Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 8
________________ अकृतपुण्य अपनीमांकसाथ अशोकव उसके सात पुत्रों के साथ रहने लगा। वेसातपुत्र बातबात में उसकी मां को बुरीभली भी कह देतेये। उस समय अकृतपुण्य के भाव होते थे कि येमेटरी, माताकाअपमान करते हैं अतः येमर जायें तोअच्छा इनरखोटे परिणामो से उसनेयापका बोधकिया एक दिन..... | बेटा आजतुमइनबछड़ों को जंगल मे ले जाओ और घास (चरालाओ अच्छा सामाजी अब क्या होगा? बघड़े तो सबभाग गये।मैं घराता हूँ जब बहुत देर तक अकृतपुण्य घर नहीं पहुचातो.... घबराओनहीं बहिन! मैंअभी तोमामा (अशोक)कीमार पड़ेगी मुझे घर नहीं जाना (अया!अभी तक मेरा लड़का नहीं आया।नमालूमक्या)। उसे ढूंदकर लाता हूँ। चाहिये। बात है। '11 . TRODJM

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