Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४८३ २. पे. नाम. वसुधरा रास, पृ. ९अ, संपूर्ण.
वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इयं वसुधारा धनद; अंति: तद कीजै पेहली कीजै. ५९०७५. कविशिक्षा सह काव्यकल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३६, जैदे., (२४४११.५, ११४३३).
कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: गुरुतापि रथोपमानैः, प्रतान-४. कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: विमृश्य वाङ्मय; अंति: गगनं भ्रमरायते,
ग्रं. ३३५७. ५९०९०. (+#) योगचिंतामणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ११४३१). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१, सालिम पाक तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९१३२. (+) द्वारसंग्रह विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४४११.५, १२४३२-३५).
१०४ द्वार विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कषाय विचार अपूर्ण से कालद्वार विचार अपूर्ण तक
५९१४२. जोतिसनो विस्तार, संपूर्ण, वि. १९४२, माघ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. श्राव. छत्रमल; लिख. श्रावि. चंपी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११, १२४३३). ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा., प+ग., वि. १९३१, आदि: श्रीगुरुदेवोनें प्रण; अंति: प करै ते पामैं
भवपार, द्वार-७. ५९१४४. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ९४२५-२८).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. रात्रिभद्रा विचार तक है.) ५९२०६. (+) चंद्रार्किपद्धति स्पष्टीकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४०-४३). चंद्रार्किपद्धति-चंद्रार्कि स्पष्टीकरण, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. "योगानयनतकण"
अपूर्ण तक पाठ है.) ५९२१९. (+) सुपार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २४१, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १०२००, जैदे., (२७.५४११, १५४४४).
सुपासनाह चरिअं,ग. लक्ष्मण, प्रा., पद्य, वि. ११९९, आदि: जयइ जुगाइ जिणिंदो; अंति: सत्तम तित्थनाहस्स,
___गाथा-८५६०, ग्रं. १०१३८. ५९२२०. (+) नंदीसूत्र कीटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २१३+१(१५१)=२१४, प्र.वि. मूल कृति का मात्र
प्रतीक पाठ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४४६).
नंदीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानुः; अंति: जैनोधर्मश्च मंगलम्, ग्रं. ७७३२. ५९२२१. (+) श्राद्धविधि प्रकरण सह विधिकौमुदी टीका, संपूर्ण, वि. १६९०, फाल्गुन, ७, सोमवार, श्रेष्ठ,
पृ. १९१+२(८६,१५६)=१९३, ले.स्थल. मेदनीपुर, पठ. पं. चारित्रविजय; लिख. श्राव. रायपाल लखा साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ६८६१, जैदे., (२६४१०.५, १२४४६).
श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: सुहं लहुं लहंति धुवं, प्रकाश-६.
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