Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 24
________________ आप लोग अपने हृदय में किसी प्रकार का दुख न माने! आप मेरे पूज्य हैं। आपका किञ्चित भी दोष नहीं है। जब आप अशोक ब्राह्मण के पुत्र थे और मैं अपनी मां भोगवती के साथ आपके यहां रह रहा था तब मैंने आपसे द्वेष करके कर्म बंध किया था। उसी फलस्वरूप मुझे दुख उठाना पड़ा । जब पाप मैंने किया तो दुख कौन भोगता। आप बिल्कुल दुखी मत होइयेगा।, कर्म के उधर बुआ के घर मे....... हैं! यह क्या ? मेरे सिर पर यह सफेद बाल देखो रूप और सौन्दर्य को नष्ट करने वाली वृद्धावस्था आगई । वह सफेद बाल मृत्यु का वारंट ही तो है। बस अब मैं मुनि दीक्षा लेकर अपना कल्याण कर लूँ, इसी में भला है। और हा इस अवसर पर मैं अपने बिजी आदमी को भेजकर अपने महान हितकारी धमकुमार को भी बुला लूँ। वह मेरा, भाई तो है ही, बहनोई भी तो है ।) Stay शालिभद्र को धन्य है जो उसने ऐसा विधारा। मैं भी इन भोगों से ऊब गया हूँ। मुझे भी वैसा ही करना चाहिये। बिना मुनि बने कल्याण नहीं।) हे धनकुमार जी, शालिभद्र जी ने कहा है कि मित्र, मैं मुनि दीक्षा, ले रहा हूँ, अतः आप मुझसे आकर मिललें। (अहा! हा! हा! आप और मुनि बनेंगे। जो अपनो काम स्वयं नहीं कर सकता वह दीक्षा लेगा?) (अचरज है। Ross 22 इस प्रकार सब साथ रह रहे थे।

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