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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दै; अंति: मिच्छामिदुक्कड
मोयजी, ढाल-२२. ५७९२५. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-३५(१ से २०,२२ से २४,३२ से ४३)=९,
पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ५४३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५५ अपूर्ण से १६२ अपूर्ण तक,
श्लोक-१८४ अपूर्ण से २३२ अपूर्ण तक व २५१ से २५९ तक है.)
ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७९३६. सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी टीका-पूर्वार्द्ध, अपूर्ण, वि. १८६७, मध्यम, पृ. ११६-३९(१ से ३९) ७७, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. मु. मलुकचंद ऋषि; अन्य. नयनसुख; गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५,१३४५३). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ
व अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्वार्द्ध में पाठ- "शितिसूवचंयत् सर्वस्यस्यात् अद्भीत्यात्वे आभ्यां" से है.) ५७९५४. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. देवीदीन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, ७४२७).
अनेकार्थध्वनिमंजरी-श्लोकपदाधिकार, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: ये समयो युद्धसत्वयोः, श्लोक-२१०. ५७९७१. (+#) आरंभसिद्धि सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-९(१ से ७,१३ से १४)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४०).
आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., द्वितीय
विमर्श, श्लोक-२३ से तृतीय विमर्श, श्लोक-७ तक व चतुर्थ विमर्श से अंतिम भाग तक व चतुर्थ विमर्श, गमद्वार,
श्लोक-७२ तक है., वि. यंत्र सहित.)
आरंभसिद्धि-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५७९८०. (+) वाग्भट्टालंकार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तण, प्रले. कान्हा श्रीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२-१४४४०-४५).
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५.
वाग्भटालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रियमिति अन्यस्य; अंति: अव्ययीभावसमासः. ५७९८२. (+#) नारचंद्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, ७-१४४४०-४४). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हत जिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "लग्नथकी गणलेहर इतिसंज्ञा" पाठ तक लिखा है.) ५७९८७. (#) नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४०).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- ३५ अपूर्ण से १९८ अपूर्ण तक है.) ५८००२. (+#) द्रव्यतीर्थ, भावतीर्थ व नयादि आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १४-१५४३८-४६). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भाव
आचार्य तीर्थंकर समान प्रसंग से ब्राह्मीलिपि नमस्कार प्रसंग निरूपण अपूर्ण तक लिखा है.) ५८००३. (+#) हैमीनाममाला बीजक, अपूर्ण, वि. १६६१, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १४-६(१ से २,७ से १०)=८, प्र.वि. ग्रंथ
रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, २४४५४).
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