Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 426
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२ ९४२८७ (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७८७, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पू. १६९-१(१५) =१६८, प्रले. ग. ऋद्धिविजय (गुरुग, लालविजय); गुपि. ग. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी उपदेशमाला, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, ४-१८४३२-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते, संपूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: शोधनीयो वसुधा धने (अपूर्ण. पू. वि. मृगावती चंदनबाला कथा अपूर्ण "इहां मुकलजे" पाठ से "खमावतां चंदनबालाने केवलज्ञान" तक नहीं है.) " ९४२८८ (F) आवश्यकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९७-४४ (११,६४ से १०६) = १५३, प्रले. आ. केसवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: आववृ०, कुल ग्रं. २२०००, अक्षर मिट गए हैं, जैवे. (२६११, १५४६). " आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #. आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अति मिच्छतीति गाथार्थः ग्रं. २२०००, संपूर्ण. ४११ ९४२८९ (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११२-१ (११०)=१११, अन्य. मु. देवीचंद (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४११, ६-१६४३५-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमोः अतिः कासवगत्ते पणिवयामि (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., बालावबोध का पाठ "जीवता मूक्या धर्मनी प्रसंसा वाधी इतिभावः" से मूल पाठ "वयइरस्स गोअमगुत्तस्स इमेतिन्निघेरा अंतेवासी" अपूर्ण तक नहीं है.) 3 , कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत देव बारगुणे०; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अष्टम व्याख्यान तक टबार्थ लिखा है.) कल्पसूत्र- बालावबोध", मा.गु.. रा. गद्य, आदि श्रीपार्श्वप्रणिपत्य अंति (-), (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है, "जीवता मुक्या धर्मनी प्रसंसा वाधी इतिभावः" पाठ तक लिखा है.) ९४२९० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७४-६५ (१ से ६४, ७०) = १०९, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, ६X३७-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, पं. २००० (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं, अध्ययन १६ गाथा-५ अपूर्ण तक व अध्ययन १८ गाथा २१ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक नहीं For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: चरमशरीरी इति त्तिबेमि, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ९४२९१. (+) शत्रुंजब माहात्म्य सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४११-३२३(१ से ३२३ ) = ८८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५४१०.५, ७४३२-३६). " शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. सर्ग-८ श्लोक ८५ अपूर्ण से सर्ग ९ श्लोक- ५६९ अपूर्ण तक है.) शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४२९२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ७३८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स अति: (-) (पू.वि. अध्ययन-३५ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधु केहवा छई जिणइ अति: (-).

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