Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं; अंति: धीरैर्विशोध्यं वरै, श्लोक-१०२.
दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी श्रीऋषभदेवनइ; अंति: न करवी पंडितइ सुद्ध करवं. ९४५६६. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. अमृत (गुरु
आ. जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनसागरसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसरि, खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पाखीसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४०).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ९४५६७. (+#) शीलविषये चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्रले. ग. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२-१४४४०-४२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: कथामकरोत्
पाठकराजवल्लभः, श्लोक-१२३२. ९४५६८. (+#) कपणसंवाद कवित्त व वैराग्यशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ६x४७-५२). १. पे. नाम. कृपणसंवाद कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. लच्छ ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: कृपणि कृपणिने पूछियौ; अंति: तु बहुर न तैरे संग मीलु, गाथा-३. २.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ.१आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण तक है.)
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: एह संसार में जे पदार्थ छै; अंति: (-). ९४५६९ (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीअंतर्वाच्य., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १५४४८-५४). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ "अन्येषां तु कल्पते" से "चतुरंगुलतो नालं छित्वा"
तक है.) ९४५७० (+#) १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, नवतत्त्वसूत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ५,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ११-१२४३७-३८). १. पे. नाम. १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धाय अरिहा अजिण; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-४. २. पे. नाम. नवतत्त्वसूत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: वंझ कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६२. ५. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लिहिओ पडिअज्जवाओ ओदहिणामा,
गाथा-४४. ९४५७१ (+#) आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १८४०, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पाटोधि, पठ. श्राव. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आणंदरी संधि., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३-१५४३२-३५).
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: श्रीवर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणै मुनि श्रीसार,
ढाल-१५, गाथा-२५२.
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