Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ १८० जीवन की पोथी उनकी चिकित्सा करना नहीं चाहता । तुम जो दवा देना चाहते हो उससे भी अचूक दवा है मेरे पास । मैं चाहूं तो क्षण में निरोग हो सकता हूं । वैद्य ने आश्चर्य के साथ सुना और विस्मित नयनों से देखा कि मुनि ने अपने थूक का छींटा दिया शरीर पर और जो शरीर गलित कुष्ठ से पीड़ित था, वह स्वर्गमय बन गया । यह वही वैद्य था जो पहले बुढ़े ब्राह्मण के रूप में आया था। यह मुनि वही चक्रवर्ती सनत्कुमार था और बीमार बना था रूप के अहंकार के कारण । अब बीमारी को मिटाने की क्षमता प्राप्त कर ली है चित्त की निर्मलता के कारण । उस समय चक्रवर्ती ने शरीर को देखा अहंकार के साथ, अहंकार की काली छाया में और आज देख रहा है चित्त की निर्मल धारा में । देखनेदेखने में कितना बड़ा अन्तर आ गया । पदार्थ कोई बुरा-भला नहीं होता । पदार्थ चाहे धन हो, सरीर हो, भोजन हो या कपड़ा हो। पैसा ही धन नहीं है। धन वह है जिसमें विनिमय की क्षमता है, जिसकी उपयोगिता है । पशु भी धन है तो आदमी भी धन है । पशु का विक्रय होता है, आदमी का भी विक्रय होता है, विनिमय होता है । धन है । कोई बुरी बात नहीं है । जब हम देखना नहीं जानते तब धन अभिशाप बन जाता है। और हम देखना सीख जाते हैं तब धन उपयोगिता की वस्तुमात्र रह जाता है, केवल उपयोगिता । जो देखना नहीं जानता, वह धन का संग्रह करता है। जो देखना जानता है वह मात्र उसका उपयोग करता है । देखना न जानने के कारण दुनिया में कितनी समस्याएं उभरी हैं, यह आज स्पष्ट है । गोरे और काले की समस्या न देखने का ही परिणाम है । देखना न जानने के कारण घृणा है, तिरस्कार है, अहंकार है । दक्षिण अफ्रिका का सारा संघर्ष काले-गोरे का संघर्ष है अथवा देखना न जानने का संघर्ष है | किंग लूथर की हत्या कर दी गई, क्योंकि वह काला था, भले ही फिर वह अहिंसावादी ही क्यों न रहा हो ! जाति का मद, वैभव का मद, रूप का मद - यह सब देखना न जानने का परिणाम है। इससे अहंकार और घृणा पनपती है । सारा सामुदायिक व्यवहार लड़खड़ा जाता है । विद्या, धन, परिवार, वैभव- ये सब मद अहंकार के कारण हैं । मद का अर्थ है अहंकार | इसको हम उलटकर पढ़ें तो 'मद' 'दम' हो जाएगा । जिसने देखना सीख लिया उसके लिए विद्या, धन, वैभव आदि 'दम' बन जाएंगे, शांति के साधन बन जाएंगे । स्थानांग सूत्र में भगवान् महावीर कहते हैं— जो आत्मवान् होता है उसके लिए ज्ञान, लाभ, ऐश्वर्य आदि साधना के निमित्त बनते हैं, कल्याण के पूरक बनते हैं । जो व्यक्ति आत्मज्ञ नहीं है, आत्मवान् नहीं है, उसके लिए ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202