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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२२
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वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य, अंति: (-), (पू.वि. “समृद्धि गृ" से "गृहपते तां धारणी” तक व "तेनहित्वमममानं सुचंद्रो गृह" से नहीं है.)
९२१७२. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-४३ (१ से २९, ३३ से ३७,४५ से ४६,४८ से ५३,५५)=१६, जैदे., (२७.५X१२, १३४३४).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अध्ययन-४ अपूर्ण से है व कुंथुजिन वंदन अपूर्ण तक लिखा है.)
आवश्यक सूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आवश्यक सूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति (-). पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनदास कथा अपूर्ण से है व कुंथुजिन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ९२१७५ (+) षट्पुरुष चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११, १५X४६-५२).
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षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, आदि: श्री अर्हतश्चतु अति (-). (पू.वि. मध्यम पुरुष सोमचंद्र राजा प्रसंग अपूर्ण तक है.)
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९२१७६ (+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८४९ कार्तिक शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. १५-३ (१ से ३) १२, ले. स्थल सूरत बिंदर, प्रले. मु. निहालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२७.५x१२, ३-४४३१-४५).
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८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति वाचक जसनइ वयणे जी, डाल-८, गाथा - ७६, (पू. वि. प्रथम डाल की गाथा १३ से है.)
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संविज्ञ जनपक्षीय.
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९२१७७ दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-३ (६ से ८ ) =६, प्र. वि. हुंडी दशमिका, जैदे. (२८४१२, १७-२२x२५-३५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कट्टे, अति (-). (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-४, गाथा २५ अपूर्ण से अध्ययन-५, उद्देस १, गाथा- ९९ अपूर्ण तक व अध्ययन-५, उद्देस - २, गाथा - ३८ से नहीं है . )
९२१७८. पुष्पिका व पुष्पचूलिकासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५६ ४९ (१ से ४४, ४७ से ५०, ५४) =७, कुल पे. २. प्र. वि. कुछ पत्रों के पत्रांक भाग नष्ट होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है. जैवे. (२८.५४१२, ७-१०४३८-६०).
१. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४५अ -५३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से अध्ययन ४ अपूर्ण तक है.) पुष्पिकासूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२. पे नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टवार्थ, पू. ५५ अ-५६आ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०, (वि. प्रारंभ व अंत के कुछ शब्द नहीं है.)
पुष्पचूलिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे भगवंत; अंति: चोथो वर्ग समाप्त.
९२९८० (+) धन्यकुमार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २९-२३ (१ से २३) =६, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५X१२, १३x४२).
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धन्यकुमार चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अधिकार-६ गाथा-७५ अपूर्ण से अधिकार ७ गाथा १९ अपूर्ण तक है.)
९२१८१. (+) सूराणगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२७४१२.५,
१२४३८-४३).