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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., प+ग, आदि: श्रीमंतं विदुरं शांतं; अंतिः सुकृताय कृता कथा. ९२९४२ (+) ऋषिमंडल प्रकरण सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १८३९ आश्विन शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६४+१ (६४)=६५, पठ. मु. जेतसी (गुरु पं. देवकीर्ति); गुपि. पं. देवकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १५-१७४५ २-५८) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि १४वी आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अंतिः धम्मघोस० सिद्धिसुहं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २४४. ऋषिमंडल प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) सोमगुणे गुणनिलयं, (२) नमस्कार धाउ माहरो अंति: कर्तारो नाम जाणवौ, (वि. अंत में ग्रंथ के अंतर्गत कथा-दृष्टांतों की सूचि दी गई है.) ९२९४३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन १५ व १६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६, दत्त. मु. वसरामजी स्वामी; गृही. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, १३-२०X३५-४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. टबार्थ क्रमशः नहीं लिखा है. ) ९२९४५ (#) वारव्रत रास, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पू. ३४-६(७, २६, २९ से ३२ )+१ (२८) = २९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जजैवे. (२७४११.५, १४-१९४४०-८० ). १२ व्रत रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: वंदु अरिहंत सिद्धने; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-६० की गाथा-५ तक है.) " ९२९४७. (+) इयाश्रयमहाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५३-२३(१ से ८,१०,१२ से १५,१७,२१,२६,२८,३२,४१,४४ से ४५,४८,५२) - ३०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे., (२६.५x११.५, १७४५८-६९). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. सर्ग-१, श्लोक-४२ से सर्ग-३, श्लोक ८५ पाद-६ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) व्याश्रयमहाकाव्य टीका, ग. अभवतिलक, सं., गद्य वि. १३१२, आदि (-); अंति: (-). ., ९२९४८ दशवेकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २५-८ (१ से ८) = १७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: दशमी., जैदे (२६.५x११, १३४३०). - दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-) अति (-) (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देश १, सूत्र- २२ अपूर्ण से अध्ययन-९, उद्देश ४ अपूर्ण तक है.) ९२९४९ (+) वाग्भटालंकार सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७१, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, प्र. वि. हुंडी अलंकार टी०. श्रीपार्श्व प्रसादात्., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२५.५X११, १९x४९-५२). वाग्भटालंकार, जैक, वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः अति: सारस्वताध्यायिनः परिच्छेद-५, वाग्भटालंकार - टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानसंतति, अंतिः मित्यादिविशेषणानि सुगमानि ९२९५१ (#) तत्त्वार्थसूत्र सह सर्वार्थसिद्धि वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७४१, फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १०५-७९ (१ से ७९)= २६, प्र. वि. अंत में बीजक लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १५X४२-५०). " तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि (-) अति गाहनांतरसंख्या० साध्याः, अध्याय १०, " (पू.वि. अध्याय ७, सूत्र- २६ से है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- सर्वार्थसिद्धिवृत्ति, आ. देवनंदी, सं., गद्य वि. ५वी, आदि (-); अंति: नरामरगणार्चितपादपीठं, अध्याय-१०, (पू.वि. अध्याय-७, सूत्र- २५ अपूर्ण से है.) ', ९२९५२. स्तवन, सज्झाय व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९ भाद्रपद शुक्ल, ११, जीर्ण, पृ. ४२-१ (१०) = ४१, कुल पे. १४, जैवे. (२४.५x१०.५, ११४२८-४०). For Private and Personal Use Only
SR No.018068
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2017
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size19 MB
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