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कैलास श्रुतसागर
जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१४) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI
Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol.1.1.14)
बुदाणावादागास बदरिमाणासिवमा
वादमतगारावा ₹णानामाझिाडि
ਦਾ ਸਵਾਦ
मादा ca
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि जानामादिर ।।
कोबा ती
Hav
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पाश्रीवादाम
Su
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
(१.१.१४)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची
के आशीर्वाद व प्रेरणा | आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
भीमा
.
अमृत तु नि
प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर
वीर सं. २५३९ ० वि.सं. २०६९ ० ई. २०१३
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १४
Ācārya Shri Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūci - Ratna 14
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१४
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci : 1.1.14
०ग्रंथसूची निर्देशन समिति ०
मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी)
श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य)
कनुभाई एल. शाह (नियामक)
० संपादक मंडल ०
पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा
०सह संपादक ०
०संपादन सहयोग ०
पं. रामप्रकाश झा
डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा
परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल
संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल
० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ०
केतन डी. शाह
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १४
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित
विभाग
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ
हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची
- १ : हस्तप्रत सूची * वर्ग १: जैन साहित्य खंड -
- १४
• आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Descriptive Catalogue of Manuscripts
Preserved in
Devarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra,
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under the auspices of
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Section - I : Manuscripts' Catalogue Class - I : Jain Literature
Volume - 14
Blessings & Inspiration
Acharya Shri Padmasagarsurishwarji
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Publishers
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India
2013
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Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 14
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.14
Preserved in Dēvarddhigani Kşamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra,
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00:Publisher
OVir Samvat 2539, Vikram Samvat 2069, A.D. 2013
O Edition : First 0 प्रकाशन सौजन्य :
श्री जीवदया फाउन्डेशन, यु.एस.ए. Shri Jiv Daya Foundation, USA
O Available at:
Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
O Publisher :
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/O ISBN: 81-89177-00-1 (Set)
978-81-89177-52-2 (Vol.14) OPrinter: Navprabhat Printing Press, Ahmedabad
+ उपलक्ष श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा
लोढाधाम प्रतिष्ठा महोत्सव
के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. २०६९, चैत्र कृष्णपक्ष, प्रतिपदा, शुक्रवार, दि. २६-४-२०१३
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योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी
गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी
आचार्य
श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
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|| अर्हम् नमः ।। मंगल कामना
तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ..
अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है.
ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत १४वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री जीवदया फाउन्डेशन, यु.एस.ए. एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ.
बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का १४वाँ खंड प्रकाशित होने जा रहा है, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है.
पभसागर सरि
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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के १४वें खंड को लोढाधाम- मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के करकमलों से लोढाधाम प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.
हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था.
पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार- धन्यवाद दिया जाता है..
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर तन-मन-धन से ज्ञानमंदिर का कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस १४वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जीवदया फाउन्डेशन, यु. एस. ए. के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है..
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस १४वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है.
श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर
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संसारसागरं घोरं तर्तुमिच्छति यो नरः । ज्ञाननौका समासाद्य पारं याति सुखेन सः॥
With Best Wishes
From
DAYAN FOUNDATION
Dallas Texas
JIV DAYA FOUNDATION
12400 COIT ROAD, SUIT570 DALLAS, TEXAS 75251 USA
Phone : +001 214 593 0530 Fax : +001 214 593 1902 E-mail : jhpi@jivdayafound.org Website : www.jivdayafound.org
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प्राक्कथन
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के करकमलों से लोढाधाम प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन प्रसंग पर प्रकाशित हो रहे इस १४वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है.
प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं में आगनिक, धार्मिक, कर्मसिद्धान्त, साहित्य आदि व आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक, व्याकरण, न्यायदर्शन, छन्दोग्रंथादि, रास, कथा-चरित्रादि विषय विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं. कतिपय स्तवन- स्तोत्र, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि की लघुकृतियाँ भी अपने कलेवर में विविध विषयों को समेटी हुई दृष्टिगोचर होंगी. छोटी से छोटी कृतियाँ भी महत्त्वपरक होने के कारण उन्हें निश्चय ही योग्य स्थान प्राप्त हुआ है. आगम व व्याख्या साहित्य की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्वपूर्ण कृतियाँ प्रचुर मात्रा में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं, इनमें से अनेक विद्वानों की कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं.
हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें.
जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है..
प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है..
प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने व त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रत उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक
धन्यवाद.
सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरुद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें.
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संपादक मंडल
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अनुक्रमणिका
मंगलकामना .. प्रकाशकीय .....
.............................................................
...........................||
प्राक्क
थन .......................................................................
...................
अनुक्रमणिका .................
...........................................................................IV प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ..
....... v-vi हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण ................................vii-viii हस्तप्रत सूची
........१-४८६ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.......................४८७-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १................
............४८७-५३८ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ .........
...............५३९-५९६
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें.
प्रस्तुत खंड १४ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. ० प्रत क्रमांक - ५५६०१ से ५९२३५ ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २८१५
प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है.. ० समाविष्ट प्रतों में कुल २७३६ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३६०४ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६६१० बार आई हैं.
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प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत
.............
/ANI/
#......
... कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के
समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. ..प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का
सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों
पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ....... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)...........आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिः ........ अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ........... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) कुं...............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........ मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को..............कोष्टक (कृति स्वरूप) ग. .......... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा..............गाथा (कृति परिमाण) गु.............. गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर)
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गृही.
गोल ...........
ग्रं.
जै.. . जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. ..... जैन कवि (विद्वान स्वरूप ) जै.............जैन देवनागरी (प्रत लिपि)
दत्त.
ते............... जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट ) आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान)
. जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट)
. देवनागरी (प्रत लिपि)
दि.
देना.
पं.
. पंजाबी (कृति भाषा )
पं. ........... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप )
पठ.
प+ग
पद्य. पा.
पु. हिं...
पू. वि.
पूर्व.
पृ.
.... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान )
.. गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ....... ग्रंथाग्र (कृति परिमाण)
........... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार )
पे.
ये. वि.
पै.............
प्र. वि.
आले.
...........
नाम.
प्रा.
प्रे.
पठनार्थ जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान )
. पद्यबद्ध (कृति प्रकार)
पाठक (विद्वान स्वरूप)
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. पुरानी हिंदी (कृति भाषा )
. पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर)
. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक.
- पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर )
. पेटाकृति नाम
-पेटाकृति विशेष
. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा )
प्रत विशेष.
. प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर . )
(प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) (सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.)
प्र. ले. श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा
लिखित प्रतिलेखन श्लोक ( जलात् रक्षेत्... इत्यादि)
प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की
-
. प्राकृत (कृति भाषा )
. प्रतलेखन प्रेरक (प्र. ले. पु. विद्वान )
vi
बौ.............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) .मराठी (कृति भाषा )
महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा )
म.
महा.
मा.
मा.
मु.
मु.
मृपू.
यं.
रा.
गु.
वै.
******.
रारा..............राजस्थानी (कृति भाषा )
राज्यकाल .... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी
गई हो,
राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो.
लिख. प्रत लिखवाने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल...... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वाचक (विद्वान स्वरूप )
वा.
वि.. ..........विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष )
विक्र ............. विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी..
व्याप.
वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष)
. वैदिक कृति (कृति परिशिष्ट )
. व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान)
शक संवत् (वर्ष माहिती प्र. ले. पु.)
श्रावक (विद्वान स्वरूप )
श्राविका (विद्वान स्वरूप)
श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान)
. जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट )
. संस्कृत (कृति भाषा )
. समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान )
साध्वीजी (विद्वान स्वरूप)
जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट ) हिं.............. हिंदी (कृति भाषा )
श.
श्राव..
आवि.
श्रु.
श्वे.
सं.
सम.
सा.
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स्था.
.मागधी प्राकृत (कृति भाषा )
. मारुगुर्जर (कृति भाषा )
मुनि (विद्वान स्वरूप )
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. मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट)
. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट)
. यंत्र (कृति स्वरूप)
राजा (विद्वान स्वरूप)
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० सुकृत के सहभागी ० हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट).|| १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, पालडी
अहमदाबाद || "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद || १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन
मुंबई ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर|| १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई
मंबई || १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ,||
देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.)
मुंबई वालकेश्वर
|| १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ
मुंबई
१८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ
मुंबई
| १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया
२०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, मुंबई गोरेगाँव
मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव
|२१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर
२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका
२३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद
२४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल
| २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट
२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., बावन मुंबई
। जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई
मुंबई
हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली श्रीमद यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला श्री जैन || प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्रेयस्कर मंडल
महेसाणा श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल मुंबई २. श्री अर्बुद गिरिराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट || ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा
इन्दौर ||
रोड
पूना
___ मुंबई
४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर
|| १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी
कोलकाता अहमदाबाद || १३. दक्षिण-पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया
चेन्नई मांडवला चेन्नई || १४. श्री जवाहर जैन श्वे. मू. संघ, गौरेगाँव मुंबई (वे.) ७. श्री रांदेर रोड जनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन || १५. श्री सोहनराज सिंघवी
कोलकाता देरासर, रांदेर रोड
सुरत ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली मुंबई ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट मुंबई १०. प. पू. आ.देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की
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(० सुकृत के सहभागी
हस्तप्रत सूचीकरण में १ से १५ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली
१. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार & सन्स || ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || ९. शेठश्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस.|| १०. श्री भवानीपुर मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता देवराजजी जैन
चेन्नई || ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर |
कोलकाता ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी|| १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ मुंबई
रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई || १३-१४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर
यु.एस.ए. ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १५. शेठश्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद
हस्तप्रत सुचीकरण में भविष्य के आर्थिक सहयोगियों की नामावली
१. शेठश्री संवेगभाई लालभाई, अहमदाबाद २. शेठश्री रसिकलाल धारीवाल (माणिकचंद ग्रुप) पूना, मुंबई ३. शेठश्री रमेशभाई लुंकड भीनमाल, पवनबेन लुंकड, भीनमाल, मुंबई ४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड ट्रस्ट, पायधुनी-मुंबई ५. शेठश्री चंद्रप्रकाशजी अग्रवाल, कायमगंज ६. श्री बावन जिनालय, भायंदर-मुंबई ७. शेठश्री देवीचंद विकासकुमार अनिलकुमार चोपडा (बच्छराज डेवलोपर्स) मुंबई ८. शेठश्री शांतिलाल लल्लुभाई शाह - ह. भरतभाई शाह, वालकेश्वर-मुंबई ९. शेठश्री सोहनराजजी सिंघवी, कोलकाता १०. श्री सायन जैन संघ, शीव-मुंबई
२ सादर समर्पण
कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के
कर कमलों में...
जिनके द्वारा यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही.
०००
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॥श्री महावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५५६०१. (#) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१०(१ से ८,११ से १२)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ की कथा अपूर्ण से गाथा १७
अपूर्ण तक व गाथा १९ की कथा से गाथा ४० की कथा अपूर्ण तक है.)
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+ कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ५५६०३. (+#) माधवानलद्धकगाहावत्स चौपाई, संपूर्ण, वि. १६४२, पौष कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १६,
ले.स्थल. मातरग्राम, पठ. पं. पद्मराज गणि; राज्यकालरा. अकबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,१५४४६). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: नर सुख पामइ
संसारि, गाथा-५५२. ५५६०४. (+#) अंजनासुंदरीनो रास व सम्यक्त्व चौढालियो, अपूर्ण, वि. १८५५, आश्विन कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, कुल
पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३७). १. पे. नाम. अंजनासुंदरी रास, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सील समोवर को नही; अंति: भार्या जगतनी माय तो, गाथा-२२६. २. पे. नाम. सम्यक्त्व चौढालियो, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकितमाहे दिढ रह्या; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ३ अपूर्ण तक
५५६०५. (+#) वाग्भट्टालंकार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ११४३३). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., परिच्छेद १ श्लोक
१० से परिच्छेद ५ श्लोक ३२ अपूर्ण तक है.)।
वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५५६०७. (+#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-२(१ से २)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४५). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अर्हद्दासश्रेष्ठि जिनपूजा प्रसंग से गुणसुंदरी कन्या प्रसंग व दृष्टांत
श्लोक-२० से १३६ तक है., वि. संग्रामसूर, प्रसेनजित्, वरदत्त ब्राह्मण आदि की कथाएँ हैं.) ५५६०९. (#) देवकी पुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १०४३७).
देवकीपुत्र चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, रा., पद्य, आदि: अनेकजसा जस आगलो अनंत; अति: जगमे सोभाग हे माय. ५५६१०. अमरसेनवयरसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७४, आश्विन कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. पं. ऋद्धिसागर मुनि (गुरु पं. सुगुणकुशल मुनि),प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,१५४४२). अमरसेनवयरसेन चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: अक्षर राजा जिम अधिक; अंति: परमाणंद
सुख पावेजी, ढाल-१८, गाथा-३५४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५६११. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-३०(१ से ३०)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ५-७४३५-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ७ गाथा ५७ अपूर्ण
से अध्ययन १० गाथा २१ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५६१५. संस्तारक प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. हरखचंद
(गुरु मु. खुबचंद्र ऋषि, भट्टारकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "भडायरीने सराय छ" लिखा है., त्रिपाठ. कुल ग्रं. १२६५, जैदे., (२४.५४११.५, ४-६४५८).
संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण णमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२०.
संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरं नमस्कृत; अंति: सुख आपो इत्यर्थः. ५५६१७. खापराचोर चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९५, वैशाख कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. रिंछेलनगर, प्रले.ग. कांतिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३६).
खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सरसति माता समरिए नित; अंति: मतिमंदिर
सुख थाइ, ढाल-१७. ५५६२२. (+) चैतमतीनी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, अन्य. श्रावि. तापीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७X४१).
चैत्यमती की चर्चा, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: केतला कहे छे जे; अंति: माटे विचारी जो जो. ५५६२५. (+) धर्मबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. सगता; पठ. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १०४३३).
अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी,
गाथा-५७. ५५६२६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, अन्य. सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, १६४१९).
साधुवंदना, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांगे माहावीर; अंति: ता सीद्धना सुख पामीइ. ५५६२७. विदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३१, पौष शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५४१०.५, १२४४०-५०).
वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जईन धर्म मांहि जागता; अंति: पिमराज० नावै अवतार,
गाथा-२०९. ५५६२८. (+#) षष्टिशतक, अपूर्ण, वि. १५९४, मध्यम, पृ. ११-२(१ से २)=९, पठ. ग. सोभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४३८). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पाढंतु जंतु शिवं, गाथा-१६१, (पू.वि. गाथा
२२ अपूर्ण से है.) ५५६२९. (+#) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(६)=८, ले.स्थल. उदासर, प्रले. राजकुमार, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. किसी अन्य प्रत का हिस्सा प्रतीत होता है. अन्य पत्रानुक्रम ६१ से ६८ लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२,
श्लोक-१०२, संपूर्ण. ५५६३०. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. वावनगर, प्रले. पं. मोहन; पठ.सा. रुखमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४३). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: आदि प्रमुख जिन चोवीस; अंति: सुणतां सदा
कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५५६३२. (+) थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. डीडवाना, प्रले. मु. फतेचंद्र; पठ. सा. चेना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३७). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति
दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगै फल्यारे, ढाल-९, गाथा-७४. ५५६३३. (+) नक्षत्रग्रहशांतिक विधि व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. नक्षत्रग्रहशांतिक विधि, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. __ आचारदिनकर-नक्षत्रग्रहशांतिक विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: कुग्रहैः क्रूरवेधे; अंति: तु देव०
आज्ञाहीनम्. २. पे. नाम. ग्रह पूजन, पृ. ८अ, संपूर्ण.
नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं काश्य; अंति: व्यासो० न संशयः, श्लोक-१२. ५५६३५. (+) ऋषिमंडल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३९). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं,
गाथा-२०८. ५५६३६. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से २,८)=९, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ९४३५). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवसियं आलोउं
सेवदित्तुसूत्र तक है.) ५५६३८. नवकारमंत्रोपरि सवैया व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८, पौष कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में
"ए पडत कुचेरा भंडार कि छे" ऐसा लिखा है., जैदे., (२५४११, ७४३०-३५). १. पे. नाम. नवकारमंत्र सवैया, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: जाके चरनारविंद पूजत; अंति: विनोदी० शुभ घरी है, गाथा-२५. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: समर एक अरिहंत रैण; अंति: तुम्हे आलि मम उच्चरो, गाथा-१. ५५६३९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४-६(१ से ६)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-२
गाथा-४० अपूर्ण से अध्ययन-१० तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५६४०. (+) कल्पसूत्र-थेराऊली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११.५, ४४३३).
स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: नाणस्स परूवणं बुच्छं, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.)
स्थविरावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान विचारणा बोलिसु. ५५६४२. (+) अजितशांति स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-९(१ से ९)=८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४३२-३६).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स,
गाथा-४२, (संपूर्ण, वि. अंतिम दो गाथा प्रक्षिप्त होने की संभावना है.) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजित जीत्या सर्व भय; अंति: पुण्यनी वृद्धि हु, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५६४३. (+#) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से ६,९ से १२)=८, कुल पे. ५, अन्य. सा. पानबाई
महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३७). १.पे. नाम. ते धम्मीयानी सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-धर्मीजीव, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: ते धमीया रे भाई ते; अंति: कवियण एह सहेनाणी
रे, गाथा-८. २.पे. नाम. विजयशेठ अने विजयाशेठाणीनी लावणी, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेवजिन नमु; अंति:
(-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. झांझरियानुचोढालीयो, पृ. १३अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: भावरतन होवै परमाणंदा, ढाल-४,
(पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. मोटी साधुवंदना, प्र. १४आ-१८अ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: जेमलजी एह
तरणनो दाव, गाथा-११२. ५. पे. नाम. चउद स्वप्न, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
१४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक
ट
५५६४४. (+) नवतत्त्व विचार, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ की गाथा-१४ अपूर्ण
तक है.) ५५६४५. आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १७५८, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४२).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी मतिज्ञान१; अंति: गुणस्थानकै सत्ता कही. ५५६४६. मृगापुत्र चौपाई व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०३, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २,
ले.स्थल. सेत्रावा, प्रले. पं. देवमाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४४०). १.पे. नाम. मृगापुत्र महामुनि माता प्रतिबोधनाधिकार, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतिख प्रणमुवीर; अंति: जिनह० त्रिजग सुहामणौ,
ढाल-१०, गाथा-१२८. २. पे. नाम. शेजयमंडण रुषभदेव स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: आणंद सुख पास्युरे,
गाथा-११. ५५६४७. (+) चोवीस तीर्थंकरोनां नाम तथा पूर्ववर्तमानादि माहिती कोठो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २५४२६).
२४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५५६४८. (+) सूत्रव्याख्यान विधिशतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६-१०(१ से ४,६ से १०,१४)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४६३).
सूत्रव्याख्यानविधिशतक, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). सूत्रव्याख्यानविधिशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५५६४९. नवतत्त्वना बोल, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ; अन्य. सा. कस्तुर आर्या; वसरामजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २१०, जैदे., (२६.५४११,१३४४४).
नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकि सम्यग्दृष; अंति: होइ तेमाथी मोक्ष जाइ. ५५६५१. (+#) शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. विशालसोमसूरि शिष्य (गुरु
आ. विशालसोमसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. विशालसोमसूरि (तपागच्छ); पठ. श्रावि. वीराई बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ९x४०). शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारि नेमि; अंति: जयवल्लहा० बोहि फलं,
गाथा-११४.
शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगइं ब्रह्म; अंति: पामइ भवांतरि बोधि फल. ५५६५२. (+#) स्तुति, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३१, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १५, प्रले. मु. उत्तम ऋषि (नागोरीगच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५०). १.पे. नाम. शीतलनाथजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारोजी; अंति: करतां तुझ गुणग्राम, गाथा-५. २.पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घरि अंगण सुरतरु; अंति: जिनराज देव प्रमाण, गाथा-५. ३. पे. नाम. बाहुजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज अरज सुणोने रूडा; अंति: कल्याणसागर० दीनदयाल,
गाथा-६. ४.पे. नाम. श्रीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडो हे हे; अंति: जिनराज० मूको वेसार, गाथा-७. ५. पे. नाम. सीमंधरस्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधर वंदीयै; अंति: ज्ञानचंद० समझाय हो, गाथा-१४. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो महाविदेहनो; अंति: गणि कान्हसी०ताहरा जी, गाथा-७. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर हे जिनवर तुम्ह; अंति: वसुं मोहन मानै फोज, गाथा-९. ८. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण द्यो; अंति: टालो सामी दुख घणा,
गाथा-१०. ९. पे. नाम. मेघमुनी स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वाणी महावीरनी; अंति: तो धम्मोत्तर सुख खेत, ढाल-२, गाथा-१७. १०. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी;
__ अंति: देवीदास० संघ मंगलकरो, ढाल-५, गाथा-६६. ११. पे. नाम. नारकीनो चोढालीयो, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणंदज वादीयें; अंति: गुणसागर होस्वामी, ढाल-४,
गाथा-३१. १२.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जीम जाणे होते; अंति: गुणसागर० आणंद
रली, गाथा-२४.
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सहित)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम. आत्माप्रतिबोधनी स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहि., पद्य, आदि: करिज्यौ मति अहंकार; अंति: धरमसींह० मन में धरो,
गाथा-११. १४. पे. नाम. अनाथी स्वाध्याय, पृ. ७आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडी चढ्यो; अंति: समेसुंदर० करि जोडि,
गाथा-९ १५. पे. नाम. वैराग स्वाध्याय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बुझरे तुं बुझ; अंति: समेसुंदर० भवपार रे,
गाथा-७. ५५६५४. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७१, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ७, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री; अन्य. मु. देवजी सामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४११.५, १३४४२).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नातासुत्र मध्ये; अंति: ते प्रतापे जस पामे, प्रश्न-११५. ५५६५५. (#) पासाकेवली व कोटचक्र विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२४.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नत्वा जिनेंद्र; अंति: गर्ग० हितात्मने, श्लोक-१९६. २.पे. नाम. समरसार-कोटचक्र विधि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. समरसार, रामचंद्र सोमयाजि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-५६ से ६४ अपूर्ण तक है.,
वि. यंत्रसहित) ५५६५६. (+#) स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,११४३४-३६). १. पे. नाम. चोवीसदंडकविचारमय वीरजिनस्तवन, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मनि समरी सदा; अंति:
विनीतविजय० जिणेसरु, गाथा-७९. २. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही रेसाहिब; अंति: विनीत भजई जिनपायरे,
गाथा-५. ३. पे. नाम. अरनाथ स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
अरजिन स्तवन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो अरनाथ; अंति: विनीतविजय० नमे जी, गाथा-५. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: मनसि वचसि काए जागरे; अंति: तुहि लोकीक साक्षी, श्लोक-१. ५५६६०. (+#) तत्त्वार्थगीत सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, २४२२).
जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैन कहो क्यु होवे; अंति: जैनदशा जस
ऊंची, गाथा-१०.
जैनलक्षण सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इण तवनमै दोसनी; अंति: कथन वधै नाम फैले. ५५६६२. (+#) प्रश्नव्याकरण सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १९४६३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, आसवदार-३ के
"संपुसुलिगागल कालकलोहदंड" पाठ से अध्ययन-७, संवरद्वार-२ के "वेर करेज विकह" पाठ तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५५६६३. (#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ.मु. मेघराज (गुरु पं. हीरविजय);
प्रले. पं. हीरविजय; अन्य. कीसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, ७-११x१९-३०). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हारे मारे वासुपूज; अंति: दीप० रोहिणी तप
करे, ढाल-६, गाथा-३१. ५५६६४. (+#) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मीजल, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि (गुरु मु. जेसिंघ ऋषि);
गुपि.मु. जेसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. ५५६६५. (+) विचारशतक बीजक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. श्रीसद्गुरु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४७).
विचारशतक-बीजक, सं., गद्य, आदि: उत्कृष्टतो मनुष्या; अंति: वीर्याचार प्रकाशे. ५५६६६. बोल विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४११, १२-१६४३९). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण १२; अंति: स्यामा साहू सुहंच. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिवर्णगाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.
पंचपरमेष्ठि वर्णगाथा, सं., पद्य, आदि: शशिधवला अरिहंता; अंति: स्यामा साहू सुहं च, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सोलै संज्ञा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
१६ संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आहार१ भयर परिग्रह३; अंति: उघ१४ धम्मो१५ जसोह१६. ४.पे. नाम. नवतत्त्व रूपी अरूपी हेय ज्ञेय उपादेयनो विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायना भेद; अंति: एवं ७८ उपादेय आदरवा. ५. पे. नाम. देवलोक विमान संख्या, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लाख जोजन; अंति: सगला विमान एतला छै. ६. पे. नाम. आउखारी स्थिति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म देवलोके आउषु; अंति: आउषांरी स्थिति जाणवी. ७. पे. नाम. चौदे गुणठाणानो विचार, पृ. २आ, संपूर्ण..
१४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो गुणठाणो१; अंति: अइउएकल एतरी स्थित. ८.पे. नाम. आठ कर्मरा नाम प्रकृति स्थित, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो१ ज्ञानावरणीय; अंति: (-), (पू.वि. प्रकृति दर्शनावरणी कर्म अपूर्ण तक
५५६६७. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४५०).
व्याख्यान संग्रह *,प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदिः यद्भक्तिः सर्वज्ञे; अंति: सुखी परलोक सुखी. ५५६६८. (+#) आषाढभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३९). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-१५ की गाथा-३ तक है.) ५५६६९. (+#) राशि-योनि कोष्ठक व विजयसिंहसूरि प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४४४). १. पे. नाम. राशि-योनि कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसारणी संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. विजयसिंहसूरि प्रश्नोत्तराणि, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
विजयसिंह प्रश्नोत्तर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अपरं सिद्धपंचासिका; अंति: सावस्का चेव निरवस्का. ५५६७०. (+#) चोविस नेमनाथना चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४२५-३८). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति:
अमृतविजय० सीपद नारी, चोक-२४. ५५६७१. (+#) समकित कुलक, संपूर्ण, वि. १८१३, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५०-५५).
सम्यक्त्व कुलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणमवीर; अंति: हिलेवो क्रिपा करी, गाथा-१२०. ५५६७३. (+) पन्नवणा भगवती खेताणूंवाइ, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.६, ले.स्थल. मागरोल, प्रले. मु. भारमल ऋषि; प्रे. मु. दानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, २०४४६).
खेताणवई विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० धम्मो; अंति: तिहां मनुषणी घणी छे. ५५६७४. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ३४३४).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिल्जीवतत्व १; अंति: (-). ५५६७६. (+#) चतुर्विंशतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४३).
स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जीवन जीव
___आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१. ५५६७७. (+) बंभणवाडीवीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७४८, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. मु. केसरविजय
(गुरु ग.सुमतिविजय); गुपि.ग. सुमतिविजय (गुरु पं. हेमविजय गणि); पं. हेमविजय गणि (गुरु उपा. मुक्तिविजय गणि); उपा. मुक्तिविजय गणि (गुरु भट्टा. विजयसिंहसूरीश्वर); भट्टा. विजयसिंहसूरीश्वर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३२).
___ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मा.गु., पद्य, वि. १७०८, आदि: मागु श्रीगुरुनई; अंति: वीर० मंगलीक माली रे. ५५६७८. (+) पद व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४६, प्रले. आणंद पं., प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४५०). १.पे. नाम. नेमिजिनगीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आणंद, पुहिं., पद्य, आदि: जोवन पाहुना जात न; अंति: मेरी घरी घरी वंदना, गाथा-१०. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
म. माल, पुहिं., पद्य, आदि: किम करि भगति करु: अंति: माल० गति होत न तेरी. गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी मेरउ न डरइरे; अंति: भद्रसेन० गरीब निवाज, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
राज, पुहिं., पद्य, आदि: आज प्रीउ सुपनै खरीय; अंति: राज० कोटि करउ चतुराई, दोहा-३. ५. पे. नाम. नेम राजुल गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. रत्ननिधान, पुहिं., पद्य, आदि: हुं नवभव की दासी; अंति: रत्ननिधान० लीलविलासी, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा अग्यानी जीवकुं; अंति: जिनराज० सहिज मिटावइ, गाथा-३.
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७. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. २अ संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि, अंति: आपणड करि जाणीजइ, गाथा-३.
८. पे. नाम जिनकुसलसूरि गीत, पृ. २अ संपूर्ण
जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुसल गुरु कुशल करो, अति: बीनवर जिनचंदसूरि,
गाथा - २.
९. पे. नाम. रावणमंदोदरी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: मंदोदरि वार इम भाखर, अंति: समझइ होणहार लंका खइ, गाथा - ३.
१०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखउ री माइ आज रिषभ; अंति: साधुकीरति गुण गावै, गाथा - ३. ११. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण.
वा. चारुदत्त, पुहिं., पद्य, आदि: जीवन तुं काहे पछतावा, अंतिः चारुदत्त सुख पावइ रे, गाथा- ३.
"
१२. पे नाम, श्रेणिकराजा गीत, प्र. २आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नरग पडंत तु; अंतिः समयसुंदर गुण गाई रे, गाथा-४. १३. पे. नाम औपदेशिक पद पृ. २आ-३अ, संपूर्ण
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मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कउण धरम कउ मरम लहइ, अंति: राजसमुद्र० पावत हइ री, गाथा- ३. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
चतुर, पुहिं., पद्य, आदि: मनबा विणु दउरी न रहइ; अंति: कहइ चतुर० विरला निवहइ, गाथा-३.
१५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. महिमराज, पुहिं, पद्य, आदिः उबड़ दिन कइसड़ ही आवड, अंति: महिमराज० पावइंगे, दोहा-३. १६. पे. नाम. अकबर तानसेन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि अला कोइ खुबसुरति अंति: गाजी तानसेन गुण गावड़, दोहा-२.
१७. पे. नाम संभवनाथ पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
संभवजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु संभवनाथ सुहावह, अंति: भुवनकीरति० कुण पावइ, दोहा-३. १८. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: व्रजवासी कान्ह, अंति: सूरदास० टेर सुणाऊ हो, दोहा-३.
१९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- आत्मा, सूरदास, पुहिं, पद्य, आदि बपीहरा तई कचकड वझ अंतिः सूरदास० काम संभार्यओ, दोहा - २.
२०. पे. नाम. राजा रायसिंघ पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सोभागदे, पुहिं., पद्य, आदि: बोलण लागे मोर कइसे; अंति: सोभागदे० गमन न करियइ, दोहा-२.
२१. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३आ, संपूर्ण
पंडित. तुलसीदास, पु.ि, पद्म, आदि हार मोरा दे तुटइगो अंति: गावइ तुलसीदास रे, दोहा-३. २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
"
मु. राज, मा.गु, पद्य, आदि: तुं भ्रम भुल्यो रे अति: तोलुं राज न काज सरह, गाथा-३ (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.)
२३. पे नाम धूलिभद्र गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्र पद, मु. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदि: धुलिभद्र न्यारी भांत अंतिः रणू तेरउ तु अणुहारी, गाथा- ४. २४. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभदेव मेरा हो देवा, अंति: समयसुंदर० भले राहो,
गाथा - ३.
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२५. पे नाम, मनशिक्षा पद, पृ. ४अ, संपूर्ण,
औपदेशिक पद - मन, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि कोई भुलउ मन समझाव, अंतिः रखी हरखी गुण गावइरे, गाथा-४२६. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: व्रजवासी कान्ह ईयउ; अंति: एहडी प्रीति निरवडीयउ, दोहा-२.
२७. पे. नाम. नेम राजुल पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. देवसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: सखी मोहि जाणदे गिरना, अंति: देवसुंदर० मुगतिपति, दोहा-३. २८. पे. नाम. मुगति गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मुक्तिगीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, पद्य, आदि: माइ हर कोऊ भेष मुगति; अंतिः समयसुंदर० समजावइ, दोहा-३. २९. पे. नाम. आध्यात्मिक जकडी, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कबहुं न करिहुं री, अंति: जिनराज० न खबरी गहेसी,
३०. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि जोगी अवधू सो जोगी, अंतिः सुरति कुं बलिहारी, दोहा-३.
३१. पे. नाम. ब्रह्मचर्य पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
गाथा - ३.
योगीमहात्म्य पद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदिः याली धनओ पीउ धनउ; अंति: राज० परिवारुं डारी, गाथा-३. ३२. पे, नाम, भक्ति पद, पृ. ५अ. संपूर्ण
क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि; सजनी दुर्जन लोग दुहे; अंतिः नरसिंह० थी मिलीयइ रे, दोहा-३. ३३. पे. नाम. कृष्णप्रेम गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण.
चतुर, पुहिं., पद्य, आदि: नवलि निकुंज नवल मृगन, अंति: चतुर० जानवह्यो रे, दोहा-३.
३४. पे. नाम, भक्ति पद, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदिः परनारीसुं प्रगट न अंतिः नरसीया० नावड, दोहा-३, ३५. पे, नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण
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क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि नेउरियांनउ ठमक वाजह, अंति: मिल्यउ नरसी चउसामी, दोहा-२. ३६. पे. नाम. जिनभक्ति पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अब तओ तनक मया करहुं; अंति: बिन कउन बुझावइगओ, दोहा - १.
३७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: मन रे तूं छारि माया; अंति: राज० सामि नाम संभाल, गाथा- ३.
३८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जीउ रे चल्यो जात; अंति: तेरउ समझि जिन राजन, गाथा- ३.
३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदि रे जीउ आपण पर अब सोच, अंतिः क्या साध्य करि लोच, गाथा-३.
४०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कइसउ सासकर वेसार कुस, अंति: जिनराज थिर जसवास, गाथा- ३. ४१. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: किसही कुं सब दिन; अंति समयसुंदर० जिनधर्म सोई, गाथा- ३.
४२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
भैरवदास, पुहिं, पद्य, आदि: मत को उपरउ प्रेम कइ अंतिः परवसी कहत भइरवदास, पद-३,
"
४३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण.
मु. राज, मा.गु., पद्य, आदिः आली मत आप परवसी; अंति: राज० अहोनिसि संभारइ, गाथा-३. ४४. पे, नाम, औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कबहु मइ नींकइ नाथ; अंति: राजसमुद्र० जनम गमायउ, गाथा-३. ४५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: हिलि मिलि साहिब कउ; अंति: राज कहइ सोई साचउ, गाथा-३. ४६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
___ मु. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदनइ तनिक वीनती; अंति: महिमराज० कबहीं नटरु, गाथा-३. ५५६७९. चोविसी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, दे., (२५४१०.५, १७४४८).
स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदीश्वरस्वामी हो; अंति:
विनय स्तुति पूरण करी, स्तवन-२४. ५५६८०. (+) विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अबरखयुक्त पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ४४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचउवीस जिणे तस; अंति: गयसारेण अप्पहिया,
गाथा-३८.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: हितकारणी कीधी. ५५६८१. (+) वीरसेनकुसुमश्री कथा, संपूर्ण, वि. १६९४, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. नवहर, प्रले. श्राव. भीमा; मु. जीवा; मु. सकता;
मु.खेमराज; मु. सकलराज (गुरु ग. चंद्रकीर्ति); गुपि.ग. चंद्रकीर्ति, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित.. जैदे., (२६४११, १५४४४-४८).
वीरसेन कथानक-चतुर्विधधर्म विषये, सं., गद्य, आदि: दान शील तपोभाव भेदाध; अंति: मोक्षपदं प्राप्ससि. ५५६८२. (+) विचारषत्रिंशिका सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले.पं. कमलोदय (गुरु पं. कनकसिंह गणि); गुपि.पं. कनकसिंह गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४४४०).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीजिणा; अंति: गजसारेण० अप्पहिया, गाथा-३८.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: आपनइ हितनी करणहार. ५५६८३. (+) महावीरजिन व वीशस्थानकतप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११,
१३४३७-४०). १. पे. नाम. महावीरजिनराज सत्तावीसभववर्णन स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति:
शुभविजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८६. २. पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: जिनमुखकजवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक
५५६८४. (#) नेमजीनी सलोको, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९-१२४२९-३३). नेमिजिन श्लोक, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: वाणी वरसति सरसति; अंति: कुसलकल्याण०
जिनवाण, गाथा-७२. ५५६८५. गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. अखैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ११४३०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: सयल संघ आणंद
करो, गाथा-५६. ५५६८६. (+) चतुरशीति बोलरचना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.,
जैदे., (२५४११, १६x४८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दिक्पट ८४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण ज्ञान शुभध्यान, अंति: सो लहै मंगल रंग अभंग गाथा- १६१.
५५६८७. शनिश्वर लघुछंद व लघुशांति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२५.५X११.५, ७२२). १. पे. नाम शनिश्चर छंद. पू. १अ ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगि जयो रवि; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, गाथा - १९.
२. पे नाम. लघुशांति, पू. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति: (-) (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) ५५६८८. (+) सागरचंदकुंवर की चतुर्पदी, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५x११, १५X३८). सागरचंदकुंवर चतुष्पदी, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो जगदपति अलख; अंति: नही मिटे भविताइ रे, ढाल-८.
५५६८९ (+) वीरस्तुति, प्रास्ताविक गाथा व २० स्थानक गाथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८ कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पू. ५, कुलपे ३, प्र. मु. सोभागचंद ऋषि, अन्य. सा. मेवाजी आर्या, सा. राजाजी (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ६४३६).
१. पे. नाम. वीरस्तुति सह टबार्थ, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समण; अंतिः
आगमिस्संति तिबेमि, गाथा - २९.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० सुधर्मास्वामीने; अंति: इम बे हुं कहुं छु. २. पे. नाम. प्रस्ताविकगाथा सह टवार्थ, पृ. ५अ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुवय मूलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक है.)
प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि पांच महाव्रत अने अंति: (-) अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
३. पे नाम, २० वोलश्री ज्ञातासूत्र सह टवार्थ, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत१ सिद्ध२ पवयण३; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा - १. २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० अरिहंतनी भक्ति; अंति: जी० जीव मोहबल पाम्या. ५५६९०. पद, स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-३ (१,५ से ६) = ५, कुल पे. १०, जैदे., (२५x११.५,
१५X४२-५०).
१. पे नाम, नववाडी स्वाध्याय, पृ. २अ ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष० जुगति नववाडि, ढाल-११, ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है. )
२. पे. नाम. वैराग्यसूचक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८४९ पौष कृष्ण, ८, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. जीवनराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु, पद्य, आदि: इण जगमें माया प्यारी, अंतिः जाउं बार हजारी रे, गाथा- १३.
३. पे, नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.)
४. पे. नाम. धन्नाऋषिनी स्वाध्याय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गावै कल्याण सुरंग रे, ढाल - २, गाथा-१६, ( पू. वि. गाथा - १५ अपूर्ण तक नहीं है.)
५. पे नाम, धर्मनाथ स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण,
धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि हां रे कांई धर्मजिण, अंति: मोहन० अति घणूं रे लो, गाधा- ७. ६. पे. नाम. रिषभजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुसुंलागी प्रीतड; अंति: रिषभ जिनंदसुनेह, गाथा-९. ७. पे. नाम. वरकाणा पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पं. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसतीजी; अंति: लिखमीविजय
सुखदाय, गाथा-१३. ८. पे. नाम. जीवकायानी स्वाध्याय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागीरे,
गाथा-७.
९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: प्रभु तेरो रूप बन्यो; अंति: समयसुंदर जनम ताही को, गाथा-५. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. साधारणजिन विनती स्तवन, मु. विजयकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: मै कुण अपराध कीना; अंति: विजयकीरत०धरम धारे
है, गाथा-६. ५५६९१. (#) साघुवंदना, संपूर्ण, वि. १८२५, आषाढ़ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५, प्रले. रणछोड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, १२-१४४३७-४४).
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहजिण पमुह; अंति: पासचंदे० संथुण्या, ढाल-७, गाथा-९१. ५५६९२. (+#) अइमुत्ताकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४०).
अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: वीरजिणंद नमु सदा; अंति: नारायण मनि
उल्लास, ढाल-२१, गाथा-१३५. ५५६९३. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३३-३६). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-८ का अध्ययन-१
अपूर्ण तक है.)
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले चोथा आराने; अंति: (-). ५५६९५. (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २३४४७). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-),
(पू.वि. अध्याय-५, पाद-३, श्लोक-१९० अपूर्ण तक है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अर्हमित्येतदक्षरं;
__
अंति: (-).
५५६९६. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ५८, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.६०००, दे., (२६४११, ५४४४-४८). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: भवंति त्तिबेमि, उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३,
(वि. १९६७, वैशाख शुक्ल, ५, शनिवार) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: क्षय करवारूप फल हुइ, (वि. १९६७, कार्तिक
कृष्ण, सोमवार) ५५६९८. (#) जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४३-९७(१ से ५४,७० से १०९,१२६ से १२८)=४६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३८).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
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१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५६९९. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६७९, पौष शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ९८-५३(१ से ५३)=४५, ले.स्थल. नवानगर,
प्रले. मु. विबुधजयंत; पठ. श्राव. कनकाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (८५९) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२६४११.५, १०४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२३, गाथा-७२ अपूर्ण से है.) ५५७००. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-४(३० से ३३) ४३, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: आगमं गइ त्ति बेमि,
अध्ययन-१० चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-७, गाथा-२७ अपूर्ण से अध्ययन-८, गाथा-१९ अपूर्ण तक नहीं है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्ट मंगलिक; अंति: गति इति ब्रवेमि. ५५७०१. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ५४२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-५७ अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरीहतनि नमस्कार; अंति: (-). ५५७०३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४२-१२३(१ से ३,५ से ७,९* से ३१,३८ से ८८,९*३ से १३५)=१९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५,१४४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ की गाथा-२९ अपूर्ण से
अध्ययन-३६ किंचित् अपूर्ण तक है., वि. बीच-बीच के पत्र होने से पाठ क्रमबद्ध नहीं है.) ५५७०५. आनंदघनचोविसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. भृगकच्छ, प्रले. ग. दयालविजय (गुरु
पं. विद्याविजय); गुपि.पं. विद्याविजय (गुरु पं. गुलालविजय); पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०, ४४३६-३९). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागे रे,
स्तवन-२४, (वि. १८१८, कार्तिक कृष्ण, ७, बुधवार) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)आनंदघनस्यास्या गीत, (२)चिदानंदमय जिनवरु;
अंति: ते करी मोक्षपद पामे, ग्रं. ८२८, (वि. १८१८, माघ शुक्ल, ९, शनिवार) ५५७०६. (+) पृथ्वीराजवेलि सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१८)=३३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४४५). कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: परमेसर प्रणमि; अंति: अचल तैरोपी
कल्याणतन, गाथा-३०६, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-५१ अपूर्ण से गाथा-६१ अपूर्ण तक नहीं है.) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६३८, आदि: ग्रंथिनी आदि करी; अंति: (-),
(पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३०५ तक लिखा है.) ५५७०७. (+#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१(१)=३२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४२६).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से अनुज्ञानंदी अपूर्ण तक है.) ५५७०८. (#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३१, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४५३). १.पे. नाम. नेमिराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: धना ए मासवसंत सुहामण; अंति: नेमजी हो राजुल० आय, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: नयरी वणारसी नित नवी; अंति: आवागमण निवारो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथोआरो सब सारो अजित; अंति: तेजसिंघ० गुण जुगते, गाथा-५. ४. पे. नाम. उपाशकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. सद्दालपुत्त
अध्ययन अपूर्ण तक है.)
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चोथो आरोते; अंति: (-). ५५७०९. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९४-१५४(१ से १५४)=४०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावलीगत जंबूस्वामि संबंध अपूर्ण से
समाचारी-२८ अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५७१०. (+) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-२२(१ से २२)=२८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ६-१०x१८-२५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
तिजयपहुत्त गाथा-५ अपूर्ण से सिग्धमवहरउ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५५७११. (+) भरतक्षेत्रमानादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, २१४५१).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५७१२. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४३-१(२८)=४२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै., (२५४११, १५४५५). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-),
(पू.वि. गुरुशिष्य प्रश्नोत्तर के आंशिक भाग नहीं हैं तथा केवलज्ञानी के परमौदारिक शरीर संबंधी कुंडलियाँ पाठ तक
५५७१३. (#) स्नात्रपंचाशिका सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १८१८, आषाढ़ कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २६-१(१)=२५,
प्रले. पं. विजयसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कथाओं की सूचि अंत में दी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३५).
स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुक्ति सुखार्थिना, श्लोक-५०, (पू.वि. श्लोक-२ से है.) स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परै मुक्ति सुखी थाई. स्नात्रपंचाशिका-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुख एक भवक पामस्यै, कथा-५०, (पू.वि. कथा-१ अपूर्ण से
है.) ५५७१५. (+) उपाशकदशांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२+१(१७)=२३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८
अपूर्ण तक है.) ५५७१७. (+#) श्रीपाल रास सह टबार्थ-खंड-४, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-११(१६ से २६)=२१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-१ से है परन्तु गाथा-४ से लेखन प्रारंभ है. संभव है कि सभी खंडों का अलग-अलग पत्रक्रम होगा., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ६४३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-१, गाथा-५ से ढाल-८, गाथा-१७ व ढाल-११, गाथा-३१ से ढाल-१४, गाथा-३ अपूर्ण तक
श्रीपाल रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५७१९. (+) मृगावती रास व निंदापरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६९२, कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २,
ले.स्थल. कर्णपुरी, प्रले. य. सज्जन (गुरु मु. नारायणदास, उत्तराद्धगच्छ); गुपि. मु. नारायणदास (उत्तराद्धगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४११.५, १७७५४). १.पे. नाम. मृगावती चरित्र, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. तीनों खंडों में उल्लिखित प्रसंगों की सूचि दी गयी है. मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि
सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३८, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. २. पे. नाम. निंदापरिहार गीत, पृ. २०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंद्या म करिज्यो;
___ अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ५५७२०. चित्रसंभूतिऋषि रास, संपूर्ण, वि. १७६८, माघ शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२६४१२, १८४४९).
चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसरु; अंति: दीइंदोलति दीदारु रे,
ढाल-३९, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. ५५७२१. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३२-१२(१ से १२)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ८४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७, गाथा-२८ अपूर्ण से
अध्ययन-१८ , गाथा-२२ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५५७२२. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६-१९२८, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. शिवराम पानाचंद ठाकोर;
पठ. श्रावि. आधारबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ३४२३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३, (वि. १९२६, वैशाख शुक्ल, ८, मंगलवार) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सा० सावध व्यापारथी; अंति: पिण सुचवाणा इत्यर्थः, (वि. १९२८,
वैशाख कृष्ण) ५५७२३. (+) भगवतीसूत्र-खंदक व चमरेंद्र अधिकार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१२(१,११ से २१)=१८, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११,११४३५-३९). ___ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंदक अधिकार अपूर्ण व चमरेंद्र
अधिकार पूर्ण तक है.) ५५७२४. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-४(१,१२ से १३,१८)=१५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४०).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. कांड-१, श्लोक-२६ से १८६ व कांड-२, श्लोक-३९ से कांड-३ श्लोक-१३७ तक है.) ५५७२५. (#) तेरठाणु, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५-७(१ से ४,७,१५,२४)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४१-४६).
१३ गुणस्थान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १३ द्वार अपूर्ण से भवनपति विचार अपूर्ण तक है.) ५५७२६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र भास, पूर्ण, वि. १६९१, श्रावण शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-२(१ से २)=१८, पठ. श्राव. हांसबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४२१, १३४२५-३०). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजय लहइ हवइ जयजयकार, गीत-३६,
(पू.वि. गीत-३ की गाथा-२ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५५७२८. (+) दंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३०-४८).
२४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: डंडक लेशा थती अवगाहण; अंति: मास ६नु आंतरु. ५५७२९. (+#) प्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४१८). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक भाग अपूर्ण से
अंतिम भाग आंशिक अपूर्ण तक है.) ५५७३१. (+#) क्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. यंत्र
सहित., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४४०).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपईट्ठिय; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१०१ तक है.)
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर केहवउ जय; अंति: (-). ५५७३२. (+#) विक्रम चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४४७).
विक्रम चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५९ से ५८६ अपूर्ण तक है.) ५५७३३. (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१८४३९-४४). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-९ अपूर्ण से
ढाल-२८ गाथा-९ तक है.) ५५७३४. (+) ऋषिमंडल स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, ९४३४).
ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं,
गाथा-२०८. ५५७३५. (-#) सुपात्रदानादि विषयक व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १३४४०). सुपात्रदानादि विषयक व्याख्यान संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नो दानं वहिती तपोन; अंति: (-), (पू.वि. धन्ना
शालिभद्र प्रसंग तक है.) ५५७३६. (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, अन्य. पं. अभयसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४०).
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण. हवइ; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९. ५५७३७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४-१(१)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ४-६x४२-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ से अध्ययन-४
अपूर्ण तक है., वि. पत्रांक-६आ प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण है.)
दशवकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५७३८. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-५(१ से ४,१२)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ५४३७).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्वजिन वंदन से वंदित्तुसूत्र ___ गाथा-४३ अपूर्ण तक है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५७३९. (+) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३०-३४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: विद्यमान वर्ते छे जी. ५५७४०. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ११४३४). १. पे. नाम. देवसीप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. २.पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१८. ५५७४१. पाक्षिकसूत्र वखामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३०). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २.पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: होह इति गुरुवचनं, आलाप-४. ५५७४२. (+#) सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१७४४६-५०). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. सोमदत्त
ब्राह्मणपुत्री प्रसंग तक है.) ५५७४४. (+#) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से
विनयसमाधि अध्ययन उद्देश-४ अपूर्ण तक है.) ५५७४५. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १ से १३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १८४३६-४४).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५७४६. श्रावकालोचना, संपूर्ण, वि. १९५६, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. कालावड, प्रले. आंबामाडण खत्री; अन्य.सा. मीठीबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५,१५४४४-४६).
श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्रावकने सकल पात; अंति: आराधिक पद पामस्ये. ५५७४७. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३१-२२०(१ से २१५,२२५ से २२९)=११, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ५४३५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३५ की गाथा-१६ अपूर्ण से
___ अध्ययन-३६ की गाथा-१२८ अपूर्ण तक है.) ५५७४९. (#) आद्रकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७६६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. नडुलाइ, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४३८-४६).
आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: न्यानसा०देऊल गेहे रे,
ढाल-१९, गाथा-३०१, ग्रं. ४५१. ५५७५०. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध का आर्द्रकीय अध्ययन-६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५४, मार्गशीर्ष कृष्ण,
४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. हरजी ऋषि (गुरु मु. सोमजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ५४३१).
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुरेकडं अद्दइमं सुणे; अंति: दाहरेज्जासि
त्तिबेमि, गाथा-५५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा अहइज अध्ययन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवई छहउं अध्ययन, अंतिः व्याख्यान पूर्ववत्.
५५७५१. इंद्रियपराजयशतक व वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैवे. (२६.५४११, ११४४२). १. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: सुचिअ सूरो सो; अंतिः संवेगरसायणं निच्चं, गाथा - १०१.
२. पे. नाम, वैराग्यशतक, पृ. ६अ १०आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंतिः लहसि जहा सासवं ठाणं, गाथा- १०४. ५५७५३. (१) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X१२, ७X३४). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेण कालेणं तेणं, अंति: (-), (पू. वि. वर्ग-३ अध्ययन १ अपूर्ण तक है.)
"
अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते अंति: (-).
५५७५४. (#) नवतत्त्व प्रकरण, सिद्धांतगाथा संग्रह व फलित ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, ले. स्थल. प्रतापगढ, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ११४३४).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्ण३; अंति: दुचक्की केसव चक्कीय, गाथा-८२.
२. पे. नाम. सिद्धांत गाथा, पृ. ७अ १०आ, संपूर्ण.
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सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: एकेंदियए पंचेंदिय; अंति: मब्भिनेगं पंचमेअरए, गाथा-६०.
३. पे. नाम. फलित ज्योतिष, पृ. १०आ, संपूर्ण.
ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि (-) अंति: (-).
मा.गु.,सं.,हिं.,
५५७५५. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७३९, श्रेष्ठ, पृ. १३-३ (१ से ३) = १०, कुल पे. ४, ले. स्थल. अणहिल्लपुर, प्रले. मु. सौम्यसागर
(गुरु ग. दयाचंद्र); पठ. मु. राजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १०X३६).
१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
२. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७अ १०अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव- जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभुं जीरिकापल्लि; अंति: महेंद्रस्तवार्हाः, श्लोक-४५. ३. पे नाम, वामेय स्तोत्र. पू. १० आ-११ आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधुसु; अंतिः एव लक्ष्मीविशेषाः, लोक-१३.
४. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १९आ- १३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं भुवः; अंति: दद्यास्त्रिलोकी विभो, श्लोक-१६. ५५७५६. (+४) उत्तराध्यायनसूत्र अध्ययन १ से १०, अपूर्ण, वि. १८७४, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १२-३ (५ से ७) = ९,
ले. स्थल. जोडीयागाम, प्रले. मु. आणंदजी ऋषि, अन्य. मु. लाधा ऋषि, मु. व्रध ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री माहावीर प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X३९).
१९
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स, अंति: (-), ग्रं. २००० (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन ३ गाथा १३ अपूर्ण से अध्ययन - ७ गाथा २३ अपूर्ण तक नहीं है.)
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५५७५७. (+#) पेढालपुत्र अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १७३०).
पेढालपुत्र अध्ययन, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः आउसंतो गोयमा अथी खलु; अंति: (-), (पू.वि. "चरण हार" पाठ तक है.)
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२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५७५८.(+) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(१ से ३)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १२४३८).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ से ढाल-१५
गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ५५७५९. (+#) पुण्यसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पठ. मु. कचरा ऋषि; मु. सुरताण ऋषि; मु. गागा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमु; अंति: नवनिधि थाई
पंच समति, ढाल-९, गाथा-२०५. ५५७६०. चर्चा के प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. दीव, अन्य. मु. जेचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, -१४-१).
जैनधार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन मारोने विषे; अंति: नीश्चे खोटा छै. ५५७६१. (+) गजसुकुमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५८).
गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमीसर जिनवरतणा चरण; अंति: (-),
__(पू.वि. ढाल-१६ दुहा ८ अपूर्ण तक है.) ५५७६२. उत्तराध्यायनसूत्र- अध्ययन ३५ से ३६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १७४३३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन ३६ गाथा २५० तक
है.)
५५७६३. अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२६x१०.५, १०४३४).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावै
जी, ढाल-१३, गाथा-१०७. ५५७६६. (+) भगवतिसूत्र-नियंठा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ., दे., (२५.५४१०.५, १३४४९). __ भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पण्णवय १ बेय २ रागे; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-१४ अपूर्ण
तक है.) ५५७६७. (#) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४३४).
लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा
सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा-१८८. ५५७६९. (+#) तत्त्वविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४६०).
तत्त्वप्रकाश, श्राव. दलपतराय, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम शिष्य गुरु; अंति: (-), (पू.वि. अष्टाचार वर्णन तक है.) ५५७७०. (+) चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. १९९१, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. माडलगढ, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५.५४११,२५४५१). चंदनबालासतीरास, आ. जवाहरलालजी, हिं., पद्य, वि. १९८९, आदि: प्रतिबोधित अर्जुन; अंति: जवाहिर०वरते
मंगलाचार, गाथा-४०१. ५५७७१. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१,७)=६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, १५४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा २ अपूर्ण
से अध्ययन-५ गाथा ३२ अपूर्ण तक व गाथा ७० अपूर्ण से गाथा १०३ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५५७७२. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे ६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२६४११, १४४४९).
१. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
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आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०. २. पे नाम, सप्ततिशतजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३. पे नाम, नमिऊण स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण पणयसुरगण, अंतिः परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२२. ४. पे. नाम. लघुशांति स्तव, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७.
"
५. पे. नाम. बृहद्शांति स्तव, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः सुखी भवतु लोकः. ६. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
५५७७३. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. सांचोर, प्रले. मु. सोभा; पठ. मु. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११, ९४२६).
"
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
२१
गाथा - ६३.
५५७७४. (+#) कानडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १४४३९).
"
कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: (-), ढाल - ९, (वि. अंतिम पाठांश खंडित है.)
"
५५७७५. (+) गौतमपृच्छा व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६.५X११.५, १४X३३).
गीतमपृच्छा व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत बीत अंति: (-), (पू.वि. 'इह लोक सुखी पटलो पाठ
तक है.)
"
५५७०६. (+) धातुपाठ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६.५४११.५, १९४५३). भीमसेनी धातुपाठ, मु. भीमसेन, सं., गद्य, आदि धातुपाठो कृतो येन, अंति: नवत्युत्तरताययुः ५५७७७. (+) दंडक प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
"
जैदे., (२५.५x११.५, ३X३५).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.)
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार करी, अंति: (-).
५५७७८ (4) मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८३७, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. जेशलमेरु, प्रले. पं. भीम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११, १४X३७).
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण; अंति: सकल सुख विभागी था.
५५७७९. दानशीलतपभाव संवाद, अपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७ - १ ( १ ) = ६, ले. स्थल. रीया, जैदे.,
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(२५.५४११, ११४२५).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंतिः समवसुंदर प्रसाद रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू. वि. ढाल - २ दोहा २ अपूर्ण से है.)
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२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५७८०. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६x१०.५, ५४४५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: (-), (पू.वि. "धम्मो
सरणं पवज्जामि" पाठ तक है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टबार्थ के आदिवाक्य का अंश नष्ट है.) ५५७८१. (+) पच्चक्खाण व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. दसपच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण..
- प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि. २. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ४आ-६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से
३३ तक नहीं है.) ४.पे. नाम. चऊदनियम गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ५. पे. नाम. ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
ज्ञान पूजा, प्रा., पद्य, आदि: नमति सामंति महीवनाह; अंति: नाणस्स लाभाय भवखयाय, गाथा-२. ६. पे. नाम. अब्भूट्ठियोसूत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भु; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीस. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
गाथा संग्रह *,प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: अरे भववासी जीव जड को; अंति: राख साचे भगवान कू, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वविभो; अंति: माजलं त्वमेवाश्रयः, श्लोक-३. ५५७८२. (+#) चंदनमलयागिरि सवैया, स्त्रीसंवाद व औपदेशिक दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३,
ले.स्थल. आसाढाग्राम, प्रले. मु. वीरचंद्र (गुरु उपा. उदयशेखर); गुपि. उपा. उदयशेखर (गुरु उपा. क्षिमाशेखर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २३४५२). १. पे. नाम. चंदनमलयागीरि रास, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. चंदनमलयागिरी चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: स्वस्ति श्रीपूरण सदा; अंति: सुमति लखमि
वधे निदान, ढाल-१६, गाथा-२६७. २.पे. नाम. स्त्रीसंवाद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: सोल सवईया कह सह; अंति: ति कई मध्यस्त वसै, सवैया-१६. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण..
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-८. ५५७८३. (+#) गजसुकुमाल रास व पोसह गाथा, संपूर्ण, वि. १६२६, माघ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. पुण्यधरा, प्रले. पंडित. लक्ष्मीमंडन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. गयसुकमाल गीत, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
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२३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
गजसुकुमालमुनि रास, मु. अमरहंस शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५७७, आदि: सरस वचन दिउ भारती; अंति: श्रीसंघ करु
जयकार, गाथा-७४. २. पे. नाम. पोसहलेवा गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ५५७८४. (+) सामायिक अतिचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ८४४७).
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चउवीसाए; अंति: अरिहे समणे तहा संघे.
सामायिक अतिचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार चउवीस तीर्थं; अंति: चतुरविध संघनै विषै. ५५७८७. द्रोपदीसती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु.खेमती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४३७).
द्रौपदीसती रास, मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १९५१, आदि: व्रतामे शीलवडो ज्ञान; अंति: देव० सुणतां सुखकारी, ढाल-४. ५५७८८. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४४८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ.
गाथा-३९, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: नमी करी चउवीस तीर्थ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा ७ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ५५७८९. (#) लोकनालबत्रीसीसह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. कांतिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७४५६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न
इह भिसं, गाथा-३२.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदसणेति० जिनदर्शन; अंति: एवावचूरिर्विलोक्या. ५५७९०. (+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १९४५४). ___ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: अयमढे पण्णत्ते,
अध्याय-३३,ग्रं. १९२. ५५७९१. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८७, कार्तिक शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १४८, ले.स्थल. वीरमपुर, राज्ये
मु. जगमालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक के नाम वाला पाठ खंडित है, इसलिये विद्वान की संपूर्ण सूचना नहीं दी गई है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १५४४६). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिम्,
प्रस्ताव-६. ५५७९३. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७५, आषाढ़ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम,
पृ. १२०-१५(३५,७५,७७,८६ से ९७)=१०५, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्रले. मु. नारसिंघ ऋषि (गुरु मु. मेघजी ऋषि); गुपि. मु. मेघजी ऋषि (गुरु मु. लाडिकाजी ऋषि); मु. लाडिकाजी ऋषि; पठ. मु. आसा ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६३) तैलाद्ररक्षं जलाद्रक्षं, (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (१०१६) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२५४१२, ६४३३).
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसंतेण; अंति: विहरइ
त्तिबेमि, अध्ययन-७.
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुयंमे० आउष्मतिहे; अंति: धर्म पालइ छइ. ५५७९४. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध- वाचना २, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७-१४(१ से १४)=२३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४५६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. महावीरस्वामी २७ भवगत ८ भव
अपूर्ण से है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५५७९५. (+#) कुमारपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३४).
कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., प+ग., वि. १४९२, आदि: ॐ नमः श्रीमहावीरजिन; अंति: (-),
(पू.वि. "चौलुक्यनृपकारिता" तक का पाठ है.) ५५७९८. (+) संघपट्टक वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. ७८, प्रले. श्राव. राजसी तिलोकसी शाह; अन्य. पं. लक्ष्मीसागर (गुरु
ग. रत्नसुंदर); गुपि.ग. रत्नसुंदर (गुरु उपा. रत्ननिधान); उपा. रत्ननिधान (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि); आ. जिनचंद्रसूरि; श्राव. हरखा (पिता श्राव. लक्खु); श्राव. लक्खु (पिता श्राव. लुंभा); श्राव. लुंभा; श्राव. तिलोकसी शाह (पिता श्राव. हरखा), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्रतिलेखक ने जेसलमेरु वास्तव्य गणधर गोत्रीय होने की सूचना लिखी है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ३५८४, जैदे., (२६४११, १५४५५).
संघपट्टक-टीका, आ. जिनपतिसूरि, सं., गद्य, आदि: यस्यांतः सभमायतासलभ; अंति: स्पष्टाभिधेयामिमान्. ५५७९९. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ व सात नय विवरण, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ७६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१५.५, ६x४४). १.पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-७६अ, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण शुक्ल, १५, रविवार. ___ अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंति: साहू से तं नए, प्रकरण-३८.
अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञान पंच प्रकार; अंति: तं० एनय नाम चतुर्थ. २.पे. नाम. सातनय विवरण, पृ. ७६आ, संपूर्ण, वि. १९६८, भाद्रपद कृष्ण, ११, रविवार. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ए सात नय० दुष्ट नय; अंति: संपउत्तानगई
नविट्ठा. ५५८०१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८४-१२६(१ से ९०,९४ से १२४,१३५ से १३६,१७८ से
१७९,१८३)=५८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५८०२. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-१८(१२ से २२,२६ से २७,३५,३७,३९,४१,४५)+१(५५)=५३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७-१४४४१).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुण्णाइं नाशइं, सूत्र-५७.
नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. ५५८०४. (+#) दीपालिकाकल्प सह टबार्थ व ढुंढीया स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८,
कुल पे. २, ले.स्थल. आगरनगर मालवदेशे, प्रले. मु. सुभाचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३१). १. पे. नाम. दीपालिकाकल्प सह मा.गु. टबार्थ, पृ. १आ-४८अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-४२९. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अहँत बालबोधिना, (२)अष्ट माहाप्रातिहार्य; अंति: त्यारे लगे
प्रतपो. २. पे. नाम. चौदस्वप्न ढुंढीओ, पृ. ४८आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१४ स्वप्न-ढुंढीया की माता द्वारा देखे गये, मा.गु., गद्य, आदि: अथ ढुंढीया गर्भावास; अंति: पर्यंत चालस्यै. ५५८०५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११६-७०(१ से ७०)=४६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन जन्मोत्सव अपूर्ण से स्थूलिभद्र
कथा अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५८०६. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०८, आश्विन कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. धनेरा,
प्रले. मु. जसविमल (गुरु पं. विनयविमल गणि); गुपि.पं. विनयविमल गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६x४२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४.
उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐकार सबदि पंचपरम; अंति: गनी मुखथी उपनी वाणी. ५५८०७. (+) कृष्णरुक्मणीवेलि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४३, प्रले. पं. दुलीचंद; पं. ईसरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४३९). कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: परमेसर प्रणमि; अंति: अचल तैरोपी
कल्याणतन, गाथा-३१६. कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीहर्षसारसद्गुरु; अंति: मलो तरोपी
कहता वावी. ५५८१२. (+) स्तोत्र, स्वाध्याय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-३१(१ से ३१)=३१, कुल पे. १५, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३८). १.पे. नाम. स्तंभनकतीर्थराज श्री पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०,
(पू.वि. श्लोक २९ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सप्तस्मरणानि, पृ. ३२अ-४०अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
स्मरण-७, (वि. उवसग्गहरं का मात्र प्रथम पाद लिखा है.) ३. पे. नाम. महावीर चरित्र, पृ. ४०अ-४२अ, संपूर्ण. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ४. पे. नाम. महावीर स्तोत्र, पृ. ४२अ-४४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. ५.पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रावण शुक्ल, ७, ले.स्थल. मिरजापुर, प्रले. पं. हर्षविजय;
पठ. श्राव. मोतीलाला, प्र.ले.पु. सामान्य.
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ६. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४५अ-४८अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४८अ-५१अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८.पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. ५१अ-५१आ, संपूर्ण.
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लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांतं, अति सूरिः श्रीमानदेवञ्च श्लोक-१७.
९. पे. नाम. सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, पृ. ५१-५२आ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासय अट्ठ: अंतिः निव्यंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४.
१०. पे नाम. नवग्रहस्तुतिगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५२-५३ अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः जिणप्पहसूरि० पीडति गाथा- १०.
११. पे नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. ५३३-५५आ, संपूर्ण
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
१२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५५आ-५७आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंतिः बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९.
१३. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडक स्तवन, पृ. ५७आ-५९आ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः नमिठं चउवीसजिणे तस्स अंतिः विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा ४०.
१४. पे नाम, वृहच्छांति, पृ. ५९आ- ६२अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत, अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे १५. पे. नाम. नवग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ६२अ - ६२आ, संपूर्ण.
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ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि; जगद्गुरुं नमस्कृत्व, अंति: ग्रहशांतिविधिस्तवः श्लोक-११. ५५८१३. (+४) कथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६१-३४(१,३ से १४,१६ से २२,३३ से ३६,३९ से ४३,५१ से ५५)=२७. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, ७४३२).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.)
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
कथा संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-).
कथा संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५५८१६. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-११ (१ से ११) = २३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., दे.,
(२५.५४१०.५, १५X३७).
,
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु. पच, वि. १६८०, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २० गाथा २४ से ढाल ४५ गाथा ९२ अपूर्ण तक है.)
५५८१७, (४) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४१-३१९ (१ से ४५, ४७ से ३९०,३१२ से ३१३,३१८ से ३१९,३२१,३२६,३२८,३३७ से ३३८,३४०)-२२. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६४११, १५४५१).
3
1
५५८१८. (+) हैमलिंगानुशासन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. खेचरपुर, प्रले. पं. लक्ष्मीसुंदर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५६३).
हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: कटणथपभमयर; अंति: शासना लिंगानाम्, प्रकरण ८.
५५८२०. (+४) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५.५४११, १२-१६४३०-३५ ).
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१. पे, नाम, नवस्मरण, पृ. १अ १८आ, संपूर्ण.
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण - ९. २. पे नाम, लघुशांति, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ११ अपूर्ण तक है.) ५५८२१. (#) सूक्तमाला, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १०४२९).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: तेइ मोक्षसाधि जि केइ, वर्ग-४, (पू.वि. वर्ग
१ गाथा ४ अपूर्ण से है.) ५५८२२. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-२९(१ से २९)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४३५).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५५८२४. (+#) सील अधिकार अंजनासतीनो रास, पूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(६)=१५,
ले.स्थल. मालपुरा, प्रले. जीतू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७-२०४३५-३७).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: सतीय सीरोमण
गाइय, खंड-३, (पू.वि. गाथा ६३ अपूर्ण से गाथा ७१ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल २२.) ५५८२५. (+) संघपट्टक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १४, पठ. मु. जेचंद ऋषि (गुरु मु. चतुरचंद ऋषि,
लुंकागच्छ); अन्य. मु. रामचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२५.५४११, ४४३३).
संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंति: यापीत्थंकदामहे, श्लोक-४०.
संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: व० अगनि तेहनी ज्वाला; अंति: महापराभव पामीइं छई. ५५८२६. (+#) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १५४५२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से
गाथा ५१२ अपूर्ण तक है.) ५५८२७. नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४११, १५४२८).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड १ ढाल ५ गाथा
७ अपूर्ण से खंड ३ ढाल ६ गाथा १ अपूर्ण तक हैं.) ५५८२८. (+) मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२५.५४११.५, १७X४५).
मुनिपति चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनर किंनर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९२६ अपूर्ण तक हैं.) ५५८३०. (+#) प्रद्युम्नकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-६(७ से ८,१० से १२,१४)=१२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४९). प्रद्युम्नकुमार चौपाई, वा. कमलशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: (१)श्रीजिनवर सवि पय नमी, (२)सरस कथा
यादवतणी कहिस; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४८७ अपूर्ण तक है.) ५५८३१. (#) सामुद्रिक शास्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १८४५०).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: सर्वधन एश्वर्य वाधइ, अध्याय-३६, श्लोक-२२२. ५५८३२. (+-) कोणिक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, चैत्र कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१६४३५). कोणिकराजा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: आठ भवा पहला हुंता; अंति: राय० समगत संठी राखक,
ढाल-२७. ५५८३३. (#) अंजना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(१,८)+१(७)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा १४ से १५० तक है.)
५५८३४. उत्तराध्ययनसूत्र सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १७वी मध्यम, पृ. १३-२ (१ से २ ) = ११. पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे. (२६४१२,
११x४४).
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उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ से ८८ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र - अर्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५५८३५. (+४) चंदनराजामलयागिरी रास, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १३X३७).
चंदनमलयगिरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीनवर चरणे नमी, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -८ की गाथा ४२ अपूर्ण तक है.)
५५८३६. (४) चंद्रलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२-१२ (१ से ११, १३)+१ (१२) ११. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५४१९, १४४४० ).
"
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- १४ की गाथा १० अपूर्ण से ढाल - २८ की गाथा - १३ तक है.)
५५८३७. चंदनमलयागिरी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३-३ (१ से ३) - १० प्र. वि. कुल ग्रं. ३५०, वे., (२५४११,
१४४२९).
"
"
चंदनमलयागिरी चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: (-); अंति: सुमति० लखमि वधे निदान, ढाल- १६, गाथा-२६५, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा ५६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५५८३८. पर्यंताराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १० प्र. वि. कुल ग्रं. २४५, जैये. (२६४११, ११३०). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा- ७२. पर्यंताराधना - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवने; अंतिः साश्वता सोख्य लहि. पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८४ - २७५ (१ से २७५) =९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५४११.५, ७४८).
५५८३९. (+)
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गतिद्वार अपूर्ण से आयुष्यद्वार अपूर्ण तक है.) प्रज्ञापनासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). *,
५५८४० (+) गुणावली कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, १३४३४).
""
गुणावलि रास. मु. ज्ञानमेरु, मा.गु, पद्य, वि. १६७६, आदि: प्रणमुं चडवीसे जिनरा अंतिः पद सवि मनवंछित पावंत,
ढाल - १६.
५५८४९. (+) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४११,
"
१६X३३).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख अंति: (-). (पू. वि. खंड- २, डाल-४ की गाथा १३ अपूर्ण तक है.)
५५८४२. सद्भाषितावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३ - ४ (१ से ४) = ९, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ।
११४४०-४५).
जै. (२५.५४११.
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सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. श्लोक ७९ अपूर्ण से श्लोक-२४५ अपूर्ण तक है.)
५५८४३. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १८९-९८० (१ से १७६, १७९,१८४ से १८५, १८७) = ९, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५x११.५, ६x४१)
"
"
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-). उत्तराध्ययन सूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५५८४४. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै. (२६४११.५, ८४३२).
जैदे.,
५५८४९.
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श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिं; अंति: (-),
(पू.वि. पच्चक्खाणसूत्र अपूर्ण तक है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मालउ नमस्कार अरिहंत, अंति: (-). ५५८४७. (+) जीवाजीवविभत्तिअध्ययन-उत्तराध्ययने, संपूर्ण, वि. १८९६, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. रुपनगर, प्रले. हतराम पठ. श्रावि कस्तुरा, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैये., (२६X१०.५, १४X४६-५०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-): अंति: सम्मए ति बेमि, प्रतिपूर्ण
५५८४८. (+) द्वादश भावना, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये., (२५.५x१०.५, ११४३५).
१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस, अंति: अडीयदीव नर लोगो, ढाल - १४.
(+) कुरगड्डु रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१०.५, १४-१६४३०-३३). कुरगडुमुनि रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: संतनाथने समरी पो अंतिः नागोर सहर चोमास जी, ढाल - ६.
५५८५०. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११-४ (१ से ४)=७, दे. (२६११, १३x४३).
,
२९
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १९ अपूर्ण
से है व गाथा- ३१ तक लिखा है.)
गौतमपृच्छा-बालावबोध + कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण.
५५८५२. (+०) रास, सज्झाय व लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. सा. अमरत दे, लिख. सा. लाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६४११, १५X३७). १. पे. नाम. गजसुकुमाल रास, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
""
मा.गु, पद्य, आदि; रातडिताढ़ी दिन वादलो, अंतिः रुषमणा गरब अहंकारोजी, गाथा १०.
३. पे. नाम. औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रा. सं., पद्य, आदि (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), लोक-१.
गजसुकुमालमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरसति देवी सरसत; अंति: हरष म्हो आणंद हुया, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.)
२. पे. नाम. कृष्णरुक्मणी सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण
"
५५८५४. (+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) ६. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२५४१२, १५४४१).
सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाधा १२ अपूर्ण से १७१ अपूर्ण तक है.)
५५८५५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- १६, ३२ व ३६ अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९४-८६ (३,९ से ९३) ८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. प्रत्येक अध्ययन का स्वतंत्र पत्रानुक्रम तथा प्रत अपूर्ण होने से पत्रांक काल्पनिक दिया गया है, संशोधित, जैदे., (२६X११, १५x५०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-) अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन- १६ संपूर्ण, अध्ययन-३२ की गाथा-३५ से ९९, अध्ययन- ३६ की गाथा- २३ से ४९ व ८६ से २०७ तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५५८५६. भक्तामर स्तोत्र व भक्तामर मंत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. हालार, प्रले. श्राव. मोतीचंद वंजपाल संघाणी, अन्य. मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २५x१०, १२X३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४८. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण, अन्य. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
सं., गद्य, आदिः ॐ नमो वृषभनाथाय; अंति: शिव कुरु कुरु स्वाहा.
"
५५८५८, (+) स्तोत्र व प्रकरण संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( २ ) =५ कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३३२).
१. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, बि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
प्रा. पद्य, आदि (-); अंतिः बोहिव इक्कणिकाय, गाथा ५१ (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.)
.,
,
३. पे नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण
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आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा - ५१. ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ५५८५९. (#) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंड है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२.५x११, १३४२९)
"
कान्हडकठियारा रास- शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -७ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.)
५५८६०. (+-०) प्रत्येकबुद्ध चौपाई खंड १, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६- १(१) ५ प्रले. सा. जीउजी, पठ. मु. खेमता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १८x४५).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. डाल- ३, गाथा-५ अपूर्ण से है.)
५५८६१. (+) तेत्रीसबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( २ ) = ५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे.,
(२६११, १८४३६)
३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सात अहलोग भय १; अंति: (-), (पू.वि. "तेंदरी का दोय भेद" पाठ से "बोलहथ कर्म सेवतो" पाठ तक नहीं है व "असमाधि वर्णन" से आगे नहीं है.)
५५८६२. (०) प्रकरण व प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५X१०.५, १०-१३X३५).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपश्वं वीरं नमिऊण अंतिः संतिसूरि०सुवसमुद्दाओ, गाथा ५१.
"
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३ आ-६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१.
३. पे. नाम. चतुर्विंसति दंडक, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा ३८.
४. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ८आ - १० आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंतिः सिद्धिं मम दिसंतु
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(+)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५५८६३.
) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ३-५X४५).
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उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
""
अपूर्ण., अध्ययन- १६, गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.)
(+)
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्ध, मा.गु, गद्य, आदि: पूर्वसंयोग मातादिकनो; अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनई एक चेलो; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
५५८६४. (१) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५५ कार्तिक कृष्ण, ८. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल, डेह, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४९-५६).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि भक्तामर प्रणत मौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः पमतिः ० प्रायशः संति.
५५८६५.
कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९३ - ४ (१,६ से ७,९२ ) = ८९, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ६-१७x४९-५८).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमस्कार मंत्र अपूर्ण से २७वीं सामाचारी अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., मा.गु., गद्य,
सं., मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५५८६६. (*) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार सह स्याद्वादरत्नाकर टीका की रत्नाकरावतारिका टीका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५-१(६३)=११४, अन्य. मु. पद्मोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., । १७४२८-५२).
जै.. (२५.५x११.
३१
प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. १९५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतार, अंति: स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद-८, सूत्र- ३७९, (पू. वि. बीच का अल्प पाठांश नहीं है.)
प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं.,
प+ग., वि. १३वी, आदि: सिद्धये वर्द्धमान, अंति: प्रसर्पति प्रजल्पतः, परिच्छेद-८, ग्रं. ५६८०. ५५८६७. (+) दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १८९७ फाल्गुन शुक्ल, ८, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ७८-१९ (१९ से २८,३० से ३४,५९ से ६२)=५९, प्रले. मु. ऋषभदास; अन्य. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. विनयचंद ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पाठ., जैये. (२५x११, १-६x२५-३३).
क्
"
दशाभुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं० लोए, अंतिः उबदसेइ ति बेमि, दशा- १०,
(पू.वि. पंचमदशा-चित्तसमाहिठाणा, गाथा- ७ से छठी दशा के "उवासगपडिमा सव्वधर्म्म सहया विभवई" तक, "सम्म अनुपात्ता भवति" से "पडिवण्णस्स अणगारस्स तओ गोवरकाला" तक, तथा "इत्थीगुम्मपडिवुडे महताहत" से "तस्स धम्मस्स सणया सा च भवति" तक का पाठ नहीं है.)
दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: देखाडइ इति पूर्ववत्.
५५८६८. (+) श्रीपालकथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल ८, श्रेष्ठ, पृ. ७६, ले. स्थल सिरीयारी, प्रले. मु. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ८x४२).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपचाई झायित, अंति: नायंज्जता
कहाएसा, गाथा - १३४३.
सिरिसिरिवाल कहा- टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, वि. १८०६, आदि: स जयति सिद्धसमूहो; अंति: जाणतां
थका कथा एह.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५८६९. (+#) कल्पसूत्र व श्लोक संग्रह, पूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ६३-१(१)=६२, कुल पे. २,
ले.स्थल. अजीतपुरा, प्रले.मु. विधिचंद; अन्य. पं. जैकर्ण (गुरु ग. जगद्विशाल); गुपि.ग. जगद्विशाल; अन्य.पं. जसकर्ण; अमरचंद; पं. रामचंद्र (खरतर बेगडगच्छ); पं. सुरता, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, ११४३३). १.पे. नाम. कल्पसूत्र, पृ. २अ-६३आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. महावीरप्रभु की पंचकल्याणक
तिथियों के वर्णन से है.) २.पे. नाम. याचक लक्षण, पृ. ६३आ, संपूर्ण..
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गात्रभंगः स्वरे; अंति: तानि चिह्नानि याचने, श्लोक-१. ५५८७०. (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. पितांबर हरि भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ५४३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: यमणागयमद्धं चिट्ठति, सूत्र-४३.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: सुखने पाम्या थका. ५५८७१. निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३५००, दे., (२५.५४११, ४४३०-३९).
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: तेण परं छम्मासा, उद्देशक-२०.
निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे साधुह० हस्त; अंति: ते उपरांत छ मास थया, ग्रं. ६२२. ५५८७२. (+) आचारांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११०,
ले.स्थल. खंभालिया, प्रले. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४०००, दे., (२५.५४११, ४४३१-३३).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिन; अति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५८७३. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. मांडवी बिंदर,
प्रले. प्रेमचंद रूपचंद पांडे; पठ. श्रावि. ठकराणीबाई कपूरचंद गोशलीया, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४४२८). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० अंति: अप्पाणं
वोसिरामि. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो कर्मरूप; अंति: उपरांत वोसरावू
५५८७४. (+) आचारांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ,
पृ. १९०, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. पं. खुबचंद्र कुशल; पठ. श्राव. लधुभाई सुंदरजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथांत में द्वितीय श्रुतस्कंध अंतर्गत अध्ययन-उद्देश बोधक कोष्ठक दिया गया है. "आ परत सा लधुभाई सुंदरजीइं भंडारमा मूकि छे वांचवाभणवासारू" लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१०.५, ५४३०-३६).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइं इम हुंकहुंछउ, प्रतिपूर्ण. ५५८७५. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम चूलिका
अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३३ ५५८७६. (+#) प्रतिष्ठाकल्प-गृहबिंबस्थापनादि विधि, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ४४,
ले.स्थल. लालबाग मुंबई, प्रले. हरगोवन मोतीराम भोजक, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५.५४११, १२x२४). प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. दिक्पालपूजन से
जलयात्राविधि तक है. आरंभ में यंत्रादि दिए गए हैं.) ५५८७७. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ व प्रायश्चित्त विधि आदि, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल
पे. ३, ले.स्थल. कच्छ, प्रले. श्राव. माणिक्यचंद्र; पठ. श्राव. रुपचंद केशवजी; सम. श्राव. सुंदरजी देवराज; अन्य. मोरलीधर नारायण; देवकृष्ण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ४-६४३०-४०). १.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र, पृ. १आ-४०आ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक-६.
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: णो० न कल्पे निसाधु; अंति: थिवर कल्पीनी मर्जादा. २.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र की प्रायश्चित्तविधि, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: वृत्तिमाहे छइं. ३. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तविधि यंत्र, पृ. ४२अ, संपूर्ण..
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५८७८. (+) दीपालिका कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७३, पौष कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११.५, ५४३६). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-४३७.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हन्नत्वाल्पबुद्धी; अंति: त्यार लगि प्रवर्तो. ५५८७९. (+) पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ११४३८-४२). ___अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं
विलोक्य तत्. ५५८८०. (+) सूयगडांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-११(१ से ९,२१ से २२)=२८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, ६४३०-४०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-१ "अकिरियाइ
वा सुकडेइ वा दुकडेइ वा," पाठ से अध्ययन-२, "अवहरति जावसमुप्पजाणाति" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठ
नही है.) ५५८८१. (+) विपाकसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. लखमनपुर, प्रले. मु. गुमानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४४६-४९).
विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंति: मदभयदेवाचार्यस्येति, श्रुतस्कंध-२. ५५८८२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ९४३०-३५).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: एक दर्शनी इम कहइ; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक है तथा बीच के पृष्ठों में यत्र-तत्र लिखा है.) ५५८८३. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह विधि, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग., वि. १९वी, आदि: तिखुत्तो आयाहिणं; अंति: दोय नमोत्थुणं
कहणा.
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३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५८८४. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२४, चंद्रअंकनेत्रवेदाश्च, पौष कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. २८,
ले.स्थल. पेथापुरनगर, प्रले. मु. केशरचंद; पठ. मु. विद्यानिधान मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१०२२) अधौ मुखं ग्रीवा नेत्रं, दे., (२५४११.५, ४४३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. ५५८८५. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८४, कार्तिक शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. पीपाडनगर,
प्रले. श्राव. मनोहर (पिता श्राव. नेताजी शाह); पठ.मु. वीरदास ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि); गुपि.मु. जसवंत ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२-४८).
__ अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. ५५८८६. (+#) उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रावण शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ.पं. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ४४२७). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसरयणमिणं,
गाथा-२९.
उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रतन तेहनो; अंति: रतनमाला प्रीति धरे. ५५८८७. (+) आहारना ९६ दोष सह टबार्थ व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ., दे., (२५४१०.५, ३४३५). १.पे. नाम. आहारना ९६ दोष सह टबार्थ, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदि: आहाकम्मे१ उद्देसिकर; अंति: निसिथि पारसीय एय.
आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकरमी आहार साधु; अंति: ल्पसूत्र वेदे कल्पई. २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक है.) ५५८८८. (+) सामायिक प्रतिक्रमण दृष्टांत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ४)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३४).
आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ५५८८९. (+#) गौतम कुलक व चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,५४३४). १. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, वि. १६९३, प्रले. मु. हेमराज पंडित (गुरु मु. अखयराज पंडित);
गुपि. मु. अखयराज पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे लोभीया नर छइ; अंति: एतलइ मुक्ति सुख पामइ. २. पे. नाम. चउसरण पयन्नय सह टबार्थ, पृ. ४अ-११अ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापरनइ विषय; अंति: सुखनु देणहारु छे. ५५८९०. पोषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२८-३५).
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: कनकाचार्य रचनीय. ५५८९१. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. इंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ५४२९).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: ते अनेक सिद्ध१५. ५५८९२. (+) सौभाग्यपंचमीमाहात्म्य विषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११,
ले.स्थल. राजनगर, प्रले.पं. माणिक्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (२५) भग्नपृष्ठकटिग्रीवा, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (१०२३) जिहां लगें मेरू थिर रहे, दे., (२५४११.५, ९-११४२६-३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिनाधि; अंति: भुतेषुरसिंदुमितवर्षे, श्लोक-१५१. ५५८९३. (+#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७५८, माघ शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. सा. भागलक्ष्मी (गुरु सा. चारित्रलक्ष्मी,
उपकेशगच्छ); गुपि.सा. चारित्रलक्ष्मी (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में मूल पाठगत पृथ्वीकाय आदि जीवों का सांख्यिकीय मान दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४१).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८७. ५५८९४. कुलक संग्रह व उपकरण विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. वढवाण शहेर,
प्रले. श्राव. खीमचंद पोपटलाल गांधी; अन्य.सा. माणेकबाई स्वामी (गुरु सा.डाहीबाई); गुपि.सा.डाहीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ५४३७). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह,
वक्षस्कार-४, गाथा-८१. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तजीने छांडीने राजनु; अंति: मोक्षना सुख प्रत्ये. २. पे. नाम. पुन्य कुलक सह टबार्थ, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण.
पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इंदयत्तं, मा; अंति: लहति ते सासयं सुह, गाथा-१०.
पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संपूर्ण पांच इंद्रिय; अंति: रहितने सिद्धि सुख. ३. पे. नाम. साधुसाध्वी उपकरण सह टबार्थ, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो पायठ; अंति: ए अजाणं पणवीसंतु, गाथा-७.
साधुसाध्वी १४ उपकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पातरं झोळीबांधवानी; अंति: पचवीस जाणवा. ५५८९५. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० तक है.) ५५८९६. (+#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ११४३६). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: करी मिच्छामि
दुक्कड. ५५८९७. (#) कल्पसूत्र भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२).
कल्पसूत्र-कल्पदीपिका भाषाटीका, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
___ द्वारा अपूर्ण., महावीर च्यवन कल्याणक अपूर्ण तक लिखा है.) ५५८९८. (+) नवपदगुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे.. (२५४११.५, १७४४१).
नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पदै; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः. ५५८९९. (+) भरटकद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. विराटनगर, प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित.,जैदे., (२५४११,१६-१९४४०-५२).
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३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य; अंति: हृष्टो गृहे जगाम, कथा-३२. ५५९००. (+#) हिंसाष्टक की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४९).
हिंसाष्टक-स्वोपज्ञ अवचूर्णि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अपार पारावार संसार; अंति: नयचक्र संचाराः. ५५९०१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३५).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिणि भुवनइं विषइं; अंति: समुद्र तेहवी. ५५९०२. (+#) साधुवंदना व महासती कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-१(२)=१४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर
पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ११४४२). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १आ-३आ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ग. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: कुंदकली परि निर्मली; अंति: द सुप्रवृद्धि संपजइ, ढाल-२३, गाथा-२५२,
(पू.वि. ढाल-१, गाथा-३ से ढाल-३, गाथा-२ तक नहीं है.) २.पे. नाम. महासती कुलक, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण..
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ५५९०३. चैत्यवंदन सह बालावबोध, व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, कुल पे. १०, दे.,
(२४.५४११.५, ११-१३४२५-३३). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदन सह बालावबोध, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रीयसे पार्श्वनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अशरण; अंति: मंगलीक माला
विस्तरै. २. पे. नाम. वृद्धनवकार, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: सेवा देज्यो
नित्त, गाथा-१३. ३.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, प्रले. मु. जेठमल ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य.
ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उच्चरणं वेद; अंति: वंदै हेम इम वीनती, गाथा-११. ४. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरूं श्रीआदिदेव; अंति: कहै त्यां घर जयजयकार,
गाथा-६. ५. पे. नाम. साधु वर्णन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
साधुगुण सवैया, पुहि., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत पाले रहते; अंति: ताकुं बनणा हमारी है, गाथा-१. ६.पे. नाम. देव्या स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहै, गाथा-५. ७. पे. नाम. सत्यिकाय सप्रभाव स्तोत्र, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण.
सत्यकामाता स्तोत्र, मु. देवतिलक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: किंतु समुद्रसंचरी; अंति: देव० स्फुरत्युच्चकै, श्लोक-९. ८. पे. नाम. अंबिका छंद, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
अंबिकादेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदा पूर्ण ब्रह्मांड; अंति: भवानी सदा जे विराजे, गाथा-९. ९. पे. नाम. घटमंत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण.
जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१०. पे. नाम. माताजी स्तुति, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण.
__ज्वालादेवी स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ ब्रह्मा वाच छेद; अंति: जय कालि कल्याण करे, गाथा-८. ५५९०४. (+#) नवतत्त्व सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पटणा, प्रले.पं. प्रतापसौभाग्य मुनि; पठ. मु. सागरचंद (गुरु पं. प्रतापसौभाग्य मुनि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१२, १४४५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४
तक लिखा है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीरः; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति, संपूर्ण. ५५९०५. (+) नयचक्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १५४५०).
नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य परमब्रह्म; अंति: परममंगलभावमश्नुते. नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: जे कारणे श्रीजिनागम; अंति: लहिस्यै
तत्त्वतरग. ५५९०६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-इक्षुकाराध्ययन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-५(१ से ५)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ९४२८). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१४ इक्षुकाराध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से ४७ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१४ इक्षुकाराध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५९०७. (+#) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. श्रीमोंगीया,
प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि; पठ.सा. इंद्रकुवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४११, ३-५४३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउंक. नमस्कार; अंति: हितनी करणहारी छइ. ५५९०८. जितशत्रुराजा सुबुद्धिनाममंत्री कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२४.५४१२, १६x४५).
कथा संग्रह-बुद्धि ऊपर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीपार्श्वनाथाय, (२)वसंतपुर नामनी नगरे; अंति: ध्यान मोक्षजग
मलीना. ५५९०९. (+#) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५,१२४३२).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
__ श्लोक-९९. ५५९१०. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ११४२५).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. ५५९११. (+#) स्तोत्र, स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २१-१(७)=२०, कुल पे. २९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४१). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: करेमि
काउसग्गं. २.पे. नाम. १० प्रत्याख्यान नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.
१० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकारसी १ पोरसीए २; अंति: ८ अभिग्गहे ९ विग्गई, गाथा-१.
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३. पे. नाम. दसप्रत्याख्याणानां आगार संख्या गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
,
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा. पद्म, आदि दो चैव नमुक्कारे अंतिः हवंति सेसेसु चत्तारि गाथा-३, ४. पे नाम प्रत्याख्यानसूत्र, पू. ६ आ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ, (पू.वि. पाठ- "साइमं अन्तत्थणाभोगेणं "भोगेणं सहसागारेणं" तक नहीं है.)
५. पे. नाम, ४ मंगल, पृ. ८आ, संपूर्ण
प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंतिः धमो सरणं पवजामि गाथा - ३.
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६. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८-११अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ, अंति: वंदामि जिणे चउवीस,
सूत्र - २१.
७. पे नाम वंदित्तुसूत्र, पृ. ११ - १३अ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि; वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०.
८. पे. नाम. थंभनकतीर्थराज पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १३-१५अ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवड़ अणंदीय, गाथा ३०.
९. पे. नाम. उपदेशमाला सिज्झाय, पृ. १५अ - १६आ, संपूर्ण.
पौषध सज्झाय - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा - ३३.
१०. पे नाम, संथारापोरसीसूत्र, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण
प्रा., पद्य, आदि निसिही निसिही निसीहि, अंतिः (अपठनीय). गाथा १८.
११. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १७-१८ अ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः इच्छामोणु सिद्धि, आलाप ४. १२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, पृ. १८अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव - स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. १३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १८अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन, अंतिः देहि में सुद्धिनाणं, गाथा-४.
१४. पे नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंतिः सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. १५. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तुति, पृ. १८ आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जन मन वंछिय सारै, गाथा-४. १६. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १८-१९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदिः समदमोत्तम वस्तु महाप, अंतिः सा जिनशासन देवता, लोक-४.
१७. पे नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १९अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति, अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४.
१८. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तुति, पृ. १९अ- १९आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत में एकाधिक बार आई है.
पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन स्वस्तिनजायः श्लोक-४.
१९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय, अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
२०. पे. नाम महावीरजिन स्तव, पृ. १९आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४.
२१. पे नाम. चतुर्थी स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण
लोक-१.
साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज पदपद्म, अंतिः दाता ददतां शिवं वः, २२. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं अंतिः वद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१.
२३. पे नाम चतुर्वितिजिनानां स्तुति, पृ. २०अ संपूर्ण
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४.
२४. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण
३९
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार, अंति: सुहाणि कुणेसुरवा, गाधा-४. २५. पे. नाम चतुर्विंशतिजिनानां स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय), गाथा-२, (वि. पानी से विवर्ण होने के कारण आदिवाक्य व अंतिमवाक्य अवाच्य है.)
२६. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं, अंतिः इम जीवित जनम प्रमाण,
गाथा-४.
२७. पे. नाम. पार्श्वजिनानां स्तुति, पृ. २०-२१अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा, अंतिः जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा-४. २८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २१अ, संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. २९. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २१अ २१ आ. संपूर्ण, पे. वि. यह कृति एकाधिक बार आई है.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रें दें कि धप, अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
५५९१२. (+) चतुर्मासपर्वप्राभातिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (१) = १०,
ले. स्थल. नागपुरनगर, प्रले. पं. वल्लभरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १३x४२). चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंतिः कर्तव्यमितिश्रेयः, (पू.वि. "आतरीद्रध्यान वसई' पाठ से
है.)
५५९१३. (+) श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ६x४१).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.सं., पद्य, आदि: नास्त्यहिंसासमोधर्म्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक संख्या - २४ अपूर्ण तक है.)
लोक संग्रह जैनधार्मिक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जगत्रने विषे जीवदया अंति: (-).
५५९१४. दंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. मुक्तिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२,
५X३८).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्म, वि. १५७९, आदिः नमिठं चउवीसजिणे तस्स अंति: (१) एसा विनत्ति अपहिया, (२)सोलससंन्नात सजीवेसु, गाथा- ४९, (वि. गाथा- ४५ से ४९ तक गाथासहस्त्री, रत्नसंचय आदि ग्रन्थों से संकलित
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हैं.)
दंडक प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः नमिउंक. चउवीस तीर्थ, अंति: (१) आत्मानि हेतुई लखी, (२) असजीवमापण पामीई.
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५५९१५. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह समास, संपूर्ण, वि. १७९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. जावालनगर, प्रले. पं. हस्तिविजय (गुरु मु. रविविजय); गुपि. मु. रविविजय; पठ. मु. भोजविजय (गुरु पं. दयाविजय गणि); गुपि. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- त्रिपाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ६-८४३६-४०).
""
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्रोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र - समास, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: कल्याणानां मंदिर, अंति: यस्ते विगलितमलनिचयाः.
५५९१६. (०) दशवैकालिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २१-२ (१,५) १९, प्र. वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे (२५x११. १९३०-३४).
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन- २ गाथा १५ अपूर्ण से अध्ययन- १० तक है.)
.
दशवैकालिकसूत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं.
५५९१७. (+#) सिंदुरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन शुक्ल, ९, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १२, ले. स्थल. रंगपुर, पठ. पं. विनयविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, ११X३२).
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२,
"
लोक-१००.
५५९१८. (+#) अजितशांति व बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, पठ. दोलजी कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x१२, १९३३).
१. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १आ-४अ संपूर्ण
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिवसव्वभयं संत, अंतिः जिणवयणे आवरं कुणह, गाथा- ४०. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण.
सं., पण., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्,
५५९१९. (*) समयसार कलश टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.
१४४४५).
समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः नमः समयसाराव, अंति: मेवामृतचंद्रसूरेः, अधिकार- १२, श्लोक-२७८.
५५९२०. (+) शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्राव. पतदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x१०.५, १३४३५-४१).
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १०वी, आदिः आबालबंभवारि नेमि: अंतिः आराहिय लहह
.
2
बोहिसु, कथा- ४३, गाथा - ११६.
५५९२१. (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२५.५X११.५, ९x४८).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदिः सुवं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
आचारांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
५५९२२. (+#) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ - १ (१) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, १६४४६).
"
कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मध्य के अंश है.)
५५९२३. (#) भगवतीसूत्र शतक - १२ उद्देश १ - ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, ८x४६-४९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १५७५२, प्रतिपूर्ण.
भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५९२४. (#) गोचरचर्या गाथा, पचक्खाण संग्रह व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-७(१ से ७)=६, कुल पे. १७,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३०)... १. पे. नाम. गोचरचर्या गाथा, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
गोचरी आलोअणगाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा-१, (पू.वि. मात्र अंतिम चरण है.) २. पे. नाम. १० पच्चक्खांण, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: प्रमुख पच्चखाईजै. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतिसा जिनशासन
देवता, श्लोक-४. ४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसुसया, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथपलांकित स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिकास्त्रायिका, श्लोक-४. ७. पे. नाम. द्वितीया स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संत वैसंत कल्याणदाता, गाथा-४. ९. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन
स्वस्तिनजाघः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १२.पे. नाम. अणोझास्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, प्र. १२आ-१३अ, संपूर्ण..
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. १५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण..
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरहलकुवलगवलमुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १६. पे. नाम. सेर्बुजा स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेत्रुजय मंडण आदिदे; अंति: नंदतुम्ह पाय सेविता, गाथा-४. १७. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
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४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५९२५. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान ९ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: आज्ञाप्रवर्ते, प्रतिपूर्ण. ५५९२६. (+#) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-४(१ से ४)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४५०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१० उद्देश-६ अपूर्ण से उद्देश-७ अपूर्ण
तक है.)
भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५९२७. (+#) कल्पसूत्र सह अंतर्वाच्य व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-६(१,३,७ से १०)=२९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४६-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पीठिका
अपूर्ण से स्त्री की ६४ कला वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चंद्रकांत्यापुर्या; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., आदिनाथ
चरित्र अपूर्ण तक है.) ५५९२८. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-२(६ से ७)=१५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४४).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: (-),
(पू.वि. आरंभ से पाठ- "प्रगुणाकारियित्वातच्चरन्नादिभिः प्रपूर्य" तक एवं पाठ- "गोशालोभिमुखोमिलितो" से
__ "भरेणाकासेपंचदिव्यानि" तक है.) ५५९२९. उपधानतपविधि-जितव्यवहारसूत्रानुसारे व मालारोपण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, दे.,
(२४.५४११, १३४३४). १.पे. नाम. उपधान विधि, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण.
उपधान तपविधि, मा.गु.,प्रा., गद्य, आदि: तत्रोपधानषटकनामानि; अंति: इत्युपधानाक्षराणि. २. पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पंचरंगी रेसमना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ- "सर्वसाधर्मिकनें
प्रभावना करें गंधरवनें पाघडी १ इम" तक लिखा है.) ५५९३०. (+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २,
ले.स्थल. फलवर्णीपुर, प्रले. ग. गुलाबविजय; पठ. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४५०-५३). १. पे. नाम. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: श्रीजेसलाद्रौपुरे. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: पृथिव्यां पुत्रास्ते; अंति: क्षणसुंदरिं हरिं, श्लोक-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४३ ५५९३१. (+) निरयावलिकादिपंचोपांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १६३५, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. मु. जयनिधान (गुरु वा. राजचंद्र गणि, खरतरगच्छ); गुपि.वा. राजचंद्र गणि (गुरु वा. सहजकीर्ति गणि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); वा. सहजकीर्ति गणि (गुरु वा. शिवदेव गणि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); वा. शिवदेव गणि (परंपरा आ. सागरचंद्रसूरि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); आ. सागरचंद्रसूरि (परंपरा गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); उप. आ. राजेंद्रसूरि*; अन्य. श्राव. लालचंद्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. विक्रम सं. १९४१ में इस प्रत को भांडागार में रखने का उल्लेख मिलता है।, संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६४५१-५४). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भाणियव्वो तदा, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: वग्गोदसअज्झयणा, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १०आ-१९अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: वेइयाई जहासंगणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. ५५९३२. (#) लघुप्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १७७५, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. मु. नरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४२४-२८).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० इच्छा; अंति: वायगवसंपवयणंच. ५५९३३. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले.पं. कस्तुरविमल (गुरु पं. कीर्तिविमल गणि); गुपि.पं. कीर्तिविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचारप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतां स्वर्ग; अंति: जे समुद्र तेह थकी. ५५९३४. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२९).
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीर जिन प्रणम्य; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ
"प्ररूपात् कृत्वाः सर्वत्रऋद्धिसिद्धि प्राप्यः" तक लिखा है.) ५५९३५. (+) महावीरजिन स्तवन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ३४४६). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४६५, आदि: श्रेयोर्थं श्रीमहावी; अंति: देयं भवतीति
भावार्थः. ५५९३६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह स्थानकवासी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १७४४२). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामि णं भंते; अंति: (-), (पू.वि. पाठ
"आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं" तक है.)
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४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५९३७. (+) महीपालचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११३, प्रले. मु. चंद ऋषि (गुरु मु. राजसिंह);
गुपि. मु. राजसिंह (गुरु मु. उदयचंद्र); मु. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७X४३). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वीरदेवगणी० पसाएण,
गाथा-१८०९, ग्रं. २५००, (वि. १८३०, व्योमरामेभचंद्रेब्दे, माघ शुक्ल, १४)। महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कारि श्रीऋषभदेव; अंति: गुरुनें प्रसादें करी, (वि. १८३०, चैत्र
कृष्ण, ३, मंगलवार) ५५९३८. (+) सिंदूरप्रकर व गौतमकुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. १७७३, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे. २,
ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. ग. जिनहस गणि (गुरु मु. सुखलाभ, खरतरगच्छ); गुपि. मु. सुखलाभ (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२५.५४११, १७X५५). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टीका, पृ. १आ-२२अ, संपूर्ण. सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मुक्तावली व्यरचिकृता. २. पे. नाम. गौतमकुलक सह टीका, पृ. २२अ-४८अ, संपूर्ण.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्ता सुखं लभंते, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: भुवि चिरंजीयात्,
कथा-६९. ५५९३९. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-३८(१ से ३८)=७०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६x४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-३० अपूर्ण से
अध्ययन-५ सूत्र- ६४ अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५९४०. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४२६-३२३(१ से ११९,१२२ से १२३,१२६,१२८ से
१५०,१६२ से १८३,१८५ से १८६,१९१,२३०,२३३,२३५,२४० से २६१,२६३ से २६४,२६६ से ३०४,३०७,३०९,३१५,३२१,३२५,३२८,३३० से ३३४,३३६ से ३३८,३४१ से ३४२,३५०,३५३,३५६ से ४१६,४१८ से ४२५)=१०३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ५४३५-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतसकंध- १ अध्ययन- ६ अपूर्ण
से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-७ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५९४१. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले.स्थल. खंभालिया,
प्रले. मु. वीरचंद तेजसी ऋषि; अन्य. श्रावि. मधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३५८५, दे., (२५.५४११.५, ५४३०-३४). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिख मासियं; अंति: महा पज्जवसाणे भवंति, उद्देशक-१०.
ग्रं. ३७३.
व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: आवै मोटा फल पामें. ५५९४२. (+#) कल्पसूत्र सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०९-६(१ से ६)=१०३, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६४३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
स्थविरावली तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमस्कार होउ सिद्ध, (२)ते काल अवसर्पिणीनु; अंति: (-), पू.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मागु., गद्य, आदि: पुरुषनां छत्रीस; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५५९४३. (+#) उपदेशप्रासाद सह टबार्थ-स्तंभ-१३, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,५४३४). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग., वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-१९५ का
मात्र पुष्पिका श्लोक नहीं है.)
उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पूर्ण. ५५९४४. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५+१(२३)=५६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ३-६४३०-३५). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० श्रीजिन धर्म; अंति: वामि जंबू प्रतइ कहिउ. ५५९४५. (+#) अनुयोगद्वारसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६५, पौष कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १००,
प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २-९x४५-६३).
अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: णाणं पंच विहं पण्णत्; अंति: दुक्खक्खट्टयाए, प्रकरण-३८. अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: रचिता प्रभृति
वृत्ति, ग्रं. ५९००. ५५९४६. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८+२(६१,६९)=९०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४४५-४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (१)सरीरधरे भविस्सइति,
(२)अंगं जहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानसा० तपा; अंति: कतिणेज भव मुक जाइ. ५५९४७. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८४, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर,
प्रले. पं. धर्मचंद्र (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. धर्मवर्द्धन गणि (गुरु वा. जयकुमार गणि, खरतरगच्छ); वा. जयकुमार गणि (गुरु मु. प्रेमधीर, खरतरगच्छ); मु. प्रेमधीर (परंपरा आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ); लिख. श्राव. मोतीलाल श्रीमाल; अन्य. श्राव. सुखलाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३६-३९).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोबीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति:
जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४४. ५५९४८. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७५२, आषाढ़ शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८८, प्रले. श्राव. कृष्णदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११,१५४४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति:
यक्षुतभक्त्यासमासतः, अध्ययन-१९, ग्रं. ३८००. ५५९४९. कुशलानुबंधीसूत्र्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, कुल पे. १४, जैदे., (२५४१०.५, ११४४२-५०).
१.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३.
२. पे. नाम. आउरपच्चक्खाण, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण.
आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ, अंतिः खयं सव्वदुक्खाणं,
गाथा-६७.
३. पे. नाम. भत्त परिज्ञा, पृ. ७अ १३आ, संपूर्ण.
भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि; नमिऊण महाइसयं महाणु अंतिः सोक्खं लहइ मोक्खं गाथा- १७२. ४. पे. नाम. संधारण पन्नई. पू. १३आ-१८अ संपूर्ण.
"
संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, आदि काऊण नमुक्कारं जिणवर, अंतिः सुहसंक्रमणं सयादिंतु, गाथा- १२२.
५. पे नाम. तंदुलवेयालियं पन्नंग, पृ. १८अ ३१आ, संपूर्ण.
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., पग, आदि: निज्जरिय जरामरणं, अंतिः सव्व दुक्खाणं.
६. पे. नाम. चंदाविज्जयं पन्नगं, पृ. ३१आ-३९अ, संपूर्ण.
चंद्रावश्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: जगमद्त्थयत्थियाणं वि, अंतिः दुग्गइविणिवायगमणाणं, गाधा-१७४. ७. पे. नाम, देविदत्थड, पृ. ३९-५०आ, संपूर्ण.
देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदि: अमर नरवंदिए वंदिऊण; अंति: इह संमत्तो अपरिसेसा,
गाथा - ९२.
८. पे. नाम. गणिविज्जानाम प्रकीर्णक, पृ. ५० आ-५३आ, संपूर्ण.
गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: वुच्छं बलाबलविहिं; अंति: नायव्वो अप्पमत्तेहिं, गाथा-८६.
९. पे. नाम. महापच्चक्खाण, पृ. ५३आ-५९अ, संपूर्ण.
महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: एस करेमि पमाणं तित्थ; अंति: ज अहवा वि सिज्झेज्जा, गाथा-१४३. १०. पे नाम वीरस्तव प्रकीर्णक, पृ. ५९अ ६१अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं जयजीवबंधव, अंति: सिवपयमणहं विरंवीरं, गाथा- ४३.
११. पे. नाम. अजीवकप्पो, पू. ६१-६३अ, संपूर्ण.
अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा. पद्य, आदिः आहारे उवहिम्मिय उवस्, अंतिः च्छामि अहाणुपुव्विए, गाथा २९.
"
१२. पे. नाम. गच्छायार, पृ. ६३अ - ६८ अ, संपूर्ण.
गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर, अंतिः इच्छंता हियमप्पणो, गाथा १३७.
१३. पे. नाम. मरणसमाही पइण्णयं, पृ. ६८अ - ९५अ, संपूर्ण.
मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि तिहुवणसरारविंद सप्प, अंतिः जेणसुज्झ यव्वं, गाथा-६६१. १४. पे, नाम, सारावली पन्नगं पृ. ९५अ ९९आ, संपूर्ण
3
सारावली प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः आरंभेसु नियत्ता सव्व, अंति: अइरेणं साहुसक्कारं, गाथा-११६. ५५९५०. (+#) सुयगडांगसूत्र - अध्ययन १ से १६, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न- संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ११४३२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउज्ज, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
५५९५१. जंबू अध्ययन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६७, अन्य श्रावि जानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५x११.५, ५X३५).
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जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: ते कालने विषे ते अंतिः ते आराधीक जीव कछा.
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५५९५२. (+#) औपपातिकसूत्र सह टीका व १३ काठिया के नाम, संपूर्ण, वि. १६८४, पौष शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, कुल
पे. २, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. गंगदास जोसी; लिख. श्रावि. रायकुमरी बाई; अन्य. श्राव. पुनमचंद; आ. राजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रत के प्रथम पत्र पर "पुनमंद कृतभांडागारे राजेंद्रसूरेरुपदेशात् सं १९३८" ऐसा लिखा है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, ४-१०४३०-३५). १. पे. नाम. औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, पृ. १आ-४६आ, संपूर्ण..
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. ११६७.
औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: महावीरं नमस्कृत्य; अंति: संशोधिता चेयमिति. २. पे. नाम. १३ काठिया के नाम, पृ. ४६आ, संपूर्ण.
१३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ वना ३; अंति: १३ तेरह काठिया जाणवा. ५५९५३. (+) योगशास्त्र सह अवचूरि-प्रकाश १ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र.वि. प्रत अबरख युक्त है., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १-५४४३). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश१ से४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति:
ध्यानोद्यतो भवेत्. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नमस्कारोस्तु विशेषेण; अंति: शो
यस्य स सुसंस्थानः, प्रकाश-४. ५५९५४. (+) शिल विषये चित्रसेनपद्मावती कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ६४३२-३५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्य; अंति: कथा कृता
शीलसमुधृतेन, श्लोक-५०५.
चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ही आदिश्वरकौ; अंति: सील उपर कथा करी. ५५९५५. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. प्रतिलेखन
पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४२).
श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: श्रीसद्गुरुप्रसादतः, प्रस्ताव-४. ५५९५६. (+) समयसार नाटक सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९५७, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४०+१(३०)=४१, ले.स्थल. पाटण, प्रले. वलभ लहिया; अन्य. मु. हरक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४४२-५०). समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदि: सव्वन्नु मोक्खमक्खंत; अंति: दवाणंद० सिवं देंतु,
अध्याय-१०. समयसार प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवानंदसूरि, सं., गद्य, वि. १४६९, आदि: नत्वार्हत समस्तान; अंति: तदेवी
श्रेयसे सास्तु. ५५९५७. (+) श्रीपाल कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७९-३०(१ से २९,७८)=४९,
ले.स्थल. जयनगर, प्रले. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२५४१२, ६-१२४३५-४८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः (-); अंति: वाइज्झंता कहा एसा, गाथा-१३५०,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२९७ से है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-४१७ तक टबार्थ लिखा है.) ५५९५८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, अन्य. मु. जीतविजय, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक
चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १९४५८-६२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन - ३६. ५५९५९. गजसिंघ रास, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल. रापर, प्रले. श्राव. दामजी लक्ष्मीचंद दोसी, अन्य. सा. उदाइबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १४४४०).
गजसिंह रास, मु. मयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: सांतिजिणंद सुखसंपदा, अंति: गावे सतावीसमी डाल
1
रे, बाल- २७.
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५५९६०. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, संपूर्ण वि. १७०२, चैत्र कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१ ले स्थल खभायति प्रले.मु. केशव ऋषि पठ. मु. जीवराज (गुरु मु. केशव ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक ९अ में दश दशा का नाम लिखा है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५X११,
१७X३६-४०).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदंसेति त्ति बेमि, दशा- १०. ५५९६१. (+) जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५४११.५, ३x२७).
.
"
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः
"
संतिसूरि०सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवननइ विषइ; अंति: सिद्धांतसमुद्र थको, ग्रं. ३००. ५५९६२. (+) पंचनिर्ग्रथी प्रकरण व जीव ५६३ भेद, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अन्वय दर्शक
अंक युक्त पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे (२४४११, १३४५६-६०).
"
१. पे. नाम. पंचनिग्रंथी प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ १२अ संपूर्ण.
भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १९२८ आदि नमिय
1
सिरिवद्धमाणं, अंति: रईया भावत्थसरणत्थं, गाथा - १०७.
भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण का वालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव नमीन, अंति: मेरुसुंदरस्तुष्ट्ये.
२. पे. नाम. जीव ५६३ भेद, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण.
जीव के ५६३ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पांच ५ हिमवंतक्षेत्र, अंति: जाणिवा एवं ५६३ भेद. ५५९६३. (+०) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व दानशीलतपभावना कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५५-२३(१ से २३)=३२, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३X३८).
१. पे. नाम. आवश्यक सूत्र सह निर्बुक्ति अध्ययन- ६ सूत्र १ से १३. पू. २४-४० अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र
नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
आवश्यकसूत्र, प्रा. पण, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-६ सूत्र- १ से १३ तक है.)
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-): अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-६ गाथा १ से सामायिकाध्ययन उपोद्घात नियुक्ति समवसरण गाथा - ६९ तक है.)
२. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. ४० अ-४२अ, संपूर्ण.
मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: असोग० खमंतु तेणं, गाथा-५०.
३. पे. नाम, आवश्यक नियुक्ति, पृ. ४२अ-५५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू. वि. वंदन नियुक्ति गाथा-१ से सामायिकाध्ययन उपोद्घात नियुक्ति गाथा १४७ अपूर्ण तक है.)
५५९६४ (+) राजप्रनीयसूत्र प्रदेशीराजा अधिकार व टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २,
अन्य. श्राव. नवलमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैदे. (२६४११, १७४७-५२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१. पे. नाम राजप्रश्रीयसूत्र सूर्याभदेव पूर्वभव प्रश्न से प्रदेशीराजा अधिकार, पृ. १अ -१६अ, संपूर्ण. राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: पस्से परसवणी णमो ए. प्रतिपूर्ण
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,
२. पे नाम, राजप्रश्रीयसूत्र सूर्याभदेव पूर्वभव प्रश्न से प्रदेशीराजा अधिकार की टीका, पृ. १६अ-२३आ, संपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ताडनानि कशाविघाताः, प्रतिपूर्ण ५५९६५. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१२, ६X३७-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-५, उद्देश- २, गाथा - ३८ अपूर्ण तक लिखा है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धमो० धर्म मंगल०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्व
अपूर्ण. अध्ययन- १ तक ही टबार्थ लिखा है)
"
५५९६६. (+#) कर्मग्रंथ १ से ३ सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१ (२२*) = २५, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, ४X३८).
१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ व बालावबोध, पृ. १आ १३आ, संपूर्ण प्रले. श्राव. राघवजी,
प्र.ले.पु. सामान्य.
४९
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिओ देविंदरीहिं, गाथा ६०.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदिः श्रीमहावीर जिनेश्वर अंति सुचक वाक्युं .
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ- बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनंवीर, अंति: कम्र्म्मनी १५८ प्रकृति,
२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १४अ - २१आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह
तं वीर गाथा - ३४.
,
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: तथा तिणे प्रकारे; अंतिः श्रीमहावीर देव प्रति.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: गुण जे ज्ञानावेक तेह, अंति: १२ नो क्षय थाई.
३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ व बालावबोध, पृ. २२अ - २६आ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं, अंति: देविंद० सोसं, गाधा- २५.
',
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: बंध कर्मरो बंधनि, अंति: पछे ए त्रीजो भणयो.
יי
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५५९६७. (+) प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, अन्य आ जिनवर्धमानसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५११५, ११४३९).
प्रश्नोत्तरकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदिः क्रमनखदशकोट्यद्दी, अंति: लभेन० प्रसादलवं मयि,
श्लोक-१६१.
५५९६८. (+#) कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैसे. (२६११.५, १७५५-६६ ).
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देवेंद्रसूरिहिं गाथा ६०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानकर; अंति:
(१)देवेंद्र०चंचरीकैरिति, (२)सोपि तेन जनः, ग्रं. १९००. ५५९६९. (+#) सूक्तमाला व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है,
जैदे., (२६४११.५, १४४२४). १.पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण, वि. १७८१, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, ले.स्थल. पीलूडा, प्रले. मु. जसविजय (गुरु
पं. रामविजय); गुपि.पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४,
श्लोक-१७३. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: देखो भाई आज रीषभ घरि; अंति: लब्धिविजे० पावो, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन जन्मबधाई, पृ. ११आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, वि. १६६२, आदि: मरुदेविरे बेटो जायो; अंति: समयसुंदर० पावो, गाथा-४. ५५९७०. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२९, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३६). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: कर कमल जोडेवि करि; अंति: न्यासागर० श्रीपाल,
गाथा-३०१. ५५९७१. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-५३(१ से ५३)=२७, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९४२२-२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीर जिन विविध उपमा प्रसंग अपूर्ण से
स्थविरावली अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५९७२. (+#) सिंदूरप्रकर सह टीका व महापुराण गाथा, पूर्ण, वि. १८२९, आश्विन कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१(१)=३२,
कुल पे. २, ले.स्थल. सेरगढ, प्रले. मु. रूपचंद्र (गुरु आ. भावसूरि); गुपि. आ. भावसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, ३४३६-४३). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टीका, पृ. २अ-३३आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००,
(पू.वि. श्लोक-२ से है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. २.पे. नाम. महापुराण पर्व-१ श्लोक-१२२ व १३९, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५९७४. (+) भगवतीसूत्र-खंदक अधिकार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३७-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. शतक-२ उद्देश-१ सूत्र-८९ अपूर्ण से
शतक-२ उद्देश-१ तक लिखा है) ५५९७५. (+) कर्मग्रंथ-१ से ६, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-७(१ से ७)=१४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३६). १.पे. नाम. षडशीतिकं, पृ. ८अ-१२अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं,
गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा- १००.
३. पे. नाम. सत्तरीसूत्रं, पृ. १७आ- २१आ, संपूर्ण.
२. पे नाम, शतकं, पृ. १२ अ- १७अ, संपूर्ण,
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं धुवबंधोदय, अंतिः
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सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध पएहिं महत्वं अंतिः चंदमहत्तर० होइ नवइड,
.
श्लोक- ९३.
५५९७६. (+) उपाशकदशांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६-२ (८ से ९)-१४, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२४.५X११, ७X२०-३७).
उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः (-) (पू. वि. प्रथम अध्ययन अपूर्ण
""
"
मात्र है.)
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० कालने विषे ते ०; अंति: (-).
५५९७७. (+) कर्मग्रंथ-१-३, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २) १६, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x११, ५X३२).
१. पे. नाम. विपाकसूत्र कर्मग्रंथ, पृ. ३अ - ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४वी आदि (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा- ६२, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है . )
२. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ, पृ. ९आ-१५अ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमहं तं
"
י.
५१
वीरं, गाथा - ३४.
३. पे नाम, बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. १५ अ १८अ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि: बंधविहाणविमुक्त, अंति: (-), (अपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २२ अपूर्ण तक लिखा है.)
५५९७८. (+) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८३८, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल राजनगरपुर, प्रले. मु. वखतचंद ऋषि,
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पठ. मु. लालविजय (गुरु मु. वखतचंद ऋषि); मु. माणकचंद, पंन्या. मोतीचंद (गुरु पंन्या. देवचंद); गुपि. पंन्या. देवचंद (गुरु पंन्या. छाडेजी); पंन्या. रणछोडजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रतिलेखन स्थल के सम्बन्ध में "झवेरीवाडा मध्ये नीसापोल माहि" लिखा है. प्रतिलेखक ने प्रतनाम सप्तस्मरण दिया है. संशोधित, जैवे (२५.५४१२, ९-११४२९).
"
"
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: जैनं जयति शासनम्, (प्रतिपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमिकण और कल्याणमंदिरस्तोत्र नहीं है.)
५५९७९ (+४) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-१(१) ११, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्र पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०x२९-३२).
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ५ अपूर्ण गाथा ९९ अपूर्ण तक है.)
५५९८० (+४) उत्तराध्ययनसूत्र- कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २४-८ (१ से ७.१४) १६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११.५, १८४३३- ४० ).
उत्तराध्ययन सूत्र- कथा संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम कथा पूर्ण तृतीय कथा अपूर्ण तक है.)
५५९८१. (+४) शतक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-७ (१ से २,४,७,९,११ से १२) =७, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४११.५, १९४३८).
१. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक, पृ. ३अ ६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण से गाथा ५० अपूर्ण तक व गाथा
७१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. ६आ-१०आ, त्रुटक, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक, ३१ अपूर्ण से ५१ तक व ७१ अपूर्ण से
९१ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. देशनाशतक, पृ. १३अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण से गाथा ७२ तक है.) ५५९८२. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. वीका ऋषि (गुरु मु. कान्हाजी ऋषि);
गुपि.मु. कान्हाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४४३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६८३, आदि: नत्वा वृषोपदेष्टार; अंति: आश्रयिष्यते इति
भावः. ५५९८३. (+) गुणावली लेख, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रोहीडानगर, प्रले. मु. हीरविजय (गुरु पं. राजविजय); गुपि.पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीवतस्वामी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२४४११,७४२३). गुणावलीचंद्रराजा पत्र, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तीश्री वीमलापुर; अंति: दीप० फलस्ये आसरे,
गाथा-३६. ५५९८४. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खंभायतबंदर, अन्य. मु. हरखसागर (गुरु आ. भाग्यरत्नसूरि,
वडीपोसालगच्छ); गुपि. आ. भाग्यरत्नसूरि (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भाग्यरत्नसूरि द्वारा विक्रम संवत् १८५९ में पोसालगच्छ के ग्रंथ भंडार में इस प्रत के रखे जाने का उल्लेख है., जैदे., (२५४११.५, १५४४४).
उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानाराधना दर्शन; अंति: खमासमणनी विधि जाणवी. ५५९८५. (+) श्रावक आलोचना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४४).
श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्त; अंति: १८० उपवास ए दशमो बोल. ५५९८६. (+) नवस्मरण, लघुशांति व संतिकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्रले. मु. माणिक्यविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताण हवइ; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., संतिकर स्तवन और कल्याणमंदिरस्तोत्र नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ३. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: (अपठनीय), गाथा-१४,
(वि. अंतिमवाक्य का अंश नष्ट होने से अपठनीय है.) ५५९८७. (+#) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x४०).
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमारुदेवं; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः.
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वृषभर्नुलंछन छे जेहन; अंति: आराधी मोक्षे गया. ५५९८८. (+) धर्मदत्तकथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-८(१ से ६,१०,१३)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४४८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
धर्मदत्त कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
धर्मदत्तकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ५५९८९. (+) चौदगुणस्थानक, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. रतलामनगर,
प्रले. मु. मोहनविजय; पठ. मु. मंछाराम (गुरु पं. अमृतोदय); गुपि.पं. अमृतोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१००२) जलात् ख्येत् स्थलारक्षेत्, जैदे., (२६४११, ११४३२). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः,
श्लोक-१३६. ५५९९०. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-७५(१ से ७५)=१०.प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.. (२६.५४११, ९४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. सूत्र
२४९ अपूर्ण से है.) ५५९९१. (+) सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३९).
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५.
सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येन औपशमिकत्वादि; अंति: भवत्विति सुगममन्यत. ५५९९२. (+) कल्पिकादिपंचोपांग की टीका, संपूर्ण, वि. १६३५, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. मु. जयनिधान (गुरु वा. राजचंद्र गणि, खरतरगच्छ); गुपि. वा. राजचंद्र गणि (गुरु वा. सहजकीर्ति गणि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); आ. सागरचंद्रसूरि (परंपरा गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में भट्टारक श्री राजेंद्रसूरि के उपदेश से विक्रम सं १९४१ में लालचंद्र द्वारा भांडागार में रखे जाने का उल्लेख मिलता है., संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४५८). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र कीटीका, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: पार्श्वनाथं नमस्कृत; अंति: शेषं सर्वं सुगमम्. २. पे. नाम. कल्पावतंसिका की टीका, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रेणिकनप्तृणा; अंति: द्वितीयवर्गश्च. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र की टीका, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. ____ पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ तृतीयवर्गोपि दशाध; अंति: देवस्य व्यक्तव्यता. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र की टीका, पृ. ९आ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: चतुर्थवर्गोपि दशाध्य; अंति: चतुर्थवर्गसमाप्तिः. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र कीटीका, पृ. ९आ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: पंचमवर्गे वन्हिदसाभि; अंति: दुखानामंतं करिष्यति. ५५९९३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन-२९ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१५)=१७, अन्य. श्राव. ललुवल्यम लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, ५४३८). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुअंमे आउसं तेणं; अंति: सीए उवदंसिए
त्तिबेमि, गाथा-७४, (पू.वि. गाथा ६० अपूर्ण से गाथा ६५ अपूर्ण तक नहीं है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सांभल्यो मे आ०; अंति: तुज प्रते कहुं छु. ५५९९४. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६९-३५९(१ से ६५,६९ से ३६२)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६४३५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देशक १० अपूर्ण से शतक-२
उद्देशक १ अपूर्ण तक व शतक-२१ उद्देशक २ अपूर्ण मात्र है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५९९५. (+) इकवीसठाणा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. राजविजया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६४३८-४१). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६.
२१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवण विमाणा नगरी पिता; अंति: बीजा साधारण कह्या. ५५९९६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. ठाकुरसी (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ६४३८-४१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीकनुं घर उदार सर; अंति: मोक्षनि पामि छइ. ५५९९७. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४४०-४७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-),
(पू.वि. प्रकाश-४ श्लोक १२८ अपूर्ण तक है.) ५५९९८. (+#) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४९, आश्विन कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. देवाली,
प्रले. ग. नयसुंदर (गुरु पं. विनयसुंदर गणि, तपागच्छ); गुपि. पं. विनयसुंदर गणि (गुरु पंन्या. विशालसुंदर गणि, तपागच्छ); राज्ये आ. हीरसूरि * (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३३-४७).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा-७३.
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो त्रिलोक्यनो गुरु; अंति: लहइं ईहां संदेह नही. ५५९९९. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४३७).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ गाथा १४
____ अपूर्ण तक है.) ५६०००. (+#) मुखवस्त्रिका गाथा, मंत्र संग्रह व नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६,
कुल पे. ३, ले.स्थल. मोडी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ६x४०). १.पे. नाम. मुखवस्त्रिका गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने ओगाप्रमाण गाथा नाम लिखा है.
__ मुखवस्त्रिकाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउरंगुलं विहत्थीएय; अंति: अरहीण महियं वा, गाथा-२. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: एहाइ तवेण परिसुज्जइ, गाथा-५८, (प्रले. मु. गोवर्धन
ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: शुद्ध निर्मल थाइ, (प्रले. मु. गोकलचंद
ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) ५६००१. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-२(४ से ५)-८, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२५४११, १३४४३). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, पृ. १अ-६अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह थे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं,
1
י
(पू. वि. चैत्यवंदनसूत्र से गाधाष्टक तक नहीं है.)
२. पे. नाम. साधुराई प्रतिक्रमण अतिचार, पृ. १०अ संपूर्ण
साधुराई प्रतिक्रमण अतिचार छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि संधारा उगुणकीअ परिय, अंति: मिच्छा मि दुक्कडं.
३. पे. नाम. चतुर्दशीस्तुति, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्म, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धिः श्लोक-४. ४. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५६००२. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान कथा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २२४, ले. स्थल, बांतानगर,
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प्रले. मु. त्रिलोकहंस (गुरु ग. युक्तिहंस); गुपि. ग. युक्तिहंस (गुरु पंन्या. कनकहंस); पन्या. कनकहंस (गुरु पंन्या. सौभाग्यहंस); अन्य. श्रावि. मगनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१२, ६-१४X३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, (वि. १८५८, चैत्र शु. १३. गुरुवार)
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंतिः इति ब्रवीमि कहर, (वि. १८६४ आश्विन शुक्ल, १) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंतिः कूड कपट राखवो नही.
-
५६००३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान + कथा व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १७९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ,
पू. २२७-२४ (१ से २४)- २०३, कुल पे. २. ले. स्थल. कडुजा, प्रले. मु. युक्तिसागर (गुरु मु. जयंतसागर); गुपि. मु. जयंतसागर (गुरु पं. केशरसागर गणि) पं. केशरसागर गणि (गुरु पं. चारित्रसागर गणि) पं. चारित्रसागर गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीनेमिनाथजी प्रशादात्. विक्रम १८०३ मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष ५ नकद १०००० व्ययपूर्वक पाट महोत्सव किये जाने का उल्लेख मिलता है., संशोधित. कुल ग्रं. ९०००, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११.५, ५-१६X३७). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. २५अ-२२६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अज्झयणं सम्मत्तं व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६,
',
(पू. वि. व्याख्यान २ अपूर्ण से है.)
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वार उपदिसे इम कहै.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते धन्य सुख पामइ.
२. पे. नाम, पट्टावली तपागच्छीय, पृ. २२६आ-२२७आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान तीर्थ, अंतिः श्रीविजयधर्मसूरि
५६००४. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल
ग्रं. ९०००, जैदे., (२५x११, ४४१९-३२).
अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. प+ग, आदि नाणं पंचविह; अंति: साहू से तं नए, प्रकरण- ३८. अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञान पंच प्रकार, अंति: तं० ए नय नाम चतुर्थ.
५६००५. महानिशीथसूत्र सह टबार्थ - अध्ययन १ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७९, प्र. वि. कुल ग्रं. ७०००, जैदे.,
(२५.५X११.५, ४X३१-३७).
५५
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ नमो तित्थस्स ॐ अंति: (-), ग्रं. ४५४४, प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. महानिशीथसूत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सांभल्युं मे अहो अंति: (-), प्रतिपूर्ण
"
५६००६. (+) महानिशीथसूत्र सह टबार्थ अध्ययन ४ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९६२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ७५००, जैदे., (२५X११, ४४१२-२५).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ४५४४, प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते सुमति हे भगवंत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६००७. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८, प्र.वि. पं. उत्तमसागरजी प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२५४११, १३४४२).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगणा होइ नउईउ, गाथा-८२. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वदेव; अंति: मानं
कथितं च षष्टे, ग्रं. ४०००. ५६००८. (+) बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९२, ले.स्थल. बनारस, प्रले. मु. अखैचंद (गुरु
पं. आणंदहर्ष मुनि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); गुपि. पं. आणंदहर्ष मुनि (गुरु ग. कमलकलश, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); ग. कमलकलश (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, जैदे., (२५४११.५, ९४२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. ५६००९. (#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व-२, संपूर्ण, वि. १६६०, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३८-४२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-),
ग्रं. ३५०००, प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५६०१०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५-६६(४ से ५,१८ से ८१)=७९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५-१५४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., तीर्थंकरों को नमस्कार करने के प्रसंग से भगवान महावीर को केवलज्ञान
प्राप्ति के प्रसंग तक का पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार हुओ; अंति: प्रणमुंवाएं, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: वरसे अधिकार जाणवाउ,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ५६०११. सूक्तावली, अपूर्ण, वि. १७६५, कार्तिक कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७८-३(५५ से ५७)=७५, ले.स्थल. चीताखेडा,
प्रले. मु. कर्मचंद्र ऋषि (गुरु मु. पृथ्वीराज ऋषि); गुपि. मु. पृथ्वीराज ऋषि (गुरु मु. लखाजी ऋषि); मु. लखाजी ऋषि (गुरु मु.खेतसी ऋषि); मु. खेतसी ऋषि (गुरु भट्टा. कल्याणसागरसूरि); भट्टा. कल्याणसागरसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, १०-१५४३७-४५). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: ॐकार बिंदुसंयुक्तं; अंति: सूत्रकं वस्तुपाठतः, अधिकार-७४, (पू.वि. सत्वाधिकार श्लोक ७
अपूर्ण से श्लोक ३७ अपूर्ण तक नहीं है.) ५६०१२. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७९-११(१ से ३,१२ से १४,२१ से २५)=६८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १२१६, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ९४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६,
(पू.वि. गर्भापहार प्रसंग से पूर्व का व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५६०१३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३८-२७४(१ से २३८,२७२,२७६ से २८२,३०२ से ३०५,३१० से ३१५,३१७ से ३३३,३३७)=६४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३९-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
अध्ययन-१२ से है व बीच-बीच के व अंत के पाठांश नहीं हैं.)
C.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच
व अंत के पत्र नहीं हैं. ५६०१४. विक्रमादित्यराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. मुलताण, प्रले. वा. आणंदधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२-४६). विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमुपासजिणंद पय; अंति: अहनिस उत्सव रंग
वधाई, खंड-६, गाथा-३१६८. ५६०१५. (+#) रायपसेणीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. २०२९, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४३).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० तेणं; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००. ५६०१६. (+#) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. आउआनगर, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य (गुरु
ग. रामसौभाग्य); गुपि. ग. रामसौभाग्य (गुरु पं. जयसौभाग्य); पं. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,७४४६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१,
(वि. १८३६, भाद्रपद शुक्ल, ८, शनिवार) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ ते; अंति: ते आराधक कह्या, (वि. १८३६,
__ आश्विन शुक्ल, १४, शुक्रवार) ५६०१७. (+) श्रीपालचौपाई, संपूर्ण, वि. १८१६, पौष, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्रले. मु. गिरधर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४४०-४५). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: न्यांनसागर० चंग ले,
ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. ५६०१८. (+) औष्ट्रिकमतोत्सूत्र की प्रदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. जयनारायण लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १२४३६-३८).
औष्ट्रिकमतोत्सूत्र-प्रदीपिकाटीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमंतमानंद; अंति: लक्षण
_श्चतुर्थाधिका, अध्याय-४. ५६०१९. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३०).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं,
गाथा-६४.
चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावध योग विरति ते; अंति: मंगलीकनी माला संपजइ. ५६०२०. (+) नव्यबृहत्क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४८).
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिण; अंति: सोहेयव्वो
सुअहरेहिं, गाथा-३८७. ५६०२१. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ९४३२).
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी
शुभ हेज, पूजा-५. ५६०२२. (#) क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. सूरति, पठ. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई
पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६०२३. (+#) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३५, भाद्रपद शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. सुरत, पठ. मु. खुसालविजय
(गुरु पं. हेतविजय गणि); गुपि.पं. हेतविजय गणि (गुरु पं. दीपविजय); पं. दीपविजय (गुरु पं. राजविजय); पं.राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); पं. प्रेमविजय (गुरु ग. सौभाग्यविजय); ग. सौभाग्यविजय (गुरु उपा. साधुविजय); उपा. साधुविजय (गुरु आ. विजयदेवसूरि); आ. विजयदेवसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३५८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०२४) जिहां सायर चंद रवि, जैदे., (२६.५४१२.५, १६x४०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३५८. ५६०२४. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५२, चैत्र शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. धनारी,
प्रले. मु. हर्षरत्न (गुरु पं. विजयरत्न गणि, तपागच्छ); गुपि.पं. विजयरत्न गणि (गुरु आ. हंसरत्नसूरि, तपागच्छ); आ. हंसरत्नसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४४२).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: ईच्छामि पडिक्कमीयं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१.
पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: निवर्तवा वांछुउ प्रक; अंति: चोवीस तीर्थंकर वांदउ. ५६०२५. (+#) कयवन्नारास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१४(१ से ११,२० से २२)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४३९-४७). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२ गाथा ११ अपूर्ण से
ढाल-२२ गाथा ११ तक व ढाल-२७ गाथा १० अपूर्ण से ढाल-२९ गाथा २१ तक है.) ५६०२६. (#) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-५(१ से ४,७)=९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ५४२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., उद्देशक-१ का अध्ययन ४ अपूर्ण मात्र है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५६०२७. (+) सिद्धचक्र पूजनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. कल्याणचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४३३-४२).
सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथाष्टदलमध्याब्जकर्ण; अंति: वस्त्रेण आच्छादनम्. ५६०२८. (+) सामाचारी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १४७८, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११.५, १७४५९).
सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयारमयं वीरं वंदिय; अंति: दुजइ गमणं पसाहेइ. ५६०२९. (+#) स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६. ५६०३०. (+) आराधना प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६३, आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. देकपुर, प्रले. मु. जयराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३२-३६). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), ग्रं. २४५, (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. प्रारम्भिक २ गाथा ही है.)
पर्यंताराधना-बालावबोध *मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुं देव नमस्करीइ; अंति: (-), संपूर्ण. ५६०३१. (+) जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२४३४). जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा २ भेद एक मुक्त; अंति: (-), (पू.वि. सम्मूर्छिम मनुष्य की उत्कृष्ट आयु
वर्णन तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५६०३२. (+#) अजितशांति सह टिप्पण व ह्रस्वछंदादि छंदपरिमाण गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ७३९).
१. पे. नाम. अजितशांति सह टिप्पण, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअसव्वभयं संत, अंति: (१) जिणवयणे आयरं कुणह (२) अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा- ४२.
अजितशांति स्तव-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: अजितं जितसर्वभयं अंतिः जिनवचने आदरं कुरुत
५९
२. पे. नाम. अजितशांति सर्वगाथासंग्रह, पृ. ७अ - ७आ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तव - ह्रस्वादि छंदपरिमाण गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: बायालीसं वत्ता; अंति: सव्वक्खर अजिअ संतिथए, गाथा-५, (वि. अक्षरों की संख्या अलग से दी गई है.)
५६०३३. (४) सप्तनय विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३-७(१ से ७)+१ (१३) ७. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., (२५X११.५, १३x४५).
७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., व्यवहारनय से समभिरूढन अपूर्ण तक का पाठ है.)
५६०३४. (४) सदेवछसावलिंगा वार्ता, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल धारासणा,
प्र. मु. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१२, १५X४७).
सदेववत्स सावलिंगा दोहा, क. संघकविसर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: सात लाख संधरायवंगषटख; अंति: गातणी अविचल जोड अपार, गाथा- २३१.
५६०३५. (४) गणहरसंघवणसयं, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. यशसमुद्र (गुरु पं. मुनिवल्लभ गणि); गुपि. पं. मुनिवल्लभ गणि; पठ. सा. हेमविजया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४४). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ,
गाथा - १५०.
"
५६०३६. साधुदेवसीप्रतिक्रमण, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-९ (१) =७, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२५X११, १३४४५). साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लोगस्ससूत्र से चौदहगुणस्थानक अपूर्ण तक है.)
५६०३७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ५३०-१ (५२८) ५२९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. १५३७५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९६३) यादशं पुस्तकं द्रष्टा, जैदे., (२५.५४११. ५X३५-३८).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए: अंतिः धम्मकहाउ सम्मताठ,
"
अध्ययन- १९ ग्रं. ५५०० (पू.वि. श्रुतस्कंध - २ वर्ग १० की गाथा ३ से ६ नहीं है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदिः ध्यात्वा वीर जिनं०; अंतिः धर्मकथा परिपूर्ण थई. ग्रं. ९८७५. ५६०३८. (+) भरहेसरसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २०८-३९३ से ९४, ९६) २०५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १७४४८-५५).
भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: (-).
भरसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य वि. १५०९, आदिः युगादी व्यवहाराध्वा अंतिः (-).
५६०३९. (+) विक्रमचरित्र, संपूर्ण, वि. १७१८, कार्तिक शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १९१ - २ (१२० *, १६८* )= १८९, प्रले. अंबादत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५X११.५, १३x४४).
विक्रमचरित्र, ग. शुभशील, सं., पद्य, वि. १४९०, आदिः यस्याग्रेऽणुतुला अंतिः चिते चिरं नंदतात् सर्ग १२. ५६०४० (+) उबवाईसुत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८८१, फाल्गुन कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७०, ले. स्थल, भुजनगर,
प्रले. श्राव खीमजी छगनजी त्रेवाडीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ६५००, जैदे. (२५४११, ४४२८).
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते का० कालने; अंति: सुख पाम्या थका. ५६०४१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है., जैदे., (२६४११.५, ५४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंजोग मातापिता; अंति:
शाश्वता सुख मोक्षना. ५६०४२. सूत्रकृतांगसूत्र सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १६८, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिजति तिउट्टिज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३,
ग्रं. २१००. सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: सूत्रकृतांगदीपिका,
ग्र. ७०००. ५६०४३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण० पढम; अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर की
निर्वाण प्राप्ति के प्रसंग तक का पाठ है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-). ५६०४४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६-१५(१,७ से ८,२३,५३ से
६३)+१(८५)=११२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं.,
मंगलाचरण अपूर्ण से वर्षावास में स्थित साधु-साध्वियों के द्वारा पालन किए जानेवाले नियमों के वर्णन अपूर्ण तक है
व बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५६०४५. (+#) जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति सह हीरविजयसूरीय टीका का संक्षेप, संपूर्ण, वि. १७७०, पौष कृष्ण, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२१,
प्रले. मु. सुंदरविजयगणि शिष्य; उप. ग. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंडित सुंदरविजयगणि गुरो उपदेसात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११-१५४३७-४३).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६.
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका का पर्याय, संक्षेप, सं., गद्य, आदि: रि० ऋद्धाः भवनैः; अंति:ल्लेशपर्यायो लिखितः. ५६०४६. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रथम पर्व, संपूर्ण, वि. १६००, फाल्गुन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११७,
ले.स्थल. मेरुपृष्टिनगर, प्रले.पं. देवरत्नमुनि (गुरु पं. कनकरत्न गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. कनकरत्न गणि (गुरु उपा. समयध्वज, खरतरगच्छ); उपा. समयध्वज (गुरु उपा. सागरतिलक, खरतरगच्छ); उपा. सागरतिलक (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनराजसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३३९) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२५.५४११, १६४४५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान;
अंति: (-), ग्रं. ३५०००, प्रतिपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६०४७. (+#) प्रतिमाशतक सह स्वोपज्ञटीका, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १०३, ले.स्थल. देसणोक,
प्रले. पं. रतिसुंदर (गुरु ग. उदयसुंदर); गुपि. ग. उदयसुंदर (गुरु ग. क्षमासुंदर); ग. क्षमासुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७४५०-५४).
प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि नता; अंति: व्यक्तयुक्तिः, श्लोक-१०३.
प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिप्रणत; अंति: जैनो धर्मश्च मंगलम्. ५६०४८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२९, आश्विन शुक्ल, १३, रविवार, जीर्ण, पृ. ९७, ले.स्थल. वंसवाला,
प्रले. मु. कर्मसिंह ऋषि; राज्ये आ. वर्द्धमानजी; अन्य. मु. मेघा ऋषि; मु. नाथाजी; मु. अमरसी; मु. नेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४७-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संयोगबाह्य परिग्रह; अंति: वाल्हा हुइ समत्ता यइ. ५६०४९. (+) नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७+१(४५)=८८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १३४४७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य,
आदि: नमो विश्वनाथाय जन्मत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-८, पर्व ५, श्लोक ४२४ तक
५६०५०. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, ५४२९-३१).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२.
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं काले ते चोथे आर; अंति: ज्ञाताधर्मकथानी परे. ५६०५१. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- व्याख्यान १ से८, अपूर्ण, वि. १९५१, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ,
पृ. १५५-९३(१ से ९३)=६२, ले.स्थल. भांवरी, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ९-१८४३३-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. महावीरजिन केवलज्ञानप्राप्ति प्रसंग
से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५६०५२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०६, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५८, ले.स्थल. साचोर नगर, पठ. श्रावि. सहोदराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संयोगा विप्प मुक्कस्; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. ५६०५३. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले.स्थल. जेसलमेरु, लिख. श्रावि. हुंडीला; अन्य. श्रावि. मजलीबाई; श्राव.सुरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४२८-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. ५६०५४. (+#) उपाशकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९९, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले.स्थल. राजनगर,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १८००००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५४११.५, ६x४३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंति दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०,
ग्रं. ८००.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: तेण कालिइ तेणई; अंति: दिवसे श्रुतांग तिमज. ग्रं. १०००.
५६०५५ (+) भरहेसरसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७२ कार्तिक कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३८, ले. स्थल, अम्हदाबाद, प्र. मु. कीर्तिचंद्र (गुरु ग. पुन्यकलश); गुपि. ग. पुन्यकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५X११, १३x४०-४५).
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. भरसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य वि. १५०९, आदिः युगादी व्यवहाराध्या अंतिः तमोहंदादिसाक्षिकम्, अधिकार- २.
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५६०५६. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. ३२६-३० (९ से ३८ ) = २९६ दत्त श्रावि माना गृही. सा. विमलसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, ११x४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, (पू.वि. पीठिका अपूर्ण से इन्द्र के द्वारा की गई भगवान महावीर की स्तुति अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अंतिः उपदिसइ कहइ त्ति बेमि ५६०५७. (+) जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८९, ले. स्थल. सुरतबिंदर, लिख. श्रावि. वलमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. परोपदेशात् लिखावितं. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२५x१२, ६४३०).
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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा. गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं, अंति: उबदसेइ ति बेमि, वक्षस्कार - ७.
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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: जंबू प्रति कहे छे. ५६०५८. (+) योगशास्ख प्रकाश १-४ सह टीका, पूर्ण, वि. १६६६, पौष कृष्ण, १ रविवार, मध्यम, पृ. २५६+१ (२३४) २५७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., राज्यकालरा. सलेम साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ११७००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४१-५४).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भुत, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६०५९. (+#) पार्श्व चरित्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३१, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९४, कुल पे. २, प्रले. पं. जसवंत मुनि (गुरु पं. देवचंद्र गणि, खरतरगच्छ); गुपि पं. देवचंद्र गणि (गुरु वा. सिद्धविजय गणि, खरतरगच्छ वा सिद्धविजय गणि (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि बृद्धहारक खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहदट्टारक खरतरगच्छ); लिख. श्राव. हीराचंद धरमचंद
( सणसाली); दत्त, श्राव. सेबहुलाभाई गृही. पं. हीरचंद, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, प्र. ले. श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे. (२७१२. ११X३५).
"
१. पे. नाम. पार्श्वजिन चरित्र, पृ. १आ- १९३आ, संपूर्ण.
ग. उदयवीर, सं., गद्य वि. १६५४, आदि: प्रोद्यत्सूर्यसमं अंतिः सानुर्भवतु वांछितम्, सर्ग-८.
"
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १९३-१९४अ, संपूर्ण.
मा.गु., पच, आदि देवलोक दसमै ते आप, अंतिः जे न बोलै पास पास गाथा ४.
५६०६०. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६७, पौष शुक्ल १५, मध्यम, पृ. १८६, पठ श्रावि जमकुबाई,
उप. श्राव. गंमानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र पर सिद्धचक्र यंत्र आलेखित है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित. कुल ग्रं. १२०००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे., ( २६४११, ५X३५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः पुव्वरिसी एवं भासंति, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा०; अंतिः परुप्यो जंबू प्रतइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६०६१. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५५, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. लाघावी रणछोड खत्री,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ५०००, प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, दे., (२६४११.५, ४४३७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन
२०, ग्रं. १२५०.
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाक सब्दार्थ उच; अंति: अंग संपूर्ण थयो. ५६०६२. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका वटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १५९-४(८३ से ८४,८७,११६)=१५५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५-१३४३८-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., भरत-बाहुबली युद्धवर्णन प्रसंग तक है व बीच-बीच कुछ पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), ___ पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रमण भगवंत० महावीर; अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५६०६३. (+) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध-१ सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६८, आषाढ़ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १२८,
ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. श्राव. पुंजा जीवा संघवी (पिता श्राव. जीवा तेजपाल संघवी); गुपि. श्राव. जीवा तेजपाल संघवी; पठ. आ. रतनसींह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६०००, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: शासनाधीश्वरं नत्वा; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ५६०६४. (+) निरयावलिका सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७-१९४७, मध्यम, पृ. ११९, कुल पे. ५, प्रले.पं. खुबचंद्र,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने मूल का प्रतिलेखन वर्ष वि. १९४७ तथा टबार्थ का प्रतिलेखन वर्ष वि. १९३७ लिखा है. जो युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४०००, दे., (२५४१०.५, ३-५४२८-३२). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४७अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: नवरं माताओ सरिसणामा, अध्ययन-१०.
कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते अवसरपणी कालन; अति: नाम सरिखा नाम. २. पे. नाम. कप्पवडिंसियासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४७अ-५१आ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: महाविदेहे सिझंति, अध्ययन-१०.
कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य स; अंति: महाविदेहइ सीझस्यें. ३. पे. नाम. पुप्फिया सह टबार्थ, पृ. ५१आ-९८अ, संपूर्ण.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणाए, अध्ययन-१०.
पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य; अंति: गाथामांहि तिम. ४. पे. नाम. पुप्फचूला सह टबार्थ, पृ. ९८अ-१०५अ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०.
पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य श्रमण; अंति: पाच्छली परे कहीवो. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. १०५अ-११९अ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२, (वि. १९३७, माघ शुक्ल, ९)
वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे पूज्य श्रमण; अंति: विषे बार उदेशा, (वि. १९४७, माघ शुक्ल, ९) ५६०६५. (+) सूत्रकृतांगसूत्र श्रुतस्कंध-१ सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक
चिह्न. कुल ग्रं. ४५००, दे., (२६४११.५, ४४२८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीआचारांग; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६०६६. (#) आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०५, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४११, ११४३७).
___आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५. ५६०६७. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४५००, दे., (२५.५४१०.५, ५४१७-२८).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, दशा-१०.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: ए अधिकार ब्रवीमि. ५६०६८. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रतापचंदजी ऋषि (गुरु मु. नवलचंद्रजी
ऋषि); गुपि. मु. नवलचंद्रजी ऋषि (गुरु आ.रूपचंद्रजी स्वामी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ३४२२). १.पे. नाम. पंचआसव दारा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
व्रत उच्चार अधिकार, प्रा., पद्य, आदि: एएहिं पंचहिं असंवरेह; अंति: वरम[त्तरं जंति, गाथा-५. २.पे. नाम. प्रश्नव्याकरण सूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-७६अ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबूएत्तो संचरदाराइ; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. २५००.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच आश्रवद्वारना; अंति: साधु भगवंत होसै. ५६०६९. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व स्तुतिस्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६४, मध्यम, पृ. ६२, कुल पे. ३२, ले.स्थल. तला,
प्रले. पं. तिलकनिधान मुनि (बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. उदयनिधान मुनि (गुरु वा. हितधीर गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. हितधीर गणि (गुरु वा. रूपधीर गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. रूपधीर गणि (गुरु वा. कुशलभक्त गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. कुशलभक्त गणि (गुरु पं. खेतसीजी, बृहत्खरतरगच्छ); पं. खेतसीजी (गुरु वा. सादुलजी गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. सादुलजी गणि (गुरु उपा. सूरजमलजी, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. सूरजमलजी (गुरु मु. बालचंद, बृहत्खरतरगच्छ); मु. बालचंद (गुरु उपा. विनयप्रमोदजी गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. विनयप्रमोदजी गणि (गुरु उपा. साधुरंग गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. साधुरंग गणि (गुरु उपा. सुमतिसागर गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. सुमतिसागर गणि (गुरु उपा. पुण्यप्रधान गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. पुण्यप्रधान गणि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ.पं. रतनचंदमुनि (गुरु पं.खुस्यालचंद, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं.खुस्यालचंद (गुरु वा. सोभाचंद गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. सोभाचंद गणि (गुरु वा. कमलकलश गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. कमलकलश गणि (गुरु वा. केशोदास, बृहत्खरतरगच्छ); वा. केशोदास (गुरु उपा. सूरजमल, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. सूरजमल (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. वीरचंद्र; अणदा; प्रले. पं. विद्यामेरूमुनि (बृहत्खरतरगच्छ); पं. हुकमचंद; पं. दयाचंद (गुरु वा. सुमतिधीर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. अंत में श्रीसोलंकीए लिखा है, जो स्थानसूचक प्रतीत होता है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १२४४०). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहताण करेमि; अंति: वंदामि
जिणे चउव्वीसं. २. पे. नाम. प्रवज्याविधान प्रकरणसूत्र, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. वीर चरित्र, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ४. पे. नाम. भावारिवारण स्तोत्र, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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५. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १८-२० आ, संपूर्ण.
वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्म, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०.
६. पे. नाम. औपदेशिक सिज्झाय, पृ. २०आ- २२अ, संपूर्ण.
पौषध सज्झाय - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३३.
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७. पे नाम. थंभणापार्श्वनाथजी स्तोत्र, पृ. २२अ-२४आ, संपूर्ण
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभय० विन्निवह आनंदिय, कडी-३०.
८. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. २४आ-३१आ, संपूर्ण.
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभवं संत, अंति: मंगल कलाण आवासं, स्मरण-७.
९. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३१आ-३४आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. १०. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ३४आ- ३५अ, संपूर्ण
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्म, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं, अंतिः सूरिः श्रीमानदेवच, लोक-१७.
,
११. पे. नाम. सत्तरिसो भयहर स्तोत्र, पृ. ३५अ- ३५आ, संपूर्ण.
तिजवहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः ॐ तिजवहुत्तपयासं, अंति: निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४.
१२. पे नाम. नवग्रहस्तुतिगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३५आ- ३६अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारिदक्खो नाली, अंतिः जिणपहसूरिहि० पीडंति, गाथा - १०.
१३. पे. नाम. शनीश्वरजीरो अष्टक, पृ. ३६अ ३६आ, संपूर्ण.
शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ यत्पुरा राज; अंति: पीडा न भवंति कदाचिन, श्लोक-१०.
१४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३६-३९अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १५. पे नाम, जीवविचार प्रकरण. पू. ३९-४१अ संपूर्ण
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. १६. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४१-४३अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१.
१७. पे नाम. विचारषट्त्रिंसका सूत्र, पृ. ४३अ ४५अ, संपूर्ण,
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स: अंति: गयसारेण० अप्पहिया. गाथा-४५.
, י
६५
१८. पे. नाम संग्रहणीसूत्र, पृ. ४५-५८अ संपूर्ण
2
1
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ, अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०२. १९. पे नाम, चतुर्विंशति जिनायुप्रमाण गाधा, पृ. ५८अ संपूर्ण
२४ जिन आयुप्रमाण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चुलसी बावन्तरि सट्टी, अंतिः आउ सिरिवद्धमाणस्स, गाधा- ३.
२०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ५८अ - ५८आ, संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तवन- शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पच, आदिः सर्वदेवसेवितपदपद्मं अंति: सौ मुक्तालतावादे, श्लोक ७. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि : आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे यदि मेरुधीरम्, श्लोक-५.
२२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५८-५९अ, संपूर्ण.
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६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथ सारथसारं; अंति: जय० नंदित जूयमखंडम्, श्लोक-५. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५९अ-६०अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम शाश्वताजिन स्तवन लिखा है.
मु. नयरंग, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जयउ रिषभवर्द्धमानौ; अंति: भावइ तेहनी आस्या फले, गाथा-१२. २४. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ६०अ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: ॐ व्रहस्पति सुराचार; अंति: सुप्रीतो तस्य जायते, श्लोक-५. २५. पे. नाम. थंभणापर्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ६०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति सामी थंभणौ; अंति: पसायइ तत्व परिछीइ, गाथा-५. २६. पे. नाम. स्तंभन पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ६०आ-६१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा-९,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है, मात्र अंतिम गाथा संख्या ९ लिखा है.) २७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नवग्रहगर्भित स्तुति, पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्रबाहु० विनिर्मिता, श्लोक-१२. २८. पे. नाम. खरतरगच्छीय मांगलिक श्लोक, पृ. ६१आ, संपूर्ण.
मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: सर्वमंगलमंगल्यं; अंति: पदाहस्तपदे प्रविष्टः, श्लोक-६. २९. पे. नाम. चोकसायसूत्र, पृ. ६१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्लयल्ल; अंति: पास पइच्छो वंचिय, गाथा-२. ३०.पे. नाम. पंच परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, पृ. ६१आ, संपूर्ण.
५परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३१. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. ६२अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुर वंदित पाय पं; अंति: मंगल करय अंबक देवीयै, गाथा-४. ३२. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ६२आ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जड गुपत चेतन प्रगट; अंति: सोसु विचक्षण होई, गाथा-१. ५६०७०. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४६२, ले.स्थल. अणिल्लपुरपाटण (,
प्रले. वल्लभ लहिया; अन्य. मु. हर्षमुनि (गुरु मु. मोहनलालजी, खरतरगछ); गुपि. मु. मोहनलालजी (खरतरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६२५५, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१०२५) जिहां लगे मेरू अडग हे, (१०२६) जला रक्षेत् थला रक्षेत, दे., (२५.५४११.५, १२४४२-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ नमः सिद्धि; अंति: दिशतु
मंगलैकगृहम्, अध्ययन-३६, ग्रं. १४२५५. ५६०७१. (+#) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२७-२(३२४ से ३२५)=३२५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२५.५४११.५, ५४४२).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,प्रतिलेखक ने शतक-७, उद्देश-८ सूत्र-२९९ अपूर्ण तक लिखा है, जिसमें सूत्र २९० अपूर्ण से
२९५ अपूर्ण तक नहीं है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदि: श्रेयः श्रीसेविताह; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र
नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६०७२. (+#) पन्नवणासूत्र सह कठिनपद टिप्पण, पूर्ण, वि. १६३०, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम,
पृ. ३०१-१(१३५)=३००, ले.स्थल. आगरा, प्रले. पं. लब्धिवर्धन (खरतरगच्छ, क्षेमशाखा); अन्य. श्राव. परवत; श्राव. आटू; श्राव. गजू; राज्ये गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. हीरानंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीलब्धिवर्द्धनगणि के शिष्य शिवचंद्र के द्वारा वि.१६९९ में इस ग्रंथ के ऊपर योग किए जाने का उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ७७८७, (पू.वि. द्वार-५ का किंचित् पाठ अपूर्ण है.)
प्रज्ञापनासूत्र-कठिनपदटिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६०७३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७१-१५८(१ से ५९,६१ से ६२,६७ से ७०,७४ से
७७,७९ से ८१,८३,१७७ से १७८,१९७,२२५ से २३९,२५६,२७८ से ३३५,३५६ से ३६३)+१(३३९)=२१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६x४४).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमार दीक्षा प्रसंग से पुष्पचूला
__ आर्या प्रसंग तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६०७४. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध २, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०१, प्रले. मु. प्रतापचंदजी ऋषि (गुरु
मु. नवलचंद्रजी ऋषि); गुपि. मु. नवलचंद्रजी ऋषि (गुरु आ. रूपचंद्रजी स्वामी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, २-४४१९-३१).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, ग्रं. १३०००, प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इम हुंकहुंछु, ग्रं. ९५००, संपूर्ण. ५६०७५. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १७९४, वैशाख शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १९६, ।
ले.स्थल. बोरखेडी, प्रले. पं. नेमविजय गणि; पठ. ग. माणेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ. कुल ग्रं. १२१६, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२) मंगलं लेखकानांच, (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (१०२७) जलात् क्षेत् तैलाद्रक्षे, जैदे., (२५४११, ५४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते वर्तमान अवसर्पिणी; अंति: भगवंतई उपदेस्यं.
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य , मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य तीर्थनेतारं; अंति: (-). ५६०७६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९७-४२(१ से ९,२३ से २५,९७ से ११३,१६३ से १७४,१८३)=१५५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ४४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पीठिकागत नागकेतु कथा अपूर्ण तथा
नवकारमंत्र से सामाचारी अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५६०७७. (+#) आचारांग सह बालावबोध- श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १४८-३०(१ से
३०)=११८, ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ८९२५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६४३७).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. पिंडेषणा __ अध्ययन उद्देश-७ अपूर्ण से है.) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सांभलउ परं परार्थे, प्रतिअपूर्ण.
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६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६०७८. (+#) कल्पसूत्र सहटबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३४+१(७६)=१३५, पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३-१५४३०-३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२७९ अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-). ५६०७९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०५-८९(१,७७,८५ से १०७,१२१ से १८४)=११६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-२ से अंत भाग अपूर्ण
तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: (-). ५६०८०.(+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १०५-६(१ से ६)=९९,
ले.स्थल. हरिदुर्गनगर, प्रले.पं. भक्तिसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ५४३८-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०,
(अपूर्ण, पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण से है.)
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुस्यइ एहवू कहिउ, पूर्ण. ५६०८१. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, कार्तिक कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले.स्थल. जेतपर,
प्रले. श्राव. पूंजा प्रागजी गांधी; अन्य. सा. मानकुवरबाई; सा. गंगाबाई (गुरु सा. मानकुवरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, २-१२४२८-३२). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: धेयं ठाणं
संपत्ताणं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: ते भणी माहरो
नमस्कार. ५६०८२. (+#) गुणवर्म चरित्र, संपूर्ण, वि. १६४७, फाल्गुन कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६४, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्र.वि. कुछ
पत्रों पर रंगीन स्वस्तिक बने हुए हैं., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृश पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४५).
गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: विजयतां जिनवाक्यसुधा; अंति: श्रोत्रे भवतु
__ मंगलम्, सर्ग-५, श्लोक-१९४८, ग्रं. १८०८. ५६०८३. (+) सूर्यपन्नत्तीसह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प्र. ५०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., दे.. (२७४११.५, ५४३६). - सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. प्राभृत-२ अपूर्ण तक है.)
सूर्यप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. पार्श्वचंद्रसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). ५६०८४. (+#) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८११, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ४७-५(१ से ५)=४२,
ले.स्थल. बातिम, प्रले. मु. करमचंद (गुरु पं. दर्शनविजय); गुपि.पं. दर्शनविजय; पठ. ग. कांतिविजय (गुरु पं. दर्शनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में स्वर्णाभूषणों के व्यावहारिक लेन-देन का उल्लेख है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १८००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ५४३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदउ जा वीरजिण तत्थं, गाथा-३७६,
(पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.)
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वर्त्तई त्यां लगई. ५६०८५. (+) चतुर्मास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, ११४४२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंतिः दुष्कृतं वाच्यम्, ५६०८६. (+) ठाणांगसूत्र सह अभयदेवीच टीका, पूर्ण, वि. १६६२, चैत्र शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४५-१ (३९) ३४४, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११, १-१६x४०-५२).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुवं मे आउस तेणं, अंतिः अणंता पण्णत्ता, स्थान-१० सूत्र- ७८३, ग्रं. ३७५०, (पू. वि. उद्देश-२ पाठांश "नेरइए नेरइए सुख्ववदयमाणे" से "दुविहोणेरड्या पं तं परित्तसंसारिया" तक नहीं है.)
स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिनंनाथं अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या, स्थान-१०, ग्रं. १८०००.
५६०८७. (+) जंबुद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३७, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६११, १५X४३-६१).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि; तेणं कालेणं तेणं, अंति: उवदंसेइ ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ५०००.
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन, अंतिः शिष्यं प्रति ब्रवीति ग्रं. १८०००.
"
५६०८८. (+०) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३००+३ (३६,१६४,२२३)=३०३, प्र. वि. पत्रांक- ११८ पर श्रीमहावीरस्वामी की जन्मकुंडली दी हुई है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ५- १२x२८-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान १०. कल्पसूत्र - टवार्थ ", मा.गु, गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनो, अंतिः उपदेस्यो एम कहुं छे.
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंतिः कपट छोडी खमावजोजी.
५६०८९. (+) शांति चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४१२ २९४ (१ से २१४ ) = १९८, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १५०००, जैवे. (२५.५x११, ६४३३).
"
६९
शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३०७, आदि: (); अंतिः स करोतु शांतिः, ग्रं. ५०००,
(वि. १८५०, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, सोमवार, पू. वि. सर्ग ५ से है., प्रले. ग. ज्ञानविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य ) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: सानीध्यना करनार थाओ, (वि. १८५०, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मंगलवार, प्रले. ग. मुक्तिविजय (गुरु ग. ज्ञानविजय); गुपि. ग. ज्ञानविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य )
५६०९०. (+) सूत्रकृतांगसूत्र व निर्युक्ति की बृहद्वृत्ति, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २८९-१ (१)= २८८, प्र. वि. मूल व नियुक्ति का मात्र
प्रतीक पाठ है., संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १५X४५-५३).
सूत्रकृतांगसूत्र- बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: चरणगुणडिओ साहुत्ति, (पू.वि. मंगलाचरण पाठ अपूर्ण से है)
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५६०९१. (+) धर्मरत्नकरंडक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २६९, प्र. वि. प्रत में कुछ पत्र नए रखे हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित, जैदे., ( २६११.५, १५X४१).
धर्मरत्नकरंडक, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, आदि: सर्वनीतिप्रणेतारं अति: पंचत्रिंशं शतत्रयम् अधिकार- २०,
,
लोक-३५०,
धर्मरत्नकरंडक - स्वोपज्ञ टीका, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., गद्य, बि. ११७२, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं, अंतिः केषु कृता विवृतिरेषा
५६०९२. (+#) रघुवंश की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४८, प्र. वि. अबरख युक्त पत्र है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६x११, १५X३७).
रघुवंश - टीका, मु. धर्ममेरु, सं., गद्य वि. १७४८, आदि: वागर्थेति कवीनां, अंतिः पूर्ववत् इति मूलम्, सर्ग -१९
,
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५६०९३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
(+#)
' कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७०, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १५X४१).
५६०९४.
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कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः कल्पसूत्रस्य चेमाम्. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १७३-२९(१,८,१२,१९ से २०, ३५, ३८ से ४२,५०,५४,५९,६३ से ६६,७९,८५,८८ से १०, १०७,११२, ११९, १४७ से १४८, १५२ ) = १४४. पू. वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X११, ६X३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पीठिका अपूर्ण व मूलसूत्रारंभ से साधुसामाचारी अपूर्ण तक हैं एवं बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, , मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५६०९५. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ११४, ले. स्थल, नामली, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, ६३७).
सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४५७, आदिः श्रीवर्धमानमानम्य अति: स्वर्गमनुते, पद- ४४४, ग्रं. १६७५, (वि. १८१६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, ले. स्थल. नामली, प्रले. मु. नाथा (गुरु मु. मेघराज );
गुपि. मु. मेघराज (गुरु मु. वीरमजी); मु. वीरमजी, प्र.ले.पु. सामान्य )
"
सम्यक्त्वकौमुदी - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान चतुविश, अंतिः नर मोक्षनां सुख पामै (वि. १८१७ चैत्र शुक्ल, बुधवार, ले. स्थल. कुसलगढ, प्रले. मु. पृथ्वीचंद, प्र. ले. पु. सामान्य )
५६०९६. (+) श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२६, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८६, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४.५X११.५, ७X४३-४५).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित, अंतिः नायंज्जता कहाएसा, गाथा - १३४३, ग्रं. १६७५.
सिरिसिरिवाल कहा- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपदनई; अंति: जाणतां थकां कथा एह. ५६०९७. (+#) संबोधसत्तरी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, प्र. वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२५X११, ४x२८-४०)
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- १२४. संबोधसत्तर- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमोस्तु जगत्रेतस; अंति: किस्याइ संदेह नथी.
,
५६०९८. नवस्मरण, चैत्यवंदन व ग्रहस्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ७, जैवे. (२६४१२, १४४३१). १. पे, नाम, नवस्मरण, पृ. १आ- १५अ संपूर्ण वि. १८६९ वैशाख शुक्ल, ११.
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं हव अंतिः मोक्षं प्रतिपद्यते, स्मरण - ९.
२. पे. नाम. सीमंधर चैत्यवंदन, पृ. १५ अ- १५आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिश इशांन कूण, अंति: द्यो पुरो संघ जगीश, गाथा-९. ३. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १५आ- १६अ, संपूर्ण.
आ. भद्रवाहस्वामी, सं., पद्य, आदि जगद्गुरुं नमस्कृत्य, अंति: ग्रहशांतिमुदीरिता, श्लोक-११.
४. पे. नाम. शनिमहद्ग्रह स्तोत्र, पू. १६अ, संपूर्ण.
शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभिष्टाय अंतिः पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक १०. ५. पे. नाम. नवग्रह स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण
९ ग्रह स्तुति, सं., पद्य, आदि: अइमगोर अइमगो धरणीसुत; अंति: शुदधतां मम मंगलम्, श्लोक-१. ६. . पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १६आ, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ कृष्ण, १, प्रले. पं. हुकमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो, अंतिः सुप्रति सुप्रजायते श्लोक ५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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७. पे, नाम, शांतिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ५६०९९. (०) पत्रवणासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. प्रतिलेखक ने प्रत्रांक १ से ७ दिया है, परंतु पाठ बीच के हैं., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×११, ५X३९).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद - २१ के "सरीरप्पमाण मेत्ताविक्खं भबाहल्लेणं" से "वेउब्विय सरिसस्स जहणिया ओगाहना" तक का पाठ है.)
प्रज्ञापनासूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६१००. आराधना, पच्चक्खाण व अनशन गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११, ११x४८). १. पे, नाम, आराधना सह बालावबोध, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण भणड़ एवं भयवं अंतिः तं सरसुमणे नमुक्कारं, गाथा -७०. पर्यंताराधना-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीतरागदेव प्रणमी; अंति: एक पदनउ ध्यान करियो.
२. पे नाम, जावजीव चडव्विहार अणसण गाथा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: भवचरिमं पच्चखामि, अंति: अप्पसक्खियं वोसिरामि. ३. पे. नाम. दिनप्रति अणसण गाथा, पृ. ६अ, संपूर्ण.
अनशन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंतो महदेवो; अंतिः परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४.
५६१०१. (+) भावारिवारण स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. जसवंत, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ५X३५-४० ).
महावीर जिन स्तव- समसंस्कृत, आ, जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक - ३०.
महावीरजिन स्तव - टीका, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं स्तुवामि; अंतिः कविना स्वनाम सूचितम् .
५६१०२. निशीथसूत्र की विशेषचूर्णी सह विंशकोद्देश व्याख्या, संपूर्ण, वि. १६२१, मध्यम, पू. ६६५, कुल पे. २, ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, दत्त. श्रावि. टक्कूबाई झांझणमंत्रि; गृही. आ . जिनचंद्रसूरि (गुरु आ . जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ); विक्र. पं. केसरीचंद, क्रीत. पं. सिवलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६X११.५, १५X४५).
७१
१. पे. नाम. निशीथसूत्र के मूल, निर्युक्ति व भाष्य की विशेषचूर्णि, पृ. १आ-६३९आ, संपूर्ण.
निशीधसूत्र - विशेषचूर्णि #. ग. जिनदास महत्तर प्रा. सं., गद्य वि. ८वी, आदि नमिऊण रहंताणं सिद्धा, अंतिः विसेसनामा निसीहस्स. प्र. २८०००.
""
,
निशीथसूत्र - नियुक्ति की विशेषचूर्णि #. ग. जिनदास महत्तर प्रा. सं., गद्य वि. ८वी, आदि (-); अंति: (-). निशीथसूत्र - भाग्य की विशेषचूर्णि #. ग. जिनदास महत्तर प्रा. सं., गद्य वि. ८वी, आदि (-); अंति: (-). २. पे. नाम. निशीथसूत्र की चूर्णि के हिस्से विंशोद्देशक की सुबोधाटीका, पृ. ६३९आ-६६४आ, संपूर्ण.
1
निशीथसूत्र - विशेषचूर्णि का हिस्सा विंशोदेशक की सुबोधा टीका, आ. श्रीचंद्रसूरि, सं., गद्य वि. ११७४, आदि: प्रणम्य वीरं सुरवंदि; अंतिः (१) श्रीचंद्र० स्वपरहेतवे, (२) समर्थितेयं रवौ वारे.
५६१०३. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२९-१ (३९२*) = ६२८, प्र. वि. कुछ पत्र पर आ प्रत "शा. सु. दे. रायमुए थानकमा मुकी" ऐसा उल्लेख मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६.५X११.५, ४-१३X३०-३४).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदिः सुयं मे आउसे तेणं, अंतिः अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र- ७८३,
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संपूर्ण.
स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु.. गद्य, आदि: (१) श्रीमद्वीरजिनं नत्वा, (२) श्रीसुधर्मास्वामी अंतिः दसमू ठाणं समाप्तम्, संपूर्ण स्थानांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नाथं अंतिः ध्ययननी परि जाणवा, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६१०४. (+#) कल्पसूत्र सहटबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५०, ले.स्थल. डभोडा, प्र.वि. अंतिम पत्र
सवंत १८८१ ना वरषे वेसाख वदी १२ सनीवार श्रीमुनीद्रसोमसुरीभा.सीष्य पं. चंद्रसोमजी पं. श्रीलखमीसोमजी पं. श्री हीरसोमजी तत सीक्ष पं. मणीसोमजी पेथापुरना वासी. लिखा हैं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ११४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (वि. १८१२, पौष शुक्ल, १५, शनिवार, ले.स्थल. डभोडा, पठ. मु. रुपविजय (गुरु मु. अमरविजय); गुपि. मु. अमरविजय (गुरु मु. हर्षविजय); मु. हर्षविजय (गुरु मु. दिपतिविजय); मु. दिपतिविजय (गुरु मु. चंद्रविजय);
मु. चंद्रविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); ग. ऋद्धिविजय (गुरु पंन्या. चतुरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे अवसर्पिणी; अंति: पोतानाशिष्यनइ इम कहि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७०७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: यः कर्ता तस्य
मंगलम्, (वि. १८२७, आश्विन कृष्ण, ७, विक्र. मु. कुशलविजय; पठ. मु. सकलसोमजी (गुरु पं. चंद्रसोम,
लोढीपोसालगच्छ); गुपि.पं. चंद्रसोम (लोढीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) ५६१०५. (+) पन्नवणासूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३३-१५५(४७ से १७९,४९१ से ५१२)=३७८, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १-१२४१८-३५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० ववगय; अति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ७७८७, (वि. १६९४, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार, ले.स्थल. राजनगर, पठ. पं. अमृतविजय गणि (गुरु पं. मानविजय गणि); गुपि.पं. मानविजय गणि (गुरु ग. देवविजय); ग. देवविजय; लिख. श्राव. चंद्रभाण जावड
श्रीमाली; राज्यकाल भट्टा. विजयाणंदसूरी (तपागच्छ नागपुरीय), प्र.ले.पु. मध्यम) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: जयति नमदमरमुकुटप्रति; अंति: लभतां जिनवचनसद्बोधम्,
पद-३६, ग्रं. १४०००, (वि. १६९४, कार्तिक कृष्ण, ४, शुक्रवार, प्रले. मथुरा केशव भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य) ५६१०६. कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२१, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १०४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-),
(पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम प्रशस्ति का भाग नहीं लिखा हैं.) ५६१०७. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३०, कार्तिक शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३९, अन्य. मु. उत्तमचंद ऋषि;
मु. अगरचंद ऋषि; मु. विनयचंद ऋषि (गुरु मु. फतेचंद ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रत के अंत में "आ परत श्रीनगरना भंडारमे सा सुंदरजी देवराज राखी छे" ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, ५४२८-३०).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं; अंति: सुख पाम्या थका. ५६१०८. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४९८, प्रले. मोरलीधर नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं.१६०००, दे., (२५४११, ९४३५).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१५४. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसिद्धार्थनराधिप, (२)नमो अरिहताण माहरो; अंति: जंबूस्वामी प्रते
कहे, ग्रं. ११८४६. ५६१०९. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४१-५(३१३ से ३१७)=४३६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, ५४२९-३५).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेण; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार हुओ; अंति: जंबूस्वामी प्रते कहे.
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७३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६११०. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६७, ले.स्थल. सूरितबिंदर,
लिख. आ. महिमाविमलसूरि (गुरु आ. विबुधविमलसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसूर्यपुरमंडणपार्श्वप्रभु प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६४३५). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२,
ग्रं. ४७५०.
जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंति: शोधीने शुद्ध करवू, ग्रं. १६०००. ५६१११. (+) प्रवचनसारोद्धारसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. ३५०, गृही. सा. विवेकश्री; सा. मोतीश्री; सा. मयाश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५२). प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: सन्नद्धैरपि यत्तमोभि;
अंति: गिरिर्जयतु तावदियम्, ग्रं. १८०००, (वि. मूलसूत्र का प्रतीकपाठ मात्र लिखा है.) ५६११२. (+#) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५०-१(१)=२४९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४३-४७).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ में गाथा २ अपूर्ण से स्कंध, देश, प्रदेश __ वर्णन अपूर्ण तक है.)
प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६११३. (+) विपाकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४५, वैशाख कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०१, ले.स्थल. नुतनपुर,
प्रले. पं. खुबचंद्र कुशल; लिख. श्राव. लधुभाई सुंदरजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ४४२६-४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,
(वि. अध्ययन २०.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाक सब्दार्थ उच; अंति: करी संपूर्ण थयो. ५६११४. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६१५+३(२६५ से २६६,११४२)=१६१८, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८१/७, पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ५४३२).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताण० सव्व; अति: उद्दिसिज्झति, शतक-४१, सूत्र-८६९.
भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदि: श्रेयः श्रीसेविताह; अंति: वा० मया मत्यणुसारतः. ५६११५. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८२०, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३५०-१(१)=३४९, प्रले. मु. मकराक्षर;
अन्य. सा. अमरत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (९२१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ५४३२-३६). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, स्थान-१०, सूत्र-७८३, (पू.वि. ठाणं
१ सूत्र २१ से है.)
स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अध्ययनं संपूर्णं. ५६११६. (+#) भगवतीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३५३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७४५६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: गणहराण मित्यादयः, शतक-४१,
सूत्र-८६९. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्,
शतक-४१, ग्रं. १८६१६.। ५६११७. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८१/६, कुल ग्रं. ३५००, दे.,
(२५.५४११, ५४३२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव,
अध्ययन-१०.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले ते समयने; अंति: विषे उपदेस वा कहिवा. ५६११८. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४४५-४४(६५ से ६७,९५ से १०५,१०८,११० से १३५,१७४ से
१७६)=४०१, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत-७७/५., संशोधित. कुल ग्रं.१५८५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: उद्दिसिझंति, शतक-४१, सूत्र-८६९. ५६११९. (+) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, १५४४५-५२).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: उद्दिसिज्झंति, शतक-४१, सूत्र-८६९. ५६१२०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा टीका, पूर्ण, वि. १६१३, आश्विन कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०५-२(१,३)=३०३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १५४५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं
है., गाथा २ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: कृतमसुकृतमसंगतं
तदिह, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. ५६१२१. (+) पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५०, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ (खंभ, लिख. श्राव. राजिआ परीख; श्राव. वजिआ
परीख; गृही.पं. रत्नचंद्रगणि; पठ. ग. लावण्यचंद्र (गुरु ग. माणिक्यचंद्र); गुपि.ग. माणिक्यचंद्र; अन्य.पं. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१३४४६). पांडव चरित्र, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: ॐ नमो वृषभस्वामिने; अंति: (१)शोध्यं तदेतद् बुधैः,
(२)रत्नचंद्र० पुस्तकः, सर्ग-१८. ५६१२२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७०,
ले.स्थल. सतवाटिकानगर, प्रले.पं. कपूरविजय; पठ. ग.प्रमोदकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५-१४४२६-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: इति ब्रवीमि कहइ.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: इह भवति सप्त रक्त; अंति: शासन बाहिर करिवओ. ५६१२३. (+) महानिशीथसूत्र-अध्ययन ४ से ५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५९,
ले.स्थल. मंडनपुर, प्रले. मु. माणिक्यचंद्र ऋषि; अन्य. श्राव. सुंदरजी देवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८१/६, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं.७५००, दे., (२५४११, ४४२७).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण.
महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६१२४. (+#) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५३, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०, ५-७४३६-४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज्ज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३.
(वि. १७४९, ज्येष्ठ कृष्ण, सोमवार, ले.स्थल. जालनगर, प्रले. ग. विद्याविमल (गुरु वा. ज्ञाननिधान, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ); गुपि.वा. ज्ञाननिधान (गुरु पं. मेघकमल, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ); पठ.पं. प्रेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. खंडित पत्र होने कारण विद्वानों के नाम अवाच्य हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
सूत्रकृतांगसूत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणम्य सद्गुरुन, अंतिः छउ इत्यादि पूर्ववत्, ग्रं. १००००, (वि. १७५५, आश्विन कृष्ण, १४, शुक्रवार, ले. स्थल. लाहोर, प्रले. मु. महानंद (गुरु पं. प्रेमराज); गुपि. पं. प्रेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. पत्र खंडित होने के कारण प्रेमराज के गुरु का नाम अवाच्य है.) ५६१२५. कल्पसूत्र सह टीका व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १३६ प्र. वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ४५००, जी.,
(२४.५X१०.५, २-११X३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदंसे ति बेमि, व्याख्यान ८. कल्पसूत्र - कल्पप्रदीपिकाटीका, ग. संघविजय, सं., गद्य वि. १६७४, आदिः श्रीवर्द्धमानमर्हतं अंति: उवदंसेइत्ति
,
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रूपम्, ग्रं. ३२५०.
५६१२६. (+#)
) कल्पसूत्र सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १७८० आश्विन शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १३२, ले. स्थल, मेदवपुरनगर, प्र. मु. धनजी ऋषि (विजयगच्छ); पठ. आ. तिलकसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ३७००, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५x११.५,
१०X३२).
-
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान. ९.
,
कल्पसूत्र- बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: तीणइ कालि तीणइ समइ; अंति: तणी कथा वर्णवियइ छै. ५६१२८. प्रश्नव्याकरणसूत्र - श्रुतस्कंध - १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४+३ (६०,६७,१०९)=११७,
प्र. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत १८१ / ६, कुल ग्रं. ६०००, वे. (२६४१९, ४२४-२६).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: जंबूण इणमो अण्हय, अंति: (-), प्रतिपूर्ण
प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: (१) प्रश्नव्याकरण दसमउ, (२) जं० हे जंबू सुसिष्य अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५६१२९. (+*) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५१-१ (४६) =५२, पठ. सा. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६४११.५, १२४४२-४५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (१) नमो अरिहंताणं, ( २ ) नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा
वीरजिण तित्थं, गाथा- ३००.
बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: (१) नमो अरिहंताणं, (२) नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: मांगलिकनइ अर्थि हुओ.
५६१३०. (+) गौतमपृच्छा की टीका, संपूर्ण, वि. १८५७, माघ कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले. स्थल. लूणकर्ण, प्रले. पं. दानवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत - ७५/२, संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., १३x४५),
(२६X१०.५,
७५
गौतमपृच्छा, प्रा., पच, आदिः नमिऊण तित्वनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६४. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: नगर्यां च शुभे दिने, ग्रं. १६८२.
५६१३१. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५.५x११,
१३३०).
१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र. पू. १आ-१०आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे, अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.
२. पे. नाम, क्षामणकसूत्र, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: (-), (पू.वि. आलाप २ अपूर्ण तक है.) ५६१३२. (+) पोसदशमीकल्याणक विषये सुरदत्तश्रेष्टी चरित्र, संपूर्ण वि. १८९१, पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. पं. ऋषभदास (गुरु पं. मोतीचंद, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. पं. मोतीचंद (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनहर्षसूरि (गुरु आ . जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, ११४३३-४३).
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ, अंतिः धिकार सत्यं ब्रूवेमि.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६१३३. (+) विवाहपन्नत्ती पंचमअंग, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४६-३८(१ से ३८)-७०८, प्र.वि. बीच के कुछ पत्र बाद में लिखे हुए हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३५).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: संतिकरि तं नमसामि, शतक-४१, सूत्र-८६९,
ग्रं. १६०००, (पू.वि. शतक २ अपूर्ण से है.) ५६१३४. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १३६, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. मथेन हीरानंद (रुद्रपल्लीयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५,१२४३५-४१).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७. ५६१३५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४४५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १९ गाथा ५ तक
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: (-). ५६१३६. (#) श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०-७(१ से ५,११ से १२) ६३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०x४१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-१ ढाल-४ गाथा-७९ अपूर्ण, ढाल-८ के दोहा-१अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-१ अपूर्ण तक व खंड-४
कलश-१० से नही है.) ५६१३७. (+#) विक्रमनरेश्वर चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: (-), (पू.वि. मात्र
अंतिम प्रशस्ति वाला भाग नहीं है.) ५६१३८. तिलोकचंदकृत प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, दे., (२५.५४११.५, ९४३१).
प्रश्नोत्तर संग्रह, श्राव. तिलोकचंद लुणिया, मा.गु., गद्य, आदि: तुमे कह्यु जे समकित; अंति: बोधिकामाहे कह्यौ छे. ५६१३९. (+#) मानतुंगमानवती वचनसंवाद, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. तडावग्राम,
प्रले. ग. लालविजय (गुरु ग. हरखविजय पंडित); गुपि.ग. हरखविजय पंडित (गुरु पं. विनितविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७. ५६१४०. (+) विक्रमादित्यलीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८०३, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७,
ले.स्थल. मगरवाडा, प्रले. मु. हर्षविजय (गुरु ग. मोहनविजय); गुपि. ग. मोहनविजय (गुरु ग. प्रतापविजय पंडित); ग. प्रतापविजय पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुथुजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: प्रम जोति प्रकाशकर; अंति: परमसागर
आणंदारे, ढाल-६४. ५६१४१. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-७(१,३६ से ४१)=३६, कुल पे. २९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२९). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयरंग इण परि बोले,
ढाल-५, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमांन; अंति:
धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-२६. ३. पे. नाम. अठावीस लबधि स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिनेसर; अंति:
धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५. ४. पे. नाम. २८ समवसरण स्तवन, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरोजग; अंति: पाठक
धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. ५. पे. नाम. पन्नवणाउपांगसूत्रोक्त अट्ठाणु अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. ९८ भेद अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: वीरजिणेसर वंदिये; अंति:
संवत सतरे बहुत्तरै, गाथा-२२. ६. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जिनवर तणा; अंति: लब्धिवल्लभ गणि कही, गाथा-१५. ७. पे. नाम. चोरासीआसातना स्तवन, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिण पास जगडा; अंति: वंदै जैन शासन ते वली,
गाथा-१८. ८. पे. नाम. तेवीसपद विचार स्तवन, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
२३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पाय; अंति: पभणै धरमलाभ घणौ थयौ, गाथा-२३. ९. पे. नाम. बारहगुण गर्भित जिनस्तवन, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-अरिहंत बारगुण गर्भित, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम चरण पंच इष्टनै; अंति: हुवै
ग्यान प्रकास ए, गाथा-१६. १०. पे. नाम. छिन्नूजिनवर स्तवन, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चौवीसी वंदू; अंति: सदा जिणचंदसुर ए,
ढाल-५. ११. पे. नाम. दशत्रिकगर्भित नेमिनाथजिन स्तवन, पृ. १६आ-१९अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: लाल०
तवन कीधो चितधरी, ढाल-४. १२. पे. नाम. वीसस्थानकवृद्धि स्तवन, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीसथानक तप सैवीयै; अंति: कहै वसतो मुनिवरो, ढाल-३,
गाथा-१९. १३. पे. नाम. ४५ आगमनामगर्भित वीरजिन स्तवन, पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-४५ आगमसंख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: देवांना पिण जेह छै;
अंति: धरमसी० पुस्तक देख ए, ढाल-३, गाथा-२८. १४. पे. नाम. आलोयण स्तवन, पृ. २२अ-२४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर; अंति: कीधो चउपने
फलवधिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. १५. पे. नाम. गुणस्थानकबिवरण कर्मविचारगर्भित पार्श्वजिननामगर्भित स्तवन, पृ. २४आ-२६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि:
नमिय सिरि पासजिण नाम; अंति: दिणयर सयलअतिसयसंजुओ, ढाल-३, गाथा-१९. १६. पे. नाम. पोसहविध स्तवन, पृ. २६आ-३०अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति:
समयसुंदर भणै सीस, ढाल-५, गाथा-३८. १७. पे. नाम. अट्ठोतरसोगुणनवकरवाली स्तवन, पृ. ३०अ-३२अ, संपूर्ण. नवकारगुण चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली मणियडा; अंति: (१)पाठक राजसोम
भणइ ए, (२)कल्याण नवनिध संपजै ए, ढाल-४. १८. पे. नाम. तीरथराय स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो रे नमो सेज; अंति: जिनह० मंगल वृद्धि रे, गाथा-१३. १९. पे. नाम. जिन पद, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: इम विमलाचल गुण
गायै, गाथा-१५. २०. पे. नाम. सेर्बुजगिर स्तवन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण..
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीया; अंति: प्रेम घणै चित आणी रे, गाथा-९. २१. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: विमलाचलगिरि वंद्या; अंति: सुगुण सदा सुखकारारे, गाथा-९. २२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इण डूंगरीयारी झीणी; अंति: नयणविमल० पार उतारो,
गाथा-६. २३. पे. नाम. सेव॒जगिर स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो मुनै अति; अंति: प्रेम घणे जिणचंद रे, गाथा-७. २४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठदेस सुहामणौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) २५. पे. नाम. कल्याण स्तवन, पृ. ४२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुण्यसाग० आराहउ मुदा, गाथा-२५,
(पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २६. पे. नाम. चोवीसजिन स्तुति, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो रिषभजिनेसर वंद; अंति: द्यो मुझ सुख भरपूर, गाथा-४. २७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह राणकपुर-आदिजिन स्तवन है, परंतु प्रतिलेखक
ने अंत में पार्श्वनाथ स्तवन लिखा है. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे;
__अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. २८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सामली रे; अंति: पायो अविचल राज,
गाथा-८. २९. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. ४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५६१४२. (+#) दंडक त्रीसबोल बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३१, पौष कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. कनोराग्राम, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: मास ६ नौ आतरौ पडै.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६१४३. (+#) नलदमयंती चौपाई व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. २,
प्रले. श्राव. मथेन वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५६). १. पे. नाम. नलदमयंति चौपाई, पृ. १आ-२८अ, संपूर्ण. नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर०
चित्तवसी, खंड-६, गाथा-९४१, ग्रं. १३५०, (वि. ढाल ३९.) २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २८अ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ५६१४४. (+) धर्मबुद्धि चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१(२४)=२४, प्रले. मु. गुमानचंद (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: गृह
शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, (पू.वि. ढाल-३७, गाथा-६ से ढाल-३८, गाथा-१० तक नही है.) ५६१४५. (+) धन्नाराजऋषि चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३२).
धन्नाऋषि चौपाई, मु. जिनवधमान, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: श्रीजिनवर ए जगतमइं; अंति: अविचलराज
जगीसइजी, ढाल-३१, गाथा-६११. ५६१४६. अतिसुकुमालमुनिनो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, प्रले. श्राव. लालचंद रुघनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १६x४२). अतिसुकुमालमुनि रास, मु. सकलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १९७५, आदि: त्राता तमे सकलना; अंति: कुमाल चरित्रे
जोय रे, ढाल-३७. ५६१४७. (+) गुणावली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१+१(१९)=२२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४४१). गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २५ गाथा ९ अपूर्ण
तक है., वि. प्रथम पत्र चिपके होने से आदिवाक्य अवाच्य है.) ५६१४८. (+) श्रीपालराजा रास-खंड ३ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १४४२८-३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: हस्यई
ज्ञानविशालाजी, प्रतिपूर्ण. ५६१४९. (+) कर्मग्रंथ विचार, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(९)=१८, अन्य. सा. गोमती आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४३).
कर्मप्रकृति विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: वीरं गुरूश्च वंदित्व; अंति: हुइ ते विचारिया. ५६१५०. (+#) सीमंधरस्वामी विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४१). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर साहिब
आगईं; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५३. ५६१५१. (#) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२५, वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(५)=१७, प्र.वि. कुल ग्रं. ७७०, अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०३०) पोथी उत्तम पेखीय, (१०३१) पोथी प्यारी प्राणथी, (१०३२) जब लग मेरु अडग है, (१०३३) गगन धरा बिच मेर गीर, जैदे., (२६४११.५, १४४४४). कयवन्ना चौपाई, म. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: जयरंगकरण मन उलसै
बै, ढाल-३०, गाथा-५५५, (पू.वि. ढाल-६, दोहा-२ अपूर्ण से ढाल-७, गाथा-२४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल-३० व ३१ की गाथाओं को मिलाकर कृति पूर्ण कर दी गयी है, परंतु ढाल-३१ का उल्लेख नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५६१५२. (+) चौदगुणस्थानक भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५x११, ११X३०-३३). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीशंखेश्वरपुर धणी अंतिः माणिकवि० संघ जगीस रे, ढाल - १७, गाथा - १२६.
"
५६१५३. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १६X३७-४३).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्म, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्ति, अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १० की गाथा १८ अपूर्ण तक है.)
५६१५४. (+) वीरजिनविज्ञप्ति स्तवन सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, १४-१८४३५-५२).
महावीर जिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगभिंत, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय, अंति: (-), (पू.वि. डाल-६ की गाथा १६ तक है.)
महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: (१) जत्थय जं जाणिज्जा, (२) ए अनुयोगद्वारनो पाठ, अंति: (-).
५६१५५. गुणसुंदरी कथा का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५.५५११, १२X३४).
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गुणसुंदरी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: हिवई जे उत्तम शील; अंतिः (-) (पू.वि. भुवनानंदा जातिस्मरणज्ञान प्रसंग तक है.)
५६१५६. पद्युम्नकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१६, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२५४१२, १९४४९)
"
...
सांप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलो अंतिः समवसुंदर ०
,
सुजगीस ए, खंड-२ढाल २२, गाथा - ५३५, ग्रं. ८००.
५६१५७. (+) सालिभद्र चतुपदी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित प्रायः शुद्ध पाठ, जै. (२७४१२, १७५४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पच, वि. १६७८, आदि शासननायक समरीयइ, अंतिः धन्नो रिषिराया,
ढाल - २९, गाथा - ५१०.
५६१५८. (#) सेतुंजइ ओद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५ -१ ( १ ) = १४, ले. स्थल. पट्टणानगर, प्रले. ग. रंगविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); गुपि. पं. प्रेमविजय गणि (गुरु पं. लाभविजय गणि); पं. लाभविजय गणि; पठ. श्रावि. प्यारमदेजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १x२५)
""
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: नयसुंदर० दरिसण जयकरो, ढाल १२, गाथा - १२२, (पू.वि. डाल- २ की गाथा ३ से है.)
५६१५९. (#) १७० स्थानक यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७ - ३ (१ से ३) = १४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४११, १०-१५४३१-४४).
"
१७० जिनस्थानक यंत्र, सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थानक - ३२ से है. )
५६१६० (+) चौमासी देववंदन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १४, अन्य श्रावि. गंगाबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१२, १२x२९-३५).
चौमासपर्व देववंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि आदिदेव अलवेसरू विनीत, अंतिः पास सामलनु चेई रे. ५६१६१. (+) श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. गच्छाधिपति क्षांतिरत्नसूरि (खरतर); पठ. श्रावि. वालचाई पानाचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत- संशोधित, जै, (२५.५४१२, १०X२३).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि, अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ५६१६२. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १४-१ (१) १३. पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे., (२५.५x११.५, १४४४३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवभेद विचार अपूर्ण से बंधतत्त्व अपूर्ण तक है.) ५६१६३. (#) षडावश्यक व भक्तामर स्तोत्र कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४४९). १. पे. नाम. षडावश्यकसूत्र कथा संग्रह, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तहेव इक्कारसपयपरिच्छ, (२)इह भरतक्षेत्रे पोतन: अंति: पालता
जीव सुख पामइं. २.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र कथा संग्रह, पृ. ९आ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__ भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभक्तामर उत्पत्ति; अंति: (-), (पू.वि. २३वीं कथा अपूर्ण तक है.) ५६१६४. (4) वच्छराजहंसराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २४-१२(१ से ६,१४ से १८,२३)=१२,
ले.स्थल. भडदी, प्रले.सा. माना (गुरु सा. जीतुजी); गुपि.सा. जीतुजी (गुरु सा. पनाजी); सा. पनाजी (गुरु सा. गुलाजी); सा. गुलाजी (गुरु सा. बालाजी आर्या); सा. बालाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, २१४३५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदिः (-); अति: सूरि० हंस अनै वछराज,
खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५, (पू.वि. खंड-२, ढाल-१, गाथा-७ अपूर्ण से खंड-३, ढाल-४, गाथा-१९ अपूर्ण तक व
खंड-४, ढाल-४ की गाथा-१६ से है.) ५६१६५. चौमासी देववंदन विधि सहित, संपूर्ण, वि. १८७९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, ले.स्थल. मुंबईबंदर,
प्रले. मु. सिवचंद (गुरु ग. उत्तमचंद्र, तपागच्छ); गुपि.ग. उत्तमचंद्र (गुरु ग. उदयचंद्र); ग. उदयचंद्र (गुरु ग. भक्तिचंद्र); ग. भक्तिचंद्र (गुरु पंन्या. मयाचंद्र); पंन्या. मयाचंद्र (गुरु ग. कपूरचंद्र); ग. कपूरचंद्र (गुरु ग. कनकचंद्र); ग. कनकचंद्र (गुरु ग. भावचंद्र); ग. भावचंद्र (गुरु उपा. भानुचंद्र); उपा. भानुचंद्र; राज्ये गच्छाधिपति जिनेंद्रसूरि (तपागच्छ); पठ. श्रावि. विजाबाई हीरा झवेरभाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. देववंदन विधि की पारंपरिक पद्धति की स्पष्टता का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२६४११, १२x२७). १.पे. नाम. चौमासी देववंदन विधि, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण.
चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आदनाथ; अंति: रुप सदा आणंद, चैत्यवंदन-२५,
गाथा-७५. २. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरवर धीप संभारो; अंति: सनदेवी सानिध्य कीजे, गाथा-४. ३. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
___ मु. नयविजयजी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधर माहरे रे; अंति: सीसनइ द्यो शिवराज, गाथा-६. ५६१६६. (+) पिंडप्रकृति आदि भेदबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, २०x४५).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तिम्र३ चतुरस्र०, (पू.वि. पिंडप्रकृति भेद अपूर्ण से है) ५६१६७. (+#) पंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति:
विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५. ५६१६८. (+) कल्पसूत्र की पीठिका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२२, पौष शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २,
प्रले. मु. प्रतापसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (२०१) कटी कूबड कर बेगडी, (४६८) खाजो पीजो खरचजो, (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५११) तेला रक्षं जला रक्षं, (१०३६) पग पीडि गुंज जांघ फुनी, दे., (२५.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. कल्पसूत्रपीठिका, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: च्यार परित्याग
करिवा. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुटुंबचिंता मम दुस्त; अंति: पंचमो ऋषभदर्शनम्, श्लोक-२. ५६१६९. (+) श्रावक आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १४४४४).
श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुश्रावकने सघला; अंति: जोडी एवो उच्चार करवो. ५६१७०. सर्वपाप आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन शुक्ल, १३, शनिवार, जीर्ण, पृ. १०, पठ. श्रावि. प्रेमकुंवर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र खंडित होने से प्रतिलेखक व प्रतिलेखन स्थल का नाम नष्ट हो गया है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१२, ११४३५).
दुष्कृतनिंदा, मा.गु., गद्य, आदि: बहिरात्मा करीने कर्म; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ५६१७१. (+) आगमवचन चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३७).
आगमवचन चौपाई, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदि: वंदवि चउवीसे जिणराय; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२११ अपूर्ण तक है.)। ५६१७२. चौदगुणस्थानादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(१ से २)+१(१०)=१०, प्र.वि. गुणस्थानक, तिर्यंचगति, जाति आदि बोल संग्रह., जैदे., (२६४११, १८४४०).
बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: १९८ कुलकोटि सर्वेपि, (पू.वि. अवरति गुणस्थान से है.) ५६१७३. (#) एवंतिसुकुमाल रास व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. तेजसी ऋषि (गुरु
मु. रामजी ऋषि); गुपि.मु. रामजी ऋषि; पठ. वालुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६४१२, १३४३२). १.पे. नाम. अवंतिसुकमाल रास, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: प्रणमी श्रीवीतरागने; अंति: शांतिहरख सुख पावेरे,
ढाल-१३, गाथा-१०७. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: संजन सब जुग सरस हे; अंति: पीतल निकसे स्याम, दोहा-१. ५६१७४. लघुदंडक बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, १४४४७).
जीवाभिगमसूत्र-२४ दंडक २७ द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सरीरोगाहण संघयण सठाण, (२)सरीर
कहेता सरीर पांच; अंति: (-), (पू.वि. दंडक-२४ आंशिक अपूर्ण तक है.) ५६१७५. सीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. समी, प्रले. गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १०x२८-३२).
सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि श्रीमंधर;
__ अंति: जसविजय बुध जयकरौ, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८. ५६१७६. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २५, ले.स्थल. सेवाडेनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि (गुरु
पं. कांतिविजय गणि); गुपि.पं. कांतिविजय गणि (गुरु पं. खुशालविजय गणि); पं. खुशालविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महावीरजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०-१३४३०-३३). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण..
मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतीलक वरहीर, गाथा-१. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: कारिज सिधह मारांजी, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. शुभसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पासदेवा करुं सेवा; अंति: संघ आस्या पूरणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: भावदाता दधतं सुरेश, श्लोक-१, (वि. ४ बार
बोलीजानेवाली स्तुति.) ५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: उन्नतपुरमंडण जगतधणी; अंति: भावसागर०पावे
तेह नरा, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयपासजिनेसर पुज; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ८. पे. नाम. श्रीशांतिजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंतजीणेसर समरीये; अंति: साभलो ऋषभदासनी
वाणी, गाथा-४. ९. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्ये पाम; अंति: शुभविजय० वधो वधाइ जी, गाथा-४. १०. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्य; अंति: शांतिकुशल गुण गायाजी, गाथा-४. ११. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदे जिनपूजा रचीन; अंति: मानवि०देवी पूरीजे जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विसलपुर वांदु; अंति: संघना विघ्न निवार,
गाथा-४. १३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंति: सानिध करज्यो माय जी, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. १५. पे. नाम. गोडीजी स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भाणनी जयत करेवी, गाथा-४. १६. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. १७. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण...
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. १८. पे. नाम. पंचम स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल कीयो
अवतार तो, श्लोक-४. १९. पे. नाम. अष्टम स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम,
श्लोक-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०. पे. नाम. अष्टम स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमंगल आठ करे जस; अंति: नय० कोडी
कल्याण जी, गाथा-४. २१. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा
निशदिश, गाथा-४. २२. पे. नाम. चतुर्दश स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २३. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करहुं अंबकदेवया, गाथा-४. २४. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण
गाय, गाथा-४. २५. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: माइ जो तुसे देव अंबई,
गाथा-४. ५६१७७. (+) चौदगुणठाणा द्वार व अल्पबहुत्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. गुणस्थान के २२ भेद विचार, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण.
गुणस्थानक द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम१ लक्षण२ गुण३ ठी४; अंति: आप आपणी स्थति सूरहे. २. पे. नाम. अल्पबहुत्व द्वार, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
___ अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा ११मा गुण; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक भाग अपूर्ण तक है.) ५६१७८. (+#) विक्रम चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९९, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.५३१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५२).
विक्रमराजा चौपाई, मु. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर चरणे नमी; अंति: वंदइ श्रीहीराणंद, ढाल-१६. ५६१७९. (+#) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५४१२, १३४३२). १. पे. नाम. मनुष्य तीर्यंच जीवोत्पत्ति विचार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जिवारई पुरुष अनइ; अंति: नरगइ न जाइ ते माटइ. २.पे. नाम. शील विचार, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. शीयलव्रत विचार, मा.गु., पद्य, आदि: (१)अथ ब्रह्मचर्य पालइ, (२)पुरुष छ प्रकारना छइ; अंति: रिसओ होइ सीसगण
जोगो. ३. पे. नाम. गर्भ विषयक शैव जैन संवाद, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण.
गर्भ विषयक शैव जैन प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: सगरचक्रवर्तिनइंसाठि; अंति: हासी कोई न करस्यो. ५६१८०. जंबूपृच्छा, संपूर्ण, वि. १८४४, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. डभोडा, प्रले. पं. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १९४३३).
जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सर्वदा पूर; अंति: जंबू प्रीच्छा भवीयण, ढाल-१३. ५६१८१. स्नात्रपूजा आरती सहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१२, १५४३५). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ २. पे. नाम. २४जिन आरती, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
२४ जिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस जिणेसर न्यान; अंति: पंचधरि विवेक, गाथा-११. ३. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ८अ, संपूर्ण.
सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: सेवग०प्रभु दरसण पावै, गाथा-५. ५६१८२. नवकारमहिमागर्भित दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४६).
नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नवकार इक्कअक्खरपावं, (२)भरतक्षेत्रि पोतनपुर; अंति: जना
मोक्ष लहिसिइं, कथा-६. ५६१८३. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-६(५ से १०)=८, कुल पे. २१, पू.वि. स्तुतिक्रम-२३ से ५७ वाले भाग
पर कागज चिपकाया गया है., प्र.वि. अपूर्ण व बादवाले पत्र में पत्रांक न होने से घटते पत्र काल्पनिक रूप से दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७X४८). १.पे. नाम. पंदरतिथी स्तुति, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात्व असंयम; अंति: नयविमल करो नित
नित्य, स्तुति-१६, गाथा-६४. २. पे. नाम. मौनैकादशी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिनै पूछे हरि; अंति: पद्मविजय० संघ जगीस, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण...
मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणद; अंति: द्यो दोलति मुज माई, गाथा-४. ४. पे. नाम. शुक्लपक्षकृष्णपक्षतिथि स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासयने असासय चैत्यतण; अंति: नय० लीला लच्छी लहत, गाथा-४. ५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, गच्छा. विजयप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रेमस्थेमनिबद्ध; अंति: शश्वद्विवेकार्थिनः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. अनंतजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. विवेकसुंदर, सं., पद्य, आदि: यस्यज्ञानमनंतभावविषय; अंति: चित्तप्रदीपद्युतिः, श्लोक-४. ७. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: भालतिलक भर हीर, गाथा-१, (वि. ४ वार
बोलेजाने का उल्लेख है.) ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीकमंडण पाय प्रण; अंति: द्यो सुखकंदा जी, गाथा-१. ९. पे. नाम. महावीर दिवालीदिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: रत्नवि० सरसती वरवाणी,
गाथा-४. १०. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन निवारी, गाथा-४. ११. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुजने वाल; अंति: शांतिकुशल सुखदाताजी, गाथा-४. १२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आसो चैत्र आंबिल ओली; अंति: माणिक्य० जयजयकारी जी, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पासदेवा करुअसेवा; अंति: केरी संघ
आस्या पूरणी, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१४. पे. नाम संगीतपाठमयी पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२आ- १३अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि ट्रेंड़ें कि में, अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुद्धसंति, अंतिः सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१.
१६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्म, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंतिः करतुं अधिक देवया, गाथा-४. १७. पे नाम. विजयरत्नसूरि स्तुति, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः नृपतिनाभिकुलांचरभास, अंति: गणाद्विपती श्रियम् श्लोक-४.
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१८. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण पुन्य, अंतिः शांतिकुशल गुण गावाजी, गाथा-४.
१९. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण
मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि सत्तरभेदी जिनपूजा, अंतिः मानविजय० सिद्धाइ जी, गाथा ४. २०. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण.
मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर, अंतिः बुद्धिविजय जयकारी जी, गाथा-४. २१. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., पद्य, आदिः उद्यत्सारं शोभागार; अंति: तारा भूत्यै स्तात्, श्लोक-४. ५६१८४. (+) अयवंतीशुकमाल महामुनि चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८वी, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. हैदराबाद, प्र. मु. अखैचंद, पठ, श्राव. नवल दफ्तरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ले.सं. हेतु मात्र १७४ का उल्लेख है. लिखावट से प्रति १९वी की लगती है. संभव है कि सं.१८वी में लिखी प्रत की नकल हो., संशोधित, जैदे., (२५X११.५, ११३०).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्यसुहस्ति क; अंतिः शांतिहरख सुख पावै रे, ढाल - १३, गाथा - १०४.
५६१८५. (०) आठकर्म १५८ प्रकृति आदि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १४X४३).
१. पे नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार पृ. १अ ४आ, संपूर्ण
मा.गु., गद्य, आदि: अट्ठावनसउ १५८ प्रकृत; अंतिः खपावितउ मोक्ष जाई.
२. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: किसी ते सिधिलोकनइ, अंति: बोलइ पूरुं पालिडं, (वि. निगोद, सिद्धिस्थिति, ७ भय, १४ गुणस्थानक, पच्चक्खाण आदि बोल- विचार संग्रह )
५६१८६. हरिचंद्र रास- खंड १ से ३, संपूर्ण वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८, प्रले. मु. खेम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४११.५,
१८४६६).
हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पासजिणेसर पाय नमु; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. सर्वगाथा - ४६३ व सर्वढाल - २६.)
५६१८७. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. शिवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X१२, १० - १५x२६-३२).
महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंतिः श्रीहर्षवधामणां, ढाल - १०, गाथा- १२५.
५६१८८. सुक्तमाला, संपूर्ण वि. १८७४ वैशाख शुक्ल, १ बुधवार, मध्यम, पृ. ८ प्रले. ग. खुशालविजय (गुरुग. प्रीतविजय): गुप. ग. प्रीतविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); पं. प्रेमविजय गणि (गुरु पं. चतुरविजय गणि); पं. चतुरविजय गणि पठ. श्राव. वीरचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५X१२, १६x४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
८७ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन,
वर्ग-४, श्लोक-१७६. ५६१८९. प्रश्नोत्तरी बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६४११, १३४२७).
प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारमाहि पहिलापदना; अंति: सूत्रमाहि कह्यो छे, प्रश्न-५३. ५६१९०. छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. विजयलाल; अन्य. श्रावि. रतनबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १२४३८).
६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: धरम करसे ते सुखी थशे. ५६१९१. २४ जिन शकुनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. जिनविजय (गुरु ग. शांतिविजय); पठ. श्रावि. हरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. एक चक्र में ६ के क्रम से ४ चक्रों में २४ जिननाम दिये गये हैं., जैदे., (२५४११.५, ७४२५).
२४ जिन शुकनावली, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ सीघ्र कार्य सिद्धि; अंति: औषध की गुण थास्यइ. ५६१९२. (+#) नवतत्व बोल, गुणस्थानक विचार व अनागतचोवीसी नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३४). १. पे. नाम. नवतत्व बोल, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्वमांहि रूपि; अंति: पणवणामां कह्य छे. २. पे. नाम. गुणस्थानक विचार, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे चउदगुणठाणानाम; अंति: श्वेतांबरी माने छे. ३. पे. नाम. अनागत चोवीस जिननाम, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेणिकनो जीव; अंति: सिद्धथी आवस्ये. ५६१९३. (+) कलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०७, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४२).
कलावतीसती चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: कविजननी करजोडिनै; अंति: नवमी ढाल
भणीजै, ढाल-९. ५६१९४. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. जीव गतागती के ५६३ भेद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
जीवगतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ४२मां जाए११, (पू.वि. तीर्थंकर ३८ भेद प्रसंग से है.) २. पे. नाम. १४ गुणठाणा २१ द्वार बोल, पृ. ६आ-१२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. मंगलापुर, पठ. श्रावि. जमनाबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य.
१४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखण २; अंति: छे माटे भेलो समझवो. ३. पे. नाम. ५६३ जीव भेद, पृ. १२आ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना ५६३ भेद लख्या; अंति: जीवना ५६३ भेद थीया. ५६१९५. श्रीमती चोढालियो व निर्मोहीराजा पंचढालियो, संपूर्ण, वि. २०२०, चैत्र कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १५४३६). १. पे. नाम. श्रीमती चोढालीयो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
श्रीमती चौढालीयो, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोबीसु जिणवर नमुंसत; अंति: लालचंद० मोन तारज्यो,
___ढाल-४, गाथा-८६. २.पे. नाम. निर्मोहीराजा पंचढाल्यो, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.. निरमोही ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोही गुण वरणमु; अंति: रतनचंद ढाल प्रसीधरे,
ढाल-५. ५६१९६. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, १५४४७).
व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशदं; अंति: हितं परलोके सुखं.
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५६१९७. पार्श्वजिन व सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १८२४, पौष शुक्ल ७ मध्यम, पृ. ६-१ (१) ०५, कुल पे. २, ले. स्थल छनीआर, प्रले. मु. जीतहंस (लोटीपोसालगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १४४४३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
"
.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि (-); अंति: नेमांवीजे जेकार करके, ढाल-१५, गाथा-१३७, (पू.वि. ढाल -४ गाथा- १ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
-
मु. कुशलविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सीधचक्र तुमे सेवयो; अंतिः कुशलविजय०हेज रे लाला, गाथा ११. ५६१९८. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७-१ (२) ०६, जै., (२५.५४१२,
יי
१२X३०).
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरि भजना करूं आपो अंति: इम
,
नेमविजय जयकारे, ढाल-१५, गाथा-१३७, (पू.वि. ढाल -२ गाथा- १ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण तक नहीं है.) ५६१९९. आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५.५x११.५, ११४३३)पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: (-), (पू.वि. डाल-८ की गाथा-५ अपूर्ण तक है. )
५६२००. (+) चौद गुणठाणा एकवीस बोल, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण शुक्ल, २ अधिकतिथि, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव. गोविंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५X१२, १३x४५-४८). १४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार१ लखणद्वार२; अंति: तेरमै की अगति१४. ५६२०१. (#) स्तवन, स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, २०x४२).
१. पे. नाम. अतीत अनागत वर्तमानजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
अतीत अनागत वर्तमान जिनचौवीसी स्तवन, वा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद परमात्मा; अंतिः देवविजय जाउं भामणैई, ढाल २, गाथा २०.
२. पे. नाम. महाविदेह वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, ग. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह तणा जिनवीस अंतिः देवविजय वाचक गुण गाय, गाथा-८.
३. पे. नाम, सचितअचित काल प्रमाण विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी, अंतिः नयविमल कहे सज्झाय, गाथा - २५.
४. पे. नाम. अंतरीक्ष पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद - अंतरिक्ष मंडन, मु. माणिक, पुहिं, पद्य, आदि: (१) तोसुं दिल लागा हो. (२) तूं ही असाषाढा दिल अंति: माणिक० पास जिणंदा, गाथा-२.
५. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमल गिरिवर शिखर सुं; अंति: नय० व निवाररे, गाथा - ९.
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६. पे. नाम. काया जीव गीत, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभवनगर सोहामणुं, अंति: नयविमल० अविचल ठाम, गाथा ५.
७. पे. नाम. जिनप्रतिमा अधिकार सज्झाय, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण.
जनप्रतिमास्थापना सझाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि जिन जिन प्रतिमा वंदन, अंति; जस० किजै तास खाण रे, गाथा - १५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ८.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोज्ये मन; अंति: सहजसुंदर० सुख दायरे,
गाथा-६. ९. पे. नाम. दुर्गति सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा साहिब सुगुण; अंति:
नयविमल० गुण तव आया, गाथा-९. १०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: पास रंग लागा चोल रंग; अंति: नयविमल० दिन अब जग्गा, गाथा-५. ११. पे. नाम. जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-लंछनगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ १ गज २ हय ३ कपि; अंति: तणो
नय जपे निसदीस, गाथा-१. १२. पे. नाम. चौवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धणुंमानदेह; अंति: नयविमल०
शिवपुरी साथ, गाथा-१. १३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शिव सुखदायक सिद्धचक; अंति: तणो नयविमल कहइ सीस, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव भगतिसुं भविजन; अंति: नय समकित सुखकाराजी, गाथा-४. १५. पे. नाम. शेजय आदिनाथ स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिणेसर सूद्धाचार; अंति: प्रीतिविमल दुख हरणी,
गाथा-४. १६. पे. नाम. उत्तम बोल सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल,
गाथा-१६. १७. पे. नाम. धर्मनाथ स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख दायक सुरतरुकं; अंति: नयविमल दुःख हरणी,
गाथा-४. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब कछु चेतीइं; अंति: कहे नय निरधारी, गाथा-५. १९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसीमधर वीनती सुण; अंति: नय०कहु क्या बहु
तेरा, गाथा-५. २०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सीमंधर सुसनेहा; अंति: नयविमल निसदीस स्वामी, गाथा-१८. २१. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन मुझ तपो; अंति: होइ सदा नय वंदता ए, गाथा-१२. २२. पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अगनिकुंडमां निज तनु; अंति: ज्ञानविमल
गुणमाला, गाथा-५. २३. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समरि जीव एक नवकार; अंति: प्रीतविमल आठइ
विछोडी, गाथा-६. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुण्य कर पुण्य कर; अंति: पदवी
वरइ प्रीति भाखइ, गाथा-६. ५६२०२. विचाररत्नसार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२५४१२, ११४३३).
विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
प्रश्न १७ अपूर्ण तक लिखा है.) ५६२०३. (#) चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा
पत्रांक नहीं लिखा गया है. अनुमानित पत्रांक अंकित किया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १५-१८४२८-३१).
चंद्रराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ से ढाल-१५ तक है.) ५६२०४. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४३७). १. पे. नाम. बीस बोल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
२० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले; अंति: तीर्थंकरगोत्र बांधे. २. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथा बोल संग्रह, पृ. १आ६आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढि; अंति: घणी किवी तिण करम,
प्रश्न-९७. ५६२०५. स्तवन, सवैया व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४,
ले.स्थल. जयपुर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१०२८) कर गावड कर कुवडि, (१०२९) तैलादक्षे जलादक्षे, (१०३७) लेखक लिख्यो हद चुपसु, दे., (२७४१२.५, १३४४९). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: गणि सीस
क्षमाकल्याण, अध्याय-२४, गाथा-१४४. २. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ वृद्धस्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ से–जेजी रहि; अंति: ध्रमसी०तिणआतम तार्या,
गाथा-१४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: छोटे छोटे गुलनके सुर; अंति: देवीदास० हि विचारवो, सवैया-१. ४. पे. नाम. अमरसुंदरी गोली अनुपान विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
औषधवैद्यक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६२०६. (+) चंद्रलेखा चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). चंद्रलेखा चौपाई, मु. हर्षमूर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १५६६, आदि: सरसति समरउं स्वामिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा
१०८ अपूर्ण तक है.) ५६२०७. नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२, १४४३७).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकि सम्यग; अंति: (-), (पू.वि. संवर तत्त्व अपूर्ण तक का
पाठ है.) ५६२०८. नवपद खमासण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१२, १२-१५४३०-३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
नवपद खमासणा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती सम्यक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम
पद का वर्णन मात्र है.) ५६२०९. (+) कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५,११४३३-४०).
कलियुगरास, वा. पुण्यहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी वीर जिणेसर; अंति: पुण्यहर्षउपशम रसभरी, गाथा-१०१. ५६२१०. (+) साधुवंदना, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १२४३३-३६).
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८७ अपूर्ण तक
५६२११. जीव बोल थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६४११, ७४२७-३०).
२२१ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव २६ गइ ५ इंदि ३; अंति: आहारी अणआहारीकमा. ५६२१२. (+) आत्म भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., ., (२५४११.५, १२४३३).
आत्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धं आ भावना रोज; अंति: प्रभु पूरति करसे सही. ५६२१३. (+) अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४२८).
अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पणमीइं विश्वहित; अंति: देवचंद्र० सुप्रतीता, गाथा-४९. ५६२१४. (+#) चौवीसजिन चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१-३५). १.पे. नाम. चौवीसजिन नमस्कार स्तुति, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रह ऊगमते दीह, (पू.वि. सुपार्श्वजिन चैत्यवंदन से
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुगति हरण शिवसुख करण; अंति: राजरत्न०आज अधिक आणंद, गाथा-१. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कठिन करम मेली काठिया; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: दुरित दल दुकाला; अंति: होउ मई ज्ञानधारा, गाथा-३. ५६२१५. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, १३४३१).
पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि पडि; अंति: सामायक पारी सांभले. ५६२१६. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-९(१ से ९)=५, जैदे., (२६.५४१३, १७४४६).
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., नमिजिन स्तवन गाथा ११ अपूर्ण से है व नेमिजिन स्तवन गाथा ११ तक लिखा है.)
स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५६२१७. नववाड सज्झाय व दीवाली स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. खेरालु,
प्रले. पं. सौभाग्यचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४२९). १.पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरतन० जाउं भाणमें,
ढाल-१०, गाथा-४३. २. पे. नाम. दिपावलीपर्व स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए दिवाली पर्व पनौतु; अंति: सकल संघ आणंदा जी, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५६२१८. (+) विक्रमराजा रास, संपूर्ण, वि. १८८३, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०३, ले. स्थल. सांधू, प्रले. मु. मोहनविजय, मु. गणपतविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); गुपि. पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय) पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय),
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले, श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२०४९) भमकृष्टि वकौध्यानां जैदे., (२५X११,
""
१४X३९).
विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८३०, आदि: अमल कमल सम नयन वूग; अंति भांण० ऋद्धि विसालाजी, ढाल १७४, गाथा- ५७९७, ग्रं. ७४४०.
५६२१९. समयसार नाटक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७९, ले. स्थल, नृपवप्न, प्रले. पं. राजसी ऋषि (गुरु पं. धर्मसी ऋषि); गुपि. पं. धर्मसी ऋषि, पठ. मु. चांपसी ऋषि (गुरु पं. राजसी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४११.५, ५X३४-५०).
समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि : करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: नामम परमारथ विरतंत, अधिकार- १३, गाथा- ७२८, ग्रं. १७०७.
समयसार नाटक-टबार्थ, मु. दानरुचि, मा.गु., गद्य, वि. १८०१, आदि: जीव करम करे छे ते; अंति: वरीजैन मतिलक्ष्मी.
५६२२०. (+) चंद्रराज रास, अपूर्ण, वि. १७९९, कार्तिक शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १०४ - १ (१) = १०३, ले. स्थल. पादरा,
प्रले. पं. चंद्रचरं (गुरु ग. जसविजय); गुपि. ग. जसविजय (गुरु मु. जयविजय ); मु. जयविजय (गुरु ग. सुंदरविजय); ग. सुंदरविजय (गुरु ग. अमरविजय); ग. अमरविजय (गुरु पंन्या. सुमतिविजय); पंन्या. सुमतिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६ ११.५, १५X३६-४३).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७८३, आदि (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा - २६७९, (पू.वि. डाल- १, दूहा- ३ अपूर्ण से है.)
५६२२१, (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६८ माघ शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ८९ ले स्थल, बाहोगे, प्रले, विशनजी भाणजी जोशी, पठ. मु. आणंदशेखर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (७७३) अदृष्टिदोषान् मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२५.५X११.५, ७-१३X३०-३४).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कविय तणी, अंति: लहेशे ज्ञान विशालाजी, खंड-४, गाथा- १८२५.
५६२२२. (+#) उपदेश रास, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल १, श्रेष्ठ, पृ. ८७+१ (६७) = ८८, प्रले. ग. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रशादात्, संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १४X३७-४१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद, अंति: कहतां विचारवुं, वर्ग-४, श्रोक- १७६.
५६२२३. (+#) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. १७३०, पौष शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ९४- ३१(१ से ३१)+१(३४)=६४, ले.स्थल. कुकडेसर, प्रले.मु. सुखचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्री. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैवे. (२५.५४११.५, १८४३९-४८).
रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि (-) अंति जपै सदाहर्ष वधामणी, अधिकार-४, गाथा-३१९१, ग्रं. ४३७५, (पू. वि. ढाल - २१ अपूर्ण से है.)
५६२२४, (+) चंद्रराजा चौपाई, संपूर्ण वि. १७६८, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१, ले. स्थल, सिरिआरीनगर, प्र. मु. नित्यविजय गणि (गुरु पं. गुलालविजय गणि); गुपि. पं. गुलालविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि) पं. रंगविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १६x४७-५०). चंद्रराजा राम, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरी, अंति: विद्यारुचि०सुप्रसन्न, खंड-६, गाथा - २५०५, ग्रं. ३०५५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६२२५. (#) मुनिपतिराजर्षि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९२७, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ५२, ले.स्थल. थोभमध्ये (मेवसा,
प्रले. पं. विनयचंद (गुरु मु. दयासुख, खरतरगच्छ); गुपि.मु. दयासुख (गुरु मु. अखेरुचिजी, खरतरगच्छ); मु. अखेरुचिजी (गुरु मु. आणंदहर्ष, खरतरगच्छ); मु. आणंदहर्ष (गुरु मु. सोभाग्यविजय, खरतरगच्छ); मु. सोभाग्यविजय (गुरु मु. कमलकिशलजी गणि, खरतरगच्छ); मु. कमलकिशलजी गणि (गुरु मु. कुसलमूर्तिजी गणि, खरतरगच्छ); मु. कुसलमूर्तिजी गणि (गुरु मु.सुमतिधर्मजी गणि, खरतरगच्छ); मु. सुमतिधर्मजी गणि (गुरु उपा. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); उपा. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ११४३४).
मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वनाथ; अंति: सिद्ध पामस्ये. ५६२२६. जंबूकुमार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-४(१ से ३,८)=५०, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भवदेव की दीक्षा प्रसंग से जंबूस्वामी
अधिकार तक के बीच-बीच का पाठ है.) ५६२२७. (+#) समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७४९, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. द्वीपबंदर, प्रले. ग. सदानंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, १४४५६). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: नाममइ
परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७. ५६२२८. (#) देवराजवछराज रास, संपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. पालणपुर,
पठ. मु. मनजी ऋषि (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, लुंकागच्छ); मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. चापसीह ऋषि, लुंकागच्छ); मु. चापसीह ऋषि (गुरु गच्छाधिपति जगजीवन, लुंकागच्छ); गच्छाधिपति जगजीवन (गुरु आ. शिवजी, लुंकागच्छ); पठ. मु. भीमजी ऋषि; मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १८४३९-४७). देवराजवछराज चौपाई, मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: अकलगति अंतरीकजिन; अंति: नेमिने सुख
विस्तारि, ढाल-६३, गाथा-१८२५. ५६२२९. श्रीपालराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८९५, भाद्रपद कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ४५-४(१,८ से १०)=४१, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात, जैदे., (२५.५४१२, १३४३०). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: जिनहरष० लुणिज्यो रे, ढाल-४९,
गाथा-८५२, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ दुहा-१ अपूर्ण से ढाल-८ दुहा-५ अपूर्ण तक व ढाल-१२
दूहा-८ अपूर्ण से है.) ५६२३०. (+#) विमलमंत्री प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-१०(४० से ४९)=४१, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ११४३४-४५). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: (-),
(पू.वि. खंड-७ गाथा ५५ अपूर्ण तक व खंड-८ गाथा ३० अपूर्ण से गाथा ५९ अपूर्ण तक है.) ५६२३१. चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदे., (२५४११, १५४२७-३२).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: आणंद लील
विलास, खंड-४, गाथा-८६२, ग्रं. ११२०. ५६२३२. (+) षडावश्यकसूत्र- बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्र.वि. यह प्रत १११२ में लिखित प्रत
की प्रतिलिपि होने की संभावना है. क्योंकि प्रतिलेखन वर्ष में १११२ वर्षे लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १८४४९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि
श्रीमहावीर; अंति: कीधो छठी गाथा भंडारी.
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५६२३३. (+) नवकाररास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X११.५, १२३२).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
राजसिंहरत्नवती कथा. मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि सारद शुभमतिदायिनी, अंतिः भणे सकल संघ मंगल करु, ढाल - २४, गाथा - ६०५, ग्रं. ८८५.
५६२३४. चोवीसदंडकभेद बोल, संपूर्ण, वि. १८२३, पौष कृष्ण ८, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जीवे. (२५.५४११, १७४३२-३६). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: ते अनेक सिद्ध कहीयई. ५६२३५. हंसराजवछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८ - १ (१) = २७, जैदे., (२७X१२, १६x४३).
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हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१ गाथा १३ से खंड -३ गाथा १०३ तक है.)
५६२३६. (४) पंचदंड चौपाई व वेतालपचीसी कथा, संपूर्ण, वि. १८११, कार्तिक शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रयाग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, २०x४८).
१. पे नाम. पंचदंडी, पृ. १-१०अ संपूर्ण
पंचदंड चौपाई, मु. राजऋद्धि, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि जव पास जीराउलो अंतिः पामै अष्टमहासिधि,
ढाल - ५.
२. पे. नाम. वेतालपचीसी कथा, पृ. १०अ २७आ, संपूर्ण.
वैतालपच्चीसी कथा, मु. देवशील, मा.गु., पद्य, वि. १६१९, आदि: सरसति सामनि पाय नमि; अंति: कथा कहितां दिणंद, गाथा- ८२१.
५६२३७. द्रव्यगुणपर्याय रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५- १ (९) = २४, दे., (२६x१२, ९x२६-२९).
द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: श्रीगुरु जितविजय मन, अंति: (-), ( पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १५ गाथा - ३ तक है.)
५६२३८. रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. विक्रमनयर, प्रले. सा. जसु (गुरु सा. अमरा); पठ. सा. अमेदा, गुपि. सा. अमरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६५३७).
रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंतिः कनकनिधान० सो वीर, ढाल- २४.
५६२३९. (+४) मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५४ आश्विन शुक्ल २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. मीलसावावडी, प्रले. मु. पदमा ऋषि (गुरु मु. कान्हजी ऋषि); गुपि मु. कान्हजी ऋषि (गुरु आ. धनराज ऋषि); आ. धनराज ऋषि; पठ. मु. वीसना, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. लो. (९९९) जादूसं पुस्तकं द्रीष्टा, जैवे. (२७१२. १७४६२).
मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३, गाथा- ७४५, ग्रं. ११००.
-
५६२४०. (+) मंगलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. रजलांणी, प्रले. पं. मनरूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२, १६x४१).
मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: प्रहउठी नित प्रणमीयै; अंति: लक्ष्मीहर्ष० प्रमोद,
ढाल- २७.
५६२४१. जंबूस्वामी चरित्र का बालावबोध व औपदेशिक लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. १८, कुलपे. २, ले. स्थल. कुकडेसर, प्रले. पं. मुक्तिहर्ष पठ. मु. भाग्यचंद (गुरु पं. मुक्तिहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६.५X१२, १२x२९).
१. पे. नाम. जंबूस्वामी चरित्र बालावबोध, पृ. १अ - १८ अ, संपूर्ण.
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक कथा, मा.गु, गद्य, आदिः सप्रभावं जिनं नत्वा, अंतिः भवंति भवता सदा.
२. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १८अ, संपूर्ण.
लोक संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६२४२. (+) श्रीपालराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३०-३५).
श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१९ दुहा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५६२४३. (+) लोकनालिद्वात्रिंशका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(४)=१७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४२३-२६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-७ नहीं है व ३० अपूर्ण तक है.) ।
लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमदाप्तं प्रणम्या; अंति: (-). ५६२४४. (+) प्रबोधचिंतामणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. अमदावादनगर, प्रले. मु. शिवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४३४).
प्रबोधचिंतामणि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं अरिहंत; अंति: परमानंद एहिज इष्ट. ५६२४५. (#) जंबूगुणरत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९६३, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, २२४६३). जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: शासनपत वृधमांननो भजन; अंति: सेवो
थाय छे कल्याण ए, ढाल-३५.. ५६२४६. सुरसुंदरीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. मु. सदाभक्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, २०४४७-५०). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सय लहे आज; अंति: धर्मवर्धन०
उमंगैजी, खंड-४, गाथा-६१८. ५६२४७. मौनएकादशी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३५).
मौनएकादशीव्रत कथा, मु. आलमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: च्यार तिर्थंकर सासता; अंति: आलमचंद०
गुणगावे छे, ढाल-१३.। ५६२४८. चंद्रलेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १६x४७).
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२१
गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५६२४९. (+) तेजसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१७, भाद्रपद कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. आडा ग्राम, प्रले. मु. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६४४२). तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: कुसल सहु
मनोरथ फले, गाथा-४११. ५६२५०. (4) पंचपरमेष्ठिमंत्र स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८२४, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. १४-२(२ से
३)=१२, प्रले. मु. मंगत ऋषि (गुरु मु. शितल ऋषि); गुपि. मु. शितल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७.५४११, १२४५०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा
देज्यो नित, गाथा-१३, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठिमंत्र स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भवि० गुरु ग्यानराजाण; अंति: नित्य नवकार गुणीजइ, (अपूर्ण,
पू.वि. श्लोक १ बालावबोध का पाठांश नहीं है.) ५६२५१. (#) वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १२४२९).
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: शक्ति प्रमाणे करवो,
ढाल-२०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६२५२. (#) बारह व्रत रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४२-३०(१ से २८,३३ से ३४)=१२,प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १७४५०). १२ व्रत रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल- ४९,
गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-५६, गाथा-३ तक व ढाल-६०, गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-७५, गाथा- १७ अपूर्ण तक है.) ५६२५३. (-#) आत्मदमन कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १८४४६).
आत्मदमन कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कोइक सनीवेसने विषइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ
___ "संभूतनो संबंध पाछा लोए" तक लिखा है.) ५६२५४. चैत्रीपुनमपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६.५४१२.५, ९४२५).
चैत्रीपूर्णिमा पूजा विधि, मा.गु.,हिं.,सं., गद्य, आदि: प्रथम पवित्र स्थानके; अंति: र्थयात्रा फलं लभेत्. ५६२५५. (#) कुमारपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-९(१ से ९)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४५६). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१७ से ढाल-३५ गाथा-६
अपूर्ण तक है.) ५६२५६. (+) श्राद्धप्रायश्चित्त विधि, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. श्रीनेमनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२९).
श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंति: क्षमाकल्याणसाधुना. ५६२५७. (+) षडशीति कर्मग्रंथ का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४१).
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ का
बालावबोध अपूर्ण तक है.) ५६२५८. (+#) पर्युषण स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३०, प्रले. पं. भोजविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४-१८४३९). १. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजिनेसर; अंति: चउवीहसंघ सुखदेवीजी, गाथा-४. २. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुधविजय जयकारी जी,
गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पून्ये; अंति: शांतिकुशल गुण गाइजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिनेसर अलबेल; अंति: भाखे ज्ञानविजयगुणगाय, गाथा-४. ५.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: चक्क महंताण कल्लाणगं, गाथा-४. ७. पे. नाम. पंचमीस्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धवधु केरो सिणगार; अंति: पुर आस्या सवि मन तणी,
गाथा-४. ८. पे. नाम. शांतिजिन थुइ, पृ. ३आ, संपूर्ण.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीई; अंति: साभलो ऋषभदासनी वाणी,
गाथा-४. ९.पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रय उठी वंदो ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण
गाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. पंचतीर्थस्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण..
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तसै देव अंबाई, गाथा-४. १२. पे. नाम. पंचतिर्थी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पंचतीर्थजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आदि हि आदिजिनेसर; अंति: जिनशासन कल्याणजी, गाथा-४. १३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो तिरथ; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिनेसर त्रिभुवन; अंति: नो मेरु लहे सुख वृंद, गाथा-४. १५. पे. नाम. अजितनाथ स्तुति, प्र. ६अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजया विजयानंदन नमो; अंति: विजय लहइं सकला सुकला,
गाथा-४. १६. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ मु; अंति: पुन्यरूची० दोलत करें,
गाथा-४. १७. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. पद्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जयानंदन दीपतो एवासप; अंति: ए पदमसागर सुख दायतो,
गाथा-४. १८. पे. नाम. वासुपूज्य स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयवंत जयासुत वासुपुज; अंति: मेरूविजय गुण गाय,
गाथा-४. १९. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. नवपद स्तुति-आयंबिल तप, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर भुवण; अंति: मुनिजन महिमाछाजे
जी, गाथा-४. २०. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. धरमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमा मोटु परव; अंति: इम धरमई मंगल माल, गाथा-४. २१. पे. नाम. पर्जूसणापर्व स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमांहि सार; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार,
गाथा-४. २२. पे. नाम. राणपुर स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-राणकपुरमंडन, पं. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राणपुर मंडण दुरगति; अंति: भीमविजय जय
कारीजी, गाथा-४. २३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तुति, पं. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर अति अलवेसर, अंतिः करज्यो संघ कल्यांणजी,
गाथा-४.
२४. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मु. सेवक, मा.गु, पद्य, आदिः सकलसुरासुर सेवें जेह, अंतिः जिन थुणतां गुण घणो गाथा ४. २५. पे नाम, औपदेशिक स्तुति, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि उठी सवेरा सामायक, अंतिः भावप्रभसूरि० भोगोजी, गाथा- ४.
२६. पे नाम. सुमतिनाथ स्तुति, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण.
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सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोटो ते मेघरथ राय रे, अंतिः ऋषभ० रीख्या करे ए. गाथा ४. २७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. धीरविजय, मा.गु, पद्य, आदि: त्रगडे बेठा त्रिभुवन, अंतिः सुख संपद लहे चंग जी, गाथा-४.
२८. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ९-१०अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: फलविदीपुर मंडण फलदाई; अंति: र श्रीसिंघने सुखकार, गाथा-४. २९. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करें जिन आगल, अंति: नय० कोडी कल्याण जी, गाथा- ४.
३०. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीरजिणेशर अनुसर, अंतिः सीद्धाई संगट हरें, गाथा-४. ५६२५९. नवपदओलीकरण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., ( २६.५X१२, ११x२८). नवपदतप ओली आराधन विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि प्रथम आसोज सुदी ७ अथ अंति: (-), (पू.वि. नवम दिन की
विधि अपूर्ण तक है.)
५६२६०. (#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १५८७, पौष कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. अहम्मदावाद, अन्य. वा. कमलमेरू गणि (गुरु उपा. बुद्धिमेरू गणि, अचलगच्छ); गुपि उपा. बुद्धिमेरू गणि (गुरु आ. गुणनिधानसूरि, अचलगच्छ);
आ. गुणनिधानसूरि (गुरु आ भावसागरसूरि, अचलगच्छ) आ. भावसागरसूरि (अचलगच्छ); अन्य. सा. मानी (गुरु सा. कल्याण); गुपि. सा. कल्याण, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२७x१२, १३x४४).
साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय गुरूआ सिद्ध; अंति: शुद्ध करू गीतारथ सोई, गाथा - २५०. ५६२६१. (+#) तिलोकसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, दे. (२६.५४११.५, १९४५५-६०%
तिलोकसुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर आदेकरी, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मिच्छामि दुक्कडं धायो रे" पाठ तक लिखा है.)
"
५६२६२. (*) व्याकरण व चतुः शरणप्रकीर्णक का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले. स्थल, साहपुर, प्रले. श्राव. तापीदास साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, १३X३०-३६). १. पे, नाम, व्याकरण, पृ. १अ, संपूर्ण.
व्याकरण अपूर्ण व छूटक पत्रे, सं., प्रा., मा.गु., पण., आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. चतुःशरणप्रकीर्णक का बालावबोध, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण.
चतुः शरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुं छ आवश्यकता, अंति: मुक्तिनां सौख्य लहड़, ग्रं. ३४७. ५६२६३. (+) जीवठाणा व चौदजीवस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२- २ (५ से ६) = १०, कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित, दे., (२५.५४११.५, १६४४३).
*"
१. पे. नाम. जीवठाणा विचार, पृ. १आ- १२आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
मा.गु., गद्य, आदि: जीवठाणानां नाम१; अंति: तिसुहं सुहंपत्ता, (पृ.वि. पाठ- "भेदत्रिकसंयोगि १० चोक ५ पंचसोयोगि १
छ" से "मोहनीकर्मनी २८ प्रकृतिनो उदय" तक नहीं है.) २.पे. नाम. चौद जीवस्थानक विचार, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-शतक- २६ प्रथम उद्देसे १४जीवस्थान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवतीशतक २६ उद्देसो;
अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "मनुष्य वेदनीनो बंध बंधी बधइं" तक है.) । ५६२६४. (+#) शत्रुजय रास, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सलुंवर, प्रले. पं. पन्नालाल,
पठ.सा. श्रृंगारकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव जी के मंदिर में लिखा., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२,११४२२). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्री रसेसर पाय नमी आ; अंति: सुणतां
आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११४. ५६२६५. १७० जिनस्थानक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, दे., (२६४११.५, १३४३१).
२४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५६२६६. (+#) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१०(१ से १०)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४५४).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ से अंतिम
___ढाल-२९ की प्रशस्ति प्रारंभ तक है.) ५६२६७. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
जैदे., (२६.५४१२, १२४४५). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीदीनदेववंदन विधि, प्र. १अ-९अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति:
विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपुज्य जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५६२६८. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७.५४१२.५, १०४३०). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से नाणाईअट्ठ स्थूल
अपूर्ण तक है) ५६२६९. भगवतीसूत्र बीजक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२, १७४२७-४७).
भगवतीसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक- ३३, उद्देश- ११ तक है) ५६२७०. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. आडीसरनगर, प्रले.मु. पद्मविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुन्थे
अधिक प्रमोद, ढाल-११, गाथा-२२०. ५६२७१. (+#) श्रीपालराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-६(१ से २,९ से १२)=८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १३४४३).
श्रीपालराजा चरित्र *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल- ३, गाथा- ३० अपूर्ण से ढाल- ४, गाथा-५३
__ अपूर्ण व ढाल- ५, गाथा- ५३ अपूर्ण से ढाल- १९, गाथा- ५७ अपूर्ण तक है.) ५६२७२. (#) अवंतीसुकुमाल चौपाई व महावीरजिन पारगुं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तन नगर,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३९). १.पे. नाम. अवंतीसुकमालरी चोपई, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्यसुहस्ति क; अंतिः शांतिहरख सुख रे, ढाल - १३, गाथा - १०५.
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२. पे नाम वीरस्वामीजीनुं पालणु, पृ. ७अ ८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन पारणुं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि माता त्रसलाई पूर, अंतिः जय कहे थाई लीलालहेर,
गाथा - १८.
५६२७३.
(+#) स्तुति व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, २२४४८).
१. पे. नाम. पंचमीनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करि मेरुशिखर, अंतिः हरजो विघन अमारा जि, गाथा-४. २. पे. नाम. १४ गुणठाणानी सझाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण
१४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. नेमिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सरसती सामिनि यो मतः अंतिः नेमिवि० पामो सु जगीस,
गाथा - ३३.
३. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वीरमगांम, प्रले. मु. प्रेमचंदजी (गुरु मु. ताराचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन वसि करवुं दोहिलू; अंति: सीस कुंअर पभणंत, गाथा - १३. ४. पे नाम, जीवनिरूपण सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण
जीवनिरूपण सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंशि कर० बापडलारे एक अंतिः ऋद्धिविजय सो छूझे रे,
गाथा- ७.
५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं, पद्य, आदि जब लगइ विषय विषया न अंतिः लब्धिविजय० वेलि कटि,
गाथा-५.
६. पे नाम, उपधानविधि स्वाध्याय, पृ. ३अ संपूर्ण
उपधानविधि सज्झाय, मु. मेरूविजयजी म., मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर वीर को अंतिः जय० वधावें शिव ऋद्धि, गाथा- १५.
७. पे. नाम. खादिमस्वादिम स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान सज्झाब - दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमु सरसति, अंति: दिन दीपड़ तपगच्छ
नाह गाथा - १६.
८. पे. नाम. सुलसामहासती सझाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सुलसामहासती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, पद्य, आदि: अंतिः नामे नवनिधि थायजी, गाथा ८. ९. पे. नाम. चंदनबालामहासती सज्झाच, पृ. ३- ४अ संपूर्ण
चंदनबालासती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीपति शतानिक नृप; अंति: खमावतां नाम मंगलमाला, गाथा-८.
१०. पे नाम. मनोरमासती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनगारी मनोरमा शेठ, अंतिः शिवसुंदरी ते पावे रे, गाथा-५.
११. पे. नाम. नंदासती सज्झाय, पृ. ४अ संपूर्ण.
गाथा - ११.
१३. पे नाम, आत्मोपरि स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण
मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बेनातट नयरे बसे व्यव; अंति: हे जागती जास जगीश रे, गाथा - १०. १२. पे. नाम. गुरू ३३ आशातना स्वाध्याय, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण.
३३ आशातनावारक सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीगुरुनी करि सेवता, अंतिः महासिद्धने नवनिद्धि,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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औपदेशिक सज्झाव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि ते सुखिया रे भाइ ते अंतिः कहे हुं तस बंदा रे,
गाथा - ९.
१४. पे. नाम. असमाधिक स्थानक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
२० असमाधिस्थान सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, पद्य, आदि जिन आगम सांभली चित्त, अंति; जानविमल गुण सुझे रे, गाथा- ११.
१५. पे. नाम. २१ सबला सज्झाय, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
सबलदोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कहुं हवे सबलनी वारता; अंति: चरण कलाविधु विमला रे, गाथा - १५.
१६. पे. नाम. २९ पापश्रुत सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पाप श्रुतिराजवारक सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धनि२ ते मुनि धर्मना, अंति: ज्ञानविमल जयकारीजी,
गाथा - १५.
१७. पे. नाम. ३० महामोहनीय परिज्ञान सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, , संपूर्ण.
३० महामोहनीय सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन जाणी आणी, अंतिः विस्तारथी अधिकार,
गाथा-५.
१८. पे. नाम. ८ गुण सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्ष तणा कारण ए दाख, अंतिः ज्ञानविमल० कामें रे,
गाथा - ९.
१९. पे. नाम. ३२ योगग्रह सझाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
३२ योगसंग्रह सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि भवियण प्राणी रे जाणी, अंतिः ता उदय सुख लहे
सासता, गाथा - १०.
२०. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव, पृ. ६अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब कछु चेतीइं; अंति: यदा करो सवजन सुखकारी, गाथा-५. २१. पे. नाम. २० थानिक काउस्सग सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत प्रथम पद अंतिः कहे तप शिवसुख दातार, गाथा-५.
१०१
२२. पे नाम. ८ दृष्टि सझाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: चिदानंद परमातमरूप, अंतिः विमलसूरि कहे भवि हित, गाथा - १४, (वि. १४ गाथा के बाद ३ गाथा दी है. )
२३. पे. नाम. अष्ट दृष्टि नाम, पू. ६आ, संपूर्ण.
८ योगदृष्टि नाम, सं., पद्य, आदि: मित्रा तारा बला दीपू, अंति: ( अपठनीय), श्लोक-३, (वि. प्रत की किनारी खंडित हो के कारण अंतिम वाक्य अवाच्य है.)
२४. पे. नाम. अष्टभंगा सझाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
अष्टभंगी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुगुरुदेव सुधर्मनुं; अंति: तेहनी जीन आ धरता, गाथा १२.
२५. पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो चिदानंद अविनासी; अंति: रण ब्रह्म हो, गाथा-५.
२६. पे. नाम. सचित्ताचित्त परिज्ञान स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम नमुं सहि गुरु; अंतिः लालविज० दृष्टिवी लहँ,
गाथा-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७. पे. नाम. कायाजकडी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया कामनी वेलाल; अंति: अभेदे तुझ मिलुं,
गाथा-५. २८. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकनरवर राजीओ मग; अंति: लब्धि० अनुपम भोग, गाथा-१७. २९. पे. नाम. नवकार प्रथम पद स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वारीजाउंहुं अरीहंत; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-७. ३०. पे. नाम. सिद्ध स्वाध्याय, पृ. ८अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सिद्धाणं बीजे पद; अंति: सुखिया सघला लोकरे,
गाथा-८. ३१. पे. नाम. श्रीसूरि स्वाध्याय, पृ. ८अ, संपूर्ण. आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आचारे आचार्यनु जी; अंति:
बोधीबीज उच्छाहि, गाथा-९. ३२. पे. नाम. पाठक सझाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. उपाध्याय पद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चउथे पद उवझायनों गुण; अंति: तेहथी सुभ ध्यान रे,
गाथा-५. ३३. पे. नाम. पंचमपद साधु स्वाध्याय, पृ. ८आ, संपूर्ण.
साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनिने करूं वंदना; अंति: ज्ञानविमल वाधोरे, गाथा-७. ३४. पे. नाम. चरणसित्तरी करणसित्तरी सझाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध; अंति: ज्ञानविमल० वाधो जी,
गाथा-७. ३५. पे. नाम. नवकार महिमा सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एपंचपरमेष्टि पद; अंति: एह छै सिद्धसरूप,
गाथा-५. ५६२७४. (+#) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४११, ११४३३).
साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ९५ अपूर्ण से गाथा- २३७ अपूर्ण तक है.) ५६२७५. (#) जंबूद्वीप परिधि आदि वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३-१५४४२-४६). जंबूद्वीप परिधि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: विखंभवकहीयइ पिहुलपणौ; अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "जइ शेष वारे कला
१२ इतरइ करीनइ वैताढ्य" तक है.) ५६२७६. (+#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२, १०४३४). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार", संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "असझाइउणोझामाहइं दसवइकालिक"
से "कमखयनिमित्त काउस" पाठ तक है.) ५६२७७. (#) भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध कथा सहित, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १८४५३). भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १८३ काव्य की कथा अपूर्ण से ३३वें
काव्य के अर्थ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५६२७८. (४) विमलजी रास व रहनेमि स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १७७४ फाल्गुन कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ९-२ (१ से २ ) =७, कुल पे. २, प्र. मु. कर्मचंद (गुरु पं. गौतमसागर); गुपि. पं. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १०-१३X३६).
१. पे. नाम. विमलजीरो सलोको, पृ. ३अ - ९अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति: वनीतविमल गुण गाओ, गाथा- ११०, (पू.वि. गाथा २७ से है.)
२. पे नाम, रहनेमी स्वाध्याय, पृ. ९आ, संपूर्ण.
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रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: विजय० राजुल लहै जी, गाथा - ११, (वि. अंत में गाथा क्रमांक नही है.)
५६२७९. (४) जसराज बावनी, संपूर्ण वि. १८१० फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे.,
(२५.५X११.५, १२X३६).
अक्षरबावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, वि. १७३८, आदिः ॐकार अपार जगत आधार, अंति: गुण चितकु रिझाए है, गाथा ५७.
५६२८०. चोविस तीर्थंकरना आंतरा, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. बलाभाग्राम,
प्र. मु. शिवजी मालजी ऋषि; पठ. श्रावि. मधुबाई, अन्य. मु. मुलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १५X३७).
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोडि सागरने; अंति: वरसनुं णानुं जाणवु.
५६२८१. (+) मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७ - १ ( १ ) = ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२६४११.५, १३५३८).
मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १, गाथा- ७ अपूर्ण ढाल- ५, गाथा- ५ अपूर्ण तक है.)
५६२८२. (+) चोवीश तीर्थंकरोना नाम, माता, पितादिनु कोष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२७.५४१२, १५-२०X२७-७४).
२४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति (-).
5
५६२८३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रोपरि बोल, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. जोधराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित, दे., (२७४१२, १९३४).
,
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढिती; अंति: होय ते कर्मने उदै, प्रश्न- १००. ५६२८४. (+) विक्रम चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, २२-२९६६).
"
सिंहासनबत्रीसी चौपाई - दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि : आराहि श्रीरिषभप्रभु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ४३२ तक लिखा है.) ५६२८५. (+) चतुर्विंशतिदंडकगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अजीमगंज, पठ. श्रावि. महताब बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६X१२,
१३४३१).
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर, अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल ४, गाथा - ३४.
५६२८६. (+) सत्तरभेदी पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५४, फाल्गुन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. बि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१२, १५X३४).
१. पे. नाम. सप्तदश भेदी पूजा, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकजवासिनी; अंति: तवति सुरतरू फलीयो रे,
ढाल-१७, गाथा-१०८. २.पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. जीतचंद, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जिनतनु निरसुगंध; अंति: बाचक कहें जीतचंद, पूजा-१७, गाथा-२८. ५६२८७. (+) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा संजया व समवसरण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, कुल पे. २,
प्र.वि. अबरख युक्त पत्र., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ३७४१०-२८). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक- २५, उद्देश-६ नियंट्ठा संजया, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य,
आदि: १२ देवलोक नाणांगीया; अंति: संख्यात गुणाधिका, (पू.वि. "२७गुणा १६ भागे वीहचीयई" पाठ से "१३ हवइ
तेरमो गतिद्धारक हियइ छे नियंठा संयमनो" पाठ तक नहीं है.) २. पे. नाम. भगवतीसूत्र-समवसरण विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण. समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवपदइ समो० २ सलेश; अंति: ५ सागार
१ मणागारे. ५६२८८. (+#) सिद्धांतसार विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १७-२५४८०). विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योयन ६ कला भरत; अंति: १०५२ इतरा टुकडा हुवै, (वि. जंबूद्वीपक्षेत्रमान
विचार, जिनभव विचारादि संग्रह.) ५६२८९. (+) नेमिनाथ चरित्र-कल्पसूत्र का कथायुक्त व्याख्यान, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४४७). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. "मेरु चांपिउ एतलिमेरु
कांपिउभूमे" पाठ से "व्याधन लेता धणेंद्रिइ पुरुष रूपिं" पाठ तक नहीं है.) ५६२९०. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१). महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: सकलसिधदायक सदा चोवीस; अंति: ए
बोधिबीज सुपसाय, ढाल-८, गाथा-७९. ५६२९१. (+#) बारभावना, संपूर्ण, वि. १८५२, पौष शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पालणपुर, पठ. श्रावि. रुपाबाइ,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपल्लवीहापार्श्वनाथजिन प्रसादात., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४२). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर
मझार, ढाल-१३, गाथा-१२६.. ५६२९२. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४५). कल्पसूत्र-बालावबोध*,मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रणम्य महावीरं केवल; अंति: (-), (पू.वि. महाराज १ ब्राह्मण लेवा
नदीये छे तिवारई-पाठ तक है. पीठिका भी अपूर्ण है) ५६२९३. (+#) ढालसागर, अपूर्ण, वि. १७१५, जीर्ण, पृ. १७३-३१(५,१७ से २७,४२ से ४४,६८,१४४ से १५२,१५८ से १५९,१६२
से १६३,१७१ से १७२)=१४२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५७५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३०-३५). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसूरि० रंग वधामणो,
खंड-९, ग्रं. ५७५०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. ढाल १५१)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५६२९४. (+) सिंहासन बत्रीसी, अपूर्ण, वि. १८१७ कार्तिक कृष्ण, १ शनिवार, मध्यम, पृ. १४४-२८ (१ से २८ ) = ११६, ले. स्थल मकसूदाबाद, प्रले. पं. देवविनय जती पठ. सा. दीपविजयाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. ३७५०, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११४३८).
3
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सिंहासनबत्रीसी चौपाई - दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि (-) अंति हीरकलश०
पामै बहुपरइ, कथा-३२, गाधा- २४३०, ग्रं. ३५०० (पू.वि. गाथा ७४ अपूर्ण तक नहीं है.)
५६२९५. (४) चंदराजानो रास, संपूर्ण, वि. १८६४ वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १०५, ले. स्थल. बेसुरी प्रले. मु. गजंदराज, मु. जसराज (गुरु पं. रत्नराज); गुपि. पं. रत्नराज (गुरु वा. उदयराज); वा. उदयराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. लेखन स्थल-डुलाई तथा देसुरी ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १५X४९).
"
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु. पद्य वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९ (वि. दाल १०८.)
५६२९६. (+) दौपदी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११. १५४३३).
द्रौपदीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, वि. १७००, आदि: शांतिनाथ प्रणमुं अंति: (-), (पू.वि. ढाल ६, दूहा ३ अपूर्ण तक है.)
५६२९७ (+) चित्रसंभूतिऋषि चौपई, संपूर्ण वि. १७९९ वैशाख शुक्ल, १. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल, गजपाटक, प्रले. मु. राजवल्लभशील (गुरु मु. सुंदरशील); गुपि. मु. सुंदरशील (गुरु ग. लावण्यशील); ग. लावण्यशील (गुरु पं. उत्तमशील गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै., (२६×१२, १८x४४).
चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसरु, अंति: दीइं दोलति दीदारु रे, ढाल-३९, गाथा-७४५, ग्रं. ११००.
५६२९८. (४) गुणमंजरी वरदत्त चौपई, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१ (१) २१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.,
(२५X११.५, १२४३२).
वरदत्तगुणमंजरी चौपाई, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: आणंद हुवै तस चितै जी, ढाल-२१, (पू.वि. ढाल - १, गाथा - ११ अपूर्ण से है.)
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१०५
,
५६२९९. (+) दंडक बोल सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, १०-१२x२३).
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणा संघयण; अंति: (-), (पू.वि. "परजीवने ज्ञाननो प्रतिबोध करवोजी" पाठ तक है.)
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२४ दंडक २५ द्वार विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर पांच अवगाहना; अंति: (-).
५६३००. (+) षडावश्यक बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २१, अन्य पं. मणीसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित.,
जैदे. (२६४११.५ ११५३७).
आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: मणसा मत्वेण वंदामि
आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार, अंतिः प्रणाम करी बांदु, ५६३०१ (+) पंचनिग्रंथी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, ५X३३). भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा पंचनिर्ग्रथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: नमिऊ महावीरं भव्व, अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा - १०७.
पंथी प्रकरण बार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: नयविजयगुरुणां पंचनिर; अंतिः संभारवाड अर्थ. ग्रं. ४५५.
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१०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६३०२. (+#) आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार व श्लोक, पूर्ण, वि. १७८५, पौष शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(८)-८, कुल
पे. २, ले.स्थल. बुराणपुर, प्रले. मु. पेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३३). १.पे. नाम. आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ-९आ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: विषइ उद्यम करिवउ. २.पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण.
ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५६३०३. (+) चउमासारो वखाण, संपूर्ण, वि. १८७०, माघ कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४३४). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं देवो,
(वि. प्रसंगोपात कथाएँ भी हैं.) ५६३०४. (+#) गीत व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-८(१ से ८)=१५, कुल पे. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४२८-३३). १.पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ९अ-१०अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुरि आस्या मन तणी, गाथा-१८,
(पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १०अ-१२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति:
भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ३. पे. नाम. पांचमी तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: समयसुं०पांचमो
भेदरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धमल विरा; अंति: म्हारी
सफल फली मन आस, गाथा-९. ५. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण वैठा भगवंत; अंति: कहै
कहौ द्याहडी, गाथा-१३. ६. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी तवन, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर जगतिलोए; अंति: समयरंग
___ इण परि बोले, ढाल-५, गाथा-२४. ७. पे. नाम. आदिनाथजी तवन, पृ. १६अ-१८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ; अंति: रतनचंद० सिवरमणी
वरौ, गाथा-२४. ८. पे. नाम. चतुर्विंशति दंडक स्तवन, पृ. १८आ-२०अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय;
अंति: दरसण सुरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. ९. पे. नाम. शांतिनाथजीस्तवन, पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सूरिजि उगमतइ नमुसंत; अंति: हर्षधर्म वीनव्यौ, गाथा-२३. १०. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २२अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१०७ संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ५६३०५. (#) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१७(१ से १०,१६ से २२)=१७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२८-३२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. ढाल ९ गाथा ३ ढाल १४ गाथा १७ व ढाल २१ गाथा ३ अपूर्ण से ढाल ३३ गाथा ४ अपूर्ण तक हैं.) ५६३०६. (+) ज्ञानपंचमी कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक १४८ अपूर्ण तक है.)
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)त्रैसलेयजिनं नत्वा, (२)श्रीमंत सोभावंत; अंति: (-), पूर्ण. ५६३०७. (+) शालिभद्रधन्ना चौपई, पूर्ण, वि. १७२०, आश्विन कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(२)=१६, ले.स्थल. जहानाबाद, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६x४२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल
लहिस्यइजी, ढाल-२९, (पू.वि. ढाल २ गाथा ८ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा ३ अपूर्ण तक नहीं है.) ५६३०८. (+#) कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-३(२ से ३,१७)=१५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८).
औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: आवत देखि दुरइथी मगन; अंति: पत्रं मृद्दसे मधुपै, (पू.वि. कवित्त
४ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक नहीं है., वि. संग्रहात्मक कृति होने से परिमाण नहीं भरा है.) ५६३०९. (+#) महावीरजिन विज्ञप्ति स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४,
ले.स्थल. रानेरबंदिर, पठ. मु. प्रतापविजय (गुरु मु. पद्मविजय); गुपि. मु. पद्मविजय (गुरु पं. भीमविजय); पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४३-६०). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३,
आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: जस० सिर वहइस्यइ जी, ढाल-६. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: (१)जत्थय जंजाणिज्जा,
(२)ए अनुयोगद्वारनो पाठ; अंति: नियुक्तिमध्ये छई. ५६३१०. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७२१, आषाढ़ कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. रोहिठनगर, प्रले. मु. भोज (गुरु
मु. भादाजी ऋषि); गुपि.मु. भादाजी ऋषि; पठ. सा. नानबाई आर्या (गुरु सा. फूला); गुपि.सा. फूला, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३९-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सिरिचंद० अत्तपढणट्ठा,
गाथा-३३०. ५६३११. (#) आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३०-३८).
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार,
ढाल-१५, गाथा-२५०. ५६३१२. (#) नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४४६).
नवतत्त्व प्रकरण-पचीसबोल, संबद्ध, मु. यश ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सासणपति श्रीवीरजिन; अंति: (-).
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१०८
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५६३१३. (+४) २५ समाचारी, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. पत्रांक १५७१७० भी है, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५. ५X१२, ११४३५-३८).
५६३१५. तेरकाठीयानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२५X११.५, ११×३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२५ समाचारी-कथा दृष्टांत सहित, मा.गु., गद्य, आदि: जिम वरदत्त साध चारित; अंति: उपसमै ज करी सार छै. ५६३१४. प्रियमेलक चौपई, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२५.५X११, १३X३८). प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमं सद्गुरु पाय अंति: (-), (पू. वि. डाल ११ गाथा १२ अपूर्ण तक है.)
१३ काठिया सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: पासजिणेसर पाय नमी, अंतिः शिवसुख लहे उल्लास, ढाल १३.
५६३१६. (+) कर्मविपाक बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-२ (१, ३) ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये., (२५.५४११.५, १४४३४-३६).
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देवेंद्रसूरि कहिउ
"
५६३१७ (+) जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५x११.५, १४-१७४३६-४२).
प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६३१८.
(+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ६, ले. स्थल वालोचर, अन्य हरखचंदजी वैद प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१२, १३x२९).
१. पे. नाम. पचास पडिलेहण स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवलभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरघमान जिनवर तणाजी, अंति: लब्धिवल्लभ गणि कही, गाथा - १५.
२. पे. नाम. चवदगुणठाण विचार स्तवन, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण.
"
सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. पच. वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४.
३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि पद पंकज रे प्रणमी, अंति: इम संधव्यो भावइ करी, ढाल - ४, गाथा - १३.
४. पे. नाम. १७ भेदजीवना स्तवन, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
१७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत केवलन्यान, अंति: जिम देखु परतिखपणे, डाल- ३, गाथा- १७.
५. पे. नाम. चौवीसदंडकविचारगर्भित वृद्धिस्तवन, पृ. ७ आ-१०अ संपूर्ण, ले. स्थल मकसुदावाद, प्रले. श्राव. कल्याणचंद रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर, अंति: गावे धरमसि सुजगिस ए, ढाल - ४, गाथा- ३३.
६. पे. नाम. उपधान स्तवन, पू. १०अ ११अ संपूर्ण.
उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर धरम; अंति: समयसुंदर० सुह करो,
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ढाल- ३, गाथा - १८.
५६३१९ (४) वीसस्थानकपद पूजा ढालबंध, संपूर्ण, वि. १९२४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मुलजी रामनारायण जानी; पठ. श्राव. तिकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X१२, ११x४०). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी, अंतिः सयल संघ जयंकरो,
ढाल - २०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१०९ ५६३२०. (+) आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१३(१ से १३)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १७४२३).
आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२५ गाथा-५ अपूर्ण
से ढाल-४७ कलश अपूर्ण तक है.) ५६३२१. बासठियो, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. हेमचंदजी ऋषि;
पठ. मु.जेचंदजी ऋषि (गुरु मु. रामचंद्र ऋषि); गुपि.मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. वनीत ऋषि); मु. वनीत ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, ११-१८x२४-३४).
६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: नारकीमांत्रीजंचमा; अंति: तुलाने अनंतगुणा. ५६३२२. (+) मंगलकलश फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३८). मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवीय सामिणी ए; अंति: कनकसोम०
चरित्त जगीस, गाथा-१४४. ५६३२३. (+) इलाकुमार चौपई व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८९५, पौष शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,
ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. पं. उद्योतविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंतामणि प्रासादौ. अजीमगंज भागीरथि तटे लिपीचक्रे., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १७४३२). १. पे. नाम. भावविषइ ईलाकुमर चौपई, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा; अंति: ज्ञान
दर्शन अजूआले, ढाल-१३. २. पे. नाम. दोषज्ञान श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण.
ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. श्लोक-२. यंत्र सहित.) ५६३२४. (+) रात्रिभोजन चउपई, संपूर्ण, वि. १७३७, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. गढा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५). जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीस गोयम गणहरराय; अंति: सिद्धि संपद
ते लहई, गाथा-२५६. ५६३२५. (#) अंजनानी चौपई, अपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १५-८(१ से ८)-७, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६-१८४३०-३६).
अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सती रे सिरोमणि गाईयइ, गाथा-१५८, (पू.वि. गाथा ७८ अपूर्ण से है.) ५६३२६. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४११, ११४३१).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे
पुण्यप्रकास ए, ढाल-८. ५६३२७. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१२, १२४३०).
१. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
___पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४. २.पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी;
अंति: उदे महाजस विस्तरे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआरे फल छे; अंति: उदयरतन० उपसमरस
नाही, गाथा-६. ४. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरतन० देसुटो रे, गाथा-५.
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५. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः समकितनुं मुल जाणीये, अंतिः एछे मारशुद्धि रे, गाथा- ६.
६.
. पे. नाम. लाभ सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ अंति; लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा- ७.
५६३२८. (+) आलोयणा विधि व असज्झावादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष शुक्ल १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे, ३, ले. स्थल. वाराणशी, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे. (२५४१२, १७४४९).
"
१. पे नाम, आलोयणा विधि, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथमं गृहस्थानां, अंति: उवडिओ सव्वभावेण.
२. पे. नाम. दया विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
३. पे. नाम. असझाय विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण.
३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उल्कापात पो०१ चिणगार, अंतिः २ प्रतिमा २५ पडिलेहण. ५६३२९. (+) स्तोत्र व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल ५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. मुमाईबिंदर, पठ. श्रावि. राजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १०X३२).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि; नमो देवनागेंद्रमंदार, अंति: चिंतामणि पार्श्वः, श्लोक ७. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि अजर अमर निकलंक जे अंतिः मोक्षं हि वीराः,
ढाल - ९.
५६३३०.
(+) प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-४ (१ से ४) = ६, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२५x१०.५, १३४३९-४१).
१. पे. नाम. देवसीक पिडकमण विधि, पृ. ५अ - ६अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: रीते सामायिक पालै, (पू. वि. "सव्वसवि देवसिय" पाठ से है.)
२. पे नाम, आठप्रहर पौषधविधि, पृ. ६अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पौषधविधि- अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: रात्रीने पाछलै वि घड; अंति: (-).
५६३३१. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६X१२, १३X३७). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पद-५ तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ मंगलीकनउ मूल; अंति: (-).
"
५६३३२. (+) दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२५.५४११.५ १२x४६).
""
दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: (-), (पू.वि. स्वाध्याय- १० गाथा - ११ अपूर्ण तक है.)
५६३३३. (+) पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ ( २ ) =५. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५x११.५, १३X३७).
पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा. सं., पद्य, आदि बारसगुण अरिहंता, अंति: (-). (पू. वि. साधु पद अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतना चार गुण अंतिः (-).
५६३३४. (#) गौतम कुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे. (२५४११.५ १२४३३).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहति, गाथा - २०.
गौतम कुलक- टीका + कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि : लोभाभिभूताः प्रभूता; अंति: निषेव्याथ सुखं लभते
५६३३५. (+) रोहाकथा प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. विकांण, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १३X३७).
रोहिणी कथा, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर जेहने, अंतिः मिथ्यादुकृत तेम ए. डाल-६. ५६३३६. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., ( २६१२, ११x२८-३३).
१११
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सूत्र- १४ अपूर्ण तक लिखा है.)
५६३३७. (४) भक्तामर भाषानुवाद, सज्झाय व छंद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (५) २५, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१३, १५X३२).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र - भाषा, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण
भक्तामर स्तोत्र - पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरूष आदिस जिन, अंति: ते पावै शिवखेत,
गाथा ४८.
२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. पत्रांक नहीं लिखा है.
पुहिं, पद्य, आदि (-); अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा २० (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.)
३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन वृद्धछंद - अंतरिक्ष, वा. भावविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सारवमात मया करी आपो अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.)
५६३३८. (+#) दंडक बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद लकीरें संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १५४५१). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: डंडक१ लेश२ ठिती३ अवग; अंति: (-), (पू.वि. अवगाहणा द्वार अपूर्ण
"
तक है.)
५६३४८. (+) भुवनदीपक व षट्पंचाशिका, संपूर्ण, वि. १७५८, फाल्गुन शुक्ल, १४, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १९ कुल पे. २,
"
ले. स्थल. नडुलाई (नडुईनगर), प्रले. पं. विबुधरुचि गणि (गुरु पं. राजरुचि गणि); गुपि. पं. राजरुचि गणि; पठ. मु. सुखरुचि, मु. सुबुधरूचि (गुरु ग. दोलतरूचि पंडित); गुपि. ग. दोलतरूचि पंडित (गुरु ग. मतिरुचि पंडित); ग. मतिरुचि पंडित (गुरु पं. हर्षरूचि गणि); पं. हर्षरूचि गणि (गुरु पं. उदयरूचि गणि); पं. उदयरूचि गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, ७३४).
१. पे नाम, भुवनदीपक सह टवार्थ, पृ. ९आ-१४आ, संपूर्ण
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५, संपूर्ण.
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भुवनदीपक -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - ९ से ६६ तक बार्थ लिखा है.)
२. पे. नाम षट्पंचाशिका सह टवार्थ, पृ. १४आ-१९आ, संपूर्ण.
षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य रविं; अंति जातिश्च लमपात्, अध्याय ७, श्लोक ५६. षट्पंचाशिका - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नस्कार करीनै सूर्यनै; अंति: स्वामी थकी लहणी.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६३५०. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५४११, ६४३६).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
श्लोक-१७६ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ मह; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ
श्लोक १७१ अपूर्ण तक लिखा है.) ५६३५८. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ४४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनेशं नमस्कृत्य; अंति: साख्ये विस्तीर्ण जे. ५६३७५. (+) वृत्तरत्नाकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१२(१ से १२)+१(२५)=१९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४२-४८). वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
वैतालिकछंदनिरूपण अपूर्ण से ऋषभगजविलसित छंदनिरूपण अपूर्ण तक है.) वृत्तरत्नाकर-बृहद्वृत्ति, ग. सोमचन्द्र, सं., गद्य, वि. १३२९, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५६३७७. लंघनपथ्य निर्णय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १३४४०).
लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३८ अपूर्ण से
___३०१ अपूर्ण तक है.) ५६३८०. (-#) भुवनदीपक सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ९-१(७)=८, ले.स्थल. सुरत,
प्रले. मु. करमचंद ऋषि (गुरु मु. जेसिंघ ऋषि); गुपि.मु. जेसिंघऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दुर्वाच्य. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४७०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७४,
(पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण से ४९ अपूर्ण तक नहीं है.)
भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयउ; अंति: सूरिइसर नामइ आचार्य. ५६४६८. (#) रामविनोद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४३२).
रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदायक सलहीय; अंति: रामविनोद विनोदसु,
समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५... ५६४७९. (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४-४०).
पाशाकेवली, म. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सत्योपाशक केवली, श्लोक-७९. ५६४८६. (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३२).
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: करइ सही करी मानजे. ५६४८९. (+#) योगचिंतामणि सह टिप्पण वरीगणी फल पाक, संपूर्ण, वि. १७३३, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, जीर्ण, पृ. ९८,
कुल पे. २, ले.स्थल. नारायणानगर, प्रले. कुशला व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ९x४०). १.पे. नाम. योगचिंतामणि सह टिप्पण, पृ. १आ-९८अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंतिः नारायणमूर्त्तिदानम्,
יי
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अध्याय ७.
योगचिंतामणि- टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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२. पे. नाम. रींगणी फल पाक, पृ. ९८अ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६४९० (+) औषध संग्रह व वैद्यकसारोद्धार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, आषाढ़ कृष्ण १९, मध्यम, पृ. ९३, कुल पे. २. ले.स्थल. कंटालिया, प्रले. मु. विजैचंद ऋषि (गुरु मु. दुलिचंद ऋषि); गुपि. मु. दुलिचंद ऋषि, मु. केसरचंद ऋषि; मु. जगरूप ऋषि; मु. खुस्यालचंद्र ऋषि, मु. वर्द्धमान ऋषि (गुरु मु. दुलिचंद ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल है, जैदे., ( २६x११, ८x४२).
१. पे. नाम, जायफल आंवला आदि औषधगुण संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह", पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. वैद्यकसारोद्धार सह टबार्थ, पृ. १अ - ९३आ, संपूर्ण.
योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंतिः भ्रूणपतित निश्चितम्,
יי
1
अध्याय ७.
योगचिंतामणि टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि विवैविशासोपम तेज; अंतिः ७ छोड पडै निश्चयसुं
५६४९३. (+) नारचंद्र सह टबार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, १३ सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, कुल पे. २, ले. स्थल. पाल्ही (पाली), प्र. मु. लक्ष्मीमाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२४.५x१०, ७४४५).
१. पे नाम, ज्योतिषसार सह टवार्थ, पृ. १अ ४३अ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हंतजिनं नत्वा; अंति: दोषा प्रकीर्त्तिता, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतभगवानने, अंति: घर कुशलकल्याण उपजे.
२. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ४३अ ४३आ, संपूर्ण.
ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. पण, आदि (-); अंति: (-).
"
""
"
५६४९५ (+) जातकदिपिकाभिदान पद्धति सह टवार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे, २, प्र.वि. श्रीशंखेश्वरप्रसादात्. झवयडीवाड नागोरीसरा. यंत्र सहित., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, जैदे. (२५X११.५, ५४२८-४० ).
,
१. पे. नाम. जातकदीपिकाभिधान पद्धति सह टबार्थ, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, सोमवार,
जातकदीपिका पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश, अंतिः एषा जातकदीपिका, श्लोक- ९१, (प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य )
जातकदीपिका पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे प्रणाम करीने; अंति: जोवीए जातकदीपिका, (वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, सोमवार, ले. स्थल. अहंम्मदावाद, प्रले. मु. मानविजय (गुरु मु. खुसालविजय, विजयदेवसूरिगच्छ); गुपि. मु. खुसालविजय (विजयदेवसूरिगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य )
२. पे. नाम. अभिचित दशासाधनोपाय व पिंडायु विचार, पृ. १७अ, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ शुक्ल, ३, मंगलवार.
ज्योतिष मा.गु. सं., हिं., पग, आदि (-); अंति: (-) (वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, मंगलवार)
५६४९७, (+०) नारचंद्र- प्रथम प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७०३, कार्तिक कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल, मेडता,
१९३
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प्रले. मु. जयमल (गुरु मु. समरथ ऋषि); गुपि. मु. समरथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, १८४३८).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६४९८. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. रामसेणनगर, प्रले. ग. फतेंद्रसागर
(गुरु ग. धीरसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अर्बुदाचलमेखलायां., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१६x४९).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: कालचंद्रे भवेन्नहि, श्लोक-२९४. ५६४९९. (+) लिंगानुशासन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. वृद्धिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३७-४५). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणथपभमयर; अंति:
शासनानि लिंगानाम्, प्रकरण-८, श्लोक-१३९. ५६५००. (+#) पयन्ना संग्रह, पूर्ण, वि. १५६९, मध्यम, पृ. ७५-२(१,५४*)=७३, कुल पे. १२, ले.स्थल. पत्तन (पाटण),
लिख. ग. साधुतिलक (गुरु उपा. मुनिमेरु); गुपि. उपा. मुनिमेरु; अन्य. पं. उदयलाभ (गुरु उपा. धर्मविशाल गणि); गुपि. उपा. धर्मविशाल गणि (गुरु उपा. ज्ञानसिंह गणि); उपा. ज्ञानसिंह गणि (गुरु ग. ज्ञानकुशल); ग. ज्ञानकुशल (गुरु आ. जिनराजसूरि); आ. जिनराजसूरि; अन्य. मु. उदयसागर; पं. महिमाकुशल; श्राव. प्राणसुख; श्राव. नैणसुख; श्राव. मयाचंद; श्राव. रुघनाथ, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. उदयलाभ ने अपने गुरु के आदेश से इस प्रति को खरीदकर कृष्णदूर्ग के भांडागार में रखी. प्रतिलेखन पुष्पिका का कुछ अंश नष्ट हो गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११, १३४४२). १.पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: (-); अंति: खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-६७, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भत्त पयन्ना, पृ. ४अ-९आ, संपूर्ण. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महासयं महाणुभा; अंति: सासय सुखं लहइ सुक्खं,
गाथा-१७२. ३. पे. नाम. संथारा पयन्नो, पृ. ९आ-१३आ, संपूर्ण.
संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२२. ४. पे. नाम. तंदुलयनाम पइन्न, पृ. १३आ-२४अ, संपूर्ण.
तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं. ५. पे. नाम. चंदाविज्झयं, पृ. २४अ-३०अ, संपूर्ण.
चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: जगमत्थयत्थयाणं विगसि; अंति: दुग्गइविणिवायगमणाणं, गाथा-१७४. ६. पे. नाम. देविंदत्थउ, पृ. ३०अ-३९आ, संपूर्ण. देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदि: अमर नरवंदिए वंदिऊण; अंति: इह संमत्तो अपरिसेसा,
गाथा-२९२. ७. पे. नाम. गणिवजानाम प्रकीर्णक, पृ. ३९आ-४२अ, संपूर्ण.
गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: वुच्छं बलाबलविहिं; अंति: नायव्वो अप्पमत्तेहिं, गाथा-८५. ८. पे. नाम. महापच्चक्खाण, पृ. ४२अ-४६अ, संपूर्ण.
महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: एस करेमि पणामं तित्थ; अंति: ज अहवा वि सिज्झेज्जा, गाथा-१४२. ९. पे. नाम. कुसलाणुबंधअज्झयणं, पृ. ४६अ-४८आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाण,
गाथा-६३. १०.पे. नाम. मरणविही, पृ. ४८आ-७०अ, संपूर्ण.
मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणसरारविंद सप्प; अंति: ज्झाणं जेसु झायव्वं, गाथा-६५९. ११. पे. नाम. अजीवकप्पो, पृ. ७०अ-७१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तह० मिथ्यात्वादिभिः; अंति: तं वीरं नम...
३. पे. नाम. बंधस्वामित्व की अवचूरि, पृ. १२अ - १५अ, संपूर्ण.
अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः आहारे उवहम्मिय उवस्स, अंतिः च्छामि अहाणुपुव्विए, गाथा- ४५, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा के रूप में गिना है.)
१२. पे नाम, गच्छावारं पयन्ना, पृ. ७१आ-७५आ, संपूर्ण,
गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा. पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं तिय, अंति: इच्छंता हियमप्पणो गाथा - १३७. ५६५०१. (+) कर्मग्रंथ की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१, कुल पे. ६, प्र. वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२६X११, १७-२०x६५-७६).
१. पे. नाम. कर्मविपाक की अवचूरि, पृ. १अ - ६आ, संपूर्ण.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ अवचूरि, सं., गद्य, आदिः कर्मणां विपाकोनुभवः; अंतिः कृतो देवेंद्रसूरिभिः,
२. पे. नाम. कर्मस्तव की अवचूरि. पू. ६आ- १२अ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बंध० बंधः कर्माणुनां अंतिः तिवेशद्वारेण भणनात्. ४. पे. नाम. षडशीतिकोद्धार, पृ. १५अ-२६अ, संपूर्ण.
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षडशीति नव्य कर्मग्रंथ अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नमि० तत्र जीवंति यथा, अंति: शास्त्रेभ्य इति शेषः. ५. पे. नाम. शतकस्योद्धार, पृ. २६आ-४६आ, संपूर्ण.
शतक नव्य कर्मग्रंथ - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: निज हेतु सद्भावे; अंति: स्तवे भावितं ज्ञेयं.
६. पे. नाम. सप्ततिकावचूरि, पृ. ४६आ - ६१अ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्ध० सिद्धानि चालय, अंतिः कथयितुं गाह० स्पष्टा. ५६५०२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध - श्रुतस्कंध - १, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५२+१ (४४) = ५३,
प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, ८-१०x२५-२९).
-
५६५०४.
११५
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पण, आदि बुज्झिज्ज तिउलेज्ज, अंति: (-), ग्रं. ८००, प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, गद्य, आदि: प्रणम्य सद्गुरुन्, अंति: (-), ग्रं. २७००, प्रतिपूर्ण. ५६५०३. कल्पसूत्र, कालिकाचार्य कथा व धर्मलक्षण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५२, कुल पे. ३, जैदे.,
(२६.५X११.५,
११X३३-४८).
१. पे. नाम. कल्पसूत्र, पृ. १-४८ अ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६. २. पे. नाम, कालिकाचार्य कथा, पृ. ४८ अ-५२अ संपूर्ण वि. १५२५ श्रावण कृष्ण, ५.
1
आ. विनयचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: उत्पत्ति विगम ध्रौव, अंति: संक्षिप्तरुचि हेतवे, गाथा-८६. ३. पे नाम, धर्मलक्षण, पृ. ५२-५२आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: धर्मार्थं क्लिश्यते; अंति: शौचं जलशौचं च पंचमं, श्लोक-२५.
(#) कुवलयमाला कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४५, प्र. वि. कुल ग्रं. ३८९४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, २२X५२-५५).
५६५०५ (+#)
कुवलयमाला कथा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: आदित्यवर्णं तमसः; अंति: स्तनतटालंकारहारश्रिय, अध्याय- ४. श्राद्धगुण संग्रह, अपूर्ण, वि. १५११, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३२ - २ (४ से ५ ) = ३०, ले. स्थल. चंद्रापुरी, प्रले. पं. साधुभूषण गणि (गुरु मु. सोमसुंदर), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २२२५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, २०x६४-६८).
श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., गद्य वि. १४९८, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: मिंतचिरं नंद्यात्, अध्याय-३५, (पू.वि. व्यवहारशुद्धि स्वरूप अपूर्ण से स्त्रीलक्षण वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.)
५६५०६. (+) सुसङ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-१३(१ से १३ ) = ३०, ले. स्थल धोराजी, प्रले. मु. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४११.५, ६x४०-४३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयणविय धम्मकम्मा, गाथा-५२१, (पू.वि. गाथा-१४८ अपूर्ण से है.)
सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्म प्रकाशता हता. ५६५०७. (+) बृहत्कल्पसूत्र प्रायश्चित विधि आदि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६४३९-४२). १. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३०आ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक-६.
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: न कल्पै साधुनै; अंति: एम हुंकहुं छु. २. पे. नाम. प्रायश्चित्त विधि सह टबार्थ, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: वृत्ति मध्ये छे, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीवीने मास भिन्न कही; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "१८० दीक्षानो छेद" पाठ केटबार्थ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. प्रायश्चित्तविधि यंत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६५०८. (+#) रत्नसंचय सह टबार्थ, समकित नाम व श्लोक, अपूर्ण, वि. १७७२, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३४-३(१ से
३)=३१, कुल पे. ३, लिख. मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ८४३८-४७). १.पे. नाम. रत्नसंचय सह टबार्थ, पृ. ४अ-३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: धणु गाहा आगमे भणिया, गाथा-५४५, (पू.वि. गाथा-४४
अपूर्ण से है.) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गाथा आगमने विषे कही. २.पे. नाम. समकित नाम, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उपसम१ क्षयोपम२; अंति: त्रीस सागर झाझेरा. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ३४आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: त्रिषडेएकादशी राह; अंति: सर्वरिष्ट निवारक, श्लोक-१. ५६५०९. (+#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, प्रले. मु.रंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५.५४११, ७X५०-५५). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०,
ग्रं. ८००.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: उपदिसइ इति ब्रवीमि, ग्रं. १७००. ५६५१०. (+#) भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७४, कार्तिक कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २-४४५१-६१). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा-१४५. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: ऐंद्रश्रेणिनुतं; अंति: सततं निरपाय
सौख्यरतः, ग्रं. ३५०. ५६५११. (#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६२७, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २८-१(१)=२७, ले.स्थल. हडाद्रानगर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३३-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०
चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-२ की गाथा-१० अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
११७ ५६५१२. (2) उत्तराध्ययनसूत्र कीटीकागत कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४९-२३(१ से
२३)=२६, ले.स्थल. कपासण, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १६x४२). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पाल्य मोक्षंगतः, (पू.वि. अध्ययन-१८ की कथाएँ हैं.,
वि. अंत में अध्ययन-१९ से ३६ तक की कथाओं की सूची दी गई है.) ५६५१३. (+#) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५-२६.६४१२, ४४३९).
आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. पंचम आवश्यक
अपूर्ण तक है.)
षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मरूप वैरीने हणनार; अंति: (-). ५६५१४. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १२४३२-४२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: सोहेयव्वं पयत्तेण, गाथा-५४४. ५६५१५. (+#) चतुर्विध मेघविचारादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०x४०).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चत्तारि मेहा पन्नत्त; अंति: अंतमुहत्तत चालीओ. ५६५१६. (+#) नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३-१८५४, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. जामपूर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३८-४२). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, (प्रतिपूर्ण,
वि. १८५३, वैशाख शुक्ल, ८, पू.वि. कल्याणमंदिर व नमिऊण स्तोत्र नहीं है., प्रले. मु. भक्तिविजय (गुरु ग.रूपविजय); गुपि.ग. रूपविजय (गुरु ग. विवेकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, वि. प्रतिलेखक ने सात स्मरण
लिखकर ही कृति पूरी कर दी है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जिनशासन जयवंतो वर्तो, (अपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, १३,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ स्मरण-३ संतिकरं से लिखा है., पठ. मु. रंगनाथ (गुरु ग. नेमविजय); गुपि.ग. नेमविजय (गुरु ग. रूपविजय); ग. रूपविजय (गुरु ग. विवेकविजय); ग. विवेकविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय),
प्र.ले.पु. मध्यम) ५६५१७. (#) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-७(१,१३,१६,१९ से २०,२७ से २८)=२३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३५-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२,
(पू.वि. अध्ययन-१ अपूर्ण से है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) ५६५१८. (+#) श्रीपालनरेंद्र कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १३४१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९४६५-७७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहंताई नवपयाई; अंति: वाइजता कहा
एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १६७५. ५६५१९. (+#) श्राद्धविधि प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति:
विधिप्रकाशो निर्मितः.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६५२०. (+#) संग्रहणीसूत्र व सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १६७४, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६,
कुल पे. २, ले.स्थल. सुर्यपुर, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३-३७). १. पे. नाम. संग्रहणी सूत्र, पृ. ३अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०६, (पू.वि. गाथा-२४
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोकसंग्रह, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: काया हंस विना नदी; अंति: न चलंति धर्मम, श्लोक-३. ५६५२१. (+#) सिद्धांतविचारगाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,७४४५-४८).
सिद्धांतविचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: कंचणगिरि पव्वेसुं; अंति: साह सगवीस नायव्वा, गाथा-२८२, संपूर्ण. सिद्धांतविचारगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कंचनगिरि पर्वतनइ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण का टबार्थ नहीं है.) ५६५२२. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३२-३७).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीर जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई
पसिद्धि, अधिकार-६, गाथा-२२१. ५६५२३. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६४५६).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ५६५२४. जीवविचार प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२५.५४१२, ३४२६).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवननइ विषइ प्रदीप; अंति: जीवविचार उद्धर्यो छइ. ५६५२५. (+#) कर्मग्रंथ २ से ४ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ३, प्रले. आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतर
गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ताडपत्र शैली में मूल पत्रांक-१६६-१७९ तक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १९४५३). १. पे. नाम. कर्मस्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तथा वीरजिनं स्तुम; अंति: वीरं देवेंद्रवंदितम्. २. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह अवचूरि, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बंधविहाण विमुक्कं; अंति: थानकानि कर्मस्तवात्. ३. पे. नाम. षडशीति सह अवचूरि, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु,
गाथा-८६. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नितरामपुनर्भावेन; अंति: कुर्वंतु जानतु.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
११९
५६५२६. (+) भाष्य, आगमिक पाठ व हेतुगर्भप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-४ (१,३,९ से १०) = १५, कुल .४, प्र. वि. पत्रांक भाग नष्ट होने से पाठानुसंधान के अनुसार पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., ( २६x८.५, १३x४२-४७).
१. पे. नाम. गुरुवंदन भाग्य, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उत्तमट्ठेय वंदणयं, गाथा - २७, (पू. वि. गाथा- २३ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. बृहद्वंदनक भाष्य, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
बृहद् वंदनक भाष्य, मु. अभयदेवसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: इच्छा य अणुन्नवणा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ पूर्ण तक है.)
३. पे, नाम, आगमिक गाथा संग्रह, पृ. ४अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
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.
"
प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. गाथा-९ अपूर्ण से गाथा १६० अपूर्ण तक हैं. वि. साधु आचार से संबंधित कोई आगमिक ग्रंथ का अंश प्रतीत होता है. आवश्यकनियुक्ति, पदार्थस्थापना संग्रह, चेइयवंदण महाभास आदि ग्रंथों के कुछ पाठ मिलते हैं।
"
४. पे. नाम हेतुगर्भप्रतिक्रमण, पृ. १९अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र है.
प्रतिक्रमणगर्भहेतु संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि प्रा. सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: (-): अंति: (-) (पू.वि. वंदन के ३२
"
दोषरहित २५ आवश्यक क्रिया विवरण से पंचविध आचारविशुद्धि विवरण अपूर्ण तक है.)
५६५२७. (*) संग्रहणी सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२-१९(१ से १९) = १३. पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १५-१८x४२-५२).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ११३ अपूर्ण से २०८ अपूर्ण तक
है)
बृहत्संग्रहणी- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६५२८. (*) यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १४- १ (५)=१३, कुल पे. २, ले. स्थल. साणंद, प्रले. मु. रूपविजय (गुरुग. धर्मविजय); गुपि. ग. धर्मविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पद्मप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५X१२, १८X३३-३६).
१. पे. नाम. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ - १४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंतिः वंदामि जेणे चउवीसं, सूत्र - २१, (पू.वि. बीच के किंचित् पाठांश नहीं है.)
पगामसज्झायसूत्र - टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ऐं नत्वा पार्श्वनाथ, अंति: तीर्थंकर जिन प्रति, (पू.वि. चउदसहि भुयगामे" से "पनरसहिं परमाहम्मिएहिं" पाठ के बीच के टबार्थ का कुछ पाठांश नहीं है.) २. पे नाम, गुरुभक्ति श्लोक, पृ. १४आ, संपूर्ण,
श्लोक संग्रह ै, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गुरुर्देवो गुरु, अंति: त्रयस्तेनापि धुनिता, श्लोक-२. ५६५२९. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ११४२४-२९).
, י
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योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-३ के लोक-६६ अपूर्ण तक है.)
५६५३०. योगशास्त्र- प्रकाश ५ से १२ संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे. (२६.५x११.५, १९४५४-५८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रतिपूर्ण ५६५३१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण वि. १८४९ आषाढ़ शुक्र १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ११. कुल
पे. २, ले. स्थल. पादरा, प्रले. ग. ऋद्धिविजय (गुरु पं. रुपविजय); गुपि. पं. रुपविजय (गुरु पं. भाणविजय); पं. भाणविजय, राज्यकालरा. विजयसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११.५, ४x२८-३२).
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१२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे देव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-४० अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ११आ, संपूर्ण..
श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: संपूर्णकुंभो न करोति; अंति: विहीना बहु भाषयंति, श्लोक-१. ५६५३२. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. बीच के एक पत्र में गाथांकों व खाली स्थानों को सुशोभित किया गया है., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४३०-३३).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७४.
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनि; अंति: पामई ईहां संदेह नही. ५६५३३. (+#) ऋषिमंडल पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १०४३७-४०). ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमी श्रीपारस विमल; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-२४ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५६५३५. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १-३४४७).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-४४ तक
चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: (-). ५६५३६. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १०४३९).
सुव्रतश्रेष्ठी कथा, मु. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य वृषभं देवं; अंति: जंतूनामुपकारविधायकः,
श्लोक-१९५. ५६५३७. (#) बृहत्क्षेत्रसमास प्रकरण-अधिकार-१ से४, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. सथाणा, पठ. मु. देवेंद्रकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४८).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६५३८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-३८(१ से ३८)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ६४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१३, गाथा-२३ अपूर्ण से
अध्ययन-१६, सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१३, गाथा-२३ अपूर्ण से
अध्ययन-१५, तक है.) ५६५३९. (+#) उपदेशमाला की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-१७(२ से ६,८ से १३,१८,२० से २४)=८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २०-२३४५८-७५). उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जगचूडा० जगतो भुवनस्य; अंति: आदि विशेषणेभ्यः, (पू.वि. बीच-बीच के
पाठांश नहीं है.) ५६५४०. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ५,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२,११४२७). १. पे. नाम. पुंडरीकपूजा विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
पुंडरीकगणधरपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीय पढमं; अंति: जयति चैत्रपूर्णिमाम्. २. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देहरो गाममांहे, अंतिः जयवीराय लगह कहीजड़.
३. पे. नाम. पंचमी, आठम, चवदसि व वीसस्थानक तपग्रहण विधि, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण. तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अथ भलइ मुहूर्तइ; अंति: नांदि विसर्जीयइ.
४. पे नाम, पंचमी, आठम, चवदसि व वीसस्थानक तप उद्यापन विधि, पृ. ६ अ-७आ, संपूर्ण
उद्यापन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पांचमि अथवा छट्टिनै, अंति: तित्थइरत्त लहइ जीवो. ५. पे. नाम. पौषध, सामायिक व पडिक्कमण ठावारी विधि, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण
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पौषध सामायिक व प्रतिक्रमण उत्थापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पोथी टीकी दीजइ, अंतिः पच्चक्खाण करावी. ५६५४१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ८, प्रले. पं. लब्धिरुचि
( अज्ञा, पंन्या. रूपरूचि); गुपि पंन्या रूपरूचि (गुरु आ. धर्मसूरि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ५X३५).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे इहां भगवंतनुं; अंति: सुख प्रते पामे.
५६५४२. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-३ (१ से ३) ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे. (२६.५x११.५, ११x२७-३०).
५६५४४. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैवे. (२६४११, ११x२३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ से अध्ययन-५, गाथा २९ अपूर्ण तक है.)
५६५४३. (**) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १९५४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३१९ अपूर्ण तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: ( - ), ( पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा - १२ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा क० जीवतत्व; अंति: (-), पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५६५४५. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. मेसाणा, प्रले. पं. विद्याविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११, ६३७).
""
पर्वताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिउण भणइ एवं भवनं, अंतिः सोम० ते सासवं सुक्खं गाधा- ६८. पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने इम कहे छे कविश; अंति: जीव शाश्वता सुख पामे.
५६५४६. (०) चौवीसजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. कस्तुरविजय (गुरु ग. मानविजय पं.); गुप. ग. मानविजय पं. (गुरु मु. रूपविजय): मु. रुपविजय (गुरुग मानविजय पं.), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४११.५, १६५३२).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक, अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक-१६.
५६५४७. (+) कर्मविपाक व कर्मस्तव कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६.५x११.५, १२४३०).
१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
१२१
आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०.
""
२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.)
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१२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६५४८. (-) भक्तामर स्तोत्र व लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध
पाठ., जैदे., (२७४१२, ११४२९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांति निसंतं; अंति: सूर श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५६५४९. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,१५४३९). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र
नहीं हैं., "अप्पाणं वोसिरामि" पाठ से "पाखी खामणा" अपूर्ण तक है.) ५६५५०. उपस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६.५४११.५, १३४४६).
उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नंदि मांडीने खमासण; अंति: यथायोग्य नाम दीजे, (वि. अंत में "धनश्रेष्ठि
कथा" मात्र शीर्षक देकर छोड़ दिया गया है.) ५६५५१. ५ आश्रव, पार्श्वनाथ के ८ गणधर आदि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य.सा. डाइबाइ आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४४).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: समकित विरतीरअप्रमाद; अंति: वीर्य५ पांचमे ठाणे. ५६५५२. (+#) वीतराग स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५०). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: फलमीप्सितम्,
प्रकाश-२०, (पू.वि. प्रकाश-३ श्लोक-८ अपूर्ण से प्रकाश-८ श्लोक-२ अपूर्ण तक नहीं है.) ५६५५३. (+) योगप्रदीप व घंटाकर्ण महावीरदेव मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. योगप्रदीप, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: यावन्न ग्रस्यते रोगै; अंति: तद् ब्रह्म परमं पदम्, श्लोक-१४१. २.पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ५६५५४. (#) पचक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बुरहानपुर, प्रले. मु. लब्धिरत्न (आगमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०-१२४२७).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: सव्वसमा० वोसरइ. ५६५५५. (+#) क्षेत्रसंग्रहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७०, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जावालपुर,
प्रले. मु. उत्तम ऋषि (वर्णमतगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. कुल ग्रं. ५०५, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १-४४२०-३७).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणममोहं जयपूज; अंति: रइया भद्दसूरिहिं, गाथा-२६. लघुसंग्रहणी-बालावबोध, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १६७०, आदि: नमस्कार करीनइ केहनइ; अंति: र्दोषीकृत्य
वाच्यता, ग्रं. ५०५. ५६५५६. (+#) गुरुगुणछत्रीसिका व दशकल्प नाम, संपूर्ण, वि. १६९१, चैत्र शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
प्रले.मु. मेघाजीशिष्य ऋषि (गुरु मु. मेघाजी ऋषि); गुपि.मु. मेघाजी ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि); मु. जसवंत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २-८४३०-४७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१. पे. नाम. गुरुगुणछत्रीसिका सह बालावबोध, पृ. १-५ आ, संपूर्ण गुरुगुणषट्त्रिंशत्पट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरस्सपयपणमिय सिरि, अंतिः भव्वा पावंतु कल्लाणं, गाथा-४०, संपूर्ण.
१२३
गुरुगुणषट्त्रिंशत्पट्त्रिंशिका कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउदेसण० अखेवणा० संसार, अंतिः दोषादिकनुं टाल, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ से टबार्थ है., वि. बालावबोध टबार्थ शैली में है.) २. पे. नाम. १० कल्पनाम गाथा सह टीका, पृ. ५आ, संपूर्ण.
१० कल्प गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अचेलुक्कुदिसिय; अंति: मासं पज्जोसवणाकप्पो, गाथा - १.
१० कल्प गाथा - टीका, सं., गद्य, आदि: अचेलत्वं मानप्रमाण; अंतिः सव्वत्थ विकारणं एवम्.
५६५५७, (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८९३ वैशाख कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, सुर्यपुर, प्रले. मु. दीपनिधान
(गुरु ग. शिवसागर, अंचलगच्छ); गुपि. ग. शिवसागर (गुरु ग. लक्ष्मीसागर पंडित, अंचलगच्छ); ग. लक्ष्मीसागर पंडित (गुरु ग. देवसागर पंडित, अंचलगच्छ); ग. देवसागर पंडित (परंपरा गच्छाधिपति उदयसागरसूरि अंचलगच्छ); राज्येगच्छाधिपति उदयसागरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X११.५, ९X३२).
"
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रे; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२५. ५६५५९, (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-१२ (१ से १०,१२ से १३) ५ पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांकवाला अंश न होने से पत्र - ११ के बाद काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., ( २६११.५, ११x४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-९ गाथा-७ अपूर्ण से खंड-२ ढाल २ अपूर्ण तक है, जिसमें बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) ५६५६०. (+) षडावश्यकसूत्र सह वालावबोध- १ से ४ अधिकार, संपूर्ण वि. १६५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५४, ले. स्थल. मादा, प्रले. मु. सहसमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित संशोधित. कुल ग्रं. ३२८६ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ९३९).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं अंति: (-), प्रतिपूर्ण
"
आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु.. गद्य वि. १५०१, आदि: (१) श्रेयांसि श्रीमहावीर, (२)पहिलउं सकल मंगलीकनउं, अंति: (-), ग्रं. ३२८६, प्रतिपूर्ण.
५६५६१. (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १६०७ पौष शुक्ल २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९७८६ (१, ४ से ५,२२,२४ से ५४,६४ से ६५,८३ से १३०,१५२)=१११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, ११४३८-४२).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति १०, सूत्र- २७२, ग्रं. ४७००, (पू. वि. प्रतिपत्ति-२ अपूर्ण से ३ अपूर्ण व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
५६५६२. (+) कल्पसूत्र सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-२ (१ से २ ) = ८३. पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १५x५५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पीठिका अपूर्ण से स्थविरकल्पफल तक है.) कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बालावबोध में अवसरोचित संस्कृत का भी उपयोग किया गया है.)
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५६५६३. (+) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूल निर्बुक्ति भाष्य की संयुक्त अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८३-४(१ से ३,२३*)=७९, प्र. वि. आवश्यकसूत्र मूल व भाष्य का पाठ निर्युक्तिपाठ के मध्य में है., पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, ५-१७४४०-४६).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन - ६, सूत्र- १०५, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र- अवचूर्णि #. आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य वि. १४४०, आदि: प्रारभ्यते श्री अंतिः नयमतमाह नायं
"
सब्वे, संपूर्ण.
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१२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू,
गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: (-), गाथा-२५३, संपूर्ण.
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ५६५६४. (+) अष्टाह्निकामहोत्सव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६१, ले.स्थल. भीलेडा, प्रले. गणेशराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, ६४३१). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (१)हेतुः सकामान्,
(२)करगामिनी भवति, श्लोक-६२४.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ केहवा; अंति: आवति होइ इमं भवति. ५६५६५. (+#) प्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५०, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४३३). १.पे. नाम. षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण, प्रले. पं. लाभोदय पंडित (गुरु वा. भुवनकीर्ति गणि);
गुपि. वा. भुवनकीर्ति गणि (गुरु पं. ज्ञाननंदि गणि); पं. ज्ञाननंदि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: जिणपास
पयच्छउ वंछिय. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हउ आठकर्म; अंति: आपउ
वांछित सुख प्रति. २. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १८आ-२३आ, संपूर्ण, वि. १६९१, पौष कृष्ण, ६, रविवार, ले.स्थल. स्तंभ
तीर्थ. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०.
वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ सर्व कहीइ; अंति: आदिनाथ प्रमुख प्रति. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. २३आ-३०अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि,प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव
विन० आणंदिउ, गाथा-३०. ४. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ३०आ-५०अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, स्मरण-७. ५६५६६. (#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ६x४५).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. गाथा-५४२ तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने तीर्थं; अंति: (-), पूर्ण.
उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गुरुपादाब्जं; अंति: सन् जीवो नरके व्रजति, कथा-७०, संपूर्ण. ५६५६७. कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा, पट्टावली आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२४-१७०(१ से
१७०)=५४, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, ४-१६४३२-४६). १.पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १७१अ-२१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६,
(पू.वि. व्याख्यान-८ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. नयविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)श्लोकमानविनिश्चितं, (२)वारंवार भगवंत इम कहइ,
ग्रं. ७२५०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मिथ्यादुष्कृतं देयं. २. पे. नाम. तपागच्छ पट्टावली, पृ. २१९आ-२२३अ, संपूर्ण.
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानदेव अंतिः समुदाय योग्यं.
३. पे. नाम. बार बोल, पृ. २२३ अ-२२३आ, संपूर्ण प्रले. पं. उदयविजय (गुरु पं. पद्मविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. १२ बोल आचार विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविजयदानसूरिः अंतिः मतं पं. कान्हऋषिमतं.
४. पे. नाम. प्रथमवाचना विधि, पृ. २२३आ - २२४अ, संपूर्ण.
वाचना विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: मुहपति पडिलेहवी, अंति: अनुयोग पडिकमई.
५. पे. नाम. १० गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, पृ. २२४अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: संवत् ३५० वर्षे चतुर, अंतिः गच्छ सं० १५०८ लुका.
५६५६८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५, अन्य सा वीरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. २८०० अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२५.५४१०.५, ६४३३).
"
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्म, वी. रवी आदिः धम्मोमंगलमुकङ्कं अंतिः करुणा पवियालणा संधे, अध्ययन- १० चूलिका २, ग्रं. ७००.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टओ मंगलि; अंति: (१) संघ आगलि कह्यउ विलाप, (२) धौरि म कत्थ संघडह ए.
५६५६९, (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८०, मध्यम, पृ. ५५-२ (२५ से २६) = ५३ ले. स्थल, जेसलमेरुदुर्ग, प्रले. मु. गोवर्द्धन (गुरु मु. ऋषभदास) गुपि. मु. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६११, ६४५०).
"
""
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९,
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छकायनुं स्वरूप जाणी, अंति: (-), प्रतिपूर्ण
१२५
ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं है.)
५६५७० (+४) सूयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध १ सह टवार्ध, संपूर्ण वि. १७८४, कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ५९,
ले. स्थल. वातिमनगर, प्रले. मु. सकलवर्द्धन (गुरु पं. जीतवर्द्धन गणि); गुपि. पं. जीतवर्द्धन गणि (गुरु पं. रंगवर्द्धन गणि); पं. रंगवर्द्धन गणि (गुरु पं. कल्याणवर्द्धन गणि); पं. कल्याणवर्द्धन गणि (गुरु पं. धीरवर्द्धन गणि); पं. धीरवर्द्धन गणि (गुरु पं. रिद्धिवर्द्धन) पं. रिद्धिवर्द्धन (गुरु उपा. रविवर्द्धन गणि); उपा. रविवर्द्धन गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (७४०) याद्रिशं पुस्तके दृष्टं, (१०४४) जले रक्षे तले रक्षे, जैवे. (२६१२, ५३९).
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५६५७१. उत्तराध्ययनसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९-६६ (१ से ६६) = ३३,
ले. स्थल. कपासण, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (२०४५) सुंदर ग्राम अतिभलो (१०४६) जती धर्मचंदने, (१०४७) विप्र वैश्य तिहां अतिसुखी (२०४८) धर्मराज राणे सनो, (१०४९) तीन वेसे धर्मचंदजी, जैवे. (२६.५x११.५, १५X३७)
उत्तराध्ययनसूत्र - टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३२ गाथा २४ की टीका से है.) ५६५७२. (+) दशवैकालिकसूत्र व परिचय गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६.५४११, ६४३६-४७).
"
१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४६आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंतिः मुच्चइ ति बेमि
अध्ययन- १० चूलिका २.
दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ * मा.गु., गद्य, आदिः श्रीजिननु धर्म ते उत; अंतिः सुधर्मास्वामी कहइ छइ.
२. पे नाम दशवैकालिकसूत्रपरिचय गाथा सह टवार्थ, पृ. ४६आ, संपूर्ण.
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१२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्रगत गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिजभवं गणहरं जिण; अंति: कहणाय
विआलणा संघे, गाथा-४. दशवैकालिकसूत्रगत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिजभवनामा गणधर; अंति: विचार कीधा जे ए सत्य. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रगत गाथा, पृ. ४६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: आयप्पवायपुव्वा निज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५६५७३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-४(१ से ४)=४१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७४३८).. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-२ से अध्ययन-१९
गाथा-४७ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६५७४. (+) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ४५-५(१ से २,३५,३९,४३)=४०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९४३५-४५). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (प.वि. प्रारंभ व बीच-बीच
के पत्र नहीं हैं., गमणागमणे पाठ से हैव बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वांदउं नमस्करु, पू.वि. प्रारंभ व
बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ५६५७५. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, विधि, स्तवनादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-९(१० से १८)=३८, कुल पे. २९,
प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४५-५१). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तत्रादौ दैवसिकक्रिया; अंति: सुणीने सिज्झाय कहै. २.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमोक्कारस; अंति: (-), (पू.वि. एकासणा बेआसणा पच्चक्खाण तक है.) ३. पे. नाम. अठ्ठावीशलब्धि स्तवन, पृ. १९अ-२०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदिः (-); अंति: धर्मवर्धन० विलास ए,
___ ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. लघुचैत्यवंदन विधि, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: प्रथम नवकार कहणो पीछ; अंति: होयनै जयवीराय कहै. ५.पे. नाम. अष्टाविंशतिलब्धितपोधारण विधि, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम लोगस्स१ कही नम, (२)प्रथम गुरु आगल आवी; अंति:
लोगस्स१ कही निस्तरै.. ६. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. . ७. पे. नाम. आलोयणा स्तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गणि भणै,
गाथा-३०. ८. पे. नाम. १४ नियम सह बालावबोध, पृ. २३आ-२६अ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१.
श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिणे श्रावकै श्राविक; अंति: घटतो वावरै ते रूडु. ९. पे. नाम. २४ जिन कल्याणक तिथि, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१२७ मा.गु., गद्य, आदि: आषाढ वदि ४ ऋषभ; अंति: सुपार्श्वनाथाय नमः. १०. पे. नाम. कानिचित्तपो भेदानि, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
तपोभेद संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: १उपवास १बेआसणो १आंबि; अंति: तप दलिद्र दूर जाय. ११. पे. नाम. वीरजिनतपस्याधिकार स्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामिरे बुद्धि; अंति: स्वामी आपो सुख घणा, गाथा-११. १२. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
मु. खेम, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: अजितजिन समरीये रे; अंति: खेममुनि उल्लास ए, गाथा-१६. १३. पे. नाम. पोसहविधि संग्रह, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदना करणी पछै; अंति: वोसिरामि तीनवार कहणो. १४. पे. नाम. १८ नातरा बोल, पृ. २९आ, संपूर्ण.
१८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देवरधणीरो भाई१ भतीजो; अंति: वैश्यासू नाता एवं १८. १५. पे. नाम. उपदेशमाला स्वाध्याय, पृ. २९आ-३१अ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३३. १६. पे. नाम. जंबूद्वीपस्थ १७० जिननाम, पृ. ३१अ-३२आ, संपूर्ण.
१७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १श्रीजयदेव सर्वज्ञाय; अंति: (१)नमः एवं सर्व १७०, (२)रत्नत्रयी शीघ्र पामै. १७. पे. नाम. रोहिणीतपस्तवन, पृ. ३२आ-३४अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: सफल मन आस्या फली, ढाल-४,
गाथा-३२. १८. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणे द्वादशव्रतातीचारशोधनसूत्र, पृ. ३४आ-३७अ, संपूर्ण.
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: सव्वस्सवि देवसियस्स; अंति: अरिहे समणे तहा संघे. १९. पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
वा. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणंदनी वाणी; अंति: लालचंद० गुण गावैरे, गाथा-९. २०. पे. नाम. पैंतालीस आगम नाम, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण, अन्य. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य.
४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ आचारांगसूत्राय नमः; अंति: ४५ अनुयोगद्वारसूत्र. २१. पे. नाम. सम्यक्त्व मूल द्वादशव्रत, पृ. ३९अ-४४अ, संपूर्ण. श्रावक १२ व्रत विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथ सुश्रावक पुण्य; अंति: (१)करीने १२ व्रत पालवा, (२)परवसनी
जयणा है. २२. पे. नाम. साढापचवीस आर्यदेशनगरी नाम, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण.
आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मगधे राजगृही१ अंगे; अंति: कैकयार्धेस्वेताबिका. २३. पे. नाम. महावीरनो आऊखो, पृ. ४४आ, संपूर्ण..
महावीरजिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रमासे जन्म अने; अंति: ते पछी पावदिन रह्यो. २४. पे. नाम. ५ समवाय गाथा, पृ. ४४आ, संपूर्ण..
प्रा., पद्य, आदि: कालो १ सहावर नियई३; अंति: एगंते होइ मिच्छत्तं, गाथा-१. २५. पे. नाम. षड्दर्शन विचार, पृ. ४४आ, संपूर्ण.
६दर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: बौद्धाः क्षणिकवादिनः; अंति: भावः सम्यक्त्वम्. २६. पे. नाम. आठ कर्म की १५८ प्रकृति, पृ. ४५अ-४७आ, संपूर्ण.
८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म३०; अंति: १५८ प्रकृति जाणवी. २७. पे. नाम. छ आवश्यक नाम, पृ. ४७आ, संपूर्ण.
६ आवश्यक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: सामायिक १ चोवीसत्थो; अंति: निर्जरातत्त्व में छे.
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२८. पे नाम, षद्रव्य नाम, पृ. ४७आ, संपूर्ण,
सं. गद्य, आदि धर्मास्तिकाय अधर्मा, अंति: काय अद्धासमवाविध.
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२९. पे. नाम. सम्यक्त्वना ९ भेद, पृ. ४७आ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व के ९ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यसमकीतर ते अंति: नवभेद समकितना जाणवा.
५६५७६. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक
लकीरें., जैदे., ( २६.५X११, ५X३४-३७).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२४. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: जीव ए विचार जोईवर.
५६५७७. (+४) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३५ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १३x४०-४७).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः सेवं भंते सुहविवागा, श्रुतस्कंध - २ अध्ययन
२०. ग्रं. १२५०.
५६५७८. (+४) मणिपति चरित, संपूर्ण, वि. १६८१, पौष शुक्ल ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ३५, राज्ये आ. विजयदेवसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६४११.५, ११X३२).
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मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउव्वि, अंति: ता नंदओ मणिवई चरियं गाथा ६४६.
५६५७९, (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२- १ (१) = ३१, प्र. वि. पत्रांक भाग खंडित होने से पत्रानुक्रम अव्यवस्थित है, संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., ( २६.५४११, ६-१८X३५-४५).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). (पू.वि. बीच के पत्र हैं., वाचना-१ जिनस्तुति अपूर्ण से पुरिमतालनगर प्रसंग तक है, जिसमें बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
प्रारंभ तक है.)
उपासक दशांगसूत्र - अर्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिणिं काले चउधा आरा, अंति: (-).
कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. बीच के पत्र हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १० अछेरावर्णन से अचलपुर में सुमतिसूरि के प्रवेश प्रसंग तक लिखा है.)
५६५८०. उपाशकदशांगसूत्र सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २९, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५X११.५, १०x४६). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी, अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन-२ के
५६५८१. (+) सिद्धांतसमुच्चयसार, जमाली आलापक आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. ४,
प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैवे. (२६४११, १३x४०-४७)
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१. पे. नाम. सिद्धांतसमुच्चयसार, पृ. १आ-२८अ संपूर्ण, अन्य. मु. शंकर ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य.
प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१) सम्यक्त्वनउ अधिकार १, (२) नमो अरिहंताणं नमो; अंति: चारित्र सही जाण्यो, ग्रं. १०००, (वि. ५८ बोल बीजक, ५८ बोल तथा महावीरजिन परंपरा से संकलित है.)
२. पे नाम. सामायिकाध्ययननियुक्ति गाथा १०, पृ. २८अ संपूर्ण
गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
३. पे नाम, भगवतीसूत्र - जमाली आलापक, पृ. २८अ संपूर्ण
भगवतीसूत्र- जमालीआलावा, प्रा. गद्य, आदि जमालीणं भंते देवेतात, अंतिः सेवं भंते सेवं भंते.
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४. पे. नाम. चरणकरणसत्तरी, पृ. २८अ, संपूर्ण.
चरणसत्तरी- करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्मं १०: अंतिः भिम्गहा ४ चेव करणंतु, गाथा-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६५८२. (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६x४०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११,
संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
__अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५६५८३. (+#) दानशीलतपभावना कुलक सह धर्मरत्नमंजूषाटीका व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-५(२ से ६)=२८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४३५-४०). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअरजसारो; अंति: (-),
(पू.वि. दानकुलक-गाथा-७ तक है.) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: परिहरिअत्ति परिहतं;
अंति: (-). दानशीलतपभावना कुलक-कथा, ग. देवविजय, सं., गद्य, आदि: ग्रामेशस्त्रिदशोर; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन
चरित्र अपूर्ण से भरतचक्री केवलप्राप्तिप्रसंग तक है.) ५६५८४. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-३(१ से ३)=२३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११, ४४२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, गाथा-१९
अपूर्ण से अध्ययन-५, गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) ५६५८५. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-मृगापुत्रअध्ययन सह टबार्थव बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ४४१७-३९). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: सुग्गीवे नयरे रम्मे;
अंति: वाहण गुणवेहं त्तबेमि, गाथा-९९. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागने नमीने; अंति:
सुख पाम्यो एहवूक. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवि मृगापुत्र तिर्यं;
अंति: संखेपे नरक गति कही. ५६५८६. (+) पुष्पमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५४१, माघ शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, ११४३५). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह; अंति: सया
सुहत्थिहिं, द्वार-२०, गाथा-५०५. ५६५८७. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९७९, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. नारायण नथुभाई ब्रह्मभट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.७५१, दे., (२६४११.५, ३-१४४३०-५०).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: (१)ॐ नत्वा पार्श्वनाथ,
(२)प्रकासक० अतिहिं; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति. पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बीच-बीच में कुछेक सूत्रों का बालावबोध
भी दिया गया है.) ५६५८८. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह विषमपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(६*)=२३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३०-३५). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पति निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६,
ग्रं. ४७३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्कल्पसूत्र-विषमपद टिप्पण*, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रारंभिक भाग में ही टिप्पण है.) ५६५८९. (+) कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ३,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ४४३८). १. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण.. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६२, (वि. पाठ क्रमशः है, किंतु गाथाक्रम-६५ के बाद गाथा-६० लिखा है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७वी, आदि: (१)शारदां वरदां स्मृत्व,
(२)श्रीमहावीरजिन प्रति; अंति: देवेंद्रसूरि आचार्ये. २. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ११अ-१६आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तिम अमे स्तबुंछु म; अंति: श्रीमहावीर प्रतिइ. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १६आ-२०आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति:
देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मबंधथी मुकाणउं; अंति: कर्मस्तव
सांभलीनइ. ५६५९०. (+#) पंचाशक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५३). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: जह विरहो होइ कम्माणं,
पंचाशक-१९, गाथा-९४०, ग्रं. ११८७. ५६५९१. (+) आराधनापताका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-३(१,३,१७)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४५५). आराधनापताका, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से ८६ अपूर्ण, १२८ से ६०० व ६३५
अपूर्ण से ९२० अपूर्ण तक है.) ५६५९२. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८३-३६४(१ से ३२९,३३३ से ३६७)=१९, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५४३२-३६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-१६
अपूर्ण से अध्ययन-१७ अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५६५९३. (+) इंद्रियपराजयशतक व वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरपत्तन
(देवपत, प्रले. पं. जीतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६x४०). १.पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक सहटबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, वि. १७३४, वैशाख शुक्ल, १०, रविवार.
इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेगसुरसायणं निच्चं, गाथा-९९.
इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहिज सूरो तेहिज; अंति: दमो अनंतसुख पामो. २. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ९अ-१७आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४, (वि. १७३४, वैशाख शुक्ल,
२,शनिवार) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: तुंशाश्वतुं ठाम, (वि. १७३४, वैशाख शुक्ल, १४,
गुरुवार)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१३१ ५६५९४. (+) अनुत्तरौपपातिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १९२, जैदे., (२६.५४१२, ६x४२).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: कहाकहाणं तहा
णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: परि तिमज ने जाणिवा. ५६५९५. (+#) उपाशकदशांगसूत्र सह विषमपदटिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४१०, १५४६७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२,
(पू.वि. अध्ययन-१ अपूर्ण से है.)
उपासकदशांगसूत्र-विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६५९६. (+#) आवश्यकसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. रुपा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३७X४, ५४४४).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० सव्वसाहूण; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ,
संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार हुओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., बीच के कुछ सूत्र व अंतिम २ सूत्रों का टबार्थ नहीं लिखा है.) ५६५९८. (+) नयचक्र भाषावनिका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४७, पौष कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. भऊर, प्रले. श्राव. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४४७). नयचक्र-भाषावनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्यात्कारमुद्रिता; अति: लोह सुवर्णन
थायइ, ग्रं. ७००. ५६५९९. (+) आचारांगसूत्र- श्रुतस्कंध-१, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४५७).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुअंमे आउसं तेण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६६००. (+) दशठाणां, संपूर्ण, वि. १८१०, फाल्गुन शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अंजारनगर, प्रले. मु. मानसिंघ ऋषि
(गुरु मु. कर्मसी ऋषि); गुपि. मु. कर्मसी ऋषि (गुरु मु. मोहणसीजी ऋषि); मु. मोहणसीजी ऋषि (गुरु आ. सुखमलजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३४).
१० स्थान बोल-आनंदादि दशश्रावक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मन ठाम राखवानु हेतु; अंति: सुलसापिया श्रावक१०. ५६६०१. (#) सिंदूरप्रकर व सवैयो, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २,
ले.स्थल. सालावस, प्रले. मु. धरमचंद ऋषि; पठ. मु. हीराचंद ऋषि (गुरु पं. वृद्धिचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८९८) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्या, (१०३८) ज्यां लग मेरु अडग है, (१०३९) पोथी और पदमणी, (१०४०) लेखणे पुस्तका रामा, दे., (२६.५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. सिंदुर प्रकरण, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मु. गोकल, पुहिं., पद्य, आदि: आचार विचार अनोपम; अंति: जालम भेख सही जती कौ, गाथा-१. ५६६०२. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३, जैदे., (२७४११, १७४५०-५५).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: तदुभयेणं अणुजाणामि, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ५६६०३. अन्योक्तिमौक्तिकमहोदधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६.५४११, १३४४४-४८).
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अन्योक्तिमौक्तिकमहोदधि, मु. हेमविजय, सं., पद्म, आदि: श्रीश्रितमनंतसुखरति; अंति: हेमविजयेन विनिर्मितः, श्लोक-२१४.
५६६०४. (#) श्रावक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९९९, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. हेमराज (गुरु मु. गुमानचंद): गुपि. मु. गुमानचंद (गुरु मु. किसनचंद), मु. किसनचंद, प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे., (२६X१२, १३X३२).
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प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५६६०५. (+#) संग्रहणीसूत्र व पुन्य कुलक, संपूर्ण, वि. १८५२, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल. जामपुर, प्रले. ग. मुक्तिविजय, पठ. मु. लखमीचंद (गुरु ग. मुक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२, १५x४४).
"
१. पे. नाम. संघयणि प्रकरण, पृ. १आ - ११आ, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद कृष्ण, १ अधिकतिथि.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: नंदउ जा जिणमयं लोए,
गाथा - ३०५.
२. पे. नाम. पुन्य कुलक, पृ. ११आ, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, ६, सोमवार.
पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियतं माणुसत्तं अंतिः पभूव पुत्रेहिं, गाथा- १०.
५६६०६.
"
आवश्यक सूत्र संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १२-१ (१) ११. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, ७५४५).
""
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. लोगस्ससूत्र से
पचक्खाणसूत्र अपूर्ण तक हैं.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का बालावबोध", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६६०७. वीसवीसी प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६. दे. (२६.५x११.५, १५X३७).
विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण वीरनाहं सव्व, अंति: लहंतु जिणसासणे बोहिं, अधिकार- २०. ग्रं. ५००.
५६६०८. संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. लखनौ, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ); पठ. मु. पुण्यरत्न (विजयगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२६.५४१२, ६३४).
संबोधसमतिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा. पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअ गुरुं, अंतिः जयसेहर ० नत्थि संदेहो,
गाथा - १०३.
५६६०९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६.५X११, ७५० ). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए: अंति: (-) (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अ०
"
१ अपूर्ण तक)
५६६१० (+) स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे. (२६.५x१२, ५-९४३२-४८).
१. पे नाम वीरथुई सह टवार्थ, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति तिबेमि, गाथा - २९.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीसुधर्मास्वामीने अंतिः आगमि काले इ० इम हूं.
२. पे. नाम महावीरजिन स्तुति सह टवार्थ, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूल, अंति: हुति परित्तसंसारी, गाथा-५. प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० हे सुव्रत जंबु; अंति: थोडा सं० संसारना धणि. ३. पे. नाम. धार्मिकश्लोक संग्रह, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
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१३३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कलाणिकोडि कारणी दुर; अंति: जिनेश्वर देवाधिदेवम्, श्लोक-१९. ५६६११. (#) सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ७४३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति:
विनिर्मिता कनककुशलेन, श्लोक-१५०, (पू.वि. श्लोक-९ से है.)
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कनककुशलेन ग्रंथकर्ता. ५६६१२. (#) कर्पूरप्रकरण, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४४२-४८).
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६६ अपूर्ण तक है.) ५६६१३. (+) पंचसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ११४२८-३५).
पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमोवीयरागाणं सव्व; अंति: निस्सेयस साहगति, सूत्र-५. ५६६१४. वसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२७.५४११, ८४३७).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ५६६१५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-२६(१ से २६)-८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३६-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. देवानंदामाता के गर्भापहार प्रसंग अपूर्ण से
त्रिशलामाता चौदस्वप्न वर्णन अपूर्ण तक हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६६१६. (#) महर्षिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ.८, प्रले. पं. ऋद्धिविजय; पठ. श्रावि. अजवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३९-४२). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं,
गाथा-१६४. ५६६१७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ११६-१०८(१ से
१०८)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ले.स्थल. मुडेठा, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १५-१९४३८-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. श्रीऋषभदेव केवलज्ञान वर्णन से
श्रीमहावीरस्वामी जीवन चरित्र अपूर्ण तक हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५६६१८. नवकारकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१२(१ से १२)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ११४३४). नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. श्रीमती कथा अपूर्ण से शिवकुमार-जिनदास कथा
अपूर्ण तक है.) ५६६१९. (#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ७)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४१२, १०x२३-२६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ अपूर्ण से
गाथा-१६० अपूर्ण तक है.) ५६६२०. (+) कल्पसूत्र-मांडणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११,
१३४४५-५०).
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व
"
१३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: जयवंत प्रवर्तउ. ५६६२१. (+#) सुभाषित संग्रह- पौराणिक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २१४५३).
सुभाषितश्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ६५ अपूर्ण से ५५१ अपूर्ण तक हैं.) ५६६२२. (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १९४५७).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., प्रतिक्रमण दृष्टांत तक लिखा हैं.) ५६६२३. (+) जिनजन्म महोत्सव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१६x२५-३२). जिनजन्ममहोत्सव अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. जिन जन्मोत्सव से मेरूपर्वत
वर्णन अपूर्ण तक हैं.) ५६६२४. (#) सिंदूर प्रकरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, पठ. मु. साधुहस (गुरु मु. कर्मसागर);
गुपि. मु. कर्मसागर (गुरु मु. देवकीर्तिसूरि); मु. देवकीर्तिसूरि (गुरु मु. विजयसिंहसूरि); मु. विजयसिंहसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५६). १. पे. नाम. सिंदर प्रकरण, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: स जानाति जनाग्रतः, द्वार-२२,
श्लोक-१०३. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५६६२५. (#) शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१६, माघ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. छठीआडा, पठ. मु. रायचंद (गुरु
ग. दर्शनविजय); गुपि. ग. दर्शनविजय (गुरु ग. ज्ञानविजय); प्रले. पं. न्यानविजय (गुरु ग. प्रमोदविजय); गुपि. ग. प्रमोदविजय (गुरु मु. विवेकविजय); मु. विवेकविजय (गुरु मु. चतुरविजय); मु. चतुरविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय); पं. ऋद्धिविजय (गुरु मु. भावविजय); मु. भावविजय (गुरु ग. शुभविजय, तपागच्छ); ग. शुभविजय (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपागच्छ);
आ. हीरविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६. ५६६२६. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३९).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३. ५६६२७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १६६-९३(१ से ३,६ से ११,३२ से ४७,५३ से
५६,५८,६० से ६२,६४ से ६६,६८ से ६९,७१ से ७६,७८,८२ से ८४,८७ से १०५,१०९,१११ से ११७,११९,१२४,१२८,१३१ से १३२,१३५ से १३८,१४६,१४८ से १५१,१५६,१५८,१६०,१६२)=७३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५-१५४५४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५६६२८. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १०३, पठ मु. कनककल्याण (गुरु पं. रत्नकल्याण गणि); गुपि. पं. रत्नकल्याण गणि (गुरु पं. कुशलकल्याण गणि); पं. कुशलकल्याण गणि (गुरु पं. कल्याण गणि); पं. कल्याणसोम गाणि (गुरु आ. जयकल्याणसूरि) आ. जयकल्याणसूरि प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १४X३४).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंतिः उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९. कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि: तीणइ कालि तीणइ समझ, अंति: प्रभात काल बोलीसिइ. ५६६२९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रावण शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०२, ले. स्थल. कडलु,
प्र. ग. क्षमारुचि (गुरुग. धीररुचि, तपागच्छ); गुपि. ग. धीररुचि (गुरु मु. तेजरुचि, तपागच्छ); मु. तेजरुचि (गुरु पंन्या. उदयरुचि, तपगच्छ); पंन्या. उदयरुचि (तपागच्छ); राज्येगच्छाधिपति विजयप्रभसूरि (गुरु आ देवसूरि तपागच्छ); गुपि आ. विजयदेवसूरि ( गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३५१६, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११, ६३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेण कालेणं० समणे, अंति: ( १ ) उवदंसेइ त्ति बेमि, (२) अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६.
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कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रतइ माहरो; अंति: भद्र० शिष्य प्रतइ, ग्रं. २३००.
५६६३०. (#) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९१-८ (१ से २,५६ से ५९,६८ से ६९) = ८३, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ३२५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११.५, ११X३१-४०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि (-); अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन- १०, (पू.वि. अध्याय-१ से अध्याय- २ की गाथा - ११ अपूर्ण तक, अध्याय- ५ की गाथा - ६१ से अध्याय - ६ गाथा- ६१ व अध्याय-८ की गाथा-१८ अपूर्ण से गाथा- ३३ तक नहीं है., वि. चूलिका २.)
दशवैकालिकसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बालाविबोध जाणिवं.
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- बार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६६३२. सूर्यप्रज्ञप्ति, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८-१ (१५) =७७, दे., (२७X११.५, १२X३८).
५६६३१. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६८-८९ (१ से ८८, १३४) =७९, पू. वि. बीच के पत्र
हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै. (२६.५४११, ७५५).
"
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ अपूर्ण से चंपानगरी सागरदत्त सार्थवाह प्रसंग तक हैं.)
१३५
सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरहंताणं तेणं; अंतिः पणतौ सोखुप्पाए सयाए, प्राभृत- २०, ग्रं. २२००, ( पू. वि. पाहु २ का कुछेक पाठ नहीं है. )
५६६३३. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९६३ कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले. स्थल, नागनेस, प्रले. व्रजलाल ओधवजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X११.५, ५X३५).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: जंबू अपरिहो संवुड: अंतिः त्तिमगास्स फलिह भूतो,
"
अध्याय- १०, गाथा - १२५०.
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प्रश्नव्याकरणसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: अएह० अपि विधिना एह०; अंतिः एतला सुधी पाठ जाणवो. ५६६३४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १६९१, वैशाख कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६१-३ (१ से २,६०)=५८, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अपठनीय है., जैदे., (२५. ५X११, ११x२९).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अ० १ व अ० १९ अपूर्ण हैं.)
५६६३५. (#) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १८x४५-५८).
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१३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. अतिचार,
गुणस्थान ३ अपूर्ण तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि
श्रीमहावीर; अंति: (-). ५६६३६. (+#) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५८३, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४९-१(१७)=४८,
प्रले. मु. महिराज (गुरु आ. मलयहससूरि, बृहद्गच्छ); गुपि. आ. मलयहससूरि (गुरु आ. मुणिचंद्रसूरि, बृहद्गच्छ); आ. मुणिचंद्रसूरि (गुरु आ. मलयचंद्रसूरि, बृहद्गच्छ); आ. मलयचंद्रसूरि (बृहद्गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३-१५४४०-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-२७६,
(पू.वि. गाथा ७८ से ८५ तक नहीं है., वि. गाथाक्रम में वैविध्य है.)
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अहँनत्वा श्रीवीर; अंति: अनाकार उपयोग कहीइ. ५६६३७. (+#) कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(११*)=४८,प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-क्रियापद संकेत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३८-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६..
कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: श्रीपर्युषणाकल्प; अंति: पारतंत्र्यमभिहितम्. । ५६६३८. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०३, आश्विन शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४२, ले.स्थल. लांबा,
प्रले. मु. जीवा ऋषि (गुरु मु. वीका ऋषि); गुपि. मु. वीका ऋषि (गुरु मु. कान्हाजी ऋषि); मु. कान्हाजी ऋषि; राज्ये गच्छाधिपति शिवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म दुर्गति पडता; अंति: गति इति ब्रवीमि. ५६६३९. (+) विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १६-५(१ से ५)=११, पठ. श्रावि. झूमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३५). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: दर्शनर चारित्र३ तप४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. २५
क्रिया, इरियावही, नवतत्त्वादि.) ५६६४०. (#) चोढालिया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. १६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२६४१२, १९x४२). १.पे. नाम. खंधकजीरी ढाल, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण..
खंधकमुनि ढाल, रा., पद्य, आदि: वध परिसो वर्णवू; अंति: तिण अनुसारै इधकारो, ढाल-८. २. पे. नाम. गुणसागरमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण..
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुणसागर मुनिराय करता; अंति: रतनचंदगुण उजवालनै ए, गाथा-१६. ३. पे. नाम. भगुप्रोहितनो चोढाल्यो, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: देव हुता पूरव भवे; अंति: पाम्या मोख सुखकार, ढाल-४, गाथा-६०. ४. पे. नाम. मेघकुमार चौढालियो, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण.
मेघकमार चौढालिया, रा., पद्य, आदि: रिषभादिक चोवीसने; अंति: ते मुगत रमणनै जासी, ढाल-७. ५. पे. नाम. वज्रकंवररो चोढाल्यो, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राय दसरथ पहिला हुवो; अंति: सहु हरख्या बाई भाई, ढाल-७. ६. पे. नाम. जिनरिषजिनपाल चोढालियो, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण.
जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: जासी मोखरे, ढाल-४, गाथा-६८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१३७ ७. पे. नाम. अषाडभूतरी ढालां, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण.
आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परिसोह बावीसमो; अंति:
इधका उछानो इधकार हो, ढाल-७. ८. पे. नाम. खंधकजीरो चोढालियो, पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुवीर सासनधणीजी; अंति: मिच्छामि दुक्कडम
मोय, ढाल-४. ९. पे. नाम. निरमोही ढाल, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोही गुण वरणवू; अंति: पंच ढाल प्रसिद्ध
रे, ढाल-५. १०. पे. नाम. अषाढभूतरी ढाल, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: गौतम गुणधर गुणनीलो; अंति: मोहनी पासीरे
लो, ढाल-९. ११. पे. नाम. कुंडरीकपुंडरीक ढाल, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
पुंडरिककंडरिक चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीकणी नामै वीजै; अंति: स्वार्थ सिधमै जायजी, ढाल-५. १२. पे. नाम. गजसुखमालरी ढाल, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि छढालियो, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठदेस मझार द्वारका; अंति: मधुमासै गुरवारो,
ढाल-६. १३. पे. नाम. सुरपियारी ढाल, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण.
सुरप्रियमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: आदनाथ सिमरू सदा आप; अंति: वीर बोल्या घणा, ढाल-७. १४. पे. नाम. कातक सेठरो चोढालियो, पृ. १९अ-२१अ, संपूर्ण. कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध साधु सर्व; अंति: जैमल० उपीउग दिल
राखी, ढाल-५. १५. पे. नाम. कानड कठियारारी ढाल, पृ. २१अ-२४अ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति:
मान० जे सेवे नरनार, ढाल-८. १६. पे. नाम. आदिनाथजीरी ढाल, पृ. २४अ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., पद्य, आदि: धनपति नामे देवता नवी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १० गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ५६६४१. (#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध श्रुतस्कंध-२, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. २५००, टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ६-१९४४३-४९).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: यांगस्य वार्तिकं, प्रतिपूर्ण. ५६६४२. कर्मस्तव सह बालावबोध व टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र.वि. कुल ग्रं. १३००, दे., (२६४११.५, १२४३८). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिजगत सृष्टिसंतान; अंति: पूर्वक नमस्कार करूं.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिम स्तवीश श्रीवीरजी; अंति: महावीरदेवना चरणकमल. ५६६४३. (+) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१(१)=३४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-५ अपूर्ण से
अध्ययन-१० गाथा-६ तक है.) ५६६४४. (+#) परिशिष्टपर्व, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०३-५३(२ से ४,२६ से ५४,६२ से ८२)=५०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १३-१५४३५-४०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि:
श्रीमते वीरनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-१३ श्लोक-१२२ अपूर्ण तक है.) ५६६४५. (+#) गौतमपृच्छा सह सुगमा टीका, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रावण कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३+१(२४)=३४,
ले.स्थल. सादासर, प्रले. मु. मेयसुंदर (गुरु मु. राजमिंदर); गुपि. मु. राजमिंदर (गुरु पं. जीतरंग गणि); पं. जीतरंग गणि (गुरु भट्टा. जिनचंद्रसूरि); भट्टा. जिनचंद्रसूरि; राज्ये आ. जिनसौभाग्यसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३-१८४४२-५५).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टीका, म. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: नगर्यां च शुभे दिने,
ग्रं. १६८३. ५६६४६. (+) प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३३-३५).
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५५ अपूर्ण तक लिखा है.) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने जुगादि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-४० तक टबार्थ लिखा है.) ५६६४७. (+) जीवविचार व नवतत्त्व सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुलपे. २, प्रले. ग. मोहनविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपालउयमणार्थे बाइजी श्री भट्याणीजी., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३६). १.पे. नाम. जीवविचार सह टीका, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: अस्यां गाथायां पूर्व; अंति: तस्मादिति गाथार्थः. २. पे. नाम. नवतत्त्व सह टीका, पृ. १५अ-३२आ, संपूर्ण..
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुण्णं३; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४१.
नवतत्त्व प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीरः; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. ५६६४८. (#) पंचसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४१२, ३-६४३३-३९).
पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो वीतरागाणं सव्व; अंति: पवज्जाफलसुत्तं, सूत्र-५.
पंचसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: सत्वाः सुखिनः संतु. ५६६४९. (+) प्राचीनकर्मग्रंथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२७.५४११.५, १५४४६). १. पे. नाम. कर्मविपाकप्रकरण, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्गमहर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंक वीर; अंति: कम्मविवागंउ सो
अचिरा, गाथा-१६८. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे तिहु; अंति: दसणसुद्धिं समाहिंच, गाथा-५६.
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१३९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ३. पे. नाम. कर्मस्तव भाष्य, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-भाष्य प्रथम, प्रा., पद्य, आदि: बंधे विसुत्तरसय; अंति: अणुदयपत्तस्सुईरणया, गाथा-३२. ४. पे. नाम. आगमिकवस्तु विचार, पृ. ८आ-११आ, संपूर्ण. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणतु जाणंतु,
गाथा-९७. ५. पे. नाम. षडसीति भाष्य, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण.
षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: जीवाइपयत्थेसुं जिणोव; अंति: निकायणा करणणुचियत्तं, गाथा-३८. ६. पे. नाम. सार्धशतक प्रकरण, पृ. १२आ-१७अ, संपूर्ण.
सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सयलंतरारि वीरं वंदिय; अंति: बोहिंतु सोहिंतु, गाथा-१५४. ७. पे. नाम. सार्द्धशतक भाष्य, पृ. १७अ-२०आ, संपूर्ण..
प्रा., पद्य, आदि: नियहेउ संभवे विहुभयण; अंति: पज्जेण समं भवे बंधो, गाथा-९६. ८. पे. नाम. बंधस्वामित्व प्रकरण, पृ. २०आ-२२अ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं० वोच; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-५४. ९. पे. नाम. सयगपगरण, पृ. २२अ-२५आ, संपूर्ण. शतक प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरहते भगवते अणुत्त; अंति: सो नाही बंधमोक्खटुं,
गाथा-१११. १०.पे. नाम. शतकभाष्य, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
लघुशतकभाष्य, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वुच्छामि; अंति: सरविउव्विदुगतित्थं, गाथा-२५. ११. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ का भाष्य, पृ. २६अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सप्ततिका कर्मग्रंथ-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं कम्मट; अंति: (-), (पू.वि. गाथा
१७३ तक हैं.) ५६६५०. (+#) संग्रहणीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३१-१(१)=३०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४६०-७०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से १५४ तक है.)
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६६५१. अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०१, आश्विन कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. मदलवर, प्रले. मु. बुद्धिसागर;
लिख.पं. विनयराज (अज्ञा. वा. हेमशील, अंचलगच्छ); गुपि. वा. हेमशील (अचलगच्छ); राज्ये आ. गुणनिधानसूरि (गुरु आ. भावसागरसूरि, अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ७९०, जैदे., (२६.५४११, ११x६२). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२,
ग्रं. ७९०. ५६६५२. (+) ओघनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १६००, जैदे., (२६४११.५, १५४५५-५८).
ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहते वंदित्ता चउदस; अंति: अहिएहिं संगहिआ, गाथा-११६४,
ग्रं. १६००. ५६६५३. (+) शतककर्मग्रंथ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, २-४४२७-३०). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिण धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा जिनं धुवबंधोदय; अंति: बृहच्छताकन्य इति शेष.
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१४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६६५४. (+) सिंदूरप्रकर सह वल्लभीटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १३४३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ० मुक्तावली, द्वार-२२,
श्लोक-९९. सिंदूरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः (१)गौतमादि गुरुं नत्वा, (२)पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति:
वल्लभीटीकालिखिता. ५६६५५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थव शनिस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०५, फाल्गुन कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल
पे. २, प्रले. मु. भूधर ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि); गुपि. मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि); मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ४-१६४५२-५४). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२१आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं गुरोवा; अंति: वा सिद्धांत समुद्रथी. २.पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. २१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: प्रातरुत्थाय य पठेत्, श्लोक-८. ५६६५६. (+#) तिथिविचार, चौदहगुणस्थानक विचार, आगमपरिमाण विचार आदि आगमिक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी,
मध्यम, पृ. ४१-३६(१ से ११,१५ से २२,२४ से ४०)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, ३४४१९).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विभिन्न आगमिक विचारों का संग्रह.) ५६६५७. नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६५-२४५(१ से २४५)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२, ७४२४-२६).
नेमिजिन चरित्र*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रीकृष्ण व जरासंघ युद्ध का वर्णन अपूर्ण मात्र है.) ५६६५८. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५१-३३(१ से ३२,३४)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६x४२).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ अपूर्ण से अध्ययन-८ ___ अपूर्ण तक है.)
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६६५९. (+) पुण्यसार कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-४८(१ से ४८)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, १५४३७-४३). पुण्यसार कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०२ अपूर्ण से ७४४ अपूर्ण तक है., वि. श्लोक-६५१ पर
यह कथा पूर्ण हो गयी है परंतु श्लोक-६५२ से क्रमशः श्लोक व संदर्भकथा मिलती है.) ५६६६०. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-२०(१ से ६,१३ से १६,१८ से २२,२४,२७ से ३०)=१३,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८४/४, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ६x४८). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-१ अपूर्ण से उद्देशक-३ अपूर्ण तक,
उद्देशक-५ अपूर्ण व उद्देशक-६ अपूर्ण से उद्देशक-७ अपूर्ण तक है.)
व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६६६१. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५४-३७(१ से ३७)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, २१४४८-५७).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५६ से ८० तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका*,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५६६६२. पुद्गलषत्रिंशिका व निगोदषत्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. अंतिम पत्र का
पत्रांक १८ लिखा है किन्तु वास्तव में १७वाँ है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४९). १. पे. नाम. पुद्गलषट्त्रिंशिका सह वृत्ति, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: वोच्छं अप्पाबहुअं; अंति: ज ते अणंते
जिणाभिहिए, गाथा-३६. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचम एव शतकेष्टमो; अंति: भिहितान्
जानीयादिति. २. पे. नाम. निगोदषविंशिका सह वृत्ति, पृ. १०आ-१७आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: ते
अणंता असंखा वा, गाथा-३६. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग
एवैकादशशत; अंति: प्यसंख्येया अवसेयाः. ५६६६३. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. विजेवा नगर, प्रले. पं. मुनिद्रविजय गणि (गुरु
पं. जयविजय गणि); गुपि.पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पं. अमृतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंताहरणपार्श्वप्रभु प्रशादे., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७७३८-४०).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सूरिःपद्मप्रभः पूर्व; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०,
(वि. १८२१, माघ शुक्ल, १, मंगलवार) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ मह; अंति: आचार्ये कह्यो छई, (वि. १८२१, माघ शुक्ल,
५, शनिवार) ५६६६४. (+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७००, संयमशत, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २९-१४(१ से १४)=१५,
ले.स्थल. स्थंभतीर्थ(खंभा, राज्ये आ. विजयदेवसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१२, ४४३४). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९३, (पू.वि. गाथा ३१
अपूर्ण से है.)
सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उणी नेउ गाथा होइ. ५६६६५. (+) कल्पसूत्र सामाचारी व संघगुण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल
पे. २, ले.स्थल. सोई गाम, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ७-१५४४१). १.पे. नाम. कल्पसूत्र सामाचारी सह टबार्थ, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: उवदंसे
त्तिवेमि. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालनै विषइ तेणे; अंति: इम उपदेश देता
हता.
२. पे. नाम. संघगुण सह टबार्थ, पृ. १४अ, संपूर्ण.
संघ स्तुति, सं., पद्य, आदि: संघोयं गुणरत्नरोहणगि; अंति: संघमहामंदिरं वंदे, श्लोक-६, संपूर्ण. संघ स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसंघ गुण रूप रत्न; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा
३ तक टबार्थ लिखा है.) ५६६६६. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान व ज्ञानपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-क्रियापद संकेत-संशोधित-संशोधित., जैदे., (२७७१२, १३४३३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे नाम, अष्टान्हिकापर्व व्याख्यान, पृ. १अ १४आ, संपूर्ण.
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता, अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्.
२. पे. नाम. ज्ञानपंचमी कथा, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्म, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण तक है.)
५६६६७. अनुत्तरौपपातिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैवे. (२६४११.५,
५४४४).
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अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-), (पू. वि. वर्ग-३ अध्ययन १ अपूर्ण तक है.)
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आराने, अंति: (-).
3
५६६६९. (+) आलोयण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. प्र. वि. संशोधित संशोधित, जैदे. (२६.५X११.५, ११x४६-५२). श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिने, अंति: विधिस्तुयंत्रकातज्ञय. ५६६७०. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. सरसोम (गुरु पं. धनसो गणि); गुपि. पं. धनसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, ४२३).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः बुद्धबोहिकणिक्काय, गाथा ४५.
नवतत्त्व प्रकरण- टवार्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो जीवतत्त्व बीजो अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध
५६६७१. (+) दिपालिका कल्प, संपूर्ण, वि. १८६०, पौष शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. भृगुपुर, प्रले. ग. धर्मविजय (गुरु पं. रत्नविजय, विजयआणंदसूरिगच्छ); गुपि. पं. रत्नविजय (गुरु आ. लक्ष्मीसूरि, विजय आनंदसूरिगच्छ ) आ. लक्ष्मीसूरि (विजयआणंदसूरिगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीकहल्लारा पार्श्व प्राशादात्., संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२, १५X४५-५०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमांगल्य, अंतिः चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-४३०. ५६६७२ (+४) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी
"
मध्यम, पृ. १३-२ (१ से २)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५४११. १६४२६).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. सूत्र ३० से ४८ तक है.)
"
५६६७३ () सप्ततिकाकमंग्रंथ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९४-८३ (१ से ८३ ) =११, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे (२५.५५११, १७४७०).
""
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३० से ८१ अपूर्ण तक है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ - अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य वि. १४५९, आदि: (-); अंति: (-).
५६६७४. (+४) लोकनीतिसमुच्चय व सुभाषित लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित कुल ५२० अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १५४५०-५६).
१. पे नाम लोकनीतिसमुच्चय, पृ. १अ १०आ, संपूर्ण
मु. पद्मचंद्र, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य नयवक्तारं; अंति: पद्म० लोकनीतिसमुच्चयं, श्लोक-४३४.
२. पे नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १० आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदिः उत्तमैः सह सांगत्यं; अंतिः विद्या विनय विवेक, श्लोक - १५. ५६६७५. (+४) प्रशमरति प्रकरण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १० पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १२-१४X३७).
प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: नाभेयाद्याः सिद्धा, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २१४ अपूर्ण तक हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५६६७६. (+०) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १० प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है,
जैदे., (२६.५X११, १०X३६-४७).
लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं लोय; अंति: जहा भ इह भिसं, गाथा-३२.
लोकनालिद्वात्रिंशिका - व्याख्या, सं., गद्य, आदि: जिनदर्शनं विना जन्मम; अंतिः शं अत्यर्थं न भ्रमत. ५६६७७. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८९५, भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (६) १०,
=
ले. स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. सा. चनणा आर्या, पठ. श्रावि. महताब बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं. २५०, प्र.ले. श्लो. (१०४२) कड गाबड कर कूबडी, जैदे., (२५.५X११.५, ४x२४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः शांतिसूरि ० समुदाओ, गाथा- ५२ (पू. वि. गाथा २३ अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक नहीं हैं.)
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जीवविचार प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तीनलोक माहि उत्कृष्ट अंतिः समुद्र हुती.
५६६७८. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अबरख युक्त पत्र, संशोधित., जैदे., (२६X१२, ३X२० ).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि; चेतना लक्षण उपयोगमई, अंति: (-).
५६६७९. (#) भाष्यत्रयं, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १०-१२x२७-४०).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १४वी, आदि: वंदितु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा - १४५.
५६६८०. (+) वीतराग स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पंचपाठ संशोधित. जैवे., (२६X११, ६-८x२५).
वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः यः परात्मा परं; अंति: (-),
(पू. वि. प्रकाश-६ श्लोक ११ अपूर्ण तक है.)
वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, मु. विशालराजसूरि - शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति श्रीजिनो वीरः; अंति: (-). ५६६८१. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. प्रतिलेखक नामादि हेतु "पंधी. प. वी. ध. नो." लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X१२, ५x२८).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रूद्दाउ सुय समुद्दाउ,
गाथा - ५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदीप, अंति: उद्धर्यो छे.
५६६८२. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरी टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९ - १ (१) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत- टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२६X११, १५-१७६५).
"
अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ७ तक है.)
"
अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वाद्यंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं. गद्य, श. १२९१४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ की टीका अपूर्ण से श्लोक - ७ की टीका अपूर्ण तक है.) ५६६८३. (+) लघुक्षेत्रविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १७९४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न- टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित संशोधित, जैदे. (२६.५x१२, १९१४४१).
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१४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण;
अंति: ताण समताई दुक्खाई, गाथा-१४७. ५६६८४. (#) आवश्यकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ११-१३४३२-३८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५६६८५. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. भील्लपुर, प्रले. पं. अमरविजय; पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ५४३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४६. ५६६८६. धर्मपरीक्षा का बीजक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५३-२४६(१ से २४६)=७, जैदे., (२६४११, १८x२१-५८).
प्रवचनपरीक्षा-बीजक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: निराकरण विश्रामबीजक, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., इत्योधिकसूत्र
बीजक अपूर्ण से है.) ५६६८७. (+) एलाची चोढालियु व छ जीव पंचढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, कुल पे. २,
प्र.वि. आषाढाभूति चोढालियो की पुष्पिका मात्र है, किन्तु कृति का कोई अंश उपलब्ध नहीं है., संशोधित., दे., (२६.५४११, १४४४५). १. पे. नाम. एलाची चोढालीयु, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: मात मया करो सरसती; अंति: मालमुनि गुण गाय,
ढाल-६. २. पे. नाम. छ जीव पंचढालियो, पृ. ८अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणंदने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ दुहा ३
___ अपूर्ण तक है.) ५६६८८. (+#) अध्यात्मोपनिषद्, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८१/८,
संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१९४४१-४७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-),
(पू.वि. प्रकाश-३ श्लोक १३३ तक है.) ५६६८९. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५७, पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. नवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११, १०४३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: सहपरन्नवगा न सेस, गाथा-७७. ५६६९०. (#) सम्यक्त्वसत्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६-९४२६-३३).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दसणसुद्धिपयास; अंति: दंसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७०.
सम्यक्त्वसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हुं सम्यक्त्वनी; अंति: शुद्धि शीघ्र लहु. ५६६९१. (+) आचारदिनकरगत नित्यजिनाराधनपूजन विधि सह विवेचन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४४८).
आचारदिनकर-नित्य जिनपूजन विधि, सं., पद्य, आदि: स्नानं पूर्वमुखीभूय; अंति: नैवमिथ्यादृशामपि, श्लोक-५.
नित्यजिनराज पूजनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम प्रभाते पूजा; अंति: लगे चैत्यवंदन कहीजै.. ५६६९३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-४४(१ से ४४)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ७-१६x४७-५५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-) अंति: (-), (पू.वि., अध्ययन- ९ गाथा ६० अपूर्ण से
अध्ययन- ११ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६६९४. (+) क्षेत्रसमास, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १४०, जैदे..
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(२७X११, १०x४३).
बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि; नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: ताण समताई दुक्खाई, गाथा- १२३.
५६६९५ (+) जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ४X४५).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ४३ तक है.)
,
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पाताल, अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५६६९६. थंभणपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. कामठी, प्रले. पं. परमसुख,
पठ. श्राव. रामदयाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत - ८४ / १, जैदे., ( २६x१२, १२x२१).
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुवणवरकप्परुक्ख, अंति: अभयदेव
,
"
"
विन्न० आनंदिउ, गाथा-३०.
५६६९७. (+) उत्तराध्यचनसूत्र- नमिपवज्जाअज्झयणं सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५२ श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९-४ (१ से ४) =५, ले. स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. करसन भटाजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५X११.५, ४४२८)
उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. पद्य, आदि: (-); अंतिः नमीरायरिसित्ति बेमि गाथा-६२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा २७ अपूर्ण से है.)
उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंतिः एम छे० हुं कहूं छडं, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
५६६९८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन - ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सा. ग्यानाजी; पठ. सा. छोटाजी (गुरु सा. हीराजी); गुपि. सा. हीराजी (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत- १८१/२, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १३-१८X३७-५० ).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-): अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्र. २०००, प्रतिपूर्ण
१४५
५६६९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ६, दे., (२५.५X१२, १२३४).
१. पे. नाम. शास्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण,
शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभानन ब्रधमान चंद, अंतिः सदा मुझ परिणाम ए, ढाल - ५, गाथा - १८.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन महाराज तीन, अंति: वाचक इम वीनती करै जी, गाथा- ७.
३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: चेतना संभार चेतन, अंतिः दीठा गिर जयकार जी,
५. पे. नाम समेतशिखरगिरि स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: भविजन वंदो रे शीतल, अंति: गुण पभणै रे कल्याण्ण, गाथा - ११. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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गाथा-८.
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१४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. तेज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भवि भेटो हो धरमन; अंति: तेजे०भेट्या जगनाह के,
गाथा-८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
__मु. तेज ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: वामानंदन वंदिये अविच; अंति: तेजनी पुगी आश ललना, गाथा-११. ५६७००.(+#) कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२.५, ४४३०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु,
गाथा-२५.
कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जिम तुहक०; अंति: क० तेहनी संपदा प्रते. ५६७०१. (+) राजप्रश्नीयसूत्र कीटीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, प्र.वि. मूलपाठ प्रतीकरूप में है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५३). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणमत वीरजिनेश्वर, (२)तेणं कालेणमित्यादि; अंति:
मलयगिरिणा० भवतु कृती, ग्रं. ३५००. ५६७०२. (+#) आचारांगसूत्र सह बालावबोध व टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, अन्य. मु. गुलाबचंद;
मु. राजपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में आचारांगसूत्र महिमादर्शक १ गाथा दी गयी है., प्रायः शुद्ध पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४३३०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३८-४७).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. आनंद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण..
आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६७०३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्कट्ठ; अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि,
अध्ययन-१०.
दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० श्रीधर्मरूपीउ मंग; अंति: मोक्ष जाइ ति ब्रवीमइ. ५६७०४. (+) विपाकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७१, मध्यम, पृ. ४९, अन्य. सा. लालबाइ आर्या; मु. शिवचंद ऋषि; मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४३०-३५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (१)सेवं भंते सुहविवागे, (२)सेसं जहा
आयारस्स, श्रुतस्कंध-२अध्ययन-२०, ग्रं. १२१६, संपूर्ण.. विपाकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए विपाकश्रुत किसउं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
कुछेक पत्रों पर ही बालावबोध है.) ५६७०५. (+#) गुणवर्म चरित्र, पूर्ण, वि. १६९३, कार्तिक शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८-१(१)=४७, ले.स्थल. धनेरा,
प्रले. पं. जसविजय (गुरु ग. पद्मविजय); गुपि. ग. पद्मविजय; पठ. मु. कानजी; मु. वाघजी (गुरु मु. विश्रामजी); गुपि.मु. विश्रामजी (गुरु मु. पितांबरजी); मु. पितांबरजी (गुरु मु. जीवाजी); मु. जीवाजी (गुरु मु. बनारसमंगलजी); मु. बनारसमंगलजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४५). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदिः (-); अंति: (१)श्रोत्रे भवतु मंगलं,
(२)यरूचेविका भजध्वम्, सर्ग-५, श्लोक-९००, (पू.वि. सर्ग-१ गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ५६७०६. (+#) प्रश्नोत्तरसार्धशतक, संपूर्ण, वि. १८५८, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, जीर्ण, पृ. ४७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक
चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१४७ प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीसर्वज्ञं नत्वा; अंति: धचक्रं शरणं ममास्तु,
प्रश्न-१५१. ५६७०७. (+) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६४२, फाल्गुन कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ४५, कुल
पे. ५, ले.स्थल. राजलदेसर, प्रले. मु. चारित्रमेरु (गुरु उपा. देवसुंदर); गुपि. उपा. देवसुंदर; अन्य. श्रावि. इंद्राबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ११९०, प्र.ले.श्लो. (७२८) भग्नपृष्ट कटीग्रीवा, जैदे., (२७४१०.५, १०x४१). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: सव्वेसिं भाणियव्वॉ, अध्ययन-१०.
कल्पिकासूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन-१०.
कल्पावतंसिकासूत्र-टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १९आ-३७अ, संपूर्ण.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०.
पुष्पिकासूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. ३७अ-३९आ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झहिति, अध्ययन-१०.
पुष्पचूलिकासूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टिप्पण, पृ. ४०अ-४४आ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: (१)मइरित्तं एक्कारससुवि, (२)बारस्स उद्देसगा,
अध्ययन-१२.
वृष्णिदशासूत्र-टिप्पण*, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६७०८. (+) विचार गाथा व ६३ शलाकापुरुष वर्णन, अपूर्ण, वि. १७८१, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४५-३(१,२१ से २२)=४२,
कुल पे. २, ले.स्थल. ईडवागाम, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६४३३). १.पे. नाम. विचार गाथा सहटबार्थ, पृ. २आ-४५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: चक्कीणं सेवगा भणिया, गाथा-५३१, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से
गाथा-२४५ अपूर्ण तक व गाथा-२७१ अपूर्ण से है.) विचारसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सेवा करइ. २. पे. नाम. त्रेसठशलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, पृ. ४५अ, संपूर्ण. ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (१)इगसट्ठीमायाणं वावन्न, (२)२४
तीर्थंकर १२चक्र; अंति: -), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वासुदेवजीव प्रसंग तक लिखा है.) ५६७०९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८२-१८८३, जीर्ण, पृ. ३८-१०(१ से १०)=२८, प्र.वि. संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३४१२-२५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दुचक्की केसव चक्कीय, गाथा-९३, (वि. १८८३, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, गुरुवार,
पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है., पठ. श्रावि. मुनीया, प्र.ले.पु. सामान्य) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ब्रह्मदत्त१२प्रह्लाद, (वि. १८८२, आषाढ़ कृष्ण, ३०,
ले.स्थल. वणारसी, प्रले.पं. भावचंद्र मुनि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) ५६७१०. (+-) नवस्मरण व लघुशांति स्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१(१)=३७, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ४४२९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. २अ - ३५आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: शिवादेवी० स्वाहा, (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. उवसग्गहरं स्तोत्र गाथा- २ अपूर्ण से है., वि. तिजबपहुत्त और कल्याणमंदिर नहीं लिखा है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देवतानै आहुति हुओ, अपूर्ण.
२. पे. नाम. लघुशांति स्तव सह टबार्थ, पृ. ३५आ- ३८आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांति निशांत अंति (-) (पू. वि, श्लोक १९ अपूर्ण तक है.) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ दुखादिक; अंति: (-).
५६७११. (+#) भोज चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६, प्रले. मानसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, १७X४०-४८).
भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि: श्रीअश्वसेनं जिन, अंति: कौतुकं मानवसंस्थितः, प्रस्ताव-५, ग्रं. १३७५.
५६७१२. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०८-१७१५, मध्यम, पृ. ३७-१ (१) = ३६, प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४.५४११, ७३८).
"
दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: अपुणागमं गइति बेमि, अध्ययन- १०,
(वि. १७०८, श्रावण शुक्ल, १५, पू.वि. अध्ययन- २ गाथा - १ अपूर्ण से है., ले. स्थल. धायतानगर, प्रले. मु. कान्ही ऋषि (गुरु आ. धनराज ऋषि); गुपि. आ. धनराज ऋषि, पठ. मु. नाटा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इम शय्यंभवस्वामी कहइ. ग्रं. १५००,
(वि. १७१५, भाद्रपद कृष्ण, १४, ले. स्थल. खोखरा, पठ. सा. लाडमदे, प्र.ले.पु. सामान्य ) ५६७१३. (+) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य की अवचूर्णी, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३५- १ (६) -३४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, १७x४५-५५).
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य- अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: वीरजिनवरेंद्रं सर्वे: अंति: (१) स्वपरार्थमेताम्, (२)कृतावचूरि विरचितेयं, (अपूर्ण, पू.वि. जीववर्ग क्षेत्रपरिमाण अपूर्ण से वैताढ्य पूर्वापर क्षेत्रोद्भव चक्रवर्ती संख्या अपूर्ण तक नहीं है.)
५६७१४. (+) त्रैलोक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७६८, फाल्गुन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले. स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, पठ. मु. रामचंद्र, मु. नारायण ऋषि (गुरु पं. उद्धव ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (७८७) मंगलं लेखकानां च जैदे. (२६४११.५, १५४४५-४७). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वाभिधं अंतिः अमावस्यां प्रवर्षति श्लोक-१२६०. ५६७१५. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६वी, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३४, ले. स्थल. रेया/रीया, प्रले. सा. सवीरं; दत्त. सा. कुसला; गृही. सा. कलुजी (गुरु सा. कुसला), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित - पंचपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये.. (२६X११, १०-१७X३१-३७).
,
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उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नवरी अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव,
"
अध्ययन- १०.
उपासकदशांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टिप्पण क्रमश नहीं है.)
५६७१६.
(+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्रले. माईदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - संशोधित प्रायः शुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४१२, १४४४२).
"
"
श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं. गद्य वि. १८६८. आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं अंतिः श्रीसद्गुरु प्रसादतः, प्रस्ताव ४. ५६७१७. (+) प्रकरणचतुष्क, संपूर्ण, वि. १८७५, बाणनगाष्टेंदु, ज्येष्ठ शुक्ल, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. ४, ले. स्थल. विसाउपुर,
प्र. मु. आसकर्ण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, ४- १२X३८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
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१४२
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: तीनै भवनरै विषै; अंति: अगाधश्रुतसमुद्र थकी. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ-१२आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धिबोहि कणिक्काय, गाथा-५१, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा क० जीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध, (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ से ८ व १४ का टबार्थ नही लिखा है.) ३. पे. नाम. विचारषविंशिका सह बालावबोध, पृ. १२आ-१७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण अप्पहिआ.
गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चौवीस; अंति: हितकारणी कीधी. ४. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टिप्पण, पृ. १७आ-३१अ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: चंदमुणिंदेण० तित्थं, गाथा-३१५.
बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६७१८. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९०, माघ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. हिसार,
प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., पंचपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ९x४३-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठ; अंति: भविआण विबोहणट्ठाए,
अध्ययन-१०, ग्रं. ७००. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नत्वा श्रीवर्द्धमान, (२)धम्मो० दुर्गति पडता;
अंति: प्रतिबोधवानइ अर्थइ. ५६७१९. (+#) कस्तूरीप्रकर, संपूर्ण, वि. १९५७, आषाढ़ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३५-४२).
__ कस्तूरीप्रकर, उपा. संवेगसुंदर, सं., पद्य, आदि: स्तुत्वा वाचमनेकशास; अंति: रथं चकार चतुरोचितं, श्लोक-३२४. ५६७२०. (+) रत्नसंचय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ८४३९-४२). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-३७४ तक लिखा है.) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनै नमीनै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
बीच-बीच में कुछेक गाथाओं का टबार्थ नही लिखा है.) ५६७२१. (+#) परमहंससंबोध चरित्र, संपूर्ण, वि. १७३८, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २९, प्रले. मु. मतिविमल (गुरु
मु. जसविमल); गुपि. मु. जसविमल (गुरु ग. रत्नविमल); ग. रत्नविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११०१) पानइ दीठउ जेहवउ, जैदे., (२६४११.५, १२-१६४३०-४७). परमहंससंबोध चरित्र, उपा. नयरंग वाचक, सं., प+ग., वि. १६२४, आदि: चिदानंदमयं सार्वं; अंति: नयरंगे०
चंद्रदिवाकरौ, प्रस्ताव-८, श्लोक-८९०. ५६७२२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३५-८(२२ से २९)=२७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३२-४०).
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१५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ से ___ अध्ययन-१० अंतिमगाथा-३७ तक व अध्ययन-१२ गाथा-३८ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: अ० बाहाय संयोग्य; अंति: (-). ५६७२३. (+#) उपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८-६(१ से २,५ से ६,३० से ३१)=३२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७४५६-६३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २८, गाथा-४० से १८२
व गाथा-२०२ से २५७ तक है.) उपदेशमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५६७२४. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५८-२३३(१ से ७०,७२ से १२४,१२९ से १५१,१५४ से
१८०,१८२,१८५,१९१ से २२६,२३४ से २५५)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १२-१४४२७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-७ उद्देश-६ अपूर्ण से शतक-२०
उद्देश-१० अपूर्ण तक तथा बीच-बीच में भी अपूर्ण पाठ है.) ५६७२५. (#) प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-४(१,११,१८,२३)=२४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १५४५१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सरीर धरे भविस्सतीति, अध्याय-१०, ग्रं. १२५०,
(पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५६७२६. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२(१४ से १५)=२१, ले.स्थल. राजनगर(अमदावाद),
प्रले. पं. मुक्तिविजय (अज्ञा. ग. रविविजय); गुपि.ग. रविविजय; पठ. श्रावि. नानकुयर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणपार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिं; अंति: मणसा मत्थएण
वंदामि, (पू.वि. पचक्खाण सूत्र अपूर्ण से नमोस्तु स्तुति अपूर्ण तक नहीं है.) ५६७२७. भगवतीसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३५-११५(१ से ११५)=२०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४११, ११४४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक ५ उद्देश ७ अपूर्ण से शतक ६ उद्देश
७ अपूर्ण तक है.)
भगवतीसूत्र-टिप्पण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६७२८. (+) विवेकविलास*, संपूर्ण, वि. १५११, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. ग. ज्ञानहर्ष (गुरु पं. चंद्रराज गणि); गुपि.पं. चंद्रराज गणि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १९४६४).
विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति: परैरभ्यस्यमानो बुधैः, उल्लास-१२. ५६७२९. (+#) पर्वकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ६४-४४(१ से ४४)=२०, कुल पे. ३,
प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३८). १. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. ४५अ-४९अ, संपूर्ण.
आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: कथानक कृतं संपूर्णम्. २.पे. नाम. मेरुत्रयोदशी कथा, पृ. ४९अ-५७आ, संपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, १२, प्रले. मु. निधानविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य.
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती; अंति: मुक्तिसाधनं भवति. ३. पे. नाम. अक्षयतृतीयापर्व कथा, पृ. ५७आ-६४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार, अंतिः कथा निरुपितास्ति.
५६७३०. (+) व्याख्यान व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, दे. (२६४११.५, १४४४५).
१. पे. नाम. चतुर्मासकत्रय व्याख्यान, पृ. १आ-१०अ संपूर्ण.
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः,
२. पे. नाम. पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, पृ. १०अ २०अ, संपूर्ण.
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता, अंतिः ३. पे. नाम. दुरिअरयसमीर स्तोत्र सह वृत्ति, पृ. २०अ संपूर्ण.
दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. पच आदि दुरिअरयसमीरं मोहपंको अंति: (-), (अपूर्ण,
7
१५१
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.)
दुरिअरबसमीर स्तोत्र - वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: (१) नत्वा वीरजिनेंद्र, (२) अहं तस्य महावीरदेव, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
५६७३१. (१) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १५४९, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. २१-७(२ से ६, १३) = १४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १३-१५४४३).
"
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन- १०, (पू.वि. पिंडेसणा अध्ययन उद्देश- १ गाथा ३७ तक व उद्देश ७ गाथा ८ अपूर्ण से गाधा ३९ अपूर्ण तक नहीं है.. वि. चूलिका २.)
५६७३२. (+) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-३ (१५ से १७) = १९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, ४X३८-४१).
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. संतिकरं स्तोत्र नहीं लिखा है, अजितशांति गाथा ४० अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र श्लोक १५ अपूर्ण तक व श्लोक ४३ अपूर्ण से नहीं है.) नवस्मरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कही माहरओ नमस्क, अंति: (-).
५६७३३. (+#) सिद्धांतशतक सह आधारपाठ, संपूर्ण, वि. १७२९, माघ शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. नंदलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल है, जैदे., (२५.५X११, ४-८४४३).
सिद्धांतसार, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं प्रणम, अंतिः कृत्वा कृपां वः सदा, गाथा - १०२.
सिद्धांतसार आधारपाठ, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि विवगय जरमरणभये मणवय, अंति: मिओ मद्दव संपन्ने, गाधा १०१. ५६७३४. पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., ( २६.५X११, १ - २X४६).
पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ, अति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: ( १ ) मम भद्रं प्रयच्छंतु, (२) शिवविजयगणिरलिखत्.
५६७३५. (+१) कल्पसूत्र-महावीरजन्मकल्याणक सह संक्षेप टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १७, अन्य. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १४-१६X५४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र टीका. सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). प्रतिपूर्ण
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५६७३६. (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २२३-२०६ (१ से ८, २०, २२ से ६०, ६४ से २२०,२२२)=१७,
पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३९-४३).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक १ उद्देश २ अपूर्ण से शतक १२ उद्देश २ अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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५६७३७. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६ ११.५, १३X३०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३१३ अपूर्ण
तक है.)
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५६७३८. (+#) नवस्मरण, लघुशांति व चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २) = १६, कुल पे. ३, ले. स्थल. गीरधरपुर, प्रले. मु. प्रेमचंदकुशल (गुरु मु. गेगकुशलजी); गुपि. मु. गेगकुशलजी (गुरु मु. गुणकुशल); मु. गुणकुशल (गुरु मु. गणेशकुशल); मु. गणेशकुशल (गुरु पं. गंगकुशल); पं. गंगकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (२४) भन पृष्टि कटी ग्रीवा, जैये. (२६४१२, ११४३५).
१. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. ३अ - १३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-) अंतिः मोक्षं प्रतिपद्यते, स्मरण-८ (पू. वि. संतिकरं स्तोत्र गाथा ६ अपूर्ण से
,
है व तिजयपहुत्त नहीं लिखा है., वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र पत्रांक १५ अ से १८ आ पर लिखा है.)
२. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बीच में लिखी गई है.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवच श्लोक-१७
3
३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १४अ - १५अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बीच में लिखी गई है.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः प्रक्षालनजलोपमाः, लोक-२६.
५६७३९. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, ७X३९).
१. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ - १३आ, संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचि; अंति: मणसा मत्थ
वंदामि
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत अंतिः काय करी मस्तकि वांदउ
२. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई, अंति: दिसि न्हाण भत्ते, गाथा- १.
३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, पृ. १३आ- १५आ, संपूर्ण
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगाए पुरिमचं अंति: गारेणं बोसिरामि
प्रत्याख्यानसूत्र - टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदय आरंभी; अंति: अनेरी प्रकृति छोडउ.
४. पे. नाम. १० पचक्खाण नाम सह टबार्थ, पृ. १५आ, संपूर्ण.
गाथा - १.
१० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार पोरसीए पुरमड्ड; अंति: अभिग्गहे९ विगई१०, १० प्रत्याख्याननाम गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: द्वि घटिका प्रहर २; अंति: प्रत्याख्यान करइ. ५६७४० (+४) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १६-१ (१) १५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १०-१२३४-३६).
"
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से गाथा - ३१९ अपूर्ण तक है.)
५६७४१. (+) देशनाशतक, इंद्रियपराजयशतक व वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ११३५-४०). १. पे. नाम. आदिनाथदेशनोद्धार, पृ. १आ - ५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१५३ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८. २. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-१००. ३. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. १०-१५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. ५६७४२. समयसारादि प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ९४३६-४०). १.पे. नाम. समयसारनाम पगरण, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदि: सव्वन्नु मोक्खमक्खंत; अंति: हेऊ सययं सिवं दिंतु,
अध्याय-१० २.पे. नाम. महादंडक स्तोत्र, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण.
- प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२०. ३. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंधछेदग्रंथ की चूर्णि की हंडी-जयानंदकेवलि चरित्रे, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-चूर्णि की भव्य-अभव्य हुंडी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जो अकिरियावई नियमा; अंति: हवंति
निशीथ भाष्ये. ५६७४३. (+) योगनंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, ६-९४३१-४६).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५६७४४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-३२(३ से ३४)=१३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ६४३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ३
गाथा ५ से अध्ययन ८ गाथा २० तक व अध्ययन १० से आगे नहीं है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)इहां प्रथम दसवैकालिक, (२)ध० श्रीधर्मरूपीउ मंग; अंति: (-). ५६७४५. (+) संयमश्रेणीगर्भितवीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, चैत्र शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३,
ले.स्थल. सूर्यपुरबिंदर, प्रले. मु. माहावजी (गुरु मु. कृष्णजी ऋषि); गुपि.मु. कृष्णजी ऋषि (गुरु मु. रत्नसी ऋषि); मु. रत्नसी ऋषि (गुरु मु. गांगजी ऋषि); मु. गांगजी ऋषि (गुरु मु. लखमसी ऋषि); मु. लखमसी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ४१४, जैदे., (२६४११, ३४२८-४२). महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: केवलज्ञान दिवाकरुजी;
अंति: उत्तमविजय मल्हायो रे, ढाल-३, गाथा-६१, ग्रं. ८५.
महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: थई सहजानंद पामज्यो, ग्रं. ३२९. ५६७४६. (+) पुष्पमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२.प्र.वि. कमाल ऋ, श्री परतनवीरजी नी प्रति., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५३). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह: अंति: सया
सुहत्थिहिं, द्वार-२०, गाथा-५०५. ५६७४७. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अजमेरनगर, प्रले. पं. ऋषभविजय (गुरु
पं. मनरूपविजय, तपागच्छ); गुपि.पं. मनरूपविजय (गुरु पं. भक्तिविजय, तपागच्छ); पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१२.५, ३४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५२, (वि. १८६९, श्रावण
कृष्ण,८)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वीतरागं नमस्कृत्य, (२)जीव कहता० जीवतत्त्व१; अंति: सिद्धना १५
_भेद जाणवा, (वि. १८६९, भाद्रपद शुक्ल, ९) ५६७४८. (+#) षडावश्यक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ४-७४४३-५९).
आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. अंत में
श्रावक १४ नियमगाथा व पच्चक्खाण भी है.) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ नमस्कार; अंति: करइ तउ पुण भंग
नही.
५६७४९. भववैराग्यशतक सह टबार्थ व सामान्य जैन कृति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११,
६४३३). १. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओसासयं ठाणं, गाथा-१०५.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जे शास्वतउ ठाम. २. पे. नाम. आगम छुटक पन्ने , पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. सामान्य पाठ लिखा है.) ५६७५०. सत्तरिसयठाणा प्रकरण, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४५-४८).
सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३४६ तक है.) ५६७५१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ४४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)कल्याणमंदिर विशेषण, (२)कल्याण० कल्याणनउ; अंति: मोक्ष
पामइ. ५६७५२. (#) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. अवरंगाबाद, पठ. श्रावि. देवबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २१२, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ५४२७).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७४.
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिन; अंति: पामई ईहां संदेह नही. ५६७५३. (+) चतुर्मासिकत्रयी व्याख्यान, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४१२, १४४४६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सुविशदं व्याख्याभृत,
(पू.वि. सामायिक स्वरूप वर्णन से है.) ५६७५४. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-९(१ से ९)=१०, जैदे., (२६४११.५, १५४३३).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक १९ से है.)
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५६७५५. (+) दानशीयलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. इंद्रापुरी, प्रले. रामजीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, ५४२५).
दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरिखमउ तेणं, गाथा-५०.
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१५५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवने नमस्कार; अंति: हूई ते सुरा खमवो. ५६७५६. (+) जिनपंजर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९३, फाल्गुन कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. धरोल, प्रले. मु. नित्यानंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४७).
जिनपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जैने जीवदया गुणेषु; अंति: नगरे सदने जनानाम्, श्लोक-५२.
जिनपंजर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमतमांहि दया मोटी; अंति: सदा थाए निसंदेह. ५६७५७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४५४).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४३ तक है.)
भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: भव्यवाताब्जराजीविक; अंति: (-). ५६७५८. (+) वीरस्तुति, प्रस्ताविकगाथा व दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२,
आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. करसन भटाजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११, ४४२४-३०). १.पे. नाम. वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामि प्रते; अंति: इम हुंबे० कहुं छु. २. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा सह टबार्थ, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: एगंत होइ जीवदया, गाथा-११.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं० पांच म० महाव्रत; अंति: दया रूप माता सुखकारी. ३. पे. नाम. दुमपुप्फीया अध्ययन सह टबार्थ, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ;
अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म मं० मंगलिक; अंति: इम
कहुं छु. ५६७५९. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-८(१ से ८)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, ४४३२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन २ सूत्र-१ अपूर्ण से अध्ययन ३
गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५६७६०. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ५४२४).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५१. ५६७६१. (+#) पांचमिथ्यात्वनां २१ भेद बोल, संपूर्ण, वि. १७७८, माघ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बुरहानपुर, प्रले. सेवकसुंदर मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ९४२५).
मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगत १ लौकिक; अंति: ते अमुत्तसन्ना कहीइ. ५६७६२. (+) विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १७४५५).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५६७६३. पक्खिसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९-४१).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के कुछेक पाठांश नहीं है.) ५६७६४. (4) दशवकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६-८(१ से ८)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. त्रिपाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, ४-६x४५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से
अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-२२ तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६७६५. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३१-४१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३,
(पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.)
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सदैव चउसरण गुणवु. ५६७६६. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३२-१२४(१ से ९३,९६ से ९८,१०१ से १११,११४ से १३०)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ५४३७).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६७६७. (+#) वसुदेवहिंडी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३७).
वसुदेवहिंडी, आ. गुणनिधानसूरि, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० सोरिय; अंति: गुणनिहाणसूरीणकएकहिआ. ५६७६८. (+) क्षेत्रसमास की अवचूरि वनरक्षेत्रादि विचार, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३८८, जैदे., (२६.५४११.५, ३०४९२). १. पे. नाम. क्षेत्रसमास की अवचूरि, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्त्वा वीर बृहत्; अति: प्रमाणाश्च ज्ञेयाः. २. पे. नाम. नरक्षेत्रादि विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण.
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-नरक्षेत्रादि विचार, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: नरक्षेत्र परिधिर्यथा; अंति: द्विगुणी कृतं दलयेत्. ५६७६९. (+) भववैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६५, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)-७, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ५४४४-४८).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४, (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण से है.)
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्थानक प्रति पामइ. ५६७७०. (+) सिद्धपंचाशिका सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६५८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७,
अन्य. मु. सीवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, २-७४३६). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा ४
अपूर्ण से है.)
सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: द्रसूरिइं इदं कृतं. ५६७७१. (+#) श्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८९, त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २-६x४२-४५).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं.
पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपंचपरमेष्ठि तणउ; अंति: श्रीतीर्थंकरनइ वांदु. ५६७७२. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ६x४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३,
(पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नित्य चतुशरण करिवउ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५६७७३. पुष्पमाला की अवचूरि, संपूर्ण वि. १५१३, श्रेष्ठ, पृ. ७, लिख. श्राव गांगा संघवी, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे.,
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(२६.५X११.५, १८४५४).
पुष्पमाला प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धं निष्टितं समस, अंति: प्रकरणोपसंहाराधिकार. ५६७७४ (+४) परिभाषासूत्र व न्यायसंग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८-९ (३) ७, कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १५x५७).
१. पे. नाम. परिभाषासूत्र की टीका, पृ. १ अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
सिद्धमशब्दानुशासन- हेमपरिभाषासूत्र की टीका, सं., गद्य, आदि: पंचम्या निर्दिष्टे, अंतिः किं हि वचनान्न भवति, (पू. वि. बीच का कुछ पाठ नहीं है.)
२. पे. नाम. परिभाषासूत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सिद्धहेमशब्दानुशासन- हेमपरिभाषासूत्र संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी, आदि: पंचम्या निर्दिष्टे, अंतिः समर्थः पदविधिः १९.
१५७
३. पे. नाम. न्यायसंग्रह सह टीका, पृ. ५आ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः स्वं रूपं शब्दस्या, अंति: (-), (पू.वि. सूत्र- ३७ अपूर्ण तक है.)
י'
न्यायसंग्रह - टीका, सं., गद्य, आदिः स्वं रूपं शब्दस्य अंति: (-).
५६७७५ (+) चमत्कारचिंतामणी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. प्राप्तिस्रोत ८४ / १, संशोधित संशोधित, जैदे.,
1
(२६X११.५, ५x२५).
चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदिः नचेत् खेचराः स्थापित; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुतो बाहुबीर्यं कुतो बाहु पाठ तक है.)
चमत्कारचिंतामणि टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवामेव जिनं नत्वा, अंतिः (-) अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५६७७६. (+#) ऋषिमंडल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५६४, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. अणहिल्लपुरपत्तन, प्रले. मुरारी ब्राह्मण; अन्य. ग. उदयतिलक (गुरु वा. शिवदेव गणि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); गुपि. वा. शिवदेव गणि (परंपरा आ. सागरचंद्रसूरि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); आ. सागरचंद्रसूरि (परंपरा गच्छाधिपति जिनहंससूर खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); राज्येगच्छाधिपति जिनहंससूरि प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १५X४१-५२).
ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी आदि भक्तिब्धरनभिरसुरवर अंतिः धम्मघोस० सिद्धिमुहं,
गाथा - २१०.
५६७७७. (+#) मौनेकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. गांद्धलीनगर, प्रले. पं. बुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत ८४ /१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १४४४२).
मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेव, अंति: सागरशररसशशिप्रमिते,
लोक-२०१.
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५६७७८. (+#) अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११, १५४३४). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीश शांतिकर्त्ता; अंति: (-), (पू.वि. जिनदर्शन महात्म्य के ऊपर आर्द्रकुमार दृष्टांत तक है.)
५६७७९. (+) पौषध सज्झाय, साधुवंदित्तु व वर्द्धमान स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६११, ११४३३).
१. पे. नाम. पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, पृ. १अ - २ आ. संपूर्ण.
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१५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. २. पे. नाम. वंदितुसूत्र, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः (१)चत्तारि मंगलं अरिहंत, (२)इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. ३. पे. नाम. वर्धमान स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जाइज्जा समणे भयवं; अंति: पढयकयं अभयसूरिहिं,
गाथा-२२. ५६७८०. (+#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४४४).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-८०. ५६७८१. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १९४६०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-).
(पू.वि. "प्र० ११ अव्यय० किम्" तक पाठ है.)
सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका, सं., गद्य, आदि: संहिता च पदं चेव; अंति: (-). ५६७८२. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८२/६, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३-१५४३०-३५). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पृ.वि. अजितशांति स्तव
गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ५६७८३. (+) चतुशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.ग. जिनहस (गुरु उपा. सुखलाल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ५४४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध पाप व्यापारनइ; अंति: सुखनउ दैणहारुं छइ. ५६७८४. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८४/१, जैदे., (२६४१२, १२४२५).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ५६७८५. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४६६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७, (वि. मूलसूत्र की प्रथम
गाथा संपूर्ण है बाद में प्रतीक पाठ दिया हुआ है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानजिनपति; अंति: स्यादिति गाथार्थः. ५६७८६. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१२, १३४५१).
आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आवसही इछाकारेण
संदेस; अंति: (१)वोसरामि तिकट्ट, (२)फर्शणाकरू तिवारे सूध. ५६७८७. (#) भक्तामरसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७२६, आश्विन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मोरू, पठ. मु. रूपजी ऋषि;
प्रले. मु. केशव ऋषि (गुरु मु. राघव ऋषि); गुपि.मु. राघव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८२/४. परिमाण गाथा-४४ छे., त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ५४४१).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इसिइ साचइ हुइ; अंति: निश्चिइ लक्ष्मी पामइ. ५६७८८. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५,
१५४३९).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: आवसही इच्छामिणं भंते; अंति: (-), (अपूर्ण,
___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वीजा में ठाणं सपावीउ कामि नमो जिणाणं पाठ तक लिखा है.) ५६७८९. (+#) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५२).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: किट्टि आराहिअं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि
श्रीमहावीर; अंति: मोक्ष फलदाईउ थाइ. ५६७९० (+) नौपद जयति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८२/७, संशोधित., दे., (२५.५४११, ७४२५).
३४६ भेद-नवपद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: असोकवृक्ष प्राप्ति; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः, पद-३४६. ५६७९१. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-९(१ से ७,१३ से १४)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८२/१, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १५४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पिंडेसणा अध्ययन, उद्देश-१,
गाथा-६६ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-६० अपूर्ण तक है. बीच-बीच के पाठाश नही है.) ५६७९२. (+) वंगचूलिका प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९१७, चैत्र शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. इंद्रपुर, प्रले. मु. पूरणचंद्र
ऋषि (गुरु आ. जिनशांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. जिनशांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८२/७, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., अ., (२६.५४१०.५, ५४४३).
वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: दढचित्तो होह पइदियह. ५६७९३. (#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)=६,प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८२/७, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: ध्यानोद्यतो भवेत, प्रकाश-१२,
(पू.वि. प्रकाश-२ श्लोक-९६ अपूर्ण से है.) ५६७९४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८८१, वैशाख शुक्ल, मध्यम, पृ. १८३-२(११६,१८०)=१८१,
ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. रत्नचंद ऋषि; अन्य. मु. चंद्रभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ६-१६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते काल जे; अंति: अध्ययन समाप्त थयो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*मा.गु., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: तिम अनेरा
नइ न लेवा. ५६७९५. (+) औपपातिकसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८९, संशोधित., जैदे., (२७४१२,
११४५०-५३).
__ औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं. ३१२५. ५६७९६. (+#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६-२(१ से २)=१०४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ६४३४-४०).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के कुछेक पाठांश नहीं हैं.) समवायांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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१६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६७९७. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३, प्र.वि. संशोधित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे.,
(२७.५४१२.५, ११४२९).
___कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८. ५६७९८.(+) रायप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७९-१०९(१ से ४४,५५ से ५८,७४ से १०३,११८ से
१२१,१२३ से १२७,१४७ से १६८)=७०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५४३०-४०).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ बीच-बीच के व अंतिम पाठांश नहीं है.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६७९९. (+) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-२(४१ से
४२)+१(५८)-६५, अन्य. आ. आणंदसोमसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४३९).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, ___श्लोक-१००, (पूर्ण, पू.वि. श्लोक ५२ से ५३ अपूर्ण तक नहीं है.) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसारदाचरणयुग्ममती; अंति: मयी मूर्खेकृत
__कृपैः, अपूर्ण. ५६८००. (+) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ५१-६(१ से ४,४१ से ४२)-४५, प्र.वि. संशोधित.. जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४१-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीर
चरित्र अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलताटीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच
व अंत के पत्र नहीं हैं. ५६८०१. भोज चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-२४(१ से १८,२१ से २६)=४६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२,११४३८). भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-३, श्लोक-१८ अपूर्ण से ६९ अपूर्ण
तक व प्रस्ताव-४, श्लोक-५० अपूर्ण से प्रस्ताव-५ श्लोक-३८१ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक का उल्लेख
नहीं किया है.) ५६८०२. द्रव्यानुयोगतर्कणा सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४५).
द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीयुगादिजिनं नत्वा; अंति: द्रव्यानुयोगतर्कणा, अध्याय-१५.
द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, आदि: श्रियं निवासं निखिला; अंति: समापत्ति प्रकीर्तिता. ५६८०३. दीपालिका कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. ४१-२(१,२७)=३९, ले.स्थल. वणथलीनगर, प्रले. ग. ज्ञानरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ६४३०-३७). दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: (-); अंति: चंद्रार्क जयत्त्रये, श्लोक-४३६,
(पू.वि. श्लोक-१ से ७ अपूर्ण तक व २७८ अपूर्ण से २८९ अपूर्ण तक नहीं है.)
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तिहां लगिरहेज्यो, ग्रं. १२००. ५६८०४. दीपोत्सवी कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. कटारीयानगर, प्रले.पं. प्रमोदविजय (गुरु
ग. जिनविजय); गुपि.ग. जिनविजय (गुरु मु. नित्यविजय); मु. नित्यविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३५). दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्क जयत्त्रये,
श्लोक-४३६.
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१६१
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु, गद्य वि. १७६३, आदि: अहं नत्वाल्पबुद्धि, अंतिः तिवार लगें प्रतपो, ग्रं. १२००.
"
1
५६८०५. (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४७-४ (१ से २,२१, २३) - ४३, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४X११, ५X३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर के गर्भकाल से गोत्रादि वर्णन तक का प्रसंग है, बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
कल्पसूत्र - टवार्थ " मा.गु., गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
५६८०६. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२७४११.५, ५-१३४३४-३८).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं काले० समणे, अंति: (-), (पू.वि. "जालंधरस्स गुताए कुच्छिओ
खत्तिअ कुंडगामेनगरे" पाठ तक है.)
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते वर्तमान अवसर्पिणी, अंति: (-).
कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणम्यतीर्थनेतारं अंतिः (-).
५६८०७. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, व्योमं गुहास्यं मद मेदिन्या संवत्सरे, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. पद्मिनीपुर, प्रले. मु. विजयमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५X१०.५, ६x४३).
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंतिः से आराहगा भणिया,
"
उद्देशक- २१.
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषई ते; अंति: मार्गना आराधक कह्या.
५६८०८. (4) जंबूअध्ययन सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२८ माघ शुक्ल १०, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ६०, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है जैदे., (२५.५४११.५. ५५४४४).
"
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए अंतिः से आराहगा भणिया,
उद्देशक- २१.
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषई ते; अंति: जंबूना अध्ययनना विषे. ५६८०९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५x१२, ११३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंतिः (-). (पू. वि. अंत के कुछ पाठांश नहीं हैं) ५६८१०. स्थानांगसूत्र सह टबार्थ जीवाचुष्यबंध से १० विध प्रायश्चित विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २५, जैवे.,
(२६X१०.५, ६x२७).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः (-); अंति: ( अपठनीय), प्रतिपूर्ण.
स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति: (-). प्रतिपूर्ण
५६८११. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०.५, ११X३८-४०).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ५६८१२. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६७, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४४, प्र. वि. कुल ग्रं. ४०००, दे.,
(२५.५X११, ३-११X११-५०).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पड़ निगंधाण, अंतिः कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक- ६. बृहत्कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) हिवे इहां बृहत्कल्प, (२) नो० न कल्पइ नि० साधु अंतिः तुझ प्रतीइं कहुं
छं.
५६८१३. आवश्यकसूत्र मूल, भाष्य व निर्युक्ति की संयुक्त अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, प्र.वि. कुल ग्रं. ६५०९, जैवे. (२६.५x११, २१४६६-७२).
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१६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: प्रारभ्यते श्री; अंति: नयमतमाह नायं
सव्वे. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: प्रारभ्यते श्रीआवश्य;
अंति: (१)नयाभावनिक्षेपमिच्छति, (२)स्वपरहितहेतोः. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२५३, (वि. कहीं-कहीं मूलभाष्य व
नियुक्तिभाष्य दोनों सम्मिलित रूप से मिलती है.)
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८१४. (+) षोडशक प्रकरण सह सुगमार्थकल्पना टीका, संपूर्ण, वि. १६६४, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६५, प्रले. गोवर्धन कान्हाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५९). षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: ननु हारिभद्रमिदम्, अध्याय-१६,
श्लोक-२५६. षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११वी, आदि: अमृतमिवामृतमनघं जगाद;
अंति: मंडलभास्वरं स्थानम्, प्रकरण-१६. ५६८१५. (+) संग्रहणीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-९(१ से ९)=२९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४०-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ से ९९ तक है.,
वि. उपयोगी यंत्र सहित.)
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८१६. (+) भक्तामर स्तोत्र, पार्श्वजिनछंद व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-६(१ से ६)=७, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११-१३४२६-३५). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण..
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १०अ-१३अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५६८१७. आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राजपुरा, प्रले.पं. विद्यारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१२.५, १५४३९).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ५६८१८. पुछिस्सुणं, महावीरजिन स्तुति व प्रास्ताविक गाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, जैदे.,
(२७४१२.५, ४४३०-३८). १.पे. नाम. वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पू० पुछानी इच्छा धरी; अंति: इम हुई कहुं
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: सिज्झिं संति तहावरे, गाथा-५,
(वि. प्रतिलेखक ने एकगाथा को दो गाथा गिना है.) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० हे सुव्रत जंबु; अंति: अ० अनेरा ५ अनंताजीव.
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१६३
टबार्थ, पृ. ७अ-७आ, सण अंति: तेहोइ परित्त संसारि,
सारना धणी.
C
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३. पे. नाम. प्रास्ताविकगाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
प्रास्ताविकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तेहोइ परित्त संसारि, गाथा-५.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० अरिहंतना गुणग्राम; अंति: थोडो सं० संसारना धणी. ५६८१९. (+) दिपालिकाकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अन्य. मु. चेनसागर
(अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१०४३) भग्निपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२६४१२, ६४३७). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-४३६, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हन्नत्वाल्पबुद्धी; अंति: त्यार लगि प्रवर्तो, संपूर्ण. ५६८२०. जंबूअध्ययन सह टबार्थ व जीवतणी अष्टखांणि, अपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३२-१(२)=३१, कुल
पे. २, प्रले. मु. लालचंद ऋषि; अन्य. सा. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२६.५४१३, ८४४५). १.पे. नाम. जंबूअध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया,
उद्देशक-२१, (पू.वि. श्रेणिकराजा का कथन अपूर्ण से प्रत्येक बुद्ध का वर्णन अपूर्ण तक का पाठ नहीं है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आराने; अंति: मनुष्य आराधक कह्या. २.पे. नाम. जीवतणि अष्टखांणि, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
अंडजजीव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अंडजी जे जीव इंडा; अंति: खांनि त्रसजीवना कही. ५६८२१. प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १७२७, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १६-१(६)=१५, ले.स्थल. भुजनगर, पठ. श्राव. कल्याणजी; अन्य. मु. खोडाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, ५४४०). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: धेयं ठाणं
संपत्ताणं, (पू.वि. "उपाणाइ वायाउ वेरमणं" पाठ से "परिगहीयगमणे१" पाठ तक नहीं है.) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. टबार्थ यत्र-तत्र
अव्यवस्थित रूप में दिया गया है.) ५६८२२. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, पार्श्वनाथ चैत्यवंदन व ज्वालादेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रावण कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ,
पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. केशवजी शवजी कोठारी; दत्त. सा. राणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आचार्य काशीराम के द्वारा पेन्सिल से संशोधित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ११४२६). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: परय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. ज्वालामालिनी मंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण.
ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: नमः इदं ज्जाप्य. ५६८२३. (+) भगवतीसूत्र-शतक-१२ उद्देश-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७५, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. सा. देवकुंअर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, ६४३१).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६८२४. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(२)=१९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, २४३०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४,
(पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक-२ से ३ अपूर्ण तक नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
भक्तामर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त सेवा तत्पर जे; अंति: (-). (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४४ अपूर्ण तक लिखा है.)
५६८२५. चतुः प्रत्येकबुद्ध कथा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. रत्नमेर ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६.५x११, १४४४३).
४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., गद्य, आदि: करकंडू कलिंगेषु अंतिः सिद्धिगया एग समएणं. ५६८२६. (*) विचारसप्ततिका सह संक्षेपार्थ, संपूर्ण, वि. १६८९, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. अहमदनगर, प्रले.मु. कुंअरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११, २-७X३९).
विचारसप्ततिका, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिमा मिच्छा कोडी, अंति: छिय सिवपासाए सया वसह,
गाथा- ७० (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा का क्रमांक ५७ दिया है, परंतु पाठ मिलाने पर कुल ७० गाथाएँ हैं साथ ही बीच की गाथाएँ व उनके क्रमांक अनियमित हैं.)
विचारसप्ततिका - वृत्ति, मु. विनयकुशल, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः सर्वज्ञं श्रीजिनं अंतिः नामापि सूचितम् ५६८२० (+) ज्ञानार्णव की तत्वत्रयप्रकाशिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४, प्रे, आ. कल्याणकीर्ति अन्य. श्राव. कुंअरजी ब्रह्मचारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ८X३४).
ज्ञानार्णव-तत्वत्रयप्रकाशिनी टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: शिवोयं वैनतेयश्च; अंतिः जनितं दयादमेयं सुखं.
५६८२८. चोवीसथोब बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७०८, पीष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ७-२ (२ से ३ ) ५ प्रले. ग. रत्नविजय गणि (गुरु मु. अनंतविजय); गुपि. मु. अनंतविजय (गुरु पं. विनयविजय गणि); पठ. श्रावि. सेवंत्रा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में लोग की अक्षर संख्या लिखी गई है., जैदे., (२६X११, १३३९).
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लोगस्ससूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोगस्स उजोवगरे चउद, अंतिः भारि धाकता हलूआ, (पू. वि. गाथा-२ अपूर्ण से ३ अपूर्ण तक का बालावबोध नहीं है.)
५६८२९. (+) निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४.५X११.५, १३x४५).
भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सणंभंते एगम्मिआग, अंति: ते अनंता असंखा वा गाथा- ३६.
भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचांग एवैकादशशत, अंति: प्यसंख्येया अवसेवा:.
५६८३०. शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. थिरपुद्र, पठ. मु. रत्नकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १३४४०).
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १०वी आदिः आबालबंभवारिं नेमि: अंतिः आराहिय लहड़
',
"
बोहिफलं, कथा- ४३, गाथा - ११५.
५६८३१. (+) सिद्धदंडिका का बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ ले स्थल राजनगर ( अमदावाद), प्रले. पंन्या अमीविजय ' (गुरु पंन्या. रुपविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६X११, ११३१). सिद्धदंडिका स्तव बालावबोध, पंन्या. अमीविजय, मा.गु. गद्य वि. १८४६, आदि: पुत्र पौत्रादिका अंतिः धारणा विसेष करवी.
५६८३२. चैत्यप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २६.५X१२.५, १२४३५-४०). चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: विषमैरंगुलैर्हस्तैः; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिष्ठोपयोगी सामग्रियों की सूची अपूर्ण तक है।
५६८३३. (+) साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-२ (३ से ४) = ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५X१२, ९X३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: तिखुत्तो आयाहीणं; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नमोत्थुणं पाठ अपूर्ण तक है.)
५६८३४ (+) जीवविचार, नवतत्त्व, दंडक प्रकरण व दशवैकालिकसूत्र-प्रथम अध्ययन, संपूर्ण, वि. १८८३ मार्गशीर्ष शुक्ल. ११, रविवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूच
लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ जैदे. (२६११.५, १९४२).
"
"
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५१.
३. पे, नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चोवीसजिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०. ४. पे. नाम, दशवैकालिकसूत्र प्रथम अध्ययन, पृ. ८आ, संपूर्ण,
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५६८३५. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २,
ले. स्थल. बिशाउ, प्रले. पं. धर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१२, ८X३७).
१. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १अ - १२आ, संपूर्ण.
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतीं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७४. भुवनदीपक-टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीने नमस्कार, अंतिः कह्यो ए ग्रंथ.
२. पे. नाम. नागपुर लग्न प्रमाण, पृ. १२ आ. संपूर्ण.
ज्योतिष, मा.गु. सं. हिं. प+ग, आदि (-): अंति: (-).
"
५६८३६. (+) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. मलसीसर, प्रले. पं. जगरूप; पठ. मु. श्रीपाल (गुरु पं. जगरूप), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१२, १३x३६).
(२५.५४११.५, १०x२७-५६).
१. पे. नाम. रावणयंत्र विधि, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१५. ५६८३७. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४ वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल. सोजत, प्रले. सा. कुसाला (गुरु सा. ने तुजी); गुपि. सा. नेतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७X११.५, ८३९-४५).
व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं, अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक- १०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई साधु मासनो, अंति: क्षय करवारूप फल हुइ.
५६८३८. ऋषिमंडल स्तोत्र व यंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-८ (१ से ६,१२ से १३) = ९, कुल पे. ५, दे.,
मा.गु.,
.सं., गद्य, आदि: यंत्र वचे रावणनो, अंति: तेमा नाखी बांधीये.
२. पे नाम, सिद्धचक्रयंत्र रचना, पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र लघुयंत्र, सं., यं., आदिः ॐ नमः सिद्धा अ आ इ ई; अंति: अनुक्रमे कोटा करना. ३. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ११ आ - १५आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंति: लभ्यते पदमव्ययम्,
४. पे नाम, यंत्र विधि, पृ. १५ आ. १६आ, संपूर्ण.
२४ जिन मंत्र - जाप होमादि विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीँ, अंति: भविष्यतीत्याम्नाय. ५. पे. नाम. चतुःषष्टि योगिनी स्तोत्र, पृ. १६आ, संपूर्ण.
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श्लोक- ८७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: दिव्ययोगा महायोगा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - ९ प्रथम पाद तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने ९वें श्लोक का प्रथम पाद लिखकर ही इति कर दी है.) ५६८३९. (+) सामायिक ३२ दोष विचार व नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र. वि. संवत् १७९४ वाली प्रत में उल्लिखित पुष्पिका की प्रतिलिपि की गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७१२.५, १२X३५). १. पे. नाम. सामायिकना ३२ दोष, पृ. १अ. संपूर्ण.
सामायिक ३२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-).
२. पे नाम, नवतत्त्व प्रकरण सह वालावबोध, पृ. १आ-१०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १६ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुनउं स्वरूप, अंति: (-).
५६८४०. (+) सप्तव्यसन कथा समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-१० (१ से १०) -९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७११, १५X४०).
सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्म, वि. १५२६, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथमसर्ग श्लोक-२७९ अपूर्ण से तृतीयसर्ग श्लोक १६९ अपूर्ण तक है.)
,
५६८४१. (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४१२, १९३५-३७). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य, अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय व्याख्यान अपूर्ण तक है.)
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५६८४२. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ चतुर्थावश्यक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैवे. (२७४११.५, ३४३१)आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १८ पापस्थानक आलोचना से श्रावक अतिचारसूत्र तक है.)
आवश्यक सूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
५६८४३. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे. (२६४१२, ११x२२).
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सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३८ अपूर्ण तक लिखा है.)
५६८४४. श्रीपाल चरित्र व रामायण- महाभारत युद्धकाल प्रमाण, संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३,
कुल पे. २, ले.स्थल. झालरा पाटण, प्रले. नेणसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६×१२, १४X३३-३८).
१. पे. नाम. श्रीपालचरित्र, पृ. १आ - २३आ, संपूर्ण.
श्रीपाल चरित्र, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथपादाब, अंतिः मेयं सौख्यभाजो भवंतु,
२. पे. नाम. रामायण-महाभारत युद्ध काल प्रमाण, पृ. २३आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह ै, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: मीन संक्रांति में; अंति: ८६००० वर्ष हुआ.
५६८४५. प्रतिष्ठा विधि, स्नात्र विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, अन्य. मु. चैनसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, ११४३८-४२).
१. पे नाम, गुरुस्तंभ प्रतिष्ठाविधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (१) ननु गुरूणां स्तूपस्य, ( २ ) शुभ नक्षत्रेषु शुभवे, अंतिः शीलन्नतं च पालयति.
२. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नानविधि, पृ. १आ ५अ, संपूर्ण.
बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि तथा प्रथम उपरण मेलवा, अंतिः १०८ प्रत्येकं ढोकते.
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३. पे. नाम. ध्वज प्रतिष्ठाविधि, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण.
ध्वजप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, आदि: गंधोदक पुष्पादिभि; अंति: र्जित शिखरप्रमाणोदंड.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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५६८४६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ८०-५६ (१ से ४६,५३, ६६ से ६७,६९ से ७५) २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., ( २६.५X१०, ११x४०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: संबुडे ति बेमि, अध्ययन- ३६ ग्रं. २०००,
"
(पू.वि. अध्ययन-२६ गाथा - १३ अपूर्ण से गाथा- ३९, अध्ययन- २७ गाथा-९ अपूर्ण से अध्ययन- २९ गाथा-२८ अपूर्ण, गाथा-४१ से अध्ययन-३३, अध्ययन- ३४, गाथा ५१ अपूर्ण से अध्ययन- ३५ गाथा-१५ अपूर्ण व अध्ययन- ३६ गाथा - १४८ अपूर्ण से है. )
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५६८४७. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध- व्याख्यान १ से ८ अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २७-३ (२,११,१४)=२४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२६४११.५, १४-१७४३३-३६).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं., आचार्य गुणवर्णन से कल्पसिद्धांत के वर्णन तक, चौदह स्वप्न वर्णन का किंचित् अंश व महावीर जन्मवर्णन अपूर्ण तक नहीं है.)
कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु. रा. गद्य, आदि: नमस्कारहुं अरिहंतने अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
५६८४८. (+) चंद्रर्षिचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जै.., (२७X१२, ६X३३).
श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०१ अपूर्ण तक है.)
श्री चंद्रकेवल चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा श्रीमन्महाव, अंति: (-).
५६८४९. (+) संघयणीसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ११४३२-३७).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१६. ५६८५० (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x१२.
१३X३२).
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वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य, अंति: (-), (पू.वि. "ब्राह्मणिकार्या प्रजायां सदेव" पाठ तक है.) ५६८५१. (+) जीवविचार प्रकरण व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२६४१२, ४४३८-४४). १. पे. नाम. जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - ७अ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुदाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० तिन भुवन; अंति: उद्धर्यो छे.
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ - १२आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः पुन्नं पावामि अजीवा, गाथा- ५७, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुण्य पाप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यत्र-तत्र बार्थ दिया गया है.)
५६८५२. (#) आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२, १४X३८).
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आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउस तेण; अंति: (-), अध्ययन - २५, ग्रं. २६४४, (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, उद्देश- ३ तक लिखा है.)
५६८५३. (#) अनुयोगद्वारसूत्रे - नयसूत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १७७८, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १६x४५).
अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा सप्तनव स्वरुप, प्रा. गद्य, आदि: सत्तमूलनया पणत्ता तं अंति: तदुभय एवंभूओ विसेसेइ.
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१६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सात मूल नय पणत्ता; अंति: ने ए एवंभूतनय
कहीई. ५६८५४. दीपालिका कल्प, पूर्ण, वि. १६१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पठ. मु. मान ऋषि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, ९४३३-३७). दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: क्षेमकारिणी भवतु, श्लोक-४, (पू.वि. मध्येषुधन्वंतरिवेद्यः
सर्वोत्तमः- पाठ से है.) । ५६८५५. (+) विवेकविलास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४२७-३२).
विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२.
विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एको एक परमात्मानइ; अंति: तेह प्रति उपार्जइ. ५६८५६. (+) चोविसजिन आंतरा समय व सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०५, फाल्गुन कृष्ण, ११,
श्रेष्ठ, पृ. ७२, कुल पे. २, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत- १८१/७, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ५४१९-३३). १. पे. नाम. चोविस तीर्थंकर आंतरा समय, पृ. १अ, संपूर्ण.
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो आंतरो ५० लाख; अंति: महावीर विच २५० वरसनो. २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कंध सह टबार्थ, पृ. १आ-७२आ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्जति तिउट्टिज; अंति: (-), ग्रं. २१००, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झि० छकाय सरूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-८ का टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) ५६८५७. (+#) कल्पसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०३, माघ कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. गुणवंत
(गुरु मु. मेघाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पृष्ठ पर महावीर जन्मकल्याणक, संवत्सरी, लघु एवं वृहत्कल्प विचार लिखा गया है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ७-९४३०-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंति: एतले गुरुक्त जणाविउ. ५६८५८. (+#) जीवविचार, नवतत्व, दंडक सह बालावबोध व अष्टकर्मविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, कुल पे. ४,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ९४२७). १. पे. नाम. जीवविचार सह बालावबोध, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसू०सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तीनभुवन विषे प्रदीवा; अंति: द्धांतरूप समुद्र थकी. २. पे. नाम. नवतत्वप्रकरण सह बालावबोध, पृ. १३आ-३५आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुनं३; अंति: बुद्धोबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४८.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवाकहता; अंति: हुवौ ते अनेक सिद्ध. ३. पे. नाम. दंडकप्रकरण सह बालावबोध, पृ. ३५आ-५१आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा-४०. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चौवीस तीर्थंकर ऋषभाद; अंति: देवने वीनती लिखी. ४. पे. नाम. आठ कर्मभेद विचार, पृ. ५१आ-६०अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१६९ ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्ण१ दर्शना; अंति: वीर्यगुणनें रोके. ५६८५९. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७१-१७(४ से १५,२१ से २२,५०,५६ से
५७)=५४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. प्रत जीर्ण होने के कारण कुछ पत्रांक अस्पष्ट एवं अनुपलब्ध हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से गाथा- २०१ तक है तथा
बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)। कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते समय जीणइं देवीणं; अंति: (-).
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८६०. प्रद्युम्नचरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८-३(५१ से ५३)=६५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११, १३४३८). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३३, आदि: श्रीमंतं सन्मतिं; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-७ गाथा-६१ अपूर्ण
से सर्ग-७, गाथा-१४९ अपूर्ण तक एवं सर्ग-८, गाथा-३७७ अपूर्ण के पश्चात के पाठ नहीं है.) ५६८६१. (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८५-३४(१ से ५,७ से १०,१५ से १६,२२ से २३,२५ से
३२,३९ से ४१,४६ से ५४,७६)=५१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३५-४०).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८६२. (+) समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १३४४८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक समवाय,
सूत्र- १५८, तीर्थंकर परिवार अपूर्ण तक है.) ५६८६३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१-९४(१ से ९२,१०७ से १०८)-४७,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५-१३४२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १२७ अपूर्ण से पाठ- "आएनइ तीरे वे
आव" तक एवं गाथा- १२२ से पुरुष के ७२ एवं स्त्रियों के ६४ कलाओं के वर्णन तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८६४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५, प्रले. पांडेदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.७००, जैदे., (२४.५४११, ६x४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंति: अनइत्रना संबंधना. ५६८६५. (+) सम्यक्त्वकौमुदी चरित्र, संपूर्ण, वि. १६२३, आश्विन शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४४४). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: स्माद्धर्मो विधीयतां,
पद-४४४, ग्रं. १६७५.
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१७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६८६६. आराधनापताका*, संपूर्ण, वि. १६७०, खमुनिरसनिशानाथसंख्ये, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०+१(२३)=४१,
ले.स्थल. उदयपुर, अन्य. गच्छाधिपति लक्ष्मीचंद्रसूरि (गुरु आ. विमलचंद्रसूरि, पूर्णिमागच्छ); आ. विमलचंद्रसूरि (गुरु आ. विनयचंद्रसूरि, पूर्णिमागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकायुक्त., जैदे., (२५.५४११, ११४५०).
आराधनापताका, प्रा., पद्य, आदि: पणमिर नरिंददेविंदवंद; अंति: हेउं सेवह आराहणाअमयं, गाथा-९३१, ग्रं. १०७०. ५६८६७. (+) भगवतीसूत्र शतक-९ उद्देश-३३ जमाली आलावो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, अन्य. सा. वेलबाई
आर्या (गुरु सा. दाईबाई आर्या); गुपि.सा. दाईबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४११,५४४१). भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० माहणकुंड;
अंति: सेवं भंते भंते त्ति, प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणें काले ते; अंति: विषे
प्रवर्ते नहीं, प्रतिपूर्ण. ५६८६८. (#) गौतमपृच्छा सहटीका व कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४०).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा विहत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, संपूर्ण. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: नत्वा तीर्थनाथं जानं; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम ___गाथा की टीका अपूर्ण है.) ।
गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन् ग्रामे एको; अंति: मोक्षं यास्यति, संपूर्ण. ५६८६९. (+#) भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १-५४४०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३,
गाथा-१४८. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: ऐंद्रश्रेणिजिनं पार; अंति: शंशोध्य मंगलं
भूयात्, ग्रं. ३५०. ५६८७०. (+) आचारांगसूत्र- श्रुतस्कंध १ व श्लोक संग्रह, पूर्ण, वि. १५९५, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(१)=३३, कुल
पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३१-४०). १.पे. नाम. आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध-१, पृ. २अ-३४अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: गवया एव रीयतितिबेमि, ग्रं. २६४४, (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रथम उद्देश अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. मात्र २ गाथा है.) ५६८७१. (+) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. अमदावाद, अन्य. मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८९, संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३९-४३).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रते वांदउ; अंति: देवी ते मंगल करो. ५६८७२. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-८(१ से ८)=३१, प्र.वि. कुल ग्रं. १५७२, जैदे., (२६.५४११, १५४५०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , (पू.वि. श्लोक-११ से है.) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: पमतिः० प्रायशः संति,
ग्रं. १५७२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१७१ ५६८७३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६२८, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ८१-५०(१ से ४५,४७ से ५०,७९)=३१, ले.स्थल. नारदपुरी, पठ. मु. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००,
(पू.वि. अध्ययन-८ अपूर्ण से है., वि. श्रुतस्कंध-२ का मूलपाठ नहीं है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: चत्वारि द्विशतानि च,
__अध्ययन-१९, ग्रं. ४२००. ५६८७४. (#) प्रश्नोत्तरसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १६५३, वैशाख शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१५(१ से १५)=२९, ले.स्थल. पत्तननगर,
प्रसं.ग. लाभविजय (तपागच्छ); अन्य. ग. लब्धिसागर-शिष्य (गुरु उपा. लब्धिसागर, बृहत्तपागच्छ); ग. कल्याणकुशल (तपागच्छ); ग. सोमविजय; गच्छाधिपति विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरसूरि , तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४३). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तु तत्वविद्वेद्यमिति, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-३,
प्रश्न- १३ से है.) ५६८७६. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-४(१ से ४)=२७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४०-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ४, सूत्र-३ से
अध्ययन- ७, गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८७७. (+#) शोभनस्तुति सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१८(१ से २,८,१३ से २६,४३)=२६, प्रले. मु. रतिचंद्र (गुरु
मु. देवचंद्र); गुपि. मु. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, १३-१८४३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६,
(पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२ अपूर्ण से ११ तक, १४ से २३ तक, ५८ से श्लोक- ९३ एवं ___ श्लोक- ९६ है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-शिशुबोधिनी टीका, पंडित. देवचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: देव्याः संबोधनपदानि,
पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ५६८७८. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४१).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिण जिणवरिंदे इंदन; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ५६८७९. पिंडनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १३४५०).
पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पिंडे उग्गम उप्पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७०९ अपूर्ण तक है.) ५६८८०. (+#) आचारांगसूत्र सह बालावबोध- श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३०-७(२१ से २७)=२३, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १-७४४०).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., द्वितीय
श्रुतस्कंध, प्रथम उद्देशक से सप्तम तक एवं प्रथम- पिंडेसणा अध्ययन के उद्देशक- ११ अपूर्ण से द्वितीय सेज्जा
अध्ययन, उद्देश-१ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५६८८१. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-७६(१ से २१,३०,३४ से ३७,४५ से ७०,७२ से
९५)=२०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ४X४०).
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१७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६, गाथा-९ अपूर्ण से अध्ययन
९ गाथा-७ अपूर्ण तक, गाथा- १७ अपूर्ण से गाथा- ५३ अपूर्ण तक, अध्ययन- १०, गाथा- ३४ अपूर्ण से अध्ययन१२, गाथा- २४ अपूर्ण तक, अध्ययन-१५, गाथा- १७ अपूर्ण से गाथा-१० अपूर्ण तक एवं अध्ययन- २०, गाथा
५३ अपूर्ण से अध्ययन- २१ गाथा-१ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८८२. (+) प्रमेयरत्न कोष, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४६०). प्रमेयरत्नकोष, आ. चंद्रप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा ज्ञानतमिस्रसंत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "प्रायोजनं वक्तव्य
भवतु नाम किमपि" तक है.) ५६८८३. चतु:शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. रामकुशल; लिख. श्राव. माणेकचंद नाथालाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष- १८२ दिया गया है., जैदे., (२६४१२, ३४२१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
चतःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पाप सहित जे व्यापार; अंति: सुखनुं देणहार छे, ग्रं. ३४१. ५६८८४. (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-६१(१ से ५८,७२ से ७४)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६-३८).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. पाठ-"नगरपालायअहिवइदि" से
__"देवरायाईसाणस्सदेविंदस्सदि" एवं "काप्पागो णोइणटेसमटे" से "समाणेणमप्रवज्ञएझेनिसि?" तक है.) ५६८८५. (+) भगवतीसूत्र शतक-३ उद्देश-२ चमरेंद्र आलावो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ५४३७). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-३, उद्देशक-२ चमरेंद्र आलावो, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं
समए; अंति: संवं भंते भंते त्ति, प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा तृतीय शतक द्वितीय उद्देशक चमरेंद्र आलावो-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणेंकाले ते०;
अंति: भहेस्वामी अन्यथा न, संपूर्ण. ५६८८६. (+) पर्युषणपर्वअष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ९४३३). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: त्रिभिर्विशेषकं,
श्लोक-६२४. ५६८८७. (+#) पंचरूपमायाबीज कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६.५४११, ९x१८-२९).
पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग., आदि: श्रीवामेयं जिन; अंति: कर्तव्य कर्मनाशन. ५६८८८. (+#) कल्पसूत्र-१४ स्वप्न सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०). कल्पसूत्र-हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जं रयणि चंणं समणे; अंति:
दियाणं विइक्वंताणं, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत श्री; अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "करइ मंगलीक रूप" पाठ तक लिखा है.) ५६८८९. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. गौडल,
प्रले. मु. भांजेराम; अन्य. मु. जसराज; मु. गुमानीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २४३१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१७३ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४८.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कारकी श्रीमहावीर; अंति: काजे ते जाणवो सारुं. ५६८९०. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१०.५, ५४२७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ४ अपूर्ण से
__ अध्ययन-५ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८९१. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७८, फाल्गुन कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. मढाडनगर, प्रले. ग. दानविजय (गुरु
ग. दोलतविजय); गुपि. ग. दोलतविजय; पठ. मु. मानसिंघ (गुरु ग. दानविजय); अन्य. ग. कृष्णविजय (गुरु ग. चंद्रविजय पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. धर्मनाथ प्रसादात्, संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०८) भग्न पृष्ठ कटि ग्रीवा, जैदे., (२६.५४१३, १२४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जावीरजिण तत्थं,
गाथा-३१६. ५६८९२. (+#) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५६२, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. शीलधर्म (गुरु उपा. पूर्णचंद्र,
खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १४४३५-३९).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई
पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६३. ५६८९३. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६८-१५४(१ से १५४)=१४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ७X४७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १२ अपूर्ण से अध्ययन
१३ अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८९४. (+) श्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. पीपलाद, प्रले. श्रावि. कृष्णकंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (१५४११, १-७४४०-५१). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: आवसही इच्छाकारेण; अंति: खमामि सव्वस्स
अहयंपि.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आवसही कहेतउ सावधान; अंति: इसर्वनी अ० हुंपणा. ५६८९५. (+) कल्पसूत्र- समाचारी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९-३५(१ से ३४,४८)=१४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ से "याणं
तिणिसयसाहस्सीउ उकोसिया" तक व "चइत्तए झेणेनियथोवा नियं" पाठ से है.) ५६८९६. (+#) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०४, आश्विन शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २९-१५(१३ से २७)=१४,
प्रले. मु. रवजी ऋषि (गुरु मु. हरजी ऋषि); गुपि.मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११, ६x४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२२,
(पू.वि. गाथा- १३७ अपूर्ण से ३१० अपूर्ण तक नहीं है.)
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहत; अंति: तीर्थ प्रवर्तइ. ५६८९७. (+) पर्युषणअट्ठाइ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२४३७).
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१७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: च शिवं प्रपेदे,
श्लोक-१७९. ५६८९८. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र कीटीका, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अति: (-), (पू.वि. श्लोक
४३ का टीका अपूर्ण तक है.) ५६८९९. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ११४३५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"बहूणं
समणाणं समणीण" तक है.) ५६९००. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४२८-३१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम
पत्र नहीं है., "जइविनिआणबंधनं वीअरायतुहसम" पाठ तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रतइ माहरु; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं. ५६९०१. षडावश्यकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४८). षडावश्यकसूत्र-वृत्ति*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. नमस्कार महामंत्र अपूर्ण से "अकर्मत्वात सिद्धिगति
नामधेयं" पाठ तक है., वि. मूलसूत्र का प्रतीक पाठ लिखा है.) ५६९०२.(+) चरणसत्तरी व करणसत्तरी विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४४१). १. पे. नाम. चरणसित्तरी विचार, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: वय५ समणाधम्म१०; अंति: वरणस्स हवंति मे भेया. २.पे. नाम. करणसित्तरि विचार, पृ. ६अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
करणसत्तरि विचार, प्रा., गद्य, आदि: करणमाह पिडि१ सिज्ज; अति: (-), (पू.वि. "रसहेउ पाडसिद्धौ" तक का पाठ है.) ५६९०३. पूजाविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. ममोई, प्रले. मु. श्रीचंद्र ऋषि (गुरु मु. हीरचंद ऋषि); गुपि. मु. हीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ४४२८-३०).
पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवद्धमाणतित्थाहिन; अंति: च्चं अप्पवगाफलो एसो, गाथा-५६.
पूजा प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धश्चासौमानश्च; अंति: फल देनार जाणवो. ५६९०४. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-२ से ८, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, अन्य. सा. संतोकबाई (स्थानकवासी); सा. अंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १२४३०-३८).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६९०५. पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-५(१ से ५)=१०, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ९४३१). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. ६अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति, (पू.वि. "अजुरणयाए अतिप्पणयाए" पाठ से
२.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: इच्छामो अणुसट्ठिअं, आलाप-४.
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१७५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५६९०६. विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-१११(१ से १११)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४११, ५४३८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१, अध्ययन-१० "कहिं
उववज्जिहिइ" पाठ से श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-२ "एवं खलु जंबू तेणं कालेणं" पाठ तक है.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६९०७. कल्पसूत्र अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२६४११, १५४५१).
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., धर्म
की प्रधानता के वर्णन से महावीर प्रभु के सत्तावीस भव के वर्णन से पूर्व तक का पाठ है.) ५६९०८. कल्पसूत्रपीठिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, ले.स्थल. विक्रमपुर, जैदे., (२६४११, १३४४७). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., नवकारप्रभाव कथा अपूर्ण से है व अष्टमतप अधिकार तक लिखा है.) ५६९०९. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३०-४०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से २०२ अपूर्ण तक
बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५६९१०. (#) देवसिराईप्रतिक्रमण सूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३६-४०). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अन्नत्थसूत्र अपूर्ण
से कल्लाणकंद सूत्र अपूर्ण तक है.) ५६९११. (+) वैराग्यशतक की छाया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. लोवावट, प्र.वि. वि.१६४७ में जिनचंदसूरि के
राज्य में गुणविनय गणि के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले.श्लो. (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, दे., (२६.५४१२, ९४२६).
वैराग्यशतक-छाया, सं., पद्य, आदि: संसारे असारे नास्ति; अंति: जीवः शाश्वतं स्थानम्, श्लोक-१०४. ५६९१२. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४२८-३३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: (-), (पृ.वि. "उवसंपवजीमीजसंभारामि
जंचनसंभरामि" पाठ तक है.)
पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं क० एह; अंति: (-). ५६९१३. सम्यक्त्व स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२५.५४११, ३४३३).
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ति, गाथा-२५.
सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा येन प्रकारेण; अंति: भवत्विति सुगममन्यत. ५६९१४. (+) भगवतीसूत्र शतक-१६ उद्देश-५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. सा. वेलबाई आर्या (गुरु सा. दाईबाई आर्या); गुपि.सा. दाईबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, ५४३४).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६९१५. (+) भगवतीसूत्र-शतक-१२ उद्देश-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. सा. वेलबाई आर्या (गुरु 1. दाईबाई आर्या); गुपि. सा. दाईबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११.५, ५४३२).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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१७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
५६९१६. षडावश्यकसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-२ (१ से २ ) =७, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२६४११.५,
,
१७X५१).
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पडावश्यकसूत्रवृत्ति, सं., गद्य, आदि (-): अंति (-). (पू. वि. वंदनक अधिकार अपूर्ण से कायोत्सर्ग अधिकार अपूर्ण तक है., वि. मूल के प्रतीक पाठ दिए गए हैं.)
५६९१७, (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११४-१०६ (१ से १०६) ८. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६४११, १५४५६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- २८ की अंतिम गाथा के अंतिम पद से अध्ययन- ३० की गाथा - ६ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टीका * सं., गद्य, आदि (-): अंति: (-).
"
५६९१८. पच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९२ फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पू. ११-४ (१,५ से ६,८)=७, ले. स्थल, राजनगर, जैदे.. (२६४११.५, २x२१).
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुकार, अंतिः धीरेहिं अनंतनाणीहि. (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उग्गए सूरे कहेता, अंति: अभिग्रह पच्चक्खाण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
प्रत्याख्यानसूत्र - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: असनं क० भोजन जिमवानी, अंति: ज्ञानन धणी की, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं,
५६९१९. विचारसप्ततिका सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ५९०, जैवे. (२५.५x११,
२-४४४५-४९),
विचारसप्ततिका, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि पडिमा मिच्छा कोडी, अंतिः छिय सिवपासाए सवा वसह,
गाथा - ८१.
विचारसप्ततिका-वृत्ति, मु. विनयकुशल, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: सर्वज्ञं श्रीजिनं; अंति: नामापि सूचितम्. ५६९२० पर्वकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे, ३, ले. स्थल, सिरोही, प्रले. मु. हस्तिविजय पठ. मु. हितविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१२, २०४५४).
१. पे. नाम. दीपावलीपर्व कथा, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण
दीपावलीपर्व कल्प- बालावबोध + कथा, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार, अंति: मंगलीकमाला पामे. २. पे. नाम. सुव्रतऋषि कथा, पृ. ६अ -७आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा, अंतिः केचिदिवं जग्मुः.
३. पे. नाम. होलीपर्व कथा, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
,
होलिकापर्व कथा सं., पद्य, आदि: अथ श्रीचतुर्विंशति, अंति: (-), (पू.वि. "कुमार विस्मयप्राप्त उवाच" पाठ तक है.) ५६९२१. (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, ५X३७-४०).
"
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), (पू. वि. सूत्र ६, बलवं दुब्बलपच्चामेते" पाठ तक
है.)
औपपातिकसूत्र - टवार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं अंति: (-).
५६९२२. (+) योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-११ (१,३,८ से १६) = ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ, जैवे (२६४१०.५, ७-१०४०-४४).
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१७७ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं.,प्रथम प्रकाश, श्लोक-११ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक, श्लोक-५१ अपूर्ण से द्वितीय प्रकाश श्लोक-७१ अपूर्ण तक,
चतुर्थ प्रकाश श्लोक-८ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक व श्लोक-६१ अपूर्ण से ८५ अपूर्ण तक है.) । योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं. ५६९२३. भगवतीसूत्र शतक-११ उद्देश-१२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य. सा. वेलबाई आर्या (गुरु सा. दाईबाई आर्या); गुपि. सा. दाईबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ५४४५).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५६९२४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-केशीगौतमअध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,५४२६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५६९२५. (+) वीरस्तुति सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. अदेसंग ऋषि; पठ.मु. धर्मसी ऋषि; अन्य. सा. बालुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३२-३५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति:
आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९, (वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, ७) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पांचमे अध्ययने नरकना,
(२)पु. सुधर्मास्वामी; अंति: काले इम हुंकहं छु, (वि. १८५१, भाद्रपद कृष्ण, १४) ५६९२६. (+) क्षपणासार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., ., (२६.५४१२, १०४३४). क्षपणासार, मु. माधवचंद्र त्रैविद्य, सं., गद्य, आदि: स जिन भास्करः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., बादरकाय निरूपण अपूर्ण तक लिखा है.) ५६९२७. (+) शीलोपदेशमाला व विवेकमंजरी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १५०, जैदे., (२६४११, १२४४५). १. पे. नाम. शीलोपदेशमाला, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: जयकित्ति लहइ बोहिफलं, कथा-४३,
गाथा-१०८. २.पे. नाम. विवेकमंजरी, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
श्राव. आसड कवि , प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: सिद्धिपुरसत्थवाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ५६९२८. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. लहुजी; पठ. श्रावि. सहजबा; अन्य. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५४२७-३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४६.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: १५ भेद सिद्धना जाणवा. ५६९२९. चोविसजिन एकवीसस्थानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११,११४३४).
२१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण१ विमाणार नयरी३; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६. ५६९३०. इंद्रियपराजयशतक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ९x४०).
इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण से ९७ अपूर्ण तक है.) ५६९३१. संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११.५, ११४५६).
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१७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-१२४. ५६९३२. (+#) अजितशांति स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४५३).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ___ गाथा-९ से है., वि. गाथा- ३३ से प्रतीक पाठ मिलते है.)
अजितशांति स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आयरं आदरं कुणह करउ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५६९३३. (+) लघुदंडकविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. दशरथनगर, प्रले. मु. हीमतविजय (गुरु
पं. अमीविजय); गुपि.पं. अमीविजय (गुरु पं. चंद्रविजय); पं. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४१.
दंडक प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: विनती लखी आतमाकइ हेउ. ५६९३४. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १८०७, कार्तिक शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बेनातटनगर,
प्रले. पं. प्रीतिविलास गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४१). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१४६. ५६९३५. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२५-१६(१ से १६)=१०९, अन्य. ग. हंसविजय (गुरु ग. कल्याणविजय);
गुपि.ग. कल्याणविजय (गुरु ग. प्रसिद्धविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीहंसविजयजी ने ज्ञानभंडार में रखी., जैदे., (२६४११, ११४२०-२६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. अध्ययन-९
नमिप्रव्रज्याअध्ययन श्लोक-५ से है.) ५६९३६. (+) विपाकसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११७-२(६,१०३)=११५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १३००, जैदे., (२५४११, ३-५४२९-४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन
२०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० अथ वीपाकसूत्रनो; अंति: जिम आचारंगनी परइं. ५६९३७. जंबुद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदे., (२६४११.५, १५४४२).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० तेण; अति: उवदसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१५४. ५६९३८. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५, ले.स्थल. वढवाण शहेर, प्रले. पनजी गोपालजी भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ५४३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाई, सूत्र-५७,
गाथा-७००.
नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी शब्दनो स्यो; अंति: अनुज्ञा नाम जाणवा. ५६९३९. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, पौष, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६+१(५३)=७७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७४१२, ६४४४-४६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू अपरिग्गहो संवुड; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे जंबू एह प्रत्यक्ष; अंति: दस प्राणनउ हरवउ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१७९ ५६९४०. (+) दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. कुबेरदास
रणछोडदास पटेल; लिख. श्राव. जाधाभाई सुंदरजी शाह; अन्य. मु. ज्येष्टमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जमनाबाई द्वारा साधु श्रावक के ज्ञानवृद्धि हेतु स्थानक में रखने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, ५४३०-३९).
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १७०८, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: ए अधिकार ब्रवीमि,
ग्रं. २२००. ५६९४१. कर्मग्रंथ १ से५ सह टबार्थ व ८ कर्मबंध प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, कुल पे. ६, दे., (२६४११,
३-४४४०-४३). १. पे. नाम. ८ कर्मबंध प्रकृति-भगवतीसूत्रे, पृ. १अ, संपूर्ण.
८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: णयाए६ दर्सनावरणी; अंति: ८ कर्मबंधवानी जाणवी. २. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीर; अंति: सुचक
वाक्यु. ३. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १६अ-२४अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: तथा तिणे प्रकारे; अंति: नामकस्य
पूर्णमगात्. ४. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २४अ-२८आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जीवप्रदेश साथे कर्म; अंति:
पूर्तिमगात्. ५. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. २९अ-४६आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जिनने नमस्कार करीने; अंति:
नामकस्य पुर्तिमगात्. ६. पे. नाम. शतककर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ४७अ-७०आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा १०० वीं के प्रारंभ तक हैं.)
शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जिनप्रति नमस्कार; अंति: (-). ५६९४२. गाथासहस्री, संपूर्ण, वि. १९२८, पौष कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. मगसुदाबाद अजीमग,
प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. शांतिसागरसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसागरसूरि, विजयगच्छ); अन्य. श्राव. धनपतसिंह रायबाहादुर; श्राव. गणपतसिंह राजा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ७४४०). गाथासहस्री, मु. समयसुंदर, सं.,प्रा., पद्य, वि. १६८६, आदि: पडिरूवाई चउद्दस खंती; अंति: याख्याने वाच्यमानोसौ,
श्लोक-१०१३. ५६९४३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४७).
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१८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३. ५६९४४. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४०).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: (अपठनीय); अंति: ए अर्थ भगवंतइ कहिउ,
(वि. प्रथम पत्र खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ५६९४५. स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-९(१ से ६,२७,५७ से ५८)=५६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १३४३४). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ अपूर्ण से अध्ययन-४ उद्देश-२
अपूर्ण तक है.) ५६९४६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७०२, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ५०-१(१)-४९, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ६४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (१)मुच्चइ त्ति बेमि, (२)निजूहगं वंदे,
अध्ययन-१० चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा २ अपूर्ण से है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दुख थकीइ इम हुंकहुं. ५६९४७. (+) निरयावलिकादिपंचोपांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, कुल पे. ५, प्र.वि. कुल ग्रं. ११०९, जैदे.,
(२६.५४१०.५, ११४३६). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जयि ण भंते समणेण; अंति: वासेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १९अ-३७अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३७अ-४०अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: वासे सिज्झहिति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४०अ-४५अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. ५६९४८. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४१, प्र.ले.श्लो. (१६) भणजो गुणजो वाचजो, (११६६) जादृसं पुसकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१२, १४४२१-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८,
ग्रं. १२१६. ५६९४९. पंचमीफल माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदे., (२६४११, १७X४८-६५).
भविष्यदत्त कथा-ज्ञानपंचमीफलमहात्म्ये, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पंचिंदियनिरविक्खं; अंति: निसहस्साई
गंथग्गम्, कथा-१०, गाथा-२०००. ५६९५०. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. गोंडल, प्र.वि. कुल ग्रं. २५००, जैदे., (२६४११, ५४२५-४०).
तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: कारणं लहइ सिवसुक्खं. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)कल्याणवल्लीतती०,
(२)श्रीमहावीरदेवने; अंति: धरीने मुक्ति पोहचे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१८१ ५६९५१. (#) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१०-१७४(१ से १६२,१८१,१९० से १९४,१९६ से
१९८,२००,२०२ से २०३)=३६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४४२९-३२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश है.)
उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६९५२. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५५, भाद्रपद शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. देसणोक,
प्रले. ग. भावविजय (गुरु पंन्या. सत्यराज, बृहत्खरतर); गुपि. पंन्या. सत्यराज (गुरु उपा. जयमाणिक्य, बृहत्खरतर); उपा. जयमाणिक्य (गुरु वा. जिनजयगणि, बृहत्खरतर); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ); राज्यकालरा. सूरतसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १२-१५४३१-३७).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
__ श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: सादमाधाय तत्सर्वम्. ५६९५३. (#) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०८, पौष शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ३९-११(१,१०,३० से
३८)=२८, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२७४१२, ५४३७). १.पे. नाम. श्रावकआवश्यकसूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-९आ+११अ-२, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश
नहीं हैं तथा अध्ययन चार तक लिखा है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं तथा
अध्ययन चार तक लिखा है.) २. पे. नाम. धर्मध्यान भेद सह बालावबोध, पृ. २४आ-२७आ, संपूर्ण.
धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंति: संसाराणुप्पेहा४.
धर्मध्यान लक्षण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आणावीज कहेता वीतरागन; अंति: धर्मध्यान ध्याईये. ३. पे. नाम. पडिलेहनविधि, पृ. २८अ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तीखुत्तोनो पाठ; अंति: (-), (पू.वि. खमासमणा पाठ
अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. साधु आवश्यक क्रिया, पृ. ३९अ-३९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: द्रव्य आवश्यक कहीइं, (पू.वि. संध्या वेला प्रतिक्रमण की
विधि करने के प्रसंग से आगे है.) ५६९५४. (+#) संघयणी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्र.वि. प्रत के अंत में "ए परत
रुपीया एकनी वेचाथी लीधी छि लुकागच्छनु कूरजी गांम अजमेरना सवंत १९१४ पागुण सुद १५ दिने" ऐसा उल्लेख मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६४९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा जिणमयं लोए,
गाथा-३०९.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: नमी वांदीनइ अरिहंतनइ; अंति: लोकमांहि० करज्यो. ५६९५५. (+) दृष्टांतशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, माघ शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. मु. रूपा ऋषि (गुरु मु. देवजी
ऋषि); गुपि. मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह ऋषि); मु. तेजसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ५४२९).
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदा; अंति: धीरैः विशोध्यं वरै, श्लोक-१०२, संपूर्ण. दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार करीनै; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. गाथा १९ तक का टबार्थ
लिखा है.)
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१८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६९५६. (#) आवश्यकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४३). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-),
(पू.वि. नियुक्ति पीठिका की गाथा ७५ तक की टीका का पाठांश है., वि. मूल, नियुक्ति व भाष्य का प्रतीक पाठ दिया
गया है.) ५६९५७. (#) प्रियंकरनृप कथा, अपूर्ण, वि. १८३२, आश्विन कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(१)=२५, प्रले. मु. तत्त्वसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति:
सुखभाजो भवंति ते, (पू.वि. याप्पस्पस्तवस्प पाठ से आगे है.) ५६९५८. (+#) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ९x४२-४८). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-६ गाथा १७
अपूर्ण तक है.)
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पइ नि०; अंति: (-). ५६९५९. भरतबाहुबलि प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-३(१ से ३)=२१, जैदे., (२६४११.५, १५४३९-४३).
भरतबाहुबलि प्रबंध, आ. शीलरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वगुणैकत्वं समौ संपदा, गाथा-८२१,
(पू.वि. श्लोक ७६ अपूर्ण से है.) । ५६९६०. (#) भक्तामर स्तोत्र, नवकार मंत्र व उवसग्गहरं स्तोत्र सह बालावबोध व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, ८,
गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ८-१७४३५-४१). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: तैहने घणौ लाभ
हूवो.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त क० रागी एहवा जे; अंति: करी प्रगट जणाव्यउ. २. पे. नाम. नवकार महामंत्र सह टबार्थ, पृ. २३आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९.
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: नमो अ० एहना अण्य पाठ; अंति: २७ गुरु अक्षर जाणिवा. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५.
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वदेव कहवा; अंति: इत्यर्थ कह्यो. ५६९६१. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-२४(१ से १७,३२ से ३८)=२१, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, ६४३५-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश १ गाथा
१७ से अध्ययन-८ गाथा ३ अपूर्ण तक व अध्ययन-९ उद्देश १ गाथा १७ से अध्ययन-१० तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६९६२. समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-९५(१ से ९५)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ५४३५-४०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पणसट्ठियो समवायो से पइण्णग समवायो
सूत्र १२७ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१८३
समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच में कुछ सूत्रों का टबार्थ लिखा है।) ५६९६३. (+) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३१-३ (९, २१, २९) २८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १६X३९-४५).
सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अनंतशब्दार्थगतोपयोगि; अंति: (-), (पू.वि. कथा २, कथा १७ व कथा २९ अपूर्ण है.)
५६९६४. (+#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८ - २ (१ से २ ) = २६, अन्य मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ७८४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, ११४३३-३९).
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दशाक्षुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: उवदरिसितित्ति बेमि, दशा १० नं. १३८०, (पू. वि. दशा - ३ अपूर्ण से है.)
दशाश्रुतस्कंधसूत्र - विषमपद टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६९६५. (#) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. टंकारा, प्र. मु. रायसी (गुरु मु. देवचंद) गुपि. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ६x४१).
-
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिं; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करुं छं अरि, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ५६९६६] (4) संबोधसत्तरि सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक शुक्ल, ५. श्रेष्ठ, पृ. १८. ले. स्थल. सोवनगिरि,
प्रले. मु. विनयविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ८००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ३X३६).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा-९१. संबोधसप्ततिका बार्थ, मु. जयसोम, मा.गु, गद्य वि. १७२३, आदि: ऐन्नमस्ते जगन्नेन; अंतिः टबार्थममु जयसोमक ५६९६७. श्रावक श्राविका प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १८३८, चैत्र कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, जीवे. (२६.५x१२,
3
१३X३३).
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं; अंतिः वंदामि जिणे चवीसं. ५६९६८. (+#) योगशास्त्र प्रकाश १ से ४, संपूर्ण, वि. १८०५, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. श्रीरवनगर, पठ. ग. अमीविजय (गुरु पं. रत्नविजय); गुपि पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, १४X३४-३७).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५६९६९ (४) वैराग्यशतक व उत्तराध्ययनसूत्रगत तीन वणिक दृष्टांत गाथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-३ (८ से १०)=८. कुल पे. २. प्र. वि. प्रथम पृष्ठ पर श्रीपार्श्वनाथ भगवान का रंगीन चित्र दिया हुआ है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५X११, ६X३३-३७).
"
१. पे, नाम, वैराग्यशतक सह टवार्थ, पृ. १आ-७आ+११११आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं है.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंतिः लहिजीओ सासचं सुक्खं गाथा १०४, (अपूर्ण, पू. वि. गाधा ६६ अपूर्ण तक व गाथा ९७ अपूर्ण से है.)
वैराग्यशतक - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार छे संसारम, अंतिः जीव सास्वतुं सुख, संपूर्ण.
२. पे नाम, उत्तराध्ययनसूत्रगत तीन वणिक दृष्टांत गाथा सह टवार्थ, पृ. ११ आ. संपूर्ण.
उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा अध्ययन ७ का तीन वणिक दृष्टांत गाथा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि जहाय तिन्नि वणिआ मूल, अंति: तिरियत्तणं धुवं, गाथा-३.
उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ का तीन वणिक दृष्टांत गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ३ वाणी मूल लेई; अंति: गति क्रच निश्चइ.
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१८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६९७०. (+) वीरस्तुति सहटबार्थ व मेरूपर्वत के १६ नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, ४-१३४२८-३५). १.पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र का हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
हिवइ आगमिति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु. सुधर्मास्वामी; अंति: काले इम हुंकहु
छुउ.
२. पे. नाम. मेरूपर्वत के १६ नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: मंदर १ मेरू २ मणोर; अंति: लोकने विषे प्रसीध छे. ५६९७१. (+) गौतमपृच्छा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८९०, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७,
ले.स्थल. पटियालापुर, प्रले. मु. सुमेरचंद; पठ. मु. लाभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ६४३४).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इह हि पूर्वाचार्यप्र; अंति: गौतमपृच्छा महार्थापि. ५६९७२. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, ५४३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाण,
गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: सुख मुक्तिनु देणहार, ग्रं. ३४१, (वि. गाथा ४ अपूर्ण से
लिखा है.) ५६९७३. कल्पसूत्र-महावीरजन्म वांचन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदे., (२६.५४११.५, ५४१७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., मंगलाचरण का पाठांश नहीं है.) ५६९७४. (#) वंदितुसूत्र सह टीका, मूल व टीका का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २००-१९२(८ से १९९)-८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ६४३७-४०).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १ मात्र है.) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: (-),
(पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २ अपूर्ण तक व गाथा १४ की अपूर्ण टीका है.) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सर्वसिद्धने वांदिने; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिकाटीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा पंचाश्वर; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., गाथा २ अपूर्ण तक व गाथा १४ की अपूर्ण टीका का टबार्थ है.) ५६९७५. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ व यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१०(१,४ से ८,१०,१५,२४,२७)=१८, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५४२७-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से गाथा ४६ अपूर्ण
तक, गाथा ५२ अपूर्ण से गाथा ७६ तक, गाथा ७९ अपूर्ण से गाथा १२५ तक, गाथा १३१ अपूर्ण से गाथा १४६
अपूर्ण तक व गाथा १४९ अपूर्ण से गाथा १५७ तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५६९७६. (#) जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति का हिस्सा भरतचक्रवर्ती आलाव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ६४३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१८५ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं से भरहेराया; अंति: सव्वदक्खप्पहीणे. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तिहवार पछी ते भरतराज, अंति: सर्व दुखक्षय
कीधो. ५६९७७. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६५४, कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २३-८(१ से
८)=१५, ले.स्थल. शिवपुरनगर, प्रले. मु. हीरजी (गुरु ग. लावण्यकीर्ति गणि, तपागच्छ); गुपि.ग. लावण्यकीर्ति गणि (परंपरा आ. हेमसोमसूरि, तपागच्छ); आ. हेमसोमसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३६-३९). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. चारिज्जइ
जइ पाठ से है.)
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वाचुं जिन चउवीसप्रति. ५६९७८. नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(३,१३)=१४, जैदे., (२६४१२, ५४३७-५३).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ अपूर्ण तक, गाथा १८ अपूर्ण से सूत्र ५४ अपूर्ण तक लिखा है.) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहता आणदनो; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ५६९७९. स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १०, प्र.वि. सरस्वतीदेवी मंत्र संबंधी यंत्र दिया गया है., दे.,
(२७४१२, १४४४८). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन शासनदेवी स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति का संबद्ध २४ जिन शासनदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: देवीचक्रेश्वरीय
वर; अंति: ये जन्मिनाम्, श्लोक-२५. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन यक्ष स्तोत्र, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
२४ जिनभक्तयक्षस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्युगादि जिनमुख; अंति: नंदं स महानंदोदयोदार, श्लोक-२६. ३. पे. नाम. षोडशदेवी स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
१६ विद्यादेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजवलये विमल; अंति: सागरचंद्ररूपं, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. सरस्वतीमंत्र कल्प, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.
आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: जगदीशं जिनं देवमभि; अंति: १००००० ततः सिद्धिः, श्लोक-७७. ५.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: कुंदाकुंडिलिनित्वदीय; अंति: तस्य वाचां विलासः, श्लोक-१२. ६. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी जापमंत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, आदि: ॐसरस्वत्यै नमः; अंति: जापे नमः होमे स्वाहा. ७. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी महापीठोद्धार, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, आदि: ऍक्लीझौँ पूर्व, अंति: सरस्वतिं तुभ्यं नमः. ८. पे. नाम. सरस्वती कल्प यंत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी कल्प, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, आदि: गुरुक्रमेण सर्वतत्व; अंति: बप्पट्टि सारस्वतं. ९. पे. नाम. शारदा कल्प, पृ. १२अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी कल्प, सं., गद्य, आदि: वाग्भवं प्रथमं बीज; अंति: श्रावय ॐह्रीस्वाहा. १०. पे. नाम. सरस्वती मंत्र वजापविधि, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र वजापविधि, आ. हेमसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐनमो भगवओ अरिहओ भगवइ; अंति:
वस्त्राध्यातव्येति.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१८६
५६९८०. (+) दृष्टांतशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. भाग्यविमल शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५४११.५, ६३८).
"
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदा, अंतिः धीरैः विशोध्यं वी, श्लोक १०२, संपूर्ण. दृष्टांतशतक- बार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः न० नमस्कार करीने अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा ७६ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.)
५६९८१. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४,
ले. स्थल. अवरंगाबाद, प्र. वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्रो. (२०५२) तैलाद्रक्षेज्जलाक्षे, जैदे., ( २६.५X११.५, ३X३२).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथना; अंति: निश्चयेनेति मंगलम्.
५६९८२. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ३६, संपूर्ण वि. १८३१, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल, मेडतानगर, प्रले. मु. उदयचंद, पठ. सा. धना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १२X३६-४२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ५६९८३. (*) षडावश्यकसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९५ कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल, कृष्णगढ,
पठ. मु. हेतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, ९४२३-३१).
आवश्यकसूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धिं.
५६९८४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२५.५४१२, ४४२८-३४)
१. पे नाम ज्योतिष संग्रह. पू. १अ. संपूर्ण.
ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. पण, आदि (-); अंति: (-).
,
२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण,
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक; अंति: क. पामेयुग्मं.
५६९८५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (तपगच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५४१२, ३१०२७-४४).
"
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा- ६०. नवतत्त्व प्रकरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतना, अंति: छे इम उत्तर कहस्ये.
५६९८६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४ - ५ ( १ से २,११ से १३) = १९, पू.वि. प्रारंभ, बीच अंत
के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, ५X४१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ गाथा १९ अपूर्ण से अध्ययन ३ गाथा १२ अपूर्ण तक व अध्ययन ५ गाथा १२ अपूर्ण से अध्ययन ९ गाथा ४२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५६९८७ (१) सिद्धांतसारोद्धार सम्यक्त्व उल्लास का टिप्पण देवतत्त्व स्थापना अधिकार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १५X४९).
सिद्धांतसारोद्धार - देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, उपा. कमलसंयम, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: संवत १५०८ वर्षे अंति
सम्यक्त्व राखिस्यइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१८७ ५६९८८. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,७४३२-३६).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५३ अपूर्ण तक
पयुषणा
उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: (-). ५६९८९. (#) लीलावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १८४४७). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: त्रेवीसमो त्रिभुवन; अंति: वृद्धि सदा सुखकार,
ढाल-२९, गाथा-६१९. ५६९९०. (#) दीपोत्सव कल्प, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. लासनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४२१-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १३४५, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: दीपालिकाकल्प,
श्लोक-२७८. ५६९९१. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१,४)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४२८). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
संतिकर स्मरण गाथा ५ अपूर्ण से नमिऊण स्मरण गाथा २४ अपूर्ण तक व अजितशांत स्मरण गाथा २ अपूर्ण से गाथा
३३ अपूर्ण तक है.) ५६९९२. पर्युषण अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२, १५४४४-४८).
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आर्द्रकुमार धर्मकथा अपूर्ण तक लिखा है.) ५६९९३. (+) सर्वज्ञपूजा सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ६x२८).
साधारणजिन पूजा, सं., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सत्कृताः संतु शांतये, श्लोक-३८. साधारणजिन पूजा-टिप्पण, श्राव. गोपाल ब्रह्मचारी, सं., गद्य, वि. १६८६, आदि: अरिहननात रजोहननात; अंति:
रोचिदीप्तिर्यस्यस. ५६९९४. जिनबिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, १५४४५).
जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, आदि: सुमुर्हते गृहसन्मुख; अंति: त्रं कर्पूरस्नात्रं. ५६९९५. (+) मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४११, १२४४२). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति:
शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ५६९९६. कल्पसूत्र- व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८०, ले.स्थल. रामसिणनगर, प्रले.पं. हर्षविजय (गुरु
पंन्या. वनीतविजय); गुपि. पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम पत्र पर श्री महावीरस्वामी का रंगीन चित्र दिया हुआ है. श्रीमहावीरजिन श्रीआदिजिन प्रसादात्., कुल ग्रं. १२१६, जैदे., (२५.५४१२, ९४३०).
__ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण. ५६९९७. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका- व्याख्यान १ से ८, अपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम,
पृ. ३४१-२६६(१ से २६५,२८०)=७५, प्रले. कवरलाल; पठ. मु. जगत्चंद्र (गुरु ग. हर्षकल्याण, खरतरगच्छ); गुपि. ग. हर्षकल्याण (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ७४२७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
,
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति: (-), ग्रं. १२९६ (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. नेमनाथ विवाह प्रसंग अपूर्ण से है व बीच का कुछ पाठांश नहीं है.)
कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ग्रं. ४१०९, प्रतिअपूर्ण. ५६९९८. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६५, प्र. वि. प्रधान- २२००., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. २२००, जैदे., (२६X११, १३x४०-४५ ).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: बुज्झिन तिउलेज्ज, अंतिः विहरति त्ति बेमि, अध्याय- २३,
"
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ग्रं. २१००.
५६९९९. (+) सूयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध १ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, प्र. वि. संशोधित पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, ८-१२x२७-३४).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउद्देज्ज, अंति: (-), ग्रं. २१०० प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य सद्गुरुन्; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
५७०००. (+) भुवनदीपक व षट्पंचाशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५१, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, १६x४५-५०).
,
१. पे. नाम. भुवनदीपक सह टीका, पृ. ९आ-४०अ, संपूर्ण.
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१६७. भुवनदीपक- टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३२६, आदि: अर्हदादीन् प्रणम्याथ; अंतिः विशोध्य बीज लिखिता.
२. पे नाम षट्पंचाशिका सह टीका, पृ. ४० अ-५१अ, संपूर्ण.
षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य रविं अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय ७, श्लोक ५८. षट्पंचाशिका - टीका, उत्पल भट्ट, सं., गद्य, आदिः केशाजार्कनिशाकरान्क: अंतिः तिनिर्देशः कार्य इति,
५७००१. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४३, ले. स्थल. भाइजण, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि (गुरु पं. वृद्धिचंद); गुपि पं. वृद्धिचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६११.५. १०X३२-३५).
५७००४.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंतिः अज्झयणं सम्मत्तं व्याख्यान ९. ५७००२. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२६.५X११.५, ७X४०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृदशांगसूत्र- टबार्ध, मा.गु, गद्य, आदि: तेणइ काले चोथउ आरो; अंतिः ज्ञाताधर्मकथानी परे
५७००३. (+) पन्नवणासूत्र सह बोल, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२४-६० (१ से २०, २४ से ७२,८०) = ६४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६४११, ११४२३-३२).
""
"
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. पद १ सिकितंनरइया से पद ५ चउद्वाण बडिए
विईए पाठ तक हैं.)
प्रज्ञापनासूत्र - बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच बीच का पाठ हैं.)
(+#) गुणस्थान प्रकरण की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७६९, मध्यम, पृ. ४४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७X११, ११४३४). गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज़ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं. गद्य वि. १४४७, आदि: अर्हत्पदं हृदि, अंतिः प्रकटित
इत्यर्थः .
,י
५७००५ (+०) रायपसेणीयसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६४११, १८४५२).
राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा. गद्य, आदि; तेणं कालेणं तेणं सम; अंतिः पस्से पस्सावणीए णमो सूत्र- १७५.
"
राजप्रश्रीयसूत्र - टिप्पण", मा.गु., गद्य, आदिः रा० भवनैः पौरजनैश्च अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१८९ ५७००६. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७-१७(२ से १८)=४०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५,११४३५-३७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन
२०, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१, अध्ययन-१ के पाठ "एक्कारस समणस्सणं भंते" से अध्ययन-३ के पाठ "अझिंतरपाणीया
सुदुल्लभ जन्नापरता" तक नहीं है.) ५७००७. (+) संग्रहणीसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८, प्रले. मु. जीवराज (गुरु ग. रत्न गणि); गुपि.ग. रत्न गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १७५७, जैदे., (२५४११, १६x४४). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिन; अंति: द्वितीय श्रावणि
रचिउ. ५७००८. (#) निरयावली सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३७, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.,
(२६४११.५, ११४४६). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: सव्वेसिं भणियव्वो, अध्ययन-१०. २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिझंति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १६आ-३०आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३०आ-३२आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: वासे सिज्झहिति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३२आ-३७अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. ५७००९. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२-६८(१ से ६८)=३४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ७४२७-३०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक २ प्रथम उद्देश खंधक प्रसंग अपूर्ण से
उद्देश ७ अपूर्ण तक है.)
भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७०१०. (+) भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३-८०(१ से ८०)+१९८४)=३४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३७-४१).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश १४ नारकी प्रश्नोत्तरी अपूर्ण है.)
भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः (-); अंति: (-). ५७०११. दशवकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदे., (२६.५४१२, ४४३१-४०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-५, श्लोक-८७ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७०१२. (+#) प्रतिष्ठाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४२). प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: शृंखलामुद्रा, (वि. अंत में
प्रतिष्ठोपयोगी सामग्रियों की सूची दी गई है.) ५७०१३. (+) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४-२(२ से ३)=३२, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें. कुल ग्रं.८००, जैदे., (२६४११.५, ११४३३-३८).
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१९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. अध्ययन-१ के उद्देश-१, पाठ "कम्म समारंभा परिजाणियव्वा" से उद्देश-३. पाठ "पुढो सत्थेहिं विउद्धृति" तक
नहीं है.) ५७०१४. (+) अंबड चरित्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. मौर्यपुर,
प्रले. मु. लालचंद्र (गुरु पं. रुपचंद); गुपि.पं. रुपचंद (गुरु मु. रामवल्लभ); मु. रामवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. धर्मनाथ प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१०५०) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमेन, जैदे., (२७४११.५, १६x४१). १.पे. नाम. अंबड चरित्र, पृ. १आ-३१आ, संपूर्ण.
अंबडचरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: पातु वः श्रीमहावीर; अंति: धर्मारूपमनिंदितम्. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परमेश्वर पूजु मुदा; अंति: सदा न्यानचंद्रोपनेह, श्लोक-१. ५७०१५. (+#) श्रीपाल चरित्र की अवचूरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,१५४५४). सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-६०७ की अवचूरि अपूर्ण तक लिखा है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया गया है.) ५७०१६. (+) रायपसेणीयसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३३-२(१,१८)=३१, ले.स्थल. सुरत, प्रले. मु. जीवा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २०००, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३२-३८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, (पू.वि. "सेवियाएणगरीए पएसीणाम" पाठ
से "गुततिया ससकखं सहोढं" तक व "अनुकुंभीए केइच्छिइवा" पाठ से है.) ५७०१७. (#) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. कुल ग्रं. १२५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १६x४२-४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन
२०. ५७०१८. (+) शतककर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(४)=२८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३४३०).
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., गाथा-७ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक व गाथा-९६ अपूर्ण से आगे नहीं है.)
शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइं जिन प्रतइं; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५७०१९. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. रानेर, प्रले. पं. जिनविजय (गुरु ग. जयविजय);
गुपि.ग. जयविजय; दत्त.पं. हिम्मतविजय गणि; गृही. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. यंत्र व चित्र सहित., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०६. ५७०२०. (#) सूत्रकृतांगसूत्र- श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ६४३१).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण तक है.) ५७०२१. (+#) दीपालिका कल्पसह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ४४३९). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: (-),
(पू.वि. श्वोक-२५८ अपूर्ण तक है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतं बालबोधाना; अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१९१ ५७०२२. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३१-३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: वंदामि
जिणे चउवीसं.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हवउ आठ; अंति: प्रति नमस्कार करूं. ५७०२३. (+#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११८-९६(१ से ९६)+१(११२)=२३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १३४४३). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्षस्कार-४ सूत्र-२०० अपूर्ण से वक्षस्कार-७ सूत्र-२५९ अपूर्ण
तक है.) ५७०२४. (+) संग्रहणीरत्न सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८७, कार्तिक कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २४, प्रले. मु. मोहन ऋषि (गुरु
मु. लखु ऋषि); गुपि. मु. लखुऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बीच में कोष्ठकादि दिए गए हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, ८४३८-४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा जिणमयं लोए,
गाथा-२९१. बृहत्संग्रहणी-छाया, सं., पद्य, आदि: नत्वा अर्हदादीन आयु; अंति: जिनमतं अस्मिल्लोके, श्लोक-२९१.
बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: आदि शब्दात् सिद्धा; अंति: दृष्टिः २ सम्यक्त्व. ५७०२५. (+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७२१, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २१,
ले.स्थल. कर्मवाटी, राज्यकाल यशवंतसिंघ राठोड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यत्र-तत्र कोष्ठकादि दिए हुए हैं., संशोधित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ३०४९९).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थ; अंति: एगूणा होइ नवईउ, गाथा-७२. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वदेव; अंति:
प्रसादाज्जयसोमनामा. ५७०२६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २२-१(१)=२१, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक लिए गए हैं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ६x४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. अध्ययन-२६,
गाथा-४४ अपूर्ण तक नहीं हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुझ प्रति कहं छं. ५७०२७. (+) उपदेशमाला की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२५, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४५८).
__ उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जगचूडा० जगतो भुवनस्य; अंति: आदि विशेषणेभ्यः. ५७०२८. (+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ व भांगादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २०, कुल
पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. ग. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र अबरख युक्त., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १७-१९४३७-४५). १. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टिप्पण, पृ. १अ-१९अ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगणा होइ नवईउ, गाथा-९३.
सप्ततिका कर्मग्रंथ-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: सिद्धं प्रतिष्ठितं; अंति: स्त्येन प्रतिपादयतु. २. पे. नाम. चउवीशी भांगा, पृ. १९आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. विविधसूत्र गत.) ३. पे. नाम. कर्मग्रंथना नामकर्मना भांगाओ, पृ. २०अ, संपूर्ण.
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१९२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कर्मग्रंथ - नामकर्मभांगा संख्या, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि वीस सोलस; अंति: छब्बीसबावन्ना २६५२. ५७०२९. (+) गौतमपृच्छा सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८२४, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित संशोधित. जैवे. (२६४११.५, १३-१५X३४-४०).
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गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्वनाहं, अंति: (-) (पू. वि. गाथा ४६ तक है.)
गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: (-).
गीतमपृच्छा- कथा संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: जिम एक गाम सेठ महा अंति: (-). (पू. वि. श्रीकथा तक है.) ५७०३०. (+) अनुत्तरोववादशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे
(२६X११, ५X३३-३७).
अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालन विषइ ते अंतिः धर्मकथानी परिजाणिवं. ५७०३१. (+) समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११.५, ११x२८).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. समवाय-३ के प्रारंभिक पाठ "चिट्ठति तं पडमा' तक है.)
५७०३२. (+) पाक्षिकसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९२, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, ले. स्थल. चोबारी, अन्य.ग. राजविजय; गुपि. ग. जसविजय (गुरु ग. हर्षविजय); प्रले. ग. सुंदरविजय गणि (गुरु ग. जसविजय); पठ. रणछोड, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पार्श्वजिन प्रसादात्, संशोधित संशोधित, जैदे (२७४१२, १२x२८). १. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिसूत्र, पृ. १आ- १६अ, संपूर्ण
"
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि: तित्थंकरे अतित्थे अंतिः जेसिं सुअसायरे भत्ति.
"
२. पे. नाम. साधुपाक्षिकादि क्षामणासूत्र, पृ. १६अ - १७अ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं, अंतिः नित्धारण पारगा होह, आलाप-४.
३. पे नाम, प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण,
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्ता सुधि देवसी, अंति: छ सहस्र सामायिक
करइ.
५७०३३. (+१) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रादि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९- १ ( १ ) - १८, कुल पे. ८. प्र. वि. ग्रंथ जीर्ण होने के कारण बीच के कुछ पृष्ठों पर पत्रांक उपलब्ध नहीं है., संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२७११, ६X३६). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पृ. २अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
"
आवकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु, प+ग, आदि (-); अंति मणसा मत्येण वंदामि (पू. वि. प्रारंभिक अन्नत्थ सूत्र अंगसंचालेहिं सुमेहिं पाठ से है.)
आवक प्रतिक्रमणसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: भावि वांदउं छ.
२. पे. नाम. १४ नियम गाथा सह टबार्थ, पृ. १६अ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त१ दव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा- १. आवक १४ नियम गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त द्रव्य विगई अंतिः दिन प्रति संभारी.
३. पे. नाम. प्रत्याख्यान सूत्र सह टबार्थ, पृ. १६अ - १८अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार; अंतिः गारेणं वोसिरामि,
प्रत्याख्यानसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यनइ उदेथी आटली, अंति: कारण एतले आगारे... ४. पे. नाम. गुरुस्थापना सूत्र सह टबार्थ, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण.
गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्म, आदि: पंचिंदिय संवरणो तह अंति: गुणो गुरू मज्ज, गाथा-२. गुरुस्थापना सूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः आंखि नासिका मुख कान, अंति: कहित माहरइ गुरु. ५. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह टवार्थ, पृ. ९८आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१९३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारि कषाय रूपीया; अंति: वांछित दिउ तुम्हई. ६. पे. नाम. श्रावक अतिचार गाथा सह टबार्थ, पृ. १८आ, संपूर्ण.
श्रावकअतिचार संख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणाई अट्ठवय सट्ठी; अंति: चउवीससयं तु अईआरा, गाथा-१.
श्रावकअतिचार संख्या-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान८ दर्शन८; अंति: जाणिवा श्रावकनइ. ७. पे. नाम. संथारापोरिसी सूत्र सह टबार्थ, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: धम्म सरणं पवज्जामि, गाथा-१३, (वि. प्रतिलेखक ने
गाथा संख्या नहीं लिखी है.) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बाह्याभ्यंतर परिग्रह; अंति: धर्म शरण वडिवजउ. ८. पे. नाम. अढार पापस्थानक गाथा सह टबार्थ, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
१८ पापस्थानक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणीयवायमलिअं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.)
१८ पापस्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ अलीक; अंति: (-). ५७०३४. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १९-३(२,४,११)=१६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४५५). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५७०३५. (+) कर्मग्रंथ-२ से ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-८(१ से ७,१०)=१५, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, ५४४६). १.पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ८अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह
तं वीर, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२० से २८ तक नहीं है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ प्रकारइ वीरनइ; अंति: वीरनइ तुम्हो वांदओ. २.पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. ११आ-१४आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोडे, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविहाण० बंधन; अंति: स्तव सोउ सांभलीनइ. ३. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. १४आ-२३अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार जिण तीर्थंकर; अंति: देविंद्रसूरिहिं. ५७०३६. (+) आगमसार व सामायिक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २,
ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी, प्रले. मु. मुक्तेंदु ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३६). १.पे. नाम. आगमसार-चारध्यान से पंचसमवाय तक, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: ते समकित जाणवो, प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. सामायिक विधि, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
सामायिक लेवा-पारवानीविधि, मा.गु., प+ग., आदि: श्रावक दोय घडी पाछलि; अंति: वंदना करके उठे. ५७०३७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११२-९७(१ से ९७)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११.५, ५४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२८, गाथा-३५ अपूर्ण से
अध्ययन-३०, गाथा-१० अपूर्ण तक है.)
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१९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७०३८. (+#) अजितशांति स्तवन सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. छंदसूचक चिन्हयुक्त., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ३४३२-३६). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा का
अंतिम पाद नहीं है.)
अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजियजिय अजितनाथ; अंति: (-). ५७०३९. (+) जीवविचार प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. गौतमविजय (गुरु
पं.सदाविजय); गुपि.पं.सदाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५१८) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षेत्, (९३६) यादृसं पूस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११.५, ३४२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसू०सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनप्रदीपं कहता; अंति: सिद्धांत समुद्रथि. ५७०४०. (+) योगशास्त्र की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४६७-७०). योगशास्त्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१, श्लोक-३१ अपूर्ण से प्रकाश-४ श्लोक-९०
अपूर्ण तक है.) ५७०४१. (+#) दंडकबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १६६८, जीर्ण, पृ. २५-१३(१ से १३)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., पृष्ठ नंबर २३ से २५ अनिर्णित है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४१४-१६).
२४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७०४२. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२,प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं. ३५१, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ४४३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३, (वि. १७२०, कार्तिक कृष्ण, १, बुधवार, ले.स्थल. महिमावती, अन्य.सा. लक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारिमंगलं एतत्; अंति: कारण छइ जे अध्ययन, (वि. १७२०,
आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, ले.स्थल. महिमावती, प्रले. मु. हरिदास (गुरु मु. नथमल ऋषि); गुपि. मु. नथमल
ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) ५७०४३. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. १८,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११,
१०४३९). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: करेमि
काउसग्ग. २.पे. नाम. सीमंधर स्तुति, प्र. ७अ-७आ, संपूर्ण..
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण,
गाथा-४. ५. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१९५ ६. पे. नाम. चतुर्विंशति जिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जन मन वंछिअसारै, गाथा-४. ८. पे. नाम. चतुर्विंशति जिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण..
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १०. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सहिर पर नेम; अंति: जिनलाभसूर०फले
सुजगीस, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: बालापणे डावौ पाय; अंति: काज चढे प्रमाणे, गाथा-४. १४. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरतमनमोहन कंचन कोमल; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. १६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १७. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुंध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
___ मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करय अंबक देवीयै, गाथा-४. ५७०४४. (+) नयचक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३३).
आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति,
अधिकार-१९, सूत्र-२२८. ५७०४५. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५३, आषाढ़ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. त्रिभोवन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १०x४३).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतिथे अतिथ; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५७०४६. (+) संबोधसत्तरि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७५९, चैत्र, मध्यम, पृ. १७-६(१,१० से १२,१४ से १५)=११,
ले.स्थल. सीसाहेडा, प्रले. मु. लालचंद्र ऋषि (गुरु मु. डालूजी ऋषि); गुपि.मु. डालूजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ४४२८-३०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-१०५, (पू.वि. गाथा-१
अपूर्ण से ३ तक, ५५ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक व ८१ अपूर्ण से ९३ तक नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
संबोधसप्ततिका टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः ईहां संदेह नही सहीइ.
५७०४७. (+#) जीवविचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जै.. (२५.५४११.५, ७-१०x२७-३७).
"
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपाईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा ५१.
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा, अंति: हाई तवेण परिसु जड़, गाथा ५९.
३. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ८आ-१९अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०.
४. पे. नाम जैनधार्मिक लोक संग्रह प्र. ११अ ११आ, अपूर्ण पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
1
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि: अन्नपानं तथा वस्त्रं अंति: (-) (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५७०४८. (+#) वैराग्यशतक, आदिनाथदेशनोद्धार व इंद्रियपराजयशतक, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२- २ (१, ४) = १०, कुल पे. ३, प्र. वि., पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ११X३४).
१. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लहह जिओ सासवं ठाणं, गाथा- १०४ ( पू. वि. गाथा १ से १२ अपूर्ण तक व ५६ अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. आदिनाथ देशनोद्धार, पृ. ६अ १०अ. संपूर्ण.
,
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प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुहं: अंतिः उपजिन्नासिवं जंति, गाथा-८८.
"
३. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक, पृ. १०अ १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिय सूरो सो चेव, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ५५ अपूर्ण तक है.)
५७०४९, (+) वारभावना की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, अन्य. मु. चैनसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १५X४७).
१२ भावना- टीका, सं., गद्य, आदि: अथ प्रमाद परिहारेण अंति: द्वादशभावना स्वरुपं,
५७०५०. (+) लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. क्ि
पाठ., जैदे., (२६x११.५, ५X४४).
"
"
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ११ से ९० अपूर्ण तक है.)
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५७०५१. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७८, श्रावण कृष्ण, ६, जीर्ण, पृ. १९-११(१ से ११)=८, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. मु.] कहनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, ५४३८).
साधुधावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, आदि (-); अंति धेयं ठाणं संपत्ताणं, (पू.वि. ए अगर गुणेहि अगवीसाएआयारप्पकप्पेहि" पाठ से है.)
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हु जिन अरिहंतनइ.
५७०५२, (+०) दंडकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. प्र. वि. संशोधित संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ३X३३).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा ४३.
दंडक प्रकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः सुपार्श्व जिनं नत्वा; अंति: आत्माना हितने अ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५७०५३. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१०, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. अकबराबाद
(आग्रा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ४४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०
सुअमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० स्वर्गमृत्यु; अंति: क० श्रुतसमुद्रथकी. ५७०५४. धर्मध्यान व संख्या संकेत पद, संपूर्ण, वि. १९२९, आश्विन कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,
ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मोररजी भगवानजी जोसी; अन्य. सा. झरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१०.५, ११४३७). १.पे. नाम. धर्मध्यान लक्षण, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंति: इं धर्मध्यान ध्याइई. २. पे. नाम. संख्या संकेत पद, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वियबलवी सालमी; अंति: आंगलीनी मनु अगएतं, गाथा-३. ५७०५५. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १४८४, फाल्गुन कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, १०४३६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चोविसं, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-६
अपूर्ण से है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २७२०, पूर्ण. ५७०५६. (+) गौतमस्वामी रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, ९४२३).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-),
(पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम गाथा-६४ अपूर्ण तक है.) ५७०५७. (+#) भाष्यत्रयं, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण भाष्य, गाथा
३९ अपूर्ण तक है.) ५७०५८. (+#) ओघनियुक्ति व भाष्य की संयुक्त अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,६)-७, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, २३४७०).
ओघनियुक्ति-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-चोदगवयणं से एगपण अद्धमासं० एक्कदोतिण्णि की अपूर्ण अवचूर्णि तक हैं व बीच के पाठांश नहीं
५७०५९. (+) मनुष्यभव दुर्लभता सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१२, ७X४९).
मनुष्यभव दुर्लभता, प्रा., पद्य, आदि: चूलगपासधन्ने जूएरमणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-१२७ तक लिखा है.) मनुष्यभव दुर्लभता-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भोजननो १ पासानो २; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ५७०६०. (+) श्राद्धआराधना, संपूर्ण, वि. १८४१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सांडवा, प्रले.पं. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३२). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे,
अधिकार-५, ग्रं. १६६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७०६१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ५४४७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति:
सतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: तेहथी जीवविचार. ५७०६२. व्यवहारसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६४११.५, ६४२५).
व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: (-), उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३,
(पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम उद्देशक, सूत्र- २२ अपूर्ण तक लिखा गया है.) ५७०६३. (#) आत्मनिंदागर्भित स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. उत्तमविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, ३४३७).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५.
रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेय केहतां मंगलिक; अंति: रत्नाकरसूरि० करणहार. ५७०६४. (+) पापबुद्धि नृप धर्मबुद्धि मंत्री कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १५४४४).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: उद्वाहे प्रथमो चरः; अंति: जयो वांछितावाप्ति. ५७०६५. सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ अध्ययन-७, अपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१,६)=६,
प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. हर्षचंद्रजी, लौंकागच्छ); पठ. श्राव. देवचंद लीलाधर वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ४४२४).
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का अध्ययन ७ कुसीलपरिभासितं, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि:
(-); अंति: वा सगडं ति वेमि, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा- ३ से २० अपूर्ण तक एवं गाथा- २५ अपूर्ण से है.) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का अध्ययन ७ कुसीलपरिभासितं-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति:
अर्थ कहीउ निश्चे, प्रतिअपूर्ण. ५७०६६. (+) कर्मग्रंथ १ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४८). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: श्रीवीर जिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६अ, संपूर्ण..
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-), गाथा-८६, (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ९ अपूर्ण तक लिखा गया है.) ५७०६७. (+#) जीवविचार, नवतत्त्व प्रकरण व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५).. १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि० सुअमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: अविचललक्ष्मीविमल; अंति: श्रीजैनचंद्रश्रियम्, श्लोक-७. ५७०६८. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११.५, ८-१२४३०).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ५७०६९. जिनजन्ममहोत्सव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ७X४५). जिनजन्ममहोत्सव अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. "भगवं तित्थयरं तित्थमारंच
सीहासणे निसीया" पाठ तक है.)
जिनजन्ममहोत्सव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालनइ विषइ अधोल; अंति: (-). ५७०७०.(+) १२ व्रत विवरण सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५-२०४४१-४५).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७०७१. (+) नवतत्त्व प्रकरण वदंडक प्रकरण सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१३(१ से १३)=५, कुल पे. २,
प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ४४३२-३६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बुद्धिबोहि कणिक्काय, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा- २६ से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध, (वि. प्रतिलेखक ने कुछ पत्रों में
टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १७आ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा चतुर्विंशतिजिन; अंति: (-). ५७०७२. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १९६०, व्योमरसनंदचंद्राब्दे, माघ शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. पद्मोदय मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११,१२४३८). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: भवद्भिरद्भुतः, श्लोक-१५०. ५७०७३. (+#) धर्मबावनी, संपूर्ण, वि. १८२५, वैशाख शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४५१). अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी,
गाथा-५७. ५७०७४. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, रविवार, जीर्ण, पृ. ५, प्रले. मु. हीरा ऋषि (गुरु
मु. रामदासजी); गुपि. मु. रामदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ४४४०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्ण३; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४३. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: यथावस्थित साचउंजे; अंति: कालि अनंतगुणा
जाणिवा. ५७०७५. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,
१२४२५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणंसाहणं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ५७०७६. (+#) बुद्धिचतुष्ट्य कथा, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ८-३(१,४,६)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १९४५८). बुद्धिचतुष्क कथा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: सेलघण कुडग चालिणि; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
"अझोगिभवत्थकेवलणाणं" पाठ से "विहा० गहणमागच्छंति" तक "भावाआघविच्छंतिपस्म० यंतिपकूवि" से
___ "समासिद्धतिसमवाएण" तक नहीं है.) ५७०७७. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७४१२.५, ९४२६).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ५७०७८. (+#) बोल संग्रह-अनुयोगद्वारसूत्रे, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२५(१ से २५)=५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११, १५४१९).
अनुयोगद्वारसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानपांचमद्ये श्रुत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "एहवा
प्रबल मरण व्यवहारमाटि नथी करतो" पाठ तक है.) ५७०७९ (#) आचार दिनकर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४४१-४६).
आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंति: (-),
(पू.वि. धूपदीपनैवेद्यैर्मंडलीपट्टपूज" पाठ तक हैं.) ५७०८०. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, दे., (२६४११, ६x४५-४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबूण इणमो अण्हय; अंति: सरीर धरे भविस्सतीति,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज. अहो जंबूए; अंति: सरीरधरे भविस्सतीति. ५७०८१. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५४-२५(१ से १९,४१ से ४६)=२९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ८, गाथा- १ अपूर्ण से गाथा
३४ अपूर्ण तक एवं अध्ययन-१५, गाथा ४ अपूर्ण से अध्ययन-१८, गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७०८२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३६, गाथा
२६८ अपूर्ण तक है.) ५७०८३. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९४, चैत्र शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३७-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (१)सम्मए त्ति बेमि, (२)पुव्वरिसी एव
भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. ५७०८४. सीता चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७०, वैशाख कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पठ. उपा. पुन्यप्रधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४५०-५६).
सीतासती चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: कमलनहकतिजलेणं वखालि; अंति: निवेइयं किंचि.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७०८५ (+) नंदीसूत्र व पच्चक्खाण निर्युक्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६०, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, १५x५६).
१. पे नाम, नंदीसूत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण
आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जगह जगजीवजोणी बियाणओ अंति: (-), सूत्र- ५७, गाथा-५०, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २४ + २६ थेरावलिया तक लिखा है.)
२. पे. नाम. पच्चक्खाण निर्मुक्ति, पृ. २अ ६० अ, संपूर्ण.
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहिबनाणं, अंतिः चरणगुणडिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००.
५७०८६. (+) सिंदूरप्रकर सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११, ६-१५X३२-३६).
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः वसविङतामणुयलाभ, द्वार-२२, लोक- ९७.
सिंदूरप्रकर- टवार्थ सह कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर केहि अंति: मनुष्य जन्म न पाम. ५७०८७ (+) षडशीति, शतककर्मग्रंथ व सप्ततिकाकर्मग्रंथ सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७८-२९ (१ से २८,५८* )=४९, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैसे., (२५.५५११, ५X३८-४२).
१. पे. नाम. षडशीतिकर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २९ आ-४९आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: (-): अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं
"
गाथा ८६, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण है. वि. क्षेपक गाथा सहित)
"
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-) अंति: देवेंद्रसूरिजी (वि. यंत्र भांगा सहित है.)
२. पे. नाम. शतककर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. ४९ आ-६४अ संपूर्ण.
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय, अंतिः देविंदसूरि० आयसरणट्ठा, गाथा- १०२.
२०१
शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जिननें, अंतिः देवेंद्रसूरि० सरणार्थ
३. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. ६४अ - ७८ आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध पएहिं महत्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ९२ अपूर्ण तक है.)
सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धपदा निचला अंति: (-).
५७०८८. (+४) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२४-८० (१ से ४,६ से ८०,८२) = ४४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१०.५, ११३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति: (-), (पू. वि. सूदर्शना- जमालि प्रसंग से कालिकाचार्य कथा तक है. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र टीका में सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
५७०८९. (+) संबोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७६८, आश्विन शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१ (४३)=४३, कुल पे. २,
ले. स्थल, बरहानपुर, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, ११४३५).
"
१. पे. नाम संबोधसत्तरी सह बालावबोध, पृ. १आ-३९अ, संपूर्ण, पे. वि, वह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी
हुई है.
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संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा-८५. संबोधसप्ततिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० मनवचनकायाई, अंति: तेहनें मोक्षमुख हुइ.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. ३९अ-४४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
O
आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु, अंति: जयसेहर नत्थि सदेहो, गाधा- २५, (पू. वि. गाथा- ६८ अपूर्ण से ८५ अपूर्ण तक नहीं है.)
"
५७०९० (+) गुणवर्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १६६०, कार्तिक कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३-२० (१ से ७,१४ से २६)=४३, ले. स्थल. मदफरपुर, प्र. वि. संशोधित कुल १८०८, प्र.ले. श्री. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२४.५४११, १३x४३). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: (-); अंति: श्रोत्रे भवतु मंगलं, सर्ग-५, श्लोक-६०७, ग्रं. १९४८, (पू. वि. सर्ग-१, श्लोक - ७६ अपूर्ण से सर्ग-२ दत्त कथा तक एवं सर्ग-३ गाथा- १ अपूर्ण से है.)
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५७०११. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी जीणं, पृ. ४५-५(१ से ५ ) = ४०, प्र. वि. संशोधित संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६४१०.५, १३४४३).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. बीच-बीच के पाठांश हैं।
""
कल्पसूत्र- - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५७०९२. (+#) क्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०-७ (१ से ५, ७ से ८) = १३, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ६००, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X११, ७-९३०). लघुक्षेत्रसमास, आ. निभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: झाएजा सम्मदिडीए, अध्याय-५, गाथा-८८, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से ५१ अपूर्ण तक एवं गाथा- ७० अपूर्ण से अंत तक है.) लघुक्षेत्रसमास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ध्याइवउ सम्यकदृष्टी.
५७०१३ () प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२-१ (१) -३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी
"
है. जैवे. (२६११, १७४६१).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्वामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ- णुवातेणंसव्वत्थोवालंतएकप्पे से "अपद्यत्तहिंतोडववादित पद्य" तक है.)
५७०९४. (+) घेरावली व आवश्यक निर्युक्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न., जैदे., ( २६११, १३४३७).
१. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकनिर्युक्ति पीठिका, पृ. ३आ- ६आ, संपूर्ण.
आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि आभिणिबोहियनाणं अंति: (-), ग्रं. ३१०० (प्रतिपूर्ण, पू. वि. समवसरण पर्यन्त है. वि. गाथा व्युतिक्रम में है.)
५७०१५. (+) शांतिनाथ चरित्र सह टिप्पण, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र. वि. पंचपाठ पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१०.५, ११४३९).
शांतिनाथ चरित्र, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदिः श्रिवामभिव्यक्तिमनो; अंतिः शांतिचक्रि स्तुतिम्, सर्ग ६. शांतिनाथ चरित्र टिप्पण, सं., गद्य, आदि: त्रियां अभिव्यक्तं अंतिः (-).
५७०९६. (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९+१(२५)=३०,
कुल पे. २, प्रले. मु. गुणचंद (गुरु मु. नाथा); लिख. श्राव. हरचंद हाथीभाई, प्रसं. मु. पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प् युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. २०००, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६.५४११.५, १५X३८).
१. पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १आ- २९अ, संपूर्ण.
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं, अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: खेपइ कहा विस्तार नही. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४०. ५७०९७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-६(१ से ६)=२९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ६४३८).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से __ अध्ययन-९, गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
दशवकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७०९८. (+) प्रश्नोत्तरसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. ग. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४१-५६).
हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रियो निदान; अंति: तु तत्वविद्वेद्यमिति, प्रकाश-४. ५७०९९. (+) श्रेणिकनृप चौपाई व धम्मिलऋषि चौपाई, संपूर्ण, वि. १६१२, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २,
ले.स्थल. पत्तननगर (पाटण), प्रले. मु. दानविजय (तपागच्छ); लिख. आ. सौभाग्यसुंदरसूरि (आगमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १५४५४-५७). १.पे. नाम. श्रेणिकराजा रास, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण..
आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०३, आदि: सकल सिद्धि मंगलकरण; अंति: यु ए नितु मंगल जयकार, खंड-४,
गाथा-२०५, ग्रं. ६८१. २. पे. नाम. धम्मिल रास, पृ. २०अ-२७अ, संपूर्ण.
आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९१, आदि: सरसति मुझ मति दिओ; अंति: ते पाम्मइ नवह निधान,
गाथा-२८२. ५७१००. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-२(१ से २)=२६, पठ. श्रावि. वालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि, अध्ययन-१०
चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से अध्ययन-१० तक है.) ५७१०१. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., लिख. श्राव. मोतिभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ४-१४४२७-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३९ तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)स्मारं स्मारं गुरो, (२)भुवण कहतां जीवाजीवा; अंति: (-).
जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शास्त्रने धरे; अंति: (-). ५७१०२. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधिसूचक चिह्न-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३१-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५
उद्देश-१ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक उ०; अंति: (-). ५७१०३. (+) माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. १०, प्रले. ग. जससागर; अन्य. मु. यशवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १८४५१). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: जेह नर ते पामइ
संसार, गाथा-५५७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७१०४. (+) चौविसदंडक ३० द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. नवानगर, पठ. मु. जगनाथ ऋषि (गुरु मु. आसकर्ण ऋषि); प्रले.मु. आसकर्ण ऋषि,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२,१७४५५-५९).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठिति; अंति: नामे देवता जाणिवो. ५७१०५. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९४, आश्विन शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. भूजनगर, पठ. सा. हीरबाई; सा. रामबाई, सा. राजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १६x४८-५२). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: न्यानसागर० चंगारे,
ढाल-४०. ५७१०६. (+) साधुश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-५(१ से ४,२३)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३४-३९). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वंद्त्तु गाथा-६
से मुहपती पडिलेहण के २५ बोल अपूर्ण तक व श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र अपूर्ण से देववंदन विधि तक है.) ५७१०७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र नमिप्रवज्याध्ययन सह टबार्थव बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(११)=१९,
अन्य.सा. मानकुवर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४१२, २४३७). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ; अंति:
नमीरायरिसि त्ति बेमि, गाथा-६२, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-३५ से ३८ तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च० चवीने किहां थकि; अंति: (१)करवू इ०
इम बे० कहं, (२)ह तुझ प्रति कह छै, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुछ गाथाओँ का टबार्थ
नही लिखा है) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र
नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुछ गाथाओँ का बालावबोध नही लिखा है.) ५७१०८. (+#) महानिशीथसूत्र अध्ययन-४ का संक्षेप व अध्ययन-५ सावधाचार्य कथासार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६३१,
फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. थिराद्र, पठ. श्राव. पेथा साहा; प्रले. श्राव. चुडा शेठ; लिख. श्राव. अदवंत शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ६४३५-३८).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
महानिशीथसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५७१०९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२०(१ से ३,१४ से ३०)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३२-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-९ अपूर्ण
से अध्ययन-७ गाथा-९ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७११०. (+#) कुमारपालभूपाल प्रस्ताव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, अन्य. आ. जिनकुशलसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १३४६२).
कुमारपाल भूपाल प्रस्ताव, सं., गद्य, आदि: इहैव जंबूद्वीपे भरत; अंति: राज्यं प्रतिपालयामहे. ५७१११. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान-७ सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. प्रत में व्याख्यान-६ लिखा है, लेकिन विषय वर्णन ७ का है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४५५). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. पार्श्वजिन चरित्र भव-१० से ऋषभजिन चरित्र
भव ९ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वनाथ चरित्र से अंतराणि तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२०५ ५७११२. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-२(१,६)=१५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से ४
__ अपूर्ण तक व अध्ययन-५ उद्देश-१अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-६२ तक है.) ५७११३. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-३(८ से १०)=१६, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ९४३२). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: साहु देहस्स धारणा,
(पू.वि. नमस्कार मंत्र से अब्भुट्टिओ अपूर्ण तक व पगामसज्झाय अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १५आ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पंच स्मरण तक है.) ५७११४. (+) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१,६)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित.,
जैदे., (२५४११, १६४३८-४६). __ पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-३ अपूर्ण से
ढाल-५ अपूर्ण तक व ढाल-८ अपूर्ण से ढाल-१८ अपूर्ण तक है.) ५७११५. (+) बृहत्संग्रहणीसूत्र व लघुसंग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २.प्र.वि. संशोधित-संशोधित..
जैदे., (२६४१२, १३४४४). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण.
__ आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४१७. २. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंजिणसव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ५७११६. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ४४३९).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: तिखूत्तो आयाहिणं; अंति: ठाणं संपत्ताणं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आयहि० जीमाणा दखिणना; अंति: (१)माहरो
नमस्कार होउ, (२)पछि सीद्धनि नमस्कार. ५७११७. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. रिणीनगर, प्रले. मु. कीर्तिहेम;
अन्य. मु. अमरचंद (गुरु ग. अमरविमल गणि, खरतरगच्छ); गुपि.ग. अमरविमल गणि (गुरु ग. भावहर्ष गणि, खरतरगच्छ); ग. भावहर्ष गणि (गुरु उपा. माणिक्यमूर्ति, खरतरगच्छ); उपा. माणिक्यमूर्ति (गुरु ग. जिनहस गणि, खरतरगच्छ); ग. जिनहस गणि (गुरु मु. सुखलाभ, खरतरगच्छ); मु.सुखलाभ (गुरु आ.कीर्तिरत्नसूरि, खरतरगच्छ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३१८. ५७११८. (+) पर्युषणाद्यष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४४३).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध
विलोक्य तत्.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२०६
५७११९. (+) क्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६४६, फाल्गुन शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६-३३ (१ से ३३)=१३,
पठ. मु. शिवराज (गुरु उपा. पद्मसुंदर, बृ. तपा.); गुपि. उपा. पद्मसुंदर (बृ. तपा.), प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५४११, १४४४९-५०),
"
बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण, अंति: गेविज्ज लोगंते, गाथा - ९५, संपूर्ण.
बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिन कहीइ रागद्वेष, अंतिः तेह परई अलोक कहीइ, संपूर्ण
५७१२० (+) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, पठ. पं. सुंदरसागर, मु. रूपसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, ३x३९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त सेवातत्पर जे; अंति: एहवं प्रगट की .
५७१२१. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८४९, आश्विन कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४- १ ( १ ) = १३, ले. स्थल. राजनगर (अमदावाद, प्र. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२६४१२, १२४३३).
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: निर्भतं निचमचेह, स्मरण-९, (पू. वि. संतिकरं गाथा-४
""
अपूर्ण से है., वि. नवस्मरण क्रमबद्ध नहीं हैं.)
५७१२२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८८१ आषाढ़ शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल, दीवचंदर, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, पठ. मु. धनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैये. (२६११, ४x२८).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: कुमुद० प्रपद्यंते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण केता मंगलिक, अंतिः मोक्षना सूख पामे.
५७१२३. (+#) कर्मग्रंथ-२ से ३ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-११ (१ से ११) = ११, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, ५४३३-३६).
१. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १२अ १७आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: ( १ ) वंदियं महं तं वीरं, (२) देविंद० नमह तं वीर, गाथा- ३४.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंध ते स्यो कहीइं अंतिः श्रीमहावीरदेव प्रतई, ग्रं. ३५०. २. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १८अ - २२अ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा - २५.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधनां कारण ५७ हेतू; अंति: कर्मस्तवथी सांभलीनइ, ग्रं. २००.
५७१२४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- २९ से ३२, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, १३-१५X४६-४८).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
५७१२५.
(+#)
आतुरपच्चक्खाणसूत्र सह टवार्थ व भावार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-८ (१ से ५,१२,१४,१७)-११. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ३-१४४३८-४२),
(२६.५X१२,
आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पण., वि. ११वी, आदि (-); अंति: (-) ( पू. वि. सूत्र - १ अपूर्ण से गाथा - ५४ तक है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५७१२६. यतिदिनचर्या, संपूर्ण, वि. १४८६, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. स्तंभतीर्थ, जैदे., ( २६.५X११, १५x५१). यतिदिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयइ सुहं कम्मं अंति; ता जयठ जईण दिनचरिया, गाथा ३९४, ग्रं. ४१०.
יי
५७१२७. (+) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, ५x२९-३३). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ भयवं, अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा- ७०. पर्यंताराधना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर तीर्थंकर, अंति: गुणिवउं इस्यु भाव.
५७१२८, (+) भक्तामर स्तोत्र सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९५, कार्तिक कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, रामपुरनगर, प्रले. मु. केशव ऋषि (गुरु मु. भीमजी ऋषि); पठ. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१९, ४४३५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, मु. कान्हजी, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रणम्य प्रथमं देवं, (२) भक्तामर क० श्रीतीर्थं; अंतिः आवइ जे कुणलक्ष्मी.
५७१२९. (+) जीवविचार नवतत्त्व व चतुः शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे, ३,
प्र. वि. संशोधित संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१०.५, ६x४२).
१. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
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(+)
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, बि. ११वी, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५आ-१०अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि जीवा जीवार पुण्णं अंतिः बुद्धबोहिकणिक्काय, गाथा ५०.
३. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १०अ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.)
५७१३०.
) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७१-६२ (१ से ५६, ५८ से ६३ ) =९, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न- संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ४x२८).
,
7
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १० गाथा ३७ अपूर्ण से अध्ययन-११, गाथा-६ अपूर्ण तक व अध्ययन- १२, गाथा - ६ अपूर्ण से गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५७१३१. (+#) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, ५X३६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइ ठिइ, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण
तक है.)
बृहत्संग्रहणी - बार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार करी नड़, अंति: (-).
५७१३२. (+) सिंदूरप्रकर, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३X३० ).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लोक ९७ अपूर्ण तक हैं.)
२०७
५७१३३. (+) आर्यवसुधाराधारिणी, पूर्ण, वि. १७२८, वसुकरमुनिचंद्र, फाल्गुन शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ९-१ ( १ ) =८, ले. स्थल. भानुमती, प्रले. मु. हरिजिता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रायः शुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, ९३६).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (अपूर्ण, पू.वि. "दरिद्रोहं सुगत बहु" पाठ से है.)
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२०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७१३४. (+#) धर्मदत्त कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-४(१ से ३,६)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३६-४२).
धर्मदत्त कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७१३५. रत्नशेखरनृप कथा, संपूर्ण, वि. १५५२, आश्विन कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. कान्हापुर, प्रले. ग. जिनवर्धन
(गुरु आ. कक्कसूरि, उकेशगच्छ); गुपि. आ. कक्कसूरि (परंपरा आ. सिद्धसूरि, उकेशगच्छ); आ. सिद्धसूरि (उकेशगच्छ); पठ. ग. नयरत्न (गुरु उपा. गुणवल्लभ, मलधारगच्छ); गुपि. उपा. गुणवल्लभ (मलधारगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११, १५४५२).
रत्नशेखरनृप कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: मिथ्यादुःकृतमस्तुगे, ग्रं. ५२०. ५७१३६. कर्मविपाक, कर्मस्तव, बंधस्वामित्व वषडशीति कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, जैदे.,
(२६४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३५. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-५७ तक लिखा है.) ५७१३७. (+#) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४४३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७५ तक लिखा है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: सेहरपट्ठियं कहता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-७४ का टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७१३८. (+) कल्पसूत्र-आदिजिनचरित्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६-१५४४८). कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. आदिजिन चरित्र प्रारंभ से जन्मोत्सव प्रसंग तक है.)
कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वाह जगत्; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५७१३९. (+#) गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६-१५४५८).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. नपुंसकजन्य कर्म प्रश्ने गोत्रास कथा प्रसंग अपूर्ण तक
गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: (-). ५७१४०. नवतत्व भेद व पंचमआरे आयुमान, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
ले.स्थल. कृष्णगढ, जैदे., (२६.५४१२.५, ११-१३४२९). १.पे. नाम. नवतत्व भेद, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण चेतन; अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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२. पे नाम, पंचमआरे आयु विचार, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण
पंचमआरे आयुमान, मा.गु., गद्य, आदि: १२० हाथीनो आयु १२० अंति: (१) ३ कंसारीमासनो, (२) आयु विचार संपूर्ण ५७१४१. (#) श्रावकषडावश्यकसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९ - २ (१ से २ ) = ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५x११.५, १०x३२)
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पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: रक्षंतु क्षेत्रदेवता, (पू. वि. इरियावही सूत्र अपूर्ण से है.)
, י
५७१४२. उपाशकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८- १ (१) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५X१२.५, ८X४७). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग. आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. पलासचैत्य वाणिज्यग्राम नगर में जितसत्रु राजा प्रसंग से "आणंदश्रावक अरुणाभ विमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा" प्रसंग तक है.) ५७१४३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ४४-३७(१ से ३०, ३६ से ४२ ) =७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, ९२७ - ३०).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा २६ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-६ तक व अध्ययन- १३ गाथा-१५ अपूर्ण से अध्ययन- १४ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ५७१४४. (+) भगवतीसूत्र - शतक ७ उद्देश ९ से उद्देश- १०, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. पत्रांक-४ से ७ की हुंडी में ठाणांगसूत्र नाम लिखा है परंतु भगवतीसूत्र का ही पाठ क्रमश चल रहा है., पंचपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५x१०, १३४३५-४३).
-
५७९४५ (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५x१२.५, ६४३६-३९)
"
"
२०९
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. शतक-७ उद्देश-९ सूत्र-णायमेयं अरहया से उद्देश - १० महावीरजिन के ७२ वर्षायु पूर्ण करने संबंधी पाठ अपूर्ण तक लिखा है.)
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रे; अंति: (१) स्तुता दानचंद्रैः, (२) पद्मावती स्तोत्रं, श्लोक-३३. ५७१४६. (४) कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५४-४८ (१ से ४८) ०६. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ५X३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. माता त्रिशला के लिए भद्रासन स्थापनादेश से स्वप्नलक्षणपाठक अधिकार अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५७१४७. (४) जीवविचार सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १५६१).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाउ सुयसमुद्दाउ, गाथा-५१, संपूर्ण.
जीवविचारप्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवसरुवं० संसारमाहि; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं
है.
५७१४८. (४) कर्मस्तव, बंधस्वामित्व व षडशीति कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-३ (१ से ३) =६, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७.५x१३.५ १२४३६-३९).
""
१. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र, पृ. ४अ - ५आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है...
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: (-); अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४, ( पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है . )
२. पे नाम, बंधस्वामित्वं पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
"
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद, अंतिः देविंदसूरि० सोडं, गाथा २५.
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२१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि: नमिअ जिणं वत्तव्वा, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) ५७१४९. (+#) सुयहीलुप्पत्ती अज्झयण, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. पद्दीनगर, प्रले. मु. वजीरा ऋषि (गुरु मु. सुद्धा ऋषि); गुपि. मु. सुद्धा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रायः शुद्ध पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१२.५, ११×३७).
वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर नमिर सुरनर, अंति: दढचित्तो होह पइदियहं. ५७१५०, (+०) सारस्वतव्याकरण की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पत्र १अ विषय दर्शक शीर्षक कडी में सर्व पत्र १४७ होने का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५-१७X५०-६०).
सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद, अंतिः (-). (पू.वि. "इत्संज्ञा लक्षण अधिकार अपूर्ण तक है.)
५७१५१. पुण्यपाप कुलक, ऋषभजिन स्तवन व लोकसंग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८११, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ४, ले. स्थल. धनेरा, जैदे., ( २६. ५X१२, ६३६).
१. पे. नाम. पुण्यफल कुलक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: धम्मंमि उज्जमह, गाथा - १६, (पू. वि. गाधा-६ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. चौदगुणस्थानकगभिंत ऋषभजिन स्तवन सह टवार्थ, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण,
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अंति:
आदिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरत अनंतकंत गुण, राजपूरवौ सुख संपदा, गाथा - २१.
आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: जगत्रने विषे प्रसरती अंति: संपदा पूरवोद्योत छ.
"
३. पे. नाम. नारकी वेदना गाथा सह टबार्थ, पृ. ६अ- ६आ, संपूर्ण.
नारकीवेदना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: संकडकुंभीपाय असिवण, अंति: निगोबहु अणतपुगल रहिय, गाथा- १.
.
नारकी वेदना गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांकुडी नरककुंडी, अंति: लगे लह्यो.
४. पे. नाम. आठ कर्मस्थिति विचार गाथा सह टबार्थ, पृ. ६आ, संपूर्ण.
८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: ज्ञानावरणीय कर्म१; अंति: कर्म७ गोत्र कर्म८, गाथा-१. ८ कर्मस्थिति विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रीस कोडाकोडि; अंति: स्थिति जाणवो. ५७१५२. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १७-१२ (१ से ६, १० से १२, १४ से १६)=५, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, ११X३३).
१. पे नाम. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ७अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. अतिचार गाथा अपूर्ण से है.)
२. पे नाम, अब्भुडिओ सूत्र, पृ. ९आ-१३आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह, अंति: स्स मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. "अंतरभासाए उवरिभासाए" पाठ से "असणं खाइमं साइमं" पाठ तक नहीं है.)
३. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १७अ १७आ, अपूर्ण, पू. बि. अंत के पत्र नहीं हैं.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति: (-) (पूर्ण पू. वि. अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ५७१५३. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-११ (१ से ११) = ५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे.,
(२५.५X१२.५, १५X३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि, श्लोक-३० अपूर्ण से ४६ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७१५४. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, कुल पे. २, जैदे.,
(२६.५४११.५, ६४३६). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मांगलिकनुं घर छइ; अंति: दर्शनि सुख पामसइं. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ५७१५५. (#) खंडा जोएण १० द्वार, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. उग्रसेन ऋषि (गुरु
मु. स्वामीदास ऋषि); गुपि. मु. स्वामीदास ऋषि (गुरु मु. दीपचंद); पठ. चंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९४५७).
लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा जोयण वासा पव्वय; अंति: ८०हजार ४सो ५०नंदी छै. ५७१५६. (+) भावनासंधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ८४३९-४५).
भावनासंधिप्रकरण, आ. जयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पणमवि गुणसायर भुवण; अंति: सुणहु अन्न विधरओ मणि,
गाथा-६२.
भावनासंधिप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी गुणनासमूह; अंति: मनमाहि निरंतर धरउ. ५७१५७. प्रदेशीराजारी चोपी, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पडिहारागाम, प्रले. मु. कनैयालाल ऋषि; अन्य. मु. मेघराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, २६४८५).
प्रदेशीराजा रास, रा., पद्य, आदि: कुण हूतौ भव पाछले; अंति: पालसी ते उतरसी भवपार, ढाल-१९. ५७१५८. पक्खीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१३(१ से १३)=५, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १४४४४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ब्रह्मचर्य व्रत अपूर्ण से रात्रिभोजनत्याग व्रत अपूर्ण तक
है.) ५७१५९. (+#) अनुयोगद्वारसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३०-१(१)=१२९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २-६x४८-५७).
अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दुक्खक्खयट्ठाए, प्रकरण-३८, (पू.वि. प्रथमसूत्र के
किंचित् प्रारंभिक पाठांश नहीं है.)
अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: रचिता प्रभृति वृत्ति. ५७१६०. परिशिष्टपर्व, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९३-१(१)=९२, प्र.वि. कुल ग्रं. ३४६७, जैदे., (२६.५४११.५, १६४५३).
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि:
(-); अंति: स्फाति पुरस्तात्पुनः, सर्ग-१३, (पू.वि. सर्ग-१, श्लोक-२६ अपूर्ण से है.) ५७१६१. (+#) षडावश्यकसूत्र सह वृंदारुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ९१, प्रले. मु. सीवचंद ऋषि; राज्ये
आ. जिनचंद्रसूरि (विजयगच्छ); लिख. श्रावि. चुनीयाबेन बाबु हकचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में ४९ भांगायंत्र व आषाढपोरसी कालमान दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, अध्ययन-६, सूत्र-१०५.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुवृंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ५७१६२. (#) क्रियारत्नसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १५१८, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ९०, ले.स्थल. जंघरालनगर, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४६९-७३).
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२१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४६६, आदि: जयतिजिनवर्धमानो; अंति: स्रावदेषोस्तुष्ट्यै. ५७१६३. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६५९, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ८१, ले.स्थल. मूलचक्र
नगर, लिख. श्रावि. रूडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४२००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४७-५२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: ग्रंथा
संसिद्धेयं, अध्ययन-१९. ५७१६४. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-९, सूत्र-२९०
अपूर्ण तक है.) ५७१६५. (+) कथाकोश, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ७८, ले.स्थल. लूणसर, प्रले. पं. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ); गुपि.ग. रूपवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११,१५४५३).
कथाकोश, सं., गद्य, आदि: यानि दुष्टदुरितानि; अति: मोक्ष यास्यतः... ५७१६६. (+#) योगशास्त्र प्रकाश १ से ४ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८७, फाल्गुन, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७२,
ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले.पं.खेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २४५४८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १८४५२-५७). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति:
ध्यानोद्यतो भवेत्. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: हिवडां श्रीमहावीरना;
अंति: तिहां थिकनु जाणिवा, प्रकाश-४. ५७१६७. (+) समवायांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७९, प्र.वि. प्रतिलेखक हेतु "गर्गवंतः" का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३७७५, जैदे., (२६४११, १५४४८-५४).
समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: पादौनाष्टशती तथा. ५७१६८. (+) प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ७१, अन्य. श्राव. वच्छा शाह; श्राव. सहस्रकिरण वच्छा शाह (पिता
श्राव. वच्छा शाह); श्राव. वर्द्धमान सहस्रकिरण शाह (पिता श्राव. सहस्रकिरण वच्छा शाह), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११,११४४१-४५). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो,
द्वार-२७६, गाथा-१५९९. ५७१६९. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व ८, अपूर्ण, वि. १४९७, मध्यम, पृ. ८७-३१(१ से १२,२३ से ४१)=५६,
ले.स्थल. नंद्रवारिपुर, प्रले. श्राव. धनेश्वर; पठ. श्राव. विश्रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४७००, जैदे., (२६.५४११, १६४५२-५६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-२, गाथा-१२१ अपूर्ण तक व सर्ग-३ गाथा-७९ अपूर्ण से सर्ग-४ तक नहीं है.) ५७१७०. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८८-२३५(१ से २३५)=५३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२, ६x४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१५ अपूर्ण से १७ अपूर्ण
तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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२१३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७१७१, (+) संग्रहणीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२२ ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६४, ले. स्थल, बीलाडा, प्रले. मु. पद्मविजय (गुरु पंडित. खुशालविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x११.५ ५.१६४४५-५४).
""
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिह अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३९३. बृहत्संग्रहणी - टबार्थ, मु. वच्छराज ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ क० वांदीन, अंति: संसारिक सुख पामे, (वि.यंत्र व कोष्ठकादि युक्त.)
५७१७२, (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६४०, मध्यम, पृ. ६७, ले. स्थल विक्रममहानगर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, १७४३-४८).
1
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. गद्य वि. ११२०, आदि नत्वा श्रीमन्महावीर, अंतिः दशम्यांच सिद्धेयम्, अध्ययन-१९, ग्रं. ३८००.
५७१७३, (+०) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६९-१०४(१ से ३६५० से ९६, १००, १०५ से १२४)= ६५, प्र. वि. प्रत सचित्र है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, ५X३४-४२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. पण, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं.
"
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ " मा.गु. गद्य, आदि: (-): अंति: (-). पू. वि. बीच के पत्र हैं.
५७१७४ विपाकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे., (२७४१२, ८४३१-४३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-), (पू. वि. प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन- १० अपूर्ण तक है.)
विपाकसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तस्मिन् काले तस्मिन्; अंति: (-).
५७१७५. रायपसेणइय सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५८, प्र. वि. कुल ग्रं. २०७८, जैदे., (२५.५X११, १३x४०-४४). राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं, अंति: पस्से पस्सावणीए णमो सूत्र - १७५ ग्रं. २१००. ५७१७६, (+०) आचारांगसूत्र सह सुखावबोध- श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५९-२ (५७ से ५८ ) =५७, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११, ४४४५-५०).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः सुयं मे आउस तेणं अंति: गक्वा एव रीयतितिचेमि, (प्रतिअपूर्ण,
"
पू. वि. श्रुतस्कंध १, अध्ययन-९, उद्देश-२, गाथा-९ अपूर्ण से उद्देश-४, गाधा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: समीपि सांभल्युं,
प्रतिअपूर्ण.
५७१७७. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र व निर्युक्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५९, कुल पे. २,
लिख. श्राव. नाथा साह (उपकेशवंश); उप. वा. विद्यासागर, राज्ये आ. हीरविजयसूरि, गुपि गच्छाधिपति विजयदानसूर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३x४४-४८). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र, पृ. १आ-५३अ, संपूर्ण.
आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज, अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय- २३.
२. पे नाम सूत्रकृतांगसूत्र- नियुक्ति, पृ. ५३अ ५९आ, संपूर्ण
आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्धयरे य जिणवरे, अंति: सोउं कहियम्मि उवसंतो, गाथा-२०५. ५७१७८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३४९-२९१ (१ से २९१ ) = ५८, प्र. वि. टिप्पण 'युक्त' पाठ. जैवे. (२७४११.५ ६३६).
विशेष
,
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति नावाधम्मकहाओ समत्ताओ, अध्ययन-१९,
"
ग्रं. ६०००, (पू.वि. अध्ययन- १६, सेवक के द्वारा कृष्ण को कुंती के आने की सूचना देने के प्रसंग से है.)
ज्ञाताधर्म कांगसूत्र- बार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्म्मकथा संपूर्णा, ग्रं. ८०००.
"
५७१७९. षडशीतिकर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५ प्र. वि. कुल ग्रं. २७५, जैवे. (२५.५४११.५, २४३१-३४).
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणजिणमग्गण; अंति: लिहिउ
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिधाय परतेजो, (२)नमस्कार करीने;
अंति: श्रीतपागच्छाधीराजे. ५७१८०. बृहत्कल्पसूत्र, प्रायश्चित्तविधि व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ४२, कुल पे. ३,
ले.स्थल. नौतमपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २५००, दे., (२६४११, ५४३२-३७). १.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४०आ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६,
ग्रं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: णो० न कल्पे निसाधु; अंति: थिवर कल्पीनी मर्जादा. २. पे. नाम. प्रायश्चित्तविधि सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: वृत्ति मध्ये छे, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीवीने भिन्न भिन्न; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "छ लघुच्छेद छ गुरुच्छेद" तक के पाठ का टबार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तयंत्र, पृ. ४२अ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७१८१. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमारकथा
अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले चउथे; अंति: (-). ५७१८२. कल्पसूत्र- वाचना १ से ८, अपूर्ण, वि. १७८७, फाल्गुन शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४९-१(१)=४८, प्रले. ग. छत्रसौभाग्य (गुरु पं. तिलकसौभाग्य); गुपि.पं. तिलकसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. महावीरजिन के गर्भावतरण प्रसंग
से है.) ५७१८५. (#) जीतकल्प व पंचाशकादि सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४६-१४(१ से ७,१२ से १५,३७,३९,४४)=३२,
कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक ३८ के बाद अंकित नहीं हैं अतः काल्पनिक पत्रांक दीये हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४११.५, १५४४५-५०). १.पे. नाम. जीतकल्पसूत्र सह वृत्ति, पृ. ८अ-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के
साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदिः (-); अंति: सुपरिच्छिय गुणम्मि, गाथा-१०५,
(पू.वि. गाथा ४ से है. बीच के पाठांश नहीं हैं.)। जीतकल्पसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७४, आदि: (-); अंति: (१)शुध्यतः सिध्यतश्चेति, (२)तावत्
कलहंसी चखेलतु. २.पे. नाम. पंचाशक सह टीका, पृ. ३८अ-४३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ से हैं.)
पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. लघुश्राद्धजीतकल्पसूत्र, पृ. ४५अ, संपूर्ण. श्राद्धलघुजीतकल्प, आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं नमिउं; अंति: रइया सिरितिलयसूरीहिं,
गाथा-२०.
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४. पे नाम. लघुश्राद्धजीतकल्पसूत्र की टीका, पृ. ४५-४६अ, संपूर्ण.
आद्धलघुजीतकल्प- स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं अंतिः सारियव्वोइति
वाच्यम्.
५. पे नाम, पौषधिकप्रायश्चित्त सामाचारी, पृ. ४६अ, संपूर्ण
पौषधिकआलोयणा सामाचारी, आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, वि. १३वी आदि पोसहिओ न करेईति, अंति: ईदसगं सव्वेसु नवपरउ, गाथा १०.
पे, नाम, पौषधिकप्रायश्चित्त सामाचारी की टीका, पृ. ४६अ ४६आ, संपूर्ण.
पौषधिकप्रायश्चित्तसामाचारी- स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १३वी, आदिः आवश्यकी न करोति; अंतिः प्रायश्चित्तसामाचारी,
७. पे. नाम. जीतकल्प, पृ. ४६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
२१५
जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: कयपवयणप्पणामो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक हैं.)
""
५७१८६. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६.५x११, ११४३५-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- १०, गाथा - १२ अपूर्ण तक है.)
५७१८७ (+) स्तुति, स्तवन, प्रकरणादि संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-६(१,४ से ८) = २०, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, ९x४१-५०).
१. पे नाम, जिनस्तुति संग्रह सह टवार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण
जिनदर्शन लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य अंति: ताई सव्वाई वंदामि श्लोक ५. जिनदर्शन श्लोक संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव का दर्शन; अंति: ते सर्व हुं वांदु. २. पे. नाम. शक्रस्तव सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
1
शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदिः नमुत्थुणं अरिहंताणं, अंतिः सव्वे तिविहेण वंदामि गाथा - १०. शक्रस्तव - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करउं हउं; अंतिः वचनि काया करी बांद .
३. पे. नाम. अरिहंतचेईयाणंसूत्र सह टबार्थ, पृ. २आ-३अ संपूर्ण.
अरिहंतचे आणं सूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत चेश्वाणं करेमि, अंतिः वंदणवत्तियाए, गाथा ३. अरिहंतचेइआणं सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर को चैत्य; अंति: वंदनवृत्ति निमित्ते.
४. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति सह टवार्थ, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति: देहि मे देवि सारम्,
श्लोक-४.
संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसाररूप दावानल तेहन; अंति: विरह देइह दैवि मझ को. ५. पे. नाम. जयवीयरायसूत्र सह टवार्थ, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. बि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रणिधानसूत्र, प्रा., पद्य, आदि जय वीयराव जगगुरु होउ, अंति: (-). (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) प्रणिधानसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जय वीतराग त्रिभुवन; अंति: (-).
६. पे. नाम. देशावगासिक पच्चक्खाण सह टवार्थ, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, (पू.वि. अंतिम पाठांश मात्र है.) देसावगासिक पच्चक्खाण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनेरी प्रति छोडउं.
७. पे. नाम. दशप्रत्याख्यान गाथा सह टबार्थ, पृ. ९अ, संपूर्ण.
१० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार पोरसीए पुरमड्ड, अंतिः ८ अभिग्गहे ९ विग्गई, गाथा - १. १० प्रत्याख्याननाम गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: द्वि घटिका प्रहर २; अंति: करड़ दातिए नीवी.
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२१६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ९अ-११आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ
अणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सर्वोत्कर्षण; अंति: विज्ञापयति अनिंदित. ९.पे. नाम. सप्तस्मरण सह टबार्थ, पृ. ११आ-२०आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम स्मरण नहीं लिखा है) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: द्वितीय तीर्थंकर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. १०. पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. २०आ-२३अ, संपूर्ण.
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमी करी महावीर; अंति: गौतमपृच्छा महार्थापि. ११. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २३आ-२६अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन कउ दीवा; अंति: श्रीसिद्धांतसमुद्रथी. ५७१८८.(+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९०-७२(१ से ६६,८३ से ८७,८९)=१८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ५४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१८, गाथा-४६ से अध्ययन-२३,
गाथा-१६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७१८९. (#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५०-५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं
हैं., अध्ययन-४, "जे अकीडपयंगा जा य कुंथुपिपीलिया" पाठ से अध्ययन-९ तक है.) ५७१९०. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९७, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. धरोलगाम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १-४४२७-३८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा जीवार पुण्णं३; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय पं., मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतना सहित; अंति: भावथी अनागत
अनंतगुणो.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: बीजा परूपणा मात्र. ५७१९१. (+) स्तुति, स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१३, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(१ से २,७)=१२, कुल पे. १६,
प्रले. मु. जिनचंद मुनि, पठ.पं. हर्षचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, १२४४४). १.पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वंदणक अज्झयण, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण.
आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि; अंति: पक्खि पडिक्कमणे. ३. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. ६अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: नाणस्सलाभाय भवसु पाय, गाथा-२. ४. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
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बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि; महीमंडणं पुन्नसोवन, अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४.
५. पे नाम, पंचमी स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण,
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण,
६.
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अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै, अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ७. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - समवसरणभावगभिंत, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि; हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
९. पे नाम, महावीर स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यम मंगलेभ्यः, श्लोक-४.
१०. पे नाम, नवपद स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण,
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिया जी, गाथा ४. ११. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि वलि हुं ध्यावुं अंतिः कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४.
१२. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. ९अ- १०आ, संपूर्ण.
बंदिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धेः अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा- ५०.
१३. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १० आ- १२आ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह
२१७
तह, गाथा- १७.
१५. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः जैनं जयतु शासनम्,
गाथा ४०.
१४. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिकमनक्ख, अंति: दुरियमखिलंपि
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१६. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५७१९२. (+०) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२८.५४११.५, १५४४८-५८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, रा., गद्य, आदि: ए नवइ तत्वना नाम; अंति: (-).
५७१९३. (*) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१ (१) १० प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, २०x४३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२, प्रारंभ का किंचित् अंश नहीं है व अध्ययन- १४, गाथा-२८ अपूर्ण तक है.)
५७१९४. (+) ) चतुः शरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १०, प्रले. मु. हरजी ऋषि पठ. मु. रायमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., जैदे., (२५.५X११, ३x४२).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं,
गाथा - ६३.
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२१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावज जोग विरइ; अंति: सुखनुं हेतु कारण. ५७१९५. (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८३८, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १२-२(३,७)=१०, पठ. मु. मोहनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतनाम सप्तस्मरण दिया है, परंतु वस्तुतः यह नवस्मरण है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३३). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनंजयति शासनं, स्मरण-८,
(पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है. नमिऊणस्तोत्र, गाथा-४ से २२ अपूर्ण तक नहीं है, संतिकरस्तोत्र का अंतिम कुछ
पाठांश व भक्तामरस्तोत्र, गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७१९६. (+#) सामायिक अतिचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-३(१ से २,५)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४३६).
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आद्यंत व मध्य के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
सामायिक अतिचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७१९७. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथानक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२२, मध्यम, पृ. १५-४(१०,१२ से १४)=११, ले.स्थल. लिंबडी, अन्य. मु. नितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ५४४१). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मितसद्गुणम्, श्लोक-१५०, (वि. १८२२, आश्विन शुक्ल, १०, सोमवार, पू.वि. गाथा-९४ अपूर्ण
से १०५ अपूर्ण तक व ११६ अपूर्ण से १५० अपूर्ण तक नहीं है.) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंत शोभा; अंति: एह प्रमाणे संवछरे, (वि. १८२२, फाल्गुन
शुक्ल, ५, रविवार) ५७१९८. विचारषत्रिंशिका व नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९००, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
अन्य. मु. चैनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३-१९४४३). १. पे. नाम. विचारषत्रिंशिका सह अवचूरि, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४५. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामय; अंति: इदं
बालचापल्यम्, ग्रं. २१६. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५
तक लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: एतानि नवानां तत्वाना; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५७१९९. (#) शौरिपुरोत्पत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४०).
शौरिपुरोत्पत्ति, सं., गद्य, आदि: मथुरायां हरिवंशे; अंति: (-), (पू.वि. "दृष्ट्वा भीत्याधो." पाठ तक है.) ५७२००. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-५(५,८,१० से १२)=८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, ११४३६-४२).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देश-१
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५७२०१. औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, जैदे., (२६.५४११, १५४४१-४५).
औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-३९ अपूर्ण से २८९ अपूर्ण तक
है., वि. कोई बड़ी कृति का हिस्सा प्रतीत होता है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५७२०२. (+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८-२(३ से ४)=६, पू.वि. बीच के
व अंतिम पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २-२२४४२-५८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से गाथा १६ अपूर्ण तक व गाथा ३१ अपूर्ण से नहीं है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमदाप्तौ प्रणम्या; अंति: (-).
लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवना; अंति: (-). ५७२०३. (+#) बृहत्संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, ७४४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से गाथा १०१ अपूर्ण
तक है.)
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७२०४. (+) भगवतीसूत्र-१२ शतक ७-९ उद्देश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे.. (२६.५४१२, १४४२९).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५७२०५. श्राद्धदेवसिकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (सविधि), अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, दे., (२६.५४१२, ९४२६-२९).
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. "वडो
सासी उठी" पाठ से है.) ५७२०६. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४५, फाल्गुन कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९, ले.स्थल. राजकोट, प्रले.
लाघावी रणछोड खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३०००, प्र.ले.श्लो. (१०८०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१२, ६४३३). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं,
अध्याय-९२, ग्रं. ८९९.
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतगड शब्दस्य कः; अंति: ज्ञाताधर्मकथानी परे. ५७२०७. (#) अजितनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १५३८, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९६, प्रले. मु. जयसागर (गुरु
आ. भावदेवसूरि, भावडारगच्छ); गुपि. आ. भावदेवसूरि; सम. श्राव. लाखा सांडा साहा (पिता श्रावि. सरूपदे सांडा साहा); गुपि. श्रावि. सरूपदे सांडा साहा; गृही. ग. वीरविमल गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में प्राप्त सूचना १८वी शताब्दी की प्रतीत होती है किन्तु वर्ष प्रतिबद्धता के कारण १७वी के विद्वान को लिंक किया गया है., कुल ग्रं. ३००८५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१०८२) उदकानलचौरेभ्यो, (१०८३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२७४११,१२-१५४४२-४५).
अजितनाथ चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: जयंत्यजितनाथस्यजितशो; अंति: पद्मखंडेन
हृद्यम्, सर्ग-६, श्लोक-७०२. ५७२०८. सम्यक्त्वसप्ततिका सह सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०३-७(१,९४ से ९९)=९६, जैदे., (२६.५४११, १-१४४४१-५०).
सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ___ गाथा २ अपूर्ण से गाथा ४२ तक है व गाथा ४४ अपूर्ण से नहीं है.) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाशक बालावबोध कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदि: (-);
अंति: (-), पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
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२२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७२०९. (#) सर्वज्ञशतक सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४०).
सर्वज्ञशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सिरिवीरजिण; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा ३७ तक है.)
सर्वज्ञशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). ५७२१०. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व ८, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ८२, प्रले. ग. देवचंद्र गणि; अन्य. मु. विवेकचंद्र
(गुरु ग. देवचंद्र गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत में मात्र १४ लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४०८८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४५३-५८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य,
आदि: नमो विश्वनाथाय जन्मत; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम्, सर्ग-१२, ग्रं. ४७८८. ५७२११. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८४-२(७२ से ७३)-८२, पठ. श्राव. संघवी माधव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३४-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-३४ गाथा ४१ अपूर्ण से अध्ययन- ३६ गाथा ५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७२१२. (#) योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४७-५२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-),
(पू.वि. प्रकाश-३ गाथा १३४ अपूर्ण तक है.) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य जिनसिद्धादीन;
अंति: (-). ५७२१३. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८२-१(१)=८१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४२६-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारम्भिक पाठ अपूर्ण से पार्श्वनाथ भगवान के
च्यवन कल्याणक तक का पाठ है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५७२१४. (#) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७७-१(५१*)+१(४३)-७७,
ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. हंसराज ऋषि (बृहन्नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ७४३३).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००, संपूर्ण. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक पाठ का टबार्थ लिखा है.) ५७२१५. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५-१(१)=७४, अन्य.सा. पानबाई महासती; श्राव. बेचरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ७४३५-४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेवं भंते सेवं भंते, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०,
(पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ की प्रारम्भिक पाठ नहीं है.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवो अर्थ कह्यो छे. ५७२१६. (+) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका- वाचना ६ से ९, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२-१(३८)-७१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अत्थगई वीगई, ग्रं. १२१६, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान
८ के बीच के पाठांश नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२२१ कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: तावन्नंदतु सापि हि,
ग्रं. ७७००, प्रतिअपूर्ण. ५७२१७. राजप्रश्नीयसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७०२, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ५०००, जैदे., (२६.५४११.५, ७-१२४४०-५०).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से सुपस्सवणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००. राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: ताडनानि कशादिघाताः,
ग्रं. ३७००. ५७२१८. नेम चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, अन्य. मु. जेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४१).
नेमिजिन चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिउणसिवसीवं आरियरिय; अंति: सु महावुद्धीकाएजाए. ५७२१९. (+#) निरयावलिकापंचोपांग सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६x४०). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२८अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण०; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०.
कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते०तेण उसर्पिणीनउ; अंति: पूर्वपाठनी परे कहवो. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २८अ-३१अ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे भगवंत समण०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अंतिम दो सूत्र का टबार्थ नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३१अ-५६आ, संपूर्ण.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गाथामांहि तिम, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारम्भ के
___दो सूत्र का टबार्थ नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५६आ-६१अ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. __पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो है भगवंत स०श्रमण; अंति: सर्वपाछली परे कहेवो. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६१अ-६९अ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२.
वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज०जदपी भं हे भगवंत; अंति: सूत्रबंध समाप्त. ५७२२०. (#) आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२१-१५५(१ से १५५)-६६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ४-८x२३).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय श्रुतस्कंध अध्ययन-१, उद्देश-४
से द्वितीय अध्ययन उद्देश-२ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७२२१. (+) सिद्धांतसारोद्धार विचार, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ६३, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. मु. देवेंद्रविजय
(गुरु मु. केशरविजय, विजयआणंदसूरिगच्छ); गुपि. मु. केशरविजय (विजयआणंदसूरिंगच्छ); पठ. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदीश्वरजी सुप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७X४०).
सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप विगत ५२६; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५७२२२. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९३६, माघ शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७-१(४९)+१(४२)=५७, प्र.वि. कुल
ग्रं. २५००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६८३) करकृतमपराधः, दे., (२५.५४११, ५४४३).
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२२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासिय; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०,
ग्रं. ३७३, (पू.वि. बीच के अल्प पाठांश नहीं है.)
व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई साधुमास एक; अंति: होइ इम हुंकहुं छउं. ५७२२३. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५७-३(१ से २,६)=५४, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ५४२८-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ की गाथा-४
अपूर्ण से अध्ययन-३ तक व अध्ययन-९ के उद्देश-४ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७२२४. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-द्वितीयश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ,
पृ. ४९+२(३९,४७)=५१, ले.स्थल. बडनगर, प्रले. मु. मूलचंद ऋषि (गुरु मु. परसरामजी ऋषि); गुपि. मु. परसरामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ४-११४४८-६०). __ आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चंति त्तिबेमि, ग्रं. २१५४, प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइं इम हुंकहुं छउ, प्रतिपूर्ण. ५७२२५. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं पढम; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. ५७२२६. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले.स्थल. बोरसद, प्रले. भाईलाल भावसार; अन्य. नाथाभाई
काहनदास लहिया; सा. साकरबाई महासती शिष्या (गुरु सा. साकरबाई महासती); गुपि. सा. साकरबाई महासती (गुरु सा. कस्तुरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, ७४५३).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेयं भंते सेयं, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०.
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्तमानावसर्पणि चोथो; अंति: हे भगवन कल्याणार्थ. ५७२२७. आचारांगसूत्र सह प्रदीपिका टीका-श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-४(१ से ४)+१(५२)=५८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १५४४५-४८). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. पिंडैषणाध्ययन प्रथमोद्देश
अपूर्ण से प्रतिमाधिकार अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५७२२८. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, जैदे., (२६४१२, ३-१०४२३-३१). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क वंद; अंति:
देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१६, आदि: कर्मबंधननुं विधानक; अंति:
कर्मस्तव सांभलीनइं. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रचांद्रपदवीनदवी; अंति:
जयसोमसुधीरिमा मुक्ति, ग्रं. १०५०. ५७२३०. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४८, ले.स्थल. नीमचनगर,
प्रले. मु. खुमाणचंद्र ऋषि (गुरु मु. लक्ष्मीचंद ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. लक्ष्मीचंद ऋषि (गुरु मु. रत्नचंद ऋषि, लुंकागच्छ); मु. रत्नचंद ऋषि (लुंकागच्छ); अन्य. मु. उदयचंद्र ऋषि (गुरु मु. लक्ष्मीचंद ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१२, ८४३४-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेस अंगं तहेव,
अध्ययन-१०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
उपासक दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालि तेणइ समहं, अंतिः छ श्रोतांग तिमज छे. ५७२३१. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७- १ (१) = ४६, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२७४११.५, ६४३९).
""
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन-२ की गाथा- १ अपूर्ण से अध्ययन- १० की गाथा- १८ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ मे, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
*,
५७२३२, (+४) उपासकदशांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७०४, आषाढ़ शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४७-४ (५ से ६, ३९ से ४०)=४३, ले.स्थल. राजनगर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०३१, अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे., (२६X११.५, ७X४४).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १० ग्रं. ८१२, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
,
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: बिहू दिवसे अंग तथैव.
५७२३३. (+०) प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १८२९ माघ शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल. सूरत (सुरतबंदिर, प्रले. पं. शुभविजय गणि; पठ. पं. राजेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिष्ठा विधि से संबंधित अंत में विविध पूजा एवं मुद्राओं सूचि दी गयी है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १२X३५).
प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर अंतिः विजयदानसूरीश्वराग्रे ५७२३४. (+०) जंबूदृष्टांत सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-७ (१ से ७)= ३८, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ५X३०). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश - १ अपूर्ण से उद्देश-८ अपूर्ण तक है.)
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५७२३५. (+#) जीवविचारादि प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१०, फाल्गुन कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. ४, ले.स्थल. बनारस, प्रले. सा. चिमना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६१२.५, ११x२७).
"
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पच, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः संतिसूरि० सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१.
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः बुद्धबोहिक्कणिकाय, गाथा-५५.
२२३
३. पे. नाम षड्शिकासूत्र, पृ. ८अ ११अ, संपूर्ण
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा- ४२.
४. पे. नाम. संग्रहणी प्रकरण, पृ. ११अ - ३१आ, संपूर्ण.
"
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. पद्म, वि. १२वी आदि नमिउ अरिहंताई ठिइ, अंतिः जा वीरजिण तित्वं, गाथा- ३५८. ५७२३६. (४) सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे.,
(२६.५X११.५, १४४४४).
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सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्विजप्रदत्त सुपात्रदान प्रसंग तक लिखा है.)
"
५७२३७, (+) वाग्भटालंकार सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. दे. (२७४१२.५, ४-७X४३-४९).
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-४ श्लोक-४६
तक है.)
वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रियमिह दिशतु श्रेय; अंति: (-). ५७२३८. भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका लघुटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. नयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४४६).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये किलेति; अंति: मकाएं:
सुखबोधिकाम्. ५७२३९. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-९(२ से ६,८ से ११)=१२, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १०४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं पढम; अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं
है तथा तीर्थंकर आयुमान प्रसंग तक है.)
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७२४०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन-२६, ३३ से ३६ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम,
पृ. ११, ले.स्थल. गेंत्ताग्राम, प्रले. श्राव. हीरालाल वगेरवाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १४४४२-५२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ५७२४१. (#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १ से १३, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११, १८४३६-३९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५७२४२. (#) पक्खीसूत्र, खामणासूत्र व स्तुति, अपूर्ण, वि. १६९४, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ११-५(१ से २,५,७,१०)=६, कुल
पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. राजधीर (गुरु आ. जिनराजसूरि); गुपि. आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३३). १.पे. नाम. पक्खियसूत्र, पृ. ३अ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. प्रारंभ के व बीच-बीच के पाठांश नहीं
२. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिअं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ५७२४३. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ८-१(२)-७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, ११४२८-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से
गाथा-२५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७२४४. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध-महावीरजिन जन्मप्रसंग, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-४(३,६ से ८)=८, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ७-१२४३१-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठ अनुपलब्ध है तथा त्रिशलारानी के स्वप्नफलवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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,
कल्पसूत्र - बालावबोध" मा.गु. रा. गद्य, आदि (-): अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
५७२४५. (+) कर्मग्रंथ भांगा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०-२४ (१७ से २९) = ६ प्र. वि. पंक्तिअक्षर अनियमित है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, १४X३३).
कर्मग्रंथ-यंत्र, मा.गु.. ., को., आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
५७२४६.
(+#) सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. लाटग्रह, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ८x४०).
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वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्म, वि. १६५५, आदि
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक १५२.
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) श्रीपार्श्वनाथ प्रतै; अंति: काइज मेडतानगरने विषे,
५७२४७. (+३) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८४९, मध्यम, पृ. १४६ ४(१ से ४) = १४२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, ५X४६).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहंताणं० पदमं अंतिः उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९,
,
ग्रं. १२१६, संपूर्ण.
कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानं जिनं, (२) नमो० नमस्कार हु अरिह; अंति: एहवुं कहता हवा, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तो संघ वाहिर काढवो, (अपूर्ण, वि. पीठिका भाग नहीं
है.)
५७२४८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११०-२२ (७७ से ९८ ) = ८८, ले. स्थल. अनवरपुर, प्र. ग. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कथा के अंत में कई जगह प्रतिलेखन पुष्पिका मिलती है., जैवे. (२६.५४१२, ४-१७४४४-५०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स, अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ से अध्ययन- ६ गाथा - १ तक, अध्ययन-१० गाथा- १६ अपूर्ण से अध्ययन- ११तक है तथा अध्ययन- १२ की मात्र गाथा - १ तक लिखा है. )
उत्तराध्ययन सूत्र - टवार्ध, मा.गु, गद्य, आदिः पूर्वसंयोग मातादिकनो; अंति: (-). पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनई एक चेलो; अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, हरिकेशी कथा तक लिखा है)
५७२४९. (+*) कल्पसूत्र सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १७८०, माघ कृष्ण, ७ सोमवार, मध्यम, पृ. १२४-१८ (२१ से ३८ ) +२ (२ से ३)=१०८, प्र.वि. पत्रांक-२ के ३ पत्र है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६.५४११.५, १३४४४).
',
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९,
(पू. वि. बीच के पाठांश नहीं है. )
कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंत भणी, अंति: (१) संघ आगलि संपूर्ण होइ, (२) आर्य सुहस्त हु
५७२५०. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ, बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८५-८५ (१ से ८५) = १००, प्र. वि. पच्चवाणादि विधि सहित. जैवे. (२६४१२, १२४३१-३४).
पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जावंतिसूत्र से एगोहं नत्थि सूत्र तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के
पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र
नहीं हैं. ५७२५१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ५४३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., व्याख्यान-९ साधुसामाचारी साधु आहार वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानं जिन; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५७२५२. (+#) ठाणांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३७५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३९-४५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउस तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७५०. ५७२५३. (+) उत्तराध्यनसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७२-२६०(२० से २७८,३३७)=११२, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४६-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
(पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., अध्य० २ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ नमः सिद्धि; अंति: (-),
(पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., रचना प्रशस्ति श्लोक ५ तक हैं.) ५७२५४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०८-१२(१ से ३,७ से ९,६२,७० से ७३,१०७)=९६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ५४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवानंदा के चौदस्वप्न वर्णन से साधुसामाचारी
अपूर्ण तक हैं.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७२५५. (+#) उपासकदसांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. १०४-२(१ से २)=१०२, प्रले. ग. खुस्यालरूचि (गुरु
ग. विनोदरुचि); गुपि. ग. विनोदरुचि (गुरु ग. वीररुचि); ग. वीररुचि (गुरु ग. हरिरुचि); ग. हरिरुचि (गुरु ग. कनकरुचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीनवपलवपार्श्वनाथ प्रसाद., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ५४२३-२८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु अगं तहेव, अध्ययन-१०, (वि. १८४५,
मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, गुरुवार, पू.वि. अध्ययन-१ अपूर्ण से है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दिवसे श्रुतांग तिम, (वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, १५, बुधवार,
___ ले.स्थल. मांगलोर) ५७२५६. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, आश्विन कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८, ले.स्थल. मांडवीबंदर,
लिख. श्राव. सिवजी माणकचंद नगरसेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३४-३७).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज; अंति: जमहं भय तारो तिबेमि, अध्याय-२३.
सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीआचारांग; अंति: इ० इम हुंकहु छु. ५७२५७. (+#) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-१(४७)+१(४६)=७२,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित
है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७-५०).
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२२७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (१)प्रणिपत्यार्हतः सर्व, (२)सर्वे संसारिणो जीवा;
__अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रस्ताव ५ कथा २२ प्रियदर्शनसर्प प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ५७२५८. (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ६९, अन्य. मु. अमरजी सामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधिसूचक चिह्न., जैदे., (२६४११.५, ४४३९). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: तीर्थंकरनो प्ररूप्यो. ५७२५९. (#) सूत्रकृतांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, प्र.वि. प्रत में २२५० ग्रंथाग्र लिखा है और बाद में सुधार किया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज्ज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३.
ग्रं. २२५०. ५७२६०. (+#) कुमारपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १५४५०). कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., प+ग., वि. १४९२, आदि: ॐ नमः श्रीमहावीरजिन; अंति: (-), (पू.वि. हेमसूरि
दीक्षा सूरिपद वर्णन अपूर्ण तक है.) । ५७२६१. (+) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व १०, अपूर्ण, वि. १४६६, षट्तळवेदशशि, मध्यम, पृ. १२९-३(३६,७० से ७१)=१२६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति:
स्वान्योपकारेच्छया, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच का पाठांश नहीं है.) ५७२६२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८२८-१८७५, मध्यम, पृ. ५५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४४९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १८२८, चैत्र
कृष्ण, ४, रविवार, ले.स्थल. बाजोलीनगरे(ENTER)बाज, प्रले.मु. गुमानविजय (गुरु मु. हुकमीविजय);
गुपि.मु. हुकमीविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); पं. लक्ष्मीविजय; राज्यकालरा. विजयसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य सद्गुरुन्; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक शुक्ल, ४,
ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. मु. किस्तूरविजय (गुरु मु. गुमानविजय); गुपि. मु. गुमानविजय (गुरु मु. हुकमीविजय);
राज्यकालरा. कल्याणसिंग, प्र.ले.पु. मध्यम) ५७२६३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२७-८२(१ से ६०,६९ से ७०,८४ से
८६,८९ से ९०,९२,९७ से १००,१०२ से १०४,१०६,१०८,११०,११२,११५,११७ से ११८)-४५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ६-१३४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. महावीरस्वामी
दीक्षा प्रसंग से है. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७२६४. (+) पद्मावतीकल्प, अपूर्ण, वि. १८५४, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७२-३(१,३ से ४)=६९, प्र.वि. संशोधित-संशोधित.,
जैदे., (२६.५४११, ११४३२).
__ भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विचार परिवर्जिता, परिच्छेद-१०. ५७२६५. (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७३-३(५,९,६२)=७०,
प्र.वि. संशोधित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवीरं प्रणिधाय, (२)पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: धन कनक राशी०
पूजय, (पू.वि. बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५७२६६. (+#) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५०-८६(१ से ७५,८६ से ९६)=६४, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८४/४, संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १३४५४). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रस्ताव ४
श्लोक ७९० अपूर्ण से प्रस्ताव ६ श्लोक १६२३ अपूर्ण तक हैं.) ५७२६७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, कुल पे. २, प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - १८१/६,
संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३०-४५). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-७६आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि,
अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्ट मंगलिक; अंति: सर्व दुखथी मूकाई. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रगत गाथा सह टबार्थ, पृ. ७६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्रगत गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिजभवं गणहरं जिण; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्रगत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिझंभवस्वामि गणधर; अंति: (-). ५७२६८. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७७-१(६२)=७६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १२४३५-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन विवाह प्रसंग अपूर्ण
तक है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तीणइ कालि तीणइ समइ; अंति: (-). ५७२६९. (+) कौमुदी कथा, पूर्ण, वि. १८४०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५९-१(१)=५८, प्रले. पं. जसविजय (गुरु पं. दर्शनविजय गणि); गुपि.पं. दर्शनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४३७). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: (-); अंति: सर्वा स्वर्गं गता, पद-४६५, (पू.वि. पद
५ अपूर्ण से है.) ५७२७०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अधिरोहिणीटीकागत कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, १८४४५-५०). उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति का हिस्सा कथा संग्रह, म. भावविजय, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सूरेरेकस्य
शिष्योभूद; अंति: (-), (पू.वि. राधावेधदृष्टांत दत्तराजा कथानक श्लोक-७२ अपूर्ण तक है.) ५७२७१. (+#) आत्मप्रबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १८४५७).
आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवद्रव्याधिकारे सारश्रेष्टि कथा तक लिखा है.) ५७२७२. (+#) श्रीचंद्रकेवली रास, संपूर्ण, वि. १७८२, पौष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३००, ले.स्थल. राजनगर,
पठ.पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३६). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहिब सेवीइं; अंति: थइ भणतां
मंगलमालाजी, उल्लास-४ ढाल १११, गाथा-२३९४, ग्रं. ७६४९. ५७२७३. (+#) गौतमकुलक सह बालावबोध व दृष्टांतकथा, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २५४,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २-१८४४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा - २०.
गौतम कुलक-बालावबोध + कथा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८४६, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंतिः तिष्ठत्शुद्धवासनः
५७२७४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, पूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम,
पृ. २०७-५(११८ से १२२)= २०२, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. अमृतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२.५x११, ४-१३४०-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पदमं अंतिः अत्यगई वीगई, व्याख्यान- ९,
""
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ग्रं. १२१६, (अपूर्ण, पू.वि. महावीरस्वामी के परिवार अपूर्ण से पार्श्वनाथ प्रभु के जन्म प्रसंग अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवौ; अंति: आगे एहवो कहता हूआ, अपूर्ण.
-
कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकल्पांतवाचच अंति: (-). अपूर्ण.
५७२७५. (+) सूयगडंगसुत्त द्वितीय श्रुतस्कंध सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७९, ले. स्थल. मांडवीविंदर, लिख. मु. शिवजी माणेकचंद ऋषि (ओसवालज्ञातिय); प्रले. हरदेव छगनजी त्रेवाडीया, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत१८१/६, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. ९४९६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७२०) लेखयंति नरा धन्या, (१९८९) येदोरदंति तेपि धन्यास्तदाह, जैदे., ( २६.५X११, ४x२९-३२).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि प्रतिपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः तिम हू तुझ प्रते, प्रतिपूर्ण
"
५७२७६ (०) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १९६+१ (२८) = १९७, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मेघदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत - १८०/६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १७०००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१२, ८x४६).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० तेणं, अति: उवदंसे ति बेमि, वक्षस्कार- ७, ग्रं. ४१४६.
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-वार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिपः अंतिः माहरी मतीथी नथी
कहतो, अं. १२०००.
५७२७७. (+) महानिशीथसूत्र अध्ययन १३ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३७+१ (११५) १३८, प्रले. माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्राप्तिस्रोत १८९/६, संशोधित, जैये. (२६.५x१२, ५X३२).
महानिशीथसूत्र, प्रा. गद्य, आदिः सुयं मे आउस तेणं०; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांभल्युं मे अहो, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
२२९
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदसे त्ति बेमि, व्याख्यान- ९. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: (-). २. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १६६अ - १६६आ, संपूर्ण.
-
५७२७८. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ + व्याख्यान व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८०८, पौष शुक्ल १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६७, कुल पे. २, ले. स्थल. नीबाज ग्राम, प्रले. पं. जसवंतविजय (गुरु ग. दोलतविजय); गुपि. ग. दोलतविजय (गुरु पंन्या. शांतिविजय गणि); न्या. शांतिविजय गण ( गुरु मु. मानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२६५११, ५-१३४३७-४८).
१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ + व्याख्यान+कथा, पृ. १आ - १६६अ, संपूर्ण, पे. वि. अंत के कुछ पत्रों में बार्थ नहीं लिखा
है.
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मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान तीर्थं; अंतिः श्रीविजयजिनेंद्रसूरि, (वि. ६७ पाट तक है.)
५७२७९. (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २४२-७८ (१ से ३५ से ७९) = १६४, पू. वि. बीच-बीच
के पत्र हैं. प्र. वि. प्राप्तिस्तोत. १८२ / ६, संशोधित, जैवे. (२६४११, ११४३८-४२).
"
"
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ से ११४ तक है व
बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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शीलोपदेशमाला - बालावबोध+कथा. ग. मेरुसुंदर, मा.गु. गद्य वि. १५५१, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. गुणसुंदरी-पुण्यपाल कथा से धनश्री कथा अपूर्ण तक हैं.)
५७२८०. (+) सिंहासनबत्रीशी चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. प्रतिलेखक की भूल से अंतिम पत्र पर किसी अन्य ग्रंथ की अपूर्ण कृति मिलती है., संशोधित., जैदे., (२६X११, १६x४१).
सिंहासनबत्रीसी चौपाई - दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि : आराही श्रीआदिजिण; अंति: (-), (पू.वि. भोज कथा अपूर्ण तक है.)
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५७२८१. (+) प्रश्नव्याकरण- प्रथमश्रुतस्कंध सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९९ वैशाख कृष्ण, ७. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३२, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न., प्र.ले. श्री. (८३९) जादूसं पुस्तकं वृष्ड्डा, जैवे. (२५४११.५, २-६४४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर, अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
प्रश्नव्याकरणसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५७२८२, (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९७-१(१ ) = ९६ प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१०.५, ५-१७४३७-४५)उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-): अंति: (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अध्ययन- १
गाथा-४ से अध्ययन-९ तक लिखा है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ+ कथा, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५७२८३ (१) ज्ञाताधर्मकथांग सह प्रदेश टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८२-९ (१,१९ से २४,५४,६०)-७३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १५X६०).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-) अंति सुवक्खंधो सम्मत्तो, अध्ययन १९,
(पू. वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य वि. ११२०, आदि: (-); अंति: दशम्यां च सिद्धेयम्, अध्ययन - १९, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं.
"
५७२८४ (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १८९७८ (१ से ७२, १८० से १८५) + १ (१३२) = ११२. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११, ११४३३-४२).
יי
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवाधिकार अपूर्ण से पढमा सव्वजीवा पडिवत्ती अपूर्ण हैं. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
५७२८५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०३-८०(१ से ७९,८१)+१(२९४)=२२४, ले. स्थल, मांडवी, प्रले देवकृष्ण हरदेव त्रेवाडी, नारायण हरदेव, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., (२५४१०.५, २-४४३१).
उत्तराध्ययन सूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-): अंति सम्मए ति बेमि, अध्ययन ३६, (पू. वि. अध्ययन- १५,
',
गाथा १९ अपूर्ण से है.)
-
उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुझ प्रति कहुं छं.
५७२८६. (+) परिशिष्ट पर्व, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९०. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ- संशोधित., जैदे., ( २६११.५, ९-११x२६-३०).
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीमते वीरनाथाय अंतिः स्फाति पुरस्तात्पुनः, सर्ग- १३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२३१ ५७२८७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९२०, पौष शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८५,
ले.स्थल. सलुबरनगर, प्रले.मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ.शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); राज्यकालरा. जोधसींग; पठ. मु. गोरधन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (११८७) ग्यानी पंडत चतुर नर, दे., (२५.५४११.५, ६-१३४३५-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रते माहरो; अंति: एतले गुरुभक्ति जाणवु.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *मा.गु., गद्य, आदि: जीयादिदं पर्युषणस्य; अंति: कथा तो सविस्तरम्. ५७२८८. (+) जंबूद्दीवपण्णत्तीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४३९).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१५४. ५७२८९. (+#) क्षेत्रसमास सह मलयगिरीय टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ८०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५४). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: वी
उत्तमसुयसंपयं देउ, अधिकार-५, गाथा-६५५. बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: जयति जिनवचनमवितथममित; अंति:
___ तान्मंगलमसिश्रियमिति, अध्याय-५. ५७२९०. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६५०, भाद्रपद शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५३, ले.स्थल. पडधरी ग्राम, प्रले.
शिवदास (पिता पंडित. हर्षा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४९४४, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (२६०) यादृशं लिखितं दष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: स करोतु शातिः,
प्रस्ताव-६, श्लोक-१६३३. ५७२९१. (#) आवश्यकसूत्रनियुक्ति, भाष्य सह नियुक्तिभाष्य की लघुटीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम,
पृ. २०९-६०(२,८,१२,२५ से २७,२९,५८,७७,१०६ से १०८,११६ से ११८,१६३ से १७५,१७७ से २०८)=१४९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. भाष्यगा.पत्र-२२ से है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४८-५८).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक नियुक्ति
गाथा-६-भासासमसेढीउ सदं० से गाथा-१४०८-सुयनाणंमिय० कुणसु तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२७
वीसरसद्दरुयंते० ए गिन्हो तक है.) । आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: देवः श्रीनाभिसून; अंति: (-). ५७२९२. (+#) कल्पसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४४-४(१ से ४)=१४०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रतिलेखक द्वारा
पत्रांक १ से ४ अंकित नहीं है तथा ५ से पाठ है, व अंतिम प्र.ले.पुष्पिका वाला पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११७) यावज्जिनवर समये, (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा, जैदे., (२५.५४११, ५४२६-३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं नत्व; अंति: मइ एतलइ गुप्त जणाविउ, संपूर्ण. ५७२९३. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३४, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६-१२४३६).
कर
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२३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (अपठनीय) अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९ नं. १२९६,
(संपूर्ण, वि. प्रथम पत्र खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय): अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. व्याख्यान ३ अपूर्ण तक लिखा है.)
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण.
५७२९४. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९३ -४६२ (१ से ४६२ ) = १३१, जैदे., (२६X११.५, ५X४७-४९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति भवसिद्धीव समंतए, अध्ययन ३६ (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अध्ययन- २०, गाथा ३८ से अध्ययन ३६ तक है. वि. अंत में ग्रंथ माहात्म्य श्लोक लिखे हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ( पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
पार्श्वनाथ चरित्र तक टबार्थ लिखा है.)
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५७२९५. (+#) वर्द्धमानदेशना, पूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२२, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन वाला अं पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्राप्तिस्रोत - ८९, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १३-१६X३३-४२).
वर्द्धमानदेशना. ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय अंतिः सोधयति गतमत्सरा, उल्लास- १०, संपूर्ण ५७२९६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १७६७, आषाढ़ शुक्ल ८, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ११७- १ (१)=११६,
ले. स्थल. राणीग्राम, प्रले. पं. विबुधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. प्राप्तिस्रोत ८४/४, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे (२६X११.५, ६x४५-४९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, (पू. वि. अध्ययन- १ गाथा ७ तक नहीं है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुमा० जंबूनइ कहइ
५७२९७, (+#) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२७-२ (१,१९) =१२५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२, ६-१६४४३-४८).
""
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., क्षमापना कर्तव्य अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं नत्व, अंति: (-), पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, उदायन राज चंडप्रद्योत क्षमापना प्रसंग अपूर्ण तक है.)
५७२९८. (+) महानिशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११३, लिख. श्राव. माणिक्य शाहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. ४५०४, जैदे., (२६X११.५, १३x४५).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ नमो तित्थस्स ॐ अंति व महानिसीहम्मि पाएण, अध्ययन-६ चूलिका २, ग्रं. ४५०४.
५७२९९, (+) घडावश्यकसूत्र सह वृंदारुवृत्ति व टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १४९-५३ (१ से ५२, १०४) =९६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ८X३८).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, अध्ययन-६, सूत्र - १०५, (पू. वि. वांदणासूत्र अपूर्ण
से है.)
आवक प्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि सं., गद्य, आदि (-); अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च ग्रं. २७२०. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - वंदारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६१, आदि (-); अंति
विनिर्मितश्चायं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७३०० (+) औपपातिकसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४९-२३(१ से २,४,७, २१ से २२,२५,२८,३२ से ४६)=२६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१०, ९-१३३२-४३).
""
(+)
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औपपातिकसूत्र, प्रा. पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाधा ३ आंशिक से उनवाइअ प्रकरण अंशमात्र तक है.) औपपातिकसूत्र- टिप्पण, मा.गु. सं., गद्य, आदि; (-); अंति: (-).
५७३०१.
) बृहत्कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७२३, माघ शुरू, मध्यम, पृ. ४४-३८ (१ से ३८) ६ प्र. मु. दीपचंद (गुरु मु. लालचंद ); गुपि. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, ६X३२).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंतिः कप्पा तिबेमि, उद्देशक- ६, ग्रं. ४७३,
(पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पंचम उद्देश, सूत्र- ३२ से है.)
""
बृहत्कल्पसूत्र - टवार्थ " मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः भिष्यार्थं वरणतिए, पू. वि. अंत के पात्र हैं.
*
५७३०२, (+) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, टवार्थ व कल्पलताटीका का टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, चैत्र शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ३५५, कुल पे. २, प्रले. ग. रामकुशल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१२, ५४२८-३२).
"
१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, टबार्थ व कल्पलताटीका का टबार्थ, पृ. १आ-३५१आ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९,
अं. १२१६.
कल्पसूत्र कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर अंतिः
1
अट्टमंअझयणं समत्तम्, ग्रं. ७७००.
कल्पसूत्र - टवार्ध ". मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते समय अंतिः आपणा शिष्यने कहे.
,
कल्पसूत्र- कल्पलताटीका का टवार्थ " मा.गु, गद्य, आदि: नमीने श्रीमहावीर, अंतिः उपदेशाथी को इम कहे. २. पे. नाम. गुरुपरिपाटिका सह टबार्थ, पृ. ३५२आ-३५५अ, संपूर्ण, पे.वि. पट्टावली में विजयधर्मसूरि तक लिखा है. पट्टावली- तपागच्छ, प्रा. सं., पद्य, आदि पणमिअ वीर जिणंद गुण अंति: (१) संधुणिआ मंगलं दिसउ,
(२) श्रीविजयधर्मसूरी, श्लोक-२७.
२३३
पट्टावली- तपागच्छ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीने श्रीवीरजिने, अंति सागर सतेक परत छे.
५७३०३. (#) ठाणांगसूत्र सह अभयदेवीय टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०६ + १ (२१९) = ३०७, ले. स्थल. झोटाणक, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १५४४८-५१).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, स्थान-१०, सूत्र- ७८३, ग्रं. ३७००.
स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभवदेवसूरि, सं., गद्य, बि. ११२०, आदिः श्रीवीर जिनंनाथ, अंतिः सहस्राणि चतुर्दशः,
स्थान-१०, ग्रं. १४२५०.
५७३०४. (+#) जीवाभिगमोपांग वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६. ५X११, १५X४०-४५).
जीवाभिगमसूत्र टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: प्रणमत पदनखतेजः प्रति, अंतिः नयः सिद्धांतसद्बोधम्, प्रतिपत्ति - १०, ग्रं. १४०००.
3
५७३०५. (४) जीवाभिगमोपांग सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७८७, आषाढ़ शुक्ल, १०, मध्यम,
पृ. २७४-९(३१,७५,८३,१०४,१२८, १४३, २४९, २६३ से २६४ ) + १ (१९३४) = २६६, प्रले. मु. बलरूचि (गुरु ग. प्रेमरूचि); गुपि. ग. प्रेमरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२७४११.५, ७X४७).
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जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभावियाणं चउवीस, अंतिः भिगमे सेतं जीवाभिगमे, प्रतिपत्ति- १०, सूत्र- २७२, ग्रं. ४७५० (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
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२३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो ऋषभादिक; अंति: जीवनु अभिगम कह्यु, ग्रं. २००००. ५७३०६. (+#) आचारांगसूत्र की शीलांकीय टीका- श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२४-४(१ से २,४,८)=२२०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४३-५०). आचारांगसूत्र-टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक पाठ से "०सौम्यः सर्वजनमतोनयः" तक "भवमायोद्यं नामादिचतुष्टयस" से "ष्टतमसेसमेत साधकश्चायामवावारइति" तक "पक्षोष्टका पीठतुल्यानि ब्रतानिश्रा" से "रिग्रहसंज्ञामूर्छातुपा मैथुन संज्ञा" तक व
"तल्लाभेसतिनो प्रतिगृह्णीया" से अंतिम पाठ तक नहीं है.) ५७३०७. कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा १-८ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७८, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४१२,५-१५४२९-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढमं, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-),
ग्रं. १२१६, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अष्टम व्याख्यान, आदिनाथ चरित्र तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ५७३०८. (+) अनुयोगद्वार कीटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १३४४४). अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: रचिता
प्रकृतिवृत्तिः, ग्रं. ५७००. ५७३०९. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थव बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६१, वसुशशिमितेषष्टेकेन, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३३,
पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ले.स्थल. वल्लभीपुर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा, (४९१) सादरात् ये पठिष्यति, जैदे., (२५.५४१२,७-१७४३४-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनई विर्षे एतले; अंति: शिष्य प्राइम कहै, संपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७०७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: यः कर्ता तस्य
मंगलम्, संपूर्ण. ५७३१०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२८-३३(११,१४,३० से ३२,३५ से ३६,४०,४७ से
५०,५३,५५,५८ से ६०,६३,६५ से ६६,७२,७८,८६ से ८८,९१ से ९४,९६ से ९७,१००,१२७)+२(१ से २)=९७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. बढते पत्र के पत्रांक नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११,५-१४४४१-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के
पाठांश नहीं है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: (-). ५७३११. स्थानांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४७, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. गोकलचंद्र
(बृहद्विजयगच्छ); राज्ये आ.शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३७७५, दे., (२६.५४१२, ५४३६-३९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७७५. ५७३१२. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ३०८, प्र.वि. कुल
ग्रं. १३९७५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४५२).
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२३५ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ,
अध्ययन-१९, ग्रं. ५४६४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल ते चौथा आरानइ; अंति: नायाधम्मकहाओसमत्ताओ,
ग्रं. ९०००. ५७३१३. प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१५, जैदे., (२६.५४११, ११४३३-३८).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६,
ग्रं. ७७८७. ५७३१४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६३+१(७६)=२६४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंयोग मातादिकनो; अंति: तेह एम भाषइ कहइ. ५७३१५. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०२-१९३(१ से ११५,२२८,२३६ से २४१,२५१ से
२८१,२९६ से २९८,३०० से ३१२,३४३ से ३६६)=२०९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ४४१९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पाठांश नहीं है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७३१६. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८३४, श्रावण शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम,
पृ. १९२-१(३५)+१(६७)=१९२, ले.स्थल. सूरतिबिंद(सूरत, प्रले. मु. केशरचंद्र; दत्त. श्राव. लालचंद्र; अन्य. श्रावि. लच्छी ; श्राव. वेरचंद्र (पिता श्राव. पूनमचंद्र); श्राव. पूनमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भट्टारकश्री राजेंद्रसूरिजी के उपदेश से वि.सं. १९४१ में राजपुर के भंडागार में प्रत भेंट स्वरूप दिया गया., जैदे., (२६४११, १५४४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेण० समणे; अंति: उवदसेइ
त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. द्वितीय व्याख्यान की समाप्ति से चौदह स्वप्न के आरम्भ तक नहीं है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति:
तावन्नंदतु सापि हि, ग्रं. ७७००. ५७३१७. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. १७१, ले.स्थल. गजपाटनगर, प्रले. ग. राजशील (गुरु
ग. लावण्यशील); गुपि.ग. लावण्यशील; अन्य. ग. लक्ष्मीसुंदरशील (गुरु ग. लावण्यशील); पठ. मु. रूपचंद; अन्य. मु. दलीचंद (गुरु ग. विनयशील), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ३-१६४३३-३९).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४.
उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: क० निकली जेवा वाणी. ५७३१८. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११८-१(२४)=११७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ८-१७४४४-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-),
(पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सामाचारी, सूत्र- २४ तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनो; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्यतीर्थनेतार; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
महाबल की दीक्षा से बलभद्र के जन्म व नामकरण तक का पाठ नहीं है तथा वृषभ को पूर्वभव के माता-पिता से मुलाकात के पश्चात का पाठ नहीं है.)
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२३६
५७३१९. (+) निरयावलिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६६, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९८, कुल पे. ५, ले. स्थल. नागनेश, प्रले. सगनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. वे. (२६.५११, ५X३७). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ- ३९अ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः सव्वेसिं भणियच्चो, अध्ययन- १०.
""
कल्पिक सूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तें अवसरपणी कालन, अंति: पाठनी परे कहीय... २. पे नाम, कल्पावर्तसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३९अ-४२आ, संपूर्ण
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जयि णं भंते समणेणं, अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०. कल्पावतंसिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः ज० जद्यपि भं० हे; अंति: क्षेत्रे सि० सिझस्ये. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. ४३अ ८१ आ. संपूर्ण
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेहयाई जहा संघहणाए अध्ययन - १०. पुष्पिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः ज० जो भ० हे पूज्य स०; अंति: गाथामांहि तिम.
४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८२अ-८८अ संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः खलु जंबू निक्खेवड, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः ज० जो भ० हे पूज्य स०; अंतिः सर्व पाछली परे कहीवो. .पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८८अ ९८आ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स अंतिः बारस्स उद्देगा, अध्ययन- १२. वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जद्यपि भं० है; अंति: बा० बार उ० उद्देसा.
५७३२०. स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६७०, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. पंडित. नानजी जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२६X११, १६x३२-५०).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६.
स्तुतिचतुर्विंशतिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धनपालपंडितबांधवेन०; अंति: भव्यलोकमवेति संबंधः.
५७३२१. शत्रुंजय माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १६५७, फाल्गुन कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३००, ले. स्थल. देवास, प्र. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ८५००, जैदे. (२६.५४११.५, १३४३३-३९).
""
शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: रसांभोनिधिग्रंथ एव, सर्ग - १४, ग्रं. १००००, (वि. ग्रंथ के अंत में विषयानुक्रमणिका दी गई है.)
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५७३२२. (+४) आवश्यकसूत्र सामायिकाध्ययननिर्युक्ति सह विशेषावश्यकभाष्य व भाष्य की शिष्यहिता वृहद्वृत्ति, पूर्ण, वि. १७५२, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६२७-१ (२८१) +२ (२३५, २५२) = ६२८. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों काही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., ( २६.५x११.५, १५X४४-४९).
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि;
आभिणिबोहियनाणं सुयना; अंति: जं चरणगुणट्ठिओ साहू, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंति: गो
सेसाणुओगस्स, गाथा- ३६८२, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १९७५, आदि: श्रीसिद्धार्थनरेंद्र, अंति: नमते प्रीत्यविच्छेदः, ग्रं. २८०००.
५७३२३. (+) प्रवचनसारोद्धारसूत्र वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७ची, मध्यम, पृ. २६०-१६ (१,९८,११३,२३९ से २४९, २५२ से २५३) - २४४,
प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२६.५x११, १७X५०-६३).
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि (-) अंतिः सुया तं विसोहंतु, द्वार- २७६, गाथा-१५९९, ग्रं. २०००, ( पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठांश हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: (-); अंति: (१) समृद्धिमासादयतु] ( २ ) गिरिजयतु तावदियम् ग्रं. १८०००, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र हैं. ५७३२४. (४) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३३-६ (९२, १४५, १४९, १७९, २०९,२११)+१(१)=२२८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ११X३०-३६).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: भिगमे सेतं जीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र - २७२, ग्रं. ४७५०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
५७३२५. (#) जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३०, भाद्रपद शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १७९, ले. स्थल. नारदपुरीनगरी, प्र. वि. कुल ग्रं. ५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३३०) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-४२).
२३७
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चवीस अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र- २७२,
ग्रं. ५०००.
५७३२६. (+४) रायपसेणीसुत्त सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७२-१ (१) १७१. पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है... ले. स्थल, नारदपुरीनगर, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, ५४४१).
"
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. नवकार अपूर्ण से व अंत के "अरहओ पासस्स, , पस्से सुपस्से पसवणी नमो" पाठांश नहीं है.)
राजप्रनीयसूत्र-वार्थ, मु. मेघराज, मा.गु. गद्य, आदि (-); अंति: (-), पूर्ण.
५७३२७. (+४) धर्मरत्नवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६९-३ (१,४ से ५ +१ (१३९) = १६७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११. १५४५८-६३).
धर्मरत्न प्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तिर्जगतोपि तेनास्तु, ग्रं. ९७००, (पू. वि. प्रारंभ से "म० केवलसं० प्रतयेस्य वोत्तर क्रियां" पाठ तक एवं "चिंतामणि गहित्तानिय नयराभिमु" पाठ से "णेइपोढ मंतव्य भावउ कत्तिबालं" पाठ तक नहीं है. )
५७३२८. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. २३८-७५ (३४,३८, ७७ से ७८,९० से ९१,१६८ से २३३,२३५ से २३७)=१६३, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X११, ६x२२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच व अंत के पाठांश
नहीं हैं.)
५७३२९. विवाहप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६२२ वैशाख शुक्त, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८४६+१ (५९१)=८४७, ले. स्थल. सुलतानपुर प्र. वि. पंचपाठ, प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४८) यावच्चंद्र रविद्योमि, (३७५) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा ज्ञवि, जैदे., ( २६.५X११, ११-१४x२९-३५).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्ब, अंति: संतिकरि तं नम॑सामि शतक-४१, सूत्र- ८६९, ग्रं. १५७५०.
भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत, अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्,
शतक-४१. ग्रं. १८६२६.
५७३३०. (+) ज्ञातासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६२, प्रले. ग. शांतिकुशल (गुरु ग. मानकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६.५४११.५, ६x४२).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: सीहेणं जाव संपत्तेणं, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, (वि. १७७४ फाल्गुन शुक्ल, ३, शनिवार, ले. स्थल. जीर्णदुर्ग ) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा वीरं जिनं०; अंति: र्ण थयो दसवर्गे करी, ग्रं. १०५००,
(वि. १७८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९)
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५७३३१. रायपसेणीसुत्त सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २०७, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ७३६०, दे., (२७.५X११.५, ५X३१).
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२३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० आमलकप्प; अंति: पस्सवणी णमोए, सूत्र-१७५, ग्रं. २०७९. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदिः (१)ते कालने विषे जे चोथ, (२)राजप्रश्नीय उपांग; अंति: तेह
भणी नमस्कार थाओ, ग्रं. ५२८१. ५७३३२. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२५-४(१८० से १८३)=२२१, जैदे., (२६.५४११.५, १८४६३-७०).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं., गद्य, आदि: अपारे किल संसारे; अंति: मता मे सैवमोदादिकृत्, ग्रं. १४५००. ५७३३३. (#) औपपातिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५४, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ४५००, अक्षरों की स्याही __ फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३७-४०).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. ३२५.
औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानम्य प्रायोन; अंति: व्यक्तार्थे एवेति, ग्रं. ११७५. ५७३३४. (+#) चित्रसेनपद्मावतीमहासती चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३९-१(१)=१३८, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३६) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२६४११, ५४३१). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: चारूनिर्मितम, श्लोक-१२३२,
(अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.)
चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्थे मनोहर सुंदर, अपूर्ण. ५७३३५. (+) सुदर्शना चरित्र, संपूर्ण, वि. १७४२, श्रावण कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६६+१(८३)=१६७,
अन्य. पं. कुशलसागर; पं. विनयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष अस्पष्ट है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४३६-४२). सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सुव्वयजिणं; अंति: विबुहस्सियासुइरं, उद्देशक-१६,
गाथा-४०५३, ग्रं. ४५००. ५७३३६. (+#) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १५७०, भाद्रपद शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ५८७, ले.स्थल. सुलतानपुर, प्रले. कीका
जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३२-३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उद्दिसिज्झंति, शतक-४१, सूत्र-८६९,
ग्रं. १५७५२. ५७३३७. (+#) ठाणांगसूत्र सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५७९+१(३३५)=५८०, ले.स्थल. पत्तन नगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४२६-३२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं भग; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०,
सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, ग. नगर्षि, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणतसुरासुरनाथ; अंति: सविधु नंदतु चिरं सा,
स्थान-१०, ग्रं. १४१००. ५७३३८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४९, आषाढ़ शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३७४, ले.स्थल. अहिपुर, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. १७५००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१६) भणजो गुणजो वाचजो, दे., (२५.५४११, १५४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: अहँतो ज्ञानभाजः; अंति: बोधाय
सुदीपिकेयम्, ग्रं. १५३००.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७३३९. (+) ठाणांगसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०३, ले. स्थल अणहिलपुर, प्रले. पं. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- त्रिपाठ. कुल ग्रं. १८०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६४११.५, ३-१८४५८-६२).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुवं मे आउस तेणं, अंति: अनंता पण्णत्ता, स्थान-१० सूत्र- ७८३, ग्रं. ३७५०.
स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवीर जिननाथ, अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या, स्थान - १०, ग्रं. १४२५०.
५७३४०. (+) उपदेशमाला सह अवचूरि व कथा, पूर्ण, वि. २०बी, जीर्ण, पृ. २७७-१ (१) - २७६ प्र. वि. संशोधित - त्रिपाठ., ., (२५x११.५, १०-१३३८-४२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन, अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४,
संपूर्ण.
उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: नत्वा विभुं सकलकामित, अंति: वाणी श्रुतदेवी, ग्रं. ७६००, संपूर्ण
उपदेशमाला - कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: चंचलेन विषय सुखेन, (अपूर्ण, पू.वि. कथा का प्रारंभिक पाठ
नहीं है.)
५७३४१. (") कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३४, प्र. वि. कुल ग्रं. ७३५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, १३X३२-४१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदंसेड़ ति बेमि, व्याख्यान- ९,
ग्रं. १२१६.
२३९
कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा., गद्य, आदि: कल्याणानि समुद्धसंति, अंतिः ते मोक्षफलदाई हुई. ५७३४२, (+०) भगवतीसूत्र सह टिप्पणक, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५०६+२ (२४६, ३६४) =५०८, प्र. वि. अबरख युक्त पत्र है.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, १३३७-४५).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: दिवसेणं उद्दिसिज्जति, शतक-४१,
सूत्र- ८६९. ग्रं. १५७५२.
भगवतीसूत्र - टिप्पण, मा.गु. सं., गद्य, आदि : शतक १३८३ उद्देशे १००; अंति: एक ही ८४ सत सतकनी, (वि. अंत मे शतक व उद्देशा का क्रमिक कोष्टक दिया गया है।)
५७३४३. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९४, चैत्र शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम,
"
पृ. २४८-१(१)+२(१३७,१७८) = २४९, ले. स्थल. जीर्णगढ, प्रले. पं. जीतरुचि (गुरु ग. गंगरुचि); गुपि. ग. गंगरुचि, अन्य रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, ७४४४). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: सेतं सव्वजीवाभिगमे प्रतिपत्ति- १०, सूत्र- २७२, ग्रं. ४७५०, (पूर्ण, पू.वि. पाठ-"भंत्ते तंजहा धम्मत्थिकाए एवंजहा पन्नवणाए" से है.)
जीवाभिगमसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीवनुं अभिगम कह्युं, ग्रं. १४०१५, पूर्ण.
(#)
५७३४४. । कल्पसूत्र सह सुखबोधिका टीका व तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८४९, मध्यम, पृ. १८८, कुल पे. २, ले. स्थल. पतन (पाटण), प्रले. ग. हेमविजय (गुरु मु. विबुधविजय); गुपि. मु. विबुधविजय, अन्य. पं. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. त्रिपाठ- द्विपाठ, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१२, १५X३८).
१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, पृ. १आ - १८३अ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदंसेह त्ति बेमि, व्याख्यान- ९,
"
ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र - सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर, अंति: प्रतीदमुवाचेति, ग्रं. ६५८०.
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२४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे नाम, तपागच्छ पट्टावली, पृ. १८३आ. १८८आ, संपूर्ण
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: मद्वीजयकसाया नीदावीक; अंति: वीद्यमान वीचरे छे. ५७३४५. (#) ज्ञाताधर्मकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९६, फाल्गुन कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २५५, प्र. वि. कुल नं. १३९१०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५ ७४४५).
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ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: सुयखंधो समत्तो, अध्ययन - १९. ग्रं. ५५००.
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: तेण कालि ते चुथि आरि; अंति: दशवर्ग संपूर्ण थया, ग्रं. ८५००.
५७३४६. (+४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १६५२, कार्तिक शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २०८-५(१६५ से १६९)+१(१७०)=२०४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३४३५).
""
दिसूत्र - अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. गद्य वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४४, (पू.वि. पाठ- "सिद्दरसविसिद्दस्सविस्ट्ठओ ससिस" से "चकंपिरेप्रोच्चै २० तावदभाषिष्टशिशु" तक नहीं है.)
५७३४७. (+#)
कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा व्याख्यान १ - ७, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७० + १ (१५९) = १७१, प्रले.ग. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ४-१५X३९-४३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिनाथ चरित्र तक है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ, सं., मा.गु., गद्य, आदि: तस्मिन् काले ते कालन, अंतिः (-), पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: स्मृत्वा श्रीमन्महा; अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. ५७३४८. (+) समवायांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६ फाल्गुन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १६१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
जैदे., ( २६.५X१०.५, ६X३२-३६).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउस तेणं भगवय; अंति: अज्झयणंति तिबेमि,
अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९, ग्रं. १६६७.
समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७३, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा, अंति: राजेन कृतोयं टबार्थः,
ग्रं. ४४७४.
५७३४९. (#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२, माघ शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १२९, ले. स्थल. मुनराबिंदर,
प्रले. मु. मनजी ऋषि (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि, लुकागच्छ); गुपि. मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, लुकागच्छ); मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. चापसीह ऋषि, लुकागच्छ); मु. चापसीह ऋषि (गुरु गच्छाधिपति जगजीवन, लुकागच्छ); गच्छाधिपति जगजीवन (गुरु आ. शिवजी, लुकागच्छ) आ. शिवजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. कुल ग्रं. ३६६७, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ५X४३).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंतिः अज्झयणंति तिबेमि,
अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९. ग्रं. १६६७.
समवायांगसूत्र- टवार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य वि. १७३, आदि देवदेवं जिनं नत्वा, अंतिः शब्द समाप्तने अर्थे, ग्रं. ४४७४.
"
५७३५०. (+) ज्ञाताधर्मकथा, संपूर्ण, वि. १६०१ फाल्गुन शुक्ल, १ मध्यम, पृ. १९४ दत्त. पं. सुगुणप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत् १८८१ माघ सुदि ५ तिथि को संभवनाथ जिन चैत्य, बालोचरपुर के ज्ञानभंडार को भेंट दिया गया., पदच्छेद सूच लकीरें., जैदे., (२६X११, ११३७-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंतिः सुयक्खंधो सम्मत्तो,
"
अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००.
५७३५१. कर्मग्रंथ ४ से ६, अपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. २९२- १०० (१ से १०० ) = १९२, कुल पे. ३, सम. श्रावि. जसमादे, अन्य. श्राव मांडण जसा साह, पठ. उपा. रत्ननिधान (गुरु आ जिनचंदसूरि, खरतर गच्छ); गुपि. आ. जिनचंदसूरि (गुरु आ. जिणेसरसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. १४०००, जैदे. (२६११.५, १-३X१७-४२). १. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १०१अ - १२३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
"
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि (-); अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं
"
,
गाथा-८६, (पू. वि. गाथा- ४२ से है.)
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: विचारणाचतुरः, ग्रं. २८००.
२. पे नाम. शतकसूत्र सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १२४अ २१३आ, संपूर्ण
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदिः नमिय जिणं धुवबंधोदय, अंतिः
""
२४१
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा- १००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविना अंतिः सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. ४३४०.
३. पे. नाम. सत्तरी कर्मग्रंथ सह मलयगिरीय टीका, पृ. २१४अ २९२आ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं, अंति: एगूणा होइ नवईउ, गाथा- ९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: अशेषकर्माशतमः समूहः अंतिः धर्मं परममंगलम्,
ग्रं. ३८८.
५७३५२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह प्रदेशटीका, पूर्ण, वि. १६२३, माघ शुरू, ८ रविवार श्रेष्ठ, पृ. १७१-१ (९)+१ (६६)=१७१, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६ १०.५, १ १६ ३५-४७).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन - १९, (पू. वि. प्रारंभ के सूत्र का अल्पांश भाग नहीं है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १९१२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर, अंतिः दशम्यां च सिद्धेयम् ग्रं. ३८००.
५७३५३. (+) कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६२-३ (५ से ६,७७) = १५९, ले. स्थल, राजनगर, प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५x११, १८४४५)
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंतिः उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं., प्रले. मु. वीरजी (गुरु पं. गुणचंद्र गणि); गुपि. पं. गुणचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य )
कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः तावन्नंदतु सापि हि, ग्रं. ७७००, (प्रले. मु. विवेकेंदु, पठ. मु. मनजी, प्र.ले.पु. सामान्य )
५७३५४. (+) संग्रहणी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४७, प्र. वि. यंत्र सहित, संशोधित, जैवे. (२७४१२,
३X२५),
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बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३९५. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नमः श्रीवर्द्धमानाय, ( २ ) नमिउं क० वांदीनइ, अंति: सर्व सुख पामइ. ५७३५५. (#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध श्रुतस्कंध - १, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३७, प्र. वि. मूल पाठ का अंशखं है, जैसे. (२६.५४११.५, ११४३९).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज, अंति: (-), प्रतिपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सद्गुरुन्, (२)एक दर्शनी इम कहइ; अंति:
(-), प्रतिपूर्ण. ५७३५६. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३६-६(१ से ५,५१)=१३०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६-१५४४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-),
(पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., महावीरजिन जन्मप्रसंग का कुछ अंश तथा अंतिम पाठांश नहीं है, वि. मूल
सूत्रपाठ प्रारंभ से है, इसके पहले के पीठिका संबंधी पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार; अंति:
मनोवाक्कायशुद्धितः, ग्रं. ५०००, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ५७३५७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२३-१(१)=१२२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पूर्ण,
पू.वि. अध्ययन-१ की गाथा१० अपूर्ण से है. सूत्रमहिमा दर्शक नियुक्ति गाथा अपूर्ण है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जंबू प्रतई कहई छई, पूर्ण. ५७३५८. चरित्रकथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१३-१०४(१ से ५९,६२ से १०४,१६० से १६१)+१(१९२)=११०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ८४४२-४६). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. नर्मदासुंदरी-ऋषिदत्ता कथा कथाक्रम-६ अपूर्ण से रतिसुंदरी कथा
कथाक्रम-३६ अपूर्ण तक है.)
कथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७३५९. (#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०-१(३७)=१०९, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४७-५७).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), (पृ.वि. अंतिम संवरद्वार ___"एवमिणं संवरदारं सम्मं संवरियं होति" अपूर्ण पाठ तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)अहो जंबू इणमो
कहता; अंति: (-). ५७३६०. (+) व्रतोपाख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-७(६८ से ७४)=१०१, कुल पे. २३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ११४३०-३५). १. पे. नाम. ज्येष्ठजिनवर व्रतोपाख्यान, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
व्रतोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: ज्येष्टं जिनं प्रणम; अंति: श्रुतसा०शुभदं समस्तु, श्लोक-८०. २. पे. नाम. आदित्यव्रत कथा, पृ. ५अ-१२आ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शिरसाहँत; अंति: श्रुतसागरः श्रिये, श्लोक-१६६. ३. पे. नाम. सप्तमपरमस्थानविधान कथानक, पृ. १२आ-२०अ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: विद्यानंद्यकलंकार्य; अंति: श्रुतसागर० मातरर्हसि, श्लोक-१६३. ४. पे. नाम. मुकुटसप्तमीव्रत कथा, पृ. २०अ-२३अ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसारदास्पदीभूत; अंति: श्रुतसाभवे च नित्यं, श्लोक-६९. ५. पे. नाम. अक्षयनिधानविधान कथानक, पृ. २३अ-२७आ, संपूर्ण. अक्षयनिधिव्रत कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: पूज्यपादाकलंकार्य; अंति: श्रुतसागरेण संमुदे,
श्लोक-८८. ६.पे. नाम. षोडशकारणोपाख्यान, पृ. २७आ-३०आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
षोडशकारणव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: अथ प्रणम्य तीर्थेश; अंति: चारु चकार सिद्ध्यै,
श्लोक-६८. ७. पे. नाम. मेघमालाव्रतोपाख्यान, पृ. ३०आ-३३अ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: समंताद्भद्रमहंत; अंति: श्रुतसागर सतां संपदे, श्लोक-५०. ८. पे. नाम. चंदनषष्ठि कथा, पृ. ३३अ-३७आ, संपूर्ण.
चंदनषष्ठिव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभाचंद्र पूज्यपादं; अंति: मलमंतर्जातमपनयति, श्लोक-९७. ९.पे. नाम. लब्धिविधानोपाख्यान, पृ. ३७आ-४०आ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीविद्यानंदिनं पूज; अंति: देयात्सतां मंगलं, श्लोक-५५. १०. पे. नाम. पुरंदरविधानोपाख्यान, पृ. ४०आ-४३अ, संपूर्ण.
पुरंदरव्रतविधान कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: उमास्वामिनमर्हत; अंति: सिद्ध्यंगना लालसः, श्लोक-६३. ११.पे. नाम. दशलाक्षणिक कथा, पृ. ४३अ-४६आ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतं भारती विद्य; अंति: भूयाच्च सत्संपदे, श्लोक-६७. १२. पे. नाम. पुष्पांजलिव्रत कथा, पृ. ४६आ-५०अ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: कवींद्रमकलंक० विद्या; अंति: श्रुतस्तार्किकैः, श्लोक-७१. १३. पे. नाम. आकाशपंचमीव्रत कथा, पृ. ५०अ-५५अ, संपूर्ण.
सूरि, स., पद्य, आदि: सुतं नाभेर्यशस्वत्या; अंति: श्रुतसागरेण संपदम्, श्लोक-१०५. १४. पे. नाम. मुक्तावलीविधान कथानक, पृ. ५५अ-५९अ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभाचंद्राकलंकेष्टा; अंति: शास्त्रं चिरं नंदतु, श्लोक-८१. १५. पे. नाम. निर्दुखसप्तमीविधानोपाख्यान, पृ. ५९अ-६१अ, संपूर्ण. ___ निर्दुखसप्तमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: विद्यानंद प्रभाचंद्; अंति: मेषद्योतयामास शिष्यः,
श्लोक-४४. १६. पे. नाम. सुगंधदशमी कथा, पृ. ६१अ-६७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुगंधदशमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: पादांभोजान्यहं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४४
अपूर्ण तक है.) १७. पे. नाम. रत्नत्रयविधान कथानक, पृ. ७५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-८४, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोकांक है.) १८. पे. नाम. अनंतव्रत कथा, पृ. ७५अ-७७आ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानमन; अंति: सागरः शं क्रियाद्वः, श्लोक-४८. १९. पे. नाम. अशोकरोहिणीव्रत कथा, पृ. ७७आ-८२आ, संपूर्ण.
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा पंचगुरुन् विद; अंति: श्रुतसागरेण सततम्, श्लोक-९६. २०. पे. नाम. लक्षणपंक्तितप: कथा, पृ. ८२आ-८४आ, संपूर्ण.
लक्षणपंक्तितप कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: विद्यानंदं प्रभाचंद; अंति: तप इदं प्रकटीचकार, श्लोक-४१. २१. पे. नाम. मेरुपंक्त्युपाख्यान, पृ. ८४आ-८७अ, संपूर्ण..
आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: चिंतयित्वा चिरं वीर; अंति: ढोसी चिरंजीवतु, श्लोक-४८. २२. पे. नाम. विमानपंक्ति उपाख्यान, पृ. ८७अ-९६आ, संपूर्ण. विमानपंक्त्युपाख्यान कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: पूज्यपादाकलंकार्य; अंति: शास्त्रं हितं नंदतु,
श्लोक-१७९. २३. पे. नाम. अल्पविधानव्रतोपाख्यान, पृ. ९६आ-१०८आ, संपूर्ण.
अल्पविधान व्रतोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीविद्यानंदिपाद; अंति: भूयात्पदं संपदः, श्लोक-२५५.
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२४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७३६१. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ९९,
ले.स्थल. धनेरा, प्रले. पं. प्रेमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४६२) मंगलं लेखकस्यापि, (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, दे., (२७४१२, ६-१९४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)अरिहंतने माहरो नमस्क,
(२)सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५७३६३. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६. ५७३६४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ५-१७४३०-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं पढम; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-७ पार्श्वनाथ १०
भव वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: चोंसठि इंद्रने; अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी ता; अंति: (-). ५७३६५. (+#) बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-२०(१ से २०)=४८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १०x२५-२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-५५ से स्थविरावली देवमणि क्षमाश्रमण
अपूर्ण तक है.) ५७३६६. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रावण शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२,
ले.स्थल. फलवर्द्धिकापुर, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७२७, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: श्लोकानामिह
मंगलम्, ग्रं. ६००. ५७३६७. (#) दीपालिकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४५६). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु वर्द्धमानस; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१४९ व क्षेपकगाथा-५ तक लिखा है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४० से
टबार्थ लिखा है.) ५७३६८. इकवीसठाणउ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. श्रावि. लछूबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, ११४३०).
२१ स्थान प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)चवणविमाणानयरी जणया, (२)१ श्रीआदिनाथ सर्वारथ;
अंति: शिखर सीधा सेणं भंते. ५७३६९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह सूत्रार्थदीपिका टीका, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७७-१(१)=२७६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५२-६५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (१)सम्मए त्ति बेमि, (२)पावइ णिज्जरा विउला,
अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., अध्ययन-१ की गाथा-३ से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२४५
उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., अध्ययन- १ गाथा- २ की टीका अपूर्ण से टीकाप्रशस्ति श्लोक - ९ अपूर्ण तक है.) ५७३७०. (+#) पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२८, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५x५०).
पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: श्रियं विश्वत्रयत्रा; अंति: ममहाकाव्यमेतद्धिनोतु, सर्ग - १८,
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ग्रं. ८०००.
५७३७१. (+) शत्रुंजय माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १९५६, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २१७, प्र. वि. यह प्रत संवत् १७७१ में आचार्य श्रीगुणचंद्रसूरि के शिष्य कल्याणचंद्रसूरि द्वारा वामांगजजिनप्रसादात् पाटण चातुर्मास में लिखित प्रति की प्रतिलिपि है, पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्लो. (११०८) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षे, (११०९) बद्धमुष्टि कटिग्रीवा, दे., (२७.५X११, १६x४२).
शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: रसांभोनिधि ग्रंथ एषः, सर्ग - १४,
ग्रं. १००००.
५७३७२. (A) उपदेशमाला सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९७, प्र. वि. संवत् १५९७ भाद्रपद सुदि ९ मंगलवार स्थंभगढ में श्री मसनदएली खानखाना के प्रवर्तमान राज्यकाल में छत्रदास कायस्थ माथुर द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) बादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (१११०) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२७X११, ११४३२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानजिनवर, ( २ ) जिणवरेंद्र श्रीतीर्थ, अंति: सिद्धांतप्राय जाणवी, ग्रं. ५००६.
५७३७३. (+) स्थानांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७६ वैशाख कृष्ण, १०, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. १८४, पठ. सा. रंभा, सा. चंदणा, सा. खुशाला (गुरु सा. जामा); गुपि. सा. जामा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - त्रिपाठ - द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५६७) यादृशं पुस्तके दृष्टं जैदे. (२६.५४१२ ३ १०४५२).
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स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदिः सुखं मे आउस तेगं भग, अंति: अनंता पण्णत्ता, स्थान- १०,
सूत्र- ७८३, ग्रं. ३७००.
स्थानांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीवीरजिनं नाथं, ( २ ) इहा सुधर्मास्वामी अंति: (१)ध्ययननी परि जाणवा, (२) श्रीप्रवचन दीवी नई.
५७३७४, (+) उपदेशमाला सह वालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७४-३ (१ से ३) १७१. पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५४११, १३x४२).
पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ से ५०३ तक है.)
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पुष्पमाला प्रकरण- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु, गद्य, आदिः (-): अंति: (-).
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पुष्पमाला प्रकरण-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दृष्टांत कथा-४ अपूर्ण से समरराजर्षि कथा क
है.)
५७३७५. (+) महानिशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें कुल ग्रं. ७५००, दे. (२५.५४११, ४४१८-३१).
महानिशीथसूत्र - हिस्सा अध्ययन ४-५, प्रा. प+ग, आदि से भयवं कहं पुण तेण अंतिः भवियव्वं तिबेमि
महानिशीथसूत्र का हिस्सा अध्ययन ४-५ - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: से० ते सुमति भ० हे; अंति: (१)नामे पाचमो अज्झयण, (२) राखवी एम कहुं छउ.
५७३७६, (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ श्रुतस्कंध २, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६०, अन्य मु. परागजी ऋषि, सा. अमरत बाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ५X३५-४० ) .
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, ग्रं. २६५४, (प्रतिपूर्ण,
वि. आचारांगसूत्र महिमादर्शक आलापकगाथा संलग्न है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइं इम हुंकहुं छउ, प्रतिपूर्ण. ५७३७७. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३४, ले.स्थल. खंभनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३५).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नवईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: (१)प्रणिपत्य पार्श्वदेव, (२)सिद्ध
कहता किणही खोट; अंति: (१)न लोहोत्तमतां दधाति, (२)नेव्यासी गाथा हुइ, ग्रं. ३४००. ५७३७८. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०१-९३(१ से ४९,७२,७४ से १११,१५९
से १६०,१८० से १८२)=१०८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रले.ग. अमृतविजय; पठ. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, ६-१७४२८-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वप्नफल कथन से आदिजिन चरित्र अपूर्ण
तक है. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७३७९. (+) वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९५९, आषाढ़ कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११५+२(५३,९१)=११७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४४०-५३).
वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: राजकीर्तिगणिना, उल्लास-१०. ५७३८०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिकावाला पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६-१८४३३-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार हुउ; अंति: बार बार उपदेसि बोलइ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ए महापर्व आवई हुतइ; अंति: उद्धरि नशीथ उद्धरवो, संपूर्ण. ५७३८१. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यानकथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९८, ले.स्थल. अणदपुर, प्रले. मु. चतुर (गुरु
मु. भागचंद ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. भागचंद ऋषि (गुरु मु. गेहाजी ऋषि); मु. गेहाजी ऋषि; अन्य. मु. कस्तुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ६-१८४४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (वि. १७६७, आश्विन शुक्ल, ११, शुक्रवार) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार हुओ; अंति: भलइ गुरूक्त जणाविउ, (वि. १७६७, कार्तिक
कृष्ण, ५, रविवार)
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: तो न्यात बाहिर करवो. ५७३८२. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३७-६४(३ से ६५,९९)=७३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. कल्पपीठिका अपूर्ण है व
माता त्रिशला स्वप्न वर्णन अपूर्ण से जिन उपमा वर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पन्नतं; अंति: (-). ५७३८३. (+) १८१ हुंडी बोल, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३१+२(१ से २)=३३, ले.स्थल. कृष्णगढ,
प्रले. श्राव. उमेदमल भंडारी; अन्य. श्राव. टीकमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. डोसी टीकमजी की प्रत पर से प्रतिलिपि की गयी है., संशोधित., जैदे., (२६-२६.५४११, १०४४०-४५).
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२४७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
१८१ हंडी बोल, आ. भीषणजी स्वामीजी, रा., गद्य, आदि: जे हलूकर्मी जीव होसी; अंति: छै ते तो विराधक छै. ५७३८४. (+) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावलीटीका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३९२, गुपि.ग. समयसागर (गुरु
ग. विमलसागर); ग. विमलसागर; अन्य. पं. थिरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ९४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति:
(१)पारतंत्र्यमभिहितमिति, (२)रमुष्या शतशः प्रतीः, ग्रं. ४८१४. ५७३८५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र व अध्ययन नाम, संपूर्ण, वि. १७५७, श्रेष्ठ, पृ. २२२, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६-१८४३८). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, पृ. १आ-२२१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः (१)वर्द्धमानं जिनं, (२)पूर्वसंजोग
मातापिता; अंति: एह वचन भाष्यकारनो, ग्रं. ११५८७. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर: अंति:
पद्मसागरैः०संत्विमाः, कथा-२४, (प्रले.पं.सौभाग्यकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययननाम सह टबार्थ, पृ. २२१आ-२२२अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: विणय१ परीसहर चउरंगी३; अंति: उत्तरायणै
पणीवयामी. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विनीताध्ययन१ परीसहा; अंति:
अध्ययनना नाम कह्याछइ. ५७३८६. पन्नवणासूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५४+१(३७)=१५५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १७४४७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३६ के अंतिम भाग
आंशिक अपूर्ण तक है.) ५७३८७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७०-१७(२,३२ से ३३,४७,७३ से ७५,८१
से ८२,८६ से ८८,९९,१०२,१११ से ११२,१४७)=१५३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२६४११, १३४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइं नमस्कार हो; अंति: उपदेसइति ब्रवीमि
कहइ, ग्रं. ५०००.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी ता; अंति: (-). ५७३८८. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, अपूर्ण, वि. १७९५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८१-२९(११७ से
१४५)=१५२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. मुनिसुव्रतस्वामि जीवन प्रसंग अपूर्ण से स्थविरावलि के पूर्वपाठ तक नहीं है.)
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२४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः अंतिः तावदतु सापि हि ग्रं. ७७००.
५७३८९. (+)
| उवाइसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११७, ले. स्थल, आगरा, प्रले. ग. सामल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१०.५, ७X२४).
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1
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, अध्ययन १० नं. ८९२. ५७३९०. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, पूर्ण, वि. १८४४, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १०७-२ (८५ से ८६)=१०५, ले.स्थल. जुडीया, प्रले. मु. किसनदास ऋषि, पठ. मु. खूबरतन (गुरु मु. किसनदास ऋषि); प्रले. मु. कीर्तिकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७.५४१०५, ५-१५४४२-४८).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. स्थविरावली के मध्य के आंशिक पाठ नहीं हैं.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: आगै एहवौ कहता हूआ . कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वंदामि भद्दबाहु, (२) अर्हत भगवंत उत्पन्न, अंति: अलिया
गलीया कीजे,
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५७३९१ (+) नंदीसूत्र सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९३ ले. स्थल. वेरावळबंदर, प्रले. मु. कर्पूरचंद्र ऋषि (गुरु आ. सोमचंद्रसूरि) गुपि आ. सोमचंद्रसूरि (गुरु आ शांतिचंद्रसूरि) पठ. मु. अमरशी ऋषि (गुरु मु. कर्पूरचंद्र ऋषि); श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ६-१३X३०-४१).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाई नामाई, सूत्र- ५७, गाथा - ७०० (वि. १८६७ आश्विन कृष्ण, १३. गुरुवार)
नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जय० विषय कषायादिक जइ; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा, (वि. १८६७,
कार्तिक कृष्ण, ६. शुक्रवार)
नंदीसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे ज्ञाननो स्वरूप; अंति: उतरी आवी विशाला लीधी, कथा-८८. ५७३९२. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान १ से ८ संपूर्ण वि. १८८३ माघ शुक्ल १०, मध्यम, पृ. ५६, ले. स्थल, स्वांणानगर,
प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५X११.५, ९३७-४१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
५७३९३. (+) शृंगारसप्तशती सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X१२, ५X४२-४५). शृंगारसप्तशती, क. बिहारीदास, ब्र., पद्य, आदि मेरी भव बाधा हरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-४९८ तक लिखा है.)
शृंगारसप्तशती - टवार्थ, मु. रूपविजय, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणिपत्व जिनं वीरं (२) मेरी कहतां माहरी भव; अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
५७३९४. (+) पुरंदरकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ११, प्रले. मु. पंचायण (गुरु मु. गांगा ऋषि): गुपि. मु. गांगा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५x११, १७४५३).
पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: वरदाई श्रुतदेवता अंतिः मिच्छामि दुक्कडं दीय, ढाल १२, गाथा - ३७२, ग्रं. ५१५.
५०३९५. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९९, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद
सूचक लकीरें क्रियापद संकेत, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२५x११.५, १३४३२)
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो विश्वनाथाय जन्मत; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम्, सर्ग -१२, ग्रं. ४७००.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७३९६. (+) आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति, भाष्य व मूलनियुक्ति भाष्य की टीका चतुर्विंशतिस्तवाध्ययन से सामायिकाध्ययन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. १५८-१ (२१) १५७, प्र. वि. अध्ययन- २ चतुर्विंशतिस्तवाध्ययन पहले तथा अध्ययन - १ सामायिकाध्ययन इस क्रम में व्यतिक्रम रूप से लिखा गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३x४०-४३).
१. पे. नाम. आस्रवत्रिभंगी यंत्र, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण, पे. वि. सटिप्पणक यंत्र.
आस्रवत्रिभंगी-यंत्र, पुहिं. सं., वं., आदि: विशेष शब्द का अर्थ अंतिः कार्मण १ विच्छित्ति
"
आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.)
आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा., पद्य, आदि (-): अंति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. बीच का पाठांश नहीं है.)
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू. वि. बीच का पाठांश नहीं है . )
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. बीच का पाठांश नहीं है.) आवश्यक सूत्र - नियुक्ति के भाष्य की टीका #. आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रति अपूर्ण, #, पू. वि. बीच का पाठांश नहीं है . )
५७३९७. (d) त्रिभंगीयंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६४, फाल्गुन कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५५, कुल पे ६ प्र. वि. अबरखयुक्त पत्र. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १०x६-४३).
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२. पे. नाम. बंधत्रिभंगी यंत्र, पृ. २७ आ-५४आ, संपूर्ण, पे. वि. सटिप्पणक यंत्र.
.
बंधत्रिभंगी - यंत्र, मा.गु., सं., यं., आदिः आहारकद्विक; अंति: एवं ९ विच्छित्ति.
३. पे. नाम, उदयत्रिभंगी यंत्र, पृ. ५४आ- ९७आ, संपूर्ण, पे. वि. मात्र उदयत्रिभंगी पर ही सटिप्पणक यंत्र. उदयत्रिभंगी-यंत्र, सं., मा.गु., पं., आदि: गुणस्थानरचना प्रकृति, अंति: री कार्मणयोगरचनावत्
४. पे नाम, उदीरणात्रिभंगी यंत्र, पृ. ९८अ ९९आ, संपूर्ण, पे. वि. मात्र उदीरणात्रिभंगी पर ही सटिप्पणक यंत्र.
उदीरणा त्रिभंगी-यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: अधानंतर उदीरणा, अंतिः त्रिभंगीसु जाणि लेणा.
५. पे. नाम. सत्तात्रिभंगी यंत्र. पू. १००अ ११९अ, संपूर्ण, पे. वि. सटिप्पणक यंत्र.
सत्तात्रिभंगी-यंत्र, सं., मा.गु. यं आदि सत्ताकर्मप्रकृति अंतिः कार्मणयोगरचनावत्
""
६. पे. नाम. भावत्रिभंगी यंत्र. पू. ११९ आ-१५५अ, संपूर्ण, पे. वि. सटिप्पणक यंत्र
भाव संग्रह- यंत्र, मा.गु. सं., पं., आदिः उपशमिकभाव १ क्षायिकभ अंतिः कार्मणयोगरचनावत्.
५७३९८. (+) ज्ञाताधर्मकथासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे.,
.
(२५.५X११, ६४३२-३६).
२४९
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन- ८ मल्लि अध्ययन अपूर्ण तक लिखा है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., गद्य, वि. १६९९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: (-), (अपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, सुदर्शन सेठ व थावच्चापुत्र अधिकार अपूर्ण तक लिखा है.) ५७३९९. (*) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका व टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९-२ (५९,६३) ११७, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. न्यानविजय गणि) गुपि. पं. न्यानविजय गणि (गुरु पं. पद्मविजय गणि) पं. पद्मविजय गणि (गुरु पं. चंद्रविजय गणि); पं. चंद्रविजय गणि; अन्य. पं. जिनविजय गणि (परंपरा पं. पद्मविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, ५-१५४३४).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहंताणं० पढमं अंतिः उबदंसेड़ ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर, अंति: (-).
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२५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार हओ; अंति: वली देखाडइंइम कहइ. ५७४००. (+) व्याश्रय महाकाव्य सह टीका-सर्ग १ से ८, संपूर्ण, वि. १५८२, मध्यम, पृ. ११३, ले.स्थल. विश्वलपुर,
प्रले.ग. हर्षसुंदर; अन्य.पं.लब्धिश्रुत गणि; मु. प्रमोदसुंदर (गुरु ग. श्रुतमाणिक्य); गुपि.ग. श्रुतमाणिक्य; राज्ये गच्छाधिपति हेमविमलसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.७५५८, जैदे., (२६.५४११, १८-२३४५३-८१).
व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: (१)श्रीभूर्भुवः स्व, (२)अर्हमिति
वर्णसमुदाय; अंति: (-), ग्रं. १०३२, प्रतिपूर्ण. ५७४०१. (+) जीवाभिगमसूत्र सहटीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-२४(१ से ४,७०,९५ से ११३)=९७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४४-५५).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पडिपत्ति १ सूत्र २ अपूर्ण से देवाधिकार अपूर्ण तक है.)
जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७४०२. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४८-५२(१ से ५,७१ से ११७)=९६,
प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अंतर्गत संवत् अंक हेतु मात्र १७ उपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ६-११४३२-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं
हैं., भगवान महावीर के जन्म के पश्चात् राजा सिद्धार्थ के द्वारा नगरसेवकों को दिए गए आदेश से लेकर स्थविर परंपरा
अपूर्ण तक नहीं है., वि. मूल सूत्रपाठ प्रारंभ व अंत के हैं, परंतु पीठिका व पुष्पिका के कुछ पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालि तिणे समयइ; अंति: स्वशिष्यनै हेतइं, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५७४०३. (+) कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १०४३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. व्याख्यान-९.
कल्पसूत्र-अवचूरि*,सं., गद्य, आदि: अत्राध्ययने त्रय; अंति: पारतंत्र्यमभिहितम्. ५७४०४. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७-३(१ से ३)=७४, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ७X४०-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवानंदा के द्वारा ऋषभदत्त ब्राह्मण से
स्वप्नफल पृच्छा के वर्णन से वर्षाकाल में साधु-साध्वियों के विहार-मर्यादा तक का वर्णन है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५७४०५. (+#) शतकत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७५, ले.स्थल. कणगेटी, प्रले. पंन्या. मनोहरकुशल (गुरु
मु.बुद्धिकुशल); गुपि. मु. बुद्धिकुशल (गुरु मु. चयनकुशल); मु. चयनकुशल (गुरु ग. प्रतापकुशल); राज्यकाल छत्रसींघ ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (१०७६) जब लग मेरु अडग हे, जैदे., (२५४१२, ४४३३). शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: यां चिंतयामि सततं; अंति: धर्म एको हि निश्चलः, शतक-३, श्लोक-३१७,
(वि. १८४३, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, रविवार, प्र.ले.पु. सामान्य) शतकत्रय-टबार्थ, य. रूपचंद, मा.गु., गद्य, आदि: जिण प्रतई हु चित्त; अंति: एक धर्म ही ज निश्चल, (वि. १८४३,
ज्येष्ठ शुक्ल, ९, सोमवार, प्र.ले.पु. सामान्य) ५७४०६. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रावण शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, ८-१९४३७-४१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जयड़ जगजीवजोणी विवाणओ, अंतिः समणुन्नाई नामाई, सूत्र -५७,
गाथा ७००.
नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ज० इतिंद्रियविषयकषाय, अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. ५७४०७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रावण कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. २३५, ले. स्थल. वढवाण, प्रले. मु. मनजी ऋषि (गुरु मु. नाथाजी ऋषि); गुपि. मु. नाथाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. गुर्जरखंड राजनगर में प्रारंभ करके झालावाड के वढवाण गाम में ग्रंथ पूर्ण किए जाने का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र. ले. श्लो. (१०७७) जाद्रस्यं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१०७८) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२७४११.५, ५४३३).
יי
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पढमं अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन - ३६. उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा संग्रह. मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु. गद्य, आदि संयोग बि प्रकार बाहू, अंतिः एह
,
वचन सत्य जाणवु.
५७४०८. (+#) नंदीसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २००- १ (११६) = १९९, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जीवे. (२६४११.५ ४ १२४३०-४७).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७,
गाथा - ७००, (पू.वि. नंदीसेण दृष्टांत का किंचित अंश नहीं है.)
नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अथ नंदीसूत्रनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा.
५७४०९. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, माघ शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले. स्थल. द्वीपबंदर, प्र.वि. नवलख पार्श्व प्रसादात्., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२, २-५x२६-२९).
२५१
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: उवदरिसितित्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १७०८, आदि: वर्द्धमानं जिन, अंतिः ए अधिकार ब्रवेमि. ५७४१०. (+०) प्रश्नव्याकरणसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २ मध्यम, पृ. १००, लिय श्रावि, रमी ताल्हण
अन्य. श्रावि. सुंदर सूर्यमल श्रावि. सुरताणदे सूर्यमल श्रावि. कउतिगदे करमसी, राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनराजसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४४५५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X१०.५, १५x५४).
प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: मप्ता ब्रवीमीति, अध्याय १०.
५७४११. (+०) कल्पसिद्धांतशास्त्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७४९, कार्तिक शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ९७, ले. स्थल, नवानगर, प्र. मु. शिवजी ऋषि (गुरु मु. केशवजी ऋषि); गुपि. मु. केशवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ७X३६-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पदमं अंतिः अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२२५.
कल्पसूत्र-टबार्थ, गच्छा. हेमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनई नमस्कार; अंति: ले गुरुभक्ति जाणिवुं,
ग्रं. ३०५०.
५७४१२.
. (+) सीताराम चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७९, प्र. वि. संशोधित - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, १५x५०-५५).
रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: समयसुंदर कल्याणो रे, खंड-९, गाथा - २४१२, ग्रं. ३७०४.
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२५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७४१३. (+#) विंशतिस्थानक विचारसार रास, संपूर्ण, वि. १७७६, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ६९,
ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. सौभाग्यविजय; पठ. ग. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नागोरीशाला मध्ये., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०७९) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षे, जैदे., (२६४११, २२४५१). २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल सिद्धि संपतिकरण; अंति: कहे
जिनहर्ष मलावोरे, ढाल-१३१, गाथा-३४०३. ५७४१४. (+) श्रीपालरास व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित.,
प्र.ले.श्लो. (१०८०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, १३४३९-४३). १.पे. नाम. श्रीपाल रास, प्र. १अ-५६आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति:
लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह, पृ. ५६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मध्यान ध्यावै नही; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२, प्रारंभ मात्र तक है.) ५७४१५. (+#) रामजसोधिकार, अपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६५-२७(५ से ७,१० से ११,१९ से ४०)=३८,
प्रले. सरदारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९-२१४६८). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंति: जपे सदा हरख
वधामणी, अधिकार-४ ढाल-६२, गाथा-३१९१, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-६, गाथा-२४ अपूर्ण से ढाल-७, गाथा-७२ तक, ढाल-९, गाथा-१८ से ढाल-११, गाथा-७५ अपूर्ण तक तथा ढाल-१८, गाथा-५५ अपूर्ण से
ढाल-३८, गाथा-७० अपूर्ण तक नहीं है.) ५७४१६. (#) वीशस्थानक विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५४४०).
२० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम थकी सुंदर वस्त; अंति: गुरु का नवांगी करे. ५७४१७. (+#) रत्नपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, अन्य. सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १४४३०-३५). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति:
सुरविजय जय जयकार, खंड-३ ढाल ३४, गाथा-७७४. ५७४१८. (+#) नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १०४३०).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे नवतत्त्वनां नाम; अंति: अजीवनै मिश्र कहिये. ५७४१९. (#) जीवविचार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १३४३५-४०). जीवविचार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: सरस वचन द्यो शारदा; अंति: ऋषभदास०
उछव थाइ जी, गाथा-५०२. ५७४२१. मृगांकलेखानो रास, संपूर्ण, वि. १८२५, माघ शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. मांडवी बिंदर, प्रले. मु. मनजी
ऋषि; अन्य. मु. प्रेमजी ऋषि; मु. भीमजी ऋषि (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, लुंकागच्छ); मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. चापसीह ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१२, १७४४४).
मृगांकलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: श्रीजिनवर हितकर सदा; अंति: कहे जिनहरष मुणिंद,
ढाल-४१, गाथा-८७६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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५७४२२. (+#) हंसराजवछराज चौपाई व औपदेशिक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १३x४४-५१).
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१. पे. नाम. हंसराज वछराज चौपाई, पृ. १अ-२२आ, संपूर्ण.
बच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु, पच, वि. १४९७, आदि: सकति संभूअ सकति अंतिः आसायत० कवि कहै, खंड- ४, गाथा- ४३७.
२. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: लहर लहर जीउ जाया तो; अंति: उसकी खबर न जाणी, गाथा-४.
५७४२३. (+) विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६८-४८ (१ से ३९, ४४ से ५२ ) = २०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४११, ११४४०).
"
विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-७, गाथा-५५ अपूर्ण से खंड -८, गाथा ३४ अपूर्ण तक तथा खंड-९, गाथा ८० अपूर्ण से चूलिका, गाथा- १३४ तक है.) ५७४२४. चोमासी व्याख्यान, संपूर्ण वि. १८९५ श्रावण शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल, सुजांणगढ, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १३x४०).
चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु. प+ग, आदिः प्रणम्य परमानंद, अंति: मिळामि दुकड देवो.
,
५७४२५. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८८१ श्रावण कृष्ण १२, रविवार, जीर्ण, पृ. २१-१ ( २० ) = २०, ले. स्थल. विवासर, प्र. मु. रत्नचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १३४३९).
चातुर्मासिक व्याख्यान, रा. गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामिदुक्कडं देवी (पू. वि. अतिचार का कुछ अंश अनुपलब्ध
"
है., वि. पत्र चिपके होने के कारण कृति का प्रारंभिक अंश अवाच्य है.)
५७४२६. (+#) पदमणी रास, संपूर्ण, वि. १७७२, माघ शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. कडीग्राम, प्रले. मु. आसक ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२७१२, १८४५५).
गोरा बादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण, अंति: सील सफल सुरकंद, खंड-३ ढाल ३९, गाथा- ७५१.
५७४२७. (#) सुरसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८९६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ७००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६५११, १५४४५).
""
सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि आदि धर्मनी करिया ए अंतिः कवियण० भणि आणंदपुरी,
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु.
अपूर्ण से १७ प्रारंभ मात्र तक है.)
ढाल - २१, गाथा - ५१७.
५७४२८. (+) ज्ञाताधर्मकथा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५- ६ (१ से ६) = १९, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२, ११४३४).
लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- १३
५७४२९. (+#) सुमित्रकुमार चौपाई व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १५X४०).
१. पे नाम. सुमित्रकुमार चौपाई, पृ. १अ १७आ, संपूर्ण
ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: पणमिसु मण तण वय करी, अंतिः तां लगई चिर जयवंत,
गाथा - ४१५.
२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १७आ, संपूर्ण.
मु. हंसमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: मन सुधिइ सुणि जीव, अंति: हंस०ए जिम तरीइ संसार, गाथा-८. ५७४३०. (+) चौपाई सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ३, प्रले. यादवीय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५, १५-१७४५४). १. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई. पू. १अ १७अ संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीयइ; अंति: मनवंछित फल
लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. २. पे. नाम. मालखाने चस्मकोरी सहटबार्थ, पृ. १७अ, संपूर्ण.
मालखाने चस्मकोरी, सरहग पेसमीरा, फा., पद्य, आदि: वखत कखोने मुस्तरी; अंति: पेसमीरा० सारिकव गीर,
दोहा-९.
मालखाने चस्मकोरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बृहस्पति मंगल शत्रु; अंति: बोलइ धूरत बुरी बोलइ. ३. पे. नाम. बारव्रत कुलक, पृ. १७आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रावकना सुणिज्यो; अंति: सुंदर० कहइ नित
साभलउ, गाथा-१५. ५७४३१. (#) चौरासीगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १३४३२).
८४ गच्छ पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमांनस्वामिनें; अंति: कुमारपाल राज्ये कृतं. ५७४३२. गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. अंतिम दो गाथा बाद में किसी ने पेन्सिल से लिखकर पूरी की है., जैदे., (२७४१२.५, १३४३३).
गजसुकुमालमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: रिठनेमिनामे हुया; अंति: ते लेसे भवपार रे, ढाल-१९. ५७४३३. (+#) अष्टदृष्टिस्वाध्याय सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६,
ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. मु. अनुपम सागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पल्लवियाजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ५-१९४४१-४९). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने
वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निरुपद्रव्य सुखनु; अंति: जगीस लीला पामस्ये.
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं; अंति: हेते लिख्यो छे. ५७४३४. (+#) स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४२६). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: प्रभु पांचमो
साहे, ढाल-८, गाथा-६०. ५७४३५. (+) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(६)=१५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदि करी चोवीसे; अंति: (-),
(पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-२, ढाल-३६ अपूर्ण से गाथा-४६ अपूर्ण तक व खंड-३, गाथा-४२४ से नहीं है.) ५७४३६. (+#) मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १६८१, चैत्र शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. २८-१३(१ से ८,१८ से २२)=१५,
ले.स्थल. नागपुर, प्रले. श्राव. वर्धमान मथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ११०१, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-१५४४८-५०). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (-); अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल
३७, गाथा-७४५, (पू.वि. खंड-१, ढाल-११, गाथा-२८ अपूर्ण से खंड-२, ढाल-१, गाथा-१ अपूर्ण तक व
खंड-२,ढाल-२, गाथा-३१ अपूर्ण से अंत तक है.) ५७४३७. (+#) पृथ्वीचंद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-१५४४६). पृथ्वीचंद्रनरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४७८, आदि: या विश्वे कल्पवल्लीव; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-४, अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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५७४३८. अंजणानो रास, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५०, दे. (२६४१२, १४४०).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदिः सील समो वर कोई नही, अंतिः सतीरे सिरोमणि गाइये, गाथा - १६०. ५७४३९. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१३ (१ से १२, २२) = १२, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशे पाठ-संशोधित., दे., (२५. ५X१२, १०X३० ). १. पे नाम, ध्यान विचार, पृ. ४ ध्यान विचार, मा.गु.
१३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
गद्य, आदि (-); अंति में तीनो भाग घटावे, (पू. वि. शुक्ल ध्यान अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. ५६३ जीव भेदविचार, पृ. १३अ १८आ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम सात नरक; अंति: १५ भेद मनुष्यना लाभै.
३. पे. नाम. एककोडि साढासत्ताणुंलाख कुलकोडि, पृ. १८आ-२१अ, संपूर्ण.
कुलकोटि विचार, मा.गु, गद्य, आदिः पृथ्वीकावनी बारे लाख, अंतिः गुणठाणा लाभै.
४. पे. नाम. लेश्या द्वार विचार, पृ. २१अ २५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ वर्ण २ रस ३; अंति: (-), (पू. वि. पद्मलेश्या द्वार अपूर्ण से पोत लेश्या द्वार अपूर्ण तक नहीं है व शुक्ल लेश्या द्वार अपूर्ण से आगे नहीं है.)
५७४४० (+) चित्रसंभूति प्रबंध व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२ कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१०.५, १५X४०-४७),
१. पे नाम. चित्रसंभूति प्रबंध, पृ. १अ १२आ, संपूर्ण.
मु. खेमो ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १७४६, आदि आदिपुरुष जगि आदिगुरु अंतिः सेवक सदा सुखकार, खंड-३. २. पे. नाम. जैनधार्मिक दोहा संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि देव सुगर भ्रम जिण अंतिः (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा का द्वितीय पाद अपूर्ण है.)
५७४४१. (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९७ मध्यम, पृ. ११, कुल पे २३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जीवे. (२६.५४११.५, १०४३५).
१. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि आज धकी में पामीयो रे, अंतिः कवियण० शांतिजिणंद, गाधा- ७.
२. पे. नाम. बाहुविहरमान स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब बाहु जिणेसर; अंति: जस कहे सुख अनंत हो, गाथा-५.
३. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
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मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउं रंग; अंतिः सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८.
४. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडो किमही; अंति: साचो करि जांणुं हो, गाथा-९.
५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहाळु रे; अंति: आनंदघन मति अंब, गाथा - ६.
६. पे. नाम महावीरजिन पद, पू. ३आ-४अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: वीर विना वाणी कोण, अंति: ज्ञानविमल गुण गावै, गाथा-८. ७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: सुख पोष लाल रे, गाथा - ५.
८. पे. नाम. अजितजिन स्तव, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति:
गाय
गाथा - ५.
९. पे. नाम. संभवजिन स्तव, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पच, वि. १७३०, आदि संभव जिनवर बीनती अंतिः वाचक जस० मन साचूरे, गाथा-५.
१०. पे नाम. सुमतिजिन स्तव, पृ. ५अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ गुणशुं मिली अंतिः तिम मुज प्रेम प्रकार, गाथा - ५.
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११. पे नाम, पद्मप्रभु स्तव, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभूजी रे जह, अंति: जस कहे० ठाम ठामोजी, गाथा ५.
१२. पे. नाम. अरजिन स्तव, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंति: स० गुण गाउंरे, गाथा-५
१३. पे नाम वीरजिन स्तव, पृ. ६अ, संपूर्ण,
महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह, अंति: जस० जीवन आधारो रे, गाथा ५.
१४. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदिः सफल घडी जी मोरी सफल, अंतिः शिवचंद० जोरी वंदन करी, गाथा-५.
१५. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोझो, अंतिः समय० वंदना वार हजारजी, गाथा ५.
१६. पे. नाम. जीव सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु, पद्य, आदि: सासननायक वीनवुं लागु अंति: आसो० समौ नही नाथ,
गाथा - ९.
१७. पे. नाम. समेतशिखर स्तव, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदिः आदीसर अष्टापद सीधा; अंति: भावे चैत्यवंदन करी, गाथा - ६.
१८. पे. नाम जीव सज्झाय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
जीवहित सज्झाय गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमां चिंतवे रे, अंतिः खीमा० मुगत मझार तो, गाथा- ९.
१९. पे नाम वीरजिन स्तव, पृ. ८ आ- ९अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: महावीरजी तुमारो ते द; अंतिः रूपचंद रस माणै, गाथा-७. २०. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ राजानो नंदन, अंतिः उदयरत्न० श्रीमहावीर गाथा ७. २१. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हमकुं ग्यान दियो; अंति: उदय० प्रभु मुझकुं, पद-७.
२२. पे नाम, जीवदया सज्झाय, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण.
दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करूं, अंति: विवेकचंद एह विचार, गाथा - २५. २३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १९अ ११ आ. संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर संदेसो मोकले; अंति: नित्य कहै नितमेव, गाथा-६. ५७४४२. (+#) विधि संग्रह-विधि मार्गप्रपा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५१-५४). विधिमार्गप्रपा, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ में पौषधविधि से तप उजमणा
विधि अपूर्ण तक है.) ५७४४३. सज्झाय स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १३, ले.स्थल. मांगरोल, प्रले. मु. गोरधन ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. सप्तव्यसन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: द्युतं च मांसंच; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ तक लिखा है.) २. पे. नाम. पगाम सिज्झाय, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनाभिनंदन जगतवंदन; अंति: पद्मसागर० मंगलकारिणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. द्वितीया स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, आ. विनयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर त्रिभुवनधणी; अंति: महिमा विनयसूरिंदजी ए, गाथा-४. ५. पे. नाम. चोवीसजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, आ. विनयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभादिक चउवीसजिण; अंति: विनयसूरि० गछ त्राता, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण
मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर जिणवर सेवै; अंति: गुणसागर०उदो करी माया, गाथा-४. ७. पे. नाम. सुविधिजिन पंचमी स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुबधिनाथ जिन जन्म; अंति: जेह तेहने सुखकरणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जिनेसरदेव; अंति: गुणसूरिंद जय जयवंती, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: करो अंबिक देवीयां, गाथा-४. १०. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ११. पे. नाम. आचार्य कल्याणसूरि स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
कल्याणसूरि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वीतरागपद वंदीयै; अंति: सागरसूरि कल्याणजी ए, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दशपुर मंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशपुरमंडण सोहै नवफण; अंति: राया तास
उदोकरी माया, गाथा-४. १३. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिने; अंति: जीनवर तेह मंगल करूं, गाथा-४. ५७४४५. (#) अंजनासती वसीयलरतननोरास, संपूर्ण, वि. १८०१, माघ कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,
ले.स्थल. धमोत्तर, प्रले. मु. हीरा ऋषि (गुरु मु. भीमराज ऋषि); गुपि. मु. भीमराज ऋषि (गुरु मु. नयणचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १९४५३-६६). १.पे. नाम. अंजनासुंदरीरास, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
अंजनासुंदरीरास-बृहद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै नें कडवे पाय; अंति: तिहां भवदुख जाय तो, गाथा-३०६.
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२. पे. नाम. सीयलरतननो रास, पृ. ७अ ९आ, संपूर्ण
शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु. पच, आदि पहिली प्रणाम करू; अंतिः वीनवै विजेदेवसूरि, गाथा - ७३. ५७४४६. (+#) प्रियमेलक प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की
"
स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १३४३५).
.
प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमं सद्गुरु पाय अंति समयसुंदर कहइ परमोद, ढाल ११, गाथा- २३०.
५७४४७. (#) सुभाषित संग्रह व शेत्रुंजय उद्धार, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. कुशलधर्म (बृहत्खरतरगच्छ) पठ. श्रावि परमधर्मणी बालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, ११X३४).
१. पे. नाम. सुभाषित लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक, सं., पद्य, आदि: अमृतं वदने सुजोषितं अंतिः (अपठनीय), (वि. किनारी खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.)
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२. पे नाम, शत्रुंजय उद्धार, पृ. १आ- ९आ, संपूर्ण,
शत्रुंजयतीर्थ उद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर मंडन, अंति: नयसुंदरो० दरसण जय करो, ढाल - १२, गाथा- १२६.
५७४४८. (+०) आराधना विधि व सम्यक्त्वालापक बारव्रत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५ १२-१४४४०).
१. पे. नाम. आराधना विधि, पृ. १अ - ९अ, संपूर्ण.
प्रा. गद्य, आदिः आलोइ सुअइयारेर अंतिः इत्यादि अनशनद्वारं.
"3
२. पे. नाम. सम्यक्त्वालापक बारव्रत, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: प्रथम इरिआवही अंतिः दंसणाभिग्रह तिबेमि
५७४४९. (+) गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. सुजाणगढ, प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२५x१२, १२x४८).
पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु. सं., गद्य, आदि: गुब्बरग्रामवासी वसु अंतिः विद्यमान जयवंता थाओ.
५७४५०. (+) उपधानविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. सुरत, प्र. वि. बीच में विधि कोष्ठक दिया गया है.,
संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१).
"
उपधानतप विधि, प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि: प्रथम शुभदिवस पोषध, अंतिः नित्धार पारगाहोइ. ५७४५१. मौनएकादशी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७X१२, १२X५०).
मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गजपूर पुरंदर, अंति: जिनवर चरणपंकज सुखकरं
५७४५२. (+#) आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (६) =६, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४११.५, १४X३०).
"
नवकार माहात्म्य, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सि; अंति: विषइ घणो उद्यम कीजइ.
५७४५३. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८६९, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. बीकानेर, प्र. वि. संशोधित., जैदे.,
(२७.५x११.५, १५४४६).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल - १३. ५७४५४. (+) वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे., (२५.५X१०.५, १४X३५-४०).
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वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनधर्म माहि दीपता; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ८ गाथा २४
अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२५९ ५७४५५. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजकोट, ., (२६x११.५, १३x१९-३४).
५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अति: अपज वसीए भवअभव आश्रे. ५७४५६. (#) प्रज्ञापनासूत्र पद-१३, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कालावड, प्रले. लीलाधर जीवाणी खत्री; पठ.सा. कसलीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४२६).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५७४५७. (+) श्रावक वंदितु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मैदपुर, प्रले. रामधन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२, १२४३१).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ५७४५८. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ३१४२४).
बोल संग्रह *प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. १४ गुणस्थानक, ५ ज्ञान आदि बोल संग्रह.) ५७४५९. (+) जीवना ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, २३४२१).
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १९८ देवताना ३०३; अंति: रूप सर्व जीव आश्री. ५७४६०. (+) कल्पसूत्र की अंतरवाचना, अपूर्ण, वि. १८०२, वैशाख कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६९-६३(१ से २,५ से
४९,५३ से ६८)=६, ले.स्थल. धमोत्तर, प्रले. मु. हीरा ऋषि (गुरु मु. भीमराज ऋषि); गुपि. मु. भीमराज ऋषि (गुरु मु. नयणचंद ऋषि); मु. नयणचंद ऋषि (गुरु मु. माधोसिंघ ऋषि); मु. माधोसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०-४५).
___ कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करइ इसी तरइ न विहरइ. ५७४६१. (#) अवंतीसुकुमाल चौपई व नेमनाथ नवरसो, अपूर्ण, वि. १८४३, माघ कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३०-४२). १.पे. नाम. अवयंतिसुकमाल चउपई, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख गुण गावैरे,
ढाल-१३, गाथा-१०३. २.पे. नाम. नेमनाथजीरो नवरसो, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक
५७४६२. (+) वीरजिनसत्तावीसभववर्णन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३२-३५). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: वीर जिनवर जय करो,
ढाल-११, गाथा-८७, (पू.वि. ढाल १, गाथा १६ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने ढाल संख्या लिखने में भूल की है.) ५७४६३. (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २७४१६).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७४६४. (#) मेतारजमुनि चौपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६.५४११, १६x४१).
मेतारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सासणनायक समरीयै; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १० गाथा ९ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७४६५. (+) पंचमहाव्रतादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१४५,
१०४३८). १.पे. नाम. पंचमहाव्रतनी सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवइरे; अंति: कांतिवि० धन अवतार रे.
ढाल-६, (वि. छटे व्रत की ढाल भी साथ में है.) २.पे. नाम. सुंदरीमहासती सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सुंदरीसतीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनी करउ पसाय; अंति: कांतीविजय०सिरनाम रे, गाथा- ८.
३. पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आप अजुआलजे आतमा ए तो; अंति: कहि लबधी विचार रे, गाथा- ६.
४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायरसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्म, आदि: बडली रे जीभडली तु अंतिः कहे सुण प्राणी रे, गाथा- ८.
५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरूआ भाइ ते गिरू; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.)
५७४६६. (+) शालिभद्र चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३० प्र. वि. संशोधित, जैये. (२७४१२, ११४३१-३५)शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहस्यही ढाल २९.
५७४६७ (+) प्रत्येकबुद्ध चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४-२ (२, ८* )=३२. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..
प्र. वि. लिखावट से ऐसा प्रतीत होता है कि दो अलग-अलग प्रतिलेखकों ने इस प्रत को लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३-१७३६-५०).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समबसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलड, अंति: (-), (पू.वि. खंड- १ की ढाल १ गाथा ५ अपूर्ण से ढाल २ गाथा ८ अपूर्ण तक के पाठ हैं व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५७४६८. (+) कर्मग्रंथ सह बालावबोध- १ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८-६ (१ से ६) =२२, कुल पे. ३,
प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७१२.५, १४४५४).
१. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ७अ १७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा - ६२, (पू. वि. गाथा १६ से है.)
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, उपा. हीरचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हीरचंद्र० लोकभाषाभिः. २. पे. नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १७अ - २७अ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी ९४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: बंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा - ३४.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, उपा. हीरचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: तेम श्रीमहावीर प्रति अंतिः श्रीमहावीर प्रति
नमउ.
३. पे. नाम. बंधस्वामी त्रीजाकर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. २७अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ तक है.)
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, उपा. हीरचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: जीव प्रदेशे करी कर्म, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ का बालावबोध अपूर्ण तक है.)
५७४६९. (+) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७८३, कार्तिक शुक्ल, १४ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३. ले. स्थल, कटा,
प्रले. ग. राजविमल (गुरु ग. रत्नविमल); गुपि. ग. रत्नविमल (गुरु ग. नित्यविमल); ग. नित्यविमल (गुरु ग. विवेकविमल); ग. विवेकविमल (गुरु ग. दीपविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले.. (५१०) यासं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे.... (२७X११.५, १४४४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२६१ मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
___ पदांबुजे; अंति: घर घर मे मंगलमाला है, ढाल-४७. ५७४७०. (+) भगवतीशतक २४ उद्धत बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १८४२४-६१).
भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७४७१. (+) श्रीपालचरित्र चतुर्थ खंड सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२८, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१२)=२२, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. हरिनारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१२,१३४३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान
विशाला जी, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., ढाल ७ गाथा १३ अपूर्ण से गाथा २३ अपूर्ण तक नहीं
है.)
श्रीपाल रास-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
__ अपूर्ण., ढाल १२ गाथा ११ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७४७२. (+#) शालिभद्र चौपई, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. मु. सिहमल्ल ऋषि (गुरु मु. फतेचंद ऋषि,
विजयगच्छ); गुपि.मु. फतेचंद ऋषि (गुरु मु. खेमजी ऋषि, विजयगच्छ); मु.खेमजी ऋषि (गुरु मु. मुकुंदजी, विजयगच्छ); मु. मुकुंदजी (गुरु मु. गांगजी ऋषि, विजयगच्छ); मु. गांगजी ऋषि (गुरु मु. सारंग ऋषि, विजयगच्छ); मु. सारंग ऋषि (गुरु मु. जिवराज ऋषि, विजयगच्छ); मु. जिवराज ऋषि (परंपरा मु. उदयसागर, विजयगच्छ); राज्ये मु. उदयसागर (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरीए; अंति: मनवंछित फल
लहिस्यइजी, गाथा-५११. ५७४७३. (+) चंपकशेठ दानाधिकारे अनुकंपा उपरे रास, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. मांडवी,
प्रले. मु. लाधाजी ऋषि (गुरु मु. आणंदजी ऋषि); लिख. मु. आणंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४४०). चंपकश्रेष्ठि चौपाई-अनुकंपादाने, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: जालोर मांहि जाणीयइ;
अंति: समय० भली वात बनाइ रे, ढाल-२९. ५७४७४. (+#) रामकृष्ण चतुपदी, अपूर्ण, वि. १७१६, चैत्र कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३३-६(१७ से २२)=२७,
ले.स्थल. महाजन, प्रले. पं. महिमासार (गुरु ग. धर्मकीर्ति); गुपि.ग. धर्मकीर्ति; प्रले. मु. मतिविलास (गुरु पं. महिमासार), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४५५). रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: जगत आदिकर जगतगुरु आद; अंति: लावण्य०
सुजस अखंड, खंड-६, (पू.वि. खंड २ ढाल ३ गाथा २२ अपूर्ण से खंड ४ ढाल २ गाथा १० अपूर्ण तक नहीं है.,
वि. ढाल-६८) ५७४७५. श्रीपालनृप रास व आदिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १७९७, चैत्र शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २,
ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. कुल ग्रं. ३६८, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३०-४०). १.पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
आदिजिन स्तवन, म. भावप्रभ, पुहिं., पद्य, आदि: मोबत आदिजिणंदसैं जोर; अंति: भावप्रभ० आस्या पूरण, गाथा-५. २.पे. नाम. नवपद सिद्धचक्रमहिमा-श्रीपालनृप रास, पृ. १आ-२४अ, संपूर्ण. श्रीपाल रास-लघ, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणम् जिनराय; अंति: सुणतां सदा कल्याण,
ढाल-२०, गाथा-२७२. ५७४७६. (#) नवततत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x११, ११४४६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः यथा स्थित साचतं जे अंति: अर्द्धमाहि मोक्ष जाई.
५७४७७. (+#) दंडकचउवीसना त्रीस बोल, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. भीमा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहासिंघजी प्रशादात् टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६X११, १५X४२-४६).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अंति: जावानो विरह जाणिवो. ५७४७८. (+) कयवन्ना चोपई, अपूर्ण, वि. १८४६, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ३०-११ (१ से ११) १९, ले. स्थल सत्यपुर,
प्र. ग. भावविजय (गुरु पंन्या. सत्यराज, बृहत्खरतर); गुपि पंन्या. सत्यराज (गुरु उपा. जयमाणिक्य, बृहत्खरतर);
उपा. जयमाणिक्य (गुरु वा. जिनजयगणि, बृहत्खरतर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसादात्. "चतुर्मासी तत्र सुखं कृता", संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१२, १२X३६).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: धरम करण मन उलस्य जी, डाल- ३१, गाथा - ५७०, (पू.वि. ढाल १३ गाथा ६ अपूर्ण से है.)
५७४७९. (+#) महादंडकना ३० बोल, पूर्ण, वि. १७१३, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २१ - १ ( ४ ) = २०, ले. स्थल. लाहानूर, प्रले. मु. हरखाजी (परंपरा गच्छाधिपति आसकरण); गुपि. गच्छाधिपति आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११. १४४४८-५२).
"
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडकर लेस्सार ठिती३ अंतिः मास ६ नउ आंतरड पडइ (पू.वि. गति आश्री विवेचन का पाठांश नहीं है.)
५७४८०. (+) चोथाकर्मग्रंथनो विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२ - १२ (१ से १२) + १ (२५) = २१, प्र. वि. संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैये. (२५.५४११.५, १४-१८४४०-५३).
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - मार्गणा विचार, मा.गु, गद्य, आदि: जीवठाणार मागणा२: अंतिः ८८ एवं सत्तास्थान, संपूर्ण. ५७४८१. (+) लघुदंडक बोल, संपूर्ण, वि. १९२५, आषाढ़ कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. वेरावल, प्रले. पा. गवशंकर
मूलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४११.५, ११४४२).
.
लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोगाहण संघयण, अंति: नथी सिद्धने जोग नथी.
५७४८२, (+) सभा सिंगार, अपूर्ण, वि. १७३१, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
ले. स्थल. नांदसमा प्रले. मु. डुंगरसी ऋषि (गुरु मु. करमचंद ऋषि); गुपि मु. करमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बीच के पत्रों में सुंदर व बड़े अक्षरों में प्रतिलेखन पुष्पिका लिखा है और स्वस्तिक है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११.५.
१९४५३).
पृथ्वीचंद्रनरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु, गद्य वि. १४७८, आदिः या विश्वे कल्पवल्लीव, अंति: (-), (पू. वि. रत्नमंजरी पट्टराणी स्थापी" पाठ तक है.)
५७४८३. जंबूस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २० २(१ से २ ) = १८, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२५.५४११.५,
१८४४७).
जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १७३८ आदि (-) अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ६ अपूर्ण से कलश गाथा १५ अपूर्ण तक है.)
५७४८४. (+) स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, कुल पे ८४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १५४५५).
१. पे नाम, चतुर्विंशति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
२४ जिन पद, मु. सुविधिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुज पर महर करो जिन, अंति: सुविधसागर सिरताज, गाथा- ३.
२. पे नाम ज्ञानगुदडी, पृ. १अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद - ज्ञान गोदडी, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: गुदडी प्यारी रे वाल्; अंति: मुक्ति महाफल चाखैरे, गाथा - ३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२६३ मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: समझि कै सिर धूल; अंति: ऐसो नफा रहै नहि मूल, गाथा-४. ४. पे. नाम. अजितजिन पद, प्र. १अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अजित जिन को ध्यान कर; अंति: कहत न आवै ग्यान कर,
गाथा-४. ५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: चरणकमल में चित; अंति: जगजीवन जिनराज ज्योरी, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहिं., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखं; अंति: धरत नित प्रत वंदा, गाथा-३. ७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जन्मोत्सव, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज महोछव रंगरलीरी; अंति: आस्या सफल फली
री, गाथा-५. ८. पे. नाम. समवसरण पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज गइती हुं समवसरणमा; अंति: मिलवो ते सुख
साचो रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुंही निरंजन तुंही; अंति: न हुवै भव फेरा रे, गाथा-३. १०. पे. नाम. आदिजिन जन्मबधाई, पृ. २अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-जन्मबधाई, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज तो बधाई राजा नाभ; अंति: रूपचंद घर मंगलमाल
रे,गाथा-४. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: कहीयै दीनदयाल तुम तो; अंति: द्यानत० न कोइ उतार, गाथा-३. १२. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जो तुम तारक नाम धराय; अंति: हरखचंद गहें की वहीयै, गाथा-४. १३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी तुम हो अंतर; अंति: चरण कमल चितरामी, गाथा-३. १४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. भूदर, पुहि., पद्य, आदि: भगवंत भजन कुं भूला; अंति: भूदर० सिर धूला रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: तोसुंजोरी प्रीत जिन; अंति: भक्ति भलि जलधोरी, गाथा-३. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मोतियन थाल भरकै करहु; अंति: लोह कंचन मोहि करकै, पद-४. १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. लखराज, पुहिं., पद्य, आदि: अहो मेरे जिनवर तिहा; अंति: लखराज धर्म विचारो, गाथा-२. १८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. मानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मे क्यौ करि भक्ति कर; अंति: विन सिवगति है तेरी, गाथा-३. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मोहा मन की हो बात; अंति: मुक्ति तणा सुख लहियै, गाथा-४. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: घोर परिसा सहिये भाई; अंति: आतमग्यान सुवहिऐरे, गाथा-३. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
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हिं., पद्य, आदि: पास जिनंदा मेरी निजर; अंति: दास चहित है दीदारा, गाथा-४.
२४. पे नाम, शांतिजिन पद, पू. ३आ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं जनम जुवा ज्युं; अंति: हरख० माहि चितार्यो रे, गाथा-४.
२२. पे, नाम, कुंथुजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण
कुंथुजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मधुकर मीत हमारे मन; अंति: मुक्ति रमन भरता रे, गाथा-५. २३. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण
साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं, पद्य, आदि: खतरा दूर करना एक अंतिः ग्यान० परम हित करणा, गाथा-३. २५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं, पद्य, आदि: अणीयावे चरखा चलता, अंति: होयगा भुवस मुझ सवेरा, गाथा-५.
२६. पे. नाम. आत्मोपदेश पद, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो आतम अति अभिमानी, अंतिः अब श्रीसार पिछानी हो, गाथा-७. २७. पे नाम, परनारी परिहार पद, पृ. ४अ संपूर्ण
परनारी परिहार सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयना अटक मानै नाहि र, अंति: रंग० भवजल पार करा है,
गाथा - ३.
२८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी थे कांई हठ माड; अंति: वसस्या मुगति के पास, गाथा - ६.
२९. पे नाम. समेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ४अ संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि: लग लग गइ लगन हमारी, अंति: अनुरागी न की बलिहारी, गाथा-४.
३१. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. वृंदावन साह, पुहिं., पद्य, आदि: समेतसिखर चल हो जियरा; अंति: सुख पावै
जियरा, गाथा ४.
३०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ते नरभव पाय कहा कीयो, अंतिः रूपचंद० आणु पर्यो, गाथा ४.
३२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि में जोति सरुपि ध्याइ, अंति: तुमही सुं चित लायनी, गाथा ४.
"
३३. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण,
मराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं, पद्य, आदि: नेमजी नवभव की में अंति: नेमीसर की चेरी हो, गाथा-३. ३४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मराजिमती स्तवन, मु. गजानंद, पुहिं, पद्य, आदि; आहे हो पिया गरज वादन, अंतिः विनवत राजल अरज, गाथा ३. ३५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माई उमड घुमड, अंति: (-), गाथा-५.
३६. पे नाम. ४ विकथानिवारण पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि वृधा करम बांधत जीउ, अंति में करो भवभव सुखकारी,
गाथा - ३.
३७. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: समझ रे नर जीवन थोरो; अंति: रूपचंद० बूझ भयो भोरो, गाथा-४.
३८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. साधुकीर्ति, पु,ि पद्य, आदि आज रीषभ घर आवे तुम अंतिः साधु कीरत गुण गावे, गाथा-३. ३९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पू. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि देख्यो री सुखकार, अंतिः जग के एहि आधार, गाथा-३,
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४०. पे नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चरण सर नत कियो सु; अंति: भव दुख वहु बतायो, गाथा-५. ४१. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. भुधर, पुहिं., पद्य, आदि: देख्यो री कोई नेम; अंति: जाय चढी भुधर गिरनार, गाथा- ४.
४२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. धर्मपाल, पु,ि पद्य, आदि: काहें जीव डरे दुख सु; अंतिः धरमपाल० विध अरजी करै, गाथा-३.
४३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण
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पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तुम विना कौन, अंतिः देखि निज दास ओरी, गाथा-३.
"
४४. पे नाम, माया पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: गुण गंधर्व
गाय, गाथा-८.
४५. पे. नाम. माया पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं, पद्य, आदि सुनि ठगनी माया ते सब, अंतिः भूदर० ताकुं सीस नमाया, गाथा-४.
४६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. जैराम, पु,ि पद्म, आदि: दिल महिर न आनी तजि अंति: गावे जैराम वाणी, गाथा-३,
४७. पे. नाम नेमराजिमती रेखता, पृ. ६ अ-७आ, संपूर्ण
राजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदिः व्याहनेकुं खूब आया, अंति: लालविनोद० का भया है, सवैया-४ (वि. गाथा १२.)
४८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पु,ि पद्य, आदि घडी दिन आज की एही अंतिः नवल० घर लील सवाया, गाथा-३.
४९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: कीजै आराधना तेरी हीय, अंति: नवल चेला तुम्हारा है, गाथा - ५.
५०. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सेतुंजानो वासी, अंतिः नयविमल० भव पार उतारो, गाथा-३, (वि. गाथांक अशुद्ध है.)
५१. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पु.ि, पद्य, आदि हेली नेमीसर चलो देखे; अंतिः हरख ही में समाए गाथा-४.
५२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८अ संपूर्ण.
मु. भुदर, पु,ि पद्म, आदि: तुम विन वैद्य ओर नहि अंतिः भुदर चरन तुमारी, गाथा- ३.
"
५३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८ अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: इस पुद्गलदा कुन विसव, अंति: जब लग घट में स्वासा, गाथा-४. ५४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८अ संपूर्ण.
मु. द्यानत, रा., पद्य, आदि: मानोसां बतीया इह देह, अंति: धानतः आणो छतीया, गाधा- ३.
५५. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: दिल मेडा पातस्याहा, अंति: यह जीव कायम रहंदा, गाथा- ३.
५६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिनपास वडे धमचकव, अंति: नवविमल० निसान बजाउंगा, गाथा ६.
५७. पे नाम, शांतिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सांतिनाथ प्रभु तेरी, अंति: सिवसुख देहु सवायो, गाथा ४.
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५८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
मु. दया, पुहिं, पद्य, आदि: तोरनसुं रथ फेरीयो, अंतिः दवा० सिवसुख दाव री, गाथा- ३. ५९. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, पुहिं, पद्य, आदि: तुम उपरि जाउं मे अंतिः न्यायसागर सुखकारी वे, गाथा-३. ६०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
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पुहिं., पद्य, आदि: नेहतोसाढेनाल लग्या; अंति: वंदन वामाजी के लाल, गाथा-३.
६१. पे नाम. नेमराजीमति बारमासो, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण
नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजल इणपरि वीनव; अंति: अविहड जे रीत रे,
गाथा - १३.
६२. पे. नाम. गुरुहित सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
गुरुगुण गहुंली, मु. भूधर, पुर्हि, पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसे, अंतिः तक चढो भूधर जपै तेह, गाथा- १४. ६३. पे. नाम. नेमनाथजीरो रास, पृ. १०अ १२अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाय प्रणमी करी; अंति: हुई नेमजिणंदक, गाथा ६३. ६४. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण,
नेमिजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चरन रह्यो चित्त ललचा; अंति: हरखचंद० तै नहि जाय, गाथा- ३. ६५. पे. नाम. शांतिनाथजी तीर्थंकर स्तवन, पृ. १२ अ- १२आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिणेसर शांत; अंति: सिद्ध श्रीसंघ धेरै, गाथा- १३. ६६. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस जिनेसर जग जयवंता; अंति: जिनज०म जीन दीस, गाथा ५.
६७. पे. नाम. सुजातजी गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण.
सुजातजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं गति तुं मति तूं अंतिः तोहिज रहसे लाज, गाथा-५. ६८. पे. नाम. वीशालस्वामी गीत, पृ. १२आ - १३अ, संपूर्ण.
विशालजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आपन पै आवी हूं न सकु; अंति: करज्यौ काज संभालजी,
गाथा-५.
६९. पे नाम. सूरप्रभु गीत, पृ. १३अ संपूर्ण.
सुरप्रभजिन स्तुति, आ, जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि कीजै छै जेहना सहजी अंतिः जिनराज० इणपर बोले एह,
गाथा-५.
७०. पे नाम, वज्रधर गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण.
वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: एक सबल मननो धोखो अंतिः जिनराज० सरसवनो फेररे, गाथा ५. ७१. पे. नाम. चंद्रानन गीत, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण.
चंद्राननजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सामाचारी जुइ जुइ रे; अंति: भांजे भव भ्रांतो रे, गाथा-५. ७२. पे. नाम. भुजंगस्वामी गीत, पृ. १३आ, संपूर्ण.
भुजंगजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: सामि भुजंगम ताहरो अंति तूं मणिधर जिनराज, गाथा-५. ७३. पे नाम, देवयसा गीत, पृ. १३आ, संपूर्ण
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देवयशाजिन स्तवन, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: सें मुख साहिबनै मिल्; अंति: सकै दीठानी हूवै लाज, गाथा-५. ७४. पे नाम, पार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन पद- पुरुषादानीय आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन गमतो साहिब मिल्यौ, अंतिः चडैयन बीजो चित्तन रे, गाथा-५.
.
७५. पे. नाम. महावीरस्वामी गीत, पृ. १४ अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२६७ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: भविक कमल प्रतिबोधतो; अंति: जिनराज० आप समानोरे,
गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने चार पद की गणना से परिमाण लिखा है.) ७६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन कलश, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: इण पर भाव भगत मन आणी; अंति: जिनराज० दोलत पावैरे,
गाथा-५. ७७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: तरे जेह रहै पासै, गाथा-५. ७८. पे. नाम. पदमप्रभुजी गीत, पृ. १४आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीयो किरतार भणी; अंति: जिनराज० घर याहीरीत,
गाथा-५. ७९. पे. नाम. वासुपूज्यस्वामी गीत, पृ. १४आ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: एम जपे जिनराजोरे, गाथा-५. ८०. पे. नाम. विमलनाथजी गीत, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतरु फल्यौ; अंति: जिनराज देव प्रमाण, गाथा-४. ८१. पे. नाम. शांतिनाथजी गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काल अनंतानंत भवमांहि; अंति: जिनराज जिम वेली वधैइ,
गाथा-५. ८२. पे. नाम. नमीनाथजी गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभली रे सांमलीया; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. ८३. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हरखकुशल, रा., पद्य, आदि: रमण आठे अति भली आवती; अंति: नित प्रति जंबस्वामि,
गाथा-९. ८४. पे. नाम. धना सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण.
धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो ऋषि वंदीयै; अंति: नाम थकी निस्तार रे, गाथा-७. ५७४८५. (+) बावीसपरीसह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-११(१ से १०,१४)=१२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १४४३५-३८).
२२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा १४ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) ५७४८६. (-#) नवतत्त्व का बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(११)+१(७)=१५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१२, १३४३६-४०). नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतीथ१ अजीवतीथर पुन; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५७४८७. (+-#) मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-१०(१ से १०)+१(१८)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ११-१३४३३-३६). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २०२ अपूर्ण से ५९७
अपूर्ण तक हैं.) ५७४८८. (+#) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३३-४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: वंछित फल लहिस्यै
जी, ढाल-२९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२६८
५७४८९. (+) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. श्रीतालनगर, प्रले. मु. मानजी ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११.५, १४४४४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु, पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई: अंतिः वंछित फल लहस्यै जी, ढाल - २९.
५७४९०. पंचमीतपविषे गुणमंजरीवरदत्त चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१-५ (१ से ५) =१६, जैदे., (२७४११, १२x२९-४०).
वरदत्तगुणमंजरी चौपाई - ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: आणंद हुवै तस चितै जी, ढाल - २१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-६ गाथा - ९ अपूर्ण से है.) ५७४९१. (+) प्रत्येकबुद्ध चौपाई १ से २ खंड, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १४. प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १५५, जै.. (२६५११, १३x४४).
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४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पच, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलङ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण
५७४९२. (*) नयस्वरूप का वालावबोध व तेरापंथ चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२६.५X११.५, ११X३७).
१. पे. नाम. नयस्वरूप, पृ. १अ -१३आ, संपूर्ण.
नयचक्र - भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदिः स्यात्कारमुद्रिता, अंति: मतिच० परोपकृतिहेतवे.
२. पे. नाम. तेरापंथी भीखणमत चर्चा - प्रश्नोत्तर, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण.
तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: छ लेस्या हुति वीरके, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्रमत्त विशेष" तक लिखा है.)
५७४९३, (+०) चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-२८ (१ से १९,३१ से ३६, ३९ से ४१) १४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १८४५८).
चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: सफल फली सवि आस, खंड-६, (पू.वि. खंड-३, ढाल ६ की गाथा-७ अपूर्ण से है. वि. डाल- १०३)
५७४९४. (+) नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-५ (१ से ५) ०५, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १६३७-४०).
नेमराजिमती रास, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. डाल-८ की गाथा-३ अपूर्ण से ढाल १३ की गाथा- १८ अपूर्ण
तक है.)
זי
"
५७४९५. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-४ (९ से १२ ) - ९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२६.५४१२, १२४३४).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान तीर्थं अंति: (-), (पू. वि. पट्टावली ५० अपूर्ण से विजयहीरसूरि अपूर्ण तक व अंत के पाठांश नहीं हैं.)
५७४९६. नवतत्त्व के बोल, संपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. वेरावल, प्रले. श्राव. सवचंद करसनजी;
पठ. श्राव. जगजीवन झवेरचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (१०८८) पत्र बार नवतत्वनां, दे., (२७X११.५, १७५०). नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकि सम्यग्दृष; अंति: होइ तेमाथी मोक्ष जाइ. ५७४९७ (+) प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४- १ (१) १३. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अशुद्ध पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२८x११.५, १९४४५)
"
"
प्रदेशीराजा रास मा.गु, पद्य, आदि: (-): अंति: (-).
*,
.
५७४९८. रणसिंहराजा कथा, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रावण शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. राजविजय (गुरु पंन्या. रुचिविजय); गुपि पंन्या. रूचिविजय (गुरु पंन्या. रूपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १६x४३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रीउपदेशमाला; अंति: सुख संपदा पामइ.
५७४९९. (+) दलपतराय प्रश्नोत्तर संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे.,
1
(२७१२, २३४१८).
सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धत्व सवसंजलया, अंतिः जिन सब्द ठहराववो. ५७५००. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १७३६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १२- २ (४,११) = १०, ले. स्थल. उग्रसेननगर, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४११.५ ९४३१).
"
स्तवनचौवीसी, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतदेवी समरी करी; अंति: लालविजय० पुहती आस, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन- ८ से स्तवन- ९ व स्तवन- २२ गाथा- २ अपूर्ण से स्तवन- २४ गाथा-१ तक नहीं है.) ५७५०१ (१) प्रत्येकबुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-७(११ से १७) = ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १७X५३-५९).
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५७५०२. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, जैवे. (२६४१२, १३४४५).
"
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलङ, अंति: आनंद लील विलास, खंड-४ ढाल ४५, गाथा - २५०, ग्रं. ११२०, (पू.वि. खंड- ३, ढाल - ८, गाथा - १५, दुहा- ५ अपूर्ण से खंड४, ढाल - ८, गाथा- ८ अपूर्ण तक नहीं है.)
प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सरु पाव अंति: पुन्य
२६९
अधिक सुख थाय, ढाल ११, गाथा - २२०.
५७५०३. (+०) दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६११, १३४३३)
"
दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदिः आमराजाधी बपभट्टसूरि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
"
अपूर्ण. बावीसवीं कथा अपूर्ण तक लिखा है.)
५७५०४. सीता रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७०-६० (१ से ५,८ से ३८, ४६ से ६९) = १०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे.,
(२७.५X१२, १०x२९).
सीतासती रास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ६२ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक व ५३५ अपूर्ण से ६५१ अपूर्ण तक है.)
५७५०६. जंबूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., ( २६ ११.५, १७x४२).
५७५०५. (+#) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२- १ (१) = ११, पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १६x४०-४५).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-) अंति: (-). ( पू. वि. गाथा-८ अपूर्ण से गाथा- १४८ अपूर्ण तक है.)
जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २९० तक लिखा है.)
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५७५०७. सवैचा व कुंडलिया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४३ आश्विन शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ११-१ (१) १०, कुल पे. ४, ले. स्थल. मलेरकोटला, दे., (२७.५X१२, १४X१७-३१).
१. पे. नाम. जीवदया सवैचा, पृ. २अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. कृपाराम, पुहिं., पद्य, वि. १९३२, आदि: (-); अंति: कृपाराम० नीत पालजो, गाथा - २६, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ५आ- ९आ, संपूर्ण
पुहिं, पद्य, आदि मुलायज दाम देइ जोरसु, अंतिः तो क्युं तज अणगारजी, गाथा- १७.
३. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
महासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: गीसती के घर साधने, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.)
४. पे. नाम. साधु आचार कुंडलिया, पृ. ११ अ ११ आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
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२७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सा. नेनसी आर्या, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति रहे न्हीनसी तए इधकार, गाथा २१ (पू. वि. गाथा- १४ अपूर्ण से है.) ५७५०८. बोलठाणा, अपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक कृष्ण, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८-७ (१ से ६, १०) =११, ले. स्थल. पोखरजी, जैदे. (२७११.५, २१४३९).
स्थानांगसूत्र- बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः महावीदेह० सिज्झसी (पू. वि. स्थान -५ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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५७५०९. (+#) पंचदंड चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की गयी है, जैदे., (२६X११.५, १८४५९).
पंचदंड चौपाई, मु. राजऋद्धि, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: जब पास जिराउल जगम, अंति: पामै अष्टमहासिधि, ढाल - ५ आदेश, गाथा- ४१८.
५७५१०. समकित सड़सठ बोल सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, दत्त श्राव. नेमचंद्र गुलाबचंद्र, गृही. मु. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१२, ७३०).
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी अंति वाचक जस इम बोले रे, ढाल -१२, गाथा-६८.
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५७५१२. (+) चौविशजिन वर्णन कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६.५४१२, १०-१६४१४-५२). २४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को.. आदि (-); अंति: (-). ५७५१३. मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, दे., ( २६.५x११.५, ३१-३४४१८-२५).
१०३ जीव भेद विचार- ६२ मार्गणा यंत्र, रा. पं., आदि: (-); अंति: (-).
1
५७५१४. (#) बारभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२, ११४३४). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: वन भी जेसलमेरू मझार, ढाल १३, गाथा- १२५, ग्रं. २००.
५७५१५. (#) जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १९X३८). लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल * संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लाख, अंतिः हजारने नेऊ नदीउ थई. ५७५१६. रात्रिभोजन रास व सीमधर स्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-५ (१ से ५ ) = ८, कुल पे. २, जैदे.,
3
(२५x११, १४४३५-४२).
१. पे नाम, जयसेन चौपाई रात्रिभोजन विषये, पृ. ६अ १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धि संपद ते लहई, गाथा - २५५, (पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन- विज्ञप्ति, पृ. १२आ- १३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदिः स्वस्ति श्री पुः कलवत अंति: (-), (पू. वि. ढाल ३, गाथा. ९ अपूर्ण तक है.)
५७५१७. (+) शत्रुंजय रास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित, दे. (२६१२.५, १०x३१).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: सुणतां आनंद थाय, ढाल - ६, गाथा- ११२.
५७५१८. (४) समुद्रवाहण विवाद रास, संपूर्ण वि. १८११ चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. पं. मुनिविजय (गुरु आ. विजयक्षमासूरि); गुपि. आ. विजयक्षमासूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६१२. १७x४७-५४).
समुद्रवहाण संवाद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीनवखंड अखंड गुण अंति: उपदेश चढ्यो सुप्रमाण, ढाल १७, गाथा-२८६.
५७५१९ (+४) भगवतीसूत्र २६ बंधद्वार, संपूर्ण वि. १८९१ मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३X३८).
बंधशतक-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस८ पखी२; अंति: बीजो भांगोला .
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२७१
५७५२०. (#) नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. जेतपुर, प्रले. मु. प्रागजी ऋषि, पठ. श्रावि. जुठीबाई; अन्य. जगदीश; श्रावि. माणकबाई, श्रावि. मोतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गय है, जैदे., (२७१२, १४X३४).
नवव चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहंतना पायि अंतिः वरसिंह० चित मे धरी,
गाथा - १६७.
५७५२१. (क) शत्रुंजयनामप्ररूपणा कथा व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०- १ (१) = ९, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १९३९).
१. पे नाम, शत्रुंजयनामप्ररूपणा कथा, पृ. २अ ५आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
शत्रुंजयतीर्थनामप्ररूपणा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अखंड राज्य पाले छे, (अपूर्ण, पू. वि. प्रारम्भिक पाठांश नहीं हैं.)
२. पे. नाम बोल संग्रह, पृ. ५आ- ९आ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-).
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५७५२२. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण वि. १९३६, चैत्र शुक्ल, १४ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे. (२६.५४१२, ९३३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल - ४, गाथा - १०१, ग्रं. १३५.
५७५२४. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७-१९ (१ से १९) = ८ कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५. १५४३६).
१. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नित नित मंगल उदय करो, गाथा- ४६, (पू.वि. अंतिम चार गाथाएँ हैं.) २. पे. नाम. वैराग्य गीत, प्र. २०अ संपूर्ण.
पदेशिक सज्झाय मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि; भूलो मन भमरा कांई, अंतिः मुहम्मद० साहिब हाथ,
गाथा - ९.
३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि: वेसाखे वन मोरिया अंतिः बुं पुहता मुगति आवास, गाथा- १४.
४. पे. नाम. शीतलनाथ गीत, पृ. २१अ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा. पच, आदि: मोरा साहेब हो; अंतिः समयसुंदर ० जनमनमोह ए. गाथा- १५.
"
५. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २१-२२आ, संपूर्ण, वि. १८१७, आश्विन शुक्ल, १५, प्रले. पं. क्षेमचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. वास्तव में शत्रुंजयतीर्थ स्तवन हैं परंतु प्रतिलेखकने गलती से अंत में पार्श्व स्तवन ऐसा लिखा हैं. शत्रुंजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवुं जी; अंति: समयसुंदर गुण भणै,
गाथा - ३३.
६. पे नाम, शत्रुंजय रास, पृ. २२आ- २६आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः सुणतां आनंद
थाय, ढाल - ६, गाथा- ११२.
७. पे. नाम. छ संवर सज्झाय, पृ. २६ आ-२७अ, संपूर्ण.
६ संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमनें कह; अंति: मुगति जिम हेलां वरो, गाथा- ६. ५७५२५. (०) सीद्धांती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७४१२,
१४X३२).
सिद्धांतसार सज्झाय, मु. जेष्टमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: चरण कमल जिनराजना; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ५, गाथा- ३३ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५७५२६. (*) देवराजवत्सराज रास, संपूर्ण, वि. १५९९ वैशाख शुक्ल ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. वा. लाभचंद्र (गुरु मु. खिमाणंद); गुपि. मु. खिमाणंद (गुरु वा. रत्नचंद); वा. रत्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५X११.५, १८४६३).
देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्म, वि. १६वी आदि सकल जिणवर सकल जिणवर, अंति: लइए नवनिधि ते घरबार, खंड-६, प्र. ६१२.
५७५२७. प्रवचनसार का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-४० (१ से ४०) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५X११.५, १३x४२).
प्रवचनसार-पद्यानुवाद, आव, हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. ज्ञान और श्रद्धा विषय अपूर्ण "नर र यौ जानही" पाठ तक है.)
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५७५२८. नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१३ (१ से ३,१० से १९ ) = ८, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे. (२६.५x११, १५X३४-४१).
"
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम खंड, ढाल - ३, गाथा- १० अपूर्ण से खंड- २, ढाल- २, गाथा- १७ व ढाल - ४, गाथा- १८ से ढाल - ५, गाथा - ७ तक है.) ५७५२९. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६१ वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. भारमल ऋषि, पठ. सा. अजबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, ११x४०).
बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: जीवगइ १ इंदिय २ काये; अंति: ए ४ लेसा ३ पहिली . ५७५३०. (d) ऋषभजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे., (२७४१२.
१४४४८).
आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमे अंति: (-), डाल- ४४, गाथा - २४३, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल ३० की गाथा ४२ तक लिखा है.)
५७५३१. (+) महावीर स्तवन बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, ४X३९).
महावीर जिन स्तव- समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु, अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक - ३०.
महावीर जिन स्तवन- समसंकृत टबार्थ, उपा. मतिकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: भावअरि क्रोधाविक अंति: हवइ
परमारथ जाणिवउ, ग्रं. ३५७.
५७५३२. (#) पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. खीमराज शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैटे. (२१४११.५, ९४२३).
महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदुः अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल -३, गाथा-५६.
५७५३३. पुद्गलपरावर्तमान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७X११.५, २१x४२). परावर्तमान विचार, मा.गु, गद्य, आदि: हीवे पुद्रलपरावर्तनोः अंतिः तकी प्रथावणा वत वाडि, संपूर्ण ५७५३४. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११.५,
१५X३४-३८).
१. पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
१८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलां नें समरु रे; अंति: कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल -३, गाथा ३६.
२. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणो; अंति: त्रिकरण सुध परणाम हो, गाथा-१९.
मु.
३. पे. नाम सिखामण सज्झाव, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२७३ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सीख; अंति: कर्मचंद कहे
जगनिलौ, गाथा-१०. ४. पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावास में चिंतवै; अंति: तोउने मुगति
मझार कै, गाथा-९. ५. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सरसति सामिणीजी; अंति: पुन्य प्रमाण रे,
गाथा-११. ६. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: पूरव पुकलावती हो संघ; अंति: वांदुसुंबे कर जोड, गाथा-९. ७. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २८ अपूर्ण तक है.) ५७५३५. सीमंधरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-३९). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-२ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ५७५३६. (#) दानशीलतपभावना पार्श्वजिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४,
प्रले. ग. वल्लभविजय (गुरु पं. जीवणविजय); गुपि.पं. जीवणविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् रक्षेत् थलाक्षे, जैदे., (२६४११, ११४३२). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: बली जावूरे चिंतामण; अंति: ऋषभविजय० लागी
आस की, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. जीवणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणा कोडि पासधणी; अंति: जीवणविजय० आस्या करी,
गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
___मा.गु., पद्य, आदि: मातवामा कुखे जनम; अंति: अरी थण सगला दूर हरे, गाथा-४ ४. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: समृद्धि सुखसादो रे, ढाल-४,
गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ५७५३७. (#) भावनावेलि, संपूर्ण, वि. १८०४, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. राधनपुर, पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: वन भणी
जेसलमेरू मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००. ५७५३८. इलाची चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४३, कार्तिक शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मातर, प्रले. मु. महिमाशेखर; पठ. मु. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४४५). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति:
ज्ञानदरसन अजूआलइ वे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९. ५७५३९. (#) मानतुंगमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२४, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. श्रीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४३).
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T
).
२७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुंमाता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर
लहै, ढाल-१४. ५७५४०. (+#) श्रीपालराजारास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०४३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४, ढाल-११ से १२ तक लिखा है.) ५७५४१. (#) नलदमयंतीरास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-६(१ से ६)=६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४२९-३५). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
खंड-५, ढाल-५, गाथा-२ अपूर्ण से खंड-६, ढाल-४, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५७५४२. (4) पुण्यसार रास, संपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि (गुरु मु. आणंदजी ऋषि); गुपि.मु. आणंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५-१८४४५). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमु; अंति: नव निधि होय
तश गेह, ढाल-९, गाथा-२०५. ५७५४३. (#) वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १७४३४-३८).
महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३,
आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: जस० सिर वहइस्यइ जी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. ५७५४४. (#) धर्मध्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४४१).
धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंति: इधर्मध्यान ध्याइई. ५७५४५. चैत्रीपूनम देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सुरत, प्रले. ग. भक्तिविजय (गुरु ग. कांतिविजय); पठ. श्रावि. खेमकुंयरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४४३).
चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रतिमा ४ माडी; अंति: १५८ प्रकृति
नाश पामे. ५७५४६. प्रियमेलक चौपई, संपूर्ण, वि. १८३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. डीडवा, प्रले.पं. श्रीचंद (खरतरगच्छ जिनभद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १८४४४). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुंसद्गुरु पाय; अंति:
समयसुंदर० कहइ परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०. ५७५४७. (+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. भजनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४७-५०). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: यह जहा भमह न
इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, ग. जसविजय, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतज्ञानकलित हतदोष; अंति: जसविजय०
प्रतनुधिषण. ५७५४८. (#) द्वादशव्रतोच्चार, वीशस्थानक तपोच्चार व अनशन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल
पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १८४५९). १. पे. नाम. द्वादशव्रतोच्चार विधि, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण..
१२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सम्यक्त्व देव; अंति: सम्यक्तनी परै जाणवी. २. पे. नाम. वीशस्थानक व्रत तपोच्चार विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि सर्व उपधान; अंति: नित्थारपारगा होह. ३. पे. नाम. अणसण विधि, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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२७५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नवकार तीन भणी; अंति: सर्व शब्द जाणिवा. ५७५४९. ऋषिदत्ता चौपाई व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, कुल पे. ३२, जैदे., (२६.५४११.५,
२१४५१). १. पे. नाम. ऋषिदत्तासती चौपई, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. रंगसार, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: (-); अंति: यइ सदा वृद्धि वधामणा, गाथा-११८, (पू.वि. गाथा-४७ से है.) २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: श्रीरिषभजी को ध्यान; अंति: चरण कमल सीस को नवाई, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमजिन पद, प्र. ३आ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: देखोरी नेम कैसी रिध; अंति: जगराम० जनम के अधजाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराई भूल भई बहु; अंति: जगतराम० तिहारी हेरी, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहि., पद्य, आदि: भेरु महावीर जिनमुक्त; अंति: जगराम० जनम सुधारे, गाथा-६. ६. पे. नाम. जैनधर्म महिमा पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अब मेरो जिनमत सौ हित; अंति: जगतराम० सौ अनुरागो, गाथा-३. ७. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: लागी मोरी प्रीत; अंति: महिमां परतखि कब दरसौ, गाथा-३. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा; अंति: कहैत है जै जै जिनराय, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन पद अंतरिक्ष, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष, मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: नमो नमो जै श्री; अंति: जगत० मुकति कामणीकंत, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. ____ पुहि., पद्य, आदि: नमो नमो जै श्रीमहावी; अंति: ता तै जगपावत भवतीर. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
म. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: जपो किनरेजिननाम; अंति: चूकत ते पीछे पछताय, गाथा-२. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: बिकलप छांडि नाम; अंति: जगतराम० उपदेस लगैरे, गाथा-३. १३. पे. नाम. जिनभक्ति पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे प्रभु पाय विसारत; अंति: जगतराम० सिष्यायो रे, गाथा-३. १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत सरन तेरी; अंति: जगतराम चरन चित लायौ, गाथा-५. १५. पे. नाम. २४ जिन कुसुममाला पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, रा., पद्य, आदि: जिनजी के नाम जपो रे; अंति: सोभा मोपैन वरनी जाई, गाथा-४. १६.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: मोहि भरोसो भयो; अंति: तू ही जगतराम आधारो, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: गरज गरज घन वरसै देखो; अंति: धरमपाल० मो मन सरसै, गाथा-३. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: यारु ति धनि मुनिराई; अंति: जगतराम० सीस नवाई, गाथा-४. १९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तुम तारि हो; अंति: जगतराम० सरम सबही, गाथा-४. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहि., पद्य, आदि: जै जै हो पारस जिन; अंति: जगराम० निरखि बर चरण, गाथा-५. २१. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: बनि ठनि बनिकौ चलै; अंति: जगतराम कहोरी सुनाई, गाथा-२. २२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: नेमकुंमर की बातडी है; अंति: ति दिठ बैराग कीयो छै, गाथा-३. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. जगराम, रा., पद्य, आदि: थेतो मोसू यौही हे; अंति: जगराम० जोग सही थे तो, गाथा-४. २४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनवर के नाम की; अंति: जगराम निंदक सहजै हीन, गाथा-७. २५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: धन्य तुम पतित पावन; अंति: तु जगतपति राज राजा, गाथा-३. २६. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. दौलत, पुहि., पद्य, आदि: पद जोड़े सांची कहइ; अंति: है मन मानइ सो होय, गाथा-८. २७. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. दौलत, पुहिं., पद्य, आदि: दौलत बीहार करती; अंति: हुंपण भूलूं नाहि, गाथा-१. २८. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. भवानीदास गुरुगुण पद, मु. दौलत, पुहिं., पद्य, आदि: (१)साधन के सिर मुकुटमणि, (२)श्रीपूज्य भवानीदास; अंति:
बच काय जो ध्यावै जी, गाथा-४. २९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. दौलत, पुहि., पद्य, आदि: अवसर पायो रे; अंति: ग्यानी अवसर पायो रे, गाथा-५. ३०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. दौलत, पुहिं., पद्य, आदि: राजमती कहे नेमसूंजी; अंति: अब दौलत गावैरली रली, गाथा-६. ३१. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख; अंति: नहीं ग्यान का थाग, दोहा-९९, (वि. विभिन्न विद्वानों के सुभाषित
संकलित हैं.) ३२. पे. नाम. देवलोक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: साध श्रावक वरति पाली; अंति: ते किम समझावै आय, गाथा-२९. ५७५५०. खापर चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-९(१ से ९)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११.५, १५४५४). __ खापर चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२५
की गाथा-६ तक है.) ५७५५१. भृगुपुरोहितनी चौपई व अरणिकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, कुल पे. २,
जैदे., (२६.५४११, १२४४५-५५). १.पे. नाम. भृगुपुरोहितनी चौपई, पृ. १अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. भृगुपुरोहित चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: दाननी अणमोदना कीज्यो; अंति: खेम भणइ० कोड
कल्याण, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-२, गाथा-२० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण...
मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक अतिसुकमाल; अंति: खपाई मुकत्या गया ए, गाथा-३१.
.
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יי
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७५५२. (+) खंडाजोयण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८- २ (२, ५) = ६, प्रले. श्राव. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६.५x११.५, १९४४४).
लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोजणनो जंबूद्वीप; अंति: रोहितानी पर जाणवो, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., द्वार ४ अपूर्ण से प्रतिमा अधिकार अपूर्ण तक व द्वार-८ का किंचित् पाठ नहीं है.) ५७५५३. नवतत्त्व का नवद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की फैल गयी है, जैवे. (२७.५४१२, २०४६२).
(#)
"
नवतत्त्व ९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्वर अजीव अंतिः स्यीभंते स्वीभते. ५७५५४. (+) नवतत्त्व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, १५x२७).
नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु, को, आदि: नवतत्त्व नामस्वरूप, अंतिः एकसिद्ध अनेकसिद्ध. ५७५५५. (+) बारआरानुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६- १ ( २ ) = ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१२,
१०x२९).
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१२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरस्वती भगवती भारती, अंति: कही तपगछ
,
मंगल करु, ढाल-१२, (पू. वि. ढाल - २ से ढाल - ४, गाथा - २९ अपूर्ण तक नहीं है. ) ५७५५६. पार्श्वनाथ व नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., ( २६.५x१२, ७२५).
गाथा-२६.
२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण.
पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदिः सौरीपुर नगर सुहामणो अंति: मनरूप प्रणमे पाव, गाथा- १५. ५७५५७. पाला विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जै.. (२६११.५, १७X५०).
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदिः परम पुरुष जग परगडो; अंति: खेम सदा सुखकार,
२७७
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - हिस्सा पाला विचार, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: पल्लाणवट्ठिय सलाग, अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं गाथा-१४ (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ है.)
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-हिस्सा पाला विचार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पाला ४ नाम, अंति: तें
प्रकाश्यो.
५७५५८, (+०) आगमवचन चौपई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, २०५८).
आगमवचन चौपाई, पंन्या, हीरकलश, मा.गु, पद्य, वि. १६१७, आदि: बंदवि चडवीसे जिणराय अंतिः ही हीरकलस ए चउपई कही, गाथा-२१२.
"
"
५७५५९. हुंडी स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२६.५x१२, १६x४३ ). महावीर जिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय, अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७, गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
५७५६० (+) दानशीलतपभावना चौपाई व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७२६. मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पू. ६-१ (५)ब्द,
कुल पे. २, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. वरसंघ ऋषि (गुरु मु. रायमल ऋषि); गुपि. मु. रायमल ऋषि (गुरु मु. देवशी ऋषि); मु. देवशी ऋषि (गुरु मु. बीकाजी ऋषि); मु. बीकाजी ऋषि (गुरु मु. भारमल ऋषि): मु. भारमल ऋषि (गुरु मु. वस्ता ऋषि); मु. वस्ता ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, ११४३६).
१. पे. नाम. दानशीलतपभावना चौपाई, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय अंति समयसुंदर० सुजगीसो रे, ढाल - ४, गाथा- १०१, (पू. वि. ढाल - ४, गाथा-५ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पुरसादाणी परगडउ जेसल, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
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२७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७५६१. (+#) पंचज्ञानपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: उपर भेला
५१ थापिई, ढाल-११. ५७५६२. (+) दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वृद्धिविजय० जगीसरे,
सज्झाय-११, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२, गाथा-६ अपूर्ण से है.) ५७५६३. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३९).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि य; अंति: (-),
(पू.वि. सामायिकव्रत अतिचार अपूर्ण तक है.) ५७५६४. (+-) जिनप्रतिमा चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२, १३४५१).
जिनप्रतिमा चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: जिनप्रतिमा ते पगे; अंति: मध्ये कयुं छे. ५७५६५. दानशीलतपभाव चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. थराद, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.१०९, जैदे., (२५.५४१२, १२४३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम; अंति:
समृद्धि सुखसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०४. ५७५६६. (+) आध्यात्मिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १६, ले.स्थल. मंमोईबंदर,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १३४४३-४५). १.पे. नाम. जैनलक्षण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमगुरु जैन कहो क्यु; अंति: जैनदशा जस ऊंची, गाथा-९. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतुर नर सामाइक नय; अंति: जस० ग्यानवंत के पासे,
गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम प्रभु सब जन शब्द; अंति: सेवक जन गुण गावे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जो तुंग्यान; अंति: अंतरदृष्टि प्रकाशी, गाथा-८. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सबल या छाक मोह मदिरा; अंति: उनकी में बलिहारी,
गाथा-७. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब मोहि दर्शन; अंति: सेवक सुजस वखाणे, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कुमार्गत्याग, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन राह चले उलटई; अंति:
सुजस० ग्यान प्रकटे, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
___उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सजन राख तरी भली अपनो; अंति: वातें सुख जस रंगरली, गाथा-५. ९.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: अजब गति चिदानंद घन; अंति: निवाहो उनके समरन की, गाथा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२७९ १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, प्र. ३आ-४अ, संपूर्ण.
उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: थिर नांहिं थिर नांहि; अंति: विनय कहे. बेसाई, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: सांई सलूना के सई; अंति: विनय० नजरि मोहि जोय, गाथा-५. १२. पे. नाम. आत्मशिष्या गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: कहा करूं मंदिर कहा; अंति: विनय० दुनिया मे फेरा, गाथा-५. १३. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: पांचुंघोडु रथ एक; अंति: राज विन जीउ पाया, गाथा-५. १४. पे. नाम. स्वाध्याय गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक गीत, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हुरहुं हुं रहू; अंति: सकलचंद० इंदुतरा, गाथा-५. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर भयो भोर भयो भोर; अंति: सकलसुख
मंगलमालरे, गाथा-६. १६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
___ आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरखचंद० संपत बढाईई, गाथा-६. ५७५६७. (+) चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, पठ. मोहनलाल, प्रले. गंडा तपसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १९४१५-६२). चारित्र के५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: नियंठानो यंत्र जाणवउ,
(वि. यंत्र-कोष्ठकादि दिए गए हैं.) ५७५६८. चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३८, माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७०, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. मु. जीवणदास ऋषि (गुरु मु. जसराजजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १५४५८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. ५७५६९. नयचक्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, दे., (२५.५४११.५, १०४३५).
नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य परमब्रह्म; अंति: लहिस्यै
तत्त्वतरंग. ५७५७०. (+) मलयसुंदरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२-१(४)=६१, प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी
सेठ; अन्य. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि.मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि); मु.जेचंदजी ऋषि (गुरु मु. रामचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.३६८८, जैदे., (२६.५४११.५, १९४५५). मलयसुंदरीरास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: कांति० खंडनी ढालरे,
खंड-४ ढाल ९१, गाथा-१०५२, (पू.वि. ढाल-५, गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-७, गाथा-१४ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७५७१. (+) श्रीपालराजारो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेली कवियण
तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४, ढाल-९, गाथा-१०१ अपूर्ण तक है.) ५७५७२. (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ५०-३(१२ से १४)=४७,
प्रले. मु. खुशालचंद (गुरु पं. अनोपरत्न, अंचलगच्छ); गुपि.पं. अनोपरत्न (गुरु वा. कुशलरत्न पंडित, अंचलगच्छ); वा. कुशलरत्न पंडित (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ७-१५४४३).
.
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२८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
3
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य वि. १७३८, आदिः कल्पवेलि कविवण तणी, अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ डाल ४१, गाथा- १८२५ (पू. वि. खंड-२, डाल- २, गाथा- ३५ से ढाल-४, गाथा-४० तक नहीं है.)
५७५७३. (+#) चारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, ६, रविवार, जीर्ण, पृ. ४१, ले. स्थल. वडलु, प्र. वि. माहावीरजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११.५, १३३०-३३).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ, अंति: उदय० आणंद लीलविलास, खंड-४ ढाल ४५, गाथा-८६२.
५७५७४. उपदेशमाला व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३९ कुल पे. २. जैवे. (२५.५x११, १५४५३).
13
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१. पे नाम, उपदेशमाला, पृ. १अ, संपूर्ण
ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-७ तक लिखा है.)
२. पे. नाम. कथा संग्रह, पृ. १आ-३९आ, संपूर्ण.
प्रा.मा.गु., पद्य, आदिः किं पर ज बहुजाणवणाहि अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, मेघकुमार की कथा अपूर्ण तक लिखा है.)
५७५७५ (+) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-५ (२, ५ से ६, १९, २१) = ३८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२६.५४११, १२४३८-४०).
.
मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ४५ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५७५७६. (+) नलदमयंती चौपई, संपूर्ण वि. १६८०, आषाढ़ शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३६, ले. स्थल. जेसलमेरगढ़, प्रले. श्राव. कुंवरजी माणेक, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १३५०, जैदे., (२६X११, १५X४८).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख, अंति: समयसुंदर ० चिंतवी, खंड-६ बाल ३९, गाथा - ९३१.
५७५७७. (+#) पंचाख्यान सह कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १२-१५X३३-३९).
पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: कुश्रितं कुप्रनष्ट, अंति: न कदापि न श्रुता, श्लोक-४८, (वि. मूल गाथा का मात्र प्रतीक पाठ है.)
पंचाख्यान वार्तिक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणदेश तिहां महिल, अंतिः सीयाले श्लोक कह्यो. ५७५७८. (+#) रूपचंद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५३-२३ (१ से १५, ४२ से ४९) = ३०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५. ५X११, १५X४१).
रूपचंद्रकुमार रास, पंडित, नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. खंड-१, गाथा- ८५ अपूर्ण से खंड-६, गाथा-५५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
५७५७९. सम्यक्त्वोपरि दृष्टांत कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४६ ११६ (१ से ११४,१२६, १३९) = ३०, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक अस्पष्ट है., जैदे., ( २६.५X१०, १३X३२).
कथा संग्रह **, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-): अंति (-). (पू.वि. कनकावती कथा अपूर्ण से सिंहराजा कथानक अपूर्ण तक है व बीच-बीच की कथाएँ नहीं हैं.)
५७५८०. (+#) हितशिक्षा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-२७ (१ से ३,५ से ७,९ से २७, ३७, ४९) =२७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., । १४४४२).
(२५.५X११,
हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल-४ की गाथा - ६८ अपूर्ण से गाथा- १४९७ अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७५८१. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र श्रुतस्कंध ९ अध्ययन- १, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २५-३ (१,१३,१६)=२२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, २१४३८).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं पाठ से हैं. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
५७५८२. (+) राजसिंहरत्नावती पंचकथा रास व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१०, १४४३९-४४).
१. पे. नाम. नवकारविषये राजसिंहरत्नावती पंचकथा रास. पू. १अ २१ आ. संपूर्ण वि. १७८१ चैत्र कृष्ण, ५, ले. स्थल. वैराटनगर, प्रले. पं. धर्मविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. नवपल्लीजी प्रसादात्.
राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी, अंति: गौडीदास०संघ मंगल करो, ढाल - २४, गाथा - ६०५.
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२. पे. नाम. मांगलिकश्लोक संग्रह, पृ. २१आ, संपूर्ण, ले. स्थल. पावा, प्रले. पं. वसंतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मांगलिक श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सरसति माहाभागे वरदे; अंति: सा मां पातु विनायकः, श्लोक-४.
"
३. पे. नाम. पुरुषस्त्री सोलह श्रृंगार श्लोक, पृ. २१आ, संपूर्ण, ले. स्थल. पावा, प्रले. पं. वसंतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य.
१६ शृंगार नाम, सं., पद्य, आदिः आदौ मज्जनचारुचीरतिलक; अंति: शृंगारका षोडशकाः, श्लोक-२. ५७५८३. (+) चोवीसदंडक बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष
"
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२५.५X११, १३X१९).
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२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेसा ठिती; अंति: (-), (पू. वि. द्वार - २७ अपूर्ण तक है.) ५७५८४. (+) दंडकवोल सह टवार्थ व वालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि (गुरुमु. जयचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, ४- १३X२८-३५).
१. पे. नाम. दंडकबोल सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु. प+ग, आदि सरीरोगाहणा संघयण, अंतिः चवणगइ रागइ चेव, गाथा-२. २४ दंडक २५ द्वार विचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर पांच अवगाहना; अंति: गति पांच आगती नीच्चे. २४ दंडक २५ द्वार विचार- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर पांच ते किहां, अंतिः प्रतिध करवो जी.
२८१
५७५८५. (#) चंद्रलेहा चरित्र, संपूर्ण, वि. १७८२, माघ शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१, प्रले. मु. अणदा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. कुल ग्रं. ६२४, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१८४४१).
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्म, वि. १७२८, आदिः सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह,
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ढाल - २९, गाथा- ६१७.
',
५७५८६, (+) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, १५x५० ).
1
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६७३ आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख अंति: (-). (पू. वि. खंड-५, डाल-५, गाथा १८ अपूर्ण तक है.)
५७५८७ (#) आलोवणा आवकनी, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख कृष्ण, ३०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. देवकृष्ण भवानीशंकर भट्ट लिख मानारणजी भाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ४६५, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे. (२६. ५x११. १०X३५-३८).
"
आवक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्रावकने सकल, अंतिः आराधिक पद पामस्ये. ५७५८८. (a) जंबूस्वामि चतुष्पदी, संपूर्ण वि. १८३६, पौष कृष्ण, ११, जीर्ण, पृ. १९, ले. स्थल, मोढा, प्रले. पं. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक खंडित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X४५).
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५७५८९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पासजिणंदना; अंतिः नितु कोडि
कल्याण, ढाल - ३५, गाथा - ६१०.
सज्झाय व रास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. १५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५X१२.५, २५X४९).
१. पे नाम, नववाडनी सज्झाय, प्र. १आ-२आ, संपूर्ण
नववा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-) अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल ११, गाथा- ९७, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रतिलेखक ने ढाल १, गाथा-५ अपूर्ण से लिखा है.)
२. पे. नाम निर्मोही ढाल, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
(+)
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निर्मोहीराजा पंढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु, पद्य, वि. १८७४, आदिः निरमोही गुण वरणवं अंतिः रतनचंद डाल परिसिध रे, ढाल-५.
३. पे नाम, अभंगसेणरो विचार, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
अभंगसेन विचार, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: श्रीमिंदरजिन सीमरीये, अंतिः रायचंद० बुधमत जाण हो, ढाल - ६.
४. पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली अंतिः समयसुंदर परिसिधि,
ढाल - ५.
५. पे. नाम. अर्जुनमाली ढाल, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: राजगरी नगरी हुती, अंति: जेमलजी० दिन पुनम ठाय, ढाल-७. ६. पे. नाम. महावीर चरित्र, प्र. ६आ-७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन चरित्र, मु. रूपरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडणपुर आय अवतर्या, अंतिः रूपरतन० चपल चितचाव हो, ढाल - १६.
७. पे नाम, बहुपुतीया सज्झाय, पृ. ७आ-१०अ संपूर्ण.
"
बहुपुत्रिका सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२२, आदि: तिण कालउ तिण समैः अंतिः सिष० सुणजो मन हुलास, ढाल - ९.
८. पे. नाम. मयणरेहा रास. पू. १०अ १२अ संपूर्ण.
मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जुओ मास दारुतणो करे; अंति: परनारी त्यागीजै, गाथा - १३२. ९. पे नाम. मृगावती चौपाई, पृ. १२अ १३अ, संपूर्ण,
मृगावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: श्रीमीदरस्वामीजी लगु; अंतिः रायचंद ० लाहोलारे लीजो, ढाल ६.
१०. पे. नाम. वंकचूलरी ढाल, पू. १३-१४, संपूर्ण.
वकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वंकचूल भाखी कथा जथा अंतिः रतनचंदजी ० सुविशाल, डाल-६.
११. पे नाम, मोहचेतन तणो समादो, पृ. १४-१५ अ, संपूर्ण,
मोह चेतन संवाद, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सुरसत सावण वीनवु अंति: कनककीर्ति०हरष प्रमोद, गाथा - ६३.
१२. पे. नाम कीसनजीरी भवनो चोडालियो, पृ. १५ अ -१५आ, संपूर्ण.
कृष्णभव चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: कोपीयो कंस कलकल्यो; अंतिः थाये सनमुख निरखता ए, ढाल-४. १३. पे. नाम भवदेव ढाल, प्र. १५ आ. १६आ, संपूर्ण.
भवदेवनागिला सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुदीपमे जाणीए जी, अंति: पहिला स्वर्ग मझार, डाल- ५. १४. पे नाम, श्रीमती डाल, पृ. १६ आ. १७आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२८३ श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: सील धर्म सुख संपजै; अंति: रतनचंद० सहुने सुखदाई,
ढाल-६. १५. पे. नाम. चेलणाराणी चोढालियो, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओसर जे नर अटकलै ते; अंति: सम्मत
१८३३ सै जाण, ढाल-५, गाथा-३७. ५७५९०. (+#) माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५४, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. आसाढाग्राम, प्रले. मु. वीरचंद्र
(गुरु उपा. उदयशेखर, पल्लीवालगच्छ); गुपि. उपा. उदयशेखर (पल्लीवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५.५४११, १७४४०-४२). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवी सरसती देवी; अंति: कुशललाभ० पामै
संसारि, गाथा-५३७. ५७५९१. भाषा ४२ विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्रले. पाना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४२८).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिति ३; अंति: बोलतां आराधक. ५७५९२. (+) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१०(१ से १०)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६-१८४४०-४८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१, ढाल-८, गाथा-१३
अपूर्ण से उल्लास-२, ढाल-१०, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५७५९३. चौबीस दंडक तीस द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बावीसवें दंडक अपूर्ण से अवधिदर्शन के स्वरूप
अपूर्ण तक है.) ५७५९४. (+) संग्रहणीसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१ से २)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४२). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नारकी जीव द्वार वर्णन अपूर्ण से श्रीदेवी
वर्णन अपूर्ण तक है.) ५७५९५. अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, दे., (२५.५४१२.५, १९४३५).
अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२७, गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७५९६. (+) सांबप्रद्युम्न चरित्र, संपूर्ण, वि. १७०७, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. मंदराबिंदर, प्रले. मु. धनजी ऋषि
(गुरु मु. फतेचंद); पठ.मु. हीरजी ऋषि; मु. देवसी ऋषि; मु. लालजी ऋषि; मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४८-५३). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति:
समयसुदर०सुजस जगीस ए, खंड-२ ढाल २२, गाथा-५३५, ग्रं. ८००. ५७५९७. पूजा संग्रह व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१२(१ से १२)=१४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२,११४३५).
१.पे. नाम. इकवीस प्रकारी पूजा, पृ. १३आ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल,
२१ प्रकारी पूजा, ग.शिवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८७८, आदिः (-); अंति: परमानंद वधावै, (पू.वि. कोशवृद्धि पूजा
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ऋषिमंडल पूजा, पृ. १४अ-२५अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमी श्रीपारस विमल; अंति: विजयतै
वैजयंती जयंति, ढाल-२४.
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२८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. नंदीश्वरदीप पूजा, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण.
__नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सर्वासि वासे सुतरा; अंति: पूजातरं निर्गतोहं. ५७५९८. (#) आगमसार, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११.५,
३८४७१). १.पे. नाम. आगमसार, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण, वि. १९०६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, प्रले. मु. रत्नचंद ऋषि (विजयगच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य.
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवैभव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. २.पे. नाम. पंद्रहभेदे सिद्धि, पृ. १३अ, संपूर्ण. सिद्धभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जिण अजिण तिथ तिथा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७५९९. देवकीपुत्र रास, संपूर्ण, वि. १८६१, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. श्राव. पूजा प्रागजी गांधी; अन्य. श्रावि. वेणीबाई गणपत संघाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४४२).
देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमजिणंद समोसर्य; अंति: ते लहसे भवजल पार रे, ढाल-१९, गाथा-३१५. ५७६००.(+) सुमतिविलासलीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५-३८). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: उदयरत्नसंपद रसाल जी,
ढाल-२१, गाथा-३४३, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-३ अपूर्ण से है.) ५७६०१. (+) जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १७७५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. मु. फता
ऋषि (गुरु मु. पद्माजी ऋषि); गुपि.मु. पद्माजी ऋषि (गुरु मु. पेमाजी ऋषि); मु. पेमाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४६६०, जैदे., (२५४११.५, १४-१८४३७-४७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सप्रभवं जिनं नत्त्वा, (२)चौवीसमा तीर्थंकर; अंति: भवंति भविना
सदा. ५७६०२. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२, १३४४३).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
___द्वारा अपूर्ण., सातवां दृष्टांत अपूर्ण तक लिखा है.) ५७६०३. नवपद नवकारसार महामंत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९,
ले.स्थल. साणंद, प्रले. मु. दीपसागर (गुरु ग. कुंअरसागर); गुपि.ग. कुंअरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४३८-४२).
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: सुश्रावक सुश्राविका. ५७६०४. (+) हितोपदेशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १६x४५).
औपदेशिक व्याख्यान, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: एह वात प्रगट है कि; अंति: ऐसौ लोकिक शास्त्र है. ५७६०५. (+) मेतार्यरिषि संबंध व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. मु. मनिसिंघ,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४४२-४६). १.पे. नाम. मेतार्यरिषि संबंध, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. मेतारजमुनि संबंध, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: विदुरलोक सुखदायिनी; अंति: मान० हो मनवंछित आस,
गाथा-२१०. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ९अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: जठराग्निपच्यते अन्न; अंति: पापी पापेन पच्यते, श्लोक-१. ५७६०६. शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-६(१ से ६)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११,
१५४४१-४८).
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शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. डाल- ११, गाथा-५ अपूर्ण से ढाल २९ गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
५७६०७. (d) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११, १३X२९-३३).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि पहिलेने कडवे हो पाय अंति: (-), (पू. बि. गाथा - ७२ अपूर्ण तक है.) ५७६०८. सिद्धांतसारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, दे., ( २६११.५, ११x४१).
सिद्धांतसार सज्झाय, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: चरणकमल जिनराजना नमीय; अंति: वे समकित लहे उलास रे, ढाल ६, गाथा- ११५.
५७६०९ (+) योग विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-२ (१ से २=९ प्रले. वेणीदास दीक्षित, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १९४४४-६८).
योग विधि, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दिन एक पूर्णिमा दिने, (पू. वि. उत्तराध्ययन योगविधि अपूर्ण से है.) ५७६१०. पार्श्वनाथ विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२ ( ४ से ५ ) = ९, प्रले. मु. रंगविजजय (गुरु मु. अमृतविजय, तपगछ); पि. मु. अमृतविजय (गुरु मु, विवेकविजय, तपगछ); मु, विवेकविजय (गुरु पंन्या. मानविजय, तपगछ) पंन्या. मानविजय (गुरु पंन्या. रत्नविजय, तपगछ); पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. लब्धिविजय, तपगछ); पंन्या. लब्धिविजय (गुरु आ. विजयदेवसूरि, तपगछ); आ. विजयदेवसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम वे., (२७४१२, १४४४५).
पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: स्वस्ति श्रीदायक, अंति: गाईया उलट आणी अंग रे, (पू. वि. डाल-६, गाथा-९ अपूर्ण से डाल-९, गाथा २५ अपूर्ण तक नहीं है.)
५७६११. प्रतिमादिस्थापन श्रीमहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. पं. नयनोदय मुनि, पठ. श्राव. गोकलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६ १२, ११x४०).
महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: जशविजये वहस्येंजी डाल ७.
गु..
५७६१२. (+#) नवतत्त्वनी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, (२६११.५, १३x२७).
नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: पासजिणेसर प्रणमी पाय अंति: वरसिंह० चित मे धरी, गाथा - १३६.
५७६१३. (+) शत्रुंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. साहिजहानाबाद, प्रले. मु. लब्धिमंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १३X३८).
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. विनयमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: सेत्तुंजय तीरथ धणी, अंति: विनयमेरु ग रे, ढाल - १२, गाथा - १५४.
५७६१४. (+) सिद्धदंडिका बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९-२ (१,७) ७, ले. स्थल. पल्लीकानगर, प्र. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११.५, ११४२२-३०).
""
सिद्धदंडिका स्तव - बालावबोध, पंन्या. अमीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८४६, आदि: अष्ट महाप्रातिहार्ये; अंति: धारणा विसेष करवी, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., किंचित् प्रारंभिक पाठ व तृतीया दंडिका स्वरूप के यंत्र से सात दंडिकाओं के नाम अपूर्ण तक नहीं है.)
५७६१५. पंद्रहतिथिस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, राजनगर, प्रले. श्राव. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
(२८x१२, ११४२८-३२).
१५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; एक मिथ्यात असंयम, अंतिः चउविध संघ करे कल्याण स्तुति १६, गाथा- ६४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५७६१६ (+) नवपद पूजा, संपूर्ण वि. १८९१ कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, चडलु, प्रले. मु. कस्तुरहंस (गुरु मु. प्रधान हंस); गुप. मु. प्रधानहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, १२३०-३५ ).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं, अंतिः कोई नये न अधूरी रे, पूजा. ९.
५७६१७. सिंहलकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल बढवाण, प्रले. श्राव. लालचंद रुघनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X११.५, २४४५३-५८).
सिंहलकुमार रास, मु. अमोलक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९५७, आदि: जय जग गुरु तीर्थंकरु, अंतिः सिंहलकुंवरसा लीजीए ढाल १२.
५७६१८. (+) धनदेवपद्मरथ चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२२, माघ कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. सा. सुजानाजी आर्या, . मनोहरलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. यह चौपाई मुनि मनोहरलालजी की निश्रा में लिखी गई है., संशोधित., दे., (२५.५X१२, १८x४०-४६).
मु.
पद्मरथ चौपाई, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदिः उत्तम ते आ जनम लगु; अंतिः तिण नमइ मुनि माल, गाथा-१९४. ५७६१९. (+) कानडकठीयारा चौपाई, संपूर्ण वि. १७९० फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल देवसूरीग्राम, प्रले. पं. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय): गुपि पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्वा सिंहविजय), प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. शांतिनाथ प्रसादात् संशोधित, जैवे. (२६४१२, १४४४४).
"
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कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंतिः मानसागर ० दिन वधते रंग, ढाल - ९.
יי
५७६२०. (#) औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. अंत की कुछ पंक्तियाँ बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक ने नीली स्याही से लिखी है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५४११.५, २२X४२-५५).
औपदेशिक सवैया, मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: सील सर्पाव जामु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., दोहा - १४५ अपूर्ण तक लिखा है.)
५७६२१. (+) औषधादि संग्रह व चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे, ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.
יי
वे. (२६.५४१२, १२४३६-४६).
१. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. औषध सामग्रियों की सूची दी गई है.)
२. पे नाम, खुजली की दवा, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
३. पे. नाम, चौमासी व्याख्यान, पृ. १आ-७अ संपूर्ण.
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., प+ग, आदि: सामायिक आवश्यकव्रतः अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कुछ अंश नहीं लिखा है.)
५७६२२. (+) निगोदविचारगर्भित श्रीमहावीरजिन स्तवन सह बालाववोध, संपूर्ण, वि. १९३५, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७,
प्रले. मु. केशरीसिंह ऋषि (विजय गच्छ); अन्य. आ. शांतिसागरसूरि ( मलधारपुनमिया विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२६४१९, ३-५४३९).
महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वलि जाउं श्रीमहावीर, अंतिः न्यायसागर दिन मुझे आज, ढाल - २, गाथा ४३.
महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोगस्सणं भंते एगम्मि; अंति: ए अधिकार को छे.
५७६२३. (#) महीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९७९, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. बंभोरे, प्रले. फूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५. २०४४७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
महीपाल चरित्र, मु. हजारीमल, मा.गु., पद्य, वि. १९७९, आदि: आदिनाथ नमिये सदा; अंति: हजारीमल० अधीकार
होम, ढाल-२४. ५७६२४. (+#) चंपावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-६(४ से ५,७ से १०)=७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४१).
चंपावती रास, य. धर्मभूषण यति, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमपुरुष शासनधणी; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-११६ अपूर्ण से १८९ अपूर्ण तक, २२१ अपूर्ण से ३६४ अपूर्ण तक व ४७६ अपूर्ण से आगे नहीं है.) ५७६२५. (+#) नवाणुंप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, ११४२९). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति:
आतम आप ठरायो रे, ढाल-११. ५७६२६. आत्मावबोध वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२८x१२, १२४३९-४२).
आत्मावबोध वचनिका, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ते गुरु गृणाति वदति; अंति: लीजै चेतन चाल. ५७६२७. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४११.५, १०x२५).
महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोअणा दिसि; अंति:
शुभविजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८१. ५७६२८. (+#) चंदमलयागिरि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१४(१,७ से १२,१४ से २०)-७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४२). चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. अजितचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से पुत्र सायर के
माता-पिता से अलग होने के प्रसंग तक है.) ५७६२९. (+) दसविध यतिधर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७२, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, ले.स्थल. वटपल्ली, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १२४२९-३६).
१० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सुजस लीला अनुसरे,
__ ढाल-११, गाथा-१३६, (पू.वि. सज्झाय-१, गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ५७६३०. पन्नवणा बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, गु., (२७४१२, २५४५१).
प्रज्ञापनासूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जघन्य रसमय निरंतर; अंति: पहोंचानुं स्वरूप, (वि. सीझणा द्वार,
वीरद्वार व अल्पबहुत्व के बोल.) ५७६३२. (+) आध्यात्मिक गीतसंग्रह व कर्मप्रकृति बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२५.५४११, २७४७६). १.पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: जुगमें जूठ मंडाया छे; अंति: राज० साचो जग में, गाथा-६. २. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण..
मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: अब तो आन बनी है संतो; अंति: राज० खबर हमारी लीजो, गाथा-६. ३. पे. नाम. कर्मप्रकृति बोल संग्रह, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दर्शनावरण१ ज्ञानावरण; अंति: पंचेंद्रिय अपर्याप्त. ५७६३३. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, दे., (२६४११.५, १०४२८-३२).
दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा१ वेरसेर चिइ३; अंति: तेथी अधिक पालवू. ५७६३४. (+#) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.,
(२५.५४११,१२-१४४३८-४३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अक्षरबावनी, मु. बाल कवि, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदिः ॐकार अनंत अलख अविगत; अंति; वरण सयल संघ मंगल करण, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.)
५७६३५. (+) नरक-देवलोक क्षेत्रमान कोष्ठक, संपूर्ण वि. १९०२ ज्येष्ठ कृष्ण, ३. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२६.५४११.५, १७x९-२६).
नरक - देवलोक क्षेत्रमान कोष्ठक, मा.गु., को, आदि पेली नरकना पाथडा; अंतिः वैमानी क्या छें है. ५७६३६. (+) बार भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६ ११.५, १२X३५-४२).
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१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: (-),
( पू. वि. ढाल - १२, गाथा - १ अपूर्ण तक है. )
५७६३७. (+) प्रियमेलक चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६ ११, १३३४). प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सहिगुरु पाय; अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल- ६, गाथा १९ अपूर्ण तक लिखा है.)
५७६३८, (४) रोहिणीतप व पंचमीतप स्तवन, संपूर्ण वि. १९०७ भाद्रपद शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. साहेबराम ऋषि, लिख श्रावि. चांदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे., (२५.५x११.५, १३X३८).
१. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणीए मुझ; अंतिः श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा - २६.
२. पे. नाम. पंचमी तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं सदगुरु पाय; अंति: समयसुंदर पर संधुणो, दाल-३, गाथा-१७.
1
५७६३९. (+) जीवविचार बोल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) =५, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२,
"
१३X३७).
५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-) (पू.वि. पृथ्वीकायिक जीव अपूर्ण से संमूर्च्छिम जीव वर्णन अपूर्ण तक है.)
. दे.,
"
५७६४० (+) ऋषभदेव चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. (२५X११, १७X२८-३८).
आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सारथपति धनसार; अंति: (-), (पू. वि. तेरहवें भव का किंचित् अंतिम पाठ नहीं है.)
५७६४१. (+) रोहिणी कथा, संपूर्ण, वि. १७९०, कार्तिक शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. खुशालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १०X२७).
रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: चंपानगरीयै श्रीवासु; अंति: क्षय करी मुगति गया.
"
५७६४२. (+) बार भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x११.५, १३X२८-३३).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी, अंति: (-), ( पू. वि. ढाल - १०, गाथा- ८२ अपूर्ण तक है.)
५७६४३. देवराजवछराज चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X१२, १५X३२). देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: मनशुध संतिजिणेसरु; अंति: (-), (पू. वि. ढाल -८, दुहा - ३ अपूर्ण तक है.) ५७६४४. (+) भगवतीजीनी हुंडी, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. फोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित., दे., (२७११.५, २१x४६-७०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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भगवतीसूत्र- हुंडी, मु. धर्मसिंह ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: नवकार नमो बंभीए लिवी; अंति: हेतु करी सहित परुपणा.
५७६४५. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १८९४ आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २१-२ (१ से २) = १९ प्रले. ग. कृष्णविमल, पठ. मु. ललितसागर (गुरु मु. मनोज्ञसागर); गुपि. मु. मनोज्ञसागर (गुरु पं. हितसागर); पं. हितसागर (गुरु पं. लाभसागर); पं. लाभसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. कुल ग्रं. ७५०, जैदे., ( २४.५X१०.५, १७X४३).
साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७ आदि (-); अंति: समयसुंदर प्रसादो रे, डाल- १८, गाथा-५०९, (पू.वि. ढाल - ३, गाथा- १९ अपूर्ण तक नहीं है.)
५७६४६. अष्टमीतिथि व रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५. ५X११, ९४२४-२७). १. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म, अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल -२, गाथा - २४. २. पे नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि हां रे मारे वासुपूज, अंति: (-), (पू. वि. डाल-४, गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
५७६४७. (+) शीलविषै कठियाराकान्हड चोपई, संपूर्ण, वि. १८११, ज्येष्ठ कृष्ण, १२ गुरुवार, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x११, १६x४२-५०).
२८९
अंति:
कान्हडकठियारा रास - शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारशनाथ प्रणमुं मुदा; मानसागर ० दिन वधतइ रंग, ढाल - ९.
५७६४८. (+) रास, स्तवन व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( (२६x१२, १५X३०-३८).
१. पे नाम, वज्रस्वामी रास, पृ. १अ ५ अ, संपूर्ण प्रले. पं. क्षमाविजय गणि पठ. श्रावि वीजलीबेन प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया रे, ढाल-१५,
गाथा- ८९.
२. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: दिवस थया केतलाइक, अंतिः सेव करो कवियण खुसी, गाथा-५. ३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साहेला हे कुंथुजिन, अंति: जस० परें कहे हो लाल, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण
पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: मन मंकड थीरता नही; अंति: बधे बघत बघत बध जाय, गाथा-२.
५७६४९. दिवाली देववंदन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे २, ले. स्थल, राजनगर, प्रले. पंडित, खूबचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२६११. १०x२९-३२).
१. पे. नाम. दिपावलीपर्व देववंदन विधि, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण.
दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर, अंतिः प्रगटे सकल गुण खाण.
२. पे. नाम. वीशविहरमानजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि; सीमंधर पेहेला नमु; अंतिः माणिक्य० गुण गाय रे,
गाथा-७.
५७६५० (+४) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे ६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७११.५, १२X३० ).
१. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिजीने वंदणा; अंति: जिनहर्ष० वारी लाल, गाथा - ९.
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२. पे. नाम. प्रास्ताविकदोहा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण
प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: मानो विनती माहरी; अंति: सुख उपजै तत खेह, गाथा-४. ३. पे, नाम, कृष्णबलभद्रनी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि ठंडो जी अर्थ विचारजो अंतिः उपजे परलोके सुख थाय, गाथा २९.
"
६.
पे, नाम, सात वासनारी सज्झाय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
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बलभद्रमुनि सज्झाव, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तुज आगल सी कहुं, अंतिः निसदिन जिन बरधमान रे, गाथा-२१. ४. पे. नाम, सीताजीनी सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जलजलती मिलता घणी रे, अंतिः कहे जिनहरख० पाय रे, गाथा - ९.
५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३आ-५अ, संपूर्ण.
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि पर उपगारी साध सुगुर, अंतिः सीस रंगे जो रंग कहे, गाथा- ९. ५७६५१. (+) नंदिषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (३)=५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे
',
(२६.५x१०.५, १४४४३-४८).
नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५ आदिः सूत सिद्धारथ भूषनो, अंति: (-), (पू. वि. दाल-७, गाथा-७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
५७६५२. (*) कल्पसूत्र का वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २९-५ (१,५,८ से ९१७) = २४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र
है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२७४१२, १४-१७४३८).
"
""
कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु. रा. गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं)
"
५७६५३. (+) सालिभद्र चोपई, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २२ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१२, १४४३२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: वंछित फल लहियै जी, डाल- २९.
५७६५४. (+) साधुवंदणा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-३ (१ से ३) = २४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ., दे., (२७X१२, १५X४०).
साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७ आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. गाथा ५४ से ६३१ अपूर्ण
तक हैं.)
५७६५५. (+#) जैनतत्वज्ञान - बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-४ (१ से ३,१९) = २५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १४४३७).
"
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. बीच के पत्र हैं.
५७६५६. (+) आनंदघनचौविसी सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. २९-२ ( २२ से २३*) =२७, ले. स्थल, धमडका, प्रले. पं. अमीविजय गणि (गुरु पं. रत्नविजय गणि, तपागच्छ); गुपि. पं. रत्नविजय गणि (गुरु मु. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ); मु. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. हर्षविजय कवि, तपागच्छ); मु. हर्षविजय कवि (गुरु गच्छाधिपति विजयप्रभसूरि तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., ( २६.५X११.५, ५X३८).
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभजिनेसर प्रीतम, अंति: आनंदघन प्रभु जाग रे, स्तवन- २४, (संपूर्ण वि. १८१८ श्रावण शुक्र. १३, गुरुवार)
स्तवन चौवीसी - बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंदमय जिनवरु सदा अंतिः पद पामै इत्यर्थ:, (संपूर्ण वि. १८१८ आश्विन शु. १, मंगलवार)
,
५७६५७. (4) धनाशालिभद्र चौपई, अपूर्ण, वि. १८७२, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २६-३ (१,६९, २०) २३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४९, १३४३५).
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शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु, पद्य, वि. १६७८, आदिः (-) अंतिः वंछित फल लहिस्यै जी, दाल- २९, (पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल १ गाथा १३ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२९९
५७६५८. (०) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३७-६ (१ से ६) = ३१. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६X११, १४X३२-३६).
श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -७ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-४७ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.)
५७६५९. (+) नवतत्त्व चौपई, पृथ्वीचंद्रकुमार रास व शत्रुंजयतीर्थ परिपाटी स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x११.५, १४४४१).
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१. पे. नाम. नवतत्त्व उपई, पू. १अ १०अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: गणतां संपति कोडि, ढाल-९. २. पे. नाम. पृथ्वीचंद्रकुमार रास, पृ. १०अ १७अ, संपूर्ण, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट..
मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणमुं भगतिं भगवति, अंति: देवचंद० निसदीस, गाधा- १७४.
३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ परिपाटी स्तवन, पृ. १७अ - २१आ, संपूर्ण.
मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: सकल सभारंजन कला दिओ; अंति: देवचंद ० वंछित सुखदाया, गाथा- ११७. ५७६६०. (+) व्याख्यान संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३. ले. स्थल, भांगुदा,
प्रले. पं. गोकल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x११, १३x४०-४५).
१. पे नाम, चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण.
मा.गु., सं., प+ग, आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: दिवरावीजै श्रावकनै.
२. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, पृ. १२ आ-१८आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि सिरिवीरं नमिऊण अंतिः सकल सुख विभागी थाइ.
३. पे. नाम. मोनईकादशी स्तवन, पृ. १८-१९अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदिः समवसरण बइठा भगवंत; अंतिः समयसुंदर कहो दिहाडी, गावा- १३.
"
५७६६१. (७) गोराबादल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १५x२८-३१)
गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २१ गाथा १० अपूर्ण तक है.)
५७६६२. (+) दंडक बोल, संपूर्ण, वि. १६४३, आषाढ़ शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २७, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१०.५, १३४३३).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेसा ठिती; अंति: मास ६ नुं आंतरुं.
५७६६३. (+) धर्मरत्न प्रकरण सह टीका व कथा, संपूर्ण वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११,
१४४३६).
१. पे. नाम. चोबोली चोपड़, पृ. १अ - १४अ, संपूर्ण.
१७४५५-६०).
१. पे. नाम. धर्मरत्नप्रकरण सह टीका व कथा-श्लोक-१ से १९७, पृ. १अ ३१आ, संपूर्ण.
धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सबलगुणरयणकुलहर, अंति: (-), प्रतिपूर्ण धर्मरत्न प्रकरण- टीका, सं., गद्य, आदि: गुणाः अक्षुद्रतादव, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
धर्मरत्न प्रकरण- टीकागत-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: हस्तिनागपुरे नाग, अंति: (-), प्रतिपूर्ण
२. पे. नाम. धर्मरत्न प्रकरण कथासूचि, पृ. ३१ आ. संपूर्ण
धर्मरत्न प्रकरण - कथासूचि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: पशुपालक दृष्टांत १; अंति: चंद्रकथा सिद्धकथा. ५७६६४. (+) रास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७X१२,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकधने, वा. अभयसोम, मा.गु., पच, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी, अंति अभय मंदिर फाग कही, ढाल १७.
२. पे. नाम, मानतुंगमानवती रास, पृ. १४अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती, अंति: (-), (पू. वि. ढाल २ के दोहा-४ अपूर्ण तक है.)
५७६६५. (+) हरीवल रास, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x११.५, १५X३६).
हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई समरु सदा, अंति: (-), (पू.वि. ढाल १६ गाथा २० अपूर्ण तक है.)
५७६६६. (#) प्रकरण संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १६९७, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, ले. स्थल, औरंगाबाद, प्रले. मु. जसवंत (गुरु पंन्या. सरूपविजय); गुपि. पंन्या. सरूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११, ४X३०).
་,
१. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ- ९अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवा१ जीवार पुण्ण३: अंतिः बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५० (वि. प्रतिलेखक ने मूल
,
में गाथांकन लिखकर टवार्थ में लिखा है.)
नवतत्व प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि साचड वस्तुनो स्वरूप, अंतिः सीधा तेनेक सिद्ध१५.
२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, प्र. १अ ९अ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
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जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु. सं., गद्य, आदि: ५७६६७. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१ (१)
(२६११.५, १३४३९).
१. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती कथा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पाली मोक्ष पोहता, (पू. वि. मात्र अंतिम कुछेक प्रसंग है. ) २. पे नाम, प्रसनचंद्रराजरपीनो दृष्टांत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण
प्रसनचंद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पोतनपूर नगर तिहां, अंतिः साखे ज किघो प्रमाण. ३. पे. नाम. बाहुबली कथा, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
भरतबाहुबली कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरुषभदेवे दिक्षा, अंतिः अहंकारे धरम न होइ.
४. पे. नाम. सनतकुमारचक्रवर्तिनी कथा, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
मायाविजं त्रिभुवन अंतिः समुद्र सिद्धात हूंतउ
१७, कुल पे. १४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.,
९. पे. नाम. चिलातीपुत्र कथा, पृ. १९ आ- १२आ, संपूर्ण
सनत्कुमारचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: गजपूर नगरने विषे सनत: अंति: उपदेसे प्रतिबोध पामे, ५. पे. नाम. ब्रम्हदतचक्रीनी कथा, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण.
ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कंपीलपूर नगरने विषे; अंति: अंते प्रतिबोध न पामे.
६. पे. नाम. उदाइने मारनार चेलानी कथा, पृ. ७अ - ८ अ, संपूर्ण.
उदायीराजा को मारनेवाले शिष्य की कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पाडलीपूर नगरीने वीषे; अंति: ते प्रतिबोध न पामे.
७. पे. नाम. अनंगसेन्य सोनारनी कथा, पृ. ८अ - ९अ संपूर्ण
अनंगसेन सोनार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एकवार श्रीमहावीरने, अंति: पुरषस्त्रीना संगमने.
८. पे नाम, मृगावतीसती कथा, पृ. ९अ ११ आ. संपूर्ण
मा.गु., गद्य, आदि: साकेतपुर पाटणने विषे अंति: दोष प्रगट कही खमाववु.
मा.गु., गद्य, आदि: क्षितिप्रतिष्ठितनगर, अंति: प्रतीबोध पामे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ १०. पे. नाम. ढंढणऋषि कथा, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ढंढणकुमारनो जीव पाछल; अंति: विषे प्रतीबंधन करवो. ११. पे. नाम. स्कंदक कथा, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण.
खंधकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावस्तिनगरी तिहा; अंति: साधु उपसर्गखमवो. १२. पे. नाम. हरिकेसी मातंगीनी कथा, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण.
हरिकेशीमुनि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: मथुलानगरी तेहनो; अंति: नव नव कूण पासे छे. १३. पे. नाम. वयरस्वामीनी कथा, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण.
वज्रस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: तुंब गाम नगरने विषे; अंति: साधुइ निरलोभता करवी. १४. पे. नाम. नंदिषेणमुनि कथा, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदि: मागधदेशने विषे एक; अंति: (-), (पू.वि. निरंतर छट्ठ पारणु करे पाठ तक है.) ५७६६८. (+) अजितशांति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११, १३४३४-३७). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: पुव्वुप्प० विणासंति,
गाथा-४६. अजितशांति स्तव-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कृत्य जिनं शांति; अंति: सविहुनई कल्याण
हुवउ, ग्रं. ४५०. ५७६६९. (+-#) मंगलकलस तिलोकसुंदरी चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४३६). मंगलकलश चौपई, श्राव. लखपत तेजसी शाह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवामानंदन नित नमे; अंति: वरइजी जगजस
वाधइ धन, ढाल-१४, ग्रं. ४३२. ५७६७०. (+) अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. १९०३, पौष कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. सिवराम पानाचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १४४३१). __ अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: इष्टदेव प्रणमी करी; अंति: जोतसुंजोत मिलाय,
ढाल-९, गाथा-२४२. ५७६७१. जंबूकुमार चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. जेतारण, प्रले.सा. कुसाला (गुरु सा. नेतुजी); गुपि. सा. नेतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, २१४६१). जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सर्वद्वीप द्वीपांमे; अंति: सुणै तिण घर जय जयकार,
(वि. ढाल संख्या नहीं लिखी हुई है.) । ५७६७२. (+#) सुरसुंदरी चतुस्पदी, संपूर्ण, वि. १८१८, कार्तिक शुक्ल, ४ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. वर्ग्रवटी,
प्रले. मु.खुस्यालसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य, तपागच्छ); गुपि.ग. जयसौभाग्य (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ९००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४३९). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहियै आज; अंति: एक सदा जिनधर्म
आराधौ, खंड-४, गाथा-६१३, (वि. ढाल ४०.) ५७६७३. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-३(१ से २,१२)=१७, जैदे., (२५.५४११, ९४२८-३३).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लेबो० तुझ तणु ध्यान, स्तवन-२०,
(पू.वि. स्तवन-२ गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ५७६७४. शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-२(१ से २)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११,
१७४३७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण से
ढाल-२९ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५७६७५. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-२४(१ से २३,३५)=१३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५-१७४४१-४८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-३ ढाल-६ गाथा-२६ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-११ गाथा-३६ तक है.) ५७६७६. ढालसागर रास व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ८८-७६(१ से ७६)=१२, कुल
पे. २, ले.स्थल. भर्थपुर, प्रले. मु. दौलतराम (गुरु मु. महताबराय); गुपि.मु. महताबराय (गुरु मु. भवानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १९४४९-५१). १.पे. नाम. ढालसागर रास, पृ. ७७अ-८८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: जपे संघ रंग वधामणो, खंड-९,
(पू.वि. ढाल-१२५ गाथा-४४ अपूर्ण से है., वि. ढाल-१५१.) २. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ८८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छप्पन करोड यादवों के साथ
कृष्ण का पलायन वर्णन अपूर्ण तक है.) ५७६७७. (+-#) रिषदंता चौपाई, पूर्ण, वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८-१(१४)=१७, प्रले. सा. चंपा (गुरु
सा. जीवी); गुपि.सा. जीवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल अस्पष्ट है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, २२४२०-२५). ऋषिदत्तासती चौपाई, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सासणनायक सिमरतां पाम; अंति: रैवरते
जैजैकारो जी, ढाल-५७, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५७६७८. ध्यान विधि, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६४११.५, ६x२०-२३).
ध्यान प्रक्रिया, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यान इणविध ध्यावीय; अंति: परभो में सुखी हुवो. ५७६७९. (+#) त्रिभुवनदीपक प्रबंध, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-१(६)=१७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, १४४४८).. त्रिभुवनदीपक प्रबंध, आ. जयशेखरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: पहिलु परमेसर नमी; अंति: जयशे० शशि
दिणयर ठाउ, गाथा-४२०, (पू.वि. गाथा ११८ अपूर्ण से १४२ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७६८०. (+#) देवकीना छपुत्रनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. मोरबी,
प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ; सम. श्राव. प्रेमचंद बोघा; गृही. मु. रामसंघ ऋषि (गुरु मु. डोसाजी ऋषि); गुपि. मु. डोसाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४४१).
देवकी६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजीणंद समोसर्या; अंति: सुकलध्याने चड्यो, ढाल-१९. ५७६८१. (-) चंदनमलयागिरि चौपाई, पूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१५)=१६, ले.स्थल. बलुहत्था खराडी,
प्रले. पं. लीखमीचंद पोसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १३४२७-३१). चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सानीधकारी सारदा समरू; अंति: जी सुखसंपति
कोड, ढाल-११, गाथा-२५९, (पू.वि. ढाल १० गाथा २२ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७६८२. शत्रुजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४२९).
शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही सण जयकरो,
ढाल-१२, गाथा-१२०. ५७६८३. (+) लीलावली सुमतिविलास रास, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. मु. भाणजी देवजी
ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३७-३९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२९५ लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: सुख संपति
सुरसालजी, ढाल-२१, गाथा-३४८. ५७६८४. (#) लघुदीवालीकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. इंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३९).
दीपावलीपर्व कल्प-लघु, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुदातारं; अंति: माला प्रवर्त्तस्यें. ५७६८५. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८८३, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. धरोलनगर, पठ. मु. लवजी (गुरु पं. सुंदरविजय); प्रले. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४४१-४३).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लीवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन,
वर्ग-४.
५७६८६. (+) सिद्धपंचाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२, ४४२८).
सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, ग. लालकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (१)उपगारनइ
अर्थइ, (२)संघ श्रियं दिशत्. ५७६८७. (+) वसुदेव चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४४७). वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: सकल मनोरथ सिद्धि; अंति: जिम पूजि मनह जगीस,
गाथा-३५१. ५७६८८. (+) खंडाजोयण बोल दसद्वार, संपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. राजनगर (अमदावाद, प्रले.
वीरामण सीवसंकर; पठ. श्राव. मलीचंद जयचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३७५, दे., (२५.५४१२.५, १५४३८-४२).
लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप एक लाख; अंति: मात्र वरणव जाणवो. ५७६८९. (#) पद्मीनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-६(१ से ६)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११, १२४३५). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड १ ढाल ६ गाथा ३
अपूर्ण से खंड ३ ढाल १ गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ५७६९०. (+) वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ११४३५).
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ मंगल करो,
ढाल-२०. ५७६९१. (+) सुकुमालिका चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. पलासली, प्रले. मु. भक्तिचंद्र; पठ. ग. प्रेमचंद (गुरु
उपा. भानुचंद्र); गुपि. उपा. भानुचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). सुकुमालिकाचौपाई, मु. जीवराज, मा.गु., पद्य, वि. १६६३, आदि: सरसति वर देयो सुमति; अंति: सुणतां
अविचलराज, गाथा-२३४. ५७६९२. (+) वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १२४३८).
वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनधर्ममाहे दीपता; अंति: संपजै पुहचइ नगर मझार, गाथा-२०९. ५७६९३. नवतत्त्वनां तेरद्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १४४४३).
नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुल१ दृष्टांतर कुण; अति: (-), (पू.वि. मोक्ष द्वार वर्णन अपूर्ण तक है.)
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२९६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७६९४. (+) बासठीओ, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०+१(८)=११, प्रले. पं. विनयचंद्र; पठ. श्राव. ताराचंद रायचंद बारीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११,१२४३३).
६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीवगइ१ इंदियर काए३; अंति: अनोअन तुलने अनंतगुणा. ५७६९५. चोविसठाणाआम्नाय कोष्टक, संपूर्ण, वि. १८७०, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. जेनगर, प्रले. मु. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २६४९-३०).
२४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: गइंदिय काए जोए वेए; अंति: (-). ५७६९६. शीलोपदेशमाला का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १४४४५). शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति:
(-), (पू.वि. "नारद मोक्ष गयो" पाठ तक है.) ५७६९७. पांच बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१६(१ से १६)=१०, दे., (२६४१२.५, १२४४०-४४).
देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लं ११.१२ ने वृषभनो ल, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं., ज्योतिषचक्र द्वार अपूर्ण से है.) ५७६९८. (+) अषाढाभूति रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १४४३६).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: होजो परम कल्याणोरे, ढाल-१६,
गाथा-२१८, (पू.वि. ढाल १ गाथा ५ अपूर्ण से है.) ५७६९९. ज्योतिष फल संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२२(१ से २२)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ११४२३-४४).
ज्योतिष फल संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५७७०१. (#) सीमंधरस्वामीविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,११४४५). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामि सीमंधर
वीनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११६ अपूर्ण तक है.) ५७७०२. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, जैदे., (२६.५४१२, १६x४८).
उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलइ नउकारनइ उपधानइ; अंति: जिणाइ नवकारउ धणियं. ५७७०३. (+) बारभावना विलास, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. हीराचंद मेता दमाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १२४३६). १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणजुग पास; अंति: बुद्धि न होइ विरुद्ध,
गाथा-५२. ५७७०४. श्रीपालरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२६४११.५, १८४४९).
श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: कर कमल जोडेवि करि; अंति: न्यासागर० श्रीपाल,
गाथा-३२३. ५७७०५. (+#) शालिभद्र चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१०४३५).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७
__गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ५७७०६. कर्मग्रंथ यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १५-२२४१४-२३). १. पे. नाम. कर्मस्तव यंत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. बंधस्वामित्व यंत्र, पृ. ३अ+४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२९७ बंध स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अति: (-). ३. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ यंत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. ४. पे. नाम. षडशीति गुणस्थान यंत्र, प्र. ६अ, संपूर्ण.
षडशीति गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., आदि: देवगति २४११९६; अंति: ५११०६ सर्वास्तकाय. ५७७०७. (+) कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ.,
दे., (२६.५४१२, २७-३०४७८). १.पे. नाम. चारुदत्त कथा, पृ. १अ, संपूर्ण.
__ पुहिं., गद्य, आदि: जंबुद्वीपरा भरतखेत्र; अंति: रहे महाविदेह मोक्ष. २.पे. नाम. पंचेंद्रियदृष्टांत कथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
पंचेंद्रिय दृष्टांतकथा संग्रह, पुहि., प+ग., आदि: बालाभिरामेसु नतंसुह; अंति: वीरे हमे मोक्ष जावसी, कथा-५. ३. पे. नाम. मनुष्यभव दृष्टांत कथा, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__ मनुष्य दुर्लभता दृष्टांत कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चुलग पासग धन जुय रयण; अंति: (-). ५७७०८. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १६१०, श्रावण कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. सुरुहुरुपुर, पठ. श्राव. हरिवंशदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०५१) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५.५४११, १४४४०).
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहजिण पमुह; अंति: मनि आणदि संथुया, ढाल-७, गाथा-१००. ५७७०९. (#) चंदनबालासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७११, १३४३३). चंदनबालासतीरास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: असुभ करम के हरणकुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११५
अपूर्ण तक है.) ५७७१०. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले.पं. न्यायसौभाग्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ११४३९). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकुजवासिनी; अंति: सकल सफल गणिउरे, ढाल-१७,
गाथा-१०८. ५७७११. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१२, ११४३६).
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति:
वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ५७७१२. (+#) नवकार बालावबोध व कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१७(१ से १७)=८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३९). १.पे. नाम. नवकार बालावबोध, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एकसो आठ गुण कहिया, (पू.वि. "तृषापरीसह
विजय" पाठ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नवकार कथासंग्रह, पृ. १८आ-२५आ, संपूर्ण.
नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार इक्क अक्खर पाव; अंति: जण मोक्ष पामस्ये. ५७७१३. चौदगुणस्थान गर्भित शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१०, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. कुल ग्रं. २२५, जैदे., (२६४११.५, १३४३४).
शांतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर जग हित; अंति: शइ
मानविजय सुहं कुरु, गाथा-८५. ५७७१४. (+#) सज्झाय वरास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५४११.५, १०x२५).
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२९८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. विजयशेठ विजयाशेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेव नमु; अंति:
लालचंद विहार करता, गाथा-१६. २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रतनचंद० चोमास जी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. ८आ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. राजिमतीसती सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: गोखमा सखीयो संघात; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ५७७१५. जीवविचार बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११.५, १२-१५४४०).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवगइ १ इंदिय २ काये; अंति: (-), (पू.वि. १८ द्वार अपूर्ण तक है.,
वि. यंत्रबद्ध है.) ५७७१६. (+) आनंदघन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खयरवा, प्रले. मु. उदेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्, संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १२-१५४५७). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभजिनेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन० जागैजी वीर,
स्तवन-२४. ५७७१८. श्रमणसूत्र बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४१२, १३४४३).
साधुवंदित्तुसूत्र-स्थानकवासी-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सात भयनां थानक तेनी; अंति: शिष्य० बरोबर बेसे
तो.
५७७१९. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ११४३२). १.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: सेवक
केसरकुसल जयकरो, ढाल-५, गाथा-७५, ग्रं. ११०. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिधने करी; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ५७७२०. चंदनबालासती रास, संपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. सा. सुजानाजी आर्या; अन्य. मु. मनोहरलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १८४३६). चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: नर चहुंगत तणां फंदक,
गाथा-१६०. ५७७२१. (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ११-३(४ से ५,१०)=८,
प्रले.मु. प्रेमसागर (गुरु मु. जीतसागर); गुपि.मु. जीतसागर (गुरु क. दीपसागर); क. दीपसागर (गुरु पंन्या. भक्तिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२६४१२, ९४२८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर मंडन; अंति: देहि दसण जय करो,
ढाल-१२, गाथा-११६, ग्रं. १७०, (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से गाथा-६० अपूर्ण तक व गाथा-१०६ अपूर्ण से
गाथा-११६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७७२२. आगमिक प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ५६x२६).
आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: लोक आश्री प्रस्तते; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठांश नहीं हैं.) ५७७२४. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२०, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. सायमल (गुरु पं. रुघनाथ); गुपि.पं. रुघनाथ (गुरु पं. हरनाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १७४५३).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पून पाप; अंति: धिज माहे मोक्ष जायइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५७७२५ (4) अषाढभूति चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२,
१२x२८).
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"
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर अंति (-), ढाल १६, गाथा-२१८, ग्रं. ३५१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १०८ तक लिखा है.)
५७७२६. (#) अषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७९, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. नवानगर, प्र. वि. अन्य प्रतिलेखक ने एक श्लोक लिखकर एक अन्य पुष्पिका भी लिखी है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र. ले. लो. (५७) जिहां लगे मेरु महीधर, जैदे., (२६X११.५, १५X४५).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर, अंतिः कहे० परम कल्याण रे, ढाल १६. गाथा-२१८. ग्रं. ३५१.
५७७२७. (#) जंबूपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९-२२ (१ से २१,२८) = ७, ले. स्थल. पाटणनगर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे. (२६४१२, १६x४८).
२९९
जंबू पृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सर्वदा, अंति: मनरंगे वीरजी सुखकारी, ढाल -१३, संपूर्ण.
५७७२८. (+०) विद्याविलास चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९- २ (४८) = ७, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १३X३२).
विद्याविलास पवाडउ, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १४८५, आदि: पहिलं पणमिय पढम; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, गाथा- ३९ अपूर्ण से गाथा ५७ अपूर्ण तक, गाथा- ११३ अपूर्ण से गाथा - १३१ अपूर्ण तक व गाथा- १४७ अपूर्ण से आगे नहीं है.)
५७७२९. जिनप्रतिमा पूजा अधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१ (१) = ८, जैदे., (२६X११, १९X५७). ज्ञाताधर्मकथासूत्र - हिस्सा १६ अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ व अंत के पाठांश नहीं हैं.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - हिस्सा १६ अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति (-), पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.
५७०३०. आदिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैवे. (२६४१२.५, १२४२५-२८).
""
१. पे नाम आदिजिन छंद, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, वि. १८९४ वैशाख शुक्ल, ११, मंगलवार, ले. स्थल, पीपलरा, प्रले. मथेन हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
क. रामसुयश, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदिः आदि तिर्थंकर आखिरे; अंति: सदा दुख व असरण सरण. २. पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण.
आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सदाशिव राव आयो कपटकर; अंतिः रोड अवरन को नाहि, गाथा-४४,
५७७३१. चौमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २६११.५, १३X३०).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., प+ग, आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "साधु मौनव्रत धारण करी उभो रह्या" पाठ तक है.) ५७७३२. (+) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-२ (२ से ३ ) =९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x११, ११x२१-३६).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: सीमंधरसामी सुणयो; अंति: (-), (पू.वि. "साहिब सोभागी पूरव पुण्ये ते पायो रे" पाठ से " सबल प्रतापइं जीत्यो मीनति मांगं" तक एवं "अनुक्रम कह्यो ए श्री जिन" के पश्चात पाठ नहीं है.)
५७७३३. (+) श्रीपालचौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८ - १ (१) = ७, पू. वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६१२, १३x४०).
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३००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२ से ढाल-७,
गाथा-११ अपूर्ण तक व ढाल-९ से ढाल-११ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ५७७३४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१२(१,४ से ९,११ से १४,१६)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३९-४३). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रारंभ से
अध्ययन-२ अपूर्ण तक, अध्ययन-७ अपूर्ण से अध्ययन-१९ अपूर्ण तक, अध्ययन-२० अपूर्ण से अध्ययन-२६ अपूर्ण
तक, अध्ययन-२८ अपूर्ण से अध्ययन-२९ अपूर्ण तक एवं अध्ययन-३३ से आगे नहीं है.) ५७७३५. (+#) चौमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, ले.स्थल. चित्रोड,
प्रले.ऋ. लालमण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६९) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२६.५४१२, १८४३९). चातुर्मासिकव्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: आराधतां कुसलकण हुवौ, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., "ते सवा कोडिनो सार एक पदमाहे आण्यो" पाठ से लिखा है.) ५७७३६. (+) साधुपाक्षिकादि अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(३)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, ७४१९). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदं सणंमिअचरण; अंति: (-), (पू.वि. "ज्ञानाचार
विषइउ अनेरो जी" पाठ से पक्ष-३ तक व "काय कीडी तणा नग" पाठ के पश्चात नहीं है.) ५७७३७. (+#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १६९६, चैत्र शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. मेघजी ऋषि (परंपरा
आ. भागचंद ऋषि, लौंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६). सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., पद्य, आदि: नमीय सीमधर स्वामि; अंति: पड़ एणि विधि मलिदास ए,
गाथा-८७. ५७७३८. (#) नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४५).
नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५७५, आदि: आदि नमी आणंदहपूरि; अंति: (-),
गाथा-९५१, ग्रं. १३०५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६४ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७७३९. (#) नेमराजुल विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३१). नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "श्रीजिनचरण कमल नमुनमु सरब अणगार" पाठ से
ढाल-४ गाथा-१७ तक है.) ५७७४०. शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७४११.५, १०४२०).
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरीने; अंति: विमल० संपत्ति दोडी,
गाथा-३२. ५७७४१. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित लिखा है., जैदे., (२६.५४११, ४५-५२४१८-२३).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ५७७४२. (#) नवकार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले.पं. जीवराज; अन्य. आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३७).
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीइ. ५७७४३. (+#) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२४४११, १२४३०). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि श्रुतः, श्लोक-११. ३. पे. नाम. नवग्रहशांति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति-जिननामगर्भित, सं., गद्य, आदि: सूर्य निमित्ते पद्म; अंति: पार्श्वजिनो पूज्यो. ४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ५७७४४. (#) महावीरजिन पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३४-४०).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीविजयजिनेंद्रसूरि, (पू.वि. पाट परंपरा दिन्नसूरि से है.) ५७७४५. गजसुकुमाल चौपई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्रावि. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३८-४३). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोठ द्वारापुरी; अंति: सिद्धनइं नामुंसीस,
गाथा-९१. ५७७४६. (+) पुद्गलपरावर्त विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २६४१३).
पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ गुण २ तिसंख ३; अंति: वत सिद्धना सुख पामीइ. ५७७४७. धन्नाशालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ३,८)=५, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १३४२९).
धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) ५७७४८. (+#) सिंहासनबत्रीसी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४४). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराही श्रीरिषभप्रभु;
अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) ५७७४९. (+) महावीरजिन स्तवन व नववाडसीयलवेल, संपूर्ण, वि. १८९५, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. धोलेराबंदर,मोबी, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विक्रम १८८९ मिगसर वद ११ को लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि होने का उल्लेख मिलता है. संवत १८९१, शुक्ल पक्ष, १२, मंगलवार को इस प्रत के अर्पण करने का उल्लेख मिलता है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण..
महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. नववाड सीयल वेल, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रीसरसती समरु सदा; अंति: मिच्छामि दुकडु
सोयजी, ढाल-८. ५७७५०. (#) रास व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पठ. श्रावि. भाग्यवंति, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३३). १.पे. नाम. सनतकुमार रास, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जोए विमासी जीव तं; अंति: णइ मनि मनोरथ सवि
फलि, ढाल-७, गाथा-४४. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती, अंति: कहि पापथी छुटि ततकाल, ढाल-३,
गाथा-३६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५७७५१. (+) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. मु. हंसम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११.५, ९३३).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुनापावा, अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-६०.
२. पे नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्म, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाधा ५१. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण, प्र. ८अ १० आ, संपूर्ण.
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मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४५. ५७७५२. (#) नवतत्त्व चर्चा, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५, प्रले. करसनजी वेलजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४११, १२X४० ).
नवतत्त्व प्रकरण बोल, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: नवतत्त्वमांहि रूपि, अंति: भव आश्रीइ वार पामे. ५७७५३. (+#) चंद्रकेवलि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३३, मध्यम, पृ. ७६, ले. स्थल. जोजावर, प्रले. मु. उत्तमचंद्र ऋषि, दत्त. माधोराय गृही. मोटाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संवत् १८४५ में आनंदपुर में यह प्रत वांचन के लिए देने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै.. (२५.५X१०.५, १६४४६).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धरा नृपति, अंति: जयें वर्णका गुणचंदना,
उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा - २६७९.
५७७५४. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७४ + १ (५१) = ७५, कुल पे. १९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे.,
(२६.५x११, १८x४९).
१. पे. नाम. चोवीस दंडक ३० द्वार विचार, पृ. १आ- २७आ, संपूर्ण.
२४ दंडक ३० द्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु, गद्य, आदि: दंडकर लेस्यार ठितिर अंतिः ६ मासनं आंतरूं पडे. २. पे. नाम संज्ञा कषायादि नाम, पृ. २७आ, संपूर्ण,
संज्ञा व कषायादि नाम, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: संज्ञा ४ आहारसंज्ञा; अंति: ए च्यारे २४ दंडके छै. ३. पे. नाम, पत्रवणाश्रुतोक्त २४ दंडके लघुअल्पबहुत्व जीव सेली, पृ. २८अ २९अ संपूर्ण
प्रज्ञापनासूत्र- लघु अल्पबहुत्त्व ९८ बोल, संबद्ध, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम १ बोले सर्वथी, अंति: सर्वजीव विसे साहिया.
४. पे. नाम चोबीस दंडक जीवस्थिति विचार, पू. ३०-३१आ, संपूर्ण.
२४ दंडक बोल संग्रह, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी पूर्वि उत्तरि अंतिः समूचे जीव कह्या
५. पे. नाम, जोजनना खंडक विचार, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
योजन खंडक विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: जोजन २ना खांडूया, अंति: उदधिना खांडवा जाणवा. ६. पे. नाम. नंदभव तप, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
महावीरजिन पूर्वभव मासक्षमण तप वर्णन, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेवनो जीव; अंतिः तप कर्या ते
जाणवा.
७. पे. नाम. गुणस्थानक गत्यागत सेली, पृ. ३१आ - ३२अ, संपूर्ण.
गुणस्थानक गत्यागत विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: समूचे जीव मरण पामे; अंति के परभव न जाइ ८. पे. नाम. विराधकसेली भाव, पृ. ३२अ संपूर्ण.
विराधकभाव विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: जिम श्रीपार्श्वनाथनी; अंति: विचार विचार जाणवो.
९. पे नाम, अष्टकर्म नामप्रकृति भेद सेली, पृ. ३२आ-३५अ, संपूर्ण.
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म१; अंति: वर्ष अबाधा काल जाणवो. १०. पे नाम, चतुर्दश गुणस्थान नाम व विवरण, पृ. ३५-४० आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३०३ १४ गुणस्थानक नाम व स्थिति, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व; अंति: करइ पछे सिद्ध थाइ. ११. पे. नाम. नवतत्त्वद्वार सेली, पृ. ४१अ-४४आ, संपूर्ण.
नवतत्त्वद्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ अजीव; अंति: पामे अविचल सिद्धइं. १२. पे. नाम. दंडकसंग्रह सेली, पृ. ४५अ-४६अ, संपूर्ण.
दंडक संग्रह विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर१ गाहणर संघयण३; अंति: प्राण९ आयुषाप्राण१०. १३. पे. नाम. दंडकसंग्रहद्वार सेली, पृ. ४६अ-५१आ, संपूर्ण.
दंडक संग्रहद्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीमां शरीर३; अंति: नवमे समे विरह पडे. १४. पे. नाम. चौदगुणस्थान संग्रह गाथा सेली, पृ. ५२अ-५५अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचारगाथा संग्रह, धर्मदत्तदेव, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: गई४ इंदीय५ काए६ जोए; अंति:
ल. म. कु. को. १२ ल., (वि. गाथाक्रम अव्यवस्थित है.) १५. पे. नाम. मूल बासिठी चोवीस बोल संग्रह, पृ. ५५अ-६४आ, संपूर्ण.
६२ मार्गणा द्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: गति१ नरक इंद्री ५; अंति: बोल सेली जाणवी. १६. पे. नाम. अल्पबहुत्व भेद सेली, पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण..
अल्पबहुत्व भेद विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: ४ गति सर्वथा थोडा; अंति: आहारकी अनंत अनंतगुणा. १७. पे. नाम. उत्तरकर्मप्रकृति आलावग सेली, पृ. ६६अ-६९अ, संपूर्ण.
उत्तरकर्मप्रकृति आलापक विचार, धर्मदत्तदेव, प्रा., गद्य, आदि: संकित्ते छ नामे; अंति: सन्नीवाई ए छ नामे. १८. पे. नाम. मूलोत्तरप्रकृतिसंग्रह समास सेली, पृ. ६९अ-७०आ, संपूर्ण. मूलोत्तरप्रकृति संग्रह समासविचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: उदईए१ उवसमीएर खईए३; अंति: परिणामीक १
वसतो. १९.पे. नाम. बासठसंग्रह मार्गणाद्वार गुणठाणा १४ एवं ७६ बोल संग्रह सेली, पृ. ७०आ-७४अ, संपूर्ण. मूलोत्तरप्रकृति मार्गणाद्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: उदइकभाव २१ उपसमीक; अंति: उर्ध उपयोग
जूंजणा. ५७७५५. (+#) हरीबल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८४३, पौष शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले.स्थल. डभोडा, प्रले.पं. प्रेमचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३३). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधर जगधणी; अंति: लब्धिनी० फलज्यो
रे, उल्लास-४ ढाल ५९. ५७७५६. (#) चंद्रकेवलि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७-१९४३५-४१). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. ५७७५७. (+) आगमसारोद्धार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०५, माघ कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ६८, ले.स्थल. स्याणानगर,
प्रले. मु. रंगविजय (गुरु पं. दर्शनविजय, विजयआणंदसूरिगच्छ); गुपि.पं. दर्शनविजय; अन्य. पं. मानविजय (गुरु पं. अजितविजय, विजयआणंदसूरिगच्छ); पं. अजितविजय; मु. विनयविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. सुवधिनाथजी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२८x१२, १३४३५-४०).
आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: सफल
फली मन आस. ५७७५८. (#) सप्ततिकाकर्मग्रंथ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५६-२(१,९)=५४,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित
है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ से गाथा - ९० तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अंत में भांगा-यंत्रादि दिए गए हैं.)
सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ५७७५९. (#) विचाररत्नसार बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४१२, १०X३०).
-
विचारसार प्रकरण-बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: (-), (पू.वि. पुद्गलद्रव्य के भेद अपूर्ण तक है.)
५७७६०. धर्मोपदेशादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८१-३९ (१ से ३९ ) =४२, कुल पे. ४६, प्र. मु. डुंगरविजय (गुरुग, भीमविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, २-१२४३६).
"
१. पे. नाम. धर्मोपदेश सह वालावबोध, प्र. ४० अ- ४५अ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: श्रेयांसो मुनिदानतो, अंति: अंभ इव मौक्तिकं, गाथा- ७. जैन गाथासंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयांसकुमारे; अंति: मंगलीकमाला प्रामुं.
२. पे. नाम. धर्मप्राप्तिहेतु सह टबार्थ, पृ. ४५-४६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, मा.गु, पद्य, आदि: वंशत्रिण वाजिंत्र, अंतिः एक घडाबंध कवित्त ए. का. १. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मण १ क्षत्रि २; अंतिः एक धडाबंध कवित्त ए.
३. पे. नाम. चतुर्दश श्रावकगुण सह टबार्थ, पृ. ४६-४७अ, संपूर्ण.
श्रावक के १४ प्रकार, सं., प+ग., आदि: मृत् चालनी महिष हंस; अंति: भुवि चतुर्दशधा भवति.
श्रावक के १४ प्रकार- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माटीनी परे गुरुवचने, अंतिः श्रावक जाणवा.
४. पे. नाम. आठसिद्धि नाम सह टबार्थ, पृ. ४७अ, संपूर्ण.
८ सिद्धि नाम, सं., पद्य, आदि: अणिमा १ महिमा २; अंतिः वशित्वं ८ चेति, गाथा- १.
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८ सिद्धि नाम - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे अणिमानो स्यो; अंतिः वशित्व सिद्धि जाणवी. ५. पे नाम. सिद्धना ३१ गुण, पृ. ४७-४८अ संपूर्ण
सिद्ध के ३१ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीनी पांच अंतिः सिद्ध ३१ गुण जाणवा. ६. पे. नाम. पांच आचार, पृ. ४८अ ४८आ, संपूर्ण.
पंचाचार पालन स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाचार ते पोते अंतिः ते बीर्याचार कही.
७. पे. नाम. सम्यक्त्वना सडसठ बोल सह बालावबोध, पृ. ४८आ-५०अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: चउसदहण तिलिंग; अंतिः विसुद्धिं च समत्तं, गाथा-२.
सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि जीवादिक पदार्थ जाणवो अंति: उपाय सम्यक्त्व छे. ८. पे. नाम. आठकर्म विचार, पृ. ५० अ-५३आ, संपूर्ण.
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पड१ पडिहारा२ सिरे अंति: पांच भेद जाणवा.
९. पे. नाम. आठकर्म उपार्जना विचार, पृ. ५३आ-५५आ, संपूर्ण.
८ कर्म उपार्जना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणीकर्म; अंति: अंतराय कर्म बांधे.
१०. पे. नाम. एकवीस मिध्यात्वनाम, पृ. ५५ आ-५६अ, संपूर्ण.
मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: अभिग्रहिक मिथ्यात्व अंतिः भांगा जाणिवा. ११. पे. नाम. अष्टमंगी विचार, पृ. ५६अ, संपूर्ण.
आराधक - विराधक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणे न आदरे न पाले; अंति: चोवीस हजार एक सो वीस. १२. पे. नाम. नवतत्त्वना भेद, पृ. ५७अ -६३अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदिः १४ भेद जीवतत्त्वना, अंतिः नवभेदे भाख्यो
१३. पे. नाम जीवतत्वना ५६३ भेद, पृ. ६३-६४अ, संपूर्ण
५६३ जीवभेद गतिआगति विचार- २४ दंडके, रा., गद्य, आदि देवतांरा १९८ भेद, अंति: ७ नारकी पर्याप्ता.
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१४. पे. नाम. अजीवना ५६६ भेद, पृ. ६४अ - ६४आ, संपूर्ण.
५६६ अजीव भेद, मा.गु., गद्य, आदि: २०० वरणना २० घोलाना; अंति: ५६६ अजीवना भेद कह्या. १५. पे. नाम. आत्मानी आत्मता, पृ. ६४आ, संपूर्ण.
आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात् प्रदेशमई १ अंति: स्वभावनो कर्ता ४३.
१६. पे नाम. १४ धानक नाम, पृ. ६४आ- ६५अ, संपूर्ण.
समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः उच्चारेसु आ१ वडीनीत; अंति: सर्व अपवित्रमांहे. १७. पे. नाम. प्रमाणांगुलनो विचार, पृ. ६५अ - ६६आ, संपूर्ण.
प्रमाणांगुल विचार, मा.गु., गद्य, आदिः आंगुल तीन प्रकारना, अंतिः घणे काले आवै छै.
१८. पे. नाम. भारमान गाथा, पृ. ६६ आ, संपूर्ण.
१८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम कोडि अडतीस अंतिः कवि शुभ० कहे मोटा यति,
गाथा-३.
१९. पे नाम, पूर्वमान गाथा, पृ. ६६आ, संपूर्ण,
मा.गु., पद्य, आदि: सितर लाख कोड वरस; अंति: पूर्वसंख्या जोड, गाथा- १.
२०. पे. नाम क्षीणिमान गाथा, प्र. ६६आ, संपूर्ण.
अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., पद्य, आदि; दशलक्षदंति त्रिगुणां; अंतिः प्रमाणं मुनयो वदंति श्लोक-१.
२१. पे. नाम. चौसठ इंद्रनी विगत, पृ. ६६आ, संपूर्ण
६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: २० इंद्र भुवनपति; अंति: इम चौसठ इंद्र जाणवा.
२२. पे. नाम. पल्पोपम सागरोपम मान. पू. ६६ आ-६७अ संपूर्ण.
सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक कूओ च्यार कोस; अंति: प्रमाण कालचक्र कहीजै. २३. पे नाम, बरसीदान का मान, पृ. ६७अ, संपूर्ण.
वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, आदि: एक कोडिने आठ लाख दिन; अंति: भगतजी दीक्षा ल्ये.
२४. पे नाम, वारव्रतना नाम, पृ. ६७अ, संपूर्ण.
१२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपातव्रत मृषा; अंति: अतिथिसंविभागव्रत. २५. पे. नाम. पांच शरीर नाम, पृ. ६७आ, संपूर्ण.
५ शरीर नाम, मा.गु, गद्य, आदिः उदारिकर वैक्रियर अंति: आहारक शरीर विना.
२६. पे. नाम. साधुना पांच महाव्रत, पृ. ६७आ, संपूर्ण.
पंच महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात थकी; अंतिः घणो राखवो नहीं.
२७. पे. नाम जिनकल्पीना १२ उपगरण, पृ. ६७आ, संपूर्ण
जिनकल्पी के १२ उपकरण, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रो१ झोली २ रहेछलो; अंति: सर्वे मिली बारे था. २८. पे नाम. स्थविरकल्पीना १४ उपगरण, पृ. ६७आ, संपूर्ण
साधु के १४ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रो१ झोली२ हेठलो, अंति: २५ साध्वीने कह्या. २९. पे नाम, पांच धावर एकेंद्रीय जीव वर्णन, पृ. ६७-६८ अ, संपूर्ण
५ स्थावर एकेंद्रीय जीव, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय१ तेहना, अंति: काल अनंते सीम जाणवो. ३०. पे नाम, त्रस वे इंद्रियादिकना भेद, पृ. ६८ अ-६८आ, संपूर्ण.
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स वेइंद्रियादि भेद, मा.गु., गद्य, आदि चे इंद्री जीव संख; अंतिः उपजे तो संख्यातो काल. ३१. पे नाम. पंचेंद्रियना भेद, पृ. ६८आ-७१अ संपूर्ण
पंचेंद्रियजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते पंचेंद्रीना च्यार; अंति: जाल देवता आद देई. ३२. पे. नाम. अढीद्वीप जंबूद्वीपनो विचार, पृ. ७९ अ-७१ आ. संपूर्ण.
जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, आदि १ लाखनो जंबूद्वीप; अंतिः ए तीस अकर्म भूमि. ३३. पे. नाम. चउद गुणस्थानक, पृ. ७१आ - ७३अ, संपूर्ण.
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७३अ-७३आ, सीवमत्त; अंति: सब
विजहंति ए'
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व१ सास्वादन२; अंति: तिवार पछे सिद्ध थाइ. ३४. पे. नाम. षड्द्रव्यगाथा सह टबार्थ, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण.
६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीवमुत्त; अंति: सब गदमिय रहीय पवेसो, गाथा-१.
६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कोण द्रव्य परिणामी; अंति: विजहंति ए वचन माटे. ३५. पे. नाम. सामाइकना ३२ दोष आदि, पृ. ७३आ-७४आ, संपूर्ण.
सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दस दोष मनना आविवेऊ१; अंति: दोष सामायकना कह्या. ३६. पे. नाम. कल्पवृक्षनाम गाथा सह टबार्थ, पृ. ७४आ, संपूर्ण.
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मतंगा१ भियंगार तुडि; अंति: गेहागारा९ अणियेणा१०, गाथा-१.
१० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मतंगा कहतां मदिरा; अंति: वस्त्र मनोवंछित दिई. ३७. पे. नाम. जीवोत्पत्तिविचार गाथा सह अर्थ, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण.
जीवोत्पत्ति विचार गाथा, सं., पद्य, आदि: अंडजाः पक्षिसाद्य; अंति: घोए उपपातक देवनारकाः, श्लोक-२.
जीवोत्पत्ति विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंखीजात सर्पजाति ए; अंति: लाख जीवाजोनिनी छै. ३८. पे. नाम. तीनवेदनी गाथा सह अर्थ, पृ. ७५अ, संपूर्ण.
पुरुषस्त्रीनपुंसकवेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पुंसा दसकोडिणं पन्नर; अंति: ठिवमाण नपुंसगा हुती, गाथा-१.
पुरुषस्त्रीनपुंसकवेदगाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषवेदनी स्थित दस; अंति: स्थिति तीनवेदनी छै. ३९. पे. नाम. पंचसम्यक्त्वविचार गाथा सह अर्थ, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण.
पंचसम्यक्त्वविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: क्षायक उपसम वेदो; अंति: जिणागमे पंचमे भेयंमि, गाथा-१.
पंचसम्यक्त्वविचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो क्षायक सम्यक्त; अंति: सम्यक्त आउली समाधि. ४०. पे. नाम. पंचमिथ्यात्वविचार गाथा, पृ. ७५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: अभिगाह अनाभिगो; अंति: एवो एएसो होइ मित्तठी, गाथा-१.
पंचमिथ्यात्वविचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो अभिग्रह मिथ्या; अंति: पंचेंद्रीने हुई. ४१. पे. नाम. स्वासोच्छवास गाथा सह अर्थ, पृ. ७५आ-७६अ, संपूर्ण.
श्वासोच्छ्वास गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तिन्निसहस सतसय; अंति: भरकोठ चउसहस्स सतवरवा, गाथा-१.
श्वासोच्छ्वास गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन हजार सात से; अंति: वरसना सासोस्वास ल्ये. ४२. पे. नाम. देवता अधिकार गाथा सह अर्थ, पृ. ७६अ, संपूर्ण..
देवताअधिकार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अणमिसनयणा कजसाहणा; अंति: सुराजिणाभंति, गाथा-१.
देवता अधिकार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अणमिसनैणा कहता देवता; अंति: धरतीसुऊंचोरहे. ४३. पे. नाम. वैमानिक अधिकार गाथा सह अर्थ, पृ. ७६अ, संपूर्ण.
वैमानिक अधिकार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: एगदिवसंपि जीवो; अंति: अवस्स वेमाणीयो होइ, गाथा-१.
वैमानिक अधिकार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो जीव एकाधिक दिवस; अंति: उपजी जीव मुक्ति पामे. ४४. पे. नाम. विचारगाथासंग्रह सह अर्थ, पृ. ७६आ-७७आ, संपूर्ण.
विचारगाथा संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: कुसगहे जहा ओसबिंदुए; अंति: जीवं पाडंति संसारे, गाथा-५.
विचारगाथा संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कुस कहीजे डाभ जिणरी; अंति: सारसमुद्रमांहे रलावै. ४५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन सह अर्थ, पृ. ७७आ-७८अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: साहू सगवीस अट्ठसयं.
५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण बारे ते; अंति: सघलाई १०८ गुण कह्या. ४६. पे. नाम. साधुआचार संख्यागाथा सह अर्थ, पृ. ७८अ-८१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
साधु आचारसंख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इह जीविय अनिमित्ता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ तक है.) साधु आचारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिके अग्यानी जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ का अर्थ अपूर्ण
तक है.)
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३०७ ५७७६१. (#) कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१७, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. नोरंगाबाद, प्रले.सा. कीसनी आर्या;
सा. चैनजी आर्या; सा. कुसाल्या आर्या; सा. चंदुजी महासती, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं.५५५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११४३०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्त श्रीसुखसंपदा; अंति: जयरंग० मन उलसैं वे,
ढाल-३१, गाथा-५५५. ५७७६२. (+#) श्रीपालरास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४४-१(१)=४३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९-१३४२२-३०). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
ढाल-१, गाथा-११ से ढाल-४२, गाथा-३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५७७६३. योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३७, दे., (२७४१२, १४४४१).
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअक्खंधो; अंति: सरीरभेउं त्ति बेमि. ५७७६४. पद्मनी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८-३(१ से ३)=३५, जैदे., (२५४१०.५, ११४४०).
गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदिः (-); अंति: लब्धिउदय० सफल सुरकंद, खंड-३ ढाल
३९, गाथा-८१६, (पू.वि. ढाल-९, गाथा-१ अपूर्ण से है.) । ५७७६५. (+#) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७७०, चैत्र कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. शेषपुर,
अन्य. आ. हीरविजयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३१). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
चरणांबुजे; अंति: मोहनविजय मंगलमालो बे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ५७७६६. (+) दंडक विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१(१)=३०, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ६००, जैदे., (२५.५४११, १२४२१-३९). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मास ६४ आंतरु, (पू.वि. मनुष्य कर्मभूमि के जीवों के नाम
अपूर्ण से है.) ५७७६७. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, दे., (२६.५४११.५, १३४४०).
प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: विसर्जन मंत्र, (वि. कोष्ठकादि सहित.) ५७७६८. (+#) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९०, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. पं. प्रेमचंद; उप. मु. मूलजी ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. १०८७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, १४४४५). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमु; अंति:
सूरविजय० जय जयकार हो, खंड-३ ढाल ३२, गाथा-७७७. ५७७६९. (#) अंजनारी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. वडलूग्राम, प्रले. मु. मालचंद ऋषि (लुका नागोरी),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.८०५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १३४३६-४०).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगौतम गणधर प्रमुख; अंति: पुण्यसागर०
मंगलमाल, खंड-३ ढाल २२, गाथा-८०५. ५७७७०. (+#) रामकृष्ण रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, प्रले. पंन्या. प्रतापविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १८००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १९४५१). रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: जगति आदिकर जगतगुरु; अंति: लावण्यकीरति०
जस अखंड, ढाल-६८, गाथा-१२५१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५७७७१. (+#) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. चंडावलनगर,
प्रले. मु. हितसौभाग्य (गुरु पं. क्षमासौभाग्य); गुपि.पं. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य); ग. रामसौभाग्य (गुरु पं. जयसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी
ग. रामसौभाग्य); ग
, जद., (२५.५४१०४ाय प्रसादात्., संशोधित
रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति:
वो जयजयकार रे, खंड-३, गाथा-७७४. ५७७७२. (+) बावनाचंदन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२९, कार्तिक कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. अलायग्राम,
प्रले.मु. चंद ऋषि (गुरु मु. राजसिंह); गुपि.मु. राजसिंह (गुरु मु. उदयचंद्र); मु. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२५.५४११, १५४४५-५०).
वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: प्रणमुसारद
सामनी; अंति: मोहनविमल० बालोरे, ढाल-३८, गाथा-८७६. ५७७७३. (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-२०(१ से २०)=२५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२-१४४३०-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-२, गाथा-३६४ अपूर्ण से खंड-३, गाथा-७९२ अपूर्ण तक है.) ५७७७४. (#) ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५१-२७(१ से २३,२६ से २९)=२४, प्र.वि. अंत के पत्रांक खंडित होने से ४५ से ५१ अनुमानित पत्रांक लिए गए हैं., अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२७४११, ९-११४३०). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: कुशललाभ० संपति सदा,
गाथा-७११, (पू.वि. गाथा-२७७ से है व बीच-बीच के पाठ भी नहीं हैं.) ५७७७५. (+) योगदृष्टिस्वाध्याय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४०, वैशाख शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. शिवपूरी, प्रले. ग. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ४-१५४३२-४२). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक
यशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६.
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं; अंति: हेते लिख्यो छे. ५७७७६. (+) प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १८४१, भाद्रपद कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, प्रले.पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६४५१).
प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: साहमी भक्ति करे, (पू.वि. कुंभस्थापन विधि अपूर्ण से है.) ५७७७७. (+#) भरतेसरनी ढाल, अपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, ले.स्थल. मोरबी,
प्रले. श्राव.जेचंद धर्मसी सेठ,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.७००, मूल पाठ का अंश खडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४४०).
भरतचक्रवर्ती रास, पासोपटेल, मा.गु., पद्य, वि. १८१८, आदि: (-); अंति: ढाल-२०, (पूर्ण, पू.वि. ढाल-१,
गाथा-११ से है.) ५७७७८. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३४). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: कर कमल जोडेवि करि; अंति: ज्ञान० भूपति श्रीपाल,
गाथा-३१९. ५७७७९. (+) दंडक बोल व अजीवना बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-४(१ से ४)=१९, कुल पे. २, अन्य. मु. शोभाचंदजी
स्वामी; मु. मोतीचंदजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४३१-३७). १.पे. नाम. २४ दंडक बोल, पृ. ५अ-२३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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३०९ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मास ६ नउ आंतरउ पडइ, (पू.वि. किंचित् प्रारंभिक पाठांश
नहीं हैं.) २. पे. नाम. अजीवना बोल, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
अजीवपुद्गल ५३० भेद-पनवणावृत्तौ, मा.गु., गद्य, आदि: पांचइ वर्णना १००; अंति: अनुक्रमि जाणवा सही. ५७७८०. योगदृष्टिसज्झाय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१,१३)=१५, पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ४-१८४४१). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक
जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६, संपूर्ण. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रारंभ व अंत के कुछ पाठांश नहीं हैं व ढाल-८ की गाथा-३ के बालावबोध का प्रारंभिक अंश नहीं है.) ५७७८१. (#) वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु.रूपचंद्र
(गुरु पंन्या. हेमसागर, अविचलगच्छ); गुपि.पंन्या. हेमसागर (गुरु पं. विनयसागर, अविचलगच्छ); पं. विनयसागर (अविचलगच्छ); पठ. श्राव. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्रप्रभु जिनालये धरमसाला मध्ये., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १२४२८). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुखसंपतिदायक सदा जग; अंति: जिणहरख०
पंकविखंडनाय, पूजा-२०. ५७७८२. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८१५, भाद्रपद कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १६-२(३ से ४)=१४, ले.स्थल. सादडीनगर,
प्रले. मु. पुरुषोत्तमविजय (गुरु पं. कस्तुरविजय); गुपि.पं. कस्तुरविजय (गुरु पं. रूचिविजय); पं. रूचिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चारूर पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६०९) लेखणहारा अति चतुर, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (१०५३) जब लग मेरू अडग है, जैदे., (२५४११, २२-२७४६५). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: मोहनविजयमंगलमालो है, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-६, गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-१३,
गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७७८३. (+) ढालसागर- अधिकार ३ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. सा. वखतबाई (गुरु सा. शाकरबाई); गुपि.सा. शाकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४३५). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-३ से ढाल-४
की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५७७८४. (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-७(६,१४ से १७,१९ से २०)=१६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४१२, १५४३६-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३, ढाल-४, गाथा-५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)। ५७७८५. (+) अमरसेनवयरसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४४२). अमरसेनवयरसेन चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: अक्षर राजा जिम अधिक; अंति: परमाणंद
सुख पावैजी, ढाल-१८, गाथा-३५३. ५७७८६. (+#) तेतलमंत्रि प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,११४३८). तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५९५, आदि: शासनदेवि नमुंमहासती; अंति: सहजसुंदर० सफल
विहाण, गाथा-२६४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३१०
५७७८७, (+) आराधना सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-१ (१) १३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२, १२-१४४३३-४०).
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पर्यंताराधना- चयन, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: जस्स धम्मे सयामणो, गाथा- ४०, संपूर्ण. पर्वताराधना- चयन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष रा सुख लहे, (अपूर्ण, पू. वि. किंचित् प्रारंभिक पाठांश नहीं हैं.)
५७७८८. (+०) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०-७ (१ से २,१३ से १७) १३, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७१२, १५X३९).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, गाथा ४९ अपूर्ण से नहीं है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
५७७८९. (+) अध्यात्मगीता, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १२-३ (१ से ३) = ९, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x१२, १२x४१). अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: जोतसुं जोत मिलाय, ढाल - ९, गाथा - २४२, (पू. वि. डाल- २, गाथा २० अपूर्ण से है.)
५७७९०. (+) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८२, चैत्र कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. औरंगाबाद, पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई (श्रीमाली), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित संशोधित, जैवे (२६.५x११.५, ३X३३).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुदाओ, गाथा ५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिणि भुवनइ विषई; अंति: रूपी समुद्र तेहथी.
५७७९१. चोवीसठाणाना बोल, अपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(३) + १ (२) =११, ले. स्थल, साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७११.५, ५०×१५).
२४ स्थानक यंत्र में, प्रा., मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.)
1
५७७९२. (+) संजया नियंट्ठा बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९, पौष शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-२ (१ से २ ) = १०,
ले. स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. मकनजी जानी@; पठ श्रावि. चांपाबाई, अन्य. सा. नाथीबाई (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि. सा. हेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६.५X११.५, २८x२०).
चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: तेथी सामा० ना संखे ०५, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पुलाक बकुस पाठ से है.)
५७७९३. (+) वीसविहरमानजिनस्तवन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे.,
( २६१२, ११x२८).
१. पे. नाम, बीसवेहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ १०अ संपूर्ण,
विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयो; अंति: वाचक इम बोले रे, स्तवन- २०.
२. पे. नाम. भीडभंजनपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः स्या माटे साहिब साहम; अंतिः परमउदय० न रह्या लाछो, गाथा-५.
३. पे. नाम. पुडंरिकगिर स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: एकदिन पुंडरीक गणधरो अंति: बान विशाल मनोहारी रे,
गाथा-५.
५७७९४. (+) जंबुद्वीप विचार, संपूर्ण वि. १९०३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - संशोधित., दे., ( २६.५X११, १४X४६-५१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३११ लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडाजोयणदि दस बोलनो; अंति: किंचित् मात्र वर्णन. ५७७९५. (+#) बोल, सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, प्रले.मु. तेजसी ऋषि (गुरु मु.रामजी
ऋषि); गुपि.मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३१). १. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आठ बोले जीवने मोक्ष; अंति: खांड भराय नहीं. २. पे. नाम. सतीनी सज्झाय, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.
मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नामे पूने ग्यानी; अंति: जेमल०सासनना मोटी सती, गाथा-३७. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: मोहन० रुपनो ललना, गाथा-७. ४. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणेशर जाणजो; अंति: मानविजय० रे लाल, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा-संगति विषयक, पृ. ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: तोता तरुवर बैठके लेत; अंति: लेत इल्लला नाम, दोहा-१. ५७७९६. दंडकनां २९ द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२५.५४११, १५४३९).
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. ५७७९७. तपागच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८९७, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सेवाडी, प्रले. पंडित. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११४३५).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: देविंद्ररिजी ६९. ५७७९८. (+#) बार तपभेद विवरण व बार भावना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-७(१ से७)=५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. बार तपभेद विवरण, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामी सिवपद जासै, (पू.वि. अभ्यंतर तप के तीसरे भेद
"वैयावच्च तप" अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. बार भावना, पृ. ९अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
१२ भावना, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अनित्य भावना; अंति: (-), (पू.वि. ग्यारहवीं "बोध भावना" अपूर्ण तक है.) ५७७९९. (+) पुण्यसार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३७).
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं; अंति: पुण्यकीरति०
___ तस गेह, ढाल-९, गाथा-२०८. ५७८००. ज्ञानपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, जैदे., (२६४११.५, ९४३२).
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मोक्ष प्राप्त हुवै. ५७८०१. (+) पंद्रहतिथि थूई वनारी चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५,
१०४३९). १. पे. नाम. १५ तिथि स्तुति संग्रह, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: लीला लच्छि लहति, स्तुति-१६, गाथा-६४. २.पे. नाम. नारी चरित्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है.
___ मा.गु., गद्य, आदि: तिलकपुर ब्राह्मण वसइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५७८०२. (+-) सिद्धाचलमहिमा वर्णन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे.,
(२६.५४१२, १४४३०-३४). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थमाहात्म्य वर्णन, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: सेजयगिरि१ पुंडर; अंति: पछे खमासमण ३ देई.
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३१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सिद्धाचल वर्णन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
शQजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: रषीणं जतः पंचभीकोटि; अंति: प्राप यत्रैव राम, श्लोक-८. ५७८०३. (#) मदनरेखा चौपाई व अषाढाभूति पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४७-५०). १. पे. नाम. मयणरेहारी चोपी, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १८७९.
मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा दारु मास तणी; अंति: परनारी त्यागीजो, गाथा-१७८. २.पे. नाम. आषाढाभूति पंचढालिया, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ५७८०४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(२ से ४)=७, प्रले. मु. भागचंद्र यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १०४३३). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्,
(पू.वि. "अर्थ कूडो कहिओ" अपूर्ण से "लीपणे रूडी जयणा न कीधी" तक पाठ नहीं है.) ५७८०५. (+#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९१०, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १०-३(२,४,९)-७, पठ. श्राव. जीवाभाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ११४३०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे,
पूजा-९, (पू.वि. अरिहंतपद पूजा अपूर्ण से सिद्धपद पूजा अपूर्ण, आचार्यपद पूजा अपूर्ण से उपाध्यायपद पूजा अपूर्ण
व अंतिम पूजा किंचित् अपूर्ण है.) ५७८०६. (+) पौषधनी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १२४१७-२९).
पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहियाए थापना; अंति: गणि सागरचंदो कहवा. ५७८०८. (#) बावनी व स्थूलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२६४११, १३-१७४३३-३६). १.पे. नाम. प्रस्तावीक बावनी, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक बावनी, ग. रूपवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १८२५, आदि: ॐकार अगाध पार किणही; अंति: रूपवलभ चढती
रे, गाथा-५८. २. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पा. रुघपत, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुरनगर प्रमाणै; अंति: रुघपति० पाया हो राज, गाथा-१७. ५७८०९. (+) कर्मप्रकृति बंधादि भांगा-यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १७७५२).
। कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह , मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चतुर्विध बंध से चक्रवर्तीजीव बंध तक है.) ५७८१०. बारभावना व रोहीणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. रुषड झवेर भावसार; अन्य. श्राव.घेला
साह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १२४३१-३६). १.पे. नाम. बारभावना, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: वन भणी
जेसलमेरू मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८. २.पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने मात्र २ गाथा लिखकर प्रतिलेखन पुष्पिका लिख दी है. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य नमी स्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२
तक लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३१३ ५७८११. चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. खेमचंद ऋषि (गुरु मु. उग्रसेन ऋषि); गुपि.मु. उग्रसेन ऋषि (गुरु मु.स्वामीदास ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४११, १७४५६). चंदनबालासती रास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चंदनबाला मोटी सती; अंति: ब्रह्मराई निर्वाणतो,
गाथा-१४३. ५७८१२. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. भृगुकच्छ, प्रले. राम पं., प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४४५-४९). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५,
(पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ५७८१३. (+) विषापहार स्तोत्र व नवकार छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पठ. सा. श्रृंगारकुंवरबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, ११४३८). १.पे. नाम. विषापहार भाषा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, प्रले. श्राव. पनालाल, प्र.ले.पु. सामान्य. विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: वीस्वनाथ वीमल गुणईस; अंति: सदा श्रीजिनवर
को नाम, गाथा-४१. २. पे. नाम. नवकारजी छंद, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ शुक्ल, १२. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: रिद्धि वांछित
फल लहे, गाथा-१४. ५७८१४. ज्ञानादिनयमतविवरणपरं श्रीमहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १०x४६).
महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि:
श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: लक्ष्मीसूरी० जयकार ए, ढाल-८, गाथा-८१. ५७८१५. (+) आनंदघन चौवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७८, प्रले. भाईचंद गोर; पठ. श्राव. गोकल सुखचंद दोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १०४३३). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: रे आतम रूप अनूप,
स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंद आनंदमय चिदरू; अंति: थया नीतु निठ पद निठ,
(वि. टबार्थ व बालावबोध दोनो में समान पाठ है.) ५७८१६. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८०७, श्रावण शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३४-१८(४१
से ४४,५२,८३ से ९५)=११६, ले.स्थल. सितपत्रनगर, प्रले. मु. सुमतिवल्लभ पं.; मु. कुशलिभक्ति पं.; पं. सुमतिधर्म; पं. चारित्रशील (गुरु ग. सुमतिहिम); गुपि. ग. सुमतिहिम (गुरु वा. सुमतिसुंदर गणि); वा. सुमतिसुंदर गणि (गुरु ग. सुमतिविमल); ग. सुमतिविमल (गुरु वा. विनयलाभ); वा. विनयलाभ (परंपरा आ. जिनचंदसूरि); आ. जिनचंदसूरि; अन्य. श्राव. रामचंद; श्राव. हीरानंद; श्राव.रूपचंद; पठ. मु. हेमराज पं.; मु. सिवीयादास पं., प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५-१४४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो० अरिहंत; अंति: आगै एहवौ कहिता हुआ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदामि भद्दबाहु, (२)अहँत भगवंत उत्पन्न; अंति: खमाविवौ
निश्चै सेती. ५७८१७. (+) सीताराम चौपई, अपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९२-२०(१ से २०)=७२,
प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२७४११,१५४४०-४५).
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३१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: आणंद कोडि कल्याणौजी, खंड-९,
गाथा-२४१२, (पू.वि. खंड-४ की ढाल-४ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ५७८१८. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७७४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १०४३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण
तणी; अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४ढाल ४१, गाथा-१८००. ५७८१९. (#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३०-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेली कवियण
तणी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम ढाल की प्रशस्तिगाथा अपूर्ण तक है.) ५७८२०. (#) बोल, विचार व थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७५, कुल पे. ३०,
ले.स्थल. मांघरोलबंदर, प्रले. श्राव. विट्ठलदास धनजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११.५, १६४४६-५०). १. पे. नाम. लेश्या के ११ द्वार विचार, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामाइं वणरसगंध फास; अंति: अने सारी गतीए जाय. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्तन थोकडो, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ गुण २ तिसंख ३; अंति: कार्मणपु० अनंतगुणा७. ३. पे. नाम. आहारिक अनाहारिक थोकडो, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.
आहारिक अनाहारिक १४द्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: दिठी संजये कसाये; अंति: णारिक माटे भागो नथी. ४. पे. नाम. सप्रदेशी अप्रदेशी भांगा थोकडो, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सप्रदेशअप्रदेश विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सवएसी आहारगभवाए संनी; अंति: सप्र० अप्रना
भांगा३. ५. पे. नाम. पढम अपढम बोल, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-शतक-१९ प्रथम उद्देसे प्रथम अप्रथम विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पढम आहारग भव्वा
संनी; अंति: अपत्त पुवेसु भावेसु. ६. पे. नाम. चरम अचरम थोकडो, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण.
चरम अचरम विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चरम आहारगभवाए संनी; अंति: तेए भावेण सो चरीमो. ७. पे. नाम. आलोयणा ५० बोल, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
आलोयणा के ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कंदर्पनो पीड्यो दोष; अंति: ने दसमो प्रायछित आवे. ८. पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक १३ उद्देश १२ प्रश्नोत्तर, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण.
भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर संग्रह, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: पहेली नरके ३० लाख नर; अंति: द्रष्टिलाभे सेष नथी. ९. पे. नाम. सोवचियादि ४ पद ७बोल विचार, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सोवचिया सावचिया विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सोवचीया ते वधे पण घट; अंति: करवो ते न्याये
जाणवो. १०.पे. नाम. बंधे लगामु के लगा विचार, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण.
प्रतरश्रेणि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे प्रतरने श्रेणी; अंति: नारकीनी परे जाणवा. ११. पे. नाम. खेत्ताणुवाई विचार, पृ. १४आ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित.
खेतागुंवाइ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ एकेंद्री२ एकंद; अंति: लोए संखेज गुणा६. १२. पे. नाम. ५ शरीरनो थोकडो, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३१५ ५ शरीर वर्णन-पन्नवणासूत्र मध्ये, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार१ अर्थद्वार२; अंति: कार्मणनो आंतरो नथी,
(वि. द्वार-१५.) १३. पे. नाम. ५ इंद्रियनो थोकडो, पृ. १९आ-२१अ, संपूर्ण.
५ इंद्रिय २० द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार१ संठारद्वार; अंति: उ० प्र० जोजन लगे. १४. पे. नाम. ५ सुमति ३ गुप्ति बोल, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण.
८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ सुमतिना नाम कहे छे; अंति: ते निःसंदेहथी जाणवं. १५. पे. नाम. रूपी अरूपी बोल, पृ. २२आ, संपूर्ण.
रूपीअरूपी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: रूपीना बोल ३० ते कहे; अंति: फर्स ए २० बोल न पामे. १६. पे. नाम. सर्व बंधदेशनो थोकडो, पृ. २२आ-२५अ, संपूर्ण.
भगवतीसूत्र- सर्व बंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उदारिक सरीर केणे; अंति: १७. पे. नाम. २१ द्वार बोल, पृ. २५अ-२९आ, संपूर्ण.
अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नयद्वार१ निखेपद्वार२; अंति: दीनरात गमावे. १८. पे. नाम. भाषानो थोकडो, पृ. २९आ-३२अ, संपूर्ण.
प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: २३९ बोलना पुद्गल लइन; अंति: भाषाना ४२ प्रकार
१९. पे. नाम. समोसरण बोल, पृ. ३२अ-३५आ, संपूर्ण. समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेश पखी दिट्ठी; अंति: भव्य अभव्य बे
होय. २०. पे. नाम. बंधीस्वरूप बोल, पृ. ३५आ-३८अ, संपूर्ण.
बंधशतक-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पक्खी३ दीठी४ नाण५; अंति: शतक १६ नो उदेशे ११मो. २१. पे. नाम. कायस्थिति बोल, पृ. ३८अ-४०अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रिय काय; अंति: सपजवसीए साइए अपजवसीए. २२. पे. नाम. लब्धि बोल, पृ. ४०अ-४२आ, संपूर्ण.
लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ गइ२ इंदिय३ काय४; अंति: नाणना पजवा अनंतगुणा. २३. पे. नाम. ४ ध्यान बोल, पृ. ४२आ-५०अ, संपूर्ण.
४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: से किं ते झाणे चउविह; अंति: ४थी अणुप्पेहा जाणवी. २४. पे. नाम. साधुजीना चोरासी उपमा बोल, पृ. ५०अ-५३अ, संपूर्ण.
मुनि की ८४ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: इहां जे सामायक समूचे अंति: संताप दुख वेगलो करे. २५. पे. नाम. तेत्रीसबोलनो थोकडो, पृ. ५३अ-५९आ, संपूर्ण.
३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: निवर्तु छु हे भगवान; अंति: प्रधान तीम सर्व० ३२. २६. पे. नाम. २४ तीर्थंकर के ८४ बोल, पृ. ५९आ-६९अ, संपूर्ण.
२४ जिन ८४ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेला सर्वार्थथी चव्य; अंति: नक्षत्रे जन्म्या२४. २७. पे. नाम. २०विहरमानजिन द्वार विचार, पृ. ६९अ-७०आ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीमंदिरस्वाम; अंति: पूर्वली परे जाणवा. २८. पे. नाम. १२चक्रवर्ती द्वार विचार, पृ. ७०आ-७२अ, संपूर्ण.
१२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला भरतचक्रवर्ती, अंति: नेमनाथना शासनमे हुवा. २९. पे. नाम. ९ वासुदेव द्वार विचार, पृ. ७२अ-७४अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पेला त्रिपृष्ठवासु; अंति: अंगुल प्रमाणे छे. ३०. पे. नाम. ११गणधर द्वार बोल, पृ. ७४अ-७५अ, संपूर्ण.
११ गणधर परिवार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला गणधर गोबरग्रामे; अंति: पालीने मुगते गया१२.
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३१६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५७८२१. (+#) सीताराम चौपई, संपूर्ण, वि. १७८३, श्रावण शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ७३, ले. स्थल. लूणसर, प्रले. पं. दुलीचंद (गुरु पं. सदासुख गणि); गुपि. पं. सदासुख गणि (गुरु वा. दर्शनसुंदर गणि); वा. दर्शनसुंदर गणि (परंपरा आ. कीर्तिरत्नसूरि); आ. कीर्तिरत्नसूर (बृहत्खरतर गच्छ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ३७०० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५X१०, १६४३८-५६).
रामसीता रास, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: समयसुंदर ० कल्याणोरे, खंड - ९, गाथा - २४१७, ग्रं. ३७००.
५७८२२. विक्रम चरित्र, संपूर्ण वि. १७८९ वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७५, प्रले. पं. रिद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१अ पर गाथा-७ तक लिखकर छोड़ दिया है तथा पुनः १ आ से क्रमशः लिखा है., जैदे., (२७.५X१२, १४४४४). विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पय; अंतिः लखमीवल्लभ० उछरंग वधाइ, खंड-६ढाल ७५, गाथा- ३१६८.
५७८२३. (+) विवेकविलास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५८, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ७४+३(१०, ४०, ४४) =७७, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र. ले. श्लो. (२०५५) यादृशं पुस्तके दृष्टा, जैदे., (२५.५X१०, १५x५४).
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विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस, अंतिः लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास १२. विवेकविलास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रंथकर्ता कहइ छइ ते; अंति: मोक्षमार्ग उपार्जइ.
५७८२४. (+) चंद रास, संपूर्ण वि. १७९३, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६९, ले. स्थल, मुंडेठा, प्रले. ग. कुशलविजय (गुरु
मु. रत्नविजय); गुपि. मु. रत्नविजय (गुरु ग. शुभविजय); ग. शुभविजय (गुरु ग. विमलविजय); ग. विमलविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपागच्छ). प्र. ले. पु. सामान्य प्र. वि. श्रीभीलडीयापार्श्व प्रसादात्.. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैवे. (२६.५४११.५, १८४४५-५०)
"
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धरा धवति प्रथम, अंतिः मोहनविजये० गुण
चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा - २६७९.
५७८२५. (+) श्रीपालरास सह टबार्थ-चतुर्थ खंड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२, ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. श्रीचंतामण प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., २-१८४४०४६).
(२६.५X११.५,
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी प्रतिपूर्ण
श्रीपाल रास - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
५७८२६.
(+) श्रीपाल रास सह टबार्थ - चतुर्थ खंड, संपूर्ण, वि. १८४२, माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ५२, ले. स्थल. सुरतबिंदर, प्रले. मु. रत्नचंद (गुरु मु. हर्षचंद); गुपि. मु. हर्षचंद, पठ. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, ५X३०).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आवि: (-); अंति: ज्ञान
विशाला जी, प्रतिपूर्ण
श्रीपाल रास - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: क० मोक्ष पदवी पामें, प्रतिपूर्ण.
५७८२७, (+०) जंबूकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५३-२ (१ से २) ५१, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ९X३४).
जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंतिः नितु कोडि कल्याण, ढाल ३५, गाथा - ६०८, ग्रं. १०११ (पू.वि. डाल- २ गाथा ४ अपूर्ण से है.)
५७८२८. आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २६.५X१२, १०x२९). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-), (पू.वि. छ द्रव्य स्पर्श वर्णन
प्रारंभ तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३१७
५७८२९. (4) तेजसारनृप प्रबंध, संपूर्ण वि. १९२५ पौष शुक्ल २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले. स्थल, सीरसाला, प्रले. मु. रूपचंद्र (गुरु पंन्या. हेमसागर, अविचलगच्छ); गुपि पंन्या. हेमसागर (गुरु पं. विनयसागर, अविचलगच्छ) पं. विनयसागर (अविचलगच्छ); पठ. सा. जडावश्री (गुरु सा. केसरश्रीजी); गुपि. सा. केसरश्रीजी, अन्य. मु. नंदलाल (गुरु मु. रूपचंद्र, अविचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत्येक उड़ास के अंत में प्रतिलेखन पुष्पिका लिखी गयी है. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १६x४१).
तेजसारनृप चौपाई, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८०१, आदि: प्रथम सुरेंद्रार्चित, अंति: देवरत्न प्रेमे भणे, उल्लास- ४ढाल६१.
५७८३०. (+) वीसस्थानकतप विधिसंग्रह व चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५२, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२६.५४११, १२५३०).
१. पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. १अ ४९अ संपूर्ण, वि. १८८५, श्रावण शुरू, ३, बुधवार, ले. स्थल. इंद्रप्रस्त
राज्यकालरा. अकबर; प्रले. मु. गंगाराम (गुरु मु. रत्नोदय, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. रत्नोदय (गुरु मु. दोलतविजय, बृहत्खरतरगच्छ); मु. दोलतविजय (गुरु मु. प्रेमधीर, बृहत्खरतरगच्छ); मु. प्रेमधीर (गुरु वा. लब्धिसागर, बृहत्खरतरगच्छ); वा. लब्धिसागर (परंपरा आ जिनमाणिक्यसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (विजयगच्छ);
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"
गुपि आ जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ ) प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४६९) भम पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०२) मंगलं लेखकस्यापि (९६२) जलाद्रक्षे तिलाद्रक्षे.
1
मु. ज्ञानसागर- शिष्य, पुहिं. प+ग, आदि: (१) श्रीमदर्हतमानम्य, (२) तिहां प्रथम शुभ दिन, अंति: अनंत सुख अनुभवै. २. पे. नाम. जलयात्राकरण विधि, पृ. ४९-५१आ, संपूर्ण.
जलयात्रा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः तत्रादी जलयात्रा, अंतिः वादित्राणि वाद्यते.
३. पे नाम, कलश प्रतिष्ठा विधि, पृ. ५१-५२अ, संपूर्ण
कलशप्रतिष्ठा विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: अष्टोत्तरतीर्थजल, अंतिः नमः इति तिलक मंत्रः.
.
४. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्नवर्णन, पृ. ५२आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: कल्पवृक्षशाखा भग्गा, अंतिः कलहं करिष्यति १६.
५७८३१. (+) शत्रुंजय रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७४-२४ (६ से २९) = ५०, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१२, १७x४२-५२).
शत्रुंजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: विश्वनाथ चरणे नमुं अंति: (-), (पू. वि. डाल-८ गाथा-१५ से सुंदरी दीक्षाग्रहण प्रसंग तक तथा ढाल - २७ गाथा-१२ वालिखल्लनृप दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से नहीं है.) ५७८३२ (+) षडावश्यक बालावबोध व कथा अधिकार १ से ४ अपूर्ण, वि. १५३८, आषाढ़ कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५९-२(२१ से २२)=५७, प्रले. गोपाल महंत, अन्य. पं. रूपकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६४११, १५४५५).
आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.)
आवक प्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु, गद्य वि. १५०१, आदि (१) श्रेयांसि श्रीमहावीर, (२) पहिल सकल मंगलीकनडं अंतिः (-), प्रतिअपूर्ण.
आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: भरतक्षेत्रि पोतनपुर, अंति: (-), प्रतिअपूर्ण,
५७८३३. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले. स्थल. मनफरा, प्रले. ग. कृष्णविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पद्मप्रभु प्रसादे, जैवे. (२६४११.५, १६४४२).
"
मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभद पदांबुजै मन, अंतिः घरिघरि मंगलमाला हे, डाल- ४७, गाथा- १०१५. ५७८३४. (+#) अढारपापस्थानक कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १४४४२-४६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कथा संग्रह- १८ पापस्थानकगर्भित, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (१) थूला सुहमा जीवा संकप, (२) जयपुरनामा नगर शत्रु; अंति: (-), (पू.वि. आनंदश्रावक के घर गौतमस्वामि के गोचरी हेतु पधारने के प्रसंग तक है.) ५७८३५. गजसिंहरास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, दे., ( २६.५X११.५, ११X१५-४७).
गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य वि. १८५३, आदि: श्रीजिन चोविसे नपुं, अंति: (-), (अपूर्ण,
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पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ढाल ११ गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.)
५७८३६. (४) शालिभद्र चौपई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५-२ (३२ से ३३) ३३, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २५X१०.५, ११x२९-३२).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरिये, अंति: मनवंछित फल लहस्येजी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल - २६, गाथा-११ से ढाल २७, गाथा-७ के दोहा - २ अपूर्ण तक नहीं है.)
५७८३७. (+) आनंदघनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल. पाल्हणपुर,
प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. कस्तुरविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. कस्तुरविजय (गुरु ग. मोहनविजय, तपागच्छ); पठ. मु. न्यालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपाल्हवीहापार्श्वजिन प्रसादे, संशोधित दे. (२७.५X११ ५ १३३६-४०).
,
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम, अंति: गाता अखय संपद
अतिघणी, स्तवन- २४, ग्रं. ४००.
स्तवनचीवीसी - बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीआनंदघनोक्तार्हत्, (२) श्रीऋषभदेव जिनेश्वर, अंति: छो इंणी प्रकारई, ग्रं. १२५०.
५७८३८. (+) जंबूस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४५-५ (१,९ से १०, १९, २७)=४०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, १३x४०).
जंबूस्वामि रास, मु. शीलविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से गाथा- ११५५ व रचनाप्रशस्ति अपूर्ण तक है.)
५७८३९ (+) अढार पापस्थानक सज्झाबादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९ माघ शुक्ल ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. ४१, ले. स्थल, शिवपुरीनगर, प्रले. मु. हर्षविजय (गुरुग राजविजय); गुपि. ग. राजविजय (गुरु पं. विनयविजय गणि) पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १२-१४X३०-३४).
१. पे, नाम, १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण वि. १८६९ पौष कृष्ण, ११, मंगलवार,
ले. स्थल, सीरोहीनगर,
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानिक बेहलो कह्यो; अंति: जश० समकित दाखो जी, सज्झाय-१८. २. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
मु. सकल, मा.गु, पद्य, आदि: तुंगीआगीरि शिखर सौहै; अंतिः सकल मुनि सुख देइ रे, गाथा-८,
३. पे. नाम, बाहुबलरी सज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण
बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनर बोले बाहूबल, अंति दिन दिन चढतो छे बान गाथा-५४. पे. नाम. तारालोचनी हरचंद राजारी सज्झाय - ढाल - १३, पृ. १०आ - ११अ, संपूर्ण.
हरियंत्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि (-) अंति: (-), प्रतिपूर्ण
५. पे. नाम. जीवआत्म स्वाध्याय, पृ. ११ अ ११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि; अणसमजुजी सीखामण दीजे; अंतिः रूपचंद गुण गावे छे.
गाथा- ७.
६. पे. नाम. सतीसुभद्रानारी सज्झाय, पृ. ११ आ - १२आ, संपूर्ण.
सुभद्रासती सज्झाय, क. संग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर पाय नमी; अंति: भणे संगो० सिवपूर वास, गाथा- २३. ७. पे नाम, इरीयावही सज्झाय, पृ. १२आ- १३अ, संपूर्ण.
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इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि नारि रे मे दिठि एक अंतिः मेघचंद० एहनी सेव रे,
गाथा-७.
८. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १३अ संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती जाणिय; अंति: समयसुंदर तसु
ध्यान, गाथा ५.
९. पे. नाम, सातवारनी सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण.
७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सीखामण सदगुरू तणी; अंति: भणे वंदो श्रीमहावीर, गाथा-८. १०. पे नाम, परनारी सज्झाय, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण
३१९
औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि; सीख सुणो प्रीय माहरी अंतिः जिनहरष० हियडे आगमवाण, गाथा - १२.
११. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण.
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजे हो, अंतिः डीजी समवसुंदर कहे एम, गाथा- ७.
१२. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रानुक्रम १६ की जगह १७ लिखा है.
१८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहला ने समरु रे पास; अंतिः हितविजय गुण गाय रे, ढाल - ३,
गाथा - ३०.
१३. पे. नाम. जीव सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
वा. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समोवसरण संघासणेजी, अंतिः बुध० प्रणमु वे करजोड, गाथा-८.
१४. पे. नाम. कायाउपर सज्झाय, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्म, आदि: वनमाली धन आप करे माल, अंति: पदमतिलक०मती खोड लगाइ, गाथा ११.
१५. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- बुढापा, मु. मान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बुढापो आवीयो, अंतिः इम कहे कवि मान,
गाथा - १६.
१६. पे. नाम. राजेमती सज्झाय, पृ. १८ अ- १८आ, संपूर्ण.
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अभिकुंडमां निजतनुं अंतिः ज्ञानविमल गुणमाला,
गाथा ५.
१७. पे. नाम. अमलीरी सज्झाय, पृ. १८आ - १९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी मन घरी अंति: तणो कहे माणीकनुं हार, गाथा २२.
१८. पे. नाम. तमाकु सज्झाय, पृ. १९आ- २०आ, संपूर्ण.
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तमाकू परिहार सज्झाय, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतम सेती वीनवं अंतिः उत्तम कहइ आनंद, गाथा- २३. १९. पे. नाम. रात्रीभोजन वरत स्वाध्याय, पृ. २० - २१अ, संपूर्ण.
रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: ग्यान भणो गुण खाणी; अंति: मोक्षतणो अधिकारी रे, गाथा - १३.
२०. पे. नाम. जनकसीता सज्झाय, पृ. २१अ - २१आ, संपूर्ण.
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि जनकसुता हुं नाम अंति: उदयरतन करु प्रणाम, गाथा- ७. २१. पे. नाम. परदेशीजीव सज्झाय, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामिनी; अंति: स्वारथ को संसार, गाथा-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२२. पे. नाम. पांचेइंद्री सज्झाव, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध, अंतिः प्रबंध लहो सुख सासता, गाथा- ६. २३. पे. नाम. सामायकनी सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण.
सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुधे करो; अंति: व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. २४. पे. नाम. निंदनी सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
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औपदेशिक पद- निव्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निवडली वेरण होय रही, अंति: मुनि कनकनिधान के, गाथा-८.
२५. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २३अ, संपूर्ण.
रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो रहो वालह; अंति: रूपविजय जयकार, गाथा-५.
मु.
२६. पे. नाम. आत्मजीव सज्झाय, पृ. २३अ २३ आ. संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं, पद्य, आदि: किसके वे चेले किसके अंतिः विराजे सूख भरपूर गाथा-४.
"
२७. पे नाम. प्रसन्नचंद्रऋषिनी सज्झाय, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण.
प्रसन्नचंद्र राजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं तुमारा पाय अंतिः पाय नमुं निसदीस, गाथा- ९. २८. पे नाम, चोवीस तिर्थंकर साधु साधवी श्रावक आविकानी संपदानी सज्झाय, पृ. २४-२४आ, संपूर्ण
२४ जिन साधुसाध्वीश्रावकश्राविकासंपदा सज्झाय, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो, अंतिः श्रीसंघ वंदौ सही, गाथा-६.
२९. पे. नाम क्रोधनी सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआ फल से क्रोधना अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६.
३०. पे नाम, तेरेकाठीयानी सज्झाय, पृ. २४आ- २५अ, संपूर्ण,
१३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आलस पहेलो काठीयो धरम, अंतिः भाव साधु धन्य तेह, गाथा-७
३१. पे. नाम. पांचमा आरानी सज्झाय, पृ. २५अ - २६अ, संपूर्ण.
-
पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो, अति भाख्या वयण रसाल, गाथा २१. ३२. पे. नाम. थुलीभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: ऋषि लालचंद० सुख सवाया,
गाथा - ११.
३३. पे. नाम. मेतारजऋषि सज्झाय, पृ. २७अ, संपूर्ण.
गाथा - ९.
तारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक राजा तणौ रे; अंति: जिनहर्ष० त्रिकाल जी, ३४. पे नाम, विजयसेठविजयाआविकानी सज्झाय, पृ. २७अ-२९अ, संपूर्ण,
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच, अंति: कुसल नित घर
अवतरे, बाल-३, गाधा- २५.
३५. पे. नाम. पार्श्वनाथदशमीरी सज्झाय, पृ. २९अ - २९आ, संपूर्ण.
पौषदशमीपर्व सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर अंतिः दानवि० प्रणमे तस पाय, गाथा- ७.
३६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्वाध्याय, पृ. २९-३१अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन, अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल -४, गाथा - २०.
३७. पे. नाम. दानरी सज्झाय, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
दान सज्झाय, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगोयम गणधा; अंति: दीप्ति० पूरो जगीस, गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३२१ ३८. पे. नाम. घीनी सज्झाय, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवीयण भाव घणो धरी; अंति: लालवि०
घीनो गुण कहिउ, गाथा-१९. ३९. पे. नाम. ज्ञानपांचमी स्वाध्याय, पृ. ३२अ-३३आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपुज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाया रे,
___ढाल-५, गाथा-१६. ४०. पे. नाम. पर्वपजूसणरी सज्झाय, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण आवीया रे; अंति: गणी हंस नमै करजोडरै, गाथा-११. ४१. पे. नाम. रहनेम सज्झाय, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: देव० सुख लेहस्योरे,
गाथा-११. ५७८४०. (+#) श्रीपाल चौपई, संपूर्ण, वि. १८०८, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. महाजनटोली, प्रले. मु. दोलतविजय (गुरु
पं. माणिक्यविजय); गुपि.पं. माणिक्यविजय; लिख. श्राव. ऋषभदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सं.१८८४ चैत्र सुदि १ को यह प्रत जीतविनय के द्वारा वालूचर के ज्ञानभंडार में अर्पण की गई. संभवनाथजी प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ८०५२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १४४३७). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: जिनहरख०विण लूण जो
रे, ढाल-४९, गाथा-८६१. ५७८४१. (+) शालिभद्रधन्ना चौपई वजिनदत्तसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २७,
कुल पे. २, ले.स्थल. तक्षतपुर(टोङामध, प्रले. सहजा व्यास; लिख. मु. किशोरचंद ऋषि (गुरु मु. माणिकचंद्र ऋषि); गुपि.मु. माणिकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४३४-३६). १.पे. नाम. दानविषये सालिभद्रधन्ना चौपई, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासण नायक समरीये; अंति: वंछित फल लहिस्यै
जी, ढाल-२९, गाथा-५११. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. २७आ, संपूर्ण.
____ आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरसौ देव पसाइ करे; अंति: करण करहु पुण्य आणंद, गाथा-७. ५७८४२. (#) गौतमपृच्छा व सुभाषित श्लोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२(१,३)=२४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये
हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १७४३६). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, पृ. २अ-२आ४अ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-१५ से है व बीच
का आंशिक पाठ नहीं है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: (-); अंति: कह्या सुलभ बोधीनै.
गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: भगवंत कहै ते सत्य, कथा-३५. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संपती यस्य न हर्षो; अंति: विषं सुतं विरलम्, श्लोक-१. ५७८४३. (#) गौतम रास व सुक्तिमाला, अपूर्ण, वि. १९६२, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १५-२(७,१४)=१३, कुल पे. २,
ले.स्थल. आंकोलगाम, प्रले.पं. राजेंद्रसोम; पठ. मु. अमृतलाल (गुरु पं. राजेंद्रसोम); अन्य. श्राव. भाईचंद नहालचंद बेनाडीकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिदेव प्रशादात्. प्रत के अंत में "सा.भाईचंद नहालचंद बेनाडीकरे श्रीसीधगीरीनो संघ काढ्यो काति वद ८ मे ते समये तस्य साहायेण" ऐसा लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४११.५, १२४४६). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल अंतिः विजयभद्र० इम भणे ए.
गाथा ४८.
२. पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. ४अ-६आ८ अ-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे. वि. पत्र - ४अ - ६आ, ८अ १३आ, १५अ - १५आ.
मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृंद अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, लोक-१७६, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
५७८४४. (#) अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, अन्य. पं. हरखविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ खंडित है, दे. (२६४११.५, ११४३३)
"
,
अध्यात्मगीता उपा. विनयविजय, मा.गु., पच, वि. १७उ, आदि: इष्टदेव प्रणमी करी, अंतिः जोतसुं जोत मिलाय,
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ढाल - ९, गाथा - २४२.
५७८४५. (#) शालिभद्रधन्ना चरित्र, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. नाथू (गुरु पं. ज्ञानसागर गणि, खरतर गच्छ); गुपि. पं. ज्ञानसागर गणि (गुरु ग. लब्धिउदय, खरतरगच्छ); ग. लब्ध्योदय (गुरु वा. ज्ञानराज, खरतरगच्छ); वा. ज्ञानराज (गुरु पा. ज्ञानसमुद्र, खरतरगच्छ ) पा. ज्ञानसमुद्र (गुरु पंन्या. हर्षविशाल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२७४११, १५X४७-५०).
शालिभद्रमुनि चौपाई. मु. मतिसार, मा.गु, पद्य, वि. १६७८ आदि शासननायक समरीयइ, अंतिः वंछित सुख लहस्य जी, डाल- २९. गाथा-५०२.
५७८४६, (+) औपदेशिक दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३२-२ (१,३)+१ (५१) १३१. पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत
"
के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १३X३३).
दृष्टांत कथानक संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठ हैं.)
५७८४७. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र सह अक्षरार्थ, बालावबोध व कथा-अध्ययन १ से १४, संपूर्ण, वि. १६५९ कार्तिक शुक्ल, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०५, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११, १५X४५). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि: संजोगाविष्यमुकस्स अंतिः (-), प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादुष, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
उत्तराध्ययन सूत्र - लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि भिक्षु महात्मानइ अंति: (-), प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि एक आचार्यनहं एक चेलो; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
५७८४८. (+) चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें.,
जैवे. (२६.५x१२, १३४४१).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४, डाल- १८ की गाथा - ७ अपूर्ण तक है.)
५७८४९, (+) विक्रम रास, संपूर्ण, वि. १८०८, फाल्गुन कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ७४, ले. स्थल. कारडागाम, प्रले. मु. करमचंद ऋषि (गुरु मु. सुखा ऋषि); गुपि. मु. सुखा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ४००१, जैये. (२५.५X११, १८X३४).
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमुपासजिणंद पय; अंति: निस घरि घरि रंग वधाई, खंड-६ढाल ७३, गाथा- ३१६८, ग्रं. ४००१.
५७८५०. (७) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख शुक्ल, १ बुधवार, मध्यम, पू. ६६, ले. स्थल. सांडेरा, प्रले. पं. चतुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १२X३४).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेलि कवियण तणी, अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड- ४ढाल ४१, गाथा- १८२५.
५७८५१. (#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८ - २३ (१ से २०, ५३ से ५५ * )= ४५, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१२.५, ४-२८४२८-४१).
יי
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३२३ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-२, ढाल-४, गाथा-२५ अपूर्ण से खंड-४, ढाल-५, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५७८५२. (+) कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३+१(२८)=६४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ८-११४३१-३६). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसुरीहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: ऍदवीयकलाशौक्लीं; अंति: वरई तपागच्छ
नायकई. ५७८५३. मानतुंगमानवति रास, संपूर्ण, वि. १८४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६३, ले.स्थल. गांदली नगर, पठ. मु. नेमविजय (गुरु ग. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०५४) यादृसं पुस्तकं दृष्टां, जैदे., (२६४१२, ११४३१). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: मोहनविजयमंगलमालो है, ढाल-४७, गाथा-१०१५.. ५७८५४. (+#) नमयासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. जंबूसर, प्रले. पंन्या. देवचंद्रजी गणि (गुरु पं. लब्धिचंद्र गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४३४-४१). नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रभुचरणांबुज रजतणी; अंति:
मोहन० वचन विलासजी, ढाल-६३, गाथा-१४५४. ५७८५५. (+-#) कवित-सवैया व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३६-९०(१ से ९,१३ से १४,१६ से ८४,१०७,१२५
से १३३)=४६, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८-२३४४८-५१). १.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक-दूहा संग्रह, पृ. १०अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) २.पे. नाम. कथा संग्रह, पृ. ८५अ-१३६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७८५६. (+-) देवचंद्रचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५९-२(१ से २)+१(३५)=५८,
ले.स्थल. ईदौर, प्रले. जीवणराम तीवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १६-२०४२९-५६). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: विमल प्रभुता प्रकासे, स्तवन-२४,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., आदिजिन गीत, गाथा-६ अपूर्ण से है.) स्तवनचौवीसी-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: एहि ज सार पद्धति छे,
पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५७८५७. (#) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८x२५-२९).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि
मंगलमाल, खंड-३ ढाल २२, गाथा-६३२. ५७८५८. (+#) श्रीपाल रास सह बालावबोध खंड-३ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४, प्रले. पं. मेघविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २४००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ३-१५४३९-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहेशे ज्ञान
विशालाजी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इम भविक जीवने कहे छे, प्रतिपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३२४
५७८५९. (+) श्रीपाल चरित्र सह टवार्थ खंड- ४, संपूर्ण वि. १८७७, माघ शुक्ल १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३ ले. स्थल, प्रांती, प्रले. पंन्या. दयाविजय गणि; लिख. मु. बेहेचर ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि); गुपि. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. महावजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ३७६, जैदे., (२७४१२, ५-१६५३६-५२).
,
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण.
श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विशाल ने विस्तर्ण, प्रतिपूर्ण.
५७८६०. (७) द्रौपदी चोपई, संपूर्ण वि. १८२९, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे
(२६X१२, १४X३८).
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द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरसादाणी पासजण चरण; अंति: सुखकार, ढाल ३९, गाथा- १११७.
५७८६१. श्रीपाल रास, संपूर्ण वि. १८३३ आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४१, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. वि. पत्र अबरख युक्त है।, जैये.,
(२५.५x११, ११४४४).
"
श्रीपाल रास वृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु. पच. वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण अंतिः पातिकवन लुणिज्यौ रे, ढाल ४९, गाथा-८६१.
५७८६२. कर्पूरप्रकर का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदे., (२६X११.५, १४X३८).
(+)
कर्पूरप्रकर- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु, गद्य, आदिः पार्श्वश्रिये सोस्तु अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चारुदत्त कथा अपूर्ण तक लिखा है.)
५७८६३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३६-५ (८, २३ से २६) = ३१, कुल पे. ३१, प्रले. श्राव. जुठा अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२.५, १४X३५-३८). १. पे. नाम. सीयल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - शीलविषयक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः सीयल भलो रे संसार मे अंति: रायचंद ० आणी मन विवेक, गाथा-८.
२. पे. नाम. पंचसंवर सज्झाय, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण.
संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमने कहे, अंति: मुगति जेम हेला वरो, गाथा - १२.
३. पे. नाम. नवकार स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: जिनगुण० पाप सब जाय, गाथा - १५.
४. पे. नाम. महावीरजिन चौढालियो, पृ. ३अ - ५आ, संपूर्ण.
"
महावीरजिन चौडालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३९, आदि: सिधारथकुले जी उपनो; अंतिः रायचंद० दिवालीने दिने, डाल-४, गाथा- ६३.
५. पे. नाम. दिवाली सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पूरव दिसे हुइ; अंति: रायचंद० अठारसे
पेतालि, गाथा २०,
-
६. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि सारद माय नमुं सिरनाम अंति: गुणसागर ० शिवसुख पावे, गाथा-२१.
७. पे नाम, सोलसती सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
"
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि आदनाथ आदे वीरजिन अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १५ अपूर्ण तक है.)
८. पे. नाम. जीवरास सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३२५ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० छुटो ततकाल,
ढाल-३, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ९. पे. नाम. नालंदापाडा सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि विराजे; अंति:
जेमलजी० हर्ष उलासोजी, गाथा-२१. १०. पे. नाम. सोल तिर्थंकर-तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: रीखभ अजीत संभवसामी; अंति: रायचंद०
भवसागर तरणां, गाथा-१२. ११. पे. नाम. आठ तिर्थंकर स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. ८ जिन स्तवन-वर्ण प्रभातियुं, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रे उठी परभाते वांद; अंति: रायचंद०
हरख उलास रे, गाथा-१०. १२. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ११अ-१४आ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुअनंत चोविसी; अंति: जेमलजी एह तरणनो
दाव, गाथा-११०. १३. पे. नाम. शीयल चौढालियो, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. शीयलव्रत चौढालियो, म. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन आगमेरे; अंति: जीवन० गुण गावेरे, ढाल-४,
गाथा-२०. १४. पे. नाम. नववाड, पृ. १५आ-२०अ, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन शुक्ल, २. नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: सरसति समरुं सदा पभणु; अंति: मकन० सुद
गुरुवारो रे, ढाल-८. १५. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछिसुणं समणा माहणा; अंति:
देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. १६. पे. नाम. पारसनाथ छंद, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति:
लब्धिरुचिना मुदा, गाथा-३२. १७. पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवि० आवागमण निवार रे, गाथा-२०, (पू.वि. मात्र
अंतिम गाथा अपूर्ण है.) १८. पे. नाम. जिरण शेठ सज्झाय, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत अनंतगुणी; अंति: तेहने नमे मुनि माल,
गाथा-२६. १९. पे. नाम. सुभद्रा सज्झाय, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधेरे इरजा; अंति: संघो० सोना केरा ठाम,
गाथा-२५. २०. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुनाम; अंति: उदयरतन० होजो प्रणाम, गाथा-१३,
(वि. प्रतिलेखख ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २१.पे. नाम. गढपणनि सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन शुक्ल, ११.
औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: घडपण तुने केणे; अंति: केशव० वाततणो ए मरम, गाथा-१०.
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३२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. मान परिहार सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मान न करसोरे मानवि; अंति: रुषभनि०
सहुंकोय रे, गाथा-१७. २३. पे. नाम. जंबुस्वामीनी सज्झाय, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हर्षमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: आवेते रमणी आवे अति; अंति: हरष० सदाइ जंबूसाम,
गाथा-११. २४. पे. नाम. मयणरेहा सज्झाय, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. ___ मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा प्रीतमजी तु; अंति: समयसुंदर वात छे घणी,
गाथा-१४. २५. पे. नाम. अनाथिमुनि सज्झाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडीये गया; अंति: समयसुंदर बे
करजोड, गाथा-९. २६. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. ३२अ-३३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपमरे सीखामण; अंति:
उदेयमांज जस विस्तरे, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २७. पे. नाम. स्त्रीद्वारा पुरुषने सिखामण, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नरनारी, मु. उमेदचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंथा रे सीख; अंति: उमेदचंद जस अमले,
गाथा-२०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २८. पे. नाम. रेवती सज्झाय, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण रेवती; अंति: वालभमुनी० जयकार रे,
गाथा-१०. २९. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. इंद्रजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साहेब प्रेम धरी रे; अंति: इंद्रजी० भजो निसदीस,
गाथा-१२. ३०. पे. नाम. औपदेशिक चाबखो, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक चाबखा, मु. केवल, मा.गु., पद्य, आदि: चेती ले चेतानो अवसर; अंति: केवल० धरम करी ल्यो,
गाथा-११. ३१. पे. नाम. औपदेशिक चाबखा, पृ. ३६अ, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, २.
मु. केवल, मा.गु., पद्य, आदि: चेत मानव चेत मानव; अंति: केवल आल पंपाल छे, गाथा-९. ५७८६४. (#) शालिभद्र रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ९-१२४३०-३३). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरीए; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम
गाथा अपूर्ण तक है.) ५७८६५. (+) नवतत्त्व प्रकरण बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४९, माघ शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. कालावड, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४३८).
नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानना रागी समकीत; अंति: होय ते मोक्ष जाय. ५७८६६. (+) गुणरत्नाकर महाछंद व समाधितंत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४५). १.पे. नाम. गुणरत्नाकर महाछंद, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३२७ गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: सहजसुंदर पाठक
निमआ, अध्याय-४. २. पे. नाम. समाधितंत्र भव्यप्रबोधनाधिकार बालावबोध, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. समाधितंत्र-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगुरू कइ उपदेश रस; अंति: सुकृतधी कृतवान
समाधौ, प्रतिपूर्ण. ५७८६७. (+#) श्रीपालराजानो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४४८).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३, ढाल-५, गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ५७८६८. महादंडक, संपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. कालवडनगर, प्रले. जादवजी प्रागजी खत्री; पठ. खोडाजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, २०४४४).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: पड़े तो मास मुं. ५७८६९. (#) प्रदेशीराजानो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३७).
प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-२,
___गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-३४, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५७८७०. (#) हंसवछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-१६(१ से १६)=१९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४४०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: जिनोदयसूरि० वच्छराज,
खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५, (पू.वि. गाथा-४२४ अपूर्ण से है.) ५७८७१. (+) सुमतिरूप वर्णन, संपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १८, प्रले. पंडित. दोलतराय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादेन, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४१२.५, १४४४३).
सुमतिरूप वर्णन, मु. सुमति मुनि, पुहि., गद्य, आदि: अहो भव्य प्राणी इस; अंति: करौलीज नित प्रतिनाम. ५७८७२. (#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६६२, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. मांडलिनगर, प्रले. मु. कर्मसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३६-४३). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलो; अंति:
समयसुंदर सुजस जगीस ए, खंड-२ ढाल २२, गाथा-५३५.. ५७८७३. चोमासाना देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. मुंबईबिंदर, प्रले. ग. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४३९).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सांभलनु चेइरे. ५७८७४. (+#) जंबु चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१६(१ से १६)=८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६-१९४४६-५७).
जंबूस्वामी चरित्र, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मिछामिदुकडं मोय, ढाल-४३, (पू.वि. ढाल २७
___ गाथा ९ अपूर्ण से है. बीच के पाठ प्रतिलेखकने नहीं लिखे हैं.) ५७८७५. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९x४१).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), (पू.वि. कांड-३, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५७८७६. (#) सिद्धाचल बावीसी, संपूर्ण, वि. १७७१, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. अहम्मदपुर,
प्रले. ग. उदयचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३१).
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३२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सिद्धाचल बावीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आज अधिक आनंदस्युं अंतिः ज्ञानविमल० सुख
घणाए, ढाल २२.
५७८७७. देवचंदजी कृत स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९२७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, ले. स्थल पूर्णानगर, प्रले. पं. हंसवर्द्धन गणि (गुरु पं. नित्यवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. आदेस्वरजी प्रसादे. दे. (२६४१२, ९४२४). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित पृ. १ आ९आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोउतिसय अतिसय जुओ वच, अंति: देवचंद ० कही सूत्रमझार, ढाल-८, गाथा - ६०.
२. पे. नाम. लूण उतारण विधि, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
लूण उतारण, मा.गु., पद्य, आदि: लूण उतारो जिनवर अंगे अंतिः थाज्यो लुंण ज पाणी, गाथा-४.
३. पे. नाम. शांतिनाथजीनी आरती, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
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शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जे जे आरति शांति, अंति: सेवक० मुक्ती जपावे, गाथा-५. ४. पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मांगलिक दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: देपालक० कुंअरपाले,
गाथा - ३.
५७८७८. चोवीसजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५x१२.५, १२x२९-३५). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: (-), (पू. वि. महावीर जिन स्तवन अपूर्ण तक है.)
५७८७९ (+) चोवोली रास, संपूर्ण वि. १८२०, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल, सांडेरा, प्र. वि. संशोधित, जैदे.,
(२६.५X१२, १७x४१).
विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु, पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति अभयसोमे० काजे कही, ढाल १७.
५७८८० (+) पांडव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०-११ (१ से ११) =९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, १७५१).
पांडव चरित्र, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु, पद्म, वि. १७६७, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड १ दाल २३ के दूहा १ अपूर्ण से खंड २ ढाल १९ गाथा ३ अपूर्ण तक हैं.)
3
५७८८१, (४) अध्यात्मगीता, भक्तामर स्तोत्र व वरदत्तगुणमंजरी कथा संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३. ले. स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. माहवजी ऋषि (गुरु मु. बाधाजी ऋषि); गुपि. मु. बाधाजी ऋषि (गुरु मु. कर्मचंद ऋषि);
मु.
. कर्मचंद ऋषि, पठ. मु. वालजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १५X४४). १. पे. नाम. अध्यात्मगीता, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणमिए विश्वहित; अंति; रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा ४९.
२. पे. नाम. प्राणप्रिय भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ- ४आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र- प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र- चतुर्थपादपूर्तिरूप, संबद्ध, मु. रत्नसिंह, सं., पद्म, आदि: प्राणप्रियं नृपसुताः अंति: मिदं विदधे कवित्वम्, श्लोक-४५.
३. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्म, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन: अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२.
५७८८२. अष्टप्रकारी पंचकल्याणक महोत्सव पूजा, संपूर्ण, वि. १९२२ वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. थराद, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२.५, १४X३२).
पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: शंखेश्वर साहिबो; अंति: छ सुहायो रे, दाल-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३२९ ५७८८३. (+#) सुभद्रासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३-१६४३२-३९).
सुभद्रासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीपमां जाणीयइ; अंति: (-), (पू.वि. द्वारोद्धाटन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ५७८८४. (+) वीसस्थानकनो स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३४).
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याइइ; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-२०, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५७८८५. (+) परदेशीराजा वखान, पद्मावती आराधना व चाबखा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ६,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, २५४६३). १. पे. नाम. प्रदेशीराजा वखाण, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
प्रदेशीराजारास, रा., पद्य, आदि: कुण हूतौ भव पाछले; अंति: उपदेशहने आण्यौ ढाय, ढाल-१९. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३,
गाथा-३५. ३. पे. नाम. श्रावकशिक्षा सूत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. श्रावकशिक्षा चाबखी, मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक सूत्र सुणे छे; अंति: खोडाजी० ने कोण तावे,
गाथा-१५. ४. पे. नाम. श्रावकगुण चाबखा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
श्रावकगुण चाबखो, मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, आदि: एक एक श्रावक छे जग; अंति: खोडाजी० सुख देवा, गाथा-५. ५. पे. नाम. श्रावकदोष चाबखा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, आदि: फोकट श्रावक नाम धराव; अंति: खोडोजी० केम समजावे, गाथा-६. ६.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. साधुगुण चाबखा, मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, आदि: वाह वाह रे आमोज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५७८८६. (#) स्नात्रपंचाशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १०४४१). स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
नृत्यपूजा के ऊपर भीमरजक कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ५७८८७. (+) गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९७७, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जगराम, प्रले. अमरसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, २०४५३). गौतमपृच्छा, क. नंदलाल, पुहिं., पद्य, वि. १८९०, आदि: ज्ञाताधर्मकथामांहि; अंति: धरें उतरें भव जल पार,
गाथा-२१५. ५७८८८. (+) जीवादि भेद यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ९x१९).
जीवाजीव भेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवादि के ९९ भेद तक है.) ५७८८९. रामचरित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२०(१ से २०)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२, २०४४३).
राम चरित, मु. चौथमलजी, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६२, गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-७५,
गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३३०
५७८९० विक्रमादित्यराजानो रास, अपूर्ण, वि. १९४३, पौष शुक्ल ५. गुरुवार, मध्यम, पृ. २८२-३३ (२१८ से २५०) -२४९,
ले. स्थल. वेढग्राम, प्रले. मु. गुणसुंदर (गुरु मु. राजसुंदर); गुपि. मु. राजसुंदर (गुरु मु. आणंदसुंदर); मु. आणंदसुंदर (गुरु मु. हीरसुंदर); मु. हीरसुंदर (गुरु मु. देवसुंदर); मु. देवसुंदर (गुरुग. भुवनलाभ); ग. भुवनलाभ (गुरु ग. निधानलाभ); ग. निधानलाभ (गुरुग, ज्ञानलाभ); ग. ज्ञानलाभ (गुरु पं. क्षमावर्द्धन वा) पं. क्षमावर्द्धन वा (गुरु वा परमानंद गणि); वा. परमानंद गणि राज्ये आ. विवेकसागरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., (२८.५x१३.५, १२४३१).
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विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रेयांश्री मुक्त्या, अंति: भाण लहें० विशालजी, ढाल-१७४, गाथा-५७९७, (पू.वि. खंड- ४, ढाल - १, गाथा - १० से ढाल - २३, गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५७८९१. (+) नर्मदासुंदरी रास व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०९ वैशाख शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ५१-२ (१,६)+१ (५)=५०, कुल पे. २, ले. स्थल, सुराणा, प्रले. पं. नरविजय पंडित, पठ. पं. सुंदरविजय ( अज्ञा. पं. वनीतविजय गणि) गुपि. पं. वनीतविजय गणि (अज्ञा. ग. कनकविजय); ग. कनकविजय (गुरु मु. नेमिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १४-१७४४५).
१. पे नाम. नम्मयासुंदरी रास, पृ. २अ-५१अ अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
नर्मदासुंदरी रास - शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंतिः मोहन वचन विलास जी, ढाल ६३, गाथा- १४५४ (पू. वि. ढाल १, गाथा-३ अपूर्ण तक व ढाल ६, दोहा-७ अपूर्ण से गाथा-१ तक नहीं है.)
,
3
२. पे. नाम. प्रासंगिक दोहा संग्रह, पृ. ५१अ, संपूर्ण
प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं. हिं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
५७८९२. (०) बारभावनानी वेल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२,
,
१२X३७).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी सह, अंति: भावन जेसलमर मझार, ढाल १३, गाथा- १२८.
५७८९३. (+#) सम्यक्त्वपरीक्षा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, १४-१७४४२-४५),
सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथेश, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण तक
है.)
सम्यक्त्व स्वरूप- बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., गद्य वि. १८९३, आदि: (१) प्रणम्य कहेता प्रणां
"
(२) प्रणम्य पार्श्वनाथेश अंति: (-).
५७८९४. (+४) मानतुंगमानवती रास- चरित्र, अपूर्ण, वि. १८१८ माघ शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पू. ४४-९ (१३ से २१) ३५, ले. स्थल, वडगाम, प्रले. मु. युक्तिविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले, श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६१२, १३-१६३३-३६).
मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७६०, आदि: रीषभजिणंद चरणांबुजे, अंति: मोहनविजय० मंगलमाल हे, ढाल ४७, गाथा-१०१५. (पू. बि. डाल- १५, गाथा-५ अपूर्ण से ढाल- २४, गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है.)
५७८९५. विक्रमसेनकुमार चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. १८२६, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४३-१ ( १ ) - ४२, ले. स्थल भीणाय,
प्रले. सा. रुकमा आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); गुपि. सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२६X१२, १३-१६X३३-३६).
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: मानसागरे०दोलति पाईजी, ढाल-५२, गाथा-११६२, (पूर्ण, पू. वि. डाल- १, गाथा ४ अपूर्ण से है.)
५७८९६. (४) परीसह चोपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X१२, १५४५४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दै; अंति: मिच्छामिदुक्कड
मोयजी, ढाल-२२. ५७९२५. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-३५(१ से २०,२२ से २४,३२ से ४३)=९,
पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ५४३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५५ अपूर्ण से १६२ अपूर्ण तक,
श्लोक-१८४ अपूर्ण से २३२ अपूर्ण तक व २५१ से २५९ तक है.)
ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७९३६. सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी टीका-पूर्वार्द्ध, अपूर्ण, वि. १८६७, मध्यम, पृ. ११६-३९(१ से ३९) ७७, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. मु. मलुकचंद ऋषि; अन्य. नयनसुख; गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५,१३४५३). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ
व अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्वार्द्ध में पाठ- "शितिसूवचंयत् सर्वस्यस्यात् अद्भीत्यात्वे आभ्यां" से है.) ५७९५४. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. देवीदीन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, ७४२७).
अनेकार्थध्वनिमंजरी-श्लोकपदाधिकार, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: ये समयो युद्धसत्वयोः, श्लोक-२१०. ५७९७१. (+#) आरंभसिद्धि सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-९(१ से ७,१३ से १४)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४०).
आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., द्वितीय
विमर्श, श्लोक-२३ से तृतीय विमर्श, श्लोक-७ तक व चतुर्थ विमर्श से अंतिम भाग तक व चतुर्थ विमर्श, गमद्वार,
श्लोक-७२ तक है., वि. यंत्र सहित.)
आरंभसिद्धि-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५७९८०. (+) वाग्भट्टालंकार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तण, प्रले. कान्हा श्रीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२-१४४४०-४५).
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५.
वाग्भटालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रियमिति अन्यस्य; अंति: अव्ययीभावसमासः. ५७९८२. (+#) नारचंद्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, ७-१४४४०-४४). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हत जिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "लग्नथकी गणलेहर इतिसंज्ञा" पाठ तक लिखा है.) ५७९८७. (#) नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४०).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- ३५ अपूर्ण से १९८ अपूर्ण तक है.) ५८००२. (+#) द्रव्यतीर्थ, भावतीर्थ व नयादि आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १४-१५४३८-४६). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भाव
आचार्य तीर्थंकर समान प्रसंग से ब्राह्मीलिपि नमस्कार प्रसंग निरूपण अपूर्ण तक लिखा है.) ५८००३. (+#) हैमीनाममाला बीजक, अपूर्ण, वि. १६६१, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १४-६(१ से २,७ से १०)=८, प्र.वि. ग्रंथ
रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, २४४५४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिंतामणिनाममाला-बीजक, ग. शुभविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नाम नमस्कारना नाम,
ग्रं. १०५०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ५८००४. (+) षड्दर्शन समुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १७५०, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८४, ले.स्थल. नवपुर,
प्रले. पं. नेमसुंदर (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४४६-५१).
षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, ई. १५वी, आदि: जयति विजितरागः
केवला; अंति: च तत्र कुशलमतिभिः. ५८००५. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख शुक्ल, जीर्ण, पृ. १५-९(२ से १०)=६, प्रले. मु. सौभाग्यसागर (गुरु
मु. जगरुपसागर); गुपि. मु. जगरुपसागर (गुरु मु. युक्तिसागर); मु. युक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३८५,
(पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८००६. भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ५४३२-३४).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३५ अपूर्ण
तक है.)
भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ मह; अंति: (-). ५८००७. (+#) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(१,४)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, ११-१२४३५-३७).
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).. ५८००८. (+) अणुत्तरोववायदसा सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १६x४२-४५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहाणेयव्वं,
अध्याय-३३. ५८००९. (+) संग्रहणीसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६२५, आश्विन शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २८-१५(१ से ९,११ से १२,१४
से १६,१८)=१३, प्रले. मु. भाणसागर (गुरु उपा. देवसागर); गुपि. उपा. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७-१८४४८-५५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वेदाश्च प्रागुक्ताः, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५८०१२. पंचनिन्थी की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-५(१ से ४,१३)=९, प्रले. पं. सुविधिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १४४४१-४४). पंचनिग्रंथी प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिम पत्र चिपके होने से अंतिमवाक्य
नहीं लिया है.) ५८०१४. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४३८-४२).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ से १९० तक है.) ५८०१५. आगमसारोद्वार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६५-५०(१ से ५०)=१५, पठ. श्राव. अलखचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४३९-४२). आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: सफल फली मन
आस, (पू.वि. १४ गुणस्थानक वर्णन से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३३३ ५८०१९. (+#) संघयणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३-१५४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३७३ अपूर्ण
तक है.) ५८०२०. (+) षट्दर्शना समुच्चयसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद (गुरु पं. वृद्धिचंद);
गुपि.पं. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१०५७) कर गावड कटी दो बडी, दे., (२६४११, ८-९४२६-२८).
षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सदर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. ५८०२१. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक वटीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४५२). १. पे. नाम. सिद्धप्राभृत सूत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणपणए तिहुयणगुणा; अंति: सुयाणुसारेण णेयव्वं, गाथा-११८. २.पे. नाम. सिद्धप्राभृत की वृत्ति, पृ. ४आ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदि: सकलभुवनेशभूतान्निखिल; अंति: (-), (पू.वि. अवगाहणा द्वार अपूर्ण
तक है.) ५८०२५. (+#) पंचकल्याणक, स्तवन व छंद, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३,
ले.स्थल. बजाणानगर, प्रले. देवकृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. पंचकल्याणिक-दीगंबर मते, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि पंच परम गुरु; अंति: जिनदेव चउसंघह जयो, ढाल-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीधगिरि ध्यावो भविका; अंति: ज्ञानविमल० गुण गावे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सपखरो, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सपखरो छंद, पुहिं., पद्य, आदि: पूरांचाचरांचाचरांखरा; अंति: गुणदासंतो सारदा सहाइ, गाथा-४. ५८०२७. (+) स्तवनादि काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ५६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२५.५४१२, १८४४७). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थकर सेवना; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्जेजे शिखर; अंति: जय० मोहन लहे अल्हाद, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. __आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर जगदीसरू रे; अंति: जिन तुं प्राण आधार, गाथा-५. ४. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजित जिन; अंति: रस आनंदस्युं चाखै, गाथा-९. ५. पे. नाम. अजीत स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी,
गाथा-५. ६.पे. नाम. संभव स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: समकित दाता समकित आपो; अंति: मोहन०
रसना पावन कीधी, गाथा-७. ७. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अकल कला अविरुद्ध; अंति: भाख्यो उमाहे
घणे, गाथा-७. ८. पे. नाम. सुमति स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुथी बांधी प्रीत; अंति: मुजने वालो जिनवर
एह, गाथा-७. ९. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो म्हारो; अंति: पूरे सकल जगीश
हो, गाथा-७. १०. पे. नाम. सुपार्श्व स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा मेह बवीयडा; अंति: मोहन वंदे हो राज, गाथा-७. ११. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंकर चंद्रप्रभु; अंति: मोहन कवि रूपनोरेलो, गाथा-७. १२. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक सुविधि; अंति: मोहनविजय० सिरनामी, गाथा-७. १३. पे. नाम. सीतल स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिननी सेवना; अंति: जिनजी जीवन प्राण हो, गाथा-७. १४. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी अनंत जिनराजन; अंति: हुवा आज सवि काज रे, गाथा-९. १५. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे मुंने धरमजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. १६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मोहण० पंडित रूपनो, गाथा-७. १७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सनेही सांति; अंति: मृग लंछनथी सूछाह, गाथा-७. १८. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ अरज सुणो प्रभु; अंति: मोहन जिन बलिहारी रे, गाथा-६. १९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारथ वालो हो राज; अंति: मोहन रूप अनुपनो, गाथा-७. २०. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जादवजी हो समुद्रविजय; अंति: जयो शिवादेवी मल्हार,
गाथा-७. २१. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ वालो; अंति: मोहन कहे स्याबास, गाथा-७. २२. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणथकि प्यारा मुने; अंति: मोहन० आसरो इण
संसार, गाथा-७. २३. पे. नाम. संखेसर स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहनै रहनै अलगी; अंति:
मोहन पभणे०शुभ लटकाली, गाथा-५. २४. पे. नाम. शंखेसर स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
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३३५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं परमातम तु पुरुषो; अंति: मोहन० पावन कीजे रे,
गाथा-७. २५. पे. नाम. शंखेसर स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज अनोपम मुरत माहरे; अंति: मोहन० भव देज्यो
सेवा, गाथा-९. २६. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजिणंद; अंति: मोहन० छेजी राज्य, गाथा-७. २७. पे. नाम. पंचासर स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छांजी छांजी छांजी; अंति: मोहनविजये पायो,
गाथा-७. २८. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी सांवल वरणो; अंति: मोहनवि० करुणा
करज्यो, गाथा-७. २९. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलजिणंदशुंज्ञान; अंति: सेवक विनति मानोजी, गाथा-७. ३०. पे. नाम. शंखेसर स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी आंखीआने रही; अंति: उदयरत्न० पुगी छे
आस, गाथा-११. ३१. पे. नाम. सेजा गीत, पृ. ८अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेव्रुजानो वासी; अंति: आ भव पार उतारे, गाथा-६. ३२. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शेजागढना वासी; अंति: इम कहे उदयरतन करजोडि, गाथा-५. ३३. पे. नाम. महावीरजी स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. रामवाव, प्रले.पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय);
गुपि.ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल हे नणदल सीधारथ; अंति: प्रीतविजयगुण गाय,
गाथा-१३. ३४. पे. नाम. शंखेसर स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज भज्यानी तक ज; अंति: डतां बांहे साय छे रे,
गाथा-७. ३५. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिर यात्र करण; अंति: ज्ञानवि०
नायक गावे, गाथा-८. ३६. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरु मन मोह्यं रे; अंति: कहेता नावे पार,
गाथा-५. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे हूं तो पूजिस; अंति: रामविजय० पोहती जगीस, गाथा-८. ३८. पे. नाम. शत्रुजयगिनार स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनार स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: ज्ञानविमल० सिर
धरीया, गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९. पे. नाम. सुविधिजिन गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरे गुण अनंत; अंति: हमको सामी तुम आधार,
गाथा-३. ४०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन्य क्यारे आव; अंति: त्यारे निरमल थासु, गाथा-८. ४१. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म.प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज अधिक थयो उछरंग गो; अंति: प्रेमवि० सुख लहे
जी, गाथा-९. ४२. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: के वालाजी पांचिम; अंति: उदेरतन इम भणे रे लोल,
गाथा-५. ४३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभुजिन; अंति: रे वागागुहीर निसाण, गाथा-५. ४४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपुज जिन बार; अंति: जीत वदे नितमेवरे, गाथा-५. ४५. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एतो राजुल कहे सुणो न; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण,
गाथा-७. ४६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: लाखिणो सोहावे जिननी; अंति: नमी बोले केसर धीर,
गाथा-८. ४७. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा-७. ४८.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पं. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजीस्युं बोलवानो; अंति: कुसलविजय गुण गाय,
गाथा-१०. ४९. पे. नाम. चेतन गीत, पृ. ११आ, संपूर्ण. ___ आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे आवे नही मन; अंति: विलासी प्रगटे
आतमराम, गाथा-६. ५०. पे. नाम. स्वार्थ गीत, पृ. ११आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हेरे; अंति: साचा एक है धरम
सखाई, गाथा-३. ५१. पे. नाम. अनागत चोवीसी स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आवेति कालिं हो; अंति: उदयरतन० भवजल तेह,
गाथा-५. ५२. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: सुबुद्धिकुसलगाया हो, गाथा-६. ५३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद सोतरीया हे, गाथा-३. ५४. पे. नाम. प्रभाती गीत, पृ. १२अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३३७ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चवदके पार किनारै; अंति: चरणकमल का दासा है, गाथा-५. ५५. पे. नाम. पुद्गल सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन उपदिसैं सुल; अंति: मोहन उपसम
रस पीजैरे, गाथा-१३. ५६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. टीकर.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठ हो नाभि दूलारे; अंति: मोहन० पातक न्यारे, गाथा-३. ५८०२८. (+) भक्तामर स्तोत्र सह अन्वयार्थ व मंत्राम्नाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४११,११४३९-४२). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह अन्वयार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (वि. मात्र
प्रतीक पाठ लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-अन्वयार्थ, सं., गद्य, आदि: किलेति सत्त्वे अपितु; अंति: भूता सा लक्ष्मी अवशा. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का मंत्राम्नाय, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
__ भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐनमोवृषभनाथाय मृत्यु; अंति: मंत्र वंदी मोक्ष होय. ५८०२९. (#) साधु वंदणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४३-४६).
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहजिण पमुह; अंति: मनि आणदि संथुया, ढाल-७, गाथा-८८. ५८०३१. (+) महावीरदेवनी पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८५१, आषाढ़ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १४४३४).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनशाशन संप्रति; अंति: (१)विजयधर्मसूरीश्वर ६५, (२)लिमणी पछे
___ आव्या. ५८०३२. (#) शत्रुजयसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६९६, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. अमृतसागर (गुरु
उपा. शांतिसागर, तपागच्छ); गुपि. उपा. शांतिसागर (गुरु उपा. श्रुतसागर, तपागच्छ); पठ. मु. सागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४५). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही दसण जयकरो.
ढाल-१२, गाथा-१११. ५८०३३. (+#) नवतत्व प्रकरण भाषाकृत, संपूर्ण, वि. १७६६, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५, प्रले.पं. सिद्धिविलास गणि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X५४). नवतत्त्व प्रकरण-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी मनमैं; अंति: लखमी० वरणत है
कविराज, गाथा-१७९. ५८०३४. (#) गौतमपृच्छा, छंद व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२३.५४१०.५, १५४३५). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: मन जे जिनवचने
वसिउ, गाथा-११८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, प्रले. मु. नेमविजय (गुरु ग. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनी आप; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी,
गाथा-२२. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
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३३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, आव. शाह बघो, मा.गु., पद्य वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा - ४१.
५८०३५. (+#) कयवन्ना चोपाई, संपूर्ण, वि. १७२४, मध्यम, पृ. १०, प्रले. सा. करमाजी आर्या, पठ. सा. रंभाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १६४३५).
कयवन्ना चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि दान न देखइ दलिद्रहि अंतिः सुधरइ छद भव दोय, ढाल २५,
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गाथा - २१९.
1
"
५८०३६. (+) गजसुकमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११,
१५X४६).
"
गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६९९, आदि: नेमीसर जिनवरतना चरण, अंति: (-). (पू.वि. ढाल २३ गाथा ४ अपूर्ण तक है.)
५८०३७. गुणकरंडकगुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०२, पौष शुक्ल ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, जैवे. (२५४१०.५,
१३X३८-४५).
गुणकरंडक गुणावलि चौपाई बुद्धिविषये, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: प्रणमु चोवीसे जिनपाय, अंतिः सबै मन वंछित पावंति, ढाल १६, गाथा- १८६.
५८०३८. (+#) ऋषभदेव विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, १२x२७-३२).
आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धरम जिणइ उधर्यो, अंतिः कविता नर रिषभदासो, गाथा ६९.
५८०३९. (+) चउसरणपयन्नो सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७४८, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. मबगलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ५X४३).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
"
गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि ग्रंथनी आदि मांगलिक अंतिः मोक्षना सुख पामीइ. ५८०४०. (+१) न्यायसार, न्यायावतार व शास्त्रभेद प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-१(१) ९, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १६४४६.५३).
१. पे नाम, न्यायसार सूत्र, पृ. २आ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
न्यायसार, भासर्वज्ञ आचार्य, सं., गद्य, आदि: (-): अंति: पुरुषस्य मोक्ष इति, परिच्छेद-३, (पू. वि. परिच्छेद २ किञ्चित् अपूर्ण से है.)
२. पे नाम, न्यायावतार सूत्र, पृ. ८आ ९अ, संपूर्ण.
न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य वि. ११वी, आदि प्रमाणं स्वपराभासि; अंति: द्वापि प्रकीर्त्तिता, श्लोक-३२.
३. पे. नाम. शास्त्रभेद प्रकरण, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: शास्त्रप्रकरणादीनां अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३६ तक लिखा है.) ५८०४१, (+) कुलक संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२२ चैत्र अधिकमास शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे, ४,
ले. स्थल, जेसडा, अन्य. पं. जीवणविजय (गुरु पं. सुंदरविजय गणि). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५१२, ५५३६).
१. पे. नाम, गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सिवफल इम हो अंत गुणं, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे लुबध ते लोभी नर; अंति: रूप अनंत फल पाम.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२.पे. नाम. शील कुलक सह टबार्थ, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सोहगा महानिहीणो पाइ; अंति: सालसीलस्स दुल्ललियं, गाथा-२०.
शील कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोभाग्यनो महानिधान; अंति: जे महा जोरावर हुई. ३. पे. नाम. तप कुलक सह टबार्थ, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण..
तप कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सो जयउ जुगाइजिणो; अंति: तत्थ तवो कारणं चेव, गाथा-२०.
तप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते जयवंतो वर्ता युगा; अंति: कारण निश्चैजाणवो. ४. पे. नाम. भावना कुलक सह टबार्थ, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
भावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कमठासुरेण रईअम्मि; अंति: सोलहइ सिद्धि सुह, गाथा-२१.
भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कमठसुरइ रच्यो कर्यो; अंति: पामे मोक्षना सुखनइ. ५८०४२. (+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १८४६, माघ कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. प्रेमधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगुरुदेव प्रसादात., संशोधित., जैदे., (२३४१२,१५४३५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयो; अंति: वाचक जश
इम बोले रे, स्तवन-२०. ५८०४३. (#) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, ७४३९). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
श्लोक १०२ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीप्रतै नमस्कार; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक
१५ तक लिखा है.) ५८०४४. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-),
(पू.वि. महावीरस्वामी के त्रिशलामाता की कुक्षी में आने के प्रसंग तक है.)
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-). ५८०४५. (#) यशोधर चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-१५(१ से १५)=१३, प्र.वि. अंतिम पत्र खंडित होनेसे ले.संवत मात्र १६ ही उपलब्ध है., मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १५४३७-४१). यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पवित्रं पाप नाशनम्, सर्ग-८, (पू.वि. सर्ग-५
श्लोक ६८ अपूर्ण से है.) ५८०४७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला कांड ४ से ६, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १६-१९x४३-४९).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-),
(प्रतिपूर्ण, वि. कांड का क्रम-६, ४ व ५ इस प्रकार लिखा है.) ५८०४९. (#) सिमंधरस्वामी स्तवन, साधुवंदना व हरियाली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५१). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी विज्ञप्तिका आलोचनारूप स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १७६९, कार्तिक शुक्ल, ३,
ले.स्थल. मसूदानगर, प्रले. ग. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., पद्य, आदि: नमीय सीमंधर स्वामि; अंति: इणिबिधी मल्लिदास ए,
गाथा-८७. २.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण.
आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८.
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३४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. हीयाली सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तुज पूछु वात हे; अंति: मन मानी मोजल्यो,
गाथा-११. ५८०५०. (+#) सज्झाय, बारमासो व वीनती संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २१४४९). १.पे. नाम. नोकरवालीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लबधि० नित नवकार,
गाथा-९. २. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमु सरसति; अंति: मान० दीपउ तपगच्छ
नाह, गाथा-१६. ३. पे. नाम. भमर गीता, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतिल; अंति: प्रभु थुण्या
सानुकूल, गाथा-२७. ४. पे. नाम. नेमजिन बारमासा, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुं विजया रे; अंति: गुण गाईया लाभ जाणी,
गाथा-१२८. ५. पे. नाम. नेमराजुल बारमास, पृ. ४अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वाम मेल; अंति: नवे निधि पामीरे, गाथा-१३. ६. पे. नाम. सीमंधरजी वीनती, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां
कीधा; अंति: प्रभु उगतइ सुर तो, गाथा-५५. ७. पे. नाम. आदिजिनवीनती स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदीसर वंदं पाय; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा १ से ९ अपूर्ण तक है.) ५८०५१. (+) प्रकरण, कर्मबंधव स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३,
ले.स्थल. वैराट्यनगर, प्रले.पं. भाग्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय, तपागच्छ); ग. रत्नविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७X४३). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चतुविसजणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिया, गाथा-३८, (वि. १५७९)
दंडक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: चउविश तिर्थंकरने नमस; अंति: लोकप्रसीद्ध दंडक. २.पे. नाम. कर्मप्रकृत ज्ञातव्यात, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीयकर्म; अंति: ८ अव्यक्तव्य ९ बंध १. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद्मावती स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: तेंद्रेकि तेंद्रे; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ५८०५२. (+#) वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. विजयसुंदर गणि (गुरु पं. विनयसुंदर गणि);
गुपि.पं. विनयसुंदर गणि; पठ. मु. उदयसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६-५३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३४१ वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: फलमीप्सितम्,
प्रकाश-२०. ५८०५३. (#) कर्मविपाक राशिफल, चैत्यवंदन, चौपाई व पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ५,
प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. कर्मविपाक राशिफल, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पार्वती पृच्छति; अंति: तेह मांहि संदेह नहीं. २. पे. नाम. बावन अक्षर, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
अक्षरबावनी, मा.गु., पद्य, आदि: क का काम करता विलंब; अंति: मांडी उधारे न दीजें. ३. पे. नाम. पट्टावली, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण, वि. १७८७, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, १, सोमवार, ले.स्थल. धाखा,
प्रले. ग. केशरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: खिमासूरि विजयदयासूरि. ४. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. ६अ, संपूर्ण, प्रले.ग. केशरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेला प्रणमुं विहर; अंति: ज्ञानविमल
कहे करजोडी, गाथा-२. ५. पे. नाम. हरियाली चोपाई, पृ. ६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरुष पनोतों बहु गुण; अंति: मनवंछित फल साधे रे,
गाथा-६. ५८०५४. (+#) सप्तस्मरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४६).
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. लघु ____ अजितशांति के गाथा-२ तक है.) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. लघु अजितशांति
गाथा-२ का बालावबोध अपूर्ण तक है.) ५८०५५. (+#) सुक्तावली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४४२). १. पे. नाम. सुक्तावली, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कोरण वसे नेहा ऊभय; अंति: मुक्तक सुखं जीवतिः, श्लोक-५८. २. पे. नाम. सुक्तावली, पृ. ५आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुश्रुवचः सत्तसहीणरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११७ तक है.) ५८०५६. (#) स्थंभनक पार्श्वनाथ नमस्कार सह बालवबोध, अपूर्ण, वि. १६९९, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)-७,
प्रले. मु. नरसागर (गुरु आ. वृद्धिसागरसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. वृद्धिसागरसूरि (गुरु आ. राजसागरसूरि, तपागच्छ); पठ. श्रावि. राय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३४). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: अभयदेव विनवइ आणंदिय,
गाथा-३०, (पू.वि. गाथा १ से ४ नहीं है.) ।
जयतिहुयण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नहीं किणही तुं. ५८०५७. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.. जैदे., (२५.५४११, ११४३८-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८९ अपूर्ण
तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८०५८. (#) छत्रीसी व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५X११, ९X२८-३२).
१. पे. नाम. खिमा छत्रीसी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ९.
क्षमाछीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदिरि जीव क्षमागुण, अंतिः चतुरविध संघ जगीस जी,
गाथा - ३७.
२. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरव समरथ सारदाय; अंतिः (-). (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.)
५८०५९. (७) सुक्तावली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवे., (२५X१२, १३X३५).
"
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सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि, अंति: (-), वर्ग-४, श्लोक-१७६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १० तक लिखा है.)
सूक्तमाला - बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: तदनुक्रम संलग्न हो, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण.
५८०६०. (#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९९-८५ (१ से ८५ ) = १४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै.. (२६४११, ७४२९).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: () अंति: (-) (पू.वि. एद्योसविवि तहाणंझेमे अद्यत्तो" पाठ से "भासइ एवंपस्सवेइ एवं पहूवे" पाठ तक है.)
५८०६१. (#) पर्यंताराधना सूत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १४, प्रले. ग. जीतविजय (गुरुग. दर्शनविजय);
गुपि. ग. दर्शनविजय पठ. सा. केसरदे (गुरु सा कस्तूरजी), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १९३२).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्म, आदि नमिऊण भणइ एवं भववं अंतिः सुख प्रतिपामस्य गाथा ७० ग्रं. २४५. पताराधना- अर्थ, मा.गु. गद्य, आदिः शिष्य श्रीगुरुने अंति: सुख प्रति पामस्वई.
५८०६३. कान्हड कठिआरा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. कोसाणा, प्रले. मु. देवेंद्रविजय
(गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (२०५८) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे. (२४४११, १३x२२-३०).
कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंतिः मानसागर ० दिन वधते रंग, ढाल - ९.
५८०६४. (+) इलाचीकुमार चौपाई, संपूर्ण वि. १७५९ वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १४. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४११.५,
११x२६-२९).
इलाचीकुमार चौपाई- भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाई सदा; अंति: भाव गुण हवा जाणी, ढाल - १६, गाथा-२०९, ग्रं. २९९.
५८०६५. (+) बृहत्संग्रहणी की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, २२x६४-७६).
बृहत्संग्रहणी - वृत्ति, आ. हेमसूरि, सं., गद्य, आदि तिष्ठति नारकादि भवे, अंति: द्वारमपि प्रागुक्तम्
५८०६६ (+) ऋषिदत्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७५, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल, गडढा, प्रले. मु. मेघाजी ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि) पठ. श्राव. चोखाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, १४X३६-४० ).
ऋषिदत्तासती चौपाड़ - शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मा.गु., पद्य, वि. १५६९, आदि: श्रीसरसति सुपसाउलइ, अंतिः देवसूरि० सवि दुरि, गाथा- ३०१.
५८०६८. सत्तरिसियजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैवे. (२४.५४११, ११४३१).
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३४३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति भगवति; अंति: सेवा श्रीजिनवरतणी,
गाथा-६१. ५८०७१. (#) उपदेशमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४४१).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७६ अपूर्ण तक
है.)
५८०७२.(+) ज्ञानार्णव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-४०(१ से १४,२४ से ४९)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., योग्य प्रशंसा
प्रकरण के अंतिम गाथा अपूर्ण से काम प्रकोप प्रकरण के गाथा-३८ तक एवं अज्ञात प्रकरण के गाथा-८९ अपूर्ण से
गाथा-१०२ अपूर्ण तक है.) ५८०७३. (+#) बृहत्संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-५(१ से ५)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १३४३८-४१).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८९ अपूर्ण से १७० अपूर्ण तक
५८०७४. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३२-३७). १.पे. नाम. योगवीसी गर्भित महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-योगवीसी भावगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल कमल
सुखकर, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा ८ से हैं.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जावू; अंति: विमल गुण गावुरे, गाथा-१०. ३.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या; अंति: ज्ञानविमल० सरास्याजी,
गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागिणि मुद्रा छै; अंति: ज्ञानविमलन को जगमां, गाथा-५. ५८०७५. (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. १४-३(१ से ३)=११, राज्ये आ. जिनदेवसूरि* (गुरु
आ. जिनप्रभसूरि, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. लोवा (पति श्राव. रुदा शाह); प्रले.ग. विमलकीर्ति (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. शांतिसागरसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३७-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदोजा वीरजिण तित्थं, (पू.वि. गाथा- ४८ अपूर्ण
से है.)
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (अपठनीय). ५८०७६. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-३८(१ से ३७,४०)-८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजन्मवर्धापनिका प्रसंग अपूर्ण से दीक्षा
प्रसंग अपूर्ण तक है.) ५८०७७. (+#) सिंदर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७७८, माघ शुक्ल, ८ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ७, प्रसं.पं. राजसागर गणि; पठ. मु. गोकल
(गुरु पं. नरेंद्रसागर); गुपि.पं. नरेंद्रसागर (गुरु मु. अनोपसागर); मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तिमुक्तावलीं, द्वार-२२, श्लोक-१०२.
५८०७८. सुभाषित, अजमेर युद्धादि वर्णन व प्रहेलिका अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे ३, जैदे., ( २६४१०.५, १२-१५X३०-३५).
१. पे नाम, सुभाषितानि, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण,
सुभाषित लोक संग्रह * पुहिं, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि; पाउजिन गह्यो सुतो; अंतिः एक सूरज ही तोह है, गाथा-३३.
"
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3
२. पे. नाम. अजमेर युद्धादि प्रसंग वर्णन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: मंडोवर सामंद हुआ अंतिः ना रहे खर लालचा नैन, गाथा २.
"
३. पे. नाम प्रहेलिका, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रहेलिका संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि: तंबासुत रिपु भोअणां अंतिः भमै तासुत वाहण आण, गाथा- १. ५८०८०. (4) धनदत्त चौपाई, संपूर्ण वि. १७४९ कार्तिक कृष्ण २, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, प्रसं मु. कानजी (गुरु मु. तेजसिंघ),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १९४३९).
व्यवहारशुद्धि चौपाई - धनदत्त, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६९६, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमो; अंतिः सीझई वंछित काज, ढाल-९, गाथा- १६१.
५८०८२. आश्रवण दुहा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-२ (६ से ७)=६, जैदे. (२६.५x१२, १२४३५-३८).
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आश्रव संवर भेद, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: आश्रव क्रम आठाना; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल२ गाथा- १८ अपूर्ण व गाथा - ५४ अपूर्ण से गाथा- ७२ अपूर्ण तक है.)
५८०८५ (+) कालसप्ततिका व अष्टमहासिद्धि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८- १ (१) ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५.५४११.५, ६४३३-३५).
१. पे. नाम. कालसप्ततिका, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कालसरूवं किमवि भणियं गाथा ७५, (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टमहासिद्धि, पृ. ८आ, संपूर्ण.
८ सिद्धि नाम, सं., पद्य, आदि: अणिमा १ महिमा २ अंतिः वशित्वं ८ चेति, गाथा-३.
५८०८६. (+) सयंबुध कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-१ ( २ ) =९, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक
1
लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११, १५X४६).
स्वयंयुद्ध कथा, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.)
५८०८८. (+४) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की
स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११, ११४३२-३५).
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१. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ ११आ, संपूर्ण.
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं हवइ अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे, स्मरण - ९. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत, अंति: (-). (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५८०८९. इलाचीकुमार चौपाई, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे. (२५४११.५, ९३२-४७).
इलाचीकुमार चौपाई- भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा, अंति: भावतणा गुण हवा जाणी, ढाल - १६, गाथा - १८१, ग्रं. २५९.
५८०९०. (+) त्रैलोक्य प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे. (२६.५४११.५, १६४४०-४६).
त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वाभिधं; अंति: भोगि भुजाफलं श्लोक-१२५०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३४५ ५८०९१. (#) सूत्र, सज्झाय, स्तुति व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०, कुल पे. ९, ले.स्थल. घांटीला,
प्रसं.ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र चिपके होने के कारण कुछ कृतियाँ लिंक नहीं हो सकी है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १७४५१). १.पे. नाम. उत्तराध्ययन सूत्र, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण, वि. १८५८, आषाढ़ कृष्ण, ५, गुरुवार. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त
धरीजी; अंति: उदयवीजय० नवनीध थाय, सज्झाय-३६. २. पे. नाम. दशमीतिथी सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. दशमीतिथि सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माई दशमि भल्ल भल्ल; अंति: कमल० संघ सुखथाई हो,
गाथा-५. ३. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो आतम अति; अंति: अब श्रीसार वखानी हो, गाथा-६. ४. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, मु. ज्ञानसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप धरियने त्रिदश; अंति: ज्ञानसुंदर० जगीसजि, गाथा-४. ५. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे; अंति: समयसुदर० उछारे बोल,
गाथा-६. ६. पे. नाम. काया उपरि सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांतगर्भित, मु. उदय ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: कायारूप रचो मेवासी; अंति: उदय०
मुगतपरिमां खेलो, गाथा-७. ७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: वीर हे रूपचंद मनभावे, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: रूपचंद० चितलाया रे. ९. पे. नाम. जिनप्रतिमा वर्णन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
जिनप्रतिमा एकादशी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: वनारसी शिवमारग साधइ, गाथा-९. ५८०९३. (#) मृगावती चोपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-११, गाथा-६ तक है.) ५८०९४. (+#) बृहत्संग्रहणी की छाया, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, १९४८४-९०).
बृहत्संग्रहणी-छाया, सं., पद्य, आदि: अर्हदादीन् आदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७१ अपूर्ण तक है.) ५८०९५. (#) मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७४३, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१६४५९). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (-); अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल
३७, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) ५८०९७. (#) लघुक्षेत्र समास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७-२०४३५-३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: तं कुसलरंगमयं पसत्थं,
अधिकार-६, गाथा-२६३, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.)
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३४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८०९९. (#) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १७८०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११-६ (१ से ६) = ५, पठ. डुंगा ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२, ७X३२-४३).
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भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३५, आदि (-); अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१७७,
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( पू. वि. श्लोक - १०२ से है . )
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५८१०० (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित संशोधित, जैदे. (२३४११, ६५१९). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह
गाथा ४०.
५८१०१. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-६ (१ से ६) =६, जैवे. (२६११.५ १३३०-३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ के किंचित् पाठांश नहीं हैं व देवानंदा के स्वप्नफल वर्णन अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र- टीका *. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
५८१०८. (+#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७-३२ (१ से ३२) = ४५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११, ७x४२-४७).
योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शिलाजित् शोधनविधि अपूर्ण शुद्ध मुखकरण विधि अपूर्ण तक है.)
योगचिंतामणि टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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५८११७. (+) लघुजातक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल भगू, प्रले. उपा. मतिविलास गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित, जैदे. (२६४१२.५, ४X४०).
लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदिः यस्योदयास्तसमये अंतिः तुंगराशादिनूके, अध्याय- १६. लघुजातक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्यपार्श्वपादौ; अंति: हुवै इति वक्तव्यम्, अध्याय-१२. ५८१२०. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१८ (१ से १७, २२) = २१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X११.५, १३x४२).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-३, श्लोक-१९५ अपूर्ण से कांड- ४, श्लोक-६० अपूर्ण तक है.)
५८१२१. कालज्ञान बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४८, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २०, अन्य. मु. हीराचंद ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X११, १०X३९-४२).
कालज्ञान-बालावबोध, उपा. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गद्य, आदि: अविरलमदजल कहतां अखंड, अंति: रोगना दुवा
जाय.
५८१२३. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१ (१) = २०, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४X११, ६-८X३४).
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-९ श्लोक-६ अपूर्ण से अध्याय-८ श्लोक-२० तक है.)
वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्याय-९ श्लोक-६ अपूर्ण से अध्याय-८ श्लोक-२० तक व बीच-बीच के टवार्थ नहीं हैं.)
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५८१४२. (+) सारस्वतव्याकरण- पंचसंधि सह टिप्पण व सवैया, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४ कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४११.५, ६४३१).
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१. पे. नाम. परिग्रह सवइया, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्म, आदि: छांड के प्राणातिपात; अंतिः व्रतधारी मुनिराज कौ, गाथा २.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३४७ २. पे. नाम. सारस्वतव्याकरण-पंचसंधि सह टिप्पण, पृ. १आ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (पू.वि. स्वरांता
पुंल्लिंगा "प्रातिपदिक संज्ञा" अपूर्ण तक है.)
सारस्वत व्याकरण-टिप्पण*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८१५०. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, १३४४०).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यं त्रिषु लोके; अंति: गर्गनामा० पाशककेवली, श्लोक-१९६. ५८१५३. (+) आरंभसिद्धि सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४६).
आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., विमर्श २ श्लोक ६१ अपूर्ण तक है.)
आरंभसिद्धि-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: पूज्यानां पूज्याय; अति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५८१५७. (+#) त्रैलोक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४४४-५१).
त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्थाभिधं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३०९ अपूर्ण तक है.) ५८१५८. (+#) सारस्वतव्याकरण का धातुपाठ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४०-४४). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञं जिनं; अंति: (-),
(पू.वि. स्वार्थोदय वर्णन अपूर्ण तक है.) ५८१६६.(+) विवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७६७, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५-१०(१ से १०)=५,
ले.स्थल. मरोट्टकोट, प्रले.ग. धर्मकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४६-४९).
विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: अंतरं शेष लग्नयोः, श्लोक-१३४, (पू.वि. श्लोक ६८ से है.)
विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: रच्यौ इण विधि अमर. ५८१७५. (#) काव्यानुशासन की स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति की स्वोपज्ञ विवेक व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०,
प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में "पं. जस विजय वडीपोसालगछे" लिखा है., कुल ग्रं. ४०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४०). काव्यानुशासन-स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति का स्वोपज्ञ विवेक विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ,
सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: विवरीतुं क्वचिद्; अंति: बृहत्कथा भवति. ५८१७९. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२,
९४२९).
__ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद २ अपूर्ण तक है.) ५८१८०. (+#) क्रियारत्नसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०९-३४(५०,५३,५६ से ५९,६२ से ७५,८३,८५ से ९१,९३ से
९५,१०५ से १०६,१०८)=७५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४६६, आदिः (अपठनीय); अंति: स्रावदेषोस्तुष्ट्यै,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५८१८१. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १६७३, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३२-४(१३ से १५,२७)=२८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४१२, १५४३९-४१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्; अंति: षोडस १६ ग्रहात् ९, श्लोक-२९४,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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३४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८१८३. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १८-२१४५०-५८).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ५८१८४. अभिधानचिंतामणिनाममाला-कांड १-५, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६, जैदे., (२६४११, १२४४०).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), प्रतिपूर्ण. ५८१८५. (+) व्याश्रयमहाकाव्य सर्ग-९ से १४ सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १९४६८).
व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग १४ श्लोक १३ तक लिखा है.) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५८१८६. (+) देशीनाममाला सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १५६१, रात्रीशरोपर्तुवसुंधरामिते, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४९,
ले.स्थल. अहम्मदाबाद, प्रले. पं. नयहर्ष (गुरु पंन्या. भावसुंदर); गुपि.पंन्या. भावसुंदर; राज्ये आ. जिनसिंहसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २०४५५-६५). देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: गमणय पमाण गहिरा सहिय; अंति:
सिरिहेमचंदमुणिवइणा, वर्ग-८. | देशीनाममाला-स्वोपज्ञ टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: देशी दुःसंदर्भा प्रा;
अंति: विरचित इति भद्रम्. ५८१८७. नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, कार्तिक कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. अजमेर,
पठ. मु. केशवजी (गुरु मु. कमलसी ऋषि); गुपि. मु. कमलसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x११, ६४२७).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: कुसल चउत्थं ठामि, श्लोक-२९४.
ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअर्हतने प्रणाम; अंति: कुशल उपजे कल्याण हुइ. ५८१८८. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५०-१९(१ से १७,२३,३२)=३१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४३५).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. कांड-३ श्लोक-८५ से कांड-५ श्लोक-६० तक है.) ५८१८९. सिद्धहैमशब्दानुशासन सह लघुवृत्ति-अध्याय १ से ४, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(२७)=२९, जैदे., (२६४११, १७X१७-६२). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहँ सिद्धिः स्याद; अंति: (-),
प्रतिअपूर्ण. सिद्धहमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं;
__ अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५८१९१. (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६४५०).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामान्य पाठ नहीं है.) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३४९ ५८१९२. (+) नारचंद्र ज्योतिष व चंद्रमा विचार, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २,
ले.स्थल. मलसीसर, प्रले.पं. धर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वदेवजी प्रसादात.,संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १२४४०). १.पे. नाम. नारचंद्रग्रंथेमिश्रकाध्याय, पृ. १आ-२५आ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: व्यासादि कथितं बुध, श्लोक-२९४. २. पे. नाम. चंद्रमां विचार, पृ. २५आ, संपूर्ण.
ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५८१९३. (+) हैमलिंगानुशासन सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. १४००, जैदे., (२६४१०.५, १-५४४७). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति:
शासनानि लिंगानाम्, प्रकरण-८, श्लोक-१३९.
हैमलिंगानुशासन-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: कटणथपभमयरषस इत्येदंत; अंति: न किंतु सत्यमेव. ५८१९४. (+#) हैमीनाममाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४३-२०(१ से १६,२८ से २९,३४ से ३५)=२३,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५०-५३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
अभिधानचिंतामणि नाममाला-टीका*सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८१९५. (+) सिद्धहैमशब्दानुशासन अध्याय-१,२ पाद-२ सह अवचूरि व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५५२, मार्गशीर्ष कृष्ण,
१४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. ईडरपुर, प्रले. पीतांबर जोसी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४६३). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (१)प्रणम्य परमात्मानं,
(२)अहँ सिद्धिः स्याद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: अर्हमित्येतदक्षरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
सिद्धहेमशब्दानुशासन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँ अस्यु ए अक्षर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५८१९६. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १७७०, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२-३२(३ से ११,१७ से २७,३५,४०,४३ से
४४,४७ से ५१,५४ से ५५,६१)=३०, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले.पं. अमीचंद (गुरु पं. रायमल्ल गणि); गुपि.पं. रायमल्ल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०९६) जलात् रक्षे थलात रक्षे, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५१). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य सारदा ज्योत; अंति: यतो धर्मस्ततो जय, अधिकार-३३,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५८१९८. (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ- परिच्छेद १, अपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २९-३(३ से
५)=२६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. वा. महिमाकल्याण (खरतरगच्छ-क्षेमशाखा.); पठ.पं.शीलरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७X४५).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनु माहरौ; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५८१९९. (#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-४(५ से ६,८ से ९)=१०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, ८x२४-२७). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के व अंत के पाठांश
नहीं है.)
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३५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
,
५८२०० (+) लिंगानुशासन का विवरण, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १६. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित कुल ग्रं. १३००, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे. (२६४११.५, २१४४२-५२). हैमलिंगानुशासन - स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धहेमचंद्र, अंति हेमचंद्रः ० लिंगानाम्,
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५८२०१. (+#) हैमी नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १३४३३-३६).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंतिः (-), (पू.वि. कांड- २, श्लोक -५ अपूर्ण तक है.)
५८२०२. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१-२ (१,१४) = १९, पू. वि. प्रारंभ बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५१२, ५X३३).
"
"
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नक्षत्रप्रकरण श्लोक-२६ अपूर्ण से संवत्योग यंत्र
अपूर्ण तक है.)
५८२०३. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, कार्तिक शुक्ल, १, बुधवार, जीर्ण, पृ. २४-९ (१० से १६, १९ से २०) = १५, ले. स्थल. मौजपुर, प्रले. डुंगरसी मिश्र, पठ. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२६.५X११, ६४३०-४४).
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्म, वि. १७२६, आदि सरस्वतीं हृदि, अंतिः विनिर्मिता स्वयम्, विलास ९,
श्लोक-३२६, (पू.वि. विलास- ३ श्लोक-२३ अपूर्ण से विलास-७ श्लोक-३ अपूर्ण तक व श्लोक-२८ अपूर्ण विलास-८ श्लोक-१२ अपूर्ण तक नहीं है.)
वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदानै ध्याजै; अंति: साह मुरादि साह कीधी.
५८२०४ (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह मध्यपादावचूरि, अपूर्ण, वि. १५१५, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २७-१२ (१ से १२)=१५, प्रले.ग. सत्यसंयम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६.५X१२, २०x६५).
"
सिद्धमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १९९३, आदि (-) अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्याय-३ पाव- १ सूत्र - ३१ से है.)
सिद्धमशब्दानुशासन- अवचूरि* सं. गद्य आदि (-); अंति (-), प्रतिअपूर्ण.
५८२०५. (+) नारचंद्र ज्योतिष व विवाहपडलसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २० - २ (१,१५) = १८, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैदे. (२५.५४१२, १४४४० ).
१. पे. नाम. नारचंद्रज्योतिष - परिच्छेद १ से २, पृ. २अ - २०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८६०, माघ शुक्र, ३, रविवार,
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. श्लोक-२२ अपूर्ण से ११० व श्लोक १३५ से है.)
२. पे. नाम. विवाहपडल सह बालावबोध, पृ. २०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
विवाहपडल, सं., पद्म, आदि: जंभाराति पुरोहिते, अंति: (-) (पू.वि. लोक-५ अपूर्ण तक है.) विवाहपडल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवामेय जिनं नत्वा, अंति: (-).
५८२०६. (+) हैमधातुपाठ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२६११.५, ९४३२)सिद्धमशब्दानुशासन- हमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १९९३, आदि: भू सत्तायां पां पाने अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्.
५८२०७. (+) सारदी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८३६, पौष, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. नाथा, पठ. श्राव. धनरु वैद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६.५४११.५, १५X३८-४१).
लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं अंतिः हर्षकीर्ति० वरनाममाला, कांड-३,
श्लोक-४५७, ग्रं. ५५०.
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३५१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५८२०८. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड १ से २, संपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०,
ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, पठ. मु. धनराज (गुरु पं. रत्नविजय गणि); प्रले.पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४३).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), प्रतिपूर्ण. ५८२०९. (+) हैमप्राकृतव्याकरण सह स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३७-२५(१ से १७,२२ से
२८,३४)=१२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १५४५१). प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. द्वितीय पाद सूत्र-हंश्रीह्रीकृत्स्न० से अव्वो सूचना०, पाद-३ सूत्र-न दीर्घो णो से निलीडेर्णिलीअव
सूत्र-रचेरुग्गहावह० से निःश्वसेझङ्खः तक है.)
प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८२१०. वाग्भट्टालंकार कीटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १९४५८).
वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीआदिनाथः; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-५
श्लोक-३० तक टीका है.) ५८२११. (+) सारस्वत व्याकरण की क्षेमेंद्री टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११-१५४४७-५२). सारस्वत व्याकरण-क्षेमेंद्रीवृत्ति, आ. क्षेमेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: तदर्थतत्त्वाभिनिविष; अंति: (-), (पू.वि. वृत्ति-३ के
अंत भाग अपूर्ण तक है.) ५८२१२. नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. यंत्र सहित., जैदे., (२६४११, १२४३९-४३).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१० अपूर्ण तक है.) ५८२१४. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन-लघुवृत्ति की षट्पादावचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २३४८०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण.
सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य० णमं प्रह्वत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५८२१६. (+) शारदी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८१०, चैत्र शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. मिज्जल, प्रले. मु. फतैचंद ऋषि
(गुरु मु. भगवानजी ऋषि); गुपि.मु. भगवानजी ऋषि (गुरु मु. देवीचंद ऋषि); मु. देवीचंद ऋषि (गुरु मु. जेसिंघ ऋषि); मु. जेसिंघ ऋषि; अन्य. मु. लक्ष्मीचंद ऋषि (परंपरा मु. भगवानजी ऋषि); श्राव. वखता वैद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४८).
लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: कीर्ति० बत नाममाला, कांड-३,
___ श्लोक-४६१, ग्रं. ५५०. ५८२१७. ज्योतिष्करंडक सह मलयगिरीयटीका, अपूर्ण, वि. १९००, श्रावण कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १९२-१७८(१ से
१७८)=१४, ले.स्थल. भरथपुर(गढ), प्रले. मु. देवीचंद (गुरु पंन्या. मूलूकचंद); गुपि.पंन्या. मूलूकचंद (गुरु मु. गोपालदास); मु. गोपालदास (गुरु मु. दोलतराम); राज्यकालरा. बलवंतसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अपने गुरु के पठनार्थे प्रत लिखी है.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, जैदे., (२६.५४११, १२४३६-३९). ज्योतिष्करंडकप्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तीओ सीसजणविबोहणट्ठाए, प्राभृत-२१,
गाथा-४०५, (पू.वि. प्राभृत-१९ अपूर्ण से है.) ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्तेनाश्नुतां लोकः.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८२१८. (+) वाग्भट्टालंकार सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १६६८, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. सावली,
लिख. श्राव. जोगीया गोईया साह; प्रले.ग. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १-९४२८-५५).
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५.
वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंति: विशेषणानि सुगमानि. ५८२१९. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ८, प्र.वि. यंत्र सहित., पंचपाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७ ११.५, १५४५६).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: सुधीप्रवरः, श्लोक-२९४.
ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: पक्षस्य प्रतिपत्; अंति: (-). ५८२२०. नारचंद्र ज्योतिष व ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४५, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. २,
ले.स्थल. वगडीनगर, प्रले.पं. अमृतसागर; पठ. पं. विजेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १८४४९). १.पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कालचंद्रे भवेन्नहि, श्लोक-२९४, (पू.वि. प्रारंभिक पाठांश
नहीं है.) २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५८२२२. (+) आरंभसिद्धि सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-५(१ से ५)=६, ले.स्थल. वृद्धग्राम, प्र.वि. यंत्र-चक्र सहित., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७७५४).
आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: प्रथयंति लक्ष्मीम, विमर्श-५, श्लोक-४१३,
ग्रं. ४६०, (पू.वि. विमर्श-१ श्लोक-७२ से है.)
आरंभसिद्धि-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८२२३. (+) धनंजयनाममाला व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
जैदे., (२६.५४११, १३४३७). १. पे. नाम. धनंजयनाममाला, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण.
जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२११. २.पे. नाम. सिंहनाद गुगुलादि औषध संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. वस्तुतः यह कृति
पत्र-१अपर है.
औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८२२४. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १७४६२).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४९ तक है.)
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-). ५८२२५. (+) हैमलिंगानुशासन सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६४०, खयुगांगचंद्रे, पौष शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७,
ले.स्थल. भुजगपुर, प्रले. आ. अमरकीर्तिसूरि (गुरु आ. मानकीर्तिसूरि, नागपूरीयतपागच्छ); गुपि.आ. मानकीर्तिसूरि (गुरु आ. चंद्रकीर्तिसूरि, नागपुरीयतपागच्छ); आ. चंद्रकीर्तिसूरि (गुरु मु. राजरत्न, नागपुरीयतपागच्छ); राज्यकालरा. रायसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१०९८) यावन्मेरुर्द्धरापीठे, जैदे., (२६४११, १३४४०). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति:
शासनानि लिंगानाम, प्रकरण-८, श्लोक-१३९. हैमलिंगानुशासन-टिप्पण*,सं., गद्य, आदि: कटणथपभम० इत्येतदंतं; अंति: (-).
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३५३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५८२२६. (-) नारचंद्र ज्योतिष व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २,
ले.स्थल. नाडोल, प्रले. मु. धर्मसिंह ऋषि; अन्य. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभुजी प्रसादात्., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, ९४३२). १.पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १अ-१६आ, संपूर्ण.
___ आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: चैत्र१ वैशाख२ ज्येष; अंति: रेवती षट्हेमका, श्लोक-२९४. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५८२२७. (+) नारचंद्र ज्योतिष व सारणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,प्र.वि. यंत्र-सारणी सहित., टिप्पण युक्त विशेष
पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६४३७-४०). १.पे. नाम. ज्योतिषसार सह टिप्पण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-१४९ तक लिखा है.) ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. सारणी, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
सारणी*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५८२३०. हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२-७(१ से ७)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११,११४४०).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. कांड-२ श्लोक-४७ अपूर्ण से १४६ तक है.) ५८२३१. (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन-१-७ अध्याय सह स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८६-१(३२१)=४८५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४४०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (१)प्रणम्य परमात्मानं,
(२)अर्ह सिद्धिः स्याद; अंति: समर्थः पदविधिः, अध्याय-७, (पू.वि. कृत्प्रकरण के बाद आंशिक पाठ नहीं है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३,
आदि: अर्ह इत्येतदक्षर; अंति: प्रवृत्तिरिति, ग्रं. १८०००. ५८२३२. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममालासह स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४४).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. ११२०. अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य,
वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: निपात्यंते पदे पदे, ग्रं. १००००. ५८२३४. रघुवंश विशेषार्थबोधिका वृत्ति-१ से १४ सर्ग, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६२-४(७२ से ७३,१५९ से १६०)+१(१३३)=१५९, जैदे., (२७४१२, १४४५४). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.,
सर्ग-६ श्लोक-४१ अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक व सर्ग-१४ श्लोक-५७ से ७४ तक नहीं है.) रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदि: ध्यात्वा तांब्रह्म; अंति: (-),
प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८२३५. (+) हैमी नाममालासह तत्त्वविधायिनी टीका, अपूर्ण, वि. १७४३, ईशनेत्रयुगसागरचंद्रमे, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ,
पृ. १९२-५२(३६ से ८७)=१४०, ले.स्थल. फलवर्द्धिपत्तन, प्रले. मु. वीरसागर कवि; पठ. मु.दोलितसागर (गुरु मु. वीरसागर कवि); अन्य. श्राव. जसकरण मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में "संवत १८४० रा मिति प्रथम वैशाखसूद १ दिने श्रे(स्नेहसुं दिधी छै कोइ उजरकरण पावै नही राजी दावैदीधी छे" का उल्लेख है., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१०.५, १७X४०-४८).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. विष्णुनाम से अलंकारनाम तक के पाठ नहीं है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य,
वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: निपात्यते पदे पदे, ग्रं. १००००. ५८२३६. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-४(११२ से ११३,१२१ से १२२)+१(९१)=१२८,
पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र-१अपर औषधनिर्माण विधि दी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ७४३८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. चर्मरोग तथा
रोगनिमित्त अधिकार का आंशिक भाग नहीं है व नाडीपरीक्षा श्लोक-३ अपूर्ण तक है.)
योगचिंतामणि-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८२३७. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ- अधिकार ५ से ७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११२, प्रले.पं. कर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४१२, ७४२५-३०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, ग्रं. ७५००, (प्रतिपूर्ण,
वि. १९३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ग्रंथ घणै कालताइ, (प्रतिपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल, २,
ले.स्थल. वीदासर) ५८२३९. (+) सारस्वत व्याकरण सह सारस्वतदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१३(१ से १३)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २-५४४८). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वरांतपुलिंग अपूर्ण से
युष्मदस्मद प्रक्रिया अपूर्ण तक है.)
सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-). ५८२४०. (+) सिद्धांतचंद्रिका व्याकरण सह सुबोधिनी वृत्ति- पूर्वार्द्ध, त्रुटक, वि. १८२७, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम,
पृ. ९१-८(१४,३१,३८,५४,५७,५९ से ६०,८९)-८३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. लद्धाजी; पठ. मु. राजसी (गुरु मु. लद्धाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१९.५, १६४५२). सिद्धांतचंद्रिका, प्रक्रिया, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५८२४१. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४४२).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ५८२४२. वाग्भटालंकार सह ज्ञानप्रमोदिका टीका, संपूर्ण, वि. १८३२, भाद्रपद कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५,
ले.स्थल. डिंडवांणा, प्र.वि. प्रथमादर्श प्रतिलेखक गुणनंदन गणिको प्रतिलेखक रूप में लिया गया है., जैदे., (२६४११.५, १७४५०).
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
वाग्भटालंकार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, ग. ज्ञानप्रमोद; ग. रत्नधीर, सं., गद्य, वि. १६८१, आदि:
(१)यस्यानेकगुणास्पदस्य, (२)इह खलु ग्रंथारंभे; अंति: प्रथमादर्श प्रयत्नेन. ५८२४३. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १७७८, वैशाख शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्रले.पं. रामविजय (गुरु
उपा. जीवविजय); पठ. मु. मोहनविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय); गुपि. पंन्या. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३९).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावुनतौ नमः, कांड-६. ५८२४४. नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८-१७९०, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. कटारिआनगर,
प्रले. पंडित. स्थिरविजय गणि (गुरु ग. कांतिविजय); गुपि. ग. कांतिविजय; पठ. केशव वीरजी व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ५४२७).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: पुवि कुटंबु परिहरैः, श्लोक-३३१,
(वि. १७८८, वैशाख शुक्ल, ८) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकरदेव; अंति: कुशलखेमकल्याण उपजइ, (वि. १७९०, वैशाख
शुक्ल, १३, रविवार) ५८२४६. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ६३, ले.स्थल. रिणी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३३-३९).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ५८२४७. नारचंद्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३७, ले.स्थल. जीर्णदूर्ग, प्रले.पं. दर्शनविजय;
पठ. मु. दर्शनविजय शिष्य (गुरु पं. दर्शनविजय); अन्य. पं. चारित्रविजय, पं. विद्याविजय; मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१२, ६x२५).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: कुसल चउत्थं ठामि, श्लोक-३१९.
ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतभगवानने; अंति: घर कुशलकल्याण उपजे. ५८२४८. (+) कालग्यांनभाषा व औषधविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, कुल पे. २,
ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. अभयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४४०). १. पे. नाम. कालज्ञानभाषा, पृ. ५अ-८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: लिख्यो अर्थ लवलेश, समुद्देश-५,
गाथा-१७७, (पू.वि. समुद्देश-४ गाथा-१९ से है.) २. पे. नाम. औषधनिर्माणविधि संग्रह, पृ. ८अ-२१आ, संपूर्ण.
औषधनिर्माण विधि संग्रह, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., प+ग., आदि: जपा गोटा मिरच सुहागा; अंति: परभात लीजै सोजो
जावै.
५८२४९. (+) भुवनदीपक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(३)=२१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम
पत्र नहीं हैं., श्लोक-१६ से ३३ व अंतिम श्लोक१७० नहीं है., वि. मूलपाठ क्रमश नहीं है तथा कहीं-कहीं प्रतीक रूप
में पाठ हैं.) भुवनदीपक-बालावबोध, मु. पुण्यहर्ष-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीपुण्यहर्षदां वाण, (२)हिवइं ग्रंथ करतां;
अंति: (-), पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८२५१. रामविनोदे नाडीपरीक्षा नेत्रपरीक्षा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. श्रीशीतलनाथजी प्रशादात्., जैदे., (२६.५४१२, ५४३५). रामविनोद-हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुभमिति सरसति समरियै; अंति: ए
कही रामचंदही, गाथा-४५, संपूर्ण. नाडीपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शुभमति कहेता भलीमति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-३८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५८२५२. (+#) सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८४९, आषाढ़ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१२, १४४३४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (१)मोक्ष साधै जि कोई,
(२)केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. ५८२५९. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-३(१,२४ से २५)=४१, कुल पे. ४७, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४१२, १७४३८-४६). १.पे. नाम. सिमंधरस्वामीप्रतिवीनती स्तवन, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एणविधि मल्लिदास ए, गाथा-८७,
(पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आत्मप्रबोधपच्चीसी, पृ. ४आ-१६अ, संपूर्ण.
आत्मप्रबोधपच्चीशी, आ. गुणसूरि, रा., पद्य, आदि: जीव म्हारौ कह्यौ कदि; अंति: ग्रहौ ग्रहै रे पखौ, पद-२७,
गाथा-३४३. ३. पे. नाम. अठारह पापस्थान सज्झाय, पृ. १६अ-२१अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीजिनवरनै नामु; अंति: सुणतां हर्ष अपार,
सज्झाय-१९, गाथा-१४१. ४. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन बावन अक्षरउपरि, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-बावन अक्षरी, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६५७, आदि: ॐकार अख्यर मन ध्याईय; अति:
गुण० परम आनंद पाईयो, गाथा-१४. ५. पे. नाम. दक्षणमे करहेटक पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडल श्रुणि श्रवण; अंति: खेमकलस० इण
परि कहै, गाथा-१३. ६. पे. नाम. सारंगुपरमे श्रीशांतिनाथ स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामि; अंति:
गुणसूरि सिव सुख पावै, गाथा-२२. ७. पे. नाम. आदिजिनछंद-धुलेवा, पृ. २३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ से
६ अपूर्ण तक हैं.) ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २६अ, संपूर्ण.
___ आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनेसर तुम्ह सम अवर; अंति: गुणसागर जन्म प्रमाण, गाथा-१३. ९. पे. नाम. अठारदोषरहित नेमीश्वरजी स्तवन, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-१८ दोष रहित, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी हो स्वामी तुम; अंति: गुण तूठा जयकारा,
गाथा-२१. १०. पे. नाम. मगसी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३५७ पार्श्वजिन स्तवन-मगसीपुर मंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमगसीपुरपास पूरण; अंति: पूरि आस्या
प्रभु सदा, गाथा-५. ११. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
आ. कल्याणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: शांतिकरण श्रीशांति; अंति: कल्याण नवी सोभा चढे,
गाथा-१०. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शामलीया, आ. कल्याणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: मूरति मोटी सोभ; अंति:
कल्याण रंग वधामणो, गाथा-८. १३. पे. नाम. चंपावती शांतिनाथजी स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-चंपावती मंडन, मु. केसराज, पुहिं., पद्य, आदि: मो बलि जाउंसतिजिने; अंति: केसराज सफल
हुइ मेरी, गाथा-६. १४. पे. नाम. चंपावतीमंडन शांतिजिन गीत, पृ. २८आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-चंपावती मंडन, मु. पंचानन, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन सुमन लाग; अंति: पंचाइन० सारेरी
माई, गाथा-६. १५. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडण, आ. विनयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सारदाजी; अंति: विनयसूरि
इम उच्चरै, गाथा-१७. १६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
मु. हर्षकीर्ति, रा., पद्य, आदि: जिन जपि जिन जपि; अंति: रयण दिनां मति चूकोजी, गाथा-१३. १७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-स्थंभनपुरतीर्थ, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिण; अंति: पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा-८. १८. पे. नाम. अतितचौवीसीनाम स्तुति पद, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण..
२४ जिन नाम पद-अतीत, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्यांनी तु जिन नाम; अंति: द्यौ सदा रहै दिढरे, गाथा-४. १९. पे. नाम. वर्तमानचौवीसी नाम पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम पद-वर्तमान, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जय जय; अंति: मोहन कौ द्यौ सुख साज, गाथा-४. २०. पे. नाम. अनागतचौवीसी नाम स्तुति पद, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम पद-अनागत, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: आधारौ चौवीसे जीनवर; अंति: मोहन० जोर दोइ कर,
गाथा-४. २१. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तुति, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन नाम पद, मु. मोहन, पुहि., पद्य, आदि: दरसण देख्यां श्रीजिन; अंति: मोहन० तुमरौ चेरौ, गाथा-४. २२. पे. नाम. मगसीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमु; अंति: गुणसूरि० पूरवौ
आस, गाथा-१५. २३. पे. नाम. मुनिस्वरां स्तुति, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
मुनिवर स्तुति, रा., पद्य, आदि: कईये मिलस्यै हो मुनि; अंति: आलोवीस गुरु साखोजी, गाथा-८. २४. पे. नाम. धन्नारिषि सिज्झाय, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
धन्नाकाबंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गावै मधुरा वैणस्युं, गाथा-२२. २५. पे. नाम. रात्रीभोजन सिज्झाय, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण.
रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल नयरी वसैजी; अंति: सार्यां आतम काजरे, गाथा-२०. २६. पे. नाम. प्रतिबोध सज्झाय, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
औपदेशिक पद- पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः पारकी होड तुं म कर, अंतिः धन कोटा न कोटी, गाथा-३.
२७. पे. नाम. सतीसुभद्रा स्वाध्याय, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेसर पाय अंति: मुगति रमणी जड़ वरी, गाथा- ९.
२८. पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. ३४अ - ३५अ, संपूर्ण.
मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने अंति: गुणसागर सुख धाय, गाथा- १७.
२९. पे. नाम. राजुल लूअरि- गीत, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. पंचायणमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुभमति आपज्यो; अंति: पंचाइणमुनि० जिणंद रे,
गाथा - ११.
३०. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. ३५अ- ३६अ, संपूर्ण.
राजिमतीसती सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरसुं वीनती; अंति: पूरो पाल्यो प्रतिबंध, गाथा - १७. ३१. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. ३६अ - ३६आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हंस कहे हो काया, अंति: करहु तुम उत्तम सती, गाथा- ७.
३२. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. ३६-३७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- नरभव दुर्लभता, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित नरभव ना लहे, अंति: हर्ष० भव सायर तिरो, गाथा- ६.
३३. पे. नाम बाहुबल स्वाध्याय, पृ. ३७अ ३७आ, संपूर्ण.
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो, अंतिः विमलकीरति गुणगाय,
गाथा - ११.
३४. पे. नाम. कर्मस्वरूप सज्झाय, पृ. ३७-३८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनस्वामी शिवपु अंतिः इम कहे गुणसूरिंदरे, गाथा-८.
३५. पे. नाम. तेरहकाठीया स्वाध्याय, पृ. ३८अ - ३८आ, संपूर्ण.
१३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वट पारे वाट मै कर; अंति: कहियै तेरह तीन,
गाथा - १७.
३६. पे. नाम. कपिलमुनि छत्रीसी, पृ. ३८-४०अ, संपूर्ण.
कपिलमुनिछत्रीसी, मु. मोहनदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवागेश्वरी पय नमी; अंति: मोहलदास० लीलविलास,
गाथा - ३६.
३७. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ४०अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: मनमाली धणियय करड़, अंतिः पदम० जिम खोडि न लागै, गाथा - ९.
३८. पे. नाम. कायाउपरी सज्झाय, पृ. ४० अ- ४०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कावापुर पाटण रूवडी, अंति: सहजसुंदर उपदेश रे, गाथा ६.
३९. पे. नाम पद्मावतीआलोयणा सज्झाय, पृ. ४० आ-४१ आ. संपूर्ण.
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: की उ जाणपणानउ सार, ढाल ३, गाथा-३४.
४०. पे नाम, धूलभद्रमूनि सज्झाय, पृ. ४९ आ-४२आ, संपूर्ण.
स्थूलभद्रवतीसी, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूहंदी आग्या प अंति: गुणसागर० करावंदा, गाधा-३१. ४१. पे नाम तीर्थंकर परिवार स्वाध्याय, पृ. ४२-४३अ संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीस तिर्थंकरनो, अंतिः ऊठीने करो प्रणाम, गाथा ५. ४२. पे नाम, आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ४३अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सनेही रे आतम; अंति: बलिहारी नाम तुमारे, गाथा-८. ४३. पे. नाम गौतमस्वामी स्वाध्याय पू. ४३अ-४३आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुठै संपति कोड, गाथा - ९.
४४. पे नाम धूलिभद्रमहर्षि सज्झाय, पृ. ४३आ, संपूर्ण.
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजे हो, अंति: समयसुंदर इणि रीति,
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गाथा-४.
४५. पे. नाम. सोलसती स्वाध्याय, पृ. ४३-४४अ, संपूर्ण.
१६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सूरंगी सूभांतिक; अंतिः प्रसन्न सदा पदमावती, गाथा- ७. ४६. पे. नाम, गुरु बारमासो, पृ. ४४अ- ४४आ, संपूर्ण.
गुरुगुण बारमासो, मु. सिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुगुरु सोहामण; अंति: संघ सदा सुख दाया रे, गाथा- १४. ४७. पे नाम, गुरुगुण हिडोलणा, पृ. ४४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम दो पंक्तियाँ हैं.)
५८२७६, (+४) वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, खंणदा, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे (२६.५४१२, ७-८X४०-४५ ).
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंति: च रोहिरसो सुविशेष एव, विलास-९,
श्लोक-३२६.
३५९
वैद्यवल्लभ-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंतिः नाम रस जाणवो (वि. प्रथम ४ श्लोकों का टबार्थ नहीं लिखा है.) ५८२८८. (१) विक्रमलीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४ प्रले श्रावि केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों
"
पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८).
विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः
-
अभयसोमे० काजे कही, ढाल १७.
५८३०६. (#) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ७५, प्रले. मु. परमानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे (२५४११, ७४३३-५०).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः विसेसं जहा आवारस्स, श्रुतस्कंध - २ अध्ययन
२०.
विपाकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालइ तिणइ समय; अंति: जिम आचारांगसूत्र मै.
५८३०७. (+#) उवासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ५४, प्रले. सा. साहु आर्या (गुरु सा. पुरांजी आर्या) गुपि. सा. पुरांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २५X११, ८X३६-४४).
יי
उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः दिवसेसु उद्दिसंति, अध्ययन- १०.
"
उपासकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनां विषदं ते अंतिः आचार समाप्त थया.
५८३०८. (#) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ व प्रायश्चित्त विधि आदि, संपूर्ण, वि. १८६३, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४९, कुल पे. ३ ले. स्थल. कृष्णगढ, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२४.५११, ५x२३-३०). १. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र, पृ. १-४८आ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पड़ निगंधाण अंतिः कप्पदुई तिबेमि, उद्देशक- ६. बृहत्कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पै नि०; अंतिः स्वमत थकी नथी कहतो. २. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र की प्रायश्चित्तविधि, पृ. ४८-४९आ, संपूर्ण.
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HTT.
उत्तम
३६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: १८० दीक्षानो छेद.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीवीनी मास भिन्न; अंति: भिन्न मास छेद दिन २५. ३. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तविधि यंत्र, पृ. ४९आ, संपूर्ण.
बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५८३०९. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ७X४६-५०). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: (-), (पू.वि. "सेत्तं अणट्ठिय भायरिया"
पाठ तक है.)
प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). ५८३१०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४८-६३).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. ५८३११. (#) विजयचंदकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. पालिताणा,
प्रले. मु. भीमविजय (गुरु पं. प्रतापविजय); गुपि.पं. प्रतापविजय (गुरु पं. मेघविजय गणि); पं. मेघविजय गणि; राज्ये आ. विजयजिनेंद्रसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ऋषभदेव प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४-१७४३८-४८). विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर, प्रा., पद्य, वि. ११२७, आदि: सयल सुरा सुकिन्नर; अंति: चरियं
सिरिविजयचंदस्स. ५८३१२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३३-१९६(१ से १९६)=३७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ६४४९-५३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सागरदत्त अपूर्ण दृष्टांतकथा से
कनककेतु राजा जीवनप्रसंग अपूर्ण तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८३१३. (#) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. रतनगढ,
प्रले.पं. सदासुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४५१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९९२) पोथी राखे चूपस्यु, जैदे., (२५.५४११, ६-११४३०-३५).
कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: संघ प्रवर्त्तताम्. ५८३१४. (+) वजालग्गं सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४-७४३८). वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सव्वण्ण वयण पंकयणि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-३३ अपूर्ण तक लिखा है.) वज्जालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., गद्य, वि. १३९३, आदि: तत्र शास्त्रस्यादौ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
__ अपूर्ण. ५८३१५. (+) श्रीपालरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पठ. श्राव. बाबूभाई रूपचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१०५९) जलं रक्षे स्तैलं रेक्षे, जैदे., (२५४११.५, ११४३०-३३). श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: देव धरम गुरु सेवके; अंति: चेतन० मंगलिक माला,
ढाल-९. ५८३१६. (+#) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२(१ से २)=२३, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३१-३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३६१ नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "संतिकर स्तोत्र" गाथा-२ अपूर्ण से
"भक्तामर स्तोत्र" गाथा२३ तक है.)
नवस्मरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८३१७. ईर्यापथिकिषत्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ., दे., (२४४११.५, ११४३८-४०). ईर्यापथिकषत्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: पणमिअजिणवर वीर; अंति:
सिरिहीरविजय जुगपवरा, गाथा-३६. ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणम्यात्मविदं वीर;
___अंति: धर्मधियेति, ग्रं. ७४७. ५८३१८. (+) जीवठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४३४).
जीवठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवठाणानां नाम१; अंति: तइए जीव तिरिएय मणुएय. ५८३१९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३७-१२१(१ से ११८,१२६ से १२७,१३२)=१६, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,५४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "ऋषभदेव चरित्र" अपूर्ण से "स्थविरावली"
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८३२०. (#) क्षेत्रसमास गणितपद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४८).
बृहत्क्षेत्रसमास-गणित, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूद्वीपनी; अंति: वास नाम प्रमुख कहिवै, (वि. यंत्र व कोष्ठक
दिए गए हैं.) ५८३२१. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७-५(१,१०,१३,१७ से १८)=२२, प्र.वि. संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५४११, ९४२८-३२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-४ अपूर्ण से ३६८
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.) ५८३२२. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५४१२, १०४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. त्रिशला माता के स्वप्नफल
के वर्णन तक है.) ५८३२३. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,१३४३७-४०).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: से तं परूक्षनाणं, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ५८३२४. (+) अणुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, अन्य.सा.रलियातबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४२६-३०).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण कालेण तेण समएण; अंति:
अणुत्तरोववाईदसाणं, अध्याय-३३.
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आराने; अंति: धर्मकथानी परे जाणवा. ५८३२५. (+#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-१८(१ से १८)=२७, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३१-३५).
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३६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. पिंडैषणाध्ययन उद्देश-४ अपूर्ण से
उद्देश-८ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ५८३२६. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, जीवविचार व दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १५,
कुल पे. ३, ले.स्थल. वाघावास, प्रले. मु. फतैचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३६-३९). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-६०, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-५ तक का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ४आ-९आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन माहे दीवा; अंति: पालवानै काले कह्यौ. ३. पे. नाम. चौविसदंडकविचार सह टबार्थ, पृ. ९आ-१५आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ.
गाथा-४५. दंडक प्रकरण-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चौवीस; अंति: (-), (वि. प्रत का किनारा खंडित होने के
कारण अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ५८३२७. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०७, श्रावण शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. वरहाणपुर, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२४.५४११, १०४३६).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं जाण; अति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४.
गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: नाम संक्षेपइ कहिया. ५८३२८. (+) ज्ञाताधर्मकथासूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६६-५२(७ से ५६,६१ से ६२)=१४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ६x४०-४३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. १२
जिनप्रतिमावंदन, आतापना तपादि अपूर्ण प्रसंग तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालइ चउथइ आरइ; अंति: (-). ५८३२९. (#) भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३६).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जीव शाश्वतुं ठाम. ५८३३०. कार्तिकसौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. पं. ललितसागर (गुरु पं. भक्तिसागर); गुपि.पं. भक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ६४३६). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५१.
वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंत पार्श्वजिनेश; अंति: ज मेडतानगरनइ विषइं. ५८३३१. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, जैदे., (२५४११, १०४२९).
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., "संतिकरं
स्तवन" गाथा-२ अपूर्ण से "बृहच्छांति स्तवन" किंचित अंश अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३६३ ५८३३२. संघयणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. कृष्णपुर, प्रले. मु. तेजरत्न (गुरु मु. धनरत्न,
तपागच्छ); गुपि.मु. धनरत्न (गुरु आ. हीररत्नसूरि, तपागच्छ); आ. हीररत्नसूरि (गुरु आ. रत्नविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४४४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८०. ५८३३४. (+#) भवभावना सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-२७(१ से २७)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६x४४-४८).
भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०२ से २९५ अपूर्ण तक है.)
भवभावना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८३३५. (+#) सिंदूरप्रकर व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०४२५-३०). १. पे. नाम. सिंदुर प्रकरण, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२,
श्लोक-१००, ग्रं. २३५. २. पे. नाम. औपदेशिक काव्य, पृ. १४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: नो वापि नैव कुपि; अंति: किदृशो स्वस्ति सत्व, श्लोक-२. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १४आ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: पात्रे धर्म निबंधन; अंति: नक्त्वाप्यहो निष्फलं, श्लोक-१. ५८३३६. (#) नवतत्त्व सह बालावबोध व ध्यानना भेद, अपूर्ण, वि. १७४०, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४३४-३८). १. पे. नाम. नवतत्व सह बालवबोध, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुन्नं३; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३, ग्रं. ५१५.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउं जीवतत्त्व१; अंति: कालि अनंतगुणा जाणिवा. २.पे. नाम. ध्यानना च्यार भेद, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउं आर्त ध्यान; अंति: (-), (पू.वि. शुक्ल ध्यान अपूर्ण तक है.) ५८३३७. (+) सम्यक्त्वपच्चीसी व अभक्ष्यानंतकाय गाथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८७३, फाल्गुन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल
पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. गजसार गणि के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४-१७४३८). १. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूरि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: विणय गुरु गुणाईयं, गाथा-२४.
सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येनोपशमिकत्वादि; अंति: भवतु अन्यत्सुगमं. २. पे. नाम. अभक्ष्यानंतकाय गाथा सह अवचूरि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वावि कंदजाई सूरण; अंति: वजह दव्वाणि बावीसं, गाथा-७.
अभक्ष्यानंतकाय गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सर्वैव कंदजातिः; अंति: पुष्पितौदनादि च. ५८३३८. दंडक प्रकरण व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २,
पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, ९४३०). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विणाति अप हिया, गाथा-५०. २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत प्रतीष्ठाना; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश,
श्लोक-२७.
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३६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८३३९. (+) सामायिकपद व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १६४३८-४१).
सामायिकपद व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सद्यो दीक्षां जग्राह. ५८३४०. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१८(१ से १६,२१ से २२)=८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,७४३७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-१० से
अध्ययन-१२ के "कोडंबिय पुरिसे सद्दावेति रत्ता एवं गच्छणं" पाठ तक है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५८३४१. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२५-३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ तक है., वि. गाथा व्युत्क्रम है.)
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुंजीवतत्त्व१; अंति: (-). ५८३४२. (#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१२(१ से ११,१६)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आगमनाम विवरण प्रसंग अपूर्ण से जीवस्थिति
वर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ५८३४३. (-) आराधना, संपूर्ण, वि. १९०५, चैत्र कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु
सा. वीराजी); गुपि.सा. वीराजी (गुरु सा. रामकवरजी); सा. रामकवरजी (गुरु सा. चनाजी आर्या); सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११, १३४३५).
आराधना, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं पहली; अंति: मरणं एगो सिज्झइ नारउ. ५८३४४. (+) पुच्छिसुणं, महावीरजिन स्तुति व दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४३, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ,
पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. लाधाजी रणछोड खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, ४४३५). १. पे. नाम. वीरथुईनामा छटटु अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पुछता हवा कोण; अंति: इम हुंबे० कहुं
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: एगत होइ सोय जीवदया, गाथा-११.
महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं० पंच महाव्रत अने; अंति: माता सुख करनारी. ३. पे. नाम. दशवकालिक प्रथम अध्ययन सह टबार्थ, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५८३४५. गौतमकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४७, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२५.५४११.५, १-३४५५-५८).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: लु० लुधा लोभी नरा; अंति: फलाई जइवावी नीवाणइ. ५८३४६. सिद्धांतोद्धरितगाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२०, आषाढ़ कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ३७-२९(१,६ से ८,१० से
३४)-८, जैदे., (२५४११.५, ४४२८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासव मुक्ख सुक्खो गाथा १२७, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा- २ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
आगमिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुखनो देणहार थाओ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. ५८३४७. (+४) जीवविचार, नवतत्त्व व दंडक प्रकरण सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे, ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, १२X३२).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टिप्पण, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण.
गाथा - ५१.
जीवविचार प्रकरण-टिप्पण *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टिप्पण, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-६०.
नवतत्त्व प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाउ सुय समुदाउ,
"
,
३६५
३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टिप्पण, पृ. ६ आ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
"
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिउण चढविसजिणे तसु अंति: (-) (पू. वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है )
दंडक प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५८३४८. (#) रायपसेणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५ - ४६ (१ से ४६ ) = ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५X११, १५X३३-३९).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: विहरति तिब्बेमी, (पू. वि. केशीकुमार के दृष्टांत अपूर्ण से है.) ५८३४९. (१) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५४११.५,
९X३४-३८).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
५८३५० (१) धर्मचतुत्रिंशिका व प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११.५, ४-७X३७-४०).
""
१. पे. नाम. धर्मचतुत्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १-५आ, संपूर्ण प्रले. मु. रणछोड ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
धर्मचतुस्त्रिंशिका, मु. तेजसिंह ऋषि, सं., पद्य, वि. १७६२, आदि: धर्मप्रकाशाय सुपार्श, अंति: चतुर्द्धा वरवर्णतेहि,
गाथा ३६.
धर्मचतुखिंशिका टवार्ध, मा.गु., गद्य, आदि धर्म जे दान शील तपः अंतिः वर्णव्यो को.
२. पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्म, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंतिः (-) (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.)
प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रज्ञा क० प्रकाश; अंति: (-).
५८३५१. (4) भरतचरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७५०, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. रतनसी ऋषि (गुरु मु. वैणीदास ऋषि); गुपि. मु. वैणीदास ऋषि (गुरु मु. चिंतामणिजी ऋषि); मु. चिंतामणिजी ऋषि; पठ. सा. अजायबदे (गुरु सा. नवलादेजी आर्या); गुपि. सा. नवलादेजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ५X३५-३८).
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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तेएणं से भरहे रावा, अंतिः सव्वदुक्खप्पहीणे. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहवार पछी ते भरतराज; अंति: सर्व दुखी
मुकाणा.
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३६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८३५२. (+#) महादंडक स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. तिलकचंद्र (गुरु मु. जयतसी, खरतरगच्छ);
गुपि.मु. जयतसी (गुरु ग. पुण्यकलश, खरतरगच्छ); ग. पुण्यकलश (गुरु ग. धर्ममंदिरजी, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १-५४५०).
महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमी भमीओ जिण; अंति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२०. महादंडक स्तोत्र-बालावबोध, मु. कल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १७१२, आदि: ऋषभं नत्वा प्रज्ञाया; अंति: प्रमिते
द्वादशोत्तरे. ५८३५३. (+) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, ६४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन तीन लोकनइ; अंति: जे समुद्र तेह थकी. ५८३५४. (+#) सप्तस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४३). १.पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ४अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७,
(पू.वि. द्वीतीय स्मरण से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५८३५५. (+) नवस्मरण १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १०४३२).
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५८३५६. (+#) दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पठ.सा. वल्ही आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६x४१). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: हियं सूरि खमंतु मेणं,
गाथा-५०.
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: आर्य गीतार्थ खमवउ ते. ५८३५७. (+) बासठीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ३४४२०).
६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई ईदिय काए; अंति: २ कोड उ९ कोड. ५८३५८. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पाली,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमाहे पईवं; अंति: माहेथी जोइने रचीयो. ५८३५९. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, ९४२८-३२).
पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-),
(पू.वि. सातलाख सूत्र अपूर्ण तक हैं.) ५८३६०. यतिप्रतिक्रमणसूत्र व मुहपत्तीनां बोल, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. थावला,
दे., (२४.५४११.५, १०४३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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१. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, २. पे. नाम. मुखवखिका के ५० बोल, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सूत्र - २१.
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र १ अर्थ २ तत्व, अंतिः छकायनी जयणा करुं. ५८३६१. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-१४ (१ से १४) =५, कुल पे. २, जैवे.,
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(२४.५X१०, १३X३७-४१).
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १५अ - १५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
"
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-) अंति कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४, (पू. वि. श्लोक ३४ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १५ आ-१९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह क्षे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., पण., आदिः णमो अरिहंताणं णमो अंति: (-), (पू.वि. सागरचंदो
3
सूत्र अपूर्ण तक हैं.)
५८३६२. स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (५) ५, कुल पे. १४, जैवे. (२४४११, १२-१५X३०-४२). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं अंतिः अम्ह सवा पसत्था, गाथा ४.
२. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंतिः कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४, ३. पे. नाम. पंचमीदिन स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना,
श्लोक-४.
४. पे नाम. अष्टमीदिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण
संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४.
"
५. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी, अंति: संघ तणा निसदिस,
गाथा-४.
६.
पे. नाम चतुर्दशीदिन स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४.
७. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३-४अ संपूर्ण.
श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजै तीरथ, अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४.
८. पे. नाम. गिरनारजी स्तुति, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण.
३६७
जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय, अंति: मंगल करहुं अंबकदेवया, गाथा-४. ९. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पच, वि. १७वी, आदिः प्रह उठी बंदु ऋषभदेव, अंतिः ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४, १०. पे नाम, त्रिभुवनपतिध्यावो, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
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महावीर जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनपति ध्यावो; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ११. पे नाम वीरजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा - ५, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.)
१२. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद, अंतिः तरु आनंदघन प्रभु पाव,
गाथा-७.
१३. पे नाम, चोवीसजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण सुरतरु जेह; अंति: शिवगतिना सुख नेडा रे, गाथा-५.
१४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि; बालपणे आपण ससनेहि, अंतिः मोहन० बलिहारी हो, गाथा- ७. ५८३६३. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. गरोठ, प्रले. मु. सुखलाल (गुरु मु. देवीचंद);
गुपि. मु. देवीचंद, पठ, मु, दुलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२३४११.५, ८४३२).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक-१०१.
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,
५८३६४. (+) गौतमकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०९, माघ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. देसुरीनगर, प्र. मु. विजयविजय प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात् प्रतिलेखन वर्ष १८९ लिखा है, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, २X३४).
,
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लुब्धा नरा अर्थो; अंति: सुख पामै सुख लहै. ५८३६५ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५२-४२ (१,९,१२ से ५१) = १०. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२५४११, ५४४५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) दशवैकालिकसूत्र - बार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५८३६६. सिंदूरप्रकर, पूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, ३०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१) = १०, ले. स्थल. मल्लारगड, पठ. मु. हरिचंद (गुरु पं. ललितसागर); गुपि. पं. ललितसागर (गुरु पं. गणपतिसागर ) पं. गणपतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११, ९-११४३२-३५),
स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, ७४२३-२६).
""
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: त्यदमपिनगंतु प्रभवति, द्वार - २२, श्लोक - १००, (पू. वि. श्लोक ५ अपूर्ण से है.)
५८३६७. (4) प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की
पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः णमो अरिहंताणं० जयड अंतिः (-),
"
(पू.वि. "जयतिहुअण" सूत्र अपूर्ण तक है.)
५८३६८. श्राद्धदेवसीप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह - सविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२५.५x११.५, १०X३२). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (१) पहिली काजो सुध काढी, (२)नमो
अरिहंताणं अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्
५८३६९. (+) विवाहपन्नत्ती सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२४-६१४(१ से ५७७,५७९ से ६०१,६०६,६०८ से ६१३,६१५ से ६२१) १०. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५४११.५, ७४४१-४४).
.
"
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५८३७०. (+) जीवविचार, नवतत्त्व व विचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पणयुक्त
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५X११.५, १३X३५).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८१८, फाल्गुन शुक्ल, ११.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३६९ प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ३. पे. नाम. विचार षट्विशिका, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४२. ५८३७१. (4) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९-५२(१ से ५२)=७, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५४११, १०x२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., माता-पिता के रहते हुए दीक्षा न लेने के अभिग्रह से दीक्षा ग्रहण पाठ अपूर्ण तक है.) ५८३७२. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र वस्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल. पाटण,
प्रले.ग. मोहनसुंदर; पठ. मु. लाधा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४-१८४३७-५२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७३६, फाल्गुन कृष्ण, ५.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. सत्तरिसयजिन स्तवन, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, वि. १७३६, चैत्र कृष्ण, १
पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति भगवति; अंति: सेवा श्रीजिनवरतणी, गाथा-६१. ३. पे. नाम. सुपास स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. मोहनसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सुपासजी मोरे मन वस्य; अंति: प्रभु तुम्हारी सेव, गाथा-५. ४. पे. नाम. सुमति भास, पृ. ६आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन भास, ग. मोहनसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सुमति जिनेसर; अंति: मोहनसुंदर सुख पावतो, गाथा-३. ५८३७३. (+) साधुपाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४५०-५५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "जेहिं इमं वाइयं दुवालसंगं गणिपडि" पाठ
तक है.) ५८३७४. (+) मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जेशलमेर, प्रले.पं. कांतिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति:
भवेदितिश्रेयः, ग्रं. १६५. ५८३७५. (+) चैत्यवंदनचौवीसी की वृत्ति, पूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(२)=८, ले.स्थल. जैनगर,
प्रले. पं. अमृतकीर्ति; पठ. पं. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४४२-४७).
स्तुतिचतुर्विंशतिका-वृत्ति, गच्छा. जिनरत्नसूरिजी, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य जिनं; अंति: शोध्या गतमत्सरैः. ५८३७६. (+#) विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(७)=८, प्रले. मु. अमीविजय (गुरु पं. भोजविजय);
गुपि.पं. भोजविजय; पठ. मु. चेना (गुरु मु. अमीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, ४४३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४६, (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक नहीं है.)
दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइं चउवीसतीर्थ; अंति: जीवनइं हितकारिणी. ५८३७७. (+#) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४३५-४०).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-६९. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीन कल्याण कहइ; अंति: ते शाश्वतां सुख पामइ.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८३७८. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(३)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. भरहेसर
सज्झाय गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५८३७९. (#) कुमतिविध्वंस स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. जेशलमेर, प्र.वि. वैसाखसुदि१३शुक्रवार भी लिखा हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४२). जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जिनप्रतिमा; अंति: मान० सुगुरुने सीस, ढाल-२,
गाथा-२१.
जिनप्रतिमा स्तवन-बालावबोध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: केतलाएक कुमती प्राण; अंति: व्युक्ति न मांडीयै. ५८३८०. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,४)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३५).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदनभाष्य गाथा ११ अपूर्ण से ५०
अपूर्ण तक व गुरुवंदन भाष्य गाथा २० से पच्चक्खाणभाष्य गाथा ६५ तक है., वि. गाथाओं में व्युत्क्रम है.) ५८३८१. नवतत्त्व सह पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.ले.श्लो. (१०६०) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५४११, १८४५२-५५).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५७. नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. भवानीदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीश्रीजिन वीरक; अंति: न करैयाको अर्थविचार,
गाथा-२११. ५८३८२. (+#) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,११४३१). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. कांड ५ से कांड ६ श्लोक १३८ तक है.) ५८३८३. जंबुद्वीप संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४११.५, ४४३०).
लघसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमीयु जिण सव्वन्न: अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ५८३८४. (+) पोसदसमी, मेरुतेरस व अखात्रीज व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, अन्य.मु. तिलोकचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४२). १.पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: इदं कथानकं कृत्यम्. २. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पृ. ३आ-७आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः. ३. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः. ५८३८५. (+) मुद्रापंचक विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १२४३६).
मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमोजिणाणं; अंति: मुद्रापंचकविधिरियं. ५८३८६. (+) स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२५४११.५, १३४३२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. नेमीजिन स्तुति,
गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५८३८७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा+व्याख्यान १-८, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९५, प्र.वि. संशोधित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२,७-१५४४३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार हुआ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, आदि: प्रणम्यतीर्थनेतारं अंतिः (-), प्रतिपूर्ण,
"
५८३८८. (+) सूयगडांगसूत्र सह टवार्थ श्रुतस्कंध २ संपूर्ण वि. १९३३, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १०१, प्र. वि. "संवत् १९३५ मां डूंगरसीस्वामीना संघाडाना श्रावक सुंदरजी देवराजे आ प्रत नगरनां भंडारमा राखी छे" ऐसा उल्लेख मिलता है व प्रतिलेखक संक्षिप् अक्षरों में "लि.पु.दे.सा.त.शि.रु. मा. " दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X११.५, ७२५-३०).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: तुम प्रतई कहूं छडं, प्रतिपूर्ण
५८३८९. (+) सेनप्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. ११७, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x११.५, १५X३९).
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प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि : मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य परं ज्योति, अंति: प्रघोषः श्रुतोस्तीति, उल्लास-४, (वि. प्रश्न १०१४.)
५८३९० (+) उपदेशमाला प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७५, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ९३ ले. स्थल. सुरतबंदर, प्र. वि. सूरतमंडण पार्श्वदेव प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे. (२४४१०, ६-१३X३९).
"
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: जीव अनंता सुख पामे. ५८३९१. (+#) श्रीपालनरेंद्र कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १२५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६७४ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, ६३१).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपवाई झायित अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा - १३४०.
सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, पं. ऋद्धिसागर मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद, अंति: कहेवा जोयं कथा या.
५८३९२. (+) उपदेशमाला सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७२- १ (१) =७१, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जै, (२५४११.५, ४-१४४३८)
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से १६० तक है.) उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
1
३७१
יי
५८३९३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८७-१ (८२) = ८६, ले. स्थल दरीआपुर, प्रले. नागर छगन दोसी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. दरियापरीनां अपासरा मध्ये लखेल छे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ३०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५X११, ४X३१).
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः रएव जे स भिक्खु,
अध्ययन- १०, ( पू. वि. विणयसमाधि अध्ययन के कुछेक पाठांश नहीं हैं., वि. चूलिका २.)
दशवेकालिकसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: घ० धर्म म० मंगलिक अंतिः य० पूर्णो जे० जे ते, (पू.वि. सामान्य
पाठांश नहीं है.)
५८३९४. (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ श्रुतस्कंध १, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७९, अन्य. मु. खोडाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५X११, ५X३७).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: (१) वंदित्तु सारसुरसाहिस, (२) सुवं मे आउस तेणं, अंति: (-).
प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र- टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनवरेंद्रनि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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३७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८३९५. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान १-८, संपूर्ण, वि. १८५२, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७५, ले.स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. पं. भावविजय; राज्यकालरा. सूरतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२५-३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८. ५८३९६. (+#) भवभावना सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६-१(७६)=८५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४११, २-१३४३६-४०). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण नमिरसुरवर मणि; अंति: (-), (पू.वि. बीच का पाठांश
नहीं है व गाथा-४९४ तक है.)
भवभावना-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: ॐनमो भगवती शिवशांति; अंति: (-). ५८३९७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले.स्थल. जैपर, प्रले. मु. फकीरदास (गुरु
मु. भोजराजजी); गुपि.मु. भोजराजजी (गुरु मु. नाथुराम); मु. नाथुराम (गुरु मु. मनजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीवणजीकी नेसराए., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि,
अध्ययन-१०, (वि. १८४७, कार्तिक शुक्ल, १२, गुरुवार) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० श्रीजिनधर्म; अंति: तुज प्रतै कयै छई, (वि. १८४७, कार्तिक शुक्ल,
१३, शुक्रवार) ५८३९८. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १२५०, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२५४११.५, ८४४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२,
ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०.)
विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाकश्रुत किसउ; अंति: जिम आचारगसुत्र मइ. ५८३९९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६७-१(२०)+१(२८)=६७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५,७४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पृ.वि. ऋषभदेव चरित्र अपूर्ण तक है
व बीच के पठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: (-). ५८४००. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रावण कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. सूरितबिंदर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ५४३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मोमंगलमुक; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: कहुं छं गुरुवचने. ५८४०१. (+#) रायपसेणीयसूत्र केशीकुमार व राजाप्रदेशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४३, वैशाख शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम,
पृ. ५०, ले.स्थल. खंभायतिबंदर, प्रले. मु. चीका (गुरु मु. गोविंद); गुपि. मु. गोविंद (गुरु मु. मकंद ऋषि); मु. मकंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३५८१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४४२).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: पस्सेपस्सवणी णमो ए, ग्रं. २१७९, प्रतिपूर्ण.
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेह भणी नमस्कार थाउ, प्रतिपूर्ण. ५८४०२. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५२, प्रले. पं. दरसणप्रिय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं.१२००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३३-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३७३ ५८४०३. (+#) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, आषाढ़ कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५६, ले.स्थल. जुनागढ,
पठ.सा. अमरतबाई (गुरु सा. राज्यबाई आर्या); प्रले.सा. राज्यबाई आर्या (गुरु सा. रामबाई आर्या); गुपि.सा. रामबाई आर्या (गुरु सा. हीरबाई आर्या); सा. हीरबाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६३.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: भणी जीववच्यार जोवो. ५८४०४. (+#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२-२(२ से ३)=६०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., अन्य.पं. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४३१). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-१ के पाठ
"समोसरिए सेणिए निगाओमंति" से "एवं अब्भत्थिए चरित्त चयई जेणेच" तक नहीं है व उद्देशक-१८ के पाठ
"पाणग्रहणं भव्वंभमदेवी" से आगे के पाठ नहीं हैं.)
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे चोथा आराने; अंति: (-). ५८४०५. उववाईसूत्र, अपूर्ण, वि. १७०५, भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४६-३(१ से ३)=४३, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्र.वि. कुल ग्रं. ११६७, जैदे., (२५४११.५, ११४३१-३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुहासुहं पत्ता, सूत्र-४३, (पू.वि. "वासतिलताहिं अतिसुत्तयलताहिं
कुंदलयाहिं" पाठ से है.) ५८४०६. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, ५४२९).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक-४३४ अपूर्ण तक है.)
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: (-). ५८४०७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- अध्ययन ८, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-२(१८,३२)=४४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०४३१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं.,
बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५८४०८. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६, अन्य. मु. मेरुमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६४३८-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रणीत धर्म; अंति: तुज प्रत्ये कह्यु. ५८४०९. नवतत्त्व सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२, १२४३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: एतानि नवानां तत्वाना; अति: (-). ५८४१०. (+#) जीवविचार, नवतत्त्व व दंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. ३,
ले.स्थल. वालूचर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४२८). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सहटबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि०
समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भवन कहितां तीन भुवन; अंति: श्रुतसमुद्र हुंती.
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३७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८आ-१५आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुणं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्क णिक्काय, गाथा-५०.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: दशविध प्राणधारकनी; अंति: जाय सो अनेक सिद्ध. ३. पे. नाम. दंडकप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १५आ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में लघुसंग्रहणी लिखा है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउंक० नमस्कार करक; अंति: तिणां लिहिया क० लिखी. ५८४१२. (+#) साधु सामाचारी सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २५,
प्रले. पं. सेवाराम; पठ. पं. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ८-१४४३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीवने इम उपदेश देवै, प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मुक्त्वा मनः शुद्ध्य, प्रतिपूर्ण. ५८४१३. (+#) भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३,
ले.स्थल. सिरियारी, प्रले. मु. जीवणरुचि (गुरु ग. केसररुचि); गुपि.ग. केसररुचि (गुरु ग. कनकरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३७-४०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:
मुनिभुजाशरसुधाकरमिते. ५८४१४. (+) निशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. पेन्सिल द्वारा संशोधित है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४११, ९x४४).
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: सिस पसिसोव भोद्यच्छं, उद्देशक-२०. ५८४१५. (+) कर्मग्रंथ १ से५ का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४५४-६०). १. पे. नाम. कर्मविपाक का बालावबोध, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान प्रति; अंति: देवेंद्रसूरि काउं. २. पे. नाम. कर्मस्तव का बालावबोध, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: १४ आतैका १५ एवं १५. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व का बालावबोध, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: बंध सामित्त विचार; अंति: बंधसामित्व जाणिवउ. ४. पे. नाम. षडशीति का बालावबोध, पृ. ८आ-१२आ, संपूर्ण.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्कार; अंति: लिखि देवेंद्रसूरिहिं. ५. पे. नाम. शतककर्मग्रंथ का बालावबोध, पृ. १२आ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९४ अपूर्ण तक
का बालावबोध है.) ५८४१६. (#) जंबूस्वामी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४५०).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं; अंति: (-), (पू.वि. सातवीं कथा अपूर्ण तक है.) ५८४१७. (#) अंतगडदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५४१२, १३४३३-३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३७५
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः (-) (पू.वि. अध्ययन- ७ अपूर्ण तक है.) ५८४१८. (+४) कल्पसूत्र महावीर जन्मप्रसंग वर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ८४३३-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. राजा सिद्धार्थ के अट्टनशाला में जाने के वर्णन तक है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
५८४१९. (+#) योगशास्त्र १ से ४ प्रकाश सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-८ (१, ३ से ९) = २३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ७X३३-४१).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ से ९ अपूर्ण तक व २६ अपूर्ण से ८२ अपूर्ण तक नहीं है.)
योगशास्त्र हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५८४२०. (+) कालिकाचार्य संबंध, संपूर्ण वि. १८८८ श्रावण शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. १३. ले. स्थल, लूणकरणसर, प्रले. पं. विद्यारुचि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये. (२५X११.५, १५X३८).
"
कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं अंतिः संघ जयवंतौ प्रवत्ती, ५८४२१. (+#) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४ - ३४ (१ से ३४ ) = १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ४-२१x४६-५३).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा - ३०८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं. गाथा - २८७ अपूर्ण से है.)
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संग्रहणीसूत्र - बालावबोध, वा. ज्ञानवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १८२५, आदि: (-); अंति: पंचविंशाधिकेमिते, पू. वि. अंत
के पत्र हैं.
५८४२२. (+) शांतिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-८ (१ से ८) = १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १४x२७-३०).
शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि सं., गद्य वि. १५३५, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रस्ताव - १ त्रैलोक्यसुंदरी जीवन प्रसंग अपूर्ण से अचल द्वारा पुत्र को राज्य प्रदानकर संयम ग्रहण करने के प्रसंग तक लिखा है.)
יי
५८४२३. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००-८७ (१ से ४, ७ से ५९,६१ से ६९, ७८ से ९८ ) = १३,
पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४११, ६३४).
"
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आश्रवद्वार- १ अपूर्ण, अधर्मद्वार
अपूर्ण से संवरद्वार अपूर्ण तक है, बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५८४२४. स्तोत्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१८ वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २१-६ (२ से ६ ) = १५, कुल पे. ४, ले. स्थल, भीलेडा,
प्रले. गणेशराम रजपुत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ९४२५).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं..
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समपैत्रु लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू. वि. गाथा ४३ अपूर्ण से है)
२. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ७अ - १३अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं. प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्.
३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १३-१४आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत, अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १४आ- २१अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ५८४२५ (+) लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२४.५x१२, ११x४०).
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लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपचपय अंति: कुसलरंगमयं सिद्ध, अधिकार-६, गाथा - २६६.
५८४२७. (+) कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र. वि. त्रिपाठ - द्विपाठ-संशोधित, जैदे., ( २४.५x११.५, १८-२२३८-५०).
१. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि सिरिवीरजिणं वंदिव, अंतिः लिहिओ
"
"
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देविंदसूरिहिं, गाथा-६२.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरप्रति वंदित्व, अंति: वारे नीचगोत्र बांध . २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० तं नमह बीरं, गाथा - ३४.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिव कर्मस्तवनउ; अंति: ते श्रीमहावीरनइ नमुं. ३. पे, नाम, बंधस्वामित्व सह वालावबोध, पृ. ७आ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी- १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त, अंति: (-),
"
.
(पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ अपूर्ण तक लिखा है.)
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ बंधसामित्तानउ, अंति: (-), (पू. वि. अंतिम किंचित् पाठांश नहीं है.)
५८४२८. () बृहत्संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल विक्रमपुर, प्रले. मु. रतिसुंदर, पठ सा. अनोप (गुरु सा खुस्यालच्छि ) गुपि. सा. खुस्यालच्छि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३X३८).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदिः नमिठं अरिहंताई ठिइ, अंतिः नंदोजा वीर जिण तित्थ,
יי
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गाथा - २७९.
५८४२९. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ३५४, जैये. (२४.५x११, ४४३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपिति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इणइ पहिलइ काव्यइ; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वर.
५८४३० (+४) त्रैलोक्यदीपिका संग्रहणी, संपूर्ण वि. १८६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. मतिधीर; पठ. पं. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२४३२).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४३. ५८४३१ (+) तत्त्वार्थसार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५.५४११,
१७x४०).
तत्त्वार्थसार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतार; अंति: कर्तृणि न पुनर्वयं, अधिकार-८. ५८४३३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-२८(१ से २८) =११, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२५.५X११.५,
११X३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "भगवं महावीरे साइझेगाइ पाठ से सेसं जहा मल्लिस्स० जावप्पहीणस्स" तक पाठ है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३७७ ५८४३४. (#) कर्पूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३१-३६).
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ____ श्लोक-२० तक लिखा है.) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदि: लक्षजिनेशपेशलरद; अंति: (-), अपूर्ण,
- पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५८४३५. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, ले.स्थल. महेश्वरद्रंग,
प्रले. पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, (पू.वि. "पुव्विं अणाणयाए असवणयाए" पाठ
से है.) ५८४३६. (#) सुभाषित रत्नावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.. (२५४१२, १२४४०). सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जिनाधीशं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-२३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५८४३७. (+) गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-२(३,९)=१८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४१).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३७ तक है.) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., गाथा-३७ की टीका अपूर्ण तक है.) ५८४३८. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. पं. बुद्धा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४३४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमियो अरिहंताई ठिई; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३८३. ५८४३९. (4) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. २अ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. गजेंद्रविजय; पठ. मु. ताराचंद्र (नागोरी
तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, (पू.वि. प्रारंभिक कुछ पाठ नहीं हैं.) २.पे. नाम. क्षामणा सूत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ५८४४०. (#) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-३(११ से १३)=११, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२७-३२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. कामदेवश्रावक चरित्र
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५८४४१. (+#) त्रैलोक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-४(१,७ से ९)=१८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६x४९). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं.,
स्थानबल, श्लोक-४० अपूर्ण से शुक्रास्तफल, श्लोक-९ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५८४४२. (+) सप्तस्मरण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५,
११४२९).
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३७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभय; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह,
स्मरण-७. ५८४४३. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४२२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. देवानंदा के गर्भापहार हेतु इंद्र के
द्वारा हरिणैगमेषी देव को बुलाने के प्रसंग तक है.) ५८४४४. तपागच्छ पट्टावली व गच्छमत स्थापना संवत्, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५,
१२४३८). १. पे. नाम. तपागच्छीय पट्टावली, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तत्प?; अंति: श्रीविजयदेवेंद्रसूरि. २. पे. नाम. गच्छमत स्थापना संवत, पृ. ८आ, संपूर्ण. गच्छस्थापनकाल, मा.गु., गद्य, आदि: सं. ३५० वर्षे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लुंकामत की
स्थापना तक है.) ५८४४५. (#) लोगस्ससूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. भाग्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६-४१).
लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे; अंति: सिद्धिं मम दिसंतु, गाथा-७.
लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउद राजलोकमाहि; अंति: जनइ दिसंतु कहीइ दिओ. ५८४४६. (#) शोभन स्तुति व पर्युषण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५४१२, १३४३१). १.पे. नाम. शोभन स्तुति, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १८२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, ले.स्थल. सेवंत्री, प्रले. पंन्या. कांतिविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुन्ये; अंति: शुभविजय० वधो वधाइ जी, गाथा-४. ५८४४७. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५४११, ३४३४).
लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जं लोअं; अंति: धम्मकित्ति०
इह भिसं, गाथा-३२, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक का बालावबोध लिखा है.) ५८४४८. (+#) सुभाषितावलीसह टबार्थव श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. लछीराम
(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३२). १.पे. नाम. सुभाषितावली सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
सुभाषितावली, प्रा.,सं., पद्य, आदि: गुरुभत्तिखंतिकरुणा; अंति: तस सव्वे जीवा अणंतशो, गाथा-५६. __सुभाषितावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुरुनी भक्ति करतां; अंति: सर्वजीव अनंती वार. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: बुद्धे फलं तत्त्व; अंति: प्रीतकरो नराणां, श्लोक-१. ५८४४९. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. दिल्ली, प्रले. श्राव. रतनचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१).
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साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो अंति: करेमि काउसणं.
५८४५०. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, ११४४२).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १२ तक लिखा है.)
नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर, अंति: (-), (अपूर्ण,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १२ की अवचूरि अपूर्ण तक लिखा है.)
,
५८४५१. (+) विपाकसूत्र सुखविपाकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पढ श्राव. मंगलचंद मालु, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसी व्यक्ति के द्वारा पेंसिल से सुधार किया गया है।, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित.. जैदे., ( २४.५X११.५, ८४५५).
"
विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंतिः सेसं जहा आयारस्स, अध्याय- १०.
विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते कालने विषे; अंति: आचारंगे कांतिम
५८४५२. (+#) नवस्मरण, चतुर्विंशति स्तोत्र व जिनपंजर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम,
पृ. २४-१६ (१ से ९, १४ से १८,२० से २१) = ८, कुल पे. ३. ले. स्थल, कानोड, प्रले. सा. चंदा, पठ, श्राव, भैरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हस्तप्रतलेखन शुल्क ०३.२५ का उल्लेख मिलता है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५४११.५, १०X३०).
१. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १०अ २२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भक्तामर स्तोत्र श्लोक-४२ अपूर्ण से, बृहद्शांति स्तोत्र के मध्यभाग व लघुशांति स्तोत्र के श्लोक-१५ अपूर्ण से हैं.)
२. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. २२अ २२आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तव - चतुः षष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि : आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: लक्ष्मीर्निवासम्, श्लोक-८.
३. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २२आ- २४अ संपूर्ण
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२४.
५८४५४. अजितशांति स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (४) =६, दे.. (२५X११.५, १०X२० ).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंतिः पुब्बुप्प० विणासंति, गाथा - ३९, (पू.वि. गाथा- १७ अपूर्ण से गाथा २४ अपूर्ण तक नहीं है.)
५८४५५. आचारांगसूत्र- द्वितीय श्रुतस्कंध का अध्ययन- १ व ३ सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवे. (२६४१२,
१५X४०).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
आचारांगसूत्र- टीका #. आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य वि. ९१८ आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
"
"
५८४५६. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे.,
(२५.५X११, ६X३८).
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चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा - ६३.
चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहुलूं, अंतिः भणी सदेचतुसरण गण.
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३८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८४५७. (+) कल्पसूत्र-कल्पश्रुतदीपिकाटीका की पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १३-१५४४६-५१). कल्पसूत्र-कल्पश्रुतदीपिकाटीका पीठिका, पंन्या. हितरुचि, सं., गद्य, आदि: नत्वा गुरुं सद्गुणचा; अंति: (१)रूपयामि
सूत्रार्थतः, (२)सद्गुरुणा प्रसादतः. ५८४५८. (+) कम्मपयडी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-११(१ से ४,१० से १६)=९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३५-३८). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९४ अपूर्ण से गाथा-२०२ अपूर्ण तक व
गाथा-३५९ अपूर्ण से गाथा-४५३ अपूर्ण तक है.) ५८४५९. (+) अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ९४२६).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिय जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ५८४६०. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४.५४११, ४४३७-४२).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८१,
संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदि अक्षर अंत अक्षर; अंति: संपदाने प्राप्ति होइ, (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३८ से ५६ तक का टबार्थ नहीं लिखा है.) ५८४६१. (+) चंद्रमंडलादि विचार संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१,४,७)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है।, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४.५४११, ३४२४-२७).
विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
विचार संग्रह का टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८४६२. (+) उपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक __ लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४४२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ तक है.)
उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनवर; अंति: (-). ५८४६३. आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१८(१ से १८)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, ६४३८-४७). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ उद्देश-६ से
अध्ययन-५ उद्देश-२ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५८४६४. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २५-१७(१ से १७)=८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३१-३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वदामि जिणे चउव्वीसं, (पू.वि. मात्र
वंदितुसूत्र है.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकर वांदउं छउं. ५८४६५. (+#) कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-८(१ से ८)=८, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं.१०००३५, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११,५४३७). १.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देवेंदसूरिहिं,
गाथा-६२, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पद है.)
"
तकह.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३८१ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमहं तं
वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: तथा तिम स्तवउ; अंति: कर्मनी सत्ता पूरी थइ. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १३अ-१६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२५.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: कर्मस्तव सांभलीनइ. ५८४६६. (+) सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. मु. लाधाजी
ऋषि (गुरु मु. आणंदजी ऋषि); गुपि. मु. आणंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ३४२७-३९).
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५.
सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजे रीते स०समकितनु; अंति: सम्यक्त्वरुपणी संपदा. ५८४६७. (+#) बृहद्संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-४(१ से ४)-७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, ५४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से गाथा-८९ अपूर्ण
तक है.)
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७२ तक टबार्थ लिखा है.) ५८४६८. (+#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ व परमाणुमान कुलक, संपूर्ण, वि. १८२०-१८२९, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ५४४०). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामी जीण चोवीस, गाथा-५०, (वि. १८२०, श्रावण शुक्ल,
३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ अरिहंतसिद्ध; अंति: चउवीस तिर्थंकर प्रति, (वि. १८२९, कार्तिक
शुक्ल, ९, सोमवार, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. नागजी ऋषि; पठ. मु. जेमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. परमाणुमान कुलक, पृ. ६अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: पुढवाइ आसत्ता सव्वं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ५८४६९. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. रवजी ऋषि; अन्य. सा. रतनबाई आर्या; मु. भाणजी ऋषि;
सा. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ५४३६-४०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्वर; अंति: कालइ पुण अनंतगुणां. ५८४७०. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र व अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, पठ.मु. धनजी (गुरु
मु. जीवाजी); गुपि.मु. जीवाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
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३८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संत अंतिः जिणवयणे आवरं कुणह
गाथा ४०.
५८४७१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध व शकुन विचार गाथा, संपूर्ण, वि. १८१७, आश्विन कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल सथलाणा, पठ. मु. उरजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४११, १८X५०).
१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र वालावबोध #, मा.गु., गद्य, आदि जिनेश्वर तीर्थंकर अंतिः आपणउं नाम जणाविउ,
२. पे. नाम. शकुनविचार गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
५८४७२. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४.५४११,
१२X३५).
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उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- १०३ अपूर्ण तक है.)
५८४७३. (+) पर्यंताराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित., प्र. ले. श्लो. (४६२) मंगलं लेखकस्यापि जैदे. (२५.५४११.५, ७४३६).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा - ७०. पर्यंताराधना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः नमः करीनई कल्याण; अंतिः ते शाश्वतासुख जीव.
५८४७४. (+) विपाकसूत्र - सूखविपाकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, ७x४२).
"
विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-). (पू. वि. सुबाहु अणगार का महावीरस्वामी के समीप सामायिकादि ग्रहण प्रसंग तक है.)
विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ते काले चउ० ते समय; अंति: (-). ५८४७५. (+१) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५४ आश्विन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.,
(२४.५X११.५, १५X३६).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे य तित्थे, अंति: जेसिं सुवसावरे भत्ति,
५८४७६, (+४) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्नातस्या स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे, २. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४११, ९४२२-२५).
१. पे नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ५अ संपूर्ण
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा- ५०.
२. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, प्र. ५अ ५आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्म, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धं श्लोक-४. ५८४७७. (+) संतिकरं आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५X११, १४X४०).
१. पे. नाम संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य वि. १५वी, आदिः संतिकरं संतिजिणं जग, अंतिः सिद्धि भइ सिसो, गाथा- १४.
२. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अ अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४.
३. पे नाम, नमिऊण स्तोत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३८३ आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ४.पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४१. ५८४७८. ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, ११४३३-३५).
४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. करकंडुचरित्र अपूर्ण से जुगबाहुचरित्र अपूर्ण तक है.) ५८४७९. दसप्रत्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९३, आश्विन कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पंन्या. खुशालविजय (गुरु
पंन्या. हस्तिविजय); गुपि. पंन्या. हस्तिविजय (गुरु ग. चतुरविजय); लिख. मु. महीवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा, (११०३) तैलं रक्षेत् जलं रक्षेत्, जैदे., (२५४११.५, ३४५०).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि.
प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या पछी; अंति: थकी वोसरावूछु. ५८४८०.(+#) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, पूर्ण, वि. १६९७, आषाढ़ शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३५-१(११२)=२३४,
प्र.वि. पत्रांक-१० पर महावीरस्वामी का चित्र है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१९) यावत लवणसमुद्रो, जैदे., (२५४११.५, १३४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (पू.वि. मध्यभाग के एक पत्र का पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (१)प्रणम्य परमं ज्योतिः, (२)तेणं
कालेणं० ते इति; अंति: तावन्नंदतु सापि हि, ग्रं. ७७००. ५८४८१. (+) समरादित्यचरित्र व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५३, कुल पे. २,
ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्रले. चक्रपाणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १३५७१, प्र.ले.श्लो. (१०६३) कड कुबडी कड बेगडी, जैदे., (२५.५४११.५, १३४५१). १. पे. नाम. समरादित्य चरित्र, पृ. १आ-३५२आ, संपूर्ण. समरादित्यकेवली चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., प+ग., वि. १८७२-१८७४, आदि: श्रीमंत
परमात्मतापद; अंति: वर्द्धनं कृतमिति, अध्याय-९, ग्रं. १००००. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३५२आ-३५३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जिणसुंलागो मन्न तिण; अंति: भख्य चल्यौ अहिसोय, गाथा-१३. ५८४८२. कर्मग्रंथ १ से५ सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१२, कुल पे. ५,प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११,
१७-१८x१८-४१). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १आ-३७आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवर; अंति: सर्वोपि
तेन जनः, ग्रं. १८८२. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ३८अ-५६आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ; अंति:
त्रुट्यंतु जगतोपि, ग्रं. ८३०. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह अवचूरि, प्र. ५७अ-६५आ, संपूर्ण.
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३८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सम्यग्बंधस्वामित्व; अंति: रतोलेख्यवचूर्णिका, ग्रं. ४२०. ४. पे. नाम. षडशीति सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ६६अ-१२३आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंति:
विचारणाचतुरः, ग्रं. २८००. ५. पे. नाम. शतक सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १२४अ-२१२आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००.
शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यो विश्वविश्वभविनां; अंति: स्मृतिनिमित्तमिति. ५८४८३. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८१, ले.स्थल. पत्तननगर,
प्रले. मु. विनयरत्न (गुरु पं. देवरत्न, आगमगच्छ); गुपि.पं. देवरत्न (गुरु पं. जयरत्न, आगमगच्छ); पं. जयरत्न (गुरु भट्टा. संयमरत्नसूरि, आगमगच्छ); भट्टा. संयमरत्नसूरि (गुरु भट्टा. विवेकरत्नसूरि, आगमगच्छ); भट्टा. विवेकरत्नसूरि (आगमगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३-१५४३२-४०). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: तावनंदतु पुस्तकम्,
प्रस्ताव-६, श्लोक-१६३२, ग्रं. ४९६०. ५८४८४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७६५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १७३, ले.स्थल. पत्तन,
प्रले. मु. मानचंद्र (गुरु ग. रुपचंद्र, अंचलगच्छ); गुपि.ग. रुपचंद्र (गुरु पं. उदयचंद्र गणि, अंचलगच्छ); पं. उदयचंद्र गणि (गुरु वा. विजयचंद्र गणि, अचलगच्छ); वा. विजयचंद्र गणि (अचलगच्छ); राज्यकालरा. आलमगीरी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रथम पृष्ठ पर संवत १९०७ में बेणिदत्त नागोरी के चौमासा किये जाने का उल्लेख मिलता है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७-१६४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बार बार स्वामी कहइ, (वि. टबार्थ क्रमशः नहीं है.)
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: लागी केवलज्ञान उपमुं. ५८४८५. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थव अंतर्वाच्य, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८७-१(३)=१८६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १२००, जैदे., (२५.५४११, ५-१४४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम
व्याख्यान का टबार्थ नहीं लिखा है.) । कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., गद्य, आदि: एसो पजोसवणा समणाण; अंति: केवलज्ञानोगत पर्षदि, पूर्ण, पू.वि. बीच का
एक पत्र नहीं है. ५८४८६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७०-११(१ से
११)+२(९४,१४२)=१६१, प्र.वि. संशोधित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ४-१५४३०-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
व्याख्यान १ से ७ तक है.)
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महाह.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३८५ कल्पसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: चउत्रीस अतिशय करी; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पीठिका व
व्याख्यान-७ के बाद के पाठ नहीं हैं) ५८४८७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७१९, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६१-२४(१,१३ से
३१,३६ से ३९)=१३७, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२४.५४११, ६४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के कुछ पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पर्युषणाकल्प कहीइ,
(पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारम्भ व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५८४८८. (+) समवायांगसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ५-७४२८-३३).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३,
सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: देखाड्यउ भगवंतइ
कहिउ. ५८४८९. (+) आचारांगसूत्र सह प्रदीपिका टीका व नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १७२९-१७७९, मध्यम, पृ. २०१, कुल पे. २,
ले.स्थल. पत्तनपुर, अन्य. सा. जयतश्री आर्या (गुरु सा. सकला आर्या); गुपि. सा. सकला आर्या; अन्य. ग. ऋद्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. साध्वी जयतश्री के द्वारा यह प्रत पुण्य हेतु चित्कोश में रखायी गई., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १-११४३५-४८). १. पे. नाम. आचारांगसूत्र सह प्रदीपिका टीका, पृ. १आ-१९३अ, संपूर्ण, वि. १७२९, नंदनेत्रमुनिचंद्रे, पौष कृष्ण, ९,
सोमवार. आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५. आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: शासनाधीश्वरो जीयाद्व; अंति:
वीरशासनं जयति सफला. २.पे. नाम. आचारांगसूत्र की नियुक्ति, पृ. १९३आ-२०१आ, संपूर्ण, वि. १७२९, ग्रहाशिवमुनेंदु, माघ कृष्ण, ५. आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे; अंति: तयस्स उवरिं भणीदामि,
गाथा-३६८. ५८४९०. कौमुदी कथा, अपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२२-२(१ से २)=१२०, ले.स्थल. सोपुर, प्रले.
चतुरदास वैष्णव; अन्य. मु. तिलोकचंद (गुरु मु. हेमराजजी, विजयगच्छ); गुपि. मु. हेमराजजी (गुरु मु. दयालसागर, विजयगच्छ); मु. दयालसागर (गुरु आ. विनयसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. विनयसागरसूरि (गुरु आ. सुमतसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. सुमतसागरसूरि (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. कल्याणसागरसूरि (गुरु आ. गुणसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. गुणसागरसूरि (गुरु आ. पद्मसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. पद्मसागरसूरि (गुरु आ. खेमासागरसूरि, विजयगच्छ); आ.खेमासागरसूरि (गुरु मु. धर्मदास, विजयगच्छ); मु. धर्मदास (गुरु मु. विजयराज, विजयगच्छ); मु. विजयराज (विजयगच्छ); अन्य. मु. खेमचंद (विजयगच्छ); मु. हरिचंद (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.ले.श्लो. (२६) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, जैदे., (२३४१०.५, १०४३३-४०).
कौमुदी कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्मार्थं कौमुदीपर, कथा-८, (पू.वि. द्वितीय कथा अपूर्ण से है.)
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३८६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८४९१. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १७८७, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १११, ले. स्थल. आसणीकोट्ट, पठ. मु. देवचंद (गुरु पं. रत्नरंग); गुपि. पं. रत्नरंग (गुरु ग. प्रीतराज); ग. प्रीतराज (गुरु उपा. भक्तिविशाल गणि); उपा. भक्तिविशाल गणि (गुरु वा. उदयहर्ष गणि) वा. उदयहर्ष गणि (गुरु वा. हेमराज गणि); वा. हेमराज गणि (गुरु उपा. ललितकीर्त्ति गणि); उपा. ललितकीर्त्ति गणि (परंपरा आ. कीर्त्तिरत्नसूरि); आ. कीर्त्तिरत्नसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११, १५४२-५०),
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: पद्मसागरैः ० कथा कृताः, कथा-२४, ग्रं. ४५००.
५८४९२. (+) आचारांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९२- १६६ (१ से १६६ ) = १२६, प्र. वि. प्रत के अंतर्गत मूल कृति का प्रतीक पाठ दिया गया है. संशोधित, जैदे (२४.५X११, १७३३).
',
आचारांगसूत्र- टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: (-); अंति: मिति तात्पर्यार्थः, श्रुतस्कंध -२,
ग्रं. १२०००, ( पू. वि. अध्ययन- ६ उद्देशक- १ अपूर्ण से है. )
५८४९३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४-१४ (१ से १४) = १००, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११.५ ७४३९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, (पू.वि. अध्ययन-८ गाथा - १५ अपूर्ण से है.)
उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भवसिद्धिकादीनि.
५८४९४. (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ+ व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ११७-१ (४२) = ११६ प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, जैवे. (२४.५४१०.५, ६४३४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः उबदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. द्वितीय व्याख्यान का चार सूत्र नहीं हैं) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी, अंति: हेतु
कारण जाणवउ.
५८४९५. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ९७, ले. स्थल. चित्रकोट, प्रले. मु. गणेशराम (गुरु मु. रीद्धिदास); गुप. मु. रीद्धिदास (गुरु मु. करमचंद); मु. करमचंद (गुरु मु. लालचंद); मु. लालचंद (गुरु मु. कनीराम); मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास); मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद ); मु. दीपचंद ( अज्ञा. मु. लालचंदजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १४-१७४८२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स, अंतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००.
,
५८४९६. (+) उपदेशमाला सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७६-१ (१) =७५, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२४.५x१०.५, ५४३१).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से गाथा - ५४२ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५८४९७. (+) संघयणिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३८, भाद्रपद कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले. स्थल. राजनगर, लिख. श्रावि. बीहालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १५५०, जैवे. (२४.५४११, ४x२७).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिई अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३७६. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने अरिहंत; अंति: तीर्थ प्रवर्तइ.
५८४९८. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८६८, आषाढ़ कृष्ण, ४ सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१ (४) = ६५, ले. स्थल महिमापुर मकसूदाबाद, प्रले. मु. उद्योतविजय (गुरु पं. गुमानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुविधिजिन प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल नं. १६७४, जवे. (२४४११.५, १३४२९-३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३८७ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइजता
कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १६७४, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से गाथा-७९ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८४९९. ठाणांगसूत्र सहटबार्थ-स्थानक ४ से १०, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(१) ६५, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण २ से ६६ लिया गया है., जैदे., (२५४११, ७४३९-४३). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्थानक-४
उद्देशक-१ अपूर्ण से स्थानक-१० अपूर्ण तक है.)
स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५८५००.(+) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७८२, आषाढ़ शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ५५, प्रले. ग. चंद्रविजय
(गुरु ग. आणंदविजय); गुपि.ग. आणंदविजय (गुरु ग.सुखविजय पंडित); ग. सुखविजय पंडित (परंपरा ग. मेघविजय); ग. मेघविजय (गुरु ग.रूपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १७४५४). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ से
४८४ तक बीच-बीच की गाथाएँ हैं., वि. प्रतिलेखक ने संपूर्ण उपदेशमाला में से चयनित गाथाओं को ही लिखा है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
उपदेशमाला कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५८५०१. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८, संपूर्ण, वि. १८८६, आषाढ़ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४९,
ले.स्थल. तालमद, प्रले. मु. डाहु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ९४२९).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५८५०२. (#) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका व कथा, संपूर्ण, वि. १६३०, पौष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. चंडावलि,
प्रले. मु.हीर (गुरु उपा. मतिहर्ष, धर्मघोष); गुपि. उपा. मतिहर्ष (गुरु मु. नंदिवर्धनसूरि, धर्मघोष); मु. नंदिवर्धनसूरि (धर्मघोषगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १४४३२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः (१)पूजाज्ञानवचोपायापगमा,
(२)सम्यग् जिनपादयुग; अंति: (१)तद्गृहांगणे रमते, (२)कृता दृष्टांतसंयुता, ग्रं. २०२८.
भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, आदि: अस्त्यत्र भरतावन्यां; अंति: गुणाकर० कथां वरां, कथा-२८. ५८५०३. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८७-५३९(१ से ५३९)=४४८,
ले.स्थल. वालुचर, पठ. मु. माणिकविजय (गुरु मु. फतेंद्रविजय, तपगच्छ); गुपि. मु. फतेंद्रविजय (गुरु पंन्या. भूपविजय, तपगच्छ); पंन्या. भूपविजय (गुरु पंन्या. भावविजय, तपगच्छ); पंन्या. भावविजय (गुरु उपा. ऋद्धिविजय, तपगच्छ); उपा. ऋद्धिविजय (गुरु पंन्या. प्रमोदविजय, तपगच्छ); पंन्या. प्रमोदविजय (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय, तपगच्छ); पंन्या. मुक्तिविजय (गुरु पंन्या. भीमविजय, तपगच्छ); पंन्या. भीमविजय (गुरु पंन्या. धर्मविजय, तपगच्छ); पंन्या. धर्मविजय (गुरु उपा. चारित्रविजय, तपगच्छ); उपा. चारित्रविजय (गुरु उपा. सोमविजय, तपगच्छ); उपा. सोमविजय (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपगच्छ);
आ. हीरविजयसूरि (तपगच्छ); प्रले. ग. ईश्वरविजय (बृहद्तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., (२५४११, ६४४०-४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उद्दिसिज्झंति, शतक-४१, सूत्र-८६९, ग्रं. १६०००,
(पू.वि. शतक-१३ उद्देश-६ अपूर्ण से है.) ५८५०४. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३६-१(१८८*)+१(१४५)=३३६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, ५४४१).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के आंशिक पाठ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: (१) श्रीसिद्धार्थनराधिप, (२) तेणे काले अवसर्पिणी, अंति: (-).
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५८५०५ (+) अनुयोगद्वारसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे.,
"
"
(२४.५X११, ८x२७).
अनुयोगद्वारसूत्र- टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य वि. १२वी आदिः सम्यक्सुरेंद्रकृत अंतिः (-),
1
(पू.वि. भांडवैचारिक वर्णन प्रसंग तक है.)
५८५०६, (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १२०-१८ (१,६,१९ से २९,६५,११६ से ११९)=१०२, ले.स्थल. जेठाणानगर, प्रले. मु. कपूरचंद ऋषि (गुरु मु. गंगाराम); गुपि. मु. गंगाराम (गुरु मु. पुरुषोत्तम ऋषि); मु. पुरुषोत्तम ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह ऋषि); मु. धर्मसिंह ऋषि (गुरु मु. नरसिंघ ऋषि); मु. नरसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, प्र.ले. श्लो. (४९८) ज्यां प्रथवी ज्यां मेरुगिर, जैदे., ५-१४४३३-४५),
(२५X११,
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. मंगलपाठ, बीच-बीच के पाठांश व अंत के पाठ नहीं है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, , मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५८५०७. (+#) चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७१-१ (७*) = ७०, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १७X३४-४०).
९४२७).
१. पे. नाम. आध्यात्मिक होरीपद, पृ. १आ, संपूर्ण.
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम, अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ डाल-४ की गाथा- २ तक है.)
५८५०८. (4) चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ९६ पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११, १६x३९).
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. खंड- ४ ढाल-३२ गाथा-११ अपूर्ण तक है.)
५८५०९. (०) भुवनभानुकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८०० फाल्गुन शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ८४, ले. स्थल राजनगर, प्रले. श्राव. जगावाहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११, १२X४०-४३). भुवनभानु केवली चौपाई, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: सकल सिद्धिदाई सदा अंति: उदयरत्न० पोचो सुजगीस, दाल-९६ ग्रं. २४१४.
५८५१०. () जिनपदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८-७ (२ से ८) ७१, कुल पे. २४६, प्र. वि. अशुद्ध पाठ..
. वे.. (२५४११.
आध्यात्मिक होरी, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: घर आए चिदानंद कंत; अंति: भूधर० सखी है वसंत री, गाथा - ३. २. पे. नाम. नेमिजिन होरीपद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी, अंति: (-) ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. शत्रुंजयगिरनारतीर्थ पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ, अंतिः ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा-७.
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४. पे. नाम. आध्यात्मिक होरीपद, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकित बिना जीव जगत, अंतिः पुरिमाहे नही अटक्यी, गाथा- ७. ५. पे. नाम. कुमता स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि ऐसी बतीया कुमति काहा, अंति: हमसु दुर रहो बाई, गाथा-४
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६. पे नाम, सुमतिजिन पद, पृ. १०अ संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरखत बदन सुख पायो, अंतिः हरखचंद० देव नहीं आयो, गाधा-४.
७. पे. नाम. आदिजिन पद, पु. १०अ १०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: नाभजू को नंद वाद्यो; अंति: आंखे अवदातो रे, गाथा-३.
.पे. नाम. अंतरीक्षपार्श्वजिन पद, पृ. १० आ-११आ, संपूर्ण.
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९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षादितीर्थमंडन, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: अंतरीकजिन अंतरजामी; अंति: लाभउदय० थई जयकारो रे, गाथा- ९.
खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागीयै नृप नाभिनंदन, अंति: मंगलतूर खेम जेतवा रे, गाथा-५.
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मु.
१०. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११-१२अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदिः उठोने मोरा आतमराम; अंति: लाभउदय० सिद्धवधाई रे,
मु. सुविधिसागर, मा.गु., पद्य, आदि; मुझ परि महर करो महा; अंतिः सुवधसागर सुख साज, गाथा-३.
१५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण.
गाथा-५.
११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: वो दिल भाय मेरे सांइ, अंति: ज्ञानसार गुण गाया, गाथा- ३.
"
१२. पे नाम, श्रेयांसजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण
मु. धीर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनंदराय ऐसै क्यूं न; अंति: धीर वदत० तिम कर तारो, गाथा-३.
१३. पे. नाम. अनंतजिन पद, पृ. १२आ- १३अ, संपूर्ण.
"
अनंतजिन स्तवन, मु. वीरचंद, पुहिं, पद्य, आदि: अब मेरी आरति दूर गई अंतिः वीरचंद० निरमल चित ठई, गाथा- ३. १४. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १३अ संपूर्ण.
मु. जोधा, पुहिं., पद्य, आदि: वधाई आज भई है द्वारा, अंति: जीवौ जोधा प्रानआधार, गाथा - ३.
१६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मु. जोधा, पुहिं, पद्य, आदि: प्रभु चरणन अनुराज्यी, अंतिः भागउदै० सेब भाग्यी गाथा-३.
"
१७. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४अ संपूर्ण.
मु. जोधा, पुहिं., पद्य, आदि: सुमति करो पटरानी चेत, अंति: जोधा० गति निरवाणी, गाथा- ३.
१८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४अ संपूर्ण.
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पार्श्वजिन पद, मु. सदारंग, पुहिं., पद्य, आदि: पास दरस लगै अब मोहै; अंतिः सदारंग० जिन तारौ, गाथा-५.
१९. पे. नाम महावीरजिन पद, प्र. १४अ १४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदिः आज चलो तुमे पावापुर: अंतिः लोक जैजैकार भयो री, गाथा-४.
"
२०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- शंखेश्वर, पृ. १४आ, संपूर्ण.
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"
२१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
मु. भाणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुकलध्यान कैसे पाइयै; अंति: भाणचंद० धाईयै री माई, गाथा - ३.
साधारणजिन प्रभाति, आ. हीरसूरि पुहिं, पद्य, आदि अजब ज्योति मेरे जिन अंतिः आशा पूरो मेरे मन की गाथा ३.
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२२. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. १५अ, संपूर्ण
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: माई मे क्या बरनु छब, अंति: हरषचंद० नाभनंदन की गाथा ३.
२३. पे नाम, महावीरजिन पद, पृ. १५-१५आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन-जन्मोत्सव, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदिः आज महोछव रंग वधाई, अंति: तीन लोक भयो जै
जैकार, गाथा-३.
२४. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
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मु.
,जिनचंद्र, सं., पद्य, आदि: अर्हत भगवत वामानंदन; अंति: नित्यं रतिपतितेहम्, गाथा- ३.
२५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं, पद्य, आदि प्रात भयो सुमर दे; अंतिः जगतराम जीव तात रे, गाथा-७.
२६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पु,ि पद्य, आदि: भोरेई आए जिनदरसणकुं अंति: जगतराम० हरष गुण गाए, गाथा- ३. २७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पु.ि, पद्य, आदि: जिणेसरदेव जिणेसरदेव, अंति: जगतराम मरण कु टेव, गाथा- ४.
२८. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. १६आ-१७अ संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि उठत प्रभात नाम जिनजी, अंति: हरख० सुखसंपत्ति बढाइये, गाथा- ३. २९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण.
"
आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल पुहिं, पद्य, आदिः उठ तेरो मुख देखु, अंतिः टोडर० धरत लागो बंदा, गाथा-५.
३०. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. १७आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुदरसण मोही लागत; अंति: हरषचंद० ध्यान तुमारो, गाथा- ३.
३१. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १७-१८अ, संपूर्ण.
मु.
३२. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १८-१८आ, संपूर्ण
जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिणचंद० चितल्यावां, गाथा-५.
आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं, पद्य, आदि; देखो नै आदिसर सामी, अंतिः चंदखुस्याल जगाया है, गाथा २. ३३. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. १८आ, संपूर्ण
मु. चंदखुसाल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी लाज रख लीजे; अंति: चंदखुस्याल गाया, गाथा-२.
३४. पे नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १८ आ-१९अ, संपूर्ण.
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मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी गत तूंही जाण मे, अंति: नाथ गुनविलास वही है, गाथा ४.
३५. पे नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १९अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा, अंतिः रूप० निरंजन मेरा रे, गाथा- ३.
३६. पे. नाम महावीरजिन उत्पत्तिनाशभुव गर्भित पद, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण.
उत्पत्तिनाशध्रुव पद, मु. जिनभक्ति, पुडिं, पद्म, आदि: अगम अगाध बानी वीरजू, अंतिः कुं महासुखकारी है, गाथा-३. ३७. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. १९आ, संपूर्ण
मु. जिनचंद, पुर्हि, पद्य, आदि; आज हमारे भाग वीर, अंतिः चित आनंद बधाए है, गाथा ४.
३८. पे नाम, शांतिजिन पद, पृ. १९आ- २०अ, संपूर्ण
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति दांति कांति, अंति: जिनलाभ० पायौ भवपार रे, गाथा-४. ३९. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय अंति: रूपचंद० सो तरीया हे, गाथा- ३.
४०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण
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मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदिः आप ही ख्याल खेलंदा, अंतिः रूप० जीत तुम्हारी है, गाथा ४. ४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २०-२१अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद - कृषिफलगर्भित, मु. चेनविजय, पुहिं, पद्य, आदि मनवंछितफल खेती रे; अंतिः चेनवि०करो प्रभु सेती, गाथा- ३.
४२. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. सांवल, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाम आधार सार भज, अंति: सांवल० सेवकनी करो सार, गाथा-२. ४३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २१अ - २१आ, संपूर्ण.
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औपदेशिक पद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: कित गये पंच किसान; अंति: चले गए सिंचनहारे,
गाथा - ३.
४४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, आव, बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि इस नगरी में किस विध; अंतिः बनारसी० लुट गई बाडी, गाथा - ३.
"
४५. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २१-२२अ संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि मध मतवारो मन रहत न, अंति: कहे किम तरसी नावरो, गाथा- ३.
४६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. २२अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडी जिनराजजी मन, अंतिः रीषभविज० गोडीगुण गाया, गाथा ५.
४७. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण
मु. लाल, रा., पद्य, आदि: कृपा म्हासूं कीज्यो; अंति: लाल०सरणे ले उबारी हो, गाथा - ३.
४८. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. धीर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन सेवीयै रिद्ध; अंति: मणौ दीपे धीर उदार गाथा - ३.
४९. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २३अ, संपूर्ण.
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औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिननाम आधार सार; अंति: द्यानत० मुगति दातार, गाथा-४. ५०. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २३-२३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- जैनधर्मपालन, मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि क्यूं जिननाम बिसार्य अंतिः हरषचंद० उताय रे,
गाथा-४.
५१. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: ज० परम आनंदा, गाथा ५.
५२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, प्र. २४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-फलवर्द्धिमंडन, पुहिं., पद्य, आदि: सुरत पारसनाथ की सब; अंति: ताहरी वंछित फल पावे, गाथा-३. ५३. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा, अंति: सत्रुंजागीर गायो, गाथा-५. ५४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण.
मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि सब स्वारथ के मित्र, अंतिः जिनरंग० आपा संभारा, गाथा- ३.
"
५५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदिः आज सकल मंगल मिलै आज अंतिः जिनराज० अनुभव रस मानी, गाथा ५.
५६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि मे परदेसी दूरका दरसन; अंतिः कहे० निरंजन गुण गाया, गाथा-४. ५७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि: तुं मेरा मन मै तुंः अंतिः कनककीरत० तीन भवन मे, गाथा- ३.
"
५८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २५ आ-२६अ, संपूर्ण
दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति समयसुंदर० फल त्यांह, गाथा- ६.
५९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २६-२६आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सुन जिया रे खोवो छो; अंति: सुण सतगुरु बातडी, गाथा-२.
६०. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २६ आ. संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: तेरे गुण तो मैतूलख; अंति: गुरू के सुभमुख वेना, गाथा-४. ६१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: बसी दिलू बिच या; अंति: में रहु सदा रचिया, गाथा-३. ६२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २७अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: कवि नै बिसारूं जी; अंति: अशुभ कर्म सब जारू जी, गाथा-३. ६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: काई सोवे नींद बटोई; अंति: ज्यु पावो सिवसुख रे, गाथा-२. ६४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहि., पद्य, आदि: रे बनमालिया फुल बेगो; अंति: जगराम ताप बिन जाव रे, गाथा-४. ६५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावै; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-५. ६६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु तेरी चंद; अंति: जो लहु तो नवनिध पाई, गाथा-३. ६७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: महिअल चढि मोरा नाथ; अंति: रूपचंद खुश्याल रे, गाथा-३. ६८. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २८आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आज भले दिन उगीयो ओमे; अंति: फल्या धनधनो गुण गावै, गाथा-४. ६९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-अंतरीक्षजी, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एतो चाहीये नित; अंति: आणंद० अवर न ध्यावं,
गाथा-३. ७०. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २९अ, संपूर्ण.
मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथसुत सांभलौ; अंति: खेम० करी भवसागर तारौ, गाथा-३. ७१. पे. नाम. महावीरनिर्वाण पद, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. महावीरजिननिर्वाण पद, मु. भावविजय, पुहि., पद्य, आदि: आज महोदय मेलह्यौ मन; अंति: भाववि० निरमल
गुणगाया, गाथा-५. ७२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण.
मु. जिनलाभ, पुहिं., पद्य, आदि: चित्त सेवा प्रभु चरण; अंति: जिनलाभ० गुणमणि गहराई, पद-३. ७३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घडीयालै बावरे तू; अंति: आनंदघन० केई पावै, गाथा-३. ७४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: हम बैठे अपने मोनसु; अंति: संगतिसु रझै आवागमनसौ, गाथा-४. ७५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी मूरति पासजिनंद; अंति: श्रीधर० परमानंद की, गाथा-२. ७६. पे. नाम. पार्श्वजिनजन्म पद, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-जन्मोत्सव, पुहिं., पद्य, आदि: सुत जायौ अश्वसेनराय; अंति: फल सारंगवदन वधायो हो, गाथा-४. ७७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
महावीरजिन बधाई, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बाजिव रंग वधाई नगर; अंति: हर्षचंद० आवत नैण भई, पद-६. ७८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अरज सुनो हो मोरी अंत; अंति: होकरि के भुजनामी, गाथा-३. ७९. पे. नाम. शांतिपद्मप्रभजिनपूजा पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३९३ पुहि., पद्य, आदि: प्रभुपूजा रचे सोही; अंति: ति करो जादू मन धरी, गाथा-४. ८०. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मत जाओरे पीया तुम; अंति: मगन भए संजम भार मे, गाथा-४. ८१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: भज पारसनाथ जिनकुंरे; अंति: तोडत भवभव फंद कुं, गाथा-४. ८२. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण; अंति: भीत मिटावो मरन की, गाथा-४. ८३. पे. नाम. नवपदध्यान पद, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी नवपद ध्यान; अंति: भगति करो भगवान की, गाथा-६. ८४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: बाजत है घडी घडी घडीय; अंति: छिन में करत लिहाल, गाथा-२. ८५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: नेम मनावन चलो री हेर; अंति: नविल जीव दो हेलोरी, गाथा-३. ८६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: मे तो जिनप्रभु तुम; अंति: लाल० ल्येहुं बलिहारी, गाथा-२. ८७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
मु. जगजीवन, पुहिं., पद्य, आदि: सुखीयारी आज की घरी; अंति: जगजीवन० सब सुख पावो, गाथा-३. ८८.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जमारानी हो तेरा नाहक; अंति: ज्यु पावो सुखशांति, गाथा-३. ८९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु म्हानै त्यार; अंति: मेरो काज सरैगोजबही. गाथा-२. ९०.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: हो जिनदेव सही जिनदेव; अंति: या ऋद्धि लही न लही, गाथा-३. ९१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३४आ, संपूर्ण.
मु. वखता, पुहिं., पद्य, आदि: वदन कमल परवारीया; अंति: पर वखत दीनदुख टारिया, गाथा-३. ९२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३४आ, संपूर्ण.
मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: जिन तेरे दरस परवारीय; अंति: रूपके टेर निहारिया, गाथा-२. ९३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मेडे लाल भला करिये; अंति: लाल दे नाल भला करिये, गाथा-२. ९४. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
मु. श्वेतरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: अजितजिनेश्वर सेइयो; अंति: भाईचरन टग रह्यो रे, गाथा-३. ९५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सारी जननहारे सारी; अंति: आनि देव सब टारे, गाथा-३. ९६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३५आ, संपूर्ण.
मु. चैनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेडी सुध लीज्यो जी; अंति: चेन० महरदी कीज्यो जी, गाथा-३. ९७. पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. ३५-३६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: मोहै निसदिन नींद; अंति: लीजीये सेवा कर हरषाय, गाथा-३. ९८. पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुन री सखी री जहा; अंति: द्यानत०आताप वुझायरी, गाथा-३. ९९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण.
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मु. सायब, पुहिं, पद्य, आदि जिनछवि वारी वारी जाव अंतिः आयो सायब सीस नमावा, गाथा- २
१००. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३६अ - ३६आ, संपूर्ण.
हिं., पद्य, आदि: अरज सुणो मोरी अरज, अंति: जामण मरण मीटाइयो, गाथा-२.
१०१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद - गोडीजी, पृ. ३६आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: रंगरली जी मारे रंगरल, अंति: सिवसुख आस्या सफल फली, गाथा-४. १०२. पे नाम औपदेशिक पद, प्र. ३६-३७अ संपूर्ण
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदिः यो तो भव यूं ही दीनो, अंतिः खोयो म्यान महानग जोय, गाथा-२.
"
१०३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, रा., पद्य, आदि: मेतो धारी लारा लागी अंतिः जगतराम० राजमती बडभागी, गाथा-४,
१०४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-धुलेवामंडन, मु. चतुरकुशल, मा.गु, पद्य, आदि: मुजरो छै जी मां के अंति: चतुरकु०प्रभु सजरो छै,
गाथा-३.
१०५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: अरज सुणौ मोरी अरज; अंति: मोही आधार एक रीषभतणो, गाथा-२.
१०६. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण,
मा.गु., पद्य, आदि: अजरो छै जी मां कै; अंति: गढ गीरनार सजरो छै, गाथा - ३.
१०७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३७-३८अ संपूर्ण
मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: वीसरमल जायलो रे तेरी अंति: लाल कहै० छै रे भोरा, गाथा-२.
१०८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३८अ संपूर्ण.
मु. लालचंद ऋषि, पुहिं, पद्म, आदि जनम सुधारण आवो जी अंति: लालचंद जस गावो, गाथा-३. १०९. पे. नाम. पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, पृ. ३८अ - ३८आ, संपूर्ण.
मु. हीरा ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जनम उछव कुं आयो जी; अंति: हीरा के मन भायो जी, गाथा- ३. ११०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
मु. सुखरंग, मा.गु, पद्य, आदि पूजोनी प्यारा हो जी अंतिः सेवा शुभ सुखरंग भौनी, गाथा - ३. १११. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३८-३९अ, संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्य, रा., पद्य, आदि: जेन बिना नही जेणा; अंतिः पुण्य० करे सुख लेणा, गाथा- ६. ११२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३९अ संपूर्ण.
४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धर्म नहीं कीधा, अंति: चिदानंद० करमरस खीता, गाथा-४. ११३. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३९अ ३९आ, संपूर्ण.
मु. वृद्धिकुशल, रा. पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडी अंतिः वृद्धकु०तुम्हे दीदार, गाथा-३.
"
११४. पे. नाम समेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. ३९ आ-४० अ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थं स्तवन, मु. आलमचंद, पुहि., पद्य वि. १८२०, आदि समेतशिखर चल रे जी का अंति: आलमचंद ० परभव सफल किया, गाथा- ७.
११५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद - गोडीजी, पृ. ४०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः कृपा करो न गोडी पास; अंति: रूपचंद पदवी पाई, गाथा-५. ११६. पे. नाम. श्रेणिकराजा गीत, पृ. ४०-४०आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सामी नरक पडतौ राखलै, अंति: समयसुंदर गुण गाय रे, गाथा- ३.
११७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४०-४१ अ, संपूर्ण.
चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: कौन करे जंजाल जग मै; अंति: यावौ जिम पावौ भव पार, गाथा- ७. ११८. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४९अ, संपूर्ण.
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साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि मिल जाज्यो रे साहिब, अंतिः नयवि० अखैसुख चैन मै,
गाथा-६.
११९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: बीजु मौने कांई न गमै; अंति: वल्लभ लहीए मान, गाथा- ४. १२०. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ४९आ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिलै तो मै बारिय; अंति: न्यायसागर० वेल बधैया, गाथा-४.
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१२१. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ४२अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिलै हाँ ए नेम, अंति: धाए रूपचंद पद दीजीये, गाथा-५. १२२. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ४२अ ४२आ, संपूर्ण.
मु. करमसी, मा.गु., पद्म, आदि: अब रहो दिल बाग में अंतिः करमसिंह० सिवभाग मै, गाथा ४.
१२३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि पास जिणंदा मेरी निजर, अंतिः दास चाहत दीदारा बे, गाथा ४.
"
१२४. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. ४२-४३अ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नीपट कठन कठोर री सेव; अंति: हरषचंद० वीति भयो भोर, गाथा-५. १२५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४३अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं, पद्य, आदि: श्रीगुरु सीख सयानी अंतिः भूधर० मति करो कहानी, गाथा ३.
१२६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४३अ - ४३आ, संपूर्ण.
मु. साहब, पुहिं., पद्य, आदि: तू कह्या मान जीये; अंति: साहिब आतग्यान पगा, गाथा-३.
१२७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४३आ- ४४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं, पद्य, आदि: अब तू लग ज्या जिणचरण; अंतिः कोई दीनी लवल जताव, गाथा ५. १२८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४४अ संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: फिर नहीं आवणा पावणा; अंति: द्यानत नही पावणा रे, गाथा- ४.
१२९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४४अ ४४आ, संपूर्ण
औपदेशिक रेखता, मु. जगकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: महाराज अरज सुणीजे; अंति: कर्म जगकीरत मोख लीजै,
गाथा-४.
१३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक रेखता, मु. देव, पुहिं., पद्य, आदि: जु जाणे जु जाणे तेरा, अंति: देव० अब चले न चलेगा, गाथा-४. १३१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४५अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि वा दिन की कर सोच रे, अंति: बनारसी० बुढापन मे, गाथा-४. १३२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४५अ ४५आ, संपूर्ण
साधारणजिन स्तवन, मु. सुखसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रागद्वेष जाके नहि, अंतिः सेवा से सुखसागर है, गाथा-४. १३३. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ४५आ, संपूर्ण.
मु. मिहरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेणा भर आवडे श्रीजिन, अंतिः महरचंद सिरना वदे, गाथा- ३.
१३४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४६अ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि अणी भवि कर मन हरष; अंति: मुगति भो सिव पाइया, गाथा ५.
,
१३५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४६अ - ४६आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: इस मारग मत जाय रे नर; अंति: भूधर० वात जताय रे, गाथा-४.
१३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४६आ, संपूर्ण.
मायापद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: सुवने ठगनी माया ति; अंति: भूधर० सिर नाया री, गाथा- ४. १३७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४६-४७अ संपूर्ण
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मु. नवल, पुहिं, पद्य, आदि: काल सकल जग जीत्या वे; अंतिः नवल प्रेम रस पीता, गाथा- ४. १३८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४७अ ४७आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: वागुना जा र तेरे घट; अंति: अब चल देख बाहार, गाथा- ३.
१३९. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४७आ, संपूर्ण
पुहिं. पद्म, आदि: मेडे मन भाव दे; अंतिः ओर न काजसु वाव दे, गाथा-२.
"
१४०. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४७-४८अ संपूर्ण
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जोडी थारी कौन जुडेलो; अंति: भव भव दीज्यो दीदार, गाथा-३. १४१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४८अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: इण नेणंदा एही सुभव; अंति: नवल० झडाव जड्या हो, गाथा-३. १४२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४८ अ- ४८आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मीलीया जी मोहै सुगर, अंतिः करूं गणधर परमानंद, गाथा- ४.
१४३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४८आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: जिनगुण गाणा वे एक पल, अंति: गुरूदेवीवचन निवाणा, गाथा - २. १४४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४९अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मनमां ज्यां सोही मंज, अंति: गुरु कहत यह मान भला, गाथा - २.
"
१४५. पे. नाम. प्रभु उपकार पद, पृ. ४९अ, संपूर्ण.
मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: कौन उतारे पार प्रभु; अंति: धर्मपाल० भूलै उपगार, गाथा- ३. १४६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४९ अ - ४९आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि मे धारी आदि महिमा, अंति: हम जाचक तुम दानी, गाथा-४. १४७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४९आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कांई चालेगो रे मनडा, अंति: साहिब पावे सिवधान, गाथा- ३.
१४८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५०अ संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: गावो रे गुण गावो रे; अंति: जाण भूधर भरम पिछाण, गाथा-३. १४९. पे नाम. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, पृ. ५०-५० आ. संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. गुणसागर, पुहिं, पद्य, आदि: मुजरी मान न लीजै हो, अंतिः गुणनिध० दरसण दीजै हो, गाथा-३.
"
१५०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अब म्हारी बीतडी सुणि; अंति: नीजर मो पै कीजीये, गाथा- ३.
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१५१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५० आ-५१अ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि: मनवा कीन भात सुरजे, अंति: भोरा जुंइणमै निरझी, गाथा-२.
"
१५२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५९अ, संपूर्ण,
साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेडी वोर निहार हो; अंति: चंदरूप० उतार हो सांई, गाथा-२. १५३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५१ अ - ५१आ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदि: अर मन तु रंग के रस अंतिः याने सिवसुख लीनो रे, गाथा-३.
"
औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदिः यह जग थिर नही तुम; अंति: भूधर० गुरू की आन, गाथा - ३. १५४. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. ५१ आ. संपूर्ण.
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१५५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५१आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: नैनन मै आन वान कोन; अंति: जनम सफल आनंद भरी हो, गाथा-३. १५६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद - चिंतामणि, पृ. ५१-५२अ, संपूर्ण.
मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि मन भायी री मन भावो अंतिः सरणे राज तुमारे आयी, गाथा- ३.
"
१५७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५२अ संपूर्ण,
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आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुन भयो रे उदासी; अंति: जाय करवत लेउ कासी
रे,गाथा-३. १५८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मेरो चित चरणनमांहि; अंति: स्यौ पाप जाब होरी, गाथा-३. १५९. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. ५२आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जिनचरणन चित लीनौ अली; अंति: हरषचंद०सफल कर लीन्हौ, गाथा-४. १६०.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. ५२आ-५३अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: जिनकी भक्ति मुक्ति; अंति: हर्षचंद० भव होत सवाई, गाथा-५. १६१.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक रेखता, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: कुलकर्म को सुधर्म, अंति: चरण कै सरण ग्रह्यौ, गाथा-७. १६२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, राजाराम, पुहि., पद्य, आदि: चेतन तूं क्या फिरै; अंति: प्रभु यह अरज है मोरी, पद-४. १६३.पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. ५४अ-५४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक इक रेणका सुपना; अंति: जादुराय मोहि तारा, गाथा-५. १६४. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. ५४आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम ऐसी; अंति: चंदविजै० चरण पैखरी, गाथा-४. १६५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५४आ-५५अ, संपूर्ण.
साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: किये आराधना तेरी; अंति: नवल चेला तुम्हारा है, गाथा-५. १६६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: घडी धनि आजि की एही; अंति: का नवल आनंद हु पायो, गाथा-४. १६७.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५५आ, संपूर्ण.
आदिजिन रेखता, पुहिं., पद्य, आदि: मुझ है चाव दरस का; अंति: कुमत के० क्या होयगा, गाथा-५. १६८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जगतपति नेमजिनराया दर; अंति: लालचंद० भवतणा फेरा, गाथा-३. १६९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नर भूलहु न कर रे; अंति: जिनराज०हृदय मे धररे, गाथा-४. १७०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण.
रामकृष्ण, पुहिं., पद्य, आदि: महबूब तेरा तुझ मै; अंति: भली बात है ये ही, गाथा-४. १७१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सर्व साहवी जगत की; अंति: सो जिव भोमपंचमी पई, गाथा-८. १७२.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण.
साधारणजिन रेखता, म. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरे दरस के अंति: विचारोज्ञान तेरा है, गाथा-३. १७३. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: तुक दिल की चसम खोल; अंति: जिनबगस० सिंधु भव
थगा, गाथा-७. १७४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५८अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: तेरा दरसण के देखे सै; अंति: झलाझलझल झलकता है, गाथा-२. १७५. पे. नाम. राजीमतीसती पद, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल तेरे बलंबनैद; अंति: सिवपुर सेहर कीया है, गाथा-२. १७६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. ५८आ, संपूर्ण.
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मु. केवल, पुहिं., पद्य, आदि: दरबार तेरा सुनके अंति: दीजै मुगत दया है, गाथा-३. १७७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५८-५९अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सुन रे सुजान प्यारे अंति; सेवा करो कर्म को हता, गाथा-३. १७८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५९अ, संपूर्ण.
रहूं, गाथा-५.
१८०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५९ आ-६० अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदिः सुभुगु गस्त स्याम; अंति: देह पडी जब समझ पडी, गाथा-४.
"
१७९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५९-५९आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: अजल समे मजल जरूर जण, अंति: बगस घसो मिल अल
मु. जस, मा.गु., पद्य, आदि: सलूणे लाल भेटे भगत, अंति: जस० मावा में मतरेटै, गाथा-२.
१८१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६०अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पुहिं., पद्य, आदि: नेम प्यारे नेम प्यार; अंति: बेलन की बेल वधारे, गाथा - २.
१८२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६० अ- ६० आ, संपूर्ण.
"
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि हां रे दरवाजे तैरे, अंति: बनारसी० की छब जोय रे, गाथा-४. १८३. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ६० आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: तेरी सुहावन लागी छब, अंतिः मया मुक्ति अब मांगी, गाथा-४.
१८४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६० आ- ६१अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: अविनासी के गुण गावना; अंतिः रूपचंद गुण गावना, गाथा ४.
"
१८५. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पू. ६१ अ, संपूर्ण.
मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: मोहे केसे तारोगे दीन, अंतिः रूपचंद्र गुण गात, गाथा-४. १८६. पे. नाम वासुपूज्यजिन पद, पृ. ६१अ ६१आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि हारे जिनराज मेरो मन, अंतिः रूपचंद० आवागमण निवार, गाथा- ३.
१८७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६१आ, संपूर्ण.
मु. खुशालराय, पुहिं., पद्य, आदि मेरा जीवडा लग्या जिन; अंतिः खुस्याल० भव पातक भगा, गाथा- ३. १८८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६१आ- ६२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: भालम जोगीडासू लागी, अंति: तन मन करूं कुरबान रे, गाथा-५.
१८९. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६२अ, संपूर्ण
साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समझ समझ जीवा ज्ञान; अंति: रूपचंद ० हुवै सरदारा, गाथा-२. १९०. पे. नाम. साधारणजिन पद, प्र. ६२अ-६२आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, रा. पद्य, आदि प्रभु तेरो रूप बन्यौ, अंतिः समयसुंदर जनम वाही की गाथा ५.
०
"
१९१. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६२आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुर्हि, पद्य, आदि इस सहिर बीच को नदी अंतिः ग्यांन का कवांण है, गावा-४,
१९२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६२-६३ अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. न्यायसुंदर, पुहिं, पद्य, आदि प्रभु मुझ प्रभु मुझ, अंतिः न्यायसु० बीनत करजोरे,
गाथा-८.
१९३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६३अ- ६३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं., पद्य, आदि अईयो अइयो नाटक नाचें अंतिः कनककुशल० मेवा मागे ली,
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गाथा ५.
१९४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६३आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, पुहिं., पद्य, आदि: घडी घडी पल पल छिन, अंति: दौलतराम० तिरले रे, गाथा-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
३९९ १९५. पे. नाम. जीवहिंसाफल पद, पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन मान असाढी बतीया; अंति: दानत करूणा आणो छतिया, गाथा-३. १९६. पे. नाम. राजीमतिसती पद, पृ. ६४अ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, हठु, पुहिं., पद्य, आदि: मै तो गिरनारगढ जाउं; अंति: हठु० गुण गाउंगी री, गाथा-२. १९७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६४अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: बनि ठनि बनिकौ चलै; अंति: जगत० वीनती जाय सुनाई, गाथा-३. १९८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६४आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: अणी मै निसदिन ध्यावा; अंति: प्रभु दीठा नेणन मै, गाथा-२. १९९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६४आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी गति कोउ न पावै; अंति: चेनविजैसीर नावै, गाथा-२. २००. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: क्यारे मुने मिलसे हो; अंति: आनंदघन० चाचे मधुमेही, गाथा-३. २०१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६५अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए जीया जाण मेरी सफल; अंति: आनंदघन० माया ककरीरी, गाथा-३. २०२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६५अ-६५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: ओसर पाप कहतहू मनवा; अंति: सिवसुखदा चावरे, गाथा-४. २०३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, प्र. ६५आ, संपूर्ण.
अभयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गाईजै मनरंग एक; अंति: अभै० कदे न आवै अंग, गाथा-३. २०४. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: गुण अनंत अपार प्रभु; अंति: स्वामी तुमारो आधार, गाथा-३. २०५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जीव रे चल्यौ जात; अंति: तेरौ समझ जिनरा जान, गाथा-३. २०६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: मन रे तुं छोडि माया; अंति: अभी स्यामनाम संभाल, गाथा-३. २०७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: केसौ सासको वेसाख कुस; अंति: लेहु थिर जिस वास,
गाथा-३. २०८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है.
मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: गरज गरज घन वरसै देखो; अंति: धर्मपाल० मो मन सरसै, गाथा-३. २०९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६६आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: पीया की तो यही बात; अंति: जगत० उनकी काहात हरी, गाथा-२. २१०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६६आ-६७अ, संपूर्ण.
मु. साहब, पुहि., पद्य, आदि: मन की व्यथा मेरी अब; अंति: साहिब० अरकीरि उवारो, गाथा-२. २११.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६७अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: या रत धन मुनिराई करत; अंति: जगत० वंदित सीस नवाई, गाथा-३. २१२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ६७अ-६७आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्याम बिन राजुल खडीय; अंति: जिनदास० लूं बलिहारी, गाथा-५. २१३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६७आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: लगजा रे मनवा मेरा तू; अंति: सुगुरू वचन चेत सवेरा, गाथा-२. २१४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६७आ-६८अ, संपूर्ण.
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४००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: वरसलो वाणी रे अयानी; अंति: बरहीए सिवरानी रे, गाथा-२. २१५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६८अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: गीर के उपर बरसे मेहा; अंति: ओलर आए कटत पाप अनेहा, गाथा-२. २१६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६८अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, जै.क. भैया, पुहि., पद्य, आदि: भव्य छांड कुमत प्रभु; अंति: भईया० छै तुमसु लाला, गाथा-२. २१७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६८अ-६८आ, संपूर्ण.
मु. धीरज, पुहिं., पद्य, आदि: गढ गिरनार शिखर पर; अंति: धीरज०हरष हरष गुण गाय, गाथा-२. २१८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६८आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जीवरा तु जागैनो सम; अंति: लाल यह हरी उपदेश जी, गाथा-२. २१९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: घोर घटा करी आयो री; अंति: आनंद० फिर पिछतायो री, गाथा-७. २२०. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है.
म. धर्मपाल, पुहि., पद्य, आदि: गरज गरज घन वरसै देखो; अति: धरमपाल मोमन सरसै, गाथा-२. २२१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण.
गुरु देशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वरषित वचन झरी हो; अंति: हरषचंद०स्वभाव फली हो, गाथा-५. २२२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: हो परमगुरु बरसत ग्या; अंति: द्यानत० धर घर करी हो,
गाथा-४. २२३. पे. नाम. नेमजी की बारमासी, पृ. ७०अ-७३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: सीयाले सीखर भली रे; अंति: लाल कवीयण कतूहल काज,
गाथा-४२. २२४. पे. नाम. राजिमतीसती पद, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: ऐ दई कोन गत भई मेरी; अंति: दीजीये साथ संजम सही, गाथा-३. २२५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. ७३आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद, रा., पद्य, आदि: थे तो भव्य पूजो चंद; अंति: उपजत चरण नमत रायचंद, गाथा-३. २२६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७३आ, संपूर्ण.
मु. वखतराम ऋषि, रा., पद्य, आदि: थारे तो भलारी हो; अंति: वखतराम० याही छै पछाण, गाथा-२. २२७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण.
मु. हीरा ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: अब तो भूले नाह बनै; अंति: नायक हीरा तुम सरणे, गाथा-२. २२८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७४अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: यातो गत नीठ मिली छै; अंति: कहत है सठसु नाह बसाय, गाथा-४. २२९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७४आ, संपूर्ण.
मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: रूप तो तीहारो जिनजी; अंति: सेवक० सफल अब करीया, गाथा-३. २३०. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. ७४आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, रा., पद्य, आदि: हो सिवरमणीरा बर मे; अंति: चेनविजै० न छाडस्या, गाथा-३. २३१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: करपण के माल धराया; अंति: सरप ज्योन मै परीया, गाथा-३. २३२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७५अ, संपूर्ण.
मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: कांई सोवे नींद वटुडा; अंति: लवल०सुखै सोवै सही रे, गाथा-३. २३३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: मानै प्यारा लागो छोड; अंति: अमर० तारण तरण जहाज, गाथा- ७. २३४. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ७५-७६अ, संपूर्ण.
गाथा - ३.
२३६. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७६ अ-७६आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मै तेरी बलहारी हो; अंति: लीज्यौ खबर हमारी, गाथा - ३.
"
२३७. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ७६आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मनावण में गई अपन; अंति: लालचंद० नेम गय चितचोर, गाथा - ५. २३५. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. ७६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गीत, उपा. समबसुंदर गणि, पुहिं, पद्य, आदि वखत लिख्यौ सुख पईये, अंतिः समयसु० एकधरमसुं रहिये,
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदिः पीउडा जिनचरणांरी अंति मोहन अनुभव मांगे, गाथा ३. २३८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७६-७७अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अरज सुणो वामाजी के अंतिः जी चाहत मुनि हरखचंद, गाथा-३.
२३९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७७अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यानामृत प्यालो भवि, अंतिः नवल० चिरंजीवी जी, गाथा-३.
२४०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७७अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: काई सोवे जीव अम्बानी, अंतिः मरण दुख हर ले सही रे, गाथा-३.
२४१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७७आ, संपूर्ण
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि; कंत चतुर दिन जाणी हो; अंतिः भविकजन प्राणी हो, गाथा ५. २४२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७७आ- ७८ अ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदि: सेवो रे मनलाय जिनेसर, अंतिः लीज्यो मोह निभाय, गावा- ३.
२४३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ७८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि नेमकुमार प्यारा मानै; अंतिः उतरो भवपार, गाथा-४.
२४४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७८ अ-७८आ, संपूर्ण
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मु. कृष्णगुलाब, पुहिं., पद्य, आदि: अरे जीव तेरो धर्म सह; अंति: कृष्ण० चरणा चितलाई, गाथा-३. २४५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७८आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि हो जी बिडध वांको, अंति: कारज सारो लाजीमा को, गाथा- ३.
४०१
२४६. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ७८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
पुहिं., पद्य, आदि: अरी हे चलो री सांवरी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है. )
"
५८५११. (+) विक्रम चौपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११,
१४X३२-३८).
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-६ की ढाल ६ तक लिखा है.)
५८५१२. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८३३, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७७, ले. स्थल. गिरपुर नगर, प्रले. पं. रूपसागर, लिख. श्रावि. साकरबाई हीराजी शाह, अन्य. श्राव. चुत्राजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ले. स्थान- श्रीगंभीरपार्श्वप्रसादे. सिद्धचक्र उजमणा मध्ये., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x११.५, १२x२९-३२).
,
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कविय तणी, अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड- ४दाल ४१, गाथा- १८२५.
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"
५८५१३. () वीरभाणउदयभाण चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३१-३५).
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४०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: सदगुरुजी सानिध करो; अंति: (-),
(पू.वि. अंतिम ढाल-६५ की गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ५८५१४. (+) श्राद्धविधिनो रास, संपूर्ण, वि. १७४३, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. राजनगर,
लिख. मु. अमृतविमल (गुरु ग. ऋद्धिविमल); गुपि. ग. ऋद्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४४४०-४५). श्राद्धविधिरास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सोमवदन तुझ सरस्वती; अंति: संघ
सकलतणी पोहती आसो, गाथा-१६३५, ग्रं. १९१४. ५८५१५. राजसिंघ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. डेडाग्राम, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (गुरु
पं. लालविजय); गुपि.पं. लालविजय; अन्य. ग. राजेंद्रविजय (गुरु पं. लालविजय); राज्यकालरा. मानसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३१६) ध्रुव मेरु फूंनी चंद रवी, (१००५) देवीतणे प्रसाद कवि, जैदे., (२४४१२, १५४३९). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: ऋषि पडिलाभि भावथी; अंति: लहीइ लछी बालाजी,
ढाल-५३, गाथा-१३८५. ५८५१६. (+) पुण्यरंग चौपई, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. धारनगर, प्रले. पं. रामानंद (गुरु पं. रुपानंद);
गुपि.पं. रुपानंद; पठ. ग. राजानंद (गुरु ग. सुखानंद); गुपि.ग. सुखानंद (गुरु पं. रामानंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२५-२८). पुण्यरंग चौपाई, मु. लालचंद, रा., पद्य, वि. १७६४, आदि: श्रीरीषभजिनेसर नाभी; अंति: लालचंद० कोड कल्याण,
खंड-४ढाल ३७. ५८५१७. (#) विक्रमसेन चौपई, संपूर्ण, वि. १८५४, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५९, ले.स्थल. मंदसौर, प्रले. पं. नेमविजय
(अज्ञा. पं. नरेंद्रविजय गणि); गुपि.पं. नरेंद्रविजय गणि (गुरु पं. तिलकविजय); पं. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२-१५४३६). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: नव निधि पाया
रे, ढाल-६४. ५८५१८. (#) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. आउता,
प्रले. मु. शिवहंस (गुरु ग. जुक्तहंस); गुपि. ग. जुक्तहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १५४३७). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजै मन; अंति: घर घर मे मंगलमाला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ५८५१९. (+#) हंसराजवछराज चौपई, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४१, प्रले. पं. प्रमोदकुशल;
अन्य. मु. छत्रकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १अपर शनिफल श्लोक है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४४११,१४४२९-३२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीस्वर आदिकरि चोवीस; अंति:
जिनोदयसूरि० वच्छराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५. ५८५२०. (#) हंसराजवछराज रास, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४५, ले.स्थल. कालावाड, प्रले. लीलाधर
जीवाणी खत्री; पठ.सा. अवलबाई महासती; अन्य.सा.सोनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११,१५४२८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोविसे; अंति:
जिनोदयसू० हुवे जयकार, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५. ५८५२१. (+#) समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७६२, फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२४४११, ११-१६x४०-४३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार- १३, गाथा- ७२७, ग्रं. १७०७.
.
५८५२२. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२४.५४११.५, ११-१४X३७-३९).
मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३२ गाथा ३ तक है.)
५८५२३. (+) जीवदयासीलविषये वैरीसिंहकुमार बावनाचंदन चौपई, संपूर्ण, वि. १८६०, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पू. ३५, ले. स्थल, महिमापुर, प्रले. मु. उद्योतविजय (गुरु पं. गुमानविजय, तपागच्छ): गुपि. पं. गुमानविजय (तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र. ले. श्री. (३९५) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (१०६७) तादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैवे. (२४.५४१२, १४४४०).
(२५x११, १६x४५-५०%
१. पे नाम. २४ दंडक ३० बोल, पृ. १आ-२७अ, संपूर्ण
"
"
वैरसिंहकुमार चौपई - जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु. पद्य वि. १७५८, आदि: प्रणमुं सारद सामनी, अंति: मोहनविमल० बालो रे, दाल-३८, गाथा-८७६.
५८५२४. (+) रामसीता चरित्र, संपूर्ण वि. १८५१ आषाढ़ कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल. मगसूदाबाद-बालुच प्र. मु. कपुरसुंदर (गुरु मु. माणेकसुंदर, तपागच्छ); गुपि मु. माणेकसुंदर (गुरु पं. दर्शनसुंदर, तपागच्छ) पं. दर्शनसुंदर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे. (२५.५x११, १०-१३४२४-३०).
रामसीता चरित्र, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: सारद मात दया करो अरज; अंति: सिवसुख शीवधाम को, ढाल - २३, गाथा-४१५.
५८५२५. (#) दंडक आदि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ३०, कुल पे. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति, अंतिः मास धनुं आंतर
२. पे. नाम. अवधिज्ञान विचार, पृ. २७अ - २७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि जे आगलनो असंख्यातमो; अंतिः कालनी बात कहे.
३. पे. नाम. आठ आत्मानो विचार, पृ. २७आ, संपूर्ण.
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८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, आदिः दिव्य आत्मार कषाये अंति: चारित्र आत्मा ८.
४. पे. नाम. गुणठाणा १४ नो विचार, पृ. २७-२८आ, संपूर्ण.
१४ गुणठाणा विचार, पुहिं., गद्य, आदि: जिनधर्मनो जाणवूं ते; अंति: ४ नृ५ ह्रस्व ए कह्या. ५. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्र विचार, पृ. २८आ - २९आ, संपूर्ण
जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणार्द्ध भरत पोह, अंति: नामे देवता जाणिवा. ६. पे. नाम. ५ समकित विचार, पृ. २९आ, संपूर्ण.
४०३
सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलू उपसम समकित जघन, अंतिः पिण जाए नही आबू छतु. ७. पे नाम. कृष्णवासुदेव जीव चारित्रकाल, पृ. २९आ- ३०अ, संपूर्ण
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कृष्णवासुदेव जीव चारित्रसमय, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णवासुदेव ने जीवे; अंतिः देवांगना करे ते माटे. ८. पे. नाम. ३० बोल, पृ. ३०-३० आ, संपूर्ण.
३० बोल- महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदिः १ बोले त्रस जीवने अंति महामोहनीय कर्म बांधे. ५८५२६. (#) हंसराजवछराज चौपई, संपूर्ण, वि. १८७० भाद्रपद कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल. सोजत,
प्रले. पं. हररूप ( गुरु वा. मनरूप, चित्रावल गच्छ); गुपि. वा. मनरूप (चित्रावल गच्छ); अन्य श्राव, दोलतरामजी गलाजी लुंकड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, ११४३४-३८).
"
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदीस्वर आदिकरि चोवीस; अंतिः सूरि० हंस अनै वछराज, खंड-४, गाथा- ९०५.
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४०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८५२७. (+#) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. रासावती,
प्रले. मु. महिमाविजय (गुरु पं. भाणविजय); गुपि. पं. भाणविजय (गुरु पं. जसवंतविजय); पं. जसवंतविजय (गुरु पं. गंभीरविजय); पं. गंभीरविजय (गुरु मु. दोलतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४३३). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमु; अंति:
सूरवि० हासी मत कर हो, खंड-३ ढाल ३२, गाथा-७७४. ५८५२८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्रादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३, कुल पे. ३८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६४५०). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवि चित्त
धरीजी; अंति: उदयविजय० नवनिधि थाय, सज्झाय-३६. २.पे. नाम. अठारहपापस्थानक सज्झाय, पृ. १०अ-१४आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलुंका; अंति:
वाचकजस इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. ३. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवेरे; अंति: कांति०भणै ते सुख लहे.
ढाल-५. ४. पे. नाम. रात्रिभोजनविरमण सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरममा सारज कहिइ; अंति: कांति० धन
अवतार रे, गाथा-७. ५.पे. नाम. कायाजीव सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ भणी सांभली वाणो; अंति: लावण्यसमय० पटराणी रे,
गाथा-१५. ६. पे. नाम. गुरुगुण स्वाध्याय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवि करूं; अंति: चल पदवी लहिस्यै तेह,
गाथा-१६. ७. पे. नाम. मैतारिजमुनि स्वाध्याय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मेतारजमुनिसज्झाय, मु. कनकविजयजी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारिजमुनि; अंति: लहीइं उत्तम ठाम
रे, गाथा-१५. ८. पे. नाम. धनाशालिभद्र स्वाध्याय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धनाशालिभद्र; अंति: लबधि० ते रयणी दिह रे,
गाथा-१२. ९. पे. नाम. साधु स्वाध्याय, पृ. १८अ, संपूर्ण. साधु आचार सज्झाय, पंडित. विनयविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत शुधा पालै; अंति: विनयवि०पाय
वंदन कीजै, गाथा-८. १०. पे. नाम. संसारअनित्य स्वाध्याय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. संसार अनित्य सज्झाय, क. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अथिर संसारैरे जीवडा; अंति: नय० अथिरना बहु पेख,
गाथा-७. ११. पे. नाम. आत्मा स्वाध्याय, पृ. १८आ, संपूर्ण.
शीयलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ते तरीया भाई ते; अंति: सुधनहरष०दृढ रहिवै रे, गाथा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४०५ १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण.
मु. विनयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ते सुखीया भाई ते सुख; अंति: विनय कहे तस बंदारे, गाथा-७. १३. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शालिभद्र संजम आदर्यो; अंति: हे रूपविजय तुम नाम,
गाथा-७. १४. पे. नाम. राइपडिक्कमणविधि स्वाध्याय, पृ. १९अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राई पडिक्कमणविधि सार; अंति: विधि मेरुइं कह्यो,
गाथा-५. १५. पे. नाम. देवसी पडिक्कमणविधि सज्झाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
देवसीप्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे हेजे नमी; अंति: पडिक्कमणाविधि भली, गाथा-८. १६. पे. नाम. पाखीपडिक्कमणविधि स्वाध्याय, पृ. १९आ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयविजयगुरु प्रणमी कह; अंति: मुनि मेरुई
कह्यो, गाथा-९. १७. पे. नाम. रुखमणी स्वाध्याय, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे,
गाथा-१४. १८. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. २०अ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवैए; अंति: खीमा० मुगति
मझार तो, गाथा-८. १९. पे. नाम. पंचेंद्री स्वाध्याय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
५इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामे अंध गजराज अगाज; अंति: प्रबंध लहो सुख सासता, गाथा-६. २०. पे. नाम. ९ शृंगारादि रस गीत, पृ. २०आ-२३अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी शृंगार कोशा कहिं अंति: कहि० हजाउ बलिहारी,
ढाल-९, गाथा-४९. २१. पे. नाम. धनाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजेया जोरावर करमी जे; अंति: पाम्या भवजल तीर
रे, गाथा-७. २२. पे. नाम. बावीस अभख्य बत्रीस अनंतकाय स्वाध्याय, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण.
२२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे सूधी सद्द; अंति: ते सवि सुख लहै, गाथा-५. २३. पे. नाम. थूलिभद्रऋषि स्वाध्याय, पृ. २४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहिण चौमासै; अंति: ऋषि लालचंद सुख सवाया,
गाथा-११. २४. पे. नाम. बाहुबलमुनिश्वर स्वाध्याय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. बाहुबलि सज्झाय, मु. शांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बाहूबल बैनर ईणि परि; अंति: शांतिवि० गुरु सीस जो,
गाथा-११. २५. पे. नाम. सुलसामहासती स्वाध्याय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन साची सुलसा; अंति: कल्याणविमल
गुणगाय रे, गाथा-१०. २६. पे. नाम. दानोपरि स्वाध्याय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी विनवु अंति: लावण्यसमय० परिमाण रे, गाथा - १४.
२७. पे नाम. प्रसन्नचंद्रऋषि स्वाध्याय पू. २५आ, संपूर्ण.
1
प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि राज छोडी रलीवामणो रे, अंतिः ऋद्धिहर्ष० ए परतख्य, गाथा ६.
२८. पे नाम, जीवशिख्या स्वाध्याय पू. २५आ- २६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-जीव, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मन युं जीवने समझाय अंतिः कीर्ति० जिनकुं ध्याय,
गाथा - ९.
२९. पे नाम. शीलाधिकारे नववाडिस्वरूपकनिरूपक स्वाध्याय, प्र. २६-२७आ, संपूर्ण.
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सहगुरुने चरणे नमी; अंति: वाडि राख्यो निर्मली, ढाल - १०, गाथा ४३.
३०. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. २७-२८अ संपूर्ण
शीयलव्रत सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुखडानो मक्खलडो देखा, अंति: हुं जाउं बलिहारी रे, गाथा - ५. ३१. पे. नाम. सोलसती स्वाध्याय, पृ. २८अ संपूर्ण
१६ सती सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिनवर करुं; अंति: अमृत० समरो निसदीस, गाथा - ५. ३२. पे. नाम. बाहुबलिमुनिराज स्वाध्याय, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण.
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयो; अंतिः विमलकीरत गुण गाय,
गाथा - १२.
३३. पे. नाम. द्वादश भावना, पृ. २८आ- ३२आ, संपूर्ण.
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी सह, अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १२९, ग्रं. २००.
३४. पे नाम, क्रोध सज्झाय, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधना, अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६.
३५. पे. नाम. हितस्वरूप सज्झाय, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण मोकलो अंति: सहजसुंदर उपदेस रे, गाथा- ६.
३६. पे. नाम. बारव्रत स्वाध्याय, पृ. ३३अ -३३आ, संपूर्ण.
,
१२ व्रत सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सामणि करो पसाय अंतिः वधु ते निचे वरै, गाथा- ११. ३७. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकरपरिवारस्वरूप स्वाध्याय, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
२४ जिनपरिवार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; चोवीसे जिनना सुखकार अंति: नयविमल० करो कल्याण, गाथा-५.
३८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, पृ. ३३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. सोमसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदिः यादवकुल सिणगार सिरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण
तक है.)
५८५२९. (+) पद, गीत, स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. १३८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., ( २४.५X११, १५x५०).
१. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्धमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी आदि आदिजिनं वंदे गुणसदनं अंतिः वितनोतु सतां सुखानि श्लोक-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्र स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदंबा प्रणमी कह; अंति: तिलकविजय जयकारीजी, ढाल-३,
गाथा-२१. ३. पे. नाम. निश्चयव्यवहार भावार्थ सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देशना; अंति: वीतराग इणी परे कहे,
गाथा-१६. ४. पे. नाम. नेमराजूल सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पेखी पसु रथ वालीयो; अंति: ऋद्धिहरष० दातार रे,
गाथा-१३. ५. पे. नाम. मौनैकादशीतिथिस्तपमहात्म नेमिजिन स्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल
__अतिघणो, ढाल-३, गाथा-२५. ६. पे. नाम. महावीरदेव स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण द्यो; अंति: तारो स्वामी अम्ह तणी,
गाथा-१०. ७. पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. ५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी. आदि: सिद्धारथना रे नंदन: अंति: विनयविजय
गुणगाय, गाथा-५. ८. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: न करे हिंसा केहनी रे; अंति: न्यानसागर तुम्ह आधार, गाथा-७. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण..
जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख; अंति: बनारसी० न समझैलेस, गाथा-३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रार्थनास्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: पारसनाथ के नाम थे सब; अंति: ता घरि लच्छि सहाय,
गाथा-१. ११. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए तो प्रथम तीर्थंकर; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. १२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवी मात केरा; अंति: मोहनवि० गुण गाया राज,
गाथा-७. १३. पे. नाम. नेमजी गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: जयो शिवादेवी मल्हार,
गाथा-७. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब आंगी तुम्हारी; अंति: मोहन० तुझसुंजगीस हो, गाथा-८. १५. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हांरे मोने धरम; अंति: उलट अति घणे रे लो, गाथा-७. १६. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो मारो; अंति: मोहन० कोडि जगीश
हो, गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१७. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रथ वालो हो राजि; अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा- ७. १८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पु. ८अ संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा, अंतिः मोहन जय जयकार गाथा ५.
१९. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि ईण आंगडे प्रीड रमीयो, अंतिः वाट जोज्यौ चौमासे रे,
गाथा - ९.
२०. पे नाम, अनाधीऋषि स्वाध्याय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडि चढ्यो, अंतिः प्रणमह रे वे करजोडी,
गाथा - ९.
२१. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने; अंति: लावण्यसमे० फल लीजे रे, गाथा-६.
२२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायनिंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि: गुण छै पूरा रे, अंतिः सहजसुंदर हलूआ रे बोल,
O
गाथा-६.
२३. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण
दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सुखकारी; अंति: नामथी दानविजय जयकार, गाथा- ७.
मु. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-वधनोरमंडन, मु. राजसुंदर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुनाम रिदै धरी, अंति: राजसु० बधनोरमंडण पाश, गाथा-७.
२५. पे नाम, बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण.
बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर शिखर सोहे, अंति: सकल मुनि सुख देइ रे, गाधा-७. २६. पे. नाम. रेवती स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासणे रेवती, अंति: वल्लभ० भवनो पार रे, गाथा- १०. २७. पे. नाम. घृत सज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदिः भवियण भाव घरी घणो अंति: लाल० घृतना गुण कह्या, गाथा - १६.
२८. पे. नाम. आत्मशिख्या स्वाध्याय, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे अंगुली वेठ बना; अंति: सफल फले मन मोटी रे, गाथा- ७. २९. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १० आ - ११अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी, अंति: पामै निश्चै निर्वाण, गाथा- ८.
३०. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण
मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: थे तो महाविदेहना; अंति: गुण गाउ नीत ताहराजी, गाथा- ७.
३१. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १९अ ११आ, संपूर्ण
मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदि नेमजी चालो तो तुमने अंतिः रूपविजय जयकार रे, गाथा-७,
३२. पे. नाम. मेघकुमारमुनि सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि; चारित्र लेइने चिंतवे, अंतिः त्रिविध शिर नाम रे, गाथा- १३. ३३. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११ आ-१२अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४०९ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी तोरा पाय पलक; अंति: जोता वाध्यो
छै प्रेम, गाथा-१२. ३४. पे. नाम. दीपोच्छवी स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मंगल एरेसकल; अंति: विनय में हरखे गाइरे,
गाथा-१०. ३५. पे. नाम. चौपटखेल सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम अशुभ मल झाटिके; अंति: रतनसागर कहे सूर रे, गाथा-९. ३६.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण..
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जगवालहो काई; अंति: कवियण हो एहिज टेक, गाथा-७. ३७. पे. नाम. शेजागिरमंडन आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पूजज्यो रे प्रथमजिणं; अंति: जयसा०प्रभु
संथुवैरे, गाथा-६. ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भोजसागर, पुहिं., पद्य, आदि: धवल धिंग प्रभु परता; अंति: भोजसाग० ध्यानै धरियो,
गाथा-७. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन म्हारो साम सह; अंति: सफल आपणो करै जीलो, गाथा-१०. ४०.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केशरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणेशर वालहो मुज; अंति: केशर० दरिसण सुख थाय,
गाथा-५. ४१. पे. नाम. अष्टापदतीर्थाधिराज ऋषभ स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिनेंद्र बधते नेहरे, गाथा-८. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मनमोहन पावन; अंति: मोहन० जिनजी
दास हो, गाथा-५. ४३. पे. नाम. थंभणपार्श्व स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: तूं ज्ञानी तुझनै कहू; अंति: जी भुवनकीरति
कुलभाण, गाथा-९. ४४. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, प्र. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति:
समयसुंदर कहे द्याहडी, गाथा-१३. ४५. पे. नाम. चैत्यवंदनविचार स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती देव नमी मनरंग; अंति: इम कवि मान कहे
करजोड, गाथा-११. ४६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण.
मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: देख सखी आवतो नेम नर; अंति: दुख दानना दूर भाजे, गाथा-५. ४७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१)हारे काई नाणु क्य, (२)निसनेही सुनेहलो; अंति: जग जस
माम हे मित्त, गाथा-९. ४८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा-६. ४९. पे. नाम. उपधानविधि स्तवन, प्र. १५आ-१६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीर जिणेसर सुपरइ;
अंति: विनय० मुझ भवे भवे, गाथा-२४. ५०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. ५१. पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या; अंति: ज्ञानविमल० सरास्याजी,
गाथा-६. ५२. पे. नाम. शेजेजयतीर्थ स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: शेव्रुजानो वासी; अंति: कवियण० भव पार उतारो, गाथा-६. ५३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: रूचिरविमल पाया राज,
गाथा-७. ५४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण.
पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेशर मुरति; अंति: कांतिविमल जश गाजैरे, गाथा-८. ५५. पे. नाम. हेतशिख्या अनित्य स्वाध्याय, पृ. १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो वारुं छु; अंति: सुमतिवि० वासो
आपोरे, गाथा-५. ५६. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडारे; अंति: पद्मकुमार०सुख लीजीये, गाथा-४. ५७. पे. नाम. शेव्रुजगिरराजाधिपति ऋषभजिन स्तवन, पृ. १८अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शेजा गढवासी रे; अंति: इम कहै उदयरतन
करजोड, गाथा-५. ५८. पे. नाम. मगसीपार्श्व स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मक्षी, म. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहरोसफल हुओ अवतार; अंति: विवेकवि० रस घुटी
हो, गाथा-१०. ५९. पे. नाम. पार्श्वकुमारबाललीलामई स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बाललीला, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुरगिरिशिखरै सुरपति; अंति: जिनचंद० पोहचाडै रे,
गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ६०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मतवारे नेमजी ऐसी न; अंति: रूपचंद० न दूजो ओर रे, गाथा-५. ६१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरो थे मानो हो; अंति: सेवक करी जाणोरे, गाथा-५. ६२. पे. नाम. भीडभंजनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साहम; अंति: उदय० न रह्यौ भाछो,
गाथा-५. ६३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लि, सं., पद्य, आदि: नत्वा प्रभुपार्श्व; अंति: शिवसंपतिदायको भवतु, श्लोक-८. ६४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४११ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनः शिवं, श्लोक-७. ६५. पे. नाम. हितशिक्षा स्वाध्याय, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धर्म म मुकीस विनय म; अंति: ते चिरकाले
नंदोरे, गाथा-९. ६६. पे. नाम. मनमोहनपार्श्व स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, वा. विमल, मा.गु., पद्य, आदिः (१)वारी जाउंसाहिबा वार, (२)मोहन मूरति ताहरी जी;
अंति: विमल पर पूगा दाव हो, गाथा-५. ६७. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: हो श्रेयांसजी जिनराय; अंति: राम० दरिशण देव दिखाय, गाथा-६. ६८. पे. नाम. चतुःप्रत्येकबुद्धि सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, ग. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहेली हे वांदो रूडा; अंति: उदयवि० पाटण परसिद्धि,
गाथा-५. ६९. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक सुविधि; अंति: मोहनविजय कहे शिरनामी, गाथा-७. ७०. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजित जिन; अंति: रस आनंदशं चाखे, गाथा-९. ७१. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद सुखकार दी?; अंति: प्रणमै हर्ष धरी री, गाथा-७. ७२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मात वामादेरा नंदा; अंति: विनय० परिमाणंदस्यु, गाथा-९. ७३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज करुं छु साहिबा; अंति: विनय० शिववधुदाता, गाथा-७. ७४. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलजिनराय रे तु; अंति: विनय० शिर धरे रे, गाथा-६. ७५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पासजिनेसर; अंति: विनय जिनगुण गाइजो, गाथा-६. ७६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेशर सेवीइंरे; अंति: विनय वंदे नितमेव, गाथा-५. ७७. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदय० गोडीपास थुणो,
गाथा-७. ७८. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनानी आगी हे सुंदर; अंति: रामविजय शुभ सीसने
जी, गाथा-७. ७९. पे. नाम. मनमोहनजिन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण, वि. १८२१, ले.स्थल. गुंदवच.
पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, रा., पद्य, आदि: मनमोहन जिनराय भाव; अंति: आघि म ताणजोरेलो, गाथा-९. ८०. पे. नाम. नेमराजुल लेख, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंतगिर; अंति: सदा रूपविजै तुम दास, गाथा-१६. ८१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण.
मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीये; अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, गाथा-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २४अ संपूर्ण
मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: पुरिसादाणी सांवलवरणो अंतिः मोहनवि० करुणा करज्यो, गाथा ७.
८३. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज अनोपम मूरति मारे, अंतिः मोहन० भवि देज्यो सेवा, गाथा- ९.
८४. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण
मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदिः उग्रसेन नृपतितनया, अंतिः मोहन० नेह निसणारे, गाथा- ९.
८५. पे. नाम. चावत सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण.
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निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: चावत म करो परतणी; अंति: लब्धि० पामे देवविमान, गाथा-५. ८६. पे. नाम. द्वादशव्रतोपरि स्वाध्याय, पृ. २५अ संपूर्ण.
दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीया राचै दान तणे; अंति: तिलकविजय जयकार, गाथा-५. ८७. पे. नाम. अरणकमुनिराज स्वाध्याय, पृ. २५-२५आ, संपूर्ण.
अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी,
गाथा - ९.
८८. पे नाम. पार्श्वथलपति स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विनयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: लागै मुनि मीठो रे; अंतिः विनयनो शिष्य० आश रे,
गाथा-५.
८९. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. २५आ, संपूर्ण.
नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि चित्रलखीत जे पूतलि, अंति: कहै जिनहर्ष प्रबंध, गाथा-८. ९०. पे नाम, अष्टापदतीर्थाधिराज स्तवन, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण,
अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, बि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि यात्र, अंतिः सुरनर नायक गावे,
गाथा - ९.
९१. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. २६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरतन, पुहिं., पद्य, आदिः यामै वासमां बे मरदो अंति: उदयरतन०पुरी में खेलो, गाथा- ६. ९२. पे नाम, आंविलविधि स्वाध्याय, पृ. २६अ- २६आ, संपूर्ण.
आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: समरी श्रुतदेवी सारदा; अंति: खे विनयविजय उवझाय, गाथा- १०.
९३. पे. नाम. शेत्रुंजयगिरराज स्तवन, पृ. २६आ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य वि. १८वी, आदि; महारू मन मोह्यौ रे अंतिः कहता नावे पार,
गाथा-५.
९४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण.
मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मोने संभवजिनस्युं अंति: सौस दिलमा धारो रे, गाथा- ७. ९५. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनजी हो गुण बोहला; अंति: कांति० सुधाररस पान, गाथा-५.
९६. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजिणेशर मुझ मनडै अंतिः कांति० सेवकनै सनमानि गाथा ५. ९७. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २७आ, संपूर्ण.
मु. नित्यरंग, मा.गु, पद्य, आदि: मुझ मन हेज धेरै तुम अंतिः रंगे नेमिजिन गाया हो, गाथा- ९.
९८. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २७-२८अ, संपूर्ण.
मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभवजिनवर राजे, अंतिः श्रीविजय० सुखशाता हो, गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४१३ ९९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण.
मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समीहित पूरण सामी; अंति: श्रीविजय सुखनो ठाय, गाथा-७. १००.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वस्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेनी अलगी रहे; अंति:
जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-५. १०१. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापन सज्झाय, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस०
किजैतास वखाण रे, गाथा-१५. १०२. पे. नाम. कुमतिमतनिर्नासन शुद्धसम्यक्तोद्भासन स्वाध्याय, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेद पूजा फल सांभल; अंति: आप तर्याने
तारे रे, गाथा-९. १०३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २९अ, संपूर्ण.
मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडी नेमजी; अंति: इम जंपेसीस जिनेंद्र, गाथा-८. १०४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छाजि छांजि छांजि; अंति: मोहनविजयै पायो,
गाथा-७. १०५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राग विना तुंरीझवै; अंति: हियडे धरी अतिआणंद हो, गाथा-८. १०६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि मन मानस हंसलो; अंति: सकलचंद सुखकारो रे, गाथा-८. १०७. पे. नाम. नेमराजूल गीत, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदपाय प्रणमी करी; अंति: पुण्यरुचि गुण गायरे, गाथा-१०. १०८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु; अंति: द्यो दरसण सुखकंद, गाथा-५. १०९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबीयानी सेवामां; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६. ११०. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हो मेह बपीहडा; अंति: मोहन० वंदे हो राज, गाथा-७. १११. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ३१अ, संपूर्ण..
मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकलगुण विमल विमल तुह; अंति: आनंद जिन राज्य पावै, गाथा-५. ११२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सेरी मांहि रमतो दीठो; अंति: शुभवि०भाग्य उघडिओ रे, गाथा-९. ११३. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. ३१आ, संपूर्ण, प्रले. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कविअण कुमुद विकासन; अंति: भीमवि० कहइ करजोडी रे,
गाथा-८. ११४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
म. नित्यविजय, रा., पद्य, आदि: सूरति थाहरी हो; अंति: नित्यविजय० सवाई मान, गाथा-५. ११५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. भानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीराया रोदीदार आज; अंति: भानुविजयतणी रे,
गाथा-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
मु. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर साहिबो; अंति: कृष्णविमल गुण गाय, गाथा-१३. ११७. पे. नाम. जिनराज स्तवन, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शिवदायक सेवो सदा नित; अंति: कृष्णैः जिनराय रे,
गाथा-७. ११८. पे. नाम. शेव्रुजगिरिराजऋषभ स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां जी सारदचरण नमी; अंति: रतन हो नमै
करजोड कै, गाथा-९. ११९. पे. नाम. नेमिजिनधमाल गीत, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.
मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मास वसंत सोहामणो हो; अंति: भावसागर० सुंमेलो आय, गाथा-११. १२०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आयो मास वसंत सरस जब; अंति: नयवि० वासी जयो भगवान, गाथा-७. १२१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
मु. उत्तमसागर, पुहिं., पद्य, आदि: यारत खेलन की अब आई; अंति: उत्तमसा०रिधिसिधि होय, गाथा-८. १२२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. ___ मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: फागुण मास सोहामणो हो; अंति: कांतिसागर जय जयकार, गाथा-११. १२३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३४आ, संपूर्ण.
मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेशर वीनती; अंति: सिंहकुशल सफली थाय के, गाथा-५. १२४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ, संपूर्ण...
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिनचरणांनी; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-६. १२५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु तुम सेवना; अंति: मोहन० साचो नेह हो, गाथा-५. १२६. पे. नाम. नाकोडापार्श्व स्तवन, पृ. ३५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणैघरि बैठा लील करो; अंति:
समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. १२७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुनी चाकरी; अंति: मोहन कहै०खेल नवीन हो, गाथा-५. १२८. पे. नाम. वरकाणापार्श्वस्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणापुर राजीयो; अंति: जिनभक्ति० मनोरथ
माल, गाथा-७. १२९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरुपी होय के; अंति: उदय० पद पंकज सेव हो,
गाथा-७. १३०. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: कनक० भव भव सेवरे, गाथा-९. १३१. पे. नाम. नेमिराजीमती स्वाध्याय, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिसर नित नमुं; अंति: लावण्य० नेमजी के, गाथा-१४. १३२. पे. नाम. राजीमति स्वाध्याय, प्र. ३६आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, क. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: पिया मैं बंदी तेरी; अंति: जयसोम० बहुतेरी हो, गाथा-६. १३३. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. ३६आ-३७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिए मिलस्ये रे, अंतिः सफल जन्म तिण लाघो जी, गाथा २१. १३४. पे. नाम. आत्महित स्वाध्याय, पृ. ३७आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय, क. आसो, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीसुमतिसरोवर हुं; अंति: आसो० नही आवैरे साथ, गाथा- ७. १३५. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. ३७-३८अ संपूर्ण.
४१५
मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुमर फागुण रमै रे, अंति: रे कांति वदे शुभ वाण, गाथा - १०. १३६. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. ३८अ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु, पद्य, आदि सासननायक वीरजीने अंति: आसो० समौ नही नाथ, गाथा - ९.
१३७. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. ३८अ- ३८आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरंजन यार बोरे मेरा, अंति: रूपचंद० सह देव न और, गाथा-५.
१३८. पे. नाम संभवजिन पद, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिननी सेवा प्यार; अंति: उदैसागर० यदि मोहै हो, गाथा- ६.
५८५३०. (+) यशोधरनृप रास संपूर्ण वि. १७०३ आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल. हबदपुर, प्रले श्राव, पुंजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११.५, ११x२७-३२)
"
यशोधर रास, मु. नयसुंदर, मा.गु. पच, वि. १६७१, आदि: (१) सुविशदमनो यस्य व्याप, (२) पुरण विधुवर कौमुदी
अंतिः लहु निवृत्ति पुरी, अध्याय- १४, ग्रं. ७५०.
५८५३१. (+) अंजनासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२८, पौष शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. पं. दोलतविजय
(गुरु मु. प्रेमधीर); गुपि. मु. प्रेमधीर (गुरु मु. लब्धिसागर); मु. लब्धिसागर (गुरु मु. जयनंदन); मु. जयनंदन (गुरु
आ. जिनमाणिकसूरि) आ जिनमाणिकसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १०००, जैदे., (२५x११,
१६X३८).
अंजनासुंदरी चौपाई. ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य वि. १७०६, आदि करता सथली साधना सत्य, अंतिः भुवनकीरति इण परि भणई, खंड-३ ढाल ४३, गाथा - २५३, ग्रं. ७०७.
५८५३२. (+) शालिभद्र चौपाई व शांतिजिन श्लोक, अपूर्ण, वि. १८२७ आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१-१ (१)-२०, कुल पे. २, ले. स्थल. कर्णपुर, प्रले. मु. अजितविजय (गुरु ग. देवेंद्रविजय); गुपि. ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या सिंहविजय) पंन्या सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि) आ. विजयरत्नसूरि (गुरु
आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २५X१२, १७३६).
१. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. २अ-२०आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु, पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंतिः मनवंछित फल लहिस्वइ, ढाल २९, गाथा - ५१०, (पू.वि. ढाल - १ गाथा-८ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. शांतिजिन श्लोक, पृ. २०आ, संपूर्ण.
प्रार्थनास्तुति संग्रह, मा.गु. सं., पद्य, आदिः स्वस्तिश्री जयमंगल, अंति: नाथं प्रणमामि नित्वं श्लोक-२. ५८५३३. (+) मदनश्रेष्ठी चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X११.५, २०५१).
मदनश्रेष्ठी चरित्र, मु. छगन मुनि पुहिं. सं., पद्य, वि. १९८४ आदि दानं ख्यातिकरं सदा, अंतिः छगनमुनि० पुण्य परकाश, खंड-७, गाथा- १२९१.
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५८५३४. (४) रायपसेणी यंत्ररूप बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६१, माघ कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २९, ले. स्थल. वडवाणा, प्रले. श्राव, खीमचंद पोपटलाल गांधी अन्य. सा. रंभाबाई (गुरु सा तेजचाई आर्या) गुपि. सा. तेजवाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११.५, १४x२४-४३).
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राजप्रश्रीयसूत्र - यंत्ररूप बोल संग्रह, संबद्ध, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, आदिः सुधमदिवलोकने विषे, अंतिः (१) पस्सेसुपस्सवणीए णमो, (२) भावतां थकां विचरे छे.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८५३५. (+) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४३, कुल पे. २, ले. स्थल. मुनरा प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४११, १४४३७)
५८५३७. अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, दे. (२४.५X११, १३x४० ).
१. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १आ-४३आ, संपूर्ण.
मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि ऋषभजिणंद पदांबुजे, अंतिः मोहन घरि मंगलमाल हे, ढाल ४७, गाथा- १०१५.
२. पे नाम, प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ४३आ, संपूर्ण, पे.वि. खंडेलवाल जाति के क्षेत्र का अलग से संक्षेप में उल्लेख है. पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि उदयपुररा गोबीया तजार, अंति: तब लग राखे मित प्रित, दोहा-१. ५८५३६. (+) सारस्वत व्याकरण सह दीपिकाटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२७६४ (१ से ६४ )=६३, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, २-५X४४-५२). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः नराकारमधुपापीतपत्कजः, (पू.वि. आख्यातप्रक्रिया से है.)
सारस्वत व्याकरण - दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६२३, आदि (-); अंति प्रभुचंद्रकीर्त्तिः, ग्रं. ७०००.
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, ग. अमृतविनय, मा.गु., गद्य वि. १९१२, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधिशं, अंतिः अमृतविजयेन० लोकभाषया
५८५३८. सुभद्रासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. कोठपा, प्रले. पं. प्रमोदकुशल राज्यकाल देवसिंहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र- १अ पर पांडुरोग निवारण का मंत्र है., जैदे., (२४.५X११, १४X३९).
सुभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु. पच. वि. १८२५, आदि आदिकरण आदिसरं सांति, अंतिः सुणता रंग रसालेंजी, ढाल - २५, गाथा - ५४०.
"
५८५३९. (१) मंगलकलश चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८- १ ( २ ) =२७. पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १५४३६).
मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ अपूर्ण से अंतिम डाल की प्रशस्ति अपूर्ण तक है.)
५८५४०. (+#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९ - १ ( १२ ) = २८, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५X११.५, १३X३३).
सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ, अंति: एम
सुजस जगीस, खंड-२ ढाल २२, गाथा - ५३५, ग्रं. ८००, ( पू. वि. ढाल - ९ गाथा - १ अपूर्ण से गाथा- १० अपूर्ण तक का पाठ नहीं है.)
५८५४१. (*) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २५X११, १६x४१).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख, (पू.वि. खंड-६ ढाल १ गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
५८५४२. सामायिकादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८६, पौष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २० - १ (८) = १९, कुल पे. १८,
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प्र. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४११, ११२८).
"
१. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन शुद्ध करो; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५.
अंति: (-),
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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२. पे. नाम. पौषध सज्झाय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
पौषधव्रत सज्झाय, मु. कीर्ति ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकना गुण छे एकवी; अंति: कीरत० ते निश्चै लहै,
गाथा - ११.
३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण
औपदेशिक पद - पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे, अंतिः ऋद्धि कोटानुकोटी पार, गाथा- ३.
४. पे. नाम. कर्मराजा स्वाध्याय, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण.
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर, अंति: नमो नमो कर्म राजा रे,
गाथा - १७.
५. पे. नाम. दशदशा सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
१० दशा सज्झाय, मु. समुद्रविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सोहम गणहर प्रणमी पाय अंतिः समुद्रविजय निशदीस,
गाथा - १४.
६.
. पे. नाम. राजुल सिज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय अंतिः पद राजुल लह्यो जी, गाथा ११. ७. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण.
मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणें भव, अंतिः सहजसुंदरनी वाणि, गाथा - १६.
८. पे. नाम. तप स्वाध्याय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी पचखाण; अंति: लावण्य० थाई भवनो पार, गाथा-८.
९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १३ अपूर्ण तक है.)
१०. पे. नाम. दया सज्झाय, पृ. ९अ - १०आ, संपूर्ण.
४१७
दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: विवेकचंद एह विचार, गाथा-२५. ११. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १० आ-१९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि इक घर घोडा हाथिया जी; अंतिः दान तणे परीमाण रे, गाथा- १२.
१२. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. ११आ - १२आ, संपूर्ण.
७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु, पद्य, आदि पर उपगारी साधु सुगुर, अंतिः शीस जयरंगे कहे रे, गाथा- ९. १३. पे नाम, हितोपदेश सज्झाय, पृ. १२आ- १३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, आदि करज्यो रे मत अहिंकार, अंति: धर्मशी० मन में धरो, गाथा - ११.
१४. पे. नाम. बीसस्थानिकतप सिज्झाय, पृ. १३आ- १४अ संपूर्ण.
२० स्थानकतप सज्झाय, उपा. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने करुं; अंति: पुण्यविजय० धरी जगीस,
गाथा-७.
१५. पे नाम. रुखमणीराणी सज्झाय, पृ. १४अ - १५अ, संपूर्ण
रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: राजविजय रंगे भणे जी,
गाथा-७.
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१६. पे. नाम. कालबतीसी सज्झाय, पृ. १५अ - १७अ, संपूर्ण.
कालबतीसी, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५८ आदि सारवमाता पासजिनेसर, अंति: जिनेंद्र० भवनो पार जी,
गाथा ३३.
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४१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७. पे. नाम. जीवहितसिख्या सज्झाय, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: हारे भाई जिन समर्य; अंति: जिनेंद्र०सुख थासे
रे, गाथा-२१. १८. पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण.
असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: वीरविमल
___ करजोडी कहे, गाथा-१८. ५८५४३. (#) शालिभद्र चोपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २०४४७). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीयइ; अंति: (-),
(पू.वि. धर्मघोषमुनि द्वारा शालिभद्र प्रतिबोध प्रसंग तक है.) ५८५४४. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४२९-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेल
कवीयणतणी सरसत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-३ तक लिखा है.) ५८५४५. सुरसुंदरीसती चतुपदी, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्रले. पं. रुघा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनौ सलहीयै आज; अंति: एक सदा जिनधर्म
आराधौ, खंड-४ ढाल ४०, गाथा-६१९. ५८५४६. सुदर्शनसेठ चौपाई, अपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ४१-३०(१ से ९,१९ से ३९)=११,
ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. सा. रायकुंवरी (गुरु सा. पाराजी आर्या); गुपि. सा. पाराजी आर्या (गुरु सा. रामकुंवरबाई); सा. रामकुंवरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११.५, १२४३६). सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बरत्या जय जयकार, ढाल-३७, (पू.वि. ढाल-८
गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-१६ दोहा-१ अपूर्ण तक व ढाल-३६ गाथा-११ अपूर्ण से है.) ५८५४७. (+#) उत्तराध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-२(१ से २)=२२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३३-३८). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ब्रह्म कमला लहिस्यइ, सज्झाय-३६,
(पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ५८५४८. (+) आगमसार, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. लाधा खत्री;
सम. श्राव. खीमजी भीमजी; गृही.सा. कस्तुरशिष्या (गुरु सा. कस्तुर आर्या); अन्य. सा.साकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १३५०, दे., (२५४११, १६x४५).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंति: बहुश्रुत कहे ते खरु. ५८५४९. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, दे., (२३४११, १४-१७४३३).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: धरम करण मन उलसै जी,
ढाल-३१, गाथा-५५५. ५८५५०. (+#) हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. कानोड,
प्रले. पं. ललितकुशलगणि (गुरु पं. हीरकुशलगणि); गुपि.पं. हीरकुशलगणि (गुरु पं. सकलकुशलगणि); पं. सकलकुशलगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोविसे; अंति: एहवा
साधु नमुं, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४१९
५८५५१. (+) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १७४५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. २१-१ (१) = २०, प्रले. मु. सुखदेव ऋषि (गुरु मु. त्रिलोकसी ऋषि); गुपि. मु. त्रिलोकसी ऋषि, पठ. श्रावि. संतोष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१२,
१३४३७).
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शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंतिः मनवंछित फल लहिस्वइजी, ढाल २९, गाथा - ५११, (पू.वि. ढाल - १, गाथा - १७ अपूर्ण से है. )
५८५५२. चंद्रलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-३ (१ से ३) २१, दे. (२४.५४१२, १६४३५-३८).
,
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: भुवनपति हुवें तेंह, ढाल - २९, गाथा - ६१८, (पू.वि. ढाल-५, गाथा १० अपूर्ण से है.)
५८५५३. श्रीपाल चौपाई, स्त्रीऋतुधर्म गाथा व भक्ष्याभक्ष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८९६, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. ३, ले. स्थल. देसणौक, प्रले. पंन्या. सुमतरुचि (गुरु ग. शांतिसमुद्र गणि); गुपि. ग. शांतिसमुद्र गणि (गुरु पं. माणिक्यराज); पं. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ); ग. रूपवल्लभ गणि (गुरु उपा. विद्यानिधान, खरतरगच्छ); उपा. विद्यानिधान (गुरु
आ. जिनसुखसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसुखसूरि (गुरु आ जिनलाभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२४४११.५, १५x५०).
१. पे नाम, श्रीपाल चौपाई, पृ. ९आ-२७अ, संपूर्ण.
श्रीपाल रास- बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु. पद्य वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण अंतिः जिनहरष० लुणिज्यो रे, ढाल ४९, गाथा-८६१.
२. पे. नाम. स्त्रीऋतुधर्म गाथा, पृ. २७अ, संपूर्ण.
रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., पद्य, आदि: जा पुप्फपवाह जाणिऊण; अंति: सिद्धांतविराहगो सोउ, गाथा-६.
३. पे. नाम. भक्ष्याभक्ष्य विचार, पृ. २७अ २७आ, संपूर्ण.
प्रा. सं., प+ग, आदि: संयमविरुद्धं द्रव्यं, अंति: प्रहर असज्झाई राख,
५८५५४. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित.,
जैदे., (२५X१२, १x२१-२४).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः संतिसूरि०सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-वार्थ * मा.गु, गद्य, आदिः भुवनपईव कहतां तीन अंतिः श्रुतसमुद्र सेती.
"
५८५५५. सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण वि. १९२८ कार्तिक कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल. बोराणा, प्रले. मु. जडावचंद ऋषि
( लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४x११.५, १५-१७४२५-२८).
सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सय लहे आज; अंति: धर्मवर्द्धन० उमंगेजी, खंड-४ ढाल ४०, गाथा - ६१९.
५८५५६. (+)
पुण्यसार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८११, आषाढ़ शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. खुशालविजय (गुरु पं. लब्धिविजय गणि); गुपि. पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५x१२, १२x२८).
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं; अंतिः नवनिधि हो तस गेह, ढाल - ९, गाथा - २०८.
५८५५७. (#) स्थूलभद्र नवरसो व नेमराजेमतीरो रास, संपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल, रासावतीनगरी, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, ११x४३).
१. पे नाम, स्थूलभद्र नवरसो, पृ. १अ ८अ संपूर्ण.
स्थूलभद्रमुनि नवरसो डाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा; अंति: उदेरतन० भणतां मंगलमाल, ढाल - ९, गाथा- ७४.
२. पे. नाम. नेमजीरो रास. पू. ८-११अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद देवि प्रणमी करी; अंति: पुण्यरतन० जिणंद के, गाथा-६५. ५८५५८. (+#) नलदमयंतीरास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१२(१ से १२)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४४२). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-४, ढाल-३,
गाथा-१५ अपूर्ण से खंड-६, ढाल-९, गाथा-६ तक है.) ५८५५९. शीयलवेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. कुल ग्रं. १९१, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३३).
स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहकर पासजी; अति: वीर०
कमला बरस्यै रे, ढाल-१८. ५८५६०. (#) नवपूजा व विधि, संपूर्ण, वि. १९१६, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पंडित. उगरचंद हरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ८X४२). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: मानवभव फल
लीजै, पूजा-९, (वि. नवपदपूजा की विधि भी है.) ५८५६१. (+) नलदमयंती रास-ढाल-२ से ५, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १८४४०). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-५,
ढाल-४ की गाथा-९ तक है.) ५८५६२. पांचबोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२५४११,११४२६-३०).
देवनारक के५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो नरगनो दार बीजो; अंति: शुभफरस भोगवता विचरे. ५८५६३. (#) मानतुंगमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रावण कृष्ण, ७, जीर्ण, पृ. १४, ले.स्थल. साथसीणनगर,
प्रले. पं. मनरूपहर्ष (अज्ञा.पं. नेमहर्ष); गुपि.पं. नेमहर्ष (गुरु पं. हेमहष); पं. हेमहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशीतलनाथजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११,११-१३४२९-३४). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुंमाता सरसती; अंति: भेदमति मीदर
लहै, ढाल-१४. ५८५६४. (#) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२-६९(१ से ६८,८०)=१३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३६-३८).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., वाचना-५ अपूर्ण है.) ५८५६५. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ८x२५-२८). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सीद्धीदायक सदा; अंति: उंनाम
पुण्यप्रकास ए, ढाल-८, गाथा-१०५. ५८५६६. (#) सज्झाय, पद गीतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११.५, ११४२२). १.पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखसंपत्ति वाधे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से
है.)
२. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कवण धरम को मरम लहेरी; अंति: राज० पावत है री, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास जैन, पुहिं., पद्य, आदि: धर्म विसारे विषयसुख; अंति: बणारसी० होड तिरानी, गाथा-१. ४. पे. नाम. षड्द्रव्य विचार गाथा, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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षड्द्रव्यविचार गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद चितलाय; अंति: जो तुसे जिनराज, गाथा-४२.
५. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण
मुखवत्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि जिनवचन सदा अनुसरी, अंति: कुशल कहे मन उल्लास, गाथा-७.
४२१
६. पे. नाम. पंचानुष्ठान पचीसी, पृ. ६अ ७आ, संपूर्ण.
पंचानुष्ठानपंचवीसी, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धतणी सुख आसिका; अंति: पहोचे शिवपुर ठाम, गाथा-२५. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि जेहनें आत्म अनुभव के अंतिः मणिचंद० मे रातो रे, गाथा-५.
८. पे. नाम, वैराग्यकारक चतुर्थ सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण
आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव जेहनई, अंतिः मणि० परमात्तमे मन्न रे,
गाथा-५.
९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
मु. आतमराम, मा.गु., पद्य, आदि; चिदानंद नित प्रणमीई: अंति: होइ अति घणा सुजास, गाथा- ७. १०. पे. नाम. सद्गुरुउपदेश सज्झाय, पृ. ९अ ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु. पच, आदि: सकल शास्त्र जे अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४० अपूर्ण तक है.)
५८५६७. (०) आनंदश्रावकसंधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४-४ (९ से १२) = १०. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५X१०, ११३५-३८).
आनंदधावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४ आदि वर्द्धमानजिनवर चरण अंति: (-). (पू. वि. प्रारंभ से ढाल-९ गाथा-१६ अपूर्ण व ढाल १४ तक व ढाल १३ गाथा - ६ से ढाल १५ गाथा- ५ तक है.)
५८५६८. विक्रमादित्यलीलावती चोवोली चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे.,
(२३.५x११, १०x३२).
-
विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकखने, वा. अभयसोम, मा.गु, पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः (-) (पू. वि. दाल १० अपूर्ण तक है.)
५८५६९. माधवानलकामकुंदला चौपाई व श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-७(१ से ४, ७ से ९) = १५,
कुल पे. २, जैवे. (२४.५x११, १५४४१).
"
१. पे. नाम, माधवानल चौपाई, पृ. ५अ-२२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: कुशललाभ० पामे संसार, गाथा-५७८, ( पू. वि. गाथा-८९ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
२. पे. नाम. जैन धार्मिक श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पृ. २२आ, संपूर्ण.
"
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि उदधिसुतासुत कवण अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.)
लोक संग्रह जैनधार्मिक-टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि समुद्र सीपडि मोती, अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
7
अपूर्ण.
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५८५७०. (+#) अषाढाभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. पं. करमसी (गुरु ग. ज्ञानमेरू); गुपि. ग. ज्ञानमेरू (गुरु उपा. आणंदकुशल, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. आणंदकुशल (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४४०).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर, अंति न्यायसागर० कल्याणो रे, ढाल - १६, गाथा - २११.
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४२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८५७१. (#) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १८८८, कार्तिक कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. मंगलापुरी, प्रले. मु. हेमचंद्र ऋषि (गुरु
मु. भीमजी ऋषि); गुपि.मु. भीमजी ऋषि; पठ. मु. जेसंगजी ऋषि (गुरु मु. हेमचंद्र ऋषि); अन्य. मु. कानजी ऋषि; सा. जेतुबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३४).
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघेण; अंति: जोग नथी अजोगी छे. ५८५७२. (+) पूजाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्रले. पं. प्रमोदकुशल,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १४४३६). १.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोइ न रही अधूरी रे, पूजा-९. २. पे. नाम. स्नात्रविधि पूजा, पृ. ७आ-१६आ, संपूर्ण.
स्नात्रपूजा विधि, मु. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम निसिही पूर्वक; अंति: सो नरनारी अमरपद पावै. ५८५७३. खंडाजोयणीद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२५४११, १३४३७).
लघसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल* संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा १ जोयण २ वासा ३; अंति: सर्व नदी
१४५६०९०. ५८५७४. (+) नेमिनाथ चोवीसचोक, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३१). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सरसति चरणांबुज नमुं; अंति:
अमृतविजै गुण गाया, चोक-२४. ५८५७५. (+#) गजसुकुमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५०-६०). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमीसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिणवर
चरण नमीजे छे, ढाल-३०, गाथा-७५०. ५८५७६. (#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-४४(१ से ४४)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३४-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमार कथा अपूर्ण से दश अछेरा वर्णन
अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८५७७. (+) श्रीपालराजाचौपाई खंड-४, ढाल-४ से५ सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ४४२८-४३).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ की गाथा-१४ तक है.)
श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५८५७८. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२४.५४११, ११४३१).
स्तवनचौवीसी, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनतत्त्व प्रका; अंति: रीवीरजिणेसर वीनवु ए, स्तवन-२४. ५८५७९. (+) दानसीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, ७४२०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे,
ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ५८५८०. (+#) जंबूवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, १४४२६).
जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली ढाल सोहामणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४२३ ५८५८१. (+) षडावश्यक बालावबोध व गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-४(२ से ५)=१३, कुल पे. ६,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४३४). १.पे. नाम, षडावश्यक बालावबोध, पृ. १अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. शुद्धदंति. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु कन्हे न हुवे; अंति: आहार० सर्व वोसिरावं,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) २. पे. नाम. अतीचार गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासन्नपाणे चेइअसिज; अंति: वितहायरणेअ अईयारो,
गाथा-१. ३. पे. नाम. गोचरचर गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण.
गोचरी आलोअणगाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालेय गोयचरिया; अंति: जंकिंचि अणुउत्ति, गाथा-१. ४. पे. नाम. चवदह नीयमनीगाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित दिव्व विगइ; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ५.पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चैव नमुक्कारो; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ६.पे. नाम. मांडलानी द्वादश, पृ. १७आ, संपूर्ण.
मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, आदि: दूरे उच्चारे पासवणे; अंति: पासवणे अणहिआसे. ५८५८२. उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदे., (२५.५४११, १५४४५-४७).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-७ अपूर्ण से ३५ तक
उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
अनंगसेनकथा तक है.) ५८५८३. (+) आगम प्रश्नोत्तरादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ६, ले.स्थल. जेसलमेरु,
प्रले. पं. मनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १६x४४-५४). १.पे. नाम. बारहवत नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणिवह मुसावाए अदत्त; अंति: देसे तह पोसह विभागे, गाथा-१. २. पे. नाम. षड्द्रव्य नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय द्रव्य१; अंति: सिद्ध्यतीति भावः. ३. पे. नाम. अष्टादश वनस्पति भारप्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण.
१८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शून्यं शतांक; अंति: ६८६०३३४६० मानं. ४. पे. नाम. बावन जीवभेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
साधुरक्षित ५२ जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रीना ४; अंति: कुतूहला१२ रमणा१३. ५. पे. नाम. चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण.
चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: षट्खंड भरतक्षेत्र१; अंति: मीठाबोला कथक अनेक. ६. पे. नाम. आगमिक प्रश्नोत्तर, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण.
आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय१; अंति: पग३ जेठमासे पग३. ५८५८४. (#) लघुदंडक विचार, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु
मु. कनीराम); गुपि. मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास); मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद); मु. दीपचंद (अज्ञा. मु. लालचंदजी); मु. लालचंदजी (गुरु मु. जीवराजजी); मु. जीवराजजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कोष्ठकमय लेखन है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ३१-३५४४७).
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीर१ अवगाहणार; अंति: मरी नपुंसक थाय.
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४२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८५८५. हरिचंद चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५८, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मथेन विमला; पठ. सा. भांगा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४४०-४५). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पासजिणेसर पाय नमु; अंति: भाजैइ भवजंजाल
रे, खंड-५ ढाल २६, गाथा-४६३. ५८५८६. (+) आलोचना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६x४२).
श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंति: विधि कह्या,
(वि. कोष्ठकयुक्त.) ५८५८७. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. इल्लोलग्राम, प्रले. पंन्या. जिनविजय (गुरु मु. दर्शनविजय,
तपागच्छ); गुपि.मु. दर्शनविजय (गुरु पं. प्रेमविजय, तपागच्छ); पं. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५.५४११.५, १४४२८-३२).
उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलइ नउकारनइ उपधानइ; अंति: तपश्चकृतं विलोक्यते. ५८५८८.(+) अढीद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०-४३).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-अढीद्वीपक्षेत्र संक्षेपविचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप आदिदेई; अंति: रुचक पर्वत
छइ. ५८५८९. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ५९-४६(१ से ४६)=१३, ले.स्थल. माडपुर, प्रले. मु. चैनहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४३५-४०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: जिनोदयसूरि अनै वछराज,
खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५, (पू.वि. ढाल-२९ से है.) ५८५९०. अगडदत्त चौपाई व वासुपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १७४४१). १. पे. नाम. अगडदत्त चौपाई, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. मु. ललितकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: नाभिमहीपति शिरतलो; अंति: ललितकीरति० संपदाइ, ढाल-१७,
गाथा-५०३. २.पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिन बारमा; अंति: जीत नमें नितमेवरे, गाथा-५. ५८५९१. (+) प्रदेशीराजा रास, संपूर्ण, वि. १८२५, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. गुंदवचमहानगर, प्रले. पं. लालविजय;
मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पं. विनयविजय गणि के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (११०६) मृग चुनौ गय चावडौ, जैदे., (२४.५४११.५, १५४५०). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानचंद०
शिवसुख सार, ढाल-४१, गाथा-५९४. ५८५९२. (+#) रास, स्तुति, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६-१८४३८-४४). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: श्रीगौतमगणधर जयउ,
गाथा-४७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनपुरतीर्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: मंडण पासनाह चउसालो, गाथा-१२. ३. पे. नाम. नेमिनाथ रास, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पुन्यरतन० नेमजिणंद, गाथा-८८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडलारे जीवडला; अंति: सिधिविजइ० दिवाजे रे, गाथा-१०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धरम म मुकीस विनय; अंति: लावणयसमय०
आनंदोरे, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे; अंति: सहजसुंदर० उछो रे बोल,
गाथा-६. ७. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. ___ आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाय; अंति: सालभद्र० टलै कलेस तो, गाथा-६२. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. कस्तूर, मा.गु., पद्य, आदि: पदमणी चंचलरे धी; अंति: जपौ जपौ श्रीनवकार, गाथा-१२. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित
शिवसुख पावे, गाथा-२२. १०.पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तासु सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ११. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: लावण्यसमय० संपति कोड, गाथा-९. १२. पे. नाम. उपदेश बत्तीसी, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण.
उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तें; अंति: राज कहे० सुणीजै जी, गाथा-३२. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन वीनती स्तवन, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: पूरि आस्या मनतणी,
गाथा-१८. १४. पे. नाम. आत्महित सीख सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: विजयभद्र० नही अवतरे,
गाथा-२७. १५. पे. नाम. स्थुलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलभद्र मुनीसर; अंति: शिवचंद० अविचल पाली,
गाथा-१०. १६. पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलु; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१८. ५८५९३. (+) वृतमंडली व चंदनमलयागिरी रास, संपूर्ण, वि. १९६८, वैशाख शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २,
ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. गोपीकीसन लछमीनारायण बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५,१५४४९). १. पे. नाम. वृत्तमंडली, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेष्ठि प्रणमुं; अंति: हाथे समजने गिण लीजीए, ढाल-८. २. पे. नाम. चंदनमलयगिरी रास, पृ. ४अ-११आ, संपूर्ण.
सा. पार्वतीजी, मा.गु., पद्य, वि. १९५१, आदि: श्रीसासणजिन समरीयै; अंति: कीयो अमृतवेलासार, ढाल-२१. ५८५९४. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २८, प्र.वि. पत्र के अंत में कृति अनुक्रमणिका दी गई है.,
जैदे., (२४.५४११.५, २१४४९). १. पे. नाम. इरीयावहि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
इरियावही सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचारज; अंति: जैमल० अमरापुरमै जासी,
गाथा - १९.
२. पे नाम. १३ काठियानी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण,
१३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतन चिंतामण जेहवो; अंति: आसकरण० सेर चोमासजी, गाथा-२१.
३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ. संपूर्ण.
मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण काल रो भरोसो भाई; अंति: जिम पामो भव पारो ए, गाथा- १४.
४. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पोतै पुन्य हूवै जेहन, अंति: रायचंद कहि, गाथा - २८.
५. पे. नाम. बाई सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: बेठी साथारे पासक हाथ; अंति: ए जोंडक हर्षहुलासणी, गाथा-३०. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८४२, आदि: सामिजी सायब सुणो अंतिः रायचंद० चल लीलासो, गाथा- १८.
.
७. पे. नाम. मानव दस सुख सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मानव १० सुख सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र में दस सुख, अंति: रायचंद भाषि हित जाणी, गाथा - १२.
८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: धर्म पावे तो कोई; अंति: छोड्या मायाजालजी, गाथा- ९.
९. पे. नाम. सुपात्रदान महिमा सज्झाच, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि तिर्थंकर चोवीसे अंति रायचंद सेठी धारो, गाथा १०.
१०. पे. नाम, नारी परिहार सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-नारी परिहार, मा.गु, पद्य, आदि जब ही उसका बात बनावे, अंति: फिर जाय पिणीहारी रे,
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गाथा - १७.
११. पे. नाम. खी दुःखपैतीसी, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८४०, आदि: असत्रीने दुख कया; अंतिः रायचंद० करसी दुरी, गाथा- ३५.
"
१२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि; एक एक मानवी एहनी अंति: पामसो खेदो पारो रे, गावा- २१.
१३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: इण संसार में थिर नहि; अंति: चोथमलजी० नाहि ठिकानो, गाथा-८. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: ए तो जुग छे प्रतक; अंति: गरज सरि नहि कायो रे, गाथा-५.
१५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण,
पुहिं., पद्य, आदि: दिन उगे तूं धंधे, अंति: जीवो चेतो चतुर सुजाण, गाथा-६.
१६. पे. नाम. धर्मकथा सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
गाथा- २३.
२० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., पद्य, आदिः उत्तम साध पधारीया; अंति: भवभव माहे वीगो वरस, १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु मानो जी सीख, अंतिः निजमन निरलोभे आणजां, गाथा- १५.
१८. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने रहेने; अंति: जिनगुण
सुत लटसाला, गाथा-६. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कदे हुओ गीजंदरसाहो; अंति: जेमल उत्तम प्राणी रे, गाथा-२९. २०. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो हुँ; अंति: एम जपे जिनराजोरे, गाथा-५. २१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: थे सुणजो हे आरजीया; अंति: रायचंद०कोई रागने रीस, गाथा-२२. २२. पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अति भलो संघ; अंति: ते कल्याण सदा पावे, गाथा-७. २३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. साधुषट्कायसंयम होरी, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: ऐसै मुनिराज छकाय के अंति: विनेचंद०भरिया
तवइयाए, गाथा-१४. २४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुमत सखि इम विनवेरे; अंति: हो भाग दसा अनंत, गाथा-७. २५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सम्यग्दृष्टि सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: नेमसरीखा वांदण आवे; अंति: रायचंद० प्राणी
जी, गाथा-१२. २६. पे. नाम. मनभमरा सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई; अंति: महमद कहे० साहिब
हाथ, गाथा-१२. २७. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करजो कोई; अंति: उपदेश
सुधारस पीजे हो, गाथा-७. २८. पे. नाम. साधुधर्म सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: साधुनने जीता मोहणी; अंति: आसकरण० गुरुनो दास, गाथा-२०. ५८५९५. (+#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४२३-२६). २४ जिन स्तवन, मु. धर्ममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे मन प्यारे रिषभ; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., नेमिजिन
स्तवन, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५८५९६. सोनालोढानो संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२४४११, १४४३५).
सोनालोढा संवाद, मु. क्षिमा, पुहिं., पद्य, आदि: आनन अनोपम जास मनोहर; अंति: क्षिमा० गमाविओरे, गाथा-५८. ५८५९७. (+) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३८-४२).
जिनस्तवनचौवीशी, मु. केसरकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: समरी अमरी सारदा सारद; अंति: केशरकुशल० भव भव हेव,
स्तवन-२४. ५८५९८. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५१, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, १३४३८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक तीन गाथाएँ लिखी हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुभाषित श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतभगवंत वीत; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. ५८५९९. (+) आलोयण विधि, अपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(७)=८, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. य. शंकर गुसांइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२,१६४४६). श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंति: आलोयण तप फेरी दीजै,
(पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ५८६००. (+) कलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, अन्य. सा. पूजीबाई (गुरु सा. कस्तूरबाई); गुपि.सा. कस्तूरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३६-४०). कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे नयरी; अंति: कवि भणि० वरसइ सयंवरा,
गाथा-८४. ५८६०१. (+#) सिद्धिदंडिका स्तव व बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७-१(२)=६, कुल पे. ३, प्रले. मु. भोपति, ।
प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्र खंडित होने के कारण पत्रांक का भाग नहीं है, इसलिये पत्रांक अनुमानित लिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४.५४१२, ४८४३०). १. पे. नाम. सिद्धिदंडिका स्तव, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है,
वि. यंत्र भी दिया गया है.) २.पे. नाम. आगमविचार संग्रह, पृ. ३अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
बोल संग्रह* प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सम्यग्दर्शनादियंत्र संग्रह, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
__जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५८६०२. (+) सुक्तावली-धर्मवर्ग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ११४२४-२७).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. मात्र प्रथम धर्म वर्ग है.) ५८६०३. (+) मार्गानुसारीके ३५ गुण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली,
प्रले. मु. हुकमचंद मुनि; उप. मु. कुंवरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ९४२१-२८). १.पे. नाम. मार्गानुसारी के ३५ गुण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मार्गानुसारी ३५ गुण, सं., पद्य, आदि: न्यायसंपन्नविभवः; अंति: गृहधर्माय कल्पते, श्लोक-१०. २. पे. नाम. मार्गानुसारी के ३५ गुण का बालावबोध, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण..
मार्गानुसारी ३५ गुण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: स्वामीनो द्रोह करी; अंति: जीवने हियामां धारवा. ५८६०४. इक्षुकारी संधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२४४११, ११४३९).
इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरु आसा; अंति: खेम भणै० कोडि
कल्याण, ढाल-४. ५८६०५. (+) स्नात्रविधि पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४३१).
लघुस्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम नित्य जिसी; अंति: भक्ति कीजै जीम आई जइ. ५८६०६. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, ९४२७).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-८९ अपूर्ण तक है.) ५८६०७. रूपचंद मंडणी, अपूर्ण, वि. १७५४, फाल्गुन कृष्ण, ३, जीर्ण, पृ. १०-३(२ से ३,८)=७, जैदे., (२४४११, १३४४२).
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रूपचंदऋषि रास, मु. तीकम, मा.गु., पद्य वि. १६९९, आदि: महावीर जिवन घणीक, अंतिः तीकम० लहइ सदा है, ढाल-११, गाथा-२२४, (पू. वि. ढाल - २ गाथा ४ अपूर्ण से ढाल -४ गाथा १० अपूर्ण तक व ढाल - ९ गाथा ८ अपूर्ण ढाल- १० गाथा १३ अपूर्ण तक नहीं है.)
י'
५८६०८. (+#) वयरस्वामी व चिलातिपुत्र स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८ - १ ( १ ) = ७, कुल पे. २, ले. स्थल. पत्तननगर, पठ. श्रावि. अगरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूषक भक्षित होने के कारण प्रतिलेखन पुष्पिका का अंश अपूर्ण है.,
संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४११.५, १३३०).
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१. पे. नाम. वयरस्वामी स्वाध्याय, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: वयर गुण गाया रे, ढाल १५, गाथा-८९, (पू.वि. डाल-३ गाथा ३ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. चिलातीपुत्र स्वाध्याय, पृ. ७अ -८आ, संपूर्ण.
चिलातीपुत्र सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: साधु चिलापुत्र गा०; अंतिः जिनहरष० गणना जनम सफल, ढाल ५ (वि. मूषक भक्षित होने से मूलपाठ खंडित है.)
५८६०९, (+) सिद्धचक्र स्तवन व नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८६६ वैशाख कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८. कुल पे. २, ले. स्थल. दोलतराव, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १३३९). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
"
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजयति तीरथपति, अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा- ११. २. पे नाम, नवपद पूजा, पृ. २आ-८आ, संपूर्ण
"
उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. मा. गु. सं., पद्म, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः चतुरन्वितेभ्यो नमः, पूजा- ९. ५८६१०. (+#) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-८ (१ से ८) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X३६).
व्याख्यान संग्रह, प्रा. मा.गु., रा. सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू. वि. दान फल वर्णन अपूर्ण से जापमालिका फल वर्णन अपूर्ण तक है.)
५८६११. मृगांकलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१० (१ से १०) =७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे. (२४.५x११, (१६४३५-३८).
मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल - २१ से ढाल -३६ अपूर्ण तक है.) ५८६१२. (०) मानतुंगमानवती चतुपदी, संपूर्ण, वि. १८०९ पौष शुक्ल १४, जीर्ण, पृ. ९ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२४.५X११, १५X४४).
मानतुंगमानवती रास, उपा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती, अंतिः अभवसोम० मतिमंदिर लहे डाल- १४.
"
५८६१३. (+) नवपदपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. सिद्धक्षेत्र, पठ. श्राव. मोतिभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रथमजिन प्रसादात् संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२५४११ १२४३६). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,
"
पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: जस०कोई नहीं
3., स..
अधूरी रे, पूजा- ९.
५८६१४. (०) अरहन्नकऋषि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जीवे. (२४.५४११,
१५-१७X३८-४७).
अरणिकमुनि चौपाई, मु. नवप्रमोद, मा.गु, पद्य, बि. १७१३, आदि: पारसनाथ पसाउधी पामी, अंतिः नवप्रमोद० कोडि कल्याण, खंड-४,
५८६१५. अष्टविध पूजा, संपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. उदयचंद्र (नागोरीलुंकागच्छ); पठ. सा. मानकुंअरबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १०२८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलंक जे अंति: यांति मोक्षं हि वीरा,
ढाल-९, गाथा- ७७.
५८६१६. (+) स्तवनचौवीसी व चारप्रत्येकबुध सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे, २. प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६X११, १५X३४-४१).
१. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण.
आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही राउ, अंतिः चढती दोलति पानी जी, स्तवन- २४. २. पे. नाम चारप्रत्येकबुध सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
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४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पद नहीं है.)
५८६१७. (+#) मनुष्यजीवन ८ कर्त्तव्य विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२५.५x११, १५X४२-४६).
व्याख्यान संग्रह *, प्रा., मा.गु., रा. सं., गद्य, आदि: देवपूजा १ दया २ दान, अंति: मंगलीक माला संपजै. ५८६१८. नवतत्त्वभेद विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२० आषाढ़ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २. वे. (२४४११.५,
२१x२२-२७).
१. पे. नाम. नवतत्त्वभेद विचार-संक्षिप्त, पृ. १आ, संपूर्ण.
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मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव २; अंति: भागबंध ३ प्रदेशबंध ४.
२. पे. नाम. नवतत्त्वभेद विचार बृहद् पृ. २आ-७आ, संपूर्ण
मा.गु., गद्य, आदि: जीव किणने कहीजे सुख; अंतिः अप्रज्या अवं १२ थया.
५८६१९. कोणिकराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि.मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास); मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११.५, २२४३२).
-
कोणिकराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: कूटुंब तणी जागरका; अंति: ज्यु पामस्यो सुख सार, ढाल-२२. ५८६२०. धन्नाशालिभद्र सिलोको, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. विक्रमपुर,
प्रले. पं. वासदेव (कवलागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x११.५, १७x४२).
शालिभद्रधन्नाजी सिलोको, मु. सिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सरसति सांमण समरु; अंतिः राजे सिंहमुनि गाया,
गाथा - १४५.
५८६२१. चौवीसतीर्थंकर आंतरा, संपूर्ण वि. १८७८, फाल्गुन शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, वांकानेर प्रले श्राव. जेचंद धर्मसी सेठ, अन्य मु. कचराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११.५, १४X३७-३९).
"
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोडी सागरनइ, अंति: उणानुं आंतरु जाणवु". ५८६२२. (a) आठकर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७+१(७) ८ प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, वे. (२४.५x१०.५, १५X३५-५०).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म आठनी प्रकृतिनी; अंति: एवं २४ दंडक थया. ५८६२३. (+#) ध्यानस्वरूप निरूपण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, उदयपुर, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, १३x४२).
, י
ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्म, वि. १६९६, आदि: सवलजिनेसर पाय वंदेव; अंति भावविजय० चित्त रंगे, डाल-९, गाथा- १६३.
५८६२४. (+) नमस्कारमंत्र सह कथा, संपूर्ण, वि. १८५३ श्रावण शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, बीदासर, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५४११, १३४३७)
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. नवकारमंत्र- कथा, सं., गद्य, आदिः एषा नमस्कारमहिमावानस, अंतिः तः सन् स्वस्थानं गतः, कथा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
५८६२५. साधु अतिचार, त्रुटक, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-५ (१ से ३,१० से ११) = ८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५X११.५, १२X३३).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) ५८६२७. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २७, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४.५x११, १८x२३). १. पे. नाम. सात भय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
७ भय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय कहेता; अंति: भय लौकिकथी लाजई.
२. पे. नाम. आठ मद थानक, पृ. १अ, संपूर्ण.
८ मदस्वरूप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: जात मद मातानउ पक्ष; अंति: हुकम ते ठाकुराइ मद. ३. पे. नाम. नववाड ब्रह्मचर्य, पृ. १अ, संपूर्ण.
९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि: असत्री पसु पंडक सहित, अंति: दलद्रीनो रतन गयो.
४. पे. नाम. दसविध भ्रमणधर्म वर्णन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
१० यतिधर्म भेद, मा.गु, गद्य, आदि: खंती० खंती कहेतां, अंतिः उपगणं अधिक न राखे
५. पे. नाम. इग्यारह श्रावकप्रतिमा वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आवक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दर्संणप्रतिमा० ते किम; अंतिः पारणो करे सर्व मास,
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१४ जीवभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रियना ४ भेद, अंति: १३ प्रजाप्ता १४.
९. पे. नाम. पंद्रह परमाधामी देव वर्णन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
६. पे. नाम. साधु बारह प्रतिमा वर्णन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
१२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असंपूर्ण दस पूर्जनो अंतिः रहित काउसग करे.
७. पे नाम. तेरह क्रिया वर्णन, पृ. २अ संपूर्ण
इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: अट्ठा० अर्थदंड, अंति: ते इरियावइ क्रिया. ८. पे. नाम. जीव के चौदह भेद, पृ. २आ, संपूर्ण
१५ परमाधामी विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उत्कृष्टा अधर्मी, अंति: अनंतगुणी व्दना छै
१०. पे. नाम. श्रुतकृतांगसूत्र श्रुतस्कंध - १ अध्ययन नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से बार जुडी हुई है...
सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: समय अध्ययन वेतालिय; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रथम श्रुतस्कंध के अध्ययन का नाम लिखा है.)
१९. पे नाम. असंजम के भेद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
१७ असंयमभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पृथवीकाय असंयम १; अंतिः ते चारित्रने असंयम.
१२. पे नाम, मैथुन के अठारह भेद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
अब्रह्मचर्य के १८ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: मणवयकाय ण करण जोगेहि, अंति: अतिचार ते पडिकमुं.
१३. पे. नाम ज्ञातधर्म के अध्ययन का नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - अध्ययननाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मेघकुमारनो १ सेठ धना, अंतिः अध्ययन १९मो.
१४. पे. नाम. असमाधि विचार, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
असमाधि २० बोल, मा.गु., गद्य, आदिः उतावलो १ चालै तो; अंति: आहार पाणी भोगवे तो...
१५. पे. नाम. सबला के २१ बोल, पृ. ४अ, संपूर्ण.
२१ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तीकर्म भांड, अंति: आहार पाणी भोगवै तो.
१६. पे. नाम. बावीस परीसह, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण
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२२ परिषह नाम-विवेचन, मा.गु., गद्य, आदि: खुहा क्षुधा परीसर, अंतिः न आणे आस्ता आणे.
१७. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र के अध्ययन नाम, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
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सूत्रकृतांगसूत्र- अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: समय अध्ययन वेतालिय; अंतिः हुइ ते पडिकमुं,
१८. पे. नाम, चौबीस देव भेद विचार, पृ. ५अ, संपूर्ण
२४ देवभेद विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: भवणपती १० वंतर ८ जोइ, अंति: हुइ ते अतिचार पडि १९. पे नाम, पच्चीस भावना, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
२५ भावना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला महाव्रतनी ५; अंति: तो संदेह आण्यो हुइ.
२०. पे नाम, छब्बीस दसाकल्पव्यवहार, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे. वि. वह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
जैन सामान्यकृति" प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२१. पे. नाम. अणगार गुण, पृ. ५आ, संपूर्ण.
२७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, आदि: महाव्रतपांच दया१: अंतिः हुई अतिचार पडिकमुं
२२. पे. नाम. आचार प्रकल्प, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
२८ आचार कल्प, मा.गु, गद्य, आदि: तिहा आचारंगना अध्ययन, अंतिः पूरानो प्रायछित २८.
२३. पे. नाम. पाप के २९ कारण, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है। जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२६. पे. नाम. योग के बत्तीस बोल, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
३२ योग विचार, मा.गु. गद्य, आदिः आलोयणा १ निरक्लेवे २; अंति: अंते संथारु करवो.
२४. पे नाम, मोहनीय के ३० बोल, पृ. ६आ-७अ संपूर्ण.
३० बोल-महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले पाणीमांहि, अंति: छु इम मायाइ कहेतो.
२५. पे. नाम. सिद्ध के गुण, पृ. ७अ, संपूर्ण.
सिद्ध के ३१ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धमांहिद संस्थान, अंतिः अतीचार पडिक छउं
५८६२९.
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२७. पे. नाम. गुरुप्रति ३३ आसातना विचार, पृ. ७आ-८ अ, संपूर्ण.
गुरुप्रति ३३ आसातनाविचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु वडे रानें आगे; अंति: तो असातना लागेई. ५८६२८. (+) साधुवंदना, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ, श्राव. चापसी जादवजी, मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भीमजी ऋषि); गुपि. मु. भीमजी ऋषि (गुरु मु. डुरसी ऋषि); मु. डुरसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक् विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १०-१२x२८).
साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अणंत चउवीसी, अंति: जेमलजी एह तरणो
(+)
दाव, गाथा - १०७.
सज्झाय, गीत व शीलरास, संपूर्ण, वि. १६५६, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४३-४५).
१. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं, पद्य, आदि: किसके चेले किसके पूत; अंतिः विनय० सुखे भरपूर, गाथा- ७. २. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु, पद्य, आदि आज तो बधाई रे राजा; अंतिः आदेशर दरबार रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. शीलरास, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
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शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंतिः एम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा- ७१. ५८६३०. (+) नवतत्त्व चौपाइ, त्रुटक, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १३-६ (१, ३, ६ से ८,१०) =७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीर संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५४११, ९४३२-३७).
नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) ५८६३१. नवपदपूजा व चौदराजलोक मान, संपूर्ण, वि. १९११ श्रावण कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, दे., (२५x११, १०x३३)
१. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ - ९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: ध्यान प्रेमांणो रे, पूजा- ९. २. पे. नाम. चौदराजलोक मान, पृ. ९अ, संपूर्ण.
१४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: कोई देवता सोधर्मदेव; अंति: समुद्र छे एहवो कहे. ५८६३२. मृगांकलेखासती चरित्र, अपूर्ण, वि. १६१४, भाद्रपद कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पू. ११-२ (१ से २) ९, प्र. मु. रत्नतिलक (गुरु उपा. रंगतिलक); गुपि उपा. रंगतिलक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४११, १७५०). मृगांकलेखा रास, श्राव. वछ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वछ० नई करउं प्रणाम, गाथा- ४०५, (पू. वि. गाथा ७९
"
अपूर्ण से है.)
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५८६३३. नवतत्त्व बालावबोध व द्रव्यसिद्धक्षेत्रादि विचार, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, पठ. सा. साकरबाई महासती शिष्या (गुरु सा. साकरबाई महासती); गुपि. सा. साकरबाई महा ( गुरु सा. कस्तुरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५.५x११.५, १६४४९-५५).
१. पे. नाम. नवतत्त्व बालावबोध, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकि सम्यग्; अंति: बोलनो धणी मोक्ष जाइ, ग्रं. २००. २. पे. नाम. द्रव्यसिद्धक्षेत्रादि विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
१. पे. नाम. कृष्ण विवाहलो, पृ. १अ - ७आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर परणमी, अंति: या साध्यो मुगतनो माग, ढाल - १०.
२. पे. नाम, औपदेशिक दुहा, पृ. ७आ, संपूर्ण,
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-१.
५८६३४. (+०) कृष्णरुखमिणी विवाह व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १८००, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले. स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. पं. नगराज गणि; पठ. सा. फुंदा (गुरु पं. नगराज गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्ष की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १३X३७).
४३३
५८६३५. पद्मिनी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२- ३ (१ से ३) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४X११, १८x४०-४३). पद्मिनी रास, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.)
५८६३६. (+०) जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. लाधाजी रणछोड खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ कुल ग्रं. ४०० अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५x११, ११-१३५०-६०).
יי
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लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदीप एक लाख जोजन; अंति: सलीला दुवार समंत.. ५८६३८. पुन्यसार रास, संपूर्ण वि. १८२७ आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, नवागर, पड. पं. हर्षविजय गणि
1
प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x११, १६-१७४३४-४२).
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं; अंति: नव निधि हो तश गेह, ढाल - ९, गाथा - २०५.
५८६३९. (०) शत्रुंजय चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. पद्म (गुरुमु, हीराजी ऋषि); गुपि मु. हीराजी ऋषि (गुरु ग. हस्तीविजय); ग. हस्तीविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११.५, १३X२६-३०).
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शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समबसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः समयसुंदर० आनंद धाय, डाल-६, गाथा- ११२.
५८६४०. (+#) गौतमस्वामीरास व कृष्णशुक्लपक्ष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. पं. हुकमचंद्र, पठ. पं. रत्नचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५x११. १२x२६).
१. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अति: सयल संघ आणंद करो,
गाथा-५२. २. पे. नाम. कृष्णपक्ष शुक्लपक्ष सज्झाय, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: हरषकीरत नित
अवतरै, ढाल-३, गाथा-२६. ५८६४१. पुन्यसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३७, पौष कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. चरला, जैदे., (२४.५४१०, १४४५३). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं; अंति: पुण्यकीरति०
तस गेह, ढाल-९, गाथा-२०३. ५८६४२. (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)+१(६)=६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२-१६४३५).
जैन प्रश्नोत्तर संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
साधु आचारजन्य प्रश्नोत्तर संबंधी दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ५८६४३. (#) चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई-चतुर्थ खंड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १५४४०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: उदय० आणंद लीलविलास,
ग्रं. ११२०, प्रतिपूर्ण. ५८६४४. (#) स्तवन, औपदेशिकपद व आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २७५-२६६(१ से १३३,१३५ से
१७१,१७५ से १९९,२०१ से २२४,२२६ से २७१,२७३)=९, कुल पे. ३८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १७X५४-५६). १. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. १३४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हिव कर आप समानोरे, स्तवन-२४,
(पू.वि. महावीरजिन स्तवन गाथा १ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३४अ, संपूर्ण.
ग. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमो श्री सासन को; अंति: तेज० भणता होय आनंदा, गाथा-५. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १३४अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, ग. तेजसिंह, पुहि., पद्य, आदि: आणंदहर्ष हमारे सदाइ; अंति: तेजतिण अधिक पुण्याई, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १३४अ, संपूर्ण.
ग. तेजसिंहजी, मा.गु., पद्य, आदि: सहुकोई साहिब नाम; अंति: तेज० सुखसंपतिजस थारो, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३४अ-१३४आ, संपूर्ण.
मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तुंजगनायक जगजरु; अंति: मान० सफल हुई सुगीसजी, गाथा-११. ६. पे. नाम. बाहुबली छंद, पृ. १७२अ-१७३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भरतबाहुबली छंद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राज० प्रणमति चरण, गाथा-८०, (पू.वि. गाथा २८
अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. भरतबाहुबली कवित्त, पृ. १७३अ-१७४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष धरा जुगल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक
८.पे. नाम. मेघकुमार चोढालीयो, पृ. २००अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जादव० सुणतां सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२३,
(पू.वि. ढाल- ३ गाथा ३ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४३५ ९.पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. २२५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवीयण जगीस नेमी, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा
८ अपूर्ण से है.) १०.पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. २२५अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: हित० राजुल लह्यो जी,
गाथा-११. ११. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २२५अ, संपूर्ण.
आ. रत्नसागरसूरि, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजय कौ नेम; अंति: रतन० चरणे चित लावोनै, गाथा-७. १२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २२५अ-२२५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: दो घडीयारे च्यार; अंति: ग्यान समकित सेलडीयां, गाथा-५. १३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २२५आ, संपूर्ण.
आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुवे अति उजलो; अंति: हुंचै वांछित कोडि हे, गाथा-८. १४. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. २२५आ, संपूर्ण..
नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: महाराज चढे गजरथ; अंति: धन छोडीने प्रभुवरीया, गाथा-८. १५. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. २२५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरजीसुवीरती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) १६. पे. नाम. दानशीलतपोभावना स्वाध्याय, पृ. २७२अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजीय; अंति:
समयसुंदर० फल त्यांह, गाथा-६. १७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २७२अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमर १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७२अ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: युंसाधु संसार में; अंति: घर बैठा ही पावै, गाथा-५. १९. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २७२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, जै.क.द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी वेर कुंठील करी; अंति: द्यानत० दशा हमरी जी,
गाथा-४. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिन नाम समर मनवा वरे; अंति: द्यानत०जेह तेरे कटके, गाथा-४. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहिवे कुं मनसूरिमा; अंति: करे द्यानत सो सुखीया, गाथा-४. २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७२आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: आतम काज समारीयै नजि; अंति: पर लखो ओर वातड फोलै, गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २७२आ, संपूर्ण.
जै.क.द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: री मेरे घट ग्यान घना; अंति: द्यानति मोहि भायोरी, गाथा-४. २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २७२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हो परम गुरुवर संताप; अंति: द्यानत० नर सुघर करी, गाथा-४. २५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पुहिं., पद्य, आदि: जगत मै समकित उत्तम; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) २६. पे. नाम. अध्यात्म फाग, पृ. २७४अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: अध्यातम बिनु क्यों; अंति: फिर तिहां खेल न कोय, गाथा-१७.
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२७. पे नाम, आध्यात्मिक होरी, प्र. २७४अ- २७४आ, संपूर्ण
जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन खेलै होरी सताभू; अंतिः द्यानत० जुग जुग जोरी, २८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २७४आ, संपूर्ण,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पुहिं., पद्य, आदि: जीवनै समझाय रे मन, अंति: गुण जिनजीना गाय रे, गाथा - ६.
"
३७. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. २७५आ, संपूर्ण
गाथा-४.
जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतीये ह; अंतिः द्यानित कहत अपार, गाथा-८.
२९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २७४आ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पच, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहुं काल, अंति; जीउ होइ सहज सुरझेला, गाथा-४,
३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७४आ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: या चेतन की सब सुधि, अंति: तब सुख होत बनारसीदास, गाथा-४. ३१. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २७४आ-२७५आ, संपूर्ण
जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब मै जान्यो मै आतम, अंति: द्यानति० पर तज दीया, गाथा-४.
३२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २७५अ संपूर्ण
जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: घट० हो अहो भवि प्राण; अंति: द्यानत लहीयै भो अंत, गाथा ५. ३३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २७५अ, संपूर्ण.
जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कोड जोधा कुं जीतले, अंतिः द्यानत करके फोत, गाथा ४. ३४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २७५अ, संपूर्ण.
जै.. धानतराय, पु.ि, पद्य, आदि ऐसा सुमिरण कर मेरे अंति: धानत० सर न लहीजे, गाथा ४. ३५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २७५अ- २७५ आ, संपूर्ण.
जै. क. भूधरदास, पु,ि पद्य, आदि: समज के सिर धूल ऐसी स; अंतिः भूधर० नफो नाहि न मूल, गाथा-४,
,
३६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २७५आ, संपूर्ण.
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मु. दान, मा.गु., पद्य, आदिः सुखदुःख सिरज्या पामी, अंति: दान० सदा सुखकार रे, गाथा- ८.
३८. पे नाम, सुमतिजिन पद, पृ. २७५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम ही सुमती जीणेस, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.)
५८६४५. (#) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं,
जैदे., ( २४x११, ११४३८).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५८६४६. आराधना व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि. मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १६X३५). १. पे. नाम. आराधना, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण.
नवकार माहात्म्य, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो सि, अंतिः विषह घणो उद्यम की जड़
२. पे. नाम औपदेशिक गाधा, पृ. ६अ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५.
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५८६४७. (#) पोरसी संख्या व चौमासीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५X११, १५X३०).
१. पे. नाम. पोरसी संख्या, पृ. ९अ, संपूर्ण,
प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: आसाढ मासै पगला ६; अंति: पग ४ सा ८ पोरसी, गाथा- १४. २. पे. नाम. चोमासीपर्व व्याख्यान, पृ. १आ- ९अ, संपूर्ण.
चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग, आदिः प्रणम्य परमानंद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "अपराजा नैत्री जौ" तक का पाठ है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४३७ ५८६४८.(+) सिद्धाचल तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. विजापुरनगर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४२९). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: अमृत०
गिरिराया रे, ढाल-१०. ५८६४९. जीवना ५६३ भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कालावड, प्रले.
गोपालजी वीरजी खत्री; सम.मु. सामलजी; अन्य. सा. वखतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा वि.सं. १९४९ में प्रत समर्पण करने का उल्लेख मिलता है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४१२, १५४२४-३९).
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना ५६३ भेद १४ भेद; अति: कया ते लाभे. ५८६५०. (4) थूलभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. मेदपाटनगर, प्रले. पंडित. रत्नसोम (गुरु
पं. त्रैलोक्यवल्लभ); गुपि.पं. त्रैलोक्यवल्लभ (गुरु पंन्या. धनसुंदर); पंन्या. धनसुंदर (गुरु उपा. अमरनंदन); उपा. अमरनंदन; पठ. मु. खेमकर्ण; अन्य. आ. जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३८-४१). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति
दायक सदा; अंति: उदय० वेगा फल्या रे, ढाल-९, गाथा-१३७, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५८६५१. (+) चैत्यवंदन व स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१२(१ से १२)=७, कुल पे. ६,
प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ८x२५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से
२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वर अति; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल फली मुज
आस तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजि स्तवन, पृ. १५अ-१९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति:
तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ५. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ६.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नमस्कार महामंत्र छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५८६५२. (+) चौवीसजिन देववंदन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. उपा. राजरत्न गणि; पठ. श्राव. मोहणदे; श्रावि. नानी; श्रावि. अमर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११,११४३३-४५). २४ जिन स्तुति, उपा. राजरत्न; मु. लावण्यसमय; आ. नंदसूरि, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: पढम मुनिवर पढम मुनिव;
अंति: राजरत्न० अधिक आणंद, स्तुति-२४, गाथा-९६. ५८६५३. शत्रुजय उद्धार व पद, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. शौलापुर,
प्रले. पं. चंद्रसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. शत्रुजयउद्धार रास, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर जय करु,
ढाल-१२, गाथा-१२०.
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४३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल गुरु देख के; अंति: चरन को सरण मोहि दीजै, गाथा-३. ५८६५४. (+) नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३५). नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रणमुंपवयणदेवी
रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ९ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५८६५५. (+#) पुण्यप्रकाशनुंस्तवन, पूर्ण, वि. १८३२, वैशाख कृष्ण, ४, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ७-१(१)-६,
ले.स्थल. मकसूदाबाद-महिमा, प्रले. य. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१०४३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: उंनाम पुण्यप्रकास ए, ढाल-८,
(पू.वि. गाथा १ से ७ तक नहीं है.) ५८६५६. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदे., (२५४११.५, १५४४२).
अंजनासुंदरीरास, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति सामणी प्रणमि; अंति: लीयो जस गावइ मुनिमाल,
गाथा-१५९. ५८६५७. (+) रास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १४४३७-३९). १.पे. नाम. लुंका रासौ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक कृष्ण, ११.
लुंका रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं देवी सरस्वती; अंति: कीयो सह थयो भंगोभंग, गाथा-४४. २. पे. नाम. ढुंढक रास, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, १, सोमवार.
मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंगणपति सारदा; अंति: ग्यानविजय० शिवपद होय, गाथा-८०. ३.पे. नाम. ढुंढीया रास, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, ८.
श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बीकानैरमे एक; अंति: मुज मिच्छामि दुक्कडं, गाथा-६४. ५८६५८. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ३६x२१).
६२ मार्गणा ९४ द्वार यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५८६५९. श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२४४११.५, १३४३३).
वीतराग वाणी, प्रा., पद्य, आदि: जयसिरिवंछियसुहए; अंति: फलं प्रीत करं नराणां, संपूर्ण. वीतराग वाणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकरदेव अरिह; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ५८६६०. हरिबल रास, संपूर्ण, वि. १९७३, आषाढ़ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राहोलीग्राम, अन्य. मु. शंकरलाल महाराज (गुरु मु. छगनलाल); गुपि.मु. छगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११.५, १३-१६४३२).
हरिबल रास, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९१०, आदि: श्रीजिनशांतिजिनेश्वर; अंति: रामचंद्र मुनीवरु, ढाल-१६. ५८६६१. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १६०८, आश्विन शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४४).
साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय गुरूआ सिद्ध; अंति: शुद्ध करू गीतारथ सोई, गाथा-२४९. ५८६६२. (+) कर्मबावनी, संपूर्ण, वि. १९२७, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. सरसानगर, पठ.मु. रामलाल ऋषि (गुरु
मु. किशोरचंद ऋषि); प्रले. मु. किशोरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२५.५४१२, ९x१९). कर्मबावनी, मु. किशोरचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२७, आदि: श्रीजिनपद पंकज नमुं; अंति: दूरकर जिनपद प्यारा,
गाथा-५२. ५८६६३. (+#) धर्मध्यान लक्षण, संपूर्ण, वि. १८२३, फाल्गुन शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. वर्धमान,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४२७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि धम्मेज्झाणे चउविहे, अंतिः सदा धरम ध्यान धाइई. ५८६६४. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६ ले स्थल. वांकानेर प्रले. श्राव. जेचंद धर्मसी
सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२४४११, १३४३४).
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संजया विचार- भगवतीसूत्रे - शतक २५ उद्देश, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेयरागे; अंति: तेथी सामा० ना संखे ०५. ५८६६५. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, ४. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, वांकानेर प्रले. श्राव जेचंद धर्मसी सेठ,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४×११, १३x४१).
संजया विचार- भगवतीसूत्रे - शतक२५ उद्देश, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेयरागे; अंतिः संख्यात गुणा ६, द्वार-३७. ५८६६६. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०५ १३४३६).
१. पे. नाम. बावीस अभक्ष्य बत्रीस अनंतकाय स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
२२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रे सूधी सद्द, अंति: प्राणी ते सिवसुख लहइ,
गाथा - १०.
. पे नाम, सुमतिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण,
सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वंस इख्यागे राजीयो अंति: बीनती सफल करेसोजी,
गाथा- ७.
३. पे. नाम. चौदगुणठाणा स्तवन, पृ. २अ - ४आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल ६, गाथा-३४.
४. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण.
"
भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया, अंति समयसु० वांदी पायो रे, गाथा- ७.
गाथा - ९.
७. पे. नाम. २४ तीर्थंकर परिवार स्वाध्याय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण.
४३९
५. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
मु. हीर, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि आसति दाता अजितजिण, अंति: हीर० जप्यां जे जैकार, डाल-१, गाथा- १०. ६. पे. नाम. अनाथि सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
अनाधीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, आदि: श्रेणिक रेवाडि चढ्यो: अंतिः वंदे रे वे कर जोड,
पावे, गाथा १७.
-
२४ तीर्थकर परिवार, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: चडवीस तीर्थकरनो, अंतिः श्रीसंघ प्रणमुं सही, गाधा-६. ८. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु, पद्य वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करे, अंतिः कहे गावा सुख
,
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५८६६७. (१) प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४६, माघ शुक्ल २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. भीमविजय (गुरु पं. शीलविजय गणि) गुपि. पं. शीलविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११, १७५२).
प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय, अंतिः पुण्य अधिक परमोद, डाल- ११, गाथा-२२९.
५८६६८. (+#) दीतवार की वेल, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. सलुवर, प्रले. पं. पन्नालाल, पठ. सा. श्रृंगारकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४११, ११x२४). अदीतवार वेल, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर पाय; अंतिः जात्रा तणुं फल लहै, गाथा- ११२.
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४४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८६६९. (+#) सील वेल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले.पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १७४३९). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सीयल सुहकर पासजी; अंति: विमला
कमला वरस्ये रे, ढाल-१८. ५८६७०. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, दे., (२२.५४१२, १९-२३४५०). १.पे. नाम. छवीद्वार विचार, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, प्रले. सा. विनयवंती (गुरु सा. रत्नदेवी); गुपि.सा. रत्नदेवी (गुरु
सा. राजमती); सा. राजमती, प्र.ले.पु. सामान्य.
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: मे जोग १ काया पावे. २. पे. नाम. षद्रव्य थोकडा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
थोकडा संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५८६७१. इलाकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)-५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक ७ को ८ लिखा है, पाठ क्रमशः है., जैदे., (२४.५४११, १५४४८-५२). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ से
१४ गाथा १२ अपूर्ण तक हैं.) ५८६७२. (#) रुकमणी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १७४२९-४०).
रुक्मिणी रास, नंदलाल, रा., पद्य, आदि: वीरजिनेसर वंदिये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२५ अपूर्ण तक है.) ५८६७३. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ६, पठ. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे.,
(२४.५४११.५, १९४३६-४०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष शुक्ल, १३.
मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे भणे, ढाल-६, गाथा-४९. २.पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष कृष्ण, १, ले.स्थल. पाटडीनगर. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु,
ढाल-२, गाथा-२४. ३. पे. नाम. ईग्यारस स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल
अति घणो, ढाल-३, गाथा-२६. ४.पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ५. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज माहरे एकादसीरे; अंति: उदय० लीला लहिस्यै,
गाथा-७. ६.पे. नाम. पल्लविहापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष कृष्ण, ३. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद निरधार,
गाथा-७. ५८६७४. (+#) पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे.,
(२५४१२, १४४३७). १. पे. नाम. पट्टावली पत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानसामी; अंति: पदं भुंजनगरे सूरपदं. २.पे. नाम. मुनिसुंदरसूरि पट्टावली, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
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मा.गु., गद्य, आदि: मुनिसुंदरसूरी तत्, अंतिः पं० युक्तिहंस गणि
५८६७५ (+) नवकारमंत्रोपरि कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, पठ. मु. हर्षचंद्र पं. रतनचंदमुनि (गुरु पं. खुस्यालचंद, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११.५, १५X४०).
१. पे. नाम, नमस्कारमंत्र लक्ष्मीवती कथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
श्रीमती कथा - नमस्कारमंत्र प्रभावे, सं., गद्य, आदि: (१) इहलोके नवकार प्रभावा, (२) अस्मिन् जंबूद्वीपे अंति वजलनिधिना मुंचतौस्तः.
२. पे नाम, शिवकुमार कथा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण
शिवकुमार कथा - नमस्कार महामंत्र विषये, सं., गद्य, आदि: रत्नपुरं नाम नगर, अंति: स्थाने धर्मं करोति. ३. पे नाम, जिनदास श्रेष्ठी कथा, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
जिनदासश्रावक कथा - नमस्कारमंत्र विषये, सं., गद्य, आदि: तत्र क्षितिप्रतिष्टि, अंतिः सुगतिं प्रापयन् ४. पे. नाम. चंडपिंगल कथा, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
चंडपिंगलचोर कथा - नमस्कारमंत्र विषये, सं., गद्य, आदि: वसंतपुर नाम नगर; अंति: गतिमयच्छत्तरा परलोके. ५. पे. नाम. हुंडकचोर कथा - नमस्कारमंत्र विषये, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
सं. गद्य, आदि: मथुरानगर्यां शत्रु अंति: स्थाने जगामेत्यर्थः,
४४१
५८६७६. (४) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४ ) =५, ले. स्थल. साहिपुरा, प्रले. मु. हरचंद (गुरु मु. देवेंद्ररुचि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९२८) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५.५X११, १७५२).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु, पद्य, आदिः (-); अंति: भार्या जगतनी मात, गाथा १५८ (पू. वि. गाथा ७५ अपूर्ण से है.) ५८६७७ (+) चैत्रीपूनम देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८६८ माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. ज्ञानजी, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११.५, १८x४२).
चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम प्रतिमा ४ माडी, अंति: जिम होय जगे जस रीत.
५८६७८. (+) सिद्धाचल स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३ - १८९४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, १६x४०-५०).
१. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आंखडीआरे मुझ आज सेत अति: उदय० आदिशर तुठारे, गाथा- ७.
२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नीलुडी रायणतरु तले; अंतिः ज्ञानविमल० माहि गाथा - ६.
३. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुं करी; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा - १०. ४. पे, नाम, सिद्धाचलमंडण ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आपो आपोनें लाल मुझने, अंतिः सेवा कामगवी दोहति
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गाथा-७.
५. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. १आ २अ संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुण दिन, अंतिः परमानंद पद पास्युं,
गाथा- ७.
६. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आंखडीआरे मुझ आज सेत; अंति: आदिस्वरजी तुठारे, गाथा- ७.
७. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिमंधर साहेबा अंतिः होज्यो मुझ चित हो, गाथा- ९. ८. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शेडुंजे ऋषभ, अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा - १९.
९. पे. नाम. पर्वपजुसण स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पजुसण पुन्ये; अंतिः निसदिन करो वधाइजी, गाथा-४. १०. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर ताढो रे डुंगर, अंति: उदय० कोडि कल्याणो रे, गाथा - ७. ११. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चालो सखि जिनवंदन जइइ, अंति: देवचंद्र पद नीको रे,
गाथा- ६.
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१२. पे. नाम ऋषभदेवस्वामी गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण
आदिजिन पद- जन्मबधाई, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: रूपचंद० तारण हार रे, गाथा ५.
१३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- अक्षयतृतीयापारणागर्भित, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभ लही वरसी उपवासी, अंति: उदय आदे धरम उपाया, गाथा- ७.
१४. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु, पद्य, आदिः उठो रे मोरा आत्म राम, अंति: लाभ० भरतेसर वधाइ रे,
गाथा ५.
१५. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण,
मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा, अंतिः भक्ति० चरण सिरनामी, गाथा-५.
१६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरसाहिबो भव; अंति: भक्ति० श्रीमंधरजिनराय, गाथा-४. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि पासजी वामाजीना जाया अंतिः रामविजय भणै रे लौ, गाथा- १०. १८. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८७३, आषाढ़ शुक्ल, ३, ले. स्थल. वीसलनगर.
दानशीलतप्रभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिए, अंति: मुगत तणा फलह थाय, गाथा ६.
१९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पू. ५अ. संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. पच, वि. १८वी, आदि: मारु मन मोह्यं रे; अंतिः कहेतां नावे हो पार गाथा ५.
२०. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयमंडन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेडुंजागिरना सूक्टा, अंतिः महिमा विश्वविदित
गाथा ५.
२१. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण वि. १८९४ श्रावण शुक्ल ९.
आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवरा अंतिः लक्ष्मीसूरि० परमानंद, गाथा-४.
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२२. पे नाम, पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आद देव अरहंत नमुं स; अंति: रिषभ कहे० मननी आस, गाथा-५.
५८६७९_ (+) मेघकुमार चौडालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. वे. (२४४११, १२४३८-४०).
५८६८०. निश्चयव्यवहारगर्भितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२५४११.५, ११४२७).
मेघकुमार चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभादिक चोवीसने, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ८ अपूर्ण तक है.)
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५८६८१. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-९ (१ से ७, १२ से १३)=५. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे., (२४.५X११.५, १७X३८-४२).
(+)
शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि शांतिजिणेसर केसर, अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल -६, गाथा- ४८.
कथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चिलातीपुत्र कथा अपूर्ण से रूपसेन वामदेव कथा अपूर्ण तक व सकडाल कथा अपूर्ण तक है.)
५८६८२. (+४) पार्श्वजिनछंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०६, मध्यम, पृ. ७-२ (१,३)=५, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, १२४३६)
१. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८०६ आश्विन कृष्ण, ५, मंगलवार
मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाणि जिसी गुरु भणी, गाथा - २१, (पू. वि. मात्र अंतिम दो पद हैं .) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद अंतरीक्ष, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भ जय जयकरण, गाथा ४७, (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक नहीं है.)
३. पे नाम, औषध संग्रह, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण,
औषध संग्रह ७. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
**,
५८६८३.
मदनकुमार कथा, पूर्ण, वि. १६७०, फाल्गुन शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६- १ ( ४ ) = ५, ले. स्थल. दंतराई, प्रले. मु. तेजसुंदर (गुरु उपा. बजिसुंदर, संडेरगच्छ); गुपि उपा. वजिसुंदर (संडेरगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में सामान्य औषधसंग्रह लिखा है, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. प्र. ले. श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे. (२४.५४११,
""
११-१४X३५).
४४३
मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वानंदी पायनमी अंति: सुं पुण्यकर हु मनलाई, गाथा- १०३, (पू. वि. गाथा ६४ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक नहीं है.)
५८६८४. (+) इक्षुकारराजऋषि रास, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जै.. (२४४११, १७६०).
इक्षुकारराजऋषि रास, मु. जबसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: ब्रह्मवादिनीमाता अंतिः जयसागरनी एवाणी, ढाल - ११, गाथा - १७०.
५८६८५. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२५x११,
१५X३३-४१).
श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ अंतिः करि मिच्छामिदूक्कडं.
५८६८६. (+४) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२३.५x११, ११४३४).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: श्रीवीरजिणेसर चरणकमल, अंतिम
विस्तरे ए. गाथा ४६.
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४४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८६८७. प्रज्ञापनासूत्र वेदनासमद्धातादियंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. अन्य. सा. गंगाबाई; सा. रतनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १९४३२).
जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अति: (-). ५८६८८. रथनेमिरो पंचढालियो व पद, संपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. कूचेरा, पठ.सा. हसताजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. राजिमतीरथनेमि पंचढालिया, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सीधने आरीया; अंति: आसोज
ग्रंथ मंडाणो, ढाल-५. २. पे. नाम. नेमराजिमति चोमासो पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती चौमासा पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण वरसे हो सामी; अंति: रूपचंद० कारय सिधो,
गाथा-५. ५८६८९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२४४११.५, ९४३५-४०).
पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजे
भगति एम भामे, गाथा-५०. ५८६९०. (+) आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४४५).
आलोयणा गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेष्ठिदेवनो; अंति: याहे वार२ उत्पमजनकरे. ५८६९१. (+) जिनकुशलसूरिअष्टभयछंदादि पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२५४१०.५, ११४३८-४३). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरिअष्टभयछंद, पृ. ३अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जिनकुशलसूरि अष्टभय छंद, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: (-); अंति: खुस्यालOदेव मंगल करण,
गाथा-७९, (पू.वि. गाथा ३७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादाजी हो करिज्यो दय; अंति: गुरु देज्यो साद रे,
गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो आयो भाव धरी; अंति: जिनहरख हीयै हरखंतरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. चारित्रसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: नित चरणा चित लीनो है; अंति: तुझ गुन गावा लीनो है, गाथा-३. ५८६९२. (+#) शांतिजिन निश्चयव्यवहारविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५,११४३०-३२). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर
केसर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. ५८६९३. लवणसमुद्रनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. पनजी गोपालजी भावसार; अन्य. सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १६०, दे., (२६४११.५, १४४४३).
लवणसमुद्र वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: लवणसमुद्र एहवे नामे; अंति: प्रमुखसुत्रथी जाणवो. ५८६९४. (+) १४ गुणस्थानकनां २१ द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, २०-२२४६२-७०).
१४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लक्षण २; अंति: निगोदना जीव जाणिवा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४४५ ५८६९५. (#) जीवविचार भेद विचार, पूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, ले.स्थल. योधपुर,
प्रले. मु. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १४४३७).
जीवविचारभेद यंत्र*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. साधारण वनस्पति अपूर्ण तक नहीं है.) ५८६९६. (+#) स्तवन संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३, ले.स्थल. भीनमालनगर, अन्य.पं. चारित्रसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३५-४०). १. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: कांति सुख पावे घणो, ढाल-२,
गाथा-२४, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल
___ अति घणो, ढाल-३, गाथा-२७. ३. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरुपाय; अंति:
वीरजिणवर इम कहै, ढाल-३. ५८६९७. (+#) साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३७). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: पासचंद्रसूरिय थुण्या, ढाल-७,
गाथा-८७. ५८६९८. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १३४२०-२३). १. पे. नाम. एकवीसबोल श्रावकना गुण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण..
श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेले बोले श्रावकजी; अंति: काईक निवर्त्या नथी, अंक-२१. २.पे. नाम. पोसाना दोष, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पौषध के २१ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अणपोसाव्या तनु आण्यु; अंति: अपुज्यु न वावरे. ३. पे. नाम. सामाइकना ३२ दोष, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वस्त्रनी बाहनी पलांठ; अंति: सामाइकनो फलवांछे दोष. ४. पे. नाम. पच्चक्खाण फल विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसीने पचखाणे नार; अंति: नारकीना खेरु करे. ५. पे. नाम. वीरनी वारे नवजणे तीर्थंकरगोत्र उपज्या, पृ. ३आ, संपूर्ण. ९ जीव तीर्थंकरनामकर्म उपार्जित करनेवाले-महावीर के समय में, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेणिक राजाये १; अंति: ९
रेवतीये ए ९ जणा. ६. पे. नाम. बार कुलनीगोचरी साधुमहाराज पुरुषने कल्पे, पृ. ३आ, संपूर्ण.
१२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, आदि: उग्र कुलाणी वा कहता; अति: १२ पटकुलादिकना कुल. ७. पे. नाम. परमकल्याण के चोवीस बोल, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
२४ बोल-परमकल्याण के, मा.गु., गद्य, आदि: तप करी नीयाणुन करवु; अंति: चंदणबालानी परै, अंक-३०. ८. पे. नाम. १० प्रकारे भणवो नहीं आवै, पृ. ५अ, संपूर्ण.
१० प्रकार असज्झायकाल विचार, रा., गद्य, आदि: रसरो लोलपी हुवै तो; अंति: यो हुवै तो भणवौ नहीं, अंक-१०. ९. पे. नाम. दसबोल छद्मस्थ नहीं देखे, पृ. ५अ, संपूर्ण.
१० वाना छद्मस्थन देखे, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तीकायने न देख; अंति: जासी ते नही देखै. १०. पे. नाम. १० प्रकारे बुधि वधै, पृ. ५अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
बुद्धि वृद्धि १० प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: लांबो आउखो हुवै तो, अंति: धर्मनी वृधी करै तो, अंक- १०. ५८६९९. (a) सुरप्रियऋषिराजादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४१).
१. पे. नाम. सुरप्रीयाऋषि सज्झाय, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण, पठ. ग. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि; सरसति देवि सदा मनिधर, अंतिः भवसायरि निश्चय तरि, गाथा ६६. २. पे. नाम. सकोशल सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु, पद्य, आदि नवरी अयोध्या जववती अंतिः सुरचंद० संघ प्रसन्न,
गाथा-४३.
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३. पे. नाम. विजयसेठविजयकुमरी स्वाध्याय, पृ. ४-५ आ, संपूर्ण
विजयसेविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु, पद्य, आदि: भरतक्षेत्रि रे, अंतिः कुशल नीतु घरि अवतरई,
ढाल- ३, गाथा - १८.
४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन - सर्वार्थसिद्धविमान, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: (-), (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.)
५८७०० भोलेना अर्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. फलोधी, प्रले. पं. हंससुंदर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथजी प्रसादात् दे. (२५.५X११.५, ११४३६).
भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभु पोशाल वेठा; अंति: पामस् तत्त्वं
५८७०१. (+#) प्रियमेलक चौपाई व दूहा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X११.५, २२X५६).
"
१. पे. नाम. दानाधिकारे प्रियमलेक चउपई. पू. १-५अ, संपूर्ण.
प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुन्यें अधिक प्रमोद, डाल- ११. प्र. ३३१.
२. पे. नाम. राजा रीसालूरा दुहा, पृ. ५आ, संपूर्ण.
रीसालूराजा दूहा, रा., पद्य, आदि हड हड दे मूंडी हसी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २४ तक लिखा है.)
५८७०२. मल्लिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (४) = ५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११.५, १८x४२).
मल्लिजिन चौपाई, मु. जेमल - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: नीमसकार हुवो अरिहंत; अंति: (-), (पू. वि. ढाल २० के दोहा २ अपूर्ण तक है. बीच के पाठांश नहीं हैं.)
५८७०३. (#) मार्गणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५. ५X११, ३९-५२x१६-२२).
६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई ईदिय काए; अंतिः परिगहसनां संखेजगुणा.
५८७०४. (१) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६-१ (१) =५, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११. १५४४९)
१. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. २अ- ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुन्यप्रकाश ए, ढाल -९, गाथा - १०२, (पू. वि. डाल ३ गाथा ४ अपूर्ण से है.)
२. पे नाम ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति
लाभ प्रसंसही, ढाल-३, गाथा-२५. ३. पे. नाम. गौडीपार्श्वस्तवन, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. यशविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मावादनी; अंति: सास्वता सुख लहे, ढाल-५, गाथा-५५. ४. पे. नाम. धवलधींगजीरो छंद, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहें हरखे मुदा,
गाथा-२३. ५. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तोरी वाणी सुणी; अंति: मुज तुज ध्यानमां, गाथा-९. ५८७०५. (+) चंदराजा लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ७X१९-२२).
चंद्रगुणावलिका पत्र, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ती श्रीमरुदेवनो; अंति: वली आगल अधिकार, ढाल-२,
गाथा-३३. ५८७०६. (#) हंसराजवछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १२x२९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल ४६ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५८७०९. (+#) सिद्धांत चंद्रिका सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७७-१(१)=७६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १६x४१). सिद्धांतचंद्रिका, प्रक्रिया, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रारंभ के पाठांश नहीं हैं.) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५८७४१. (#) मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०८, आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, प्रले.पं. निहालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ५४३९-४५). मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदा; अंति: पादपलतौषधिरोपणंच,
श्लोक-४६, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक १३ अपूर्ण से१८ अपूर्ण तक नहीं है.) मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा ६ तक लिखा है.) ५८७६१. पल्ली, स्त्रीपुरुष तिलमसा व सामुद्रिक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, ले.स्थल. नंदराय,
प्रले. ग.खेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२८). १.पे. नाम. पल्लीविचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
सर्वांगपल्ली फल, सं., पद्य, आदि: कष्टं च शिरसाधार; अंति: वस्त्र मोक्षणं, श्लोक-३९. २. पे. नाम. तिल मसा लांछण फल, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ५. स्त्रीपुरुष तिलमासा लक्षण फल वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: जे नारिकै माथै रातो; अंति: भलो भोगविलासी होय,
गाथा-४४. ३. पे. नाम. सामुद्रिक शास्त्रसार, पृ. ४आ-१५अ, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन शुक्ल, १३.
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: घोर नीद्रा च शंखिनी, अध्याय-३६, श्लोक-२१०. ५८७६७. (#) विवाह पटल, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. कोहीला, प्रले. ग. सरुपचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: हर्षकीर्तिः शुभं, श्लोक-२४८. ५८७६९. (+#) धनंजय कोश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. गदाधर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४२-४५).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शरणोत्तम मंगलान्, श्लोक-२५५. ५८८३९. (+) वसुधारा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(३)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भवति निस्संदेह, (अपूर्ण, पू.वि. "भद्रेसु भद्रवति मंगले मंगलवते"
पाठ से "नि यथा शशीतांश्रुनां" पाठ तक नहीं है.) ५८८४३. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. मानजी (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. पं. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३६).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वय देवस्य; अंति: भोगयोगं च विधत्ते. ५८८४९. (+#) नामरत्नाकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-१(४५)=४५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३५-४२). नामरत्नाकर, क. केशवदास, मा.गु., पद्य, आदि: परमज्योति परमातमा; अंति: (-), (पू.वि. तृतीय अधिकार क्रमांक ७०
भरत के पर्यायवाची नाम अपूर्ण से क्रमांक-९६ पर्यावाची नाम अपूर्ण तक व क्रमांक १२० पर्यायवाची नाम अपूर्ण से
नहीं है.) ५८८५३. (+) जिनबिंबप्रतिष्ठामुहूर्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. बोढाण
(बढवाण?), प्रले. पं. सरूपसागर; पठ. मु. गुलाबचंद (गुरु पं. सरूपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमुनिसुव्रत प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४२७).
प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: वेरी खोदीने लावे १०८. ५८८५६. (+) हीरकलश जैन ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३१). ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सहगुरु सांनिधि सरस्व; अंति: (-), (पू.वि. ग्रह राशि
वर्णन अपूर्ण तक है.) ५८८६९. अक्षरबाबनी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले.मु. हुकमचंद ऋषि (गुरु
ऋ. उमेदमल, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १४-१६x४६-४८). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६०. २.पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रहेलिका सवैया, क. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: सोलै श्रृंगार वनायकै; अंति: रूप० तोखाउं काटारी, गीत-२. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: केई उदास रहै प्रभु; अंति: महे मोहे सूझत नीके, गाथा-३. ५८८७०. (#) चंदकुंवर की वार्ता, संपूर्ण, वि. १८२३, कार्तिक शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. कुचरोड ग्राम, प्रले. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ११४३२-३४).
चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरूसरसत माअः बन्याअ; अंति: पुरी हुई शुभवार, गाथा-९४. ५८८७२. (+) दाढालारी बात, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७७३५).
दाढाला कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप भरतखंड मै; अंति: घरे पधारीयां छै. ५८८७६. (+#) छंद व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२३.५४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
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क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति, अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा- १७. २. पे. नाम, शनीश्वर स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ यत्पुरा राज, अंतिः पीडा न भवंति कवान, श्लोक १०. ३. पे नाम, शनीश्वर जाप, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण
शनिमंत्रजाप विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ खां खीं खूँ खाँ खः; अंतिः कुरु कुरु स्वाहा. ४. पे नाम, साढसतीरी मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
साउती मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ श्रीं शांमांमग, अंतिः निवारणे नमः स्वाहा.
५. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यों अंतिः सुप्रीतं तस्य जायते श्लोक ५.
६. पे. नाम. शनीश्वर अष्टक, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
शनि स्तोत्र, दशरथ राजा, सं., पद्य, आदि: कोणांतकोरौद्रवमोथ, अंतिः कार्या विचारणाः, श्लोक ११.
७. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
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सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार मंत्र उद्धरणं; अंति: वदै हेम इम वीनती, गाथा - १६. ८. पे नाम, सरस्वत्या अष्टोत्तरनामगर्भित स्तोत्र, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
सरस्वती अष्टोत्तरनामगर्भित स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ श्रींहीकी वद, अंति: भारती कल्मषमे श्लोक-१५.
९. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: भलै आज भेट्यो प्रभु अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५८८८१. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०५-२ (१ से २) १०३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. प्र. ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५X११.५, १३X३३-३५).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. प्रथम कांड श्लोक १ से ३४ तक नहीं है.)
४४९
५८८८२. (+) हैमी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७० -९ (१,२२ से २३, ३५ से ३७, ६६ से ६८) = ६१, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ संशोधित, जैवे. (२५४११.५, १३४४७).
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अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड १ लोक-१६ से कांड-६ श्लोक १० तक बीच-बीच के पाठांश हैं.) ५८८८४ (+४) नाराचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३४+२ (१७,३०) = ३६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२४.५x१०.५, १४४३६-४१).
""
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: अमावस्या अविग्रह, श्लोक - २९४. ५८८८५ (+४) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७५४, श्रावण कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५६-२६ (१ से
२४,२८,५५) = ३०, ले. स्थल. राडधर, पठ. पं. लाभमूर्ति (गुरु पंन्या. रंगविमल गणि); गुपि पंन्या. रंगविमल गणि (गुरु वा. हेमप्रमोद गणि); वा. हेमप्रमोद गणि (गुरु पं. जयरत्न); पं. जयरत्न (गुरु आ. गुणरत्नसूरि, विधिपक्ष गच्छ (अंचलगच्छ)), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १८००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२१.५x१०.५, १७४२३-३०).
"
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. कांड - ३ श्लोक ४६० अपूर्ण तक नहीं है.)
५८८८६. (+४) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १३X३०-३३).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः (-), (पू.वि. कांड - १ श्लोक ४१९ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८८८७. (+) नाराचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८वी, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. जैवे., (२५.५X११.५, १३X३९).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति: नवानीवीनीर्विसेत्. ५८८८८. (+) मुहूर्तमुक्तावली सह टवार्थ व मूर्खलक्षण, संपूर्ण वि. १८९० वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. कवला ग्राम, प्रले. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३९).
१. पे. नाम. मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण
मुहूर्तमुक्तावली, सं., पद्म, वि. १५३९, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदां अंतिः पादपलत्तौषधिरोपणं च मुहूर्तमुक्तावलि-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ: अंतिः रूख वेलडी रोपण कीजे, २. पे. नाम. समतावली, पृ. ७आ, संपूर्ण.
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मूर्ख के १४८ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: बालकसुं संगत करै ते; अंतिः सभा माहै साख भरीजे ५८८८९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९ - १ ( २ ) = ८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४११, १३४३० ).
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अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, बि. १३वी आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंति (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-१२ तक है.)
५८८९०. हैमी नाममाला - प्रथमकांड, संपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. बोरुदा (बड़ौदा), प्रले. मु. चैनहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, १२४३२-४५).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
५८८९१. (#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५, २१x६७).
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सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि आदिदेवं प्रणम्यादी, अंतिः कलहमिच्छति शंखिनी, अध्याय ३६, श्लोक-२७१. सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध में, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला आउखु जीइजे, अंति: (-) (वि. अंतिम श्लोक का बालावबोध नहीं लिखा है.)
५८८९२. (#) ज्योतिषसार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५X१०.५, १३x४३).
१. पे. नाम ज्योतिषसारोद्धार, प्र. १-५ आ. संपूर्ण.
आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीश, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ११४ तक लिखा है.)
२. पे नाम. हिल्लाजताजक, पृ. ५आ, संपूर्ण,
ज्योतिष, मा.गु., सं., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).
५८८९५ (+) जातकदीपिका पद्धति सह टवार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., ( २४.५X११.५, ८x४२).
१. पे नाम, जातकदीपिकापद्धति सह टवार्ध, पृ. ९अ- ९अ, संपूर्ण,
जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश, अंतिः जातकदीपिका, श्लोक-१४. जातकदीपक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य करीनइ पार्श; अंति: पद्धति दीवा समान छै.
२. पे नाम ज्योतिष संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण.
ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. पग, आदि कर्कराशिस्थितेसूर्य अंतिः जमानो विश्वा जाणीये.
५८८९६. नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १२९वी, मध्यम, पृ. १८-४(१ से ३, ६) = १४. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे. (२४४११,
९X२५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्री अतिचार गति अपूर्ण से है.) ५८९०१. (#) रायपसेणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, जीर्ण, पृ. १२९, ले.स्थल. रिणी, प्र.वि. कुल ग्रं. ६०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ६x४२-४५).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: णमो रायपसेणइ, सूत्र-१७५, (वि. १८३९, कार्तिक, ५) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: सेणीसूत्रार्थ टबार्थ, (वि. १८३९,
मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, सोमवार) ५८९०२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा-व्याख्यान १ से८, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२५-२३(१ से १७,२६,४६,५८,६६ से ६८)=१०२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, ७-१६४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं..
कार्तिकशेठ के प्रसंग से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ५८९०३. (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७४, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९१, प्र.वि. पत्रांक १ व ६१ कुल २ पत्र
अवास्तविक घटते पत्र हैं. वास्तव में कुल पत्र ८९ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४४११.५, ५-६४३२-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: अंगं जहा आयारस्स,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ प्रश्नव्याकरणे; अंति: अनंता सिद्धनाए. ५८९०४. (+) संघयणी का बालावबोध, पूर्ण, वि. १८४३, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९०-१(७१)=८९,
प्रले. पंडित. गुणमंदिर; पठ.पं. लालचंद (गुरु पंडित. गुणमंदिर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४२४-३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-२७६,
(पू.वि. गाथा २८ व २९ के कुछेक पाठांश नहीं है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: मांगलिकनइ अर्थि
हुओ, ग्रं. १७५७. ५८९०५. (+) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १८९३, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ७०-२(४९ से ५०)=६८, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. सदाराम मनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १०४२२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
(पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५८९०७. (#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व दृष्टांत-कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-२(१,३६)=५०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०-१२४२५-३६).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-४ अपूर्ण से ४८ तक है.) गौतमपृच्छा -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरने विषे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ब्रह्मदत्त
कथा अपूर्ण तक है.) ५८९०८. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्रले. गणेश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. १७५०, दे., (२४४१२, ७X४२).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१.
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषई ते; अंति: मार्गना आराधक कह्या. ५८९०९. बारव्रत उपरि दृष्टांत-कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे. २२, जैदे., (२३.५४१०.५, १७X४५).
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१. पे. नाम. सम्यक्त्व पालनविषये ईशानचंद्रराजा कथा, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
ईशानराजा कथा - सम्यक्त्वपालन विषये, सं., गद्य, आदि: अंगदेशे सुदर्शननगर, अंतिः ततो मोक्षं च गतः २. पे. नाम. प्राणातिपातिविषये राजा नृपशेखर कथा, पृ. ४-५आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नृपशेखरराजा कथा-प्राणातिपात विषये, सं., गद्य, आदि: हिंसा दुःखलतामूलं; अंतिः सम्यक्पालनीयातथापरैः. ३. पे नाम. मृषावादविषये श्रेष्टिकमल कथा, पृ. ५आ- ६आ, संपूर्ण
कमलश्रेष्ठि कथा - मृषावाद, सं., गद्य, आदि: असत्वेन निहत्यंते: अंतिः त्वाक्रमेणमोक्षगामी.
४. पे. नाम. अदत्तादानविषये सूरदत्तकमलसेन कथा, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
सुरदत्त कमलसेन कथा - अदत्तादान विषये, सं., गद्य, आदि: नादत्तं गृन्हतेयेत्र; अंति: अदत्तं न गृहीतव्यम्. ५. पे. नाम. चतुर्थव्रते चंद्रसुरेंद्रदत्त कथानक, पृ. ८अ - ९अ संपूर्ण.
चंद्रसुरेंद्रभ्रातृ कथा ब्रह्मचर्यव्रत विषये, सं., गद्य, आदि; परकीय वधू भोगं ये अंतिः शुभ कर्म्म निबंधनम् ६. पे. नाम. परिग्रहविषये देवदत्तजयदत्त कथानक, पृ. ९अ १० अ, संपूर्ण.
देवदत्तजयदत्त कथा - परिग्रहविषये, सं., गद्य, आदिः यथा श्रृण्वंतु भो, अंतिः निर्वाणपदेमेयेति.
७. पे. नाम. दिग्विरतिविषये रोहणेय कथानक, पृ. १०अ ११अ, संपूर्ण.
रोहिणी कथा-दिग्व्रते, सं., गद्य, आदि: दिग्व्रतं शुद्ध चेतस; अंति: मात्सिद्धिमवाप्स्यते.
८. पे. नाम, भावनाविषये कुलध्वजराजर्षि कथानक, पृ. ११अ १३आ, संपूर्ण
कुलध्वजराजा कथा- भावनाविषये, सं., गद्य, आदि न विना भावने० भवे भव, अंतिः सौधर्मो देवो जातः. ९. पे. नाम. जीर्णोद्धार विषये वैश्रवण कथानक, पृ. १३आ-१६आ, संपूर्ण.
वैश्रमण कथा- जीर्णोद्धार विषये, सं., गद्य, आदि: जीर्णे समुद्धृतेया; अंति: मोक्षं गमिष्यति.
१०. पे. नाम चतुर्विधधर्म विषये वीरसेन कथानक, पृ. १६आ- २२अ, संपूर्ण.
वीरसेन कथानक - चतुर्विधधर्म विषये, सं., गद्य, आदि दान शील तपोभाव भेदाध; अंतिः पश्चात् मोक्षं च. ११. पे. नाम. दानविषये श्रीपालराजा कथानक, पृ. २२अ - २५आ, संपूर्ण.
श्रीपाल कथा - दानविषये, सं., गद्य, आदि: समस्त सत्कविस्तौम, अंतिः भूव निर्वाणमेष्यति,
१२. पे. नाम. देशावकाशिके काकजंघ कथानक, पृ. २५आ-२८अ, संपूर्ण.
कोकाशनराजा कथा - देशावगाशिकवते, सं., गद्य, आदि: देसावकासिके यस्तु; अंति: लहइ तुह काकजंघव. १३. पे, नाम, चतुप्रत्येकबुद्ध कथानक, पृ. २८अ ३६आ, संपूर्ण.
४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., गद्य, आदि: करकंडू कलिंगेषु; अंतिः सिद्धिगया एग समएणं.
१४. पे. नाम. डंडी कथानक, पृ. ३६-३७आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: नमस्कारप्रभावे इह, अंति: लोकेपि नमस्कार फलम् १५. पे. नाम. नवकार कथा संग्रह, पृ. ३७आ-३९अ, संपूर्ण.
नवकारमंत्र- कथा, सं., गद्य, आदि: अघोसादित्वं विभाव्य, अंतिः मंत्र सदा सौख्यदम्, कथा-५, (वि. नवकार महामंत्र महात्म्य गर्भित श्रीमती, जिनदास व चंडपिंगल आदि की कथाएँ)
१६. पे नाम. जिनोच्चर्या स्थविरा कथानक, पृ. ३९अ- ३९आ, संपूर्ण
स्थविर कथा - देवपूजा विषये, सं., गद्य, आदि: देवपूजा फले धेरी, अंतिः केवलमासाद्यसेत्स्यति
१७. पे, नाम, सुव्रत कथानक, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण
सुव्रत कथानक - अष्टप्रकारीपूजा विषये, सं., गद्य, आदि: कुरुचंद्र कथा वृत्ति, अंति: गृहं गृहत्वाहमगात्. १८. पे. नाम. सत्य की कथानक, पृ. ४०अ, संपूर्ण.
जिनशेखर कथा - सत्य, सं., गद्य, आदिः वृत्तिकृतोप्य प्रतीत अंतिः भावी सुव्रत नामा जिन.
१९. पे. नाम. स्तेन कथानक, पृ. ४०-४०आ, संपूर्ण.
वासुदेव कथा - स्तेन, सं., गद्य, आदि: नारद विद्याधराः; अंति: संसारं भ्रमिष्यति.
२०. पे नाम, कृष्ण चरित्र व्याख्यान वसुदेवहिंडि, पृ. ४०-४७आ, संपूर्ण
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४५३ वसुदेवहिंडी-श्रीकृष्ण चरित्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: नेमिमोक्षा प्राप्तः. २१. पे. नाम. तीर्थप्रभावनायां कृष्णश्रेणिक कथा, पृ. ४७आ, संपूर्ण.
कृष्णश्रेणिक कथा-तीर्थप्रभावना विषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरत मगधदेशेषु; अंति: सिद्धत्वान्नोक्तम्. २२. पे. नाम. दानवेंद्र कथानक, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण.
दानवेंद्र कथा-नाट्यविधि, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरतेदेश्य; अंति: विदेहे शिवंगामी गतः. ५८९१०. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, ६४३६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६,
ग्रं. ६२०.
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पइ नि०; अंति: उपाश्राना दोष रहित. ५८९११. (+#) पंचप्रतिक्रमणादिसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-६(१६ से १७,३२ से ३५)=४१, कुल पे. १४,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १२४३७). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पगामसज्झायसूत्र, पृ. ११आ-१४अ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य अचयनीय लिया है.) ३. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १४अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४१ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. नमस्कारद्वात्रिंशिका, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०,
___ (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से हैं.) ५. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १९अ-२७अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मंगल कलाण आवासं,
स्मरण-७, (वि. उवसग्गहरं का मात्र प्रतीक पाठ दिया है.) ६. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ८.पे. नाम. नवग्रहस्तुतिगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०. ९. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २९अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४१ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. महावीरसमसंस्कृत स्तवन, पृ. ३६अ-३७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०,
(पू.वि. श्लोक १३ अपूर्ण से है.) ११. पे. नाम. महावीर चरित्र, पृ. ३७अ-३९अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. १२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३९अ-४२अ, संपूर्ण.
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४५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणेगसिद्धायणेयव्वा, गाथा-६२. १३. पे. नाम. जीवविचारसूत्र, पृ. ४२अ-४४आ, संपूर्ण.. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. १४. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ४४आ-४७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊ चउवीस जिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-३९. ५८९१२. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७१३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५+२(१२,३४)=३७, ले.स्थल. ठठा,
पठ. मु. मनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आचार्य श्री विजयराजेंद्रसूरि के सदुपदेश से राजपुर में संवत १९४१ में लालचंद्र ने भांडागार में इस प्रति को रखा., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१०७०) यादृसी पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३.५४११.५, ९४३४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: अणुण्णानंदी समत्ता, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ५८९१३. (+) ज्ञानसारसूत्र तथा असमाधिना वीस थानक, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. २,
ले.स्थल. राधिका, प्रले.पं. विनयसागर (गुरु मु. क्षांतिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिश्वर प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ७४२४). १.पे. नाम. ज्ञानसार, पृ. १अ-३०अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: स्वीयं कृतं मंगलम्, अष्टक-३२,
श्लोक-२७२. २.पे. नाम. असमाधिना बीस स्थानक, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
२० स्थान-असमाधिके, मा.गु., पद्य, आदि: धबधब चाले अप्रमार्ज; अंति: माटे असमाधिना थानक, सूत्र-२०. ५८९१४. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(२६)=२९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२२.५४११, ८-१०४२१-३७). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामि
जिणे चउव्वीसं. २. पे. नाम. दादाजीकी वीनती, पृ. १३अ, संपूर्ण...
जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु देखता; अंति: शरण मोहि दीज्यै, गाथा-३. ३. पे. नाम. कुशलसूरि जिनदत्तसूरि गुरुगुण गीत, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: कुशलगुरु माता पीता; अंति: जीनकुशलसुरीजी महाराज, गाथा-३. ४. पे. नाम. सप्तस्मरणसंग्रह, पृ. १३आ-२५आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. स्तोत्र ६
सिग्घमहरउ गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ५.पे. नाम. आलोयणा सूत्र, पृ. २७अ-३०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५८९१५. (+) दीपोत्सवीकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७-८(१ से २,७ से ९,१२ से
१३,३३)=४९, ले.स्थल. नाडोल, प्रले.पं.खुशालरत्न; अन्य. मु. ऋषभ (गुरु पं. खुशालरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ५४३०). दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: (-); अंति: कल्प परिपूर्णतायाः, श्लोक-४३८,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: श्रीदीवालीका कल्प.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४५५ ५८९१६. (#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कंध २ अध्ययन १, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(९)=२९, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ५४४०).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उद्देश-७ __ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५८९१७. आवश्यक नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-६(१ से ५,३१)=३१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायिक अध्ययन गाथा १९
अपूर्ण से वंदनक अध्ययन गाथा ४६ अपूर्ण तक है.) ५८९१९. (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रावण शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२२४११, ११४२४).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध
विलोक्य तत्. ५८९२२. (+#) संघयणी प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४-१(१३)=१३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६८,
(पूर्ण, पू.वि. गाथा २९२ अपूर्ण से ३४६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८९२३. (+#) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १५४३७). धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संसारेमावन्नपरस्स; अंति: मृत्युरेव न संसय, (वि. श्लोक संख्या
क्रमशः नहीं है.) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव संसारमा अवतर्यो; अंति: (-), (वि. अंतिम कुछ श्लोकों का अर्थ
नहीं लिखा है.) ५८९२४. (+#) नवस्मरण, लघुशांति, सकलाहत व नमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ४,
प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२४.५४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. __ भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-८,
(वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण, वि. १९१२, आश्विन कृष्ण, ५, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. मु. गौतमसागर
(गुरु पं. रविंद्रसागर); गुपि.पं. रविंद्रसागर; पठ. मु. गीरधारी (गुरु मु. गौतमसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्री पद्मप्रभूजी प्रसादात्. श्री शांतिजिन प्रशादात्.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: (१)सूरिः श्रीमानदेवश्च, (२)जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३. पे. नाम. सकलाहत् स्तोत्र, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: मरालायार्हते नमः,
श्लोक-२६. ४. पे. नाम. नमस्कार स्तोत्र, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरः सर्वसुरासुरेंद; अंति: श्रेयस्करी देहनाम्, श्लोक-८. ५८९२५. (#) क्षेत्रसमास सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. पत्रांक वाला भाग खंडित है., कुल ग्रं. ३८५, मूल व
टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४११, ६४३५).
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४५६
नम
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण;
अंति: कोस ३ धनुष १२८ अंगुल, गाथा-११३.
जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जलसहित मेघ जेह; अंति: १२८धनुष अंगुल. ५८९२६. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. भुदरदास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११, ३४२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भूवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५४.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: तिन भवनने विषे पइवं; अंति: तत्वनं सार लधस्यु. ५८९२७. (+) स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे.,
(२४४११, १०४३२-३५). १.पे. नाम. नवकार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण..
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम, पद-९. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५. ३. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ४. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. सत्तरिसयजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ६. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१५. ७. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ८. पे. नाम. अजिअसंति स्तोत्र, पृ. ७अ-११अ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: परगणे श्रीसंघस्य च,
गाथा-४३. ९. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. १०. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १४अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा ५ अपूर्ण
तक लिखा है.) ५८९२८. (#) रत्नसंचय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४४११, ६४३६).
रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: चरीमे अभीण वीगई, गाथा-१४२.
रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरनइ नमस्कार; अंति: ही कल्पनीयवीगय पचखाण. ५८९२९. (+#) संग्रहणी सूत्र, पूर्ण, वि. १८५२, वैशाख कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, ले.स्थल. जावालनगर,
प्रले. ग. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथजी सुप्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२-१५४३०-४०).
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४५७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३९, (पू.वि. गाथा-१०
अपूर्ण तक नहीं है.) ५८९३०. (+#) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२७). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. स्मरण ५
गाथा १८ तक है.) ५८९३१. (+) साधु प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३५-४०). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जय तिहुअणवरकप्प; अंति: दादैजीरा
तवन कैणा. २. पे. नाम. नवपद मंत्र जाप विधिसहित, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अहीश्री अर्हत; अंति: नवपदेभ्यो नमः. ५८९३२. (#) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, १३४२६).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१०२. ५८९३३. (+) सुक्तावली सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१७, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, ले.स्थल. घनोघ बंदर,
प्रले. मु. प्रमोदविजय (गुरु पं. क्षमाविजय गणि); गुपि.पं. क्षमाविजय गणि (गुरु उपा. लब्धिविजय गणि); उपा. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी साहाय छे जी., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ६४३७).
सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: संसारवासैवसुखी च जीव, श्लोक-१२९, (पू.वि. श्लोक ९ अपूर्ण तक नहीं है.)
सूक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संसारे प्राणी जीव. ५८९३४. (+) संघयणीसूत्ररत्न व वैद्यक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८२५-१८३८, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४४१-४५). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन शुक्ल, ४, शनिवार, ले.स्थल. गुंदवचनगर,
प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय); गुपि.पं. अमृतविजय; पठ. श्राव. डुंगरमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्.
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४१०. २.पे. नाम. वैद्यक श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन शुक्ल, १५, प्रले. पंन्या. हेमविजय (गुरु पंन्या. गौतमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
औषधवैद्यक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अंगम ज्वर: कंपः; अंति: पथ्य मौठरी दाल. ५८९३५. स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-३(१ से ३)=१६, कुल पे. ४, जैदे., (२३४११, ११४२९). १.पे. नाम. सातस्मरण, पृ. ४अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पठ. मु. चंद (गुरु पं. जसरूपसागर);
प्रले. पं. जसरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. बडीशांति पत्रांक १६अ-१८अ पर लिखा हैं. नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनंजयति शासनम्, स्मरण-८, (पू.वि. नमिऊण गाथा
१अपूर्ण से है., वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण..
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. ४. पे. नाम. शनीश्वर स्तोत्र, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्लोक-१२.
शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा, अंति: प्रसन्ना भवतु स्वाहा, ५८९३६. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है, जैदे. (२४४११, १६X३२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-), (पू. वि. श्लोक ४३ तक है.) भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) भक्तामरस्य विदधे वर, (२) भक्ति क० जे सेवक, अंति: (-). ५८९३७. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७५२, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२ - २ ( ८ से ९) = १०, अन्य. सा. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित. कुल ग्रं. ३५०, जैदे., (२४X११, ३X३०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा - ५१, (पू. वि. गाथा २७ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक नहीं है.)
नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जेह प्राण; अंतिः हजी सिद्धि गयउ छड़
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५८९३८. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, ले. स्थल. मोरसीमनगर, प्रले. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज, अंचलगच्छ); गुपि. मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); पठ. मु. मेघराज (गुरु मु. मूलराज, अविचलगच्छ); राज्येआ. मुक्तिसागरसूरि (अविचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीसूबधिनाथ प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १५x२९).
१. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ.
१अ ३आ, संपूर्ण.
1
साधुपाक्षिक अतिचार वे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि; नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः करी मिच्छामि दुक्कडं, २. पे नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि, अंतिः वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र - २१.
३. पे. नाम. विमलाचलगिरि स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक कृष्ण, ९, गुरुवार.
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सवि मिलि कर आवो, अंतिः नवविमल० नित्य भद्दा,
गाथा-४.
४. पे. नाम. पच्चखाणविधि, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदिः उगाए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि,
"
५८९३९. (+#) प्रतिक्रमणविधि संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८४७, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. मु. किसनचंद (गुरु पं. कपुरविजय); गुपि. पं. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५x११, ११४३१).
१. पे नाम, प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेणी; अंति: तो हाथी छ मांडीजे, (वि. सामायिक, पौषध व प्रतिक्रमण विधि संग्रह.)
२. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: मान धाता च महीपती, अंति: मन्येत्वयाजास्ति, श्लोक-१.
५८९४० (4) श्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल
,
गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १४X३९-४२).
श्लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि दानं दया दमंद्रीण, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक व गाथा क्रमांक क्रमशः नहीं हैं.) श्लोक संग्रह - बालावबोध * *, मा.गु., गद्य, आदि: दान ते पांच प्रकारना; अंति: (-).
५८९४१. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१३, चैत्र शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. मु. वीरभाण्ण (गुरु मु. हरीराज ); गुपि. मु. हरीराज (गुरु पं. रूपचंद्र ) पं. रुपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२१x११, ९४२१)भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः,
श्लोक-४४.
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__४५९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ५८९४२. (+) सिंदरप्रकर, संपूर्ण, वि. १७४४, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. मसुदानगर, प्रले. मु. चयनकुशल (गुरु
ग. प्रतापकुशल); गुपि.ग. प्रतापकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११, १०-१२४३३-४५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: स जानाति जनाग्रतः, द्वार-२२,
श्लोक-९८. ५८९४३. (+) उत्तमकुमार चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, ८४३३-३६).
उत्तमकुमार चरित्र, सं., पद्य, आदि: दानयशो वितनुते वितत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३० अपूर्ण तक है.)
उत्तमकुमार चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दानथकी लोकमै यश प्रस; अंति: (-). ५८९४४. (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१५(१ से १२,२० से २२)=९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३०-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०,
(पू.वि. अध्ययन-६ गाथा १ अपूर्ण से है.) ५८९४५. (+) स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२४२९). १.पे. नाम. वडीशांति स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. सकलाहत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत प्रतीष्ठाना; अंति:
भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. ३. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण.
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४. पे. नाम. संतिकर शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं,
गाथा-१३. ५.पे. नाम. गौतमस्वामीरी सझाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: लावण्यस० संपत्ति
कोड, गाथा-९. ५८९४६. (+#) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. रंगहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय
दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. ५८९४७. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२४, आषाढ़ शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. गणेश (गुरु मु. केसर);
गुपि. मु. केसर (गुरु मु. लखमीचंद); मु. लखमीचंद (गुरु मु.रूपचंद); मु. रूपचंद (गुरु मु. धनाजी); मु. धनाजी; पठ. मु. जसवंत, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ९x१८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५८९४८. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३४, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले.पं. जसवंतविजय (गुरु ग. दोलतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १५४४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८९४९. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे., (२३.५x११,
""
८x२८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३९ अपूर्ण तक है.) ५८९५०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैये. (२४४११.५, ९x१९).
१. पे. नाम. श्रावक अतिचार प्रकरण, पृ. १अ ६आ, संपूर्ण.
1
वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि जम्मो कुलिंगदेसे, अंतिः अपि नरं नरं जयति, श्लोक-३. ५८९५१. (4) संवच्छरी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. १८९७ श्रावण कृष्ण, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, मोरसीमनगर, प्रले. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज अंचलगच्छ); पठ. मु. मेघराज, मु. दोलतराज (गुरु मु. मूलराज, अंचलगच्छ);
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गुपि. मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); मु. सरूपराज (गुरु मु. पद्मराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रशादात अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X११.५, १५X३४).
',
प्रतिक्रमणविधि संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही केहणी; अंति: तो भूल पडे नहीं. ५८९५२. साधुप्रतिक्रमण विधि व पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९८५, श्रावण कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८-२(५ से ६)=६, कुल पे. २, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. गोकलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११.५, १८x४४).
१. पे नाम, साधु प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ८अ अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिखूत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
२. पे नाम, पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पेले पवे नमो अरिहंत, अति तीखुतारो पाटकेणा.
५८९५३. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे (२४,५४१२, १३४२९). आवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि नमो अरिहं० सव्वसाहूण अंति: (-), (पू.वि. 'वंदित्तुसूत्र'
की गाथा - ४१ तक है.)
५८९५४. पडिक्कमणा सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. संघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१X११.५,
१५x२८).
,
.
आवकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचि अंतिः पछे समावेजंतो कवी
५८९५५. अजितशांति स्तवन व तिजयपहुत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (१)=६, कुल पे. २, जैदे. (२४४११.५,
८x२३).
१. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: पुव्वपन्ना विनासंति, गाधा- ३९ (पू. वि. गाधा-५ अपूर्ण से है.)
3
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२. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रा. पद्म, आदि: तिजयपह्नुत्तयासं अद्रुम, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.)
"
५८९५६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६०-५३(१ से २२, २४ से ३१,३४ से ३७,४० से
४६, ४८ से ५९) =७, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२४४११.५, १४X३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रभु महावीरस्वामी के जन्म प्रसंग से राजा सिद्धार्थ के द्वारा किए जानेवाले आतिथ्य सत्कार प्रसंग तक बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४६१ कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५८९५७. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-३(३ से ५)=७, दे., (२४.५४१२, ११४४१).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ तक लिखा है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति:
(-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ की टीका अपूर्ण तक लिखा है व बीच-बीच के
पाठांश नहीं हैं.) ५८९५८. ज्ञानपंचमी कथा व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. जीवराज साही, प्र.ले.पु. सामान्य,
जैदे., (२४.५४११, १३४३७). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी कथा, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: शुक्लकार्तिकपंचम्यां; अंति: पांमी पंचमगति पामे. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: नदी नारी न वैपारी; अंति: करे गसा बजावनहार, गाथा-२, (वि. दूसरी गाथा गुजराती
लिपि में है.) ५८९५९. (-2) स्तोत्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-६(१ से ६)=७, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १०, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवस्सग्गहरं पासं पास; अंति: ह्रीं अहँ नमः,
गाथा-१०. २. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदेपदे, श्लोक-१८. ३. पे. नाम. कलिकुंड सुरपति स्तोत्र, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन महाप्रभावी स्तोत्र, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंति:
तेस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. ५. पे. नाम. बावनाक्षरा पद्मा स्तोत्र, पृ. ११आ-१३आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकार बीज; अंति: क्षमश्च परमेश्वरी,
श्लोक-२८. ५८९६०. (-) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, ५४३८).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्याग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) ५८९६१. (-#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२२४११, ११४३२). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
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४६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: पास जिणंदो नमुस्वामी,
गाथा-१८, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा लिखा है.) ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांतं; अंति: जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ५८९६२. (+#) प्रत्याख्यान सूत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, ?, मध्यम, प्र. ५, ले.स्थल. पटणा, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष की अंतिम संख्या अस्पष्ट है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, ९४२१).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गेए सूरे नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरे. ५८९६३. (+) सामाइक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जेशलमेर, प्रले. श्राव. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, १२४३३).
__सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चउवीसाए तित्थयरा; अंति: अरे समणे तहा संघे. ५८९६४. अर्हन्नाम स्तोत्र व जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १६४३८). १.पे. नाम. अर्हन्नाम स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण;
अंति: सानंदं महानंदैककारणं, प्रकाश-१०. २. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: असौ श्रीकमलप्रभाक्षः, श्लोक-२४. ५८९६५. (-#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. रांणावस, प्रले. मु. हुकमचंद
(गुरु मु. माणिकचंद); पठ. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ९४३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ५८९६८. (+) कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १७३७, श्रावण शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ,
पृ. १९९+२(११६,१४७)=२०१, ले.स्थल. जलालपुर, प्रले. ग. नेमविजय (गुरु पं. अमृतविजय); गुपि.पं. अमृतविजय; राज्ये आ. विजयराजसूरि (गुरु आ. विजयानंदसूरि, तपागच्छ); आ. विजयमानसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४४३६-४०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति:
विद्वजनैराश्रिता. ५८९६९. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०५+२(५८,११३)=२०७, पठ. ग. देवसुंदर
(गुरु ग. मानसुंदर); गुपि.ग. मानसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिका श्लोक का भी टबार्थ दिया गया है.. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२) मंगलं लेखकानांच, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (४८९) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, जैदे., (२४.५४११, १-६४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९.
ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-).
(पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिंहकेसरिकामोदक दृष्टांत तक लिखा है., वि. टीकापुष्पिका में "कल्पसूत्रस्य
दीपिकासुबोधिका संपूर्णा" लिखकर पूर्ण कर दिया परंतु २४ वी सामाचारी तक ही टीका लिखी मिलती है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: जणाविउं एणइ मेलिई, संपूर्ण. ५८९७१. ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४९-६२(१,२४,६७ से १२६)=८७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं, जैदे., (२४४११.५, १५४३५).
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४६३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१५ अपूर्ण से
ढाल-१५०, गाथा-१२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५८९७२. (+#) श्राद्धविधि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८७, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४२८).
श्राद्धविधि रास, उपा. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: सकल जिणेसर प्रणमीई; अंति: सिद्धि सकल सवाई
५८९७३. (+#) रत्नपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३७). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: (-),
(पू.वि. खंड-४, ढाल-१४, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५८९७४. (#) पद्मिनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४२४-२८). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: लब्धिउदय० सफल
सुरकंद, खंड-३ ढाल ३९, गाथा-८१६. ५८९७५. (#) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-३(१२ से १३,३०)=४०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३७, गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ५८९७६. (#) धन्नाजी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३३, माघ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. सायसीण, प्रले.पं. गंगहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भैरुजी सहाय छै., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३-१७X४१). धन्नाजी चौपाई, मु. जीवहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९६, आदि: आदिजिणंद आदिदे प्रणम; अंति: सफल फलै तेहनीतौ
आस, ढाल-५३, गाथा-९०८. ५८९७८. (#) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५-१(२१)=३४, ले.स्थल. घनोघ
बंदर, प्रले. मु. प्रमोदविजय (गुरु ग. खिमाविजय); गुपि.ग. खिमाविजय (गुरु गच्छाधिपति लब्धिविजय); गच्छाधिपति लब्धिविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीनवखंडा पार्श्वनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १७४३७-४२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: घर घर मे मंगलमाला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-२६, गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-२७,
गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८९७९. (+#) अरदास चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १८४३१). अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी; मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: अरीगंजण अरीहतजी; अंति: शुभ
महुरत गुरुवारोजी, ढाल-६४. ५८९८०. (#) सिंहासनबत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३४). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराही श्रीहरषप्रभु; अंति:
(-), (पू.वि. गाथा-४७५ अपूर्ण तक है.) ५८९८१. प्रत्येकबुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३१, भाद्रपद कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. अंजार, प्रले. मु. उदयहर्ष
(गुरु ग. हीरराज, खरतरगच्छ); गुपि.ग. हीरराज (गुरु मु. ललितकीर्ति, खरतरगच्छ); मु. ललितकीर्ति (गुरु ग. लब्धिकल्लोल, खरतरगछ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. १२००, जैदे., (२४४११, १८४४१-४५).
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४६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: महामुनि
गाइयइ ए, खंड-४ ढाल ४५, गाथा-८६२. ५८९८२. मृगांकलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-६(१ से ६)=२२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, १२४३०).
मृगांकलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-२ अपूर्ण से
____ ढाल-२४, गाथा-७ तक है.) ५८९८३. (+) भवणद्वार, संपूर्ण, वि. १८९३, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २२, प्रले. लुणू त्रिवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४४११, १०४३९).
भवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नरक नामो कहे छै; अंति: च्यार विमाण जाणवा. ५८९८४. (+#) तेजसार चौपाई व वाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२१, कार्तिक शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २,
ले.स्थल. नौवा, प्रले. मु. गुलालचंद ऋषि (गुरु मु. केसर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३६). १.पे. नाम. तेजकुमार चौपाई, पृ. १अ-२१अ, संपूर्ण.
मु. गुलालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: रिषभदेव अरिहंतना; अंति: गुलाल. बुधकरि वाणी, ढाल-२३. २.पे. नाम. वाला सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.
मु. गुलालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: माता माहरी अरज सुणो; अंति: गुलाल० मुझ कीजिये. ५८९८५. (+#) तेजसार चौपाई-दीपपूजाविषये, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १४४४०). तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: कुसल० सहु
मनोरथ फले, गाथा-४१५. ५८९८६. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह-शतक-२५, उद्देश-७, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२४४११.५, ९-१२४१०-२८).
भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५८९८७. (+#) स्तवन, पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(२)=१५, कुल पे. २७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३-१६४३९-४४). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह; अंति: तुं जीवजीवन आधारोरे, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन बाललीला स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. पार्श्वजिन स्तवन-बाललीला, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुरगिरि शिखरे सुरपति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९
तक है.) ३. पे. नाम. कायावाडी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिमखोड न लागे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ से है.) ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: शिष्य कनक गुण गाय जी,
गाथा-१४. ५. पे. नाम. सुवधिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: रूपचंदनिरंजन तेरा रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रावण शुक्ल, २, पठ. मु. सदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य,
पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४६५ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदय सुसेवक तास तणो,
गाथा-७. ७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं; अंति: भगतिलाभ० आस्या
मनतणी, गाथा-१८. ८.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय श्रीगुरुपाय; अंति:
भगत भाव प्रसंसीउं, ढाल-२, गाथा-३०. ९.पे. नाम. पंचमी स्वाध्याय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय,
गाथा-७. १०.पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे म्हारे ठाम; अंति: कांति सुख पावै घणो,
ढाल-२, गाथा-२३. ११. पे. नाम. मौनएकादशी तपमाहात्म्य श्रीनेमिजिन स्तवन, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरि समोसर्य; अंति: घणो पामीये
मंगलघणो, ढाल-३, गाथा-२५. १२. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: अविचल लीला लहस्ये,
गाथा-७. १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि द्यौ; अंति: स्वामी अम्ह घणी, गाथा-१०. १४. पे. नाम. अष्टापदतीर्थाधिराज ऋषभ स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थस्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित; अंति: जिनेंद्र वधते नेहरे, गाथा-८. १५. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडारे; अंति: पद्मकुमार०सुख लीजीये, गाथा-८. १६. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदय० गोडीपास थुणो,
गाथा-४. १७. पे. नाम. शेजय स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हारूं मन मोह्यौरे; अंति: कहितां नावे हो
पार, गाथा-५. १८. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. ११आ१२अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबीयानी सेवामै; अंति: उदयरतन०जय श्रीमहावीर, गाथा-५. १९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर नित नमुं; अंति: लावण्य० नेमजी के, गाथा-१४. २०. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: परभाते गौतम प्रणमीजै; अंति: प्रगट्यो परधान, गाथा-८. २१. पे. नाम. गौतम स्वाध्याय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी अष्टक, म. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति: धीर नमे निसदीस, गाथा-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२२. पे. नाम. नवकारसार गीत, पृ. १३अ -१४अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंतिः कुशललाभ ० वंचित लहे, गाथा - १७.
"
२३. पे. नाम. महासती स्वाध्याय पू. १४- १४आ, संपूर्ण.
भरसर सज्झाब, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि भरहेसर बाहुबली अभय अंतिः पडओ तिहुअणे सयले, गाथा-१४.
२४. पे. नाम. पंचेद्रीविषय सज्झाय, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
५ इंद्रिय २३ विषय सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि उतपत मानव एह रे अंति: सुंदर एम कहे सहि ए. गाथा- १५. २५. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १५ अ - १६अ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि सोरठ देश मझार; अंतिः सिंघसौभाग्य नामधी जी,
गाथा - ३६.
२६. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध स्वाध्याय, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण.
सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंतिः पुण्य थकी फ आश रे, गाथा - १६.
२७. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थं स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो, अंतिः समय० बंदणा वार हजारजी, गाथा ५.
५८९८८. (+) सदयवछ सावलिंगा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४४११, १४४४९). सदयवत्स सावलिंगा उपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: स्वस्ति श्रीसोहगसुजस अंति कीज्यो दया दयाल, गाथा- ४४७.
५८९९०. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १३, प्र.ले. श्लो. (९२८) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैवे. (२४.५४११, ३x२९)
"
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४
कल्याणमंदिर स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मंगलीक भणी: अंति: सुख प्रतिइ पहुंचइ.
५८९९१. (१) श्रावक अतिचार व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-७ (१ से ७) = १३, कुल पे. १२, प्रा. पं. केसरविजय, पठ श्रावि जेठी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२x२९).
१. पे नाम, आवक अतिचार, पृ. ८अ १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू. वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. श्रावक मनोरथ पू. १५-१६अ, संपूर्ण
श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो मनोरथ समणोपासण; अंति: ममण मुझनें ज्योहो..
३. पे नाम, हरियाली गुहली, पृ. १६अ, संपूर्ण.
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प्रहेलिका पद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: वनमे तो जाई राज वस्त; अंति: कहो नहीतर देसूं गाली, गाथा- ९.
४. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुंली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे मारे देशना दो अंतिः अमीवकुंबर ईन पर भणे, गाधा-८. ५. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवीर समोसर्या, अंति: पामीजे देवविमान,
६. पे. नाम क्रोधोपरि स्वाध्याय, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण.
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गाथा - ९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिइं भोला; अंति: भावसागर०
आणो पासे रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. मानोपरि स्वाध्याय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करस्यो कोई; अंति:
भावसागर० चोमासे हो, गाथा-८. ८. पे. नाम. माया उपर स्वाध्याय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: भावसागर० सुख
निर्वाण, गाथा-७. ९. पे. नाम. लोभ परित्याग सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीई प्राणीया; अंति: भावसागर०
सयल जगीस रे, गाथा-८. १०.पे. नाम. मौन एकादशी सज्झाय, पृ. १९अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लेसी,
गाथा-७. ११. पे. नाम. मौन एकादशी स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. १२. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुद दिन पांचम; अंति:
ऋषभदासकियो अवतार तो, गाथा-४. ५८९९२. कान्हड कठियारानी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १२, पठ. मु. अचलदास; मु. कचरदास (गुरु मु. फतैचंद); गुपि. मु. फतैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ११४२९).
कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमूं सदा; अंति:
मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. ५८९९३. जंबूस्वामी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. कुल ग्रं. ३७५, जैदे., (२२.५४११, १२४३७).
जंबूस्वामी चरित्र, मा.गु., प+ग., आदि: एकदा समें श्रीमहावीर; अंति: केवल पामी मुगते गया. ५८९९४. (+#) दामनक चौपाई, संपूर्ण, वि. २००२, चैत्र कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. नागौर, प्रले. नथमल व्यास,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १७४५०). दामनक चौपाई, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९९९, आदि: परम धरम धारक प्रभु; अंति: चोथमल० मोजा
माणे रे. ५८९९५. (+) मल्लिनाथ चौपाई, अपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(१,१२)=११, ले.स्थल. कामध, प्रले. मु. हीरालाल (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२३.५४११.५, १६x४८).
मल्लिजिन चौपाई, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हीरालाल०इण पर गाय कै, ढाल-२८, (पू.वि. प्रारंभ के
___ पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-५ अपूर्ण से है.) ५८९९६. (+) पद, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९३, वैशाख कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ७१,
ले.स्थल. कलोल, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५४११.५, २२४४५). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, म. चौथमल, पुहि., पद्य, आदि: रिषभदेव भगवान करोतो; अंति: चौथमल तो निहालना, गाथा-५.
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४६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९८५, आदि: जदुपति महाराज तोरण; अंति: चौथमल० आनंद
वर्तावना, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुशांतिजिणंदजी औ; अंति: चौथमल मेरी चावना, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: संयमधारी महाराज संयम; अंति: चौथमल० है मेरी भावना, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: दुनिया में कैसे वीर; अंति: चौथमल० मान किसी दिन, गाथा-९. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहि., पद्य, आदि: यों काई पंथ चलायो; अंति: माय बहु ढोल बजायो जी, गाथा-७. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: कोडा घाल रह्या भारत; अंति: सतगुरु लेवो बचाय, गाथा-३. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
__ पुहिं., पद्य, आदि: सुनेरी मैंने निर्बल; अंति: बल हारे कोन हरनाम, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: काया की रेल रहल से; अंति: कर लो यतन अपारो, गाथा-६. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-परनारी विषे, पुहि., पद्य, आदि: परनारी का रूप मत देख; अंति: पांव में घुस जायगा, गाथा-५. ११. पे. नाम. राजीमतीसती पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
राजिमतीसती पद, मु. राममुनि, पुहिं., पद्य, आदि: कालो वींद तो किसा; अंति: राम मुक्ति के माई, गाथा-६. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-काया विषे, मु. चौथमलजी, पुहि., पद्य, आदि: चेतन यह नर तन हर वार; अंति: चौथमल० तो सुध
भावना, गाथा-६. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: हे प्रभु पार्श्वजिण; अंति: चौथमल० आनंद वरतावना, गाथा-७. १४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९८०, आदि: सदा शुभकारी रे; अंति: चौथमल० आशा मारी रे,
गाथा-७. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहि., पद्य, वि. १९८१, आदि: प्रभु प्रगटे अवतारी; अंति: चौथमल० मंजारी रे, गाथा-७. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद-माया विषे, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. संतोष, पुहिं., पद्य, आदि: माया को तू अपनी कहै; अंति: संतोष० मालूम नहीं, गाथा-५. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद-व्यसन विषे, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: मत कर नशा कहना मान; अंति: ज्ञान सुनानेवाले, गाथा-६. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनिंदा विषे, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: करके बुराई और का; अंति: पाप का भागी बनें, गाथा-५. १९. पे. नाम. जवाहिरमुनि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
जवाहरमुनि स्तुति, मु. हंसमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: आनंद ही आनंद वरतर है; अंति: हंस० चित को देना, गाथा-४. २०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४६९ मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्हें यां से एक; अंति: चौथमल फिर आना पडेगा, गाथा-५. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
फकीरा, पुहि., पद्य, आदि: बाबू बन गये जेंटलमेन; अंति: फकीरा साफ सुनानेवाले, गाथा-७. २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
उपा. पुष्करमुनि, पुहि., पद्य, आदि: मानो मानो हमारा केना; अंति: पुष्कर० में धारी रे, गाथा-९. २३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
फकीरा, पुहिं., पद्य, आदि: मारे मन भाया हो; अंति: फकीरा हो स्वामी, गाथा-७. २४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. नेमिचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम चलो मोक्ष में; अंति: नेममुनि० शिवपुर राज, गाथा-७. २५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आ. चंपकमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: तुमे जेनवीरो जगाना; अंति: चंपक० बहाना पडेगा, गाथा-५. २६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी पटा लिखा दो; अंति: भुदरदास० पंथ का गेला, गाथा-३. २७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-रावण प्रतिबोध, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं., पद्य, आदि: कहे रावण से यों सीता; अंति: मुनी सूर्य०जब अवधपती, गाथा-६. २८. पे. नाम. सीता रावण संवाद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं., पद्य, आदि: अरी सीता समझ ले जरा; अंति: सूर्यसमजे कुमती छाई, गाथा-६. २९. पे. नाम. रावण मंदोदरी संवाद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. सूर्यमुनिजी, पुहि., पद्य, आदि: कहै मंदोदरी मेरा सुन; अंति: सूर्य० विशुद्ध सिया, गाथा-६. ३०. पे. नाम. श्रेणिक दृष्टांत पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. सूर्यमुनिजी, पुहि., पद्य, आदि: पूछे श्रेणिक अति; अंति: सूर्यमुनि ज्ञान दिया, गाथा-७. ३१. पे. नाम. तमाखू सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-तमाखू परिहार, मु. हंसमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: मत पीवो मारा राज; अंति: हंस० ले जावे
तमाखुडी, गाथा-९. ३२. पे. नाम. आधुनिक नारी पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मैं अंगरेजी पढ गई; अंति: तव में गायन गाऊंगी, गाथा-७. ३३. पे. नाम. औपदेशिक पद-बुढापा, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. सूर्यमुनिजी, पुहि., पद्य, आदि: हाय हाय बुढापा खोटा; अंति: सूर्य० धर्म का ओटा, गाथा-७. ३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. सूर्यमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: बह विध समजाऔ बोध; अंति: कही प्रेमधर बानी हो, गाथा-७. ३५. पे. नाम. दृढप्रहारी सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. सूर्यमुनि, पुहिं., पद्य, वि. १९८७, आदि: यों शास्त्र सुनावे; अंति: वदनावर में गाय हो.
गाथा-१४. ३६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं., पद्य, आदि: जगदीशनाथ तुम ही एकहु; अंति: सूर्य० रक्ष वडारे हो,
गाथा-४. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
क. नागर, पुहिं., पद्य, आदि: मृगावती के प्रीतमजी; अंति: नागरदास तुमारोवारी, गाथा-४. ३८. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मीराबाई, रा., पद्य, आदि: मीरा ऊचा राणाजीरा; अंति: मीरा० में होवे वास, गाथा-१५.
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३९. पे नाम, देशभक्ति गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण.
"
श्राव न्यामतसिंह, पुहिं., पद्य, आदि जागो जागो भारतवासी, अंतिः न्यामतः दुख कारना रे, गाथा-४. ४०. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि वारी जाऊ रे सावरीया, अंतिः जिनहर्ष० तारणा रे, गाथा-३.
"
४१. पे. नाम. श्रमणोपासक गुण सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण
मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदिः श्रमणोपासक के सदा; अंति: गुण ऐसे होने चाहिए, गाथा-५. ४२. पे. नाम. सत्यासत्य सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. राममुनि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम न वेसे पंच में; अंति: मुनीराम०तजो तो चाहतु, गाथा- ११.
४३. पे नाम, पांच इंद्रिय सज्झाय, पृ. ७अ संपूर्ण
गाथा-५.
४५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अब हम कीनी ज्ञान; अंति: सीध नवनीध पाया रे, गाथा-५.
४६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण
५ इंद्रिय सज्झाय, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: जंजाली जीवडा कांई; अंति: रे कहे दास कबीर, गाथा-४. ४४. पे नाम, चोपड सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण,
चौपटखेल सज्झाय, मु. जगनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी चोपड सो नर खेले; अंति: जगनाथ० सरण तुमारी रे,
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सा. रतनकुंवर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम कीनी ग्यान, अंतिः रतनकुंवरजी० गाई है, गाथा- ११.
४७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: नैया लगादो मेरी पार; अंति: चौथमल०राणी के कुंवार, गाथा- ६.
४८. पे. नाम. श्रीमंधरजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर, अंतिः पद्मविजय० मन अतिनूरो,
गाथा-७.
४९. पे. नाम. रावण मंदोदरी संवाद, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम सुणो पियाजी एक; अंति: हीरालाल० होवणहारी, गाथा - ५.
५०. पे. नाम. गुरुविहार विषे गंहुली, पृ. ८ अ, संपूर्ण.
गुरु विहार गहुली, मा.गु., पद्य, आदि आदिते आप विहार करीने; अंति: मुनिवर सातामा रहेजो, गाथा- १२. ५१. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मु. मगन, मा.गु., पच, आदि: शीतलजिन अरजी सुण, अंतिः मगन० निवाजे जिंदजी, गाथा-५.
५२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
मु. हरष, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन जीवन है तेहरा; अंति: हरख भाणपुर लेहरा, गाथा - ६.
५३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: अवधू ऐसा ज्ञान विचार, अंतिः कबीरा० के अंग न भेटी, गाथा ४. ५४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु. रामरतन, पुहिं. पद्य, आदि: सतगुरु केरी वाणी; अंतिः भरम अंधेरो भागो रे, गाथा-४.
५५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
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हिं., पद्य, आदि: मेरी अरज सुणो महाराज; अंति: दिल में समानेवाले, गाथा-४.
५६. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
केशवलाल शिवराम, मा.गु., पद्य, आदि: जरी सामे जोवोनी; अंति: केशव ० नीर छांटो छरररर, गाथा-५. ५७. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
मु. सोहनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: मत करो दम का भरोसा; अंति: सोहनलाल० पद पाएगा, गाथा-४. ५८. पे. नाम. हाडा राजानो संवाद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
हाड़ा राजा संवाद, पुहिं., पद्य, आदि: सुनो दीली तखत घरनार; अंति: चुकेली गार रहे दुर, गाथा-३. ५९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: सच पूछो तो हमारा कोई; अंति: जिसका कोई मोह नहीं, गाथा-८. ६०. पे. नाम. कन्याविक्रय दोहा, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा-कन्याविक्रय, पुहिं., पद्य, आदि: बेटी पर हाय जरका; अंति: फसाना नहीं अच्छा, गाथा-७. ६१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण..
मु. पृथ्वीराज, पुहि., पद्य, आदि: मे तो जिगर से चाहती; अंति: पृथ्वीराज०मेरी प्रीत, गाथा-४. ६२. पे. नाम. कलियुगप्रभाव गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: पंचा में फतुर पड गयो; अंति: हारे नदी से चाल भणकी, गाथा-६. ६३. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सब गुन लायक; अंति: खोडीदास० उदरियारे, गाथा-११. ६४. पे. नाम. पिंगलाभर्तृहरि संवाद सज्झाय, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: हाय हाय रे सहेशेजीओ; अंति: देनी मैया पिंगला, ढाल-४. ६५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. मोतीलाल ऋषि, रा., पद्य, आदि: थे धर्मण वाया कथलो; अंति: मोतीलाल सुणाई जी, गाथा-७. ६६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निद्रा विषे, मु. चोथमल, रा., पद्य, आदि: थेसुणजो श्रावक; अंति: चोथमल रंग वरसायाजी,
गाथा-७. ६७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-किए का फल, मु. बलदेव, पुहिं., पद्य, आदि: हा तो के किये कर्म; अंति: बलदेव०तलवार क्या
करे, गाथा-४. ६८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, रा., पद्य, आदि: एजी थाने आइ अनादि; अंति: सुगन मन सोचो वो सही, गाथा-४. ६९. पे. नाम. देशभक्ति गीत, पृ. ११आ, संपूर्ण.
श्राव. न्यामतसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: सुनिये भारत के सरदार; अंति: न्यामत० दिखानेवाले, गाथा-४. ७०. पे. नाम. देशभक्ति गीत, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. देवीलालजी महाराज, पुहिं., पद्य, आदि: मुसलमान या हिंदु सभी; अंति: देवीलाल० बतलाते हैं, गाथा-७. ७१. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: विरामां सुवेगो मिलवा; अंति: हीरालाल० को घर वसाजे, गाथा-५. ५८९९७. स्तोत्र, छंद व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ११, दे., (२४.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. शारदास्तोत्र अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी; अंति: निःशेष जाड्यापहा, श्लोक-९. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐकारबिंदु संयुक्तं; अंति: सो दिन दिन करत पुकार, श्लोक-११. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणि; अंति: शांतिकुशल० ताहिरी, गाथा-३५. ४. पे. नाम. शारदामात स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
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४७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: सहजसुंदर० सरस्वती, ढाल-३,
गाथा-१५. ५. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: वनारसी०तज संसार
कलेस, गाथा-१०. ६. पे. नाम. शारदा अष्टक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., पद्य, आदि: सरस्वत्यं नमस्यामि; अंति: करिस्यामि न संशयः, श्लोक-८. ७.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, वि. १९३७, वैशाख शुक्ल, ३, ले.स्थल. फलोधी, पे.वि. पत्र चिपके होने के
कारण प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है.
पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकुरुकंडदड; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-११. ८. पे. नाम. यक्षाधिराज माणिभद्र छंद, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तत सेवित सुभ; अंति: माणिभद्र जय जय
करण, गाथा-२३. ९. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण.
मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती, अंति: लाख लाख लीला लहे, गाथा-२७. १०. पे. नाम. भारती अष्टक, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधावी० स्तुतिमपि, श्लोक-९. ११. पे. नाम. शनिसर छंद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो; अंति: वलि वलि एम वखाणी, गाथा-१७. ५८९९८. (+) मेतारजमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १७७३८).
मेतारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सासणनायक समरीयै; अंति: कीयो आसोज
मास अभ्यास, ढाल-२०. ५८९९९. (+#) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६८-१५८(१ से १२,१४ से ३०,३२ से १३१,१३८,१४० से १६७)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, ९x१९).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ५९०००. (+#) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १३४३५). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-५१ से
ढाल-१३, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५९००१. (+#) दानाधिकारे प्रियमेलकतीर्थप्रबंध सिंहलसुत चउपड़, संपूर्ण, वि. १७१९, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १०,
प्रले. ग.खेमसागर (गुरु ग. जिनसागर); गुपि.ग. जिनसागर; पठ. मु. भावसागर (गुरु मु. ज्ञानसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४४०). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुसद्गुरु पाय; अंति:
पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२३०, ग्रं. ३०५. ५९००२. (+) श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. दमणबिंदर,
प्रले. पं. नरोत्तमविजय गणि; पठ. श्रावि. अमृतबाई कर्मचंद श्रीमाली; अन्य. श्रावि. अचरतबाई धर्मचंद श्रीमाली; श्राव. कर्मचंद धर्मचंद श्रीमाली, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीआदिश्वर प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १३४२७).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: हुइ पक्ष दिवस माहि. ५९००३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८८९, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. स्याणा, प्रले. पंन्या. मोतीविजय;
अन्य. पं. खिमाविजय गणि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ८x२४-२६).
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४७३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: भद्र० गुरु
इम भणे ए, गाथा-७२. ५९००४. (+) १४ गुणठाणा २१ द्वार, संपूर्ण, वि. १८९६, माघ शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि.सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१३४३५-३८).
१४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखण २; अंति: २१ द्वार वर्णव्या ते. ५९००५. (#) जंबूद्वीपादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १९४४०-४५). जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पांच सै छबीस जोयण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., १० वेदना विचार तक लिखा है.) ५९००६. (+#) विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, २२४३९-४२). बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कर्मानुसार जीवपरिणाम अपूर्ण से रत्नविचार अपूर्ण
तक है.) ५९००७. सौभाग्यपंचमी तथा मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले.पं. सुगालचंद्र,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४३९). १.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथां, (२)सकल मंगलवेलि वधारवा; अंति:
सिद्धि नवनिधि पामीजइ. २.पे. नाम. मौनएकादशीदिन आराधन विषये सुव्रतऋषि कथा, पृ. ५आ-९आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: वांछितार्थप्रदायिने; अंति: ए पर्व विशेषज्ञ कहिउ. ५९००८. (#) जिनकुशलसूरि पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २)=९, कुल पे. २८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२३.५४११.५, ११४२८-३२). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनलाभसूरीस० सहु काज, गाथा-५,
(पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल गुरु देख के; अंति: लालचंद०सेव मोहि दीजै, गाथा-३. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण... जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादोजी दीठांदोलत; अंति: जिनरंगव्दादाजीनी होडि,
गाथा-८. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिगीत, मु. गुणविनय, मा.गु., पद्य, आदि: दादा पूरि हो मन वंछि; अंति: गुणवि०निजरि करि जोवै,
गाथा-४. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
आ. जिनरंगसूरि, पुहि., पद्य, आदि: कुशलगुरु तुसाहिब; अंति: पूरन जिनरंगसूरि सहाई, गाथा-३. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गच्छपति पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: गच्छपति खरतरगछसिणगार; अंति: जिणचंद० कमल मै वीनती, गाथा-५. ७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण..
मु. आनंदचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कुशलसूरिंद सहाई हमा; अंति: आणंदचंद दिन होत वधाई, गाथा-४. ८. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, प्र. ४आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनकुशलसूरिस्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसुरीसर; अंति: चंद० हम है आस तुमारी,
गाथा-३. ९.पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद-सांगानेरमंडन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: धन आज हवो शुभधामी; अंति: संघ कीजै उदय जिनचंदा,
गाथा-५. १०.पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५अ, संपूर्ण..
जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनभक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण देज्यो सदगुरुजी; अंति: हो जिनभक्ति सहाई, गाथा-५. ११. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण..
जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: देरावर दादो दीपतो रे; अंति: तूंहिज प्राण आधार रे,
____ गाथा-४, (वि. कर्ता का उल्लेख नहीं है.) १२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: करै वारोवार रे लाला,
गाथा-९. १३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: समरण होत सहाई कुशल; अंति: चंदअक्षय नित पाई, गाथा-३. १४. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, मागु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवकजन; अंति: जिनचंद० मंवंछित फलजो, गाथा-११. १५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि फाग, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: फाग करो नितमेव कुशल; अंति: जिनचंद० पूरण जयकर की, गाथा-७. १६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कुशलगुरु ध्याईयै; अंति: रंग० बुरा दूरी वारो, गाथा-४. १७. पे. नाम. जिनदत्तजिनकुशलसूरिदादा पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मा. जिनरंगसूरि, पुहि., पद्य, आदि: दादौ सेवका सुख पूरइ; अंति: जिनरंग० अधिक पडू रे, गाथा-३. १८. पे. नाम. जिनदत्तसूरिकालक्रम पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. आलमचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समरूं श्रीजिनदत्तसूर; अंति: विनवै सेवक आलमचंदा, गाथा-६. १९. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सद्गुरुजी तुमे सांभल; अंति: लाभउदै सुख सिद्ध जी, गाथा-११. २०. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: सदगुरु को ध्यान हृदै; अंति: करज्यो गुरु मेरे, गाथा-४. २१. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु श्रीजिनकुशल; अंति: जिनचंद्रसु सुरतरू, गाथा-६. २२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: महिर करीने हो दरसण; अंति: अक्षय सदा जिनचंद, गाथा-५. २३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, रा., पद्य, वि. १८५०, आदि: परतिख परचा पूरवै दाद; अंति: जिनचंद०चित्त मझार हो, गाथा-९. २४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: आयो आयो रे समरत्ता; अंति: परमानंदपद पायो जी.
गाथा-३. २५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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जिनकुशलसूरि गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदिः आज तो आनंद मेरे आई, अंति: लखमी० लगति सुहावना, गाथा- ६.
२६. पे. नाम. सद्गुरु पद, पू. १०आ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि पद, क. आलम, पुहिं., पद्य, आदि: सद्गुरु मेरे तुंही; अंति: आलम सदा तिहारा है, गाथा-४. २७. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद. पू. ११अ संपूर्ण.
क. आलम, पुहिं., पद्य, आदि: नित कुशलसूरीसर ध्याई, अंति: आणंद अधिक वढाईयै, गाथा-४.
२८. पे नाम, जिनकुशलसूरीश्वर पूजाष्टक, पृ. १९अ ११ आ. संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. सं., प+ग, आदि: सकलगुणगरिष्टान् अंति: १२ जापात् सिद्धिः.
५९००९. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १८९२ श्रावण शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९ कुल पे. २, पठ. कालु कोचर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४४११, ७-११x४०).
१. पे. नाम. श्रावकपाक्षिक अतिचार, पृ. १आ- ९अ संपूर्ण.
"
आवक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु.. गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि य अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् २. पे. नाम. श्रावकपाक्षिक तप, पृ. ९अ, संपूर्ण.
""
पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अबोलो रहे" पाठ तक लिखा है.)
५९०१०. ५ बोल, संपूर्ण, वि. १७९४, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. तिमरि, पठ. पं. हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे.,
(२२x११, १३x४३).
५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नरकनौ द्वार कहिस भवन, अंति: फरस भोगवता विचरै छै.
५९०११. (A) नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११,
१५X३२-४४).
नवतत्व बोल, मा.गु, गद्य, आदि: जीवतत्त्वना भेद ५६३: अंति: साडे पंदर भेदै सिझे.
५९०१२. ज्ञानपंचमी देवबंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८८२ आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैवे. (२३.५४११.५, १४४३५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति:
विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५.
५९०१४. (+) शत्रुंजय रास आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१५ (१ से १३, १६, २०) = ८, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३.५x११, १०x२७).
१. पे नाम, बंदि सूत्र, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं,
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, ( पू. वि. गाथा- ४५ से है.) २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास. पू. १४अ १७अ-२२अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पर नमी अंतिः समयसु० जात्रा फल होइ, ढाल-६, गाथा- ११२, (पू.वि. ढाल -२ गाथा- २३ से ढाल -३ गाथा-७ अपूर्ण तक व ढाल -५ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.)
३. पे. नाम. पाचम लघु स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो, अंतिः ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा ५.
४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन- जेसलमेर, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद हो ऊपर लो, अंति: हुं सेवक प्रभु ताहरो, गाथा- ७.
५. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२आ- २३अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कनकमूरत, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: जैसाणे जिनराज हो लाल; अंति:
कनकमूरति०जिन आगल भणे, गाथा-१५. ५९०१५. (+#) पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. मेघविजय (गुरु ग. नेमिविजय); गुपि.ग. नेमिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वचरण प्रसादात., त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, २४३६).
तपागच्छीय पट्टावली, ग. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानजिनशासन; अंति: श्रीविजयदयासूरी६४.
तपागच्छीय पट्टावली-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानशासनजिन; अंति: श्रीविजयदयासूरी६५. ५९०१६. (+) बीसविहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२३-३०). विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: पुंडरीकणी नगरी वखाणी; अंति: (-),
(पू.वि. चंद्राननस्वामी गीत गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५९०१७. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-७(४,७ से १२)=८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५४१०.५, ११-१४४४५). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. त्रुटक रूप से मध्यभाग अपूर्ण तक है.) ५९०१८.(+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-२६(१ से २६)=८, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२३.५४१०.५, ११४२३). १. पे. नाम. चंदनमुनि सज्झाय, पृ. २७अ-३०आ, संपूर्ण. चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहै विजया प्रतै; अंति: चंद्रविजय०ते सुख लहै,
गाथा-१०. २. पे. नाम. आत्महित सज्झाय, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: क्या करूं मंदिर क्या; अंति: आ दुनिया में फेरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, पुहि., पद्य, आदि: अंगीनो संगी साहिबा; अंति: वैकुंठारा वासा, गाथा-४. ४. पे. नाम. राजुलरहनेमि सज्झाय, पृ. ३१आ-३२आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: देव० सुख लहैस्यै रे,
गाथा-१२. ५. पे. नाम. अरणकमहाऋषि सज्झाय, पृ. ३२आ-३४अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणक जाण; अंति: हरषकीरत कीर ईम भणै,
गाथा-२३. ६. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ३४अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव गणधर तिर्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११
अपूर्ण तक है) ५९०१९. (+) पार्श्वनाथ व महावीरजिन गग्गर निसाणी, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रावण कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,
प्रले. मु. रुपविजय (गुरु मु. अमरविजय); गुपि.मु. अमरविजय (गुरु मु. हर्षविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३०-३४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ गग्गरनीसाणी, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: गुण जीनहर्ष कहंदा है,
गाथा-२८. २. पे. नाम. बंभणवाडि वीरजिन गग्गर नीसाणी, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४७७ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाता सरसती सेवक; अंति:
हर्षमाणिक०पाप तन पार, गाथा-३६. ५९०२०. (#) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४१(१ से ४१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४१२, १०४३०).
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमारदृष्टांत से हरिणैगमेषी दृष्टांत तक है.) ५९०२१. (+) बावीसपरिसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. रोतासगढ, प्रले. आत्माराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११, १४४३५-४०). २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आदि दे; अंति: रायचंदो० भलै
बारोजी, ढाल-२२. ५९०२२. इलाकुमार चौपाई व औषध मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. माडिकाग्राम,
प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४३३). १.पे. नाम. ईलाकुमार चौपाई, प्र. १अ-७आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा; अंति: ज्ञान
दर्शन अजूआले, ढाल-१६, गाथा-१८७. २. पे. नाम. औषध मंत्र संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण.
__औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५९०२३. (#) पुण्यसार चौपाई, कवित्त व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से २,६)=७, कुल पे. ४,
प्रले. पं. ज्ञानविजय गणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११,१५४३९). १. पे. नाम. पुण्यसार चौपाई, पृ. ३अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: (-); अंति: इम भणै० नवनिधि थाय,
ढाल-९, गाथा-२०२, (पू.वि. गाथा-२९ से ९२ व गाथा-११७ से है.) २.पे. नाम. साधुगुण पद, पृ. १०अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है.
पुहिं., पद्य, आदि: साधतणि एसीनमुखथी; अंति: चलामणा० जिनवर चरण, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: अंगन में यो तिलो वरं; अंति: (-),
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९०२४. ध्वजारोपण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२४४११, ११४३६).
ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भुमी; अंति: समयो वान्यमय प्रोक्त. ५९०२५. (#) चोतीसअतिशय स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२४.५४११, ९४३३). १.पे. नाम. चोतिस अतिसय स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.
३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित; अंति: पय सेव मांगु भवभवे, गाथा-२१. २.पे. नाम. मंगलावृती स्वाध्याय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
मंगलाष्टक, कालिदास, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पंकज विष्टरो; अंति: कुर्वंतु नो मंगलम्, श्लोक-९. ३. पे. नाम. षट्सवर गीत, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमने कहे; अंति: मुगति जीम महीला वरो, गाथा-६. ४. पे. नाम. सरस्वती स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
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४७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्,
श्लोक-१३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलमंगलमंजुलमालिन; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२
अपूर्ण तक है.) ५९०२६. रत्नपालरत्नावती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४११.५, १८४३२-३८).
रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति:
(-), (पू.वि. ढाल-७ की गाथा-१४ तक है.) ५९०२७. (#) साधुवंदना व अनाथिमुनिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८६, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. साधवंदना, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: जैमलजी एह
तरणरोडावै, गाथा-१०५. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेणिक रैवाडी; अंति: समयसुंदर० बे करजोडि, गाथा-९. ५९०२८. (#) २४ तीर्थंकर नाम आदि विवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वीगोद,
प्रले. मु. भीमराज; अन्य. मु. गुलाबचंद ऋषि; मु. हीरानंद; मु. सुरतराम ऋषि; मु. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४४१). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: श्रीऋषभदेवजी१ सरवारथ; अंति:
१४हजार साधु जती हुवा. ५९०२९. (#) नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१८(२ से ११,१३ से १४,१६ से १९,२१,२३)=६, पू.वि. बीच-बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, ११४३०). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी; अंति: (-),
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ५९०३०. दानशीयलतपभावना व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८०७, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल
पे. २, ले.स्थल. साढावास, प्रले. पं. गंभीरसौभाग्य; राज्यकालरा. आणंदसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १५४३३). १.पे. नाम. दानशियलतपभावना विचार, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर०हियड धरो
रे, ढाल-४, गाथा-१०३, (पू.वि. अधिकार-१ प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण.
उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-७३. ५९०३१. (+) धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७-१(१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने तथा पाठानुसंधान असंबद्धता से पत्रानुक्रम काल्पनिक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १४४४३).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ५९०३२. पुण्यसार चौपाई व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
ले.स्थल. कटालीया, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि (बृहत्लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९९९) जादृसं पूस्तकं द्रीष्टा, जैदे., (२३.५४११,१९४४२). १.पे. नाम. पूण्यसार चौपाई, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
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४७९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमु; अंति: इम भणै०
नवनिधि थाय, ढाल-९, गाथा-२०५. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जे कछु चिंत मेटत कि; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. ५९०३३. (+) आदीसरजी चोढालीयो व छतीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें., दे., (२४.५४११, १३४३३-३६). १.पे. नाम. आदीसरजीरो चोढालीयो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर पहिलो अरिहंत; अंति:
कमलहर्ष०भव आपणो गिणी, ढाल-४, गाथा-५३. २. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उपदेशरसालछत्तीसी, मु. रुघपति पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण नमी करी; अंति: समज्यां मंगलीक माल,
गाथा-३७. ३. पे. नाम. संग्रहछत्तीसी, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: संग्रह छतीसी सांभल; अंति: नही संदेह लिगार जी, गाथा-३६. ५९०३४. (+) गुणावली कथा, अपूर्ण, वि. १८७९, माघ शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. गुवालेर,
प्रले. मु. परसराम ऋषि (गुरु मु. परमानंदजी ऋषि); पठ. श्राव. दोलतराव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२-१५४४०-४५). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: ज्ञान० मनवंछित पावंत, ढाल-१६,
(पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण से है.) ५९०३५. (#) तपादि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६४, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ७, ले.स्थल. गुढानगर,
प्रले.पं. सुग्यानविजय (गुरु पं. जीवणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतजी प्रशादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १३४२४-२८). १.पे. नाम. तप स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: जिम पामो निचय निरवाण, गाथा-८. २. पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम गण; अंति: हेमविमलसूरी सीसइ कही, गाथा-१५. ३.पे. नाम. प्रत्याख्यान स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पचखि पचक्खाण परभाति; अंति: तीर्थ
अभिध्यान धरता, गाथा-७. ४. पे. नाम. सचित अचित सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरुनु हवेलीजे; अंति: सुगडांगवृत्तिथी लहइ,
गाथा-५. ५. पे. नाम. सचित अचित स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल
करजोडी कहे, गाथा-१८. ६. पे. नाम. चौदगुणठाणा स्वाध्याय, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वांदी वीरजिणेसरदेव; अंति: धरसी काज सरसी तेहनो, गाथा-२२. ७. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मंत्र संग्रह , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
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५९०३६. स्तवन व सज्झाव संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४ वे. (२३४१२, १३x२६).
१. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मिजिन स्तवन, मु. रंगवल्लभ, मा.गु, पद्य, आदिः समुद्रविजय सुत नेम, अंतिः रंगवल्लभ० उतारौ भवपार, गाथा-५. २. पे. नाम. दादाश्री जिनदत्तसूरिजी गीत, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, रा., पद्य, आदिः सदगुरुजी थे सांभलौ श, अंति: लाभोदव सुख सिद्ध हो, गाथा- ११. ३. पे. नाम. सामायक बत्तीसदूषण कथन स्तवन, पृ. २अ ५अ, संपूर्ण.
सामायिक ३२ दोष सज्झाय, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि : भवियण उपगारह भणी; अंति: जिनलब्धि० सुख सासता, गाथा - ३५.
४. पे. नाम. जिनचैत्य जिनप्रतिमा शाश्चतसंख्या स्तवन, पृ. ५अ ६आ, संपूर्ण
शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभानन व्रधमान चंद, अंति: समयसुंदर मुझ
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परणाम ए, ढाल - ५, गाथा- १८.
५९०३७, (+) रत्नपालरत्नावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१० (१ से १०) =५, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२३.५x११, ११४२७-३०).
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-१ढाल-९ गाथा-९ अपूर्ण से खंड-२ ढाल - १ गाथा-९ अपूर्ण तक है.)
५९०३८. (+) उपदेशसित्तरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ८०, जैदे. (२३४११, ९X३२-३८).
५९०४०. महावीरजिन २७भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २४४११, १४X३१).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य, आदि उतपति जो जो आपणी मन, अंतिः रंगइ० कहइ श्रीसार ए, गाथा - ६८.
महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ग्रामस१ स्त्रीदशौ २, (२) एहज जंबुद्वीपे पछिम; अंति: विषे आव उपना के
५९०४१. (+) रोहिणीतप कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४४११.५, १२४३०).
"
रोहिणीतप कथा, रा. गद्य, आदि: (१) उच्छिम सुंदर, (२) उपराड अनै विरुऊ जूठो; अंतिः क्षय करी मुगतै गया. ५९०४२. (+) आणंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५X११.५, १७x४९-६६ ).
आनंदधावक संधि, मु. ज्ञानचंद, मा.गु, पद्य, आदि: प्रणमीय पव श्रीवीर अंति: (-), (पू. वि. ढाल १२ गाथा- २ तक है.)
५९०४३ (+) अंतरिक्ष पार्श्वनाथनो छंद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे., (२३×१०.५, १२x२७-३०).
पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि; सरसति मात मया करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४८ तक है.)
५९०४४. अवंतिसुकुमाल चौढालीयो व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जै. (२४४१०,
זי
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१३-१५X३५-३९).
१. पे नाम, अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण,
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्य सूहस्ती, अंतिः शांतिहरख सुख पावै रे, ढाल १३,
गाथा - १०३.
२. पे. नाम. थंभण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- स्थंभनतीर्थ, मु. जिनसुख, मा.गु, पद्य, आदि: वामानंदन सिव पथ; अंतिः ए उपगार करीजै राज,
गाथा ५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४८१ ५९०४५. भगवतीसूत्र सह बालावबोध-पीठिका, अपूर्ण, वि. १९११, चैत्र शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१,६)=५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. शंकर गुसाई यति, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, १७४५१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताण० सव्व; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र
नहीं हैं. भगवतीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक
भाग अपूर्ण से है.) ५९०४६. (+) १२ व्रत की टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १६४३६).
१२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमदेव अरिहंत अढार; अंति: कल्याणक वारर संभालवा. ५९०४७. (+) महावीरस्वामीना पांच वधावा, संपूर्ण, वि. १९११, चैत्र शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. सा. मोतीबाई आर्या __(गुरु सा. गंगाबाई); गुपि.सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११.५, ११४३३).
महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदि जगजननी भूमाणि; अंति:
दीपविजय० फल महाराज, ढाल-५. ५९०४८. उपदेशसित्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्रावि. इंदरबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११, ११४२७).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अति: इम कहे श्रीसार ए,
गाथा-७१. ५९०४९. (+) नमीराजारी ढाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३६).
नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: शाशननायक सिमरता; अंति: आसकरण०
तीथरोनाव ए, ढाल-७. ५९०५०. (+) नव्वाणुंप्रकारी पूजा व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७७, वैशाख कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(५ से
६)=५, कुल पे. २, प्रले. मु.रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४२८-३३). १.पे. नाम. सिद्धाचल नवनवति पूजा, पृ. १अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदि: उत्तम गुरु चरणे नमी; अंति: श्रीविमलाचल पायो
रे, गाथा-१११, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५८ अपूर्ण से अंतिम ढाल गाथा-३ अपूर्ण तक के पाठ नहीं हैं.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भरते षट् अवसरपिणी आर; अंति: श्रीनाभिभूपातु वः, गाथा-४. ५९०५१. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ११, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., दे., (२३.५४१२,
११-१६x२६-३९). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण..
मा.गु., पद्य, आदि: हर्ज न होए जोजन; अंति: मन को हित किज माले, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: बिसे मार्ग में तूने; अंति: कर से इसने छुडा दिया, गाथा-४. ३. पे. नाम. क्रोधमानमदलोभ निवारण सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: थाते आई अनादि नींद ज; अंति: गत मन सोवो तो तस ही, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: मम तत ते रिध पुरी; अंति: रतनचंद० मात कहतारे, गाथा-८. ५. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
दानशीलतपभाव सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: कुमर मेरा बोलो मुख; अंति: बरतीवो जय-जय कार, गाथा-५. ६. पे. नाम. क्रोधमानमदलोभ सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. क्रोधमानमदलोभ निवारण सज्झाय, रा., पद्य, आदि: थाते आई अनादि नींद ज; अंति: गत मन सोवो तो तस ही,
गाथा-१०.
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४८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. गुरुमहिमा पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: सतगुरु नहीं भूले एक; अंति: रतनचंद० मुक्तिपुरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब तो कर सिमरन प्रभु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक
लिखा है.) ९. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: बिसे भोग में तुने; अंति: से इसने छुड़ा दिया, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सब झूठा है जंजाल नहि; अंति: (-), गाथा-८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण
तक लिखा है.) ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कोई दम कारे ते बसेरा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० अपूर्ण तक
लिखा है.) ५९०५२. आदिजिन विनती स्तवन, जयानंदकेवली रास व शंखेश्वरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३,
प्रले. मु. तेजविजय; पठ. मु. वखतश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. आदिनाथ विनती, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सगुरु पसाय; अंति:
विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८. २. पे. नाम. जयानंदकेवली रास खंड-९, ढाल-१ से २, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
जयानंदकेवली रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. संखेश्वरजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर-पौषदशमीतिथि, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: रंग अधिक जस
वाधेजी, गाथा-४. ५९०५३. (+#) व्याख्यान व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१०(५ से ८,११ से १६)=११, कुल पे. ४,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३७). १.पे. नाम. होलीका प्रबंध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: साधको
विद्यते. २.पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. २आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभू; अंति: (-), (पू.वि. "तद्दिनादेवसाधुभ्यप्रासुकाहारदान
विधि सबैलोकै" पाठ तक है.) ३. पे. नाम. चैत्रीपुनम सज्झाय, पृ. ९अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "समाराधनं च दत्तं
बैताढ्य पर्वते" पाठ से "करिष्यति प्रांते स श्रीजयस" पाठ तक है.) ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. १७अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. श्लोक-३ अपूर्णसे १४० अपूर्ण तक है.) ५९०६३. (+#) वसुधारा स्तोत्र विधि सहित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ११४२५-३०). १.पे. नाम. वसुधरा स्तोत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण..
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
४८३ २. पे. नाम. वसुधरा रास, पृ. ९अ, संपूर्ण.
वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इयं वसुधारा धनद; अंति: तद कीजै पेहली कीजै. ५९०७५. कविशिक्षा सह काव्यकल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३६, जैदे., (२४४११.५, ११४३३).
कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: गुरुतापि रथोपमानैः, प्रतान-४. कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: विमृश्य वाङ्मय; अंति: गगनं भ्रमरायते,
ग्रं. ३३५७. ५९०९०. (+#) योगचिंतामणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ११४३१). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१, सालिम पाक तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंति: (-), अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५९१३२. (+) द्वारसंग्रह विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४४११.५, १२४३२-३५).
१०४ द्वार विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कषाय विचार अपूर्ण से कालद्वार विचार अपूर्ण तक
५९१४२. जोतिसनो विस्तार, संपूर्ण, वि. १९४२, माघ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. श्राव. छत्रमल; लिख. श्रावि. चंपी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११, १२४३३). ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा., प+ग., वि. १९३१, आदि: श्रीगुरुदेवोनें प्रण; अंति: प करै ते पामैं
भवपार, द्वार-७. ५९१४४. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ९४२५-२८).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. रात्रिभद्रा विचार तक है.) ५९२०६. (+) चंद्रार्किपद्धति स्पष्टीकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४०-४३). चंद्रार्किपद्धति-चंद्रार्कि स्पष्टीकरण, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. "योगानयनतकण"
अपूर्ण तक पाठ है.) ५९२१९. (+) सुपार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २४१, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १०२००, जैदे., (२७.५४११, १५४४४).
सुपासनाह चरिअं,ग. लक्ष्मण, प्रा., पद्य, वि. ११९९, आदि: जयइ जुगाइ जिणिंदो; अंति: सत्तम तित्थनाहस्स,
___गाथा-८५६०, ग्रं. १०१३८. ५९२२०. (+) नंदीसूत्र कीटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २१३+१(१५१)=२१४, प्र.वि. मूल कृति का मात्र
प्रतीक पाठ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४४६).
नंदीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानुः; अंति: जैनोधर्मश्च मंगलम्, ग्रं. ७७३२. ५९२२१. (+) श्राद्धविधि प्रकरण सह विधिकौमुदी टीका, संपूर्ण, वि. १६९०, फाल्गुन, ७, सोमवार, श्रेष्ठ,
पृ. १९१+२(८६,१५६)=१९३, ले.स्थल. मेदनीपुर, पठ. पं. चारित्रविजय; लिख. श्राव. रायपाल लखा साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ६८६१, जैदे., (२६४१०.५, १२४४६).
श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: सुहं लहुं लहंति धुवं, प्रकाश-६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्रद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्र
,
अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश- ६ नं. ६७६१.
"
५९२२२.
कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११, ४x२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. "देसिगण क्षमासमणं" पाठ तक है.)
कल्पसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: अरहंतनि नमस्कार, अंति: (-).
"
५९२२३. (+) कर्पूरप्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १४२, प्रले. नाथा जोसी, अन्य. मु. धनविजय (गुरु ग. शांतिविजय); गुप. ग. शांतिविजय (गुरु पं. धर्मविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४०-४६).
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि कर्पूरप्रकरः शमामृत: अंति: नेमिचरित्रकर्त्रा श्लोक-१७९.
कर्पूरप्रकर- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वश्रिये सोस्तु अंति: ताविक गुण छे जेह तणा. ५९२२४. (+#) नवतत्त्वादि प्रकरणसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२४-१९२५, श्रेष्ठ, पृ. १३२-८ (१ से ८ ) +२ (७९ से ८०)=१२६, कुल पे. ९, प्रले. मु. श्रीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७११.५, ४X३२).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पात्र हैं.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-) अंतिः शांतिसू० सुय समुद्दाओ, गाथा ५१ (पू. वि., गाथा- ४९ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ९आ-१७आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुन्न३; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा- ४८.
३. पे. नाम. जंबुद्वीपसंग्रहणी, पृ. १७आ- २२आ, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन शुक्ल, ९.
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्म, आदि: अंतिः रईवा हरिभदसूरिहिं गाथा- ३०,
४. पे. नाम. चोवीसदंडक स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. २३-२९आ, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा - ३८, संपूर्ण.
दंडक प्रकरण - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः नमिठं क० नमस्कार करी, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १२ से २० तक व गाथा - २८ से ३८ तक का टबार्थ नहीं लिखा है.)
५. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ३० अ- ८० आ, संपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र शुक्ल, १४.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३३, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करके श्री; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५६ तक टबार्थ लिखा है.)
६. पे. नाम. सम्यक्त्वतत्त्वसार विचार, पृ. ८१अ - ८३अ, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन शुक्ल, ९. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं, अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. ७. पे. नाम. इकवीस ठाणा, पृ. ८३आ ९६आ, संपूर्ण.
२१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया, अंतिः असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६.
८. पे. नाम. वेदपुराणोक्त ऋषभादिजिनोल्लेख संदर्भश्लोक, पृ. ९६ आ-१०४आ, संपूर्ण.
ऋषभादिजिन संदर्भश्लोक - वेदपुराणगत, सं., प+ग, आदि: नाभिस्तु जिन, अंति: पंडइ भवोहे अगाहं.
९. पे नाम संबोधसप्ततिका सह टीका, पृ. १०५अ १३२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक
संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा तं श्रीमहावीर; अंति: (-). ५९२२५. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२९-४३(१ से ७,२४ से २५,४९ से
५८,६६ से ६८,८८ से ९४,९९ से १०६,११८,१२२ से १२६)=८६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ५४२९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५९२२६. (+) श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १०९, ले.स्थल. कृष्णगढ,
प्रले.पं. भगवानविजय (गुरु उपा. ऋद्धिविजय); गुपि. उपा. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १६७४, जैदे., (२६.५४११.५, ७४२८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइजंता
कहा एसा, गाथा-१३४०, ग्रं. १६७४.
सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद; अंति: कहवा योग्य आ कथा. ५९२२७. (+#) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९७, ले.स्थल. लींबडी,
प्रले.पं. निधानविजय गणि (गुरु पंन्या. गौतमविजय); गुपि.पंन्या. गौतमविजय (गुरु पंन्या. धनविजय); पंन्या. धनविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पंन्या. माणिक्यविजय (गुरु पंन्या. हितविजय); पंन्या. हितविजय (गुरु उपा. शुभविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६-१६४३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसारदाचरणयुग्ममती; अंति: बोधेकरः
पाठकराजसीलेन. ५९२२८. (+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधिसूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ४०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, १७४५५).
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: पूरेऊणं परिकहंतु, गाथा-७२. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: अशेषकर्मांशतमःसमूह; अंति: धर्मं परममंगलम्,
ग्रं. ३८८०. ५९२२९. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८.५४११, ५४२२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१
अध्ययन-२ अपूर्ण तक है.)
प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तेजवंत श्रीवर्द्धमान; अंति: (-). ५९२३०. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटीका, संपूर्ण, वि. १८४९, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३४००, जैदे., (२७४१२, १-५४४७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि,
अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदि: स्तंभनाधीशमानम्य; अंति:
ब्रवीमीति पूर्ववत्, अध्ययन-१०, ग्रं. ३४००.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
, जैवे. (२७४११.५.
५९२३१. (+) सप्तव्यसन कथासार समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले. स्थल. रकारपुर, प्रले. पं. वखतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - संशोधित - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., ( १३x४७).
सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: ग्रंथो भव्यजनार्चितः, सर्ग-७, श्लोक - ६८१, ग्रं. २०६७.
५९२३२. (+) भद्रबाहुसंहिता, संपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, अन्य. आ. कल्याणसा
(विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२७X११.५, १३x४२-४७).
,
भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: मगधेषु पुरं ख्यातं अंति: नामा पुन्यश्च साधवः, अध्याय- २८. ५९२३३. (*) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५८-२१५ (१ से ६०, ६२ से ८३,८५ से १०,११० से २३६)=४३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२८x१२, ७x४३).
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ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पण, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
..
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
५९२३४. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२५०, जैदे., (२७.५X११, १०५०-५३).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर, अंतिः सरीरधरे भविस्सहति
अध्याय- १०, गाथा - १२५०.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंतिः जाए अनंता सुख पामइ.
५९२३५. (+#) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-१ (१८) = ३६, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११.५, ८x४०-५० ).
"
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. वर्ग-१ अध्ययन- १ अपूर्ण से वर्ग-८ अध्ययन १० अपूर्ण तक है. वि. पत्र-१ से है किंतु पाठ- "एवं वयासी इमीसेण भंते वारवतीए नयरीए" से प्रारंभ होता है.) अंतकृदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अ. ९, गद्य, मूपू., (करकंडू कलिंगेषु), ५६८२५, ५८९०९-१३, ५८४७८($) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ५७७६०-४५ (२) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन - अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारे ते), ५७७६०-४५
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ५६०६९-३० (+)
५ समवाय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालो १ सहावर नियई३), ५६५७५-२४ (+)
६ दर्शन विचार, सं., पद्य, जै., वै.?, (जीवो नास्तीति मन्यते), ५६५७५-२५ (+)
६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), ५७७६०-३४ (२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे षट्द्रव्यने), ५७७६०-३४ ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाणे दंसणावरणे वेयणि), ५७१५१-४
(२) ८ कर्मस्थिति विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे (नाणावरणीकर्म १ दर्शन), ५७१५१-४
"
८ योगदृष्टि नाम, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (मित्रा तारा बला दीप), ५६२७३-२३(+)
८ सिद्धि नाम, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (अणिमा १ महिमा २ ), ५८०८५ -२ (+), ५७७६०-४ (२) ८ सिद्धि नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (हिवे अणिमानो स्यो), ५७७६०-४
९ ग्रह स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (अहिमगो हिमगो धरणीसुत), ५६०९८-५ १० कल्प गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (अचेलुकदिसिय), ५६५५६-२ (०४)
(२) १० कल्प गाथा - टीका, सं., गद्य, मृपू., (अचेलत्वं मानप्रमाण), ५६५५६-२(+)
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तेसिमत्तंग १ भिंगा २), ५७७६०-३६
(२) १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (मितगनामा अंगनामे), ५७७६०-३६
१० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नवकार पोरसीए पुरमड्ड), ५५९११-२ (+#), ५६७३९-४(+#), ५७१८७-७(+#)
(२) १० प्रत्याख्याननाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (डि घटिका प्रहर २), ५६७३९-४+४), ५७१८७-७००)
१० स्थान बोल - आनंदादि दशश्रावक, प्रा., मा.गु., गद्य, वे., (मन ठामि राखवा हेते), ५६६०० (+)
१२ तपभेद विवरण, प्रा.मा.गु., गद्य, मूपू., (अणसण उमोयरिया), ५७७९८- १ (+०३)
१२ भावना, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू. (पडममणिच्चमसरणं संसार), प्रतहीन.
(२) १२भावना - टीका, सं., गद्य, मूपू., (एताः अनित्यत्वादयो), ५७०४९(+)
१४ गुणस्थानक विचारगाथा संग्रह, धर्मदत्तदेव, प्रा., मा.गु., प+ग, वे., ( गई४ इंदीय५ काए६ जोए), ५७७५४-१४(+)
१६ विद्यादेवी स्तव, सं., श्लो. १९, पद्य, वे मंत्राधिराजवलये विमल), ५६९७९-३
1
"
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१६ शृंगार नाम, सं., श्लो. १, पद्य, (आदौ मज्जनचारुचीरतिलक), ५७५८२-३(+)
१७ भेदी पूजा, मु. जीतचंद, मा.गु. सं., पूजा. १७, गा. २८, प+ग. म्पू. (जिनतनु निरसुंगंध), ५६२८६-२(+)
१८ पापस्थानक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे. (पाणीयवायमलिअं), ५७०३३-८(+#$)
(२) १८ पापस्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे. (प्राणातिपात १ वलीजूठ२) ५७०३३-८(+#5)
""
१८ भार वनस्पति मान, मा.गु., सं., गद्य, वे. (३८ अडत्रीस कोड ११) ५८५८३-३(+) २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदि सर्व उपधान), ५७५४८-२(#) २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ५५६८९-३(+#) (२) २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतभक्ति सिद्ध), ५५६८९-३(+#) २० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( श्रीदयदर्हत्पदवीदवी), ५७४१६(#)
परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
२१ प्रकारी पूजा, ग. शिवचंद्र, मा.गु. सं., वि. १८७८, पद्य, मूपू., (मंगल हरिचंदन रूचिर), ५७५९७-१($)
२१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा. गा. ६६, पद्य, मूपू (चवण विमाणा नयरी जणया), ५५९९५ (+), ५९२२४-७(+), ५६९२९ (२) २१ स्थान प्रकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), ५५९९५ (+)
(२) २१ स्थान प्रकरण बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु. गद्य, भूपू (चवणविमाणानवरी जणया), ५७३६८
.
""
२२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उन्ह), प्रतहीन.
(२) २२ परिषह नाम-विवेचन, मा.गु., गद्य, मूपू., (खुहा क्षुधा परीसइ), ५८६२७-१६(+) २४ जिन आयुप्रमाण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (चुलसी बावत्तरि सट्ठी) ५६०६९-१९(+) २४ जिनभक्तयक्ष स्तोत्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (श्रीमद्युगादि जिनमुख), ५६९७९-२
२४ जिन मंत्र जाप होमादि विधि, मा.गु., सं., गद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं श्रीं), ५६८३८-४
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२४ जिन शुकनावली, मा.गु., सं., गद्य, श्वे. (शीघ्र सकलाकार्यसिद्ध), ५६१९१
""
२४ जिन स्तव चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (आदौ नेमिजिनं नौमि ), ५८४५२-२क्क
२४ जिन स्तुति, उपा. राजरत्न; मु. लावण्यसमय; आ. नंदसूरि, अप., मा.गु., स्तु. २४, गा. ९६, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), ५८६५२(+)
२४ जिन स्तुति, अप. गा. २, पद्य, म्पू, (भरहेसरकारिय देव हरे), ५५९११-२५ (ख)
२४ देवभेद विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (भवणपती १० वंतर ८ जोइ), ५८६२७-१८(+)
२४ स्थानक यंत्र प्रा. मा. गु., को. मूपू (--), ५७७९१(5)
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६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ५६८३८-५१४)
וי
९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु., सं., गा. १११, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (उत्तम गुरु चरणे नमी), ५९०५०-१(+$)
१७० जिनस्थानक यंत्र, सं., को. . (), ५६१५९(०३)
३४६ भेद - नवपद, मा.गु., सं., पद. ३४६, गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्रातिहार), ५६७९० (+)
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ५५६९३ (+$), ५५८८५ (+), ५६०५०(+), ५७००२(+), ५७२०६(+), ५९२३५ (+०३), ५६६५१, ५८४१७(ड)
(२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ५५६९३ (+), ५६०५० (+), ५७००२(+), ५७२०६(+), ५९२३५ (+१६)
अंबडचरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., ( धर्मात् संपद्यते), ५७०१४-१ (+)
अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ५६७२९-३(+४)
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. ७०, गद्य, मृपू (प्रणिपत्य प्रभु), ५८३८४-३(०)
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अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, मृपू. (उसभस्सय पारणए इक्खु), ५९०५३-२(+४३)
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.
अक्षयनिधित्रत कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि सं., श्लो. ८८, पद्य, दि. (पूज्यपादाकलंकार्य), ५७३६०-५ (+)
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अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., श्लो. १, पद्य, (दशलक्षदेति त्रिगुणां), ५७७६०-२०
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2
अजितनाथ चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. ६, श्लो. ७०२, पद्य, मूपू., (जयंत्यजितनाथस्यजितशो), ५७२०७(#) अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, भूपू (अजियं जिवसव्वभयं संत), ५५६४२(०), ५५७७२-१(०),
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५५९१८-१(+४), ५६०३२-१(+०), ५६९३२(+#5) ५७०३८(+), ५७०७७(+), ५७१९१-१३(+), ५७६६८(+), ५८१००(+),
५८४५९(+), ५८४७०-२(+#), ५८४७७-४(+#), ५८९२७-८ (+), ५८९४५-३(+), ५८४५४($), ५८९५५-१ ($) (२) अजितशांति स्तव - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., ( अजितं जितसर्वभयं), ५६०३२-१(+)
(२) अजितशांति स्तव - बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ४५०, गद्य, मूपू., ( अजितनामा बीजउ तीर्थं), ५७६६८ (+)
(२) अजितशांति स्तव - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजिअं अजितनाथ किसउ), ५६९३२(+#$)
(२) अजितशांति स्तव - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ किसिउ छइ), ५५६४२ (+), ५७०३८(+#)
(२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, भूपू (मंगल कमलाकंद ए सुख), ५६३०४-१० (+०३) (२) अजितशांति स्तव-हस्वादि छंदपरिमाण गाथा, संबद्ध, प्रा. गा. ५, पद्य, मूपू. (बायालीसं वत्ता), ५६०३२-२(+४)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
४८९ अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ५७१९१-१४(+) अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (आहारे उवहिं सिय उवस), ५६५००-११(+#), ५५९४९-११ अनंतजिन स्तुति, मु. विवेकसुंदर, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यस्यज्ञानमनंतभावविषय), ५६१८३-६(+#) अनंतव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (प्रणम्य परमात्मा), ५७३६०-१८(+) अनशन गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंतो महदेवो),५६१००-३ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ५५७५३(+#s),
५५७९०(+), ५६५९४(+), ५७०३०(+), ५८००८(+), ५८३२४(+), ५६६६७($) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ५५७५३(+#s), ५६५९४(+), ५७०३०(+),
५८३२४(+), ५६६६७(s) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), ५५७९९-१(+), ५५९४५(+#),
५६००४(+), ५७१५९(+#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं.५९००, वि. १२वी, गद्य, मपू., (सम्यक्सुरेंद्रकृत), ५५९४५(+#),
५७१५९(+#), ५७३०८(+), ५८५०५(+$) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ना० ज्ञान पंच प्रकार), ५५७९९-१(+), ५६००४(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्तमूलनया पणत्ता त), ५६८५३(#) (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप का विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअनुयोगद्वार मूल), ५५७९९-२(+), ५६८५३(#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै), ५७८२०-१७(#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानपांचमद्ये श्रुत), ५७०७८(+#$) । अनेकार्थध्वनिमंजरी-श्लोकपदाधिकार, सं., श्लो. २१९, पद्य, मूपू., (शुद्धवर्णमनेकार्थ), ५७९५४(+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत),
५६६८२(+$) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वा जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु),
५६६८२(+$) अन्योक्तिमौक्तिकमहोदधि, मु. हेमविजय, सं., श्लो. २१४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रितमनंतसुखरति), ५६६०३ अब्भुट्ठिओसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ५७१५२-२(+#$) अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (सव्वावि कंदजाई सूरण), ५८३३७-२(+) (२) अभक्ष्यानंतकाय गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वापि कंदजातिरनंत), ५८३३७-२(+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः),
५५७२४(+$), ५८०४७(+), ५८१२०(+$), ५८१८३(+), ५८१८८(+#$), ५८१९४(+#s), ५८२०१(+#$), ५८२०८(+), ५८२३२(+#), ५८२३५(+$),५८२४१(+), ५८२४३(+#), ५८२४६(+#), ५८३८२(+#$), ५८८८१(+$),५८८८२(+$),
५८८८५(+#$), ५८८८६(+#$), ५८८८९(+$), ५८१८४, ५८८९०, ५७८७५ (#$), ५८२३०(5) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-टीका*, सं., गद्य, पू., (--), ५८१९४(+#$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य,
पू., (धर्मतीर्थकृतां वाचां), ५८२३२(+#), ५८२३५ (+$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, ग. शुभविजय, मा.गु., ग्रं. १०५०, गद्य, पू., (प्रणम्य श्रीगुरू), ५८००३(+#$) अरिहंतचेइआणं सूत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत चेइआणं करेमि), ५७१८७-३(+#) (२) अरिहंतचेइआणं सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरनी प्रतिमा), ५७१८७-३(+#) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्ण),
५८९६४-१ अल्पविधान व्रतोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. २५५, पद्य, दि., (श्रीविद्यानंदिपाद), ५७३६०-२३(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अशोकरोहिणीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ९६, पद्य, दि., (नत्वा पंचगुरुन् विद), ५७३६०-१९(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ५५८७९(+), ५५९२८(+$),
५५९३०-१(+),५६६६६-१(+),५६७३०-२(+), ५६७७८(+#$), ५७११८(+), ५८९१९(+) आकाशपंचमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १०५, पद्य, दि., (सुतं नाभेर्यशस्वत्या), ५७३६०-१३(+) आगम छटक पन्ने, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ५६७४९-२(६) आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खूवा भिखूणी), ५६५२६-३(+$), ५६५७२-३(+$), ५८३४६($) (२) आगमिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी वैक्रीय शरीर), ५८३४६(६) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, म्पू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), ५८००२(+#$) . आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), ५७०७९(#$) (२) आचारदिनकर-नक्षत्रग्रहशांतिक विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., मूपू., (कुग्रहै: क्रूरवेधे), ५५६३३-१(+) (२) आचारदिनकर-नित्य जिनपूजन विधि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वमुखीभूय), ५६६९१(+) (३) नित्यजिनराज पूजन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रभाते पूजा), ५६६९१(+) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ५५८७३(+), ५५८७४(+),
५५९२१(+), ५६०६३(+), ५६०७७(+#$), ५६५९९(+), ५६७०२(+#), ५६८७०-१(+$), ५६८८०(+#$), ५७०१३(+$), ५७१७६(+#s), ५७२२४+), ५७३७६(+), ५८३२५(+#s), ५८३९४+), ५८४८९-१(+), ५८४५५, ५६०६६(#), ५६८५२(#S),
५७२२०(#$), ५८९१६(#$), ५७२००(5), ५७२२७(६), ५८४६३(5) (२) आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्धे), ५८४८९-२(+) (२) आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु),
५७३०६(+#$), ५८४९२(+$), ५८४५५ (२) आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १५७३, गद्य, मूपू., (शासनाधीश्वरं नत्वा),
५६०६३(+), ५८४८९-१(+), ५७२२७(१) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ५६०७७(+#$), ५६७०३+#),
५७१७६(+#) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्म), ५७२२०(#$) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. आनंद, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मास्वामी), ५६७०२(+#) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., ग्रं. १२५५४, गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मा), ५५८७३(+), ५५८७४+), ५७२२४(+),
५७३७६(+), ५८३९४+) । (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ५५९२१(+), ५६८८०(+#$), ५८३२५(+#s), ५८९१६(#S),
५८४६३($) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ५६५००-१(+#$),
५७१२५(+#$), ५५९४९-२ (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), ५७१२५(+#$) (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाणीनइ निरपराध त्रस), ५७१२५(+#$) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ५७२७१(+#$) आत्मावबोध वचनिका, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (ते गुरु गृणाति वदति), ५७६२६ । आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन),
५८५२९-१(+) आदिजिन स्तुति, गच्छा. विजयप्रभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (प्रेमस्थेमनिबद्ध), ५६१८३-५(+#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भनाथनिभानन), ५५९२४-१४(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), ५५९११-१९(+#), ५५९२४-१३(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (वरमुक्तियहार सुतार), ५५९११-२४ (+४), ५७०४३-९(+), ५५९२४-४१०) आदिजिन स्तुति-चतुर्थी तिथि, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू. (उद्यत्सारं शोभागार), ५६१८३-२१ (+)
आदित्यव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १६६, पद्य, दि., (प्रणम्य शिरसार्हतं), ५७३६०-२ (+) आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मृपू., (संसारे नत्थि सुहं), ५५९८१-३ (+०६), ५६७४१-१(+४), ५७०४८-२(+४)
आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), ५७९७१ (+#$), ५८१५३(+४), ५८२२२ (-१)
(२) आरंभसिद्धि-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अर्हाणां पूज्यानां), ५७९७१(+#$)
(२) आरंभसिद्धि-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (पूज्यानां पूज्याय ), ५८१५३(+), ५८२२२(+$)
आराधनापताका, प्रा. गा. ९३२, ग्रं. १०७०, पद्य, मृपू. ( सम्मं नरिंददेविंदवंद), ५६५९१(+३), ५६८६६ आराधना विधि, प्रा., गद्य थे. (गंधा संघो चिह संति), ५७४४८-१+०)
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आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९. सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तर), ५७०४४ (+ आलोयणा, प्रा., मा.गु, गद्य, वे., (एक प्रकार की असंजम), ५८९९४-५ (+डा
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आलोयणा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( प्रथम गृहस्थी अविरत), ५६३२८-१(+#)
आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य, ६, सू. १०५, प+ग, भूपू (णमो अरहंताणं० सव्व), ५५९६३-१(+), ५६५६३(+), ५७१६१(+), ५७२९९(+०६), ५६८४२,५६६८४१०१
(२) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), ५५९६३-१(+#$),
५५९६३-३(+०३), ५६५६३(०) ५७०८५-२(+), १७०९४-३(+), ५७३९६ (०३), ५७२९१(०३), ५८९१७(S))
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(३) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति का भाष्य, प्रा. गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), ५६५६३ (+#), ५७३९६ (+#$), ५६८१३, ५७२९१ (५६)
(४) आवश्यकसूत्र - नियुक्ति के भाष्य की टीका #. आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, म्पू. (--), ५७३९६ (+३) (४) आवश्यकसूत्र - निर्युक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (--), ५७२९१(#$)
(४) आवश्यकसूत्र - निर्युक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, मृपू., (--), ५६५६३ (+०) ५६८१३ (३) आवश्यकसूत्र - नियुक्ति की शिष्यहिता टीका # आ. हरिभद्रसूरि सं. ग्रं. २२०००, गद्य भूपू (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ५७३९६ (-०३), ५६९५६ (०३)
"
(३) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., (प्रारभ्यते श्री आवश्य), ५६५६३(+#),
५६८१३
(३) आवश्यकसूत्र - नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू (आभिणिबोहियनाणं सुचना), ५७३२२(+)
(४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अध्य. प्रथम, गा. ३६०३, पद्य, मूपू., ( कयपवयणप्पणामो वोच्छं),
५७३२३(-१)
४९९
',
(५) विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं. ग्रं. २८०००, वि. ११७५, गद्य, (श्रीसिद्धार्थनरेंद्र, ५७३२३ (+०)
मूपू.,
""
(२) आवश्यकसूत्र - लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं. ग्रं. १२३२५, वि. १२९६, गद्य, भूपू (देवः श्रीनाभिसूनु), ५७२९१ (AS) (२) आवश्यकसूत्र - शिष्यहिता टीका #. आ. हरिभद्रसूरि सं. ग्रं. २२०००, गद्य भूपू (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ५७३९६ (+०६)
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(२) आवश्यकसूत्र - अवचूर्णि # आ. ज्ञानसागरसूरि सं. वि. १४४०, गद्य, भूपू (प्रेक्षावतां प्रवृत), ५६५६३(०) ५६८१३
7
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(२) आवश्यकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६८४२
(२) आवश्यकसूत्र कथा संग्रह, सं., गद्य, भूपू (नवकार इकखरेण पाव), ५५८८८(+8)
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(२) आवश्यकसूत्र - कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रि पोतनपुरन), ५६१६३-१(#)
(२) आवश्यकसूत्र - हिस्सा वंदनक अध्ययन, प्रा. सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ५७१९१-२(+)
(२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, भूपू (लोगस्स उज्जोअगरे), ५८४४५(१
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४९२
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउद राजलोकमाहि), ५८४४५(#) (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोगस्सउजोयगरे कहता,), ५६८२८($) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ५७१८७-२(+#) (३) शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो अरिहंतने), ५७१८७-२(+#) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ५५९०३-१, ५६०९८-७ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत अशरण), ५५९०३-१ (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ५६९५३-३(#$) (२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताण० तिखुत),
५६७८६(+) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५६३००(+), ५६५१३(+#$), ५६५७४(+६),
५६७४८(+#), ५७८३२(+#$), ५६९८३(#) (३) षडावश्यकसूत्र-वृत्ति *, सं., गद्य, मूपू., (--), ५६९०१(६), ५६९१६(६) (३) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतने नमस्कार), ५६३००(+), ५६५७४(+$),
५६७४८(+#), ५८५८१-१(+$) (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग१२ गुण विराजमा), ५६५१३(+#$) (३) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रि पोतनपुर), ५७८३२(+#$) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ५६१७६-६(+), ५६२५८-१०(+#), ५८३६२-१ (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भु), ५५७८१-६(+) (२) गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिंदिय संवरणो तह), ५७०३३-४(+#) (३) गुरुस्थापना सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंखि नासिका मुख कान), ५७०३३-४(+#) (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम दोय गाथारो नम), ५६५४०-२(-) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ५७१५२-१(+#$), ५६९६७,
५८३६८, ५६५४९(#S), ५७२०५() (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५५७४०-१(#), ५६९१०(#$),
५७०३४(#S) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाण), ५७१८७-६(+#$) (३) देसावगासिक पच्चक्खाण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७१८७-६(+#$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), ५८९११-१(+#), ५७१४१(#$),
५८३६७(#s) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं), ५५६३६(), ५७२५०($),
५८३५९(5) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७२५०(5) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वामेयमानम्य), ५७२५०(5) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७२५०($) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ५५७८३-२(+#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ५९००९-२(+$) (२) पौषध विधि*,संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिई), ५७८०६(+) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ५६५७५-१३(+) (२) पौषध विधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (रात्रि पिछली घडी २),५६३३०-२(+$) (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), ५६५२६-४(+$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
४९३ (२) प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ५६५७५-१(+) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ५५७२९(+#$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्क), ५७०३२-३(+),
५८९३९-१(+#), ५८९५१(#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५५८६२-४(#), ५६६०४(#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ५६५७५-४(+) (२) प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ५८६४७-१(#) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ५५७८१-१(+), ५५९११-४(+#s), ५६५७५-२(+9), ५६७३९-३(+#),
५७०३३-३(+#), ५८९३८-४(+), ५८९६२(+#), ५८४७९, ५५९२४-२(#), ५६५५४(#), ५६९१८(5) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध* मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न), ५६९१८(६) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ५६७३९-३(+#), ५८४७९,५६९१८६६) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यना उदयथी मांडी), ५७०३३-३(+#) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ५५९११-३(+#), ५८५८१-५(+) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ५८३६०-२ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिन वचन सदा अणुसरी), ५८५६६-५(2) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ५५९०२-२(+#), ५६०३८(+#S), ५६०५५(+),
५८९८७-२३(+#) (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग.शुभशील, सं., अधि. २, वि. १५०९, गद्य, मूपू., (युगादौ व्यवहाराध्वा), ५६०३८(+#$), ५६०५५(+) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ५५७८१-३(+$), ५५९११-७(+#), ५५९४७(+#), ५६०६९-५(+),
५६५६५-२(+#), ५७१९१-१२(+), ५८४६८-१(+#), ५८४७६-१(+#), ५८९११-३(+#$), ५९०१४-१(+$), ५८९५०-१,
५६९७४(#s) (३) वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं.६६४४, वि. १४९६, गद्य, मपू., (जयति सततोदयश्रीः),
५५९४७(+#), ५७३४६(+#s), ५६९७४(#$) (४) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिकाटीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा पंचासरं पार्श), ५६९७४(#$) (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीनै), ५६५६५-२(+#), ५८४६८-१(+#), ५६९७४(#$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), ५७०२२(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरहतन), ५७०२२(+) (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ५५९११-९(+#), ५६०६९-६(+),
५६५७५-१५(+), ५६७७९-१(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं० पंचिं), ५५७३८(+#$), ५५८४४(+$),
५६५६०(+#), ५६७२६(+#$), ५६७३९-१(+#), ५६७८९(+#), ५६९००(+$), ५८९५४, ५६६०६(#$), ५६६३५ (#$), ५६९६५ (#) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मूपू., (श्रेयांसि श्रीमहावीर),
५६२३२(+), ५६५६०(+#), ५६७८९(+#), ५७८३२(+#$), ५६६३५(#$) । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६६०६(#$) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ५५७३८(+#$), ५५८४४(+$),
५६७३९-१(+#), ५६९००(+9), ५६९६५(#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., वि. १९वी, प+ग., मूपू., ते., (नमो अरिहंताणं नमो), ५५८८३(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ५५७८०(+#$),
५६५९६(+#), ५७०३३-१(+#$), ५७०५५(+#), ५७०७०(+$), ५८४६४(+$), ५६९५३-१(#s), ५८९५३($)
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४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूपू., (वृंदारुबंदारकवृंदव), ५७०५५(+#),
५७१६१(+#), ५७२९९(+#s) (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., वि. १७६१, गद्य, मूपू., (बालानां सुहितार्थाय०),
५७२९९(+#$) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुओ), ५५७८०(+#$), ५६५९६(+#$), ५७०३३-१(+#S),
५८४६४(+$), ५६९५३-१(#$) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सकल मंगलिक०), ५७०७०(+$) (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमिदंसथमि०), ५५८९६(+#), ५६१६१(+),
५७४५७(+), ५७८०४(+$), ५८६८५(+), ५९००२(+), ५९००९-१(+), ५८९९१-१(#$), ५७५६३(६) (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मपू., (पण संलेहणा पनरस),५६२७६(+#$), ५६२६८(5) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीर), ५६१७६-१९(+),
५७१८७-४(+#), ५७१९१-१(+$), ५८३६२-४ (३) संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसाररूपीउ दावानलनो), ५७१८७-४(+#) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहताणं करेमि), ५६०६९-१(+),
५८९१४-१(+), ५८९३१-१(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ५५९३२(#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५६००१-१(+$), ५६८९४(+),
५६९७७(+#$), ५७११३-१(+$), ५८३७८(#$), ५६०३६(s), ५८३६१-२($) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), ५६८९४(+), ५६९७७(+#$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ५५९११-११(+#), ५६१३१-२(+$), ५७०३२-२(+),
५५७४१-२, ५६९०५-२, ५७२४२-२(#), ५८४३९-२(#) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते. चत्तारि०), ५५९११-६(+#), ५६०२४(+), ५६५२८-१(+#$),
५६५८७(+), ५६७७१(+#), ५६७७९-२(+), ५८९११-२(+#), ५८९३८-२(+), ५७४४३-२, ५८३६०-१, ५७०७५ (#), ५६९१२(5) (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वांछुउ प्रक), ५६०२४(+), ५६५८७(+), ५६७७१(+#), ५६९१२($) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपू., (ऍनत्वा पार्श्वनाथ), ५६५२८-१(+#$),
५६५८७(+) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ५५९१०(+), ५६१३१-१(+), ५६८७१(+), ५७०३२-१(+),
५७०४५(+), ५८३७३(+$), ५८४३५(+$), ५८४७५(+#), ५८९२७-१०(+9), ५५७४१-१, ५७२४२-१ (#s), ५८४३९-१(#s),
५६७६३($), ५६९०५-१($), ५७१५८(5) । (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ५६८७१(+) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ५८५८१-२(+) (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ५७७३६(+5), ५८९२७-९(+),
५८९३८-१(+), ५८६२५($) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ५६००१-२(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखूत), ५६७८८(+$), ५७११६(+#),
५८९५२-१(६) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार होज्यो), ५७११६(+#) (३) साधुवंदित्तुसूत्र-स्थानकवासी, हिस्सा, प्रा., प+ग., स्था., (--), प्रतहीन. (४) साधुवंदित्तुसूत्र-स्थानकवासी-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, स्था., (सात भयनां थानक तेनी), ५७७१८ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५८००७(+#$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
(३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूषू, (चउकसावपडिमलुल्लूरण), ५६०६९-२९(+), ५७०३३.५ (+या (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( च्यारि जे कषायरूप जे), ५७०३३-५ (+#)
(२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), ५५९११-१(+#),
५६५६५-१(+#), ५७०४३-१(+), ५७१०६ (+$), ५८४४९ (+#)
(३) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (नमस्कार हउ आठकर्म), ५६५६५-१(०४) (२) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु प+ग, भूपू स्था. नमो अरिहंताणं०) ५५८७३ (+),
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"
५५९३६ (०४), ५६०८१(+), ५६८३३(+३), ५६८२१(३), ५७०५१(३)
(३) साधुभावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ५५८७३(०), ५६०८१(+), ५६८२१(३), ५७०५१(डा
(२) सामायिक ३२ दूषण, संवद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (प्रथम १० मन संबंधी), ५८६९८-३(०), ५७७६०-३५ आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., अ. ३, गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि., (पणमिव सुदिपूजिय), प्रतहीन. (२) आस्रवत्रिभंगी यंत्र, पुहिं. सं., पं., दि., (विशेष शब्द का अर्थ), ५७३९७१)
"
"
४९५
आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, मूपू., (आहाकम्मे१ उद्देसिक२), ५५८८७-१(+)
(२) आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (आ० आधाकरमी आहा), ५५८८७-१(१)
"
आहारिक अनाहारिक १४द्वार विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, वे. (०दिठी संजये कसावे), ५७८२०-३(१) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपु (सुच्चिअ सूरो सो), ५५९८१-१+४७), ५६५९३-१(+), ५६७४१-२(+),
५७०४८-३(+65), ५५७५१-१, ५६९३०(३)
(२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेहिज सूर तेहिज), ५६५९३ - १(+)
"
ईयांपथिकषट्त्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ३६, वि. १६२९, पद्य, मृपू. (पणमिअ जिणवर वीरें), ५८३१७ (२) ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ७४७, वि. १७वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविदं वीरं),
५८३१७
ईशानराजा कथा - सम्यक्त्वपालन विषये, सं., गद्य, मूपू., ( अंगदेशे सुदर्शननगर), ५८९०९-१ उत्तमकुमार चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (दानंयशो वितनुते वितत), ५८९४३ (+$)
"
"
(२) उत्तमकुमार चरित्र-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (दानवकी लोकमै यश प्रस), ५८९४३ (३) उत्तरकर्मप्रकृति आलापक विचार, धर्मदत्तदेव, प्रा., गद्य, श्वे., (संकित्ते छ नामे), ५७७५४-१७(+) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग, भूपू (संजोगाविष्यमुक्कस्स), ५५६९९(+४४), ५५७०३(०७), ५५७२१०लाई), ५५७४५(+०), ५५७५६ (३), ५५८०१(+), ५५८४३(भाड), १५८४७९, ५५८५५ (+5), ५५८६३(+5), ५५९५८(+), ५६०१३(+$), ५६०४१(+), ५६०४८ (+), ५६०५२ (+), ५६०६० (+#), ५६०७० (+#), ५६०७९ (+$), ५६१२०(+), ५६१३५ (+४), ५६५७३(+४), ५६६९३ (+४), ५६७२२(+०४), ५६८४६ (+९), ५६८८१ (+०३), ५६९१७(+३), ५६९२४(+), ५६९८६(+०३), ५७०२६(+०३), ५७०३७(+३), ५७०८१(+०७), ५७०८२(+४), ५७१२४*), ५७१३० (+5), ५७१७३ (+#5), ५७१८८(+$), ५७२११(+#$), ५७२४० (+), ५७२५३ (+$), ५७२८२ (+#$), ५७२८५ (+$), ५७२९६ (+), ५७३१४(+), ५७३१५ (+#5), ५७३३८(+), ५७३५७(१), ५७३६९(+), ५७३८५-१(+), ५७४०७ (mm), १७८४७(१), ५८३१०(+), ५८४९३(+#$), ५८४९५(+#), ५६९०४, ५६९८२, ५५७४७(#$), ५५९९९ (#$), ५६५३८ (#$), ५६६९८(#), ५७०८३(#), ५७१९३(#$), ५७२४१(#), ५५७६२(s), ५५८३४ ($), ५६५४२ ($), ५६७५९ (६), ५६९३५ (६), ५७२४८ ($), ५७२९४ ($), ५७३१०(३)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., अध्य. ३६, ग्रं. १४२५५, वि. १६८९, गद्य, मूपू., ( ॐ नमः सिद्धि), ५६०१३ (+$), ५६०७० (+#), ५७२५३(+$)
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(३) उत्तराध्ययनसूत्र- अधिरोहिणी वृत्ति का हिस्सा कथा संग्रह, मु. भावविजय, सं., कथा. ९०, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सूरेरेकस्य शिष्योभूद), ५७२७० (+३)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- टीका #. सं., गद्य, म्पू., (--), ५६९१७+३), ५६५७१(३)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष), ५७८४७(+#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिक्षु महात्मानइ), ५७८४७+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात),
५६०७९(+$), ५६१२०(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अहँतो ज्ञानभाजः),
५७३३८(+), ५७३६९(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संजोगा० संयोगान्), ५५७२१(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, म्पू., (संयोगक्रोधादि), ५८४९३(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ५५८०१(+$), ५५८४३(+#$), ५५८६३(+$), ५६०४८(+).
५६५७३(+$), ५६६९३(+$), ५६७२२(+#s), ५६८८१(+#$), ५६९२४(+#S), ५६९८६(+#$), ५७०२६(+#s), ५७०३७(+s), ५७०८१(+#$), ५७१३०(+$), ५७१७३(+#$), ५७१८८(+$), ५७२८५(+$), ५७२९६(+), ५७३१४(+), ५७३१५(+#$),
५७३५७(+#), ५६५३८(#S), ५७२४८($), ५७२९४(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराध्ययनो स्यु), ५७२८२(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), ५६०४१(+),
५६१३५(+$), ५७३८५-१(+), ५७४०७(+#), ५७३१०(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा०), ५६०६०(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अर्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिक्षु महात्मान), ५५८३४($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., कथा. २४, ग्रं. ४५००, वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर),
५७३८५-१(+), ५८४९१(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूप., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ५५८६३(+$), ५५९८०(+#$).
५६६९३(+$), ५७८४७+#), ५७२४८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, मूपू., (एकस्य आचार्यस्य), ५६५१२(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (सुअंमे आउसं तेणं), ५५९९३(+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सु० सांभल्यो मे आ०), ५५९९३(+$) । (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१४ इक्षुकाराध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ५३, प+ग., मूपू., (देवा भवित्ताण पुरे),
५५९०६(+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१४ इक्षुकाराध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५९०६(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ९९, प+ग., मूपू., (सुग्गीवे नयरे रम्मे),
५६५८५(+#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि मृगापुत्र तिर्य),
५६५८५(+#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन१९ मृगापुत्रीयाध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमीने), ५६५८५(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७, मु.प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ का तीन वणिक दृष्टांत गाथा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ३, प+ग., मूपू., (जहाय तिन्नि
वणिआ मूल), ५६९६९-२(#) (४) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ का तीन वणिक दृष्टांत गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ३ वाणीआ मूल लेई),
५६९६९-२(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न),
५६६९७(+$), ५७१०७(+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (--),५७१०७(+$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
(३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (च० चवीने किहां थकि), ५६६९७(+$), ५७१०७(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ३६, पद्य, मूपू., (सरसति मति अति निरमली), ५५७२६(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू., (विणय१ परीसह२ चउरंगी३), ५७३८५-२(+) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (विनय अध्ययन गाथा ४६), ५७३८५-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त
धरीजी), ५८५२८-१(+#), ५८०९१-१(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीय समाणी वाणी वरस), ५७७३४(+#$),
५८५४७(+#$) उद्यापन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम मुहूर्त आछा), ५६५४०-४(-) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., स्तंभ. २४ व्याख्यान३६१, वि. १८४३, प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीदो नाभि), ५५९४३(+#$) (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५९४३(+#) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ५५८०६(+), ५६५१४(+), ५६५२३(+),
५६७२३(+#$), ५६८११(+#), ५६८७८(+), ५६९८८(+#$), ५७३१७(+#), ५७३४०(+), ५८३२१(+#$), ५८३९०(+), ५८३९२(+$), ५८४६२(+$), ५८४७२(+$), ५८४९६(+$), ५८५००(+$), ५६५६६(2), ५६९५१(#$), ५७३७२(#), ५८०७१(#$), ५७२४३($),
५७५७४-१($), ५८५८२($) (२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, मूपू., (श्रेयस्कर कामितदान), ५७३४०(+) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनवरेंद्रान), ५६५३९(+#$), ५७०२७(+) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनवर), ५८४६२(+$),
५७३७२(#) (२) उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने तीर्थं), ५६७२३(+#$) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ५५८०६(+), ५६९८८(+#$), ५७३१७(+#), ५८३९०(+),
५८३९२(+$), ५८४९६(+$),५८५००(+$), ५६५६६(#), ५६९५१(#$) (२) उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिन), ५८५८२(5) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ५६७२३(+#$), ५७४९८ (२) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), ५७३४०(+$), ५६५६६(#) (२) उपदेशमाला कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीउपदेसमालासुत्रन), ५८५००(+$) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), ५५८८६(+#) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ५५८८६(+#) उपधान तपविधि, मा.गु.,प्रा., गद्य, मूपू., (तत्रोपधानषटकनामानि), ५५९२९-१ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकारर्नु), ५५९८४ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसइ पोषध), ५७४५०(+) उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलइ नउकारनइ उपधानइ), ५७७०२, ५८५८७ उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण० मुहप० खमा०), ५६५५० उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ५५७१५(+$), ५५९७६(+$),
५६०५४(+#), ५६५९५(+#$), ५६६४३(+$), ५६६५८(+$), ५६७१५(+#), ५६९४४(+), ५७२३२(+#s), ५७२५५ (+#),
५८३०७(+#), ५६११७, ५७२३०, ५५७०८-४(#$), ५६५१७(#$), ५८४४०(#$), ५६५८०(६), ५७१४२(१) (२) उपासकदशांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६७१५(+#) (२) उपासकदशांगसूत्र-विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपासगदसा० सातमा अंग), ५६५९५(+#$) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५६०५४(+#), ५६९४४(+),
५७२३२(+#$)
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४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५५९७६(+$), ५६६५८(+$), ५७२५५(+#), ५८३०७(+#).
५६११७, ५७२३०, ५५७०८-४(#$) (२) उपासकदशांगसूत्र-हिस्सा *, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., जै., (--), प्रतहीन. (३) उपासकदशांगसूत्र-अर्थ*, मागु., गद्य, मूपू., (तिथि काले चउथा आरा), ५६५८०($) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १०, पद्य, म्पू., (उवस्सग्गहरं पासं पास), ५८९५९-१(-#) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ५८९२७-२(+), ५६९६०-३(#) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्गजे विघ्न तेहन), ५६९६०-३(#) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (वंशाब्जश्रीकरोहसो),
५६९५७(#$) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पास पासं०), ५८९६१-२(-2) ऋषभादिजिन संदर्भश्लोक-वेदपुराणगत, सं., प+ग., मूपू., वै., (नाभिस्तु जिन), ५९२२४-८(+#) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ५५६३५(+),
५५७३४(+), ५६७७६(+#), ५६६१६(#) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ५६८३८-३, ५८४६० (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिको अक्षर अंतको), ५८४६०($) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. २४, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीपारस विमल), ५६५३३(+#S),
५७५९७-२ ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), ५६६५२(+) (२) ओघनियुक्ति-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., ग्रं. ३३००, वि. १४३९, गद्य, मूपू., (प्रक्रांतोयमावश्यकान), ५७०५८(+#$)
औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धणमिव चिंतइ धम्म), ५७२०१(६) औपदेशिक व्याख्यान, पुहि.,सं., प+ग., श्वे., (एह वात प्रगट है कि), ५७६०४(+) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (क्रोध मान यथा लोभ), ५७६०५-२(+), ५८३३५-२(+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मी गजवाज), ५६१६८-२(+) औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ५७८४२-२(#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ५५८५२-३(+#), ५६५२०-२(+#) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ५५८७०(+), ५५९५२-१(+#), ५६०४०(+), ५६१०७(+),
५६९२१(+), ५७३००(+#S), ५७३८९(+), ५७२१४(#), ५७३३३(#), ५८४०५(5) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५५९५२-१(+#), ५६७९५(+),
(२) औपपातिकसूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५७३००(+#$) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), ५५८७०(+), ५६०४०(+), ५६१०७(+),
५६९२१(+$), ५७२१४(#$) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ५६४८९-२(+#), ५६४९०-१(+#), ५७६२१-१(+),
५८२२३-२(+), ५८९३४-२(+), ५६२०५-४, ५९०२२-२ औषध संग्रह *,सं., गद्य, (--), ५८६८२-३(+#)
औष्ट्रिकमतोत्सूत्र, सं., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) औष्ट्रिकमतोत्सूत्र-प्रदीपिकाटीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., अ. ४, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमंतमानंद), ५६०१८(+) कथाकोश, सं., गद्य, श्वे., (यानि दुष्टदुरितानि), ५७१६५(+) कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (किं पर ज बहुजाणवणाहि), ५७५७४-२($) कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गंधिला), ५५६०७(+#$), ५७३५८(६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
४९९ (२) कथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७३५८($) कथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), ५५८१३(+#$), ५७८५५-२(+-#S), ५७५७९(5), ५८६८१(६) (२) कथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--),५५८१३(+#$) कथा संग्रह-१८ पापस्थानकगर्भित, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (थूला सुहमा जीवा संकप), ५७८३४(+#$) कमलश्रेष्ठि कथा-मृषावाद, सं., गद्य, श्वे., (असत्येन निहंत्यंते), ५८९०९-३ करणसत्तरि विचार, प्रा., गद्य, श्वे., (करणमाह पिंडि१ सिज्ज), ५६९०२-२(+$) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रकर: शमामृत), ५९२२३(+#), ५६६१२(#), ५८४३४(#$) (२) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, मूपू., (व्याख्यायां धर्म), ५८४३४(#$) (२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वश्रिये सोस्तु), ५९२२३(+#), ५७८६२(5) कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., जै., (--), प्रतहीन. (२) कर्मग्रंथ-नामकर्मभांगा संख्या, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (चत्तारी वीस सोलस), ५७०२८-३(+#) कर्मग्रंथ (१ से६), आ. देवेंद्रसूरि; आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., अ.६, गा. ३९७, वि. १४वी, पद्य, म्पू., (सिरिवीरजिणं वंदिय कम),
प्रतहीन. (२) कर्मग्रंथ-यंत्र*, मा.गु., को., मूपू., (--), ५७२४५(+$) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. ११२, पद्य, जै., (नमिऊण सुयहराणं वोच्छ), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह , मा.गु., को., मूपू., (--), ५७८०९(+$) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., अधि.७, गा. ४७५, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धत्थसुयं), ५८४५८(+$) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा.६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ५५९६६-१(+#),
५५९६८(+#), ५५९७७-१(+$), ५६५४७-१(+), ५६५८९-१(+), ५७०६६-१(+), ५७४६८-१(+$), ५७८५२(+), ५८४२७-१(+),
५८४६५-१(+#$), ५६९४१-२, ५७१३६-१, ५८४८२-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १८८२, गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध्यानवर),
५५९६८(+#), ५८४८२-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रियाष्टप्रतिहार्य), ५६५०१-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऍदवीयकलाशौक्तीं), ५७८५२(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवीर), ५५९६६-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. हीरचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७४६८-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान अतिसय प्रातिहा), ५६३१६(+$), ५८४२७-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्धमान प्रति), ५८४१५-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, पू., (प्रणिपत्य जिनं वीर), ५५९६६-१(+#),
५६९४१-२ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (शारदां वरदां स्मृत्व), ५६५८९-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप्., (श्रीवीरजिन वांदी), ५८४६५-१(+#$) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., गा. १६८, पद्य, मूपू., (ववगयकम्मकलंक वीर), ५६६४९-१(+) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ५५९६६-२(+#),
५५९७७-२(+), ५६५२५-१(+#), ५६५४७-२(+$), ५६५८९-२(+), ५७०३५-१(+$), ५७०६६-२(+), ५७१२३-१(+#),
५७४६८-२(+), ५८४२७-२(+), ५८४६५-२(+#), ५६६४२, ५६९४१-३, ५७१३६-२, ५८४८२-२, ५७१४८-१(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ), ५८४८२-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), ५६५०१-२(+), ५६५२५-१(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुण जे ज्ञानादेक तेह), ५५९६६-२(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. हीरचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेम श्रीमहावीर प्रति), ५७४६८-२(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
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५००
७
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (तिम श्रीमहावीर प्रति), ५८४१५-२(+), ५८४२७-२(१) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिजगत् सृष्टिसंतान), ५६६४२
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (तथा तिणे प्रकारे), ५५९६६-२(+#), ५६९४१-३ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू.. (तिम हुं स्तवुं छु), ५६५८९-२(+)
"
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (तह क० तिम हवे बिजा), ५७०३५-१(+३), ५६६४२
""
1
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ * मा.गु., गद्य, म्पू., (बंध ते स्यु कहीयइ), ५७१२३-१(+४), ५८४६५-२००) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मा.गु., गद्य, भूपू कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिहु), ५६६४९-२(+)
(-), ५७७०६-१
(२) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ भाष्य प्रथम, प्रा. गा. ३२, पद्य, मूपू (बंधे विसुत्तरस), ५६६४९-३ (+)
कलशप्रतिष्ठा विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू., ( प्रथम भूमिशुद्धिकरण), ५७८३०-३(+)
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्याख. ९. ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ५५७९४(+१४), ५५८०५ (०९),
५५८६५(+$), ५५८६९-१(+#), ५५९२५ (+), ५५९२७(+#$), ५५९४२ (+#$), ५५९७१ (+$), ५६००२(+#), ५६००३-१ (+$), ५६००८(१), ५६०१० (+३), ५६०१२ (+४), ५६०४३ (१६), ५६०४४(+), ५६०५३(+), ५६०५६(+४), ५६०६२(+०६), ५६०७५ (००), ५६०७६ (०४), ५६०७८(+०४), ५६०८८(०), ५६०९४(+००६), ५६१०४(+), ५६१२२(+), ५६१२६(+०), ५६५६२(+#$), ५६५६९ (+), ५६५७९ (+#$), ५६६२७ (+$), ५६६२८ (+#), ५६६२९(+), ५६६३७(+#), ५६७३५(+#), ५६७९४(१९), ५६७९७(१), ५६८००(०४), ५६८०५ (०४), ५६८०६ (१४), ५६८४७(१४), ५६८५७/१९), ५६८५९ (१०४), ५६८६३(+#$), ५६८९५ (+$), ५७००१(+#), ५७०८८(+#$), ५७०९१(+$), ५७१११ (+#$), ५७१६४(+#$), ५७२१३(+$), ५७२१६(+४), ५७२४७(१), ५७२४९(+१६), ५७२५१(+४), ५७२५४(+४), ५७२६३ (+४), ५७२६८ (०४), ५७२७४(•०६), ५७२७८-१(+४), ५७२८७(+), ५७२९२(+०), ५७२९७(+०३), ५७३०२-१(०४), ५७३०९ (+), ५७३२८(०६), ५७३४७(+*६), ५७३५३(+), ५७३५६(+#$), ५७३६१ (+#), ५७३६४(+$), ५७३६५ (+#$), ५७३७८(+#$), ५७३८० (+), ५७३८१(+#), ५७३८२(•०६), ५७३८४(+), ५७३८७(+४), ५७३८८(०४), ५७३९०(५०), ५७३९२ (+), ५७३९९ (+), ५७४०२+७), ५७४०३ (+), ५७४०४(+६), ५७४११(+), ५७८१६ (+०३), ५८०४४ (०६), ५८०७६ (०३), ५८३१९ (+5), ५८३८७(+), ५८३९५ (४०), ५८३९९(+$), ५८४०२(+#), ५८४१२ (+#), ५८४१८(+#$), ५८४४३ (+#$), ५८४८०(+#), ५८४८४(+#), ५८४८५ (+), ५८४८६ (०६), ५८४८७(+5), ५८४९४(+), ५८५०६ (+३), ५८९०२/०३), ५८९०५ (+), ५८९६८(+), ५८९६९(+), ५९२२२ (०७), ५९२२५ (-०६), ५६१०६ ५६१२५, ५६५०३-१, ५६९४८, ५६९९६, ५७३०७ ५५९९० (१४), ५६०५१(०४), ५७१४६ (०३), ५७२२५(#), ५७२४४(#$), ५७२९३(#), ५७३१८(#$), ५७३४१(#), ५७३४४-१(#), ५७३६३(#), ५८३२२(#$), ५८३७१(#$), ५८५७६ (१६), ५५७०१(5), ५५७०९(३), ५६३३६(३), ५६५६७-१ (३), ५६६१५ (३), ५६६१७(३), ५६८०९(5), ५६९७३(३),
3
५६९९७($), ५७१८२($), ५७२३९($), ५७३१६($), ५८१०१ ($), ५८४३३($), ५८९५६ ($)
(२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ५७३८४ (+), ५६१०६
(२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), ५६०९३(+#), ५६८४१(+$), ५८०४४(०६), ५६९९७)
(२) कल्पसूत्र-कल्पप्रदीपिकाटीका, ग. संघविजय, सं., ग्रं. ३२५०, वि. १६७४, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमर्हतं), ५६१२५ (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः),
५६०६२(+०६), ५६८०० (+), ५७२१६ (+४), ५७३०२-१(+४), ५७३५३(+), ५७३८८(+), ५७३९९(+), ५८४८०(+१), ५८९६९ (००), ५७३१६)
(३) कल्पसूत्र-कल्पलताटीका का टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने श्रीमहावीर), ५७३०२-१(+#)
(२) कल्पसूत्र कल्पश्रुतदीपिकाटीका पीठिका, पंन्या, हितरुचि, सं., गद्य, म्पू. (नत्वा गुरुं सगुणचा), ५८४५७(+)
(२) कल्पसूत्र - टीका *, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ५५९७१ (+S), ५६७३५ (+#), ५७०८८(+#$), ५५७०९ ($), ५७२३९ ($),
५८१०१(३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
(२) कल्पसूत्र - सुवोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं. ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, भूपू (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ५८९६८(+), ५७३४४-१(१)
(२) कल्पसूत्र - टवार्थ, मु. नयविजय, मा.गु ग्रं. ७२५०, गद्य, भूपू (--), ५६५६७-१ (३)
"
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(२) कल्पसूत्र - अवचूरि *, सं., गद्य, मूपू., (अत्राध्ययने त्र्यं), ५६६३७ (+#), ५७४०३(+)
(२) कल्पसूत्र- बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५६१०४(+#), ५७३०९(+#) (२) कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा. गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं), ५५७९४ (+०६), ५५९२५ (+), ५६०५६ (+), ५६१२६(+०), ५६२९२(+३), ५६५६२(+४७), ५६६२८(+), ५६८४७(+३), ५६८५९(+४३), ५७०९१(०३), ५७२४९ (+३), ५७२६८ (+३), ५७३८२(+४७), ५७६५२(**४), ५७२४४(१६), ५७३४१(१), ५९०२० (१६)
,
५०१
(२) कल्पसूत्र - टबार्थ, गच्छा. हेमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो अरिहंतदेव), ५७४११(+#) (२) कल्पसूत्र - टवार्थ, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू (अरिहंतनई नमस्कार हो), ५७३८७(+३)
"
(२) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू. (अरिहंतन माहरो), ५५८०५ (+5), ५५८६५ (+5), ५५९४२ (+०३), ५६००२ (+०),
५६००३-१ (०६), ५६०१० (+), ५६०४४(+०३), ५६०६२ (+०३), ५६०७५ (+४), ५६०७६ (+३), ५६०८८(+४), ५६०९४/+०७), ५६१०४(+#), ५६१२२(+), ५६५७९ (+#$), ५६६२७ (+), ५६६२९ (+), ५६७९४ (+#), ५६८०५ (+), ५६८०६ (+8), ५६८५७ (+#), ५६८५९(+४७), ५६८६३(+४७), ५७२१३(+३), ५७२४७(+), ५७२५१(०३), ५७२५४(+5), ५७२६३(०३), ५७२७४(+45), ५७२८७(+), ५७२९२(+), ५७२९७(+९३), ५७३०२-१(१), ५७३०९ (+), ५७३६४(+४), ५७३७८(०६), ५७३८०(+), ५७३८१(+#), ५७३९०(+#), ५७३९९(+), ५७४०२(+#$), ५७४०४ (+$), ५७८१६ (+#$), ५८३१९ (+$), ५८३८७(+), ५८३९९/१६), ५८४१२(+४), ५८४९८(+), ५८४८४(१), ५८४८५ (+5), ५८४८६ (+5), ५८५०६ (98), ५८९०२(१३), ५८९६९(+#), ५९२२२(+$), ५९२२५ (+#$), ५६०५१ (#$), ५७१४६ (#$), ५७२४४(#S), ५७२९३ (#$), ५७३१८(#$), ५५७०१ ($), ५६६१५ ($), ५६६१७($), ५८९५६ ($)
(२) कल्पसूत्र- टवार्थ, सं., मा.गु., गद्य, जे., (तस्मिन् काले ते कालन), ५७३४७(००)
(२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ५६०४३(+#$),
५६०७८(+४७), ५७२७८-१(+०), ५७३५६ (+०३), ५७३६१(+), ५८४८७/*5), ५८४९४९), ५७३०७
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(२) कल्पसूत्र-कल्पदीपिका भाषाटीका, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ५५८९७ (#$)
(२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ५७३६४ (+$), ५७३८७(+$) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा में, सं., गद्य, भूपू (तत्रादी श्रीऋषभदेव), ५७१११(+४६), ५७२६५ (+४४), ५७३४७(१), ५८४१२(+#), ५६५६७-१(s), ५६६१५ ($)
*
(२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा " मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाव), ५५८०५ (+), ५५९४२(+४४), ५६००२(+४), ५६००३-१(+६), ५६०१० (+), ५६०४४(+०३), ५६०७६ (+३), ५६०८८(+), ५६०९४ (+०३), ५६१२२(*), ५६२८९ (+३), ५६५७९(+#$), ५६६२७(+), ५६७९४ (+#), ५६८०६ (+$), ५६८६३ (+#$), ५७२१३ (+$), ५७२४७(+#$), ५७२६३(+$), ५७२७४/+85), ५७२८७(*), ५७२९७(+०३), ५७३७८(+*३), ५७३८१ (+), ५७३९० (+), ५७४०२ (+#5), ५७८१६ (+#5), ५८३८७(+), ५८४८४(+), ५८४८६ (+३), ५८५०६(+), ५८९०२(+३), ५९२२५ (+), ५६०५१/४७), ५७२९३(४), ५७३१८(४७), ५८५६४(#$), ५८५७६(#$), ५६६१७ ($), ५८९५६ ($)
(२) कल्पसूत्र-व्याख्यान + कथा *, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषं), ५५८६५ (+$)
(२) कल्पसूत्र - कथा संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, मूपु (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ५५९२७/**६), ५७३८०(*)
"
(२) कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ५७१३८(+$) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा आदिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (नत्वा जगत्), ५७१३८ (+5)
(२) कल्पसूत्र - हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (जं स्यणि चं णं समणे), १६८८८(+) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू. (अर्हत भगवंत श्री), ५६८८८(+१३) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), ५६६६५-१(+) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणे कालने विषय तेणे), ५६६६५-१(+)
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५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समए), ५५६४०(+$) (३) स्थविरावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ५५६४०(+$) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थ सिद्धिजननी), ५६१६८-१(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत उत्पन्न), ५५९२२(+#$), ५६९०८(5) (२) कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं नत्व), ५६६२०(+) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत), ५७४६०(+#$), ५६९०७($) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (एसो पज्जोसवणा समणाण), ५८४८५(+) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणांपुरिम इह), ५५९२७(+#$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य , मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ५६०७५(+#) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ५५९३१-२(+), ५६०६४-२(+), ५६७०७-२(+),
५६९४७-२(+), ५७२१९-२(+#), ५७३१९-२(+), ५७००८-२(#) । (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रेणिकनगुणां), ५५९९२-२(+) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६७०७-२(+) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), ५६०६४-२(+), ५७२१९-२(+#$), ५७३१९-२(+) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), ५५९३१-१(+), ५६०६४-१(+), ५६७०७-१(+), ५६९४७-१(+),
५७२१९-१(+#), ५७३१९-१(+), ५७००८-१(#) (२) कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नमस्कृत), ५५९९२-१(+) (२) कल्पिकासूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५६७०७-१(+) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), ५६०६४-१(+), ५७२१९-१(+#), ५७३१९-१(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ५५७५५-१(+),
५५८१२-६(+), ५५९१५(+#), ५६०६९-१४(+), ५६५४१(+#),५६७५१(+), ५६८१६-३(+), ५६८२२-१(+#), ५६९८१(+#), ५६९८४-२(+), ५७१२२(+), ५७३६६(+#), ५८३७२-१(+#), ५८४७०-१(+#), ५८४७१-१(+), ५५९९६,५६७८४, ५७०६८,
५८४२४-४, ५८९९०,५८३४९(#), ५६७५४(६), ५७१५४-१(६), ५८३६१-१(६), ५८९६१-१(-2), ५८९६५ (-#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), ५६८९८(+#), ५७३६६(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (तद्यथा उज्जयिन्या), ५६७५४($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध*मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनायां), ५८४७१-१(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहQछे कमल ते),५६९८१(+#), ५५९९६ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीनइ), ५६५४१(+#), ५६७५१(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ५६९८४-२(+), ५७१२२(+), ५८९९०, ५७१५४-१($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-समास, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणानां मंदिर), ५५९१५(+#) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (वाचं नत्वा महानंदकर), ५९०७५ (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (विमृश्य वाङ्मय), ५९०७५ कस्तूरीप्रकर, उपा. संवेगसुंदर, सं., श्लो. ३२४, पद्य, मूपू., (स्तुत्वा वाचमनेकशास्), ५६७१९(+#) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दसणरहिओ काय), ५६७००(+#) (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ५६७००(+#) कालज्ञान, शंभूनाथ, सं., श्लो. २५५, पद्य, वै., (कालज्ञानं कलायुक्तं), प्रतहीन. (२) कालज्ञान-बालावबोध, उपा. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (अविरलमदजल कहतां अखंड), ५८१२१ (२) कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., समु. ५, गा. १७७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., वै., (शकति शंभूसंभूसुतन),
५८२४८-१(+$) कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (देविंदणयं विज्जाणंद), ५८०८५-१(+$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५०३ कालिकाचार्य कथा, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., श्लो. ८८, वि. १४वी, पद्य, म्पू., (उत्पत्ति विगम ध्रौव), ५६५०३-२ कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरुं), ५८४२०(+), ५८३१३(#) काव्यानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अकृतिमस्वादुपदा), प्रतहीन. (२) काव्यानुशासन-स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २८००, वि. १२वी, गद्य, मूपू.,
(प्रणम्य परमात्मान), प्रतहीन. (३) काव्यानुशासन-स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति का स्वोपज्ञ विवेक विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं.,
वि. १२वी, गद्य, मूपू., (विवरीतुं क्वचिद), ५८१७५(#) कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., वि. १४९२, प+ग., मूपू., (ॐ नमः श्रीमहावीरजिन), ५५७९५ (+#S), ५७२६०(+#$) कुमारपाल भूपाल प्रस्ताव, सं., गद्य, मूपू., (इहेव जंबूद्वीपे भरतक), ५७११०(+#) कुलध्वजराजा कथा-भावनाविषये, सं., गद्य, मूपू., (न विना भावने० भवे भव), ५८९०९-८ कुवलयमाला कथा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., अ. ४, ग्रं. ३८९४, पद्य, म्पू., (आदित्यवर्णं तमसः), ५६५०४(#) कृष्णश्रेणिक कथा-तीर्थप्रभावना विषये, सं., गद्य, पू., (अत्रैव भरत मगधदेशेषु), ५८९०९-२१ कोकाशनराजा कथा-देशावगाशिकव्रते, सं., गद्य, श्वे., (देसावकासिके यस्तु), ५८९०९-१२ कौमुदी कथा, सं., कथा. ८, पद्य, श्वे., (--), ५८४९०(६) । क्षपणासार, मु. माधवचंद्र त्रैविद्य, सं., गद्य, दि., (स जिन भास्करः), ५६९२६ (+$) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं), ५६५००-१२(+#), ५५९४९-१२ गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (गुणमणिरोहणगिरिणो), ५६०३५(#) गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (वुच्छं बलाबलविहिं),५६५००-७(+#), ५५९४९-८ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ५५७८१-७(+), ५६५८१-२(+) गाथासहस्री, मु. समयसुंदर, सं.,प्रा., श्लो. १०१३, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (पडिरुवायचउद्दस स्वंत), ५६९४२ गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., स. ५, श्लो. ६०७, ग्रं. १८११, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (विजयतां जिनवाक्यसुधा),
५६०८२(+#), ५६७०५ (+#), ५७०९०(+$) गुणसुंदरी कथा, सं., पद्य, श्वे., (--), प्रतहीन. (२) गुणसुंदरी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवई जे उत्तम शील), ५६१५५($) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), ५५९८९(+) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अर्हं पदं हृदि), ५७००४(+#) गुरुगुणषत्रिंशत्षत्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., षट. ३६, गा. ४०, पद्य, मूपू., (वीरस्स पए पणमिय सिरि),
५६५५६-१(+#) (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षविंशिका कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउदेसण० अखेवणा०संसार), ५६५५६-१(+#) गुरुप्रतिमा स्तुप प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शुभ नक्षत्रेषु शुभवे), ५६८४५-१ गुरुवंदन भाष्य, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (मुहणतय २५ देहा २५),५६५२६-१(+$) । गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालेणय गोअरिआ), ५८५८१-३(+), ५५९२४-१(#$) गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), प्रतहीन. (२) गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीस), प्रतहीन. (३) उदयत्रिभंगी-यंत्र, सं.,मा.गु., यं., दि., (गुणस्थानरचना प्रकृति), ५७३९७-३(#) (२) गोम्मटसार-उदीरणा त्रिभंगी, प्रा., गद्य, दि., (--), प्रतहीन. (३) उदीरणा त्रिभंगी-यंत्र, मा.गु., गद्य, दि., (अथानंतरं उदीरणा), ५७३९७-४(#) (२) गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., (णमिऊण णेमिचंद असहाय), प्रतहीन. (३) बंधत्रिभंगी-यंत्र, मा.गु.,सं., यं., दि., (आहारकद्विक), ५७३९७-२(#) (२) गोम्मटसार-सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ३५, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं०), प्रतहीन.
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
५०४
(३) सत्तात्रिभंगी - यंत्र, सं., मा.गु., यं., दि., (सत्ताकर्मप्रकृति), ५७३९७-५(#)
"
गौतम कुलक, प्रा. गा. २०, पद्य, मूपू (लुद्धा नरा अत्वपरा), ५५८८९-१(०३) ५५९३८-२ (+), ५७२७३(+०), ५८०४१-१(+४), ५८३६४), ५८३४५. ५६३३४८१
(२) गौतम कुलक- टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं. कथा. ६९, वि. १६६०, गद्य, मूपु. ( नत्वा श्रीदेवगुरुन), ५५९३८-२ (*), ५६३३४(१
(२) गौतम कुलक-बालावबोध * मा.गु., गद्य, भूपू (लुद्धा० लोभी नरा), ५८३६४(०), ५८३४५
3
१
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(२) गौतम कुलक-बालावबोध + कथा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., वि. १८४६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ५७२७३(+#) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ५५८८९- १(+#), ५८०४१-१(+#)
गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न ४८ गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थना), ५६१३० (+), ५६६४५ (+), ५६९७१(+), ५७०२९(+5),
५७०९६-१(+), ५७१३९(+#$), ५७१८७-१०(+#), ५८४३७ (+), ५८३२७, ५६८६८ (#), ५७८४२-१(#$), ५८९०७(#$), ५५८५०)
""
(२) गौतमपृच्छा - टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं. ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ५६१३० (+), ५६६४५(+#), ५७१३९(+#$), ५८४३७(+$), ५६८६८(#)
(२) गौतमपृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपु (इह हि पूर्वाचार्यप्र), ५६९७१(+)
"
(२) गौतमपृच्छा - बालावबोध, मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ५८३२७, ५७८४२-१(#$)
(२) गौतमपृच्छा - बालावबोध+कथा *, मा.गु., गद्य, भूपू (एकई गामि धनसार इसिइ), ५५८५० (३)
(२) गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ५७०२९ (+$), ५७०९६-१(+), ५७१८७-१०(+#), ५८९०७(#$) (२) गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (एकस्मिन् ग्रामे एको), ५६८६८(#)
(२) गौतमपृच्छा - कथा संग्रह, मा.गु., कथा, ३५, गद्य, मूपु. ( वसंतपुर नगरने विषे), ५७०२९(+४), ५७८४२-१४३), ५८९०७/(45) ग्रहशांति - जिननामगर्भित, सं., गद्य, मूपू., (सूर्य निमित्ते पद्म), ५७७४३-३ (+०)
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ५५८१२-१५ (+), ५६०६९-२७(+),
५७७४३-२००१, ५६०९८-३
,
,
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ५६५५३-२ (+) चंडपिंगलचोर कथा - नमस्कारमंत्र विषये, सं., गद्य, भूपू (वसंतपुर नामं नगर), ५८६७५-४(+) चंदनषष्ठिव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं., श्लो. ९७, पद्य, दि., ( प्रभाचंद्र पूज्यपाद), ५७३६०-८ (+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्नवर्णन, सं., गद्य, श्वे. (कल्पवृक्षशाखा भमा) ५७८३०-४)
"
चंद्रसुरेंद्रभ्रातृ कथा - ब्रह्मचर्यव्रत विषये, सं., गद्य, वे. (परकीय वधू भोगं ये), ५८९०९-५ चंद्रार्किपद्धति, दिनकर गणक, सं., श्लो. ३७, पद्य, वै., (सूर्यं चंद्रं सद्गुर), प्रतहीन.
(२) चंद्रार्कपद्धति चंद्रार्कि स्पष्टीकरण, संबद्ध, सं., गद्य, श्वे. वै. (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), ५९२०६ (+5)
"
',
चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १७५, पद्य, मूपू. (जगमत्थयत्थयाणं विगसि), ५६५००-५ (+४), ५५९४९-६ चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मृपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), ५८५८३-५
चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू, (सावज्जजोग विरई), ५५७२२(+), ५५७७३(+),
५५८५८-४(+#$), ५५८८९-२(+#), ५६०१९(+), ५६५०० ९(+#), ५६५३५ (+#$), ५६७६५ (+#), ५६७७२(+$), ५६७८३(+), ५७०४२(*४), ५७१२९-३(+), ५७१९४१+), ५८०३९(९), ५८४५६ (९), ५५९४९-१, ५६८८३, ५६९७२, ५८९६०) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), ५६५३५ (+#$) (२) चतुः शरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु. ग्रं. ३४७, गद्य, मृपू. (पहिलं छ आवश्यकनां), ५६२६२-२शक (२) चतुः शरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., ( सावद्य योग विरति ते), ५६०१९(+), ५७०४२(+४), ५७१९४८) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ५५७२२ (+), ५६७६५ (+#), ५८०३९(+), ५८४५६(+) (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु. ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीर), ५५८८९-२ (+०), ५६७७२(+४), ५६७८३(+), ५६८८३, ५६९७२. ५८९६०(३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., (क्वणत्किंकिणी जालकोल), ५६७७५ (+$) (२) चमत्कारचिंतामणि- टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, वै. (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ५६७७५ (+३) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (एवय समणधम्म १० संजम), ५६५८१-४(+) चरणसित्तरी विचार, प्रा., गद्य, थे. (वय५ समणाधम्म१०) ५६९०२.१(+)
,
चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (सामायिकावश्यकपीषधानि), ५५९१२ (०३)
चातुर्मासिकव्याख्यान, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, श्वे. (--), ५७७३५ (+०६)
"
"
"
चार मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू., ( चत्तारि मंगलं अरिहंत), ५५९११-५ (+या
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चरम अचरम विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (चरम आहारगभवाए संनी), ५७८२०-६(#)
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं. ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू. (स्मारं स्मारं स्फुरद ५६०८५(१), ५६७३०-१(+),
"
५६७५३(०)
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं. पण, मूपू (सामाइकावश्यक पीषधानि), ५६३०३ (+), ५६६२२ (०४), ५७६०२(+४), ५७६२१-३(+३), ५७६६०-१(+), ५७७३१(३)
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, म्पू, (नत्वा जिनपतिमाद्यं). ५७३३४(+) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु, गद्य, मूपू., (अद्य क० पहेला युगला), ५७३३४(+३) चित्रसेनपद्मावती चरित्र पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. १२३१, वि. १५२४, पद्य, मूपू. ( नत्वा जिनपतिमाद्यं), ५५९५४(क) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (प्रथम ही आदिश्वरकौ), ५५९५४/१
चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग, मृपू. (विषमेरंगुलैर्हस्तः), ५६८३२(३)
चैत्यमती की चर्चा, प्रा., मा.गु., प+ग, श्वे. (केतला कहे छे जे), ५५६२२ (+)
चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं. वि. १८६९, गद्य, मूपू (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ५९०५३-३ (+45)
,
"
५०५
चैत्र पूर्णिमा पूजा विधि, मा.गु., हिं. सं., गद्य, मूपू., (प्रथम पवित्र स्थान), ५६२५४
"
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ५६०१६ (+#), ५६८०७(+), ५७२३४(+#$),
५८४०४(+०६), ५८९०८(+), ५५९५१, ५६८०८(१), ५५८२२(३), ५६८२०-१(३)
(२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (ते काल चउथो आरो तेवा), ५६०१६ (+४), ५६८०७ (+), ५८४०४ (+०६), ५८९०८(+), ५५९५१, ५६८०८(१) ५६८२०-१(३)
(२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू, (--), ५७२३४(+०७)
(२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक - कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ५७६०१ (+), ५६२४१-१, ५८४१६ (#S), ५६२२६($) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा. वक्ष ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० तेणं), ५६०४५ (१०), ५६०५७(१), ५६०८७(+), ५६१०८(+),
""
५६१०९(०३), ५६१३४(+), ५७०२३(+३३), ५७२७६ (+), ५७२८८(+), ५८५०४(०३), ५६९३७, ५५६९८(३), ५५८१७(45), ५७३३२ ($)
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., प्र. १४२५२, वि. १६३९, गद्य, मूपू., (जीयात् तेजस्त्रिभुवन), ५६०८७ (+) (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका का पर्याय, संक्षेप, सं., गद्य, मूपू., (रि० ऋद्धाः भवनैः), ५६०४५(+#)
""
""
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं. ग्रं. १४५००, गद्य थे. (अपारे किल संसारे), ५७३३२(३) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, सं., गद्य, वे (--), ५५८१७/४३)
"
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टवार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु. ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मूपू (श्रीसिद्धार्थनराधिप), ५६०५७/*),
""
५७२७६(+१), ५८५०४ (६)
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, भूपू., (ते ते काल चउथा आरा), ५६१०८(+), ५६१०९(+३)
"
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे भरत चरित्र, प्रा., गद्य, भूपू (तेणं से भरहे रावा), ५६९७६(४), ५८३५१(१)
,
(३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति हिस्सा भरत चरित्र का टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तिहवार पछी ते भरतराज), ५६९७६(१) ५८३५१(१) जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (पांच से छबीस जोयण), ५९००५(#$)
जन्मपत्री पद्धति, आ.हर्षकीर्तिसूरि, सं. अधि. ३३, पद्य, भूपू (प्रणम्य सारवां ज्योत), ५८१९६ (३)
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५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ५५८१२-१(+$),
५५९११-८(+#), ५६०६९-७(+), ५६५६५-३(+#), ५७१८७-८(+#), ५८९११-४(+#$), ५६६९६, ५८०५६(#$) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयतिहुअणेत्यादि अत्र), ५७१८७-८(+#) (२) जयतिहुयण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतां जयवंतउ थाउ), ५८०५६(#$) जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ५७८३०-२(+) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), ५६४९५-१(+), ५८८९५-१(+) (२) जातकदीपक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणाम्म करीनै पार्श), ५८८९५-१(+) (२) जातकदीपिका पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणाम करीने), ५६४९५-१(+) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., भूपू., (सकलगुणगरिष्टान्), ५९००८-२८(#) जिनजन्ममहोत्सव अधिकार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समए), ५६६२३(+$), ५७०६९($) (२) जिनजन्ममहोत्सव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिणि कालनइ विषइ अधोल), ५७०६९($) जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ५७१८७-१(+#) । (२) जिनदर्शन श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवाधिदेव का दर्शन), ५७१८७-१(+#) जिनदासश्रावक कथा-नमस्कारमंत्र विषये, सं., गद्य, मूपू., (तत्र क्षितिप्रतिष्टि), ५८६७५-३(+) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ५८४५२-३(+#), ५८९६४-२ जिनपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ५२, पद्य, मूपू., (जैने जीवदया गुणेषु), ५६७५६(+) (२) जिनपंजर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जिनमतमांहि दया मोटी), ५६७५६(+) जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, म्पू., (सुमुहूते गृहसन्मुख), ५६९९४ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ५८९५९-२(-2) जिनशेखर कथा-सत्य, सं., गद्य, मूपू., (वृत्तिकृतोप्य प्रतीत), ५८९०९-१८ जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १०५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो), ५७१८५-१(#$),
५७१८५-७(#S) (२) जीतकल्पसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. १७००, वि. १२७४, गद्य, मूपू., (वंदे वीरं तपोवीर), ५७१८५-१(#$) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ५५८१२-११(+),
५५८५८-३(+#), ५५९३३(+),५५९६१(+),५६०६९-१५(+), ५६३५८(+), ५६६४७-१(+), ५६६५५-१(+),५६६७७(+), ५६६८१(+), ५६६९५(+#$), ५६७१७-१(+), ५६८३४-१(+), ५६८५१-१(+), ५६८५८-१(+#), ५७०३९(+), ५७०४७-१(+#), ५७०५३(+#), ५७०६७-१(+#), ५७१०१(+$), ५७१२९-१(+#), ५७१८७-११(+#), ५७२३५-१(+#), ५७७५१-२(+), ५७७९०(+), ५८३२६-२(+#), ५८३४७-१(+#), ५८३५३(+), ५८३५८(+#), ५८३७०-१(+), ५८४१०-१(+#), ५८५५४(+), ५८९११-१३(+#),
५९२२४-१(+#$), ५५९०१,५६५२४, ५७०६१, ५८९२६,५५८६२-१(#), ५७१४७(#), ५७६६६-२(#) (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, म्पू., (अस्यां गाथायां पूर्व), ५६६४७-१(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टिप्पण*, सं., गद्य, मूपू., (त्रिभुवने प्रदीप), ५८३४७-१(+#) (२) जीवविचारप्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवसरुव० संसारमाहि), ५७१४७(#) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ५६८५८-१(+#), ५७१०१(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू, (तीन भुवन रै विषै), ५५९६१(+), ५६६७७(+), ५६६८१(+), ५६६९५(+#s),
५६७१७-१(+), ५६८५१-१(+), ५७०३९(+), ५७०५३(+#), ५७१८७-११(+#), ५७७९०(+), ५८३२६-२(+#), ५८३५३(+),
५८४१०-१(+#), ५८५५४(+), ५५९०१, ५६५२४, ५७०६१, ५८९२६ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रिभुवनदीप निभ), ५७६६६-२(#) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे पईवं), ५८३५८(+#) (२) जीवविचारप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवन कहतां स्वर्गमृत), ५५९३३(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं गुरोवा),५६६५५-१(+), ५७१०१(+$)
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५०७
म., मपू., (तेण काल
८२९(+5), ५७१७८३२८९+६),
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ ।
(२) जीवविचार प्रकरण-अर्थ, गु., वि. २१वी, गद्य, मूपू., (भुवनमां दीपक समान), प्रतहीन. (३) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनेशं नमस्कृत्य), ५६३५८(+) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ५६११०(+), ५६५६१(+$),
५७२८४(+#S), ५७३४३(+#), ५७४०१(+$), ५७३०५(#S), ५७३२४(#$), ५७३२५(#) (२) जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., प्रतिप. १०, ग्रं. १४०००, गद्य, मूपू., (प्रणमत पदनखतेजःप्रति), ५७३०४(+#),
५७४०१(+$) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २००००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ५६११०(+), ५७३४३(+#), ५७३०५ (#$) (२) जीवाभिगमसूत्र- २४ दंडक २७ द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संधैण), ५६१७४(६) जीवोत्पत्ति विचार गाथा, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंडजाः पक्षिसाद्य), ५७७६०-३७ (२) जीवोत्पत्ति विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंखीजात सर्पजाति ए), ५७७६०-३७ जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे., (उस्सासट्ठारमे भागे), ५५८८७-२(+$) जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ५७७६०-१, ५८६४६-२ (२) जैन गाथासंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयांसकुमारे), ५७७६०-१ जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ५६१४३-२(+#) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ५८६४२(+$) । जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताण), ५५९०३-९ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ५६३२८-२(+#), ५७०२८-२(+#), ५८६२७-२०(+), ५८६२७-२३(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेण० चपाए), ५५९३९(+#$),
५५९४०(+#S), ५६०३७(+#), ५६०७३(+$), ५६५९२(+#s), ५६६३१(+$), ५६८७३(+$), ५६८९९(+$), ५७१७८(+$), ५७१८१(+#$), ५७२८३(+#$), ५७३३०(+), ५७३५०(+), ५७३५२(+), ५७३९८(+$), ५७५८१(+$), ५८३१२(+$), ५८३२८(+$), ५८३४०(+#$), ५८४०७(+$), ५८५०१(+#), ५९२३३(+#$), ५७३१२(#), ५७३४५(#), ५६६०९(s), ५६६३४(s), ५६८९३($),
५७१७०() (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, म्पू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं),
५६८७३(+5), ५७१६३(+#), ५७१७२(+), ५७२८३(+#$), ५७३५२(+), ५५९४८ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५५९४०(+#s),
५६५९२(+#S), ५७३४५(२) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., वि. १६९९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५७३९८(+$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १०५००, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा वीरं जिनं०), ५६०३७(+#), ५७३३०(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ५५९३९(+#$), ५६०७३(+$), ५६६३१(+$),
५७१७८(+$), ५७१८१(+#$), ५८३१२(+s), ५८३२८(+$), ५८३४०(+#$), ५९२३३(+#$), ५७३१२(#), ५६८९३(६), ५७१७०() (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा १६अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (मज्जाणथए
उपडिणिक्खमइ), ५७७२९($) (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा १६अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मजणघरमांहि थी
नीकल), ५७७२९(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययननाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मेघकुमारनो अध्ययन१), ५८६२७-१३(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. १००, गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), ५५६५४(+), ५६२०४-२(+),
५६२८३(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. लालविजय, मा.गु., अध्य. १९, पद्य, मूपू., (--), ५७४२८(+$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ५५९११-१४(+#), ५७०४३-३(+), ५७१९१-५(+),
५५९२४-६(#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ५६००१-४ (+$), ५६१७६-१७(+), ५८३६२-३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, भूपू (-), ५९०५३-४(००३)
ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू (नमंत सामंतमही विनाहं), ५७१९१-३(०)
ज्ञान पूजा, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू (नमंति सामति महीबनाह), ५५७८१-५ (०)
ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमनेन), ५८९१३-१(+) ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., स. ४२, श्लो. २०७७, पद्य, दि., (ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेष), ५८०७२(+$)
(२) ज्ञानार्णव- तत्वत्रयप्रकाशिनी टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, दि. (शिवोयं वैनतेयच), ५६८२७(+)
ज्योतिष, मा.गु., सं., हिं., प+ग., जै., वै., (--), ५६४९३-२ (+), ५६४९५-२ (+), ५६८३५-२ (+), ५६९८४-१ (+), ५८८९५-२(+),
५८२२०-२, ५५७५४-३(१) ५८८९२-३(०) ५८२२६-२८१
ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ, सं., प्रा., मा.गु. प+ग १ (-), ५८१९२-२ (०)
,
"
ज्योतिष श्लोक, मा.गु., सं., पद्य, वै., (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ५६३२३-२(+) ज्योतिष लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (त्रिषडेएकादशी राह), ५६५०८-३(+)
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ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ध्रुवघटी पुटपंक्ति), ५६३०२-२(+#)
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू. (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ५६४९३-१(+), १६४९७(+), ५६४९८(+१),
५७९२५ (+#5), ५८१७९ (+5), ५८१८१(+), ५८१९१(+३), ५८१९२-१(+), ५८१९८ (०३), ५८२०२ (०३), ५८२०५-१(०३), ५८२१९(+), ५८२२४(+$), ५८२२७-१ (+), ५८८८४(+#), ५८८८७(+), ५९१४४(+#S), ५८१८७, ५८२४४, ५८२४७, ५८१९९(०३), ५८२१२(३) ५८२२०-१(३), ५८८९६(३), ५८२२६-११
(२) ज्योतिषसार टिप्पण, सं., गद्य, म्पू, (पक्षस्य प्रतिपत्), ५८२१९ (+), ५८२२७-१(+४)
(२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ५८२२४(+$)
(२) ज्योतिषसार टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभगवानने), ५६४९३-१(+), ५७९२५ (+४४), ५८१९१(०४), ५८१९८ (+०६),
५८१८७, ५८२४४, ५८२४७
(२) ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (अर्हतं जिनं नत्वा), ५७९८२ (+#$) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मूपु. ( तं नमामि जिनाधीश), ५८८९२-१(०३) ज्योतिष्करंडकप्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., प्राभृ. २१, गा. ४०५, पद्य, मूपू., (कातूण नमोक्कारं जिणव), ५८२१७($) (२) ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ५०००, गद्य, मूपु. ( स्पष्टं चराचरं विश्व), ५८२१७($) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र - सबीज, सं., गद्य, मूपू., ( ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ५६८२२-३(+#) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा. प+ग, मूपू (निज्जरिय जरामरण), ५६५००-४००) ५५९४९-५, ५६९५०
"
(२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-वालावबोध, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मृपू. (कल्याणवल्लीतती०), ५६९५० तत्त्वार्थसार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ८, पद्य, दि., (जयत्यशेषतत्त्वार्थ), ५८४३१(+) तप कुलक, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. २०, पद्य, भूपू (सो जब जुगाड़जिणो), ५८०४१-३(१०) (२) तप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते जयवंत हु), ५८०४१-३(+#)
तपागच्छीय पट्टावली. ग. शुभविजय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनशासन), ५९०१५ (१०) (२) तपागच्छीय पट्टावली-टीका, सं., गद्य, म्पू, (श्रीवर्द्धमानशासनजिन), ५९०१५ (8)
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ५५७७२-२ (+), ५५८१२-९(+), ५६०६९-११(+), ५८४७७-२(+), ५८९११-७/००) ५८९२७.५(०), ५८९५५-२(5)
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू (सद्भक्त्या देवलोके), ५५८१२-५म
""
तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा., मा.गु., प+ग, श्वे., (छ लेस्या हुति वीरके), ५७४९२-२(+$)
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पर्व १० नं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू..
(सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ५६०४६(+#), ५७२६१ (+$), ५६००९(#), ५७१६९($)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५०९ (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १२, ग्रं. ४७८८, ___पद्य, मूपू., (नमो विश्वनाथाय जन्मत), ५६०४९(+$), ५७२१०(+#), ५७३९५(+) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १३, ग्रं. ३४६०, वि. १२वी, पद्य,
मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), ५६६४४(+#S), ५७२८६(+), ५७१६०(६) (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान),
५६७३८-३(+#), ५८९२४-३(+#), ५८९४५-२(+), ५८३३८-२ त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्धाभिध), ५६७१४(+), ५८०९०(+), ५८१५७(+#$),
५८४४१(+#$) थोकडा संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५८६७०-२ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीसजिणे तस्स), ५५६८०(+), ५५६८२(+-),
५५७७७(+$), ५५८१२-१३(+), ५५९०७(+#), ५६०६९-१७(+), ५६७१७-३(+), ५६८३४-३(+), ५६८५८-३(+#), ५६९३३(+), ५७०४७-३(+#), ५७०५२(+#), ५७०७१-२(+$), ५७२३५-३(+#), ५७७५१-३(+), ५८०५१-१(+), ५८३२६-३(+#), ५८३४७-३(+#S), ५८३७०-३(+), ५८३७६(+#), ५८४१०-३(+#), ५८९११-१४(+#), ५९२२४-४(+#), ५५७८८, ५५९१४,
५६८८९, ५७१९८-१, ५८३३८-१, ५५८६२-३(#) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामय), ५७१९८-१ (२) दंडक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चतुर्विंशति), ५८३४७-३(+#$) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (इहां चोवीस दंडकानइ), ५६८५८-३(+#) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., वि. १५७९, गद्य, मूपू., (चउविश तिर्थंकरने नमस), ५८०५१-१(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ५५६८०(+), ५५६८२(+-), ५५७७७(+$), ५५९०७(+#),
५६७१७-३(+), ५६९३३(+), ५७०७१-२(+$), ५८३२६-३(+#), ५८४१०-३(+#), ५९२२४-४(+#$), ५६८८९, ५५७८८($) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउंक.चउवीस तीर्थ), ५५९१४ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीनइं चउवीसतीथ), ५८३७६(+#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (सुपार्श्व जिनं नत्वा), ५७०५२(+#) दशलाक्षणिक कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ६७, पद्य, दि., (अर्हतं भारती विद्य), ५७३६०-११(+) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ५५६११(+$),
५५६३९(+#S), ५५७००(+#$), ५५७३७(+#s), ५५७४४(+#$), ५५७७१(+#S), ५५८७५(+#$), ५५९१६(+#$), ५५९४४(+), ५५९६५(+$), ५६१५३(+$), ५६५६८(+#), ५६५७२-१(+), ५६५८४(+$), ५६६३८(+), ५६७०३(+), ५६७१२(+#$), ५६७१८(+#), ५६७४४(+$), ५६७९१(+$), ५६८३४-४४+), ५६८७६(+#$), ५६९४६(+), ५७०९७(+$), ५७१००(+#$), ५७१०२(+#$), ५७१०९(+$), ५७११२(+$), ५७२३१(+#$), ५७२५८(+), ५७२६७-१(+), ५८३४४-३(+), ५८३६५(+$), ५८३९३(+#), ५८३९७(+), ५८४००(+), ५८९४४(+$), ५९२३०(+), ५६८६४, ५६०२६(#s), ५६५११(#$), ५६६३०(#s), ५६७३१(#$),
५६७६४(#$), ५७१८९(#S), ५७२२३(#$), ५८४०८(#), ५६८९०(5), ५६९६१(६), ५७०११(६), ५७१८६($) (२) दशवैकालिकसूत्र-टीका*,सं., गद्य, मूपू., (--), ५५६३९(+#$), ५५९१६(+#$) । (२) दशवकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अध्य. १० चूलिका २, ग्रं. ३४५०, वि. १६९१, गद्य, मूपू.,
(स्तंभनाधीशमानम्य), ५९२३०(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ५६७१८(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ५५७३७(+#$), ५६६३०(#$), ५६७६४(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, मूपू., (--),५६७१२(+#$)
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५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ५५६११(+$), ५५७००(+#$), ५५८७५ (+#$), ५५९४४(+),
५५९६५(+$), ५६५६८(+#), ५६५७२-१(+), ५६६३८(+), ५६७०३(+), ५६७४४(+$), ५६८७६(+#$), ५६९४६(+), ५७०९७(+$), ५७१०२(+#$), ५७१०९(+$), ५७२३१(+#$), ५७२५८(+), ५७२६७-१(+), ५८३४४-३(+), ५८३६५(+$), ५८३९३(+#),
५८३९७(+), ५८४००(+), ५६८६४, ५६०२६(#$), ५७२२३(#s), ५८४०८(#), ५६८९०(६), ५६९६१(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ),
५६७५८-३(+) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), ५६७५८-३(+) (२) दशवैकालिकसूत्रगत गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिजभवं गणहरं जिण), ५६५७२-२(+),
५७२६७-२(+5) (३) दशवैकालिकसूत्रगत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिज्जभवनामा गणधर), ५६५७२-२(+), ५७२६७-२(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ५६३३२(+#),
५७५६२(+$) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, म्पू., (नमो अरिहंताणं हवइ), ५५८६७(+$), ५५९६०(+#),
५६०६७(+), ५६५०९(+#), ५६९४०(+), ५६९६४(+#$), ५७४०९(+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १४१, पद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), प्रतहीन. (३) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-नियुक्ति की चूर्णि#, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (४) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-चूर्णि की भव्य-अभव्य हुंडी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एणइ आलावइ जिको मिथ्य), ५६७४२-३ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-विषमपद टिप्पण*, मागु., गद्य, मूपू., (--), ५६९६४(+#$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., वि. १७०८, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ५६९४०(+), ५७४०९(+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), ५५८६७(+5), ५६०६७(+), ५६५०९(+#) दानवेंद्र कथा-नाट्यविधि, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतेदेश्य), ५८९०९-२२ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ५५९६३-२(+#), ५६७५५(+),
५८३५६(+#) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), ५६७५५(+), ५८३५६(+#) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रजसारो), ५६५८३(+#$), ५५८९४-१ (२) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., ग्रं. १२०१६, वि. १६६६, गद्य, मूपू., (ॐ नमो
नाभिभूपाल संभव), ५६५८३(+#$) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउंछाडिउ सग),५५८९४-१ । (२) दानशीलतपभावना कुलक-कथा, ग. देवविजय, सं., गद्य, म्पू., (ग्रामेशस्त्रिदशो२), ५६५८३(+#$) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ५७६३३ दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ५५८०४-१(+#),
५५८७८(+), ५६६७१(+), ५६८१९(+), ५७०२१(+#$), ५८९१५(+$), ५६८०४, ५६८०३(६), ५८४०६($) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. १२००, वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अहँत बालबोधानां), ५६८०४ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हन्नत्वाल्पबुद्धी), ५५८७८(+), ५६८१९(+), ५७०२१(+#$), ५८९१५(+$) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अष्ट माहाप्रातिहार्य), ५५८०४-१(+#), ५६८०३() (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ५८४०६($) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ५६९२०-१ दीपावलीपर्वकल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., श्लो. २७८, वि. १३४५, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५६९९०(#) दीपावलीपर्वकल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्धमान), ५७३६७(#$) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७३६७(#$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., श्लो. ४, प+ग., मूपू., (पापायां पुरिचारुषष्ट), ५६८५४ दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू (पापायां पुरि चारु), ५५९२४-१७(१६) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. गा. ४४, पद्य, म्पू, (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ५५८१२-३(०), ५६०६९-३(+),
"
५६७३०-३ (+३), ५८९११-११(०३)
(२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (अहं तस्य महावीरदेव), ५६७३०-३(+$) दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), ५७५०३(+#$)
दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. १०२, पद्य, वे., (नत्वा श्रीवृषभं सदा), ५६९५५ (+), ५६९८० (+) (२) दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई), ५६९५५ (+), ५६९८० (+$) देवताअधिकार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, वे (अणमिसनवणा कजसाहणा), ५७७६०-४२
,
(२) देवता अधिकार गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (अणमिसनैणा कहता देवता), ५७७६०-४२ देवदत्तजयदत्त कथा - परिग्रहविषये, सं., गद्य, श्वे. (यथा श्रृण्वंतु भो), ५८९०९-६
देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, प्रा. मा.गु. सं., पग, मूपू., (इच्छामि खमासमणो बंदि), ५६३३०-१(+४) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., गा. ३११, पद्य, मूपू., (अमर नरवंदिए वंदिऊण), ५६५००-६ (+#), ५५९४९-७ देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., वर्ग. ८. ग्रं. ३७५. वि. १२वी, पद्य, मृपू. (गमणय पमाण गहिरा सहिय),
(२) धर्मचतुस्त्रिंशिका - टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म जे दान शील तप), ५८३५०-१(#)
धर्मदत्त कथा, सं., गद्य, मूपू.. (--). ५७१३४(+)
५८१८६(०)
(२) देशीनाममाला - स्वोपज्ञ टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (देशी दुःसंदर्भा प्रा), ५८१८६ (+) द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर सं., अ. १५ ग्रं. २९५६, पद्य, मूपू (श्रीयुगादिजिनं नत्वा), ५६८०२ (२) द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, मूपू., ( श्रियं निवासं निखिला), ५६८०२ व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. २०, पद्य, भूपू (२) द्व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं. वि. १३१२, गद्य, भूपू धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), ५८२२३-१ (+), ५८७६९(+#), ५७९८७(#$) धर्मचतुखिंशिका, मु. तेजसिंह ऋषि, सं., श्लो. ३६, वि. १७६२, पद्य, वे (धर्मप्रकाशाय सुपार्श), ५८३५०-१०)
(अर्हमित्यक्षरं ब्रह), १७४००(०), ५८९८५ (98) (श्रीभूर्भुवः स्व), ५७४००१), ५८१८५ (१९)
3
धर्मदत्त कथा, सं., गद्य, म्पू., (--), ५५९८८ (०३)
(२) धर्मदत्तकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (--), ५५९८८(+$)
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धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु, गद्य, मूपु (धम्मेज्झाणे चढविहे), ५८६६३(+१) ५७०५४-१, ५६९५३-२ (०) ५७५४४(१)
"
(२) धर्मध्यान लक्षण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आणावीज कहेता वीतरागन), ५६९५३-२(#)
धर्मरत्नकरंडक, आ. कर्द्धमानसूरि, सं. अधि. २०, श्लो. ३७६, पद्य, भूपू (सर्वनीतिप्रणेतारं), ५६०९१(+)
"
"
"
(२) धर्मरत्नकरंडक - स्वोपज्ञ टीका, आ. वर्द्धमानसूरि. सं. वि. १९७२, गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीजिनं), ५६०९१(०) धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, पद्य, मूपू., (नमिऊण सबलगुणरयणकुलहर), १७६६३-१(+) (२) धर्मरत्न प्रकरण- टीका, सं., गद्य, म्पू, (गुणाः अक्षुद्रतादव), ५७६६३-१*)
(३) धर्मरत्न प्रकरण- टीकागत-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (हस्तिनागपुरे नाग), ५७६६३ ११०)
(२) धर्मरत्न प्रकरण - सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं. ग्रं. १७००, गद्य, मृपू., (सज्ज्ञानलोचनविलोकितस), ५७३२७(+४७)
3
(२) धर्मरत्न प्रकरण-कथासूचि, संबद्ध, सं., गद्य, भूपू (पशुपालक दृष्ठांत: १) ५७६६३-२(*) धर्मलक्षण, सं., श्लो. २५, पद्य, मृपू., (धर्मार्थं क्लिश्यते), ५६५०३-३
धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, श्वे., (संसारेमावन्नपरस्स), ५८९२३(+#) (२) धर्मोपदेश लोक संग्रह - अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव संसारमा अवतर्यो), ५८९२३(+#) ध्वजप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, मूपू., (गंधोदक पुष्पादिभि), ५६८४५-३ ध्वजारोहण विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम भुमी), ५९०२४
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५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सर्वासि वासे सुतरां), ५७५९७-३ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ५५७०७(+#$), ५५८०२(+$),
५६६७२(+#$), ५६७४३(+$), ५७०८५-१(+$), ५७३९१(+),५७४०६(+), ५७४०८(+#), ५८३२३(+), ५८९१२(+),५६६०२,
५६९३८, ५८३४२(#$), ५६९७८($) (२) नंदीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ७७३२, गद्य, मूपू., (जयति भुवनैकभानुः), ५९२२०(+) (२) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देण), ५५८०२(+$), ५६७४३(+$), ५७३९१(+), ५७४०६(+),
५७४०८(+#), ५६९३८, ५६९७८(5) (२) नंदीसूत्र-कथा संग्रह *मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूपू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर), ५७३९१(+) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ५७०९४-१(+) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ५८६२४(+), ५८९२७-१(+), ५६९६०-२(#), ५६३३१(६) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ५७७१२-१(+#$), ५५६६६-१, ५७६०३,
५६९६०-२(#), ५७७४२(#), ५६३३१($) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ६, गद्य, मूपू., (एह श्रीनउकार भावसहित), ५६१८२ (२) नवकारमंत्र-कथा, सं., कथा.५, गद्य, मूपू., (एषा नमस्कारमहिमावानस), ५८६२४(+), ५८९०९-१५ नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कारप्रभावे इह), ५८९०९-१४, ५६६१८६६) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), ५५७७२-३(+), ५८४७७-३(+#), ५८९२७-३(+) नयचक्र, मु. माइल्लधवल, प्रा., गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन. (२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), प्रतहीन. (३) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (स्यात्कारमुद्रिता), ५६५९८(+), ५७४९२-१(+) नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), ५५९०५(+) (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), ५५९०५(+), ५७५६९ नवकार माहात्म्य, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणपढम), ५७४५२(+#$), ५८६४६-१ नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं काश्य), ५५६३३-२(+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ५५६७४(+#$), ५५८१२-१२(+), ५५८५८-२(+#$), ५५८९१(+),
५५८९५(+#$), ५५९०४(+#$), ५६०००-३(+#), ५६०६९-१६(+), ५६६४७-२(+), ५६६७०(+), ५६६७८(+$), ५६७०९(+$), ५६७१७-२(+), ५६७४७(+#), ५६७६०(+), ५६७८५(+#), ५६८३४-२(+), ५६८३९-२(+$), ५६८५१-२(+),५६८५८-२(+#), ५७०४७-२(+#), ५७०६७-२(+#), ५७०७१-१(+$), ५७०७४(+#), ५७१२९-२(+#), ५७१९०(+), ५७१९२(+#$), ५७२३५-२(+#), ५७७५१-१(+), ५८३२६-१(+#), ५८३४७-२(+#), ५८३७०-२(+), ५८४१०-२(+#), ५८४५०(+#$), ५८४६९(+), ५८९११-१२(+#), ५८९३७(+$), ५९२२४-२(+#), ५६६८५, ५६६८९, ५६९२८, ५६९८५, ५८३८१, ५५७५४-१(#),
५५८६२-२(#), ५७४७६(#), ५७६६६-१(#), ५८३३६-१(#), ५८३४१(#$), ५६५४४(६), ५७१९८-२(5), ५८४०९() (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४७७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनपति), ५६७८५(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण- टीका, सं., गद्य, भूपू., (जयति श्रीमहावीरः), ५५९०४(+#), ५६६४७-२(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीर), ५८४५०(+#$), ५७१९८-२(६), ५८४०९($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टिप्पण*,सं., गद्य, मूपू., (जीवति दशविधान), ५८३४७-२(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथावस्थित साचउंजे), ५७०७४(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथा स्थित साचउंजे), ५७४७६(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व१ अजीवतत्व), ५७७२४ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५७१९०(+), ५७४१८(+#), ५८३४१ (#$), ५६५४४($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*,रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), ५७१९२(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक् दृष्टि जीवनइ), ५६८५८-२(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. २००, गद्य, मूपू., (हवे विवेकि सम्यग्), ५८६३३-१, ५६२०७($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय पं., मा.गु. गद्य, म्पू, (श्रीवीरजिनं नत्वा), ५७१९० (+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), ५५६७४ (+#$), ५५८९१ (+), ५६०००-३(+#), ५६६७०(+), ५६६७८(+४), ५६७१७-२(+४), ५६७४७(१९), ५६८३९-२(+४), ५६८५१-२(+४), ५७०७१-१(+४), ५८३२६-१(००६), ५८४१०-२(००), ५८४६९ (+), ५८९३७ (+३), ५६९२८, ५६९८५, ५७६६६-१(०१, ५८३३६-१शक
"
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू ( जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५६७०९ (+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. भवानीदास, मा.गु., गा. २११, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीश्रीजिन वीरक), ५८३८१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ पाठक, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी मनमैं), ५८०३३ (+#) (२) नवतत्व प्रकरण- पचीसवोल, संबद्ध, मु. यश ऋषि, मा.गु., पद्य, मूपू (सासणपति श्रीवीरजिन), ५६३१२ (०३) (२) नवतत्त्व प्रकरण- बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवतत्त्व बीजो), ५६१९२-१(+#), ५७७५२(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण- बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मृपू. (हवे विवेकि सम्यग्दृष), ५५६४९, ५७४९६ (२) नवतत्त्व प्रकरण- बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५७८६५ (+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व नाम जीव), ५७४८६ (-#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को. भूपू (नवतत्त्व नामस्वरूप), ५७५५४०) नवपदतप ओली आराधन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आसो सुद सातमथी), ५६२५९ ($)
""
',
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. मा.गु. सं., पूजा. ९, पद्य, भूपू (उपन्नसन्नाणमहोमयाण), ५७६१६(+४), ५७८०५ (+०७), ५८५७२-१(+), ५८६०९-२(+०), ५८६१३(+), ५८६३१-१, ५८५६०१)
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., स्मर. ९, प+ग म्पू, नमो अरिहंताणं हवइ), ५५७३६ (+४), ५५८२०-१(१०), ५५९७८),
"3
११९८६-१(+), १६५१६(+), ५६७१०-१(+३), ५६७३२(+), ५६७३८-१+०३), ५६७८२(+३), ५७११३-२(+३), ५७१२१(+३), ५७१९५ (+०३), ५७७४३-१(००), ५८०८८-१(+४), ५८३१६ (+४७), ५८३५५(०) ५८४५२ -१(+०३), ५८९२४-१(+), ५६०९८-१, ५६९९१(#$), ५८३३१(s), ५८९३५-१ ($)
(२) नवस्मरण- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू, (अरिहंतनई माहरो), ५६५१६ +०३), ५६७१०-१ (+), ५६७३२(+), ५८३१६ (+#5) नारकीवेदना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (संकडकुंभीपाय असिवण), ५७१५१-३
(२) नारकी वेदना गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (सांकुडी नरककुंडी), ५७१५१-३
"
निर्दुखसप्तमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं., श्लो. ४४, पद्य, दि., (विद्यानंद प्रभाचंद), ५७३६०-१५ (+)
निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थ कम्म), ५८४१४(+), ५५८७१
(२) निशीथसूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मृपू., (--), प्रतहीन.
(३) निशीथसूत्र - निर्बुक्ति की विशेषचूर्णि #. ग. जिनदास महत्तर प्रा. सं., वि. ८वी, गद्य, मूपू. (--), ५६१०२-१ (२) निशीथसूत्रभाष्य, प्रा., गा. ६७०३, पद्य, भूपू (णवबंभचेरमइओ अट्ठारस), प्रतहीन,
י
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(३) निशीथसूत्र - भाष्य की विशेषचूर्णि #, ग. जिनदास महत्तर प्रा. सं., वि. ८वी, गद्य, भूपू (--), ५६१०२-१
""
(२) निशीथसूत्र - विशेषचूर्णि #, ग. जिनदास महत्तर, प्रा., सं., ग्रं. २८०००, वि. ८वी, गद्य, मूपू., (नमिऊण अरहंताणं सिद्ध),
(२) निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जे साधु ह० हस्तक), ५५८७१
नृपशेखरराजा कथा- प्राणातिपात विषये, सं., गद्य थे. (हिंसा दुःखलतामूलं). ५८९०९-२
1
नेमिजिन चरित्र, प्रा., पद्य, श्वे., (नमिउण सिद्धसिव), ५७२१८
५६१०२.१
(३) निशीथसूत्र- विशेष चूर्णी # काहिस्सा विंशोद्देशक, ग. जिनदास महत्तर, प्रा. सं., अ. २० वां उद्देशक, वि. ८वी, प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन.
(४) निशीथसूत्र - विशेषचूर्णि का हिस्सा विंशोदेशक की सुबोधा टीका, आ. श्रीचंद्रसूरि सं. वि. ११७४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य वीरें सुरवंदि), ५६१०२-२
नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य, श्वे. (मथुरायां हरिवंशे बहु), ५६६५७(s)
"
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सस्ट
५१४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
नैषध चरित्र, क. हर्ष, सं., स. १२, पद्य, वै., (निपीय यस्य क्षितिरक), प्रतहीन. (२) शांतिनाथ चरित्र, उपा. मेघविजय, सं., स. ६, पद्य, मपू., (श्रियामभिव्यक्तिमनो), ५७०९५(+#) (३) शांतिनाथ चरित्र-टिप्पण, सं., गद्य, म्पू., (श्रियां अभिव्यक्तं), ५७०९५(+#) न्यायसार, भासर्वज्ञ आचार्य, सं., परि. ३, गद्य, वै., (प्रणम्य शंभु जगतः), ५८०४०-१(+#$) न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३२, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (प्रमाणं स्वपराभासि), ५८०४०-२(+#) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ५६३३३(+#$) (२) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता कहता), ५६३३३(+#$) पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग., श्वे., (श्रीवामेयं जिन), ५६८८७(+#) पंचपरमेष्ठि वर्णगाथा, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (शशिधवला अरिहंता), ५५६६६-२ पंचमिथ्यात्वविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (अभिगाह अनाभिगो), ५७७६०-४० (२) पंचमिथ्यात्वविचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो अभिग्रह मिथ्या), ५७७६०-४० पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ५६५७५-५(+) पंचसम्यक्त्वविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (क्षायक उपसम वेदो), ५७७६०-३९ (२) पंचसम्यक्त्वविचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो क्षायक सम्यक्त), ५७७६०-३९ पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., सूत्र.५, गद्य, मूपू., (णमो वीयरागाणं सव्व),५६६१३(+), ५६६४८(2) (२) पंचसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ८८०, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मान), ५६६४८(#) पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे.?, (कुश्रितं कुप्रनष्ट), ५७५७७(+#) (२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, श्वे.?, (दक्षिणदेश तिहां महिल), ५७५७७(+#) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), ५६५९०(+#) (२) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग),
५७१८५-२(#s) (३) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ५७१८५-२(#$) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रामवासी वसु), ५७४४९(+) पट्टावली-तपागच्छ, प्रा.,सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामी), ५७३०२-२(+#) (२) पट्टावली-तपागच्छ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने श्रीवीरजिने), ५७३०२-२(+#) पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ),५६७३४ (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), ५६७३४ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविध), ५७७९७ पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ५८४४४-१ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रींकलिकुंडदंड), ५८९९७-७ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ५६५५७(+#), ५७१४५(+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, मु. मुनिचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (ॐ ॐ ॐकार बीज), ५८९५९-५(-2) परमहंससंबोध चरित्र, उपा. नयरंग वाचक, सं., प्र.८, श्लो. ८९०, वि. १६२४, प+ग., मूपू., (चिदानंदमयं सार्व), ५६७२१(+#) परमाणुमान कुलक, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (पुढवाइ आसत्ता सव्व), ५८४६८-२(+#$) पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (अहन्नं भंते तुमाणं), ५७४४८-२(+#) पर्यंताराधना, आ.सोमसूरि, प्रा., गा.७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयव), ५६०३०+), ५६५४५(+), ५७१२७(+),
५८३७७(+#), ५८४७३(+), ५५८३८, ५६१००-१, ५८०६१(#) (२) पर्यंताराधना-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनइं), ५६०३०(+), ५५८३८, ५६१००-१ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ५६५४५(+), ५७१२७(+), ५८३७७(+#), ५८४७३(+) (२) पर्यंताराधना-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेश्वर प्रत्यै), ५८०६१(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ (२) पर्यंताराधना-चयन, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ५७७८७(+) (३) पर्यंताराधना-चयन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पहिकमि इरियावह), ५७७८७(+$) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ५६५६४(+), ५६८८६(+),
५६८९७(+), ५६९९२(६) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*मा.गु., गद्य, म्पू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), ५६५६४(+) पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., स. १८, ग्रं. ८०००, पद्य, मूपू., (श्रियं विश्ववयत्रा), ५७३७०(+#) पांडव चरित्र, ग. देवविजय, सं., स. १८, ग्रं.१००००, वि. १६६०, गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभस्वामियोग), ५६१२१(+) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ५६००१-३(+), ५६१७६-२२(+), ५८४७६-२(+#),
५८३६२-६ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ५७०६४(+) पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., स.८, ग्रं. ५५००, वि. १६५४, गद्य, मूपू., (प्रोद्यत्सूर्यसम), ५६०५९-१(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ५६८१६-२(+), ५६८२२-२(+#), ५७७४३-४(+#) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद्र, सं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अर्हत भगवत वामानंदन), ५८५१०-२४(२) पार्श्वजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अविचललक्ष्मीविमल), ५७०६७-३(+#) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ५६०६९-२१(+) पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, म्पू., (श्रीवामेयं विधुमधुसु), ५५७५५-३(+) पार्श्वजिन स्तव-जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्रभुंजीरिकापल्लि), ५५७५५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (कस्तूरीतिलकं भुवः), ५५७५५-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु.,सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जयउ रिषभवर्द्धमानौ), ५६०६९-२३(+) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ३, गा. १९, वि. १६६५, पद्य, मूपू.,
(नमिअ सिरिपासजिण सुजण), ५६१४१-१५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू., (सर्वदेवसेवितपदपद्म), ५६०६९-२०(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ५५९११-१२(+#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया),
५८९५९-४(-2) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ५६१८३-१५(+#) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ट्रेनें कि धप), ५५९११-२९(+#), ५६१८३-१४(+#),
५७०४३-१२(+), ५८०५१-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ५५९११-१७(+#), ५७१९१-७(+$), ५५९२४-५(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ५५९११-१६(+#), ५५९२४-३(#) पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ५५९११-१८(+#),
५७१९१-८(+), ५५९२४-१०(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसार), ५६०६९-२२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्रसुरपति), ५८९५९-३(-#) पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (भलु आज भेट्यो प्रभु), ५८८७६-९(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ५८५२९-६४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वविभो), ५५७८१-९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकल मंगल मंजुल मालिन), ५९०२५-५ (#$) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (नमो देवनागेंद्रमंदार), ५६३२९-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (नत्वा प्रभुपार्श्व), ५८५२९-६३(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ जिनप्रभसूरि, प्रा. गा. १०, वि. १४बी, पद्य, मूपू., (दोसावहारवक्खो नालिया),
"
५५८१२-१० (+), ५६०६९-१२ (+), ५८९११-८(+#)
पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू.. ( जय जय जगनायक), ५७८६३-१६(१) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ५६४७९(+#), ५८१५०, ५५६५५-१(#)
(२) पाशाकेवली भाषा से संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे. (१११ उत्तम धानक लाभ), ५६४८६ (+)
"
-
पिंडनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६७१, पद्य, मूपू., (पिंडे उगम उप्पाय), ५६८७९(३) पुंडरीकगणधरपूजा विधि, प्रा. सं., प+ग, भूपू (उस्सप्पिणीय पदम), ५६५४०-१)
पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ५६६०५-२ (+#), ५५८९४-२ (२) पुण्य कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (एक पंचिन्द्रियपणो), ५५८९४-२ पुण्यपाप कुलक, आ, जिनकीर्तिसूरि, प्रा. वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ५७१५१-१(३) पुण्यसार कथा, सं., पद्य, म्पू, (--), ५६६५९ (+४)
"
पुरंदरव्रतविधान कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं. वो ६३, पद्य, दि. (उमास्वामिनमहतं), ५७३६०-१० (+)
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1
पुरुषस्त्रीनपुंसकवेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे. (पुंसा दसकोडिणं पन्नर), ५७७६०-३८
"
(२) पुरुषस्त्रीनपुंसकवेद गाथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुरुषवेदनी स्थित दस), ५७७६०-३८
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जड़ णं भंते समणेणं०) ५५९३१-४(+), ५६०६४-४(+), ५६७०७-४११, ५६९४७-४८), ५७२१९-४(+#), ५७३१९-४ (+), ५७००८-४(#)
(२) पुष्पचूलिकासूत्र - टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू. (चतुर्थवर्गोपि दशाध्य), ५५९९२-४(+)
(२) पुष्पचूलिकासूत्र - टिप्पण, मा.गु. सं., गद्य, मूपु., (–), ५६७०७-४(+)
(२) पुष्पचूलिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीवीतरागदेवने नमस), ५६०६४-४(*), ५७२१९-४(+४), ५७३१९-४०)
15
पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., द्वा. २०, गा. ५०५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), ५६५८६ (+), ५६७४६(+), ५७३७४(+०६)
(२) पुष्पमाला प्रकरण अवचूरि. सं., प्र. ११२०, गद्य, मूपू. (आदी इष्टदेवता नमस्का), ५६७७३
(२) पुष्पमाला प्रकरण बालावबोध, ग. मेस्सुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू (-), ५७३७४/+5)
',
(२) पुष्पमाला प्रकरण- कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७३७४ (+#$)
पुष्पांजलिव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं., श्लो. ७१, पद्य, दि., (कवींद्रमकलंक० विद्या), ५७३६०-१२(+)
पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू (जति णं भंते समणेणं०), ५५९३१-३ (+), ५६०६४-३), ५६७०७-३(०), ५६९४७-३(०), ५७२१९-३(+#), ५७३१९-३(+), ५७००८-३(#)
(२) पुष्पिकासूत्र टीका, आ. चंद्रसूरि सं., गद्य, भूपू (अथ तृतीयवर्गोपि दशाध), ५५९९२-३(+)
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(२) पुष्पिकासूत्र - टिप्पण*, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (--), ५६७०७-३(+)
(२) पुष्पिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य०), ५६०६४-३ (+), ५७२१९-३ (+#$), ५७३१९-३ (+)
पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. ५६, पद्य, भूपू (सिरिवद्धमाणतित्वाहिन), ५६९०३
(२) पूजा प्रकरण- टवार्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (वर्द्धश्चासौमानश्च), ५६९०३
"
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पेढालपुत्र अध्ययन, प्रा. मा.गु., गद्य, भूपू (आउसंतो गोवमा अभी खल), ५५७५७(+45)
1
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य म्पू, (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ५६१३२(+), ५६७२९-१ (४), ५८३८४-१(+), ५५८९० पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पाणिवह मुसावाए अदत्त), ५८५८३-१(+)
पौषधिक आलोयणा सामाचारी, आ. तिलकाचार्य, प्रा. गा. १०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( पोसहिओ न कोईति), ५७१८५-५(१) (२) पौषधिकप्रायश्चित्तसामाचारी - स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १३वी, गद्य, मूपू., (आवश्यकी न करोति),
५७१८५-६(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहताणं० ववगय), ५५८३९(+$),
५६०७२(+#), ५६०९९(+$), ५६१०५(+s), ५६११२(+#$), ५७००३(+s), ५८३०९(+$), ५७३१३, ५७०९३(#$), ५७४५६(#),
५७३८६($) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद. ३६, ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., (जयति नमदमरमुकुटप्रति), ५६१०५(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-कठिनपदटिप्पण*, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६०७२(+#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., वि. १७०५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५८३०९(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५८३९(+$), ५६०९९(+$), ५६११२(+#$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., अ. पद ११वां, गद्य, मूपू., (भासाणं भंते किमादीया), प्रतहीन. (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपन्नवणा उपांगि), ५७८२०-१८(#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७००३(+$) । (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाव गय इंदिय काय जोय), ५७६३० (२) प्रज्ञापनासूत्र-लघु अल्पबहुत्त्व ९८ बोल, संबद्ध, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १ बोले सर्वथी), ५७७५४-३(+) प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ५८३५०-२(#$) (२) प्रज्ञाप्रकाशपब्रिशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० प्रकाश), ५८३५०-२(#$) प्रणिधानसूत्र, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय वीयराय जगगुरु होउ), ५७१८७-५(+#$) (२) प्रणिधानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जय वीतराग त्रिभुवन), ५७१८७-५(+#$) प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १०४, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणि नता), ५६०४७(+#) (२) प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिप्रणत), ५६०४७(+#) प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५५८७६(+#), ५७०१२(+#), ५७२३३(+#) प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ५७७७६(+$) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ५८८५३(+), ५७७६७ प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., स. १६, ग्रं. ४८५०, वि. १५३३, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं सन्मति), ५६८६०(5) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, सू. ३७९, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतार),
५५८६६(+) (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि.८, गद्य, मूपू., (नमः
परमविज्ञानदर्शना), प्रतहीन. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., परि. ८,
ग्रं. ५६८०, वि. १३वी, प+ग., मूपू., (सिद्धये वर्द्धमान), ५५८६६(+) प्रमेयरत्नकोष, आ. चंद्रप्रभसूरि, सं., अ. २१, गद्य, मूपू., (नत्वा ज्ञानतमिस्रसंत), ५६८८२(+$) प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., विश्रा. ११, ग्रं. १२०५, वि. १६२९, पद्य, मूपू., (पणमिअणाणनिहाणं वीर), प्रतहीन. (२) प्रवचनपरीक्षा-बीजक, सं., गद्य, म्पू., (पणमिअइत्यादि गाथा), ५६६८६($) प्रवचनसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ३, गा. २७५, पद्य, दि., (एस सुरासुरमणुसिंदवंद), प्रतहीन. (२) प्रवचनसार-(पु.हि.)पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, दि., (--), ५७५२७($) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं),
५६६४६(+६), ५७१६८(+), ५७३२३(+$) (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., ग्रं. १८०००, वि. १२४२, गद्य, मूपू., (सन्नद्धैरपि यत्तमोभि),
५६१११(+), ५७३२३(+$) (३) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति का संबद्ध २४ जिन शासनदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (देवीचक्रेश्वरीयं
वर), ५६९७९-१ (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई ऋषभ),५६६४६(+$)
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५१८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), ५५७८१-२(+), ५६०६९-२(+) प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., अधि. २२, श्लो. ३१३, पद्य, मूपू., (नाभेयाद्याः सिद्धा), ५६६७५ (+#$) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ५५६६२(+#$),
५५९४६(+), ५६०८०(+#$), ५६६३३(+), ५६८६१(+#S), ५६९३९(+), ५७०८०(+), ५७२८१(+), ५८४२३(+$), ५८९०३(+),
५९२२९(+$), ५९२३४(+),५६०६८-२, ५६१२८,५६७२५(#$), ५७३५९(#$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अ.१०, ग्रं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५७४१०(+#) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो जंबूइणमो कहतां), ५७२८१(+), ५९२२९(+$),
५७३५९(#$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ५५९४६(+), ५६०८०(+#), ५६६३३(+), ५६८६१(+#$),
५६९३९(+), ५७०८०(+), ५८४२३(+$), ५८९०३(+), ५९२३४(+), ५६०६८-२, ५६१२८ प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि ; मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४ प्रश्न १०१४, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परं ज्योति), ५८३८९(+) प्रश्नोत्तर संग्रह *,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५६३१७(+) । प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ नत्वा), ५६७०६(+#) प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. १६१, पद्य, मूपू., (क्रमनखदशकोटीदीप्रदीप), ५५९६७(+) प्रार्थनास्तुति संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अद्यपक्षालितगात्र), ५८५३२-२(+#) प्रास्ताविकगाथा संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ५६८१८-३ (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अ० अथ प्रश्नव्याकरणन), ५६८१८-३ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ५५६८९-२(+#$), ५६६१०-२(+),
५६७५८-२(+) (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच महाव्रत अने), ५५६८९-२(+#5), ५६६१०-२(+), ५६७५८-२(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, श्वे., (--), ५७८९१-२(+$) बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, जै., (जीवाय १ लेस्स २ पखिय), प्रतहीन. (२) बंधशतक-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवाय लेस पखी दिठी), ५७५१९(+#), ५७८२०-२०(#) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), ५५९६६-३(+#),
५५९७७-३(+$), ५६५२५-२(+#), ५६५८९-३(+), ५७०३५-२(+), ५७०६६-३(+), ५७१२३-२(+#), ५७४६८-३(+s),
५८४२७-३(+$), ५८४६५-३(+#), ५६९४१-४, ५७१३६-३, ५७२२८, ५८४८२-३, ५७१४८-२(2) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग्बंधस्वामित्व), ५८४८२-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (बंध० बंधः कर्माणुनां), ५६५०१-३(+), ५६५२५-२(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रचांद्रपदवीनदवी), ५७२२८ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५९६६-३(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. हीरचंद्र, मा.गु., गद्य, म्पू., (जीव प्रदेशे करी कर्म), ५७४६८-३(+$) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध *, मागु., गद्य, मूपू., (बंध सामित्त विचार), ५८४१५-३(+), ५८४२७-३(+$) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७१६, गद्य, मूपू., (कर्मबंधननुं विधानक), ५७२२८ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जीवप्रदेश साथे कर्म), ५५९६६-३(+#),
५६९४१-४ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्मबंधथी मुकाणउं), ५६५८९-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), ५७०३५-२(+), ५७१२३-२(+#),
५८४६५-३(+#) बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५४, पद्य, म्पू., (नमिऊण वद्धमाण० वोच), ५६६४९-८(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ५५९११-१३(+#), ५७०४३-२(+), ५७१९१-४(+), ५५९२४-७(#),
५७२४२-३(#) बुद्धिचतुष्क कथा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सेलघण कुडग चालिणि), ५७०७६(+#S) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ५५८७७-१(+), ५६५०७-१(+),
५६५८८(+), ५६९५८(+#$), ५७३०१(+$), ५८९१०(+), ५६८१२, ५७१८०-१,५८३०८-१(#) (२) बृहत्कल्पसूत्र-विषमपद टिप्पण, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६५८८(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगर), ५५८७७-१(+), ५६५०७-१(+), ५६९५८(+#$), ५७३०१(+$),
५८९१०(+), ५७१८०-१, ५८३०८-१(#) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ४०००, गद्य, मूपू., (हिवे इहां बृहत्कल्पस), ५६८१२ । (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीवी मास भिन्न), ५५८७७-२(+), ५६५०७-२(+), ५७१८०-२,
५८३०८-२(#) (३) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीवीने मास भिन्न कही), ५६५०७-२(+$), ५८३०८-२(#),
५७१८०-२() (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५८७७-३(+), ५६५०७-३(+), ५७१८०-३, ५८३०८-३(#) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
५७२८९(+#)
(२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., अ. ५, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (जयति जिनवचनमवितथममित), ५७२८९(+#) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
५६६८३(+), ५६६९४(+), ५७११९(+#), ५८९२५(#) (३) जंबूद्वीप प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिन कहीइ रागद्वेष), ५७११९(+#) (३) जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ५८९२५ (2) (२) लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजलहर निभस्सण), ५७०९२(+#$),
५५७६७(#) (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेता नमीनइ), ५७०९२(+#$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-गणित, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए जंबुद्वीपने विषे), ५८३२०(#) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिण), ५६०२०(+) (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिनवरेंद्र सर्वे), ५६७१३(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (नत्त्वा वीरं बृहत्), ५६७६८-१(+) (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-नरक्षेत्रादि विचार, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (नरक्षेत्र परिधिर्यथा), ५६७६८-२(+) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ५५७७२-५(+), ५५८१२-१४(+), ५५९१८-२(+#),
५७१९१-१५(+), ५८९२७-७(+), ५८९४५-१(+), ५८४२४-२ बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हत्सिद्धाचार्यो), ५६८४५-२ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ५५८९३(+#), ५६०२३(+#),
५६०६९-१८(+), ५६०८४(+#$), ५६१२९(+#), ५६३१०(+#), ५६५२०-१(+#$), ५६५२७(+$), ५६५४३(+#$), ५६५७६(+), ५६५८२(+), ५६६०५-१(+#), ५६६३६(+#s), ५६६५०(+#S), ५६७१७-४(+), ५६७३७(+5), ५६७४०(+#$), ५६८१५(+S), ५६८३६(+), ५६८४९(+), ५६८९१(+), ५६८९६(+#S), ५६९०९(+$), ५६९५४(+#), ५६९७५ (+$), ५७०१९(+), ५७०२४(+), ५७११५-१(+), ५७११७(+#), ५७१३१(+#$), ५७१७१(+#), ५७२०३(+#$), ५७२३५-४(+#), ५७३५४(+), ५८००५ (+$), ५८००९(+s), ५८०१४(+#$), ५८०१९(+#S), ५८०५७(+$), ५८०७३(+#$), ५८०७५ (+s), ५८४०३(+#), ५८४२१(+#$), ५८४३०(+#), ५८४३८(+#), ५८४६७(+#$), ५८४९७(+), ५८९०४(+), ५८९२२(+#), ५८९२९(+#), ५८९३४-१(+), ५९२२४-५(+#), ५८३३२, ५८४२८(#)
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५२० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), ५६६५०(+#s), ५६८१५(+$),
५८००९(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-वृत्ति, आ. हेमसूरि, सं., गद्य, मूपू., (तिष्ठंति नारकादि भवे), ५८०६५(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा पंचपरमेष्ठीन्), ५६९०९(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, म्पू., (सुष्ठ राजते शोभते), ५६७१७-४(+), ५७०२४(+) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), ५६१२९(+#),
५७००७(+), ५८९०४(+) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ५६५२७(+$), ५६६३६(+#$), ५७५९४(+$),
५८०७५ (+$) (२) संग्रहणीसूत्र-बालावबोध, वा. ज्ञानवल्लभ, मा.गु., वि. १८२५, गद्य, मूपू., (--), ५८४२१(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), ५६८९६(+#$), ५८४९७(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. वच्छराज ऋषि, मा.गु., ग्रं. १६४९, गद्य, मूपू., (लेलिख्यते टबार्थोय), ५७१७१(+#) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ५६०८४(+#$), ५६५७६(+), ५६५८२(+$), ५६९५४(+#),
५६९७५ (+$), ५७१३१(+#$), ५७२०३(+#$), ५७३५४(+), ५८४०३(+#), ५८४६७(+#$), ५९२२४-५(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-छाया, सं., श्लो. २९१, पद्य, मूपू., (नत्वा अर्हदादीन), ५७०२४(+), ५८०९४(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., मूपू., (--), ५६९७५(+$) बृहद् वंदनक भाष्य, मु. अभयदेवसूरि-शिष्य, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (इच्छा य अणुन्नवणा), ५६५२६-२(+$) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ५६०६९-२४(+), ५८८७६-५(+#), ५६०९८-६, ५८९३५-३ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ५५७११(+), ५६१६६(+$), ५६५१५(+#), ५६६५६(+#$),
५६७६२(+$), ५७६३२-३(+), ५७७९५-१(+#), ५८६०१-२(+#$), ५८९९९(+#$), ५९००६(+#$), ५६५५१, ५७५२९,
५७४६३(#), ५७७१५(६), ५७७४१() बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ), ५६६३९(+5), ५७४५८(+), ५७६५५(+#S), ५६१७२($) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइसयं महाणु), ५६५००-२(+#), ५५९४९-३ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ५५७७२-६(+), ५५८१२-७(+), ५५९८२(+#),
५६०६९-९(+), ५६५३१-१(+#), ५६७५७(+), ५६८१६-१(+), ५६८२४(+$), ५७१२०(+#), ५७१२८(+#), ५८०२८-१(+), ५८४१३(+#), ५८४२९(+), ५८९११-९(+#$), ५८९४१(+), ५८९४९(+$), ५५८५६-१, ५७२३८, ५८९३६, ५५६०१ (#$), ५५८६४(#), ५६७८७(#), ५६९६०-१(#),५८५०२(#), ५८९४७(#), ५६८७२(६), ५७१५३(), ५७१५४-२(5), ५८४२४-१(६),
५८९५७($), ५६५४८-१(-) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा),
५५८६४(#), ५८५०२(#), ५६८७२(5), ५८९५७($) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६८३, गद्य, मूपू., (नत्वा वृषोपदेष्टार), ५५९८२(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (भव्यताताब्जराजीविक), ५६७५७(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम), ५७२३८ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५८४१३(+#), ५६९६०-१(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये),५६७८७(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इसी संभावनाई), ५७१५३(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्त जे सेवानई विषइ), ५८९३६ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्त सेवातत्पर जे), ५७१२०(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीनई विषई), ५६२७७(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+ कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५६०१(#$)
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५२१
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ५६५३१-१(+#$), ५६८२४(+$), ५८४२९(+), ५६९६०-१(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), ५६३३७-१(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-अन्वयार्थ, सं., गद्य, मूपू., (किलेति सत्त्वे अपितु), ५८०२८-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. कान्हजी, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रथमं देव), ५७१२८(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., कथा. २८, गद्य, मूपू., (पुरामरावती जयिन्यां), ५८५०२(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमालवदेशमाहि), ५६१६३-२(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र-चतुर्थपादपूर्तिरूप, संबद्ध, मु. रत्नसिंह, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्राणप्रियं
नृपसुता), ५७८८१-२(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐनमोवृषभनाथाय मृत्यु), ५८०२८-२(+) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो ऋषभनाथाय सर्व), ५५८५६-२ भक्ष्याभक्ष्य विचार, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (संयमविरुद्धं द्रव्य), ५८५५३-३ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताणं० सव्व), ५५७२३(+$),
५५९२६(+#$), ५५९७४+), ५५९९४(+$), ५६०७१(+#$), ५६११४(+),५६११६(+#), ५६११८(+#$), ५६११९(+), ५६१३३(+$), ५६७२४(+#$), ५६७३६(+#$), ५६८२३(+), ५६८८४(+$), ५६९१४+), ५६९१५(+), ५७००९(+$), ५७०१०(+$), ५७१४४(+$), ५७२०४+), ५७३३६(+#), ५७३४२(+#), ५८३६९(+$), ५७३२९, ५६९२३, ५५९२३(#),
५८०६०(#$), ५६७२७(s), ५८५०३(६), ५९०४५($) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ५६११६(+#),
५७०१०(+६), ५७३२९ (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), ५६८२९(+),
५६६६२-२ (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्विंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अथ पंचमांग
एवैकादशशत), ५६८२९(+), ५६६६२-२ (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, मूपू., (पन्नवण वेय
रागे कप्प), ५५९६२-१(+#), ५६३०१(+#) (४) पंचनिग्रंथी प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (पन्नवण इति द्वारगाथा), ५८०१२(६) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिपॅथी प्रकरण का बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव नमीनइ),
५५९६२-१(+#) (४) पंचनिग्रंथी प्रकरण-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ग्रं. ३५५, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (नयविजयगुरुणां पंचनिर),
५६३०१(+#) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषविंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (वुच्छं अप्पाबहु), ५६६६२-१ (४) पुद्गलषट्विंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अथ पंचम एव शतकेष्टमो), ५६६६२-१ (२) भगवतीसूत्र-टिप्पण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शतक १३८३ उद्देशे १००), ५७३४२(+#), ५६७२७($) (२) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५९०४५(5) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., ग्रं. ५२०००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीसेविताह), ५६०७१(+#$), ५६११४(+) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ५५९२६(+#S), ५५९९४(+), ५६८२३(+), ५६९१४+),
५६९१५(+), ५७००९(+$), ५८३६९(+$), ५६९२३, ५५९२३(#) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा)हिस्सा शतक-३, उद्देशक-२ चमरेंद्र आलावो, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं
समए), ५६८८५(+) (३) भगवतीसूत्र-(प्रा)हिस्सा तृतीय शतक द्वितीय उद्देशक चमरेंद्र आलावो-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० तेणेकाले ते०),
५६८८५(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेण० माहणकुंड),
५६८६७+) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० तेणें काले ते), ५६८६७(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू.,
(पनवणा १ वेय २ रागे ३), ५६२८७-१(+$) (२) चारित्र के५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (पनवणा १ वेद २ रागे ३), ५७५६७(+), ५७७९२(+$) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.+मा.गु.)नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ५५७६६(+$) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.मा.गु.) सर्व बंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उदारिक सरीर केणे), ५७८२०-१६(#) (२) भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर संग्रह, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहेली नरके ३० लाख नर), ५७८२०-८(2) (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ५७४७०(+$), ५८९८६ (२) भगवतीसूत्र-शतक-१९ प्रथम उद्देसे प्रथम अप्रथम विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम आहारग भव्वा संनी),
५७८२०-५(#) (२) भगवतीसूत्र-शतक- २६ प्रथम उद्देसे १४जीवस्थान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवतीशतक २६ उद्देसो),
५६२६३-२(+) (२) भगवतीसूत्र-सप्रदेशअप्रदेश विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सवएसी आहारगभवाए संनी), ५७८२०-४(#) (२) भगवतीसूत्र-सोवचिया सावचिया विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोवचीया ते वधे पण घट), ५७८२०-९(2) (२) समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), ५६२८७-२(+),
५७८२०-१९(१) (२) भगवतीसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६२६९(5) (२) भगवतीसूत्र-हुंडी, मु. धर्मसिंह ऋषि, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, मूपू., (नवकार नमो बंभीए लिवी), ५७६४४(+) भगवतीसूत्र-जमालीआलावा, प्रा., गद्य, श्वे., (तस्सणं माहणकुंडगाम), ५६५८१-३(+) भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., अ. २८, पद्य, मूपू., (मगधेषु पुरं ख्यात), ५९२३२(+) भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देवदेवं नमस्कृत्य), ५५८९९(+) भरतबाहुबलि प्रबंध, आ. शीलरत्नसूरि, सं., श्लो. ८२१, पद्य, मूपू., (--), ५६९५९($) भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (भवचरिमं पच्चखामि), ५६१००-२ भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., (णमिऊण णमिरसुरवर मणि), ५८३३४(+#$), ५८३९६(+#$) (२) भवभावना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५८३३४(+#$) (२) भवभावना-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐनमो भगवती शिवशांति), ५८३९६(+#$) भविष्यदत्त कथा-ज्ञानपंचमीफलमहात्म्ये, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., कथा. १०, गा. २०००, पद्य, मूपू., (पंचिंदियनिरविक्ख), ५६९४९ भावत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि., (खवियघणघाइकम्मे अरहत), प्रतहीन. (२) भाव संग्रह- यंत्र, मा.गु.,सं., यं., दि., (उपशमिकभाव १ क्षायिकभ), ५७३९७-६(१) भावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (कमठासुरेण रईअम्मि), ५८०४१-४(+#) (२) भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कमठ नाम जे असुर तेणि), ५८०४१-४(+#) भावनासंधि प्रकरण, आ. जयदेवसूरि, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (पणमवि गुणसायर भुवण), ५७१५६(+) (२) भावनासंधिप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करी गुणनासमूह), ५७१५६(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ५६५१०(+#), ५६८६९(+#),
५७०५७(+#$), ५६६२६, ५६६७९(#), ५८३८०($) (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनुत), ५६५१०(+#), ५६८६९(+#) भीमसेनी धातुपाठ, मु. भीमसेन, सं., गद्य, श्वे., (धातुपाठो कृतो येन), ५५७७६(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५२३ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), ५६३४८-१(+), ५६३५०(+$), ५६६६३(+),
५६८३५-१(+), ५७०००-१(+), ५८२४९(+$), ५८०४३(#$), ५८०९९(#$), ५८००६(5), ५६३८०(-2) (२) भुवनदीपक-टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., वि. १३२६, गद्य, मूपू., (अर्हदादीन् प्रणम्याथ), ५७०००-१(+) (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मु. पुण्यहर्ष-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइं ग्रंथ करता), ५८२४९(+$) (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रहाधिपति १ उच्च), ५६३८०(-२) । (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), ५६३४८-१(+$), ५६३५०(+$), ५६६६३(+),
५६८३५-१(+), ५८०४३(#$), ५८००६(5) भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., परि. १०, श्लो. ४००, पद्य, दि., (कमठोपसर्गदलन), ५७२६४(+$) भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., प्र. ५, ग्रं. १८१६, पद्य, मूपू., (अश्वसेनं जिनं नत्वा), ५६७११(+#), ५६८०१(६) मंगलाष्टक, कालिदास, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (श्रीमत्पंकज विष्टरो), ५९०२५-२(#) । मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐह्रींश्री अर्हत), ५६०००-२(+#), ५८९३१-२(+) मदन श्रेष्ठी चरित्र, मु. छगन मुनि, पुहि.,सं., खं.७, गा. १२९१, वि. १९८४, पद्य, स्था., (दानं ख्यातिकरं सदा), ५८५३३(+) मनुष्य तीर्यंच जीवोत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जिवारइं पुरुष अनइ), ५६१७९-१(+#) मनुष्य दुर्लभता दृष्टांत कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चुलग पासग धन जुय रयण), ५७७०७-३(+$) मनुष्यभव दुर्लभता, प्रा., पद्य, श्वे., (चूलगपासधन्ने जूएरमणे), ५७०५९(+$) । (२) मनुष्यभव दुर्लभता-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (भोजननो १ पासानो २), ५७०५९(+$) मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., गा. ६६३, पद्य, मूपू., (तिहुअणसरीरिवंद सप्प),५६५००-१०(+#), ५५९४९-१३ महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ५८३५२(+#), ५६७४२-२ (२) महादंडक स्तोत्र-बालावबोध, मु. कल्याण, मा.गु., वि. १७१२, गद्य, मूपू., (ऋषभं नत्वा प्रज्ञाया), ५८३५२(+#) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ५६००६(+), ५६१२३(+), ५७१०८(+#),
५७२७७(+), ५७२९८(+), ५६००५ (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ७५००, गद्य, मूपू., (ते सुमति हे भगवंत), ५६००६(+), ५६१२३(+) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., अ. ३, ग्रं. ७०००, गद्य, मूपू., (सांभल्यु मे अहो), ५७२७७(+), ५६००५ (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७१०८+#) (२) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन ४-५, प्रा., प+ग., मूपू., (से भयवं कह पुण तेण), ५७३७५(+) (३) महानिशीथसूत्र का हिस्सा अध्ययन ४-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (से० ते सुमति भ० हे), ५७३७५(+) महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पर्व. ४७, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), ५५९७२-३+#) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (एस करेमि पणामं तित्थ), ५६५००-८(+#), ५५९४९-९ महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ५६७७९-३(+) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ५५८१२-४(+),
५५९३५(+), ५६०६९-४(+), ५६१०१(+#), ५७५३१(+), ५८९११-१०(+#$) (२) महावीरजिन स्तव-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., वि. १४६५, गद्य, पू., (श्रेयोर्थं श्रीमहावी), ५५९३५(+) (२) महावीरजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य),५६१०१(+#) (२) महावीरजिन स्तवन-समसंकृत-टबार्थ, उपा. मतिकीर्ति, मा.गु., ग्रं. ३५७, गद्य, मूपू., (भावअरि क्रोधादिक), ५७५३१(+) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ५८३४४-२(+), ५६८१८-२ (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पं० पंच महाव्रत अने), ५८३४४-२(+), ५६८१८-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदहिनमनादेव देहिन), ५५९११-२०(+#), ५७१९१-९(+), ५५९२४-१२(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (वीरं देवं नित्यं),५५९११-२२(+#), ५७०४३-१४(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वसुरासुरेंद), ५८९२४-४(+#) . महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, म्पू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), ५५९३७(+)
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५२४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभ), ५५९३७(+) मांगलिक श्लोक, मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्त), ५७५८२-२(+), ५८९९७-२ मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सर्वमंगलमंगल्य), ५६०६९-२८(+) मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम सिंज्यार), ५८५८१-६(+) मार्गानुसारी ३५ गुण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (न्यायसंपन्नविभवः), ५८६०३-१(+) (२) मार्गानुसारी ३५ गुण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वामीनो द्रोह करी), ५८६०३-२(+) मालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (महूरत प्रथम दिवसे), ५५९२९-२($) मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ५६७६१(+#), ५७७६०-१० मुकुटसप्तमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ६९, पद्य, दि., (श्रीसारदास्पदीभूत), ५७३६०-४(+) मुक्तावलीविधान कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ८१, पद्य, दि., (प्रभाचंद्राकलंकेष्टा), ५७३६०-१४(+) मुखवस्त्रिकाविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चउरंगुलं विहत्थीएय), ५६०००-१(+#) मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमोजिणाणं), ५८३८५(+) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), ५६५७८(+#) मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., श्लो. ४५, पद्य, वै., (श्रीशं श्रीहरशारदा), ५८७४१(#$) (२) मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथ), ५८७४१ (#$) मुहूर्तमुक्तावली, सं., श्लो. ७७, वि. १५३९, पद्य, वै., (श्रीशं श्रीहरशारदा), ५८८८८-१(+#) (२) मुहूर्तमुक्तावलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथ), ५८८८८-१(+#) मेघमालाव्रतोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ५०, पद्य, दि., (समंताद्भद्रमहँत), ५७३६०-७(+) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य भारती), ५६७२९-२(+#) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ५६९९५(+),
५८३७४(+), ५८३८४-२(+) मेरुपंक्त्युपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (चिंतयित्वा चिरं वीरं), ५७३६०-२१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), ५६७७७(+#) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), प्रतहीन. (२) मौनएकादशीव्रत कथा, मु. आलमचंद, मा.गु., ढा. १३, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (च्यार तिर्थंकर सासता), ५६२४७ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ५५९३४(+), ५६९२०-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ५५९११-२८(+#), ५७०४३-५(+), ५५९२४-९(#) यतिदिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा., गा. ३९४, पद्य, मूपू., (तं जयइ सुहं कम्म), ५७१२६ यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स.८, श्लो. ९६०, पद्य, दि., (श्रीमतं वृषभं वंदे), ५८०४५(#$) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), ५६४८९-१(+#), ५६४९०-२(+#),
५८१०८(+#S), ५८२३६(+$), ५८२३७(+),५९०९०(+#$) (२) योगचिंतामणि-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६४८९-१(+#) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या),५९०९०(+#$) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६४९०-२(+#), ५८१०८(+#$), ५८२३६(+$), ५८२३७(+) योगप्रदीप, सं., श्लो. १४३, पद्य, मूपू., (यावन्न ग्रस्यते रोगै), ५६५५३-१(+) योग विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (आवश्यकयोगे वग्धारित), ५७६०९(+#$) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ५५९९७(+5),
५६०५८(+#), ५६५२९(+$), ५६६८८(+#$), ५६९२२(+$), ५६९६८८+#), ५८४१९(+#$), ५६५३०, ५६७९३(#S), ५७२१२(#$) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावीरायेति), ५६०५८+#), ५६९२२(+$) (२) योगशास्त्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ५७०४०(+$)
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५२५
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ५५९५३(+),
५७१६६(+#) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जिनसिद्धादीन),
५७१६६(+#), ५७२१२(#s) (३) योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हउ दुरावई), ५८४१९(+#$) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस्तु विशेषेण),
५५९५३(+) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खधो), ५७७६३ रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., (वागर्थाविव संपृक्तौ), ५८२३४($) (२) रघुवंश-टीका, मु. धर्ममेरु, सं., स. १९, वि. १७४८, गद्य, मूपू., वै., (वागर्थेति कवीनां), ५६०९२(+#) (२) रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., स. १९, वि. १६४६, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा तां ब्रह्म), ५८२३४($) रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जा पुप्कुपवह जाणिउण), ५८५५३-२ रत्नत्रयविधान कथानक, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि., (--), ५७३६०-१७(+$) रत्नशेखरनृप कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५७१३५ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ५६५०८-१(+#$), ५६७२०(+$), ५८९२८(#) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउण्ण कहेंता), ५६५०८-१(+#$) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरनइ नमस्कार), ५८९२८(#) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीमहावीरनै नमस्कार), ५६७२०(+$) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ५७०६३(#) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ५७०६३(#) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ५५९६४-१(+), ५६०१५(+#), ५६७६६(+#$),
५६७९८(+$), ५७००५ (+#), ५७०१६(+$), ५७३२६(+#), ५८४०१+#), ५७१७५, ५७२१७, ५७३३१, ५८३४८(#$),
५८९०१ (२) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ५५९६४-३(+), ५६७०१(+),
५७२१७ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण", मा.गु., गद्य, पू., (रा० भवनैः पौरजनैश्च), ५७००५(+#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ५७३२६(+#), ५७३३१, ५८९०१(#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), ५६७६६(+#$), ५६७९८(+$), ५८४०१(+#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-यंत्ररूप बोल संग्रह, संबद्ध, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुधर्मादेवलोकने विषे), ५८५३४(#) रावणयंत्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, वै., (यंत्र वचे रावणनो), ५६८३८-१ रोहिणी कथा-दिग्व्रते, सं., गद्य, श्वे., (दिग्व्रतं शुद्ध चेतस), ५८९०९-७ लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., श्लो. ३०४, वि. १७९२, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नमस्कृ), ५६३७७($) लक्षणपंक्तितप कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४१, पद्य, दि., (विद्यानंद प्रभाचंद्), ५७३६०-२०(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय),
५५७३१(+#$), ५६५२२(+), ५६८९२(+#), ५७०५०(+$), ५७१३७(+#$), ५८४२५(+), ५६०२२(#), ५६५३७(#), ५६६१९(#$),
५८०९७(#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं० ग्रंथनोकरणहार), ५५७३१(+#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), ५७०५०(+$), ५७१३७(+#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-अढीद्वीपक्षेत्र संक्षेपविचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप आदिदेई), ५८५८८(+) लघुजातक, वराहमिहिर, सं., अ.१६, पद्य, वै., (यस्योदयास्तसमये), ५८११७(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) लघुजातक-टबार्थ, मा.गु., अ. १२, गद्य, मपू., वै., (प्रणम्यपार्श्वपादौ), ५८११७(+) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मान), ५८२०७(+), ५८२१६(+) लघुशतकभाष्य, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (णमिऊण जिणं वुच्छामि), ५६६४९-१०(+) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांतिं शांतिनिशांत), ५५७७२-४(+), ५५८१२-८(+), ५५८२०-२(+#$),
५५९८६-२(+),५६०६९-१०(+), ५६७१०-२(+-), ५६७३८-२(+#), ५७१५२-३(+#), ५७१९१-१६(+), ५८०८८-२(+#S), ५८३५४-२(+#), ५८९११-६(+#), ५८९२४-२(+#), ५८९२७-४(+), ५८४२४-३, ५८९३५-२, ५५७४०-२(#), ५५६८७-२(),
५६५४८-२(-), ५८९६१-३(-2) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शांतिनाथ दुखादिकनो), ५६७१०-२(+-) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ५६५५५(+#), ५७११५-२(+$), ५९२२४-३(+#),
५८३८३ (२) लघुसंग्रहणी-बालावबोध, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., ग्रं. ५०५, वि. १६७०, गद्य, म्पू., (नमस्कार करीनइ केहनइ), ५६५५५(+#) (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ५७७९४(+), ५७१५५(#) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ५७५५२(+$), ५७६८८(+),
५८६३६(+#), ५८५७३, ५७५१५(#) लघुस्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम नित्य जिसी), ५८६०५(+) लब्धिविधानोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ५५, पद्य, दि., (श्रीविद्यानंदिनं पूज), ५७३६०-९(+) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदसणं विणा जं), ५६२४३(+s), ५६६७६(+#),
५७२०२(+#$), ५७५४७(+#), ५८४४७, ५५७८९(#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५६६७६(+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणदसणेति० जिनदर्शन), ५५७८९(#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, ग. जसविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनंतज्ञानकलित हतदोष), ५७५४७(+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमदाप्तौ प्रणम्या), ५६२४३(+s), ५७२०२(+#$) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५८४४७(5) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतराग देव ताहरु), ५७२०२(+#$) लोकनीतिसमुच्चय, मु. पद्मचंद्र, सं., श्लो. ४३४, पद्य, मूपू., (प्रणम्य नयवक्तारं), ५६६७४-१(+#) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ५६७९२(+), ५७१४९(+#) वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., गा.७९५, ग्रं. १२३०, पद्य, मूपू., (सव्वन्नुवयणं पंकयनिव), ५८३१४(+$) (२) वजालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., वि. १३९३, गद्य, मूपू., (तत्र शास्त्रस्यादौ), ५८३१४(+$) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ५५९८७(+#), ५७८०० (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वृषभनुलंछन छे जेहन), ५५९८७(+#) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन),
५५८९२(+), ५६३०६(+), ५६६६६-२(+$), ५६९३४(+), ५७१९७(+६), ५७२४६(+#), ५७०७२, ५८३३०, ५६६११(#),
५७८८१-३(#) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५७२४६(+#) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), ५६३०६(+), ५७१९७(+$), ५६६११(#) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमंत पार्श्वजिनेश), ५८३३० वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ५७२९५(+#), ५७३७९(+) वसुदेवहिंडी, आ. गुणनिधानसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं २ वच्छ), ५६७६७(+#) वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., उपा. २८, ग्रं. १०४८०, प+ग., मूपू., (जयइ नवनलिणिकुवलयवियस),
प्रतहीन.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
(२) वसुदेवहिंडी- श्रीकृष्ण चरित्र, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू (जंबूद्वीपे भरत), ५८९०९-२०
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ५६८५० (+), ५७१३३ (+$), ५८८३९(+$), ५९०६३-१(+#), ५६६१४, ५६८१७, ५८८४३
(२) वसुधारा स्तोत्र - विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू, बी. (पुत्रवती स्त्री पासे) ५९०६३-२(०५)
"
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु), ५५६०५ (+#$), ५७२३७(+$), ५७९८० (+), ५८२१८(०) ५८२४२
(२) वाग्भटालंकार- ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, ग. ज्ञानप्रमोद, ग. रत्नधीर, सं., ग्रं. २९५६, वि. १६८१, गद्य, मूपू., (यस्यानेकगुणास्पदस्व), ५८२४२
(२) वाग्भटालंकार- टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपु. ( श्रीमान् श्रीआदिनाथः), ५५६०५ (+#S), ५७२३७(+), ५८२१०३)
(२) वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानसंतति), ५८२१८(+)
(२) वाग्भटालंकार- अवचूरि, सं., गद्य, मृपू (यदागमपदावली वस्वागम), ५७९८०(क) वाचना विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू.. (मुहपति पडिलेहवी), ५६५६७-४
वासुदेव कथा - स्तेन, सं., गद्य, मृपू., (नारद विद्याधराः), ५८९०९-१९
विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. अधि. २०, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्व), ५६६०७
.
विक्रम चरित्र, ग. शुभशील, सं., स. १२, वि. १४९०, पद्य, म्पू., (यस्याग्रेऽणुतुला), ५६०३१(+)
विक्रम चरित्र, सं., पद्य, म्पू, (--), ५५७३२ (+5)
विचारगाथा संग्रह, प्रा. सं., गा. ३, गद्य, भूपू (बत्तीसं कबलाहारो), ५७७६०-४४
יי
(२) विचारगाथा संग्रह - अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तीन हजार सातसे तिहोत), ५७७६०-४४
विचारशतक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अ. १०० विचार, वि. १६७३, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं जिनं), प्रतहीन. (२) विचारशतक - बीजक, सं., गद्य, मूपू., (उत्कृष्टतो मनुष्या), ५५६६५ (+)
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ५८४६१ (+$), ५६८४४-२
(२) विचार संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५८४६१(+$)
"
विचारसप्ततिका, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा. गा. ८१, पद्य, म्पू. (पडिमा मिच्छा कोडी), ५६८२६ (+), ५६९१९ (२) विचारसप्ततिका - वृत्ति, मु. विनयकुशल, सं., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (सर्वशं श्रीजिनं), ५६८२६ (+), ५६९१९ विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा., अधि. २, गा. ३२०, वि. १७९६, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं गुणठाणे), प्रतहीन. (२) विचारसार प्रकरण बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु. ग्रं. २१२५, गद्य, भूपू (--), ५७७५९०६) विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, मूपू., (बारस गुण अरिहंत सिद), ५६७०८-१(+$)
(२) विचारसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बा० १२ बार गुण अरीह), ५६७०८-१(+$)
,
विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर प्रा. कथा. ८, वि. ११२७, पद्य, मूपू. (सयलसुरासुरकिन्नर), ५८३११(७) विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (नृपतिनाभिकुलांवरभास), ५६१८३-१७(१)
विजयसिंह प्रश्नोत्तर, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (अपरं सिद्धपंचासिका), ५५६६९-२ (क्
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विधिमार्गप्रपा, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (--), ५७४४२ (+#$)
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, म्पू, (तेणं कालेनं तेणं), ५६०६१(+), ५६११३(+), ५६५७७(+), ५६७०४ (+), ५६९३६ (+४), ५७००६ (+), ५७२१५ (+), ५७२२६(+), ५८३९८(+), ५७०१७(१), ५८३०६(५), ५६९०६ ($), ५७१७४($)
(२) विपाकसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., श्रु. २, ग्रं. ९००, गद्य, मृपू, नत्वा श्रीवर्द्धमाना), ५५८८१(+)
,
(२) विपाकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसुं), ५६७०४(+$)
(२) विपाकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अध विपाकश्रुत किसउ), ५६०६१(+), ५६११३(+), ५६९३६(+३), ५७२१५(१), ५७२२६(+), ५८३९८) ५८३०६ ५६९०६ (३) ५७१७४ (६)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गद्य, मृपू, (तेणं कालेणं तेणं), ५८४५१ (+), ५८४७४०ड)
(३) विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते उत्सर्पणीनो चोथो), ५८४५१(+), ५८४७४/०३)
विमानपंक्त्युपाख्यान कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १७९, पद्य, दि., (पूज्यपादाकलंकार्य), ५७३६०-२२(+) विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं श्लो. २४८, पद्य, मृपू., (प्रणम्य परमानंद), ५८७६७(१)
"
विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जंभाराति पुरोहिते), ५८१६६ (+३), ५८२०५-२(+8)
"
(२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु, गद्य, मूपु. वै., (प्रणम्य शिरसा पार्श), ५८१६६ (+)
"
(२) विवाहपडल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ५८२०५-२(+$)
विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मृपू (सिद्धिपुरसत्थवाह), ५६९२७-२ (+४) विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं. उल्ला. १२, पद्य, भूपू (शाश्वतानंदरूपाय तमस), ५६७२८(+), ५६८५५ (+), ५७८२३(+#)
"
"
(२) विवेकविलास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते को एक परमात्मानइ), ५६८५५(१), ५७८२३(१०)
वीतराग वाणी, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे. (जयसिरिवंछियसुहए), ५८६५९
(२) वीतराग वाणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवंत श्रीवीतरागदेव), ५८६५९ ($)
वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २० वि. १२वी, पद्य, मूपु., (यः परात्मा परं), ५६५५२ (नाडा
(+#$),
५६६८० (+), ५८०५२(+#)
(२) वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं. प्रका. २० नं. ६२५. वि. १५१२, गद्य, मूपू., (जयति श्रीजिनो वीरः), ५६६८० (+$)
वीरसेन कथानक - चतुर्विधधर्म विषये, सं., गद्य, श्वे., (दान शील तपोभाव भेदाध), ५५६८१ (+), ५८९०९-१०
वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा. गा. ४३, पद्य, मूपू (नमिकण जिणं जयजीवबंधव), ५५९४९-१०
"
वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, अं. १८९, पद्य, वै. (सुख संतान सिध्यर्थ), ५६३७५ (+४)
(२) वृत्तरत्नाकर - वृहद्वृत्ति, ग. सोमचन्द्र, सं. ग्रं. ११९०, वि. १३२९, गद्य, भूपू वै.. ( यत्पादाग्रनखांशुराजि), ५६३७५ (०३)
"
"
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जड़ णं भंते० पंचमस्स), ५५९३१-५ (०), ५६०६४-५ (+), ५६७०७-५ (+), ५६९४७-५ (०),
५७२१९-५(+#), ५७३१९-५ (+), ५७००८-५(#)
(२) वृष्णिदशासूत्र - टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पंचमवर्गे वन्हिदसाभि), ५५९९२-५)
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(२) वृष्णिदशासूत्र - टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ५६७०७-५ (+)
(२) वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू, (जी हे पूज्य० पांचमान), ५६०६४-५ (+), ५७२१९-५ (+१), ५७३१९-५/१
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं. विला. ९, लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि), ५८२७६ (+४), ५८१२३(३), ५८२०३ (5)
י
(२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), ५८२७६ (+#), ५८१२३($), ५८२०३($) वैमानिक अधिकार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे. ( एगदिवसंपि जीवो), ५७७६०-४३
(२) वैमानिक अधिकार गाथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (जो जीव एकाधिक दिवस), ५७७६०-४३
वैराग्यशतक, प्रा. गा. १०५, पद्य, भूपू (संसारंमि असारे नत्थि), ५५९८१-२(+०३), ५६५९३-२(+), ५६७४१-३ (+), ५६७६९ (+३),
,
५७०४८-१(भाई), ५५७५१-२, ५६७४९-१, ५६९६९-१ (०३), ५८३२९(४)
(२) वैराग्यशतक- टवार्थ, मा.गु. प्र. ४२५, गद्य, भूपू (चउदश राजप्रमाण लोक), ५६७६९ (६)
(२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू. (संसार असारमाहि नथी), ५६५९३-२(+), ५६७४९-१, ५६९६९-१(०) ५८३२९(१) (२) वैराग्यशतक-छाया, सं., श्लो. १०४, पद्य, मूपू., (संसारे असारे नास्ति), ५६९११(+)
वैश्रमण कथा जीर्णोद्धार विषये, सं., गद्य, खे, (जीर्णे समुद्धतेया), ५८९०९-९
"
व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. उ. १०. ग्रं. ३७३, गद्य, भूपू (जे भिक्खू मासिय), ५५६९६ (+), ५५९४१(+), ५६६६० (+४),
"
५६८३७ (+), ५७२२२, ५७०६२ ($)
(२) व्यवहारसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जे कोइ भि० साधु), ५५६९६ (+), ५५९४१ (+), ५६८३७ (+), ५७२२२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
(२) व्यवहारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५६६६० (+)
"
व्याकरण अपूर्ण व छूटक पन्ने, सं., प्रा., मा.गु., प+ग., (--), ५६२६२-१(#)
व्याख्यान संग्रह *, प्रा., मा.गु., रा. सं., गद्य, भूपू (देवपूजा दया दानं), ५५६६७(+), ५८६१०(१६), ५८६१७(१०), ५६१९६
-"
व्रत उच्चार अधिकार, प्रा. गा. ५, पद्य, भूपू (एएहिं पंचहिं असंवरेह), ५६०६८-१
""
व्रतोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ८०, पद्य, दि., (ज्येष्टं जिनं प्रणम), ५७३६०-१(+)
शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., शत. ३, ई. ७वी, पद्य, वै., (यां चिंतयामि सततं), ५७४०५ (+#)
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जिनप्रति नमस्कार), ५६९४१-६ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (परमात्मानई भव्य), ५७०१८(०), ५७०८७-२+०१
(२) शतकत्रय-टबार्थ, य. रूपचंद, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (सर्वदर्शिनमानम्य), ५७४०५ (+#)
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी १४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ५५९७५-२(+),
५६६५३(०), ५७०१८(०३), ५७०८७-२(४०), ५६९४१.६, ५७३५१-२, ५८४८२-५
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ - स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, मूपू., (यो विश्वविश्वभविना), ५७३५१-२, ५८४८२-५
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनं ध्रुवबंधस), ५६५०१-५ (+), ५६६५३ (+)
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू., ( वीतराग नमस्करीनइ), ५८४१५-५ (98)
शतक प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (अरहंते भगवंते अणुत्त), ५६६४९-९(+)
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (भरते षट् अवसरपिणी आर), ५९०५०-२ (+)
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शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (सेत्रुंजयगिरी१ पुंरग), ५७८०२-२ (+)
शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ५७३७१ (+), ५७३२१ शनिमंत्रजाप विधि, मा.गु., सं., गद्य, वै., (ओं शनिश्चराय आँ क्रो), ५८८७६-३(+#)
शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ५६०६९-१३ (+), ५६६५५-२(+), ५८८७६-२(+#), ५६०९८-४,
५८९३५-४
शनि स्तोत्र, दशरथ राजा, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (कोणांतकारीद्रयमोथ), ५८८७६-६(+)
"
शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि सं. प्र. ६. वि. १५३५, गद्य, मूपु (प्रणिपत्यार्हतः सर्व), ५५७९१(+), ५७२५७(+45),
"
५८४२२ (+$)
(२) शांतिनाथ चरित्र - टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., वि. १७९९, गद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिनं), ५६०८९(+$)
शास्त्रभेद प्रकरण, सं., पद्य, जै. ?, (शास्त्रप्रकरणादीनां), ५८०४०-३(+#$)
शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ५७०४३ १०(०)
शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि सं., प्र. ६, श्लो. १६३२, प्र. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भूता), ५६०८९(+), ५७२६६ (+०३), ५७२९० (+), ५८४८३(०)
शिवकुमार कथा - नमस्कार महामंत्र विषये, सं., गद्य, मूपू., ( रत्नपुरं नाम नगर), ५८६७५-२ (+)
शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., ( सोहग्ग महानिहिणो), ५८०४१-२(+#)
(२) शील कुलक-टवार्ध, मा.गु., गद्य, भूपू (सौभाग्यगुणन), ५८०४१-२ (+)
"
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. कथा ४३ गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मृपू., ( आबालबंभवारिं नेमि), ५५९२० (+),
"
५२९
५६९२७-१(+), ५७२७९ (+$), ५६८३०
(२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध + कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेयश्रीसहि), ५७२७९ (६), ५७६९६ (४)
शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., ( आबाल बंभयारिं नेमि), ५५६५१(+#)
(२) शीलोपदेशमाला - टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (बालपणा लगई ब्रह्म), ५५६५१(१०)
शौरिपुरोत्पत्ति, सं., गद्य, मूपू., (मथुरायां हरिवंशे), ५७१९९ (#$)
श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., अ. ३५, वि. १४९८, गद्य, मृपू (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५६५०५ (908)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ श्राद्धलघुजीतकल्प, आ. तिलकाचार्य, प्रा. गा. २० पद्य म्पू (सिरिवीरजिणं नमिठ), ५७१८५-३(७)
,
(२) श्राद्धलघुजीतकल्प- स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ५७१८५ - ४(#) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), ५९२२१(+)
(२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., प्रका. ६. ग्रं. ६७६१, वि. १५०६, गद्य, मृपू.. (अर्हत्सिद्धगणींद्र), ५९२२१(+)
श्रावक १२ व्रत विवरण, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक धर्मनइ विषई), ५६५७५-२१(+)
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ५५७८१-४(+), ५६५७५-८(+), ५६७३९-२(+), ५७०३३-२ (+#), ५८५८१-४(+)
(२) श्रावक १४ नियम गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित्त पृथिव्यादि), ५६५७५-८(+) (२) आवक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू. (पाणी फल बीज दातण ते), ५७०३३-२(५०) श्रावक अतिचार संख्या गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू (नाणाई अडवय सही), ५७०३३-६ (+०)
(२) श्रावक अतिचार संख्या-टबार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (५ झानना बारे बारे), ५७०३३-६(+)
श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), ५७०६० (+)
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श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (प्रथमं मुहूर्तं), ५५९८५ (+)
आवक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (स्मारं स्मारं जिनें), ५६२५६ (+), ५६६६९(+), ५८५८६(+), ५८५९९ (+$)
भावक के १४ प्रकार, सं., प+ग. म्पू. (मृत् चालनी महिष हंस), ५७७६०-३
(२) श्रावक के १४ प्रकार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माटीनी परि गुरुवचने), ५७७६०-३
श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., वि. १८३८, गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ५६५१९(+)
"
"
"
श्रीचंद्रकेवल चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., अधि ४, श्लो. ९६६, वि. ५९८, पद्य, मूपू (ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं), ५६८४८ (०३) (२) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (ॐकार सिद्धनो ध्यान), ५६८४८ (०४) श्रीपाल कथा - दानविषये, सं., गद्य, भूप, (समस्त सत्कविस्तौम), ५८९०९-११
"
श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., प्र. ४, वि. १८६८, गद्य, भूपू (प्रणम्य सिद्धचक्रं), ५५९५५ (+४), ५६७१६ (+)
"
श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., वि. १७४५, गद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली सेचने), प्रतहीन.
(२) श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (देव धरम गुरु सेवके), ५८३१५(+) श्रीपाल चरित्र, सं., गद्य, म्पू. (श्रीपार्श्वनाथपादाब), ५६८४४-१
श्रीमती कथा - नमस्कारमंत्र प्रभावे, सं., गद्य, भूपू (इहलोके नवकार प्रभावा), ५८६७५-१(०)
יי
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श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ५५६५६-४ (+#), ५५९३०-२(+), ५६५३१-२(+#)
लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू (कलकोमलपत्रयुता), ५५८६९-२(४०), ५६५२८-२(+), ५६६१०-३(+),
५६६७४-२(+४), ५६८७०-२(+३), ५८६५१-५ (०), ५८९३९-२(+), ५६२४१-२, ५८९५०-२, ५८९४० (०३)
יי
(२) श्लोक संग्रह - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत असरण), ५८९४० (#$)
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, श्वे. (देहे निर्ममता गुरौ), ५५९१३(३), ५७०१४- २(+), ५७०४७-४/+#5), ५७४१४-२(+३), ५८४४८-२(+४), ५६६२४-२(०), ५८५६९-२(३)
(२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), ५५९१३(+$)
(२) लोक संग्रह जैनधार्मिक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, श्वे. (सकल कहतां समस्त कुशल), ५८५६९-२(३)
श्वासोच्छ्वास गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., ( तिन्निसहस सतसय), ५७७६०-४१
(२) श्वासोच्छ्रास गाथा- अर्थ, मा.गु. गद्य, श्वे. (तीन हजार सात से), ५७७६०-४१
षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ. ७, श्लो. ५६, पद्य, वै., (प्रणिपत्य रविं), ५६३४८-२ (+), ५७०००-२ (+)
(२) षट्पंचाशिका टीका, उत्पल भट्ट, सं., गद्य, वै. (केशाजार्कनिशाकरान्क) ५७०००-२ (०)
"
(२) षट्पंचाशिका - टवार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (नमस्कार करीने सूर्य), ५६३४८-२(क)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा.८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ५५९७५-१(+$),
५७०३५-३(+), ५७०६६-४(+$), ५७०८७-१(+#), ५६९४१-५, ५७१७९, ५८४८२-४, ५७१४८-३(#$), ५७१३६-४(६),
५७३५१-१(६) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार्थलवमाप्य),
५८४८२-४, ५७३५१-१(६) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमनि० तत्र जीवंति), ५६५०१-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागदेव नमस्कार), ५६२५७(+$), ५८४१५-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जिनने नमस्कार करीने), ५६९४१-५ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिधाय परंतेजो), ५७१७९ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवई चउथा कर्मग्रंथ), ५७०३५-३(+), ५७०८७-१(+#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवठाणा१ माग्गणार), ५७४८०(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-हिस्सा पाला विचार, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (पल्लाणवट्ठिय
सलाग), ५७५५७ (३) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-हिस्सा पाला विचार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम पाला ४ नाम), ५७५५७ षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपास), ५६५२५-३(+#), ५६६४९-४(+) (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-भाष्य, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीवाइपयत्थेसुं जिणोव), ५६६४९-५(+) (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नितरामपुनर्भावेन), ५६५२५-३(+#) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), ५८००४(+), ५८०२०(+) (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ५७७३, ई. १५वी, गद्य, मूपू., वै., बौ., (जयति
विजितरागः केवला), ५८००४(+) षड्द्रव्य नाम, सं., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय अधर्मा), ५६५७५-२८(+), ५८५८३-२(+) षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ५५६२८(+#$) षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अ. १६, श्लो. २५६, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ५६८१४(+) (२) षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., प्रक. १६, ग्रं. १५००, वि. ११वी, गद्य, मूपू.,
(अमृतमिवामृतमनघं जगाद), ५६८१४(+) षोडशकारणव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ६८, पद्य, दि., (अथ प्रणम्य तीर्थेश), ५७३६०-६(+) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढं), ५५८२५(+) (२) संघपट्टक-टीका, आ. जिनपतिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यस्यांतः सभमायतांसलभ), ५५७९८(+) (२) संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्नि तेहनी ज्वालाई), ५५८२५(+) संघ स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (संघोयं गुणरत्नरोहणगि), ५६६६५-२(+) (२) संघ स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसंघ गुण रूप रत्न), ५६६६५-२(+$) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ५५९८६-३(+), ५८४७७-१(+#),
५८९२७-६(+), ५८९४५-४(+) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निसिही निसीहि), ५५९११-१०(+#), ५७०३३-७(+#) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रि करण सुधि क्षमाश), ५७०३३-७(+#) संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवकार तीन भणी), ५७५४८-३(#) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, म्पू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ५५९९८(+#), ५६०९७(+#), ५६५३२(+),
५६७८०(+#), ५७०४६(+$), ५७०८९-१(+), ५७०८९-२(+$), ५९२२४-९(+#$), ५६६०८, ५६९३१, ५६७५२(#), ५६९६६(2) (२) संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा तं श्रीमहावीर), ५९२२४-९(+#$) (२) संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण क० मनवचनकायाइ), ५७०८९-१(+)
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५३२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) संबोधसत्तरि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नमोस्तु जगत्रेतस), ५६०९७(+#) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७२३, गद्य, मूपू., (नमिऊण कहतां मन वचन), ५६९६६(#) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ५५९९८(+#), ५६५३२(+), ५७०४६(+$), ५६७५२(2) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ५६५००-३(+#), ५५६१५, ५५९४९-४ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरं नमस्कृत्), ५५६१५ सत्यकामाता स्तोत्र, मु. देवतिलक, प्रा.,सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (किंतु समुद्रसंचरी), ५५९०३-७ सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, दि., (जिनाधीशं नमस्कृत्य), ५८४३६(#$), ५५८४२() सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., श्लो. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्ध पएहिं महत्थ), ५५९७५-३(+), ५७०८७-३(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धपदा निश्चला), ५७०८७-३(+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहि महत्थं), ५६००७(+), ५६६६१(+5), ५६६६४(+#$),
५७०२५ (+#), ५७०२८-१(+#), ५७३७७(+), ५९२२८(+#), ५७३५१-३, ५६६७३(#$), ५७७५८(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १९१, पद्य, म्पू., (नमिऊण महावीरं कम्मट), ५६६४९-११(+$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३८८०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मांशतमःसमूह), ५९२२८(+#), ५७३५१-३ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका*,सं., गद्य, स्पू., (--), ५६६६१(+$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. १४५९, गद्य, मूपू., (सिद्धान्यविचलानि), ५६६७३(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्ध० सिद्धानि चालय), ५६५०१-६(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धं प्रतिष्ठित), ५७०२८-१(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., ग्रं. ४०००, वि. १७०२, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वदेव), ५६००७(+),
५७०२५(+#), ५७३७७(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (ए गाथाने विषै च्यार), ५७७५८(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), ५६६६४(+#$) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि,प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), ५५८५४(+#$),
५६७५० सप्तमपरमस्थानविधान कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १६३, पद्य, दि., (विद्यानंद्यकलंकार्य), ५७३६०-३(+) सप्तव्यसन, सं., पद्य, मूपू., (द्युतं च मांसं च), ५७४४३-१(६) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., स. ७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान्),
५६८४०(+$), ५९२३१(+) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताण० हवइ), ५५७१०(+$), ५५८१२-२(+),
५६०६९-८(+), ५६५६५-४(+#), ५७१८७-९(+#$), ५८०५४(+#$), ५८३५४-१(+#$), ५८४४२(+), ५८९११-५(+#),
५८९१४-४(+), ५८९३०(+#$) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीपार्श्वजिन), ५८०५४(+#$) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), ५७१८७-९(+#$) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ),
प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि.,
(नमः समयसाराय), ५५९१९(#) (४) समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर
हरन), ५५७१२(+#s), ५६२२७(+#), ५८५२१(+#), ५६२१९ (५) समयसार नाटक-टबार्थ, मु. दानरुचि, मा.गु., वि. १८०१, गद्य, दि., (जीव करम करे छे ते), ५६२१९
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., अ. १०, वि. १४६९, गद्य, मूपू., (सव्वन्नु मोक्खमक्खंत), ५५९५६(+), ५६७४२-१ (२) समयसार प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवानंदसूरि, सं., वि. १४६९, गद्य, मूपू., (नत्वार्हत समस्तान), ५५९५६(+) समरसार, रामचंद्र सोमयाजि, सं., पद्य, (नत्वा गुरून्समालोच्य),५५६५५-२(#$) समरादित्यकेवली चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., अ. ९, ग्रं. १००००, वि. १८७२-१८७४, प+ग., मूपू., (श्रीमंत
परमात्मतापद), ५८४८१-१(+) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ५६७९६(+#$),
५६८६२(+$), ५७०३१(+$), ५७३४८(+), ५८४८८(+), ५७३४९(#), ५६९६२($) (२) समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३५७५, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५७१६७(+) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ५७३४८(+), ५८४८८(+),
५७३४९(#) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६७९६(+#$), ५६९६२($) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मैव), प्रतहीन. (२) समाधितंत्र-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, दि., (श्रीगुरू कइ उपदेश रस), ५७८६६-३(+) समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ५७७६०-१६ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग), ५७७६०-७ (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसद्दहणा० जीवजीवदि), ५७७६०-७ सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५५७४२(+#$),
५६०९५(+#), ५६८६५(+), ५७२६९(+) (२) सम्यक्त्व कौमुदी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर),५६०९५(+#) सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., ग्रं. १५८७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५७२३६(#$) सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ५५९९१(+), ५८३३७-१(+), ५८४६६(+), ५९२२४-६(+#), ५६९१३ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ५५९९१(+), ५८३३७-१(+), ५६९१३ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज०जे रीते स०समकितनु), ५८४६६(+) सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), ५६६९०(#), ५७२०८($) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हुं सम्यक्त्वनी), ५६६९०(#) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाशक बालावबोध+कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (नत्वा
श्रीपार्श्वमर), ५७२०८() सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ५७८९३(+#$) (२) सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., वि. १८१३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य कहेता प्रणां), ५७८९३(+#$) सरस्वती अष्टोत्तरनामगर्भित स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे.?, (ॐश्रीह्रींक्लीं वद), ५८८७६-८(+#) सरस्वतीदेवी कल्प, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, मूपू., (गुरुक्रमेण सर्वतत्व), ५६९७९-८ सरस्वतीदेवी कल्प, सं., गद्य, मूपू., (वाग्भवं प्रथमं बीज), ५६९७९-९ सरस्वतीदेवी जापमंत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, श्वे., (ॐसरस्वत्यै नमः), ५६९७९-६ सरस्वतीदेवी मंत्र व जापविधि, आ. हेमसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐनमो भगवओ अरिहओ भगवइ), ५६९७९-१० सरस्वतीदेवी महापीठोद्धार, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, मूपू., (ऍक्लींझौँ पूर्व), ५६९७९-७ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (कदाकुंडलिनित्वदीयवपु), ५६९७९-५ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (बृहस्पतिरुवाच सरस्वत), ५८९९७-६ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ५८९९७-१० सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ५८९९७-१ सरस्वतीमंत्र कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. ७७, पद्य, म्पू., (जगदीशं जिनं देवमभि), ५६९७९-४
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५३४
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन.
(२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं), ५८१४२-२ (+$), ५८२३९ (+$), ५८५३६ (+#$) (३) सारस्वत व्याकरण-क्षेमेंद्रीवृत्ति, आ. क्षेमेंद्रसूरि, सं., गद्य, म्पू, वै., (तदर्थतत्त्वाभिनिविष), ५८२११ (+)
"
(३) सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि सं., वृ. ३ नं. ७५०० वि. १६२३, गद्य, म्पू, वै., ( नमोस्तु सर्वकल्याणपद), ५७१५०/**४), ५८२३९ (०४), ५८५३६ (+०६)
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(३) सारस्वत व्याकरण- टिप्पण, सं., गद्य, वै., (--), ५८१४२-२(+$)
""
(३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६६३, पद्य, भूपू (श्रीसर्वज्ञं जिन), ५८१५८(+१३) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत), ५८२४०(+$), ५८७०९(+#$)
"
(३) सिद्धांतचंद्रिका सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू. वै. (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), ५८२४० (+९), ५८७०९ (+३) ५७९३६ (६)
सर्वज्ञशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., श्लो. १२३, पद्य, मूपू., (पणमिय सिरिवीरजिणं), ५७२०९ (#$) (२) सर्वज्ञशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं. गद्य, मूपु (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५७२०९ (३) सर्वांगपल्ली फल, सं., श्लो. ३९, पद्य, श्वे., (कष्टं च शिरसाधार), ५८७६१-१
(#$)
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साढसती मंत्र, सं., गद्य, जै., वै., ( ॐ ह्रीँश्रीं शामांमग), ५८८७६-४(+#) साधारणजिन पूजा, सं., श्लो. ३८, पद्य, दि., (णमो अरिहंताणं णमो ), ५६९९३(*)
(२) साधारणजिन पूजा-टिप्पण, श्राव. गोपाल ब्रह्मचारी, सं., वि. १६८६, गद्य, दि., (अरिहननात् रजोहननात), ५६९९३(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (श्रीतीर्थराज पदपद्य), ५५९११-२१(००) ५६१७६-४(*) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( अविरलकमलगवल), ५५९११-२३(+#), ५७०४३-६(+), ५७०४३-८(+),
५५९२४-१५(#)
साधु आचारसंख्या गाथा, प्रा., गा. ३२, पद्य, वे (इह जीविय अनिमित्ता), ५७७६०-४६ (६)
"
"
(२) साधु आचारसंख्या गाथा- अर्थ, मा.गु. गद्य, वे ( जिके अग्यानी जीव), ५७७६०-४६(४) साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (ए क्रिया संप्रदाय), ५६९५३-४(३) साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पत्तं पत्ताबंधो पायठ), ५५८९४-३ (२) साधुसाध्वी १४ उपकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रानी मर्यादा), ५५८९४-३
सामाचारी प्रकरण, प्रा. सं., द्वा. २१, ग्रं. ११७६, गद्य, भूपू. (आयारमयं वीरं वंदिय), ५६०२८(+)
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, मूपू., ( नमो चउवीसाए), ५५७८४(+), ५६५७५-१८(+), ५७१९६ (+#$), ५८९६३(+) (२) सामायिक अतिचार-टबार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (नमस्कार चडवीस तीर्थ), ५५७८४(०), ५७१९६ (+45)
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सामायिकपद व्याख्यान, सं., गद्य, म्पू, (स्मारं स्मारं स्फुरद), ५८३३९(+)
सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, म्पू, (आदिदेवं प्रणम्यादी), ५८७६१-३, ५५८३१०१, ५८८९१(क)
(२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध में, मा.गु., गद्य, मूपू. (पहिला आउवु जीइज), ५८८९१(७)
सारावली प्रकीर्णक, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., ( आरंभेसु नियत्ता सव्व), ५५९४९-१४
सार्द्धशतक भाष्य, प्रा. गा. ९६, पद्य, मूपु (नियहेड संभवे विहुभयण), ५६६४९-७(+)
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि सं. द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपु. ( सिंदूरप्रकरस्तपः), ५५६२९ (+४), ५५६६४८),
,
५५८८४(+), ५५९०९(+#), ५५९१७(+#), ५५९३८-१(+), ५५९७२-१(+#), ५५९७९ (+#$), ५६६५४(+), ५६७९९ (+), ५६९५२(+), ५७०८६(+), ५७१३२(+), ५८०७७(+), ५८३३५-१(+०), ५८९४२(+), ५८९४६ (+), ५९२२७(+४), ५८३६३, ५८३६६, ५६६०१-१(#), ५६६२४-१ (#), ५८९३२(#), ५६८४३ ($)
(२) सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६५५ गद्य, मूपु. ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ५५८८४(+), ५५९३८-१(+),
"
५५९७२-१(+४), ५६९५२)
(२) सिंदूरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयो), ५६६५४(+)
(२) सिंदूरप्रकर- टवार्थ सह कथा, मा.गु., गद्य, मूपू (सिंदूरनो प्रकर केहिद), ५७०८६ (*)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५३५ (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), ५६७९९(+$), ५९२२७(+#) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमकर, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अनंतशब्दार्थगतोपयोगि), ५६९६३(+#$) सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथाष्टदलमध्याब्जकर्ण), ५६०२७(+) सिद्धचक्र लघुयंत्र, सं., यं., मूपू., (ॐ हीं असिआउसा), ५६८३८-२ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ५६२५८-६(+#) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ५८६०१-१(+#$) (२) सिद्धदंडिका स्तव-बालावबोध, पंन्या. अमीविजय , मा.गु., वि. १८४६, गद्य, मूपू., (पुत्र पौत्रादिका), ५६८३१(+),
५७६१४(+$) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सिद्ध सिद्धत्थसु, ५६७७०(+), ५७६८६(+) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (सिद्ध आपणो अर्थ), ५६७७०(+) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, ग. लालकुशल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ५७६८६(+) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., गा. ११९, ग्रं. १३५, पद्य, मूपू., (तिहुयणपणए तिहुयणगुणा), ५८०२१-१ (२) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (सकलभुवनेशभूतान्निखिल), ५८०२१-२(६) सिद्धभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (जिण अजिण तिथ तिथा), ५७५९८-२(#$) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ५९०२५-४(#) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धिः
स्याद), ५५६९५(+#$), ५६७८१(+$), ५८१९५(+), ५८२०४(+$), ५८२१४+), ५८२३१(+#), ५८१८९($) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका, सं., गद्य, म्पू., (संहिता च पदं चेव), ५६७८१(+$) । (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य,
पू., (प्रणम्य परमात्मान), ५८२३१(+#) (३) न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सू. ५७, गद्य, मूपू., (स्वं रूपं शब्दस्या), ५६७७४-३(+#$) (४) न्यायसंग्रह-टीका, सं., गद्य, मूपू., (स्वं रूपं शब्दस्य), ५६७७४-३(+#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., (अर्हमित्येतदक्षर),
५५६९५(+#$), ५८१८९(5) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य० णमं प्रह्वत), ५८२१४+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (अहमित्येतदक्षर), ५८१९५(+), ५८२०४(+$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्ह अस्यु ए अक्षर), ५८१९५(+) (२) प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथ प्राकृतम्
बहुल), ५८२०९(+) (३) प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २१८५, गद्य, मूपू., (अथ शब्द
आनंतर्यार्थो), ५८२०९(+$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (भू सत्तायां
पांपाने), ५८२०६(+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमपरिभाषासूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, पद्य, मूपू., (स्वं स्वं
शब्दस्याशब), ५६७७४-२(+#) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमपरिभाषासूत्र की टीका, सं., गद्य, मूपू., (पंचम्या निर्दिष्टे), ५६७७४-१(+#$) (२) क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ५६६१, वि. १४६६, गद्य, मूपू., (जयतिजिनवर्द्धमानो), ५८१८०(+#$), ५७१६२(#) सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा., गा. ६०, पद्य, म्पू., (एकेदियए पंचेंदिय), ५५७५४-२(#) सिद्धांतविचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. २२२, पद्य, मपू., (कंचणगिरि पव्वेसु), ५६५२१(+#) (२) सिद्धांतविचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कंचनगिरि पर्वतनइ), ५६५२१(+#)
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५३६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
सिद्धांतसमुच्चयसार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (सम्यक्त्वनउ अधिकार१), ५६५८१-१(+) सिद्धांतसार, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. १०२, पद्य, श्वे., (श्रीमद्वीरजिनं प्रणम), ५६७३३(+#) (२) सिद्धांतसार-आधारपाठ, संबद्ध, प्रा., गा. १०१, पद्य, श्वे., (विवगय जरमरणभये मणवय), ५६७३३(+#) सिद्धांतसारोद्धार-देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, उपा. कमलसंयम, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संवत १५०८ वर्षे), ५६९८७(#) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित),
५५८२६(+#$), ५५८६८(+), ५५९५७(+$), ५६०९६(+), ५६५१८(+#), ५८३९१(+#), ५८४९८(+), ५९२२६(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा नवपदी), ५७०१५(+#$) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, पं. ऋद्धिसागर मुनि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अरिहंतादिक नवपद), ५८३९१(+#) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., वि. १८०६, गद्य, मूपू., (स जयति सिद्धसमूहो), ५५८६८(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत प्रमुख नवपद), ५६०९६(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतादिक नवपद), ५५९५७(+8), ५९२२६(+) सीतासती चरित्र, प्रा., पद्य, मूपू., (कमलनहकतिजलेणं वखालि), ५७०८४ सुगंधदशमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, दि., (पादाभोजान्यहं नत्वा), ५७३६०-१६(+$) सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., उ. १६, गा. ४०५३, ग्रं. ४५००, पद्य, मूपू., (वंदितु सुव्वयजिणं), ५७३३५(+) सुपात्रदानादि विषयक व्याख्यान संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (नो दानं वहिती तपोन), ५५७३५ (-#$) सुपासनाह चरिअं, ग. लक्ष्मण, प्रा., गा. ८६५०, ग्रं. १०१३८, वि. ११९९, पद्य, मूपू., (जयइ जुयाईजिणिंदो), ५९२१९(+) सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), ५७४४७-१(#) सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ५५७८२-३(+#), ५६०६९-३२(+),
५७०९६-२(+), ५७८५५-१(+-#$), ५८५९८(+$), ५८०७८-१, ५९०३२-२($) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (दान सुपात्रनै विषै), ५८५९८(+$) सुभाषितश्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. १३६२, पद्य, श्वे., वै., (यत्नकल्याणकरोवतारसमय), ५६६२१(+#$) सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ५८३३५-३(+#) सुभाषितावली, प्रा.,सं., गा. ५६, पद्य, मूपू., (गुरुभत्तिखंतिकरुणा), ५८४४८-१(+#) (२) सुभाषितावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरुनी भक्ति करता), ५८४४८-१(+#) सुरदत्त कमलसेन कथा-अदत्तादान विषये, सं., गद्य, श्वे., (नादत्तं गृन्हतेयेत्र), ५८९०९-४ सुव्रत कथानक-अष्टप्रकारीपूजा विषये, सं., गद्य, मूपू., (कुरुचंद्र कथा वृत्ति), ५८९०९-१७ सुव्रतश्रेष्ठी कथा, मु. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य वृषभं देव),५६५३६(+) सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, पू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), ५६५०६(+$) (२) सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६५०६(+$) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृद), ५५९६९-१(+#),
५६२२२(+#), ५८२५२(+#), ५८६०३+), ५६१८८, ५७६८५, ५५८२१(#), ५७८४३-२(#$), ५८०५९(#$) (२) सूक्तमाला-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (तदनुक्रम संलग्न हो), ५८०५९(#$) सूक्तावली, सं., अधि. ७४, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदुसंयुक्तं), ५६०११(६) सूक्तावली, सं., श्लो. १२९, पद्य, श्वे., (--), ५८९३३(+) (२) सूक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ५८९३३(+) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ५६१, पद्य, मूपू., (नास्त्यहिंसा समो), ५८०५५-२(+#$) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, मूपू., (वीरं विश्वगुरु), ५८०५५-१(+#) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (सयलंतरारि वीरं वंदिय), ५६६४९-६(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५३७ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), ५५८८०(+$), ५५८८३(+),
५५९५०(+#), ५६०६५(+), ५६०७४+), ५६१२४(+#), ५६५०३+), ५६५७०(+#), ५६८५६-३(+), ५६९४३(+), ५६९९८(+), ५६९९९(+), ५७१४३(+$), ५७१७७-१(+#), ५७२५६(+#), ५७२६२(+), ५७२७५(+#), ५८३८८(+), ५६०४२,
५६६४१(#), ५७०२०(#5), ५७२५९(#), ५७३५५(#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, पद्य, मूपू., (तित्थयरे य जिणवरे), ५७१७७-२(+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ७०००, वि. १५८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिन), ५६०४२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत),
५६०९०(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), ५५८८२(+$), ५६१२४(+#), ५६५०३(+),
५६९९९(+), ५६६४१(#), ५७३५५(#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५६०७४(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), ५६०६५(+), ५६५७०(+#), ५६८५६-२(+$), ५७२५६(+#),
५७२६२(+), ५७२७५(+#), ५८३८८(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा.५५, पद्य, मूपू., (पुरेकडं अद्दइमं सुणे), ५५७५०(+) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवई छट्ठउंअध्ययन), ५५७५०(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य.७, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसंतेण), ५५७९३(+#$) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (सुयंमे० आउष्मतिहे), ५५७९३(+#$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का अध्ययन ७ कुसीलपरिभासितं, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३०, प+ग., मूपू.,
(पुढवी य आऊ अगनी य), ५७०६५($) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का अध्ययन ७ कुसीलपरिभासितं-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७०६५ ($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण),
५५६८९-१(+#), ५६६१०-१(+), ५६७५८-१(+), ५६९२५(+), ५६९७०-१(+), ५७८६३-१५(+), ५८३४४-१(+), ५६८१८-१ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ५५६८९-१(+#),
५६६१०-१(+), ५६७५८-१(+), ५६९२५(+), ५६९७०-१(+), ५८३४४-१(+), ५६८१८-१ (२) इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा, संबद्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (अट्ठादंडे १), प्रतहीन. (३) इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अट्ठा० अर्थदंड), ५८६२७-७(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (समय अध्ययन वेतालिय), ५८६२७-१०(+), ५८६२७-१७(+) सूत्रव्याख्यानविधिशतक, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., श्लो. १०४, पद्य, म्पू., (णमिऊण महावीरं जिणवयण), ५५६४८(+$) (२) सूत्रव्याख्यानविधिशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५६४८(+$) सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), ५६०८३(+$), ५६६३२ (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. पार्श्वचंद्रसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणे काले चउथा० भगव), ५६०८३(+$) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), प्रतहीन. (२) सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ५९००७-१ स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), प्रतहीन. (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-वृत्ति, गच्छा. जिनरत्नसूरिजी, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कृत्य जिन), ५८३७५(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ५६०२९(+#), ५६५४६(+),
५६८७७(+#$), ५८३८६(+$), ५८९४८(+), ५७३२०,५६६२५(#), ५८४४६-१(२) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-शिशुबोधिनी टीका, पंडित. देवचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (--), ५६८७७(+#$) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धनपालपंडितबांधवेन०), ५७३२० स्थविर कथा-देवपूजा विषये, सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा फले थेरी), ५८९०९-१६
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५३८
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउस तेणं), ५६०८६(+), ५६१०३(+),
५६११५(+), ५७२५२(+#), ५७३३७(+#), ५७३३९(+#), ५७३७३(+#), ५७३११, ५६८१०,५७३०३(#), ५६९४५(६),
५८४९९(६) (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिननाथ), ५६०८६(+),
५७३३९(+#), ५७३०३(#) (२) स्थानांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, ग. नगर्षि, सं., स्था. १०, ग्रं. १४१००, वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणतसुरासुरनाथ), ५७३३७(+#) (२) स्थानांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नाथ), ५६१०३(+), ५७३७३(+#) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा),५६११५(+) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ५६१०३(+), ५६८१०, ५८४९९(5) (२) स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहंता एगे समए), ५७५०८($) स्नात्रपंचाशिका, ग.शुभशील, सं., कथा. ५०, श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनान्), ५५७१३(#), ५७८८६(#$) (२) स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य क० प्रणाम), ५५७१३(2) (२) स्नात्रपंचाशिका-कथा, मा.गु., कथा. ५०, गद्य, मूपू., (श्रीपुर नगरने विष), ५५७१३(#) स्नात्रपूजा विधि, मु. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम निसिही पूर्वक), ५८५७२-२(+) स्वयंबुद्ध कथा, प्रा., प+ग., मूपू., (--), ५८०८६(+#$) हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (अविधायापि हि हिंसां), प्रतहीन. (२) हिंसाष्टक-स्वोपज्ञ अवचूर्णि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अपार पारावार संसार), ५५९००(+#) हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रियो निदान), ५७०९८(+), ५६८७४(#$) हुंडकचोर कथा-नमस्कारमंत्र विषये, सं., गद्य, मूपू., (मथुरानगर्यां शत्रु), ५८६७५-५(+) हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक. ८, श्लो. १३९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (पुल्लिंगं कटणथपभमयर),
५५८१८(+), ५६४९९(+), ५८१९३(+), ५८२२५(+) (२) हैमलिंगानुशासन-टिप्पण*, सं., गद्य, मूपू., (कटणथपभम० इत्येतदंत), ५८२२५(+) (२) हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३३००, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धहेमचंद्र), ५८२००(+#) (३) हैमलिंगानुशासन-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (कटणथपभमयरषस इत्येदंत), ५८१९३(+) होलिकापर्व कथा , सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ५६९२०-३($) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ५९०५३-१(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैन धर्म नही कीतावो), ५८५१०-११२(-) ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ५७४३९-१(+$), ५७८२०-२३(#), ५८३३६-२(#$) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, म्पू., (सिद्धारथ
शशिकुलतिलो), ५५८६०(+-#$), ५७४६७(+#s), ५७४९१(+), ५७५७३(+#), ५६२३१, ५८९८१, ५७५०१ (#S), ५८६४३(#) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, ग. उदयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहेली हे वांदो रूडा), ५८५२९-६८(+) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ५७५८९-४(+), ५८६१६-२(+#) ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृथा करम बांधत जीउ), ५७४८४-३६(+) ५ इंद्रिय २० द्वार बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार१ संठारद्वार), ५७८२०-१३(#) ५ इंद्रिय २३ विषय सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (उतपत मानव एहरे), ५८९८७-२४(+#) ५ इंद्रिय सज्झाय, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (जंजाली जीवडा काई), ५८९९६-४३(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ५७८३९-२२(+), ५८५२८-१९(+#) ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरुं श्रीआदिदेव), ५५९०३-४ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ५८५९२-१६(+#) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (हस्तीनागपुर अतिभलो), ५७८६३-१७(+$) ५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो नारकिनो द्वार), ५९०१० ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ५७४६५-१(+), ५८५२८-३(+#) ५ शरीर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उदारिक१ वैक्रिय२), ५७७६०-२५ ५ शरीर वर्णन-पन्नवणासूत्र मध्ये, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपन्नवणासूत्र चउथ), ५७८२०-१२(2) ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (औपशम समकित १), ५६५०८-२(+#) ५ स्थावर एकेंद्रीय जीव, मा.गु., गद्य, म्पू., (पृथ्वीकाय१ तेहना), ५७७६०-२९ ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ५६१९० ६ आवश्यक प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (सामायिक १ चोवीसत्थो), ५६५७५-२७(+) ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, पद्य, मूपू., (प्रणमि पास जिणंदने), ५६६८७-२(+$) ६ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर गोयमनें कह), ५७५२४-७(+#) ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६०३३(#$) ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहलोक भय १ परलोक भय), ५८६२७-१(+) ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीखामण सद्गुरु तणी), ५७८३९-९(+) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ५७६५०-६(+#), ५८५४२-१२ ८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिव्य आत्मा१ कषाये), ५८५२५-३(2) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणी कर्म१), ५७७५४-९(+) ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (न्यानावरणी की ५),५६५७५-२६(+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ५६३०२-१(+#), ५५६४५, ५७७६०-८, ५६१८५-१(#),
५८६२२(#) ८ कर्म उपार्जना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणीकम), ५७७६०-९ ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी),५६९४१-१, ५५६६६-८(5) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीयकर्म), ५६८५८-४(+#), ५८०५१-२(+) ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चिदानंद परमातमरूप), ५६२७३-२२(+#) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), ५६३२९-२(+), ५८६१५
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
५४०
८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद), ५७८२०-१४(#)
८ मदस्वरूप वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जात मद मातानउ पक्ष), ५८६२७-२(+)
८ योगदृष्टिगुण सज्झाच, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ८, गा. ७६, पद्य, म्पू, (शिवसुख कारण उपवेशी), ५७४३३(+०), ५७७७५ (+), ५७७८०
(२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय- बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं), ५७४३३(+#), ५७७७५(+), ५७७८० ($)
(२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरुपद्रव्य सुखनं), ५७४३३(१०)
९ जीव तीर्थकरनामकर्म उपार्जित करनेवाले महावीर के समय में, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रेणिक राजाये १). ५८६९८०५ (*)
९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., ( वसति १ स्त्रीनी कथा), ५८६२७-३(+)
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ५८५२८-२९(+#),
५६२१७-१
९ वासुदेव द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पेला त्रिपृष्ठवासु), ५७८२०-२९(१)
"3
१० गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, मा.गु, गद्य, भूपू (विक्रमादित्य थकी) ५६५६७-५
१० दशा सज्झाय, मु. समुद्रविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मृपू., (सोहम गणहर प्रणमी पाय), ५८५४२-५
יי
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,
१० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चक्खाणना नाम नवका), ५८६९८-४(+)
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ५८५२९-२९ (+), ५९०३५-१(#)
१० पच्चक्खाण सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविध प्रह उठी पचखाण), ५८५४२-८
१० प्रकार असज्झायकाल विचार, रा. अंक. १०, गद्य, भूपू (रसरो लोलपी हवै तो), ५८६९८-८)
१० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), ५८६२७-४(+)
१० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतलता वन सींचवा), ५७६२९(+$)
१० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तीकायने न देख), ५८६९८-९(+)
११ गणधर परिवार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू. (हवई त्रीजो वायुभुति), ५७८२०-३०(४)
१२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), ५७५५५ (+$)
१२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, वे., (उप कुलाणी वा कहता), ५८६९८-६(+)
१२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु., गद्य, वे. (पेला भरतचक्रवर्ती), ५७८२०-२८(क)
१२ बोल आचार विषयक, मा.गु., गद्य, मूप, (श्रीविजयदानसूरि), ५६५६७-३
१२ भावना, मा.गु, गद्य, श्वे. (प्रथम अनित्य भावना), ५७७९८-२२+०३)
"
१२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा. ५२, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमि चरणयुग पास), ५७७०३ (+)
(प्रथम सम्यक्त्व देव), ५९०४६(+), ५७५४८- १(क)
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर पाय नमी),
५६२९१(+४), ५७६३६ (+5), ५७६४२(+5), ५८५२८-३३(०४), ५७८१०-१, ५७५१४४१, ५७५३७/१, ५७८९२०)
१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., डा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हंस), ५५८४८(क)
१२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, भूपू
७
१२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (प्राणातिपातन्नत मृषा), ५७७६०-२४
.
१२ व्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि करो), ५८५२८-३६(+#)
१२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (पहिलि प्रतिमा १ मास), ५८६२७-६(*)
१२ व्रत रास, उपा, उदयरत्न, मा.गु.. ढा. ७७, गा. १६६५, वि. १७८६, पद्य, भूपू (बंदु अरिहंत सिद्धने), ५६२५२ (६)
१२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८२, पद्य, मूपू. (श्रावकना व्रत सुणिज), ५७४३०-३(+)
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१३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), ५८२५९-३५ (+)
१३ काठिया नाम, मा.गु, गद्य, मूपू (आलस १ मोह २ बने ३), ५५९५२-२ (००)
१३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. (पहिला प्रणमुं गौतम), ५९०३५-२(७)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
१३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २२, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण जे एवोजी), ५८५९४-२ १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ५७८३९-३०(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. १३, वि. १७१८, पद्य, मूपू., ( पासजिनेश्वर पाय नमि), ५६३१५ १३ गुणस्थान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ५५७२५ (#$)
१४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, भूपू (नामद्वार १ लाखण २) ५९००४), ५६१९४-२
,
१४ गुणठाणा विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (नामद्वार ते १४ गुणठा), ५८५२५-४(#)
१४ गुणस्थानक २९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू. ( गुणस्थानक १४ तेहनां), ५६२००(+), ५८६९४८)
१४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू (मिथ्यात्व गुणठाणो १). ५७७६०-३३
"
१४ गुणस्थानक नाम व स्थिति, धर्मदत्तदेव, मा.गु, गद्य, वे (प्रथम मिथ्यात्व), ५७७५४-१०(०)
""
१४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां ), ५६१९२-२(+#)
१४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिन), ५५६६६-७
१४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सरसती सामिनि द्यो मत), ५६२७३-२(+#)
१४ गुणस्थानक सज्झाय, मु, मणिविजय, मा.गु, डा. १७, पद्य, मूपू (श्रीशंखेश्वरपुर धणी), ५६१५२(+)
१४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मृपू. (वांदी वीरजिणेसरदेव), ५९०३५-६(१)
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"
१४ जीवभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्रियना ४ भेद), ५८६२७-८ (+)
१४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई देवता सोधर्मदेव), ५८६३१-२
१४ स्वप्न- इंडीया की माता द्वारा देखे गये, मा.गु., गद्य, वे.?, (अथ डुंडीया गर्भावास), ५५८०४-२ (+४)
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१४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ५५६४३-५ (+#$)
१५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. स्तु. १६ गा. ६४, पद्य, मूपू (एक मिध्यात असंयम), ५६१८३-१००),
""
५७८०१-१(+), ५७६१५
१५ परमाधामी विचार, मा.गु., गद्य, वे., (अंब१ अंबरीष२ शामशबल), ५८६२७-९(+)
१६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, खे, (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ५७८६३-१०(१)
१६ संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, वे (आहार भयर परिग्रह३), ५५६६६-३
१६ सती सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीतलजिनवर करुं), ५८५२८-३१(+#)
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर ), ५७८६३-७(+$)
१६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं, गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), ५८२५९-४५(+)
१७ असंयमभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथवीकाय असंयम १), ५८६२७-११(+)
१७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (अरिहंत केवलज्ञान), ५६३१८-४(+) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ५६२८६-१(+#), ५७७१०
१७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), ५८५२९-१०२(+)
१८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ५६५७५-१४(+)
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५४१
१८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेलां ते समरूं पास), ५७५३४-१(+), ५७८३९-१२(+)
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ५७८३९-१(+), ५८५२८-२(१)
१८ पापस्थानक सज्झाय, आ. गुणसूरि, मा.गु., सज्झा. १९, गा. १४१, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनै नामुं), ५८२५९-३(+) १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम कोडि अडतीस), ५७७६०-१८
२० असमाधिस्थान सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (जिन आगम सांभली चित्त), ५६२७३ १४क्क
"
२० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले बोले), ५६२०४-१(०)
२० विहरमानजिन नाम पद, मु. मोहन, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू ( दरसण देख्यां श्रीजिन), ५८२५९-२१ (+)
3
२० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, भूपू (श्रीमंधरस्वामि), ५७८२०-२७(4)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५४२
२० विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीस जिनेसर जग जयवंता), ५७४८४-६६(+)
२० विहरमानजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर पेहेला नमु), ५७६४९-२ २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे. (उत्तम साध पधारीया), ५८५९४-१६
२० स्थान- असमाधिके, मा.गु. सू. २०, पद्य, भूपू (धब धब चाले अप्रमार्ज), ५८९१३-२ (०)
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२० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंत प्रथम पदे), ५६२७३-२१(+#) २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर- शिष्य, पुहिं, प+ग, मृपू., ( तिहां प्रथम शुभ दिन), ५७८३०-१(+)
२० स्थानकतप सज्झाय, उपा. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने करुं), ५८५४२-१४
२० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (जिनमुखपंकजवासिनी), ५५६८३-२(+$)
७
२० स्थानकतप स्तवन, मु, वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू (वीशस्थानक तप सेवी), ५६१४१-१२(+) २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पूजा. २० वि. १८५८, पद्य, भूपू. (सुखसंपतिदायक सदा जग), ५७७८१(०)
5
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ५७६९० (+), ५७८८४(+), ५६२५१०१, ५६३१९
२० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३१, गा. ३४०३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि संपतिकरण), ५७४१३(००)
२१ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., ( हस्तकर्म करे तो सबल), ५८६२७-१५ (+)
२२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्ध), ५८५२८-२२ (+#), ५८६६६-१(+#) २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु. गद्य, भूपू (उजेणी नगरीय हस्तमित), ५७४८५ वडा
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२२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. दा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था. (श्रीआदेसर आद है), ५९०२१(*), ५७८९६(१) २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मृपू. (श्रीजिनवर पाय), ५६१४१-८(+४)
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२४ जिन ८४ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, वे. (पेला सर्वार्थथी चव्य), ५७८२०-२६(४)
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ५६८५६-१(+), ५६२८०, ५८६२१
२४ जिन आरती, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, भूपू
(चडवीस जिणेसर न्यान), ५६१८१-२
(प्रथम आदिनाथजी आसाड), ५६५७५-९ (+)
२४ जिन कुसुममाला पद, मु. जगतराम, रा. गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनजी के नाम जपो रे), ५७५४९-१५
.
२४ जिन चैत्यवंदन- देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (पंचसवा धनुमान जाण), ५६२०१-१२ (०)
२४ जिन चैत्यवंदन- लंछनगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू., (वृषभ गज हय कपि), ५६२०१-११(१)
२४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को. मृपू. (चवणविमान नवरि जिण), ५५६४७(+), ५७५१२(+),
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५६२६५. ५९०२८(१)
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुंजे ऋषभ समोसर्य), ५८६७८-८(+)
२४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ५६१९२-३(+#)
२४ जिन नाम पद अतीत, मु. मोहन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (सुम्यांनी तु जिन नाम), ५८२५९-१८)
२४ जिन नाम पद - अनागत, मु. मोहन, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (आधारी चौवीसे जीनवर ), ५८२५९-२०(०) २४ जिन नाम पद - वर्तमान, मु. मोहन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जय जय जय जय), ५८२५९-१९(+)
२४ जिन पद, मु. सुविधिसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (मुज पर महर करो जिन), ५७४८४-१(+), ५८५१०-१४)
२४ जिनपरिवार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु., (चोवीसे जिनना सुखकार), ५८५२८-३७(+)
२४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (चोवीस तीर्थकरनो) ५८२५९-४१(+)
२४ जिन साधुसाध्वी आवक आविकासंपदा सज्झाय, मु. करमसी, मा.गु, गा. ६, पद्य, थे. (चोवीस तीर्थंकरनो), ५७८३९-२८(०) २४ जिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इण पर भाव भगत मन आणी), ५७४८४-७६(+)
२४ जिन स्तवन, मु. धर्ममुनि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू (मेरे मन प्यारे रिषभ), ५८५९५ ($)
२४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (वंछितपूरण सुरतरु जेह), ५८३६२-१३
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זי
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
२४ जिन स्तवन- अनागत, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवेति कालिं हो), ५८०२७-५१(०)
',
,
२४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ५८५९२-१०(१), ५८६५१-४२)
२४ जिन स्तुति, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जी हो रिषभजिनेसर वंद), ५६१४१-२६(+#) २४ जिन स्तुति, मु, परमसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (फलवधिपुर मंडण फलदाइ), ५६२५८-२८(+)
""
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२४ जिन स्तुति, आ. विनयसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चोविसजिनां), ५७४४३-५
२४ तीर्थकर परिवार, मु. करमसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे (चडवीस तीर्थंकरनो), ५८६६६-७(+)
२४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को. भूपू (-), ५६२८२ (+३)
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, पग, मूपू. ( सरीरोगाहणा संघयण), ५६२९९ (+), ५७५८४-१(१०), ५८५८४(१) (२) २४ दंडक २५ द्वार विचार- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., ( सरीर पांच ते किहां), ५७५८४-१(१०)
(२) २४ दंडक २५ द्वार विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर पांच अवगाहना), ५६२९९(+#$), ५७५८४-१(+#)
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (शरीर अवगाहणा संघयण), ५७४७९(+४), ५७७७९-१(+४), ५६२३४, ५८६७०-१, ५८५७१(२)
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु. गद्य, भूपू (प्रथम नामद्वार बीजु), ५७७९६
"
२४ दंडक ३० द्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु, गद्य, थे. (दंडकर लेस्यार ठिति३), ५७७५४-१(+)
1
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ५६१४२ (+#), ५६३३८ (+#$), ५७१०४(+), ५७४७७(+#),
..
५७५८३(+१३), ५७६६२ (+९१) ५७७६६ (+३), ५७५९१, ५७८६८, ५८५२५-१(४), ५७५९३(३) २४ दंडक बोल संग्रह, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे. (नारकी पूर्वि उत्तरि) ५७७५४-४/१ २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ५५७२८(+), ५७०४१(+#$) २४ बोल- परमकल्याण के, मा.गु., अंक ३०, गद्य, मूपू, (तप करी नीयाणु न करवु), ५८६९८-७(+)
२४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (गइंदिय काए जोए वेए), ५७६९५
२५ भावना विवरण, मा.गु., गद्य, भूपू. (मनोगुप्ति १ एषणासमित), ५८६२७-१९(+)
२५ समाचारी-कथा दृष्टांत सहित, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम वरदत्त साध चारित), ५६३१३(+#)
२७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचमहाव्र पाले ५), ५८६२७-२१ (+)
२८ आचार कल्प, मा.गु., गद्य, वे (आचारंग सूत्रना २५), ५८६२७-२२(५)
३० बोल-महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रस जीवने पाणीमाहि), ५८६२७-२४(+), ५८५२५-८(#)
३० महामोहनीय सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनशासन जाणी आणी), ५६२७३-१७(+#)
३२ असज्झाब विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उकाबाई कहता तारो तूट), ५६३२८-३(००)
३२ योग विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलोयणा १ निरवलेवे २), ५८६२७-२६(+)
३२ योगसंग्रह सज्झाच, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. १०, पद्य, मूपू., (भवियण प्राणी रे जाणी), ५६२७३-१९(+) ३३ आशातनावारक सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गुरुनी करीये सेवना), ५६२७३-१२(+#) ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू (सात्त भये इहलोक भय), ५५८६१ (+३), ५७८२०-२५(क)
३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ५९०२५-१ (०)
,
५४३
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४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, म्पू, (आचारांगर सुवगडांगर), ५६५७५-२०१०)
६२ मार्गणा ९४ द्वार यंत्र, मा.गु., पं., भूपू., (--), ५८६५८)
६२ मार्गणा द्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे. (गति१ नरक इंद्री ५ ), ५७७५४-१५ (+)
६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ५८३५७ (+), ५८७०३ (#)
६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. मूपू., ( देवगति मनुष्यगति), ५७६९४(+), ५६३२१, ५७७०६-३
६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथनुं ८४ लाख), ५६७०८-२(+$) ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, वे., (चमरेंद्र धरणेंद्र), ५७७६०-२१
"
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५४४
८४ आशातना स्तवन, उपा धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू (जय जय जिण पास जगडा ), ५६१४१-७ (+)
८४ गच्छ पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामिनें), ५७४३१(#)
९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ५६१४१-१० (+#) ९८ भेद अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु गा. २२, वि. १७७२, पद्य, भूपू (वीरजिणेसर वंदिये),
१८१ हुंडी बोल, आ. भीषणजी स्वामीजी, रा., गद्य, श्वे., (जे हलूकर्मी जीव होसी), ५७३८३ (+)
२२१ जीव बोल धोकडा, मा.गु., गद्य, मूपु. ( जीव २६ गइ ५ इंदि ३) ५६२११
י:
५६१४१-५(००)
९९ प्रकारी पूजा - शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ५७६२५ (+#)
१०३ जीव भेद विचार- ६२ मार्गणा यंत्र, रा. पं. भूपू., (एक प्राण को घणी वाटे), ५७५१३
१०४ द्वार विचार संग्रह, मा.गु, गद्य, वे., (जीव गई इंदिय काए जोए), ५९१३२ (+४)
१७० जिन नाम, मा.गु, गद्य, मृपू (श्रीप्रसन्नचंद्र) ५६५७५-१६(+)
,
.
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५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), ५७४५५
५६३ जीवभेद गतिआगति विचार- २४ दंडके, रा. गद्य, भूपू ( तिहां प्रथम ७ नारकी), ५७७६०-१३
""
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (उंचा लोक में ५६३), ५७४३९-२(+), ५७४५९(०), ५६१९४-३, ५८६४९, ५७५२१-२(क)
५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव का भेद बेइंद्री), ५७६३९(+$)
,
५६६ अजीव भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (२०० वरणना २० घोलाना), ५७७६०-१४
अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (माघे फुरके पुहवीराज), ५८६८२-१ (००६)
अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., खं. ३ ढाल ४३, गा. २५३, ग्रं. ७०७, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (करतां सगली साधना), ५८५३१)
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ दाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू (गणधर गौतम प्रमुख), ५५८२४(५०), ५७७६९(#), ५७८५७(#)
अंजनासुंदरी रास, मु, माल, मा.गु., गा. १५९, पद्य, मूपु. ( सरस्वति सामणी प्रणमि), ५८६५६
"
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ५५६०४-१(+#), ५७५०५ (+#$), ५७४३८, ५५८३३(#$), ५६३२५(#$), ५७६०७ (#$), ५८६७६ (#$)
अंजनासुंदरी रास - बृहद्, मा.गु., गा. ३१८, पद्य, मूपू., (पहिलै नई कडवई पय नमु), ५७४४५-१(#)
अंडजजीव विचार, मा.गु., गद्य, वे., (अंडजी जे जीव इंडा), ५६८२०-२
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अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण ब्रह्मांड), ५५९०३-८
अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., ढा. २१, गा. १३५, वि. १६८३, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद नमु सदा), ५५६९२(+#)
अकबर तानसेन पद, तानसेन, पुहिं. दोहा २, पद्य, वै., ( अला कोइ खुबसुरत), ५५६७८-१६(+)
"
अक्षरबावनी, मु. केशवदास पुहि. गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मृपू., (ॐकार सदा सुख देत), ५८८६९-१
अक्षरबावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुहिं. गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू (ॐकार अपार जगत आधार), ५६२७९ (०) अक्षरवावनी, मु. धर्मवर्धन पुहिं, गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू (ॐकार उदार अगम अपार), ५५६२५०), ५७०७३(०१) अक्षरबावनी, मु. बाल कवि, मा.गु., ., वि. १७१५, पद्य, श्वे., ( ॐकार अनंत अलख अविगत), ५७६३४(+#)
"3
अक्षरबावनी, मा.गु., पद्य, श्वे., (काका किरमनि वात करि), ५८०५३-२(#)
अगदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मा.गु, डा. १७, गा. ३९६, वि. १६७९, पद्य, मृपू., ( नाभिमहीपति शिरतलो), ५८५९०-१ अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु सह गुरुनो), ५६२७३-२६(१), ५९०३५-४१०) अजमेर युद्धादि प्रसंग वर्णन, मा.गु, गा. २, पद्य, (मंडोवर सामंद हुआ), ५८०७८-२
अजितजिन पद, मु. श्वेतरत्न, पुहिं., गा. ३, पद्य, खे, (अजितजिनेश्वर सेइयो), ५८५१०-९४) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (पंथडो निहालुंरे), ५७४४१-५ (००) अजितजिन स्तवन, मु. खेम, पुहिं. गा. १६, वि. १७२७, पद्य, मूपू (अजितजिन समरीये रे), ५६५७५-१२(*)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), ५७४८४-७७(+) अजितजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, खे, (चोथो आरो जिनवर बारो), ५५७०८-३(४) अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (अजित अजित जिन), ५८०२७-४(०) ५८५२९-७०(4) अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (ओलग अजित जिणंदनी), ५८०२७-५ (+) अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ५७४४१-८(+०) अजितजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजितजिणेशर सेवीइं रे), ५८५२९-७६(+) अजितजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू., ( अजित जिन को ध्यान कर), ५७४८४-४(+)
अजितजिन स्तवन, मु. हीर, मा.गु., ढा. १, गा. १०, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (आसति दाता अजितजिण), ५८६६६-५(+#) अजितजिन स्तुति, मु, मेरुविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु (विजया विजयानंदन नमो), ५६२५८-१५ (+०) अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. ४३, गा. ७५८, प्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू.. (वीणापुस्तकधारणी),
"
५७५९५ (5)
अजीवपुल ५३० भेद - पनवणावृत्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्ण १०० गंध ४६ रस), ५७७७९-२(+)
अतिसुकुमालमुनि रास, मु. सकलकीर्ति, मा.गु., ढा. ३७, वि. १९७५, पद्य, श्वे. ( त्राता तमे सकलना), ५६१४६ अतीत अनागत वर्तमान जिनचौवीसी स्तवन, वा. देवविजय, मा.गु. बा. २ गा. २०, पद्य, मूपू. (चिदानंद परमात्मा),
"
"
५६२०१-१(४)
अदीतवार वेल, मा.गु., गा. ११२, पद्य, मूपू. (प्रथम तीर्थकर पाय), ५८६६८ (+४ अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९ वि. १८वी, पद्य, भूपू
अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. २४२, ग्रं. ३३०, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (इष्टदेव प्रणमी करी), ५७६७० (+),
(प्रणमिये विश्वहित) ५६२१३(+), ५७८८१-१(७)
५७७८९(०४), ५७८४४
अध्यात्म फाग, जै. क. बनारसीदास, पुहिं. गा. १८. वि. १७वी, पद्य, दि. (अध्यातम बिनु क्यों), ५८६४४-२६(१)
"
अनंगसेन सोनार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकवार श्रीमहावीरने), ५७६६७-७ (४
"
अनंतजिन स्तवन, मु. वीरचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. अनंतजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू
अनंतजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू., ( आज सफल दिन मुझ तपो), ५६२०१-२१(१) अनंतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रीतडी अनंत जिनराजन), ५८०२७-१४(+)
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(अब मेरी आरति दूर गई), ५८५१०-१३ ()
(चरन शरन में तक आयो), ५७४८४-४० (+)
अब्रह्मचर्य के १८ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मणवयकाय ण करण जोगेहि), ५८६२७-१२(+)
अभंगसेन विचार, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., डा. ६, वि. १८२६, पद्य, वे (श्रीमिंदरजिन सीमरीये), ५७५८९-३(१)
अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ५७५३४-७(+)
अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., (श्रेणिक रववाडी चड्यो), ५५६५२-१४(००), ५७८६३-२५(५),
५८५२९-२०(+), ५८६६६-६(+४), ५९०२७-२०
५४५
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अभिनंदनजिन पद, मु. धीर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अभिनंदन सेवीयै रिद्ध), ५८५१०-४८)
अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (अकल कला अविरुद्ध), ५८०२७-७(4)
अमरसेनवयरसेन चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. डा. १८, गा. ३५४, वि. १७२४, पद्य, म्पू, (अक्षर राजा जिम अधिक), ५७७८५ (+),
५५६१०
अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअरजिन भवजलनो), ५७४४१-१२(+०) अरजिन स्तवन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरज सुणो अरनाथ), ५५६५६-३(+#) अरणिकमुनि चौपाई, मु. नवप्रमोद, मा.गु., खं. ४, वि. १७१३, पद्य, मूपू. (पारसनाथ पसाउथी पामी), ५८६१४(५) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, म्पू., ( इक दिन अरणक जाम), ५९०१८-५ (+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ५८५२९-८७(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू (अरणिक अतिसुकमाल), ५७५५१-२
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५४६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी; मु. धन्नो, मा.गु., ढा. ६४, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (अरीगंजण अरीहंतजी), ५८९७९(+#) अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वारी जाउं श्रीअरिहंत), ५६२७३-२९(+#) अर्जुनमाली ढाल, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८२३, पद्य, स्था., (राजगरी नगरी हुती), ५७५८९-५(+) अर्द्धपुद्गलपरावर्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन उपदेशें सुलल), ५८०२७-५५(+) अल्पबहत्व भेद विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे., (४ गति सर्वथा थोडा), ५७७५४-१६(+) अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरव थोडा अवधदसणी ते), ५६१७७-२(+$) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ५६१८४(+), ५५७६३,
५९०४४-१, ५६१७३-१(#), ५६२७२-१(#), ५७४६१-१(2) अवधिज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जे आगूलनो असंख्यातमो), ५८५२५-२(#) अष्टभंगी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुगुरुदेव सुधर्मनु), ५६२७३-२४(+#) अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ५८६७३-४ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ५८६९६-१(+#s),
५८९८७-१०(+#), ५७६४६-१, ५८६७३-२ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), ५५९११-२६(+#), ५७०४३-४(+) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ५६१७६-२०(+),
५६२५८-२९(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ५७४४३-१० अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ५७१९१-६(+), ५५९२४-८(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ५८५२९-४१(+), ५८९८७-१४(+#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ५८०२७-३५(+),
५८५२९-९०() अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ५७४४१-१५(+#), ५८९८७-२७(+#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, ग. अमृतविनय, मा.गु., वि. १९१२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधिशं), ५८५३७ असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगौतम), ५८५४२-१८,
५९०३५-५(#) असमाधि २० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (उतावलो चालें तो), ५८६२७-१४(+) आगमवचन चौपाई, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. २१२, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (वंदु चउवीसे जिणराय), ५६१७१(+$), ५७५५८(+#) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), ५७०३६-१(+), ५८५४८(+), ५७५९८-१(#),
५७८२८(६) (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, म्पू., (तिहां प्रथम जीव), ५७७५७(+), ५८०१५(s) आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ५८५९४-२२ आगम स्तवन, वा. लालचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जीणंदनी वाणी), ५६५७५-१९(+) आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोक आश्री प्रस्तते), ५८५८३-६(+), ५७७२२($) आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आचारी आचार्यजी),
५६२७३-३१(+#) आत्मदमन कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइक सनीवेसने विषइ), ५६२५३(-#$) आत्मनिंदा स्वाध्याय, मु. उदयरतन, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (दया मे वास मे हो), ५८५२९-९१(+) आत्मप्रबोधपच्चीशी, आ. गुणसूरि, रा., पद. २७, गा. ३४३, पद्य, मूपू., (जीव म्हारौ कह्यौ कदि), ५८२५९-२(+) आत्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (सिद्धं आ भावना रोज), ५६२१२(+) आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ५७७६०-१५
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५४७ आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदेसरना १३ भव), ५७६४०(+$) आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ५६३२०(+$) आदिजिन छंद, क. रामसुयश, मा.गु., वि. १८३८, पद्य, मूपू., (आदि तिर्थंकर आखिरे), ५७७३०-१ आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहि., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सदाशिव राव आव्यो), ५७७३०-२ आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ५८२५९-७(+$) आदिजिन जन्मबधाई, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ४, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (भावधरिने ए गुण गावो), ५५९६९-३(+#) आदिजिन पद, मु. करमसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बागमें), ५८५१०-१२२(-) आदिजिन पद, मु. खेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जागीयै नृप नाभिनंदन), ५८५१०-९(-) आदिजिन पद, मु. चौथमल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मैं चाकर हुं तुम चरन), ५८९९६-१(+) आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (आज सकल मंगल मिलै आज), ५८५१०-५५(-) आदिजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (घडी धन आजकी मेरी), ५८५१०-१६६(-) आदिजिन पद, मु. महिमराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभिनंदनइ तनिक वीनती), ५५६७८-४६(+) आदिजिन पद, मु. लब्धिविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो भाई आज रीषभ घरि), ५५९६९-२(+#) आदिजिन पद, मु. लाल, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मे तो जिनप्रभु तुम), ५८५१०-८६(-) आदिजिन पद, मु. शिवचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सफल घडी रे मोरी सफल), ५७४४१-१४(+#) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ५५६७८-१०(+), ५७४८४-३८(+) आदिजिन पद, मु. सेवक, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (अरज सुणौ मोरी अरज), ५८५१०-१०५८) आदिजिन पद, मु. सेवक, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (रूप तो तीहारो जिनजी), ५८५१०-२२९(-) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), ५७५६६-१६(+), ५८५१०-२८(-) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभुदरसण मोही लागत), ५८५१०-३०(-) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (माई मै क्या बरनु छब), ५८५१०-२२(-) आदिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभिजी को नंद), ५८५१०-७(-) आदिजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभजी को ध्यान), ५७५४९-२ आदिजिन पद-जन्मबधाई, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज तो बधाई राजा नाभ), ५७४८४-१०(+), ५८६७८-१२(+) आदिजिन पद-धुलेवामंडन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरो छै जी मां कै), ५८५१०-१०४(-) आदिजिन रेखता, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुझे है चाव दरसन का), ५८५१०-१६७(-) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर वंदु पाय),
५८०५०-७(+#$) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत),
५९०५२-१ आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, म्पू., (आदि धर्म जिणि उधों), ५८०३८(+#) आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमे), ५७५३०(#$) आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अईयो अइयो नाटक नाचें), ५८५१०-१९३(-) आदिजिन स्तवन, मु. कृष्णविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर साहिबो), ५८५२९-११६(+) आदिजिन स्तवन, मु. केशरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणेशर वालहो मुज), ५८५२९-४०(+) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ५८५२९-१०८(+) आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर बाबा), ५८५१०-३२) आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (उठ तेरो मुख देखु), ५७४८४-६(+), ५८५१०-२९(-) आदिजिन स्तवन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पढम जिणेसर सूद्धाचार), ५६२०१-१५(2) आदिजिन स्तवन, मु. भावप्रभ, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोबत आदिजिणंदसैं जोर), ५७४७५-१
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५४८
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आदीसर जगदीसरू रे), ५८०२७-३(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (उठ हो नाभि दुलारे), ५८०२७-५६(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एतो प्रथम तीर्थंकर), ५८५२९-११(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ५८५२९-१२४(+), ५८५१०-२३७(-) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, पू., (बालपणे आपण ससनेहि), ५८३६२-१४ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा.,गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (राज मरुदेवी केरा), ५८५२९-१२(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेजे शिखर), ५८०२७-२(+) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), ५७४४१-७(+#) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद सुखकार दीठे), ५८५२९-७१(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभुसुंलागी प्रीतड), ५५६९०-६ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सोरठ देश सुहामणो), ५६१४१-२४(+#$) आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरंत अनंतकंत गुण), ५७१५१-२ (२) आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जगत्रयने विषे प्रसरत), ५७१५१-२ आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय),
५६३०४-८(+#) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंप्रथम जिनेसर),
५६१४१-३(+#), ५६५७५-३(+$) आदिजिन स्तवन-अक्षयतृतीयापारणागर्भित, उपा. उदयरत्न, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ लही वरसी उपवासि),
५८६७८-१३(+) आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (जिन जीम जाणे होते), ५५६५२-१२(+#) आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत), ५९०३३-१(+) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ५८६२९-२(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडण, आ. विनयसागरसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सारदाजी), ५८२५९-१५(+) आदिजिन स्तवन-बावन अक्षरी, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (ॐकार अख्यर मन ध्याईय),
५८२५९-४(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे),
५६१४१-२७(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. जयसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पूजज्यो रे प्रथमजिणं), ५८५२९-३७(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां जी सारदचरण नमी), ५८५२९-११८(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेजूंजा गिरिना), ५८६७८-२०(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल तीरथ), ५६३०४-७(+#) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ५६१७६-२४(+),
५६२५८-९(+#), ५८३६२-९ आदिजिन स्तुति, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर जिणवर सेवै), ५७४४३-६ आदिजिन स्तुति, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिनंदन जगतवंदन), ५७४४३-३ आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उन्नतपुरमंडण जगतधणी), ५६१७६-५(+) आदिजिन स्तुति-राणकपुरमंडन, पं. भीमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रांणपुर मंडण दुरगति), ५६२५८-२२(+#) आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), ५६१७६-१२(+) आधुनिक नारी पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (मैं अंगरेजी पढगई सैय), ५८९९६-३२(+) आध्यात्मिक गीत, मु. राज, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अब तो आन बनी है संतो), ५७६३२-२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
आध्यात्मिक गीत, मु. राज, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (जुगमें जूठ मंडाया छे), ५७६३२-१(+) आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब लगे विषय घटा न घट), ५६२७३-५(+#) आध्यात्मिक गीत, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुरहुं हुं रहूं), ५७५६६-१४(+) आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कबहुं न करिहुंरी), ५५६७८-२९(+) आध्यात्मिक पद, मु. आतमराम, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (चिदानंद नित प्रणमीइ), ५८५६६-९(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (किन गुन भयो रे उदासी), ५८५१०-१५७(-) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिया जानै मेरी सफल), ५८५१०-२०१(-) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ५८५१०-७३(-) आध्यात्मिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऐसे प्रभुपाय विसारत), ५७५४९-१३ आध्यात्मिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जपो किन रेजिननाम),५७५४९-११ आध्यात्मिक पद, श्राव. जिनबगस, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजलू समै मजलू जरूर), ५८५१०-१७९(-) आध्यात्मिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रेजीओ आपणपउ अब सोच), ५५६७८-३९(+) आध्यात्मिक पद, मु. जिनलाभ, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (चित्त सेवा प्रभु चरण), ५८५१०-७२) आध्यात्मिक पद, मु. जोधा, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुमति करो पटरानी चेत), ५८५१०-१७८) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (ऐसा सुमिरण कर मेरे), ५८६४४-३४(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (री मेरे घट ग्यान घना), ५८६४४-२३(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हो परम गुरुवर संताप), ५८६४४-२४(#), ५८५१०-२२२(-) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ५८६४४-२९(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ५८६४४-१७(#) आध्यात्मिक पद, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुकलध्यान कैसे पाइयै), ५८५१०-२१(-) आध्यात्मिक पद, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (प्रभुजी पटा लिखा दो), ५८९९६-२६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (भव्य छांड कुमत प्रभु), ५८५१०-२१६(-) आध्यात्मिक पद, भैरवदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (मत को उपरउ प्रेम कइ), ५५६७८-४२(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजब गति चिदानंद घन), ५७५६६-९(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (जब लगे आवे नही मन), ५८०२७-४९(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सबल या छाक मोह मदिरा), ५७५६६-५(+) आध्यात्मिक पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आली मत आपउ परवसी), ५५६७८-४३(+) आध्यात्मिक पद, मु. राज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हिलि मिलि साहिब कउ), ५५६७८-४५(+) आध्यात्मिक पद, राजाराम, पुहि., पद. ५, पद्य, वै., (चेतन तूं क्या फिरै), ५८५१०-१६२) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अविनासी कै गुण गावना), ५८५१०-१८४(-) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, म्पू., (है इस सहिर विचको),५८५१०-१९१(-) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बेचेले किसके), ५७८३९-२६(+), ५८६२९-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरी आतमा अति अभिमान), ५७४८४-२६(+), ५८०९१-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनकी भक्ति मुक्ति), ५८५१०-१६०(८) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ओसर पाप कहतहू मनवा),५८५१०-२०२०) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कंत चतुर दिन जाणी हो), ५८५१०-२४१(-) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जालम जोगीडा से लागी), ५८५१०-१८८(-) आध्यात्मिक पद, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, मूपू., (जोगी अवधू सोजोगी), ५५६७८-३०(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (नैनन मै आन वान कोन), ५८५१०-१५५(-) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (पांचं घोडु रथ एक), ५७५६६-१३(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोहा मन की हो बात), ५७४८४-१९(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (लगजा रे मनवा मेरा तू), ५८५१०-२१३(-) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (वरसलो वाणी रे अयानी), ५८५१०-२१४(-) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुन रे सुजान प्यारे), ५८५१०-१७७(-) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, स्था., (सुनेरी मैंने निर्बल), ५८९९६-८(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठे अपनी मोनसौ), ५८५१०-७४(-) आध्यात्मिक पद-कृषिफलगर्भित, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनवंछितफल खेती रे), ५८५१०-४१(-) आध्यात्मिक पद-ज्ञान गोदडी, पुहिं.,मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (गुदडी प्यारी रे वाल), ५७४८४-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. जयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुरुष पनोतों बहुगुण), ५८०५३-५(#) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव जेहनई), ५८५६६-८(#) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (जेहनइं अनुभव आतम), ५८५६६-७(#) आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन जो तुंग्यान), ५७५६६-४(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २७, वि. १८३५, पद्य, स्था., (पोते पुन्य हुवै जेहन), ५८५९४-४ आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (हंस कहे हो काया), ५८२५९-३१(+) आध्यात्मिक होरी, जै.क.द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन खेले होरी हो), ५८६४४-२७(2) आध्यात्मिक होरी, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (घर आये चिदानंद कंत), ५८५१०-१-) आनंदश्रावक संधि, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, म्पू., (प्रणमीय पय श्रीवीर), ५९०४२(+$) आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), ५६३११(#), ५८५६७(#$) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ५८५२९-९२(+) आराधक-विराधक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणेन आदरें न), ५७७६०-११ आराधना, मा.गु., ग्रं. २२७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० पहिलउ), ५८३४३(-) आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०१, ग्रं. ४५१, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), ५५७४९(#) आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ५६५७५-२२(+) आलोयणा के ५० बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (कंदर्पनो पीड्यो दोष), ५७८२०-७(#) आलोयणा गाथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (पंच परमेष्ठिदेवनो), ५८६९०(+) आश्रव संवर भेद, मा.गु., वि. १८५५, पद्य, मूपू., (आश्रव क्रम आठाना), ५८०८२($) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर),
५५६६८(+#$), ५७६९८(+), ५८५७०(+#), ५७७२५(#$), ५७७२६(#) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ५६६४०-७(#),
५७८०३-२(4) आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (गणधर गौतम गुणनीलो), ५६६४०-१०(#) इक्षुकारराजऋषि रास, मु. जयसागर, मा.गु., ढा. ११, गा. १७०, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (ब्रह्मवादिनीमाता), ५८६८४(+) इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), ५८६०४ इरियावही मिच्छामिदक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), ५६३१८-३(+) इरियावही सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्ध आचारज), ५८५९४-१ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), ५७८३९-७(+) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक
सदा), ५६३२३-१(+), ५८०६४(+), ५७५३८, ५८०८९, ५९०२२-१, ५८६७१(६) इलाचीकुमार छढालियु, मु. माल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), ५६६८७-१(+) उत्पत्तिनाशध्रुव पद, मु. जिनभक्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अगम अगाधि बीजी वीर), ५८५१०-३६(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
उदायीराजा को मारनेवाले शिष्य की कथा, मा.गु., गद्य, पू., (पाडलीपूर नगरीने वीषे), ५७६६७-६(#) उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने तें), ५८५९२-१२(+#) उपदेशरसालछत्तीसी, मु. रुघपति पाठक, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरण नमी करी), ५९०३३-२(+) उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ५६३१८-६(+) उपधानविधि सज्झाय, मु. मेरूविजयजी म., मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू, (श्रीजिनवर वीरइ कह्यो), ५६२७३-६(+#) उपाध्याय पद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चोथे पद उवज्झायनुंग),५६२७३-३२(+#) ऋषभजिन गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रिषभदेव मोरा हो पुण), ५५६७८-२४(+) ऋषिदत्तासती चौपई, मु. रंगसार, मा.गु., गा. ११८, वि. १६२६, पद्य, मूपू., (पढम पणमिय पढम पणमिय), ५७५४९-१(६) ऋषिदत्तासती चौपाइ-शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मा.गु., गा. ३०१, वि. १५६९, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति सुपसाउलइ),
५८०६६(+#)
ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिमरतां पाम), ५७६७७(+-#) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ५८९८७-१२(+#), ५८६७३-५,
५८९९१-१०(#) एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन), ५७४४३-१३ ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण), ५५९०३-६
औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, मा.गु., का. १, पद्य, वै., (वंशत्रिण वाजित्र), ५७७६०-२ (२) औपदेशिक कवित-धडाबद्ध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (वंशत्रिण क० ब्रह्मा), ५७७६०-२ औपदेशिक कवित्त, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (समर एक अरिहंत रयण), ५५६३८-२ औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, मपू., (कीमत करन बाचजो सब), ५६३०८(+#$), ५९०२३-३(#) औपदेशिक गीत, वा. चारुदत्त, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीव तुंकाहे पछतावइ), ५५६७८-११(+) औपदेशिक गीत, श्राव. बनारसीदास जैन, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (धर्म विसारे विषयसुख), ५८५६६-३(#) औपदेशिक गीत, मु. भद्रसेन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्राणी मेरउ न डरइरे), ५५६७८-३(+) औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे जीव वखत लिख्या सु), ५८५१०-२३५(-) औपदेशिक गीत, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (विरामां सुवेगो मिलवा), ५८९९६-७१(+) औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (हाथी होय तो पकड), ५७४२२-२(+#) औपदेशिक चाबखा, मु. केवल, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (चेत मानव चेत मानव), ५७८६३-३१(+) औपदेशिक चाबखा, मु. केवल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेती ले चेतानो अवसर), ५७८६३-३०(+) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ५६२०१-१६(#) औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (काया कामनी वेलाल), ५६२७३-२७(+#) औपदेशिक दोहा-कन्याविक्रय, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (बेटी पर हाय जरका), ५८९९६-६०(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ५७७९५-५(+#), ५८६३४-२(+#), ५७५४९-३१,
५६१७३-२(#) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (अवधू ऐसा ज्ञान विचार), ५८९९६-५३(+) औपदेशिक पद, मु. कृष्णगुलाब, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (अरे जीव तेरो धर्म सह), ५८५१०-२४४(२) औपदेशिक पद, आ. चंपकमुनि, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (तुमे जेनवीरो जगाना), ५८९९६-२५(+) औपदेशिक पद, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एसी बतीयां कुमती कहा), ५८५१०-५(-) औपदेशिक पद, चतुर, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (मनबा विणु दउरी न रहइ), ५५६७८-१४(+) औपदेशिक पद, चेतन, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोण करे जंजाल जगमें), ५८५१०-११७(२) औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ३, पद्य, स्था., (कोडा घाल रह्या भारत), ५८९९६-७(+) औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ५, पद्य, स्था., (तुम्हें यां से एक), ५८९९६-२०(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
',
(
औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ९, पद्य, स्था., (दुनिया में कैसे वीर), ५८९९६-५ (+) औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (यो कांई पंथ चलायो), ५८९९६-६(+) औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (संयमधारी महाराज संयम), ५८९९६-४(+) औपदेशिक पद, मु. जगजीवन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (सुखीयारी आज की घरी), ५८५१०-८७ (-) औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपु. ध्यासित धन मुनिराई), ५८५१०-२११(-) औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे. (प्रात भयो सुमर दे), ५८५१०-२५) औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (बिकलप छांडि नाम), ५७५४९-१२ औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (यारु ति धनि मुनिराई), ५७५४९-१८ औपदेशिक पद, मु. जगराम, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (थेतो मोसू यौही हे), ५७५४९-२३ औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू, (सब स्वास्थ के मित्र), ५८५१०-५४) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहा रे अग्यानी जीव), ५५६७८-६(+) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( नर भूलइड करे रे तेरा), ५८५१०-१६९(-)
औपदेशिक पद, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कइसउ सासकर वेसार कुस), ५५६७८-४० (+), ५८५१०-२०७(-)
औपदेशिक पद, मु. ज्ञान, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (यो तो भव यूं ही दीनो), ५८५१०-१०२(-) औपदेशिक पद, मु. दौलत, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू., (अवसर पायो रे), ५७५४९-२९
औपदेशिक पद, मु. चानत, रा. गा. ३, पद्य, मूपू (मानोसांवतीया इह देह), ५७४८४-५४(*) औपदेशिक पद, जे. क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (अब मै जान्यो मे आतम), ५८६४४-३१( औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कहिवे कुं मनसूरिमा ), ५८६४४-२१(#) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (कोड जोधा कुं जीतले), ५८६४४-३३(०) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (घट० हो अहो भवि प्राण), ५८६४४-३२(#) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (चेतन प्राणी चेतीये ह), ५८६४४-२८(#) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिननाम सुमर मनवा वरे), ५८६४४-२०(#) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (फिर नहीं आवणा पावणा), ५८५१०-१२८( औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (श्रीजिननाम आधार सार), ५८५१०-४९(-) औपदेशिक पद, मु. धर्मपाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (काहें जीव डरे दुख सु), ५७४८४-४२(+) औपदेशिक पद, क. नरसिंह महेता, मा.गु., दोहा. २२, पद्य, वै., (नेउरियांनउ ठमक वाजइ), ५५६७८-३५ (+) औपदेशिक पद, मु. नवल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कांई सोवे नींद वटुडा), ५८५१०-२३२८) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ज्ञानामृत प्यालो भवि), ५८५१०-२३९(-) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पुद्गल क्या विसवासा), ५७४८४-५३(+) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू., (लगजा प्रभु चरणे सेती), ५८५१०-१२७/१ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वे कोई काल न जीत्या), ५८५१०-१३७(-) औपदेशिक पद, मु. नेमिचंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, वे. (तुम चलो मोक्ष में), ५८९९६-२४(+) औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (सुणि सुणि जीवडा रे), ५८५२९-५६ (+), ५८९८७-१५ (+#) औपदेशिक पद, उपा. पुष्करमुनि, पुहिं., गा. ९, पद्य, स्था., (मानो मानो हमारा केना), ५८९९६-२२(+) औपदेशिक पद, फकीरा, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपु. ( बाबू बन गये जेंटलमेन), ५८९९६-२१(+)
"
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,
औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं, गा. ३, पद्य, दि., (इस नगरी में किस विध), ५८५१०-४४९९
औपदेशिक पद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं, गा. ३. वि. १७वी, पद्य, दि., (कित गये पंच किसान), ५८५१०-४३) औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., ( धरम करत संसार सुख), ५८५२९-९ (+) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (या चेतन की सब सुधि), ५८६४४-३०(#) औपदेशिक पद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ४. वि. १७वी, पद्य, दि.. (वा दिन को कछु सोच रे), ५८५१०-१३१()
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं. गा. ७, पद्य, वे. (उस मारग मत जाय रे नर), ५८५१०-१३५८) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (ऐसी समझ कै सीरधुल), ५७४८४-३(+) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (गावो रे गुण गावो रे), ५८५१०-१४८) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), ५७४८४-२५ (+) औपदेशिक पद, जै. क. भूधरदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि. (समज के सिर धूल ऐसी स), ५८६४४-३५ (७) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं, गा. ३, पद्य, वे (यह जग थिर नही तुम), ५८५१०-१५३१ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (श्रीगुरु सीख सयानी), ५८५१०-१२५(१) औपदेशिक पद, मु. महिमराज, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, श्वे., ( उवइ दिन कइसइ हीं आवइ), ५५६७८-१५ (+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन अब मोहे दरशन), ५७५६६-६(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.. गा. ५, पद्य, म्पू, (सजन राख तरी भली विनु), ५७५६६-८(+) औपदेशिक पद, सा. रतनकुंवर, पुहिं. गा. ११, पद्य, श्वे. (अब हम कीनी स्थान), ५८९९६-४६ (+)
औपदेशिक पद, राज, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., ( आज प्रीउ सुपने खरीय), ५५६७८-४(१)
औपदेशिक पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुं भ्रम भुल्यो रे), ५५६७८-२२(+)
औपदेशिक पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मन रे छार मायाजाल), ५५६७८-३७(+)
औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कउण धरम कौ मरम लहरी), ५५६७८-१३ (+), ५८५६६-२(#)
औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (निकै नाथनै कवहु न), ५५६७८-४४(+)
(महबूब तेरा तुझ में), ५८५१०-१७०१) (सतगुरु केरी वाणी), ५८९९६-५४(+)
(आपे खेल खेलंदा), ५८५१०-४० (-)
"
औपदेशिक पद, रामकृष्ण, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू औपदेशिक पद, मु. रामरतन, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे (तै नर भव पावइ कहा), ५७४८४-३१(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समकित विन जीव संसार), ५८५१०-४-० औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा. गा. ३, पद्य, मपू. (समझ नर जीवन धोरो थोर), ५७४८४-३७(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (--), ५८०९१-८ (4)
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,
औपदेशिक पद, मु. लाल, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (वीसरमल जायलो रे तेरी), ५८५१०-१०७(-) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहां करू मंदिर कहां), ५७५६६-१२(+) औपदेशिक पद, मु. साहब, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे तुं कह्या मान), ५८५१०-१२६ (-) औपदेशिक पद, मु. सूर्यमुनि, पुहिं, गा. ७, पद्य, स्था., ( बहुविध समजाओ बोध), ५८९९६-३४(+) औपदेशिक पद, मु. सोहनलाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., ( मत करो दम का भरोसा), ५८९९६-५७(+) औपदेशिक पद, मु. हरखचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, खे, (क्युं जनम जुबा ज्युं), ५७४८४-२१(०) औपदेशिक पद, मु. हरष, पुहिं. गा. ६, पद्य, वे., (चेतन जीवन है तेहरा), ५८९९६-५२(*) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., ( अब हम कीनी ज्ञान), ५८९९६-४५(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, खे, (अर मन तु रंग के रस), ५८५१०-१५४९ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (अरे भववासी जीव जड को), ५५७८१-८(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आतम काज समारीयै नजि), ५८६४४-२२ (#) औपदेशिक पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, वे., (करपण के माल धरावा), ५८५१०-२३१()
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औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कांई चालेगो रे मनडा), ५८५१०-१४७) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. २, पद्य, श्वे. (कांई सोवे नींद बटोई), ५८५१०-६३( औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (काई सोवे जीव अग्यानी), ५८५१०-२४० (-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (काया की रेल रहल से), ५८९९६-९(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, वे (घोर परिसा सहिये भाई), ५७४८४-२० (+)
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५५४
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, दि., (जगत मै समकित उत्तम), ५८६४४-२५ (#$) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जमारानी हो तेरा नाहक), ५८५१०-८८०) औपदेशिक पद, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (जिनगुण गाणा वे एक पल), ५८५१०-१४३(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीउरे चल्यो जात), ५५६७८-३८(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (जीवनै समझायरे मन), ५८६४४-३६(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (जीवरा तु जागैनो सम), ५८५१०-२१८(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीवरे चला जात जहान), ५८५१०-२०५(-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तेरे गुण तो मै तू लख), ५८५१०-६०(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरे घट में हे फुलवा), ५८५१०-१३८(-) औपदेशिक पद, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (थाने आइ अनादि नींद), ५८९९६-६८(+), ५९०५१-३(+), ५९०५१-६(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (बिसे मार्ग में तूने), ५९०५१-२(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (मध मतवारो मन रहत न), ५८५१०-४५(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (मनमां जासो ईम जोति), ५८५१०-१४४(-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मनवा कौन भात सुरजे), ५८५१०-१५१(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (यातो गत नीठ मिली छै), ५८५१०-२२८(-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (यु साधु संसार में), ५८६४४-१८(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (सच पूछो तो हमारा कोई), ५८९९६-५९(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुन जिया रे खोवै छै), ५८५१०-५९(-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (सुभुगु गस्त स्याम), ५८५१०-१७८(-) औपदेशिक पद-आत्मा, सूरदास, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (बपीहरा तइं कबकउ वइर), ५५६७८-१९(+) औपदेशिक पद-काया विषे, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (चेतन यह नर तन हर वार), ५८९९६-१२(+) औपदेशिक पद-जैनधर्मपालन, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्यूं जिननाम बिसार्य), ५८५१०-५०(-) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ५७८३९-२४(+) औपदेशिक पद-परनारी विषे, पुहि., गा. ५, पद्य, स्था., (परनारी का रूप मत देख), ५८९९६-१०(+) औपदेशिक पद-परनिंदा विषे, मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., गा. ५, पद्य, स्था., (करके बुराई और का), ५८९९६-१८(+) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ५८२५९-२६(+), ५८५४२-३ औपदेशिक पद-बुढापा, मु.सूर्यमुनिजी, पुहि., गा.७, पद्य, स्था., (हाय हाय बुढापा खोटा), ५८९९६-३३(+) औपदेशिक पद-मन, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (कोई भुलउ मन समझावइ), ५५६७८-२५(+) औपदेशिक पद-माया विषे, मु. संतोष, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (माया को तू अपनी कहै), ५८९९६-१६(+) औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (बिसे भोग में तुने), ५९०५१-९(+) औपदेशिक पद-व्यसन विषे, मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (मत कर नशा कहना मान), ५८९९६-१७(+) औपदेशिक रेखता, मु. जगकीर्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (महाराज अरज सुणीजे), ५८५१०-१२९(-) औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (खलक इक रेणका सुपना), ५८५१०-१६३(-) औपदेशिक रेखता, श्राव. जिनबगस, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (कुलकर्म को सौधर्म), ५८५१०-१६१(-) औपदेशिक रेखता, मु. देव, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जु जाणे जुजाणे तेरा), ५८५१०-१३०(-) औपदेशिक सज्झाय, क. आसो, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिसरोवर हु), ५८५२९-१३४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. कस्तूर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पदमणी चंचल रे धी), ५८५९२-८(+#) औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन चेत प्राणीया रे), ५७८६३-२१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (इण संसार में थिर नहि), ५८५९४-१३ औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (तुक दिल की चसम खोल), ५८५१०-१७३(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (हारे भाई जिन समय), ५८५४२-१७ औपदेशिक सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (कदे हुओ गीजंदरसाहो), ५८५९४-१९ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (चेतन अब कछु चेतीए), ५६२७३-२०(+#), ५६२०१-१८(#) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ते सुखिया भाई ते), ५६२७३-१३(+#) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नरभव नयर सोहामणो), ५६२०१-६(#) औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहि., गा.११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ५५६५२-१३(+#), ५८५४२-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पंचे अंगुल वेढ बनाया), ५८५२९-२८(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर), ५८२५९-४२(+) औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुं ज्ञान), ५८५६६-१(#$) औपदेशिक सज्झाय, मु. मोतीलाल ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (थे धर्मण वाया कथलो), ५८९९६-६५(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिदानंद अविनाशि हो), ५६२७३-२५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), ५८५९४-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (मम तत ते रिध पुरी), ५९०५१-४(+) । औपदेशिक सज्झाय, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अणसमजुजी सीखामण दीजे), ५७८३९-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आप अजावालजो आतमा एनो), ५७४६५-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ५८५२९-६५(+),
५८५९२-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेठ भणी सांभली वाणो), ५८५२८-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (मंगल करण नमीजे चरण), ५८५९२-१४(+#), ५८५४२-९($) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्या करूं मंदिर क्या), ५९०१८-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (ते सुखीया भाई ते), ५८५२८-१२(+#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ५८०९१-५(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हे रे), ५८०२७-५०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुंधोजे मननु), ५६२०१-८(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडला रे जीवडला), ५८५९२-४(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. हंसमुनि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन शुद्धइ सुणि जीव), ५७४२९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (अब तो कर सिमरन प्रभु), ५९०५१-८(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उंडोजी अर्थ विचारीय), ५७६५०-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २१, पद्य, स्था., (एक एक मानवी एहनी), ५८५९४-१२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ए तो जुग छे प्रतक), ५८५९४-१४ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (कोई दम कारे ते बसेरा), ५९०५१-११(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९+४, पद्य, मूपू., (जिणसुंलागो मन्न तिण), ५८४८१-२(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (दिन उगे तूं धंधे), ५८५९४-१५ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), ५६३३७-२(#$) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, म्पू., (धर्म पावे तो कोई), ५८५९४-८ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं.,रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (मन रे तुंछाडि माया), ५८५१०-२०६(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सतगुरु मानो जी सीख), ५८५९४-१७ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (सब झूठा है जंजाल नहि), ५९०५१-१०(+$) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (सर्व साहवी जगत की), ५८५१०-१७१(-) औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जिनवाणी मन धरी), ५७८३९-१७(+)
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५५६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी शिवपु), ५८२५९-३४(+) औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांतगर्भित, मु. उदय ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (कायारूप रचो मेवासी), ५८०९१-६(2) औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वनमाली धणी इम कहे), ५७८३९-१४(+),
५८२५९-३७(+) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ५८२५९-३८(+),
५८५२८-३५(+#) औपदेशिक सज्झाय-किएका फल, मु. बलदेव, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हा तो के किये कर्म), ५८९९६-६७(+) औपदेशिक सज्झाय-कुमार्गत्याग, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन राह चले उलटे नख), ५७५६६-७(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधना), ५७८३९-२९(+),
५८५२८-३४(+#), ५६३२७-३ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), ५८९९१-६(2) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ५९०३८(+), ५९०४८ औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भवियण भाव घणो धरी), ५७८३९-३८(+),
५८५२९-२७(+) औपदेशिक सज्झाय-जीव, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन युंजीवनै समझाय), ५८५२८-२८(+#) औपदेशिक सज्झाय-तमाखू परिहार, मु. हंसमुनि, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (मत पीवो मारा राज), ५८९९६-३१(+) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ५८५४२-११ औपदेशिक सज्झाय-धर्मीजीव, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते धमीया रे भाई ते), ५५६४३-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-नरभव दुर्लभता, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नित नित नरभव ना लहे), ५८२५९-३२(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी परिहार, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (जब ही उसका बात बनावे), ५८५९४-१० औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी),
५५७१९-२(+) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ५८५२९-२२(+), ५८५९२-६(+#) औपदेशिक सज्झाय-निद्रा विषे, मु. चोथमल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (थे सुणजो श्रावक), ५८९९६-६६(+) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ५७८३९-२१(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुण सुण कंता रे सीख), ५७५३४-३(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीख सुणो रे पीया), ५७८३९-१०(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (हुं तो वारुं छु), ५८५२९-५५(+) औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुण्य कर पुण्य कर), ५६२०१-२४(#) औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मु. मान कवि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुगण बुढापो आवीयो), ५७८३९-१५(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रे जीव माननकीजीए), ५६३२७-४ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), ५८५९४-२७,
५८९९१-७(#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ५६३२७-५ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), ५८९९१-८(#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., गा.११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा कांई), ५७५२४-२(+#), ५८५९४-२६ औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बापलडी रे जीभलडी तु), ५७४६५-४(+) औपदेशिक सज्झाय-रावण प्रतिबोध, मु.सूर्यमुनिजी, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (कहे रावण से यों सीता), ५८९९६-२७(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ५६३२७-६ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ५८९९१-९(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५५७ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ५५६९०-८ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (किसीकुं सब दिन सरखे), ५५६७८-४१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बुझ रे तुं बुझ प्राण), ५५६५२-१५(+#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषयक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सीयल भलो रे संसार मे), ५७८६३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही),
५७८६३-२६(+), ५६३२७-२ औपदेशिक सवैया, मु. गोकल, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (आचार विचार अनोपम), ५६६०१-२(#) औपदेशिक सवैया, मु. देवीदास, पुहि., सवै. १, पद्य, श्वे., (छोटि ठोटि गुलनकै), ५६२०५-३ औपदेशिक सवैया, मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, स्था., (सील साव जामु), ५७६२०(#$) औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. १६, पद्य, म्पू., (सोल सवईया कह सह), ५५७८२-२(+2) औपदेशिक सवैया संग्रह*, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ५९०२३-४(#$) औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., गा. १७, पद्य, मूपू., (मुलायज दाम देइ जोरसु), ५७५०७-२ औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ५६२५८-२५(+#) औषधनिर्माण विधिसंग्रह, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., प+ग., मूपू., (जपा गोटा मिरच सुहागा), ५८२४८-२(+) कथा संग्रह-बुद्धि ऊपर, मा.गु., गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरनइ विषइ), ५५९०८ कपिलमुनिछत्रीसी, मु. मोहनदास ऋषि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीवागेश्वरी पय नमी), ५८२५९-३६(+) कयवन्ना चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., ढा. २५, गा. २१९, पद्य, मूपू., (दान न देखइ दलिद्रहि), ५८०३५(+#) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५६०२५(+#$),
५७४७८(+$), ५८५४९, ५६१५१(#$), ५७७६१(#) कर्मप्रकृति विचार *, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीसद्गुरु प्रणमी), ५६१४९(+) कर्मबावनी, मु. किशोरचंद ऋषि, मा.गु., गा. ५२, वि. १९२७, पद्य, श्वे., (श्रीजिनपद पंकज नमु), ५८६६२(+) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ५९०१८-६(+5), ५८५४२-४ कर्मविपाकफल सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (देव दानव तीर्थंकर), ५७६७६-२($) कर्मविपाक राशिफल, मा.गु., गद्य, वै., (श्रीमहादेव उवाच०), ५८०५३-१(2) कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), ५८६४४-३७(#) कलावतीसती चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७३५, पद्य, म्पू., (कविजननी करजोडिनइ), ५६१९३(+) कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ८४, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रइ रे नयरी), ५८६००(+) कलियुग प्रभाव गीत, रा., गा. ६, पद्य, वै., (पंचा में फतुर पड गयो), ५८९९६-६२(+) कलियुग रास, वा. पुण्यहर्ष, मा.गु., गा. १०१, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), ५६२०९(+) कल्याणसूरि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीतरागपद वंदीय), ५७४४३-११ कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुसदा), ५५७७४(+#),
५७६१९(+), ५७६४७(+), ५८०६३, ५८९९२, ५५८५९(#$), ५६६४०-१५(#) कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इंद्रिय काय), ५७८२०-२१(#) कार्तिकशेठ पंचढालियो, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), ५६६४०-१४(#) कालबतीसी, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., गा. ३३, वि. १८५८, पद्य, पू., (सारदमाता पासजिनेसर), ५८५४२-१६ कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., ढा. ७, पद्य, श्वे., (राय दसरथ पेली हुवो), ५६६४०-५(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ५७४४१-४(+#) कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), ५७७९५-४(+#) कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुज अरज सुणो मुज), ५८०२७-१८(+) कुंथुजिन स्तवन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही रे साहिब), ५५६५६-२(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मधुकर मीत हमारे मन), ५७४८४-२२(+) कुंथुनाथ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहेला हे कुंथुजिन), ५७६४८-३(+) कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति भगवति नमु),
५६२५५(#$) कुरगडुमुनि रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (शांतिनाथनै समरीय), ५५८४९(+) कुलकोटि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीनी २५ लाख कुलको), ५७४३९-३(+) कुशलसूरि जिनदत्तसूरि गुरुगुणगीत, मु. धरमसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशलगुरु माता पीता), ५८९१४-३(+) कृष्ण पद, मीराबाई, रा., गा. १५, पद्य, वै., (मीरा ऊचा राणाजीरा), ५८९९६-३८(+) कृष्णप्रेम गीत, चतुर, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (नवलि निकुंज नवल मृगन), ५५६७८-३३(+) कृष्णभक्ति पद, पंडित. तुलसीदास, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (हार मोरा दे तुटइगो), ५५६७८-२१(+) कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (परनारीसुं प्रगट न), ५५६७८-३४(+) कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (व्रजवासी कान्ह), ५५६७८-१८(+) कृष्णभक्ति पद, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (व्रजवासी कान्ह ईयउ), ५५६७८-२६(+) । कृष्णभव चौपाई, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (कोपीयो कंस कलकल्यो), ५७५८९-१२(+) कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., गा. ३०४, वि. १६३७, पद्य, वै., (परमेसर प्रणमि), ५५७०६(+), ५५८०७(+) (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६३८, गद्य, मूपू., वै., (श्रीहर्षसारसद्गुरु), ५५७०६(+), ५५८०७(+) कृष्णरुक्मणी सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (रातडिताढी दिन वादलो), ५५८५२-२(+#) कृष्णवासुदेव जीव चारित्रसमय, मा.गु., गद्य, श्वे., (कृष्णवासुदेव ने जीवे), ५८५२५-७(#) कृष्ण विवाहलो, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर परणमुं), ५८६३४-१(+#) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ५८५९१(+) कोणिकराजा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. २७, पद्य, श्वे., (आठ भवा पहला हुंता), ५५८३२(+-#) कोणिकराजा चौपाई, मा.गु., ढा. २२, वि. १७१४, पद्य, पू., (कूटुंब तणी जागरका), ५८६१९ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ५८०५८-१(#) खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था., (नमुं वीर सासनधणीजी), ५६६४०-८(#) खंधकमुनि ढाल, रा., ढा. ८, पद्य, श्वे., (वध परिसो वर्णवू), ५६६४०-१(#) खंधकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावस्तिनगरी तिहा), ५७६६७-११(१) खापर चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५७५५०(६) खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरिए नित), ५५६१७ खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु अरिहतने), ५८२५९-२८(+) खुजली की दवा, पुहिं., गद्य, (--), ५७६२१-२(+) खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षेत्र आश्री २० बोल), ५५६७३(+), ५७८२०-११(#) गच्छस्थापनकाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्णिमा ११५९ खरतर), ५८४४४-२(६) गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ६४, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चोविसे नमु), ५७८३५(६) गजसिंह रास, मु. मयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २७, वि. १८१५, पद्य, श्वे., (सांतिजिणंद सुखसंपदा), ५५९५९ गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमीसर जिनवरतणा चरण),
५५७६१(+$), ५८०३६(+#$), ५८५७५ (+#) गजसुकुमालमुनि छढालियो, मु. रत्नचंद, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सोरठदेस मझार द्वारका), ५६६४०-१२(#) गजसुकुमालमुनि रास, मु. अमरहस शिष्य, मा.गु., गा. ७४, वि. १५७७, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउ भारती), ५५७८३-१(+#) गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मूपू., (देस सोरठ द्वारापुरी), ५७७४५ गजसुकुमालमुनिरास, मा.गु., पद्य, श्वे., (देवी सरसति देवी सरसत), ५५८५२-१(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
गजसुकुमालमुनिरास, मा.गु., ढा. १९, पद्य, म्पू., (रिठनेमि नामे हया), ५७४३२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणिय), ५७८३९-८(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ५८९८७-२५(+#) गर्भ विषयक शैव जैन प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (सगरचक्रवर्तिनई साठि), ५६१७९-३(+#) गिरनारश@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ५८०२७-३८(+),
५८५१०-३-) गुणकरंडक गुणावलि चौपाई-बुद्धिविषये, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, गा. १८१, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (समरु चउवीसे
जिणराय), ५८०३७ गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), ५७८६६-१(+) गुणसागरमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (गुणसागर मुनिराय करता), ५६६४०-२(#) गुणस्थानक गत्यागत विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (समूचे जीव मरण पामे), ५७७५४-७(+) गुणस्थानक द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम लक्षण करिया कामा), ५६१७७-१(+) गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २८, वि. १७५७, पद्य, श्वे., (संपत्ति सुखदायक सदा), ५६१४७(+$) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंचउवीसे जिनरा), ५५८४०(+), ५९०३४(+$) गुणावलीचंद्रराजा पत्र, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्री विमलापु), ५५९८३(+) गुरुगुण गहुंली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे मारे देशना दो), ५८९९१-४(#) गुरुगुण गहुंली, मु. भूधर, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (ते गुरु मेरे उर वसे), ५७४८४-६२(+) गुरुगुण पद, मु. चारित्रसुंदर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नित चरणा चित लीनो है), ५८६९१-४(+) गुरुगुण पद, मु. दौलत, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (पद जोडै सांची कहइ), ५७५४९-२६ गुरुगुण बारमासो, मु. सिवचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावण सुगुरु सोहामण), ५८२५९-४६(+) गुरु देशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वरषित वचन झरी हो), ५८५१०-२२१(-) गुरुप्रति ३३ आसातनाविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरु वडे रानें आगे), ५८६२७-२७(+) गुरुमहिमा पद, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सतगुरु नहीं भूले एक), ५९०५१-७(+) गुरु विहार गहुली, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आदिते आप विहार करीने), ५८९९६-५०(+) गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण),
५७४२६(+#), ५७६६१(#s), ५७६८९(#$), ५८९७४(#), ५७७६४(६) गौतमपृच्छा, क. नंदलाल, पुहि., गा. २१५, वि. १८९०, पद्य, श्वे., (ज्ञाताधर्मकथामांहि), ५७८८७(+) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ५८०३४-१(#) गौतमपृच्छा व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत वीत), ५५७७५(+$) गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिलो गणधर वीरनो रे), ५८९८७-२१(+#) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ५८२५९-४३(+),
५८५९२-११(+#), ५८९४५-५(+) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ५७७१४-२(+#) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ५७०५६(+),
५८५९२-१(+#), ५८६४०-१(+#), ५८६८६(+#), ५५६८५, ५९००३, ५९०३०-२, ५७८४३-१(#) गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ५७५२४-१(+#$) गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), ५८९८७-२०(+#) चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., गा. १६०, पद्य, मूपू., (मोह पिसाच वसकरणकुं),५७७२० चंदनबालासती रास, आ. जवाहरलालजी, हिं., गा. ३८६, वि. १९८९, पद्य, स्था., (प्रतिबोधित अर्जुन), ५५७७०(+) चंदनबालासती रास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., गा. ८३, पद्य, श्वे., (असुभ करम के हरणकुं), ५७८११, ५७७०९(#$)
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५६०
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
चंदनवालासती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु. ( कोसंबीपति शतानिक नृप), ५६२७३-९(+#) चंदनमलयगिरी चौपाई, मा.गु., डा. ८, गा. २७३, पद्य, मूपू (जिनवर चरणे नमी गाईस), ५५८३५ (१०) चंदनमलयगिरी रास, सा. पार्वतीजी, मा.गु., ढा. २१, वि. १९५१, पद्य, स्था., (सासण नायक समरिये), ५८५९३-२(+) चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु, ढा. ११, गा. २६५, वि. १७७६, पद्य, मूपू (प्रथम जिनेसर पाव), ५७६८१(०) चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (विजय कहे विजया प्रति), ५९०१८ -१(+) चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. अजितचंद, मा.गु., पद्य, भूपू (-), ५७६२८(+४)
चंदनमलयागिरी चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. १६, गा. २६५, वि. १७११, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपूरण सदा), ५५७८२.१(०१), ५५८३७)
.
चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु. गा. १२५, पद्य, मूपू (समरु सरसती मात मनाय), ५८८७० क
"
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',
चंद्रगुणावलिका पत्र, आ. दीपविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ती श्रीमरुदेवीन), ५८७०५ (+) चंद्रप्रभजिन पद, मु. केवल पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (दरबार तेरा सुनके), ५८५१०-१७६(१ चंद्रप्रभजिन पद, मु. न्यायसागर, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम उपरि जाउं मे), ५७४८४-५९(१) चंद्रप्रभजिन पद, मु. रायचंद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., ( थे तो भव्य पूजो चंद), ५८५१०-२२५ () चंद्रप्रभजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगीयो ओमे), ५८५१०-६८ ( ) चंद्रप्रभजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु तेरी चंद), ५८५१०-६६ (-)
चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (मानै प्यारा लागो छोड), ५८५१०-२३३(१) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ५८३६२-१२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु चितथी), ५८०२७-४३(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (चंद्रप्रभुनी चाकरी), ५८५२९-१२७(*) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशंकर चंदाप्रभु), ५८०२७-११(+) चंद्रराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५६२०३(#$)
"
चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८ गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, भूपू (प्रथम धराधव तीम), ५६२२० (+),
५७५९२(+5), ५७७५३(४०), ५७८२४(*), ५७८४८(०६), ५८५०७ (+१३), ५७५६८, ५६२९५(१), ५७७५६ (२), ५८५०८ (AS) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ डाल १०३ गा. २५०५ ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मृपू. (श्रीजिननायक समरीइं).
५६२२४(+), ५७४९३(+०६)
चंद्रलेखा चौपाई, मु. हर्षमूर्ति, मा.गु., गा. १७०, वि. १५६६, पद्य, मूपू., (सरसति समरउं स्वामिनी), ५६२०६ (+)
चंद्रलेखा रास, मु, मतिकुशल, मा.गु. दा. २९, गा. ६२४. वि. १७२८, पद्य, भूपू (सरसति भगवति नमी करी) ५५८३६ (५६), ५७५८५१०१, ५६२४८(३), ५८५५३(३)
"
चंद्राननजिन स्तवन, आ, जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (सामाचारी जुइ जुइ रे), ५७४८४-७१(+)
चंपकश्रेष्ठि चौपाई - अनुकंपादाने, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. २९, गा. ५०७, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (जालोर मह
जाणीयइ), ५७४७३(+)
चंपावती रास, य. धर्मभूषण यति, मा.गु., वि. १७वी, पद्य, दि. (परमपुरुष शासनधणी), ५७६२४(+45)
"
चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत दशविधि), ५६२७३-३४(१०) चातुर्मासिक व्याख्यान #. रा. गद्य, भूपू (पंचापि परमेष्टिन), ५७४२५ (३)
"
""
चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ५७४२४, ५८६४७-२(#$)
चारुदत्त कथा, पुहिं., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपरा भरतखेत्र), ५७७०७-१ (+)
चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३९, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं परमेसरु), ५६२९७(+#),
५५७२०
चित्रसंभूति प्रबंध, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., खं. ३, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (आदिपुरुष जगि आदिगुरु), ५७४४०-१(+) चिलातीपुत्र कथा, मा.गु, गद्य, भूपू ( क्षितिप्रतिष्ठितनगर), ५७६६७-९(४)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ चिलातीपुत्र सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (साधु चिलापुत्र गा०), ५८६०८-२(+#) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते),
५७५८९-१५(+) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ५६१६५-१ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ५८६७७(+), ५७५४५ चौपटखेल सज्झाय, मु. जगनाथ, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऐसी चोपड सो नर खेले), ५८९९६-४४(+) चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ५८५२९-३५(+) चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, म्पू., (प्रथम ऋषभ देवचैत्य), ५६२१४-१(+#$) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ५६१६०(+), ५७८७३ जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), ५७७६०-३२, ५८५२५-५(#) जंबूद्वीप परिधि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (विखंभवकहीयइ पिहुलपणौ), ५६२७५ (#$) जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), ५६१८०, ५७७२७६#) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, म्पू., (पहिली ढाल सोहामणी), ५८५८०(+#$) जंबूस्वामि रास, मु. शीलविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५७८३८(+$) जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (शासनपति वर्धमाननो), ५६२४५(#) जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., ढा. ५८, गा. १५००, ग्रं. १५११, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (शारद पाय प्रणमु), ५७६७१ जंबूस्वामी चरित्र, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४३, पद्य, श्वे., (--), ५७८७४(+#$) जंबूस्वामी चरित्र, मा.गु., ग्रं. ३७५, प+ग., मूपू., (एकदा समें श्रीमहावीर), ५८९९३ जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिणंदना),
५७८२७(+#$), ५७५८८(#), ५७४८३(s), ५७५०६($) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रेणिकनरवर राजीओ मग), ५६२७३-२८(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हरखकुशल, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठे ते रमणी अती भली), ५७४८४-८३(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हर्षमुनि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आवे ते रमणी आवे अति), ५७८६३-२३(+) जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., गा. २५५, पद्य, मूपू., (प्रणमीस गोयम गणहरराय), ५६३२४(+),
५७५१६-१(६) जयानंदकेवली रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., खं. ९ ढाल २०२, गा. ५८९७, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रथम प्रणमु),
५९०५२-२ जवाहरमुनि स्तुति, मु. हंसमुनि, पुहि., गा. ४, पद्य, स्था., (आनंद ही आनंद वरतर है), ५८९९६-१९(+) जिनकल्पी के १२ उपकरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रो१ झोली२ रहेछलो), ५७७६०-२७ जिनकुशलसूरि अष्टभय छंद, मु. खुस्याल, मा.गु., गा. ७९, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (--), ५८६९१-१(+$) जिनकुशलसूरि गच्छपति पद, मु. जिनचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (गच्छपति खरतरगछसिणगार), ५९००८-६(#) जिनकुशलसूरि गीत, मु. गुणविनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दादा पूरि हो मन वंछि), ५९००८-४(#) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (कुसल गुरु कुसल करो), ५५६७८-८(+) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदगुरु श्रीजिनकुशलसू), ५९००८-२१(#) जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनभक्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरसण देज्यो खरतरगछना), ५९००८-१०(#) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दादाजी हो करिज्यो दय), ५८६९१-२(+) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (दादैजी दीठां दोलत), ५९००८-३(#) जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हुं तो आयो भाव धरी), ५८६९१-३(+) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयो आयो री समरंतो), ५९००८-२४(#) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देरावर दादो दीपतो रे), ५९००८-११(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनकुशलसूरि पद, मु. आनंदचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( कुशलसूरिंद सहाई हमा), ५९००८-७(#) जिनकुशलसूरि पद, क. आलम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नित कुशलसूरीसर ध्याई), ५९००८-२७(#) जिनकुशलसूरि पद, क. आलम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू.. (सद्गुरु मेरे तुही), ५९००८-२६(क) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (धन आज वो शुभधामी), ५९००८-९(१) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु. गा. ५. वि. १८५०, पद्य, म्पू, (महिर करीने हो दरसण), ५९००८-२२(१) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (समरण होत सहाई कुशल), ५९००८-१३(#) जिनकुशलसूरि पद, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू., ( कुशलगुरु तुं साहिब), ५९००८-५ (०) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपु.. (कुशल गुरु अब मोहि), ५५६७८-७(+)
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जिनकुशलसूरि पद, मु. रंगविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., ( कुशलगुरु ध्वाईये), ५९००८-१६(०)
"
जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखतां), ५८९१४-२(+), ५८६५३-२, ५९००८-२(#) जिनकुशलसूरि फाग, मु. जिनचंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू (फाग करो नितमेव कुशल), ५९००८-१५म जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (श्रीजिनकुशलसुरीसर), ५९००८-८(m) जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु गा. ५, पद्य, मृपू., (दादी परतिष देवता), ५९००८-१ (४७) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( अरे लाला श्रीजिनकुशल), ५९००८-१२(४) जिनगुण गरबो, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे हुं पूजीसु रे), ५८०२७-३७(+) जिनदत्तजिनकुशलसूरि पद, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (दादी सेवका सुख पूरइ), ५९००८-१७) जिनदत्तसूरिकालक्रम पद, मु. आलमचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू (समरूं श्रीजिनदत्तसूर), ५९००८-१८(४) जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सदगुरु कौ ध्यान हृदै), ५९००८-२० (#) जिनदत्तसूरि गीत, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सिरिसुखदेव पसाइ करो), ५७८४१-२(+) जिनदत्तसूरि गीत, मु. लाभउदय, मा.गु.. गा. ११. वि. १९वी पद्य, मूपू (सद्गुरुजी थे सांभलो), ५९००८-१९(०) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (दादा चिरंजीवो सेवक), ५९००८-१४१०१
जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद्र, रा. गा. ९, वि. १८५०, पद्य, मृपू., (परतिख परचा पूरवै दाद), ५९००८- २३०१ जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे), ५९०३६-२
जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (सरसती देवी घरी मनरंग), ५८५२९-४५/११ जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, रा. डा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू (अनंत चोवीसी आगे हुई), ५६६४०-६ (
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जिनप्रतिमा एकादशी, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (इहविधि देव अदेव की), ५८०९१-९(#) जिनप्रतिमा चर्चा, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीजिणमारण मांहे तो), ५७५६४(+)
जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ५८३७९ (#)
(२) जिनप्रतिमा स्तवन- बालावबोध, प्रा. मा.गु., गद्य, मृपू., (केतलाएक कुमती प्राण), ५८३७९(१)
जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ५८५२९-१०१(+),
५६२०१-७(#)
जिनभक्ति पद, पुर्हि, दोहा १, पद्य, वे (अब तओ तनक मया करहुँ), ५५६७८-३६(*)
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जिनस्तवनचौवीशी, मु. केसरकुसल, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (समरी अमरी सारदा सारद), ५८५९७(+)
जीव के ५६३ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (नारकी सात नरकना), ५५९६२-२(+)
जीवगतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, वे. (प्रथम नरके २५ जीवभेद), ५६१९४-१ (६)
"
जीवठाणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवठाणानां नाम१), ५६२६३-१ (+s), ५८३१८(+)
जीवदया सवैया, मु. कृपाराम, पुहिं. गा. २६, वि. १९३२, पद्य, चे, चोथे आरे केरा वृसतीन), ५७५०७-१(5) जीवनिरूपण सज्झाव, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (वशि कर० बापडलारे एक), ५६२७३-४(+०) जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवरा २ भेद एक मुक्त), ५६०३१(+$) जीवविचारभेद यंत्र", मा.गु.. को.. मूपु (--), ५८६९५ क
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
जीवविचार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५०२, वि. १६७६, पद्य, म्पू., (सरस वचन द्यो शारदा), ५७४१९(#) जीव सज्झाय, वा. बुधविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समोवसरण संघासणेजी), ५७८३९-१३(+) जीवहिंसाफल पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन मानी ले सारी), ५८५१०-१९५ (-)
"
जीवहित सज्झाय गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू (गरभावासमे चिंतवइ है), ५७४४१-१८ (०१), ५७५३४-४(+), ५८५२८-१८(००)
जीवाजीव भेद यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ५७८८८(+$) जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, थे. (--), ५८२५९-४७(+६)
श्वे.,
जैनधर्म महिमा पद पु,ि गा. ३, पद्य, म्पू, (अब मेरो जिनमत सौ हित), ५७५४९-६
जैनधार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिन मारोने विषे), ५५७६०
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जैनयंत्र संग्रह ( कोष्ठक), मा.गु., पं., म्पू, (--), ५८६०१-३(५०), ५८६८७
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जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जैन कहो क्युं होवे), ५५६६० (+#), ५७५६६-१(+)
(२) जैनलक्षण सज्झाय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इण तवनमै दोसनी), ५५६६० (+#)
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ५६०२१(+), ५६१६७(+#),
५६२६७-१(+), ५७८१२(*), ५९०१२
ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), ५७५६१(+#) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ५६३०४-२(+०), ५८६९६-३ (४), ५८९८७-८ +०), ५७६३८-२(१), ५८७०४-२०१
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अनंतसिद्धने करुं), ५७७१९-२
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ५६२६७-२(+),
ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.गु., को. वै., (--), ५५६६९-१(+#)
',
५६३
५७८३९.३९(+)
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ५८६७३-१
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ५६३०४-३(+#), ५९०१४-३(+)
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (नेमि जिनेसर त्रिभुवन), ५६२५८-१४(+९१)
ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा. द्वा. ७. वि. १९३१, प+ग, वे. (श्रीगुरुदेवोनें प्रण), ५९१४२
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ज्योतिष फल संग्रह, मा.गु., को., जै., वै.?, (--), ५७६९९($)
ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., स. २, गा. ९१६, वि. १६२७, पद्य, मूपू., (सहगुरु सांनिधि सरस्व), ५८८५६ (०३)
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ज्वालादेवी स्तोत्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., ( ॐ ब्रह्मा वाच छेद), ५५९०३-१०
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., डा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, म्पू, (सरसति चरणे शीश नमावी), ५५६४३-३+४७) ढंढणऋषि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ढंढणकुमारनो जीव पाछल), ५७६६७-१० (#)
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ५७६५०-१(+#) ढुंढक रास, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ८०, पद्य, मूपू., (प्रणमुं गणपति सारदा), ५८६५७-२(+) ढुंढीया रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., ( प्रथम बीकानैरमे एक), ५८६५७-३(+)
ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), ५७७७४(#$)
तत्त्वप्रकाश, श्राव. दलपतराय, पुहिं., गद्य, दि., (प्रथम शिष्य गुरु), ५५७६९ (+#$)
तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, भूपू (नांदल मांडीजे), ५६५४०-३-१
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तपोभेद संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणसण१ उणोदरि२), ५६५७५-१० (+)
तमाकू परिहार सज्झाय, ग. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., ( प्रीतम सेती वीनवइ), ५७८३९-१८(+) तिलोकसुंदरी रास, मा.गु., ढा. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर आदेकरी), ५६२६१(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ तेजकुमार चौपाई, मु. गुलालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २३, वि. १८२१, पद्य, स्था., (रिषभदेव अरिहंतना), ५८९८४-१(+#) तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ४०६, वि. १६२४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो), ५६२४९(+), ५८९८५(+#) तेजसारनृप चौपाई, मु. देवरत्न, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल६१, ग्रं. २५००, वि. १८०१, पद्य, मूपू., (प्रथम सुरेंद्रार्चित), ५७८२९(#) तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६०, वि. १५९५, पद्य, मूपू., (शासनदेवि नमुंमहासती), ५७७८६(+#) त्रस बेइंद्रियादि भेद, मा.गु., गद्य, म्पू., (बे इंद्री जीव संख), ५७७६०-३० त्रिभुवनदीपक प्रबंध, आ. जयशेखरसूरि, मा.गु., गा. ४४८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (पहिलु परमेसर नमी), ५७६७९(+#) दंडक संग्रहद्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे., (नारकीमां शरीर३), ५७७५४-१३(+) दंडक संग्रह विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरीर१ गाहणर संघयण३), ५७७५४-१२(+) । दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ५७४४१-२२(+#), ५८५४२-१० दशमीतिथि सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दसम भले भले आइ हो), ५८०९१-२(#) दाढाला कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप भरतखंड), ५८८७२(+) दादाजी गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज तो आनंद मेरे आई), ५९००८-२५(#) दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय),
५८६७८-१८(+), ५८६४४-१६(#), ५८५१०-५८(-) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय),
५७५६०-१(+$), ५८५७९(+$, ५७५२२, ५७५६५, ५७५३६-४(#), ५५७७९($), ५९०३०-१(६) दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सासननायक वीनवु लागु), ५७४४१-१६(+#),
५८५२९-१३६(+) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी विनवू), ५८५२८-२६(+#) दानशीलतपभाव सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुमर मेरा बोलो मुख), ५९०५१-५(+) दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (रसीया राचै दान तणे), ५८५२९-८६(+) दान सज्झाय, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगोयम गणधा), ५७८३९-३७(+) दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समरूं सरसति सामिणीजी), ५७५३४-५(+) दामनक चौपाई, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., वि. १९९९, पद्य, स्था., (परम धरम धारक प्रभु), ५८९९४(+#) दिक्पट ८४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १६१, पद्य, मूपू., (सुगुण ज्ञान शुभध्यान), ५५६८६(+) दीपावलीपर्व कल्प-लघु, मा.गु., गद्य, पू., (स्वस्ति श्रीसुदातारं), ५७६८४(#) दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ५७६४९-१ दीपावलीपर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (पूरव दिसे हुंइ), ५७८६३-५(+) दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन मंगल एरे सकल), ५८५२९-३४(+) दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवाली दिन पर्व), ५६२१७-२ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जयजय कर मंगलदीपक), ५६१७६-१(+), ५६१८३-७(+#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ५६१८३-९(+#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वंदु वीर जिणंदनुचरी), ५६२५८-३०(+#) दुष्कृतनिंदा, मा.गु., गद्य, मूपू., (बहिरात्मा करीने कर्म), ५६१७० दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. सूर्यमुनि, पुहि., गा. १४, वि. १९८७, पद्य, स्था., (यों शास्त्र सुनावे), ५८९९६-३५(+) दृष्टांत कथानक संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजगृही नगरी प्रसेणी), ५७८४६(+#$) देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (१. उडूनामा पटल ६४५१६), ५५६६६-६ देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०७, पद्य, मूपू., (नेमजिणंद समोसर्या), ५७६८०(+#), ५७५९९ देवकीपुत्र चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, रा., पद्य, मूपू., (अनेकजसा जस आगलो अनंत), ५५६०९(#) देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो नारकीनो द्वार), ५८५६२, ५७६९७($)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५६५ देवयशाजिन स्तवन, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सें मुख साहिबनै मिल्), ५७४८४-७३(+) देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (मनशुध संतिजिणेसरु), ५७६४३($) देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ६, ग्रं. ६१२, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सकल जिणवर सकल जिणवर),
५७५२६(#) देवराजवछराज चौपाई, मु. नेमिविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १८२५, वि. १७५८, पद्य, मपू., (अकलगति अंतरीकजिन), ५६२२८(#) देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (देव दीवे एगो दो नागु), ५५६६६-५ देवलोक सज्झाय, रा., गा. २९, पद्य, श्वे., (साध श्रावक व्रत पाल), ५७५४९-३२ देवसीप्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिन चोवीसे हेजे नमी), ५८५२८-१५(+#) देशभक्ति गीत, मु. देवीलालजी महाराज, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (मुसलमान या हिंदु सभी), ५८९९६-७०(+) देशभक्ति गीत, श्राव. न्यामतसिंह, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जागो जागो भारतवासी), ५८९९६-३९(+) देशभक्ति गीत, श्राव. न्यामतसिंह, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुनिये भारत के सरदार), ५८९९६-६९(+) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), ५८९५८-२ दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ५७४४०-२(+$) द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु जितविजय मन),
५६२३७(६) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ५७८६०(#) द्रौपदीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३४, गा. ६०६, वि. १७००, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ प्रणमुं), ५६२९६(+#$) द्रौपदीसती रास, मु. देव, मा.गु., ढा. ४, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (वरताम सीलवडो ग्यान्न),५५७८७ धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (काकंदीवासी सकज भद्रा), ५५६९०-४($) धन्नाऋषि चौपाई, मु. जिनवधमान, मा.गु., ढा. ३१, गा. ६११, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर ए जगतमई), ५६१४५(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना),५८२५९-२४(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ५७४८४-८४(+) धन्नाजी चौपाई, मु. जीवहर्ष, मा.गु., ढा. ५३, गा. ९०८, वि. १७९६, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद आदिदे प्रणम), ५८९७६(#) धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५७७४७(१) । धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ५८५२८-२१(+#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शालिभद्र संजम आदों), ५८५२८-१३(+#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र), ५८५२८-८(+#) धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. २८२, वि. १५९१, पद्य, म्पू., (सरसति मुझ मति दिओ), ५७०९९-२(+) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ५७४४१-३(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हारे मारे धरमजिणंद), ५८०२७-१५(+), ५८५२९-१५(+), ५५६९०-५ धर्मजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिवसुख दायक सुरतरुक), ५६२०१-१७(#) धर्मनाथजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्मजिनेसर मुज मनडे), ५८५२९-९६(+) ध्यान प्रक्रिया, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध्यान इणविध ध्यावीय), ५७६७८ ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर पाय वंदे),
५८६२३(+#) नंदासती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बेनातट नयरे बसे व्यव), ५६२७३-११(+#) नंदिषेणमुनि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (मागधदेशने विषे एक), ५७६६७-१४(#$) नंदिषणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ५७६५१(+$) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), ५७८३९-२५(+) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नंदीसर वरद्वीप नीहाल), ५६१६५-२
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५६६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., अ. २४, गा. १४४, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ५६२०५-१ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु, गा. १८, वि. १७वी, पद्य, भूपू (वंछित० श्रीजिनशासन), ५७८१३-२(+), ५८९८७-२२(+०)
:"
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नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ५७८६३-३(+) नमस्कार महामंत्र छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सुखकारण भवियण समरो), ५८६५१-६ (+$)
नमस्कार महामंत्र पद, आ जिनवल्लभसूरि, मा.गु गा. १३, वि. १२वी, पद्य, म्पू. (किं कप्पतरु रे आयाण), ५५८५८-१ (००३),
"
"
५५९०३-२, ५६२५०क
(२) पंचपरमेष्ठिमंत्र स्तोत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू.. (भवि० गुरु ग्यानराजाण), ५६२५० (०४) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए पंचपरमेष्टि पद), ५६२७३-३५(+#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, जै.क, द्यानतराव, पुडिं, गा. ६, पद्य, दि., (मेरी वार क्युं ढील), ५८६४४-१९(१) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( समर रे जीव नवकार नित), ५६२०१-२३(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाब, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (बार जपुं अरिहंतना), ५८०५०-१(१०) नमराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., डा. ७. वि. १८३९, पद्य, श्वे. (सासणनायक समरीये), ५९०४९(*) नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., डा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपू. (आदिजिणंद जुहारीबह मन), ५५६५२-११(०) नरक - देवलोक क्षेत्रमान कोष्ठक, मा.गु., को. वे. (पेली नरकना पाथडा), ५७६३५ (१०)
"
नरनारी सिखामण सज्झाय, मु. उमेदचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुण सुण कथा रे सीख), ५७८६३-२७(+)
नर्मदासुंदरी रास - शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., डा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू
(प्रभुचरणांबुजरजतणी), ५७८५४(+०), ५७८९१-१(०३)
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी
प्रमुख), ५५८४१ (+), ५६१४३-१(+०), ५७५७६(+), ५७५८६ (+३३), ५८५५८(००३), ५८५६१(+३), ५७५४१(०३), ५८५४१(०३), ५५८२७१३) ५७५२८(३)
नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नवकार इक्क अक्खर पाव), ५७७१२-२(+#)
नवकारगुण चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., डा. ४, पद्य, भूपू (नवकारवाली मणिवडा), ५६१४१-१७(mm) नवकारमंत्र सवैया, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (जाके चरनारविंद पूजत), ५५६३८-१
नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, वे., ( जीव चेतन १ अजीव), ५७६९३(३)
"
नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ५५६६६-४, ५७१४०-१, ५७७६०-१२
नवतत्त्व ९ द्वार विचार, मा.गु, गद्य, म्पू, (मूल लक्षण द्वार १), ५७५५३(१
नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., डा. ९, पद्य, मूपु (सकल जिनेसर प्रणमी), ५५६४४(+), ५७६५९-१(+), ५८६३० (+AS) नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि - शिष्य, मा.गु., गा. ९५१, ग्रं. १३०५, वि. १५७५, पद्य, मूपू., (आदि नमी आणंदहपूरि), ५७७३८(AS)
नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., (पास जिनेसर प्रणमी), ५७६१२(+#), ५७५२०(#) नवतत्त्वद्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवतत्त्व १ अजीव), ५७७५४-११(+)
तत्व बोल, मा.गु, गद्य, म्पू, (५६३ भेद जीवना ते), ५९०११(०)
नवतत्त्वभेद विचार-बृहद्, मा.गु., गद्य, मूपू., ( जीव किणने कहीजे सुख), ५८६१८-२ नवतत्त्वभेद विचार-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १ अजीव २), ५८६१८-१ नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ५६१६२($)
नवपद खमासणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भारती सम्यक), ५६२०८ ($) नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मृपू., (पेले पदे नमो अरिहंता), ५५८९८(०)
नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, मूपू., (जगदंबा प्रणमी कहु), ५८५२९-२ (+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ५७५८९-१(+$),
५५६९०-१(३)
नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., ढा. ८, वि. १८४०, पद्य, मूपू., ( श्रीसरसती समरुं सदा), ५७७४९-२(+), ५७८६३-१४(+) नामरत्नाकर, क. केशवदास, मा.गु., पद्य, मूपू (परमज्योति परमातमा), ५८८४९(+४६)
५८५७४(१)
नेमराजिमती पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (सुन री सखी री जहां), ५८५१०-९८ (-) नेमराजिमती गीत, मु. पंचायणमुनि, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (सरसति सुभमति आपज्यो), ५८२५९-२९(+) नेमराजिमती गीत, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (सारदपाव प्रणमी करी). ५८५२९-१०७०) नेमराजिमती गीत, मु. रत्ननिधान, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हुं नवभव की दासी), ५५६७८-५ (+) नेमराजिमती गीत, आ. रत्नसागरसूरि रा. गा. ८, पद्य, भूपू (समुद्रविजय कौ नेम), ५८६४४- ११(७)
""
"
राजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम मले तो बातां), ५८५१०-१२१(-) नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे (धना ए मासवसंत सुहामण), ५५७०८-११) नेमराजिमती चौमासा पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सांवण वरसे हो सामी), ५८६८८-२
"
राजिमती रमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), ५८०५०-४(+४) राजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू (समुद्रविजय सुत चंदलो), ५७४६१-२ (७) नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो सिवरमणीरा बर मे), ५८५१०-२३० ()
',
नारी चरित्र, मा.गु, गद्य, वै., (तिलकपुर ब्राह्मण वसइ), ५७८०१-२(+३)
नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ५८५२९-८९(+)
निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (चावत म करो परतणी), ५८५२९-८५ (+)
निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरणवुं), ५७५८९-२(+), ५६१९५-२, ५६६४०-९(१)
निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूपू (श्री जिनवर रे देशना), ५८५२९-३(+)
,
नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ५५६७० (+#),
राजिमती पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चल री सखी री देखन), ५७४८४-५१(+)
नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू (बनि उनि चनिको चलै), ५७५४९-२१, ५८५१०-१९७) राजिमती पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमकुंमर की बातडी है), ५७५४९-२२ नेमराजिमती पद, क. जवसोम, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू.. (पिवा में बंदी तेरी), ५८५२९-१३२(५) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्याम बिन राजुल खडीय), ५८५१०-२१२) (दिल महिर न आनी तजि), ५७४८४-४६ (+) (तोरनसुं रथ फेरीयो) ५७४८४-५८*)
"
नेमराजिमती पद, मु. जैराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. नेमराजिमती पद, मु. दया, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू राजिमती पद, मु. देवसुंदर, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, नेमराजिमती पद, मु. दौलत, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू नेमराजिमती पद, मु. भुधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., नेमराजिमती पद, मु. भूदर, पुहिं, गा. ३, पद्य, वे
,
"
मूपू., (सखी मोहि जाणदे गिरना), ५५६७८-२७(+) (राजमती कहे नेमसूं जी), ५७५४९-३० (देख्यो री कोई नेम), ५७४८४-४१ (+)
(भगवंत भजन कुं भूला), ५७४८४-१४(१)
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नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमजी नवभव की में), ५७४८४-३३(+)
(मत जाओ रे पीया तुम), ५८५१०-८० (-)
नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., नेमराजिमती पद, मु. लालचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, थे. (नेम मनावण में गई अपन), ५८५१०-२३४) नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखो माई उमडि घुमडि), ५७४८४-३५ (+) नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नेमजी थे कांई हठ माड), ५७४८४-२८(+)
राजिमती पद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे. (महाराज चढे गजरथ), ५८६४४-१४(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मोहै निसदिन नींद), ५८५१०-९७(-) । नेमराजिमती पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (राजुल तेरे बलंबनैद), ५८५१०-१७५(-) नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (सांवण मासे स्वाम), ५८०५०-५(+#), ५८६४४-९(#$) नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, पुहिं., गा. ४०, पद्य, म्पू., (सीयाले सीखर भली रे), ५८५१०-२२३(-) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ५७४८४-६१(+) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन मोरिया), ५७५२४-३(+#) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ५७४८४-६३(+), ५८५९२-३(+#), ५८५५७-२(#) नेमराजिमती रास, रा., पद्य, श्वे., (--), ५७४९४(+#$) नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (राजुल पुकारे नेम), ५८५१०-१६४(-) नेमराजिमती लेख, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), ५८५२९-८०(+) नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरजीसुं वीरती), ५७७३९(#$), ५८६४४-१५(#$) नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (व्याहनेकुं आया सिरसे), ५७४८४-४७(+) नेमराजिमती सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (कपूर हुवे अति उजलो), ५८६४४-१३(#) नेमराजिमती स्तवन, पं. कुशलविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमजीस्युं बोलवानो), ५८०२७-४८(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. गजाणंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (घन आयो हो पीया गरजी), ५७४८४-३४(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), ५८०२७-२१(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (का रथ वाळो हो राज), ५८०२७-१९(+), ५८५२९-१७(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (यादवजी हो समुद्रविजय), ५८०२७-२०(+), ५८५२९-१३(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ५८०२७-४५(+) नेमिजिन गीत, मु. आणंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (जोवन पाहुना जात न), ५५६७८-१(+) । नेमिजिनधमाल गीत, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (मास वसंत सोहामणो हो), ५८५२९-११९(+) नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार की तलहटी), ५८५१०-२(-$) नेमिजिन पद, मु. जगराम, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखोरी नेम कैसी रिध), ५७५४९-३ नेमिजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (वारी जाऊ रेसावरीया), ५८९९६-४०(+) नेमिजिन पद, मु. जोधा, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (वधाई आज भई है द्वारा), ५८५१०-१५) नेमिजिन पद, मु. धर्मपाल, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (गरज गरज घन वरसै देखो), ५७५४९-१७, ५८५१०-२०८(-), ५८५१०-२२०(-) नेमिजिन पद, मु. धीरज, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (गढ गिरनार शिखर पर), ५८५१०-२१७(-) नेमिजिन पद, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्यारे नेम मिले तौ), ५८५१०-१२०(-) नेमिजिन पद, मु. पृथ्वीराज, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मे तो जिगर से चाहती), ५८९९६-६१(+) नेमिजिन पद, मु. मिहरचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (परज नेना भर आवंदे), ५८५१०-१३३(-) नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (महिअल चढि मोरा नाथ), ५८५१०-६७(-) नेमिजिन पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जगतपति नेमजिनराया दर), ५८५१०-१६८(-) नेमिजिन पद, हठु, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (में तो गिरनार गढ), ५८५१०-१९६(-) नेमिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (निपट ही कठन कठोर), ५८५१०-१२४(-) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (अजरो छै जी मां कै), ५८५१०-१०६(-) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (अरज सुणो मोरी अरज), ५८५१०-१००(-) नेमिजिन पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (अरी हे चलोरी सांवरी), ५८५१०-२४६(-६) नेमिजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमकुमार प्यारा मानै), ५८५१०-२४३(-) नेमिजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (नेम प्यारे नेम प्यार), ५८५१०-१८१(-) नेमिजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (नेम मनावन चलोरी हेर), ५८५१०-८५(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरी अरज सुणो महाराज), ५८९९६-५५(+) नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो), ५८०५०-३(+#) नेमिजिन श्लोक, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., गा. ७२, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (वाणी वरसति सरसति), ५५६८४(#) नेमिजिन स्तवन, मु. उत्तमसागर, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (आरत खेलनकि अब आई), ५८५२९-१२१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (कालीने पीली वादली), ५८०२७-४७(+) नेमिजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमकुमर फागुण रमे), ५८५२९-१३५(+) नेमिजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (फागुण मास सोहामणो हो), ५८५२९-१२२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ६, वि. १९८५, पद्य, स्था., (वींद वनी जब आप पधारो), ५८९९६-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सांभल रे सांवलीया), ५७४८४-८२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल छोडी नेमजी), ५८५२९-१०३(+) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (दोय घडीया बेवारी), ५८६४४-१२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. दान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देख सखी आवतो नेम नर), ५८५२९-४६(+) नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुझ मन हेज धरै तुम), ५८५२९-९७(+) नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (सूरति थाहरी हो), ५८५२९-११४(+) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ५७५५६-२ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उग्रसेन नृपपति तनया), ५८५२९-८४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ५९०३६-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया), ५८५२९-५३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मतवारे नेमजी ऐसीन), ५८५२९-६०(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नेमजी चालो तो तुमनै), ५८५२९-३१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर नित नमु), ५८५२९-१३१(+), ५८९८७-१९(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चरन रह्यो चित्त ललचा), ५७४८४-६४(+) नेमिजिन स्तवन-१८ दोष रहित, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्वामी हो स्वामी तुम), ५८२५९-९(+) नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी), ५६१४१-११(+#) नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार
सिरि), ५८५२८-३८(+#$) नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कातिविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (प्रणमुपवयणदेवी रे),
५८६५४(+$) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ५६१७६-१८(+), ५८६५१-३(+),
५८९९१-१२(#) नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ५६०६९-३१(+), ५६१७६-२३(+), ५६१८३-१६(+#),
५७०४३-१८(+), ५७४४३-९, ५८३६२-८ नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनार सिहरि पर नेमि), ५७०४३-११(+) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), ५८०२५-१(+#) पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिय पयकमल सुभ भावि), ५६१४१-२५(+#$) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आज देव अरिहंत नमु), ५८६७८-२२(+) पंचतीर्थजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि आदिजिनेसर सुंदर), ५६२५८-१२(+#) पंचदंड चौपाई, मु. राजऋद्धि, मा.गु., ढा. ५ आदेश, गा. ४१८, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (जयु पास जिराउलउ जगम), ५७५०९(+#),
५६२३६-१(#) पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारगुण अरिहंता सिद्ध), ५८९५२-२
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ५७८३९-३१(+) पंचमआरे आयुमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यनो १२० वरसनो आ), ५७१४०-२ पंच महाव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्राणातिपात थकी), ५७७६०-२६
पंचमहाव्रत सज्झाब, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हर्ज न होए जोजन), ५९०५१-१(क)
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पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ५८९८७-९०) पंचमीतिथि स्तुति, मु. ज्ञानसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप धरियने त्रिदश), ५८०९१-४(#) पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (सिद्धवधु केरो सिणगार), ५६२५८-७(+) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (पंचरूप करि मेरुशिखर), ५६२७३-१(+) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथ जिन जनम), ५७४४३-७ पंचाचार पालन स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे जे धर्मशास्त्र), ५७७६०-६
पंचानुष्ठानपंचवीसी, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिद्धतणी सुख आसिका), ५८५६६-६(४) पंचेंद्रियजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते पंचेंद्रीना च्यार), ५७७६०-३१
पंचेंद्रिय दृष्टांतकथा संग्रह, पुहिं, कथा ५, प+ग, भूपू (बालाभिरामेसु नतंसुंह), ५७७०७-२ (+)
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), ५५७३९(+), ५६००३-२(+), ५७२७८-२(+#), ५७४९५ (+$), ५८०३१(०), ५६५६७-२, ५७३४४-२०१, ५७७४४(३) ५८०५३-३(क
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानसामी), ५८६७४ - १(+#)
पद्मप्रभजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनचरणन चित लीनौ अली), ५८५१०-१५९(-) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (दिवस थया केतलाइक), ५७६४८-२(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागलीयु करतार भणी), ५७४८४-७८(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कविअण कुमुद विकासन), ५८५२९-११३(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (पद्मप्रभु तुम सेवना), ५८५२९-१२५ (+)
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), ५८०२७-९(+), ५८५२९-१६(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुजिन जइ अळगा), ५७४४१-११(+#)
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (चरनकरम में चित्त), ५७४८४-५ (+)
पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ५८५२९-१३०(+)
पद्मरथ चौपाई, मु. माल, मा.गु., गा. १८२, पद्य, मूपू. (उत्तम ते आजनम लगि), ५७६१८ (+)
',
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ५७८६३-८(+$),
५७८८५-२(१), ५८२५९-३९(१), ५७७५०-२(१)
पद्मिनी रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५८६३५ (5)
परनारी परिहार सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नयनां अटकमां नयनां), ५७४८४-२७(+)
परिग्रह सवइया, मा.गु., गा. २, पद्म, थे. (छांड के प्राणातिपात), ५८१४२-१(+)
"
पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया रे), ५७८३९-४० (+)
"
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. ( परव पजुसण पुण्ये), ५६१७६-९(+), ५८६७८-९(+), ५८४४६-२०० पर्युषणपर्व स्तुति, आ, जिनलाभसूरि, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू (वली वली हुं ध्यावु), ५७०४३-१७(०) ५७१९१-११(०) पर्युषण पर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (वरस दिवसमा अषाड), ५६२५८-२१(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. धरमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमां मोटु परव), ५६२५८-२०(+#)
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ५६१८३-२०(+#), ५६२५८-२(+#) पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ५६१७६-११(०), ५६१८३-१९(१) पर्युषण पर्व स्तुति, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू (सासन नायक वीरजिनेसर), ५६२५८-१(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू, (परव पजुसण पुन्य), ५६१७६-१० (+), ५६१८३-१८(+१), ५६२५८-३(००)
पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., खं. ६ बाल१५० ग्रं. ३७९७, वि. १७६७, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५७८८of+3)
पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ५६२९३(+#$), ५७११४(+$), ५७७८३(+$), ५७६७६-१ ($), ५८९७१ ($)
पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, भूपू (देवसी अर्धनु वदेतु), ५६२१५
पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, म्पू, (जयविजयगुरु प्रणमी कह), ५८५२८-१६(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., डा. ३९ गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर परगडो), ५६१४४(१
पाप श्रुतिराजवारक सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( धनधन ते मुनि धर्मनो), ५६२७३-१६ (+#) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मृपू., (मेरे एही ज चाहीई), ५८५१०-६९)
"
पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., ( सरसत मात मना करी ), ५८६८२-२(+#$),
५९०४३(+), ५८६८९
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पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, भूपू (सरसति सुमति आप), ५८०३४-२ (१ पार्श्वजिन छंद- नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., ( आपण घर बेठा लील करो), ५८५२९.१२६(+)
"
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पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, मु. हीरा ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (जनम उछव कुं आयो जी), ५८५१०-१०९() पार्श्वजिन निसाणी-घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं. गा. २७, पद्य, भूपू (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ५९०१९-१ (+) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), ५७८८२ पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), ५७४४१-२१(+#) पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू (तूं मेरे मन में तुं), ५८५१०८५७) पार्श्वजिन पद, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था. (हे प्रभु पार्श्वजिण), ५८९९६-१३(+) पार्श्वजिन पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जै जै हो पारस जिन), ५७५४९-२० पार्श्वजिन पद, मु. जीवणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरकाणा कोडि पासधणी), ५७५३६-२(#) पार्श्वजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (वो दिल भाय मेरे सांइ), ५८५१०-११(-) पार्श्वजिन पद, क. नागर, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (मृगावती के प्रीतमजी), ५८९९६-३७(+) पार्श्वजिन पद, जे. क. बनारसीदास पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (दरवाजे तेरे खोल), ५८५१०-१८२७) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जोडी थारी कौन जुडेलो), ५८५१०-१४० (-) पार्श्वजिन पद, मु. लाल, रा. गा. ३, पद्य, मूपू., (कृपा म्हासूं कीज्यो), ५८५१०-४७)
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पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (प्रभुजी जनम सुधार), ५८५१०-१०८() पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा. गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ५८५१०-११३)
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पार्श्वजिन पद, मु. सदारंग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( पास दरस लगै अब मोहै), ५८५१०-१८(-) पार्श्वजिन पद, मु. सांवल, मा.गु. गा. २, पद्य, मूपू (पारसनाम आधार सार भज), ५८५१०-४२) पार्श्वजिन पद, मु. सुखरंग, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूजोनी प्यारा हो जी), ५८५१०-११० पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (वामाजी के नंद अरज), ५८५१०-२३८१ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( अंगीनो संगी साहिबा), ५९०१८-३(+) पार्श्वजनपद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छबी तेरी सुहावन लागी), ५८५१०-१८३ () पार्श्वजिन पद, पुहिं गा ३, पद्य, मूषू, (दिल मेडा पातस्याहा), ५७४८४-५५ (+) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, थे. (नवरी वणारसी नित नवी), ५५७०८-२(१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (नेहतोसाढेनाल लग्या), ५७४८४-६०(+) । पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जिणंदा मेरी निजर), ५८५१०-१२३(-) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास जिनंदा साढी निजर), ५७४८४-२३(+) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (बाजत है घडी घडी घडीय), ५८५१०-८४(-) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (भज पारसनाथ जिनकुं रे), ५८५१०-८१(-) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मातवामा कुखे जनम), ५७५३६-३(१) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मेरो चित चरणनमाहि), ५८५१०-१५८(-) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मै तेरी बलहारी हो), ५८५१०-२३६(-) पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (मोतियन थाल भरकै करह), ५७४८४-१६(+) पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष, मु. जगतराम, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नमो नमो जै श्री), ५७५४९-९ पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष मंडन, मु. माणिक, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (तोसुं दिल लागा हो), ५६२०१-४(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (गोडी गाइए मन रंग), ५८५१०-२०३(-) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी जिनराजजी मन), ५८५१०-४६(-) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. गुणसागर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरौ मान न लीजै हो), ५८५१०-१४९(-) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (रंगरली जी मारे रंगरल), ५८५१०-१०१(-) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (बली जावुरे चिंतामण), ५७५३६-१(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान भायौरी मान भायौ), ५८५१०-१५६(-) पार्श्वजिन पद-जन्मोत्सव, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुत जायौ अश्वसेनराय), ५८५१०-७६(-) पार्श्वजिन पद-पुरुषादानीय, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन गमतो साहिब मिल्यौ), ५७४८४-७४(+) पार्श्वजिन पद-फलवर्द्धिमंडन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुरत पारसनाथ की सब), ५८५१०-५२(-) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनवरजीसु लागु मारु), ५८५१०-११९(-) पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर जगतिलोए),
५६१४१-१(+#$), ५६३०४-६(+#) पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), ५७६१०($) पार्श्वजिन वृद्धछंद-अंतरिक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसति मात मयाकरी आपो), ५६३३७-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (घोर घटा करी आयो री), ५८५१०-२१९०) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनमोहन महाराज तीन), ५६६९९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (परम पुरुष जग परगडो), ५७५५६-१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जिनेसर तुम्ह सम अवर), ५८२५९-८(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहि., गा.७, वि. १९८१, पद्य, स्था., (प्रभु प्रगटे अवतारी), ५८९९६-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ५८५२९-३९(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन पास बडे धमचक्कु), ५७४८४-५६(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (पास रंग लागा चोल रंग), ५६२०१-१०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेज ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (वामानंदन वंदिये अविच),५६६९९-६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आयो मास वसंत सरस जब), ५८५२९-१२०(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्य, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जेन बिना नही जेणा), ५८५१०-१११(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी सांवलवरणो), ५८५२९-८२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजिणंद), ५८०२७-२६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (साहिब आंगी तुम्हारी), ५८५२९-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ५८५१०-५१(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पासजी वामाजीना जाया), ५८६७८-१७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज करूं छं साहिबा), ५८५२९-७३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू. (पुरिसावाणी पासजिनेसर), ५८५२९-७५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू (मात वामादेरा नंदा), ५८५२९-७२ (*) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेरी मांहि रमतो दीठो), ५८५२९-११२(+)
पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीकी मूरति पास जिणंद), ५५६९०-३($), ५८५१०-७५ () पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी परगडउ जेसल), ५७५६० - २(+$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (चेतना संभार चेतन), ५६६९९-४
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., डा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, भूपू (पूर मनोरथ पासजिणेसर),
५६२८५ (+), ५६३१८५ाका
पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षादितीर्थमंडन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (अंतरीकजिन अंतरजामी),
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५८५१०-८
पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., डा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (वाणी ब्रह्मवादिनी) ५८७०४-३(४)
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कनकमूरत, मा.गु., गा. १५, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (जैसाणे जिनराज हो लाल), ५९०१४-५ (+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लाखेणो सोहोवे जनजी), ५८०२७-४६(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं. गा. ९, वि. १७२२, पद्य, म्पू, ( अमल कमल जिम धवल), ५६३०४-४(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., ( ॐकाररूप परमेश्वरा), ५८७०४-४(#)
"
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ५६१९७-१($), ५६१९८३)
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( आज अधिक थयो उछरंग गो), ५८०२७-४१(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. भानुविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (गोडीरावा से दीदार आज), ५८५२९-११५(*) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. भोजसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (धवल धिंग प्रभु परता), ५८५२९-३८(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ५८०२७-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा. गा. ५, पद्य, मूपू (मुजरो थें मानो हो), ५८५२९-६१(+)
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पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोनानी आंगी हे सुंदर), ५८५२९-७८(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू (कृपा करो गोडी पास), ५८५१०-११५) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विनयशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लागै मुनि मीठो रे), ५८५२९-८८(+) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. न्यायसुंदर, पुर्हि, गा. ८, पद्य, भूपू (प्रभु मुझ प्रभु मुझ), ५८५१०-१९२०
"
५७३
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामली रे), ५६१४१-२८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन),
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५६१४१-२९(+०३)
पार्श्वजिन स्तवन- दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (महिमंडल श्रुणि श्रवण), ५८२५९-५ (+) पार्श्वजिन स्तवन- दशपुर मंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (दशपुरमंडण सोहै नवफण), ५७४४३-१२ पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (छांनि छांजि छांजी), ५८०२७-२७/१, ५८५२९-१०४०) पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ५८६७३-६
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पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानी, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (पुरसादाणी सांवल वरणो), ५८०२७-२८(+) पार्श्वजिन स्तवन - प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( उठो रे मारा आतमराम), ५८६७८-१४(+), ५८५१०-१०() पार्श्वजिन स्तवन-बाललीला, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुरगिरि शिखरे ने), ५८५२९-५९(+) पार्श्वजिन स्तवन- बाललीला, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुरगिरि शिखरे सुरपति), ५८९८७-२ (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालाजी पांच मंगलवार), ५८०२७-४२(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू., (जाय छे जाय छे जाय छे), ५८०२७-३४(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ५७७९३-२(+), ५८५२९-६२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मक्षी, मु. विवेकविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (माहरो सफल हुओ अवतार), ५८५२९-५८(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरना प्रणमु), ५८२५९-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसीपुर मंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा., पद्य, मूपू., (श्रीमगसीपुरपास पूरण), ५८२५९-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मनमोहन पावन देहडीजी), ५८५२९-४२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, वा. विमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वारी जाउं साहिबा वार), ५८५२९-६६(+) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (मनमोहन जिनराय भाव), ५८५२९-७९(+) पार्श्वजिन स्तवन-वधनोरमंडन, मु. राजसुंदर कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुनाम रिदै धरी), ५८५२९-२४(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर राजीया), ५८५२९-१२८(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ५८५२९-१२९(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ५८५२९-३३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज अनोपम मुरत माहरे), ५८०२७-२५(+), ५८५२९-८३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तुं परमातम तु पुरुषो), ५८०२७-२४(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ५८०२७-३०(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), ५८०२७-२३(+),
५८५२९-१००(+), ५८५९४-१८ पार्श्वजिन स्तवन-शामलीया, आ. कल्याणसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १६९२, पद्य, मूपू., (मूरति मोटी सोभ), ५८२५९-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग),
५६१४१-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तूंज्ञानी तुझनै कह), ५८५२९-४३(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिण), ५६०६९-२६(+), ५८२५९-१७(+),
५८५९२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मु. जिनसुख, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामानंदन सिव पथ), ५९०४४-२ पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरति सामी थंभणो), ५६०६९-२५(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ५५९११-२७(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा),५६१७६-७(+) पार्श्वजिन स्तुति, पं. भीमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर अति अलवेसर), ५६२५८-२३(+#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. शुभसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करय सेवा), ५६१७६-३(+) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देवलोक दसमै तै आप), ५६०५९-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम प्रभु परमेश्वर), ५६१७६-१५(+) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करुं), ५६१८३-१३(+#) पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना, मु. विनय, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (पारसनाथ के नाम थे सब), ५८५२९-१०(+) पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पं. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.१३, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसतीजी), ५५६९०-७ पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), ५६१८३-३(+#) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर-पौषदशमीतिथि, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पार्श्व), ५९०५२-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), ५८५२९-७७(+), ५८९८७-६(+#),
५८९८७-१६(+#) पिंगलाभर्तृहरि संवाद सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, वै., (हाय हाय रे सहेशेजीओ), ५८९९६-६४(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
पुंडरिककंडरिक चौपाई, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (पुंडरीकणी नामै वीजै), ५६६४०-११(#) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ५८५६५(+),
५८६५५(+#), ५६३२६, ५८७०४-१(#$), ५६१९९(६), ५८६०६(5) पुण्यरंग चौपाई, मु. लालचंद, रा., खं. ४ ढाल ३७, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिनेश्वर नाभिसुत), ५८५१६(+) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (नाभिराय नंदन नमु), ५५७५९(+#),
५७७९९(+), ५८५५६(+), ५८६३८, ५८६४१, ५९०३२-१, ५७५४२(#), ५९०२३-१(#$) पुद्गलपरावर्तमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हीवे पुद्गलपरावर्तनो), ५७५३३ पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम १ गुण २ तिसंख ३), ५७७४६(+), ५७८२०-२(#) पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), ५७३९४(+) पूर्वमान गाथा, मा.गु., गा.१, पद्य, मूपू., (सितर लाख कोड वरस), ५७७६०-१९ पृथ्वीचंद्रकुमार रास, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १७४, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंभगति भगवति), ५७६५९-२(+) पृथ्वीचंद्रनरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. २१००, वि. १४७८, गद्य, मूपू, (श्रीमहीपाला या विश्व), ५७४३७(+#$),
५७४८२(+$) पौषदशमीपर्व सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ५७८३९-३५(+) पौषध के २१ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (वासी विना पाणी आणी), ५८६९८-२(+) पौषधविधिस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, म्पू., (जेसलमेर नगर भलो जिहा),
५६१४१-१६(+#) पौषधव्रत सज्झाय, मु. कीर्ति ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रावकना गुण छे एकवी), ५८५४२-२ पौषध सामायिक व प्रतिक्रमण उत्थापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोथी टीकी दीजइ), ५६५४०-५(-) प्रतरश्रेणि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (हवे प्रतरने श्रेणी), ५७८२०-१०(#) प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राई पडिक्कमणविधि सार), ५८५२८-१४(+#) प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पचखि पचक्खाण परभाति), ५९०३५-३(#) प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमी सरसति), ५६२७३-७(+#), ५८०५०-२(+#) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ३८, गा. ७००, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धने आयरिआ), ५७८६९(#$) प्रदेशीराजा रास, रा., ढा. १९, पद्य, मूपू., (कुण हूतौ भव पाछले), ५७८८५-१(+), ५७१५७ प्रदेशीराजा रास*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५७४९७(+-#$) प्रद्युम्नकुमार चौपाई, वा. कमलशेखर, मा.गु., स. ६, गा. ७९३, वि. १६२६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर सवि पय नमी), ५५८३०(+#$) प्रबोधचिंतामणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५६२४४(+) प्रभु उपकार पद, मु. धर्मपाल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कौन उतारे पार प्रभु), ५८५१०-१४५(-) प्रमाणांगुल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंगुल तीन प्रकारना), ५७७६०-१७ प्रश्नोत्तर संग्रह, श्राव. तिलोकचंद लुणिया, मा.गु., गद्य, श्वे., (तुमे कांजे समकित), ५६१३८ प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. २१, गद्य, मूपू., (नवकारमाहि पहिलापदना), ५६१८९ प्रसनचंद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोतनपूर नगर तिहा), ५७६६७-२(#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंतुमारा पाय), ५७८३९-२७(+), ५८५२८-२७(+#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मन वसि करवू दोहिलू), ५६२७३-३(+#) प्रहेलिका पद, मु.राज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वनमे तो जाई राज वस्त), ५८९९१-३(#) प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), ५८०७८-३ प्रहेलिका सवैया, क. रूप, पुहि., गी. २, पद्य, जै.?, (सोलै श्रृंगार वनायकै), ५८८६९-२ प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तुज पूछु वात हे), ५८०४९-३(#) प्रास्ताविक दोहा, मु. दौलत, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (दौलत बीहार करती), ५७५४९-२७
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., (पडिवन्नइ माछा भला बग), ५७६४८-४(+), ५७६५०-२(+#), ५८५३५-२(+) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुंसद्गुरु पाय),
५७४४६(+#), ५७६३७(+$), ५८७०१-१(+#), ५९००१(+#), ५६२७०, ५६३१४, ५७५०२, ५७५४६, ५८६६७(#) बंध स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ५७७०६-२ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ५७८३९-२(+), ५८५२९-२५(+) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (हुं तुझ आगल सुंकहु), ५७६५०-३(+#) बहुपुत्रिका सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (तिण कालउ तिण समै), ५७५८९-७(+) बाई सज्झाय, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३२, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (बेठे साधसाधवीया रे), ५८५९४-५ बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ५५६५२-३(+#) बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ५७४४१-२(+#) बाहुबलि सज्झाय, मु. शांतिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बाहुबलि बहिनडी इणपरि), ५८५२८-२४(+#) बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बेहनड बोले हो बाहूबल), ५७८३९-३(+) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ५६१७६-१६(+), ५८३६२-२ बीजतिथि स्तुति, आ. विनयसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमंधर त्रिभुवनधणी), ५७४४३-४ बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमु देवी अंबाई), ५८५९२-७(+#) बुद्धि वृद्धि के १० प्रकार, मा.गु., अंक. १०, गद्य, मूपू., (लाबो आउखो हुवै तो), ५८६९८-१०(+) ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कंपीलपूर नगरने विषे), ५७६६७-५(१) भक्ति पद, क. नरसिंह महेता, पुहि., दोहा. ३, पद्य, वै., (सजनी दुर्जन लोग दुहे), ५५६७८-३२(+) भरतचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७६६७-१(#S) । भरतचक्रवर्ती रास, पासो पटेल, मा.गु., ढा. २०, वि. १८१८, पद्य, स्था., (अरि हणवे अरिहंतजी), ५७७७७(+#) भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., ढा. १३, पद्य, म्पू., (धनपति नामइ देवता), ५६६४०-१६(#$) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. इंद्रजी ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (साहेबा प्रेम धरी प्र), ५७८६३-२९(+) भरतबाहुबली कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीरुषभदेवे दिक्षा), ५७६६७-३(#) भरतबाहुबली छंद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ८०, पद्य, मूपू., (--), ५८६४४-६(#$) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ५८२५९-३३(+), ५८५२८-३२(+#) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ५८६६६-४(+#) भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (परम पुरुष धरा जुगल), ५८६४४-७(#$) भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ५८७०० भवदेवनागिला सज्झाय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, श्वे., (जंबुदीपमे जाणीएजी), ५७५८९-१३(+) भवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सातमी नारकीनां नाम), ५८९८३(+) भवानीदास गुरुगुण पद, मु. दौलत, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (साधन के सिर मुकुटमणि), ५७५४९-२८ भुजंगजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामि भुजंगम ताहरो), ५७४८४-७२(+) भुवनभानुकेवली चौपाई, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९७, ग्रं. २४१४, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धिदायक सदा), ५८५०९(+) भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा.६०, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलै),५६६४०-३(#) भृगुपुरोहित चौपाई, मु.खेम, मा.गु., ढा. ७, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (दाननी अणमोदना कीज्यो), ५७५५१-१(६) मंगलकलश चौपई, श्राव. लखपत तेजसी शाह, मा.गु., ढा. १४, ग्रं. ४३२, पद्य, मूपू., (श्रीवामानंदन नित नमे), ५७६६९(+-#) मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., ढा. २७, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नीत प्रणमीय), ५६२४०(+), ५८५३९(#$) मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सासणदेवीय सामिणी ए), ५६३२२(+) मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (लीली बलकी तुंबडी), ५९०३५-७(#) मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., गा. ८९, पद्य, मूपू.?, (विश्वानंदी पयनमी), ५८६८३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
५७७ मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आपै धनन्नी), ५७५८९-८(+) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), ५७८०३-१(#) मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मोरा प्रीतमजी तुंसु), ५७८६३-२४(+) मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), ५८५२९-२१(+) मनोरमासती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहनगारी मनोरमा शेठ), ५६२७३-१०(+#) मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५७५७०(+$) मल्लिजिन चौपाई, मु. जेमल-शिष्य, मा.गु., ढा. १९, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (नमस्कार अरिहंतनै), ५८७०२(5) मल्लिजिन चौपाई, मु. हीरालाल, मा.गु., ढा. २८, पद्य, स्था., (--), ५८९९५ (+$) । मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (मोहे केसे तारोगे दीन), ५८५१०-१८५(२) महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीरस), ५९०४० महावीरजिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक वर्षमें सवाइग्यार), ५६५७५-२३(+) महावीरजिन गहुंली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवीर समोसा), ५८९९१-५(#) महावीरजिन चरित्र, मु. रूपरत्न, मा.गु., ढा. १६, पद्य, पू., (कुंडणपुर आय अवता), ५७५८९-६(+) महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ५७८६३-४(+) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ५६५७५-११(+) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति स्वाम्मीजी), ५८९८७-१३(+#) महावीरजिननिर्वाण पद, मु. भावविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज महोदय मे लह्यौ मन), ५८५१०-७१(-) महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ५९०१९-२(+) महावीरजिन पद, केशवलाल शिवराम, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (जरी सामे जोवोनी), ५८९९६-५६(+) महावीरजिन पद, मु. खेम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत सांभलौ), ५८५१०-७०(-) महावीरजिन पद, मु. चैनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेडी सुध लीज्यो जी), ५८५१०-९६(८) महावीरजिन पद, मु. जगराम, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (भेरु महावीर जिनमुक्त), ५७५४९-५ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज हमारे भाग वीर), ५८५१०-३७() महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ५८५१०-३१(-) महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मो मन वीर सुहावै), ५८५१०-६५(-) महावीरजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ५८०९१-७(#) महावीरजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (आज चलो तुमे पावापुर), ५८५१०-१९(-) महावीरजिन पद, पुहिं., पद्य, मूपू., (नमो नमो जै श्रीमहावी), ५७५४९-१० । महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (माता त्रिशला ए पुत्र), ५६२७२-२(#) महावीरजिन पूर्वभव मासक्षमण तप वर्णन, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमहावीरदेवनो जीव), ५७७५४-६(+) महावीरजिन बधाई, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (वाजितरंग वधाई नगर मै), ५८५१०-७७(-) महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती),
__५६५७५-६(+) महावीरजिन सज्झाय, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (शासननायक सब गुन लायक), ५८९९६-६३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ५८५२९-१०९(+), ५८९८७-१८(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), ५७४४१-२०(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राग विना तुंरीजवे), ५८५२९-१०५(+) महावीरजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (नैया लगादो मेरी पार), ५८९९६-४७(+) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भविक कमल पडिबोहतो), ५७४८४-७५(+) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदीये), ५८५२९-८१(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनमुख देखण जावुं), ५८०७४-२ महावीर जिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर विना वाणी कोण), ५७४४१-६(+) महावीरजिन स्तवन, ग. तेजसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( आणंदहर्ष हमारे सदाइ), ५८६४४-३(#) महावीरजिन स्तवन, ग, तेजसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (चोवीसमो श्री सासन को), ५८६४४-२ (०) महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( नणदल हे के नणदल), ५८०२७-३३(+) महावीरजिन स्तवन, मु, मानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (तुं जगनायक जगजर), ५८६४४-५ (क) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ५७४४१-१३(००),
""
५८९८७-१००)
महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ५७६११, ५७५५९ ($) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ५८३६२-११($)
१८३०, पद्य, श्वे., ( थे सुणजो हे आरजीयां), ५८५९४-२१ (महावीरजी तुमारो जिन), ५७४४१-१९(१)
महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २३, वि. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस), ५६२९०(+)
महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सिद्धारथना रे नंदन), ५८५२९-७(+) महावीर जिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेशर वीनती), ५८५२९-१२३(+)
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महावीरजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, भूपू (--), ५७७४९-१(१)
महावीरजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ७९, पद्य, मूपू., (सरसति मनि समरी सदा),
५५६५६-१००)
महावीरजिन स्तवन- २७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., ढा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (पूरण प्रेमे प्रणमीइ), ५७४६२ (+$) महावीरजिन स्तवन- २७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ५५६८३-१(+), ५७६२७(१)
महावीरजिन स्तवन-४५ आगमसंख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (देवांना पिण जेह छै), ५६१४१-१३(+#)
महावीरजिन स्तवन ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण बंदु), ५७५३२/१
महावीरजिन स्तवन ५ कल्याणक बधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., डा. ५, पद्य, मूपू., (बंदी जगजननी ब्रह्माण), ५९०४७ (+) महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित उपा धर्मसी, मा.गु, डा. ४, गा. ३०, पद्य, भूपू (ए धन सासन वीर जिनवर).
י:
५६१४१-१४(+#)
महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु, गा. २७ वि. १७३, पद्य, भूपू (श्रीवीरजिणेसर सुपरे),
५८५२९-४९(+)
महावीर जिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह क्यो, मा.गु, गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, म्पू. (श्रीश्रुतदेवीनें चरण),
,
५८०३४-३(१)
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महावीरजिन स्तवन- छड्डाआरागर्भित, श्राव, देवीदास, मा.गु., डा. ५, गा. ६६. वि. १६११, पद्य, भूपू (सकल जिणंद पाय नमी), ५५६५२-१०(10)
',
,
',
महावीरजिन स्तवन- छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (सरसति सामण दो मति), ५५६५२-८/+8), ५८५२९-६(+) महावीरजिन स्तवन- जन्मोत्सव, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ६, पद्य, भूपू (आज महोछव रंग रली री) ५७४८४-७(०) ५८५१०-२३(१) महावीर जिन स्तवन- ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, डा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मू
"
13
(श्रीइंद्रादिक भावथी), ५७८१४
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५७९
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपम),
५६१८७ महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमाहि विराजै), ५७८६३-९(+) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मूपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), ५७६२२(+) (२) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोगस्सणं भंते एगम्मि), ५७६२२(+) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ५७८६३-१८(+) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा),
५८०५८-२(#$) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मा.गु., वि. १७०८, पद्य, मूपू., (मागु श्रीगुरुनई), ५५६७७(+) महावीरजिन स्तवन-योगवीसी भावगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (--), ५८०७४-१($) महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६१, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (केवलज्ञान
दिवाकरुजी), ५६७४५(+) (२) महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (समस्त ज्ञानावरणीय), ५६७४५(+) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८,
वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ५६१५४(+#s), ५६३०९(+#), ५७५४३(#) (२) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (ए स्तवनमांप्राइ पद),
५६१५४(+#$), ५६३०९(+#) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ५७०४३-१५(+) महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर मोटो जगनाथ), ५६२५८-१६(+#) महावीरजिन स्तुति, फकीरा, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (मारे मन भाया हो), ५८९९६-२३(+) महावीरजिन स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कुगति हरण शिवसुख करण), ५६२१४-२(+#) महावीरजिन स्तुति, मु. सेवक, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकलसुरासुर सेवें जेह), ५६२५८-२४(+#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), ५६२१४-३(+#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (त्रिभुवनपति ध्यावो), ५८३६२-१०।। महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय चाप), ५७०४३-१३(+) महासती सज्झाय, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (गीसती के घर साधने), ५७५०७-३($) महीपाल चरित्र, मु. हजारीमल, मा.गु., ढा. २४, वि. १९७९, पद्य, मूपू., (आदिनाथ नमिये सदा), ५७६२३(#) मांगलिक दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ५७८७७-४ माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ५८९९७-९ माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ५८९९७-८ माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा.५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि), ५५६०३(+#), ५७१०३(+),
५७५९०(+#), ५८५६९-१(६) मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुमाता सरसती), ५७६६४-२(+5), ५७५३९(#),
५८५६३(#), ५८६१२(#) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू.,
(ऋषभजिणंद पदांबुजे), ५६१३९(+#), ५७४६९(+), ५७५७५ (+$), ५७७६५ (+#), ५७७८२(+#$), ५७८९४(+#$), ५८५३५-१(+),
५७८३३, ५७८५३, ५६३०५ (#$), ५८५१८(१), ५८९७५ (#$), ५८९७८(#$), ५८५२२(), ५९०१७(5) माननी सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मान न करशो रे मानवी), ५७८६३-२२(+) मानव १० सुख सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (सूत्र में दस सुख), ५८५९४-७
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
माया पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (अरि जग ठगनी तु माया), ५७४८४-४५ (+), ५८५१०-१३६ (-) माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( इण जगमें माया प्यारी), ५५६९०-२
माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ५७४८४-४४(+)
मालखाने चस्मकोरी, सरहग पेसमीरा, फा. गा. ९, पद्य, (बखत कखोने मुस्तरी), ५७४३०-२ (+)
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(२) मालखाने चस्मकोरी - टबार्थ, मा.गु., गद्य, (बृहस्पति मंगल शत्रु), ५७४३०-२(+#)
मुक्ति गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू.. (माइ हर कोऊ भेष मुगति), ५५६७८-२८(+)
मुनि की ८४ उपमा, मा.गु, गद्य, श्वे. (पहली ओपमा सरप की), ५७८२०-२४)
,
मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वनाथ), ५६२२५ (#)
मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., डा. २७, गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, मूपू., (गोवम गणहर गोयम गणहर), ५६२८१ (०३), ५७४८७/+83)
मुनिपति चौपाई, मा.गु, पद्य, भूपू (सुरनर किंनर पर नमी), ५५८२८ (+३)
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मुनिवर स्तुति, रा. गा. ८, पद्य, भूपू (कईये मिलस्यै हो मुनि), ५८२५९-२३(५)
,
11
मुनिसुंदरसूरि पट्टावली, मा.गु., गद्य, भूपू (मुनिसुंदरसूरी तत्), ५८६७४- २(+)
मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), ५६१४१-६(+#), ५६३१८-१(+) मूर्ख के १४८ बोल, मा.गु., गद्य, म्पू, (बालकसुं प्रीत करे ते), ५८८८८-२ (००) मूलोत्तरप्रकृति मार्गणाद्वार विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे. मूलोत्तरप्रकृति संग्रह समासविचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे. मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्म, वे. (आवेसर जिन आददे चोवीस), ५८६११(३)
(उदकभाव २१ उपसमीक), ५७७५४-१९(+) (उदईए१ उवसमीए२ खईए३), ५७७५४-१८(+)
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11
मृगांकलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९ गा. ८७६, वि. १७४८, पद्य, म्पू. (जिनवर हितकर सदा प्रण), ५७४२१, ५८९८२(३) मृगांकलेखा रास, श्राव, वछ, मा.गु, गा. ४९९, पद्य, भूपू (गोयम गणहर पय नमेवि), ५८६३२(३)
मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२८, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (परतक्षि प्रणमुं वीर), ५५६४६-१
मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू (सुगरीपुर नगर सोहामणी), ५७५३४-३०)
,
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मृगावतीसती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (साकेतपुर पाटणने विषे), ५७६६७-८ (#)
मृगावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (श्रीमीदरस्वामीजी लगु), ५७५८९-९(+)
मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति
सामिणी), ५५७१९-१(+), ५६२३९(+#), ५७४३६ (+#$), ५८०९३(#$), ५८०९५ (#$)
मेघकुमार चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु, ढा. ८, पद्य, मूपु. ( रिषभादिक चोवीसने), ५८६७९ (+३)
मेघकुमार चौढालिया, रा. दा. ७, पद्य, भूपू (ऋषभादिक चौवीसने वांद), ५६६४०-४(A)
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मेघकुमार चौडालियो, मु. जादव, मा.गु., डा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे. (प्रथम गणधर गुण नीलो). ५८६४४-८ (MS)
.
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मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु. गा. १४, पद्य, म्पू, ( चारित्र लइ चित्त), ५८५२९-३२(+)
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मेघकुमार सज्झाय, मा.गु, डा. २ गा. १७, पद्य, भूपू
(सरस वाणी महावीरनी), ५५६५२-९(+४)
मेतारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. दा. २० वि. १८४९, पद्य, वे (सासणनायक समरी), ५८९९८(+), ५७४६४(१६)
3
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मेतारजमुनि संबंध, मु. मान, मा.गु., गा. २१०, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (विदुरलोक सुखदायिनी), ५७६०५-१(+)
मेतारजमुनि सज्झाय, मु. कनकविजयजी शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मृपू, (धन धन मेतारज मुनि), ५८५२८-७ (+)
तारजमुनि सज्झाय, गं. जिनहर्ष, मा.गु गा. ९, पद्य, म्पू, (श्रेणिक राजा तणी रे) ५७८३९-३३(+)
"
मेरूपर्वत के १६ नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (मंदर १ मेरू २ मणोर), ५६९७० २ (+)
मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मोक्ष तणा कारण ए दाख), ५६२७३-१८(+#) मोह चेतन संवाद, वा. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सुरसत सावण वीनवु), ५७५८९-११(+) मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या, रूपविजय, मा.गु., पद्य, भूपू (नगर गजपूर पुरंदर), ५७४५१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), ५७६६०-२(+), ५९००७-२, ५५७७८(#)
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ५८५२९-५ (+),
५८६९६-२(+#), ५८९८७-११(+#), ५८६७३-३
मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ५६३२७-१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ५६३०४-५ (+#),
५७६६०-३(+), ५८५२९-४४(१)
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ५६१७६-२१(+), ५८३६२-५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिनै पूछै हरि), ५६१८३-२(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ५६१८३-१० (+#), ५८९९१-११(#) यशोधर रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., अ. १४, ग्रं. ७५०, वि. १६७१, पद्य, मूपू. (सुविशदमनो यस्य व्याप), ५८५३०+) युगमंधरजिन स्तवन, सु. नयविजयजी - शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (श्रीयुगमंधर माहरे रे), ५६१६५-३ योगीमहात्म्य पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (याली धनओ पीउ धनउ), ५५६७८-३१(+) योजन खंडक विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु, गद्य, वे (जोजन २ना खांडूया), ५७७५४८५) रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), ५६२३८ रत्नपानरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ डाल ६६ गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपु (सकल श्रेणि में दुर),
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५८९७३ (+*३)
रत्नपानरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ डाल ३२ गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभाविक जिनवर नमु), ५७४१७(+४), ५७७६८(+), ५७७७१(+४), ५८५२७(+४), ५९०३७/*३), ५९०२६(३)
रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ५८६८८-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पेखी पसु रथ वालीयो), ५८५२९-४(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( काउसग व्रत रहनेम), ५७८३९-४१(+), ५९०१८-४(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ५६२७८-२(#), ५८६४४-१० (#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा. गा. ११. पच, म्पू, (प्रणमी सदगुरु पाय), ५८५४२.६
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राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), ५८५१५ राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., डा. २४, गा. ६०५ ग्रं. ८८५ वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारव शुभमतिदायिनी),
५६२३३(+), ५७५८२-१ (+), ५९०२९(#$)
राजा रायसिंघ पद, सोभागदे, पुहिं, दोहा २, पद्य, वै. (बोलण लागे मोर कइसे), ५५६७८-२० (०)
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राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (अगनिकुंडमां निज तनु), ५७८३९-१६(*), ५६२०१-२२ (०१)
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राजिमतीसती पद, मु. राममुनि, पुहिं, गा. ६, पद्य, श्वे. (कालो वींद तो किसा), ५८९९६-११(+) राजिमतीसती पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (ऐ दई कोन गत भई मेरी), ५८५१०-२२४()
राजिमतीसती सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १५, वि. १८२२, पद्य, स्था., (गोखमा सखीयो संघात), ५७७१४-३(+#$) राजिमतीसती सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू (श्रीजिनवरसुं वीनती), ५८२५९-३० (+) राता-धोला-कालावरणजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८३६, पद्य, वे. (प्रभातें उठीनें), ५७८६३-११(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममा सारज कहिइ), ५८५२८-४(+#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ५७८३९-१९(+) रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु गा. १९, पद्य, मूपू (अवनितलि वारू वसइजी), ५८२५९-२५(५)
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रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., खं. ६ ढाल ६८, गा. १२५१, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (जगत आदिकर जगतगुरु आद),
५७४७४(+#$), ५७७७० (+#)
राम चरित, मु. चौथमलजी, मा.गु, पद्य, स्था. (--), ५७८८९ (३)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू.,
(मुनिसुव्रतस्वामीजी), ५६२२३(+#$), ५७४१५(+#$) रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु.७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सिद्धबुद्धदायक सलहीय), ५६४६८(#) (२) रामविनोद-हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुभमति सरसति समरियै), ५८२५१ (३) नाडीपरीक्षा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (शुभमति कहेतां भलीमति), ५८२५१(६) रामसीता चरित्र, मु. चेतनविजय, मा.गु., ढा. २३, गा. ४१५, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (सारद मात दया करो अरज), ५८५२४(+) रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा),
५७४१२(+), ५७८१७(+5), ५७८२१(+#) रावणमंदोदरी गीत, मु. राज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मंदोदरिवार इम भाखइ), ५५६७८-९(+) रावण मंदोदरी संवाद, मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (कहै मंदोदरी मेरा सुन), ५८९९६-२९(+) रावण मंदोदरी संवाद, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम सुणो पियाजी एक), ५८९९६-४९(+) रीसालूराजा दूहा, रा., पद्य, जै., वै.?, (हड हड दे मूंडी हसी), ५८७०१-२(+#$) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ५८५२८-१७(+#), ५८५४२-१५ रुक्मिणी रास, नंदलाल, रा., गा. ७९८, पद्य, श्वे., (वीर जिनेश्वर वंदिये), ५८६७२(#$) रूपचंदऋषि रास, मु. तीकम, मा.गु., ढा. ११, गा. २२४, वि. १६९९, पद्य, श्वे., (महावीर जिवन घणीक), ५८६०७($) रूपचंद्रकुमार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., खं. ६, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (आदि जिणवर आदि जिणवर), ५७५७८(+#$) रूपीअरूपी बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन), ५७८२०-१५(#) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ५७८६३-२८(+), ५८५२९-२६(+) रोहिणी कथा, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सकल सुरासुर जेहने), ५६३३५(+) रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंपानगरीयै श्रीवासु), ५७६४१(+) रोहिणीतप कथा, रा., गद्य, मूपू., (उच्छिट्ठम सुंदरयं), ५९०४१(+) । रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य नमी स्वामी), ५७८१०-२($) रोहिणीतपस्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ५५६६३(#),
५७६४६-२() रोहिणीतपस्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ५६५७५-१७(+),
५७६३८-१(१) रोहिणीतप स्तुति, मु. पद्मसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयानंदन दीपतो ए वासु), ५६२५८-१७(+#) लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), ५७४८१(+) लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच ज्ञानना भेद), ५७८२०-२२(#) लवणसमुद्र वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (लवणसमुद्र एहवे नामे), ५८६९३ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), ५६९८९(#) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास),
५७६००(+$), ५७६८३(+) लुका रास, मा.गु., गा. ४४, पद्य, श्वे., (प्रणमुं देवी सरस्वती), ५८६५७-१(+) लूण उतारण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लूण उतारो जिनवर अंगे), ५७८७७-२ लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामाइं पण रस गंध फरस), ५७४३९-४(+$), ५७८२०-१(#) वंकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (वंकचूल भाखी कथा जथा), ५७५८९-१०(+) वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., खं. ४, गा. ४३७, वि. १४१७, पद्य, मूपू., वै., (अमरावई समाणां पंखि),
५७४२२-१(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक सबल मननो धोखो), ५७४८४-७० (+)
वज्रस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, भूपू., (तुंच गाम नगरने विषे), ५७६६७-१३(१)
वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ५७६४८-१(+),
५८६०८-१(००६)
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वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू (शुक्लकार्तिकपंचम्या), ५८९५८-१
',
वरदत्तगुणमंजरी चौपाई - ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. २१, वि. १७४८, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर पाय
नमुं), ५६२९८(०) ५७४९० (5)
वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), ५७७६०-२३
वसुदेव रास, मु, हर्षकुल, मा.गु, गा. ३५६, वि. १५५७, पद्य, मूपू. (सकल मनोरथ सिद्धि), ५७६८७
वाला सज्झाय, मु. गुलालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, वे. (माता माहरी अरज सुणो), ५८९८४-२ (००)
""
वासुपूज्यजिन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू. (मेरो मन वस किनो हो). ५८५१०-१८६( वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहनजी हो गुण बोहला), ५८५२९-९५(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (नायक मोह नचावीयो), ५७४८४-७९ (+), ५८५९४-२० वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ५८०२७-४४(+), ५८५९०-२ वासुपूज्यजिन स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयवंत जयासुत वासुपूज), ५६२५८-१८(१)
"
विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथने, वा. अभवसोम, मा.गु. दा. १७. ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, भूपू., (वीणा पुस्तक धारणी),
"
५७६६४-१(+), ५७८७९(+), ५८२८८१, ५८५६८(5)
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजिणंद पय),
५७८४९(+), ५८५११(०३), ५६०१४ ५७८२२
विक्रमराजा चौपाई, मु. हीरानंद, मा.गु., ढा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर चरणे नमी), ५६१७८(+#)
विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., ढा. १७४, गा. ५७९७, ग्रं. ७४४०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., ( अमल कमल सम नयन यूग),
५८३
५६२१८(+), ५७८९०($)
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु.. ढा. ६४, वि. १९७२४, पद्य, भूपू (परम ज्योति प्रकास), ५६१३७(+), ५६१४०(०),
""
५८५१७/१
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु, डा. ५२, गा. १९६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू (सुखदाता संखेश्वरो),
५७८९५
विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५६२०२($)
विचार संग्रह में, मा.गु., गद्य, श्वे. (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ५६२८८(+९१) ५८६३३-२, ५६१८५-२०१
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., डा. ३, गा. २८, पद्य, मृपू. ( भरतक्षेत्रे रे), ५८६९९-३(४)
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६९, पद्य, स्था., ( प्रथम नमु श्रीअरिहंत),
५५६४३-२(+#), ५७७१४-१(+#)
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु, डा. ३ गा. २४, पद्य, भूपू (प्रह उठी रे पंच), ५७८३९-३४१),
"
५८६४०.२(+)
יי
विद्याविलास पवाडउ, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., गा. १९०, ग्रं. ४४०, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (पहिलं पणमिय पढम), ५७७२८(+#$) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यी), ५५६५२-२(१०) ५७४८४-८०(१) विमलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल गुण गण विमल तुम), ५८५२९-१११(+) विमलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, भूपू (विमलजिणंदशुं ज्ञान), ५८०२७-२९(१) विमलजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीविमलजिनराय रे तु), ५८५२९-७४(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु. खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू (आदिजिनवर आदिजिनवर), ५६२३०/**४), ५७४२३(३)
विमलमंत्री लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू (सरसति समरूं वे करजोड), ५६२७८-१(१६)
こ
विराधकभाव विचार, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, श्वे. (जिम श्रीपार्श्वनावनी), ५७७५४-८)
"
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विशालजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आपन पै आवी हूं न सकु), ५७४८४-६८(+) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं. गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि.. ( आत्मलीन अनंतगुण), ५७८१३-१(+)
"
विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., ( वंदु मन सुध विहरमाण),
५६१४१-२००१
विहरमान २० जिन स्तवन- वीसी, मु. लींबो, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि करउ), ५७६७३($) विहरमान २० जिन स्तुति, ग. देवविजय वाचक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंचविदेह तणा जिनवीस), ५६२०१-२(#) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (पंचविदेह विषय), ५५९११-१५ (१), ५७०४३-७(+), ५५९२४-११(७) विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., स्त. २०, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पुंडरीकणी नगरी वखाजी), ५९०१६(+$) विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू. (पुखलवई विजये जयो रे), ५७७९३-१(०), ५८०४२(+)
विहरमानजिन स्तवनवीसी उपा. विनयविजय, मा.गु, स्त. २० गा. ११६. ग्रं. २५०, वि. १७३, पद्य, म्पू, (सीमंधरस्वामी सुणजो),
५७७३२ (०५७)
वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., ढा. ६५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी सानिध करो), ५८५१३ (#) वृत्तमंडली, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (पंच परमेष्ठि प्रणमुं), ५८५९३-१(+)
वैताल पच्चीसी कथा, मु. देवशील, मा.गु., गा. ८२१, वि. १६१९, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय नमि), ५६२३६-२(#) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), ५७४५४(+#$), ५७६९२(+#), ५५६२७ वैरसिंहकुमार चौपई - जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सारद
सामनी) ५७७७२(+), ५८५२३(५)
वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ५८९८७-३(+#$)
वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मृपू.. (ते गिरूआ भाइ ते गिरू), ५७४६५-५ (+३)
व्यवहारशुद्धि चौपाई - धनदत्त, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), ५८०८० (#)
शकुनविचार गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, थे. (--), ५८४७१-२ (०)
""
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल),
५७७२१ (०३), ५७६८२, ५८६५३-१, ५६१५८(०३), ५७४४७-२(०) ५८०३२(१)
,
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. विनयमेरु, मा.गु., ढा. १२, गा. १५४, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (सेत्तुंजय तीरथ धणी), ५७६१३(+) शत्रुंजयतीर्थनामप्ररूपणा कथा, मा.गु., गद्य, म्पू. (-), ५७५२१-१(०३)
शत्रुंजयतीर्थ परिपाटी स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११७, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (सकल सभारंजन कला दिओ), ५७६५९-३ (+) शत्रुंजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवुं जी), ५६५७५-७(+), ५७५२४-५ (+#) शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ५८६४८(+) शत्रुंजयतीर्थमाहात्म्य वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो श्री सीद्धाद्री), ५७८०२-१(+)
शत्रुंजयतीर्थ रायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू (नीलुडी रायणतरु तले), ५८६७८-२(१) शत्रुंजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ९, गा. ६४५२, ग्रं. ८९९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ चरणे नमुं), ५७८३१ (+$) शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. दा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ५६२६४ (+),
"
"
५७५१७/१, ५७५२४-६ (-१), ५८६३९(१), ५९०१४-२ +६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
शत्रुंजयतीर्थ वृद्धस्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (तीरथ सेत्रुंजेजी रहि), ५६२०५-२
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपु. ( आंखडीये रे में आज), ५८६७८-१(+), ५८६७८-६(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु.. गा. ८, पद्य, म्पू, (डुंगर ठंडो रे डुंगर), ५८६७८-१० (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, गा. ८, पद्य, भूपू (ते दिन क्यारे आवसी) ५८०२७-४०+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेत्रुंजागढना वासी), ५८०२७-३२(+), ५८५२९-५७(+)
(चालो सखी सिद्धाचल), ५८९८७-४(+)
"
"
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. कविवण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (शेत्रुंजानो वासी), ५८५२९-५२(५) शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (श्रीरे सिद्धाचल), ५८५१००५३) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मुं. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (अंग उमाहो अति घणो), ५६१४१-२३(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू. (आज आपे चालो सहीयां), ५६१४१-२० (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु. गा. १३, पद्य, भूपू (नमोरे नमो सेडुंज), ५६१४१-१८(+४) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर शिखर सुं), ५६२०१-५(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आपो आपो ने लाल मोंघा), ५८६७८-४(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( इण डुंगरीयानी झिणी), ५६१४१-२२ (+#), ५७४८४-५०(+) शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू (माहरु मन मोरे), ५८०२७-३६(+),
५८५२९-९३(+), ५८६७८-१९(+), ५८९८७-१७(+#)
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शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ५८६७८-५ (+), ५५६४६-२ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (शेडुंजानो वासी), ५८०२७-३१(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ५८०२५-२ (+#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक दीन पुडरीक गणधरु), ५७७९३-३(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चालो सखी जिन वंदन जइ), ५८६७८ - ११(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु, गा. १०, पद्य, मूपु. ( यात्रा नवाणु करीए), ५८६७८-३(+) शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७. पद्य, मूपू. (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ५८०२७-१(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, मूपू., ( विमलाचलगिरि वंद्या), ५६१४१-२१(+#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ५६१४१-१९(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (श्रीशत्रुंजय तीरधसार), ५६२५८-१३(००), ५८३६२-७ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. ४, पद्य, मृपू, (सवि मली करी आवो), ५८९३८-३(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (श्रीशत्रुंजयमंडण), ५५९२४-१६(4) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू (पुंडरिकमंडण पाय), ५६१८३-८ (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., ( आगे पूरव वार नीवाणु), ५६१७६-२(+)
""
शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ५८८७६-१(+#)
शनिवर छंद, मा.गु. गा. १६, पद्य, वै., (छावानंदन जग जयो रवि), ५५६८७-१, ५८९९७-११
,
शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू (जय जय आरती शांति), ५६१८१-३, ५७८७७-३
"
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ५७८६३-६(+),
५८५९२.९(+४)
शांतिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (क्यारे मुने मिलसे हो), ५८५१०-२०० (-)
शांतिजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (शांति दांति कांति), ५८५१०-३८)
शांतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसंतनाथ सरण तेरे), ५७४८४-५७(+)
शांतिजिन स्तवन, आ. कल्याणसागरसूरि मा.गु.. गा. १०. वि. १६८९, पद्य, मूपू (शांतिकरण श्रीशांति), ५८२५९-११(१)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन स्तवन, श्राव. कवियण, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (आज थकी में पामीयोरे), ५७४४१-१(+#) शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (संति जीनेसर मूरति), ५८५२९-५४(+) शांतिजिन स्तवन, मु.खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ५७४८४-६५(+) शांतिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (प्रभु शांतिजिणंदजी औ), ५८९९६-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ७, वि. १९८०, पद्य, स्था., (सदा शुभकारी रे), ५८९९६-१४(+) शांतिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (काल अनंता अनंत भवमा), ५७४८४-८१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर सुखकारी), ५८५२९-२३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ५८५२९-१८(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), ५७७९५-३(+#), ५८०२७-१६(+),
५८५२९-५०(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (स्वामि सनेही सांति), ५८०२७-१७(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, पू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ५८५२९-४८(+) शांतिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल समीहित पूरण सामी), ५८५२९-९९(+) शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (चित चाहत सेवा चरण), ५८५१०-८२(-) शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सूरज ऊगमतइ नमुसंती), ५६३०४-९(+#) शांतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ८५, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर जग हित), ५७७१३ शांतिजिन स्तवन-चंपावती मंडन, मु. केसराज, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (मो बलि जाउं संतिजिने), ५८२५९-१३(+) शांतिजिन स्तवन-चंपावती मंडन, मु.पंचानन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अचिरानंदन सुमन लाग), ५८२५९-१४(+) शांतिजिन स्तवन-जेसलमेर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अष्टापद हो ऊपर लो), ५९०१४-४(+) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर
अरचित जग), ५८६९२(+#), ५८६८० शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहि., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमु सिरनामि), ५८२५९-६(+) शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शांति जिणेसर समरीई), ५६१७६-८(+), ५६२५८-८(+#) शांतिजिन स्तुति, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सांति जिनेसरदेव), ५७४४३-८ शांतिपद्मप्रभजिनपूजा पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुपूजा रचे सोही), ५८५१०-७९(-) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा.१०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ५८९९७-५ शालिभद्रधन्नाजी सिलोको, मु. सिंह, मा.गु., गा. १४७, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (सरसति साम्मण समरु), ५८६२० शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरिय), ५५७५८(+$),
५६१५७(+), ५६२६६(+#$), ५६३०७(+), ५७४३०-१(+#), ५७४६६(+), ५७४७२(+#), ५७४८८(+#), ५७४८९(+), ५७६५३(+), ५७७०५(+#$), ५७८४१-१(+), ५८५३२-१(+#), ५८५५१(+S), ५९०००(+#$), ५९०३१(+$), ५७६५७(#$), ५७८३६(#$),
५७८४५(#), ५७८६४(#), ५८५४३(#$), ५७६०६(5), ५७६७४(६) । शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीने), ५७७४० शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे),५८५४२-७ शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., (रिषभानन वधमान चंद), ५६६९९-१,
५९०३६-४ शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (भविजन वंदो रेशीतल), ५६६९९-३ शीतलजिन स्तवन, मु. मगन, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (शीतलजिन अरजी सुण), ५८९९६-५१(+) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सितलजिननी सेवना), ५८०२७-१३(+) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ५८०२७-५२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
शीतलजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनतडी अवधारोजी पाउध), ५५६५२-१(+#) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ५७५२४-४(+#) शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (चोविसे जिन आगमे रे), ५७८६३-१३(+) शीयलव्रत विचार, मा.गु., पद्य, म्पू., (अथ ब्रह्मचर्य पालइ), ५६१७९-२(+#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुखडानो मटको देखाडी), ५८५२८-३०(+#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते तरीया भाई ते), ५८५२८-११(+#) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ५८६२९-३(+), ५७४४५-२(#) शुक्लपक्षकृष्णपक्षतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासयने असासय चैत्यतण), ५६१८३-४(+#) शृंगारसप्तशती, क. बिहारीदास, ब्र., दोहा. ७००, पद्य, वै., (मेरी भव बाधा हरौ), ५७३९३(+$) (२) शृंगारसप्तशती-टबार्थ, मु. रूपविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ५७३९३(+$) श्रमणोपासक गुण सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रमणोपासक के सदा), ५८९९६-४१(+) श्राद्धविधि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १६५१, ग्रं. १९१४, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (सोमवदन तुझ सरस्वती), ५८५१४(+) श्राद्धविधि रास, उपा. भावविजय, मा.गु., गा.१०१, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमीइ), ५८९७२(+#) श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), ५८६२७-५(+) श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ५८६९८-१(+) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ५८९९१-२(#) श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकने सकल पातक),५६१६९(+), ५५७४६,५७५८७(#) श्रावकगुण चाबखो, मु.खोडाजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (एक एक श्रावक छे जग), ५७८८५-४(+) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, पू., (कहिए मिलस्ये रे), ५८५२९-१३३(+) श्रावकदोष चाबखा, मु. खोडाजी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (फोकट श्रावक नाम धराव), ५७८८५-५(+) श्रावकशिक्षा चाबखी, मु.खोडाजी, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रावक सुत्र सुणे छे), ५७८८५-३(+) श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १११, गा. २३९५, ग्रं. ६९३९, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (सुखकर साहिब
सेवीई), ५७२७२(+#) श्रीपालराजा चरित्र*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५६२७१(+#$) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मूपू., (करकमल जोडि करि सिद्ध), ५५९७०(+#), ५७७७८(+),
५७७०४ श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), ५५७३३(+#$),
५६०१७(+), ५७१०५(+) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल
कवियण तणी), ५५७१७(+#$), ५६१४८(+), ५६२२१(+), ५६५५९(+$), ५७४१४-१(+), ५७४७१(+$), ५७५४०(+#$), ५७५७१(+$), ५७५७२(+#$), ५७६७५(+$), ५७७७३(+#$), ५७७८४(+#$), ५७८१८(+#), ५७८२५(+), ५७८२६(+), ५७८५८(+#), ५७८५९(+), ५७८६७(+#$), ५८५१२(+#), ५८५४४(+$), ५८५७७(+$), ५६१३६(#$), ५७८१९(#), ५७८५०(#),
५७८५१(#$) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५७८५८+#) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), ५५७१७(+#$), ५७४७१(+$), ५७८२५(+), ५७८२६(+),
५७८५९(+), ५८५७७(+$) श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), ५६२४२(+$),
५७७३३(+$), ५७७६२(+#$), ५७८४०(+#), ५७८६१, ५८५५३-१, ५७६५८(#S), ५६२२९(६)
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५८८
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
श्रीपाल रास - लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), ५५६३० (+),
५७४७५-२
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श्रीमती चौढालीयो, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ८६, पद्य, श्वे., (चोबीसु जिणवर नमुं सत), ५६१९५-१ श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (सील धर्म सुख संपजै), ५७५८९-१४(+) श्रेणिक दृष्टांत पद, मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं. गा. ७, पद्य, स्था., (पूछे श्रेणिक अति), ५८९९६- ३०(+)
श्रेणिकराजा गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु नरग पडतो राखीइ), ५५६७८-१२ (+), ५८५१०-११६ (-) श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु खं. ४, गा. ६०६. ग्रं. ६८९, वि. १६०३, पद्य, मूपू (सकल ऋद्धि मंगलकरण), ५७०९९-१(१)
,
श्रेयांसजिन पद, मु. धीर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनंदराय ऐसै क्यूं न), ५८५१०-१२ (-) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो श्रेयांसजी जिनराय), ५८५२९-६७(+) षडशीति गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., पं. भूपू (देवगति २४१९९६), ५७७०६-४
"
द्रव्यविचार गाथा, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मृपू. (चिदानंद चितलाय), ५८५६६-४११ संख्या संकेत पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुणो वियबलंवी सालमी), ५७०५४-२ संग्रहछत्तीसी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, वे संग्रह छत्तीसी सांभल), ५९०३३-३(+)
"
संजया विचार-भगवतीसूत्रे - शतक२५ उद्देश, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पन्नवणा १ वेयरागे), ५८६६४ (+#), ५८६६५
संज्ञा व कषायादि नाम, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, वे. (संज्ञा ४ आहारसंज्ञा), ५७७५४-२(०)
"
संभवजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु संभवनाथ सुहावइ), ५५६७८-१७(+) संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभवजिननी सेवा प्यार), ५८५२९-१३८(+) संभवजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू. (जयकारी जगवालहो कांई), ५८५२९-३६(+)
संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (समकित दाता समकित आपो), ५८०२७-६(+) संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू. (संभव जिनवर विनती), ५७४४१-९(०) संभवजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसंभवजिनवर राजै), ५८५२९-९८(+)
संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७. वि. १७६०, पद्य, म्पू. (मुने संभवजिनस्युं), ५८५२९-९४(क)
संवर सज्झाय, मा.गु गा. ६, पद्य, भूपू (बीर जिणेसर गौतमने), ५७८६३-२(०), ५९०२५-३(०१
,,
"
संसार अनित्य सज्झाय, क. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अथिर संसारै रे जीवडा), ५८५२८-१० (+#) सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ५६२०१-३ (#) सतीनी सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ३७, पद्य, स्था., (नामें पुण्ये ज्ञानी), ५७७९५-२(+) सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (समरी सरसति भगवति), ५८३७२-२(+#), ५८०६८ सत्यासत्य सज्झाय, मु. राममुनि पुहिं. गा. ११, पद्य, भूपू (प्रथम न वेसे पंच में). ५८९९६-४२(+)
सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ३९०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोहगसुजस), ५८९८८(+) सदेववत्स सावलिंगा दोहा, क. संघकविसर, मा.गु., गा. २१९, वि. १७९७, पद्य, श्वे. (सातलख्य संध राख वा), ५६०३४(#) सद्गुरुउपदेश सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू (सकल शास्त्र जे). ५८५६६-१० (४७)
""
""
सनत्कुमारचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (गजपूर नगरने विषे सनत), ५७६६७-४(१)
1
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाव, मु. खेम, मा.गु. गा. १७ वि. १७४६, पद्य, म्पू, (सुरपति प्रशंसा करे), ५८६६६-८(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूपू., (जोए विमासी जीव तुं), ५७७५०-१(#) सपखरो छंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै. ?, (पूरांचाचरांचाचरांखरा), ५८०२५-३(+#)
सबलदोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( कहुं हवे सबलनी वारता), ५६२७३-१५ (+) समवसरण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज गइती हुं समवसरणमा), ५७४८४-८(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
समुद्रवहाण संवाद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. २८६, वि. १७१७, पद्य, मूपू., ( श्रीनवखंड अखंड गुण), ५७५१८(१)
सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. वृंदावन साह, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. ( समेतसिखर चल हो जियरा ), ५७४८४-२९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आलमचंद, पुहिं. गा. ७. वि. १८२०, पद्य, म्पू. ( समेतशिखर चल रे जी का), ५८५१०-११४१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ५७४४१-१७(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. तेजऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे (भवि भेटो हो धरमन), ५६६९९-५ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. डा. १२ गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू (सुकृतवलि कादंबिनी),
श्वे.,
"
५७५१०, ५७७११
सम्यक्त्व कुलक, मा.गु., गा. १२०, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणमुं वीर), ५५६७१ (+#)
सम्यक्त्व के ९ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), ५६५७५-२९(+)
सम्यक्त्व चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे. (समकीत माहे दीढ रह्या), ५५६०४-२(+४३)
,
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सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वासादन समकित १), ५८५२५-६ (#)
सम्यग्दृष्टि सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३३, पद्य, वे. (नेमसरीखा बांदण आवे), ५८५९४-२५
',
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, भूपू (सरस वचन समता मन), ५८९९७-३ सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), ५८९९७-४
सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), ५८८७६-७(+#), ५५९०३-३ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ५८९८७-२६(४०),
५८६९९-४१०६)
23
"
सागरचंदकुंवर चतुष्पदी, मा.गु., ढा. ८, पद्य, श्वे., (ॐ नमो जगदपति अलख), ५५६८८(+) सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार गाउनो कुओ), ५७७६०-२२ साधारणजिन गीत, मु. माल, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू (किम करि भगति करु), ५५६७८-२ (०) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ५७४८४-९(+) साधारणजिन पद, मु. खुशालराय पुहिं, गा. २, पद्य, मृपू., (मेरा जीवडा लम्बा), ५८५१०-१८७/१ साधारणजिन पद, मु. चंदखुसाल, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरी लाज रख लीजे), ५८५१०-३३(-) साधारणजिन पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (तेरी गति कोउ न पावै), ५८५१०-१९९(-) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणेसरदेव जिणेसरदेव), ५८५१०-२७(-) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू. (जिनराई भूल भई बहु), ५७५४९-४ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (त्यारेगोजी प्रभु तुम), ५७५४९-१९ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (पीया की तो यही बात ), ५८५१०-२०९) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरी महिमा), ५७५४९-८ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (भोरेई आए जिनदरसणकुं), ५८५१०-२६(१) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, रा. गा. ४, पद्य, खे, ( मेतो थारी लारा लागी), ५८५१०-१०३८) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, स्था., (मोहि भरोसो भयो), ५७५४९-१६ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सरन तेरी), ५७५४९-१४ साधारणजिन पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (रे बनमालिया फुल बेगो), ५८५१०-६४ (-) साधारणजिन पद, मु. जस, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (सलूणे लाल भेटे भगत), ५८५१०-१८० (-) साधारणजिन पद, मु. जोधा, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (प्रभु चरणन अनुरायौ), ५८५१०-१६)
सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ५७५९६(०), ५८५४०+७) ५६१५६, ५७८७२०१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (घडी घडी पल पल छिन), ५८५१०-१९४(-) साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कहीयै दीनदयाल तुम तो), ५७४८४-११(+) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (एही सभाव पड्या हो), ५८५१०-१४१(-) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कीयै आराधना तेरी), ५७४८४-४९(+) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (घडी दिन आज की एही), ५७४८४-४८(+) साधारणजिन पद, मु. भुदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम विन वैद्य ओर नहि), ५७४८४-५२(+) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मै तो तेरी आज महिमा), ५८५१०-१४६(-) साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम प्रभु सब जन शब्द), ५७५६६-३(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देव निरंजन भव भय), ५८०२७-५३(+), ५८५१०-३९(-) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहि.,गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे अब),५८५२९-१३७(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेडी वोर निहार हो), ५८५१०-१५२(-) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ५८०२७-५४(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (समझ समझ जिया ज्ञान), ५८५१०-१८९(-) साधारणजिन पद, मु.रूप, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (जिन तेरे दरस परवारीय), ५८५१०-९२) साधारणजिन पद, मु. लखराज, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (अहो मेरे जिनवर तिहां), ५७४८४-१७(+) साधारणजिन पद, मु. वखतराम ऋषि, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (थारे तो भलारी हो), ५८५१०-२२६(-) साधारणजिन पद, मु. वखता, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (वदन कमल परवारीया), ५८५१०-९१(-) साधारणजिन पद, मु. विनय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (साई सलूना के सई), ५७५६६-११(+) साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप वण्यो अति नीको), ५५६९०-९, ५८५१०-१९०(-) साधारणजिन पद, मु. सायब, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जिनछवि वारी वारी जाव), ५८५१०-९९) साधारणजिन पद, मु. साहब, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मन की व्यथा मेरी अब), ५८५१०-२१०८) साधारणजिन पद, मु. हीरा ऋषि, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (अब तो भूले नाह बन), ५८५१०-२२७(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अणी भवि कर मन हरष), ५८५१०-१३४(-) साधारणजिन पद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (अनी में निसदिन ध्याव), ५८५१०-१९८(-) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (अब म्हारी वीतडी सुणि), ५८५१०-१५०(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (अरज सुनो हो मोरी अंत), ५८५१०-७८(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (कवि नै बिसारूं जी), ५८५१०-६२(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (केई उदास रहै प्रभु), ५८८६९-३ साधारणजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (गीर के उपर बरसे मेहा), ५८५१०-२१५(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे दरसण के देखे), ५८५१०-१७४(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तोसुजोरी प्रीत जिन), ५७४८४-१५(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्योरी सुखकार), ५७४८४-३९(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (धन्य तुम पतित पावन), ५७५४९-२५ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रभुजी तुम हो अंतर), ५७४८४-१३(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम विना कौंन), ५७४८४-४३(+) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (प्रभुम्हानै त्यार), ५८५१०-८९(-) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (बसी दिलू बिच या), ५८५१०-६१(-) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मीलीया जी मोहै सुगर), ५८५१०-१४२(-) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (में जोति सरुपि ध्याइ), ५७४८४-३२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
साधारण जिन पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., ( मेडे मन भाव दे), ५८५१०-१३९(-) साधारणजिन पद, पुहिं. गा. २, पद्य, श्वे. (मेडे लाल भला करिये), ५८५१०९३/-) साधारण जिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (लग लग गइ लगन हमारी), ५७४८४-३० (+) साधारणजिन पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे सारी जननहारे सारी), ५८५१०-९५) साधारण जिन पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू. (सेवो रे मनलाय जिनेसर), ५८५१०-२४२) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (हो जिनदेव सही जिनदेव), ५८५१०-९०(-) साधारणजिन पद, रा. गा. ३, पद्य, श्वे. (हो जी बिडध वांको), ५८५१०-२४५११
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साधारणजिन प्रभाति, आ. हीरसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब ज्योत मेरे जिनकी), ५८५१०-२० () साधारणजिन रेखता, मु. ज्ञान, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (प्रभु तेरे दरस के), ५८५१०-१७२(-)
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साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( करु आराधना तेरी हिये), ५८५१०-१६५ (-) साधारणजिन विनती स्तवन, मु. विजयकीर्ति, पुहिं. गा. ६, पद्य, भूपू., (मै कुण अपराध कीना), ५५६९०-१० साधारणजिन स्तवन, मु. कृष्णविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शिवदायक सेवो सदा नित), ५८५२९-११७(+) साधारणजिन स्तवन, मु. जगराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर के नाम की), ५७५४९-२४ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं, गा. ६, पद्य, म्पू., (खतरा दूर करणा दूर). ५७४८४-२४(का साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मिल जाज्यो रे साहिब), ५८५१०-११८(-) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू (जिनराज जुहारण जास्या), ५८५२९-५१(०) ५८०७४-३ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निस्नेही शुं नेहलो), ५८५२९-४७(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं. गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू (भोर भयो भयो भयो जागी), ५७५६६-१५(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (सोभागिणि मुद्रा छै), ५८०७४-४ साधारणजिन स्तवन, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सहुकोई साहिब नाम), ५८६४४-४(४) साधारणजिन स्तवन, मु. मानविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्युं कर भक्ति करुं), ५७४८४-१८१०) साधारणजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर हे जिनवर तुम्ह), ५५६५२-७(+#) साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (प्रभु तोरी वाणी सुणी), ५८७०४-५ (७) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपु. ( मे परदेसी दूरका दरसन), ५८५१०-५६) साधारणजिन स्तवन, मु. सुखसागर, पुहिं, गा. ५, पद्य, मृपू., (रागद्वेष जाके नहि), ५८५१०-१३२) साधारणजिन स्तवन, मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं., गा. ४, पद्य, स्था., (जगदीशनाथ तुम ही एकहु), ५८९९६ ३६ (+) साधारण जिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जिण जपि जिण जपि जीवड), ५८२५९-१६ (+) साधारण जिन स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुरित दल दुकाला), ५६२१४-४(+#)
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साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे (सुमत सखि इम विनवे रे), ५८५९४-२४
साधारणजिन स्तवन - अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू., ( मेरा साहिब सुगुण), ५६२०१-९) साधारणजिन स्तवन- अरिहंत बारगुण गर्भित, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू.. (प्रथम चरण पंच इष्टने), ५६१४१-९ (+४) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु, गा. ४, पद्य, म्पू, (चंपक केतकी पाडल जाई), ५६१७६-२५ (०) ५६२५८-११(००)
साधारणजिन स्तुति, उपा. विनयविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (थिर नांहि रे थिर), ५७५६६-१० (+)
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साधु आचार कुंडलिया, सा. नेनसी आर्या, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (--), ५७५०७-४($)
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साधु आचार सज्झाय, पंडित. विनयविमल गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत शुधा पालै), ५८५२८-९(+#)
साधु के १४ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, म्पू, (पात्रो झोली तलै), ५७७६०-२८
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साधुगुण चाबखा, मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, श्वे. (वाह वाह रे आमोज), ५७८८५-६ (+$)
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साधुगुण पद, पुहिं. गा. २, पद्य, खे, (साधतणि ए सीनमुखधी), ५९०२३-२ (०)
"3
साधुगुण बावनी, ग. रूपवल्लभ, पुहिं., गा. ५८, वि. १८२५, पद्य, मूपू., ( ॐकार अगाध पार किणही), ५७८०८-१(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने करूं), ५८५२८-६(+#) साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते मुनिने करूं वंदन), ५६२७३-३३(+#) साधुगुण सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत पाले रहते), ५५९०३-५ साधुधर्म सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (साधु धन ते जीता), ५८५९४-२८ साधुरक्षित ५२ जीवभेद, मा.गु., गद्य, श्वे., (एकेंद्रीना ४), ५८५८३-४(+) साधुवंदना, ग. नयविजय, मा.गु., ढा. २३, गा. २५२, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (कुंदकली परि निर्मली), ५५९०२-१(+#$) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ५६२१०(+), ५८६९७(+#), ५७७०८,
५५६९१(२), ५८०२९(#), ५८०४९-२(#) साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ५७४५३(+), ५८६४५(#$) साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १८, गा. ५१९, ग्रं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ),
५७६५४(+$), ५७६४५(६) साधुवंदना, मा.गु., गद्य, श्वे., (आचारांगे माहावीर), ५५६२६(+) साधुवंदना, मा.गु., गा. २४९, पद्य, मूपू., (वंदिय गुरूआ सिद्ध), ५६२७४(+#$), ५८६६१, ५६२६०(#) साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ५५६४३-४(+#), ५७८६३-१२(+),
५८६२८(+), ५९०२७-१(2) | साधुषट्कायसंयम होरी, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (ऐसै मुनिराज छकाय के), ५८५९४-२३ सामायिक ३२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (पालखी न बेसे १ अथिरा),५६८३९-१(+) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भवियण उपगारह भणी), ५९०३६-३ सामायिक लेवा-पारवानीविधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (इच्छामि खमासमण देइ), ५७०३६-२(+) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ५७८३९-२३(+), ५८५४२-१ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (चतुर नर साय नायक), ५७५६६-२(+) सारणी*, मा.गु., को., (--), ५८२२७-२(+) सिंहलकुमार रास, मु. अमोलक ऋषि, मा.गु., ढा. १२, वि. १९५७, पद्य, मूपू., (जय जग गुरु तीर्थंकरु), ५७६१७ सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., कथा. ३२, गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, मूपू.,
(आराहि श्रीरिषभप्रभु), ५६२८४(+#s), ५६२९४(+#s), ५७२८०(+S), ५७७४८(+#$), ५८९८०(#S) सिद्ध के ३१ गुण, मा.गु., गद्य, श्वे., (लांबउ १ बादलउ २), ५८६२७-२५(+), ५७७६०-५ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिव सुखदायक सिद्धचक), ५६२०१-१३(#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ५८६५१-१(+$) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र तुमे), ५६१९७-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (बलिहारी नवपद ध्यान), ५८५१०-८३(-) सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजयति तीरथपति), ५८६०९-१(+#) सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, पू., (जी हो प्रणमुंदिन), ५७८३९-३६(+) सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ५६२५८-५(+#) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ५६१७६-१४(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ५७०४३-१६(+), ५७१९१-१०(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनेसर अलबेल), ५६२५८-४(+#) सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भाव भगतिसुं भविजन), ५६२०१-१४(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा), ५६२५८-२७(+#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ५८६५१-२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), ५६१७६-१३(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवण), ५६२५८-१९(१०) सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र आंबिल ओली), ५६१८३-१२(+#) सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नमो सिद्धाणं बीजे पद), ५६२७३-३०(+#) सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, वे., (सिद्धत्थ सवसंजलया), ५७४९९ (क)
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सिद्धांतसार सज्झाय, मु. जेष्टमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (चरण कमल जिनराजना), ५७५२५ (+$) सिद्धांतसार सज्झाय, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु. डा. ६, गा. ११५, वि. १८७८, पद्य, मूपू (चरणकमल जिनराजना नमीय), ५७६०८ सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मृपू (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ५७२२१ (+)
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सिद्धाचल बावीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. डा. २२, पद्य, मूपू (आज अधिक आनंदस्युं), ५७८७६(१) सीता रावण संवाद, मु. सूर्यमुनिजी, पुहिं, गा. ६, पद्य, स्था., (अरी सीता समझ ले जरा), ५८९९६-२८ (+)
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सीतासती रास, पुहिं., पद्य, मूपू., (--), ५७५०४ ($)
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ५७८३९-२० (+), ५७८६३-२०(+)
सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ५७६५०-४(+#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (पहिला प्रणमुं), ५८०५३-४१०)
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सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवरा), ५८६७८-२१ (+)
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, म्पू, (पूर्व दिशि इशान कुण), ५६०९८-२ सीमंधरजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( लागी मोरी प्रीत), ५७५४९-७
सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, क. कमलविजय, मा.गु, डा. ७. गा. १०५, वि. १६८२, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीपुष्कला), ५७५१६-२७) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मलिदास, मा.गु., गा. ८७, पद्य, भूपू (नमीय सीमंधर स्वामि), ५७७३७(+१) ५८२५९-१(+३),
५८०४९-१(#)
सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), ५६१५०(+#)
सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (सीमंधर विनती सुणि), ५६२०१-१९(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), ५६३०४-१(+#),
५८५९२-१३(१०) ५८९८७-७/+0)
सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू.,
(स्वामी सीमंधर विनती), ५६१७५, ५७७०१ (# ), ५७५३५ ($)
सीमंधरजिन स्तवन, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चितडुं संदेसो मोकलें), ५७४४१-२३(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ५५६५२-६(+#), ५८५२९-३०(+) सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडुं हेजलवु), ५५६५२-४(+९१) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुणि सीमंधर सुसनेहा), ५६२०१-२० (#) सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ५८९९६-४८(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (श्रीसीमंधर साहिबा ), ५८६७८-१५ (क) सीमंधरजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरसाहिबो भव), ५८६७८-१६(+) सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु.. गा. ९, पद्य, मूपू (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ५८६७८-७(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८४२, पद्य, स्था., (सामिजी सायब सुणो), ५८५९४-६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (मुनि मन मानस हंसलो), ५८५२९-१०६ (+)
1
१
सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पूरव पुष्कलावती हो), ५७५३४-६ (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
सीमंधरजिन स्तवन- आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), ५८०५०-६(+०)
सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सीमंधर नित वंदीय), ५५६५२-५ (+#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. ( श्रीसीमंधर मुजनेवाला), ५६१८३-११(+०) सुंदरीसतीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (सरस्वती स्वामिनी), ५७४६५-२(+)
,
सुकुमालिकाचौपाई, मु. जीवराज, मा.गु., गा. २३४, वि. १६६३, पद्य, मूपू., (सरसति वर देयो सुमति), ५७६९१(+) सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नयरी अयोध्या जयवती), ५८६९९-२(#) सुजातजिन गीत, आ, जिनराजसूरि, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (तुं गति तुं मति तूं), ५७४८४-६७/*) सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्मराव ऋषि, मा.गु., डा. ३७, पद्य, खे., (--), ५८५४६ (३)
सुपात्रदान महिमा सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (तिर्थंकर चोवीसे), ५८५९४-९
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू., (वाल्हा मेह बवीयडा), १८०२७-१०(+), ५८५२९-११०(+)
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सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. मोहनसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सुपासजी मोरे मन वस्य), ५८३७२-३ (+)
"
"
सुभद्रासती चौपाई, ग, रूपवल्लभ, मा.गु., डा. २५, गा. ५४०, वि. १८२५, पद्य, म्पू. (आदिकरण आदिसक सांति), ५८५३८ सुभद्रासती चौपाई, मा.गु, पद्य, मृपू (जंबुद्वीपमां जाणीय), ५७८८३ (+$)
सुभद्रासती सज्झाय, क. संग, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीरजिनेसर पाय नमी), ५७८३९-६(+)
सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर पाय), ५८२५९-२७(+)
"
सुभद्रासती सज्झाय सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., गा. २१, पद्य, वे. (मुनीवर सोधे इरया जीव), ५७८६३-१९(+) सुमतिजिन पद, मु. गुणविलास, पुहिं, गा. ५, पद्य, मृपू., (तेरी गति तुं ही जाणे), ५८५१०-३४(-) सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरखत बदन सुख पायो), ५८५१०-६() सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (प्रभुजी जो तुम तारक), ५७४८४-१२ (०)
"
सुमतिजिन पद, पुहिं. गा. १९, पद्य, दि. (प्रथम ही सुमती जीणेस), ५८६४४-३८(०३)
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सुमतिजिन भास, ग. मोहनसुंदर, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू., (अहो सुमति जिनेसर), ५८३७२-४(+)
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सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, गा. ६, पद्य, मृपू, (वॅस ईक्ष्यागइ राजीओ), ५८६६६-२(+४)
सुमतिजिन स्तवन, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु, गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू (सुमतिनाथ गुणस्युं), ५७४४१-१० (+)
सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., ( सुमतिजिणंद सुमति),
-
५६३१८-२(+), ५८६६६-३(+#)
सुमतिजिन स्तवन- उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (प्रभुस्युं तो बांधी), ५८०२७-दाम
सुमतिजिन स्तुति, मु, ऋषभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (मोटो ते मेघरथ राव रे) ५६२५८-२६ (४)
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सुमतिरूप वर्णन, मु. सुमति मुनि, पुहिं., गद्य, मूपू. (अहो भव्य प्राणी इस), ५७८७१(+)
सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., गा. ४३१, वि. १५६७, पद्य, मूपू., (पस्ममि सुमण वयण तण ), ५७४२९-१(+#) सुरप्रभजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (काजइ छड़ जेहना सहुजी), ५७४८४-६९(+)
सुरप्रियमुनि चौपाई, मा.गु., ढा. ७, पद्य, श्वे., (आदनाथ सिमरू सदा आप), ५६६४०-१३(#)
सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७०, पद्य, श्वे., (सरसति देवसदा मनि धरू), ५८६९९-१(#)
सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु खं. ४ डाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू (सासण जेहनउ सलहिवइ), ५७६७२ (+०),
५६२४६, ५८५४५, ५८५५५
,
सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, डा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू (आदि धरमने करवा ए भीम), ५७४२७(१) सुलसामहासती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (शील सुरंगी रे सुलसा), ५६२७३-८ (+४ सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ५८५२८-२५(+#) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मृपू. (मुजरा साहिब मेरा रे), ५८९८७-५ (००) ५८५१०-३५ ()
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१४
सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुण अनंत अपार प्रभु), ५८०२७-३९(+), ५८५१०-२०४ (-) सुविधिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( न करे हिंसा केहनी रे), ५८५२९-८(+)
सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज सुणो एक सुविधि), ५८०२७-१२ (+), ५८५२९-६९(+) सोना लोढा संवाद, मु. क्षिमा, पुहिं, गा. ५८, पद्य, मूपू., ( आनन अनोपम जास मनोहर), ५८५९६ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ७५, ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी),
५७७१९-१
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ५७६५६ (+#), ५७७१६ (+), ५७८१५ (+), ५७८३७(०), ५५७०५, ५६२१६ (३)
(२) स्तवनचौवीसी - बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू. (चिदानंदमय जिनवरु सदा), ५७६५६ (+), ५७८३७(+) (२) स्तवनचौवीसी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५६२१६ ($)
(२) स्तवनचौवीसी-टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, ग्रं. ८२८, गद्य, म्पू, (आनंदघनस्यास्या गीत), ५५७०५
(२) स्तवनचौवीसी-टवार्थ, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गद्य, मूपू. (चिदानंदमई जिनवरू), ५७८१५(०)
स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), ५८६१६-१ (+#), ५८६४४-१(#$) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ५७८५६ (+$) (२) स्तवनचौवीसी-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (श्री नाभिकुलधरनी भार), ५७८५६ (+$) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ५५६७६ (४०),
"
५७८७८
स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, खे, (श्रीआदिश्वर सामी हो), ५५६७९ स्तवनचौवीसी, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवी समरी करी), ५७५०० (+$)
स्तवनचौवीसी, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनतत्त्व प्रका), ५८५७८
स्त्री दुःखपैतीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ३५, वि. १८४०, पद्य, श्वे. (असत्रीने दुख कया), ५८५९४-११ स्त्रीपुरुष तिलमासा लक्षण फल वर्णन, मा.गु., गा. ४४, पद्य, वे., (जे नारिकै माधे रातो), ५८७६१-२
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स्थूलभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९, गा. ४९, पद्य, मूपू., (करी शृंगार कोशा कहि), ५८५२८-२०(+#) स्थूलभद्र पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ४, पद्य, मृपू., ( थुलिभद्र न्यारी भांत), ५५६७८-२३(५)
स्थूलभद्रबतीसी, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूहंदी आग्या प), ५८२५९-४० (+)
स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ७४ वि. १७५९, पद्य, मूपू. (सुखसंपति
दायक सदा), ५५६३२(*), ५८५५७-१(१) ५८६५०कि
५९५
स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहंकर पासजिन), ५८६६९(+#), ५८५५९ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ५७८३९-३२(+), ५८५२८-२३(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (थूलभद्र मुनीसर आवो), ५८५९२-१५ (+#)
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (प्रीतडली न किजीये), ५७८३९-११(+), ५८२५९-४४(१) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंदलीया तुं वेहलो), ५८५२९-१९(+) स्थूलभद्र सज्झाय, पा. रुपपत, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखीरी पाडलीपुर नगर), ५७८०८-२(क
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ५७४३४(+#),
५६१८१-१, ५७८७७-१
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ डाल ४८ गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू. (आविसर आये करी चोवीसे), ५७४३५ (+), ५७७८८(+), ५८५१९(+), ५८५५०(१), ५६१६४(५४), ५७८७०(१६), ५८५२०(0) ५८५२६(१), ५८७०६(#$), ५५८१६($), ५६२३५ ($), ५८५८९ ($)
हरिकेशीमुनि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( मथुलानगरी तेहनो), ५७६६७-१२(#)
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५९६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधर जगधणी),
५७७५५(+#) हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८४९, पद्य, मूपू., (सुखदाई समरूं सदा), ५७६६५(+$) हरिबल रास, मु. रामचंद, मा.गु., ढा. १६, वि. १९१०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनशांतिजिनेश्वर), ५८६६० हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमु), ५७८३९
+), ५८५८५, ५६१८६ हाड़ा राजा संवाद, पुहि., गा. ३, पद्य, (सुनो दीली तखत घरनार), ५८९९६-५८(+) हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., वि. १६८२, पद्य, मूपू., (कासमीर मुखमंडणी भगवत), ५७५८०(+#$)
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