Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 22
________________ हमने तमाम उम्रगरीबी मेंही गरीबीकी मजाक-जात बिताई।कभी इतना घन स्वप/ घनकुमार को चुभी और..... में भी नहीं देखा। हमारा होता तो पहले अच्छा भाई घन मेरा परन्तु में इसे तुमकोदेता। सेक्यों न निकलता क्यों हूँ अतः तुम्हें इसे स्वीकार हमारी गरीबी कर ही लेना चाहिये। कीमजाक यदि तुम्हें मुझसे प्रेम है तो यह भेंट स्वीकार उड़ाते हो? करनी ही होगी घन का कलश लेकर हलवाहक प्रसन्नचित परदेशी के विषय में.. सोचता हुआवापिस लौट गया और धनकुमारआगे बदतागया। चलते-चलते... एकजगह.. (प्रभो।मैं धन्य हुआजो आपके दर्शन हुए कृपया बतलाइये कि में इतना पुण्यशालीक्यों है? बेटा ! तुने पूर्वजन्म में जैन धर्म में श्रद्धानके व्रत ग्रहण किये उसी का यह फलहे। यदि सुखी रहना चाहता तो भविष्य में भी यही मार्गअपमा। मुनिराज की आज्ञा शिरोधार्य करके धनकुमार आगेबद चला और आप कौन है, कहांसे आये है? (भैया। में परदेशीहूँ।थका (हुआ था / नींद आगई। क्षमा करें। RSARY indoor 20

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