Book Title: Jinabhashita 2008 04 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 7
________________ के साथ सुरक्षित रख सकेंगे और रख रहे हैं। । किन्तु अन्दर से आप कितने चिपके हुए हैं? बचपन आज हिंसक का अनादर हो सकता है, झूठ बोलने | की घटना है। मैं एक आम्र वृक्ष के नीचे बैठा था, वाले का हो सकता है और चोर का भी हो सकता | वृक्ष में आम लगे हुये थे, गुच्छे के गुच्छे, ऊपर की है किन्तु परिग्रही का आदर होता है, जितना परिग्रह बढ़ेगा | ओर देख, पेड़ बहुत ऊँचा था, बैठे-बैठे इधर-उधर देखा, उतना ही वह शिखर पर पहुँच जायेगा, जो कि धर्म | तीन-चार पत्थर पड़े थे, उनको उठाया और निशाना देखकर ये सही नहीं है। धर्म कहता है कि यह हिंसा | मारना प्रारम्भ कर दिया, पत्थर फेंका, वह जाकर आम का समर्थन है, यह चोरी का समर्थन है, यह झूठ का, | को लग गया। मैंने सोचा चलो एक आम्र फल नीचे असत्य का समर्थन है, और कुशील का समर्थन है। आ ही गया अब तो, किन्तु आम नहीं उसकी एक कोर आप चाहते हैं धर्म, किन्तु (परिग्रह को) छोड़ना नहीं | टूट कर आ गयी। यह आम की ओर से सूचना थी चाहते इसलिये ऐसा लगता है कि आप धर्म को नहीं कि मैं इस प्रकार छोड़ने वाला नहीं हूँ, इस प्रकार टूटने चाहते। आपका कहना हो सकता है कि सारे-के सारे | वाला नहीं हूँ, मेरे पास बहत शक्ति है। उसका डण्ठल निष्परिग्रही हो जायें तो जो निष्परिग्रही हो गये उनको | बहुत पतला है लेकिन उसमें बहुत शक्ति थी। वह इतने आहारदान कौन देगा? आप शायद इसी चिन्ता में लीन | पत्थर से गिरने वाला नहीं है। मैंने भी सोचा कि देखें तो इसकी शक्ति अधिक है या मेरी, एक पत्थर और ___अनन्तकालीन खुराक को प्राप्त कर लेगा, तृप्त | मारा तो उसकी एक कोर और आ गई, वह कोर-कोर हो जायेगा, शान्त हो जायेगा वह आत्मा, जो परिग्रह से | करके समाप्त हो गया किन्तु फिर भी उसका जो मध्य मुक्त हो जाता है। उस मूर्छारूपी अग्नि के माध्यम से | भाग था वह नहीं छूटा। पर्याप्त था मेरे लिये वह बोध आपकी आत्मा तप्त है, तपा हुआ है और उसके (मूर्छा | जो उस आम्र की ओर से प्राप्त हुआ बाहरी पदार्थों से के) माध्यम से विश्व में जो कोई भी हेय पदार्थ हैं, | आप लोगों की इतनी ही मूर्छा हो गयी कि हम खींचना वे सबके सब चिपक गये हैं और आत्मा की शक्ति | चाहें, हम उसको तोड़ना चाहें तो आप उसे तोड़ने नहीं प्रायः समाप्त हो गयी है, हाँ इतना अवश्य है कि बिल्कुल | देंगे और यह कह देंगे कि महाराज! आप भले एक समाप्त नहीं हुई है। आकाश में बादल छाये है, सूर्य | दिन के लिये तोड़ दें पर हम तो वहीं पर जाकर चिपक की किरणें तो नहीं आई किन्तु ध्यान रहे कि उन बादलों | जायेंगे। यह स्थिति है आप लोगों की। इसलिये यह अन्तिम को चीरते हय प्रकाश तो आ रहा है। उजाला तो आ| अपरिग्रह नामक महाव्रत रखा और भगवान ने उपदेश ही रहा है और दिन उग गया. यह भान सबको हो| भी दिया कि संसार का उद्धार हमारे हाथ में नहीं है। गया है। इसी प्रकार आत्मा के पास जो मूलतः शक्ति जब मैं उस आम्र वृक्ष के नीचे चिन्तन में लीन था. है वह बाहरी पदार्थों के माध्यम से तीन काल में भी उसी समय थोडा सा हवा का झोका आया और एक लुट नहीं सकती। इस प्रकार के पदार्थों के माध्यम से पका हुआ आम्र चरणों में समर्पित हो गया, उसकी महक वह मूर्च्छित तो हो सकती है किन्तु पूर्ण समाप्त नहीं सुगन्धि फैल रही थी, वह पका हुआ था, हरा नहीं था, हो सकती, अभी उसकी भाषा रुक जाती है, उसकी | पीला था, कड़ा नहीं था, मुलायम था, और इससे अनुमान काया में स्पन्दन रुक जाता है, सब रुक सकता है किन्तु लगाया कि खट्टा भी नहीं होगा, मीठा होगा और चूसने वह नाड़ी तो धड़कती ही रहती है। इसी प्रकार इस | लगा, आनन्द की अनुभूति आ गयी इसमें कोई सन्देह मूर्छा का प्रभाव आत्मा पर पड़ तो चुका है और इतना | नहीं। थोड़ा-सा हवा का झोंका भी उसके लिये पर्याप्त गहरा पड़ चुका है कि वह निश्चेष्ट हो चुका है किन्तु | रहा। दो-तीन-चार महीने से लगा हुआ जो सम्बन्ध था फिर भी उस घट में श्वास विद्यमान है। वह कुछ न | उस सम्बन्ध को छोड़ने के लिये तैयार हो गया। सामनेवाले कुछ संवेदन कर रहा है। और इसी से यह आशा है | अन्य आम्र जो पके हुये नहीं दिखते, क्योंकि डण्ठल कि यह मूर्छा अवश्य हट सकती है, इसका इलाज | को छोड़ना नहीं चाहते और इस ओर आना नहीं चाहते, हो सकता है। बात तो ठीक है, खींचकर ले भी लिया जाये तो उनमें बाहर से दिखता है कि आप परिग्रह से नहीं चिपके | मिठास तो होगी नहीं, कड़वापन या खट्टापन ही मिलेगा। अप्रैल 2008 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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