Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 437
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, अष्टभयनिवारक श्रीपार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;छंदगो०. प्रतिलेखन पुष्पिका मे वर्ष-१८७६ मास-फाल्गुन दोहामय प्रस्तुत किया है. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसींह ध्याने धरण, गाथा-२९. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. ९आ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;सुभाषित, प्रस्तावी श्लोक. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: यस्यातं नादि मध्यं न च; अंति: सर्वैगुणाः कांचनमाश्रयंति, श्लोक-४५. ५. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;स्तुति इ०. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यात्म स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेर सामायक किधु; अंति: भावप्रभसूरि० भोगी जी, गाथा-४. ७. पे. नाम, पजूषणापर्व स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;थुई प०. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुं ध्याउं; अंति: कहै श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. ८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिणवर प्रणमुं; अंति: जिनसुखसूरि०शासन देव सुजाण, गाथा-४. ९. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाकंदं पढमं जिणंदं; अंति: अम्म सया पसथा, गाथा-४. १०. पे. नाम. सीमंधरस्वामिद्वितीया स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १२. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम "पंचम स्तुति" दिया है. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंता वीस; अंति: तिहुअण जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. १४. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १५. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सह संथवे संत कल्याणदाता, गाथा-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंति: कलित्त बह वित्त, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुर वंदै पाय पंकज मोह; अंति: मंगल करे अंबक देवीयै, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २३अ, संपूर्ण. ___आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: मदनदर्पविघातमहेश्वरं नमत; अंति: भवतु सा जिनलाभ सुखार्थदा, गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विसदसद्गणराजिविराजितं; अंति: भवतु वाग्जिनलाभसुपार्थदा, श्लोक-४. २०. पे. नाम, श्रीमंधर स्तुति, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन कृष्ण, ८. For Private and Personal Use Only

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