Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 475
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८९४९. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे., (२३.५x११, "" ८x२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३९ अपूर्ण तक है.) ५८९५०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैये. (२४४११.५, ९x१९). १. पे. नाम. श्रावक अतिचार प्रकरण, पृ. १अ ६आ, संपूर्ण. 1 वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि जम्मो कुलिंगदेसे, अंतिः अपि नरं नरं जयति, श्लोक-३. ५८९५१. (4) संवच्छरी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. १८९७ श्रावण कृष्ण, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, मोरसीमनगर, प्रले. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज अंचलगच्छ); पठ. मु. मेघराज, मु. दोलतराज (गुरु मु. मूलराज, अंचलगच्छ); Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुपि. मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); मु. सरूपराज (गुरु मु. पद्मराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रशादात अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X११.५, १५X३४). ', प्रतिक्रमणविधि संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही केहणी; अंति: तो भूल पडे नहीं. ५८९५२. साधुप्रतिक्रमण विधि व पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९८५, श्रावण कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८-२(५ से ६)=६, कुल पे. २, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. गोकलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११.५, १८x४४). १. पे नाम, साधु प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ८अ अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिखूत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) २. पे नाम, पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पेले पवे नमो अरिहंत, अति तीखुतारो पाटकेणा. ५८९५३. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे (२४,५४१२, १३४२९). आवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि नमो अरिहं० सव्वसाहूण अंति: (-), (पू.वि. 'वंदित्तुसूत्र' की गाथा - ४१ तक है.) ५८९५४. पडिक्कमणा सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. संघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१X११.५, १५x२८). , . आवकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचि अंतिः पछे समावेजंतो कवी ५८९५५. अजितशांति स्तवन व तिजयपहुत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (१)=६, कुल पे. २, जैदे. (२४४११.५, ८x२३). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: पुव्वपन्ना विनासंति, गाधा- ३९ (पू. वि. गाधा-५ अपूर्ण से है.) 3 For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा. पद्म, आदि: तिजयपह्नुत्तयासं अद्रुम, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) " ५८९५६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६०-५३(१ से २२, २४ से ३१,३४ से ३७,४० से ४६, ४८ से ५९) =७, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२४४११.५, १४X३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रभु महावीरस्वामी के जन्म प्रसंग से राजा सिद्धार्थ के द्वारा किए जानेवाले आतिथ्य सत्कार प्रसंग तक बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).

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