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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२
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८. पे नाम औपदेशिक पद कर्मोदय, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं, पद्य, आदि पिया की तो एह बात हहेली; अति: सरण सवनकुं हम तो उनके हाथ, दोहा-४.
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९. पे नाम औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि जय जयवंती आयो बुढापो वेरी, अंति: भूधर पछताओगे प्राणी, दोहा-४.
१०. पे. नाम औपदेशिक पद-मृगतृष्णा, पू. १०अ संपूर्ण
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पुहिं., पद्य, आदि: महबूब तोकुं तुझमें; अंति: आपनें भली वात एक हि, दोहा-३.
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११. पे. नाम. औपदेशिक पद-रागदोष परिहार, पृ. १० आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि कर रे कर रे कर रे; अंति दानत भव दुख तर रे, दोहा-४.
१२. पे नाम औपदेशिक पद- चंचलमन, पृ. ११अ. संपूर्ण.
मु. जगतराम, रा., पद्म, आदि गुरुजी म्हारो मनडो; अति जगतराम जिन की बात दोहा-४.
१३. पे. नाम. औपदेशिक पद- पापकर्म परिहार, पृ. ११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, जै. क. बनारसीदास पुहिं. पद्य वि. १७वी आदि मूल न बेटा जाया अरे अति खावो कहत वनारसी
भाई. गाथा ४.
१४. पे नाम औपदेशिक पद क्षणभंगुर संसार, पू. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इस नगरी में किस विध; अंति: वनारसी०लुटि गयो डेरो,
१६. पे. नाम. औपदेशिक पद-कपट परिहार, पृ. १२-१३अ, संपूर्ण.
क. बनारसीदास, पु.ि, पद्म, आदि हां रे मन वणीवा वाहि; अति वनारसी०गांठ न खोल रे, दोहा-४.
१७. पे नाम औपदेशिक पद-धर्मकर्म, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण.
मु. माल मुनि, रा., पद्य, आदि : अब करजै जैनधर्म; अंति: जो भवसागर तिरनो, दोहा-४.
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गाथा - ३.
१५. पे. नाम, औपदेशिक पद- कुपात्र शिक्षा, पृ. १२अ -१२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: (१)वाको सहज मिटावे, (२) जिनराज० यो अवसर जावे, गाथा-४.
१८. पे. नाम. औपदेशिक पद-दिगंबर साधु, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: सुर मल्हार कव मिलहें; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक है.)
९२३८७. (+) स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१६ (१ से १६) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१३, १७४४८).
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स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८५, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सुव्रतजिन स्तवन से नमिजिन स्तवन गाथा - १० तक है.)
स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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९२३८८, (+*) पर्युषणपर्वाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३५-२९(१५ से २२,२४ से ३२,३४)=६, ले. स्थल. कौसाणा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१३, ७३६-४२).
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पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य वि. १७८९, आदि (-); अंति: परंपरा करगामिनि भवति,
(वि. १८९७, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, पू. वि. तीन वावडीया और चार वावडिया के बीच दधिमुख नामक पर्वत का वर्णन अपूर्ण से है., प्रले. मु. सुमतहंस पंडित (गुरु मु. उमेदहंस पंडित); गुपि. मु. उमेदहंस पंडित (गुरु मु. गुमांनहंस पंडित); मु. गुमांनहंस पंडित (गुरु मु. फतेहंस पंडित); मु. फतेहंस पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति हाथे आवता महामुक्ति, (वि. १८९७ आश्विन
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कृष्ण, ७, शुक्रवार, ले.स्थल. कोसाणा, प्रले. मु. उमेदहंस पंडित (गुरु मु. गुमांनहंस पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य ) ९२३९१. (+) २० स्थानकतप आराधनाविधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४. पू. वि. प्रारंभ बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१२, १५४३२).
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