Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४६३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१५ अपूर्ण से
ढाल-१५०, गाथा-१२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५८९७२. (+#) श्राद्धविधि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८७, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४२८).
श्राद्धविधि रास, उपा. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: सकल जिणेसर प्रणमीई; अंति: सिद्धि सकल सवाई
५८९७३. (+#) रत्नपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३७). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: (-),
(पू.वि. खंड-४, ढाल-१४, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५८९७४. (#) पद्मिनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४२४-२८). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: लब्धिउदय० सफल
सुरकंद, खंड-३ ढाल ३९, गाथा-८१६. ५८९७५. (#) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-३(१२ से १३,३०)=४०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३७, गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ५८९७६. (#) धन्नाजी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३३, माघ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. सायसीण, प्रले.पं. गंगहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भैरुजी सहाय छै., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३-१७X४१). धन्नाजी चौपाई, मु. जीवहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९६, आदि: आदिजिणंद आदिदे प्रणम; अंति: सफल फलै तेहनीतौ
आस, ढाल-५३, गाथा-९०८. ५८९७८. (#) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५-१(२१)=३४, ले.स्थल. घनोघ
बंदर, प्रले. मु. प्रमोदविजय (गुरु ग. खिमाविजय); गुपि.ग. खिमाविजय (गुरु गच्छाधिपति लब्धिविजय); गच्छाधिपति लब्धिविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीनवखंडा पार्श्वनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १७४३७-४२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: घर घर मे मंगलमाला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-२६, गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-२७,
गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८९७९. (+#) अरदास चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १८४३१). अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी; मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: अरीगंजण अरीहतजी; अंति: शुभ
महुरत गुरुवारोजी, ढाल-६४. ५८९८०. (#) सिंहासनबत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३४). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराही श्रीहरषप्रभु; अंति:
(-), (पू.वि. गाथा-४७५ अपूर्ण तक है.) ५८९८१. प्रत्येकबुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३१, भाद्रपद कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. अंजार, प्रले. मु. उदयहर्ष
(गुरु ग. हीरराज, खरतरगच्छ); गुपि.ग. हीरराज (गुरु मु. ललितकीर्ति, खरतरगच्छ); मु. ललितकीर्ति (गुरु ग. लब्धिकल्लोल, खरतरगछ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. १२००, जैदे., (२४४११, १८४४१-४५).
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