Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४
मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: मानै प्यारा लागो छोड; अंति: अमर० तारण तरण जहाज, गाथा- ७. २३४. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ७५-७६अ, संपूर्ण.
गाथा - ३.
२३६. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७६ अ-७६आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मै तेरी बलहारी हो; अंति: लीज्यौ खबर हमारी, गाथा - ३.
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२३७. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ७६आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मनावण में गई अपन; अंति: लालचंद० नेम गय चितचोर, गाथा - ५. २३५. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. ७६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गीत, उपा. समबसुंदर गणि, पुहिं, पद्य, आदि वखत लिख्यौ सुख पईये, अंतिः समयसु० एकधरमसुं रहिये,
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदिः पीउडा जिनचरणांरी अंति मोहन अनुभव मांगे, गाथा ३. २३८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७६-७७अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अरज सुणो वामाजी के अंतिः जी चाहत मुनि हरखचंद, गाथा-३.
२३९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७७अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यानामृत प्यालो भवि, अंतिः नवल० चिरंजीवी जी, गाथा-३.
२४०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७७अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: काई सोवे जीव अम्बानी, अंतिः मरण दुख हर ले सही रे, गाथा-३.
२४१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७७आ, संपूर्ण
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि; कंत चतुर दिन जाणी हो; अंतिः भविकजन प्राणी हो, गाथा ५. २४२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७७आ- ७८ अ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदि: सेवो रे मनलाय जिनेसर, अंतिः लीज्यो मोह निभाय, गावा- ३.
२४३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ७८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि नेमकुमार प्यारा मानै; अंतिः उतरो भवपार, गाथा-४.
२४४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७८ अ-७८आ, संपूर्ण
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मु. कृष्णगुलाब, पुहिं., पद्य, आदि: अरे जीव तेरो धर्म सह; अंति: कृष्ण० चरणा चितलाई, गाथा-३. २४५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७८आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि हो जी बिडध वांको, अंति: कारज सारो लाजीमा को, गाथा- ३.
४०१
२४६. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ७८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
पुहिं., पद्य, आदि: अरी हे चलो री सांवरी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है. )
"
५८५११. (+) विक्रम चौपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११,
१४X३२-३८).
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-६ की ढाल ६ तक लिखा है.)
५८५१२. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८३३, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७७, ले. स्थल. गिरपुर नगर, प्रले. पं. रूपसागर, लिख. श्रावि. साकरबाई हीराजी शाह, अन्य. श्राव. चुत्राजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ले. स्थान- श्रीगंभीरपार्श्वप्रसादे. सिद्धचक्र उजमणा मध्ये., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x११.५, १२x२९-३२).
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श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कविय तणी, अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड- ४दाल ४१, गाथा- १८२५.
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५८५१३. () वीरभाणउदयभाण चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३१-३५).

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