Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 186
________________ जागरूकता : संतुलन की प्रक्रिया १७९ भीं शीशे में देख रहा हूं, यह तुम्हारी हंसी का कारण है । परन्तु मेरा शीशे में देखने का दूसरा प्रयोजन है जो तुम नहीं जानते । मैं जानता हूं कि मैं सुन्दर नहीं हूं, कुरूप हूं । मैं चाहता हूं कि बाहर में जो कुरूपता है वह भीतर में कहीं रह न जाए। मैं भीतर की कुरूपता को मिटाने के लिए शीशे में देख रहा हूं ।' जो व्यक्ति देखना जानता है वह अपनी कुरूपता के कारण कभी हीनभावना से ग्रस्त नहीं होता । जो देखना नहीं जानते, वैसे युवक-युवतियां अपनी कुरूपता को देखकर हीनभावना से इतने ग्रस्त हो जाते हैं कि वे जीवन के रस को ही समाप्त कर देते हैं । वे माता-पिता और भाग्य को कोसते हैं, दुःख पाते हैं । जो व्यक्ति भीतर के सौन्दर्य को प्रकट कर सकता है, उसके बाह्य सौन्दर्य का कोई विशेष अर्थ नहीं रह जाता । जो व्यक्ति भीतर में सुन्दर है, वही वास्तव में सुन्दर है । बाहर के सौन्दर्य या भद्दापन का कोई विशेष प्रयोजन नहीं | महात्मा गांधी, सुकरात आचार्य कुन्दकुन्द, श्रीमज्जयाचार्य आदि में बाह्य सौन्दर्य नहीं था, किन्तु उनका आंतरिक सौन्दर्य इतना गहरा था कि आज भी उनका व्यक्तित्व सबको मुग्ध किए हुए है। हजारों-लाखों व्यक्ति उनके चरणों के अनुयायी हैं । अनेक सेनापति ऐसे हुए हैं जिनका बाह्य व्यक्तित्व नगण्य था किन्तु उनका आंतरिक व्यक्तित्व शौर्यपूर्ण था और उन्होंने वह चमत्कार दिखाया जो सुन्दर सेनापति नहीं दिखा सके। इनके पराक्रम और बुद्धिमत्ता की कथाएं आज भी रुचि से कही जाती हैं । सुन्दर वह होता है जिसका अन्त करण सुन्दर होता है । अन्तःकरण का सौन्दर्य चित्त की निर्मलता पर आधारित है । जिसकी आत्मा निर्मल होती है, वह होता है सुन्दर । अहंभाव और हीनभाव से वही ग्रस्त होता है जिसे आंतरिक सौन्दर्य का बोध नहीं है । भयंकार रोग पैदा कर जिस व्यक्ति ने देखना सीख लिया, वह अहंकार से बच जाता है । सम्राट् सनत्कुमार ने देखना नहीं जाना तो वे रूप के अहंकार से ग्रस्त हो गए । अहं की तीव्र परिणति ने उनके शरीर में सोलह दिए । शरीर में कीड़े पड़ गए । बोध हुआ और वे राज्य का परित्याग कर मुनि बन गए । उन्होंने अपने आपको देखा और द्रष्टा बन गए, दार्शनिक बन गये । वस्तुत: दार्शनिक वह होता है, जो स्वयं को देखता है, जो द्रष्टा है । जो केवल तत्त्वों का विश्लेषण करता है, पदार्थ जगत् को जानता है, वह तार्किक हो सकता है, दार्शनिक नहीं । दार्शनिक वही होता है जो तपता है, खपता है और आत्मद्रष्टा बनता है । रोग ग्रस्त है । वैद्य आकर बोला, मेरे पास अचूक दवा है । सारे रोग एक साथ मिट जाएंगे। मुनि ने कहा- मुझे रोगों का भान है । पर मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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