Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 22
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 405
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि (१) अविरल शब्द महोघा, (२)ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८६. २. पे नाम. सूर्यादिग्रहदशा व आयव्ययज्योतिष विचार, पू. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत मे साधुविचार पद दिया है. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि जनम सूरज के बीस दिन लग; अंतिः शु२१ श१० उपत खपत जाणवी. ९४०४६. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-७(१ से ६,९) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. प्रारम्भ के पत्रों के पत्रांकवाला भाग खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है. जैवे. (२५.५x११, ७४३३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पज्जंसुवा उप्पद्येसुवा" पाठ से "सुरद्वाजणवाए जाव" पाठ तक हैं.) ९४०४८. (+) लघुनाममाला, संपूर्ण, वि. १७९३, वैशाख कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी : नाममालापत्र., संशोधित., जैदे., (२५X११, १७x४०-४६). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि प्रणम्य परमात्मानं अंति हर्षकीर्ति० बत नाममाला, कांड-३, श्लोक-४६१. हितप्रमोद ९४०५४ (+) पाक्षिक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १८४६, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, सूरत बिंदर, पठ. मु. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १७X४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि तित्थंकरे व तित्वे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ९४०५५. देवसी प्रतिक्रमण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-४ (७ से १०) = ८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२६११.५, ९४२५-३० ). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (१) नमो अरिहंताणं, (२) नमो अरिहंताण० पंचदिय संवर अंति: (-), (पू.वि. करेमिभंते पौषधसूत्र अपूर्ण तक हैं.) ९४०५६. महावीरबिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६x११, ११x४२). जिनविंद प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य स्वस्ति, (२) तिहां प्रथम भव्य अंति: (-), (पू.वि. कलश चक्र विधि अपूर्ण तक हैं.) ९४०५९ (+) कर्पूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१ ( २ ) = १८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, ९X३०-३५). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३, अपूर्ण से १४० अपूर्ण तक है.) ९४०६०. (+#) सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. तरणीपुर, पठ. श्रावि. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११X३२-३७). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती अति: जसविजय बुध जयकरी, ढाल ११, गाथा- १२५ ग्रं. २००. ९४०६१. (+) आदिजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. हुंडी रिषभवीवाहलु., संशोधित, जैवे. (२५x११. ११X३७-४६). आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय; अंति: बोलइ सेवक इमि सदा, डाल- ४४, गाथा-२१३. ९४०६२. (+) आगमसार ग्रंथ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी आगम०., संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०.५, ९२८-३५). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-). आगमसारोद्धार- स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव अति (-). ९४०६३. ८ कर्मनी १४८ प्रकृति बंधस्थिति, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. भूषण प्रागजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी:क्रमप्रकृति, जैवे. (२६११, १४x२७-३२). " For Private and Personal Use Only

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