Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 190
________________ जागरूकता : दिशा-परिवर्तन आमेट से चले और राजसमंद पहुंच गए। जब चले तब राजसमंद की ओर मुंह था और आमेट की ओर पीठ थी। हम चलते चले । राजसमंद निकट होता गया और आमेट दूर होता गया। दूर और निकट कौन होता है ? जिसकी तरफ मुंह होता है, वह निकट होता है और जिसकी तरफ पीठ होती है वह दूर होता है । प्रश्न होता है अभिमुखता का। हमारी अभिमुखता किस ओर है ? हमारा मुख सुख-शांतिमय जीवन की ओर है या समस्याओं से संकुल जीवन की ओर है ? बस, यही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । यदि हमारी अभिमुखता सुलझाने की ओर है तो जीवन की दिशा बदल सकती है। यदि हमारी अभिमुखता उलझाने की ओर है तो समस्या का जाल अनन्त बनता चला जाएगा। कहीं अन्त नहीं आएगा। प्रश्न जीवन से पलायन करने का नहीं है। पलायन कर कहां जाएंगे? संसार से बाहर तो जा नहीं पाएंगे। इस जीवन में रहें या अगले जीवन में, भारत में रहें या किसी देश में, कहीं न कहीं आदमी को टिकना होता है । दिशा-परिवर्तन का अर्थ पलायन नहीं है । यह तो केवल अभिमुखता का परिवर्तन है। हम छाया को पकड़ने के लिए भाग रहे हैं। हमारी अभिमुखता छाया की ओर है, यथार्थ की ओर नहीं है। हमारी अभिमुखता प्रतिबिम्ब की ओर है, बिम्ब की ओर नहीं है। शीशे में दिखाई देने वाला प्रतिबिम्ब है, बिम्ब नहीं है । प्रतिबिम्ब और छाया के आधार पर चलना उलझनों को बढ़ाना है। मैं एक कमरे में बैठा था। वहां एक कांच टंगा हुआ था। वहां एक चिड़िया आई। कांच पर बैठ कर चोंच मारने लगी। मैंने एक बार कविता भी लिखी थी। उसकी पहली पंक्ति थी-'चिड़िया चोंच मार रही है शीशे पर।' मैं देख रहा था चिड़िया को। वह अत्यन्त व्यग्र और परेशान थी। वह सोच रही थी कि भीतर की चिड़िया को चोंच मार-मार कर परास्त कर दं। वह शक्ति लगा रही थी। वह बेचारी समझ ही नहीं पा रही थी कि भीतर में दिखाई देने वाली चिड़िया कोई दूसरी नहीं, वह स्वयं ही है। भ्रम गहरा था। वह चोंच मार रही थी। चोंच घायल हो गयी थी। चिड़िया ही नहीं, प्रत्येक आदमी शीशे के सामने बैठा है । वह अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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