________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ के अंतिमसूत्र अपूर्ण से
अध्ययन-२० सूत्र-२८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३०८९ (+) नवतत्वनी चोपई, संपूर्ण, वि. १८९५, फाल्गुन शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नवतत्वनी चोप०., संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १४४३८-४४). नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहंतना पाय युग; अंति: वरसिंघ० चितमा धरी,
गाथा-१६७. ९३०९० (+#) चोवीस ठाणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११).
२४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असत्य वचन मसर वचन; अंति: (-), (पू.वि. उपसम वर्णन तक है.) ९३०९१. नारचंद्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-११(१,४ से ६,२१ से २४,२९ से ३०,३२)=२४, पठ. मु. सोमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७-४३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धः शुन्ये नारिः, श्लोक-२९४, (पू.वि. श्लोक-९ से है व
बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.)
ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आद्याक्षरे विलोकनीए, (वि. सारिणीयुक्त.) ९३०९२. (+#) गौतमपृच्छा कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. हुंडी:गोतमपृछा., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१०.५, १५-१७४३८-४८). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जिम आठमउ चक्रवर्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., मोहलक्ष्मण कथा तक लिखा है.) ९३०९३. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से ३)=८, जैदे., (२७४११.५, १८x१०).
बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चार
भांगा अपूर्ण से है व सत्तर असंजम के स्थान तक लिखा है.) ९३०९४. (+) रूपकमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १-४४४०-५२).
रूपकमाला-शीलविषये, म. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ तक
रूपकमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथन आदेस मागी; अंति: (-). ९३०९५ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १७X४८-५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, सूत्र-१ अपूर्ण से अध्ययन-१६,
सूत्र-९ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९३०९६. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१-४५(१ से १०,१८ से ५२)=१६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १८४४८-५५).
जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जन्मनक्षत्रफल अपूर्ण से शनिसाधन अपूर्ण तक
__ व उच्चराशिफल अपूर्ण से चंद्रदशाफल अपूर्ण तक है., वि. सारिणीयुक्त.) ९३०९७. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-८(१ से ४,८,१३,१७,२०)=१५, पृ.वि. बीच-बीच
के पत्र हैं., प्र.वि. कृति अपूर्ण होने के कारण पत्रांक अनुमानित दिये गये है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५-१८४५४-६२).
For Private and Personal Use Only