Book Title: Jo Kare So Bhare
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 11
________________ उधर. भैया! अब हमें अकृतपुण्य को ढूंढने के लिये चलना चाहिये। O अच्छा बहिन चलो चले । और पहुँच गये जंगल में 6 माँ मृतक के शरीर को छोड़, मुझे अपना पुत्र जान, मुझे प्यार कर।) माँ तू आश्चर्य मतकर। मैं धर्म के प्रभाव से देव हुआ हूँ । धर्म से क्या नही मिलता! तू भी शोक को छोड़, मुनि महाराज, का उपदेश सुन धर्म को धारण कर, तुझे भी सुख मिलेगा। 9 हैं! यह क्या? हाय रे मेरे पुत्र ! तू मुझे अकेला छोड़कर कहां चला गया। मैं बड़ी भाग्य हीन हूँ। आ, तू मेरी गोद में बैठ और एक बार मुझे मां कह कर प्रकार Smyth mant

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