Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 412
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुन भयो रे उदासी; अंति: जाय करवत लेउ कासी रे,गाथा-३. १५८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मेरो चित चरणनमांहि; अंति: स्यौ पाप जाब होरी, गाथा-३. १५९. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. ५२आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जिनचरणन चित लीनौ अली; अंति: हरषचंद०सफल कर लीन्हौ, गाथा-४. १६०.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. ५२आ-५३अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: जिनकी भक्ति मुक्ति; अंति: हर्षचंद० भव होत सवाई, गाथा-५. १६१.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक रेखता, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: कुलकर्म को सुधर्म, अंति: चरण कै सरण ग्रह्यौ, गाथा-७. १६२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, राजाराम, पुहि., पद्य, आदि: चेतन तूं क्या फिरै; अंति: प्रभु यह अरज है मोरी, पद-४. १६३.पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक इक रेणका सुपना; अंति: जादुराय मोहि तारा, गाथा-५. १६४. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. ५४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम ऐसी; अंति: चंदविजै० चरण पैखरी, गाथा-४. १६५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५४आ-५५अ, संपूर्ण. साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: किये आराधना तेरी; अंति: नवल चेला तुम्हारा है, गाथा-५. १६६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: घडी धनि आजि की एही; अंति: का नवल आनंद हु पायो, गाथा-४. १६७.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५५आ, संपूर्ण. आदिजिन रेखता, पुहिं., पद्य, आदि: मुझ है चाव दरस का; अंति: कुमत के० क्या होयगा, गाथा-५. १६८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जगतपति नेमजिनराया दर; अंति: लालचंद० भवतणा फेरा, गाथा-३. १६९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नर भूलहु न कर रे; अंति: जिनराज०हृदय मे धररे, गाथा-४. १७०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. रामकृष्ण, पुहिं., पद्य, आदि: महबूब तेरा तुझ मै; अंति: भली बात है ये ही, गाथा-४. १७१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सर्व साहवी जगत की; अंति: सो जिव भोमपंचमी पई, गाथा-८. १७२.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण. साधारणजिन रेखता, म. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरे दरस के अंति: विचारोज्ञान तेरा है, गाथा-३. १७३. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: तुक दिल की चसम खोल; अंति: जिनबगस० सिंधु भव थगा, गाथा-७. १७४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५८अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तेरा दरसण के देखे सै; अंति: झलाझलझल झलकता है, गाथा-२. १७५. पे. नाम. राजीमतीसती पद, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल तेरे बलंबनैद; अंति: सिवपुर सेहर कीया है, गाथा-२. १७६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. ५८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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