Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 458
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ www.kobatirth.org २२. पे नाम, पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आद देव अरहंत नमुं स; अंति: रिषभ कहे० मननी आस, गाथा-५. ५८६७९_ (+) मेघकुमार चौडालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. वे. (२४४११, १२४३८-४०). ५८६८०. निश्चयव्यवहारगर्भितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२५४११.५, ११४२७). मेघकुमार चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभादिक चोवीसने, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ८ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६८१. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-९ (१ से ७, १२ से १३)=५. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे., (२४.५X११.५, १७X३८-४२). (+) शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि शांतिजिणेसर केसर, अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल -६, गाथा- ४८. कथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चिलातीपुत्र कथा अपूर्ण से रूपसेन वामदेव कथा अपूर्ण तक व सकडाल कथा अपूर्ण तक है.) ५८६८२. (+४) पार्श्वजिनछंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०६, मध्यम, पृ. ७-२ (१,३)=५, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, १२४३६) १. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८०६ आश्विन कृष्ण, ५, मंगलवार मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाणि जिसी गुरु भणी, गाथा - २१, (पू. वि. मात्र अंतिम दो पद हैं .) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद अंतरीक्ष, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भ जय जयकरण, गाथा ४७, (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे नाम, औषध संग्रह, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण, औषध संग्रह ७. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). **, ५८६८३. मदनकुमार कथा, पूर्ण, वि. १६७०, फाल्गुन शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६- १ ( ४ ) = ५, ले. स्थल. दंतराई, प्रले. मु. तेजसुंदर (गुरु उपा. बजिसुंदर, संडेरगच्छ); गुपि उपा. वजिसुंदर (संडेरगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में सामान्य औषधसंग्रह लिखा है, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. प्र. ले. श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे. (२४.५४११, "" ११-१४X३५). ४४३ मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वानंदी पायनमी अंति: सुं पुण्यकर हु मनलाई, गाथा- १०३, (पू. वि. गाथा ६४ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८६८४. (+) इक्षुकारराजऋषि रास, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जै.. (२४४११, १७६०). इक्षुकारराजऋषि रास, मु. जबसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: ब्रह्मवादिनीमाता अंतिः जयसागरनी एवाणी, ढाल - ११, गाथा - १७०. ५८६८५. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२५x११, १५X३३-४१). श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ अंतिः करि मिच्छामिदूक्कडं. ५८६८६. (+४) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२३.५x११, ११४३४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: श्रीवीरजिणेसर चरणकमल, अंतिम विस्तरे ए. गाथा ४६. For Private and Personal Use Only

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