Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 466
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ से २७६ तक है.) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाधा १२ अपूर्ण से २७६ अपूर्ण तक है.) ९४४८४. (+) उवाई सूत्र, संपूर्ण, वि. १६३६, आश्विन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल श्रीमालपुर, प्र. वि. हुंडी. उवाइसूत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. १२००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५.५x१०, १५X४८-५०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं काले० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र- ४३. ९४४८५. पाक्षिक चैत्यवंदन, पुण्यप्रकाश स्तवन व स्तवनचीवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३ ९ (१ से ९) = २४, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१०, ११x२७-३०). १. पे. नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. १०अ ११ आ. संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्म, वि. १२वी, आदि: सकलाईत्प्रतिष्ठानमः अति श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-३१. २. पे नाम. पुन्यप्रकाश श्रीवीरजिन स्तवन, पृ. १९आ-१८अ संपूर्ण. " पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि सकल सिद्धिदायक सदा, अंतिः नामे ४५१ पुण्यप्रकाश ए, ढाल -८, गाथा - १०२. ३. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १८अ -३३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आनंदघनचौवीसी पत्र. मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन- २४. ९४४८६. (#) नलदमयंती रास-१ से ५ खंड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, अन्य. मु. रतनचंद (गुरु मु. तिलोकचंद, खरतर गच्छ); गुपि. मु. तिलोकचंद (खरतर गच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १६x४५-४८). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६७३ आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख अति (-), प्रतिपूर्ण. ९४४८७. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, संपूर्ण, वि. १७९४, चैत्र शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. भट्टनेरनगर, प्रले. ग. कुशलविजय (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि. मु. रत्नविजय (गुरु ग. शुभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सम्यक्तकौ०., संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १९५५-६०). 1 सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४५७, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य; अति विपर्ययादिष्यते बंधः, पद- ४४४, ग्रं. १२५५. ९४४८८. (+) कल्पसूत्र-व्याख्यान ४ सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-३ (१ से ३)=१०, प्र. वि. हुंडी : चतुर्थवाचना., संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०, १७४८-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (प्रति अपूर्ण, पू.वि. त्रिशलारानी को बैठने हेतु भद्रासनप्रदान प्रसंग अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९४४८९. (+#) पाक्षिक सूत्र व क्षामणानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, अन्य. मु. वल्लभसौभाग्य (गुरु पं. सुजाणसोभाग) गुपि पं. सुजाणसोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने मेस्सौभाग्य व सिंहसौभाग्य को मंगल रूप में नमन किया है. अंतिम पत्र पर सं. १८७४ में प्रत लेन-देन संबंधी विवरण है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३X३६). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ - ११आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे अ तित्थे अति जेसि सुअसारे भत्ति २. पे नाम श्रामणानि, पृ. १९आ- १२अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंति मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप ४. For Private and Personal Use Only

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