Book Title: Kadve Such
Author(s): Suvandyasagar
Publisher: Atmanandi Granthalaya

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Page 4
________________ १२३-१४८ 24 १३१ उपसंहार तर्क नहीं कुतर्क जिनवाणी की भक्ति त्याग नहीं भोग बगुला भगत अधर्मात्मा हितशत्रु और हितैषी संगति पांडित्य का दूषण * क्या जमाना खराब है ? * लोक रुचि नहीं देखकर उपदेश * समाज का दुर्भाग्य मिथ्यादृष्टि प्रभावना प्रभावना का उपाय गिरगिट इतना ही कहना है कि * आवाहन उपदेश का अभिप्राय * उनके प्रमाण क्यों ? १३२ १३३ लोक कल्याण १३३ १३४ नमोस्तु शासन की प्रभावना आचार्य श्री सुविधिसागरजी महाराज से दीक्षित मुनि सुवन्द्यसागर महाराज ने शास्त्रों के कड़वे सच अनुभूत कर अक्षुण्ण ज्ञानोपयोग की धारा में अवगाहन करते हुए श्री नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, बोरगांव (मंजू) जिला अकोला (महाराष्ट्र) में हृदयग्राही 'कड़वे सच' के द्वारा चरणानुयोग के मूल प्रतिपाद्य का संकलन किया है। पूज्य मुनिश्री ने कड़वे सच के माध्यम से निजात्मतत्त्व प्राप्त करने के पुरुषार्थ का मार्ग अर्थात् मुनिमार्ग को वर्तमान विपरीत परिस्थिति के मध्य पतनोन्मुख होते हुए देखकर उसे पुनः शास्त्रोक्त विधि के अनुसार पालन करने का अथक प्रयत्न किया है। तथा निरन्तर उसी चिरन्तन मार्ग पर चलने में अब भी प्रयत्नरत है। परन्तु लोगों में तथा कतिपय साधुओं में मुनिचर्या के प्रति गहरा अज्ञान और अनास्था होने से जिनधर्म को धूमिल होते हुए देखकर उनके मन की करुणा कइये सच के माध्यम से प्रस्फुटित हुई है। इस कृति का लाभ लेकर गृहस्थ और साधु पतन से विमुख होकर सन्मार्ग का प्रकाश प्राप्त करें जिससे सभी का कल्याण हो। संदर्भ ग्रन्थों की सूचि को एक नजर देखने मात्र से ही ध्यान में आता है कि इस कृति में मुनिश्री ने प्राचीन-अर्वाचीन आचार्यों द्वारा प्रणीत मूलाचार, प्रवचनसार, धवला, भगवती आराधना, तत्त्वार्थसूत्र आदि दो सौ से अधिक शास्त्रों का सार गर्भित किया है। यह संपूर्ण कृति भगवान महावीर की दिव्यध्वनी से उत्पन्न आगम प्रमाणों से भरी हुई है। गागर में सागर इस उक्ति को यथार्थ करनेवाली इस कृति को पढ़ने से सदगुरु और कुगुरु इनका भेद स्पष्ट होकर वर्तमान में उत्पन्न अनेक शंकाओं का निराकरण हो जायेगा। गुरुदेव की यह कृति निश्चित रूप से जिनवाणी-श्रद्धानियों की प्रशंसा प्राप्त करेगी। हमारी भावना है कि इस कड़वे सच का पठन घर-घर में होकर उसके अंदर छुपी हुई मधुरता को प्रत्येक जीव प्राप्त करें। शुभं भवतु ! ब्र. कमलश्री जैन, दीपिका जैन - कड़वे सच ... . . . . . . . . . .......... - i १४० १४२ १४४ * अन्तिम मङ्गल * संदर्भ ग्रन्थ *२४ तीर्थंकर स्तवन * सिद्धिप्रद स्तोत्र * विशेष ज्ञातव्य १४९ १५०-१६१ १६२-१६३ १६४-१६७ १६८ ... कड़वे सच.....

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