Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 184
________________ जागरूकता : देखने का अभ्यास १७७ कर पाते हैं । लोग मूर्च्छा में रहना अधिक पसन्द करते हैं । उन्हें जगाना अत्यन्त कठिन होता है । इस स्थिति में सचाई बहुत कम सामने आती है । व्यक्ति में कर्त्तव्य और अकर्तव्य की भेदरेखा नहीं रहती । नींद मूर्च्छा है, जागना अमूर्च्छा है | जगाने के लिए दोनों सचाइयों को समझना बहुत जरूरी है । व्यवहारनय को व्यवहार की भूमिका पर समझना और निश्चयनय को निश्चय की भूमिका पर समझना जरूरी है । ऐसा होने पर ही साधना का जीवन पूरे समाज के लिए वरदान बन सकता है । समाज उससे लाभान्वित हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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