Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 486
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ www.kobatirth.org पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि (-); अंति: पद्मावती स्तोत्रम् श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक- १०० १२३ लिखा है.) १२. पे नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. १४-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) १३. पे. नाम, निरंजनाष्टक स्तोत्र, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरंजनाष्टक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मै नमो देव निरंजनाय श्लोक-८, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक- ५७-६४ लिखा है.) १४. पे. नाम गउडी पार्श्वनाथ छंद. पू. १७-१८आ, संपूर्ण , " पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सूर; अंति: कुशल० करि धवल गुडधणी, गाथा - १८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक-६५-८२ लिखा है.) ९४६१३. (*) आवश्यकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४-३ (१ से २,११)=११, प्र. वि. हंडी अवसग, संशोधित, जैदे. (२५x१०.५, ४-६४३६-४४). " ४७९ , आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-): अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र- १०५ (पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. अध्ययन- २ सूत्र ४ अपूर्ण से है व बीच के पाठ नहीं है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वो० वो अन्यथी वोसिरइ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९४६१५. आर्यवसुधारा महाविद्या, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); गुपि. पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, १२X३६-४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९४६१६. (*) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७ आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, गुडली, प्रले. पं. ऋषभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११, ५२२-२६). "" नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २पुण्णं ३पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४६. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ०थकी विपरीत ते अजीव; अंति: हुआ० अनंता गुणा छे. ९४६१७. (*) सम्यक्त्व संभवनाम्नि महाकाव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५१०५ १८ २०६२-६६ ). "". सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हं नमस्यामि; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग -८ श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ९४६१८. (४) भाष्यत्रय की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ११-२ (१ से २९, प्र. वि. हुंडी श्री प्रत्याख्यानभाष्यावचूर्णि मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०, २२-२४४७४-८२). भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति पच्चक्खाणम० सुगमा, (पू.वि. चैत्यवंदन भाष्यगाथा १७ की अवचूरि अपूर्ण से है.) . ९४६१९. (+) श्रावकदेवसीप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५९६, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल. अमदावाद, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६५६, जैदे., (२५.५X१०.५, ५X४०-४४). . देवसिप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत प्रतइ माहरु; अंति: चुवीस तीर्थंकर प्रतिइं. ९४६२०. (+) आतुरप्रत्याख्यान व भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४८-५२). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक की अवचूर्णि, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य वि. १५वी, आदि अथातुरप्रत्याख्यानस; अति सर्वकर्मणामित्यर्थः. " २. पे. नाम भक्तिपरिज्ञा प्रकीर्णक की अवचूर्णि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.

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