Book Title: Jo Kare So Bhare Author(s): Moolchand Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 6
________________ वास्तव में यह लड़का है ही अकृतपुण्य - दिये स्वर्ण आभूषण और बन गये आग के अंगारे। बिना उसके पुण्य के कोई किसी की सहायता भी तो नहीं कर सकता। कहाँ चला गया रे तू मैं तुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थक गई। और यह । तेरी झोली में क्या है ? 0000 अकृतपुष्य को औरो के मुकाबले तिगुने धने दिये परन्तु जब घर पर पहुँचा... अच्छा बेटे ! यह लो चने । और अपने घर जाओ। माँ मैं एक गृहस्थ के यहाँ खेत साफ करने गया था। उसका नाम था कृतपुण्य! उसने मजूरी में मुझे स्वर्ण आभूषण दिये परन्तु हाथ रखते ही वह अंगारे बन गये। फिल्ट उसने मेरी झोली में औरों के मुकाबले तिगुने चने दिये लेकिन बचे हैं केवल ये ही बहुत थोड़े से । डPage Navigation
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