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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९८५, आदि: जदुपति महाराज तोरण; अंति: चौथमल० आनंद
वर्तावना, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुशांतिजिणंदजी औ; अंति: चौथमल मेरी चावना, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: संयमधारी महाराज संयम; अंति: चौथमल० है मेरी भावना, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: दुनिया में कैसे वीर; अंति: चौथमल० मान किसी दिन, गाथा-९. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहि., पद्य, आदि: यों काई पंथ चलायो; अंति: माय बहु ढोल बजायो जी, गाथा-७. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: कोडा घाल रह्या भारत; अंति: सतगुरु लेवो बचाय, गाथा-३. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
__ पुहिं., पद्य, आदि: सुनेरी मैंने निर्बल; अंति: बल हारे कोन हरनाम, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: काया की रेल रहल से; अंति: कर लो यतन अपारो, गाथा-६. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-परनारी विषे, पुहि., पद्य, आदि: परनारी का रूप मत देख; अंति: पांव में घुस जायगा, गाथा-५. ११. पे. नाम. राजीमतीसती पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
राजिमतीसती पद, मु. राममुनि, पुहिं., पद्य, आदि: कालो वींद तो किसा; अंति: राम मुक्ति के माई, गाथा-६. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-काया विषे, मु. चौथमलजी, पुहि., पद्य, आदि: चेतन यह नर तन हर वार; अंति: चौथमल० तो सुध
भावना, गाथा-६. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: हे प्रभु पार्श्वजिण; अंति: चौथमल० आनंद वरतावना, गाथा-७. १४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९८०, आदि: सदा शुभकारी रे; अंति: चौथमल० आशा मारी रे,
गाथा-७. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहि., पद्य, वि. १९८१, आदि: प्रभु प्रगटे अवतारी; अंति: चौथमल० मंजारी रे, गाथा-७. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद-माया विषे, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. संतोष, पुहिं., पद्य, आदि: माया को तू अपनी कहै; अंति: संतोष० मालूम नहीं, गाथा-५. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद-व्यसन विषे, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: मत कर नशा कहना मान; अंति: ज्ञान सुनानेवाले, गाथा-६. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनिंदा विषे, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: करके बुराई और का; अंति: पाप का भागी बनें, गाथा-५. १९. पे. नाम. जवाहिरमुनि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
जवाहरमुनि स्तुति, मु. हंसमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: आनंद ही आनंद वरतर है; अंति: हंस० चित को देना, गाथा-४. २०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
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