Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 25
________________ आज तुमने मेरी आंखें खोल दी। छोड़ो मुझे अब मैं निश्चिय ही तुम्हारे बिना स्नान करूँगा। तुमने मुझे ऐसा अच्छा वचन कहा जो मुझ परलोक में भी हितकारी होगा। और मैंने तुमसे अब तक कुछ कहा उसके लिये क्षमा करना। अब मैं जाता हूँ। जंगल में प्रभो! हमें संसार, शरीर, 'भोगों से विरक्ति हुई है। (हमें मुनि दीक्षा प्रदान करने की कृपा कीजियेगा। कुमार शालिभद्र ने महामुनि जीए सेदीक्षा ग्रहण करली. बस समाधिकरण की ओर। धीरे-धीरे आहार का त्याग करने लगे। परिणामों में शुद्धि आगे लगी। जल भी छोड़ दिया। ओर मरकर....... 177 शालिभद्र के पास ..... लो मित्र । मैं आ गया। उठो, चलो, तप करने के लिये बन में चलें। मुनि धनकुमार विहार करते-करते श्रावस्ती नगरी में पंहुंचे वहां पर ..... कुछ दिन पश्चात्... अब मेरी आयु का अंत होने वाला है। अतः अब मुझे अपना आत्महित करना चाहिये, निः शल्य बन जाना चाहिये ।" 23 तेतीस सागर तक सर्वार्थ सिद्धि में रहेंगे, फिर मनुष्य भव धारण करके, मुनि दीक्षा लेंगे और घोर तपश्चरण करके एक दिन मोक्ष प्राप्त करेंगे। और तब होंगे वह सिद्ध भगवान जहाँ पर वह होंगे अनन्त सुखी और वहाँ से वह कभी नही आयेंगे इस संसार में और नही कोई अवतार लेंगे।

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