Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 452
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ ४३७ ५८६४८.(+) सिद्धाचल तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. विजापुरनगर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४२९). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: अमृत० गिरिराया रे, ढाल-१०. ५८६४९. जीवना ५६३ भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कालावड, प्रले. गोपालजी वीरजी खत्री; सम.मु. सामलजी; अन्य. सा. वखतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा वि.सं. १९४९ में प्रत समर्पण करने का उल्लेख मिलता है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४१२, १५४२४-३९). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना ५६३ भेद १४ भेद; अति: कया ते लाभे. ५८६५०. (4) थूलभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. मेदपाटनगर, प्रले. पंडित. रत्नसोम (गुरु पं. त्रैलोक्यवल्लभ); गुपि.पं. त्रैलोक्यवल्लभ (गुरु पंन्या. धनसुंदर); पंन्या. धनसुंदर (गुरु उपा. अमरनंदन); उपा. अमरनंदन; पठ. मु. खेमकर्ण; अन्य. आ. जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३८-४१). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदय० वेगा फल्या रे, ढाल-९, गाथा-१३७, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५८६५१. (+) चैत्यवंदन व स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१२(१ से १२)=७, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ८x२५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वर अति; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल फली मुज आस तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजि स्तवन, पृ. १५अ-१९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ५. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ६.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५८६५२. (+) चौवीसजिन देववंदन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. उपा. राजरत्न गणि; पठ. श्राव. मोहणदे; श्रावि. नानी; श्रावि. अमर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११,११४३३-४५). २४ जिन स्तुति, उपा. राजरत्न; मु. लावण्यसमय; आ. नंदसूरि, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: पढम मुनिवर पढम मुनिव; अंति: राजरत्न० अधिक आणंद, स्तुति-२४, गाथा-९६. ५८६५३. शत्रुजय उद्धार व पद, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. शौलापुर, प्रले. पं. चंद्रसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. शत्रुजयउद्धार रास, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर जय करु, ढाल-१२, गाथा-१२०. For Private and Personal Use Only

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