Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 141
________________ १३४ जीबन की पोथी क्षण में क्या घटित हुआ था ? देखते जाओ। चलचित्र के समान सारा अतीत स्पष्ट हो जाएगा। उस समय आप अतीत को ऐसे पढ़ने लगेंगे जैसे कोई खुली पुस्तक का पन्ना पढ़ रहे हैं । कर्मवाद और अध्यात्मयोग की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण पढ़ने का जो है वह है जीवन का पहला अध्याय-बचपन । उसे पढ़ना अत्यन्त आवश्यक है। ध्यान करने वाले को उस दस वर्ष तक की अवस्था में, बचपन की अवस्था में जाना जरूरी है। इस अवस्था में सहज समता की स्थिति रहती है। मुनि को कहा जाता है कि वह एक छोटे बच्चे की भांति रहे। बच्चे में आग्रह नहीं होता, पकड़ नहीं होती । प्रतिकूल बात होगी तो बच्चा नाराज होकर रो पड़ेगा । किन्तु मन में ग्रन्थि नहीं रहेगी। तत्काल भूल जाएगा। बच्चा वर्तमानजीवी होता है । ऐसा जीवन होना चाहिए। बड़े आदमी का कोई अपमान कर देता है, तो वह गांठ बांध लेता है, वर्षों तक उसे नहीं भूलता। कितना अन्तर है, एक ९-१० वर्ष के बच्चे में और ५०-६० वर्ष के व्यक्ति में ! इसीलिए जहां सरलता, निश्छलता, पवित्रता का निदर्शन करना होता है, बच्चे की बात कही जाती है। जहां दोषों के प्रायश्चित्त की बात आती है, वहां दोषी व्यक्ति को प्रेरित किया जाता कि वह छोटे भोले बालक की तरह अपना दोष स्पष्ट रख दे, छुपाये नहीं। अध्यात्म योगी के पास कोई आलोचना करने, दोष-विशुद्धि करने जाएगा तो वह कहेगा-तुम दुःख का भार ढो रहे हो, कष्ट पा रहे हो । यह सारी उस बुरे आचरण की प्रतिक्रिया है, जिस आचरण को तुमने स्वयं किया है। इसलिए तुम शारीरिक और मानसिक क्लेश पा रहे हो । अब तुम अपने मन को खोलकर रख दो और जो कुछ किया है उसकी पवित्र मन से आलोचना करो भोले बालक की तरह। तुम्हारी मानसिक ग्रंथि भी खुल जाएगी और बीमारी भी मिट जाएगी। एक बीमार ने डॉक्टरों के पास सारे टेस्ट और चेक-अप करवा लिए । बीमारी का कोई पता नहीं चला। डाक्टरों ने कहा--तुम्हारे कोई बीमारी नहीं है । उसने कहा--मैं अपार दुःख भोग रहा हूं और आप कहते हैं कि कोई बीमारी नहीं है, कैसे मानूं ? कारण क्या है ? डाक्टरों के पास इसका कोई उत्तर नहीं है । डाक्टरों के आधुनिकतम उपकरण जिस बीमारी को पकड़ने में समर्थ हैं, वह बीमारी इस व्यक्ति के नहीं है। यह व्यक्ति जिस बीमारी से ग्रस्त है, बीमारी इन उपकरणों से नहीं पकड़ी जा सकती। यह वृत्तियों की बीमारी है । यह भावनात्मक बीमारी है । इस बीमारी से छुटकारा तब तक नहीं मिल सकता जब तक गांठ नहीं खुल जाती। यह गांठ तब तक नहीं खुलती जब तक व्यक्ति बचपन की अवस्था में नहीं चला जाता, उस सुदूर अतीत की यात्रा पर नहीं निकल पड़ता। जब तक वह सरल बनकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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