Book Title: Jo Kare So Bhare Author(s): Moolchand Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 7
________________ अरे बावले। यह तेरी झोली तो फटी है। इसमें चने टिकते कैसे और फिर बिना पुण्य के कुछ मिलता भी तो नहीं है। जोलक्ष्मी को दान देता है उसे ही लक्ष्मी मिलती है और हायपुत्रादेव भाग्य की विडम्बना, जो तुम्हारे पिता के यहाँ नौकर था आज उसी के यहानौकरी तुझे करनी पड़ी। हमे यदि गौरव से जीनाहै तोइस नगर से बाहर चले जाना चाहिये। SUVHANE भोगवती अपने बच्चेअकृतपुण्य | को लिये पहुंच गई शीशबागनाम के गांव में अशोक नामक सदा गृहस्थ के पास भैया। मै दुरिवयाहूँ। रात्रिको पुत्र के साथ यहां विश्राम करने की आज्ञा देदो तो आपका अहसान मानूंगी। बहिन वह अपना ही घर समझो मेरेसात पुत्र जिनकी देस्वभाल करने वाला कोई नहीं है। तुम अपने बच्चे के साथ यहां आराम से रहो और मेरे बच्चों की देख भाल करती रहो। तुम्हेंव तुम्हारे बच्चे को यहां कोई कण्ट नहीं होगा।Page Navigation
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