Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 499
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८४ www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्र , अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश- ६ नं. ६७६१. " ५९२२२. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११, ४x२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. "देसिगण क्षमासमणं" पाठ तक है.) कल्पसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: अरहंतनि नमस्कार, अंति: (-). " ५९२२३. (+) कर्पूरप्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १४२, प्रले. नाथा जोसी, अन्य. मु. धनविजय (गुरु ग. शांतिविजय); गुप. ग. शांतिविजय (गुरु पं. धर्मविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४०-४६). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि कर्पूरप्रकरः शमामृत: अंति: नेमिचरित्रकर्त्रा श्लोक-१७९. कर्पूरप्रकर- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वश्रिये सोस्तु अंति: ताविक गुण छे जेह तणा. ५९२२४. (+#) नवतत्त्वादि प्रकरणसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२४-१९२५, श्रेष्ठ, पृ. १३२-८ (१ से ८ ) +२ (७९ से ८०)=१२६, कुल पे. ९, प्रले. मु. श्रीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७११.५, ४X३२). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पात्र हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-) अंतिः शांतिसू० सुय समुद्दाओ, गाथा ५१ (पू. वि., गाथा- ४९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ९आ-१७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुन्न३; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा- ४८. ३. पे. नाम. जंबुद्वीपसंग्रहणी, पृ. १७आ- २२आ, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन शुक्ल, ९. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्म, आदि: अंतिः रईवा हरिभदसूरिहिं गाथा- ३०, ४. पे. नाम. चोवीसदंडक स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. २३-२९आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा - ३८, संपूर्ण. दंडक प्रकरण - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः नमिठं क० नमस्कार करी, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १२ से २० तक व गाथा - २८ से ३८ तक का टबार्थ नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ३० अ- ८० आ, संपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र शुक्ल, १४. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३३, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करके श्री; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५६ तक टबार्थ लिखा है.) ६. पे. नाम. सम्यक्त्वतत्त्वसार विचार, पृ. ८१अ - ८३अ, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन शुक्ल, ९. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं, अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. ७. पे. नाम. इकवीस ठाणा, पृ. ८३आ ९६आ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया, अंतिः असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ८. पे. नाम. वेदपुराणोक्त ऋषभादिजिनोल्लेख संदर्भश्लोक, पृ. ९६ आ-१०४आ, संपूर्ण. ऋषभादिजिन संदर्भश्लोक - वेदपुराणगत, सं., प+ग, आदि: नाभिस्तु जिन, अंति: पंडइ भवोहे अगाहं. ९. पे नाम संबोधसप्ततिका सह टीका, पृ. १०५अ १३२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only

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