Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२
४६३ ९४५७२ (#) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४२-४५). चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीवर्धमानाय, (२)अर्हतः परया भक्त्या; अंति:
(-), (पू.वि. प्रथम अणुव्रत व्याख्यान तक है.) ९४५७३. (+#) गणधरदउढसयं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटा दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ५४३४). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ,
गाथा-१५०.
गणधरसार्धशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समस्त विघ्नविनाशवा भणी; अंति: धर्माथी विणसइ परहउ थाइ. ९४५७४.(+) चतुःशरणादि प्रकीर्णक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२५.५४१०.५, १५४५२-५७). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण..
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम, आउरपच्चक्खाण, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदक्खाणं,
गाथा-६८. ३. पे. नाम. भत्त परिन्ना, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण.
भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणु; अंति: सुक्खं लहइ मुक्खं, गाथा-१७२. ४. पे. नाम, संथारा पइन, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: चंदा सुहसंकमणं सया दिंतु,
गाथा-१२२. ९४५७५ (+#) कर्मग्रंथ १ से ६, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ६, प्रले. ग. सुमतिसागर; पठ. मु. साधुरंग,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५.५४१०, १३४४४-४८). १.पे. नाम, कर्मविपाक, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: भणिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं
नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: तेअं
कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीतिकाख्यम्, पृ. ६आ-१०अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिओ
देविंदसूरीहिं, गाथा-८७. ५. पे. नाम, शतकसूत्र, पृ. १०अ-१४अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-९९. ६. पे. नाम. सप्ततिकासूत्र, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612