Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 21
________________ धनकुमार के जाने के बाद.... हे भाई ठहरो । जरा मेरी सुनो तो सही १० यह क्या ? हल चलता क्यों नहीं? मिट्टी हटा कर देखूँ तो सही। यह कलश कैसा ? इसमें यह धन कैसा? यह धन मेरा नही हो सकता। पुस्तों से हल चला रहे हैं कभी नहीं निकला धन। यह उसी परदेशी का प्रभाव है। जिससे धरती ने धन उगला है। यह धन उसी परदेशी, Poo का मेरा नही 806 भाई अपना यह धन लेते जाओ। यह तुम्हारे, भाग्य का ही चमत्कार है, अतः तुम्हारा ही है। तुम्हीं इसके हकदार हो, और कोई नहीं। नहीं। यह धन आपके खेत से निकला है, मेरा कैसे हो सकता है? यह आपका ही है, अतः इसे आप ही सम्भालिये। 19 छोटकर NO

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