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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
२३१ ५७२८७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९२०, पौष शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८५,
ले.स्थल. सलुबरनगर, प्रले.मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ.शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); राज्यकालरा. जोधसींग; पठ. मु. गोरधन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (११८७) ग्यानी पंडत चतुर नर, दे., (२५.५४११.५, ६-१३४३५-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रते माहरो; अंति: एतले गुरुभक्ति जाणवु.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *मा.गु., गद्य, आदि: जीयादिदं पर्युषणस्य; अंति: कथा तो सविस्तरम्. ५७२८८. (+) जंबूद्दीवपण्णत्तीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४३९).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१५४. ५७२८९. (+#) क्षेत्रसमास सह मलयगिरीय टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ८०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५४). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: वी
उत्तमसुयसंपयं देउ, अधिकार-५, गाथा-६५५. बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: जयति जिनवचनमवितथममित; अंति:
___ तान्मंगलमसिश्रियमिति, अध्याय-५. ५७२९०. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६५०, भाद्रपद शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५३, ले.स्थल. पडधरी ग्राम, प्रले.
शिवदास (पिता पंडित. हर्षा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४९४४, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (२६०) यादृशं लिखितं दष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: स करोतु शातिः,
प्रस्ताव-६, श्लोक-१६३३. ५७२९१. (#) आवश्यकसूत्रनियुक्ति, भाष्य सह नियुक्तिभाष्य की लघुटीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम,
पृ. २०९-६०(२,८,१२,२५ से २७,२९,५८,७७,१०६ से १०८,११६ से ११८,१६३ से १७५,१७७ से २०८)=१४९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. भाष्यगा.पत्र-२२ से है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४८-५८).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक नियुक्ति
गाथा-६-भासासमसेढीउ सदं० से गाथा-१४०८-सुयनाणंमिय० कुणसु तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२७
वीसरसद्दरुयंते० ए गिन्हो तक है.) । आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: देवः श्रीनाभिसून; अंति: (-). ५७२९२. (+#) कल्पसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४४-४(१ से ४)=१४०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रतिलेखक द्वारा
पत्रांक १ से ४ अंकित नहीं है तथा ५ से पाठ है, व अंतिम प्र.ले.पुष्पिका वाला पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११७) यावज्जिनवर समये, (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा, जैदे., (२५.५४११, ५४२६-३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं नत्व; अंति: मइ एतलइ गुप्त जणाविउ, संपूर्ण. ५७२९३. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३४, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६-१२४३६).
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