Book Title: Jinabhashita 2008 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ वैशाली-जैसी सुनी, जैसी देखी, वैसी । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी भगवान् महावीर की जन्मभूमि वैशाली वासोकुण्ड | भगवान् महावीर का यह जन्मस्थान है। यह भूमि इतनी है यह शास्त्रीय और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से अनेक | पवित्र मानते थे कि उस भूमि पर ग्रामवासी कभी खेती मनीषियों से एकमत से मान्य है। वैशाली के ग्राम बौना | नहीं करते थे, क्योंकि खेती करेंगे तो हल चलाना पड़ेगा पोखर, जहाँ उसी पोखर से निकली मूर्ति ही मूलनायक | जिससे उसकी पवित्रता नष्ट हो जायेगी अतः हल न चलने के रूप में विराजमान है। इस पोखर (तालाब) के आस- | के कारण वह अहल्य भूमि के नाम से जानी जाने लगी। पास सम्पदा अभी भी बिखरी पड़ी है, ऐसा गाँव के लोग | उसी भूमि के निकट एक पीपल का वृक्ष है। यह वृक्ष कहते हैं। न केवल जैनमूर्तियाँ अपितु अजैन मूर्तियों की | भी भूमि की तरह पूजा का स्थान है। भगवान् महावीर के प्राप्ति भी यहाँ खुदाई में होती है। राजा चेटक का यह | नाम से जुड़ा वह वृक्ष यदि कभी आँधी, तूफान में गिर पहला विशाल गणतन्त्र था जिसमें प्रजातान्त्रिक पद्धति से | गया तो ग्रामवासी उसी स्थान पर पुनः वृक्ष लगा देते थे। न्याय व्यवस्था सुचारूरूप से चलती थी। कहते हैं कि, | आज भी यदि ग्राम में कोई विवाह या धार्मिक त्यौहार आता यह राजनैतिक व्यवस्था उस समय इतनी सुदृढ़ थी कि | है तो लोग प्रथम उस वृक्ष के निकट अहल्य भूमि को महात्मा बुद्ध ने अपने संघ का विभाजन उन्हीं वैशाली के | पूजकर अपना आगे का कार्यक्रम करते हैं। अभी भी पुष्प, लिच्छिवियों और वज्जिसंघ के संघटन के आधार पर किया | बताशा आदि चढ़ाकर भगवान् महावीर का नाम लेकर उस था। इस पोखर और पास में राजा विशाल के गढ़ (किले) स्थान की पूजा ग्रामवासी करते हैं। के पास से बहुत सी सामग्री प्राप्त हुई है जो राजकीय और जिस भूमि पर भगवान महावीर स्मारक का शिलान्यास केन्द्रीय पुरातात्त्विक संग्रहालय दी गयी है। सन् | १९५६ ई. में राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी और साहू १९५२ में बौना पोखर से एक और जैनमूर्ति खुदाई में मिली | शान्तिप्रसाद जी के द्वारा किया गया है, वहीं निकट में एक थी वह भी संग्रहालय में रख दी गयी। १९८२ ई० में राजा | मंदिर निर्माण का कार्य चल रहा है। पास में ही एक प्राकृत के गढ़ से एक प्याला निकला जो बहुत चमकदार था, | शोध संस्थान है जो विशालकाय और विपुल पुस्तक चीनी मिट्टी का बना जैसा लगता था। वह प्याला वैशाली | संग्रहालय से सहित है। इस समस्त लगभग १७ एकड़ भूमि के म्यूजियम में कुछ दिन रखा रहा। जब एक अमरीकी | को नथुनी सिंह और ग्रामवासियों ने उस सयम दान में दिया पर्यटक आया तो उसने उस प्याले की चमक और मिट्टी | था। इन्हीं नथुनी सिंह के पुत्र जोगेन्दर सिंह है, जो वर्तमान को देखकर उसे खरीदना चाहा। उसका कहना था कि यह | में जैतपुर में फिजिक्स में .............. हैं। आप सरल प्याला २५०० वर्ष पुराना है, इसे खरीदने के लिये उसने | स्वभावी और महावीर के वंशज, ज्ञातृवंशी क्षत्रिय हैं। आपने इसकी कीमत २ लाख रूपये तक लगा दी। म्यूजियम के | ही मुझे यहाँ की स्मृतियों से परिचय कराया। आज भी कर्मचारियों ने कहा कि आप इसके लिये राज्य सरकार | इस ग्राम के आस-पास २५ घर हैं जो क्षत्रिय ज्ञातृवंशियों से सम्पर्क करो। विहार सरकार ने बातचीत करने के | के हैं। परम्परा से चले आ रहे इन घरों में पीढ़ी दर पीढ़ी उपरान्त उस प्याले को केन्द्रीय सरकार को सौंप दिया और | एक व्यक्ति ऐसा अवश्य होता था जो ब्रह्मचर्य का आजीवन वह प्याला केन्द्रीय संग्रहालय में पहुँच गया। जन्म से पालन करता था। कहते हैं कि ब्रह्मचर्य की प्रेरणा __इस वैशाली से लगभग ५ कि.मी. की दूरी पर वह | या शिक्षा दिये बिना ही व्यक्ति ब्रह्मचर्य को स्वीकारता था। स्थान है जो वासोकुण्ड कहलाता है। पहले इसका नाम | ऐसा व्यक्ति खेती-बाड़ी से प्रयोजन रखे बिना पूजा-पाठ निवास कुण्ड था बाद में यह वासोकुण्ड के रूप में प्रचलित | आदि करते हुए शान्ति से अपना पूरा जीवन गुजार देता हो गया। उसी ग्राम में जहाँ भगवान् महावीर स्मारक बना | था। आज भी तीन घरों में ब्रह्मचारी थे पिता नथुनी सिंह है वह भमि, पवित्र भमि है। सदियों से ग्रामवासियों के ने विवाह किया उनके दो सन्ताने हई। दोनों ने ब्रह्मचर्य लिये पीढ़ी दर पीढ़ी यह मान्यता चली आ रही है कि । व्रत धारण कर लिया। आगे कुल परम्परा की चिन्ता से - अप्रैल 2008 जिनभाषित ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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