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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३४३५ (+) समयसार सह आत्मख्याति टीका व समयसारकलश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१९४४१-४२). समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सोही उत्तम सोक्खं, अधिकार-९, गाथा-४१५, (पू.वि. प्रारंभ
के पत्र नहीं हैं., गाथा-३९० से है.) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
सर्वविशुद्धिज्ञानाधिकारगत प्रतिक्रमणकल्प से उपायअपेय निरूपण अपूर्ण तक है.) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः (-); अंति:
(-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक-२२६ से २६५ तक है.) ९३४३६. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३५-७(१ से ७)=२८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सूत्र., ___ टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४४-५४).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१२, अपूर्ण से १७ अपूर्ण
तक है.) ९३४३७. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१०, ९४२८-३२).
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, स्मरण-७. ९३४३८. (+#) द्वादशव्रतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-४८(१ से ४८)-७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १९४५६-६२).
द्वादशव्रतकथा संग्रह, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्रौपदीसती कथा अपूर्ण से पौषधव्रत कथा अपूर्ण तक
९३४३९ (+) सप्तस्मरण बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, २०४३८-४३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. नमिण स्तोत्र अपूर्ण
तक का बालावबोध है.) ९३४४० (+) पडिकमणा सुत्र, संपूर्ण, वि. १८२८, वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. जालणापुर, प्रले. ऋ. उदा (गुरु ऋ. पुनसी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४२२-२८).
प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: पाछो कहो होय ते मिच्छामि. ९३४४१. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३१-८(१ से ८)=२२३, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र
नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:कल्पवाच०, साधुसमा०. बीच के कुछ पत्रों में बरखयुक्त स्याही से लिखा हुआ है., संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-१, सूत्र-२ से व्याख्यान-९, सूत्र-२७
तक है.)
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३४४२ (+#) सिद्धांतचंद्रिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ३५९, ले.स्थल. बीकानेर,
प्रले. पं. उदयचंद्र (गुरु ग. रामचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); गुपि. ग. रामचंद्र (गुरु ग. शिवचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. शिवचंद्र (गुरु ग. सदानंदजी, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. सदानंदजी (गुरु ग. पद्मसी, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. पद्मसी (गुरु उपा. रुपचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); उपा. रुपचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांतचं०वृत्ति. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३०). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति:
सिद्धिर्यथामातरादेः.
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