Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 162
________________ अध्यात्म की चतुष्पदी १५५ नहीं होता । 'आत्मा का अनुभव करो', 'चैतन्य का अनुभव करो,' ये सारे गढ़े हुए शब्द हैं । इनमें सार कम है । सचाई यह है कि जिस भूमिका पर हम हैं, उसमें न आत्मा का अनुभव हो सकता है और न अस्तित्व का अनुभव हो सकता है । हमें इनका अनुभव तब होगा जब हम अनुभव-चतुष्पदी का अभ्यास करते हैं। अनुभव का पहला चरण है अनित्यता का अभ्यास । जैसेजैसे पदार्थ की अनित्यता का अभ्यास पुष्ट होगा, वैसे-वैसे पदार्थ के संयोग और वियोग से होने वाली रति और अरति समाप्त हो जाएगी। आज प्रतिकूल पदार्थ मिलने पर विषाद और अनुकूल पदार्थ मिलने पर हर्ष होता है । अनुकूल पदार्थ का वियोग होने पर भी और अनुकूल पदार्थ का संयोग होने पर भी कष्ट होता है । जब अनित्यता की चेतना प्रखर होती है तब कोई कष्ट नहीं होता । जब यह सचाई कि पदार्थ का संयोग भी होता है और वियोग भी होता है, आत्मगत हो जाती है, केवल शाब्दिक नहीं रहती तब कष्ट हो ही नहीं सकता । जब अनुभूति के स्तर पर यह चेतना जाग जाती है तब न मृत्यु का कष्ट होता है और न बुढ़ापे का कष्ट होता है। तब प्रतिकूलता भी कष्टदायी नहीं होती। अध्यात्मवादी ही इन कष्टों से बच सकता है। केवल अध्यात्म को पढ़ने वाला, अध्यात्म पर प्रवचन करने वाला इन कष्टों से नहीं बच सकता । जो अध्यात्म को वास्तव में जीता है, अनुभूति के स्तर पर जीता है, वही बच सकता है । उसका आनन्द तभी अबाध हो सकता है । अनन्त हो सकता है । यदि व्यक्ति वर्तमान क्षण में इस अबाध आनन्द या मुक्ति का अनुभव नहीं करता, वह मरने के बाद भी कभी नहीं कर पाएगा। मोक्ष उसी को मिलता है जो वर्तमान क्षण में मोक्ष का अनुभव करता है। इस अनुभव के लिए अनित्य अनुप्रेक्षा का अभ्यास जरूरी है। अभ्यास भी इतना प्रबल कि उसका साक्षात्कार हो जाए । वही मंत्र सिद्धमंत्र माना जाता है जिसका साक्षात्कार हो जाता है । 'ओम', 'अहं', आदि जितने भी मंत्र-पद हैं, उनका कितना ही जाप करें, परन्तु जब तक उनका साक्षात्कार नहीं होता, तब तक उन्हें सिद्ध नहीं माना जा सकता। वैसे ही अनित्यता का साक्षात्कार होना आवश्यक है। संबोधि क्या है ? अनित्यता का साक्षात्कार होना ही संबोधि है । साक्षात्कार होने का अर्थ है संबोधि की चेतना का जागरण । बोधि के तीन प्रकार हैं-ज्ञानबोधि, दर्शनबोधि और चारित्रबोधि । बुद्ध भी तीन प्रकार के हैं-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध । ज्ञान का साक्षात्कार, दर्शन या सचाई का साक्षात्कार और आचरण का साक्षात्कार । _अनित्यता का साक्षात्कार अध्यात्म का पहला लक्षण है । यदि कोई पूछे कि आध्यात्मिक व्यक्ति कौन तो उत्तर होगा, जिसने अनित्यता का साक्षात् कर लिया, वह आध्यात्मिक है। हम नहीं कहेंगे कि जिसने आत्मा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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