Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 474
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ४५९ ९४५४४. (*) षडावश्यक सूत्र व पार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी षडावश्यक. विविध सूत्रों की हुंडी उस सूत्रपाठवाले पत्र पर दी गयी है. सूत्रों के पद, संपदा, अक्षर व सर्वाक्षर संख्या पाठ के साथ-साथ मिलती है., संशोधित, जैवे. (२५४१०.५, १५४५६-६०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम घडावश्यक सूत्र. पू. १आ-५आ, संपूर्ण वि. १६५० आश्विन शुक्ल, ९, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक- ३आ पर लिखी है. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं; अति सर्वत्र सुखी भवति लोक. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पू. ५आ-६आ, संपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुअणवरकप्परुक्ख अंतिः सिरिअभवदेव विनवइ आदि, गाथा- ३०. ९४५४५, (+४) चतुसरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी : चतु०, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, ९३०-३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. ९४५४६. (+) उत्तमकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४१- ३४ (१ से ३४ ) =७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११, १४४३४-३८). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. ढाल ३० गाथा-२ से ढाल-३६ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९४५४७. (+) समयसारकलशगत वस्तुतत्त्व अधिकार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५x११, ११४२९-३९). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का हिस्सा वस्तुतत्त्व अधिकार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि अत्र स्वाद्वादशुद्ध्यर्थं अति (-) (पू.वि. श्लोक-४ तक है.) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का हिस्सा वस्तुतत्त्व अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि भूयः अपि कहतां ज्ञानमात्र अति: (-). ९४५४८. योगशास्त्र १ से २ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैये. (२५x१०.५, १३-१५X४०-४६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अंति: (-), प्रतिपूर्ण ९४५४९. (+) उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२, अन्य श्राव वक्तावरमलजी केसरीमलजी गादीया; ? आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसी अन्य के द्वारा "वक्तावरमलजी केसरीमलजी गादीवा व्यावर मे आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीविजयधर्मसूरिजीने वोहराई विर संवत २४३९ श्रावणवदि ९" ऐसा उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६.५४११, १३४३८-४२). "3 उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहेबव्वं पयतेण, गाधा-५४४. ९४५५०. वलकलचीरी चउपई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. मतिहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : वलकलची चउपई., जैदे., (२६X११, १६-१८x४६-५२). वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: प्रणमुं पारसनाथनइ; अंति: समयसुंदर ते सुणइ रे, गाथा - २२६, ग्रं. ३५०. ९४५५१. (+) जिनाज्ञा स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित द्विपाठ, जैवे. (२६४११, १५-१८x४४-४७). जिनाज्ञा स्तोत्र, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि सरसति सामिणी हृदयकमलि घरी, अंतिः सदा हुई इष्ट महासिद्धि ए. गाथा - ५४. For Private and Personal Use Only

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