Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 183
________________ १७६ जीवन की पोथी भद्र ! साधु अनेक बातें सुनता है । अनेक दृश्य देखता है किन्तु वह साधक सारी सुनी हुई और देखी हुई बातें किसी से नहीं कहता । वह अपने में मस्त रहता है। युवक निश्चिन्त हो गया । साधु को मुक्त कर दिया । जो व्यक्ति समुदाय में जीता है, उसके समक्ष अनेक घटनाएं आती हैं। यदि वह उन सबसे प्रभावित होता है तो इसका अर्थ है कि वह अकेला नहीं, दो है। अकेले होने का तात्पर्य है, सचाई को जानना, स्वयं अलिप्त रहना और विमर्श करना । विमर्श करना बुरा नहीं है । विमर्श स्वयं एक दीपक बन जाता है । समुद्रपाल वातायान में बैठा था । आरक्षी लोग एक व्यक्ति को घसीटते हुए ले जा रहे थे । उसके हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां थीं। उनको लालवस्त्र पहनाए गए थे । गले में कणेर के लाल फूलों की माला थी। समुद्रपाल को बताया गया कि यह अन्यायी है, चोर है, इसे सूली पर चढ़ाने के लिए वधस्थान की ओर ले जाया जा रहा है । समुद्रपाल ने सुना, विमर्श हुआ और यह तथ्य उभर कर सामने आया कि अशुभ का फल यहां भी भोगना पड़ता है और मरकर भी भोगना पड़ता है। भावों की विशुद्धि हुई और समुद्रपाल को मार्ग मिला गया। साधक का कार्य है कि वह दुर्बल व्यक्ति के प्रति घृणा न करे । दुर्बलताओं से बोधपाठ लेना आवश्यक है, पर घृणा करना उचित नहीं है । आर्द्रकुमार भगवान महावीर के पास जा रहा था। मार्ग में अनेक धर्मों के आचार्य मिले । किसी ने कह दिया-तुम दूसरों की निन्दा करते हो। आर्द्रकुमार ने कहा-मैं दृष्टिकोण की गर्दा करता हूं, किसी व्यक्ति-विशेष की गाँ नहीं करता । जो मिथ्या दृष्टिकोण है उसकी निन्दा करता हूं, मिथ्यात्वी की निन्दा नहीं करता। महात्मा गांधी भी कहते थे, पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। सारी घटनाओं का हम आकलन अवश्य करें, यह सोचें कि कर्म का विपाक कितना विचित्र होता है । कर्म के विपाक के कारण जगत् में सारी विचित्रताएं हैं, नानात्व है, भेद है। विपाक का चिन्तन कर सही मार्ग को देखना, आपने आपको संभालना यह ऋजु मार्ग है। जब यह दृष्टिकोण विकसित होता है तब देखने का अभ्यास होता है । जागरूक का अर्थ है--देखने का अभ्यास । सचाई को दोनों दृष्टियों -व्यवहार दृष्टि से तथा निश्चयदृष्टि से देखना । दोनों की भूमिकाओं को अलग-अलग समझना । व्यवहार को निभाते हुए, व्यवहार की भूमिकाओं पर चलते हुए निश्चय की भूमिका पर जाएं और निश्चय में जो अपने भीतर अपना अकेलापन छिपा हुआ है, उसका अनुभव करें, निजी वैयक्तिकता का अनुभव करें। यदि ऐसा होता है तो जागरूकता बढ़ती है । जगाना बहुत बड़ी अपेक्षा है, कला है, साधना है । पर बहुत कम व्यक्ति इस दिशा में प्रस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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