, १५X३७). १. .पे. नाम, प्रतिमादि स्थापना श्रीवीरजिन स्तवन, पू. १अ-७अ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगभिंत, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३३, आदि प्रणमी श्रीगुरुना पयः अति: आणा सिर वहस्ये जी, दाल-७, गाथा १४८. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाधा, पृ. ७अ ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२ की गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ९२१११. सुकोशलमुनि चौपाई व स्थूलिभद्र नवरसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-४३ (१ से ४०, ४२ से ४४) =४, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२.५, १४X३५-३८). १. पे नाम. सुकोशलमुनि चौपाई, पृ. ४१अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सांगू, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उचरै जिम पामुं भव पार, गाथा- १७३, (पू.वि. गाथा- १७० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. थुलभद्र नवरसौ, पृ. ४१-४७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. " स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति सेवकनै नीस्य तारज्यी रे, डाल-९, गाधा -७४ ( पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ९२११२. (**) दीपाली कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३८-१८९४ से ७, ११ से १८, २१ से २६ ) = २०, प्रले. मु. सुखसागर (गुरु मु. पुण्यसागरसूरि); गुषि. मु. पुण्यसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, ६x४०). . दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३७ . १५०० (वि. १८४०, पौष कृष्ण, ४, रविवार, पू.वि. श्लोक-२६ से ६८ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अर्हं नत्वाल्पबुद्धिनां; अंति: करि त्या लगे प्रतपो, (, फाल्गुन शुक्ल, रविवार, वि. प्रतिलेखक ने लेखनसंवत् १८२८ दिया है जो भ्रामक प्रतीत होता है.) ९२११५ (+) मृगापुत्रमहऋषि अध्ययन सह वालाववोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २२, पठ श्राव. जेसा साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैये. (२७.५x१२.५, १x२९-३७). For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १५३ उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: सुग्गीवे नयरे रम्मे; अंति: गुणावहं तिबेमि, गाथा-९९. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सुग्रीवपुर नगर महा; __अंति: आत्मानुं काज साधसिइं. ९२११६. (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, ४४३२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से ६० अपूर्ण तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२११७. वीसस्थानिकतपविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राधणपुर, पठ. सा. पानसरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणी पार्श्वनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२७.५४१३, १२४३४-३६). २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीजिनमुखकजवासनी; अंति: नित नित मंगल च्यारजी, ढाल-६, गाथा-८०. ९२१२१ (+) आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-१८(१,३,५ से ११,१३,१५ से १७,२१ से २५)=१२, ले.स्थल. पीपलिया, पठ. मु. थावर ऋषि (गुरु मु. देवदास ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२८x१२, ११४४२-४४). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१, उद्देशा-१ अपूर्ण से है.) ९२१२४. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, ३-५४३४-४०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बुद्धे फलं तत्त्व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतिं हृदि; अंति: (-). ९२१२६. (+) वर्द्धमानजिनचतुर्विंशतिजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, फाल्गुन शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. दलोदर, प्रले. पं. धनरूप (गुरु आ. जयतिलकसूरि); आ. जयतिलकसूरि (गुरु आ. भावहर्षसूरि, खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनेश्वरसूरि (गुरु आ. जिनपतिसूरि, खरतरगच्छ); पठ. श्राव. डुंगर सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, ५४३६). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभजिनेसर प्रीतम; अंति: ज्ञान० सुखनो सदा रे, स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेव जिनेश्वर; अंति: आप सरूपे भोक्ता छो, (पठ. मु. रायचंद (गुरु मु. दोलतसागर); गुपि. मु. दोलतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य) ९२१२८. (+) स्तवनचौवीसी व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-६(२१ से २३,३१ से ३३)=३१, कुल पे. १५४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, १५४४५). १. पे. नाम, स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.. म. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू ताहरी सूरति में धरी; अंति: न्यायरिंगरटके हो राज, स्तवन-२४. २. पे. नाम, चतुर्विंशति जिनेंद्र पद, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: तेरो दरस भलें पायो; अंति: हुं नवनिधी पायौं, स्तवन-२४, गाथा-१०९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: जस कहेल्दीजे परमानंदा, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org उपा. यशोविजयजी गणि पुहिं., पद्य, आदि मेरे साहिब तुम ही हो; अंति जस० तुंही तारणहारा, गाथा ५. ५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८आ ९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वाणांना रे बहुजी; अंतिः परमानंद पद पामी रे, गाथा- ३. ६. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदिः याद नेमि हो मानु याद; अंति: मुगति पुरिमां भलसे, गाधा-१०. ७. पे. नाम नमस्कारपद स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंत्र ए सार पंचपद अति ए नमस्कार हे, गाथा-४. ८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे नही आवना नही; अंति: नवल० मारग लय लावना, गाथा-४. ९. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ देखाव; अंति: संघ आवे बहु' 'धसमसीया, गाथा-५. ११. पे नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पु. ९आ-१०अ संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा-७. १०. पे. नाम. नेमराजिमति होरी पद, पृ. ९आ, संपूर्ण नेमराजिमती होरी पद, मु. मोहनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो नेमजी आवणहार; अंति: मोहन जय जय कार हो, रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि साई तु भला वे अंतिः रंग कहे जनम्हारा, गाथा ५. मु. १२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. मोतीलाल साधु, पुहिं. पद्म, आदि: संजम लेउंगी साथ पीया अंति मोतिलाल उतारो भवपार, मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि : आवो रे घनस्याम मेरे; अंति: मीरा० काल सुधारे, गाथा-३. १५. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १०अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि ले गयो खेलन होरी रे; अंतिः सेवक० चित चोरी रे, गाथा ४. १४. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तारां नयनां रे प्याल, अंति: तेणे रंगथी वर्यां छे, गाथा-६. १६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. मु. अमृत, हिं., पद्य, आदि देखन दे ऐसे छेलगुमान; अंति: अमृत रसीक दिलजानी, गाथा-५. १७. पे. नाम. नेमराजिमति होरी, पृ. १०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी गीत ग. रंगविजय, पुहि, पद्य, आदि होरी आवन दे रे होरी अति रंग० जुग जुग जोरी, गाथा-४. " १८. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १० आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नेमि पिया दीलजानी; अंति: शिवपुर की पटरानी, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १० आ-११अ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: हां हां रे यमुना हां, अंति: सौ रंग नमे दोउ करजोरी, गाथा-५. २०. पे नाम शत्रुंजयतीर्थ होरी, पु. ११अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, पु.ि, पद्य, आदि भेट हरख दुख मेट; अंति: अमृत० जिन आगम शैली, गाथा-४. २१. पे नाम आदिजिन पद, पू. ११अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ए देखी तेरी लीला; अंति: अमृत मेरो जीहा कुं रिझावन, गाथा-३. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहिं, पद्य, आदि मोने तारिये महाराज अति रंग० सुधारो मोरो काज, गाथा-४. " For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १५५ २३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. । साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: अब रे निरंजन साहिब; अंति: रुपचंद० दामन पकरी, गाथा-४. २४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: जीवनो तो थोरो हि; अंति: भई ताकी झूठी वात है, गाथा-४. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांति, पुहि., पद्य, आदि: कोप्यो कमठ कपट भयो; अंति: मेरो पाप छुटत छननन, गाथा-५. २६. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. बाहजिन फाग, म. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: परणे रे बाह रंग; अंति: न्याय०जिन आणि खरी रे, गाथा-५. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: नवल दुलारो नाथजी; अंति: हारे दीनानाथ दयाल, गाथा-७. २८. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी-चिंतामणि, मु. भाणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चातुरी कहा बोलु; अंति: शिवसुख की हे निशानी, गाथा-७. २९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा-६. ३०. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: भोली आमांणि आया रे; अंति: रूपचंद बंदा तेडा, गाथा-४. ३१. पे. नाम, कुंथुजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, पुहि., पद्य, आदि: कठिन भगति की रीत; अंति: कुंथु भगति रस प्रीत, गाथा-५. ३२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ.१२आ-१३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हुं आवी तुने तेडवा; अंति: पावे कल्याण रूपरे, गाथा-४. ३३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सोइ सोई सारी रेन; अंति: सारी डुब गई दुनियां, गाथा-४. ३४. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मुरत मोहन वेलडीजी; अंति: ऋषभदास गुण गेलडी जी, गाथा-५. ३५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रंगविजय, पुहि., पद्य, आदि: तुम बिन मेरी कोन खबर; अंति: रंग सदा सुखकंदा, गाथा-५. ३६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. रंगविजय, पहिं., पद्य, आदि: मनमोहन मंदिर आवोरे; अंति: रंगे अमृत रस पावोरे, गाथा-५. ३७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.. मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे मनमोहन तुं; अंति: रस रंगथी पिधो रे, गाथा-४. ३८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: माई मेरो वरज्यु मान; अंति: आनंदघन० उनको रे ध्यान, गाथा-३. ३९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: करेज्या ज्यारे ज्या; अंति: आई अमित सुख देजा, गाथा-३. ४०. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: मोहे भरण दे भरण दे; अंति: थेले ते हो उनको दाण, गाथा-२. ४१. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: अब मे जाणे हो रसम से; अंति: धिरे धरो पाउगेनां, गाथा-२. ४२. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तानसेन, पुहि., पद्य, आदि: मोरली बजाइले सुगट; अंति: तानसेन० बदलायो कीने काजे, गाथा-३. ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-उज्जैनमंडन, पुहि., पद्य, आदि: मेरी तो निभाना दाता; अंति: रस मौला तेरी रुसनाई, गाथा-४. ४४. पे. नाम, रामकृष्णभक्ति पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. __भर्तृहरि, पुहि., पद्य, आदि: रामनाम जिहां कृष्ण; अंति: हरी मिलन की आस्या रे, गाथा-४. ४५. पे. नाम. राधाकृष्ण पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. राधाकृष्णभक्ति पद, सूरदास, पहिं., पद्य, आदि: बहिया जो ग्रही मेरी; अंति: जगरत सारी रेन गई रे. गाथा-५. ४६. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. हिमो, पुहिं., पद्य, आदि: कांइ ध्यान हरीना; अंति: जई निकलंकी नरने वरवा, गाथा-४. ४७. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: नाडि न जाणे वैद रे; अंति: मरने की त्यारी हे, गाथा-४. ४८. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देखो जमना मे बज रही; अंति: उठी मेरी पांसरी, गाथा-४. ४९. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बावरे से कहीयो मोरी; अंति: मे तो उनसे धरही, गाथा-३. ५०. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. कृष्णविरह पद, पुहि., पद्य, आदि: जब लालन की सुद्ध पाई; अंति: ढुंढु जापुं पंडितभाई, गाथा-३. ५१. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कैसे भरन जाउ पनिया; अंति: भई मतवारी स्याम रे, गाथा-२. ५२. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रंगरेज चुनड मोरी रंग; अंति: रंग वसंति बनादे, गाथा-२. ५३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: में दधि वेन जाति; अंति: दाण काह को मांगे, गाथा-३. ५४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. हेमाचंद, म.,मा.गु., पद्य, आदि: बोली राजीमती भामनी; अंति: हेमाच० केली रे, गाथा-४. ५५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, पुहि., पद्य, आदि: जावा न देउ रे जदुविर; अंति: दिप० धिरने जी रे, गाथा-७. ५६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तव, पृ.१५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: लेजा लेजा लेजा जी; अंति: अक्षय सुख कुं देजा, गाथा-५. ५७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. देवादास, पुहिं., पद्य, आदि: कीन संग खेलुंगी होरी; अंति: जुगमे जोड जयकारी रे, गाथा-३. ५८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. म. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: हो शिवरमणीरा वरा; अंति: चैनविजे० न छांडस्या, गाथा-३. ५९. पे. नाम. आनंदघन अष्टपदी-१,२ व ८, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण. आनंदघन स्तुतिरूप अष्टपदी, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: हेजें मारग चलत चलत; अंति: सिद्धसरुप लिइ धसमस, प्रतिपूर्ण. ६०. पे. नाम. ऋषभजिन स्तव, पृ. १६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा-७. ६१. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एही ज चाहीइं; अंति: आनंद० कछु ओर न चाहु, गाथा-३. ६२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चौद के पार किनार; अंति: चरणसरण का दासा हे, गाथा-६. ६३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: फरसे महाराज आज राज; अंति: जिन ध्यावता आगम लय लाई, गाथा-२. ६४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे हुंते भींजू; अंति: रंगविजय भाग्य सुधारे, गाथा-७. ६५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: होता जाज्यो जी राज; अंति: दीनो अमृत सुख साज, गाथा-५. ६६. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: हरियालो डुंगर प्यारो; अंति: चंद० मुझ तारो रे, गाथा-३. ६७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: हो सलूणी स्याम री; अंति: मोय बहिया ग्रही री, गाथा-५. ६८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: हो वालेमा तुंनी मोसे; अंति: राजूल के गुनखानी, गाथा-३. ६९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. रंगविजय, पहिं., पद्य, आदि: आज वालिम तमे खमोजी; अंति: रंगे० रमो रे हो, गाथा-५. ७०.पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १७अ, संपूर्ण. मीराबाई, पहिं., पद्य, आदि: नाडी ना हो जाणे वैदा; अंति: मीरा० चलने का त्यारी, गाथा-४. ७१. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण... मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातिम परमेसर मने; अंति: रंगे सिवसुख दिजीइ रे, गाथा-५. ७२. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १७आ, संपूर्ण. म. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: को बरना छबि को बरना; अंति: हा राजाराम समरेया, गाथा-२. ७३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: या जोगायाने हर लीनो; अंति: तारण भवनो ए तीनो, गाथा-५. ७४. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: रुप० नीरंजन तेरा रे, गाथा-३. ७५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. अमत, पुहिं., पद्य, आदि: अहवा अमर कचोले भर्यु; अंति: अमृत सरखी वाणी, गाथा-२. ७६.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माई मेरो या रसना रस; अंति: रोम रोम मुस्तागो, गाथा-४. ७७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: जागि जागे रेन भयो रे; अंति: ज्यौ नीरंजन पावे, गाथा-४. ७८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अविनासी के गुण गावना; अंति: अंकुस कुं रिझावना, गाथा-४. ७९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: हक मरना हक ज्याना; अंति: रूपचंद० साहिब जान्या, गाथा-४. ८०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मिठडा जिन में दिठडा; अंति: हुओ हजुर रे जी रे, गाथा-५. ८१. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तव, पृ. १८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची यगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे पामी अति; अंति: पंडित जिनविजयइ गायो, गाथा-९. ८२. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तोए नमो नमो समेतसिखर; अंति: ऋद्धि० चैत्यवंदन करी, गाथा-७. ८३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अजब गति चिदानंद; अंति: जस० उनके समरन की, गाथा-५. ८४. पे. नाम, अध्यात्म गीत, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो चिदानंद अविनासी; अंति: जस० ब्रह्म अभ्यासी हो, गाथा-६. ८५. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूपासजी विना चित; अंति: पदमां ते रंगे रमे, गाथा-७. ८६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं दिठमे आदीसर; अंति: अमृतपद ते रंगे वरे, गाथा-७. ८७. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. मु. रंग, सं., पद्य, आदि: शुचिसकमलनलिने पुलिने; अंति: रंग० कुर्मेस एति, गाथा-२. ८८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, मु. रंग, सं., पद्य, आदि: भज वामतनयं मान स्मर; अंति: रंग० महोदयपदमुपनीतं, श्लोक-७. ८९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २०अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, रा., पद्य, आदि: थारी ओलु लाग रही; अंति: अमृतसुख रस रंग लही, गाथा-५. ९०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेला रस मानो माका; अंति: रंगे दिजे अविचल राज, गाथा-५. ९१. पे. नाम, सुमतिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. सुमतिपार्श्वजिन स्तवन-अजीमगंज मंडन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज के सतर; अंति: ध्यान अविचलसुख राजते, सवैया-६. ९२. पे. नाम. पार्श्वजिन आरति, पृ. २०आ, संपूर्ण.. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनकुलमंडण जगजन; अंति: रंगे० सीरनामी जयदेव, गाथा-७. ९३. पे. नाम, शांतिजिन आरति, प. २०आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९४. पे. नाम, महावीरजिन गीत, प. २४अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम० शिवमंदिर तणी जी, गाथा-९, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-२ से है.) ९५. पे. नाम. सांझनु मंगल, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासनदेवता समरीअ गाय; अंति: जिन गुण निरमल चित्त, गाथा-६. ९६. पे. नाम. खामणां भास, पृ. २४आ, संपूर्ण. खामणा भास, मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अति अतिशयी अरिहंत; अंति: आतमा उत्तम एह चरित्र, गाथा-८. ९७. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मोहराय से लडीया बे; अंति: भाव० सेवा तडीया बे, गाथा-२३. ९८. पे. नाम. विसस्थानिक स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीसस्थानक तप किजीइ; अंति: शुभवीर० शिवराज जो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. १००. पे. नाम. आदिजिन आरति, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. आदिजिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि: आरति करुं नाथ तेरी; अंति: तुम्हसे बनी लीलाधारी, गाथा-५. १०१. पे. नाम. शांतिजिन अध्यात्मगीत, पृ. २६अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम शांतिजिन अध्यात्मगीत ऐसा दिया है. साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: म्हे मतवाला ग्यांनका; अंति: दिल भितर पइठो रे, गाथा-५. १०२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अपनो साहिब आपमें पिण; अंति: मोहन० तब प्यारो सझे, गाथा-५. १०३. पे. नाम. कर्मयुद्ध सज्झाय, पृ. २६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: धर्म के विलास वास; अंति: सुजस० पाउ हम लगेहि, गाथा-५. १०४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २६आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मिलवो जग जोर कठिन हे; अंति: मिले रुपचंद पीय मेरा, गाथा-७. १०५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: रूपचंद०सरण तिहारा है, गाथा-९. १०६. पे. नाम. मूढशिक्षा अष्टपदी, पृ. २७अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्यौ प्रभू पाईये; अंति: विना तु समझत नाहि, गाथा-८. १०७. पे. नाम. आत्मरूपोत्पत्ति गीत, पृ. २७आ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे यों प्रभु पाईये; अंति: एक हि तब को कहि भेटे, गाथा-८. १०८. पे. नाम. शीतलजिन स्तव, पृ. २७आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी साहिबा; अंति: ज्ञानविमल०भावइं गाया, गाथा-५. १०९. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो छेजी छेजी छेजी; अंति: ज्ञान० ए विधि आणो, गाथा-५. ११०. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. २८अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मनभावन प्रभु तन मन; अंति: मुजरा हमारा ल्यो रे, गाथा-५. १११. पे. नाम. मल्लिजिन स्तव, पृ. २८अ, संपूर्ण. ___मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मोहि कैसे तारोगे; अंति: प्रभु मोहि करत निहाल, गाथा-५. ११२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: ज्ञानउद्योत० एक तारी, गाथा-५. ११३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्यारे शेजो मुन, (२)पालीताणुं रलियामणुं; अंति: न्यायसागर आवागमन निवार हो, गाथा-५. ११४. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. २८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: ले गयो खेलन होरी रे; अंति: सेवक० चरणा परघोरी रे, गाथा-४. ११५. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: घरे आवो चिदानंद कंत; अंति: भुधर० जी के संग, गाथा-५. ११६. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम 'नेमि स्तवन' लिखा है. नेमराजिमती होरी, म. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: नेम निरंजन यार तुमसे; अंति: रंग बन्यो मनोहर, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: घरे आवो स्याम पीयारा; अंति: न्यायसागर उपगारा रे, गाथा-३. ११८. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो; अंति: नेमराजुल शीव लीनो रे, गाथा-५. ११९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सफल जन्म ज्ञानी को; अंति: दरिसणनि को रे लाला, गाथा-३. १२०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्यारे मुने मलसे संत; अंति: किम जीवे मधुमेही, गाथा-३. १२१. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: मोहन मुरति तेरी रे; अंति: जनममरण निवेरी रे, गाथा-६. १२२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: मत छेडो मानु यौहि रे; अंति: पेहली राजुल नारी रे, गाथा-५. १२३. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलावे कानईया; अंति: रुपचंद कहे लेउ बलईया, गाथा-८. १२४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-७. १२५. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ३०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: समतसीखर चालो जईइ; अंति: परमपद पईइ मोरी सजनी, गाथा-३. १२६. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल ढुंढति फरे छे; अंति: ऋषभदास० निज लाडने रे, गाथा-५. १२७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. म. जयराम, पुहिं., पद्य, आदि: असरण सरण चरण कमल; अंति: जयराम० धरत शीलवंत आदि के, गाथा-४. १२८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्रलोक हरष भयो घंट; अंति: रुपचंद० मन भयो मगननन, गाथा-४. १२९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेरीमाहे रमतो दीठो; अंति: अमचो भाग्य उघडीयो रे, गाथा-९. १३०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहि., पद्य, आदि: तुम बिन मेरी कौन खबर; अंति: रंग सदा सुखदानी, गाथा-५. १३१. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ३४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: न करीइ नेडो न करीइ; अंति: अमृत सुखरंग वरीये, पद-७. १३२. पे. नाम. धर्मजिन स्तव, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण.. धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: इम करीये नेडो इम; अंति: अमृतरस रंगे वरीये, गाथा-१०. १३३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरना हक जानां; अंति: हरदम साहिब ध्याना, गाथा-४. १३४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: देखे रे जिणंदा प्यारा; अंति: मेरो आनंदघन उपगार, गाथा-५. १३५. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ना ना ना नाजी में तो; अंति: रंग की उमंगमे रमु, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १३६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं क्या फिरै; अंति: राजाराम० अरज हे मोरी, पद-५. १३७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. ३५अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवसर बेर बेर नहि आवे; अंति: आनंदघन० गुण गावे लो, गाथा-३. १३८. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मगसीमंडन, म. उदय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीमगश्री मगसी; अंति: किनी जिनशासन बलिहारी, गाथा-५. १३९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वंदना अवधारो; अंति: आपज्यो समकित गुणठाणु, गाथा-५. १४०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जोबन अस्थिर, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोबनीयानी मोजा फोजा; अंति: चतुर जावो ने चेति रे, गाथा-४. १४१. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. ३५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोजा चले है; अंति: तो पकड मगाव आठे चोर, गाथा-५. १४२. पे. नाम. शृंगारिक पद, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इस बादरीने मेरो चंद; अंतिः सखि सावन की हारे, गाथा-४. १४३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवत हे व्रजनार; अंति: क्या अभागन सो रही री, गाथा-२. १४४. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. ३६अ, संपूर्ण. औपदेशिक होली, पुहिं., पद्य, आदि: बंके मुरज्याने धुम; अंति: नणदवा लरेगी मोरी, गाथा-६. १४५. पे. नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन न छेह ते दीधोरे; अंति: अमृतरस रंगथी पीधो रे, गाथा-५. १४६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मु. सांवल, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ आधार प्रभू: अंति: सेवकनी करो सार, गाथा-३. १४७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रगट्यो पुरण राग मेरे; अंति: आनंद० नावका रे मेला, गाथा-२. १४८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३६आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम 'गवडीपार्श्वजिन स्तव' लिखा है. म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देशडे पधारो जी काइ; अंति: जिनविजय० चित धारो जी, गाथा-३. १४९. पे. नाम. पल्लविहारपार्श्वजिन स्तव, पृ. ३६-३७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति ताहरी हो राज; अंति: हो भक्तिविजय भणे, गाथा-७. १५०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३७अ, संपूर्ण. म. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: खतरा दर करना दर कर; अंति: शिव सुंदरी सुख वरना, गाथा-५. १५१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. मु. खुशालराय, पुहि., पद्य, आदि: अखीया बे मेरी बाउरी; अंति: सेवो उतरवाको दाउ री, गाथा-४. १५२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मरुदेवीना नंदना; अंति: वासी ऋषभदेव बलीहारी रे, गाथा-५. १५३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं क्या करे; अंति: पद युग सेविइ सवेरा, गाथा-५. १५४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण... मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरे मन में तु; अंति: जिन० दीठो देव सकल मे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२१२९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मगनलाल केशवजी भट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १३४३६-३८). __महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: कहे धन्य मुज ए गुरो, ढाल-१०, गाथा-८३. ९२१३१ पलीपत्रिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १८४४१-४६). __ पलीपत्रिका, सं., प+ग., आदि: आदीश्वरं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. 'पतेः सौख्यलब्धिः कवौ सप्तमस्थे" पाठ तक है.) ९२१३५. (+) ५ वादी विचार व १८० अक्रियावादी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.५, कल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४२८-३२). १.पे. नाम. ५ वादी विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काल१ सुभावर नियत३; अंति: तो ते मिथ्याती छै. २. पे. नाम. १८० अक्रियावादी चर्चा, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अपणो जीव सासतो छै; अंति: चउदसमो चोलपट्टो१४. ९२१३६. वयरस्वामि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६.५४१३, १२४२७-३०). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमाहे सोभतउ; अंति: जिनहरष० गुण गाया रे, ढाल-१५, गाथा-८९. ९२१३७. (+) स्नात्रविधि पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १७X४५-५१). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१)प्रथम हुंती निस्सही, (२)असुरिंदसुरिंदाणं; अंति: __यथा शक्ति दान दीजै, ढाल-८, गाथा-६०. ९२१३८. (4) पचास निक्षेपा बोल, संपूर्ण, वि. १८९६, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. राधणपुर, प्रले. पं. रविविजय गणि; अन्य. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निखेपापत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६४३३-३५). ५० निक्षेपा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोग द्वार मध्ये भगवंते; अंति: अरथी इ खणो ज मरता रहवो. ९२१३९. चैत्रीपूनम स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ८, ले.स्थल. मिरजापुर, प्रले. पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १३४४०). १. पे. नाम, चैत्रीपूनम स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिनवरना; अंति: साधुकीरति इम कहै, ढाल-३, गाथा-१३. २. पे. नाम. चैत्रीपूनम आराधना विधि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व आराधना विधि, मा.गु., गद्य, आदि: इण अवसर्पणी काले; अंति: ऊजमणो करी तप साचवै. ३. पे. नाम. सत्तरसयजिन नाम, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीजयदेवजी; अंति: श्रीवलिभद्रनाथ. ४. पे. नाम, २० विहरमानजिन नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीसीमंधरजी; अंति: २० श्रीअजीतवीर्यजी. ५. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ श्री इंद्रभूति; अंति: ११ श्रीप्रभास. ६. पे. नाम. पंचकल्याणक २४ महाराजका गणना, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक गणणं, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि संभवनाथ; अंति: आसोसुदि नेमिनाथ चवन. ७. पे. नाम, सिद्धचक्र पूजा विधि, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ___ नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंत; अंति: साहमीवत्सल करै. ८. पे. नाम. पांचेशक्रस्तवे देववंदनविधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १६३ पंचशक्रस्तव देववंदन विधि, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: हिवे काल वेलायै आव; अंति: स्वकार्ये विचरण करै. ९२१४२. (+) उपदेशबावनी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ५४३३-३७). अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि: ॐकार अमर अमार अविकार; अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा-६१. अक्षरबावनी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ॐकार अर्थ; अंति: ते माटे बावनी कहीए. ९२१४४ (+) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २)=१६, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १०४२०-४५). १. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः (-); अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भयहर स्तोत्रं, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: नासंति उवद्दवासवे, गाथा-२५. ३. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४१. ४. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मि, श्लोक-४४. ५. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सर्व कल्याण कारणे. ६. पे. नाम. बंभणवाडि स्तवन, पृ. १२अ-१४अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: संभर सुभर सारदाय वरद; अंति: कमलकलससूरीस्वर सहीस, गाथा-२१. ७. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १४अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ की कलश गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९२१४६. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९०२, नेत्रेखगेनंदशशी, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७८, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. देवीचंद; पठ. पं. वृद्धिचंद; पं. श्रीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); गुपि. ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनमहेंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:नाममाला., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२.५, १५४३९-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ९२१५० (+) मौनएकादशी व्याख्यानादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२९, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २४-७(१ से ७)=१७, कुल पे. ७, ले.स्थल. जालणा लसकर, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र ऋषि (नागोरीलंकागच्छ); पठ. सा. हुलासाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीइष्टदेवो जयति, श्रीगौतमस्वामिनो जयति., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६०३) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, (१०३५) तैलाद्रक्ष्ये जलाद्रक्ष्ये, दे., (२७४१२.५, १३४४०-५४). १.पे. नाम. मौनईग्यारसरो बाखांण, पृ. ८अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:मौनइग्यारश. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कह्यो० तपस्या अंगेजी, (पू.वि. "विजयपुरनामा नगर छै" पाठ से है.) For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगली १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पोहदसमी कथा, पृ. १०अ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पोहदशमी. पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: तपस्या जावज्जीव अंगेजी. ३. पे. नाम. मेरुतेरसरी महिमा ऊपर पिंगलरायरी कथा, पृ. १२अ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मेरुतेरसब०. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)मारुदेवं जिनं नत्वा, (२)श्रीऋषभदेवस्वामीनै; अंति: संपत्ति प्रगट हुवै. ४. पे. नाम. होलिकापर्व कथा, पृ. १५आ-१७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:होलिबखांण. श्रीचिंतामणपार्श्व प्रसादात. होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: फागुण सुदि पूनिम दिनै हुई; अंति: मुक्ति रूप सुख मिलै. ५. पे. नाम. चैत्रीपूनिमपर्व कथा, पृ. १७आ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चैत्रीपूर्णिमा. __ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: (१)तीर्थराजं नमस्कृत्य, (२)अहो भव्य जीवो; अंतिः सुख संपदा पामै. ६.पे. नाम. आखातीजरो बखांण, पृ. १९आ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आखातीजब०. अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा.,सं., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य प्रभु पार, (२)श्रीचिंताणिपार्श्वना; अंति: कल्याण मंगलीकमाला संपजै. ७. पे. नाम. रोहिणीरो बखांण, पृ. २१आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:रोहिणीब०. रोहिणीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: उच्चिट्ठमसुंदरयं; अंति: क्षय करी मुगतै गया. ९२१५७. (+) त्रैलोक्यसार सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४१-११३(१ से १११,१२६,१३४)=२८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:त्रै०टी०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, १२४३६-४२). त्रिलोकसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५६१ से ७५७ तक है.) त्रिलोकसार-टीका, म. माधवचंद्र त्रैविद्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२१६०. आत्मप्रबोध-प्रकाश २ सह स्वोपज्ञ व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२८x१२.५, १३४४६). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६ तक लिखा है.) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य, वि. १८३३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९२१६१ (+#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२३(२ से १९,२३ से २७)=५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:हंसरा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १७-२०४३०-४२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदय करि चउवीसे; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-२ की गाथा-११ अपूर्ण से खंड-४, ढाल-१ की गाथा-१३ अपूर्ण तक, खंड-४, ढाल-५ की गाथा-१८ अपूर्ण से ढाल-१३ तक नहीं है.) ९२१६३. साधु आचार १०८ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१२,११४३५-३७). साधु आचार १०८ बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: साधु थइने आधाकरमादि; अंति: (-), (पू.वि. १०० वें बोल अपूर्ण तक है.) ९२१६५. २४ दंडक २९ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१२.५, १२४३९). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: (-), (पू.वि. २९ वें द्वार अपूर्ण तक है.) ९२१७० (#) मनिपति चरित्र का अनुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १३४३५). ___ मुनिपति चरित्र-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमिऊण महावीरं चउव्विहायसय, (२)जंबुद्वीप माहे भरतक्षेत्र; अंति: (-), (पू.वि. सिवनय, सिवदत्त दृष्टांत कथा अपूर्ण तक है.) ९२१७१ (+) वसधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)=७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., संशोधित., जैदे., (२८x११.५, ९-१०४३२). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य, अंति: (-), (पू.वि. “समृद्धि गृ" से "गृहपते तां धारणी” तक व "तेनहित्वमममानं सुचंद्रो गृह" से नहीं है.) ९२१७२. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-४३ (१ से २९, ३३ से ३७,४५ से ४६,४८ से ५३,५५)=१६, जैदे., (२७.५X१२, १३४३४). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अध्ययन-४ अपूर्ण से है व कुंथुजिन वंदन अपूर्ण तक लिखा है.) आवश्यक सूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आवश्यक सूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति (-). पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनदास कथा अपूर्ण से है व कुंथुजिन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ९२१७५ (+) षट्पुरुष चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११, १५X४६-५२). "" षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, आदि: श्री अर्हतश्चतु अति (-). (पू.वि. मध्यम पुरुष सोमचंद्र राजा प्रसंग अपूर्ण तक है.) १६५ ९२१७६ (+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८४९ कार्तिक शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. १५-३ (१ से ३) १२, ले. स्थल सूरत बिंदर, प्रले. मु. निहालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२७.५x१२, ३-४४३१-४५). "3 ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति वाचक जसनइ वयणे जी, डाल-८, गाथा - ७६, (पू. वि. प्रथम डाल की गाथा १३ से है.) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संविज्ञ जनपक्षीय. 3 ९२१७७ दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-३ (६ से ८ ) =६, प्र. वि. हुंडी दशमिका, जैदे. (२८४१२, १७-२२x२५-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कट्टे, अति (-). (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-४, गाथा २५ अपूर्ण से अध्ययन-५, उद्देस १, गाथा- ९९ अपूर्ण तक व अध्ययन-५, उद्देस - २, गाथा - ३८ से नहीं है . ) ९२१७८. पुष्पिका व पुष्पचूलिकासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५६ ४९ (१ से ४४, ४७ से ५०, ५४) =७, कुल पे. २. प्र. वि. कुछ पत्रों के पत्रांक भाग नष्ट होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है. जैवे. (२८.५४१२, ७-१०४३८-६०). १. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४५अ -५३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से अध्ययन ४ अपूर्ण तक है.) पुष्पिकासूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टवार्थ, पू. ५५ अ-५६आ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०, (वि. प्रारंभ व अंत के कुछ शब्द नहीं है.) पुष्पचूलिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे भगवंत; अंति: चोथो वर्ग समाप्त. ९२९८० (+) धन्यकुमार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २९-२३ (१ से २३) =६, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५X१२, १३x४२). For Private and Personal Use Only धन्यकुमार चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अधिकार-६ गाथा-७५ अपूर्ण से अधिकार ७ गाथा १९ अपूर्ण तक है.) ९२१८१. (+) सूराणगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२७४१२.५, १२४३८-४३). Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूराणगच्छ पट्टावली, उपा. रामचंद्र, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानकल्पद्रुमं; अंति: तत्पट्टे लब्धिचंद्रसूरिः. ९२१८२ (+) कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ४४३५-४०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकाय पद संपदं देसु, गाथा-२५. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जिम तुहक० ताहर; अंति: क० तेहनी संपदा प्रते. ९२१८५. ज्ञानपंचमी महिमा, मौनएकादशी व २० स्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, १७X४४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी महिमा वृद्धस्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: अष्ट कर्म मल क्षय; अंति: कहै मुनि केसरीचंद रे, ढाल-७, गाथा-१०३. २. पे. नाम. मौनएकादशी वृद्धस्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: चोवीसे जिनवरण चरण; अंति: रची स्तवना सार ए, ढाल-४, गाथा-५९. ३. पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: वीस थानक तप सेवीयै; अंति: केसरी० स्तवना मनहरु, गाथा-२१. ९२१८७. २३ बोल स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद (गुरु पं. वृद्धिचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे "संवत् १८८१ वर्षमिती भाद्रवा सुदि १३ तिथो सोमवारे पूर्वे लिखी" लिखा है. श्रीजिनदत्तसूरि प्रसादात्., कुल ग्रं. ३३८, दे., (२७४११.५, ११४४२-४६). ५शरीर २३ बोल विचार, मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम शरीर ते शरीर; अंति: एवं वेद द्वार कह्यो. ९२१८९ (+#) सूर्यादि ग्रहदशा फल, नीतिशतक व शंगारशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ३, प्रवि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ५४४२-४७). १. पे. नाम. सूर्यादि ग्रहदशा फल, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अथ सूर्यदसा दिन २०; अंति: शुक्रदसा पूरी हुवै. २. पे. नाम, नीतिशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण. नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: यां चिंतयामि सततं; अंति: वाग्भूषणं न क्वचित्, श्लोक-१०४. नीतिशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वदर्शिनमानम्य; अंति: प्रमाणिक पुरुष हुवइ. ३. पे. नाम, शंगारशतक सह टबार्थ, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: चूडोत्तंसितचारुचंद्रकलिका; अंति: (-), (पू.वि. मात्र श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) शृंगारशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वदर्शिनमानम्य; अंति: (-). ९२१९२. पाशाकेवली भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४११.५, १५४३६). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम श्रीकार छे अहो; अंति: मंगलीक छे माहा श्रीकार छे. ९२१९३. शीलोपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२१-१०२(१ से १०२)=१९, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, १७-२०४३८-४६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६७ से ११३ तक है.) शीलोपदेशमाला-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२१९५ (#) आवश्यकसूत्र सह लघवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३-१(१)=७२, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आव०लवृ., आव०ल०वृ., आ०ल०वृ. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १७७५८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १६७ ९२१९६. योगशास्त्र-प्रकाश ३ सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१,३)=१७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x११, १४४५५-६१). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-८ से ११ अपूर्ण तक व श्लोक-२५ अपूर्ण से ८८ तक है.) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९२२०० (+#) कल्पसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७४-१(१)=१७३, पृ.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ६-८x१६-२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अन्त के मात्र किंचित् पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२२०२. (+) सत्तरिसयं सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-१(१)=८८, प्र.वि. हुंडी:१७०ठणा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३५०५, दे., (२७.५४११.५, ३४३०-३४). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: (-); अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, ___ गाथा-३६०, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करण रूपे रचना करी छे, ग्रं. ३५०५. ९२२०५ (+#) जैन धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. लिखावट से प्रत दिगंबर जैन लिपिक लिखित प्रतीत होती है. दो अलग-अलग क्रम में पत्रानुक्रम है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११.५,११-१३४४८-६०). जैनधर्मोपदेश श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: देवः केवलमूर्तिरांतरतमः; अंति: न वर्त्तयामि गृहे गृहे, श्लोक-७००. ९२२०६. (+) चंद्रशेखर रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७१, पठ. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंद्रशेखररास., संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १४४४५-५२). चंद्रशेखरनृप रास, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: चतुर चित्त सरोज; अंति: वीरविजय०कंठे धरशे जी, ___ढाल-५७, गाथा-२२४३, ग्रं. २९९१, (वि. खंड ४) ९२२०८ (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८१५, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, ले.स्थल. दुपनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४११.५, १४४२५-३२). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. "जाव अरिहंताणं भगवंताणं" पाठ से है.) ९२२०९ (+#) अजितशांति सह वृत्ति व उपसर्ग स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११.५, १८४६०-८५). १.पे. नाम. अजितशांति सह वृत्ति, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं सत; अंति: स्तुयमाने जिनेश्वरे, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: अजितशांतिजिनाधिपयोः; अंति: चत्वारिंशत्समन्विता, ग्रं. ७४०. २. पे. नाम. उपसग्गहर स्तोत्र की टीका, पृ. ९आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सम्यगान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वसुमती विजय कर्तव्य" पाठ तक लिखा है.) ९२२११. (+) दशविधिधर्माधिकार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९०४, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. गोधावीनगर, प्रले.पं. जतनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १२४३५). दशविध यतिधर्म, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: शुभ सलिला अनुसवे, अध्याय-११, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२२१३. (*) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १६६१, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४०, ले. स्थल. चंपावती, लिय. सा. अजाजी (अचलगच्छ); पढ. सा. लाला (गुरु सा. वाल्हा, अचलगच्छ); गुपि. सा. वाल्हा (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ७५०, जैवे. (२७.५x११.५, ८४३४-४०). " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी. २वी आदि धम्मोमंगलमुक अति अपुणागमं गइत्ति बेमि, अध्ययन - १०, ग्रं. ७५० (वि. चूलिका २ ) ९२२१७. (+) ताजिकसार की कारिकाटीका, अपूर्ण, वि. १७१४, श्रावण शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २५-११ (१ से ११)=१४, राज्यकालरा राजसिंह राणा, गुपि. पं. सामंत (बृहत्खरतरगच्छ); प्रले. मु. सादुल (गुरु पं. सामंत, बृहत् खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: ताजिकसार, संशोधित, जैदे., (२८x११.५ १५४४८-५२ ). ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: रचिता तनुताच्चिरम्, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पाठांश "राशो सिंहाचामीनराशी" से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२२१९. (*) प्रश्नव्याकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८६-१ (१) =८५, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. दे., (२८४१२, ६-७३०). " प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १, अध्ययन-१ अधर्मद्वार अपूर्ण से श्रुतस्कंध -२, अध्ययन- १० "उग्घोसिय सुनिम्मलं" पाठ तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९२२२५. (*) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र अध्ययन १ से १६, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३०-१ (१)-२९, अन्य मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, १३X३७). धर्मकथासूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन- १ अपूर्ण से है., वि. आवश्यक स्थलों पर टिप्पण दिया गया है.) ९२२३१. (*) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९६१-९५५ (१ से १५५) = ६. पू. वि. बीच के पत्र हैं, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२६.५x११.५, ६३५-३८) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-२४, उद्देश- २१ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) 1 भगवतीसूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९२२३२ (*) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३४-७ (१ से ७) =२७, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६X११.५, ८x४८). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश - १ भवदेव अणगार देवलोक में एकावतारी प्रसंग अपूर्ण से उद्देश - १४ अपूर्ण तक हैं.) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: (-); अति: (-). ९२२३३. (#) सम्यक्त्वसप्ततिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १५X४२-४५). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि दंसणसुद्धिपयासं अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण तक है.) ९२२३७. (+) गौतमपृच्छा कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६३-१८ (१ से २,४,२७ से ४१)=४५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी गोतमपुछा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२९x११.५, १३४३६-४४). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. कथा - १ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण तक है.) ९२२४१. सारस्वत प्रक्रिया की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२८x१२, १२X४४). , सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६२३, आदि नमोस्तु सर्वकल्याण, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्वर सन्धि अपूर्ण तक लिखा है., वि. मूल सूत्रों का संकेतमात्र दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १६९ ९२२४४. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८०, आश्विन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. चित्रकूटदुर्ग, प्रले. ग. गुणलाभ (गुरु ग. नयसमुद्र, खरतरगच्छ); गुपि. ग. नयसमुद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विपाकश्रुतसूत्रं., संशोधित. कुल ग्रं. १२५०, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२९x११, १५४५८-६०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०) ९२२४५. वृद्धसंग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:वृद्धसंग्रहणीस्त०., जैदे., (२९x१०.५, १५४५३-५७). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: निट्ठवियअट्ठकम्म; अंति: हिं तहेव सुयदेवयाए य, गाथा-३५३. ९२२४६. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह भाष्य व टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.५४४-५३३(१ से ५३३)+२(५३७,५४१)=१३, प्र.वि. हुंडी:कल्पवृत्ति., संशोधित., जैदे., (२८x११, १५४५२-५६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., उद्देश-३ के बीच के पाठांश हैं.) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-३९१४ से ३९९८ तक है.) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९२२४८. (+#) फलसार कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २७-२(१४,१६)=२५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९x११, १३४४९-५०). फलसार कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: जयति जगति देवकेवली लोक; अंति: भवंतु नित्यं विधि सावधाना, श्लोक-९४६. ९२२५९ (+) सुसढ कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१०.५, १३४५५-६०). सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: रायगिहे गुणसिलए; अंति: जयणं चिय धम्मकामा, गाथा-५१८. ९२२६०. (+) जातकदीपिकाभिधापद्धति व महादेवीग्रहसाधन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११.५, ५४४४). १. पे. नाम. जातकदीपिकाभिधापद्धति सह टबार्थ, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३, (प्रले. ग. नित्यविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रतें; अंति: जातकदीपिका सौतै छइं, (वि. १८६३, पौष शुक्ल, १०, सोमवार, प्रले. ग. नित्यविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम, महादेवीग्रहसाधन सह टबार्थ, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महादेवीग्रहसाधन, सं., पद्य, आदि: वस्वाग्नि सूर्ये १२३८; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) महादेवीग्रहसाधन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शाकः स्वशाक पोताना शाक; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९२२६२. (#) अभयकुमारमंत्री, यमदंड, जयसेनादि कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-५(१ से ३,८,१२)=१२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१०, १६x४७-५२). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अभयकुमारमंत्री कथा से अरिमर्दनराजा कथा अपूर्ण तक है., वि. विविध विषयसम्बद्ध जैन दृष्टांतकथा संग्रह.) ९२२६३. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र व औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१८, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. २, राज्यकाल मु. मानराज; प्रले. मु. मोहनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभु प्रासादात्., प्र.ले.श्लो. (१३४६) जब लग मेरु अडग है, (१३४७) चंदकला रवि आगलो, ., (२७४११.५, ११-१३४३५-३९). For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७० www.kobatirth.org श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ - १२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. प+ग, आदि (-); अंति तस्स मिच्छामिदुक्कड, (पू. वि. जगचिंतामणि सूत्र से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण. पु.ि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि बार बार कह रे गमार तोकु अति भगवान भज एसो तंत सारह, गाथा-२. ९२२६४. (+) १२ व्रतालोचना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, विक्र. ग. वीरविजय (गुरु ग. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११, १३-१५X४२-४८). आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि हत्युत्तर सवणतिंग रेवय; अति ग्रंथांतरेभ्यो ज्ञेय कैलास उत्तराध्ययनसूत्र- टीका सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). *, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२२७२. (*) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६ -१ ( १ ) + १ (१२) = १६. पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, १४X४७-५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-४० अपूर्ण से अध्ययन-१५ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ९२२७४ (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-१ (१)=४४, प्र. वि. हुंडी: प्रश्नसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२७X११, ११४३८-४६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १२५०, (पू. वि. पाठ" अकिंच घायणा मारणा " से है.) ९२२७६ (f) ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १७-४ (१,१२ से १४) = १३. पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, जै. (२६.५x१०.५, १०x३५). " ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य वि. १६७७, आदि (-); अति (-), (पू.वि. गाथा १० तक व गाथा-१३९ से १७८ तक नहीं है.) ९२२७७. (+) ऋषिमंडल स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४११, ४४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर से, पद्य, आदि आच॑ताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं अतिः परमानंदसंपदाम्, श्लोक- ८१. ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि : आदिको अक्षर अंतको अक्षर, अंतिः पद की संपदा पामे. ९२२७८ (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५७-३९ (१ से २८, ४५ से ५५ ) = १८, पू.वि. प्रारंभ बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: आचारंग., संशोधित., जैदे., (२८.५X११, ५X१६-५०). "3 7 आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि (-) अति (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश १ सूत्र- १५१ अपूर्ण से अध्ययन-८, उद्देश- १ अपूर्ण तक व अध्ययन-९, उद्देश १ अपूर्ण से उद्देश-२ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९२२८२. (*) उपदेशमाला प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १५३९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५. अन्य. श्रावि. गोरादे वच्छा शाह; श्राव. सहस्रकिरण वच्छा शाह (पिता श्राव. वच्छा शाह); श्राव. वर्धमान सहस्रकिरण शाह; श्राव. शांतिदास सहस्रकिरण शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: उपदेशमाला., पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ-संशोधित. कुल . ५४४ जैवे. (२७.५४११. १३४४८). " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा - ५४६, (पू. वि. गाथा - ३७ अपूर्ण से है.) उपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति निष्टानीयते. For Private and Personal Use Only ९२२८३ (+) विविधविषयक सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २२-१ (१) -२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १७४५४). Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १७१ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२२८५ (+#) विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७३-२४(१ से १७,४५ से ५१)=४९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ११४३०-४०). विमलमंत्री रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ गाथा-९७ अपूर्ण से खंड-९ अंबादेवी भक्ति प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९२२८६. (+#) शीलविषये चित्रसेनपद्मावती कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १७४४५-५५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः (-); अंति: कथां करोत्पाठक राजवल्लभः, श्लोक-५०८, (पू.वि. श्लोक-५० अपूर्ण से है.) ९२२८७. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १०-१५४४०-४६). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-). ९२२८८ (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११, १७४५४-५७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-७ श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ९२२८९ गौतमपच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४११, ११४३४-४२). गौतमपृच्छा चौपाई, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण तक है.) ९२२९० सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१(२)=१५, प्र.वि. हुंडी:सिंहास०कथा., दे., (२६४११, १३-१७४४४-५०). सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमकर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अनंतशब्दार्थगतोपयोगिनः; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९२२९१ (+) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-२९(१ से २१,२३ से २८,३० से ३१)-७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० से ३३ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) भक्तामर स्तोत्र-गणाकरीय टीका, आ. गणाकरसरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१९ से ३३ तक की टीका है. बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-११ से २० अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२२९२. (+) आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आगमसार., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-), (पू.वि. छ द्रव्य विचार दोहा-१३ अपूर्ण तक है.) ९२२९३. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९-१(१)=१८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६४३०). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., इरियावही सूत्र से काउसग्ग तक है., वि. बीच के पत्र चिपके होने के कारण पाठ अवाच्य है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२२९४. भगवतीसूत्र शतक-२५, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-३(१,५ से ६)=१३, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:नियट्ठासूत्र., जैदे., (२६.५४११, ११४३३-४७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. उद्देश-६ "खीणवेयए होज्जा" पाठ से उद्देश-७ "उक्कोसेणं तिन्नि" पाठ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२२९५ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-३६, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७-२(२ से ३)=५, पृ.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्य०., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक व ___ गाथा-१२६ अपूर्ण से २६० अपूर्ण तक है.) ९२२९६ (+) बहद्विचाररत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९७०, कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. २००, ले.स्थल. बोरसद खेडाजिल्लो, प्रले. श्राव. मगनलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बृहद्विचाररत्नाकर., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३०४१३, १७X२८-६३). बृहद्विचाररत्नाकर, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आद्यं भावारोग्यं मनो; अंति: रागादि नेति संयमं च, ग्रं. १४५७३. ९२३०४.(+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८९२, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. जालोरगढ, प्रले. श्राव. साहाजी वेलसीजी; अन्य. मु. जीवराजजी (गुरु मु. हेमचंदजी, कडुयामतीगच्छ); गुपि. मु. हेमचंदजी (गुरु मु. लाधाजी, कडुयामतीगच्छ); मु. लाधाजी (कडंयामतीगच्छ); लिख. श्राव. गोवर्द्धनजी; अन्य. आ. आणंदरत्नसूरि (गुरु आ. सुखरत्नसूरि); गुपि. आ. सुखरत्नसूरि (गुरु आ. नेमरत्नसूरि); आ. नेमरत्नसूरि (गुरु आ. हर्षरत्नसूरि); आ. हर्षरत्नसूरि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरा०. प्रतिलेखक-साहाजी वेलसी के गुरु जीवराजजी एवं लखापितं- गोवर्द्धनजी के गुरु आणंदरत्नसूरि का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २५००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४१७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण ___ तणी; अंति: च्यार खंड सुहायाजी, खंड-४, गाथा-१८२५, (वि. ढाल ४१) ९२३०५ (+) प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६७, प्र.वि. हंडी:प्रश्नोत्तर, संशोधित. कुल ग्रं.१५७५, दे., (२८x१३, ११-१३४३८-४०). १५० प्रश्नोत्तर-विविधविषय, मु. जीतमल, रा., गद्य, आदि: प्रथम गुणठाणारा घणी; अंति: मेघ मुनि रे हुंती. ९२३०६. (+) उपदेशमाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १८२-१२५(१ से १२५)=५७, प्र.वि. हुंडी:उपदेशमाला. अंत में दृष्टांत कथा की सूची दी गई है., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३-१५४४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: जिणवयणविणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-२४९ अपूर्ण से है.) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: वाणी श्रुतदेवी, ग्रं. ७६००. ९२३०८. षडावश्यक सूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९, प्र.वि. हुंडी:षडावश्यक, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०-४८). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: इअ समत्तं मे गहिअं. षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणइं सहित; अंति: ग्रहिउं सुद्धसद्ध. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे पंचपरमेष्ठी महामंत्र०; अंति: तस्यानुष्टानं प्रवर्त्तते. ९२३०९ (+) विक्रमरास पंचाध्यायी, अपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ६२-१(१)=६१, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि); गुपि. आ. विजयधर्मसूरि; राज्यकालरा. विजयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विक्रमरासप०. श्रीआदीसरजी प्रासादात्., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १७X४५-५०). विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: लखमीवल्लभ उछरंग वधाइ, खंड-६, गाथा-३१६८, (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से है., वि. ढाल ७५) For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १७३ ९२३१०. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, आषाढ़ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ७४, ले.स्थल. छवरछा, प्रले. पं. तीर्थराज (गुरु पं. मुक्तिमाणकजी, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरास पत्र. श्रीगोडीजीप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ३-१३४४७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (संपूर्ण, वि. ढाल ४१) श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुजे केहतां जाणवैता; अंति: चातुर्या प्राप्ति, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र चतुर्थ खंड केटबार्थ हैं.) ९२३११. चोविसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७२, पौष कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(१)=६५, ले.स्थल. साणंद, प्रले. मु. हितविजय (गुरु पंन्या. लालविजय); गुपि. पंन्या. लालविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पंन्या. माणिक्यविजय (गुरु ग. गंगविजय); ग. गंगविजय (गुरु ग. हेमविजय); ग. हेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रभु प्रशादात्., जैदे., (२८x१२, १७४४८-५५). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदिः (-); अंति: सेवता पूर्णानंद समाजो जी, स्तवन-२४, गाथा-२०५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षनो परम उपाय छे, पूर्ण. ९२३१२ (4) गौतमस्वामीनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १३४२७-३०). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ तक है.) ९२३१३. (+) श्रीसूक्तमाला व नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-२७(१ से २७)=१८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३.५, ११४२८-३०). १.पे. नाम. श्रीसूक्तमाला, पृ. २८अ-४५आ, संपूर्ण. सूक्तमाला, म. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७६. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ४५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९२३१४. वीसस्थानक खामण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६+१(३)=१७, प्रले. श्राव. अनमोलचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१४, १०४२८-३०). २० स्थानक खमासमणदान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम स्थानके; अंति: काउसग्ग णमो तित्थस्स. ९२३१५. (+) नवपदनी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल, जालोर, प्रले. श्राव. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदपूजा, संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२४२९-३२). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९. ९२३१६. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. खेमाविजय (गुरु मु. दीपविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, ५-८x२८-३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम नवतत्त्वना; अंति: छे इम उत्तर कहस्ये. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानादिक धर्मवंत; अंति: जाणवो बुद्धिइं करी. ९२३१७. (+) संज्ञानचित्तवल्लभ, संपूर्ण, वि. १९६५, आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. हुंडी:सज्जनचि०.व०., संशोधित. कुल ग्रं. २००, दे., (२७४१२.५, ६x२५-३२). For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्रयगुर; अंतिः सततं संसारविच्छित्तये, श्लोक-२५. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण जगतना गुरु एहवा; अंति: इंद्रियोने वश करो. ९२३१८. कर्मप्रकृति, संपूर्ण, वि. १९५०, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. सिवलालजी; पठ. मु. हंसराजजी (गुरु मु. सिवलालजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कर्मप्रकृति., दे., (२७४१३, १४४३३-३६). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेलु ज्ञानावरणी क्रम १; अंति: अंतरायकर्म संपूर्ण छे, (वि. सारिणीयुक्त.) ९२३१९ (+) त्रीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९३४, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ. श्रावि. जेठी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३४). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अंति: जीव अनंतगुणा अधिक. ९२३२०. (+) २४ दंडक विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६४, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. छबील व्यास; लिख. सा. झवेरश्रीजी शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दंडकद्वार, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, ३४२३-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: हितकारणी कीधी. ९२३२१. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१२, भाद्रपद शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. रत्नावती, प्रले. रामलाल; पठ. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पूजा०. संभवनाथ प्रासादात्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५९७) कटि ग्रीवा अरु हस्त, दे., (२६.५४१२, १०४३०-३३). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ जयंकरो, ढाल-२०. ९२३२२. (+) यादवउत्पत्ति वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३, १४४३७). यादवउत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: मथुरानगरी यद नामे राजा; अंति: संखेश्वर कहीइं छीइं. ९२३२३. (+) सुदरसण सेठ कवित्त, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:सुदरसण., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १२४४०-४७). - सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिन महावीर; अंति: धनधन श्रीरुपऋष, गाथा-१२५. ९२३२४.(-2) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. दुर्वाच्य. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १४-१६४३६-३८). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार , संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ९२३२५. होलीकापर्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, फाल्गुन शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. प्राग्जी (गुरु मु. अमरशीजी); गुपि. मु. अमरशीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ६-८४३६-३८). होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: श्रीविद्याकाख्यपुरे, श्लोक-१३९. होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी प्; अंति: श्रीगुरुप्रसादात्. ९२३२६. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-१०(१ से १०)=१७, प्र.वि. हुंडी:चंदपन्न०, जैदे., (२६४१२, ५४३८-४२). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रथम पाहुडपाहुडं अपूर्ण "दोच्चंसिअहोरत्तंसिवाहिरं तच्च मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति" पाठ से छटुं पाहडपाहुडं अपूर्ण "जोयणाइ एकमेगेणंराइदिएणं" पाठ तक है.) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प.वि. बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १७५ ९२३२७. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी : साते समरण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें ., दे., (२७.५X१२, १५X३२-३६). सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्वभयं अंति संते नाहं सूरा भगवंत, स्मरण- ७, (वि. उवसग्गहरं स्तोत्र अंत में दिया गया है.) ९२३२८. (+) उत्तराध्ययन सूत्र की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण कृष्ण, ६, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल, पालीताणा, प्र. वि. हुंडी: उत्तरास. आवरण पृष्ठ पर "मु, हंसविजयनी लायब्रेरी बीलाडे खाते भेंट" लिखा है, संशोधित कुल ग्रं. ५००, दे... (२७.५X१२.५, १२x२७-३२). उत्तराध्ययन सूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवि चित्त धरी; अंति: विजय वाचक० नवय निधान, सज्झाय-३६. ९२३२९. (+) कर्मग्रंथ-५ सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५८-१४४ (१ से १४४) = १४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२८४१३.५, ९४२३) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७५ से ७६ मात्र है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२३३०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-९ (१ से ७,२२, ३२) = २६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१३, १९ - २०x४२-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. माता त्रिशला के गर्भपोषण का वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र- टबार्ध, सं. गद्य, आदि अरिहंतनइ नमस्कार हुवौ अति (-). पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. " ९२३३१. २४ जिन स्तवन व विविधविषय विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३, कुल पे. ५, दे., (२८.५५१३, ११x४६-५०). १. पे नाम. चौवीसजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १आ ३अ संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- चत्तारि अट्ठदसदोयगर्भित, प्रा., पद्य, आदि दाहिणदुवारे चत्तारि पच्छि; अंति: अहिगारे जिणवारा दिति गाथा १४. - २४ जिन स्तवन-चत्तारिअट्ठदसदोयगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: चतुश्च शब्दौ विशेषज्ञापका; अंति: चैत्य० स्वयमवेज्ञेयानि २. पे. नाम. आगमिक विविधविषय विचार संग्रह, पृ. ३अ - २८आ, संपूर्ण. आगमिक विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः सव्वे कालविशेषा आउपमाणा; अंतिः च सामान्य श्रुतसद्भावात् (वि. सर्वायुष्कालप्रमाण, ज्योतिष, जीवभेदप्रभेदादि संग्रह.) ३. पे नाम ज्योतिषोद्धार गाथा, पृ. २८आ- २९आ, संपूर्ण आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सव्वेवि वारविहिउ सुहयासह अंतिः कुंडलिआ कज्ज सिद्धिकरा गाथा २२. ४. पे. नाम. ज्योतिष विचार संग्रह, पृ. २९आ-३१अ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु. सं., प+ग, आदि एकस्मिन् चंद्रे उपग्रहाः ९; अंतिः सर्वं बाह्यमष्टमं मंडलम् (वि. क्षेत्रसमासगत विचार अंत में चरम भव्य जीवराशि विचार है.) ५. पे. नाम. ध्यानशतकपर्याय, पृ. ३१अ -३३आ, संपूर्ण. ध्यानशतक-पर्याय, सं., गद्य, आदि योगीश्वरं विशिष्टमनोयोग, अंतिः बालयितुं न शक्यते. ९२३३२. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१२, १५X४०-४५). देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं०; अंति: नेम गयो चितचोर है. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६ ९२३३३. (*) कालिकाचार्य कथा संपूर्ण वि. १८९५, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पू. १८. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७.५५१३, ११X३२-३६). " कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पूर्वइ स्थविरावली; अंति: आज्ञा० श्रीसंघप्रवर्त्त ९२३३४ (+) योगविधि, संपूर्ण, वि. १९४७, चैत्र शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१, प्र. वि. हुंडी : योगविधि., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे. (२७.५४१३ १४४४२-४५). " יי योगविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि आवश्यक सुअक्खंध, अंतिः वियकमोकमेण सिद्धिं पिपावेइ. ९२३३५. (+) धन्य चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : धन्यचरित्र, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, दे., (२७.५४१३, १५४४५-४८). धन्य कथानक-दानधर्मे, मु. दयावर्द्धन, सं., पद्य, वि. १४६३, आदि: श्रीवीरजिनमानम्य; अंति: चक्रे धन्यनिदर्शनम्, श्लोक-२६६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२३३६. 1. (+) तीनलोकनी विस्तार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२७४१२.५, १४४३४-३६). १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: समंचंतो एक लोक छै; अंति: (-), (पू.वि. तीस का उत्तर अपूर्ण मे "माह नाम श्रावक का अर्थ में लख्यो हे" पाठांश तक है.) ९२३३७. (+) योगशतक, योग्य संजीवनी व वैद्यश्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. १३-८ (१ से ८) =५, कुल पे. ४, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी वैद्यसंजी०, संशोधित, वे. (२७४१२.५, ११४३८-४५). १. पे. नाम. योगशतक, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १९१४, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, ले. स्थल. शुभटपुर, प्रले. आ. विनयचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे. धन्वंतरी, सं., पद्य, आदि (-); अंति तु तध्याधिमुपादिशंति, श्लोक १०३ (पू.वि. लोक-१०१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वैद्य श्लोक, पृ. ९अ, संपूर्ण. वैद्यक श्लोक, सं., पद्य, आदि: रसवैद्य देववैद्य मानुष्यो; अंति: वैद्यस्तु मित्रवत्, श्लोक-१. ३. पे. नाम वैद्य संजीवनी, पृ. ९आ-१३अ संपूर्ण. वैद्यसंजीवनी, सं., पद्य, आदि: देशकालवयो वह्नि सात्म्य; अंति: कमल लज्जा सर्व रेणु पंके, श्लोक-१०१. ४. पे. नाम. वैद्यक लोक, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण वि. १९१४, कार्तिक शुक्ल, ५. शुक्रवार, प्रले. मु. रायचंद्र पठ. श्राव. शेरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. नो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. सं., पद्य, आदि दुष्टे चाग्नी विकृति; अंति: वातपित्तकफापहः, गाथा-४. ९२३३९. (*) अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५X१३, 1 " १७x४३). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु. सं., प+ग, आदि उत्तम स्त्रीकनी पूजा त्या अंतिः सत्वानां मंगल पूजका अमी. ९२३४०. आत्मशिष्याभावना, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-२ (२ से ३ ) =९ प्र. वि. हुंडी आत्मशिखा दे., (२७४१३.५, , १०X३२). आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १६६२, आदि: जिनवर मुख वासिनी जग; अंतिः नित्त-नित होई जयकार, गाथा - १७६, संपूर्ण. ९२३४२. (*) पर्युषणपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१-१३ (१ से १३)=८, प्रले. श्रावि. रायकवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडीवाला भाग खंडित है, संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२७.५X१३, १२-१८x४०-४५) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: साधवी ने खयाविवा करणे. ९२३४४. शेत्रुंजय उद्धार, संपूर्ण वि. १८५५, आषाढ़ शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल राधिकापुर, जैदे., (२७४१३, १३४३५). י' For Private and Personal Use Only शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंतिः द्यो दरिशन जयकरो, ढाल-१२, गाथा- १२२, ग्रं. १७०. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२३४९. चौदगुण स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-२ (३ से ४) =४, ले. स्थल. भावनगर, दे. (२६.५x१३, १४-१५X३६-३९). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपुर धणी अतिः ए निज मतिने अनुसार, डा-१७, (पू. वि. गुणस्थानक-२, गाथा- २ अपूर्ण से गुणस्थानक-३, गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है.) ९२३५०. समकित सड़सठ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ५, दे. (२६५१३, १२४४२). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, दाल १२, गाथा ६८. ', ९२३५१. शास्त्रवार्त्तासमुच्चय सह स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४७+२१ (५२ से ७२) = ३६८, प्र. वि. हुंडी: शाखसमु०. त्रिपाठ. दे. (२७.५X१३, ११-१२५२-५५). शास्त्रवार्त्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि प्रणम्य परमात्मानं अंतिः भवताधीयतां भक्तिरागः, श्लोक- ७०१, ग्रं. ७००. शास्त्रवार्त्ता समुच्चय- स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि ऐंद्रश्रेणि नताय दोष अति प्रासंगिक० सर्वमवदाततरम्. ९२३५२. (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८२-१ (१२)=१८१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., ( २६.५X१२, ५-१४X३२-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, संपूर्ण १७७ कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंतने हुवो; अंति: आगे एहवौ कहता हूआ, संपूर्ण. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति माहोमाहि अलिया गलीया करी (पूर्ण, पू.वि. अधिकार- ३ की वाचना से है.) ९२३५४. गुरुतत्त्वविनिश्चय सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२०-१ (१) ११९, पू.वि. कुल पत्र - ११९ (१-१७+१-२०+१०४-१०९+२९ ९५+१०७६). प्र. वि. हुंडी गुरुतत्व० नी० प्रत प्रारम्भ से अपूर्ण है परंतु चोर नंबर १ से है. पत्रांक अनुमानित भरा गया है. त्रिपाठ, जैदे., (२७४१३, १२३७). , गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, उल्लास-२, गाथा २८३ अपूर्ण से है व उल्लास-४, गाथा - ९९९ अपूर्ण तक लिखा है तथा बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) गुरुतत्त्वविनिश्चय- स्वोपज्ञटीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि (-); अति (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only ९२३५६. ज्ञाताधर्मकथांग की वृत्ति, संपूर्ण वि. १५१९ वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९४, ले. स्थल, नागपुर, प्र. ग. मतिरत्न (गुरु मु. क्षमामेरु) गुपि मु. क्षमामेरु उपा. मतिसागर (गुरु वा. वीरसुंदर) वा. वीरसुंदर आ. सिद्धसूरि (उपकेशगच्छ); राज्यकालरा, मालदेव, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी ज्ञाता०वृ०, कुल ग्रं. ६०० प्र.ले. श्रो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, जैदे., (२७X१२.५, १६x४४-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अति: त्रीणि सप्तशतानि च, अध्ययन - १९, ग्रं. ३८००. ', ९२३५९. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्रले. मु. तिलककीर्त्ति (गुरु आ . जिनसुखसूरि); गुप. आ. जनसुखसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी श्रीपालच०, संशोधित, जैवे. (२७४१२.५, १६४३४-३७)सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपयाई झायित अति: वाइज्जेता कहा एसा, गाथा - १३४३, ग्रं. १६७५. 1 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 3 ९२३६९. (+) शीलोपदेश कथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. कथानुक्रम से अलग-अलग हुंडी दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६१३, १७५६). शीलोपदेशमाला संक्षिप्तकथा संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: परलोए विहु सुर सिद्धि, अंति: (-), (पू.वि. कथा संख्या-८ पात्र दान कथा अपूर्ण तक है.) ९२३६२. चतुर्विंशतिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, वे. (२६.५४१३, १७४४८-५७)स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि (-); अति (-), स्तवन- २४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुमतिजिन स्तवन से सुविधिजिन स्तवन तक लिखा है.) स्तवनचौवीसी- बालाववोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंद आनंदमय चिदरुपी अति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९२३६३. (*) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ६५- १ (१) ६४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६४१३, ६x४०-४५). "" उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (अपठनीय), (पू.वि. "जड़ णं भंते समणेणं जाव संपत्तेण पाठ से है., वि. पत्र चिपके होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) उपासक दशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (अपठनीय). ९२३६४. औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांतश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ११-२ (१ से २) -९, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे., (२८.५x१२.५, १४-१६४३९-४९) औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांत श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम दृष्टांत अपूर्ण "अत्राष्टसामाइनामः सामाईयं १ समईयं" पाठ से श्रावक के १२ व्रत में से १२४ अतिचार दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ९२३६५. (+) सूक्तमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २४-५ (१,६ से ८,१२)+१(१३)=२०, पू. वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्रले. ग. खंतिविजय ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक - २४अ पर प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्ध है. किसी-किसी कथा के अंत में प्रतिलेखक का नाम मिलता है. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे., (२७.५X१३, १४X४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धर्मवर्ग गुरुतत्त्ववर्णन गाथा-५ से अर्थवर्ग कुव्यसनवर्णन गाथा-२ तक है.) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). सूक्तमाला कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. नमीराज प्रभुभक्ति प्रसंग से द्यूतसंबंध दृष्टांतकथा अपूर्ण तक है.) ९२३६६. (*) स्तवन, रास व सज्झावादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. १८. ले. स्थल. चेखला, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये., (२७.५४१३, २२-२५४७९). १. पे नाम. शत्रुंजयजीनो स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- बृहत् शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि सयल जिणंद; अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा - २१. २. पे नाम. शीलगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीलोपदेश सज्झाय, क. जैत, पुहिं., पद्य, आदि अरिहंत देवने ध्याउं अंति मनवंछित सफलतिवरे, गाथा-२४. ३. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि सयल तीर्थंकर करू रे, अंति: कहिहं मुनि एह विचार, गाथा - २५. ४. पे नाम. दानशीलतपभाव रास. पू. २अ ३आ, संपूर्ण दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सुंदर ० सुप्रसादा रे, ढाल ४, गाथा- १०१. ग्रं. १३५. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १७९ ५. पे. नाम. रोहिणीनो स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२.. ६. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल-३, गाथा-२५. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ.५अ-५आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे भणे, ढाल-६, गाथा-४९. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: आबु शिखर सोहामणो जिह; अंति: प्रेमचंद० परमानंद, गाथा-३४. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवा में; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतर्यामी सुणो अलवेस; अंति: मुजने भवसागरथी तारो, गाथा-५. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: थलपति प्राण आधार, गाथा-५. १२. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर० कहुं दीहडी, गाथा-१३. १३. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो माता; अंति: जीवन प्राण आधारो रे, - स्तवन-२४, गाथा-१२१. १४. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणो, ढाल-२, गाथा-२४. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- छट्ठाआरा, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए ___ नमी; अंति: देवीदास० सकलसंघ मंगल भणे, ढाल-५, गाथा-६६. १६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: जी ते नमे मुनि माल, गाथा-२८. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंति: शभवीर वचनरस ___ गावे रे, गाथा-८. १८. पे. नाम. स्तवनचौवीशी, पृ. ९आ-१२आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर सुखकारी हो; अंति: (-), स्तवन-२४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन स्तवन तक लिखा है.) ९२३६७.(+) २४ जिन पूर्वभवादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १९४२८). For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को. आदि (-); अंति: (-). ९२३६८. तत्त्वतरंगिणी सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-६ (१ से ६) = ५, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. त्रिपाठ., जैवे. (२७.५४१३ १४५१). तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६१५, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २९ अपूर्ण से ४२ तक है.) तत्त्वतरंगिणी स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९२३६९. (**) सूक्तमाला सह अर्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५१-४४ (१ से ४२,४५, ४७) ७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र है. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८१३, १५-१७४५-४७) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अर्थवर्ग गाथा-१९ से कीर्तिविषयक गाथा - ३० तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक्तमाला अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). सूक्तमाला - कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. काकोलूक कथा अपूर्ण से परस्त्री विषयक रावण दृष्टांत कथा तक है.) ९२३७० (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९९६, फाल्गुन शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. मेथाणा, प्रले. करुणाशंकर छगनलाल व्यास; अन्य. श्राव. चमनाजी नरसिंहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी लघुपोषालीकपट्टावली., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे., (२८.५X१२.५, १३४४४). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: विजयराज्यंते. ९२३७३. (**) नलदमयंती चोपाई, अपूर्ण, वि. १९३४ आश्विन कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. २६-१ (१) = २५, प्रले. पं. नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नलदमयंतीची, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५x१२.५, १७४४२) "" नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: समयसुंदर ० चित्तवसी, खंड-६, गाथा- ९३१, ग्रं. १३५०, (पू.वि. खंड-१, डाल- २ गाधा ११ अपूर्ण से है., वि. डाल ३९) " ९२३७५. शास्त्रवार्ता समुच्चय सह स्याद्वादकल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २० - ७ (१ से ७) = १३, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. द्विपाठ, जीवे. (२७४१२, ११-१२४४५-४७). शास्त्रवार्त्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तबक- ७ श्लोक-४८८ से ४९९ तक है.) , शास्त्रवार्त्ता समुच्चय- स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९२३७७. दंडक प्रकरण सह टवार्थ व वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२-२ (१ से २) १०, ले. स्थल. वीरपुर, प्रले. सा. बेला; पठ. मु. प्रेमचंदजी (गुरु मु. ताराचंदजी, चंद्रगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२.५, २-१९x४२-७३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण से है . ) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आत्माने हितकारिणी. दंडक प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: कुल कोडी जांण. ९२३७८. (*) २१ प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १०८, दे. (२७४१२.५, ११४३६-४०). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं प्रथम जिणंद, अंति: हेम हीरो जेम जडियो रे, ढाल - २१, गाथा - १०४. ९२३७९. (+) स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ५८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५X१३, १५X३७-४० ). १. पे. नाम महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि पुहिं., पद्य, आदि प्रभुवीर जिनवर सयल, अंति सिंह लछन सुखकरं, गाथा-३. २. पे नाम. मल्लिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि परम मोदमां आज हु; अति धनमुनि० अंजली भोजपाथने, गाथा ५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, आ. राजेंद्रसूरि सं., पद्य, आदि देवेंद्र पूजितांनि अति जिनवरो सूरिराजेंद्र एष श्लोक-३. ४. पे. नाम. गिरनारतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, आ. राजेंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: जैनेंद्रो नेमिनाथो विगत; अंति: सूरिराजेंद्रवंद्यः, श्लोक-३. ५. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-धुलेवातीर्थमंडन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्तवं केशर्यानाथदेवं; अंति: संपल्लहो सर्वथोका, श्लोक-४. ६. पे नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभेश जिनेश सुरेश; अंति: जिनवरो सूरिराजेंद्र एष, गाथा-३. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: वरं सिद्धचक्रं नमो नित्य; अंति: राजेंद्र सेवो सुधार, गाथा-३. ८. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. राजेंद्रसूरि सं., पद्य वि. २१वी, आदि अर्ह श्री आदिनाथः प्रथम, अंति भज भज भो सूरिराजेंद्र एषः श्लोक-३. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि पुहिं., पद्य वि. १९४३, आदि मूरति मोहन वेली रे; अंतिः धनमुनि तारज्यो भवोवधि वीर, दोहा-७. 1 १०. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. , आदिजिन स्तवन- धिरपुरमंडन, मु. धनमुनि पुर्हि, पद्य वि. १९३४, आदि आज ओच्छव छे रे अधीको; अति धनमुनि चाखे सिवसुख मेवा, गाथा - ९. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. धनमुनि पुहिं, पद्य वि. १९३४, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो अंति: महाराज धनमुनिराज, 3 गाथा- ७. १२. पे नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि पुर्हि, पद्य, आदि नेम संग राजुल गोरी खेलत अति धनमुनि दर्श लहोरी, गाथा-६. १३. पे. नाम. गिरनारगढ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. धनमुनि पुहिं., पद्य, वि. १९३४, आदि: नेमजिणंद जिनचंद्रनें; अंति: धनमुनि० हर्ष पायो रे, गाथा - ९. १४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि आजनो दाडो रे सजनी अति राजेंद्र भावि लाहो लीजे, गाथा-५. १५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन- २१ नाम गर्भित, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- २१ नाम गर्भित, मु. धनमुनि पुर्हि, पद्य, वि. १९४४, आदि: श्रीसिद्धक्षेत्र सोहामणो; अति धनमुनि० साथ हो लाल, गाथा - २५. १६. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि पुहिं, पद्य, वि. १९४५, आदि मल्लिनाथ प्रभु अंति पूजा रे धनमुनि नाथ भयो, गाधा-७. १७. पे नाम, चैत्यपरिपाटी स्तवन- विरपुरमंडण, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. चैत्यपरिपाटी स्तवन-थिरपुरमंडण, मु, धनमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: चैत्यप्रवाडी चूपसु भवि; अति: धनमुनि० सिववधु वरमाल, गाथा- ९. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: वाघपुरे श्रीपासजिनेश; अंति: धनमुनि तुझपद वासी हे, गाथा-७. १९. पे नाम, सिद्धगिरि स्तवन, पू. ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १८१ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. धनमुनि पुहिं., पद्य, आदि: विमलगिरि पूजो रे; अंति: साचो जांणे धन जसकारी, गाथा - ५. २०. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६ आ-७अ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: आज हमारे रतनचिंतामण; अंति: धनमुनि० सहज तरे री, गाथा- ९. २१. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराजनी रे बींब, अंति: धनमुनि निजपदवास, गाथा-७. २२. पे. नाम. सुबुधिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. " " सुविधिजिन स्तवन- खाचरोदमंडन, मु. धनमुनि पुर्हि, पद्य वि. १९९२, आदि: सुबुधिजिणंद सुहंकरु, अति धनमुनिवर जयकार, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३. पे नाम, अजितजिन स्तवन- तारंगामंडण, पृ. ७आ, संपूर्ण, अजितजिन स्तवन- तारंगामंडण, मु. धनमुनि पुहिं., पद्य वि. १९३६, आदि अजित अजित अंतरजामि; अंति धनमुनि० चितहुलसे, गाथा- ७. २४. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. धनमुनि पुहिं., पद्य, आदि: सुहाइ सुहाइ सुहाइ जिणंद, अंति: सहेली धनमुनि दर्श रचाई, गाथा-८. २५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ८.अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- शिवपुरिमंडण, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि प्राणपियारा पासजि अंति: प्रभु सुखवास लाल रे, 7 गाथा-५. २६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य वि. १९२६, आदि श्रीजिन बीजा रे मुज, अंतिः रत्नपुरी मन भाया, गाथा- ७. २७. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पू. ८आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि नेमिजिन सुध स्वरूपनुंजी, अंतिः पामीये मुगतिनुं ठाय, गाधा-७. २८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. मु. प्रमोदरुचि, पुहिं., पद्य, वि. १९२६, आदि: जी रे म्हारे सीमंधर; अंति: प्रमोदरुचि०बुद्धताजी, गाथा- ९. २९. पे नाम बीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित्य प्रणम; अंति: रुचि मनधैर्य लाल रे, गाथा ६. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भीनासरमंडण, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य वि. १९२६, आदि भीनासर भगवंत भेट्वा, अंतिः धनमुनि ० ए पार उतारज्यो ए, गाथा- ६. ३१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी बीकानेरमंडण, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी बीकानेरमंडण, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीपास परमानंद, अंति: भयो धनमुनि पद लयलीनो, गाथा-७. ३२. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १०अ संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि सिद्धाचल गिरि सिद्धक अंति रुचिप्रमोदे राची रे, गाथा- ९. ३३. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तवन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं., पद्य, वि. २०वी, आदि: सासनपति वीरजिणंदा रे; अंति: परमोदरुचि तुम पामी, गाथा-५. ३४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि पहिले पद अरिहंत अंति रुचिपरमोद सुधार रे, गाथा - १०. For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १८३ ३५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण.. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो भले; अंति: मुनि पद पामे परमानंद, गाथा-७. ३६. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनेश्वर अलवेसर; अंति: धनविजय सुख नित्य, गाथा-७. ३७. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीऋषभ जिनेसर वंदन; अंति: धनमुनिवर हितकार, गाथा-१. ३८. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिन हितकारी; अंति: धनमुनि० पापना ओघ नासे, गाथा-१. ३९. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पास महंता; अंति: सूरिराजेंद्र संता, गाथा-१. ४०. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिन शिवसुखनो; अंति: धनमुनि पाप विडारेजी, गाथा-२. ४१. पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन नमुं पाय; अंति: धनमुनि० वीर श्रुतराज राया, गाथा-१. ४२. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुर सुखदाइ सुमति; अंति: सूरि राजेंद्र जाइ, गाथा-१. ४३. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, म. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: समकितना लिया रे; अंति: हम बहत वार कर लीनो, गाथा-५. ४४. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: निज आचारनै छंडी; अंति: कुतर तणोगनी देखण, गाथा-१९. ४५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- साध्वाचार दोष, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार दोष, मु. धनमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: भगवती शतक प्रथम; अंति: धनमुनि०ते उतरे भवपार, गाथा-२२. ४६. पे. नाम. श्रावकाचार सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मु. धन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध देवगुरु धर्म; अंति: लीला सहेजे शिवसुख वरसे रे, गाथा-२१. ४७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. ____ औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, मु. धनमुनि, पुहि., पद्य, आदि: हां रे मत परणो कोई; अंति: भाखो धनमुनिवर उरधार, गाथा-२३. ४८. पे. नाम. चतुपद स्वाध्याय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. चोपडखेलन सज्झाय, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अहवाणी अति भली; अंति: मिलिये जाय हो, गाथा-१८. ४९. पे. नाम. संयमहोली सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होली-भावहोलीरमण, म. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: होरिया संजमादि खेलाउ; अंति: ध्याउ होरिया संजम दिखेलाउ, गाथा-४. ५०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. १६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: अहो लाला जोग तीन्हुं; अंति: देहि रतन्न रे लाला, गाथा-६. ५१. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. पं. प्रमोदसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन वीरवाणी सुणी; अंति: प्रमोदसु० तस अवतार, गाथा-२८. ५२.पे. नाम. पर्यषणपर्व गंहली, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व गहुंली, मु. धनमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: सखी परव पजूसण आया; अंति: धनमुनि पदगुणखाणी रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३. पे नाम. पर्युषणपर्व गंहुली, पृ. १८ अ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व गहुली, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि परब पजूसण पूरव पुण्य; अंतिः धनमुनिवर हितकार रे, गाथा- ७. ५४. पे. नाम. वीरजन्मोच्छव गहुंली, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्मकल्याणक गहुंली, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: आज ओछव छे रे सजनी चैत्र; अंति: धनमुनि ० फल पावे, गाथा - ११. ५५. पे. नाम. संवच्छरीखामणा गहुली, पृ. १८आ १९अ, संपूर्ण. संवत्सरी क्षमापणा गहुंली, मु. धनमुनि पुर्हि, पद्य, आदि आज संवच्छरि दीन रुडो अति धनमुनिवर पद पावो रे, गाथा-६. ५६. पे नाम. गौतमपृच्छा सज्झाय, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण मु. धनमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: सजनी मोरी सांभलो; अंति: धनमुनि० वखांणी रे, गाथा-१६. ५७. पे नाम, भगवतीसूत्र गहली, पृ. १९आ २०अ, संपूर्ण. " भगवतीसूत्र गहुली, पुहिं., पद्य, आदि सखी भगवती पंचम अंग अति मुनि थुणता रे, गाथा-७, ५८. पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल दीपक, मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: करी आरती आरत दुर; अंतिः दीवो होज्यो संघ हजूर, गाथा - ५. ९२३८० (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६५-४१ (१ से ४,२४ से ६० ) = २४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२७४१३, ७४३९). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. बीच के पत्र हैं. भवदत्त भवदेव कथा अपूर्ण से जंबूस्वामी प्रभवस्वामी को पाट स्थापन एवं अंतिम अनशन प्रसंग तक है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९२३८३. (f) श्रीपाल रास खंड ४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-२ (१, ३) ६, पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. त्रिपाठ, मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे. (२६.५X१३, १९४५२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-४, ढाल ११ की गाथा- २ तक व गाथा-५ अपूर्ण से गाथा ८ तक नहीं है.) श्रीपाल रास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. . ९२३८६. (*) कर्मगति सज्झाय व पदसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १३-५ (१ से ४, ६ ) = ८, कुल पे. १८, प्र. वि. संशोधित. दे., (२६.५x१३, ६४३२). १. पे नाम औपदेशिक पद- निद्रा परिहार, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि (-); अंति भूधर० तोड तनी रे, गाथा- २ (पू.बि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे नाम औपदेशिक पद-जीवदया पू. ५अ-५आ, संपूर्ण, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि ऐसे दिन कब आवेगे, अंतिः नवल० आवागमन मिटावेगे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-कर्मगति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पुहिं, पद्य, आदि साहिब खेलत है चोगान अति (-) (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) " ४. पे. नाम. औपदेशिक पद- विश्वास, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि (-); अति भूधर ताकु शिरनावा, दोहा-४, (पू.वि. दोहा २ अपूर्ण से है.) " ५. पे नाम औपदेशिक पद- शीलगुण, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि उस मारग मत जाय रे नर; अंति: भूधर० वात जिताय रे, दोहा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कर्मगति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. गाथा- ६. कर्मगति सज्झाय, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: हे माय वांकडी करमगति जाय; अंति: सकल मांहे व्याप रही, ७. पे. नाम. औपदेशिक पद- वैराग्य, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: कहाँ तूं भूलो रे मन; अंति : भूधर० सागर लहर समाइ, . दोहा-४. For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ८. पे नाम औपदेशिक पद कर्मोदय, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण. मु. जगतराम, पुहिं, पद्य, आदि पिया की तो एह बात हहेली; अति: सरण सवनकुं हम तो उनके हाथ, दोहा-४. " ९. पे नाम औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि जय जयवंती आयो बुढापो वेरी, अंति: भूधर पछताओगे प्राणी, दोहा-४. १०. पे. नाम औपदेशिक पद-मृगतृष्णा, पू. १०अ संपूर्ण 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि: महबूब तोकुं तुझमें; अंति: आपनें भली वात एक हि, दोहा-३. " ११. पे. नाम. औपदेशिक पद-रागदोष परिहार, पृ. १० आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि कर रे कर रे कर रे; अंति दानत भव दुख तर रे, दोहा-४. १२. पे नाम औपदेशिक पद- चंचलमन, पृ. ११अ. संपूर्ण. मु. जगतराम, रा., पद्म, आदि गुरुजी म्हारो मनडो; अति जगतराम जिन की बात दोहा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद- पापकर्म परिहार, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै. क. बनारसीदास पुहिं. पद्य वि. १७वी आदि मूल न बेटा जाया अरे अति खावो कहत वनारसी भाई. गाथा ४. १४. पे नाम औपदेशिक पद क्षणभंगुर संसार, पू. १२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इस नगरी में किस विध; अंति: वनारसी०लुटि गयो डेरो, १६. पे. नाम. औपदेशिक पद-कपट परिहार, पृ. १२-१३अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पु.ि, पद्म, आदि हां रे मन वणीवा वाहि; अति वनारसी०गांठ न खोल रे, दोहा-४. १७. पे नाम औपदेशिक पद-धर्मकर्म, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. मु. माल मुनि, रा., पद्य, आदि : अब करजै जैनधर्म; अंति: जो भवसागर तिरनो, दोहा-४. १८५ गाथा - ३. १५. पे. नाम, औपदेशिक पद- कुपात्र शिक्षा, पृ. १२अ -१२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: (१)वाको सहज मिटावे, (२) जिनराज० यो अवसर जावे, गाथा-४. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद-दिगंबर साधु, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: सुर मल्हार कव मिलहें; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ९२३८७. (+) स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१६ (१ से १६) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१३, १७४४८). " स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८५, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सुव्रतजिन स्तवन से नमिजिन स्तवन गाथा - १० तक है.) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). 5 ९२३८८, (+*) पर्युषणपर्वाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३५-२९(१५ से २२,२४ से ३२,३४)=६, ले. स्थल. कौसाणा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१३, ७३६-४२). "" पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य वि. १७८९, आदि (-); अंति: परंपरा करगामिनि भवति, (वि. १८९७, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, पू. वि. तीन वावडीया और चार वावडिया के बीच दधिमुख नामक पर्वत का वर्णन अपूर्ण से है., प्रले. मु. सुमतहंस पंडित (गुरु मु. उमेदहंस पंडित); गुपि. मु. उमेदहंस पंडित (गुरु मु. गुमांनहंस पंडित); मु. गुमांनहंस पंडित (गुरु मु. फतेहंस पंडित); मु. फतेहंस पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति हाथे आवता महामुक्ति, (वि. १८९७ आश्विन For Private and Personal Use Only कृष्ण, ७, शुक्रवार, ले.स्थल. कोसाणा, प्रले. मु. उमेदहंस पंडित (गुरु मु. गुमांनहंस पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य ) ९२३९१. (+) २० स्थानकतप आराधनाविधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४. पू. वि. प्रारंभ बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१२, १५४३२). " Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थानक-१ अपूर्ण से स्थानक-२० अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९२३९३. (+) अवंतीसुकुमालनुं तेरढालीयुं, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, प्रले. श्राव. लहेरचंद दीपचंद; श्राव. हरगोविंद अमूलख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., गु., (२६.५४१३, १२४३४-३७). अवंतिसकमाल रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेसर सेवीये; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४, गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ९२३९५ () प्रत्याख्यान भाष्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-४१(१ से ४१)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१३, ७-१०x२७-४२). प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ९२३९६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, ८x२०-२६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एष अहं तस्य तीर्थेश्वरस्य; अंति: (-). ९२३९८. बारव्रत सज्झाय, जिनवाणी गंहुली व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. फतेचंद मुनि; लिख. मु. छगनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४५३). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, प.१अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गरुआणा शिर बहेशेजी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. २. पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद जिनजात्र करणकुं; अंति: सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ३. पे. नाम, बारव्रत सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, म. अमीकंवर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवदया व्रत पेले; अंति: अमरफल लेवा तो, गाथा-१३. ४. पे. नाम, जिनवाणी गंहली, पृ. ७आ, संपूर्ण. जिनवाणी गहुंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हुं; अंति: वंछे घणुं हो लाल, गाथा-७. ९२३९९ (+) आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ७२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४२७). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-क्षणभंगुर जीवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवै उठि जाग; अंति: निरंजन देव ध्याउरे, गाथा-३. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-आत्मानुभव, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरियारी बाउ रे मत; अंति: आनंदघन० केई पावै, पद-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-प्रभाती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिय जाने मेरी सफल; अंति: नर मोह्यौ माया कंकरी, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुहागणि जागी अनुभव; अंति: नंदघन० अकथ कहानी कोय, गाथा-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-समर्पण भाव, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १८७ आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनुभव प्रीतम कैसी; अंति: आनंदघन० करो धन्यासी, गाथा-३. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मेरे पति गति देव; अंति: घन० काम मतंग गज गंजन, गाथा-३. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मारो वालूडो संन्यासी; अंति: सीझै काज समारी, गाथा-४. ८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारो माने कब मिलस्यै; अंति: को नवि विलगें चेलू, गाथा-३. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्यारे मोने मिलसे; अंति: कीम जीवै महुमेही, गाथा-३. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुबुद्धि कूबरी कुटिल; अंति: घन० तो जीते जीय गाजी, गाथा-५. ११. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव रीति वरीरी; अंति: आनंदघन सर्वंग धरी री, गाथा-३. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन चतुर चोगान लरी; अंति: आनंदघन पद पकरी री, गाथा-३. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया विना निस दिन; अंति: आनंघन पाऊख झरी री, गाथा-३. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी हुं तेरी हुं; अंति: तो गंग तरंग वहूं री, गाथा-३. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी तुं मेरी तुं; अंति: आनंद०मिलि केलि करेरी, गाथा-३. १६. पे. नाम, औपदेशिक पद-आशा, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग आशा जंजीर की गति; अंति: आनंदघन० निरंजन पावे, गाथा-५. १७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आसा ओरन की क्या; अंति: आनंदघन० लोक तमासा, गाथा-४. १८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू राम राम जग गावे; अंति: रमता आनंद भौंरा, गाथा-४. १९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मांगुं गुनहीना; अंति: रटन करुं गुणधामा, गाथा-४. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-परमारथ, पृ. ६अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: परमार्थ सो पावै, गाथा-४. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: जगावै अलख कहावे सोई, गाथा-४. २२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: सेवकजन बलि जाहीं. गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधो भाई सुमता रंग; अंति: हित कर कंठ लगाई, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव फूल की; अंति: सिद्ध सरुप कहावे, गाथा-३. २५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. ___मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभव तूं है हेतु; अंति: आनंद० बाजे जीत नगारो, गाथा-३. २६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनुभव हम तो रावरी; अंति: सुमता अटकलि ओर नवासी, गाथा-३. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाथ निहारो आप सीमता; अंति: नौ और नहीं तू समतासी, गाथा-३. २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव रस कथा; अंति: हो वदे आनंदघन मेद, गाथा-४. २९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सलूणे साहेब आवेंगे; अंति: हो लीने आनंदघन माहि. गाथा-४. ३०. पे. नाम, आनंदघन पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: विवेकी वीरा रह्यो न; अंति: कें दीनो आनंदघन राज, गाथा-४. ३१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूछीए आली खबर नहीं; अंति: लाई आनंदघन खेच, गाथा-४. ३२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भादं की रात काली; अंति: आए आनंदघन मान, गाथा-५. ३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-जकडी, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: रास शशी तारा कला; अंति: करै आनंदघन प्रभु आस, गाथा-६. ३४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीसानी आप मनावो रे; अंति: बिराजे आपही समता सेज, गाथा-५. ३५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मिलापी आन मिलावो रे मेरे; अंति: लेगो आय घरे हरी भांत, पद-५. ३६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: विचारी कहा विचारे; अंति: दघन० खेलो अनादि अनंत, गाथा-५. ३७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ.११अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखो आली नट नागरको; अंति: ओर कहा को दीसे संग, गाथा-३. ३८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: करे जारे जारे जारे; अंति: आई अमित सुख देजा, गाथा-३. ३९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखो एक अपूरव खेला; अंति: मिट जाय मनका झोला, गाथा-४. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधु भाई अपना रुप; अंति: आनंदघन० गयो दिल भेखा, गाथा-२. ४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: दरसन प्राण जीवन मोहि; अंति: कोटी जतन कर लीजे, गाथा-३. ४२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १८९ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: पिया तुम निठुर भए; अंति: न कीजीयै तुम हौ तैसे, पद-३. ४३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारी माज मजेठी सुन; अंति: आवै आनंदघन रहै घरखा, गाथा-४. ४४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोले लोगा हुं रडुं; अंति: आनंदघन करु घर दीया, गाथा-४. ४५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निशदिन जोउ तारी वाटड; अंति: आनंदघन० सेजडी रंगरोला, गाथा-५. ४६. पे. नाम, अध्यात्मिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनमा नटनागरसूं जोरी हो; अंति: आनंदघन० चकोरी हो, गाथा-५. ४७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया बिन सधबध मंदि हो; अंति: रज धरे आनंदघन आवे हो, गाथा-६. ४८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया बिनु शुद्ध बुद; अंति: ऐसे निठुर न है जा हो, गाथा-६. ४९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अणजोवंता लाख जोवे तो एके; अंति: आनंदघन पद लीधुं, गाथा-३. ५०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारो रे कोइ परघर; अंति: आनंदघन० झूठ कै झाल, गाथा-३. ५१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोने कोय मिलावो कंचन; अंति: आनदघन० धरु अनुछाह रे, गाथा-३. ५२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैजैवंती ऐसी कैसी; अंति: आनंदघन० दीअर कहैस्या ए, गाथा-२. ५३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: तरस कीजइ दइको दइकी सवारी; अंति: आनंदघन दाह हमारी, गाथा-२. ५४. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मेरी सुमेरी सुंभेरी; अंति: आनंदघन० जो कहं अनेरी री, गाथा-२. ५५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.. अध्यात्म पद, म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मीठो लागे कंतडोनै; अंति: आनंदघन अवरवै टोक, गाथा-४. ५६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगतगुरु मेरा में जगत कां; अंति: आनंदघन बावा जा, गाथा-३. ५७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन सकल वियापक होइ; अंति: आनंदघन तत सोइ, गाथा-३. ५८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे घट ज्ञान भान; अंति: दघन० और न लाख किरोर, गाथा-३. ५९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हमारी लै लागी प्रभु; अंति: बतावे आनंदघन गुनधाम, गाथा-३. ६०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हठीली आख्यां टेक न; अंति: दूरै आनंदघन नाहि, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधुसंगति बिनु कैसें; अंति: आनंदघन० नहीं लाऊं री, गाथा-४. ६२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मूलडो थोडो भाई; अंति: आनंदघन० ज्यो रे आय, गाथा-३. ६३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १७अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राम कहौ रहिमान कहौ; अंति: आनंदघन चेतनमय निःकर्मरी, गाथा-४. ६४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: हरि पतित के उधारना; अंति: रीति नांउ की निवहीये, गाथा-७. ६५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निस्पृह देश सोहामणो; अंति: आनंदघन पद भोग हो, गाथा-५. ६६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनंत अरुपी अविगत; अंति: आनंदघन पद पामे, गाथा-५. ६७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १८आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: वालूडी अवला जोर की; अंति: वरत्यौ परम सुरंग, गाथा-५. ६८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारी हुं बोलडे मीठडे; अंति: दघन० भागे आन वसीठडे, गाथा-३. ६९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोकुं कोऊ कैसे हुं; अंति: आनंदघन० जन रावरौ थकौ, गाथा-३. ७०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: रे परदेसी भमरा रह्यो; अंति: आनंदघन० उर समाय रे, गाथा-३. ७१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुन भयो रे उदासी; अंति: जाय करवत ल्यूं कासी, गाथा-३. ७२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मायडी मुने निरपख; अंति: आनंदघन० सगला पालै, गाथा-८. ९२४०० (#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, ९४२३). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा-३९. ९२४०४. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१३, १५४४९-५२). शांतिनाथ चरित्र, आ. मनिदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३२२, आदि: वेश्मरत्न निशारत्न; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८१७ अपूर्ण तक है.) ९२४०७. २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. पंचासराजी प्रसादात्, दे., (२८x१३, १४४३८). स्तवनचौवीसी, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सगुण सोभागी; अंति: माला बालाने वरे रे लो, स्तवन-२४. ९२४०८.(+) मांडलिया जोग विधि, संपूर्ण, वि. १९८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. सीताराम गेरमल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१३, १६x४०-४४). मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देइ इरियावही; अंति: बीजा चारमा नियम नही. ९२४०९ (+) स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ३१, अन्य. मु. चतुरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४३४-३७). For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १.पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीजिनराज आज मलीओ; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. २. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. विनयविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: विनय कहे कर जोड, गाथा-१४. ३.पे. नाम, द्वितीयातिथि चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीशमो जिनराजी चंपा; अंति: जिन आपो सीव मुज एक, गाथा-११. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: पंचरह स्वाक्षर मान, गाथा-८. ५. पे. नाम, अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, प. २आ-३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. न्यायविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही उद्यानमां; अंति: तुमे पामो परम कल्याण, गाथा-९. ६. पे. नाम. एकसौ पचास जिनकल्याणक चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जग जयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-९. ७. पे. नाम, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार. ८.पे. नाम, द्वितीयातिथि चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. बीजतिथि चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: बीज रीझ करी सींचीए; अंति: करे श्रीशुभवीर हजुर, गाथा-७. ९. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठम तप आराधीए भाव; अंति: शुभ फल पामे तेह, गाथा-१२. १०. पे. नाम, मौनएकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नेमि जिनेसर गुण निलो; अंति: शुभ सुरपति गुणगाय, गाथा-११. ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समऊं श्रीआदिदेव; अंति: सिद्धविजय० मुज तार, गाथा-८. १२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजयसिद्ध क्षेत्र; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-५. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ६अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल शिखरे चढी; अंति: शासने शिवरमणी संयोग, गाथा-७. १४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर ईश्वरं; अंति: तणी वीर रचे वरमाल, गाथा-५. १५. पे. नाम. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. ६आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरतनसूरी भणंत, गाथा-९. १६. पे. नाम. पर्युषण- चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपजुसण परव सेवो; अंति: तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा-१२. १७. पे. नाम. उपधानतप स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; ___ अंति: विनय० भवें भवें, (वि. गाथांक अंकित नहीं है.) १८. पे. नाम. चउगतिवेल स्वाध्याय, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण.. नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: रलियामणो परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. १९. पे. नाम. अक्षयनिधितप स्तवन, पृ. १०आ-१३आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: शुभवीर० घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५२. २०. पे. नाम. रोहिणीतपविधि स्तवन, पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सुखकर शंखेश्वर नमी; अंति: पंडित वीरविजयो जयकरो, ढाल-४, गाथा-४७. २१. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन-१, पृ. १६आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय शृंगार; अंति: आराधीए आगमवाणी विनीत, गाथा-३. २२. पे. नाम, पर्यषणपर्व चैत्यवंदन-२, पृ. १६आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. २३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन-३, पृ. १६आ, संपूर्ण. षणपर्व चैत्यवंदन, म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. २४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन-४, पृ. १६आ, संपूर्ण. ___पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. २५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन-५, पृ. १६आ, संपूर्ण. ___महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकजरी चित, गाथा-३. २६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन-६, पृ. १७अ, संपूर्ण. पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंद सदा वनीत, गाथा-३. २७. पे. नाम, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन-७, पृ. १७अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवत्सरी; अंति: विनयविजय० नमु शीस, गाथा-३. २८. पे. नाम. शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पृ. १७अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुदी आठम चंद्रानन; अंति: शासने करीए एक अवतार, गाथा-३. २९. पे. नाम. दसपच्चक्खाण- स्तवन, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ३०. पे. नाम. महावीरजिन षट्पर्वी, पृ. १९अ-२३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: गुरु पदपंकज नमी रे; अंति: नाम षटपरवि धौं, ढाल-९, गाथा-७१. ३१. पे. नाम. बारमासी तप स्तवन, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण. १२ मासी तप स्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: त्रिभुवन नायक तुं; अंति: सुपसाय विजयविमल वरे, गाथा-१५. ९२४१० (#) स्याद्वादिब्दसमच्चय सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६, प्रले. मु. विद्याविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२८.५४१३, ९-१२४४०-४७). स्यादिशब्दसमच्चय, आ. अमरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा; अंति: (अपठनीय), उल्लास-४. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: देवप्रक्रिया सुगमा परं; अंति: शब्दशास्त्र विशारदैः. ९२४११ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ३४२३-३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भवन स्वर्ग १; अंति: (-). ९२४१२. सिद्धचक्र नवपद खामणा व आगमनाम विवरण, अपूर्ण, वि. १९४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १५-८(१ से ८)७, कुल पे. २, ले.स्थल. आहोर, प्रले. श्राव. ऋद्धिचंद चेनाजी साव, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्., दे., (२८x१२.५, १४४३८-४०). १. पे. नाम. सिद्धचक्रनवपद खामणा, पृ. ९अ-१५आ, संपूर्ण. नवपद खमासण विचार, पुहि.,सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्रतिहारिये; अंति: भेदयुक्ततपपदेभ्यो नमो नमः. २. पे. नाम. आगमनाम विवरण, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४५ आगमनाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग २५००; अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक-९ तक ९२४१६. ९९ प्रकारी पूजा व शत्रुजयमहिमा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२, १२-१३४२९-३६). १. पे. नाम. नवाणुप्रकारी पूजा, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. नवाणुप्रकारीपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: याने आतम आप ठरायो रे. २. पे. नाम, नवाणुप्रकारी पूजा विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जघन्य ९ कलशवाला; अंति: साथिया ९९ चोखाना करी. ९२४१७. सिद्धपंचाशिका प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-४(७ से १०)=१५, दे., (२६.५४१२, २x२२-३६). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक नहीं व गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धं० आपणो अर्थ; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९२४१८. (+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जालंधर, प्रले. पं. स्वरूपचंद्र; पठ. मु. सुगालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५४१२.५, २६-२८४६४-६७). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पास जिनेश्वर पय नमी; अंति: संघने पूगे आश जगीश, खंड-५, गाथा-७८१, (वि. ढाल ३९) ९२४१९. (+) आठ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पठ. मु. हीराजी ऋषि (गुरु मु. वाहलाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १२४२५-२७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलुं ज्ञानावरणी कर्म; अंति: १६ त. २ अंत्राय ५, (वि. सारिणीयुक्त.) ९२४२०. शालिभद्र चोपाई, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. ऋषभसागर (गुरु पं. राजेंद्रसागर); पठ. श्राव. विजयचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९५४) जिहां लग मेरू अडग है, जैदे., (२७४१२, ११४४१-४४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०. ९२४२१ (+) श्रद्धामंडण, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४१२.५, १९४५०). For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रद्धामंडण, मु. रत्नविजय, पुहिं., प+ग., वि. १९०६, आदि: सर्वज्ञ कुं प्रणमु; अंति: सही कुमणा नर है काय, प्रश्न-११. ९२४२२. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, पोषध व चैत्रीपूनम विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १४४४०). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १अ-१९आ, संपूर्ण. चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: स्वामी आज्ञा प्रवर्तते. २.पे. नाम. पोषध विधि, पृ. १९आ-२१आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरीयावहियं; अंति: गंभीरा सुधी चिंतवीजै. ३. पे. नाम, चैत्रीपूनम विधि, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम वाजोट ऊपरि; अंति: कीजै संघ भक्ति कीजै. ९२४२३. (#) प्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पंडित. हीरालाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३७-४२). श्रावक आलोयणा विधि, म. क्षमाकल्याण, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनेंद्रादि; अंति: क्षमाकल्याणसाधुना. ९२४२४ (+) गजसुकुमाल व प्रभंजनासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. उमेदमल लूणीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४२३-२८). १. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: देवचंद० साहाय रे. ढाल-३, गाथा-३८. २.पे. नाम. प्रभंजनासती सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ तक लिखा है.) ९२४२५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९४९, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २२७-२४(२० से ३५,३८,४१,४६,५९,६९,७१ से ७२,२२३)=२०३, ले.स्थल, बालुचर, प्रले. सा. रिद्धि कंवर (नागोरीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ५-१३४३२-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति वेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२००, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमसकार हओ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समाचारी के अन्तर्गत-"आसाढ चोमासाथी ५० दिवसे पीण साधुने न कल्पे ते भाद्रवा सुद ५वीरा ३ प्रतिक्रमण करवू." तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: पहिला छेहला तीर्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नवम __ अध्ययन अपूर्ण दृष्टांत कथान्तर्गत-"इम थोडो सोधी प्रीसनै पाडोसीनै घरे मुंहछण लेवा गई" पाठ तक है.) ९२४२६. रात्रिसंस्तारक विधि सह सूत्रार्थ, अपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२-१(२२)=७१, प्रले. सांकलामावेसर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, ११४३७-४२). देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, गु.,प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सि; अंति: इय सम्मत्तं मए गहियं, संपूर्ण. देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं अरिक०; अंति: अंगीकार कीg, संपूर्ण. ९२४२७. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, ७४२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. "निव्वघाए निरावरणे केवलवरना" पाठांश तक है.) ९२४२८. (+#) आठ कर्म विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५, प्रले. मोहन डामर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आठकर्म., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१३, १६४३८). For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: गुरुने नमस्कार होजो. ९२४२९ भयहर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५५, वैशाख शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संवत्-१८३९ श्रावण वद-१० को लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (२६५) मंगलं लेखकानां च, दे., (२६.५४१३.५, १७४१८-३९). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: तस दुरे नासंती, गाथा-२४, (वि. यंत्रसहित.) नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवसुतं; अंति: ति मूलमंत्रेण पूजनीय. ९२४३० (+) प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्रले. श्रावि. रुखमणीबाई (पति श्राव. हठीसिंग); गुपि. श्राव. हठीसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३६-३९). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वपादाब्ज; अंति: कार्यादिति आसनमुद्रा. ९२४३१ (+) सूक्तिमाला, संपूर्ण, वि. १८६६, फाल्गुन कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१८४४५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९२४३२. गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. दयालचंद भट्टारक (गुरु मु. गुमानचंद भट्टारक); पठ. मु. भेरचंद (गुरु मु. दयालचंद भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ९४२६-२९). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: जयभद्रसूरि इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-६६. ९२४३३. (+) उत्तराध्यनसूत्र-१८ से २२ अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, १२४३२-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९२४३४. चौवीस दंडक उगणतीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९+१(५)=१०, जैदे., (२७४१२.५, ११४३२-३६). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. ९२४३५ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, ७-२०४३९-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. गर्भापहार प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै विस्तर वाचनायै; अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-). ९२४३६. सर्व यंत्रस्य पूजा मंत्र, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जावाल, लिख. सा. प्रेमश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, १७४३०). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ गम्ल्व्य रींगरस्त्रि; अंति: सुमति आवे भलू होइ. ९२४३८. कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, दे., (२७४१३, ९x४२-५१). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ९२४३९ जीवविचार, नवतत्त्व व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, १२४३८-४२). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९. ३. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ योगद्वार तक है.) ९२४४० (4) पुष्पमाला प्रकरण सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, १२४३५-४०). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धं कम्ममविग्गह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ तक है.) पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, ग. साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति जगदेकभानुः प्रक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ की वृत्ति अपूर्ण तक है.) ९२४४१. (2) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२७X१४, ९४२७-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. "रयणाणं वयणाणं वेरुलिया" पाठ तक है.) ९२४४२. (+) धर्मपरीक्षा का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ८५-४४(१ से ३४,५० से ५१,६४ से ७१)=४१, ले.स्थल. फोज, प्रले. श्राव. नानगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में २४ तीर्थकर, उनके मातापितादि संख्या, १२ चक्रवर्ती आदि तथा प्रथमानयोगादि में वर्णित विषय का उल्लेख किया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१३, १३-१६४३८-४३). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मनोहर०सकलसंघ मंगलकरण, दोहा-९२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., दोहा-७१९ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं., वि. चौपाई-१०५१.) ९२४४३. (+) नव द्वार, संपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. लसकर, प्रले. मु. उत्तमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवद्वार., संशोधित., दे., (२६४१२.५, २०-२२४३२-३७). नवतत्त्व ९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल लक्षण द्वार १ कूण; अंति: नवमो नय दुबार समत्त. ९२४४४. (+) समयसार नाटक की टीका, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ६४३८). समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग., आदि: नमः समयसाराय स्वानुभूत्या; अंति: मृतचंद्रसूरेः, अधिकार-९, श्लोक-२७८. ९२४४५ (+) सामायिकग्रहण विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ६-१०४३६-४०). सामायिकग्रहण विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आत्मार्थी जीवे; अंति: तिणसे समकितिक प्रमाण नही. ९२४४६. २० स्थानक स्तवन व विधि, संपूर्ण, वि. १९१३, भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. ऋद्धिरत्न, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४१२,१४४४१-४३). १. पे. नाम. २० स्थानक स्तवन, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-२०. २. पे. नाम. २० स्थानक पूजा विधि, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. २० स्थानकपूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: एह वीसथानक तप मांडता तथा; अंति: कहीने पूजे संक्षिप्तविधि. ९२४४७. यादवकुलविस्तार वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२६४१२.५, ११४३२-३४). यादवकुलविस्तार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम हरीवर्ष क्षेत्रनो; अंति: द्वारिका आया. ९२४४८.(+) लंकारी चरचा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. हुंडी:लुंकारी चरचा., संशोधित., दे., (२७७१३, ११४२८-३६). लुंकारी हुंडी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जागरस नरा नीचं जागरमांणस; अंति: होसी तो विचार लेसी. ९२४४९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३-४०(१ से २८,४९ से ५९,६१)=२३, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३०). जामा. For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. भगवान महावीर के परिवार वर्णन अपर्ण से साधु सामाचारी अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ९२४५० (+) अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८८५, माघ शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मांडवी, प्रले. मु. रत्नचंद्र (कमलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४४३). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम उपगरण; अंति: जैनं जयति शासनं. ९२४५१. दीपावली स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१३, ९४३३). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९२४५२. (2) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, १०-११४२४-२७). साधवंदना, म. श्रीदेव, मा.ग., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: (-), (पू.वि. श्रेणिकराज, भद्रासुभद्रा शीलपालन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९२४५३. (+) भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धि यंत्र मंत्र विधि विधान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १४४२४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८, (वि. दिगंबरमत मान्य.) भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भक्तामरप्रणत० ॐ ह्रीं; अंति: कार्य सिद्धि होय, मंत्र-४८, (वि. दिगंबरमत मान्य.) ९२४५४. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण व व्याख्यानश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१३, ९x४२). १. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१७अ, संपूर्ण. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमइं पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६३. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयशेखरसूरि पाटे; अंति: रंगमयी प्रसिद्धि. २. पे. नाम, व्याख्यानश्लोक संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः ससलमंगलावली धर्मतः; अंति: मंगलीक माला संपजै, श्लोक-४. ९२४५६. शत्रुजयलघुकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७.५४१३, ५-१३४३४-३९). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्ता क० अतिमुक्त; अंति: (-). ९२४५८. शेजय उद्धार व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. २, जैदे., (२७४१३, १३४३३). १.पे. नाम, शत्रुजय उद्धार स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: नयसुंदर० जय करुं, ढाल-१२, ग्रं. १७०, (पू.वि. ढाल-७, गाथा-२७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअ सयल जिणंद; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ९२४६०. वीस स्थानक पूजा, विधि व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ४, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पूज्यापत्र, जैदे., (२७.५४१२, १४४४२-५०). For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. वीसस्थानक पूजा, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ जयंकरो, ढाल-२०. २. पे. नाम. वीसस्थानक पूजा विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ए वीशथानक तप; अंति: वच्छल जथाशक्ति करवो. ३. पे. नाम. पंचविधदेव वाद्यनाम गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सूणिउण संखसदं मिलती; अंति: नादं घंटा वैमाणीया देवा, गाथा-१. ४. पे. नाम. अक्षौहिणी सैन्यमान श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दशलक्षदंति त्रिगुणां; अंति: प्रमाणं मुनयो वदंति, श्लोक-१. ९२४६१. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:योगचिंता०., जैदे., (२७४१२, १३४३६-३८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (प.वि. प्रशस्तिगाथा-५ अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादौ; अंति: (-). ९२४६२. (+) सुदर्शना चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९५, प्रले. मु. समयमाणिक्य (गुरु मु. सूरसुंदर, बृहत्तपागच्छ); गुपि. मु. सूरसुंदर (बृहत्तपागच्छ); अन्य. पंन्या. महीसमुद्र वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२, १६४५२). सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सुव्वयजिणं; अंति: सा नंदउ विबुहस्सिया सुइरं, उद्देशक-१६, गाथा-४०५३, ग्रं. ४५००. ९२४६५ (+) ढालसागर हरिवंस, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १०९, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. नरीपचंद (गुरु ग. नंदराम); गुपि.ग. नंदराम (गुरु ग. सरूपचंद); ग. सरूपचंद (गुरु ग. माणिक्यराज वाचक); ग. माणिक्यराज वाचक (गुरु उपा. रुघनाथ); उपा. रुघनाथ (गुरु उपा. वेलजी); उपा. वेलजी (गुरु आ. जिनसुखसरि); आ. जिनसुखसरि, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:ढालसागरहरि०, ढालसागर., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, १७४४४-४८). पांडव रास, आ. गणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जंपे संघ रंग वधामणो, खंड-९, ग्रं. ५७५०. ९२४६६. (+) विचारसार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४०, प्र.वि. हुंडी: विचारसार., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५४३८-४२). सिद्धांत विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धांतनइ विषइ कहिउं छइं; अंति: भाग्य कल्याणनी कोडि पामइं. ९२४६७. (+) सुदर्शनसेठरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. सिरदारशहर, प्रले. श्राव. लछीराम मथेन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ११२५, जैदे., (२६४१३, १२४३८-४२). सुदर्शनशेठ चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी करी भाव; अंति: कान रे सुख पाव सुरगा तिणा, ढाल-४२, गाथा-९८५. ९२४६८. (+) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९६-२(१ से २)=९४, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १८४३२-४४). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-३१ अपूर्ण से ढाल-६२, गाथा-५५ अपूर्ण तक है.) ९२४६९ (+#) कूर्मापुत्रकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५८, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम, पृ.७९, प्र.वि. हुंडी:कुर्मा०च०. प्रतिलेखकनामवाला भाग खंडित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १४-१५४४६-५०). कर्मापत्रकेवली चरित्र, म. विद्यारत्न, सं., प+ग., वि. १५७७, आदि: श्रेयः श्रीसुखकारकः प्रणम; अंति: विद्यारत्न० स्फुरन्मंगलम्, अध्याय-४, ग्रं. ३१०५. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२४७० (+) सिंदूर प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९८, फाल्गुन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. सरसपुर, अन्य. मु. अमरशीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "आ पुस्तक १९४५ मागशर सुद- १५ मंगलना रोज महाराज अमर स्वामीने ढुंढी आगच्छवालाएं शराणा श्रावके बहोरावी छे द. दोसी छगन" ऐसा लिखा है, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है - संशोधित., जैदे., (२६X१२.५, १४X३०-३४). , " सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अति: सुक्ति मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक १७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु., सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभु श्रीपार्श्व; अंति: मयि मूर्खे कृतकृपैः. ९२४७१. इंद्रीवादीरी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्रले. मु. भीखनशिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : इंद्रवा चौपाई, प्रतिलेखक का नाम ३७अ पर है. कुल ग्रं. १२३६, दे. (२७४१२.५, ११४३९). " इंद्रियवादी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: केई भारीकर्मा जीवडा ते कर; अंति: हुउ वीर्यरो गुण इण संजूउ, ढाल-१८, गाथा- ७३७. ९२४७२_ (*) गणधरसारशतक सह विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४३, प्र. वि. हुंडी गणधरसार, संशोधित, दे., (२७४१३, १५X३५-४०). و गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा - १५०. गणधरसार्धशतक-लघुवृत्ति #, ग. सर्वराज, सं., गद्य, आदि: प्रतन्यात्प्रथमजिनपति; अंति: सिद्धिकमला पाणिग्रणोत्सवं. ९२४७४ (+०) संग्रहणीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६३ आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ६६, ले. स्थल, नागोरनगर, प्रले. पंन्या. सुमतिवर्धन (गुरु ग. विनीतसुंदर, खरतरगच्छ); राज्यकाल आ जिनहर्षसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (गुरु आ . जिनसिंहसूरि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी संग्रहणी सूत्र वृत्ति, संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६११.५, १९४७-५६)बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिडं अरिहंताई ठिङ्ग, अंति: नंदउ जा वीरजिनतित्वं, "" " " गाथा - २७३. बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१) अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य, (२)इहाद्यपादेनेष्टदेवतास्तवं; अंति: (१) वृत्तिः समर्थिता, (२) श्लोकानां सर्वसंख्यया ग्रं. ३५०० 7 १९९ ९२४७५. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, चैत्र कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. वैरागीलाल (गुरु मु. श्रीकृष्ण ऋषि, लोंकागच्छ); गुपि. मु. श्रीकृष्ण ऋषि (गुरु मु. प्रेमजी ऋषि, लोंकागच्छ); मु. . प्रेमजी ऋषि (गुरु मु.. मानसिंह ऋषि, लोंकागच्छ); मु. मानसिंह ऋषि (लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवतत्व०., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६११.५, ४४२७-३२) तत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अतिः बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा ४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ", मा.गु., गद्य, आदि जीवनइ दस प्राण धरड़, अंति: भेद सिद्धना १५. ९२४७८. भक्तामर स्तोत्र सह यंत्र व ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पू. १६, ले. स्थल. हरजीग्राम प्रले. मु. खंतीविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); गुपि. पं. उत्तमविजय (गुरु मु. देवेंद्रविजय): मु. देवेंद्रविजय (गुरु " मु. केशरविजय): मु. केशरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२८१२.५, १४४३६-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., यं., आदि (-); अंति: (-). भक्तामर स्तोत्र ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.से., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अर्ह णमो अरिहंता अति: कार्य सिद्धि होय, मंत्र- ४८. ९२४७९ (+) खमासण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. राजेंद्रसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७११.५, ११x२८-३५). नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, आदि: स्वर्ण सिंघासन स्थित अति उत्सर्ग तपस्ये नमः, , For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२४८० (+) आठकर्म प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पठ. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:क्रमप्रक्रति., संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १६४३५-४०). ८ कर्म १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म आठनी प्रकृतिनी; अंति: मिथ्यात मोहनि कर्म बाधे. ९२४८१. अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १०४३३). अवंतिसकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९२४८६. (+) मंगलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०५, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. पीपार, गुपि. सा. लछुजी; सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी); प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मंगल०., संशोधित., दे., (२६.५४१३, १८४४२). मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: पास जिनेसर पय कमल; अंति: आदरिज्यो गुणवंत, ढाल-२१. ९२४८७. बारआरानुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. हुंडी:बारआरा०., जैदे., (२६.५४१३, १०४२८). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-७३ अपूर्ण तक है.) ९२४८८. पंचतीर्थ स्तवन, मोतीकपासीया संबंध व गुणसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१५-१९९(२ से १९१,१९४ से २०२)=१६, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२.५, १३४३०). १. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मांडवी बंदर, प्रले. पं. विवेकविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); गुपि.पं. प्रेमविजय; पं. कस्तुरविजय (गुरु पं. जीवणविजय); पं. जीवणविजय (गुरु पं. मोहनविजय); पं. मोहनविजय (गुरु पं. जसविजय); पं. जसविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.प. विस्तृत, पे.वि. श्रीसिद्धचक्रजी प्रसादत. श्रीशीतलनाथजी प्रसादत. श्रीभीडभंजनपारस्वनाथजी प्रसादत. मु. मुनिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीजिनचरणे नमु; अंति: सेवता मुनिचंद्र मंगलमाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. मोतीकपासीया संबंध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. श्रीसार. मा.ग.. पद्य, वि. १६८९. आदिः संदर रुप सोहामणो: अंति: (-). (प.वि. गाथा-८ अपर्ण तक है.) ३. पे. नाम. गुणसुंदरी रास, पृ. १९२अ-२१५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१०, गाथा-१३ से ढाल-१२, गाथा-१२ अपूर्ण तक व ढाल-२१, गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-३३, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९२४८९ (+) अषाढाभूतिमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३२). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-१३ तक है.) ९२४९१. पंचमीदेववंदन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:पंचमी देववंदन., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२८-३०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरे तथा; अंति: संघ सयल - सुखदाइ रे, पूजा-५, गाथा-९. ९२४९२. स्तुति व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-२७(१ से २७)=२०, कुल पे. १२, जैदे., (२६४१२, ११४३४). १. पे. नाम. थंभनक तीर्थराज श्रीपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सप्त स्मरणानि, पृ. २८आ-३७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २०१ सप्तस्मरण स्तव, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. ३. पे. नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३८आ-४१आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४१आ-४५अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ६. पे. नाम. विद्यामंत्र, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: नरपते सिध्यत् स ते, श्लोक-९. ७. पे. नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. ४५आ, संपूर्ण. सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: यमपमुह चवदेसे बावन्न, गाथा-६. ८. पे. नाम. सत्युत्तरशत जिनचक्र स्तोत्र, पृ. ४५आ-४६आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ९. पे. नाम, नवग्रहस्तुतिगर्भितपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि०न पीडंति, गाथा-१०. १०. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनजनतारणगुण; अंति: कुशलांबुजबोध न वासरेश, श्लोक-७. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: सूनुमचंडं यूयमखंडम्, श्लोक-५. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. ४७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९२४९३. (+) प्रतिष्ठाकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १९६०, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. पेथापुर, प्रसं. जेठालाल चुनिलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्टा०.कल्प०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६००, दे., (२७४१२.५, १२४४०-४२). जिनबिंब प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हवे पूर्वोक्त शुभ दिवसे; अंति: च वाद्यंते. ९२४९४. १७ भेदी पूजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३५-१२९(१ से १२९)-६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७७१३, १४४३५). १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. अधिकार-५, ढाल-७, गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-११, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९२४९६. श्रीसूक्त मांडणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१३, १२४३५). धर्मोपदेश व्याख्यान, मु. आनंद, पुहि., गद्य, आदि: अब परमेश्वर देव सब सकल; अंति: प्राणी अब करण पवित्र कारण. ९२४९८. दशवैकालिसूत्र-अध्ययन ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदे., (२६.५४१२.५, ८x२८-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "गवया महावीरेणं कासवेणं" पाठ से है.) ९२४९९ (+) महानिसीथ-अध्ययन ५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. अंत मे "संमत १८२० की साल की पालणपुर का भंडार की पडतमासु लीखी" ऐसा उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ५४३७-४२). महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५, प्रा., गद्य, आदि: से भयवं जेण केइ आयरि; अंति: वज आयरिएण पावीयं इती वेमी. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५ टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते भगवान जे कांइ आचा; अंति: कल अरथने विषे उद्यमी थावो. ९२५००. १४ गुणठाणा ८८ द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १५-१६४३६-४४). १४ गुणस्थानक ८८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात गुणठाणा; अंति: (-), (पृ.वि. द्वार-८४ वर्णन अपूर्ण तक है.) ९२५०२ (+) सारस्वत व्याकरण सह सुबोधिनी टीका-वृत्ति २-३, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ११६, प्र.वि. हुंडी:द्वि०, तृ०. अंत में कृतिसंलग्न ५ श्लोक दिये गये है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.७१००, दे., (२९.५४१२, ११-१२४३३-५५). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: सरस्वती सदाभक्त; अंति: श्रीप्रभुचंद्रकीर्त्तिः, वृत्ति-२, ग्रं. ७५००. ९२५०९ (+#) समैसार नाटक का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १७२८, वैशाख शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. १९६-१(१)=१९५, प्र.वि. अंत में कृति विषयक २ गाथाएँ दी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ७X२०-२८). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: मैं परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (पू.वि. गाथा-२ से है.) ९२५१० (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. सिरोहीनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, जैदे., (२६४११, ५-१२४३८-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रसंगानुसार टबार्थ दिया है.) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तिगुणसुंदरी चौसठकला; अंति: इम भविक जीवने कहे छे, (वि. प्रसंगानुसार बालावबोध दिया है.) ९२५११. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०४-१(८१)=२०३, ले.स्थल. औरंगाबाद, लिख. श्रावि. देवबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४२६-३२). कल्पसूत्र-बालावबोध, पं. कृपाविजय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० इहां; अंति: बालावबोध को छै. ९२५१२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १८३९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १२७, प्रले. पं. दोलतविजय; पठ. ग. कनककुशल (गुरु ग. फतेकुशल); गुपि. ग. फतेकुशल (गुरु ग. तेजकुशल); ग. तेजकुशल (गुरु ग. सूर्यकुशल); ग. सूर्यकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल ते समयने विषे; अंति: इम उपदेस देता हवा. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: होइं ते मिच्छामि दक्कडं. ९२५१७. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x११.५, १४४४२-४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४, ढाल-५ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९२५१८. (+) प्रश्नशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नशतकवृ०. प्रतिलेखन पुष्पिका मे वि.सं. १५०० का उल्लेख है, किन्तु लिखावट से उक्त वर्ष मे लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., संशोधित., दे., (२८x१२,१५४५७-६३). प्रश्नशतक, उपा. नरचंद्र, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रीवीराय जिनेशाय नत्वाति; अंति: नरचंद्र० चक्रेर्थबहुलमिदं, प्रकाश-७. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ प्रश्नशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. नरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३२४, आदि: अहं प्रश्नशास्त्रं कुर्वे; अंति: नरचंद्र०शतरुदशशतीसार्द्धा. ९२५२०. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४६, ले.स्थल. मालपुर, प्रले. पं. जिनेंद्रसागर; पठ.पं. विनीतविजय (गुरु पं. कृष्णविजय); गुपि.पं. कृष्णविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, ६x४१). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ ते; अंति: २१ वीसमो उद्देसो थयो, (वि. १८१५, ___ मार्गशीर्ष कृष्ण, १) ९२५२५ (+#) जंबूअध्ययन व मांगलिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, ७४३६-३९). १.पे. नाम. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १आ-४८अ, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र कृष्ण, ६, रविवार, ले.स्थल. वेजलपुर. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भविस्ससि, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ ते; अंति: ते आराधक जीव कह्या. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक सह बालावबोध, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंतिः सततं श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अनंत; अंति: श्रीमंगलीकमाला संपजइ. ९२५२७. (+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०२, आषाढ़, मध्यम, पृ. २२, प्रले. मु. हरक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अणुत्तरा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १९२, दे., (२७४११.५, ५४३०). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: कहाणं तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: परि तिमज जाणिवा. ९२५२८. (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय व भरहेसर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४२२-३५). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में साधारणजिन स्तुति का प्रारंभिक भाग मात्र है. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ९२५२९ (4) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधिसहित सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-३(१ से ३)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ४४३२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन _ "अरिहंते कित्तइस्सं चउविसंपि केवली" अपूर्ण से "विशाललोचन सूत्र" गाथा-३ अपूर्ण तक है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९२५३० (+#) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-५(१ से ५)=३२, कुल पे. ५, प्र.वि. हंडी:निरया०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४३२-३६). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. ६अ-१६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०, (पू.वि. पाठ "जाव दिह्रि वा अविंदमाणे" से है.) For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र, पृ. १७आ-३१आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३३आ-३७आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. ९२५३१. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. हुंडी:कयवनो., जैदे., (२७४११.५, १५-१८४३५). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: धरम करण मन उलसै छै, ढाल-३१, गाथा-५५५. ९२५३२. (+#) औपदेशिक विविध पदादि पचीसी-छतीसी संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०६-७०(१,४ से ५,१२,१४ से १५,१७,१९ से २३,३१,३५ से ८९,९१,१०३)=३६, कुल पे. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). १.पे. नाम. औपदेशिक विविध विषयदृष्टांत पद कवित्त सवैयादि संग्रह, पृ. २अ-११आ, त्रुटक, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. औपदेशिक विविध विषयदृष्टांत पद कवित्त सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. पद-५ अपूर्ण से ८१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) २. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह सह पद्यानुवाद, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (त्रुटक, पृ.वि. गाथा-५ से ३० है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३१, आदिः (-); अंति: (-), त्रुटक. ३.पे. नाम, चेतनकर्म चरित्र, पृ. २४अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: (१)भगवतीदास० कही अनादि, (२)रचना कही अनादि, गाथा-२९५, (पू.वि. गाथा-८३ अपूर्ण से ११४ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम. वैराग्यपचीसी, पृ. ९०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जै.क. भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५०, आदि: (-); अंति: भैया० जै जै निशिपतिवार, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से ५. पे. नाम. परमातमछतीसी, पृ. ९०अ-९०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. परमात्मछत्तीसी, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: परमदेव परमातमा परम ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. नाटकपचीसी, पृ. ९२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नाटकपच्चीसी, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: भैया० भये वे पहुँचे भवपार, दोहा-२५, (पू.वि. दोहा-१६ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. उपादान अरु निमित्तकौ संवाद, पृ. ९२अ-९३आ, संपूर्ण, वि. १७७३, वैशाख शुक्ल, ३, ले.स्थल. सामूहीनगर, प्रले. ग. लालचंद (गुरु वा. रत्नशेखर गणि, अंचलगच्छ); गुपि. वा. रत्नशेखर गणि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. उपादान निमित्त संवाद दोहा, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: पाइ प्रणमि जिनदेव के एक; अंति: भैया० दशो दिशा परकाश, दोहा-४७. ८. पे. नाम, पंच इंद्रियनि की चौपई, पृ. ९४अ-९९अ, संपूर्ण.. ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: प्रथम प्रणमी जिनदेव; अंति: भगवतीदास० सबकुं मंगल होई, ढाल-६, गाथा-१५६. For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २०५ ९. पे. नाम. ईश्वरनिर्णयपचीसी, पृ. ९९-१००आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. पत्रांक- १०० आ किसी अन्य प्रत का प्रतीत होता है. ईश्वरनिर्णयपच्चीसी, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, आदि: परमेश्वर जो परम गुरु परम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १९ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम कर्ताअकर्तापचीसी, पृ. १०१अ संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः अपूर्ण है. प्रारंभिक पाठ नहीं है. - कर्त्ता अकर्त्तापच्चीसी, जै. क. भैया, पुडिं, पद्य, वि. १७५१, आदि (-); अति लिखे सो पावे भवपार, गाथा २५, (वि. वस्तुतः अपूर्ण है. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११. पे नाम, दिष्टांतपचीसी, पू. १०१आ-१०२अ संपूर्ण दृष्टांतपचीसी, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५२, आदि केवलज्ञान सरूप में असै; अंतिः पचीसिका कही भगवतीदास, गाथा - २६. १२. पे. नाम. मनबत्तीसी, पृ. १०२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. a. भगवतीदासजी भैया, पुर्हि, पद्य, आदि दर्शन ज्ञान चारित्र अति (-) (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) " १३. पे नाम, सुपनबत्तीसी, पृ. १०४अ १०४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति: कहे भगौतीदास ० लेहु गुणवान, गाथा- ३४ ( पू. वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) १४. पे नाम. सूआवत्तीसी, पृ. १०४ १०६अ, संपूर्ण जै.क. भैया, पुहिं, पद्य, वि. १७५३, आदि: नमसकार जिनदेवकी करौं दुहुः अति भैवा० संगति ते शिवसुख तास, गाथा - ३४. १५. पे नाम ज्योतिष कवित्त, पृ. १०६अ १०६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. 1 जै. क. भैया, पुहिं., पद्य, आदि: दिनकर के दिन बीस चंद पचास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ९२५३३. (+४) समयसारकलश टीका सह बालावबोध व पद्यात्मक विवेचन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०१-७४(३,६ से १२,१५ से १६,१८,२५ से २६,२९,४१ से १००) = २७, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी समेसार पत्रांक-१-२ व १०१ अन्य प्रत के पत्र होने की संभावना है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १३४४८-५०), " , समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः नमः समयसाराय; अंति: (-), (पू.वि. मंगलाचरण श्लोक-३ व श्लोक-१९२ अपूर्ण से १९४ तक है.) समयसारनाटक कलश-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: भावाय नमः भाव शब्दै; अंति: (-). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि (-); अति (-) (पू.वि. कालनाम से ज्ञानक्रिया एकत्व गाथा अपूर्ण तक है.) ९२५३५ (+) मृगावतीसती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३१-१ (१) ३०, प्र. वि. हुंडी मृगावती रास, संशोधित, जैवे., (२७११.५, १३X३०-३३). मृगावतीसती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा १७ अपूर्ण से गाथा ६१७ अपूर्ण तक है) ९२५३९. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : दसवीका., संशोधित., जैदे., (२७.५X११, १४-१६X३३-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ की गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ९२५४१ (#) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी सूबग. सूत्र, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७X११.५, ७X३६-४६). For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, उद्देश-३ की ___ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९२५४२. अजितसेनकनकावती रास, अपूर्ण, वि. १९७३, कार्तिक कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७-४६(१ से ४६)=११, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८९५) पोथी प्यारी प्राणथी, (१३५६) यादृसं पुस्तकं दृष्टा, (१३५७) लेखिनी पुस्तिका रामा, (१३५८) पोथी और पदमनी, दे., (२६.५४१२, १०४२९). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: (-); अंति: लोगाई थाशे लाभ सवाई हो, ढाल-४३, गाथा-७५८, (पू.वि. ढाल-३१ की गाथा-३० अपूर्ण से है.) ९२५४३. सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १८-२१४४०-६०). सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अनंतशब्दार्थगतोपयोगिनः; अंति: (-), (पू.वि. कथा-३२ अपूर्ण तक है.) ९२५४४. (+) महानिशीथसूत्र-(प्रा.)हिस्सा अध्ययन-४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. विनयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ६४३३). महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-४, प्रा., गद्य, आदि: से णं भयवं कहं पुण; अंति: गोयमा सिद्धी ए महानिशी. महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-४ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: से भगवन् कथं ते तिणे सुमत; अंति: यथा हे गौतम सिद्धिइ पहुती. ९२५४७. अक्षयतप स्तवन, खमासण व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ४, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.१६०, दे., (२७४१२,११४३४). १.पे. नाम. अक्षयनिधितप स्तवन, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८७१, आदिः श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: शुभवीर० घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१. २. पे. नाम, अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: होज्यो ज्ञानप्रकाश, ढाल-२, गाथा-२६. ३. पे. नाम. अक्षयनिधितपगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षयनिधि; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ४. पे. नाम, अक्षयतप विधि, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. अक्षयनिधितप विधि, मा.ग., प+ग., आदिः श्रावण वदी चौथनें; अंति: चित्रामण करवा जोईई, दोहा-१. ९२५५१. मौनेकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. डाकोर, प्रले. हेतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में औपदेशिक २ गाथाएँ दी गई है., प्र.ले.श्लो. (५३) कर दुख अंगुरी नेयन, दे., (२५.५४१२, १०४३०-४०). मौनएकादशी व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: राजगृही नगर के उद्या; अंति: भक्तिः धर्मकार्यकृतं. ९२५५२. (+2) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १९४४८-५४). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: वर्धमान मानस्य; अंति: (-), (पू.वि. पाठ ___ "निंदात्मसाक्षिक्यात्म" तक है.) ९२५५३. स्थविरावली, दशवैकालिकसूत्र व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे.६, जैदे., (२६.५४१२, १५४३८-४२). १.पे. नाम. नंदीसूत्र की स्थविरावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org יי २. पे. नाम. उत्तरवारणा सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन त्रयोदशभववर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि धण मिहुण सुर महब्बल, अंतिः तित्धयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. पारणकल्प स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. वर्षिदान सज्झाय, प्रा., पद्य, आदि सारस्सयमाइच्चा वण्ही; अति एवं संवच्छरे दिण्णं, गाथा- ७. ४. पे नाम. निर्युक्ति सज्झाय, पृ. ३अ ६अ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र-निर्मुक्ति का गाथासंक्षेपसार, प्रा., पद्य, आदि संवत्सरेण भिक्खा अति: करति महिमं जिणंदस्स ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन २-४, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. २वी आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण ६. पे. नाम. निर्युक्ति सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्युक्तिगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: वाणारसी नयरीए अणगारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १ अपूर्ण तक है.) ९२५५४. पाखीसुत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-१ (१) ७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. हुंडी पाखी सुप्रपत्र, जैये. (२६४१२, ६३०-३४). " " पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. पाठ "महव्वयउच्चारणा" से "पडिपुण्णं संवरेमि" तक है.) पाक्षिकसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-). ९२५५७ (४) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१ (१) १०. पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२, १६३२-३६). जिनस्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से महवीरजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९२५५९. (W) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ११३-१०३१ से ४२,४४ से ५४,५६ से ५७,५९ से ७०,७२,७५ से ८२,८४ से १०,९२ से १११ = १०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै (२६.५५१२, ५५३६). " २०७ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. व्याख्यान - १ सूत्र - ३८ अपूर्ण से व्याख्यान- ६ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+ व्याख्यान, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२५६१. (४) निगोदविचारगर्भित महावीर स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४६ माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. त्रिपाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११, १२४४३-४७). महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि बलि जाउं श्रीमहावीर, अंति न्यायसागर० दिन मुझ आज, ढाल-२, गाथा-२३. महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोगस्सणं भंते एगम्मि; अंति: ए अधिकार को छे. ९२५६२. (+) पखीयसूत्र, क्षमापना पद व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १४-३ (२ से ३६) =११, कुलपे ३, ले. स्थल, लिंबडी, एड. मु. हेमविजय (गुरु ग. विवेकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें जै., (२५.५४११.५, ५-१५x४२-५०). पाक्षिकसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तीर्थंकरसिद्ध: अंतिः श्रुतसागर भक्ति. संपूर्ण. १. पे नाम पखीयसूत्र सह टवार्थ, पृ. १अ १४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तित्थंकरे य तित्थे, अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम, क्षमापना पद, पृ. १४अ, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: सव्वे जीवा कम्मवस चउदह; अंति: ताणि सव्वाणी वोसिरयं, गाथा-४. ३. पे नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पू. १४अ १४आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: वधासमणं धम्मसयं मविया; अंतिः दुआ ते त वधीनतया श्रुयत.. ९२५६३. (#) मिथ्यात्व भेहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. जीतविमल; लिख. तलजाराम घेमरसिंह बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११.५, ८x२८). २१ मिथ्यात्व भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि लोकिक देवगत मिथ्यात अति तेहने वैकुंठ गया कहे. ९२५६४. स्तवन, पद व कवित्तादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-२ (१ से २) =११, कुल पे. १७, जैदे., (२६X१२, १३X२९-३२). १. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरखे ऋषभदास गुण वेलडी, गावा-३, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीय पासजिणंदसु ले लागी लय; अंति: ज्ञानविमलसूरि० निवारी रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मीराबाई, रा., पद्य, आदि न करीए नेडो न करीए नीगणसु अंति: चरण कमलवाली चित वरीये, गाथा-४. ४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि जग आस्या झंझार की गति उलत; अंति मन म अखेले देख लोक तमाशा, गाथा - ५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य वि. १८वी, आदि अवधु क्यों सुवे तन; अंति नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. ६. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, वि. १८वी, आदि साधो भाई सुमता रंग, अंतिः हित कर कंठ लगाई, गाथा-४. ७. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि अवधू क्या मांगुं गुनहीना, अंतिः आनंदघन० रटन करे गुणधाम, गाथा- ४. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य वि. १८वी, आदि अवधू नट नागर की बाजी; अंति: वचन सुधारस परमारथ सो पावे, गाथा-४, ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं. पद्य वि. १८वी, आदि अवधू अनुभव कलिका; अति: समावे अलख कहावे सोई, गाथा-४. १०. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधु राम राम जग गावे; अंति: रमता आनंदघन भमरा, गाथा ४. ११. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अबधु नाम हमारा राखे, अंतिः सेवकजन बलि जाहीं, गाथा-४. १२. पे. नाम, फागवसंत स्तवन, पू. ५अ-५आ, संपूर्ण, आदिजिन पद, आदमखान, पुहि., पद्य, आदि बावो रीषभ बेठे अलबेले लाल, अंतिः आदीनखां० लीओ अपनो करवो, गाथा-४. १३. पे. नाम पासवसंत होरी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रूपचंद, पुर्हि, पद्य, आदि: नवल दुलारो नाथजी अति हरि दीनानाथ दयाल, गाथा-७. १४. पे. नाम नेमिजिन गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सामलि सुरत पर मेरो दिल; अति रूपचंद गुन परख्या छे, गाथा-३. १५. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथासंग्रह, पृ. ६अ ११आ, संपूर्ण. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २०९ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कीहां गया विक्रमभोज तपता; अंति: पखीओ पेट हजी लगे पातलो, (वि. कानदास, गिरधर आदि कवि रचित पद-गाथादि संग्रह है.) १६. पे. नाम, तीर्थंकर बलवर्णन पद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, आदि: बार पुरुष बलमान एक वृषभ; अंति: भणे इम सास्त्ररीत वखाणीइ, गाथा-४. १७. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १२अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: जग मे शो चंडाल जो पर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठांश नहीं ९२५६५ (4) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४३३). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-१, गाथा-९ ___अपूर्ण से खंड-२, ढाल-६ तक हैं.) ९२५६७. (+) आवश्यकसूत्र की वचनिका टीका, अपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३३-२७(१,३ से ११,१३ से २८,३०)=६, ले.स्थल. खेटकपुर, पठ. प्रभुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२,११४३०-४०). आवश्यकसूत्र-वचनिका टीका, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामो मोक्ष सुख प्रते पामइ, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ९२५६८. (#) चोवीसीजिन स्तवन व आध्यात्मिक पद, अपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १३-५(१ से ४,७)=८, कुल पे. २, प्र.वि. श्रीचिंतामणीपार्श्व प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ११४३८). १.पे. नाम. चोवीसीजिन स्तवन, पृ. ५अ-१३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: सेवता पूर्णानंद समाजो जी, स्तवन-२४, गाथा-२०५, (पू.वि. चंद्रप्रभजिन स्तवन गाथा-९ अपूर्ण तक व वासुपूज्यजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण से धर्मजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन ममता छारी परी; अंति: चिदानंदघन पद विचरीरी, गाथा-६. ९२५६९ (+) ध्वजारोहण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. माईदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ध्वजारोप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४४९). जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भुमी शुद्ध; अंति: समयो वान्यमय प्रोक्त. ९२५७०. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११, १९४५७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: (-). ९२५७१. जिनपूजा प्रभावकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदे., (२६.५४१२, १०४३२). जिनपूजा प्रभावकथा संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूजा विशे धनसार कथा अपूर्ण से है व हंसकुमर कुंभकार कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ९२५७२. (+) जिनपंजर स्तोत्र व स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२,१६४३४-४३). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ अहँ, अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. २. पे. नाम. षोडशविद्यादेवी स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १६ विद्यादेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजवलये विमल; अंति: सागरचंद्ररूपं, श्लोक-१७. ३. पे. नाम, चक्रेश्वरीदेवी सप्रभाव स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहि मां देवि चक्रे, श्लोक-८. ४. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. राजशेखरसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिदेव पवकोकनदोपसेवा; अंति: इति ख्यातेन सास्तु श्रिये, श्लोक-१२. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिदेवी स्तुति, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति का २४ जिन शासनदेवी स्तोत्र, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: देवीचक्रेश्वरीयं वरकनक; अंति: ये जन्मिनाम, श्लोक-२४. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनभक्त यक्षचतुर्विंशतिकाणां स्तुति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. २४ जिनभक्तयक्ष स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमधुगादि जिनमुख्य; अंति: नंदं स महानंदोदयोदार, श्लोक-२६. ९२५७४. (+#) सिद्धांतद्रष्टांत शतक सह आधारपाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्रले. मु. लाल ऋषि (गुरु मु. सिंघ ऋषि); गुपि.मु. सिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२-१३४४५-५०). सिद्धांतसार, म. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं प्रणम; अंति: पदगतं सच्छास्त्रद: सदा, श्लोक-१०२. सिद्धांतसार-आधारपाठ, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: विवगय जरमरणभये मणवय; अंति: भावमि समाहि पडि संघए, गाथा-१०१. ९२५७५ (#) अक्षयनिधितप स्तवन, दूहा व विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. ४, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १६०, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, ११४३५-४०). १. पे. नाम. अक्षयनिधितप स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: (-); अंति: शुभवीर० घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१, (पू.वि. ढाल-४, गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, अक्षयनिधितपखमासमणविधि दहा, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण. अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: होज्यो ज्ञानप्रकाश, ढाल-२, गाथा-३७. ३. पे. नाम. अक्षयनिधितपगर्भित श्रीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षयनिधि; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ४. पे. नाम. अक्षयनिधितप विधि, प.६आ-७आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: श्रावण वदी चौथने; अंति: चित्रामण करवा जोईइ, दोहा-१. ९२५७६. (#) विविध कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-४(१,९,१२ से १३)=१०, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १५४६८). १.पे. नाम, आद्रकुमार कथा, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आर्द्रकुमार कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मृत्वा स्वर्ग्यययौ, (पू.वि. "कुमारवचनमनन्यभेदात्" पाठ से है.) २. पे. नाम. कृतपुण्य कथा, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: राजगृहनगरे श्रेणिकराज; अंति: एकवार मोक्ष यास्यति. ३. पे. नाम. दामनक कथा, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण. दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, आदि: राजगृहे नगरे तत्र अमर्दन; अंति: भव३ मोक्षं यास्यति. ४. पे. नाम. अमरसेन कथा, पृ. ८अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि: दानधर्मं समाश्रित्य; अंति: शिवश्रियं प्रापतः, (प.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५.पे. नाम. ऋषिदत्तामहासती कथा, पृ. १०आ-१४अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. गा For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २११ ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, आदि: शीलं नाम नृणां; अंति: सिद्धिं गमिष्यथः, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२५७९. संबोधसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९९२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संबोधसि०., दे., (२६४१२, ४४४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७७. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमि नमस्कार करीने; अंति: संबोधसत्तेरी प्रकर्ण. ९२५८० (+) कर्मविपाक व कर्मस्तव कर्मग्रंथ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१७)=१७, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. श्रीपंचासरजी प्रसादात्., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४२८-३६). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १आ-१८अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से ६० अपूर्ण तक नहीं है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, म. कल्याणजी साहा, मा.गु., गद्य, वि. १७१२, आदि: (१)पार्श्वनाथं प्रणम्यादौ, (२)श्रीमहावीर स्वामीनइ; अंति: लिखित० श्रीदेविंद्रसूरि. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य द्वितीय कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., गद्य, आदि: तह कहितां तथा थुणिमो कहित; अंति: (-). ९२५८६. २१ प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. पाटण, प्रले. दोलतराम भोजक; पठ. हकमचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभनाथ प्रसादात्., दे., (२६.५४११.५, १०-१२४३०-३५). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु प्रथम जिणंद; अंति: हेम हीरो जेम जडियो रे, ढाल-२१, गाथा-१०५. ९२५८७. पहेरामणि सूची, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२७४१२, ९x१५-३७). ___कपरसौभाग्य गणि पहेरामणि सूची, मा.गु., गद्य, वि. १९१२, आदि: ऋषभविजय वासु सत्कार दर्शन; अंति: विजय ग पं भाग्य सा. ९२५८८. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८-३(१ से २,४)=५, प्र.वि. अंत में "ऋषजी ओंकारजी की पोथी लिखी दीधी छे." ऐसा उल्लिखित है., दे., (२७४११.५, ९४३२-३४). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६५, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक व गाथा-३२ अपूर्ण से हैं.) ९२५९०. हंसराजवछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१५(६ से १३,१६ से २२)=९, प्र.वि. हुंडी:हंसराज वछराज., जैदे., (२६४११.५, १७-२०४३४). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., खंड-१, ढाल-१, गाथा-९ अपूर्ण से खंड-३, ढाल-४, गाथा-१९ अपूर्ण तक, खंड-३ ढाल-७, गाथा-९ अपूर्ण से खंड-४, ढाल-३४, गाथा-३६ अपूर्ण तक व खंड-४, ढाल-३८, गाथा-१ अपूर्ण से नहीं है.) ९२५९१ (+#) १२ व्रत कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १४-१८x२८-४५). १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीनवकार विधिइं जपतां; अंति: सर्वइ आराधवो सही. ९२५९४ (+) सप्तस्मरणानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, गुपि. आ. जिनसागरसूरि; प्रसं. मु. हर्षसुंदर (गुरु आ. जिनसागरसूरि); पठ. श्रावि. वीरबाई देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धमयरहिय. पत्र चिपके हुए होने के कारण प्रतिलेखन पुष्पिका स्पष्ट नहीं है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९-१०४३२). ला For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनखनिग्गयप; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. ९२५९६. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१५, फाल्गुन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल चरित्र गद्यबंध., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १७४३९). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं च; अंति: श्रीसद्गुरुप्रसादात्, प्रस्ताव-४. ९२५९७. (+) उपदेश प्रसाद-स्तंभ१३ व १४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४, विक्र. पं. मानविजय पंडित (गुरु मु. भावविजय, तपगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७X४८-५४). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसरि, सं., प+ग., वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ११३०, प्रतिपूर्ण. ९२५९८ (+) नेमिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२, प्र.वि. हुंडी:नेमिनाथ चरित्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३७-४३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा- अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम, सर्ग-१२, ग्रं. ४८००. ९२५९९ (+) पंचमोपांग सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, प्र.वि. हुंडी:बारसा., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४२८-३०). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. ९२६००. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:शांतिनाथ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११.५, १७४४८-५२). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्; अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-६ अपूर्ण तक है.) ९२६०१ (+) स्तुति, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-९(१ से ९)=३१, कुल पे. ४७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२८-३२). १.पे. नाम. शुद्धमतिजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीशुद्धमतिहो जिनवर; अंति: द्र० होजो सदा सुसहाय, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हाजी रे वीनतडी; अंति: देवचंद०सिधिनी पाई रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा शांतिजिनेसर; अंति: देवचंद०करोरे मंगलमाल, गाथा-५. ४. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभादिक जिनवर चौवीस; अंति: देवचंद० जनम प्रमाण, गाथा-७. ५. पे. नाम. गिरनार स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-गिरिनारमंडन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: यादव कुलमंडण नेमिनाथ; अंति: अहनिशि सा अंबाई देवी, गाथा-४. ६. पे. नाम, सिद्धाचल स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर; अंति: हि शत्रुजय शिरदार, गाथा-४. ७. पे. नाम. मोहपरिवार सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण... मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ए जिनवर तणी साच; अंति: मोहने हुई निज आत्मरस लीन, गाथा-१४. ८. पे. नाम. विवेकपरिवार सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. आत्मविवेक सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुध विवेक महीपति; अंति: धीयो मंगलमाल प्रवाह, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २१३ ९. पे. नाम. दिसा उपरी स्तवन, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. ५६ दिक्कुमारी गीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनर असुरती नम्यो प्रणमी; अंति: देवचंद्र० विस्तरइ, गाथा-७. १०. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. मु. मोतिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीद्धस्वरूपी आतमा; अंति: मोतीचंद नीरधारी रे, गाथा-७. ११. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन-नवानगर, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नवा नगरमां भेटीये; अंति: देवचंद्र हित धरि, गाथा-१९. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १७अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हमकू प्रभु समरण कहेव; अंति: देवचद०ध्याननी संसेवा, गाथा-३. १३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे दीवाली थइ सार जिन; अंति: चेतना देवचंद्र अवदात, गाथा-४. १४. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: सानिध करे तस चंग, गाथा-४. १५. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: कंचन वरणा हो ऋषभ; अंति: देवचंद्रनो पद आराधे, गाथा-८. १६. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिजिनेसर वीनति र; अंति: देवचंद्र० सुख थाय, गाथा-७. १७. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितनाथ चरणे तोरे; अंति: एही अशरण शरणता ऊदारो, गाथा-६. १८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. शत्रंजय स्तवन, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चालो मोरी सहीयां; अंति: सकल मनोरथ सीझे है, गाथा-५. १९. पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ स्तवन, प. १९आ-२०अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसमेतगिरिंद हरख; अंति: देवचंद्र० परमजगीस, गाथा-८. २०. पे. नाम. समेतशिखर स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्विप दक्षिणचर; अंति: देवचंद्र०सहस चौवीस, गाथा-१३. २१. पे. नाम. समेतशिखरवीसजिन स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, म. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमेतशिखरवरु तीरथ; अंति: तत्त्वानंद समृद्धि, गाथा-८. २२. पे. नाम. सहस्रकूटजिन स्तवन, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सहसकूट जिनप्रतिमा वंदीये; अंति: देवचंद्रनी एप्रीत, गाथा-१४. २३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, प. २२अ-२२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारगदेसक मोक्षनो रे केवल; अंति: देवचंद्र पद लीधरे, गाथा-९. २४. पे. नाम, अष्टापद स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद गिरिवर उपरि; अंति: देवचंद० अपरमाद आणंद, गाथा-११. २५. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आयोरि घनघोर घटा करे रटत; अंति: देवचंद० गयो टरी कै, गाथा-४. २६. पे. नाम. मुनिगुण स्वाध्याय, पृ. २३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुनिगुण सज्झाय, ग. देवचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगतमें सदा सुखी मुनि; अंति: आणा उजाई निजसंपति महाराज, गाथा-४. २७. पे नाम ऋषभदेव स्तवन, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि : आणंद रंग मिले रे आज; अंति: देवचंद ० वंछित सकल फले, गाथा-५. २८. पे. नाम. सेत्रुंजय स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. सिद्धाचलजी स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चालो चालोने राज श्री अंति: अदभूत परम मंगल लय लीना, गाथा-८. २९. पे. नाम. सेत्रुंजय स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु. पद्य वि. १८वी, आदि चालो सखि जिनवंदन जइह अंति: देवचंद्र पद नीको रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ६. ३०. पे. नाम सिद्धाचल स्तुति, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि आज अम घर हरख ऊमाहो सकल; अति देवचंद्र० जिन भगते रे, गाथा - १०. ३१. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि वामानंदन आनंदन चंदन अंति: देवचंद ० पूरो आस हमारी, गाथा- ६. ३२. पे नाम, अनंतजिन पद, पू. २५आ, संपूर्ण, ग. देवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि ज्ञान अनंतमयी दान अंतिः देवचंद्र० समता को कंद है, गाथा-३. ३३. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, ग, देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जय जिणवर जय जगह नाह; अंति: देवचंद० सनाह जगभाण, गाथा-४. ३४. पे नाम, पार्श्वनाथ गीत, पृ. २६अ २६आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ध्रुवपद रामी हो; अंति: आनंदघन मुज मांहि, गाथा-८. ३५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २६आ- २७अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजीने चरणे लागुं; अंति: आनंदघन प्रभु जागे रे, गाथा-७. ३६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७१-२७आ, संपूर्ण उपा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वामाराणीनंदा अश्वसेन; अंति: कहइ देवचंद सुजगीसै, गाथा-७. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७-२८अ, संपूर्ण. ग. राजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: भाव भगति धरि निरमल; अंति: राजविमल० इम वारवारजी, गाथा- ७. ३८. पे. नाम ऋषभदेव गीत, पृ. २८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. राजविमल, मा.गु., पद्य, आदि आदिजिन अनुभव मीत मिल; अति: आतमरुप अटकलीयो, गाथा - ५. ३९. पे नाम, अजितनाथ गीत, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण अजितजिन स्तवन, ग. राजविमल, मा.गु, पद्य, आदि अजित जिणेसर वीनती, अंतिः पामस्वइ राजविमल पद ठाम, गाथा-५. ४०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चालो भेटण जइये जिनवर; अंति: भजता प्रगटे सहजानंद, गाथा-४. ४१. पे नाम. शेत्रुंजयगिरि चैत्रप्रवाह, पृ. २९-३४आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, उपा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि नमवि अरिहंत पयणंत अंतिः वीनव्यो जग हित करो, ढाल-४, गाथा - ६३. ४२. पे नाम. इंढणऋषि स्वाध्याय, पृ. ३४-३६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ढंढणऋषि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धन धन ढंढण मुनिवरु क; अंति: ये लहीये परमानंदो रे, गाथा-२७. ४३. पे. नाम. प्रभंजना सज्झाय, पृ. ३६अ-३८आ, संपूर्ण. प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: देवचंद्र०लील सदाई रे, ढाल-३, गाथा-४९. ४४. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोहम जंबुने भाखे; अंति: लहेशे परमानंद सुख तेहरे, गाथा-८. ४५. पे. नाम. हितशिक्षानी सज्झाय, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. हितशिक्षा सज्झाय, म. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: हजीये आतम अनुभव नाया; अंति: ज्ञाविमल सकल समिहित कीना, गाथा-६. ४६. पे. नाम, मदनरेखासती सज्झाय-ढाल ७वी, पृ. ३९आ-४०आ, संपूर्ण. मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४७. पे. नाम. साधारणजिन स्तति, पृ. ४०आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति-द्रव्यभावमंगलगर्भित, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म उछव समे जैनपद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९२६०२. स्थूलभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८९७, पौष कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७, जैदे., (२५४११.५, ८x२२-२५). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुख संपति दायक सदा; अंति: उदयरत्न० फल्या रे, ढाल-९, गाथा-६७. ९२६०३. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३७, ले.स्थल. जालोर दुर्ग, प्रले. पं. दयालाभ (गुरु ग. हितप्रमोद); पठ. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरास., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३५-३९). श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: जिनहरष लुणिज्यो रे, ढाल-४९, गाथा-८६१. ९२६०४. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९५१, माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. राजनगरपुर, प्रले. जीवणसीग आणंदराम पुरबीआ; लिख. मु. वृद्धिविजय (गुरु मु. विनयविजय); गुपि. मु. विनयविजय (परंपरा पं. धन्यविजय गणि); पं. धन्यविजय गणि (परंपरा पं. तेजविजय, तपागच्छ); पं. तेजविजय (परंपरा पं. अमृतविजय, तपागच्छ); पं. अमृतविजय (परंपरा पं. नेमविजय, तपागच्छ); पं. नेमविजय (परंपरा पं. जिनविजय, तपागच्छ); पं. जिनविजय (परंपरा पंन्या. खेमाविजय, तपागच्छ); पंन्या. खेमाविजय (परंपरा पंन्या. कपूरविजय *, तपागच्छ); पंन्या. सत्यविजय * (गुरु आ. विजयसिंहसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:उपधान विधि. श्रीमत्पार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७२५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४११.५, ११४४१-४६). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलं नवकारर्नु उपधान; अंति: ततः उपस्थापना आलोचना. ९२६०५. हंसराज वछराज कथा, संपूर्ण, वि. १९०६, पौष कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ४०, प्रले. श्राव. राइचंद सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हंसवछ०., दे., (२६.५४१२, १०-१३४३७-४३). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीस्वर आदि करि चोवीसे; अंति: जिनोदयसूरि०अनै वछराज, खंड-४, गाथा-९०५, (वि. ढाल ४८) ९२६०६. (#) मानतंगमानवती रास, अभिनंदनजिन व समतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४०). १. पे. नाम. मानतूंगमानवती रास, पृ. १अ-४४आ, संपूर्ण, वि. १८२६, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, प्रले. पं. गुलाबहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. २.पे. नाम, अभिनंदन स्तवन, पृ. ४४आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अकलकला अवीरूध ध्यान; अंति: सनमुख उमाहे घणेजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूथी बांधी प्रीत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ९२६०७ (+#) उपदेशमाला प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. आउवा, प्रले. श्राव. वीरदास शाह; पठ. श्रावि. कल्याणबाई वीरदास शाह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ६४३९-४३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमस्कार; अंति: मुख थकी नीकली वाणी. ९२६०८. आचारांग सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ५४३२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुअं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. 'भाति खंति एवं भासंति एवं' पाठ तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सांभल्यउ मे० मइ; अंति: (-). ९२६०९ षट्दर्शनसमुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. महम्मदावाद, प्रले. पं. सुमतिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:षट्दर्शन., त्रिपाठ., दे., (२६४१२, १७४४२-५२). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं; अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. षड्दर्शन समुच्चय-टीका, आ. मणिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सज्ज्ञानदर्शणतले; अंति: (१)पर्यंतश्लोकार्थाः, (२)द्वापंचाशनुष्टुभाम्, ग्रं. १२५२. ९२६१० (+) विनयचट रास, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९२, प्र.वि. हंडी:विनयचटरास. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२५४११, १३४३२-३५). विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: पार्श्वनाथ जिनवर प्रणम्य; अंति: ऋषभनां फलस्ये जी, उल्लास-४, गाथा-१५३०, (वि. ढाल-५८) ९२६११. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००-६२(१ से ५३,५५ से ५९,६१,६८,९६ से ९७)=३८, जैदे., (२५.५४११.५, १०x२८-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठ हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ९२६१२. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८३-१७(१ से १७)=६६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रश्न०सूत्र०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६४३६-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१, अधमद्वार अपूर्ण से संवरद्वार अपूर्ण तक है.) ९२६१३. आवश्यकादि विविधप्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्र १x१७., दे., (२७.५४१२, १२४४०). प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गुरुवंदन प्रश्न से है.) ९२६१४. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, अन्य. मु. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवत०., जैदे., (२६.५४१२, १३४३०). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: हिवे विवेकी सम्यग; अंति: होइ तेमाथी मोक्ष जाइ. For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २१७ ९२६१५ (+) कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, माघ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. ३, ले.स्थल. सिद्धगिरि, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:कर्मग्रंथ. अंत में प्रतिलेखक द्वारा मध्यरात्रि में प्रत संपूर्ण लिखने के बाद शयन हेतु जाने का उल्लेख किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४११.५, ४४३१-३८). १.पे. नाम, कर्मविपाक प्रथम नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ.१आ-१२आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)आचिरेयं नमस्कृत्य, (२)श्रीमहावीरदेव प्रतइ; अंति: देवेंद्रसूरीइं कर्यो. २. पे. नाम, कर्मस्तव द्वितीय नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १२आ-२१अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे बीजा कर्मग्रंथ; अंति: करीने वंदनिक नमस्कार हओ. ३.पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीय नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २१अ-२६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण ५७ हेतु; अंति: कर्मग्रंथ कीधो ते जाणवो. ९२६१६. नियंठाना ३७ द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:नियंठा०., जैदे., (२७४१२, १४४३३-३५). नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा वेय रागे; अंति: कुसिल संख्यातगुणा. ९२६१७. आत्मसंवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:आत्मसंवाद., जैदे., (२७४१२, १४४३७-४०). आत्मसंवाद चौपाई, श्राव. लाल हरजी, मा.ग., पद्य, वि. १७०३, आदि: श्रीजिन समरी चितस; अंति: लाल० पामे बहु सीवराय, ढाल-६. ९२६१८. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:अतीचार., जैदे., (२७४१२.५, १०४३२-३५). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: अतीचार माहि __ अनेरोजि. ९२६२०. (+) नवपद पूजा व शेव्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम, नवपद पूजा, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (१)कोई नये न अधूरी रे, (२)अमतणा साध जीवत जीवो, पूजा-९. २. पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीए मे आज रे; अंति: श्रीआदिसर तु द्वारे, गाथा-७. ९२६२१. (+) कायस्थिति प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., अ., (२६४११.५, ४४२२-२६). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरे दर्शनइ; अंति: (-). ९२६२२. ऋषभजिन व चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:मो०.चो०., जैदे., (२७४११.५, ९४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेजे शिखर; अंति: ए तो मोहन लहे आल्हाद, गाथा-७. ३. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर जगदीसरू रे; अंति: मोहन० तु प्राणाधार, गाथा-५. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनस्तवनचौवीसी, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेही; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-२४ की गाथा-७ तक है.) ९२६२३. गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४१२, १९४३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: नीयमन भांतो निहणहयाए, प्रश्न-४८, गाथा-३९. ९२६२४. (#) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-४(१ से ४)=११, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ५४३७-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-४ पाठ "आऊचित्तमंखमखाया" से अध्ययन-५ पाठ "उलंघियाणपविसे" तक हैं.) ९२६२५. (+) प्रतिष्ठा कल्प व ध्वजारोपण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ११००, जैदे., (२६.५४१२, १३४४०). १. पे. नाम. प्रतिष्ठा कल्प, पृ. १अ-३५आ, संपूर्ण, वि. १८७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. चारित्रसागर (गुरु पं. जससागर); पठ. वा. जयरंग (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: सकल० प्रतिष्टाकल्पः. २. पे. नाम. ध्वजारोपण विधि, पृ. ३५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ध्वजादंडरोपण विधि, मु. देवचंद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भूमि; अंति: (-). ९२६२६. सिरिसिरिवाल कहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०-४८(१,३ से १४,१६ से १७,१९,२१ से २३,२५ से २८,३० से ३२,३४,३६ से ४०,४३ से ५८)=१२, पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, ८-१०४४६-५२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से गाथा-१३४० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२६२७. (+) अतीतचोवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रावण शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३८-४२). स्तवनचौवीसी-अतीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नामे गाजे परम आल्हाद; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. स्तवन-११ व १२ नहीं लिखा है तथा स्तवन २१ तक लिख कर संपूर्ण कर दिया है.) ९२६२८. प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ.७, गृही. उदेचंदजी; दत्त. पं. रामचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:षडावस्स पत्र., जैदे., (२६४११, १२४२९-३३). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० १पद; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ "साश्रुक्रमासोद्भव वृष्टि सन्नि" तक लिखा है.) ९२६२९ (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. पं. वृद्धिचंद; पठ. पं. श्रीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:सिंदरप्र०., सिंदरप्रकर्ण. पाठभेद सहित पाठ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६४११.५, ११४३४). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२६३०. भक्तामर स्तोत्र की सप्तस्मरणटीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२५४११, " १२X३०-३५ ). भक्तामर स्तोत्र टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६८३, आदि नत्वा वृषोपदेष्टारं वृषभं अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ के व्याख्यान अपूर्ण तक है.) ९२६३१. (*) सिद्धपंचाशिका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८३५, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २०-७(५ से ११) १३. ले. स्थल. कर्मवाटी, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५x११ २०-२२४४२). " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरीहिं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा १४ से २० तक नहीं है.) सिद्धपंचाशिका प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२) आद्य गाथा द्वय सुगम अंति यापडितैः करुणा परे. ९२६३२. (९) सप्तस्मरणम्, संपूर्ण, वि. १९२२ ज्येष्ठ शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. हुंडी : साति०, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., ( २६.५X११.५, ८X३०). . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: भवे भवे पास सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. जिणचंद, स्मरण- ७. ९२६३३. () संघयणीसूत्र, संपूर्ण वि. १८८०, माघ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. हुंडी संघयणि सूत्र पत्र. श्रीगोडीयापार्श्वनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, १०X३४-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ अंतिः जा वीरजिण तित्यं गाया- ३४९. ९२६३४ (+) पडिकमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल. वीजापुर, प्रले. श्राव. खेमचंद दोसी पठ. मु. शांतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित, जैवे (२६४११, ११४३४-३७). चंद देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं; अति मणसा मत्थेण वंदामि ९२६३५. (*) अंजणामहासती रास, संपूर्ण वि. १८५१, ज्येष्ठ शुक्ल ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. आगरा, . प्र. मु.मयाचंद (गुरु मु. उदेराज); गुपि. मु. उदेराज (गुरु मु. खेमराजजी): मु. खेमराजजी (गुरु मु. श्रीसाराजी) मु. श्रीसाराजी (गुरु मु. हरिदासजी); मु. हरिदासजी (गुरु आ. धर्मदासजी); आ. धर्मदासजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : अंजना ०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६११.५, १९x४०-४२). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्म, वि. १६८९, आदि गणधर गौतम प्रमुख अंति: भारज्या जगतनी माय तो, खंड ३, गाथा- ६३२ (वि. डाल- २२) ९२६३६. (*) षटशीति कर्मग्रंथ का यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये., (२५.५X११.५, ११x२८). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा. गद्य, आदि जीवरा भेद१४ ६२ मार्गण अति: देवेंद्रसूरि लिख्यो. " ९२६३८. संजया द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६, जैदे., (२७१२, १२-१३४३५). २१९ ९२६३७. (+) सप्तनयविचार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१ (१) = १४, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., 1 प्र. वि. हुंडी : सप्तनय०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६११, ११-१५४३८-४०) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. पाठ जलने समुद्रनो अंश कहीये" से "पाटलीपुर नगरमांहि नधी ग्रामांतर रे गयु छे" तक है.) For Private and Personal Use Only भगवतीसूत्र-शतक २५ उद्देश ६ गत संजया विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेयरागे; अंति: सामान संखेज गुणा, द्वार-३७. . ९२६३९. (*) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, संपूर्ण वि. १६११ चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पू. २६, ले. स्थल. रणी, प्रले. मु. हमीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : दशासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११, १३४३५-४०). दशाभुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि सूर्य मे आउस तेण अति: उवदंसेइ ति बेमि, दशा-१०, ग्रं. १३८०. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२६४० (+) नेमिसंवाद चोक व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५.५x११.५, १०-१३४३५) १. .पे. नाम. नेमिसंवाद चोक, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १८७० आषाढ़ शुक्ल, १२. गुरुवार, ले. स्थल, गोयल, प्रले. मु. मानसोम (गुरु मु. नरेंद्रसोम); गुपि. मु. नरेंद्रसोम (गुरु मु. फतेहसोम); मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समय देवी सारदा; अंति : सीस अमृत गुण गाया, चोक-२६. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि विमल चित करि मित सहु अंति (-), गाधा-१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२६४१ (+) सिद्धपंचाशिका प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-४ (१ से ४) =७, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, २२X४२-४५). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ से २० तक है.) सिद्धपंचाशिका प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). 2 ९२६४२. वरदत्तगुणमंजरी कथानिक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, माघ कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पादलिप्तनगर, प्रले. मु. जतनकुशल, अन्य. मु. लक्ष्मीविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७X१२, ६x४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वरजी अति: मेडतानगरने विधि, ९२६४३. स्थानांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-४ (१ से ४) = १५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७X११.५, २-१४४४२-५० ). , स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थान १० दस महाणदी" अपूर्ण से सूत्र- १७२ "कुलकोडी" अपूर्ण तक है.) स्थानांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९२६४४. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १८x४८-५२) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि अति: (-) (पू. वि. गाथा ३९ अपूर्ण तक है.) ९२६४५ (+) साधुवंदणा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ६ प्र. वि. हुंडी : साधुव० पुज्य महाराजश्री अमरसीस्वामीना पाना छे. संशोधित., जैदे., (२७X१२, ११×३२-३४). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक; अंति: जैमलजी एह तरणनो दाव गाथा १११. ९२६५४ (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पू. ३४-२० (१ से ३,१३,१६ से ३१) = १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६११, १५-१९४४४५२). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १९९३, आदि (-); अति (-) (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्याय-३, पाद-३, सूत्र ८७ से अध्याय ४, पाद-३, सूत्र ८ तक है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन- टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९२६५५ (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १० प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५x१२, २- ३X३०-३६). For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २२१ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गजसारेण० यप्पहिया, गाथा-४२. दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमिस्कार; अंति: कल्याण हुओ ते जाणवू. ९२६५६. दृष्टांतशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३६). दृष्टांतशतक, म. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ तक है. मूल के साथ पुष्टिकरण हेतु देशी दोहादि दिये गये है.) ९२६५८. कर्मग्रंथ-२ से ४, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१३(५ से १७)=२०, कुल पे. ३, दे., (२६.५४११, ३-४४२८-३२). १. पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. १अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम, बंधस्वामित्वसूत्र, पृ. १९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९३७, चैत्र शुक्ल, ३, मंगलवार. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण तक है.) ९२६५९ (4) शुकसप्ततिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७(१,११ से १६)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x६६-७२). शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ४४० अपूर्ण तक व गाथा-७८२ अपूर्ण से ८३३ अपूर्ण तक है.) ९२६६० (+) सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९३७, आश्विन कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-४(१ से ४)=९, ले.स्थल. कालंद्रीनगर, प्र.वि. श्रीमाहावीर प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६५१) याद्रीसं पूस्तकं द्रिष्टा, दे., (२७४११.५, ११४३४-४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७९, (पू.वि. गाथा-५५ से है.) ९२६६१. (#) अनंतचतुर्दशी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(२ से ५)=६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४११, १०x४२-४८). अनंतचतुर्दशी पूजा, श्राव. शांतिदास ब्रह्मचारी, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स्वामिन् सं वौषट् कृतावाह; अंति: (-), (पू.वि. शीतलनाथपूजा जयमाल अपूर्ण तक है.) ९२६६२. (+#) षडशीति कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७४१२, १०-११४३२-४०). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा-८४. ९२६६३. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. पेथार, प्रले. मु. हीराचंद (गुरु पं. सकलसोम); गुपि.पं. सकलसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:माहावीरस्त०., संशोधित., जैदे., (२८x१२, १४४३२-३६). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: जस० सिर वहइस्यइ जी, ढाल-६, गाथा-१४५. ९२६६४. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. २२७-२(१ से २)=२२५, ले.स्थल. नवानगर, दत्त. वसरामजी स्वामी; गृही. मु. प्रेमजी (गुरु ग. अमरविजय); अन्य. मु. रूपचंद्र ऋषि; मु. अमरसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ठाणांग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७६८) जादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११, ६४४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००, (पू.वि. स्थान-१, अध्ययन-१, सूत्र- ३ अपूर्ण से है.) स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति पुगल अनंता कहिया ९२६६५. (+) ) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ५८-२४ (१ से २४) = ३४, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०१६, जैदे., (२७X११, ८x४८-५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६ (पू.वि. सूत्र- ७४ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उपदेस्यौ कह्यौ. " ९२६६६. (*) रत्नपाल रास, संपूर्ण वि. १८९०, आश्विन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५२, ले. स्थल फूगणी प्रले. पं. नेमविजय (गुरु पं. राजविजय पंडित) गुपि. पं. राजविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., " (२७.५X११, १५X३४-४० ). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि धरतणी; अंति: मोहनवि विलासजी, खंड-४, गाथा- १३७२. ९२६६७. सालिभद्रमहामुनि चउपड़ व नमिउण मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, दे., (२७११, १२-१६X३०-३८). १. पे नाम सालिभद्रमहामुनि चउपड़, पृ. १२-२३अ संपूर्ण शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरिये अंतिः फल लहिस्य जी, ढाल - २९, गाथा - ५१०. २. पे. नाम नमिउण मंत्र, पृ. २३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि ॐ ह्रीं अहं नमीकण; अति राखे तु पारस्वनाथ, मंत्र.१. ९२६६८. (+) समवायांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७१, प्र. वि. हुंडी: समवायांगसू०, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, ४-१०४३६-४२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे, अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ 'समचउरं सेण' तक है.) . समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: इह स्थानाख्याततृतीयांग; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'तत्र प्रथमः सनवत्यात्रापि' पाठ तक लिखा है.) ९२६६९. (+) चतुष्पव कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६.५x१०.५, १७६२-७२). चतुपर्वी कथा, सं., गद्य, आदि यस्य ध्यानानुभावाद्ध, अंति (-), (पू.वि. "साधु सन्मार्गेचलत्" पाठ तक है.) ९२६७०. अणुतरोववाईसूत्र, अपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५-१ (१)+१ (४) =५, ले. स्थल. रीवा, प्रले. सा. केसरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: अंतर, अणुर., दे., (२८x१२, १८x४०). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-) अंति अयमट्टे पण्णत्ते, (पू.वि. वर्ग-१, अध्ययन- १ 'आलोयेपडीकंता समाहपतेकाले' पाठ से हैं.) ९२६७३. सिंघासणवत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६८-१ (१) = ६७, प्रले. मु. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६.५x११.५, १२४४५-५४) सिंहासनबत्रीसी चौपाई दानाधिकारे, पंन्या, हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि (-) अंति रिद्धि पामह बहु परइ, कथा-३२, गाथा-२४३०, ग्रं. ३५००, ( पू. वि. प्रथम कथा के "वेद पुराण नल है कहे" पाठ से है.) ९२६७६. (*) युगादिदेशना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६१, प्र. वि. हुंडी युगादि० दे०. संशोधित, जैये. (२५.५x११.५, १३४५०-५४). " युगादिदेशना ग. सोममंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीमानादिजिनः श्रेय अंतिः चैषा जयाभ्युदयदायिनी, उल्लास-५, श्लोक-५७७. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२६७९ (4) हंसराजवच्छराज चौपाई व रावण सैन्यमान कवित्त, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-१(४१) ४१, कुल पे. २, प्र.वि. श्रीगोडीपारस्वनाथ नमः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११-१३४३०-३४). १. पे. नाम. हंसराजवच्छराज च्यारखंड चउपई, पृ. १अ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., वि. १८३४, चैत्र शुक्ल, १३, बुधवार, ले.स्थल. बेरसणा, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु पं. जगरूपकुशल); गुपि.पं. जगरूपकुशल; अन्य. मयाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीस्वर आदि करि चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४, गाथा-८७४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. रावण सैन्यमान कवित्त, पृ. ४२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक कोडि गजबंध अड बदस; अंति: कहो रावण किह दसि गयो, पद-१. ९२६८० (+#) निरयावली सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-२(१ से २)=३७, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:निराउली, निरावली०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, ११४३८-४४). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सुयखंधो समत्तो, अध्ययन-१०, (पू.वि. पाठ "समणं भगवं तिक्खुत्तो वंदति" से है.) २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १५आ-१८आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १८आ-३२आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३२आ-३५अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झहिति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३५अ-३९अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते. पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. ९२६८१ (+) ज्ञाताधर्मकथा अध्ययन-८ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ७X४५-४९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९२६८२. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ६-८४३८-४४). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से १९७ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२६८३. अमरपद स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२८-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ९२६८४ (+#) अनेकार्थ संग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १५०१, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८-१४(१ से ६,१८ से २४,२६)=१४, ले.स्थल. वटपद्र, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११,१७-१८४६८-७२). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: खेदामंत्रणयोरपि, अध्याय-६, श्लोक-१९३१, (पू.वि. प्रारंभ व बीच बीच के पाठांश नहीं है.) अनेकार्थ संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: धातूनामनेकार्थत्वात्. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२६८६. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बृहद्विवरण, संपूर्ण, वि. १७०२, अक्ष्यंतरिक्षमश्वचंद्र, वैशाख शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. रोहितासनगर, प्रले. मु. रवि (गुरु मु. मातृदास ऋषि); गुपि. मु. मातृदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ.,प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२६.५४११.५, १-३४४८-५२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-बृहद्विवरण, आ. चिरंतनाचार्य, सं., गद्य, आदि: त्रैलोक्यप्रकटप्रभाव; अंति: प्रकीर्णकमित्यर्थः. ९२६८७. (+) स्तवन व पालणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ६)=५, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १२४३२-३६). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रुपचंद० सिक्का लहिया, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण २.पे. नाम. साधारणजिन प्रभाति, प.७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, आ. हीरसूरि , पुहि., पद्य, आदि: अजब ज्योति मेरे जिन; अंति: आशा पूरो मेरे मन की, गाथा-२. ३. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सैजै ऋषभ समोसर्या; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-९. ४. पे. नाम. नवअंगपूजा दहा, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ५. पे. नाम. महावीरस्वामीनो पालj, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. महावीरजिन पारणं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशलाए पुत्र; अंति: अमियकथासें लीला लहेर, गाथा-१८. ६. पे. नाम. महावीरस्वामीन हालरिओ, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झलावे; अंति: दीपविजय कविराज, गाथा-१७. ७.पे. नाम. पार्श्वनाथनं पालणं, पृ. १०आ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन पालणं, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमं पासप्रभुने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ९२६९० विविध ग्रंथोद्धत दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५४-४५(१ से ४५)=९, दे., (२७.५४१२, १६४३७). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., सुभद्रासती कथा-२६वीं अपूर्ण से गांगेय कथा-३७वीं अपूर्ण तक है.) ९२६९१. भगवतीसूत्र के बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(१३)=२६, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३३). भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उनमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२६९२. (+) चार प्रत्येकबुद्ध चुपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(२ से ३)=७, प्र.वि. हुंडी:प्रतेक०चुपई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४-१६x४०-४६). ४ प्रत्येकबद्ध रास, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१, ढाल-१ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-३ की गाथा-७ अपूर्ण तक व खंड-२, ढाल-५ की गाथा-४ अपूर्ण से नहीं है.) ९२६९३. (+) सूरसेनरत्नवती रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. सा. विवेकलक्ष्मी (गुरु सा. जयलक्ष्मी); गुपि. सा. जयलक्ष्मी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x११, १५४४८-५२). सूरसेनरत्नवती रास, मु. वस्तुपाल, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणमुं श्री; अंति: वस्तपाल० कहिइ इसिउं, गाथा-२०४. For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२६९६. चार प्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६- ९(१ से ९) १७, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : प्रत्यकचुध, जैदे. (२६.५४११.५, १६-२०X३६-४४). " " www.kobatirth.org ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. खंड-२, डाल-५ की गाथा-१६ से खंड-४, ढाल-८ की गाथा- ८ तक है.) ९२६९७ (+) सिंहलकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८५४, कार्तिक कृष्ण, मध्यम, पृ. ८-१ (१) ७, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी :सीहलकु०., संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १४-१७X३४-४२). प्रियमेक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि (-); अंति: पुये अधिक प्रमोद, ढाल-११, गाथा-२२०, (पू.वि. ढाल - २ की गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ९२७०१ (+) प्रज्ञापना सूत्र-पद ३ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे., (२६.५X११.५, ८- ९x४६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्वामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण ९२७०२ (#) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, (२७४११.५, १२X४०-४४). १. पे. नाम. सरस्वतीमाता छंद, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैदे. (२७४११.५. १४४४२-४४). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य वि. १७२१ आदि स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अति: (-), (पू.वि. ढाल -३१, गाथा-९ अपूर्ण तक पाठ है.) ९२७०३. स्तवन व छंद संग्रह, संपूर्ण वि. १९२२ आश्विन कृष्ण, १३ मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे ४, प्र. वि. कुल ग्रं. १६५, दे., गाथा - २०. ३. पे. नाम. मणिभद्रनो छंद, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि सति भगवति जग; अंति नाणं सरद नामें कोट कल्याण, गाथा ४२. २. पे. नाम. मणिभद्रवीर छंद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: लिलाकुसल लखमि लहिये, २२५ माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरस्वतिने समीने; अंति: आपो मुझ सुख संपदा, गाथा-४३. ४. पे. नाम. चतुर्विशंतिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव चतुः षष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नत्वा, अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासम् श्लोक-८. ९२७०४. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ६- १ (१) = ५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X११.५, ४X३०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. "जंसंसिणोचखुपहेदीयस" पाठ से "समाहियंअठपउविसुधं तंसदहताय" पाठ तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). (२६.५X१२, १७-१९X५९-६५). १. पे. नाम थेरावलिया, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ९२७०५. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२-७७ (१ से ७७) = २५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२७४११. १५X४०-४६). "" कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२७०६. (+) नंदिसूत्र-थेरावली व आवश्यक निर्युक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जग जग जोणी जाणी; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यक-नियुक्ति, पृ. २आ-२६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-निर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अभिण बोहियनाण सुअनाणं चेव; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्विंशतिस्तव की नियुक्तिगाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९२७०७. संयमश्रेणिगर्भित वीरविभो स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, प. ११, प्रले. पंन्या. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ४-६४२६-३३). महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणीगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: केवल ज्ञान दिवा; अंति: उत्तमविजय मल्हायो रे, ढाल-४, गाथा-५१, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणीगर्भित-स्वोपज्ञ टबार्थ, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गद्य, आदि: समस्त ज्ञानावरणीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक टबार्थ लिखा है.) ९२७०८.(+) उत्तराध्ययन सूत्र, २० विहरमानजिन नाम व २४ वर्तमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६x४१). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २३ केसीगोयम सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १७६९) २. पे. नाम. २० विहरमान नाम, पृ.८अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: देवयंश१९ अनंतवीर्य२०. ३. पे. नाम, २४जिन देहमान व आयुषमाननाम यंत्र, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ अजितर __ संभव३; अंति: पार्श्वनाथ महावीर, (वि. देहमान, आयुषमान ही है.) ९२७०९ (4) हरणी संवाद व नरदेव चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-२१(१ से २०,३०)=२१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४४-४८). १.पे. नाम. हरणी संवाद, पृ. २१अ-३२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. __ मृगसंवाद चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, वि. १६६३, आदि: (-); अंति: देवराज० नित नितदि आसीस, गाथा-२९१, (पू.वि. गाथा-१९ तक, गाथा-२३४ से २६० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, नरदेव चउपई, पृ. ३२अ-४२आ, संपूर्ण. मु. मल्लिदास, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: श्रीसरसति प्रणमु मन सुद्ध; अंति: देवराज शिषि कहइ मल्लिदास, गाथा-२७३. ९२७१६. (+) योगशास्त्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९७, प्र.वि. हुंडी:योगशास्त्र बालावबोध., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३-३६). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य जिनसिद्धादीन् योग; अंति: छइ तिहां थकी जाणिवा, प्रकाश-४, ग्रं. ५०००. ९२७१९ (+) चंद्रराज रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४४-१२(१,२०,२२,३४ से ३५,३८,४०,४९ से ५१,५९ से ६०)=१३२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४२९). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल-१, गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-३१, गाथा-१९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ९२७२०. गौतमकुलक की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७२६, चैत्र शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २७-१(१)=२६, ले.स्थल. जगतारण, प्रले. पं. आनंदनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १८४४१-५४). गौतम कलक-टीका+कथा, म. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः (-); अंति: भुवि चिरं जीयात्, कथा-६९. For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२७२९. मोहनविजे चौवीसी व आदिजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण वि. १९५३ माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे, ३, ले. स्थल. मोटा गाव, प्रले. पं. हिमतविजय पठ. सा. कपुरश्री अन्य. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपारस्वनाथजी प्रसादेत., दे., (२७X१२, ११X३०-३२). १. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि एतो प्रथम तीर्थंकर अंति मोहनविजय जयकार, गाथा-७ २. पे. नाम. रिषभजी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभजिणंद सुखकार दीठे, अंति सीस प्रणेमे हरबेरीरी, गाथा- ७. ३. पे नाम. मोहनविजय चोवीसी, पू. १आ-२७अ संपूर्ण जिनस्तवन चौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेही; अंति: वसीओ तु बीसवावीस, स्तवन- २४, गाथा - ३३४. ९२७२२ (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२. प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७१२, १५X३५-४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-४८ अपूर्ण तक लिखा है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धनपालपंडितबांधवेन०; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., लोक- ९५ अपूर्ण तक की अवचूरि है.) २२७ " ९२७२३. (+) लक्षण समुच्चय-१५ से ३० विधि पर्यंत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३३ ले स्थल, गोलनगर, लिय. श्राव, चमनाजी नरसिंहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : लक्षण समुच्चय. अंत में यह प्रत कल्याणविजय जैन शास्त्रसंग्रह को अर्पण करने उल्लेख है., संशोधित. दे., (२८x१२, १३५२-५४). लक्षण समुच्चय, सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विधि- १५ से विधि- ३० अपूर्ण तक लिखा है.) ९२७२५. नरकवेदनाना वरणव दुहा, अपूर्ण, वि. १९५३ माघ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १९-६(१ से ६) १३ ले स्थल, मोटा गाव, पठ. सा. कपुरश्री; प्रले. पं. हिमतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पारस्वनाथजी प्रसादेत, दे., (२७१२, १९X२८-३४). नरकवेदना वर्णन दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: पाप कर्मथी प्राणिया, अंति: दलमां शोचे झरे सदीव, अंक- ५४, संपूर्ण. ९२७२७. (*) भक्तामर स्तोत्र की कथा, संपूर्ण, वि. १८८५ आषाद अधिकमास शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X३८-४४). भक्तामर स्तोत्र-कथा, मु. विनयसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि प्रणम्य श्रीजिनं वीरं अंति कीधो राज्य भोगव्यो, कथा-२८. ९२७२८. (+#) चैत्री स्नात्र विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७.५४१२, १४-१६४३३-४१). १. पे नाम. चैत्री स्नात्र विधि पू. १अ ४आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (१) कलस मांहि साथीयो कीज, (२) असुरिंद सुरिंदाणं; अंति: चउविह मंगल पूरवइ. २. पे नाम. शांतिनाथ बोली. पू. ४आ-५अ, संपूर्ण. शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., पद्य, आदि ता उत्तर दक्षिण पुरब, अंति: जिनेसरसूरि० पणासै दुरि गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमनाथ बोली, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., पद्य, आदि: ता धन धन सोरठ देस; अंति : जाम गयण ससिभाण, गाथा-७. ४. पे नाम, शांतिजिन जन्माभिषेक, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only शांतिजिन स्तव जन्माभिषेक, मा.गु., पद्य, आदि जय सयल सुरासुर नमिय; अंतिः विजय सिरिसंति करो, गाथा - १८. ९२७२९. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ११-४ (१ से ३५)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जैदे., (२८x१२.५, ११४३०-३३). Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मरत्न प्रकरण- टीकागत-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२७३० () श्रावक आलोयणा, संपूर्ण वि. १८वी न, मध्यम, पू. ६, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ११x४८-५०). श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनेंद्रादि; अंतिः क्षमाकल्याणसाधुना. ९२७३१. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २४, ले. स्थल, गढडा, प्रले. लालजी पठ. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नंदीसूत्र, श्रीगुरु प्रसादात्. जैदे. (२६.५x१२ १२४३६-४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से त्तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, गाथा - ७००. ९२७३२. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-१३ (१ से १३ ) = ११, जैदे., ( २६.५X११.५, १२४३८-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति अपुणागमं गए तिबेमि, अध्ययन- १०, (पू.वि. अध्ययन-६ गाथा-२२ से है.) 1 ९२७३३. (+) समवसरण स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित.., जैवे. (२७४११, १३-१४४३२-३८). "" समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि थुणिमो केवलीवत्वं; अति: (-) (पू. वि. गाथा १४ तक है.) " " समवसरण स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीमद्वीर जिनं नत्व, ( २ ) थुणिमो इति वयं एहवो; अंति: (-). ९२७३४. ५६० जीवाजीव भेद, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. उदयपुर, राज्यकाल शंभुसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६.५४११.५, १३x४६-५४) " ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्सा२ ठिति३; अंति: पांचसे ने साठ जाणवा. ९२७३५. स्नात्र विधि, संपूर्ण वि. १८५२ कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पू. ५, ले. स्थल. जीर्णदुर्ग, प्रले. पं. दर्शनविजय, 3 प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १०X३२-३६). - स्नात्र पूजा, आव, वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि पवित्र धोती पेरी रे; अति णेसर जयो जयो जयवंतजी गाथा ३७. ९२७३६. ४ मंगल रास व पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले. स्थल. मोरबी, प्रले. मोनजी मूलजी रावल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ४५१, दे. (२७४१२, १३४४२-४६). " १. पे. नाम, ४ मंगल रास, पृ. १अ १०अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : मंगल. मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि अनंत चोवीशीजिन नमु; अति: (१) सतवादी हुवा सुर, (२) इणमे न चले खोट डाल-४, गाथा - ११८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद. पू. १०अ १३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पार्श्व०. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजय देव जय जयकरण, गाथा - ५२. ९२७३७. चौवीसदंडक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३ (१ से ३) =८, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७X११.५, १३X२८-३३). २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. सत्ताद्वार अपूर्ण से जीर्णोद्वार अपूर्ण तक है.) ९२७३८. (+#) नवपद खमासण, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १२-१४४२५-३२). नवपद गुण, सं., गद्य, आदि: अरिहंतना १२ गुण लिखइ; अंति: उत्सर्गतपसे नमः. ९२७३९. (+) स्वरोदय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५X१२, ११×३०-३५). स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य वि. १९०५, आदि नमो आदि अरिहंतदेव अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ९७ अपूर्ण तक लिखा है.) ', ९२७४०. (*) ६ आराना बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी छ आराना बोल., संशोधित. जैदे. (२७४१२, १४४३५). " For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दश कौडाकौड सागरोपमना; अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "दुपस नामे साधु" पांचवाँ आरा बोल अपूर्ण तक है.) ९२७४१ (+) मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८x१२.५, १४४३६-४१). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: (-), (पू.वि. पर्युषणाद्याष्टक व्याख्यान तक है.) ९२७४२. (+) उवाईसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:उवाईसूत्र.ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ८४३८-४५). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्वार्ध के सूत्र -२४ अपूर्ण तक का पाठ है.) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणेकाले चोथो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूर्वार्ध के सूत्र-१२ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९२७४३. (+) भवनदीपकादि ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ६४२७-३०). १. पे. नाम. घरप्रछयालाभअलाभ विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण, प्रले. ग. माहासिंघ (गुरु ग. नयविजय, खरतरगच्छ जिनभद्रसूरिशाखा), प्र.ले.प. सामान्य. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सरस्वती संबंधीओ मह, (२)सरस्वती संबंधी; अंति: पद्मप्रभसूरि आचार्य, ३. पे. नाम. ग्रामफल पुजा, पृ. १९अ, संपूर्ण. लाभालाभ फल, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: जन्मराशिस्थितो ग्राम; अंति: ग्रामेपुरे भवाः, श्लोक-५. ४. पे. नाम. नक्षत्रनामानि व अष्टोत्तरी दशा, पृ. १९अ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२७४४. (+) योगविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:योगविधियंत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४४८-५०). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आवश्यकाद्युत्कलिकेषु; अंति: वियकमोकमेण सिद्धिपिपावेइ. ९२७४५. (#) लीलावती चोपड़, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १२-१५४४८-५४). लीलावती चौपाई-शीयलविषये, आ. हेमरत्नसरि, मा.ग., पद्य, वि. १६०३, आदि: आदिजिनवर आदि प्रणमेव; अंति: पामीयै हेमरतन भरपूर, गाथा-४६८. ९२७४६. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र प्राभूत-१ से १०, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१२, १६४२८-३७). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरि० जयति नवणलिण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९२७४७. (+#) महावीर चौवीसदंडक स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:च०.दंडक., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ६४३८-४२). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर स्वामी वीरजिन; अंति: श्रीपासचंद०अविचल ठाइ, गाथा-८९, ग्रं. १६२.. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुखना कारणहार ठाकुर; अंति: पासचंद० आचार्य कहइ. ९२७४८.(+) विचारसत्तरिका की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१०(१ से १०)-७, प्रले. मु. धर्मनंदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४७०, जैदे., (२८x११.५, १९४६०-६१). For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचारसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कर्तृनाम गर्भ ज्ञेया, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण की अवचूरि से है.) ९२७४९ (+) अष्टांगनिमित्त होराशास्त्र सह पाकश्री वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, प्रले. ग. कल्याणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाकश्रीवृ०., संशोधित. कुल ग्रं. २३२४, जैदे., (२७४११, १४४४७-५२). अष्टांगनिमित्त होराशास्त्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: णमिउण जिणिंदाण उसभाई वीर; अंति: पिहुनाए विउसेय कायव्वं. अष्टांगनिमित्त होराशास्त्र-टीका, आ. वररुचि, सं., गद्य, आदि: अत्रेद० नमस्कार गाथया; अंति: वररुचि० पाकश्री वृत्ति. ९२७५१ (+) शांतिस्नात्र विधि व २० तीर्थपद पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:शांतिसना०. अंत में किसी अन्य भंडार का प्रतक्रमांक-२७ का कागज़ चिपकाया हुआ है., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १२४४२-४४). १.पे. नाम. शांतिस्नात्र विधि, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा; अंति: नाद सिवाय पेसवं. २.पे. नाम. विंशतितीर्थपद पूजा, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. २० तीर्थपद पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथयात्र प्रभाव छ; अंति: परम महोदय पावे रे, गाथा-७. ९२७५२ (+) भयहर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हंडी:भयहर वृत्ति., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२, ११४४४-४८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: नासइ तस्स दरेण, गाथा-२४. नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवसुतं; अंति: सिद्धति सर्वकामिकोयम्, (वि. यंत्रसहित.) ९२७५३. ६ द्रव्यगुणपर्याय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३९-४२). ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्तव्यता वर्णन अपूर्ण से औदारिकनी वर्गणा वर्णन अपूर्ण तक है.) ९२७५४. (+) पंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:पंचमी देव०., संशोधित., दे., (२६४१२, ११४२८-३५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: संघ सयल सुखदाइ रे, पूजा-५, गाथा-९. ९२७५५. प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २६-३(१ से ३)=२३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १४४३८-४०). प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. ढाल-१ के दोहा-१ से ढाल-२० की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९२७५८. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ-खंड ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-३(१०,१३,३८)=३९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:श्रीश्रीपालचरित्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ६४३१-३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. ढाल-१३ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९२७५९ (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२७-७९(१ से ७९)=४८, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ६-७४३३-३७). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ के अध्ययन-५, उद्देशक-१ सूत्र-३८ अपूर्ण से अध्ययन-१६ सूत्र-६ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२७६१. (+#) गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-९(१ से ६,१० से १२)=२१, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १८-२०४३६-४२). For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २३१ गौतमपृच्छा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ से २५ तक व गाथा-३२ से ५९ तक है.) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ की टीका अपूर्ण से २५ की टीका अपूर्ण तक व गाथा-३२ की टीका अपूर्ण से ५९ की टीका अपूर्ण तक है.) ९२७६२. (+) परिपाटीचतुर्दशक, वीसविहरमानजिन स्तव व विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, कुल पे. २७, प्रले. पं. नायकविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ४-१४४३५-४२). १. पे. नाम. परिपाटीचतुर्दशक सह टबार्थ, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: जिणा इमे विणयविजयेण, गाथा-२७. परिपाटीचतुर्दशक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: करी सर्वजिन स्तव्या. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तव सह टबार्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: सर्वाणि नमामि भक्त्या, श्लोक-५, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपना महाविदेह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ तक का टबार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. श्रावकना तीन मनोरथ, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: मनोरथ ३ समणोवासग; अंति: मरण मुझनइ होज्यो. ४. पे. नाम. ५६३ जीवना भेद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी प्रजाप्ता; अंति: १९८ देवभेद जाणवा. ५.पे. नाम. ५६३ जीवभेद गतागत विचार, पृ. ७अ-१०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वीरपुर. २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली नरके २५ जीवभेदवाला; अंति: अनें जाये नरके नीयमा. ६. पे. नाम, अजितशांति स्तव-हस्वादि छंदपरिमाण गाथा, पृ. १०अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: बायालीसं वत्ता; अंति: सव्वक्खर अजिअ संतिथए, गाथा-५, (वि. अंत में पुष्टिकरण के लिए देशीभाषा में एक गाथा दी है.) ७. पे. नाम, अष्टापदतीर्थ रक्षा विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अष्टापद पर्वते सगरचक; अंति: हजारने सामटा बाल्या. ८. पे. नाम. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, पृ. १०आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: एगं महणंतं परिमाणं, गाथा-२. ९. पे. नाम. ७ नयना अर्थ, पृ. ११अ, संपूर्ण.. ७ नय विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नहि छे एक गमो ते; अंति: ए एवं भूतनय कहीइं. १०. पे. नाम. लब्धि २८ नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही१ विप्पोसही२; अंति: सीत लेश्यालद्धी १६. ११. पे. नाम. अभव्यपुरुष १३ अकल्पनीय लब्धि नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण. १३ अकल्पनीय लब्धि नाम-अभव्यपुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: अभव्यपुरुषने १३ न होइ ते; अंतिः अभव्यपुरुषने न होइ. १२. पे. नाम. २८ लब्धि गाथा, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण... २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: एट्ठाई हंति लद्धिओ, गाथा-४. १३. पे. नाम. चक्रवर्ती सेवकवर्णन गाथा, पृ. १२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: बारसवीसकोडीओ; अंति: चकीणं सेवग्ग भभणिया, गाथा-१. १४. पे. नाम. देवता उपजवानी गाथा, पृ. १२अ, संपूर्ण. देवोत्पत्तिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पत्तेपयाले पुप्फे फल; अंति: सग्गवन्नग्गंधेसू, गाथा-१. १५. पे. नाम. अढीद्वीप अकल्पनीय वस्तु नाम, पृ. १२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: अरीहंतसमयबायर; अंति: उवराग नीग्गमे बूढीवयणं च, गाथा-१. १६. पे. नाम. कुलकोडिमान गाथा, पृ. १२अ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: एगा कोडाकोडी सनाणवज; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी १७. पे. नाम. २३ पदवी नाम, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न पदवी १ छत्र; अंति: सर्ववृत्ति७ केवली८. १८. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी पर्याप्ताना; अंति: ९९ अपर्याप्ता. १९.पे. नाम, अक्षमाला गुण, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: सूत्रस्य जपमालायां; अंति: निप्फलं होइ गोयमा. २०. पे. नाम. भावस्वरूप विचार, पृ. १८अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उपशमभाव क्षायिकभाव; अंति: नारकिने३ भंगा जाणवा. २१. पे. नाम. ९निधान स्वरूप विचार, पृ. २१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: छत्ते१ सिरेमिर गीवाइ; अंति: निस्संकदंड फरी आदनी. २२. पे. नाम. पंचेंद्रियना २३ विषय, पृ. २१आ, संपूर्ण. ५इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रोत्रंद्रियना; अंति: पांच इंद्रियना विषे. २३. पे. नाम, आगमिकविविध विचार संग्रह, प. २२अ-२३आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजीवाभिगमसूत्रे नारका; अंति: च परस्परं विरोधः. २४. पे. नाम. आगमिक प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. २३आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: तं जहा प्रश्न प्रथम; अंति: सारोद्धारथी जाणवू. २५. पे. नाम. १४ रत्न स्वरूप, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. १४ रत्न स्वरूप-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: हवे १४ रत्न सेनापति; अंति: निर्णय तो केवली जाणे. २६. पे. नाम. चक्रवर्ती स्वरूप, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वली चक्रवर्तीने; अंति: देवता ए सर्व वशवर्ती. २७. पे. नाम. आगमिक प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. ३०आ-४४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: कुमतिये कडं जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मोटा गीतार्थ परदेशे" पाठ तक लिखा है.) ९२७६४. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५-११०(१ से ११०)=३५, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमक०. अबरखयुक्त स्याही से लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४५४-६०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पृ.वि. व्याख्यान-८ से है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, ग्रं. ४१०९, (पू.वि. व्याख्यान-७ की टीका अपूर्ण से है.) ९२७६५ (+) चोमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, प. १९, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चो०दे०., संशोधित. कुल ग्रं. ४७५, दे., (२७४५, ११४२८-३२). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सांभलन चेइ रे. ९२७६६. विविध विषये धर्मकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-७(१,३ से ५,३७ से ३९)=३७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२, १२-१३४३६-४१). For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८४ धर्मकथा प्रबंध, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-४ से २५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं ९२७६९ (+2) अनुपानमंजरी, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनुपानमंजरीपत्र., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १२-१४४२८-३४). अनपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., पद्य, वि. १८२७, आदि: यस्य ज्ञानमयी; अंति: विश्राम ग्रंथकारकः, समुद्देश-५. ९२७७१, (+) पुण्यपाप कलक व प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-७(१ से ७)=६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ५४३६-४०). १.पे. नाम. पुण्यपाप कुलक सह टबार्थ, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुन्यकुला पत्र. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: धम्मंमि उज्जमह, गाथा-१६. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छत्रीस दिवसना सहस्र; अंति: विषे उद्यम करवो. २.पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:प्रज्ञाप्रकास पत्र. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ अपूर्ण तक प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशने अर्थ; अंति: (-). ९२७७२. (-) शालिभद्रमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:सलभद्र चोपी., अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२, १६-१८४३२-५०). शालिभद्रमुनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनाइक समरीइ वीरध; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२७ की गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९२७७३. (+) १४ गुणस्थानक चौपाई सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७९-१६६(१ से १६६)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४३८-४१). १४ गुणस्थानक चौपाई, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ से ८३ तक है.) १४ गुणस्थानक चौपाई-बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२७७४. (+) बृहत्क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१(१)=२५, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६-४०). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ से ६४९ अपूर्ण तक है.) ९२७७५. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २४४३४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीवगइ१ इंदिय२ काए३; अंति: (-). ९२७७६. उपदेसछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, लिख. श्राव. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स०., जैदे., (२६४१२, ९४३४-४०). उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरूप जामै प्रभूत; अंति: जिनहरष० मोकुं दीजीयो, गाथा-३६. ९२७७७. लीलावती रास, संपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. केशवजी व्यास; पठ. मु. प्रीतमजी ऋषि; अन्य. मु. प्रेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लीलाव०., कुल ग्रं. ४८५, दे., (२६४१२, ११-१२४३२-३६). लीलावतीसमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: उदयरतन० सुरलीला जी, ढाल-२१, गाथा-३४८. ९२७७८. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. हुंडी:अतीचार., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १४४३६-४०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि द For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२७७९ (+) सत्तरभेद पूजा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. रूपरत्न (गुरु __ पं. लब्धिरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सतरभेदी., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ४-५४३४-३८). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: चितवित सफल चुणिओ रे, ढाल-१७. १७ भेदी पूजा-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, आदि: हवे स्नात्र कर्यापछी; अंति: पछी पूजा सहु भणे छे. ९२७८० (+) लघुडंडकना बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-१(२)=१२, प्र.वि. हुंडी:डंडक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १३४३५-४१). दंडकभेद बोल-लघ, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर अवघेणा संघेण; अंति: अनंत सुख सेय सिद्ध थाइ, (पू.वि. "३ वामणसंठाण" पाठ से "अनंता आवी उपजे" तक नहीं है.) ९२७८१ (+) सत्यसौभाग्य निर्वाण रास, संपूर्ण, वि. १९८९, आश्विन कृष्ण, ३०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. बडोदा, प्रले. सीताराम गेरमल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १४४३६-३८). सत्यसौभाग्यउपाध्याय निर्वाण रास, श्राव. धर्मदास जयसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर नित प्रणमि; अंति: धर्मदास० मननी आस रे, गाथा-१५१. ९२७८२ (+) औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६-१८४४८-५२). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पहिलं प्रीति करेइ; अंति: जो जानाति स पंडितः, गाथा-१०५. ९२७८३. ८ कर्म १५८ प्रकृति आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, १९-२१४४८-६६). १.पे. नाम. अष्टकर्मनी प्रकृति, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावर्णी; अंति: विषे उद्यम करवो. २. पे. नाम. जीवना ५६३ भेद विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: १४ भेद नारकीना भेद; अंति: ५६३ भेदे जीव जाणवा. ३. पे. नाम. आत्मानी आत्मता, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण. ६५ गुण-आत्मा के, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: सदहो तो पार पामस्यो. ४. पे. नाम. चउवीस दंडक २९ द्वार विचार, पृ. ८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: साते नारकी थइ एक; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२३ अपूर्ण तक है.) ९२७८४. (+) भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, दत्त. मु. भूषण मुनि; गृही. मु. रुपचंद; दत्त. वसरामजी स्वामी; गृही. मु. प्रेमजी (गुरु ग. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वैराग्यसुतक., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ५४२८-३२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४, (वि. १८१६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसारमाहे जे; अंति: सद्दहणा सहित तेहनी, (वि. १८१६, माघ शुक्ल, १५, ले.स्थल. मांडवी बिंदर) ९२७८५ (+) ज्ञानार्णव योगप्रदीप, अपूर्ण, वि. १८२१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, रविवार, जीर्ण, पृ.७७-५७(१ से ५७)=२०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४४४-४६). ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दुस्तरोपि भवार्णवः, सर्ग-४५, (पू.वि. आज्ञाविचय अधिकार-३६ के श्लोक-१९ अपूर्ण से है.) ९२७८६. महावीरदेवनी पट्टपरंपरा, संपूर्ण, वि. १८१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. रासमीनगर, प्रले. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२-१५४३८-४८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनशाशन संप्रति; अंति: श्रीविजयधर्मसूरि, (वि. पाट-६५ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२७८७. (+#) क्षुल्लककुमार व धम्मिल रास, संपूर्ण, वि. १६३३, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, लिख. आ. सोमविमलसूरि (गुरु आ. सौभाग्यहर्षसूरि, तपागच्छ); पठ. श्राव. हरचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., ( २६.५X११, १३x४५-५९). १. पे. नाम क्षुल्लककुमर रिषिराज रास. पू. १अ १०अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: क्षुल्लककुमर रास. क्षुल्लककुमार रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३३, आदि: सकल मंगल सकल मंगलकरण; अंति सोमविमल० नवनिधि पामी, गाथा ३०३, प्र. ४२५. २. पे. नाम. धम्मिल रिषि रास, पृ. १०अ १८आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: धम्मिलरिषि रास. धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९१, आदि सरसति मुझ मति दिओ अंतिः सोमविमल० नवह निधान, गाथा २८२. ९२७८९. सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५४-५१ (१ से ५०, ५३) ३. पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५.५११, ५-६x४३-५०). "" सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-४ 'आयाकिरीयाकूसले यावी' से 'एवं खलु सगता अक्खाए असंजए' पाठ तक है व बीच का पाठ नहीं है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२७९०. जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११ + १ (१०) = १२, दे., (२७१२, ११-१३x२७-३१). जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि हिवे पूर्वोक्त भला, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. दशदिक्पालपूजा विधान अपूर्ण तक लिखा है. वि. यंत्रसहित ) "" ९२७९१. (*) महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०-७ (१ से ४,२५ से २७)=२३, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १०-१४X३४-४० ). महावीर जिन स्तवन- समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -१ की गाथा १६ से है व ढाल-५ की गाथा-२ तक लिखा है.) २३५ महावीरजिन स्तवनसमकितविचारगर्भित स्वोपज्ञ बालावबोध, मु. न्यायसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७७४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १ की गाथा-१६ के बालावबोधपूर्ण उपशमश्रेणि वर्णन अपूर्ण तक है.) ९२७९२. जयानंदकेवलि चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७X१२, १२-१३X३४-३८). जयानंदकेवलि चरित्रं, संबद्ध, पंन्या. पद्मविजय, सं., प+ग., वि. १८५८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ अपूर्ण से सर्ग-२ अपूर्ण तक है.) ९२७९३. (*) तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६, पठ. श्राव. नथुभाई अदेचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X१२, १३X३५-४१). For Private and Personal Use Only तीर्थमाला स्तवन, ग. ज्ञानसागर पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: स्वस्तिश्री सुख संपद; अंति: तीरथमाला जेणे भणी, ढाल - १०. ९२७९४. (*) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, अन्य आ. हीराजी पं. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नवतत्वना, संशोधित, जैदे. (२७४१२, ११४२४-३०). " नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि हवे विवेकि सम्यग्दृष्टिने अंति: तेमाथी मोक्ष जाई. ९२७९५. (#) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. जैवे. (२६.५x१२.५, १३x२८-३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि जीवा वारुं हुं मोरा अंति दयाचंद० आवागमण निवारो, गाथा-५. " Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. प्रथमाध्ययन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगल महिमा; अंति: जैतसी धरमे जै जैकार, गाथा ६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम इंदणरिषजीनी सीज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण खंडणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि ठंडण रिषीजीने वंदणा, अंति जिनहर्ष सुजांण रे, गाथा- १०. ४. पे. नाम. अरणकनी सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-८. ५. पे. नाम. इलाचिपुत्र सिज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामेलापूत्र जाणीय, अंति: लवधविजय गुण गाय, गाथा- ९. ६. पे. नाम. थूलभद्रनी सीज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतडली नवी कीजे रे अति चूनडीर समयसुंदर बहू, गाथा-५. ७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ -३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु; अंति: केसर० दरसण सुखकंद, गाथा-५. ८. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि वींद अधिक प्रभुः अंतिः नेत० रिझ रह्या मनमांह, गाथा ६. ९. पे नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिणेसर; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, गाथा-५. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ,जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहिब, अंति जैतसी०तु ही ज हो देव. १९. पे नाम सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा ५. १२. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि पद्मप्रभुजीसु काजसु अंतिः नेत संदेसो क्यु लहे, गाधा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) १३. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. बखतावर, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल जिनवरतणा रे; अंति: बखता० सफल करो जिनराय, गाथा ५. १४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आ. पाचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सकल मंगल कलागुण नीलो, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ९२७९६. (+#) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १०, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंड है, जैदे., ( २६.५x१२, १५-१६x४४-४८). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाव- शीलविषये स्त्रीशिखामण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि एक अनोपम सीखामण खरी अंतिः उदवस्तन एम निस्तवे, गाथा- १०. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि सुण सुण कंधा रे सीख अंतिः कुमद० सीखामण कहि सहि गाथा - १०. ३. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८३५, आदि पूर्व माहाविदेह अंतिः रायचंद० करु अरदासो जी, गाथा- ११. ४. पे. नाम महावीरजिन छंद-खंभातमंडन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. वीर मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: माहामंगलीक भजो आप; अंति: खंभात श्रीवर्द्धमान, गाथा-११. ५. पे. नाम. ५६ दिक्कुमारी जिनजन्ममहोत्सव स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिन जनम जाणी आवी; अंति: सर्वे बेहु करजोडी, गाथा-११. ६. पे. नाम नेमराजिमती गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. , मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि कहे करजोडी राजुलनारि अति मेयमुनी०तारजो रे लोल, गाथा-१४. ७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे योला चांदलीया; अंति: अजो नीज रूपने रे लोल, गाथा-६. ८. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि समुद्रविजे कुलचंदलो, अंति (-), गाथा- १३. ९. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि वीर कहे गौतम सुणो, अंतिः भाख्या वयण रसाल, गाथा २१. १०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य वि. १८२१ आदि माहरी विनतडी अवधारो अति: अगरचंद० जणपद वचण रसाल, गाथा - २१. ९२७९७ (+०) गिरनार व शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. १४. कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी तीर्थमाला पत्र, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६११.५, १३-१६x२८-३४). १. पे. नाम गीरनारनी तीर्थमाला, पू. १अ ४अ, संपूर्ण, वि. १८७९, भाद्रपद कृष्ण, १ सोमवार, ले. स्थल. पालीताणानगर, प्र. मु. सौभाग्यविजय, अन्य पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीऋषभप्रसादात्. गिरनार तीर्थमाला स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सरसति मात मया करी दी अति न्यथी , मना गुण गाया, गाथा- १०३. २. पे नाम. विमलाचलगीरीराजनी तीर्थमाला, पू. ४आ-१४आ, संपूर्ण वि. १८७९ आश्विन अधिकमास शुक्ल, २. गुरुवार, ले. स्थल. पालीताणानगर, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीऋषभप्रसादात् शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि विमलाचल वाला वारू रे; अति: साजे अमृतरंग सुहंकरू, ढाल-१०, गाथा-१५२. ९२७९८ (+) सूर्ययशा कथा संपूर्ण वि. १९७१ भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ३ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, पाली मारवाड, प्रले. अंगादत्त दवे पठ. मु. मंगलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२८४१२.५, १०४५४). सूर्ययशा चरित्र, सं., पद्य, आदि: ततः श्रीमान्सूर्ययशा; अंतिः सुखविलसितानंदहेतुः सकामम्, लोक-१५६. ९२७९९. छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी. छआरा., जैये. (२६.५४१२, १२-१३४४२-४४)६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: ते जीव सुखि थासे. ९२८००. पट्यांधव देवकीनंदन रास व पंचकल्याणक तप विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: षट्बांधव., जैदे., ( २६१२.५, १५-१९३७-४२). १. पे नाम षट्यांधव देवकीनंदन रास, पृ. १अ ९अ, संपूर्ण. देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि नेमजीणंद समोसर्या अंतिः तो तरसो भवजलपार रे, डाल-१९, गाथा-३०७. २. पे. नाम. पंचकल्याणक तप विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा. मा.गु., सं., गद्य, आदि आसोज सुदि १५ नमिचवन, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. "चंद्रप्रभुदीक्षा" तक लिखा है.) २३७ For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२८०१. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. आसकरण; पठ. मु. छगनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३-५४३३-३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं __ प्रपद्यंते, श्लोक-४४, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण केता मंगलिक; अंति: प्रद्यंते क०पामे, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१५ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व ३१ अपूर्ण से ४० तक टबार्थ नहीं लिखा है.) ९२८०२. पाशाकेवली व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पासाकेवली, दे., (२६४११.५, १५४४४-४५). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: निगीर्णयं सत्यापासककेवली, श्लोक-१८०. २. पे. नाम, विष उतारने का मंत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण. औषध-यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२८०३. (+) खंडाजोयण, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १४४३६). खंडाजोयन, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: जंबूद्वीपरो किंचित्; अंति: सलीला द्वार समाप्त. ९२८०४. नंदमणियार चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. झवेरचंद गांधी, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४११.५, १२x२८-३३). नंदमणियार चौढालिया, मा.ग., पद्य, वि. १८३४, आदि: ज्ञातार तेरवा अध्ययन; अंति: नंदणरो अधिकार ए, ढाल-४. ९२८०५ (+) व्याख्यान श्लोक व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १३४३८-४०). १.पे. नाम. व्याख्यान श्लोक संग्रह, पृ.१आ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८२६, चैत्र कृष्ण, २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. पं. देवदत, प्र.ले.पु. सामान्य. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: करतां मंगलीकमाला संपजै, (पूर्ण, प.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: विभुति पटलं जस्य पस्यतोपि; अंति: ग्रहणसंख्या न विद्यत्ये. ९२८०६. श्रावक आराधना का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रावकाराधना., दे., (२५.५४११.५, १३४३७-४२). श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१५, आदि: श्रीसर्वज्ञपदं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-४ तक है.) ९२८०७. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५-६४(१ से ३८,४१,४५ से ५९,६५,६७,६९ से ७४,७६ से ७७)=२१, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्र.वि. हुंडी:सूत्रसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०-४८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००, (पृ.वि. प्रारंभ एवं बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२८०८. विक्रमादित्य चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१०, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २०-७(१ से २,६ से ८,१५ से १६)=१३, ले.स्थल. फलवा, प्रले. पं. माणिकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विक्रमा०., जैदे., (२५.५४११, १४४४२-४६). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-५, गाथा-१९ अपूर्ण तक, ढाल-१०, गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-२०, गाथा-१ अपूर्ण तक व ढाल-२१, गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ९२८०९. योगशास्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पठ. श्रावि. मदी (माता श्राव. रूपा श्रीमाल); गुपि. श्राव. रूपा श्रीमाल; अन्य. वा. कीयाक; सा. पुण्यश्रीजी; आ. सुमतिरत्नसूरि (पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११, ११४३४). For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २३९ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादिवैर; अंति: ध्यातोद्यतो भवेत, प्रकाश-१२, श्लोक-१०००. ९२८१३. (+) मलयासुंदरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६४, कार्तिक कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ६४, ले.स्थल. पाली, प्रले. अंबादत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मलयसुं०च०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२९x१२.५, १४४४८-५५). मलयासुंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: चतुरंगो जयत्यर्हन; अंति: प्यूचे मयेदं तथा, प्रस्ताव-४, ग्रं. २४३०. ९२८१४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६७५, श्रावण शुक्ल, १२, जीर्ण, पृ. १४९-१(१११)=१४८, ले.स्थल. कुतडा, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ५-२०४३८-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-२९ पाठांश-"अणतक सिणपडिपुण० वितिमिरं" से अध्ययन-३०, गाथा-४ अपूर्ण तक उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: जे निर्वाणप्राप्त. ९२८१५. (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०६, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:शीलो०बाला०., संशोधित., दे., (२६.५४११, १५४४०-४३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारिं नेमि; अंति: आरोहिय लहइ बोहिसूयं, कथा-४३, गाथा-११५, संपूर्ण. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: सकल सुखनइ भाजनइ हुई, ग्रं. ६२५०, संपूर्ण. ९२८१६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०५-१(२)=१०४, प्रले. सा. दीपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूयग०सू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १००००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ६४३५-३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. बीच के कुछेक पाठांश नहीं है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिष्य प्रतै कहई छई, प्रतिपूर्ण. ९२८१७. (+) सम्यक्त्व कौमुदी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११, ले.स्थल. राजपुर,जैसलमेरुदुर्ग, प्रले. पं. मनरूपविजयजी म. सा. (गुरु मु. पद्मविजय); गुपि. मु. पद्मविजय (गुरु पंडित. खुशालविजय); पंडित. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ६४३४). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: स्वर्गमश्नुते, पद-४४४, ग्रं. १६७५, (वि. १८५६, फाल्गुन शुक्ल, १५, मंगलवार) सम्यक्त्वकौमदी-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान चतुर; अंति: ते नर मोक्षसुख पामे, (वि. १८५६, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार) ९२८१८. (+) शत्रुजय माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९०-१(१)=१८९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८८०४, जैदे., (२६४१०.५, १६४५४-५६). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: सिद्धो दयाद्रि स्थितः, सर्ग-१४, ग्रं. १००००, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१५ अपूर्ण से है., वि. अंत में विवरण दिये गए हैं.) ९२८१९ (#) षड्दर्शनसमुच्चय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-६(१ से ६)=९, प्रले. श्राव. सरस्वति दत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ५४२०). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७, (पू.वि. श्लोक-२७ से है.) For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२८२३. () स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १८९८ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. गोत्रका, प्र.वि. हुंडी:पूजापत्र. सुमतिनाथ प्रशादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२, १२४३५-३९). स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार सार; अंति: ध्यांने चिंतवी०, (वि. अंतिमवाक्य अपूर्ण एवं अस्पष्ट है.) ९२८२५ (+) ज्योतिषसार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११, १०४३०-३४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: पडिवा छठि इग्यारसि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३८० तक लिखा है.) ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वाश्रीमद्गुरुपादपद्ममा; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९२८२८. पार्श्वनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७७-२(१ से २)=७५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पार्श्वचरित्रं., जैदे., (२८x१२, १६४५०-५२). पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., गद्य, वि. १६५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ अपूर्ण से सर्ग-६ अपूर्ण तक ९२८३० (#) उत्तराध्ययनसूत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १५८१, कार्तिक कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ६९-८(२८ से ३५)=६१, कुल पे. २, ले.स्थल. विहारनगर, राज्यकाल रिया खान; लिख. श्राव. सहसकर्ण चौधरी (पिता श्राव. अंबा चौधरी); गुपि. श्राव. अंबा चौधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१०.५, ९x४७-५५). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र, पृ.१आ-६९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:उत्तरासूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-१७, गाथा-५१ अपूर्ण से अध्ययन-१८, गाथा-१७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६९अ, संपूर्ण. __प्रा.,सं., पद्य, आदि: णानिचेव वहुपाणि; अंति: पार्वती परमेश्वरौ, श्लोक-२. ९२८३१. पाक्षिकसूत्र व पक्खिखामणासूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, दे., (२७.५४११, ११४५७). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: अस्सायारभत्ती. २. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: सत्थार पारगा होअ, आलाप-४. ९२८३२. (+) नंदीसूत्र व लघुनंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७०२, आषाढ़ कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३३-४(२ से ५)=२९, कुल पे. २, ले.स्थल. हंसारकोट, प्रले. मु. जयमल्लजी ऋषि (गुरु मु. रविदीपकजी ऋषि); गुपि. मु. रविदीपकजी ऋषि (गुरु मु. ड्रगरजी ऋषि); मु. ड्रगरजी ऋषि (गुरु मु. जेठाजी ऋषि); मु. जेठाजी ऋषि (गुरु मु. नारदजी ऋषि); मु. नारदजी ऋषि (गुरु मु. लालजी ऋषि); मु. लालजी ऋषि (गुरु आ. जीवजी); आ. जीवजी, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, जैदे., (२७४११, ७४४८-५४). १. पे. नाम. नंदीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: से त्तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से "एकाउसमुच्चहमाणे" तक का पाठ नहीं है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: विषय कषायादिकना जीपण; अंति: का परोक्षज्ञान. २. पे. नाम, लघुनंदीसूत्र सह बालावबोध, पृ. २९आ-३३अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-हिस्सा लघुनंदीसूत्र-अनुज्ञानंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: से किं तं अणुण्णा; अंति: वीसमणुण्णाए णामाई, सूत्र-३०. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २४१ नंदीसूत्र का हिस्सा लघुनंदीसूत्र-अनुज्ञानंदीसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: से किंतं अणुना २ छ; अंति: र्थोभयवित् गणवच्छेयः. ९२८३३. जंबूस्वामी सज्झाय, पुण्य प्रकाश व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३०, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, ले.स्थल, बजांणानगर, प्रले. श्राव. हरजीवन गौराजी; श्राव. वीरचंद प्रेमचंद ठाकोर; अन्य. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४११.५, ७४२१). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ____ आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने विनवू; अंति: जंबू नामें जय जय कार, गाथा-१५. २. पे. नाम. पुण्य प्रकाश, पृ. ३अ-१७अ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०५. ३. पे. नाम. करकंडू दृष्टांत श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दधिवाहनपत्रेण नामे; अंति: चंडालो भ्रामणोकृत, श्लोक-१. ९२८३४. (+#) कर्पूरप्रकर सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-३(१,११,२०)=१९, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८-२०४४७-६२). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३ अपूर्ण से ४१ तक, ४७ अपूर्ण से ८० अपूर्ण तक व ८२ अपूर्ण से ८९ अपूर्ण तक है.) कर्पूरप्रकर-बालावबोध+कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ९२८३५. (+) समाधिशतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९८-१९०(१ से १९०)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ९-११४३७). समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई.५वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. श्लोक-९८ से १०० तक है.) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२८३६. (+) १४ गुणस्थानकादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७१६, माघ शुक्ल, ९, मंगलवार, जीर्ण, पृ. १९-३(१ से ३)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ले.स्थल. डाहेरीपुर, प्रले. श्राव. जगन्नाथ; अन्य. आ. भूषण; श्राव. गोपाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोपाल शाह की प्रत पर से प्रतिलिपि की गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x११,११४३८). विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मिश्रगुणस्थान विचार से जीव विचार अपूर्ण तक है.) ९२८३७. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२९, भाद्रपद कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. बजांणा, प्रले. हरजीवन प्रेमचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११, ७४२०-२६). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं सत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ९२८३८. (+) पाडिवाल गच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. जाहडानगर, प्र.वि. हुंडी:पडिवालगच्छ पट्टावली. सांतिनाथ प्रसाद., संशोधित., दे., (२७४११.५, ११४४४-४७). पट्टावली-पाडिवाल गच्छ, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० महावीरे; अंति: प्रभुचंद्र० वर्तते. ९२८३९. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२९, आषाढ़ कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. प्रेमविजय; पठ. श्रावि. अंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, ८x१९). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ९२८४०. जिनप्रतिमा आलापक, संपूर्ण, वि. १७३१, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ.६, जैदे., (२६.५४११, ८x४४-५२). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समणेणं; अंति: वोदाणे८ अकिरिया९ सिद्धी१०. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२८४१ (+४) कल्पसूत्र सह टबार्थ व अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. २१३-५ (१ से २,४५ से ४७) = २०८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे, (२५X११, ६४३२-४६). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., "जितादिद्वाविंशतितीर्थंकर" पाठ से "बिहाणेणं सव्र्व्वजावनियगं" पाठ तक है व बीच का पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "हिवे अजितनाथची लेई" पाठ से "वीर वलय" तक का पाठ लिखा है.) कल्पसूत्र- अवचूरि, सं. गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एगालोए देवसंतिवाया" पाठ से "नामकर्मदूरीकृतां जन्म समये एवं पाठ तक है.) ९२८४२. (+) सूक्तमाला सह टबार्थ व कथा - सर्ग १, संपूर्ण, वि. १८३२, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १५४, प्र. वि. अंत में पर "सूरेंद्रसागरजीरा भंडाररी धर्मविजे पासेरी" ऐसा उल्लिखित है. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, जैदे.. , (२५.५X१०.५, १५४३३-४१). " " सूक्तमाला मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद अंति: (-), प्रतिपूर्ण सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८२७, आदि: सघलि पुण्य रुप वेलनी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु. सं. प+ग. वि. १८३०, आदि: प्रणमी सद्गुरु शारदा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण ९२८४३. कल्पसूत्र सह टवार्थ व वालावबोध- व्याख्यान १-८, अपूर्ण वि. १८८८ श्रावण कृष्ण, ८. श्रेष्ठ, पृ. १४१-१० (१ से १०)=१३१, प्रले. पं. प्रतापविजय; अन्य पं. हिम्मतविजय गणि पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१०, १०-१३४३२-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे अति: (-). ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. नागकेतु कक्षा अपूर्ण से है.) ९२८४५. ऋषिमंडल प्रकरण सह कथार्णवांक वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०३, प्र. वि. हुंडी : ऋषिमंडल वृत्ति., कुल ग्रं. १०५४०, जैवे. (२६.५४११, १५४३५-५५). " ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अति: धम्मघोस० सिद्धिसुह, 1 "" गाथा - २०९. ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदि: (१) भावतोभाराजनषदांवार्षिके, (२) वयं ऋषभादिजिनवरेंद्राणां; अंति: श्रमणिस्तथान्यैः. ९२८४७ (+) पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. १७९८ श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६९ ले स्थल उदैपुर, गृही. हमीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x११, १७-२१४६१-७१). पार्श्वनाथ चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै, अंति: (१)शुभभावलक्ष्मीम्, (२) संतत वाच्य मानम्, सर्ग - ८. ९२८४८ (+) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११७, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ५००२ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२८x१२, १६४३२-४७) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि सं., पद्य वि. १३०७ आदि श्रेयोरत्नाकरोद्भूता अति शांति स करोतु शांति, प्रस्ताव- ६, श्लोक - ४८९०, ग्रं. ५०००. ९२८५० (+) बृहत्संग्रहणी सह टवार्थ व पल्योपम सागरोपम, संपूर्ण वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पू. ४४, कुल पे. २, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. खुषालचंद्र (गुरु मु. रूप ऋषि, गुजराती लुकागच्छ); गुपि. मु. रूप ऋषि (गुरु मु. कृष्ण ऋषि, गुजराती लुकागच्छ): मु. कृष्ण ऋषि (गुरु मु. प्रेमचंद ऋषि, गुजराती लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६.५११, ५४३२-३८). , १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, पृ. १आ-४४आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१०. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: ध्यान भेदनो आलंबन०. २.पे. नाम, पल्योपम सागरोपम, पृ. ४४आ, संपूर्ण. पल्योपम-सागरोपम भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे उद्धारपल्योपम १; अंति: सागरोपम कार्य जाणवो. ९२८५१. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१२-७३२(१ से ७२९,७५२,८०२ से ८०३)=८०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:संग्रह०टी०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७-१८४५२-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ से ३६६ तक बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसरि , सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९२८५२ (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२०, प्र.वि. हुंडी:विपाक, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०, ५४३२-३५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सुहविवागे, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चौथो आरा; अंति: खलू जंबू श्रमण यावत्. ९२८५३. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५५-५३(१,६ से १२,२१ से २६,३३,६८ से १०४,१५४)=१०२, प्र.वि. कुल ग्रं.६६४४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२५४१०.५, १५४५२-५६). वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: (-); अंति: जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४४, (प.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९२८५४. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४१०.५, १२४३१-३५). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं च; अंति: (१)सिद्धचक्रमहिमा जातः, (२)रचितं श्रीपालचरितं, प्रस्ताव-४. ९२८५५. (#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १६२६, चैत्र कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११९-३(१,९ से १०)=११६, प्रले. मु. पाता (गुरु मु. रत्नमेरु, बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ); मु. परमानंद; गुपि. मु. रत्नमेरु (गुरु मु. अमरकीर्ति, बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ); मु. अमरकीर्ति (गुरु मु. विनयमेरु, बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ); मु. विनयमेरु (गुरु आ. मणिचंदसूरि, बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ); आ. मणिचंदसूरि (बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शीलोपबा०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, जैदे., (२६४१०, १५४५८-६२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११५, (पू.वि. गाथा-५ से है व बीच की गाथा-१६ से १८ नहीं है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदिः (-); अंति: परंपराइ मोक्षफल पणि पामइ, ग्रं. ६२५०, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सकल सुखमइ भाजनि हुई, (पू.वि. गुणसुंदरी कथा से है एवं बीच के कुछ कथांश नहीं है.) ९२८५६. (+) प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०५+१(९८)=१०६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९-११४२८-४३). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: सुया तं विसोहंतु, द्वार-२७६, गाथा-१५९९, ग्रं.२०००. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२८५८. (*) उपदेशमाला सह टवार्थ व बालावबोध- गाथा १-१२०, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७५, पठ. पं. तिलोकसीभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४१०.५, १०-१३४३२-३५). " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण उपदेशमाला - बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु, गद्य. वि. १७१३, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं ( २ ) नमिऊण क० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार करी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिन अति (-), प्रतिपूर्ण, " ९२८५९. (*) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२०, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०१, ले. स्थल. मोरबा, अन्य विठ्ठल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६४१०.५, ७४२७-३२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर, अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय- १०, गाथा - १२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामि; अंतिः ते केहवउ सुप्पणि०. ९२८६० () आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति की अवचूर्णि अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६७-३ (६० से ६२ ) =६४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X१०.५, १९-२३X६०-७८). आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: प्रारभ्यते श्री आवश्य; अंतिः (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., त्रिविध भावप्रतिक्रमण वर्णन अपूर्ण तक है.) ९२८६१ (+) औपपातिकसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६८६, कार्तिक कृष्ण, ४ शनिवार, मध्यम, पृ. ५७, प्र. वि. हुंडी : उपाईवृत्तिः, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., ( २६११, १८x४२-५३). , औपपातिकसूत्र टीका, आ. अभवदेवसूरि, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य अति: व्यक्तार्थे एवेति नं. ३१२५. ९२८६२. (*) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-९ (१) =७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२५५११, १०x३३). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. अध्याय १ सूत्र १३ अपूर्ण से अध्याय ८ तक है.) ९२८६३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५६-४० (१ से २४, २९ से ३२,३५ से ३६,४३ से ४४, ४७ से ५४) = १६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे. (२५.५४११.५, ६३७). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-) अति (-), (पृ.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं. वि. मात्र स्वप्नशास्त्र . "" वर्णन एवं महावीरजिन जन्माभिषेक बीच में वर्णित है . ) ९२८६४ (१) सिंदूरप्रकर व सुभाषितानि अपूर्ण, वि. १७९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १ मध्यम, पृ. १२-६ (१ से ५,१०) =६, कुल पे. २, ले.स्थल. आसोपनगर, प्रले. मु. जगरूपविजय (गुरु मु. राजविजय); गुपि. मु. राजविजय (गुरु मु. रूपविजय); मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ११४३५). १. पे नाम. सिंदूरप्रकर. पू. ६अ ११आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंतिः सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक- ९८, (पू.वि. श्लोक-४५ अपूर्ण से ८४ अपूर्ण तक व ९३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. लोकसंग्रह- सुभाषितानि पृ. १९आ- १२अ, संपूर्ण. जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: हर्षेशोकभयं जये रिपु; अंति: बलिना पुत्रेणया निर्भया, श्लोक ७. ९२८६५. (+) आगमअट्ठोत्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५१, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले. स्थल. ऐलाणागाम, प्रले. मु. तिलोकचंद ऋषि (लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. लो. (२०१) कटी कूबड कर जेगडी, वे., (२८.५X१२, १४४४९-५६). आगमअट्ठोत्तरी, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि सुविशाललोयणदलं विसुद, अंति: गुणिआ अप्पेइ बोहिफलं, गाथा - ११४. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २४५ आगमअट्ठोत्तरी-बालावबोध, मु. धनविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (१)बोध बीज प्रते पांमे, (२)मात्र संपूर्ण. ९२८६६. (+) उपदेशमाला सह विशेषवृत्ति, अपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. २८८-४१(१ से २,४८ से ७४,९६ से १०७)=२४७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४११, १२-१३४३८-४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ से १५३ तक है.) उपदेशमाला-उपदेशकर्णिका वृत्ति, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १२९९, आदि: (-); अंति: (-). ९२८६७. योगचिंतामणि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६, दे., (२८x११, ९x४३-४८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), अध्याय-७, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-४ घृताधिकार प्रारंभ तक लिखा है.) ९२८६८ (+) श्रुतबोध सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १५४३८-५०). श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि: छंदसां लक्षणं येन; अंति: स्रग्धरा सा प्रसिद्धा, श्लोक-४१. श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्सारस्वतं धाम नत्वा; अंति: मकरोद् बालावबोधाय ९२८६९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. २७२, प्रले. पं. प्रमोदविजय (गुरु ग. जिनविजय); गुपि. ग. जिनविजय (गुरु मु. नित्यविजय); मु. नित्यविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसरि; पठ. पं. मुनिविजय (गुरु आ. विजयक्षमासूरि); गुपि. आ. विजयक्षमासूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१०.५, ५-१६४३८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं.२०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: एह वचन भाष्यकारनउ. उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै त्रीजी गाथा उपर; अंति: जाई पराजिऊखलु. ९२८७१ (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३०-३४). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-९९ तक लिखा है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहेता नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा समयनइ विषय; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९२८७२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५८, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मथेन विमला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराद्धे०, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३५-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. ९२८७३. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५०-१७(११७ से १३३)=१३३, प्र.वि. हुंडी:जंबूपन्नत्ती, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४१५४, जैदे., (२७४११,१२-१३४३६-३९). जंबद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६, (पू.वि. "अप्पेमहता" पाठ से "गोयमा पणयाली" पाठ तक नहीं है.) ९२८७४ (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०८-२३(१ से २३)=८५, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययन, संशोधित., जैदे., (२७.५४११, ६४५२). For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६, गाथा-१० अपूर्ण से अध्ययन-३४, गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ९२८७६. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ६६-५(१ से २,५८ से ६०)=६१, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४२६-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी का देवानंदा की कुक्षी में च्यवन प्रसंग अपूर्ण से स्थविरावली अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९२८८२ (+) आलाप पद्धति व नयचक्र की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्रले. मु. मानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५-१६४५१-५९). १.पे. नाम. आलाप पद्धति, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार-१९, सूत्र-२२८, (वि. १७९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, ले.स्थल. जेसलमेरदुर्ग, प्रले. मु. मानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. नयचक्र की भाषावचनिका, पृ. ६अ, संपूर्ण. नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहि., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदो श्रीजिनके वचन; अंति: हेमराज० वचन विलास, (वि. १७९१, पौष शुक्ल, १) ९२८८३. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन, ४, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. मानसंघ (गुरु मु. कल्याणजी); गुपि. मु. कल्याणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६४५२-५८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीवो सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चतुरगति रुप संसारने; अंति: अवतरिवउ नहीं. ९२८८४ (+) चौवीस दंडक उनतीस द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४०-४७). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: (-), (पू.वि. २८वें द्वार विचार तक है.) ९२८८५. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. विसनगर, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु ग. रत्नविजय); गुपि. ग. रत्नविजय (गुरु ग. अमृतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., जैदे., (२६४११, ४४२६-३४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व जे प्राण धरे; अंति: हजी सिद्धि गयो छे. ९२८८६. लघुदंडकना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. हुंडी:डंडक., दे., (२६.५४११, १२४३७-४२). दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर अवघेणा संघेण; अंति: अनंत सुख सेय सिद्ध थाइ. ९२८८७. चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:शोभनस्तुतिवृत्ति., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४६-५५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९५ - महावीरजिन स्तुतिगत भारती स्तुति तक है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, जै.क. धनपाल, सं., गद्य, वि. ११वी, आदि: आसीद् द्विजन्माखिलमध; अंति: (-). ९२८८९ (+) गणरत्नाकर छंद व नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्रले.पं. लक्ष्मीमाणिक्य (गुरु पं. लक्ष्मीसुंदर); गुपि.पं. लक्ष्मीसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २१४४८-५२). १. पे. नाम. गुणरत्नाकर छंद, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. म. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४. २. पे. नाम, नेमिजिन रास, पृ. ११आ-१६अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: स्मृत्वा सारदां नेमि; अंति: जय जगजीवन कल्याणकर, खंड-२. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २४७ ९२८९० (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेशनापाना., संशोधित., दे., (२७.५४११, १९४३२). औपदेशिक सज्झाय-मनुष्य जन्म, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा मनुख जन्म; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१८ अपूर्ण तक है.) ९२८९१ (+) अमरसेनवयरसेन आख्यानक, संपूर्ण, वि. १६९७, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. अहमदपुर, प्रले. मु. भक्तिविजय (गुरु ग. धनविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. धनविजय (गुरु मु. नंदिविजय, तपागच्छ); मु. नंदिविजय (गुरु ग. शुभविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अ०.व०.रास., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४४-४६). अमरसेनवयरसेन आख्यानक, ग. संघविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसिद्धि सुख संपदा; अंति: सकल संघ मंगल करु, ढाल-२८. ९२८९२. (+) नवतत्त्व सूत्र, संपूर्ण, वि. १८०७, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वाव्यनगर, पठ. श्रावि. मानुबाई; अन्य पं. अमृत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४२६-२९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एयं बंध ठिईमाणं, गाथा-५५. ९२८९३.(+) विचारामृत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१५(१३ से २७)=२३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५२-५४). विचारामतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., प+ग., वि. १४७३, आदि: श्रीवर्द्धमानसूर्यो; अंति: रजोहरण विचारः, संपूर्ण. ९२८९४. (4) षष्टशत प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १८४३८-४२). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१. षष्टिशतक प्रकरण-टीका, मु. धवलचंद्र-शिष्य, सं., प+ग., आदि: इह प्राप्तसकलमानुष्य; अंति: (अपठनीय), श्लोक-१६१, (वि. अंतिम वाक्य वाला भाग खंडित है.) ९२८९५ (+) भगवतीसूत्र-शतक ८, उद्देशक ९, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२-१४४३४-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९२८९६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्याणल्टी, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ८-९४३२-३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५ तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: तस्य तीर्थेश्वरस्य; अंति: (-). ९२८९७. विविध बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:बोलारोपत्र., दे., (२६४११.५, १६-२४४३६-४४). १.पे. नाम. पंद्रह योग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: १५ तेजस कार्मण. २. पे. नाम, चौदह गुणस्थानक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १: अंति: सयोगी १३ अयोगी १४. ३. पे. नाम. बारह उपयोग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान१ श्रुतज्ञान२; अंति: १२ केवलदर्शन. ४. पे. नाम. बोलविचार संग्रह, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जिणा जिणंनामाठवणजिणा; अंति: ३३ सागरोपम पूरो आऊखो. ९२८९८. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, ले.स्थल, जालंधरदुर्ग, प्रले. मु. खूबचंद (गुरु मु. मोतीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३३-३९). For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: रोहिरसो सुविशेष एव, विलास-८, श्लोक-३२५, (वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में कर्ता हेतु हेमरुचि का उल्लेख मिलता है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदा प्रतै हीय; अंति: कह्यौ भले वीसेषे करी. २. पे. नाम, प्रदर रोग, मुत्र रोगादि औषध संग्रह, पृ. २३आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गुंदीरा पांन मिश्री; अंति: पगै लगावीजै सुहाला रहै, गाथा-६. ९२९००. अजितशांति स्तवन का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५४१०.५, १३-१५४३८-४४). अजितशांति स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अजिअं अजितनाथ किसउ; अंति: आयरं आदरं कुणह करउ, (वि. मूल का मात्र प्रतिक पाठ है.) ९२९०१ (2) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११-३(१,९ से १०)=८, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:नवतत्व., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४११-५२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ से ३८ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९२९०२. आलोचना तपोदान संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:आलोयणा पत्र., जैदे., (२७.५४११.५, १२-१३४४३-६०). आलोयणा तपोदान संग्रह-खरतरगच्छीय, आ. भुवनरत्नसूरि, प्रा.,सं., प+ग., वि. १५वी, आदि: नाम लिवियावत्ती ___ दाणं विस; अंति: चाधिकोप्यवधियः. ९२९०३. नियमपालने रूपसेनराज कथा, अपूर्ण, वि. १६४३, कार्तिक शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. २६-१०(१२ से २१)=१६, ले.स्थल. उडाग्राम, प्रले. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रूपसेन., जैदे., (२६४११.५, १६४३७-४०). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., प+ग., आदि: श्रीमंतं विदुरं शांतं; अंति: सुकृताय कृता __ कथा, (पू.वि. उदाहरण श्लोक-१२२ अपूर्ण से श्लोक-१३० तक नहीं है.) ९२९०४. भक्तामर स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५९६, माघ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. कइरली, प्रले. ग. सुधाहंस (गुरु आ. जिनकीर्तिसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. जिनकीर्तिसूरि (गुरु आ. सोमसुंदरसूरि, तपागच्छ); राज्ये आ. सोमसुंदरसूरि (गुरु आ. देवेंद्रसूरि, तपागच्छ); अन्य. मु. गुलाबविजय (गुरु मु. चंद्रविजय); गुपि. मु. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने ले.सं. हेतु ९६ लिखा है. लेखक का समय व इनके लिखावट से ले.सं.१५९६ होने की संभावना है., जैदे., (२६.५४११.५, १९-२६५५०-८५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-गणाकरीय टीका, आ. गणाकरसरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: पमतिः० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२. ९२९०५ (+) अंबडवीराधिवीर कथानक, संपूर्ण, वि. १६८५, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. पं. जयसुंदर (परंपरा आ. मेघरत्नसूरि, आगमगच्छ); गुपि. आ. मेघरत्नसूरि (गुरु आ. धर्मरत्नसूरि, आगमगच्छ); आ. धर्मरत्नसूरि (आगमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंबड चरीत्र., संशोधित., जैदे., (२७४११, १४-१५४४५-५५). अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: धर्मात् संपद्यते; अंति: लेखकानाम्. ९२९०६. पिंडविशुद्धि प्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, कुल पे. ५, अन्य. ग. उदयसौभाग्य (गुरु ग. उदयसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १९-२२४६४-८०). १. पे. नाम, पिंडविशुद्धि प्रकरण, प. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु र गाथा-१०३. २. पे. नाम. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमेऊण तिलोअभाणु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२० अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. विवेगमंजरी, प.५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org २४९ विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८ आदि (-); अंति: आसडेण० दिणेस वरिसंमि गाथा - १४४, (पू.वि. गाथा- १३४ अपूर्ण से है . ) ४. पे नाम, ऋषिमंडल स्तव, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी आदि भक्तिब्भरनमिरसुरवर अति: धम्मघोस० सिद्धिसुह, " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा २०८. ५. पे. नाम. धर्मरत्न प्रकरण, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. १२७१, आदि नमिऊण सयलगुणरयणकुलर; अंति निव्वाणसुह० पावेंति, गावा- १४५. ९२९०७. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ सह पारमानंदी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., ( २६.५X११, ९-११४३०-४० ). कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंकं वीरं; अंति: कम्मविवागं च सो अइरा, गाथा - १६८. कर्मविषाक प्राचीन कर्मग्रंथ पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., गद्य, आदि निःशेषकर्मोदयमेघजालमुक्तो; अंति: द्वाविंशत्यधिका भवेत्, ग्रं. ९२२. ९२९०८. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. २५००, ९-१४४३४०५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्किहुं, अंतिः कहणायवि आलणा संघे, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका २.) " जैवे. (२६११. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इहार्थतः श्रीमहावीरप; अंति: दसमे समाणिअं एसभिक्खुत्ति. ', ९२९०९ (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. ५०-३७ (१ से ३६, ३८) = १३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५, ९४२२-३२). " भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. शतक-२ उद्देश-५ अपूर्ण से शतक-११, . उद्देश - ११ अपूर्ण तक है.) ९२९१०. (+) कर्पूरप्रकर सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. प्रमोदहंस (गुरु ग. संयमविशाल, तपागच्छ); गुप. ग. संयमविशाल (गुरु आ हेमबिमलसूरि, तपागच्छ); राज्ये आ. हेमविमलसूरि (तपागच्छ); पठ. सा. विवेकचूला, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै.. (२६.५४११, ९-१२२१-४०). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रकर्त्रा, गाथा-१७४, संपूर्ण. कर्पूरप्रकर- अवचूरि, सं., गद्य, आदि व्याख्या लक्ष्यो व्याख्या अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. श्लोक-१६५ की अवचूरि तक लिखा है.) ९२९११. (+#) आवश्यकसूत्र की टीका - अध्ययन-२-३, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६.५४११, १५X४६-५४). आवश्यक सूत्र - शिष्यहिता टीका #. आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-३ अपूर्ण की नियुक्तिगाथा- ११६० तक है. वि. मूल, नियुक्ति व भाष्य का मात्र प्रतीक पाठ है.) ९२९१२. गणधरादिकृत शास्त्रप्रमाण विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ११, जैदे. (२६.५X११, १८-२०६५). गणधरादिकृत शास्त्रप्रमाण विचार, प्रा.सं. गद्य, आदिः यदि गणधरादिकृतमेव प्रमाण अति: पडिवन्नो मणोसुहवा " " " For Private and Personal Use Only वयसुहया. ९२९१३. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे. (२६.५४११, ११-१२४३६-५०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराचलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भव्यां० हे नाभिनंदन अंति भव्वलोकमवेति संबंधः, Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२९१४. पंदरतिथि स्तुति व सिधचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. करमावस, प्रले. पुनमचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५.५४११, १०४२८-३४). १. पे. नाम. पंदरतिथि स्तुति, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: नयविमल नाम तणो गुणी, स्तुति-१६, गाथा-६४. २. पे. नाम, सिधचक्रनी स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनेसर भुवन दिने; अंति: जिनमहिमा छाजे जी, गाथा-४. ९२९१५ (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९४-८७(१ से ८७)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सूग०सू०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४१-४७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ अपूर्ण से अध्ययन-१४ अपूर्ण तक है.) ९२९१६ (+) चंद्रलेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-८(१ से ८)=५, प्र.वि. हुंडी:चद्रलेहा., संशोधित., जैदे., (२५४११, १९४५०). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१९ की गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है व ढाल-२९ की गाथा-१२ तक लिखा है.) ९२९१७. वीर स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. लक्ष्मीसुंदर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४४०-४७). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कवीनां स्थितिरीयं; अंति: दृष्टि प्रथयं हे दयाला. ९२९१८. (+) हैमधातुपाठ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ.७-१(४)=६, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४-१७४४२-५२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पां पाने; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्, (पू.वि. 'वृत्तड्वर्त्तने' पाठ से 'कुधंचकोपे' तक नहीं है.) धातुपारायण-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: इह पूर्वाचार्य प्रसिद्धाः; अंति: धातूनां ___काचिदवचूरि. ९२९१९. पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५५१, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. लूणहराग्राम, प्रले. ग. भुवनसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ७४३५-४५). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-६९. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर प्रति; अंति: शाश्वता सुख पामइ. ९२९२०. धातुपारायण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४+१(२२)=३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १८४४६-५०). धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अहँ भू सत्तायां; अंति: (-), (पू.वि. धातु 'जुतृङ् भासने' तक है.) धातुपारायण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (१)श्रीसिद्धहेमचंद्रव्याकरण, (२)इह तावत् पदपदार्थज्ञान; अंति: (-). ९२९२१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६४-१(९२*)=१६३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ६x२८-४०). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २५१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्यनइ; अंति: इति समाधौ ब्रवीमि, संपूर्ण. ९२९२२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२+२(२३,३६)=१०४, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ४-११४१७-७०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो० तेणं कालेणं तेण; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६, (पठ. मु. जयसोम (गुरु मु. यशसोम, श्रीचंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (१)श्रुतस्कंधस्याष्टममध्ययन, (२)कल्पकिरणावलिनामवृत्ति, (वि. १७२३, आषाढ़ शुक्ल, १३, रविवार, ले.स्थल. शुद्धदंति, प्रले. मु. कल्याणसोम (गुरु मु. जयसोम, श्रीचंद्रगच्छ); गुपि. मु. जयसोम (गुरु मु. यशसोम, श्रीचंद्रगच्छ); मु. यशसोम (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं) ९२९२३. प्रवचनपरीक्षा सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४२-१२६(१ से १२६)=११६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, ३४४४-५०). प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: (-); अंति 1: (-), (पू.वि. विश्राम-४, गाथा-९८ अपूर्ण से विश्राम-१०, गाथा-६० अपूर्ण तक है.) प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२९, आदि: (-); अंति: (-). ९२९२४ (+#) सारस्वत व्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५१-१३(१ से १३)=१३८, ले.स्थल. बहलवा, प्रले. पं. जससोममुनि (गुरु पं. कनकप्रिय गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. कनकप्रिय गणि (गुरु ग. लक्ष्मीसमुद्र, खरतरगच्छ); ग. लक्ष्मीसमुद्र (गुरु वा. सोमहर्ष, खरतरगच्छ); वा. सोमहर्ष (गुरु ग. लक्ष्मीकीर्ति, खरतरगच्छ); पठ. मु. खुशालचंद्र (गुरु पं. माणिक्यवल्लभ, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. माणिक्यवल्लभ (गुरु ग. जशसोम, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्तिपत्रम्. श्रीगवडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५-१७७५५). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), वृत्ति-३, ग्रं.७५००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., स्वरान्त पुल्लिंग "अतो दीर्घ" सूत्र से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२९२५ (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र का परिशिष्टपर्व, पूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ८२-१(१)=८१, प्र.वि. हुंडी:परिशिष्टप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४५-५५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (१)स्फाति पुरस्तात्पुनः, (२)कंठतटावनीषु, सर्ग-१३, ग्रं. ३४४३, (पू.वि. सर्ग-१ के श्लोक-२३ अपूर्ण से है.) ९२९२७. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९९-१३२(१ से १३२)=६७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४३८-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन आंतरा वर्णन "नमिस्सणं अरहओ" से २६ वीं सामाचारी अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२९२९ (#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८२२, चैत्र कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ११०-४५(१ से ३०,३५ से ३६,४२ से ५४)=६५, ले.स्थल. सवाइजैपुर, प्रले. मु. कुस्यालचंद; अन्य. उपा. विद्याधीर (गुरु पं. लब्धिसागर, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं.लब्धिसागर (गुरु पं. जयानंदनजी, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४४०-४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (१)अणंतभागो य सिद्धि गओ, (२)अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: (-); अंति: (१)जगत्रनि शिरोमणी छ, (२)करे सुलभबोध फुनि होय, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९२९३०. सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-३४(१ से ९,१२ से ३४,४३,४५)-५६, प्र.वि. हुंडी:सूगळसूत्र. अंत में "मेहता बदनमलजी भंडारी सं०१९१०म० वैशाष शुक्लपक्षे ८" उल्लिखित हैं., जैदे., (२६.५४११, ११४३०-४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंतिः विहरइ त्तिबेमि, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१ के सूत्र-६६९ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२९३१ (+) आरंभसिद्धि सह सुधीशृंगारवार्तिक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११९, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १-१८x२५-५५). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: परीक्षाविमर्शः पंचमः, विमर्श-५, श्लोक-४१३. आरंभसिद्धि-सुधीशृंगारवार्तिकटीका, ग. हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१४, आदि: शं सुखाय भवतीत्येवं; अंति: मभ्युदयं प्रथयंति, विमर्श-५. ९२९३२. (+) ज्ञाताधर्मकथा सूत्र, अपूर्ण, वि. १५८२, चैत्र शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४५-४९(१ से ३९,४२ से ५०,९७)=९६, अन्य. वा. जयविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१३३१) यावल्लवणसमुद्रो, जैदे., (२६४११.५, १३४३४-४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, (पू.वि. अध्ययन-३ के सूत्र-२५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९२९३४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४-९(३१ से ३४,३७ से ४१)=४५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४४२-४५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदिः (१)ज्ञानं पंचविधं, (२)जिणे करी वस्तुनो; अंति: (-). ९२९३५ (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३४४७). ___ कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: (-), (पू.वि. समाचारी व्याख्यान-९ अपूर्ण तक है.) ९२९३६. योगशास्त्र-प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४२, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५-६२). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनइं कारणि; अंति: (१)संजात हुउ पट्टबंध छइ, (२)भणन गणनाय चिरं नंदतात्, ग्रं. २१००, (वि. मूल का मात्र प्रतिक पाठ दिया है.) ९२९३७. (+#) उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८०-११(१ से ११)=६९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२-१४४२३-५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ से २९६ तक है.) उपदेशमाला-कथा, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ की कथा अपूर्ण से २९६ की कथा अपूर्ण तक ९२९३८. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०वृ०व०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४३८-६०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: वर्णवृंदा० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २५३ ९२९३९ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४९-११५(१ से १०७,११६ से ११८,१२० से १२२,१२७ से १२८)=३४, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ६x२८-३६). __कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२९४० (+) पद्मनंदिपंचविंशतिकागत स्तुतिस्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८९-४६(१ से ४३,८६ से ८८)=४३, कुल पे. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४९.५, ९४२८-३२). १. पे. नाम, एकसप्तति, पृ. ४४अ-४५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. एकत्वसप्तति, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नव केवल लब्धिरूपम्, श्लोक-८०, (पृ.वि. श्लोक-५६ अपूर्ण से २. पे. नाम. यतिभावनाष्टक, पृ. ४५आ-४७अ, संपूर्ण. __साधुभावनाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: आदाय व्रतमात्मतत्वममलं; अंति: तस्यात्र पुण्यात्मनः, श्लोक-९. ३. पे. नाम, उपासक संस्कार, पृ. ४७अ-५१अ, संपूर्ण. उपासकसंस्कार विचार, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: आद्यो जिनो नपः; अंति: तेषां धर्मोतिनिर्मलः, श्लोक-६१. ४. पे. नाम. देशव्रतद्योतन, पृ. ५१अ-५५अ, संपूर्ण. देशव्रतोद्योतन विचार, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: बाह्याभ्यंतरसंगवर्जन; अंति: देशव्रतोद्योतनं, श्लोक-२७. ५. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. ५५अ-६०अ, संपूर्ण. मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: सूक्ष्मत्वादनुदर्शिनोवधि; अंति: तथापि कृतवानंभोजनंदीमुनिः, श्लोक-३०. ६. पे. नाम, आलोचना, पृ. ६०अ-६५आ, संपूर्ण. म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: यद्यानंदनिधिं भवंत; अंति: समतिमानानंदसद्म ध्रुवं, श्लोक-३३. ७. पे. नाम. सद्बोधचंद्रोदय, पृ. ६५आ-७०आ, संपूर्ण. सद्बोध चंद्रोदय, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: यज्जानन्नपि बुद्धिमानपि; अंति: विजयते सद्बोधचंद्रोदयः, श्लोक-५०. ८. पे. नाम. निश्चयपंचाशत, पृ. ७०आ-७५आ, संपूर्ण. मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: दुर्लक्ष्य जयति परं; अंति: पद्मनंदि० तन्ममास्ते, श्लोक-६२. ९. पे. नाम. ब्रह्मचर्यरक्षावर्ति, पृ. ७५आ-७९अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यरक्षावत्ति, म. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: भ्रत्क्षेपेण जयंतिय; अंति: पद्मनंद० सदा सेव्यतां, श्लोक-२२. १०. पे. नाम. रिषभ स्तोत्र, पृ.७९अ-८४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, मु. पद्मनंदी, प्रा., पद्य, आदि: जय उसह नाहिनंदण तिहुवणं; अंति: तुह पाय मह० पसीयंतु, गाथा-६०. ११. पे. नाम, जिनवरदर्शन स्तव, पृ. ८४अ-८५आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. पद्मनंदी, प्रा., पद्य, आदि: दिढे तुमम्मि जिणवर सहली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) १२. पे. नाम. श्रुतदेवता स्तुति, पृ. ८९अ-८९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जिनगुणकीर्तन स्तव, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्म० भक्तिग्रहः, श्लोक-३१, (पू.वि. श्लोक-२६ अपूर्ण से १३. पे. नाम, स्वंयभू स्तोत्र, पृ. ८९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्वयंभू स्तोत्र, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि: स्वयंभुवा येन समुद्धतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ९२९४१. चतुर्नियमपालने रूपसेनराजेंद्र कथानक, संपूर्ण, वि. १५९४, पौष शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. मोहनपुरा, पठ. ग. सौभाग्यविशाल (गुरु ग. विशालविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. विजयविशाल (गुरु पं. माणिक्यविशाल गणि, तपागच्छ); पं. माणिक्यविशाल गणि (गुरु गच्छाधिपति सौभाग्यहर्षसूरि, तपागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति सौभाग्यहर्षसूरि (तपागच्छ); प्रले. गंगदास जोशी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (२१५) अदृष्टभावान्मतिविभ्रमा, (३९५) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (४८९) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२-४८). For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., प+ग, आदि: श्रीमंतं विदुरं शांतं; अंतिः सुकृताय कृता कथा. ९२९४२ (+) ऋषिमंडल प्रकरण सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १८३९ आश्विन शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६४+१ (६४)=६५, पठ. मु. जेतसी (गुरु पं. देवकीर्ति); गुपि. पं. देवकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १५-१७४५ २-५८) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि १४वी आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अंतिः धम्मघोस० सिद्धिसुहं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २४४. ऋषिमंडल प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) सोमगुणे गुणनिलयं, (२) नमस्कार धाउ माहरो अंति: कर्तारो नाम जाणवौ, (वि. अंत में ग्रंथ के अंतर्गत कथा-दृष्टांतों की सूचि दी गई है.) ९२९४३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन १५ व १६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६, दत्त. मु. वसरामजी स्वामी; गृही. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, १३-२०X३५-४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. टबार्थ क्रमशः नहीं लिखा है. ) ९२९४५ (#) वारव्रत रास, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पू. ३४-६(७, २६, २९ से ३२ )+१ (२८) = २९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जजैवे. (२७४११.५, १४-१९४४०-८० ). १२ व्रत रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: वंदु अरिहंत सिद्धने; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-६० की गाथा-५ तक है.) " ९२९४७. (+) इयाश्रयमहाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५३-२३(१ से ८,१०,१२ से १५,१७,२१,२६,२८,३२,४१,४४ से ४५,४८,५२) - ३०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे., (२६.५x११.५, १७४५८-६९). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. सर्ग-१, श्लोक-४२ से सर्ग-३, श्लोक ८५ पाद-६ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) व्याश्रयमहाकाव्य टीका, ग. अभवतिलक, सं., गद्य वि. १३१२, आदि (-); अंति: (-). ., ९२९४८ दशवेकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २५-८ (१ से ८) = १७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: दशमी., जैदे (२६.५x११, १३४३०). - दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-) अति (-) (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देश १, सूत्र- २२ अपूर्ण से अध्ययन-९, उद्देश ४ अपूर्ण तक है.) ९२९४९ (+) वाग्भटालंकार सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७१, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, प्र. वि. हुंडी अलंकार टी०. श्रीपार्श्व प्रसादात्., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२५.५X११, १९x४९-५२). वाग्भटालंकार, जैक, वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः अति: सारस्वताध्यायिनः परिच्छेद-५, वाग्भटालंकार - टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानसंतति, अंतिः मित्यादिविशेषणानि सुगमानि ९२९५१ (#) तत्त्वार्थसूत्र सह सर्वार्थसिद्धि वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७४१, फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १०५-७९ (१ से ७९)= २६, प्र. वि. अंत में बीजक लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १५X४२-५०). " तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि (-) अति गाहनांतरसंख्या० साध्याः, अध्याय १०, " (पू.वि. अध्याय ७, सूत्र- २६ से है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- सर्वार्थसिद्धिवृत्ति, आ. देवनंदी, सं., गद्य वि. ५वी, आदि (-); अंति: नरामरगणार्चितपादपीठं, अध्याय-१०, (पू.वि. अध्याय-७, सूत्र- २५ अपूर्ण से है.) ', ९२९५२. स्तवन, सज्झाय व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९ भाद्रपद शुक्ल, ११, जीर्ण, पृ. ४२-१ (१०) = ४१, कुल पे. १४, जैवे. (२४.५x१०.५, ११४२८-४०). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २५५ १.पे. नाम. पूजाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहि., प+ग., आदि: शुचि सुगंध वर कुसुमजुत जल; अंति: पावै पद कल्यान, गाथा-९. २.पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: कल्याण० चेतन भूप, गाथा-६. ३. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीये कोडि कल्याण, गाथा-३. ५.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमै नेम; अंति: क्षमाकल्याण० प्रणाम, गाथा-३. ६. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ७. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं जगदाधारसार; अंति: कल्याण० करी सुपसाय, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: भवि एगमण पावउ पद __ कल्याण, (वि. चिपके पत्र होने के कारण आदिवाक्य अपठनीय.) ९. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, प. ३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. १०. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देसै दीपतौ; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन आदि संग्रह, पृ. ३आ-३७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. स्तवन संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (पू.वि. पत्र चिपके हुए होने के कारण संलग्न कृतियाँ अस्पष्ट है.) १२. पे. नाम. थावच्चापुत्र अणगार सज्झाय, पृ. ३७अ-४०आ, संपूर्ण. __ थावच्चापुत्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: द्वारिका नगरी अति भली रे; अंति: भणी सीस क्षमाकल्याण, ढाल-४, गाथा-५३. १३. पे. नाम, श्रावकगुण सज्झाय, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कईइं मिलस्यै रे श्रावक एह; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२१. १४. पे. नाम. झाझरियामुनि सज्झाय, पृ. ४१आ-४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सीस नमावी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९२९५४. (#) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १७-१(४)=१६, प्रले. सा. पेमाजी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नवतत्त्व., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १२४४५). For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, रा., गद्य, आदि जीवतत्त्व कणीने कहीज; अंति: (१) माहरी वंदना होज्यो, (२) दृष्टंत भंडारी रो, (पू.वि. अजीवद्वार के बालावबोध पाठ "नवलोकंतक देवतारा" से "गुण थकी गाजवी के मध्य का पाठ नहीं है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२९५५. (+) सामायिक पाठ, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. २२, ले. स्थल. जिहानाबाद, प्रले. पं. कर्पूरचंद्र पंडित; पठ. श्राव. विश्वनाथ लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सामायिक., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें... जैवे. (२६१०.५, ६४३२-४०). " יי सामायिकसूत्र-दिगंबर, सं., प्रा., पद्य, आदि पडिक्कमामि भंते इरियावहि अति वांति परमां गति, ९२९५६ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह प्रमेयरत्नमंजूषा वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८६, प्र. वि. हुंडी: जंबू ० वृत्तिसूत्रसावचूरि त्रिपाठ- संशोधित, जैदे. (२७४१०.५ १५x५६-६२). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं० तेणं, अति उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार ७ ग्रं. ४९४६. 2 जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति प्रमेवरत्नमंजूषा टीका, उपा. शांतिचंद्र, सं., गद्य वि. १६५१, आदि जयति जिन सिद्धार्थः; अंति (१) नामकथनं चरममंगलमिति, (२) विवेचने चतुरः, ग्रं. १२०००. ९२९५७. आवश्यकनिर्युक्ति सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८.५X११, १३-१६४४९-६३). आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि आभिणिबोहिबनाणं; अंति: (-). | , आवश्यक सूत्र- लघुवृत्ति #. आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि देव श्रीनाभिसूनुर्जनयतुः अंति: (-). ९२९५८. समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६७, प्र. वि. हुंडी: समवायांगसूत्र., जैवे. (२७४११, ११४३३-४३). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि सूर्य मे० इह खलु समणे; अंतिः अज्झयणं ति त्ति बेमि, सूत्र- १५९. ९२९५९. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६१०, कार्तिक, मध्यम, पृ. ५३, ले. स्थल. सरखेज ग्राम, प्रले. मु. सीहा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : विपाकसू., संशोधित - पंचपाठ., प्र.ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६.५X१०, १३X२८-३२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेन तेणं; अति सेवं भंते सेवं भंते . १२५०. ', विपाकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अथ विपाकश्रुतमिति कः अंति: (१) सूत्रे कह्यो तिम, (२)करी संपूर्ण थयो. ९२९६१ (+) प्रबंध संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९९-६० (१ से ६०) = ३९, कुल पे. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२८.५x११, ११०४६-५०). १. पे. नाम. हरिहर प्रबंध, पृ. ६१-६२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि (-); अंति: स्वार्थमसाधयदिति ( पू. वि. वाचा मंत्रिन् ममैवेतानि काव्यानि' पाठ से है.) २. पे नाम, अमर प्रबंध, पू. ६२आ-६४आ, संपूर्ण. अमरचंद्रकवि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी आदि श्रीअणहिल्लपत्तनासन; अंतिः प्रतिदिनम्३. पे. नाम. मदनकीर्ति प्रबंध, पृ. ६४आ-६७अ, संपूर्ण. आ. राजशेखरसूरि. सं., गद्य, वि. १५वी, आदि उज्जयिन्यां विशाल अंतिः व्यलासीदनिशं ४. पे. नाम. सातवाहन चरित्र, पृ. ६७अ-७६आ, संपूर्ण. सातवाहन प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं., गद्य वि. १५वी, आदि: इह भारतेवर्षे दक्षिणखंडे; अंति: बहूनां जनकत्वेन रूढत्वात्. ५. पे. नाम. वंकचूल प्रबंध, पृ. ७६आ-८०आ, संपूर्ण. आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य वि. १५वी, आदि (१) अत्रैव भारते वर्षे विमलयश, (२) पारेतजनपदांतश्चर्म्मण; अंति निर्मापयिता वकचूलः. ६. पे. नाम. विक्रमादित्य प्रबंध, पृ. ८०आ-८७अ, संपूर्ण. आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: विक्रमादित्यपुत्रः अतिः चिरं राज्यं चक्रे, For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २५७ ७. पे. नाम. नागार्जुन प्रबंध, पृ. ८७अ-८८आ, संपूर्ण. __सं., प+ग., आदि: ढंकपर्वते सुराष्ट्राभूषण; अंति: पूज्यते अधुना. ८. पे. नाम. उदयनवीर प्रबंध, पृ. ८८आ-९१अ, संपूर्ण. वत्सराजोदयन प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: पूर्वस्यां वत्सो; अंति: (१)पुनरग्रहीत, (२)उद्धृत्यात्रोक्ता. ९. पे. नाम. लक्ष्मणसेनकुमारदेव प्रबंध, पृ. ९१अ-९३अ, संपूर्ण. लक्ष्मणसेन कुमारदेव प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: पूर्वस्यां लक्षणावती पू:; अंति: कार्यं कुर्युरिति. १०. पे. नाम. मदनवर्म प्रबंध, पृ. ९३अ-९६अ, संपूर्ण. आ. राजशेखरसरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: चौलुक्यवंशो मूलराज; अंति: कविभिर्भणितानि. ११. पे. नाम. रत्नश्रावक प्रबंध, पृ. ९६अ-९९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: उत्तरस्यां दिशि; अंति: (-), (पू.वि. 'तीर्थे तत्र द्वासप्तति' पाठ तक है.) ९२९६३. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५४-१(१)=५३, प्र.वि. हुंडी:आचा।सूत्रं, आचा०सूत्रं, आचा०सू०, आचा।सू०, ___ आचारांगसूत्रं., जैदे., (२६.५४११, १५४४८-५४). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चंति त्तिबेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६४४, (पू.वि. 'णाए जाईमरण मोयणाए दक्ख' पाठ से है.) ९२९६४ (+#) विक्रमादित्यचरित्रे पंचदंडसाधन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३१, पौष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३९, पठ. पं. राजसौभाग्य (गुरु पं. चयनसौभाग्य); प्रले.पं. चयनसौभाग्य (गुरु पं. प्रेमसौभाग्य); गुपि.पं. प्रेमसौभाग्य (गुरु पं. देवेंद्रसौभाग्य); पं. देवेंद्रसौभाग्य (गुरु पं. सुमतिसौभाग्य); पं. सुमतिसौभाग्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पंचदंडचौ०,पंचदंडचौप०., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४०-४४). विक्रमादित्य चरित्र-पंचदंडसाधन चौपाई, हिस्सा, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (१)श्रीसुखसंपद पूरवै, (२)भतखेत ईण भुवनमै रे; अंति: ढाल ए पचासमी सुजगीस, ढाल-५०, गाथा-२७४. ९२९६५ (+) पुष्पमाला प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३०-४(२ से ५)=२२६, क्रीत.मु. तिलकसौभाग्य; विक्र. गोतमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पुफमा.वा., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १०x४२-४८). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धं कम्ममविग्गह; अंति: (-), (प.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., "चउवीसमा तीर्थंकरनई" से "राधावेध मांडउ" के बीच के पाठ तथा अंत के पाठ अनुपलब्ध हैं.) पुष्पमाला प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां सिद्धस्य उं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच के पाठ अनुपलब्ध हैं.) ९२९६६. रायपसेणीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५०, प्र.वि. हुंडी:राय०सू, राज्ज०म०, राज्जप्रश्नीयसूत्रं०, जैदे., (२६.५४११, १३४४९-५३). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २०७९. ९२९६७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १५६-१११(१ से ९,११,१५ से १७,२२ से ९१,९८ से १०१,१२८ से १५१)=४५, ले.स्थल. सोजत, प्रले. आ. जिनसंभवसूरि (गुरु आ. जिनोदयसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनोदयसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ४५४५, जैदे., (२६.५४१०.५, ५-१५४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (१)उवदंसेइ त्ति बेमि, (२)मूढा नरयगई तस्स फलं भवंति, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमस्कार हुवो श्रीअरिहंतने, (२)तिण कालै चोथे आरे तिण; अंति: (१)कल्पसूत्र संपूर्ण वाच्यो, (२)श्रावकनै जीवदया पालणी कही, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध+कथा, उपा. विद्याकुशल, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: परलोके स्वर्ग मोक्षं भवति, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., पर्वमाहात्म्य अंतर्गत नागकेतु कथा अपूर्ण से है.) ९२९६८. (+) शब्दभेदप्रकाश सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. हुंडी:शब्दप्रभेदवृत्ति, शब्दप्रभेदव, शब्दप्रभाव, शब्दप्रभेवा, शब्दप्रभाव, शब्दप्रावा., संशोधित., जैदे., (२७४११, १७४५३-६१). शब्दभेदप्रकाश, क. महेश्वर कवि, सं., पद्य, आदि: प्रबोधमाधातुमशाब्दिकानां; अंति: निराकर्तुमयमस्मत्परिश्रमः, अध्याय-४, श्लोक-२७२. शब्दभेदप्रकाश-टीका, उपा. ज्ञानविमल, सं., गद्य, वि. १६५४, आदिः (१)श्रीमंतं भगवंतमन्वहम, (२)मया महेश्वरकविना; अंति: (१)श्लोकमानेन निश्चिता, (२)६ पुरी पुरम् नगरम्. ९२९६९ (+) योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३४-९७(१ से ९७)=३७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:योग०बा०., संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३८-४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-३, गाथा-१४७ अपूर्ण से प्रकाश-४, गाथा-१३६ तक है.) योगशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२९७० (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८१-५(१ से ३,६५ से ६६)=७६, प्रले. मु. मानसागर (गुरु उपा. देवसागर, रुद्रपल्लीयगच्छ); गुपि. उपा. देवसागर (गुरु आ. जिनदत्तसूरि, रुद्रपल्लीयगच्छ); आ. जिनदत्तसूरि (रुद्रपल्लीयगच्छ); । लिख. श्रावि. रूपबाई; अन्य. श्राव. नानू; श्राव. जीतमल्ल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, जैदे., (२६४१०, ९४३२-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., "वाणुप्पिए सुमिणा दिट्ठा" पाठ से है तथा मध्य में 'कोडिय काकंदगणे" से अज्ज काल" के बीच का पाठ नहीं है.) ९२९७१. विपाकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.५०, प्र.वि. हुंडी:विपाकसूत्र., पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४३२-४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: (१)नत्वा श्रीवर्द्धमान, (२)अथ विपाकश्रुतमिति कः; अंति: नवाप्यनुगंतव्यानीति, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. ९००. ९२९७२. सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४१०.५, ६-११४३२-४२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं भगवया; अंति: उवसंपज्जि विहर त्तिबेमि, अध्ययन-७. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: सुयं मे मइ इम; अंति: यांगस्य वार्तिकं. ९२९७३. (+) रसिकप्रिया सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-१(१)=५६, प्र.वि. हुंडी:रसिकप्रि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४३८-६०). रसिकप्रिया, इंद्रजीत कुमार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., "गुरुगरिष्ट जे माहे" पाठ से "सबै अपनो सार" पाठ तक है.) रसिकप्रिया-बालावबोध, उपा. कुशलधीर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ व अंत के पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२९७४ (+) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७७-५ (१ से ५)=७२, अन्य. श्रावि. देवकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ - संशोधित. कुल ग्रं. ३३००, जैदे., ( २६ ११, १२-१४४४०-४६). आवश्यकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि (-); अति गारेण वोसिरामि, (पू.वि. एसो पंचनमुक्कारो' पाठ से है.) आवश्यक सूत्र वालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: जीवनइ मोक्ष फलदा० हुई. ९२९७५. (*) भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३९ ६४ (१ से ४,५९ से ६१,६३ से ६६,६८ से १००,११६ से १३५)=७५, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : श्रीभगवतीसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पंचपाठ., जैवे. (२६.५x१०, ११४३४-३८). भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-). ९२९७६. सिखरगिरि रास व छमासी तप, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, जैये. (२७४११, ८४३२). १. पे. नाम. सिखरगिरि रास, पृ. १अ - १६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-). (पू.वि. ते जे अस्संजया' से 'नीलोप्पल वाकालपो पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: अजितादिक प्रभु पाय नमी; अंति: सत्यरत्न० भवपार उतार, ढाल-७, गाथा-१९६. २. पे. नाम. रात्रीप्रतिक्रमण मांही छमासी तप, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:छमासीतप. छमासीतपचिंतवन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर स्वामीना; अंति: धारी काउसग पारइ. ९२९७७ (क) सिद्धहेमशब्दानुशासन- उणादिसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१ ( २ ) = ६ प्र. वि. हुंडी : उणादिसूत्राणि मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X११, १६x४४-५२). , सिद्धहेमशब्दानुशासन - उणादिगणसूत्र संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि (-); अंति वहेः क्विप् स डः, सूत्र-१००६ (पू.वि. सूत्र- १४५ से है.) ९२९७८. अष्टकप्रकरण की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६३४, माघ शुक्ल ९ शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७२ ले स्थल. चित्रकूट, प्रले. श्राव. धीणाक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अष्टकवृत्ति., जैवे. (२७४१०.५, १५४५२) अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि से गद्य वि. १०८०, आदि (१) इह हि सुगृहितनामधेयो, "" (२) आविष्कृताशेषपदार्थसार्था; अंति: (१) श्लोकानां सप्ततिस्तथा, ( २ )हरिभद्रसूरेरिति, ग्रं. ३३७०. ९२९७९. महीपालचरित्र कथा, संपूर्ण, वि. १६४३, फाल्गुन शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल. नव्यनगर, हालारवेश ( नवानगर, प्रले. मु. चारित्रधर्म पंडित (गुरु ग. सुखनिधान, खरतरगच्छ ); गुपि. ग. सुखनिधान (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ); मु. समयकलश (गुरु ग. चारुधर्म, बृहत्खरतरगच्छ); ग. चारुधर्म वा (गुरु ग. साधुलाभ वाचक, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); ग. साधुलाभ वाचक (गुरु ग. सोमसुंदर वा, खरतरगच्छ सागरचंद्रसूरिशाखा); आ. सागरचंद्रसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि बृहत्खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनसिंहसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकाल जाम राउल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : महीपालच., जैदे., ( २६.५X१०.५, २०-२१x६४-७०). महीपालराजा कथा, ग, वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल अंति: वीरदेवगणी० पसाएण, गाथा - १८०९, ग्रं. २५००. ९२९८१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : उत्तराध्ययन., दे., (२७X११, १३४३५), उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्पमुक्कस्स अंति (-), (पू.वि. अध्ययन-९, गाथा १७ तक है.) ९२९८२. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १८५८, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १९, प्रले. पंन्या. सुमतिवर्धन (गुरु ग. विनीतसुंदर, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६४१०, १३x४२-४६). . "" 2 २५९ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्यते श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: हर्षकीर्ति० प्रसादतः. ९२९८३. (**) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १० प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ३५७, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, ४X३६-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भक्त कहतां भक्तिकारक एहवा; अंति: नाम मानतुंग एहवउ आण्यउ छड़. ९२९८४ (+*) संघयणीसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १३, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५x१०, १३३६-४०). "" 3 बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठे अरिहंताई ठिइ अति जा वीरजिण तित्थं, गाथा ३०९. ९२९८५. (*) कर्मविपाक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : कर्मप्र०, प्रथमकर्म., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३ - १६x४६-५२). "" कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४बी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), ', (पू.वि. गाथा ४ तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयोमार्गस्य वक्ता; अंति: (-). ९२९८६. एकस्थानादि बोलविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७ श्रावण शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. २०, ले. स्थल. थांबला, प्रा. पं. किसनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : बोलविचारपत्र. श्रीशांतिनाथजी सुप्रसन्न भवतु श्रीकेसरियाजी प्रसादे., जैदे., (२५.५४१०, १५४४०-४५). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एकनो ठाणों मांडिई छे; अंति: रतकूजितं० शुभाशुभ जाणवौ. ९२९८८. (+) ववहारसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, पठ. श्रावि. पद्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : विवहारसूत्र., संशोधित., वे. (२५.५x१०, ११४३०-३४). . " व्यवहारसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा. गद्य, आदि जे भिक्खू मासिय; अति: भवंति त्तिवेमि उद्देशक- १० प्र. ३७३. ९२९८९. (+) रत्नसंचय-गाथासंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६७७, माघ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. उजिलसरि, प्र. मु.] काहानी ऋषि (गुरु मु. कल्याण); गुपि मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२७४१०.५. ६-७X२८-३२). रत्नसंचय-गाथा संग्रह, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि नवकार इक्कअक्खर पावफेडेई, अंतिः सव्वे मरणाउ बीहंति गाथा १७३. रत्नसंचय-गाथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नोकारनो एक अक्षर भणता सात; अंति: सर्व जीव मरण थकी बी छे. ९२९९० (#) आदिनाथ विचारमय स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६१३, चैत्र कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पू. ६, प्र. वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१०.५, ६-७२८-३२). आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि पहिलउ पणमिय देव, अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा - २१. आदिजिन स्तवन- देउलामंडन- बालावबोध, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., गद्य वि. १५६६, आदिः यच्छं उसह नमिऊण सिद्धि; अंति धर्मसमुद्र० मितेहा वत्सरे. ९२९९२. (#) गुणमंजरीवरदत्त कथानक, संपूर्ण, वि. १८४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४ अधिकतिथि, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. देवेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १२-१४४३४-३८)वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिन; अंतिः कनककुसल० मेडतानगरे, श्लोक १४९. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९२९९३ (+) विविध विषयक धर्मोपदेशादि गाथा-श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, प्रले. पंडित. देवचंद्र (गुरु उपा. भानुचंद्र); गुपि. उपा. भानुचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रस्ताविक-अंतिम पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १८-२०४४७-५६). औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धृत, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूया जिणिंदेसु रई वएसु; अंति: अणेगे सिद्धाय अणेगसिद्धाय. ९२९९४. (+#) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४०-४२). कालिकाचार्य कथा, आ. रामचंद्रसूरि, मा.गु., प+ग., वि. १६वी, आदि: उत्पत्तिविगमध्रौव्यत्रिपद; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "अणुकमसो उसाहि" तक है.) ९२९९६ (+) वर्द्धमानविद्या यंत्रविधि, स्तव व संप्रदाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४-२१४२९-७०). १.पे. नाम. वर्द्धमानविद्यायंत्र विधि, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः प्रारंभिक ५ श्लोक व अंतिम ७ श्लोक ही हैं. बीच का पाठ नहीं लिखा गया है. वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., प+ग., वि. १३२२, आदिः श्रीवीरं जिनं नत्वा; अंति: श्रीसिंहतिलकसूरिरिमां, श्लोक-७६, (वि. वस्तुतः श्लोक-५ अपूर्ण से ६४ अपूर्ण तक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम, वर्द्धमानविद्या स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. वर्धमानविद्या स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आसि किलट्टत्तरसय; अंति: मंगल कल्लाण आवासो, गाथा-१७, (वि. प्रारंभ में श्लोक-भविकपंचमे..द्वादशे रिपुः. श्लोक-१ है.) ३. पे. नाम, वर्द्धमानविद्या संप्रदाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: चतुर्मासी प्रतिक्रमणानंतर; अंति: हः अस्त्रं आत्मरक्षा. ९२९९७ (#) कल्पसूत्र का व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३८). कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८१९, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)इहां जे श्रीकल्पसूत्रनो; अंति: श्रेय कल्याणं प्रवर्तो. ९२९९८. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ६४३०-३२). नवतत्त्व प्रकरण-२९ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ७० अपूर्ण तक है., वि. जीवसमास, विचारसार आदि कतियों की गाथाएँ भी मिश्रित हैं.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९२९९९ (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५४-१३२(१ से ११९,१२२,१२४ से १२६,१२९ से १३०,१४४ से १४८,१५१,१५३)=२२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ६४३४-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन चरित्र अपूर्ण से थिरावली अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९३००० (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-३२(१ से ३२)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३०-३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१७, गाथा-१५ अपूर्ण से अध्ययन-१९, गाथा-६३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३००१ (+) वाग्भटालंकार व रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, अपूर्ण, वि. १५०१, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ.७-१(१)=६, कुल पे. २, प्रले. ग. सहजहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०,१५४४४-४८). १.पे. नाम. वाग्भटालंकार, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५, (पू.वि. परिच्छेद-२, श्लोक-८ से २. पे. नाम. रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण; अंति: मुहर्मुहुर्भाषणं कुरुते, श्लोक-२. ९३००२. (2) अंतिम आराधना संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, पठ. श्रावि. हसू, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३३-३८). अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: चत्तारिमंगलं अरिहंता; अंति: सरणं मम मोहनिट्ठवणा, (वि. बीच-बीच मे सूत्रों का अर्थ भी लिखा है.) ९३००३. (+) श्रावक आलोयणा विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०, ११४३८-४१). श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक है.) ९३००४. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ.८-३(१ से ३)=५, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४६-५१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: केवलज्ञान ध्यानि, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जीवदया कुल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जीवदया सज्झाय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जिणवरु देउ सुसाहु गुरु; अंति: ते सवि सिद्धि लहंति, गाथा-१५. ३. पे. नाम. वैराग्य चउपई, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. धर्माधर्मविचार चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जऊदह पूर्वमाहि जु; अंति: करमि देवलोकि संचरइ, गाथा-१७. ४. पे. नाम. शाश्वताशाश्वतजिन नमस्कार, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. त्रिभवनप्रासादजिनबिंबसंख्या चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलङ त्रिकाल अतीत; अंति: (१)समुद्र हेलामाहि तरउ, (२)समुद्र हेलां निस्तरु. ५. पे. नाम, महावीर स्तवन, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. ६. पे. नाम, नवकार मंत्र सह भावार्थ, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कारु अरिहं; अंति: (१)ध्येयध्यातव्य गुणिवउ, (२)संसारो तस्स किं गुणइ. ९३००५ (+) पाक्षिकसूत्र की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २०४६२). पाक्षिकसूत्र-अवचरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरान् वंदे; अंति: (-), (पू.वि. "अलंकारत्वात् प्रथमां तान्येव" पाठ तक है.) ९३००७. (+#) ज्ञाताधर्मकथोपनयगाथा, जयद्रथ पंचशिखाप्रसंग व शुकराज कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-४(१ से ४)=११, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (३०.५४११, १५४५६-६२). १. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथोपनयगाथा सह कथा, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६३ ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पुंडरीयमहारिसि व्व जहा, गाथा-७१, (पू. वि. गाथा- ४२ अपूर्ण से है.) ज्ञाताधर्मकथांगोपनयगाथा-कथा, सं., गद्य, आदि (-); अति चारित्रमाराध्यतेश्यति, २. पे नाम. जयद्रथ पंचशिखाप्रसंग वर्णन, पृ. ७आ-८-अ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: सुखेन तत्सुखां तेषां गते; अंति: रौत्सूत्कंकपत्रैर्जयद्रथः, श्लोक-२३. ३. पे नाम. शुकराज कथा शत्रुंजयमाहात्म्ये, पृ. ८अ १५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शुकराज कथा - शत्रुंजयमाहात्म्यगर्भित, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयतीर्थेश : अंति: (-), (पू.वि. 'यथास्य स्वरूपं मूलतः कथयामि' पाठ तक है.) ९३००८. प्राकृत उक्ति आम्नाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (३०.५X११, १७X५१-६७). प्राकृत उक्ति आम्नाय संग्रह, मु. चंद्रशेखर, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अर्हं प्रणम्य मुग्धानां; अंति: (-), (पू.वि. कारक आम्नाय अपूर्ण तक है.) ९३०१०. (+) विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ- संशोधित., जैदे., (२७.५X११, १९६५). विविध विचार संग्रह *, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: श्रीआदिनाथु पांचसइ धनुष; अंति: (-), (पू.वि. पौषधप्रतिमादंडक तक है.) ९३०११ (+) रुक्मिणी मंगल छंद व जंबूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२, १८४५४-६०). १. पे. नाम. रुकिमिनि मंगल छंद, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती मंगल छंद, क. नरहरि, मा.गु., पद्य, आदि: भुवपति भीखमरा उतकुंद, अंति: नरहरिकवि कहुं दुख वारई, पद - १३. २. पे नाम. जंबूस्वामि चतुष्पदी प्रतिबंध पंचभवचरित्र, पृ. ३अ-७अ संपूर्ण. जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: काज सरिस्यइ तेहना, गाथा- १७५. ९३०१२. (*) सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ७९७, मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२९x११, १६६०-७०). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य जिनं अति कथा सम्यक्त्वकीमुदी, पद- ४४४, ग्रं. १६७५ ९३०१३. (*) तीर्थनी आलोयणा, संपूर्ण वि. १९९७, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पू. ५, ले. स्थल. पादलिप्नपुर, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x११, १८४५४-६०). तीर्थं आलोयणा- अतिचारगर्भित प्रा. मा.गु., प+ग, आदि सिधाचल समरो सदा सोरठ; अति मिच्छामि दुक्कडं, ९३०१८ (#) भरटकद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १३४४२-५२). भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य वि. १५वी, आदि देवदेवं नमस्कृत्य अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कथा - ३२ अपूर्ण तक है.) ९३०२१ (#) महीपाल चरित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : महीपाल., अक्षरों की फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, १५४५०-७०). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण रिसहनाहं केवल अंति: (-) (पू.वि. गाथा - ९४१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३०२२. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२७४१०.५,११४४०-५०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००. ९३०२३. (+) श्राद्धगुण विवरण, संपूर्ण, वि. १५०५, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. धवलकनगर, प्रले. ग. तिलकवीर (गुरु उपा. जिनमंडन, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१९४४५-६५). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं केवल; अंति: चिरं नंद्यात्, अध्याय-३५. ९३०२४. (+) दशैविकालिकसत्त, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:दशैविका०., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३४-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मोमंगलमुकटुं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९, उद्देश-१ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९३०२५ (+#) धरमचरचा उपदेस, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. ध्रांगधरा, प्रले. श्राव. फुलचंद संघजि सा; पठ.मु. हिराजीस्वामि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११, १३४३३-३७). धर्मचर्चा उपदेश-आगमिक, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिन; अंति: मारगनि मिढवणि करसे. ९३०२६. समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-११(१ से ८,१५,२२ से २३)=२८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:समवायांग., जैदे., (२६.५४११, १५४४२-४८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३१ अपूर्ण से सूत्र-२४१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने सूत्र क्रमांक नहीं लिखा है.) ९३०२७. (+) कल्पसूत्रफल वर्णन व कल्पसूत्रांतर्वाच्य, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५,१५४५२-५५). १. पे. नाम, कल्पफलवर्णन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पफलवर्णन, संबद्ध, सं., प+ग., आदि: अयं श्रीकल्पो दशाश्रुत; अंति: पर्वः पर्युषणाभिधम्. २. पे. नाम. कल्पसूत्रांतर्वाच्य, पृ. २अ-३७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (१)नवशतअशीतिवर्षे वीरसेनांगज, (२)पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-), (पू.वि. प्रशस्तिश्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ९३०२८ (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-११९८ से १८)=३९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ओत्तराधेन सू०., संशोधित., जैदे., (२६४११, १३-१५४४०-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७, सूत्र-२ अपूर्ण से अध्ययन-१६, सूत्र-१२ तक व अध्ययन-३६, सूत्र-१४३ अपूर्ण से नहीं है.) ९३०२९ (+#) दशवैकालिकसूत्र की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७१-२९(१ से २९)=४२, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४-५२). दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१, गाथा-३ की टीका अपूर्ण से चूलिका-१, गाथा-११ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९३०३० (#) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८-१५(१ से १५)=३३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:द्रुपदी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०, ११४४२-५२). For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. गाधा- ३१८ अपूर्ण से १९३९ अपूर्ण तक है., वि. गावांक क्रमशः दिया है.) ९३०३१. अनुयोगद्वारसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ५५-२३(२ से ४,८ से १३,१५,१७,१९,२१ से २४, २७ से ३१,३५,४१)=३२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पंचपाठ, जैवे. (२७४११, ५-१०x२३-३१). " अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. प+ग, आदि नाणं पंचविहं अंति (-), (पू.वि. सूत्र -१०४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) अनुयोगद्वारसूत्र- टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: (-). ९३०३४. (+) प्रदेशीराजानी चोपी, अपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १६-१० (१ से १०)=६, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. सा. गुलाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); गुपि. सा. चनाजी आर्या (गुरु सा हीराजी आर्या); सा. हीराजी आर्या (गुरु सा उदाजी आर्या) पठ सा. जीवोजी (परंपरा सा हीराजी आर्या), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७.५x११.५ १६ ९८४२६-४२). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि (-); अंति: सुण पाम भवजल पारो, ढाल ३४, (पू.वि. ढाल २३ की गाथा १ अपूर्ण से है.) ९३०३५. (*) उपदेशमाला सह विवरण, संपूर्ण वि. १४९६, माघ कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित पंचपाठ., जैये., (२६.५X११.५, ७-१२X४०-६५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा - ५४४. उपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, आदि शास्त्राभिधेया अंतिः कृतकृपैर्मयि शोधनीयं (वि. अंतिम चार गाथा की अवचूरि नहीं लिखी है.) 1 ९३०३७. (+#) अंतकृद्दशांगसूत्र, अनुत्तरीपपातिकसूत्र व प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-२२ (१ से २२) १६, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५४११.५, १५X४८-६०). १. पे. नाम. अंतगडदसासूत्र, पृ. ३४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अयमट्ठे पण्णत्ते, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९, (पू. वि. अध्ययन-८ सूत्र -१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अणुतरोववाइवदसासूत्त, पृ. ३४-३८आ, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. ३. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्र. पू. ३८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पग, आदि णमो अरहंताणं जंबू अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ सूत्र- ६ अपूर्ण तक है.) ९३०३८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-५ (१ से ५ ) = १४, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १७५०-६०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- १०, गाथा ३७ से अध्ययन २९, सूत्र- २ अपूर्ण तक है.) ९३०४०. (+) चंदणवालानो रास, संपूर्ण वि. १८६७, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चंदण., अशुद्ध पाठ संशोधित, जैवे. (२७.५X११, १७४३०-३८) " चंदनबालासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: असुभ करम के हरण कुं; अंति: मीच्छाम दोकडो होइ तो, गाथा-१४९. ९३०४१. योगोद्वहनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-८ (१ से ८)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२६.५x११, १२४३०-३२). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू. वि. पच्चक्खाण उच्चरावण विधि अपूर्ण से धम्मो मंगल सज्झाय अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३०४२. (#) अनेकार्थ संग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१४(२ से ४,७ से १७)=६, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १७७५४-६०). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: ध्यात्वार्हतः कृतै; अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-४४ अपूर्ण से श्लोक-२३५ अपूर्ण तक, कांड-२ श्लोक-३६९ अपूर्ण से कांड-३ श्लोक-३९० अपूर्ण तक व कांड-३ श्लोक-६८९ अपूर्ण से नहीं है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कृते एकार्थशब्दसंदोह; अंति: (-). ९३०४३. अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-२७(१,४ से २९)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, १३४४५-५३). अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सम्यक्त्वगुणवर्णन अपूर्ण से बुद्धदासपुत्र मूर्छा प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९३०४४. (+#) उपधानतप विधि व १४ नियम नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:उपधानविधि., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ११४२९-३९). १.पे. नाम, उपधान विधि, प.१आ-१४आ, संपूर्ण. उपधानतप विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथमं नंदीमहर्त; अंति: नियमो नास्ति. २. पे. नाम. चौद नियम श्रावक-श्राविकाना, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वसचित्त १ दव्व २; अंति: न्हाण १३ भत्तेसु १४. ९३०४५. उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ७४३३). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-१ के सूत्र-३ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक है.) ९३०४८. (+) विचारसारषट्त्रिंशिका विज्ञप्तिरूप प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. महिमापुर मकसूदाबाद, प्रले. ; राज्ये आ. विजयधर्मसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ३४३८-४५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीसुपार्श्वजिनं नत्वा, (२)नमिउं कहतां नमस्कार; अंति: पोताने हितनी करणहार. ९३०४९ (+#) द्रोपदी चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३७-२७(१ से २७)=१०, प्र.वि. हंडी:द्रोपदी., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४११, १६४३४-३८). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदिः (-); अंति: कनककीरति कहें सुखकार, ___ ढाल-३९, गाथा-१११७, (पू.वि. ढाल-३१ की गाथा-१ अपूर्ण से है.) ९३०५२ (+) मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३२-२०(१ से २०)=१२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३४). मुनिपति चरित्र *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "माहरी सासू घरमांहि" पाठ से "पति कहवा लागउ" पाठ तक हैं.) ९३०५३. च्यार प्रत्येकबुद्ध कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०बाला०., जैदे., (२६.५४११, १४-१५४४४-५०). ४ प्रत्येकबद्ध कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कलिंगदेश चंपानगरीइ द; अंति: च्यारइ मोक्ष पुहता, कथा-४. ९३०५४. (+#) कर्मग्रंथ १ से ३ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ७-९४३०-३६). १.पे. नाम, कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २६७ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान प्रति; अंति: देवेंद्रसूरि० काउ. २.पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ८अ-११अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: इति कर्मणात् सत्ता; अंति: श्रीमहावीर प्रति नमुं. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ तक लिखा है.) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: सामान्यइ सविह जीवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ के बालावबोध अपूर्ण तक लिखा है.) ९३०५५. दानाधिकारे प्रीयमैलक चोपाई, संपूर्ण, वि. १८३४, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. राजोद, प्रले. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रीयमैलकचो०., जैदे., (२६४११, १४४३६-४४). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमं सद्गुरु पाय; अंति: समैसुंदर० अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०. ९३०५६. (+) चंदणबालानो रास, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. सा. गुलाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); गुपि. सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या); सा. हीराजी आर्या (गुरु सा. उदाजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंदण., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६-१९४३२-३८). ___चंदनबालासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: असुभ करम के हरण कुं; अंति: मीच्छाम दोकडो होइ तो, गाथा-१४९. ९३०५७. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४३८-४४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०३. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: शाश्वतु मोक्ष स्थानक. ९३०५८. जिनभवनबिंब पुस्तक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-३(२,८,११)=१०, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११.५, १५-१८४४१-६५). १.पे. नाम. प्रासादोपदेश, पृ. १अ-७अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सं., प+ग., आदिः (१)जिनभवनबिंबपुस्तक चतुर्विध, (२)जिनभवन निर्माप्यं सफली; अंति: प्रथमदेवलोके सुरः समभूत्, उपदेश-१३. २. पे. नाम. पौषधशालोपदेश, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., प+ग., आदि: पुण्याह पौषधागारं तत्रै; अंति: (-), (पू.वि. उपदेश-४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. जिनप्रतिमोपदेश, प. ९अ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: एवमपरैरपि प्रतिमा कार्या, उपदेश-७, (पू.वि. उपदेश-६ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. पुस्तकलेखनोपदेश, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: ये लेखयंति जिनशासनपुस्तक; अंति: यत्नस्थापनविषये चिंतनीयं, उपदेश-२. ५. पे. नाम. श्रुतनिष्ठागर्भित दृष्टांतकथा विचार संग्रह, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., प+ग., आदि: नाणं नियमग्गहणं नवकारो; अंति: (-), (पू.वि. नमस्कार स्मरण अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. संघोपदेश, पृ. १२अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. संघभक्ति उपदेश, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. उपदेश-१ अपूर्ण से उपदेश-८ अपूर्ण तक है.) ९३०६० (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५-१७४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-) अति (-), (पू.वि. श्लोक-६ से १३ तक है.) भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध + कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३०६१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंकयुक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६.५x११, ३-४X३६-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त कहिता सेवक अमर; अंति: मालानइ प्रभावि होइ. ९३०६२. (*) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैवे. (२६११, १४४३६). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैनं जयति शासनम्, (वि. पच्चक्खाण, संधारापोरसी व स्तुति सहित ) ९३०६३. (+) स्तोत्र, स्तुति व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २ ) =५, कुल पे ७, प्रले. ग. रामचंद्र (गुरु मु. भीमचंद्र); गुपि. मु. भीमचंद्र (गुरु मु. मुक्तिचंद्र); मु. मुक्तिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले. श्लो. (१३३२) शतमपि वद विद्वन् पत्रके मा लिखैकं, जैदे., (२७११, १७-१८५०-५४). १. पे. नाम. कल्याणसिद्धि स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७८१, फाल्गुन शुक्ल, १, बुधवार, ले. स्थल. पारापुर. ग. रामचंद्र, सं., पद्य, आदि (-); अंति: कुरतः शिशुरामचंद्रः, श्लोक ६०, (पू.वि. श्लोक ५८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. माणिभद्रयक्ष स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर स्तोत्र, ग. रामचंद्र, सं., पद्य, आदि समेहि मे मात उदार, अंतिः कुहरतः शिशुरामचंद्रः, श्लोक-२४. ३. पे. नाम. चक्केश्वरीसहित ऋषभजी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १७८१, ले. स्थल. पारानगर. आदिजिन स्तुति-चक्रेश्वरीदेवी स्तुतिगर्भित, ग. रामचंद्र, सं., पद्य, आदि: गजगतिर्जगति स्थिर; अंतिः सुगमनागमनावरचक्रभृत् श्लोक-४. ४. पे नाम. नित्यादि द्वादशभावना स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण वि. १७८१ फाल्गुन शुक्ल, १३, पे.वि. चतुर्थयामे. १२ भावना सज्झाय, ग. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि बारे भेदे बहुगुणी; अंति: राम० भावना सखरी भास, गाथा - २४. ५. पे. नाम. साधुशिक्षा खिमाविषये स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. साधुशिक्षा सज्झाय- क्षमा, मु. भीमचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध निवारो हो मुनि; अंति: भीम० दीधी गुरुदेव दीख, गाथा- ७. ६. पे. नाम. कामविटंबनायां विषयविषवार्तायां अढारनात्रा स्वाध्याय, पृ. ५२-६आ, संपूर्ण, वि. १७८१, चैत्र कृष्ण, २. गुरुवार, ले. स्थल, पारापुर. १८ नातरा सज्झाय, ग. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: सतगुरु पय प्रणमी करी; अंति: रामचंद० सूणि ग्यांन, गाथा-६५. ७. पे. नाम. मधुबिंदु स्वाध्याय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण, वि. १७८१, चैत्र कृष्ण, ५, रविवार, ले. स्थल. पारानगर. मधुबिंदु सज्झाय, ग. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७८ आदि काली पण प्रणमी करी, अंतिः राम० भणता सुणता भास, For Private and Personal Use Only गाथा - ५१. ९३०६४ षट्निय॑ठा छत्रीसद्वार बोल, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८ ले स्थल, वांकानेर प्रले. श्राव. जेसंग वर्धजेचंद शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नियंठाना बो०. कुल ग्रं. २००, जैदे. (२६४११, १२-१३४३६-४२). भगवतीसूत्र नियंता विचार, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि पण्णवय १ बेय २ रागे अंतिः नियंठाना संख्यातगुणा, "" द्वार- ३६. Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २६९ ९३०६५ (+#) अंजनासुंदरीनो रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. सा. राजाजी (स्थानकवासी); पठ. श्रावि. सरुपादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंजना., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १७४३६-४६). अंजनासंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जगत्तनी मात तो, गाथा-१५९, (पृ.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ९३०६६. (+) विदग्धमुखमंडन काव्य की व्याख्या, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४६०). विदग्धमुखमंडन काव्य-वत्ति, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-१, श्लोक-४ की वृत्ति अपूर्ण से परिच्छेद-२, श्लोक-६९ की वृत्ति अपूर्ण तक है.) ९३०६७. (+) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३९-४३). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. साधुसमाचारीवर्णन अपूर्ण तक है.) ९३०६८.(+) पुण्याधिकारे पुण्यसार रास, संपूर्ण, वि. १८२७, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. पं. आगमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुण्यसार रास., संशोधित., जैदे., (२७४११, १५४४३-५३). पुण्यसार रास-पण्याधिकारे, म. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिरायनंदन नमु; अंति: नवनिधि होइ तसु गेह, ढाल-९, गाथा-२०५. ९३०६९ (+#) वाग्भटालंकार सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ११-१३४४५). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशत वो देवः; अंति: (-), (प.वि. परिच्छेद-५, श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) वाग्भटालंकार-अवचरि*, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). ९३०७०. प्रवचनसारोद्धारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:प्रवच०सूत्र., जैदे., (२७.५४१०.५, ५४३५-४०). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण तक है.) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं ऋषभ; अंति: (-). ९३०७१ (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र की टीका व प्रतिक्रमणसूत्रपर्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-४(१ से ४)=११, कुल पे. २.प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १८४४६-६३). १.पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र की टीका, पृ. ५अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)तत्भेदाः ते च देवसिकादयः, (२)मासियसंवच्छरउत्तमटेय, (पू.वि. पडिलेहण की टीका अपूर्ण से है., वि. मूल प्रतीकपाठ, शास्त्रीय संदर्भपाठ, दृष्टांतादि सहित.) २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्रपर्याय, पृ. ११आ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. अंतिम पत्रांक-१५ अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित है. विषय एक है किन्तु, अन्य प्रत के पत्र होने की संभावना है. साधुप्रतिक्रमणसूत्रपर्याय, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सांप्रतं प्रतिक्रमणपर्याय; अंति: (-), (पू.वि. गन्धर्व नागदत्त निर्वाण तक है., वि. दृष्टांतकथा सहित.) ९३०७२. खंडाजोयणना बोल, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ; अन्य. पं. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंडाजोयण., कुल ग्रं. ३४०, जैदे., (२६.५४११,१३-१४४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडाजोयणदि दस बोलनो; अंति: लाख पनरहजारने नेऊ नदी थाइ. ९३०७३. (+) दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रामदास ऋषि; पठ.सा. मंगाईजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १३४३८-४०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: संघ सदा सुजगीस रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ९३०७४.(2) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-११(२ से ८,२२ से २५)=१७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, २१-२३४६४-७४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ से ५४ तक, गाथा-१८१ से २०९ तक व गाथा-२३० से नहीं है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, म. शिवनिधान, मा.ग., गद्य, वि. १६००, आदिः (१)श्रीपार्श्वनाथं फल, (२)अरहंतादिकनइ नमिउ नम; अंति: (-). ९३०७५ (+#) विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-२(१२,१८)=१८, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अंत के ३ पत्रों के पत्रांक खंडित है., जैदे., (२६४१०.५,११४३४-४२). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८२ अपूर्ण से २१२ अपूर्ण तक, गाथा-२९६ अपूर्ण से ३०९ अपूर्ण तक व गाथा-३६७ अपूर्ण से नहीं ९३०७६. (+) प्रदेशीराजा केशीगणधर कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४३७-४६). प्रदेशीराजा केशीगणधर कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रदेशीराजा द्वारा गुरु सेवा प्रसंग अपूर्ण से है व देवलोक संबंधी सुखभोग प्रसंग तक लिखा है.) ९३०७७. (#) विपाकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-३(४ से ६)=१५, प्र.वि. हुंडी:विपाकवृत्ति., कुल ग्रं.९०९, मल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १५४५८-६२). विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि ,सं., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीवर्द्धमानाय, (२)नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंति: मदभयदेवाचार्यस्येति, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. ९००. ९३०७८. (4) चोविस तिर्थंकरना आंतरा, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आंतराना पत्र., कुल ग्रं. १८०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११,१२४३८-४४). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोडि सागरोपमनि; अंति: वर्ष उणानुं आंतरु जाणवु. ९३०८० (+#) शालिभद्र की चउपई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१(१६)=१६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सालभद्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६४११.५, १४-१६x४०-४४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीयइ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२४, गाथा-१३ से ढाल-२५, गाथा-६ अपूर्ण तक व ढाल-२७ के दोहा-३ अपूर्ण से नहीं है.) ९३०८१ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७-६(१,२०,२४,२६ से २७,२९)=३१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १३-१६x४०-५५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड-१, श्लोक-१८ अपूर्ण से कांड-३, श्लोक-४२२ अपूर्ण तक, कांड-३, श्लोक-४६८ अपूर्ण से कांड-४, श्लोक-७ अपूर्ण तक, श्लोक-४७ अपूर्ण से श्लोक-९१ अपूर्ण तक, श्लोक-१७३ अपूर्ण से श्लोक-२२१ अपूर्ण तक व श्लोक-२६५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २७१ ९३०८२ (+#) चंद्रलेहा चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सुवासुव., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४११,१७-१९४३४-४०). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० की गाथा-१३ तक लिखा है.) । ९३०८३. (+#) कर्मग्रंथ ३-४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३३-१४(३ से ६,१० से १९)=१९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०, १५४४२-४८). १.पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., प्रले.पं. गोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ३. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-७ से १६ तक नहीं है.) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सर्वशर्मप्रदं नत्वा, (२)कर्म परमाणुनौ जीवप्र; अंति: मतिचंद्रेण कृतिहेतवे, (पू.वि. गाथा-६ के बालावबोध अपूर्ण से १६ के बालावबोध अपूर्ण तक नहीं २. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. २०अ-३३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. रामविमल (गुरु मु. ज्ञानविमल); गुपि. मु. ज्ञानविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-३८ से है.) । षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मतिचंद्र० कृतिहेतवे, (पू.वि. गाथा-३७ के बालावबोध अपूर्ण से है., वि. सारिणीयुक्त पाठ.) ९३०८४. (+) नंदीसूत्र की स्थविरावली व आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १४-१६x४८-५२). १. पे. नाम, थेरावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जय जगजीवजोणी वियाणउ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. २अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-५२ अपूर्ण तक है.) ९३०८५ (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-५(२ से ६)=१२, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११). विचार संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वीरं गुरुश्च वंदित्व, (२)पृथ्वी अप तेउ वाउ; अंति: चउथइ गुणठाणइ वर्तइ, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९३०८६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७४११, १-६४४४-५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६, गाथा-१० अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बे प्रकारे; अंति: (-). ९३०८८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-७०(१ से १३,१५ से ३६,३९ से ६९,८१ से ८४)=१५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ५४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ के अंतिमसूत्र अपूर्ण से अध्ययन-२० सूत्र-२८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३०८९ (+) नवतत्वनी चोपई, संपूर्ण, वि. १८९५, फाल्गुन शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नवतत्वनी चोप०., संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १४४३८-४४). नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहंतना पाय युग; अंति: वरसिंघ० चितमा धरी, गाथा-१६७. ९३०९० (+#) चोवीस ठाणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११). २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असत्य वचन मसर वचन; अंति: (-), (पू.वि. उपसम वर्णन तक है.) ९३०९१. नारचंद्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-११(१,४ से ६,२१ से २४,२९ से ३०,३२)=२४, पठ. मु. सोमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७-४३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धः शुन्ये नारिः, श्लोक-२९४, (पू.वि. श्लोक-९ से है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.) ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आद्याक्षरे विलोकनीए, (वि. सारिणीयुक्त.) ९३०९२. (+#) गौतमपृच्छा कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. हुंडी:गोतमपृछा., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१०.५, १५-१७४३८-४८). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जिम आठमउ चक्रवर्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मोहलक्ष्मण कथा तक लिखा है.) ९३०९३. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से ३)=८, जैदे., (२७४११.५, १८x१०). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चार भांगा अपूर्ण से है व सत्तर असंजम के स्थान तक लिखा है.) ९३०९४. (+) रूपकमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १-४४४०-५२). रूपकमाला-शीलविषये, म. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ तक रूपकमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथन आदेस मागी; अंति: (-). ९३०९५ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १७X४८-५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, सूत्र-१ अपूर्ण से अध्ययन-१६, सूत्र-९ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३०९६. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१-४५(१ से १०,१८ से ५२)=१६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १८४४८-५५). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जन्मनक्षत्रफल अपूर्ण से शनिसाधन अपूर्ण तक __ व उच्चराशिफल अपूर्ण से चंद्रदशाफल अपूर्ण तक है., वि. सारिणीयुक्त.) ९३०९७. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-८(१ से ४,८,१३,१७,२०)=१५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. कृति अपूर्ण होने के कारण पत्रांक अनुमानित दिये गये है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५-१८४५४-६२). For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २७३ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-२०६ अपूर्ण से कांड-६ श्लोक-८३ अपूर्ण तक है.) ९३०९८. (+#) सालिभद्रधना चोपई, अपूर्ण, वि. १७४३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २०-१(१८)+१(८)=२०, ले.स्थल. चूंडा, प्रले. पं. मानसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सालिभद्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३-१५४३६-४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: वंछित फल लहिस्यै जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-२५, दोहा-६ अपूर्ण से ढाल-२७, गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ९३०९९ (+) मृगावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४४-५२). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३, ढाल-१२, गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ९३१०० (#) कर्परप्रकराव सूक्तकोश, संपूर्ण, वि. १५१९, आषाढ़ शुक्ल, १४, शनिवार, जीर्ण, पृ. ८, प्रले. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १६-१७४४६-५२). ___कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका, गाथा-१७८. ९३१०१ (+) मणरेवासतीनो रास, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. रुपनगढ, गुपि. सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या); सा. हीराजी आर्या (गुरु सा. उदाजी आर्या); प्रले. सा. गुलाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); पठ. सा. उदाजी (गुरु सा. सरूपाजी आर्या), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:मणरे०., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: बीसन सातमो प्रनारीनो; अंति: हिरसेवक चितलाई रे, गाथा-१८८. ९३१०२. कर्पूरप्रकर की कथा, अपूर्ण, वि. १५५१, मध्यम, पृ. २२-१६(१ से १६)=६, ले.स्थल. विद्यापुरनगर, प्रले. ग. धर्मसुंदर (गुरु पं. धर्ममंगल गणि); गुपि. पं. धर्ममंगल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १९४५९). कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शिवासोख्यानिलश्चवान, कथा-१५७, (पू.वि. श्लोक-९७ सुबुद्धिमंत्रीकथा अपूर्ण से है.) ९३१०३. नवतत्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:नवतीत., जैदे., (२६४११, १६४३७). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीवा पुन पाप आस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तीर्यंच जीव वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ९३१०४. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति-३,४ अध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-७(९ से १५)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५१-५५). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९३१०५. (+) योगविधि, अपूर्ण, वि. १६६५, कार्तिक शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. १८-१३(१ से १३)=५, ले.स्थल. अहमदनगर, प्रले. ग. गोपाल गणि (कोडिन्यगोत्र, वज्रशाखा); ग. संघमाणिक्य (गुरु ग. गोपाल गणि, कोडिन्यगोत्र, वज्रशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२४३५). __ योगोद्वहनविधि यंत्रसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एवं सर्वकाल ३०दिन ३.. ९३१०६. (+) प्रवचनपरीक्षा सह स्वोपज्ञवृत्ति व बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४०, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:प्रवचन परिक्षा., संशोधित-त्रिपाठ., दे., (२६४१२, १२४४३). १. पे. नाम. प्रवचनपरीक्षा सह स्वोपज्ञवृत्ति, पृ. १आ-५२२आ, संपूर्ण. प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: पणमिअणाणनिहाणं वीर; अंति: सहस्सकिरणो जयउ एसो, विश्राम-११, ग्रं. १२०५. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२९, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) इह हि तावत् प्रारिप्सित; अंति सूचितं बोध्यमिति गाथार्थः, विश्राम-११, ग्रं. १४३८७. २. पे. नाम, प्रवचनपरीक्षा बीजक, पृ. ५२३ आ-५४०आ, संपूर्ण. प्रवचनपरीक्षा- बीजक, सं., गद्य, आदि: पणमिअ इत्यादि गाथा; अंति: निराकरण विश्रामबीजक. ९३१०७ (+) भरहेसरबाहुबली वृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४८५, ले. स्थल. महेसाणानगर, प्रले. पं. खिमाविजय गणि (गुरुग खुसालविजय पं.); गुपि. ग. खुसालविजय पं. (गुरुग. सुखविजय); ग. सुखविजय (गुरु ग. रूपविजय): ग. रूपविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि) आ. विजयप्रभसूरि अन्य. ग. रंगविजय (गुरु मु. कृष्णविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी भरहेसरबाहुबलीवृत्ति, संशोधित. जैये. (२६४१२, १६x४५). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदिः युगादौ व्यवहाराध्वा; अंति: तमोर्हदादिसाक्षिकम्, अधिकार- २. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरहेसर सज्झाय-वृत्ति का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः युगने आदे व्यवहार अति: अरिहंतनि साखी ९३१०८ (+) उपदेशप्रसाद स्तंभ १० से १८ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, ७x४८-५८). " उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं. प+ग. वि. १८४३, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान- २५५ अपूर्ण तक है.) उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९३१०९. (+) ओपपात्तीकादशोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १०७, प्रले. मु. सुमतविजय (गुरु मु. जीवणविजय); गुपि. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी:उवाईसूत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५X११, ५x२८-४२). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र- २२, ग्रं. १६००. औपपातिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि चडथा आरानइ विषइ वरस अति सुख पाम्या थका ९३११०. (+) सूक्तमाला सह टवार्थ व कथा प्रथमवर्ग, अपूर्ण, वि. १८८७ श्रावण शुक्ल, ४ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. १०७-८ (१ से ८)=९९, ले.स्थल. रामसीण, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणि; गुभा. मु. मानविजय (गुरु ग. विनयविजय); गुपि. ग. विनयविजय (गुरु पं. चंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. श्रीऋषभदेवजी श्रीवीरप्रभूजी प्रसादात् संशोधित, जैदे. (२५x११.५, १५-१६x४६-५६). " " सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि (-) अंति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. वर्ग-१, श्लोक ८ से है.) सूक्तमाला -टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., गद्य वि. १८२७, आदि (-); अंति (-), प्रतिअपूर्ण. सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु. सं., प+ग, वि. १८३०, आदि (-) अति (-), प्रतिअपूर्ण, 3 ९३१११. (+) ८४ गच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १३X३६). ८४ गच्छ पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमांनस्वामिनें; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाट-६९ अपूर्ण तक लिखा है.) ९३११२. गजसिंह चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५५, ले. स्थल अगरवगरी, प्रले. मु. रंगविजय (गुरु पं. जीतविजय): गुपि. पं. जीतविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय) पं. वृद्धिविजय (गुरु पं. सुमतिविजय): पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : गजसिंहचरित्र. श्री आदिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५X११.५, १५X४०-४४). गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: श्रीजिन चोविसे नमुं; अंतिः कीर्त्तिकमला ते लहे, ढाल - ६४. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९३११३. (+) श्रीपाल कथा सिद्धचक्रमहात्म्यं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ८२, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. पं. दयालाभ (गुरु ग. हितप्रमोद); गुपि.ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्रं., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ८४४२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १६७५. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद; अंति: वर्ततां जाणतां थका कथा एह. ९३११४ (+) विक्रमादित्यभूपालचंद रास, अपूर्ण, वि. १८१४, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ६८-४(१७,३१,४१,५५)+३(१६,३५,३९)=६७, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. रुपचंद (गुरु पंडित. यशोविजय गणि); गुपि. पंडित. यशोविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४४०-४४). विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पय; अंति: लखमीवल्लभ०उछरंग वधाइ, खंड-६, गाथा-३१६८, (वि. ढाल ७५) । ९३११५. (+#) अठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०३, भाद्रपद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. लोहियावट, प्रले. मु. मेघसुंदर (उकेसगच्छ); पठ. श्रावि. मेघीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आठाई०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १२-१३४३२-४०). अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमंदिर, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदिः (१)शांतिदेव प्रणाम कर, (२)शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: मनो०छितरी सिद्ध हुवै. ९३११६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५३-४(११८ से १२१)=२४९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, ४-८x२५-२८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३६, गाथा-२४७ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)धर्मनु मूल ते विनय यदुक्त, (२)संयोग बे प्रकारे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९३११७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२१-१(११२)=१२०, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:राजप्रश्न०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६४४०-४५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. "से दढपइण्मे केवलीए यारूवेणं" पाठ तक हैं, बीच का पाठांश नहीं हैं.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिनेश्वरचरण; अंति: (-). ९३११८.(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १०५, ले.स्थल. चंडावलनगर, प्रले. मु. खुशालसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य); गुपि. ग. जयसौभाग्य (गुरु ग. नेमसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्याकर०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, जैदे., (२५४११, ४-६४३६-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू तेणं कालेणं तेण; अंति: भविस्सत्ती तिबेमि, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंबू० हे जंबू एह; अंति: अनंता सुख पामे. ९३११९ (+) अध्यात्मकल्पद्रम का शांतरस अधिकार-शांतरसवर्णन, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष कृष्ण, १०, शुक्रवार, प्रले. मु. अमीचंद्र (गुरु मु. नेणचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. मु. नेणचंद्र (गुरु भट्टा. भाणुचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); भट्टा. भाणुचंद्रसूरि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजीतनाथजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (५०७) जब लग मेर अडिग हे, जैदे., (२६४१२.५, १४४४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अध्यात्मकल्पद्रम-हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो सदाकाल; अंति: आत्मभावना भाववी, ग्रं. १८५०. ९३१२०. (+) पज्जोसवणाकपोनामदसासुय, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रावण कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७७, पठ. मु. हीरविमल; अन्य. मु. जयंतविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि); गुपि. आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ९४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. ९३१२१. (+) श्रीपालनरेंद्र कथा सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८७४, भाद्रपद शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १३७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३६-३९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १५५०. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूर्णि, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: ध्यात्वा नवपदी भक्त; अंति: दतु समृद्धिं लभताम्, ग्रं. ३०२२. ९३१२२. (+) हैमकोमदी सह प्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:हैमकौमुदी., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६-१९४५०-५४). सिद्धहेमशब्दानुशासन-चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमदहँतं, (२)अहमित्यक्षरं; अंति: (-). सिद्धहेमशब्दानशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-). ९३१२३. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७०-१२५(१ से १२५)=४५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१३४३७). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.ग.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण.. पार्श्वजिन जन्मकल्याणक प्रसंग से है व स्थविरावली आचार्य श्रीजिनमुक्तिसूरि तक लिखा है., वि. मूल का प्रतिक पाठ दीया गया है.) ९३१२४. (+#) उपदेशमाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-२५(१,३ से ५,७,१४,१७,२० से २१,२४,२६,२८ से २९,३२,३५ से ३७,४३,४८ से ५४)=३१, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१२, १४४३८-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५३ तक है.) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., रणसिंहनृप संबंध अपूर्ण से नंदिषेण कथानक अपूर्ण तक है.) ९३१२५ (+#) रत्नसंचय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ६-७४३५-३९). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: घणं गाहागामे भणिया, गाथा-५५०. रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर परमेश्वरने; अंति: ए सर्वगाथा आगममां कही छै, (वि. १८५८, चैत्र शुक्ल, १५, ले.स्थल. साणंद)। ९३१२६. (+) प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९६६, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. जयगोपाल पुरोहित; उप. म. हंसविजय' (गुरु म्. लक्ष्मीविजय', तपागच्छ); गुपि. मु. लक्ष्मीविजय * (गुरु आ. विजयानंदसूरि', तपागच्छ); आ. विजयानंदसूरि* (गुरु मु. बुद्धिविजय', तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तर., संशोधित., दे., (२६४११, १२४३०-३४). प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तारा सातसेनेउ जोजने; अंति: माटे सरिरनुं न थयुं, प्रश्न-१५२. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २७७ ९३१२७. पर्युषण कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-१(१)=५७, प्र.वि. कुल ग्रं. १२१६, जैदे., (२५४११.५, ११४३७-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (अपूर्ण, पू.वि. "दसमसुसमाएसमाए" पाठ से हैं.) ९३१२८. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. राजनगर अहमदाबाद, प्रले. मु. सरुपचंद (गुरु मु. हरखचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आगमसार. श्रीसिद्धगिरि प्रसादात्., ., (२५.५४११.५, १८४३०-३७). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: अथ भव्य जीवनें; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ९३१२९ (+) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५०-१(१)=४९, प्रले. मु. मानसोम (गुरु मु. नरेंद्रसोम); गुपि. मु. नरेंद्रसोम (गुरु मु. फतेहसोम); मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मानतुंगमानवतिचौ०. श्रीऋषभदेवप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८-४०). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः (-); अंति: मोहनविजय मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ९३१३० (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवैल कवियण भणी; अंति: (-), खंड-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४, ढाल-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९३१३१ (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. पूर्णचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल चरित्र., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११, १५४३२-३७). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं च; अंति: सिद्धचक्रमहिमा जातः, प्रस्ताव-४. ९३१३२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-१३(३ से १४,१६)=३९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४३८-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-२ की गाथा ११ अपूर्ण से अध्ययन-४ गाथा २७ अपूर्ण तक व अध्ययन-५ की गाथा १० अपूर्ण से गाथा २२ अपूर्ण तकक नहीं हैं., वि. चूलिका २) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० धर्म श्रीजिन; अंति: शीष्यने श्रावकनेइ कहइ. ९३१३३. (+) उपदेशप्रासाद-स्तंभ १५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४११.५, ६-७X४६-५२). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग., वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. व्याख्यान-२१७ अपूर्ण तक है.) उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९३१३४. (+) समैसारनाटकनाम सिद्धांत, पूर्ण, वि. १७९९, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४४-१(३६)+१(२६)=४४, पठ. ग. भोजासागर (परंपरा ग. उत्तमसागर); प्रले. ग. उत्तमसागर (परंपरा ग. प्रतापसागर); गुपि. ग. प्रतापसागर (गुरु पंडित. भाणसागर); पंडित. भाणसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:समयसारना०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (४०६) मूषकानलचौरेभ्यः, जैदे., (२६.५४१२, १६x४३-४५). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (अपूर्ण, पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३१३५ (+) ज्ञानसार सह स्वोपज्ञ टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ५३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ३४२८-३४). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८५, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: स्वीयं कृतं मंगलम्, अष्टक-३२, श्लोक-२७३. ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवंदनतं नत्वा; अंति: (१)पोतानु ज मंगल कीधु, (२)श्रीयशोविजय वाचकैरयं. ९३१३६. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५६, प्रले. पं. हुकमचंद; पं. देवीचंद; पठ. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंदजी); पं. वृद्धिचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२४३३-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो० तेणं कालेणं तेण; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. ९३१३७. (+) उत्तराध्ययण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१९-१०८(१ से १०८)=१११, अन्य. मु. रूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी;उत्तरा०टबो पत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६-७४३७-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. अध्ययन-२३ की गाथा-१६ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुं तुझ प्रते कह्यो. ९३१३८, (+) मुनिपति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३-४२(१ से ४२)-४१, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४६). मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३५ की गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-७२ की गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ९३१३९. संघयणसूत्र प्राकृतबंध, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्रले. क. केसरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघयणसु०., दे., (२६४११, ८x२२-२५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८३. ९३१४० (+) सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-७(४१,५१ से ५२,५४,५८ से ६०)=५५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५-६४३७-५२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं भगवया; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्धमानं जिनं नत्वा सूत्र, (२)श्रीवीर समायइ हे आयुष्म; अंति: (-). ९३१४१ (+) अंतगडसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-३(५ से ७)=३४, प्र.वि. हुंडी:अंतगडट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ७४४२-५०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९, (पू.वि. वर्ग-३ अपूर्ण से वर्ग-३ अध्ययन-८ अपूर्ण तक हैं.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले चउथो आरो; अंति: छइ तिम जाणवा. ९३१४२ (+) सिरिसिरिवाल कहा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६४-२६(१ से २६)=३८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,७४३८-४४). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८१ अपूर्ण से ९४८ अपूर्ण तक है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २७९ ९३१४३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व्याख्या व कथा, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २२१, ले.स्थल. वेजपुर, प्रले. दणंद्रराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६-१३४३३-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)सकलार्थसिद्धिजननी, (२)श्रीमजिनवरीधीश; अंति: ए श्रीपर्युषणाकल्प कहीइ. ९३१४४. (+) शत्रुजय महात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४८-४(१ से २,५१,१५३)=२४४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ८४३२-३८). शजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१५ अपूर्ण तक तथा बीच-बीच का पाठांश नहीं है व श्लोक ९२० तक लिखा हैं.) शQजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९३१४५. (+) पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५४+९२(१ से ९२)=२४६, प्र.वि. हुंडी:श्रीपार्श्वचरि०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ६४३६-३७). पार्श्वनाथ चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-६ श्लोक-५५१ तक लिखा है.) पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, म. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८००, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-२ श्लोक-७७२ से टबार्थ लिखा हैं.) ९३१४६. (+#) शत्रंजय माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१८-५१(१,२६५ से ३१४) २६७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३९-४२). शजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., सर्ग-१, श्लोक-५ अपूर्ण से सर्ग-५ श्लोक-३५ अपूर्ण तक है.) । शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है. ९३१४७. (+#) नाटक समयसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५-११४४०-४६). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: मैं परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७. समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहि., गद्य, वि. १७९८, आदि: जिन वचन समुद्रकौ; अंति: (१)पातसाहसौ मुजरौ कीनौ, (२)सिद्ध साख हम दीन. ९३१४८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५-१४४३३-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. ऋषभदेव जीवन प्रसंग अपूर्ण तक हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: चोथा आरानो अंतरुप; अंति: (-). कल्पसूत्र-कल्पप्रदीप बालावबोध, मु. भानुविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीपार्श्व प्रणिपत; अंति: (-). ९३१४९. (+) रायपसेणइयंसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, नंदरसाष्टचंद्र, कार्तिक कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३८, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); गुपि. ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); पठ. पं. खुबचंद (अज्ञा. पं. मूर्तिकुशल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:रायपसेण०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२५४११, ७-८४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 9 राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अति पस्स सुपस्सवणीए णमो सूत्र- १७५ . २००० राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) देव देवं जिनं नत्वा, (२) अरिहंतनइ० तिण काले; अंति: राज० टबार्थ कृत, ग्रं. ३२६८. ९३१५०. (+) परमागम समयसार नाटक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५१, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद लकीरें., जैदे., (२६x११.५, ५X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: ब्रह्म कहावत सोई, अधिकार- १३, गाथा- ७२७, ग्रं. १७०७. समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहिं., गद्य, वि. १७९८, आदि: (१)श्रीजिनवचन समुद्रको, (२)श्रीपार्श्वनाथस्वामी; अति: (१) पातसाहसौ मुजरौ कीनी, (२) सिद्ध साख हम दीन. ९३१५१. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९३ - १ (२) - ९२. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी बरिसैसूत्र, जैवे., (२५X१०.५, ९X२५-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-), (पू.वि. "आसाढ सुद्धस्स छठी दिवसेणं" पाठ से "तंजहागय १ वसह २" तक व "कप्पइ निगंथाणवा नि०" के बाद का पाठ नहीं है.) ९३१५२. (+#) कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५३५, जीर्ण, पृ. ९८, ले. स्थल. रोहिडा, प्रले. मु. ठाकुर ऋषि (गुरु ग. सिद्धकुशल); गुपि. ग. सिद्धकुशल राज्ये आ. विजयसेनसूरि (गुरु आ हीरविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत में सं. १५३५ दिया है, किंतु वस्तुतः लिखावट के आधार से १८वीं की लिखी हुई प्रतीत होती है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२५x११, ११-१२x२०-२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेह ति बेमि, व्याख्यान- ८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र- टीका, सं., गद्य, आदि प्रथमे पुरिमाणोत्पाद; अति तेणं कालेणामित्यादि. ९३१५३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९११ आश्विन शुक्ल २, मध्यम, पृ. ५६, प्रले. मु. वृद्धिचंद्र (गुरु मु. सरीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X११.५, ५X४०-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: निच्चला होसु, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका २) दशवेकालिकसूत्र- टवार्ध" मा.गु., गद्य, आदि धर्म केवली भगवंतनो अति धर्मन विषई चलाविवो, ९३१५४ (+) बारव्रत टीप, पूर्ण, वि. १९०७, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२४-१ (१) + १(३१)= १२४, ले. स्थल. लसकर, लिख श्राव. बागमल्लजी डागा सेठ प्रले. सीताराम अन्य. मु. जीवाजी ऋषि (गुरु मु, लालचंद ऋषि); वसंतराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी : वारैवृतकी०, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X१२, १०-१२X३०-३४). १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जन्मजरा गर्भ ए सव टलै, (पू.वि. "छठा अविरति दोष" पाठ से है.) ९३१५५ (+) स्तुति स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९०, कुल पे ४९, प्रले. मु. तोगा (गुरु मु. माणिकचंद, खरतरगच्छ); गुपि. मु. माणिकचंद (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जै., (२५.५X१२, १२X४०). १. पे. नाम, भाषासहस्त्रनाम स्तोत्र, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण " जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहिं पद्म, वि. १६९०, आदि परम देव परनाम करि अति प्रगट्यो नाम कवित्त, शतक-१०, गाथा - १०२. २. पे नाम. सिंदूर प्रकरण सूक्तिमुक्तावली. पू. ६अ १६आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस; अंति: वानारसि० विस्तार अधिकार - २२, गाथा - १०४. ३. पे. नाम. बनारसी कृत बावनी, पृ. १६आ-२३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २८१ सवैयाबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.ग., पद्य, वि. १६८६, आदि: ॐकार सबद विहदया के अंति: गणग्रहि लीजीयौ, गाथा-५२. ४. पे. नाम. वेदनिर्णय पंचासिका, पृ. २३अ-२६आ, संपूर्ण. वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: जगत विलोचन जगतहित; अंति: नर विवेक भुजबल रहित, गाथा-५१. ५. पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष का नाम, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो जिनवर० देव चौवीस; अंति: रघुनाथ नाथपदम नवराम, गाथा-१४. ६. पे. नाम. बासठवरगना विधान, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वंद देव जुगादि जिन; अंति: वनारसी कीजै मोख उपाउ, गाथा-२८. ७. पे. नाम. कर्मप्रकृति विधान, पृ. २९अ-३६आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७००, आदि: परमशंकर परमभगवान परम; अंति: तब यह भयो सिद्धत, गाथा-१७६. ८. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. ३६आ-३९अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: कारन समकित सुद्ध, गाथा-४४. ९. पे. नाम. साधु वंदना, प. ३९अ-४०अ, संपूर्ण. साधवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजिनभाषित भारती; अंति: बनारसी० अविचल मोक्ष, गाथा-३२. १०. पे. नाम. मोक्षमार्ग पैडी, पृ. ४०अ-४१आ, संपूर्ण. मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पहिं., पद्य, आदि: एक समे रुचिवंतनो; अंति: यों मढ न समझैलेस, गाथा-२३. ११. पे. नाम, कर्म छत्तीसी, पृ. ४१आ-४३अ, संपूर्ण. कर्मछत्तीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमनिरंजन परमगुरु; अंति: मूढ़ बढावे सृष्टि, गाथा-३७. १२. पे. नाम, ध्यान बत्रीसी, पृ. ४३अ-४४आ, संपूर्ण. ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान सरूप अनंतगुन; अंति: यथा सकति परवान, गाथा-३४. १३. पे. नाम. अध्यात्म बत्तीसी, पृ. ४४आ-४५आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: परगाससौ आवागमन न होइ, गाथा-३१. १४. पे. नाम. ज्ञानपचीसी, पृ. ४५आ-४६आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजच जग जोनि; अंति: आपकुं उदय करन के हेत, गाथा-२५. १५. पे. नाम, शिवपच्चीसी, पृ. ४६आ-४७आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ब्रह्मविलास विकासधर; अंति: वनारस० शिव रीति, गाथा-२६. १६. पे. नाम. भवसिंधु चतुर्दशी, पृ. ४७आ-४८आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जैसे काहू पुरुषको; अंति: मुनि चतुर्दसी होइ, गाथा-१४. १७. पे. नाम. अध्यात्म फाग, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: अध्यातम बिन क्यों; अंति: हो फिरत नही खेलत कोय, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८. पे. नाम, तिथि षोडशी, पृ. ४९अ-५०अ, संपूर्ण. १५ तिथि चौपाई, म. तुलसी, मा.ग., पद्य, आदि: परिवा प्रथम कला घटि; अंति: जती तुलसी वनवासी, गाथा-१७. १९. पे. नाम. तेरह काठिया सज्झाय, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, पहिं., पद्य, आदि: जे वट पारै वाटमै करै; अंति: दसा कहिये तेरह तीन, गाथा-१७. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. ५०आ-५१आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ओधि अजोध्या आतमराम; अंति: यह परमारथ निदान, गाथा-१५. २१. पे. नाम. पंचपद विधान वर्णन, पृ. ५१आ-५२अ, संपूर्ण. पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो ध्यान धर पंचपद; अंति: पद उलटि सदा शिव होइ, गाथा-१२. २२. पे. नाम. सुमतिदेवी शतक, पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण. सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: नमो सिद्धिसाधक पुरुष नमो; अंति: यह सुबुद्धिदेवी वरनी, गाथा-६. २३. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल रुप भगवान; अंति: वनारसी० संसार कलेस, गाथा-१०. २४. पे. नाम. नवदुर्गा विधान, पृ. ५३आ-५४आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम हि समकितवंत; अंति: सुमति अनेकभांति वरनी, गाथा-९. २५. पे. नाम. नाम निर्णय विधान, पृ. ५४आ-५५अ, संपूर्ण. नामनिर्णय विधान, पुहिं., पद्य, आदि: काह दिन काह समै; अंति: ते निरास निर्लेप, गाथा-११. २६. पे. नाम. नवरत्न कवित्त, पृ. ५५अ-५६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धनंतरि छप्पनक अमर; अंति: ए जगमै मूरख वदति, गाथा-११. २७. पे. नाम, जिनपूजा अष्टक, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: जलधारसु दीजे अर्थ अभंग, गाथा-१०. २८. पे. नाम. दस दान विधि, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण. दशदान विधान, पहिं., पद्य, आदि: गो सवर्ण दासी भवन; अंति: हित अहित आनकी आन, गाथा-१४. २९. पे. नाम. दस बोल पद, पृ.५७अ-५७आ, संपूर्ण. १० बोल पद, पुहिं., पद्य, आदि: जिन की भांति कहों; अंति: कहीयै जिनमत सोय, गाथा-१२. ३०. पे. नाम. आध्यात्मिकज्ञान प्रश्न पहेली, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण. आध्यात्मिकज्ञान प्रश्नपहेली, पुहि., पद्य, आदि: कुमति सुमति दोउ; अंति: भइ यहै सोति घर छांह, गाथा-११. ३१. पे. नाम. प्रश्नोत्तर दस दोहरा, पृ. ५८अ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तर १० दोहरा, पुहि., पद्य, आदि: कोन वस्तु वपुमांहि; अंति: मै कंचन पाहन मांहि, गाथा-१०. ३२. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. ५८अ-५९अ, संपूर्ण.. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमित सीस गोविंदसौ; अंति: भानुसुगुरुपरसाद, गाथा-२१. ३३. पे. नाम, अवस्थाष्टक, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: चेतन लच्छन नियतनै; अंति: निराकार निरदंद, गाथा-८. ३४. पे. नाम. षड्दर्शनाष्टक, पृ. ५९आ-६०अ, संपूर्ण. __पुहिं., पद्य, आदि: शिवमत बोध सुवेदमत नैयायक; अंति: खंड सौ दशा छानवै और, गाथा-८. ३५. पे. नाम. चारवर्ण दोहरा, पृ. ६०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-४ वर्ण, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, आदि: जो निहचे मारग गहे; अंति: जो मिश्रित परिनाम, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३६. पे. नाम. अजितजिन छंद, पृ. ६०अ-६०आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयमगणहरपय नमो सुमरि; अंति: सेवक सिरीमाल बनारसि, गाथा-५. ३७. पे. नाम. शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, पृ. ६०आ-६१अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद, पुहिं., पद्य, आदि: सहि एरी दिन आज सुहाय; अंति: धन्य सयानी सहीए, गाथा-२. ३८. पे. नाम. शांतिजिन छंद- त्रिभंगी, पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अंति: शांतिदेव जय जितकरन, गाथा-९. ३९. पे. नाम. नवसेना विधान, पृ. ६१आ-६२आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: प्रथम महिपतिनाम दल; अंति: अच्छौहिनि परधान किय, गाथा-१२. ४०. पे. नाम. समयसार सिद्धांत नाटक कवित्त, पृ. ६२आ, संपूर्ण. समयसारसिद्धांतनाटक के कवित, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम अग्यानी जीव; अंति: रनति अष्टकर्मविनास ए, गाथा-४. ४१. पे. नाम. मिथ्यात्वमत वाणी, पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण. मिथ्यात्व वाणी, पुहिं., पद्य, आदि: नारायण देवको कहें कि; अंति: अष्टकर्म विनासए, गाथा-४. ४२. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ६३अ-६५आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पूरव कि पछिम हो; अंति: पुद्गल के गुन वीस, गाथा-२३. ४३. पे. नाम. गोरखनाथ वचनिका, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण. गोरखनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: जो भग देखि भामिनी; अंति: वादविवाद करे सो अंधा, गाथा-७. ४४. पे. नाम. वैद्य लक्षण, पृ. ६६अ-६७आ, संपूर्ण. वैद्यलक्षणादिप्रस्ताविक कवित्त, पुहि., पद्य, आदि: करमरोग की पर किति; अंति: सहज सुष्टता सोइ, गाथा-४१. ४५. पे. नाम. चौभंगीरुप कारन वचनिका संग्रह, पृ. ६८अ-७६अ, संपूर्ण. चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, पुहि., गद्य, आदि: एक जीव द्रव्यता के; अंति: अशुद्ध रुप विसार. ४६. पे. नाम. उपादान नमित्त दोहा, पृ. ७६अ, संपूर्ण. उपादान निमित्त दोहा, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: गुरु उपदेश निमित्त; अंति: में धरे स तैसे भेष, गाथा-७. ४७. पे. नाम. बारह भावना विलास, पृ. ७६आ-८२अ, संपूर्ण, वि. १८७९, ?, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, ले.स्थल. कांबा, प्रले. मु. तोगा (गुरु मु. माणिकचंद, खरतरगच्छ); गुपि. मु. माणिकचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणयुग पास; अंति: बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा-५२. ४८. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. ८२अ-८८आ, संपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ कृष्ण, ६, ले.स्थल. कांबा, प्रले. मु. तोगा (गुरु मु. माणिकचंद, खरतरगच्छ); गुपि. मु. माणिकचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीकांबेसरजी प्रसादात्. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे; अंति: पूरे वांछित आसो रे, अध्याय-१०. ४९. पे. नाम. चार प्रत्येकबुध सज्झाय, पृ. ८९अ-९०अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समयसंदर० पाटण परसिध, ढाल-५. ९३१५६. त्रेवीशमोदय, संपूर्ण, वि. १९४८, भाद्रपद शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. कांबा, प्रले. पं. रत्नचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १२-१४४२९-३४). दुषमप्राभूत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को., आदि: नमः श्रीभद्रबाहवे; अंति: गुणा जुगप्पहाण समा. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३१५७. (+) तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९८४, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४७, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पंडित. जगन्नाथ ओझा; अन्य. पं. सौभाग्यविजय; पंन्या. कल्याणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तित्थोगालीपयन्नउ, दे., (२५४१२.५, ११४४८-५०). तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ ससिपायनिम्मलतिह; अ ति: एसा भणिया उ अंकेणं, गाथा-१२५९, ग्रं. १५६५. ९३१५८. (+) भरहेसर सज्झाय की टीका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ६१८-५३४(१ से ५३४)=८४, प्रले. ग. हुकमहंस (गुरु पंन्या. तिलोकहंस); गुपि.पंन्या. तिलोकहंस (गुरु पंन्या. यूक्तहंस); पंन्या. यूक्तहंस; पठ. सा. सूर्यश्रीजी (गुरु सा. अजबश्रीजी); गुपि.सा. अजबश्रीजी (गुरु सा. प्रेमश्रीजी); सा. प्रेमश्रीजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:भरेसरवृ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ९४३२-३५). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: (-); अंति: तमोर्हदादिसाक्षिकम्, अधिकार-२, (पू.वि. ऋषिदत्ता कथा अपूर्ण से है.) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अरिहंतनी साखै. ९३१५९ वर्द्धमान देशना, अपूर्ण, वि. १९४९, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५०-७(१ से ७)=४३, दे., (२६४१२, १४४३५-३७). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शोधयंतु गतमत्सराः, उल्लास-१०, ग्रं. ४३००, (पू.वि. "तदा भ्राता ग्रामंतरे गतोभूत" पाठ से है.) ९३१६० (+) मेरुत्रयोदशी, मौनएकादशी व दीपावलीपर्व कथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१३, माघ कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ८, प्रले. मु. वृद्धिचंद्र (गुरु मु. सरीचंद); गुपि. मु. सरीचंद (गुरु आ. देवीचंद); आ. देवीचंद; पठ. श्राव. वीरचंद फतेचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १४४४०). १.पे. नाम, मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, म.क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. २.पे. नाम. मार्गशीर्षशक्लैकादशी कथा, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: समोक्षसौख्यं प्राप्त. ३. पे. नाम. दीपमालिका व्याख्यान, पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जाते वीरजिनस्य निवृत; अंति: विझवणं रायभुवणं वा. ४. पे. नाम, सौभाग्यपंचमी तपोपरि कथानक, पृ. १३अ-१६आ, संपूर्ण. वरदत्तगणमंजरी कथा, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ५. पे. नाम. चैत्रशुक्लपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. १६आ-१९आ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: जीवराज० भिर्विशेषकं. ६. पे. नाम, अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १९आ-२१आ, संपूर्ण. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. ७. पे. नाम, होली कथानक, पृ. २१आ-२४अ, संपूर्ण. ____ होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे ऋषभैक; अंति: धर्मेजाता महा दृढा, श्लोक-६४. ८. पे. नाम, चतर्मासिक व्याख्यान, पृ. २४अ-३४अ, संपूर्ण. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा; अंति: ततः सर्वेष्टार्थसिद्धिः, ग्रं. ४०१. ९३१६१. गुर्वावली-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. जोधपुर, दे., (२६.५४१२.५, १३-१५४३७). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २८५ पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: जीयात्सुर्जगत्याम्. ९३१६२. सिंदूरप्रकर व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. स्याणा, प्रले. मु. गणपतविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); गुपि.पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी;सिंदुरप्रकरण टबार्थ. श्रीसुविधिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२५४१२, ६४३०-३५). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १आ-२०आ, संपूर्ण.. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आत्मवर्गपरित्जेत्; अंति: आरुढोगज मस्तके, श्लोक-२. ९३१६३. नेमिजिन चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८९-५४८(१ से ४७२,४७७ से ४७८,४८४ से ४८७,४९० से ४९८,५०४ से ५१९,५३२ से ५४०,५४२ से ५५५,५५९ से ५७२,५७४ से ५७६,५८० से ५८१,५८३ से ५८४,५८८)=४१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, ७४३६). नेमिजिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९३१६४. चौमासीपर्व देववंदन, पूर्ण, वि. १९४६, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्राव. भानीराम वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १०४३२-३६). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे, ग्रं. ४२५, संपूर्ण. ९३१६५ (+) सूक्तमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. कुसालपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४३३-३७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: तेइ मोक्षसाधि जि केइ, वर्ग-४, श्लोक-१७६. सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व जे शुभ करणीनी; अंति: अजर अमर पद पावई. ९३१६६. (+) राजसिंघ रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. हुंडी:राजसिंघरास., संशोधित., दे., (२६४११.५, १७४३७-४०). राजसिंघ रास, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: श्रीआदि जिन आदे करी; अंति: सुणजो आणी हर्ष उलास, ढाल-३६, गाथा-१९८१. ९३१६७. साधविधि प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९१८, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १६, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १८४४५-५४). साधविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य तीर्थेशगणेशमुख्या; अंति: दिवसुस्ससग्गो दुसज्झाओ. ९३१६८.(+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पंन्या. ऋद्धिविजय; पठ. पं. लावण्यकुशल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३.५, १३४३१-३५). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०१संपदा; अंति: सा अम्ह सया पसत्था. ९३१६९ (+) दीपावलीपर्व कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-४(१३ से १६)=१३, प्र.वि. हुंडी:दिपोच्छवः, संशोधित., जैदे., (२६४१२, ६४३०-३५). दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उप्पायविगमधुवमयमसेस; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-७९ अपूर्ण तक व गाथा-११६ अपूर्ण से १२५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उप्पन्नेवा सर्व वस्त; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६९ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९३१७० (+) वर्धमान विद्या, भक्तामर स्तोत्र व कल्पादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ६, ले.स्थल. आहोर, प्रले. श्राव. वरधीचंद्र सा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतीनाथजी पार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७७१३.५, १८४४३). १. पे. नाम. वर्धमान विद्या, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचपरमेष्टी कल्प. वर्धमानविद्या, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: शुपनामां भव कहे देवी. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भक्तामर स्तोत्र. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र मंत्र, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन शुक्ल, १४, पे.वि. हुंडी:भक्तामर स्तोत्र. भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भक्तामरेति प्रथम; अंति: भक्तामरना काव्य छे. ४. पे. नाम, नमोत्थुणं कल्प सह मंत्राम्नाय, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोथूणं अरिहंताणं; अंति: नमोजिणाणं अभयाणं, गाथा-१०. शक्रस्तव-शक्रस्तवाम्नाय, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)ॐ नमुत्थुणं० ॐ, (२)ॐ ह्राँह्रीह्ह्रौंह; अंति: सर्वभयरक्ष भवति, मंत्र-१६. ५.पे. नाम, ज्वालामालिनी कल्प, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: (१)सर्वसिद्धिलक्ष्मी शांतीकर, (२)ही सत्यमेव छे, (वि. यंत्र सहित.) ६.पे. नाम, उवसग्गहर मंत्र-बीजक, पृ. १८आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐह्रीं श्रीपार्श्वसविसहर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "उपवास करवो" पाठ तक लिखा है.) ९३१७१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १९४५६-६०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: (-), (पू.वि. अब्भुट्ठीयो सूत्र तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: नमस्कारः अस्तु इति क्रिया; अंति: (-). ९३१७२. जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि; पठ. श्राव. रामचंद; श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १२४३२-४४). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवचार०. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्व०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-६८. ९३१७३ (+) कुर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५५, पौष शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १९-२(१ से २)=१७, ले.स्थल. भाभर, प्रले. ग. लालविजय (गुरु ग. हरखविजय पंडित); पठ. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक हेमविजय गणि का नाम मिटाया गया है. श्रीकुंथुनाथ प्रशादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ६००२१, जैदे., (२५.५४१२, ५४४८-५५). कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनंतहंस, प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: वाइअंतं चिरं जयउ, गाथा-१९८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण से है.) कुम्मापुत्त चरिअ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण.. गाथा-१२ तक का टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २८७ ९३१७४. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. सुजाण ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराद्धे०, जैदे., (२५.५४१२,१५-१७४३२-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ९३१७५ (+) अक्षयतृतीयापर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्र०., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, ६४४०). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: गद्यवार्ता रचितवान, (, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७)। अक्षयतृतीयापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पोताने छे अष्टमहाप्रतिहार; अंति: मिच्छामि दक्कडं, (, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११) ९३१७६. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. हुंडी:गौतमपृच्छा, जैदे., (२६.५४१३, ८-११४५०-५३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६५. गौतमपच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमस्कार; अंति: श्रीवीरप्रभुजी का. गौतमपच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागनी वाणी; अ पुरण भावता. ९३१७८. ढालसागर-ढाल १२२ से १३७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:ढालसागर., दे., (२४४१२.५, १५-१७४३४-४४). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१३७ गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ९३१७९ (+#) दंडक गर्भित-वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. श्रावि. केसर बाई (माता श्राव. चुनीलाल निहालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२४३५). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती; अंति: पद्मविजय गुण गाय, ढाल-६, गाथा-८९. ९३१८० (+) दादाजी महाराज की चरण प्रतिष्ठा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, अन्य. श्राव. नथमल बागमल गोलेछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १२४४१). दादाजी धुंभप्रतिष्ठा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम दिन ७ पहली; अंति: अपणे स्थान को जाय. ९३१८१. सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १६४५०). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "उदात्त उदात्तेतः मेड्प्रतिदानेदेड" पाठ से अधिकार-६ "छिदिरद्वेधीकरणे क्षदिरसं" पाठ तक है.) ९३१८२. (+) सिद्धांत प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:दल०प्र०उ०, संशोधित., दे., (२७४१३, २१४५७). सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सिद्धत्थ सवसंजलया, (२)लोकांतिक देवता नियमा; अंति: संथारो भोगवस्यूं. ९३१८३. महावीरजिन निसाणी व चौवीसजिन छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-६(२ से ७)=५, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४१२, १०-१२४३८-४४). १.पे. नाम. महावीरजिन निसाणी- बामणवाडजी तीर्थ, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, म. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरस्वति सेवग सत्ती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम, जीवदयानो छंद, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दयापच्चीसी, म. विवेकचंद, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण ३. पे. नाम, चतुर्विंसति छंद स्तवन, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर करुं; अंति: तासु सीस पभणे आणंद, गाथा २९. ४. पे नाम. सुभद्रासतिनो छंद सझाय, पू. १०आ- ११आ, संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि मुनिवर सोझे ईरज्या अंति सुख पामसे अमर तणो अवतार, गाथा-२५. ५. पे नाम. समवसरण रचना स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. अमरविबोध, मा.गु., पद्य, आदि वीर जिणेसर चरण कमल अति: (-) (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९३१८५. (+) प्रदेसीराजा रास, संपूर्ण, वि. १९३८, माघ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल. छबडा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४१२, १४४४३-४९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि सकल सिद्ध संपद करण; अंति: कहि लहीह मंगलमालो रे, ढाल - ३३, ग्रं. ११००. ९३१८६. (+) ऋतुवंती असज्झाय विचार, श्रावकधर्म आलोयणादि विचार संग्रह व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २२. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४१२.५, १४४३४-३६). " १. पे नाम. स्त्रीरितु असज्झायी विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ऋतुवंती असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्री के जब स्त्रीधर्म; अंति: दैवदर्शन करे तेसे जाणवा. २. पे. नाम. श्रावकधर्म आलोयणादिविविध विचार संग्रह, पृ. २आ-२२अ, संपूर्ण श्रावकधर्म आलोयणादिविविध विचार संग्रह-आगमोक्त, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: श्रावक तिविहार उपवास; अंति: खरतरगच्छोत्पत्ति चर्चा. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे लाला संभवजिन; अंति: क्षमाकल्याण० संघ कल्याण, गाथा-९. ९३१८७. (+) उपदेशसार की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: उपदेशसारग्रंथ., संशोधित. जैदे. (२५४१२, १८-१९४४५-५२). , " उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं० मंगलं, (२) सम्यग् श्रीधर्माराधन, अंति (-), (पू.वि. अधिकार- १६ अपूर्ण "बहुरत्ना वसुंधरा श्रेष्टी ०" पाठ तक है.) ९३१८८. साधुवंदना, ध्यान वत्रीसी व अध्यात्म छत्रीसी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ८, वे., (२७X१२.५, १५-१९x४२-४६). १. पे नाम साधुवंदना, पृ. २अ २आ, संपूर्ण आव. बनारसीदास, पु.ि पद्म, वि. १७वी आदि श्रीजिनभाषित भारती अंति: बनारसी० अविचल मोक्ष, गाथा ३२. २. पे नाम. ध्यान छत्रीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. 7 ध्यानवत्रीसी, श्राव. बनारसीदास पुहिं., पद्य वि. १७वी आदि ग्यान सरूप अनंतगुन, अंति यथा सकति परवान, " , गाथा - ३४. ३. पे. नाम. अध्यात्म बत्तीसी, पू. ३-४आ, संपूर्ण अध्यात्मवत्तीसी, आव, बनारसीदास पुडिं, पद्य, वि. १७वी, आदि शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अतिः एह तत लहि पावे भवपार, गाथा - ३३. ४. पे नाम ज्ञानपच्चीसी, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि सुरनर तिरि जग जोनिमइ, अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा - २५. ५. पे. नाम. जिनपूजा अष्टक, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि जलधारा चंदन पुहप, अंति दीजे अरथ अभंग गाथा-१०. " ६. पे नाम. पंचपद विधान- गाथा १-३. पू. ५अ, संपूर्ण, पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो ध्यान धर पंचपद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७. पे. नाम षट्दर्शन अष्टक, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २८९ षड्दर्शनाष्टक, पुहिं., पद्य, आदि: सिवमत बोध रुवेदमत; अंति: खंड सौ दशा छानवै और, गाथा-८. ८. पे. नाम. त्रयोदश काठिया, पृ. ५आ, संपूर्ण. १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वट पारै वाटमै करै; अंति: कहियै तेरह तीन, गाथा-१८. ९३१८९ चौवीस दंडक यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, दे., (२६४११.५, १७-२०४२९-४४). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ९३१९० (+) श्रावक प्रतिक्रमणसूत्रार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. सुमेरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ५४४०-४२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: अरिहे समणे तहा संघे, (वि. १८८०, श्रावण शुक्ल, १४, बुधवार, ले.स्थल. मेदनीपुर) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: तथा संघनी साथै खमावु छु, (वि. १८८०, __ भाद्रपद कृष्ण, ५, ले.स्थल. मेडता, वि. प्रतिलेखक ने आदिवाक्य का टबार्थ नहीं लिखा है.) ९३१९१. नल दमयंती रास-खंड १ से ५, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:दवयंतीचोप, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , दे., (२५४१२, १५-१६४३७-४०). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९३१९२. (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, १०४२८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (१)नरनारी अमरपद पावै, (२)मंत्री पवित्र कीजै, पूजा-९. ९३१९३. (+) पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, ६४३८-४६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२२. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि क० वाछु छु; अंति: तीर्थंकरजिन प्रति. ९३१९४. (+) विदग्धमुखमंडन काव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, पठ. पं. सत्यराज (गुरु वा. हितप्रमोद गणि); प्रले. वा. हितप्रमोद गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२५४१२, १३-१७४३३). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःखमहागदा; अंति: मेकांत मदनोत्तरम्, परिच्छेद-४, श्लोक-२७१. विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., गद्य, आदि: शिद्धशब्दो मंगलार्थः; अंति: गुणाः सुप्रतिष्ठिता. ९३१९५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १७, जैदे., (२६४१२.५, १२४२४-४८). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जसविजे० पोष लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठी हो दीठी प्रभु; अंति: देजो दरीसन तुम तणोजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ गुणस्यु; अंति: जस कहे० प्रेम प्रसंग, गाथा-५. ५.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंति: जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल वंदो रे; अंति: उजलगिर वंदो रे नरनारी, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारसना पसायथी रे; अंति: दिणयर लील विलास रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिनचरणांनी; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-५. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब; अंति: धरज्यो दिलमां प्यार, गाथा-७. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, म.शभविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभु पासजी; अंति: रांम नमे कर जोड़, गाथा-५. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगनायक; अंति: दरसण सुखकंद, गाथा-७. १२. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथजी अविनाशी हो; अंति: काइ दीजे शिवपुर राज, गाथा-८. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी ईण गिरि; अंति: अरिहंत श्रीआदिनाथ है, गाथा-१३. १४. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: आदीसर अष्टापद सीधा; अंति: भावे चैत्यवंदन करी, गाथा-६. १५. पे. नाम. राणकपुरतीर्थ स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति जयजय ऋषभ; अंति: उदयरत्न० संघ हित नमी, गाथा-७. १६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामिनी; अंति: खिमाविजय० धरे ध्यान, गाथा-१६. १७.पे. नाम. नेमराजिमती फाग, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जोवनवेस में झीलतो; अंति: चोथमल गुण गाया रे, गाथा-१२. ९३१९६. युगप्रधान नामावली, संपूर्ण, वि. १९८४, फाल्गुन शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पंडित. जगन्नाथ ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, ११४५१-५८). __ युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्म १ जंबू २; अंति: नागिल ३९ दुःप्रसह ४०. ९३१९७. वंगचुलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी;वंगचूलिका., दे., (२५४११.५, ८-१२४३५-४३). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: दढचित्तो होह पइदियहं. वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिना समुहे करीने; अंति: विषे दृढचित्त करे. ९३१९८. (+) गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३४-३७). गणधरवाद, सं., गद्य, आदि: इतश्चास्मिन्नवसरे मिलिते; अंति: गणधरा भगवता स्थापिताः. ९३१९९ (+) शृंगारवैराग्यतरंगिणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. देवीचंद; पठ.पं. सुमतिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १३४३१-३४). शंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: धर्मारामदवाग्निधूमलहरी; अंति: निशम्यमाने निशमेति नाशं, श्लोक-४६. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org २९१ शृंगारवैराग्यतरंगिणी- सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., गद्य, वि. १७८०, आदि: श्रीपार्श्वनाथं प्रणिपत्य, अंति मनुजवृंद नतपादांबुजद्वये. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३२०० स्वरोदय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२५.५४१२, १३४३७-३८). स्वरोदय शास्त्र, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७ आदि नमो आदी अरिहंत देव अंति: (-)., (पू. वि. गाथा- ४१५ अपूर्ण तक है.) ९३२०१. प्रतीक्रमण सुत्र, संपूर्ण वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, १ मध्यम, पृ. ८ ले स्थल राखसीनगर, जैदे., ( २६.५X१२, १०X२७-३४). साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंतिः मिच्छामि दुक्कड. ९३२०३. पाक्षिक सूत्र व पाखि खामणा, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १५-२ (१ से २ ) = १३. कुल पे. २, दे. (२६४११.५. ११४३०-३५ ). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. ३अ - १४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२) जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. अध्ययन-११ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. पाखि खामणा, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पिवं अति नित्थारग पारगा होह, आलाप-४, ९३२०४. भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्रादि, संपूर्ण वि. १९०८, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १२, वे. (२६.५४१२.५, १५४२५). भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: तं मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. " भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा- ऋद्धिमंत्रादि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि ॐहीं अहं णमो अरि; अति महा सप्रभाविक, ९३२०५ (+) भगवतीसूत्र-नवमशतक का ३३वां उद्देशक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र. वि. हुंडी : भगवती, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जीवे. (२५४१२, ७४०-४५) "" भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० माहणकुंड; अंतिः सेवं भंते भंते त्ति. ९३२०६. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१ (१) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ( २६.५x१२.५, १४X३५-३८). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "सीत कालनी रीत" पाठ से "धरमनो रागी महा सुखी छे" पाठ तक है.) ९३२०७. विरजीनवर स्तवन, संवेगरस बावनी व वैराग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२.५, १३-१४९२७-३०). १. पे. नाम. विरजीनवर स्तवन, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा अति विनय० पुण्यप्रकाश ए. ढाल ८, गाथा-१०२. २. पे. नाम. संवेगरसवावनी, पू. ६आ-९आ, संपूर्ण, ले. स्थल. मालपूर, प्रले. मु. प्रतापविजय अन्य ग. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. संवेगरसायनबावनी सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल मनोरथ पूरवइ अति: कांति० नित जय जयकार, गाथा - ५३. ३. पे. नाम, वैराग सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय कायाविषे, मा.गु., पद्य, आदि: कुंभ काचोनइ काया कार; अंति: उपाईइ लेखु जीवने हाथ, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३२०८.(+) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भागिर्थितटे, बृहतखरतर पोषदसालाई., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६४५०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. ९३२०९. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:जंबूचरित्र., दे., (२६४१२, ६-१६४३२-३५). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., उद्देशक-२ कुबेरदत्ता साध्वी जीवन प्रसंग अपूर्ण तक है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषइं ते; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जंबुकुमार की यौवनावस्था प्राप्ति प्रसंग तक लिखा है.) ९३२१० (+) महावीरजिन स्तव सह टीका व पार्श्वजिन स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ३-४४३७-४२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत सह टीका, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४६५, आदि: श्रेयो); अंति: देयं भवतीति भावार्थः, संपूर्ण. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र की टीका, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध-टीका, सं., गद्य, आदि: अहं तं श्रीपार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ९३२११ (+) उपासकदशांगसूत्र-आणंदश्रावक सम्यक्त्वअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. गुणकमल (गुरु मु. उदयकमल, खरतरगच्छ); पठ. मु. छबीलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ८४३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९३२१२. सीमंधरजिन चैत्यवंदन व पेंतीस बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५+१(१)=६, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ८x२०). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन कृष्ण, ७. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरब दिश ईशानकूण; अंति: हर्ष० पुरो संघ जगीश, गाथा-८. २. पे. नाम. पेंतीस बोल, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गति च्यार; अंति: (-), (पू.वि. ३५ वाँ बोल 'श्रावक के २१ गुण में ग्यानवान होय' पाठ तक है.) ९३२१३. (+) योगदृष्टि समुच्चय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७७१३, १६४३८-४२). योगदृष्टि समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वेच्छायोगतोयोग; अंति: रेयो विघ्नप्रशांतये, श्लोक-२३२. ९३२१४. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:संघण., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४२९-३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमीउण अरीहंताही ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७० तक है.) ९३२१६. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, प्रले. मु. हमीरविजय; पठ. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल., जैदे., (२५.५४११, ९४२२-२८). For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २९३ श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: कर कमल जोडेवि करि; अंति: ज्ञान० भूपति श्रीपाल, गाथा-२८०. ९३२१७. अरिहंतादि खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य. प्रेमजी सामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खामणा., दे., (२६४१२, ११४३२-३४). ५ खामणा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंदिरसामि१ जुगम; अंति: तस मिच्छामिदक्कडं. ९३२१८. सात स्मरण व लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सातेसमरण पत्र., जैदे., (२५४११.५, १०४२६-३६). १. पे. नाम. सात समरण, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , (प्रतिपूर्ण, वि. कल्याणमंदिर व बृहत्शांति नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ९३२१९. २४ तिर्थंकर स्तुति व वज्रपंजर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. जैन मंत्र-सामान्य, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: वार १०८ जपेत्. २. पे. नाम, अंगरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठि नमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. शोभन स्तुति, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रावण कृष्ण, १३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. ४. पे. नाम. जिनेंद्र चट्टी अंगुली पराक्रम, पृ. ७आ, संपूर्ण. तीर्थंकर बलवर्णन पद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलो; अंति: अग्र श्रीनेमततु, गाथा-१. ९३२२०. (+) सेजा उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३२-३५). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, __ ढाल-१२, गाथा-१२१. ९३२२१. अनुभवविलास पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१४, संवतयुगशशिनिधिभू, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, दे., (२६४१२, १४-१९४३४-३७). १.पे. नाम. अनुभव विलास पद-कपूरचंद्रजी कृत, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. चिदानंदबहोत्तरी, म. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीया परघर मति जावो; अंति: चिदा०एक गउडीचास्वामी, पद-५३. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहुं काल; अंति: वणारसी० सहज सुरझेला, गाथा-४. ३. पे. नाम, परमार्थ अष्टपदी, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै यों प्रभु पाइये; अंति: एकहि तबको कहि भेटै, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक अष्टपदी, पृ. १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: देखो भाई महाविकल; अंति: वणारसी० निधि लुंटै, गाथा-८. ९३२२२. स्नात्र पूजा व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८-४३). For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, स्नात्र पूजा विधिसहित, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सनात्र पत्र. स्नात्रपूजा संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)पूर्वे बाजोट उपरि, (२)मुक्तालंकार विकार सार; अंति: भणिओ जिणं आरतिय तुम. २.पे. नाम. नवपद पूजा, प. ३आ-७आ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:नवपद पूजापत्र. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिमविधि लुणपाणी-चैत्यवंदन की विधि अपूर्ण तक है.) ९३२२३. (+) वीमलाचल तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. दणंद्रराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४२७-३२). श@जय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: जगजीवन जालिम जादवा; अंतिः अमृत०नमो गिरिराया रे, ढाल-१०. ९३२२४. (+) मार्गणाने विषे जीव, गणस्थान, योग, उपयोग व लेश्यादि यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.५, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, २०४४०-४३). मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. अंक-३९१ तक है.) ९३२२५. एवंतिसुखमालनो रास, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भडकवा, प्र.वि. हुंडी:एवंतीसु., दे., (२६.५४१२, १६४४२). अवंतिसकमाल सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेश्वर सेविये; अंति: जिनहरख० सुख पावे रे, ढाल-१३. ९३२२६. धर्मपरीक्षा का पद्यानवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-३(१ से ३)=१५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:धर्मप्रक्षा पत्र., जैदे., (२६४११, १४४३६-४०). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ से २९० अपूर्ण तक है.) ९३२२७. (+) चौमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १५, प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:चोमासीदेव०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३३). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-), (पृ.वि. शास्वताअशास्वता देववंदन अपूर्ण तक है.) ९३२२८. (+) पट्टावली पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. हंडी:पट्टावली पत्र., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२-१४४४१). महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: श्रीभगवंत त्रीस वरस घरे; अंति: वीजयधरणेंद्रसरी थया ५९. ९३२२९ (#) ऋषिदत्तासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. रूपचंद ऋषि (गुरु मु. टीकमदास ऋषि); गुपि.मु. टीकमदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, २४४५७-६२). ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सासणनायक सिमरता; अंति: चोथमल जै __ जैकारो जी, ढाल-५७. ९३२३० (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३०-३४). ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७८ अपूर्ण तक है.) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिको अक्षर अंतको अक्षर; अंति: (-). ९३२३१ (+) कर्मविपाक व कर्मस्तव कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२३(१ से २३)=५, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:कर्मग्रंथ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ८४३७). For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. प्रथमकर्मविपाक सूत्र, पृ. २४अ - २८आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ -१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदरिहिं गाथा ६०. २. पे. नाम द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि: तह धुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ९३२३२.(*) एवंतिसुकमालनि ढाल, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १३, पठ. मु. हीराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी एवंतिसुकमाल., संशोधित. दे. (२६४१२, १०x२५-२७). ० सुख अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, वि. १७४१, आदि पास जिनेश्वर सेविये; अंति: जिनहरख० पावे रे, ढाल - १३. २९५ ९३२३३. (७) शत्रुंजय माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३४-३१० (१ से ३१० ) = २४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, ७३६-३७). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. सर्ग-९ श्लोक-३ अपूर्ण से ३८१ अपूर्ण तक है.) יי ९३२३४. स्याद्वाद सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९२५ फाल्गुन कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, पतरा प्रले. गोपाल पानाचंद तरवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६४१२.५, ३x२६). १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो; अंति: निश्चयने विवहार जादजी, गाथा - १९. ९३२३५. (+) पांडव रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १३x४०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ६४ गाथा-४८ से ढाल - ७४ तक लिखा है.) ९३२३६. (*) भगवतीनी टीप, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११. प्र. वि. अंत में सिद्धवर्णन श्लोक-१ अर्थयुत लिखा है, संशोधित, दे., (२५x११.५, ४४-५१४१८-३४). भगवतीसूत्र- टीप, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार दस उदेसाना नाम अति: (१) आय अजसउववज्र्ज्जति इत्यादि, (२) कारण रूडा प्ररूप्या छइ. ९३२३७ (#) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-५ (१ से ५) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २६.५X१२, ९X२६-३१). शालिभद्रमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ७९ अपूर्ण से १९९ अपूर्ण तक है.) ९३२३८. (*) जिनकुशलसूरिगुरु पूजा, संपूर्ण वि. १९००, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी: दादाजी पू०... पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५x११.५, ९४२५). जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. सं., प+ग, आदिः सकलगुणगरिष्टान्; अंति: जैनलाभ० चरण कमल बलिहारी, For Private and Personal Use Only ९३२३९. अवंतीसुकमाल ढाल सीज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८ ले स्थल. पालीताणा, प्रले, श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अवंती. दे. (२५x११.५, ११४२८-३०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतीहर्ष सुख पावे, ढाल १३. ९३२४० (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x११, १०x२८-३०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीव गइ इंदिय काय जोए; अंति: थोडा अचम१ चरम अनंतगुणा २. Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३२४१. स्वाध्यायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. १०१, प्रले. मु. अमृतविजय (गुरु ग. गलालविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. गलालविजय; गुभा. ग. उत्तमविजय (गुरु ग. वनीतविजय); गुपि.ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१२, १९४४६-४९). १.पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अढार नांतरानी. १८ नातरा सज्झाय, म. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरुं पास; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३२. २. पे. नाम. नेमी सिझाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नेमीराजिमती. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीओ; अंति: ऋद्धिहरख० दातार रे, गाथा-३२. ३. पे. नाम, बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बलभद्रनी. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका बलतां निसर्या एक; अंति: कविअणधर्मने नहि कोइ तोले, ढाल-२, गाथा-३२. ४. पे. नाम. पांडव सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पांचपांडव. ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तीनागपुर वर भलो तिहां; अंति: मुज आवागमण नीवार रै, गाथा-२०. ५. पे. नाम, धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:धन्नानि. धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवं; अंति: समयसुंदर० साधुनो सरण, गाथा-१५. ६.पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:रात्रिभोजन. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल वारु वसेजी; अंति: सूख लहे ते इछेहरे, गाथा-२८. ७. पे. नाम. मृगापुत्रनी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मृगापुत्रनि. मृगापत्र सज्झाय, म. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सग्रीवनयर सोहामणोजि राजा; अंति: सिंहविमल० प्रणाम रे, गाथा-२५. ८. पे. नाम. नागिलानी सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नागिलानि. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाइ घरे आवीआ; अंति: समयसूंदर जयकार रे, गाथा-७. ९.पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रश्नचंद्रनि. मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन वसि करवू दोहिल; अंति: नयविजय०सिस कुयरविजय पभणंत, गाथा-१२. १०. पे. नाम. राजूलनि सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:राजूलनिस. नेमराजिमती सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अवल मोहलमां अजब झरोखो; अंति: दीप०दानविजे हितकारि, गाथा-७. ११. पे. नाम. सोलसूपननि सझाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सोलसूपननिस. ____ चंद्रगुप्त १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद प्रणमी; अंति: नयविमल कहे सारजि, ढाल-२. १२. पे. नाम. उपदेस सिझाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:हेत उपदेश. __ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: भज भज भज भगवंत भविक; अंति: ज्युं पामुं संसार, गाथा-२७. १३. पे. नाम. राजूलरहनेमि सझाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:राजूलरहनेमि. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: देव० सुख लहैस्यै रे, गाथा-१२. १४. पे. नाम. राजिमति सझाय, पृ. ८अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:राजेमति. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ २९७ १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जूवटानि. __ औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही हो सांभल; अंति: ___आणंद कहे करजोड, गाथा-१०. १६. पे. नाम, कलीजूगनि सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कलीजूगनि. ___ औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, मु. प्रीतिविमल, पुहि., पद्य, आदि: अइआरो कुडो कलिजूग आयो; अंति: प्रीतविमल० सूकृत एक सवायो, गाथा-१२. १७. पे. नाम. सात विसन सज्झाय, पृ.८आ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:सातविसन. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: गुरु सिस रंगे जयरंगे कहि, गाथा-९. १८. पे. नाम. कूमतिनि सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कूमतिनि. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस० किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वैराग्यनि. औपदेशिक सज्झाय-अकबर बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: याइ दुनिया फानि फुरमाइ आप; अंति: सकल० उनकुं पुना हेतु सारि, गाथा-७. २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आत्महेत. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिव वारुं छु मारा वालमा; अंति: भणे जीव आवागमण निवार, गाथा-७. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवकायासी. मु. कुंअर, पुहिं., पद्य, आदि: पभणे प्रीतमकू प्यारि घणु; अंति: भणे कुंअर सुखवासो, गाथा-१३. २२. पे. नाम. हितउपदेस सिज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:हेतउपदेस. ___ औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रात दिवस काया मूढ; अंति: वीर वचन सुणो नरनारी, गाथा-८. २३. पे. नाम. ढंढणऋषि स्वाध्याय, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ढंढणऋषि स्वा०. ढंढणऋषि सज्झाय, पंडित. गणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा हुंवारी; अंति: कहे गुणहर्ष सूजाण रे, गाथा-९. २४. पे. नाम. अरणिक सिज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अरणिक सि. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-९. २५. पे. नाम. चंदनबाला सिझाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:चंदनबाला. चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदनबाला वारणै रे; अंति: राजचंद्र०लहस्यो लीलानंद, गाथा-६. २६. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सालिभद्रनि. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र; अंति: लहे ते रयणी दीह रे, गाथा-१३. २७. पे. नाम. मरुदेवि स्वाध्याय, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मरूदेवि स्वा०. ___ मरुदेवीमाता सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवीमाता इम भणिइ; अंति: लब्धि० अरथ अमारो सारोजि, गाथा-१२. २८. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूलिभद्र स्वा०. स्थूलिभद्रमुनि गीत, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: कोसवो ए मुझी मावडी; अंति: नित्यलाभ गुण गाय रे, गाथा-६. २९. पे. नाम. जीव उपरी सीझाय, पृ. १२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:मनभमरानि. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय - आध्यात्मिक, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि भूलो मन भमरा तु कांइ अति: वीर कहे० लेखो साहिबने हाथ गाथा ९. ३०. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १२अ -१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मधुबिंदुनि. मु. चरण प्रमोद- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंतिः परमसुख इम मांगी, गाधा १०. ३१. पे. नाम. आतम सिझाय, पू. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी वणजारानि आध्यात्मिक सज्झाय-वणजारा, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वणजारा रे तुं तो नगर भम्य; अंतिः जिनसमुद्रसूरि इम भणे, गाथा-५. ३२. पे. नाम. शिख स्वाध्याय, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : सिखामण. वैराग्य सज्झाय, मु. , लब्धिविजय, , मा.गु., पद्य, आदि: कां नवि चिंते हो चित; अंति: लबधि० सूख पामे अपार, गाथा-७. ३३. पे नाम. अध्यातम सिझाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी अध्यातम. औपदेशिक सज्झाय, अमरचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करे क्या करे जूठि; अंति: अमरचंद० सहि मन गमता, गाथा - ११. ३४. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : मायानि ०. औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमि रे माया म अति सूख लीला लबधि कहे ए जाणी, गाधा १०. ३५. पे. नाम. शिख्या स्वाध्याय, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शिखामण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सिख सूणो प्रभू माहरि रे; अंति: जिन० हियडे आगमवाणी, गाथा ११. ३६. पे. नाम, निद्रा स्वाध्याय, पृ. १३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी निद्रानि. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि निंदरडी वेरण हुई, अंति: हो मुनि कनकनिधान, गाथा-८. ३७. पे. नाम. आत्महित स्वाध्याय, पू. १३आ-१४अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी आत्महेत. औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुर्हि, पद्य, आदि करजो मत अहंकार ए तन अति धर्मसि० धर्म मनमांहे तर्यो, गाथा - ११. ३८. पे नाम, अयमत्ता सज्झाय, पृ. १४- १४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अयमंत्तानि अइमुत्तामुनि सज्झाब, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि विरजिणंद बांदिने गोतम; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा - १८. ३९. पे नाम. हिरसूरि स्वाध्याय, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : हिरसूरि. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडिजि विनवुं सारदा; अंति: सेन० होज्यो मुझ आणंद गाथा १०. ४०. पे. नाम गढपण सझाव, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : गढपणनि, घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सो गढपण आविओ जीव समर नवका; अंति: नय० सिस रुपविजे गुण गाय, गाथा-८. ४१. पे. नाम. पांचइंद्रिय सज्झाय, पृ. १५अ -१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पांचइंद्री. ५. इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आपु तुजने शीख चतुरनर, अति जिनहर्ष० सुख सास्वता, गाथा ७. ४२. पे नाम. शिखामण स्वाध्याय, पृ. १५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : शिखामण, औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सूधो धर्म म मुकिस विनय; अंतिः वंदो जिम चिरकाले नंदो रे, गाथा-८. ४३. पे. नाम. धन्नाकाकंदि सज्झाय, पृ. १५ आ-१६अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : धन्नानि For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि जिनवचने वैरागीवो हो; अति श्रीदेव० वरते जय जयकार रे, गाथा - १३. ४४. पे नाम. सामायिकनि सझाय, पृ. १६अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: सामायकनि, सामायिक सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि मन वचन कायाई पालो अंति: देवविजये सुख दीजे, गाधा-८. ४५. पे. नाम. सात व्यसन सझाय, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:व्यसननी. सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ कुल; अति रतनकुशल सवि आस, गाथा - ११. ४६. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : मायानि. मायापरिहार सज्झाय, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: माया कपट नवि कीजीड़, अंति चंद्रनाथ० भमसे तेह संसार, गाथा-५. ४७. पे. नाम. राजूलनी सझाव, पृ. १६आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी राजूलनि. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि गोखे रे बेठी राजुल अति लबधि नमे सूभ जूगते रे, गाथा - ९. ४८. पे नाम. धूलिभद्रनि सझाय, पृ. १७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी बुलिभद्रनि.. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि लाछल वे मात मलार साध; अंति लब्धि लील लखमी घणीजि, गाथा - १७. ४९. पे नाम. कायानि सझाय, पृ. १७अ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी कायानि. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक काया अरु कामिनी; अंति: राजस० स्वारथियो संसार, गाथा- ६. ५०. पे. नाम. चेलणानि सझाय, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : चेला.. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर वांदीने वलता अंतिः समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा- ७. ५१. पे नाम श्रीजिनि विनति, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी रत्नसूर विजयरत्नसूरि गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमिरस पाउं थाने दाडि, अंति: दिप सेवक० दुधे बुढा मेह हो, गाथा- ७. ५२. पे. नाम. शिखामणनि सझाय, पृ. १७-१८अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : शिखामणनि औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तू धोजे रे; अंति: शिवसुखनी दाय रे, गाथा-६. ५३. पे. नाम. जंबुनि सझाय, पृ. १८ अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : जंबुनि जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक नरवर राजीयों; अंति: कहे कवियण० जिम पामो भवपार, गाथा - १७. ५४. पे नाम, निंदानि सझाय, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : निंदानि. औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि निंद्या म करज्यो कोई अति समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ५५. पे. नाम सियलउपरे सजझाय, पू. १८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : सिवलनि, नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलखीत जें पूतलि; अंति: कहै जिनहर्ष प्रबंध, गाथा-१०. ५६. पे. नाम. सुभद्रानि सझाय, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सुभद्रानि.. सुभद्रासती सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सत रे जोज्यो सूभद्रा तणु; अंति: विरविमल० वाला मुगतमे गाथा-३३. वास, ५७. पे. नाम. वैराग्य सझाय, पृ. १९आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : वैराग्यनि. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके बे चेले किसके; अंति: विराजे सुख भरपूर, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८. पे. नाम. बिजनि सझाय, पृ. १९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बीजनि छे. बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखवू; अंति: सर्या सहु काज रे, गाथा-९. ५९. पे. नाम. पंचमीनि सिझाय, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पंचमीनि. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना प्रणमी पाय; अंति: वाचक देवनी पुरो जगीस, गाथा-५. ६०. पे. नाम. अष्टमीनि सिझाय, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टमीनि. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ६१. पे. नाम. इग्यारसिनि सिझाय, प. २०अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:इग्यारसनि. मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु पाय नमीइं; अंति: वाचक देव कहंदा जी, गाथा-११. ६२. पे. नाम, क्रोध सझाय, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:क्रोधनि. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, म. प्रीतिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: हा रे लाला क्रोध न; अंति: प्रीतविजय कहे नित्ति रे, गाथा-७. ६३. पे. नाम, माननि सझाय, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:माननि. औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, म. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे मानवी रे; अंति: कहे प्रीत सवखाण रे, गाथा-५. ६४. पे. नाम. मायानि सझाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मायानि. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया निवारो मन थकि; अंति: वयण संभाल हो, गाथा-५. ६५. पे. नाम. लोभउपरी सझाय, पृ. २१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लोभनि. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. ६६. पे. नाम, आत्माशिखामण सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आत्मशिख. औपदेशिक सज्झाय-सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुख सरज्या पामिइ; अंति: दाम० धरम सदा सुखकार रे, गाथा-८. ६७. पे. नाम. सितानि सझाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सितानि. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती भलती घणी रे; अंति: भावे प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. ६८. पे. नाम. मेतारजनि सझाय, पृ. २१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मेतारजनि. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: संयम गुणना आगरूजी; अंति: राजविजय० ए सज्झाय, गाथा-१३. ६९. पे. नाम. सालिभद्रनि सझाय, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:सालिभद्र. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: भव भव तमारो दास, गाथा-२१. ७०. पे. नाम. सितानी सझाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सितानि. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित होजो परिणाम, गाथा-८. ७१. पे. नाम. वैराग्य सिझाय, पृ. २२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वैराग्यनि. शीयलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ते तरीआ भाइ ते तरीया; अंति: जे धर्मे दृढ रेवेरे, गाथा-५. ७२. पे. नाम. थावचानि सझाय, पृ. २२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थावचानि. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३०१ थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझारी रे; अंति: पामे ते निश्चय करी ए, गाथा-७. ७३. पे. नाम. स्थुलिभद्रकोश्या सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थुलिभद्रनि. स्थूलिभद्रकोशा संवाद सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वतीने चरणे नमी; अंति: सोमविमल० रंगरोल रे, गाथा-१८. ७४. पे. नाम, थूलिभद्रनि सझाय, पृ. २३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थुलिभद्रनि. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: योग ध्यानमा जोडी; अंति: भाव नमे नित पाय, गाथा-१४. ७५. पे. नाम. पांचमा आरानि सिझाय, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पांचमा आरानि. पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सूणो; अंति: भाख्या वचन रसाल, गाथा-२१. ७६. पे. नाम, अर्जुननी सझाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अर्जूननि.. ___ अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: गति तणा फल देयो देव, गाथा-१४. ७७. पे. नाम, सिखामणनी सझाय, पृ. २४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:वैराग्यनि. औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहनु रे सगपण केनि माया; अंति: देव० तत्व कहे सूख दीइ रे, गाथा-११. ७८. पे. नाम. सिखामणनि सिझाय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन समझो रे मन; अंति: राखो निज सेवक संभारी, गाथा-१३. ७९. पे. नाम. दसार्णभद्रनि सझाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दिसांण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालवि० प्रणमइ निसदिस, गाथा-१८. ८०. पे. नाम. वैराग्य सझाय, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: वैकुठ पंथ बिहामणो; अंति: लावण्यसमय० जिननाथ, गाथा-२०. ८१. पे. नाम, चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: भणे ते शिवपद लहिस्ये, गाथा-१९. ८२. पे. नाम, रात्रिभोजननि सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु चरणे रे भाव; अंति: देव० सिखडी सांभलो निसदिस, ढाल-२, गाथा-१४. ८३. पे. नाम. गजसूकमालनि सझाय, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गजसूकमा. गजसकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझारि; अंति: सिंघसोभाग० एहना नामनेजि, गाथा-३७. ८४. पे. नाम. निश्चयव्यवहार सज्झाय, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:निश्चयव्यवहार. आ. हंसभवनसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रिय जिनवर रे देसना दिइ; अंति: वीतराग एणि परे कहे, गाथा-१६. ८५. पे. नाम. क्षमासूरि भास, पृ. २८आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:भास. विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरिंदना; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. ८६. पे. नाम, शुगणनि सिझाय, पृ. २८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गीरुआनि. वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरुआ रे भाई ते; अंति: लबधि० पग प्रणमीजे रे, गाथा-६. ८७. पे. नाम, मनकनि सझाय, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मनकनि. मनकमनि सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो रे नमो मनक; अंति: पामो सद्गति सारो रे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८. पे. नाम. तमाकुनि सझाय, पृ. २९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : तमाकुनि. औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: कवियण० ते लहे कोडि कल्याण, गाथा - १७. ८९. पे नाम, वयरनि सझाय, पृ. २९अ २९आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी: क्यरनि. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर दश पूरवधर सुंदर; अंति: ऋद्धिविजय प्रभु वंदो हो, गाथा - १२. ९०. पे. नाम. जिवउपरे सझाय, पृ. २९-३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: जिवउपरे. औपदेशिक सज्झाय कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: कामिनी कहै निज कंतने सुणो; अति जयसार० करो धर्म सखाई, गाथा - १२. ९१. पे. नाम. राजिमति सझाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : राजिमत. नेमराजिमती सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतमसुं मुझ प्रीत; अंति: तिलक नमे सूविहाण, गाथा-९. ९२. पे नाम. रुखमणीनि सझाय, पू. ३०१-३०आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी रुखमणि. गाथा - १४. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति : जाइ राजविजे रंगे भणे, ९३. पे. नाम. हेतउपदेस सझाय, पृ. ३०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : हेतउपदेस. आध्यात्मिक सज्झाय- आत्महित, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि सूण बहिनि पीउडो परदेशि आज अति: राज० नारि विणु सोहागिरे, गाथा-७. ९४. पे. नाम. खेमऋषिनि सझाय, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : खेमऋषिनि खेमऋषि सज्झाय, लिंबो, मा.गु., पद्य, आदि: बाजरिओ बरटि बाकुला अभिग्र; अंति: लिंबो०मुगतिवधू निश्चे लहे, गाथा-८. ९५. पे. नाम. साधुगुणनि सझाय, पृ. ३१अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : साधुगुण.. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: पाचेइंद्री अहनिस बसि अति इम भणइ विजयदेवसूरोजी, गाथा- ९. ९६. पे. नाम. समोवसरणनि सिझाय, पृ. ३१अ -३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:समोसरण. सुमतिजिन गीत- समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज हुं गइती रे समवसर; अंति जीतना डंका वाजे रे, गाथा - ७. ९७. पे नाम, विरजिन सिझाय, पृ. ३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी विरजिन. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिने वचने रे अमृत रस; अंति: उदय० प्रेमे पाठ रे, गाथा-७. ९८. पे. नाम हेत सिझाब, पृ. ३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी हेतसिख्या. औपदेशिक सज्झाय-अमीझरापार्श्व, मा.गु., पद्य, आदि: हारे तमे जोजो रे भाइ अजब; अंति: देखाडे मनवंछित सि सिझे गाथा- ६. ९९. पे. नाम. इग्यारसनि सिझाय, पृ. ३१ आ-३२अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : इग्यारस. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि : आज एकादसी रे नणदल; अंति: अविचल लीला लहस्ये, गाथा - ६. १००. पे. नाम. अथिरनि सिझाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अथिर.. औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, क. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि अधिरसंसारे रे भोला स; अति नव० कहि अधिरता बहु पेह, गाधा ८. १०१. पे. नाम. सामायकनि सिझाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सामायक.. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि कर पडिकमणो भावसु दोष अति धर्मसिंह० मुगत तणो मेदान, गाथा ६. For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९३२४२. वसत्यादिकदानाष्टक विषये अष्ट कथानक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल. प्राणपुरनगर, प्रले. मु. चतुरविजय; पठ. मु. कुसलविजय संवेगी साधु; विक्र. ग. जीतविजय; क्रीत. पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. परत ११८ दानरी कथा वेची छे., दे., (२५X१२, १२X३४). कथासंग्रह- वसतिदानादि विषयक, प्रा. सं., गद्य, आदि (१)वसही सयणासण भत्तपाणे, (२) तिहां वसतिरो दान देवो ते; अंति प्रमुख आठदान श्रावके देवा, कथा-८. "" ९३२४३ दशवेकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ४६ प्र. वि. हुंडी दसवैका०, जैदे. (२५X११.५, ५४४२-५४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंतिः अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका २.) " www.kobatirth.org दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ". मा. गु., गद्य, आदि (१) श्रीमणग पमुद्धमिअं भवेणं, (२) धम्मो० दुर्गत पडतां जीवने; अंति: गति ति०क० जाइ इम कहूं छु, (वि. प्रारंभ में पीठिका दी गई है.) 1 ९३२४४. दानाधिकारे हंसराजवचछराज चडपड़, संपूर्ण वि. १८७२ आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४२, प्र. वि. हुंडी, हं०ब० चो०., कुल ग्रं. १२००, जैदे (२५x११, १२३४-३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदबसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आदि करी चोऊवीस अंति: ए हंस अनै बच्छराज, खंड-४, गाथा- ९९९ (वि. दाल ४८.) , ९३२४५. सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८-६ (१ से ६) =२२, कुल पे ४४, जैवे., (२५.५X११.५, १४-१८X३८-५१). १. पे. नाम रात्रिभोजन स्वाध्याय, पृ. ७अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रात्रिभोजनत्याग सज्झाव, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: वसत्ता० अधिकारी रे, गाथा १३, (पू.बि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम रुकमणी सिझाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, ३०३ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा- ७. ३. पे. नाम, ढंढणरिषजीरी सिझाय, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. गाथा - १३. ७. पे. नाम. आतम सिझाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिजीने वंदणा, अति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा ९. ४. पे. नाम. इलाचीपुत्र सिज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामेलापूत्र जाणीय अंति लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ५. पे नाम परनिंद्या निवारण सिज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण, " औपदेशिक सज्झाय निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदि निंद्या म करज्यो कोइ अंति समयसुंदर सुखकार रे, गाथा- ६. ६. पे. नाम. मैतारिजरिषी सिझाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. तारजमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि सुमत गुपतना आगरुजी पंचमहा; अंतिः सेवताजी साधु तणी रे सिझाय, गाथा - ११. ९. पे नाम वैराग्य सिझाय, पृ. १०अ संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुं म कर; अंति: समयसुंदर० कोटानुकोटी, गाथा-३. ८. पे. नाम. काकंदीधन्नारी सिझाय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण, धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंतिः समयसुंदरमुनि नीत नमे, For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: महंमद०लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. १०. पे. नाम. अरणकमुनि सिज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: समयसुंदर०तिण किधौ जी, गाथा-८. ११. पे. नाम. करम किलोल सिझाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. १२. पे. नाम. चंदणासतीरी सिज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. ___ चंदनबालासती सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन चंदनबालिका सती नमीय; अंति: भावप्रभ०करे इम सतीनो वखाण, गाथा-५. १३. पे. नाम, आत्म सिज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: राजस० स्वारथीओ संसार, गाथा-५. १४. पे. नाम, पंचेंद्रीविषयरोधन सिज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनान धरम रिदये धरोरे; अंति: सीस हेमविजय पभणंत रे, गाथा-९. १५. पे. नाम. जीवउपरि सिज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, म. जीवणदास, मा.ग., पद्य, आदि: प्राणी विणजारा विणज करे: अंति: दासजिवण०अवसर नही वारंवारा, गाथा-९. १६. पे. नाम. रहनेमिजीरी सिज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. देवविजय, मा.ग., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: सुख लहेस्ये रे, गाथा-१२. १७. पे. नाम. रहनेमि सिझाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: रूप० निरमल सुंदर देह रे, गाथा-८. १८. पे. नाम. वैरागग सिझाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-आत्महित, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण बहिनी प्रीउडो परदेसी; अंति: राज० नारि विण सोभागी रे, गाथा-७. १९. पे. नाम. मृगापुत्र सिज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुग्रीव सोहामणो मृगा; अंति: खेम० सुध प्रणाम हो, गाथा-१२. २०. पे. नाम. रहनेमिराजुल गीत, पृ. १४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम वंदन राजुल चली; अंति: लिखमीव०उत्तम मन आणी रे लो, गाथा-१७. २१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २ से १०, पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: जयतसी जय जय रंग, (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रथम सज्झाय का मात्र प्रथम पद लिखा है.) २२. पे. नाम. आत्मप्रतिबोध सिझाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवै ए; अंति: क्षमाविजय० मुगति मजार के, गाथा-९. २३. पे. नाम. रहनेमीजीनी सिज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३०५ रहनेमी राजीमती सज्झाय, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण चतुर सुजाण; अंति: पुन्यकलस०जंपे इम जेतसी हो, गाथा-८. २४. पे. नाम. सुगुरुपचीसी, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एणे; अंति: शांतिहर्ष उछरंग जी, गाथा-२५. २५. पे. नाम. कुगुरुपचीसी, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. कगरुपच्चीसी, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदिः श्रीजिनवाणी हीयडै धरै; अंति: जिनहरख०लोयण भोयण प्रमितेह. गाथा-२५. २६. पे. नाम. समकितसतरी सिज्झाय, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण. समकितसित्तरी स्तवन, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सांभलि रे तु प्राणीया रे; अंति: तणोजी कहे जिनहर्ष विनेय, ढाल-७. २७. पे. नाम. सुगुरु पद, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. सुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो नमो मे गुरु निग्रंथक; अंति: जिनदास जिन चरणासे यारी है, गाथा-४. २८. पे. नाम. औपदेशिक पद-कुगुरु त्याग, पृ. २३अ, संपूर्ण. कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजु तजु मे उन कुगुरुनकु; अंति: कुगरां संग कुयारी है, गाथा-५. २९. पे. नाम. एकादशीरी सिझाय, पृ. २३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज माहरे एकादसी हे नणदल; अंति: उदयरतन० अविचल लीला वरसे, गाथा-७. ३०. पे. नाम. नंदिषेणसाधु सिज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जइए रे परघर; अंति: एकलो पर घर गमण निवार, गाथा-१०. ३१. पे. नाम. बलदेवजी सिझाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. बलदेवमनि सज्झाय, म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगियागिरि सिखरि सोहै; अंति: पोहता राममुनि सुखकार रे, गाथा-७. ३२. पे. नाम. सामायिकनी सिझाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामायिक नय धारो चतुरनर; अंति: ज्ञानवंत के पासे, गाथा-८. ३३. पे. नाम, पंचसमकित लख्यण सिझाय, प. २४अ, संपूर्ण. समकितपांचलक्षण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: लक्षण पांच कह्या समकित; अंति: करे कुमतिनो ए भंग, गाथा-५. ३४. पे. नाम. समकितना पंचदोषटालण सिझाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. ___ समकितपांचदूषण परिहार सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: समकित दोषण परिहरो जेहमे; अंति: सुमति० भली वासना लीजे हो, गाथा-५. ३५. पे. नाम. एकादशी सिझाय, पृ. २४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज माहरे एकादसी रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३६. पे. नाम. नमिराजा सिझाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथुलानगरीनो राजीयो; अंति: समयसुंदर० पामे भवपार, गाथा-८. ३७. पे. नाम. रिष अनाथी सिझाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रयवाडी चढ्यो; अंति: समय०वंदेरे बे करजोडि, गाथा-९. ३८. पे. नाम. रूष अनाथी सिझाय, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: इम बोले मुनि राम, गाथा-३०. ३९. पे. नाम. सचित्ताचित्त सिझाय, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: कवि विनयविमल कहै सिज्झाय, गाथा-२५. ४०. पे. नाम, अध्यात्म सिज्झाय, पृ. २७अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जतन करीने जीवडाजी मन हाथी; अंति: महीमा० भावप्रभसूरी हितकार, गाथा-११. ४१. पे. नाम. इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: पद पंकज रे प्रणमी; अंति: इम संथुण्यो भावे करी, ढाल-४, गाथा-१५. ४२. पे. नाम, रहनेमराजुल स्वाध्याय, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसुरे; अंति: समयसुंदर० अविचल लील, गाथा-५. ४३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. ४४. पे. नाम, धन्नारी सिझाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धनो रिष वंदीये रे; अंति: विद्या० निस्तार रे, गाथा-७. ९३२४६. सदैवच्छसावलिंगा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-५(१,११ से १२,१७ से १८)=१७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सदेवच्छसावलि०., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२-३५). सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से "तिण जातिण जाय काइ सवैवत्सने" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. कृति की ढाल संख्या नहीं लिखी है व अंत में गाथांक भी नही लिखा है.) ९३२४७. (+#) क्षेत्रसमास प्रकरण व संबोहसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ६४३४-३८). १.पे. नाम. क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:क्षेत्रसमास पत्र. बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-११२. बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउण क० नमस्कार करिने; अंति: मनूष्यक्षेत्र परिधि जाणवी, (प्र.ले.श्लो. (१३४९) पढन गुणन अरु चातुरी)। २.पे. नाम. संबोहसित्तरी सह टबार्थ, पृ. १२आ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संबोहसित्तरीप. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७६. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिन; अंति: ते लहइ इहां संदेह नथी. ९३२४८. सप्त स्मरण, लघुशांति स्तव व वृधि शांति, संपूर्ण, वि. १८६४, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १६+२(१५ से १६)=१८, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, ११४३६-४०). १. पे. नाम, सप्त स्मरण, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;सप्तस्मरण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-९. २. पे. नाम. लघुशांति स्तव, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०७ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९. ३. पे नाम. वृधि शांति, पृ. १६आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने भूल से पत्रांक नंबर १५ व १६ दो बार लिखा है. पाठ क्रमशः है. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति जैनं जयति शासनम्. ९३२४९. गुणठाणाना बोल, संपूर्ण, वि. १९१७ आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, प्र. वि. हुंडी गुणठाणा. दे.. (२६४१२, ९३२-३७). " १४ गुणस्थानक २२ द्वार विचार, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नाम१ लक्षणगुण२ ठिइ३ किरिय; अंति: निमत्य ते कुशल होज्यो. ९३२५०. सीलविषये मदनकुमर चोपड़, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. चोबारी, प्र. ग. सुमतसागर (गुरु ग. यत्नसागर); गुपि. ग. यत्नसागर (गुरु पंन्या. विशेषसागर); पंन्या. विशेषसागर (गुरु पंन्या. लालसागर); पंन्या. लालसागर (गुरु पं. चतुरसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी; मदनरास. श्रीचंद्रप्रभू प्रसादत., जैदे., (२६x१२, १५X३८). मदनकुमार रास- शीलव्रताधिकारे, ग. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि नामें नवनिधी सिद्धि: अंतिः ऋद्धि सिद्धि थाय रे, दाल २१ ग्र. ३४९. " ९३२५१. (+*) श्रेणिकराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१,१३*) +१ (१२) १८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १६-१७३६-४० ). श्रेणिकराजा चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण से दाल- २४ गाथा १० अपूर्ण तक है.) "" ९३२५२. (*) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. प्रतिलेखक ने हर्षकीर्तिसूरि की टीका श्लोक-१ तक लिखकर छोड़ दी है., संशोधित., दे., (२५.५X११.५, ४X३६-४०). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. लोक- ९९ अपूर्ण तक है.) ९३२५३. (+*) सीलप्रभावे राणी पदमणी चउपड़, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २९, ले. स्थल, बांतानगर, प्रले. पंन्या. रामसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, १४४३६-४४). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: लब्धोदय० सफल सुखकंद, खंड-३, गाथा- ८१६, ग्रं. ११५७. ९३२५४. (+) अट्ठाईरो वखांण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, प्र. वि. हुंडी : अट्ठाईरो., संशोधित., दे., (२६X१२, १३X३४-३८). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु., सं., गद्य, आदि: शांति का करणे वाला; अंति: के भावना भावता विचरै.. ९३२५५ (+) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २९-६ (१ से २,४९,२४ से २६) = २३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६४१२, १३३४-३७). व्याख्यान संग्रह *. प्रा. मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सम्यक्त्व वर्णन अपूर्ण से असातावेदनीय कर्मबंध अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९३२५६. (+) मौनेकादसि कथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३ आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल, कालंद्रीनगर, प्र. मु. मानविजय (गुरु ग. विनयविजय); गुपि. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., ( २४.५X११, ५X३४-४०). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य वृषभं देवं; अंति: सागरशररसशशि प्रमिते, श्लोक-२०१, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य के० प्रणमीने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-१९९ तक का टवार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only ९३२५७ (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०६ माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल, पालीताणा, प्रले. उपा. देवीचंद, पठ. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, दे. (२६४१२, ८४३४-३८). Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६४. ९३२५८.(+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन अधिकमास कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. सणवाड, प्रले. पं. दलपतकुशल (गुरु पं. हेमकुशल); गुपि.पं. हेमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूर०ट०., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४२६-३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केहवो छै नखद्युतिभरः; अंति: रूप मोतीनी श्रेणी. ९३२५९ (+#) शांतिनाथ चरित गद्यबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.८६-६१(१ से ८,१२ से २०,२२,२५ से २६,२८ से ३१,३३ से ४०,४३ से ४५,४७ से ६०,६२,६५ से ६८,७२,७४ से ७५,७९ से ८०,८३,८५)=२५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८-२०७५०-६६). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-१ "कुलीनौ चरमदेहौ" पाठ से प्रस्ताव-६ "येनास्मिन्नगरवासिनो धूर्तलोकात्" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९३२६० (+) छ कायना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:छकायना., संशोधित., दे., (२६४१२, ९-१०४३६-३८). ६काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पेहले बोले छ कायना; अंति: बसेने वीस वेमान छे. ९३२६१ (+) साधु वंदना, अर्जुनमालीमुनि ढाल व आर्द्रकुमार पंचढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १५४३४-३८). १.पे. नाम. वृधसाधवनणा, पृ.१अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन कृष्ण, ४, रविवार, ले.स्थल. पाली, प्रले. छोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:साधवंनणा. साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देव मुनिवर संथुणा, ढाल-१३, गाथा-३७७. २.पे. नाम. अर्जुनमाली रास, पृ. १०अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उरुजन. __ अर्जुनमालीमुनि ढाल, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: वर्धमान जिनवर नमुं; अंति: मुनिवर पहुता मोख, ढाल-९. ३. पे. नाम. आदरकुमारो पंचढालीयो, पृ. १४आ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आद्ररकुर्मा. आर्द्रकुमार पंचढालियो, रा., पद्य, वि. १८८३, आदि: प्रणमु प्रभाते उठने; अंति: भव्य जिव सुख लही, ढाल-५. ९३२६२. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४२). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: तं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१. ९३२६३. चार प्रत्येकबुद्ध संबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:प्रत्येकबुद्धप०., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३२-३८). ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., गद्य, आदि: करकंडू कलिंगेषु पंचालेषु०; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ९३२६४ (+) विविध ग्रंथोक्त सूक्तावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:विविधग्रं०., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १०x२४-३२). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ श्लोक-२११ अपूर्ण तक लिखा है.) ९३२६५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. पाटडी, जैदे., (२५४११.५, १२-१४४३६-५०). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान० पट्ट; अंति: में कीधो मेछा दुक्कडं. ९३२६६ (+#) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीपक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५-१७४३४-४०). For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३०९ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७७. ९३२६८. (#) संबप्रजून चोपइ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. अणंदपुर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४४२-४८). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलो; अंति: संबप्रजून गुण गावतां, खंड-२, गाथा-५४८, ग्रं. ८००. ९३२६९ (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १२४३२-४२). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामायिकावश्यकपौषधानी; अंति: (-), (पू.वि. कनककेतु दृष्टांत ___ अपूर्ण तक है.) ९३२७०. भगवतीसूत्र सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४२). १.पे. नाम. चउगति स्वाध्याय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५, (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-२ से है.) २. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेसर; अंति: गुणविजय रंगि मुणी, ढाल-६, गाथा-४५. ३. पे. नाम. भगवति स्वाध्याय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आवो आवो रे सयण भगवती; अंति: ज्ञान० करि सहु पभणे, गाथा-२५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसिति भगवती दिउं; अंति: धन धन एह मुझ गुरु, ढाल-१०, गाथा-९०. ९३२७१ (+#) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र व आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:जैनमहिम्न., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४३४-३८). १.पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तव: महिम्नाख्य, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: (१)संसृतितोवपार्श्वः, (२)रघुनाथ० मोद भरतः, श्लोक-४१. २. पे. नाम. युगादिदेव महिम्नः स्तुति, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रत्न० ब्रमैक तेयोमयी, श्लोक-३८. ९३२७२. (+) कल्पसूत्र वाचना व्याख्यान-१०, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:कालिका., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४३२-३८). __कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत उत्पन्न; अंति: श्यामाचार्य संबंध. ९३२७३. (+#) स्थानांगसूत्र का धर्मध्यान अधिकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८९, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ.६, प्रले. श्राव. भूषण प्रागजी शाह; अन्य. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धर्मध्यांन., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१२, १५४२८-३६). स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: धम्मज्झाणे धम्म; अंति: संसाराणुपेहा. स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आणायविजए कहेता; अंति: चोथी अणुप्पेहा कही. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३२७४. समकितविचारगर्भित स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-२५(१ से २,५ से २४,२८ से ३०)=१५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १६-१८४३९-४१). महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-५, गाथा-१० तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित-स्वोपज्ञ बालावबोध, मु. न्यायसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७७४, आदि: (-); अंति: (-). ९३२७५. (+) श्रीपाल रास व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ८-१३४३४-४२). १. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्र महिमायां श्रीपालनृप रास, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण, वि. १८४८, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, बुधवार, ले.स्थल. कोरटानगर, प्रले. ग. तीर्थविजय (गुरु ग. देवविजय); गुपि.ग. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीपार्श्वराजजी प्रसादात्. श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चुवीसे प्रणमुं जिन; अंति: जिनहरख० सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२८२. २.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ, प. १५अ-१५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सीलोदर, प्रले.ग. तीर्थविजय (गरु ग. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. मोहनविजय, फा., पद्य, आदि: गौरी पास गरीब निवाज; अंति: मोहन० मन दोजन फतें, गाथा-५. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गोडी पार्श्व गरीबनो; अंति: मुजने नरक थकी निवार. ९३२७६. (+#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र विधि व १८ हजार शीलांगरथ गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३४-३८). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र विधि, पृ. २अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पठ. मु. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. पठनार्थे विद्वान का नाम ८अ पर लिखा है. पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पारगा होय गुरुवयणं, (पू.वि. "जयोसामी रिसहशत्तुंजउ" पाठ से है.) २. पे. नाम. अठार सहस्र सेलांगरथ गाथा, पृ. १८अ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करती मुणसा; अंति: खंतीजूआ ते मुणी वंदे, गाथा-१. ९३२७७. व्याख्यानश्लोक संग्रह सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १४-१६४४४-५२). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ तक है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण; अंति: (-). ९३२७९ (#) अध्यात्मकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. कुसुमपुर, प्रले. पं. क्षमारंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपरमपुरुष श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३४-४२). अध्यात्मकल्पद्रम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः (१)अथायं श्रीमान् शांतनामा, (२)जयश्रीरांतरारीणां; अंति: ___ भववैरिजयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६, श्लोक-२७८. ९३२८० (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३५ से ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. हंडी:उत्तराध्येन, छत्तीसमो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४२-४८). ___ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण.. ९३२८१ (+#) २४ दंडक २६ द्वार विचार व २५ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३२-४२). For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३११ १. पे. नाम. चोवीस डंडक छवीस द्वार विचार, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ३, प्रले. पं. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर उगाहना संघेणे; अंति: जोग २ काया बचन २. २. पे. नाम. २५ बोलरो थोकडो, पृ. ७आ, संपूर्ण. २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति च्यार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-८ अपर्ण तक लिखा है.) ९३२८२. (+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३४४२). आलोचणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूर्वे इर्यापथिकी; अंति: भावेण वंदणाकडे, (वि. अंतमें संक्षिप्त विधि दी ९३२८३. मनोर्थ भावना, संपूर्ण, वि. १९०९, आश्विन शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बजांणानगर, प्रले. श्राव. जेठो; अन्य. मु. सुजस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मनोर्थपत्र, मनोर्थभावपत्र. श्रीशांतिनाथ प्रसाद्यात्., दे., (२५४११, १३-१४४३४-४०). मनोरथ भावना, मु. हकमचंद, मा.गु., प+ग., आदि: समरी सरस्वती भगवती; अंति: मचंद कहे० सिवसुख माण. ९३२८४. (+#) कर्मविपाक फल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१,५,७ से ८)=५, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:कर्मविपाक, कर्मवीपाक., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १४-१६४३४-४२). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-१३, गाथा-३ अपर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९३२८५ (+#) ढोलामारवणीरी वारता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २२-२४४४६-५०). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर स्वामिनी; अंति: कुशललाभ० पामै संपदा, गाथा-७०१. ९३२८६. (+) नवकार मंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११,११४३२-३८). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: सकल वांछित फल पाम. ९३२८७. (+) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ६४३४-४०). १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्वप०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भव्य जीवानइं जाणिवा; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवतत्वप०. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (वि. १८८०, पौष कृष्ण, ३, प्रले.पं. दयालाभ (गुरु ग. हितप्रमोद), प्र.ले.पु. सामान्य) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वीरं कहतां वीर प्रभु; अंति: सिद्धांतसमुद्रथी काढ्यो, (वि. १८८०, ___ माघ कृष्ण, ५, प्रले. पं. दयालाभ (गुरु ग. हितप्रमोद), प्र.ले.पु. सामान्य) ९३२८८. (4) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६४, आश्विन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११, १३४४६-५०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: तहावासमणुसणइनामा, सूत्र-५७, गाथा-७००. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३२८९ (+) अर्हत्सहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सहस्र, स्तोत्र., संशोधित., दे., (२५.५४१२,१२४३२-४०). अर्हन्नामसहस्र समच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां; अंति: (१)पठनाज्जपात्, (२)सानंदं महानंदैककारणं, प्रकाश-११, श्लोक-११७. ९३२९० (+) पाखीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (२५) भग्नपृष्ठकटिग्रीवा, दे., (२५.५४११.५, ७४२४-३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, (वि. १९१८, कार्तिक शुक्ल, ३) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरसिद्ध; अंति: देवताने आदरउ सेवउ, (वि. १९१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, बुधवार) ९३२९१ (4) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ११६-१०९(१ से ९०,९३ से ९६,९८ से ११२)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ५४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी जन्मवर्णन अपूर्ण से उपसर्ग वर्णन अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९३२९२. (#) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८४९, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:पट्टावलिपत्र., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १७४४४-५४). पट्टावली-तपागच्छीय, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन संप्रति: अंति: पाटें बिराजे छे ६५. (वि. अंत में पार्श्वचंद्रगच्छ की पाट-५६ विमलसोमसूरि से पाट-६७ पुन्यविमलसूरि तक लिखा है.) ९३२९३. (#) नवपद प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-८(१ से ८)-६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४११.५, ६४३४-४२). नवपद प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक है.) ९३२९४ (+) रिसहेसर धवल विवाहलो, संपूर्ण, वि. १६५६, फाल्गुन कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, प्रले. श्रावि. चंदाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदिविवाहलउ., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १०४३४-४२). आदिजिन विवाहलो, म. गणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सासणदेविय पाय पणमेवि; अंति: बोलइ श्रीवंत इम मुदा, ढाल-४४, गाथा-२४३. ९३२९५ (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६-८४३६-४२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. 'तस्सणं अक्खाडयस्स' पाठ तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-). ९३२९६. (#) स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८२६, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. राधनपुर, पठ.पं. केशरविजय गणि (गुरु पं. वनीतविजय गणि); गुपि. पं. वनीतविजय गणि (गुरु ग. वृद्धिविजय); ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. लाभविजय); ग. लाभविजय (गुरु ग. कुंअरविजय); ग. कुंअरविजय (गुरु ग. नयविजय); ग. नयविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीआदिसर प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०-११४२८-३०). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभजिणंदा रीषभजिणंदा; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४. ९३२९७. (#) शक्तावली प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८९, माघ कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. सणवाड, प्रले. ग. दलपतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूक्ताव०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१३४३०-४२). For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि सकलसुकृतवल्लि वृंदजी अंति: मनोविनोदाय बालानां, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९३२९८. धर्मजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैदे. (२५x११, १५X३७-४७). धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवुं; अंतिः (-) (पू.वि. गाथा १३० अपूर्ण तक है.) ९३२९९ (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सूत्रपाठ व धातुपाठ, संपूर्ण, वि. १४८५, श्रावण कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैटे. (२६४११. १९६०-७०). १. पे नाम. सिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासन-१ से ४ अध्याय, पू. १अ ५अ संपूर्ण सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहँ सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. अध्याय-२, पाद-२ से अध्याय-३, पाद-२ तक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. सिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासन धातुपाठ, पृ. ५अ- ६आ, संपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन - हम धातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पां पाने अंति: पहण मर्षणे, ग्रं. ३००. ३१३ ९३३०० (+) आलोयणाशतक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १०-१ ( २ ) =९, ले. स्थल. आंचार, प्रले. मु. मीवाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२, ९-१२x२४-२८). आलोयणाशतक, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति सील खंड्या० प्रभाव, गाथा १०० ( पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) ९३३०१. (+#) सुदर्शनशेठ चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५ -६ (१ से ६) = १९, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैसे. (२५.५x११, १७-१८४३१-३८). सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल-८ की गाथा १० अपूर्ण से हाल-३६ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) , ९३३०२ (+a) अध्यात्मज्ञानसार, संपूर्ण वि. १७९९ आश्विन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. गणेश ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १२X३६-४०). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८५, आदि ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन अतिः स्वीयं कृतं मंगलम्, अष्टक ३२, लोक-२७२. ९३३०३. (*) रिषभ चीरत्र, संपूर्ण, वि. १८६५, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २३ ले स्थल, जोधपुर, प्रले. दलीचंदजी, अन्य. पं. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : रिषभ०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १८x४०-४६). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. पच. वि. १८४०, आदि अरिहंत सीधने आरीया; अति रिषभ चीरत टंकसाल ए, ढाल ४७. " ९३३०४ (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवपदपूजापत्र, नवपदरीपूजा, नवपदजीरीपूजा, संशोधित, जैवे. (२६४१२, १२-१४४३२-३८). नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडीपासजी नित; अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल - ९. For Private and Personal Use Only टिप्पण "" ९३३०६. (*) श्रावकविधि प्रकाश, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी प्रति०वि०, प्रति०.. विशेष पाठ., दे., (२५X११.५, १५X४२-४६). युक्त श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-). ९३३०७. (*) आवकविधि प्रकास, संपूर्ण वि. १९०६ पौष शुक्ल ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. पालीताणा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे. (२६४१२, १५-१७४८-५२). "" , आवकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., गद्य वि. १८३८, आदि प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अति क्षमाकल्याण० सोधीयो सुजान. Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३३०८. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक ___ अंक युक्त पाठ., दे., (२७४१२, ८x२६-२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) ९३३०९ (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७१, फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. अजयमेरुनगर, पठ. मु. चारित्रविनय (गुरु पंन्या. सुमतिवर्धन, खरतरगच्छ); गुपि. पंन्या. सुमतिवर्धन (गुरु ग. विनीतसुंदर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघयणसू०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४००, जैदे., (२५४११, १०४३४-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१४. ९३३१० (+#) नंदषेणरी चोपी, संपूर्ण, वि. १८६०, ११, जीर्ण, पृ. १२, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. समर्थसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नंदषेणरी चोपी, चोपी नंदिषेणनी., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४-४४). नंदिषेणमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १८०३, आदि: वर्तमान चौवीसने; अंति: नवनिध मंगल मालो रे. गाथा-२६०, ग्रं. ५००. ९३३११ (#) वेदरवी संबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १२४३०-३४). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधम मांहि जागता; अंति: संपजै पांचमे मोखमझार, गाथा-२०९. ९३३१२. दीपमालिका कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४२-४६). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: समथिओ एस सत्थिकरो. ९३३१३. रणीयासुत चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६.५४११.५, ९४२७). रणीयासुत चौपाई, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण तक हैं.) ९३३१४. (+) अठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. हुंडी:अठाइका व्याख्यान., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२-४२). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)शांतीशं शांतिकर्तारं, (२)इहां समस्त खोटै कर्म; अंति: वांछित रो सिद्ध हुवै. ९३३१५. वीदरवीरी चापी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल, जालोर, प्र.वि. हुंडी:वीरद०, वीदरवी., दे., (२६४११, १७४२७-३३). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधरम मांहे दीपता; अंति: संपजै पहुचै मोख मझार, गाथा-२०९. ९३३१६. (+) अष्टाह्निकादि व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२-१४४४०-४८). १.पे. नाम, पर्यषणाद्यष्टाह्निपर्व व्याख्यान, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्. २. पे. नाम. दीपमालिका व्याख्यान, पृ. १४अ-१९अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जाते वीरजिनस्य निवृत; अंति: विझवणं रायभवणं वा. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी व्याख्यान, पृ. १९आ-२३अ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ४. पे. नाम. मार्गशीर्ष शुक्लैकादशी कथानक, पृ. २३अ-२६अ, संपूर्ण. विला For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: एकादशी० सोद्यमाभवन्. ५. पे. नाम, पोष दशमी व्याख्यान, पृ. २६अ-२८आ, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमाला० दुरंत; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. ६.पे. नाम. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पृ. २९अ-३३आ, संपूर्ण. __ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ७. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ३३आ-३५आ, संपूर्ण. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. ९३३१८ (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ९४२८-३४). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ९३३१९ (+) जीवविचार, नवतत्व व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. गंगाराम; पठ.पं. तेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीरप्रासादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५-१७X४२-५०). १. पे. नाम. जीवविचार सूत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवविचार. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्वसूत्र. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: पुन्नं पावामि अजीवा, गाथा-६०. ३. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दंडगसूत्रप. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४२. ९३३२० (+) लोगनालसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. सरीयदनगर, प्रले. मु. रणजित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२,१-४४४०-४४). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: जयह जह भमह न ईह भईसं, गाथा-३३. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, ग. जसविजय, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतज्ञानकलित हतदोषं; अंति: जसविजय० प्रतनुधिषण. ९३३२१ (+#) पाक्षिकसूत्र व अचित्तरज उड्डावणकाल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११,११४३०-३८). १. पे. नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती. २. पे. नाम. अचित्तरज उड्डावणकाल विचार, पृ. १३आ, संपूर्ण. सचित्ताचित्तरज उहड्डावणकाउसग्ग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चैत्र शुक्ल एकादशीत आरभ्य; अंति: तावदस्वाध्यायः. ९३३२२ (+) मंगलकलस कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२,१५४३२-३६). शांतिनाथ चरित्र-प्रस्ताव १ का हिस्सा-मंगलकलश कथानक, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: मानुष्यकादिसामग्री; अंति: तौ प्रापतुः पदमव्ययम्, श्लोक-२४१. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१६ ९३३२३. (+) स्थूलभद्रादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १४-७(१ से ७)=७, कुल पे. ११, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x११.५ १५X३२-४० ). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. स्थूलभद्रनी सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मु. सिंघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु आदेश लही कोश; अंतिः सिघविजय० तास प्रणाम, गाथा ११. २. पे. नाम. थूलभद्र नवरस सज्झाय, पृ. ८अ -११अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि सुखसंपति दायक सदा अति मनोरथ सघला फल्या रे, ढाल - ९, गाथा - ७४. ३. पे. नाम. धन्नानी सज्झाय, पू. ११अ ११आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि जिनवचने वयरागी हो; अंति: वरत्यो जय जयकार, गाथा १२. ४. पे. नाम. सालभद्रनी सज्झाय, पृ. ११-१२ अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम गोवाला तणें भव; अति: सहजसुंदरनी वाणि, गाथा - १६. ५. पे नाम, बलभद्रनी सज्झाय, पृ. १२अ संपूर्ण. बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर शिखर सोहे, अंति: सकल मुनि सुख देह रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. वैराग्यनी सज्झाय, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसती सामिनी, अंतिः सीद्धचंद्र गुण गाय, गाथा-८. ११. पे. नाम रथनेम सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. गाथा ५. ७. पे. नाम सीक्षा सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा, सिद्धिचंद्र, मा.गु., पद्म, आदि धन्य जनमत जाणी रे; अति शिष्य कहें सिद्धिचंद, गाथा-७. ८. पे. नाम. चंदनमिलयागरी सज्झाय, पृ. १२-१४अ, संपूर्ण. चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहै विजया प्रतै; अंति: सूख ते लहें, गाथा-३२. ९. पे. नाम. बाहुबल सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि बेरन बोलइ हो बाहुबल, अंति: माणिक० वांछत बांन, गाथा-५१०. पे नाम. अरणकऋषि सज्झाय, पू. १४अ १४आ, संपूर्ण, अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सीधो जी, रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमी सद्गुरु पाय अंति पद राजुल लह्यो जी, गाधा-११. ९३३२४ (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९०७ चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल. पालीताणानगर, प्रले. मु. वृद्धिचंद, लिख. सा. सौभाग्यश्री शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमदादीश्वरप्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६५११, ९-१४४४३-४९). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. प+ग. वि. १४वी, आदि वंदितु बंदणिज्जे अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. ९३३२५. (+) होलीरज:पर्व चरित्रकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, भिनमालनगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय); गुपि. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी रज: पर्व्वक, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित, जैदे. (२५x११, ६x४४-५२). होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: श्रीविंध्यकाख्यपुरे, लोक-१३९. होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः श्रीवीझेवानगर मध्ये. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९३३२६. (*) दीपोत्सव कल्प सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल, भावनगर, प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय); गुपि. पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : दीवालिकल्प, संशोधित, जैवे. (२५४११, ६४३२-४२). दीपावलीपर्व कल्प, प्रा. सं., प+ग, आदि उप्पादविगमधुवमयमसेस अति सोहियव्वो सुबहरेहिं गाथा- १३७. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि : उप्पन्नेवा सर्व वस्त; अंति: सोधवो श्रुतधारीये. ९३३२७. (*) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-२(१ से २ ) =७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५४११, १३३८-४२) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश- १ शीतज्वर लक्षण से समुद्देश-२ ज्वरनाम तक हैं.) ९३३२९ (#) प्रतिमाआश्री बोल व जैनसिद्धांत संदर्भ श्लोक संग्रह पुराणवेदादि उद्धृत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४३). १. पे. नाम. प्रतिमाआश्री बोल, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकनां बारव्रत छै; अंतिः कल्पसूत्र ० जोइ लेज्यौ. २. पे. नाम, जैनसिद्धांत संदर्भ श्लोक संग्रह पुराणवेदादि उद्धृत पू. ३अ-५आ, संपूर्ण ', पुराणहुंडी, मा.गु., सं., पद्य, आदि अहिंसासत्यमस्तेयं अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-४ तक लिखा है., वि. विविध विषय श्लोक संग्रह.) ९३३३०. (+) देवसीण सुधार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५, प्रले. मु. दलीदचंद (गुरु मु. चतुरभुज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी, देवसीण. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रांथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे. (२५x१०, . १६x२६-३२). ३१७ देवसीण सुधार चौपाई, मु. दलीदचंद, रा., पद्य, वि. १८८४ आदि वरधमान सासणधणी गोतम, अंति दलीचंद० कीयो उदार, ढाल - ९. " ९३३३१. चौमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२७४१२, ११४२८-३२)चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि पेहलो आसाद चौमासो १ बीजो अति: (-), (पू.वि. सातमा व्रतना अतिचारवर्णन अपूर्ण तक है.) ९३३३२. जसविलास, औपदेशिक सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७ फाल्गुन शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. ७०, ले. स्थल. मुंबइबंदर, प्रले. ग. खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय) गुपि. पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय); लिख श्राव, देवराज गजा केसवजी सा; श्राव. नेमा पीताजी; श्राव. अखा केवदास, प्र.ले.पु. मध्यम दें. (२४.५४११.५, १२X३९-४२). १. पे. नाम. जसविलास, पृ. १अ - १८अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी, जसविलास.. जशविलास, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: चेतन ज्ञान की द्रष्टि; अंति: लीजें भक्ति पराग रे, पद - ७२. २. पे. नाम. वैराग्यपरक पद पृ. १८-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी, ज्ञानसार. औपदेशिक पद- वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि कहा भरोसा तन का अधू; अंति: नांही जनम मरण भवपासा, गाथा ४. ३. पे. नाम औपदेशिक पद-जगत, पू. १८ आ-१९अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अवधु ए जगका आकारा; अंति: ग्यान० सिंधुका डेरा, गाथा- ९. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: दरवाजा छोटा रे नीक; अंति: या ते सिद्ध शनोटा रे, गाथा- ३. ५. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: ओधु हम वीन जग कछु; अंति: ज्ञानसार० चिदघनघन अभिधासी, गाथा-५. ६. पे. नाम, आत्मज्ञान पद, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. ___ मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: औधू आतम तंत गति बूझै; अंति: ग्यान०अव्याबाध अनंता, गाथा-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १९आ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम पतियां कौन्न; अंति: ग्यान० खानी को पानी, गाथा-३. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: रहे तुम आज क्यु जीव; अंति: ग्यानसार० कंठ लगाय, पद-३. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: और खेल भव खेल बावरे; अंति: अजर अमर पद राय रे, गाथा-६. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २०अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभो हम कबके संसारी मेरे; अंति: ग्यान०विवहारे परनाता, गाथा-४. ११. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २०अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: छकी छवी वदन नीहार; अंति: पद भीतर चेतनता भरतार, गाथा-३. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.. मु.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: पर परणांम नवी भाये; अंति: कल लबध सीद्धमुंही, गाथा-३. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २०आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा आतम अतहि अयांना; अंति: तो गति अगति नही काया, गाथा-३. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २०आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधु आतम भरम भुलाना; अंति: ग्यानसार० अव्याबाधा, गाथा-२. १५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. मु.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: वीर विवेक मीत अनुभो; अंति: ग्यान० कहा रोय बतावे, गाथा-३. १६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: नाथ तुमारी तुमही; अंति: ग्यानसार दुख वीसराणो, गाथा-३. १७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु.ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: कहा कहियै हो आप सयान; अंति: ग्यानसार० गरज लजीयानते, गाथा-३. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ज्ञानसार. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: प्रीतम पतीया कुन पठा; अंति: घर हिलमिल प्रीत वढाई, गाथा-३. १९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ हम तौरा उरै खो; अंति: कर कैसैं मूंछ मरोरै, गाथा-३. २०. पे. नाम. जिन गीत, पृ. २१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ ग्यान्न नयन; अंति: गुन सुझे सहिज समाजे, गाथा-३. २१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करिइ अरदाशा साध; अंति: हम साहिब जडदासो, गाथा-४. २२. पे. नाम, जीन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: अनुभौ ढौलन कब घर; अंति: ग्यान० तेडे उठ आवे, गाथा-४. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणी, म. ज्ञानसार, पहिं., पद्य, आदि: हमारी अंखीयां अति उलसानी; अंति: ग्यानसार पद दानी, गाथा-३. २४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३१९ मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: एही अजब तमासा औधू; अंति: ग्यानसार पद पावै, गाथा-५. २५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २२आ, संपूर्ण.. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: मनुआ वस नही आवै अबध; अंतिः सो नीश्चे सीव पावे, गाथा-५. २६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभो अपनी चाल चलीजे; अंति: ग्यान०नो उपर दो दीजे, गाथा-३. २७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान कला गनि घेरी; अंति: अजर अमर पद केरी, गाथा-३. २८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं यात चतुरवर चित; अंति: ग्यानसार खेले वसंत, गाथा-३. २९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: सासरेरि आज रंग वधाई; अंति: ग्यान० लगाईजी म्हारे, गाथा-३. ३०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. म.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधु या जाग के जगवासी; अंति: ग्यानसार पद पाशी, गाथा-४. ३१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: आतम अनुभो अंबको; अंति: ग्याने गति निरबाध, पद-१. ३२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई ऐसा योग; अंति: निहश्चे ह्वे नीरबंधी, गाथा-३. ३३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: ओधू कैसी कुटंब सगाई या कौ; अंति: ग्यानसार पद पाई, गाथा-४. ३४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: माई रे मेरे कंत; अंति: ग्यानसार रस खाणी, गाथा-३. ३५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: ओध सुमति सुहागन; अंति: जल मय जल व्यापारा. ३६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई जग करता कहि; अंति: जीत निसान घुरावै, गाथा-६. ३७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाइ जब हम भए; अंति: ज्ञानसार०केसे हु मही पावे, गाथा-६. ३८. पे. नाम. जिन पद, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई निहचै खेल; अंति: ज्ञानसार० भवदधि पारा, गाथा-१४. ३९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २५आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधु घरणी विण घर कैसो; अंति: यानतै अपने आतम कलीये, गाथा-३. ४०. पे. नाम, जिन पद, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: औधु हेम विन जग; अंति: ग्यान०परमारथ पथ गावे, गाथा-३. ४१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २६अ, संपूर्ण. म.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई आतम भाव; अंति: ग्यानसार पद पेखा, गाथा-२. ४२. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २६अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: दया धर्म चित राखीये; अंति: जीवके एसे उद्धरे नेह, गाथा-१. ४३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;नगक्रत. मु. नग, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनदेव देव जयत; अंति: शीघ्रमेव दुखनासं, गाथा-६. ४४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: अरे ईन तिशना रे मोसु; अंति: नग० धन्य हे तास जीयो, गाथा-५. ४५. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. नग, पुहि., पद्य, आदि: चेतन चित भूल्यो रे; अंति: नग कहे० समर एक भगवान, गाथा-११. ४६. पे. नाम. जीवोपरि स्वाध्याय, पृ. २७अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवोपरि, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: कायानगर का मस्त योगी; अंति: जो तुं देत हराया रे, गाथा-४. ४७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: माई में तो जाउगी गीरनार; अंति: नग० जाउ में बलिहार, गाथा-५. ४८. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २७आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: पारसजिन देव देव सेवक; अंति: नग० कलपविरख पा के, गाथा-३. ४९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २७आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. नग, पुहि., पद्य, आदि: में हूं अनाथ नाथ हाथ; अंति: नग० बगस करसु हेरो, गाथा-५. ५०. पे. नाम. जिनवाणी प्रभाव सज्झाय, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणी, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: जीनवाणी मन आणी तिनही; अंति: नग० समरो या सुख खानी, गाथा-८. ५१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. मु. नग, पुहि., पद्य, आदि: अब में तेरो हि चेरो प्रभु; अंति: नग० तुं ही हे तुं जग मेरो, गाथा-६. ५२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: जिया तें जिनपद मन नहि धरा; अंति: नग कहे० भवसागर विच पर्या, गाथा-६. ५३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: मोहि आसरो तेरो लाज रखो; अंति: अरजी नग० मेटो मुझ भव फेरो, गाथा-६. ५४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: आयो रे जीव पाहुणरो दिन; अंति: कहे नग०कीयो आयो थो इण वाट, गाथा-४. ५५. पे. नाम, तीर्थंकर जन्मोत्सव स्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: वधाईरी आज जगमांहे भई; अंति: नग० जिन दीठां नयणे सही, गाथा-५. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: मनवा अवसर चलो बजाई लाई ते; अंति: नग० तोहि न समझ्यो अन्याई, गाथा-५. ५७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: यामें क्या मेरा क्या तेरा; अंति: नग० पावे पासी कीया तेरा, गाथा-३. ५८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण. म. नगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी मेरी सब दीन करते मोह; अंति: नगविजय०जब ही ज्ञानधन पाया, गाथा-५. ५९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहि., पद्य, आदि: ऐसी वेर बहूर नही आवे गया; अंति: कहे नग० दुख बहूत कुगतीसौ, गाथा-४. ६०.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. म. नग, पुहिं., पद्य, आदि: धन का सुख ते लेण न पाया; अंति: नग० माया सेती रहे ऊदासा, गाथा-४. ६१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, मु. नगविजय, पुहि., पद्य, आदि: थोरे दिन वावतत क्या मरणा; अंति: नग० होय रह्यौ न चिंता, गाथा-५. ६२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३०अ, संपूर्ण. मु. नग, पुहि., पद्य, आदि: परदेशीसु प्रीत न जोर रे; अंति: नग० प्रीत नीवाहै सो ओर रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ६३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०-३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरी, पुहिं., पद्य, आदि: झुठी झुठी रे काया पतंगी; अंति: न होवे तेरा चलना नेरा आया, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ६४. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पू. ३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय असार संसार, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि इन जगमें को नहीं अपना रे; अंति नग० तो नित जिनपद जपना रे, गाथा-५. ६५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्मदाता गुरु, पुहिं., पद्य, आदि: में तेरे चरण लागु गुरु; अंति: जैनधर्म वीना चोहटे लुटाता, गाथा-८. ६६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अथिर संसार, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: शब दीन बोल ही गयो रे; अंति: नग जब लग है यह अंग, गाथा- ७. ६७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- काया, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि औधु कैसा तनका बीसासा जाका; अंति: कहे नग० परम जोति " परकासा, गाथा ३. ६८. पे नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. ३१ आ. संपूर्ण. पुष्टि, पद्म, आदि: होरी खेलुंगी संग लीये सजन अंति: अम प्रीत भई सिवसुख वरणां, गाथा-८. " ६९. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ३१ आ. संपूर्ण, वि. १९०७ फाल्गुन शुक्ल, ५. मु. विनयभक्ति, पुहिं., पद्य, आदि चालोरी जीनमंदिर जाई; अंतिः विनयभक्ति होय रहीये, गाथा- ३. . ७०. पे नाम, पंचजिन चैत्यवंदन, पृ. ३२अ संपूर्ण, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का हिस्सा पंचजिन चैत्यवंदन, आ. हेमचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि आदिमं पृथिवीनाथमादिमं अतिः सहोराजा मरालावर्हते नमः, लोक-५. ९३३३३. अष्टप्रकारी पूजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी पूजारासप०., जैये., (२५X११, १४X४६-५२). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २० की गाथा १० अपूर्ण तक है.) ९३३३४. (+) षष्टिशर्तससूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८३२, चैत्र कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, कर्णपुरनगर, प्रले. मु. जगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी :षष्टिशतः वृत्ति., संशोधित., जैदे., (२५X११, १६x४८-५४). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि अरिहं देवो सुगुरू: अंति: नेमिचंद० जंतु सिवं, गाथा १६१. शतक प्रकरण-वृत्ति, सं. गद्य, आदि देवो अर्हन् चारित्रलक्षणो अतिः शिवं जंतु इति भावः. " ९३३३५. (*) नवपद स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे १० प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१२.५, १४४४२-४८). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा ध्यावो; अति: कांइ बंद वे करजोडि, गाथा-७. गाथा-७. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ३२१ २. पे नाम. सैजाजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति उदय० निरमल धास्यूं, गाथा-८. ३. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमंधर जुगमंदिर, अंति खिमाविजय० दुख वारे रे, For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद स्तवन, म. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कसल कमलानो मंदर; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३. ५. पे. नाम, नवपद स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधीयै आणी ऊलट; अंति: सरु ज्योतिरूप कहावे, स्तवन-९. ६. पे. नाम, आध्यात्मिक रेखतो, पृ. ४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अध्यात्मपद धारो चित; अंति: जिनपद्म०उपाधि विमारो, गाथा-५. ७. पे. नाम, आध्यात्मिक रेखतो, पृ. ४आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद, मु. जिनपद्म, मा.गु., पद्य, आदि: मान तज आत्म दिल हंदा; अंति: कहै जिनपद्म ससनेहा, गाथा-४. ८. पे. नाम, आध्यात्मिक रेखतो, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. जिनपद्म, मा.ग., पद्य, आदि: चेतन जिनध्यान धरम नमे सबल; अंति: कहे जिनपद्म करजोडी, गाथा-३. ९. पे. नाम, नवपद स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणी सम सह मंत्र; अंति: जिनलाभ०जस लीजे रे लो, गाथा-२६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) १०. पे. नाम. नवपद पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंति: री सुरतरु बीज खरो रे, गाथा-३. ९३३३६. सिंदूरप्रकर की टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर टी०., द्विपाठ., दे., (२५.५४११, १६-१८४६०-६८). सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२९ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ९३३३७. (+#) पुण्यसार रास-उल्लास १, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५४११, १४४३६-४०). पुण्यसार रास, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दाता श्रीसंतिजिन; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९३३३८. (#) चोविस दंडक बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दंडकबोल., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४११, १५४३८-४६). २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: नेरिया १ असुराइ ११; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२२ अपूर्ण तक है.) ९३३३९ (+) नेमजीरो चोक, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. जालंधर, प्रले. पं. खुबचंद (अज्ञा. पं. मूर्तिकुशल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चोकपत्र., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३३३) जालंधरसीरसहिर मै, जैदे., (२५४११.५, १२४३०-३६). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकुमर; अंति: सीसे अमृत गुण गाया, चोक-२४. ९३३४०. पाक्षिकदिन नमस्कार स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, ३४३५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२९, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीपार्श्वनाथाय, (२)सकल क० समस्त अर्हत; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१४ तक का टबार्थ लिखा For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३२३ ९३३४१ (+) सिद्धचक्रमहिमोपरि श्रीपाल भूपाल चउपदी, अपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४४-१६(१ से १६)=२८, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. पं. नेमचंद (गुरु मु. उदयचंद); गुपि. मु. उदयचंद (गुरु मु. कुशलसौभाग्य); मु. कुशलसौभाग्य (गुरु उपा. गजवल्लभजी); उपा. गजवल्लभजी (गुरु ग. अमरमूर्त वाचक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३३४) जिहां लग मेरु अडग हइ, जैदे., (२४.५४११, १३४३२-३६). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: पातिकवन लुणिज्यौ रे, ढाल-४८, गाथा-८६१, (पू.वि. ढाल-१८ की अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) ९३३४२. नमस्कारफल दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. वृद्धिचंद्र (गुरु मु. सरीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, ., (२६.५४११.५, १३-१५४३४-३८). नमस्कारमहामंत्रफल दृष्टांतसंग्रह, सं., पद्य, आदि: नमो अरहंताणं० नमो; अंति: मंत्रं सदा सौख्यदम्, श्लोक-३२५. ९३३४३. (+#) मानतुंगऋषि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१(८)=३१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४०-४४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११, गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-१२, गाथा-१२ अपूर्ण तक व ढाल-४६, गाथा-१० अपूर्ण से नहीं है.) ९३३४४. (+2) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८०७, माघ शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ५८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३८-४४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेली कवियण तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५. ९३३४७. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. हुंडी:क०सू०बा०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६x४२-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)तेणं कालेणं० समणे, (२)नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'असंजियाणं प्या' पाठ तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमः वर्द्धमानाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दश अच्छेरावर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ९३३४८. कर्मविपाक सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२-३६). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: ऍदवीयकलाशौक्लीं; अंति: (-). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मनो विपाक संक्षेप; अंति: (-). ९३३४९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७५६, वैशाख कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २५-२(१९,२३)=२३, जैदे., (२६४११.५, १०-१३४३८-४२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत प्रतइ; अंति: संभारवू संखेपq. ९३३५० (+#) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-४ व ५, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-५(१ से ५)=२२, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ४४३२-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण के पाठ "आ पुढविचित्तमंतमरकया" पाठ से अध्ययन-५ गाथा-८९ अपूर्ण तक है.) ९३३५१. (+) सारंगसार काव्य सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. हुंडी:सारंगसार काव्य., संशोधित. कुल ग्रं.१९५५, जैदे., (२७४११.५, १५४४६-५२). For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सारंगसार काव्य, ग. हंसप्रमोद, सं., गद्य, वि. १६६२, आदि: अत्र वर्ण्यपदार्था एते; अंति: हंसप्रमोद गणिः ६६. सारंगसार काव्य-स्वोपज्ञ टीका, ग. हंसप्रमोद, सं., गद्य, वि. १६६२, आदि: नमस्कृत्य कृतानंद कंद; अंति: पार्श्वनाथ प्रसादतः. ९३३५२(+#) ढोलामारवणीरी चोपई, संपूर्ण, वि. १७८०, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. सोनगढ, प्रले. मु. फतेहचंद; पठ. म. कृष्ण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३८-४८). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर स्वामिनी; अंति: कुशललाभ० पामै संपदा, गाथा-७०२. ९३३५३. (+) पंचम ग्रंथ शतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, प्रले. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६.५४१२, २-३४२९-३५). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (वि. १९०७, फाल्गुन कृष्ण, ले.स्थल, पालीताणा, वि. श्रीइष्टदेव प्रसादात्.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य वीरं सद्वार; अंति: देव० संदर्शयन् ___शोभते, (वि. १९०७, फाल्गुन शुक्ल, १४, सोमवार, ले.स्थल. पल्लीकापुर, वि. श्रीआदीश्वर प्रसादात्.) ९३३५४. (+) मौनएकादशीमाहात्म्य कथा व शांतिस्तव, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. वाराणसी, प्रले. पंन्या. मानविजय गणि (गुरु पंन्या. अजितविजय गणि); गुपि. पंन्या. अजितविजय गणि (गुरु पं. विनयविजय गणि); पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय); ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); गुभा.पं. अजितविजय गणि (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि); गुपि. पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:एकादशीपत्र. श्रीपार्श्वप्रभु प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ६x४५-५५). १. पे. नाम. मौनएकादशीमाहात्म्य कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य क० श्रीइष्टदेवनै; अंति: १६५७ वर्षने विषे करी छे. २. पे. नाम. शांतिस्तव सह बालावबोध, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंति: सततं वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंते; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ९३३५५ (+#) कयवन्नाधिकारे चोपई, अपूर्ण, वि. १८३२, माघ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २२-६(१ से ६)=१६, ले.स्थल. बीलाडानगर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१०९६) जलात् रक्षे थलात् रक्षे, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३२-३८). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदिः (-); अंति: धरम करण मन उलसइ जी, ढाल-३१, गाथा-५५५, (पू.वि. ढाल-९ दोहा-४ से है.) ९३३५६. (+) कर्मग्रंथ १ से ४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४१, कुल पे. ४, प्रले. पं. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदेश्वर प्रसादात. तीर्थ प्रसादात., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, ४-७४३२-३८). १.पे. नाम, कर्मविपाकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिन वांदीनइ कर्मना; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरियइ. २. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र सह टबार्थ, पृ. १०अ-१७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३२५ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: तिम अम्हे स्तवं छु; अंति: श्रीमहावीर देव प्रते. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्वसूत्र सह टबार्थ, पृ. १७अ-२२अ, संपूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन कृष्ण, ७, ले.स्थल. पादलिप्तनगर. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण सत्तावन्न; अंति: कर्मस्तवथी सांभलीनइ. ४.पे. नाम. षडशीतिकाख्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २३अ-४१अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पल्लिकानगर-पालि. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर; अंति: रि श्रीतपागच्छ नायकइ. ९३३५७. नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९५६, चैत्र शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १७-१(२)=१६, प्रले. गणेशराम व्यास; पठ. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४३०). ज्योतिषसार-लघनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)विघ्नराज्यं नमस्कत्यं, (२)श्रीअर्हतंजिनं नत्वा; अंति: भीतं भीयी लघु घातचंद्र, (पू.वि. "धरती सुती कहे छे" पाठ से "पुरुषघातचंद्र" पाठ तक नहीं है.) ९३३५८ (+) जिनस्तवनचतुर्विंशति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. पलांसुंआनगर, प्रले. मु. जितविजय (गुरु मु. जयविजय); गुपि.मु. जयविजय (गुरु पं. दोलतविजय); पं. दोलतविजय (गुरु पं. दर्शनविजय गणि); पं. दर्शनविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:आनंदघन्न., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३-५४४०-४४). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जाग रे, स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंदमई जिनवरू; अंति: मोक्षपद पामे इत्यर्थ. ९३३५९ (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, ६-८x२८-३६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३३ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअर्हतने प्रणाम; अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त पाठ.) ९३३६० (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६८-३३(१ से ३३)=३५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;कल्पसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ६-१७X४४-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वाचना-४ अपूर्ण से वाचना-८ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३३६१ (+#) भाष्यत्रय व कर्मग्रंथ-१ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१५(१ से १५)=६, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४२८-३८). १. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, (पू.वि. भाष्य-३, गाथा-३२ अपूर्ण से २. पे. नाम. कर्मविपाक प्रथम, पृ. १६आ-१९अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. ३. पे. नाम, कर्मस्तव, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ४. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ९३३६२. (#) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४७-३३(१ से १५,१९ से ३६)=१४, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. प्रत अत्यंत जीर्ण है, पत्रांक वाला भाग खंडित होने से अनुमानित दिया गया है., मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ५४२४). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच-बीच व अंत के पाठ नहीं है.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-)... ९३३६३. (+) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र व प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४३१-३३). १. पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमानइ माहरओ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, पृ. १३अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण पारने के सूत्र का प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदय आरंभी बिघडी; अंति: (-). ९३३६४ (+#) प्रश्नोत्तर काव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रसंगोचित कठिन शब्दों का अर्थ दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२६४११, ११४४४). प्रश्नोत्तर काव्य-समवर्णगर्भित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से १५० अपूर्ण तक है.) ९३३६५ (+) पार्श्वदेव नमस्कार स्तुति, संपूर्ण, वि. १९२७, वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४११, ४४२६-२८). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहअणवरकप्परुक्ख; अंति: विन्नवइ आणंदिइ, गाथा-३०. ९३३६६ (+) ऋषभपंचाशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ७-९४२२-२८). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०, संपूर्ण. ऋषभपंचाशिका-टीका *, मा.गु., गद्य, आदि: जगति जंतूनां कल्पो; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५० की टीका आंशिक अपूर्ण तक लिखा है.) ९३३६७. (+) स्तोत्रादि संग्रह व कर्मग्रंथ-१ से ३, संपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १२, कल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण यक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२६४११.५, १४४३४-४८). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३२७ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४.पे. नाम. प्रथम कर्मविपाकसूत्र, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: श्रीवीर जिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. ५. पे. नाम. कर्मस्तवन सूत्र, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ६. पे. नाम. बंधस्वामित्वसूत्र कर्मग्रंथ तृतीय, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंद०कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. ९३३६८. (+) छ काईना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. महापुर, प्रले. मु. मोतीलाल (गुरु मु. रामचंद्र); गुपि. मु. रामचंद्र (गुरु मु. नान मुनिराज); मु. नान मुनिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छ काई छे. प्रतिलेखनपुष्पिका दो बार लिखी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १२-१४४३२-७०). ६ काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: छ कायना नाम इंदीथावर; अंति: इति मुगतसलाना १२ नाम. ९३३६९. चउवीस दंडिक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., दे., (२५.५४११). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., द्वार-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) ९३३७० (+) कलिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. आहोर, पठ. मु. पूनमचंद्र (गुरु पं. श्रीचंद); प्रले. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीकालिकाचार्य., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १४४४०-४२). कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीगुरुं गद्य, (२)एहवा अनेक थिवर हूआ तिणां; अंति: जिनमुक्तिसूरी० प्रवरत्तय. ९३३७१ (4) शुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८२१, फाल्गुन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. थांवला, पठ. मु. जीवणविजय (गुरु पंन्या. हस्तिविजय); गुपि. पंन्या. हस्तिविजय (गुरु ग. चतुरविजय); ग. चतुरविजय; प्रले. पंडित. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में औपदेशिक दोहा लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि वृंदजी; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१६३. ९३३७२ (+) श्रावक अतिचार व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११, ११४२८-४०). १.पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १०अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. अतिचार-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अजिअशांति स्तवन, पृ. १०अ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;अजिसं०. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३. पे. नाम, बृहच्छांति स्तवन, पृ. १४अ-१६आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४. पे. नाम, लघुसांति, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ५. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ६. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ९३३७३. (#) मंगलकलस रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:मंगलकलस, मंगलक०., अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५.५४१२, १३४३६-४२). मंगलकलश रास, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: स्वस्ति श्रीसीमंधराय वीसइ; अंति: प्रेम०दिनि होइ जयकार, ढाल-२७, गाथा-२९९. ९३३७४. (4) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. झेडाउ, प्रले. मु. दलीदचंद (गुरु मु. चतुरभुज); गुपि.मु. चतुरभुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पडीकमणो., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४२६-३५). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण: अंति: तस्स मिच्छामि दूकडं. ९३३७५ (4) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २४४६९). जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: विक्खंभवग्गदह गुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: विक्खंभ कहीये पिहल घणौ; अंति: (-), (पू.वि. घनगणित विचार अपूर्ण तक है.)। ९३३७६. (+) भगवतीसूत्र का बीजक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १३४४०-५५). भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या ; अंति: (-), (पू.वि. शतक-३६ तक है.) ९३३७७. (+) वैराग्यशतक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:वैरागसतक, वैराग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६३५, जैदे., (२५.५४११, ४४२८-३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चौद राजप्रमाण लोकरूप; अंति: स्थानक प्रति पामइ. ९३३७८. गोरावादलपदमणी चरित्र, अपूर्ण, वि. १७६९, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३१-२४(१ से २४)-७, ले.स्थल. जोगनीपुर, प्रले. मु. हर्षसुंदर; गुभा. मु. गुणसुंदर; मु. हीरसुंदर; मु. कुशलसुंदर (गुरु ग. लब्धिसुंदर, संडेरगच्छ); गुपि. ग. लब्धिसुंदर (गुरु उपा. श्यामसुंदर, संडेरगच्छ); उपा. श्यामसुंदर (संडेरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चोपइ पद०, चोपइ पदमणी, चो०पदमणीरी., जैदे., (२५४१०.५, १५४३०-३४). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: (-); अंति: हेमरतन० ले लिखमी वरै, __गाथा-६२०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-५८९ अपूर्ण से है.) ९३३७९ (+) स्तोत्र, स्तवन व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. १३, ले.स्थल. अजमेरनगर, प्रले. मु. रतनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४२८-३४). १.पे. नाम. जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: मनिशं चित्तमानंदकारी, श्लोक-९. २.पे. नाम, सरस्वतीमंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्वेतपद्मासना देवी; अंति: सर्वविद्यां लभंति च, श्लोक-३. ४. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं; अंति: दत्तं० सरस्वत्यै छै. ५. पे. नाम. शांतिकर स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ६.पे. नाम. पंचषष्टी संख्या स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ७. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: सेवा देज्यो नित्त, गाथा-१३. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणो; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ९. पे. नाम. श्रावक प्रायश्चित्तसूत्र, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. श्राद्धलघुजीतकल्प , आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं नमिउं; अंति: रइया सिरितिलयसूरीहिं, गाथा-२०. १०. पे. नाम. पौषधिक प्रायश्चित्त समाचारी गाथा, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. पौषधिकआलोयणा सामाचारी, आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, वि. १३वी, आदि: पोसहिओ न करेइ आवसियं; अंति: ईदसगं सव्वेसु नवपरउ, गाथा-१०. ११. पे. नाम. आलोचना तपप्रदानसंज्ञा स्वरूप, पृ. ९आ, संपूर्ण. आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: पणगं १ मासलहुँ २; अंति: ९ उपवास असीयसयं १०. १२.पे. नाम. ऊर्ध्वलोकना शाश्वता प्रासाद तथा शाश्वती प्रतिमानी संख्या विचार, पृ. ९आ-१६अ, संपूर्ण. ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्या संक्षिप्त विवरण, मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम सौधर्म देवलोके; अंति: माहरो नमस्कार हो. १३. पे. नाम, जिनदत्तसूरिजी स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सद्गुरुजी थे सांभलो; अंति: लाभोदय सुजगीस हो, गाथा-११. ९३३८० (+) सत्तर भेदी पूजा व जिनबिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.७, कुल पे. २, ले.स्थल. सिरोहीनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१६४३६-४०). १.पे. नाम. सतर भेद पूजा विधि, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र कृष्ण, १२, प्रले. ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सत्तरभेदीपूजा पत्रं. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: अनुमोदतां करतां हर्ष अपार, ढाल-१७, (वि. विधिसहित.) २.पे. नाम. जिनबिंब गृहप्रवेश विधि, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र कृष्ण, १३, प्रले. ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय); गुपि.पंन्या. केसरविजय (गुरु मु. सुमतिविजय); पठ.पं. नायकविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हंडी:जिनबिंबप्रवेश विधि. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, आदि: तत्र पूर्वं भव्यं; अंति: सन्मानं संघभक्तिश्च. ९३३८१ (+#) अध्यात्मोपनिषद्-१ से ४ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७१२, पौष शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. गमणाद, प्रले. मु. जिनविजय (गुरु म्. कीर्तिविजय, तपगच्छ); गुपि. मु. कीर्तिविजय (गुरु म. विमलविजय, तपगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति विजयदेवसूरि; पठ. मु. वीरविजय (गुरु मु. जिनविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८-४४). ___योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९३३८२. (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह अर्थ व विवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९४२, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २४-७(१ से ७)=१७, कुल पे. २, प्रले. पं. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४३९-४२). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष सह अर्थ, पृ. ८अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:नारचंद्रप०. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), (पू.वि. 'तृतीयादशमीकृष्णा शनीभूमी' पाठ से है., वि. श्लोकांक क्रमशः नहीं है.) ज्योतिषसार-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. विवाहपडल सह बालावबोध, पृ. १४आ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विवाहपडलप०. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: डंडायत्रयस्ताज्याकरग्रहः, श्लोक-७५. विवाहपडल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जं भाराति कहिजै इंद; अंति: चवरी काल जाणी० महुर्त मघा. ९३३८३. (+) रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४-१८४४८-५४). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. समतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुधि लबधि नव निधि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१८ के दोहा-६ अपूर्ण तक है.) ९३३८४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १७, दे., (२५४११, १२-१४४३०-४०). १. पे. नाम, रूखमणीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम नेमि; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज थकी में पामीयो रे; अंति: कवियण०अंतर दूर निवार, गाथा-७. ३. पे. नाम. दशवकालिक सज्झाय-अध्ययन ५, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: वाणी गाजे अंबरनाद; अंति: गावे इम कवि कांति रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. स्याणा, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नगर सोहामणो; अंति: मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१५. ६. पे. नाम, थूलिभद्र गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रकोशा बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मास सोहामणो; अंति: हवै आव्या चोमासें आप, गाथा-१५. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडण नवखंडा, म. देवेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जगनाथजी हे घोघाबिंदर; अंति: देवंद्र० सेवा मनहेव, गाथा-७. ८. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण. मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिणेसर इम भणे; अंति: केसर परमाणंद हो, ढाल-९. cd For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ९. पे. नाम. नंदिषेण स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि रहो रहो रहो रहो वालह, अंतिः रुपविजय जयकार लाल रे, गाथा - ५. १०. पे नाम, जीवशिक्षा स्वाध्याय पू. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: जीव कहे सुण जीभडली; अंति: लावण्य० अब भागी रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ११. पे नाम धूलिभद्र सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण, स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रितलडी न कीजे रे नारी, अंति: चुनडीजी सुंदर एहि ज रीति, गाथा-४. १२. पे. नाम हेतशिक्ष्या स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतात; अति भावसु ए हितशिख माने, गाथा ९. १३. पे. नाम हेतशिक्षा सज्झाय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. गाथा - ९. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तो सुख जो मन आवें; अंति: विजयभद्र० निश्चय लहें, १४. पे. नाम, नोकाररी सज्झाय, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लबद्ध० नित नित नवकार, गाथा - २८. १७. पे नाम, ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा- ९. गाथा - ९. १५. पे नाम. आत्महित स्वाध्याय, पृ. ९अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण मोकलो; अंति: सहजसुंदर उपदेस रे, गाथा- ७. १६. पे नाम. जीवशिख्यामण स्वाध्याय पू. ९अ १० आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण; अंति: विजयभद्र०नवि अवितरें, ३३१ ९३३८५. (+#) कल्पसूत्र का बालाववोध १० अच्छेरा व महावीरजिन चरित्र, संपूर्ण वि. १८६९ वैशाख शुक्ल, १ मध्यम, पृ. ११+१(१०)=१२, पठ. पं. खुबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ); गुपि. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, " प्र. वि. हुंडी: अच्छेरा. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६४१२, १३४३६-४२). " कल्पसूत्र- बालावबोध", मा.गु. रा. गद्य, आदि (-); अंति (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. १० अच्छेरा वर्णन से महावीरजिन जन्म, दीक्षा, अचेलक प्रसंग तक है.) ९३३८६ (+) इछुकारीसिद्धि चोपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, पाली, प्रले. सा. इमरतीजी (गुरु सा. गारांजी); गुपि. सा. गारांजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X११, १४-१६x४२-५२). इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि प्रभ दवाल दया करो आसा अंतिः खेम भणै० कोडि कल्याण, ढाल-४. ९३३८७ (+) च्यार मंगल रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी व्यारमंगल., संशोधित. जैवे. (२५x१२, १३x४२-४८). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीशीजिन नमुं; अंति: ए मुगतनगर ले जायके, ढाल-४, गाथा - २११, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) יי For Private and Personal Use Only ९३३८८. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०२, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल राजनगर, पठ. अमांजी; श्रावि. कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंत में प्रास्ताविक दोहा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५X११, १२X३२-३४). Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७१३, आदि अनंत चउवीसी जिन नमुं अंतिः सिद्धविजय ० मंगल करो, ढाल - ७, गाथा - १०५. ९३३८९. (+) रत्नसंचय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी रत्नसंचय ट०, रत्नः टवार्थ, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५X११, ६३६-४२). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १९९ अपूर्ण तक है.) " रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव प्रते; अंति: (-). ९३३९०. (+) पाशाकेवली व सुकना रा कवित्त, संपूर्ण, वि. १८०६, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल स्वर्णगिरि, प्रले. मु. सोभाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.४४१०.५, १५४४२-४६). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ -६अ, संपूर्ण. मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्म, आदि (१)ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, (२) महादेवं नमस्कृत्य; अंति: गर्ग० जैनर्षिभिरुदाहृतं, श्लोक-१७८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सुकनारा कवित्त, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शकुनावली कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि दधमछी सांमु हाले आयो अंति आयो तो पावां अंभा, गाथा-८. ९३३९१. (+#) पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०.५, ८-१०४५०-६०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तित्थंकरे अ तित्थे अति जेसि सुअसारे भत्ति पाक्षिक सूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तित्थंकरे० च शब्दाद; अंति: नाभिहितत्वात्. ९३३९२. (#) गौतमपृच्छा सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५ - २५ (१ से २५) = १०, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३X३८-४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. गाथा ४० से गाथा ४७ तक है.) गौतमपृच्छा- टीका, मु.] मतिवर्द्धन, सं., गद्य वि. १७३८ आदि (-); अंति (-) (पू. वि. शालिभद्र कथा अपूर्ण से , मदनब्रह्मदत्त कथा अपूर्ण तक है. ) गौतमपृच्छा - कथा, मु.] मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९३३९३. .(+) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९ - १ (१८) = १८, ले. स्थल. नीबेडा, प्रले. ग. जयसौभाग्य (गुरुग, नेमसौभाग्य); गुपि. ग. नेमसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी षडावश्यक संशोधित, जैदे. (२५४१०.५, ६X३४-३८). " For Private and Personal Use Only आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं नमो (२)पंचिंदिय संवरणो तह; अति इअ समत्तं मे गहिअं, (वि. १८०१, वैशाख कृष्ण, ३, पू.वि. 'भवसयसहस्समहणीए' से 'धम्मोमंगलं चत्तारिलोगुत्तमा' पाठ तक नहीं है.) षडावश्यकसूत्र टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत प्रत माहरु; अंतिः सम्यक्त्व० ग्रहितं (वि. १८०१, वैशाख कृष्ण 2) ९३३९४. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल. सांतु प्रले. पं. सुखकीर्ति (गुरु पंन्या. खुसालविनय); गुपि पंन्या. खुसालविनय (गुरु उपा. हुकमचंद ) उपा. हुकमचंद (गुरु उपा. रतनचंद); उपा. रतनचंद, पठ. मु. गेनचंद, मु. बालचंद, मु. वनेचंद (गुरु पं. सुखकीर्ति), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी: अठाई व्याखांण., प्र.ले. श्लो. (९११) पोथी प्यारी प्राणकी, दे., (२५.५X११, ९-११×२८-३२). "" अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि शांति का करणेवाला अति: सर्ववंछित सिद्ध हुवै, ९३३९५ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२६४१२, १६x४२-४८)नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंतिः शतानां सेधनादनेकसिद्धाः. Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३३३ ९३३९६. (#) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२२(१ से २१,२३)=८, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४-१५४४६-५२). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१९, गाथा-१७ से ढाल-२०, दोहा-७ तक व ढाल-२२, गाथा-३ से ढाल-२८ तक है.) ९३३९७. (+#) कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२, १६x४०-४२). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थ सिद्धिजननी; अंति: प्रमाण हस्ती संख्या. ९३३९८. (+) श्रावकश्राविकाना चोवीस अतिचार, अपूर्ण, वि. १८८९, पौष शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. पं. बुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंत्तामण प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४२८-३२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. अतिचार-३ अपूर्ण से है.) ९३३९९ (+) शृंगारिक दोहा संग्रह व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२९-१८३४, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४३६-४६). १.पे. नाम. प्रीत सखीरा दहा-शृंगारिक, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८२९, पौष शुक्ल, ११, सोमवार. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मही मही के वेचवि रही; अंति: करुं पल पल वारं जीव, दोहा-१३१. २.पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, वि. १८३४, पौष शुक्ल, १५, प्रले. पं. ऋद्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: अंतः कुंडलनीप्रसुप्तभुजगा; अंति: समृध्यस्तस्य वाचां विशेषः, श्लोक-१३. ९३४०० (4) नेमिनाथराजीमती द्वादशमास प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६९६, वैशाख शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. देवविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. संघविजय (गुरु गच्छाधिपति सेनसरि, तपागच्छ); पठ. म. तत्त्वविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३६-४०). नेमराजिमती बारमासो, आ. जयवंतसरि, मा.ग., पद्य, आदि: विमल विहंगमवाहनी मात; अंति: वाणी सुणतां हुई आणंद, गाथा-७५. ९३४०१ (+) नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६९, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. मनोहर ऋषि (गुरु मु. उदयचंद ऋषि); पठ. श्रावि. चंदाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७४३०-३८). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: भाविज्जतहत्तजिणवुत्तं, गाथा-८८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंति: श्रीवीतरागनो कहिउ. ९३४०२. महावीर स्तवन- स्याद्सूचक, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२५४१२, ११४३०). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (१)विनय कहे आणंद ए, (२)ए पांच कारण जाणिवा, ढाल-६, गाथा-५८. ९३४०३ (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८२०, कार्तिक कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. वगडीनगर, प्रले. पं. जयसौभाग्य; पठ. मु. मनरुप (गुरु पं. जयसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाखीसूत्र, संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३६-४०). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ.१आ-१२आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २.पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: गुरुणो इमाइं वयणाई, आलाप-४. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३४०४ () स्तवनचीवीसी, पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १९-४ (१ से २,१६ से १७) १५, कुल पे. ३. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५x११, १०x२८-३२). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ३अ १८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन: आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८५, आदि (-) अंति आनंदघन प्रभु जागे रे, स्तवन- २४, (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण से नेमिनाथजिन स्तवन गाथा - १४ अपूर्ण तक व महावीरजिन स्तवन गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- कामितपूरण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पास प्रभु प्रणमुं अतिः परमानंद विलासे रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-८. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १८-१९आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि करुणा कल्पलता श्रीमह अंतिः ण० अनंत सुखनो सदा रे, गाथा-१३. ९३४०५. स्तवनचौवीसी व २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १५-१६X५०-५४). १. पे नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ - ६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, उपा. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणम आदि जिणंद, अति नय० आणी मन उल्लास रे, स्तवन- २४. २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि गाओ भवि चवीसे जिन अंति (-) (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ९३४०६. (*) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०७, मध्यम, पृ. १६-१ (१) १५, प्रले. मु. जयराज ऋषि (गुरु मु. मंगल ऋषि): गुपि. मु. मंगल ऋषि (गुरु मु. कान्हजी ऋषि); मु. कान्हजी ऋषि (गुरु मु. गोविंदजी ऋषि): मु. गोविंदजी ऋषि; अन्य. मु. देवराज ऋषि मु. अमरसी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११.५, ५x४२). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ तस्स मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. प्रारंभिक सामायिक लेने की विधि अपूर्ण से है.) प्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जेह भणी अनुमोदना मोकली छइ. ९३४०८ (+) अठारह पापस्थानक व आध्यात्मिक गीत, संपूर्ण, वि. १८०६, पौष शुक्ल १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १८x४४-५३). १. पे. नाम. अठारह पापस्थानक सज्झाय, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलु कहि; अति पयसेवक वाचकजस इम भाखे जी, सज्झाय- १८, ग्रं. २११. २. पे नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि सुन हो हमारी सीख; अंति: पामें सीवधरणी रे, गाथा- ७. ९३४०९ (+) आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११, ११४३०). ." आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरिमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आबूतीरथ अतिभलौ अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ९३४१० (+) स्तुति स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. ११, कुल पे. २९ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १६X३६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुंसे देवी अंबाई, गाथा-४. २. पे नाम पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि वली बली हुं घ्यावं; अंति कहै जिनलाभसूरींद, गाथा- ४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, म. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमं; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. ४. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरत मनमोहन कंचन कोमल काय; अंति: इम श्रीजिनलाभसुरंद, गाथा-४. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंति: कलित्त बहु वित्त, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ____ सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योतिरूपं; अंति: सद्बुद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १०. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. ११. पे. नाम. जिनभक्ति पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: माला अनंतंगीयवाईयं, श्लोक-२. १२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल; अंति: नवनिधान लक्ष्मी मिले, गाथा-३. १३. पे. नाम. वृहस्पति स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो बृहस्पतिः; अंति: सुप्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. १४. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यः पुरा राजभृष्टाय नलाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-८. १५. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेम० सनीसरवर, गाथा-१३. १६. पे. नाम. नवग्रह पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तिमिर हरण आदीत सोम सुखकार; अंति: नवग्रह सुप्रसन होइ नित, श्लोक-१. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: सदाध्यायामिमा दिशेत, श्लोक-३. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्रोदय, पुहिं., पद्य, आदि: जय जिन तारक हे; अंति: निरुपम कारण हे, गाथा-८. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: सूनुमचंडं यूयमखंडम, श्लोक-५. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-लघु, सं., पद्य, आदि: भजेश्वसेननंदनं मुहुर; अंति: सुजैनधर्मवर्द्धनम्, श्लोक-५. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: सद्ज्ञान चरणांभोधि; अंति: हृदिये यदि मेरुधीरं, श्लोक-५. २२. पे. नाम. दमपुफिया अज्झयणं, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन, आ.शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. २३. पे. नाम. पौषध सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. २४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: एअं पढह कय अभयसूरीहि, गाथा-२२. २५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि मंत्र, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आकल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ.१०आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणसु पहु पास, गाथा-३. २८. पे. नाम. ग्रहशांति लघु, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. __ ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्तवः, श्लोक-११. २९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डूंगर ठंडोरे डंगर; अंति: पामे कोड कल्याणोरे, गाथा-७. ९३४११ (+) कायस्थिति बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ३२-३३४७-२८). कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रिय काय; अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त) ९३४१२ (+) नवतत्त्व तेरह द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८८९, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. श्राव. भूषण प्रागजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तेरद्वार, संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१६४३५). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो मूलद्वार १ बीजो; अंति: थकी मूकाणां जीव मोक्ष जाय. ९३४१३. (+) दिवालीकल्प का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. पतन, प्रले. मु. जिनहर्ष; अन्य. म. लक्ष्मीविमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १४-१६४३८-५१). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: लगे जगतने विषेइ रहो. ९३४१४. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ५४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४७. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंति: भणिवा सुणवा निमित्ते. ९३४१५ (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२२, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, प.७, प्र.वि. पत्र-१अके हासिये में श्रावक के १२ व्रत के नाम का उल्लेख किया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४११.५, ६४३७). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, अं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेवने; अंति: सुख मुक्ति जावै. पर्यंताराधना-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: थावर पुढवीक्काय कहे; अंति: जीवां सुखमा वो. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३३७ ९३४१६. (+2) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-५(१,३ से ५,८)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४४२७-३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक, ३५ ___ अपूर्ण से ५१ तक व ५९ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक है., वि. सभी गाथाएँ क्रमशः नहीं मिलती है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३४१७. (+) बलभद्र कथानक, होलिकापर्व व सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १८४४६-५६). १.पे. नाम, बलभद्र कथानक, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष शुक्ल, २, ले.स्थल. जालोर. सं., पद्य, आदि: अस्त्यत्र भरते स्वर्णमयी; अंति: जतिगणैर्नियतं विषयः, श्लोक-२६१. २. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष शुक्ल, १०, ले.स्थल. जालंधर, पठ. मु. सुगालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: श्रीयुगादिजिनं नत्वा; अंति: मोक्षं स सेव्यो धर्म एव च, श्लोक-८३. ३. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण.. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; ___ अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. ९३४१८. पट्टावली-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १७९०, भाद्रपद शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. श्राव. वाछाराम त्रंबकजी; अन्य. मु. लक्ष्मीविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४८-५२). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरपरंपरगतमुनींद; अंति: महोत्सवैश्चारित्र ग्रहीत. ९३४१९ वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पत्र-५ के हासिये में मनोकामना सिद्ध करने की विधि दी गई है.. दे.. (२६४११, १३४४०-४५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९३४२० (+) कान्हकठीयारा रास, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख शुक्ल, ८, जीर्ण, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७-१९४३२-३६). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पार्श्वनाथ परणम् मुद; अंति: श्रीबीजैरत्न मुणिंद, ढाल-९. ९३४२१. (+) जिनप्रतिमा पूजा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ७-८x१७-२०). जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: केतला एकना० श्रावक; अंति: करनार मूर्ख जाणवा. ९३४२२. (4) खंडाजोयण बोल, पैंसठ बोल व देवभवन प्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३४). १. पे. नाम. खंडाजोयण बोल, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा जोयण वासा पव्वय; अंति: मुक्ति छेनी पण जाणवी. २.पे. नाम. ६५ बोल, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: पहेली नरकनि १० बीजी; अंति: ६५ आठमे समे ३२. ३. पे. नाम. देवभवन प्रमाण, पृ. ६आ, संपूर्ण. देवभवन प्रमाण-सूर्यादि, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदिपने विषे सर्व; अंति: छठिया भाग ६ ए मान थाइ. ९३४२३. (+#) जीवविचार प्रकरण व वैराग्यशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-६४३२-३६). १.पे. नाम, जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: सिद्धांत समुद्रथी. २.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: (-). ९३४२४. (+) नवतत्त्व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८,प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व, संशोधित., दे., (२५.५४११, ७-१२४९-२८). नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., आदि: जीवतत्व प्राणचेतना; अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध. ९३४२५ (+) रोहिणीतपादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १४४३२-३५). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:रोहिणी. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: हिव सकल मन आसा फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. त्रैसठशलाकापुरुष स्तवन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनप०. ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु चरण कमल मनद; अंति: ज नमै मुनी वसतो मुदा, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनप०. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय पास जगत्रधणी; अंति: श्रीजिनसासन ते वली, गाथा-१८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनप०. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: आणी कुसललाभ पयंपये, ढाल-५, गाथा-१८. ९३४२६. (+) भगवतीसूत्र-शतक-८ उद्देश-९गत औदारिकादि ५ शरीरबंध विचार, संपूर्ण, वि. १९१९, वैशाख कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. धांग्ध्रा, प्रले. मु. कुंवरजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १५४३०-३५). भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देश ९ औदारिकादि ५ शरीरबंध विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: कइविहेणं भंते बंधे प० गो०; अंति: आहारकना अबंधक विशेषाधिक१३. ९३४२७. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. मांडवी, जैदे., (२६४१२, १२४३३-३९). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लहइ ते शास्वतुं सुख. ९३४२८. (+) तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. राधिकापुर, प्रले. ग. जिनविजय (गुरु ग. पद्मविजय); गुपि. ग. पद्मविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय); ग. माणिक्यविजय; पठ. य. जसराज; अन्य. श्राव. नथमल वाघमल सेठ, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३५-३७). तीर्थमाला स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: सुखकर साहिब आगरे; अंति: सौभाग्यविजय जयजय करो, ढाल-१३, गाथा-३१३, ग्रं. ४१३. ९३४३० सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-७(१ से ७)=५, कुल पे. ४, ले.स्थल. द्वीप, प्र.वि. हुंडी:सिज्झायपत्र., जैदे., (२५.५४११, १३४३२-३५). १.पे. नाम. नव वाड सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ वाड सज्झाय, उपा, उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि (-); अंति हो तेहने जाउ भामणे, डाल- १०, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-४ से है. ) २. पे. नाम. पांच अनुत्तर विमान सर्वार्थसिद्धनी सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्म, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसोरे, गाथा १७. ३. पे नाम. नक्षत्र सज्झाय, पृ. १०आ ११अ संपूर्ण. नक्षत्रताराविचार सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि वीर जिणेसर चरण नमेवि, अंति: पठन क्रिया आराघो सही, गाथा - १५. ४. पे. नाम. गति आगति सज्झाय, पृ. ११ अ- १२अ, संपूर्ण. ३३९ पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं पासनाह; अंतिः प्रसादे परमारथ लहै, गाथा- २३. ९३४३१. शत्रुंजयतीर्थ उद्धार रास व दस अधिकार स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, ले. स्थल ओरपाडनगर, प्रले. मु. कपुरविजय (गुरु ग. तत्त्वविजय); गुपि. ग. तत्त्वविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उद्धारपत्र., जैदे., ( २४.५X११, १०X२७-३०). १. पे नाम शत्रुंजय उद्धार रास. पू. १आ-१९अ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल - १२, गाथा - १२५, ग्रं. १७०. २. पे. नाम. दस अधिकार स्तवन, पृ. ११अ ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. डाल- २, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९३४३२. (+) कर्मग्रंथ १ से ३, संपूर्ण, वि. १८३९, पौष शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले. स्थल. राधिकापुर, प्रले. मु. कुशलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जै.., (२५.५X११.५, १२X४४-४७). १. पे. नाम. कम्र्म्मविपाकसूत्र, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ -१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदरिहिं गाथा - ६१. २. पे. नाम कर्मस्तव द्वितीय स्तवन, पू. ३अ-४आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी ९४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अति: देविंदबंदिय नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा - २५. ९३४३३. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२६४११.५. १०X२४-२६). For Private and Personal Use Only कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ९३४३४. (*) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६११.५, ३४३७). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - ९४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तिम अम्हे स्तवं छु; अति श्रीमहावीरदेव प्रति Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३४३५ (+) समयसार सह आत्मख्याति टीका व समयसारकलश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१९४४१-४२). समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सोही उत्तम सोक्खं, अधिकार-९, गाथा-४१५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३९० से है.) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., सर्वविशुद्धिज्ञानाधिकारगत प्रतिक्रमणकल्प से उपायअपेय निरूपण अपूर्ण तक है.) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक-२२६ से २६५ तक है.) ९३४३६. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३५-७(१ से ७)=२८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सूत्र., ___ टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४४-५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१२, अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.) ९३४३७. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१०, ९४२८-३२). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. ९३४३८. (+#) द्वादशव्रतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-४८(१ से ४८)-७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १९४५६-६२). द्वादशव्रतकथा संग्रह, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्रौपदीसती कथा अपूर्ण से पौषधव्रत कथा अपूर्ण तक ९३४३९ (+) सप्तस्मरण बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, २०४३८-४३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. नमिण स्तोत्र अपूर्ण तक का बालावबोध है.) ९३४४० (+) पडिकमणा सुत्र, संपूर्ण, वि. १८२८, वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. जालणापुर, प्रले. ऋ. उदा (गुरु ऋ. पुनसी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४२२-२८). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: पाछो कहो होय ते मिच्छामि. ९३४४१. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३१-८(१ से ८)=२२३, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:कल्पवाच०, साधुसमा०. बीच के कुछ पत्रों में बरखयुक्त स्याही से लिखा हुआ है., संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-१, सूत्र-२ से व्याख्यान-९, सूत्र-२७ तक है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३४४२ (+#) सिद्धांतचंद्रिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ३५९, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. उदयचंद्र (गुरु ग. रामचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); गुपि. ग. रामचंद्र (गुरु ग. शिवचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. शिवचंद्र (गुरु ग. सदानंदजी, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. सदानंदजी (गुरु ग. पद्मसी, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. पद्मसी (गुरु उपा. रुपचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); उपा. रुपचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांतचं०वृत्ति. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३०). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति: सिद्धिर्यथामातरादेः. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३४१ सिद्धांतचंद्रिका-सबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: सदानंदेन निर्मिता, प्रकरण-१९. ९३४४३. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १९३९, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १९०+१(१२)=१९१, ले.स्थल. बालोचर, प्रले. जीतमल; पठ. मु. रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, १२४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: लोके तं परलोके सखः. ९३४४८. धर्मपरीक्षा का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९७-१६(४ से १९)=८१, दे., (२६.५४१२, १३४३३). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमौं अरिहंत; अंति: मनोहर०सकलसंघ मंगलकरण, (संपूर्ण, पृ.वि. दोहा-४८ से २९० अपूर्ण तक नहीं है.) ९३४४९ (+) हितशिक्षा रास, संपूर्ण, वि. १९३५, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९६, प्रले. जीवराज ठक्कर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., अ., (२५४१२, ११४३३-३७). हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: कासमीर मुखमंडणी भगवत; अंति: सकल तणी पहोती आशो. ९३४५० (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड २-६, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४२८-३४). __ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. कांड-६, श्लोक-५५ अपूर्ण तक है.) ९३४५२. (+) वर्द्धमान देशना, अपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ११७-२९(१ से २९)=८८, ले.स्थल. पाली, प्रले. मनोहरदास जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नवलपार्श्वजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १६४३८-४२). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सोधयति गतमत्सरा, उल्लास-१०, ग्रं. ४३००, (पू.वि. "रूपेण कुष्टी एव एतस्मात् कुष्टितः" पाठ से है.) ९३४५६. शुभाशुभध्यानचतुष्कं, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. सरीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १९४५३). ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे; अंति: भावविजय० चित्त रंगे, ढाल-९, गाथा-१६३. ९३४५८. (+#) वैद्यवल्लभ व सातमधरा नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२५.५४११.५, ९x४४-४७). १.पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: रोहिरसो सुविशेष एव, विलास-८, श्लोक-३२५. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वति प्रतै; अंति: कह्यौ भले वीसेषे करी. २. पे. नाम. सात मधुरा नाम, पृ. १३अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तेहना लक्षण कहै छै; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिम वाक्य वाला भाग खंडित है.) ९३४५९ (+) देवचंद्रवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४११.५, १०४३२-३७). For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: परम महोदय युक्ति रे, स्तवन-२०. ९३४६१. (+) चउविस द्वार गाथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, ११४३०-३८). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: गईजायकायइंदि पज्जा; अंति: (-), (पृ.वि. "करूं नहीं करांऊं नही अनुमोद् नहि वयसा २५८" पाठांश तक है.) ९३४६२ (4) नवांणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, लिख. श्राव. रतनचंद तलकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, ११४२९). ९९प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११. ९३४६३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, कुल पे. १३, दे., (२५.५४११.५, ११४३२-३५). १.पे. नाम. बावीस अभक्ष्य निवारण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भव्य प्राणी रे जिन; अंति: सुख पावै सर्वदा, गाथा-३. २. पे. नाम. सात व्यसन सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रंगै जयरंग कहै, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराय मन; अंति: नार सासता सुख लहे जी, गाथा-१२, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: चैत्रमास सुहामणो जी; अंति: वारामासा हां हां, गाथा-१३. ५. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणरिषनै वंदणो हंवारी; अंति: हे जिनहरख त्रिकाल रे, गाथा-९. ६. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: करकंडुनै करु वंदना हुँ; अंति: समयसुंदर० प्रणमु पाय रे, ढाल-५. ७. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सीधोजी, गाथा-८. ८. पे. नाम, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: हर्ष करी गाई, गाथा-२३. ९. पे. नाम, श्रावक सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. श्रावकोपदेश सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकधर्म करो सुख; अंति: ते गर्व प्रतिमाधारी जी, गाथा-११. १०. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-१७. ११. पे. नाम. नंदिषेण चौढालिया, पृ. १०आ-१२आ, संपूर्ण.. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधु भष्ट करवा भणी; अंति: साधु नै कुण तोले हो, ढाल-४, ___ गाथा-३८. १२. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदिः श्रेणिकराय बाडी; अंति: वंदरे नित बे करजोड, गाथा-९. १३. पे. नाम, मानपरिहारछत्रीसी, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उण For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३४३ मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ९३४६४ (+) नवपदकलश पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-१६(१ से १६)-७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ११४३४-४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नय रहिय अधूरी रे, पूजा-९, संपूर्ण. ९३४६८. (+) योगचिंतामणि का बालावबोध व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. २, ले.स्थल. गिरनार, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १७X४५). १.पे. नाम, योगचिंतामणि का बालावबोध, पृ. १आ-३८आ, संपूर्ण. योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री योग्य; अंति: मिश्रिकाध्यायः तत्समाप्तौ. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३८आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३४७० (+) ढालसागर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८९-१(८८)=८८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रामचरित्र,रामचरितसुज,रामचरतसु., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १७X४५-५०). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५९, गाथा-४ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक व अधिकार-४, ढाल-६२ गाथा-५८ अपूर्ण से नहीं है.) ९३४७६. (+) श्रीचंद्रकेवली रास, अपूर्ण, वि. १८३१, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १८५-१(१)=१८४, ले.स्थल. छठीआडा, प्रले. ग. अमृतविजय (गुरु ग. चंद्रविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. चंद्रविजय (गुरु ग. आणंदविजय, तपागच्छ); ग. आणंदविजय (गुरु ग. सुखविजय, तपागच्छ); ग. सुखविजय (गुरु ग. मेघविजय, तपागच्छ); ग. मेघविजय (गुरु ग. जयविजय, तपागच्छ); ग. जयविजय (गुरु पंन्या. सत्यविजय', तपागच्छ); पंन्या. सत्यविजय * (गुरु आ. विजयसिंहसरि, तपागच्छ); आ. विजयसिंहसरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि*, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:श्रीआणंदमंदिरी रास, श्रीचंदरास आनंदमंदिर. अंत में बीजक दिया गया है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५७) जिहां लगे मेरु महीधर, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद रक्षेद, जैदे., (२६४११.५, १५४४५-५४). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदिः (-); अंति: ग्रंथे भणतां मंगलमालाजी, उल्लास-४, गाथा-२३९५, ग्रं. ६९३९, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है., वि. ढाल १११) ९३४७७. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५५-५(१,१३,१३१ से १३२,१४८)=१५०, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ६-१५४२७-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., नवकार मंत्र ___ अपूर्ण से सूत्र-२०२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) । कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ९३४७८. (+#) कल्पसूत्र-व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १२०, ले.स्थल. आगेवानगर, प्रले. मु. ऋषभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४२७). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९३४८२ (+#) करणकुतूहलगणककुमुदकौमुदी टीका, अपूर्ण, श. १९२३, मध्यम, पृ. ६६-२(९,४९)=६४, प्र.वि. पत्र १अ पर अयनांश विचार है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४३३-३८). कर्णब्रह्मसिद्धांतकतूहल-गणककमदकौमदी टीका, ग. समतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७८, आदि: शंभु स्वयंभवमहं प्रणिपत्; अंति: नीर्णीत पर्वसंभवः, ग्रं. १८२५, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) .. For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३४९३ (+#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १८२० आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ६८-४ (१ से ४)= ६४, ले. स्थल काकरग्राम, प्रले. मु. प्रेमविजय (गुरु पंडित. केसरविजय); गुपि. पंडित. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे., (२६x१२, २०x४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा - २६७९, (पू.वि. उल्लास-१, ढाल ६, गाथा १५ अपूर्ण से है. वि. ढाल १०८) ९३४९४ (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२९-१५ (१ से १०,१७ से २१ ) = ११४, प्र.वि. हुंडी:कल्पसू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X११.५, २-१५X३०-५५). , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अति: (-) (पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. अंतिमसूत्र अपूर्ण तक है व बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (१) श्रीवर्द्धमान जिनं, (२) ते काल चड्यो आरो ते अति: (-). पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ', कल्पसूत्र- खालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि ए श्रीकल्पसूत्र दशाश्रुत अति (-) (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. वि. पीठिका भाग नहीं है.) ९३४९५ (+) लीलावती विक्रमप्रबंध चौपाई व गौतमगणधर स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९४ माघ कृष्ण, २. गुरुवार, श्रेष्ठ, पू. ५६, कुल पे. २, ले. स्थल, काचोलीनगर, प्रले. पं. सुंदरविजय (गुरु पं. जीवणविजय गणि); गुपि. पं. जीवणविजय गणि (गुरु पं. रंगविजयजी); पं. रंगविजयजी (गुरु आ. विजयक्षमासूरीश्वर ) आ. विजयक्षमासूरीश्वर प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. हुंडी लीलावतीचीपे पार्श्वदेवजी प्रसादात् संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (६०३) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, जै, (२५x११.५, १३४३८). १. पे नाम लीलावती विक्रमप्रबंध चौपाई. पू. १ आ-५६अ, संपूर्ण. विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आद रे, ढाल - ६४. २. पे. नाम गौतमगणधर स्तुति-गाथा १. पू. ५६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति प्रार्थना, मा.गु, पद्य, आदि कामधेन गो शब्दथी ते अति (-), प्रतिपूर्ण, ९३४९६. दर्शनशुद्धि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, दे., (२५X११, १३×५१-५५). " दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चंद्रप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि पत्तभवण्णवतीरं दुहदव अति सिवसुहं सासयं झत्ति, अध्याय-५, श्लोक-२७१. दर्शनशुद्धि प्रकरण- टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानार, अति: वानूष्ठानानामिति गाथार्थः, (वि. प्रशस्ति भाग नहीं है.) ९३४९७ (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७६, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ४७-३ (१ से ३)=४४, अन्य. य. ताराचंद, | प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "सं. १९४६ रामी भाद्रवा वदी ४ ने जती ताराचंद खना सुमोल लीनो रु.२। मे राजीखुसी मा.छीनुमल ने द. जती ताराचंद से छे ऐसा लिखा है, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ११x४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान ९ . १२१६, ( पू. वि. इंद्रसभाप्रसंग वर्णन अपूर्ण से है.) ९३४९९.(+) आचारांगसूत्र सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १९५-४ (१ से ४) = १९१, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६x११. १५-१७२८-३३) आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६४४, (पू.वि. उद्देशक- ३ अपूर्ण से है.) आचारांगसूत्र- वालावबोध, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु, गद्य, आदि (-); अति श्रीभगवंत समीपि सांभल्यु, ९३५०४ (मं) बृहत्संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५६-७ (१,३ से ४,६,१५,३७ से ३८ ) =४९, पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X११.५, ५X३६). For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३४५ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ३६१ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३५०७. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९३-१२१(१ से १२१)=७२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ठाण०.सू०., त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४-९४३८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "ए गाजीवाणं अपरियाइ" से "कुलारिता मणुस्सा" पाठांश तक है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९३५०८ (2) प्रवचनसार सह छाया व बालावबोध भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३८-९(८ से १६)=१२९, प्र.वि. हुंडी:प्र०सार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१३४४८). प्रवचनसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: एस सुरासुरमणुसिंदवंद; अंति: लहुणा कालेण पप्पोदि, अधिकार-३, गाथा-२७५, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण से गाथा-३३ तक नहीं है.) प्रवचनसार-छाया, सं., पद्य, आदि: एष सुरासुरमनुष्येंद्र; अंति: कालेन प्राप्नोति, श्लोक-२७५, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. प्रवचनसार-बालावबोधिनी भाषाटीका, श्राव. हेमराज पांडे, पहिं., गद्य, वि. १७०९, आदि: स्वयंसिद्ध करतार करै; अंति: (-), पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ९३५१३. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ व पच्चक्खाणना ४९ भांगा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ४४३८). १.पे. नाम. पच्चक्खाण भाष्यत्रय सह टबार्थ, पृ. १अ-२६अ, संपूर्ण, वि. १७६२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. ग. धर्मकलश, प्र.ले.पु. सामान्य. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (वि. प्रसंग के अनुसार संदर्भ कथा संलग्न है.) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी नमस्कार करीनइ; अंति: नवमो द्वार पूरो थयो. २. पे. नाम. पच्चक्खाणना ४९ भांगा, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण, वि. १७६२, कार्तिक कृष्ण, ९, रविवार, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. ग. धर्मकलश; राज्यकाल गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ जिनमाणिक्यसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मन न करु वचन न करु; अंति: नही अनुमोद नही. ९३५१६. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ८३-४९(१ से ४०,५९ से ६७)=३४, ले.स्थल. सीरोही नगर, प्रले. मु. नेताजी ऋषि (गुरु मु. अमराजी ऋषि); गुपि. मु. अमराजी ऋषि (गुरु पं. जसवंत); पं. जसवंत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५८५) यावद् व्योमसरः, जैदे., (२६४१२, २३-२४४५७-६०). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: (-); अंति: जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं.६६४४. ९३५१८. (+) २० स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४०-४२). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम पदे नमो अरिहंताणं ए; अंति: सुख अनंत सुख अनुभवे. ९३५२२. (+#) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१(१)=२४, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३५-३७). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-३१ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९३५२४. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); गुपि.मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीप०., संशोधित., दे., (२६४११.५, ६४३९-४१). For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः श्लोक-१७७. ९३५२७. (#) च्यारनिक्षेपादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३-१४ (१ से १४ ) = १९, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पत्रांकवाला भाग खंडित होने से अनुमानित दिया गया है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५x१२.५, १४X३९-४२). "" विविध विचार संग्रह *, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ९३५२८. दानविषै कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण वि. १९१२ कार्तिक कृष्ण २, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल बडवाल, प्रले. मु. सूरजमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चोपइकेय ०., केयवनाचो ०. चोपीकेय०. वे. (२६४१२, ११-१३x२५-३८). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: धरम करण मन उलसे छे, डाल- ३१, गाथा-५५५. ९३५२९ (*) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ६५-२ (१ से २ ) = ६३, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६१२, ७-८X४०-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मंसइत्ता अज्झसुहम्म" पाठ से "पंतीयासुय जिणुज्झाणे" पाठ तक लिखा है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९३५३४ (+) गोचरी ४२ दोष, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ... (२४४११.५, १२x२४- २८ ). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम आधा कर्म दोस; अति (-) (पू.वि. आहारथी साधु गोचरी पे जावे" पाठांश तक है.) ९३५३५. क्षेत्रीपुनिम देवबंदवानी व छमासी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे. (२७४१२, (+) १५X४७). १. पे. नाम. चेत्रीपुनिम देववंदवानी विधि, पृ. १अ -६अ, संपूर्ण. चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम प्रतिमा ४ माडी; अंति: धर्म सर्म परे आवे रे देववंदनजोडा-५. २. पे. नाम. छमासी देववंदन विधि, पृ. ६अ, संपूर्ण. יי प्रा., मा.गु., गद्य, आदि सतियोगेन नंदिकरण चित्र अति चतुविधाहार प्रत्याख्यान. ९३५३६. ) १२ भावना विलास व दोहाश्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२६४११.५, १५X३९). " १. पे. नाम. बारभावना विलास, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, प्रले. मु. देवीचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं, पद्य, वि. १७२७, आदि प्रणमि चरणयुग पास; अति बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा-५२. २. पे. नाम दोहादि संग्रह, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. , प्रास्ताविक दोहादि संग्रह. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-)९३५३७. शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण वि. १८७५ आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १३ ले स्थल गंवबर, प्रले. मु. मोजीराम टीकमदास (गुरु मु. धीरजमल स्वामी); गुपि. मु. धीरजमल स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सीलभदरी चोपी., जैये., (२६x११.५, १७-१९X३४-४६). : ,י י For Private and Personal Use Only शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८ आदि सासननायक समरियै, अंति: पलये मनवंछित सुख पावे जी, ढाल - २९, गाथा- ५१०. ९३५३८. सम्यक्त्व ६७ बोल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, वे. (२५x११.५, १४४३७-३९). Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३४७ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: इम कह्यो छे प्ररूप्योछे, ढाल-१२, गाथा-६८. ९३५३९ (+) पुद्गलगीता, गोडीपार्श्वनाथ स्तवन व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १४४४१). १.पे. नाम. पुद्गलगीता, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: संतो देखीये बे परगट; अंति: पयोगी चिदानंद सुखकार, गाथा-१०८. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे ढोला हाथनली रे आवे; अंति: पर वीनवे राखीजै निज संग, गाथा-९. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषित संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: नादेयं शरदि वसंते च नादेय; अंति: सिंहश्वाच गजो द्विजः, श्लोक-११. ९३५४० (+#) चौमासीपर्व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-३(४ से ५,१०)=१४, प्र.वि. हुंडी:देववंदन., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १२४२८). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू; अंति: पास सामलनु चेई रे, (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तुति अपूर्ण से अनंतजिन चैत्यवंदन अपूर्ण तक व बीच का पाठ नहीं है.) ९३५४१. (#) अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-४(१,९ से ११)=१८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२,१५४३४-४३). अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी समवसरण प्रसंग अपूर्ण तक व बीच के कुछेक पाठांश नहीं है.) ९३५४६. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १४४३३). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: तं जीवजीवन आधारो रे, __ स्तवन-२४, गाथा-१२१, (पू.वि. स्तवन-२ से है.) ९३५४८. छत्रीसी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ४, दे., (२६४१२, ९४३३-३६). १. पे. नाम. भावविशंका, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: (-); अंति: मुनिज्ञानसार मतिमंद, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आत्मप्रबोधछत्रीसी, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जयपुर. आत्मप्रबोधछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: श्रीपरमातम परम पद; अंति: सारलौ ए आतम छत्तीस, गाथा-३६. ३. पे. नाम. चारित्रछत्तीसी, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान धरौ किरिया; अंति: र मैं वाकौ नहि लवलेस, गाथा-३६. ४. पे. नाम. मतप्रबोधछत्रीसी, पृ. ९अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: तप तप तप तप क्यौं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ९३५५० (+#) आनंदघनचोवीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९-२९(१ से २८,३२)=१०, ले.स्थल. डुमरा, प्रले. मु. मोहनसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४४३४). स्तवनचौवीसी, म. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: आनंदघन प्रभु जागरे, स्तवन-२४, (पू.वि. सुव्रतजिन स्तवन से है व इसी स्तवन गाथा-९ अपूर्ण से नमिजिन स्तवन गाथा-७ अपूर्ण तक पाठ नहीं है.) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: ते करी मोक्षपद पामे, ग्रं. ८२८. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३५५३. (+#) योगचिंतामणि का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४२६-४२). ___ योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री योग; अंति: (-), (पू.वि. आंमलाघृत करवा विधि तक है.) ९३५५७. (+) पर्यषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-४(२ से ५)=११, प्र.वि. हुंडी:अष्टाहिको.व्या., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६-४०). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं है.) ९३५६०. (+#) गणधरदउढसयं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४३६-४१). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा-१५०. गणधरसार्धशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानादि गुण अथवा; अंति: भव्यानइ संतापकष्ट. ९३५६३. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १६, दे., (२४.३४११.५, १२४२८). १.पे. नाम. महावीरजिन बधाई, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: वाजत रंग वधाई नगर मे; अंति: हरखचंद० आवत नेन भराई, पद-४. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: बेर बेर नहीं आवे; अंति: समरी समरी गुण गावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. नथु, पुहि., पद्य, आदि: लेता जाउ रे सांमलीया; अंति: केवलज्ञानन की, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: बिराजो बंगले बिराजो; अंति: निरंजन तरण तारण मुज तार, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. नथु, मा.गु., पद्य, आदि: कीने देखा हमारा स्वा; अंति: छु आज शिरनामी रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहेब मुजरा; अंति: रूपचंद० तेरा रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तो बिना ओर न जाचं; अंति: तझ गण रस रंग माचुं, गाथा-३. ८. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभदेव हितकारी जगदगुरू; अंति: सेवक के तुम हो परम उपगारी, कडी-६. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-संध्याकाल, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सांज समे जिन वंदो; अंति: अपनो समरत होत आनंदो, गाथा-४. १०. पे. नाम. आदिजिन लावणी-पारणा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. नान्ह, पुहिं., पद्य, आदि: आदि जिनेसर कियो पारण; अंति: कहीता रीषभदेव महाराज रे, गाथा-४. ११. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-शत्रुजयतीर्थ, बाल, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे डुंगर जास्या मे तो; अंति: वाल० सीवपुर जास्या रे, गाथा-४. १२. पे. नाम. नेमराजिमति स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३४९ नेमराजिमती स्तवन, चैनराम, रा., पद्य, आदि: नेमजी वंदन मे जास्या महेत; अंति: सीद्ध अनंत सुखवासो हो राज, गाथा-६. १३. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पारसनाथ आधार प्रभु; अंति: मन की सेवक करो सार रे, गाथा-३. १४. पे. नाम, ४ मंगल पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु.रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कीजे मंगल चार आज घरे; अंति: रूप० चरणकमल जाउं वार, पद-५. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. कान कवि, पुहि., पद्य, आदि: जैन धरम से पायो सार; अंति: कानमल० भवसागर मे पार उतार, गाथा-६. १६. पे. नाम. रामभक्ति पद, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. कान, रा., पद्य, आदि: राम नाम निज चीयार मंत्र; अंति: घरका न काज लाणा ना छईये, गाथा-४. ९३५६४. (+) धनंजयनाममाला व अनेकार्थनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ८४३२-३८). १.पे. नाम. धनंजयनाममाला, पृ. ५अ-१७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२१४, (पू.वि. श्लोक-४५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अनेकार्थनाममाला, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: गंभीरं रुचिरं चित्रं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ९३५६५ (+) सारस्वत व्याकरण व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ९-१०x२५-३२). १.पे. नाम. सारस्वत व्याकरण-पंचसंधि, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, ३, रविवार, पे.वि. हुंडी:सारस्वत. सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आदिजिणंद आज आनंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९३५६७. (+) आगमिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ४४२२). आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ९२ तक है., _ वि. विविध विषय संबद्ध समवायांगादि आगमों की गाथाएँ मिलती हैं.)। ९३५७० (+) वाग्भटालंकार, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:वाग्भटालं., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५४११.५, १४-१५४३८-४१). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. ९३५७१ (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पाखीसूत्र., संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२६-२७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "अणुपालियं तंदुक्खयाए" पाठ तक है.) ९३५७२. (#) श्रीपालचरित्र-खंड-४, अपूर्ण, वि. १८७४, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २६-५(७ से ८,१२,१४,१७)=२१, ले.स्थल. लीमडी, प्रले. मु. नाइककुशल (गुरु मु. जिनकुशल); गुपि. मु. जिनकुशल (गुरु मु. भक्तिकुशल); मु. भक्तिकुशल (गुरु मु. उमेदकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४२५-३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहस्यै ग्यान विशाला जी, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-४, ढाल-४ की गाथा-१४ से ढाल-५ की गाथा-८ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९३५७४. (+) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नोकार.बा., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ९४२५-३०). For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. "नमो उवज्झायाणं" पद तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत प्रतै; अंति: (-). ९३५७९ (+#) मणरेहासती रास, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पीसांगण, प्रले. मु. बदनमल (गुरु मु. लछमणदास); गुपि. मु. लछमणदास (गुरु मु. विरभाण); मु. विरभाण (गुरु मु. निहालचंद पंडित); अन्य. मु. फतेचंद ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:मणरेहा., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, २०४३६-४२). मदनरेखासती रास, मा.ग., पद्य, आदि: जूवा दारू मांस थकी कर; अंति: अपजस बांधो प्राणी, गाथा-१५४. ९३५८१ (+#) स्तुति, गीत व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २१-६(२ से ३,७,१२,१४,२०)=१५, कुल पे. ९९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १५४४६-४८). १.पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण... अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अरज सुनो वामाजु के; अंति: चाहत मुनि हरषचंद, गाथा-३. ३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुभगति नाचत है सुरना; अंति: न प्रभु चरनन परिहारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. विमलजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विमलजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: सिखर समेत वसे हो; अंति: सब दुख दूर नासे हो, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिस्वामी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल तुं वडभागीन; अंति: हरखचंद हितकारी, गाथा-५. ६. पे. नाम. राजुलनेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: मेरो प्रीतकी चरन परी, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: सांठे सुनदा क्यु; अंति: पास प्रभु सिरदार, गाथा-३. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: भेट्यो री जिनचंदा आज में; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तुति, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: ग्यानसार० नही गहरा, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से १०. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो राजा श्रेणिक; अंति: नवलप्रभुजीसुं नेहरा, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___ मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात भयो सुमर देव; अंति: बतात रे प्रात भयो, गाथा-८. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जगरामदास, पुहि., पद्य, आदि: दे हो जिनराजदेव सेव; अंति: जपावन की जापनी, गाथा-५. १३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माइ आज ऋषभ घर; अंति: साधुकीरत गुण गावै, गाथा-३. १४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. ग. महिमराज, पुहिं., पद्य, आदि: जाग जग मुगटिमणि नाभिनृपति; अंति: महिमराज० दुख फंदा, गाथा-३. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिननाम सुमर मनवा वरे; अंति: पातिक सवे जाहे तेरे खटके, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३५१ १६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-पुण्यपाप, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुन्यरु पाप पिछान रे; अंति: नवल कहत परवान, गाथा-४. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-सरतमंडण, म. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: दरवाजे तेडा खेल रे; अंति: रंग लागो चित चोल रे, गाथा-४. १८. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. राम, पुहि., पद्य, आदि: माइ री गिर जान दे मोहे; अंति: राम० थेइ थेइ तान है, गाथा-७. १९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. भानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत के फंद परो मत; अंति: सुखि रहै नर सोई, गाथा-३. २०. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देख्यो री मुखचंदा आज मे; अंति: हरखचंद प्रभु बंदा, गाथा-४. २१. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नहि कोइ तारणहारा; अंति: श्रीजिनराज जुहारा, गाथा-४. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन धूपद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन द्रपद, म. धर्मशील, पुहिं., पद्य, आदि: केवल वाला० मोह वतावैरे; अंति: जिनसंगत सुध्रमसील संभाला, गाथा-४. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसम जिन ताहरो जी धान; अंति: साहिबा एम पयंपै लाल, गाथा-७. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. केशव, पुहि., पद्य, आदि: मनमोहन मूरति पासकी सूरत; अंति: केसव० बुद्ध प्रकास की, गाथा-३. २५. पे. नाम, औपदेशिक पद-बुढ़ापा, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: आयो रे बुढापो वेरी; अंति: भूधर० पछताहै प्रानी, गाथा-४. २६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. धरमपाल, पुहिं., पद्य, आदि: देख- दामानु वाव प्रभु; अंति: धरमपाल० जगत के राव, गाथा-२. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष मंडन, मु. माणिक, पुहिं., पद्य, आदि: मोरा तोस्यु दिल लग्या हो; अंति: माणिक० पास जिनंदा, गाथा-३. २८. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. वैराग्य गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: चोवा चंदन चरची काया; अंति: के भजन करत ते तरणा, गाथा-१०. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाई मोतीडे मेह वूठा; अंति: श्रीजिनचंद्र सहाई, गाथा-५. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: सहसफणा प्रभु पासजी जय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ३१. पे. नाम. सीमंधरजीरी विनती, पृ. ८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जिनचंद रहै नित प्रेम उवंग, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ३२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडन; अंति: इम विमलाचल गुण गाय, गाथा-१५. ३३. पे. नाम. पंचेंद्रीविषय निवारण सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाध; अंति: सुजांण लहो सुख सासता, गाथा-६. ३४. पे. नाम. कर्मचतुष्पदि सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, रा., पद्य, आदि: हा रे म्हा प्रानीया; अंति: ते सुख लहै भरपूर रे, गाथा-८. ३५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. ९अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-कृषिफलगर्भित, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मनवंछित फल खेती रे; अंति: प्रीत करो प्रभु सेती, गाथा-३. ३६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. रामकृष्ण, पुहिं., पद्य, आदि: जिन नाम कुं समर लै भला; अंति: रामकृष्ण० समझ यार मन, गाथा-५. ३७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: रे जगत का मेला रे; अंति: ज्ञानसार० हेला रे, गाथा-३. ३८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: जिनचरणा सेती लग जा; अंति: प्रभु दानी नवल वताय, गाथा-५. ३९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई अब हम कीनी; अंति: मुगति महानिध पाई, गाथा-६. ४०. पे. नाम. देवगुरु स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. देवगुरु स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: देवगुरु पहचान बंदे; अंति: भवदध पार लगाय वंदे, गाथा-३. ४१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तेरे घटमें हे फुलवार; अंति: रे अविचल देख बाहार, गाथा-३. ४२. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. केवलराम, पहिं., पद्य, आदि: जिनछवि पारस की मेरे मनमे; अंति: केवलराम० महादख भार थकी, गाथा-३. ४३. पे. नाम, जिनराज लावणी, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने; अंति: जिनदास० दरसण चाहीयै, गाथा-३. ४४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. ग. अमतविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मानूं जिन पदकज लीनो भंग; अंति: लेसी दीजियै अमृत पद रंग, गाथा-३. ४५. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १०अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती पद, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देखो सया मोरी लग गइ; अंति: विनवै मुगतवधुसु लागो चित, गाथा-३. ४६. पे. नाम. केसरियाजी स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरियाजी, श्राव. ऋषभदास, पुहिं., पद्य, आदि: केसरीया सै लागो मारो; अंति: पूरो प्रभुजी छे सुखनिधान, गाथा-३. ४७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मनुष्यजन्म, पुहि., पद्य, आदि: ए नर काहे खोए जनम तमाम; अंति: तेरा तो पावै सिवधाम, गाथा-४. ४८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.... पुहि., पद्य, आदि: ए मन तेरा कोन सुभाव; अंति: पार करन कुं भवदध दीजै नाव, गाथा-३. ४९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. चेतन, पुहि., पद्य, आदि: ए मन समझत नाही गमार; अंति: अपने तो पावो भवपार, गाथा-३. ५०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ पुहिं., पद्य, आदि: मन मगन भए सुभ ध्यान; अंति: छोडो भूल मत अयान में, गाथा-४. ५१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहली, म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुण वन वीर समोसर्या; अंति: सार्या निज आतम काजरी, गाथा-५. ५२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरै मन मै तु; अंति: कनककिरत० चितघन में, गाथा-३. ५३. पे. नाम. नेमीश्वरस्वामी राजमति गीत, पृ. ११अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: नेमप्रभुजीसुं प्रीत; अंति: चौगत भ्रमन निवरावे, गाथा-५. ५४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण... पार्श्वजिन पद, मु. सौभाग्यधर्म, पुहि., पद्य, आदि: तेरी सुरत पर कुरवान; अंति: सोभाग्य० गाय गइ रे, गाथा-३. ५५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. लालचंद, पहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वश कर लीनो; अंति: लालचंद०परो वंछित आस, गाथा-३. ५६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए जिनके पाय लाग रे; अंति: आनंदघन पाए लाग रे, गाथा-३. ५७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अवसर वेर वेर नही आवै; अंति: आनंदघन० समर गुण गावै, गाथा-५. ५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुनै पकडी बांह नहितर; अंति: नमत क्षमाकल्याण, पद-३. ५९. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. ___ मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीरप्रभु तेरी दोस्ती; अंति: त्नविमल पद पाय गइ रे, गाथा-४. ६०.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. रत्नविमल, पहिं., पद्य, आदि: नेमजिणंदसं आंखडली; अंति: (-), (प.वि. गाथा-३ अपर्ण तक है.) ६१. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पद्मप्रभजिन स्तवन-ध्यान गर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मान० मूको वीजो वाद, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन लागै नेणा दरस; अंति: दुख मेटन सुख देना, गाथा-३. ६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. श्राव. अगर, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी उमर विहानी जाय; अंति: अगर० जग मे होय जा रे, गाथा-३. ६४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. म. नवल, पहि., पद्य, आदि: क्या सुभाव पड़या वेइ; अंति: भक्त जंजीर जडाव जडावे. गाथा-३. ६५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: जल विच कमल कमल विच; अंति: साधो जोगारंभ की वानी है, गाथा-५. ६६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: साधजी किस दिन भए; अंति: कबीर० मेरे मन आनंदा, गाथा-५. ६७. पे. नाम. ऋषभदेव लावणी, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन लावणी, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सरसती माता सुमत की; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६८. पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. १५अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पंडित. भावसागर, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: लोभपनो त्यागी करीरे, ढाल-४, गाथा-३२, (प.वि. क्रोध सज्झाय गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६९. पे. नाम. चतुरनर लावणी, पृ. १६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक पद, मु. देव, पुहिं., पद्य, आदि: चतुरनर मन कुं समझाना; अंति: देवा ब्रह्मपद पाणा, गाथा-८. ७०. पे. नाम. चोपडरी सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परनारी, पुहिं., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजान परनार; अंति: समझी जावो मुरलीवाला, गाथा-६. ७१. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. संभवजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढी हे; अंति: पकड मंगाउ आठ चोर, गाथा-३. ७२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: मन मोह्यो री मा पासजिनंदा; अंति: जुग मुझ मन भमरो अटकै, गाथा-६. ७३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. म. आसकर, मा.गु., पद्य, आदि: वार जाउ रे में बलिहा; अंति: सेवक भवसागर निस्तार, गाथा-७. ७४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: अचिरानंदन स्वामीनौ; अंति: शुभनो नास करैइ नित शांतजी, गाथा-५. ७५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. म. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मीत है कोउ; अंति: जिनरंग आपौ संभारा, गाथा-३. ७६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: श्रीचिंतामण श्वाम नयने; अंति: श्वाम मुजरो लीजै रे, गाथा-५. ७७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो मोने अति; अंति: प्रेम सदा जिनचंद रे, गाथा-७. ७८. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तुति, पृ. १७आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनभक्ति यति, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीगोडी प्रभु पास; अंति: जिन० जतिसर वंदे रे, गाथा-७. ७९. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी मो मन वीर सु; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-३. ८०. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहा रे अज्ञानी जीवकु; अंति: कहा वाको सहज मिटावै, गाथा-३. ८१. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ होरी, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो सखी सिद्धाचल; अंति: सेवक० सुध लीजो प्रभु मोरी, गाथा-५. ८२. पे. नाम, संखेसरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० सागरथी तारो, गाथा-५. ८३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. धर्मकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: सांतिजिनेसर सेवीये ल; अंति: धर्मकीरति गुण जाण, गाथा-५. ८४. पे. नाम. शिखरगिर स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. २० तीर्थंकर निर्वाणभूमि पद, मु. अभय, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीप ए सोभतो दक्षण भरत; अंति: मुझ दीजो अभयनो राज जी, गाथा-४. ८५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: देरावल दादो दीपतो रे; अंतिः प्रति नमुं सिरनाम रे, गाथा-४. ८६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १८आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: दादो तो दरसन दाखै; अंति: इम समयसुंदर गुण गावइ हो, गाथा-४. ८७. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवकजन; अंति: जिनचंद० मंवंछित फलजो, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ____३५५ ८८. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादौ परतिख देवता; अंति: सारज्यो सगला काज, गाथा-११. ८९. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९०. पे. नाम, जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण. मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: क्षमारतन० दीयो सतगुरुजी, गाथा-५. ९१. पे. नाम, जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जयचंद, रा., पद्य, आदि: जसु हरिदयकमल गुरुनाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९२. पे. नाम. जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि गीत-सिराजगंज, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरज अवधारीए रे वाला; अंति: वाला सोभाग्यधर्म आनंदजी, गाथा-५. ९३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. विसनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुशलसूरींद गुरु ध्यावो मन; अंति: विसन० वंछित संपत कीजै हो, गाथा-३. ९४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. म. विसनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल गुरु विना अवहिज मेरी; अंति: विसन० दीजै गढ वह वंका जी, गाथा-३. ९५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. विसनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी अरज सुणो महारायजी; अंति: कर दीजै दास विसन कहवाय जी, गाथा-३. ९६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. धरम, पुहिं., पद्य, आदि: किरपा मो पर कीजै कुशलसुरि; अंति: धरम कुं लीजै चरन नमे लगाय, गाथा-३. ९७. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. म. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अरजी हमारी माणो दादा; अंति: लालचंद० दारिद्र करो दर, गाथा-३. ९८. पे. नाम, जिनदत्तसूरि पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: चरनन की बलहारी गुरु तेरे; अंति: सोभाग्य० लीजै वाह संवारी, गाथा-३. ९९. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: कुशलसूरिंद नित ध्याइयै; अंति: तुमनो धर्मसोभाग्य ज पाय, गाथा-५. ९३५८८. जैन यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, ४६४११). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९३५८९ (अ) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:पडिक., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४४२८-४०). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अतिचार अपूर्ण तक लिखा है.) ९३५९१ (+) चातुर्मासिकत्रय व होलिकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-३(१ से ३)=११, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४१२.५, १३४३०-३३). १. पे. नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. ४अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: ततः सर्वेष्टार्थसिद्धिः, (पू.वि. सत्यवादि कालिकाचार्य दृष्टांत से २.पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: (-), (पू.वि. "कामपालनामानं विलोक्य" पाठांश तक है.) ९३५९५. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १२४३६-३८). For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८१ अपूर्ण तक है.) ९३५९६. (-) भगवतीसूत्र बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. दर्वाच्य., दे., (२५.५४१२, २०x४०). १. पे. नाम. समवसरणद्वार-भगवतीसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बांधी. समवसरणद्वार-भगवतीसत्रे-शतक ३०, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस २ पखी ३; अंति: (-). २. पे. नाम. लब्धि थोकड़ा-भगवतीसूत्र, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लधी. __ भगवतीसूत्र-लब्धि थोकड़ा, संबद्ध, प्रा.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३५९७. चेतन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०३, मध्यम, पृ. ८, प्रले. सोभाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६-२२४३८-५०). कर्मचेतन संग्रामभाव रास, क. नर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी हुई गई; अंति: जीतीयां होसी खेवो पार, ___ ढाल-१९, (वि. कर्ता का उल्लेख नहीं है.) ९३६०४ (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७१, अन्य. श्रावि. अंबा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१३, १४-१६x२६-३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवैल कवियण भणी; अंति: लहस्यो ज्ञानविशालाजी, खंड-४, गाथा-१८२५. ९३६०७.(+) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १५४३६-४०). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम ढाल की अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ९३६०८.(+) श्रावकप्रतिक्रमण वंदीत्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सुजानगढ, प्रले. मु. चुनिलाल ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, ८x२४-२८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसीद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४८. ९३६०९ (2) देवचंद्रजीकृत चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८९३, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. मेगलवास, प्रले.पं. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १७७३८-४२). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदस्यूं प्रीतडी; अंति: सेवता पूर्णानंद समाजो जी, स्तवन-२४, गाथा-२०५. ९३६११. तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-२(१ से २)=६, जैदे., (२४४१२.५, १३४३२-३७). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदिः (-); अंति: साजे अमृतरंग सुहंकरु, __ ढाल-१०, (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ९३६१२. नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१३.५, १८-२०४३१-३३). नेमिजिन रास, मा.गु., पद्य, आदि: संखराजाने जसोमती; अंति: छैतीससू सिवपूरी, ढाल-१८. ९३६१४. (4) नवतत्त्वभेदना बोल, संपूर्ण, वि. १९१४, पौष कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, १३४३८-४२). नवतत्त्व प्रकरण-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व मांहि रूपी; अंति: पन्नवणासुत्र मधे का छे. ९३६१६. (#) सतरप्रकारी पूजाविधि प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१०, प्र.वि. हुंडी:पूजा सतरप्र०., द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १२-१४४२२-२८). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भावै भलै भगवंतनी; अंति: सबलीला सवि सुख साजै, ढाल-१७. ९३६१७. (#) देवचंद्रजी कृत स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:पूज स्नात्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १४४२४-२८). For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३५७ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौतीसै अतिसय जुओ वचन; अंति: कहे सूत्र मोझार, ढाल-८, गाथा-५६. ९३६१८. (4) आनंदघनजी चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:आनंदघनचोविसि, आनंदघनजीक्रत चोवीसी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १४४२७-३३). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन-२२ की गाथा-२ तक लिखा है.) ९३६१९ (4) ऋषभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३,८-१०x१८-२६). आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर पहिलो अरिहंत भयभंजण; अंति: सफल भव आपणो गीणी, ढाल-४, गाथा-५४. ९३६२०. (#) सारस्वत व्याकरण सह चंद्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७३-५९(१ से ५८,६०)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:चं.का., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, १०४३६). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्त्रीप्रत्यय अपूर्ण से कारक प्रकरण अपूर्ण तक है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (-); अंति: (-). ९३६२४. (+#) दशपच्चक्खाणआगारसंख्या गाथा व दशपच्चक्खाण सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ८x२४-२८). १. पे. नाम. दशपच्चक्खाणानामागारसंख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. २. पे. नाम. दसपच्चक्खाण सूत्र, पृ. १अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमोक्कारस; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण-१० अपूर्ण तक है.) ९३६२५. (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३२-३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८८ अपूर्ण तक है.) सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदरनो प्रकर कहेता; अंति: (-). ९३६२६. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. कांबा, प्रले. पं. रतनचंद (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जिवचार पत्र. श्रीगोडीपार्श्वनाथजी. श्रीदादाजी सहाय छे., दे., (२६.५४१३,५४३४-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपइवं वीरं नमिउण भणामि; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदीप; अंति: सुत्रसमुद्र थकी कहुं. ९३६२७ नमिऊण स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२६४१४, १७-२१४२०-४०). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ तक है.) नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः (१)सिद्धार्थपार्थिवसुतं, (२)नत्वा चरणयुगलं कस्य; अंति: (-). ९३६२८. धर्मध्यान लक्षण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्रले. जीवराम पंचोली; पठ. मु. सामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३,११४२८-३२). धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम च्यार प्रकारना; अंति: शुक्लध्यानो बे भेद लाभे. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाह.) ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३६२९ (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. इश्वरपुरी नयर, प्रले. मु. नायकविजय (गुरु मु. केशरविजय); गुपि. मु. केशरविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय); गृही. ग. देविंद्रविजय (गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजीन प्रशादात.,संशोधित., जैदे., (२८.५४१३, १४-१६४३६-४२). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिले नोकारने उपधानि १; अंति: एवं आंबिल वर्द्धमानतप०. ९३६३० (4) नवपद पूजा, स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:पूजा नवपद., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १४४२४-३०). १.पे. नाम. नवपद स्तोत्र, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण, वि. १९३२, आश्विन शुक्ल, ३. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम थकी बल बाकुल करी; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९. २. पे. नाम, नवपद स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जीया चतुर सुजाण नवपद; अंति: समर समर गुण गाय रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नवपद पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र पद, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंति: शिवतरु बीज खरोरे, गाथा-३. ९३६३१. (+) धर्मरत्न प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, १९४५०-५४). धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२७१, आदि: नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. वस्तुतः अपूर्ण है किंतु प्रतिलेखक ने अंत में पूर्णतासूचक चिह्न व ग्रंथान दिया है.) धर्मरत्न प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: गुणाः अक्षद्रतादय; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९३६३२. (+) मोहनृपादि विविध दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६-१३(१,३,५,७ से ८,१२,१५,२२ से २३,२६ से २८,३१)=२३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १५-२१४३३-५४). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं., वि. कर्मभूप, गुणसागरमुनि, सुमित्र, अश्वग्रीव, अश्वबिंदु आदि संबंधकथा संग्रह.) ९३६३३. सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:सोभाग्यपंचमी., दे., (२७४१४, १२४३०-३६). सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: भव्यैरासाद्यते लक्ष्मी; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ९३६३४. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पूवि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रिषमं०., संशोधित., दे., (२५४१३, ९४२८-३२). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९१ तक है.) ९३६३५. (+) एकसोपांच बोलरो बासठीयो, आठ आत्मारो बासठीयो व ८ कर्म १५८ प्रकृति-गुणस्थानकादि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३-१८x२४-५२). १. पे. नाम. एकसोपांच बोलरो बासठीयो, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. आठ आत्मारो बासठीयो, पृ. ५आ, संपूर्ण. ८ आत्मा ६२ बोल, पुहिं., को., आदि: १ द्रव्य आत्मा में; अंति: ८ विर्यआत्मा में. ३. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति, गणस्थानकादि यंत्र संग्रह, पृ. ६अ-३४आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र संबंधी विविध छुटक पत्रों का संग्रह है. कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९३६३६. (+#) योगसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-४(१ से ४)+१(१३)=२२, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२.५, ३४२२). For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३५९ योगसार, म. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-१० अपूर्ण से १०० अपूर्ण तक योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच के पत्र हैं. ९३६३७. (+#) पूजापाठ प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५८, ले.स्थल, जयनगर, लिख. श्राव. वखतावरमल्लजी सीपाणी; उप. पं. फतेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१३.५, १०-११४३२-३६). विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर, प्रा., पद्य, वि. ११२७, आदि: पणमह तं नाहिसुअं; अंति: जए चरियं सिरिविजयचंदस्स, कथा-८. ९३६३८. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सोभाग्यपंचमीनी कथा., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३७४) मंगला लेखकानां च, जैदे., (२६४१३, १३४३८-४४). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. ९३६३९ (#) खट आवश्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १०-११४३०-३६). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद सुधोदधि; अंति: बहु संघमंगल पाईया, ढाल-९, गाथा-५४. ९३६४५. साधुश्रावक आचारविचार विषये विविध प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०-२३(१ से २३)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रश्नउत्तर., दे., (२६.५४१३, १०-१२४२८-४०). साधुश्रावक आचारविचार विषये विविध प्रश्नोत्तर-आगमगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-४० से ५९ अपूर्ण तक है.) ९३६४६. (+#) कल्पसूत्र सिद्धांत व सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ४८-४(२ से ५)=४४, कुल पे. २, ले.स्थल. लक्ष्मणपुरी, प्रले. पं. अमृतविजय (गुरु पं. गंगविजय); गुपि. पं. गंगविजय; पठ. मु. भाग्यविजय (गुरु पं. अमृतविजय),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र पत्र. श्रीपद्मप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१२, १४४२८-३२). १. पे. नाम, कल्पसूत्र सिद्धांत, पृ. १अ-४८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं.. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. पाठ 'सुसमाए समाए' से 'वासुदेवा वा बलदेवा वा' तक नहीं है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ४८अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: अनुचितकर्मारंभो स्वजन; अंति: मुर्खाणां निद्रया कलहेन च, श्लोक-२. ९३६४७. (+#) सर्वप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३६, प्रले. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); म. देवीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:प्रतिष्ठाकल्प पत्र. अंत में दशदिक्पाल व नवग्रह पूजाविधि कोष्ठक है. बीच-बीच में भी प्रतिलेखन पुष्पिका दी गई है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १५४४०-५०). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: हवें पूर्वोक्त शुभ दिवसें; अंति: श्राविका धवल मंगल गावै, (वि. कर्ता के लिए 'संवेगी उपाध्याय देवीचंद्रजी कृत' ऐसा लिखा है.) ९३६४८ (+) बारह व्रतरा अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. हुंडी:अतिचार, अतीचार., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ९४२६-३२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: करीने मिच्छामि दुक्कडं. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६० ९३६५० (+४) श्रीपाल कथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २२-१ (१) = २१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं है.. प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल टबो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६X१३, ८X३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य वि. १४२८, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से ३३२ अपूर्ण तक है.) सिरिसिरिवाल कहा- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). *, ९३६५२. (+) शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन प्रतिष्ठातणु, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अमदावाद विद्यासालानी परत उपरथी उतराज्य छे. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३७५, दे., ( २६१३, १२X३०-३२). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर पंचकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्य, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि:श्रीमद्यादवसैनिकस्य; अंति: सघले सदा रंगविजय लहे, ढाल १९, ग्रं. ३७५. ९३६५३. (+४) आगमगर्भित अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७-१ (१) ६, ले. स्थल राजनगर, प्रले, मु. क्षमाकल्याण शिष्य (गुरु वा. क्षमाकल्याण, खरतरगच्छ ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अष्टप्रकारी ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२.५, १३४३४-३७). ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: (-); अंति: संघने तिलक करायो रे, ढाल - १६, (पू.बि. डाल-१ से है.) पूजा., ९३६५४. (+) पुराण हुंडी- श्लोक संग्रह व श्वेतगुणसार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१२.५, १५-१६X३३-३६). १. पे. नाम. पुराण हुंडी- श्लोक संग्रह, पू. १अ-७अ, संपूर्ण. पुराणहुंडी, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अहिंसासत्यमस्तेयं; अंति: धर्म कीधा वडाई छई. २. पे नाम. श्वेतगुणसार, पू. ७अ, संपूर्ण " औपदेशिक सवैयाउपमा, छोगजी आसीवाल, पुहि., पद्य, आदि स्वेतगुणसार सविता जलधार; अति: चार चादर मुनराज की, सवैया २. ९३६५५ (+) स्नात्र स्तवन, संपूर्ण वि. १९९८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पू. ५, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२६.५४१२.५, १०४२८). . स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउत्तिसे अतिशय जुओ; अति देवचंद०सही सूत्रमझार, डाल-८, गाथा ६०. ९३६५६. ४ मंगल ढाल, संपूर्ण वि. १९२९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल. पालीनगर, प्रले श्राव. गोवर्द्धन छांगांणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मंगल ४., दे., ( २६४१२, ११४३०-३२). ४ मंगल डाल, मा.गु., पद्य, आदि चौथो मंगल चीत्त धरो केवली; अति ते मुक्तनगर ले जाय, ढाल ६, गाथा- १०९. ९३६५७ (+) तीर्थमाला स्तवन, पार्श्वजिन पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६४१२, ९३१-३७). १. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी तिरधमाला. मु. दयाविजय; मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१२, आदि: नमिउ जिण चोवीसने प्रणमुं; अंति: रंगे० सकल संघ आणंद घणो डाल- १२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८ अ, संपूर्ण. नेहडो, गाथा-३. . कीर्ति, मु. ,मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगीयो पायो; अंति: कीरति०राखीये चरणासु नेहडो, ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजो जी; अति वक हरख हरख गुण गावे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९३६५८. पुलगीता, पार्श्वजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४+१ (४) =५, कुल पे. ५, जैवे. (२६४१२, १४४३९-४१). १. पे. नाम. पुद्गलगीता, पृ. १अ- ४अ, संपूर्ण, अन्य. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी : पुद्गलगीता. यह कृति प्रथम ४अ से द्वितीय-४अ तक है. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: संतो देखीये बे परगट; अंति: पयोगी चिदानंद सुखकार, गाथा-१०८. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि साहिबा दीनदयाल दयानि अंति पर वीनवे राखीजै निज संग, गाथा- ९. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, आदिः परपुद्गल के सह को रागी अति आनंदघन० लीजे परपद वासा वे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आत्महितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय आत्मा, पुहि., पद्य, आदि: म्यानत्रयी आराधवी आतमजी अंति अति आग्रह आणीने आवरो, ३६१ गाथा-४. ५. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पू. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि आ घट मे परमातमा चिन मूरत अंतिः वह सदा चेतो चितवईया, गाथा-४. ९३६५९. (+) शिवशास्त्र हुंडी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४ आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. मेदिनीपुर, प्र. मु. रामनाथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२७४१२.५, १३x४०-४३). , महाभारत तत्त्वसार, संक्षेप, सं., पद्य, आदि श्रूयतां धर्म सर्वस्वं अति मार्गस्य कारणम्, संपूर्ण. महाभारत तत्त्वसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वधर्म सांभलो सांभलीने; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९३६६४. (*) खंडाजोयण, संपूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल कीसनगड, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी) सा. लछुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : खडाजोण., संशोधित, जैदे., (२६१२.५, १७३३). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोयणनो जंबूद्वीप; अंति: रोहीयानी परइ जाणिवी. ९३६६५. (+) १२ भावना विलास, संपूर्ण, वि. १८३२, कार्तिक शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. श्राव. बाबूमानजी शाह, पठ. श्राव, माणिकचंद मधेन प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भा. वि., संशोधित, जैदे., (२५.५४१३, १३४३५-३८). " १२ भावना विलास, मु. शुभचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमो पंचपरमेष्टिनो मूल; अंति: सरन चरनकी दीजियै, ढाल १२. ९३६६६. गणधरवाद, श्लोक व शीलपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (१) ५. कुल पे. ३ ले स्थल, रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गोतमवाद., जैवे. (२६४१२.५, १७४४०-४२). १. पे. नाम. गणधरवाद, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अति कीधी तेहनो बिसतार घणो छे, २. पे. नाम, साधुस्तुति सवैया प्रथम श्लोक, पृ. ६अ, संपूर्ण, वि. १८९३, ले. स्थल, पावुग्राम. साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ज्ञान के उजागर सहज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. शील पच्चीसी, प्र. ६अ ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय, मु. शीलरतन, पुहि., पद्य, आदि: अतीत काल जिनवर हुवा, अंतिः शीलरतन० अनंत सुख की आस, गाथा - २५. ९३६६७ सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-२० (१ से १७, २१ से २२,२४)=५, कुल पे. १९, दे. (२६४१२.५, १७x४५-५०). Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदना करूं सुध प्रनाम से, गाथा-९. २. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर तुम से मन मेरा; अंति: हमारो दुष्ट करम दुरजनसें, गाथा-५. ३. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मांसखमनने पारने तपसी मोटा; अंति: चोथमल० सरीखा जो भाव रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: मझार करजोडी रतनो भणै, गाथा-१३. ५. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रयवाडी चढ्यो; अंति: पाय वांद्रे बे कर जोडि, गाथा-९. ६. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: थान भलो राजग्रही रे; अंति: घर सदा कल्याणो रे, गाथा-१०. ७. पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: उग्रसेन की लली; अंति: मुकतमहलमै बेठा जाय, गाथा-८. ८. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर स्याम संदेसो; अंति: पहले मुकती जाना तुं, गाथा-१०. ९. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हाथी होय तो घोडो होय तो; अंति: साधो जोत में जोत मीलाउरे, गाथा-५. १०. पे. नाम, मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, प. १९अ-२०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३१. ११. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. म. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन स्वामी अंतरज; अंति: खकर विनयचंद गुन गाया, गाथा-२०. १२. पे. नाम. १६ सती लावणी, पृ. २०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरतना त्रिकाल च; अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा-१ है.) १३. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. २३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जम भारक सीवपद वर लयो, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) १४. पे. नाम, भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति: रतनचंद० निज सीस नमाय, गाथा-१०. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखु तुट्याने सांधो; अंति: जालोर शहर मझार, गाथा-१३. १६. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. २३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि: चैत कहे चितमांहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: चारो सरना चित धरना, गाथा-७, (पृ.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) १८. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी, पृ. २५अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: सुध ग्यानीजी फागुणमे; अंति: मुकत बधू से हीत जोडी, गाथा-७. १९. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३६३ ९३६७० (+) संघपट्टोग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:संघ०टी०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४५०, जैदे., (२५.५४१३, ४४३२). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं कुपथ; अंति: कथयापीत्थं कद.महे, श्लोक-४०. संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अग्नि तेहनी ज्वालाइं; अंति: महापराभव पामीइं छइं, ग्रं. ४५०. ९३६७१ (4) श्लोक सह बालावबोध टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. रूपचंद ऋषि (विजयराजगच्छ बृहत्शाखा), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६४३२-३६). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक* प्रा..सं.. पद्य, आदि: दानं दरितनाशाय शीलं: अंति: वक्षस्य फलान्यमनि. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअर्हत भगवंत असरण सरण; अंति: सेष धर्म विषे उद्यम करवो. ९३६७२. २१ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४३६-४२). २१ बोल निक्षेपाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ नयसात २ निषेपीध ३ छगुण; अंति: ज्ञानी ते जाणणावालो. ९३६७६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १०, दे., (२६.५४१२, १०x२८). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण... __कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणं; अंति: वाय सा अम्म सया पसथा, गाथा-४. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम, पंचमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमीपंचरुप त्रिदसपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना. ४. पे. नाम, एकादशी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० संघतणा निसदीस, गाथा-४. ५. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सनातस्याप्रथमस मेरु; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, __ श्लोक-४. ६. पे. नाम, अष्टमीदिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद सब; अंति: नंदीसर विघन दरे हरे, गाथा-४. ७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ८. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम, __ श्लोक-४. ९. पे. नाम. रोहिणी स्तति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. १०. पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., पद्य, आदि: फलवीधीनो मंडण चंती घ; अंति: देवकुसलनी आस्या सफल फली, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३६७९ (-) परकुणो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, ८४३०). देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., प+ग., आदि: आवसीही इछामेणं भंते तिबेण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिदणंच वंदामि तक लिखा है.) ९३६८० (+) जिवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जिवविचारस्तवन., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १०४३२). जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: विजय भणइ आणंदकारी, ढाल-९, गाथा-८१. ९३६८२. (4) सिद्धचक्र यंत्र संक्षिप्त आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १३४४८-५२). सिद्धचक्र यंत्र संक्षिप्त आराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सिद्धचक्रना गुण घणां; अंति: (-). ९३६८३. पासाशुकनावली, अपूर्ण, वि. १९३७, माघ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १८-८(१ से ८)=१०, ले.स्थल. वेलांगरी, प्रले. मु. सोभागविजय (गुरु मु. नवलचंद्र); गुपि. मु. नवलचंद्र (गुरु पं. राजविजय); पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीरजी प्रसादतु., दे., (२६४१३, १०४३३-३५). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: करीस ते पामीस सही सत्य, (पू.वि. शकुनांक-१११ अपूर्ण से है.) ९३६८४. (4) अभिनंदनजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, कुल पे. ८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४४१). १.पे. नाम. उतपति सिज्झाइ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. मु. रूपचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:उसिप्रा०. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहइ श्रीसार ए, गाथा-७१. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आरति सवि दूरई करी; अंति: इसा साधु इक वार णइ, गाथा-७. ४. पे. नाम. काया सिज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यप्रद, मु. रत्नतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: रतनतिलक० रखवाली, गाथा-८. ५. पे. नाम. अभिनंदन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसरि, मा.ग., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवरे; अंति: समविषमे जिनराज रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. ७. पे. नाम. गौतम सज्झाय, पृ. ४-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामि पुछा करै; अंति: पामे सुख अथाग हो, गाथा-१६. ८.पे. नाम. थंभणापार्श्वनाथजी वृद्धि स्तवन, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थंभणा०. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुसललाभ पजंपये, ढाल-५, गाथा-१८. ९३६८५. (+) सत्तरसो ठाणा, संपूर्ण, वि. १९२६, माघ कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. नारायणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ११४२४-५२). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३६५ सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, आदि: जिन नाम ऋषभ १ अजित २; अंति: नारदनव भये उत्तम पदवा. ९३६८६. (+) ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(३ से ४)-५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १५४४४). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेत, पूजा-५, गाथा-९. ९३६८७. गजसकमालनी स्वाध्याय व द्रमपत्रियाध्ययनहितसिष्या सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से २,९)=९, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२.५, १४४३२). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी देववंदन, पृ. ३अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मतिज्ञान के दोहे-१० अपूर्ण से केवलज्ञान चैत्यवंदन तक हैं.) २. पे. नाम. गजसुकमालनी स्वाध्याय, पृ. १०अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८९१, कार्तिक शुक्ल, १२, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. ग. मयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भव होज्यो सुगुरू सहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से हैं.) ३. पे. नाम. द्रमपत्रियाध्ययनहितसिष्या सज्झाय, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-द्रमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: वीर विमल केवल धणीजी; अंति: ० पसरे बहुं गुण गेलि, गाथा-२२. ९३६८८ (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-२२(१,५ से २५)=३२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३८-४२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-१ की गाथा-१६ से सर्ग-६ की गाथा-८५ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९३६९१ (#) उपदेश रसाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १२-१४४३७-४१). उपदेश रसाल, सं., गद्य, आदि: (१)एसो मंगलनिलओ भयविलओ, (२)यत्कल्याणकरो अवतारसमयः; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., एकेंद्रिविषये धन प्रमुखानां पाठ तक लिखा है.) ९३६९३. (#) उत्तराध्ययन सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४६-२२७(१ से २२४,२२८,२३० से २३१)=१९, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्यै०., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, ५४३६). ___ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ९३६९८. (+) नारचंद्र प्रथम प्रकीर्ण व राजाभिषेक मुहूर्त, अपूर्ण, वि. १७९४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. २, ले.स्थल. वांकुलीग्राम, प्रले. ग. प्रधानविजय (गुरु ग. प्रतापविजय पंडित); गुपि. ग. प्रतापविजय पंडित, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४३९-४३). १. पे. नाम. नारचंद्र प्रथम प्रकीर्ण सह टबार्थ, पृ. १आ-३४आ, संपूर्ण. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: अतीव समये मनोरथं लभ्यते, श्लोक-३६२. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीतीर्थंकरदेव, (२)श्रीअहँतने प्रणाम; अंति: पामई इति छायालग्न अभीव. २.पे. नाम. राजाभिषेक महर्त, प. ३४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनुराधा १ पुष्य २ हस्त ३; अंति: (-), (पू.वि. "पुनर्वसु रोहीणी" पाठांश तक For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३७००. (+) दशवैकालिक सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०-४७ (१ से ४७ ) = २३, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १२४३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अति (-) (पू.वि. अध्ययन-७, गाथा ५ अपूर्ण से अध्ययन-९, उद्देश-३ गाथा - ३ अपूर्ण तक है. ) दशवैकालिकसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९३७०१ (+) विवेकविलास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, १३४५४). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि शाश्वतानंदरूपाय तमस्तीमेक, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास - २, श्लोक १३ अपूर्ण तक लिखा है.) विवेकविलास बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि ते को एक परमात्मानइ, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. " ९३७०२ (+) ज्ञाताधर्मसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी. शातासूत्र, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १५X५६-७०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ "विहरंचअत्तरंवमग्रमाणेगवेस" पाठ तक है.) , ९३७०४. चंदनृपचौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१२) १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: चंदननृपची. वे., (२६×१२.५, १५X३८-४२). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक प्रणमीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -९, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९३७०५. (+) गोराबादल चौपाई व अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे., (२५.५x११, १२-१६४३८-४२). "" " १. पे. नाम. गोराबादल चौपाई, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण, वि. १७९८, भाद्रपद कृष्ण, १०, सोमवार, ले. स्थल. जांणीयाणा, प्रा. पं. रामचंद (गुरु पं. वेणीराम, खरतर भावहर्षगच्छ) गुपि. पं. वेणीराम (गुरु पं. नेतसीजी, खरतर भावहर्षगच्छ); पं. नेतसीजी (गुरु पं. पांचाजी, खरतर-भावहर्षगच्छ); पं. पांचाजी (खरतर-भावहर्षगच्छ); पठ. पं. हस्तिविजय (गुरु पं. भाणविजय); गुपि पं. भाणविजय (गुरु पं. मानविजय): पं. मानविजय (गुरु पं. चतुरविजय): पं. चतुरविजय (गुरु पं. मानविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत . आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १६४७, आदि सुखसंपत्तिदाइक सकल; अति: वरमाला ले लखमी वरेड़, गाथा- ९१७. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २३आ, संपूर्ण वि. १८वी ले. स्थल मेवपाटनगर, प्रले. ग. गजेंद्रसागर, अन्य. मु. युक्तिसागर, 1 प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि संप्रात संसारसमुद्र, अंति देहि मे देवि सारम् श्लोक-४. ९३७०६. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित - टिप्पणयुक्त पाठ. जैये. (२६.५x११.५, १७-२१x२९-५७) ', "" शांतिनाथ चरित्र, आ. मुनिदेवसूरि, सं., पद्य वि. १३२२, आदि: वेश्मरत्न निशारत्न अति (-) (पू.वि. सर्ग-५ की गाथा - १३ अपूर्ण तक है.) ९३७१४. (*) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २२- २ (६, १२) = २० प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, ५X३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स अति: (-), (पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१, गाथा-४७ अपूर्ण से अध्ययन-२, गाथा-१० अपूर्ण तक, अध्ययन-३, गाथा-५ अपूर्ण से गाथा-१३ अपूर्ण तक व अध्ययन-७, गाथा - ११ अपूर्ण से नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: मातापिता प्रमुख अभ्यंतरने; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३६७ ९३७१६. (+) निघंटु, संपूर्ण, वि. १७९९, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. आचार्य दामोदर; पठ. कल्याणजी विश्वेश्वर नागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४४०-४२). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शरणोत्तम मंगलान्, श्लोक-२४६. ९३७१७. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ३४३०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५४. ९३७१८. सूतक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-४(६ से ९)=७, दे., (२५.५४१२, १४४४८-५४). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रजस्वला शुद्ध भयेथी सत्रह; अंति: दिन श्राद्ध कर्तव्य, (पू.वि. जन्म सूतक विचार __ अपूर्ण से मरण सूतक विचार अपूर्ण तक नहीं हैं.) ९३७१९ (+) ज्वालामालिनी, सिद्धसारस्वत व ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४३५-४०). १. पे. नाम. ज्वालामालिनी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मालिनी जापयते स्वाहा, (पू.वि. "धगधग धुमांधकारिणी" पाठ से है.) २.पे. नाम. सिद्धसारस्वत् स्तोत्र, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तोत्र, पृथ्वीधराचार्य, सं., पद्य, आदि: कर्णस्वर्णविलोलकुंडलधरा; अंति: भुवनेप्सितदश्रिय, गाथा-५०. ३. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण... ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-८६, ग्रं. १५०. ९३७२४. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १७-९(३,५ से ६,९ से १२,१४,१६)=८, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २४५, जैदे., (२६४१२, ४४२२-३०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-८०, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से १४ अपूर्ण, गाथा १९ अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनि त्रैलोक्यनु; अंति: नथी ए वातनो संदेह, संपूर्ण. ९३७२५. सुकमालऋषिगुणवर्णन चतुःपदी, अपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ.७-१(१)=६, जैदे., (२६४१२,१२४३२). अवंतिसकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदिः (-); अंति: शांतीहरख सुख पावे, ढाल-१३, गाथा-१०७, (पू.वि. ढाल-२ से है.) ९३७२६. (+) नंदबत्तीसी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. कानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "संवत् १२३० ना वर्षे श्री हेमाचार्य दिवंगता तत्पश्चात् जैनधर्मप्रवर्ति स्वल्पा भवति" ऐसा लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ११-१६x४०-४५). नंदबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: आगम वेद पुराण जाणंता; अंति: चोपई नंद बत्रीसी एहवी हुई, गाथा-१५३. ९३७२७. (+#) गोडीजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८८८, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. अबरखयुक्त स्याही का उपयोग किया गया है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६-४८). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन मझ ततसारं; अंतिः परि धर जयवंत गवडीधणी, गाथा-११२. ९३७२८ (+#) जयविजयकुंवर रास, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रावण शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २३, प्रले. मु. हंसविजय (गुरु ग. रामविजय पंडित); गुपि. ग. रामविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२६.५४१२, १५४३३-३९). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयविजयकुंवर रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: आदि आदि जिणेसरु पय; अंति: ए अधिकार सनेहिरे, अधिकार-४, ग्रं. ७२५, (वि. ढाल ३३) ९३७३०. (+) मोतीसाना ढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. कृष्णचंद व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०x२५-२८). शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रॅक स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठी प्रभाते प्रभु; अंति: कहे विरविजय महाराज, ढाल-७. ९३७३३. (+) पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०x२५-३१). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. ९३७३४. (+) तिलकसागरसूरि गौरव लेख, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२०). तिलकसागरसूरि गौरव लेख, मु. तिलकसागरसूरिशिष्य, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीजिनमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८९ अपूर्ण तक है.) ९३७३५. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी;दसमी., दे., (२५.५४१२, १३४३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण तक है.) ९३७३६. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१३, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. हांसोट, पठ. गच्छाधिपति जिणविजय (गुरु मु. समुद्रविजय); गुपि. मु. समुद्रविजय (गुरु पं. मोहनविजय); पं. मोहनविजय (गुरु पं. सुरेंद्रविजिय गणि); पं. सुरेंद्रविजिय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२६-२८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. ९३७३७. (+#) वज्रस्वामी चौपाई व औपदेशिक दूहा, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. कुचामण, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी); सा. लछुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १६४३४). १. पे. नाम. वज्रस्वामी चौपाई, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वेरसामी. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: अरिहंत० आरीया उवजाया; अंति: रायचंद० कथा वीलास मे, ढाल-८, गाथा-१३८. २.पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: देव जोगैडा वडो रोव दीन; अंति: भणी दीख्या दावण राम डांण, गाथा-३. ९३७३८.(+) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-६(८,१० से १४)=९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४४२८-३५). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. भयहर स्तोत्र-गाथा-१८ अपूर्ण से अजितशांति गाथा-२ अपूर्ण तक, अजितशांति गाथा-६ अपूर्ण से गाथा-२५ अपूर्ण तक व गाथा-२८ अपूर्ण से अंत तक नहीं है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाननइ; अंति: (-). ९३७४५. (+) महानिशीथसूत्र- अध्ययन ४ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पठ. मु. सोमदत्त ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. वि.सं.१६०८, कार्तिक शुदि६ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३२-३९). For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३६९ महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), ग्रं. ४५४४, प्रतिपूर्ण. ९३७५२. वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. सत्यलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४४१). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: विहितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२८. ९३७५४. (+) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९. ९३७६३. (+) षट्पंचाशिका का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८१९, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. वीरमग्राम, पठ. मु. मेघजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:षट्पंचासिकांपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११-१७४५२-६०). षट्पंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तनभुवन चतुष्टय कंटकभुवन; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२ अपूर्ण तक है., वि. सुशोभित यंत्रयुक्त पाठ.) ९३७६५. (+) १७ भेदी पूजा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १२, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२५.५४१२, ५४३३-३९). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकजवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. १८वीं पूजा की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १७ भेदी पूजा-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनेश्वरना मुख; अंति: (-). ९३७६६. स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:स्नात्रपत्र., जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३३-४०). स्नात्र पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: समकित सुजस सवायो रे. कवित्त, सवैया व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१३(१ से १३)=५, कल पे.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४३२-३५). १.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिक कवित्त-दाता के लक्षण, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: पाप छप्यों न छप्यो न छपाए, (पृ.वि. पाठ "आठ १ दातानो दस लक्षण दातार" पाठ से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-गुण अवगुण की पहचान, पुहिं., पद्य, आदि: गाम विनास्यो गुदरो नगर; अंति: कुनगत् नीत नारी को संग, सवैया-१०. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, पहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीवैकुंठपरी; अंति: तेडावे तो आवी चरणें पड़ी, गाथा-१२, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. जीवउपर वीनती, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवदया, पुहि., पद्य, आदि: मोमां गुण तो तल नही तुम; अंतिः सो जानत हे कीरतार, गाथा-४. ५.पे. नाम. सर्वार्थसीद्धचंद्रोदनी सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसो रे, गाथा-१५. ६.पे. नाम, मेघरथ सज्झाय, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय, म. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: दशमें भवे श्रीशांतजी; अंति: कहे रूपचंद शुभठाण, गाथा-२१. ७. पे. नाम. नेमगीत, पृ. १८आ, संपूर्ण. अध्यात्म पद, म. आनंदघन, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: कंचनवरणो नाहरे; अंति: निशदिन धरूं उमाहा रे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम, नेमिजिन गीत, पृ. १८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ नेमराजिमती गीत, पुहि., पद्य, आदि: अंखिया भर भर मारे रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है., वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ९३७७८. (+) कर्मछत्रीसी, दस दान दोहरा व द्वादश भावनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे.८, अन्य. श्राव. निहालचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,११४४२). १.पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कर्मछत्तीसी, पुहि., पद्य, आदि: परम निरंजन परमगुरु; अंति: करे मूढ वडावे सिष्ट, गाथा-३७. २. पे. नाम. दानदसमी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. १० दान दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: गो सुवर्ण दासी भवन; अंति: हित अहित आन की आन, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सिंधुचतुर्दशी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जैसे काहु पुरुष कौ; अंति: मुनि चतुर्दशी होइ, गाथा-१४. ४. पे. नाम. द्वादशभावना, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. १२ भावना, पुहिं., पद्य, आदि: आदिदेव जिनपय नमो बंदऊ; अंति: विवेक की और बात सब धंध, गाथा-१५. ५. पे. नाम, ग्यानपच्चीसी, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरि जग जोनिमइ; अंति: उदय करण को हेतु, गाथा-२५. ६. पे. नाम. ध्यानबत्तीसी, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. ___ ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान सरूप अनंतगुन; अंति: यथा सकति परवान, गाथा-३४. ७. पे. नाम. अध्यात्म बत्तीसी, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: परगाससौ आवागमन न होइ, गाथा-३२. ८. पे. नाम. शिवपच्चीसी, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ब्रह्मविलास विकासधर; अंति: वनारस० शिव रीति, गाथा-२६. ९३७८३. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, सीमंधरजिन स्तुति व सामायिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-३(१ से २,११)=१०, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १२४३२-३८). १. पे. नाम. देवसिक प्रतिक्रमण, पृ. ३अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. चैत्यवंदन जंकिंचि सूत्र अपूर्ण से है व बीच का पाठ नहीं हैं., वि. बीच में बीज व पंचमी की स्तुति लिखी हैं.) २. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसि इसान कूण; अंति: हर्ष० पुरो संघ जगीश, गाथा-३. ३. पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुधे करो; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५. ९३७८६. (#) स्तवनचौवीसी, सीमंधर चंद्राउलो व चौवीसतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४११, १५४४२-४८). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: तै संसार सारो रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीनवुरे; अंति: उत्तम० अधिक जगीस, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम, चोवीसतीर्थ स्तवन, पू. ४अ- ९आ, संपूर्ण स्तवनचीवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि आदिसर अवधारी जी सेवकनी अंतिः तणो ए कहें जिनहरख सुरीस, स्तवन- २५. ९३७८८ (+) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, भावनगर, प्र. वि. हुंडी; आराधना, संशोधित., दे. (२५.५४१२, ७३७). ३७१ पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: शिष्य गुरुने प्रणाम; अंति: सुख मोक्ष सुख प्रति ९३७८९ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १७६९, नंदरसऋषियशशि, आश्विन शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३) ७, ले.स्थल. मणपद्रद्रंग, प्रले. पंन्या. उत्तमविजय * (गुरु पंन्या. जिनविजय, तपागच्छ); पठ. मु. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १५X४५-५०). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७१, (पू.वि. ढाल-७, गाथा-८१ अपूर्ण से है.) ९३७९१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१७, प्र. वि. द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५X१०.५ ५.१२४३८-४४). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-कल्पप्रकाश टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६२, आदि: नमो क० नमस्कार हुउ अरि; अंति: गमें कह्युं छइ अर्थ, ग्रं. ६२८४. कल्पसूत्र- बालावबोध, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमः परमानंददायिनेविश्वत: अंति: मिथ्या ९३७९२. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८२३ वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १७७-४० (१ से १०,१४५ से १७४)=१३७, ले.स्थल. कोटानगर, लिख. मु. रामसोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, ९×३२). दुष्कृत देवु. कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु..रा., गद्य, आदि (-); अति प्रभात काल बोलीसिङ्ग, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. "चवीस तीर्थंकर नीपजह" पाठ से है.) ९३७९३ (४) २४ जिन कल्याणक देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-१० (१ से ९, ११) १० प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १३४३२-३६). २४ जिन १२० कल्याणक देववंदन विधिसहित, मु. केसर, मा.गु., प+ग., वि. १९०३, आदि (१) उभा धई खमासणा देइनें, (२)प्रण० पदजूग वीरना सासन; अंति : (१) केसर ०ग्यांनमहोदधी वाधेरे, (२) तेह पूजता सुरसूरीवीइं सिध, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है, तिथि ३ से ४ अपूर्ण तक नहीं है.) , ९३७९७ (+४) समरादित्य महाकथा अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २५०-९१ (१ से ३५, ४२ से ४७,६१,७१ से ८२,८६ से १२१,१२३) = १५९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अवरखयुक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक " लकीरें संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे. (२४४१०.५, ७-९४३८-४२). " For Private and Personal Use Only " समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. भव-३ अपूर्ण से भव-५ अपूर्ण तक है.) ९३७९९. (+) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १७८३, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ६६-१ (१) = ६५, ले. स्थल. जालणापुर, प्रले. मु. ज्ञानसागर (गुरु आ. विद्यासागरसूरि, अंचलगच्छ); राज्यकाल आ. विद्यासागरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैवे. (२५.५४११.५, ११४२५-३१). " " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ८ . १२१६, (पू.वि. व्याख्यान- १ अपूर्ण "दंसणेसमुप्पन्ने साइणापरिनिव्वुए भयवं" पाठ से है.) Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra "" www.kobatirth.org ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३८०० ज्योतिषसार, विवाहपडल व विवाहपडल भाषा, संपूर्ण, वि. १९२८ भाद्रपद शुक्ल, ११. रविवार, मध्यम, पू. ३८, कुल पे. ३, प्रले. आ. विनयचंद्र, पठ. मु. वृद्धिचंद्र (गुरु आ. विनयचंद्र ); राज्यकाल रा. तखतसिंघजी यशवंतसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीजीप्रसादात् प्र.ले. लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा (१२३३) जबलगि मेरू अडिग हे दे. (२४.५x११, १३X३४-३८). १. पे नाम ज्योतिषसार, पू. १आ-२४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति वैरं मंझार मूषकः, श्लोक-२९४. २. पे नाम. विवाहपडल, पू. २४आ- ३७अ संपूर्ण वि. १९२८ भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ८, शुक्रवार, ले. स्थल. जोधपुर. सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: वशपुरुषा भरणीचत्वारीतापसा, श्लोक-१८४. ३. पे. नाम. विवाहपडल भाषा, पृ. ३७-३८अ संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि सदगुरु वाणी समरि; अति लिखी ज्योतिस तणौ मरम, गाथा-३२. ९३८०१. (+#) योगचिंतामणि सह अर्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२४.५x१०.५, १६५३२-३६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य वि. १७वी आदि यत्र वित्रासमायांति, अंति (-), (पू.वि. अध्याय-५ पाठ , 'नीलिका केतकी कंद' तक है.) योगचिंतामणि-अर्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सूरपाली सुंठि सेर ५; अंति: (-), (वि. अर्थ क्रमबद्ध नहीं है.) ९३८०९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १६५०, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ७९-१(५२*)=७८, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. आ. कल्याणधर्मसूरि (तपागच्छ); पठ. मु. कुंवरपाल (गुरु आ. कल्याणधर्मसूरि, तपागच्छ); राज्यकाल रा. सुरतांण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: हेमीनाममाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-संशोधित. कुल ग्रं. १५४०, जैवे. (२५x१०.५, ११४३०-३६) - " 3 अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी आदि प्रणिपत्वार्हतः अति रोषोक्ता नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ९३८१० (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. हुंडी:नाममालासू०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. मूल पाठ का अंश खंड है, जैदे., (२५X११, १५X३६-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः अंति (-), (पू.वि. कांड-५, श्लोक-१७८ तक है.) ९३८१२. भुवनदीपक की वृत्ति व प्रश्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३६, कुल पे. २, जैदे., (२५x११, १३X३४-४४). १. पे नाम. भुवनदीपक की वृत्ति, पू. ११-३६अ, संपूर्ण. भुवनदीपक टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३२६, आदि सरस्वत्यासंबंध सारस्वतं; अति सिंह० प्रसादमहादविसदमनाः, २. पे. नाम. ज्योतिष प्रश्न संग्रह, पृ. ३६अ- ३६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी हुई है. ज्योतिष, पुहिं., मा.गु., सं., प+ग, आदि विलम्मचंद्रांतर भागनिघ्नं अति विज्ञेयस्तद्वर्षाकाल. ९३८१३. (१) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका - अध्याय १ पाद-२-४, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २८-८ (१ से ६,८,१५)=२०, प्र. वि. द्विपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. कुल ग्रं. १६००, जैदे. (२५X१०.५, २२५३-५७). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १९९३, आदि (-); अति (-) (प्रति अपूर्ण, पू. वि. अध्याय- १ पाद-२ से है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-), (प्रति अपूर्ण. पू. वि. अध्याय- १ पाद-२ से ४ तक है.) ९३८१४. (*२) ढोलामारवणरी चौपाई, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी ढोलु, ढोलुमार०.. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४१०.५, १४-१६४३२-४०). For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७३ ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि सकल सुरासुर सामिनी; अति: (-), (पू. वि. गाधा -७१८ अपूर्ण तक है.) ९३८१५. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टिप्पणक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : नारचंद्र., संशोधित, जैवे. (२५४१०.५, १५४३२-३८) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा अति (-) (पू.वि. श्लोक-२२० अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-). ९३८१९. (*) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८५-३८ (१ से ४९ से १०,९७ से १०३,१०६ से ११५,१२० से १२१,१२५ से १२८,१६५ से १७३) १४७, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ५-१२X३५-३९). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे; अंति: (-). (पृ. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. व्याख्यान- ९, सूत्र ५५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र- टवार्ध+कथा, सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-). पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ९३८२५. (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १७०५- १७०६, मध्यम, पृ. ६८, प्रले. मु. हस्तिसागर (गुरु ग. कमलसागर); गुपि. ग. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अंतर्वाच्यपत्र अंतरवाच्यपत्र अंतर्वाच्यसूत्र. पत्रांक- ५० पर प्रतिलेखनपुष्पक 'संवत् १७०६ वर्षे घांणोरामध्ये' व पत्रांक- ६८ पर सं० १७०५ वर्षे आसु वदि ८ दिने' उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६११. १५-१६३०-४४) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: जीयात् श्रीसंघो राजहंसवत्, (वि. दृष्टांतकधासहित.) " ९३८२८. (०) कविशिक्षा सह काव्यकल्पलता वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., ( २६ ११, १६x४८-५६). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी आदि वाचं नत्वा महानंदकर, अंति: (-), (पू. वि. स्तबक-५ के "आहारसदृशोद्वाराद्युत्युद्भवविपर्यायः पाठ तक है.) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य वि. १३वी आदि विमृश्य वाक्यं अंति: (-). ९३८२९. नारचंद्र ज्योतिष सह टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १७७२, माघ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ४२, ले. स्थल. हुरडानगर, प्रले. मु. जसरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नारचंद्रसू०टी., जैदे., (२५.५X१०.५, १७X३२-३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: रुचिरावासराः संभवति, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: यंत्रकोद्धारटिप्पनम्. ९३८३२. बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५९, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है. दे. (२५४१०.५). बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि समझवा हेतु मनराखिवा हेतु अंति तिवारें एक पूरव थाई. ९३८३३. (*) उत्तराध्ययनसूत्र की नियुक्ति का अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७०-२५ (१ से २,३०, ४१ से ४२, ४४ से ६३)=४५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०, १५x५०-६०). उत्तराध्ययनसूत्र-निर्युक्ति का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवउं उत्तराध्ययन फल बोलइ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१, गाथा-२१ का अर्थ अपूर्ण से है.) ९३८३४. कर्पूरप्रकर सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५४-६ (१,३,६४ से ६७) १४८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७X११, १३x४०). For Private and Personal Use Only कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. श्लोक-२ से १७७ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं) कर्पूरप्रकर-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३८३७. (*) लघुक्षेत्रसमास सह स्वोपज्ञ टीका का वालावबोध, संपूर्ण वि. १७९८ कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६, ले. स्थल. जगत्तारणी, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ ) गुपि, मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); मु. कमलसौभाग्य; गुभा. ग. कनकविलास (गुरु उपा. कनककुमार, खरतरगच्छ); गुपि उपा. सुमतिसुंदर (गुरु उपा. मतिकीर्ति, खरतरगच्छ); उपा. मतिकीर्ति (गुरु पं. गुणव गणि, खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनभक्तिसूरि (गुरु आ जिनसुखसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, जै., (२५X११, १७- १९६०-७० ). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: तं कुसलरंगमयं पसत्यं, अधिकार-६, गाथा-२६२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, पंन्या. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १५२९, आदि: (१) अर्हं अर्हमिति ब्रह्मपदं, (२) हुं ब्रह्मज्ञाननुं पद अंति: आचंद्राकिं लगें विस्तरउ, ग्रं. ४११७. ९३८३८, (+*) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: उपासकसुत्र, उपाससुत्र, उपासगसुत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११, ७X४२-४८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं, अति (-) (पू.वि. अध्ययन-१०, सूत्र- १ अपूर्ण तक है.) , י उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ का० कालिइ; अंति: (-). ९३८४०. जैनकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६ - ४(१ से ४) = ६२, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X११, १३X३२-३६). जैनकथा संग्रह- सम्यक्त्वादिगर्भित, प्रा. सं., पग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. "देवदुंदुभिर्निनाद मिश्रितं जयजयारव" पाठ से "गुरूदत्त मूलेनिःक्रीतो भार्याभिः सह" तक है.) ९३८४३.(+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण वि. १६४५, मध्यम, पृ. १११, ले. स्थल, नागपुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ७०००, जैदे. (२६४१०.५, १७४५८-६२). सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६२३, आदि (१) नमोस्तु सर्वकल्याण, (२)प्रणम्येत्यादि० अथैतस्य; अंति: श्रीप्रभुचंद्रकीर्त्तिः, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. ९३८४४. (*) शीलाधिकारविषये चंद चउपई, अपूर्ण, वि. १७८८, भाद्रपद कृष्ण, १ मध्यम, पृ. ८६.७ (१ से ७) ७९, ले. स्थल. आगरानगर, प्रले. पं. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री चिंतामणिपार्श्वप्रसादातुः संशोधित, जैदे (२५.५X१०.५, १४-१६X३५-४१). "" For Private and Personal Use Only चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: लाभे लील विलासा रे, खंड-६, गाथा-२५०५, ग्रं. ३०५५, (पू.वि. खंड-१, ढाल-७, दोहा - १ अपूर्ण से है.) ९३८४५ (+) कुपाक्षकौशिकसहस्रकिरण सह स्वोपज्ञ वृत्ति-विश्राम ८-९, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-१(४९*)=५२, प्र. वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०, १-५x५०-५४). प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा. पद्य वि. १६२९, आदि (-) अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा " अपूर्ण., विश्राम-९, गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) प्रवचनपरीक्षा- स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य वि. १६२९, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विश्राम - ९, गाथा-७ की वृत्ति तक लिखा है.) ९३८४९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ३४ प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६.५x१०.५, १७-१९४४४-५४) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः; अंति रोषोक्ताबु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३७५ ९३८५१ (+2) प्रश्नोत्तररत्नमाला की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६६४, ?, कार्तिक शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १३१-५९(१ से ६,१२,४०,४३ से ४५,४९ से ५५,५७ से ६१,६५,६७ से ६८,७१ से ८१,९५ से ९६,९८,१०० से १०२,१०५ से १२०)=७२, ले.स्थल. वल्लभपुर, प्रले. ग. ज्ञाननंदि (गुरु मु. हेमसोम, खरतरगच्छ); गुपि. मु. हेमसोम (गुरु मु. पद्मनिधान, खरतरगच्छ); मु. पद्मनिधान (गुरु पा. शिवसुंदर, खरतरगच्छ); पा. शिवसुंदर (गुरु ग. खेमराज, खरतरगच्छ); पठ. मु. भुजबल (गुरु ग. ज्ञाननंदि, खरतरगच्छ); राज्यकाल आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पार्हित् प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १७७५१). प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वत्ति, आ. देवेंद्रसरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदिः (-); अंति: भवतादभिमतफलाप्तिकृते, ग्रं.७३२६, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ९३८५३. (#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख, मध्यम, पृ. ५३-७(२ से ३,७,१४ से १५,४३,५०)=४६, ले.स्थल. केलवानगर, प्रले. मु. खांतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग खंडित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं., वि. अंतिम वाक्य खंडित है.) ९३८५६. (#) भगवतीसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १३९-१(१)=१३८, प्र.वि. पत्रांक अस्तव्यस्त, खंडित होने से गिनकर लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४४०-५५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठ हैं.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ९३८६१. (+) ताजिकसार सह कारिकाटीका, संपूर्ण, वि. १७५१, श्रावण शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. हुंडी:ताजिकसार स०टी०. प्रतिलेखक नाम मिट गया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११,८-१४४३६-४४). ___ ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., पद्य, श. ११०५, आदि: श्रीरामस्य पदारविंद; अंति: (-), द्वार-४४, (वि. अन्त में मूलपाठ प्रतिक रूप से मिलता है.) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: रचिता तनुताच्चिरम्. ९३८६३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६-३६(१ से ३६)=१०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६-१२४३७-४४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ "रायसहिए" पाठांश से "मेहकुमारस्स अम्मापिऊहि" तक है.) ९३८६५ (+) लीलावती का भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १७५६, भाद्रपद शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. गागुर्गाडा, प्रले. पं. दयासिंह (गुरु मु. सुखवर्धन, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. सुखवर्धन (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री क्षेमकीर्तिशाखायां., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४९-५२). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०८. ९३८६९. (+#) अध्यात्म गीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, प्र.वि. हुंडी:अध्यात्मगीता बालावबोध., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १२५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११-१२४३३-४५). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: देवचंद्रे० सुप्रतीता, गाथा-४९. अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: संवेगी सिरदार सिरोमण; अंति: तस घर लछि लीला करै, ग्रं. १२५०. ९३८७१. (+) सोमसय्या रास, संपूर्ण, वि. १९६८, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६८, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. खीमचंद पोपटलाल गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सोमशय्या रास., संशोधित., दे., (२६४११, १४४३८-४५). For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सोमशय्या रास, मु. कृष्ण, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरस्वती मातजी विघन; अंति: सवाया भवि सुणाया सुरतरु, ढाल-५२. ९३८७४. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-१४(१ से ५,२५,३० से ३५,४० से ४१)=२८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नाममालासूत्र., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, १५४४२-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-७८ अपूर्ण से कांड-६ श्लोक-९७ अपूर्ण तक है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अवचरि*, आ. साधरत्नसरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंतिः (-). ९३८७६. (+) द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७२०, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. साहजिनाबाद, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ७-११४१५-४०). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मणिणा भणिज्जं, अधिकार-३, गाथा-२२. द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, पुहि., गद्य, आदि: एकजीव द्रव्य अनर्हवी; अंति: भाव प्रकास्यो छेइ. ९३८७७. (+) समकित दीपक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४२-२(४ से ५)=४०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १२-१३४४२-४६). समकित दीपक, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणंदह नमवि पय गोअम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अधिकार-५ गाथा-९८६ अपूर्ण तक है.) ९३८७८.(+) आवश्यकसूत्र नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, १८४४८-६१). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीव जोणी विआण; अंति: (-), (पू.वि. वंदनक नियुक्ति गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ९३८७९ दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११०-६५(१ से ४२,८७ से १०९)=४५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ९४३४-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-१६ से अध्ययन-६ गाथा-६२ तक है.) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३८८० (+) कविशिक्षा की काव्यकल्पलता वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५६-१(१)=५५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १७४५५-६५). कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सरोजांतर्गगनं भ्रमरायते, ग्रं. ३३५७, (पू.वि. "पथ्यावक्त्रेणाभ्यासः क्रियते" पाठ से है.) ९३८८१ (4) मानतुंगमानवती चरित्र, अपूर्ण, वि. १८१५, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. माणिक्यविजय शिष्य; अन्य. क. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२-४४). १.पे. नाम. मानतूंगमानवती चरित्र-मृषावादे, पृ. २अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१६, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बारमासी दहा, पृ. ३४आ, संपूर्ण. औपदेशिक बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: चले परदेश कामन विछुडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पू. २६आ, संपूर्ण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३७७ ९३८८३. (#) चित्रसंभूति चौपाई व सामान्यजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७६४, फाल्गुन शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. २६-५(१० से १२,१७ से १८) =२१, कुल पे. २, ले. स्थल धीणोज, प्रले. ग. प्रमोदविजय (गुरु मु. विवेकविजय): गुपि. मु. विवेकविजय (गुरु मु. चतुरविजय): मु. चतुरविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १६४३८-४४). १. पे. नाम. चित्रसंभूति चौपाई, पृ. १अ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७३१, आदि प्रथम नमुं परमेसरु, अंति दीई दोलति दीदार रे, डाल- ३९, गाथा-७४५, , ग्रं. ११००, (पू.वि. ढाल-१४, गाथा- १४ अपूर्ण से ढाल -२०, गाथा- ३ अपूर्ण तक व ढाल-२६, गाथा-६ अपूर्ण से डाल- ३०, गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन पद, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: निरखत हे भवि मोर सिं; अंति: सम नहि को रस ओर, गाथा-४. ९३८८४. (*) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०४ माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३०-२(१३ से १४ ) = २८ ले स्थल. सधाणानगर, प्रले. मु. देवज्ञसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : भुवनदीपटवो. श्री पार्श्वनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६. ५४११.५, ४-५X३५-३७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १७०, 1 (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-६८ अपूर्ण से ८३ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टवार्थ मा.गु, गद्य, आदि सरस्वति सबंधियो मह; अति (-) (पृ. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, लोक-४३ अपूर्ण से ४९ तक तथा ५९ से टबार्थ नहीं लिखा है.) ९३८८६. (+) राजप्रश्रीयसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, जीर्ण, पू. १००, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४११ ७४४४-५०) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र - १७५, ग्रं. २१००. राजप्रश्नीयसूत्र- टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ, ग्रं. ५५००. ९३८८८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : उत्तराध्य., संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १३X३५-४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३५, गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ९३८९१ (+) कथारत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १६४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित कुल ग्रं. ७४००, जैदे., (२६.५X११, १३X३३-४१). कथारत्नाकर, ग. हेमविजय, सं., गद्य, आदि: जयति रजनिरत्न स्थानर; अंति: र्वसंख्यात्र वाङ्मये, ग्रं. ७४००. ९३८९३ (२) लीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६७ फाल्गुन शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४०, ले. स्थल. सावडी, प्रले. पनजी राज्यकालरा. संग्राम समर सिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : लीलावती चौपाई., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x११, १६-१७४३२-३५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: मानसागरे०दोलति पाईजी, ढाल -५२, गाथा- ११६२, ग्रं. १६२४. ९३८९५ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: दशवैक०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ६x४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १०, गाथा १९ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ध० धर्म म० मंगलिक, अंति: (-) (वि. आदिवाक्य का भाग खंडित है.) ९३८९९ (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ की अवचूर्णि अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७७-६७(१ से ६७ ) = १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १९५८-६२). " For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शिष्यजनेभ्यः परिकथयंतु, (पू.वि. गाथा-४० की अवचूरि अपूर्ण से है., वि. मूल का प्रतिकपाठ लिखा है.) ९३९०१. (+) प्रत्येकबुद्ध चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३८-२(१ से २)=३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रत्तेक०च०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२८x१०.५,१५४५५-५७). प्रत्येकबद्धचरित्र, म. आनंदविजय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रकाश-२ श्लोक-५४ अपूर्ण से प्रकाश-३ श्लोक-५९४ अपूर्ण तक है.) ९३९०२. बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८, गृही. श्राव. सहस्रकिरण वच्छा शाह (पिता श्राव. वच्छा शाह); अन्य. श्राव. वर्द्धमान शांतिदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१०, १३४५८-६०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: संन्नी गइरागई वेए, गाथा-२७६. ९३९०३ (+) शीलोपदेशमाला व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१०.५, ८४५८-६४). १.पे. नाम. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ+कथा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शीलोपदेशमाल. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबलबंभयारि नेमिकुमारं; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-टबार्थ+कथा, मा.ग., गद्य, आदि: बालपणा लगइ ब्रह्मचार; अंति: भवांतरि बोधिरूपी फल फलइ. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५आ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:नवतत्वपत्र. वा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: (-). ९३९०४. (#) पुष्पमाला प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४१०.५, ६-१४४२६-३४). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धं कम्ममविग्गह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९६ तक है.) पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध त्रैलोक्य नाहि जाणी: अंति: (-). ९३९०५ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-६(१ से ६)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संग्रहनि सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१०, ७-१०४३८-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०७ अपूर्ण से २७८ अपूर्ण तक बहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३९०७. (+) सांबप्रजूनकुमार चोपई व कोकशास्त्रसार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३-१७४३८-४२). १.पे. नाम. सांबप्रजनकुमार चोपई, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण, वि. १६९७, ?, चैत्र कृष्ण, ४, पे.वि. प्रतिलेखन संवत् मिटाया गया सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: समयसुंदर० सुजगीस ए, खंड-२, गाथा-५३५, ग्रं. ८००, (वि. ढाल २२) २. पे. नाम, कोकशास्त्रसार, पृ. २३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: ललित सुमन धन अलिपनि; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, गाथा-१३ तक है.) ९३९०९. कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(२)-९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०, १२४४२-४८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. २४ तीर्थंकर के ५ कल्याणक पश्चानुपूर्वि का विवेचन अपूर्ण तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३७९ ९३९१० (+) कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह बालावबोघ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१(२)=१०, पठ. मु. भगवान (गुरु मु. प्रतापसी); गुपि. मु. प्रतापसी (गुरु उपा. करमचंद); उपा. करमचंद (गुरु उपा. गांगजी गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३६-४२). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति:: (१)उवदंसे त्तिवेमि, (२)सर्वत्र सुखी भवतु लोका, (पू.वि. सामाचारी-४ अपूर्ण से सामाचारी-७ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अल्त भगवंत उतपन्न दिव्य, (२)तिणें काल तिणै समै श्रमण; अंति: (-). ९३९११ (+) मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७१७, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. लावण्यविजय (गुरु मु. लब्धिविजय); गुपि.मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,१३४४३-५२). मृगावती चौपाई, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: आदिनाथ प्रणमुं मुदा; अंति: चंद्रकीरतइ० भणत सुणत उछाह, ढाल-१६. ९३९१२. (+) परमहंससंबोध चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. हुंडी:परमह चरित्रं., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १५४५४-६०). परमहंससंबोध चरित्र, उपा. नयरंग वाचक, सं., प+ग., वि. १६२४, आदि: चिदानंदमयं सार्वं; अंति: नयरंगे० चंद्रदिवाकरौ, प्रस्ताव-८, श्लोक-८९०. ९३९१५. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ६४३७-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादि पांच पदनइ नमीनइ; अंति: (-). ९३९१७. (#) सिद्धहेमशब्दानशासन की षट्पादावचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-३(१ से २,५*)=२०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४६६-७४). सिद्धहेमशब्दानुशासन-षट्पादावचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: व इदुतोः पुरु जस्येदोत्, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्याय-१, पाद-१, सूत्र-३४ की अवचूरि अपूर्ण से है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ९३९१८. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:गोयमपूछा., जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१४४४०-४२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: लावनससय० ___ जिन वचनइ वस्यु, गाथा-११४. ९३९२०. अडसठ आगमपूजा अष्टप्रकारी, संपूर्ण, वि. १९०१, चैत्र कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बालासमोडा, प्रले. पं. हेतविजय; राज्ये आ. विजयलक्ष्मीसूरि; अन्य. गोविंद गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजित प्रसादात्., दे., (२५.५४१०, १५४५१-५५). ६८ आगम पूजा, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: (१)प्रथम विशाल जिन भुवन, (२)प्रवचन परमेस्वर; अंति: रे० सुलभ बाधी काजे. ९३९२१ (4) एकलगिडवाराहरी वार्ता, संपूर्ण, वि. १८०३, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३४३४-४०). दाढाला कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीप भरतखंडै अढारै; अंति: वतडी मंगण चीता रेह. ९३९२२. (+#) विचारसार षट्त्रिंशिका विज्ञप्ति व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, पठ. मु. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,७४२८-३५). १. पे. नाम. विचारसार षट्त्रिंशिका विज्ञप्ति, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४५. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुगति तिमिर हंसं मोक्ष; अंति: सफर जालं ज्ञानमाराधयत्वं, श्लोक-१. ९३९२३ (+) स्यादिशब्दसमुच्चय सह स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ११-१४४३५-३८). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) स्यादिशब्दसमच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीशारदामित्यादि इत्यादौ; अंति: (-). ९३९२९ (+) मेघदूत सह शिष्यहितैषिणी टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:मेघ.वृत्ति., संशोधित. कुल ग्रं. ११००, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६४११,१७-१८४४४-४६). मेघदूत, कालिदास, सं., पद्य, आदि: कश्चित्कांताविरहगुरु; अंति: सुखं प्रापयामास शश्वत्, श्लोक-११५, ग्रं. ३५०. मेघदूत-शिष्यहितैषिणी टीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, वि. १५१४, आदि: श्रीमद्वीरं धराधीर; अंति: (१)रूपं यस्य सकामरूपी, (२)वृत्तिर्येन हर्षप्रहर्षतः. ९३९३४. (+) अजितशांति स्तव आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६५६, ऋतुमरुतदर्शनसोम, भाद्रपद शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. ८, प्र.वि. प्रतिलेखक हेतु लिखतेयं महर्षिणा ऐसा उल्लेख मिलता है., संशोधित., जैदे., (२६४११, १६-२६५५०-८२). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन सह टीका, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभिक भाग गोविंदाचार्य की टीका व अंत भाग गाथा-३७ से जिनप्रभसूरि की टीका मिलती है. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजि अजिअसव्वभयं संत; अंति: पव्वपन्ना बिनासंति, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्याजितशांती; अंति: दशलक्षण नंदिमोद समृद्धि, (वि. अंत में रचना प्रशस्ति नही है.) अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: अजितं अजितनामानं द्वितीय; अंति: श्रीजिनप्रभसूरीणां. २. पे. नाम. अजितशांति स्तव-लघ सह टीका, प. ८अ-१३आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: दरियमखिलंपि थुणंतह, गाथा-१७. अजितशांति स्तव-लघु की टीका, मु. धर्मतिलक, सं., गद्य, आदि: अजितशांतिजिनौ भुवनत; अंति:च सविंशतिस्त्रिशती, ग्रं. ३२०. ३. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र सह अभिप्रायचंद्रिका टीका, पृ. १३आ-१८अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: सयल सुअणच्चि अच्चलणो, गाथा-२१. नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: श्रीपार्श्वस्वामिनं; अंति: मुनीनां प्रभुः, ग्रं. ३००. ४. पे. नाम. गणधरदेव स्तुति सह वृत्ति, पृ. १८अ-२०अ, संपूर्ण. गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जयइ तित्थं जमित्त; अंति: निट्ठियट्ठो सुही होइ, गाथा-२६. गणधरदेव स्तुति-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: तत्तीर्थं जयतु सर्वो; अंति: फलत्वात् प्रयासस्येति. ५.पे. नाम. गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय सह वृत्ति, पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३८१ गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयरहियं गुणगणरयणसायर; अंति: जिनदत्त० पणयमुणितिलओ, गाथा-२१. गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: देवाधिदेवं प्रणिपत्यं वीर; अंति: कवेनमिति सूचितमस्ति ज्ञेय. ६. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र सह वृत्ति, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिग्घमवहरउ विग्घं; अंति: नमामि साहम्मिआ तेवि, गाथा-१४. पार्श्वजिन स्तोत्र-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: अपनयतु स्फेटयतु कं विघ्न; अंति: इत्यादि रूपान् क्व वादे. ७. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र सह कल्पलतावृत्ति, पृ. २२आ-२५आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-कल्पलतावृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: प्रतिबोधं विदधानो सव वराह; अंति: व्याख्याता मुनीनां प्रभुः. ८. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र सह टीका, पृ. २५आ-२७आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: अभय० विन्नवइ अणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदायः; अंति: त्रिलोक लोक श्लाघित, ग्रं. २५०. ९३९३६. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३०-१(१)=२९, प्रले. मु. शिवनिधान (गुरु मु. हर्षसार, खरतरगच्छ); गुपि. मु. हर्षसार (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरस्वामी जन्म प्रसंग अपूर्ण से है व स्थविरावली में खरतरगच्छ के कुछ आचार्यो के नाम तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९३९३७. (+) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. हुंडी:प्रदेसी., संशोधित., दे., (२५.५४११, १६x४८). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सेवक पुरषने तेडनइ चित कहे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जन्ममरण दुख निवारी" पाठ तक है., वि. ढाल संख्या आगे-पीछे लिखा है, पत्र चिपके होने से अंतिमवाक्य पढा नहीं जा सकता है.) ९३९४२. जातककल्प वल्ली , अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-११(१ से ११)=२५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०.५, १२४४२-४५). जातककल्पवल्ली, जै.क. आशाधर भट्ट, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-३ अपूर्ण से अध्याय-८ अपूर्ण तक है.) ९३९४७. (+#) शील रास व नवकारमंत्र जकडी, संपूर्ण, वि. १६८९, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. पुण्यकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १५४४८-५२). १. पे. नाम, शील रास, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: विनवइ एम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-६७. २. पे. नाम. नवकारमंत्र जकडी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र जकडी, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुहगुरु सुपसाउ लइ हरष; अंति: नयरंग० नवकार मन ध्याईयइ, गाथा-४. ९३९४८. पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०, ४-५४२६-३४). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिकमिउं; अंति: (-), (पू.वि. "अक्खोअईयार चिरत्ता" पाठ तक पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हुं वांछु छु पडिकमवा अधिक; अंति: (-). ९३९४९ (+) चाणक्यलघुराजनीति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्रले. ग. शांतिविजय पंडित (गुरु मु. जयविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टबार्थकर्ता द्वारा लिखित प्रत., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, ५४४०-४३). चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शंकरं देवं; अंति: समाचारा यथा बदरी कंटकाः, अध्याय-८. चाणक्यलघुराजनीति-टबार्थ, ग. शांतिविजय पंडित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य कहता मन वचन कायाइ; अंति: ___ऊपना पिण पाधरो एक वांको, (वि. १७३९) ९३९५० (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी व कमलविजय गुरुस्तुति, संपूर्ण, वि. १६२५, श्रावण कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. राजविजय (गुरु मु. हर्षराज, पूर्णिमागच्छ); गुपि. मु. हर्षराज (गुरु आ. विद्याचंद्र, पूर्णिमागच्छ); आ. विद्याचंद्र (पूर्णिमागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (१३३७) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२५.५४१०, १४४४२-४६). १. पे. नाम. अनेकार्थध्वनिमंजरी, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शब्दांभोधिर्यतोनंत; अंति: काम्ये समरो युद्धसंघयो, अधिकार-३, श्लोक-१७९. २. पे. नाम. कमलविजय गुरुस्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति लिखावट से बाद की लिखी गई प्रतीत होती है. कमलविजय गुरुस्तुति-हरिशब्दपर्यायगर्भित, मु. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवर नगरायेत नियतं; अंति: शुभलक्षण सौरभलक्ष्म हरिं, गाथा-१८. ९३९५२ (+#) बार भावना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३८-४०). १२ भावना, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक है.) ९३९५५ (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पाटोदी, पठ. पं. क्षेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., संशोधित., जैदे., (२५४११, ११-१२४३०-३६). वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९३९५६. स्वप्नफल वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १८४५२-५४). स्वप्नफल वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमस्कृत्यजिनाधीशं वीरं, (२)धरमरत हुवइ जियरी साथे धात; अंति: (-), (पू.वि. "दांत नख आंत्र जिको सुपिनमांहि खावइ" पाठ तक है.) ९३९५७. (+#) वाग्भटालंकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:अलंकारसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२-४६). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. ९३९५९ (+) वीरद्वात्रिंशिका व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.८, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १४४३६-४२). १. पे. नाम. वीरद्वात्रिंशिका, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसाम्यात्; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., पद्य, आदि: जयानंदलक्ष्मीलसद्वल्लीकंद; अंति: जोपासनां देव देया, श्लोक-११. ३. पे. नाम. चतुर्विंसतिजिन स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३८३ चतर्विंशतिजिन स्तवन-यमकांकित, आ. जिनेश्वरसरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंति: स्तवमिदं ददतां वरशिद्धिदा, श्लोक-२८. ४. पे. नाम. विश्वासारोद्धारे रुद्रयामलतंत्रे बटुकभैरव स्तोत्र, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण. बटुकभैरवकवच स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीआपदुद्धारण; अंति: देवीसुतं बटुकनाथमहं नमामि, गाथा-७९. ५. पे. नाम. सारदा स्तोत्र, प.७अ-८अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसौख्यमनंतधनागमं; अंति: प्रतिदिनं हृदये कमलापति, श्लोक-१५. ९३९६५. (+) गोडीप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३४-४०). पार्श्वजिन स्तवन-गवडीग्राममंडन, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सरसति समरं स्वामिनी नाम; अंति: इणपरि रतनविमल गुण गावए, ढाल-८, गाथा-१७०. ९३९६७.(+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदनावृद्ध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७-१९४५०-७०). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमउ; अंति: समयसुंदर० प्रसादो रे, ढाल-१८, गाथा-५१९, ग्रं. ७५०. ९३९६८. (+#) ६२ मार्गणा यंत्र का विवरण, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४-५०). ६२ मार्गणा यंत्र-विवरण, म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति गुणठाणा ४ मिथ्या; अंति: यौ ज्ञानना नय मार्ग, (वि. कर्ता का उल्लेख नहीं है.) ९३९७१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, जयतिहुअण स्तोत्र व सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३०-४०). १. पे. नाम, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)णमो अरिहंताणं णमो, (२)जयउ सामी जयउ सामी; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. ११आ-१३आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहअणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव० ___ आणंदिअ, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. गणधर स्तुति गाथा-१७ अपूर्ण तक ९३९७२ (+#) पार्श्वजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १६-१८४४२-४५). पार्श्वजिन स्तव-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: नमिअ सिरिपासजिण सुजण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ तक है.) पार्श्वजिन स्तव-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)गुणस्थानक बंधादि, (२)ए गाथानो अर्थ सोहिलउ; अंति: (-). ९३९७३. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. १६, अन्य. मु. नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ४५१, दे., (२५४१०.५, १२४३४-४०). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: संघः प्रवर्त्तताम्. ९३९७६. (+) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-२(१ से २)=१२, कुल पे. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४७). १. पे. नाम. पुण्यवंतानां वात्सल्यकरणे विष्णुकुमार कथानक, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विष्णुकुमार कथानक, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जीवानां स्थिरीकरणं जातम्, (पू.वि. प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रभावनायां वज्रकुमारमुनि कथानक, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. वज्रकुमारसाधु कथानक-प्रभावनागर्भित, सं., प+ग., आदि: प्रभावनां यः प्रकरोति; अंति: कृत्वा अंतकृत् केवली बभूव. ३. पे. नाम, निशंकितायां अंजनचौर कथानक, प. ६आ-८अ, संपूर्ण. अंजनचौर कथानक-निशंकितागर्भित, सं., प+ग., आदि: सम्यक्त्वगुणयुक्तानामति; अंति: तृतीयभवे मोक्षं गमिष्यति. ४. पे. नाम. मनसि आकांक्षा न कृत तस्योपरि अनंतमती कथा, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण.. अनंतमति कथा-आकांक्षात्यागगर्भित, सं., प+ग., आदि: निष्कंखितायामुपरि; अंति: प्राप्य मुक्तिर्यास्यति. ५. पे. नाम. विचित्सासाधदगंछोपरि उदायन कथा, पृ. १०आ, संपूर्ण. उदायनराजा कथा-क्षमापना विषये, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् दगंछा तां; अंति: मोक्षं गतः केवलमुत्पाद्य. ६. पे. नाम. असूतायां रेवती कथानक, पृ. १०आ-१३अ, संपूर्ण. रेवतीसती कथानक-असूतायां, सं., प+ग., आदि: असूढता च कर्तव्या शुद्ध; अंति: प्राप्य मुक्तिं यास्यति. ७. पे. नाम. जिनशासने उपबहिणायां श्रेष्ठीजिनवल्लभ कथा, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. जिनवल्लभश्रेष्ठि कथा, सं., प+ग., आदि: संघमध्ये सदा सद्भि प्रकाश; अंति: अंतकृत् केवली जातः. ८.पे. नाम. धर्मस्थापने श्रेणिकनप कथा, पृ. १३आ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रेणिकनप चेल्लणारानी कथा-धर्मस्थापने, सं., प+ग., आदि: राजगृहे नगरे राजा; अंति: (-), (पू.वि. श्रेणिक द्वारा साधु ___ के गले में सर्प लपेटकर चेल्लणा को विदित करने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९३९७८. (+#) थावच्चापुत्रसाधु संबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७(१ से ५,१२ से १३)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६-४६). थावच्चापुत्र चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-८ की गाथा-९ अपूर्ण से खंड-२, ढाल-९ की गाथा-७ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९३९८१ (#) वृंदावनादि काव्य संग्रह सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-३(१,४ से ५)=१२, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १७४५२-५८). १. पे. नाम. वृंदावन काव्य की वृत्ति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. वृंदावन काव्य-वृत्ति, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तेन निर्वांतु देहिनः, (पू.वि. श्लोक-४ की वृत्ति अपूर्ण से २४ की वृत्ति अपूर्ण तक व श्लोक-४६ की वृत्ति अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. घटकर्पर काव्य की टीका, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.. घटखर्पर काव्य-टीका, सं., गद्य, आदि: निचितमिति क्रियापदं निचित; अंति: अनेकैः कृत्वा यमकैः. ३. पे. नाम, मेघाभ्युदय काव्य की वृत्ति, पृ. ८आ-१२अ, संपूर्ण. मेघाभ्यदयकाव्य-लघवत्तिः, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: काचिद्वनिता मेघागमसमये; अंति: त्वया न गंतव्यमित्यर्थः. ४. पे. नाम, चंद्रदूत काव्य की वृत्ति, पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण. चंद्रदूत काव्य-वृत्ति, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)तत्र जंबूनामा कविश्चंद्र, (२)हे लोकाः स्मरत ध्यायत; अंति: (१)कथमिति० शेषं पूर्वोक्तं, (२)बोधाय शोधनीयाः सुपंडितैः. ५. पे. नाम. शिवभद्र काव्य की वृत्ति, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शिवभद्र काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: सांप्रतं शिवभद्रकाव्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ की वृत्ति अपूर्ण तक है.) ९३९८२. (+) नवतत्त्व चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४३०-३४). नवतत्त्व चौपाई, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. नवमतत्व गाथा-१० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३८५ ९३९८३. (+#) हरीदतराजारी चोपई, संपूर्ण, वि. १७७३, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २६+१(२५)=२७, ले.स्थल. सांमुजानगर, प्रले. ग. महिमासागर (गुरु मु. यत्नसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. यत्नसागर (गुरु मु. सुमतिसागर, तपागच्छ); मु. आणंदसागर (गुरु ग. समयसागर, तपागच्छ); अन्य. मु. हेमराज; पं. केसरसागर; मु. वृद्धिसागर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा , जैदे., (२५४११, १७-१९४४२-५६). हरिदत्तराजा चौपाई, ग. महिमासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीआदिसर आदि अधिक; अंति: संभलै रे महिमासागर आणंद, ढाल-६८, गाथा-१११५. ९३९८४ (+#) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-११४३२-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति निश्चये अहमपि तं; अंति: लक्षितो विक्रमी परमेश्वरो. ९३९८६. (+) सिंहासनबत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १३-१४४३०-४०). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराहीय श्रीहरखी प्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०८ अपूर्ण तक है.) ९३९८७.(+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१३(१ से १०,१५ से १७)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५,१५४३६-५०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से दुर्लभधर्म विवरण अपूर्ण तक नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३९८८ (१) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ४,८,१०)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०). ___ कालिकाचार्य कथा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश है.) ९३९८९ (4) दशवैकालिकसूत्र व पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, २१-२५४८५-९५). १.पे. नाम. दसवेयालियसुयक्खंधो, पृ. २अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, (पू.वि. अध्ययन-४ 'जालं वा अलायं वा' पाठ से है.) २.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. 'भावओणं सुसावार' पाठ तक है.) ९३९९१. (#) श्रेणिकचेलणा चोपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:सेणक, सेणकचेल., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, २०४४४-४८). चेलणासती चौपाई, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, दोहा-२ अपूर्ण से ढाल-९, गाथा-३८ अपूर्ण तक है., वि. अंतिम ढाल में प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) ९३९९२. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-१५(१ से १३,१९ से २०)=६, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:माहावीर स्तवनपत्र., दे., (२५.५४११,१२४३२-३६). १.पे. नाम. मरुदेवीमातानो चोढालीओ, पृ. १४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९०१, कार्तिक शुक्ल, १०, ले.स्थल. भावपुर. For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मरुदेवीमाता चौढालियो, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दुकृत सगला टालजो, (पू.वि. ढाल-४, गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १४अ-१८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मांडवीबंदर. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: कहे धन ए मुज गुरु, ढाल-१०, गाथा-१००. ३. पे. नाम. गौतमगणधर स्तुति, पृ. १८आ, संपूर्ण.. __ सं., पद्य, आदिः यःस्याभिधाने मुनयोपि सर्व; अंति: स गौतमो यच्छतु वांतमेव, श्लोक-१. ४. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २१अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ९३९९५ (+) ऋषिमंडल प्रकरण व चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४५०-६०). १.पे. नाम. ऋषिमंडल प्रकरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १६६१, श्रावण कृष्ण, ११, शनिवार. आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिभर नमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं, गाथा-२२०, ग्रं. २५९. २. पे. नाम, चउसर प्रकरण, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. ९३९९६. (+#) आरामनंदन कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-५(५ से ९)=११, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०,१२-१७४४८-५४). आरामनंदन कथा, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परमजगतगुरु प्रणमीयई सोहग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-६ अपूर्ण तक व ढाल-२८ गाथा-५ अपूर्ण से नहीं है.) ९३९९७. (+) उत्तराध्ययन गीतानि, अपूर्ण, वि. १६१२, अक्षिक्षमाषडिला, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १२-१(९)=११, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्रले. ग. पद्ममंदिर (गुरु पं. विजयराज, खरतरगच्छ); गुपि.पं. विजयराज (गुरु उपा. देवतिलक, खरतरगच्छ); पठ. श्राव. कउडां; राज्यकालरा. मालदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४४०-५०). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति अति निरमली; अंति: विजय लहियइ __ जयजयकार, गीत-९, (पू.वि. अध्ययन-२४, गाथा-७ अपूर्ण से अध्ययन-२८, गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) ९३९९८ (+) नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५०-५३). नाममाला, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रधान पुरुष वर्णन __ अपूर्ण से है व सभा वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ९३९९९ (+) रत्नसंचय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-११(१,४ से ७,११ से १६)=९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ३४३४). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३, अपूर्ण से ९७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४००० (+#) वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ९४३०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से ९५ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. बालावबोध शैली में लिखा है.) ९४००४. बादलपदमणी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-७(१ से ७)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१०.५, ९-१३४३४-३६). बादलपदमणी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से ५२१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३८७ ९४००५ (+#) सालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. हुंडी:सालिभ०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४३६-४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०. ९४००६ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३७-४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२०१ अपूर्ण तक ९४०१४ (+#) ज्योतिषसार सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८०३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १८, प्रले. मु. मोटा ऋषि; पठ. श्राव. हरनाथ मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारंचंद्र पत्र. अंत में यात्रा व नक्षत्र विषयक शलोक दिया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०-१२४२४-३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: जन्मस्थ विवर्जन राशिवत्, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वती प्रसादेन; अंति: आरोहण मुहर्तम्. ९४०२२. (#) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ११४३२). वरदत्तगणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२७ अपूर्ण तक है.) ९४०२५ (+) अढीद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १८६२, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. वीलाडा, पठ. पं. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३८-५१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-अढीद्वीपक्षेत्र संक्षेपविचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप आदिदेई; अंति: जन्म नही एतला बोल नही. ९४०२६ (+) समकितपंचवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. कल्याणपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ५-११४३३-३६). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५, (वि. १८८२, श्रावण शुक्ल, १, शनिवार, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह कहतां जे उपशमादिक; अंति: सम्यक्तनी प्राप्तिः, (वि. १८८२, श्रावण शुक्ल, २, ले.स्थल. विसालानगर, प्रले. मु. मोतीविजय; गुपि. मु. मोहनविजय (तपागच्छ)) ९४०२९ (+) पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १५४३९). पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ से ढाल-२५ की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९४०३०. (+#) चंदराजा चौपई, अपूर्ण, वि. १७७०, मध्यम, पृ. ४८-२८(१ से २७,३६)=२०, प्रले. मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५८). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: लब्धिरुचि० सफल फली सवी आस, खंड-६, __गाथा-२५०५, (पू.वि. खंड-४, ढाल-५ की गाथा-३३ अपूर्ण तक व बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. ढाल १०३) ९४०३१. जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-८(१ से ८)=२२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४४३). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति भव्यजीवन हितनइ अर्थइ. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ९अ- ३०आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवार जीवा २पुण्णं ३पावा अति: बोहिक्क १४ णिक्काय, गाथा- ६०. नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि भव्य प्राणीइ समकित शुद्धि: अंतिः एह रूपी जीव मिश्र कहीयइ. ९४०३२. भवभावना प्रकरण की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैये. (२६४११, १७-१९४४५-६०) भवभावना अवचूरि, सं., गद्य, आदि द्वाभ्यां गाथाभ्यां अंति (-), (पू.वि. गाधा-३२८ की अवचूरि अपूर्ण तक है.) ९४०३५. (*) अगडदत्तमुनि चौपई, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पू. १५, ले. स्थल, सिरोहीनगर, प्रले. मु. रंज्यतविजय (गुरु पं. तीर्थविजय गणि); गुपि. पं. तीर्थविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३X३८-४२). अगडदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: नाभिमहीपति सिरितिलओ; अंति: ललितकीरति० संपद थाय, ढाल १७, गाथा - ३९६. ९४०३६. (*) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८-३०(१ से २८, ४१, ४७) = २८, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी:सू.ट., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ६X३३-३५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. श्रुतस्कंध १, अध्ययन ४ की गाथा २० अपूर्ण से अध्ययन-१४ की गाथा-४ अपूर्ण तक है व बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४०३७. (+) उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-४२ (१ से ४२ ) = १५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, १४-१५४४१-५६). "" उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू. वि. गाथा १०१ से १०५ तक है.) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४०३९. (०) पार्श्वजिन कवित्त आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २२, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१०.५, १५X३६-४१). १. पे नाम. पार्श्वजिन कवित्त, पृ. १अ संपूर्ण. क. दयाल, पुहिं, पद्य, आदि काहु को भरोसी भारी गंगधार अति दयाल० आभवान कहिवै के, गाथा- ४. " २. पे. नाम. कलियुग गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रघुनाथ, पुर्हि, पच, आदि आज कलूपूर आयी पापी लोक; अंतिः रुघनाथ नमो इसडो व्यापारा, गाथा-४, " ३. पे नाम. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: हे मतहीणी मछली धीवर मित्त; अंति: सहित दक्षिण ते उत्तर धरु, (वि. कमाल, गिरधारीलाल आदि के पदों का संकलन किया है.) ४. पे. नाम. पार्श्वनाथश्रृंखलाबंद स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, उपा. जयसोम, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि लसत्पंकजामोदनिश्वास अति मुनिना रंगकुज्जैनराज, श्लोक- ५. ५. पे नाम. पार्श्वदेव स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तव, उपा. जयसोम, सं., पद्य, वि. १७वी आदि भविकभावुकसंगमकारकं अंति: पार्श्वकल्पद्रुमम्, श्लोक ५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा जिन; अंति: पार्श्वजिनं शिवं, श्लोक - ७. ७. पे नाम. साधारणजिनभक्ति पद, पू. ३आ, संपूर्ण साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि हाली नाली वाल दीपसू आर अंति करी भांड भागी भरु आड आड, गाथा - २. ८. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पू. ३-४अ संपूर्ण. Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ - मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल गुरु देख के अति लालचंद० सरण मुझ देज्यो, गाथा ३. ९. पे नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ४अ संपूर्ण सं., पद्म, आदि आव्याद्धो नाभिजातजितसुमति: अंति: जलरुचिनंदन पार्श्वदेवः, गाथा- १. " १०. पे नाम पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धरम महारथ सारथसारं सरिस, अंति: जय० नंदित जूयमखंडम्, श्लोक - ५. ११. पे नाम औपदेशिक पद. पू. ४-४आ, संपूर्ण कमंच, पुहि., पद्य, आदि: गाडर गलैगयंद सिंघ परस्वाल अतिः नर फूल्यो कमल पाखान पर, गाथा-२. १२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: कब हुं संग कामनी केल करै; अंति: मन तो मृग जेसी फलि भरै, गाथा-१. १३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पं. केशवदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुवैन गंत वजावत अंग विना; अंति: तिहांइ ते कुल छन कवत, गाथा-१. १४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि लछी कहे सुणि कृपण नर झूठ; अंतिः जाय तु बहु तेरै संघ मिलु, गाथा- १. १५. पे. नाम. स्त्रिचरित्र पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीचरित्र पद, क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: डर उंदरकै डरै सापनै पगतल; अंति: गद्द० चरित्र एताकरै, गाथा-१. १६. पे. नाम. राठोडकुल वर्णन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अभयपूरा १ जेवंत २ सूर ३; अंति: तेरे साख राठोड हर. १७. पे. नाम. ३६ राजकुल नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यवंशी १ सोमवंशी २; अंति: डोडिआ ३५ चहुआण ३६. १८. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ५आ- ६आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कागचेष्टा बको ध्यानी; अंति: चित्ते बुद्धयः संभवति, गाथा - २०. १९. पे. नाम २१ न्याय नाम, पू. ६आ, संपूर्ण. लौकिक न्याय नाम, सं., गद्य, आदि: पलायमाने चौरकथा एव लाभ १ अंति दृश्यमास्येवयहणं २९. २०. पे नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि किया दिया लिया जीया भला अंति: ओपदे टलीयो भलोज तीर, श्लोक ५. २१. पे. नाम. बुद्धिबहोत्तरी, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: भरतक्षेत्र मांहे; अंति: श्रीजिनचंद्र मुनींद्र, गाथा- ७३. २२. पे. नाम जैन सामान्यकृति, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९४०४०. शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., ( २६x११, १२-१४X३२-३७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति कुष्मांडिनी; अंति: संपति पामिस उत्तम फल छे. ९४०४१. भगवतीसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३६-९ (१ से ९) =२७. पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. त्रिपाठ, जैये. (२५.५४११, १६४३३-४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१, उद्देश- १ पाठ "भगवं गोयमे" से उडेश-२ पाठ "सच्चे समाहारगा" तक है.) भगवती सूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-) अति (-). , ९४०४३. पाशाकेवली व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैवे. (२५x११, १२४३९-४३). १. पे नाम. पाशाकेवली. पू. १अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ३८९ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि (१) अविरल शब्द महोघा, (२)ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८६. २. पे नाम. सूर्यादिग्रहदशा व आयव्ययज्योतिष विचार, पू. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत मे साधुविचार पद दिया है. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि जनम सूरज के बीस दिन लग; अंतिः शु२१ श१० उपत खपत जाणवी. ९४०४६. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-७(१ से ६,९) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. प्रारम्भ के पत्रों के पत्रांकवाला भाग खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है. जैवे. (२५.५x११, ७४३३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पज्जंसुवा उप्पद्येसुवा" पाठ से "सुरद्वाजणवाए जाव" पाठ तक हैं.) ९४०४८. (+) लघुनाममाला, संपूर्ण, वि. १७९३, वैशाख कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी : नाममालापत्र., संशोधित., जैदे., (२५X११, १७x४०-४६). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि प्रणम्य परमात्मानं अंति हर्षकीर्ति० बत नाममाला, कांड-३, श्लोक-४६१. हितप्रमोद ९४०५४ (+) पाक्षिक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १८४६, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, सूरत बिंदर, पठ. मु. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १७X४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि तित्थंकरे व तित्वे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ९४०५५. देवसी प्रतिक्रमण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-४ (७ से १०) = ८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२६११.५, ९४२५-३० ). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (१) नमो अरिहंताणं, (२) नमो अरिहंताण० पंचदिय संवर अंति: (-), (पू.वि. करेमिभंते पौषधसूत्र अपूर्ण तक हैं.) ९४०५६. महावीरबिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६x११, ११x४२). जिनविंद प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य स्वस्ति, (२) तिहां प्रथम भव्य अंति: (-), (पू.वि. कलश चक्र विधि अपूर्ण तक हैं.) ९४०५९ (+) कर्पूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१ ( २ ) = १८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, ९X३०-३५). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३, अपूर्ण से १४० अपूर्ण तक है.) ९४०६०. (+#) सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. तरणीपुर, पठ. श्रावि. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११X३२-३७). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती अति: जसविजय बुध जयकरी, ढाल ११, गाथा- १२५ ग्रं. २००. ९४०६१. (+) आदिजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. हुंडी रिषभवीवाहलु., संशोधित, जैवे. (२५x११. ११X३७-४६). आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय; अंति: बोलइ सेवक इमि सदा, डाल- ४४, गाथा-२१३. ९४०६२. (+) आगमसार ग्रंथ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी आगम०., संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०.५, ९२८-३५). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-). आगमसारोद्धार- स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव अति (-). ९४०६३. ८ कर्मनी १४८ प्रकृति बंधस्थिति, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. भूषण प्रागजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी:क्रमप्रकृति, जैवे. (२६११, १४x२७-३२). " For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानवरणीय दर्शनावरणीय; अंति: ठिति भणिया तं बंधति. ९४०६४. नंदिषेण रास, संपूर्ण, वि. १७७६, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. रंगप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नंदिषेणचउपइ., जैदे., (२५४११, १४-१५४३८-४४). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४२१. ९४०६५. (+) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. ग. जोतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४२८-३६). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूं कह्य; अंति: वाचकजस इम भाखे जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. ९४०६६. (+) नेमराजमती चौवीस चौक व अठारनातरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४३५). १.पे. नाम. नेमराजमती चौवीस चोक, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, प्रले. पं. माणिकचंद; मु. तिलोकचंद (गुरु पं. माणिकचंद), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समाँ देवी सारदा; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. २. पे. नाम. अठारनातरानी सज्झाय, पृ.७अ-८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. भेंसवाडा. १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता रे निज; अंति: वीर० मन रंगीला, ढाल-३, गाथा-३७. ९४०६८.(+) भवनदीपक सूत्रं, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६-१(१)=५, प्र.वि. हंडी:भुवनदीपकसू०., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४४८-५२). भवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः (-); अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८१, (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से है.) ९४०७१ (#) उपधान विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१३(१ से १२,१४)=५, प्र.वि. हुंडी:उपधानपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६-३८). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम पोसह कीधा पछे खमासण; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., "शेष पोसाक कहीइ" पाठ तक है व बीच के पाठ नहीं है.) ९४०७३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५१-१४४(१ से १४३,१५०)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, ६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गणधरवाद सूत्र-२४ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक व सूत्र-५२ अपूर्ण से ५६ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४०७४. (+) नवस्मरणादि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३८, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ८, प्रले. ग. भाग्यविजयजी पंडित; पठ. पं. अमृत्त (गुरु ग. भाग्यविजयजी पंडित), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रभुजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१६५) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२५४११.५, १३४३४-३९). १.पे. नाम. नवस्मरण, प. १अ-९आ, संपूर्ण, पठ. पं. अमृत्त (गरु ग. भाग्यविजयजी पंडित); प्रले. ग. भाग्यविजयजी पंडित. पे.वि. वस्तुतः 'नवस्मरण' है किन्तु प्रतिलेखक ने 'सप्तस्मरण' लिखा है. नवस्मरण में 'कल्याणमंदिर स्तोत्र' १०आ-१३अ तक है. बीच में ९आ-१०आ तक 'लघुशांति स्तवन' है. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: अचिरान मोक्षं प्रपद्यंते, स्मरण-९. २. पे. नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: श्रीमानदेव० शासनम, श्लोक-१९. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, सकलार्हत स्तोत्र, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-४२. ४.पे. नाम. जिनदर्शन स्तति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: अद्याभवत् सफलता नयनद्वय; अंति: जिनः साक्षात् सुरद्रुमः, श्लोक-११. ५. पे. नाम, पार्श्वजिनप्रभु स्तव, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पुरय मे वांछितां नाथ, श्लोक-५. ६. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १५आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. ७. पे. नाम. नवग्रहाणांजिनानसहित स्तोत्र, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. ८. पे. नाम. शेजय चैत्यवंदन, पृ. १६अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं तु भवेभवे, श्लोक-५. ९४०७६. (#) राताभोजन चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-३(१ से २,५)=५, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:राताभोजनचउपई, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १८x२८-३०). जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२ अपूर्ण से ९७ अपूर्ण तक व गाथा-१२८ अपूर्ण से २०९ अपूर्ण तक है.) ९४०७७. बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१९(१ से १९)=१३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १५४३७-४४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९२ से गाथा-१६१ अपूर्ण तक बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४०७८. (+) सर्वोपिस्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १८१०, माघ शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४३-४८). १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तिणे रात्रने विषे; अंति: (१)चउदस भुवननो राजा होस्यई, (२)करणहार थास्य. ९४०७९ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला- प्रथम कांड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३१-३७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४०८२ (+#) गणपतिविज्ञप्ति लेख, संपूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४५३). गणपतिविज्ञप्ति लेख, म. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रियाख्यातविधि; अंतिः सुखाय भयादिति मंगलश्रीः, श्लोक-१६२. ९४०८३. नियठांना बोल, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नियठानाबो०., कुल ग्रं. २००, जैदे., (२६४११, १४४१६-२०). नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा वेय रागे; अंति: ६ छठा उद्देश मध्ये छइ. ९४०८४. (+) चउमासा वखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२६४११, १४४४५). __ चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: दुक्कडं देवो. ९४०८५ (4) षडावश्यक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रत के अंत में षडावश्यक बालावबोध व पच्चखाण लिखा है, कीन्तु नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,८-११४४०). For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३९३ आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. ९४०८६. (+) सीलविषये पुरंदर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४२-४८). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: वरदाई श्रुतदेवता; अंति: सील व्रत पालउ रे, ढाल-१२, गाथा-३८०. ९४०८७. (+) छठो भाण द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, २३४४८-५५). नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहली नारकी असंख्याता; अंति: ३१ गुणे करी सहित छे. ९४०८८. (+) नवकारमहात्मे श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९३, आश्विन कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. साहिजहन्नावाद, प्रले. मु. नरेंद्रकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१-४६). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडिवि करि सिद्ध; अंति: ज्ञान० भपति श्रीपाल, गाथा-३०२. ९४०८९. उत्तराध्ययनसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३-४१(१ से ४०,४३)=२२, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १५४५२-५७). उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१९ अपूर्ण से अध्ययन-२९ अपूर्ण तक है.) ९४०९०. (+) दानसीलतपभावना कुलं व गोतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:दानकु०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३४-३७). १.पे. नाम. दानसीलतपभावना कुलं सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, गुपि. म. गांगा ऋषि; प्रले. मु. प्रेमाजी ऋषि (गुरु मु. गांगा ऋषि). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: असोगनामा० सूरि खमंतुमेणं, गाथा-८९. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दे०देवाधिदेवने; अंति: ते खमज्यो सूरी अपराध. २. पे. नाम. गोतम कुलक सह टबार्थ, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य धन मेलवानि; अंति: (-). ९४०९१ (+) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:अंजना., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १४४२६-४७). __अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) ९४०९३. (+) भवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १०.प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे.. (२६४११.५, ७४५०). भवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., __ गाथा-१५९ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ मह; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४०९५ (#) माधवानल चोपई व प्रास्ताविक कवित्त, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:माधवानल पत्र., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९-२२४६०-६८). १.पे. नाम. माधवानल चोपाई, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १७०३, आश्विन शुक्ल, ५. माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: (१)त्यांहि मिले नवेनिध, (२)कुशल० जे नर चतुर सुजाण, गाथा-५२४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. १०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिया बिना जीया अकयछ पल; अंति: भद्रसेन०सारो विभोर यात है, गाथा-११. ९४०९९ (+) स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. पुण्यशील, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभजिन स्तुति श्लोक-६ अपूर्ण से ___ अनंतजिन स्तुति श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ९४१०० (4) चंद्रलेहा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). चंद्रलेहा रास, म. मतिकशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ की गाथा-४ अपूर्ण से ___ ढाल-२० की गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ९४१०१ (+) भुवनदीपक ज्योतिष व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५,१५४३९-४३). १.पे. नाम, भवनदीपक ज्योतिष, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. २. पे. नाम, ज्योतिष श्लोक, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दूतेनोक्ता च वाणी स्फुट; अंति: कार्या सिद्धि प्रदासु, श्लोक-२. ९४१०४. व्याश्रयमहाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(२ से ४,७ से ८)=७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५-१७४५२-५७). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१, श्लोक-२ से १३ तक, श्लोक-२५ से ३९ तक व श्लोक-७१ से नहीं है.) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्व; अंति: (-). ९४१०९ (+#) पराणहंडी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन शुक्ल, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. श्राव. हीराचंद नान्हा महेता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ब्राह्मण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४२८-३०). पुराणहंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंतिः प्राप्नोति अपूतजल संग्रहा, श्लोक-७६. पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० सांभल सूविवेकीनइ ध०; अंति: अणगल पूज० पाणी स० पाणहारा. ९४११४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित होने से अनुमानित पत्रसंख्या दी गयी है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१, अध्ययन-१४ अपूर्ण मात्र है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४११५ (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:पासाकेव., संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३७). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंतिः प्रसादात् सर्वसिधिर्भवति, श्लोक-१९६. ९४११६ (+) स्ततिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१०.५, ९-११४४५-४८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, म.शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: ताराबला क्षेमदां, स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धनपालपंडितबांधवेन०; अंति: भव्यलोकमवेति संबंधः. ९४११८. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार सह रत्नाकरावतारिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-५(१ से ३,७,९)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२८x११, १२४४०-४३). For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-१ के अंतिमसूत्र से अंतभाग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., प+ग., वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टीका कहीं-कहीं लेशमात्र है.) ९४११९ (+#) जातकपद्धति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-५(२ से ३,११ से १३)=१३, प्र.वि. हुंडी:जा०प०, जा०पद्धति., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४११, ६x२८-३२). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: नाडी विवर्जियेत्, श्लोक-१३३, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक व श्लोक-७५ अपूर्ण से ९४ अपूर्ण तक नहीं है.) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाओ पार्श्वदेव; अंति: (अपठनीय). ९४१२० (+) पिंडविशुद्धि प्रकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१०.५, २०४५६-६४). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७५ तक पिंडविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२९५, आदि: तं नमत श्रीवीरं; अंति: (-). ९४१२२ (+) मेघदूत सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६६२, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. अमरसर, प्रले. वा. महिमसुंदर (गुरु पं. साधुकीर्ति पाठक, खरतर गच्छ); गुपि. पं. साधुकीर्ति पाठक (परंपरा गच्छाधिपति जिनराजसूरि, खरतर गच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ); पठ. पं. नारायण मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. १२४०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१३३८) पंचांग पुस्तकमिदं कुमदोपमानं, (१३३९) अक्षरमात्रापदस्वरहीनं, जैदे., (२७४११.५, ६४४९). मेघदत, कालिदास, सं., पद्य, आदि: कश्चित्कांताविरहगुरु; अंति: चरणकमलं कालिदासश्चकार, श्लोक-१२५, ग्रं. ३५०. मेघदत-दीपिका टीका, ग. क्षेमहंस, सं., गद्य, आदि: जिननाथ जिनक्रोध जिनभद्र; अंति: सुकालिदास त्रितयस्य टीकां. ९४१२३. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(२)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १७४४२-४९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक व श्लोक-२१७ अपूर्ण से नहीं है.) ९४१२४. (+) सित्तरीसोठाणं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है., संशोधित., जैदे., (२७४११.५). १७० जिनस्थानक यंत्र, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ९४१२६. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १८४५०-६६). सिद्धहेमशब्दानशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-७ प्रथम पाद के सूत्र- "तस्याह क्रियां यावत्" तक है.) ९४१२७. (+#) हैमलिंगानुशासन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १३००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २६४४२-६०). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्, प्रकरण-८, श्लोक-१३८, ग्रं. १६५. हैमलिंगानशासन-अवचरि, सं., गद्य, आदि: पस्त्विति पथग संत; अंति: कालापकं इत्यादि सिद्धं, ग्रं. १३०० ९४१३१. (+) वदनचपेटा, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. कांतिविजय (गुरु आ. विजयानंदसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. विजयानंदसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, ९४२३). द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: कूर्मवामनमीनाद्यैरवत; अंति: तस्य तिष्ठति विप्राः. ९४१३४. त्रिदशतरंगिणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, जैदे., (२७४११, १६४५२-६०). For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिदशतरंगिणी, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः श्रेयोचिराच्छाश्वतम् तरंग-१२ ( पू. वि. तरंग-४ अंतिम श्लोक अपूर्ण से है.) ९४१३७ (#) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै., (२६x१०.५, ११४३०-३६). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: (-), (पू.वि. परिमाणवर्णन अपूर्ण तक है.) ९४१४५. (*) भाव प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९११ मध्यम पू. ११-२ (१ से २ ) = ९ प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५x११. ३X२७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य वि. १६२३, आदि (-); अंति विजयविमलेण० अपूव्वगंधाओ, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) भाव प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीआणंदविमलसूरिणां. " ९४१४७. (+) ज्योतिषसार सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १३, प्र. वि. हुंडी: नारचंद्र, बा., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६x११.५, १६x२७-३०) "" ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. श्लोक-१७ तक लिखा है.) ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेव तीर्थंकर; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४१४८ (+) धनंजयनाममाला व अनेकार्थनाममाला, अपूर्ण, वि. १९९२ श्रावण कृष्ण, १२. गुरुवार, मध्यम, पृ. १८-१(१७)=१७, कुल पे. २, प्रले. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); गुपि. मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें कुल . २५० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२५x१०.५, १०x२९-३२) १. पे. नाम. धनंजयनाममाला, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण. जे. क. धनंजय, सं., पद्म, आदि तन्नमामि परं ज्योति अति शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२०६. २. पे नाम. अनेकार्थनाममाला, पृ. १५ आ-१८अ अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: गंभीरं रुचिरं चित्रं; अंति: शरणोत्तममंगलान्, श्लोक-४६, (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४१४९. भगवतीसूत्र-शतक- १२ उद्देश ४ व ७ संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ८ जैदे. (२६४११.५, ९४२८-३२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. उद्देश-४ के मात्र अंतिम-३ सूत्र लिखे हैं. वि. प्रतिलेखक ने उद्देश-७ पहले लिखा है.) ९४१५३. (*) उत्तराध्ययनसूत्र व उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४१०.५, १९-२२४५५-६३). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र, पृ. १अ - २६आ, संपूर्ण. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. २. पे नाम. उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, पू. २६आ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जे किर भवसिद्धिया परित, अंतिः पुव्वरिसी एवं भासंति, गाथा-४. "" ९४१५४. (+) पिंडनिर्युक्तिप्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : पिंडविशुद्धि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×१०.५, १५x५२). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५९ तक है.) पिंडविशुद्धि प्रकरण- लघुवृत्ति, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य वि. १९७६, आदिः यदुदितलवयोगादेहिनः; अति: (-). For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ३९७ ९४१५६. (+) काव्यकलिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, १७५४). काव्यकलिका-चतुर्वर्णगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नाकिनिकायनायकशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ९२ अपूर्ण तक है.) ९४१५७. (+) स्तुति, स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. १७, प्र. वि. पत्र - १ से १९ के सभी पेटांकों के गाथांक क्रमशः हैं. संशोधित, जैदे. (२५४११, ११४३६-४७). " १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- जीराउला, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी जीरापल्लीस्तोत्रम्. पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधु; अंति: श्रेय लक्ष्मीविशेषा, श्लोक-१३. २. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : जिनस्तोत्रं. सं., पद्य, आदि सद्भक्त्या देवलोके; अतिः सततं चित्तमानंदकारि श्लोक ९. " ३. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : वीतरागस्तोत्रम् आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक - २५. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, पृ. ५अ-८ अ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी जीरापल्लीस्तोत्रम् पार्श्वजिन स्तव जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं. पंच, आदि प्रभु जीरिकापल्लि अति महेंद्रस्तवाः, श्लोक-४५. ५. पे. नाम पद्मावतीदेवी स्तवन, पृ. ८अ १०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पद्मावतीस्तोत्रम्, पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति पद्मावती स्तोत्रम् श्लोक-२७. ६. पे. नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. १० आ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: लघुस्तोत्र. आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: पिच्छलः द्वारदेशे, श्लोक-२४. ७. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : भैरवाष्टक. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एकं खट्वांगहस्तं; अंति: स स्यात् सर्वसमृद्धिमान्, श्लोक १०. ८. पे. नाम. निरंजनाष्टक, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि स्थानं न मानं न च अति: मै नमो देव निरंजनाय श्लोक ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १४अ १६अ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी : गउडीछंद. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सुरराणी; अंतिः धवलधींग गउडी धणी, गाथा - २२. गाथा - ९. १२. पे नाम वाला स्तोत्र, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण. १९अ-१९आ, १०. पे. नाम दुर्गा छंद. पू. १६अ १८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी देवीछंद. भुजंगीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार मंत्र उद्धरणी बाहण; अंति: भणै सुपरि भणंता सुंदरी, गाथा-४०. ११. पे. नाम अंबिका छंद, पृ. १८-१९अ संपूर्ण, पे.बि. हुंडी देवीछंद. अंबिकादेवी छंद, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आदि शकति अंचाविसु जाणी; अति हरष० जन मन वंछित फलइ, सं., पद्य, आदि: ऐं आणंदवल्ली अमृतकरदले; अंति: यस्तु स चिरायुः सुखी भव, १३. पे. नाम. सरस्वती सोत्र. पू. १९आ- २०अ, संपूर्ण, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि राजते श्रीमती देवता भारती अंति: मेघामाहवति चिरकालम्, श्लोक ९. १४. पे. नाम. ईश्वरी स्तुति पूजा, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि रनै कल्पित मासनं हिमजलैः अंतिः विभो संकल्पिते तुप्पता, श्लोक-३. १५. पे. नाम. शारदा स्तोत्र-मंत्रगर्भित, पृ. २०आ, , संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं अति ते निर्मलबुद्धिमंदिर, श्लोक ७. १६. पे. नाम बालात्रिपुरादेवी स्तोत्र, पृ. २०-२१अ, संपूर्ण. Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बालत्रिपरासंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आई आनंदवल्ली अमतकर; अंति: विजयिनी सर्वदेवी नमस्ते. गाथा-५. १७. पे. नाम. एकविंशति नामानि-सरस्वतीदेवी, पृ. २१अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी २१ नाम स्तुति, सं., पद्य, आदि: वाग्देवी वरदायिका भगवती; अंति: लक्ष्मी च चंद्रानना, श्लोक-१. ९४१५८. (+) महादेवी स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७६२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल, विक्रमपुर, प्रले. गंगाधर; राज्यकाल मु. सुजाणसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४२-५४). महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., गद्य, वि. १६९२, आदि: श्रीनाभेयं जिनं नत्व; अंति: नाधार्या गुरो ____भावितः, ग्रं. १५००, (वि. सारिणीयुक्त.) ९४१५९. ओघनियुक्ति व नियुक्तिभाष्य की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, २१४६१-६९). ओघनियुक्ति-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ की ___ अवचूर्णि अपूर्ण से ९०० अपूर्ण तक है.) ९४१६०. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४७-१६(१५ से २८,३०,३५)=३१, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, ५४४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०१ अपूर्ण से २०४ अपूर्ण तक व गाथा-३२२ से नहीं है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादि पांच पदनि; अंति: (-). ९४१६२. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. जीवराज (गुरु मु. बालचंद्र); गुपि. मु. बालचंद्र (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि); आ. जिनचंद्रसूरि; अन्य. दोलतराय सिंधीया; राज्यकाल गच्छाधिपति जिनउदयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चातुर्मासिकव्या०. श्रीचिंतामणिजी तत्प्रसादेन., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२-१४४३५-५०). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदं; अंति: चतुर्मासिकव्याख्यानम्. ९४१६३. (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २१२, जैदे., (२६४११, १३४४७). औपदेशिक सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ९४१६५. भक्तामरस्तोत्र सह वार्तिक, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. मु. दौलतचंद; राज्यकाल आ. विवेकचंद्रसूरि (पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इति संभावने; अंति: साहमी आवइ तेहनइ आश्रयें. ९४१६६.(+) अक्षरबावनी व प्रास्ताविक कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,१६x४१-४८). १.पे. नाम, केशवदासरी बावनी, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, म. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देउतहि; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२. २. पे. नाम. प्रास्ताविक छपै संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: ओध करी अरके भख अंतक; अंति: सेवने जाके दुसमण पांच, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९४१६७. (#) नंदिषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १७५२, आश्विन कृष्ण, बुधवार, मध्यम, पृ. २१-१०(१ से १०)=११, प्रले. ग. विमलसागर (गुरु ग. सुंदरसागर); गुपि. ग. सुंदरसागर (गुरु आ. अमरसागरसूरि); पठ. सा. अमरु; श्राव. गुलालदेजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२४-३०). नंदिषणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदिः (-); अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४२१, (पू.वि. ढाल-८, गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ९४१६९. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अंतर्वाचि बालाबोध., जैदे., (२५.५४११, १५४३८-४५). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: परमेश्वर श्रीवर्द्धमान; अंति: (-), (पू.वि. चंदनबाला द्वारा महावीरप्रभु के पारणा प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९४१७० (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १७१२, कार्तिक कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, ले.स्थल. खरवा, प्रले. मु. जीवाजी ऋषि; पठ. मु. जगमालजी ऋषि; मु. रामाजी ऋषि (गुरु मु. जीवाजी ऋषि); मु. वर्द्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, ___ गाथा-१८९, (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण से है.) ९४१७१. खंडाजोजन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)=६, प्र.वि. हुंडी:खंडा., दे., (२५४१०.५, १३४३०-४८). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "४३ तयालिस जोजन १५ पनरैकला" से "पछिम दिसीला हमवय० दोनु दिसनी" पाठ तक है.) ९४१७३. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १७X४८-६५). १. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: भमरा भमत नभ जिइ निगणन; अंति: आभरण जेइ भावइ तो दिज्ज. गाथा-३७३. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संताप्यो सज्जन घणु भंडू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८४ तक लिखा है.) ९४१७५ (+) सूक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९३, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. १२-१(२)=११, प्रले. य. शुभविजय (गुरु ग. लब्धिविजय); गुपि. ग. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५-७X४६-४८). सूक्तावली, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकलकुशल वल्लि पुष्करावर्त; अंति: दातार दाने जग विश्व मोहे, गाथा-१०९, संपूर्ण. सूक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल समस्त सुख संपदा प्रते; अंति: दे ते सार छइ तत्त्व छइ, संपूर्ण. ९४१७६. (+) रूपसेनकनकावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३२-११(१ से ११)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३-१४४३२-४०). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश ९४१७७. (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२-१४४४५-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति ), (प.वि. उद्देशक-१ अध्ययन-५ गाथा-१२ अपूर्ण से उद्देशक-२ गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ९४१७८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-७४(१ से ७४)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ६४२२-२३). For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "अयतीसइमे संवछरे कालेगछइ" पाठ से ___ "कालेगछइ ९६ सुविहस्स" पाठ तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४१७९. जैनमेघदूत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-८(१ से ८)-७, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२५.५४१०, २८४६५-७०). जैनमेघदत, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (१)शाश्वतीं सौख्यलक्ष्मीम्, (२)सद्मस्वास्थानं यया सा, सर्ग-४, ग्रं. ४१८, (पृ.वि. "चंद्रमाताराचक्रेण सह मेरुं अनुभ्रमति" पाठ से है.) ९४१८३. गोडीपार्श्वनाथजी वृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, दे., (२४.५४१०.५, १२४२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: भाव धरी भजन करूं; अंति: नेमविजय जयकार, ढाल-१४. ९४१८६. गुणावली चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-४(२ से ५)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१०, १७४४६-५०). गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, ___गाथा-३१ अपूर्ण से ढाल-१३, गाथा-१६ अपूर्ण तक व ढाल-२९, गाथा-१ से नहीं है.) ९४१८७. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ७-१२४२५-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण से त्रिशलामाता १४ स्वप्न वर्णन अपूर्ण तक है.) ९४१८९ (+) शकनावली चौपाइ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १०-१५४५१-५४). शकुनावली चौपाइ, मु. भाणजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७१ अपूर्ण से २५२ अपूर्ण तक है.) ९४१९२ (#) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. द्विपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ३-१२४१६-३३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: महार्थइ गौतमपृच्छा. ९४१९८ (+) योगशास्त्र, संपूर्ण, वि. १७५६, वैशाख शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. बुरहानपुर, पठ. मु. हरखचंद (गुरु आ. गुणचंद्रसूरि, पूनिमगच्छ); प्रले. आ. गुणचंद्रसूरि (गुरु आ. सौभाग्यचंद्रसूरि, पूनिमगच्छ); गुपि. आ. सौभाग्यचंद्रसूरि (पूनिमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:योगशा., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४८-५२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादिवैर; अंति: ध्यातोद्यतो ___ भवेत्, प्रकाश-१२, श्लोक-१०००. ९४२०१ (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन की षट्पादावचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २१४६०-७०). सिद्धहेमशब्दानुशासन-षट्पादावचूरि, सं., गद्य, आदि: पू पूर्वक णमं प्रह्व; अंति: सरेफुरः पदांते विसर्गः, ९४२११ (+#) यश:सौरभ काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:यशःसौरभं. प्रथमपत्र पर हुंडी स्थान में 'संवत् १७३० पर्वलेख' ऐसा लिखा है., संशोधित-दुर्वाच्य. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५-१६४३६-४८). यशःसौरभ काव्य, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रियं वः प्रथयत्व; अंति: कृपाभरसुधासारः परं मंगलम्, सर्ग-५. ९४२१६. (+) श्रावक अतिचार व सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४३४-३८). For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४०१ १.पे. नाम. अतिचार श्रावकना, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: कीधी ए सर्वव्रत विषई. २.पे. नाम. समकित सिज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: दरसणने प्यारी रे, गाथा-५. ९४२१७. (+) पाशककेवली, अपूर्ण, वि. १७८७, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. महैवानगर, प्र.वि. हुंडी:पाशाकेवली., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४४०-४४). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: यामेन तथैक दिवसेन तु, श्लोक-१९६, (पू.वि. 'पतिता तव कर्णिका' पाठ से है.) ९४२१८. (+) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८५२, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ६, प्रले. उपा. रत्नविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पासाकेवली., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४२-४४). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१७९. ९४२१९ (+#) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १८४४८-५६). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० तक है.) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: (-). ९४२२२. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ व २४ दंडक गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५-६x४५). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १६६८, प्रले. मु. भोगा ऋषि; पठ. श्रावि. बिराइबाई, प्र.ले.प. सामान्य. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छइ सुखनी आदि निदान छइ. २. पे. नाम. २४ दंडक गाथा सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण.. २४ दंडक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जहन्नकडजुम्ममज्झचउरो; अंति: तरुसिद्धि एकमज्झमपए, गाथा-१. २४ दंडक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जघन्य पदइ चौवीस दंडक मांह; अंति: योगे जम्मो३ कलितोग जम्मो४. ९४२२३. (+) नारचंद्र ज्योतिष व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:नारचंद्र पत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (६०४) जब लग मेरु अडिग है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११-१६x२७-३८). १. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. २. पे. नाम, नारचंद्रज्योतिष-पाया विचार पर्यंत, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअहँतजिनं नत्वा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में १ औपदेशिक दोहा व१मूलनक्षत्रजातक श्लोक दिया है.) ९४२२५ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १६x४४-४८). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका , सं., गद्य, आदि: कहि० कीहां सरुछइ; अंति: (-), (पू.वि. 'जदाक० मघानिखित्रि' पाठ तक है.) ९४२२७. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७१२, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२८-१(३१)=१२७, प्रले. मु. हंसराज (गुरु मु. रामदास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ७४२०-२६). For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: पज्जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं है.) ९४२२८ (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६७२, चैत्र कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५२-८४(१ से ६०,८४ से ९१,१०४ से ११९)=६८, ले.स्थल. दीव, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्याकरण., संशोधित-पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४२६-३६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००, (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आग्राहीता भविष्यतीति भावः. ९४२२९ (+#) शांतिनाथचरित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८२-८(१ से २,७३ से ७८)=७४, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:श्रीशांतिचरि०, शांतिनाथच०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५-१७X४४-५२). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-१ श्लोक-५७ अपूर्ण से प्रस्ताव-५ श्लोक-६३६ अपूर्ण तक व प्रस्ताव-६ श्लोक-९० से श्लोक-२६७ अपूर्ण तक है.) ९४२३०. (+) शत्रुजय महात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५१-१५२(१ से ३६,६८ से १०४,१३४,१५२ से २२९)=९९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:शत्रु०महा०, शत्रुज०., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४२-५२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३, श्लोक-२२ अपूर्ण से सर्ग-१४, श्लोक-२८८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९४२३१. (+#) द्रुपदसुतारी चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३, प्र.वि. हुंडी:द्रूपदीचउपइ., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४३८-४२). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: चउपई थास्यइं तास कल्याण, ढाल-३९, गाथा-१११७, (वि. प्रतिलेखक ने ढाल-३९ की गाथा-२२ पर पूर्ण कर दिया है.) ९४२३२ (+) पण्णवणासूत्त, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४४-११७(१,५५ से १६२,२३५ से २४२)=१२७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:पन्न०सू०, पन्नवणा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०, ११४३६-४६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-१, गाथा-५ अपूर्ण से पद-२० अपूर्ण तक ९४२३३. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन की लघुवृत्ति-१-५ अध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०, १६x४८-५८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परमात्मानं, (२)अर्हमित्येतदक्षरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४२३४. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६५-९(१ से ९)=५६, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ५४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-४० अपूर्ण से ___ अध्ययन-१९, गाथा-६१ अपूर्ण तक है.) ९४२३५ (+#) श्रीपालराजा महासमकिती रास, संपूर्ण, वि. १८२१, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. विजेंवानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि); गुपि. पंन्या. देवेंद्रविजय गणि (गुरु ग. जयविजय); ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:श्रीश्रीपालराश. श्रीचिंतामणि श्रीवरकारक प्रशादात., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२-१४४४४-५२). For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कविय तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा- १८२५, (वि. अंत में प्रतिलेखक ने सर्वगाथा- १२१४ लिखा है.) ९४२३६. (+) छंदोनुशासन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रावण शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ६०, प्रले. मु. बुद्धिहंस (गुरु पं. विमलहंस, तपगच्छ); गुपि. पं. विमलहंस ( गुरु मु. विजयसिंह, तपगच्छ); राज्ये आ. विजयसिंहसूरि (गुरु आ. देवसूरि, तपगच्छ); गुपि आ. देवसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०, १५X४४-४८). * छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: वाचं ध्यात्वार्हती; अंति: द्विघ्नानेकाध्वयोगः, ४०३ अध्याय-८. आदिः छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, शब्दानुशासनविरचनानंत अंति: रणात्वस्माभिरुक्तः. ९४२३७. () सीता चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९२. प्र. वि. कुल ग्रं. ३४४० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१०.५, १३x४६-५२). सीतासती चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: कुम्मनहकंतिजलणं पक्खालिय अति तह सरीहि निवेइयं किंचि, गाथा- ३४४०. ९४२३८. (+#) पार्श्व प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ४९, ले. स्थल. सांडेरानगर, . प्र. ग. रूपसौभाग्य (गुरु गं. विमलसौभाग्य) गुपि. ग. विमलसौभाग्य गुरु ग. सिंघसौभाग्य) ग. सिंघसौभाग्य (गुरु ग. मेरुसौभाग्य); ग. मेस्सीभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: श्रीपार्श्वप्रबंध, श्रीपार्श्वप्र०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१९६०) तैलात् रक्षेत् जलात् रक्षेत्, जैये. (२५.५४११, १६-१८४४८-५४) "3 पार्श्वनाथ प्रबंध, मु. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: पणमिय पयकमलवर विमल अति: ज्ञानकुशल० कोडि कल्याणो रे, खंड-४, गाथा- १८८५. ग्रं. २६७५. ९४२३९. (+) पदमणि चरित्र, संपूर्ण वि. १८३४, माघ कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पू. ३७, ले. स्थल, बुंगलानगर, प्रले. ग. सरूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशीतलजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१०.५, १३-१४४३४-३८). "" गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७ आदि श्रीआदिसर प्रथम जिण अंति लब्धोदय० सफल सुखकंद, खंड-३, गाथा-८१६, ग्रं. ११५७. ९४२४० (+) भगवतीसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३०-१६४ (१,३ से ९३,११८ से १८९) = ६६, पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी भग०वृ०, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित, जैदे. (२५.५x१०. १३X३८-४२). भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १९२८ आदि (-); अति: (-), (पू.वि. शतक-१, उद्देशक-१ की टीका अपूर्ण से शतक-८, उद्देशक- ४ की टीका अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९४२४१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५२-१५ (१ से १५) = ३७ पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५X१०, ५X३६-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४, गाथा - २६ अपूर्ण से अध्ययन-९, उद्देश- ३, गाथा- ३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९४२४२. (**) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, सप्तस्मरण व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२, कुल पे. १६, ले. स्थल. पाटोधि, पठ. ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); प्रले. उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); गुपि मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसीभाग्य, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०, १२-१४४२८-४० ). " Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. आवकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ९आ ९अ, संपूर्ण श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (१) णमो अरिहंताणं णमो (२)जय सामी जयउ सामी; अति: बंदामि जिणे चउवीस, २. पे. नाम. प्रव्रज्याकुलक, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा- ३४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: सदा ध्यायामि मानसे, श्लोक-३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १९आ-१२अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि किं कर्पूरमयं सुधारस अति बीजं बोधिवीज ददातु श्लोक-११. ५. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दसावतारो भुवनैकमल्लो; अंति: ददातु वः सर्वसमीहतानि श्लोक-१. ६. पे. नाम, स्थंभनकपार्श्वजिन नमस्कार स्तवन, पृ. १२आ-१४आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयण वरकप्प; अंति: अभय० विन्निवड , " आणंदिय, गाथा- ३०. ७. पे. नाम. भक्तामराभिध स्तोत्र, पृ. १४ आ-१७आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ८. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १७आ- २१अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ९. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २१अ-२४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा ४८. १०. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २४अ-२६आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाधा-५१. ११. पे नाम शांति स्तोत्र, पृ. २६ आ-२७आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अति सूरिश्रीमानदेवशः, श्लोक-१६. १२. पे. नाम. लघुसंघयणी चतुव्विंसतिविचारगर्भित सूत्र, पृ. २७आ- २९आ, संपूर्ण, वि. १८४१ वैशाख कृष्ण, ९. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चौवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-४२. १३. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ३०१-३७आ, संपूर्ण, सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: भवे भवे पास जिनचंद, स्मरण ७. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयास अह अति नियंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. १५. पे नाम, नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पू. ३८आ- ३९अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १४बी, आदि दोसावियारदक्खो नालि आय; अति: जिणप्पहसूरिन पीडंति, गाथा १०. १६. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. ३९अ - ५२अ, संपूर्ण, वि. १८४१, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, बुधवार बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: चंदमुणिंदेण० तित्थं, गाथा-३१३. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४०५ ९४२४४ (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. कोटारामपुरा, प्रले. सा. जैता आर्या (गुरु सा. गुलाबोजी); गुपि. सा. गुलाबोजी (गुरु सा. गंगाजी); सा. गंगाजी (गुरु सा. मनजाजी); सा. मनजाजी; राज्यकाल गुमानसिंग, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:विपाकसुत्रटबो, विपाक०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२१६, प्र.ले.श्लो. (१३४०) तेलं रक्षे जलं रक्षे, (१३४१) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२५४११, ६-८४३६-४६). विपाकसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: विसेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणी कालइ चउथउ आरउ; अंति: जिम आचारांगसूत्र मै. ९४२४५. (#) भक्तामर स्तोत्र सह वत्ति, ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति व कथा, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३८-१२(१ से ११,२०) २६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०,१५४४२-४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १५ से ४३ तक हैं.) भक्तामर स्तोत्र-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). भक्तामर स्तोत्र-कथा *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-७ अपूर्ण से कथा-२८ तक है.) ९४२४६. (+) भवभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, अन्य. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल); सा. माणक्यलक्ष्मी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भवभाव०, भवभावना., संशोधित. कुल ग्रं. १७००, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३४-३६). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण नमिरसुरवर मणि; अंति: वलीइ कीरउ अलंकारो, गाथा-५३१. भवभावना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमतां हुंता इंद्र तेहना; अंति: करी करउं अलंकार शोभा. ९४२४७. (+) ज्ञाताधर्मकथांग की प्रदेशविवरण टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८४-२०(६ से २४,७०)=६४, अन्य. पंन्या. शुभवीर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०वृ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३८००, जैदे., (२५.५४१०,१५४४६-५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति: त्रीण्येवाष्टशतानि च, अध्ययन-१९, ग्रं. ३८००. ९४२४८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८४-२८(१ से १५,३७ से ३८,७० से ८०)=५६, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, गाथा-७ अपूर्ण से अध्ययन-२०, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९४२४९ (+) श्रीचंद चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६६-२९(१ से २९)=३७, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चंद०, चंदराजा०., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४२-५२). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३, ढाल-२, गाथा-४ से ___खंड-६, ढाल-१४, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९४२५० (+) समयसार का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-५(१ से ५)=३९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४८-५२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., निश्चयव्यवहार वर्णन अपूर्ण से एकंतवादी वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४२५१ (+#) कर्मग्रंथ-२ से ४ व सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. २३४-१९२(१ से १९२)=४२, कुल पे. ४, उप. उपा. जयसागर (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनराजसूरि (गुरु आ. जिनोदयसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २०७२-७८). १. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टीका, पृ. १९३अ-१९८आ, संपूर्ण, वि. १४९८, माघ कृष्ण, ३, सोमवार, पे.वि. हुंडी:बंधसा०वृ०.कुल ग्रं. ६५० बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं० वोच; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-५४. बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११७२, आदि: गत्यादिमार्गणास्थान; अंति: धानात् इति गाथार्थः, ग्रं. ५६०. २.पे. नाम. कर्मस्तव सह टीका, पृ. १९९अ-२१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मस्तवभा०. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे तिहु; अंति: दसणसुद्धिं समाहिं च, गाथा-५५. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., गद्य, आदि: कर्मबंधोदयोदीर्या०; अंति: नां नवत्युत्तरमेव च, ग्रं. १०९०. ३. पे. नाम. षट्शीतिक प्रकरण सह टीका, पृ. २११अ-२३३आ, संपूर्ण, वि. १४९८, फाल्गुन शुक्ल, ८, रविवार, पे.वि. हुंडी:छयासीआप्र०.कुल ग्रं. २००० षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८६. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, वि. १२५८, आदि: (१)प्रणम्य सिद्धिशास्ता, (२)इह जिनवल्लभगणिनामा; अंति: सिद्धिं तेनाश्नुतां लोक, ग्रं. २१४०. ४. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार सह टीका, पृ. २३४अ-२३४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:सार्द्धशतवृ०. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सयलंतरारि वीरं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-वृत्ति, आ. धनेश्वरसूरि, सं., गद्य, आदि: यज्ज्ञानदर्पणतलप्रतिभात; अंति: (-). ९४२५२ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-१५(१ से ११,१३,३०,३३,४२)=२९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६४३८-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. भगवान महावीरस्वामी गर्भापहार प्रसंग से अचेलक प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९४२५३. (4) ढोलामारु चोपई, संपूर्ण, वि. १७३१, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २६, प्रले.ग. तत्त्वविजय; पठ. मु. दयाविजय (गुरु ग. स्थिरविजय); गुपि.ग. स्थिरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३६). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: कुशललाभ० पामै संपदा, गाथा-७००. ९४२५४. (+) श्रुत विचार, अपूर्ण, वि. १७६४, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३४-२(१ से २)+१(१६)=३३, ले.स्थल. जहानाबाद, प्र.वि. हुंडी:हानर्षिहुंडी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४५२). सिद्धांत हुंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीवाणं च बोहित्थं, (पू.वि. मोक्षमार्ग विचार अपूर्ण से है.) ९४२५६. (+) आरामशोभा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-२(१ से २)=१५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४४०). आरामशोभा कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक-२८ अपूर्ण से ४०९ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४०७ ९४२५७. चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १७३३, संवतिंदमुनीशुक्राकिगुप्ति, मध्यम, पृ. २५, अन्य. मु. युक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.११७६, जैदे., (२६.५४११.५, १५-१८४४२-५२). चंद्रराजा रास, मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: श्रीजिन शांति नमुं; अंति: बोलइ० जय जय कार रे, खंड-४, गाथा-८५५, (वि. ढाल ३६) ९४२५८. प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९-१८(१ से ३,१७ से ३१)=३१, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्या०., दे., (२६४११, ५४३१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १३००, (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "गलरकगकोरंडचक्कवागउक्को" पाठ से है व "भावहमोहाधम्मसणसम्मत्तयेव" पाठ तक लिखा है.) ९४२५९ (+) अमरगुप्त चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४, पठ. श्राव. कल्याण सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०-११४३१-३५). अमरगुप्त चरित्र, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: ऋषभादिक चउवीस जिन; अंति: इ० सेवक कल्याण थायजी, उल्लास-३. ९४२६१. उत्तराध्ययनसूत्र सह नियुक्ति व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-१४(१ से १४)=३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४४०-४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१२ गाथा-४५ से अध्ययन-१८ ___ गाथा-२४ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४२६२. (#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ११-१२४३५-३९). सम्मेतशिखर तीर्थमाला, ग. जयविजय पंडित, मा.गु., पद्य, वि. १६१४, आदि: प्रणमीअ सहगुरूतणा पा; अंति: जयजंपइं सुष अनंत सो पावइ, गाथा-९८. ९४२६३. (+#) श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १२४३३-३६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अतिचार पेहली कहेणा विशेष तप छे कहेणो" पाठ तक लिखा है.) ९४२६४. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १५४४३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) ९४२६५ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. जगत्तारिणी, प्रले. पंडित. लावण्यवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, ४४३०-३५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: सचेतन जीवतत्त्व कहीजे; अंति: सिद्ध एकय समय घणा सिद्ध. ९४२६६. (+) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०३, आश्विन कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ४३८+१(४२४)=४३९, ले.स्थल. तिजारानगर, प्रले. मु. गुणसुंदर; लिख. ग. धर्मसुंदर वाचक (गुरु उपा. साधुरंग, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. साधुरंग (गुरु उपा. भुवनसोम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भग०सूत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५७५०, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३९-४४). For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: उद्दिसिज्झंति, शतक- ४१, सूत्र - ८६९, ग्रं. १५७५२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४२६७ (#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. १६९५, मध्यम, पू. १३३ ले स्थल. वाह्री, प्रले. मु. वीरविजय (गुरु ग. विद्याविजय): गुपि. ग. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X११.५, १६x४२). " " शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३०७, आदि श्रेयोरत्नकरोद्भूतामहं अति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव ६ श्लोक-४८९०, ग्रं. ५०००. 1 ९४२६८. (+#) । कल्पसूत्र सह टवार्थ व वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १७१-२७ (१ से २७) = १४४, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, ११-१५X३७-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. 'धमवरचाडरंभ चकवटीण" पाठ से व्याख्यान- ९ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - बालावबोध*, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९४२६९. (+) ज्योतिषकरंडक सह मलधारीय टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७८-१ (१) १७७, प्र. वि. हुंडी ज्योतिस्वरंड, ज्योतिसकंडपइना पत्र, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १०-१२४३२-४२). ', ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा. पद्म, आदि (-); अति रइया गाहाहिं परिवाडी, प्राभूत-२१, गाथा ४०५, (पू. वि. गाथा-८ से है.) " ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि (-); अति ज्योतिष्करंडकमिति, ग्र. ५०००. ९४२७० (+) सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९ - १ (३५) = ४८, प्र. वि. हुंडी : सूर्यप्र०सू०, संशोधित. कुल ग्रं. २२००, जैदे., ( २६.५X११.५, १५x५०-५८). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सोक्खुप्पाए सदापाए, प्राभृत-२०, ग्रं. २२००, ( पू. वि. पाहुड-१२ पाठ "तावउत्तीसं सतसहस्साइ" से "ताहत्थर्ण हत्थस्स णां पंचमुहुत्ताप तक नहीं है.) ९४२७१, (+*) कर्पूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९८-११ (१,४९ से ५५ ६५ से ६६, ६९) ८७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १६-१९४५०-६०) " कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से ७८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कर्पूरप्रकर- टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं. गद्य वि. १५५१, आदि (-); अति: (-). " ९४२७२. (*) परिशिष्ट पर्व-त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्रे, अपूर्ण, वि. १८७३ आश्विन शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ११७-२९(१ से २९)=८८, ले.स्थल. आगरा, प्रले. संभुराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : परिशिष्टपर्व, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३९६०, जैवे. (२४.५४११, १३४३८-४२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: स्फाति पुरस्तात्पुनः, सर्ग -१३, ग्रं. ३९६०, ( पू.वि. सर्ग-२ श्लोक-६६३ अपूर्ण से है.) ९४२७३ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३ - १३ (१ से १३) = ५०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, ११३४-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. पाठ सिरिवच्छसोह' से 'अहाकप्पं अहासुतं तक है.) ९४२७४. उत्तराध्ययनसूत्र, वीर थूड़ व चीतवलभ चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १६, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१२, १४X३४-३८). For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४०९ १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-९ व ३६ अध्ययन, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने ३६वां अध्ययन प्रारंभ में लिखा है. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. वीरथइनाम अजयण, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमस्संति त्तिबेम्मि, गाथा-२९. ३. पे. नाम, चीतबलभ चौढालीयो, पृ. १३आ-१६अ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथकुल उपनां; अंति: कियो दिवाली रे दिन, ढाल-४, गाथा-६३. ९४२७५. (+) पंचाख्यान चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३६-४६). पंचतंत्र-पंचाख्यान चौपाई, संबद्ध, पं. वच्छराज गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६४८, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर विमल; अंति: वछ० श्रीरयणचंदनु बोलि सीस, गाथा-३४९६. ९४२७६. (+#) षट्कर्मग्रंथावचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९२, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १५४४८). १. पे. नाम. कर्मविपाक की अवचूरि, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रथमकर्मग्रंथावचूरि. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: श्रियाष्टप्रातिहार्यरूपया; अंति: परायणः आदिशब्दात्साभिः, ग्रं. ३१००. २.पे. नाम, कर्मस्तव की अवचूरि, पृ. १३आ-२०अ, संपूर्ण, वि. १७१५, फाल्गुन शुक्ल, १, प्रले. ग. पुण्यकलश (गुरु ग. धर्ममंदिर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:द्वितीयकर्मग्रंथावचूरि. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तथा तेन प्रकारेण; अंति: क्षय इति सत्ताधिकारः. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्यावचूरि, पृ. २०आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तृतीयकर्मग्रंथावचूरि.. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बंधस्य विधानं मिथ्यात्व; अंति: तिदेशद्वारेण भणनात्. ४. पे. नाम. षड्शीति कर्मग्रंथ की अवचूरि, पृ. २४अ-३८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चतुर्थकर्मग्रंथावचूरि. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमनि० तत्र जीवंति; अंति: शास्त्रेभ्य इति शेषः. ५. पे. नाम. शतकावचूरि, पृ. ३८आ-६५आ, संपूर्ण, वि. १७१५, माघ कृष्ण, ३, ले.स्थल. सूरत बंदर, प्रले. मु. पुण्यकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:पंचमकर्मग्रंथावचूरि. शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमिअ जिणं० मिथ्यात्वादि; अंति: तेषां क्षये ज्ञानी भवति. ६. पे. नाम. सप्ततिकावचूरि, पृ. ६६आ-९२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सप्ततिकावचूरि. सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: सिद्धान्यविचलानि पदानि; अंति: विवृत्तेः स्वान्यहितहेतोः. ९४२७७. (+) शत्रुजयतीर्थ महात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१४-२६४(१ से २६४)=५०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ६x४०-४६). शत्रंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., सर्ग-६ श्लोक-१२८ अपूर्ण से सर्ग-८ श्लोक-७७ अपूर्ण तक है.) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९४२७८. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२२, मध्यम, पृ. ९२-१७(१ से १७)=७५, ले.स्थल. सादडी, प्रले. ग. गजसागर (गुरु ग. अमृतसागर); गुपि. ग. अमृतसागर (गुरु ग. सौभाग्यसागर); ग. सौभाग्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६४५०-५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१ पाठ "ममणोआढाह जावनोआसणेणं" से है व अध्ययन-६ "लहयत्तंवाहव्वमागच्छंति गोयमा" पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४२७९. विमलमंत्री प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६६९, मध्यम, पृ. ७२, प्रले. सा. वेली लखमाई (गुरु सा. जयलक्ष्मी); गुपि. सा. जयलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विमलरास., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३१-३५). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: घरि रिधिवृद्धि रमइ, खंड-९, गाथा-३८७, ग्रं. १७००. ९४२८० (+#) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८२, प्र.वि. हुंडी:व्यवहार०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, ५४२८-३२). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्ख मासियं; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: क्षय करवारूप फल हुइ. ९४२८१ (#) शीलप्रकाश प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१-४५(१ से ४५)=४६, अन्य. पं. चतुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शीलप्रकाश., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३२-४६). शीलप्रकाश, ग. पद्मसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मया स्वस्तिकरं सदास्तु, (पू.वि. सर्ग-१५ श्लोक-४२ अपूर्ण से ९४२८३. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८८, माघ शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ६१-४(४ से ५,५५,६०)=५७, अन्य. उपा. जशकुशल (गुरु आ. जिनलब्धिसूरि); गुपि. आ. जिनलब्धिसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७५४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (१३४१) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२४४१०.५, ११४३०-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. "देवाणदामाहणीउसभदत्तस्स" पाठ से "गईपइठ्ठा अप्पडिहयवरनाण" पाठ तक नहीं है व बीच का पाठांश नहीं है.) ९४२८४. (+) कल्पांतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. ७२-२(१ से २)=७०, प्रले. पं. क्षमाकुशल गणि (गुरु पं. शुभकुशल गणि); गुपि.पं. शुभकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंतर्वाच्य., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०, ११४३८-४२). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. "दानानां कालेनक्षीयेफलं __ भीताभयप्रदानस्य" पाठ से है.) ९४२८५ (#) सिरिसिरिवाल कहा व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १६९१, आश्विन कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४०, कुल पे. २, ले.स्थल. गिडाग्राम, प्रले. पंन्या. नंदनमेरु मुनि (गुरु पंन्या. जयकलश मुनि); गुपि. पंन्या. जयकलश मुनि (गुरु ग. शिवनिधान), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धचक्र, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५०). १. पे. नाम. सिरिसिरिवाल कहा, पृ. १आ-४०आ, संपूर्ण. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १६७५. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४०आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धसूरिउवज्झाय; अंति: कुणंतु कल्लाणं, गाथा-४. ९४२८६. (+) सिंदूरप्रकर सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३३-४२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. संदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: पार्श्वप्रभोः श्रीपार्श्व; अंति: प्रसादमाधाय तत्सर्वम्. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९४२८७ (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७८७, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पू. १६९-१(१५) =१६८, प्रले. ग. ऋद्धिविजय (गुरुग, लालविजय); गुपि. ग. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी उपदेशमाला, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, ४-१८४३२-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते, संपूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: शोधनीयो वसुधा धने (अपूर्ण. पू. वि. मृगावती चंदनबाला कथा अपूर्ण "इहां मुकलजे" पाठ से "खमावतां चंदनबालाने केवलज्ञान" तक नहीं है.) " ९४२८८ (F) आवश्यकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९७-४४ (११,६४ से १०६) = १५३, प्रले. आ. केसवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: आववृ०, कुल ग्रं. २२०००, अक्षर मिट गए हैं, जैवे. (२६११, १५४६). " आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #. आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अति मिच्छतीति गाथार्थः ग्रं. २२०००, संपूर्ण. ४११ ९४२८९ (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११२-१ (११०)=१११, अन्य. मु. देवीचंद (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४११, ६-१६४३५-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमोः अतिः कासवगत्ते पणिवयामि (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., बालावबोध का पाठ "जीवता मूक्या धर्मनी प्रसंसा वाधी इतिभावः" से मूल पाठ "वयइरस्स गोअमगुत्तस्स इमेतिन्निघेरा अंतेवासी" अपूर्ण तक नहीं है.) 3 , कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत देव बारगुणे०; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अष्टम व्याख्यान तक टबार्थ लिखा है.) कल्पसूत्र- बालावबोध", मा.गु.. रा. गद्य, आदि श्रीपार्श्वप्रणिपत्य अंति (-), (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है, "जीवता मुक्या धर्मनी प्रसंसा वाधी इतिभावः" पाठ तक लिखा है.) ९४२९० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७४-६५ (१ से ६४, ७०) = १०९, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, ६X३७-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, पं. २००० (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं, अध्ययन १६ गाथा-५ अपूर्ण तक व अध्ययन १८ गाथा २१ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक नहीं For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: चरमशरीरी इति त्तिबेमि, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ९४२९१. (+) शत्रुंजब माहात्म्य सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४११-३२३(१ से ३२३ ) = ८८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५४१०.५, ७४३२-३६). " शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. सर्ग-८ श्लोक ८५ अपूर्ण से सर्ग ९ श्लोक- ५६९ अपूर्ण तक है.) शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४२९२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ७३८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स अति: (-) (पू.वि. अध्ययन-३५ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधु केहवा छई जिणइ अति: (-). Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४२९३. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. सीघाणा, प्रले. बालमुकुंद लहीया; पठ. श्राव. धनराजजी; अन्य. मु. तुलसीराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. तुलसीरामजी का परसाद से., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, ६x४०-४२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२, (वि. १९१०, पौष कृष्ण, १२, मंगलवार) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणें कालइ चोत्था आराने; अंति: दिवसे श्रुतांग तिमज, (वि. १९१०, फाल्गुन कृष्ण, ४, शुक्रवार) ९४२९४. (+) कर्मग्रंथ १ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५९-३७(१ से ३७)=१२२, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:कर्म०टी०., संशोधित. कुल ग्रं. ९०००, जैदे., (२६४११, १५४३६-४०). १.पे. नाम. कर्मविपाक सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ३८अ-४९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: लिहिओ देवेंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-४२ से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सोपि तेन जनः, ग्रं. १८८२. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ४९अ-७४अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ; अंति: त्रुट्यंतु जगतोपि. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह अवचूर्णि, पृ. ७४अ-८५आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोडे, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सम्यग्बंधस्वामित्व; अंति: लेख्यवचूर्णिका. ४. पे. नाम. षडशीति सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ८५आ-१५९आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंति: सूक्ष्मार्थविचारणाचतुरः, ग्रं. २८००. ९४२९५. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-९(१,४६ से ५३)=४५, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११-१३४३२-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "म्हाणं चउत्थे मासे" पाठ से "सियसगुत्तस्स अज्झफगु" तक व "लस्सयमझाणासीलेस्सतहातहा" पाठ से "पालितासे भित्ता तिरित्ताकिट्ठि" तक है.) ९४२९६. (+) सिरिसिरिवाल कहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-४६(१ से ४६)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्र., संशोधित., दे., (२६४११, ६४३२-३६). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३८ अपूर्ण से ८१३ अपूर्ण तक है.) ९४२९७ (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९६, पौष शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५१+१(१६)=५२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३२-३५). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१, ग्रं.७०. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४१३ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: एहवा श्रीमहावीर चोत; अंति: श्री देवेंद्रसूरीश्वरइ, ग्रं. १५०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.ग., गद्य, आदि: ऍदवीयकलाशौक्लीं; अंति: कवि यशःसोम० सदिशा, ग्रं. १५८०. ९४२९८. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १७७९, चैत्र कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, ले.स्थल. अणहलपुरपत्तन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मानवतीरास. विद्वाननामवाला भाग खंडित है., प्र.ले.श्लो. (२८७) जलात् रक्षेत्र स्थलात् रक्षेत्, जैदे., (२५.५४११, १६x४४-४८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: मोहन० घरि मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ९४२९९ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१(१०)+१(९)=२१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ३-५४२६-३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१०७ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ० अरिहंत कहीइ; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइं ऊपला देवलोकना; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९४३०० (+) निरयावलिकासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: सव्वेसिं भणियव्वो, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पष्पिकासूत्र, पृ. १८अ-३३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३३आ-३५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३५आ-४०अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: वग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२. ९४३०१ (#) ठाणांगसूत्र की वत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७३-१२०(१ से ११६,१४५ से १४८)=५३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:ठाणांगवृ०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४८-५४). स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थान-३ अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक है.) ९४३०२ (+#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०४, आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ४०-१(२७)=३९, कुल पे. ५१, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १०४२९-३३). १.पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० जयो सामी; अंति: कायाकेरी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. मुहपति पडिलेहण ५० बोल, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: प्रथमदृष्टि पडिलेहण जे; अंति: ए छकाय विराधना परिहरू. ३. पे. नाम. ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंद मनसुध वेहरमाण; अंति: संपदा कारण करण कल्याण, गाथा-३. ५.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १८अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: धर निशदिन नमत कल्याण, गाथा-२. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ___प्रा., पद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. ७. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १८आ, संपूर्ण. ____उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देसे दीपतो गिरवो; अंति: भावसु तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. ८. पे. नाम. दीपावलीपर्व गणनो, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्री महावी; अंति: स्वामी सर्वज्ञाय नमः, मंत्र-३. ९. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण. ___संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणंदं; अंति: वाय सा अम्म सया पसथा, गाथा-४. १०. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १२. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने पंचमी स्तुति लिखा है. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय विहरंता वीस; अंति: तिहअण जिणमण वंछिय सारे, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. १४. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १५. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सह संथवे संत कल्याणदाता, गाथा-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.. ____ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: बुद्धिं वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. १७. पे. नाम. दसमरी स्तुति, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: भक्तिसूरि० बहु वित्त, गाथा-४. १८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुर वंदै पाय पंकज मोह; अंति: करे मंगल करै अंबक देवीयै, गाथा-९. १९. पे. नाम, पंचमी स्तुति, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. २०. पे. नाम, अष्टमी दिन वक्तव्या चंद्रप्रभस्वामि स्तुति, पृ. २४आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तति, सं., पद्य, आदि: सुविलसच्छरदिंदसमाननं; अंति: सुरासुरसंघनिषेविताम्, श्लोक-४. २१. पे. नाम. श्रीमंधरजी स्तुति, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुरासुर नरवर; अंति: नित कविजन मुख वरणीजी, गाथा-४. २२. पे. नाम. पजूषणापर्व स्तुति, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बलि बलि हुं ध्यावु गाउ; अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जिनसुखसूरि०शासन देव सुजाण, गाथा-४. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि ट्रेंद्रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २५. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है) २६. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तुति, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर; अंति: देवचंद्र० सिद्धाचल सिरदार, गाथा-४. २७. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्र स्तति, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरं सुखदायक मनसुध; अंति: वधै इम श्रीजिनचंदनी वाणी, गाथा-४. २८. पे. नाम. सेजय स्तुति, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ पद, मु. हितप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीसेनंजो तीरथ प्रणमु; अंति: हितप्रमोद० मन उत्छरंगे जी, गाथा-४. २९. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपज्य नरेसर हिमकर; अंति: श्रीजिनहरष० मन हरणी जी, गाथा-४. ३०. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ३०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४. ३१. पे. नाम, एकादशी स्तुति, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: सुखं विस्मत हृदः, श्लोक-४. ३२. पे. नाम. जिनचतुर्विंशति चतुर्दशी स्तुति, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कमल गवल मुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.. आदिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: युग आदि प्रथम जिनेंद्र; अंति: पदकज मधुकरी चक्रेश्वरी, गाथा-४. ३४. पे. नाम, जैनशासनदेवता स्तति, पृ. ३२आ, संपूर्ण. जिनशासनदेवता स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रत्यूहव्यूह मोहोत्कटकर; अंति: जगति विजयते वैजयंती, गाथा-२. ३५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. ३६. पे. नाम. महावीरजिन अणोझा स्तति, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ३७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३३आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: बाला पणै डावै पाय; अंति: तिहां तणा काज चढे प्रमाणै, गाथा-४. ३८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम पार्श्वजिन स्तुति दिया है. सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथभिनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. ३९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कुष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं, श्लोक-४. ४१. पे. नाम. ५ तीर्थजिन स्तुति, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. पंच तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४२. पे. नाम. से@जय स्तुति, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसे–जमंडण आदि; अंति: नंदरि तसै पाइ सेवता, गाथा-४. ४३. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ३६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिन उपदिसी मौनएक; अंति: सुख संपतिकरा संघनै सुखकरा, गाथा-४. ४४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण... २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारि अदेव हरे; अंति: विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. ४५. पे. नाम. वीसस्थानिक स्तुति, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत १ सिद्धि २ पवयण ३; अंति: सानिध करे तस चंग, गाथा-४. ४६. पे. नाम. गिरनारनेमजिन स्तुति, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-गिरिनारमंडन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: यादवकुलमंडण नेमिनाथ; अंति: अहनिसि सा अंबाइ देव, गाथा-४. ४७. पे. नाम. सीमंधरस्वामिबीज स्तुति, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, म. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जन मोहन; अंति: भीमराज निरमल न्यान, गाथा-४. ४८. पे. नाम. वीरपंचमी स्तुति, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: पंचअनंत प्रपंच रहित; अंति: भीमराज० सानिधकारी जी, गाथा-४. ४९. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ३८आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिजिणेसर; अंति: पामै सिद्ध सरूप, गाथा-४. ५०.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३८-३९आ, संपूर्ण. मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसि पावापुर सारी; अंति: भीमराज० नित दीवाली, गाथा-४. ५१.पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन भविक; अंति: भीमराज० पामीजे भववारोजी, गाथा-४. ९४३०३. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-३(१ से ३)=४७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५४-५८). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: रतः श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. "किं रत्नत्रयसेवनं" पाठांश से है.) ९४३०४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९३, चैत्र कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, लिख. श्रावि. नाथीबाई संभूदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ४-१५४२७-४८). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुन्नं३; अंति: अणीगयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगोडीपार्श्वनाथजीने नम; अंति: अतीतथी अनागत अनंत गुणो. ९४३०५ (+) सुकराजकथानक चतुष्पादिका, संपूर्ण, वि. १७६७, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५७+१(३८)=५८, ले.स्थल. भुज कच्छ, प्रले. मु. भीमसेन (लुंकागच्छ); पठ. ग. इंद्रविजय (गुरु पं. शांतिविजय); गुपि.पं. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. कुल ग्रं. २६४०, जैदे., (२६४११, १५४४१). शुकराज रास, पंन्या. मतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: आदिदेव अलवसरु प्राणनाथ; अंति: मतिहंसव्वांचज्यो लखी विसाल, ढाल-७२, गाथा-१८०८. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९४३०६. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७१, प्र.वि. जैनधर्म प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. ९४३०७. (+) कर्मग्रंथ १ से ५, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४५, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४३८-४५). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: देवेंद्रसूरि कहिउ. २. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र सह बालावबोध, पृ. १५अ-२०अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध , मा.ग., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: ते श्रीमहावीर प्रतिनसु. ३. पे. नाम. कर्मतत्त्वबंधस्वामित्व का बालावबोध, पृ. २०अ-२४अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सामान्यइ सविहु जीवा; अंति: गुणठा० अयोगा अलेश्या हुइ. ४. पे. नाम. षडशीतिकाख्य का बालावबोध, पृ. २४अ-३४अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्कार; अंति: लिखित देवेंद्रसूरिहिं. ५.पे. नाम. शतकनव्य कर्मग्रंथ का बालावबोध, पृ. ३४अ-४५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६३ तक है.) ९४३०८ (2) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४४५-४८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ के "नीणेमि नीणेत्ता आलभियाए" पाठांश तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-). ९४३०९ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५-१(१)=३४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०, ९४३५-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण ९४३१०. (+) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह व नक्षत्रविचार श्लोक, अप पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-१(३२)=३२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३२-३४). १.पे. नाम. जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, पृ. १आ-३३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मा.गु.,सं., गद्य, आदिः प्रणम्य स्वस्ति; अंति: नंदावर्त विसर्जन मंत्र, (पू.वि. "सर्वास्यदेषु" से "शांतिदेवता स्तुति" तक पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. नक्षत्रविचार श्लोक, पृ. ३३अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मुखैकदिक्ष चत्वारी; अंति: कंठे एवं भानि प्रदापयेत, श्लोक-३. ९४३११. खरतरगच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, जयतिहुअण स्तोत्र व सप्तस्मरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. ७, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, १२४३२-३७). For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. खरतरगच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण, पठ. मु. जगत्वंद्र (गुरु मु. हरभक्ति, खरतर गच्छ); प्रले. मु. हरभक्ति (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:खडाव०. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक-१० पर दी गई श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छामि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. जयतिहअण स्तोत्र, पृ. १६आ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:जयतिह. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: अभय० विन्नवइ आणंदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १९अ-२७आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हरदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सातेसमर. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र प्रतिक पाठ लिखकर छोड दिया है.) ४. पे. नाम, लघुशांति, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लघुशांति. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतां शांत; अंति: सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ६. पे. नाम. नवग्रहगर्भित स्तोत्र, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दोसावहा. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंति: ते सत्प्रलभंति शस्तम्, गाथा-११. ७. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जयज०. सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोस्तु ते, श्लोक-५. ९४३१५. (+) ओघनिर्यक्ति की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १५१५, भाद्रपद शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३६-१(२४)=३५, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४२००, जैदे., (२५.५४१०.५, २३४६२-६६). ओघनिर्यक्ति-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि: प्रक्रांतोयमावश्यकान; अंति: यो न तु भवानंगीकृत्य, (पू.वि. पाठ "संयमार्थं शोभनं" से "भावासन्नोत्यंता" तक नहीं है.) ९४३१६ (#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७३, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ११९, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. मानसिंघ (गुरु मु. सुमतिसमुद्र); गुपि. मु. सुमतिसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०, १२-१४४४२-४६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिण मह विषे विशामो पामे; अंति: तेहनो सातमो मिश्रकाध्याय. ९४३१७. (+) सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४५-५२). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: प्रक्रियां चतुरोचिताम्. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: श्रीप्रभुचंद्रकीर्तिः, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. ९४३१८. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८४, आश्विन कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११९, प्रले. गोपाल सारण पंड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४३५-५५). बहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: निट्ठवियअट्ठकम्म; अंति: हिं तहेव सुयदेवयाए य, गाथा-३५३. बहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: जयति नखरुचिरकांति०; अंति: सर्वेऽपि जिनवचनम्. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४१९ ९४३१९. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०४ आश्विन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७४, ले. स्थल. कांसपुर, प्रले. मु. मांडण ऋषि (गुरु मु. कीका ऋषि); गुपि मु. कीका ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नंदीसूत्र ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३०००, जैवे. (२६५११, ५-७४३०-३५ ). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, आदि जयइ जगजीवजोणी विषाणओ; अंति: २० एतही वीससमणुणाइ नामाइ, 7 सूत्र-५७, गाथा- ७००. नंदीसूत्र-वार्थ, मा.गु. गद्य, आदि नंदी कहतां आनंदनो; अति: एवास अनुज्ञाना नाम जाणवा. ९४३२०. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६७०, श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्र. वि. हुंडी: ज्ञाता०वृत्ति., कुल ग्रं. ५०००, जैदे., (२५.५X११, १५X४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति: (१) संशोधिता चेयम्, (२)विशत्यधिकेषु विक्रमसमाना, अध्ययन-१९. ९४३२१. (+*) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ७५, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. २८०० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ६x२६-३०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, प्र. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ काले तिणइ समइ चंपा; अंति: वइठइ श्रुतांग तिमज. ९४३२२.(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १६३६, भाद्रपद शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९३० - १ (१२९) = १२९, ले.स्थल. पाटण, प्रले. ग. श्यामल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: प्रश्नसू. प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक का प्रारंभिक पाठ नहीं है., संशोधित., जै.., (२५X१०, ७X२२-२६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध -२, अध्ययन- १० के "सुद्धो सव्वजिणाणु" पाठ तक है.) ९४३२३. पंचाख्यान चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६४, ले. स्थल, देवली, प्रले. ग. गौतमसागर (गुरु ग. कनकसागर पंडित); गुपि. ग. कनकसागर पंडित (गुरु ग. नंदिसागर पंडित); ग. नंदिसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पंचाख्यानचीपई. श्रीपार्श्वजी प्रसादात्., प्र.ले. लो. (२८३) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, (१३४३) पुस्तक लिखन परिश्रम (१३४४) अदृष्टि दोषान्मति विभ्रमेण (१३४५) वासां पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२५.५X१०.५, १७४५८). पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: प्रणम्य पूर्व अति सुगुरू कवि पूरइ आस, अधिकार-५ गाथा २६१६. ९४३२४. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६६४ आश्विन शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८७-९ (३३ से ३४,४६ से ४८,५३,७६ से ७८)=७८, प्रले. मु. गजसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: प्रश्नव्याकरणवृत्ति., पदच्छेद सूचक , पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४००४, जैदे., (२५४१०.५, १७४४२-५२). " प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि जंबू तेणं कालेणं तेण अंतिः अंगं जहा आयारस्स, अध्याय १०, गाथा- १२५० (पू.वि. "विगस्तेन" से "किं किंण कुणइ" पाठांश तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १२वी आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य अंति: (१) समाप्तानीति ब्रवीमीति, (२) संशोधिता चेयम्, अध्याय- १०. ९४३२५. (+*) आचारांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९७-६ (१,५०,९३ से १६) = ९१ पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आचारांवृ., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १७X५१-५३). आचारांगसूत्र- टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८ आदि (-); अंति (-) (पू. वि. मंगल टीका अपूर्ण से श्रुतस्कंध १ अध्ययन-४ सूत्र - १२६ की टीका अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९४३२६. (*) नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १५३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५३-२ (५ से ६) ५१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२५X१०.५, ६-२१x४६-५८). For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००, (पू.वि. "मेसेयं मसग" से "वियट्ठा जाणिया जहा" पाठ तक नहीं है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जय विषय कषायादिक जइतवान; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. ९४३२७. (+) शालिभद्र चउपई, अपूर्ण, वि. १८१५, माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६-२(१ से २)=२४, ले.स्थल. सिरीयारी, प्रले. मु. जीवणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सालिभद्र०च., संशोधित., जैदे., (२५४११, ११-१२४३०-३६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: मनवंछितफल लहिस्यैजी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१४ अपूर्ण से है.) । ९४३२८ (2) मानतंग-मानवती रास, संपूर्ण, वि. १७९९, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. अहिलाणा, प्रले. मु. हर्षसुंदर; गुपि. मु. केसरसुंदर; मु. माणकसुंदर; मु. फतेसुंदर (गुरु पं. दीपसुंदर, पूर्णिमापक्ष); पं. दीपसुंदर (गुरु पं. महिमासुंदर, पूर्णिमापक्ष); पं. महिमासुंदर (गुरु आ. सोमसुंदरसूरि, पूर्णिमापक्ष); आ. सोमसुंदरसूरि (पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४३४-४०). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: रीषभजिणंद पदांबुजे मन; अंति: मोहनविजय० घरि मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५.. ९४३२९ (+#) दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति का माहात्म्य गाथा, संपूर्ण, वि. १७८२, माघ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. ५४, कुल पे. २, ले.स्थल. मधुमतीबंदिर, प्रले.ग. वृद्धिविजय; पठ. ग. मोहनविजय (गुरु ग. वृद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ६४३५-३८). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५४अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट मोटु; अंति: सुधर्मास्वामी कहइ छइ. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति का माहात्म्य गाथा, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जभवं गणहरं जिणपडिमा; अंति: धम्मंमिय निच्चला होसु, गाथा-१५. ९४३३० (#) कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २३, प्र.वि. हंडी;कवन्नाचोपई., संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८-४०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: विकसै धरम करण मन उलसै जी, ढाल-३१, गाथा-५५५. ९४३३१. (+#) मगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. रूपसुंदर; पठ. मु. रत्नसुंदर (गुरु मु. जिनसुंदर); गुपि. मु. जिनसुंदर (गुरु मु. तेजसुंदर); मु. तेजसुंदर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:मृगावती चउपई. अंत में प्रेम विषयक दहा लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४३-४७). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी प्रणिमु; अंति: वृद्धि सुजगीसा छे, खंड-३, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (वि. ढाल ३७) ९४३३२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९६-३९(१ से १८,२५ से २८,३० से ३१,३४,३८,४१,४३ से ४५,५५,५७,६२ से ६३,६५,६७ से ६८,७२,९१)=५७, प्र.वि. हुंडी:सूगडांगसू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०,५४३७-४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ उद्देस-१ की गाथा-१० तक, उद्देस-४ की गाथा-१५ अपूर्ण से अध्ययन-४ उद्देश-१ की गाथा-३० अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४२१ सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१३ तक टबार्थ लिखा है.) ९४३३३. (+) व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित सह टीका, अपूर्ण, वि. १६६७, मध्यम, पृ. ४२-१(१)=४१, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १६००, जैदे., (२५४१०.५, १३४४३-४८). व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: गइ अ देवि मंगलु भणिवि, सर्ग-८, गाथा-७४५, (पू.वि. गाथा-८ से है.) व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित की टीका, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: रूपविशेषो ज्ञेयः, सर्ग-८. ९४३३४. (+#) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-३(५ से ७)=३९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ४४२५-३०). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-४०अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: शिवं भवतु स्वाहा, स्मरण-९, (पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-१४ अपूर्ण से नमिऊण स्तोत्र गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है., वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं दिया है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुओ अरिहंत; अंति: स्वाहा ए मंत्राक्षर जाणवो. २. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. ४०अ-४२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांति प्रतिउपशमनुं घर; अंति: मानदेव० शांति प्रति पामो. ९४३३५. आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८८, चैत्र शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र.वि. हुंडी:आचारांगसूत्र., कुल ग्रं. २६५४, जैदे., (२६४११.५, १३४४८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५. ९४३३६. (4) पंचाख्यान भाषा, अपूर्ण, वि. १७५१, भाद्रपद शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ३८-१(३७)=३७, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. विजयसोम (गुरु पं. रिद्धिसोम गणि); गुपि. पं. रिद्धिसोम गणि (गुरु पं. हर्षसोम गणि); पं. हर्षसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचाख्यान., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०-२१४४५-६०). पंचाख्यान भाषा, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: श्रीअंबा श्रीसारदा; अंति: श्रीगुणमेरुसूरि कहि सीस, अधिकार-५, चौपाई-१२०. ९४३३७. आचारांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-५(३० से ३१,३६ से ३८)=३४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, २०४४७). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-२ उद्देशक-१ के ___ "सोवज्ज किरियावि भवति" पाठांश तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९४३३८. (+#) स्तुति व छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. २०, प्रले. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ९४३०-३६). १. पे. नाम, आदिजिन छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;छंदऋषभ. आदिजिन छंद-श–जयतीर्थ मंडन, म. कविराज, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलगुरु; अंति: कविराज० लच्छि वरि, गाथा-१८. २.पे. नाम. जिनकशलसूरिजीरो छंद, पृ. २अ-६आ, संपूर्ण, वि. १९०१, भाद्रपद कृष्ण, ४, पे.वि. हंडी;दादाजी छंद. जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: कविराज० धन खरतरधणी, गाथा-५०. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, अष्टभयनिवारक श्रीपार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;छंदगो०. प्रतिलेखन पुष्पिका मे वर्ष-१८७६ मास-फाल्गुन दोहामय प्रस्तुत किया है. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसींह ध्याने धरण, गाथा-२९. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. ९आ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;सुभाषित, प्रस्तावी श्लोक. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: यस्यातं नादि मध्यं न च; अंति: सर्वैगुणाः कांचनमाश्रयंति, श्लोक-४५. ५. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;स्तुति इ०. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यात्म स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेर सामायक किधु; अंति: भावप्रभसूरि० भोगी जी, गाथा-४. ७. पे. नाम, पजूषणापर्व स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;थुई प०. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुं ध्याउं; अंति: कहै श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. ८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिणवर प्रणमुं; अंति: जिनसुखसूरि०शासन देव सुजाण, गाथा-४. ९. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाकंदं पढमं जिणंदं; अंति: अम्म सया पसथा, गाथा-४. १०. पे. नाम. सीमंधरस्वामिद्वितीया स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १२. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम "पंचम स्तुति" दिया है. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंता वीस; अंति: तिहुअण जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. १४. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १५. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सह संथवे संत कल्याणदाता, गाथा-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंति: कलित्त बह वित्त, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुर वंदै पाय पंकज मोह; अंति: मंगल करे अंबक देवीयै, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २३अ, संपूर्ण. ___आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: मदनदर्पविघातमहेश्वरं नमत; अंति: भवतु सा जिनलाभ सुखार्थदा, गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विसदसद्गणराजिविराजितं; अंति: भवतु वाग्जिनलाभसुपार्थदा, श्लोक-४. २०. पे. नाम, श्रीमंधर स्तुति, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन कृष्ण, ८. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४२३ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुरासुर नरवर; अंति: नित कविजन मुख वरणीजी, गाथा-४. ९४३३९ (+) विक्रमनरेंद्र चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १७९०, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ४२, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. ग. पद्मविजय (गुरु ग. रंगविजय); गुपि. ग. रंगविजय (गुरु ग. महिमाविजय); ग. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४-१६४३६-३९). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखस्वरो पुरण परम; अंति: मानसागर० दिन दोलत पाइजी, ढाल-५२, गाथा-११६२, ग्रं. १६२४. ९४३४० (4) मृगावती चोपई, संपूर्ण, वि. १७२५, फाल्गुन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. श्रीपुरबंदर, प्रले. मु. खेमाविजय (गुरु ग. संघविजय); गुपि. ग. संघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३६-४०). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: रिद्धिवृद्धि सुजगीसा छे, खंड-३, गाथा-७४५, ग्रं. १११०, (वि. ढाल ३७) ९४३४१ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९९-४८(१ से ४८)=५१, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी;श्रीउत्तराध्ययन वृत्ति., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४५-४८). उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ अपूर्ण से अध्ययन-४ अपूर्ण तक की टीका ९४३४२. (+#) श्रेणिकराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-१(१)=३४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, १५४४३-५४). श्रेणिकराजा चौपाई, म. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ अपूर्ण से ८८८ अपूर्ण तक है.) ९४३४३. (+) नवस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २, प्रले. पं. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १०x२५-२८). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-२१आ, संपूर्ण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: अचिरान् मोक्षं प्रपद्यते, स्मरण-९. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण. __ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांति निशांतं; अंति: श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१८. ९४३४४. (+) षडावश्यकसूत्र सह बालाबबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४१-६५(१ से ४,७,११ से १२,३३ से ६३,६५ से ७६,७८ से ७९,८१ से ८३,९२ से ९६,१००,११० से १११,११४,१४०)=७६, प्र.वि. हुंडी:षडा० बा०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४५२-५८). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पृ.वि. "कुललयं तंबोल" पाठ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) षडावश्यकसूत्र-बालाबबोध, आ. तरुणप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सकलसत्वोपकारिणी लिखिता. ९४३४५. (+) तेजसार चोपई, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २०, प्रले. पं. ज्ञानप्रमोद (गुरु पं. खेमचंद); गुपि.पं. खेमचंद (गुरु ग. रत्नविमल); ग. रत्नविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तेजसाररीचौप., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३१-३६). तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: कुसल० सहु मनोरथ फले, गाथा-४०६. ९४३४६. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-२४(१,४ से ५,७ से १०,१२,१४ से १६,१८,२० से २२,२४ से २५,२८ से ३२,३८,४०)=२२, प्रले. मु. मोहन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४३८-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदउ जा वीरजिनतित्थं, गाथा-३४९, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक, गाथा-१६ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महावीरनउ तीर्थ प्रवर्तइ. ९४३४७. (#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. पं. सुमतिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:क्षेत्रसमास. जवहरी वाड में बृहत्खरतरगच्छ उपाश्रय में प्रत लिखी गई है., त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ५-७X३८-४३). लघक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: सव्वंपि _ सव्वनमइक्कचित्ती, अधिकार-६, गाथा-२६३. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर केहवो छे जय; अंति: एहवा थइ पारिखहु चवौसही. ९४३४८. (+) २४ दंडक २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. गुमानविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय); गुपि. मु. माणिक्यविजय (गुरु आ. जिनभद्रसूरि); आ. जिनभद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०४२८-३२). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: गुणा अधिका कहिवा. ९४३४९ (#) व्याश्रय महाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०४-५२(१ से १२,२१,२४ से ३७,४०,६९ से ७२,७४,८१ से ९९)=५२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११,१७४५३-५६). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-७१ से सर्ग-७ श्लोक-६९ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-७० की टीका अपूर्ण से सर्ग-७ श्लोक-६९ की टीका अपूर्ण तक है.) ९४३५०. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७५३, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, ले.स्थल. पाटोधि, प्रले. वा. जयविमल (गुरु ग. सकलहर्ष, खरतगच्छ); गुपि.ग. सकलहर्ष (गुरु वा. विनयराज, खरतगच्छ); वा. विनयराज (गुरु उपा. ललितकीर्ति, खरतगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघयण., जैदे., (२५.५४१०,५४३६-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदओजा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) ९४३५१ (4) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. कुल ग्रं. ४५०, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, ३-५४३६-४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-९०. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: नमि० कहीइ श्रीमहावीर नम; अंति: पामइ निसंदेह जाणिज्यो. ९४३५२ (+#) गजसुकुमालमहामुनेश्चतुःपदिका, संपूर्ण, वि. १७५९, कार्तिक शुक्ल, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. पं. विद्यातिलक (गुरु उपा. पुण्यविजय); गुपि. उपा. पुण्यविजय; पठ. सा. हीराजी; सा. वीराजी; सा. रत्नाजी; सा. आशाजी (गुरु सा. फूलाजी); गुपि. सा. फूलाजी (गुरु सा. रामु आर्या); सा. रामु आर्या (गुरु सा. रुखमा आर्या), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:गयसुकुमा०चौ०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४४०-४८). गजसकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमीसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिणवर चरण नमीजे छे, ढाल-३०, गाथा-५६१. ९४३५३. (+) सूक्तावली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १३-२(८ से ९)=११, प.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११, १२४३६-४०). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २०६ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९४३५४. (+#) भोज चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:भोजचरित्रं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४४-५०). For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४२५ भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि: आश्वसेनं जिनं नत्वा गौतमा; अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-४ श्लोक-४०५ तक है.) ९४३५५. (+) सप्तस्मरण व पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ११-१४४३२-४२). १. पे. नाम, सप्तस्मरण, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत: अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेय, गाथा-१४, (वि. यंत्रसहित.) ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांतिः शांतिकरः श्री; अंति: पातु युष्मान जिनेश्वराः, श्लोक-२. ४. पे. नाम. जैनधार्मिक गाथा, पृ. ११आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: आरंभे नत्थि दया आरंभ विणा; अंति: समत्तं विणा नथी निवाणं, गाथा-१. ९४३५६. इंद्रियपराजयशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४११, ७४३४-४०). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअ सूरो सो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण तक है.) ९४३५७. (+) साधारणजिन स्तवन सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १-२४३२-३६). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) साधारणजिन स्तव-टीका, मु. जिनविजय, सं., गद्य, वि. १७१०, आदि: पार्श्वनाथं नमस्कृत्य; अंति: (-). ९४३५८. सम्मतितर्क प्रकरण-खंड-१ सह तत्त्वबोधविधायिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. हुंडी:सम्मतिप्रथमखंड., जैदे., (२५.५४११.५, १७७५२-५५). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ से है व अंतभाग अपूर्ण तक लिखा है.) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४३५९ (+#) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७६, आषाढ़ शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४५४-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सिरिचंद० अत्तपढणट्ठा, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: अर्थि हुई, ग्रं. १७५७. ९४३६० (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-१५(१ से ३,५ से ७,२२ से २९,४५)=३३, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११.५, ५४४२-४६). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से ४८९ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४३६१ (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४-२३(१ से २३)=२१, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:अंतर्वाच्य., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०-५०). For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). ७, ९४३६३. (+) विविध कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६३८, कार्तिक शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५०-३३ (१ से ३३ ) =१७, कुल पे.. प्रले. मु. गुणहर्ष ऋषि (गुरु वा. जिनहर्ष गणि, अंचलगच्छ); गुपि. वा. जिनहर्ष गणि (गुरु आ. पुण्यप्रभसूरि, अंचलगच्छ); आ. पुण्यप्रभसूरि (परंपरा आ. धर्ममूर्तिसूरि, अंचलगच्छ); राज्ये आ. धर्ममूर्तिसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१५) अदृष्टदोषात् मतिविभ्रमात् च (६४२) यावत् तिष्टति मार्त्तड, जैदे., (२६४११, १७४५३) १. पे. नाम. अमरसेनवयरसेनकुमार चरित्र दानपूजा फल, पृ. ३४अ - ३५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रपाल्य पंचमकल्प गतौ, (पू.वि. "तस्या भार्या विजयादेवी कुक्षौ" पाठ से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३५अ, संपूर्ण. पात्रफल गाथा, सं., पद्य, आदि मिध्यादृष्टीसहस्रेषु अंति: येकारयत्यत्र जिनेंद्र पूजा, श्लोक-३. ३. पे नाम साधारणजिन स्तुति प्रार्थना, पू. ३५अ, संपूर्ण साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि नेत्रानंद की भवोदघी, अंति विहिता क्षेमंकरी देहिनाम्, गाथा - १. ४. पे. नाम. दानोपरि धनदेवधनमित्र कथा, पृ. ३५-३६आ, संपूर्ण. धनदेवधनमित्र कथा-दानोपरि, सं., गद्य, आदि: (१) जोदाणं भतीए वियरई पावइ, (२) सिंहलद्वीपे सिंहलेश्वरो; अंतिः माहाविदेहे मोक्षं गतः ५. पे. नाम. ललितांग कथा, पृ. ३६आ-३९अ, संपूर्ण. ललितांगकुमार कथा, सं., गद्य, आदि अप्रैव भरतक्षेत्रे कोशांब, अंति: राजा राज्यं प्रतिपालयति. ६. पे. नाम. यतनाविषये सुसढ कथा, पृ. ३९-४८आ, संपूर्ण. सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: रायगिहे गुणसिलए; अंति: जयणं चिय धम्मकामा, गाथा - ५१९. ७. पे नाम. दानोपरि शूरपालमहाराज कथानक, पू. ४८आ-५०अ, संपूर्ण. सूरपाल कथा- दानोपरि, सं., गद्य, आदि दानधर्मधुरीणस्य भविक; अंति: मोक्षं प्रापसप्रयादि. ९४३६४ (+४) कर्पूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १३१-९९ (१ से १९) = ३२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १५-१७X४४-५४). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. श्लोक ७९ से ९६ तक है.) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विनयद्वार अपूर्ण से रूपद्वार अपूर्ण तक है. ९४३६५ (+*) वाग्भटालंकार सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., । (२६x११.५, १५-१६४५०-६०). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि श्रियं दिशतु वो देवः अति (-) (पू.वि. परिच्छेद ४ श्लोक-१५० अपूर्ण तक है.) वाग्भटालंकार - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: अन्योपि पदपंक्त्या मार्ग; अति: (-). ९४३६६. (+) छंद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५-५ (१ से ३,९ से १०) = ३०, कुल पे. २३, प्र. वि. संशोधित., दे. (२६.५५१२, ११x२८-३०). २. पे. नाम गौतमस्वामी छंद. पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुठे संपति कोड, गाथा- ९. २. पे नाम. शांतिनाथजिनी वीनती, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई हैं. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४२७ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा-२१. ३. पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. ६आ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. श्रीमंधरसामि स्तवन, पृ. ११अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लाभै० पुरी आसा मनतणी, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-३ से है.) ५.पे. नाम. संखेसर पारसनाथजीनो छंद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण, पठ. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ६. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१. ७. पे. नाम. सामलापार्श्वनाथजि तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मा.गु., पद्य, आदि: तोरी सामली सूरत पर वारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो मंगलं; अंति: समरीइ मनवंछित फलदातार, गाथा-२. ९. पे. नाम. सोलसती छंद, पृ. १४आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, पृ. १४आ-१७आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जिराउलामंडण जिनपास; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रचना प्रशस्ति की अंतिम ३५वी गाथा में "लक्ष्मीसागरसूरिंदा" तक लिखकर पूर्ण कर दिया है.) ११. पे. नाम. सोलसतीनी सझाय, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. १२. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: वलि वलि विशेष वखाणीइं, गाथा-१६. १३. पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ हैं. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: (-), गाथा-२१, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) १४. पे. नाम, अज्झावरी स्तोत्र, पृ. २१अ-२३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: शांतकुशल० फलसे सवि माहरी, गाथा-३४. १५. पे. नाम. श्रावकनी करणीनी सज्झाय, पृ. २४अ-२५आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. १६. पे. नाम, अमीझरा पार्श्वनाथजीनो छंद, पृ. २५आ-२७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.ग., पद्य, आदि: उठ प्रभात अमिझरो; अंति: नीरमल एती पुरो आसये, गाथा-१९. १७. पे. नाम. आंबिल सझाय, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: समरी श्रुतदेवी सारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा-११. १८. पे. नाम. सूर्य छंद, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सज धरियां संपत सरस उमंग; अंति: देव उजलंतवे तेज पंजर तारण, गाथा-९. १९. पे. नाम. वृहत्छांति स्तोत्र, पृ. २९आ-३२अ, संपूर्ण, वि. १९३५, पौष शुक्ल, १५, पठ. मु. रूपचंद; प्रले. मु. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखन मास "पोस वदी १५" लिखा है. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भव्याः शृणुत वचनं; अंति: जैनं जयति शासनम्. २०. पे. नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अब तो ओधारो मोहे चईए; अंति: हरखचंद० मेटीए मरनकू, गाथा-५. २१. पे. नाम. बेहारो कडो कलीजग सज्झाय, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कलीजुग, मु. प्रीतम, रा., पद्य, आदि: बेहारो कुडो कलजूग आयो बाप; अंति: प्रीतम० सुकृत एक सवायो, गाथा-१७. २२. पे. नाम. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरत्नसूरिराय, गाथा-९. २३. पे. नाम. च्यार मंगल, पृ. ३४अ-३५आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीधारथ भूपती सोहे ए; अंति: उदयरत्न भाखे एम, ढाल-४. ९४३६७. (+#) माधवानलकामकंदला चउपई, संपूर्ण, वि. १७२०, कार्तिक शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. सहिवाज, अन्य. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२-१४४३४-४२). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: जेह नर सुख पामइ संसारि, गाथा-५४६. ९४३६८. (+) जंबूद्वीप विचार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३४-४०). जंबूद्वीप विचार स्तवन, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीजिन चउवीसइ प्रणमीनइ; अंति: सुधन०भणतलां पुण्यवृंदा, ढाल-१३. ९४३६९. (#) धन्ना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१ से २)=२०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०-११४२४-२९). धन्नाअणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५१४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से २६२ अपूर्ण तक है.) ९४३७१ (+#) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १३४४२-४६). कालिकाचार्य व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कालिककुमार अश्वक्रीडा प्रसंग से गर्दभिल्लराजा प्रसंग तक है.) ९४३७३ (+) अध्यात्मोपनिषद्-१ से २ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पठ. पंन्या. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:योगशात्र, योगशास्त्रसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १५४३६-४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४३७४ (+) उपासकदशांगसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१(१४)=२५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४३६-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४२९ उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)तत्रोपासकदशाः सप्तम; अंति: (-). ९४३७५. भक्तामर स्तोत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६-२९(१ से २९)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०, १५४३५-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण से श्लोक ४३ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४३७६ (+) कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:कर्मप्रकृति., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४३२-३७). ८ कर्मप्रकृति ११ द्वारविचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (१)पन्नवणा पद २३ मि बीजे, (२)करम ८ अने प्रकृतिनि संख्य; अंति: मीथ्यात मोहनि करम बांधि. ९४३७७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२५, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १९, प्रले. श्रावि. पद्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२-१४४४०-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टम्मंगलं; अंति: दिनोप० प्रवचनगुरुणेति. ९४३७९ (+) सूक्तावलिका, संपूर्ण, वि. १८४१, फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. रायपुरनगर, प्रले. पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); गुपि.पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय); पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०-१४४२६-३६). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९४३८० (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६०५, आश्विन शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १७-३(१ से ३)=१४, ले.स्थल. आहड, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५-४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदिः (-); अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-२२८, (पू.वि. गाथा-४५ से है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: इसिउं जाणी सील पालिवू. ९४३८१ (+) नलराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नलराजा चरित्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१-४५). नलदमयंती चरित्र, प्रा.,सं., प+ग., आदि: यतः सीलप्रभावेन दुर्घ्यं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११८ अपूर्ण तक है.) ९४३८५. अनशन विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अंत में किसी सूत्र का थोडा सा पाठ लिखा है., जैदे., (२६४११, १४-१५४४२-४५). साध आराधना, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्वं ग्लानस्य संपूजित; अंति: स्वल्पत्वा चित्तस्येति. ९४३८६. (+#) उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:उपासगदसा, उपासगसू०., संशोधित. कुल ग्रं. ९२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४३-४७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. ९४३८७. वीतराग स्तोत्र सह अक्षरार्थ, संपूर्ण, वि. १५३६, मध्यम, पृ. २२, प्रले. सोमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२-४६). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम्, प्रकाश-२०. वीतराग स्तोत्र-अक्षरार्थ, सं., गद्य, आदि: ये भगवान्परात्मा परमात्मा; अंति: श्रीहेमचंद्रप्रभावात्. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४३८९ (+) अगडदत्त रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७-९(१ से ९)-८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४३६-४६). अगडदत्त रास, म. महिमासिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१८ अपूर्ण से ३८६ अपूर्ण तक है.) ९४३९१ (+) धर्मदत्त कथा-दानगर्भित, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१०(१ से १०)=१२, प्रले. मु. सदाकुशल (गुरु ग. धीरकुशल); गुपि. ग. धीरकुशल; अन्य. ग. गुणकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४-१५४४३-४५). धर्मदत्त कथा-दानगर्भित, म. विनयकुशल, सं., पद्य, वि. १६४२, आदिः (-); अंतिः कृत्वा प्रमोदात्परां, गाथा-८४५, (पू.वि. गाथा-३९५ अपूर्ण से है.) ९४३९२. (+) नंदी स्तवन व योगोद्वहनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-९(१ से ९)=५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४४-५२). १. पे. नाम, नंदी स्तवन, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नंदि स्तव, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गच्छउ जिणइ नवकार उधणियं, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ से है.) २.पे. नाम. योगोद्वहन विधि, पृ. १०अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं वार ३; अंति: (-), (पू.वि. "चंद्रमा ऊगतु ग्रही" पाठांश तक है.) ९४३९३. (+) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-८(३ से ५,८ से १२)=५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,५४२८-३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., संतिकर स्तोत्र गाथा-५ अपूर्ण तक, नमिऊण स्तोत्र गाथा-१५ अपूर्ण से तिजयपहुत्त गाथा-७ अपूर्ण तक व अजितशांति गाथा-२८ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइं माहरो नमस्कार; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. ९४३९४. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७२९, ज्येष्ठ कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. ग. सुमतिसोम वाचक; पठ. मु. उदयलाभगणि शिष्य (गुरु पं. उदयलाभगणि); क्रीत. सोहन मिश्र; अन्य. मु. प्रीतहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,१३४३५-४५). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: चक्रे बालावबोधिकाम. ९४३९५ (+#) कयवन्ना चरित्र दानविषए कथा चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(११)=११, ले.स्थल. दिल्ली नगर, पठ.सा. विमलसुंदरी महासती; अन्य. श्राव. नथमल वाघमल सेठ,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १४-१६x४२-४६). कयवन्ना चौपाई-दानविषये, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५६३, आदि: सरसवचन आपय सदा सरसति; अंति: पद्मसागर० घरि अविचल रिधि, गाथा-३९८, (पू.वि. गाथा-२५६ अपूर्ण से २७९ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४३९६. (+#) रंगरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(२)=१०, ले.स्थल. सावली, प्रले. पं. वीरविजय (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२-१४४३२-४०). नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: स्मृत्वा श्री सारदा नेमे; अंति: भणइ जयजगत्तजीवन कल्याणकर, खंड-२, (पू.वि. खंड-१ गाथा-१२ से २९ नहीं है.) ९४३९७. (+#) नंदिषेणऋषि चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. हालीवाटक, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४२१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ४३१ नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सूत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सिद्धि निति गेहिइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४२१. ९४३९८ (+) देवराजवच्छराज रास, अपूर्ण, वि. १६११ आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. १५-१ (१२) १४, प्रले. मु. विशालकुशल (गुरु ग. सुमतिकुशल); गुपि. ग. सुमतिकुशल (गुरु ग. हर्षदत्त); ग. हर्षदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १५-१७X३६-४६). देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. २६वी, आदि सकल जिनवर सकल जिनवर अंति: लइए नवनिधि ते घरबारि, खंड-६, ग्रं. ६१२, (पू.वि. खंड-५ गाथा-५ अपूर्ण से गाथा- ३५ तक नहीं है.) ९४३९९ (+) विविध बोल यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-४ ( १, ४, ६ से ७)=५. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४११.५, २५x९-२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९४४००. मारुवणी चउपड़, अपूर्ण, वि. १७५२, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २३-१ (१) - २२, ले. स्थल. अजमेर, प्रले. मु. मुकुंद (गुरु मु. दीपचंद ऋषि); गुपि. मु. दीपचंद ऋषि; पठ. सा. करमाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ढोलाचोपई., जै., (२५x१०, १४-१६९४६-५६). י ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य वि. १६७७, आदि (-) अति कुशललाभ० पामै संपदा, गाथा-७३३, (पू.वि. गाथा - १९ अपूर्ण से है.) ९४४०९ कर्मग्रंथ के यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १०-४ (१ से ४) =६, दे. (२६११, १५-२२x२२-६८). कर्मग्रंथ -यंत्र*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९४४०२ (*) धन्नारास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. लक्ष्मीप्रमोद (गुरु ग. कुमारसुंदर, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. कुमारसुंदर (गुरु ग. लक्ष्मीप्रभु, बृहत्खरतरगच्छ); ग. लक्ष्मीप्रभु (गुरु भट्टा. जिनहंससूरि, बृहत्खरतरगच्छ); 3 भट्टा. जिनहंससूरि (बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकाल गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (गुरु आ . जिनसिंहसूरि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. वि. सं. १६५०, आश्विन शुक्ल पक्ष, १०, सोमवार के दिन लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५४१०५ १४४३६-४२). "" धन्ना अणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य वि. १५१४, आदि पहिलउं पणमी पयकमल, अंतिः मतिशेखर० नवइ निधान, गाथा-३३०. ९४४०३. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. १९२०, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३०-१८ (१ से १८) = १२, ले. स्थल. आहोरनयर, प्रले. मु. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: वारेव्रत, दे. (२४४१०, १०२८-३६). ', १२ व्रतपूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य अंति: जग जस पडह बजायो रे, ढाल - १३, गाथा- १२४, संपूर्ण. ९४४०४ (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, निवातामु हरखसागर (गुरु ग. ज्ञानसागर); गुपि. ग. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x१०, ६५३६-४२). बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: माणा णलोगोचउदस रझुओ, अध्याय-५, गाथा-८८. बृहत्क्षेत्रसमास चयनित पाठ का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रीमहावीर नमीन जलसहित अंति: करी चीद राज , जाणिवउ. ९४४०५ (+) भवभावना, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये., (२५X१०.५, ११x४०-४४). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर मणि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२१ अपूर्ण तक है.) ९४४०६. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान-६ पार्श्वनेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १९५४-५५). For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन पंचकल्याणक व्याख्यान तक लिखा है.) ९४४०७. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४११, ५४३७-४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अरूपी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९४४०८ (+) आर्य वसुधारा धारणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०x४०-४२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९४४०९ (+) वत्सराज हंसराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३७-३९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-६ गाथा-८१ तक है.) ९४४१० (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४२७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ तक है.) ९४४११. (+#) दानादि शील धरम विषय सती गणावली चउपई, अपूर्ण, वि. १७६७, पौष कृष्ण, ७, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. १५-१(१४)=१४, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. मु. रूपविजय (गुरु ग. वृद्धिविजय); गुपि. ग. वृद्धिविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); पं. लक्ष्मीविजय (गुरु पंन्या. गंगविजय), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४५-५०). गणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: गजकुशल नित सुख आणंदा, ढाल-२९, गाथा-५१९, (पू.वि. ढाल-२६ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-२८ गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४४१२. (+) कर्पूरप्रकर सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)-८, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४४२-५५). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमिचरित्रका, गाथा-१७४, ग्रं. ४५५, (पू.वि. श्लोक-३८ अपूर्ण से कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: टेन अपितु सर्वस्यापि. ९४४१३. (+) गुर्वावलीनामामहाहृद, संपूर्ण, वि. १६९०, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. जयतारण, गृही. उपा. जयसोम (गुरु पंन्या. जससोम, तपागच्छ); गुपि. पंन्या. जससोम (गुरु पा. हर्षसोम, तपागच्छ); दत्त. श्राव. वीणा रत्ना सा; श्रावि. कुसभदे रत्ना सा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २२४५६). निसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६६, आदि: जयश्रियं रातु जिनेंद; अंति: ति श्रीसंघकल्पद्रमः ९४४१४. स्नात्र, दस दिक्पाल व अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १२४३८-४०). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्नात्रपूजा. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. २.पे. नाम. १० दिक्पालाह्वान पूजन, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. १० दिक्पाल आह्वान विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ऐरावतं समारूढः शक्रपूर्व; अंति: सायुधाय सवाहनाय० स्वाहा, पद-१०. ३. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४३३ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९४४१५. ब्रह्मचर्य उच्चारादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ७, जैदे., (२५४११, १५४४३-४६). १. पे. नाम, ब्रह्मचर्य उच्चारविधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: महामहोच्छवपूर्वक नालिकेरा; अंति: देवरावीइ तो सूझे. २. पे. नाम. वीसस्थानकादि सर्वतपउच्चार विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नांदि सर्व उपधान समकित; अंति: विशेष सर्व तपविधि जाणवी. ३. पे. नाम. अणसण विधि, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण... अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वेला पामें तो सर्व नांद्य; अंति: सर्व शब्द जाणिवा. ४. पे. नाम. सम्यक्त्व बारव्रत उच्चारविधि, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: बारव्रतना पोसह वहि; अंति: मेलि जाणवी द्वादसमं व्रतं. ५. पे. नाम. प्रव्रज्या विधि, पृ. ६-७आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पुत्था १ वासे २ चिइ ३; अंति: तप करे सामाचारीमध्ये. ६. पे. नाम. उपस्थापना विधि, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि मांडिने खमा; अंति: तथा उत्तर साह्मउ राखीने. ७. पे. नाम. उपधान विधि, पृ. ८आ, संपूर्ण. उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: उपधानवहनानंतर द्वादशवर्षा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मुलगी विध कहिवा" पाठांश तक लिखा है.) ९४४१६. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. जालंधर, प्रले. पं. खुस्यालविनय; गुपि.पं. दयालाभ (गुरु ग. हितप्रमोद); ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); पठ. पं. सरूपचंद्र (गुरु मु. महरचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:संघेणीसूत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४३२-३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१३. ९४४१७. (+) गणधर दोढसउ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी;गणधरदोढसउ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३८-४०). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११६ अपूर्ण तक गणधरसार्धशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समस्त विघ्नविनाशवा भणी; अंति: (-). ९४४१८. (+) चतुर्विंशतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १७२०, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हंडी:चंद्रक०चोवि०., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३०-३८). जिनगीतचौवीसी, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: प्रथम जिणसर प्रणमीइ; अंति: भंडार भरेस्यइ रे, गीत-२४. ९४४१९. उत्तम चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१(१७)=१७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १७४५०-५३). उत्तमनरेंद्र चरित्र कथा, ग. सोममंडन, सं., पद्य, आदि: भास्वान सुदिनं पुष्णनगोभि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९८२ से ९३८ अपूर्ण तक एवं श्लोक-९९१ से नहीं है.) ९४४२०. नवतत्व के बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, अन्य. सा. करी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., दे., (२४.५४११, १२४२८). For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्वमांहि रूपि; अंति: जीव थकी अनंतगुणा अधिका छे. ९४४२१. (+#) यतिदिनकृत्यं, अपूर्ण, वि. १६०४, पौष कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, ले.स्थल. लावण्यपुर, प्रले. जीवा भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १४६९, पौष, कृष्णपक्ष, २, सोमवार को लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४८४) अदृष्टिदोषा मतिविभ्रमेण, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४८-५२). साधुदिनकृत्य, आ. हरिप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दंस शिवगमी, श्लोक-४२२, (पू.वि. श्लोक-६८ अपूर्ण से जिण ९४४२२. (+) सप्तस्मरण, स्तवन, स्तोत्र व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-८(१ से ८)=१०, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३२-३५). १. पे. नाम. सप्तस्मरणं, पृ. ९अ-१५आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. २.पे. नाम. पार्श्व स्तवनं, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्रं, पृ. १६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्ततिगर्भित, आ. जिनप्रभसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि०न पीडंति, गाथा-१०. ४. पे. नाम. पव्वज्जाविहाण कुलं, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण शुक्ल, ५, प्रले. आ. देवीचंद; पठ. मु. सरीचंद (गुरु आ. देवीचंद); मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रव्रज्या कलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ५. पे. नाम, मन्हजिणाणं सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ६. पे. नाम, धम्मोमंगल सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. ___ दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ७. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १८आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ९४४२३. स्तोत्र, प्रकीर्णक व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ११, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४५२-५५). १.पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:भक्तामरपत्रम्. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रज्ञाप्रकाश. म. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणमंदिर. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४. पे. नाम. चउसरण प्रकीर्णक, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चउसरणपत्र. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ५. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व पत्र. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ६. पे. नाम. वीरस्तुति अध्ययन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुच्छिसण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा मारण; अंति: आगमिस्संति तिबेमि, गाथा. २९. ७. पे. नाम. नगइराजा सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सज्झायपत्र. करकंडुमुनि सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि वृक्ष देखी बहु फल्यो रे; अंतिः सूत्रे छह विस्तारो रे, गाथा ६. ८. पे. नाम. शासन सिणगार सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी सज्झायपत्र. साधुगुण सज्झाय, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो साध सरोमणि वंदिये; अंति: जी हो समयप्रमोद गुणगाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ९. पे. नाम. दुमहप्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी सज्झावपत्र. दूमराय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पद्म, आदि नगरी कंपिला नो धणी र अति धने रे प्रणम्या पाप पुलाय, गाथा- ७. १०. पे नाम नेमिराजर्षि सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी सज्झायपत्र. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि जी हो मिथीला नगरीनो अंतिः समयसुंदर० हो उतरीये भवपार, गाथा-८. १९. पे नाम, मूत्रपरीक्षा, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. हुंडी: मूत्रपरीक्षा. मा.गु., पद्य, आदि: पश्चात् रजनीयामे घटि; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३५ अपूर्ण तक है.) ९४४२४. (*) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २३-१६ (१ से १२,१४ से १७) =७, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है., संशोधित. दे. (२५x१०.५). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "विद्युतप्रभा गजवंतारै विषै" अपूर्ण से "मेरुगिरि" अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नही है., वि. अढीद्विप क्षेत्र, नदी, पर्वत व कालचक्र विवरण.) ४३५ ९४४२५. (+) स्तोत्र, छंद व दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७६-१९०१, मध्यम, पृ. ३३-१३ (१ से ११,२१ से २२ ) = २०, कुल पे. १६, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५४१०.५, ९४२८-३६). १. पे नाम. आदिजिन छंद-शत्रुंजयतीर्थं मंडन, पू. १२अ १३अ संपूर्ण वि. १९०१ आश्विन कृष्ण, ८, पे.वि. हुंडी छंदऋष मु. कविराज, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलगुरु, अंतिः कविराज० लच्छि वरि, गाथा- १८. २. पे नाम. दादा जिनकुशलसुरजीरो छंद, पू. १३अ १६अ, संपूर्ण वि. १९०१ आश्विन कृष्ण, ८. जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि बदनकमल वाणी विमल; अंतिः कविराज० धन खरतरघणी, गाथा - ५०. ३. पे. नाम. अष्टभयनिवारक पार्श्वनाथ छंद. पू. १६अ-१९अ संपूर्ण वि. १८७६, षष्टसेलसिद्धचंद्रयो, फाल्गुन, ले. स्थल, जालंधर, पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दै सरस्वती; अंति: धरमसींह ध्याने धरण, गाथा - २९. ४. पे. नाम. गुरुपुष्ययोग फल, पृ. १९आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-६. For Private and Personal Use Only ५. पे नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १९आ २०आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि प्रथम नमुं गणधर प्रगट अंति (-) (पू. वि. गाथा १७ कलश अपूर्ण तक हैं.) ६. पे नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. २३-२४अ संपूर्ण, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससीकरनिकर समुज्वल; अंति: सोहै पुजोनी सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ७. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है... पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि और अक्षर सब जाण दे दोय; अंतिः वतणे टहुकै जग अपणो कर लेत गाथा ५. " Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एक समो इकडोतरो मुगता वरसै; अंति: समर्थोहं ग्रहभंजनी, गाथा-२६. ९. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आलस्यं मंदबुद्धिश्च सुखना; अंति: देवे संचितोपि विनश्यति, गाथा-९. १०. पे. नाम. द्वादश भवन विचार, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. १२ भवन विचार, सं., पद्य, आदि: लग्नस्थितो दिनकरो; अंति: वयकुरु रविजस्य पीडा, श्लोक-१२. ११. पे. नाम. नवग्रहरो मुखडो, पृ. २८अ-२९आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तरुणी विधभृगु भास्करी; अंति: पस्परहिता सत्यांच दरेगता, गाथा-११. १२. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पृथ्वी मंदफला नृपस्य; अंति: गता लक्ष्मीन सापसीती, ___ श्लोक-५. १३. पे. नाम. कृष्ण सवैया, पृ. ३०अ, संपूर्ण. पृथ्वीराज, पुहिं., पद्य, आदि: धों धों कट धो धों कट; अंति: पृथ्वीराजसुं कन्हइया, दोहा-१. १४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ३०अ-३२अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: जबह मुंदन नही कीध खडग कीध; अंति: नही जाजम ही सुं काम, गाथा-२१. १५. पे. नाम. शकुनविचार गाथा, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. मु. खेम, पुहि., पद्य, आदि: आज राज पामीयो आज सगला; अंति: खेम० उद्यम आवत अंग मैन, गाथा-११. १६. पे. नाम. ज्योतिष विचार गाथा, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मेषे १६ दशा १० द्वादशे १२; अंति: कर दूसरो च्यार देत है दात, गाथा-१५. ९४४२६. (+) सप्तस्मरण व स्तुति संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १३४३२-३८). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. २अ-१२अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी;सातेस्मरण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-७, (पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बीज तिथि स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. म. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० संघतणा निसदीस, गाथा-४. ६. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ९४४२७. (+) चतरक्षरपाशककेवली ज्ञानशास्त्र व गौतम केवली, संपूर्ण, वि. १६६७, कार्तिक कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५-३७). १. पे. नाम. गौतम केवली, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. __ गणधर होरा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवाइ पएयत्थ; अंति: होड गुरुदक्खं, श्लोक-३१. २.पे. नाम, पाशाकेवली, पृ. ३अ-१३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४३७ अबयदीशुकनावली, सं., गद्य, आदि: संसारपासनाशार्थं; अंति: नात्र संदेह, प्रकरण-४. ९४४२८. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ११-१२४३६-४४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि. ९४४२९ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, अन्य. श्राव. हीराचंद मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४३५-४६). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; __ अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५०. ९४४३० (+) सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १३४३५-४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वर्ग-४ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९४४३१. (+) अंगपण्णत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३७-४२). अंगण्यात अंगपण्णत्ति, आ. शुभचंद्र, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं बुद्धं णिच्चं णाणा; अंति: सुदणाणुवदेसियं सुद्धं, अधिकार-३. ९४४३२. (+) नमस्कार माहात्म्य व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२४, वेदाक्षवसुधरा, पौष शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x११, १५४४२). १. पे. नाम. पंचपरमेष्टि नमस्कार मंत्रमयं सप्रभावकं, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. २. पे. नाम. गवडी पार्श्वप्रभु बृहत्स्तवनम्, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: जिणनाम अभिराम मंतैः, ढाल-५, गाथा-५५. ९४४३३. पंचतीर्थी स्तोत्राणि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, कुल पे. ६, प्रले. मु. जिनकीर्ति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचतीर्थीस्तोत्राणि. अंत में श्रीजिनकीर्त्तिसूरि प्रणीत लिखा हुआ है., जैदे., (२५.५४१०, १७४५४-५८). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐकारः सकल त्रिलोककमल; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शांतिजिन स्तव, आ. सोमसंदरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: श्रीविश्वसेनिजिनः, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम, नेमिनाथ स्तव, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: शब्दब्रह्मांबुराशेः; अंति: दरकरप्राग्भारगौरंयशः, श्लोक-२६. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, आ. सोमसंदरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: कीर्तिः स्फूर्त्तिमिय; अंति: वर स्वात्मावबोधं महः, श्लोक-२५. ५.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: स श्रीवीरजिनो धिनोतु; अंति: सोम० श्रीह्रीधृतिस्फीतये, श्लोक-२५. ६. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: नम्राखंडलमंडल प्रतिक; अंति: समुज्ज्वल बुद्धि लक्ष्मीः, श्लोक-१३. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४४३४. कर्मस्तव सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी कर्मस्तव, जैदे.. " (२६X११.५, ५X४२). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी ९४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अति: (-), "3 (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि तथा तिम स्तवड अंति: (-). ९४४३५. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२५x११, १३-१५X३२-३६). ,जैदे., चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., पग, आदि सामाइकावश्यक पौषधानि अंतिः प्रतिक्रमे १२४ दोषास्युः. ९४४३६. (+) श्रीपाल रास का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १३ - १ ( ५ ) = १२, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५X१०.५, २०५५-६०). श्रीपाल रास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चंग कहेता मनोहर रणरंग, अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "नरकगति १ आउखु २ आनुपूर्वी ३ कषाय" पाठ से "जूआ २ थाप्या छै पुल तेवि नस्वर छै" पाठ तक नहीं है व "ते प्रमाण बीजा पिण करवा" पाठ तक लिखा है.) ९४४३८. (*) पुरंदर चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२५.५x११, १६x४२-५०). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्म, आदि: वरदाईं श्रुतदेवता; अंति: मिच्छामि दुक्कडं दीय, ढाल १२, - गाथा - ३७६. ९४४३९. संघयणी सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदे. (२५x१०, १५४५१-५५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: उवक्कमो णुवक्कमो इयरो. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: लवलेश जाणिवानइ, ग्रं. १७५७. ९४४४० (+) पट्टावली सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १८-१(१७) १७, प्र. वि. हुंडी पट्टावली. त्रिपाठ- संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, ११-१५X४८-५४). ववली, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदि सिरिमंतोसुहहेड गुरुपरिवाड, अति (-) (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा - १९ तक है.) गुर्वावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, आदि सिरिमंतोति व्याख्या अति (-). पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९४४४१. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६४१०, १९४६२-६५) 3 अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः अति रोषोक्ता नती नमः कांड-६, ग्रं. १४५२. " १४४४२. (*) अठोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११, ११३३-४०). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु., सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम उपगरण; अंति: जण जणनइ चालि अरहियइ. ९४४४३. (+) सुक्तिमुक्तावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १८. प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ७५०, जैवे. (२६४११, ६-१५४४२-५२). " सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक १००. For Private and Personal Use Only सिंदूरप्रकर- टीका, से, गद्य, आदि वः युष्मान् पातुरक्षतु कः; अति मुक्तावली विरचिरचिता. ९४४४४. (*) भक्तामर सह टवार्थ व चौदपूर्व विषय और लेखप्रमाण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८. कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, ८X३०). Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. भक्तामर सह वार्ध, पृ. १अ ८अ संपूर्ण भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (प्रले. मु. अमरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य ) भक्तामर स्तोत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भक्त कहता भगवंत अमर अंतिः प्राप्नोति पामै काकर्त २. पे नाम. चौद पूर्व विषय और लेखप्रमाण, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण १४ पूर्व विषय और लेखनप्रमाण, रा., गद्य, आदि गंभीर तारर व पूरित; अंतिः परिणाम गुणे प्रयोज्य. ९४४४५. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३ - ७(१ से ७) = ६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X१०.५, १८x४८-५२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७६ अपूर्ण से ५३३ अपूर्ण तक है.) ९४४४६. (+) नवस्मरण सह टीका भक्तामर तक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५x१०.५, ५-१०X३२-४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवाइ मंगलम् अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. भक्तामरस्तोत्र तक है. इसके अतिरिक्त लघुशांति भी दी गई है.) . नवस्मरण-सप्तस्मरण टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. गद्य, आदि प्रणिपत्य जिनं अंति प्रसादाच्चिरं जयतु संपूर्ण. ९४४४० पौषदशमी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी पोषदशमीकथा.. दे.. (२५.५४१०.५, ८-१०x२४-२८). पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हंत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६७ अपूर्ण तक है.) ९४४४८. () वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५४११.५, १२X३८). ४३९ २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंति: वाचक यश इम बोलई रे, स्तवन- २०. · ९४४४९. (+) पाखिपडिकमणा विधि, संपूर्ण वि. १८७१ आषाढ़ शुक्ल, १०, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल, जालोर, प्रले. मु. माणकमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ११×३१-३३). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेवराविजे; अंति: माथे पगे घालणी. ९४४५०. आठकर्म का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X३६-४५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: जीव सदा उद्यम कर. ९४४५१. (#) पुरंदरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८x४४-५८). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से २२० अपूर्ण तक है.) ९४४५२. दानसीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. पं. नरसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १३५, जैदे. (२६११, १२x२८-३३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिणेसर पर नमी अंति सुंदर० सुप्रसादा रे, ढाल -४, गाथा - १०१, ग्रं. १३५. ९४४५३. (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र. वि. हुंडी: प्रश्नोत्तरसंग्रह, संशोधित, जैवे. (२६४११.५, १८४३६-४९), प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि; मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४४५४. (४) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-३ (१ से ३)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १६-१९५२३-२८). 1 For Private and Personal Use Only सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ उद्देश- १ गाथा २१ अपूर्ण से उद्देश -४ गाथा १ अपूर्ण तक है.) Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९४४५५ (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६९, नंदरसमुनिभू, कार्तिक कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. उग्रसेनपुरनगर, प्रले. उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ४४३५-३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे सेवानइं विषइ; अंति: जे नित्य सुणै भणे सांभले. ९४४५६. साधुप्रतिक्रमण की अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, अन्य. ग. हीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १७४५२-६२). साधप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अवचरि, सं., गद्य, आदि: शुभयोगेभ्यो शभयोगांतर; अंति: स्वप्नोदौ संभवतीत्यदोष. ९४४५७ (+#) प्रकर, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.८-२(१,४)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६-३९). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धर्मप्रकम-श्लोक-८ से जिनमतप्रकम-श्लोक-२० तक व स्तेयप्रकम-श्लोक-३४ से वैराग्यप्रकम-श्लोक-९३ तक है.) ९४४५८. (+) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्रतमें सप्तस्मरण लिखा है किन्तु वास्तव में नवस्मरण है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ४-८४३०-३४). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न क तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: (-), (पू.वि. बृहत्शांति अपूर्ण तक हैं.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)विहरमान अरिहंतनई नमस्कार, (२)श्रुतसागर वाचक मुखै; अंति: (-). ९४४५९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६२-५६(१ से ५६)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४२-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२९ के सूत्र-१ अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक है.) ९४४६०. उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२२(१ से २१,२६)=८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०, ६४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ के सूत्र- २३४ अपूर्ण से अध्ययन-१३ के सूत्र-४०७ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४४६१. () कुलक, स्तति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-२(४ से ५)=८, कुल पे. २७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, २३४६५-७२). १.पे. नाम. मिथ्यात्वमंथन कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: न गुले भणिए गुलियं निबे; अंति: बहुकालं ते ममीहिंति, गाथा-२६. २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वंदामि सत्तकोडी लक्ख; अंति: विदेहिइ हसंतो ते अहं वंदे, गाथा-९. ३. पे. नाम. तीर्थमाला स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नंदीसर अट्ठावया सिजय; अंति: तेसिं पणमामि भावेणं, गाथा-२, (वि. अंत में 'जं किंच नामतित्थ' स्तुति का संकेत किया हुआ है.) ४. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मो महामंगलमंगभाजां; अंति: ये रिपवस्तेषु सुहृदीशाः, श्लोक-२६. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मादरि जहर बिदरति पिदरि; अंति: कायादसारात्सारमुद्धरेत्, गाथा-९१. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र अक्षरप्रमाणादि विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रा., पद्य, आदि अडसडी १ अडवीसा २ अंति: सुम ५ एव ६ जी ७ ताव ८, गाथा- ७. ७. पे. नाम. सर्वज्ञस्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. ; साधारणजिन स्तव, सं., पद्य, आदि शांतो वेष शमसुखफलाः अंति: परिमाणगुणोसि नमोस्तु ते श्लोक -९८. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन सप्तभव स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि महसेणलक्खणसुअं चंदपह; अति: ठाणं विअरेसु पणयाणं गाथा ६. ९. पे. नाम नेमिनवभव स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तव-नव भव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नेमिरायमइजुअं थोसामि, अति: विज्जाणंदबरो होउ सयकालं, गाथा- ७. १०. पे नाम. पार्श्वजिन १०भव स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- १० भव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा. पद्य, आदि: नवहत्यं नीलाहं वामंग अंति: जाणंदयरो नमिरदेविंदो, " गाथा - ९. ११. पे नाम वीरसत्तावीसभव स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण महावीरजिन २७ भव स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि तिसलासिद्धत्यसुअं अंतिः धम्मकीत्ति० देउ मह सिद्धिं, गाथा - १०. १२. पे नाम भवियकुटुंब चरित्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, अप, पद्य, आदि पदम जिणंदह पय पणमेवी अंति: सुणत० अणि कंमडु विओड, गाथा ३६. १३. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण साधारण जिन स्तवन- धर्मप्रभावक, अप, पद्य, आदि जो न विभाव अमणह सो तसु अंतिः समं उवसग्ग परीसहे सव्वे, ४४१ गाथा - १५. १४. पे नाम, जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है... श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा., सं., पद्य, आदि: अवहीरि आतए पहुनि तिनि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६३ तक है.) १५. पे नाम सीलसंधि, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जयशेखरसूरिशिष्य, प्रा., पद्य, ई. १५वी, आदि: (-); अंति: विणु सील धंमि उज्जम करहु, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से है.) १६. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगमकल्पमहीरुहो जयति; अंति: विश्वाधिपः सर्ववित्, श्लोक- ९. For Private and Personal Use Only १७. पे. नाम. जैनधर्मप्रभावक श्लोक संग्रह, पृ. ६अ -८अ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि: कुलं विश्वश्वाध्यं च अंतिः जेण जीवइ जेणमओ सुग्गड़ जाइ, श्लोक-२४३. १८. पे. नाम. सम्यक्त्वभावनाबोध कुलक, पृ. ८आ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: सव्वइ जिणेसर भासिआइ वयणाइ; अंति: पवरं जे धम्मकलं नयाणंति, गाथा- ३८. १९. पे. नाम. मृगापुत्रमहासत्व कुलक, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: नमवि सिरि वीरजिण जणि अजण; अंति: सुहु सत्तर जाणसो उप्परे, गाथा-४२. २०. पे नाम अनाथीमुनि कुलक, पृ. ९४ ९आ, संपूर्ण, अप, पद्य, बि. १४वी आदि पणमिअ सामिअ वीर जिणि अंतिः तसु जम्म पवित्तु, गाथा- ३५. २१. पे नाम सोमतिलकसूरि विज्ञप्ति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. गुणतिलक, अप., पद्य, आदि सिरिसोमप्पह सीसं निम्मल अंति: गुणाणतिलओ० नाहणं जणाणंदओ, गाथा २०. Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२. पे. नाम. धर्मघोषसूरि विज्ञप्ति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: जगपवरसरितल्लो महामल्ल; अंति: जिम गज्झए मिच्छतरु भंजए, गाथा-२९. २३. पे. नाम, चंद्रशेखरसूरि विज्ञप्ति, पृ. १०अ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: सिरिचंदगच्छनंदण वणमंडण; अंति: सुहमइ दिज्जा गुणेहिं जुओ, गाथा-१६. २४. पे. नाम. श्रीजयानंदसूरि विज्ञप्ति, पृ. १०अ, संपूर्ण. __ अप., पद्य, आदि: सयलजण मणाणंदं मोहत मोहरण; अंति: रागा सग्गुणे जाइ सिद्धिं, गाथा-१५. २५. पे. नाम. तपागच्छीय गुरवावली, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. तपागच्छीय गुर्वावली, अप., पद्य, आदि: गोअमसामी पढमो गणिंदो; अंति: वियारा हुं तते सुक्खकारा, गाथा-१९. २६. पे. नाम. महर्षिकुलक, पृ. १०आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निज्जियवं महमहरिसि सहस्सस; अंति: सव्वेसि नमो महरिसीणं, गाथा-३२. २७. पे. नाम. द्वादशभावना कुलक, पृ. १०आ, संपूर्ण. १२ भावना कुलक, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मण मक्कड नियमण संकलाओ भवर; अंति: सोमसूरि फुडु बज्जरइ, गाथा-१५. ९४४६२. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, कार्तिक शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः शृणोति भोगं च करोति. ९४४६३. पर्यंताराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४१०.५, १५-१७४३४-३८). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मूल की गाथा क्रमश नहीं लिखा है, सूर्यचंद्रादि विमान में रहे हुए जिनबिंबादि नमस्कार अपूर्ण तक लिखा है.) पर्यंताराधना-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: देव नमस्करिज्यो हउ; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४४६५. (+) पर्यंताराधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(६)=६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,१३४४६-४८). पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-). ९४४६६. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. प्रतिलेखकने टबार्थ की जगह बालावबोध लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३३). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे धम; अंति: वंदामी जीण चोवीसं, गाथा-५०. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, म. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी करी सब कह तीर्थंकर; अंति: जिनने वांद मंगलीक भणी. ९४४६७. सिंहासनबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२१(१ से १७,२३ से २६)-७, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०, १३४३२-३६). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७३ अपूर्ण से अन्तिम चौपाई अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.)। ९४४६८. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५४१०, १२४५४-५८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: सव्वनुमइक्कचित्ता, अधिकार-६, गाथा-२६२, (वि. यंत्र सहित.) ९४४६९ (#) नवतत्त्व सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ११४२८-३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो असिद्धिगओ, गाथा-८६. ९४४७० (+) खंधकऋषि, जिनपालजिणरक्षित व अठारनातरा चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०,१३-१६४४५-४८). For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४४३ १. पे. नाम. खंधकरो चोढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:खंधकजरी०. खंधकमनि चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: सारतीनगरी सुवावणीजी; अंति: कोय करम न छुटै केहनै, ढाल-४, गाथा-२४. २. पे. नाम. जिणपाल जिणरखरो ढाल, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीणरीखरीढाल. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: महाविदेह मे०मोख रे लाल, ___ढाल-४, गाथा-६८. ३. पे. नाम. अठारै नात्रारो चौढाल्यो, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:नातार. १८ नातरा चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: चौढाल्यो नात्रातणो जी; अंति: लोहट कीयो वखाण रे, ढाल-४. ९४४७१. द्रुपदीसती चउपई, संपूर्ण, वि. १७३०, फाल्गुन कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. डीडवाणा, प्रले. पं. ठाकुरसी; गुपि.पं. धेनाजी (गुरु पं. मीमाजी); पं. मीमाजी (गुरु मु. वीकाजी); मु. वीकाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:द्रपदीचउ०., जैदे., (२६४११, १४-१५४४८-५४). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: चउपई थास्यइं तास कल्याण, ढाल-३९, गाथा-१११७. ९४४७३ (+#) कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४८-५७). कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत; अंति: श्रीसंघ वर्तमान. ९४४७४. (+) दशवैकालिक सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४+१(२०)=३५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २-४४२२-२४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-५ गाथा-३ अपूर्ण तक हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० श्रीधर्मरूपीउ मंगलीक; अंति: (-), पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४४७६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२७-९९(१ से ९९)+१(११३)=२९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ७४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), व्याख्यान-८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ "तेणं कालेणं तेणं समणेणं पासेणं" से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४४७७. (#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-१६(१ से १६)=३४, प्र.वि. हुंडी:अंतर्वाच्य. अंतिम पत्र में स्वस्तिकमय फुल्लिका है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४४७-५२). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ९४४७८. (+) दशवकालिक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. हुंडी:दश०सू०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २) ९४४७९ (+#) कयवन्ना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११,१६-१७४४७-५०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३१ की गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९४४८० (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०.३०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५२-५४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: पमतिः० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२. ९४४८१. (2) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-११(१७,२४,३१ से ३३,४२ से ४७)=३७, कुल पे. ९५, प्र.वि. हुंडी:अपजोर., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, २०-२१४५७-६२). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-मानव भव, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४७, आदि: मानव भव री तक पाई तौरखै; अंति: आसकर्ण री राखी जै टैवा, गाथा-१२. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: संसार री माया काची नै वीर; अंति: करसे आसकर्ण कहे गुर पसाई, गाथा-१३. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: अहो ग्रहै नखत्र तारा मधे; अंति: इण पाल्या खैवो पाररै, गाथा-१७. ४. पे. नाम. साधुमहिमा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साध दीठा आणंद थावै साध; अंति: रिष आसकर्ण कहै एमौ, गाथा-१२. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: अजित जिण तु साहिब सीरदार; अंति: इम कहै आसकर्ण अणगार, गाथा-७. ६. पे. नाम, औपदेशिक होरी पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक होली पद, म. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: लोक मै होली वाजै रे तिमार; अंति: आसकर्ण० होली चीत्र मास, गाथा-१३. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. __मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: त्रिसलानंदण नित नमु हो; अंति: आसकर्ण० रायण सेखा काल, गाथा-११. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-धर्म, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चेतन जी ए संसार; अंति: आसकर्ण० सार धर्म संसार मै, गाथा-११. ९.पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: अहो विमलजिणेसर वांदीयै; अंति: तीवरी चौमसै घणौ जसरै गाथा-१७. १०. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: सुमत जिणेसर जी हौ वादीयै; अंति: तणै जोडीयौ तवन उलास, गाथा-१४. ११. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: भदलपुर नगरी भली दृढरथ; अंति: गुण गाया हो तीवरी नै माय, गाथा-१५. १२. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: धर्मजिणेसर वांदीयै त्राण; अंति: आसकर्ण० धर्मनाथजी रो जाप, गाथा-१३. १३. पे. नाम, मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: मुनियसुव्रत जिण वांदीयै; अंति: आसकरण जौडीयौ जूगतसु तान, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ १४. पे. नाम. सतउपर चउढालीयो, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. श्रावकव्रत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: दूजौ व्रत श्रावक तणो; अंति: आसकरण० कट जायै पाप रे, ढाल-४, गाथा-५७. १५. पे. नाम. शीलमहिमा सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___ शीयलव्रतमहिमा सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल सुरंगी रे नित नित; अंति: आसकर्ण० सीले कुसल नै खैम, गाथा-१३. १६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. देवलोकसुख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३७, आदि: सुख देवलोकारा दीठा; अंति: आसकर्ण० रीयागाम चोमासे जी, गाथा-२२. १७. पे. नाम. समकितव्रत सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: समकित सूध आराधीयै जी; अंति: आसकर्ण० चोमासो तीवरी माय, गाथा-१५. १८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: संग न कीजे रे भीखरा मीनख; अंति: आसकर्ण० चेतो चतुर सुजाण, गाथा-२१. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. चिपके हुए पत्र है. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०. पे. नाम, श्रावकधर्म सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: देहि दगथी के मान करणावे; अंति: आसकरण० जाये गरवा भोसो जी, गाथा-१३. २१. पे. नाम. चंदणबाला चउढाल्यो, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सील समो संसार मै दूजो रतन; अंति: आसकर्ण० वरतै कुसलनै खेमो, ढाल-४, गाथा-४९. २२. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: रिषभदेव जग तीर्थनायक कीजै; अंति: रीषभजिणंद गुण गायो वै, गाथा-९. २३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्म, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: जीव सोदासून घणा कीधा; अंति: कैरो समत अठारैसौ अडतालीस, गाथा-२२. २४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: नरभव पाय लही बहु लीजै; अंति: इम कहै आसकरण अणगार जी, गाथा-१०. २५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-पापत्याग, पृ. ११अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८३७, आदि: पाप करीने प्राणीयो रे उपज; अंति: भणे रे धरमेजी विलास रे, गाथा-२२. २६. पे. नाम. मल्लिजिन गीत, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, म. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मथुरानगरी कुभ नेरेस सेवग; अंति: आसकर्ण० सीवपुर काज मलिनाथ, गाथा-१३. २७. पे. नाम, गुरुगुण पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हुं बलिहारी मेरा गुरतणी; अंति: गुरतणा आसकर्ण गुण गाया से, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: ए संसार कहो रे असार धर्म; अंति: आसकरण कीयो डेह चोमास, गाथा-१०. २९. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: साधु धीन संसार रमे रे; अंति: डेह चमासे आसकरण रे सो. गाथा-१५. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. आशकरण, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: नगर वणारसी ते शुभ ठाम; अंति: चमास० भाद्रवा मास, गाथा-९, (वि.प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ३१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. चिपके पत्र है. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३२. पे. नाम, श्रावक आलोयणा सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: पांच हुडीनो पाडीयो लाय; अंति: चालीस डेह चमास मेहमा घणी, ढाल-३, गाथा-३१. ३३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: नित प्रभातै दर्शण कीजै; अंति: पीपाड कीयौ चौमासौजी, गाथा-११. ३४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: तेहीज भारी कहमा जीव जगत; अंति: जोडी ईकीसी आगमै अणुसारोजी, गाथा-२१. ३५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जादुपतसु दैरै औ लुभाने; अंति: आसकर्ण० मुगत मझारी, गाथा-५. ३६. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जनक द्धीयाने०; अंति: आसकर्ण अणगार, गाथा-७. ३७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: तुसलानंदण वीरजिणेसर मन सी; अंति: आसकर्ण सतगुरजीरे गौड रे, गाथा-१३. ३८. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम सीमरीयै रीषभजीणंद ए; अंति: आसकर्ण० नित भर्तने होय ए. गाथा-२६. ३९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. १६आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: तप वडो से वैरागी हो वनो; अंति: पुज रायचंदजी रो दासो रे, गाथा-१२. ४०. पे. नाम. गौतमगणधर सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: गौतम गणधर लब्ध कै पातर; अंति: आसकर्ण० मैडतेनगर चोमासो, गाथा-२१. ४१. पे. नाम. औपदेशिक पच्चीसी, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. औपदेशिकपच्चीसी, म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: धेठा जीव सैसार मे फीर फीर; अंति: प्रसादथी नागौर सैर चौमास, गाथा-२५. ४२. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १९अ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: संतजिन जुं वरी हौ श्रीजिण; अंति: कहै आसकर्ण अणगार, गाथा-१३. ४३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: एकीका जीव नरभव पाय आलै; अंति: आसकर्ण० चेतो चुत्र सुजाण, गाथा-२१. ४४. पे. नाम, श्रावकधर्म सज्झाय, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: पुन्यवंत जीव जगत मै होय ऐ; अंति: आसकर्ण० चौमासै ए दाखी वाण, गाथा-२१. ४५. पे. नाम. कृष्णमहाराजा सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५५, आदि: कीसन नरेसर करी दलाली; अंति: रीष आसकर्ण ईम भासौजी. गाथा-२२. ४६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-धर्म, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: काल अनादि भमै अजीवरा कु; अंति: आसकर्ण० सैर नगीनै मायोजी, गाथा-१७. ४७. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण.. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: चरम जिणेसर वीरजी रे सासण; अंति: इम कहै आसकर्ण अणगार, गाथा-२०. ४८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: इंद्र वखाणो अभद करीनै; अंति: आसकर्ण० रायचंदजी रौ दासो, गाथा-१७. ४९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संसार, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: संसार समइ अतिय डरावणो; अंति: आसकर्ण० कीधी मैडते चौमासे, गाथा-१४. ५०.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: नित दान सुपातर दीजीयै; अंति: आसकर्ण कहै जोडी भाव सझाय, ढाल-४, गाथा-५८. ५१. पे. नाम, गुरुगुण स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: सुवनीत सैवो गुरवचन मै; अंति: आसकर्ण वंदणा हमारीजी, गाथा-१८. ५२. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. २५अ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चाल सखी गर वंदीयै गर; अंति: आसकरणजी अणगार के, गाथा-९. ५३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: दुषम आरैजी पांचमै पाम्यो; अंति: आसकर्ण० गाम निवाड रे माय, गाथा-१५. ५४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: निठ मानवरी तक पाई देख; अंति: कही फागुण वद तीथ दीन बीजै, गाथा-१४. ५५. पे. नाम, जिनातिशयगुण स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: रोम केस नै नख असोभणीए; अंति: आसकर्णगावीया ए सुण ताली०, गाथा-१३. ५६. पे. नाम. ७ नयदृष्टांत सज्झाय, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: नैहचै वात० प्रकारी लाभ; अंति: आसकर्ण० मैडते नगर मझारो, गाथा-१७. ५७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: समण सभगवो श्रीमहावीर बहु; अंति: आसकर्ण० मनवंछत मुज काज, गाथा-८. ५८. पे. नाम. गुरुगुण स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: पुज्य रायचंदजी हो धर्म; अंति: धीन मोटा अणगार ए, गाथा-३०. ५९. पे. नाम. गौतमगणधर स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: गौतम गणधर वीरना तैहस चवदै; अंति: आसकर्ण० जामणमर्ण नीवार, गाथा-१३. ६०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: श्रीमिंदर विनवू करजोड; अंति: पुज्य जेमलजीनो उपगार, गाथा-१३. ६१. पे. नाम. साधुदर्शनवंदन पद, पृ. २७अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: दर्शण कीजे मुनीराज को पोह; अंति: आसकरण कहै दीन दीन संता, गाथा-१३. ६२. पे. नाम, धन्नाकाकंदी चौढालिया, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नगरी काकंदी अत रलीयामणी; अंति: आसकर्ण० सुत्र मै जोय कै, ढाल-७, गाथा-७२. ६३. पे. नाम. मृगापुत्र पंचढालीयो, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८६२, आदि: सुग्रीवनगर सुहावणो मोटा; अंति: नीत घणु गुरना अग्याकारो, ढाल-५, गाथा-७१. ६४. पे. नाम. १२ शिक्षाबोल सज्झाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: बोल बारै कर जीवडो; अंति: आसकर्ण० कीजै गुम ग्राम कै, गाथा-९. ६५. पे. नाम. भावहोली सज्झाय, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक होली सज्झाय, म. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: मास फागण आयो जाणी मत; अंति: वीसलपुर आणंद हो, गाथा-२२. ६६. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३४अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: साधु द्धीन थे जीता मोहणी; अंति: आसकर्ण० सतगुरजी रौ दास, गाथा-२०. ६७. पे. नाम. गौतमगणधर स्तवन, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: पावापुरी नगरी जाणी वसुभूत; अंति: पुज जैमलजी मोटा सामी, गाथा-१९. ६८. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर रलीयामणौ जिन रूडौ; अंति: आसकर्ण० मौय भवसागरथी तार, गाथा-११. ६९. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ३५अ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४४९ मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: रुपजौबन तौ भौडल भलका छीन; अंति: आसकर्ण० कीयां सूख पासी, गाथा ११. - ७०. पे. नाम. ११ गणधर स्तवन, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., रा., पद्य, वि. १८४३, आदि इंद्रभूतिरी लीजे नाम तौ; अति आसकरण० तवन कीयो पीपाड, गाधा- १३. ७१. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ३५आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि वामाजी के नंदण वीनवु अर्ज: अंति प्रसादथी पीपाड चोमासी, गाथा - १४. ७२. पे. नाम. संधारा सज्झाय, पृ. ३५-३६अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: जंबुदीपरा भरत मेरे लाल; अंति: पुज जैमलजी नै नीमसकार रै, गाथा - २०. ७३. पे. नाम सतगुरुमहिमा सज्झाय, पृ. ३६अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: तारै सदा एक सतगुर तारै भव; अति सैवौ कौई पून्यवंत प्राणी, गाथा-८. ७४. पे नाम. गुरुगुण सज्झाय, पू. ३६-३६आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: सतगुर इसडो निरखु रे जिउ; अंतिः सेव्या बौहत आगै सुख पासौ, गाथा - ९. ७५. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९८४४, आदि ब्राह्मी सुंदरी दोनुं बैन अति आसकर्ण० जैमलजी रो उपगार, गाथा - १४. ७६. पे. नाम. ३५ जिनवाणीगुण सज्झाय, पृ. ३६-३७अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: पैतीसे जिणराज रे सौभे; अंति: मैडते आसकर्ण इम भाख, गाथा - १४. ७७. पे नाम. दयामहिमा सज्झाय, पृ. ३७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय दयामहिमा, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि ए तो साठ नाम दया तणा; अंतिः दया पाल्या सीवपुर वासरे, गाथा - २१. ७८. पे नाम दयादृष्टांत सज्झाय, पू. ३७अ ३७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- दयादृष्टांत, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि दवाधर्म सगला सौर देखो; अंति: आसकर्ण० कीधी दयारी सीझाय, गाथा - १३. ७९. पे. नाम. सत्यदृष्टांत सज्झाय, पृ. ३७आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि मौटो सरणी साचरो रे; अंति आसकर्ण o खजावण री ए छै ढंगो, गाथा - ९. ८०. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय पू. ३७-३८अ संपूर्ण मु. . आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: जीव च्यारूगत मै भम आयौ, अंति: आसकर्ण० सूत्र घणौ प्यासौ, गाथा - १७. ८१. पे. नाम. सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, पृ. ३८अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: सीख सुणीजो हौ निग्रंथ; अंति आसकर्ण० जैमलजी रे पसाय हौ, गाथा - १६. ८२. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: सतगुरचरण नमी करी रै सूत्र; अंति: आसकर्ण० नित नित वांदु पाय, गाथा-१७. ८३. पे, नाम, औपदेशिक सज्झाय-परोपकार, पृ. ३८आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: अरिहंतादीक साध थया ज कै; अंति: आसकर्ण कहै पर उपगारे, गाथा-१६. ८४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-चिंता, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: चिंता न कीजै रै सूग्यांनी; अंति: कहै आसकर्ण पर उपगार, गाथा-१३. ८५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३९अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: खंती कैता खीम्या करै कोईक; अंति: आसकर्ण जौड सुख पायौ परमौ, गाथा-१२. ८६. पे. नाम. पल्योपममान सज्झाय, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: सो वरसारा जाणजौ रे दीवस; अंति: आसकर्ण० हुवै सफल अवतारौ, गाथा-१२. ८७. पे. नाम. आचार्यगणवर्णन सज्झाय, पृ. ३९आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: छतीस गुण आचार्य तणा जी; अंति: आसकर्ण० जैमलजी रै पसाय, गाथा-१८. ८८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: ए संसार असार जी हो तन धन; अंति: पूज जैमलजी नै नीत नमै, गाथा-१३. ८९. पे. नाम. सतीदृष्टांत सज्झाय, पृ. ४०अ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: ब्राह्मी ने वलै सुंदरी; अंति: आसकर्ण० भजन कीया सुख सार, गाथा-११. ९०. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ४०अ, संपूर्ण. ___ मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: सीतलनाथ जपौ सुखदाई भजन कर; अंति: उपगार पूज जैमलजी रोकासो, गाथा-९. ९१. पे. नाम. नागिलाशेठ सज्झाय, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. नागिलाशेठ सज्झाय-चतुर्थव्रत, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अरिहंत सीध साहु नम गुरना; ___ अंति: मीछाम दुकडं मौ भणीए, ढाल-७, गाथा-५२. ९२. पे. नाम. केशीगौतम सज्झाय, पृ. ४१अ-४१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी नित नम; अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-४ के दोहा-१ तक है.) ९३. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. ४८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: (-); अंति: आसकर्ण० मीछाम दुकडं मौय ए, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ९४. पे. नाम, देवकी ७ पुत्र सज्झाय, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: देवक राजारी जाई; अंति: आसकर्ण० नीर्जरा रे काजी, गाथा-१७. ९५. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ४८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु गजसुखमाल मुनिसर अत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ९४४८२. (+#) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१-३(१ से ३)=३८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४३६-४४). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ से २७६ तक है.) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाधा १२ अपूर्ण से २७६ अपूर्ण तक है.) ९४४८४. (+) उवाई सूत्र, संपूर्ण, वि. १६३६, आश्विन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल श्रीमालपुर, प्र. वि. हुंडी. उवाइसूत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. १२००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५.५x१०, १५X४८-५०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं काले० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र- ४३. ९४४८५. पाक्षिक चैत्यवंदन, पुण्यप्रकाश स्तवन व स्तवनचीवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३ ९ (१ से ९) = २४, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१०, ११x२७-३०). १. पे. नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. १०अ ११ आ. संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्म, वि. १२वी, आदि: सकलाईत्प्रतिष्ठानमः अति श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-३१. २. पे नाम. पुन्यप्रकाश श्रीवीरजिन स्तवन, पृ. १९आ-१८अ संपूर्ण. " पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि सकल सिद्धिदायक सदा, अंतिः नामे ४५१ पुण्यप्रकाश ए, ढाल -८, गाथा - १०२. ३. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १८अ -३३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आनंदघनचौवीसी पत्र. मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन- २४. ९४४८६. (#) नलदमयंती रास-१ से ५ खंड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, अन्य. मु. रतनचंद (गुरु मु. तिलोकचंद, खरतर गच्छ); गुपि. मु. तिलोकचंद (खरतर गच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १६x४५-४८). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६७३ आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख अति (-), प्रतिपूर्ण. ९४४८७. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, संपूर्ण, वि. १७९४, चैत्र शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. भट्टनेरनगर, प्रले. ग. कुशलविजय (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि. मु. रत्नविजय (गुरु ग. शुभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सम्यक्तकौ०., संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १९५५-६०). 1 सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४५७, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य; अति विपर्ययादिष्यते बंधः, पद- ४४४, ग्रं. १२५५. ९४४८८. (+) कल्पसूत्र-व्याख्यान ४ सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-३ (१ से ३)=१०, प्र. वि. हुंडी : चतुर्थवाचना., संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०, १७४८-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (प्रति अपूर्ण, पू.वि. त्रिशलारानी को बैठने हेतु भद्रासनप्रदान प्रसंग अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९४४८९. (+#) पाक्षिक सूत्र व क्षामणानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, अन्य. मु. वल्लभसौभाग्य (गुरु पं. सुजाणसोभाग) गुपि पं. सुजाणसोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने मेस्सौभाग्य व सिंहसौभाग्य को मंगल रूप में नमन किया है. अंतिम पत्र पर सं. १८७४ में प्रत लेन-देन संबंधी विवरण है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३X३६). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ - ११आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे अ तित्थे अति जेसि सुअसारे भत्ति २. पे नाम श्रामणानि, पृ. १९आ- १२अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंति मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप ४. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४४९० (#) लघुसंग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १६३९, भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. प्रत में लघुसंग्रहणी सूत्र लिखा है किन्तु वास्तव में बृहत्संग्रहणी सूत्र है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ९४३०-३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीर जिणतित्थं, गाथा-२८०. ९४४९१. (+) समयसार का आत्मख्यातिटीकागत कलश, संपूर्ण, वि. १७५३, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. मसुदानगर, प्रले. ग. युक्तिसागर (गुरु पं. विचारसागर); गुपि. पं. विचारसागर (गुरु पं. जसवंतसागर पंडित); पं. जसवंतसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३१-३२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: नमः समयसाराय; अंति: वामृतचंद्रसूरेः, अधिकार-९, श्लोक-२७८. ९४४९२. (+#) अंतकद्दशांग सूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, प्रले. पं. दयाकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १३-१५४३४-४६). अंतकद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं.७९०. अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंतिः विधीयतां सर्वथा, वर्ग-८. ९४४९३. (+) रामचरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-६(१ से ४,७ से ८)=८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३०). रामचरित्र रास, वा. विनयसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ गाथा-७७ अपूर्ण से सर्ग-३ गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ९४४९४. सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(१,८)=९, प.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:सुरसुंदरी., जैदे., (२६४११, १५४४२-४८). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से १८९ अपूर्ण तक ____ व गाथा-२१६ अपूर्ण से ३०८ अपूर्ण तक है.) ९४४९५. दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०, १३४४४-४६). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. २अ-२०अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-३ की गाथा-१ से है., वि. चूलिका २) २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रनियुक्तिगाथा, पृ. २०अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा; अंति: पुच्छा कहणा अ विआलणा संघे, गाथा-४. ९४४९६. (+) भक्तामर स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-११(१ से ११)=६, कुल पे. ४, पठ. पं. सुगालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, ११४३०-३७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १२अ-१५आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम, शांति स्तोत्रम्, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: रिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४. पे. नाम, मांगलिक श्लोकादि संग्रह, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव अभिनंदन; अंति: जैनधर्मोस्तु मंगलम्, श्लोक-६. ९४४९७. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-६(१ से ६)=१२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०,१३४४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ की टीका अपूर्ण से ४२ की टीका अपूर्ण तक है., वि. मूल श्लोकों का प्रतीक पाठ लिखा है.) ९४४९८. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १४८४, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२५, आदि: वंदित्तु वांदां कउण सव्व; अंति: जिननई वांदु नमस्करउ. ९४५०० (+) बृहत्क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५२-५८). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: (-); अंति: सोमति सोहेयव्वो सुयहरेहिं, गाथा-३८४, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से है.) ९४५०१ (+) विचारषट्त्रिंशिका व नाभेय स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११,८-९४२२-२६). १.पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिकारूपार्हद्विज्ञप्ति सह स्वोपज्ञ अवचूरि, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सत्त; अंति: गजसारेण अप्पहिआ. गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचरि, म. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्, ग्रं. २१६. । २. पे. नाम. नाभेय स्तवन सह अवचूरि, पृ. ५आ-९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिल पणमिअ देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-अवचरि, सं., गद्य, आदि: श्रीविजयतिलकमहोपाध्य; अंति: कविनाम निष्कलंक. ९४५०२ (#) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०५, माघ, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ९-३(२ से ४)=६, ले.स्थल. जगतारणनगर, प्र.वि. खंडित पत्र बृ.क्षे.समास का होना चाहिये., मूल व टीका का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५४१०.५, ७४४६-५०). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१५३, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ७० अपूर्ण तक नहीं है.) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ नमस्कार करीनइ; अंति: अधिक समयखेत्तनी परधि कही. ९४५०३ (#) भाषागणमयान्यष्टकानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.६, कल पे. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४१०, १५४४६-५०). १. पे. नाम. सज्जनाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अक्ख हरइ अंधार तास कुण; अंति: हेम०तु सज्जण गुण कहि सका, गाथा-८. २. पे. नाम. दुर्जनाष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पर अवगुणसुं प्रीति वित्त; अंति: हेम० कुसंगा संग न कीजीइ, गाथा-८. ३. पे. नाम. कर्मलेखाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अधिक तेज आदीत सखगि लहुइ; अंति: हेम० भलो हुइ वखतई भलइ, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. परदाराष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: परनारीसुं प्रेम रूप देख; अंति: कामिणी जोवण दोहरु जालवइ, गाथा-८. ५. पे. नाम. प्रीत्यष्टक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पयसुं मंडे प्रीति भलइ जल; अंति: आरिखइ सा कहइ हेम साचा सही, गाथा-८. ६. पे. नाम. लोभाष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: कणवृत्ति कर तु कोइ सुखइं; अंति: हेम० काइ लोभि काया कसउ, गाथा-८. ७. पे. नाम. गजाष्टक, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिवर माहि गयंद चालि; अंति: हेम० बल सिरिखां पाखइ बहसि, गाथा-८. ८.पे. नाम. करभाष्टक, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: रूप महारमणी कवघ कुण; अंति: हेम० पछतावा म म करि पसू, गाथा-८. ९.पे. नाम. क्रियाष्टक, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: न क्युं वास वनखंडि न क्यु; अंति: हेम० नरचंदि नाम चाडे गया, गाथा-८. ९४५०५ (+) विविध कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६x४९-५२). विविध कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अथ गुणसुंदरीनी कथा भद्दल, (२)भद्दलपुरनगरे अरिकेसराजा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यशोमती कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ९४५०६. (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १६९६, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २५-७(२,५ से ९,२४)=१८, ले.स्थल. नागपुर, पठ. श्रावि. इंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १२-१३४३६-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. काव्य-४ से १३ व ४१ से ४२ नहीं है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)श्रीमहावीर प्रणमी; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणीनगरीइं वृद्ध; अंति: कीधउ मोटी म महीमावंत हवउ, कथा-२८. ९४५०७. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११-१२४३६-४०). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण, वि. १७३९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, ले.स्थल, वीरलीगाम, पठ. मु. मयगल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: नियपइ सुदाणओ अइरा, गाथा-५. ९४५०८.(+) सुरसुंदरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १७११, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६-१८४४६-५४). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धरमने करवा ए भीम; अंति: एम भणे आनंदपूर, ढाल-२१, गाथा-५१०. ९४५०९ (+) मायापिंडग्रहणे भावनाविषये आषाढभूतिरिषि संबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. पं. नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आषाढप्र०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४५४-६०). For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४५५ आषाढाभूतिमुनि प्रबंध-मायापिंडग्रहणे, मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १६२४, आदि: सुखनिधान जिनवर मनि; ___ अंति: साधुकीरति०सुणता आणंद, गाथा-१८२.. ९४५१० (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४६-४८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२२ अपूर्ण से ५२८ अपूर्ण तक है.) ९४५११ (+#) जयविजय चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१(१४)=१४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४३४-४४). जयविजय चौपाई, म. धर्मरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६४१, आदि: जिण चउवीसह पय नमी वली; अंति: धरमरतन०निधान दिन दिन वाधइ, गाथा-३४५, (पू.वि. गाथा-३०२ से ३२७ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४५१२. (+#) पुण्यसार व गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२५, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४२-५०). १. पे. नाम, पुण्यसार चोपई, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुण्यसार चोपई. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिरायनंदन नमुंशांति; अंति: पुण्य० नवनिधि हुइ तसु गेह, ढाल-९, गाथा-२०८. २. पे. नाम. गुणावली चोपई, पृ. ७अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुणावली रासपत्र. गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: प्रणमं चउवीसे जिनरा; अंति: ज्ञान० सवे मनवंछित पावंति, ढाल-१६. ९४५१३. अठाईमहोत्सवसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. मोरवणनगर, जैदे., (२६.५४१२, ६-१४४३८-५०). अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० रायगहे नगरे; अंति: ते संसार सागरं तिरंति, (संपूर्ण, प्रले.पं. वल्लभसौभाग्य (गुरु पं. गुलालसौभाग्य, तपागच्छ); गुपि.पं. गुलालसौभाग्य (गुरु पं. देवेंद्रसौभाग्य, तपागच्छ); पं. देवेंद्रसौभाग्य (गुरु पं. सुमतिसौभाग्य, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे चोथो आरोते समे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वरसनी तपस्या कीधा लाभ होइ" तक लिखा है., प्रले. पं. चंद्रसोभाग्य (परंपरा पं. गुलालसौभाग्य); गुपि. पं. गुलालसौभाग्य (गुरु पं. देवेंद्रसौभाग्य, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) ९४५१५ (4) केसीवचनाप्त परदेसी प्रबोध, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रावण कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. सारंगपुर, प्रले. ग. धर्मरत्न; राज्यकाल गच्छाधिपति कल्याणरत्नसूरि (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रदेशी रास., कुल ग्रं. ९००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, १५-१६x४४-५०). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, म. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानचंद०समकित सुद्ध आधार, ढाल-४१, गाथा-५८७. ९४५१६ (+#) वरदत्तगणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हंडी:सौभाग्यपंचमी., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११-१३४३४-४२). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कनककुसल० मेडतानगरे, श्लोक-१५२. ९४५१८. चउवीसदंडिक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१०, १२-१५४२०-३०). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२५ अपूर्ण तक है.) ९४५१९. भगवतीनी टीप, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, ४४-५०४२५-३५). भगवतीसूत्र-टीप, मा.गु., गद्य, आदि: ११ नवकार उद्देशाना नाम ११; अंति: (-), (पू.वि. "अणंतरोववनए णं भते" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४५२०. (*) १२ भावना विवरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६४११, १३X३८-४२). १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि अनित्यभावना असरणभा० अंतिः भावणरह विषद् उज्जम करिवउ ९४५२१ (७) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२-१ (१०) = ११, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५.५x१०, ११४४४-५२). " www.kobatirth.org कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४ (पू.वि. काव्य-३५ से ३७ नहीं है.) 5 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः किल इति संभावनायां; अंति: संपदः प्रभास्वर झलहलती छइ. ९४५२२. शंखेश्वरपार्श्वजिनादि संबंधकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, जै. (२६११.५, १४४३८-४२). " १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वप्रभु संबंध, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन संबंध कथा-शंखेश्वर, सं., प+ग., आदि: नत्वा शंखेश्वरं देवं मनो; अंति: देवबिभुं जीयाच्चिरं भूतले. २. पे नाम सरस्वतीकुटुंब संबंध, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. सरस्वतीकुटुंबसंबंध कधा, सं., प+ग, आदि बापो विद्वान् बापपुत्रोपि अति विद्वान् सर्वत्र पूज्यते. , ३. पे. नाम. विद्वद्गोष्ठि संबंध, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभायां०; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, ४. पे. नाम. क्रीडाचंद्र संबंध, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. क्रीडाचंद्रसंबंध कथा, सं., गद्य, आदि: क्रीडाचंद्रो नृपति मिलन; अंति: घनकपोती हुंकृतैः कुंथतीव. ५. पे. नाम विक्रमादित्योत्पत्ति संबंध, पू. ४आ-५आ, संपूर्ण 9 विक्रमादित्योत्पत्तिसंबंध कथा, सं., गद्य, आदि पूर्वोक्ता विक्रमादित्य अंति विक्रमादि० इत्याख्यां वदी. ६. पे. नाम. सिंहासनद्वात्रिंशिका २४वीं कथा शालिवाहनोत्पत्ति संबंध, पृ. ५आ - ७आ, संपूर्ण. सिंहासनद्वात्रिंशिका, सं. गद्य, आदि (-); अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मुंजवृत्तांत अपूर्ण तक , श्लोक-२१. लिखा है.) ९४५२३. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण संपूर्ण, वि. १७९३, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. सोजतनगर, प्रले. मु. जगरूपविजय (गुरु मु. राजविजय); गुपि. मु. राजविजय (गुरु मु. रूपविजय); मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०, १२३६-४०). " लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपयपयद्विय, अति: कुसलरंगमयं पसिद्ध अधिकार-६, गाथा-२६६. ९४५२४. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०, ११x२८-३६). साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अंति: (-), (पू.वि. जयवीरायसूत्र तक है.) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतनइ नमस्कार हुवो; अंतिः For Private and Personal Use Only (-). ९४५२५. (*) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी: प्रश्नोत्तररत्नमाला, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५४११, १३x४२-४८). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र अंति: कंठगता किं न भूषयति श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-खालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि जिनवरेंद्र, अति: जाणिइ पुण्य हुइ इसिउ अर्थ. ९४५२६. (+) पर्यंताराधनासूत्र, संपूर्ण, वि. १६४७, आषाढ़, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. २४४, जै, (२५.५१० ५ १३x४४-४६). पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि प्रथम इरिआवही; अंति धामं नायब्बो वीरियायारो. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४५७ ९४५२७. (+#) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-३(५ से ७)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १८४५२-५८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०२ अपूर्ण से ३४५ ___ अपूर्ण व ४४० अपूर्ण से नहीं है.) ९४५२८. (+#) सप्तस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२०(१ से २०)=७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४४१०,१२४३४-४०). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. २१अ-२७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७, (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा-२६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. २७अ-२७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) ९४५२९ (+) इलाकुमार चौपाई रास, अपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, ले.स्थल. भिनमाल नगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०,१५-१६४३६-४२). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा; अंति: न्यानसागर० अजुआलइ छे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९, (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-१६ गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४५३०. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४२-५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४१ अपूर्ण से ५०७ अपूर्ण तक है.) ९४५३१ (+) विचार स्तव व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-६(१ से ३,११ से १३)=११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,१५४३४-४४). १.पे. नाम. विचार स्तव सह बालावबोध, पृ. ४अ-८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१० से है.) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जयवंत तिलक प्राय छे. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ८अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीवीरजिनमानम्य बालानां, (२)जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-). ९४५३२. (#) २४ दंडक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(६ से ७)=७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०,१५४३४-४०). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक१ लेस्या २ ठिति; अंति: (-). ९४५३३. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, १४ नियम गाथा व प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०, ९४३६-४२). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय; अंति: नायव्वो विरीआयारो. २. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. ११आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: १ सचित्त, २ दव्व; अंति: न्हाण१३ भत्तेसु१४, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ११आ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नवकारसहिअ१ पोरिसि२; अंति: (-), (पू.वि. उपवास पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४५३४. (+) जीवविचार प्रकरण सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १७४५०-५६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीव; अंति: सकलसंघाय श्रेयसेस्तु. ९४५३५ (+) चतुर्विंशतिजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, पठ. सा. चंपकलक्ष्मी; सा. कनकलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,१३-१५४४०-५२). स्तवनचौवीसी, उपा. धर्मकीर्ति वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जुगवर श्रीजिनचंद नमि कवि; अंति: धरमकीरति एक चित्तइ गुणधरी, ढाल-२४, गाथा-९२. ९४५३६. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३८-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से ४९९ अपूर्ण तक है.) ९४५३७. (#) कल्पसूत्र-तृतीय वाचना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. हंडी:कल्पार्थ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १५४३८-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४५३८.(+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. ६, प्रले. ग. रामचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ८४४०-४४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, ग. रंगविमल, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारनै विषे नही सुख; अंति: सुख लहइ जीव शास्वतुं ठाम. ९४५३९ (+) सील रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पठ. मु. देवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११-१३४४०-४८). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: एम विजयदेवसुरीस कइ, गाथा-६९, ग्रं. २५१. ९४५४०. धर्मधान, संपूर्ण, वि. १९१७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. कुंवरजी स्वामी; गृही. श्रावि. जेष्टीबाई; अन्य. मु. अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धर्मधांन., दे., (२५४१०.५, १२-१४४३२-३६). धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंति: इं धर्मध्यान ध्याइइं. ९४५४१. (+) विक्रमराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,१३४३४-३८). विक्रमराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०८ अपूर्ण से ३९८ अपूर्ण तक है.) ९४५४२. (+) दंडक स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४४, श्रावण कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. जयहंसमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४०-४४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इहां चोवीस दंडकानइ; अंति: दंडक विचार रूप स्तवन. ९४५४३. (+#) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४२-५२). कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: किं पर जण बहुजाणावणाहिंष; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४५९ ९४५४४. (*) षडावश्यक सूत्र व पार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी षडावश्यक. विविध सूत्रों की हुंडी उस सूत्रपाठवाले पत्र पर दी गयी है. सूत्रों के पद, संपदा, अक्षर व सर्वाक्षर संख्या पाठ के साथ-साथ मिलती है., संशोधित, जैवे. (२५४१०.५, १५४५६-६०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम घडावश्यक सूत्र. पू. १आ-५आ, संपूर्ण वि. १६५० आश्विन शुक्ल, ९, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक- ३आ पर लिखी है. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं; अति सर्वत्र सुखी भवति लोक. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पू. ५आ-६आ, संपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुअणवरकप्परुक्ख अंतिः सिरिअभवदेव विनवइ आदि, गाथा- ३०. ९४५४५, (+४) चतुसरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी : चतु०, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, ९३०-३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. ९४५४६. (+) उत्तमकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४१- ३४ (१ से ३४ ) =७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११, १४४३४-३८). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. ढाल ३० गाथा-२ से ढाल-३६ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९४५४७. (+) समयसारकलशगत वस्तुतत्त्व अधिकार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५x११, ११४२९-३९). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का हिस्सा वस्तुतत्त्व अधिकार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि अत्र स्वाद्वादशुद्ध्यर्थं अति (-) (पू.वि. श्लोक-४ तक है.) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का हिस्सा वस्तुतत्त्व अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि भूयः अपि कहतां ज्ञानमात्र अति: (-). ९४५४८. योगशास्त्र १ से २ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैये. (२५x१०.५, १३-१५X४०-४६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अंति: (-), प्रतिपूर्ण ९४५४९. (+) उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२, अन्य श्राव वक्तावरमलजी केसरीमलजी गादीया; ? आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसी अन्य के द्वारा "वक्तावरमलजी केसरीमलजी गादीवा व्यावर मे आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीविजयधर्मसूरिजीने वोहराई विर संवत २४३९ श्रावणवदि ९" ऐसा उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६.५४११, १३४३८-४२). "3 उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहेबव्वं पयतेण, गाधा-५४४. ९४५५०. वलकलचीरी चउपई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. मतिहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : वलकलची चउपई., जैदे., (२६X११, १६-१८x४६-५२). वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: प्रणमुं पारसनाथनइ; अंति: समयसुंदर ते सुणइ रे, गाथा - २२६, ग्रं. ३५०. ९४५५१. (+) जिनाज्ञा स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित द्विपाठ, जैवे. (२६४११, १५-१८x४४-४७). जिनाज्ञा स्तोत्र, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि सरसति सामिणी हृदयकमलि घरी, अंतिः सदा हुई इष्ट महासिद्धि ए. गाथा - ५४. For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनाज्ञा स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)सव्वाइ जिणेसर भासिआइ वयणा, (२)राग प्रणीत सन्मार्गना; अंति: पाठ अंशइ लिखी देखाड्यु. ९४५५२. (+) अहमदाबाद से शत्रुजयतीर्थ छरीपालितसंघ वर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(४)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३-१५४४५-५४). अहमदाबाद-शत्रुजयतीर्थ छरीपालितसंघ वर्णन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी समरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७९ अपूर्ण से ९७ अपूर्ण तक व गाथा-१४८ अपूर्ण से नहीं है.) ९४५५३. सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-४(१,७ से ८,१७)=२६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;सूगडासू., जैदे., (२५४९.५, ११४३८-४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उद्देस-१ गाथा-१२ अपूर्ण से अध्ययन-१ उद्देस-१६ सूत्र-४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९४५५४. (+#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१७४३८). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, म. रत्नशेखर, सं., पद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हतं; अंति: विमत्सरेरूपकृतिप्रवणै, श्लोक-८००. ९४५५५. (+) सौभाग्यपंचमीमहात्म्यविषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १६७०, ?, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ.५, प्रले. श्राव. धनजी मूलजी सहिसवीर दोसी; अन्य. ग. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि.ले.सं. में मात्र १६७ लिखा है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४४४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; ___ अंति: कनककुसल० मेडतानगरे, श्लोक-१५२. ९४५५६.() नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. जयसागर गणि,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ४४३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: निग्गएहाइ तवेण परीसुज्जइ, गाथा-५५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ अजीवतत्त्व२; अंति: आत्मा शुद्धि नीरमल थाइ. ९४५५७. (+#) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(३)=१३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १६४४६-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से ६० अपूर्ण तक नहीं है.) ९४५५८.(+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र व पच्चक्खाण सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, पठ. सा. पदमासिद्धि (गुरु सा. मानसिद्धि); गुपि.सा. मानसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०, १२४२९-३७). १.पे. नाम. साहुपडिकमण सुत्र, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पोरिसि साढपोरसियं; अंति: (-), (पू.वि. आयंबिल पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ) उत्तमकमार चरित्र व वरदत्तगणमंजरी कथा, संपर्ण, वि. १७५७, आश्विन अधिकमास शक्ल, ३, शक्रवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. तक्षकपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५४१०.५, १६४५४-५८). १.पे. नाम. वस्त्रदानफले उत्तमचरित्र कथा, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदि: भक्त्या वस्त्राणि; अंति: मुक्तिं यास्यति. For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४६१ २.पे. नाम. सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; ___ अंति: कनककुसल० मेडतानगरे, श्लोक-१५१. ९४५६० (#) वंदित्तुसूत्र, महावीर स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १५५३, मध्यम, पृ. १७-८(१ से ५,८ से ९,११)=९, कुल पे. ५, ले.स्थल. सामेरनगर, प्रले. ग. अनंतकीर्ति; पठ. श्रावि. हीराई रत्नपाल साह; अन्य. श्रावि. चंगाई रत्नपाल साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ११४४०-४५). १. पे. नाम, वंदित्तसूत्र, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से ४७ तक है.) २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १०अ-१३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १३अ-१६अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५. पे. नाम. नमिऊणभयहर स्तवन, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२४, (वि. अंत में अलग से पार्श्वजिन स्तोत्र का फलश्रुति श्लोक-१ दिया है.) ९४५६१ (+) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५-३(१,२३,३२)=३२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४८-५०). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१ ढाल-१ की गाथा-४ अपूर्ण से खंड-६ ढाल-१० की गाथा-२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९४५६२. (+#) वसुदेव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीवसदेव चु., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११४३०-३४). वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: सकल मनोरथ सिधि करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४२ अपूर्ण तक है.) ९४५६३. (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-१(९)=३०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १२६०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४३९-५८). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: जीयात् श्रीसंघो राजहंसवत्, (पू.वि. "धिग् मया ज्ञेया" से "चतुरंगुलता" तक का पाठांश नहीं है.) ९४५६४. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९५-७५(१ से ७५)=२०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सू०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०, १५४५४-६०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१७ अपूर्ण से वर्ग-७ अपूर्ण तक है.) ९४५६५ (#) दृष्टांतशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४७, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. भिणायनगर, पठ. ग. अनोपसागर (गुरु पं. महिमासागर गणि); गुपि.पं. महिमासागर गणि (गुरु मु. अजितसागर); प्रले. मु. अजितसागर (गुरु ग. कल्याणसागर); गुपि.ग. कल्याणसागर (गुरु ग. चारित्रसागर, तपागच्छ); ग. चारित्रसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में एक प्रास्ताविक दृष्टांत दोहा लिखा है., अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१०.५, ५४३२-३४). For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं; अंति: धीरैर्विशोध्यं वरै, श्लोक-१०२. दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी श्रीऋषभदेवनइ; अंति: न करवी पंडितइ सुद्ध करवं. ९४५६६. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. अमृत (गुरु आ. जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनसागरसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसरि, खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पाखीसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ९४५६७. (+#) शीलविषये चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्रले. ग. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२-१४४४०-४२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: कथामकरोत् पाठकराजवल्लभः, श्लोक-१२३२. ९४५६८. (+#) कपणसंवाद कवित्त व वैराग्यशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ६x४७-५२). १. पे. नाम. कृपणसंवाद कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लच्छ ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: कृपणि कृपणिने पूछियौ; अंति: तु बहुर न तैरे संग मीलु, गाथा-३. २.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ.१आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: एह संसार में जे पदार्थ छै; अंति: (-). ९४५६९ (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीअंतर्वाच्य., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १५४४८-५४). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ "अन्येषां तु कल्पते" से "चतुरंगुलतो नालं छित्वा" तक है.) ९४५७० (+#) १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, नवतत्त्वसूत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ११-१२४३७-३८). १. पे. नाम. १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धाय अरिहा अजिण; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-४. २. पे. नाम. नवतत्त्वसूत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: वंझ कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६२. ५. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लिहिओ पडिअज्जवाओ ओदहिणामा, गाथा-४४. ९४५७१ (+#) आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १८४०, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पाटोधि, पठ. श्राव. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आणंदरी संधि., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३-१५४३२-३५). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: श्रीवर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणै मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. . For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४६३ ९४५७२ (#) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४२-४५). चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीवर्धमानाय, (२)अर्हतः परया भक्त्या; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अणुव्रत व्याख्यान तक है.) ९४५७३. (+#) गणधरदउढसयं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटा दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ५४३४). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा-१५०. गणधरसार्धशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समस्त विघ्नविनाशवा भणी; अंति: धर्माथी विणसइ परहउ थाइ. ९४५७४.(+) चतुःशरणादि प्रकीर्णक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२-५७). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम, आउरपच्चक्खाण, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदक्खाणं, गाथा-६८. ३. पे. नाम. भत्त परिन्ना, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणु; अंति: सुक्खं लहइ मुक्खं, गाथा-१७२. ४. पे. नाम, संथारा पइन, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: चंदा सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२२. ९४५७५ (+#) कर्मग्रंथ १ से ६, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ६, प्रले. ग. सुमतिसागर; पठ. मु. साधुरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५.५४१०, १३४४४-४८). १.पे. नाम, कर्मविपाक, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: भणिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: तेअं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीतिकाख्यम्, पृ. ६आ-१०अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८७. ५. पे. नाम, शतकसूत्र, पृ. १०अ-१४अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-९९. ६. पे. नाम. सप्ततिकासूत्र, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहत्तर० होइ नवइड, गाथा - ९४. ९४५७६. (+) निरियावली सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४-१ (१) ३३, कुल पे. ५. प्र. वि. हुंडी निरय०सू०. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०, १३X३८-४२). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. २अ १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा. गद्य, आदि (-); अति सव्वाणियवाणिनेयव्वाणि, अध्ययन-१० (पूर्ण, पू. वि. सूत्र ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन - १०. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र. पू. १५ आ- २९अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन - १०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र. पू. २९-३१अ, संपूर्ण, प्रा., गद्य, आदि जड़ णं भंते समणेणं०: अंतिः वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन १०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३१अ - ३४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा. गद्य, आदि जड़ णं भंते० पंचमस्स अति: (-) (पूर्ण, पू. वि. "सव्वदुक्खाण अंतं काहिति एव" पाठ तक है, अंतिम किंचित मात्र पाठ नहीं है.) ९४५७७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका व कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २६वी, मध्यम, पू. २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल १५७२, अक्षर फीके पड़ गये हैं, जैवे. (२५.५x१०.५, १७४६२-६८). ग्रं. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य वि. १४२६, आदि पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति पमतिः ० प्रायशः संति. भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, आदि: पुरामरावती जयिन्यां; अंति: धर्मं च पालयामास, कथा-२८, ग्रं. १५००. ९४५७८ (+) भगवती बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १५x२२). भगवतीसूत्र- बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: सर्वोपि भगवतीसत्कः. ९४५७९. (*) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. खुश्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, 1 प्र.वि. हुंडी:कालिकाचार्य., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x१०.५, १३X३४-४२). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि प्रणम्य श्रीगुरुं अंति: आज्ञा प्रवर्तयः. ९४५८० (+) शीलविषये माधवानलकामकंदला चतुपदी, संपूर्ण, वि. १७९३ श्रावण शुक्ल १२, रविवार, मध्यम, पृ. २२, ले. स्थल. पाली, प्रले. ग. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, १३x४२-४५). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्म, वि. १६१६, आदि देवि सरसति देवि अति: कुशल०सुख पायें संसार, गाथा-५५२. ९४५८१. (#) प्रदेशीराजा चौपई, अपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३०-१ (२३) =२९, ले. स्थल. खैरवानगर, प्रले. पं. खंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. माणभद्रजी सदा सहाय छै. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०, १२X४०-४२). " प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिआ; अंति: पालसी ते उतरसी भवपार, ढाल-३८, गाथा-७००, (पू.वि. ढाल २८ की गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल ३२ की गाथा-१० तक नहीं है.) ९४५८२. (*) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र सह व्याख्यानटीका, अपूर्ण, वि. १६७१, मध्यम, पू. ४६-८(२५ से ३२) ३८, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा जैवे. (२५x१० १३०४६-५२) For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४६५ ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० पुत्थभारेहिं, (पू.वि. गाथा-९ से है व बीच के पाठांश नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक-९ से लिखा है.) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र-व्याख्यानटीका, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अअआउम् ॐ साधनायां तथा; अंति: व्याख्यान तथा टीका कृतेति, (वि. गाथा-८ से टीका उपलब्ध है.) ९४५८३.(+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-२०(१ से २०)=१८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५४-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ से १४६ तक बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४५८४. (+#) माधवानल चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१ से २)=२०, पठ. मु. प्रेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रहेलिका दहा दिया है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३९-४७). माधवानल चौपाई, उपा. कशललाभ, मा.ग., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: नर सुख पामइ संसारि, गाथा-५५२, (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से है.) ९४५८५ (#) सम्यक्त्वकौमुदी कथा व बीजक, संपूर्ण, वि. १६१८, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. सा. विजयमति (गुरु सा. सौभाग्यमति); गुपि. सा. सौभाग्यमति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४७-४९). १. पे. नाम. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, पृ. १अ-२७आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: तस्माद्धर्मोविधीयतां, पद-४४४. २.पे. नाम. सम्यक्त्वकौमुदी का बीजक, पृ. २७आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वकौमुदी-बीजक, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९४५८६. ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-९(१ से ९)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १०-१३४३३-३८). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१७ अपूर्ण से रचनाप्रशस्ति अपूर्ण तक है.) ९४५८७. (+) शुकराज कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)१३, अन्य. मु. हरखसागर (गुरु ग. ज्ञानसागर); गुपि. ग. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२-४८). शुकराज कथा-शजयमाहात्म्यगर्भित, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कथासौ लभतां प्रथाः, (पू.वि. "कामिनीवर अजराअमर" पाठांश से है.) ९४५८८. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-२(१,२३)=२२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं. २१००, जैदे., (२६.५४११, १६४५३). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. राजा-चिकित्सक संवाद अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९४५९० (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, आषाढ़ शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. अलवर, प्रले. ज्वालानाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशाश्रुतस्कंध., संशोधित. कुल ग्रं.८००, जैदे., (२५.५४१०.५, ८-१३४६२-६८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: उवदंसेति त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं. १३८०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टबार्थ क्रमशः नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४५९१ (+) ओघनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-१(३३)=३३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४४-५६). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंते वंदित्ता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०८४ अपूर्ण से गाथा-१११९ अपूर्ण तक व गाथा-११५३ अपूर्ण से नहीं है.) ९४५९२. (+) षष्ठिशतक प्रकरण सह शब्दार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सठिस., संशोधित., जैदे., (२६४११, ७X४१). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: श्रीअरिहं देवो सुगुरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५९ अपूर्ण तक है.) षष्ठिशतक प्रकरण-शब्दार्थ, सं., गद्य, आदि: अर्हन् देवः सुसाधु गुरु; अंति: (-).. ९४५९३. (+#) पुष्पमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४२-४६). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से ३९३ अपूर्ण तक है.) ९४५९४. (+#) जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १७३२, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. रिणी, प्रले. ग. राजसुंदर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४६-५६). जंबूस्वामी रास, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: जोति पुरातन मन धरइ; अंति: नवनवी साता सही, अधिकार-४, गाथा-१३५३, (वि. ढाल ५५) ९४५९५ (4) विशेषशतक, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रावण कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. गुढा, प्रले. मु. लब्धिचंद्र (गुरु पं. कल्याणनिधान); गुपि.पं. कल्याणनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १८५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २१४४३-६२). विशेषशतक, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १६७२, आदि: सुधर्मस्वामिनं नत्वा; अंति: समयसुंदर०कृत शतकमिदं, गाथा-१००, (वि. अंत में विषयसूची दी है.) ९४५९६. (+) माधवानल चौपई, संपूर्ण, वि. १७३०, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २३, प्रले. ग. तत्त्वविजय; पठ. ग. दयाविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४३२-४२). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: कुशल सुख पामें संसार, गाथा-५५२. ९४५९७. विपाकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-६(३ से ८)=१२, प्र.वि. हुंडी:विपा.वृ., कुल ग्रं. १०००, जैदे., (२६४११, १४४६०). विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्धमान; अंति: मदभयदेवाचार्यस्येति, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. ९००, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ अपूर्ण से अध्ययन-२ अपूर्ण तक की टीका नहीं है.) ९४५९८. सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-१५(१,३ से ४,१३ से १६,१९ से २६)=१९, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सूगडांगटबो., जैदे., (२६४११, ५४२९-३३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-४ अपूर्ण तक, गाथा-१२ अपूर्ण से गाथा-२७ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नही है.) ९४५९९ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्ववृ., संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२६.५४११, १७X४६-५०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा रपुण्णं ३पावा; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शतानां सेधनादनेकसिद्धाः. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९४६०० (+) सामाचारी प्रकरणादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६२४, आषाढ़ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ५, ले.स्थल. निबाजनगर, प्रले. मु. पद्मचंद्र (गुरु उपा. नयशेखरगणि, धर्मघोषगच्छ); गुपि. उपा. नयशेखरगणि (गुरु आ. कुमुदचंद्रसूरि, धर्मघोषगच्छ); आ. कुमुदचंद्रसूरि (धर्मघोषगच्छ),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १९४५७-७०). १. पे. नाम. सामाचारी प्रकरण, पृ. १आ-१९आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयारमयं वीरं वंदिय; अंति: जिआ जरमरणविवजिअंठाणं, द्वार-२१, ग्रं. ११७६. २. पे. नाम. जलयात्रा विधि, पृ. १९आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पंचशब्दादिपूर्वकं जलाश्रय; अंति: धपात् क्षेपश्च कार्यः. ३. पे. नाम. अंबिकादेवी क्षेत्रपालादि सर्वप्रतिष्ठा विधि, पृ. १९आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ओं क्षिः नमः अधिवासना; अंति: औं ह्रीं क्ष्मां स्वाहा. ४. पे. नाम. भूतबल्यादि शांतिबल मंत्र, पृ. १९आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं५ ॐ नमो; अंति: (१)तुट्ठिपुटठि० भवंतु स्वाहा, (२)बिंबस्य स्वाहा. ५. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___सं., गद्य, आदि: सम्यक्त्वधारिणा वृद्धि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक अंश है.) ९४६०१. (+#) उत्तमचरित्रराजस्य चतष्पदिका, अपूर्ण, वि. १६१६, श्रावण शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, प्रले. भैरवदास पांडे; पठ. सा. वीबो महासती (गुरु सा. गुणवदे महासती); गुपि. सा. गुणवदे महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, प्र.ले.श्लो. (११४८) यादृसं पुस्तिकिं दृष्ट, (१३४२) जलं रखे थलं रखे, जैदे., (२६.५४११,११४३८-४४). उत्तमकमार चौपाई, म. महीचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १५९१, आदिः (-); अंति: महीचंद० सवि सुख विलसाहि, गाथा-४५१, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) ९४६०२. सुरसुंदरी चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१(१)=२४, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३२-३८). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-१२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ९४६०३. (+#) आणंद संधि, अपूर्ण, वि. १७२९, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११-१४४३६-४६). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: पभणै मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ९४६०४. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २००-१७९(१ से ९१,१०१ से १०६,११० से १९०,१९३)=२१, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४१०.५, ९x४२-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ 'वण्णउ तउणं तेसिं' से 'चउत्थस्स निक्खेवउ' तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९४६०५. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-२९(१ से २६,४१ से ४३)=१६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०.५, ७-१३४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. देवानंदा द्वारा चौदस्वप्न दर्शन प्रसंग से दस अच्छेरा वर्णन प्रारंभ तक है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४६०६. (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रमकलिका टीका-नवम व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८१९, आषाढ़ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. लक्ष्मीवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१०.५, १७-१९४४८-५२). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, प्रतिपूर्ण. ९४६०७. (+#) स्तोत्र व प्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ३६-४(२२,३० से ३२)=३२, कुल पे. २५, प्र.वि. ताडपत्र शैली में भी पत्रांक दिया गया है. अक्षरांक नहीं बल्कि मध्यभाग में गोलचंद्रक में पत्रांक है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४-१६४५२-५८). १. पे. नाम. श्रावकविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जै.क. धनपाल, प्रा., पद्य, आदि: जत्थ पुरे जिणभवणं; अंति: जिणधम्मवएससलिलेण, गाथा-२३. २. पे. नाम. दानविधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोवग्गह दाणं दिज; अंति: लोयणाण धम्मो मणे ठाइ, गाथा-२५. ३. पे. नाम. नवकारफल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवकारफल कुलक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: घणघाइकम्ममुक्का अरहं; अंति: संसारो तस्स किं कुणइ, श्लोक-२६, (वि. गाथांक पूर्वकृति से क्रमशः दिया है.) ४. पे. नाम. चैत्यवंदना प्रकरण, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनविधि कलक, प्रा., पद्य, आदि: तिन्नि निसीही तिन्नि; अंति: धम्मो आणाइ पडिबद्धो, गाथा-३४. ५. पे. नाम. सम्यक्त्व कुलक, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. चैत्यवंदन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊणमणंतगुणं चउवयणं; अंति: हणपहे नीसेससुक्खावहे, गाथा-२७. ६. पे. नाम, वंदनक भाष्य, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. गुरुवंदन भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: मुहणंतय २५ देहा २५; अंति: उत्तमद्वेय वंदणयं, गाथा-२७. ७. पे. नाम. पडिक्कमण समाचारी, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्म नमिउं देविंद; अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स, गाथा-३८. ८. पे. नाम. साधर्मिक कुलक, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. __ साधर्मिकवात्सल्य कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: कयपुन्ना जे महासत्ता, गाथा-२५. ९. पे. नाम, उपदेश कुलक, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. उपदेशमणिमाला कलक, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जीवदयाइ रमिज्जइ इंदियवग; अंति: जिणेसर० विमलं उवएसमणिमालं, गाथा-१३. १०. पे. नाम. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, पृ. ७अ-१८अ, संपूर्ण. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १८अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: धन्योहं मम मंदिरं; अंति: पंचैते अक्षयो निधिः, श्लोक-५. १२. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. १८अ-२३अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: नातः परं ब्रुवे, प्रकाश-२०, (प.वि. प्रकाश-१४ श्लोक-९ अपर्ण से प्रकाश-१८ तक नहीं है.) १३. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, पृ. २३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org ४६९ सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमंडलमणिमयमौलिमाल अंति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 १४. पे नाम ऋषभनाथ स्तोत्र, पृ. २३आ- २५अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी:, श्लोक-४४. १५. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. २५-२६आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमबद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्येते, श्लोक-४४. १६. पे नाम. नाभेवचरित्र स्तोत्र, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणमुसभमुभयं अति देहि मवं नेहि परमपर्य, गाथा २५. १७. पे नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. २७-२८अ संपूर्ण. शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि अपडिहय धम्मचक्केण; अंति: गय जिणवल्लहपयं बेसु गाथा - ३३. १८. पे नाम, नेमिनाथ चरित्र. पू. २८अ २८आ, संपूर्ण, नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि मवनाहि सरिस विलसि देहपहा; अंति: जिणवल्लह पत्त कुणसु सिवं, गाथा- १५. १९. पे नाम पार्श्वजिन चरित्र, पृ. २८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि; अंति: सिवसुक्ख पत्त जय, गाथा - १५. २०. पे. नाम दुरिअरयसमीर स्तोत्र, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) २१. पे. नाम आराधना सूत्र, पृ. ३३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोमप्पह० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा ५४ अपूर्ण से है.) २२. पे. नाम. चउसरण प्रकरण, पृ. ३३-३४आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: वंझ कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा - ६३. २३. पे नाम. नवतत्त्वविचारमय स्तोत्र, पृ. ३४आ- ३५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-नवतत्त्वविचारगर्भित, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: सामिय सोहगभार जगउज्जोय; अंति: जयसायर० वयणि रस जगतारणो, गाथा - २५. For Private and Personal Use Only २४. पे नाम शाश्वतजिनभवन स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिउसहवद्धमाणं; अति तु भवियाण सिद्धिसुह, गाथा २४. २५. पे नाम. समवसरणविचार विज्ञप्ति, पृ. ३५-३६आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु.. पद्य वि. १६वी, आदि: जायव कुलसिंगार; अंतिः सोमसुंदर ० आणतीय ते लहई ए. कडी-३३. ९४६०८. (+) श्रीपालराजा कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ११-१६X३८-४३). श्रीपालराजा कथा, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी आदि अरिहाई नवपयाई अंति (-), (पू. वि. मदनमंजरी पाणिग्रहण प्रसंग तक है.) ९४६०९ (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-३ (११ से १२,१५) = १४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित, जैये. (२५.५x१०.५, ८४३४-३८). יי Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि वीरं जयसेहरपयपट्टिय अंति: (-). (पू.वि. गाधा - १५१ से १८३ तक गाथा २१२ से २२७ अपूर्ण तक व गाथा २५५ अपूर्ण से नहीं है. ) ९४६१० (+) सात स्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी साते समरण. संशोधित. दे. (२४.५x१०.५, १७४३४-३८). नवस्मरण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं हवइ मंगलम् अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. अजितशांति तक लिखा है.) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४६११. (*) अजियसंति स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. प्रत के दाहिने भाग पर पत्रांक- १९ से २३ भी लिखा है, अतः संभव है कि नवस्मरण की प्रत में से यह भाग बिखर गया हो. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैये., (२५x१०.५, ९४२६-२८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा - ४१. ९४६१२. (*) स्तवन, स्तोत्र व छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-७(४,७ से १,१२ से १३,१६) =११, कुल पे. १४, प्रले. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंद); गुपि. मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४४१०.५, १५X३४-३८). १. पे नाम दुर्गा छंद, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. भुजंगीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार मंत्र उद्धरणी बाहण; अंति: भणै सुपरि भणंता सुंदरी, गाथा-३८. २. पे. नाम अबका छंद, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. शारदादेवी छंद, मु. हर्ष, पुहि., पद्य, आदि आदिशकति अंबा सुविजाणी; अंति: हर्ष इम० सेवकजन बंछित फलै, गाथा - १०. ३. पे. नाम. बाला स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. , सं., पद्य, आदि: ऐं आणंदवल्ली अमृतकरदले; अंति: यस्तु स चिरायुः सुखी भव श्लोक-४. ४. पे नाम. लघु स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जयिनी सर्व्वदेवीं नमस्ते, गाथा-५, (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से है.) ५. पे नाम. सरस्वतीदेवी २१ नाम स्तुति, पृ. ५अ संपूर्ण प्र.ले. लो. (१०८५) यादृशं पुस्तकं दृष्टा. सं., पद्य, आदि: वाग्देवी वरदायिका भगवती; अंति: लक्ष्मी च चंद्रानना, श्लोक - १. ६. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: भलु आज भेद्यं प्रभुः पाद; अंति: पार्श्वचक्रे समयादि सुंदर, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. ५आ. ६अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरो; अंति: चूरे आनंदवरध इम विनवे, गाथा - ९. ८. पे. नाम. पास छंद, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग; अंति: मेधराज० त्रीभुवनतीलो, गाथा-६. ९. पे. नाम जीरापल्ली स्तोत्र, पू. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तव जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीवामेवं विधुमधु, अंति (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) १०. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. श्लोक ५७ अपूर्ण से ७९ अपूर्ण तक है.) ११. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ११अ १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि (-); अंति: पद्मावती स्तोत्रम् श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक- १०० १२३ लिखा है.) १२. पे नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. १४-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) १३. पे. नाम, निरंजनाष्टक स्तोत्र, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरंजनाष्टक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मै नमो देव निरंजनाय श्लोक-८, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक- ५७-६४ लिखा है.) १४. पे. नाम गउडी पार्श्वनाथ छंद. पू. १७-१८आ, संपूर्ण , " पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सूर; अंति: कुशल० करि धवल गुडधणी, गाथा - १८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक-६५-८२ लिखा है.) ९४६१३. (*) आवश्यकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४-३ (१ से २,११)=११, प्र. वि. हंडी अवसग, संशोधित, जैदे. (२५x१०.५, ४-६४३६-४४). " ४७९ , आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-): अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र- १०५ (पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. अध्ययन- २ सूत्र ४ अपूर्ण से है व बीच के पाठ नहीं है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वो० वो अन्यथी वोसिरइ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९४६१५. आर्यवसुधारा महाविद्या, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); गुपि. पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, १२X३६-४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९४६१६. (*) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७ आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, गुडली, प्रले. पं. ऋषभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११, ५२२-२६). "" नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४६. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ०थकी विपरीत ते अजीव; अंति: हुआ० अनंता गुणा छे. ९४६१७. (*) सम्यक्त्व संभवनाम्नि महाकाव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५१०५ १८ २०६२-६६ ). "". सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हं नमस्यामि; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग -८ श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ९४६१८. (४) भाष्यत्रय की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ११-२ (१ से २९, प्र. वि. हुंडी श्री प्रत्याख्यानभाष्यावचूर्णि मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०, २२-२४४७४-८२). भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति पच्चक्खाणम० सुगमा, (पू.वि. चैत्यवंदन भाष्यगाथा १७ की अवचूरि अपूर्ण से है.) . ९४६१९. (+) श्रावकदेवसीप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५९६, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल. अमदावाद, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६५६, जैदे., (२५.५X१०.५, ५X४०-४४). . देवसिप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत प्रतइ माहरु; अंति: चुवीस तीर्थंकर प्रतिइं. ९४६२०. (+) आतुरप्रत्याख्यान व भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४८-५२). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक की अवचूर्णि, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य वि. १५वी, आदि अथातुरप्रत्याख्यानस; अति सर्वकर्मणामित्यर्थः. " २. पे. नाम भक्तिपरिज्ञा प्रकीर्णक की अवचूर्णि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: भृञ्धातुर्धारणे पोषणे च; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ की अवचूर्णि अपूर्ण तक है.) ९४६२१. (+) प्रव्रज्यायोगादि विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १६५६, कार्तिक कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९-१(१)=१८, ले.स्थल. नंदरबार, प्रले. पं. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१८४४८-५४). प्रव्रज्यायोगादिविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: चेईए सुत्त विहिणाउ, (पू.वि. सम्यक्त्व आरोपण विधि अपूर्ण से है.) ९४६२२. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:क्षेत्रसमास., संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४३४-३८). बहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: ताण समत्ताइं दक्खाइं, गाथा-१३७. बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जलसहित मेघ जेह; अंति: तेहनां समापत्यां दुक्खा . ९४६२३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४३४-३८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमज्जिनपतिं नत्वा, (२)जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: ऋषभादि अनेक सिद्ध १५. ९४६२४. (+#) विदग्धमखमंडन काव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४-१६४५०-५४). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःखमहागदा; अंति: मेकांत मदनोत्तरम्, परिच्छेद-४, श्लोक-२७६. विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शास्त्रस्यादौ निष्प्रत्यू; अंति: कामेन उत्कृष्टं. ९४६२५ (2) कर्परप्रकर सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९९-८८(१ से ८८)=११, प्र.वि. हुंडी:बा०करप्रकरण., कुल ग्रं. ५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५४-५८). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमिचरित्रका , श्लोक-१७९, (पू.वि. श्लोक-१२७ से है.) कर्परप्रकर-बालावबोध, उपा. मेरुसंदर, मा.ग., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (१)तादिक गुण छे जेह तणा, (२)कृता मया नंदताद्ग्रंथः. कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), कथा-१५७, (पू.वि. वीरकथा अपूर्ण से है.) ९४६२६. तिर्थंकरनो चोसठियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, प्रले. मु. जसोजी ऋषि; पठ. मु. हीराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र में नंबर नहीं लिखा है, परंतु कृति अपूर्ण है अतः पत्रांक ६ काल्पनिक दिया है., दे., (२५.५४१०.५, १३४२९-३१). २४ जिन ६४ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: रिषभदेव सव्वट्ठसिद्धथि; अंति: सिद्ध ठाण पावापूरि ६४, (पू.वि. सुमतिजिन बोल-४८ से महावीरजिन बोल-११ तक नहीं है.) ९४६२७. (+) मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८-४८). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन चउवीसइ नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८८ अपूर्ण तक है.) ९४६२८. (#) स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. ९,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १७X६०-६४). १. पे. नाम. शत्रुजयद्वात्रिंशका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४७३ शत्रुजयद्वात्रिंशिका, आ. चंद्रशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: शत्रुजयक्षोणिधरावतंसं; अंति: दृढमनानान्यत्किमप्यर्थये, श्लोक-३२. २.पे. नाम, वीर स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. चंद्रशेखरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरं स्तौम्यहं ज्ञान; अंति: हे वाकिभावं मम देव देयाः, श्लोक-१२. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशैवेयं यादवविशाल; अंति: सुगतिः पंचमं पंचमी वा, श्लोक-२४. ४. पे. नाम. साधारण स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सर्वज्ञविज्ञ स्तव, सं., पद्य, आदि: जय त्वं जगतां नाथ जय; अंति: कुर्यात् प्रसीद परमो मयि, श्लोक-१०. ५. पे. नाम, मुनिसुव्रतस्वामीद्वात्रिंशिका, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तव, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीकैवल्यावगमविदिता; अंति: भगवन् कारुण्यवारां निधे, श्लोक-३२. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: जगत्त्रयी पूज्यपदारविंदान; अंति: कर्मक्षयजां च सिद्धिं, श्लोक-८. ७. पे. नाम. सिद्धपुर स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-सिद्धपर, पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: सिद्धपुराभिधनगरवतंस; अंति: तिष्ठति तत्र च मोनपुरः, श्लोक-१०. ८. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भावना भावितानाम्, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-२२ से है.) ९. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: अरूपिणो रूपविशेषितात्मन; अंति: तदा मम विधेहि रक्तं मनः, श्लोक-३३. ९४६३०. (+) गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२-४६). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: गौतमादि गुरु नत्वा; अंति: (१)श्रीसंघः प्रवर्त्ततां, (२)सौभाग्यगुणैः प्रपन्नाः. ९४६३१ (2) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. पुरुषोत्तमविजय (गुरु पं. कस्तुरविजय); गुपि.पं. कस्तुरविजय (गुरु पं. रूचिविजय); पं. रूचिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३४-४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: ___ संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२, (वि. १८०८, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंति: गंभीर सूतरू पी या समुद्रथी, (वि. १८०८, पौष कृष्ण, ११, मंगलवार) ९४६३२. नवतत्त्व प्रकरण सह वार्तिक विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-६(१ से ६)=८, जैदे., (२६४१०.५, १९-२१४४६-५४). नवतत्त्व प्रकरण-२९ गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. नवतत्त्व प्रकरण-वार्तिक, उपा. लाभरत्न, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: विजयतां सद्वाच्यमानं भुवि, (पू.वि. "अचेल जे फाटा मइला" पाठ से है.) For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४६३३. (+) धर्मशिख्या प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. वा. पद्मरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७४११, १०४३०-३२). धर्मशिक्षा प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नत्वा भक्तिनतांगकोऽ; अंति: रून्द्रे नरः सादरम्, श्लोक-४०. ९४६३४. (+) कालसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)=६, प्रले. ग. मेघविजय (गुरु ग. तत्त्वविजय); गुपि. ग. तत्त्वविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ३-४४४०-४४). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: धम्मघोष० किमवि भणिअं, गाथा-७४, (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से है.) कालसप्ततिका-टबार्थ, मु. उदयरुचि पंडित, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कालस्वरूप काएक कहिउ. ९४६३५. (+) विचारसार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ८-१०४२८-३२). सिद्धांतसार-विचारसारगुणगर्भित, प्रा., पद्य, वि. १२६७, आदि: सुक्खसहकार कीरं अमरा; अंति: दिणं मिसु गुरूवएसेणं, गाथा-८६. सिद्धांतसार-विचारसारगणगर्भित-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: अर्ह भणीइ हं वीर श्रीमहा; अंति: ग्रंथ मई रचिउं नीपजाविउ. ९४६३६. (+) वसुदेवहिडी का कथासार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४५). वसुदेवहिंडी-कथासार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)तेणंकालेणं० वच्छदेसे, (२)महुरायां नगर्यां यदुनामा; अंति: (-), (प.वि. सत्यभामा स्वयंवर प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९४६३७. (4) गोडीपार्श्वनाथ चोढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६.५४११, १२४३४-४०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमं नित्य; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५, गाथा-१३७. ९४६३८. (+) भगवतीसूत्र-शतक-२ उद्देश-१-खंदक चरित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११,१२-१३४३८-४२). भगवतीसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४६३९ (+) सूरिपदप्रदान व जिनबिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३८-४२). १. पे. नाम, सूरिपदप्रदान विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सूरिपदस्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: दीक्षायां स्थापनायां च; अंति: मंत्रो भवतां श्रियेस्तु. २. पे. नाम. जिनबिंबप्रवेश विधि, प. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूर्वं भव्यं मुहूर्त; अंति: (-), (पू.वि. ध्वजारोपण विधि अपूर्ण तक है.) ९४६४१. जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि व जिनाभिषेक श्लोक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५४-६२). १. पे. नाम. जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: (१)श्रीअल्तं नमस्कृत्य, (२)इह यतीनां प्रतिष्ठा न घटत; अंति: ऋद्धिवृद्धिः स्यात्. २. पे. नाम. जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि-संक्षिप्त, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.. सं., प+ग., आदि: पूर्वोपवर्णितस्वरूप एव; अंति: (१)संघार्चाद्युत्सवांस्तनोति, (२)गोहम निख्याव अयसि सणा. ३. पे. नाम. जिनाभिषेक श्लोक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुपवित्रतीर्थनीरेण संयुतं; अंति: वचनपरः स्नापयाम्यत्र काले, श्लोक-१९. For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४७५ ९४६४२ (+#) षडावश्यक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:पडिकमणसूत्र टबो., पंचपाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४१०, १०४३२-४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय; अंति: तियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार होओ; अंति: करइ तो पण भंग नहि. ९४६४३. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:वैरागसत., संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४३४-३८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-९२ तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: (-), पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ९४६४४. चउसरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रावण कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पुरणमल माथुर कायस्थ; लिख. मु. गणेशसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चउसर., जैदे., (२५४१०, ७४४०-४४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहुलू; अंति: छइ मोक्षना सुखनउ. ९४६४६. कीर्तिधर सुकोशल संबंध, संपूर्ण, वि. १७१८, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्र.वि. हुंडी:कीर्तिधर रास., जैदे., (२५४१०.५, १२४४०-४६). सुकोशल कीर्तिधर संबंध, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: श्रीसरसति मतिदायिनी पामी; अंति: सीस कहि मुनि ___ मान जगीस, ढाल-६, गाथा-१५३. ९४६४७. धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६-४०). धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवू; अंति: विनयविजय रसपूरि, गाथा-१३७. ९४६४८.(+) पांच बोल, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. ध्रांगधरा, प्रले. श्राव. भूषण प्रागजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांचबोल., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३६-३८). ५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो नरकनो द्वार; अंति: फरस भोगवता विचरै छै. ९४६४९. सट्ठिसय पयरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२४.५४१०, ११४४०-४२). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरु; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१. ९४६५०. (+#) कल्याणमंदिर महास्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. मु. नरसी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४२८-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अ. ९, गद्य, मूप., (करकंडू कलिंगेषु पंचालेषु०), ९३२६३($) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, भूपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ९२१३५-१(+), ८९६६०-१ ६ काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहले बोले छ कायना), ९३२६०(+), ९३३६८(+) ७ नय विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नेगमसंगहववहारुजुसुएव), प्रतहीन. (२) ७ नय विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (नहि छे एक गमो ते), ९२७६२-९(+) ७ मुद्रा नाम, प्रा., गद्य, मप., (पंचपरमेष्टि मुद्रा १), ८९५७४-४ ८ कर्मप्रकृति ११ द्वारविचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (पन्नवणा पद २३ मि बीजे), ९४३७६(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ८९८९४-१(+$), ९४४१४-३(s) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, पू., (विमलकेवलभासनभास्कर), ९३४१०-१०(+#) ९निधान स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (निधान माहे जयवंता), ९२७६२-२१(+) ९नियाणा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (निव १ सट्टि २ इत्थि), ९२०९५-३(+) (२) ९नियाणा गाथा-टीका, सं., गद्य, मपू., (कश्चित्साध्वादिर्निदान), ९२०९५-३(+) १० दिक्पाल आह्वान विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., पद. १०, प+ग., श्वे., (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ९४४१४-२ ११ प्रतिमा तपोच्चार विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (तिहां प्रथम शुद्ध), ९१७७७-५ १२ भवन विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., इतर, (लग्नस्थितो दिनकरः), ९४४२५-१०(+) १२ भावना कुलक, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मण मक्कड नियमण संकलाओ भवर), ९४४६१-२७(#) १२ भावनास्वरूप कुलक, प्रा., गा. १५, पद्य, मपू., (जीवियं ज्जुवणंडुवं संपया), ८९९०३-७०(+) १२ व्रत आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (अहन्नं भंते तुम्हाणं समीव), ९१७७७-४ १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (बारव्रतना पोसह वहि), ९४४१५-४ १४ गुणस्थानक २२ द्वार विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नाम१ लक्षणगुण२ ठिइ३ किरिय), ९३२४९ १५ कर्मादान विवरण, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (पुट्ठो केणावि गुरु कम्मा), ८९९०३-५१(+) १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (जिणसिद्धा अरिहंता), ९४५७०-१(+#) १६ कोष्ठकयंत्र विधि, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (वांछा कृतार्द्धं कृतरूप), ८९७९४-१(+) १६ विद्यादेवी स्तव, सं., श्लो. १९, पद्य, श्वे., (मंत्राधिराजवलये विमल), ९२५७२-२(+) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ९४३६६-९(+) १८ हजार शीलांगरथ गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जे नो करंति मणसा), ९३२७६-२(+#) २० विहरमानजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), ९२७६२-२(+) (२) २०विहरमानजिन स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (जंबूद्वीपना महाविदेह), ९२७६२-२(+$) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ८९५९५(+), ९२३९१(+$) २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि पडिकम), ९४४१५-२ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ९३५१८(+#) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम नालिकेरादि), ९२४६०-२ २१ मिथ्यात्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ९२५६३(#) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ८९५९७(+), ८९९०३-४४(+) __ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४), ८९६४३-१ (+), ८९६२०-१, ९२८००-२ (३) २४ जिन जन्मभूमि स्तोत्र, ग. राजशेखर, प्रा., गा. २५, पद्य, म्पू., (चउवीस उसभाई तित्खयरे बंदि), ९०३३८-४९(+) २४ जिनभक्तयक्ष स्तोत्र, सं., श्लो. २६, पद्य, म्पू, (श्रीमयुगादि जनमुख्य), ९२५७२-६(*) , २४ जिन स्तव चतुःषष्टियंत्रगर्भित मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (आदौ नेमिजिनं नौमि ), ९२७०३-४ २४ जिन स्तवन, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जगत्त्रयी पूज्यपदारविंदान), ९४६२८-६(#) २४ जिन स्तवन- चत्तारिअडदसदोयगर्भित, प्रा., गा. १८, पद्य, वे ( अड्डावयंमि सेले भरह), ९२३३१-१ (२) २४ जिन स्तवन- चत्तारि अट्ठदसदोयगर्भित अवचूरि, सं., गद्य, वे (चत्ता० दाहिणिदुवारे), ९२३३१-१ २४ जिन स्तुति, आ जिनपतिसूरि, सं. लो. ३०, पद्य, म्पू. ( श्रीनाभेय जिनेश त्वं), ८९९०३-८४ (+) " "" २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू., ( आव्याद्धो नाभिजातजितसुमति) ९४०३९-९(+) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ९४३०२-४४(+#), ८९३२२-५ २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (आदौ नेमिजिन नौमि ), ९३३७९-६(*) " २४ दंडक गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( जहन्नकडजुम्ममज्झचउरो), ९४२२२-२(+) (२) २४ दंडक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्य पदइ चौवीस दंडक मांह), ९४२२२-२(+) २४ मांडला, प्रा., गद्य, मूपू., ( आघाडे आसन्ने उच्चारे), ९२०७१-५ २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (आमोसहि विप्पोसहि), ९२७६२-१२(+) ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे. (सव्वाउ कंदजाई सूरण), ८९९०३-५२(१) ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १ देसिअ २), ८९३६३-२ (६) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., ( आहाकम्मु १ देसिय २ ), प्रतहीन. (२) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (आह० आधाकर्मि ते कहीइ), ८९६२७ ८४ धर्मकथा प्रबंध, सं., ग्रं. ३५२५, गद्य, श्वे., (उज्जयिन्यां महासेनो राजा), ९२७६६($) १७० जिनस्थानक यंत्र, मा.गु., सं., को., थे. (--), ९४९२४(*) अंगपण्णत्ति, आ. शुभचंद्र, प्रा. अधि. ३, गा. २४८, पद्य, दि., (सिद्धं बुद्धं णिच्चं णाणा), ९४४३१(+) अंजनचौर कथानक-निशंकितागभिंत, सं., प+ग, मूपू. (सम्यक्त्वगुणयुक्तानामति) ९३९७६-३(*) अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपु. ( तेणं कालेणं० चंपा०), ९३०३७-१(००३), ९३१४१(+३), ९४४९२(+#), ९३३६२ (#$) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. वर्ग. ८. वि. १२वी, गद्य, मूपु. ( अधांतकृतदशासु किमपि ), ९४४९२ (०३) " For Private and Personal Use Only ४७७ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ९३१४१ (+३), ९३३६२ (MS) अंतिम आराधना संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग, वे., (प्रथम इरियावही), ९३००२(#) अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., वि. १५वी, गद्य, म्पू. (धर्मात् संपद्यते ), ९२९०५) अविकादेवी क्षेत्रपालादि सर्वप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, मूपू (ओ क्षिः नमः अधिवासना), ९४६००-३(*) अक्षमाला गुण, प्रा., सं., पण., म्पू., (सूत्रस्य जपमालायां), ९२७६२-१९(*) अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ९३१७५ (+) "" (२) अक्षयतृतीयापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोताने छे अष्टमहाप्रतिहार), ९३१७५ (+) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभुं), ८९९३२-१ (+), ९३१६०-६(+), ९३३१६-७ (+) अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा. सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु पार), ९२१५०-६(+) "" अक्षौहिणी सैन्यमान लोक, सं., श्लो. १, पद्य, चे. (दशलक्षदंति त्रिगुणां), ९२४६०-४ " अजितनाथ चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. ६, श्लो. ७०२, पद्य, मूपू., (जयंत्यजितनाथस्य जितशोणि), ९१०४१(+$) Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूप., (अजियं जियसव्वभयं संत), ९२१४४-३(+), ९२२०९-१(+#), ९३३१८(+), ९३३७२-२(+), ९३९३४-१(+), ९४५६०-३(+#$), ९४६११(+), ९२८३७, ९२८३९, ९२००७-१७(#S), ९२४००(#) (२) अजितशांति स्तव-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., गद्य, म्पू., (अजितं अजितनामानं), ९३९३४-१(+) (२) अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ७४०, वि. १३६५, गद्य, मप., (अजितशांतिजिनाधिपयोः), ९२२०९-१(+#), ९३९३४-१(क) (२) अजितशांति स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (अजिअं अजितनाथ किसउ), ९२९०० (२) अजितशांति स्तव-हस्वादि छंदपरिमाण गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (बायालीसं वत्ता), ९२७६२-६(+) अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ९३९३४-२(+) (२) अजितशांति स्तव-लघु (खरतरग.) की टीका, मु. धर्मतिलक, सं., गद्य, मूपू., (अजितशांतिजिनौ भुवनत), ९३९३४-२(+) अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (तेणं कालेणं० रायगहे नगरे), ९४५१३ (२) अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ते काल जे चोथो आरोते समे), ९४५१३($) अढीद्वीप अकल्पनीय वस्तु नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अरीहंतसमयबायर), ९२७६२-१५(+) अतिथि संविभागव्रत आलापक, प्रा., गद्य, मपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ९२०७७-३(+) अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), ९३२७९(#) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-हिस्सा शांतरस अधिकार, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) अध्यात्मकल्पद्रम-हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., ग्रं. १८५०, गद्य, मपू., (अहो भव्य जीवो सदाकाल), ___९१७८३(+), ९३११९(+) अध्यात्मबिंदद्वात्रिंशिका, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., द्वात. ४, श्लो. १२८, पद्य, मूपू., (ब्रूमः किमध्यात्ममहत), ९०६२० अनंतचतुर्दशी पूजा, श्राव. शांतिदास ब्रह्मचारी, मा.गु.,सं., प+ग., दि., (आह्वयामि अरिहंत), ९२६६१(#$) अनंतमति कथा-आकांक्षात्यागगर्भित, सं., प+ग., मप., (निष्कंखितायामुपरि), ९३९७६-४(+) अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवकार तीन भणी), ९४४१५-३ अनाथीमुनि कुलक, अप., गा. ३६, वि. १४वी, पद्य, स्पू., (पणमिअ सामिअ वीर जिणि), ९४४६१-२०(#) अनित्यपंचाशत्, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ५५, पद्य, दि., (जयति जिनो धृतिधनुषामिषु), ९१४५४-३(+-) (२) अनित्यपंचाशत्-पद्यानुवाद, श्राव. जुगलकिशोर मुख्तार पंडित, पुहि., गा. ५५, पद्य, दि., (गहि धनु धीरज हस्त), प्रतहीन. (३) अनित्यपंचाशत्-पद्यानुवाद का टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (सर्वोत्कर्षकरि प्रवर्ते), ९१४५४-३(+-) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ९२५२७(+), ९३०३७-२(+#), ९२६७०(5) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ९२५२७(+) अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., समु. ५, वि. १८२७, पद्य, जै., इतर, (यस्य ज्ञानमयी), ९२७६९(+#) अनुभागबंध प्रदेशबंध विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अथ अनुभागबंध अने प्रदेश), ९२०९५-१(+$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), ८९८९७(+), ९३०३१($) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. ५९००, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (सम्यक्सुरेंद्रकृत), ९३०३१(६) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणिपत्य जिन), ८९८३८(+$) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (ना० ज्ञान पंच प्रकार),८९८९७(+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, मपू., इतर, (शुद्धवर्णमनेकार्थं), ९३९५०-१(+) अनेकार्थनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. ४६, पद्य, दि., इतर, (गंभीरं रुचिरं चित्र), ९३५६४-२(+$), ९४१४८-२(+#$) अन्नायउंछ कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अन्नायउंछगहणे कयचित), ९२०७७-९(+) (२) अन्नायउंछ कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अणजाणी ते घरे भिख्या), ९२०७७-९(+) अबयदीशुकनावली, सं., प्रक. ४, गद्य, मपू., इतर, (संसारपासनाशार्थं), ९४४२७-२(+) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ४७९ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः), ८९९४७(+), ८९९५१(+#), ९३०८१(+$), ९३०९७(+#5), ९३४५०(+5), ९३८०९(+), ९३८१०(+#$), ९३८४९(+#), ९३८७४(+#$), ९४०७९(+), ९४४४१(+), ८९९५२, ९२१४६(#) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अवचूरि*, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (सिद्धं प्रतिष्ठां प्राप्त), ९३८७४(+#S) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.६+१, श्लो. १९३१, वि. १२वी, पद्य, मप., इतर, (ध्यात्वार्हतः कतै), ९२६८४(+#$), ९३०४२(#S) (३) अनेकार्थ संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मप., इतर, (--), ९२६८४(+#$) (३) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (कृते एकार्थशब्दसंदोह), ९३०४२(#$) अमरचंद्रकवि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (श्रीअणहिल्लपत्तनासन्), ९२९६१-२(+) अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानं सुपात्रे विशदं), ९४३६३-१(+$) अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, मपू., (दानधर्मं समाश्रित्य), ९२५७६-४(#$) अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, सं., गद्य, मप., (अस्मिन् जंबुद्वीपे), ९३५४१(#$), ९३०४३() अर्हद्धर्मनिर्णयोपनिषद, सं., गद्य, श्वे., (एवं श्रीमत्सकलभुवनैकनाथ), ९१०६५(#$) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां), ९३२८९(+) । अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अष्ट. ३२, पद्य, मूपू., (यस्य संक्लेशजननो), प्रतहीन. (२) अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., ग्रं.३३७०, वि. १०८०, गद्य, मूपू., (इह हि सुगृहितनामधेयो), ९२९७८ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, स्पू., (संप्रात संसारसमुद्र), ९३७०५-२(+) अष्टांगनिमित्त होराशास्त्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, मप., इतर, (णमिउण जिणिंदाण उसभाई वीर), ९२७४९(+) (२) अष्टांगनिमित्त होराशास्त्र-टीका, आ. वररुचि, सं., गद्य, मप., इतर, (अत्रेद० नमस्कार गाथया), ९२७४९(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, पू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ९३३१६-१(+), ९३५५७(+$) (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अज्ञानतिमिरांधान), ८९९९१-१ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्तार), ९३२५४(+), ९३३१४(+) (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (शांति का करणेवाला), ९३३९४ अष्टाह्निका व्याख्यान, सं., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (२) अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमंदिर, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ९३११५(+#) अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तेमाहिली शांतिकविधि टाली), ९११४५-१(+), ९२४५०(+), ९४४४२(+), ९२३३९(१) आगमअट्ठोत्तरी, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ११४, पद्य, मूपू., (सुविशाललोयणदलं विसुद), ९२८६५(+) (२) आगमअट्ठोत्तरी-बालावबोध, मु. धनविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम बे गाथाइ करी), ९२८६५(+) आगमटीका प्रशस्ति श्लोक, सं., गद्य, मूपू., (एतां वृत्तिं लघु), ८९५३६-२(+) आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., मपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ९३५६७(+$) आगमिक प्रश्नोत्तर, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (तथा पहिलो अच्छेरो), ८९३७९ आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), ९२३३१-२ आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेणं), ९२८४० आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), ९१९२३($) (२) आचारदिनकर-नित्य जिनपूजन विधि, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (स्नानं पूर्वमुखीभूय), प्रतहीन. (३) नित्यजिनराज पूजनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रभाते पूजा), ९१०४५(+) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ९११०४(+#$), ९२१२१(+$), ९२२७८(+$), ९२७५९(+$), ९३४९९(+$), ९४३३५, ९२६०८($), ९२९६३(६), ९४३३७(६) For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्धे), ९११०४(+#$) (२) आचारांगसूत्र-टीका# , आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), ९११०४(+#$), ९४३२५ (+#$) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ८९९४०(+), ९३४९९(+$), ९४३३७(६) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ९२२७८(+$), ९२७५९(+$), ९२६०८($) (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध-२, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, प+ग., मूपू., (से भिक्खु वा भिक्खु), ८९९४०(+) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मपू., (देसिक्कदेसविरओ), ९०८१४-२(+#), ९४५७४-२(+) (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूप., (अथातुरप्रत्याख्यानस), ९४६२०-१(+) आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मप., (अरहंता मंगलं मज्झ),८९९०३-६७(+) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ९२१६०(६) (२) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., वि. १८३३, गद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ९२१६०(5) आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., श्लो. २७१, वि. ९वी, पद्य, दि., (लक्ष्मीनिवासनिलयं विलीन), ९००९१ (२) आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहि., गद्य, दि., (श्रीजिनशासन गुरु नमौ), ९००९१ आदिजिन आयमान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (एका कोडि तिसट्ठि), ८९८०९-७ आदिजिन चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स. २०, ग्रं. ४८२८, पद्य, दि., (श्रीमंतं त्रिजगन्नाथ), ९०३६६(+) आदिजिन चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि, सं., श्लो. ३, वि. २१वी, पद्य, मूपू., (अर्हन् श्रीआदिनाथः), ९२३७९-८(+) आदिजिन त्रयोदशभववर्णन गाथा, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (धण मिहुण सुर महब्बल), ९२५५३-२ आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मप., (महिम्नः पारं ते परम), ९३२७१-२(+#) आदिजिन वीनती-शत्रंजयमंडन, आ. जिनराजसूरि, अप., गा. २५, पद्य, मप., (महातित्थ सेत्तुंजए तुंग), ९०३३८-५६(+) आदिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मप., (ॐकारः सकल त्रिलोककमल), ९४४३३-१ आदिजिन स्तवन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीश@जयशैले), ८९९०३-९५(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, ग. अभयतिलक, सं., श्लो. ८, वि. १३वी, पद्य, मपू., (प्रह्वीभवत्रिदशनाथकिरीट), ८९९०३-११२(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, ग. कनकरुचि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (श्रीपुंडरीकाचल हस्ति), ९०५५७(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भुनाथनिभानने), ९४३०२-३८(+#), ८९३२२-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (जय जय जगदानंदन जय), ९४३११-७ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय युगादि), ९४३०२-३९(+#), ८९३२२-१ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ९३४१०-५(+#), ९४३०२-११(+#), ९४३३८-११(+#) आदिजिन स्तुति-चक्रेश्वरीदेवी स्तुतिगर्भित, ग. रामचंद्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (गजगतिर्जगति स्थिर), ९३०६३-३(+#) आदिजिन स्तोत्र, मु. गोविंद, सं., श्लो. ६, वि. १६९०, पद्य, पू., (समस्तसंघ मोदनं सुबुद्ध), ८९५५७-२(+) आदिजिन स्तोत्र, मु. पद्मनंदी, प्रा., गा. ६०, पद्य, दि., (जय उसहणाहिणंदण तिहुयणणिलय), ९१४५४-१३(+-), ९२९४०-१०(+) (२) आदिजिन स्तोत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (तुम जयवंत होउ हे ऋषभ), ९१४५४-१३(+-) आदिजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २३, पद्य, मप., (बालत्तणंमि सामिय), ९०३३८-४८(+) आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जयानंदलक्ष्मीलसदल्लीकंद), ९३९५९-२(+), ९२०२६-२ आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), ९२९३१(+) (२) आरंभसिद्धि-सुधीशृंगारवार्तिकटीका, ग. हेमहंस, सं., विम. ५, वि. १५१४, गद्य, मूपू., इतर, (शं सुखाय भवतीत्येवं), ९२९३१(+) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ आरात्रिक वृत्तानि, आ. जिनदत्तसूरि, अप., गा. १२, वि. १२वी, पद्य, मप., (लोणेण पिच्छिय सुनाण), ८९९०३-१११(+) आराधना समुच्चय, मु. रविचंद्र मुनींद्र, सं., अ. ५, श्लो. २५२, पद्य, दि., (सम्यग्दर्शनबोधनचरित्ररूपा), ९११२१(६) आरामशोभा कथा, सं., पद्य, श्वे., (--), ९४२५६(+$) आर्द्रकुमार कथा, सं., गद्य, मपू., (--), ९२५७६-१(#$) आर्षविद्यानुशासन, सं., गद्य, जै., वै., (मंत्रस्येहयमाहुराद्यवयव), ९००९२-१, ९००८९(६) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तर), ९२८८२-१(+), ९१९२९ आलोचना, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ३३, पद्य, दि., (यद्यानंदनिधिं भवंत), ९१४५४-९(+-), ९२९४०-६(+) (२) आलोचना-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि.?, (जो आनंद की निधि तुम), ९१४५४-९(+-) आलोयणा तपोदान संग्रह-खरतरगच्छीय, आ. भुवनरत्नसूरि, प्रा.,सं., वि. १५वी, प+ग., मूपू., (नामं लिवियावत्ती दाणं विस), ९२९०२ आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (हत्थुत्तर सवणतिगं), ९२२६४(+) आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पणगं १ मासलहुं २), ९३३७९-११(+) आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम मुहूर्त), ९३२८२(+) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहंताणं० सव्व), ९०३३८-७२(+), ९२९७४(+$), ९४६१३(+$), ९२१९५(#$), ९४०८५(4), ९१०५७(६), ९२१७२($) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), ९०३३८-७२(+), ९२७०६-२(+s), ९३०८४-२(+S), ९३८७८(+$), ९१०५७(६), ९२९५७($) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), ९०३३८-७२(+) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका#, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १२९६, गद्य, पू., (--), ९१०५७(5) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ९४२८८(#) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., (प्रारभ्यते श्रीआवश्य), ९२८६०(#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का गाथासंक्षेपसार, प्रा., पद्य, मूपू., (संवत्सरेण भिक्खा), ९२५५३-४ (२) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति#, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. १२३२५, वि. १२९६, गद्य, मूप., (देवः श्रीनाभिसूनुर्जनयतु), ९२१९५(#$), ९१०५७($), ९२९५७($) (२) आवश्यकसूत्र-वचनिका टीका, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९२५६७(+$) (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ९२९११(+#$) (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मप., (नमो अ० इत्यादि एहनो), ९२९७४(+$) (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (महात्मानी सात वार), ९२१७२(७) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ९२२९३(+$), ९३३६३-१(+), ९४६१३(+$), ९२१७२(६) (२) आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रि पोतनपुरन), ९२१७२($) (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनसूत्र संग्रह-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. ५५०, गद्य, पू., (श्रीवीरजिनवरेंद्र), ९१०९०(+$) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा.७, पद्य, मपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), प्रतहीन. (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (चउद राजलोकमांहि), ८९६०८ (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ९३१७०-४(+) (३) शक्रस्तव-शक्रस्तवाम्नाय, संबद्ध, प्रा.,सं., मंत्र. १६, गद्य, मूपू., (ॐ नमोत्थुण अरिहंताणं), ९३१७०-४(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त), ९२५२५-२(+#), ९३३५४-२(+) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हत भगवंत अशरण), ९२५२५-२(+#), ९३३५४-२(+) (२) १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ९४५३३-२(+) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ (२) आवश्यकसूत्र प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (हरियावही पडिकमी), ८९५६७ (२) आवश्यकसूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं नमो ). ९३३९३ (३), ९४३४४ (६), ९२३०८ (३) आवश्यकसूत्र- षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू, (अरिहंतने नमस्कार), ९२३०८ (३) पडावश्यकसूत्र बालावबोध, आ. तरुणप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुरासुराधीशमहीश), ९४३४४ (+) (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वीतराग १२ गुण विराजम), ९३३९३(+$), ९२३०८ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (सकल कुशलदायक अरिहंत). ८९३२६-२(क) (२) उवसग्गहर मंत्र-बीजक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अमुकं वसीकर राजा), ९३१७०-६ (+) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढमं), ९४३०२-९(+#), ९४३३८-९(+#), ८९७२८-२, ९३६७६-१ (२) छमासीतपचिंतवन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (रे जीव महावीर भगवंत), ८९५१४-२(+), ९२९७६-२ (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., पण., म्पू., (इच्छामि खमासमणो बंदि), ९४५४४- १(*), " " ८९३५९-१(२) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ९२५२८-१(+), ९२६३४(+), ९४६१९(*), ९३७८३.१(३) ९४०५५(४) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हवओ रागद्वेष), ९४६१९(+) (२) देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, गु. प्रा. प+ग म्पू, नमो अरिहंताणं नमो सि), ९२४२६ " "" (३) देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, णमो अरिहंताणं अरिक०), ९२४२६ (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, मूपू (नमो अरिहंताणं नमो) ९३३६३-१(५), ८९८४३-१(७) , " , (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं० पदमं), ९२२९३(३), ९२३३२(५) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इरियावहि०), ९३२७६- १ (+#$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग. म्पू, णमो अरिहंताणं० जयउ), ८९४०७-१ (ख) ९०३३८-१(*), ९४३०२-१ (+) , (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं. पण, म्पू, नमो अरिहंताणं), ९३०६२ (०), ९३१६८(+), ९१९९४, ९२६२८ ९२५२९ (३) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय- बालावबोध", मा.गु., गद्य, मृपू., (हवे पंचपरमेष्टी महामंत्र), ९१९९४ (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू.. (श्रीमद्वामेयमानम्य), ९१९९४, ९२५२९ (३) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ९४४२२-५(+) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा. गु., प+ग, मूपू. (मुहपत्तिवंदणयं), ८९७२९ "" (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ९१३०३-८(#) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ९४४२६-६ (+), ९४५६०-२(+#$), ९३६७६-५ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ९२४२२-२(+) (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा. सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९२५५२ (+#5) (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ८९८९४-२(+), ९३४०६ (६), ९३४४०१), ९४४४९(१) (३) प्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९३४०६ (+$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, भूपू (पाछिली रात्रइ शय्याथी ऊठी), ९१८८० (*) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्कं), ९२१०१ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु, धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुं भावशुं), ९३२४१-१०१, ९२००७-८(# ) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.मा.गु., सं. प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमो), ९२०१०-३ For Private and Personal Use Only , Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 7 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह थे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा. गु. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमो) ९२००८ (#), ९३५८९ (६) " (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू. (सुतत्थतत्थविडी), ८९३४८-२(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानुं), ८९३४८-२(+) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., ( उग्गए सूरे नमुक्कार), ९३३६३-२ (+$), ९३६२४-२ (+#$), ९४५३३-३(+$), ९४५५८-२(६), ८९५७३-१(25), ९२००७-७(4) ९११९४-१ (६) י (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ९३३६३-२(+$) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा. गा. ३, पद्य, मूपू (दो चेव नमोक्कारे), ८९४०७-२ (+), ९३६२४-१(+) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ८९९०३-१०५(+) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त्वमोह), ८९७१३-३(१), ८९६५३, ९२०७१-४ (२) मुखवखिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (जिन वचन सदा अणुसरी), ८९३२६-१ (क) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू, नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ९२५२८-२(५) (४) भरहेसर सज्झाय वृत्ति, ग. शुभशील, सं., अधि. २, वि. १५०९, गद्य, म्पू.. (युगादी व्यवहाराध्वा), ९३१०७(*), ९३१५८(+३) (५) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति का टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (युगने आदे व्यवहार), ९३१०७(+), ९३१५८ (५४) " (२) बंदिसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, भूपू (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ९३६०८ (+), ९४४६६ (*), ९४५६०-१ (+), ९३५१६ (5) (३) वंदित्सूत्र अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपु. ( जयति सततोदयश्रीः), " ९२८५३(३), ९३५१६ (७) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो ), ८९९०३-१०४(+), ९३१९०(+), ९४२४२-१ (+४) ९३९७१-१, ९४३११-१ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२५, गद्य, मूपू., (शिवाय श्रीमहावीरः), ४८३ ९४४९८(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरुनइ अभावइ नमस्कार), ९४४६६ (२) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (माहरउ नमस्कार अरहंत), ९३१९० (+) " (३) पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपु. ( जगचूडामणिभूओ उसभो), ९३४१०-२३(+#) , (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय), ८९९९८ (+), ९४५३३-१(+), ९४६४२(+#) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मूपू., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), ८९९९८(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (अरिहंतन नमस्कार), ९४६४२(+), ९३३४९ (६) (२) आवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. मान्य, संबद्ध, प्रा., मा.गु प+ग, भूपू (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ९३१७१(३) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - टीका, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कारः अस्तु इति क्रिया), ९३१७१($) "" U (३) आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणमि०), ९२७७८ (+), ९३३७२-१ (५४), ९३३९८(+१), ९३६४८(*), ९४२१६-१ (०) ९४२६३(३) ९२००४, ९२६१८ 3 (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार", संबद्ध, मा.गु., प+ग, मूपू. (पण संलेहणा पनरस), ९२३२४(*) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (संसार दावानल दाहनीर), ९४४२६-४(१), ९३६७६-८ "9 "" (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग. म्पू, णमो अरिहंताणं० करेमि भंते), ९४५५८- १(१) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, मूपू. ( नमो अरिहंताणं), ९२२६३-१(३) (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय टीका, सं. गद्य, मूपु (--) ९३०७१-१(+३) (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग. म्पू, णमो अरिहंताणं० आवस्स), प्रतहीन. ', " "" For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्रपर्याय, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (सांप्रतं प्रतिक्रमणपर्याय), ९३०७१-२(+$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), ९२२०८(+#5), ९२०७१-१ (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूप., (मूलप्रतिक्रमणस्यादौ), ९४४५६ (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ९४०५४(+) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ८९९०३-४(+), ९३४०३-२(+), ९४४८९-२(#), ९२८३१-२, ९३२०३-२ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ९०३३८-१२(+$), ९३१९३(+), ९३९४८($) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ९३१९३(+) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वांछउ निवर्तवउ वस्त), ९३९४८(६) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ८९९०३-२(+), ९०३३८-१३(+), ९२०६०(+), ९२५६२-१(+$), ९३२९०(+), ९३३२१-१(+#), ९३३९१(+#), ९३४०३-१(+), ९३५७१(+#s), ९४४२८(+), ९४४८९-१(+#), ९४५६६(+), ९२८३१-१, ९३९८९-२(#$), ९२५५४(s), ९३२०३-१($) (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (तीर्थंकरान् वंदे), ९३००५(+$) (४) पाक्षिक सूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ९३३९१(+#) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ९२५६२-१(+$), ९३२९०(+), ९२५५४(5) (३) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पडिक्कमणा परियरणा), ८९६६४-१ (४) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (कहै छै जिम कोइक राजा), ८९६६४-१(६) (३) साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ८९४०३-१ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), ८९९०३-३(+), ९३२०१, ९३३७४(#), ८९३६१(६) (३) चउक्कसाय सूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), ८९३५९-३(#) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण), ९४५२४(+#$) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुरासुरनमस्कृत्य), ९४५२४(+#$) आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), ९२७६२-८(+) इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (दो कोडाकोडीओ पंचासी), ८९७७६-५(+#), ८९८०९-१ इंद्रध्वज पूजा, मु. विश्वभूषण, मा.गु.,सं., प+ग., दि., (शीतलैप्रासुकैनीरैः), ९१५९९ इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मपू., (सुच्चिअ सूरो सो), ९४३५६($) इगुणतीसी भावना, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ८९९०३-६९(+) ईश्वरी स्तुति पूजा, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (रत्नै कल्पित मासनं हिमजलै), ९४१५७-१४(+) उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस्त्राणि), ९४५५९-१(+#) उत्तमनरेंद्र चरित्र कथा, ग. सोममंडन, सं., श्लो. ९१२, पद्य, मूपू., (भास्वान सुदिनं पुष्णनगोभि), ९४४१९($) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., भूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ८९८३१(+$), ८९८३२(+), ८९८३५(+$), ८९८५८-१(+), ८९८६७(+), ८९८७६-१(+), ८९९३३(+), ८९९५७(+), ९१०६०(+$), ९२२७२(+$), ९२२९५(+$), ९२४३३(+), ९२७०८-१(+), ९२८१४(+$), ९२८६९(+), ९२८७२(+), ९२८७४(+$), ९२९२१(+), ९३०००(+#s), ९३०२८(+s), ९३०३८(+$), ९३०८६(+#$), ९३०८८(+), ९३०९५(+#$), ९३११६(+), ९३१३७(+s), ९३२८०(+), ९३७१४(+s), ९३८८८(+$), ९४१५३-१(+), ९४२४८(+$), ९४२९०(+$), ९४२९२(+#$), ९४४५९(+$), ८९९१३, ९३१७४, ९४२७४-१, ८९८७७(#s), ९२८३०-१(#$), ९३६९३(#s), ८९८५४(६), ९२९८१(६), ९४२३४(s), ९४२६१(६), ९४४६०(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्य. ३६, गा. ६०७, पद्य, मूपू., (नामं ठवणादविए), ९४२६१(६) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति का अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ९३८३३(45) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., अध्य. ३६, ग्रं. १४२५५, वि. १६८९, गद्य, मूपू. (ॐ नमः सिद्धि), ८९९५७) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टीका *, सं., गद्य, मूपू., (--), ९२२७२ (+), ९४३४१ (+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, म्पू., (भिक्षो विनयं प्रादुष्करि), ९१०६० (०४), ८९९१३ (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू. (भिक्षु महात्मानइ), ९९०६० (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि सं. ग्रं. १२००० वि. १९२९, गद्य, मूपू (प्रणम्य विघ्नसंघात), ८९८३५ (+३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारतणा संबंधथी), ९२८६९ (+), ९३०९५ (+#$), ८९८५४($), ९४०८९($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ८९८७७(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ८९८३१ (+४) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग से प्रकारे), ८९८३२(*), ८९८६७(१) ८९९३३(+), ९२७०८-१), ९२८१४(+३), ९२८६९(+), ९२९२१ (*), ९३०८६ (+), ९३११६ (६) ९३१३७ (६) ९३७१४(३), ९४२९० (+३), ९४२९२ (45), ९४४६० (६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा, मा.गु, गद्य, मूपू (उत्तराध्ययनो स्यु), ९३०८८(+४), ९४२४८+६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+ कथा संग्रह. मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), ८९८७६-१(*) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ८९९३३(+), ८९५११(-$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, सं., पद्य, म्पू. (एकस्य आचार्यस्य), ८९८६७/*), ९४२६१(३) (२) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ४ हिस्सा, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (असंखयं जीविय मा पमाय), ९२०७७-८(*) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन १९ मृगापुत्रीयाध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. गा. ९९ प+ग. मूपू (सुगीवे नवरे रम्मे), ९२११५ (+०) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा - अध्ययन १९ मृगापुत्रीयाध्ययन का वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि मृगापुत्र तिर्थ), ९२११५ (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु., रा., गद्य, मूपू., (पहिलौ विनय अध्ययन), ८९८७६-३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ९, पद्य, मूपू., (सरसति मति अति निरमली), ९३९९७ (+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीर विमल केवल धणीजी), ९३६८७-३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू, (जे किर भवसिद्धिया परित्त), ८९८७६-२(*), ९४१५३.२(१) उत्सूत्रपदोद्घाटन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा. श्रो. ३०, पद्य, मूपू (लिंगी जत्थ गिहिव्व), ८९९०३-७३(*) उदयनराजा कथा-क्षमापना विषये, सं., गद्य, भूपू ( वीतभये नगरे महसेनादि), ९३९७६-५ (*) (२) उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्य गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जे किर भवसिद्धीया), ८९८५८-२ (+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित् धरी), ९२३२८(*) उपदेशकंदली, श्राव. आसड, प्रा. विश्रा १३, पद्य, मूपू. (तिहुयणमंगलतिलयं कय), ९१७२६ (+) ', ४८५ (२) उपदेशकंदली छाया, सं., गद्य, म्पू, (त्रिभुवनमंगलतिलकं), ९१७२६ (*) उपदेशचतुःसप्ततिका, आ. जिनप्रबोधसूरि, प्रा. गा. ७४, पद्य, मृपू., ( पयवेकप्पदुमकंवणावलं), ८९९०३-७८(+) " उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., स्तंभ २४ व्याख्यान ३६१, वि. १८४३ प+ग, मूपू (स्वस्ति श्रीदो नाभि ), ९२५९७(५), ९३१०८(+), ९३१३३(४) (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयः संपदाना दायक), ९२५९७(+) (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९३१०८(+$), ९३१३३(+$) उपदेशमणिमाला कुलक, आ. जिनेश्वरसूरि प्रा. गा. १३, पद्य, म्पू., (जीवदया रमिज्जइ इंदियवग्ग), ९४६०७-९०) " For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ८९८४९(+), ८९८६०(+#), ८९९०३-६(+), ९०३३८-१०(+), ९२२८२(+$), ९२३०६(+$), ९२६०७(+#), ९२६८२(+$), ९२८५८+), ९२८६६(+$), ९२८७१(+$), ९२९३७(+#$), ९३०३५(+), ९३१२४(+#$), ९४००६(+$), ९४०३७(+$), ९४२८७(+$), ९४३०९(+$), ९४३६०(+#$), ९४५१०(+s), ९४५२७(+#$), ९४५३०(+$), ९४५३६(+६), ९४५४९(+), ९४४४५(5) (२) उपदेशमाला-उपदेशकर्णिका वृत्ति, आ. उदयप्रभसूरि, सं., ग्रं. १२२७४, वि. १२९९, गद्य, मपू., (अहँ तनोतु भुवनाद्भूत), ९२८६६(+) (२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, पू., (श्रेयस्करं कामितदान), ९२३०६ (+$), ९३१२४(+#S) (२) उपदेशमाला-अवचरि, सं., गद्य, मूप., (नत्वा जिनवरेंद्रान), ९२२८२(+$), ९३०३५(+) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मप., (नमस्कार करीनइ जिण), ८९८६०(+#), ९२८५८+), ९४२८७(+$) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (धीरं वीरं महावीरं), ९२६०७(+#) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ८९८४९(+), ९२६८२(+$), ९२८७१(+$), ९४२८७(+), ९४३६०(+#s) (२) उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिनं), ९२८५८(+) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ९२८७१ (+$), ९२९३७(+#$), ९४०३७(+$) (२) उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, मूपू., (नमिऊण जगचूडाम सवस्सर), ८९५६०(+) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), ९०३३८-६३(+) उपदेश रसाल, सं., अ. ५२, गद्य, मपू., (एसो मंगलनिलओ भयविलओ), ९३६९१(#$) उपदेशसार, ग. कुलसार, सं., उप. ५९, वि. १६६२, पद्य, मप., (यत्कल्याणकरोवतारसमय), प्रतहीन. (२) उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० मंगल), ९३१८७(+$) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवकारर्नु उपधान), ९२६०४(+), ९३६२९(+), ९४०७१ (#$), ९४४१५-७() उपधानतप विधि, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (प्रथमः द्वितीयोपधानय), ९३०४४-१(+#) उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (शुभमुर्हते पूर्व), ८९६२९ उपमितिभवप्रपंचकथोद्धार, ग. हंसरत्न गणि, सं., अधि. ७, वि. १८पू, गद्य, पू., (स्वस्तिश्रीगुणरागिणीव), ८९९८५(+) उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नांदि मांडिने खमा), ९४४१५-६ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ९२३६३(+$), ९३२११(+), ९३८३८(+#$), ९४२९३(+), ९४३०८(+#$), ९४३२१(+#), ९४३७४(+s), ९४३८६(+#), ९३०४५($) (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १०, वि. १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९४३७४(+$) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९२३६३(+$), ९३२११(+), ९३८३८(+#$), ९४२९३(+), ९४३०८(+#S), ९४३२१(+#) उपासकसंस्कार विचार, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ६१, पद्य, दि., (आद्यो जिनो नृपः), ९१४५४-६(+-), ९२९४०-३(+) (२) उपासकसंस्कार विचार-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (आदिजिन ऋषभदेव राजा), ९१४५४-६(+-) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (उवसग्गहरं पासं पासं), ९३९३४-७(+), ९४४९६-३(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मप., (श्रीपार्श्व सम्यगान), ९२२०९-२(+#$) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-कल्पलतावृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६५, गद्य, मूपू., (प्रतिबोधं विदधानाः), ९३९३४-७(+) ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), ९३३६६(+) (२) ऋषभपंचाशिका-टीका, मा.गु., गद्य, मपू., (जगति जंतूनां कल्पो), ९३३६६(+) (२) ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (जगजंतुकल्पपादप श्रीआदिनाथ), ९०८१५-१(+) ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, मूपू., (शीलं नाम नृणां), ९२५७६-५(#$) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ४८७ ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ९२९४२(+#), ९३९९५-१(+), ९२८४५, ९२९०६-४ (२) ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं., ग्रं. ७२६१, वि. १५५३, गद्य, मपू., (जयाय जगतामीशो युगादी), ९२८४५ (२) ऋषिमंडल प्रकरण-बालावबोध', मा.गु., गद्य, मूप., (वली श्रीऋषभदेव केहवा), ९२९४२(+#) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), ९२२७७(+), ९३२३०(+#S), ९३६३४(+$), ९३७१९-३(+) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (आदिको अक्षर अंतको अक्षर), ९२२७७(+), ९३२३०(+#$) एकत्वभावना दशक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ११, पद्य, दि., (स्वानुभूत्यैव यद्गम्यं), ९१४५४-२२(+-) (२) एकत्वभावना दशक-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (आत्माही के अनुभव करि), ९१४५४-२२(+-) एकत्वसप्तति, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ८०, पद्य, दि., (चिदानंदैकसद्भावं परमात्मा), ९१४५४-४(+-), ९२९४०-१(+5) (२) एकत्वसप्तति-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (ज्ञान आनंद है एक), ९१४५४-४(+-) एकादिशतांतसंख्याशब्द साधनिका, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, मपू., इतर, (प्रणिपत्य नीलवर्ण), ९१७१४-३(+) ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), ९४५९१(+$) (२) ओघनिर्यक्ति-अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., ग्रं. ३३००, वि. १४३९, गद्य, मप., (प्रक्रांतोयमावश्यकान), ९४३१५(+$), ९४१५९(5) औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), ९२१०७-१(2) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (जं जं समयं जीवो), ८९३५६-६ औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३२, पद्य, मप., (धणमिव चिंतइ धम्म), ९२०९५-४(+) (२) औपदेशिक गाथा संग्रह-भाषाटीका, मा.गु., गद्य, मप., (जरा आवि ने जोवन गयुं नित), ९२०९५-४(+) औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत, प्रा.,सं., पद्य, मपू., (पूआ जिणंदेसु रई वएस), ९२९९३(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ८९७५३-६(+), ९२७८२(+), ९४४२५-७(+), ९४४२५-८(+), ९४४२५-९(+), ९२२६३-२, ८९३६२-३(2) औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांतश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (विशेषैर्वस्त्र भोज्यानां), ९२३६४($) औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (धर्मः कामगवी यदीय), ९२०९५-२(+) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मप., (संवत्सरेण यत्पापं), ८९७५३-३(+) । औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (जलस्नानात् मलत्यागो), ९१८३३-२(+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ९४४२५-१२(+), ९३१६२-२ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ९२८०५-२(+) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ९२७४२(+S), ९३१०९(+), ९४४८४(+#), ९०३६७(१), ९१११०(६) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९२८६१(+), ९०३६७(#) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस), ९२७४२(+$), ९३१०९(+) औषध-यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.ग.,सं., गद्य, इतर, (--), ९२८०२-२ औषधवैद्यक संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, इतर, (अथ नाडीपरीक्षा करस्यां), ९२८९८-२, ८९४७३-२(2), ८९८४३-२(#) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, इतर, (अनार दाणा टां.८०), ९३४५८-२(#), ८९६६८-२(4) कथाकोश प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. ११०८, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ८९९०३-५३(+) कथारत्नाकर, ग. हेमविजय, सं., ग्रं. ७४००, गद्य, मप., (जयति रजनिरत्न स्थानर), ९३८९१(+) कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, म्पू., (किं पर ज बहुजाणवणाहि), ९४५४३(+#$) कथा संग्रह, सं., गद्य, म्पू., (पश्चिम विदेहे गंधिला), ९३६३२(+$), ९२२६२(#$), ९२६९०(६) For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ९३२०६(६) कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, प्रा.,सं., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ९३२४२ कनकरथराजा कथा-सुपात्रदानविषये, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (अत्रैव भरते वैताढ्य), ९०८१५-६(+) करुणाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ८, पद्य, दि., (त्रिभुवनगुरो जिनेश्वर परम), ९१४५४-२०(+-) (२) करुणाष्टक-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (हे तीनीलोक के गुरु), ९१४५४-२०(+-) करेराज कथा, सं., गद्य, मूपू., (मंगलपुरे राजा पृथ्वी), ९०८१५-५(+) कर्णब्रह्मसिद्धांतकुतूहल, विश्वनाथ दैवज्ञ, सं., अ. ५अधिकार, पद्य, वै., इतर, (गणेशं गिरं पद्मजन्मा), प्रतहीन. (२) कर्णब्रह्मसिद्धांतकुतूहल-गणककमुदकौमुदी टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७८, गद्य, मपू., वै., इतर, (शंभु स्वयंभुवमहं प्रणिपत्), ९३४८२(+#s) कर्परप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मप., (कर्परप्रकर: शमामृत), ९२८३४(+#$), ९२९१०(+), ९४०५९(+s), ९४२७१(+#$), ९४३६४(+#$), ९४४१२(+$), ९३१००(#), ९४६२५(#s), ९३८३४($) (२) कर्परप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, मप., (व्याख्यायां धर्मदेशनायां), ९४२७१(+#$), ९४३६४(+#$) कर-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्याख्यान वेलायां), ९४४१२(+$) (२) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्याख्या लक्ष्यो व्याख्या), ९२९१०(+$) (२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध, उपा. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (पार्श्वश्रिये सोस्तु), ९४६२५(#S) (२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध कथा, सं., गद्य, मपू., (--), ९२८३४(+#$) (२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ९३८३४($) (२) कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., कथा. १५७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानम्य), ९४६२५ (#$), ९३१०२($) कर्मग्रंथ (१ से६), आ. देवेंद्रसूरि; आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., अ.६, गा. ३९७, वि. १४वी, पद्य, मपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय कम), प्रतहीन. (२) कर्मग्रंथ (१ से ६)-यंत्र*, मा.गु., को., मपू., (--), ९४४०१($) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. ११२, पद्य, जै., (नमिऊण सुयहराणं वोच्छ), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह*, मा.गु., को., मूपू., (पहिली २० रौ उदै ते), ९३६३५-३(+), ८९८१७ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ८९९५८-१(+), ८९९८०-१(+#), ९०३३८-६९(+), ९२११६(+$), ९२५८०-१(+$), ९२६१५-१(+), ९३०५४-१(+#), ९३२३१-१(+), ९३३५६-१(+), ९३३६१-२(+#), ९३३६७-४(+), ९३४३२-१(+), ९४२९४-१(+$), ९४२९७(+), ९४३०७-१(+), ९४५७५-१(+#), ९२९८५ (#$), ९३३४८($) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १८८२, गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध्यानवरप्रतापैर), ९४२९४-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (श्रियाष्टप्रातिहार्यरूपया), ९४२७६-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., वि. १७१२, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं प्रणम्यादी), ९२५८०-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऍदवीयकलाशौक्लीं), ९४२९७(+), ९३३४८(5) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयोमार्गस्य वक्ता), ९२९८५(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमान प्रति), ९३०५४-१(+#), ९४३०७-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवा श्रीमहावीर चोत), ९४२९७(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (शारदां वरदां स्मृत्व), ८९९८०-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचिरेयं नमस्कृत्य), ९२६१५-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वदेवमानम्य), ८९९५८-१(+) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ४८९ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीवीरजिन वांदी), ९२११६(+$), ९३३५६-१(+), ९३३४८($) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., यं., मूपू., (श्रीवीरजिन प्रते), ८९९७४-१(+) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., गा. १६८, पद्य, मूपू., (ववगयकम्मकलंकं वीरं), ८९९०३-८(+), ९०३३८-२७(+), ९२९०७ (२) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., ग्रं. ९२२, गद्य, मूपू., (निःशेषकर्मोदयमेघजालमुक्तो), ९२९०७ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ८९९५८-२(+), ८९९८०-२(+#), ९२५८०-२(+s), ९२६१५-२(+), ९३०५४-२(+#), ९३२३१-२(+$), ९३३५६-२(+), ९३३६१-३(+#), ९३३६७-५(+), ९३४३२-२(+), ९३४३४(+), ९४२९४-२(+), ९४३०७-२(+), ९४५७५-२(+#), ९२६५८-१(६), ९४४३४($) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मपू., (बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ), ९४२९४-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), ९४२७६-२(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., गद्य, म्पू., (तह कहितां तथा थुणिमो कहित), ९२५८०-२(+$) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), ९३०५४-२(2), ९४३०७-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (तिम हुं स्तवं छु), ८९९८०-२(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (तह क० तिम हवे बिजा), ९२६१५-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), ८९९५८-२(+), ९३३५६-२(+), ९३४३४(+), ९४४३४() (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (बंध प्रकृतिओ छे), ८९९७४-२(+) । कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिहु), ८९९०३-११(+), ९०३३८-२६(+), ९४२५१-२(+#) (२) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-भाष्य प्रथम, प्रा., गा. ३२, पद्य, मप., (बंधे विसुत्तरसयं), ९०३३८-२८(+) (२) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., ग्रं. १०९०, गद्य, मप., (कर्मबंधोदयोदीर्या०), ९४२५१-२(+#) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ८९८५७(+#), ८९८७५(+#), ८९८८५(+), ८९८८८(+), ८९८९६(+), ८९९०५(+), ८९९११(+), ८९९२२(+s), ८९९३०(+), ८९९४१(+), ८९९७१(+), ८९९७३(+#s), ९११४३(+), ९११७०(+), ९१६२८(+$), ९१८६४(+), ९२०१३(+$), ९२२००(+#), ९२३३०(+$), ९२३५२(+), ९२४३५ (+$), ९२५१२(+), ९२६६५(+$), ९२७६४(+S), ९२८४१(+#$), ९२८७६(+$), ९२९२२(+), ९२९२७(+$), ९२९३९(+s), ९२९६७(+$), ९२९७०(+$), ९२९९९(+#$), ९३१२०(+), ९३१३६(+#), ९३१४३(+), ९३१४८(+$), ९३१५२(+#), ९३३४७(+$), ९३३६०(+$), ९३४४१(+), ९३४४३(+), ९३४७७(+#$), ९३४९४(+#$), ९३४९७(+#$), ९३६४६-१(+#$), ९३७९१(+), ९३७९९(+), ९४१८७(+$), ९४२२७(+#$), ९४२५२(+$), ९४२६८(+#s), ९४२७३(+$), ९४२८३(+s), ९४२८९(+s), ९४२९५(+$), ९४३०६(+), ९४४७६(+$), ९४४८८(+$), ८९९३४, ९१३८६, ९१५४९, ९२४२७, ९२८४३, ८९८५६(#), ९१४३५(#), ९१५४२(#), ९२४४१(#5), ९२५५९(#$), ९३२९१(#$), ९३८१९(#5), ९३९३६(#), ९४५३७), ९२०११(६), ९२४२५(६), ९२४४९(६), ९२६११(६), ९२८६३(5), ९३१२७(६), ९३१५१(६), ९४०७३(६), ९४१७८(६), ९४६०५(5) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ९२९२२(+) (३) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रमम्य प्रणताशेषं वीरं), ८९८५६(#) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), ८९८३६(+#), ८९८७५(+#), ८९८९६(+), ८९९२२(+$), ९११४३(+), ९१६५३(+), ९२७६४(+s), ९४४८८(+$), ९४६०६(+) (२) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य प्रणताशेषखंडलं), ९२२००(+#), ९३१५२(+#) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, पू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ८९९०५(+), ८९९३०(+) (३) कल्पसूत्र-सुबोधिकाटीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ८९८५७(+#) For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९० (२) कल्पसूत्र- अवचूरि* सं., गद्य, मृपू (अत्राध्ययने त्र्यं), ९२८४१ (+४७) " www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ י (२) कल्पसूत्र - बालावबोध+कथा, उपा. विद्याकुशल, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मृपू., (--), ९२९६७ (*) " (२) कल्पसूत्र कल्पप्रदीप वालावबोध, मु. भानुविजय, मा.गु., वि. १७२४, गद्य, म्पू. (श्रीपार्श्व प्रणिपत) ९३१४८ (+४) (२) कल्पसूत्र -बालावबोध, पं. कृपाविजय गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० इहां), ९२५११($) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., वि. १८१९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९२९९७ (#) (२) कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, म्पू. ( नमः श्रीवर्द्धमानाव), ९४५३७) (२) कल्पसूत्र- बालावबोध, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., ( ॐ नमः परमानंददायिनेविश्वत), ९३७९१(+) ', (२) कल्पसूत्र - बालावबोध', मा.गु. रा. गद्य, मूपू, नमो अरिहंताणं), ९२०१३ (+), ९२४३५ (+), ९२९२७ (+), ९२९९९ (+), ९३१२३(+४), ९३३४७(+४), ९३३८५(+), ९३४७७(+), ९३४९४७) ९४२५२ (०४), ९४२६८(+#5), ९४२८९(+४), ९४४७३(+#), ९३९३६ (# ), ९२४२५ ($), ९२६११($), ९२८४३ ($), ९३७९२(s) (२) कल्पसूत्र-कल्पप्रकाश टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. ६२८४, वि. १७६२, गद्य, मूपू., (ॐ नमः परमानंददायिने), ९३७९१(+) (२) कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (अरिहंतन माहरो ). ८९८५७०) ८९९११(+), ८९९३० (+), ९११७०+), ९२०१३(५४), ९२३५३(+), ९२४३५ (०४), ९२५१२(*), ९२६६५ (+३), ९२८४१ (+४७), ९२९६७ (+), ९२९९९(+), ९३१४८(+), ९३३६० (+४), ९३४७७(+#६), ९३४९४/+#5) ९४२५२ (३), ९४२६८ (३) ९४२८९ (६) ९४४७६ (६), ९२८४३, ८९८५६(१), ९१५४२(१), ९३२९१(#$), ९२०११($), ९२४२५ ( s), ९४०७३ (१), ९४१७८ ($) (२) कल्पसूत्र- टवार्थ, सं., गद्य, म्पू (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), ९२३३० (+) , (२) कल्पसूत्र - टबार्थ+कथा, सं., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), ८९९७१ (+), ९३८१९(#$) (२) कल्पसूत्र- टवार्थ+व्याख्यान, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९२५५९(३) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ८९८८८(+), ८९९७३ (+#$), ९३१४३ (+) - (२) कल्पसूत्र व्याख्यान, सं., गद्य, मृपू., (प्रणम्य प्रणताशेषाखंडलं). ९२९३५ (+०४), ९४४०६ (+४) (२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ८९९१) ९११७०) ९२३५२(*), ९२५१३(*), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३२७२(+), ९३४४१(+$), ९३४४३ (+), ९३४७८(+#), ८९९३१, ८९९३४, ९१४३५ (#), ९१५४२(#), ९३९०९(s), ९४६०५ ($) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान + कथा, मु. अबीरचंद्र ऋषि, पुहिं., व्याख. १५, वि. १९३७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति), ८९९२५(+) (२) कल्पसूत्र- कथा, मा.गु.. गद्य, भूपू (ए जंबूद्वीप भरतखंडन), ९२०११(5) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पग, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), ९३९१०(+४) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे वर्षाकाल आव्ये), ९३९१० (+३) (२) कल्पसूत्र-कल्पफलवर्णन, संबद्ध, सं., प+ग., मूपू., (अयं श्रीकल्पो दशाश्रुत), ९३०२७-१(+) (२) कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., डा. ११, गा. ९, पद्य, मूपू. (पर्व पजुसण आवीया), ९१५५९(०४) (२) कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, म्पू, (सकलार्थ सिद्धिजननी), ९३३९७/**) " (२) कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), ८९३८५ (#) (२) कल्पसूत्र-संवद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू. (५० कोडि लाख सागर, ८९६५९, ९३०७८(4) (२) श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( हेमवंतपर्वत १०० जोजन), ८९७५४-२(+#) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, मूपू., (पुत्राः पंचमतिश्रुता), ९४५८८(+$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र), ९४१६९($) (२) कल्पसूत्र अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू. (कल्याणांपुरिम इह), ९४३०३ (३) ९४५६९(+४), ९४४७७/१६) י: (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, प्रा. सं., प+ग, भूपू (पुरिमचरिमाणकप्पो) ९२२८७(*३) ९३०२७-२ (+४), ९३८२५ (+), ९४२८४(+४), "" " ९४३६१(०३), ९४५६३+) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू. (जति णं भंते समणेणं०) ८९८८४-२(+), ९११११-२ (+), ९२५३०-२(M), ९२६८०-२(*), ९४३००-२(*), ९४५७६-२(१ For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), ८९८८४-२(+) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मृपू., (तेणं कालेणं तेनं०), ८९८८४-१ (+), ९११११-१(०), ९२५३०-१ (+) ९२६८०-१(+०३), ९४३००-१(+), ९४५७६-१(+) (२) कल्पिकासूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस्कार ), ८९८८४-१(*) कल्याणपंक्ति स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (कल्याणपंक्तिः प्रसरत्), ८९७५२-मा कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू (कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि), ९२८९६ (+३), (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, पा, हर्षकीर्ति, सं., गद्य, म्पू. ( श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), ९२९८२(५) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र टीका, सं., गद्य, म्पू., (किल इति संभावनायां), ९४४९७(६) ९२९८२(+), ९३३६७-२ (+), ९४२४२-८(+#), ९४६०७-१५ (+#), ९४६५० (+#), ९२४९२-५, ९२८०१, ९४४२३-३, ९३४३३ (#), ९४५२१ (#$), ९२३९६ (६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, म्पू, (तस्य तीर्थेश्वरस्य), ९२८९६ (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एष अहं तस्य तीर्थेश्वरस्य), ९२३९६($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - बालावबोध", मा.गु., गद्य, म्पू., (किल इति संभावनायां), ९४५२१(७९) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (पार्श्वनाथजीरा चरण), ९२८०१ ४) " (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, म्पू, दि., (परम ज्योति परमातमा). , " ९३१५५-८ (+) कल्याणसिद्धि स्तोत्र, ग. रामचंद्र, सं., श्लो. ६०, पद्य, म्पू., (--), ९३०६३-१ (६) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (वाचं नत्वा महानंदकर), ९३८२८(+#$), ८९९९९ (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं. ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, मूपू. इतर ( विमृश्य वाक्यं), ९३८२८ (+), "" " ९३८८०(*), ८९९९९ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ८९६०३(१), ९१६७० (+), , ९२१८२(*), ९२६२१(०३) (२) कायस्थिति प्रकरण- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ९१६७० (+), ९२१८२ (+), ९२६२१(+$) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, आ. कार्तिकेयस्वामी, प्रा. गा. ४८९, पद्य, दि., (तिहुयणतिलयं देवं वंदिता), ९१८३३-१(+) ', (२) कार्तिकेयानुप्रेक्षा-टबार्थ, सं., गद्य, दि., (त्रिभुवनतिलकं देवं), ९१८३३-१(+$) कालग्रहण विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मृपू., (वाघाई अहुरती दक्षिण), ९२०७७-७(१) कालज्ञान, शंभूनाथ, सं., श्लो. २५५, पद्य, वै. इतर ( कालज्ञानं कलायुक्त), प्रतहीन. , (२) कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., समु. ५, गा. १७७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., वै., इतर, (शकति शंभू संभूसुतन), ९१८०२-१(०३) कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ७४, पद्य, मूपू. (देविंदणयं विज्जाणंद), ९४६३४ (+३) 1 יי ४९९ (२) कालसप्ततिका-टबार्थ, मु. उदयरुचि पंडित, मा.गु., गद्य, मूपू., (देविंद्र नमिउ विद्या), ९४६३४ (+$) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीगुरु), ११५६२-१(+), ९३०६७(+), ९३९७३ (+), ९४३९४(*), ९४५७९(+), ९१५६८(३) For Private and Personal Use Only ', कालिकाचार्य कथा, प्रा. ग्रं. २११ प+ग, मूपू (जो कुणइ ससत्तीए संघस), ९३९८८(MS) कालिकाचार्य व्याख्यान, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे थिरावली मांहि क), ९४३७१(+#$) काव्यकलिका-चतुर्वर्णगर्भित, सं., पद्य, मूपू., इतर, (श्रीमन्नाकिनिकायनायकशिरः), ९४१५६(+$) कुबेरदत्तकुबेरदत्ता दृष्टांत १८ संबंधगर्भित, सं., गद्य, मूपू. (इह संसारे चतुरशीति), ८९८१६ कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहंस, प्रा., गा. १९८, प्रं. १०००, वि. १६वी, पद्य, मूपु., (नमिऊण वद्धमाणं असुरं), ९३१७३(३) (२) कुम्मापुत्त चरिअ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामीने नम), ९३१७३(+$) Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कुलकोडिमान गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (एगा कोडाकोडी सनाणवज), ९२७६२-१६(+$) कुसुमांजलि, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (उप्फुल्लफुल्लरसलुद्धभमंत), ८९९०३-११०(+) कूर्मापुत्रकेवली चरित्र, मु. विद्यारत्न, सं., अ. ४, ग्रं. ३१०५, वि. १५७७, प+ग., मपू., (श्रेयः श्रीसुखकारकः प्रणम), ९२४६९(+#) कृतपुण्य कथा, सं., गद्य, मूपू., (राजगृहनगरे श्रेणिकराज), ९२५७६-२(2) क्रियाकांड चूलिका, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. १८, पद्य, दि., (सम्यग्दर्शन बोध वृत), ९१४५४-२१(+-) (२) क्रियाकांड चूलिका-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (सम्यग्दर्शन ज्ञान), ९१४५४-२१(+-) क्रीडाचंद्रसंबंध कथा, सं., गद्य, वै., इतर, (क्रीडाचंद्रो नृपति मिलन), ९४५२२-४ क्षपक श्रेणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (अणमिच्छमीसम्म अट्ठ), ८९५३१-२ क्षमापना पद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (सव्वे जीवा कम्मवस चउदह), ९२५६२-२(+) क्षांति कुलक, अप., श्लो. ३१, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध सूरी), ८९९०३-३९(+) क्षेत्रपाल पूजा, सं., प+ग., मूपू., (श्रीरां विश्वहितं), ९०७७० खेचरमंजरी, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., इतर, (श्रीमत्तीर्थपति पुनर), ९०८३१ (२) (२) खेचरमंजरी-ग्रहगतिकरणी की सारणी, संबद्ध, रा., वि. १६६५, यं., मूपू., इतर, (वक्रीमार्गी रो चार), ९०८३१(#$) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मप., (नमिऊण महावीर), ८९६०४(+) गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूप., (तं जयउ जए तित्थं), ९३९३४-४(+) (२) गणधरदेव स्तुति-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (तत्तीर्थं जयतु सर्वो), ९३९३४-४(+) गणधरवाद, सं., गद्य, मपू., (अत्रान्तरे भगवन), ९३१९८(+) गणधरवाद, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् भरतक्षेत्रे), ९३६६६-१(६) गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मप., (गुणमणिरोहणगिरिणो), ८९९०३-३२(+), ९०३३८-३४(+), ९२४७२(+), ९३५६०(+#), ९४४१७(+$), ९४५७३(+#) (२) गणधरसार्धशतक-लघुवृत्ति#, ग. सर्वराज, सं., गद्य, मूपू., (प्रतन्यात्प्रथमजिनपति), ९२४७२(+) (२) गणधरसार्धशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानादि गुण अथवा), ९३५६०(+#), ९४४१७(+$), ९४५७३(+#) गणधर होरा, प्रा., श्लो. ३१, पद्य, श्वे., (जीवाजीवाइ पएयत्थ), ९४४२७-१(+) गणधरादिकृत शास्त्रप्रमाण विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूप., (यदि गणधरादिकृतमेव प्रमाणं), ९२९१२ गणपतिविज्ञप्ति लेख, मु. मेघविजय, सं., श्लो. १६२, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रियाख्यातविधि), ९४०८२(+#) गाथा संग्रह , प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ९४३५५-४(+),८९३४५-२, ८९८०९-६, ८९३४१-२(#$) गिरनारतीर्थ चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (जैनेंद्रो नेमिनाथो विगत), ९२३७९-४(+) गणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मप., (गुणस्थानक्रमारोह), ९४२१९(+#$) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अहँ पदं हृदि), ९४२१९(+#$) गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., उल्ला. ४, गा. ९०५, ग्रं. ८०००, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पणमिय पासजिणिंद), ९२३५४(5) (२) गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञटीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., उल्ला. ४, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा), ९२३५४(६) गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (मयरहियं गुणगणरयणसायर), ९३९३४-५(+) (२) गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (देवाधिदेवं प्रणिपत्यं वीर), ९३९३४-५(+) गुरुवंदन भाष्य, प्रा., गा. ३१, पद्य, स्पू., (मुहणंतय २५ देहा २५), ८९९०३-४२(+), ९४६०७-६(+#) गुर्वावली, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४९६, वि. १४६६, पद्य, मूपू., (जयश्रियं रातु जिनेंद), ९४४१३(+) गृहप्रतिमा स्नात्रपूजा, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (स्नपनपीठं प्रक्षाल्य चंदन), ९०३३८-४(+) गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं भव्यमुहूर्त), ८९३६०-१ गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (गोचरीथी आवीने पात्रा), ९२०७१-७ For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ४९३ गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ९१९८६(+), ९४०९०-२(+$), ८९३५२ (२) गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., कथा. ६९, वि. १६६०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीदेवगुरुन), ९१९८६(+), ९२७२०(६) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (लुब्धा लोभिष्ठा मनुष्या), ८९३५२ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ९४०९०-२(+$) गौतमगणधर स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यस्याभिधानं मुनयोपि), ९३९९२-३ गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ८९९०३-५०(+), ९१५४८(+), ९१९६१(+), ९२७६१(+#$), ९२६२३, ९३१७६, ९३३९२(#$), ९४१९२(#) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, म्पू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ९२७६१(+#$), ९३३९२(#S) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजी गोतमपृच्छा), ९१५४८(+), ९३१७६ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ९४१९२(#) (२) गौतमपच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ९१५४८(+), ९१९६१(+$), ९३१७६ (२) गौतमपृच्छा -कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मप., (एकस्मिन् ग्रामे एको), ९३३९२(#$) (२) गौतमपृच्छा -कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), ९२२३७(+$), ९३०९२(+#$) गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्र), ८९७०९-१(+#) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, पू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ९१५६२-२(+#) ग्रहशांति स्तोत्र-लघ, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मप., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ९३४१०-२८(+#), ९४०७४-७(+) घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं), ९१५३६(#s) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ९१३०३-९(-2) घटखर्पर काव्य, क. घटकर्पर, सं., श्लो. २१, पद्य, वै., (निचितं खमुपेत्यनीरदै), प्रतहीन. (२) घटखर्पर काव्य-टीका, सं., गद्य, मपू., वै., (निचितमिति क्रियापदं निचित), ९३९८१-२(#) चंद्रदूत काव्य, क. जंबू, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., इतर, (यदतिसितशराग्रग्रस्त), प्रतहीन. (२) चंद्रदूत काव्य-वृत्ति, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (तत्र जंबूनामा कविश्चंद्र), ९३९८१-४(#) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मपू., (नमो अरि० जयति नवणलिण), ९२७४६, ९२३२६(5) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवंत कहे छै), ९२३२६($) चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (चरियं भणिमो चंदप्पहस्स), ८९९०३-११६(+), ९०३३८-२३(+) चंद्रप्रभजिन सप्तभव स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ६, पद्य, मूप., (महसेणलक्खणसुअंचंदपह), ९४४६१-८(2) चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (सुविलसच्छरदिंदुरामान), ९४३०२-२०(+#) चंद्रशेखरसूरि विज्ञप्ति, अप., गा. १६, पद्य, मपू., (सिरिचंदगच्छनंदण वणमंडण), ९४४६१-२३(#) चंद्रसूर्यमंडल विचार प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (इह दीवे दुन्नि रवी), ९१०३९-१(+) चक्रवर्ती सेवकवर्णन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (बारसवीसकोडीओ), ९२७६२-१३(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, आ. राजशेखरसूरि मलधारी, सं., श्लो. १२, पद्य, मपू., (श्रीआदिदेव पवकोकनदोपसेवा), ९२५७२-४(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ९२५७२-३(+) । चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मप., (सावज्जजोग विरई), ८९५००(+), ९०८१४-१(+#s), ९२६८६(+), ९३९९५-२(+), ९४२२२-१(+5), ९४५४५(+#), ९४५७०-४(+#), ९४५७४-१(+), ९४६०७-२२(+#), ९४४२३-४, ९४६४४ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ८९५००(+), ९४२२२-१(+६), ९४६४४ (२) चतःशरण प्रकीर्णक-बृहद्विवरण, आ. चिरंतनाचार्य, सं., गद्य, मप., (त्रैलोक्यप्रकटप्रभाव), ९२६८६(+) चतुःशरण प्रकीर्णक, प्रा., गा. २७, पद्य, मप., (चउसरणगमण १ दुक्कडगरि), ८९९०३-६८(+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकांकित, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ३१, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भनाथनिभानन), ९३९५९-३(+) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चतुर्विंशतिस्थानक, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), ९११५८(+) (२) चतुर्विंशतिस्थानक-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (असेथीति सिद्धस्तं), ९११५८(+६) चतुष्पर्वी कथा, सं., गद्य, मपू., (यस्य ध्यानानुभावाद्भ), ९२६६९(+$) चाणक्यवृद्धराजनीति, कौटिल्य, सं., अ. १७, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा विष्णु), प्रतहीन. (२) चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., अ. ८, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शंकरं देवं), ९३९४९(+) (३) चाणक्यलघुराजनीति-टबार्थ, ग. शांतिविजय पंडित, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य कहता मन वचन कायाइ), ९३९४९(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, पू., (स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा), ८९९३२-२(+$), ९३१६०-८(+), ९३५९१-१(+$) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), ९३२६९(+$), ९४४३५(+) (२) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आसाढ चौमासो काती चौमासो), ९३३३१(६) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ९४१६२(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ९४०८४(+) चारित्रमनोरथमाला, आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (केसिं च स उन्नाणं), ९०३३८-६७(+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), ९२२८६(+#$), ९४५६७(+#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, मु. रत्नशेखर, सं., श्लो. ८००, वि. १६६५, पद्य, पू., (प्रणम्य श्रीमदर्हतं), ९४५५४(+#) चैत्यवंदन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २७, वि. १२वी, पद्य, मपू., (नमिऊणमणंतगुणं चउवयणं), ८९९०३-३७(+), ९४६०७-५(+#) चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., गा. ३५, पद्य, मपू., (तिन्नि निसीही तिन्नि), ८९९०३-२१(+), ९४६०७-४(+#) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (उस्सप्पिणीहि पढम), ९२४२२-३(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ८९९३२-१०(+), ९३१६०-५(+) छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, गद्य, मूपू., इतर, (वाचं ध्यात्वार्हती), ९४२३६(+) (२) छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मपू., इतर, (शब्दानुशासनविरचनानंत), ९४२३६(+) छमासी देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नवकार ३ कही इच्छाकार), ९३५३५-२ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ८९९८३(#), ९२२३२(+$), ९२३८०(+$), ९२५२०(+), ९२५२५-१(+#), ९३२०९($) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (तणइंकालने विष), ८९९८३(+#), ९२२३२(+$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरो तेवाइ समइ), ९२३८०(+5), ९२५२०(+), ९२५२५-१(+#), ९३२०९(s) जंबूद्वीपक्षेत्र विचार, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप १८० योजना), ९१०३९-२(+) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, मपू., (विक्खंभवग्गदह गुण), ९३३७५(#$) (२) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (विक्खंभ कहीये पिहुल घणौ), ९३३७५ (#S) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ८९८६१(+$), ८९९०८(+#), ८९९१८(+), ८९९३७(+), ९१०९९(#), ९२५९९(+), ९२८७३(+$), ९२९५६(+) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. १४२५२, वि. १६३९, गद्य, मूपू., (जीयात् तेजस्त्रिभुवन), ८९८३९(+$), ८९८६१(+$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका*, सं., गद्य, मपू., (कहि० कीहां सरुछइ), ८९९१८(+), ९४२२५(+$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-प्रमेयरत्नमंजूषा टीका, उपा. शांतिचंद्र, सं., ग्रं. १२०००, वि. १६५१, गद्य, मप., (जयति जिनः सिद्धार्थः), ९२९५६(+) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु. ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मूपू. ( श्रीसिद्धार्थनराधिप) ८९९३७(*) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० ते काल चउथा आरा), ८९९०८(+#) 7 जंबूद्वीप बाह्यमंडलगत १८४ मंडलवर्ती सूर्यचंद्रगति क्षेत्रमानादि विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू (उदवत्थंतरचाहं सहसा तेस), ८९७९९ जंबूस्वामी चरित्र, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., स. ११, ग्रं. ३०००, पद्य, दि., (श्रीवर्द्धमानतीर्थेश), ८९९०६ जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर सं., गद्य, म्पू, इतर (नीचोनितास्पष्टतरा), ८९९४४(+), ९३०९६ (+), ९१५२१ (७) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. अधि. ३३, पद्य, भूपू इतर ( प्रणम्य सारदां), ८९९५६ (+३) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (जय तिहुयण वरकप्प), ८९९०३-१०७८), ९०३३८-२(+), ९३३६५ (+), ९३९३४-८ (+), ९४२४२-६(+), ९४५४४-२ (+), ९३९७१-२, ९४३११-२, ९२४९२-१(5) (२) जयतिहुअण स्तोत्र- टीका, सं. ग्रं. २५०, गद्य, मूपू. (अत्रायं वृद्धसंप्रदायः), ९३९३४-८(+) . जयद्रथ पंचशिखाप्रसंग वर्णन, सं., श्लो. २३, पद्य, जै., इतर, (सुखेन तत्सुखां तेषां गते), ९३००७-२(+#) जयानंदकेवलि चरित्र, आ. मुनिसुंदरसूरि सं., स. १४, श्लो. ६६९१, पद्य, मूपू. (जयश्रीर्द्विविधारीणा), प्रतहीन. (२) जयानंदकेवलि चरित्र संबद्ध, पंन्या पद्मविजय, सं. स. १४ श्री. ६४४५. वि. १८५८, प+ग. म्पू., (नमस्कृत्य जिनाधीशं विश्व), ९२७९२ (३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलयात्रा विधि, सं., गद्य, मूपू (पंचशब्दादिपूर्वक जलाश्रय), ९४६००-२ (+) जातककल्पवल्ली, जै.क. आशाधर भट्ट, सं., पद्य, दि., इतर, (--), ९३९४२ ($) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. १३, वि. १७६५, पद्य, मूपू. इतर (प्रणम्य पार्श्वदेवेशं), ९२२६०-१(+), ९४११९(+०६), ९१७७१ (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (प्रणाम करीने), ९२२६० - १ (+), ९४११९(+#$) जिनकल्याणक स्तुतिः, अप., गा. २८, पद्य, मूपू., (आसाढकिन्हचउथी अवयारु), ८९९०३-८३(+) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. सं., प+ग, मूपू (सकलगुणगरिष्टान् ), ९३२३८ (*) जिनकुशलसूरि बहोत्तरी, प्रा., गा. ७४, पद्य, म्पू, (सुबतरुणोसमगुरुणो), ८९९०३-८०(*) जिनगुणकीर्तन स्तव, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ३१, पद्य, दि. (जयत्वशेषामरमीलिलालित), ९१४५४-१५ (+) ९२९४०-१२ (+३) " (२) जिनगुणकीर्तन स्तव-टवार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (सर्वोत्कर्ष करि प्रवर्ते), ९१४५४-१५ (+) जिनचंद्रसूरिचतुःसप्ततिका, आ. जिनकुशलसूरि, अप, गा. ७४, वि. १३७८, पद्य, मूपू., (सिरिजिणचंदमुणीसर पाए नमिउ), ८९९०३-७९(+) जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपु. ( अद्य प्रक्षालितं गात्र), ८९४६४-१(+), ९४०७४-४(+) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि सं., श्लो. २५, पद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ९२५७२-१(०) जिनपतिसूरिपंचाशिका, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (रागिमिहुणं व रत्तं), ८९९०३-७६ (+) जिनपूजादशक, सं., श्लो. १०, पद्य वि., (जातिर्जरामरणमित्यनलत्रय), ९१४५४-१९(क) (२) जिनपूजादशक-टवार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (जन्म जरा मरणये अग्नि), ९१४५४-१९(-) जिनपूजा प्रभावकथा संग्रह, मा.गु. सं., प+ग, मृपू., (-), ९२५७१(३) . जिनपूजा विवेक विधान, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मृपू., (जिनपुजन विवेक सत्यं), ८९५१३(+8) जिनप्रतिमा मान विचार, सं., श्लो. १५१, पद्य, मूपू., इतर, (अरूपं रूपमाकारं विश्वरूपो), ९१५८० (+) (२) जिनप्रतिमा मान विचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (देवप्रतिमा २ भेदे), ९१५८० (+) जिनप्रतिमा स्तोत्र, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गा. ७, पद्य, मूपू (नमिउणं सव्वजिणे सिद्धे), ८९६३७(+) (२) जिनप्रतिमा स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अतीत अनागत वर्तमान), ८९६३७(*) जिनप्रतिमोपदेश, सं., उप. ७ प+ग. म्पू. (--), ९३०५८-३(३) , " जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., सं., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९२०४० (+), ९२६२५-१(क) जिनबिंब प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु. सं., पद्य, मूपू जिनविवप्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (तद्यथा सह वारक बहेंडा ४) ९२४९३(५) (पूर्वोक्त शुभ दिवसे) ९१३२०, ९२१०४(5), ९२७९०(३) ', For Private and Personal Use Only ४९५ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, प्रा.,सं., प+ग., मप., (श्रीअर्हतं नमस्कृत्य), ९४६४१-१ जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि-संक्षिप्त, सं., प+ग., मपू., (पूर्वोपवर्णितस्वरूप एव), ९४६४१-२ जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ९४३१०-१(+$), ९४०५६($) जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलो मुहूर्त भलु), ८९७४७-१(+), ९४६३९-२(+$) जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, पू., (सुमुर्हते गृहसन्मुख), ९३३८०-२(+) । जिनमंदिरजिनप्रतिमानिर्माण फल, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (त्रिणसलया जिणभवणं), ८९३४९-६ जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम भुमी शुद्ध), ९२५६९(+) जिनलब्धिसूरिचहुत्तरी, आ. तरुणप्रभसूरि, प्रा., गा. ७४, वि. १४०४, पद्य, मूपू., (सिरि मुणिवइ जिणचंदं भविकव), ८९९०३-१०१(+) जिनलब्धिसूरिस्तूप नमस्कार, प्रा., गा. ४, पद्य, मूप., (जा सूरि राउ नवलक्ख), ८९९०३-१०२(+) जिनलब्धिसूरि स्तूप स्तवन, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिण लद्धिगुरूणं), ८९९०३-१०३(+) जिनवरदर्शन स्तव, मु. पद्मनंदी, प्रा., गा. ३३, पद्य, दि., (दिढे तुमम्मि जिणवर सहली), ९१४५४-१४(+-), ९२९४०-११(+$) (२) जिनवरदर्शन स्तव-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि.?, (देखे संतै तुमहि हे जिनवर), ९१४५४-१४(+-) जिनवल्लभश्रेष्ठि कथा, सं., प+ग., मप., (संघमध्ये सदा सद्भि प्रकाश), ९३९७६-७(+) जिनशासनदेवता स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूप., (प्रत्यूहव्यूह मोहोत्कटकर), ९४३०२-३४(+#) जिनसंहिता, भट्टा. एकसंधि भट्टारक ऋषि, सं., पद्य, दि., (मंगलं भगवानहत्मंगल), ९१८९६(+s) जिनाभिषेक श्लोक, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (सुपवित्रतीर्थनीरेण संयुतं), ९४६४१-३ जिनेश्वरसूरिसप्ततिका, प्रा., गा. ७४, पद्य, मपू., (वंदामहे पहुजिणेसरसूरिपाए), ८९९०३-७७(+) जीवदया प्रकरण, प्रा., गा. ११५, पद्य, मप., (संसय तिमिर पयंग), ८९९०३-४८(+) जीवदया सज्झाय, प्रा.,मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिणवरु देउ सुसाहु गुरु), ९३००४-२(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ८९३५५(+), ८९८५३-२(+), ८९९०३-४७(+), ९२४११(+), ९३२८७-२(+), ९३३१९-१(+), ९३४२३-१(+#), ९४२४२-१०(+#), ९४५३४(+), ९४५७०-३(+#), ९२४३९-१, ९३१७२-१, ९३६२६, ९४६३१(#), ९१३०२-१(६), ९४०३१-१(६) (२) जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं किंचिदपि जीव), ९४५३४(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (तीन भुवन रै विषै), ९२४११(+), ९३२८७-२(+), ९३४२३-१(+#), ९३६२६, ९४६३१(२), ९४०३१-१(६) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रिभुवनदीप निभं), ९१३०२-१(६) जीवसंबोध कुलक, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (जारेयतिरियमरामरगई), ८९९०३-७१(+) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ८९८२६(+), ८९८३७(+), ९१९९२(+$), ९१९४०(#s) | (२) जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., प्रतिप. १०, ग्रं. १४०००, गद्य, मप., (प्रणमत पदनखतेजःप्रतिहत), ९१९९२(+$) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., ग्रं. ९३००, वि. १७७२, गद्य, म्पू., (प्रणम्य ज्ञानविज्ञान), ८९८२६(+), ८९८३७(+) जैनकथा संग्रह-सम्यक्त्वादिगर्भित, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (--), ९३८४०(६) जैनतत्त्वसार, ग. सुरचंद्र गणि वाचक, सं., अधि. २१, वि. १६७९, पद्य, पू., (संशुद्धसिद्धांतमधीशम), ९१९५०($) जैनधर्मप्रभावक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २४३, पद्य, मूपू., (कुलं विश्वश्लाघ्यं च), ९४४६१-१७(4) जैनधर्मोपदेश श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ७००, पद्य, दि., (देवः केवलमूर्तिरांतरतमः), ९२२०५(+#) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ९३२१९-१ जैनमेघदूत, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., स. ४, ग्रं. ४१८, वि. १५वी, पद्य, मपू., इतर, (कश्चित्कांतामविषयसुखानी), ९४१७९(5) जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ९१९४१(+), ९२८६४-२(+) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ४९७ (२) जैन श्लोकसंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (यद द्रव्यं एतेषु स्थानके), ९१९४१(+) जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ९४०३९-२२(+#), ८९३९०-४ जैनेंद्र व्याकरण, आ. देवनंदी, सं., अ. ५, वि. ५वी, गद्य, दि., इतर, (सिद्धिरनेकांतात), प्रतहीन. (२) जैनेंद्र व्याकरण-अभयनंदीवृत्ति, मु. अभयनंदी, सं., ग्रं. १२०००, गद्य, दि., इतर, (देवदेवं जिनं नत्वा), ९०००८(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), ८९८४७(+#$), ८९८५१(+), ८९८७१(#), ८९८७९(+), ८९९०४(+$), ९०२१७(+), ९११०२(+$), ९१९४८(+$), ९२२२५(+$), ९२६८१(+), ९२९३२(+$), ९२९४३(+), ९३४३६(+#S), ९३५२९(+$), ९३७०२(+$), ९३८६३(+s), ९४११४(+s), ९४२७८(+#S), ९४५६४(+#s), ९४६०४(+#5), ९४०४६(5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ९१९४८(+$), ९४२४७(+$), ९२३५६, ९४३२० (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ८९८५१(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. रत्नजय, मा.गु., ग्रं. १३५८१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ८९८४७(+#$), ८९८७९(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ८९८७१(#), ८९९०४(+$), ९०२१७(+), ९२६८१(+), ९२९४३(+), ९३५२९(+$), ९४११४(+$), ९४२७८(+#S), ९४६०४(#$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजग्रही नामा नगरी), ८९६८१-१ (२) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ७३, पद्य, मपू., (महुरेहिं निउणेहिं वय), ९३००७-१(+#$) (३) ज्ञाताधर्मकथांगोपनयगाथा-कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ९३००७-१(+#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मपू., (श्रीशैवेयं यादवविशाल), ९४६२८-३(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (पंचानंतक सुप्रपंच), ९४३०२-१९(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति), ९४४२६-३(+), ९३६७६-३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तोत्र, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., श्लो. १३, पद्य, मप., (नम्राखंडलमंडल प्रतिक), ९४४३३-६ ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाह), ९४३०२-३(#) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८पू, पद्य, मपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), ९३१३५(+), ९३३०२(+#) (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, भूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ९३१३५(+) (२) ज्ञानसार-हिस्सा परिग्रहाष्टक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ८, वि. १८वी, पद्य, स्पू., (न परावर्त्तते), ९११४६ (३) ज्ञानसार-हिस्सा परिग्रहाष्टक-व्याख्या, सं., गद्य, मप., (निर्लेपदृढीकरणार्थ), ९११४६ ज्ञान स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (अट्ठावीसवियप्पं मइना), ९०३३८-३६(+) ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., स. ४२, श्लो. २०७७, पद्य, दि., (ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेषप्रभव), ९२७८५ (+$), ९०१३६ (२) ज्ञानार्णव-पद्यानुवाद, श्राव. जयचंद्रजी दिगंबर, पुहिं., प्रक. ३९, वि. १८१७, पद्य, दि., (करम घातिया नाश करि क), ९०१३६ ज्योतिष, पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम मंगल), ८९७९८-३(+#), ९३८१२-२, ८९५४७-२($) ज्योतिषगणित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (इष्टं त्रिगुण्यं ३), ८९८११-४ ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., इतर, (बुधचंद्रोत्तरे मार्ग), ९२३३१-४ ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), ९४१०१-२(+), ९४२२३-१(+) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (--), ९४४२५-४(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., इतर, (अच्चिबुहविहप्पिसणिवारा), ९४४२५-११(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, इतर, (चैत्र १ वैशाख २ जैष्ट ३), ९४३१०-२(+) ज्योतिष संग्रह, मा.ग.,सं., पद्य, इतर, (कृष्णपक्षे तिथि), ९२७४३-४(+) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ९१०४४+#), ९१२६३(+), ९१८८२(+), ९२०४९(+), ९२८२५ (+s), ९३३५९(+$), ९३३८२-१(+#$), ९३६९८-१(+#), ९३८१५(+$), ९४०१४(+#), ९४१४७(+#$), ९४२२३-३), ९३८००-१, ९३८२९, ९३०९१(s), ९४१२३($) For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, मप., इतर, (पक्षस्य प्रतिपत् श्रेष्ठा), ९३०९१($) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ९१८८२(+), ९३८१५(+$), ९४०१४(+#), ९३८२९ (२) ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (पडवा सठइग्यारस नंदातिथ), ९१२६३(+), ९२८२५ (+$), ९४१४७(+#$) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (श्रीअरिहंतभगवानने), ९३३५९(+s), ९३६९८-१(#) (२) ज्योतिषसार-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (--), ९३३८२-१(+#$) (२) ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., इतर, (अहँतं जिनं नत्वा), ९३३५७($) ज्योतिषोद्धार गाथा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., इतर, (सव्वेवि वारविहिउ सुहयासइ), ९२३३१-३ ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., प्राभृ. २१, गा. ४०५, पद्य, मप., (कातूण नमोक्कारं जिणव), ९४२६९(+#$) (२) ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ५०००, गद्य, मप., (स्पष्टं चराचरं विश्वं), ९४२६९(+#$) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ९३१७०-५(+), ९३७१९-१(+$) तंदलमत्स्य विचार, सं., गद्य, मूपू., (तंदली मत्स्यश्च), ८९७१३-४(+) तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., म्पू., (निज्जरिय जरामरणं), ९०८१४-५(+#) तत्त्वज्ञानतरंगिणी, आ. ज्ञानभूषण, सं., अ. १८, श्लो. ५३६, वि. २०वी, पद्य, दि., (प्रणम्य शुद्धचिद्रूप), ९००१४(+) (२) तत्त्वज्ञानतरंगिणी-विवेचन, हिं., गद्य, दि., (निराकुलतारूपअनुपमआनं), ९००१४(+) (२) तत्त्वज्ञानतरंगिणी-भावार्थ, हिं., गद्य, दि., (इस श्लोक में शुद्धचिद्रप), ९००१४(+) तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ६२, वि. १६१५, पद्य, मपू., (नमिऊण वद्धमाणं तित्थ), ९२३६८($) (२) तत्त्वतरंगिणी-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ११०२, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्या), ९२३६८(5) तत्त्वसंबंधी श्लोक, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सत्तविराहणपावं अणंत), ८९७७६-६(+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ.१०, गद्य, मप., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्धं), ९०५०४(+), ९२८६२(+$), ९१३१३(#), ९२९५१(s) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति (दि.), आ. देवनंदी, सं., अ. १०, वि. ५वी, गद्य, मूपू., दि., (मोक्षमार्गस्य नेतारं), ९२९५१(8) (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति (दि.) की भाषाटीका, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (अहं उमास्वामिमुनीश्वरः), ९०५०४(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सगमार्थ टिप्पण, पुहि., अ.१०, गद्य, दि., (मोक्षमार्गस्य नेतारं), ९१३१३(#) तप कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूप., (अविरइ पमाय जोगा अणग भवकोड), ९०८१५-११(+) तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ९२०७७-५(+) तपागच्छीय गुर्वावली, अप., गा. १९, पद्य, मूपू., (गोअमसामी पढमो गणिंदो), ९४४६१-२५(#) तपागच्छीय पट्टावली बहत्पोषालिक, उपा. नयसंदर, प्रा.,गा. २१, पद्य, मप., (सत्थिसिरिसिद्धिसयणं), ९१९३४(+) (२) तपागच्छीय पट्टावली बृहत्पोषालिके-टीका, सं., गद्य, मूपू., (इहादौ गुरुपरिपाटी कथ), ९१९३४(+) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., द्वा. ४४, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., इतर, (श्रीरामस्य पदारविंद), ९३८६१(+) (२) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मपू., वै., इतर, (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), ९२२१७(+$), ९३८६१(+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ८९९०३-९१(+), ९४२४२-१४(+#), ९४३५५-२(+), ९४४२२-२(+), ९२४९२-८, ९४३११-५ तिलकसागरसूरि गौरव लेख, मु. तिलकसागरसूरिशिष्य, सं., पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजिनमानम्य), ९३७३४(+$) तीर्थ आलोयणा-अतिचारगर्भित, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (सिधाचल समरो सदा सोरठ), ९३०१३(2) तीर्थमाला स्तुति, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नंदीसर अट्ठावया सिजय), ९४४६१-३(#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मप., (सद्भक्त्या देवलोके), ९३३७९-१(+), ९४१५७-२(+) तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १२३३, ग्रं. १५६५, पद्य, मपू., (जयइ ससिपायनिम्मलतिहु), ९३१५७(+) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ त्रिदशतरंगिणी, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., त. १२, पद्य, मूपू., (सांद्रानंदैः सुरेंद), ९४१३४(६) त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ९४१५७-६(+), ९४६१२-१२(+$) त्रिलोकसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ६, गा. १०१८, पद्य, दि., (बलगोविंदसिहामणिकिरण), ९०८३३(+), ९२१५७(+$) (२) त्रिलोकसार-टीका, मु. माधवचंद्र त्रैविद्य, सं., गद्य, दि., (श्रीमदप्रतिहतामनि), ९२१५७(+$) (३) त्रिलोकसार-टीका की भाषावचनिका, ब्र., प+ग., दि., (त्रिभुवनसार अपार गुणज्ञाय), ९०८३३(+$) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), ९११२७+), ९३६८८(+#$) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा-अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १२, ग्रं. ४७८८, पद्य, मपू., (नमो विश्वनाथाय जन्मत), ९२५९८(+) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १३, ग्रं. ३४६०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), ९२९२५(+#), ९४२७२(+S) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), ९२००३(+$), ९३३७२-६(+$), ९४०७४-३(+), ९३३४०, ९४४८५-१ (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ९३३४०(5) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का हिस्सा पंचजिन चैत्यवंदन, आ. हेमचंद्राचार्य, सं., श्लो.५, पद्य, मपू., (आदिमं पृथिवीनाथमादिम), ९३३३२-७० दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मपू., (नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त), ८९८५३-३(+), ९२३२०(+), ९२६५५(+#), ९३०४८(+), ९३३१९-३(+), ९३४१४(+), ९३९२२-१(+#), ९४२४२-१२(+#), ९४५०१-१(+), ९४५४२(+), ९४५७०-५(+#), ९१३०२-२, ९२३७७(s), ९२४३९-३(६) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, म्पू., (श्रीवामेयं महिमामयं), ९४५०१-१(+) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहां चोवीस दंडकानइ), ९४५४२(+) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध', मा.गु., वि. १५७९, गद्य, मूपू., (चउविश तिर्थंकरने नमस), ९२३७७($) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ९२३२०(+), ९२६५५(+#), ९३४१४(+), ९२३७७(5) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (ध्यात्वा शंखेश्वर), ९१३०२-२ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीसुपार्श्वजिनं नत्वा), ९३०४८(+) दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चंद्रप्रभसूरि, प्रा., अ. ५, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (पत्तभवण्णवतीरं दुहदव), ९३४९६ (२) दर्शनशुद्धि प्रकरण-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानार), ९३४९६ दशलक्षण विधान, जै.क. टेकचंद, पुहि.,सं., पूजा. १०, प+ग., दि., (नेमीनाथो देतो साथो), ९०१८७(#) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ८९९०३-१(+), ८९९९४(+), ९२२१३(+), ९२५३९(+$), ९३०२४(+$), ९३१३२(+$), ९३१५३(+), ९३३५०(+#s), ९३७००(+$), ९३८९५(+#$), ९४१७७(+$), ९४२४१(+#5), ९४३२९-१(+#), ९४३७७(+), ९४४७४(+$), ९४४७८(+), ८९८६९, ९१५५०, ९२९०८, ९३२४३, ९२०७१-२, ९२५५३-५, ९२६२४(#$), ९३९८९-१(#$), ९२१७७६), ९२४९८(६), ९२७३२(६), ९२९४८(), ९३७३५($), ९३८७९(s), ९४४९५-१(६) । (२) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ४४५, पद्य, मूपू., (सिद्धिगइमुवगयाणं), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., गा. १५, पद्य, मपू., (सिज्जभवं गणहरं जिणपडिमा), ९४३२९-२(+#), ९४४९५-२ (२) दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अध्य. १० चूलिका २, ग्रं. ३४५०, वि. १६९१, गद्य, मपू., (स्तंभनाधीशमानम्य), ९३०२९(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., ग्रं. २२४३, गद्य, मप., (इहार्थतः श्रीमहावीरप), ९२९०८ For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (धम्मो मंगलमुत्कृष्टं), ९४३७७(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ९३८७९(5) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूप., (ध० जीवनइ दुर्गति), ८९९९४(+), ९३१३२(+5), ९३१५३(+), ९३७००(+$), ९३८९५(+#$), ९४२४१(+#s), ९४३२९-१(+#), ९४४७४(+$), ८९८६९, ९१५५०, ९३२४३ (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ९३४१०-२२(+#), ९४४२२-६(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (धम्मो मंगल महिमा), ९२७९५-२(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), ९३१५५-४८(+) (२) दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ९३२४५ २१, ८९५०२-१(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ९३३८४-३ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ९२६३९(+), ९४५९०(+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), ९४५९०(+) दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल्ल. ९, पद्य, मूपू., (स श्रेयस्त्रिजगद्), प्रतहीन. (२) धन्य चरित्र, मु. ज्ञानसागर शिष्य, सं., गद्य, मप., (स श्रेयस्त्रिजगद्ध्य), ८९८४६ दानपंचाशत, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ५४, पद्य, दि., (जीयाज्जिनो जगति नाभिनरेंद), ९१४५४-२(+-) (२) दानपंचाशत-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (जयवंत होउ जिनदेव), ९१४५४-२(+-) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), ९४०९०-१(+) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), ९४०९०-१(+) दानशीलतपभावना कुलक, आ. जयघोषसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (निऊण महिय मोहं वीर), ८९९०३-६२(+) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मपू., (परिहरिय रज्जसारो), ९१६५४(+$) (२) दानशीलतपभावना कलक-वृत्ति, मु. लाभकुशल, सं., वि. १८वी, गद्य, मप., (महावीरं नमस्कृत्य), ९१६५४(+$) दानोपदेशमाला, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १०७, पद्य, मपू., (सयलमीहियकरणं रिसहजिण), ९०३३८-६०(+) दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतक्षेत्रे राजपुर), ९२५७६-३(#) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम दिक्षा आपवानु), ९४४१५-५ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., वि. १३८७, गद्य, मूपू., (पणमिय वीरं वुच्छं), ९३३१२ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ९१५३४(+), ९२११२(+#s) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (मंगलिक दीवा सरीखी), ९३४१३(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मु. दीपसागर, मा.गु., वि. १७६३, गद्य, मपू., (अष्टमहाप्रतिहार्यनी), ९१५३४(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. १२००, वि. १७६३, गद्य, मपू., (अर्हतं बालबोधानां), ९२११२(+#$) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गा. १३७, प+ग., मपू., (उप्पायविगमधुवमयमसेस), ९३१६९(+s), ९३३२६(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उप्पन्नेवा सर्व वस्त), ९३१६९(+$), ९३३२६(+) दीपावलीपर्व गुणनो, मा.गु.,सं., मंत्र. ३, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं महावी), ९४३०२-८(+#) । दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा.,सं., गद्य, मप., (जाते वीरजिनस्य निवृत), ९३१६०-३(+), ९३३१६-२(+) दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मप., (पापायां पुरि चारु), ९४३०२-४०(+#) दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ८९९३२-३(+) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५०१ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ८९९०३-२६(+), ९०३३८-२२(+), ९४६०७-२०(+#s), ९२४९२-१२($) दुषमप्राभूत, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, म्पू., (बीइ तेवीस तीइ अडनवइ), प्रतहीन. (२) दुषमप्राभूत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को., मूपू., (नमः श्रीभद्रबाहवे), ९३१५६ दहा संग्रह-विविध विषयक, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (अनमिलनी बहुतई मिलई), ८९६१६-२(+), ८९४३५-५ दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. १०२, पद्य, श्वे., (नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं), ९४५६५(#), ९२६५६() (२) दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीनइं), ९४५६५(२) । देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ८९५९४-२(+) देवोत्पत्तिविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (पत्तेपयाले पुप्फे फल), ९२७६२-१४(+) देशव्रतोद्योतन विचार, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. २७, पद्य, दि., (बाह्याभ्यंतरसंगवर्जन), ९१४५४-७(+-), ९२९४०-४(+) (२) देशव्रतोद्योतन विचार-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (बाह्यआभ्यंतर परिग्रह), ९१४५४-७(+-) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ८९८९५(+), ९२५३२-२(+#s), ९३८७६(+) (२) द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, पुहि., गद्य, दि., (एकजीव द्रव्य अनर्हवी), ८९८९५(+), ९३८७६(+) (२) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहि., गा. ७०, वि. १७३१, पद्य, दि., (--), ९२५३२-२(+#$) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), प्रतहीन. (२) महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ९३९५९-१(+) द्वादश कुलक, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., अ. १२, श्लो. २३३, पद्य, मूपू., (कुलप्पसूयाण गुणालयाण), ८९९०३-१८(+) द्वादशव्रतकथा संग्रह, सं., प+ग., श्वे., (--), ९३४३८(+#$) द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, म्पू., (कूर्मवामनमीनाद्यैरवत), ९४१३१(+) द्विदल विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (केटलाक प्राणी विदल), ९१३०३-७(-2) द्व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. २०, पद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं ब्रह), ९२९४७(+$), ९४३४९ (#$), ९४१०४(8) (२) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., स. २०, वि. १३१२, गद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्व), ९२९४७(+$), ९४३४९(#$), ९४१०४(६) (२) व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., स. ८, गा. ७४५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अह पाइआहिं भासाहि), ९४३३३(+$) (३) व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित की टीका, ग. पूर्णकलश, सं., स.८, ग्रं. ४२३०, वि. १३०७, गद्य, मूपू., (अत्र च साधुसमाचार), ९४३३३(+$) धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., इतर, (तन्नमामि परं ज्योति), ९३५६४-१(+$), ९३७१६(+), ९४१४८-१(+#) धनदेवधनमित्र कथा-दानोपरि, सं., गद्य, मूपू., (जोदाणं भतीए वियरई पावइ), ९४३६३-४(+) धनपति कथा-सुपात्रदाने, सं., गद्य, मूपू., (अचलपुरे नगरे सुरतेजोनामा), ९०८१५-१०(+) धन्य कथानक-दानधर्मे, मु. दयावर्द्धन, सं., श्लो. २६६, वि. १४६३, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनमानम्य), ९२३३५(+) धन्यकुमार चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., श्लो. १२३, पद्य, दि., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ८९९३८(+), ९२१८०(+$) धन्यपण्यकर्मकर कथानक-पानाहारे, सं., गद्य, मप., (कांत्यानगाँ), ९०८१५-७(+) धर्मघोषसूरि विज्ञप्ति, अप., गा. २९, पद्य, मपू., (जुगपवरसूरितुल्लो महामल्ल), ९४४६१-२२(2) धर्मचर्चा उपदेश-आगमिक, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ९३०२५(+#) धर्मदत्त कथा-दानगर्भित, मु. विनयकुशल, सं., श्लो. ८४५, वि. १६४२, पद्य, मूपू., (--), ९४३९१(+#$) धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), ९३६२८, ९४५४० For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति दिगंबर, सं., परि २०, पद्य, दि. (श्रीमान्नभस्वत्त्रय), प्रतहीन. " (२) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहि. दोहा. ९२४, वि. १८वी, पद्य, दि. वै.. (प्रणम अरिहंत), ९२४४२ (+), ९३४४८, ९३२२६ ($) धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, वि. १२७१, पद्य, मूपू., (नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर), ९३६३१(+$), ९२९०६-५ (२) धर्मरत्न प्रकरण- टीका, सं., गद्य, भूपू., (गुणाः अक्षुद्रतादय), ९३६३१(६) (३) धर्मरत्न प्रकरण- टीकागत-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (हस्तिनागपुरे नाग), ९२७२९(३) धर्मरहस्य वीनती, ग. नेमितिलक, अप., गा. १६, पद्य, मूपू., (वद्धमाण पयकमल नमेमि पभणहु), ९०३३८-५७(+) धर्मलक्षण, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (धर्मार्थं क्लिश्यते), ८९९०३-५६ (+), ९०३३८-६(+), ९०३३८-७०(+) धर्मशिक्षा प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४० वि. १२वी, पद्य, मूपू (नत्वा भक्तिनतांगकोड), १४६३३(*) धर्मोपदेश कुलक, प्रा., पद्य, मूपू. (एकं चिय एत्थ वयं निधि), ९०८१५-१२(+४) " "" धर्मोपदेशमाला, आ. जयसिंहसूरि प्रा. गा. ९८. वि. ९१५, पद्य, मूपू (सिज्झउ मज्झवि सुयदेव) ९०३३८-५९(*) धर्मोपदेशामृत, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. १९९, पद्य, दि., (कायोत्सर्गायतांगो जयति), ९१४५४-१(+$) (२) धर्मोपदेशामृत-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (--), ९१४५४-१(+$) धूमावली, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. गा. १४, पद्य, मूपू. (असुरिंदसुरिदाणं किन ), ८९९०३-१०८(*) ध्यानशतक, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., श्लो. १०६, पद्य, म्पू., (वीरं सुक्कज्झाणग्गिद), प्रतहीन. (२) ध्यानशतक-पर्याय, सं., गद्य, म्पू, (योगीश्वरं विशिष्टमनोयोग), ९२३३१-५ ध्वजभुजंग कथा-वखदाने, सं., गद्य, भूपू (उज्जयिनी प्रत्यासन्न), ९०८१५-९ (*) ध्वजादंडरोपण विधि, मु. देवचंद, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम भूमि), ९२६२५-२(+$) नंदीकरण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० मुहपत्ति पडिलेह), ८९७०४ (*) " नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदिय नंदियलोअं), ८९९०३-२७(+), ९०३३८-२४(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सूत्र. ५७ गा. ७००, प+ग. म्पू. (जयइ जगजीवजोणीविवाणओ), ८९८३४(५), ८९८४०(५), ८९९०३-५(+), ८९९८१ (+), ९१९९१ (+), ९२८३२-१ (+), ९३०२२ (+), ९४३१९ (+), ९४३२६ (+), ९२७३१, ९३२८८(#), ८९८८६ ($) (२) नंदीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. नं. ७७३२, गद्य म्पू., (जयति भुवनैकभानु), प्रतहीन. " 1 (३) नंदीसूत्र टीका की-दीपिका भाषाटीका, हिं., गद्य, मृपू. (देवोंसे नमस्कार करने योग्), ९१४४४(+) (४) नंदीसूत्र- टीका की-दीपिका भाषाटीका का टिप्पण, हिं., गद्य, मूपू., (१ निरंतरभावी २मुक्तिसुख), ९१४४४(+$) (२) नंदीसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू.. (नंदी ते आनंदनी वेणहारी ते), ८९८३४(+), ८९८४०(+), ९१९९१(+), ९२८३२-१(३), ९४३१९(*), ९४३२६(३) ८९८८६ (६) (२) नंदीसूत्र कथा + शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ नंदीसूत्रनो शब्दार्थ), ८९९८१ (+) (२) नंदीसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूपू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर्ष), ८९८८६ ($) (२) नंदीसूत्र-हिस्सा लघुनंदीसूत्र - अनुज्ञानंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सू. ३०, गद्य, म्पू., (से किं तं अणुण्णा), ९२८३२-२(*) (३) नंदीसूत्र का हिस्सा लघुनंदीसूत्र- अनुज्ञानंदीसूत्र- खालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू ( घणा जीवनुं नाम जिम), ९२८३२-२(*) (२) नंदि स्तव, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ९४३९२-१(+$) " (२) नंदीसूत्र- स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू. (जयह जगजीवजोणी वियाणओ), ९०३३८-७१(+), ९२७०६-१(+), ९३०८४-१(१), ९२५५३-१ नमस्कार फल स्तोत्र- वृद्ध, आ. जिनचंदसूरि प्रा. गा. ११८, पद्य, मूपू., ( वंदितु वद्धमाणं), ८९९०३-६१(+) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा. पद. ९, पद्य, मूपू, णमो अरिहंताणं), ९३००४-६ (+), ९३२८६ (+), ९३५७४(+5) " (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरउ), ९३५७४(+$) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ९३२८६(+) (२) नमस्कार महामंत्र - अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, नमो क० नमस्कार हूवो), ८९५८० For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५०३ (२) नमस्कार महामंत्र-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कारु अरिह), ९३००४-६(+) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ६, गद्य, मूपू., (एह श्रीनउकार भावसहित),८९९९१-२ (२) नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (घणघायकम्ममुक्का), ८९९०३-६०(+), ९४६०७-३(+#) नमस्कार महामंत्र अक्षरप्रमाणादि विवरण, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (अट्ठसट्ठी १ अट्ठवीसा २), ९४४६१-६(2) नमस्कारमहामंत्रफल दृष्टांतसंग्रह, सं., श्लो. ३२६, पद्य, मप., (नमो अरिहंताणं १ नमो), ९३३४२ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मप., (नमिऊण पणय सुरगण), ९२१४४-२(+), ९२७५२(+), ९३९३४-३(+), ९४५६०-५(+2), ८९६०६,८९६१५-१, ९२४२९, ९३६२७(६) (२) नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ३००, वि. १३६५, गद्य, मूप., (श्रीपार्श्वस्वामिन), ९३९३४-३(+) (२) नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धार्थपार्थिवसुतं), ९२७५२(+), ९२४२९, ९३६२७(६) (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, सं., गद्य, मपू., (नत्त्वा प्रणत देव), ८९६०६ नयचक्र, मु. माइल्लधवल, प्रा., गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन. (२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहि., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), ९२८८२-२(+) (३) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूप., दि., (स्यात्कारमुद्रिता), ९२६३७(+$) नरवर्म चरित्र-सम्यक्त्व शुद्धि, उपा. विनयप्रभ, सं., श्लो. ५०२, वि. १४१२, पद्य, मपू., (आदित्यादि महामहः), ९१०६४-१(+#$) नलचंपू, त्रिविक्रम भट्ट, सं., उच्छ. ७, प+ग., वै., इतर, (जयति गिरिसुतायाः), प्रतहीन. (२) नलचंपू-प्रकाशटीका, पं. गुणविनय गणि, सं., ग्रं. ११०००, वि. १६४७, गद्य, मूपू., वै., इतर, (ध्यात्वा सरस्वतीं), ८९९३९(+#$) नलदमयंती चरित्र, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (यतः सीलं धम्मनिहाणं सीलं), ९४३८१(+$) नवग्रह पद, मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (तिमिर हरण आदीत सोम सुखकार), ९३४१०-१६(+#) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, पू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ९३४०१(+), ९४३०४(+), ९१३३३-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवतत्त्व जे प्राणनइ), ९३४०१(+), ९१३३३-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ९४३०४(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू., (परिणामि जीव मुत्ता), ८९३२४-५(+#) (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव द्रव्य ते जीव), ८९३२४-५(+#) नवतत्त्व प्रकरण-२९ गाथा, प्रा., गा. २९, पद्य, मपू., (जीवा अजीवा पुन्न), ९२९९८(s), ९४६३२() (२) नवतत्त्व प्रकरण-वार्तिक, उपा. लाभरत्न, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ९४६३२(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवति प्राणान् धारयत), ९२९९८(5) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ८९६०५(+), ८९८५३-१(+), ९१०६१(+#$), ९२३१६(+), ९२४७५(+), ९२८९२(+), ९२९३४(+$), ९३२८७-१(+), ९३३१९-२(+), ९३३९५(+), ९३७१७(+), ९३९०३-२(+s), ९३९८७(+#$), ९४२४२-९(#), ९४२६५(+), ९४५३१-२(+$), ९४५७०-२(#), ९४५९९(+), ९४६१६(+), ९४६२३(+), ९१५६०, ९२१०२, ९२४३९-२, ९२८८५, ९३१७२-२, ९४०३१-२, ९४४०७, ९४४२३-५, ९२९०१(#$), ९२९२९(#$), ९४४६९(2), ९४५५६(#), ९२५७०(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मप., (जयति श्रीमहावीर), ९३३९५(+), ९४५९९(+), ९२५७०(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., वि. १७६६, गद्य, मूप., (ज्ञानं पंचविध), ९२९३४(+$), ९२९२९(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (जीवतत्त्व१ अजीवतत्व), ९२१०२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ९२९०१(#$), ९३१०३($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व कणीनै कहीज), ९२९५४(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, स्पू., (सम्यक् दृष्टि जीवनइ), ९१०६१(+#S), ९२३१६(+), ९३९८७(+#$), ९४५३१-२(+S) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. २००, गद्य, मूपू., (हवे विवेकि सम्यग्दृष्टिने), ९२७९४(+) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे विवेकी सम्यग), ९२६१४, ९४०३१-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मप., (जेह नमुंजे माहिलो), ९४२६५(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), ९२३१६(+), ९२४७५(+), ९३२८७-१(+), ९३९०३-२(+$), ९४६१६(+), ९४६२३(+), ९२८८५, ९४५५६(#), ९१५६०(६), ९४४०७(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., वि. १८१२, गद्य, मूपू., दि., (श्रीवर्द्धमानाय श्री), ९१८८१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवतत्त्व बीजो), ९४४२० (२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (नवतत्त्व मांहि रुपि), ९३६१४(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., मप., (नवतत्त्व नामस्वरूप), ९३४२४(+) नवपद खमासण विचार, पुहि.,सं., गद्य, मप., (तिहां प्रथम पदै), ९२४१२-१ नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, मूपू., (स्वर्ण सिंघासन स्थित), ९२४७९(+) नवपद गुण, सं., गद्य, मूपू., (अरिहंत के १२ गुण), ९२७३८(+#) नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंत), ९२१३९-७ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ९२३१५(+), ९२६२०-१(+), ९३१९२(+), ९३४६४(+), ९३२२२-२, ९३६३०-१(4) नवपद प्रकरण, प्रा., गा. १२४, पद्य, मपू., (अरिहाइ नवपयाइं झाइत्ता), ९३२९३(#$) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, पू., (अरिहंत पद ध्यातो), ८९५९४-१(+$) (२) नवपद स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८९५९४-१(+$) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्), ९३७३८(+$), ९३७५४(+), ९४०७४-१(+), ९४३३४-१(+#5), ९४३४३-१(+), ९४३९३(+$), ९४४४६(+), ९४४५८(+$), ९४६१०(+$), ९३२४८-१, ९३२१८-१, ९४२६४(६) (२) नवस्मरण-सप्तस्मरण टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिन), ९४४४६(+) (२) नवस्मरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो नमस्कार), ९३७३८(+$), ९४३३४-१(+#S), ९४३९३(+$). ९४४५८(+$) नागार्जुन प्रबंध, सं., प+ग., मूपू., वै., (ढंकपर्वते श्रीशजय), ९२९६१-७(+) नानाचित्त प्रकरण, प्रा., गा.८१, पद्य, मप., (नमिऊण जिणं जयजीवबंधव), ८९९०३-४९(+) नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (नमिय जिणमुसभमुभयं), ८९९०३-२२(+), ९०३३८-१८(+), ९४६०७-१६(+#) निरंजनाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (स्थानं न मानं न च), ९४१५७-८(+), ९४६१२-१३(+$) नियुक्तिगाथा संग्रह, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (वाणारसी नयरीए अणगारे), ९२५५३-६(5) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मपू., (जे भिखु हत्थकम्म), ८९९१७(+), ९१७७४(+$) (२) निशीथसूत्र-भाष्य, प्रा., गा. ६७०३, पद्य, म्पू., (णवबंभचेरमइओ अट्ठारस), ९१७७४(+$) (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवो सु०), ८९९१७(+) निश्चयपंचाशत, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ६२, पद्य, दि., (दुर्लक्ष्य जयति परं), ९१४५४-११(+-), ९२९४०-८(+) (२) निश्चयपंचाशत-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (दुःख करि लखिये है), ९१४५४-११(+-) नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., इतर, (दिक्कालाधनवच्छिन्न), ९२१८९-२(+#) (२) नीतिशतक-टबार्थ, य.रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (सर्वदर्शिनमानम्य), ९२१८९-२(+#) नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूप., (मयनाह सरिस विलसिर देहपहा), ८९९०३-२४(+), ९०३३८-२०(+), ९४६०७-१८(+#) नेमिजिन चरित्र, सं., पद्य, मूपू.?, (--), ९३१६३(5) (२) नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप.?, (--), ९३१६३(६) नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., गा.७, पद्य, मप., (ता धन धन सोरठ देस), ९२७२८-३(+#) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५०५ नेमिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (शब्दब्रह्मांबुराशेः), ९४४३३-३ नेमिजिन स्तव, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (विमलरैवतकाचलशेखरः सरभ), ८९९०३-११३(+) नेमिजिन स्तव-नव भव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ७, पद्य, मपू., (नेमिरायमइजुअंथोसामि), ९४४६१-९(2) पंचकल्याणक स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मपू., (सम्म नमिऊण जिणे), ८९९०३-२८(+), ९०३३८-२५(+) पंचतंत्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, वै., इतर, (ब्रह्मा रुद्रः कुमार), प्रतहीन.. (२) पंचतंत्र-पंचाख्यान चौपाई, संबद्ध, पं. वच्छराज गणि, मा.गु., गा. ३४९६, वि. १६४८, पद्य, मूपू., वै., इतर, (आदि जिनवर आदि जिनवर विमल), ९४२७५(+) (२) पंचाख्यान भाषा, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., अधि. ५, चौपा. १२०, वि. १६२६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीअंबा श्रीसारदा), ९४३३६(8) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शैलराज), ९२०२६-४ पंच तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ), ९४३०२-४१(+#) पंचपरमेष्टि अष्टप्रकारी पूजा, आ. शुभचंद्र, सं., प+ग., दि., (श्रीमत्परमगंभीर प्रभुविभव), ९१११७(+#) पंचपरमेष्टि गुण वर्णन, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (अरहंतामहाअट्ठप्पाडिह), ८९९०३-८९(+) पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अर्हतस्त्रिजगद्), ८९९०३-८७(+) पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभरअमरपणयं पणमिय), ९४५८२(+$) (२) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र-व्याख्यानटीका, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (अअआउम् ॐ साधनायां तथा), ९४५८२(+$) पंचलिंगी प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., अ.४, गा. १०१, पद्य, मप., (उवसम संवेगो वि य निव), ८९९०३-१६(+) पंचविधदेव वाद्यनाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सूणिउण संखसई मिलंती), ९२४६०-३ पंचशक्रस्तव देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूप., (खमासम ३ देके इच्छा०), ९२१३९-८ पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., सूत्र. ५, गद्य, मूपू., (णमो वीयरागाणं सव्व), ८९९०३-४६(+) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), ८९९०३-१३(+), ८९९०३-६३(+) पंचोपचार पूजन नाम, सं., गद्य, मूपू., (गंधश्माल्य२ अधिवास३), ८९७७६-२(+#) पकवान कालमान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (वासासु पनर दिवसंसि), ८९३५६-३ पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, गद्य, मप., (प्रणिपत्य जगन्नाथं), ९३१६१ पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मपू., (गौतमादि गुरु नत्वा), ९४६३०(+) पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूप., (सिरिमंतो सुहहेउ), ९४४४०(+$) (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, मूपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), ९४४४०(+$) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ९३४१८ पट्टावली-पाडिवाल गच्छ, प्रा., गद्य, मपू., (तेणं कालेणं० महावीरे), ९२८३८(+) पडिलेहणा कुलक, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (भयवं दसन्नभद्दो सदसणो), ८९९०३-४०(+) पद्मपुराण, आ. रविषेणाचार्य, सं., अ. १२३पर्व, वि. ८४०, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्णभव्यार), प्रतहीन. (२) पद्मपुराण-पद्यानुवाद, मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, दि., (आदिनाथ वंदु जिनराय), ९१४६३ (२) पद्मपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, दि., (महावीर वंदौ सुबुद्धि), ९०१०४, ९००११(६) पद्माकर कथा, सं., गद्य, मूप., (पुष्पपुरे शेखरोराजा), ९०८१५-४(+$) पद्मानंद महाकाव्य, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., स. १९, श्लो. ६२८१, पद्य, मप., (अहँ नौमि), ९०५५२(+) पद्मावती कल्प, सं., गद्य, मपू., (ओं ह्रीं क्लीं पञ), ९००९२-३ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ९४१५७-५(+), ९४६१२-११(+$) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, पू., (श्रीमद्गीर्वाण), ८९७०१-३(+) पद्मिन्यादि नारीलक्षण श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. ११, गद्य, इतर, (पद्म सुगंध स्वेद), ९२०९५-५(+$) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०६ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ परमहंससंबोध चरित्र, उपा. नयरंग वाचक, सं., प्र. ८, श्लो. ८९०, वि. १६२४, प+ग, मूपू., ( चिदानंदमयं सार्वं), ९३९१२(+) परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. ३४५, वि. ६वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), ९१३११ परमार्थविंशतिका, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. २१, पद्य, दि. (रागद्वेषरतिश्रिता विकृतयो ), ९१४५४-२३(*) (२) परमार्थविंशतिका-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (मोह द्वेष रागाश्रित), ९१४५४-२३ (+) परमेष्ठि मंत्रावली, प्रा. सं., गद्य, वे., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण), ९१७८६ " יי परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., गा. २७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं), ९२७६२-१(+) (२) परिपाटीचतुर्दशक - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार करी), ९२७६२-१(+) पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (अहन्नं भंते तुमाणं), ९४५२६(*), ९१७७७-३ पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपु. ( नमिउण भणइ एवं भयवं), ८९६०१ (+), ९३४१५ () ९३७८८(*), ९४६०७-२१ (३) ११४०१, ९२९१९, ९३४२७(१) ९४४६३ (६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (२) पर्यंताराधना-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनई), ९३४१५ (+), ९४४६३ (६) (२) पर्यंताराधना-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (नमस्कार करिने) ९३४१५ (+), ९३७८८ (+) ९१४०१, ९२९१९, ९३४२७/(३) पर्वताराधना विधि, प्रा., मा.गु., प+ग. म्पू., (प्रथम इरियावही), ९४४६५ (+३) . पर्याप्तिविचार गाथा, प्रा. गां. ३, पद्य, भूपू (उलालिय वेउब्विय छन्न) ८९८०९ ४ " पर्युषणाष्टाहिका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, म्पू. (स्मृत्वा पा), १२३८८(+) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), ९२३८८(+#S) पलीपत्रिका, सं., प+ग, जै. वै., इतर (आदीश्वरं नमस्कृत्य), ९२१३१(३) पात्रफल गाथा, सं., श्लो. २, पद्य, ओ., (मिध्यादृष्टीसहस्रेषु), ९४३६३-२ (+) पादलिप्तसूरि कथानक, प्रा. प+ग, मूपु (अत्थि इह भरहवासे नाम), ९१९३३-२(५) "" "" पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., स. ८, ग्रं. ५५००, वि. १६५४, गद्य म्पू. (प्रोद्यत्सूर्यसमं ), ९२८२८ (३) पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., स. ८, श्लो. ६०९३, वि. १३१२, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), ९२८४७(+), ९३१४५ (+$) (२) पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु. ग्रं. १२१४७, वि. १८००, गद्य म्पू, (प्रणिपत्य जिनान्), ९३१४५ (+३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., ( नमो देवनागेंद्रमंदार), ९२०२४-३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु, शिवसुंदर सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू. (वरसं वरसं वरसे वरसं), ८९५५७-१(*), ८९७०९-२ (+#5) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, सं., श्लो. ३, पद्य, वे (सकलभविकचेत कल्पना), ९२०२६-३ पार्श्वजिन पद, पुहिं. सं., गा. ३, पद्य, म्पू, (ताहरो प्रतो चमद्रा), ८९४२६-२ " " पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा., मा.गु., मंत्र. १, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अर्हं नमीऊण), ९२६६७-२ पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था. (महिम्नः पारं ते परम), ९३२७१-१(+) पार्श्वजिन स्तव, उपा. जयसोम, सं., श्लो. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू. (भविकभावुकसंगमकारकं ), ९४०३९-५ (+A) पार्श्वजिन स्तव, उपा. जयसोम, सं., श्लो. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (लसत्पंकजामोदनिश्वास), ९४०३९-४(+#) पार्श्वजिन स्तव, मु. रंग, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्मर वामातनयं मानस), ९२९२८-८८ पार्श्वजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि शिष्य, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपु (कीर्तिः स्फूर्त्तिमिय), ९४४३३-४ पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (अरूपिणो रूपविशेषितात्मन), ९४६२८-९(#) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू (सद्ज्ञान चरणांभोधि), ९३४१०-२१ (+#) पार्श्वजिन स्तव कलिकुंडमंडन, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, म्पू, ( नमामि श्रीपार्श्व), ८९९०३-९२(+) " पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं विधुमधु), ९४१५७-१ (+), ९४६१२-९(+$) पार्श्वजिन स्तव जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं. लो. ४५, पद्य, म्पू, (प्रभु जीरिकापल्लि ), ९४१५७-४(*) पार्श्वजिन स्तव जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा., मा.गु., डा. ३, गा. १९. वि. १६६५, पद्य, मूपू.. (नमिअ सिरिपासजिण सुजण), ९३९७२(७) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५०७ (२) पार्श्वजिन स्तव-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए गाथानो अर्थ सोहिलउ), ९३९७२(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-१० भव, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., गा. ९, पद्य, मप., (नवहत्थं नीलाहं वामंग), ९४४६१-१०(2) पार्श्वजिन स्तवन-१० भव, प्रा., गा. १५, पद्य, मपू., (नमिऊण चलणजुअलं पास), ९०३३८-५३(+) पार्श्वजिन स्तव-लघु, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (भजेश्वसेननंदनं मुहर), ९३४१०-२०(+#) पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, आ. राजेंद्रसूरि, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (देवेंद्रैः पूजितांघ्रि), ९२३७९-३(+) पार्श्वजिन स्तव-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपा), ८९३५९-२(2) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभण, आ. अभयदेवसूरि , सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आचार्यशक्राभयदेवसूरि), ८९९०३-११४(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, स्पू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ९३४१०-१७(+#), ९४२४२-३(+#), ८९३५९-४(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनजनतारणगुण), ९२४९२-१० पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (मदनदर्पविघातमहेश्वरं नमत), ९४३३८-१८(+#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदसद्गुणराजिविराजि), ९४३३८-१९(+#) पार्श्वजिन स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (भलु आज भेद्यं प्रभुः पाद), ९४६१२-६(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (दसावतारो भुवनैकमल्लो), ९४२४२-५(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, मप., (सकल गुणनिधाना गौडिका), ८९७८२-५(+-#$) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ९३४१०-८(+#), ९४३०२-३५(+#) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (नै दें कि धप), ९३४१०-९(+#), ९४३०२-२४(+#s) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं), ९३४१०-७(+#), ९४३०२-१६(+#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ९४३०२-१३(+#), ९४३३८-१३(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (धर्ममहारथसारथिसारं), ९३४१०-१९(+#), ९४०३९-१०(+#), ९२४९२-११ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणो), ९३३७९-८(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (सिग्घमवहरउ विग्धं), ९३९३४-६(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (अपनयतु स्फेटयतु कं विघ्न), ९३९३४-६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मप., (गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि),८९९०३-२५(+), ९०३३८-२१(+), __ ९४६०७-१९(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ९३४१०-२७(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (क्षितिमंडल मकुटं धार्मिक), ८९७०५-६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मपू., (निम्मल गुण रयणावलि रोहणा), ९०३३८-५४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ९४०३९-६(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, म्पू., (--), ९४६१२-१०(+$) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ९३४१०-२६(+#), ९४२४२-४(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ९४२४२-१५(+#), ९४४२२-३(+), ९२४९२-९, ९४३११-६ पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित, मु. इंद्रनंदि, सं., श्लो. ११, पद्य, दि.?, (श्रीमन्नागेंद्ररुद्र), ९००९२-२(5) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित-वृत्ति, सं., गद्य, दि.?, (श्रीपार्श्वनाथमानम्य धरण), ९००९२-२($) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ९४०७४-५(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमहं), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध-टीका, सं., गद्य, मप., (अहं श्रीपार्श्वनाथं), ९३२१०-२(+$) पार्श्वजिन स्तोत्र-स्थंभन, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (सुरनरकिंन्नर), ८९९०३-९७(+), ९०३३८-५०(+) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन संबंध कथा-शंखेश्वर, सं., प+ग., म्पू., इतर, (नत्वा शंखेश्वरं देवं मनो), ९४५२२-१ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), ९३३९०-१(+), ९४११५(+), ९४२१७(+$), ९४२१८(+), ९२८०२-१, ९४०४३-१ (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), ९१३४५(+), ९२१९२, ९४०४०, ९३६८३(5) पाशाकेवली, सं., प+ग., म्पू., इतर, (संसारपाश सिद्धार्थं नत्वा), ९१७०७(+) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ८९८१४(+5), ८९९०३-१७(+), ९०३३८-१४(+s), ९०३३८-१५(+$), ९४१२०(+$), ९४१५४(+$), ९२९०६-१ (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसरि, सं., वि. १२९५, गद्य, मप., (तं नमत श्रीवीरं), ९०३३८-१५(+$), ९४१२०(+s) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोदेवसूरि, सं., ग्रं. २८००, वि. ११७६, गद्य, मूपू., (देवा भवनपत्यादय इंद्राश्च), ९४१५४(+$) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (संपुन्न इंदिअत्त), ९०३३८-९(+) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मप., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ९२७७१-१(+) (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ९२७७१-१(+) पुण्यास्रवकथाकोश, रामचंद्र मुमुक्षु, सं., अ. ६, ग्रं. ४५००, गद्य, दि., (पुष्पोपजीवितनुजे वरबोधहीन), ८९९१४, ९००८३ (२) पुण्यास्रवकथाकोश-भाषाटीका, क. दौलतराम पंडित, ब्र., वि. १७७०, प+ग., दि., (श्रीवीरजिनमानम्य), ८९९१४, ९००८३ पुराणहंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ९३६५४-१(+), ९४१०९(+#), ९३३२९-२(#$) (२) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाई सांभल), ९४१०९(+#) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मपू., (जइ णं भंते समणेणं०), ८९८८४-४(+), ९११११-४(+), ९२५३०-४(+#), ९२६८०-४(+#), ९४३००-४(+), ९४५७६-४(+), ९२१७८-२ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीवीतरागदेवने नमस), ८९८८४-४(+), ९२१७८-२ पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., द्वा. २०, गा. ५०५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), ८९८४५(+), ९०३३८-६२(+), ९२९६५(+$), ९४५९३(+#$), ९२४४०(#$), ९३९०४(#$) (२) पुष्पमाला प्रकरण-लघुवत्ति, ग. साधुसोम, सं., वि. १५१२, गद्य, मप., (इह संहिता च पदं चैव), ९२४४०(#$) (२) पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरं धीर), ८९८४५(+) (२) पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध त्रैलोक्य नाहि जाणी), ९३९०४(#$) (२) पुष्पमाला प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सिद्ध कहितां सिद्ध), ९२९६५(+$) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मपू., (जति णं भंते समणेणं०), ८९८८४-३(+), ९११११-३(+), ९२५३०-३(+#), ९२६८०-३(+#), ___९४३००-३(+), ९४५७६-३(+), ९२१७८-१(६) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जौ हे पूज्य०), ८९८८४-३(+), ९२१७८-१(६) पुस्तकलेखनोपदेश, सं., उप. २, प+ग., मूपू., (ये लेखयंति जिनशासनपुस्तक), ९३०५८-४ पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५६, पद्य, मूपू., (सिरिवद्धमाणतित्थाहिन), ९१७१७(+) पृथ्वीकायादिजीवप्रमाणदर्शक गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (अद्दामलगप्पमाणे), ८९३४९-३ पोरिसि विधि, गु.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (छ घडी दिवस चढवा पछी), ९२०७१-६ पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ८९९३२-७(+) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, मप., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ९४४४७($) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरणं), ९३३१६-५(+) पौषधविधि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., ग्रं. १५०, पद्य, पू., (जस्सुद्धट्ठियमुल्लसि), ८९९०३-१९(+) पौषधशालोपदेश, सं., प+ग., म्पू., (पुण्याह पौषधागारं तत्र), ९३०५८-२($) पौषधिकआलोयणा सामाचारी, आ. तिलकाचार्य, प्रा., गा.१०, वि. १३वी, पद्य, मप., (पोसहिओ न करेईति), ९३३७९-१०(+) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५०९ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूप., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ८९८७२(+), ८९८७३(+#), ९१०५९(+#$), ९२७०१(+), ९४२३२(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद. ३६, ग्रं. १६०००, गद्य, मपू., (जयति नमदमरमुकुटप्रति), ९११००(+$), ९११०१(+$), ९११०५(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९२७०१(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वथी थोडा गर्भज), ८९७१३-१(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-योनि विचार चोवीसदंडक आधारित, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चउवीसदंडक आश्री निरत), ८९३२४-३(+#) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ९२७७१-२(+$), ९४४२३-२ (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुद्धि प्रकाशने अर्थ), ९२७७१-२(+$) प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मपू., (सम्म नमिउं देविंद), ८९९०३-२०(+), ९४६०७-७(+#) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.ग.,सं., पद्य, मप., (प्रणम्य पार्श्वपादाब्ज), ९२४३०(+) प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मनइं न करुं वचने न), ९३५१३-२(+), ८९३४९-१(६) प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), ९२३९५(#$) प्रत्येकबुद्धचरित्र, मु. आनंदविजय, सं., प्रका. ४, पद्य, मूपू., (भुवि भविकजनालिप्रीणन), ९३९०१(+$) प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., स. १६, ग्रं. ४८५०, वि. १५३१, पद्य, स्पू., (श्रीमंतं सन्मति), ९००८५(+) (२) प्रद्यम्न चरित्र-भाषावचनिका, श्राव. ज्वालानाथ खंडेलवाल पंडित; श्राव. वखतावरसिंह पंडित, पुहि., वि. १९१६, गद्य, मप., (प्रणम्य भारती देवीं), ९००८५(+) प्रभात अष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ८, पद्य, दि., (निःशेषावरणद्वयक्षितिनिशा), ९१४५४-१७(+-) (२) प्रभात अष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (समस्त ज्ञानावरण), ९१४५४-१७(+-) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि.८, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं), ९१७९५, ९४११८($) (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, गद्य, मूपू., (नमः परमविज्ञानदर्शना), प्रतहीन. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., परि.८, ग्रं. ५६८०, वि. १३वी, प+ग., मप., (सिद्धये वर्द्धमानस्तात), ९४११८($) (४) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (रागद्वेष० अहं रत्नप्रभ), ९१७९५(६) प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (श्रीमहावीरदेव थकी तीनसे), ८९६४१(६) प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., विश्रा. ११, ग्रं. १२०५, वि. १६२९, पद्य, मप., (पणमिअ णाणनिहाणं वीर), ९३१०६-१(+), ९३८४५(+$), ९२९२३($) (२) प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., विश्रा. ११, ग्रं. १३३८७, वि. १६२९, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९३१०६-१(+), ९३८४५(+), ९२९२३(5) (२) प्रवचनपरीक्षा-बीजक, सं., गद्य, मपू., (पणमिअ इत्यादि गाथा), ९३१०६-२(+) प्रवचन संदोह, प्रा., पद. ६, गा. २५०, प+ग., मप., (नमिऊण वद्धमाण ववगयमा), ८९९०३-४५(+) प्रवचनसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ३, गा. २७५, पद्य, दि., (एस सुरासुरमणुसिंदवंद), ९३५०८(+#$) (२) प्रवचनसार-बालावबोधिनी भाषाटीका, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., वि. १७०९, गद्य, दि., (स्वयंसिद्ध करतार करे), ९३५०८(+#s) (२) प्रवचनसार-छाया, सं., श्लो. २७५, पद्य, दि., (एष सुरासुरमनुष्येंद्र), ९३५०८(+#$) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), ९२८५६(+), ९३०७०(5) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८९९१९ ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं. ग्रं. १८००० वि. १२४२, गद्य, मूपू (सन्नद्धैरपि यत्तमोभि), "" (३) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति का २४ जिन शासनदेवी स्तोत्र, संबद्ध, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (देवीचक्रेश्वरीयं वरकनक), ९२५७२-५ () Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्रवचनसारोद्धार-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार करीनई ऋषभ), ९३०७० (5) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), ८९९०३-४१(१), ९०३३८-८(१), ९४२४२-२(+), ९४४२२-४(*) प्रव्रज्यायोगादिविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू., (--), ९४६२१ (+३) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. १० गा. १२५० ग्रं. १३००, प+ग. मूपू. (जंबू अपरिग्गाहो संवुड), ९०८०५-१(०), ९११०३(*), ९२२१९(+३), ९२२७४(+३), ९२६१२(+३), ९२८५९(+), ९३०३७-३(७), ९३११८(१) ९४२२८(*७), ९४३२२ (+$), ९४३२४ (+$), ९४२५८($) " (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., अ. १० नं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, मूपु (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९०८०५-१(*), ९१०९२-१ (६) ९४३२४०छा (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीसुधर्मास्वामि), ९२८५९(+), ९४२२८(*३) "" (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ९२२१९ (+$), ९३११८(+) प्रश्नशतक, उपा. नरचंद्र, सं., प्रका. ७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., इतर (श्रीवीराय जिनेशाय नत्वाति), ९२५१८(+) (२) प्रश्नशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. नरचंद्र, सं., वि. १३२४, गद्य, म्पू., इतर ( अहं प्रश्नशाखं कुर्वे), ९२५१८) प्रश्नोत्तर काव्य-समवर्णगर्भित, सं., पद्य, म्पू, इतर (-), ९३३६४(३) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू. (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ८९९०३-५७(*), ९०३३८-५ (+), ९१९२७(*७), ९४५२५(१) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ७३२६, वि. १४२९, गद्य, मूपू., ( श्रीनाभिभूर्जिनवरः), ९१९२७(*४) ९३८५१ (+३) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनवरेंद्र), ९४५२५ (+) , प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा सेनसूरि मु, शुभविजय, सं., उल्ला. ४ प्रश्न १०१४, गद्य, मूपू (प्रणिपत्य परं ज्योति) ९४४५३) प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (तारा सातसेनेउ जोजने), ९३१२६ (+), ९२६१३ ($) प्रहेलिका हरियाली, मा.गु., सं., गा. ३, पद्य, खे, (अपदो दूरगामी च), ८९४९४-२ प्राकृत उक्ति आम्नाय संग्रह, मु. चंद्रशेखर, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., इतर, (अर्हं प्रणम्य मुग्धानां), ९३००८($) प्राकृत छंदकोश, प्रा., गा. ८०, पद्य, मूपू., इतर, ( आजोयणट्ठियाणं सुरनर), ९१०६७(+#$) प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., विधा. ४, गद्य, जै., इतर, (प्रणम्य शिरसा वीरं), ९१३७९ प्रासादोपदेश, सं., उप १३ प+ग, भूपू (जिनभवनविचपुस्तक चतुर्विध), ९३०५८-१(5) प्रासुकजल विचार गाथा, प्रा. गा. २, पद्य, मूपू. (अन्नजलं? उन्हेंवाकसाय), ८९३५६-४ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुडिं, प्रा., मा.गु., सं., गा. २८, पद्य, मूपू (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ९२५६२-३(*), ८९५६६-३, ९२५६४-१५ प्रास्ताविक दोहादि संग्रह. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. मा.गु., सं., गा. ३७३, पद्य, खे, वै., (भमरा भमत नभ जिह निगुणन), ९३५३६-२ (+), ९४१७३-१ प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, श्वे. वै., (संताप्यो सज्जन घणु भुंड), ९४०३९-३(+), ९४१७३-२ (३) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलंति तारा विचलंति), ८९३९४-२ प्रास्ताविक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. २२, पद्य, क्षे. इतर ? (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ९४०३९-२० (+) " 1 प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर ?, (दाता दरीद्री कृपणो ), ९४६०७-११(+#) प्रास्ताविक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ९१६३० (+), ९०९४९-२, ९४४६१-५ () For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ फलसार कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., श्लो. ९४६, पद्य, मूपू., (जयति जगति देवकेवली लोक), ९२२४८(+#$) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), ८९९५८-३(+), ८९९८०-३(#), ९२६१५-३(+), ९३०५४-३(+#s), ९३०८३-१(+#$), ९३३५६-३(+), ९३३६१-४(+#), ९३३६७-६(+), ९३४३२-३(+), ९४२९४-३(+), ९४५७५-३(+#), ९२६५८-२(5) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, मपू., (सम्यग्बंधस्वामित्व), ९४२९४-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (बंध० बंधः कर्माणुनां), ९४२७६-३(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मपू., (सर्वशर्मप्रदं नत्वा), ९३०८३-१(+#$) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मप., (बंध सामित्त विचार), ९३०५४-३(+#$), ९४३०७-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्मबंधथी मुकाणउं), ८९९८०-३(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, पंन्या. धर्मविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें बंधस्वामित्व), ८९९५८-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (कर्म बंधना प्रकारथी), ९२६१५-३(+), ९३३५६-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, प्रा., यं., मपू., (--), ८९९७४-३(+) बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५४, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं० वोच), ९०३३८-२९(+), ९४२५१-१(+#) (२) बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ५६०, वि. ११७२, गद्य, मूपू., (इह स्वपरोपकाराय० इह), ९४२५१-१(+#) बटुकभैरवकवच स्तोत्र, सं., श्लो. १००, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवकवचस्य), ९३९५९-४(+) बप्पभट्टि कथानक, प्रा., वि. १२९१, गद्य, मूपू., (ललियालाव मणोहर समत्थ), ९१९३३-४(+) बलभद्र कथानक, सं., श्लो. २६१, पद्य, मूपू., (अस्त्यत्र भरते स्वर्णमयी), ९३४१७-१(+) बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी आई आणंद), ९४१५७-१६(+), ९४६१२-४(+$) बाला स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (ऐं आणंदवल्ली अमृत), ९४१५७-१२(+), ९४६१२-३(+) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ९४३०२-१०(+#), ९४३३८-१०(+#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ९२२४६(+$) (२) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका#, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), ९२२४६(+$) (२) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य#, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., उ. ६, गा. ६४९०, पद्य, मूपू., (काऊण नमोक्कारं तित्थ), ९२२४६(+s) (२) बृहत्कल्पसूत्र-सखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसरि, सं., ग्रं. ४२६००, गद्य, मप., (प्रकटीकृतनिःश्रेयसपद), ८९८४१(६) बहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मप., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ९०३३८-१६(+$), ९२७७४(+s) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (उवगाह विस्तार देहनइ), ९१९६४ (२) बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजल जलहर), ८९९०३-१२(+), ९४४०४(+) (३) बहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (नमीने जे भगवंत सजल), ९४४०४(+) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ९३२४७-१(+#), ९४१७०(+s), ९४६२२(+), ९४५०२(#$) (३) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ९३२४७-१(+#), ९४६२२(+), ९४५०२(#s) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), ९१९२५(+), ९४५००(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिनवरेंद्रं सर्वे), ९१९२५(+) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ९२१४४-५(+), ९३३७२-३(+), ९४३६६-१९(+), ९३२४८-३ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ८९८८२(+), ९०३३८-६४(+), ९२४७४(+#), ९२८५०-१(+), ९२९८४(+#), ९३२१४(+$), ९३३०९(+), ९३९०५ (+$), ९३९१५(+$), ९४२४२-१६(+#), ९४२९९(+$), ९४३४६(+$), ९४३५९(+#), ९४४१०(+$), ९४४१६(+), ९४४८२(+#$), ९४४९०(+#), ९४५५७(+#s), ९३१३९, ९३९०२, ९४४३९, ९२६३३(#), ९३०७४(#$), ९३५०४(#S), ९४०७७($), ९४१६०(), ९४३५०($) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूप., (अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य), ९२४७४(+#) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मप., (नत्वा श्रीवीरजिन), ९४३५९(+#), ९४४३९ (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६००, गद्य, मपू., (श्रीपार्श्वनाथं फल), ९३०७४(#$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ९४२९९(+$), ९४४८२(+#$), ९४०७७($) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), ८९८८२(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (नमस्कार अरिहंता), ९२८५०-१(+), ९३९०५(+$), ९३९१५(+$), ९४२९९(+$), ९४३४६(+$), ९३५०४(#s), ९४१६०() बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), ८९९०३-७(+), ९०३३८-१७(+s), ९२८५१(+$), ९४३१८(+), ९४५८३(+$), ९२२४५, ८९९९३(2) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ५०००, गद्य, स्पू., (जयति नखरुचिरकांति०), ९२८५१(+$), ९४३१८(+), ९४५८३(+$), ८९९९३(4) बृहद् वंदनक भाष्य, मु. अभयदेवसूरि-शिष्य, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूप., (इच्छा य अणुन्नवणा), ८९९०३-४३(+) बृहद्विचाररत्नाकर, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १४५७३, गद्य, मपू., (आद्यं भावारोग्यं मनो), ९२२९६(+) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ९३४१०-१३(#), ९४०७४-६(+) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय २), ९४४२४(+$), ९३८३२ ।। बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछे हे भगवन्), ९२८९७-४, ९२९८६, ९००९८(5), ९३०९३(६) बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित),८९४५६ ब्रह्मचर्यरक्षावृत्ति, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. २२, पद्य, दि., (भूतक्षेपण जयंति ये रिपु), ९१४५४-१२(+-), ९२९४०-९(+) (२) ब्रह्मचर्यरक्षावृत्ति-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (भौह टेढी करते ही जीत), ९१४५४-१२(+-) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही), ९४४१५-१ ब्रह्मचर्याष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, दि., (भवविवर्द्धनमेव यतो भवेदधि), ९१४५४-२६(+-$) (२) ब्रह्मचर्याष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (संसार की वृद्धि), ९१४५४-२६(+-$) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मपू., (नमिऊण महाइसयं महाणु), ९०८१४-४(+#), ९४५७४-३(+) (२) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक-अवचूर्णि, सं., गद्य, मपू., (भृञ्धातुर्धारणे पोषणे च), ९४६२०-२(+$) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, म्पू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ८९५९६(+), ८९८५२(+), ८९९०३-९४(+), ९११५७-१(+), ९१५७७(+), ९२१४४-४(+), ९२२९१(+$), ९२४५३(+), ९२९३८(+#), ९२९८३(+#), ९३०६०(+$), ९३०६१(+), ९३१७०-२(+), ९३३०८(+$), ९३३६७-१(+), ९३९८४(+#), ९४२४२-७(+#), ९४४४४-१(+), ९४४५५(+), ९४४८०(+), ९४४९६-१(+), ९४५०६(+$), ९४५६०-४(+#), ९४५७७(+#), ९४६०७-१४(+#), ९१५८५, ९२४७८, ९२४९२-४, ९२६८३, ९२९०४, ९४१६५, ९४४२३-१, ९२६४४(#$), ९४२४५ (#$), ९४३७५ (६) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, भूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), ९२२९१(+६), ९२९३८(+#), ९४४८०(+), ९४५७७(+#), ९२९०४। (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६८३, गद्य, मप., (नत्वा वृषोपदेष्टारं वृषभं), ९२६३०(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा, मु. विश्वभूषण, सं., गद्य, मपू., दि., (--), प्रतहीन. (३) भक्तामर स्तोत्र-टीका का पद्यानुवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहि., वि. १७४८, पद्य, मूपू, दि., (प्रथमपद अरिहंतवरकुं), ९२०४२(६) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५१३ (२) भक्तामर स्तोत्र-लघुटीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ नमस्कृत), ८९८५२(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (--), ९४२४५(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ९१५७७(+), ९३९८४(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.ग., वि. १५२७, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९४५०६(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (किल इति सत्ये), ९४१६५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (भक्त जे सेवानई विषइ), ९४४५५(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीनई विषई), ९३०६०(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ९२९८३(+#), ९४४४४-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मु. शिवचंद्र, मा.ग., गद्य, मप., (भक्त कहिता सेवक अमर), ९३०६१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., कथा. २८, गद्य, मूप., (पुरामरावती जयिन्यां), ९२२९१(+$), ९४५७७(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (एकदा जिनमतना द्वेषी), ९४५०६(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मु. विनयसुंदर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनं वीरं), ९२७२७(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमालवदेशमाहि), ९४३७५(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, सं., गद्य, मपू., (--), ९४२४५(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., मंत्र. ४८, गद्य, मपू., (ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंता), ९२४५३(+), ९२४७८, ९४२४५ (#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), ९३१७०-३(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., अज्ञ. ४४, यं., मूपू., (--), ९२४७८ भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ९३२०४ (२) भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा-ऋद्धिमंत्रादि, संबद्ध, सं., गद्य, दि., (ॐह्रीं अहँ णमो अरि), ९३२०४ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मपू., (नमो अरहताणं० सव्व), ८९६२५(+), ८९८२८(+$), ८९८६५(+), ८९८६८(+), ८९९२३(+s), ८९९६०(+#$), ८९९६८(+), ९००२९(+), ९१७७६(+$), ९२२३१(+$), ९२८९५(+), ९२९०९(+#s), ९२९७५(+$), ९४२६६(+), ९४६३८+), ९४१४९, ९३८५६(#s), ९२२९४(६), ९४०४१(६), ८९९१२(-) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ९२९७५ (+$), ९४२४०(+5), ९३८५६(#$) (२) भगवतीसूत्र-अवचूरि, सं., ग्रं. ३११८, गद्य, मपू., (अथ समस्तप्रत्यवभासनस), ९४०४१(६) (२) भगवतीसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी लिपिनइ), ८९८६५(+), ८९८६८(+) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., ग्रं. ५२०००, वि. १८पू, गद्य, मपू., (श्रेयः श्रीसेवितांह), ८९९६०(+#$), ८९९६८(+), ९००२९(+) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., ग्रं. १५७७५, गद्य, पू., (सुखसंततिवृद्ध्यर्थं), ८९८२८(+$) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ८९८६५(+), ८९९२३(+), ९१७७६(+$), ९२२३१(+$), ८९९१२(-६) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मप., (तेणं कालेण० माहणकुंड), ९३२०५(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पनवणा १ वेय २ रागे ३), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.ग., गद्य, मप., (हिवै पनवणा द्वार), ८९४७७(2) (२) देवोत्पत्ति विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सालि कल अलसी ए त्रिण), ८९५०९-२(-) (२) भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ९३०६४ (२) भगवतीसूत्र-सर्वबंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (उदारिक सरीर केणे), ८९६८५ For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ८९५८२-२(5) (२) भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (तिविहं तिविहेणं न), ८९६६२, ९२६९१(६) (२) भगवतीसूत्र-लब्धि थोकड़ा, संबद्ध, प्रा.,रा., द्वा. २०, गद्य, मपू., (जीवगइ इंद्रीकाय सोहम), ९३५९६-२(-) (२) भगवतीसूत्र-शतक २५ उद्देश गत संजया विचार, संबद्ध, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मपू., (पन्नवणा १ वेयरागे), ९२६३८ (२) भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देश ९ औदारिकादि ५ शरीरबंध विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (कइविहेणं भंते बंधे प० गो०), ९३४२६(+) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आवो आवो रे सयण भगवती), ९३२७०-३ (२) भगवतीसूत्र-टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वेनइ अध्यन तेह भणी), ९३२३६(+), ८९४९३(#), ९४५१९(६) (२) भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ४०९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ९३३७६(+$), ९४५७८(+) भद्रबाहसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., अ. २८, पद्य, मपू., (मगधेषु पुरं ख्यातं), ९११६१(+) भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., वि. १५वी, गद्य, मप., (देवदेवं नमस्कृत्य), ९३०१८(#$) भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., (णमिऊण णमिरसुरवर मणि), ९०३३८-५८(+), ९४२४६(+), ९४४०५(+$) (२) भवभावना-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (द्वाभ्यां गाथाभ्यां), ९४०३२($) (२) भवभावना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमतां हुंता इंद्र तेहना), ९४२४६(+) भवियकुटुंब चरित्र, आ. जिनप्रभसूरि, अप., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पढम जिणंदह पय पणमेवी), ९४४६१-१२(#) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ९४१४५(+$), ९१९६६ (२) भाव प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (आनंदइ करि भरिय कहतां), ९४१४५(+$), ९१९६६ भावस्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (उपशमभाव क्षायिकभाव), ९२७६२-२०(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, वि. १४वी, प+ग., मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ९१५४५(+), ९३३२४(+), ९३३६१-१(+#s), ९३५१३-१(+) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), ९४६१८(#$) (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनुतं), ९१५४५(+) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), ९३५१३-१(+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मपू., इतर, (सारस्वतं नमस्कृत्य), ९१०१३(+), ९१४७०(+), ९२७४३-२(+), ९३२६६(+#), ९३५२४(+), ९३८८४(+s), ९४०६८(+$), ९४०९३(+$), ९४१०१-१(+) (२) भुवनदीपक-टीका, आ. सिंहतिलकसरि, सं., वि. १३२६, गद्य, स्पू., इतर, (अर्हदादीन् प्रणम्याथ), ९३८१२-१ (२) भुवनदीपक-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती नाम जो देवी), ९१४७०(+) (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती संबंधीओ मह), ९२७४३-२(+), ९३८८४(+$), ९४०९३(+$) भूतबल्यादि शांतिबल मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं५ ॐ नमो), ९४६००-४(+) भूस्खलन उल्कापत्तनादि ज्योतिष फल विचार, सं., पद्य, इतर, (कृत्तिका च विशाखा च), ८९३५०-१ भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., परि. १०, श्लो. ४००, पद्य, दि., (कमठोपसर्गदलन), ९००२४(2) (२) भैरवपद्मावती कल्प-टीका, मु. बंधुषेण, सं., गद्य, दि., (श्रीमत्थारुनिकायामरव), ९००२४(#) भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खट्वांगहस्तं), ९४१५७-७(+) भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., प्र. ५, ग्रं. १८१६, पद्य, मूप., (आश्वसेनं जिनं नत्वा गौतमा), ९४३५४(+#$) मंगल दीपक, प्रा., गा. १२, पद्य, मप., (ॐसरणे जिणसुरऊ परिमल), ८९९०३-१०९(+) मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., गा. ९९, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (पणमिअवीरजिणिंद), ९१९३५(+#) (२) मंडल प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, मु. विनयकुशल, सं., वि. १६५२, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ९१९३५(+#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐह्रीं श्री अहँत), ९२४३६ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ मदनकीर्ति प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मपू., (उज्जयिन्यां विशाल), ९२९६१-३(+) मदनवर्म प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (चौलुक्यवंश्यो मूलराज), ९२९६१-१०(+) मनुष्यसंख्या स्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिणवुत्त चरित्तेणं), ८९६११ (२) मनुष्यसंख्या स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, पू., (जिनोक्तचारित्रेण), ८९६११ मलयासुंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., प्र. ४, ग्रं. २४३०, पद्य, मूप., (चतुरंगो जयत्यर्हन), ९२८१३(+) मल्लवादि कथानक, प्रा., गद्य, मपू., (अस्सावहबोह तित्थोवसो), ९१९३३-३(+) महर्षिकुलक, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (निज्जियवं महमहरिसि सहस्सस), ९४४६१-२६(#) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ८९६०२-३(+) (२) महादंडक स्तोत्र-अवचरि, सं., गद्य, मूप., (भीमे भवेति० १ गब्भ०), ८९६०२-३(+) महादेवीग्रहसाधन, सं., श्लो. ९८, पद्य, इतर, (वस्वाग्नि सूर्ये १२३८), ९२२६०-२(+$) (२) महादेवीग्रहसाधन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., इतर, (शाकः स्वशाक पोताना शाक), ९२२६०-२(+$) महादेवी सूत्र, महादेव, सं., श्लो. ३९, पद्य, वै., इतर, (सिद्धिं करोति राजकें), प्रतहीन. (२) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., ग्रं. १५००, वि. १६९२, गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीनाभेयं जिनं नत्व), ९४१५८(+) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ८९९२४(+#), ८९९५९(+), ९३७४५(+) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८९९५९(+) (२) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-४, प्रा., गद्य, मूपू., (से णं भयवं कहं पुण), ९२५४४(+) (३) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-४ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (से भगवन् कथं ते तिणे सुमत), ९२५४४(+) (२) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५, प्रा., गद्य, मूपू., (से भयवं जेण केइ आयरि), ९२४९९(+) (३) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५ टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते भगवान जे कांइ आचा), ९२४९९(+) महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य; आ. गुणभद्र, सं., पर्व. ४७, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. (२) महापुराण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (प्रथम ही पुराण कौ करता), ९११५३() (२) महापुराण-भाषाटीका, पुहिं., गद्य, दि., (--), ९०१०३ महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (एस करेमि पणामं तित्थ), ९०८१४-३(+#) महाभारत, ऋ. वेद व्यास, सं., पर्व. १८, ग्रं. १०००००, प+ग., वै., (नारायणं नमस्कृत्य), प्रतहीन. (२) महाभारत तत्त्वसार, संक्षेप, सं., पद्य, मूपू., वै., (श्रूयतां धर्म सर्वस्वं), ९३६५९(+) (३) महाभारत तत्त्वसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., वै., (सांभलो धर्मनुं तत्व), ९३६५९(+$) महावीरजिन २७ भव स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (तिसलासिद्धत्थसुअं), ९४४६१-११(#) महावीरजिन विज्ञप्तिका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, अप., गा. ३९, पद्य, मप., (वीरजिण तिजयरंजण भवभंजण), ९१०८४-३(+#) महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (१. श्रीवीर केवलात् १४), ९३२२८(+), ८९७५९ महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (कंसारिक्रमनिर्यदापगा), ९४६२८-८($) महावीरजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., श्लो. २५, पद्य, मपू., (स श्रीवीरजिनो तु भविनो), ९४४३३-५ महावीरजिन स्तवन, आ. धर्मघोषसरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (जय श्रीसर्वसिद्धार्थ),८९६१५-३ महावीरजिन स्तवन, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. १८, पद्य, मपू., (कल्याणधामकरणं घनकेवल), ८९८२५(+) (२) महावीरजिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणयुग्मं महायमकं), ८९८२५(+) महावीरजिन स्तवन-कामक्रीडाछंदयुक्त, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (योगान्मोक्षं छद्यालक्षं), ८९७९८-२(+#) महावीरजिन स्तवन-नवतत्त्वविचारगर्भित, उपा. जयसागर, अप., गा. २५, पद्य, मप., (सामिय सोहगभार जगउज्जोय), ९४६०७-२३(+#) महावीरजिन स्तवन-सिद्धपुर, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (सिद्धपुराभिधनगरवतंस), ९४६२८-७(#) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ८९९०३-९८(+), ९३४१०-२४(+#), ९१७७८-१ For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ८९९०३-९९(+), ९३००४-५(+), ९३२१०-१(+$), ९२९१७ (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., वि. १४६५, गद्य, मपू., (श्रेयोथ), ९३२१०-१(+) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं नुवामि णूत स्तव), ९२९१७ महावीरजिन स्तुति, क. धनपाल, प्रा., गा. २८, पद्य, मपू., (निम्मलनहे वि अगाहे), ९११४९(+) (२) वीरस्तुति-छाया, सं., श्लो. ३०, पद्य, मप., (निर्मलनखान्यपि अनखानि), ९११४९(+) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मपू., (परसमयतिमिरतरणिं भव), ८९९०३-१०६(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (भगवंतं महावीरं प्रपित्सु), ८९६१३-३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदंहिनमनादेव देहिन), ८९९०३-८५(+), ९४३०२-३६(+#), ८९३२२-३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (विश्वार्थ सार्ध), ८९५७४-३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ९४३०२-३०(+#) महावीरजिन स्तोत्र, आ. चंद्रशेखरसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मपू., (श्रीवीरं स्तौम्यहं ज्ञान), ९४६२८-२(#) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मप., (जयसिरिजिणवर तिहअणजण), ९४५०७-२(+#) महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), ८९९४२(+), ९२९७९, ९३०२१(#$) (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभनाथने), ८९९४२(+) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (सर्वमंगल मांगल्यं), ९४३६६-६(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ९४४९६-४(+) माणिभद्रवीर स्तोत्र, ग. रामचंद्र, सं., श्लो. २४, पद्य, मपू., (समेहि मे मात उदार), ९३०६३-२(+#) मिथ्यात्वमंथन कुलक, प्रा., गा. २६, पद्य, मपू., (न गुले भणिए गुलियं निबे), ९४४६१-१(#) मिथ्यात्वमथन प्रकरण, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (न गुले मणिए गुलिय), ८९९०३-७४(+) (२) मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (धम्मोवगह दाणं दिज), ८९९०३-५९(+), ९४६०७-२(+#) मिथ्यादष्कृत कलक, प्रा., गा.१५, पद्य, मप., (जो को वि य पाणिगणो द),८९९०३-७२(+) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मपू., (नमिऊण महावीरं चउ), ९१०६४-२(+#$) (२) मुनिपति चरित्र-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मपू., (एह भरतक्षेत्रमाहि), ९२१७०(#$) मुनिसुव्रतजिन स्तव, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (श्रीकैवल्यावगमविदिता), ९४६२८-५(२) मुनिसुव्रतजिन स्तुति, मु. रंग, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (शुचिसकमलनलिने पुलिने), ९२१२८-८७(+) मृगापुत्रमहासत्व कुलक, अप., गा. ४२, पद्य, मूप., (नमवि सिरि वीरजिण जणि अजण), ९४४६१-१९(#) मेघदत, कालिदास, सं., श्लो. ११५, ग्रं. ३५०, पद्य, वै., इतर, (कश्चित्कांताविरहगुरु), ९३९२९(+), ९४१२२(+#) (२) मेघदूत-दीपिका टीका, ग. क्षेमहंस, सं., गद्य, मूप., वै., इतर, (जिननाथ जिनक्रोध जिनभद्र), ९४१२२(+#) (२) मेघदत-शिष्यहितैषिणी टीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., वि. १५१४, गद्य, मूपू., वै., इतर, (कश्चित् अनिर्दिष्टनामा), ९३९२९(+) मेघाभ्युदयकाव्य, आ. मानांकसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., वै., इतर, (काचित्काले प्रमुदितन), प्रतहीन. (२) मेघाभ्युदयकाव्य-लघुवृत्तिः, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (अथ मेघाभ्युदयकाव्यस्य), ९३९८१-३(4) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ८९९३२-८(+), ९३१६०-१(+), ९३३१६-६(+) (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ९२१५०-३(+) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मप., (प्रणम्य ऋषभदेव), ९३२५६(+), ९३३५४-१(+) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणमीने चरणकमल प्रते), ९३२५६(+$), ९३३५४-१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ९२०१६(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, म्पू., (शांतीशं शांतिकर्तारं), ९२७४१(+$) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५१७ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ८९९३२-६(+), ९३१६०-२(+), ९३३१६-४(+) मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे), ८९६४३-२(+) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), ९२१५०-१(+$) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन), ९४३०२-३१(+#) मौनएकादशी व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (राजगृही नगर के उद्या), ९२५५१ यश:सौरभ काव्य, उपा. मेघविजय, सं., स. ५, पद्य, मप., (स्वस्तिश्रियं वः प्रथयत्व), ९४२११(-2) यात्रास्तव, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मप., (तीर्थयात्रा प्रचलित संघ), ८९९०३-९६(+) युगप्रधान प्रभावदर्शक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (येषां च वस्त्रे न),८९३४९-५ युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., उल्ला. ५, श्लो. ५७७, पद्य, मप., (श्रीमानादिजिनः श्रेय), ९२६७६(+) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मपू., इतर, (यत्र वित्रासमायांति), ८९९३६(+), ८९९५५(+#), ९०३४५(+), ९१३८५(+), ९१९९३(+), ९३८०१(+#$), ९०३४४, ९१२२२(#$), ९४३१६(#), ८९९६२(६), ९२४६१(६), ९२८६७(६) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादौ), ९२४६१(६) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (प्रथम स्त्री योग्य), ९१९९३(+), ९३४६८-१(+), ९३५५३(+#$), ८९९६२(६) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (योति सुगम), ८९९३६(+), ९०३४५(+) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (जबइ वित्रासनइ), ८९९५५(+#), ९१३८५(+), ९१९९३(+), ९४३१६(#) (२) योगचिंतामणि-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सूरपाली सुंठि सेर ५), ९३८०१(+#$) योगदृष्टि समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. २२८, पद्य, पू., (नत्वेच्छायोगतोयोगं), ९३२१३(+) योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., श्लो. १४०, पद्य, वै., इतर, (विमलमति किरणनिकर), ९११२५($) (२) योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., ग्रं. ७८०, वि. १२९६, गद्य, मपू., वै., इतर, (गुरुचरणकमलममलं), ९११२५(६) योगशतक, धन्वंतरी, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., इतर, (कृत्नस्य तंत्रस्य गृहीत), ९२३३७-१(+$) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ८९९०३ ५५(+), ९०३३८-११(+$), ९१०२४(+#$), ९१०८५(+#$), ९२२८८(+$), ९२९६९(+$), ९३३८१(2), ९४१९८(+), ९४३७३(+), ९४६०७-१०(+#), ९२८०९, ९४५४८, ९२१९६(5) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मपू., (अत्र महावीरायेति), ९१०८५(+#$), ९२१९६(१) (२) योगशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९२९६९(+$) (२) योगशास्त्र-विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (--), ९१०२४(+#$) (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूप., (नमो दुर्वाररागादि), प्रतहीन. (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मपू., (प्रणम्य जिनसिद्धादीन् योग), ९२७१६(+) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, सं.,मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमहावीरनई कारणि), ९२९३६ योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणपरिट्ठया), ९११४४(+#), ९३६३६(+#$), ९१४१५(5) (२) योगसार-वचनिका, पुहिं., गद्य, दि., (निर्मल जो ध्यान), ९१४१५($) (२) योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (निर्मल ध्यानने विषइ), ९३६३६(+#$) (२) योगसार-छाया, सं., श्लो. ११०, पद्य, दि., (निर्मलध्याने परिस्था), ९११४४(+#) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., पू., (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ९२०७८(+) योगोद्वहनविधि यंत्रसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आवश्यकाद्युत्कालिकेषु), ९३१०५(+$) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअखंधो), ९२०७७-१(+), ९२३३४(+), ९२७४४(+), ९४३९२-२(+s), ९३०४१(६) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१८ रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वे. इतर (वागर्थाविव संपृक्ती), ९०४५३(+४) " संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., स. १९, वि. १६४६, गद्य, म्पू, वै., इतर ( ध्यात्वा तां ब्रह्म), . ९०४५३(+$), ९१२१३ (२) रघुवंश - अर्धलापनिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, म्पू, वै., इतर (सर्वज्ञ जिन नत्वा), ८९९२१(*) रजोहरण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (घणं मूले थिरं मज्झे), ८९८०९-३ रत्नकरंडक श्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., परि. ७, श्लो. १५०, पद्य, दि., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ९००८६- १(०), ९०१९१(३), ९१२७०(३) (२) रत्नकरंडश्रावकाचार - अनुवाद, श्राव. सदासुखदासजी, हिं., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. " (३) रत्नकरंडआवकाचार-ढूंढारीभाषाटीका का रूपांतर, श्राव. मन्नूलाल जैन वकील, हिं. अधि. ८. ई. २०वी, गद्य, दि., (यहाँ इस ग्रंथ के), ९१२७०(३) (२) रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, ब्र., वि. १९२८, प+ग, दि., ( इहां इस ग्रंथ की आदि), ९००८६-१(#), ९०१९१($) रत्नश्रावक प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं., वि. १५वी, गद्य, म्पू., (उत्तरस्यां दिशि ), ९२९६१-११(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा. गा. ५५०, पद्य, मूपू (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ९३१२५ ( **), ९३३८९ (३), ९३९९९ (+$) ', (२) रत्नसंचय -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रीमहावीरने नमस्कार), १९३१२५ (-२), ९३३८९(+३), ९३९९९(+5) (२) रत्नसंचय-गाथा संग्रह, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. १७३, पद्य, मूपू., (नवकार इक्कअक्खर पावफेडेई), ९२९८९(+) (३) रत्नसंचय-गाथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नोकारनो एक अक्षर भणता सात), ९२९८९(+) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, म्पू. (श्रेयः श्रियां मंगल), ९४१५७-३(*) राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा. सू. १७५ नं. २१००, गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० तेणं), ८९८६३(०), ८९८७८(+४) ८९८८० (+), ८९८८१(+), '. " ८९९३५(*), ९३११७/*३), ९३१४९ (+), ९३२९५ (+४), ९३८८६ (+), ९२९६६ (२) राजप्रश्रीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ८९८६३ (+), ८९८७८(+#), ८९८८०(+), ८९८८१(*), ८९९३५(*), ९३२९५ (+), ९३८८६ (+) (२) राजप्रश्रीयसूत्र - टवार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू. (देव देवं जिन नत्वा), ९३१४९(*) " (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३२८१, गद्य, मूपू., (नत्वा वीरजिनेश्वरचरण), ९३११७(+$) (२) राजप्रश्रीयसूत्र - हिस्सा सूर्याभदेवकृत जिनप्रतिमा पूजन अधिकार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ८९८२१ राम चरित्र, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., स. ८३, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्ण भव्या), ९०२२४/ . रामपुराण, मु. सोमसेन, सं., अ. ३३अधिकार, पद्य, दि., (वंदेहं सुव्रतं देवं), प्रतहीन. (२) पद्मपुराण-पद्यानुवाद, श्राव. खुशालचंद्र, पुहिं. दोहा. ६००, वि. १७८३, पद्य, दि., (पंचकल्याण नायक श्रीमुनि), ९०९४३ (५०), " ८९८९८ रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण), ९३००१-२(+) रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने आ जिनसूरि, सं. ग्रं. १५३०, प+ग. भूपू (श्रीमंतं विदुरं शांतं), ९४९७६ (६), " "" ९२९४१, ९२९०३ ($) रेवतीसती कथानक-असूतायां, सं., प+ग., मूपू., (असूढता च कर्तव्या शुद्ध), ९३९७६-६(+) रेवतीसती कथा- भेषजदाने, प्रा. सं., गद्य, मूपु. ( भेसज्जं पुण दितो), ९०८१५-८ " י; रोगशांति स्तोत्र, सं., श्लो. १०+५, पद्य, भूपू (रोगशोकादिभिर्दोषैरजिताव), ८९९०३-८६ (+) लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., श्लो. ३०४, वि. १७९२, पद्य, म्पू, इतर ( श्रीसर्वशं नमस्कृ). ९९२२८, ९९८७३ (६) लक्षण समुच्चय, सं., प+ग. म्पू. (-), ९२७२३ (*४) , , लक्ष्मणसेनस्य मंत्रिणः कुमारदेवस्य च प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं., गद्य, भूपू (पूर्वस्यां लक्षणावती पू) ९२९६१-९(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू (वीरं जयसेहरपयपयडिय), ९१०९३(+), 1 ! ९२४५४-१(+), ९३२५७ (+), ९३८३७ (+), ९४५२३(+), ९४६०९ (+), ९४४६८, ९४३४७(#) For Private and Personal Use Only י: Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पंन्या. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. ४११७, वि. १५२९, गद्य, मूपू., (हुं ब्रह्मज्ञान- पद), ९३८३७(+) (२) लघक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (वीरं० ग्रंथनोकरणहार), ९४३४७(#) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), ९२४५४-१(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-अढीद्वीपक्षेत्र संक्षेपविचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (जंबूद्वीप आदिदेई), ९४०२५(+) लघुजातक, वराहमिहिर, सं., अ. १६, पद्य, वै., इतर, (यस्योदयास्तसमये), ९१३२४(+#$) (२) लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (--), ९१३२४(+#$) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), ९४०४८(+) लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मप., (शांति शांतिनिशांतं), ८९९०३-९०(+), ९३३६७-३(+),९३३७२-४(+), ९४०७४-२(+), ९४२४२-११(+#), ९४३३४-२(+#), ९४३४३-२(+), ९४४९६-२(+), ९४५२८-२(+#$), ८९८१५, ९२४९२-३, ९३२१८-२, ९३२४८-२, ९४३११-४ (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीशांतिनाथ शांति), ९४३३४-२(+#) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), प्रतहीन. (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ९३०७२ (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ९२८०३(+), ९३६६४(+), ९३४२२-१(२), ९४१७१(६) (२) लघुसंग्रहणी-गणितपद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रणलाखने सो गुणा), ८९५२१ ललितांगकुमार कथा, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतक्षेत्रे कोशांब), ९४३६३-५(+) लाभालाभ फल, सं.,मा.ग., श्लो. ३, पद्य, इतर?, (जन्मराशिस्थितो ग्राम), ९२७४३-३(+) लीलावती, भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., इतर, (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (सोभित सिंदूर पुर), ९३८६५(+) लुंकारी हंडी, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जागरस नरा नीचं जागरमांणस), ९२४४८(+) लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ८९७७६-३(+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ९३३२०(+) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, ग. जसविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (अनंतज्ञानकलित हतदोषं), ९३३२०(+) लौकिक न्याय नाम, सं., गद्य, इतर, (पलायमाने चौरेकथा एव लाभ १), ९४०३९-१९(+#) वंकचल कथा, आ. सोमतिलकसरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, मपू., (महार्द्धिभिर्जनैः), ८९९३२-४(+) वंकचूल प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अत्रैव भारते वर्षे विमलयश), ९२९६१-५(+) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ९३१९७ (२) वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (भक्तिना समुहे करीने), ९३१९७ वज्रकुमारसाधु कथानक-प्रभावनागर्भित, सं., प+ग., मूपू., (प्रभावनां यः प्रकरोति), ९३९७६-२(+) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूप., (ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं), ९१९४९-२, ९३२१९-२ वत्सराजोदयन प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मप., (पूर्वस्यां वत्सो), ९२९६१-८(+) वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७१, पद्य, मूपू., (उसभाइ जिणिंदे पत्तेय), ९०३३८-६८(+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ८९९३२-५(+), ९३१६०-४(+), ९३३१६-३(+) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ९३४१७-३(+), ९३६३८(+), ९४४२९(+), ९४५१६(+#), ९४५५५(+), ९४५५९-२(+#), ९२६४२, ९२९९२(२), ९४०२२(#$) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), ९२६४२ वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ९३४५२(+६), ९३१५९($) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ९६, वि. १३२२, प+ग., मूपू., (श्रीवीरं जिनं नत्वा), ९२९९६-१(+) वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, मप., (ॐ नमो भगवओ अरहओ),८९६४२ वर्द्धमानविद्या संप्रदाय, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (चतुर्मासी प्रतिक्रमणानंतर), ९२९९६-३(+) वर्धमानविद्या, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (ॐ नमो अरिहंताणं), ९३१७०-१(+) वर्धमानविद्या स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (आसि किलठ्ठत्तरसय), ९२९९६-२(+) वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., अ. १३, श्लो. ३५००, वि. १७३२, पद्य, भूपू., इतर, (श्रीतीर्थनाथवृषभं), ९०१२१(६) वर्षिदान सज्झाय, प्रा., गा.७, पद्य, मप., (सारस्सयमाइच्चा वण्ही), ९२५५३-३ वसुदेवहिंडी, आ. गुणनिधानसूरि, प्रा., गद्य, म्पू., (तेणं कालेणं २ वच्छ), प्रतहीन. (२) वसुदेवहिंडी-कथासार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (तेणंकालेणं० वच्छदेसे), ९४६३६(+$) वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मप., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ९२१७१(+s), ९३९५५(+), ९४४०८(+), ९३४१९, ९४४६२, ९४६१५ वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्यात्मविद), ८९३५३(+), ९३७५२, ९०१९०(#) वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूप., इतर, (श्रियं दिशतु वो देवः), ९२९४९(+), ९३००१-१(+$), ९३०६९(+#s), ९३५७०(+), ९३९५७(+#), ९४३६५(+#s) (२) वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीवर्द्धमानसंतति), ९२९४९(+) (२) वाग्भटालंकार-अवचूरि*, सं., गद्य, मपू., इतर, (--), ९३०६९(+#$) (२) वाग्भटालंकार-टिप्पण, सं., गद्य, मपू., इतर, (अन्योपि पदपंक्त्या मार्ग), ९४३६५(+#$) विक्रमादित्य प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (विक्रमादित्यपुत्र), ९२९६१-६(+) विक्रमादित्योत्पत्तिसंबंध कथा, सं., गद्य, वै., इतर, (पूर्वोक्ता विक्रमादित्य), ९४५२२-५ विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (गुरवणिनामधेयं तिथि), ९२७६२-२३(+) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ८९५९४-५(+) विचारसप्ततिका, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. ८१, पद्य, पू., (पडिमा मिच्छा कोडी), प्रतहीन. (२) विचारसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (--), ९२७४८(+$) विचारामतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १४७३, प+ग., मप., (श्रीवर्द्धमानसर्यो), ९२८९३(+) विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर, प्रा., कथा. ८, वि. ११२७, पद्य, पू., (सयलसुरासुरकिन्नर), ९३६३७(+#) विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नयविभूषणपारगतागमः), ८९७५२-२(#) विजयप्रभसरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (विजयप्रभसूरे नित्य), ८९७५२-६(#) विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (सकलदानवमानवमानसांबुज), ८९७५२-३(4) विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., परि. ४, श्लो. २७६, पद्य, बौ., इतर, (सिद्धौषधानि भवदुःखमहागदा), ९३१९४(+), ९४६२४(+#) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., बौ., इतर, (स्मृत्वा जिनेंद्रमपि), ९३०६६(+$) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., गद्य, मूपू., बौ., इतर, (शिद्धशब्दो मंगलार्थः), ९३१९४(+) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, पू., बौ., इतर, (ग्रंथादौ धर्मदासनामा), ९४६२४(+#) विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मपू., इतर, (येषां न विद्या न तपो), ९४५२२-३ विधिशतक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., गा. १००, प+ग., मूपू., (वंदिय वीरजिणंद नमिय), ९१०८४-१(+#$) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ८९८८७(+), ८९९२०(+), ९०८०५-३(+), ९०८१२(+), ९१०९२-२(+$), ९२२४४(+), ९२८५२(+), ९२९५९(+), ९४२४४(+), ९२९७१ (२) विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., श्रु. २, ग्रं. ९००, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ९०८०५-३(+), ९१०९२-२(+5), ९२९७१, ९३०७७(#$), ९४५९७() (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), ८९८८७(+), ८९९२०(+), ९२८५२(+), ९२९५९(+), ९४२४४(+) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), ९३३८२-२(+#), ९३८००-२ For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५२१ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (जं भाराति कहिजै इंद), ९३३८२-२(+#) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवंति), ९१८८६(+) विविधयंत्रांकफलवर्णन श्लोक, सं., पद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ८९७९४-२(+$) विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (जईया होही पुच्छा), ९३०१०(+$), ९३५२७(#s) विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (तस जीवाणविधाउ तेह), ८९३५०-२ विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), ८९९०३-६६(+), ९२९०६-३($) विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मप., (शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक), ९३७०१(+#S) (२) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (ते को एक परमात्मानइ), ९३७०१(+#S) विशेषशतक, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., गा. १००, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (सुधर्मस्वामिनं नत्वा), ९४५९५(#) विष्णकुमार कथानक, सं., प+ग., म्पू., (--), ९३९७६-१(+$) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ९४६०७-१२(+#s), ९४३८७ (२) वीतराग स्तोत्र-अक्षरार्थ, सं., गद्य, मूपू., (ये भगवान्परात्मा परमात्मा), ९४३८७ वीरांगदकुमार कथा, सं., श्लो. ५४५, पद्य, मूपू., (क्षाराच्छेरमृतं धनाद्वितर), ९०८१५-१३(+) वृंदावन काव्य, सं., श्लो.५२, पद्य, वै., (वरदाय नमो हरये पतति), प्रतहीन. (२) वृंदावन काव्य-वृत्ति, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (वर्द्धमानं सुधामानं), ९३९८१-१(#$) वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., इतर, (सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा), ९०९४९-१ (२) वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६९४, गद्य, मूपू., वै., इतर, (पव्वेको द्विजोत्तमः अभूत्), ९०९४९-१ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मप., (जइ णं भंते० पंचमस्स), ८९८८४-५(+), ९११११-५(+), ९२५३०-५(+#), ९२६८०-५(+#), ९४३००-५(+), ९४५७६-५(+) । (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), ८९८८४-५(+) वैद्यक श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, इतर, (दष्टे चाग्नौ विकृति), ९२३३७-४(+) वैद्यक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (रसवैद्य देववैद्य मानुष्यो), ९२३३७-२(+) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मप., इतर, (सरस्वतीं हृदि), ९३४५८-१(+#), ९२८९८-१ (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीसरस्वती देवता), ९३४५८-१(2), ९२८९८-१ वैद्यसंजीवनी, सं., श्लो. १०१, पद्य, श्वे., इतर, (देशकालवयो वह्नि सात्म्य), ९२३३७-३(+) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, स्पू., (संसारंमि असारे नत्थि), ९२७८४(+), ९२८८३(+), ९३०५७(+), ९३३७७(+), ९३४२३-२(+#S), ९४०००(+#s), ९४५३८(+), ९४५६८-२(+#$), ९४६४३(+$) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, ग. रंगविमल, मा.गु., गद्य, मपू., (संसार असारनै विषे नही सुख), ९४५३८(+) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ४२५, गद्य, मूपू., (चउदश राजप्रमाण लोक), ९३३७७(+) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सं० चार गतिरूप संसारनै), ९४०००(+#$), ९४५६८-२(+#$) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), ९२७८४(+), ९२८८३(+), ९३०५७(+), ९३४२३-२(+#$), ९४६४३(+$) व्यवहार कुलक, आ. जिनचंद्रसूरि, प्रा., गा. ६२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (पणमिय वीरं पणयंगिवग्गसग्ग), ८९९०३-३४(+) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासियं), ९२९८८(+), ९४२८०(+#) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जे कोइ भि० साधु), ९४२८०(+#) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ९२४५४-२(+), ९३२७७($) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण), ९३२७७($) व्याख्यान संग्रह, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दानं), ९२०८२(+$), ९२८०५-१(+), ९३२५५(+$), ८९६१८ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शकन प्रदीप, सं., श्लो. १२०, पद्य, मप., इतर, (--), प्रतहीन. (२) शकुन प्रदीप-पद्यानुवाद, श्राव. गोरधनदास नंदलाल, पुहि., गा. १२०, वि. १७६२, पद्य, मूपू., इतर, (स्वस्ति श्रीजिनराज), ९०९६५(+s) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ८९९५८-५(+), ८९९८०-५(+#), ९२३२९(+$), ९३३५३(+), ९४५७५-५(+#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमिअ जिणं० मिथ्यात्वादि), ९४२७६-५(+#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (वीतराग नमस्करीनइ), ९२३२९(+$), ९४३०७-५(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मप., (प्रणम्य वीरं सद्वार), ९३३५३(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (ध्रुवबंधी प्रकृति), ८९९८०-५(+#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानइं भव्य), ८९९५८-५(+), ९२३२९(+$) शतक प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. १०५, पद्य, मपू., (अरहते भगवंते अणुत्त), ९०३३८-३०(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., श्लो. २४, पद्य, मपू., (नमेंद्रमंडलमणिमयमौलिमाल), ९४६०७-१३(+#S) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, ग. सोमप्रभ गणि, अप., गा. २९, पद्य, मूप., (सामिय रिसह पसाउ करि जिम), ९०३३८-४१(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ९४०७४-८(+) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, पू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ९२४५६($) (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (अइमुत्तइ केवलीइं), ९२४५६($) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धोविज्जायचक्की), ९४३०२-६(+#) शत्रुजयद्वात्रिंशिका, आ. चंद्रशेखरसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (शत्रुजयक्षोणिधरावतंसं), ९४६२८-१(2) शत्रंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मप., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ८९८४८-१(+), ९२८१८(+$), ९३१४४(+$), ९३१४६(+#$), ९४२३०(+$), ९४२७७(+$), ९४२९१(+$), ८९८२७, ८९८४४-१, ९३२३३(#$) (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., ग्रं. १२०००, वि. १७६७, गद्य, मूपू., (नत्वा वीरं सुबोधाय), ८९८४८-१(+), ८९८४४-१ (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीयुगादीशं), ९३१४४(+$), ९३१४६(+#5), ९४२७७(+5), ९४२९१(+s), ८९८२७ (२) शत्रुजय माहात्म्य-श्रवणपूजन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए शत्रुजय माहात्म्य), ८९८४८-२(+) (२) शत्रुजय माहात्म्य-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (जिनानां नमस्कार प्रभावना), ८९८४४-२ शत्रुजय माहात्म्य, सं., पद्य, पू., (किं तपोभिर्जपैः किं वा कि), ९१८९१(६) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टाय), ९३४१०-१४(+#) शब्दभेदप्रकाश, क. महेश्वर कवि, सं., अ.४, श्लो. २७२, पद्य, वै., इतर, (प्रबोधमाधातुमशाब्दिकानां), ९२९६८(+) (२) शब्दभेदप्रकाश-टीका, उपा. ज्ञानविमल, सं., वि. १६५४, गद्य, मपू., वै., इतर, (श्रीमंतं भगवंतमन्वहम), ९२९६८(+) शरीराष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो.८, पद्य, दि., (दर्गंधाचिधातुभित्ति), ९१४५४-२४(+-) (२) शरीराष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (दर्गंध जे अपचि), ९१४५४-२४(+-) शांतिजिन अष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (त्रैलोक्याधिपतित्वसूचनपरं), ९१४५४-१८(+-) (२) शांतिजिन अष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (तीन लोको की ईश्वरता), ९१४५४-१८(+-) शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुरराजसमाजनतांह्रियुगं), ८९७७५-१(+) शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (अप्पडिहयधम्मचक्केण), ८९९०३-२३(+), ९०३३८-१९(+), ९४६०७-१७(+#) शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र.६, वि. १५३५, गद्य, मप., (प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्), ९२६००(+$), ९३२५९(+#$) शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., गा. ४, पद्य, मप., (ता उत्तर दक्षिण पुरब), ९२७२८-२(+#) शांतिजिन विज्ञप्तिका, अप., गा. २५, पद्य, मप., (अति आणंद नमेवि संतिकरण), ९०३३८-३९(+) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ शांतिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (नवज्योतिः स्फातिः सकल), ९४४३३-२() शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मप., (शांतिः शांतिकरः श्री), ९४३५५-३(+) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. ४८९०, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भतामह), ९२८४८(+#), ९४२२९(+#S), ८९८८३(#), ९४२६७(#) (२) शांतिनाथ चरित्र-प्रस्ताव १ का हिस्सा-मंगलकलश कथानक, आ. अजितप्रभसूरि, सं., श्लो. २४१, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (मानुष्यकादिसामग्री), ९३३२२(+) शांतिनाथ चरित्र, आ. मुनिदेवसूरि, सं., ग्रं. ४८५५, वि. १३२२, पद्य, मूपू., (वेश्मरत्न निशारत्न), ९२४०४(+$), ९३७०६(+$) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, मप., (अथ प्रतिष्ठायां वा), ९१९५६(+#), ९२७५१-१(+), ९३६४७(+#) शांत्युद्धोषणा, प्रा., गा. १७, पद्य, मपू., (भरणिहिसव्वद्ध),८९९०३-८८(+) शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (सिरिउसहवद्धमाणं), ९४६०७-२४(+#) शाश्वतजिन स्तव, प्रा., गा.५, पद्य, मपू., (वंदामि सत्तकोडी लक्ख), ९४४६१-२(#) शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ७०१, ग्रं. ७००, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ९२३५१, ९२३७५(६) (२) शास्त्रवार्ता समुच्चय-स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणि नताय दोष), ९२३५१, ९२३७५ (६) शिवभद्र काव्य, शिवभद्र, सं., श्लो. १९, पद्य, वै., (प्रणमत सदसि गदंत), प्रतहीन. (२) शिवभद्र काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, मप., वै., (सांप्रतं शिवभद्रकाव्यस्य), ९३९८१-५(#$) शीलप्रकाश, ग. पद्मसागर, सं., पद्य, मूपू., (तन्याद्धन्यार्चितांहिः), ९४२८१(+#$) शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (अहं भंते तुम्हाणं), ९२०७७-६(+) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारिं नेमि), ८९९०३-११५(+), ९२८१५(+), ९२८५५(+#$), ९३९०३-१(+), ९४३८०(+$), ९२१९३(६) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी बालक), ९४३८०(+) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेय), ९२८१५(+), ९२८५५ (+#S) (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (आबाल ब्रह्मचारी), ९३९०३-१(+) (२) शीलोपदेशमाला-कथा*, मा.गु., गद्य, मपू., (लाख जोअण प्रमाण जंबू), ९२१९३(5) (२) शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोतनपुर नगरि नर विक), ९२८५५(+#$) (२) शीलोपदेशमाला संक्षिप्तकथा संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, मपू., (परलोए विहु सुर सिद्धि), ९२३६१(+#$) शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., (आबाल बंभयारि नेमि), ९०३३८-६१(+) शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्यगर्भित, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयतीर्थेशः), ९३००७-३(+#$), ९४५८७(+$) शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, वि. १३वी, पद्य, मपू., (धर्मारामदवाग्निधूमलहरी), ९३१९९(+) (२) शृंगारवैराग्यतरंगिणी-सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., वि. १७८०, गद्य, मप., (श्रीपार्श्वनाथं प्रणिपत्य), ९३१९९(+) शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १००, पद्य, वै., इतर, (शंभुस्वयंभुहरयो), ९२१८९-३(+#S) (२) शृंगारशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, पू., वै., इतर, (सर्वदर्शिनमानम्य), ९२१८९-३(+#$) श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., अ. ३५, वि. १४९८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं केवल), ९३०२३(+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ९१६९६(+), ९२९०६-२(5) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (श्रीवीरं नत्वा श्राद्धाना), ९१६९६(+) श्राद्धलघुजीतकल्प , आ. तिलकाचार्य, प्रा., गा. २०, पद्य, मपू., (सिरिवीरजिणं नमिउं), ९३३७९-९(+) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), ८९८५५(+$), ८९८६२(+) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., प्रका. ६, ग्रं. ६७६१, वि. १५०६, गद्य, मूपू., (अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचक), ८९८५५(+$), ८९८६२(+) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका का टबार्थ#, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध भगवान), ८९८५५ (+$) (३) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमदी टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीअरिहंत सिद्ध),८९८६२(+) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवीरजिनने नमस्कार), ८९८६२(+) श्रावक १२४ अतिचार वर्णन-१व्रतसंबद्ध, प्रा., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (२) श्रावक १२४ अतिचार वर्णन, रा., गद्य, मूपू., (--), ८९६५६(#$) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), प्रतहीन. (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., वि. १७१५, गद्य, मपू., (इहां आराधनाने विष), ९२८०६($) श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं जिनेंद्रादि), ९२४२३(#), ९२७३०(#) श्रावकधर्म आलोयणादिविविध विचार संग्रह-आगमोक्त, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (श्रावक तिविहार उपवास), ९३१८६-२(+) श्रावकधर्मकृत्य, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. २४५, वि. १३१३, पद्य, मूपू., (भेजुर्यस्याङ्घ्रियुग), ८९९०३-५४(+) श्रावकविधि, जै.क. धनपाल, प्रा., गा. २४, पद्य, मप., (जत्थ पुरे जिणभवणं), ८९९०३-५८(+), ९४६०७-१(+#) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., वि. १८३८, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ९३३०६(+), ९३३०७(+) श्रावक-श्राविका सम्यक्त्वग्रहण विधि, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (धारणा प्रमाणे अरिहंतसखियं), ९१७७७-२ श्रीजयानंदसूरि विज्ञप्ति, अप., गा. १५, पद्य, मपू., (सयलजण मणाणंदं मोहत मोहरण), ९४४६१-२४(#) श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., प्र. ४, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्रं च), ९१८३९(+$), ९२५९६(+), ९२८५४(+), ९३१३१(+) श्रीपाल चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., श्लो. १४७, पद्य, दि., (नत्वा श्रीमज्जिनाधीश), प्रतहीन. (२) श्रीपाल चरित्र-वचनिका, पंडित. जयचंद्रजी छाबडा, पहि., गद्य, दि., (--), ९१६०८(5) श्रीपालराजा कथा, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मपू., (अरिहाई नवपयाई), ९४६०८(+$) श्रुतनिष्ठागर्भित दृष्टांतकथा विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नाणं नियमग्गहणं नवकारो), ९३०५८-५(5) श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., इतर, (छंदसां लक्षणं येन), ९२८६८(+) (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीमत्सारस्वतं धाम नत्वा), ९२८६८(+) श्रुतस्तव, आ. जिनदत्तसूरि, अप., गा. २७, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (निम्महिय मोहमाएण कणय), ८९९०३-१००(+) श्रेणिकनृप चेल्लणारानी कथा-धर्मस्थापने, सं., प+ग., मप., (राजगृहे नगरे राजा), ९३९७६-८(+$) श्रेणीतप यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मपू., (सेढीतवो० २,३,४), ८९८०५ श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, इतर, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ८९५६९-२ श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्यामलवर्ण), ९३४१०-११(+#), ८९६४८-१, ९२८३३-३ श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधितरी), ९२८३०-२(#) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. १०, पद्य, इतर, (स्नाने सिंह समारणे), ८९४३५-२ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ९३६७१(4), ९४४६१-४(#), ९४४६१-१४(#s), ९२१२४($) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीअल्त भगवंत असरण सरण), ९३६७१(2) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (एकाग्रचित्ते जिन), ९२१२४($) षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ.७, श्लो. ५६, पद्य, वै., इतर, (प्रणिपत्य रविं), प्रतहीन. (२) षट्पंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (वराहमिहिर जे पंडित), ९३७६३(+$) षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, म्पू., (श्रीअर्हतश्चत्), ९२१७५ (+$) षट्स्थानक प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., स. ६, पद्य, मपू., (कयवयकम्मयभावो सीलत्त), ८९९०३-१५(+) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ८९९५८-४(+), ८९९८०-४(+#), ९२६६२(+#), ९३०८३-२(+#$), ९३३५६-४(+), ९४२९४-४(+), ९४५७५-४(+#), ९२४३८, ९२६५८-३($) For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५२५ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार्थलवमाप्य), ९४२९४-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचरि, सं., गद्य, मप., (नमनि० तत्र जीवंति), ९४२७६-४(+#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणम्य शिरसा वीरं), ९३०८३-२(+#$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागदेव नमस्कार), ९४३०७-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (वांदीनइ तीर्थंकर), ८९९८०-४(+#), ९३३५६-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हवइं चउथा कर्मग्रंथ), ८९९५८-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, मपू., (जीवरा भेद१४ ६२मार्गण), ८९९७४-४(+), ९२६३६(+) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, पू., (निच्छिन्नमोहपास), ८९९०३-९(+), ९०३३८-३२(+), ९४२५१-३(+#) (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. २१४०, वि. १२५८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धिशास्ता), ९४२५१-३(+#) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, प., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं), ९२६०९, ९२८१९(#$) (२) षड्दर्शन समुच्चय-टीका, आ. मणिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., बौ., अन्य, (सज्ज्ञानदर्पणतले विमलेत्र), ९२६०९ षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ८९९०३-६४(+), ९०३३८-६६(+), ९३३३४(+), ९४५९२(+$), ९४६४९, ९२८९४(#) (२) षष्टिशतक प्रकरण-टीका, मु. धवलचंद्र-शिष्य, सं., श्लो. १६१, प+ग., मूपू., (इह प्राप्तसकलमानुष्य), ९२८९४(#) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-वृत्ति, सं., गद्य, मपू., (देवो अर्हन् चारित्रलक्षणो), ९३३३४(+) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-शब्दार्थ, सं., गद्य, मप., (सर्वज्ञदेव सुसाधु गुरु), ९४५९२(+$) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मप., (वह्निज्वालावलीढं कुपथ), ९३६७०(+) (२) संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (अग्नि तेहनी ज्वालाई), ९३६७०(+) संघभक्ति उपदेश, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (--), ९३०५८-६($) संघस्वरूप कुलक, प्रा., गा. १५, पद्य, म्पू., (केई उम्मग्गठियं), ८९९०३-३५(+) संज्ञा कुलक, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (रुक्खाण जलाहारो), ८९७७६-१(+#) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मपू., (संतिकरं संतिजिणं), ९२१४४-१(+$), ९३३७२-५(+), ९३३७९-५(+) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (निसीहि निसीहि निसीहि), ८९८९४-६(+), ९२०७१-३ संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (संथारा पाट आलोउं), ८९३५६-२ संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (पडिबिंबिय पणय जयं), ८९९०३-३३(+), ९०३३८-३५(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, पू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ९३२४७-२(+#), ९३४१६(+#$), ९३७२४(+$), ९२५७९, ९४३५१(#) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करीनइ त्रिभुवननउ), ९२५७९ (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ९३२४७-२(+#), ९३४१६(+#$), ९३७२४(+), ९४३५१(2) संयममंजरी, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मपू., (नमिऊण नमिर तियसिंद), ८९९०३-६५(+) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मप., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ९४५७४-४(+) सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (वासासु सगदिणो उवरिं), ८९३४९-२ सचित्ताचित्तरज उहड्डावणकाउसग्ग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अचित्तरज उड्डाहवणी), ९३३२१-२(+#) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त्रयगुर), ९२३१७(+) (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (त्रण जगतना गुरु एहवा), ९२३१७(+) सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, मप., (जिन नाम ऋषभ १ अजित २), ९३६८५(+) For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सद्बोध चंद्रोदय, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ५०, पद्य, दि., (यज्जानन्नपि बुद्धिमानपि), ९१४५४-१०(+-), ९२९४०-७(+) (२) सद्बोध चंद्रोदय-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (जा चैतन्य तत्त्व को), ९१४५४-१०(+-) सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., कां. ३, गा. १६८, वि. ११वी, पद्य, मप., (सिद्धं सिद्धट्ठाणं), ९४३५८($) (२) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., कां. ३, गद्य, मूपू., (शास्यते जीवादयः पदार्था), ९४३५८($) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ९१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूप., (सिद्धपएहिं महत्थं), ८९८४२(+), ८९९५८-६(+), ८९९८०-६(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. १४५९, गद्य, पू., (सिद्धान्यविचलानि पदानि), ९४२७६-६(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (सिद्ध० सिद्धानि चालयितुम), ९३८९९(+#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., ग्रं. ४०००, वि. १७०२, गद्य, मप., (प्रणिपत्य पार्श्वदेव), ८९८४२(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७००, गद्य, मपू., (सिद्धि निश्चल पद छइ), ८९९८०-६(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), ८९९५८-६(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ९०३३८-३१(+), ९४५७५-६(+#) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), ९२२०२(+$) (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीमत्पार्श्वजिनं), ९२२०२(+$) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), ८९९०३-३१(+), ९०३३८-३(+), ९२३२७(+), ९२५९४(+), ९२६३२(+), ९३४३७(+), ९४२४२-१३(+#), ९४३५५-१(+), ९४४२२-१(+), ९४४२६-१(+), ९४५२८-१(+#$), ९२४९२-२, ९४३११-३, ९३९७१-३(६) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नत्वा श्रीपार्श्वजिन), ९३४३९(+$) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), ९११४८(+9), ९३४३५(+$) (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभूत्या), ९११४८(+$), ९२४४४(+), ९३४३५(+$) (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), ९२५३३(+#s), ९३४३५ (+$), ९४४९१(+) (४) समयसारनाटक कलश-बालावबोध, रा., गद्य, दि., (भावाय नमः भाव शब्दै), ९२५३३(+#$) (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का हिस्सा वस्तुतत्त्व अधिकार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, दि., (अत्र स्याद्वादशुद्ध्यर्थं), ९४५४७(+$) (५) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का हिस्सा वस्तुतत्त्व अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (भूयः अपि कहतां ज्ञानमात्र), ९४५४७(+$) (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ८९९७७(+), ९१०७६(+#$), ९१९९६(+#$), ९२५०९(+#$), ९२५३३(+#s), ९३१३४(+5), ९३१४७(+#), ९३१५०(+), ९४२५०(+$) (५) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहिं., वि. १७९८, गद्य, मूपू., दि., (जिन वचन समुद्रकौ), ८९९७७(+), ९३१४७(+#), ९३१५०(+) (२) समयसार-तात्पर्यवृत्ति, आ. जयसेन, सं., गद्य, दि., (वीतरागं जिनं नत्वा), ९११४८(+$) समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., भव. ९, गद्य, मूपू., (पणमह विजिअसुदुज्जय), ९३७९७(+#$) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूप., (थुणिमो केवलीवत्थं), ९२७३३(+$) (२) समवसरण स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (थुणिमो इति वयं एहवो), ९२७३३(+$) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ८९९०७(+), ९१११२(+), ९२६६८(+#S), ९२९५८, ९३०२६(६) (२) समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३५७५, वि. ११२०, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य समवाय), ९२६६८(+#S) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ " (२) समवायांगसूत्र-टवार्थ, वा. मेघराजजी मा.गु., प्र. ४४७४, वि. १७३, गद्य, मूपू (देवदेवं जिन नत्वा), ८९९०७/*) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, वि., ( येनात्माबुध्यतात्मैव), ९२८३५ (०४) " (२) समाधिशतक - बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, दि. (जिनान् प्रणम्याखिलकर), ९२८३५ (+) समाससूत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, मूपू. इतर (विभक्तिर्लुप्यते यत्र), ९१७१४-४(+४) सम्मेतशिखर विधान पूजा, जै. क. जवाहरलाल दास, सं., हिं., पूजा. २०, पद्य, दि., (सिद्धक्षेत्र तीरथ परम है), ९१२०४ (#$) सम्यक्त्व आलावो, प्रा., गद्य, मूपू., ( अहमन्नं भंते तुम्हाण), ९२०७७-४(+) "3 सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं. पद ४४४ ग्रं. १६७५ वि. १४५७, पद्य, म्पू. (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९२८१७(+), ९३०१२ (०) ९४४८७(१) ९४५८५.१४) (२) सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमान चतुर), ९२८१७ (क) (२) सम्यक्त्वकौमुदी-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (--), ९४५८५-२(#) सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा. गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मतसरूवं), ९११४७(+), ९४०२६ (+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतां जे उपशमादिक), ९४०२६ (+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, सं., गद्य, भूपू (यथा सम्यक्त्वस्वरूपं), ९११४७(१९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्वभावनाबोध कुलक, अप, गा. ३८, पद्य, मूपू.. (सव्वइ जिणेसर भासिआइ वयणाइ), ९४४६१-१८) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. ७७११, पद्य, मूपू., (दंसणसुद्धिपयासं), ८९९०३-७५ (+), ९२२३३(#$) सरस्वतीकुटुंबसंबंध कथा, सं., पग, वै., इतर (बापो विद्वान् बापपुत्रोपि), ९४५२२-२ सरस्वतीदेवी २१ नाम स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै. (वाग्देवी वरदायिका भगवती), ९४९५७-१७(*), ९४६१२-५(*ा , सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., इतर, ( ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद), ९३३७९-४ (+) सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ८९४९४-३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (सरभसलसद्भक्तिप्रह्वी), ८९९०३-९३(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि सं., श्लो. १२, पद्य, मृपू. (कदाकुंडलिनित्वदीयवपुषो), ९३३९९-२(*) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ९३३७९-२(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता भारती), ९४१५७-१३(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं), ९४१५७-१५१) יי "" सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे. (विपुलसौक्षमनंतधनागमं), ९३९५९-५(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, म्पू., (श्वेतपद्मासना देवी), ९३३७९-३(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सर्वारिष्टप्रणाशाय), ९२४९२-६ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर (--), प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर (नमस्कृत्य महेशानं मत), ९१०१९(१), ९३४४२(००) (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., इतर, (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), ९१०१(+) ९३४४२(+) (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं ), ८९९०९ (+), ९००७३(+), ९०४३३(+$), ९११५६(+#$), ९२५०२ (+), ९३५६५-१(+), ९४३१७(+), ९३६२० (#$) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. वृ. ३. ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू. वै. इतर ( नमोस्तु सर्वकल्याण), ८९९०९(+), ९००७३(+), ९०४३३(४) ९११५६ (३) ९२५०३(*), ९२९२४(४) ९३८४३ (+), ९४३१७ (+), ९३६२० (#$), ९२२४१ ($) " (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६६३, पद्य, मूपू., इतर ( श्रीसर्वशं जिनं नत्वा), ९३१८१ (४) (३) सारस्वत व्याकरण-शब्दधातुरूपसाधनिका, संबद्ध, माधव, सं., वि. १६७०, गद्य, वै., (गोपीशं गोपिकागीतं सादर), ९१७१४-१(*) सर्वजिन स्तव, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (जिनपते द्रुतमिंद्रिय), ८९६१५-२ " " For Private and Personal Use Only ५२७ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सर्वजिनेंद्र कल्याणक स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पणयसुरविसर सिरमउडम), ८९९०३-३०(+) सर्वज्ञविज्ञ स्तव, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (जय त्वं जगतां नाथ जय), ९४६२८-४) सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति जंगमकल्पमहीरुहो जयति) ९४४६१-१६ (४) सर्वतीर्थमहर्षि कुलक, जिनेश्वरसूरि-शिष्य, प्रा., गा. २६, पद्य, भूपू (अट्ठावयम्मि उसभो), ८९९०३-३८(*) सातवाहन प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं. वि. १५वी, गद्य, मृपू. (इह भारतेवर्षे दक्षिणखंडे), ९२९६१-४(+) "" " י: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधर्मिक वात्सल्य कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा. गा. २५, पद्य, मूपू (नमिऊण जिणं पास), ८९९०३-३६ (+), ९०३३८-७(+), " "" ९४६०७-८(००) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू. (देवाः प्रभो यं), ८९७०१-१(०), ९४३५७(+३) (२) साधारणजिन स्तव टीका, मु. जिनविजय, सं., वि. १७१०, गद्य, भूपू (पार्श्वनाथं नमस्कृत्य), ९४३५७(+४) साधारणजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपु (शांतो वेषः शमसुखफला), ९४४६१-७(M) ', साधारणजिन स्तवन- धर्मप्रभावक, अप. गा. १५, पद्य, मूपू (जो न विभाव अमणह सो तसु), ९४४६१-१३(#) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपु (श्रीतीर्थराज पदपद्मसेवा), ८९५८५-४(*), ८९३२२-६ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरल कमल गवल मुक्ता), ९४३०२-३२(+#) १ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. ८, पद्य, म्पू., (मंगलं भगवान वीरो मंगलं), ९४३६३-३(+), ९४३६६-८(+) साधु आराधना, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (पूर्वं ग्लानस्य संपूजित), ९४३८५ साधुदिनकृत्य, आ. हरिप्रभसूरि, सं., श्लो. ४२२, पद्य, मूपू., (श्रीवीरः श्रेयसे), ९४४२१(+#$) साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (ए क्रिया संप्रदाय), ९२०७१-८ साधुभावनाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., ( आदाय व्रतमात्मतत्वममलं), ९१४५४-५ (+), ९२९४०-२(+) (२) साधुभावनाष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (यहि करि जनको आव्याकौ), ९९४५४-५ (+) साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा. सं., वि. १८३८, गद्य म्पू. (प्रणम्य तीर्थेशगणेशमुख्या), ९३१६७ " " " साधुभावक आचारविचार विषये विविध प्रश्नोत्तर- आगमगत, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (--), ९३६४५ (३) साधु समाचारी, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( आवसही १ नसही २ आपुछणा३), ८९५२८($) सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., द्वा. २१, ग्रं. ११७६, गद्य, मूपू., (आयारमयं वीरं वंदिय), ९४६००-१(+) सामाचारी शतक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., प्रका. ५, वि. १६७२, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं च गुरुं नत्वा), ८९९२९-१(+) (२) सामाचारी शतक - बीजक, मा.गु., वि. १६८६, गद्य, मूपू.. (सामायिक पछइ इरियावही), ८९९२९-२(*) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, प्रा. मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (पहिलं प्रणमूं जिन), ८९४१३(*) सामायिकग्रहण विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (आत्मार्थी जीवे), ९२४४५ (+) सामायिकसूत्र, प्रा., पद्य, म्पू, (करेमि भंते सामाइअं), ९१९९४-२ " " सामायिकसूत्र- दिगंबर, सं., प्रा., पद्य, दि. (पडिक्कमामि भंते इरियावहि ), ९२९५५(क) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, म्पू, इतर (आदिदेवं प्रणम्यादी), ९१९४३ (+३) (२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, इतर ( आदिदेव प्रते प्रथम), ९१९४३ (+#5) सारंगसार काव्य, ग. हंसप्रमोद, सं., वि. १६६२, गद्य, मूपू. इतर (अत्र वर्ण्यपदार्थां एते), ९३३५१ (+) (२) सारंगसार काव्य-स्वोपज्ञ टीका, ग. हंसप्रमोद, सं., वि. १६६२, गद्य, मूपू., इतर, (नमस्कृत्य कृतानंदं कंदं), ९३३५१(+) सार्द्धद्वयद्वीप पूजा, सं., प+ग. म्पू. (ऋषभाविवर्द्धमानां तान् ), ९१३८१ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. द्वा. २२, श्लो. १०० वि. १३वी, पद्य, मूपू (सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः), ९१३८२ (+), ९२०९४(५), ९२४७०(+), ९२६२९(+), ९२८६४ - १ (+$), ९३२०८ (+), ९३२५२ (+s), ९३२५८ (+), ९३६२५ (+$), ९४२८६ (+), ९४४४३ (+), ९४४५७/+#5) ९३१६२-१, ९१७६५ (३), ९३५९५(३) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), ९३२०८ (+), ९४२८६ (+), ९१७७९, ९३३३६ ($) (२) सिंदूरप्रकर- टीका, सं., गद्य, मृपू. (पार्श्वप्रभोः क्रमयोचरण), ९४४४३(+) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध कथा, मा.गु., गद्य, मूप., (सिंदूरनो प्रकर कहिइं), ९१३८२(+) (२) सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ९१३८२(+), ९३२५८(+), ९३६२५(+$) (२) सिंदरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., अधि. २२, गा.१०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित तप गजराज सीस), ९३१५५-२(+) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), ९२४७०(+) सिंहकेसरा मोदक निर्माणविधि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (चऊसट्ठि कुसुमरसो), ८९३४९-४ सिंहासनद्वात्रिंशिका, सं., गद्य, वै., इतर, (--), ९४५२२-६($) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., कथा. ३२, वि. १५वी, गद्य, मपू., (अनंतशब्दार्थगतोपयोगिनः), ९२२९०(5), ९२५४३(5) सिद्ध १५ भेद स्वाध्याय, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहसा रंतिअदेवा नारय नेहेण), ८९८०९-२ सिद्धचक्र पूजा मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते), ८९५९४-३(+) सिद्धचक्र यंत्र संक्षिप्त आराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सिद्धचक्रना गुण घणां), ९३६८२(#$) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणसिद्धसूरिउवज्झाय), ९४२८५-२(#) सिद्धजीव संख्या, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (जइया होइ सि पुच्छा), ९१३३३-२($) (२) सिद्धजीव संख्या-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (जिवारे कोइये पुछ), ९१३३३-२(६) सिद्धदंडिका यंत्र, मा.गु.,सं., यं., मपू., (अनुलोम सिद्धिदंडिका), ८९६०२-२(+) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ८९६०२-१(+) (२) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो), ८९६०२-१(+) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूप., (सिद्धं सिद्धत्थसुअं), ९२६३१(+$), ९२६४१(+$), ९२४१७($) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (सिद्धं० प्रसिद्ध छइ), ९२६३१(+s), ९२६४१(+$) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सिद्ध क० मोक्ष पुहतो), ९२४१७(5) . सिद्धसारस्वत स्तोत्र, पृथ्वीधराचार्य, सं., श्लो. ४९, पद्य, वै., (एंद्रव्याकलयावतंसितशिरो), ९३७१९-२(+) सिद्धसेनदिवाकर चरित्र, प्रा., गा. ९१, पद्य, मूपू., (सिरिसिद्धसेन पालित्त), ९१९३३-१(+) सिद्ध स्तुति, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ३०, पद्य, दि., (सूक्ष्मत्वादणुदर्शिनोवधि), ९१४५४-८(+-), ९२९४०-५(+) (२) सिद्ध स्तुति-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (सुक्ष्म है तातें परम), ९१४५४-८(+-) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात), ९२६५४(+#$), ९३१०४(+), ९३१२२(+$), ९३२९९-१(+), ९३८१३(+$), ९४१२६(+$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका, सं., गद्य, मपू., इतर, (संहिता च पदं चेव), ९२६५४(+#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., इतर, (अर्हमित्येतदक्षरं), ९३१०४+), ९३८१३(+5), ९४२३३(+#) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-षट्पादावचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (अहँ णामं वह्नत्वे), ९४२०१(+#), ९३९१७(#$) (२) धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०३, गद्य, मूपू., इतर, (अहँ भू सत्तायां), ९२९२०($) (३) धातुपारायण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मप., इतर, (भू इत्यविभक्तिको), ९२९२०(६) (३) धातुपारायण-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., इतर, (इह पूर्वाचार्य प्रसिद्धाः), ९२९१८(+$) (२) न्यायसंग्रह, संबद्ध, ग. हेमहंस, सं., सू. ८४, ग्रं. ६८, गद्य, मपू., इतर, (प्रकृतिग्रहणे स्वार), ८९९९७-१(+), ८९९९७-२(+) (३) न्यायसंग्रह-स्वोपज्ञ न्यायार्थमंजूषा बृहद्वृत्ति, ग. हेमहंस, सं., वक्ष. ४, ग्रं. ३०८५, वि. १५१५, गद्य, मूपू, इतर, (त्रैलोक्याह्लादहेतु), ८९९९७-२(+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सू. १००६, वि. १२वी, गद्य, म्पू., इतर, (कृवापाजिस्वदिसाध्यशौ), ९२९७७(#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (भू सत्तायां पां पाने), ९२९१८(+5), ९३२९९-२(+) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन- चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं. ग्रं. १८०००, वि. १७५७, गद्य, म्पू., इतर (प्रणम्य श्रीमदर्हतं), ९३१२२ (०३) सिद्धांतसार, म. तेजसिंह, सं., श्लो. १०२, पद्य, . ( श्रीमद्वीरजिनं प्रणम), ९२५७४(+) मु. " " . (२) सिद्धांतसार - आधारपाठ, संबद्ध, प्रा. गा. १०१, पद्य, वे (विवगय जरमरणभये मणवय), ९२५७४नका सिद्धांतसार- विचारसारगुणगर्भित, प्रा. गा. ८६, वि. १२६७, पद्य, म्पू (सुक्खसहकार कीरं अमरा), ९४६३५ (*) (२) सिद्धांतसार- विचारसारगुणगर्भित बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्ह भणी हुं वीर श्रीमहा), ९४६३५(*) सिद्धांत हुंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा., मा.गु., ग्रं. २०१६, गद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवराई सुय), ९४२५४(+#$) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १३४१ ग्रं. १६७५ वि. १४२८, पद्य, मूपू.. (अरिहाइ नवपवाई झायित), ९२३५९(+), ९३११३(+), ९३१२१(+), ९३१४२ (+), ९३६५० (+), ९४२९६ (३) ९४२८५-१(# ) ९२६२६ (३) (२) सिरिसिरिवाल कहा- अवचूर्णि उपा. क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. ४०२२, वि. १८६९, गद्य, मूपु. ( ध्यात्वा नवपद भक्त), ९३१२१(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतादिक नवपद), ९३११३(+), ९३१४२(४), ९३६५० (+18) सीतासती चरित्र, प्रा., गा. ३४४०, पद्य, मूपू., (कमलनहकंतिजलेणं वखालि), ९४२३७(#) " सीमंधरजिन स्तवन, अप. गा. १७, पद्य, मूपू., (सलूणउसुसोहामणउ श्रीजिणिंद), ९०३३८-३८(+) सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिरसुर असुर नरवंदि), ९०३३८-३७(+) सीलसंधि, मु. जयशेखरसूरिशिष्य, प्रा. गा. ३४ ई. १५वी, पद्य, मूपू., (सिरिनेमिजिनिंदह पणयस), ९४४६१-१५ (७) सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. उ. १६ गा. ४०५३, प्र. ४५००, पद्य, मूपू (वंदितु सुव्वयजिणं), ९२४६२ (+) , सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खुर), ९२४९२-७ सुभाषित लोक, मा.गु. सं., श्लो. २, पद्य, थे. (अपुत्रस्य गृहं सुनं), ९३९२२- २(क) श्वे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं. प्रा. मा. गु. सं. गा. ४०, पद्य, वे. (दानं सुपात्रे विशुद्धं च), ९११४० (+), ९२२८३ (३), " " " ९४०३९-१८(+#) सुभाषित श्लोक संग्रह सं., श्लो. ४५, पद्य, जे. इतर (विद्यालक्ष्मीसंपन्नाद्), ९३६४६-२(+४), ९४३३८-४(१९) 7 " सुभाषितसंग्रह सं., श्लो. ८, पद्य, इतर (नागो भाति मदेन), ९३५३९-३ (+) सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., स. ८, श्लो. ७४०, पद्य, मूपू., (अर्हं नमस्यामि), ९४६१७(#$) सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५१८, पद्य, मूपू., (रायगिहे गुणसिलए), ९२२५९ (+), ९४३६३-६(+) सुसढ चरित्र, प्रा. गा. ५१६, पद्य, मृपू. (जे परमानंदमय परप्पमा), ९१३१४-१ (+३) (२) सुसद चरित्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीमहावीर), ९१३१४-१(+) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ९२३१३-१(+), ९२३६५(+$), ९२३६९(+#$), ९२४३१(+), ९२६६० (+$), ९२८४२(+), ९३११० (+$), ९३१६५ (+), ९४३७९(+), ९४४३०(+$), ८९४६० (५३), ९३२९७(१), ९३३७१(१) (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., वि. १८२७, गद्य, मूपू., (सघलि पुण्य रुप वेलनी), ९२८४२(+), ९३११०(+$) (२) सूक्तमाला टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (सर्व जे शुभ करणीनी), ९२३६५ (३) ९३१६५ () (+), (२) सूक्तमाला अर्थ, मा.गु.. गद्य, म्पू (--), ९२३६९ (४) (२) सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु. सं., वि. १८३०, प+ग. म्पू., (प्रणमी सद्गुरु शारदा), ९२८४२(+), ९३११० (+३) (२) सूक्तमाला-कथा, मा.गु., कथा. ६९, गद्य, म्पू. (श्री आदेश्वरजीनी सेवा), ९२३६९(३) (२) सूक्तमाला-कथा, मा.गु., गद्य, भूपू (-) ९२३६५ (+३) "" सूक्तावली, प्रा.मा.गु. सं., गा. १०९, पद्य, थे. (सकलकुशल वल्लि पुष्करावर्त), ९४९७५ () " (२) सूक्तावली -टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (सकल समस्त सुख संपदा प्रते) ९४१७५ (+) सूक्तावली संग्रह, प्रा.मा.गु. सं. श्री. २६०, पद्य, मृपू. ( वीरं विश्वगुरुं), ९३२६४(+३), ९४३५३ (+३) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (सयलंतरारि वीरं वंदिय), ८९९०३-१० (+), ९०३३८-३३(५), ९४२५१-४(+०३) For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५३१ (२) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-वृत्ति, आ. धनेश्वरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यज्ज्ञानदर्पणतलप्रतिभात), ९४२५१-४(+#s) सूतक विचार, सं., गद्य, मूपू., (जातकमृतकसूतयोः केचिद), ९४६००-५(+$) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मप., (बज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), ८९८३३(+). ८९९१६(+), ८९९८६(२), ८९९९०(+#), ८९९९६(+#), ९१०६२(+$), ९२७०४(+$), ९२८०७(+$), ९२८१६(+#$), ९२९१५(+$), ९४०३६(+$), ९४३३२(+$), ९२५४१(#$), ९४४५४(#$), ८९८५०(६), ९२७८९(६), ९२९३०(६), ९४५५३(5), ९४५९८(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), ८९९१६(+), ९२९७२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मपू., (बुज्झेज्ज कहता जाणइ), ९४४५४(#$), ८९८५०($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ८९९९०(+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (बुज्झि० छकाय जीवना), ८९८३३(+), ९२७०४(+$), ९२८१६(+#), ९३१४०(+$), __ ९४०३६(+$), ९४३३२(+$), ९२७८९($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. ७, प+ग., मपू., (सुयं मे आउसं तेणं भगवया), ९३१४०(+६), ९२९७२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, प+ग., मूप., (बुज्झेज्झ), ८९९८७ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छकाय, स्वरूप जाणी), ८९९८७ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ९४२७४-२, ९४४२३-६ सूरपाल कथा-दानोपरि, सं., गद्य, मूपू., (दानधर्मधुरीणस्य भविक), ९४३६३-७(+) सूराणगच्छ पट्टावली, उपा. रामचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानकल्पद्रुम), ९२१८१(+) सूरिपदस्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (जइगुण१ काल२ निसिज्जा), ९४६३९-१(+) सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, स्पू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), ९४२७०(+$) सूर्ययशा चरित्र, सं., श्लो. १५७, पद्य, मूपू., (अथ सूर्ययशाःशोक संकु), ९२७९८(+) सोमतिलकसूरि विज्ञप्ति, मु. गुणतिलक, अप., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिरिसोमप्पह सीसं निम्मल), ९४४६१-२१(#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. पुण्यशील, सं., अ. २४ स्तुति जोडा, पद्य, मूपू., (ऋषभ योगीश्वरं भजत), ९४०९९(+$) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ९२७२२(+$), ९२९१३(+), ९३७३६(+#), ९४११६(+), ९४५०७-१(+#), ९१३३४-४, ९३२१९-३, ९२८८७(5) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, जै.क. धनपाल, सं., स्तु. २४, वि. ११वी, गद्य, मपू., (आसीद् द्विजन्माखिलमध), ९२८८७($) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धनपालपंडितबांधवेन०), ९११४५-३(+), ९२७२२(+$), ९२९१३(+), ९४११६(+) स्ततिचतुर्विंशतिका, प्रा., स्तु. २४, गा. ९६, पद्य, मप., (मरुदेविनाभितणयं वसहंक), ८९९०३-८२(+) स्तूप पादुका प्रतिष्ठाविधि, प्रा.,सं., वि. १८वी, प+ग., मूपू., (प्रथम भूमिका शुद्ध), ८९७४७-२(+) स्तोत्रचतुर्विंशतिका, प्रा., स्तो. २४, पद्य, मूपू., (भीमभवसंभमुभंतजंतुस), ८९९०३-८१(+) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ८९९०१(+), ९२६६४(+$), ९३५०७(+$), ९२६४३(s) (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिनं नाथं), ९४३०१(#$) (२) स्थानांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९२६४३(5) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ८९९०१(+), ९२६६४(+$), ९३५०७(+$) (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (धम्मे चउव्विहे), ९३२७३(+#) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आणायविजए कहेता), ९३२७३(+#) स्थापना पंचाशिका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., गा. ५३, वि. १५७४, पद्य, मपू., (जयइ जियाजियवग्गो), ९१०८४-२(+#) स्नात्रपूजा विधिसहित, प्रा.,मा.गु., पद्य, म्पू., (प्रथम नित्य विछई), ९२७२८-१(+#) स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (नमो अरिहंताणं नमोर्हत्), ९३२२२-१, ९२८२३(#) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट -१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नानाष्टक, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. ८, पद्य, दि., (सन्माल्यादि यदिय सन्निधि), ९१४५४-२५(+) (२) स्नानाष्टक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (उत्तम पुष्पमालादिक), ९१४५४-२५(+) स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि सं., उल्ला. ४, पद्य, म्पू, इतर (श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा), ११७१४.२(+), ९३९२३(३), ९२४१०(m) (२) स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीशारदामित्यादि इत्यादौ), ९३९२३(३), ९२४१० स्वप्नसप्ततिका, प्रा., श्लो. ७१, पद्य, म्पू, इतर (एवं विसिकाला भावम), ८९९०३-१४(*) स्वयंभू स्तोत्र, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. २४, पद्य, दि., (सूयंभुवा येन समुद्धृतं), ९९४५४-१६(+), ९२९४०-१३(+$) (२) स्वयंभू स्तोत्र - टवार्थ, पुहिं. गद्य, दि., (आपहाते प्रति बुध है), ९९४५४-१६(+) हरिवंशपुराण, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., स. ३९, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्णभव्यार्थ), ८९८७० (+), ९००२३(४) (२) हरिवंशपुराण- भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., वि. १७८०, पद्य, दि., (महावीर वंदौ जिनदेव), ९०२७१(+$) हरिहर प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं. वि. १५वी गद्य, म्पू. (श्रीहर्षवंशे हरिहर), ९२९६१-१ (+३) " .. हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. २८३, ग्रं. ५२५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., इतर, (स्वस्ति श्रीभरणं सिद्धेः), ९०१०७(+#$) (२) हस्तसंजीवन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., इतर, (अंगविद्याया मुखत्वं), ९०१०७(+#$) हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक. ८, श्लो. १३८, वि. १२वी, पद्य, म्पू, इतर (पुल्लिंग कटणथपभमयर), ९४१२७(+#) (२) हैमलिंगानुशासन- अवचूरि, सं., गद्य, म्पू, (स्तु इति पृथक् संत), ९४१२७(सका होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे ऋषभैक), ९३१६०-७(+) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं. वि. १८३५, गद्य, मूपू (होलिका फाल्गुने मासे), ८९९३२-९(१), ९३५९१-२(+३) होलिकापर्व व्याख्यान, सं., श्लो. ८३, पद्य, मूपू (श्रीयुगादिजिनं नत्वा), ९३४१७-२(*) " , होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., श्लो. १३९, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९३३२५(+), ९२३२५ (२) होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्धमानस्वामी प्), ९३३२५ (५) ९२३२५ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ४ गोला सज्झाय, रा. गा. १७, पद्य, वे. (साधांतणी वाणी सुणी), ८९५०५-२ "" " ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, मा.गु., कथा. ४, गद्य, श्वे., (करकंडु कलिंगेसु० कलि), ९३०५३ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२ नं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, म्पू (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ८९६० (+), ९२६९२ (४) ९२६९६ (४) "" ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (चिहुं दिसथी च्यारे), ८९४३०-२(३) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे ), ९३१५५-४९(+), ९३४६३-६ ४ मंगल डाल, मा.गु., डा. ६, गा. १०९, पद्य, मूपू., (चौथो मंगल चीन धरो), ९३६५६ ४ मंगल पद, मु, उदयरत्न, मा.गु., डा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, भूपू (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ९४३६६-२३(*) ४ मंगल पद, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सासन देवता समरि आगाय), ९२१२८-९५ (+) ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (आज घरे नाथजी पधारे), ९३५६३-१४ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), ९३३८७ (+), ९२७३६-१ गा. १२, वि. १८५२, पद्य, खे, पो उठीनें समरीजे ही), ८९५३५ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु (मंगलिक पहिलु कहुं ए). ८९४८९-१ (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ मंगल सज्झाय, मा.गु, गा. १०, पद्य, भूपू ', ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रोत्रेंद्रियना), ९२७६२-२२(+) ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), ९२५३२-८(+#) ५ इंद्रिय सज्झाच, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., ( काम अंध गजराज अगाज), ९३५८१-३३(+), ९३२४१-४१ ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म उदय धरो), ९३२४५-१४ ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ९३४०२ ५ खामणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेला खामणा अढीदीप), ९३२१७ ५ जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (पंच परमेसरा परम ), ९२०२६-६ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ९३२४१-४ יי ५ पांडव सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, ओ., (हस्तिनागपुर दीपती), ८९३९५ ५ बोल, मा.गु, गद्य, भूपू (पहिलो नारकिलो द्वार), ९४६४८ (*) " ५ महाव्रत सञ्झाब, मा.गु. गा. १६, पद्य, खे, (रात पड्या भोजन कर ), ८९३९३(-) " ५ विजय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (विजय विजयंतर जयंत३), ८९४६४-५ (१) ५ शरीर २३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, वे (प्रथम शरीर ते शरीर), ९२१८७ " ६ अड्डाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, डा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, म्पू. (श्रीस्याद्वाद शुद्धोदधि), ९३६३९ (५) ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ८९७७५-२ (+), ९२७४० (+$), ९२७९९ ६ गुण वृद्धिहानि दोहे, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २०, पद्य, दि., (संख असंख अनंत गुन), ८९८६६-१४ ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु. गद्य, मूपु (धर्मास्तिकायरा गुण ४) ९२७५३(३) " ६ भांगा-क्रियानिर्जरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक जीवनइ क्रिया लागइ), ८९३२४-२ (+#) ६ लेश्या नाम दृष्टांत सहित, मा.गु., गद्य, मूपू. (कृष्णलेश्या १ नीललेश्या २), ८९४६४-२(+) ७ नयदृष्टांत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८५४, पद्य, वे., (नैहचै वात० प्रकारी लाभ), ९४४८१-५६(#) ७ भव नाम, मा.गु, गद्य, मूपू. (इहलोक भय १ परलोक भय २), ८९४६४-३(*) ७ वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीब्राह्मी प्रणमी), ८९५६६-१ ७ व्यसन कवित्त, मु. भीव, पुहिं. गा. ८, पद्य, खे, (जूवा सुरा ताजिके), ८९४३५-४ " ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., ( पर उपगारी साध सुगुरु), ८९६८२-१, ९३२४१-१७, ९३४६३-२ For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जिनसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणु मेरे जीयरे रे सीख), ८९३५६-१ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, श्वे., (मनुष जमारो पायक करणी), ८९५०५-१, ८९५१६ ८ आत्मा ६२ बोल, पुहि., को., म्पू., (१ द्रव्य आत्मा में), ९३६३५-२(+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ९२४१९(+), ९२४२८(+#), ९२४८०(+), ८९६३१-१, ८९७३५-१, ९२७८३-१, ९४०६३, ९४४५० ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, मा.ग., को., मप., (--), ८९६६७-२(+) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावरणीयकर्म), ८९५१४-३(+), ९२३१८, ८९५९२-२(5) ८ छंद गण दोहे, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (वरधमान सनमन महावीर), ८९८६६-११ ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), ९३३३३($) ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहिं., गा. ९, प+ग., मूपू., (शुचि सुगंध वर कुसुमजुत जल), ९२९५२-१ ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), ९३६०७(+) ८ मद सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (प्रथम ऋषभ नमो जिनराज),८९७७७-२(#) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ९२१७६(+#s) (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरुपद्रव्य सुखनु), ९२१७६(+#$) ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भद्दे १ सुभद्दे२ सुज), ८९४६४-४(+) ९ पुण्य नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अण्णपुण्णे१ पाणपुण्णे२), ८९७७६-९(+#) ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ९१९६८(२), ९३४३०-१(5) ९ वासदेव शरीरमानादि विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपुष्टवासुदेव धन्), ८९५७३-३(#) १० दान दोहरा, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (गो सुवर्ण दासी भवन), ९३७७८-२(+) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ८९७३०-२(+#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ९२४०९-२९(+) १० बोल पद, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (जिन की बात कह), ९३१५५-२९(+) १० बोल सज्झाय-औपदेशिक, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (देवत हवे दस बोलसुं), ९२०९३-९(4) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो), ९३२३४ ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ९२१३९-५ ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु.,रा., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, स्था., (इंद्रभुतिना लीजे), ९४४८१-७०(#) १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, गा. ७५, वि. १६७८, पद्य, मपू., (सरसति भगवति भारती), ९१३२१-२, ९२४८७ १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान१ श्रुतज्ञान२), ९२८९७-३ १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (पेला भरतचक्रवर्ती), ८९५७३-४(2) १२ भावना, पुहिं., गा. १५, पद्य, दि., (आदिदेव जिनपय नमो बंदऊ), ९३७७८-४(+) १२ भावना, मा.गु., गा. १७७, पद्य, मूपू., (पहिली अनित्य भावना), ९३९५२(+#$) १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली अनित भावना ते), ९४५२०(+) १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा.५२, वि. १७२७, पद्य, मपू., (प्रणमि चरणयुग पास), ९३१५५-४७(+), ९३५३६-१(+) १२ भावना विलास, मु. शुभचंद, मा.गु., ढा. १२, पद्य, दि.?, (नमो पंचपरमेष्टिनो मूल), ९३६६५(+) १२ भावना सज्झाय, ग. रामचंद्र, मा.गु., गा. २४, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (बारे भेदे बहुगुणी), ९३०६३-४(+#) १२ भावना सज्झाय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मप., (इम पडवजि गिरूआ सरण), ८९७९६ १२ मासी तप स्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., गा. १५, वि. १९०२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन नायक तुं), ९२४०९-३१(+) १२ योनि नाम, मा.गु., गद्य, पू., (सीत जोणी१ उसणा जोणी२), ८९३२४-४(+#) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (समकित सूधउं पालता), ९२५९१(+#) १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदा सिद्ध भगवंतने), ८९९६३(+), ९३१५४(+), ९१९४९-१ १२ व्रत पूजाविधि, मा.गु., गद्य, मपू., (विशाल जिनभुवने अथवा), ९१५७०(+) १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूप., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ९४४०३, ९२००७-१(२) १२ व्रत रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७७, गा. १६६५, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (वंदु अरिहंत सिद्धने), ९२९४५ (#$) १२ व्रत सज्झाय, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (जीवदया व्रत पेले), ९२३९८-३ १२ शिक्षाबोल सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (बोल बारै कर जीवडो), ९४४८१-६४(#) १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिलि प्रतिमा १ मास), ८९५९३-१(+) १३ अकल्पनीय लब्धि नाम-अभव्यपुरुष, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभव्यपुरुषने १३ न होइ ते), ९२७६२-११(+) १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), ८९३४५-१, ९३१८८-८ १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ८९३६६(#) १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (समरूं श्रीगौतम गणधार), ८९७७७-१(+#) १३ काठिया सज्झाय, पुहिं., गा. १७, पद्य, दि., (जोवट कारै वाटमै करै), ९३१५५-१९(+) १३ वाना की तोलडी, इंद, मा.गु., पद. १, पद्य, जै., इतर?, (चुलो अने ढाकणी इधण), ८९६४०-४ १४ गुण सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन सवेनइ करु प्रणाम), ८९५८८(+) १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), ८९५४२(+) १४ गुणस्थानक ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, मूप., (मिथ्यात्व १ सास्वादन), ८९७३९-२९-६) १४ गुणस्थानक ८८ द्वार, मा.गु., द्वा. ८८, गा. ८८, गद्य, मप., (नामद्वार ते १४ गुणठा), ९२५००(5) १४ गुणस्थानक अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, पू., (थोडा उवशांत ११माना), ८९७१३-२(+) १४ गुणस्थानक चौपाई, पुहिं., पद्य, श्वे., (--), ९२७७३(+$) (२) १४ गुणस्थानक चौपाई-बालावबोध, पुहि., गद्य, श्वे., (--), ९२७७३(+$) १४ गुणस्थानक जीवसमासादि जीवाल्पबहुत्व संदृष्टि रचना यंत्र संग्रह, पुहि., यं., मूपू., (रचना जिनकी करिए है), ९००९० १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ९२८९७-२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), ९१५८३(+$) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वरपुर धणी), ९२३४९($) १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ९३६३५-१(+) १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (प्रथम १४ गुणस्थानक), ८९७३५-२ १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, मपू., (सचितद्रव्य १ अचित), ९३०४४-२(+#) १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित ते कोने कहीइं), ८९७३३ । १४ पूर्व विषय और लेखनप्रमाण, रा., गद्य, मपू., (उत्पात पुरब में सरव), ९४४४४-२(+) १४ रत्न स्वरूप-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे १४ रत्न सेनापति), ९२७६२-२५(+) १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई देवता सोधर्मदेव), ९२३३६(+$) १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.ग., यं., श्वे., (--), ८९४५२ १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वप्न पाठक कहइ छइ), ९४०७८(+) १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मपू., (श्रीमत् गौडी जगधणी), ८९३९४-१(६) १५ तिथि चौपाई, मु. तुलसी, मा.गु., गा. १६, पद्य, जै.?, (परिवा प्रथम कला घटि), ९३१५५-१८(+) १५ तिथि सज्झाय, ऋ. करमचंद, मा.गु., गा. २६, वि. १८८१, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर जगगुरु), ८९८०८-१(+) १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम अविरति), ९२९१४-१ १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ९२८९७-१ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १६ उद्धार-शत्रुजयतीर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभरत महाराजानो),८९८४४-३ १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), ९३६६७-१२(5) १६ सती सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., गा. १४, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (ब्राह्मी सुंदरी दोन बैन), ९४४८१-७५ (2) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ९४३६६-११(+), ८९६२१-३ १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवू), ८९३९६-१ १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (पाडलिपुर नामे नगर), ९३६६७-१९(5) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ९१८७५(+), ९२७७९(+), ९३३८०-१(+), ९३७६५(+$), ९१२९९ (२) १७ भेदी पूजा-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे स्नान कर्या पछी), ९२७७९(+), ९३७६५(+$) १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूप., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ९३६१६(2) १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९५, ग्रं. ७२२५, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), ९२४९४($) १८ नातरा चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मप., (लख चोरासी भटकतां), ९४४७०-३(+) १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (मथुरापुरी रे कुबेर), ८९३७२-२(#) १८ नातरा सज्झाय, ग. रामचंद्र, मा.गु., गा. ६५, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (सतगुरु पय प्रणमी करी), ९३०६३-६(+#) १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ३७, पद्य, मूपू., (सरसति माता रे निज), ९४०६६-२(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेलां ते समरूं पास), ९३२४१-१ १८ नातरा सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (एक ही माइ तिण मुझ), ८९७३२-४(+) १८ पापस्थानक छप्पय, अरूणपुरे, पुहि., गा. २०, वि. १९५२, पद्य, श्वे., (प्रथम नमुं गुरुपाय), ८९६४०-१ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ९३४०८-१(+), ९४०६५(+) १८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (तीन कोडि तरु जात), ८९७७६-४(+#) २० तीर्थंकर निर्वाणभूमि पद, मु. अभय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंबूदीप ए सोभतो दक्षण भरत), ९३५८१-८४(+#) २० तीर्थपद पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तिरथयात्र प्रभाव छे), ९२७५१-२(+) २० बोल असमाधि, मा.गु., कडी. २०, गद्य, मपू., (उतावलो चालें तो), ९१३०३-२(-2) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामि), ८९७८०-१(+#) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ९२७०८-२(+), ९२१३९-४ २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहि., गद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामि श्रेयांस), ८९५९४-४(+) २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर बाहु), ९३३३५-३(+) २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., (भत्ति सरोवर ऊलटिउ जागिय), ९०३३८-४३(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. सेवक, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमंदर पहला नमु), ८९५४०-१(-) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मप., (श्रीसीमंधर जिनवर), ९३४५९(+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ८९४९८ (#$), ९४४४८(२) २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय विहरंता वीस), ९४३०२-१२(+#), ९४३३८-१२(+#) २० स्थानक खमासमणदान विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम स्थानके), ९२३१४ २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ८९६२०-२ २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८९८, पद्य, मपू., (वीशस्थानक तप सेवीए), ९२१८५-३ २० स्थानकतप सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (वामानंदन पासजिणंद), ८९४१५ २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, भूपू., (जिनमुखपंकजवासिनी), ९२११७ २० स्थानकतप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीसस्थानक तप किजीइ), ९२१२८-९८(+) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अरिहं सिद्ध पवयण), ९२६०१-१४(+), ९४३०२-४५(+#) २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ९१९७३, ९२३२१, ९२४४६-१, ९२४६०-१, ९१९६३(#$) २० स्थानकपूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस स्थानक तप माडता), ९२४४६-२ २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. २१, गा. १०५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिणंद), ९२१०६(+$), ९२३७८(+), ९२५८६ २१ बोल निक्षेपाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहले बोल सातनय), ९३६७२ २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करै तो सबल), ९१३०३-३(-2) २२ अभक्ष्य निवारण सज्झाय, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (भव्य प्राणी रे जिन), ९३४६३-१ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ९२७६२-१७(+) २३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो बोले भणिवा), ८९७६२(+#) २४ जिन १२० कल्याणक देववंदन विधिसहित, मु. केसर, मा.गु., वि. १९०३, प+ग., मूपू., (उभा थई खमासणा देइने), ९३७९३(#$) २४ जिन ६४ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (रिषभदेव सव्वट्ठसिद्धथि), ९४६२६() २४ जिन अंतर विचार, पं. नयसागर, मा.गु., गा. १६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपद पंकज प्रणमीनइ), ८९३७८(१) २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा-प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, मु. रामचंद्र, पुहिं., प+ग., मूपू., (सुषमदखम थिति मेटी), ९०८२३(+$) २४ जिन चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर ईश्वरं), ९२४०९-१४(+) २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मप., (चवणविमान नयरि जिण), ८९५६१(+), ८९७१७(+#), ८९७३६(+), ८९५६२ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ९२६८७-३(+) २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहि., गद्य, मपू., (ऋषभदेवजीका कल्याणक), ८९५५९(+#) २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ८९५७२(+), ९२३६७(+), ९२७०८-३(+) २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ८९६८१-४ २४ जिन निर्वाणकल्याणभूमि स्तवन, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (आदेसर अष्टापद उपर), ८९७४१-१(+#) २४ जिन निर्वाणस्थल वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अष्टापदें सीधा पहेला), ८९५४८-५ २४ जिन पंचकल्याणक गणj, मा.गु., गद्य, मप., (कार्तिक वदि संभवनाथ), ९२१३९-६ २४ जिन पद, आ. अजितदेवसरि, मा.गु., गा. २, पद्य, मप., (रिषभ अजित संभवजिणंद), ८९३७५-२(2) २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पूजा. २४, पद्य, दि., (सिद्धि बुद्धि दायक), ९१०९८($) २४ जिन भक्ति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, दि., (शुद्धसरुपकौ वंदना), ८९८६६-३५ ($) २४ जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ८९६५४(#) २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (ऋषभ लंछन वृषभ अजित), ९४३६६-२२(+) २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.ग., गा. ९, पद्य, मपू., (वृषभ लंछन ऋषभदेव), ९२४०९-१५(+) २४ जिन लेख, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहला वांदं श्रीऋषभ), ८९७३९-१(-) २४ जिन स्तवन, आ. अजितदेवसरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रीआदीश्वर अजितनाथ),८९३७५-१(2) २४ जिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु श्रीआदि अजितनाथ), ८९३७३-२(#) २४ जिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (आदिनाथ प्रभु अंतरजाम), ८९३७३-१(#) २४ जिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (ऋषभादिक जिनवर चौवीस), ९२६०१-४(+) २४ जिन स्तवन, उपा. नयविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (प्रणमौं आदि जिणंद), ९३४०५-१ For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पहिला ऋषभ जिणेसरदेव), ८९७३७-३(+-) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ९३१८३-३ २४ जिन स्तवन-मातापिता लंछन नाम गामादिगर्भित, गच्छा. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २८, वि. १५६२, पद्य, मपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ८९५४६(+#$) २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (मंगल कर जिणराय मणै), ८९६४४-२(2) २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, मपू., (गाओ भवि चउवीसै जिन), ९३४०५-२($) २४ जिन स्तोत्र-वर्ण, गणधर, आयुमान, मोक्षस्थानादि विवरण गर्भित, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (आदिकरण आदीसरु रे संप),८९५५२ २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गइ इंद्रि काय जोग), ९३०९०(+#$) २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., (सरीरोगाहणा संघयण), ९३४६१(+$) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ९३२८१-१(+#), ९३३६९(5), ९४५१८($) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ९१५६३(+$), ९२८८४(+$), ९४३४८(+), ९२४३४, ९२१६५(s), ९२७८३-४(६) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (दंडक लेश्या ठित्ति), ९२३१९(+), ९४५३२(#$) २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, मपू., (सप्त नरके समुचे गति), ९२७६२-५(+) २४ दंडक नाम गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (नारकी १ असुरकुमार), ८९४६४-६(+) २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ९३३३८(#$) २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (नरक७ भवणपती१० पृथ्वी), ९३१८९ २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथवीकायनो १ दंडक), ९२७३७(5) २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति २), ९३२८१-२(+#$) २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, मप., (मनोगुप्ति १ एषणासमिति २), ८९३२४-१(+#) २७ साधुगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचमहाव्रत पाले ५), ९१३०३-४(-2) २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), ९२७६२-१०(+) २८ वार फलावतां, मा.ग., गद्य, श्वे., (पबंगे १ पुबे २), ८९५०९-१(-) ३० बोल-महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, मप., (त्रस जीवने पाणीमाहि), ९१३०३-६(2) ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (वाणी सीरीजनराजनी रे), ८९३३१-२(+) ३५ जिनवाणीगण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (पैतीसै जिणराज रै सौभे), ९४४८१-७६(#) ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), ९३२१२-२(६), ९१३०३-१() ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ९४०३९-१७(+#) ४५ आगमनाम कवित्त, मु. माल मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (आगम जिणवर आगम गणधार आगम), ८९७७६-७(+#) ४५ आगमनाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीआचारांग २५००), ९२४१२-२(5) ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १६+कलस, वि. १८८१, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ९३६५३(+#$) ५० निक्षेपा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोग द्वार मध्ये भगवंते), ९२१३८(2) ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, मपू., (उद्देशिक आहार लेवें), ९१३०३-५(-2) ५६ दिक्कुमारी गीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुरनर असुरती नम्यो प्रणमी), ९२६०१-९(+) ५६ दिक्कुमारी जिनजन्ममहोत्सव स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जिन जनम जाणी आवी), ९२७९६-५(+#) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.ग., गद्य, मप., (नमिउं अरिहंताई बोले), ८९४६३(+$) ६२ मार्गणा यंत्र, मु. जीवविजय, मा.गु., को., मूपू., (--), प्रतहीन. (२) ६२ मार्गणा यंत्र-विवरण, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरकगति गुणठाणा चार), ९३९६८(+#) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ८९३८७(+#), ८९७७३(+), ९२७७५(+), ९३२४०(+), ८९४३८, ८९७५१ For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २८, पद्य, श्वे., (वंदौ देव जुगादि जिण), ९३१५५-६(+) ६३ शलाकापुरुष नाम, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. २७, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो जिनवर० देव चौवीस), ९३१५५-५ (+) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु, बसतो, मा.गु, गा. १८, पद्य, वे. (सद्गुरु चरण कमल मनद), ९३४२५-२(*) " ६५ गुण आत्मा के, मा.गु., गद्य, मूपु. ( असंख्यात प्रवेशी), ९२७८३-३ ६५ बोल, मा.गु., गद्य, भूपू (पहेली नरकनि १० बीजी), ९३४२२.२(५) ६८ आगम पूजा, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पूजा. ८, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (प्रथम विशाल जिन भुवन), ९३९२० ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., ( जय जय जिण पास जगडा ), ९३४२५ - ३ (+) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ८९७०८ ८४ गच्छ पट्टावली, मा.गु., गद्य, भूपू. ( वर्द्धमांनस्वामिनें), ९३१११ (+४) १५ बोल- जीवोत्पत्ती विचार, मा.गु., को.. म्पू., (-), ८९६६७-१(*) १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ९१५७२($) १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू, (शासननायक जग जयो), ९२४०९-६(१) १५० प्रश्नोत्तर-विविधविषय, मु. जीतमल, रा., प्रश्न. १५०, गद्य, स्था., ( प्रथम गुणठाणारा घणी), ९२३०५ (+) ९६ जिन स्तवन, उपा. सुमतिशेखर, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू, (त्रणि चवीसी बिहुत्तरि ८९३३८-१(+) " ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ९३४६२(#) (२) ९९ प्रकारी पूजा शत्रुंजयमहिमागर्भित विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (जघन्य ९ कलशवाला), ९२४१६-२ १०१ क्षेत्र विवरण, मा.गु., गद्य, मृपू. (५६ क्षेत्र अंतरद्वीप), ८९४०७-३(+) १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र), ९२१३९-३ १८० अक्रियावादी चर्चा, मा.गु., गद्य, वे. (अपणो जीव सासतो छै), ९२१३५-२(+) २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, वे. (पांच ज्ञानना भेद), ८९३२७(*) २५३ मण मोतीमान बोल- सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, वे. (एक मोती ६४ मननु), ८९४७१-२(*) ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (धर्मास्तिकाय खंध देस), ९२७३४ ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, म्पू., (उंचा लोक में ५६३), ९२७६२-४(+), ९२७८३-२, ८९४८७) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (नारकी सात नरकना), ९२७६२-१८(+) अंजनशलाकाप्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधि सामग्री, मा.गु.. गद्य, मूपु., (च्यवन कल्याणक इंद्र), ९१९७१ (+३) अंजनासुंदरी रास, मु, पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२ गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, भूपू (गणधर गौतम प्रमुख), ९२६३५ (+) "" अंजनासुंदरी रास, मा.गु, गा. १५६, पद्य, थे. (अरिहंत सिद्ध समरु), ९३०६५ (+), ९४०९१(+४) अंतरायकर्मनाश आरती, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (भूप दिलावै दर्व कौं), ८९८६६-३ अंबिकादेवी छंद, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आदि शकति अंबाविसु जाणी), ९४१५७-११(*) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कान्ह, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (एक दिन रति वरसातनी), अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अयमत्तो मुनि दिइ), ८९४३९-४(३) ८९४०६ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ९३२४१-३८ अइमुत्तामुनि सज्झाय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जाया जोग भली परे), ८९५२२-१(#) अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३७, पद्य, मूपू. (सुखकर संखेश्वर नमी), ९२५४७-२, ९२५७५-२(क) अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., दोहा. १, प+ग, मूपू., (प्रथम इरियावही कहेवी), ९२५४७-४, ९२५७५-४(#) अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. दा. ५. गा. ५२, वि. १८७१, पद्य, म्पू (श्रीशंखेश्वर शिर), ९२४०९-१९ (*), ९२५४७-१, ९२५७५-१(#$) अक्षरवावनी, वा. किसनदास पुहिं. गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, वे (ॐकार अमर अमार अज), ९२१४२(+) " . (२) अक्षरबावनी- टबार्थ, मा.गु., गद्य, खे, (ॐकार पद पंचने समवेय), ९२१४२ (+) ५३९ For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (ॐकार सदा सुख देत), ९४१६६-१(+) अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५३, वि. १७४२, पद्य, मपू., (ॐ अक्षर सार सयल संसार), ९१७४०(+#) अक्षरबावनी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (ॐकार सब अछर को सब मंत्र), ८९८६६-६ अगडदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, गा. ३९६, वि. १६७९, पद्य, मूप., (नाभिमहीपति शिरतलो), ९४०३५(+) अगडदत्त रास, मु. महिमासिंह, मा.गु., ढा. १४, गा. ४७७, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (जिनवर चोवीसे नमी सरस), ९४३८९(+$) अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु सह गुरुनो), ८९८१९-१ अजितजिन छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, दि., (गोयमगणहरपय नमो सुमरि), ९३१५५-३६(+) अजितजिन स्तवन, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा.७, वि. १८४७, पद्य, स्था., (अजित जिण तु साहिब सीरदार), ९४४८१-५ (2) अजितजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजितनाथ चरणे तोरे), ९२६०१-१७(+) अजितजिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वींद अधिक प्रभु), ९२७९५-८(#) अजितजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आदि अजित श्रीशांतिनो), ८९४५३-१(+#) अजितजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा.७, वि. १९२६, पद्य, मप., (श्रीजिन बीजा रे मुज), ९२३७९-२६(+) अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ८९५७०-३, ९३१९५-२ अजितजिन स्तवन, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (अजित जिणंद दयाल के), ८९४३९-१ अजितजिन स्तवन, ग. राजविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर वीनती), ९२६०१-३९(+) अजितजिन स्तवन-चंद्राउलामंडण, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वंश इखागह मंडणउ रे जित), ८९३३९(#) अजितजिन स्तवन-तारंगामंडण, मु. धनमुनि, पुहिं., गा. ७, वि. १९३६, पद्य, मूपू., (अजित अजित अंतरजामि), ९२३७९-२३(+) अजितजिन स्तुति, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (जिन अजित अनंत गुणे भ), ८९५८५-२(+) अजितजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अजितजिन हितकारी), ९२३७९-३८(+) अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूप., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ८९४६६ अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४३, गा. ७५८, ग्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणापुस्तकधारणी), ८९९८८(#), ९२५४२(5) अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (प्रणमियै विश्वहित), ९३८६९(+#) (२) अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु., ग्रं. १२५०, वि. १८८२, गद्य, मप., (संवेगी सिरदार सिरोमण), ९३८६९(+#) अध्यात्म पंचासिका, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ५०, पद्य, दि., (आठ करके वधमे वधे जीव), ८९८६६-५ अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूप., (कंचनवरणो नाह रे), ९२३९९-५१(+), ९३७६८-७(+) अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देखो एक अपूरव खेला), ९२३९९-३९(+) अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मीठडो लागे कंतडो), ९२३९९-५५(+) अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (अध्यातम बिनु क्यों), ९३१५५-१७(+) अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), ९३१५५-१३(+), ९३७७८-७(+), ९३१८८-३ अनंतजिन पद, ग. देवचंद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ज्ञान अनंतमयी दान), ९२६०१-३२(+) अनंतजिन स्तवन, आ. विजयदेवसरि, मा.गु., ढा. ७, गा. २८, पद्य, मप., (सांभलुं जिम जिम स्वा), ८९५०७(+-$) अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., गा. ६३, वि. १४वी, पद्य, स्पू., (सिद्ध सवेनइ करूं), ८९६८०(#) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ९३२४५-३८ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ९३२४५-३७, ९३४६३-१२, ९३६६७-५ अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १०, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (थान भलो राजग्रही रे), ९३६६७-६ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (बे करजोडी वीनवु रे), ९३६८४-५(२) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मप., (अकल कला अविरुद्ध), ९२६०६-२(#) अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूप., (दीठी हो प्रभु दीठी), ९३१९५-३ अभिनंदनजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (अभिनंदन नमुं पाय), ९२३७९-४१(+) अमरगुप्त चरित्र, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., उल्ला. ३, वि. १६९७, पद्य, श्वे., (ऋषभादिक चउवीस जिन), ९४२५९(+) अमरसेनवयरसेन आख्यानक, ग. संघविजय कवि, मा.गु., ढा. २८, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धि सुख संपदा), ९२८९१(+) अरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (अरनाथ अविनाशी), ९३१९५-१२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मप., (इक दिन अरणक जाम), ८९४९५-३(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ९३३२३-१०(+#), ९३२४१-२४, ९२७९५-४(#) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ९३२४५-१०, ९३४६३-७ अर्जुनमालीमुनि ढाल, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८२०, पद्य, स्था., (वर्धमान जिनवर नमुं), ९३२६१-२(+) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), ९३२४१-७६ अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरव थोडा अवधदंसणी ते), ८९४०५(+) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ९२३९३(+S), ९१७१६, ९३२३९, ९२४८१(६), ९३७२५($) अवंतिसकमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७४१, पद्य, मप., (पास जिनेश्वर सेविये), ९३२३२(+), ९३२२५ अवस्थाष्टक, मा.गु., गा. ८, पद्य, दि., (चेतन लच्छन नियतनै), ९३१५५-३३(+) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ८९३४० अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. न्यायविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजगृही उद्यानमां), ९२४०९-५(+) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिई भाव), ९२४०९-९(+) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्रीसरसतिने चरणे), ९३२४१-६० अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ९१३३४-५ अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ८९५२०(१), ९२००७-१५(#), ९२३६६-१४(2) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (जय हंसासणी शारदा), ८९४२९ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ९४३०२-२३(+#), ९४३३८-८(+#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चौवीसे जिनवर प्रणमु), ९३४१०-३(+#), ९२००७-१२(2) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ८९३२२-७, ९३६७६-६ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.ग., पद्य, मप., (आठम दिनि बोल्यो), ८९६४५-३($) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ९४३०२-१५(+#), ९४३३८-१५(+#), ८९३२२-४ अष्टापदतीर्थ रक्षा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अष्टापद पर्वते सगरचक), ९२७६२-७(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं), ९२३९८-२, ९२००७-१०(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविनय, मा.गु., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, मूप., (चउवीसे जिणवर नमी पणमी), ८९५९८(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद गिरिवर उपरि), ९२६०१-२४(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ९३५८१-१(+#) असज्झाय विचारगर्भित सज्झाय, मु. सुखलाभ, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (--), ८९४१२-१४($) असज्झाय विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (असज्झायना भेद २ एक), ९२०७७-२(+) For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अहमदाबाद-शत्रुजयतीर्थ छरीपालितसंघ वर्णन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पय नमी समरी), ९४५५२(+$) आगमसार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९१७७५ () आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मपू., (हिवै भव्यजीवने), ९२२९२(+9), ९४०६२(+S), ९३१२८ (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम जीव), ९४०६२(+$) आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, मप., (लोक आश्री प्रस्तते), ९२७६२-२४(+), ९२७६२-२७(+$) आचार्यगुणवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (छतीस गुण आचार्य तणा जी), ९४४८१-८७(#) आणंदविमलसूरि गुरुगुण गीत, मु. आणंदविमलसूरिशिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (त्रिभुवनपति जिनवीरनइ नमी), ८९७३०-१(+) आत्म गीता, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (आतम महि बूब पार आतम), ८९८६६-९ आत्मज्ञान पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (औधू आतम मततगति छूझै), ९३३३२-६ आत्मप्रबोधछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीपरमातम परम पद), ९३५४८-२ आत्मविवेक सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (शुद्ध विवेकी महीपति), ९२६०१-८(+) आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., गा. १८५, वि. १६६२, पद्य, मपू., (जिनवर मुख वासिनी जग), ९२३४० आत्मसंवाद चौपाई, श्राव. लाल हरजी, मा.गु., ढा. ६, वि. १७०३, पद्य, मपू., (श्रीजिन समरी चितम्), ९२६१७ आदिजिन आरती, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (आरती आदनाथ तेरी मन), ९२१२८-१००(+) आदिजिन आरती, रा., गा. ११, पद्य, मूप., (सरसति सामणि वीनमु), ८९३३३-३(+) आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (आदिदेव अलवेसरु), ९२००७-२(#) आदिजिन चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (ऋषभेश जिनेश सुरेश), ९२३७९-६(+) आदिजिन चैत्यवंदन-धुलेवातीर्थमंडन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (स्तवं केशर्यानाथदेवं), ९२३७९-५(+) आदिजिन चौढालिया, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, मपू., (रूप मनोहर जुगतानंदण), ८९६९५(+) आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ९३३०३(#) आदिजिन छंद-शत्रंजयतीर्थ मंडन, मु. कविराज, मा.गु., गा. १८, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीगणधर जिनकुशलगुरु), ९४३३८-१(+#), __९४४२५-१(+) आदिजिन पद, मु. अमृतविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ए देखी तेरी लीला), ९२१२८-२१(+) आदिजिन पद, आदमखान, पुहि., गा. ३, पद्य, जै., मु., (बाबो रिषभ बैठे), ९२५६४-१२ आदिजिन पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हो ऋषभजिन मानु प्यार), ८९३९०-३ आदिजिन पद, मु. करमसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बाग में), ९१७७८-४ आदिजिन पद, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुंदर रूप सोहामण), ८९५८५-१(+) आदिजिन पद, ग. महिमराज, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जाग जगमुगटमणि नाभि), ९३५८१-१४(+#) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ९३५८१-१३(+#) आदिजिन पद, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (युग आदि प्रथम जिनेंद्र), ९४३०२-३३(+#) आदिजिन पद-केसरियाजी, श्राव. ऋषभदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (केसरीया से लागो), ९३५८१-४६(+#) आदिजिन पद-शत्रंजयतीर्थ, बाल, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (हारे डुगर जास्या मे तो), ९३५६३-११ आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांझ समें जिन वंदु), ९३५६३-९ आदिजिन रेखता, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३६, पद्य, दि., (तुम आदिनाथ स्वामी), ८९८६६-१५ आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. १३, वि. १८०८, पद्य, मप., (सरसति माता सुमति), ९३५८१-६७(+#$) आदिजिन लावणी-पारणा, मु. नान्हू, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (आदि जिनेसर कियो पारण), ९३५६३-१० आदिजिन विनती, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ८९८१३-१(#) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मप., (श्रीआदीसर वंदं पाय), ८९६६३(+) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५४३ आदिजिनविनती स्तवन, ग. विद्यासागर, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सहिगुरु भत्तिहि प्रणमी), ८९५३०(#) आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय), ९३२९४(+#), ९४०६१(+) आदिजिन सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (भरत कहै करजोडि भलो), ८९७२५(+) आदिजिन स्तवन, पं. अमरहंस गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (म्हेतो मरुधर देसथी आयो हो), ८९५५८-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४८, पद्य, श्वे., (रिषभदेव जग तीर्थनायक कीजै), ९४४८१-२२(#) आदिजिन स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (मुरति मोहन वेलडीजी), ९२१२८-३४(+) आदिजिन स्तवन, क. कानो, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चवरजी कुलम नवराया), ८९४५० आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ९३१९५-११, ९२७९५-७(2) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (साहिबा माणिक सामी), ८९६९६-३(+) आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिनंद आज), ९३५६५-२(+$) आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आणंद रंग मिले रे आज), ९२६०१-२७(+) आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (कंचन वरणा हो ऋषभ), ९२६०१-१५(+) आदिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (आज हमारे रतनचिंतामण), ९२३७९-२०(+) आदिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदि जिनेश्वर अलवेसर), ९२३७९-३६(+) आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय पंडित, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उगो हो), ८९३६५-२(क) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (आदीसर जगदीसरू रे), ९२६२२-३ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (एतो प्रथम तीर्थंकर), ९२७२१-१ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ९३१९५-८ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (सेजेजे शिखर), ९२६२२-२ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., कडी. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव हितकारी जगदगुरू), ९३५६३-८ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मप., (जगजीवन जगवाल हो), ९३१९५-१ आदिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (परमातिम परमेसर मने), ९२१२८-७१(+) आदिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (मारं दिठमे आदीसर), ९२१२८-८६(+) आदिजिन स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (हारे मोरा आदिजिन), ८९७८९-२(+) आदिजिन स्तवन, ग. राजविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिन अनुभव मीत मिल), ९२६०१-३८(+) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज भले दिन उगो हो), ८९५७०-४ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ८९५०४-६(+#) आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सर्वारथसीध थकी चव आय), ८९४४६-३ आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १०, वि. १९वी, पद्य, मपू., (हो जगगुर जगतरा हु प्रणम्), ८९४४६-१ आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तारि मुज तारि मुज ता), ८९४५९(#) आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु अनडपाडां राजै), ८९५७०-५ आदिजिन स्तवन, मु. सुबोधविजय, मा.ग., गा. ९, वि. १७६७, पद्य, मप., (अरज सुणी जइ हो जीनजी), ८९५४०-२(-) आदिजिन स्तवन, मु. सुमतिविजयशिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (आदि जीणंद मया करो), ८९६६४-३($) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद सुखकार दीठे), ९२७२१-२ आदिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मरुदेवीना नंदना), ९२१२८-१५२(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (वाल्हो मारो आदि), ८९७०६() आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू, (नाभिनरिंदमल्हार), ८९७२१-२(+), ९०३३८-४७(+) आदिजिन स्तवन-अर्बदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मप., (आबु शिखर सोहामणो जिह), ९२३६६-८(2) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (आबूतीरथ अतिभलौ), ९३४०९(+$) आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत भयभंजण), ९३६१९(२) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ९२१२८-६०(+) आदिजिन स्तवन-थिरपुरमंडन, मु. धनमुनि, पुहि., गा. ९, वि. १९३४, पद्य, मूपू., (आज ओच्छव छे रे अधीको), ९२३७९-१०(+) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (पहिलु पणमिअ देव), ९०३३८-५२(+), ९४५०१-२(+), ९४५३१-१(+$), ९२९९०(#) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-अवचरि, सं., गद्य, मप., (श्रीविजयतिलकमहोपाध्य), ९४५०१-२(+) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन-बालावबोध, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., वि. १५६६, गद्य, पू., (यच्छं उसहं नमिऊण सिद्धि), ९२९९०(#) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीविजयतिलक उपाध्या), ९४५३१-१(+$) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो री सखी धूलेवै), ९२५६४-१(६) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मोहन मुरति तेरी रे), ९२१२८-१२१(+) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (धन्य तु धन्य तु धणीय), ८९६७०-१ आदिजिन स्तवन-नवानगर, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १९, वि. १८वी, पद्य, मूप., (नवानगरमे भेटीए जिनवर), ९२६०१-११(+) आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ८९५०४-१(+#s), ८९७४३, ९२४५८-२, ८९७७८(#), ९२३६६-१(२) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (आदि जिणंद की सेव करु), ८९३९७-२(+) आदिजिन स्तवन-शांमला, मु. उत्तमदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सार कर सामला वार), ८९६७०-२ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ८९८९४-४(+) आदिजिन स्तुति, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (नाभजू के नंदाजी से), ९३५८१-९(+#$) आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (विमलाचलमंडण जिनवर), ९४३०२-२६(+#) आदिजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिनेसर वंदन), ९२३७९-३७(+) आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मपू., (आदि जिनवर राया जास), ९२००७-३(#) आदिजिन स्तुति, वा. भावचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मरुदेवी नंदन वंदीइं), ८९५७४-२ आध्यात्मिक गीत, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरी सुमेरी सुमेरी), ९२३९९-५४(+) आध्यात्मिक गीत, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (सुन हो हमारी सीख), ९३४०८-२(+) आध्यात्मिक जकडी-परनारी परिहार, मा.ग., गा. ४, पद्य, श्वे., (बे कर जोडी कामण वीनव), ८९३५६-७ आध्यात्मिकज्ञान प्रश्नपहेली, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (कुमति सुमति दोउ), ९३१५५-३०(+) आध्यात्मिक पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (अहवा अमर कचोले भर्य), ९२१२८-७५(+) आध्यात्मिक पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन तुं क्या करे), ९२१२८-१५३(+) आध्यात्मिक पद, ग. अमृतविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मानु जिन पदकज लीनो भंग), ९३५८१-४४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, पू., (अणजोवंता लाख जोवे तो एके), ९२३९९-४९(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अनंत अरूपी अविगत), ९२३९९-६६(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभव तूं है हेतु), ९२३९९-२५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (अनुभव प्रीतम कैसी), ९२३९९-५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अनुभव हम तो रावरी), ९२३९९-२६(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू अनुभव कलिका), ९२३९९-२१(+), ८९४१२-६, ९२५६४-९ For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (अवधू क्या मांगें गुनहीना), ९२३९९-१९(+), ८९४१२-१२, ९२५६४-७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नट नागर की बाजी), ९२३९९-२० (+), ८९४१२-१३, ९२५६४-८ " ', " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू (अवधू नाम हमारा राखे) ९२३९९-२२(+), ९२५६४-११ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (अवधू राम राम जग गावे), ९२३९९-१८(१), ९२५६४-१० आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव फूल की), ९२३९९-२४(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव रस कथा), ९२३९९-२८(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू, (आस्था औरन की कहा), ९२३९९-१७(२) ९२५६४-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (ऐसी कैसी धरवरी), ९२३९९-५२(१), ८९४१२-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (औघूं क्या सीवे तन मड), ९२५६४-५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू (किन गुन भयो रे उदासी), ९२३९९-७१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुबुद्धि कूबरी कुटिल), ९२३९९-१०(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कैरे ज्वारे ज्वारे), ९२१२८-३९(९), ९२३९९-३८(*) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कोउ राम कहो रहमान), ९२३९९-६३(+) " " " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्यारे मने मलशे मारो), ९२१२८-१२०(+), ९२३९९-९(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्यारे मने मलस्ये), ९२३९९-८(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्या सोवै उठि जाग), ९२३९९-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ग्यान भाण भयो भोर मे), ९२३९९-५८(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन चतुर चोगान लरी), ९२३९९-१२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन ममता छारी परी), ९२५६८-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (चेतन सकल वियापक होइ), ९२३९९-५७(+) " " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगतगुरु मेरा में जगत कां), ९२३९९-५६(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिया जानै मेरी सफल), ९२३९९-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू. (तरस कीज दइको दइकी सवारी), ९२३९९-५३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तेरी हुँ तेरी है), ९२३९९-१४(*) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दरसन प्राण जीवन मोहि), ९२३९९-४१ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देखो आली नट नागरको), ९२३९९-३७ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नट नागर सुं जोरी हो), ९२३९९-४६ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (नाथ निहारो आप मतासी), ९२३९९-२७(*) " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउं थांरी), ९२३९९-४५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (नीस दिस सोहामणो निर), ९२३९९-६५ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (परपुद्गल के सहु को रागी), ९३६५८-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (पिया तुम निठुर भए), ९२३९९-४२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( पिया विनु सुद्धि), ९२३९९-४८(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पीवा बिन सुधबुद्ध), ९२३९९-४७(*) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (पीया विना निस दिन), ९२३९९-१३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बेर बेर नहीं आवे), ९२१२८-१३७ (+), ९३५६३-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (भादुंकी राति कातसी), ९२३९९-३२(+), ८९४१२-९ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भोले लोगा हुं रडुं), ९२३९९-४४(+) For Private and Personal Use Only ५४५ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " " , आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (माला पूछीये आली खबर), ९२३९९-३१(+), ८९४१२-८ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू. (माहरओ बालूडो सन्यासी), ९२३९९-७ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुने महारा नाहलीयाने), ८९४१२-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मूडलो घोडो भाई व्याज), ९२३९९-६२(*) (मेरा माझि मजेठी सुण), ९२३९९-४३(*) (मेरी तुं मेरी तुं), ९२३९९-१५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, मूपु आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (मेलापी यान मलावो अनु), ९२३९९-३५ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मोकुं कोउ हंसै हुत), ९२३९९-६९(*), ८९४१२-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मोर बताय निज रूप), ९२३९९-११(*) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रीसानी आप मनावो रे), ९२३९९-३४(+), ८९४१२-७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ९२३९९-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( रे परदेसी भमरा यौ), ९२३९९-७०(+) " , י आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वारी हुं बोलडे मीठडे), ९२३९९-६८(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूषू, (वारू रे नान्ही बहू ऐ मन), ८९४१२-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विचार कहा विचारे रे), ९२३९९-३६(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू (विवेकी वीरा सह्यो न), ९२३९९-३० (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुष्टिं गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू (सलौणे साहिब आयेंगे), ९२३९९-२९(*) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधु भाई अपना रुप), ९२३९९-४० (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधु संगति बिनु कैसे), ९२३९९-६१(+) " " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधो भाई सुमता रंग), ९२३९९-२३ (+), ९२५६४-६ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुहागणि जागी अनुभव), ९२३९९-४) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हठीली आख्यां टेक न), ९२३९९-६०(*) " " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हमारी लै लागी प्रभु), ९२३९९-५९(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू (हरि पतित के ओ धारन), ९२३९९-६४(*) आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (साधजी किस दिन भए), ९३५८१-६६ (+#) आध्यात्मिक पद, आ. जिनपद्यसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (अध्यात्मपद धारो चित), ९३३३५-६ (+) " आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनुभो हम कबके संसारी मेरे), ९३३३२-१० आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपु. ( अनुभी ढीलन कब घर), ९३३३२-२२ " आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (आतम अनुभो अंबको), ९३३३२-३१ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपु., (एही अजब तमासा औधू) ९३३३२-२४ (अधु आतम भरम भुलाना), ९३३३२-१४ " . , आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू (औधु घरणी विण घर कैसो), ९३३३२-३९ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (औधु या जाग के जगवासी), ९३३३२-३० आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (औधु हेम विन जग), ९३३३२-४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपु. ( और खेल भव खल बाब रे), ९३३३२-९ " आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (कहा कहिये हो आप सयान), ९३३३२-१७ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (क्युं यात चतुरवर चित), ९३३३२-२८ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ग्यान कला गनि घेरी), ९३३३२-२७ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (छकी छवी वदन नीहार), ९३३३२-११ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( पर परणांम नवी भाये), ९३३३२-१२ " For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनुआ वस नही आवै अबधु), ९३३३२-२५ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (माई रे मेरे कंत), ९३३३२-३४ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरा आतम अतहि अयांना), ९३३३२-१३ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (रहे तुम आज क्युं जीव), ९३३३२-८ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (वीर विवेक मीत अनुभो), ९३३३२-१५ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सासरे आज रंग वधाई), ९३३३२-२९ आध्यात्मिक पद, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हमकू प्रभु समरण कहेव), ९२६०१-१२(+) आध्यात्मिक पद, मु. देव, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (चतुरनर मन कुं समझाना), ९३५८१-६९(+#) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (कर्मनि कौपे ले), ८९८६६-२८ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (तेरे मोह नही तेरे), ८९८६६-३३ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (दरसन तेरा मैन भावै), ८९८६६-२३ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (पायौ जाव सुख आतम लखि), ८९८६६-२६ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (री मेरे घट ग्यान घना), ८९८६६-२४ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ९३२२१-२ आध्यात्मिक पद, मु. भानचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीत के फंद परो मत), ९३५८१-१९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (देख्या दनियां बीचि), ८९७३२-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. मोहनविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (अपनो साहिब आपमें पिण), ९२१२८-१०२(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (अजब गति चिदानंद घन), ९२१२८-८३(+) आध्यात्मिक पद, मु. राजाराम, पुहिं., पद. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तूं क्या फिरै), ९२१२८-१३६(+) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (किसके बे चेले किसके), ९३२४१-५७ आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (मेरी आतमा अति अभिमान), ८९३३३-२(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अविनाशी के गुण गावता), ९२१२८-७८(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आ घट मे परमातमा चिन मूरत), ९३६५८-५ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (आतम सभाव तुं), ८९३३८-२(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (ए मन तेरा कोन सुभाव), ९३५८१-४८(+#) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (क्या सोवत हे व्रजनार), ९२१२८-१४३(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मन मगन भए सुभ ध्यान), ९३५८१-५०(+#) आध्यात्मिक पद-कृषिफलगर्भित, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (मनवंछितफल खेती रे), ९३५८१-३५(+#) आध्यात्मिक पद-जकडी, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (राशि शशि तारा कला), ९२३९९-३३(+) आध्यात्मिक पद-पुण्यपाप, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुन्यरु पाप पिछान रे), ९३५८१-१६(+#) आध्यात्मिक पद-वैराग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालूडी अवला जोर की), ९२३९९-६७(+) आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मपू., (अरिहंत राजा मोहराय), ९२१२८-९७(+) आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जतन करीने जीवडाजी मन हाथी), ९३२४५-४० आध्यात्मिक सज्झाय-आत्महित, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सूण वहिनि पीउडो परदेशि आज), ९३२४१-९३, ९३२४५-१८ आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (तू मेरा पीवु साजना), ८९३४१-१(#) आध्यात्मिक सज्झाय-वणजारा, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वणजारा रे तुं तो नगर भम्य), ९३२४१-३१ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वरसे कांबल भींजे), ८९४८०(2) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली कहतां इंद्री), ८९४८०(१) । आध्यात्मिक होरी, क. बनारसीदास, पुहिं., गा.७, पद्य, दि., (धाम मची जिन द्वार), ८९८११-२ For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक होरी, मु. भूधर, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (घर आये चिदानंद कंत), ९२१२८-११५(+) आध्यात्मिक होरी, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुध ग्यानीजी फागुणमे), ९३६६७-१८ आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (खेलौगी चेतन होरी आए), ८९८६६-१९ आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (नगर मे होरी हो रही), ८९८६६-१८ आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (पीया विन केसे खेलु), ८९८६६-२० आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भली भइ यह होरी आइ आए), ८९८६६-२१ आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (होरी आई आजि रंग भरी), ८९८६६-२२ आध्यात्मिक होली-भावहोलीरमण, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (होरिया संजमादि खेलाउ), ९२३७९-४९(+) आनंदघन स्तुतिरूप अष्टपदी, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (मारग चलत चलत गात), ९२१२८-५९(+) आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), ९४५७१(+#), ९४६०३(+#s) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ९४३६६-१७(+) आराधना, मु. हंस, मा.गु., गा. ९६, पद्य, मूपू., (पहिलउ नमस्कार अरिहंत), ८९६४९ आराधना पाठ, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १६, पद्य, दि., (मैं देव नित अरहंत), ८९८६६-१२ आरामनंदन कथा, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, मपू., (परमजगतगुरु प्रणमीयई सोहग), ९३९९६(+#$) आर्द्रकुमार पंचढालियो, रा., ढा. ५, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (प्रणमु प्रभाते उठने), ९३२६१-३(+) आलोयणाशतक, मा.गु., गा. १००, पद्य, श्वे., (--), ९३३००(+#$) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), ९२४८९(+) आषाढाभूतिमुनि प्रबंध-मायापिंडग्रहणे, मु. साधुकीर्ति, पुहि., गा. १९०, वि. १६२४, पद्य, मूपू., (सुखनिधान जिनवर मनि), ९४५०९(+#) इंद्रियवादी चौपाई, मा.गु., ढा. १८, गा. ७३७, पद्य, श्वे., (केई भारीकर्मा जीवडा ते कर), ९२४७१ इक्षुकार कमलावती सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पुर इखुकारइ नृपइखुकार ए), ८९६४५-२ इक्षकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), ९३३८६(+) इरियावही मिच्छामिदक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), ९३२४५-४१ इरियावही मिथ्यादष्कृत विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (प्रथम देवनाभेद १९८), ९०८१५-२(+) इलाचीकुमार चौढालीया, मु. भूपति, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रथम गणधर गुणनीलो), ८९५२९ इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ९४५२९ (+$) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ९३२४५-४, ९२७९५-५(#) ईश्वरनिर्णयपच्चीसी, जै.क. भैया, पुहि., गा. २५, पद्य, दि., (परमेश्वर जो परम गुरु परम), ९२५३२-९(+#$) उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., ढा. ५१, ग्रं. १६३६, वि. १७३१, पद्य, मप., (सरसति सामण पय नमी), ९४५४६(+$) उत्तमकुमार चौपाई, मु. महीचंद्र, मा.गु., गा. ४५१, वि. १५९१, पद्य, मपू., (--), ९४६०१(+#$) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ९२७७६ । उपदेश रहस्य, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे., (सिद्धचक्रपद वंदोरे), ८९६०७(+) उपादान निमित्त दोहा, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, दि., (गुरु उपदेश निमित्त ब), ९३१५५-४६(+) उपादान निमित्त संवाद दोहा, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., दोहा. ४७, वि. १७५०, पद्य, दि., (पाद प्रणमि जिनदेव के), ९२५३२-७(+#) उपाध्यायपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुयने हुयने हुयने), ८९७६७-३(4) मा.ग., गा. ३६, प, सिद्धचक्रपद वदार पदेश निमित्त ब), ९२ जनदेव के), For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५४९ ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्या संक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, मप., (सलौधर्म देवलोके जिन), ९३३७९-१२(+) ऋतुवंती असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्त्री के जब स्त्रीधर्म), ९३१८६-१(+) ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पं. लालचंद्र, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदत्त ब्राह्मण कुलिजी), ८९४३६-२ ऋषभाननजिन भाष, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (महिर करउ मुझ उपरइ), ८९३२५-३(+) ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिमरतां), ९३२२९(2) ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मपू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ८९७४२ एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ९३२४१-९९, ९३२४५-२९, ९२००७-९(#), ९३२४५-३५(5) एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्पू., (श्रीनेमिजिणेसर), ९४३०२-४९(+#) ऐतिहासिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (नेत्रकजलि रात्रिचंद्रमंडल), ८९७९२($) औपदेशिक कवित्त, क. गंग, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ग्यान वधे नर पंडत संगत), ८९४३५-१ औपदेशिक कवित्त, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (रावण राज करे त्रिह), ८९४५७-२ औपदेशिक कवित्त-दाता के लक्षण, पुहि., पद्य, श्वे., (दस लक्षण दातार प्रथम कहे), ९३७६८-१(+$) औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, मप., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), ९२५६४-१७(5) औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३१, वि. १७वी, पद्य, दि., (मेरा मन का प्यारा), ९३१५५-२०(+) औपदेशिक गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (माइ मेरी या रसना रस), ९२१२८-७६(+) औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (हाथी होय तो पकड), ९३६६७-९ औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.ग., गा. १६, पद्य, मप., (दलहे नरभव भमता दलभ), ८९६८९-२(+#) औपदेशिक गीत-तमाकू, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (समकित लक्ष्मी पामी), ८९३३३-१(+) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ९४३६६-३(+$) औपदेशिक दहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, इतर, (सोरठ गढथी उतरी कंस), ८९४९६-४(#) औपदेशिक दहा-गुरुगुण, मु. कुशलमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (मांगी मुगत मिलै नहीं), ८९६३५-२(+) औपदेशिक दहा संग्रह, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे मन पंखी समझ चुग), ८९३५६-५ औपदेशिक दहा संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगे भुख ज्वर के गये), ९३७३७-२(#) औपदेशिक दोहा, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. १, पद्य, मप., (दया धर्म चित राखीये), ९३३३२-४२ औपदेशिक दोहा-मान परिहार, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (मान मत कर रे मानवी माने), ९२००७-१४(2) औपदेशिकपच्चीसी, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (धेठा जीव सैसार मे फीर फीर), ९४४८१-४१(२) औपदेशिक पद, मु. अखयराज, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (रहे कि वालिम आइ रहै), ८९४०३-४ औपदेशिक पद, श्राव. अगर, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरी उमर विहांनी जाय), ९३५८१-६३(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (अवसर बेर बेर नही), ९३५८१-५७(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ए जिनके पइया लाग रे), ९३५८१-५६(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जग आशा जंजीर की गति), ९२३९९-१६(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मायडी मुने निरपख), ९२३९९-७२(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (वाणांना रे वहुजी), ९२१२८-५(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (वारो रे कोई पर घर भम), ९२३९९-५०(+) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (जल विच कमल कमल विच), ९३५८१-६५(+#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., इतर, (लपट की झपटमै दोड भाग),८९५४४-३(-) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (संतो दोइ जगदीस कहातै), ८९४१२-५ औपदेशिक पद, कमंच, पुहिं., गा. २, पद्य, इतर, (गाडर गलैगयंद सिंघ परस्याल), ९४०३९-११(#) औपदेशिक पद, पं. केशवदास, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (सुवैन गंत वजावत अंग विना), ९४०३९-१३(+#) For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५० www.kobatirth.org 3 देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ , औपदेशिक पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद. ३, पद्य, म्पू, (सडुस्ने पकरी बाह), ९३५८१-५८(+) औपदेशिक पद, चेतन, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे (ए मन समझत नाही गमार), ९३५८१-४९(+) औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रात भयो सुमर देव), ९३५८१-११(+#) औपदेशिक पद, मु. जयराम, पुहिं. गा. ४, पद्य, . ( असरण सरण चरण कमल), ९२१२८-१२७(+) औपदेशिक पद, मु. जिनपद्य, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू (चेतन जिनध्यान धरम नमे सबल), ९३३३५-८(*) औपदेशिक पद, मु. जिनपद्म, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मान तज आत्म दिल हंदी), ९३३३५-७(+) औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, पुडिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (सब स्वारथ के मित्र), ९३५८१-७५ (+) " " , . " औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहा रे अग्यानी जीव), ९२३८६-१५ (+), ९३५८१-८०(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अनुभव अपनी चाल चलीजै), ९३३३२-२६ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभौ ग्यान्न नयन), ९३३३२-२० औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभौ हम तौरा उरै खो), ९३३३२-१९ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ओधू सुमति सुहागन), ९३३३२-३५ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (औधू कैसी कुटंब सगाई), ९३३३२-३३ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि, गा ३, पद्य, म्पू. (दरवाजा छोटा रे नीक), ९३३३२-४ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु गा. ३, पद्य, भूपू (प्रीतम पतियां कौन्न), ९३३३२-७ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीतम पतियां क्यौं), ९३३३२-१८ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा ३, पद्य, म्पू. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. १४, पद्य, मूपू., (साधो भाई निहचै खेल), ९३३३२-३८ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं, गा. २, पद्य, मूपू., (साथी भाइ आतम भाव), ९३३३२-४१ औपदेशिक पद, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (अब मै जान्यो मै आतम), ८९८६६-३२ औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराव, पुहि गा. ४, पद्य, म्पू, (काया मांजत कौन गुना), ८९५४४-१८) (रे जगत का मेला रे), ९३५८१-३७(+) (साधो भाइ जब हम भए), ९३३३२-३७ (साधो भाई ऐसा योग), ९३३३२-३२ (साधो भाई जग करता कहि), ९३३३२-३६ "" औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिननाम सुमर मनवा वरे), ९३५८१-१५ (+#) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (तेरी भगति बिना धृग), ८९८६६-२७ औपदेशिक पद, जै. क. चानतराव, पुहिं. गा. १३, पद्य, दि., (--), ८९८६६-१(३) " औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., ( आयो रे जीव पाहुणरो दिन), ९३३३२-५४ औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (ऐसी वेर बहूर नही आवे गया), ९३३३२-५९ औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं., गा. ६, पद्य, वे., (जिया तें जिनपद मन नहि धरा), ९३३३२-५२ " (धन का सुख ते लेण न पाया), ९३३३२-६० (परदेशीसु प्रीत न जोर रे), ९३३३२-६२ " " औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं. गा. ५, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मनवा अवसर चलो बजाई लाई ते), ९३३३२-५६ औपदेशिक पद, मु. नग, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे, वामें क्या मेरा क्या तेरा), ९३३३२-५७ " औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पुद्गल क्या विसवासा), ८९३९०-२ औपदेशिक पद, मु. नवल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (मेरे नही आवना नही), ९२१२८-८(+) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लग जा हो जीव जिनचरणा), ९३५८१-३८(+#) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (इस नगरी में किस विध), ९२३८६-१४(+) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास पुहिं, गा. ८. वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), ९३२२१-४ औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (मूलन बेटा जायो रे), ९२३८६-१३(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), ८९७३२-६(+) औपदेशिक पद, रघुदास, रा., गा. ३, पद्य, वै., (तेज रे मन गाव गीवान), ८९५०८-३(१) औपदेशिक पद, मु. राम, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (कब हुं संग कामनी केल करै), ९४०३९-१२(2) औपदेशिक पद, मु. रामकृष्ण, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिन नाम कुं समर लै भला), ९३५८१-३६(2) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (सफल जन्म ज्ञानी को), ९२१२८-११९(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., गा. ३, पद्य, मपू., (समझ नर जीवन थोरो थोर), ९२१२८-२४(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जानां), ९२१२८-७९(+), ९२१२८-१३३(+) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चेला चेला पदं पदं), ८९७६३-५(+) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जागि भाई तूं जागि), ८९७६३-१(+) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (जीव तुं विमासि कबु), ८९७६३-४(+) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मप., (सोवे सोवे सारी रेन), ९२१२८-३३(+) औपदेशिक पद, मु. सुमति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (आतम ओलं भातो), ८९४१२-१० औपदेशिक पद, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आद निगोदा काल अनंतो), ८९५५३-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अब रुदन केसे करूं), ८९८०८-३(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (एक आण राण की पंचास), ८९५०५-३ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (कवि जिणणी रे दुखहरणी), ८९३४८-१(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागि जागि रेन गइ भोर), ९२१२८-७७(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा.८, पद्य, भूपू., (जिण मन जीता तिण सब), ८९४१२-११ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरे घट में हे फुलवा), ९३५८१-४१(+#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (पांडे पांडे हे सखी), ८९६८७-३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १०, पद्य, मप., (प्राचरका चोर पथर), ८९८२३-३ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (मन वीण मलवो ज्यु), ९४०३९-१४(+#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, पू., (रणवयरी द्वार पाहुणो), ८९४२१-३(#) औपदेशिक पद , पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), ९३५८१-३९(+#) औपदेशिक पद-४ वर्ण, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (जो निहचे मारग गहे), ९३१५५-३५(+) औपदेशिक पद-कपट परिहार, क. बनारसीदास, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, दि., (हां रे मन वणीया वाहि), ९२३८६-१६(+) औपदेशिक पद-कर्मगति, पुहिं., पद्य, श्वे., (साहिब खेलत है चोगान), ९२३८६-३(+$) औपदेशिक पद-कर्मोदय, मु. जगतराम, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (पिया की तो एह वात हहेली), ९२३८६-८(+) औपदेशिक पद-काया, मु. नग, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (औधु कैसा तनका वीसासा जाका), ९३३३२-६७ औपदेशिक पद-चंचलमन, मु. जगतराम, रा., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (गुरुजी म्हारो मनडो), ९२३८६-१२(+) औपदेशिक पद-जिनभक्ति, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.५, पद्य, दि., (कर मन वीतरागको ध्यान कर), ८९८६६-३४ औपदेशिक पद-जीवदया, मु. नवल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऐसे दिन कब आवैगे), ९२३८६-२(+) औपदेशिक पद-जीवदया, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोमां गुण तो तल नही तुम), ९३७६८-४(+) औपदेशिक पद-जीवोपरि, मु. नग, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (कायानगर का मस्त योगी), ९३३३२-४६ औपदेशिक पद-दिगंबर साधु, पुहिं., पद्य, दि., (सुर मल्हार कव मिलहें), ९२३८६-१८(+$) औपदेशिक पद-धर्मकर्म, मु. माल मुनि, रा., दोहा. ४, पद्य, दि., (अब करजै जैनधर्म), ९२३८६-१७(+) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ९१७७८-८, ९३२४१-३६ औपदेशिक पद-निद्रा परिहार, मु. भूधर, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (नींद किये पीछे रह), ९२३८६-१(+$) औपदेशिक पद-परनारी, पुहिं., गा. ६, पद्य, जै., वै.?, (सुण चतुर सुजान परनार), ९३५८१-७०(+#) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (पारकी होड मत कर रे), ९३२४५-७ For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-बुढ़ापा, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (आयो रे बुढापो वेरी), ९३५८१-२५(+#), ८९५४०-४(८) औपदेशिक पद-मनुष्यजन्म, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (ए नर काहे खोए जनम तमाम), ९३५८१-४७(+#) औपदेशिक पद-मृगतृष्णा, पुहि., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (महबूब तोकुं तुझमें), ९२३८६-१०(+) औपदेशिक पद-रागदोष परिहार, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, दि., (कर रे कर रे कर रे), ९२३८६-११(+) औपदेशिक पद-विश्वास, मु. भूधर, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (--), ९२३८६-४(+$) औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, मु. भूधर, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (जय जयवंती आयो बुढापो वैरी), ९२३८६-९(+) औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. भूधर, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (कहाँ तूं भूलो रे मन), ९२३८६-७(+) औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (औधू ए जगका आकारा), ९३३३२-३ औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (औधू हम विन जग कछु), ९३३३२-५ औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (कहा भरोसा तन का औधू), ९३३३२-२ औपदेशिक पद-शीलगुण, मु. भूधर, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (उस मारग मत जाय रे नर), ९२३८६-५(+) औपदेशिक पद-शीलगुण, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे मन थारे हे काई), ८९६८२-३($) औपदेशिक बारमासो, मा.गु., पद्य, श्वे., (चले परदेश कामन विछुडी), ९३८८१-२(#$) औपदेशिक बारमासो, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (चैत कहे चितमांहि), ९३६६७-१६($) औपदेशिक-भांगवारक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १९, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (भोला भोगीयडा रखे थाओ), ८९४७६(#) औपदेशिक भास, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (सांजी चतुर सुजाण), ८९४३६-८ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (चल चेतन अब उठकर अपने), ९३५८१-४३(+#), ९००८६-२(#) औपदेशिक विविध विषयदृष्टांत पद कवित्त सवैया संग्रह, पुहिं., पद. ८१, पद्य, दि., (--), ९२५३२-१(+#$) औपदेशिक सज्झाय, अमरचंद्र, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (क्या करि जुठि माया), ९३२४१-३३ औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, स्था., (संसार री माया काची नै वीर), ९४४८१-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (एकीका जीव नरभव पाय आलै), ९४४८१-४३(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (ए संसार असार जी हो तन धन), ९४४८१-८८(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (ए संसार कहो रे असार धर्म), ९४४८१-२८(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (जीव च्यारूगत मै भम आयौ), ९४४८१-८०(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (तेहीज भारी कहमा जीव जगत), ९४४८१-३४(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (दुषम आरैजी पांचमै पाम्यो), ९४४८१-५३(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८५१, पद्य, श्वे., (नरभव पाय लही बहु लीजै), ९४४८१-२४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (निठ मानवरी तक पाई देख), ९४४८१-५४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. ११, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (नित प्रभातै दर्शण कीजै), ९४४८१-३३(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. २०, वि. १८५६, पद्य, श्वे., (नीलो तरवर पांनडो हो), ८९३८२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (पाप करीने प्राणीयो रे उपज), ९४४८१-२५(4) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (संग न कीजे रे भीखरा मीनख), ९४४८१-१८(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., गा. १७, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (सतगुरचरण नमी करी रै सूत्र), ९४४८१-८२(2) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर जिनवचने रे अमृत), ९३२४१-९७ औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पांडुर पान थके परिपा), ८९५५१-१(#) औपदेशिक सज्झाय, कबीर, पुहि., गा.८, पद्य, वै., इतर, (चेत चतुर नर कहे थनै), ९२०९३-१०(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (वली वली नरभव दोहिलो), ८९३६५-३(+$) औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, पुहिं., गा. १४, पद्य, मूपू., (पभणे प्रीतम कुं), ९३२४१-२१ औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ६, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (सतगुरु भाखे इमरत वाण), ९२०९३-६(#) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ औपदेशिक सज्झाय, आ. जिनेंद्रसूरि, पुहि., गा. ११, पद्य, मप., (श्रीगरुचरणे पाय नमो), ८९४४२-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ३७, पद्य, स्था., (रतन चिंतामणि नर भव), ८९६८९-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. ३७, पद्य, स्था., (सदगुर आगम सीखथी दे),८९३५७ औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (वएठे वजरदंत वपाल), ८९८६६-८ औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (दगा कोइ कीन से नहीं), ९३६६७-१७(5) औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ९३२४१-३७ औपदेशिक सज्झाय, मु. नगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (मेरी मेरी सब दीन करते मोह), ९३३३२-५८ औपदेशिक सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चेतन समजो राज मन), ९३२४१-७८ औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (मारग वहे रे उतावलो उडे), ८९६४६, ८९६७९-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर), ८९४८९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., गा. १८, पद्य, इतर, मु., (भूलो मन भमरा कांइ), ८९५७९-२(+), ८९६६५-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९४१६३(+$) औपदेशिक सज्झाय, मु. मोतिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीद्धस्वरूपी आतमा), ९२६०१-१०(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चतुर नर सामाइक नय), ९३२४५-३२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिदानंद अविनाशि हो), ९२१२८-८४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रीतम तणो मुज ऊपरि), ८९५५४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मपू., (परउपगारी पातलो चारु), ८९४३६-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. लाल, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (में हाजर नोकर तेरा प्रभु), ९२०९३-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., गा. २७, पद्य, भूपू., (भजि भजि भगवंत भविक), ९३२४१-१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीव कहे सुणी जीवड), ९३३८४-१० औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, म्पू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ९३२४१-४२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (तो सुख जो आवें संतोस), ९३३८४-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ९३३८४-१६ औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रात दिवस काया मूढ), ९३२४१-२२ औपदेशिक सज्झाय, मु. शीलरतन, पुहि., गा. २५, पद्य, भूपू., (अतीत काल जिनवर हुवा), ९३६६६-३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ८९८१९-२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हे रे), ८९७६३-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (धोबीडा तुं धोजे मनन), ९३२४१-५२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (धन्य जनमत जाणी रे), ९३३२३-७(+#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ८, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (इम सतगरू जीवन समजावा धर्म), ८९६८९-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कुंण थति कुंणी न चाल),८९८१२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन मान ले साढीया), ८९४९७-३() औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, मप., (जीवरला रे नेणां रे), ८९७९५-१(+-) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (तुम तजो पराई नार हाथ), ९२०९३-१(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. २०, पद्य, मप., (दर्लभ लाधो मनुष्य), ८९४९६-१(#$) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूप., (प्रीतम लोग मित्र सुत), ८९४४२-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (भुखा घरनी जाइ भुडी), ८९७९५-२(+-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (लख चोरासी तुं भम्यो), ८९७३२-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (लख चोरासी माहें भमता), ९२०९३-१२(2) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (विमल चित्त कर मित्त), ९२६४०-२(+$) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, म्पू., (श्रीगुरु आगम साख्यथी), ८९४४२-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (साचो धरम पायो नही), ८९५१९-५(+-$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (हं आवि तुने तेडवा), ९२१२८-३२(+) औपदेशिक सज्झाय-अकबर बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (या दुनिया फना फरमाए), ९३२४१-१९ औपदेशिक सज्झाय-अथिर संसार, मु. नग, पुहि., गा.७, पद्य, मप., (शब दीन बोल ही गयो रे), ९३३३२-६६ औपदेशिक सज्झाय-अनुकंपा, मा.गु., पद्य, श्वे., (वांसै मरणो जीवणौ ते धरम), ९१५८१-५(+) औपदेशिक सज्झाय-अमीझरापार्श्व, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हारे तमे जोजो रे भाइ अजब), ९३२४१-९८ औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, मु. नग, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (इन जगमें को नहीं अपना रे), ९३३३२-६४ औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, मु. नगविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (थोरे दिन वावतत क्या मरणा), ९३३३२-६१ औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (ग्यानत्रयी आराधवी आतमजी), ९३६५८-४ औपदेशिक सज्झाय-आध्यात्मिक, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भूलो मन भमरा तुं कांइ), ९३२४१-२९ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ९३६६७-१५ औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, मु. प्रीतिविमल, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (यारो कूडो कलियुग), ९३२४१-१६ औपदेशिक सज्झाय-कलीजुग, मु. प्रीतम, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (बेहारो कुडो कलजूग आयो बाप), ९४३६६-२१(+) औपदेशिक सज्झाय-काया, कबीर, पुहिं., गा. ६, पद्य, वै., इतर, (इण तो काया मे प्रभु), ९२०९३-११(#) औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था., (काया हो कामण जीवजी), ८९५४१(+) औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीवैकुंठपुरी), ९३७६८-३(+) औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामनी कहे निज कंतने), ९३२४१-९० औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, पं. लालचंद्र, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कामिणि कामिणि कोश्या), ८९४३६-४ औपदेशिक सज्झाय-कायाराणी, आ. कीर्तिसूरि, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया राणी के तहत सया), ८९४७५-४ औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (भुलो मनभमरा काई भम्य), ९३२०७-३ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ९३३८४-१५ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरी, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (झुठी झुठी रे काया पतंगी), ९३३३२-६३ ।। औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, मु. धनमुनि, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (हां रे मत परणो कोई), ९२३७९-४७(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हा रे लाला क्रोध न), ९३२४१-६२ औपदेशिक सज्झाय-क्षमाधर्म, पुहि., गा. ९, पद्य, मपू., (खिमीया धर्म पहिलो), ९२०९३-८(2) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ९३६८४-१(#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ९३२४५-२२ औपदेशिक सज्झाय-चिंता, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (चिंता न कीजै रै सूग्यांनी), ९४४८१-८४(#) औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, रा., गा. ८, पद्य, मपू., (अरे माहरा प्राणीया), ९३५८१-३४(+#) औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणी, मु. नग, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (जीनवाणी मन आणी तिनही), ९३३३२-५० औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (उण मीत परदेशी विना), ८९५५४-१ औपदेशिक सज्झाय-जोबन अस्थिर, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जोबनीयानी मोजो फोजो), ९२१२८-१४०(+) औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), ८९६५२-१(+), ८९३६२-२(2), ८९७६८-१(#$) औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (प्रीतम सेती वीनवे), ९३२४१-८८ औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, मु. नग, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अरे ईन तिशना रे मोसु), ९३३३२-४४ For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ औपदेशिक सज्झाय-दयादृष्टांत, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (दयाधर्म सगला सीरे देखो), ९४४८१-७८(#) औपदेशिक सज्झाय-दयामहिमा, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (ए तो साठ नाम दया तणा), ९४४८१-७७(#) औपदेशिक सज्झाय-देसडालो, मु. सीतम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मैया सब जूग दीठो रे), ८९४७५-३ औपदेशिक सज्झाय-धर्म, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., (सुणो चेतन जी ए संसार), ९४४८१-८(#) औपदेशिक सज्झाय-धर्म, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (काल अनादि भमै अजीवरा कु), ९४४८१-४६(2) औपदेशिक सज्झाय-धर्म, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८४८, पद्य, श्वे., (जीव सोदासून घणा कीधा), ९४४८१-२३(#) औपदेशिक सज्झाय-धर्मदाता गुरु, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (में तेरे चरण लागु गुरु), ९३३३२-६५ औपदेशिक सज्झाय-नारी, मु. जयराम, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रीव्रजनाथ कहे सूण), ८९३८०(2) औपदेशिक सज्झाय-नारी, मु. वीर, मा.गु., गा. २९, पद्य, मप., (मांस दिखाडी सीहनइ), ८९४४९ औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ८९६९७(+) औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ९३२४१-५४, ९३२४५-५ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ८९७४४-१, ९३३८४-१२ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ९३२४१-४९, ९३२४५-१३ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.ग., गा. १०, पद्य, मप., (सुण सुण कंता रे सिख), ९२७९६-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सीख सुणो रे पीया), ९३२४१-३५ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. दयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवा वारुं छु मोरा), ९२७९५-१(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ९३२४१-२० औपदेशिक सज्झाय-परोपकार, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (अरिहंतादीक साध थया ज कै), ९४४८१-८३(#) औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, क. मान, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूप., (सुगण बुढापो आवीयो), ८९३३० औपदेशिक सज्झाय-भव्योपदेश, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., गा. ९, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (तेज तुरंग पर चढे), ८९७४१-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-मन, मु. दुर्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मुखसुंजी मीठा बोलजो), ८९४७५-१ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्य जन्म, मा.गु., पद्य, मूपू., (जीवा मनुख जन्म), ९२८९०(+$) औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मान न कीजे मानवी रे), ९३२४१-६३ औपदेशिक सज्झाय-मानव भव, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४७, पद्य, स्था., (मानव भव री तक पाई तौरखै), ९४४८१-१(#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (माया निवारो मन थकि), ९३२४१-६४ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, इतर, मु., (भूलो ज्ञान भमरा कांई), ८९७०७-२(+), ९३२४५-९ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (माया कारमि रे माया म), ९३२४१-३४ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (लोभ न करीये प्राणीया), ९३२४१-६५, ८९४९६-२(#) औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मु. जीवणदास, मा.ग., गा. १०, पद्य, मप., (प्राणी वीणजारा वीणज), ९३२४५-१५ औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारण, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मन आणी जिनवाणी जिनवा), ८९७३४ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., गा. १२, वि. १८५६, पद्य, श्वे., (तप वडो से वैरागी हो वनो), ९४४८१-३९(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ८९६९४(+$) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रणमी सरसती सामिनी), ९३३२३-६(+#) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अहो लाला जोग तीन्हु), ९२३७९-५०(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यप्रद, मु. रत्नतिलक, मा.ग., गा.८, पद्य, मप., (काया रे वाडी कारमी), ९३६८४-४(2) औपदेशिक सज्झाय-व्यसनवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (जिनवाणी मन धरी), ८९३६२-१(#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (एतो नारि रे बारि छे), ८९७०२-२(#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ९२७९६-१(+#), ८९६३६, ८९६५० औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मु. धन्यविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुदेव सद्गुरु धर्म प), ९२३७९-४६(+) औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (बैठे साधु साध्वी), ८९७५८(#) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, ., (ओरन से रंग न्यारा), ९२१२८-१०५(+) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९४४८१-१९(2), ९४४८१-३१(2) औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वीर जिणेसर गौतमने), ८९६८२-२ औपदेशिक सज्झाय-संसार, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (संसार समइ अतिय डरावणो), ९४४८१-४९() औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, क. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अथिर संसारै रे जीवडा), ९३२४१-१०० औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (केहनां सगपण केहनी), ९३२४१-७७ औपदेशिक सज्झाय-सत्याचार, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (काकर कनक समी मति धरइ), ८९४२१-२(#) औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. नथमल, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (सुणो नरनारी वाता मत), ८९६१६-१(+),८९४३२ औपदेशिक सज्झाय-सागर शेठ, पुहि., गा. ८, पद्य, मूप., (सागरशेठ धन रो लोभ), ९२०९३-४(#) औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, रा., गा.११, पद्य, श्वे., (चोरासी लख जोनमे रे), ८९५१७-३(-) औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, रा., गा. २६, पद्य, मपू., (दुखीय देखी तावडै तिणने), ९१५८१-४(+) औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार दोष, मु. धनमुनि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (भगवती शतक प्रथम), ९२३७९-४५(+) औपदेशिक सज्झाय-सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुखदुख सरज्या पामिइ), ९३२४१-६६ औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सुगुण सनेही हो सांभल), ९३२४१-१५ औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (नगर रतनपुर जाणीइं), ८९७४५-२ औपदेशिक सवैया, मु. गंग कवि, पुहिं., सवै. २, पद्य, जै., वै.?, (प्यारी अलबेली चालि), ८९४६२-३(-) औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा.७, पद्य, जै., वै.?, (बहू दीन्न आस्यामांहि), ८९४६२-१(-) औपदेशिक सवैया-उपमा, छोगजी आसीवाल, पुहिं., सवै. १, पद्य, मप., (स्वेतगुणसार सविता जलधार), ९३६५४-२(+) औपदेशिक सवैया-गण अवगण की पहचान, पहिं., सवै. १०, पद्य, श्वे., (गाम विनास्यो गदरो नगर), ९३७६८-२(+) औपदेशिक सुभाषित संग्रह, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (सुगजा दूनीयां अजब), ८९८१८-२(+#) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ९४३३८-६(+#) औपदेशिक होली, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (बंके मुरज्याने धुम), ९२१२८-१४४(+) औपदेशिक होली पद, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, स्था., (लोक मै होली वाजै रे तिमार), ९४४८१-६(2) औपदेशिक होली सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (मास फागण आयो जाणी मत), ९४४८१-६५(२) औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लंग टा१ जाईफल टा२), ९१८०२-२(+), ९३४६८-२(+) कक्काबत्रीसी, पुहिं., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), ८९६१९(2) कडुआमतीगच्छ पट्टावली संग्रह, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., वि. १६८५, गद्य, मपू., (नाडलाई गाममां नागर), ९१९१० कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ९२७०५ (#s) कपुरसौभाग्य गणि पहेरामणि सूची, मा.गु., वि. १९१२, गद्य, मूपू., (ऋषभविजय वासु सत्कार दर्शन), ९२५८७ कमलविजय गुरुस्तुति-हरिशब्दपर्यायगर्भित, मु. उदयविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (प्रवर नगरायेत नियत), ९३९५०-२(+) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ कववन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., डा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक ), ९३३५५(३), ९३५२२(+०३), ९४३३० (+), ९४४७९ (+), ९१४०५ ९२५३१, ९३५२८, ९२७०२(२३) कयवन्ना चौपाई-दानविषये, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., गा. ३९२, वि. १५६३, पद्य, मूपू., (सरसवचन आपय सदा सरसति), ९४३९५ (+२३) करकंडुमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (वृक्ष देखी बहु फल्यो रे), ९४४२३-७ करभाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (रूप महारमणी कवच कुण), ९४५०३-८(#) कर्त्ता अकर्त्तापच्चीसी, जे.क. भैया, पुहिं. गा. २५, वि. १७५१, पद्य, वि., (कर्मन को कर्ता नहीं), ९२५३२-१० (+#) कर्मगति सज्झाय, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हे माय वांकडी करमगति जाय), ९२३८६-६(+) कर्मग्रंथ -२ कर्मबंध- उदय उदीरणा-सत्तायंत्र, मा.गु., को., थे. (-), ८९५०३ कर्मचेतन संग्रामभाव रास, क. नर, मा.गु., डा. १६, पद्य, श्वे. (अनंत चोवीसी हुई गई ), ९३५९७ कर्मछत्तीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (परमनिरंजन परमगुरु), ९३१५५-११(+) कर्मछत्तीसी, पुहिं. गा. ३७, पद्य, ., (परम निरंजन परमगुरु), ९३७७८-११*) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ८९४८३(+#) कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपु (देव दानव तिर्थंकर). ८९५०२-२(ड) " " कर्मप्रकृति विधान, श्राव. बनारसीदास, पुहिं. गा. १७५ वि. १७००, पद्य, दि., (परमशंकर परमभगवान परम), ९३१५५-७(*) कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धर्म के विलासवास), ९२१२८-१०३(+) कर्मलेखाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू. (अधिक तेज आदीत सखगि लहुइ), ९४५०३-३ () कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू.. (देवदाणव तीर्थंकर), ९३२४५-११, ९३६८४-६(७) कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ८४, पद्य, मूपु. ( भरतक्षेत्रइ रे नयरी) ८९५१८(5) " कलियुग गीत, रघुनाथ, पुहिं. गा. ४, पद्य, जे. इतर ? ( आज कलूपूर आयी पापी लोक), ९४०३९-२(+) " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवित्त संग्रह, क. पिंगल, पुहिं. पद. २, पद्य, जे. इतर ? (पींगल कहे थरहरत काहा), ८९७३७-१(*) " कवित्त संग्रह, श्राव. मनरामजी, पुहिं. गा. ९७, पद्य, वे. ( करमादिक अरनिकी हरे), ९०९७४ " कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ९३४२० (+) कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इंद्रिय काय), ९३४११(+) कार्तिकश्रेष्ठि कथा, मा.गु., गद्य, श्वे. (हत्थिणारनामा नगर), ८९७४० " कालिकाचार्य कथा, आ. रामचंद्रसूरि, मा.गु., वि. १६वी, प+ग., मूपू., (उत्पत्तिविगमध्रौव्यत्रिपद), ९२९९४(+#$) कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां पूर्वइ स्थविरावली), ९२३३३(+), ९३३७०(+) कुंथुजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कठीन भगत की प्रीत), ९२१२८-३१(+) कुंथुजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपु., (सुभगति नाचत है सुरना), ९३५८१-३(+४) कुंथुपार्श्वजिन स्तवन, मु. साधुकीर्त्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मूलनायक रे विपुल), ८९५९१(+) कुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी हियडे), ९३२४५-२५ कुगुरुपच्चीसी, मु, तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मृपू. (जिनवर प्रणमी सदा), ९१३२३-२(+४) कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तजुं तनुं में उन), ९३२४५-२८ कुगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, खे, (निज आचारने छंडी), ९२३७९-४४(१) " कुमतिनिवार सज्झाय, मु. कुसल, पुहिं. मा. गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (सिद्धखेत भगवंत अनंत), ८९७०५-३(+) कृपणसंवाद कवित्त, मु, लच्छ ऋषि, पुर्हि, गा. ३, पद्य, श्वे. (कृपणि कृपणिने पूछियौ), ९४५६८-१(क) " " कृष्णभक्ति पद, तानसेन, पुहि., गा. २, पद्य, वै., (अब मे जाणे हो रसम से), ९२१२८-४१(०) कृष्णभक्ति पद, तानसेन, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (मोरली बजाइले सुगट), ९२१२८-४२(+) कृष्णभक्ति पद, तानसेन, पुहिं. गा. २, पद्य, वै., (मोहे भरण वे भरण दे), ९२१२८-४०(*) " कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (आवो रे घनस्याम मेरे), ९२१२८-१४(+) For Private and Personal Use Only ५५७ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा. गा. ४, पद्य, वै., (न करीए नेडो न करीए नीगणसु), ९२५६४-३ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (नाडि न जाणे वैद रे), ९२१२८-४७(*) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं. गा. ४, पद्य, वै., (नाडी ना हो जाणे वेदा), ९२१२८-७०(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं. पद. ६, पद्य, वै., (सिरदारी चाले तेरे), ८९७८०-२(+) कृष्णभक्ति पद, हिमो, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (कांइ ध्यान हरीना), ९२१२८-४६ (+) कृष्णभक्ति पद, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., ( कैसे भरन जाउ पनिया), ९२१२८-५१(+) कृष्णभक्ति पद पु.ि गा. ४, पद्य, वै., (देखो जमना मे बज रही), ९२९२८-४८(*) " " कृष्णभक्ति पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, वै., (नावरे से कहीयो मोरी), ९२१२८-४९(+) कृष्णभक्ति पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, वै. में दधि वेन जाति), ९२१२८-५३( " कृष्णभक्ति पद, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (रंगरेज चुनड मोरी रंग), ९२१२८-५२(+) कृष्णमहाराजा सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (कीसन नरेसर करी दलाली), ९४४८१-४५(#) कृष्णविरह पद पुहिं. गा. ३, पद्य, वै., (जब लालन की सुद्ध पाई), ९२१२८-५ol) . " कृष्ण सवैया, पृथ्वीराज, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., (धों धों कट धों धों कट), ९४४२५-१३(१) केवलज्ञानवैभव विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे. (केवलिअथना अनंता), ८९६८१-२ , केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्री अरिहंत), ९४५१५(#) केशीगौतम सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी नित नमू), ९४४८१-९२(#$) कोकशास्त्रसार, क. आनंद, पुहिं., खं. १२, गा. २२२, पद्य, वै., इतर, (ललित सुमन धन अलिपनि), ९३९०७-२(+$) क्रियाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (न क्युं वास वनखंडि न क्यु), ९४५०३-९(#) क्रोधमानमायालोभ परिहार सज्झाय, मु. विनयविवेक, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८९६७३(+$) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पंडित भावसागर, मा.गु., डा. ४, गा. ३२, पद्य, म्पू., (क्रोध न करीये भोला), ९३५८१-६८(+#5) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ८९७१६, ८९८१० क्षुल्लककुमार रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ३०३, प्र. ४२५, वि. १६३३, पद्य, म्पू. (सकल मंगल सकल मंगलकरण), ९२७८७-१(+#) क्षेत्रादि आरामान विचार, मा.गु., गद्य, मूपु. (१० देवकुरु उत्तरकुरुमे), ८९४०७-४(+) खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., डा. ४, गा. २४, पद्य, म्पू., (सावत्थी नगरी सोहामणी), ९४४७०-१(+) खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५३, वि. १८०५, पद्य, श्वे. (आदि सिद्ध नमोकार ), ८९८०३ " खरतरगच्छराज मजलस, पुहिं., पद्य, मूपू., (अहो आओ बेयार बेठो), ८९७२०-२(+) खामणा भास, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अति अतिशयी अरिहंत), ९२१२८-९६(+) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु, गा. १६, पद्य, म्पू, (प्रथम नमु अरिहंतने ), ८९५८७ खेमऋषि बलभद्र यशोभद्रादि रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ३, गा. ५१२, वि. १५८९, पद्य, मूपू., (भारति भगवति मनि धरी), ८९७५४-१(+#$) खेमऋषि सज्झाय, लिंबो, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (बाजरिओ बरटि बाकुला अभिग्र), ९३२४१-९४ गंगादि नदी परिवार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (गंगा नदीनओ परिवार सह), ८९५४८-४ " गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., डा. ६४, वि. १८५३, पद्य, मृपू., (श्रीजिन चोविसे नपुं), ९३११२ गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., डा. ३० गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमीसर जिनवरतणा चरण), , ९४३५२(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाब, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे. (बंदु गजसुखमाल मुनिसार अत), ९४४८१-९५ (३) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ८९४९२-१(+), ८९५१९-१(+), ८९७४८(*), ९३४६३-८ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु, गा. १७, पद्य, मूपू (बंदु गजसुकमाल महामुन), ८९७३९-४) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५५९ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी ऋद्धि), ९३६८७-२(5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ९२४२४-१(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एक द्वारकानगरी राजे), ८९४४०(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (द्वारिकानगरी अति भली), ८९३६३-१ गजसकमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ९३६६७-४ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (देवकीनंद शिरोमणि), ८९४२७ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (सोरठ देस द्वारकानगरी), ८९५३३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ८९५९०(+), ९३२४१-८३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मप., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ८९६७६(+#$) गजाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (गिरिवर माहि गयंद चालि), ९४५०३-७(#) गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.ग., को., मप., (इंद्रभृति मगधदेशे), ८९५४८-१ गणधरपट्टावली सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ७२, वि. १७१०, पद्य, मपू., (ब्रह्माणी वाणी दिओ), ८९३८१ गर्भवती स्त्री दोहला उत्पन्न विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जि वारइ माताइ गर्भ), ८९५४५(+) गिरनार तीर्थमाला स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १०३, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (सरसति मात मया करी दी), ९२७९७-१(+#) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मप., (शशिकरनिकर समुज्वल), ९२८८९-१(+) गुणरत्नाकर छंद, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मपू., (कोसलदेस अयोध्या सोहइ), ८९६९९(#$) गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ९४४११(+#5), ९४१८६(६) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, वि. १६७६, पद्य, मप., (प्रणमुं चउवीसे जिनरा), ९४५१२-२(+#) गुरुगुण गहुंली, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चाल सखी गुरु वांदवा), ९४४८१-५२(#) गुरुगुण गहुंली, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (या गरु जीव गरुया गणा विच), ८९५७८ गुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९३५८१-८९(+#) गुरुगुण जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., गा. १५, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (सतगुर हे सोदागर भारी), ८९६७७($) गुरुगुण पद, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (हुं बलिहारी मेरा गुरतणी), ९४४८१-२७(#) गुरुगुण भास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गणधर गुरुजीना गुण), ८९६२२-२ गुरुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (सतगुर इसडो निरखुरे जिउ), ९४४८१-७४(4) गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (बहुत निहाल कीया हो), ८९५२२-३(-2) गुरुगुण स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ३०, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (पुज्य रायचंदजी हो धर्म), ९४४८१-५८(#) गुरुगुण स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सुवनीत सैवो गुरवचन मै), ९४४८१-५१(2) गुरुविज्ञप्ति भास-तपागच्छ, सादा सेवक, मा.गु., पद्य, मूपू., (गोयमसम प्रतिरूप तेज), ८९६२२-१ गुर्वावली सज्झाय, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., गा. ९, वि. १७वी, पद्य, मप., (वीरजिणंदह पय प्रणमेव), ८९७२८-१ गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ९३५३४(+$) गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (१ अहाकमे १ उपवा० वरा), ८९५८३(+) गोरखनाथ वचनिका, गोरखनाथ, पुहि., गा. ७, पद्य, वै., (जो भग देखि भामिनी), ९३१५५-४३(+) गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ६१७, वि. १६४५, पद्य, मप., इतर, (सुखसंपतिदायक सकल), ९३३७८(१) गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९१७, वि. १६४७, पद्य, मप., (सुख संपत्ति दायक), ९३७०५-१(+) गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण), ९३२५३(+#), ९४२३९(#) गोशाला सज्झाय-कुगुरु, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (घणा लोका रे मनमे मानिया र), ९१५८१-३(+) गौतमगणधर सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (गौतम गणधर लब्ध कै पातर), ९४४८१-४०(#) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गौतमगणधर स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु, गा. १३. वि. १८३५, पद्य, श्वे. (गौतम गणधर वीरना तेहस चवदै), ९४४८१-५९(३) गौतम गणधर स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३२, पद्य, वे. (पावापुरी नगरी जाणी वसुभूत), ९४४८१-६७(१) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ९३९१८, ९२२८९($) गीतमपृच्छा सज्झाय, मु. धनमुनि पुहिं. गा. १६, पद्य, मृपू., (सजनी मोरी सांभलो), ९२३७९-५६(*) " " गौतमस्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (राजगृही उद्यानमा गुर), ८९३९४-३ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु, गा. ९. वि. १६वी, पद्य, मूपू (वीरजिनेश्वर केरो शिष्य), ९४३६६-१ (*), ९२०१०-१ गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., ( गौतम आव्या वाद करेवा), ८९३४१-३०) गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ९११५७-२(+) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ९२०१०-२, ९२४३२ गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ९२३१२(#$) गौतमस्वामी स्तुति प्रार्थना, मा.गु., गा. २, पद्य, भूपू (कामधेन गो शब्दथी ते), ९३४९५-२(+) " घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (घडपण तुं कां आवियो), ९३२४१-४० घडियाली गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चतुर सुणउ चित लाइ कइ), ९१७७८-१० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंदनबालासती रास, मा.गु., गा. १४९, पद्य, म्पू., (असुभ करम के हरण कुं), ९३०४०(+), ९३०५६ (+) चंदनवालासती सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., डा. ४, गा. ४९, पद्य, खे, (सील समो संसार मै दूजो रतन), ९४४८१-२१(७) " चंदनवालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पच, म्पू, (बालकुंआरी चंदनबाला), ८९६३३-३(+) चंदनबालासती सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (धन धन चंदनवालिका सती नमीय), ९३२४५-१२ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चंदनबाला वारणै रे), ९३२४१-२५ चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (विजय कहे विजया प्रति), ९३३२३-८(+#) चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. अजितचंद, मा.गु., खं. ४ ढाल ३२, गा. ११६५, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथश्री सोलमो), ८९९८९(+) चंद्रगुप्त १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. २ गा. २१, पद्य, मूपू (श्रीगुरुपद प्रणमी), ९३२४१-११ चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजाराम, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (को बरनुं छबी को बरनु), ९२१२८-७२ (+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभ जिनराज), ८९४३७-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु, धनमुनि पुर्हि गा. ८, पद्य, भूपू (सुहाइ सुहाइ सुहाइ जिनंद), ९२३७९-२४(*) "3 , चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), ९२७९५-१४(१) चंद्रराजा १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंदराजा ते १ रूपमतिन), ८९९२८-२(+) चंद्रराजा रास, मु. तेजमुनि, मा.गु., खं. ४ ढाल ३६, गा. ८५५, वि. १७४१, पद्य, वे., (श्रीजिन शांति नमुं), ९४२५७ चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ८९८९९(+#), ८९९२६(+#), ८९९२८-१ (+), ८९९६१ (+), ९१८९९(+#), ९२०७६ (+$), ९२७१९ (+$), ९३४९३ (+#$), ८९९२७ चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीइं ), ९३८४४(+३), ९४०३० (+), ९४२४९ (+३), ९३७०४(३) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., डा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, भूपू (सरसति भगवति नमी करी), ९२९१६ (+), ९३०८२ (०३), ९४१०० (5) चंद्रशेखरनृप रास, पं. बीरविजय, मा.गु. खं. ४ डाल ५७ गा. २२४३, प्र. २९९९, वि. १९०२, पद्य, मूपू. श्रीशंखेश्वर पासजी न), ९२२०६(+) चंद्राननजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (सास तणी परि सांभर, ८९३२५-२१) चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिनमुख सोहे सरस्वति), ८९४३४ चक्रवर्ती-वासुदेव-रुद्र आयु देहमान व जिन अंतरकाल कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (--), ८९५७३-६(#) चक्रवर्ती स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू (वली चक्रवर्तीने), ९२७६२-२६ (*) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु. गा. ९. पद्य, म्पू. (अलबेली रे बक्केसरी), ८९६९० " चतुर्गति चौपाई, जै.क. वस्तिग, मा.गु. गा. ९५. वि. २४वी, पद्य, मूपू (सेतुज वंदिअ तीरथराउ), ९०३३८-६५ (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (रिसह जिणवर रिसह), ८९६४७ चर्चाशतक, जै. क. चानतराव, पुहिं. दोहा १०३, पद्य, दि. (परमेष्ठी पांचौ विघनहर), ९०१३७(+४) " " , (२) चर्चाशतक- बालावबोध, श्राव. हरजीमल, पुहिं., गद्य, दि., (जै कहिये जैवंते), ९०९३७ (६) चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हतः परया भक्त्या), ९४५७२ (४४) चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा. गद्य, भूपू (पंचापि परमेष्टिन), ९१६२२ (*), ९२४२२-१(*) 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारित्रछत्तीसी, पुहिं., गा. ३६, पद्य, मूपू., (ज्ञान धरौ किरिया), ९३५४८-३ , चित्रसंभूति चौडालियो, मु. जयसिंघ, मा.गु, ढा. ४, गा. ४८, वि. १७४६, पद्य, चे. (प्रणमु सरसति सामणी) ८९७६९ (+), ८९५६३ चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३९ गा. ७४५, ग्रं. ११०० वि. १७३१, पद्य, मृपू. (प्रथम नमुं परमेसरु), ९३८८३-१ (५३) चित्रसंभूतिमुनि सज्झाय, मु. गोविंदजी, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति सामणी), ८९३३५(+) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ९३२४१-८१ चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., अ. ७२, पद्य, मूपू., (पिया परघर मत जावो), ९३२२१-१ चेतन वृत्तांत, श्राव. भगवतीदास पुहिं. गा. २९८ वि. १७३६, पद्य, मूपू. (जिनचरण प्रणाम करि), ९२५३२-३ (+) 3 " चेलणासती चौपाई, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (मगधदेसना अधिपति), ९३९९१ (#$) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (वीरे वखाणी राणी) ८९५७९-१(+), ८९७०७-१(+), , ८९७३२-३(+), ८९६१०-२, ९३२४१-५०, ९३२४५-४३, ८९६६५-१(#) चैत्यपरिपाटी स्तवन-थिरपुरमंडण, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ९. वि. १९४४, पद्य, मूपु., (चैत्यप्रवाडी चूपसुं भवि) ९२३७९-१७(*) चैत्री पूर्णिमापर्व आराधना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (इण अवसर्पणी काले), ९२१३९-२ चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. देवजो ५, पद्य, मूपू (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ९३५३५-१ चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदनविधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), ९१९७७ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ९२१५०-५(+) चोघडीया चक्र, मा.गु., गद्य, इतर, (उद्वेगवेला चलवेला), ८९३७७-१ चोपडखेलन सज्झाय, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (अवाणी अति भली), ९२३७९-४८(+) चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, पुहि., गद्य, दि. (एक जीव द्रव्यता के), ९३१५५-४५(*) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ९२७६५ (+), ९३२२७(+), ९३५४० (+#$), ९३१६४ जंबूकुमार सज्झाय, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८६९१, पद्य, श्वे., (राजगरी नगरीरो वासी), ८९५२२-२(#$) जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ८९५६५ (+) , जंबूद्वीप विचार स्तवन, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चउवीसइ प्रणमीनइ), ९४३६८(+) ५६१ जंबूद्वीप हेमवंत पर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू. (एकलाख जोवणनो जंबूद्वीप), ८९७८३ (+) जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), ९३२८४(+#$) जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १८५, वि. १५२२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पर नमी), ९३०११-२(+) जंबूस्वामी रास, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु. अधि. ४ ढाल ५५, गा. १३५३, वि. १७०५, पद्य, मूपू. (जोति पुरातन मन धरई), ९४५९४(००) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कविवण, मा.गु. गा. १८, पद्य, मूपू. (श्रेणीक नरवर राजीयों), ९३२४१-५३ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपु., (संगम लेवा संचर्या), ८९३६५-१(+) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू (सरसत सामीने विन), ९२८३३-१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त), ८९४१९-१ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हर्षकुशल, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठे ते रमणी अती भली), ८९७५३-२(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., ढा. ३, गा. २७, पद्य, मूपू., (राजगग्रही नगरी वसे), ८९४१४ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ८९३६४-१ जगजीवणदास आचार्य गीत, मु. ठाकुरसी ऋषि, मा.गु., गा.७, वि. १७७३, पद्य, श्वे., (सदगुरु पाया हो नमु),८९५७७-५ जगजीवणदासआचार्य गीत, मु. राघव, मा.गु., गा. ९, वि. १७७१, पद्य, श्वे., (जीहो बुद्ध विमल विसत), ८९५७७-६ जगजीवणदासआचार्य गीत, मु. राघव, मा.गु., गा. १५, वि. १७७२, पद्य, श्वे., (सुप्रसन्न तुंही सारद), ८९५७७-४ जगजीवनदासआचार्य गीत, मु. राघव, मा.गु., गा. ९, वि. १७७१, पद्य, श्वे., (सरसति प्रणमे हो सुरनर), ८९५७७-१ जयविजयकुंवर चौपई, मु. धर्मरत्न, मा.गु., गा. ३४५, वि. १६४१, पद्य, मपू., (जिण चउवीसह पय नमी वली), ९४५११(+#$) जयविजयकुंवर रास, मु. जिनविजय, मा.गु., अधि. ४ ढाल ३३, ग्रं. ७२५, वि. १७३४, पद्य, मपू., (आदि आदि जिणेसरु पय), ९३७२८(+#) जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमद्र, मा.ग., गा. २५५, पद्य, मप., (प्रणमीस गोयम गणहरराय), ९४०७६($) जशविलास, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि.,मा.गु., पद. ७५, पद्य, मूप., (चेतन ज्ञान की द्रष्टि), ९३३३२-१ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (दादो तो दरसण दाखइ), ९३५८१-८६(+#) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देरावल दादो दीपतो रे), ९३५८१-८५(+#) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ९३४१०-१२(+#) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (प्रथम नमुं गणधर प्रगट), ९४४२५-५(+) जिनकुशलसूरि चरणपादुका प्रतिष्ठाविधि, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम दिने थूभने), ९३१८०(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा. ५०, पद्य, पू., (वदनकमल वाणी विमल), ९४३३८-२(+#), ९४४२५-२(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. धरम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (किरपा मो पर कीजै कुशलसुरि), ९३५८१-९६(+#) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखतां), ९४०३९-८(#) जिनकुशलसूरि पद, मु. विसनचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशलसूरींद गुरु ध्यावो मन), ९३५८१-९३(#) जिनकुशलसूरि पद, मु. विसनचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुसल गुरु विना अवहिज मेरी), ९३५८१-९४(+#) जिनकुशलसूरि पद, मु. विसनचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (मेरी अरज सुणो महारायजी), ९३५८१-९५(+#) जिनकुशलसूरि पद, मु. सौभाग्यधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुशलसूरिंद नित ध्याइयै), ९३५८१-९९(+#) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ९३५८१-९०(+#) जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादौ परतिख देवता), ९३५८१-८८(+#) जिनगीतचौवीसी, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गी. २४, वि. १७१५, पद्य, मप., (प्रथम जिणसर प्रणमीइ), ९४४१८(+) जिनगुण गरबो, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (हां रे हुं पूजीसुरे), ८९४६१-२(2) जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जय संसार सागर सकल), ८९४८२(+) जिनचंद्रसूरि गच्छाधिपति गीत, ग. राजहर्षगणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंथी सुणि संदेसडो तू), ८९६८४-१ जिनचंद्रसूरि गच्छाधिपति गुरुगीत, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जोसीयडा रे सुणि मोरी), ८९६८४-२ जिनचंद्रसूरि गहुंली, मु. जीतरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज आनंद मुझ अती थयो), ८९३४४-१ जिनचंद्रसूरि गहुंली, मु. जीतरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (चालो सखी गुरु वांदवा), ८९३४४-२ जिनचंद्रसूरि गीत, मु. कनकविलास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आया जिणचंदसूर हे सखि), ८९८२४-२(+) जिनचंद्रसूरी गीत, मु. कनकविलास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (श्रीजिनचंदसूरीसरू प्), ८९८२४-१(+) जिनदत्तसूरि गीत, मु. जयचंद, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जसु हरिदयकमल गुरुनाम), ९३५८१-९१(+#$) जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (केही गल्लांक पीयां), ८९७२०-१(+) जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि गीत-सिराजगंज, मु. सौभाग्यधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (एक अरज अवधारीए रे वाला), ९३५८१-९२(#) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (दादा चिरंजीवो सेवक), ९३५८१-८७(+#) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ जिनदत्तसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू. (अरजी हमारी माणो दादा), ९३५८१ ९७(+) जिनदत्तसूरि पद, मु. सौभाग्यधर्म, पुडिं, गा. ३, पद्य, मूपु. ( चरनन की बलहारी गुरु तेरे), ९३५८१-९८(०) जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (सदगुरुजी तुम्हे ), ९३३७९-१३(*) जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु, मानविजय, मा.गु गा. ११, पद्य, मूपू. (सरसती देवी धरी मनरंग), ८९८११-३ जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, मा.गु., डा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ९४४७०-२(+) जिनपूजा अष्टक, पुहिं. गा. ११, पद्य, वि. (जलधारा चंदन पुहप), ९३१५५-२७/१, ९३१८८-५ " जिनपूजा गुण गीत, मु. इंद्रजीत, पुहिं., गा. २, पद्य, दि. ?, (जिनवर पूजी लो मेरे मीतजि), ८९८६६-२९ जिनपूजा विधि, मा.गु, गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथमथी उत्तम), ८९३४९-७ (३) जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथनी पूजा), ८९६३८-२ जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (पुष्पादि किसी रीति), ९३४२१ (+) जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ८९६७२-२ जिनप्रतिमा स्तवन, पुहिं., गा. १०, पद्य, दि., (जिन प्रतिमा जिन सारख), ८९६७९-२ जिनप्रतिमास्थापना रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सार वचन जिन भाखीयो), ८९७६६ (*) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ८९४२३, ९३२४१-१८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनराजसूरि गीत ग. ज्ञानप्रमोद, मा.गु गा. ९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी प्रणमिस्यु), ८९७५६-२ (+) " जिनराजसूरि गीत, मु. सोम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (श्रीजिनराजसूरिसरु रे), ८९३८४-२(+) , जिनराजसूरिगुरुगुण गीत - खरतरगच्छाधिपति, मु. अमरविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (पंथीडा संदेशो पूयजी), ८९७४५-१ जिनलाभसूरि भास, उपा. नैणसी पाठक, पुहिं. गा. १३, पद्य, भूपू (पुज्य पधार्या पुरि. ८९७१८-१ (क) जिनलाभसूरि भास, मु. राज, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू. (आज बधाऊडी आवीयो), ८९७१८-२(+) जिनलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुधरमां देवलोकमां), ८९४७९(+) जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (साहेली हो आवी हुं), ९२३९८-४ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., शत. १०, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, दि., (परम देव परनाम करि), ९३१५५-१(+) जिनस्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, गा. ३३४, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेही), ९२७२१-३, ९२५५७(#$), ९२६२२-४(३) जिनहंससूरि नवरंग फाग, मु. आगममाणिक्य, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (देव अवर जगि नही समउ सीस), ८९७७२(+#) जिनाज्ञा स्तोत्र, मु. वीर, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी हृदयकमलि धरी), ९४५५१(+) (२) जिनाज्ञा स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (सव्वाइ जिणेसर भासिआइ ववणा), ९४५५१ (+) ९३६८६ (+), ९२४९१, ९३६८७-१(३) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., ( अनंतसिद्ध करूँ), ८९७७० (+) , जिनातिशयगुण स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८५८, पद्य, वे. (रोम केस नै नख असोभणीए), ९४४८१-५५(१) " जीवकाया सज्झाय, मु. रंगविमल, मा.गु.. गा. ७, पद्य, मूपू (प्रीतम तणो मुझ ओपरई), ८९७५७-२ जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीवदया पालज्यो), ८९५९३-२(+$) जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपु. ( श्रीसरसती रे वरसती), ९३६८० (+) जैन कथा संग्रह, मा.गु, गद्य, मृपू. (अर्थार्थवर्गे हित चिंतन), ९१९३२(६) जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (१ जीव समुंचइ ५ नियमा), ८९६३४, ८९६६०-२, ९३५८८(s) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (युगला धर्म निवारिओ), ९२४०९-४(*) " ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ९२७५४ (+), ५६३ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (सहस्ना प्रणम्), ९३२४१-५९ , ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ९३२७०-२, ९२३६६-७(#) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ९२७९५-११(#) ज्ञानपंचमी महिमा वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., ढा. ७, गा. १०३, वि. १९०६, पद्य, मपू., (अष्ट कर्म मल क्षय), ९२१८५-१ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ८९५०६(+), ९३१५५-१४(+), ९३७७८-५(+), ९३१८८-४ ज्योतिष कवित्त, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, दि., इतर, (दिनकर के दिन बीस चंद पचास), ९२५३२-१५(+#$) ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (चदरमाना पदरा माडला), ९३६९८-२(+#) ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (चंद्रमानौ आउखो), ९२१८९-१(+#), ८९३९६-२, ९४०४३-२ ज्योतिष विचार गाथा, पुहि., गा. १५, पद्य, श्वे., इतर, (मेषे १६ दशा १० द्वादशे १२), ९४४२५-१६(+) ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.गु., को., वै., इतर, (तीज तेरसीए सुखइ आवइ), ९२७४३-१(+), ८९५७३-२(2) झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ८९६७१, ९२०२४-२($), ९२९५२-१४(६) ढंढणऋषि सज्झाय, पंडित. गुणहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा हुंवारी), ९३२४१-२३ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ९३२४५-३, ९३३८४-१७, ९३४६३-५, ९२७९५-३(#) ढंढणऋषि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धन धन ढंढण मुनिवरु), ९२६०१-४२(+) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेशर वांदिने), ८९४९५-२(+) ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूप., (सकल सुरासुर सामिनी), ९३२८५(+#), ९३३५२(+#), ९३८१४(+#s), ९२२७६(#s), ९४२५३(१), ९४४००(७), ९४५८६() तपावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिमढ्ढ१ एकासणां२), ९२००९ तारासंख्या , मा.गु., गद्य, मूप., (भरतेरवरत मे तारानी), ८९४७१-३(+) तीर्थंकर जन्मोत्सव स्तवन, मु. नग, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (वधाईरी आज जगमांहे भई), ९३३३२-५५ तीर्थंकर बलवर्णन पद, मु. धर्मसंघ, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (बार पूरष बलमान सबल१), ९२५६४-१६ तीर्थंकर बलवर्णन पद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वाय वालु विशालो), ९३२१९-४ तीर्थमाला, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. ३१२, ग्रं. ४१३, वि. १७५०, पद्य, मपू., (आणंददाई आगरे प्रणम्य), ९३४२८(+) तीर्थमाला स्तवन, ग. ज्ञानसागर पाठक, मा.गु., ढा. १०, वि. १७२७, पद्य, मूप., (स्वस्तिश्री सुख संपद), ९२७९३(+), ९१९३७ तीर्थमाला स्तवन, मु. दयाविजय; मु. रंगविजय, मा.गु., ढा. १२, वि. १९१२, पद्य, मप., (नमिउ जिण चोवीसने प्रणम), ९३६५७-१(+) तृष्णा त्याग सवैया, नथुराम, पुहिं., पद. १, पद्य, जै., वै.?, (तनकी त्रशना तीनपाशेर), ८९६४०-३ तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ४०६, वि. १६२४, पद्य, पू., (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो), ९४३४५(+) त्रिभवनदीपक प्रबंध, आ. जयशेखरसूरि, मा.गु., गा. ४४८, वि. १५वी, पद्य, मप., (पहिल परमेसर नमी), ९१९०९(+$) त्रिभुवनप्रासादजिनबिंबसंख्या चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गद्य, मप., (पहिलउं त्रिकाल अतीत), ९३००४-४(+) थावच्चापुत्र चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २, गा. ४३७, ग्रं. ६५०, वि. १६९१, पद्य, मूपू., (नेमिनाथना पाय नमु), ९३९७८(+#s) थावच्चापुत्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., ढा. ४, गा.५३, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी अति भली रे), ९२९५२-१२ थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोरठ देस मझारी रे), ९३२४१-७२ दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), ९२७८०(+s), ९२८८६ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर कर रे), ९२३६६-३(#), ९३१८३-२(5) दशदान विधान, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (गो सुवर्ण दासी भवन), ९३१५५-२८(+) दशविध यतिधर्म, मा.गु., अ. ११, पद्य, मप., (--), ९२२११(+$) दशार्णभद्र ऋद्धि वर्णन और सौधर्मइंद्र द्वारा गर्व खंडन कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकदा सभा पूरी बइठो छइ एणि), ८९३५८(#) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५६५ दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ९३२४१-७९ दाढाला कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप भरतखंड), ९३९२१(#) दानकथा भाषा, मु. भारामल, पुहिं., गा. ४७५, पद्य, श्वे., (देव नमो अरिहंत सदा अरु), ९०२८३ दान के १० प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणुकंपा दाणे कृपण), ८९७७६-८(+#) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ८९३६९-१(+), ८९६१२-३, ८९७३८-३ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ९३०७३(+), ९४४५२, ८९६९८(#), ९२३६६-४(#) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ५८, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (नित दान सुपातर दीजीय), ९४४८१-५०(#) दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सासननायक वीनवु लागु), ८९४७५-२ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ८९५०१-२ दीपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (मारे दीवाली थई आज), ९२००७-६(#) दीपावलीपर्व स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आज मारे दीवाली थइ सार जिन), ९२६०१-१३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २०, वि. १८४५, पद्य, स्था., (पूरव दिसे हुंइ), ८९४९२-३(+$), ८९५१९-३(+-) दुर्जनाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (पर अवगुणसुं प्रीत), ९४५०३-२(#) दमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे), ९४४२३-९ दहा संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, जै., इतर?, (गांमंतरं घर गोरडी), ८९४४४-२(2) दृढप्रहारी सज्झाय-कषायत्याग, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, श्वे., (कषाय घणानै हुवै अमेल), ८९४५८ दृष्टांतपचीसी, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहि., गा. २६, वि. १७५२, पद्य, दि., (केवलज्ञान सरूप मैं बसै), ९२५३२-११(+#) देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ उडूनामा पटल ६४५१६१२९०३२), ८९६३१-२ देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०७, पद्य, मूपू., (नेमजिणंद समोसर्या), ९२८००-१, ९२०१५($) देवकी ७ पुत्र सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (देवक राजारी जाई), ९४४८१-९४(2) देवगुरु शास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (देव शास्त्र गुर रतन), ८९८६६-१० देवगुरु स्तुति, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (देवगुरु पहचान बंदे), ९३५८१-४०(+#) । देवभवन प्रमाण-सूर्यादि, मा.गु., गद्य, मपू., (जंबुदिपने विषे सर्व), ९३४२२-३(#) देवमनुष्यतिर्यंचादि वैक्रियमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (देवतानी वेक्र १०००००), ८९६८१-३ देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ६, ग्रं. ६१२, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सकल जिणवर सकल जिणवर), ९४३९८(+s) देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (सौधर्म ३२ लाख ईशान), ८९४७१-१(+) देवलोक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सहुंधर्मालोक देवलोक), ८९६३३-२(+) देवलोकसख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (देवलोकारा साताकारी), ९४४८१-१६(2) देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही पडिकम), ९३६७९(-६) देवसीण सुथार चौपाई, मु. दलीदचंद, रा., ढा. ९, वि. १८८४, पद्य, श्वे., (वरधमान सासणधणी गोतम), ९३३३०(+) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ८९८०८-२(+) दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., दोहा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ९२१०७-२(2) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूप., (पुरिसादाणी पासजिण), ९३०४९(+#s), ९४२३१(+#), ९४४७१, ९३०३०(#$), ९३३९६(#S) द्रौपदीसती रास, मु. देव, मा.गु., ढा. ४, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (वरताम सीलवडो ग्यान्न), ८९५२५-३-) द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजीने तुंबडु), ८९६७८ For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ द्रौपदीसती सज्झाय, मा.ग., गा. २१, पद्य, मप., (चंपानगरी वखाणीइ जी भरत),८९४७२ धन्नाअणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, मपू., (पहिलउं पणमी पयकमल), ९४४०२(+), ९४३६९(#$) धन्नाअणगार सज्झाय, पं. प्रमोदसुंदर, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (एक दिन वीरवाणी सुणी), ९२३७९-५१(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ९३६६७-११ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (जिनवचने वयरागी हो), ९३३२३-३(+#), ९३२४१-४३ धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीन), ९३२४१-५ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीन), ८९७३९-३(-१) धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ७२, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (पुजजी पधारीया नगरी), __९४४८१-६२(#) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ९३२४५-४४ धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी रे धना), ९३२४५-८ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र), ९३२४१-२६ धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. २८२, वि. १५९१, पद्य, मप., (सरसति मुझ मति दिओ), ९२७८७-२(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (धर्मजिणेसर वांदीयै त्राण), ९४४८१-१२(2) धर्मजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (रुपजौबन तौ भौडल भलका छीन), ९४४८१-६९(2) धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (एम करीये रे नेहडो एम), ९२१२८-१३२(+) धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मप., (चिदानंद चित चिंत), ९४६४७, ९३२९८() धर्मोपदेश व्याख्यान, मु. आनंद, पुहि., गद्य, श्वे., (अब परमेश्वर देव सब सकल), ९२४९६ धर्माधर्मविचार चौपाई, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (चउदह पुरव माहि ज), ९३००४-३(+) ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान सरूप अनंतगुन), ९३१५५-१२(+), ९३७७८-६(+), ९३१८८-२ ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, मप., (सकल जिणेसर पाय वंदे), ९३४५६ नंदबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १५४, वि. १५६०, पद्य, मूपू., (आगम वेद पुराण जाणंता), ९३७२६(+) नंदमणियार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (ज्ञातार तेरवा अध्ययन), ९२८०४ नंदिषेणमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., गा. २६०, ग्रं. ५००, वि. १८०३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान चौविसमो), ९३३१०(2) नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ९४३९७(+#), ९४०६४, ९४१६७(#$) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), ९३२४५-३० नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ९३४६३-११, ८९५७०-१(६) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (रहो रहो रहो वालहा), ९३३८४-९ नक्षत्रताराविचार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., इतर, (वीरजिनेश्वर चरण), ९३४३०-३ । नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ८९४९४-१ नमस्कार महामंत्र जकडी, मु. नयरंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसुहगुरु सुपसाउ लइ हरष), ९३९४७-२(+#) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मप., (किं कप्पतरु रे आयाण), ९३३७९-७(+), ९३४१०-२५(+#), ९४४३२-१(+), ८९७३८-१(६) नमस्कार महामंत्र भांगा, मा.ग., गद्य, श्वे., (--),८९५३१-३ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मंत्र माहा नवकार मीठ), ८९७०५-१(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वारी जाउ अरिहंतनें), ८९९७०-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५६७ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (बार जपुं अरिहंतना), ९३३८४-१४, ८९४६५(2) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रवचन जग जयकार), ८९६१७ नमस्कार महामंत्र स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंत्र ए सार पंचपद), ९२१२८-७(+) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नवकारमंत्रजीरो जाप), ८९६६६-२ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ९३२४५-३६, ९४४२३-१० नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, पद्य, भूपू., (आदिजिणंद जुहारीयइ मन), ८९५८६(+) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ९२४०९-१८(+), ९३२७०-१(६) नरकवेदना वर्णन दोहा, मा.गु., अंक. ५४, पद्य, मूपू., (तिहां प्रथम कयी नरक), ९२७२५ नरदेव चउपई, मु. मल्लिदास, मा.गु., गा. २७३, वि. १६४६, पद्य, श्वे., (श्रीसरसति प्रणम् मन सुद्ध), ९२७०९-२(#) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूप., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ९२३७३(+#S), ९४५६१(+$), ९३१९१, ९४४८६(#) नवअंगपूजा दहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ९२६८७-४(+) नवकारमंत्र छंद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पढो मंत्र नवकार ताप), ८९४६८-१(-) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव अचेतन २), ९३४१२(+), ९१५८२ नवतत्त्व ९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल लक्षण द्वार १ कूण), ९२४४३(+) नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. २०४, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर प्रणमी), ९३९८२(+$) नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., (पास जिनेसर प्रणमी), ९३०८९(+) नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ११, गा. ११३, वि. १८७२, पद्य, मप., (सरस्वतीनें प्रणमु), ९१५५८(+#) नवदर्गा विधान, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (प्रथम हि समकितवंत), ९३१५५-२४(+) नवपद चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ९२४०९-२(+) नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी पासजी नीति), ९३३०४(+) नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरु नमतां गुण उपजे),८९६३३-१(+) नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंतपद आराधीयै आणी ऊलट), ९३३३५-५(+) नवपद स्तवन, मु. जीवराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर जिनंदनी वाणी चित), ८९७६७-१(#) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूप., (सकल कुशल कमलानो), ९३३३५-४(+) नवपद स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पहिले पद अरिहंत), ९२३७९-३४(+) नवपद स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, पुहि., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (सासनपति वीरजिणंदा रे), ९२३७९-३३(+) नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (जीया चतुर सुजाण नवपद), ९३६३०-२(#) नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा ध्यावो), ९३३३५-१(+) नवपद स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन भविक), ९४३०२-५१(+#) नवरत्न कवित्त, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (धन्वंतरि छपणक अमर घट), ९३१५५-२६(+) नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर इम भणे), ९३३८४-८ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ८९७१०(+) नवसेना विधान, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (प्रथम महिपतिनाम दल), ९३१५५-३९(+) नवाणप्रकारीपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.ग., ढा. ११+कलश, वि. १८८४, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ९२४१६-१ नागिलाशेठ सज्झाय-चतुर्थव्रत, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ५२, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (अरिहंत सीध साहु नमू गुरना), ९४४८१-९१(२) नाटकपच्चीसी, जै.क. भैया, पुहि., दोहा. २४, पद्य, दि., (कर्म नाट नृत्य तोड क), ९२५३२-६(+#$) नामनिर्णय विधान, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (काहु दिन काहू समै), ९३१५५-२५(+) नाममाला, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (--), ९३९९८(+$) For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नारक, भवनपति, ज्योतिषादि जघन्योत्कृष्ट अवधिमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ८९५३१-१(६) नारकीदुखवर्णन दूहा, मु. जिनदास, मा.गु., दोहा. ६८, पद्य, मूपू., (पांचआश्रव मत करो), ९१३२३-१(+$) नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरक ७ ना भवन सासता), ९४०८७(+) नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ९३२४१-५५ निंदक सज्झाय, कबीर, पुहिं., गा. ८, पद्य, इतर, (धोबी धोवे कपडा रे), ९२०९३-२(#) नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ९२६१६, ९४०८३ निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ९३२४१-८४ नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ९२६४०-१(+), ९३३३९(+), ९४०६६-१(+), ९१४१६ नेमराजिमती गीत, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रागै भरी),८९७८९-१(+) नेमराजिमती गीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (आयोरि घनघोर घटा करे रटत), ९२६०१-२५(+) नेमराजिमती गीत, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (कहे करजोडी राजुलनारि), ९२७९६-६(2) नेमराजिमती गीत, मु. मोतीलाल साधु, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (संजम ल्युंगी मेरा), ९२१२८-१२(+) नेमराजिमती गीत, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रावण मइ प्रीउ संभर), ८९७८९-५(+) नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (नेम वंदन राजुल चली), ९३२४५-२०, ८९५२२-४(#S) नेमराजिमती गीत, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सखीरी बोलइ राजल नारी),८९३२५-४(+) नेमराजिमती गीत, मु. सोम, मा.गु., पद्य, मूपू., (काउ हमारउ मानीयइ), ८९३८४-३(+) नेमराजिमती गीत, म्. हेमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (नेह धरि आउ रे निज घर), ८९७७१-१(#) नेमराजिमती गीत, म्. हेमाचंद, म.,मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (बोले राजीमति भामनी), ९२१२८-५४(+) नेमराजिमती गीत, पुहि., पद्य, श्वे., (अंखिया भर भर मारे रे), ९३७६८-८(+$) नेमराजिमती गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मातपीता में अनुमत), ९३६६७-१(६) नेमराजिमती ढाल, रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सांभलो बावी), ८९५१०(-) नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, म्पू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ८९३३२ नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (देखन दे मुझ नेम), ९२१२८-१६(+) नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो वालमा तुम मोसे नय), ९२१२८-६८(+) नेमराजिमती पद, मु. आनंद, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (प्रगट्यो पुरण राग मेरे), ९२१२८-१४७(+) नेमराजिमती पद, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जादुपतसु दैरै औ लुभाने), ९४४८१-३५(#) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (हरियालो डुंगर प्यारो), ९२१२८-६६(+) नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (हो शिवरमणीरा वरा), ९२१२८-५८(+) नेमराजिमती पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (देखो सया मोरी लग गइ), ९३५८१-४५(+#) नेमराजिमती पद, मु. दीपविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (जवा नहि देउं रे जद्), ९२१२८-५५(+) नेमराजिमती पद, मु. देवादास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कीन संग खेलुंगी होरी), ९२१२८-५७(+) नेमराजिमती पद, मु. नथु, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (लेता जाइओ रे शामळीया), ९३५६३-३ नेमराजिमती पद, मु. नथु, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (हां रे कीने देखा), ९३५६३-५ नेमराजिमती पद, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (घरे आवो स्याम पीयारा), ९२१२८-११७(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (तुझ वन मेरी कुन खबर), ९२१२८-१३०(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (थारी बोलु लाग रहि), ९२१२८-८९(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (न करीई जी नेडो न), ९२१२८-१३१(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमि पिया दीलजानी), ९२१२८-१८(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मनमोहन मंदिर आवो रे), ९२१२८-३६(+) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (हां रे हुंतो भिजु), ९२१२८-६४(+) नेमराजिमती पद, मु. राम, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (माइ री गिर जान दे मोहे), ९३५८१-१८(+#) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सामरी सूरत मेरो दील), ९२५६४-१४ नेमराजिमती पद, मु. संयमहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नीकी करी हो ललना नेम), ८९६९६-२(+) नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (राजुल तुं वडभागीन), ९३५८१-५(+#) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (काना काहे बचन के ए राह), ९१३१४-३(+) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (नेमप्रभुजीसुं प्रीत), ९३५८१-५३(+#) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (बलु छु प्रेम आगमा), ९१३१४-४(+) नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (मोड बाधे के मूझ), ९३६६७-१३(६) नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (राजुल पुकार करती), ९३५८१-६(+#) नेमराजिमती बारमासा, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्पू., (नयन नगीनो नेमजी सुणा), ८९६२१-१ नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ८९६२३-२(+), ८९४५७-१, ८९६१४, ८९५१५(2) नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (राणी राजुल इण परि), ८९७८७(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७२, पद्य, पू., (चैत्रमास सुहामणो जी), ९३४६३-४ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (राणी राजल एण परि विनवु), ८९४०३-२ नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ८९४९५-१(+), ८९८०७(+) नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७५९, पद्य, मप., (समरु गणपतिनै सारिद), ८९४४३ नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, मूप., (हठ करी हरीय मनावीयै), ९३२४१-२ नेमराजिमती सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (याद नेमि हो मानु याद), ९२१२८-६(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जोवनवेस में झीलतो), ९३१९५-१७ नेमराजिमती सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रीतमसुं मुझ प्रीत), ९३२४१-९१ नेमराजिमती सज्झाय, दानमल, रा., ढा. १, गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीजादपतजीरी सुरत), ८९७९७-२(2) नेमराजिमती सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अवल मोहलमां अजब झरोखो), ९३२४१-१० नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गोखे रे बेठी राजुल), ९३२४१-४७ नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (रथ वाली नेमि काहे आवइ तुझ), ८९७००-२(+#) नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (उग्रसेन की लली), ९३६६७-७ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (समुद्रविजे कुलचंदलो), ९२७९६-८(2) नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. १२, पद्य, मप., (सरस दरस रस मोही मो मत नयन), ८९४०३-३ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुंदर स्याम संदेसो), ९३६६७-८ नेमराजिमती स्तवन, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (हो सलूणी स्याम री), ९२१२८-६७(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (सोरीपुर रलीयामणौ जिन रूडौ), ९४४८१-६८(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋषभदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (राजुल ढुंढति फरे छे), ९२१२८-१२६(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. खुशालरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पोपटडा संदेसो केहेजे), ८९४५१ नेमराजिमती स्तवन, चैनराम, रा., गा. ६, पद्य, मप., (नेमजी वंदन मे जास्या महेत), ९३५६३-१२ नेमराजिमती स्तवन, मु. नग, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (माई में तो जाउगी गीरनार), ९३३३२-४७ नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज वालिम तुमे खमोजी), ९२१२८-६९(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नहि ज्याने दुगी मे), ९२१२८-१३५(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन न छेह ते दीधो रे), ९२१२८-१४५(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेला रस मानो माका), ९२१२८-९०(+) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ९२३१३-२(+$) नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (नेमजी करी वात रे), ८९४१९-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. शिवचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जउ थे चाले शिवपुरी), ८९६२३-१(+) नेमराजिमती होरी, मु. धनमुनि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (नेम संग राजुल गोरी खेलत), ९२३७९-१२(+) नेमराजिमती होरी, मु. रंग, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेम निरंजन यार तुमसे), ९२१२८-११६(+) नेमराजिमती होरी, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां हां रे यमुना हां), ९२१२८-१९(+) नेमराजिमती होरी, मु. रूपचंद, पुहि., गा.८, पद्य, मप., (होरी खेलावत कानइआ), ९२१२८-१२३(+) नेमराजिमती होरी, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (होरी खेलुंगी संग लीये सजन), ९३३३२-६८ नेमराजिमती होरी गीत, ग. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आवन दे रे आ होरी चंद), ९२१२८-१७(+) नेमराजिमती होरी पद, मु. मोहनविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो नेमजी आवणहार), ९२१२८-१०(+) नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमूं नेम), ९२९५२-५ नेमिजिन पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (माई मेरो वरज्यु मान), ९२१२८-३८(+) नेमिजिन पद, मु. रंगविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (हां रे मनमोहन तुं), ९२१२८-३७(+) नेमिजिन पद, ग. रत्नविमल, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (नेम जिणंदजी सैं आखडल), ९३५८१-६०(+#$) नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेम निरंजन ध्यावो), ९२१२८-११८(+) नेमिजिन पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (नहि कोइ तारणहारा), ९३५८१-२१(+#) नेमिजिन पारण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (हालो वालो हेते हुलरावे), ९१३१४-२(+) नेमिजिन बहोत्तरी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ७२, पद्य, दि., (वंदो नेमजिणंदचंद), ८९८६६-७ नेमिजिन बारमासा, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., गा. ७७, पद्य, मूपू., (विमल विहंगमवाहिनी), ९३४००(#) नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखी री सांभलि हे तूं), ८९४६९(2), ८९७३८-४(5) नेमिजिन रास, पं. कमलकीर्ति गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पणमिय सारद सामिणी गउ), ८९६३०(+) नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. २, वि. १५४६, पद्य, मप., (स्मृत्वा श्रीशारदौ), ९२८८९-२(+), ९४३९६(+#$) नेमिजिन रास, मा.गु., ढा. १८, पद्य, श्वे., (संखराजाने जसोमती), ९३६१२ नेमिजिन विनती, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सिरिसमुद्रविजय नरराय राय), ८९८१३-३(#) नेमिजिन वीनती, मा.गु., गा.११, पद्य, मपू., (हरख माहि हियडइ किमइ), ९०३३८-४४(+) नेमिजिन सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (समदवीजे राजाजीरा नंद), ८९४८४ नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ना करीए रे मेळा करीए), ८९४४५-२ नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (होता जाजोनी राज रे), ९२१२८-६५(+) नेमिजिन स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., गा. ७, पद्य, म्पू., (द्वारापुरी नगरी कै), ८९७०५-५(+) नेमिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (चालो भेटण जइये जिनवर), ९२६०१-४०(+) नेमिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हाजी रे वीनतडी), ९२६०१-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, पुहि., गा. ९, वि. १९३४, पद्य, मूपू., (नेमजिणंद जिनचंद्रने), ९२३७९-१३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (नेमिजिन सुध स्वरूपजी), ९२३७९-२७(+) नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उज्जलगिरी अमहे जाइ), ८९५१२-३(+) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.ग., गा. १५, पद्य, मप., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ९३३८४-५, ८९७९७-१(-2) नेमिजिन स्तवन, श्राव. महमद जैन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (तासु कौन सरवर करै), ८९७३२-५(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रुपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (या जोगायाने हर लीनो), ९२१२८-७३(+) नेमिजिन स्तवन, ग. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (प्रेम थकी ए प्रणामुं), ८९३२५-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रहो रहो रे यादव दो), ८९३३७-१ नेमिजिन स्तवन, मु. हीरानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (बाल ब्रह्मचारी हो), ८९४८९-३(+#) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५७१ नेमिजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत छोडो म्हांने), ९२१२८-१२२(+), ८९८११-१ नेमिजिन स्तवन-चातुर्मासवर्णनगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (मोरा सम मा जावो रे), ८९३९०-१ नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार सिरि), ९४६०७-२५(+#) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मप., (श्रावण सुदि दिन), ९३६७६-७, ९२००७-११(१) नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुर असुर वंदित पाय पंकज), ८९८९४-३(+), ९४३०२-१८(+#), ९४३३८-१७(+#) नेमिजिन स्तुति-गिरिनारमंडन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, पू., (यादवकुलमंडण नेमिनाथ), ९२६०१-५(+), ९४३०२-४६(+#) पंचतीर्थ स्तवन, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजिनचरणे नमु), ९२४८८-१ पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १२, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो ध्यान धर पंचपद), ९३१५५-२१(+), ९३१८८-६ पंचपरमेष्ठि पूजा, जै.क.टेकचंद, हिं., पूजा. ५, पद्य, दि., (मनरंजन भंजनकरम पंचपर), ९००२० पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, मा.गु., वि. १८६२, प+ग., मूप., (मंगलमय मंगल करन), ९१३८७(+) पंचमआराफल सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा.१४, पद्य, मपू., (घणा साधु जिण कह्या), ९१५८१-२(+), ८९५४७-१ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ८९६२६-२ पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), ९१७७८-९ पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पंच आराना भाव रे), ९३२४१-७५ पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीर कहै गौतम सुणो), ९२७९६-९(2) पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धवधु केरो सिणगार), ८९७४४-२ पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., अधि. ५, गा. २६१६, वि. १६२२, पद्य, मपू., (प्रणम्य पूर्व), ९४३२३ पट्टावली छंद-तपागच्छ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कालिगसूरि सुजाण त्रिणि), ८९३९२(+#) पट्टावली-तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन संप्रति), ९३२९२(#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान), ९२३७०(+), ९२७८६, ९३२६५, ८९६८६(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु जीण राजक), ८९६६५-३(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पद्मप्रभुस् काजसं), ९२७९५-१२(#) पद्मप्रभजिन स्तवन-ध्यान गर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पद्मप्रभना नामने), ९३५८१-६१(+#$) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ८९३३४-४(#) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मपू., (हवे राणी पद्मावती), ८९४७०(+), ८९७१९(+), ८९७९०(+), ८९८२० परदाराष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (परनारीसुं प्रेम रूप देख), ९४५०३-४(#) परदेशी आगमन सज्झाय, मु. शुकलचंद, मा.गु., गा. १०, वि. १९०८, पद्य, स्था., (श्रीजिन हेली जाणने), ८९३६८ परमात्मछत्तीसी, जै.क. भैया, पहि., गा. ३६, वि. १७५०, पद्य, दि., (परमदेव परमातमा परम ज्योति), ९२५३२-५(+#S) परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ), ९२१२८-१०७(+), ९३२२१-३ पर्युषणपर्व गहंली, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (परब पजूसण पूरव पुण्य), ९२३७९-५३(+) पर्युषणपर्व गहुंली, मु. धनमुनि, पुहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (सखी परव पजूसण आया), ९२३७९-५२(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ९२४०९-२७(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ९२४०९-२३(+) पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (जिननी बहिन सुदर्शना), ९२४०९-२५(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), ९२४०९-२६(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ९२४०९-२२(+) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ९२४०९-२१(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सुपन विधि कहे सुत), ९२४०९-२४(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ९२४०९-७(+) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ८९३७६ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (श्रीपजुसण परव सेवो), ९२४०९-१६(+) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), ९३४१०-२(#), ९४३०२-२२(+#), ९४३३८-७(+#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ८९६१०-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ८९५५१-३(#) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० ॐकार), ९२३४२(+#$) पल्योपममान सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (सो वरसारा जाणजौ रे दीवस), ९४४८१-८६(#) पल्योपम-सागरोपम भेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पल्योपमना त्रण भेद), ९२८५०-२(+) पल्ल पच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २५, पद्य, दि., (कलप अनंतानंतलौ रूलै जीव), ८९८६६-१३ पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ८९९६६(+), ८९९६९(+), ९२४६५(+), ९३२३५(+), ८९७४९, ९३१७८($) पांडव संयमव्रत सज्झाय, मु. कुशलमुनि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (पांडव पांच महाबलवंता), ८९६३५-१(+) पापबुद्धिराजा धर्मबद्धिमंत्री कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीपुरनगरे जितारि), ८९६८३ पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. २७, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकासकर), ९४०२९(+$) पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर सुद्ध नमीजइ ए), ८९३४७ पार्श्वजिन आरति, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अश्वसेनकुलमंडण जगजन), ९२१२८-९२(+) पार्श्वजिन कवित्त, क. दयाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (काहु को भरोसौ भारी गंगधार), ९४०३९-१(+#) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीई), ८९७८२-१(-2), ९२१२८-६१(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय जिणवर जय जगह नाह), ९२६०१-३३(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरसादाणीय पासनाह), ९२९५२-६ पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूप., (सरसत मात मना करी), ९२७३६-२ पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात अमीझरो), ९४३६६-१६(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (सरसति सुमति आपि सुरराणी), ९४१५७-९(+), ९४६१२-१४(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ९४३३८-३(+#), ९४४२५-३(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., गा. ११२, पद्य, मप., (त्रिभुवन मझ ततसार), ९३७२७(+#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ९४३६६-५(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (सरस वदन सुखकारसारं), ८९५०४-२(+#) पार्श्वजिन द्रुपद, मु. धर्मशील, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (केवल वाला० कोइ बतावे), ९३५८१-२२(+#) पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसेढी तट मेरुधाम), ९२९५२-८ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ८९४०१, ८९४०८, ८९४९७-१(-$) पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं मेरे मन में तूं), ९३५८१-५२(+#) पार्श्वजिन पद, मु. कीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उगीयो पायो), ९३६५७-२(+) पार्श्वजिन पद, केवलराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरे मनमें रही रे), ९३५८१-४२(+#) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (कामसर सव मेरे देखे), ८९८६६-३१ पार्श्वजिन पद, मु. नग, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पारसजिन देव देव सेवक), ९३३३२-४८ For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ पार्श्वजिन पद, मु. रंगविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (मोने तारिये महाराज), ९२१२८-२२(+) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, पुर्हि, गा. ४, पद्य, वे (बिराजो बंगला में विरा), ९३५६३-४ " पार्श्वजिन पद, मु. विनयभक्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालोरी जीनमंदिर जाईइ), ९३३३२-६९ पार्श्वजिन पद, मु. सांवल, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (पारसनाम आधार सार भज), ९२१२८-१४६(+) पार्श्वजिन पद, मु. सौभाग्यधर्म, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरी सुरत पर कुरवान), ९३५८१-५४(+#) पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (वामाजी के नंद अरज), ९३५८१-२(+#) पार्श्वजिन पद, आ. हीरसूरि पुहिं गा ३, पद्य, भूपू (अजब ज्योत मेरे जिन), ९२६८७-२(*) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., ( पारशनाथ आधार मेरो ), ९३५६३-१३ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सांठे सुनदा क्यूं), ९३५८१-७ (+) पार्श्वजिन पद अंतरिक्ष मंडन, मु. माणिक, पुहिं, गा. २, पद्य, म्पू, (तोसु दिल लागा हो), ९३५८१-२७(१३) " " पार्श्वजिन पद- अमीझरा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( श्रीगिरनारे पास नमिय), ८९६२३-३(५) पार्श्वजिन पद-उज्जैनमंडन, पुहिं., पद्य, श्वे. ( मेरी तो निभाना दाता), ९२१२८-४३(+) " 7 " पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. केशव, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मनमोहन मूरति पासकी सूरत), ९३५८१-२४(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ले लागी ले लागी रे) ९२५६४-२ पार्श्वजिन पद- चिंतामणी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हमारी अंखीयां अति उलसानी), ९३३३२-२३ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू. सांयां तु भलावे), ९२१२८-११(*) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. विरमविजय, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू. (अजब जोत मेरे जिनकि), ८९८१९-३ पार्श्वजिन पद- सुरतमंडण, मु. रंगविजय, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (दरवाजे तेडा खेल रे), ९३५८१-१७ (+०) पार्श्वजिन पालणुं, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुं पासप्रभुने), ९२६८७-७ (+$) " पार्श्वजिन बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ८९४४५-१ ($) पार्श्वजिन विनती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगन्नाथ जी उलउ), ८९८९३-४१०) , " पार्श्वजिन विनती स्तवन, आ. विद्याप्रभसूरि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू (पास जिणेसर पर नमी), ८९४८१(३) पार्श्वजिन वीनती जीराउला, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुहावणा सामलधार देव मह आज), ९०३३८-५१(*) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु.. गा. ८. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ध्रुवपद रामी हो), ९२६०१-३४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आशकरण, रा. गा. १६, वि. १८३९, पद्य, ओ., (नगर वेणारसी ते), ९४४८१-३०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (वामाजी के नंदण वीनवु अर्ज), ९४४८१-७१ (#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (बादल दहदीस उनह्या), ८९४६७-१ (+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नयरी वाणारसी नित नवी), ८९६२१-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांति, पुहि. गा. ५, पद्य, मूपू (सखि री कोप्यो कमठ), १२१२८-२५(*) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कान कवि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (पारस भज ले वारंवार), ९३५६३-१५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मोह्यो री मा पासजिनंदा), ९३५८१-७२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जगरामदास, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (दे हो जिनराजदेव सेव), ९३५८१-१२(*) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अश्वसेनजीरा वावा), ९१७७८-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज बधाई म्हारें आज ), ९३५८१-२९(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, मृपू., (सुगण सोभागी साहब), ८९४१८(०), ९२७९५-१०(४) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन पास बडे धमचक्कु), ८९५७०-६ पार्श्वजिन स्तवन, उपा, देवचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (वामाराणीनंदा अश्वसेन), ९२६०१-३६ (+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वामानंदन आनंदन चंदन), ९२६०१-३१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धनमुनि मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (वाघपुरे श्रीपासजिनेश), ९२३७९-१८(१) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नग, पुहि., गा. ६, पद्य, ओ., (मोहि आसरो तेरो लाज रखो), ९३३३२-५३ For Private and Personal Use Only ५७३ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेत, पुहिं., गा. ११, पद्य, मपू., (श्रीपारसनाथ प्रणमीजइ), ८९४१७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पारसना पसायथी रे), ९३१९५-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. बखतावर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरणकमल जिनवरतणारे), ९२७९५-१३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (मुरत ताहरी हो राज), ९२१२८-१४९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविशाल, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनवर हो जिनवर पुरसा), ८९६५२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ९२१२८-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (को न गमे चितको न गमे), ९२१२८-८५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नविजयशिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (पास जिणंदनी जाउ बलीहारी), ८९६१२-१ पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (पासजिणंदा हो साहिब), ८९४४१-१ पार्श्वजिन स्तवन, ग. राजविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (भाव भगति धरि निरमल), ९२६०१-३७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद्रोदय, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (जय जिन तारक हे), ९३४१०-१८(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ९३५८१-५५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (त्रेवीसमा जिन ताहरो), ९३५८१-२३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (आज सखी संखेसरो मे नयणे), ८९४२१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सिद्धिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (--), ८९५७४-१(६) पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (चतुर नर मनकु समजाणा), ८९५४४-२(-) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेरीमाहे रमतो दीठो), ९२१२८-१२९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (--), ९३००४-१(+$) । पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (श्रीसारद हो पाय), ८९४४८ पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (श्रीसारद हो पाय), ८९६४५-१ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ८९३४६, ८९७५७-१ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ९३४३०-४, ८९६५८(#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ९४६१२-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे रे अक्षयनिधि), ९२५४७-३, ९२५७५-३(2) पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, ग. शिवचंद्र, मा.गु., गा. १६, वि. १६५४, पद्य, मूपू., (सोरठ देसि मझारि दीवबंदिर), ८९३९१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, स्पू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ९४४३२-२(+), ८९४२६-१ पार्श्वजिन स्तवन-कापरडा, मा.गु., पद्य, मपू., (श्रीकरपटहेटक प्रभु), ८९७५३-७(+$) पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, मु. करमचंद, पुहिं., गा. ११, पद्य, मप., (पास जिणेसर सामी), ८९३८३ पार्श्वजिन स्तवन-कामितपूरण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (पास प्रभु प्रणमु), ९३४०४-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-गवडीग्राममंडन, उपा. रत्नविमल, मा.गु., ढा. ८, गा. १७०, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सरसति समरुं स्वामिनी नाम), ९३९६५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ९२१२८-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कपूरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज सफल दीन माहरो मिभ), ८९४४१-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (जी रे ढोला हाथनली रे आवे), ९३५३९-२(+), ९३६५८-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीगोडी प्रभु पास), ९३५८१-७८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (तेवीसमा जिनराजनी रे बींब), ९२३७९-२१(+) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ९४६३७(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (भावधरी भजन करु आपे), ९४१८३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ९२३६६-११(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, फा., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगोरी पास गरिब), ९३२७५-२(+) (२) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (श्रीगोडी पार्श्व नम), ९३२७५-२(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रंगविजय, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम विना मेरी कुण), ९२१२८-३५ (+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सरवरी झीलण जास्या जी), ८९७८२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी बीकानेरमंडण, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोडीपास परमानंद), ९२३७९-३१(+) पार्श्वजिन स्तवन- घोघामंडण नवखंडा, मु. देवेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु., (जगनाथजी हे घोघाबिंदर), ९३३८४-७ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. भागचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहनगारो साहिब मेरो ), ८९५७४-५ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समरिय सामिण सारदा), ८९६४८-३ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., ( आणी मनसुध आसता देव), ८९५५१-२(१) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणि जेम), ८९५४०-३ () पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, मु. जिनचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामण श्वाम नयने), ९३५८१-७६ (+#) पार्श्वजिन स्तवन-जन्मोत्सव, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज महोच्छव अति भलो), ९१७७८-१२($) ', पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपु. ( जीराउलि मंडण श्रीपास), ९४३६६-१० (+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंदकल्याणवल्ली), ९०३३८-४२(+) पार्श्वजिन स्तवन- जेसलमेरमंडण, ग. ज्ञानप्रमोद, मा.गु., ढा. ३, गा. ३७, वि. १६८५, पद्य, म्पू, त्रिभुवननायक कुलतिलक), ८९७५६-११*) पार्श्वजिन स्तवन- जेसलमेरमंडन, पं. वीरमेरु पाठक, मा.गु., गा. ५. वि. १५८७, पद्य, मूपू. (सकल पास जिणंद वखाणी), ८९६६८-११०) (स्वस्ति श्रीदायक ) ९३६५२(+) पार्श्वजिन स्तवन- शामला, मा.गु., पद्य, मूपू., (तोरी सामली सूरत पर वारी ), ९४३६६-७ (४) " पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी परगडउ जेसल), ८९६५१(#) पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपु. ( परतापूरण प्रणमी अरिगंजण), ८९५०४-५ (क) पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५. वि. १७७८, पद्य, मूपू. (श्री भीडभंजन प्रभु), ९२०२६-७ पार्श्वजिन स्तवन- भीनासरमंडण, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. १२, वि. १९२६, पद्य, म्पू., (भीनासर भगवंत भेट्या), ९२३७९-३० (+) पार्श्वजिन स्तवन- मगसीमंडन, मु. उदय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू. ( श्रीमगश्री मगसी), ९२१२८-१३८(*) पार्श्वजिन स्तवन- लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (श्रीलोढण प्रभु पासजी), ९३९९५-१० पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. सुजस, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (वरदायनी विमल ब्रह्मा), ८९४२८ ! पार्श्वजिन स्तवन- वाडीपुरमंडन, उपा. नवरंग वाचक, मा.गु.. गा. ८. पच, मूपू., (आससेण भूपति कुलतिलउ) ८९६४८-२ " पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ८९३८६-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगलतणी कल्पवेली), ८९४११ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सरसति सामने वीनवुंग), ८९६५७-२ (क) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ९२७९५-९(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (अंतरजामी सुण अलवेसर), ९३५८१-८२ (*), ९२३६६-१० (#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. धनमुनि पुहिं., गा. ७, वि. १९३४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर साहिबो), ९२३७९-११(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू. (जी प्रभु पासजी पासजी), ८९६१२-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तारां नयनां रे प्याल), ९२१२८-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर पंचकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, मु. रंगविजय, मा.गु., डा. १९. प्र. ३७५. वि. १८४९, पद्य, म्पू, For Private and Personal Use Only ५७५ , Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-शिवपरिमंडण, मु. चंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्राणपियारा पासजि), ९२३७९-२५(+) पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम तो भले विराजो जी), ९३६५७-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समेतशिखर चलो जईयें), ९२१२८-१२५(+) पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (सहसफणा प्रभु पासजी जय), ९३५८१-३०(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुरे पास), ९३४२५-४(+), ९३६८४-८(#) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत त्रेवीसमो), ८९५१२-४(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ९३४१०-६(+#), ९४३०२-१७(+#), ९४३३८-१६(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (प्रभु पास महंता), ९२३७९-३९(+) पार्श्वजिन स्तुति, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., सवै. ३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमर हरन), ८९४६२-२(-) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, पू., (सारकर सारकर स्वामी), ८९३२८-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ९४६१२-८(+) पार्श्वजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ९२१२८-१२४(+) पार्श्वजिन होरी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, म्पू., (नवल दुलारो नाथजी), ९२१२८-२७(+), ९२५६४-१३ पार्श्वजिन होरी, मु. सेवक, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (ले गयो खेलन होरी रे), ९२१२८-१३(+), ९२१२८-११४(+) पार्श्वजिन होरी-चिंतामणि, मु. भाणचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (चातुरी कहा बोलु), ९२१२८-२८(+) पार्श्वदास विलास, श्राव. पार्श्वदास, पुहि., वि. १९२०, पद्य, दि., (वृषभ आदि सन्मति चरम), ९०१०८(+) पार्श्वनाथ प्रबंध, मु. ज्ञानकुशल, मा.गु., खं. ४ ढाल ५६, गा. १८८५, ग्रं. २६७५, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (पणमिय पयकमलवर विमल), ९४२३८(+#) पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहि., अ. ९, वि. १७८९, पद्य, दि., (मोह महातम दलन दिन,), ९०१८४(+) पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.ग., ढा. २, गा. ३५, पद्य, श्वे., (कुंडरीक रीद्ध तज), ८९४०२, ८९४७८-१ पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), ८९९००(#) पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ३६, गा. ७७५, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धि दायक सदा), ९२४८८-३($) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा.८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूप., (सकल सिद्धिदायक सदा), ९२१४४-७(+$), ९३७३३(+), ९२८३३-२, ९३२०७-१, ९४४८५-२, ९३४३१-२(5) पुण्यसार रास, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, मप., (सुख दाता श्रीसंतिजिन), ९३३३७+#) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (नाभिरायनंदन नमुंशांति), ९३०६८(+), ९४५१२-१(+#) पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, पुहि., गा. १०८, पद्य, मूपू., (संतो देखीयें बे), ९३५३९-१(+), ९३६५८-१ पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), ९४०८६(+), ९४४३८(+), ९४४५१(#$) पूनमगच्छ पट्टावली, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (--), ८९७०२-१(क) पृथ्वी सचितअचित सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (प्रथम नमु सहगुरुनु), ८९६३८-१ पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, मप., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ९२१५०-२(+) प्रतिक्रमणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (करो पडिकमणो भावसुं), ८९५०८-२(#$) प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकनां बारव्रत छै), ९३३२९-१(#) प्रदेशीराजा केशीगणधर कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९३०७६(+$) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ३८, गा. ७००, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धने आयरिआ), ९३०३४(+s), ९४५८१(#$) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. १७, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (रायप्रसेणी सुत्रमे), ९३९३७(+$) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५७७ प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३३, ग्रं. ११००, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध संपद करण), ९३१८५(+), ९२७५५(s) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मप., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ९२४२४-२(+$), ९२६०१-४३(+) प्रश्नबोल संग्रह, पुहिं., गद्य, श्वे., (पल बोल समगत ले नीरमल), ८९४९९(+-$) प्रश्नोत्तर १० दोहरा, पुहि., गा.१०, पद्य, श्वे., (कोन वस्तु वपुमांहि), ९३१५५-३१(+) प्रश्नोत्तरमाला, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २१, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमित सीस गोविंदसौ), ९३१५५-३२(+) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मन वसि करवू दोहिलू), ९३२४१-९ प्रस्तावशतक, मु. केसरविमल, अज्ञा., अ. ५१, जै., (--), प्रतहीन. (२) प्रस्तावशतक-टीका, मु. केसरविमल , सं., गद्य, मूपू., (श्रीमानादिजिनो भूयात), ८९८२९ प्रहेलिका सवैया-विलोमार्थगर्भित, मु. केसवदास, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., इतर, (सीधो उलटो वांचीये एक), ८९३२६-३(#) प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तुज पूछु वात हे), ८९४२०-२ प्रास्ताविक कवित संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., वै., (थरहरै कृपण पंचमांहि), ९४१६६-२(+) प्रास्ताविक कवित्त, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २३, वि. १७वी, पद्य, दि., (पूरव कि पछिम हो), ९३१५५-४२(+) प्रास्ताविक कवित्त, मु. भद्रसेन, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., इतर, (त्रिया बिना जीया अकयछ पल), ९४०९५-२(2) प्रास्ताविक कवित्त, क. मदन, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., इतर, (घेर तो राणा राजीया), ८९५०४-३(+#) प्रास्ताविक गीत, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (हरे कमरहि ललचाहिँ), ८९४४५-३ प्रास्ताविक दोहा, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, भूपू., (कासा कसिक ना लेत हे), ८९८०८-४(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., दोहा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला), ९३३९९-१(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (बुरी प्रीत भमर की कली कली), ९४४२५-१४(+), ८९३६४-२ प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मप., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ९२६९७(+$), ९३०५५ प्रीत्यष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पयसुं मंडे प्रीति भलइ जल), ९४५०३-५(#) फलपूजा दोहा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पलपूजा करतां थकां), ९२००७-१३(#) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (तुंगियागिरि सिखरि सोहै), ९३२४५-३१ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ९३३२३-५(+#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. २, गा. ३२, पद्य, मूपू., (द्वारिका बलतां निसर्या एक), ९३२४१-३ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ९३६६७-३ बादलपदमणी चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९४००४($) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (परणे रे बाहू रंग), ९२१२८-२६(+) बाहजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ८९६५५-१(#) बाहबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (बेहनड बोले हो बाहूबल), ९३३२३-९(+#) बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. नयसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (चोवीशमो जिनराजी चंपा), ९२४०९-३(+) बीजतिथि चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मपू., (बीज रीझ करी सींचीए), ९२४०९-८(+) बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, पू., (बीज तणे दिन दाखवू), ९३२४१-५८ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ८९८९४-५(+), ९४४२६-२(+), ९३६७६-२ बुद्धिबहोत्तरी, मु. कुशल, मा.गु., गा. ७३, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र माहे), ९४०३९-२१(+#) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ८९४३३(+#), ८९३४२, ८९७४६(#) बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीय ३०), ८९४६८-२(-६) बोल संग्रह-जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, स्था., (एगेंदीएसु पंचसु बार), ९४३९९(+#$) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पेले बोले समुद्रमा), ८९६७४ (-) भगवतीसूत्र गहुली, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखी भगवती पंचम अंग), ९२३७९-५७(*) " भगवतीसूत्र सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीसोहम जंबुने भाखे), ९२६०१-४४(+) भद्रबाहुस्वामी सज्झाय, पं. लालचंद्र, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शीत परीसह दोहिलो सहि), ८९४३६-५ भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८३५, पद्य, श्वे. (प्रथम सीवरीये ऋषभजिण), " ९४४८१-३८) भरतवाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, भूपू (तव भरतेश्वर वीनवे), ८९३६७-२ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( बाहुबल चारित लीयो), ८९७३२-९(+), ८९७४५-३ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ८९७५३-४(१), ८९४०९-२, ८९८२२-१, ९३६८४-२(४) भरतबाहुबली सज्झाब, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (राज तणा अतिलोभीया), ८९७७९(*) भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी मोहनी तज), ९३६६७-१४ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो) ९३२४१-८ भवसिंधु चतुर्दशी जै. क. बनारसीदास पुडिं, गा. १४. वि. १७वी, पद्य, मूपू., (जैसे काहू पुरुषको), ९३१५५-१६ (+) भवानी स्तोत्र, भवानीदास, मा.गु., गा. २५, पद्य, वै. (श्रीभवानी भवानी भवानी), ८९३३४-१(#) भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (क्रिया अशुद्धता कछु), ९३५४८-१($) भुजंगीदेवी छंद, मा.गु., गा. ४०, पद्य, वै., ( ॐकार मंत्र उद्धरणी बाहण), ९४१५७-१० (+), ९४६१२-१(+) मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २१, वि. १७१४, पद्य, मूपू., ( पास जिनेसर पय कमल), ९२४८६ (+) " मंगलकलश राख, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., ढा. २७ गा. ३२३, वि. १६९२, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीसीमंधराई वीसई), ९३३७३ (#) मंगल दीपक, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (करी आरती आरत दुर), ९२३७९-५८(१) मतप्रबोधछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३७, पद्य, मूपू., (तप तप तप तप क्यौं), ९३५४८-४($) मदनकुमार रास-शीलव्रताधिकारे, ग. चतुरसागर, मा.गु., ढा. २१, ग्रं. ३६०, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (नामें नवनिधी सिद्धि), ९३२५० मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), ९३१०१ (+), ९३५७९(+#), ९४६२७(+$) मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (मोरा प्रीतमजी तु सु. ९२६०१-४३(*) मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपु., (सरसति मुझने रे मात), ९३२४१-३० मधुबिंदु सज्झाय, गं. रामचंद्र, मा.गु, गा. ५१, वि. १७७८, पद्य, भूपू (काली पग प्रणमी करी), ९३०६३-७(+) मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (नमो रे नमो मनक), ९३२४१-८७ मनगुणतीसी सज्झाच, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवडा म मेले रे ए), ८९७६८- २ (१६) मन गुणमाला, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३१. वि. १८२०, पद्य, थे. (नमो अरिहंत सिधादिक) ८९४२४ मनबत्तीसी, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., गा. २७, पद्य, दि., (दर्शन ज्ञान चारित्र), ९२५३२-१२(+#$) मनोरथ भावना, मु. हुकमचंद मा.गु., पग, वे. (समरी सरसति भगवति) ९३२८३ , , " मरुदेवीमाता चौडालियो, मु. सेवक, मा.गु., डा. ४, पद्य, श्वे. (माताजी मरूदेवारा रे), ९३९९२-१(३) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३. वि. १८३७, पद्य, स्था., (नगरी वनीतां भली वीर), ९२०९३-७/४) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू (मरुदेवीमाता इम भणिइ), ९३२४१-२७ " मरुदेवीमाता सज्झाय, पं. लालचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मरुदेवि माडी मनि धरि ), ८९४३६-१ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता कहे), ८९३६७-१, ८९३८९ मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ८९९७६(+#) मल्लिजिन चैत्यवंदन, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परम मोदमां आज हुं), ९२३७९-२(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु. गा. १३, पद्य, श्वे. (मथुरानगरी कुभ नरेस सेवन), ९४४८१-२६ (#) मल्लिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण ऋषि, पुहिं., गा. १६, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (जीवडा जप लीज्यो रे ), ८९५२५-१(-) ', For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५७९ मल्लिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, पुहि., गा. ७, वि. १९४५, पद्य, मूपू., (मल्लिनाथ प्रभु), ९२३७९-१६(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा.८, वि. १८२७, पद्य, श्वे., (जयंत वीमांण थकी), ८९४४६-४ मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहे केसे तारोगे दीन), ९२१२८-१११(+) महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीरस्वामी), ८९४८६($) महावीरजिन गहुँली, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (कौनै वन वीर समोसर्या), ९३५८१-५१(+#) महावीरजिन गहुँली, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (विरजिणंद समोसाँ), ८९८२३-२ महावीरजिनचातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहेलो चौमासो मारवाड), ८९५४८-२ महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जगदाधार सार सिव), ९२९५२-७ महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभुवीर जिनवर सयल), ९२३७९-१(+) महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ९४२७४-३ महावीरजिन छंद-खंभातमंडन, मु. वीर मुनि, मा.ग., गा. ११, वि. १८१०, पद्य, मप., (महा मंगलीक भजो आप), ९२७९६-४(+#) महावीरजिन जन्मकल्याणक गहंली, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (आज ओछव छे रे सजनी चैत्र), ९२३७९-५४(+) महावीरजिन तपप्रमाण विचार, रा., गद्य, मूपू., (६मासी १ ति केरा मास६), ८९५४८-३ महावीरजिन देशना, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी दीये छे देसना), ९१७७८-५ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ९२०२६-८, ९३१८३-१(६) महावीरजिन पद, मु. नारायण, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (मुझने वीरजी वाल्हो), ८९४७८-२ महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (मो मन वीर सुहावै), ९३५८१-७९(+#) महावीरजिन पद, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरप्रभु तेरी दोस्ती), ९३५८१-५९(+#) महावीरजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (घंट बाजे घनननननन), ९२१२८-१२८(+) महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (माता त्रिशलाए पुत्र), ९२६८७-५(+) महावीरजिन बधाई, मु. हर्षचंद, पुहि., पद. ५, पद्य, मूपू., (वाजितरंग वधाई नगर मै), ९३५६३-१ महावीरजिन विनती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सिरि वीरनाह वीराधिवीर), ८९८१३-५ (2) महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (वीर सुणो मुज विनती), ८९४१०(#) महावीरजिन स्तवन, मु. अभयराज ऋषि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीर गुण गायसु), ८९६६१(2) महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वीरजीने चरणे लागुं), ९२६०१-३५(+) । महावीरजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २०, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (चरम जिणेसर वीरजी रे सासण), ९४४८१-४७(#) महावीरजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (तुसलानंदण वीरजिणेसर मन सी), ९४४८१-३७(#) महावीरजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, स्था., (त्रिसलानंदण नित नमु हो), ९४४८१-७(2) महावीरजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा.८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (समण सभगवो श्रीमहावीर बह), ९४४८१-५७(#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मपू., (नीजरां रहस्यांजी), ८९३८६-२, ९२३६६-९(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (त्रीगडे प्रभु सोहइ), ८९३७७-२ महावीरजिन स्तवन, मु.खेतसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (श्रीमहावीर त्रिभुवनधणी), ८९६३९-२८) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (करुणा कल्पलता श्रीमह), ९३४०४-३(#) महावीरजिन स्तवन, मु. धनमुनि, पुहिं., दोहा.७, वि. १९४३, पद्य, मप., (मरति मोहन वेली रे), ९२३७९-९(+) महावीरजिन स्तवन, मु. नवल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चालो राजा श्रेणिक), ९३५८१-१०(+#) महावीरजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (भविय लोय सिरिसोहमसाम), ८९५३६-१(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, पू., (गिरुआ रे गुण तुम), ९३१९५-५ महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नहृदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनवर मारा पावापुर महावीर), ८९७३१ महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (आमलकल्प उद्यानमां), ९२१२८-९४(+) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५. वि. १७वी, पद्य, मूपू (सिद्धारथना रे नंदन), ८९४३१-२६) महावीरजिन स्तवन, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनमोहनी आ रे मुहनइ), ८९६१३-२ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिणराय मन), ८९७३२-७(+) महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१ नं. १६२, पद्य, मूपू., (सुखकर स्वामी वीरजिन), " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२७४७(+#) (२) महावीरजिन स्तवन २४ दंडक २६ द्वारगर्भित टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुखनउ करणहार ठाकुर), ९२७४७( महावीरजिन स्तवन २४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु, डा. ६, गा. ८९, पद्य, भूपू (प्रणमी सरसति भगवती), ९३१७९(**) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ९२१२९, ९३२७०-४, ९३९९२-२ महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ४, गा. ३०, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ८९५९९ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ९२४०९-१७(+) " महावीरजिन स्तवन- कुंडलपुर, मु. जतीदास, पुहिं. गा. १०, पद्य, श्वे. (कुंडलपुर सुवावणो), ८९६९२-२ (+) महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह क्यो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, म्पू, (श्रीश्रुतदेवीनें चरण), ८९६७२-१ महावीरजिन स्तवन-छड्डाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू (सकल जिणंद पाय नमी), ९२३६६-१५( , महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपु (सरसति सामण दो मति), ८९४८८ महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ८९६४४-१ (#) महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( मारग देशक मोक्षनो रे), ९२६०१-२३(+), ८९५४९, ९१७७८-६ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., ( श्रमणसंघतिलकोपम), ९२४५१(३) " महावीर जिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु. दा. २ गा. ४३, पद्य, मूपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), ९२५६१(*) (२) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोगस्सणं भंते एगम्मि), ९२५६१(#) महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु, माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ८९७८४५) ९२३६६-१६ (४) महावीरजिन स्तवन- पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (चोमासी पारणो आवे) ९२३६६-१७/*) महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपु. ( समरवि समरथ सारदा), ९२१४४-६ (+) महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७१, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (गुरु पदपंकज नमी रे), ९२४०९-३० (+) महावीरजिन स्तवन संयमश्रेणीगर्भित, पन्या, उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५१, वि. १७९९, पद्य, मूपू (वर्द्धमानजिनं नत्वा), 1 ९२७०७ (२) महावीरजिन स्तवन-संयम श्रेणीगर्भित-स्वोपज्ञ टबार्थ, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (समस्त ज्ञानावरणीय), ९२७०७(१) For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ६, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (एकविध दुहविध त्रिविध), ९२७९१ (*४), ९३२७४ (६) (२) महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित-स्वोपज्ञ बालावबोध, मु. न्यायसागर, मा.गु., वि. १७७४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद दायक), ९२७९१(+४), ९३२७४(३) महावीरजिन स्तवन- सांचोरमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूषू, (साचुरि परव जगत). ८९५१२-५ (*) Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ महावीरजिन स्तवन-सुरतमंडण, मु. राजविजय, रा., गा.८, पद्य, मूपू., (सुरतमदर महावीरजणेसर), ८९५१७-१(-) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ९२६६३(+), ९२१०९-१, ९२३९८-१ महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ९३४१०-४(+#) महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पंचअनंत प्रपंच रहित), ९४३०२-४८(+#) महावीरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पूरब दिसि पावापुरी), ९४३०२-५०(+#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय), ९४३०२-३७(+#) महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (माता त्रिशला झलावे), ९२६८७-६(+) महावीरजिन गहुंली, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे श्रीगुरुचरण नम), ८९६८८(#) महरा परीक्षा, मा.गु., गद्य, इतर, (जे महरो सिंदरवर्ण),८९३६०-२ मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, पू., (स्थापनाजी पडीलेही), ९२४०८(+) माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूप., (सरस वचन द्यो सरसती), ९३९९२-४(5) माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (सरसति भगवती भारती), ९२७०३-२ माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय), ९२७०३-३ माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि), ९४३६७(+#), ९४५८०(+#), ९४५८४(+#S), ९४५९६(+), ९४०९५-१(#) मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ९२०५६(+#), ९३१२९(+$), ९३३४३(+#s), ९३८५३(+#$), ९२६०६-१(#), ९३८८१-१(#S), ९४३२८(2), ९४२९८(5) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), ९३४६३-१३($) मायापरिहार सज्झाय, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (माया कपट नवि कीजीह), ९३२४१-४६ मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यंत्र, मा.गु., यं., मप., (--), ९३२२४(+$) मिथिलानगरीऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथुलानगर ज्यां नगर), ८९५५६(+#$) मिथ्यात्वखंडन नाटक, मु. वखतराम, पुहि., गा. १४२१, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (प्रथम सुमिरि अरिहंत), ९०७९६(+) मिथ्यात्वपरिहार कुलक, मु. अमरभुवन, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (--), ८९५१४-१(+$) मिथ्यात्व वाणी, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नारायण देवको कहें कि), ९३१५५-४१(+) मुनिगुण सज्झाय, मु. कुशल, पुहिं., गा. ४२, पद्य, भूपू., (मुनिवर बाबन प्राण के), ८९७११ मुनिगुण सज्झाय, ग. देवचंद्र, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगतमें सदा सुखी मुनि), ९२६०१-२६(+) मुनिगुण सज्झाय, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आरति सवि दूरइं करी), ९३६८४-३(#) मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, मपू., (जंबुद्वीपे भरतखेत्र), ९३०५२(+$) । मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), ९३१३८(+$) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (मुनियसुव्रत जिण वांदीय), ९४४८१-१३(#) मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, मूपू., (प्रथमदृष्टि पडिलेहण जे), ९४३०२-२(+#) मुहर्त श्वासोश्वासमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (तीन हजार सातसि), ८९५७३-५(#$) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ९२१२८-१०६(+) मूत्रपरीक्षा, मा.गु., श्लो. ३४, पद्य, वै., इतर, (पश्चात् रजनीयामे घटि), ९४४२३-११(६) मृगसंवाद चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., गा. ३१३, वि. १६६३, पद्य, मूपू., (सकल देव सारदनमुः), ९२७०९-१(#$) मृगापुत्र पंचढालीयो, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ७१, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनगर सुहावणो मोटा), ९४४८१-६३(२) मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरसुग्रीव सोहामणो), ८९६९१ मृगापुत्र सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ९३२४५-१९ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ९३२४१-७, ८९६३२(-) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणु), ८९३२१(#) मृगावती चौपाई, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., ढा. १६, वि. १६८२, पद्य, मपू., (आदिनाथ प्रणमुं मुदा), ९३९११(+) मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मप., (समरु सरसति सामिणी), ९३०९९(+5), ९४३३१(+#), ९४३४०(#) मृगावतीसती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४२१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नरपति कुलिं), ९२५३५(+$) मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, मप., (महावीरजीनी वाणी), ९१६६०($) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ८९७००-१(+#) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८९६६४-२ मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (दशमें भवे श्रीशांति), ९३७६८-६(+) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.ग., गा. ३४, पद्य, मप., (दया बरोबर धर्म नहीं), ८९७३२-८(+), ९३६६७-१० मेतारजमुनि सज्झाय, मु. उदयहर्ष, मा.गु., ढा. ५, गा. ४०, वि. १७७८, पद्य, मप., (सुरनो भव मरो करी चवी), ८९७९३(2) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ९३२४१-६८ मेतारजमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (सुमत गुपतना आगरुजी पंचमहा), ९३२४५-६ मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. २४, पद्य, दि., (इक्क समैं रुचिवंतनों), ९३१५५-१०(+) मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ९२४८८-२($) मोहपरिवार सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (वाणी ए जिनवर तणी साच), ९२६०१-७(+) मौनएकादशीतिथि चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर गुणनीलो), ९२४०९-१०(+) मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सद्गुरू पाय नमीयें), ९३२४१-६१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मप., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ८९४५५-१(+), ९२०२६-१, ९२३६६-६(2) मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर चरण जुगि), ८९७५५-२(+६), ८९५७६ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ९२००७-१६(2) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूप., (समवसरण बेठा भगवंत), ८९४५५-२(+#), ८९८०२-१, ९२३६६-१२(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ९४४२६-५(+), ९३६७६-४ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), ९४३०२-२५(+#$), ९४३३८-५(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ९४३०२-४३(+#) मौनएकादशी वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ५९, वि. १९०६, पद्य, म्पू., (चोवीसे जिनवरण चरण), ९२१८५-२ यादवउत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरानगरी यदु नामे राजा), ९२३२२(+) यादवकुलविस्तार वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम हरीवर्ष क्षेत्रनो), ९२४४७ युगप्रधान वंदना, मु. कल्याणजी साहा, मा.गु., गा. ३१, वि. १६८५, पद्य, श्वे., (सकल सुखदातार श्रीजिनवीरजी), ८९३३६ युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (इहां पंचमारक माहि), ९३१९६ युगमंधरजिन स्तवन, मु. आसकरण ऋषि, पुहिं., गा.७, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (जुगमींदरजीन दुजा इंद्र), ८९४४६-५ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (काया रे पामी अति), ९२१२८-८१(+) युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दधिसुत विनतडी), ८९३२८-२ युगमंधरजिन स्तवन, ऋ. जेमल, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (बे कर जोडी जुगमंदर), ८९५५३-१ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जुगमिंदरजीसु मन लागो), ८९४४६-२ युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (निसदन लली ललि शीस),८९६९२-१(+#), ८९५२७ रणीयासुत चौपाई, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९३३१३(5) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ८९४९७-२ (-) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), ९२६६६ (५) रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा. गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल चाली रंगसु रे), ९३२४५-४२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं. गा. १९, पद्य, मृपू., (देखी मन देवर का), ८९५५४-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पेखी पसु रथ वालीयो), ८९३७१ (+), ८९४६७-२(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू, (छेडो नाजी नाजी छेडो), ८९७८९-४(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (राजमती रंगि कहि), ८९५४३-१(३) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपु. ( काउसग व्रत रहनेम), ९३२४१-१३, ९३२४५-१६ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु गा. ८, पद्य, भूपू (काउसमा ध्याने मुनि), ९३२४५-१७ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू (रहनेमि अंबर विण), ९२०२४-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ९३३२३-११(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ९३२४१-१४ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा. गु, गा. ७, पद्य, म्पू. (--), ८९६२६-१(३) रसिकप्रिया, इंद्रजीत कुमार, मा.गु., प्रका. १६, गा. ५१७, पद्य, वै., इतर (एक रदन गज वदन सदन बुद्धि), ९२९७३ (+९) (२) रसिकप्रिया - बालावबोध, उपा. कुशलधीर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (--), ९२९७३ (+$) . राजसिंघ रास, मु. चोथमल, मा.गु., ढा. ३६, गा. १९८१, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (श्रीआदि जिन आदे करी), ९३१६६ (+) राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु. गा. २१. वि. १८५२, पद्य, वे (सासननायक सुमरिय), ८९४५४४) राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू. (सुणि सुणि चतुर सुजाण), ९३२४५-२३ राजिमतीसती सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु. गा. १७, पद्य, म्पू., (श्रीजिनवरसुं वीनती) ८९५१७-२८) राठोडकुल वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपु. ( अभयपूरा १ जेवंत २ सूर ३) ९४०३९-१६(+#) , राणकपुरतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (जगपति ज्योज्यो ऋषभ), ९३१९५-१५ रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु. दा. २४, गा. ४०५, वि. १७२३, पद्य, म्पू. (सुबुधि लबधि नव निध), ९३३८३ (+९) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रात्रिभोजनत्याग कथा, मु. भारामल्ल, पुहिं., गा. २२२, पद्य, वे (प्रथम नमो जिनदेव दूजेगुर), ९१५०८ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ९३२४५-१ (३) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., डा. २ गा. १४, पद्य, म्पू., (गुरु चरणे रे भाव) ९३२४१-८२ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ९३२४१-६, ८९७६१-१(७) राधाकृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं. गा. ५, पद्य, वै., (बहिया जो ग्रही मेरी), ९२१२८-४५(*) रामकृष्णभक्ति पद, भर्तृहरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (रामनाम जिहां कृष्ण), ९२१२८-४४(+) रामचरित्र रास, वा, विनयसमुद्र, पुर्हि, पद्य, भूपू (--), ९४४९३(३) रामभक्ति पद, कान, रा. गा. ४, पद्य, वै., (राम नाम निज चीवार मंत्र), ९३५६३-१६ " ग्रं. रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु. अधि. ४ डाल ६२, गा. ३१९१ नं. ४३७५. वि. १६८३, पद्य, म्पू.. (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ९२४६८(४) ९३४७० (१६) रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., इतर, (सिद्धबुद्धिदायक सलहीये), ९०३८७-१(०) ९३३२७६) ९४१३७(२) (२) रामविनोद - हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., इतर (सुभमति सरसति समरिये), , ९०३८७-२(+$) रायचंदगुरुगुण भास, मु. कुशलचंद, मा.गु., गा. ३२, वि. १८६१, पद्य, श्वे. (श्रीमीदरजीण आद दे), ८९७२३ () रावण चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (अतवरो छ मानवि क्रोध), ८९३९८ रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय, पुहिं. गा. १६, पद्य, मूपू. (श्रीरामचंद्रजी आवा), ९२०९३-५ () रावण सैन्यमान कवित्त, मा.गु. पद. १, पद्य, जै. वै.. (एक कोडि गजबंध अड बदस), ९२६७९-२ (७) For Private and Personal Use Only ५८३ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रुक्मणीसती मंगल छंद, क. नरहरि, मा.गु., पद. १३, पद्य, वै., (भुवपति भीखमरा उतकुंद), ९३०११-१(+#) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.ग., गा. १४, पद्य, मप., (विचरता गामोगाम नेमि), ९३२४१-९२, ९३२४५-२,९३३८४-१ रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मपू., (आदि जिणेसर आदिसउ), ९३०९४(+$) (२) रूपकमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आदिनाथन आदेस मागी), ९३०९४(+$) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ८९७६१-२(#) रोहिणीतपविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.ग., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मप., (सुखकर शंखेश्वर नमी), ९२४०९-२०(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ८९४२२(+), ९३४२५-१(+), ९२३६६-५(२) रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ८९५०१-३, ९३६७६-९ रोहिणीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मप., (उच्चिट्ठमसुंदरयं), ९२१५०-७(+) लीलावती चौपाई-शीयलविषये, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ४७२, वि. १६०३, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), ९२७४५(#) लीलावतीसमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.ग., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूप., (परम पुरुष प्रभु पास), ९२७७७ लोभ निवारण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रामा रामा धन धन फिरत), ८९७६३-२(+) लोभाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कणवृत्ति कर तु कोइ सुखइं), ९४५०३-६(#) वज्रधरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वज्रधरजिनवर वंदो दुरित), ८९३३४-२(#) वज्रस्वामी गहली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सखी रे में कौतुंक), ८९५०१-१ वज्रस्वामी चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ८, गा. १३८, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (अरिहंत० आरीया उवजाया), ९३७३७-१(+#) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मप., (अरध भरतमांहि शोभतो),८९५७१, ९२१३६ वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गणधर दश पूरवधर सुंदर), ९३२४१-८९ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल), ८९७५२-१(#$) वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२९, ग्रं. ३५०, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथनइ), ९४५५० वसदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., गा. ३५६, वि. १५५७, पद्य, मप., (सकल मनोरथ सिद्धि), ९४५६२(+#$) वस्तुपालतेजपाल रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ८५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जिण चउवीसइ चलण नमेवी), ८९५८४ वासुपूज्यजिन पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीवासुपूज्य नरेसर हिमकर), ९४३०२-२९(+#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ८९७८९-३(+) वासुपूज्यजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. सुमतिकमल, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (--), ८९७९८-१(+#$) विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मपू., (प्रणमु पासजिणंद पय), ९२३०९(+$), ९३११४(+$) । विक्रमराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९४५४१(+$) विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., ढा. १७४, गा. ५७९७, ग्रं. ७४४०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (अमल कमल सम नयन यूग), ८९९०२(+), ९१७३७(+$) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकास), ९३४९५-१(+#) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), ९४३३९(+), ९३८९३(१), ८९४३७-२(5) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं), ९२८०८($) (२) विक्रमादित्य चरित्र-पंचदंडसाधन चौपाई, हिस्सा, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. ५०, गा. २७४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (श्रीसुखसंपद पूरवै), ९२९६४(+#) विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ९१२९८($) विचार संग्रह*, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), प्रतहीन. (२) विचार संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं गुरुश्च वंदित्व), ९३०८५(+$) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५८५ विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू, (समजवा हेतु सूत्रमाहि), ९२८३६(+$) विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. कल्याणहंस, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सहिया मोरी सुगुरु वध), ८९५६८-२ विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीविजयरत्नसूरिंदना), ९३२४१-८५ विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, मु. विनयचंद, म.,मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पासोबा नमीन् मीत्तर), ८९५३४(+) विजयदेवसूरि स्तवन, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जी हो राय देस रलियाम), ८९७५२-५(4) विजयधर्मसूरि बारमासा, मु. जैनेंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (श्रीश्रुतदेवी मात), ८९४१६ विजयप्रभसूरि भास, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (निजगुरुना प्रणमी), ८९४३१-१(2) विजयरत्नसूरि गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अमिरस पाउं थाने दाडि), ९३२४१-५१ विजयसिंहसूरि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (वचनसुधारस वरसती), ८९८१८-१(+#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (शीयल तणी महिमा सांभल), ८९४९२-२(+), ८९५१९-२(+-) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मप., (प्रह उठी रे पंचपरमेष्ठी), ८९५७७-७() विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५८, गा. १५३०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ जिनवर प्रणम्य), ८९९७५(+), ९२६१०(+) विमलजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिखर समेत वसे हो), ९३५८१-४(+#) विमलजिन स्तवन, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८३५, पद्य, स्था., (अहो विमलजिणेसर वांदीय), ९४४८१-९(4) विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), ९२२८५(+#$), ९३०७५(+#$), ९४२७९ विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., इतर, (सदगुरु वाणी समरि), ९३८००-३ विविध कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ एह उपरि भरतेश्वर), ९४५०५(+$) विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पूर्व महाविदेह विराज), ९२७९६-३(+#) वीतराग विनती, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीतराग तुम्ह पाय), ९०३३८-४६(+) वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., ढा. ६५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी सानिध करो), ९२१०८(+s), ९१९९७(#) वीसविहरमानजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रह उठी नित्य प्रणम), ९२३७९-२९(+) वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५१, वि. १७वी, पद्य, दि., (जगत विलोचन जगतहित), ९३१५५-४(+) वेदनीयकर्म निवारणपूजा ढाल, मु. वीरविजय, गु.,मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सांभलजो मुनि संयमराग), ८९६४०-५ वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), ९३३१५, ९३३११(#) वैद्यलक्षणादिप्रस्ताविक कवित्त, पुहिं., गा. ४१, पद्य, मूपू., (करमरोग की पर किति), ९३१५५-४४(+) वैराग्य गाथा, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (चोवा चंदन चरची काया), ९३५८१-२८(+#) वैराग्यपचीसी, जै.क. भैया, पुहि., गा. २५, वि. १७५०, पद्य, दि., (--), ९२५३२-४(+#$) वैराग्य सज्झाय, मु. नग, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन चित भूल्यो रे), ९३३३२-४५ वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (कां नवि चिंते हो चित), ९३२४१-३२ वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ते गिरूआ भाइ ते), ९३२४१-८६ वैराग्य सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (वैकुठ पंथ बिहामणो), ९३२४१-८० शकुनविचार गाथा, मु. खेम, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., इतर, (आज राज पामीयो आज सगला), ९४४२५-१५(+) शकुनावली कवित्त, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., इतर, (दधमछी सांमु हाले आयो), ९३३९०-२(+) शकुनावली चौपाइ, मु. भाणजय, मा.गु., पद्य, मपू., इतर, (--), ९४१८९(+$) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मप., (विमल गिरिवर विमल), ९३२२०(+), ९२३४४, ९३४३१-१, ९२४५८-१(5) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, उपा. देवचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ६३, पद्य, मूपू., (नमवि अरिहंत पयणंत), ९२६०१-४१(+) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू. (वागवाणि सुपसाउ करे), ८९७२१-१(०), ८९७२७-१(क) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (समरवि सरसति हंसला गामिणि), ९०३३८-४५(+) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( जय जय नाभिनरिंदनंद), ९४३०२-५ (+#), ९२९५२-३ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू (सिद्धाचल सिद्धक्षेत्र), ९२४०९-१२ (+) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल शिखरे चढी), ९२४०९-१३ (+) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ९२४०९-११(+) शत्रुंजयतीर्थ नाममाला स्तवन, मा.गु, पद्य, भूपू (ऋषभदेव पय प्रणमी करी) ८९७२८-३(४) शत्रुंजयतीर्थ पद, मु. हितप्रमोद, मा.गु. गा. ४. वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीसेजो तीरथ प्रणमु), ९४३०२-२८(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (जगजीवन जालम जादवा), ९३२२३(+) शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., डा. १०. गा. १५२, वि. १८४०, पद्य, मूपू., ( विमलाचल बाहला वारु), , ९२७९७-२(+#), ९३६११ ($) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( आंखडीये रे में आज ), ९२६२० - २(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदवरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू.. (डुंगर ठंडो रे डुंगर), ९३४१०-२९(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ९३३३५-२(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ८९५६८-१, ९३१९५-१३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ९२१२८-९९(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामिनी), ९३९९५-१६ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. गीतमविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (जगपति वंदो विमलगिरी), ८९६५७-११४) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ९३५८१-७७(+#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ८९७०५-४(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू (करजोडी कहे कामनी) ८९७८१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), ९२१२८-११२(+), ९१७७८-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (मोरा आतमराम कुण दिन), ८९३३४-३(A) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चालो चालोने राज श्री), ९२६०१-२८(*) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो मोरी सहीयां), ९२६०१-१८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मृपू., (चालो सखी जिन वंदन जइ), ९२६०१-२९(*) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. धनमुनि पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (विमलगिरि पूजो रे), ९२३७९-१९(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., ( पालीताणुं नगर सोहामण), ९२१२८-११३ (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरे रुडा पंखीडा), ८९३२३(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू.. (सफल संसार अवतार मांह), ८९४५३-२(+#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरि सिद्धक), ९२३७९-३२(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ९२६२२-१(5) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( आजनो दाडो रे सजनी), ९२३७९-१४(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रावक सहु कोइ आगल), ८९५६४(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु. डा. ३, गा. १३, पद्य, भूपू (पय पणमी रे जिणवरना), १२१३९-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु, गा. ५. पद्य, मूपू. (श्रीसिद्धाचल वंदो रे), ९३९९५-६ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन-२१ नाम गर्भित, मु. धनमुनि पुहिं., वि. १९४४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धक्षेत्र सोहामणो), ९२३७९-१५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपु. ( श्रीसिद्धाचलमंडण), ९३५८१-३२(क) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेजा रलीआमणो), ८९५१२-१(*) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु.. गा. १०, पद्य, मूपू., (आज अम घर रख ऊमाहो सकल), ९२६०१-३० (+) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५८७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (विमलाचलमंडण जिनवर), ९२६०१-६(+) शत्रंजयतीर्थ स्तति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीशत्रुजयमंडण), ९४३०२-४२(+#) शत्रंजयतीर्थ होरी, मु. अमृतविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (भेट हरख दुख मेट), ९२१२८-२०(+) शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (चालो चालो सखी सिद्धाचल), ९३५८१-८१(+#) शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रॅक स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभाते प्रभु), ९३७३०(+) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ९४३६६-१२(+), ८९५६६-२ शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (अहि नर असुर सुरपति), ९३४१०-१५(+#), ९४४२२-७(+$) शनिश्चरदेव स्तवन, मु. कल्याण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आवो मोर मीलो ए सहेली),८९७६५-२(2) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (जय जय आरती शांति), ९२१२८-९३(+$) शांतिजिन गीत, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (संतजिन जुं वरी हौ श्रीजिण), ९४४८१-४२(#) शांतिजिन गीत, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सांति दांति कांति), ९१७७८-११ शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलमा जिनवर शांतिनाथ), ९२९५२-४ शांतिजिन छंद, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (सहि एरी दिन आज सुहाय), ९३१५५-३७(+) शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (विश्वसेन कुल कमल), ९३१५५-३८(+) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ९४३६६-२(+), ९४३६६-१३(+$), ८९५०८-१(#) शांतिजिन विनती, ग. सहजविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सयल संतिजिणेसर निरखी), ८९८१३-२(#) शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., गा. १८, पद्य, पू., (जय सयल सुरासुर नमिय), ९२७२८-४(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (इंद्र वखाणो अभद करीनै), ९४४८१-४८(2) शांतिजिन स्तवन, श्राव. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आज थकी में पामीयो रे), ९३३८४-२ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (संती जीणेसर सत करो), ८९६३९-१(-) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ९२१२८-१५४(+), ८९८१९-४ शांतिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (वाल्हा शांतिजिनेसर), ९२६०१-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. धर्मकीर्ति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (सांतिजिनेसर सेवीये ल), ९३५८१-८३(+#) शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (देउइहपुरी दीपई),८९५१२-२(+) शांतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (लव सन्मुख जोवइ जेय), ८९५३६-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (सोलमा जिनराज), ८९३७०-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ९३१९५-९ शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ९२१२८-२९(+) शांतिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३२, पद्य, स्था., (नगरहैथणापुर दीपता रे), ८९४३०-१(-) शांतिजिन स्तवन, मु. लालरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सारदमाय सुपसाय जिनेस), ८९३७०-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. हमीर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीरे मारे नमीये दशमो), ८९८०२-२ शांतिजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (अचिरानंदन स्वामीनौ), ९३५८१-७४(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ महाराज), ८९३६९-२(+) शांतिजिन स्तवन-मीमचनगरमंडण, आ. विनयसरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (बे करजोडी वीनवु वीनतडी), ८९७३८-२ शांतिजिन स्तवन-वीसस्थानक विधिगर्भित, मु. भावहर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (नमिय सिरिसंतिजिणं संतिगुण), ८९७९१(२) शांतिजिन स्तुति, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अवतरिउ अचिराऊ अरिजसि), ८९५८५-३(+) शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (फलवधीरो मंडण सांति), ९३६७६-१० शारदादेवी छंद, मु. हर्ष, पुहि., गा. १०, पद्य, मपू., (आदिशकति अंबा सुविजाणी), ९४६१२-२(+) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा.१०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ९३१५५-२३(+) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शालिभद्रमनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा.५१०, वि. १६७८, पद्य, मप., (सासननायक समरियै), ९३०८०(+#S), ९३०९८(+#$), ९४००५(+#), ९४३२७(+$), ९२४२०, ९२६६७-१,९३५३७, ८९७२२(६), ९२७७२(-१) शालिभद्रमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९३२३७(#$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (प्रथम गोवालतणे भवे), ९३३२३-४(+#), ९३२४१-६९ शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुदी आठम चंद्रानन), ९२४०९-२८(+) शाश्वतजिन स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, भूपू., (सरसति शुभमति सासती), ८९७५५-१(+) शाश्वतजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्पू., (नंदीसरवर दीप मझारि), ९०३३८-५५(+) शाश्वतजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (ऋषभानन चंद्रानन जाणो), ८९३३७-२ शिक्षापंचासिका, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ५०, पद्य, दि., (राग विरोध विमोह वस), ८९८६६-१६ शिवकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (पद्मरथ राय वीतशोकापु), ८९७८५ शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २६, वि. १७वी, पद्य, श्वे., (ब्रह्मविलास विकासधर), ९३१५५-१५(+), ९३७७८-८(+) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ९३६८४-७(#) शीतलजिन पद, म. शीतल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मन मेरे दोष भाव), ८९८६६-३० शीतलजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (भदलपुर नगरी भली दृढरथ), ९४४८१-११(#) शीतलजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (सीतलनाथ जपौ सुखदाई भजन कर), ९४४८१-९०(#) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ८९४६१-१(#) शीतलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सुगुण सोभागी साहिबा), ९२१२८-१०८(+) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ८९४०९-१ शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ९३९४७-१(+#), ९४५३९(+) शीयलव्रतमहिमा सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सीयल सुरंगी रै नित नित), ९४४८१-१५(2) शीयलव्रत सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सतगुण य नमीने जपु), ८९४००(+#), ८९४९६-३(#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. जादव, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रभुजी रे पाये शीश नमावु), ८९६४०-२ शीयलव्रत सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., गा. ३२, वि. १८००, पद्य, श्वे., (सारद माता समरु तो ही), ८९६७५(#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. शियलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय निवारीये), ८९७३७-२(+-$) शीयलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते तरीया भाई ते), ९३२४१-७१ शील रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (सील सुध चुतर सूजाण), ८९७२४(5) शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., खं. ६ ढाल ८४, गा. २०६१, वि. १७५०, पद्य, मपू., (ॐकार अक्षर अधिक), ९१४३६(4) शीलोपदेश सज्झाय, क. जैत, पुहि., गा. २५, पद्य, मूपू., (अरिहंत देव धर्म पाउं), ९२३६६-२(2) शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर माया), ९२६५९(#$) शुकराज रास, पंन्या. मतिहंस, मा.गु., ढा. ७२, गा. १८०८, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरु प्राणनाथ), ९४३०५(+) शुद्धमतिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीशुद्धमतिहो जिनवर), ९२६०१-१(+) शृंगारिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (इस बादरीने मेरो चंद), ९२१२८-१४२(+) श्रद्धामंडण, मु. रत्नविजय, पुहिं., प्रश्न. ११, वि. १९०६, प+ग., मूपू., (सर्वज्ञ कुं प्रणम्), ९२४२१(+) श्रमणपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सुरतर सीउरमणी सारसा), ८९७१५ श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मप., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ९२७६२-३(+) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकना तीन मनोरथ), ८९३८८ श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अष्टविधियिज्ञान आशातनाइं), ९३००३(+$) श्रावक आलोयणा सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३१, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (पांच हुडीनो पाडीयो लाय), ९४४८१-३२(#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ९४३६६-१५(+) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ ५८९ श्रावकगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४६, पद्य, श्वे., (--), ९४४८१-९३(#$) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ९२९५२-१३ श्रावकधर्म सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (देहि दगथी के मान करणावे), ९४४८१-२०(#) श्रावकधर्म सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (पुन्यवंत जीव जगत मै होय ऐ), ९४४८१-४४(#) श्रावकव्रत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ५७, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (दजौ व्रत श्रावक तणो), ९४४८१-१४(#) श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहिं., अधि. २४, गा. २२५९, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्ण भव्या), ९०७९४ श्रावकोपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (श्रावकधर्म करो सुख), ९३४६३-९ श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १११, गा. २३९५, ग्रं. ६९३९, वि. १७७०, पद्य, मूप., (सुखकर साहिब सेवीइं), ९३४७६(+$) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल कवियण तणी), ८९९७०-१(+#), ८९९७८+), ९०११८(+#), ९०१२२(+$), ९१२७९(+), ९१२८७(+#), ९१७५४(+$), ९१८२७+), ९१८७९(+$), ९१९४५(+), ९१९६५(+$), ९२०४४(+$), ९२३०४(+), ९२३१०(+), ९२५१०(+), ९२५१७(+$), ९२७५८(+$), ९३१३०(+$), ९३३४४(+#), ९३६०४(+#), ९४२३५(+#), ९२३८३(#$), ९३५७२(#$), ९१३१२(६), ९१५५२($) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (तिगुणसुंदरी चौसठकला), ८९९७८), ९०११८(+#), ९०१२२(+$), ९२५१०(+), ९४४३६(+$), ९२३८३(#$) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), ८९९७८(+), ९०११८(+#), ९०१२२(+$), ९१७५४(+s), ९१९६५(+s), ९२०४४(+), ९२३१०(+), ९२५१०(+), ९२७५८(+$), ९१५५२($) श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मपू., (अरिहंत अनंतगुण धरी ये), ९२६०३(+), ९३३४१(+) श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), ९३२७५-१(+), ९३७८९(+s) श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मूपू., (करकमल जोडि करि सिद्ध), ९४०८८(+), ९३२१६ श्रीमती चौढालियो, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (खीर खांड मिलीया खरा), ८९६८७-१ श्रेणिकराजा चरित्र, मा.गु., सवै. ७९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनराज महासुखदायक), ९१७०४ श्रेणिकराजा चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३२, गा. ७३१, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (जगनायक चउवीसजिण), ९३२५१(+#$) श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण, मा.गु., खं. ४, वि. १६८४, पद्य, श्वे., (श्रीजिननायक भावशुं वंद), ९४३४२(+#$) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अब तो उधारो मोहि), ९४३६६-२०(+) षड्दर्शनाष्टक, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (शिवमत बोध सुवेदमत नैयायक), ९३१५५-३४(+), ९३१८८-७ षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ८९५९२-१ संग्रहछत्तीसी-ढाईद्वीपमान वर्णन, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मप., (श्रीआदीस्वरजिण प्रणम), ८९३७४($) संथारा सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २०, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (जंबुदीपरा भरत मेरै लाल), ९४४८१-७२(#) संभवजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वांके गढ फोज चढी), ९२१२८-१४१(+), ९३५८१-७१(+#) संभवजिन विज्ञप्ति छंद, मु. हंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (सुणो संभव स्वामी), ८९७५०(+) संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (संभव जिनवर वीनती), ९३१८६-३(+) संभवजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (सुखकार हो), ८९५४३-२ संभवजिन स्तवन, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (सुखकारी संभवसामी सूख), ८९४३९-२ संभवजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (संभवजिन शिवसुखनो), ९२३७९-४०(+) संवत्सरी क्षमापणा गहुंली, मु. धनमुनि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज संवच्छरि दीन रुडो), ९२३७९-५५(+) संवेगरसायनबावनी सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५३, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे श्री), ९३२०७-२ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ९३२४५-३९ सच्चियायदेवी छंद, आ. सिद्धसरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (मुज मन आस्था अज फली), ८९४७३-१(२) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सज्जनाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एक हरे अंधार तास), ९४५०३-१(2) सतगुरुमहिमा सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (तारै सदा एक सतगुर तारै भव), ९४४८१-७३(#) सतीदृष्टांत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (ब्राह्मी ने वलै सुंदरी), ९४४८१-८९(2) सत्यदृष्टांत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (मौटो सरणौ साचरो रे), ९४४८१-७९(2) सत्यसौभाग्यउपाध्याय निर्वाण रास, श्राव. धर्मदास जयसिंघ, मा.गु., गा. १५०, पद्य, मपू., (जिनवर नित प्रणमीइ), ९२७८१(+) सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ३९०, वि. १६९७, पद्य, स्पू., (स्वस्ति श्रीसोहगसुजस), ९३२४६(5) सनत्कुमारचक्रवर्ती चौपाई, ग. लालचंद, मा.गु., ढा. ७, गा. ९६, वि. १७वी, पद्य, मप., (थे वेणविसप्पपरिसासण), ८९७१२ सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८५, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (सुखकरि संतीसर नमुं), ८९५२३(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मप., (सुरपति प्रशंसा करे),८९४४७, ९३४६३-१० सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., गा.१५, पद्य, श्वे., (अमर तणी वाणी सुणी), ८९७६४-१(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (इंद्र प्रसंसा संभली), ८९७५३-१(+) सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुल), ९३२४१-४५ समकित दीपक, मा.गु., पद्य, मप., (सयल जिणंदह नमवि पय गोअम), ९३८७७(+$) समकितपांचदूषण परिहार सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित दोषण परिहरो जेहमे), ९३२४५-३४ समकितपांचलक्षण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लक्षण पांच कह्या समकित), ९३२४५-३३ समकितव्रत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (समकित सूध आराधीयै जी), ९४४८१-१७(#) समकितसित्तरी स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ७, गा. ६८, वि. १७३६, पद्य, मपू., (सांभलरे तुं प्राणीया), ९३२४५-२६ समता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (चाखो रे नर समतारस), ८९५१९-४(+-) समयसारसिद्धांतनाटक के कवित, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम अग्यानी जीव), ९३१५५-४०(+) समवसरणद्वार-भगवतीसूत्रे-शतक ३०, मा.गु., गद्य, स्था., (जीवाय १ लेस २ पखी ३), ९३५९६-१(-) समवसरण रचना स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर चरण कमल), ९३१८३-५(६) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (पूरव दिसे दीपतो), ९४३०२-७(+#), ९२९५२-१० सम्मेतशिखर तीर्थमाला, ग. जयविजय पंडित, मा.गु., गा. ९८, वि. १६१४, पद्य, भूपू., (प्रणमीअ सहगुरूतणा पा), ९४२६२(#) सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., ढा. ७, गा. १९६, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (अजितादिक प्रभु पाय नमी), ९२९७६-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १०, वि. १७४४, पद्य, मप., (तोह नमो तोह नमो समेत), ९२१२८-८२(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ९३१९५-१४ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (जंबूद्विप दक्षिणचर), ९२६०१-२०(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीसमेतशिखरवरु तीरथ), ९२६०१-२१(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (श्रीसमेतगिरिंद हरख), ९२६०१-१९(+) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मप., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ८९७७४(+#s), ९२३५०, ९३५३८ सम्यक्त्व कौमुदी चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., खं. ६, ग्रं. ५५००, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण युग), ८९९६४(+), ८९९६५(+) सम्यक्त्व व्रत ६७ बोल स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १७४२, पद्य, मपू., (पर उपगारी परम गुरु), ८९५६९-१ सम्यक्त्वव्रत उच्चरवानो आलावो, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइ कहे छे के अमने), ९१३२३-३(+) सम्यक्त्व व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मप., (खउपसम१ वेदक२ उपसम३), ८९५०९-३(-) सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (सीख सुणीजौ हौ निग्रंथ), ९४४८१-८१(#) सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, मु. देवीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (समकीत नाह सही रे), ९२३७९-४३(+) सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), ९४२१६-२(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (सरस वचन समता मन), ९४३६६-१४(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), ९४४२५-६(+) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, जै., वै., (सरसति भगवती जग), ९२७०३-१ सर्वजिनकल्याणक स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (परुरंदरपुरस्परद्धिवर्द्धि), ८९९०३-२९(+) सर्वजिन स्तोत्र, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (मुख संमुखं नयणले देव दीठउ), ९०३३८-४० (+) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ९३७६८-५ (१), ८९५३७, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुं जिनराज आज), ९२४०९-१(+) साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं, गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (अब मेरे पति गति देव), ९२३९९-६ (*) साधारणजिन पद, मु. आनंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसन लागै नेणा दरस), ९३५८१-६२(+#) साधारणजिन पद, मु. खुशालराय, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (अखीया मेरी वावरी), ९२१२८-१५१(+) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( क्या करियै अरदास साध), ९३३३२-२१ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाथ तुमारी तुमही), ९३३३२-१६ साधारणजिन पद, मु. दानचंद्र, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (मेरे प्रभु तुही वखत), ८९७८२-४(+#) साधारणजिन पद, जै.क. धानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हो स्वामी जगति जलधि), ८९८६६-२५ साधारणजिन पद, मु. धरमपाल, पुहिं., गा. २, पद्य, वे. (देखनुं दामानु वाव प्रभु), ९३५८१-२६(*) साधारणजिन पद, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरखत हे भवि मोर सिं), ९३८८३-२(#) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (एही सभाव पड्या हो), ९३५८१-६४(क) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जब तुम नाथ निरंजन तब), ९२६८७-१ (+$) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (फरसे जिनराज राजरीध), ९२१२८-६३(+) साधारणजिन पद, मा.गु.. गा. २, पद्य, मूपू., हाली नाली वाल दीपसू आर ). ९४०३९-७(१*) " , " ९३४३०-२ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (इण स्वार्थसिध के चंद), ८९५५८-२(#) सवैयाबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. ५२, वि. १६८६, पद्य, दि., (ॐकार सबद विहदया के), ९३१५५-३ (+) सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सहसकूट जिनप्रतिमा वंदीये), ९२६०१-२२ (५) सबिप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ डाल २२, गा. ५३५ नं. ८०० वि. १६५९, पद्य, मूपु. ( श्रीनेमीसर गुणनिलउ ), ९३९०७-१(+) ९३२६८) साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखो रे जिणंदा प्यार), ९२१२८-१३४(+) साधारणजिन स्तवन, मु. आसकर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मूरत थारी सारी), ९३५८१-७३(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ९३४६३-३ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू.. (होजी कांइ देशडे पधार), १९२१२८-१४८(+) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू.. ( खतरा दूर करणा दूर), ९२१२८-१५० (+) साधारण जिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (मुझरो छे जी मुझरो छे), ९२१२८-१०९(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारण जास्या), ८९७८२-३(+-#) साधारणजिन स्तवन, मु. नग, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (अब में तेरो हि चेरो प्रभु), ९३३३२-५१ साधारण जिन स्तवन, मु. नग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनदेव देव जयत), ९३३३२-४३ साधारणजिन स्तवन, मु. नग, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (में हूं अनाथ नाथ हाथ), ९३३३२-४९ साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (में मतवाला जिनका), ९२१२८-१०१(+) साधारणजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (नित्य प्रत्वें नाम), ९२०२६-५ साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तुं बिना ओर न जचुं), ९३५६३-७ ५, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही हो), ९२१२८-४(+) (निरंजन यार वोरे अब), ९२१२८-२३(*) साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू. ( मनभावन जन तन मन तोसे), ९२९२८-११०(+) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मिलवो जुग जोर कठिन), ९२१२८-१०४(+) For Private and Personal Use Only ५९९ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे. (लोक चहुद के पार), ९२१२८-६२(*) साधारणजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (श्रीअरिहंतजी चरणे लागस्यु), ८९६१३-१ साधारणजिन स्तवन, पुहिं, पद्य, मूप, (भेट्यो री जिनचंदा आज में), ९३५८१-८(+४३) " יי साधारणजिन स्तवन, मा.गु. गा. २०, पद्य, श्वे. (-), ८९७६५-१(३) " साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदा तोरी वाणीइ), ९३३८४-४ साधारणजिन स्तवन-मकसूदाबादमंडन, पं. शांति, मा.गु., गा. ८, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (दरशण दुरगति टाली), ८९५३९(+) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ९३४१०-१(+#) साधारणजिन स्तुति- द्रव्यभावमंगलगर्भित, मु. देवचंद्र, मा. गु, गा. ४, पद्य, मूपू (धर्म उत्सव समे), ९२६०१-४७(१९) साधु आचार १०८ बोल, पुहिं., मा. गु., गद्य, थे. (जति धइने आधाकर्मी), ८९५८२-१९२१६३७) साधु आचार सझाय, मा.गु., गा. ४६, पद्य, श्वे. (पेला अरहंतने नपुं), ९१५८१- १(०) " " साधु कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, वे., (कोटिकगणवझरी शाखा), ९१७७७-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " १८३३, पद्य, वे १८३२, पद्य, वे. "" १८४०, पद्य, वे. " साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८३५, पद्य, स्था., (अहो ग्रहै नखत्र तारा मधे), ९४४८१-३ (#) (खंती कैता खीम्या करे कोईक), ९४४८१-८५(४) (साधु धन ते जीता), ९४४८१-६६(१) (साधु धीन संसार रमे रे), ९४४८१-२९(१) "" " ', साधुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु.. गा. १२, वि. साधुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. साधुगुण सज्झाव, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १५. वि. साधुगुण सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु. गा. १४, पद्य, भूपू (पांच सुमति तीन गुपति), ८९३७२-१ (४) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा. गा. ९, पद्य, मूपू (पांचेइडीर अहनिस), ९३२४१-९५ साधुगुण सज्झाय, मु. समयप्रमोद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जी हो साध सरोमणि वंदिये), ९४४२३-८ साधुदर्शनवंदन पद, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, खे, (दर्शण कीजे मुनीराज को पोह), ९४४८१-६१(३) साधुप्रकरण गाथा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जोअ० कोडी पुण संखगाओ), ८९८०९-५ साधुमर्यादापट्टक, आ. देवसूरि, मा.गु., वि. १६७७, गद्य, मूपू., (सं. १६७७ वर्षे वैशाख शुक्ल), ८९७२६(M) साधुमहिमा सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (साध दीठा आणंद धावे साध), ९४४८१-४११ साधुवंदना, आ. तिलकसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपु., (सारद लागुं तोरे पाव), ८९५२६ 2 "" साधुवंदना, श्राव, बनारसीदास पुहि गा. ३२ वि. १७वी, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), ९३१५५-९ (+), ९३१८८-१ साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू. (पंच भरत पंच एरव्य), ९३२६१-१ (+), ९२४५२ (४७) साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. १८, गा. ५१९ नं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, म्पू., (शांतिनाथ जिन सोलमड), ९३९६७(*) साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., ( नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक), ९२६४५ (+) साधुशिक्षा सज्झाय-क्षमा, मु. भीमचंद्र, मा.गु., गा. ७. पद्य, म्पू, (क्रोध निवारो हो मुनि), ९३०६३-५ (+) साधु श्रावक आचारोपदेश चौपाई, मु. विनय, मा.गु., वि. १८८०-१८८५, पद्य, ओ., (--), ९१५४७ (+) श्वे., साधुसामाचारी बोल, मा.गु, गद्य, भूपू (जे कोई साधु सामग्री), ८९७०३(७) साधुस्तुति सवैया, जे.क. बनारसीदास, पुहिं. पद. २, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान्न को उजागर), ९३६६६-२ सामायिक सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मन वचन कायाइं पालो), ९३२४१-४४ सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ९३७८३-३ सिंधुचतुर्दशी, पुहिं. गा. १४, पद्य, जै.?, (जैसे काहु पुरुष की), ९३७७८-३(+) , सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय कवि, मा.गु., गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), ९२०८३(+$) सिंहासनवत्रीसी चौपाई दानाधिकारे, पन्या, हीरकलश, मा.गु. कथा. ३२ गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, मूपु. ( आराहि श्रीरिषभप्रभु ९३९८६ (*६, ८९९९५ (३) ९२६७३(३) ९४४६७(१) सिद्ध आरती-गोत्रकर्मनिवारण, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., ( ज्यौ कुम्हार छोटे बड), ८९८६६-२ सिद्धगुण आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, वि., (आठ कर्म को नास आठगुन), ८९८६६-४ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि पुहि गा. ३, पद्य, म्पू, (वरं सिद्धचक्रं नमो नित्य), ९२३७९-७(+) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ८९८०४ सिद्धचक्रतप स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (एक सरोज उद्धरीओ आगम), ८९६२८ सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ९२९५२-२ सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (नवपद ध्यान धरो रे), ९३३३५-१०(+), ८९७६७-२(#), ९३६३०-३(#) सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), ८९३४३(+) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्रमा), ८९३३१-१(+), ९३३३५-९(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो भले), ९२३७९-३५(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (समरु सुखदायक मन), ९४३०२-२७(+#) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ९४३०२-१४(#), ९४३३८-१४(+#) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (वीर जिनेसर भुवन दिने), ९२९१४-२ सिद्धराज जयसिंह कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (अढार लक्ष बाणू सहस्र मालव), ९०८१५-३(+$) सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, श्वे., (सिद्धत्थ सवसंजलया), ९३१८२(+) सिद्धांत विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (समझवा हेतु मन राखवा), ९२४६६(+) सीतासती चरित्र, मु. बाल कवि, पुहि., दोहा. २५५०, वि. १७१३, पद्य, मप., (प्रणमं परम पुनीत), ९१७४४(+#) सीतासती वेलि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अथ मिथुलानगरी भली हरिवंशी), ८९९८४ सीतासती सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जनक द्धीयाने०), ९४४८१-३६(4) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ९३२४१-७० सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ८९५७०-२, ९३२४१-६७ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (वंदं जिणवर विहरमाण), ९४३०२-४(+#), ९२९५२-९ सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ९४३६६-४(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मप., (स्वामी सीमंधर विनती), ९४०६०(+#), ९२१०९-२($) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ९२७९६-१०(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (श्रीमिंदर विनवं करजोड), ९४४८१-६०(#) सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीनवु रे), ९३७८६-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सुगुण सनेही साजन), ९३५८१-३१(+#$) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर करजोड मया), ८९६९६-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.ग., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मप., (श्रीसीमंधर साहिबा विनतडी), ९१७७८-२ सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेठडा जिन में दीठडा), ९२१२८-८०(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. दीपविजय, पुहिं., गा.५, पद्य, मपू., (लेजा लेजा लेजा जी), ९२१२८-५६(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं., गा. ९, वि. १९२६, पद्य, मपू., (जीरेमहारेसीमंधरजिनरा), ९२३७९-२८(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीमंधर तुमसें मन मोह), ९३६६७-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हा रे ओला चांदलिया), ९२७९६-७(+#) सीमंधरजिन स्तवन, पं. लालचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (सदगुरु सरसति० श्रीमंधर), ८९४३६-६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. शांतिसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जंबूवरदीव महाविदेह), ८९७२७-२(-2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मप., (अनंत चोवीसी जिन नमु), ९३३८८(+), ८९८०१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सोम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (सीमंधर जिनजी सुणउजी), ८९३८४-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (श्रीसीमंधर वंदना अवधारो), ९२१२८-१३९(+) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), ८९३९९(2) सीमंधरजिन स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (त्रिभुवन जन मोहन), ९४३०२-४७(+#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (पूरव दिशि इशान कुण), ९३२१२-१, ९३७८३-२, ८९३७५-३(#) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु., (सकलसुरासुर नरवर), ९४३०२-२१(+#), ९४३३८-२०(+#) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (सीमंधरस्वामी केवला), ९२००७-४(#) सुकोशल कीर्तिधर संबंध, मु. मान, मा.गु., ढा. ६, गा. १५३, वि. १६७०, पद्य, पू., (श्रीसरसति मतिदायिनी पामी), ९४६४६ सुकोशलमुनि चौपाई, सांगू, मा.गु., गा. १७३, पद्य, मपू., (--), ९२१११-१(६) सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ९३२४५-२४ सुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (नमुनमुं में गुरू), ९३२४५-२७ सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., ढा. ३७, गा. ८३९, पद्य, श्वे., (श्रीजिणचरण प्रणीमइ), ९३३०१(+#$) सुदर्शनशेठ चौपाई, मा.गु., ढा. ४२, गा. ९८५, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर प्रणमी करी भाव), ९२४६७(+) सदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., गा. १२१, पद्य, श्वे., (वंद श्रीजिन महावीर), ९२३२३(+) सुपनबत्तीसी, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहि., गा. ३४, पद्य, दि., (--), ९२५३२-१३(+#S) सुपार्श्वजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रभुजी प्रभु सुपास), ८९८६६-१७ सुपार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज में देख्योरी मुख), ९३५८१-२०(+#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सरसती मात मया करी रे), ८९४३९-३ सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवीबंदर, मु. महिमाकुमार, मा.गु., गा. ९, वि. १७००, पद्य, मपू., (सतम जिणेसर वंदीयइ मन), ८९४७४-२ सुबाहजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (स्वामि सुबाह सुहंकर), ८९६५५-२(4) सुभद्रासती सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (हुं पभणुंशी एहनी वा), ९३२४१-५६ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (मुनिवर सोधे रे इरजा), ९३१८३-४ सुमतिकुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (चेतन छांडो हो यह रीत), ८९५५०(+) सुमतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (आज हुँ गइती रे समवसर), ९३२४१-९६ सुमतिजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ८९४२०-१ सुमतिजिन स्तवन, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३५, पद्य, स्था., (सुमत जिणेसर जी हौ वादीय), ९४४८१-१०(#) सुमतिजिन स्तवन, मु. कान, मा.गु., गा. १९, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ जिण सुमति), ८९८२३-१ सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारा प्रभुजीशं), ९२६०६-३(#$) सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ गुणस्युं), ९३१९५-४ सुमतिजिन स्तुति, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (शिवपुर सुखदाइ सुमति), ९२३७९-४२(+) सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (नमो सिद्धिसाधक पुरुष नमो), ९३१५५-२२(+) सुमतिपार्श्वजिन स्तवन-अजीमगंज मंडन, पुहिं., सवै. ६, पद्य, मूप., (श्रीजिनराज के सतरस), ९२१२८-९१(+) सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ८९६८७-२, ९२५६५(#S), ९४६०२(5) सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने करवा ए भीम), ९४५०८(+), ९४४९४($) सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ८९४६१-३(#) सविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (भोरी अमांणी आया रे), ९२१२८-३०(+) । सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मेरा रे), ९२१२८-७४(+), ९३५६३-६ सुविधिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुविधिजिनेसर वीनति र), ९२६०१-१६(+) सुविधिजिन स्तवन-खाचरोदमंडन, मु. धनमुनि, पुहि., गा.७, वि. १९९२, पद्य, मूपू., (सुबुधिजिणंद सुहंकर), ९२३७९-२२(+) सूआबत्तीसी, जै.क. भैया, पुहिं., गा. ३४, वि. १७५३, पद्य, दि., (नमसकार जिनदेवको करौं दह), ९२५३२-१४(+#) सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ८९३२९, ९३७१८(5) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२२ सूतक सज्झाय, आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु., गा. ३३, वि. १९७६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीदेवी समरु), ९१३२१-१ सूरसेनरत्नवती रास, मु. वस्तुपाल, मा.गु., गा. २०४, पद्य, मूपू., (पहिलं प्रणमुं श्री), ९२६९३(+) सूर्य छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सज धरियां संपत सरस उमंग), ९४३६६-१८(+) सूर्य तापमान क्षेत्र विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सेंतालीस हजार जोजन सुर्य), ८९४३५-३ सूर्याभविमान विस्तार, मा.गु., गद्य, मपू., (साढाबारे लाख जोजननौ), ८९६६६-१ सोमशय्या रास, मु. कृष्ण, मा.गु., ढा. ५२, पद्य, श्वे., (समरु सरस्वती मातजी विघन), ९३८७१(+) सोल शणगारादि सवैयादि संग्रह, क. चंद, पुहि., गा. ४, पद्य, इतर, (ललाट जिन जानि वदन), ८९७५३-५(+) सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, पू., (भव्यैरासाद्यते लक्ष्मी), ९३६३३ स्तवनचौवीसी, मु. अमृत, पुहि., स्त. २४, गा. १०९, पद्य, मूपू., (तेरो दरस भलें पायो), ९२१२८-२(+) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८५, पद्य, मप., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ९२१२६(+), ९२३८७(+$), ९३३५८(+), ९३५५०(+#$), ९४४८५-३, ९२०७२(#), ९३४०४-१(#S), ९३६१८(#$), ९२३६२(६) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिदानंदमय जिनवरु सदा), ९२३६२(5) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ९२३८७(+$) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ८२८, गद्य, मपू., (आनंदघनस्यास्या गीत), ९३५५०(+#$) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गद्य, मप., (चिदानंदमई जिनवरू), ९३३५८(+) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीऋषभदेव जिनेश्वर), ९२१२६(+) स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मप., (मरुदेवीनो नंद माहरो), ९१३३४-३, ९३७८६-१(#) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ९२४०७ । स्तवनचौवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., स्त. २५, वि. १७४६, पद्य, मप., (आदिसर अवधारीइं जी सेवकनी), ९३७८६-३(#) स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदीसर सुखकारी हो), ९२३६६-१८(#$) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. २०५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ९२३११, ९२५६८-१(#S), ९३६०९(#) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ प्रमुख), ९२३११ स्तवनचौवीसी, उपा. धर्मकीर्ति वाचक, मा.ग.,ढा. २४+कलश, गा. ९२, पद्य, मप., (जगवर श्रीजिनचंद नमि कवि), ९४५३५(+) स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (वृषभ लंछन जिन वनितावासी), ९२१२८-१(+) स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा), ९३२९६(#) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो माता), ९३५४६(+$), ९१३३४-२, ९३२६२, ९२००७-५(#S), ९२३६६-१३(#) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ९१३३४-१ स्तवनचौवीसी-अतीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. १४४, वि. १८वी, पद्य, मप., (नामे गाजे परम आल्हाद), ९२६२७+) स्तवन संग्रह, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९२९५२-११(६) स्त्रीचरित्र पद, क. गद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (डर उंदरकै डरै सापनै पगतल), ९४०३९-१५(+#) स्थूलिभद्रकोशा बारमासा, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रावण मास सोहामणो), ९३३८४-६ स्थूलिभद्रकोशा संवाद सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (सरस्वतीने चरणे नमी), ९३२४१-७३ स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सखी प्रीतम मोरा चाल), ८९३९७-१(+) स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मु. सिंघविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सद्गुरु आदेश लही कोश), ९३३२३-१(+#) स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लाल पियारा थूलिभद्र), ८९७७१-२(2) स्थूलिभद्रमुनि गीत, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (कोसवो ए मुझी मावडी), ९३२४१-२८ स्थूलिभद्रमुनि गीत, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू, (एक दिन सारथपति भणइ), ८९५८१, ८९८००(#) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), ९३३२३-२(+#), ८९४९०, ८९५३८, ९२१११-२(5) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, गा. ६७, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), ९२६०२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (लटकाली रे कोस्या), ८९५०४-४(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., गा. २०, पद्य, ., (सुकडाल मंत्रीसर सूओ), ८९४०४ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (योग ध्यानमें जोडी), ९३२४१-७४ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. महिमाकुमार, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (जी हो धन धन थूलभद्र), ८९४७४-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र थिर जस करमी), ८९४४४-१(2) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछलदे मात मल्हार बह), ९३२४१-४८ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सदगुरु समरु सारदा सामिणि), ८९४३६-३ स्थलिभद्रमनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीथूलिभद्र मुनिवर), ८९४२५ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ८९७०५-२(+), ९३३८४-११, ९२७९५-६(#) स्नात्र पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (पूर्व दिसे तथा उत्तर), ९३७६६ स्नात्र पूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (पवित्र धोती पेरी रे), ९२७३५ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मप., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ९२१३७(+), ९३६५५(+), ९४४१४-१, ९३६१७(#), ९२५८८९६) । स्वप्नफल वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (नमस्कृत्यजिनाधीशं वीरं), ९३९५६($) स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, वि. १९०५, पद्य, मपू., इतर, (नमो आदि अरिहंतदेव), ९२७३९(+$), ९१७७० स्वरोदय शास्त्र, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ३८१, वि. १९०७, पद्य, भूपू., इतर, (नमो आदी अरिहंत देव), ९३२००($) स्वास उदरस औषध, पुहि., गा. २, पद्य, इतर, (जव लंकि मुंसल पगि), ८९८२२-२ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), ९११७५(+#), ९२१६१(+#$), ९४४०९(+$), ९२६०५, ९३२४४, ९२६७९-१(#$), ९२५९०(5) हरिदत्तराजा चौपाई, ग. महिमासागर, मा.गु., ढा. ६८, गा. १११५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर आदि अधिक), ९३९८३(+#) हरिवंश रास, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, मा.गु., वि. १५७५, पद्य, दि., (वीर जिनवर वीर जिनवर), ९११६४(+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमु), ९२४१८(+) हर्षचंद्र आचार्य गीत, सा.खेमा आर्या, मा.ग., गा. ९, पद्य, श्वे., (सरसति सांमण वीन), ८९५७७-३ हर्षचंद्र आचार्य गीत, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (सरसत करं जी पसाव एक विनत), ८९५७७-२ हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., वि. १६८२, पद्य, मूपू., (कासमीर मुखमंडणी भगवत), ९३४४९(+) हितशिक्षा सज्झाय, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हजीये आतम अनुभव नाया), ९२६०१-४५(+) हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), ८९७६४-२(#) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (बेकर जोडिजि विनवू सारदा), ९३२४१-३९ होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (फागुण चौमासी पर्वनें), ९२१५०-४(+) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपsion PROदिया शिशिERARIA KetaudALAB Charololaription और आराधना anAGRAT पानिपचिरपति Hamareta Chorrangasandesh हावीर जैन का कन्द्र कोबा. 卐 अमतं पु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-93-85803-03-1 Set: 81.80177-00-1 For Private and Personal Use Only