Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 165
________________ १५८ जीवन की पोथी 1 आती । शरीर से भिन्न जो है वह मैं हूं, यह है अन्यत्व अनुप्रेक्षा का सूत्र । जब यह भेद -ज्ञान प्रकट होता है तब अध्यात्मवाद में प्रवेश होता है । आदमी व्यक्तित्व के तीन लक्षण मानता है -स्मृति, कल्पना और चिंतन । ये तीनों आत्मिक नहीं, यांत्रिक हैं । कम्प्यूटर में ये तीनों नियोजित मिलते हैं । संवेदन आत्मिक होता है, यांत्रिक नहीं हो सकता । सुख-दुःख का संवेदन करने वाला जो है, वह है हमारा अस्तित्व । यह अन्यत्व की चेतना जब जागती है तब आध्यात्मिकता का प्रादुर्भाव होता है । आदमी जितना अधिक बंधनों से घिरा रहता है, उतना ही अपने को समर्थ मानता है । आदमी अकेला रहना नहीं जानता इसलिए वह कहता रहता है, मैंने अपने भाई का इतना भला किया, पर अन्त में मुझे धोखा दे गया । मैंने अमुक को इतना सहयोग दिया और आज वह मेरा कट्टर शत्रु बन गया है । मुझे बड़ा कष्ट होता है । ऐसी घटनाएं तो होती हैं, पर कष्ट तभी होता है जब आदमी घिरा रहता है, अकेला रहना नहीं जानता । हम कितनी ही भलाई करें, दूसरों का कल्याण करें, पर इस बात को न भूलें कि अन्तत: मैं अकेला हूं | जो इस बात को भुला देता है, वह कष्ट की अनुभूति करता है । कष्ट को उसने स्वयं निमन्त्रण दिया है । यह उसकी मूर्खता है । अन्तिम सचाई को याद रखने वाला कभी दुःखानुभूति नहीं करता । ये अध्यात्म की चार सचाइयां हैं १. अनित्यता की अनुभूति २. अशरणता की अनुभूति ३. अन्यत्व की अनुभूति ४. एकत्व की अनुभूति । आध्यात्मिक व्यक्तित्व उसी का हो सकता है, जिसमें ये चारों सचाइयां प्राप्त हैं । जो इन सचाइयों का साक्षात्कार कर लेता है वह सुख और आनन्द का जीवन जी सकता है । वह सुख की नींद सो सकता है । पारिवारिक और सामुदायिक जीवन में जो मानसिक तनाव आता हैं, उसका कारण इन चारों में खोजा जा सकता है। तनाव का एक कारण होता है जब व्यक्ति को प्रतिकूल का संयोग और अनुकूल का वियोग होता है । पिता कल्पना करता है कि बेटा बुढ़ापे में सहयोगी बनेगा। बुढ़ापा आतेआते बेटा घर छोड़कर चला जाता है, अलग हो जाता है । बाप तनाव से ग्रस्त हो जाता है । जिसे वह शरण मान रहा था, वह अशरणभूत हो जाता है । जिसे वह अभिन्न मानकर चलता है, उनसे जब उसे भिन्नता की अनुभूति होती है, तब वह तिलमिला जाता है । जीवन जहरीला बन जाता है । जिसके जीवन में यह चतुष्पदी उतर जाती है, उसके तनाव के कारण मिट जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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