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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते का० कालने; अंति: सुख पाम्या थका. ५६०४१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है., जैदे., (२६४११.५, ५४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंजोग मातापिता; अंति:
शाश्वता सुख मोक्षना. ५६०४२. सूत्रकृतांगसूत्र सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १६८, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिजति तिउट्टिज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३,
ग्रं. २१००. सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: सूत्रकृतांगदीपिका,
ग्र. ७०००. ५६०४३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण० पढम; अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर की
निर्वाण प्राप्ति के प्रसंग तक का पाठ है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-). ५६०४४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६-१५(१,७ से ८,२३,५३ से
६३)+१(८५)=११२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं.,
मंगलाचरण अपूर्ण से वर्षावास में स्थित साधु-साध्वियों के द्वारा पालन किए जानेवाले नियमों के वर्णन अपूर्ण तक है
व बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५६०४५. (+#) जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति सह हीरविजयसूरीय टीका का संक्षेप, संपूर्ण, वि. १७७०, पौष कृष्ण, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२१,
प्रले. मु. सुंदरविजयगणि शिष्य; उप. ग. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंडित सुंदरविजयगणि गुरो उपदेसात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११-१५४३७-४३).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६.
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका का पर्याय, संक्षेप, सं., गद्य, आदि: रि० ऋद्धाः भवनैः; अंति:ल्लेशपर्यायो लिखितः. ५६०४६. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रथम पर्व, संपूर्ण, वि. १६००, फाल्गुन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११७,
ले.स्थल. मेरुपृष्टिनगर, प्रले.पं. देवरत्नमुनि (गुरु पं. कनकरत्न गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. कनकरत्न गणि (गुरु उपा. समयध्वज, खरतरगच्छ); उपा. समयध्वज (गुरु उपा. सागरतिलक, खरतरगच्छ); उपा. सागरतिलक (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनराजसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३३९) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२५.५४११, १६४४५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान;
अंति: (-), ग्रं. ३५०००, प्रतिपूर्ण.
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