Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 197
________________ १९० जीवन की पोथी धर्म का पहला लक्षण है करुणा का विकास, अनुकम्पा का विकास । जिसके मन में करुणा नहीं है, अनुकम्पा नहीं है, जिसके हाथ दूसरों को सताते समय नहीं कांपते, तो मानना होगा कि धर्म कहीं छुआ भी नहीं। हमें इस क्रूरता का कारण खोजना होगा । व्यक्तिगत रूप में कोई क्रूर होता है तो बात समझ में आ जाती है। व्यक्तिगत रूप में कोई चोर हो सकता है, डाक, लुटेरा और हत्यारा हो सकता है, पर पूरे समाज के साथ अन्याय करना यह बीसवीं शताब्दी की नई घटना है। ___ आज जब पूछा जाता है कि बीमारियां क्यों बढ़ रही हैं तब उत्तर मिलता है कि आज ऐसा जमाना आ गया कि यहां न शुद्ध आटा मिलता है, न शुद्ध घी और दूध मिलता है और यहां तक कि पानी भी शुद्ध नहीं मिलता। यही कारण है बीमारियों के बढ़ने का। क्या यह अशुद्धि गरीबी के कारण आई है ? नहीं, ऐसा नहीं है। गरीबी पहले भी थी, पर इतनी अशुद्धि नहीं थी। यह अशुद्धि गरीबी के कारण नहीं, क्रूरता के कारण आई है । मनुष्य में करुणा का स्रोत सूखता जा रहा है और क्रूरता पनपती जा रही है। जैसेजैसे क्रूरता का विकास होगा, आदमी भेड़िया बनता जाएगा । वास्तव में धन के प्रति जितना लोभ होता है उतनी ही क्रूरता बढ़ती है। तब फिर भाई भाई को, पिता पुत्र को और पुत्र पिता को मारने में नहीं हिचकता । निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि क्रूरता का कारण है -लोभ । . अर्यशास्त्रियों ने इस क्रूरता को बढ़ाने में परोक्षतः हाथ बंटाया है। उनका सूत्र है -इच्छा का विस्तार । इच्छा बढ़ेगी तब पदार्थ का विकास होगा और पदार्थ का विकास समाज के विकास का लक्षण है। 'इच्छा का विस्तार'-इस सूत्र से हर आदमी के मन में इतनी आकांक्षा जाग गई कि लखपति करोड़पति बने बिना शान्ति से नहीं बैठता । अर्थ का विस्तार उसका जीवन लक्ष्य बन गया। इससे क्रूरता को पनपने का अवसर मिला। सृष्टि संतुलन की शाखा ने समाज के सामने एक बात रखी कि पदार्थ सीमित हैं, इच्छाएं अनन्त हैं। यदि इच्छाओं और आकांक्षाओं का विस्तार होता गया तो समस्याएं अनन्त बन जाएंगी। उनका कभी अन्त नहीं होगा। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा पर नियंत्रण करना चाहिए। जब इच्छा पर नियंत्रण करने की बात आएगी तो समाज को बदलने की बात सोची जा सकेगी। यह बदलाव यथार्थ का बदलाव होगा। इच्छा पर नियंत्रण किए बिना बदलाव की बात सोचना बीमारी को बढ़ावा देना है। आज हर व्यक्ति अर्थ-लोलुपता की बीमारी से ग्रस्त है । आज जितना धन का मूल्य है, उतना मनुष्य का नहीं है। बदलने के लिये करुणा का विकास जरूरी है और इच्छा पर नियंत्रण आवश्यक है। यदि हम इच्छा पर नियंत्रण नहीं कर पाए तो शताब्दी के बीतते-बीतते 'पुनर्मूषको भव' वाली बात चरितार्थ हो जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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